कैसे बचेंगी गंगायमुना

एक भारतीय के लिए यह कल्पना  भी सिहरा देने वाली है कि एक  दिन गंगायमुना जैसी नदियां नहीं रहेंगी. गंगा की विदाई की बात तो आम आदमी सोच नहीं पाता, लेकिन धीरेधीरे यह आशंका गहरा रही है. गंगायमुना दुनिया की उन नदियों में से हैं जिन के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. साल 2014 में पर्यावरण संरक्षण से संबद्घ संस्था डब्लूडब्लूएफ ने इस खतरनाक तथ्य का खुलासा किया था. उस के मुताबिक गंगायमुना के अलावा सिंधु, नील और यांग्त्सी भी संकटग्रस्त हैं. डब्लूडब्लूएफ का कहना है कि निरंतर बढ़ते प्रदूषण, पानी के अत्यधिक दोहन, सहायक नदियों के सूखने, बड़े बांधों के निर्माण और वातावरण में परिवर्तन से इन बड़ी नदियों के लुप्त होने का संकट पैदा हो गया है.

भारत में आज सब से अहम चर्चा गंगा को ले कर है. नरेंद्र मोदी सरकार ने गंगा को पुनर्जीवन देने का ऐलान अपने घोषणापत्र में किया था और अपने वादे के मुताबिक, उमा भारती को गंगा सफाई का एक पृथक मंत्रालय दे कर इस बारे में अपनी सदिच्छा भी दर्शा दी थी. पर अब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हरिद्वार निवासी एक मुसलिम व्यक्ति मोहम्मद सलीम की जनहित याचिका पर अभूतपूर्व फैसला सुनाते हुए इन दोनों नदियों को जीवित इंसान जैसे अधिकार देने की बात कही है.

अदालत के इस फैसले से गंगायमुना को देश के संवैधानिक नागरिक जैसे अधिकार हासिल हो गए हैं, जिन के तहत इन के खिलाफ और इन की ओर से मुकदमे सिविल कोर्ट तथा अन्य अदालतों में दाखिल किए जा सकेंगे. इन नदियों में कूड़ा फेंकने, पानी कम होने, अतिक्रमण की स्थिति में मुकदमा हो सकता है और गंगायमुना की ओर से मुख्य सचिव, महाधिवक्ता, महानिदेशक आदि मुकदमा दायर कर सकेंगे.

यही नहीं, यदि इन नदियों में बाढ़ आदि के कारण किसी व्यक्ति के खेतमकान बह जाते हैं, तो वह व्यक्ति इन के खिलाफ भी अदालत में मुकदमा दायर कर हर्जाना की मांग कर सकता है, जिस की भरपाई संबंधित राज्य सरकार को करनी पड़ सकती है.

इस ताजा फैसले के पीछे न्यूजीलैंड में बांगक्यू नामक नदी को जीवित व्यक्ति की तरह हाल में अधिकार  देने का उदाहरण है. बहरहाल, इस फैसले से यह उम्मीद जगी है कि अब सरकार और जनता गंगायमुना व अन्य नदियों की साफसफाई व संरक्षण के प्रति सजग होगी और इस के उपाय करेगी कि इन के जीवन पर कोई संकट न आए.

जहरीला प्रदूषण

मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होते ही देश में गंगायमुना समेत देश की धर्म की दुकान में शामिल प्रमुख नदियों की साफसफाई की योजना पर सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में कामकाज शुरू हो गया था. जैसे, एक योजना जहाजरानी मंत्रालय ने बनाई थी जिस में गंगा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और महानदी को जोड़ कर जल परिवहन ग्रिड तैयार किया जा रहा है. करीब 25 हजार करोड़ रुपए की इस प्रस्तावित परियोजना में इन प्रमुख नदियों में जलप्रवाह सुनिश्चित करने के साथसाथ इन का उपयोग ऐसे जलमार्ग के रूप में किया जाना है जिस से सस्ती दरों पर माल ढुलाई की जाए.

एक अन्य योजना पर्यटन मंत्रालय की है जिस की पहल पर देश की कुछ शीर्ष कंपनियां, खासतौर पर बनारस के गंगा घाटों का विकास और रखरखाव करने के लिए, सामने आई हैं. खुद पर्यटन मंत्रालय 18 करोड़ रुपए के खर्च से इन घाटों का विकास कर रहा है. पर नदियों की सब से अहम समस्याएं उन के दोहन, खनन और उन में डाले जा रहे जहरीले प्रदूषण की हैं.

सब से पहले बात गंगा की है. गंगा हमारे लिए सिर्फ एक नदी नहीं है, वह धर्म की कमाई का बड़ा साधन भी है. प्रवाह समाप्त होने और प्रदूषण बढ़ने पर उस के खत्म होने का अर्थ होगा एक दुकानदारी का लोप हो जाना. असल में अपना जीवन संवारते हुए हम ने नदियों की जिंदगी छीन ली है. गंगा और इस की सहायक नदियों से पानी के अंधाधुंध दोहन ने हालत बिगाड़ दी है. देश में गंगा की सभी सहायक नदियों का पानी बांधों द्वारा नियंत्रित है, जो 60 फीसदी प्रवाह को सिंचाई के लिए मोड़ देते हैं.

औद्योगिक विकास के जोर पकड़ने के साथ ही गंगा मैली होती जा रही है. यह सिलसिला प्रदूषण रोकने की तमाम सरकारी कवायदों के बावजूद रुकने का नाम नहीं ले रहा. बीते अरसे में सुप्रीम कोर्ट गंगा ऐक्शन प्लान की राशि के दुरुपयोग पर गहरी नाराजगी जता चुका है. एक मौके पर अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा था कि प्रदूषण दूर करने के नाम पर करीब 900 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद गंगा में औद्योगिक प्रदूषण क्यों बदस्तूर जारी है? सरकार बगलें झांकने के अलावा और कुछ नहीं कर सकी.

सच तो यह कि इतना कुछ होने के बाद भी सिवा घाट बनाने के गंगा को स्वच्छ बनाने का अभियान सरकार की प्राथमिकताओं में नहीं आया.

आश्चर्य तो यह होता है कि नदियों को पूजने वाले इस देश के अंधभक्त भी नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए सामने नहीं आते, कोई आवाज नहीं उठाते. दुनिया के कई देशों में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जब सरकार और समाज ने मिल कर नदियों को पुनर्जीवन दिया, जबकि वहां नदियों का कोई धार्मिक महत्व नहीं है.

बहरहाल, अब एक उम्मीद अदालत के फैसलों और उन पर सरकारों के रुख से जगी है. सरकारें अपने स्तर पर नदियों की साफसफाई के लिए जो कुछ करेंगी, उन की सार्थकता इस से तय होगी कि उन्होंने नदियों की किन दिक्कतों का नोटिस लिया है. नदियों को नया जीवन देने के लिए पहले उन की समस्याओं को जानना जरूरी है. मिसाल के तौर पर गंगोत्री से निकल कर बंगाल की खाड़ी में समाने से पहले 2,525 किलोमीटर का लंबा सफर तय करने वाली गंगा कई तरह के प्रदूषण झेल रही है और खनन की गतिविधियों से उस का स्वरूप बिगड़ रहा है.

पिछली सरकारों के कार्यकाल में गंगा का अस्तित्व बचाने के लिए गंगा ऐक्शन प्लान के तहत 200 अरब रुपए तक खर्च हो गए, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह सारा खर्च जैसे गटर में समा गया क्योंकि गंगा की हालत जस की तस रही.

