आज बनाएं स्पेशल केसर वाली खीर

आमतौर पर खीर दूध और चावल से बनती है, जिसे सभी बड़े ही चाव से खाना पंसद करते हैं. खीर तो आप अकसर बनाती होंगी. लेकिन क्या आज आप कुछ स्पेशल तरीके या अलग स्वाद वाली खीर बनाना नहीं चाहेंगी? अगर हां, तो बनाएं स्पेशल केसर वाली खीर. जानिए इसे बनाने की विधि.

सामग्री

आधा लीटर फुलक्रीम दूध

आधा कप बासमती चावल

1-2 धागे केसर

आधा कप चीनी

एक चौथाई कप कसा हुआ नारियल

एक चौथाई कप छोटे टुकड़े में कटे हुए काजू

एक चौथाई कप छोटे टुकड़े में कटे हुए बादाम

एक चौथाई कप छोटे टुकड़े में कटे हुए पिस्ता

एक चम्मच इलायची पाउडर

विधि

सबसे पहले चावल को धोकर 1 घंटे के लिए भिगोकर रख दें. इसके साथ ही दो चम्मच दूध में केसर भिगोंकर रखें.

अब एक भारी तली वाला पैन में दूध डालकर गर्म करें. जब दूध में उबाल आने लगे तब इसमें केसर और चावल डालें.

इसके बाद गैस धीमी कर इसे पकने दें. जिससे कि ये टेस्टी और क्रीमी हो जाए. जब ये पक जाए तब इसमें चीनी और इलायची पाउडर, नारियल और सभी मेवे डालकर अच्छी तरह मिला लें.

अब इसे एक बड़े बाउल में निकालकर पिस्ता और बादाम से गार्निश कर सर्व करें.

त्योहार पर इस बार कुछ ऐसे निखारें अपना रूप

त्योहार का दिन पति-पत्नी के बीच प्यार और अपनेपन की एक अलग मिठास घोल देता है. अब जाहिर-सी बात है कि जब यह दिन इतना खास है, तो इस दिन हर पत्नी कुछ खास नजर आना चाहती है.

तो आइये आपको देते हैं कुछ ऐसे टिप्स, जिनसे आप नजर आएंगी कुछ खास.

आप ताजे फलों से अपनी स्किन में निखार ला सकती हैं. फल पूरी तरह से विटामिन, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. इसलिए यदि इन फलों को फेस पैक के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो चेहरे की त्वचा और भी सुंदर, मुलायम और चमकदार बनेंगे.

केला फेस पैक

अगर आपकी स्किन ड्राई है तो केला आपके लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है. यह त्वचा को पेषित कर मुलायम बनाता है.

सबसे पहले एक पका केला लेकर इसमें एक चम्मच शहद और एक चम्मच ओलिव आयल मिलाकर पेस्ट बना लें. पेस्ट को अच्छी तरह से चेहरे पर लगा लें और 10 मिनट के बाद इसे पानी से धो लें.

संतरा फेस पैक

तैलीय त्वचा के लिए संतरे के दो चम्मच रस में एक चम्मच चंदन पाउडर और एक चम्मच कैलेमिन पाउडर मिला कर चेहरे पर लगाएं. यह चमक लाने के साथ ही दाग-धब्बे दूर कर रंग भी साफ करता है.

सेब फेस पैक

त्वचा पर तुरंत चमक लाने के लिए एक ताजे सेब को पीस कर उसमें कच्चा दूध, दूध पाउडर, मुलतानी मिट्टी पाउडर को अच्छी तरह से मिलाकर चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट बाद इसे पानी से धो ले. यह त्वचा को मुलायम बनाने के साथ ही पीएच बैंलेंस भी बनाए रखता है.

स्ट्राबेरी फेस पैक

सामान्य त्वचा के लिए स्ट्राबेरी के गूदे को पुदीने के पत्ते के साथ पीसकर इसमें कैओलीन पाउडर और शहद की कुछ बूंदें मिलाकर इसके पतले परत को चेहर पर लगाएं. सूखने के बाद इसे धो लें. यह त्वचा का रंग साफ करने के साथ ही उसमें कसाव भी लाता है.

नारियल फेस पैक

संवेदनशील त्वचा के लिए एक चम्मच नारियल पानी में दो चम्मच कैलेमिन पाउडर और आधी छटांक के लगभग एलोवेरा जेल मिलाकर इसे पांच से सात मिनट तक लगा रहने दें, फिर धो लें. एंटी-औक्सीडेंट से भरपूर होने के कारण यह त्वचा में चमक लाता है.

पपीता फेस पैक

पके हुए पपीते में एक चम्मच शहद और एक चम्मच मुल्तानी मिट्टी के साथ चंदन पाउडर मिलाकर अच्छी तरह से पेस्ट बना लें. फिर पेस्ट को अच्छी तरह से चेहरे पर लगाकर 20 मिनट के लिए छोड़ दें. उसके बाद ठंडे पानी से धो लें.

आम फेस पैक

दो चम्मच आम के गुदे में एक चम्मच चंदन पाउडर, एक चम्मच शहद, एक चम्मच दही और हल्दी को मिलाकर पेस्ट बना लें. पेस्ट को चेहरे पर लगा कर 15 मिनट के लिए छोड़ दें. उसके बाद ठंडे पानी से धो लें.

दीया मिर्जा भी प्यार में हो चुकी हैं रिजेक्ट

एक्टर संजय दत्त की अपकमिंग बायोपिक फिल्म से एक्ट्रेस दीया मिर्जा एक बार फिर से बौलीवुड में वापसी करने जा रहीं हैं. दीया ने 2014 में अपने प्रेमी साहिल सांगा से शादी कर ली थी. जिसके बाद से वह फिल्मों में नजर नहीं आईं. दीया मिर्जा साल 2000 में मिस एशिया पैसेफिक बनी थीं.

इसी साल प्रियंका चोपड़ा मिस वर्ल्ड और लारा दत्ता मिस यूनीवर्स बनी थीं. उन्होनें अपने फिल्मी करियर की शुरुआत ‘रहना है तेरे दिल में’ से की थी. इस फिल्म में दर्शकों ने उनको बेहद पसंद किया. आज भी दीया मिर्जा की खूबसूरती के लाखों फैंस आपको मिल जाएंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कोई ऐसा शख्स भी है जिसने दीया को रिजेक्ट कर दिया था. दीया ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि जब वह हैदराबाद में थी तो उन्हें किसी से प्यार हो गया था, और वो हर समय उसकी यादों में ही खोई रहतीं थीं.

