सावधानी से चलाएं मोबाइल, कहीं कोई आप की प्राइवेसी पर नजर तो नहीं रख रहा ?

हाल ही में दिल्ली के शकरपुर इलाके से एक शर्मसार कर देने वाली घटना घटी, जिस में एक लड़की को निशाना बनाया गया. लड़की पिछले 5 सालों से किराए के मकान में रह रही थी और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारियों में जुटी थी. कुछ दिनों पहले उस के व्हाट्सऐप में कुछ तकनीकि परेशानी आई. इस के लिए उस ने अपने दोस्त से इसे ठीक करने के लिए कहा. जब उस के दोस्त ने उसे ठीक किया तो पता चला कि उस का व्हाट्सऐप अकाउंट किसी और डिवाइस (मोबाइल/ लैपटौप) पर भी चल रहा है जिस की उसे भनक तक नहीं थी.

स्पाई कैमरा

पीड़िता ने अपना अकाउंट बंद कर दिया और शक होने पर उस ने अपने कमरे की तलाशी ली तो पता चला की बाथरूम व बैडरूम के बल्ब होल्डर में स्पाई कैमरा लगा हुआ मिला जिस की सूचना उस ने पुलिस को दी.

आरोपी मकानमालिक के लङके ने अपना जुल्म कुबूल कर लिया कि लड़की अपने घर गई थी तो चाबी उसे दे कर गई थी तब उस ने कमरे में कैमरे लगवाए जिस का डाटा मैमोरी कार्ड में सेव हो जाया करता था. वह कमरे की मरम्मत के बहाने चिप निकाल लेता और सारा डाटा अपने लैपटौप में डाल लेता. यहां तक कि उस का व्हाट्सऐप भी अपने लैपटौप से कनैक्ट कर लिया. पुलिस अभी और छानबीन में जुटी है.

सावधानी बरतें

  • अपने घर से अलग रहती हैं तो सब से पहले ध्यान से सुनिश्चित कर लें की कोई आप पर नजर तो नहीं रख रहा. पूरे कमरे की तलाशी लें.
  • अपने फोन, लैपटौप को अनलौक करने के लिए बायोमीट्रिक लौक या फेस आईडी का यूज करें.
  • व्हाट्सऐप, फेसबुक, जीमेल आदि पर टू स्टैप वैरिफिकेशन सिक्योरिटी लगाएं.
  • फ्रौड करने वाले सिर्फ एक फोन कौल के जरीए आप का बैंक अकाउंट उड़ा सकते हैं. इसलिए बैंक के नाम से आने वाले फर्जी कौल्स से सावधान रहें.
  • किसी भी लिंक पर क्लिक कर ओटीपी मांगे जाने पर फ्रौड का खतरा हो सकता है जिस से आप के अकाउंट के साथसाथ आप के फोनन, लैपटॉमौप हैक किया जा सकता है.
  • हमेशा अपना कार्ड अपने सामने स्वाइप करवाएं, पिन किसी को न दिखाएं.
  • किसी पर भी आंख मूंद कर भरोसा न करें.

आयुष्मान खुराना और पश्मीना रोशन की “जचड़ी” सौंग हुआ रिलीज, जोशीली कैमिस्ट्री और एनर्जी से भरपूर है ये गरबा गीत

नवरात्रि के जश्न से पहले ही आयुष्मान खुराना और पश्मीना रोशन का नया गरबा गाना “जचड़ी” रिलीज हो गया है, आयुष्मान खुराना द्वारा गाए इस गीत में पश्मीना रोशन भी नजर आ रही हैं. यह गीत नवरात्रि के उत्सव का परफैक्ट एंथम है. आयुष्मान और पश्मीना की अदाओं और शानदार कैमिस्ट्री ने इस सौंग को और भी खास बना दिया है, और उनके फैंस उन्हें एक फिल्म में साथ देखने के लिए एक्ससाइटेड हैं.

पश्मीना रोशन

पश्मीना ने अपने उत्साह को जाहिर करते हुए कहा, “जचड़ी को करना एक जबरदस्त अनुभव था! सेट पर एनर्जी बिल्कुल अलग थी, और आयुष्मान और पूरी टीम के साथ काम करना बहुत बड़ी बात थी. मैंने इस अनुभव से बहुत कुछ सीखा और इसके लिए मैं बहुत आभारी हूं. नवरात्रि हमेशा से मेरे दिल के करीब रही है— यह परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर संगीत, नृत्य और उत्सव का समय होता है. इस गीत में वही खुशी झलकती है. बचपन में मैं दोस्तों के साथ गरबा करती थी और जचड़ी उन यादों को वापस लाता है. मैं उत्साहित हूं कि हर कोई इस नवरात्रि बेंगर का अनुभव कर सकेगा और वही खुशी महसूस करेगा!”

शानदार कोरियोग्राफी और बेहतरीन दृश्य

“जचड़ी” एक बेहतरीन मेल है जो गरबा की एनर्जी और उत्साह को एक साथ करता है. इस वीडियो में शानदार कोरियोग्राफी और बेहतरीन दृश्य हैं, जो नवरात्रि की खुशियों को बखूबी दर्शाते हैं. आयुष्मान और पश्मीना की जबरदस्त परफौर्मेंस ने इस गाने में जान डाल दी है, जो डांस फ्लोर पर हिट होने के लिए तैयार है और इसे हर नवरात्रि प्लेलिस्ट में शामिल होना चाहिए.

जोशीली कैमिस्ट्री और एनर्जी

ये सौंग सभी प्रमुख स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों पर उपलब्ध है और वीडियो को आयुष्मान खुराना के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है. प्रशंसक पहले से ही आयुष्मान और पश्मीना की जोशीली केमिस्ट्री और सौंग की एनर्जी की तारीफ कर रहे हैं. इस नवरात्रि स्पेशल गाने को मिस न करें – अभी “जचड़ी” स्ट्रीम करें और इसे अपनी नवरात्रि प्लेलिस्ट में शामिल करें!

हाल ही में आयुष्मान खुराना ने इसके पोस्टर को जचड़ी, म्यूजिक, कमिंग सांग जैसे हैशटैग के साथ पोस्ट किया था. इस सौंग से पहले भी आयुष्मान ने “पानी दा”, “साड्डी गली”, “ओ हीरी”, “इक वारी”, “ओ स्वीटी स्वीटी”, “मिट्टी दी खुशबू” और “रतन कलियां” जैसे कई ट्रैक सांग गाए हैं.

TMKOC : पलक सिंधवानी ने ‘तारक मेहता’ के प्रोडयूसर्स की खोली पोल, आसित मोदी पर लगाया गंभीर आरोप

Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah: टीवी का चर्चित कौमेडी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ को लोग इतना पसंद करते हैं कि इसका रिपीट टेलिकास्ट भी देखने से नहीं चूकते. यह छोटे पर्दे का पौपुलर हिट शो है, लेकिन अब इस शो को पुराने कलाकार छोड़ रहे हैं. जी हां हाल ही में ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में सोनू का किरदार निभाने वाली पलक सिंधवानी ने सीरियल को अलविदा कह दिया है. कुछ दिनों पहले सीरियल से जुड़ा एक बड़ा अपडेट सामने आया था जिसमें बताया गया कि पलक सिंधवानी को शो के मेकर्स की तरफ से लीगल नोटिस जारी किया गया है. हालांकि पलक ने इसे पहले गलत बताया.

शो के मेकर्स ने नहीं दिए बाकी पैसे

लेकिन अब पलक सिंधवानी (Palak Sindhwani) ने शो छोड़ने का फैसला किया है. इसके लिए उन्होंने लंबाचौड़ा बयान भी जारी किया है. पलक ने तारक मेहता के मेकर्स पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा है कि शो के मेकर्स ने ऐक्ट्रैस को बाकी पैसे भी नहीं दिए हैं. एक इंटरव्यू के अनुसार पलक सिंधवानी ने शो के मेकर्स की पोल खोली है. पलक का कहना है कि मेकर्स ने उनके साथ गलत व्यवहार किया. उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें करियर बर्बाद करने की धमकी भी मिली.

तारक मेहता के प्रोडयूसर्स ने पलक सिंधवानी का किया शोषण

रिपोर्ट के अनुसार, पलक सिंधवानी ने कौन्ट्रैक्ट के बारे में भी बात की. एक्ट्रैस ने कहा, इसकी बात ही कभी मुझसे की ही नहीं. लेकिन जब मैंने अगस्त में शो छोड़ने की बात कही तो उन्होंने शोषण करना शुरू कर दिया. पलक ने आगे बताया कि शो के मेकर्स ने मुझपर कौन्ट्रैक्ट तोड़ने का आरोप भी लगाया. इन खबरों से मुझे परेशानी हुई, लेकिन मैं चुप नहीं बैठी. पलक ने कहा, ‘मैं मानसिक रूप से परेशान थी, मेकअप रूम में रोती थी और फिर शौट्स के लिए तैयार होती थी.’

5 सालों तक किया काम

पलक सिंधवानी (Palak Sindhwani) ने इस शो में 5 सालों तक काम किया है. वह सोनू के किरदार में काफी पौपुलर हुई. सोनू से पहले तारक मेहता के निर्माता असित कुमार मोदी पर कई कलाकार आरोप लगा चुके हैं. बीते साल ही जेनिफर मिस्त्री जिन्होंने श्रीमती रोशन सिंह सोढ़ी की भूमिका निभाई, ऐक्ट्रैस ने असित पर यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया था.

इस ऐक्ट्रैस ने पलक का किया सपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक जेनिफर ने बताया था कि उन्हें जानबूझकर शो के प्रोड्यूसर असित मोदी, प्रोजेक्ट हैड सोहेल रमानी और एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर जतिन बजाज ने होली के दिन देर रात तक रोक कर रखा था. इसके बाद सभी ने मिलकर उनके साथ बदतमिजी की थी. जिसके कारण वह काफी परेशान रहीं. अब उन्होंने पलक सिंधवानी का सपोर्ट भी किया है. जेनिफर मिस्त्री ने  प्रोडक्शन टीम की आलोचना की. एक इंटरव्यू के अनुसार, जेनिफर ने कहा कि पलक के साथ जो हुआ, वह हर कलाकार के साथ हुआ है. जो शो छोड़ना चाहता है,  प्रोडक्शन टीम हमेशा उन कलाकारों के लिए परेशानी खड़ी करती है.

Happy Birthday Ranbir Kapoor : पहली क्रश थी स्कूल टीचर, आलिया से पहले इन ऐक्ट्रैसेस के साथ जुड़ा नाम

Happy Birthday Ranbir Kapoor : रणबीर कपूर आज अपना 42 वां जन्मदिन मना रहे हैं. आज सुबह से ही सोशल मीडिया पर फैन फौलोइंग, रिश्तेदार, फ्रैंड्स  उन्हें जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं. उनके फैंस के लिए यह दिन बहुत ही स्पेशल है.

