मजुरिया का सपना : कैसे पूरा हुआ उस का सपना

लेखिका- डा. सुजाता विरेश

‘‘बहनजी, इन का भी दाखिला कर लो. सुना है कि यहां रोज खाना मिलता है और वजीफा भी,’’ 3 बच्चों के हाथ पकड़े, एक बच्चा गोद में लिए एक औरत गांव के प्राइमरी स्कूल में बच्चों का दाखिला कराने आई थी.

‘‘हांहां, हो जाएगा. तुम परेशान मत हो,’’ मैडम बोली. ‘‘बहनजी, फीस तो नहीं लगती?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘नहीं. फीस नहीं लगती. अच्छा, नाम बताओ और उम्र बताओ बच्चों की. कौन सी जमात में दाखिला कराओगी?’’ ‘‘अब बहनजी, लिख लो जिस में ठीक समझो.‘‘बड़ी बेटी का नाम मजुरिया है. इस की उम्र 10 साल है. ये दोनों दिबुआ और शिबुआ हैं. छोटे हैं मजुरिया से,’’ बच्चों की मां ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘नाम मंजरी. उम्र 8 साल. देव. उम्र 7 साल और शिव. उम्र 6 साल. मजुरिया जमात 2 में और देव व शिव का जमात एक में दाखिला कर लिया है. अब मैं तुम्हें मजुरिया नहीं मंजरी कह कर बुलाऊंगी,’’ मैडम ने कहा.

मजुरिया तो मानो खुशी से कूद पड़ी, ‘‘मंजरी… कितना प्यारा नाम है. अम्मां, अब मुझे मंजरी कहना.’’ ‘‘अरे बहनजी, मजुरिया को मंजरी बना देने से वह कोई रानी न बन जाएगी. रहेगी तो मजदूर की बेटी ही,’’ मजुरिया की अम्मां ने दुखी हो कर कहा.

‘‘नहीं अम्मां, मैं अब स्कूल आ गई हूं, अब मैं भी मैडम की तरह बनूंगी. फिर तू खेत में मजदूरी नहीं करेगी,’’ मंजरी बनते ही मजुरिया अपने सपनों को बुनने लगी थी. मजुरिया बड़े ध्यान से पढ़ती और अम्मां के काम में भी हाथ बंटाती.

मजुरिया पास होती गई. उस के भाई धक्का लगालगा कर थोड़ाबहुत पढ़े, पर मजुरिया को रोकना अब मुश्किल था. वह किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थी और अपनी मैडम की चहेती बन गई थी. ‘‘मंजरी, यह लो चाबी. स्कूटी की डिक्की में से मेरा लंच बौक्स निकाल कर लाना तो. पानी की बोतल भी है,’’ एक दिन मैडम ने उस से कहा.

मजुरिया ने आड़ीतिरछी कर के डिक्की खोल ही ली. उस ने बोतल और लंच बौक्स निकाला. वह सोचने लगी, ‘जब मैं पढ़लिख कर मैडम बनूंगी, तो मैं भी ऐसा ही डब्बा लूंगी. उस में रोज पूरी रख कर लाया करूंगी. ‘मैं अम्मां के लिए साड़ी लाऊंगी और बापू के लिए धोतीकुरता.’

मजुरिया मैडम की बोतल और डब्बा हाथ में लिए सोच ही रही थी कि मैडम ने आवाज लगाई, ‘‘मंजरी, क्या हुआ? इतनी देर कैसे लगा दी?’’ ‘‘आई मैडम,’’ कह कर मजुरिया ने मैडम को डब्बा और बोतल दी और किताब खोल कर पढ़ने बैठ गई.

अब मजुरिया 8वीं जमात में आ गई थी. वह पढ़ने में होशियार थी. उस के मन में लगन थी. वह पढ़लिख कर अपने घर की गरीबी दूर करना चाहती थी. उस की मां मजुरिया को जब नए कपड़े नहीं दिला पाती, तो वह हंस कर कहती, ‘‘तू चिंता मत कर अम्मां. एक बार मैं नौकरी पर लग जाऊं, फिर सब लोग नएनए कपड़े पहनेंगे.’’

‘‘अरे, खुली आंख से सपना न देख. अब तक तो तेरी फीस नहीं जाती है. कौपीकिताबें मिल जाती हैं. सो, तू पढ़ रही है. इस से आगे फीस देनी पड़ेगी.’’ अम्मां मजुरिया की आंखों में पल रहे सपनों को तोड़ना नहीं चाहती थी, पर उस के मजबूत इरादों को थोड़ा कम जरूर करना चाहती थी. वह जानती थी कि अगर सपने कमजोर होंगे, तो टूटने पर ज्यादा दर्द नहीं देंगे.

और यही हुआ. मजुरिया की 9वीं जमात की फीस उस की मैडम ने अपने ही स्कूल के सामने चल रहे सरकारी स्कूल में भर दी. मजुरिया तो खुश हो गई, लेकिन कोई भी मजुरिया आज तक इस स्कूल

में पढ़ने नहीं आई थी. एक दिन जब मजुरिया स्कूल पढ़ने गई और वहां के टीचरों ने उस की पढ़ाई की तारीफ की, तो वहां के ठाकुर बौखला गए. ‘‘ऐ मजुरिया की अम्मां, उधार बहुत बढ़ गया है. कैसे चुकाएगी?’’

‘‘मालिक, हम दिनरात आप के खेत पर काम कर के चुका देंगे.’’ ‘‘वह तो ठीक है, पर अकेले तू कितना पैसा जमा कर लेगी? मजुरिया को क्यों पढ़ने भेज रही है? वह तुम्हारे काम में हाथ क्यों नहीं बंटाती है?’’ इतना कह कर ठाकुर चले गए.

मजुरिया की अम्मां समझ गई कि निशाना कहां था. लेकिन इन सब से बेखबर मजुरिया अपनी पढ़ाई में खुश थी. पर कोई और भी था, जो उस के इस ख्वाब से खुश था. पल्लव, बड़े ठाकुर का बेटा, जो मजुरिया से एक जमात आगे गांव से बाहर के पब्लिक स्कूल में पढ़ता था. वह मजुरिया को उस के स्कूल तक छोड़ कर आगे अपने स्कूल जाता था.

‘‘तू रोज इस रास्ते से क्यों स्कूल जाता है? तुझे तो यह रास्ता लंबा पड़ता होगा न?’’ मजुरिया ने पूछा. ‘‘हां, सो तो है, पर उस रास्ते पर तू नहीं होती न. तू उस रास्ते से आने लगे, तो मैं भी उसी से आऊंगा,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘न बाबा न, वहां तो सारे ठाकुर रहते हैं. बड़ीबड़ी मूंछें, बाहर निकली हुई आंखें,’’ मजुरिया ने हंस कर कहा. ‘‘अच्छा, तो तू ठाकुरों से डरती है?’’ पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, पर मुझे ठकुराइन अच्छी लगती हैं.’’

‘‘तू ठकुराइन बनेगी?’’ ‘‘मैं कैसे बनूंगी?’’

‘‘मुझ से शादी कर के,’’ पल्लव ने मुसकराते हुए कहा. ‘‘तू पागल है. जा, अपने स्कूल. मेरा स्कूल आ गया है,’’ मजुरिया ने पल्लव को धकेलते हुए कहा और हंस कर स्कूल भाग गई.

उस दिन मजुरिया के घर आने पर उस की अम्मां ने कह दिया, ‘‘आज से स्कूल जाने की जरूरत नहीं है. ठाकुर का कर्ज बढ़ता जा रहा है. अब तो तुझे स्कूल में खाना भी नहीं मिलता है. कल से मेरे साथ काम करने खेत पर चलना.’’ मजुरिया टूटे दिल से अम्मां के साथ खेत पर जाने लगी.

वह 2 दिन से स्कूल नहीं गई, तो पल्लव ने खेत पर आ कर पूछा, ‘‘मंजरी, तू स्कूल क्यों नहीं जा रही है? क्या मुझ से नाराज है?’’ ‘‘नहीं रे, ठाकुर का कर्ज बढ़ गया है. अम्मां ने कहा है कि दिनरात काम करना पड़ेगा,’’ कहते हुए मजुरिया की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘तू परेशान मत हो. मैं तुझे घर आ कर पढ़ा दिया करूंगा,’’ पल्लव ने कहा, तो मजुरिया खुश हो उठी. अम्मां जानती थी कि ठाकुर का बेटा उन के घर आ कर पढ़ाएगा, तो हंगामा होगा. पर वह छोटे ठाकुर की यह बात काट नहीं सकी.

पल्लव मजुरिया को पढ़ाने घर आने लगा. लेकिन उन के बीच बढ़ती नजदीकियों से अम्मां घबरा गई. अम्मां ने अगले दिन पल्लव से घर आ कर पढ़ाने से मना कर दिया. मजुरिया कभीकभी समय मिलने पर स्कूल जाती थी. पल्लव रास्ते में उसे मिलता और ढेर सारी बातें करता. कब

2 साल गुजर गए, पता ही नहीं चला. आज मजुरिया का 10वीं जमात का रिजल्ट आएगा. उसे डर लग रहा था.

पल्लव तेजी से साइकिल चलाता हुआ गांव में घुसा, ‘‘मजुरिया… मजुरिया… तू फर्स्ट आई है.’’ मजुरिया हाथ में खुरपी लिए दौड़ी, उस का दुपट्टा उस के कंधे से उड़ कर दूर जा गिरा. उस ने पल्लव के हाथ से अखबार पकड़ा और भागते हुए अम्मां के पास आई, ‘‘अम्मां, मैं फर्स्ट आई हूं.’’

अम्मां ने उस के हाथ से अखबार छीना और हाथ पकड़ कर घर ले गई. पर उस की आवाज बड़े ठाकुर के कानों तक पहुंच ही गई. ‘‘मजुरिया की मां, तेरी लड़की जवान हो गई है. अब इस से खेत पर काम मत करवा. मेरे घर भेज दिया कर…’’ ठाकुर की बात पूरी नहीं हो पाई थी, उस से पहले ही अम्मां ने उसे घूर कर देखा, ‘‘मालिक, हम खेतिहर मजदूर हैं. किसी के घर नहीं जाते,’’ इतना कह कर अम्मां घर चली गई.

