धर्म और समाज में बंटता त्योहार

यदि हम बात करें मनाए जाने वाले त्योहारों की तो सारे त्योहार आपस में प्यार व खुशी का संदेश ही देते हैं. रक्षाबंधन भाईबहन का प्यार, दीवाली बुराई पर अच्छाई की जीत, होली खुशी व उल्लास के लिए मानते हैं. इस के अलावा कुछ अन्य त्योहार जैसे पोंगल, बैसाखी आदि खेती से संबंधित त्योहार हैं, जो यह दर्शाते हैं कि जब काम का वक्त था जम कर काम किया और जब फसल पकी तो खुशियां मनाओ जोकि एक तरह से व्यवस्थित रहने का तरीका भी है. लेकिन इन खूबसूरत त्योहारों को धर्म, समाज व भाषा में बंटते देख मन बड़ा ही व्यथित हो जाता है.

यह मेरा धर्म यह तुम्हारा धर्म

कुछ वर्षों पहले की बात है. मैं हैदराबाद में तबादले के कारण गई थी. वहां एक अपार्टमैंट में नवरात्र स्थापना यानी कि गुड़ी पड़वा मनाया जाना था. उस के पहले ही अपार्टमैंट के 2 गुटों में विवाद हो गया. एक गुट जो वर्षों से अपार्टमैंट में इस त्योहार को अपने तौर पर मना रहा था और सारे लोग उस में शामिल भी हो रहे थे, वहीं दूसरा गुट आ गया और काफी झगड़े के बाद यह तय हुआ कि इसे बतुकम्मा के नाम से और उसी के रीतिरिवाजों के हिसाब से मनाया जाए. खैर काफी बहस के बाद उसे बतुकम्मा के नाम से मनाया गया. आकर्षक फूलों की सजावट हुई, पंडितों को बुलाया गया, पूजापाठ हुए और केबल टीवी पर उस का लाइव प्रसारण भी हुआ. यह सब हुआ अपनेआप को मानने वाले गुट के जमा किए पैसों और मैनेजमैंट से.

इस तरह के त्योहारों को लोग अलगअलग नाम से मानते हैं, लेकिन इस को मनाने के पीछे चाहे सब का उद्देश्य एक ही है, लेकिन अपने पंडितों के बताए रीतिरिवाजों और अपने जाति, भाषा या क्षेत्र का अहं जब तक शांत न हो कुछ लोगों को त्योहार का मजा ही नहीं आता.

अब कोई उन लोगों से यह पूछे कि ये रीतिरिवाज और धर्म आया कहां से? तो शायद किसी को पता नहीं होगा. सही माने में तो असली रीतियां भी किसी को पता नहीं लेकिन जो पंडित ने बताया वह सब किया और उस के एवज में पंडित को भारी दक्षिणा मिली.

गणपति के लिए चंदा इकट्ठा किया गया तो कुछ पंजाबी लोगों ने यह कह चंदा देने से इनकार कर दिया कि हमारी लोहड़ी तो नहीं मनाते यहां. दोनों में एक खटास धर्म के नाम पर पड़ गई जबकि कहने को धर्म एक ही था.  ऐसे में यह सवाल अहम है कि हम धर्म, राज्य, जाति, भाषा के नाम पर त्योहारों को क्यों अलग करते हैं? त्योहार मनाने के पीछे सिर्फ खुशी के भाव नहीं, बल्कि सभी से मिलेंजुलें, अच्छे परिधान पहनें, लजीज पकवान बनाएं और चेहरे पर मुसकान बिखेरें. लेकिन उस में भी हमारे धर्म, समाज, भाषा पहरेदार बन कर खड़े हो  जाते हैं.

त्योहारों में अगर इन झगड़ों से किसी का भलाहोने वाला है तो सिर्फ पंडेपुजारियों का और धर्म व समाज के ठेकेदारों का.  धर्म की बेलें जहां फलों से लदने लगती हैं वहीं हमारे धर्मगुरु मठाधीश अपने धर्म की तूती बजाने निकल पड़ते हैं और उन के चेले अलगअलग युक्तियों से उन का प्रचार करते हैं.

ऐसे ही धर्म व समाज के ठेकेदार अपने मठों में खुशीखुशी दूसरे धर्मों के नेताओं की चिलम भरते हैं. बस उन्हें उन धर्मगुरुओं से कुछ फायदा चाहिए. जहां अपने चेलों को दूसरे धर्म के खिलाफ भड़काते हैं, वहीं स्वयं जरा से फायदे के लिए दूसरे धर्म के ठेकेदारों को अपने आयोजनों में स्टेज पर मालाएं पहनाते हैं. रही बात समाज की तो समाज तो स्वयं संस्कृति का मुखौटा ओढ़े इस पल इधर तो उस पल उधर रहता है जैसे ही कोई पैसे वाला या कोई अन्य ताकत अपने हाथ में ले कर समाज में दाखिल होता है उसी के हिसाब से समाज के नियम, कानून बदल जाते हैं.  धार्मिक आयोजन में यदि कोई सरकारी ताकत हाथ में हो तो कहने ही क्या. पूरी सोसायटी उस के त्योहार को अपना मानने लगती है, चाहे पीठ पीछे बुराई करेंगे पर सामने सब मुसकान बिखेरते उस में शामिल होने के लिए तत्पर रहेंगे.