एक दिन जब दीया ने उस शख्स को अपने दिल का हाल बयां किया तो उसने दीया को रिजेक्ट कर दिया. इस बात से दीया को काफी धक्का लगा था और वो काफी दिनों तक डिप्रेस रही थीं. दीया ने इंटरव्यू के दौरान बताया जब वह स्कूल में थी तो उन्हें और उनकी सहेली को एक ही लड़के पर क्रश था और वो भी हम दोनों को पसंद करता था. लेकिन उन दिनों वो हम दोनों के साथ ही डेट कर रहा था. जिसके बाद हमने उसकी शिकायत प्रिंसपल से कर दी थी.

दीया बताती हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें उससे दूर रहने की सलाह दी थी लेकिन मैंने उससे दिल से प्यार किया था और उसको भूलना मेरे लिए काफी मुश्किल था. खैर, अब मैं सोचती हूं कि जो हुआ वो अच्छा ही हुआ.

किसी अजूबे से कम नहीं हैं एशिया की ये जगहें

कहते है अजूबा वही जो आपको सोचने पर मजबूर कर दे, यही वजह है कि दुनिया भर से लाखों सैलानी हर साल हमारे देश आते हैं ताज का दीदार करने और आएं भी क्यों ना ताज भी तो एक अजूबा ही है. लेकिन अगर हम और देशों के बारे में बात करें या एशिया महाद्वीप के बारें में कहें तो यही एहसास होता है कि कितना कुछ दबा है इस एशियाई महाद्वीप के गर्भ में. ऐसे में जिन्होंने भी विश्व भ्रमण का सपना संजो रखा है, वे एक बार इन स्थानों का सफर जरूर करें यकीन मानिये अजूबा ना होते हुए भी ये किसी अजूबे से कम नही हैं.

झांग्ये डैंक्सिया लैंडफौर्म, चीन

डैंक्सिया लैंडफौर्म का दृश्य किसी चित्रकला के समान देखकर आप हैरान रह जाएंगे. ऐसा प्रतीत होता है कि किसी चित्रकार ने अपनी कल्पना की उड़ान से यहां रंग भर दिए हों. यहां अनेक रेड क्लिफ्स हैं, जो सैकड़ों मीटर ऊंचे हैं. रंगों में भी काफी विविधता है. कई सदी पूर्व टेक्टोनिक प्लेट्स के गतिशील होने एवं सैंडस्टोन के टूटने से इनका निर्माण हुआ. यहां जून से सितंबर के बीच जाना सबसे मुफीद होगा, क्योंकि तब सूर्य की तेज किरणें एवं हल्की बारिश से रंगों की अलग ही छटा बिखेरती हैं. सूर्यास्त के वक्त बदलते रंगों का अद्भुत नजारा देखने को मिलेगा.

गोक्यो लेक्स ट्रेक, नेपाल

एवरेस्ट बेस कैम्प की ट्रैकिंग करने के इच्छुक इस ट्रैक को एक्सप्लोर कर सकते हैं. करीब 17,576 फीट ऊंचाई पर स्थित गोक्यो री तक पहुंचने के लिए गोक्यो ताल का प्रयोग करना होता है. यहां से न सिर्फ हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है, बल्कि लोत्से, मकालु एवं चो ओयू जैसी चोटियां भी नजर आती हैं. विश्व का सबसे विशाल हिमनद (ग्लेशियर) भी आप यहां से देख पाएंगे. जब आप इस ट्रैक पर निकलेंगे, तो रास्ते में पांच अल्पाइन लेक यानी ताल मिलेंगे.

चौकलेट हिल्स, फिलिपीन्स

फिलिपीन्स के बोहोल द्वीप के बीचोबीच स्थित चौकलेट हिल्स कई छोटी-बड़ी पहाड़ियों का एक समूह है. एक अनुमान के अनुसार, यहां 1268 से लेकर 1776 पहाड़ियां हैं. इसमें सबसे ऊंची चोटी 120 मीटर है. शेष चोटियां 30 से 50 मीटर के बीच की हैं. यह समूह करीब 50 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है. चौकलेट हिल्स की खासियत है कि बारिश के मौसम में यह हरा भरा नजर आता है. एक बार मौसम बदला, फिर यह भूरे रंग में तब्दील हो जाता है. भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि जब कास्र्ट पत्थर टूटे, तब इस पर्वत का निर्माण हुआ. हालांकि स्थानीय स्तर पर कई अन्य लोक कथाएं भी प्रचलित हैं. यहां पर जितना मनोरम बरसात में लगता है, उतना ही गर्मियों या सूखे दिनों में.

माउंट केलिमुतु, इंडोनेशिया

केलिमुतु एक ज्वालामुखी है जो इंडोनेशिया के फ्लोरेस आइलैंड के केलिमुतु नेशनल पार्क में स्थित है. यह चारों ओर से तीन झीलों से घिरा हुआ है, जो इस ज्वालामुखी से ही उत्पन्न हुई हैं. इन तीनों झीलों का जल अलग-अलग रंगों का है, जो साल के अलग-अलग समय पर बदलता रहता है. तिवु झील (लेक औफ ओल्ड पीपुल) का रंग आसमानी नीला है, जबकि तिवु नुवा मुरी कू फाई का हरा और तिवु अटा पोलो का लाल. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यह आत्माओं की विश्रामस्थली है.

हैंग सौन डूंग केव, वियतनाम

फौन्ग ना के बैंग नेशनल पार्क में स्थित हैंग सौन डूंग गुफा दुनिया की सबसे बड़ी गुफा है. इसकी प्रमुख गुफा में बोइंग 747 विमान भी समा सकता है. कहते हैं कि वर्षों पहले एक तेज गति वाली नदी यहां से बहा करती थी. आगे चलकर इसने ही गुफा का स्वरूप ले लिया. इसलिए वियतनामी भाषा में माउंटेन रिवर केव भी कहते हैं. करीब पांच किलोमीटर लंबी, 200 मीटर ऊंची एवं 150 मीटर चौड़ी इस गुफा को 2003 में यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी थी.

दिल तो आखिर दिल है, संभालें मगर प्यार से

30 वर्षीय सुमित एक कौरपोरेट कंपनी में काम करता था, एक दिन अचानक औफिस पहुंचकर तबियत खराब हो जाने पर उसे और उसके सहयोगियों को समझ नहीं आया कि क्या करें, पहले तो उसे लगा कि अधिक काम और तनाव लेने की वजह से उसे ऐसा महसूस हो रहा है, थोडा आराम करने पर ठीक हो जायेगा, लेकिन जब उसकी ‘अनइजीनेस’ कम होने के वजाय बढ़ने लगी, तो उसके सहयोगियों ने उसे पास के अस्पताल में ले जाना सही समझा, लेकिन वहां पहुंचने के पहले ही उसने दम तोड़ दिया.