घर पर अम्मां मजुरिया को कमरे में बंद कर प्रधान के घर गई. उन की पत्नी अच्छी औरत थीं और उसे अकसर बिना सूद के पैसा देती रहती थीं. ‘‘मालकिन, मजुरिया के लायक कोई लड़का है, तो बताओ. हम उस के हाथ पीले करना चाहते हैं.’’

प्रधानजी की पत्नी हालात भांप गईं. ‘‘हां मजुरिया की अम्मां, मेरे मायके में रामदास नौकर है. पुरखों से हमारे यहां काम कर रहे हैं. उस का लड़का है. एक टांग में थोड़ी लचक है, उस से शादी करवा देते हैं. छठी जमात पास है.

‘‘अगर तू कहे, तो आज ही फोन कर देती हूं. मेरे पास 2-3 कोरी धोती रखी हैं. तू परेशान मत हो, बाकी का इंतजाम भी मैं कर दूंगी.’’ मजुरिया की अम्मां हां कह कर घर आ गई.

7वें दिन बैलगाड़ी में दूल्हे समेत 3 लोग मजुरिया को ब्याहने आ गए. बिना बाजे और शहनाई के मजुरिया

को साड़ी पहना कर बैलगाड़ी में बैठा दिया गया. मजुरिया कुछ समझ पाती, तब तक बैलगाड़ी गांव से बाहर आ गई. उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई और बैलगाड़ी से कूद कर गांव के थाने में पहुंच गई.

‘‘कुछ लोग मुझे पकड़ कर ले जा रहे हैं,’’ मजुरिया ने थानेदार को बताया. पुलिस ने मौके पर आ कर उन्हें बंद कर दिया. मजुरिया गांव वापस आ गई. जब सब को पता चला, तो उसे बुराभला कहने लगे. मां ने उसे पीट कर घर में बंद कर दिया.

मजुरिया के घर पर 2 दिन से न तो चूल्हा जला और न ही वे लोग घर से बाहर निकले. पल्लव छिप कर उस के लिए खाना लाया. उस ने समझाया, ‘‘देखो मंजरी, तुम्हें ख्वाब पूरे करने के लिए थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ेगी. बुजदिल हो कर, रो कर तुम अपने सपने पूरे नहीं कर सकोगी…’’

पल्लव के इन शब्दों ने मजुरिया को ताकत दी. वह अगले दिन अपनी मैडम के घर गई. उन्होंने उसे 12वीं जमात का फार्म भरवाया. इस के बाद पल्लव मंजरी को रास्ता दिखाता रहा और उस ने बीए कर लिया. पल्लव की नौकरी लग गई.

‘‘मंजरी, मैं अहमदाबाद जा रहा हूं. क्या तुम मुझ से शादी कर के मेरी ठकुराइन बनोगी?’’ पल्लव ने मंजरी का हाथ पकड़ कर कहा. ‘‘अगर मैं ने दिल की आवाज सुनी और तुम्हारे साथ चल दी, तो फिर कभी कोई मजुरिया दोबारा मंजरी बनने का ख्वाब नहीं देख पाएगी. फिर कभी कोई टीचर किसी मजुरिया को मंजरी बनाने की कोशिश नहीं करेगी.

‘‘एक मंजरी का दिल टूटने से अगर हजार मजुरियों के सपने पूरे होते हैं, तो मुझे यह मंजूर है,’’ मजुरिया ने कड़े मन से अपनी बात कही. पल्लव समझ गया और उसे जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे कर वहां से चला गया.

एक नई शुरुआत: स्वाति का मन क्यों भर गया?

बिखरे पड़े घर को समेट, बच्चों को स्कूल भेज कर भागभाग कर स्वाति को घर की सफाई करनी होती है, फिर खाना बनाना होता है. चंदर को काम पर जो जाना होता है. स्वाति को फिर अपने डे केयर सैंटर को भी तो खोलना होता है. साफसफाई करानी होती है. साढ़े 8 बजे से बच्चे आने शुरू हो जाते हैं.

घर से कुछ दूरी पर ही स्वाति का डे केयर सैंटर है, जहां जौब पर जाने वाले मातापिता अपने छोटे बच्चों को छोड़ जाते हैं.

इतना सब होने पर भी स्वाति को आजकल तनाव नहीं रहता. खुशखुश, मुसकराते-मुसकराते वह सब काम निबटाती है. उसे सहज, खुश देख चंदर के सीने पर सांप लोटते हैं, पर स्वाति को इस से कोई लेनादेना नहीं है. चंदर और उस की मां के कटु शब्द बाण अब उस का दिल नहीं दुखाते. उन पराए से हो चुके लोगों से उस का बस औपचारिकता का रिश्ता रह गया है, जिसे निभाने की औपचारिकता कर वह उड़ कर वहां पहुंच जाती है, जहां उस का मन बसता है.

‘‘मैम आज आप बहुत सुंदर लग रही हैं,‘‘ नैना ने कहा, तो स्वाति मुसकरा दी. नैना डे केयर की आया थी, जो सैंटर चलाने में उस की मदद करती थी.

‘‘अमोल नहीं आया अभी,‘‘ स्वाति की आंखें उसे ढूंढ़ रही थीं.

याद आया उसे जब एडमिशन के पश्चात पहले दिन अमोल अपने पापा रंजन वर्मा के साथ उस के डे केयर सैंटर आया था.

अपने पापा की उंगली पकड़े एक 4 साल का बच्चा उस के सैंटर आया, जिस का नाम अमोल वर्मा और पिता का नाम रंजन वर्मा था. रंजन ही उस का नाम लिखा कर गए थे. उन के सुदर्शन व्यक्तित्व से स्वाति प्रभावित हुई थी.

‘‘पति-पत्नी दोनों जौब करते होंगे, इसलिए बच्चे को यहां दाखिला करा कर जा रहे हैं,‘‘ स्वाति ने उस वक्त सोचा था.

रंजन ने उस से हलके से नमस्कार किया.

‘‘कैसे हो अमोल? बहुत अच्छे लग रहे हो आप तो… किस ने तैयार किया?‘‘ स्वाति ने कई सारे सवाल बंदूक की गोली जैसे बेचारे अमोल पर एकसाथ दाग दिए.

‘‘पापा ने,‘‘ भोलेपन के साथ अमोल ने कहा, तो स्वाति की दृष्टि रंजन की ओर गई.

‘‘जी, इस की मां तो है नहीं, तो मुझे ही तैयार करना होता है,‘‘ रंजन ने कहा, तो स्वाति का चौंकना स्वाभाविक ही था.

‘‘4 साल के बच्चे की मां नहीं है,‘‘ यह सुन कर उसे धक्का सा लगा. सौम्य, सुदर्शन रंजन को देख कर अनुमान भी लगाना मुश्किल था कि उन की पत्नी नहीं होंगी.

‘‘कैसे?‘‘ अकस्मात स्वाति के मुंह से निकला.

‘‘जी, उसे कैंसर हो गया था. 6 महीने के भीतर ही कैंसर की वजह से उस की जान चली गई,‘‘ रंजन की कंपकंपाती सी आवाज उस के दिल को छू सी गई. खुद को संयत करते हुए उस ने रंजन को आश्वस्त करने की कोशिश की, ‘‘आप जरा भी परेशान न हों, अमोल का यहां पूरापूरा ध्यान रखा जाएगा.‘‘

रंजन कुछ न बोला. वहां से बस चला गया. स्वाति का दिल भर आया इतने छोटे से बच्चे को बिन मां के देख. बिन मां के इस बच्चे के कठोर बचपन के बारे में सोचसोच कर उस का दिल भारी हो उठा था. उस दिन से अमोल से उस का कुछ अतिरिक्त ही लगाव हो गया था.

रंजन जब अमोल को छोड़ने आते तो स्वाति आग्रह के साथ उसे लेती. रंजन से भी एक अनजानी सी आत्मीयता बन गई थी, जो बिन कहे ही आपस में बात कर लेती थी. रंजन की उम्र लगभग 40 साल के आसपास की होगी.

‘‘जरूर शादी देर से हुई होगी, तभी तो बच्चा इतना छोटा है,’’ स्वाति ने सोचा.

रंजन अत्यंत सभ्य, शालीन व्यक्ति थे. स्त्रियों के प्रति उन का शालीन नजरिया स्वाति को प्रभावित कर गया था, वरना उस ने तो अपने आसपास ऐसे ही लोग देखे थे, जिन की नजरों में स्त्री का अस्तित्व बस पुरुष की जरूरतें पूरी करना, घर में मशीन की तरह जुटे रहने से ज्यादा कुछ नहीं था.

स्वाति का जीवन भी एक कहानी की तरह ही रहा. मातापिता दोनों की असमय मृत्यु हो जाने से उसे भैयाभाभी ने एक बोझ को हटाने की तरह चंदर के गले बांध दिया.

शराब पीने का आदी चंदर अपनी मां पार्वती का लाड़ला बेटा था, जिस की हर बुराई को वे ऐसे प्यार से पेश करती थीं, जैसे चंदर ही संसार में इकलौता सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति है.

चंदर एक फैक्टरी में सुपरवाइजर के पद पर काम करता था और अपनी तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा यारीदोस्ती और दारूबाजी में उड़ा देता. मांबेटा मिल कर पलपल स्वाति के स्वाभिमान को तारतार करते रहते.

‘‘चल दी महारानी सज कर दूसरों के बच्चों की पौटी साफ करने,‘‘ स्वाति जब भी अपने सैंटर पर जाने को होती, पार्वती अपने व्यंग्यबाण छोड़ना न भूलतीं.

‘‘जाने दे मां, इस बहाने अपने यारदोस्तों से भी मिल लेती है,‘‘ चंदर के मुंह से निकलने वाली प्रत्येक बात उस के चरित्र की तरह ही छिछली होती.

स्वाति एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल कर अपने काम पर निकल लेती.