स्वयं के फायदे के लिए नहीं है त्योहार

अभी पिछले वर्ष की ही बात है. कुछ विदेशी वस्तुओं के प्रेमी लोग भी होते हैं. बस ऐसी ही महिला को एक विदेशी महिला से दोस्ती बढ़ाते देखा. थोड़े दिन बाद ही उसे क्रिसमस ट्री डैकोरेशन के लिए बच्चों समेत विदेशी महिला के घर जाते देखा. जबकि वह महिला स्वयं आए दिन पूजापाठ कराने के लिए पंडितों को घर में बुलाती रहती. आज सत्यनारायण कथा तो कल वट सावित्री व्रत. और सिर्फ जो रीत वह निभाए वही सही होती, अन्य सभी महिलाएं उसे जबरन मानें वरना जो न मानें उस का पत्ता कट.

बड़े व्यवसाई की पत्नी हैं तो दूसरी महिलाएं भी उस के घर हर तीजत्योहार मनाने सजधज कर चल देतीं. उन्हीं पिछलग्गू महिलाओं में से एक के मुंह से पीठ पीछे से बोलते सुना, ‘‘विदेशी वस्तुओं के चक्कर में मैडम क्रिसमस  भी मनाने लगीं और उस फिरंगी से दोस्ती भी  बढ़ा ली.’’  इस वर्ष भी कुछ नए विचारों के लोगों ने गणपति पूजा पर विभिन्न पदार्थों को ले कर  गणेश की प्रतिमा बनाई. किसी ने मिट्टी की बनाई जिस में खाद व बीज भी मिला दिए ताकि पूजा के बाद उसे सीधे गमले में लगा दिया जाए. न तो उस के पैरों में आने की संभावना और न  ही प्रदूषण. कहने को तो बड़ा नेक विचार पर पंडितों ने उस में कमी ढूंढ़ ली कि फिर विसर्जन कैसे होगा?

वहीं किसी  ने चौकलेट के गणपति बनाए ताकि पूजा के बाद उसे दूध में मिला दिया जाए और वह दूध गरीब बच्चों को पिला दिया जाए.  कुछ महिलाओं के इस पर विचार सुने- किसी ने कहा चौकलेट की बिक्री का तरीका है, तो किसी ने कहा जिस गणपति की पूजा करो उसे ही दूध बना कर पी जाओ, ये कैसी गलत विधि है पूजा की. यहां सोचने की बात यह है कि त्योहार में खुशियां ढूंढ़ें और बांटें भी. आपस में एकदूसरे की कमियां न ढूंढ़ें.

नकारें नहीं अपनाएं

अकसर देखा गया है एक ही भाषा के लोग जब अपने उत्सव मनाते हैं, तो उन के रीतिरिवाज, पहनावा, खानपान सब एक जैसा ही होता है. ऐसे में यदि कोई एक महिला दूसरी भाषा की हो तो उसे शामिल कर लेने में कोई बुराई तो नहीं. उसी उत्सव को वह अपने हिसाब से मना ले आप सभी के साथ और आप भी उस नई महिला की रीतियां अच्छी लगें तो अपना लें. लेकिन नहीं, हमारे यहां तो अपनी भाषा के लोग मिलते ही दूसरे को झट से नकार दिया जाता है. जबकि भाषा तो सिर्फ संचार का माध्यम होती है. आप अपनी बात किसी को कह सकें, भाषा का औचित्य वहीं तक है, लेकिन उस को ले गुटबाजी करना और त्योहार में भी आपस में बंट जाना कहां तक सही है?

और तो और हमारा सोशल मीडिया भी इस में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. जैसे ही कोई त्योहार आता है, पहले से ही सोशल मीडिया उस उत्सव से संबंधित पोस्ट शेयर करने लगता है और फिर गुहार लगाता है कि इस वर्ष फलां उत्सव कुछ ऐसे मनाएं, वैसे मनाएं और लाइक करें.  कोई भी धर्म, भाषा, जाति और समाज पीछे नहीं. सभी अपनीअपनी मार्केटिंग में लगे हुए हैं और भोलीभाली भीड़ की मिट्टी में अपने नाम का झंडा गाड़ कर अपनी साख जमाने की कोशिश कर रहे हैं. उसे अपनी राजनीति का शिकार बना रहे हैं.

कभीकभी तो ऐसा महसूस होता है कि यदि ये ‘मेरा धर्म श्रेष्ठ’ का नारा न लगाएं तो जैसे इन का धर्म अभी नष्ट ही हो जाएगा. जो उन्मादी लोग ‘मेरा धर्म श्रेष्ठ’ का नारा लगा रहे हैं और धर्म के नाम पर लोगों को बांट रहे हैं उन्हें धर्म का इस्तेमाल करना पूरापूरा आता है.  जब वोट डालने के लिए लोगों को फुसलाने की बात होती है, तो धर्म ही सब से ज्यादा कारगर साबित होता है. प्रकृति के नियमों का फायदा धर्म के दुकानदार उठा रहे हैं. प्रकृति ने तो सब को आजाद किया है. पशुपक्षी, नदीझरने, पहाड़पत्थर उन का तो कोई धर्म नहीं, कोई समाज नहीं, लाखों करोड़ों सालों से बस अपनाअपना कार्य कर रहे हैं.