रणबीर कपूर का जन्मदिन कपूर फैमिली में जश्न की तरह मानाया जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कल रात से ही जन्मदिन की पार्टी शुरू हो गई, जिसमें रणबीर के करीबी शामिल थे. रणबीर कपूर ने बड़े पर्दे पर रोमांटिक हीरो के रूप में जमकर धमाला मचाया है. हालांकि ऐक्टर रियल लाइफ में भी किसी रोमियो से कम नहीं है. उनकी फैन लिस्ट में सबसे ज्यादा लड़कियां शामिल हैं.

‘ए दिल है मुश्किल’, ‘ये जवानी है दीवानी’ और कई फिल्मों में रोमांस का तड़का लगाने वाले रणबीर कपूर के असली जिंदगी में भी कई हसीनाएं आईं. आज ऐक्टर के बर्थडे पर उनके लवलाइफ से जुड़े खास बातों पर चर्चा करेंगे.

पहली क्रश थी स्कूल टीचर

एक इंटरव्यू के अनुसार, रणबीर कपूर ने खुद अपनी पहली क्रश के बारे में खुलकर बात की थी. ऐक्टर ने कहा था कि जह वह सेकंड ग्रेड में थो तब उन्हें अपनी स्कूल टीचर से मन ही मन प्यार हो गया था. वह उन्हें इंग्लिश पढ़ाती थी. ‘रणबीर ने कहा कि मेरी मां के बाद वह पहली महिला थी जिन्होंने मुझे लाड़प्यार दिया और मेरी मां की तरह ख्याल रखा.’

इन एक्ट्रैसेस के साथ रणबीर कपूर का जुड़ा नाम

सोनम कपूर

रणबीर कपूर की पहली फिल्म सांवरिया थी. इस फिल्म में उनके साथ सोनम कपूर ने ऐक्ट किया था. सोनम की भी यह पहली फिल्म थी. इस फिल्म के बाद दोनों के अफेयर के चर्चे होने लगे. हालांकि एक शो में सोनम ने रणबीर के लिए अपना प्यार स्वीकार भी की थी. खबरों के अनुसार, यह अफेयर कुछ ही दिनों के लिए था. बताया गया कि रणबीर कपूर इस रिलेशनशिप को लेकर सीरियस नहीं थे.

दीपिका पादुकोण

रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण का रिलेशनशिप लंबे समय तक चला. कयास लगाए जाने लगे कि दोनों जल्दी ही शादी करेंगे. इन दोनों की जोड़ी को फैस भी खूब पसंद करने लगे. दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर की कई फिल्में हिट साबित हुई. हालांकि दोनों का रिश्ता टूट गया. दीपिका ब्रेकअप के बाद डिप्रेशन में भी चली गई थी. इस बात का खुलासा खुद दीपिका ने किया था.

कैटरिना कैफ

रणबीर कपूर और कैटरिना कैफ के अफेयर के चर्चे खूब हुए. रणबीर ने सार्वजनिक तौर पर भी कैट के साथ रिश्ते को ऐक्सेप्ट किया था. एक तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आई थी.जिसमें दोनों छुट्टियां मनाने विदेश गए थे. खबरें तो यह भी आईं थीं कि रणबीर कपूर कैटरीना की मां से मिलने गए थे. लेकिन एक्टर का कैट के साथ भी रिश्ता लंबे समय तक नहीं चल पाया.

नरगिस फाखरी

एक्ट्रैस नरगिस फाखरी ने रौकस्टार से डेब्यू किया था. फिल्म में उनकी जोड़ी रणबीर कपूर के साथ थी. जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. औनस्क्रीन कैमेस्ट्री के साथ औफस्क्रीन जोड़ी के भी चर्चे होने लगे. कहा जाना लगा कि रणबीर और नरगिस एकदूसरे को डेट कर रहे हैं. लेकिन बाद में नरगिसा का नाम उदय चोपड़ा के साथ जोड़ा जाने लगा.

जी उठी हूं मैं: क्या था एक मां की इच्छा

रिया ने चहकते हुए मुझे बताया, ‘‘मौम, नेहा, आ रही है शनिवार को. सोचो मौम, नेहा, आई एम सो एक्साइटेड.’’

उस ने मुझे कंधे से पकड़ कर गोलगोल घुमा दिया. उस की आंखों की चमक पर मैं निहाल हो गई. मैं ने भी उत्साहित स्वर में कहा, ‘‘अरे वाह, तुम तो बहुत एंजौय करने वाली हो.’’

‘‘हां, मौम. बहुत मजा आएगा. इस वीकैंड तो बस मजे ही मजे, 2 दिन पढ़ाई से बे्रक, मैं बस अपने बाकी दोस्तों को भी बता दूं.’’

वह अपने फोन पर व्यस्त हो गई और मैं चहकती हुई अपनी बेटी को निहारने में.

रिया 23 साल की होने वाली है. वह बीकौम की शिक्षा हासिल कर चुकी है. आजकल वह सीए फाइनल की परीक्षा के लिए घर पर है. नेहा भी सीए कर रही है. वह दिल्ली में रहती है. 2 साल पहले ही उस के पापा का ट्रांसफर मुंबई से दिल्ली हुआ है. उस की मम्मी मेरी दोस्त हैं. नेहा यहां हमारे घर ही रुकेगी, यह स्पष्ट है. अब इस ग्रुप के पांचों बच्चे अमोल, सुयोग, रीना, रिया और नेहा भरपूर मस्ती करने वाले हैं. यह ग्रुप 5वीं कक्षा से साथ पढ़ा है. बहुत मजबूत है इन की दोस्ती. बड़े होने पर कालेज चाहे बदल गए हों, पर इन की दोस्ती समय के साथसाथ बढ़ती ही गई है.

अब मैं फिर हमेशा की तरह इन बच्चों की जीवनशैली का निरीक्षण करती रहूंगी, कितनी सरलता और सहजता से जीते हैं ये. बच्चों को हमारे यहां ही इकट्ठा होना था. सब आ गए. घर में रौनक आ गई. नेहा तो हमेशा की तरह गले लग गई मेरे. अमोल और सुयोग शुरू से थोड़ा शरमाते हैं. वे ‘हलो आंटी’ बोल कर चुपचाप बैठ गए. तीनों लड़कियां घर में रंगबिरंगी तितलियों की तरह इधरउधर घूमती रहीं. अमित औफिस से आए तो सब ने उन से थोड़ीबहुत बातें कीं, फिर सब रिया के कमरे में चले गए. अमित से बच्चे एक दूरी सी रखते हैं. अमित पहली नजर में धीरगंभीर व्यक्ति दिखते हैं. लेकिन मैं ही जानती हूं वे स्वभाव और व्यवहार से बच्चों से घुलनामिलना पसंद करते हैं.  लेकिन जैसा कि रिया कहती है, ‘पापा, मेरे फ्रैंड्स कहते हैं आप बहुत सीरियस दिखते हैं और मम्मी बहुत कूल.’ हम दोनों इस बात पर हंस देते हैं.

तन्मय आया तो वह भी सब से मिल कर खेलने चला गया. नेहा ने बड़े आराम से आ कर मुझ से कहा, ‘‘हम सब डिनर बाहर ही करेंगे, आंटी.’’

‘‘अरे नहीं, घर पर ही बनाऊंगी तुम लोगों की पसंद का खाना.’’

‘‘नहीं आंटी, बेकार में आप का काम बढ़ेगा और आप को तो पता ही है कि हम लोग ‘चाइना बिस्ट्रो’ जाने का बहाना ढूंढ़ते रहते हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, जैसी तुम लोगों की मरजी.’’

डिनर के बाद सुयोग और अमोल तो अपनेअपने घर चले गए थे, तीनों लड़कियां घर वापस आ गईं. रीना ने भी अपनी मम्मी को बता दिया था कि वह रात को हमारे घर पर ही रुकेगी. हमेशा किसी भी स्थिति में अपना बैड न छोड़ने वाला तन्मय चुपचाप ड्राइंगरूम में रखे दीवान पर सोने के लिए चला गया. हम दोनों भी सोने के लिए अपने कमरे में चले गए. रात में 2 बजे मैं ने कुछ आहट सुनी तो उठ कर देखा, तीनों मैगी बना कर खा रही थीं, साथ ही साथ बहुत धीरेधीरे बातें भी चल रही थीं. मैं जानती थी अभी तीनों लैपटौप पर कोई मूवी देखेंगी, फिर तीनों की बातें रातभर चलेंगी. कौन सी बातें, इस का अंदाजा मैं लगा ही सकती हूं. सुयोग और अमोल की गर्लफ्रैंड्स को ले कर उन के हंसीमजाक से मैं खूब परिचित हूं. रिया मुझ से काफी कुछ शेयर करती है. फिर तीनों सब परिचित लड़कों के किस्से कहसुन कर हंसतेहंसते लोटपोट होती रहेंगी.

मैं फिर लेट गई थी. 4 बजे फिर मेरी आंख खुली, जा कर देखा, रीना फ्रिज में रखा रात का खाना गरम कर के खा रही थी. मुझे देख कर मुसकराई और सब के लिए उस ने कौफी चढ़ा दी. मैं पानी पी कर फिर जा कर लेट गई.

मैं ने सुबह उठ कर अपने फोन पर रिया का मैसेज पढ़ा, ‘मौम, हम तीनों को उठाना मत, हम 5 बजे ही सोए हैं और मेड को मत भेजना. हम उठ कर कमरा साफ कर देंगी.’

मैसेज पढ़ कर मैं मुसकराई तो वहीं बैठे अमित ने मुसकराने का कारण पूछा. मैं ने उन्हें लड़कियों की रातभर की हलचल बताते हुए कहा, ‘‘ये लड़कियां मुझे बहुत अच्छी लगती हैं, न कोई फिक्र न कोई चिंता, पढ़ने के समय पढ़ाई और मस्ती के समय मस्ती. क्या लाइफ है इन की, क्या उम्र है, ये दिन फिर कभी वापस नहीं आते.’’

‘‘तुम क्या कर रही थीं इस उम्र में? याद है?’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं.’’

‘‘तुम तो इन्हें गोद में खिला रही थीं इस उम्र में.’’

‘‘सही कह रहे हो.’’

20 वर्षीय तन्मय रिया की तरह मुझ से हर बात शेयर तो नहीं करता लेकिन मुझे उस के बारे में काफीकुछ पता रहता है. सालों से स्वाति से उस की कुछ विशेष दोस्ती है. यह बात मुझे काफी पहले पता चली थी तो मैं ने उसे साफसाफ छेड़ते हुए पूछा था, ‘‘स्वाति तुम्हारी गर्लफ्रैंड है क्या?’’

‘‘हां, मौम.’’

उस ने भी साफसाफ जवाब दिया था और मैं उस का मुंह देखती रह गई थी. उस के बाद तो वह मुझे जबतब उस के किस्से सुनाता रहता है और मैं भरपूर आनंद लेती हूं उस की उम्र के इन किस्सों का.

अमित ने कई बार मुझ से कहा है, ‘‘प्रिया, तुम हंस कर कैसे सुनती हो उस की बातें? मैं तो अपनी मां से ऐसी बातें करने की कभी सोच भी नहीं सकता था.’’

मैं हंस कर कहती हूं, ‘‘माई डियर हस- बैंड, वह जमाना और था, यह जमाना और है. तुम तो बस इस जमाने के बच्चों की बातों का जीभर कर आनंद लो और खुश रहो.’’