ये घटना चौंकाने वाली तब थी, जब डौक्टर ने कहा कि इस दो से तीन घंटे के समय में उसे कई बार दिल का दौरा पड़ चुका है. ये सही है कि इस उम्र में ऐसी घटना हर किसी के लिए सोचने वाली हो सकती है, क्योंकि न तो सुमित बीमार था और न ही वह कोई दवा ले रहा था. शारीरिक रूप से भी वह हट्टा-कट्टा था.

इस बारें में मुबई के ‘सर एच एन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर’ के कार्डियो सर्जन डॉ.विपिनचंद्र भामरे कहते है कि आजकल के जौब जिसमें तनाव को लेकर घंटों बैठकर काम करने की वजह से युवाओं में दिल की बीमारी बढ़ी है. यहां यह समझना जरुरी है कि कैसा तनाव जानलेवा हो सकता है.

असल में तनाव दो तरह के होते हैं, एक्यूट और क्रोनिक स्ट्रेस. क्रोनिक स्ट्रेस की वजह से व्यक्ति में हार्मोनल बदलाव होते है, जिससे हाइपरटेंशन,डायबिटीज और दिल की बीमारी होती है. ऐसे में 30 साल की उम्र वाले व्यक्ति जिसने काफी समय तक तनाव को झेला है, साथ ही वह व्यक्ति एक स्थान पर बैठकर काम करता है, तो उसमें कोरोनरी हार्ट अटैक की संभावना अधिक बढ़ जाती है. एक्यूट स्ट्रेस अधितर व्यस्कों में होता है, जो उम्र की वजह से अपने आप को संभाल नहीं पाते और तनाव में जीते हैं.

एक रिसर्च में पाया गया है कि 20 से 30 की उम्र वाले लोगों में आजकल हाई कोलेस्ट्राल लेवल पाया जाता है. जिसकी वजह से कम उम्र में ही कोरोनरी हार्ट अटैक से 2 से साढ़े तीन गुना लोगों की मौत हो जाती है. इसलिए अब 20 की उम्र पार करते ही कई बार डौक्टर यूथ को कोलेस्ट्राल चेक करवाने की सलाह देते हैं. इतना ही नहीं अपनी जीवन शैली को सुधार कर युवा इस बीमारी को अपने से दूर रख सकते है. हाल ही में डौक्टर विपिन चंद्र ने कुछ टिप्स यूथ के लिए दिए हैं, जो निम्न है,

  • हमेशा संतुलित आहार लें, जिसमें विटामिन्स और न्यूट्रीएंट्स अधिक मात्रा में हों. फल, दाल, सब्जियों को अपने आहार में अवश्य शामिल करें.
  • एक्टिव रहने के लिए रोज 35 से 40 मिनट व्यायाम करें, लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करें.
  • अपने वजन को हमेशा काबू में रखें, ओवर ईटिंग कभी न करें.
  • धूम्रपान और नशा करने से बचें.
  • ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रोल की जांच समय-समय पर करवाते रहें.
  • तनाव को कम करने के लिए मेडिटेशन करें, किसी भी तनाव को अपने अंदर न रखकर अपने दोस्त या परिवार के साथ शेयर करना सीखें.
  • अपनी नींद पूरी करें, सही नींद न लेने पर थकान, चिडचिडापन बढ़ता है, जो हाइपरटेंशन और ह्रदय संबंधी बीमारियों को जन्म देती है.
  • अपने परिवार और दोस्तों के साथ हमेशा जुड़े रहें, ताकि आप उनसे मिलकर अपने आप को हल्का महसूस करें.
  • अपने ओरल हाइजीन को बनाये रखें, क्योंकि कई बार दांतों की समस्या भी हार्ट अटैक को जन्म देती है.
  • ह्रदय से सम्बंधित किसी भी लक्षण जैसे छाती में दर्द, थकान आदि को इग्नोर न करें.
  • ब्लड शुगर को हमेशा नियंत्रण में रखें.
  • नयी खोज और उससे होने वाले फायदे से हमेशा अपने आप को अपडेट करें.
  • जंक और औयली फूड को अवौयड करें, रेशेदार भोजन अधिक लें.
  • अगर आप एक स्थान पर बैठकर घंटों काम करते हैं, तो बीच में थोड़ी देर के लिए टहल लें.
  • आपका दिल जवान है, इसलिए हमेशा अपने अंदर सकारात्मक सोच बनाये रखें और खुश रहने की कोशिश करें.

वियाग्रा सिर्फ सैक्स के लिए नहीं

डायमंड के आकार वाली छोटी सी नीली गोली वियाग्रा सैक्स पावर को बढ़ाने के अलावा दूसरी बीमारियों में भी कमाल का असर दिखाती है. वियाग्रा में मौजूद दवा सिल्डेनाफिल को मर्दों की सैक्स संबंधी कमजोरियों को दूर करने में असरकारक माना जाता है लेकिन एक नई रिसर्च के अनुसार, वियाग्रा अन्य कई गंभीर रोगों में भी फायदेमंद है.

कई देशों में वियाग्रा के साइड इफैक्ट्स के बारे में शोध करने पर इस के कई फायदे सामने आए जो चौंकाने वाले हैं. अमेरिका में किए गए एक शोध के अनुसार, ठंड के मौसम में अकसर लोगों की उंगलियों में ऐंठन, दर्द होना, मुड़ न पाना, पीली पड़ जाना जैसी समस्याएं हो जाती हैं. ठंड से बच कर इन समस्याओं से बचा जा सकता है.

इस समस्या से जूझ रहे मरीजों को सिल्डेनाफिल देने पर उन्हें काफी फायदा हुआ. ऐसे?स्थान जहां अधिक बर्फ पड़ती है, वहां के लोगों को माउंटेन सिकनैस की समस्या हो जाती है. ऊंचे स्थानों पर औक्सीजन की कमी होने से ब्लड में इस का लेवल कम हो जाता है जिस से पल्मोनरी धमनियां संकरी हो जाती हैं. ऐसे में हृदय को पंपिंग करने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है और व्यक्ति की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है.