नदी कभी नहीं पूछती कि ऐ झरने तू पहले बता कि किस पहाड़ से बह कर आया है वरना मैं तुझे अपने में नहीं समाऊंगी. और वह स्वयं सब झरानों का काफिला ले सागर के हृदय में समा जाती है. पहाड़ से टूटी चट्टान भी लुढ़क कर जहां रुक जाए, बस वही उस का ठिकाना हो जाता है. कोई पहाड़ उसे धकेलता नहीं. हवा अपना रुख मनमुताबिक तय करती है. आसमान, तारे, चांद, सूरज सब ही तो हैं जो हर धर्म, समाज को यथा योग्य कुछ दे रहे हैं. सिर्फ हम मनुष्यों को ही धर्म, समाज, जाति, भाषा की आवश्यकता क्यों है? क्यों हम किसी पंडेपुजारी के बिना अपनी मनपसंद की पूजा नहीं कर सकते? यदि करें तो ये समाज के लोग तिरस्कृत क्यों करने लगते हैं? जबकि वे स्वयं नियम बनाते और स्वयं ही तोड़ते हैं. ये सत्ता पिपासु लोग हैं. उन्हें डर है कि यदि लोग अपनी सुविधानुसार ऐसा करने लगेंगे तो उन की अहमियत कम हो जाएगी.

ओम अच्छे दिनाय नम:

पिछले 3 सालों में देश का विकास हुआ या नहीं यह जानने के लिए तो आप को नरेंद्र मोदी द्वारा लगाए गए बड़ेबड़े होर्डिंगों पर विश्वास करना होगा पर आप के बैंक बैलेंस की रिटर्न कम हो गई, यह पासबुक साफसाफ बता रही है.

अगर आप पहले 50 लाख की एफडीआर से 40 हजार पा कर मजे में जिंदगी गुजार रहे थे तो अब बैंक आप को 30 हजार ही देगा पर नोटबंदी, पैट्रोल के दाम में वृद्धि, टमाटरप्याज के बढ़तेघटते दामों और महादानव जीएसटी से आप के ब्याज के पैसे और कम पड़ेंगे.

काले धन को मारने के चक्कर में मोदी सरकार ने संपत्ति से आप को भी नुकसान पहुंचाया है. अब न तो पहले खरीदी गई संपत्ति का दाम बढ़ रहा है और न ही किराया बढ़ रहा है, इसलिए वहां लगा पैसा भी अब विकास नहीं विनाश की ओर चल पड़ा है. जिन्होंने शेयर बाजार में पैसा लगाया था उन्हें तो थोड़ी राहत है पर यह बाजार बेहद पेचीदा हो गया है और रातोंरात मोदी सरकार के हर रोज बदलते फैसलों के कारण भाव बढ़तेघटते हैं और डिविडैंड की श्योरिटी नहीं रह गई है. देश में बुलेट ट्रेन का सपना भले जम कर दिखाया जा रहा है पर उधार के पैसे से बनने वाली 1 लाख करोड़ रुपए की दिखावटी ट्रेन कोई मैट्रो नहीं है जोकि मुंबईअहमदाबाद के बीच सड़क या हवाईमार्ग के ट्रैफिक जाम को खत्म करने के लिए बनाई जा रही हो. अगर आप मुंबई या अहमदाबाद में रहते भी हों, तो यह आप की जेब में कुछ नहीं डालेगी.

आम महिला के द्वारा छिपा कर रखी गई हर संपत्ति अब विकास के खतरे में है. एक तरह से यह हमारे धर्म का सही प्रचार है कि व्रत करो, निर्वस्त्र रहो, नदी किनारे धूनी रमाओ, फलों पर जिंदा रहो व सारी संपत्ति गुणियों को दान कर दो. आप नहीं मानेंगे तो धर्म की व्यवस्था लागू करने के लिए विकास और अच्छे दिनों के नाम पर तरहतरह के कानून बना कर मनवा लेंगे. हमारे यहां नई बहू बड़े चाव से घर में आती है पर आते ही पता चलता है कि उस के जेवर, कपड़े परिवार के विकास के लिए छीन लिए गए हैं. यही आम आदमी के साथ हो रहा है. बहू बस यही जपे: ओम पति सुखाय:, ओम विकास शिवाय:, ओम अच्छे दिनाय नम: द्य

हनीमून के उन पलों को इन जगहों पर जाकर बनाएं खास

अगर आपकी नई नई शादी हुई है और आप प्लान कर रही हैं कि हनीमून पर कहां जाएं तो आज हम आपकी इस परेशानी का समाधान लेकर आएं हैं. आज हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारें में बताएंगे जहां जाकर आप अपने हनीमून को बहुत ही ज्यादा यादगार बना सकती हैं.