बैक्टीरिया का हमला

गंगा का जल आचमन लायक क्यों नहीं है और इस में प्रदूषण की स्थिति क्या है, इस का अंदाजा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड यानी सीपीसीबी के आंकड़ों से हो जाता है. सीपीसीबी के मुताबिक, हरिद्वार से ले कर कानपुर, इलाहाबाद और बनारस तक इस में कौलीफौर्म बैक्टीरिया की मात्रा काफी ज्यादा है जो इंसानों को विभिन्न रोगों की गिरफ्त में ला सकता है. आमतौर पर गंगा जैसी नदी के प्रति सौ मिलीलिटर जल में कौलीफौर्म बैक्टीरिया की तादाद 5,000 से नीचे होनी चाहिए. पर हरिद्वार में यह मात्रा प्रति सौ मिलीलिटर जल में 50,917, कानपुर में 1,51,333 और बनारस में 58,000 है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, बनारस में कौलीफौर्म बैक्टीरिया की संख्या सुरक्षित मात्रा से 11.6 गुना ज्यादा है. गंगा में बैक्टीरिया की इतनी अधिक मौजूदगी की वजह है उस में मिलने वाला बिना उपचारित किए गए सीवेज का गंदा पानी, जो इस के तट पर मौजूद शहरों से निकलता है.

तत्कालीन पर्यावरण मंत्री वीरप्पा मोइली ने राज्यसभा में जानकारी दी थी कि गंगा के किनारे मौजूद शहरों से रोजाना 2.7 अरब लिटर सीवेज का गंदा और विषैला पानी निकलता है. हालांकि इन सभी शहरों में सीवेज के पानी को साफ करने के लिए ट्रीटमैंट प्लांट लगे हुए हैं, पर उन की क्षमता काफी कम है. हकीकत यह है कि इन शहरों में मौजूद ट्रीटमैंट प्लांट सिर्फ 1.2 अरब लिटर यानी 55 फीसदी सीवेज की सफाई कर पाते हैं. इस का साफ मतलब यह है कि शेष 45 प्रतिशत सीवेज गंगा में यों ही मिलने दिया जाता है.

यह तो गंगा का हाल है. देश की दूसरी नदियां भी, सीवेज का गंदा पानी बिना ट्रीटमैंट के मिलने के कारण भयानक प्रदूषण झेल रही हैं. उल्लेखनीय है कि देश के विभिन्न शहरोंकसबों से रोजाना 38.2 अरब लिटर सीवेज गंदा पानी निकलता है जिस में से केवल 31 प्रतिशत यानी 11.8 अरब लिटर सीवेज की साफसफाई का प्रबंध है. चूंकि सीवेज की सफाई का पूरा इंतजाम नहीं है, इसलिए ज्यादातर सीवेज बिना ट्रीटमैंट के ही नदियों में मिला दिया जाता है.

कई तरह के प्रदूषण

नदियों में पैदा होने वाले प्रदूषण की एकमात्र वजह सीवेज का गंदा पानी नहीं है. नदियों को 3 तरह के मुख्य प्रदूषणों का सामना करना पड़ रहा है. निसंदेह इन में पहला प्रदूषण नालों के नदियों में मिलने वाले सीवेज और गंदे पानी के कारण पैदा होता है. लेकिन इस से ज्यादा बड़ा खतरा नदी किनारे मौजूद कारखानों से निकलने वाले औद्योगिक कचरे व विषैले रसायनों का है. साथ में, नदियों के समीप स्थित खेतों में इस्तेमाल होने वाली रासायनिक खाद और कीटनाशकों ने भी एक बड़ा खतरा पैदा किया है, जिन के अवशेष रिस कर नदियों में मिल जाते हैं और उस के पानी को जहरीला बना देते हैं.

इन प्रदूषणों की स्थिति क्या है, इस का एक आकलन गंगा के किनारे स्थित शहरों से मिलने वाले प्रदूषण के जरिए हो सकता है. गंगोत्री से निकलने के बाद हरिद्वार आतेआते गंगा में उत्तराखंड राज्य की 12 नगरपालिकाओं के अंतर्गत पड़ने वाले 89 नाले अपना सारा सीवेज इस नदी में उड़ेल देते हैं.

हरिद्वार में सीवेज से पैदा प्रदूषण से निबटने के लिए 3 ट्रीटमैंट प्लांट हैं, लेकिन वे इस बढ़ते शहर के बढ़ते सीवेज को संभालने में नाकाम साबित हो रहे हैं. हरिद्वार के बाद कानपुर में गंगा की स्थिति सब से ज्यादा दयनीय हो जाती है, क्योंकि वहां बेशुमार औद्योगिक कचरा इस में प्रवाहित किया जाता है. कानपुर में तमाम फैक्टरियां हैं और इस के जाजमऊ नामक इलाके में 450 चमड़ा शोधन इकाइयां हैं. इन से निकलने वाला औद्योगिक कचरा गंगाजल को जहरीला बनाने के लिए पर्याप्त है.

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण विशेषज्ञों और विश्व बैंक की एक टीम ने कानपुर में पैदा होने वाले प्रदूषण से गंगा को बचाने का एकमात्र उपाय यह पाया है कि यहां के सारे नालों को गंगा से दूर ले जाया जाए और उन का गंदा पानी किसी भी सूरत में इस में न मिलने पाए.

कानपुर के बाद इलाहाबाद में वैसे तो औद्योगिक कचरे का कोई बड़ा खतरा नहीं है, लेकिन इस शहर के आधा दर्जन बड़े नालों का पानी सीधे गंगा में गिरता है. इसी तरह बनारस में भी जो सीवेज रोजाना पैदा होता है, उस में से एकतिहाई से ज्यादा गंगा में बिना ट्रीटमैंट के मिल रहा है. इस शहर के 33 नालों का गंदा पानी गंगा में न मिले, इसे रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है.

साफसफाई की मुश्किलें

गंगायमुना के सामने दिक्कतें लंबे अरसे से मौजूद रही हैं. इन में हाल तक कोई तबदीली भी नहीं आई है, सिवा इस के कि केंद्र सरकार ने गंगा को साफ करने की ठानी है. लेकिन यहां कुछ चीजों को और ध्यान में रखना होगा. जैसे खासतौर पर गंगा नदी की लंबाई ढाई हजार किलोमीटर लंबी गंगा के किनारे बसे शहरोंकसबों में 5 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं. उन की रोजीरोजगार के जो प्रबंध खेतों और कलकारखानों के रूप में वहां मौजूद हैं, उन्हीं से सारा प्रदूषण गंगा में मिलता है. इस के अलावा तमाम तरह के अंधविश्वासों के चलते गंगा में लाशों से ले कर पूजाहवन सामग्री, तसवीरेंमूर्तियां आदि भी भारी मात्रा में प्रवाहित की जाती हैं. इन में से भी बहुत सी ठोस सामग्री ऐसी होती है जो गल नहीं पाती है और वह प्रदूषण में इजाफा ही करती है. पंडे इस प्रदूषण की बात भी नहीं करते. अगर वे प्रदूषण की बात करें तो जजमान स्नान करना ही बंद कर देंगे. इस से उन की कमाई कम हो जाएगी. अगर विदेशी नदियों की साफसफाई के उदाहरण इस संदर्भ में लिए जाएं तो गंगा या यमुना को प्रदूषणमुक्त करने के अभियानों पर होने वाले खर्च का अंदाजा लग सकता है. जैसे लंदन की 346 किलोमीटर लंबी टेम्स नदी की साफसफाई इसलिए हो पाई क्योंकि उस के किनारे सिर्फ 14 लाख लोग रहते हैं. टेम्स की सफाई पर सिर्फ 5 अरब रुपए के बराबर खर्च आया, जबकि गंगा पर अभी तक 200 अरब रुपए खर्च हो चुके हैं.

इसी तरह यूरोप की 2,860 किलोमीटर लंबी नदी दान्युब 125 अरब रुपए के खर्च से 15 सालों में इसलिए साफ की जा सकी क्योंकि उस के किनारे सिर्फ 86 लाख लोग रहते हैं. जरमनी की 1,233 किलोमीटर लंबी राइन नदी पर पिछले 50 सालों में सफाई पर जरूर 1,940 अरब रुपए खर्च हुए हैं पर इस नदी के किनारे गंगा के मुकाबले दहाई 50 (लाख) लोग रहते हैं.

