टेढ़ी दुम: अमित की फ्लर्ट की आदत को संगीता ने कैसे छुड़ाया?

कालेज के दिनों में मैं ज्यादातर 2 सहेलियों के बीच बैठा मिलता था. रूपसी रिया मेरे एक तरफ और सिंपल संगीता दूसरी तरफ होती. संगीता मुझे प्यार भरी नजरों से देखती रहती और मैं रिया को. रही रूपसी रिया की बात तो वह हर वक्त यह नोट करती रहती कि कालेज का कौन सा लड़का उसे आंखें फाड़ कर ललचाई नजरों से देख रहा है. कालेज की सब से सुंदर लड़की को पटाना आसान काम नहीं था, पर उस से भी ज्यादा मुश्किल था उसे अपने प्रेमजाल में फंसाए रखना. बिलकुल तेज रफ्तार से कार चलाने जैसा मामला था. सावधानी हटी दुर्घटना घटी. मतलब यह कि आप ने जरा सी लापरवाही बरती नहीं कि कोई दूसरा आप की रूपसी को ले उड़ेगा.

मैं ने रिया के प्रेमी का दर्जा पाने के लिए बहुत पापड़ बेले थे. उसे खिलानेपिलाने, घुमाने और मौकेबेमौके उपहार देने का खर्चा उतना ही हो जाता था जितना एक आम आदमी महीनेभर में अपने परिवार पर खर्च करता होगा. ‘‘रिया, देखो न सामने शोकेस में कितना सुंदर टौप लगा है. तुम पर यह बहुत फबेगा,’’ रिया को ललचाने के लिए मैं ऐसी आ बैल मुझे मार टाइप बातें करता तो मेरी पौकेट मनी का पहले हफ्ते में ही सफाया हो जाता.

मगर यह अपना स्पैशल स्टाइल था रिया को इंप्रैस करने का. यह बात जुदा है कि बाद में पापा से सचझूठ बोल कर रुपए निकलवाने पड़ते. मां की चमचागिरी करनी पड़ती. दोस्तों से उधार लेना आम बात होती. अगर संगीता ने मेरे पीछे पड़पड़ कर मुझे पढ़ने को मजबूर न किया होता तो मैं हर साल फेल होता. मैं पढ़ने में आनाकानी करता तो वह झगड़ा करने पर उतर आती. मेरे पापा से मेरी शिकायत करने से भी नहीं चूकती थी.

‘‘तू अपने काम से काम क्यों नहीं रखती है?’’ मैं जब कभी नाराज हो उस पर चिल्ला उठता तो वह हंसने लगती थी. ‘‘अमित, तुम्हें फेल होने से

बचा कर मैं अपना ही फायदा कर रही हूं,’’ उस की आंखों में शरारत नाच उठती थी. ‘‘वह कैसे?’’

‘‘अरे, कौन लड़की चाहेगी कि उस का पति ग्रैजुएट भी न हो,’’ हम दोनों के आसपास कोई न होता तो वह ऐसा ही ऊलजलूल जवाब देती. ‘‘मुझे पाने के सपने मत देखा

कर,’’ मैं उसे डपट देता तो भी वह मुसकराने लगती. ‘‘मेरा यह सपना सच हो कर रहेगा,’’ अपने मन की इच्छा व्यक्त करते हुए उस की आंखों में मेरे लिए जो प्यार के भाव नजर आते, उन्हें देख कर मैं गुस्सा करना भूल जाता और उस के सामने से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझता.

कालेज की पढ़ाई पूरी हुई तो मैं ने रिया से शादी करने की इच्छा जाहिर कर दी.

उस ने मेरी हमसफर बनने के लिए तब अपनी शर्त मुझे बता दी, ‘‘अमित, मैं एक बिजनैसमैन की पत्नी बन कर खुश नहीं रह सकूंगी और तुम अब अपने पापा का बिजनैस में हाथ बंटाने जा रहे हो. मेरा हाथ चाहिए तो आईएएस या पुलिस औफिसर बनो. एमबीए कर के अच्छी जौब पा लोगे तो भी चलेगा.’’ उस की इन बातों को सुन कर मेरा मन एक बार को बैठ ही गया था.

मगर प्यार में इंसान को बदलने की ताकत होती है. मैं ने आईएएस की परीक्षा देने का हौसला अपने अंदर पैदा किया. कई सारी किताबें खरीद लाया. अच्छी कोचिंग कहां से मिलेगी, इस बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी. संगीता को जब यह जानकारी मिली तो हंसतेहंसते उस के पेट में बल पड़ गए. बोली, ‘‘अमित, क्यों बेकार के झंझट में पड़ रहा है… देख, जो इंसान जिंदगी भर दिल्ली में रहा हो,

क्या उसे ऐवरैस्ट की चोटी पर चढ़ने के सपने देखने चाहिए?’’ उस की ऐसी बातें सुन कर मैं उसे भलाबुरा कहने लगता तो वह खूब जोरजोर से हंसती.

वैसे संगीता ने मेरी काबिलीयत को सही पहचाना था. सिर्फ 2 हफ्ते किताबों में सिर खपाने के बाद जब मुझे चक्कर से आने लगे तो आईएएस बनने का भूत मेरे सिर से उतर गया. ‘‘ज्यादा पढ़नालिखना मेरे बस का नहीं है, रिया. बस, मेरी इस कमजोरी को नजरअंदाज कर के मेरी हो जाओ न,’’ रिया से ऐसी प्रार्थना करने से पहले मैं ने उसे महंगे गौगल्स गिफ्ट किए थे.

‘‘ठीक है, यू आर वैरी स्वीट, अमित,’’ नया चश्मा लगा कर उस ने इतराते हुए मेरी बनने का वादा मुझ से कर लिया. इस वादे के प्रति अपनी ईमानदारी उस ने महीने भर बाद अमेरिका में खूब डौलर कमा रहे एक सौफ्टवेयर इंजीरियर से चट मंगनी और पट शादी कर के दिखाई.

उस ने मेरा दिल बुरी तरह तोड़ा था. मैं ने दिल टूटे आशिक की छवि को ध्यान में रख फौरन दाढ़ी बढ़ा ली और लक्ष्यहीन सा इधरउधर घूम कर समय बरबाद करने लगा.

संगीता ने जब मुझे एक दिन यों हालबेहाल देखा तो वह जम कर हंसी और फिर मेरा एक नया कुरता फाड़ कर

मेरे हाथ में पकड़ा दिया और फिर बोली, ‘‘इसे पहन कर घूमोगे तो दूर से भी कोई पहचान लेगा कि यह कोई ऐसा सच्चा आशिक जा रहा है जिस का दिल किसी बेवफा ने तोड़ा है. तुम्हारे जैसे और 2 मजनू तुम्हें सड़कों पर घूमते नजर आएंगे. उन को भी रिया ने प्यार में धोखा दिया है. एक क्लब बना कर तुम तीनों सड़कों की धूल फांकते इकट्ठे घूमना शुरू क्यों नहीं कर देते हो?’’ संगीता के इस व्यंग्य पर मैं अंदर तक तिलमिला उठा. वह उस दिन सचमुच ही रिया के 2 अन्य आशिकों से मुझ को मिलवाने भी ले गई. उन में से एक रिया का पड़ोसी था और दूसरा उस के मौसेरे भाई का दोस्त. उस रूपसी ने जम कर हम तीनों को उल्लू बनाया, इस बात को समझते ही मैं ने दिल टूटने का मातम मनाना फौरन बंद किया और नया शिकार फांसने की तैयारी करने लगा.

अगले दिन बनसंवर कर जब मैं घर से बाहर निकलने वाला था तभी संगीता मुझ से मिलने मेरे घर आ पहुंची. बोली, ‘‘मुझ से अच्छी लड़की तुम्हें कभी नहीं और कहीं नहीं मिलेगी, हीरो. वैसे अभी तक सुंदर लड़कियों के हाथों बेवकूफ बनने से दिल न भरा हो तो फिर किसी लड़की पर लाइन मारना शुरू कर दो. मेरी तरफ से तुम्हें ऐसी मूर्खता करने की इजाजत है और सदा रहेगी,’’ संगीता ने कोई सवाल पूछे बिना मेरी नीयत को फौरन पढ़ लिया तो यह बात मुझे सचमुच हैरान कर गई. ‘‘मैं कल ही तेरे मम्मीपापा को समझाता हूं कि वे कोई सीधा और अच्छा सा लड़का देख कर तेरे हाथ पीले कर दें,’’ और फिर उस से किसी तरह की बहस में उलझे बिना मैं बाहर घूमने निकल गया.

संगीता के मातापिता ने उस के लिए अच्छा लड़का फौरन ढूंढ़ लिया. उस लड़के को मेरे मम्मीपापा ने भी पास कर दिया तो महीने भर बाद ही मेरी उस के साथ सगाई हो गई और उस के अगले हफ्ते वह दुलहन बन कर हमारे घर

आ गई. मेरे दोस्तों ने मुझे इस रिश्ते के लिए मना करने को बहुत उकसाया था, पर मैं चाहते हुए भी इनकार नहीं कर सका.

‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ ही होगी,’’ संगीता प्यार भरे अपनेपन व आत्मविश्वास के साथ यह बात कहती थी और अंत में उस का कहा ही सच भी हुआ. इस में कोई शक नहीं कि वह मुझे बहुत प्यार करती है और मेरी सच्ची शुभचिंतक है. बहुत ध्यान रखती है वह मेरा. वह ज्यादा सुंदर तो नहीं है पर उस के पास सोने का दिल है. उस का सब से बड़ा गुण है मेरी किसी भी गलती पर नाराज होने के बजाय सदा हंसतेमुसकराते रहना. उस की हंसी में कुछ ऐसा है, जो मुझे उसी पल तनावमुक्त कर शांत और प्रसन्न कर जाता है. वह मुझे दिल से अपना पसंदीदा हीरो मानती है.

मगर मेरी दुम शादी के बाद भी टेढ़ी की टेढ़ी ही रही है. सुंदर लड़कियों पर लाइन मारने का कोई मौका मैं अब भी नहीं चूकता हूं पर संगीता की नजरों से अपनी इन हरकतों को बचा पाना मेरे लिए संभव नहीं. ‘‘फलांफलां युवती के साथ चक्कर चलाने की कोशिश कर रहे हो न?’’ वह मेरी हरकतों को पढ़ लेने के बाद जब भी मुसकराते हुए यह सवाल सीधासीधा मुझ से पूछती है तो मैं झूठ नहीं बोल पाता हूं.

‘‘ऐसे ही जरा हंसबोल कर टाइम पास कर रहा था,’’ चूंकि वह मेरी फ्लर्ट करने की आदत के कारण मुझ से कभी लड़तीझगड़ती नहीं है, इसलिए मैं उसे सच बात बता देता हूं. ‘‘अपनी हौबी को टाइम पास करना मत कहोजी. अब लगे हाथ यह भी बता दो कि किस चीज को गिफ्ट करने का लालच दे कर उसे अपने जाल में फंसाने की कोशिश कर रहे थे, रोमियो के नए अवतारजी?’’

वह मेरी लड़की पटाने की तरकीबों को शुरू से ही पहचानती है. ‘‘उस का मनपसंद सैंट,’’ मैं झेंपी सी हंसी हंसते हुए सचाई बता देता.

‘‘उस पर क्यों रुपए बरबाद करते हो, स्वीटहार्ट. मैं मौजूद हूं न लड़कियों को गिफ्ट करने की तुम्हारे अंदर उठने वाली खुजली को मिटाने के लिए. कल चलते हैं मेरा मनपसंद

सैंट खरीदने.’’ ‘‘तुम्हारे पास पहले से ही सैंट की दर्जनों बोतलें हैं,’’ मैं हलका सा विरोध करता तो वह खिलखिला कर हंस पड़ती.

‘‘सैंट ही क्यों, तुम्हारी लड़कियों को दाना डालने की आदत के चलते मेरे पास कई सुंदर ड्रैसेज भी हैं, ज्वैलरी भी, 3 रिस्ट वाच, 2 जोड़े गौगल्स और न जाने कितनी महंगी चीजें इकट्ठी हो गई हैं, मेरे धन्ना सेठ. मैं तो अकसर कामना करती हूं कि लड़कियों से फ्लर्ट करने के मामले में वह तुम्हारी टेढ़ी दुम कभी सीधी

न हो.’’ ‘‘यार, अजीब औरत हो तुम जो अपने पति को दूसरी औरतों के साथ फ्लर्ट करता देख कर खुश होती है,’’ मैं चिढ़ उठता तो उस का ठहाका आसपास की दीवारों को हिला जाता.