लक्षद्वीप, आइसलैंड

अगर आप एक शांत और खूबसूरत जगह पर अपना हनीमून मनाना चाहती हैं तो फिर लक्षद्वीप द्वीप समूह का प्‍लान कर लें. एक सीमि‍त बजट में यह जगह हनीमून के लिए बेस्‍ट है. अरब सागर का यह छोटा सा द्वीप अपनी अद्वितीय सुंदरता के लिए जाना जाता है. यहां पर पार्टनर के साथ को रंगीन मछलियों व वौटर स्पोर्ट का भरपूर मजा लि‍या जा सकता है. हालांकि यहां पर जाने के लि‍ए आपको लक्षद्वीप पर्यटन कार्यालय से पहले इजाजत लेनी होगी.

खज्जियार, हि‍माचल प्रदेश

अगर आपकी चाहत स्विटजरलैन्ड में हनीमून मनाने की हैं तो फिर हि‍माचल प्रदेश के खज्जियार चले जाएं. इसे भारत का स्विटजरलैन्ड भी कहा जाता है. चम्बा वैली में स्थित खज्जियार की हरियाली का नजारा ही कुछ और है. देवदार के ऊंचे-ऊंचे, हरे-भरे पेड़ों के बीच बसा खज्जियार देखने में काफी खूबसूरत लगता है. आप यहां अपने बजट के हि‍साब से कम दामों में भी अच्‍छे होटल लेकर यहां की खूबसूरत जगहों पर अपने पार्टनर के साथ एक अच्‍छा समय बिता सकती हैं.

गोवा

गोवा के समुद्र तटों में अपने कपल के साथ रोमांस करने का एक अलग ही मजा है. भारत में हनीमून के लिए यह एक खूबसूरत डेस्‍ट‍िनेशन माना जाता है. शाम को डूबते सूरज की खूबसूरती को समुद्र तट पर टहलते हुए देखना किसी कल्‍पना से कम नही है. समुद्र तटों के अलावा गोवा के स्‍पा सेंटर्स में जाकर भी इंजौय किया जा सकता है. सबसे खास बात तो यह है कि यहां पांच रातों और छह दिन के लिए करीब 8000 रुपये से 36,000 रुपये के बीच का खर्च आएगा.

कूर्ग, कनार्टक

अगर हनीमून एल्बम में बेहद खूबसूरत जगह को सहेजना चाह‍ते हैं तो फिर कर्नाटक के कुर्ग चले जाएं. हनीमून पर पार्टनर को स्पेशल फील करवाने के लिए यह जगह शानदार है. यहां एब्बे फौल्स और इरुपू फौल्स के पास तस्‍वीरें क्‍ल‍िक कराने का एक अलग ही मजा होगा. इसके अलावा यहां पर कौफी के बागान और सबसे ऊंची चोटी पर ट्रेकिंग का मजा लिया जा सकता है. यहां पर तीन दिन और दो रातों के लिए करीब 20,000 रुपये का खर्च आएगा.

गंगटोक, स‍क्किम

सिक्किम का गंगटोक भी रोमांचक हनीमून के लिए बेस्‍ट है. दार्जिलिंग के करीब गंगटोक में पाटर्नर संग टाइगर हिल ट्रेकिंग और सनसेट का जबरदस्‍त मजा लिया जा सकता है. यहां के खूबसूरत लैंडस्केप देखने के बाद कुछ देर के लिए पलके झपकने का नाम नहीं लेती हैं. ऐसी जगहों पर अपने पार्टनर के साथ वक्‍त गुजारना काफी अच्‍छा लगेगा. इसके अलावा यहां मिरिक और आर्टियर लेक में बोटिंग की जा सकती हैं. यहां भी करीब 25,000 रुपये का खर्च आएगा.

तो आदित्य और वरुण धवन दोनो से रोमांस करेंगी आलिया भट्ट

करण जौहर कैंप से मिल रही खबरों पर यकीन किया जाए, तो करण जोहर की नई फिल्म ‘‘शिद्दत’’ में आलिया भट्ट के साथ आदित्य रौय कपूर और वरुण धवन दोनो ही रोमांस फरमाते हुए नजर आने वाले हैं. मजेदार बात यह है कि इस त्रिकोणीय प्रेम कहानी वाली फिल्म में आदित्य रौय कपूर और वरुण धवन दोनों सगे भाई के किरदार मे होंगे.

सूत्रों की माने तो फिल्म ‘‘शिद्दत’’ की कहानी भारत पाक युग की है. जिसमें आदित्य रौय कपूर और वरुण धवन सगे भाई हैं. इनके माता पिता के किरदार में क्रमश: श्रीदेवी और संजय दत्त होंगे. तथा यह दोनों भाई एक ही लड़की यानी कि आलिया भट्ट से फिल्म में प्रेम करते हुए नजर आएंगे. पर अब सवाल यह उठ रहा है कि इस त्रिकोणीय प्रेम कहानी में आलिया भट्ट, आदित्य रौय कपूर और वरुण धवन में से किसे अपने प्रेमी के रूप में चुनेंगी.

इस फिल्म को लेकर इसके कौस्टयूम डिजाइनर मनीष मल्होत्रा ने काम भी शुरू कर दिया है. जानकारी के मुताबिक, मनीष मल्होत्रा ने उस दौर के कौस्टयूम के अनुसार कपडे डिज़ाइन करने की प्लानिंग कर रहे हैं. इसी के साथ 1940 के समय को फिल्म के लिए रिक्रिएट किया जाएगा जिसके लिए एक बड़े से सेट का निर्माण भी होगा.