यूरोपीय देशों में लोग अपनी आजीविका के लिए नदियों पर इतने ज्यादा निर्भर नहीं हैं कि उन्हें गंगायमुना जैसा दोहन करना पड़े. यहां तो गंगा में उस के स्रोत गोमुख से ही प्रदूषण शुरू हो जाता है. वहां पर हजारों धार्मिक पर्यटकों की आवाजाही के कारण पौलिथीन के थैले और दूसरे तरह का कचरा खूब फेंका जाता है. इसी तरह नदी में वह मलमूत्र भी बहाया जाता है जो यहां के होटलों व तीर्थयात्रियों तथा पर्यटकों की आवाजाही के कारण होता है.

सब निभाएं जिम्मेदारी

साफ है कि अब यदि भाजपा सरकार गंगा और दूसरी नदियों की सफाई का जिम्मा अपने ऊपर लेती है, तो और भी ज्यादा रकम खर्च हो सकती है. यह भारीभरकम रकम कहां से आएगी, इस का कुछ हिसाबकिताब सरकार को जरूर बिठाना पड़ेगा. इतना तो तय है कि गंगा की स्वच्छता का कोईर् भी अभियान इस के किनारे रहने वाले लोगों को उस से जोड़े बिना मुमकिन नहीं है.यह काम न तो प्रचार अभियान और शिक्षण से होगा और न ही बड़े संगठनों को भारीभरकम बजट मुहैया कराने से. यह तभी मुमकिन है जब लोग गंगा की महत्ता को समझते हुए इसे स्वच्छ रखने वाले दैनिक अनुशासन से जुड़ें और इस की साफसफाई की जिम्मेदारी में अपना हिस्सा भी तय करें. अब यह समझ लेना होगा कि जिन नदियों को हम देवी का दरजा देते रहे हैं और नदियों की उत्पत्ति को भगवान से जोड़ कर देखते रहे हैं, उन नदियों का प्रदूषण हमारे लिए भी किसी प्रकोप से कम नहीं है. जिस रोज आम जनता समझ जाएगी कि उस का वजूद नदियों की वजह से ही है, नदियों की सारसंभाल के काम में आसानी होने लगेगी और उन के संरक्षण के सरकारी व गैरसरकारी आयोजन सार्थक साबित होने लगेंगे.   

यमुना की दुर्दशा

पिछली सरकारों ने यमुना को साफ रखने के अपने वादे को निभाने में कोताही की और महज कोरे आश्वासन दिए. यही वजह है कि अतीत में सुप्रीम कोर्ट दिल्ली सरकार को इस के लिए फटकार लगा चुका है. जापान से 2 बार अनुदान लेने वाली और देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी यमुना की सफाई के नाम पर सैकड़ों करोड़ रुपए गटर में बहा

देने वाली सरकार का रवैया तो चिंताजनक है ही, साथ में, सवाल यह भी है कि सीएसई जैसे गैरसरकारी पर्यावरणवादी संगठन की सक्रियता के बावजूद हमारे समाज में इस की स्वच्छता को ले कर कोई चेतना नहीं जगी. अन्यथा यमुना का यह हाल न होता कि दिल्ली में वह सिर्फ बदबू से भभकता हुआ गंदा नाला ही लगती. यमुना देश की राजधानी दिल्ली में ही सब से ज्यादा क्यों प्रदूषित है और इस का प्रदूषण क्यों नहीं खत्म हो पा रहा है, इस प्रसंग में कुछ मूलभूत बातें जाननी जरूरी हैं. दिल्ली में पल्ला नामक स्थान से प्रवेश करने और ओखला से बाहर निकलने वाली इस नदी के 22 किलोमीटर का हिस्सा ही सर्वाधिक प्रदूषित है.

प्रदूषण इतना ज्यादा है कि इस का जल आचमन लायक तो दूर, सिंचाई और टौयलेट फ्लश करने लायक तक नहीं है. पर इस के बावजूद, इस नदी के किनारों पर धड़ल्ले से सब्जियां उगाई और दिल्ली के बाशिंदों को तमाम चेतावनियों के बाद भी खिलाईर् जा रही हैं.

धर्मभीरू समाज इस के किनारे पर छठ पूजता है, गणेश व दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन करता है. नदी का जल गुणवत्ता के लिहाज से 3 पैमानों पर मापा जाता है. पहला, बायोकैमिकल औक्सीजन डिमांड यानी बीओडी, दूसरा कैमिकल औक्सीजन डिमांड यानी सीओडी और तीसरा, पानी के एक यूनिट में मौजूद धूलकणों की मात्रा.

ओडी का ज्यादा होना और सीओडी का अत्यधिक कम होना पानी की बेहतर गुणवत्ता का प्रतीक है, पर यमुना के मामले में ये मापदंड ठीक उलट साबित होते हैं. यानी औक्सीजन इस में नाममात्र को नहीं, जिस से इस में जलीय जीवजंतु जीवित रहते. खतरनाक रसायन इस में हद से कहीं ज्यादा हैं, इसलिए जीवजंतु और पादप प्रजातियां तो क्या, इस की चपेट में इंसान के आने पर मौत का खतरा है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिसंबर 1999 में दिल्ली में यमुना के जो सैंपल लिए थे, उन के परीक्षण के नतीजों के मुताबिक, इस के जल के एक मिलीलिटर पानी में 66 बीओडी कण और 239 सीओडी कण पाए गए. ये दोनों आंकड़े उच्चतम प्रदूषण के नमूने थे. यह स्थिति 15 वर्षों बाद अभी भी बदली नहीं हैं, बल्कि यमुना ऐक्शन प्लान पर कार्यवाही होने के बाद तो और बदतर हुई है.

नदियों के खिलाफ है धर्मभीरू समाज

कहने को तो अमेरिकी और यूरोपीय देश दुनिया के सब से प्रदूषक देश हैं, लेकिन वे देश अपनी नदियों और जल संसाधनों की न सिर्फ रक्षा करते हैं, बल्कि उन्हें हर कीमत पर स्वच्छ रखने का जतन भी करते हैं. अमेरिका की हडसन, ब्रिटेन की टेम्स या जरमनी की राइन में वैसा विषैला प्रदूषण बिलकुल नहीं मिलेगा, जैसा प्रदूषण ये देश अपने वायुमंडल में घोलते हैं. पर यह कितनी बड़ी विडंबना है कि आस्थाओं और नदीपूजकों के हमारे भारत देश में गंगायमुना से ले कर हर वह नदी इस कदर प्रदूषित है कि उस के जल के आचमन लायक भी नहीं रह जाने की खबर हर चौथे दिन अखबारों में देखने को मिलती है.

जिस देश में नदी में प्लास्टिक थैलियां और कचरा फेंकने की आम आदत के चलते सरकार को पुलों पर कचरा रोकने वाली लोहे की जालियां लगानी पड़ें, क्या हम उस देश की सभ्यता को नदीमूलक और प्रकृतिप्रेमी मान सकते हैं?

कहने को तो हमारा देश अंधविश्वासों और पाखंडों का देश है. साल में हर दिन कोई त्योहार इन पाखंडों के प्रदर्शन का मौका देता है और उत्सवप्रेमी लोग भांतिभांति के तौरतरीकों से अपनी आस्थाएं जताते हैं. इधर कुछ सालों से नदियों में मूर्तियों के विसर्जन का सिलसिला खूब बढ़ा है. बंगाल की दुर्गापूजा और महाराष्ट्र का गणेश उत्सव अब किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि दिल्ली से ले कर देहरादून और पोरबंदर से ले कर अगरतला तक ऐसे त्योहार धर्मभीरू समाज की उत्सवी अनिवार्यता के अंग हैं

जिस तरह से आस्तिक समाज ने उत्सवों को और ज्यादा धूमधाम से मनाने के नाम पर भरपूर कुरीतियों को अपनाया है, उस से पर्यावरण प्रदूषण का संकट और गहराया है. आंकड़ों के हिसाब से हर साल अकेले दिल्ली में ही 500 से 700 मूर्तियों का यमुना में विसर्जन किया जाता है. संख्या और आकार में हर साल पहले से बड़ी होती ये मूर्तियां प्लास्टर औफ पेरिस, चूने और सीमेंट के अलावा अनेक जहरीले तत्त्वों से बनती हैं और इन की निर्माणसामग्री की कोई वैज्ञानिक जांच नहीं होती.