शादी के बाद कभीकभी मैं संगीता से मन ही मन बहुत नाराज हो उठता था. मुझे लगता था कि स्वतंत्रता से जीने की राह में वह मेरे लिए बहुत बड़ी रुकावट बनी हुई है. फिर एक पार्टी में कुछ ऐसा घटा जिस ने मेरा यह नजरिया ही बदल दिया.

उस रात मैं पहले बैंक्वेट हौल में प्रवेश कर गया, क्योंकि संगीता अपनी किसी सहेली से बात करने को दरवाजे के पास रुक गई थी.

जब संगीता ने अंदर कदम रखा तब मेरे कानों में उस की प्रशंसा करता पुरुष स्वर पहुंचा, ‘‘क्या स्मार्ट लेडी है, यारो… यह कोई टीवी कलाकार या मौडल है क्या?’’

इन जनाब ने ये बातें अपने दोस्तों से कही थीं. उस रात मैं ने भी संगीता को जब ध्यान से देखा तो मुझे सचमुच उस का व्यक्तित्व बहुत स्मार्ट और प्रभावशाली लगा. उस के नैननक्श तो ज्यादा सुंदर कभी नहीं रहे थे, पर अपने लंबे कद, आकर्षक फिगर और अपने ऊपर खूब फबने वाली साड़ी पहनने के कारण वह बहुत जंच

रही थी. मैं ने आगे बढ़ कर बड़े गर्व के साथ संगीता का हाथ पकड़ा तो उन पुरुषों की आंखों में मैं ने ईर्ष्या के भाव पैदा होते साफ देखे.

‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो,’’ मैं ने दिल से संगीता की ऐसी तारीफ शायद पहली बार

करी थी. ‘‘ये सब तुम से मिले गिफ्ट्स का कमाल है. वैसे आज अपनी बीवी पर कैसे लाइन मार रहे हो, अमित?’’ उस का चेहरा फूल सा खिल

उठा था. ‘‘दुनिया तुम पर लाइन मारने को तैयार है, तो मैं ने सोचा कि मैं ही क्यों पीछे रहूं.’’

‘‘बेकार की बात मत करो,’’ उस का एकदम से शरमाना मेरे मन को बहुत भाया. उस रात मुझे अपनी पत्नी के साथ फ्लर्ट करने का नया और अनोखा अनुभव मिला. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि किसी अन्य युवती से फ्लर्ट करने के मुकाबले यह ज्यादा सुखद और आनंददायक अनुभव रहा.

आजकल मेरी जिंदगी बहुत बढि़या कट रही है. पत्नी को प्रेमिका बना लेने से मेरे दोनों हाथों में लड्डू हैं. भरपूर मौजमस्ती के साथसाथ मन की शांति भी मिल रही है. मेरे साथ झगड़ने से परहेज कर के और मुझे प्यार की नाजुक डोर से बांध कर संगीता ने मेरी टेढ़ी दुम को सीधा करने में आखिर कामयाबी पा ही ली है.

अंतरंग दृश्यों में सहज रहती हूं : Asha Negi

खूबसूरत, मृदुभाषी, हंसमुख और साल 2009 की मिस उत्तराखंड बनी अभिनेत्री आशा नेगी (Asha Negi) उत्तराखंड के देहरादून की हैं. मौडलिंग से कैरियर की शुरुआत करने वाली आशा ने टीवी धारावाहिकों और वैब सीरीज में काम किया है. अभिनय के लिए वे 22 साल की उम्र में मुंबई आईं और उन की पहली टीवी धारावाहिक ‘सपनों से भरे नैना’ में मधुरा की भूमिका निभाई. इस के बाद उन्होंने टीवी शो ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ में अपेक्षा मल्होत्रा की भूमिका निभाई और बाद में धारावाहिक ‘पवित्र रिश्ता’ में पूर्वी देशमुख का किरदार निभा कर घरघर में पहचानी गईं.

इस के अलावा फिल्म ‘लूडो’, ‘कौलर बम,’ वैब सीरीज ‘बारिश’, ‘अभय’ आदि में भी उन्होंने अभिनय किया है.

वर्ष 2013 में आशा का संबंध ‘पवित्र रिश्ता’ के कोस्टार ऋत्विक धनजानी के साथ जुड़ा. दोनों ने साथ में डांस रियलिटी शो ‘नच बलिए सीजन 6’ में भी हिस्सा लिया और ट्रौफी भी जीती थी, लेकिन 7 साल की डेटिंग के बाद वर्ष 2020 में उन का ब्रेकअप हो गया. इस ब्रेकअप के बारे में आशा का कहना था कि दोनों ने अच्छे मोड़ पर आ कर रिलेशनशिप को खत्म किया है. ब्रेकअप के बाद भी उन के और ऋत्विक के बीच सम्मान है और वे एकदूसरे से बात करते रहते हैं.

जियोसिनेमा पर आशा नेगी की वैब सीरीज ‘हनीमून फोटोग्राफर’ स्ट्रीम हुई  है, जो एक मर्डर मिस्ट्री है, जिसे ले कर वे बहुत उत्साहित हैं.

पेश हैं, उन से हुई बातचीत के कुछ खास अंश :

आशा को हमेशा कुछ चुनौतीपूर्ण अभिनय की इच्छा रहती है. इस शो की खासियत के बारे में उन का कहना है कि प्रायोरिटी वही रहती है कि किरदार ऐसा हो जो मुझे कंफर्ट जोन से बाहर ले कर जाए. इस की कहानी बहुत रुचिपूर्ण है, इसलिए मना करने की कोई वजह नहीं रही.

मैं इस में एक फोटोग्राफर अंबिका की भूमिका निभा रही हूं। मुझे फोटोग्राफी का शौक है, लेकिन बड़े कैमरे को हैंडल नहीं किया है, इसलिए सीरीज के दौरान मैं ने सही फोटोग्राफी के लिए फोटोग्राफर फ्रैंड्स का सहारा लिया, फोटोग्राफी की बारीकियां सीखीं, ताकि ऐसा न लगे कि मैं ने पहली बार कैमरा पकड़ा है. इस में कैमरे को फोकस करना, जूमइन, जूमआउट आदि चीजों को सीखा है.

इमोशंस को बैलेंस करना कठिन था

आशा आगे बताती हैं कि शूटिंग के दौरान बहुत मस्ती की मैं ने, लेकिन कई इमोशंस इस में हैं, उसे बैलेंस करना थोड़ा मुश्किल था. इस चरित्र से मैं कुछ हद तक रिलेट कर सकती हूं क्योंकि कहीं न कहीं मेरा चरित्र अपने काम को ले कर काफी पैशनेट है और मैं भी ऐक्टिंग को ले कर काफी पैशनेट हूं, इस के अलावा कोई भी किरदार में कुछ न कुछ मेरे लिए रिलेटेबल हो जाता है. कुछ न कुछ उस से हमें अच्छी चीजें सीखने को भी मिलती हैं.

अंतर समय का

आशा ने कई टीवी सीरियल्स, फिल्में और वैब सीरीज में काम किया है. अभिनय में अंतर के बारे में पूछने पर वे कहती हैं कि टीवी में कई बार जल्दीजल्दी शूट करना पड़ता था क्योंकि शाम को टैलिकास्ट होना है, जबकि स्क्रिप्ट सुबह आई होती है। ऐसे में, उसी समय शूट कर भेजना होता था. यहां थोड़ा तसल्ली से
काम होता है. टीवी शो चलता रहता है, उस का अंत किसी को पता नहीं होता जबकि यहां पर शूटिंग करने के समय का पता चल जाता है, इसलिए मजा आता है क्योंकि एक कैरेक्टर किया, ब्रेक लिया. फिर कोई नया चरित्र किया, बस ऐसे ही चलता रहता है.

क्या सच क्या झूठ

टीवी से फिल्मों या वैब सीरीज में आने पर कलाकार सफल नहीं होते, इस में कितनी सचाई है? यह पूछने पर आशा हंसती हुई कहती हैं कि यह सही है क्योंकि टीवी अधिक करने के बाद फिल्मों और वैब सीरीज को ऐडौप्ट करने में थोड़ा समय लगता है, लेकिन अगर आप प्रतिभावान और मेहनती है, ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं, तो इतना अधिक कठिन भी नहीं है. बहुत सारे टीवी कलाकार आज अच्छा काम कर रहे हैं.

ओटीटी से काम मिलना हुआ आसान

ओटीटी की वजह से आज के कलाकारों को काम मिलना कितना आसान हुआ है, यह पूछने पर आशा कहती हैं कि ओटीटी में कोई ऐक्टर या ऐक्ट्रैस नहीं, बल्कि सारे कलाकार हैं क्योंकि सभी अच्छा काम कर रहे हैं और अच्छा कंटैंट बन रहा है. साथ ही नए कलाकारों को भी काम मिलना थोड़ा आसान हुआ है.

हर शो के लिए है दर्शक

मारधाड़ वाली अधिकतर सीरीज बनने की वजह पूछने पर आशा का कहना है कि आज हर शो के लिए दर्शक है, इसलिए शो चाहे मारधाड़, खूनखराबे वाली हो, फिर भी लोग उसे देखते है, इसलिए बन रही है. रोमांस, घरपरिवार वाली शो के लिए भी दर्शक हैं और ये बनती रहेंगी। जिस दिन दर्शक नकार देंगे, मारधाड़ वाली शो बननी बंद हो जाएगी. मेरे हिसाब से इंडस्ट्री सब को खुश रखती है. मुझे थ्रिलर, सस्पैंस, स्वीट सी कहानियां देखना पसंद है.

मिली प्रेरणा

ऐक्टिंग में आने की प्रेरणा के बारे में पूछने पर आशा बताती हैं कि परिवार में दूरदूर तक कोई भी इस फील्ड से नहीं है. मुझे लगा था कि ‘मिस उत्तराखंड’ बनने के बाद मेरा ग्लैमर का शौक पूरा हो जाएगा, लेकिन इस के बाद से मौडलिंग के औफर आने लगे. फिर मैं ने 22 साल की उम्र में मुंबई आने की
बात जब घर वालों को बताई, तो उन्होंने पहले मना कर दिया, बाद में बहुत समझाने पर उन्होंने हामी भरी. मुंबई आने पर जब मैं ने अभिनेत्री साक्षी तंवर के साथ धारावाहिक ‘बड़े अच्छे लगते हैं’ में काम किया, तो मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. उन से मैं काफी प्रभावित हुई, क्योंकि साक्षी एक अच्छी ऐक्ट्रैस होने के साथसाथ एक अच्छी इंसान भी हैं.

परिवार का सहयोग

परिवार का सहयोग मिलने में आशा को थोड़ी परेशानी हुई। वे कहती हैं कि मैं ने कई दिनों तक भूख हड़ताल किया ताकि वे मुझे मुंबई जाने की अनुमति दें, लेकिन एक शर्त लगाई थी कि अगर मैं कुछ कर नहीं पाई तो वापस लौटूंगी, पर ऐसा नहीं हुआ उन्होंने मुझे टीवी पर देख लिया था, फिर वे खुश हुए.

आर्मी बैकग्राउंड से होने की वजह से मैं बहुत ही अनुशासित ढंग से बड़ी हुई हूं. मेरे पेरैंट्स चाहते थे कि मैं पढ़ाई खत्म कर शादी कर लूं, पर अब उन की ऐसी सोच नहीं है.

रहा संघर्ष

आशा कहती हैं कि शुरुआत में काफी संघर्ष किया, लेकिन जब मैं ने बालाजी प्रोडक्शन हाउस के साथ काम कर लिया, तो सामने से काम आने लगे थे.

पार्टी नहीं है पसंद

अच्छे लोगों के बीच रहने की कोशिश आशा नेगी हमेशा करती हैं। इसे वे बहुत जरूरी भी मानती हैं, क्योंकि गलत संगत में रहने पर व्यक्ति भटक जाता है. वे कहती हैं कि शुरू से मुझे पार्टी अधिक पसंद नहीं, खुद में रहना अच्छा लगता है. मेरे आसपास के लोग भी अच्छे मिलते गए, जिस से मुझे ग्राउंडेड रहना आसान हुआ.