मुझे याद है एक बार तन्मय का बेस्ट फ्रैंड आलोक आया. तन्मय के पेपर्स चल रहे थे. वह पढ़ रहा था. दोनों सिर जोड़ कर धीरेधीरे कुछ बात कर रहे थे. मैं जैसे ही उन के कमरे में किसी काम से जाती, आलोक फौरन पढ़ाई की बात जोरजोर से करने लगता. जब तक मैं आसपास रहती, सिर्फ पढ़ाई की बातें होतीं. मैं जैसे ही दूसरी तरफ जाती, दोनों की आवाज धीमी हो जाती. मुझे बहुत हंसी आती. कितना बेवकूफ समझते हैं ये बच्चे बड़ों को, क्या मैं जानती नहीं सिर जोड़े धीरेधीरे पढ़ाई की बातें तो हो नहीं रही होंगी.

तन्मय फुटबाल खेलता है. पिछली जुलाई में वह एक दिन खेलने गया हुआ था. अचानक उस के दोस्त का फोन आया, ‘‘आंटी, तन्मय को चोट लग गई है. हम उसे हौस्पिटल ले आए हैं. आप परेशान मत होना. बस, आप आ जाओ.’’

अमित टूर पर थे, रिया औफिस में, उस की सीए की आर्टिकलशिप चल रही थी. मैं अकेली आटो से हौस्पिटल पहुंची. बाहर ही 15-20 लड़के खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे. बहुत तेज बारिश में बिना छाते के बिलकुल भीगे हुए.

एक लड़के ने मेरे पूछने पर बताया, ‘‘आंटी, उस का माथा फट गया है, डाक्टर टांके लगा रहे हैं.’’

मेरे हाथपैर फूल गए. मैं अंदर दौड़ पड़ी. कमरे तक लड़कों की लंबी लाइन थी. इतनी देर में पता नहीं उस के कितने दोस्त इकट्ठा हो गए थे. तन्मय औपरेशन थिएटर से बाहर निकला. सिर पर पट्टी बंधी थी. डाक्टर साहब को मैं जानती थी. उन्होंने बताया, ‘‘6 टांके लगे हैं. 1 घंटे बाद घर ले जा सकती हैं.’’

तन्मय की चोट देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा था पर वह मुसकराया, ‘‘मौम, आई एम फाइन, डोंट वरी.’’

मैं कुछ बोल नहीं पाई. मेरी आंखें डबडबा गईं. फिर 5 मिनट के अंदर ही उस के दोस्तों का हंसीमजाक शुरू हो गया. पूरा माहौल देखते ही देखते बदल गया. मैं हैरान थी. अब वे लड़के तन्मय से विक्टरी का ङ्क साइन बनवा कर ‘फेसबुक’ पर डालने के लिए उस की फोटो खींच रहे थे. तन्मय लेटालेटा पोज दे रहा था. नर्स भी खड़ी हंस रही थी.

तन्मय ने एक दोस्त से कहा, ‘‘विकास, मेरा क्लोजअप खींचना. डैड टूर पर हैं. उन्हें ‘वाट्सऐप’ पर भेज देता हूं.’’

देखते ही देखते यह काम भी हो गया. अमित से उस ने बैड पर बैठेबैठे ही फोन पर बात भी कर ली. मैं हैरान थी. किस मिट्टी के बने हैं ये बच्चे. इन्हें कहां कोई बात देर तक परेशान कर सकती है.

रिया को बताया तो वह भी औफिस से निकल पड़ी. रात 9 बजे तन्मय के एक दोस्त का भाई अपनी कार से हम दोनों को घर छोड़ गया था. तन्मय पूरी तरह शांत था, चोट उसे लगी थी और वह मुझे हंसाने की कोशिश कर रहा था. तन्मय को डाक्टर ने 3 हफ्ते का रैस्ट बताया था. अमित टूर से आ गए थे. 3 हफ्ते आनेजाने वालों का सिलसिला चलता रहा. एक दिन उस ने कहा, ‘‘मौम, देखो, आप की फ्रैंड्स और मेरे फ्रैंड्स की सोच में कितना फर्क है. मेरे फ्रैंड्स कहते हैं, जल्दी ठीक हो यार, इतने दिन बिना खेले कैसे रहेगा और आप की हर फ्रैंड यह कह कर जाती है कि अब इस का खेलना बंद करो, बस. बहुत चोट लगती है इसे.’’

उन 3 हफ्तों में मैं ने उस के और उस के दोस्तों के साथ जो समय बिताया, इस उम्र के स्वभाव और व्यवहार का जो जायजा लिया, मेरा मन खिल उठा.

इन बच्चों की और अपनी उस उम्र की तुलना करती हूं तो मन में एक कसक सी होती है. मन करता है कि काश, कहीं से कैसे भी उस उम्र में पहुंच जाऊं. इन बच्चों के बेवजह हंसने की, खिलखिलाने की, छोटीछोटी बातों पर खुश होने की, अपने दर्दतकलीफ को भूल दोस्तों के साथ ठहाके लगाने की, खाने की छोटी से छोटी मनपसंद चीज देख कर चहकने की प्रवृत्ति को देख सोचती हूं, मैं ऐसी क्यों नहीं थी. मेरी तो कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि घर में किसी बात को नकार अपनी मरजी बताऊं. जो मिलता रहा उसी में संतुष्ट रही हमेशा. न कभी कोई जिद न कभी कोई मांग.

13 साल की उम्र में पिता को खो कर, मम्मी और भैया के सख्त अनुशासन में रही. अंधेरा होने से पहले भैया का घर लौटने का सख्त निर्देश, ज्यादा हंसनेबोलने पर मम्मी की घूरती कठोर आंखें, मुझे याद ही नहीं आता मैं जीवन में कभी 6 बजे के बाद उठी होऊं, विशेषकर विवाह से पहले. और यहां मेरे बच्चे जब मैसेज डालते हैं, ‘उठाना मत.’ तो मुझे कभी गुस्सा नहीं आता. मुझे अच्छा लगता है.

मेरे बच्चे आराम से अपने मन की बात पूरी कर सकते हैं. मेरी प्लेट में तो जो भी कुछ आया, मैं ने हमेशा बिना शिकायत के खाया है और जब मेरे बच्चे अपनी फरमाइश जाहिर करकर के मुझे नचाते हैं, मैं खुश होती हूं. मेरी कोई सहेली जब अपने किसी युवा बच्चे की शिकायत करती है जैसे देर से घर आने की, ज्यादा टीवी देखने की, देर तक सोने की आदि तो मैं यही कहती हूं–जीने दो उन्हें, कल घरगृहस्थी की जिम्मेदारी संभालनी है, जी लेने दो उन्हें.

मुझे लगता है मैं तो बहुत सी बातों में हमेशा मन मार कर अब तक जीती आई थी पर इन बच्चों को निश्ंिचत, खुश, अपनी इच्छा पूरी करने के लिए बात मनवाते देख कर सच कहती हूं, जी उठी हूं मैं.

टेढ़ी दुम: अमित की फ्लर्ट की आदत को संगीता ने कैसे छुड़ाया?

कालेज के दिनों में मैं ज्यादातर 2 सहेलियों के बीच बैठा मिलता था. रूपसी रिया मेरे एक तरफ और सिंपल संगीता दूसरी तरफ होती. संगीता मुझे प्यार भरी नजरों से देखती रहती और मैं रिया को. रही रूपसी रिया की बात तो वह हर वक्त यह नोट करती रहती कि कालेज का कौन सा लड़का उसे आंखें फाड़ कर ललचाई नजरों से देख रहा है. कालेज की सब से सुंदर लड़की को पटाना आसान काम नहीं था, पर उस से भी ज्यादा मुश्किल था उसे अपने प्रेमजाल में फंसाए रखना. बिलकुल तेज रफ्तार से कार चलाने जैसा मामला था. सावधानी हटी दुर्घटना घटी. मतलब यह कि आप ने जरा सी लापरवाही बरती नहीं कि कोई दूसरा आप की रूपसी को ले उड़ेगा.

मैं ने रिया के प्रेमी का दर्जा पाने के लिए बहुत पापड़ बेले थे. उसे खिलानेपिलाने, घुमाने और मौकेबेमौके उपहार देने का खर्चा उतना ही हो जाता था जितना एक आम आदमी महीनेभर में अपने परिवार पर खर्च करता होगा. ‘‘रिया, देखो न सामने शोकेस में कितना सुंदर टौप लगा है. तुम पर यह बहुत फबेगा,’’ रिया को ललचाने के लिए मैं ऐसी आ बैल मुझे मार टाइप बातें करता तो मेरी पौकेट मनी का पहले हफ्ते में ही सफाया हो जाता.

मगर यह अपना स्पैशल स्टाइल था रिया को इंप्रैस करने का. यह बात जुदा है कि बाद में पापा से सचझूठ बोल कर रुपए निकलवाने पड़ते. मां की चमचागिरी करनी पड़ती. दोस्तों से उधार लेना आम बात होती. अगर संगीता ने मेरे पीछे पड़पड़ कर मुझे पढ़ने को मजबूर न किया होता तो मैं हर साल फेल होता. मैं पढ़ने में आनाकानी करता तो वह झगड़ा करने पर उतर आती. मेरे पापा से मेरी शिकायत करने से भी नहीं चूकती थी.

‘‘तू अपने काम से काम क्यों नहीं रखती है?’’ मैं जब कभी नाराज हो उस पर चिल्ला उठता तो वह हंसने लगती थी. ‘‘अमित, तुम्हें फेल होने से

बचा कर मैं अपना ही फायदा कर रही हूं,’’ उस की आंखों में शरारत नाच उठती थी. ‘‘वह कैसे?’’

‘‘अरे, कौन लड़की चाहेगी कि उस का पति ग्रैजुएट भी न हो,’’ हम दोनों के आसपास कोई न होता तो वह ऐसा ही ऊलजलूल जवाब देती. ‘‘मुझे पाने के सपने मत देखा

कर,’’ मैं उसे डपट देता तो भी वह मुसकराने लगती. ‘‘मेरा यह सपना सच हो कर रहेगा,’’ अपने मन की इच्छा व्यक्त करते हुए उस की आंखों में मेरे लिए जो प्यार के भाव नजर आते, उन्हें देख कर मैं गुस्सा करना भूल जाता और उस के सामने से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझता.

कालेज की पढ़ाई पूरी हुई तो मैं ने रिया से शादी करने की इच्छा जाहिर कर दी.

उस ने मेरी हमसफर बनने के लिए तब अपनी शर्त मुझे बता दी, ‘‘अमित, मैं एक बिजनैसमैन की पत्नी बन कर खुश नहीं रह सकूंगी और तुम अब अपने पापा का बिजनैस में हाथ बंटाने जा रहे हो. मेरा हाथ चाहिए तो आईएएस या पुलिस औफिसर बनो. एमबीए कर के अच्छी जौब पा लोगे तो भी चलेगा.’’ उस की इन बातों को सुन कर मेरा मन एक बार को बैठ ही गया था.