मूर्तियों की चमक और रंगत बढ़ाने के लिए पोते जाने वाले रंग पारा, शीशा और कैडमियम आदि घातक रसायनों के मिश्रण से तैयार होते हैं, जो नदीजल को मानव व जलजीवों के लिए अत्यंत विषैला बना देते हैं.

लाइफ सेविंग टिप्स

किसी व्यक्ति के कपड़ों में आग लगने पर आप ने यह तो सुना होगा कि जल्दी से जमीन पर लेट जाएं, आग बुझ जाएगी. फिल्म ‘एनएच-10’ में मीरा के चरित्र से आप ने यह तो जाना होगा कि किसी बदमाश की आंख में टौर्च की रोशनी डालने से आप को भागने के कुछ पल मिल सकते हैं, ऐसे ही किन्हीं खतरों या किन्हीं विपरीत परिस्थितियों में पड़ने पर इन बातों को ध्यान में रखा जा सकता है :

घरों में आग लगने पर धुएं के कारण सब से ज्यादा मौतें होती हैं. ऐसी स्थिति में जमीन पर बैठने और ज्यादा सांसें लेने से बचें.

आप किसी सार्वजनिक स्थान पर हैं और आप को चोट लग गई है तो किसी व्यक्ति से कहें. यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि यदि आप भीड़ में हैं और घायल हैं तो हर व्यक्ति यह सोचता है कि कोई भी आप की मदद कर देगा. सीधे किसी एक व्यक्ति से मदद मांगें, फिर काफी लोग अपनेआप आ जाते हैं.

कुकिंग औयल आग पकड़ ले तो बर्नर को तुरंत बंद करें और बरतन को ढक दें. जरूरत हो तो फायर ब्रिगेड को बुलाएं. कुछ भी करें, पानी का प्रयोग न करें.

ब्लेड या चाकू से हमला किए जाने पर इसे हटाने की कोशिश न करें. इस के बजाय घाव को ढकें, खून बंद करने की कोशिश करें और फौरन मैडिकल प्रोफैशनल ढूंढ़ें.

ड्राइविंग करते वक्त आप की कार के विंगमिरर सही स्थिति में हों, इस से आप अपने साथसाथ सड़क पर चलने वाले दूसरे लोगों का भी ध्यान रख सकते हैं.

फोन पर मैसेज करते हुए चलें नहीं. आप का मस्तिष्क इसे हैंडल नहीं कर सकता. जहां जा रहे हैं, उस ओर देखें. चलते हुए फोन का प्रयोग बहुत हानिकारक हो सकता है, आप को ‘इनअटैंशन ब्लाइंडनैस’ हो सकती है. आप चारों तरफ देख तो रहे होते हैं पर वास्तव में महसूस नहीं कर पाते कि आप को किसी गाड़ी से चोट लगने वाली है.

लोग घाटियों में, नदियों के किनारे घर बना लेते हैं, इसलिए यदि आप पहाड़ों पर ट्रैकिंग करते हुए अपना रास्ता भूल जाएं, अकेले हो जाएं तो नीचे चलना शुरू कर दें. इस तरह दूसरे लोगों से मिलने की संभावना बढ़ जाती है. नदियां या झरने हमेशा नीचे की तरफ बहते हैं, इन का अनुसरण करें. इस तरह किसी सड़क पर, अपने साथियों तक पहुंचने में सुविधा हो जाती है.

आप ने किसी एडवैंचर फिल्म में देखा होगा पर हाइड्रेशन के लिए बर्फ आखिरी विकल्प होना चाहिए. यह पानी की जगह नहीं ले सकती. इसे खा कर आप शरीर की गरमी कम कर रहे होते हैं जो आप के लिए ज्यादा हानिकारक हो सकती है.

बहरहाल, कुछ भी करने से पहले होने वाली हानि व खतरों को ध्यान में रखना बहुत महत्त्वपूर्ण होता है.

किसी हमलावर से अपनी सुरक्षा के लिए एक टौर्च बहुत काम आ सकती है. विशेषरूप से रात में उस की आंखों में टौर्च की रोशनी डालना बहुत काम आ सकता है. ऐसा करने से जल्दी ही किसी का ध्यान आप की परेशानी की तरफ आकर्षित हो सकता है.

अगर किसी को गंभीर चोट लगी है, जैसे सिर या स्पाइन में, उसे कभी भी हिलाएं नहीं, उसे किसी प्रोफैशनल पर छोड़ दें. फिर भी यदि आप ऐसी स्थिति में हैं कि आप को किसी घायल को सुरक्षित जगह पर ले जाना हो और वह व्यक्ति आप से भारी हो तो स्वयं को भी नुकसान पहुंचाए बिना ऐसा करने की कोशिश करें. व्यक्ति के चेहरे की तरफ अपना चेहरा कर उस की बांह अपने कंधे पर खींचें, झुक जाएं, आप का कंधा उस व्यक्ति के मध्य भाग तक होगा. फिर धीरे से संभाल कर उस व्यक्ति को अपने कंधे पर लाएं और अपने पैरों की ताकत पर खड़ा होने की कोशिश करें (आगे झुकने की कोशिश न करें इस से आप की कमर को नुकसान हो सकता है).

तुलसी की पत्तियां : सौ बीमारियों की एक दवा

आज हम आपको बताने जा रहे है तुलसी के बारे में जिसका सेवन करने के अनेक फायदे हैं. बता दें इस पौधे की पत्तियां और बीज दोनों ही औषधीय गुण रखते हैं. इसलिए तुलसी के बीज का महत्त्व भी इसकी पत्तियों के समान ही होता है. तुलसी के फायदे कुछ इस प्रकार हैं.

बारिश के मौसम में होने वाली बीमारी

जैसा की आप जानती है कि बारिश के मौसम में, जब सर्दी, बुखार और डेंगू जैसी बीमारियों के संक्रमण फैलते हैं तब हमें तुलसी की पत्तियों का काढ़ा इन संक्रमणों से बचाता है.

10 पत्ते तुलसी के तथा 4 लौंग लेकर एक गिलास पानी में उबालें. जब पानी आधा शेष बचे, तब थोड़ा-सा सेंधा नमक डालकर गर्म चाय की तरह पी जायें. यह काढ़ा पीकर कुछ समय के लिए वस्त्र ओढ़कर पसीना लें. इस काढ़े को दिन में दो बार तीन दिन तक पियें.

बुखार में

बुखार अधिक होने की स्थिति में मरीज को तुलसी की पत्तियों को दालचीनी के पाउडर के साथ आधा लीटर पानी में उबालकर उसमें गुड़ और थोड़ा दूध मिलाकर मरीज को पिलाने से आराम मिलता है.

सिरदर्द होने पर

सिरदर्द होने पर तुलसी का रस और कपूर मिलाकर लगाए जल्दी ही सिरदर्द से मुक्ति मिलेगी.

मासिक धर्म की अनियमितता

अक्सर महिलाओं को पीरियड्स में अनियमितता की शिकायत हो जाती है. ऐसे में तुलसी के बीज का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है. मासिक चक्र की अनियमितता को दूर करने के लिए तुलसी के पत्तों का भी नियमित किया जा सकता है.

सर्दी में खास

अगर आपको सर्दी या फिर हल्का बुखार है तो मिश्री, काली मिर्च और तुलसी के पत्ते को पानी में अच्छी तरह से पकाकर उसका काढ़ा पीने से फायदा होता है. आप चाहें तो इसकी गोलियां बनाकर भी खा सकते हैं.

दस्त होने पर

अगर आप दस्त से परेशान हैं तो तुलसी के पत्तों का सेवन करें, ये आपको फायदा देगा. तुलसी के पत्तों को जीरे के साथ मिलाकर पीस लें. इसके बाद उसे दिन में 3-4 बार चाटे. ऐसा करने से दस्त रुक जाती है.