‘‘उस की कमाई से ही घर में आराम और सुविधाएं बनी हुई थीं. शायद इसीलिए वे दोनों उसे झेल भी रहे थे, वरना क्या पता कहीं ठिकाने लगा कर उस का क्रियाकर्म भी कर देते,‘‘ स्वाति अकसर सोचती.

नीच प्रकृति के लोग बस अपने स्वार्थवश ही किसी को झेलते या सहन करते हैं. जरूरत न होने पर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं… स्वाति अपने पति और सास की रगरग से वाकिफ थी और कहीं न कहीं भीतर ही भीतर उन से सजग और सावधान भी रहती थी.

स्वाति ने अपना ‘डे केयर सैंटर‘ घर से कुछ दूर ‘निराला नगर‘ नामक पौश कालोनी में एक खाली मकान में खोल रखा था. घर की मालकिन मिसेज बत्रा का शू बिजनैस था और ज्यादातर समय वे कनाडा में ही रहती थीं. शहर में ऐसे उन के कई मकान पड़े थे. स्वाति से उन्हें किराए का भी लालच नहीं था. बस घर की देखभाल होती रहे और घर सुरक्षित रहे, यही उन के लिए बहुत था. साल में 1-2 बार जब वे इंडिया आतीं, तो स्वाति से मिल कर जातीं. अपने घर को सहीसलामत हाथों में देख कर उन्हें संतुष्टि होती.

मिसेज बत्रा से स्वाति की मुलाकात यों ही अचानक एक शू प्रदर्शनी के दौरान हुई थी. स्वाति का मिलनसार स्वभाव, उस की सज्जनता और अपने से बड़ों को आदर देने की उस की भावना लोगों को सहज ही उस से प्रभावित कर देती थी. वह जहां भी जाती, उस के परिचितों और शुभचिंतकों की तादाद में इजाफा हो जाता.

बातों ही बातों में मिसेज बत्रा ने जिक्र किया था कि उन का यह मकान खाली पड़ा है, जिसे वे किसी विश्वसनीय को सौंपना चाहती हैं जो उस की देखभाल भी कर सके और खुद भी रह सके.

स्वाति उस समय अपने वजूद को तलाश रही थी. उस के पास न कोई बहुत भारी रकम थी और न कोई उच्च या स्पैशल शैक्षिक प्रशिक्षण था. ऐसे में उसे डे केयर सैंटर चलाने का विचार सूझा.

स्वाति ने मिसेज बत्रा से बात की. उन्होंने सहर्ष सहमति दे दी. स्वाति ने घर वालों की हर असहमति को दरकिनार कर अपने इस सैंटर की शुरुआत कर दी.

सुबह से शाम तक स्वाति थक कर चूर हो जाती. उस के काम के कारण बच्चे उपेक्षित होते थे, वह जानती थी. पर क्या करे.

शादी के बाद जब इस घर में आई तो कितने सपने सजे थे उस की आंखों में. फिर एकएक, सब किर्चकिर्च होने लगे. चंदर पक्का मातृभक्त था और मां शासन प्रिय. परिवार का प्रत्येक व्यक्ति उन के दबाव में रहता. ससुर भी सास के आगे चूं न करते. हां, उन के धूर्त कामों में साथ देने को हमेशा तैयार रहते. चंदर जो भी कमाता या तो मां के हाथ में देता या दारू पर उड़ा देता.

स्वाति से उस का सिर्फ दैहिक रिश्ता बना, स्वाति का मन कभी उस से नहीं जुड़ा. उस ने कोशिश भी की, तो हमेशा चंदर के विचारों, कामों और आचरण से वह हमेशा उस से और दूर ही होती गई.

‘‘देखो तुम्हारी मां तुम्हारा ध्यान नहीं रख सकतीं और दूसरों के बच्चों की सूसूपौटी साफ करती है,” सास उस के दोनों बच्चों को भड़काती रहतीं.

राहुल 7 साल का था और प्रिया 5 साल की होने वाली थी. दोनों कच्ची मिट्टी के समान थे. स्वाति बाहर रहती और दादी जैसा मां के विरुद्ध उन्हें भड़काती रहती. उस से बच्चों के मन में मां की नकारात्मक छवि बनती जाती. यहां तक कि दोनों स्वाति की हर बात को काटते.

‘‘आप तो जाओ अपने सैंटर के बच्चों को देखो, वही आप के अपने हैं, हम तो पराए हैं. हमारे साथ तो दादी हैं. आप जाओ.‘‘

प्रिया और राहुल को आभास भी न होता होगा कि उन की बातों से स्वाति का दिल कितना दुखता था. ऊपर से चंदर, उसे खाना, चाय, जूतेमोजे, कच्छाबनियान सब मुंह से आवाज निकलते ही हाजिर चाहिए थे.

बिस्तर से उठते ही यदि चप्पल सामने न मिले तो हल्ला मचा देता. स्वाति को बेवकूफ, गंवार सब तरह की संज्ञाओं से नवाजता और खुद रोज शाम को बदबू मारता, नशे में लड़खड़ाता हुआ घर आता.

यही जिंदगी थी स्वाति की घर में. अपनी छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी मोहताज थी वह. ऐसे में आत्मसम्मान किस चिड़िया का नाम होता है, ये उजड्ड लोग जानते ही न थे. तब स्वाति को मिसेज बत्रा मिलीं और उसे आशा की एक किरण दिखाई दी.

इन्हीं आपाधापियों में उस के ‘डे केयर‘ की शुरुआत हो गई. अब तो बच्चे भी बहुत हो गए हैं, जिन में अमोल से उसे कुछ विशेष लगाव हो गया था. उस के पिता रंजन वर्मा से भी. उस का एक आत्मीय रिश्ता बन गया था. जब से उसे पता चला था कि रंजन की पत्नी की कैंसर से मृत्यु हो चुकी है और अमोल एक बिन मां का बच्चा है, तब से अमोल और रंजन दोनों के ही प्रति उस के दिल में खासा लगाव पैदा हो गया था.

हालांकि रंजन के प्रति अपनी मनोभावनाओं को उस ने अपने दिल में ही छुपा रखा था, कभी बाहर नहीं आने दिया था.

अपनी सीमाओं की जानकारी उसे थी. यहां व्यक्ति का चरित्र आंकने का बस यही तो एक पैमाना है. मन की इच्छाओं को दबाते रहना. जो हो वह नहीं दिखना चाहिए बस एक पाकसाफ, आदर्श छवि बनी रहे तो कम से कम इस दोहरे मानदंडों वाले समाज में सिर उठा कर जी तो सकते हैं वरना तो लोग आप को जीतेजी ही मार डालेंगे.

शर्म, ग्लानि और अपराध बोध बस उन के लिए है, जो स्वाभिमानी हैं और अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए सम्मान से जीना चाहते हैं और चंदर जैसे दुर्गुणी, नशेबाज के लिए कोई मानमर्यादा नहीं है.

चंदर के मातापिता जैसे चालाक और धूर्तों के लिए भी कोई नैतिकता के नियम नहीं हैं. उन की बुजुर्गियत की आड़ में सब छुप जाता है.

पर हां, अगर स्वाति किसी भावनात्मक सहारे के लिए तनिक भी अपने रास्ते से डगमग हो गई तो भूचाल आ जाएगा और उस का सारा संघर्ष और मेहनत बेमानी हो जाएगी, यह स्वाति अच्छी तरह जानती और समझती थी. इसीलिए उस ने रंजन के प्रति अपनी अनुरक्ति को केवल अपने मन की परतों में ही दबा रखा था. पर यह भी उसे अच्छा लगता था. चंदर और उस के स्वार्थी परिवार से उस का यह मौन विद्रोह ही था, जो उसे परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति देता था और उस का मनोबल बढ़ाता था.

राहुल और प्रिया का टिफिन तैयार कर उन्हें स्कूल के लिए छोड़ कर, घर के सब काम निबटा कर जैसे ही स्वाति घर से निकलने को हुई, सास की कर्कश आवाज आई, ‘‘चल दी गुलछर्रे उड़ाने महारानी… हम लोगों के साथ इसे अच्छा ही कहां लगता है.‘‘ चंदर भी मां का साथ देता.

आखिर स्वाति कितना और कब तक सुनती. दबा हुआ आक्रोश फूट पड़ा स्वाति का, ‘‘जाती हूं तो क्या… कमा कर तो तुम्हारे घर में ही लाती हूं. कहीं और तो ले जाती नहीं हूं.‘‘

‘‘अच्छा, अब हम से जबान भी लड़ाती है…’’ गाली देते हुए चंदर उस पर टूट पड़ा. सासससुर भी साथ हो लिए.

पलभर के लिए हैरान रह गई स्वाति… उसे लगा कि ये लोग तो उसे मार ही डालेंगे. उस के कुछ दिमाग में न आया, तो जल्दीजल्दी रंजन को फोन लगा दिया और खुद भी अपने सैंटर की ओर भाग ली.

‘‘अब इस घर में मुझे नहीं रहना है,‘‘ उस ने मन ही मन सोच लिया, ‘‘कैसे भी हो, अपने बच्चों को भी यहां से निकाल लेगी. सैंटर पर कमरा तो है ही. कैसे भी वहीं रह लेगी. मिसेज बत्रा को सबकुछ बता देगी. वे नाराज नहीं होंगी.‘‘

स्वाति के दिमाग में तरहतरह के खयाल उमड़घुमड़ रहे थे. सबकुछ अव्यवस्थित हो गया था. समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा…

सैंटर पहुंच कर कुछ देर में स्वाति ने खुद को व्यवस्थित कर लिया. उस के फोन लगा देने पर रंजन भी वहां आ गया था.

रंजन के आत्मीयतापूर्ण व्यवहार का आसरा पा कर वह कुछ छुपा न पाई और सबकुछ बता दिया…अपने हालात… परिस्थितयां, बच्चे… सब.