अंतरंग दृश्य में सहज

आशा कहती हैं कि समय के साथसाथ ऐक्टिंग में सुधार हुआ है और अंतरंग दृश्यों में भी खुद को सहज पाने लगी हूं. मैं खुद पर किसी प्रकार की पाबंदियां लगाना नहीं चाहती. धीरेधीरे मैं सहज हो रही हूं कि अंतरंग दृश्य में सहज कैसे रहना है, क्योंकि स्क्रिप्ट की डिमांड पर उसे करना भी जरूरी है.

दीवाली में आशा हमेशा परिवार के साथ रहना पसंद करती हैं, इंडियन आउट्फिट पहनती हैं, परिवारजनों के लिए भी उन के अनुसार साड़ियां खरीदती हैं. अच्छे व्यंजन पकाती हैं और सब के साथ मिल कर ऐंजौय करती हैं.

मैं अपनी मौसी के लड़के से शादी करना चाहती हूं, क्या यह शादी संभव है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 18 वर्षीय युवती हूं और अपनी मौसी के लड़के से पिछले 3 वर्षों से प्यार करती हूं. हम एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते, इसलिए मैं उस से शादी करना चाहती हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या यह शादी संभव है और यदि हम दोनों शादी कर लेते हैं तो इस में कोई बुराई तो नहीं है?

जवाब

आप की उम्र अभी बहुत कम है और आप पिछले 3 वर्षों यानी किशोरावस्था से प्यार का दम भर रही हैं. जिसे आप प्यार समझ रही हैं वह प्यार नहीं सिर्फ यौनाकर्षण है. इस उम्र में अपोजिट सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक होता है और यह जितनी तेजी से चढ़ता है उसी वेग से उतर भी जाता है. अत: आप इस भ्रम को मन से निकाल दें.

इस के अलावा शादीब्याह के लिए सोचने की अभी आप की उम्र नहीं है. यह जिम्मेदारी बड़ों पर छोड़ दें. अभी मौजमस्ती करें और अपने कैरियर के बारे में सोचें.

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राहुल के पेरैंट्स को उस समय गहरा सदमा लगा जब उन्हें पता चला कि उन के बेटे का लिवर खराब हो चुका है. उन्होंने 2 साल पहले राहुल को इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए बेंगलुरु भेजा था. अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा वे अपने लाड़ले की पढ़ाई पर खर्च कर रहे थे. उन्हें भरोसा था कि पढ़लिख कर राहुल का कैरियर संवर जाएगा. बेटे से मिलने जब वे बेंगलुरु पहुंचे तो डाक्टरों ने बताया कि काफी ज्यादा नशा लेने की वजह से राहुल का लिवर खराब हो गया है. यह सुन कर उन्हें झटका लगा. पढ़ने के बजाय राहुल नशाखोरी करता रहा. सिर पीटने के अलावा उन के पास कोई चारा न था.  इस तरह के ढेरो वाकए हैं कि जब मातापिता बेटे को पढ़नेलिखने के लिए बाहर भेजते हैं और बेटा नशे के जाल में फंस कर अपनी जिंदगी व कैरियर चौपट कर लेता है.

पटना के एक बैंक अधिकारी हीरा सिन्हा के साथ कुछ ऐसा ही हादसा हुआ. 4 साल पहले उन्होंने बड़े ही जतन से अपने इकलौते बेटे रौशन को मैडिकल की कोचिंग के लिए दिल्ली भेजा था.  वे हर महीने बेटे के बैंक अकाउंट में 10 हजार रुपए डाल देते और निश्ंिचत थे कि उन का बेटा मैडिकल की जम कर तैयारी कर रहा है. एक दिन उन के पास पुलिस का फोन आया कि उन के बेटे ने खुदकुशी कर ली है. दिल्ली पहुंचे तो पता चला कि शुरुआत में एक महीना कोचिंग करने के बाद वह कभी कोचिंग करने गया ही नहीं. शराब और ड्रग्स की चपेट में फंस कर उस ने अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली.

स्कूल, कालेज और कोचिंग क्लासेज करने वाले काफी ज्यादा बच्चे नशे के शिकार बन रहे हैं. जब नशे की वजह से किसी गंभीर और खतरनाक बीमारी की चपेट में आ जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि नशे ने उन का क्या बरबाद कर के रख दिया. ग्लानि और मातापिता के डर से कई खुदकुशी कर लेते हैं तो कईर् बीमारी का इलाज करातेकराते ही अपने जीवन का सुनहरा दौर खत्म कर लेते हैं.  रमेश कदम पटना में सैंकंड ईयर इंजीनियरिंग का स्टूडैंट है. पढ़ाई के दौरान ही उस की संगति नशेडि़यों से हो गई और शराब पीने की लत लग गई. उस की आंखें हमेशा लाल और चढ़ीचढ़ी रहने लगीं और वह बातबात पर चिड़चिड़ाने व झल्लाने लगा. घर वाले उसे डाक्टर के पास ले गए तो डाक्टर ने बताया कि रमेश नशे का आदी है. डाक्टर ने कहा कि नशामुक्ति केंद्र में डाल कर उस का इलाज कराएं.

बच्चे के रोज की दिनचर्या और उस की बदल रही गतिविधियों पर मातापिता को नजर रखनी चाहिए. बच्चे के रंगढंग में बदलाव दिखने पर सतर्क हो जाना चाहिए. नशा या किसी भी गलत काम करने वाला लड़का दिन या शाम में कोई खास समय पर घर से गायब होने लगता है. वह पढ़ाई करने, दोस्तों से नोट्स लेने, टीचर के पास जाने, दोस्तों द्वारा पार्टी देने आदि का बहाना बना कर रोज घर से निकलने लगेगा.  रोजरोज ऐसे बहाने बना कर बच्चा बाहर जाने की कोशिश करे तो शुरू में ही उसे समझाबुझा कर या हलकी डांटफटकार लगा कर पढ़ाई के लिए बैठने को कहें.  आखिर पढ़ाईलिखाई की उम्र में बच्चे कैसे और क्यों नशे के जाल में फंस जाते हैं? बच्चों के प्रति मातापिता और परिवार का ध्यान न देना इस की सब से बड़ी वजह है. ज्यादातर मातापिता बच्चों को किताब, कपड़े, मोबाइल, कंप्यूटर, रुपया दे कर अपनी जिम्मेदारी का खत्म होना समझ लेते हैं. जबकि उन्हें चाहिए कि रोज बच्चों के साथ बैठ कर पढ़ाई, टीचर, दोस्तों और उन के शौक के बारे में उन से बातें करें.

इस से बच्चा मातापिता और परिवार वालों से घुलामिला रहेगा. कभीकभार अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ मार्केटिंग, फिल्म देखने, डीवीडी लेने, पार्कों में घूमने भी जाएं, ताकि मनोरंजन के लिए उसे गलत रास्ता न अपनाना पड़े.  नशामुक्ति केंद्र में 6 माह तक इलाज करवा कर नशे से तोबा करने वाला रवि बताता है कि ग्रुप प्रैशर यानी दोस्तों के दबाव में उस ने शराब पीनी शुरू की. दोस्त उसे शराब पीने को कहते और वह मना करता तो उस की खिल्ली उड़ाई जाती. दूधपीता बच्चा, नामर्द, बबुआ और न जाने क्याक्या कहा जाता. इस से आजिज हो कर एक दिन शराब पी ली और फिर उस में ऐसा डूबा कि फिर निकलना मुश्किल हो गया.  मातापिता से आसानी से रुपया मिल जाना, कदमकदम पर आसानी से शराब, गुटखा, गांजा व नशे का अन्य सामान मिल जाना, पश्चिमी शैली की नकल, समाज में बढ़ता खुलापन, तनाव, अवसाद आदि वजहों से भी युवा नशे की गिरफ्त में फंसते हैं.

कम आयु में ही बच्चों को नशे की लत लगने से उन का जीवन, कैरियर, शरीर, परिवार और समाज पर काफी बुरा असर होता है. जिस आयु में उन्हें खुद को और परिवार व समाज को बनानेसंवारने का समय होता है, उस में नशाबाजी कर वे सब चौपट कर लेते हैं. सो, मातापिता को बच्चों के प्रति सतर्क होने की जरूरत है.

चेत जाएं मातापिता जब…

बच्चा बेसमय या किसी खास समय पर घर से रोज निकलने लगे.

अलमारी, दराज या आप के पौकेट से रुपए गायब होने लगें.

बच्चों की आंखें लाल और सूजी लगने लगें.

उलटी करें और नींद न आने की बात करें.

घर से कीमती सामान गायब होने लगें.

बाथरूम में ज्यादा समय गुजारें.

बच्चे सुबह देर से जगें.

परिवार के सदस्यों से दूरी बनाने लगें.

चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाएं.

खांसी का दौरा पड़ने लगे.

झूठ बोलने की आदत पड़ जाए.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सहारा: कौन बना अर्चना के बुढ़ापे का सहारा

लेखक- रमणी मोटाना

‘‘अर्चना,’’ उस ने पीछे से पुकारा.

‘‘अरे, रजनीश…तुम?’’ उस ने मुड़ कर देखा और मुसकरा कर बोली.

‘‘हां, मैं ही हूं, कैसा अजब इत्तिफाक है कि तुम दिल्ली की और मैं मुंबई का रहने वाला और हम मिल रहे हैं बंगलौर की सड़क पर. वैसे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मैं आजकल यहीं रहती हूं. यहां घडि़यों की एक फैक्टरी में जनसंपर्क अधिकारी हूं. और तुम?’’

‘‘मैं यहां अपने व्यापार के सिलसिले में आया हुआ हूं. मेरी पत्नी भी साथ है. हम पास ही एक होटल में ठहरे हैं.’’

2-4 बातें कर के अर्चना बोली, ‘‘अच्छा…मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे रुको,’’ वह हड़बड़ाया, ‘‘इतने  सालों बाद हम मिले हैं, मुझे तुम से ढेरों बातें करनी हैं. क्या हम दोबारा नहीं मिल सकते?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ कहते हुए अर्चना ने विजिटिंग कार्ड पर्स में से निकाला और उसे देती हुई बोली, ‘‘यह रहा मेरा पता व फोन नंबर. हो सके तो कल शाम की चाय मेरे साथ पीना और अपनी पत्नी को भी लाना.’’

अर्चना एक आटो-रिकशा में बैठ कर चली गई. रजनीश एक दुकान में घुसा जहां उस की पत्नी मोहिनी शापिंग कर तैयार बैठी थी.

‘‘मेरीखरीदारी हो गई. जरा देखो तो ये साडि़यां ज्यादा चटकीली तो नहीं हैं. पता नहीं ये रंग

मुझ पर खिलेंगे

या नहीं,’’ मोहिनी बोली.

रजनीश ने एक उचटती नजर मोहिनी पर डाली. उस का मन हुआ कि कह दे, अब उस के थुलथुल शरीर पर कोई कपड़ा फबने वाला नहीं है, पर वह चुप रह गया.

मोहिनी की जान गहने व कपड़ों में बसती है. वह सैकड़ों रुपए सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्चती है. घंटों बनती-संवरती है. केश काले करती है, मसाज कराती है. नाना तरह के उपायों व साधनों से समय को बांधे रखना चाहती है. इस के विपरीत रजनीश आगे बढ़ कर बुढ़ापे को गले लगाना चाहता है. बाल खिचड़ी, तोंद बढ़ी हुई, एक बेहद नीरस, उबाऊ जिंदगी जी रहा है वह. मन में कोई उत्साह नहीं. किसी चीज की चाह नहीं. बस, अनवरत पैसा कमाने में लगा रहता है.

कभीकभी वह सोचता है कि वह क्यों इतनी जीतोड़ मेहनत करता है. उस के बाद उस के ऐश्वर्य को भोगने वाला कौन है. न कोई आसऔलाद न कोई नामलेवा… और तो और इसी गम में घुलघुल कर उस की मां चल बसीं.

संतान की बेहद इच्छा ने उसे अर्चना को तलाक दे कर मोहिनी से ब्याह करने को प्रेरित किया था. पर उस की इच्छा कहां पूरी हो पाई थी.