फिल्म में आलिया का किरदार ऐसी स्थिति में नजर आएगा जो वरुण और आदित्य, इन दो भाइयों के प्यार के बीच फंसा हुआ है. लेकिन आलिया किसकी किस्मत में आएंगी ये फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा.

 

किसके लिए बैरी बने संजय दत्त और आमिर खान

जर,जोरू और जमीन की वजह से होने वाली लड़ाइयों से भारतीय इतिहास पटा हुआ है. और अब इस आधुनिक युग में भी इन्हीं वजहों से दोस्त दुश्मन बनते नजर आ रहे हैं. जी हां! जमीन की ही वजह से इन दिनों बौलीवुड के दो अभिनेता संजय दत्त और आमिर खान दोनों एक दूसरे के सामने बैरी बनकर खड़े हो गए हैं.

सूत्रों से मिल रही खबर के अनुसार मुंबई के खार इलाके की एक जमीन/प्लौट के टुकड़े को संजय दत्त और आमिर खान दोनों खरीदना चाहते हैं. सूत्र बताते हैं कि बांद्रा से सटे खार इलाके में काफी समय से एक प्लौट खाली पड़ा हुआ है. इसे खरीदने के लिए आमिर खान ने सौदा करते हुए अपनी तरफ से अस्सी करोड़ रूपए की कीमत लगा दी. पर यह सौदा पक्का होता, उससे पहले ही संजय दत्त को भनक लग गयी और अब संजय दत्त इसी प्लौट को खरीदने के लिए नब्बे करोड़ रूपए देने को तैयार हैं.

अब देखना है कि अंततः इस प्लौट को खरीदने में कौन कामयाब होता है. और उसके बाद इन दोनों कलाकारों के आपसी रिश्ते में किस तरह के बदलाव आते हैं.

प्रेम विवाह के लिए धर्म परिवर्तन जरूरी क्यों

हिंदू लड़कियों को मुसलिम युवकों से प्रेम करने का अधिकार है या नहीं, आजाद भारत में यह सवाल अब महत्त्व का होता जा रहा है. केरल उच्च न्यायालय ने एक हिंदू लड़की हादिया के विवाह को खारिज कर दिया, क्योंकि उस ने धर्म परिवर्तन कर के एक मुसलिम युवक से विवाह किया था. कट्टर हिंदूवादी संगठन इस तरह के विवाहों को लव जिहाद कह रहे हैं.

उन का मानना है कि यह सुनियोजित ढंग से फिल्म ‘कुर्बान’ की तरह है जिस में सैफ अली खान पहले न्यूयौर्क की एक हिंदू प्रोफैसर करीना कपूर, जो अपने बीमार पिता को देखने भारत आती है, से विवाह करता है और फिर उसे लंदन ले जाता है, जहां उसे आतंकवादी षड्यंत्र में फ्रंट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

धर्म परिवर्तन कर के प्रेम विवाह करना अपनेआप में सही नहीं है. यदि धर्म प्रेम में आडे़ नहीं आ रहा है, तो विवाह में भी नहीं आना चाहिए और बिना धर्म परिवर्तन किए ही विवाह करना चाहिए. भारतीय कानूनों में इस तरह के विवाह की स्पैशल मैरिज ऐक्ट के अंतर्गत सुविधा है और आम बोलचाल की भाषा में इसे कोर्ट मैरिज कहते हैं.  वैसे तो सभी विवाह बिना धार्मिक रीतियों के इस कानून के अंतर्गत होने चाहिए और जिस यूनिफौर्म सिविल कोड की बात हिंदूवादी कट्टर सोतेजागते करते हैं वह कांग्रेसी जमाने से मौजूद है. इस कानून के अंतर्गत विरासत का कानून भी धार्मिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और संपत्ति बिना लागलपेट मृत्यु बाद बंटती है. तलाक भी सरल है और गोद लेनादेना भी.

जिन्हें जाति, गोत्र, ऊंचनीच की दीवारें तोड़ कर प्रेम विवाह करना है, उन्हें धर्म के बंधन को भी तोड़ना ही होगा. दो धार्मियों के बीच न हिंदू विवाह हो सकते हैं न मुसलिम अथवा फिर ईसाई.  इसलिए प्रेम  के बाद विवाह की सोच रहे हैं, तो रस्मोरिवाजों का चक्कर तो छोड़ना ही होगा. धर्म परिवर्तन चाहे हिंदू से मुसलिम हो या मुसलिम से हिंदू गलत ही है. सामाजिक सुरक्षा चाहिए तो दोनों को अपनाअपना धर्म छोड़ना होगा. वैसे भी इन विवाहों में घर वालों के छूटने का रिस्क तो रहता ही है.  केरल उच्च न्यायालय ने एक प्रेम विवाह को सामाजिक समस्या के आईने से न देख कर राजनीतिक मैग्नीफाइंग ग्लास से देखा है और सुप्रीम कोर्ट ने इस पर तथ्य पता करने के लिए नैशनल इनवैस्टीगेशन एजेंसी बैठा कर आदमीऔरत के संबंध को समाज भर में नंगा कर दिया है. यह वही सुप्रीम कोर्ट है जिस ने हाल ही में निजता पर लंबाचौड़ा सुखद निर्णय दिया है. क्या विवाह करने का निजी अधिकार भी जांच एजेंसियों की मुहर के बाद लागू होगा?