पहलेपहल तो रंजन को कुछ समझ ही न आया कि क्या कहे. एक शादीशुदा स्त्री की निजी जिंदगी में इस तरह दखल देना सही भी होगा या नहीं… फिर भी स्वाति की मनोस्थिति देख कर रंजन ने कहा, ‘‘कोई परेशानी या जरूरत हो तो वह उसे याद कर ले और अगर उस की जान को खतरा है, तो वह उस घर में वापस न जाए.‘‘

रंजन का संबल पा कर स्वाति का मनोबल बढ़ गया और उस ने सोच लिया कि अब वह वापस नहीं जाएगी. रहने का ठिकाना तो उस का यहां है ही. यहीं से रह कर अपना सैंटर चलाएगी. कुछ दिन नैना को यहीं रोक लगी अपने पास.

उस दिन स्वाति घर नहीं गई. उस का कुछ विशेष था भी नहीं घर में. जरूरत भर का सामान, थोड़ेबहुत कपड़े बाजार से ले लेगी. पक्का निश्चय कर लिया था उस ने. बस अपनेआप को काम में झोंक दिया स्वाति ने.

अपने डे केयर को प्ले स्कूल में और बढ़ाने का सोच लिया उस ने और कैसे अपने काम का विस्तार करे, बस इसी योजना में उस का दिमाग काम कर रहा था.

स्वाति के चले जाने से घर की सारी व्यवस्था ठप हो गई थी. स्वाति तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी थी. वह ऐसा जोर का झटका देगी, ऐसी उम्मीद न थी. चंदर और उस की मां तो उसे गूंगी गुड़िया ही समझते थे, जिस का उन के घर के सिवा कोई ठौरठिकाना न था. आखिर जाएगी कहां? अब खिसियाए से दोनों क्या उपाय करें कि उन की अकड़ भी बनी रहे और स्वाति भी वापस आ जाए, यही जुगाड़ लगाने में लगे थे.

मां के चले जाने पर बच्चे राहुल और प्रिया को भी घर में उस की अहमियत पता चल रही थी. जो दादी दिनरात उन्हें मां के खिलाफ भड़काती रहती थी, उन्होंने एक दिन भी उन का टिफिन नहीं बनाया. 2 दिन तो स्कूल मिस भी हो गया.

स्कूल से आने पर न कोई होमवर्क को पूछने वाला और न कोई कराने वाला. बस चैबीस घंटे स्वाति की बुराई पुराण चालू रहता. उन से हजम नहीं हो रहा था कि स्वाति इस तरह उन सब को छोड़ कर भी जा सकती है. ऊपर से सारा घर अव्यवस्थित पड़ा रहता था.

स्वाति को गए एक हफ्ता भी न हुआ था कि दोनों बच्चों के सामने उन सब की सारी असलियत खुल कर सामने आ गई. उन का मन हो रहा था कि उड़ कर मां के पास पहुंच जाएं, पर दादादादी और पिता के डर से सहमे हुए बच्चे कुछ कहनेकरने की स्थिति में नहीं थे.

एक दिन दोनों स्कूल गए तो लौट कर आए ही नहीं, बल्कि स्कूल से सीधे अपनी मां के पास ही पहुंच गए. सैंटर तो उन्होंने देख ही रखा था. स्वाति को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. उस के कलेजे के टुकड़े उस के सामने थे. कैसे छाती पर पत्थर रख कर उन्हें छोड़ कर आई थी, यह वह ही जानती थी.

चंदर और स्वाति के सासससुर बदले की आग में झुलस रहे थे. सोने का अंडा देने वाली मुरगी और घर का काम करने वाली उन्हें पलभर में ठेंगा दिखा कर चली जो गई थी.

बेइज्जती की आग में जल रहे थे तीनों. चंदर किसी भी कीमत पर स्वाति को घर वापस लाना चाहता था. शहर के कुछ संगठन जो स्त्रियों के चरित्र का ठेका लिए रहते थे और वेलेंटाइन डे पर लड़केलड़कियों को मिलने से रोकते फिरते थे, उन में चंदर भी शामिल था. वास्तव में तो इन छद्म नैतिकतावादियों से स्त्री का स्वतंत्र अस्तित्व ही बरदाश्त नहीं होता और यदि खोजा जाए तो उन सभी के घरों में औरत की स्थिति स्वाति से बेहतर न मिलती.

स्वाति के चरित्र पर भद्दे आरोप लगाता हुआ अपने ‘स्त्री अस्मिता रक्षा संघ‘ के नुमाइंदों को ले कर चंदर स्वाति के डे केयर सैंटर पहुंच गया.

यह देख स्वाति घबरा गई. उस ने रंजन को, अपने सभी मित्रों, बच्चों के मातापिता को जल्दीजल्दी फोन किए. सैंटर के बाहर दोनों गुट जमा हो गए. रंजन भी पुलिस ले कर आ गया था. दोनों पक्षों की बातें सुनी गईं.

स्वाति ने अपने ऊपर हो रहे उत्पीड़न को बताते हुए ‘महिला उत्पीड़न‘ और ‘घरेलू हिंसा‘ के तहत रिपोर्ट लिखवा दी. रंजन, उस के दोस्त और बच्चों के मातापिता सभी स्वाति के साथ थे.

पुलिस ने चंदर को आगे से स्वाति को तंग न करने की चेतावनी दे दी और आगे ‘कुछ अवांछित करने पर हवालात की धमकी भी.‘ चंदर और उस के मातापिता अपना से मुंह ले कर चलते बने.

स्वाति ने सोच लिया था कि अब वह चंदर के साथ नहीं रहेगी. अपने जीवन के उस अध्याय को बंद कर अब वह एक नई शुरुआत करेगी.

शाम का धुंधलका छा रहा था. स्वाति अकेले खड़ी डूबते हुए सूरज को देख रही थी. सामने रंजन आ रहा था, अमोल का हाथ पकड़े.

अमोल ने आ कर अचानक स्वाति का एक हाथ थाम लिया और एक रंजन ने. राहुल और प्रिया भी वहीं आ गए थे. अब वे सब साथ थे एक परिवार के रूप में मजबूती से एकदूसरे का हाथ थामे हुए, ‘एक नई शुरुआत के लिए और हर आने वाली समस्या का सामना करने को तैयार.

Pregnancy में हील पहनना और सफर करना क्या खतरनाक है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 3 महीने की प्रैगनैंट हूं, क्या मैं हाई हील सैंडल पहन सकती हूं?

जवाब-

प्रैगनैंसी के दौरान हाई हील सैंडल पहनना आप के लिए ही सब से ज्यादा तकलीफ देह साबित होगा, इसलिए हाई हील सैंडल पहनने की इच्छा को 9 महीने दिल से निकाल दें. प्रैगनैंसी के दौरान शरीर से रिलैक्सएक्स नाम का हारमोन निकलता है जो शिशु के जन्म लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करता है. लेकिन इस हारमोन के कारण पैरों में दर्द, जोड़ों में अकड़न जैसी समस्याएं होने लगती हैं. हाई हील सैंडल पहनने से पैरों में सूजन आ सकती है, पेट लटक सकता है क्योंकि पैरों पर भार ज्यादा पड़ने लगता है यानी शरीर का आकार बेढंगा बन सकता है. इसलिए प्रैगनैंसी के दौरान ब्लौक या प्लैटफौर्म हील पहनना सब से सेफ होता है.

सवाल-

मेरा 5वां महीना चल रहा है, मैं मां के पास जाना चाहती हूं. ट्रेन, हवाईजहाज या कार किस से सफर करना मेरे और मेरे बच्चे के लिए सुरक्षित रहेगा?

जवाब-

आप का 5वां महीना चल रहा है, इस का मतलब आप को दूसरी तिमाही है. इस दौरान ट्रेन, प्लेन या कार से ट्रेन से सफर करना मां और शिशु दोनों के लिए सुरक्षित होता है. ट्रेन उबड़खाबड़ नहीं समतल रेल लाइन पर चलती है, जिस से हिचकोले खाने का डर नहीं रहता. अगर आप को पानी पीना है या आराम करना है तो आप आसानी

से कर सकती हैं. जबकि प्लेन में 32 हफ्ते बाद सफर करने की अनुमति नहीं मिलती और कार में धक्का या हिचकोले खाने की आशंका भी रहती है. यहां तक कि हवाईजहाज में सांस लेने में परेशानी हो सकती है, इसलिए 32 महीने पहले यदि सफर करना चाहती हैं तो डाक्टर से जरूर सलाह ले लें.

अगर कार से सफर करेंगी तो बीचबीच में पेशाब करने के लिए जाना पड़ सकता है, जो हाइजीन के नजरिए से भी सेफ नहीं होता है. इस के अलावा अगर किसी को उलटियां करने की समस्या है तो उन के लिए कार से सफर करना मुश्किल हो सकता है. इसलिए अगर सुरक्षित और आराम से सफर करना है तो ट्रेन से ही सफर करना अच्छा होता है. इस से पैर फैला कर आराम से खातेपीते सफर का आनंद मां और शिशु दोनों उठा सकते हैं.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बेइज्जती : अजीत ने क्या किया था रसिया के साथ

लेखक- कुंवर गुलाब सिंह

करिश्मा और रसिया भैरव गांव से शहर के एक कालेज में साथसाथ पढ़ने जाती थीं. साथसाथ रहने से उन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन का एकदूसरे के घरों में आनाजाना भी शुरू हो गया था.

करिश्मा के छोटे भाई अजीत ने रसिया को पहली बार देखा, तो उस की खूबसूरती को देखता रह गया. रसिया के कसे हुए उभार, सांचे में ढला बदन और रस भरे गुलाबी होंठ मदहोश करने वाले थे.

रसिया ने एक दिन महसूस किया कि कोई लड़का छिपछिप कर उसे देखता है. उस ने करिश्मा से पूछा, ‘‘वह लड़का कौन है, जो मुझे घूरता है?’’

‘‘वह…’’ कह कर करिश्मा हंसी और बोली, ‘‘वह तो मेरा छोटा भाई अजीत है. तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हें कोई भी देखता रह जाए…

‘‘ठहरो, मैं उसे बुलाती हूं,’’ इतना कह कर उस ने अजीत को पुकारा, जो दूसरे कमरे में खड़ा सब सुन रहा था.