होटल पहुंच कर रजनीश बालकनी में जा बैठा. सामने मेज पर डिं्रक का सामान सजा हुआ था. रजनीश ने एक पैग बनाया और घूंटघूंट कर के पीने लगा.

उस का मन बरबस अतीत में जा पहुंचा.

कालिज की पढ़ाई, मस्तमौला जीवन. अर्चना से एक दिन भेंट हुई. पहले हलकी नोकझोंक से शुरुआत हुई, फिर छेड़छाड़, दोस्ती और धीरेधीरे वे प्रेम की डोर में बंध गए थे.

एक रोज अर्चना उस के पास घबराई हुई आई और बोली, ‘रजनीश, ऐसे कब तक चलेगा?’

‘क्या मतलब?’

‘हम यों चोरी- छिपे कब तक मिलते रहेंगे?’

‘क्यों भई, इस में क्या अड़चन है? तुम लड़कियों के होस्टल में रहती हो, मैं अपने परिवार के साथ. हमें कोई बंदिश नहीं है.’

‘ओहो…तुम समझते नहीं, हम शादी कब कर रहे हैं?’

‘अभी से शादी की क्या जल्दी पड़ी है, पहले हमारी पढ़ाई तो पूरी हो जाए…उस के बाद मैं अपने पिता के व्यापार में हाथ बंटाऊंगा फिर जा कर शादी…’

‘इस में तो सालों लग जाएंगे,’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘तो लगने दो न…हम कौन से बूढ़े हुए जा रहे हैं.’

‘हमारे प्यार को शादी की मुहर लगनी जरूरी है.’

‘बोर मत करो यार,’ रजनीश ने उसे बांहों में समेटते हुए कहा, ‘तनमनधन से तो तुम्हारा हो ही चुका हूं, अब अग्नि के सामने सिर्फ चंद फेरे लेने में ही क्या रखा है.’

‘रजनीश,’ अर्चना उस की गिरफ्त से छूट कर घुटे हुए स्वर में बोली, ‘मैं…मैं प्रेग्नैंट हूं.’

‘क्या…’ रजनीश चौंका, ‘मगर हम ने तो पूरी सावधानी बरती थी…खैर, कोई बात नहीं. इस का इलाज है मेरे पास, अबार्शन.’

‘अबार्शन…’ अर्चना चौंक कर बोली, ‘नहीं, रजनीश, मुझे अबार्शन से बहुत डर लगता है.’

‘पागल न बनो. इस में डरने की क्या बात है? मेरा एक दोस्त मेडिकल कालिज में पढ़ता है. वह आएदिन ऐसे केस करता रहता है. कल उस के पास चले चलेंगे, शाम तक मामला निबट जाएगा. किसी को कानोंकान खबर भी न होगी.’

‘लेकिन जब हमें शादी करनी ही है तो यह सब करने की जरूरत?’

‘शादी करनी है सो तो ठीक है, लेकिन अभी से शादी के बंधन में बंधना सरासर बेवकूफी होगी. और जरा सोचो, अभी तक मेरे मांबाप को हमारे संबंधों के बारे में कुछ भी नहीं मालूम. अचानक उन के सामने फूला पेट ले कर जाओगी तो उन्हें बुरी तरह सदमा पहुंचेगा.

‘नहीं, अर्चना, मुझे उन्हें धीरेधीरे पटाना होगा. उन्हें राजी करना होगा. आखिर मैं उन की इकलौती संतान हूं. मैं उन की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता.’

‘प्यार का खेल खेलने से पहले ही यह सब सोचना था न?’ अर्चना कुढ़ कर बोली.

‘डार्ल्ंिग, नाराज न हो, मैं वादा करता हूं कि पढ़़ाई पूरी होते ही मैं धूमधड़ाके से तुम्हारे द्वार पर बरात ले कर आऊंगा और फिर अपने यहां बच्चों की लाइन लगा दूंगा…’

लेकिन शादी के 10-12 साल बाद भी बच्चे न हुए तो रजनीश व अर्चना ने डाक्टरों का दरवाजा खटखटाया था और हरेक डाक्टर का एक ही निदान था कि अर्चना के अबार्शन के समय नौसिखिए डाक्टर की असावधानी से उस के गर्भ में ऐसी खराबी हो गई है जिस से वह भविष्य में गर्भ धारण करने में असमर्थ है.

यह सुन कर अर्चना बहुत दुखी हुई थी. कई दिन रोतेकलपते बीते. जब जरा सामान्य हुई तो उस ने रजनीश को एक बच्चा गोद लेने को मना लिया.

अनाथाश्रम में नन्हे दीपू को देखते ही वह मुग्ध हो गई थी, ‘देखो तो रजनीश, कितना प्यारा बच्चा है. कैसा टुकुरटुकुर हमें ताक रहा है. मुझे लगता है यह हमारे लिए ही जन्मा है. बस, मैं ने तो तय कर लिया, मुझे यही बच्चा चाहिए.’

‘जरा धीरज धरो, अर्चना. इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं. एक बार अम्मां व पिताजी से भी पूछ लेना ठीक रहेगा.’

‘क्योें? उन से क्यों पूछें? यह हमारा व्यक्तिगत मामला है, इस बच्चे को हम ही तो पालेंगेपोसेंगे.’

‘फिर भी, यह बच्चा उन के ही परिवार का अंग होगा न, उन्हीं का वंशज कहलाएगा न?’

यह सुन कर अर्चना बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘वह सब मैं नहीं जानती. तुम्हारे मातापिता से तुम्हीं निबटो. यह अच्छी रही, हर बात में अपने मांबाप की आड़ लेते हो. क्या तुम अपनी मरजी से एक भी कदम उठा नहीं सकते?’

रजनीश के मांबाप ने अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने के प्रस्ताव का जम कर विरोध किया इधर अर्चना भी अड़

गई कि वह दीपू को गोद ले कर ही रहेगी.

‘‘रजनीश…’’ मोहिनी ने आवाज दी, ‘‘खाना खाने नीचे, डाइनिंग रूम में चलोगे या यहीं पर कुछ मंगवा लें?’’

यह सुन कर रजनीश की तंद्रा टूटी. एक ही झटके में वह वर्तमान में लौट आया. बोला, ‘‘यहीं पर मंगवा लो.’’

खाना खाते वक्त रजनीश ने पूछा, ‘‘कल शाम को तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘सोच रही थी यहां की जौहरी की दुकानें देखूं. मेरी एक सहेली मुझे ले जाने वाली है.’’

‘‘ठीक है, मैं भी शायद व्यस्त रहूंगा.’’

रजनीश ने अर्चना को फोन किया, ‘‘अर्चना, हमारा कल का प्रोग्राम तय है न?’’

‘‘हां, अवश्य.’’

फोन का चोंगा रख कर अर्चना उत्तेजित सी टहलने लगी कि रजनीश अब क्यों उस से मिलने आ रहा है. उसे अब मुझ से क्या लेनादेना है?

तलाकनामे पर हुए हस्ताक्षर ने उन के बीच कड़ी को तोड़ दिया था. अब वे एकदूसरे के लिए अजनबी थे.

‘अर्चना, तू किसे छल रही है?’ उस के मन ने सवाल किया.

रजनीश से तलाक ले कर वह एक पल भी चैन से न रह पाई. पुरानी यादें मन को झकझोर देतीं. भूलेबिसरे दृश्य मन को टीस पहुंचाते. बहुत ही कठिनाई से उस ने अपनी बिखरी जिंदगी को समेटा था, अपने मन की किरिचों को सहेजा था.

उस का मन अनायास ही अतीत की गलियों में विचरने लगा.

उसे वह दिन याद आया जब नन्हे दीपू को ले कर घर में घमासान शुरू हो गया था.

उस ने रजनीश से कहा था कि वह दफ्तर से जरा जल्दी आ जाए ताकि वे दोनों अनाथाश्रम जा कर बच्चों में मिठाई बांट सकें. आश्रम वालों ने बताया है कि आज दीपू का जन्मदिन है.

यह सुन कर रजनीश के माथे पर बल पड़ गए थे. वह बोला, ‘यह सब न ही करो तो अच्छा है. पराए बालक से हमें क्या लेना.’

‘अरे वाह…पराया क्यों? हम जल्दी ही दीपू को गोद लेने वाले जो हैं न?’

‘इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं.’

‘तुम जल्दीबाजी की कहते हो, मेरा वश चले तो उसे आज ही घर ले आऊं. पता नहीं इस बच्चे से मुझे इतना मोह क्यों हो गया है. जरूर हमारा पिछले जन्म का रिश्ता रहा होगा,’ कहती हुई अर्चना की आंखें भर आई थीं.

यह देख कर रजनीश द्रवित हो कर बोला था, ‘ठीक है, मैं शाम को जरा जल्दी लौटूंगा. फिर चले चलेंगे.’

रजनीश को दरवाजे तक विदा कर के अर्चना अंदर आई तो सास ने पूछा, ‘कहां जाने की बात हो रही थी, बहू?’

‘अनाथाश्रम.’

यह सुन कर तो सास की भृकुटियां तन गईं. वह बोली, ‘तुम्हें भी बैठेबैठे पता नहीं क्या खुराफात सूझती रहती है. कितनी बार समझाया कि पराई ज्योति से घर में उजाला नहीं होता, पर तुम हो कि मानती ही नहीं. अरे, गोद लिए बच्चे भी कभी अपने हुए हैं, खून के रिश्ते की बात ही और होती है,’ फिर वह भुनभुनाती हुई पति के पास जा कर बोली, ‘अजी सुनते हो?’

‘क्या है?’

‘आज बहूबेटा अनाथाश्रम जा रहे हैं.’

‘सो क्यों?’

‘अरे, उसी मुए बच्चे को गोद लेने की जुगत कर रहे हैं और क्या. मियांबीवी की मिलीभगत है. वैद्य, डाक्टरों को पैसा फूंक चुके, पीरफकीरों को माथा टेक चुके, जगहजगह मन्नत मान चुके, अब चले हैं अनाथाश्रम की खाक छानने.

‘न जाने किस की नाजायज संतान, जिस के कुलगोत्र का ठिकाना नहीं, जातिपांति का पता नहीं, ला कर हमारे सिर मढ़ने वाले हैं. मैं कहती हूं, यदि गोद लेना ही पड़ रहा है तो हमारे परिवार में बच्चों की कमी है क्या? हम से तो भई जानबूझ कर मक्खी निगली नहीं जाती. तुम जरा रजनीश से बात क्यों नहीं करते.’

‘ठीक है, मैं रजनीश से बात करूंगा.’

‘पता नहीं कब बात करोगे, जब पानी सिर से ऊपर हो जाएगा तब? जाने यह निगोड़ी बहू हम से किस जन्म का बदला ले रही है. पहले मेरे भोलेभाले बेटे पर डोरे डाले, अब बच्चा गोद लेने का तिकड़म कर रही है.’

रजनीश अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर निढाल पड़ गया. अर्चना उस के पास खिसक आई और उस के बालों में उंगलियां चलाती हुई बोली, ‘क्या बात है, बहुत थकेथके लग रहे हो.’

‘आज अम्मां व पिताजी के साथ जम कर बहस हुई. वे दीपू को गोद लेने के कतई पक्ष में नहीं हैं.’

‘तो फिर?’

‘तुम्हीं बताओ.’

‘मैं क्या बताऊं, एक जरा सी बात को इतना तूल दिया जा रहा है. क्या और निसंतान दंपती बच्चा गोद नहीं लेते? हम कौन सी अनहोनी बात करने जा रहे हैं.’

‘मैं उन से कह कर हार गया. वे टस से मस नहीं हुए. मैं तो चक्की के दो पाटों के बीच पिस रहा हूं. इधर तुम्हारी जिद उधर उन की…’

‘तो अब?’

‘उन्होंने एक और प्रस्ताव रखा है…’

‘वह क्या?’ अर्चना बीच में ही बोल पड़ी.

‘वे कहते हैं कि चूंकि तुम मां नहीं बन सकती हो. मैं तुम्हें तलाक दे कर दूसरी शादी कर लूं.’

‘क्या…’ अर्चना बुरी तरह चौंकी, ‘तुम मेरा त्याग करोगे?’