सांस की दुर्गंध करें दूर

सांस की दु्र्गंध को दूर करने में भी तुलसी के पत्ते काफी फायदेमंद होते हैं और नेचुरल होने की वजह से इसका कोई साइडइफेक्ट भी नहीं होता है. अगर आपके मुंह से बदबू आ रही हो तो तुलसी के कुछ पत्तों को चबा लें. ऐसा करने से दुर्गंध चली जाती है.

चोट लगने पर

अगर आपको कहीं चोट लग गई हो तो तुलसी के पत्ते को फिटकरी के साथ मिलाकर लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है. तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल तत्व होते हैं जो घाव को पकने नहीं देते. इसके अलावा तुलसी के पत्ते को तेल में मिलाकर लगाने से जलन भी कम होती है.

गर्भधारण की समस्या

जिन महिलाओ को गर्भधारण में समस्या है वो मासिक आने पर 5-5 ग्राम तुलसी बीज सुबह शाम पानी के साथ ले जब तक मासिक रहे, मासिक खत्म होने के बाद माजूफल का चूर्ण 10 ग्राम सुबह शाम 3 दिन तक पानी के साथ ले.

त्वचा संबंधी रोग

त्वचा संबंधी रोगों में तुलसी खासकर फायदेमंद है. इसके इस्तेमाल से कील-मुहांसे खत्म हो जाते हैं और चेहरा साफ होता है.

कैंसर का इलाज

कई शोधों में तुलसी के बीज को कैंसर के इलाज में भी कारगर बताया गया है. हालांकि अभी तक इसकी पुष्ट‍ि नहीं हुई है.

शारीरिक कमजोरी

शारीरिक कमजोरी होने पर तुलसी के बीज का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है.

40 की उम्र में रोमांस का अलग ही मजा है : रणदीप हुड्डा

मीरा नायर की फिल्म ‘मौनसून वैडिंग’ से ऐक्टिंग की शुरुआत करने वाले रणदीप हुड्डा को असली पहचान रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘डी’ से मिली.

हरियाणा, रोहतक के रहने वाले रणदीप से कुछ समय पहले मिलना हुआ तो उन्हें लंबे बालों और दाढ़ी में देख कर अचरज हुआ. जब उन से इस संबंध में पूछा तो मालूम हुआ कि इस समय वे राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘बैटल औफ सारागढ़ी’ में सिख सैनिक की भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने बताया, ‘‘मैं जब ऐक्टिंग करता हूं, तो मुझे बस यही डर सताता है कि पता नहीं लोगों की मेरी ऐक्टिंग के बारे में क्या प्रतिक्रिया होगी. इसीलिए मैं जिस दिन से फिल्म साइन करता हूं उसी दिन से किरदार में जीना शुरू कर देता हूं.’’

हमेशा अलग चलता हूं

रफ ऐंड टफ भूमिकाएं ज्यादा निभाए जाने के सवाल पर रणदीप कहते हैं, ‘‘वैसे तो ऐक्टर को जो किरदार दिया जाए उसे वही करना होता है, पर रोल के मामले में मैं बड़ा चूजी हूं. कभी अपने रोल के दोहराव को पसंद नहीं करता. आप मेरी अब तक की सभी फिल्में देखिए. सभी में मैं ने अलगअलग किरदार निभाए हैं. सभी में जो बात समान रही, वह है ‘रफ ऐंड टफ’ इमेज. मैं अभी भी बौलीवुड के तराजू में ‘रफ ऐंड टफ’ रोल्स के लिए ही फिट हूं. पर 40 साल की उम्र में रोमांस करने का भी अपना ही मजा है. फिल्म ‘दो लफ्जों की कहानी’ मेरे लिए अलग अनुभव ले कर आई. यह मेरी पहली पूरी तरह से रोमांटिक फिल्म है. इस से पहले सभी फिल्मों में मेरे भावनात्मक किरदार रहे हैं.

किरदार के अनुसार बौडी बनाता हूं

फिल्म ‘सरबजीत’ में वजन कम करने और ‘दो लफ्जों की कहानी’ में बौक्सर बनने के लिए कैसे अपने शरीर को फिट रखा? के सवाल पर रणदीप हंसते हुए बताते हैं, ‘‘मेरे लिए फिटनैस सब से अहम है. ‘सरबजीत’ के रोल के लिए मैं ने 26 किलोग्राम वजन कम किया था, क्योंकि अगर मैं वजन कम नहीं करता तो फिल्म के करैक्टर के साथ न्याय नहीं कर पाता. उस समय जब शूटिंग के लिए जाता था तो लगता था कि बस अब सांसें थमने वाली हैं. मैं सैट पर भी अच्छी तरह चल नहीं पाता था. पर ‘दो लफ्जों की कहानी’ फिल्म की कहानी के लिए मैं ने अपना वजन बढ़ा कर 95 किलोग्राम किया. बौक्सर की तरह बौडी बनाई. किक बौक्सर बनने के लिए मैं ने 6 महीने बौक्सिंग की ट्रेनिंग ली.’’

एक नाम की फिल्मों से फर्क नहीं पड़ता

‘बैटल औफ सारागढ़ी’ फिल्म की कहानी पर खबर है कि आमिर खान और शाहरुख भी फिल्म बनाना चाहते हैं. ऐसे में आप की फिल्म कहां टिक पाएगी? इस प्रश्न पर रणदीप कहते हैं, ‘‘इस फिल्म के लिए राजकुमार संतोषी कई साल पहले रिसर्च कर चुके थे. पर इन लोगों को पता नहीं इतनी देर से क्यों कहानी पसंद आई. ऐसा पहले भी हो चुका है. भगत सिंह की कहानी पर भी अजय देवगन और बौबी देओल की फिल्में रिलीज हुई थीं. लेकिन उन में भी वही चली, जिस पर मेहनत की गई थी. अगर इस कहानी पर भी और कोई फिल्म बनती है, तो उस से मुझे फर्क पड़ने वाला नहीं.’’

लुक से ही प्रमोशन हो जाता है

पिछले कई महीनों से अलग लुक में नजर आ रहे रणदीप कहते हैं, ‘‘यह लुक मेरी अगली फिल्म ‘बैटल औफ सारागढ़ी’ के लिए है. फिल्म में मैं एक सरदार योद्धा का किरदार निभाने वाला हूं. जब से इस फिल्म को ले कर मेरी बात शुरू हुई है तब से मैं बाल और दाढ़ी नहीं कटवा रहा. अगर मैं इस लुक में नहीं होता तो क्या आप इस बारे में पूछते?’’

यह फिल्म 1897 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी और अफगान ओराकजई कबाइलियों के बीच हुए युद्ध पर आधारित है और इस में रणदीप हवलदार ईशर सिंह का किरदार निभा रहे हैं.

स्पीड का शौकीन हूं

रणदीप का मानना है कि बात चाहे जीवन की हो या फिर कार की उन्हें हर जगह स्पीड पसंद है. इसलिए वे आज भी पोलो, जंपिंग जैसे खेलों से जुड़े हैं. फिल्मों की शूटिंग के बिजी शैड्यूल में से भी खेलों के लिए समय निकाल लेते हैं.

पिछले दिनों वोल्वो की नई कार वी90 क्रौस कंट्री की लौंचिंग पर दिल्ली आए रणदीप के पास कारों का अच्छा कलैक्शन है.

रणदीप की स्कूली शिक्षा मोतीलाल नेहरू स्कूल औफ स्पोर्ट्स सोनीपत से हुई है, जहां उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कई मैडल भी जीते. अपने शौक के चलते उन्होंने मुंबई में कई घोड़े भी पाले हुए हैं.

दिल की सुनो

रणदीप हुड्डा का मानना है कि किसी को भी अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करने से डरना या हिचकना नहीं चाहिए, क्योंकि बाद में पछताना गलती करने से भी बुरा होता है.