‘‘आता हूं…’’ कहते हुए अजीत करिश्मा और रसिया के सामने ऐसा भोला बन कर आया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.

करिश्मा ने बनावटी गुस्सा करते हुए पूछा, ‘‘अजीत, तुम मेरी सहेली रसिया को घूरघूर कर देखते हो क्या?’’

‘‘घूरघूर कर तो नहीं, पर मैं जानने की कोशिश जरूर करता हूं कि ये कौन हैं, जो अकसर तुम से मिलने आया करती हैं,’’ अजीत ने कहा.

‘‘यह बात तो तुम मुझ से भी पूछ सकते थे. लो, अभी बता देती हूं. यह मेरी सहेली रसिया है.’’

‘‘रसिया… बड़ा प्यारा नाम है,’’ अजीत ने मुसकराते हुए कहा, तो करिश्मा ने रसिया से अपने भाई का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रसिया, यह मेरा छोटा भाई अजीत है. इसे अच्छी तरह पहचान लो, फिर न कहना कि तुम्हें घूर रहा था.’’

‘‘ओ हो अजीत… मैं हूं रसिया. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगे?’’ रसिया ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं…’’ कहते हुए अजीत ने जोश के साथ अपना हाथ उस की ओर बढ़ाया.

रसिया ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अजीत, तुम से मिल कर खुशी हुई. वैसे, तुम करते क्या हो?’’

‘‘मैं कालेज में पढ़ता हूं. जल्दी पढ़ाई खत्म कर के नौकरी करूंगा, ताकि अपनी बहन की शादी कर सकूं.’’

रसिया जोर से हंस पड़ी. उस के हंसने से उस के उभार कांपने लगे. यह देख कर अजीत के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

तभी रसिया ने कहा, ‘‘वाह अजीत, वाह, तुम तो जरूरत से ज्यादा समझदार हो गए हो. सिर्फ बहन की शादी करने का इरादा है या अपनी भी शादी करोगे?’’

‘‘अपनी भी शादी कर लूंगा, अगर तुम्हारी जैसी खूबसूरत लड़की मिली तो…’’ कहते हुए अजीत वहां से चला गया.

रात में जब अजीत अपने बिस्तर पर लेटा, तो रसिया के खयालों में खोने लगा. उसे बारबार रसिया के दोनों उभार कांपते दिखाई दे रहे थे. वह सिहर उठा.

2 दिन बाद अजीत रसिया से फिर अपने घर पर मिला. हंसीहंसी में रसिया ने उस से कह दिया, ‘‘अजीत, तुम मुझे बहुत प्यारे और अच्छे लगते हो.’’

अजीत को ऐसा लगा, मानो रसिया उस की ओर खिंच रही है. अजीत बोला, ‘‘रसिया, तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम मुझ से शादी करोगी?’’

यह सुन कर रसिया को हैरानी हुई. उस ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘तुम ने मेरे कहने का गलत मतलब लगाया है. तुम नहीं जानते कि मैं निचली जाति की हूं? ऐसा खयाल भी अपने मन में मत लाना. तुम्हारा समाज मुझे नफरत की निगाह से देखेगा. वेसे भी तुम मुझ से उम्र में बहुत छोटे हो. करिश्मा के नाते मैं भी तुम्हें अपना भाई समझने लगी थी.’’

अजीत कुछ नहीं बोला और बात आईगई हो गई.

समय तेजी से आगे बढ़ता गया. एक दिन करिश्मा ने अपने जन्मदिन पर अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया. काफी चहलपहल में देर रात हो गई, तो रसिया घबराने लगी. उसे अपने घर जाना था. उस ने करिश्मा से कहा, ‘‘अजीत से कह दो कि वह मुझे मेरे घर छोड़ दे.’’

करिश्मा ने अजीत को पुकार कर कहा, ‘‘अजीत, जरा इधर आना. तुम रसिया को अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर तक छोड़ आओ. आसमान में बादल घिर आए हैं. तेज बारिश हो सकती है.’’

‘‘इन से कह दो कि रात को यहीं रुक जाएं,’’ अजीत ने सुझाया.

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मेरे घर वाले परेशान होंगे. अगर तुम नहीं चल सकते, तो मैं अकेले ही चली जाऊंगी,’’ रसिया ने कहा.

‘‘नहीं, मैं आप को छोड़ दूंगा,’’ कह कर अजीत ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली, तभी हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. कुछ फासला पार करने पर तूफानी हवा के साथ खूब तेज बारिश और ओले गिरने लगे. ठंड भी बढ़ गई थी.

रसिया ने कहा, ‘‘अजीत, तेज बारिश हो रही है. क्यों न हम लोग कुछ देर के लिए किसी महफूज जगह पर रुक कर बारिश के बंद होने का इंतजार कर लें?’’

‘‘तुम्हारा कहना सही है रसिया. आगे कोई जगह मिल जाएगी, तो जरूर रुकेंगे.’’

बिजली की चमक में अजीत को एक सुनसान झोंपड़ी दिखाई दी. अजीत ने वहां पहुंच कर मोटरसाइकिल रोकी और दोनों झोंपड़ी के अंदर चले गए.

अजीत की नजर रसिया के भीगे कपड़ों पर पड़ी. वह एक पतली साड़ी पहन कर सजधज कर करिश्मा के जन्मदिन की पार्टी में गई थी. उसे क्या मालूम था कि ऐसे हालात का सामना करना पड़ेगा. पानी से भीगी साड़ी में उस का अंगअंग दिखाई दे रहा था.

रसिया का भीगा बदन अजीत को बेसब्र कर रहा था. वह बारबार सोचता कि ऐसे समय में रसिया उस की बांहों में समा जाए, तो उस के जिस्म में गरमी भर जाए,

कांपती हुई रसिया ने अजीत से कुछ कहना चाहा, लेकिन उस की जबान नहीं खुल सकी. लेकिन ठंड इतनी बढ़ गई थी कि उस से रहा नहीं गया. वह बोली, ‘‘भाई अजीत, मुझे बहुत ठंड लग रही है. कुछ देर मुझे अपने बदन से चिपका लो, ताकि थोड़ी गरमी मिल जाए.’’

‘‘क्यों नहीं, भाई का फर्ज है ऐसी हालत में मदद करना,’’ कह कर अजीत ने रसिया को अपनी बांहों में जकड़ लिया. धीरेधीरे वह रसिया की पीठ को सहलाने लगा. रसिया को राहत मिली.

लेकिन अब अजीत के हाथ फिसलतेफिसलते रसिया के उभारों पर पड़ने लगे और उस ने समझा कि रसिया को एतराज नहीं है. तभी उस ने उस के उभारों को दबाना शुरू किया, तो रसिया ने अजीत की नीयत को भांप लिया.

रसिया उस से अलग होते हुए बोली, ‘‘अजीत, ऐसे नाजुक समय में क्या तुम करिश्मा के साथ भी ऐसी ही हरकत करते? तुम्हें शर्म नही आई?’’ कहते हुए रसिया ने अजीत के गाल पर कस कर चांटा मारा.

यह देख कर अजीत तिलमिला उठा. उस ने भी उसी तरह चांटा मारना चाहा, पर कुछ सोच कर रुक गया.

उस ने रसिया की पीठ सहलाते हुए जो सपने देखे थे, वे उस के वहम थे. रसिया उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. जल्दबाजी में उस ने सारा खेल ही खत्म कर दिया. अगर रसिया ने उस की शिकायत करिश्मा से कर दी, तो गड़बड़ हो जाएगी.

अजीत झट से शर्मिंदगी दिखाते हुए बोला, ‘‘रसिया, मुझे माफ कर दो. मेरी शिकायत करिश्मा से मत करना.’’

‘‘ठीक है, नहीं करूंगी, लेकिन इस शर्त पर कि तुम यह सब बिलकुल भूल जाओगे,’’ रसिया ने कहा.

‘‘जरूरजरूर. दोबारा मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं ने समझा था कि दूसरी निचली जाति की लड़कियों की तरह शायद तुम भी कहीं दिलफेंक न हो.’’

‘‘तुम्हारे जैसे बड़े लोग ही हम निचली जाति की लड़कियों से गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. सभी लड़कियां कमजोर नहीं होतीं. अब यहां रुकना ठीक नहीं है. बारिश भी कम हो गई है. अब हमें चलना चाहिए,’’ रसिया ने कहा.

दोनों मोटरसाइकिल से रसिया के घर पहुंचे. रसिया ने बारिश बंद होने तक अजीत को रोकना चाहा, लेकिन वह नहीं रुका.

उस दिन के बाद से अजीत अपने गाल पर हाथ फेरता, तो गुस्से में उस के रोंगटे खड़े हो जाते.

अजीत रसिया के चांटे को याद करता और तड़प उठता. सोचता कि रसिया ने चांटा मार कर उस की जो बेइज्जती की है, वह उसे जिंदगीभर भूल नहीं सकता. उस चांटे का जवाब वह जरूर देगा.

उस दिन करिश्मा के यहां खूब चहलपहल थी, क्योंकि उस की सगाई होने वाली थी. उस की सहेलियां नाचनेगाने में मस्त थीं. रसिया भी उस जश्न में शामिल थी, क्योंकि वह करिश्मा की खास सहेली जो थी. वह खूब सजधज  कर आई थी.

अजीत भी लड़कियों के साथ नाचने लगा. उस की नजर जब रसिया से टकराई, तो दोनों मुसकरा दिए. अजीत ने उसी समय मौके का फायदा उठाना चाहा.

अजीत ने झूमते हुए आगे बढ़ कर रसिया की कमर में हाथ डाला और अपनी बांहों में कस लिया. फिर उस के गालों को ऐसे चूमा कि उस के दांतों के निशान रसिया के गालों पर पड़ गए.