मगर प्यार में इंसान को बदलने की ताकत होती है. मैं ने आईएएस की परीक्षा देने का हौसला अपने अंदर पैदा किया. कई सारी किताबें खरीद लाया. अच्छी कोचिंग कहां से मिलेगी, इस बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी. संगीता को जब यह जानकारी मिली तो हंसतेहंसते उस के पेट में बल पड़ गए. बोली, ‘‘अमित, क्यों बेकार के झंझट में पड़ रहा है… देख, जो इंसान जिंदगी भर दिल्ली में रहा हो,

क्या उसे ऐवरैस्ट की चोटी पर चढ़ने के सपने देखने चाहिए?’’ उस की ऐसी बातें सुन कर मैं उसे भलाबुरा कहने लगता तो वह खूब जोरजोर से हंसती.

वैसे संगीता ने मेरी काबिलीयत को सही पहचाना था. सिर्फ 2 हफ्ते किताबों में सिर खपाने के बाद जब मुझे चक्कर से आने लगे तो आईएएस बनने का भूत मेरे सिर से उतर गया. ‘‘ज्यादा पढ़नालिखना मेरे बस का नहीं है, रिया. बस, मेरी इस कमजोरी को नजरअंदाज कर के मेरी हो जाओ न,’’ रिया से ऐसी प्रार्थना करने से पहले मैं ने उसे महंगे गौगल्स गिफ्ट किए थे.

‘‘ठीक है, यू आर वैरी स्वीट, अमित,’’ नया चश्मा लगा कर उस ने इतराते हुए मेरी बनने का वादा मुझ से कर लिया. इस वादे के प्रति अपनी ईमानदारी उस ने महीने भर बाद अमेरिका में खूब डौलर कमा रहे एक सौफ्टवेयर इंजीरियर से चट मंगनी और पट शादी कर के दिखाई.

उस ने मेरा दिल बुरी तरह तोड़ा था. मैं ने दिल टूटे आशिक की छवि को ध्यान में रख फौरन दाढ़ी बढ़ा ली और लक्ष्यहीन सा इधरउधर घूम कर समय बरबाद करने लगा.

संगीता ने जब मुझे एक दिन यों हालबेहाल देखा तो वह जम कर हंसी और फिर मेरा एक नया कुरता फाड़ कर

मेरे हाथ में पकड़ा दिया और फिर बोली, ‘‘इसे पहन कर घूमोगे तो दूर से भी कोई पहचान लेगा कि यह कोई ऐसा सच्चा आशिक जा रहा है जिस का दिल किसी बेवफा ने तोड़ा है. तुम्हारे जैसे और 2 मजनू तुम्हें सड़कों पर घूमते नजर आएंगे. उन को भी रिया ने प्यार में धोखा दिया है. एक क्लब बना कर तुम तीनों सड़कों की धूल फांकते इकट्ठे घूमना शुरू क्यों नहीं कर देते हो?’’ संगीता के इस व्यंग्य पर मैं अंदर तक तिलमिला उठा. वह उस दिन सचमुच ही रिया के 2 अन्य आशिकों से मुझ को मिलवाने भी ले गई. उन में से एक रिया का पड़ोसी था और दूसरा उस के मौसेरे भाई का दोस्त. उस रूपसी ने जम कर हम तीनों को उल्लू बनाया, इस बात को समझते ही मैं ने दिल टूटने का मातम मनाना फौरन बंद किया और नया शिकार फांसने की तैयारी करने लगा.

अगले दिन बनसंवर कर जब मैं घर से बाहर निकलने वाला था तभी संगीता मुझ से मिलने मेरे घर आ पहुंची. बोली, ‘‘मुझ से अच्छी लड़की तुम्हें कभी नहीं और कहीं नहीं मिलेगी, हीरो. वैसे अभी तक सुंदर लड़कियों के हाथों बेवकूफ बनने से दिल न भरा हो तो फिर किसी लड़की पर लाइन मारना शुरू कर दो. मेरी तरफ से तुम्हें ऐसी मूर्खता करने की इजाजत है और सदा रहेगी,’’ संगीता ने कोई सवाल पूछे बिना मेरी नीयत को फौरन पढ़ लिया तो यह बात मुझे सचमुच हैरान कर गई. ‘‘मैं कल ही तेरे मम्मीपापा को समझाता हूं कि वे कोई सीधा और अच्छा सा लड़का देख कर तेरे हाथ पीले कर दें,’’ और फिर उस से किसी तरह की बहस में उलझे बिना मैं बाहर घूमने निकल गया.

संगीता के मातापिता ने उस के लिए अच्छा लड़का फौरन ढूंढ़ लिया. उस लड़के को मेरे मम्मीपापा ने भी पास कर दिया तो महीने भर बाद ही मेरी उस के साथ सगाई हो गई और उस के अगले हफ्ते वह दुलहन बन कर हमारे घर

आ गई. मेरे दोस्तों ने मुझे इस रिश्ते के लिए मना करने को बहुत उकसाया था, पर मैं चाहते हुए भी इनकार नहीं कर सका.

‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ ही होगी,’’ संगीता प्यार भरे अपनेपन व आत्मविश्वास के साथ यह बात कहती थी और अंत में उस का कहा ही सच भी हुआ. इस में कोई शक नहीं कि वह मुझे बहुत प्यार करती है और मेरी सच्ची शुभचिंतक है. बहुत ध्यान रखती है वह मेरा. वह ज्यादा सुंदर तो नहीं है पर उस के पास सोने का दिल है. उस का सब से बड़ा गुण है मेरी किसी भी गलती पर नाराज होने के बजाय सदा हंसतेमुसकराते रहना. उस की हंसी में कुछ ऐसा है, जो मुझे उसी पल तनावमुक्त कर शांत और प्रसन्न कर जाता है. वह मुझे दिल से अपना पसंदीदा हीरो मानती है.

मगर मेरी दुम शादी के बाद भी टेढ़ी की टेढ़ी ही रही है. सुंदर लड़कियों पर लाइन मारने का कोई मौका मैं अब भी नहीं चूकता हूं पर संगीता की नजरों से अपनी इन हरकतों को बचा पाना मेरे लिए संभव नहीं. ‘‘फलांफलां युवती के साथ चक्कर चलाने की कोशिश कर रहे हो न?’’ वह मेरी हरकतों को पढ़ लेने के बाद जब भी मुसकराते हुए यह सवाल सीधासीधा मुझ से पूछती है तो मैं झूठ नहीं बोल पाता हूं.

‘‘ऐसे ही जरा हंसबोल कर टाइम पास कर रहा था,’’ चूंकि वह मेरी फ्लर्ट करने की आदत के कारण मुझ से कभी लड़तीझगड़ती नहीं है, इसलिए मैं उसे सच बात बता देता हूं. ‘‘अपनी हौबी को टाइम पास करना मत कहोजी. अब लगे हाथ यह भी बता दो कि किस चीज को गिफ्ट करने का लालच दे कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे थे, रोमियो के नए अवतारजी?’’

वह मेरी लड़की पटाने की तरकीबों को शुरू से ही पहचानती है. ‘‘उस का मनपसंद सैंट,’’ मैं झेंपी सी हंसी हंसते हुए सचाई बता देता.

‘‘उस पर क्यों रुपए बरबाद करते हो, स्वीटहार्ट. मैं मौजूद हूं न लड़कियों को गिफ्ट करने की तुम्हारे अंदर उठने वाली खुजली को मिटाने के लिए. कल चलते हैं मेरा मनपसंद

सैंट खरीदने.’’ ‘‘तुम्हारे पास पहले से ही सैंट की दर्जनों बोतलें हैं,’’ मैं हलका सा विरोध करता तो वह खिलखिला कर हंस पड़ती.

‘‘सैंट ही क्यों, तुम्हारी लड़कियों को दाना डालने की आदत के चलते मेरे पास कई सुंदर ड्रैसेज भी हैं, ज्वैलरी भी, 3 रिस्ट वाच, 2 जोड़े गौगल्स और न जाने कितनी महंगी चीजें इकट्ठी हो गई हैं, मेरे धन्ना सेठ. मैं तो अकसर कामना करती हूं कि लड़कियों से फ्लर्ट करने के मामले में वह तुम्हारी टेढ़ी दुम कभी सीधी

न हो.’’ ‘‘यार, अजीब औरत हो तुम जो अपने पति को दूसरी औरतों के साथ फ्लर्ट करता देख कर खुश होती है,’’ मैं चिढ़ उठता तो उस का ठहाका आसपास की दीवारों को हिला जाता.

शादी के बाद कभीकभी मैं संगीता से मन ही मन बहुत नाराज हो उठता था. मुझे लगता था कि स्वतंत्रता से जीने की राह में वह मेरे लिए बहुत बड़ी रुकावट बनी हुई है. फिर एक पार्टी में कुछ ऐसा घटा जिस ने मेरा यह नजरिया ही बदल दिया.

उस रात मैं पहले बैंक्वेट हौल में प्रवेश कर गया, क्योंकि संगीता अपनी किसी सहेली से बात करने को दरवाजे के पास रुक गई थी.

जब संगीता ने अंदर कदम रखा तब मेरे कानों में उस की प्रशंसा करता पुरुष स्वर पहुंचा, ‘‘क्या स्मार्ट लेडी है, यारो… यह कोई टीवी कलाकार या मौडल है क्या?’’

इन जनाब ने ये बातें अपने दोस्तों से कही थीं. उस रात मैं ने भी संगीता को जब ध्यान से देखा तो मुझे सचमुच उस का व्यक्तित्व बहुत स्मार्ट और प्रभावशाली लगा. उस के नैननक्श तो ज्यादा सुंदर कभी नहीं रहे थे, पर अपने लंबे कद, आकर्षक फिगर और अपने ऊपर खूब फबने वाली साड़ी पहनने के कारण वह बहुत जंच

रही थी. मैं ने आगे बढ़ कर बड़े गर्व के साथ संगीता का हाथ पकड़ा तो उन पुरुषों की आंखों में मैं ने ईर्ष्या के भाव पैदा होते साफ देखे.

‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो,’’ मैं ने दिल से संगीता की ऐसी तारीफ शायद पहली बार

करी थी. ‘‘ये सब तुम से मिले गिफ्ट्स का कमाल है. वैसे आज अपनी बीवी पर कैसे लाइन मार रहे हो, अमित?’’ उस का चेहरा फूल सा खिल

उठा था. ‘‘दुनिया तुम पर लाइन मारने को तैयार है, तो मैं ने सोचा कि मैं ही क्यों पीछे रहूं.’’

‘‘बेकार की बात मत करो,’’ उस का एकदम से शरमाना मेरे मन को बहुत भाया. उस रात मुझे अपनी पत्नी के साथ फ्लर्ट करने का नया और अनोखा अनुभव मिला. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि किसी अन्य युवती से फ्लर्ट करने के मुकाबले यह ज्यादा सुखद और आनंददायक अनुभव रहा.

आजकल मेरी जिंदगी बहुत बढि़या कट रही है. पत्नी को प्रेमिका बना लेने से मेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं. भरपूर मौजमस्ती के साथसाथ मन की शांति भी मिल रही है. मेरे साथ झगड़ने से परहेज कर के और मुझे प्यार की नाजुक डोर से बांध कर संगीता ने मेरी टेढ़ी दुम को सीधा करने में आखिर कामयाबी पा ही ली है.