युवाओं को क्या संदेश देना चाहेंगे? सवाल पर रणदीप ने कहा, ‘‘जो आप का दिल चाहता है करें, क्योंकि दुनिया में प्रतिभा जैसी चीज नहीं बस उत्साह है.’’

सोशल मीडिया अच्छा भी बुरा भी

डीयू की छात्रा गुलमोहर कौर पर दी गई अपनी टिप्पणी को ले कर जिस तरह से रणदीप को लोगों के सवालों का सामना करना पड़ा था उस पर वे कहते हैं, ‘‘अपनी बात सब के सामने रखने के लिए सोशल मीडिया सब से अच्छा साधन है, लेकिन जो बात आप कह रहे हैं उस की प्रतिक्रिया सुनने के लिए भी आप को तैयार रहना होगा, क्योंकि जैसा आप को कहने का अधिकार है दूसरे को भी आप को वैसा जवाब देने का अधिकार है. लेकिन मैं राजनीति से हमेशा दूर रहता हूं. हमेशा यही कोशिश करता हूं कि मेरी बातों का कहीं राजनीतिकरण न हो जाए.’’

आखिर क्यों संजू बाबा ने शाहरुख को बोला तू तो अपना भाई है

अपनी दमदार एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीतने वाले बौलीवुड एक्टर संजय दत्त इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब रहें हैं. संजय दत्त ने अपने करियर में कई सुपरहिट फिल्में दीं हैं. खासतौर पर उनकी जादू की झप्पी और गांधीगीरी ने तो सभी को अपना दीवाना बना दिया. लेकिन क्या आप जानते हैं संजय दत्त की यही जादू की झप्पी शाहरुख खान के लिए कितनी मायने रखती है. जी हां, कम ही लोग जानते हैं कि शाहरुख और संजय काफी अच्छे दोस्त हैं. चलिए आज हम आपको बौलीवुड के दिग्गज संजय दत्त और शाहरुख खान से जुड़ा एक रोचक किस्सा बताते हैं जब शाहरुख संजय दत्त के पास मदद मांगने के लिए गए तब क्या हुआ था.

यह बात हम नहीं कह रहे बल्कि खुद संयज दत्त ने यह राज खोला था. एक इंटरव्यू के दौरान शाहरुख के बारे में बताया था कि जब शाहरुख फिल्म इंड्रस्टी में नए थे तब उन्हें किसी बात का डर था और वो मदद के लिए उनके पास आए थे.

संजय दत्त ने एक इंटरव्यू में कहा था कि सही से तो वो किस्सा मुझे याद नहीं लेकिन जब शाहरुख मेरे पास आया तब वो नया था. मैंने शाहरुख से बोला था कि तुझे जिंदगी में कभी कुछ भी चाहिए तो मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा. अगर ये गाड़ी तुझे चाहिए तो रख, तू अकेला नहीं है मैं हूं तेरी फैमिली, तेरा भाई हूं मैं. साथ ही शाहरुख के बारे में बताते हुए संजू बाबा ने कहा कि यह उस इंसान की खूबसूरत चीज है कि वह आज तक उस बात को भुला नहीं है. वो आज तक बोलता है, एहसास करता है और मुझे बेहद इज्जत देता है.

खैर, आज शाहरुख खान बौलीवुड के बड़े स्टार बन चुके हैं. संजू बाबा और किंग खान फिल्म इंड्रस्टी के चहेते स्टार्स में से हैं. संजय दत्त फिलहाल अपनी हाल ही में आई मूवी ‘भूमि’ के प्रमोशन में बिजी हैं.

 

कुछ ही दिनों में पाएं गुलाब से कोमल होठ

लाल और गुलाब से कोमल होठ हर किसी की चाहत होते हैं और महिलाओं में यह लालसा बहुत व्यापक होती है. अगर आपके चेहरे का रंग गोरा है लेकिन होठ काले हैं तो यह आपकी खूबसूरती को कम कर देती है और दिखने में भद्दी भी लगती है, लेकिन वहीं अगर अपके होठ गुलाबी है तो वह चेहरे को चमकदार बनाकर अपकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं. होठ अच्छे स्वास्थ्य की निशानी हैं और चेहरे का सबसे नाजुक हिस्सा हैं जिनमें वसा ग्रंथियां नहीं होती इसलिए गुलाबी होंठों को कोमल रखने के लिए बाहरी खयाल रखना जरूरी है.

होठों के फटने और काले होने के सबसे बड़ा कारण हैं- सूरज की हानिकारक यू वी किरणें , धूम्रपान , एलर्जी , हार्मोन असंतुलन , निर्जलीकरण , विटामिन और फैटी एसिड की कमी और बढ़ती उम्र.

अगर आप अपने होठो को गुलाबी बनाने के बारे में सोचती रहती हैं लेकिन सफल नहीं हो पो रही हैं तो घबराइये नहीं, क्योंकि आज हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे आसान से उपाय जिसे अपनाकर आप अपने होठो को गुलाबी बना सकती हैं.

इसे प्राकृतिक रूप से गुलाबी बनाने के लिए सबसे पहले खान पान और आदतों पर ध्यान देना जरूरी है. अगर आप अन्दर से सेहतमंद होंगी तो इसका प्रभाव त्वचा और होंठो पर भी दिखाई देगा. स्वस्थ आहार लें और बुरी आदतों जैसे स्मोकिंग से बचें.

उपाय

बादाम तेल और नींबू

बादाम के तेल में आधे नींबू का रस मिलाएं. इस मिश्रण से रात को सोते वक्त हल्के हाथों से अपने होंठों पर लगाकर मालिश करें. इस उपाय को कम से कम दो महीने करें.

चीनी और शहद

3 चम्मच चीनी में 2 चम्मच शहद मिलाकर अपने होंठों पर लगाये. आप शहद के बजाय मक्खन भी ले सकती हैं. मक्खन होठो को माइस्चराइज करने का काम करती है. चीनी अवांछित मृत त्वचा से छुटकारा दिलाने और हनी आपके होठ को हल्का करने और उन्हें नरम बनाती है एक सप्ताह में इस प्रक्रिया को तीन बार दोहराएं.

बर्फ

अपने होंठों पर बर्फ के टुकड़े को मालिश करें यह एक सरल तरीका. इससे उन्हें नमी मिलेगी. बर्फ न केवल आपके होठ हाइड्रेट करते हैं बल्कि उन्हें मोटा भी बनाते हैं.

संतरा

संतरे को अपने होठ पर रगड़ें इसका रस होठों को मुलायम और खूबसूरत बनाता है.

हल्दी और दूध

2 चम्मच हल्दी पाउडर में 1 चम्मच दूध मिलाएं. पहले पानी के साथ अपने होठ को गीला करें और नरम दांत ब्रश के साथ धीरे-धीरे अपने होंठ साफ करें. इस मिश्रण को अपने होंठों पर लागू करें और इसे 2-3 मिनट से अधिक न रखें. इसके बाद अपनी पसंद को होठ बाम लगाए.

चुकंदर का रस

चुकंदर का रस लगाने से भी होठों का रंग गुलाबी होता है. इसमें लाल रंग प्राकृतिक रूप में मौजूद होता है, जिससे होठ गुलाबी होते हैं और इसका रस होठ के कालेपन को भी दूर करता है.

एक जमाने में प्रेम चोपड़ा भी हुआ करते थे हीरो

प्रेम चोपड़ा ने अपने पूरे करियर में लगभग 320 फिल्मों में काम किया. प्रेम चोपड़ा ने इंडस्ट्री में काफी नाम और शौहरत कमाई. बौलीवुड में वह जाने माने विलन के तौर पर उभरकर सामने आए. प्रेम चोपड़ा के माता पिता चाहते थे कि वह अच्छी पढ़ाई लिखाई करें और डौक्टर या आएएस अफसर बनेंगे. लेकिन प्रेम चोपड़ा की किस्मत उन्हें सिनेमा के रास्ते पर ले आई.