यह देख रसिया तिलमिला उठी और धक्का दे कर उस की बांहों से अलग हो गई. रसिया ने उस के गाल पर कई चांटे रसीद कर दिए. जश्न में खलबली मच गई. पहले तो लोग समझ ही नहीं पाए कि माजरा क्या है, लेकिन तुरंत रसिया की कठोर आवाज गूंजी, ‘‘अजीत, तुम ने आज इस भरी महफिल में केवल मेरा ही नहीं, बल्कि अपनी बहन औेर सगेसंबंधियों की बेइज्जती की है. मैं तुम पर थूकती हूं.

‘‘मैं सोचती थी कि शायद तुम उस दिन के चांटे को भूल गए हो, पर मुझे ऐसा लगता है कि तुम यही हरकतें अपनी बहन करिश्मा के साथ भी करते होगे.

‘‘अगर मैं जानती कि तुम्हारे दिल में बहनों की इसी तरह इज्जत होती है, तो यहां कभी न आती. ’’

रसिया ने करिश्मा के पास जा कर उस रात की घटना के बारे में बताया और यह भी बताया कि अजीत ने उस से भविष्य में ऐसा न होने के लिए माफी भी मांगी थी.

करिश्मा का सिर शर्म से झुक गया. उस की आखों से आंसू गिर पड़े. करिश्मा की दूसरी सहेलियों ने भी अजीत की थूथू की और वहां से बिना कुछ खाए रसिया के साथ वापस चली गईं.

नासमझ अजीत ने रसिया को जलील नहीं किया था, बल्कि अपने परिवार की बेइज्जती की थी.

हाथरस पाखंडी बाबाओं के निशाने पर महिलाएं ही क्यों

22 जुलाई, 2024 को हाथरस में एक सत्संग में हुई भगदड में तकरीबन 121 लोग मारे गए और कई घायल हुए. मारे गए लोगों की संख्या और भी बढ़ सकती है. जिस ने यह सब करीब से देखा उन का कहना था कि जब बाबा ने अपने भक्तों से अपने चरणों की धूल लेने के लिए कहा तब अचानक से लोग दौड़ने लगे और भगदड मच गई. घटना के बाद से ही चमत्कारी बाबा गायब है.

भारत के लगभग हर कोने में ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो अपने ऐजेंटों की मदद से शहरों और गांवों में अपना
प्रचार करते हैं और अपना गोरखधंधा चलाते है. सोशल मीडिया के इस युग में इन का काम और भी आसान हो गया है. टीवी चैनलों पर रातदिन इन के प्रवचनों के वीडियो लगातार प्रसारित होते हैं जहां ये खुद को ऐसे दिखाते हैं जैसेकि भगवान के भेजे हुए कोई दूत हों. बड़ेबड़े सिंहासन, चारों तरफ चकाचौंध और भक्तों से घिरे ये बाबा बड़ी ही आसानी से लोगों को बेवकूफ बनाने का काम करते हैं।

कोई भी बन जाता है भगवान

वैसे, कमाल की बात यह है कि भारत में मामूली लोगों को भी भगवान बना दिया जाता है और उन्हें पूजना शुरू कर दिया जाता है और इस तरह से खुद को भगवान, बाबा और गुरु घोषित कर देने वाले 1-2 या दर्जनभर नहीं बल्कि सैकड़ों और हजारों की तादात में होते हैं.

आज भारत के किसी भी कोने में ऐसे ढोंगी बाबा मिल जाएंगे. उन में से बहुत कम को छोड़ कर, जिन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है सही कामों में लगे हुए हैं लेकिन उन्हें बाबा नहीं कहा जा सकता है, बाकी ज्यादातर बदमाश हैं जो तथाकथित आश्रमों में 10-20 बौडीगार्ड के साथ राइफलों से लैस और युवा भारतीय या विदेशी महिला अनुयायियों के साथ आलीशान भवनों में रहते हैं.

आश्चर्य की बात तो यह है कि इन के आश्रमों में जाने की फीस है, उन से मिलने की फीस है, उन से अपनी समस्याएं साझा करने की फीस है। फिर ये ऐसेऐसे तरीके बताते हैं कि एक सामान्य इंसान हो तो हंसी छूट जाए. कोई रात को 2 बजे दीए जलाने को कहेगा तो कोई पानी में डुबकी लगाने को कहेगा. कोई कागज पर समस्याएं लिखने को कहेगा तो कोई गोलगप्पे खाने को कहेगा. मानसिक रूप से जूझ रहे लोगों को बेवकूफ बनाने के सैकड़ों उपाय इन के पास होते हैं.

क्यों फंसते हैं लोग जाल में

बदलते सामाजिकआर्थिक ढांचे ने लोगों में तनाव, चिंता और असुरक्षा को बढ़ाया है, जिस से वे बाबाओं
के चंगुल में आसानी से फंस जाते हैं. मानसिक रूप से बीमार ऐसे लोग इन बाबाओं के चंगुल में तो आसानी से फंस जाते हैं मगर यही लोग घरों में अपने बुजुर्गों की बात मानने से साफ इनकार कर देते हैं क्योंकि वहां उन का ज्ञान उन की शिक्षा उन्हें ऐसा करने से मना कर देता है. लेकिन ऐसे बाबाओं को ईश्वर बनाने की बुद्धि दे देता है. दूसरा, कठिन परिस्थितियों से जूझ रहे लोग इन्हें अपना सहारा बनाने लगते हैं.

ऐसे बाबा देश के हर राज्य और गांवशहरों में भरे पड़े हैं. सत्संगों के नाम पर लोगों को इकट्ठा कर के उन के मानसिक तनाव को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं. कभी भगवान के नाम पर तो कभी खुद ही को भगवान का भेजा हुआ दूत बता कर ये बाबा लोगों को अच्छाखासा बेवकूफ बनाते हैं. इन में महिलाओं की संख्या सब से अधिक होती है। ऐसी महिलाएं जो हर घर में किसी न किसी रूप में प्रताड़ित की जाती हैं, इन बाबाओं के जाल में आसानी से फंस जाती हैं.

जान पर भारी अंधविश्वास

हाथरस में हुई घटना में भी मरने वालों में 112 महिलाएं थीं जो इस बात की पुष्टी भी करता है कि आखिर क्यों अधिकतर महिलाएं ही इन भगदङों में मारी जाती हैं? आखिर क्या वजह है कि महिलाएं बङी संख्या में इन सत्संगों और धार्मिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनती हैं जबकि लगातार खबरों से इस बात की पुष्टी भी होती रहती है कि कितने ही धार्मिक कार्यक्रमों और सत्संगों में आयोजकों द्वारा महिलाओं का शारीरिक और मानसिक शोषण किया जाता है.

आशाराम हो, राम रहीम हो या फिर रामपाल जैसे पाखंडी बाबा, सभी ने धर्म को धंधा बनाया और लोगों खासकर महिलाओं को निशाने पर लिया.

यह कैसा धर्म

हाथरस में भी जिस तथाकथित भोले बाबा नारायण हरि के सत्संग में भगदड़ मची और 121 लोगों की मौतें हुईं, उसी भोले बाबा के अलवर आश्रम से कुछ बातें अब सामने आ रही हैं. दरअसल, जिस गांव में बाबा का आश्रम है, वहां के लोगों का कहना है कि जब बाबा आश्रम में आता था, तो गांव वालों को आश्रम में घुसने नहीं दिया जाता था लेकिन लड़कियों को आश्रम में बिना रोकटोक के प्रवेश की इजाजत दी जाती थी. ऐसी घटनाएं साफसाफ इस बात की तरफ इशारा करती है कि इन बाबाओं का उद्देश्य सिर्फ दौलत कमाना और महिलाओं को टारगेट करना ही होता है.

महिलाएं हैं आसान टारगेट

महिलाएं इन का आसान टारगेट होती हैं. आसान इसलिए क्योंकि उन्हें महिलाओं पर बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती क्योंकि धार्मिक भीरु उन्हीं के घर में उन की माताएं, दादीनानी उन्हें बचपन से ही सिखा रही होती हैं.

बचपन से ही महिलाओं को अंधविश्वासों के चंगुल में फंसाने का प्रयास उन की मांओं और बुजुर्ग महिलाओं द्वारा लगातार किया जाता है. मसलन, ‘सोमवार को व्रत रखो तुम्हें अच्छा प्यार करने वाला पति मिलेगा’,’तुम गुरुवार का व्रत रखो तुम्हारे सारे कष्ट दूर होंगे’,’रात में बाल मत खुले रखो’,’परफ्यूम मत लगाओ…’ वगैरह कितने ही अंधविश्वास की बाते महिलाओं को बचपन से ही सिखासिखा कर बड़ा किया जाता है.

एक कहावत है ‘बारबार झूठ को दोहराने से झूठ भी सच लगने लगता है’ और वयस्क होतेहोते यही लड़कियां इन अंधविश्वासों के चंगुल में फंस चुकी होती हैं और फिर इन्हें इसी तरह इन बाबाओं द्वारा नएनए प्रवचनों और ट्रिक्स से आसानी से बेवकूफ बनाया जाता है और ये बनती भी चली जाती हैं.

घर भी सुरक्षित नहीं

अच्छे पति और घर की कामना में युवा लङकियां व्रत तो रखती हैं, लेकिन फिर भी घरेलू हिंसा और आत्महत्या के आंकड़े बाताते हैं कि भारत में अपने ही घरों में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-2021 के अनुसार, 18 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 29.3% विवाहित भारतीय महिलाओं ने घरेलू/यौन हिंसा को झेला है, 18 से 49 वर्ष की आयु की 3.1% गर्भवती महिलाओं ने गर्भावस्था के दौरान शारीरिक हिंसा का सामना किया है. यह वे आंकड़े हैं जो रजिस्टर्ड हैं, ऐसी और भी न जानें कितनी घटनाएं होंगी जिन्हें डर और समाजिक बदनामी के नाम पर छिपा लिया जाता है। आसपड़ोस में शारीरिक और मानसिक रूप से महिलाओं को प्रताड़ित करना तो आज आम बात है.

बावजूद, कोई महिला पढ़ीलिखी हो या फिर अनपढ़, अंधविश्वास के चक्कर में न सिर्फ अपना कैरियर चौपट कर लेती है, बल्कि अंधविश्वास के रास्ते चल कर घरपरिवार की तरक्की में अपना योगदान तक नहीं दे पाती.