‘ओहो, पूरी बात तो सुन लो. दूसरी शादी महज एक बच्चे की खातिर की जाएगी. जैसे ही बच्चा हुआ, उसे तलाक दे कर मैं दोबारा तुम से ब्याह कर लूंगा.’

‘वाह…वाह,’ अर्चना ने तल्खी से कहा, ‘क्या कहने हैं तुम लोगों की सूझबूझ के. मेरे साथ तो नाइंसाफी कर ही रहे हो, उस दूसरी, निरपराध स्त्री को भी छलोगे. बिना प्यार के उस से शारीरिक संबंध स्थापित करोगे और अपना मतलब साध कर उसे चलता करोगे?’

‘और कोई चारा भी तो नहीं है.’

‘है क्यों नहीं. कह दो अपने मातापिता से कि यह सब संभव नहीं. तुम पुरुष हम स्त्रियों को अपने हाथ की कठपुतली नहीं बना सकते. क्या तुम से यह कहते नहीं बना कि मैं ने शादी से पहले गर्भ धारण किया था? यदि तुम ने अबार्शन न करा दिया होता तो…’ कहतेकहते अर्चना का गला भर आया था.

‘अर्चना डियर, तुम बेकार में भावुक हो रही हो. बीती बातों पर खाक डालो. मुझे तुम्हारी पीड़ा का एहसास है. दूसरी तरफ मेरे बूढ़े मांबाप के प्रति भी मेरा कुछ कर्तव्य है. वे मुझ से एक ही चीज मांग रहे थे, इस घर को एक वारिस, इस वंश को एक कुलदीपक.’

‘तो कर लो दूसरी शादी, ले आओ दूसरी पत्नी, पर इतना बताए देती हूं कि मैं इस घर में एक भी पल नहीं रुकूंगी,’ अर्चना भभक कर बोली.

‘अर्चना…’

‘मैं इतनी महान नहीं हूं कि तुम्हारी बांहों में दूसरी स्त्री को देख कर चुप रह जाऊं. मैं सौतिया डाह से जल मरूंगी. नहीं रजनीश, मैं तुम्हें किसी के साथ बांटने के लिए हरगिज तैयार नहीं.’

‘अर्चना, इतना तैश में न आओ. जरा ठंडे दिमाग से सोचो. यह दूसरा ब्याह महज एक समझौता होगा. यह सब बिना विवाह किए भी हो सकता है पर…’

‘नहीं, मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी. हर बात में तुम्हारी नहीं चलेगी. आज तक मैं तुम्हारे इशारों पर नाचती रही. तुम ने अबार्शन को कहा, सो मैं ने करा दिया. तुम ने यह बात अपने मातापिता से गुप्त रखी, मैं राजी हुई. तुम क्या जानो कि तुम्हारी वजह से मुझे कितने ताने सहने पड़ रहे हैं. बांझ…आदि विशेषणों से मुझे नवाजा जाता है. तुम्हारी मां ने तो एक दिन यह भी कह दिया कि सवेरेसवेरे बांझ का मुंह देखो तो पूरा दिन बुरा गुजरता है. नहीं रजनीश, मैं ने बहुत सहा, अब नहीं सहूंगी.’

‘अर्चना, मुझे समझने की कोशिश करो.’

‘समझ लिया, जितना समझना था. तुम लोगों की कूटनीति में मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है. जैसे गायगोरू के सूखने पर उस की उपयोगिता नहीं रहती उसी तरह मुझे बांझ करार दे कर दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका जा रहा है. लेकिन मुझे भी तुम से एक सवाल करना है…’

‘क्या?’ रजनीश बीच में ही बोल पड़ा.

‘समझ लो तुम मेें कोई कमी होती और मैं भी यही कदम उठाती तो?’

‘अर्चना, यह कैसा बेहूदा सवाल है?’

‘देखा…कैसे तिलमिला गए. मेरी बात कैसी कड़वी लगी.’

रजनीश मुंह फेर कर सोने का उपक्रम करने लगा. उस रात दोनों के दिल में जो दरार पड़ी वह दिनोंदिन चौड़ी होती गई.

रजनीश ने दरवाजे की घंटी बजाई तो एक सजीले युवक ने द्वार खोला.

‘‘अर्चनाजी हैं?’’ रजनीश ने पूछा.

‘‘जी हां, हैं, आप…आइए, बैठिए, मैं उन्हें बुलाता हूं.’’

अर्चना ने कमरे में प्रवेश किया. उस के हाथ में ट्रे थी.

‘‘आओ रजनीश. मैं तुम्हारे लिए काफी बना रही थी. तुम्हें काफी बहुत प्रिय है न,’’ कह कर वह उसे प्याला थमा कर बोली, ‘‘और सुनाओ, क्या हाल हैं तुम्हारे? अम्मां व पिताजी कैसे हैं?’’

‘‘उन्हें गुजरे तो एक अरसा हो गया.’’

‘‘अरे,’’ अर्चना ने खेदपूर्वक कहा, ‘‘मुझे पता ही न चला.’’

‘‘हां, तलाक के बाद तुम ने बिलकुल नाता तोड़ लिया. खैर, तुम तो जानती ही हो कि मैं ने मोहिनी से शादी कर ली. और यह नियति की विडंबना देखो, हम आज भी निसंतान हैं.’’

‘‘ओह,’’ अर्चना के मुंह से निकला.

‘‘हां, अम्मां को तो इस बात से इतना सदमा पहुंचा कि उन्होंने खाट पकड़ ली. उन के निधन के बाद पिताजी भी चल बसे. लगता है हमें तुम्हारी हाय लग गई.’’

‘‘छि:, ऐसा न कहो रजनीश, जो होना होता है वह हो कर ही रहता है. और शादी आजकल जन्म भर का बंधन कहां होती है? जब तक निभती है निभाते हैं, बाद में अलग हो जाते हैं.’’

‘‘लेकिन हम दोनों एकदूसरे के कितने करीब थे. एक मन दो प्राण थे. कितना साहचर्य, सामंजस्य था हम में. कभी सपने में भी न सोचा था कि हम एकदूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे. और आज मैं मोहिनी से बंध कर एक नीरस, बेमानी ज्ंिदगी बिता रहा हूं. हम दोनों में कोई तालमेल नहीं. अगर जीवनसाथी मनमुताबिक न हो तो जिंदगी जहर हो जाती है.

‘‘खैर छोड़ो, मैं भी कहां का रोना ले बैठा. तुम अपनी सुनाओ. यह बताओ, वह युवक कौन था जिस ने दरवाजा खोला?’’

यह सुन कर अर्चना मुसकरा कर बोली, ‘‘वह मेरा बेटा है.’’

‘‘ओह, तो तुम ने भी दूसरी शादी कर ली.’’

‘‘नहीं, मैं ने शादी नहीं की, मैं ने तो केवल उसे गोद लिया है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, रजनीश, यह वही बच्चा दीपू है, अनाथाश्रम वाला. तुम से तलाक ले कर मैं दिल्ली गई जहां मेरा परिवार रहता था. एक नौकरी कर ली ताकि उन पर बोझ न बनूं, पर तुम तो जानते हो कि एक अकेली औरत को यह समाज किस निगाह से देखता है.

‘‘पुरुषों की भूखी नजरें मुझ पर गड़ी रहतीं. स्त्रियों की शंकित नजरें मेरा पीछा करतीं. कई मर्दों ने करीब आने की कोशिश की. कई ने मुझे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहा, पर मैं उन सब से बचती रही. 1-2 ने विवाह का प्रलोभन भी दिया, पर जहां मन न मिले वहां केवल सहारे की खातिर पुरुष की अंकशायिनी बनना मुझे मंजूर न था.

‘‘इस शहर में आ कर अपना अकेलापन मुझे सालने लगा. नियति की बात देखो, अनाथाश्रम में दीपू मानो मेरी ही प्रतीक्षा कर रहा था. इस ने मेरे हृदय के रिक्त स्थान को भर दिया. इस के लालनपालन में लग कर जीवन को एक गति मिली, एक ध्येय मिला. 15 साल हम ने एकदूसरे के सहारे काट दिए. इस आशा में हूं कि यह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा, यदि नहीं भी बना तो कोई गम नहीं, कोई गिला नहीं,’’ कहती हुई अर्चना हलके से मुसकरा दी.

Cancer : दर्द को हलके में लेने की न करें गलती, हो सकता है इस जानलेवा बीमारी का खतरा

रोजमर्रा की भागदौङ में व्यस्त लोगों के लिए छोटेमोटे दर्द को गंभीरता से लेने के लिए वक्त ही नहीं है. सभी सुखसुविधाएं होते हुए भी आजकल के लोग दर्द को लाइफस्टाइल का हिस्सा मानने लगे हैं क्योंकि अधिकतर लोग काम के प्रैशर को ही दर्द का कारण मान लेते हैं और लापरवाही करने लगते हैं. बाद में यही लापरवाही जान का जोखिम बन जाती है इसीलिए सितंबर महीने को लोगों के बीच ‘पैन अवेयरनैस’ के तौर पर मनाया जाता है जिस की शुरुआत सब से पहले साल 2001 में अमेरिकन क्रौनिक पेन ऐसोसिएशन ने की थी.

यदि समय पर दर्द का निदान करा लिया जाए तो कई ऐसी जानलेवा बीमारियों से बचा जा सकता है.

कैंसर (Cancer)  का खतरा

कई बार दर्द की शुरुआत धीरेधीरे होती है. यदि पेट, सिर, छाती में दर्द है तो हम अधिकतर इसे गैस की समस्या मान लेते हैं और कोई उपचार नहीं लेते.  लेकिन यह नासमझी हमें कैंसर जैसी बीमारी से पीड़ित कर सकती है। यदि शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द है साथ ही वजन कम होने लगा है. थकावट या भूख में कमी के साथ दर्द, पेट, स्तन या जोड़ों जैसे विशेष हिस्सों पर सूजन या गांठ की परेशानी हो रही है तो डाक्टर को अवश्य दिखाएं, क्योंकि यह लक्षण कैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण भी हो सकते हैं .

लाइलाज दर्द

कई बार लगातार होता सिरदर्द, पीठदर्द, ब्रेन, स्पाइन या पेल्विक रीजन में ट्यूमर का कारण भी हो सकता है जिस का हमें लंबे समय से दर्द का अनुभव हो रहा होता है और इलाज कराने पर भी हमें आराम नहीं मिलता.

इन स्थितियों का तुरंत इलाज किया जाना चाहिए जिन का पता कुछ जांच आदि के जरीए ही लगाया जा सकता है जैसे इन में ऐक्सरे, सीटी स्कैन (कंप्यूटेड टोमोग्राफी), एमआरआई (मैग्नेटिक रेजोनैंस इमेजिंग) स्कैन या पीईटी (पौजिट्रौन ऐमिशन टोमोग्राफी) स्कैन के जरीए ही पता लगाया जा सकता है.

दर्द होने पर घरेलू उपचार का लेना बीमारी को बढ़ा सकता है जिस से कैंसर जैसी बीमारी का इलाज हो पाना बड़ा ही मुश्किल हो सकता है क्योंकि कैंसर शरीर में बहुत जल्दी फैलता है. साथ ही अपने दर्द की तुलना किसी और की परेशानी से न करें क्योंकि हर किसी के लक्षण अलग हो सकते हैं इसलिए समय रहते डाक्टर का परामर्श अवश्य लें.

वीकेंड पर बनाएं कच्चे केले के दही बड़े, इसका स्वाद है बेहद लाजवाब

दही बड़े हर किसी को पसंद आते हैं. वहीं गर्मियों में इसका स्वाद दोगुना बढ़ जाता है. इसीलिए आज हम आपको केले के दही बड़े की खास रेसिपी बताएंगे, जिसे आप आसानी से अपनी फैमिली को डिनर में परोस सकते हैं.

सामग्री

कच्चे केले- 4-5

ताजा दही- 300 ग्राम

लाल मिर्च पाउडर- 1/2 छोटा चम्मच

जीरा पाउडर- 1/2 छोटा चम्मच

हरी मिर्च- 1-2 कटी हुई

अदरक- 1 चम्मच कद्दूकस करा हुआ

हरा धनिया- 1 बड़ा चम्मच कटा हुआ

काला और सफेद नमक- स्वादानुसार

तेल- तलने के लिए

चीनी- 2 चम्मच

भुना जीरा पाउडर- 1/4 चम्मच

चाट मसाला- 1/4 चम्मच

विधि

केले को कुकर में डाल के एक सीटी दे कर उबाल लें. ठंडा होने के बाद उसे छील कर मसल लें. इस मसले हुए केले में हरी मिर्च, अदरक, नमक, जीरा पाउडर, लाल मिर्च पाउडर मिला के आटे की तरह मिला लें.