भारत विभाजन के बाद प्रेम चोपड़ा के माता पिता शिमला आ बसे थे. शिमला में ही प्रेम चोपड़ा की आरंभिक पढ़ाई लिखाई हुई. इसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से अपने ग्रेजुएशन पूरी की. बस इसी दौरान उन्हें एक्टिंग का चस्का लग गया और उन्होंने एक कलाकार बनने की ठान ली. पढ़ाई पूरी करते के साथ ही वह मुंबई आ गए. इस दौरान प्रेम ने एक्टर बनने के लिए खूब स्ट्रगल किया.

अपने स्ट्रगल के दिनों में प्रेम कोलाबा के कई गेस्ट हाउस में ठहरा करते थे. हीरो बनने की चाह रखने वाले प्रेम ने सबसे पहले अपना पोर्टफोलियो बनाया और उसे लेकर दर दर भटकते थे. शुरुआत में उन्होंने कई पंजाबी फिल्मों में काम किया. इसके बाद उन्हें हिंदी फिल्में भी मिलनी शुरू हो गईं. इस दौरान उन्होंने जौब के तौर पर पेपर भी बेचा. प्रेम चोपड़ा ने टाइम्स औफ इंडिया के पेपर सर्कुलेशन डिपार्टमेंट में काम किया.

पंजाबी फिल्म प्रोड्यूसर जगजीत सेट्ठी ने प्रेम चोपड़ा को फिल्मों में उनकी जिंदगी का पहला ब्रेक दिया था. फिल्म का नाम था ‘चौधरी करनाल सिंह’. इस फिल्म में वह जसबीन के हीरो बने थे. वहीं उनकी डेब्यू फिल्म एक हिंदू मुस्लिम रोमांटिक लवस्टोरी थी. इस फिल्म को नेशनल अवौर्ड से भी नवाजा गया था. इस फिल्म के लिए उन्हें 2500 रुपए फीस के तौर पर मिले थे. फिल्म वो कौन थी से उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में एक मुकाम हासिल हुआ.

ऐसा नहीं है कि प्रेम शुरू से ही फिल्मों में विलेन बने. प्रेम शुरुआत में कई फिल्मों में हीरो बने भी नजर आए. लेकिन वह फिल्में बौक्स औफिस में कुछ खास कमाल न दिखा सकीं. इसके बाद महबूब ने उन्हें कहा कि वह विलेन का रोल क्यों नहीं निभाते. विलेन का रोल का सुझाव मिलने के बाद उन्होंने इस सुझाव पर अमल किया. इसके बाद उनकी किस्मत ने उनका साथ दिया और वह धीरे धीरे बौलीवुड के खतरनाक विलेन के रोल में पहचाने जाने लगे. इस दौरान उनकी फिल्म के कई डायलौग मशहूर हुए. जैसे ‘प्रेम नाम है मेरा..प्रेम चोपड़ा’,’ नंगा नहाएगा क्या निचोड़ेगा क्या’.

इन वजहों से आप नहीं बन पा रही हैं अमीर

दूसरे पर आरोप लगाना जितना आसान है उतना ही मुश्क‍िल है अपनी गलती स्वीकार करना. बिजनेस में कोई डील न हो पाए तो हम धोखेबाजी का आरोप लगा देते हैं, शेयर मार्केट में पैसे डूब जाएं तो भाग्य को कसूरवार ठहरा देते हैं, पर क्या वाकई सच्चाई भी यही होती है. 

विशेषज्ञों की मानें तो हर बार भाग्य को दोष देने या दूसरों पर आरोप लगाने से कहीं बेहतर होगा कि हम अपनी उन आदतों को बदलने पर ध्यान दें जिनके चलते ये नुकसान हो रहे हैं. क्या आप जानती हैं हमारी ही कुछ आदतें हमें उस शि‍खर पर पहुंचने से रोक देती हैं जहां हम पहुंचना चाहते हैं.

आज हम आपको कुछ एसे टिप्स के बारें में बताएंगे जो आपको शिखर पर ले जाने में आपकी सहायता करेंगे.

योजना बनाकर काम करें

सबसे पहले अपने निष्क्रिय अकाउंट बंद करें, म्यूचुअल फंड एक अच्छा औप्शन है इसीलिए पैसे की बचत कर सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) में इन्वेस्ट करें. इन्हीं फैसलों को लेने में लोग काफी लंबा समय लगा देते हैं. ऐसे में काफी वक्त गुजर जाता है और फिर वे सालों बाद सोचते हैं कि अगर उस समय यह निवेश शुरू कर दिया होता तो आज अच्छा रिटर्न मिल रहा होता.

चीजों को नजरअंदाज करना

क्या आपको पता है कुछ मामलों में हमारा ये रवैया दूसरों के लिए बोनस का काम करता है. यानी जिन चीजों को हम नजरअंदाज कर देते हैं दूसरे उसी काम को करके फायदा उठा लेते हैं. इसीलिए काम बड़ा, लंबा या कठिन हो तो भी उसे करने की कोशि‍श जरूर करें.

हमेशा डरे रहना

कई बार लोग बिल्कुल भी जोखि‍म नहीं लेना चाहते हैं और अपने बचत किए गए पैसों को फिक्स डिपौजिट में लगाते हैं. इसका नतीजा ये होता है कि वे अपने रिटायरमेंट प्लान को भी बहुत मजबूती नहीं दे पाते हैं. हालांकि शेयर में निवेश न करना गलत फैसला नहीं है लेकिन कुछ ऐसे रिस्क होते हैं जो आप कम उम्र में ले सकते हैं. 45 की उम्र में भले ही आपको रिस्क लेने से पहले दो बार सोचना पड़े लेकिन 22 साल की उम्र में आप ये फैसले लेकर एक बार परिणाम देख सकती हैं.

अपनी क्षमतानुसार खर्च करें

कई बार हम देखते है कि बच्चों के लिए एजुकेशन फंड से ज्यादा वैल्यू लोग टैबलेट फोन खरीदने को देते हैं. हमारी इनकम और बचत का फैसला हमारे औफिस के साथी, रिश्तेदार और पड़ोसियों के फेसबुक पोस्ट पर निर्भर करने लगता है. किसने क्या खरीदा, क्या बेचा, कहां घूमने गए और न जाने क्या क्या. कम शब्दों में कहें को अपनी चादर देखकर ही पांव पसारना चाहिए.

हमेशा फ्री में चीजें हासिल करने की चाहत रखना

फ्री का सामान किसे पसंद नहीं आता. पर बात जब वित्तीय फायदे की हो तो इस तरह की सोच रखना गलत बात है. क्रेडिट कार्ड या इन्वेस्टमेंट प्लान के साथ फ्री में मिलने वाली इंश्योरेंस पौलिसी हमेशा काम नहीं आएगी. एक स्टौक ब्रोकर आपको ऐसे शेयर खरीदने का सुझाव दे सकता है जो उसने पहले कम कीमत पर खरीदे हों. लेकिन किसी बेहतर ब्रोकर या एक्सपर्ट से सलाह लेकर ही इन्वेस्ट करें.

जब खरीद रही हों घर के लिए फर्नीचर

किसी भी घर के लुक उसका फर्नीचर तय करते हैं. इस समय बाजार में कई तरह के फर्नीचर मौजूद हैं. ऐसे में आपके घर के लिए कौन सा फर्नीचर सही रहेगा, ये आपको तय करना है. पर जो भी चुनें ये सोचकर चुनें कि वो किफायती होने के साथ टिकाऊ और फैशनेबल भी हो तभी आपका पैसा वसूल होगा.

फर्नीचर खरीदने से पहले ध्यान रखें की कैसा हो फर्नीचर

– गोल-घुमावदार कटवाला फर्नीचर न लें यह महंगा तो होगा ही साथ ही इसके रख रखाव की ओर भी खास ध्यान देना पड़ता है.

– सीधे कट और डिजाइन वाला फर्नीचर लें यह सदाबहार भी है और महंगा भी नहीं होता.

– रौट-आयरन का फर्नीचर अब फैशन में नहीं है पर रौट-आयरन और लकड़ी के सम्मिश्रण से तैयार फर्नीचर खूबसूरत लगता है.