पूजापाठ से अगर सभी कष्ट दूर होते तो लोगों को मेहनत करने की कोई जरूरत ही नहीं पङती. सच तो यह है कि आज लोगों खासकर महिलाओं को शिक्षा को हथियार बनाना चाहिए और वैज्ञानिक तरीके से आगे बढ़ना चाहिए।

5 इंस्टैंट इवनिंग स्नैक्स आइडियाज, नोट करें ये आसान रेसिपी

नाश्ता सुबह का हो या शाम का, समय पर करना हर किसी के लिए तब बड़ी समस्या हो जाती है, जब आप वर्किंग हैं और समय का बहुत अभाव हो. ऐसे में नाश्ते के हैल्दी औप्शंस दिमाग में ही नहीं आते. आज हम आप को लिए 5 ऐसे नाश्तों के आइडियाज दे रहे हैं, जिन्हें आप झटपट घर के कम सामान से बड़ी आसानी से बना सकती हैं. इन नाश्तों की सब से बड़ी खासियत है कि ये हैल्दी तो हैं ही साथ ही आप इन्हें पहले से बना कर भी फ्रिज में रख सकती हैं.

तो आइए, देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है :

शेजवान पोटैटो बौल्स

6 उबले आलू को मैश कर के 2 टीस्पून कौर्नफ्लोर, 1/4 टीस्पून नमक और 1 चुटकी अजवाइन मिला कर छोटेछोटे बौल्स बना कर उबलते पानी में डाल दें. जब बौल्स ऊपर आ जाएं तो छलनी से बाहर निकाल कर एक बाउल के ऊपर रख दें ताकि पानी निकल जाए. अब एक बाउल में कश्मीरी लालमिर्च, नमक, शेजवान चटनी, औरिगेनो, चाटमसाला और थोड़ी सी कसूरी मैथी डालें. एक सौसपैन में तेल गरम कर के कटा प्याज और लहसुन भूनें और इस गरम तेल को मसाले वाले बाउल में डाल दें. अब तैयार उबली बौल्स को इस गरम तेल में अच्छी तरह मिक्स करें. हरे धनिए से गार्निश कर के सर्व करें.

चिली गार्लिक चपाती

एक बाउल में बारीक कटा 10 कली लहसुन, 1/4 टीस्पून चिली फ्लैक्स, 1 बड़ा चम्मच मक्खन, बारीक कटी हरीमिर्च, कटी धनियापत्तियां और 1/4 टीस्पून नमक अच्छी तरह मिलाएं. अब इसे एक चपाती पर इस तरह लगाएं कि पूरी चपाती कवर हो जाए. इस के ऊपर 1 चीज क्यूब कसें और दूसरी चपाती से कवर कर दें. तैयार चपाती को बटर लगा कर तवे पर एकदम धीमी आंच पर सुनहरा होने तक सेंकें. बीच से काट कर सर्व करें.

चौकलेटी पौपकौर्न

आप इसे बनाने के लिए रैडीमेड पौपकौर्न ले सकतीं हैं या फिर मक्के से घर पर पौपकौर्न बना सकती हैं. एक माइक्रोवेब सेफ बाउल में 100 ग्राम डार्क और 100 ग्राम मिल्क चौकलेट को माइक्रोवेब में मेल्ट करें. अब इस पिघली चौकलेट में तैयार मखाने डाल कर अच्छी तरह चलाएं. यदि आपस में चिपक जाएं तो गरम में ही अलग कर दें. एअरटाइट डब्बे में भर कर प्रयोग करें.

पापड़ रोल

मैश किए उबले आलू में किसी गाजर, बारीक कटा प्याज, कटी हरीमिर्च, कटी शिमलामिर्च, कटा प्याज, सभी बेसिक मसाले और हरा धनियापत्ती मिला कर फिलिंग तैयार कर के छोटेछोटे रोल्स बना लें. अब एक दाल के पापड़ को पानी में भिगो कर तुरंत निकाल कर सूती कपड़े पर रखें. बीच में फिलिंग वाला रोल रख कर पार्सल जैसा बना लें. अब इस पार्सल को गरम तेल में तल कर बटर पेपर पर निकाल कर टोमेटो सौस के साथ सर्व करें.

फ्रूट मलाई सैंडविच

1 कप मलाई में नारियल बुरादा, बारीक कटे खजूर अच्छी तरह मिलाएं. तैयार स्प्रेड को 2 ब्राउन ब्रैडस्लाइस पर फैलाएं. दोनों स्लाइस के बीच में कटे फल और पिसा पनीर भरें. ऊपर से कटी मेवा से गार्निश कर के सर्व करें.

क्या है नैनोप्लास्टिया ऐडवांस हेयर ट्रीटमैंट, इस फैस्टिवल में अपने बालों को दें अलग लुक

महिलाओं के लुक को बैस्ट बनाने में बालों का हैल्दी होना बहुत जरूरी है. लेकिन आजकल बालों में सब से बड़ी प्रौब्लम ड्राई, रफ और फ्रिजिनैस की होती है. इन दिक्कतों की वजह से किसी का भी पूरा लुक बिगड़ सकता है और ये अधिकतर कलर किए बालों में ज्यादा दिखाई देते हैं.

बालों की इन परेशानियों को दूर करने के लिए अब तक आप ने केराटिन, स्मूथिंग और स्ट्रैटनिंग ही करवाई होगी, लेकिन अब बालों का एक ऐडवांस और बैनिफिट ट्रीटमैंट आया है वह है नैनोप्लास्टिया, जो बालो को स्ट्रैट और चमकदार बनाने का एक खास ट्रीटमैंट है.

आइए हेयर ऐक्सपर्ट से जानें नैनोप्लास्टिया होता क्या है और बालों के लिए किस तरह फायदेमंद है :

नैनोप्लास्टिया ऐडवांस हेयर ट्रीटमैंट

यूनिसेक्स सैलून के हेयर ऐक्सपर्ट सलीम का कहना है, “नैनोप्लास्टिया को नैनो केराटिन ट्रीटमैंट या ब्राजीलियाई नैनोप्लास्टी भी कहा जाता है. यह एक अंर्गेनिक ऐडवांस हेयर ट्रीटमैंट है.

इस में नैनोटेक्नोलौजी और नैनोसाइज्ड पार्टिकल्स का इस्तेमाल कर बालों को रूट्स तक कंडीशन किया जाता है. इस से बालों में न्यूट्रिऐंट्स, अमीनो एसिड और केराटिन प्रोटीन की मात्रा बढ़ती है और बाल स्ट्रैट, हैल्दी और शाइन वाले बनते हैं.

नैनोप्लास्टिया करवाने के फायदे

नैनोप्लास्टिया बालों में आई रफ, ड्राई और फ्रीजिनैस जैसी समस्याओं को दूर कर उन्हें हैल्दी बनाता है जिस से बालों की इलास्टिसिटी बढ़ती है, फ्रीजिनैस कम होता है और वह स्ट्रैट बनता है. यह स्मूथिंग और केराटिन ट्रीटमैंट के सभी लाभ प्रदान करता है, क्योंकि इस में फौर्मेल्डिहाइड नहीं होता है. नैनोप्लास्टिया से बालों को स्ट्रैट करने का प्रोसेस हेयर बोटोक्स से तेज होता है.

इस ट्रीटमैंट को करवाने के बाद इस का असर हेयर्स में 6 महीने तक रहता है. नैनोप्लास्टिया इंटैंसिव न्यूट्रिशन प्रदान करता है और पूरे हेयर के टेक्सचर को इंप्रूव करता है. इस का प्रभाव अन्य ट्रीटमैंट की तुलना में अधिक समय तक रहता है.

सभी प्रकार के बालों के लिए बैस्ट

यह सभी प्रकार के बालों के लिए बेहतर होता है और इसे अपनी जरूरतों के आधार पर कस्टमाइज्ड किया जा सकता है. नैनोप्लास्टिया में टाइम पीरियड ज्यादा लगता है. यह बिना किसी नुकसान के लंबे समय तक चलने वाला रिजल्ट देता है. मगर इसे किसी हेयर ऐक्सपर्ट से ही करवाएं.

नैनोप्लास्टिया हेयर ट्रीटमैंट के साइड इफैक्ट्स

अगर इसे बहुत लांग पीरियड तक बालों में लगा रहने दिया जाए या जरूरत से ज्यादा स्टीम दी जाए, तो इस से हेयरफौल की समस्या आ सकती है.

इस के अलावा जरूरी नहीं कि ट्रीटमैंट में इस्तेमाल किए जाने वाले सभी कैमिकल्स सिर की स्किन के लिए सही ही हो, कुछ लोगों को ट्रीटमैंट के दौरान ऐलर्जी भी हो जाती है लेकिन ऐक्सपर्ट की सलाह से इसे ठीक किया जा सकता है. इसे ठीक से न किया जाए तो इस से बालों में मौजूद नैचुरल औयल निकल सकता है, जिस से बाल ड्राई और डैमेज हो सकते हैं.

टाइम पीरियड और कीमत

इस ट्रीटमैंट को करवाने के बाद इस का असर बालों में 3 से 6 महीने तक रहता है. आमतौर पर इस में कोई ज्यादा हार्मफुल कैमिकल्स शामिल नहीं होते और यह लौंग पीरियड तक टिकता है. कम टचअप की भी आवश्यकता होती है.

नैनोप्लास्टिया की कीमत सैलून के ब्रैंड और ऐक्सपोजर के आधार पर ₹5,000 से शुरू हो कर ₹15,000 तक हो सकती है.

तो क्यों न इस फैस्टिवल पर थोड़ा सा बजट बढ़ा कर बालों में ऐडवांस ट्रीटमैंट करवाया जाए और लुक को चेंज किया जाए.

सावधानी से चलाएं मोबाइल, कहीं कोई आप की प्राइवेसी पर नजर तो नहीं रख रहा ?