दान हो या टिप मुफ्तखोरी ही है

टिप देना बुरा है यह सुन कर कुछ अजीब लगा. नए रेलमंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि रेल कैटरिंग कर्मचारियों का खाना सर्व करने के बाद टिप लेना अवैध है और यह तुरंत बंद होना चाहिए. यह सच बात है कि रेल कैटरिंग के कर्मी अकसर टिप के लिए जिद करते हैं और यदि कुछ लोग न दें तो उन्हें जलील करने से भी बाज नहीं आते. रेलवे के ज्यादातर कैटरिंग कर्मी सीधे रेलवे द्वारा नियुक्त नहीं होते. उन्हें वे कौंट्रैक्टर रखते हैं, जो रेलवे ने मोटी लाइसैंस फीस ले कर नियुक्त किए होते हैं.

रेलमंत्री ने टिप को बुरा कहा पर भाजपा के आकाओं की नीति तो दान देने की और रोज देने की है. जितने भी स्वामी, गुरु, बाबा, संतमहात्मा हैं सब हर समय बिना काम के पैसे देने की वकालत करते रहते हैं और हमें इन सब पर और इन के कथनों पर बड़ा गर्व रहता है. ‘भगवान टिप’ वसूलने के लिए हर मंदिर में कदमकदम पर दानपेटियों का इंतजाम होता है, जिन में 1 नहीं 7-7 ताले लगे होते हैं.

जहां संस्कृति और संस्कारों का मतलब बिना काम किए टिप या दान देना हो, वहां सेवा के बदले टिप मांगना और देना कैसे बुरा हो सकता है? आप को आप की सीट तक खाना पहुंचाया जा रहा है यह क्या कम कृपा है रेलवे कैटरिंग कौंट्रैक्टरों की? पैसे तो वे लेंगे ही पर टिप का अधिकार तो ऊपर से नीचे तक सब का है और यह कैसे बंद हो सकता है?

जरा देखिए तो कि जहां टिप नहीं वहां रेल कर्मचारी कैसा काम करते हैं. रेलवे स्टेशनों पर भारी भीड़ होती है, अफरातफरी होती है, क्योंकि यहां रेल कर्मचारियों को टिप नहीं मिलती. टिकट खिड़कियों पर टिकट लेने में घंटों लगते हैं, क्योंकि यहां कर्मचारियों को टिप नहीं मिलती. अगर भीड़ का दबाव न हो तो टिप न मिलने के कारण आप को प्लेटफार्म पर घुसने देने में भी आनाकानी होने लगेगी.

‘सेवा के लिए पैसा ले लिया गया तो टिप क्यों’ जैसी च ही गलत है, कम से कम हमारे यहां जहां हर नेता बिना सेवा किए ही जीने देने के लिए टिप लेता है. टिप तो एक अधिकार है जो सेवा देता है चाहे इसे अच्छी सेवा का इनाम माने या जबरन वसूली.

इस देश में सरकारी क्षेत्रों में ही नहीं प्राइवेट रेस्तराओं ने भी 10 से 15% जबरन टिप बिल में शामिल करनी शुरू कर दी है. उन्होंने टिप को विधिवत रूप दे दिया और फिर वेटर ऐसे खड़ा हो जाता है कि ग्राहक को टिप देनी ही होती है.

जापान ऐसा देश है जहां टिप का रिवाज बिलकुल नहीं है. उधर अमेरिका ऐसा देश है जहां पगपग पर टिप दी जाती है और अच्छीखासी दी जाती है.

टिप गलत है इस में संदेह नहीं. सेवा देने वाला अपनी पूरी सेवा का चाहे जो मूल्य तय कर ले उस पर ग्राहक का नियंत्रण नहीं है. उस के बाद जो पैसा चाहा जाए वह गलत है.

एक कर्मठ समाज को केवल मेहनत का मुआवजा मांगना चाहिए. मुफ्तखोरी चाहे वह दान हो या हफ्तावसूली केवल अपराध की गिनती में आना चाहिए.

अपनी फिल्मों के लिए इतनी मेहनत करते थे दिलीप कुमार

दिलीप कुमार बौलीवुड के ट्रैजेडी किंग कहे जाते हैं. वह एक्टिंग से लेकर डांस तक में छाए रहे हैं. फिल्मों में अच्छे अच्छों का पसीना छुड़ाते रहे लेकिन एक बार सेट पर उन्हीं के पसीने छूट गए थे. जब उन्हें गोल-गोल चक्कर जो लगाने पड़े थे. किस्सा साल 1961 के फिल्म इर्द-गिर्द का है दिलीप साहब उन दिनों शूटिंग में व्यस्त थे, फिल्म गंगा जमुना का क्लाइमैक्स शूट किया जाना था. लोकेशन महबूब स्टूडियो था और सीन में उनकी मौत दिखाई जाती है. उन्हें इसके लिए घबराते, हांफते और तेज सांसें लेते हुए सीन देने होते हैं.