अंतरंग दृश्यों में सहज रहती हूं : Asha Negi

खूबसूरत, मृदुभाषी, हंसमुख और साल 2009 की मिस उत्तराखंड बनी अभिनेत्री आशा नेगी (Asha Negi) उत्तराखंड के देहरादून की हैं. मौडलिंग से कैरियर की शुरुआत करने वाली आशा ने टीवी धारावाहिकों और वैब सीरीज में काम किया है. अभिनय के लिए वे 22 साल की उम्र में मुंबई आईं और उन की पहली टीवी धारावाहिक ‘सपनों से भरे नैना’ में मधुरा की भूमिका निभाई. इस के बाद उन्होंने टीवी शो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ में अपेक्षा मल्होत्रा की भूमिका निभाई और बाद में धारावाहिक ‘पवित्र रिश्ता’ में पूर्वी देशमुख का किरदार निभा कर घरघर में पहचानी गईं.

इस के अलावा फिल्म ‘लूडो’, ‘कौलर बम,’ वैब सीरीज ‘बारिश’, ‘अभय’ आदि में भी उन्होंने अभिनय किया है.

वर्ष 2013 में आशा का संबंध ‘पवित्र रिश्ता’ के कोस्टार ऋत्विक धनजानी के साथ जुड़ा. दोनों ने साथ में डांस रियलिटी शो ‘नच बलिए सीजन 6’ में भी हिस्सा लिया और ट्रौफी भी जीती थी, लेकिन 7 साल की डेटिंग के बाद वर्ष 2020 में उन का ब्रेकअप हो गया. इस ब्रेकअप के बारे में आशा का कहना था कि दोनों ने अच्छे मोड़ पर आ कर रिलेशनशिप को खत्म किया है. ब्रेकअप के बाद भी उन के और ऋत्विक के बीच सम्मान है और वे एकदूसरे से बात करते रहते हैं.

जियोसिनेमा पर आशा नेगी की वैब सीरीज ‘हनीमून फोटोग्राफर’ स्ट्रीम हुई  है, जो एक मर्डर मिस्ट्री है, जिसे ले कर वे बहुत उत्साहित हैं.

पेश हैं, उन से हुई बातचीत के कुछ खास अंश :

आशा को हमेशा कुछ चुनौतीपूर्ण अभिनय की इच्छा रहती है. इस शो की खासियत के बारे में उन का कहना है कि प्रायोरिटी वही रहती है कि किरदार ऐसा हो जो मुझे कंफर्ट जोन से बाहर ले कर जाए. इस की कहानी बहुत रुचिपूर्ण है, इसलिए मना करने की कोई वजह नहीं रही.

मैं इस में एक फोटोग्राफर अंबिका की भूमिका निभा रही हूं। मुझे फोटोग्राफी का शौक है, लेकिन बड़े कैमरे को हैंडल नहीं किया है, इसलिए सीरीज के दौरान मैं ने सही फोटोग्राफी के लिए फोटोग्राफर फ्रैंड्स का सहारा लिया, फोटोग्राफी की बारीकियां सीखीं, ताकि ऐसा न लगे कि मैं ने पहली बार कैमरा पकड़ा है. इस में कैमरे को फोकस करना, जूमइन, जूमआउट आदि चीजों को सीखा है.

इमोशंस को बैलेंस करना कठिन था

आशा आगे बताती हैं कि शूटिंग के दौरान बहुत मस्ती की मैं ने, लेकिन कई इमोशंस इस में हैं, उसे बैलेंस करना थोड़ा मुश्किल था. इस चरित्र से मैं कुछ हद तक रिलेट कर सकती हूं क्योंकि कहीं न कहीं मेरा चरित्र अपने काम को ले कर काफी पैशनेट है और मैं भी ऐक्टिंग को ले कर काफी पैशनेट हूं, इस के अलावा कोई भी किरदार में कुछ न कुछ मेरे लिए रिलेटेबल हो जाता है. कुछ न कुछ उस से हमें अच्छी चीजें सीखने को भी मिलती हैं.

अंतर समय का

आशा ने कई टीवी सीरियल्स, फिल्में और वैब सीरीज में काम किया है. अभिनय में अंतर के बारे में पूछने पर वे कहती हैं कि टीवी में कई बार जल्दीजल्दी शूट करना पड़ता था क्योंकि शाम को टैलिकास्ट होना है, जबकि स्क्रिप्ट सुबह आई होती है। ऐसे में, उसी समय शूट कर भेजना होता था. यहां थोड़ा तसल्ली से
काम होता है. टीवी शो चलता रहता है, उस का अंत किसी को पता नहीं होता जबकि यहां पर शूटिंग करने के समय का पता चल जाता है, इसलिए मजा आता है क्योंकि एक कैरेक्टर किया, ब्रेक लिया. फिर कोई नया चरित्र किया, बस ऐसे ही चलता रहता है.

क्या सच क्या झूठ

टीवी से फिल्मों या वैब सीरीज में आने पर कलाकार सफल नहीं होते, इस में कितनी सचाई है? यह पूछने पर आशा हंसती हुई कहती हैं कि यह सही है क्योंकि टीवी अधिक करने के बाद फिल्मों और वैब सीरीज को ऐडौप्ट करने में थोड़ा समय लगता है, लेकिन अगर आप प्रतिभावान और मेहनती है, ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं, तो इतना अधिक कठिन भी नहीं है. बहुत सारे टीवी कलाकार आज अच्छा काम कर रहे हैं.

ओटीटी से काम मिलना हुआ आसान

ओटीटी की वजह से आज के कलाकारों को काम मिलना कितना आसान हुआ है, यह पूछने पर आशा कहती हैं कि ओटीटी में कोई ऐक्टर या ऐक्ट्रैस नहीं, बल्कि सारे कलाकार हैं क्योंकि सभी अच्छा काम कर रहे हैं और अच्छा कंटैंट बन रहा है. साथ ही नए कलाकारों को भी काम मिलना थोड़ा आसान हुआ है.

हर शो के लिए है दर्शक

मारधाड़ वाली अधिकतर सीरीज बनने की वजह पूछने पर आशा का कहना है कि आज हर शो के लिए दर्शक है, इसलिए शो चाहे मारधाड़, खूनखराबे वाली हो, फिर भी लोग उसे देखते है, इसलिए बन रही है. रोमांस, घरपरिवार वाली शो के लिए भी दर्शक हैं और ये बनती रहेंगी। जिस दिन दर्शक नकार देंगे, मारधाड़ वाली शो बननी बंद हो जाएगी. मेरे हिसाब से इंडस्ट्री सब को खुश रखती है. मुझे थ्रिलर, सस्पैंस, स्वीट सी कहानियां देखना पसंद है.

मिली प्रेरणा

ऐक्टिंग में आने की प्रेरणा के बारे में पूछने पर आशा बताती हैं कि परिवार में दूरदूर तक कोई भी इस फील्ड से नहीं है. मुझे लगा था कि ‘मिस उत्तराखंड’ बनने के बाद मेरा ग्लैमर का शौक पूरा हो जाएगा, लेकिन इस के बाद से मौडलिंग के औफर आने लगे. फिर मैं ने 22 साल की उम्र में मुंबई आने की
बात जब घर वालों को बताई, तो उन्होंने पहले मना कर दिया, बाद में बहुत समझाने पर उन्होंने हामी भरी. मुंबई आने पर जब मैं ने अभिनेत्री साक्षी तंवर के साथ धारावाहिक ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ में काम किया, तो मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. उन से मैं काफी प्रभावित हुई, क्योंकि साक्षी एक अच्छी ऐक्ट्रैस होने के साथसाथ एक अच्छी इंसान भी हैं.

परिवार का सहयोग

परिवार का सहयोग मिलने में आशा को थोड़ी परेशानी हुई। वे कहती हैं कि मैं ने कई दिनों तक भूख हड़ताल किया ताकि वे मुझे मुंबई जाने की अनुमति दें, लेकिन एक शर्त लगाई थी कि अगर मैं कुछ कर नहीं पाई तो वापस लौटूंगी, पर ऐसा नहीं हुआ उन्होंने मुझे टीवी पर देख लिया था, फिर वे खुश हुए.

आर्मी बैकग्राउंड से होने की वजह से मैं बहुत ही अनुशासित ढंग से बड़ी हुई हूं. मेरे पेरैंट्स चाहते थे कि मैं पढ़ाई खत्म कर शादी कर लूं, पर अब उन की ऐसी सोच नहीं है.

रहा संघर्ष

आशा कहती हैं कि शुरुआत में काफी संघर्ष किया, लेकिन जब मैं ने बालाजी प्रोडक्शन हाउस के साथ काम कर लिया, तो सामने से काम आने लगे थे.

पार्टी नहीं है पसंद

अच्छे लोगों के बीच रहने की कोशिश आशा नेगी हमेशा करती हैं। इसे वे बहुत जरूरी भी मानती हैं, क्योंकि गलत संगत में रहने पर व्यक्ति भटक जाता है. वे कहती हैं कि शुरू से मुझे पार्टी अधिक पसंद नहीं, खुद में रहना अच्छा लगता है. मेरे आसपास के लोग भी अच्छे मिलते गए, जिस से मुझे ग्राउंडेड रहना आसान हुआ.

अंतरंग दृश्य में सहज

आशा कहती हैं कि समय के साथसाथ ऐक्टिंग में सुधार हुआ है और अंतरंग दृश्यों में भी खुद को सहज पाने लगी हूं. मैं खुद पर किसी प्रकार की पाबंदियां लगाना नहीं चाहती. धीरेधीरे मैं सहज हो रही हूं कि अंतरंग दृश्य में सहज कैसे रहना है, क्योंकि स्क्रिप्ट की डिमांड पर उसे करना भी जरूरी है.

दीवाली में आशा हमेशा परिवार के साथ रहना पसंद करती हैं, इंडियन आउट्फिट पहनती हैं, परिवारजनों के लिए भी उन के अनुसार साड़ियां खरीदती हैं. अच्छे व्यंजन पकाती हैं और सब के साथ मिल कर ऐंजौय करती हैं.

मैं अपनी मौसी के लड़के से शादी करना चाहती हूं, क्या यह शादी संभव है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 18 वर्षीय युवती हूं और अपनी मौसी के लड़के से पिछले 3 वर्षों से प्यार करती हूं. हम एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते, इसलिए मैं उस से शादी करना चाहती हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या यह शादी संभव है और यदि हम दोनों शादी कर लेते हैं तो इस में कोई बुराई तो नहीं है?

जवाब

आप की उम्र अभी बहुत कम है और आप पिछले 3 वर्षों यानी किशोरावस्था से प्यार का दम भर रही हैं. जिसे आप प्यार समझ रही हैं वह प्यार नहीं सिर्फ यौनाकर्षण है. इस उम्र में अपोजिट सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक होता है और यह जितनी तेजी से चढ़ता है उसी वेग से उतर भी जाता है. अत: आप इस भ्रम को मन से निकाल दें.

इस के अलावा शादीब्याह के लिए सोचने की अभी आप की उम्र नहीं है. यह जिम्मेदारी बड़ों पर छोड़ दें. अभी मौजमस्ती करें और अपने कैरियर के बारे में सोचें.