– फर्नीचर के रंग के लिए या तो लकड़ी को आधार मान कर चलें या फिर फर्नीचर के कपड़े को.

– फर्नीचर प्राकृतिक टीकवुड के रंग का ही हो, तो बेहतर है. यदि प्राकृतिक टिकवुड रंग देखने में अच्छा न लगे, तो उसमें गहरे रंग का टच दे सकती हैं.

– चाहें तो इसमें वालनट का हल्का सा टच दे सकती हैं. साथ में पीतल का नौब लगा देने से विपरीत रंगों के संयोजन से देखने में भला सा लगता है.

– ध्यान रखें कि सारा फर्नीचर गहरे रंग का न हो. रोजवुड के रंग से बचें. इससे भी फर्नीचर देखने में भारी-भरकम लगता है.

घर के लिए उचित फर्नीचर का चुनाव करने के लिए किसी प्रकार का टेंशन लेने की आवश्यकता नहीं है. आपकी सहायता के लिए कुछ उपयोगी सलाह दी जा रही हैं.

बनावट देखें

एल्युमीनियम के हल्के फर्नीचर के बजाय लकड़ी के भारी फर्नीचर खरीदें. लकड़ी का फर्नीचर कई सालों तक उपयोग में लाया जा सकता है तथा यह आपके घर को विशेष रूप प्रदान करता है. यदि आप भारी फर्नीचर नहीं खरीदना चाहती तो आप लकड़ी का पतला फर्नीचर भी खरीद सकती हैं.

अपना बजट बनायें

एक ही चीज खरीदने पर अधिक पैसे खर्च न करें क्योंकि आप उतने ही पैसों में और अधिक चीजें भी खरीद सकती हैं. इसके अलावा यदि आप कुछ वस्तुओं पर बहुत अधिक खर्च कर देती हैं तो आप अन्य फर्नीचर नहीं ले पायेंगी जो वास्तव में आपके लिए बहुत आवश्यक है.

उचित डिजाइन चुनें

आपको फर्नीचर के डिजाइन का चुनाव करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए. याद रखें, आप थोड़े थोड़े अंतराल के बाद इसे बदलने वाले नहीं हैं. तो ऐसे डिजाइन का चुनाव करें जो पूरी तरह आधुनिक हो तथा भविष्य में पुराना न दिखाई दे. इसके अलावा आप कुछ पारंपरिक प्रकार के फर्नीचर का चुनाव कर सकती हैं.

अच्छी हो क्वालिटी

बेशक फर्नीचर महंगा हो, लेकिन क्वालिटी से समझौता न करें. जितनी अच्छी क्वालिटी लकड़ी की होगी, उतना ही भारी फर्नीचर होगा, इसलिए फर्नीचर खरीदते वक्त इसके वजन का अंदाज जरूर करें. खरीदने से पहले फर्नीचर पर बैठकर जरूर देखें ताकि आप यह अंदाजा लगा सकें कि यह कुर्सी या सोफा कितना आरामदायक है. लेदर से बना सोफा सेट बेशक देखने में मॉडर्न लगता हो, पर यह ज्यादा टिकाऊ नहीं होता.

हर पेंच जांचें

फर्नीचर पर की गई कारीगरी पर भी ध्यान दें. फर्नीचर में लगाए गए पेंच पूरी तरह से टाइट होने चाहिए. फर्नीचर पर लगाए गए नट, स्क्रू व बोल्ट भी फर्नीचर की पालिश के रंग में रंगे होने चाहिए. फर्नीचर खरीदते समय सिर्फ उसकी खूबसूरती पर ही ना हों बल्कि उसे अच्छी तरह देखें. खूबसूरत बनावट, परिष्करण, सीधी वेल्डिंग, हार्डवेयर के काम को छिपाती सुंदरता एक अच्छी गुणवत्ता वाले फर्नीचर की पहचान है.

थीम चुनें

विशेषज्ञ कहते हैं कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके घर में कितनी जगह है. इस बात का प्रभाव पड़ता है कि आप अपने घर के सौंदर्य को किस तरह चित्रित करती हैं. क्यों न ऐसा किया जाए कि किसी थीम का चुनाव करके उसके अनुसार घर को उसी प्रकार के फर्नीचर से सजाया जाए. आप बेडरूम के लिए विक्टोरियन थीम तथा लिविंग रूम के लिए माडर्न थीम का चुनाव कर सकती हैं.

साज सज्जा पर ध्यान दें

सही फर्नीचर के चुनाव के लिए इस बात पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है. यदि आप लकड़ी के फर्नीचर का चुनाव करती हैं तो फर्नीचर की फिनिशिंग की अच्छी तरह जांच कर लें. यदि फिनिशिंग अच्छी नहीं है तो रंग खराब होने की संभावना बढ़ जाती है.

कमरे के आकार का ध्यान रखें

आपका बेडरूम आरामदायक होना चाहिए. इसमें किंग साइज का बड़ा बेड न रखें. आपको बेडरूम में एक साइड टेबल और अलमारी की आवश्यकता भी होगी. तो कमरे के आकार के अनुसार फर्नीचर का चयन करें. इस प्रकार आप अपने घर के लिए उत्तम फर्नीचर का चुनाव कर सकती हैं.

अपरंपरागत सामान देखें

अपने घर को एक अलग रूप देने के लिए अजीब, अपरंपरागत और अनोखी चीजें खरीदें. विभिन्न प्रकार के रंगों और आकारों का उपयोग करें. यदि आप अंग्रेजी के बी आकार का वाल हैंगिंग बुक शेल्फ लगाती हैं तो निश्चित ही आपके कमरे की संरचना कुछ अलग दिखेगी.

जू से पाना है छुटकारा तो अपनाएं ये उपाय

सिर में जू हो जाना एक बड़ी समस्या है. अक्सर बच्चों में यह समस्या देखी जाती है. जू एक छोटा सा कीड़ा होता है जिसका आहार हमारा खून है. जू के कारण हमारे बालों में काफी खुजली होती है, और कभी कभी सिर की त्वचा पर दाने भी हो जाते हैं.

समय रहते अगर इनका इलाज न किया जाए तो यह गंभीर रूप ले लेती है, जिस वजह से काफी समस्याओं से परेशान होना पड़ता है. बहुत साफ-सफाई के बाद भी कभी-कभी सिर में जूएं पड़ जाते हैं. बाजार में सिर में जूएं मारने के तमाम नुस्खे उपलब्ध हैं लेकिन जूओं के लिए प्राकृतिक नुस्खे अपनाना ज्यादा सही होता है. आज हम आपको जूएं मारने के प्राकृतिक नुस्खों के बारे में बताने जा रहे हैं.

जैतून का तेल

जैतून का तेल सिर में लगाने से जूओं का सांस लेना कठिन हो जाता है, जिससे वो कुछ ही देर में मर जाते हैं. इसके लिए आपको नियमित रूप से जैतून का तेल बालों में लगाना चाहिए.

लहसुन

लहसुन से भी सिर के जूओं को खत्म किया जा सकता है. इसकी गंध से जूएं तेजी से मरती हैं. लहसुन की कुछ फांकों को बारीक पीस लें. अब इन्हें बालों की जड़ों में लगाएं. इसमें नींबू का रस भी मिला लें और फिर बालों में लगाएं.

नीम का तेल

नीम एंटी बैक्टीरियल प्रापर्टी से भरपूर होता है. सिर के जूएं मारने के लिए नीम का प्रयोग काफी असरदार होता है. इसका प्रयोग करने के लिए नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर ठंडा कर लें. बाद में उस पानी से सिर धो लें. कुछ दिनों तक इस नुस्खे को अपनाएंगी तो जूओं से राहत मिलेगी.

प्याज

प्याज सिर के जूएं मारने में काफी असरदार है. इसमें सल्फर की काफी मात्रा पायी जाती है. जूओं के लिए सल्फर काफी खतरनाक होता है. प्याज का रस लेकर सिर में हल्के हाथों से मालिश करें. इससे जूएं जड़ से खत्म हो जाती हैं.

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