सीन शूट होता, उससे पहले उन्होंने कैमरामैन से बात की उन्होंने उसे सेट से कुछ कदम पीछे ही रखने के लिए बोला. दिलीप साहब चाहते थे कि शौट में उनके एक्सप्रेशंस अच्छे से आएं, सीन फिल्माया जा रहा था तभी वह अचानक उठते हैं और महबूब स्टूडियो का चक्कर लगाने लगते हैं. वह तब तक चक्कर लगाते रहे जब तक उनका सिर चकराने की स्थिति में नहीं आया. वह फिर दौड़ते हुए आए और कैमरामैन को इशारा कर सीन शूट करवाने को कहा.

यह सीन अच्छा शूट हुआ, मगर एक कमी रह गई थी. कैमरामैन से शुरू के कुछ एक्सप्रेशंस छूट गए थे. दिलीप साहब से उन्होंने दोबारा टेक देने के लिए दरख्वास्त की वह यह जानकर काफी देर तक शांत रहे. कैमरामैन को लगा कि दिलीप नाराज हो गए, मगर ऐसा नहीं था. वह दोबारा बाहर गए सेट के गोल-गोल चक्कर काट कर आए. अब वह बुरी तरह से हांफ रहे थे, जिसके बाद उन्होंने सीन फिर से शूट कराया था.

नार्मल डिलीवरी चाहती हैं तो अपनाएं ये उपाय

प्रेग्नेंसी, औरत से मां बनने का एक पड़ाव है जिससे हर महिला को गुजरना पड़ता है. इस दौरान हर महिला की पहली चिंता ये होती हैं कि उसका बच्चा स्वस्थ है या नहीं. उसकी डिलीवरी नार्मल होगी या नहीं. ऐसी बहुत सी बातें गर्भवती मां के दिमाग में चलती रहती है.

लगभग हर औरत चाहती है कि उसकी डिलीवरी नार्मल हो लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि नार्मल डिलीवरी की जगह औपरेशन ही करना पड़ता है. यदि आप भी नार्मल डिलीवरी की इच्छा रखती हैं तो हमें उम्मीद है कि नीचे दिए गए सुझाव आपके काम आएंगे.

तनाव से दूर रहें

तनाव केवल आपकी परेशानी ही नहीं बढ़ाता बल्कि प्रेग्नेंसी में कौम्प्लिकेशन को भी बढ़ाता है. इसका सबसे अधिक प्रभाव आपके व आपके बच्चे की सेहत पर पड़ता है. यदि आपको बेवजह तनाव महसूस हो रहा है तो अपने डाक्टर से परामर्श करें और इस व्यवहार के पीछे छुपे वास्तविक कारण को जानने की कोशिश करें.

स्वस्थ रहें

डिलीवरी से पहले आपको ये सुनिश्चित कर लेना होगा कि आप पूरी तरह से स्वस्थ रहें और किसी भी प्रकार की कोई कमजोरी आपको न हो. आपके शरीर में खून की कमी नहीं होनी चाहिए.

नियमित रूप से व्यायाम करें

हालांकि प्रेग्नेंसी में महिलाओं को आराम करने के लिए कहा जाता है लेकिन थोड़ी सी कसरत से आपको लाभ होगा. व्यायाम से आप चुस्त रहेंगी तथा आप में पीड़ा को बर्दाशत करने की क्षमता बढ़ेगी.

अपने खान-पान पर ध्यान दें

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को कमजोरी होना लाजमी है तथा इस कमजोरी को घटाने के लिए डाक्टर गोलियां भी देते हैं. परंतु जो ताकत हमें आहार से मिलती है वो गोलियों से नहीं मिल सकती. यदि आप नार्मल डिलीवरी चाहती हैं तो सही समय पर खाएं और सही आहार खाएं. अपने आहार में हरी सब्जियां, अंड़ा, दूध व फलों को शामिल करें. इनमें मौजूद जरूरी विटामिन व प्रोटीन आपके शरीर को पोषित करेंगे.

पानी पीते रहें

गर्भ में बच्चा एक थैली में होता है, जिसे एमनियोटिक फ्लूयिड कहते हैं. बच्चे को इसी से ऊर्जा मिलती है ऐसे में मां के लिए रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पीना बहुत ही जरूरी है.

सैर करें

गर्भावस्था के दौरान सुबह व शाम में वाक पर जाएं. सैर करते वक्त आराम से चलें और अपने आसपास के खूबसूरत वातावरण का आनंद लें. बाहर की ताजी हवा आपके अंदर एक ताजगी को भरती है. आप जितनी देर के लिए वाकिंग कर सकती है उतनी देर के लिए करें. यदि वाकिंग करते वक्त बीच में थक जाएं तो आराम करें.

शराब व चाय का सेवन ना करें

चाय हमारे खून में मौजूद आइरन को अवशोषित कर लेती है. आइरन की कमी आपको शारीरिक रूप से कमजोर बना सकती है तथा इसका असर आपके बच्चे के विकास व उसके वजन पर भी पड़ेगा. कभी-कभी शराब व चाय गर्भपात का कारण भी बन सकते हैं. इसलिए गर्भावस्था के दौरान ऐसी चीजों से परहेज करें. बेहतर होगी कि आप घर का बना खाना खाएं.