इस मिश्रण से बराबर साइज के 10 से 12 बड़े बना लें. अब कढाई में तेल गरम करें और इन बड़ों को हलका ब्राउन होने तक तल लें.

दही को एक बड़े बोल में निकालें, इसमें चीनी और नमक डाल के अच्‍छी तरह मिला लें. अब सर्विंग प्लेट में पहले थोड़ा सा दही डाले फिर उसके ऊपर 2 या 3 केले के रखें फिर ऊपर से और दही डालें.

इसके बाद इन प्‍लेटों के ऊपर से भुना जीरा पाउडर, लालमिर्च पाउडर, चाट मसाला और हरा धनिया डाल कर सर्व करें.

Lips को शेप देने वाली Surgery कैसे की जाती है, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें

सुमन अपने होंठों की वजह से हमेशा खुद को असहज महसूस करती थी.उस के होंठ जन्म से ही कुछ बड़े और असमान आकार के थे, जिस वजह से उस ने खुद को आईने में देखना भी बंद कर दिया था.आत्मविश्वास की कमी ने उस की सामाजिक जिंदगी पर भी असर डाला था.

होंठों को ले कर उस की असुरक्षा इतनी गहरी थी कि वह लोगों से मिलनेजुलने में भी झिझकने लगी थी.उस ने हमेशा सोचा कि अगर मेरे होंठ सामान्य होते, तो क्या मेरी जिंदगी बेहतर होती?

एक दिन सुमन की सब से अच्छी दोस्त रिया ने उसे एक सुझाव दिया.रिया ने एक डाक्टर के बारे में बताया, जो शहर में लिप सर्जरी करता था.शुरुआत में सुमन ने इसे नजरअंदाज किया.लेकिन कुछ दिनों तक सोचने के बाद उस ने फैसला किया कि उसे आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कुछ करना होगा.

डाक्टर ने उसे सर्जरी के बारे में समझाया, संभावित परिणामों और जोखिमों पर चर्चा की और उसे आश्वासन दिया कि यह प्रक्रिया सुरक्षित है.

सर्जरी के बाद जब उस ने पहली बार खुद को आईने में देखा, तो सुमन को यकीन नहीं हो रहा था कि वह वही लड़की है, जो कभी आईने से डरती थी.

सुमन की लिप सर्जरी (Lip Surgery) ने उस की जिंदगी बदल दी.यह सिर्फ उस के चेहरे में बदलाव नहीं था, बल्कि उस की सोच, उस के आत्मविश्वास और उस के नजरिए में भी बदलाव था.अब वह अपने जीवन में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार थी.

लिप सर्जरी एक कौस्मेटिक प्रक्रिया है जो होंठों के आकार को बेहतर बनाने के लिए की जाती है ताकि होंठ आप की सुंदरता को बढ़ा सकें.लेकिन कुछ मामलों में इस सर्जरी का उद्देश्य होंठों को बड़ा या छोटा बनाना होता है ताकि चेहरे की सुंदरता बढ़ सके.

लिप सर्जरी आजकल एक लोकप्रिय कौस्मेटिक प्रक्रिया बन चुकी है, जो लोगों को अपने होंठों का आकार बदलने और आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करती है.हालांकि इसे करवाने से पहले सर्जन से सलाह लेना और संभावित जोखिमों के बारे में जानकारी प्राप्त कर लेना आवश्यक है.

लिप सर्जरी के प्रकार

लिप औग्मेंटेशन : इस प्रक्रिया में होंठों को बड़ा और अधिक उभरा हुआ दिखाने के लिए फिलर्स या सिलिकौन इंप्लांट्स का उपयोग किया जाता है.इस का उद्देश्य पतले होंठों को भरा और आकर्षक दिखाना होता है.

लिप रिडक्शन : इस प्रक्रिया में बड़े और भारी होंठों को छोटा किया जाता है.इसे उन लोगों के लिए किया जाता है जो अपने होंठों के आकार से असंतुष्ट होते हैं या जिन्हें बड़े होंठों की वजह से बोलने या खाने में कठिनाई होती है.

रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी : यह सर्जरी जन्मजात विकृतियों, दुर्घटना या किसी बीमारी के कारण होंठों को हुए नुकसान को ठीक करने के लिए की जाती है.इस के अंतर्गत कटेफटे होंठों की मरम्मत आदि शामिल हैं।

लिप सर्जरी के फायदे

होंठों का आकार बेहतर होता है.
चेहरे की सुंदरता में सुधार होता है.
आत्मविश्वास में वृद्धि होती है.
चिकित्सा समस्याओं (जैसे कटेफटे होंठ) का समाधान होता है.

सर्जरी की प्रक्रिया

लिप सर्जरी आमतौर पर लोकल ऐनेस्थीसिया के तहत की जाती है.सर्जन फिलर्स इंजैक्ट कर के या अतिरिक्त ऊतक हटा कर होंठों को नया आकार देता है.पूरी प्रक्रिया में लगभग 30 मिनट से 2 घंटे का समय लग सकता है और ज्यादातर मामलों में मरीज उसी दिन घर लौट सकते हैं.

रिकवरी स्पीड

लिप सर्जरी के बाद कुछ दिनों तक सूजन और हलका दर्द हो सकता है.सर्जन की सलाह के अनुसार आराम और देखभाल करने से जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है.1 से 2 हफ्तों में अधिकांश लोग सामान्य गतिविधियों में वापस आ सकते हैं.

रेस्तरां फुल और जिम खाली, सेहत के मुकाबले स्वाद को तवज्जो दे रहे हैं लोग

बिगड़ते लाइफस्टाइल और गलत खानपान के चलते आजकल दुबलेपतले लोग कम ही दिखाई देते हैं. दिनोंदिन बढ़ती रेस्तराओं की संख्या और उन में लोगों की भीड़ व औनलाइन फूड डिलिवरी का बढ़ता चलन कहीं न कहीं हमारे बढ़ते मोटापे और वजन के लिए जिम्मेदार है.

मैं हाल ही में परिवार संग उदयपुर घूमने गई थी. वहां एक फेमस होटल में रुकने का मौका मिला. वह फुल था. होटल को घूमते हुए वहां के स्टाफ से बातचीत के दौरान पूछा कि यहां जिम और रेस्तरां में जाने का सही समय क्या है ताकि जिम मशींस खाली मिलें और रेस्तरां में आराम से बैठ कर खाना खा सकें तो स्टाफ ने कहा कि आप जिम तो सुबह 6 से ले कर रात 8 बजे तक कभी भी जा सकते हैं. जिम तो अकसर खाली ही रहता है. कभी भी ओवर क्राउडेड नहीं होता लेकिन रेस्तरां में आप लंच के लिए 1 बजे तक आ जाएं नहीं तो फिर वह ओवर क्राउडेड हो जाता है.

उस के बताए समय अनुसार हम ने देखा कि वाकई जिम तो खाली पड़ा है और रेस्तरां फुल है. खूब शोरगुल मचा था. शायद इसीलिए आजकल दुबलेपतले लोग कम ही दिखाई देते हैं क्योंकि लोग जितना खा या कैलोरी ले रहे हैं उतनी बर्न नहीं कर रहे हैं और मोटापा एक बीमारी बन कर सामने आ रहा है. ज्यादातर लोग सेहत के मुकाबले स्वाद को ज्यादा तवज्जो देते हैं. यही वजह है कि उन की सेहत पर लगातार बुरा असर पड़ रहा है.

समय पर कंट्रोल जरूरी

मोटापा यानी अत्यधिक वजन होने के कारण व्यक्ति को मैटाबोलिक सिंड्रोम, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रैशर, कार्डियोवैस्कुलर डिसऔर्डर, किडनी रोग का खतरा हो सकता है. हाई ब्लड प्रैशर को कभी हलके में न लें क्योंकि यह मुख्य रूप से तनाव, मोटापा, नसों की सिकुड़न से विकसित होता है. स्ट्रोक व हार्ट अटैक से बचने के लिए इसे समय पर कंट्रोल करना जरूरी है.

वहीं आजकल कार्डियोवैस्क्युलर डिसऔर्डर स्ट्रोक, हार्ट अटैक जैसे कार्डियोवैस्क्युलर डिसऔर्डर दुनियाभर में मौतों का बड़ा कारण है जोकि मुख्यरूप से फैट वाले फूड, स्मोकिंग, ऐक्सरसाइज न करने जैसी जीवनशैली की गलत आदतों के कारण होता है.

हमारी सेहत कई बार हमारी आदतों की वजह से बनती या बिगड़ती है. ज्यादातर लोग सेहत के मुकाबले स्वाद को ज्यादा तवज्जो देते हैं इसलिए फास्ट फूड के बढ़ते चलन ने कई बीमारियों को जन्म दिया है जैसे वजन बढ़ना, ब्लड प्रैशर, डायबिटीज, डाइजैशन का खराब होना आदि.

यही वजह है कि लोगों की सेहत पर लगातार बुरा असर पड़ रहा है. अनियमित खानपान, सोनेजागने की गलत आदत, गलत समय खाना खाने की आदत हमें गंभीर बीमार बना रही है.

इन आदतों को संतुलित कर हम गंभीर बीमारियों से बचे रह सकते हैं. इस के लिए बायोलौजिकल क्लौक को फौलो करते हुए नींद लें, बिगड़ते लाइफ स्टाइल के चलते आजकल हम देर रात तक जागते रहते हैं और सुबह देर से उठते हैं जिस का असर हमारी सेहत पर पड़ रहा है.

स्वस्थ रहने के लिए 6-8 घंटे की नींद लेना आवश्यक है. इस से शरीर को रिपेयर, रिकवर और सैल्स को रीजनरेट करने में मदद मिलती है और मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है जिस के कारण आप सभी काम कुशलतापूर्वक कर पाते हैं. चीनी और नमक का सेवन संतुलित करें. पिज्जा, चिप्स, नूडल्स, डब्बाबंद जैसे जंक फूड में सोडियम की मात्रा अधिक होती है जिस से शरीर की नसें सिकुड़ने लगती हैं. इसलिए जितना हो सके नमक और जंक फूड का सेवन कम करें.

शुगर की अधिकता हमारी सेहत पर बुरा असर डालती है. अधिक चीनी का सेवन करने की वजह से ज्यादातर लोग मोटोपा, डायबिटीज और ?ार्रियों सहित कई समस्याओं से जू?ाते हैं. अपने शारीरिक वजन को संतुलित रखें. इस के लिए रोजाना फिजिकल ऐक्टिविटी करें. मैदे से बनाएं. हम दिन में कई ऐसी चीजें खाते हैं जो मैदे से बनी होती हैं जैसे ब्रैड, पास्ता, नूडल्स, बिस्कुट, मठरी आदि. माना जाता है ये सब आसानी से हजम नहीं होतीं इसलिए जितना हो सके इस से दूरी बना लें.

कैफीन का अधिक प्रयोग

रात में पूरी नींद न होने की वजह से दिनभर ऊर्जा से भरे हुए नहीं रहते और फिर औफिस या अपने काम के दौरान आलस और टैंशन को दूर भगाने के लिए चाय और कौफी का सेवन करते हैं ताकि ऐक्टिव बने रहे लेकिन कौफी और चाय में अधिक मात्रा में कैफीन होता है जो हमारी नींद को प्रभावित करता है. फिर नींद न आने की स्थिति में डार्क सर्कल्स और सिर में दर्द हो सकता है.

डाइजैशन को करें ठीक

हमारा व्यस्त लाइफस्टाइल ही हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है. भागदौड़भरी जिंदगी में लोग न तो समय पर खाना खा पा रहे हैं और न ही सही डाइट ले पा रहे हैं. यही वजह है बाहर का मसालेदार खाना, फास्ट फूड और बिगड़ता लाइफस्टाइल हमारे डाइजैशन को बिगाड़ रहा है क्योंकिगलत लाइफस्टाइल या आदतों की वजह से खाना ठीक तरीके से पच नहीं पाता और यही गैस बनने की वजह बन जाता है.