हाल ही में दिल्ली के शकरपुर इलाके से एक शर्मसार कर देने वाली घटना घटी, जिस में एक लड़की को निशाना बनाया गया. लड़की पिछले 5 सालों से किराए के मकान में रह रही थी और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारियों में जुटी थी. कुछ दिनों पहले उस के व्हाट्सऐप में कुछ तकनीकि परेशानी आई. इस के लिए उस ने अपने दोस्त से इसे ठीक करने के लिए कहा. जब उस के दोस्त ने उसे ठीक किया तो पता चला कि उस का व्हाट्सऐप अकाउंट किसी और डिवाइस (मोबाइल/ लैपटौप) पर भी चल रहा है जिस की उसे भनक तक नहीं थी.

स्पाई कैमरा

पीड़िता ने अपना अकाउंट बंद कर दिया और शक होने पर उस ने अपने कमरे की तलाशी ली तो पता चला की बाथरूम व बैडरूम के बल्ब होल्डर में स्पाई कैमरा लगा हुआ मिला जिस की सूचना उस ने पुलिस को दी.

आरोपी मकानमालिक के लङके ने अपना जुल्म कुबूल कर लिया कि लड़की अपने घर गई थी तो चाबी उसे दे कर गई थी तब उस ने कमरे में कैमरे लगवाए जिस का डाटा मैमोरी कार्ड में सेव हो जाया करता था. वह कमरे की मरम्मत के बहाने चिप निकाल लेता और सारा डाटा अपने लैपटौप में डाल लेता. यहां तक कि उस का व्हाट्सऐप भी अपने लैपटौप से कनैक्ट कर लिया. पुलिस अभी और छानबीन में जुटी है.

सावधानी बरतें

  • अपने घर से अलग रहती हैं तो सब से पहले ध्यान से सुनिश्चित कर लें की कोई आप पर नजर तो नहीं रख रहा. पूरे कमरे की तलाशी लें.
  • अपने फोन, लैपटौप को अनलौक करने के लिए बायोमीट्रिक लौक या फेस आईडी का यूज करें.
  • व्हाट्सऐप, फेसबुक, जीमेल आदि पर टू स्टैप वैरिफिकेशन सिक्योरिटी लगाएं.
  • फ्रौड करने वाले सिर्फ एक फोन कौल के जरीए आप का बैंक अकाउंट उड़ा सकते हैं. इसलिए बैंक के नाम से आने वाले फर्जी कौल्स से सावधान रहें.
  • किसी भी लिंक पर क्लिक कर ओटीपी मांगे जाने पर फ्रौड का खतरा हो सकता है जिस से आप के अकाउंट के साथसाथ आप के फोनन, लैपटॉमौप हैक किया जा सकता है.
  • हमेशा अपना कार्ड अपने सामने स्वाइप करवाएं, पिन किसी को न दिखाएं.
  • किसी पर भी आंख मूंद कर भरोसा न करें.

आयुष्मान खुराना और पश्मीना रोशन की “जचड़ी” सौंग हुआ रिलीज, जोशीली कैमिस्ट्री और एनर्जी से भरपूर है ये गरबा गीत

नवरात्रि के जश्न से पहले ही आयुष्मान खुराना और पश्मीना रोशन का नया गरबा गाना “जचड़ी” रिलीज हो गया है, आयुष्मान खुराना द्वारा गाए इस गीत में पश्मीना रोशन भी नजर आ रही हैं. यह गीत नवरात्रि के उत्सव का परफैक्ट एंथम है. आयुष्मान और पश्मीना की अदाओं और शानदार कैमिस्ट्री ने इस सौंग को और भी खास बना दिया है, और उनके फैंस उन्हें एक फिल्म में साथ देखने के लिए एक्ससाइटेड हैं.

पश्मीना रोशन

पश्मीना ने अपने उत्साह को जाहिर करते हुए कहा, “जचड़ी को करना एक जबरदस्त अनुभव था! सेट पर एनर्जी बिल्कुल अलग थी, और आयुष्मान और पूरी टीम के साथ काम करना बहुत बड़ी बात थी. मैंने इस अनुभव से बहुत कुछ सीखा और इसके लिए मैं बहुत आभारी हूं. नवरात्रि हमेशा से मेरे दिल के करीब रही है— यह परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर संगीत, नृत्य और उत्सव का समय होता है. इस गीत में वही खुशी झलकती है. बचपन में मैं दोस्तों के साथ गरबा करती थी और जचड़ी उन यादों को वापस लाता है. मैं उत्साहित हूं कि हर कोई इस नवरात्रि बेंगर का अनुभव कर सकेगा और वही खुशी महसूस करेगा!”

शानदार कोरियोग्राफी और बेहतरीन दृश्य

“जचड़ी” एक बेहतरीन मेल है जो गरबा की एनर्जी और उत्साह को एक साथ करता है. इस वीडियो में शानदार कोरियोग्राफी और बेहतरीन दृश्य हैं, जो नवरात्रि की खुशियों को बखूबी दर्शाते हैं. आयुष्मान और पश्मीना की जबरदस्त परफौर्मेंस ने इस गाने में जान डाल दी है, जो डांस फ्लोर पर हिट होने के लिए तैयार है और इसे हर नवरात्रि प्लेलिस्ट में शामिल होना चाहिए.

जोशीली कैमिस्ट्री और एनर्जी

ये सौंग सभी प्रमुख स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों पर उपलब्ध है और वीडियो को आयुष्मान खुराना के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है. प्रशंसक पहले से ही आयुष्मान और पश्मीना की जोशीली केमिस्ट्री और सौंग की एनर्जी की तारीफ कर रहे हैं. इस नवरात्रि स्पेशल गाने को मिस न करें – अभी “जचड़ी” स्ट्रीम करें और इसे अपनी नवरात्रि प्लेलिस्ट में शामिल करें!

हाल ही में आयुष्मान खुराना ने इसके पोस्टर को जचड़ी, म्यूजिक, कमिंग सांग जैसे हैशटैग के साथ पोस्ट किया था. इस सौंग से पहले भी आयुष्मान ने “पानी दा”, “साड्डी गली”, “ओ हीरी”, “इक वारी”, “ओ स्वीटी स्वीटी”, “मिट्टी दी खुशबू” और “रतन कलियां” जैसे कई ट्रैक सांग गाए हैं.

TMKOC : पलक सिंधवानी ने ‘तारक मेहता’ के प्रोडयूसर्स की खोली पोल, आसित मोदी पर लगाया गंभीर आरोप

Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah: टीवी का चर्चित कौमेडी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ को लोग इतना पसंद करते हैं कि इसका रिपीट टेलिकास्ट भी देखने से नहीं चूकते. यह छोटे पर्दे का पौपुलर हिट शो है, लेकिन अब इस शो को पुराने कलाकार छोड़ रहे हैं. जी हां हाल ही में ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में सोनू का किरदार निभाने वाली पलक सिंधवानी ने सीरियल को अलविदा कह दिया है. कुछ दिनों पहले सीरियल से जुड़ा एक बड़ा अपडेट सामने आया था जिसमें बताया गया कि पलक सिंधवानी को शो के मेकर्स की तरफ से लीगल नोटिस जारी किया गया है. हालांकि पलक ने इसे पहले गलत बताया.

शो के मेकर्स ने नहीं दिए बाकी पैसे

लेकिन अब पलक सिंधवानी (Palak Sindhwani) ने शो छोड़ने का फैसला किया है. इसके लिए उन्होंने लंबाचौड़ा बयान भी जारी किया है. पलक ने तारक मेहता के मेकर्स पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा है कि शो के मेकर्स ने ऐक्ट्रैस को बाकी पैसे भी नहीं दिए हैं. एक इंटरव्यू के अनुसार पलक सिंधवानी ने शो के मेकर्स की पोल खोली है. पलक का कहना है कि मेकर्स ने उनके साथ गलत व्यवहार किया. उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें करियर बर्बाद करने की धमकी भी मिली.

तारक मेहता के प्रोडयूसर्स ने पलक सिंधवानी का किया शोषण

रिपोर्ट के अनुसार, पलक सिंधवानी ने कौन्ट्रैक्ट के बारे में भी बात की. एक्ट्रैस ने कहा, इसकी बात ही कभी मुझसे की ही नहीं. लेकिन जब मैंने अगस्त में शो छोड़ने की बात कही तो उन्होंने शोषण करना शुरू कर दिया. पलक ने आगे बताया कि शो के मेकर्स ने मुझपर कौन्ट्रैक्ट तोड़ने का आरोप भी लगाया. इन खबरों से मुझे परेशानी हुई, लेकिन मैं चुप नहीं बैठी. पलक ने कहा, ‘मैं मानसिक रूप से परेशान थी, मेकअप रूम में रोती थी और फिर शौट्स के लिए तैयार होती थी.’

5 सालों तक किया काम

पलक सिंधवानी (Palak Sindhwani) ने इस शो में 5 सालों तक काम किया है. वह सोनू के किरदार में काफी पौपुलर हुई. सोनू से पहले तारक मेहता के निर्माता असित कुमार मोदी पर कई कलाकार आरोप लगा चुके हैं. बीते साल ही जेनिफर मिस्त्री जिन्होंने श्रीमती रोशन सिंह सोढ़ी की भूमिका निभाई, ऐक्ट्रैस ने असित पर यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था.

इस ऐक्ट्रैस ने पलक का किया सपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक जेनिफर ने बताया था कि उन्हें जानबूझकर शो के प्रोड्यूसर असित मोदी, प्रोजेक्ट हैड सोहेल रमानी और एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर जतिन बजाज ने होली के दिन देर रात तक रोक कर रखा था. इसके बाद सभी ने मिलकर उनके साथ बदतमिजी की थी. जिसके कारण वह काफी परेशान रहीं. अब उन्होंने पलक सिंधवानी का सपोर्ट भी किया है. जेनिफर मिस्त्री ने  प्रोडक्शन टीम की आलोचना की. एक इंटरव्यू के अनुसार, जेनिफर ने कहा कि पलक के साथ जो हुआ, वह हर कलाकार के साथ हुआ है. जो शो छोड़ना चाहता है,  प्रोडक्शन टीम हमेशा उन कलाकारों के लिए परेशानी खड़ी करती है.

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