पल्मोनरी हाइपरटैंशन जैसी समस्या में भी सिल्डेनाफिल काफी प्रभावशाली होती है. फेफड़ों की बीमारी व हृदय संबंधी गड़बडि़यां होने पर पल्मोनरी हाइपरटैंशन की समस्या हो सकती है. पल्मोनरी हाइपरटैंशन के इलाज के लिए पुरुष व स्त्री दोनों के लिए सिल्डेनाफिल की 20 एमजी की 1-1 खुराक दिन में 3 बार निर्धारित की गई है. क्लीनिकल ट्रायल्स में इस दवा के काफी बेहतर परिणाम मिले हैं.

हृदय रोगियों के लिए हालांकि वियाग्रा सुरक्षित नहीं है लेकिन एक ही जगह पर रक्त की अधिकता, जिस की वजह से हार्ट फेल्योर की समस्या उत्पन्न होती है, के मरीजों के लिए सिल्डेनाफिल काफी प्रभावकारी होती है.  स्ट्रोक जैसी समस्या में सिल्डेनाफिल कमाल का असर दिखाती है. इस विषय पर शोध करने वाले जरमनी के डा. मैक रैपर का कहना है कि सिल्डेनाफिल मस्तिष्क के स्ट्रोक को दूर  करने में काफी अच्छा काम करती है.

सिल्डेनाफिल को ले कर नए शोध जारी हैं.  शोधों में इस से होने वाले लाभ और नुकसान के नतीजे सामने आ रहे हैं. बहरहाल, अब तक किए गए नतीजों से वियाग्रा एक लाभदायक दवा के रूप में भी सामने आई है. मगर ध्यान रहे, ऐसी कोई भी दवा बिना विशेषज्ञों की सलाह के बगैर न लें.

युवा भारत में युवा नेता हैं कहां

भारत आज विश्व में सब से अधिक युवा आबादी वाला देश है. भारत के मुकाबले चीन, अमेरिका बूढ़ों के देश हैं. चीन में केवल 20.69 करोड़ और अमेरिका में 6.5 करोड़ युवा हैं. हमारे यहां 125 करोड़ से ज्यादा की जनसंख्या में 65 प्रतिशत युवा हैं. इन की उम्र 19 से 35 वर्ष के बीच है. लेकिन देश के नेतृत्व की बागडोर 60 साल से ऊपर के नेताओं के हाथों में है. केंद्रीय मंत्रिमंडल में तीनचौथाई नेता सीनियर सिटीजन की श्रेणी वाले हैं. राजनीतिक संगठनों में भी युवाओं से अधिक बूढे़ नेता पदों पर आसीन हैं.

मौजूदा संसद में 554 सांसदों में 42 साल से कम उम्र के केवल 79 सांसद हैं. इन की आवाज संसद में न के बराबर सुनाई पड़ती है. युवाओं की अगुआई कहीं नजर नहीं आती. उन की ओर से कहीं कोई सामाजिक, राजनीतिक  बदलाव या किसी क्रांति की हुंकार भी सुनाई नहीं पड़ रही है.

देश के आम युवाओं की बात करें तो उन का हाल यह है कि वे भेड़ों की तरह हांके जा रहे हैं. चारों ओर युवाओं की केवल भीड़ है. हताश, निराश और उदास युवा. एसोचैम के अनुसार, आज 78 करोड़ युवा सोशल मीडिया पर तो सक्रिय हैं पर उन में राजनीतिक व सामाजिक रचनात्मकता नदारद है.

देश में नई चेतना का संचार करने वाली युवा राजनीतिक पीढ़ी कहीं नहीं दिखाई दे रही है. भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राजद, बसपा जैसे दलों में बड़ी उम्र के नेता अगुआ बने  हुए हैं. कांग्रेस में 47 साल के राहुल गांधी हैं पर उन में नेतृत्व की क्षमता का साफ अभाव उजागर हो चुका है. केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा में कोई लोकप्रिय युवा नेता दिखाई नहीं देता.

लकीर के फकीर बन बैठे हैं युवा नेता

अन्ना आंदोलन से अरविंद केजरीवाल उभर कर आए. देश को उन की सोच परिवर्तनकारी लगी. उन्हें अवतारी पुरुष बताया जाने लगा पर 2-3 साल गुजरतेगुजरते वे असफल साबित होने लगे. वे मैदान में विरोधियों को झेल नहीं पाए. उन्हें विपक्ष ने असफल साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. विरोधी उन पर भारी साबित हुए और वे उन के हाथों शिकस्त खा गए दिखते हैं.

राहुल गांधी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए. अपने कामों से उन की हंसी ज्यादा उड़ रही है. 47 साल के ज्योतिरादित्य सिंधिया, 40 वर्षीय सचिन पायलट अपने परिवारों की राजनीतिक विरासतों को ही आगे बढ़ा रहे हैं. वे भी लकीर के फकीर बने नजर आते हैं. इन्होंने राजनीति में आ कर कोई नई सोच या दिशा नहीं दी.

समाजवादी पार्टी में अखिलेश यादव कोई चमत्कार नहीं कर पाए. हालांकि पिछली बार उत्तर प्रदेश की जनता ने उन्हें युवा जान कर सत्ता सौंपी थी पर वे पारिवारिक झगड़े में ही उलझ कर रह गए. इस बार प्रदेश की उसी युवा पीढ़ी ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया.

आज की राजनीति में राहुल गांधी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट से ले कर अखिलेश यादव तक कई युवा हार्वर्ड जैसे विदेशी विश्वविद्यालयों से पढ़ कर आए हुए हैं. गांधी, नेहरू, पटेल भी युवावस्था में विदेश से पढ़ कर देश का राजनीतिक नेतृत्व किया था. उन नेताओं ने देश को धर्मनिरपेक्ष, संप्रभु समाजवादी लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान कराने में अपना योगदान दिया.

पाकिस्तान जैसे कितने देश आजाद होने के दशकों बाद भी लोकतंत्र की स्थापना में नाकाम, कोसों दूर खड़े देखे जा सकते हैं. राज्यों की बात करें तो मध्य प्रदेश में श्यामाचरण शुक्ला और विद्याचरण शुक्ला के परिवार से युवाओं में उभर कर कोई नहीं आ पाया. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के बाद कोई नहीं दिख रहा. ओडिशा में नवीन पटनायक भी किसी युवा को आगे नहीं ला पाए. तेलंगाना में चंद्रशेखर राव का परिवार धर्र्म की लौ जगाने में ज्यादा भरोसा रखता है. दक्षिण भारत में रजनीकांत और अब कमल हासन दोनों ही 60 से ऊपर की अवस्था में आ कर राजनीति में उतरने की सोच रहे हैं और अभी भी वहां 85 साल से अधिक उम्र के हो चुके करुणानिधि का दबदबा है और एस एम कृष्णा जैसे नेता कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आ रहे हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे, अपने भाषणों में कई बार देर तक खामोश बैठे या खड़े रह जाते थे. एच डी देवगौड़ा को मीटिंगों  सोने में महारत थी, महत्त्वपूर्ण बैठकों में उन्हें नींद आ जाती थी. अब भी कई मंत्री टैलीविजन चैनलों में कैमरों के सामने सोए हुए देखे जा सकते हैं.