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राहुल के पेरैंट्स को उस समय गहरा सदमा लगा जब उन्हें पता चला कि उन के बेटे का लिवर खराब हो चुका है. उन्होंने 2 साल पहले राहुल को इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए बेंगलुरु भेजा था. अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा वे अपने लाड़ले की पढ़ाई पर खर्च कर रहे थे. उन्हें भरोसा था कि पढ़लिख कर राहुल का कैरियर संवर जाएगा. बेटे से मिलने जब वे बेंगलुरु पहुंचे तो डाक्टरों ने बताया कि काफी ज्यादा नशा लेने की वजह से राहुल का लिवर खराब हो गया है. यह सुन कर उन्हें झटका लगा. पढ़ने के बजाय राहुल नशाखोरी करता रहा. सिर पीटने के अलावा उन के पास कोई चारा न था.  इस तरह के ढेरो वाकए हैं कि जब मातापिता बेटे को पढ़नेलिखने के लिए बाहर भेजते हैं और बेटा नशे के जाल में फंस कर अपनी जिंदगी व कैरियर चौपट कर लेता है.

पटना के एक बैंक अधिकारी हीरा सिन्हा के साथ कुछ ऐसा ही हादसा हुआ. 4 साल पहले उन्होंने बड़े ही जतन से अपने इकलौते बेटे रौशन को मैडिकल की कोचिंग के लिए दिल्ली भेजा था.  वे हर महीने बेटे के बैंक अकाउंट में 10 हजार रुपए डाल देते और निश्ंिचत थे कि उन का बेटा मैडिकल की जम कर तैयारी कर रहा है. एक दिन उन के पास पुलिस का फोन आया कि उन के बेटे ने खुदकुशी कर ली है. दिल्ली पहुंचे तो पता चला कि शुरुआत में एक महीना कोचिंग करने के बाद वह कभी कोचिंग करने गया ही नहीं. शराब और ड्रग्स की चपेट में फंस कर उस ने अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली.

स्कूल, कालेज और कोचिंग क्लासेज करने वाले काफी ज्यादा बच्चे नशे के शिकार बन रहे हैं. जब नशे की वजह से किसी गंभीर और खतरनाक बीमारी की चपेट में आ जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि नशे ने उन का क्या बरबाद कर के रख दिया. ग्लानि और मातापिता के डर से कई खुदकुशी कर लेते हैं तो कईर् बीमारी का इलाज करातेकराते ही अपने जीवन का सुनहरा दौर खत्म कर लेते हैं.  रमेश कदम पटना में सैंकंड ईयर इंजीनियरिंग का स्टूडैंट है. पढ़ाई के दौरान ही उस की संगति नशेडि़यों से हो गई और शराब पीने की लत लग गई. उस की आंखें हमेशा लाल और चढ़ीचढ़ी रहने लगीं और वह बातबात पर चिड़चिड़ाने व झल्लाने लगा. घर वाले उसे डाक्टर के पास ले गए तो डाक्टर ने बताया कि रमेश नशे का आदी है. डाक्टर ने कहा कि नशामुक्ति केंद्र में डाल कर उस का इलाज कराएं.

बच्चे के रोज की दिनचर्या और उस की बदल रही गतिविधियों पर मातापिता को नजर रखनी चाहिए. बच्चे के रंगढंग में बदलाव दिखने पर सतर्क हो जाना चाहिए. नशा या किसी भी गलत काम करने वाला लड़का दिन या शाम में कोई खास समय पर घर से गायब होने लगता है. वह पढ़ाई करने, दोस्तों से नोट्स लेने, टीचर के पास जाने, दोस्तों द्वारा पार्टी देने आदि का बहाना बना कर रोज घर से निकलने लगेगा.  रोजरोज ऐसे बहाने बना कर बच्चा बाहर जाने की कोशिश करे तो शुरू में ही उसे समझाबुझा कर या हलकी डांटफटकार लगा कर पढ़ाई के लिए बैठने को कहें.  आखिर पढ़ाईलिखाई की उम्र में बच्चे कैसे और क्यों नशे के जाल में फंस जाते हैं? बच्चों के प्रति मातापिता और परिवार का ध्यान न देना इस की सब से बड़ी वजह है. ज्यादातर मातापिता बच्चों को किताब, कपड़े, मोबाइल, कंप्यूटर, रुपया दे कर अपनी जिम्मेदारी का खत्म होना समझ लेते हैं. जबकि उन्हें चाहिए कि रोज बच्चों के साथ बैठ कर पढ़ाई, टीचर, दोस्तों और उन के शौक के बारे में उन से बातें करें.

इस से बच्चा मातापिता और परिवार वालों से घुलामिला रहेगा. कभीकभार अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ मार्केटिंग, फिल्म देखने, डीवीडी लेने, पार्कों में घूमने भी जाएं, ताकि मनोरंजन के लिए उसे गलत रास्ता न अपनाना पड़े.  नशामुक्ति केंद्र में 6 माह तक इलाज करवा कर नशे से तोबा करने वाला रवि बताता है कि ग्रुप प्रैशर यानी दोस्तों के दबाव में उस ने शराब पीनी शुरू की. दोस्त उसे शराब पीने को कहते और वह मना करता तो उस की खिल्ली उड़ाई जाती. दूधपीता बच्चा, नामर्द, बबुआ और न जाने क्याक्या कहा जाता. इस से आजिज हो कर एक दिन शराब पी ली और फिर उस में ऐसा डूबा कि फिर निकलना मुश्किल हो गया.  मातापिता से आसानी से रुपया मिल जाना, कदमकदम पर आसानी से शराब, गुटखा, गांजा व नशे का अन्य सामान मिल जाना, पश्चिमी शैली की नकल, समाज में बढ़ता खुलापन, तनाव, अवसाद आदि वजहों से भी युवा नशे की गिरफ्त में फंसते हैं.

कम आयु में ही बच्चों को नशे की लत लगने से उन का जीवन, कैरियर, शरीर, परिवार और समाज पर काफी बुरा असर होता है. जिस आयु में उन्हें खुद को और परिवार व समाज को बनानेसंवारने का समय होता है, उस में नशाबाजी कर वे सब चौपट कर लेते हैं. सो, मातापिता को बच्चों के प्रति सतर्क होने की जरूरत है.

चेत जाएं मातापिता जब…

बच्चा बेसमय या किसी खास समय पर घर से रोज निकलने लगे.

अलमारी, दराज या आप के पौकेट से रुपए गायब होने लगें.

बच्चों की आंखें लाल और सूजी लगने लगें.

उलटी करें और नींद न आने की बात करें.

घर से कीमती सामान गायब होने लगें.

बाथरूम में ज्यादा समय गुजारें.

बच्चे सुबह देर से जगें.

परिवार के सदस्यों से दूरी बनाने लगें.

चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाएं.

खांसी का दौरा पड़ने लगे.

झूठ बोलने की आदत पड़ जाए.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सहारा: कौन बना अर्चना के बुढ़ापे का सहारा

लेखक- रमणी मोटाना

‘‘अर्चना,’’ उस ने पीछे से पुकारा.

‘‘अरे, रजनीश…तुम?’’ उस ने मुड़ कर देखा और मुसकरा कर बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं, कैसा अजब इत्तिफाक है कि तुम दिल्ली की और मैं मुंबई का रहने वाला और हम मिल रहे हैं बंगलौर की सड़क पर. वैसे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मैं आजकल यहीं रहती हूं. यहां घडि़यों की एक फैक्टरी में जनसंपर्क अधिकारी हूं. और तुम?’’

‘‘मैं यहां अपने व्यापार के सिलसिले में आया हुआ हूं. मेरी पत्नी भी साथ है. हम पास ही एक होटल में ठहरे हैं.’’

2-4 बातें कर के अर्चना बोली, ‘‘अच्छा…मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे रुको,’’ वह हड़बड़ाया, ‘‘इतने  सालों बाद हम मिले हैं, मुझे तुम से ढेरों बातें करनी हैं. क्या हम दोबारा नहीं मिल सकते?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ कहते हुए अर्चना ने विजिटिंग कार्ड पर्स में से निकाला और उसे देती हुई बोली, ‘‘यह रहा मेरा पता व फोन नंबर. हो सके तो कल शाम की चाय मेरे साथ पीना और अपनी पत्नी को भी लाना.’’

अर्चना एक आटो-रिकशा में बैठ कर चली गई. रजनीश एक दुकान में घुसा जहां उस की पत्नी मोहिनी शापिंग कर तैयार बैठी थी.

‘‘मेरीखरीदारी हो गई. जरा देखो तो ये साडि़यां ज्यादा चटकीली तो नहीं हैं. पता नहीं ये रंग

मुझ पर खिलेंगे

या नहीं,’’ मोहिनी बोली.

रजनीश ने एक उचटती नजर मोहिनी पर डाली. उस का मन हुआ कि कह दे, अब उस के थुलथुल शरीर पर कोई कपड़ा फबने वाला नहीं है, पर वह चुप रह गया.

मोहिनी की जान गहने व कपड़ों में बसती है. वह सैकड़ों रुपए सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्चती है. घंटों बनती-संवरती है. केश काले करती है, मसाज कराती है. नाना तरह के उपायों व साधनों से समय को बांधे रखना चाहती है. इस के विपरीत रजनीश आगे बढ़ कर बुढ़ापे को गले लगाना चाहता है. बाल खिचड़ी, तोंद बढ़ी हुई, एक बेहद नीरस, उबाऊ जिंदगी जी रहा है वह. मन में कोई उत्साह नहीं. किसी चीज की चाह नहीं. बस, अनवरत पैसा कमाने में लगा रहता है.

कभीकभी वह सोचता है कि वह क्यों इतनी जीतोड़ मेहनत करता है. उस के बाद उस के ऐश्वर्य को भोगने वाला कौन है. न कोई आसऔलाद न कोई नामलेवा… और तो और इसी गम में घुलघुल कर उस की मां चल बसीं.

संतान की बेहद इच्छा ने उसे अर्चना को तलाक दे कर मोहिनी से ब्याह करने को प्रेरित किया था. पर उस की इच्छा कहां पूरी हो पाई थी.

होटल पहुंच कर रजनीश बालकनी में जा बैठा. सामने मेज पर डिं्रक का सामान सजा हुआ था. रजनीश ने एक पैग बनाया और घूंटघूंट कर के पीने लगा.

उस का मन बरबस अतीत में जा पहुंचा.

कालिज की पढ़ाई, मस्तमौला जीवन. अर्चना से एक दिन भेंट हुई. पहले हलकी नोकझोंक से शुरुआत हुई, फिर छेड़छाड़, दोस्ती और धीरेधीरे वे प्रेम की डोर में बंध गए थे.

एक रोज अर्चना उस के पास घबराई हुई आई और बोली, ‘रजनीश, ऐसे कब तक चलेगा?’

‘क्या मतलब?’

‘हम यों चोरी- छिपे कब तक मिलते रहेंगे?’

‘क्यों भई, इस में क्या अड़चन है? तुम लड़कियों के होस्टल में रहती हो, मैं अपने परिवार के साथ. हमें कोई बंदिश नहीं है.’