अगर आप अपना डाइजैशन बेहतर रखना चाहते हैं तो अपने लाइफस्टाइल को सुधारना बहुत जरूरी है. इस के लिए उन खाने की चीजों को शामिल करें जो आप के डाइजैशन को बेहतर करती हैं. डाइजैशन के लिए बैस्ट हैं ये फूड दही, इडली और चीज. ये फूड आप की आंतों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं. ये अपचन से दूर रखते हैं. इन फूड आइटम्स में प्रोबायोटिक्स होते हैं जो गट हैल्थ को हानिकारक बैक्टीरिया से बचाने में मदद करते हैं.

साबूत अनाज

साबूत गेहूं, जई, जौ, ब्राउन राइस, पौपकार्न आदि साबूत अनाज के बेहतरीन उदाहरण हैं. इन में भी प्रीबायोटिक्स होते हैं जो स्वस्थ बैक्टीरिया के लिए भोजन हैं. इन के सेवन से पाचन संबंधी समस्याएं खत्म हो जाती हैं.

फूट

फल पोषक तत्त्वों का भंडार होते हैं खासकर सेब, नाशपाती, केला, रसभरी, पपीता आप के पेट के लिए बहुत अच्छे होते हैं. फल फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरे होते हैं जो डाइजैशन में मदद करते हैं.

ग्रीन टी, पुदीना, अदरक, सौंफ, तुलसी, नीबू की बनी चाय की मदद से पाचन संबंधी समस्याओं को सुल?ाया जा सकता है. खाने के बाद गरम चाय पीने से पेट फूलना, गैस और सीने में जलन जैसी समस्याओं से राहत मिलती है.

वजन को रखें नियंत्रण में

अपने वजन को नियंत्रण में रखने के लिए डाइट में कम कैलोरी युक्त खानपान की चीजें शामिल करना आवश्यक है साथ ही वेट लौस ऐक्सरसाइज को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना भी जरूरी है.

यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो आप कैलोरी इन, कैलोरी आउट डाइट को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना सकते हैं. यह डाइट आप के प्रतिदिन कैलोरी इन्टेक से जुड़ी डाइट है. यह वजन घटाने और वजन बढ़ाने दोनों के लिए ही उपयुक्त है क्योंकि यह आप की कैलोरी की खपत को पूरी तरह से नियंत्रित रख सकती है. जब आप का कैलोरी इन्टेक कम होता है और खपत ज्यादा होती है तो कैलोरी डैफिसिट माना जाता है जिस की वजह से आप का वजन तेजी से कम होता है. इस डाइट को करने के लिए आप को अपना बीएमआर यानी बैसल मैटाबोलिक रेट कैलकुलेट करना पड़ता है. इस के बाद कैलोरी को डैफिसिट करते हैं ताकि आप का वजन कम हो सके.

वजन कम करने के लिए आवशयक नहीं कि आप अपनी कैलोरी को काउंट करें. आप इस के लिए एक बेहतर डाइट प्लान बना सकते हैं ताकि शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी न हो और कमजोरी महसूस न हो तथा आप का शरीर स्वस्थ बना रहे.

मारिया: भारतीय परंपराओं में जकड़ा राहुल क्या कशमकश से निकल पाया

दिल्ली का इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. जहाज से बाहर निकल कर इस धरती पर पांव रखते ही सारे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई. लगा यहां कुछ तो ऐसा है जो अपना है और बरबस अपनी तरफ खींच रहा है. यहां की माटी की सौंधीसौंधी खुशबू के लिए तो पूरे 2 साल तक तरसता रहा है.

ट्राली पर सामान लादे एअरपोर्ट से बाहर निकला. दर्शक दीर्घा में मेरी नजर चारों तरफ घूमने लगी. लंबी कतारों में खड़ी भीड़ में मैं अपनों को तलाश रहा था. मेरे पांव ट्राली के साथसाथ धीरेधीरे आगे बढ़ रहे थे कि पास से ही चाचू की आवाज आई.

मेरी नजर आवाज की ओर घूम गई.

‘‘अरे, नेहा तू?’’ मैं ने हैरानी से उस की ओर देखा.

‘‘हां, चाचू, इधर से आ जाइए. सभी लोग आए हुए हैं,’’ नेहा बोली.

‘‘सब लोग?’’ मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी. अपनों से मिलने के लिए मन एकदम बेचैन हो उठा. सामने दीदी, मांबाबूजी को देखा तो मन एकदम भावुक हो गया. मेरी आंखें छलछला आईं. मां ने कस कर मुझे अपने सीने में भींच लिया. भाभी के हाथ में आरती की थाली थी.

‘‘मारिया कहां है,’’ भाभी ने इधरउधर झांकते हुए पूछा.

‘‘भाभी, अचानक उस की तबीयत खराब हो गई इसलिए वह नहीं आ सकी. वैसे आखिरी समय तक वह एकदम आने को तैयार थी.’’

मेरा इतना कहना था कि भाभी का चेहरा उतर गया जिसे मैं ने बड़े करीब से महसूस किया.

‘‘हम लोग तो यह सोच कर यहां आए थे कि बहू को सबकुछ अटपटा न लगे. पर चलो…’’ कहतेकहते मां चुप हो गईं.

‘‘चलो, मारिया न सही तुम ही तिलक करा लो,’’ भाभी ने कहा तो मैं झेंप गया.

‘‘नहीं भाभी, मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता. सब लोग क्या सोचेंगे.’’

‘‘यही सोचेंगे न कि कितने प्यार से भाभी देवर का स्वागत कर रही है. आखिर हमारा भरापूरा परिवार है. भारतीय परंपराएं हैं…’’ बाबूजी बोले.

सच, ऐसे घर को तो मैं तरस गया था. सभी घर आ गए.

‘‘मारिया नहीं आई कोई बात नहीं, तू तो आ गया न,’’ मां ने कहा.

‘‘राहुल क्यों नहीं आता? आखिर अपना खून है, फिर बहन की शादी है. तब तक तो मारिया भी आ जाएगी क्यों बाबू…’’ भाभी ने चुहल की.

‘‘हां भाभी,’’ मैं ने यों ही टालने के लिए कह दिया. बातों का सिलसिला मारिया से आगे बढ़ ही नहीं रहा था फिर उठ कर अनमने मन से सोफे पर लेट गया और सोने का प्रयास करने लगा. तब तक भाभी चाय बना कर ले आईं.

मुझे ऐसे लेटा देख कर बोलीं, ‘‘भैया, आप बहुत थक गए होंगे. भीतर कमरे में चल कर लेट जाइए. बातें तो सुबह भी हो जाएंगी.’’

मेरी आंखों में नींद कहां. परिवारजनों का इतना स्नेह उस विदेशी लड़की के लिए जिस को मैं ने चुना था. मांबाबूजी कितने दिन मुझ से नाराज रहे थे. महीनों तक फोन भी नहीं किया था. आखिर मां ने ही चुप्पी तोड़ी और बेमन से ही सही सबकुछ स्वीकार कर लिया था. स्नेह को बटोरने के लिए वह नहीं थी जिस के लिए यह सबकुछ हुआ था. मुझे रहरह कर बीते दिन याद आने लगे.

मेरी कंपनी ने मुझे अनुभव और योग्यता के आधार पर यूनान भेजने का निर्णय लिया था. मैं भरसक प्रयास करता रहा कि मुझे वहां न जाना पड़े क्योंकि एक तो मुझे विदेशी भाषा नहीं आती थी दूसरे वहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या नहीं के बराबर थी. अत: शाकाहारी भोजन मिलने की कोई संभावना न थी. मेरे स्थान पर कोई  और व्यक्ति न मिल पाने के कारण वहां जाना मेरी मजबूरी बन गई थी.

मुझे एथेंस आए 15 दिन हो चुके थे. खाने के नाम पर उबले हुए चावल, ग्रीक सलाद, फ्राई किए टमाटर और गोल सख्त डबलरोटी थी जिन को 15 दिनों से लगातार खा कर मैं पूरी तरह से ऊब चुका था.

भारतीय रेस्तरां मेरे आफिस से 20 किलोमीटर दूर एअरपोर्ट के पास था जहां हर रोज खाने के लिए जाना आसान नहीं था. मेरे आफिस वाले भी इस मामले में मेरी कोई ज्यादा मदद नहीं कर पाए क्योंकि मैं उन्हें ठीक से यह समझा नहीं पाया कि मैं शाकाहारी क्यों हूं.

एथेंस यूरोप का प्रसिद्घ टूरिस्ट स्थान होने के कारण लोग यहां अकसर छुट्टियां मनाने आते हैं. यही वजह है कि यहां के हर चौराहे पर, सड़क के किनारे रेस्तरां तथा फास्टफूड का काफी प्रचलन है. घंटों बैठ कर ठंडी ग्रीक कौफी पीना तथा भीड़ को आतेजाते देखना भी यहां का एक फैशन और लोगों का शौक है.

उस दिन मैं यहां के मशहूर फास्टफूड चेन ‘एवरेस्ट’ के बाहर बिछी कुरसियों पर बैठा वेटर के आने का इंतजार कर ही रहा था कि लालसफेद ड्रेस में लिपटी एक महिला वेटर ने आ कर मुझे मीनू कार्ड पकड़ाना चाहा.

मैं ने उसे देखते ही कहा, ‘मुझे यह कार्र्ड नहीं, बस, एक वेज पिज्जा और कोक चाहिए.’

‘आप कुछ नया खाना नहीं खाना चाहेंगे. कल भी आप ने खाने के लिए यही मंगाया था. यहां का चिकन सूप, क्लब सैंडविच…’

उस महिला वेटर की बात को काटते हुए मैं ने कहा, ‘माफ कीजिए, मैं सिर्फ शाकाहारी हूं.’

‘तो शाकाहारी में वेजचीज सैंडविच, नूडल्स, मैश पोटेटो, फ्रेंच फाइज क्यों नहीं खाने की कोशिश करते?’ वह मुसकरा कर बोलती रही और मैं उस का मुंह देखता रहा कि कब वह चुप हो और मैं ‘नो थैंक्स’ कह कर उस को धन्यवाद दूं्.

मेरे चेहरे को देख कर शायद उस ने मेरे दिल की बात जान ली थी. इसलिए और भीतर आर्डर दे कर मेरे पास आ कर खड़ी हो गई.

‘आप कहां से आए हैं?’

‘इंडिया से,’ मैं ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘पर्यटक हैं? ग्रीस घूमने अकेले

ही आए हैं.’

‘नहीं, मैं यहां वास निकोलस में काम करता हूं और कुछ दिन पहले ही यहां आया हूं…और आप?’

‘मैं पढ़ती हूं. यहां पार्र्ट टाइम वेटर  का काम करती हूं, शाम को 4 से 10 तक.’

तब तक भीतर के बोर्ड पर मेरे आर्डर का नंबर उभरा और वह बातों का सिलसिला बीच में ही छोड़ कर चली गई. मैं ने महसूस किया कि यूरोप के बाकी देशों से यूनान के लोग ज्यादा सुंदर, हंसमुख और मिलनसार होते हैं. खाने के साथ यहां भी भारत की तरह पीने को पानी मिल जाता है जिस की कोई कीमत नहीं ली जाती.

उस ने बड़ी तरतीब से मेरी मेज पर कांटे, छुरियों और पेपर नेपकिन के साथ पिज्जा सजा दिया, जिसे देखते ही मेरा मन फिर से कसैला सा हो गया. न जाने क्यों मैं यहां की चीज की गंध को बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

‘क्या हुआ, ठीक नहीं है क्या?’ मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए वह बोली.

‘नहीं यह बात नहीं है. 5 दिन से लगातार जंक फूड खातेखाते मैं बोर हो गया हूं. यहां आसपास कोई भारतीय रेस्तरां नहीं है क्या?’

‘नहीं, पर एक और शाकाहारी भोजनालय है, हरे रामा हरे कृष्णा वालों का, एकदम शुद्घ शाकाहारी. अंडा और चाय भी नहीं मिलती वहां.’

‘वह कहां है?’ मैं ने बड़ी उत्कंठा से पूछा.

‘मुझे उस का पता तो नहीं पर जगह मालूम है. आज मेरी ड्यूटी के बाद तक रुको तो मैं तुम को ले चलूंगी या फिर कल 4 बजे से पहले आना.’