एक दौर था युवा नेताओं का    

इतिहास का एक दौर था जब महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस से ले कर विवेकानंद तक युवावस्था में देश के लिए आदर्श नेता के रूप में अगुआ थे. उस समय जनक्रांति में अनगिनत युवाओं ने खुद को समर्पित कर दिया था. महात्मा गांधी 1888 में 18 साल की उम्र में वकालत पढ़ने इंगलैंड चले गए थे. 3 साल लंदन में रहने के बाद 1891 में वापस लौट आए. फिर 1893 में साउथ अफ्रीका चले गए. 23-24 साल की उम्र में उन्होंने रंगभेद को देखा और महसूस किया और फिर 25 साल की उम्र में उन्होंने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. 1906 में अवज्ञा आंदोलन के बाद से वे देश की आजादी के लिए लोहा लेते रहे. राजनीतिक आंदोलन को नेतृत्व देते रहे.

महात्मा गांधी ने 1919 से 1931 तक यंग इंडिया नामक पत्रिका निकाली जो अपने विचार और दर्शन की बदौलत देश की युवा पीढ़ी को पे्ररित करती रही. उस में गांधी के देश, समाज और परिवार के प्रति वो विचार होते थे जिन से लोगों को प्रेरणा मिलती थी.  नेहरू 27 वर्ष में ही कैंब्रिज से पढ़ कर होम रूल लीग में शामिल हो चुके थे. सरदार पटेल युवावस्था में ही बाहर से वकालत कर लौटे और खेड़ा सत्याग्रह व बारदोली किसान आंदोलन के नेतृत्व से जल्दी ही प्रसिद्ध हो गए.

1975 में इंदिरा गांधी की ज्यादतियों के विरुद्ध संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंकने वाले जयप्रकाश नारायण की उम्र भी अधिक नहीं थी. समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी का गठन कर उन्होंने दलित, पिछड़े युवा नेताओं की एक मजबूत टोली खड़ी कर दी. उन के आंदोलन ने पिछड़ों को संगठित और जाग्रत करने में अहम भूमिका निभाई. संपूर्ण क्रांति में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी दूर करने और शिक्षा में क्रांति लाने जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे थे.  राममनोहर लोहिया भी इसी आंदोलन के एक मजबूत स्तंभ थे. युवा उम्र में वे भी जाग्रति फैलाने में आगे रहे. 57 साल की अवस्था में उन की मृत्यु हो गई थी.  भीमराव अंबेडकर ने 1927 में छुआछूत के खिलाफ व्यापक आंदोलन छेड़ा, उस समय वे युवा ही थे. वे महज 36 वर्ष के थे.

1857 से 1947 तक के लंबे स्वतंत्रता संघर्ष में देशवासियों के दिलों में देशभक्ति एवं क्रांति की लौ जलाने वालों में युवाओं की भूमिका सर्वोपरि रही है. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 26 वर्ष की थीं. तात्या टोपे, मंगल पांडे युवा ही थे. भगत सिंह ने खुद के नास्तिक होने के क्रांतिकारी विचार युवावस्था में ही जाहिर कर दिए थे. चंद्रशेखर, खुदीराम बोस ने देश के सुख के लिए अपने यौवन का बलिदान कर दिया था.

शो पीस बन कर रह गए हैं युवा नेता

लेकिन, पिछले 3-4 दशकों में ऐसा देखने को नहीं मिला. ऐसा नहीं कि देश से समस्याएं मिट गई हों और किसी बदलाव या क्रांति की जरूरत न रही हो.  भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी, लालकृष्ण आडवाणी के बाद दूसरी कतार के नेताओं को नेतृत्व सौंपे जाने के प्रयास हुए तो पार्टी में आपसी कलह, टांगखिंचाई शुरू हो गई थी. नेताओं में कुरसी हथियाने की होड़ शुरू हो गई थी. हालांकि उस समय भी वेंकैया नायडू, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार, उमा भारती, शिवराज सिंह चौहान जैसे नेता युवा नहीं रहे थे.

राजनीति में युवाओं को आगे लाने की बात होती है, युवा नेतृत्व की बात चलती है पर पार्टी या सरकार का नेतृत्व किसी बड़ी उम्र के नेता को ही सौंपा जाता है. 2008 में राहुल गांधी ने युवा शक्ति से जनाधार बढ़ाने के लिए देशभर से युवाओं के इंटरव्यू किए थे. उस में 40 युवाओं का चयन किया गया. पर वे आज कहां हैं, उन की हट कर कोई अलग पहचान नहीं दिखती.

पिछले लोकसभा चुनावों में युवाओं का चुना जाना अच्छा संकेत था पर ये युवा ज्यादातर अपनी खानदानी विरासत संभालने आए. कुछ बंधनों को छोड़ दें तो इन युवाओं में  जोश और जज्बा तो नजर आता है पर नई सोच नहीं. विचारों में क्रांति लाने का काम नहीं हो रहा है. संसद में सचिन तेंदुलकर जैसे युवा केवल शोपीस बने हुए हैं. वे न खेलों को भ्रष्टाचार, बेईमानी से मुक्त करने के लिए कोई बात करते हैं, न किसी अन्य सुधार की.

दलगत राजनीति हो या छात्र राजनीति, दोनों की दशा डांवाडोलहै. राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने छात्र राजनीति में भी अपनी घुसपैठ बना रखी है. इन्हीं के सहयोगी संगठन छात्र राजनीति का खेल खेलते हैं. छात्र राजनीति में अपराधों व अपराधियों का बोलबाला है.

ऐसी विकट स्थिति के कारण ही मई 2005 में राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर खंडपीठ को विश्वविद्यालयों सहित सभी शिक्षण संस्थानों में छात्र संघों और शिक्षक संघों  के चुनाव पर रोक लगाने का फैसला सुनाना पड़ा था. इस के पीछे बताई गई वजहें गौर करने लायक थीं. खंडपीठ का कहना था कि नेतागीरी की धाक जमाने के लिए छात्र नेता शिक्षकों का अपमान करते हैं और राजनीतिक दल छात्र एकता को विभाजित कर रहे हैं.