हर किस के बाद विद्या से ये कहते थे इमरान

बौलीवुड अभिनेत्री विद्या बालन इन दिनों अपनी आगामी फिल्‍म ‘तुम्‍हारी सुलु’ को लेकर सुर्खियों में हैं. विद्या ने ‘इश्किया’ से लेकर ‘द डर्टी पिक्‍चर’ तक कई बोल्‍ड फिल्‍मों में काम किया है. हाल ही में वह नेहा धूपिया के औडियो शो ‘नो फिल्‍टर नेहा’ में शामिल हुईं. इस दौरान उन्‍होंने अपने और इमरान हाशमी के किसिंग सीन का जिक्र करते हुए दिलचस्‍प खुलासा किया.

इस शो में उन्‍होंने खुलकर बातें की. जब उनसे औनस्‍क्रीन किसिंग सींस के बारे में पूछा गया तो उन्‍होंने कई किस्‍से शेयर किये. उन्‍होंने इमरान हाशमी के साथ फिल्‍म ‘घनचक्‍कर’ के किसिंग सीन का जिक्र किया. इस फिल्‍म में दोनों के बीच कई किस सीन शूट किये गये थे. विद्या ने बताया, ‘इमरान हर किस के बाद उनसे कोई न कोई अजीब सवाल करते थे. लगभग हर सीन के बाद वे पूछते थे कि तुम्‍हें क्‍या लगता है सिद्धार्थ (सिद्धार्थ राय कपूर) इस सीन को देखकर क्‍या कहेंगे?

इमरान हमेशा विद्या से पूछते थे कि तुम्‍हें लगता है सिद्धार्थ मुझे मेरा पेमेंट देंगे? उन्‍हें हर किस सीन के बाद सिर्फ यही चिंता होती थी कि सिद्धार्थ क्‍या कहेंगे? मैं सोचती थी कि वो मुझसे हर सीन के बाद ऐसा क्‍यों पूछ रहे हैं.

अरशद वारसी के साथ काम करने के एक्‍सपीरियंस को भी विद्या बहुत अच्‍छा मानती हैं. लेकिन अपनी और अरशद की अच्‍छी दोस्‍ती की वजह वे नसीरुद्दीन शाह को बताती हैं. विद्या ने बताया कि उन्‍हें नसीरुद्दीन शाह से काफी डर लगता था. ‘इश्किया’ के सेट पर वे उनसे डर के कारण अरशद वारसी से ज्‍यादा बात करती है.

सिर्फ फिल्मी कहानी नहीं विद्या ने नेहा के शो पर अपनी नीजी जिंदगी से जुड़े वाक्ये भी शेयर किया. विद्या ने कालेज के दिनों में अपने साथ हुई एक घटना का खुलासा किया.

विद्या मुंबई के जेवियर्स कालेज में पढ़ती थीं और एक दिन कालेज से अपनी सहेलियों के साथ लौट रही थीं. घटना के बारे में उन्होंने बताया, ‘हम तीन सहेलियां लोकल ट्रेन के लेडीज कम्पार्टमेंट में बैठे थे और आपस में बाते कर रहें थे. इस बीच मैंने देखा कि एक लड़का डिब्बे में चढ़ा. वह हमारे सामने आकर बैठ गया तो मैंने उसे कहा कि यह लेडीज कम्पार्टमेंट है. उसने कहा कि ओह, यह लेडीज है क्या. ठीक है, मैं अगले स्टेशन पर उतर जाऊंगा. वह अगले स्टेशन पर गेट पर जाकर खड़ा हो गया.’

विद्या ने आगे बताया, ‘हमें लगा कि वह लड़का उतर गया है लेकिन ट्रेन चल दी और वह नहीं उतरा. वह दोबारा खिड़की के पास आकर बैठ गया. जब कुछ गड़बड़ होता है तो आपको पहले से ही भनक लग जाती है. इसी दौरान उसने अपनी पैंट की जिप खोली और हमारे सामने ही मास्टरबेट करने लगा. मेरे हाथ में पेपर पैड या फाइल जैसा कुछ था और मैंने उसी से उसे मारना शुरू कर दिया.’

विद्या ने उस लड़के को गालियां दीं और उसे खींच कर गेट तक ले गईं. उन्होंने उसे ट्रेन से बाहर धक्का तक दे दिया. विद्या कहती हैं कि अच्छा हुआ कि स्टेशन आने वाला था वरना वह उस दिन मर ही जाता.

बता दें कि विद्या अपनी आगामी फिल्‍म ‘तुम्‍हारी सुलु’ को लेकर बिजी हैं. फिल्‍म में नेहा धूपिया भी हैं जो विद्या के बौस के किरदार में नजर आयेंगी. बताया जा रहा है कि विद्या ने इस फिल्‍म के लिए ‘हीप हौप’ भी सीखा है. फिल्म में विद्या आरजे सुलोचना उर्फ सुलु के किरदार में नजर आएंगी. फिल्‍म का निर्देशन सुरेश त्रिवेणी ने किया है. विद्या इससे पहले फिल्‍म ‘बेगम जान’ में नजर आई थीं.

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