‘ओहो…तुम समझते नहीं, हम शादी कब कर रहे हैं?’

‘अभी से शादी की क्या जल्दी पड़ी है, पहले हमारी पढ़ाई तो पूरी हो जाए…उस के बाद मैं अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाऊंगा फिर जा कर शादी…’

‘इस में तो सालों लग जाएंगे,’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘तो लगने दो न…हम कौन से बूढ़े हुए जा रहे हैं.’

‘हमारे प्यार को शादी की मुहर लगनी जरूरी है.’

‘बोर मत करो यार,’ रजनीश ने उसे बांहों में समेटते हुए कहा, ‘तनमनधन से तो तुम्हारा हो ही चुका हूं, अब अग्नि के सामने सिर्फ चंद फेरे लेने में ही क्या रखा है.’

‘रजनीश,’ अर्चना उस की गिरफ्त से छूट कर घुटे हुए स्वर में बोली, ‘मैं…मैं प्रेग्नैंट हूं.’

‘क्या…’ रजनीश चौंका, ‘मगर हम ने तो पूरी सावधानी बरती थी…खैर, कोई बात नहीं. इस का इलाज है मेरे पास, अबार्शन.’

‘अबार्शन…’ अर्चना चौंक कर बोली, ‘नहीं, रजनीश, मुझे अबार्शन से बहुत डर लगता है.’

‘पागल न बनो. इस में डरने की क्या बात है? मेरा एक दोस्त मेडिकल कालिज में पढ़ता है. वह आएदिन ऐसे केस करता रहता है. कल उस के पास चले चलेंगे, शाम तक मामला निबट जाएगा. किसी को कानोंकान खबर भी न होगी.’

‘लेकिन जब हमें शादी करनी ही है तो यह सब करने की जरूरत?’

‘शादी करनी है सो तो ठीक है, लेकिन अभी से शादी के बंधन में बंधना सरासर बेवकूफी होगी. और जरा सोचो, अभी तक मेरे मांबाप को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं मालूम. अचानक उन के सामने फूला पेट ले कर जाओगी तो उन्हें बुरी तरह सदमा पहुंचेगा.

‘नहीं, अर्चना, मुझे उन्हें धीरेधीरे पटाना होगा. उन्हें राजी करना होगा. आखिर मैं उन की इकलौती संतान हूं. मैं उन की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता.’

‘प्यार का खेल खेलने से पहले ही यह सब सोचना था न?’ अर्चना कुढ़ कर बोली.

‘डार्ल्ंिग, नाराज न हो, मैं वादा करता हूं कि पढ़़ाई पूरी होते ही मैं धूमधड़ाके से तुम्हारे द्वार पर बरात ले कर आऊंगा और फिर अपने यहां बच्चों की लाइन लगा दूंगा…’

लेकिन शादी के 10-12 साल बाद भी बच्चे न हुए तो रजनीश व अर्चना ने डाक्टरों का दरवाजा खटखटाया था और हरेक डाक्टर का एक ही निदान था कि अर्चना के अबार्शन के समय नौसिखिए डाक्टर की असावधानी से उस के गर्भ में ऐसी खराबी हो गई है जिस से वह भविष्य में गर्भ धारण करने में असमर्थ है.

यह सुन कर अर्चना बहुत दुखी हुई थी. कई दिन रोतेकलपते बीते. जब जरा सामान्य हुई तो उस ने रजनीश को एक बच्चा गोद लेने को मना लिया.

अनाथाश्रम में नन्हे दीपू को देखते ही वह मुग्ध हो गई थी, ‘देखो तो रजनीश, कितना प्यारा बच्चा है. कैसा टुकुरटुकुर हमें ताक रहा है. मुझे लगता है यह हमारे लिए ही जन्मा है. बस, मैं ने तो तय कर लिया, मुझे यही बच्चा चाहिए.’

‘जरा धीरज धरो, अर्चना. इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. एक बार अम्मां व पिताजी से भी पूछ लेना ठीक रहेगा.’

‘क्योें? उन से क्यों पूछें? यह हमारा व्यक्तिगत मामला है, इस बच्चे को हम ही तो पालेंगेपोसेंगे.’

‘फिर भी, यह बच्चा उन के ही परिवार का अंग होगा न, उन्हीं का वंशज कहलाएगा न?’

यह सुन कर अर्चना बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘वह सब मैं नहीं जानती. तुम्हारे मातापिता से तुम्हीं निबटो. यह अच्छी रही, हर बात में अपने मांबाप की आड़ लेते हो. क्या तुम अपनी मरजी से एक भी कदम उठा नहीं सकते?’

रजनीश के मांबाप ने अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने के प्रस्ताव का जम कर विरोध किया इधर अर्चना भी अड़

गई कि वह दीपू को गोद ले कर ही रहेगी.

‘‘रजनीश…’’ मोहिनी ने आवाज दी, ‘‘खाना खाने नीचे, डाइनिंग रूम में चलोगे या यहीं पर कुछ मंगवा लें?’’

यह सुन कर रजनीश की तंद्रा टूटी. एक ही झटके में वह वर्तमान में लौट आया. बोला, ‘‘यहीं पर मंगवा लो.’’

खाना खाते वक्त रजनीश ने पूछा, ‘‘कल शाम को तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘सोच रही थी यहां की जौहरी की दुकानें देखूं. मेरी एक सहेली मुझे ले जाने वाली है.’’

‘‘ठीक है, मैं भी शायद व्यस्त रहूंगा.’’

रजनीश ने अर्चना को फोन किया, ‘‘अर्चना, हमारा कल का प्रोग्राम तय है न?’’

‘‘हां, अवश्य.’’

फोन का चोंगा रख कर अर्चना उत्तेजित सी टहलने लगी कि रजनीश अब क्यों उस से मिलने आ रहा है. उसे अब मुझ से क्या लेनादेना है?

तलाकनामे पर हुए हस्ताक्षर ने उन के बीच कड़ी को तोड़ दिया था. अब वे एकदूसरे के लिए अजनबी थे.

‘अर्चना, तू किसे छल रही है?’ उस के मन ने सवाल किया.

रजनीश से तलाक ले कर वह एक पल भी चैन से न रह पाई. पुरानी यादें मन को झकझोर देतीं. भूलेबिसरे दृश्य मन को टीस पहुंचाते. बहुत ही कठिनाई से उस ने अपनी बिखरी जिंदगी को समेटा था, अपने मन की किरिचों को सहेजा था.

उस का मन अनायास ही अतीत की गलियों में विचरने लगा.

उसे वह दिन याद आया जब नन्हे दीपू को ले कर घर में घमासान शुरू हो गया था.

उस ने रजनीश से कहा था कि वह दफ्तर से जरा जल्दी आ जाए ताकि वे दोनों अनाथाश्रम जा कर बच्चों में मिठाई बांट सकें. आश्रम वालों ने बताया है कि आज दीपू का जन्मदिन है.

यह सुन कर रजनीश के माथे पर बल पड़ गए थे. वह बोला, ‘यह सब न ही करो तो अच्छा है. पराए बालक से हमें क्या लेना.’

‘अरे वाह…पराया क्यों? हम जल्दी ही दीपू को गोद लेने वाले जो हैं न?’

‘इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं.’

‘तुम जल्दीबाजी की कहते हो, मेरा वश चले तो उसे आज ही घर ले आऊं. पता नहीं इस बच्चे से मुझे इतना मोह क्यों हो गया है. जरूर हमारा पिछले जन्म का रिश्ता रहा होगा,’ कहती हुई अर्चना की आंखें भर आई थीं.

यह देख कर रजनीश द्रवित हो कर बोला था, ‘ठीक है, मैं शाम को जरा जल्दी लौटूंगा. फिर चले चलेंगे.’

रजनीश को दरवाजे तक विदा कर के अर्चना अंदर आई तो सास ने पूछा, ‘कहां जाने की बात हो रही थी, बहू?’

‘अनाथाश्रम.’

यह सुन कर तो सास की भृकुटियां तन गईं. वह बोली, ‘तुम्हें भी बैठेबैठे पता नहीं क्या खुराफात सूझती रहती है. कितनी बार समझाया कि पराई ज्योति से घर में उजाला नहीं होता, पर तुम हो कि मानती ही नहीं. अरे, गोद लिए बच्चे भी कभी अपने हुए हैं, खून के रिश्ते की बात ही और होती है,’ फिर वह भुनभुनाती हुई पति के पास जा कर बोली, ‘अजी सुनते हो?’

‘क्या है?’

‘आज बहूबेटा अनाथाश्रम जा रहे हैं.’

‘सो क्यों?’

‘अरे, उसी मुए बच्चे को गोद लेने की जुगत कर रहे हैं और क्या. मियांबीवी की मिलीभगत है. वैद्य, डाक्टरों को पैसा फूंक चुके, पीरफकीरों को माथा टेक चुके, जगहजगह मन्नत मान चुके, अब चले हैं अनाथाश्रम की खाक छानने.

‘न जाने किस की नाजायज संतान, जिस के कुलगोत्र का ठिकाना नहीं, जातिपांति का पता नहीं, ला कर हमारे सिर मढ़ने वाले हैं. मैं कहती हूं, यदि गोद लेना ही पड़ रहा है तो हमारे परिवार में बच्चों की कमी है क्या? हम से तो भई जानबूझ कर मक्खी निगली नहीं जाती. तुम जरा रजनीश से बात क्यों नहीं करते.’

‘ठीक है, मैं रजनीश से बात करूंगा.’

‘पता नहीं कब बात करोगे, जब पानी सिर से ऊपर हो जाएगा तब? जाने यह निगोड़ी बहू हम से किस जन्म का बदला ले रही है. पहले मेरे भोलेभाले बेटे पर डोरे डाले, अब बच्चा गोद लेने का तिकड़म कर रही है.’

रजनीश अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर निढाल पड़ गया. अर्चना उस के पास खिसक आई और उस के बालों में उंगलियां चलाती हुई बोली, ‘क्या बात है, बहुत थकेथके लग रहे हो.’

‘आज अम्मां व पिताजी के साथ जम कर बहस हुई. वे दीपू को गोद लेने के कतई पक्ष में नहीं हैं.’

‘तो फिर?’

‘तुम्हीं बताओ.’

‘मैं क्या बताऊं, एक जरा सी बात को इतना तूल दिया जा रहा है. क्या और निसंतान दंपती बच्चा गोद नहीं लेते? हम कौन सी अनहोनी बात करने जा रहे हैं.’

‘मैं उन से कह कर हार गया. वे टस से मस नहीं हुए. मैं तो चक्की के दो पाटों के बीच पिस रहा हूं. इधर तुम्हारी जिद उधर उन की…’

‘तो अब?’

‘उन्होंने एक और प्रस्ताव रखा है…’

‘वह क्या?’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘वे कहते हैं कि चूंकि तुम मां नहीं बन सकती हो. मैं तुम्हें तलाक दे कर दूसरी शादी कर लूं.’

‘क्या…’ अर्चना बुरी तरह चौंकी, ‘तुम मेरा त्याग करोगे?’