कुछ समय पहले व्यवस्था के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने वाला कोई युवा नहीं था, 80 साल के वृद्ध अन्ना हजारे थे. उन के पीछे युवाओं की भीड़ जरूर थी पर नेतृत्व में वह पीछे थी. क्या हमारे युवाओं में राजनीतिक चेतना का विकास नहीं हो रहा है? जो युवा नेता हैं उन में देश की दिशा और दशा बदलने की कूवत नहीं है. ज्यादातर युवा नेता परिवार की राजनीतिक विरासत को ढो रहे हैं. अन्ना आंदोलन के बाद लगता है कि देश के युवा का बदलाव की राजनीति और वैचारिक क्रांति में भरोसा कम होता जा रहा है. वह यथास्थितिवादी होता जा रहा है. वह परंपरा को तोड़ने के बजाय परंपरापूजक होता जा रहा है. आमतौर पर माना जाता है कि युवा का मतलब है परंपराओं को चुनौती देने वाला और बदलाव में विश्वास रखने वाला. समाज का यह तबका किसी देश में बदलाव का अगुआ होता है.

हाल के समय में लगता है युवा खासतौर से मध्यवर्गीय युवा धारा के विरुद्ध नहीं, धारा के साथ बहने लगा है. बदलाव के बजाय परंपराओं में, यथास्थिति में भविष्य देख रहा है. युवा सामाजिक, राजनीतिक जकड़बंदी से टकराने के बजाय उस से समझौता करने के मूड में दिखाई देने लगा है. यह बात भी सही है कि सत्ता की ओर से युवाओं को बदलाव की चेतना, आंदोलन से दूर रखने और इन आंदोलनों को कमजोर करने की योजनाबद्ध कोशिशें हुईं और उसे काफी हद तक कामयाबी भी मिली है. असल में मौजूदा व्यवस्था युवाओं की बेचैनी, उस के जोश, उस की क्रिएटिविटी को कुचलने का काम कर रही है. भीड़ की सोच ही युवाओं की सोच बनती जा रही है.  युवा पीढ़ी अतीत की जंजीरों की जकड़न उतार फेंकने में हिचकिचा रही है.       

युवा आजादी का लुत्फ उठा रहे हैं. युवाओं ने मान लिया है कि अब उन की देश, समाज के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है. आजादी ही हमारा लक्ष्य नहीं था. वास्तविक जिम्मेदारियां तो बाद में शुरू हुई हैं. गांधी, नेहरू के बाद देश को बहुत सुधारों की जरूरत है. देश संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. हमारे नेता सोच रहे हैं कि देश में सड़कें, पुल, हाईवे, मौल, मैट्रो, मोबाइल फोन, कंप्यूटर जैसी चीजें तरक्की की निशानिया हैं. भ्रष्टाचार, निकम्मापन, बेरोजगारी, व्यक्ति की आजादी, धाक, जातीय, लैंगिक भेदभाव, अंधविश्वासों से मुक्ति, नौकरशाही में कर्तव्य का अभाव, सरकार की जवाबदेही जैसी चीजों में बड़े सुधारों की जरूरत है.

आजादी बनाम जिम्मेदारी

सरकार का यह दायित्व होता है कि वह प्रशासन, समाज में ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता का माहौल पैदा करे. पर ऐसा दिखाई नहीं पड़ता.  वैचारिक क्रांति का अलख सदियों से नहीं हुआ. देश में प्रगति, विकास के एक झूठ का आडंबर फैलाया जा रहा है. अफसोस इस बात का है कि युवा तर्क नहीं कर रहा, सवाल नहीं उठा रहा कि विकास कहां है, कैसा विकास हो रहा है? बस, हां में हां मिलाए जा रहा है.

युवा वर्ग की पहचान है उस की  बेचैनी, उस का आक्रोश, उस की सृजनात्मकता और स्थापित व्यवस्था को चुनौती देने वाला उस का मिजाज. यही मिजाज उसे बदलाव के लिए व्यवस्था से टकराने का हौसला व हर जोखिम उठाने का साहस देता है.

जेल भेज दिया जाता है युवाओं को

पिछले दिनों कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी, चंद्रशेखर जैसे युवा नेता उभर कर सामने आए. इन में व्यवस्था में बदलाव का जज्बा दिखाई दिया. ये नेता व्यवस्था से टकराए. इन्होंने भेदभाव, आजादी, बेरोजगारी, असमानता जैसे अहम मुद्दों को ले कर आंदोलन का नेतृत्व किया पर व्यवस्था से टकराने पर उन्हें जेल व जलालत मिली.

कन्हैया कुमार ने विश्वविद्यालयों और समाज में व्याप्त धार्मिक, जातीय भेदभाव और स्वतंत्रता के लिए आंदोलन छेड़ा. देश के विश्वविद्यालयों में दलित, पिछड़े, आदिवासी छात्रों के साथ हो रहे भेदभाव की मुखालफत की थी. उन्हें जेएनयू से निकालने की मांग की गई. केंद्र सरकार ने देशद्रोह का आरोप लगा कर मुकदमा ठोंक दिया और जेल भेज दिया. कोर्ट में पेश किए जाते वक्त उन पर वकीलों के एक समूह ने हमला किया. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से डौक्ट्रेट कर  रहे कन्हैया कुमार अब भी गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, असमानता के विरुद्ध खड़े हैं पर सत्ता ऐसे युवाओं से भयभीत है और उन्हें झुकाने के हर हथकंडे अपना रही है.

गुजरात में हार्दिक पटेल ने आक्षरण में भेदभाव को ले कर बड़ा आंदोलन खड़ा किया. लाखों लोग उन के साथ जुड़े. उन पर भी मुकदमा कायम किया गया और प्रदेश निकाला दे दिया गया. हार्दिक पटेल को राजस्थान में कई महीनों तक नजरबंद रखा गया.

गुजरात में ही पिछले साल मरी हुई गाय की खाल उतारने पर 4 दलित युवकों की हिंदू संगठनों के लोगों द्वारा की गई बुरी तरह पिटाई के बाद जिग्नेश मेवानी उभर कर सामने आए. इस घटना के विरोधस्वरूप जिग्नेश ने राज्यभर में आंदोलन की अगुआई की. दलितों को एकजुट कर के सरकार और कट्टर हिंदू संगठनों के खिलाफ आंदोलन किया.   उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के शब्बीरपुर में दलितों और राजपूतों के बीच हुई हिंसा के मामले में भीम आर्मी के नेता के रूप में चंद्रशेखर उभर कर सामने आए. 35 वर्षीय चंद्रशेखर ने जातीय भेदभाव और हिंसा के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी. दिल्ली के जंतरमंतर पर धरना देने के लिए बुलाई गई भीड़ का नेतृत्व किया और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया. चंद्रशेखर के परिवार का भी उत्पीड़न किया गया.