‘मैं कल आऊंगा. क्या नाम है तुम्हारा?’ मैं ने पूछा.

‘मारिया.’

‘और मेरा राहुल.’

इस तरह हमारे मिलने का सिलसिला शुरू हुआ. अब हर शनिवार को हम साथ घूमते और खाते. वह सालोनीकी की रहने वाली थी जो एथेंस से 500 किलोमीटर दूर था. उस के पिता का वहां सिलेसिलाए वस्त्रों का स्टोर था. वह वहां पर अपनी एक सहेली के साथ किराए पर कमरा ले कर रहती थी जिस का खर्च दोनों ही मिलजुल कर वहन करती थीं.

एक दिन बातोंबातों में मारिया ने बताया कि उस के पिता भी मूलत: भारतीय हैं जो बरसों पहले यहां आ कर बस गए थे. परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई क्रिस्टोस भी है जो उन के पास ही रहता है. अपने पिता से उस ने भारत के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. उस की मां उस के पिता की भरपूर प्रशंसा करती हैं और कहा करती हैं कि भारतीय व्यक्ति से विवाह कर के मैं ने कोई भूल नहीं की. परिवार के प्रति संजीदा, व्यवहारकुशल, बेहद केयरिंग पति कम से कम यूनानी लोगों में तो कम ही होते हैं.

इस बार एकसाथ 4 छुट्टियां मिलीं तो मारिया बेहद खुश हुई और कहने लगी, ‘चलो, तुम को सैंतारीनी द्वीप ले चलती हूं. यहां के सब से खूबसूरत द्वीपों में से एक

है. वहां का सनसेट और

सन राईज देखने दुनिया भर से लोग आते हैं.’

मेरे तो मन में लाखों घंटियां एकसाथ बजने लगीं कि अब कई दिन एकसाथ रहने और घूमनेफिरने को मिलेगा. चूंकि साथ रहतेरहते वह अब मेरे बारे में बहुत कुछ जान चुकी थी इसलिए रेस्तरां में खुद ही आर्र्डर कर के सामान बनवाती और मुझे उस व्यंजन के बारे में विस्तार से समझाती. मेरी तो जैसे दुनिया ही बदल गई थी. हर चीज इतनी आसान हो गई थी कि मुझे अब एथेंस में रहना अच्छा लगने लगा था.

मारिया के साथ गुजारी गई उन छुट्टियों को मैं कभी नहीं भूल सकता. मैं ने यह भी महसूस किया कि उस को भी मेरा साथ अच्छा लगने लगा था. होटल में हम ने अलगअलग कमरे लिए थे पर उस शाम मारिया मेरे कमरे में आ कर मुझ से बुरी तरह लिपट गई और चुंबनों की बौछार कर दी. मैं भी उसे चाहने लगा था इसलिए सारा संकोच त्याग कर उसे कस कर पकड़ लिया और वह सबकुछ हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम एकदूसरे के और करीब आ गए.

दिन बीतते गए. एक दिन मारिया ने बताया कि उस की रूमपार्टनर वापस अपने शहर जा रही है. मारिया अकेली उस फ्लैट का किराया नहीं दे सकती थी और मुझे भी एक रूम की तलाश थी सो मैं होटल से सामान ले कर उस के साथ रहने लगा.

एक दिन मारिया ने कहा कि वह मुझ से शादी करना चाहती है. नैतिक तौर पर यह मेरी जिम्मेदारी थी क्योंकि मैं भी उसे अब उतना ही चाहने लगा था जितना कि वह. पर तुरंत मैं कोई फैसला नहीं कर सका.

मैं ने कहा, ‘मारिया, मैं तुम्हें चाहता हूं फिर भी एक बार अपने घर वालों से इजाजत ले लूं तो…’

‘इजाजत,’ वह थोड़ा माथे पर त्योरियां चढ़ाते हुए बोली, ‘तुम सब काम उन की इजाजत ले कर करते हो. मेरे साथ घूमने और रहने के लिए भी इजाजत ली थी क्या? खाना खाने, रहने, सोने के लिए भी उन की इजाजत लेते हो क्या?’

‘ऐसी बात नहीं है मारिया, मैं भारतीय हूं. इजाजत न भी सही पर उन को बताना और आशीर्वाद लेना मेरा कर्तव्य है.’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘यह हमारी परंपराएं हैं.’

‘ये परंपराएं तुम्ही निभाओ,’ मारिया बोली, ‘मेरी बात का सीधा उत्तर दो क्योंकि मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनना चाहती हूं.’

एकदम सीधासीधा वाक्य उस ने मेरे ऊपर थोप दिया. मुझे उस से इस तरह के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी.

‘मैं ने मम्मीपापा को यह सब बताया तो वे नाराज हो गए और मैं कितने ही दिन तक उन के रूठनेमनाने में लगा रहा. फिर जब मैं ने बताया कि लड़की के पिता भारतीय मूल के हैं तो उन्होंने बड़े अनमने मन से इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

कुछ ही दिनों बाद पता चला कि मेरी छोटी बहन की शादी तय हो गई है. मेरा मन भारत जाने के लिए एकदम विचलित हो गया. इसी बहाने मुझे छुट्टी भी मिल गई और भारत जाने को टिकट भी.

मैं ने यह सब मारिया को बताया तो वह भी साथ चलने की तैयारी करने लगी लेकिन जाने से ठीक एक दिन पहले मारिया को न जाने क्या सूझा कि उस ने मेरे साथ जाने से मना कर दिया. मैं ने नाराज हो कर मारिया को कहा कि ऐसे कैसे तुम मना कर रही हो.

‘राहुल मैं अब भारत नहीं जाना चाहती, बस…’

‘परंतु मारिया, मैं ने वहां सब को बता दिया है कि तुम मेरे साथ आ रही हो. सब लोग तुम से मिलने की राह देख रहे हैं. सच तुम भी वहां चल कर बहुत खुश होगी.’

‘मुझे नहीं जाना तो जबरदस्ती क्यों कर रहे हो,’ वह उत्तेजित हो कर बोली.

मैं मायूस हो कर रह गया. मैं यह बात अच्छी तरह जानता था कि मारिया अब मेरे साथ नहीं जाएगी क्योंकि जिस बात को वह एक बार मन में बैठा ले उस पर फिर से विचार करना उस ने सीखा नहीं था.

सुबह काम करने वालों के शोर के साथ ही मेरी निद्रा टूटी. बहन की शादी की घर पर चहलपहल तो थी ही.

बहन को विदा करने के साथसाथ मैं भी पूरा थक चुका था. जब से यहां आया ठीक से मांबाबूजी के पास बैठ भी नहीं सका. मां का पुराना कमर दर्द फिर से उभर कर सामने आ गया और मां बिस्तर पर पड़ गईं.

जैसेजैसे मेरे जाने के दिन करीब आते गए मांबाबूजी की उदासी बढ़ती गई. मेरा भी मन भारी हो आया और मैं ने छुट्टी बढ़वा ली. सभी लोग मेरे इस कुछ दिन और रहने से बहुत खुश हो गए परंतु मारिया नाराज हो गई.

‘‘राहुल तुम वापस आ जाओ. मेरा मन अकेले नहीं लग रहा है.’’

‘‘मारिया, अभी तो सब से मैं ठीक से मिला भी नहीं हूं. शादी की भागदौड़ में इतना व्यस्त रहा कि…फिर अचानक मां की तबीयत खराब हो गई. मैं ने छुट्टी 15 दिन के लिए बढ़वा ली है फिर न जाने कब यहां आना हो सके…’’ यह कह कर मैं ने फोन काट दिया.

कुछ दिनों बाद मारिया का फिर फोन आया. वह थोड़ा गुस्से में थी.

‘‘अब क्या हुआ?’’ मैं ने थोड़ा खीज कर पूछा.

‘‘पापा ने रविवार को मेरे और तुम्हारे लिए एक पार्टी रखी है और उस में तुम को आना ही पड़ेगा,’’ वह निर्णायक से स्वर में बोली.

‘‘मारिया, तुम समझती क्यों नहीं हो,’’ मैं ने थोड़ा गुस्से से कहा, ‘‘यह सब हठ छोड़ दो. मैं जल्दी ही वहां पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘नहीं राहुल, जब पापा को पता चलेगा कि तुम नहीं आ रहे हो तो उन्हें कितना बुरा लगेगा. मैं ने ही जिद की थी कि आप पार्टी रख लो, राहुल तब तक आ जाएगा. उन के मन में तुम्हारे प्रति कितनी इज्जत है…’’

‘‘यही बात जब मैं ने तुम से कही थी कि मेरे घर वाले…’’

‘‘वह बात और थी डार्ल्ंिग…’’ मारिया बात को टालने की कोशिश करती रही.’’

‘‘नहीं, वह भी यही बात थी. सिर्फ सोच का फर्क है. हमारी परंपराएं इसीलिए तुम से अलग हैं. संयुक्त परिवारों की परंपराएं और एकदूसरे की भावनाओं का आदर करना ही हमारी सब से बड़ी धरोहर है.’’

‘‘देखो राहुल, तुम जानते हो कि यह सब मुझे बरदाश्त नहीं है. एक बार फिर सोच लो कि रविवार तक यहां आ रहे हो या नहीं.’’

‘‘मैं नहीं आ रहा हूं,’’ मैं ने स्पष्ट कहा.

‘‘फिर इस ढंग से तो यह रिश्ता नहीं निभ सकता. मुझे अब तुम्हारी जरूरत नहीं है,’’ मारिया तेज स्वर में बोली.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मारिया कि जो लड़की परिवार में घुलमिल नहीं सकती, मुझे भी उस की जरूरत नहीं है. मैं उन में से नहीं हूं कि विदेशी नागरिकता लेने के लिए अपनी आजादी खो दूं. अच्छा है मेरी तुम से शादी नहीं हुई.’’

मुझे आज लग रहा है कि उस से अलग हो कर मैं ने कोई गलती नहीं की है. मांबाबूजी की आंखों में मैं ने अजीब सी चमक देखी है. अपनी कंपनी से मैं ने अपने देश में ही ट्रांसफर करा लिया है.

इस गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं 31 साल की Alia Bhatt, इंटरव्यू में खुद किया खुलासा

बौलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री आलिया भट्ट (Alia Bhatt) जिन्होंने अपनी छोटी उम्र में बड़ा नाम कमा लिया है. और कई सारी दमदार भूमिका निभा चुकी हैं. वही आलिया भट्ट आजकल अपनी जल्द ही रिलीज होने वाली फिल्म जिगरा को लेकर भी चर्चा में है, क्योंकि भाई बहन की कहानी पर आधारित इस फिल्म में आलिया बहन होकर भी भाई की रक्षा करती नजर आ रही है. जिसके चलते आलिया ने इस फिल्म मे खतरनाक स्टंट शौर्ट भी दिए है. इसके अलावा आलिया भट्ट परिस फैशन वीक में पहली बार रैंप वाक करने को लेकर भी चर्चा में है.

इन सभी प्रोफेशनल चर्चाओं के अलावा आलिया भट्ट पर्सनल लाइफ में अपनी एक खतरनाक बीमारी को लेकर भी चर्चा में है जिसका जिक्र आलिया भट्ट ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान किया था. आलिया के अनुसार वह इस बीमारी से बचपन से जूझ रही हैं और इस बीमारी की वजह से उनको कई सारी परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है.

इसका नाम अटेंशन डेफिसिट डिसऔर्डर है. जिसे अटेंशन डिफिशिएंट डिसऔर्डर के नाम से भी जाना जाता है. इस बीमारी के अंतर्गत एक ही जगह पर ज्यादा समय तक बैठना मुश्किल होता है . मन विचलित और घबराहट होने लगती है. इसमें हाइपर एक्टिविटी, और आवेगशीलता के लक्षण दिखाई देते हैं, एक ही जगह पर ध्यान केंद्रित करना भी मुश्किल होता है , ऐसे लोग जल्दी से जल्दी काम खत्म करके छुटकारा पाना चाहते हैं. आलिया भट्ट के अनुसार बचपन से ही वह इस बीमारी से जूझ रही हैं इस बीमारी का इलाज दवाई में नहीं बल्कि थेरेपी में है. वह इस बीमारी को दूर करने के लिए थेरेपी भी ले रही हैं

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