‘ओहो, पूरी बात तो सुन लो. दूसरी शादी महज एक बच्चे की खातिर की जाएगी. जैसे ही बच्चा हुआ, उसे तलाक दे कर मैं दोबारा तुम से ब्याह कर लूंगा.’

‘वाह…वाह,’ अर्चना ने तल्खी से कहा, ‘क्या कहने हैं तुम लोगों की सूझबूझ के. मेरे साथ तो नाइंसाफी कर ही रहे हो, उस दूसरी, निरपराध स्त्री को भी छलोगे. बिना प्यार के उस से शारीरिक संबंध स्थापित करोगे और अपना मतलब साध कर उसे चलता करोगे?’

‘और कोई चारा भी तो नहीं है.’

‘है क्यों नहीं. कह दो अपने मातापिता से कि यह सब संभव नहीं. तुम पुरुष हम स्त्रियों को अपने हाथ की कठपुतली नहीं बना सकते. क्या तुम से यह कहते नहीं बना कि मैं ने शादी से पहले गर्भ धारण किया था? यदि तुम ने अबार्शन न करा दिया होता तो…’ कहतेकहते अर्चना का गला भर आया था.

‘अर्चना डियर, तुम बेकार में भावुक हो रही हो. बीती बातों पर खाक डालो. मुझे तुम्हारी पीड़ा का एहसास है. दूसरी तरफ मेरे बूढ़े मांबाप के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है. वे मुझ से एक ही चीज मांग रहे थे, इस घर को एक वारिस, इस वंश को एक कुलदीपक.’

‘तो कर लो दूसरी शादी, ले आओ दूसरी पत्नी, पर इतना बताए देती हूं कि मैं इस घर में एक भी पल नहीं रुकूंगी,’ अर्चना भभक कर बोली.

‘अर्चना…’

‘मैं इतनी महान नहीं हूं कि तुम्हारी बांहों में दूसरी स्त्री को देख कर चुप रह जाऊं. मैं सौतिया डाह से जल मरूंगी. नहीं रजनीश, मैं तुम्हें किसी के साथ बांटने के लिए हरगिज तैयार नहीं.’

‘अर्चना, इतना तैश में न आओ. जरा ठंडे दिमाग से सोचो. यह दूसरा ब्याह महज एक समझौता होगा. यह सब बिना विवाह किए भी हो सकता है पर…’

‘नहीं, मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी. हर बात में तुम्हारी नहीं चलेगी. आज तक मैं तुम्हारे इशारों पर नाचती रही. तुम ने अबार्शन को कहा, सो मैं ने करा दिया. तुम ने यह बात अपने मातापिता से गुप्त रखी, मैं राजी हुई. तुम क्या जानो कि तुम्हारी वजह से मुझे कितने ताने सहने पड़ रहे हैं. बांझ…आदि विशेषणों से मुझे नवाजा जाता है. तुम्हारी मां ने तो एक दिन यह भी कह दिया कि सवेरेसवेरे बांझ का मुंह देखो तो पूरा दिन बुरा गुजरता है. नहीं रजनीश, मैं ने बहुत सहा, अब नहीं सहूंगी.’

‘अर्चना, मुझे समझने की कोशिश करो.’

‘समझ लिया, जितना समझना था. तुम लोगों की कूटनीति में मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जैसे गायगोरू के सूखने पर उस की उपयोगिता नहीं रहती उसी तरह मुझे बांझ करार दे कर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका जा रहा है. लेकिन मुझे भी तुम से एक सवाल करना है…’

‘क्या?’ रजनीश बीच में ही बोल पड़ा.

‘समझ लो तुम मेें कोई कमी होती और मैं भी यही कदम उठाती तो?’

‘अर्चना, यह कैसा बेहूदा सवाल है?’

‘देखा…कैसे तिलमिला गए. मेरी बात कैसी कड़वी लगी.’

रजनीश मुंह फेर कर सोने का उपक्रम करने लगा. उस रात दोनों के दिल में जो दरार पड़ी वह दिनोंदिन चौड़ी होती गई.

रजनीश ने दरवाजे की घंटी बजाई तो एक सजीले युवक ने द्वार खोला.

‘‘अर्चनाजी हैं?’’ रजनीश ने पूछा.

‘‘जी हां, हैं, आप…आइए, बैठिए, मैं उन्हें बुलाता हूं.’’

अर्चना ने कमरे में प्रवेश किया. उस के हाथ में ट्रे थी.

‘‘आओ रजनीश. मैं तुम्हारे लिए काफी बना रही थी. तुम्हें काफी बहुत प्रिय है न,’’ कह कर वह उसे प्याला थमा कर बोली, ‘‘और सुनाओ, क्या हाल हैं तुम्हारे? अम्मां व पिताजी कैसे हैं?’’

‘‘उन्हें गुजरे तो एक अरसा हो गया.’’

‘‘अरे,’’ अर्चना ने खेदपूर्वक कहा, ‘‘मुझे पता ही न चला.’’

‘‘हां, तलाक के बाद तुम ने बिलकुल नाता तोड़ लिया. खैर, तुम तो जानती ही हो कि मैं ने मोहिनी से शादी कर ली. और यह नियति की विडंबना देखो, हम आज भी निसंतान हैं.’’

‘‘ओह,’’ अर्चना के मुंह से निकला.

‘‘हां, अम्मां को तो इस बात से इतना सदमा पहुंचा कि उन्होंने खाट पकड़ ली. उन के निधन के बाद पिताजी भी चल बसे. लगता है हमें तुम्हारी हाय लग गई.’’

‘‘छि:, ऐसा न कहो रजनीश, जो होना होता है वह हो कर ही रहता है. और शादी आजकल जन्म भर का बंधन कहां होती है? जब तक निभती है निभाते हैं, बाद में अलग हो जाते हैं.’’

‘‘लेकिन हम दोनों एकदूसरे के कितने करीब थे. एक मन दो प्राण थे. कितना साहचर्य, सामंजस्य था हम में. कभी सपने में भी न सोचा था कि हम एकदूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे. और आज मैं मोहिनी से बंध कर एक नीरस, बेमानी ज्ंिदगी बिता रहा हूं. हम दोनों में कोई तालमेल नहीं. अगर जीवनसाथी मनमुताबिक न हो तो जिंदगी जहर हो जाती है.

‘‘खैर छोड़ो, मैं भी कहां का रोना ले बैठा. तुम अपनी सुनाओ. यह बताओ, वह युवक कौन था जिस ने दरवाजा खोला?’’

यह सुन कर अर्चना मुसकरा कर बोली, ‘‘वह मेरा बेटा है.’’

‘‘ओह, तो तुम ने भी दूसरी शादी कर ली.’’

‘‘नहीं, मैं ने शादी नहीं की, मैं ने तो केवल उसे गोद लिया है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, रजनीश, यह वही बच्चा दीपू है, अनाथाश्रम वाला. तुम से तलाक ले कर मैं दिल्ली गई जहां मेरा परिवार रहता था. एक नौकरी कर ली ताकि उन पर बोझ न बनूं, पर तुम तो जानते हो कि एक अकेली औरत को यह समाज किस निगाह से देखता है.

‘‘पुरुषों की भूखी नजरें मुझ पर गड़ी रहतीं. स्त्रियों की शंकित नजरें मेरा पीछा करतीं. कई मर्दों ने करीब आने की कोशिश की. कई ने मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, पर मैं उन सब से बचती रही. 1-2 ने विवाह का प्रलोभन भी दिया, पर जहां मन न मिले वहां केवल सहारे की खातिर पुरुष की अंकशायिनी बनना मुझे मंजूर न था.

‘‘इस शहर में आ कर अपना अकेलापन मुझे सालने लगा. नियति की बात देखो, अनाथाश्रम में दीपू मानो मेरी ही प्रतीक्षा कर रहा था. इस ने मेरे हृदय के रिक्त स्थान को भर दिया. इस के लालनपालन में लग कर जीवन को एक गति मिली, एक ध्येय मिला. 15 साल हम ने एकदूसरे के सहारे काट दिए. इस आशा में हूं कि यह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यदि नहीं भी बना तो कोई गम नहीं, कोई गिला नहीं,’’ कहती हुई अर्चना हलके से मुसकरा दी.

Cancer : दर्द को हलके में लेने की न करें गलती, हो सकता है इस जानलेवा बीमारी का खतरा

रोजमर्रा की भागदौङ में व्यस्त लोगों के लिए छोटेमोटे दर्द को गंभीरता से लेने के लिए वक्त ही नहीं है. सभी सुखसुविधाएं होते हुए भी आजकल के लोग दर्द को लाइफस्टाइल का हिस्सा मानने लगे हैं क्योंकि अधिकतर लोग काम के प्रैशर को ही दर्द का कारण मान लेते हैं और लापरवाही करने लगते हैं. बाद में यही लापरवाही जान का जोखिम बन जाती है इसीलिए सितंबर महीने को लोगों के बीच ‘पैन अवेयरनैस’ के तौर पर मनाया जाता है जिस की शुरुआत सब से पहले साल 2001 में अमेरिकन क्रौनिक पेन ऐसोसिएशन ने की थी.

यदि समय पर दर्द का निदान करा लिया जाए तो कई ऐसी जानलेवा बीमारियों से बचा जा सकता है.

कैंसर (Cancer)  का खतरा

कई बार दर्द की शुरुआत धीरेधीरे होती है. यदि पेट, सिर, छाती में दर्द है तो हम अधिकतर इसे गैस की समस्या मान लेते हैं और कोई उपचार नहीं लेते.  लेकिन यह नासमझी हमें कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित कर सकती है। यदि शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द है साथ ही वजन कम होने लगा है. थकावट या भूख में कमी के साथ दर्द, पेट, स्तन या जोड़ों जैसे विशेष हिस्सों पर सूजन या गांठ की परेशानी हो रही है तो डाक्टर को अवश्य दिखाएं, क्योंकि यह लक्षण कैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण भी हो सकते हैं .

लाइलाज दर्द

कई बार लगातार होता सिरदर्द, पीठदर्द, ब्रेन, स्पाइन या पेल्विक रीजन में ट्यूमर का कारण भी हो सकता है जिस का हमें लंबे समय से दर्द का अनुभव हो रहा होता है और इलाज कराने पर भी हमें आराम नहीं मिलता.

इन स्थितियों का तुरंत इलाज किया जाना चाहिए जिन का पता कुछ जांच आदि के जरीए ही लगाया जा सकता है जैसे इन में ऐक्सरे, सीटी स्कैन (कंप्यूटेड टोमोग्राफी), एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनैंस इमेजिंग) स्कैन या पीईटी (पौजिट्रौन ऐमिशन टोमोग्राफी) स्कैन के जरीए ही पता लगाया जा सकता है.

दर्द होने पर घरेलू उपचार का लेना बीमारी को बढ़ा सकता है जिस से कैंसर जैसी बीमारी का इलाज हो पाना बड़ा ही मुश्किल हो सकता है क्योंकि कैंसर शरीर में बहुत जल्दी फैलता है. साथ ही अपने दर्द की तुलना किसी और की परेशानी से न करें क्योंकि हर किसी के लक्षण अलग हो सकते हैं इसलिए समय रहते डाक्टर का परामर्श अवश्य लें.

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