सत्ता और कट्टर राजनीतिक विचारधारा को छोड़ कर देश ने इन युवा नेताओं को हाथोंहाथ लिया, पर आज ये कहां है? यह तथ्य हैरान करने वाला है कि देश की बहुसंख्यक आम युवा आबादी में बदलाव की कोई हलचल नहीं है. अपवादों को छोड़ दें तो पूरे देश में युवा समुदाय में वह बेचैनी, गुस्सा और आंदोलन दिखाई नहीं दे रहा है जिस के लिए उसे जाना जाता है.

युवा मोबाइल, इंटरनैट, सोशल मीडिया में इतना व्यस्त है कि उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा. युवा किसी भी देश व समाज के  कर्णधार माने जाते हैं. वे वह स्तंभ कहलाते हैं जिस पर समाज की मजबूत इमारत का निर्माण होता है. एक आम मानसिकता यह है कि 10वीं की पढ़ाई के बाद इंटर और फिर ग्रेजुएशन किया जाए. शिक्षा के आंकड़ों पर गौर करें तो स्थिति भयावह दिखती है.

आज 47 प्रतिशत युवा रोजगार के लिहाज से नाकाबिल हैं. 35 प्रतिशत स्नातक क्लर्क की नौकरी के लायक हैं. कुल मिला कर 15 प्रतिशत युवा ही बेहतर रोजगार के स्तर तक पहुंच पाते हैं. विश्व के 200 विश्वविद्यालयों में भारत की उपस्थिति भी नहीं है.

नई सोच का अभाव

विदेशों से पढ़ कर भारत वापस आ रहे युवाओं में भी नेतृत्व की नई सोच का लगभग अभाव ही नजर आता है. संकट में चुनौतियों का सामना समयसमय पर युवा शौर्य ही करता आया है पर युवा नेताओं में ये बातें नहीं हैं. संसद, विधानसभाएं ऐसे लोगों का जमावड़ा बन गई हैं जहां गंभीरता के साथ बहस या संवाद नहीं होते. केवल चिल्लाने, उत्तेजक भाषण देनेऔर आपस में आरोपप्रत्यारोप में देश का समय बरबाद किया जाता है. संसद में कईकई दिनों तक कामकाज नहीं होता. विधानसभाएं ठप कर दी जाती हैं. दरअसल राजनीति राष्ट्रीय व्यवस्था एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को सुचारु व सुगम बनाने की प्रणाली है. इस के अपने मूल्य एवं नीतियां हैं जो न्याय, समानता के सिद्धांत से ओतप्रोत हैं. लेकिन चारों ओर भ्रष्टाचार, बेईमानी, स्वार्थ, मौकापरस्ती, भाईभतीजावाद का साम्राज्य विद्यमान है. हमारे नेता शासन तो करना चाहते हैं पर उन का बुराइयों के खात्मे से कोई सरोकार नहीं है. यह काम युवा नेताओं को आगे बढ़ कर करना चाहिए, पर वे उदासीन नजर आते हैं हमारे देश में संसद, विधानसभाओं से शासन, प्रशासन, देश, समाज, व्यक्ति की तरक्की की कोई राह निकलती  नहीं दिखती तो इस का मतलब देश को युवा कहने पर धिक्कार है. अभी देश के यौवन में कुछ खोट है. यौवन की तरंग में तरक्की की कोंपलें फूटती दिखनी चाहिए जो युवा नेताओं की कार्यशैली, उन के विचारों में दिखाई नहीं दे रही हैं.

आधुनिकता और सनातनवाद: दोराहे पर खड़ा भारतीय समाज

भारतीय समाज में जाति प्रथा सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन में इतनी गहराई से जुड़ी हुई है कि इसके पीछे भगवान द्वारा प्रमाणपत्र शामिल है. इस व्यवस्था के खिलाफ या विपरित कोई भी कार्य पाप और भगवान का अपमान माना जाता है. परन्तु वास्तविकता में यह कोई भगवान का दिया हुआ गुण नहीं है जिसका अनुकरण किया जाए.

आजादी के ७० साल बाद भी हमारे देश में जाति और छुआछूत की भावना कितनी गहरी है, इसका अंदाजा हाल ही में घटी पुणे की एक घटना से लगा सकते है. जहाँ एक महिला वैज्ञानिक ने अपने घर में रसोई बनाने वाली महिला पर जाति छिपाकर काम लेने और धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. पुणे के शिवाजी नगर में रहने वाली डॉ. मेधा विनायक खोले का आरोप था कि रसोई बनाने वाली महिला निर्मला एक साल से खुद को ब्राह्मण और सुहागिन बताकर काम कर रही थी जो कि झूठ था.

इससे उनके पितरों और देवताओं का अपमान हुआ. वैसे तो इस देश में जाति के आधार पर अन्याय और शोषण की घटनाएं आम बात है. लेकिन यह मामला हमारी उस ग़लतफ़हमी को दूर करता है जहां हम सोच रहे थे कि केवल अशिक्षित और मानसिक रूप से पिछड़े लोग ही इन धार्मिक और सामाजिक कुप्रथाओं का पालन कर रहे हैं, जबकि पुणे जैसी विकासशील शहरों में कुछ शिक्षित और संपन्न लोग उनसे भी दो कदम आगे है.

रोजगार की कमी एक समस्या

इस मामले में एक महिला के ऊपर झूठ बोल कर काम लेने का आरोप इसलिए लगा है, क्योंकि वह छोटी जाति की है. लेकिन यह भी गौर करने वाली बात है कि आखिर क्यों, एक घरेलू कामकाज में कुशल महिला को इस तरह झूठ बोलने की जरुरत पड़ी? देश में बेरोजगारी का जो माहौल है उससे साधारण जन काफी परेशान है. सरकारी एवं गैर सरकारी ऑफिसों में ही नहीं, बल्कि घरेलू रोजगारों में तेजी से गिरावट आई है. तथाकथित ऊंची जातियों द्वारा अपने घरों में छोटी जातियों को नौकरी देने से लेकर वेतन देने तक आनाकानी, भेदभाव और उनका शोषण किया जाता रहा है, जो आज भी जारी है.

रुढ़िवादी मानसिकता बदलने की जरूरत 

आज समाज के कुछ लोग ऊपरी तौर पर इस तरह के सामाजिक मानदंडों को छोड़ने का दिखावा जरूर कर रहे है. नेता, मंत्रीगण राजनीतिक लाभ के लिए दलितों के घर भोजन और साथ बैठने का दिखावा करते है, लेकिन उनके सामाजिक और धार्मिक विश्वासों में आज भी जातिवाद अच्छी तरह से स्थापित है. इस सामाजिक मानसिकता का उन्मूलन करने और हटाने में सबसे बड़ी समस्या इसके लिए आम सामाजिक स्वीकृति है. जब तक यह नहीं होगा, इस समस्या से निजात पाना नामुमकिन है. क्योंकि कानून केवल शोषण से सुरक्षा प्रदान कर सकता है और शिक्षा निचली जातियों को उनके अधिकारों की जानकारी दे सकता है, लेकिन ऊंची जाति वालों के व्यवहार में बदलाव नहीं ला सकता है.

संकीर्ण मानसिकता एवं अहंकार का द्योतक  

२१वीं सदी में भी भारतीय समाज में जाति प्रथा अच्छी तरह से स्थापित और पवित्र नियम के रूप में इसलिए जारी है, क्योंकि यह एक विशेष वर्ग के अहंकार से जुडी है. हजारों वर्षों में बनी यह वो मानसिकता है जिससे ऊंची जातियां स्वयं को श्रेष्ठ साबित करती आयी हैं. आज भी ऊंची जातियां अपने घरों और बच्चों में छोटी जातियों के प्रति भेदभाव की भावना और जातिवाद के जहर को संस्कार के रूप में घोलने का हरसंभव प्रयास करती हैं. उन्हें निचली जातियों से श्रेष्ठ समझने की सीख देती है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी होता आया है. समाजशास्त्री प्रो. हरी नारके के अनुसार, हमारा समाज विकासशील और प्राचीन मानसिकता के बीच फंस के रह गया है.

यह मानसिकता पूरी तरह से अहंकार और अंधश्रद्धा से जुड़ी हुई है. आजादी के बाद, भारतीय संविधान में अनुच्छेद 13,14,15,16 के अनुसार, जाति के आधार पर लगाया गया कोई भी आरोप गंभीर और दंडनीय है, लेकिन इन नियमों को दरकिनार कर राष्ट्र और समाज की उपेक्षा करते हुए केवल जातिगत कल्याण के लिए सोचने की खतरनाक प्रवृत्ति ना केवल साधारण जन, बल्कि देश के शिक्षित और बुद्धजीवी जनों में भी व्याप्त है. देश के शहरों में रहने वाली नई पीढ़ी का मानना है कि जब संविधान में जाति के आधार किसी भी काम को मान्यता नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि गाँवों में ये सब आज भी जारी है. लेकिन पुणे जैसे प्रगतिशील शहर में ऐसे मामले का होना इस बात का सबूत है कि जाति का घमंड किस हद तक लोगों के मन में भरा है.

घर को ऐसे करें त्योहार के लिए तैयार

त्योहारों का सिलसिला शुरू हो चुका है, साथ ही शुरू हो चुका है घर की साफ-सफाई और सजावट का दौर भी. जानिए त्योहारों के मौसम में अपने घर को आसानी से कैसे सजाएं.

पूरी सफाई

त्योहारों की तैयारी शुरू होती है घर की सफाई से. सारे फर्नीचर को एक तरफ कर दीजिए और घर का कोने-कोने की सफाई कीजिए. रोज के झाडू-पोछा में घर के कई कोने छूट जाते हैं. फर्नीचर के नीचे भी सफाई नहीं हो पाती है. नतीजा यह होता है कि इन जगहों पर काफी कूड़ा जमा हो जाता है.

खिड़कियों और ग्रिल

खिड़कियों का ग्रिल पर धूल-मिट्टी बहुत ज्यादा होती है. चिमटे पर टावल लपेट कर इससे आप ग्रिल की सफाई करें. खिड़कियों की जाली को पेंट वाले ब्रश के साथ साफ करने से धूल-मिट्टी आसानी से साफ हो जाती है.

दरवाजे

साफ-सफाई में अक्सर लोग दरवाजों को नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन यहीं मकड़ियों के छिपने की खास जगह होती है. लकड़ी के दरवाजों को सूखे काटन के कपड़े के साथ साफ करें.

फर्श

घर के फर्श को आसानी से साफ करने के लिए पानी में बेकिंग सोड़ा और नींबू मिलाएं. आप इसमें सिरका भी डाल सकती हैं. इससे फर्श साफ करें,चमक उठेगे.

हटाएं गैरजरूरी चीजें

अपनी सारी अलमारियों, कबर्ड्स, और रैक की अच्छे से छानबीन करें. साल भर हम कई छोटी से छोटी चीज को भी अपनी अलमारी में संभालकर रखते हैं. इनकी जरूरत न होने पर भी ये शेल्फ पर ऐसे ही पड़ी रह जाती है. ऐसी सभी चीजों को हटा दें और अपनी अलमारी को सलीके से लगा लें.

फ्रेश पेंट

सफाई के बाद बारी आती है लुक की. दीवारों और कबर्ड्स को पेंट और पालिश करने पर विचार करें. नए-नए रंगों से घर भी नया सा लगने लगेगा.

थोड़ी शौपिंग हो जाए

त्योहारों पर घर को सजाने के लिए नई चीजें नहीं लाए तो क्या त्यौहार मनाया. बाजार से घर के लिए नए पर्दे, कुशन कवर्स, कैन्डल्स, और नई कटलरी ले आइए.

पनीर और किशमिश की सलाद

सामग्री

1 कप पनीर

1 कप दही

2 बड़े चम्मच पानी में भिगोई किशमिश

1 बड़ा चम्मच गाजर कद्दूकस

1 बड़ा चम्मच शिमलामिर्च बारीक कटी

1 बड़ा चम्मच अनारदाना

1 बड़ा चम्मच अखरोट बारीक कटा

1 बड़ा चम्मच अलसी के बीज भुने हुए

चुटकी भर पिसी चीनी

नमक स्वादानुसार

विधि

सारी सामग्री को अच्छी तरह मिला कर एक डब्बे में डाल कर 1 घंटा फ्रिज में रखें. फिर किशमिश से सजा कर परोसें.

– व्यंजन सहयोग: माधुरी गुप्ता

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