Download Grihshobha App

रेस्तरां फुल और जिम खाली, सेहत के मुकाबले स्वाद को तवज्जो दे रहे हैं लोग

बिगड़ते लाइफस्टाइल और गलत खानपान के चलते आजकल दुबलेपतले लोग कम ही दिखाई देते हैं. दिनोंदिन बढ़ती रेस्तराओं की संख्या और उन में लोगों की भीड़ व औनलाइन फूड डिलिवरी का बढ़ता चलन कहीं न कहीं हमारे बढ़ते मोटापे और वजन के लिए जिम्मेदार है.

मैं हाल ही में परिवार संग उदयपुर घूमने गई थी. वहां एक फेमस होटल में रुकने का मौका मिला. वह फुल था. होटल को घूमते हुए वहां के स्टाफ से बातचीत के दौरान पूछा कि यहां जिम और रेस्तरां में जाने का सही समय क्या है ताकि जिम मशींस खाली मिलें और रेस्तरां में आराम से बैठ कर खाना खा सकें तो स्टाफ ने कहा कि आप जिम तो सुबह 6 से ले कर रात 8 बजे तक कभी भी जा सकते हैं. जिम तो अकसर खाली ही रहता है. कभी भी ओवर क्राउडेड नहीं होता लेकिन रेस्तरां में आप लंच के लिए 1 बजे तक आ जाएं नहीं तो फिर वह ओवर क्राउडेड हो जाता है.

उस के बताए समय अनुसार हम ने देखा कि वाकई जिम तो खाली पड़ा है और रेस्तरां फुल है. खूब शोरगुल मचा था. शायद इसीलिए आजकल दुबलेपतले लोग कम ही दिखाई देते हैं क्योंकि लोग जितना खा या कैलोरी ले रहे हैं उतनी बर्न नहीं कर रहे हैं और मोटापा एक बीमारी बन कर सामने आ रहा है. ज्यादातर लोग सेहत के मुकाबले स्वाद को ज्यादा तवज्जो देते हैं. यही वजह है कि उन की सेहत पर लगातार बुरा असर पड़ रहा है.

समय पर कंट्रोल जरूरी

मोटापा यानी अत्यधिक वजन होने के कारण व्यक्ति को मैटाबोलिक सिंड्रोम, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रैशर, कार्डियोवैस्कुलर डिसऔर्डर, किडनी रोग का खतरा हो सकता है. हाई ब्लड प्रैशर को कभी हलके में न लें क्योंकि यह मुख्य रूप से तनाव, मोटापा, नसों की सिकुड़न से विकसित होता है. स्ट्रोक व हार्ट अटैक से बचने के लिए इसे समय पर कंट्रोल करना जरूरी है.

वहीं आजकल कार्डियोवैस्क्युलर डिसऔर्डर स्ट्रोक, हार्ट अटैक जैसे कार्डियोवैस्क्युलर डिसऔर्डर दुनियाभर में मौतों का बड़ा कारण है जोकि मुख्यरूप से फैट वाले फूड, स्मोकिंग, ऐक्सरसाइज न करने जैसी जीवनशैली की गलत आदतों के कारण होता है.

हमारी सेहत कई बार हमारी आदतों की वजह से बनती या बिगड़ती है. ज्यादातर लोग सेहत के मुकाबले स्वाद को ज्यादा तवज्जो देते हैं इसलिए फास्ट फूड के बढ़ते चलन ने कई बीमारियों को जन्म दिया है जैसे वजन बढ़ना, ब्लड प्रैशर, डायबिटीज, डाइजैशन का खराब होना आदि.

यही वजह है कि लोगों की सेहत पर लगातार बुरा असर पड़ रहा है. अनियमित खानपान, सोनेजागने की गलत आदत, गलत समय खाना खाने की आदत हमें गंभीर बीमार बना रही है.

इन आदतों को संतुलित कर हम गंभीर बीमारियों से बचे रह सकते हैं. इस के लिए बायोलौजिकल क्लौक को फौलो करते हुए नींद लें, बिगड़ते लाइफ स्टाइल के चलते आजकल हम देर रात तक जागते रहते हैं और सुबह देर से उठते हैं जिस का असर हमारी सेहत पर पड़ रहा है.

स्वस्थ रहने के लिए 6-8 घंटे की नींद लेना आवश्यक है. इस से शरीर को रिपेयर, रिकवर और सैल्स को रीजनरेट करने में मदद मिलती है और मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है जिस के कारण आप सभी काम कुशलतापूर्वक कर पाते हैं. चीनी और नमक का सेवन संतुलित करें. पिज्जा, चिप्स, नूडल्स, डब्बाबंद जैसे जंक फूड में सोडियम की मात्रा अधिक होती है जिस से शरीर की नसें सिकुड़ने लगती हैं. इसलिए जितना हो सके नमक और जंक फूड का सेवन कम करें.

शुगर की अधिकता हमारी सेहत पर बुरा असर डालती है. अधिक चीनी का सेवन करने की वजह से ज्यादातर लोग मोटोपा, डायबिटीज और ?ार्रियों सहित कई समस्याओं से जू?ाते हैं. अपने शारीरिक वजन को संतुलित रखें. इस के लिए रोजाना फिजिकल ऐक्टिविटी करें. मैदे से बनाएं. हम दिन में कई ऐसी चीजें खाते हैं जो मैदे से बनी होती हैं जैसे ब्रैड, पास्ता, नूडल्स, बिस्कुट, मठरी आदि. माना जाता है ये सब आसानी से हजम नहीं होतीं इसलिए जितना हो सके इस से दूरी बना लें.

कैफीन का अधिक प्रयोग

रात में पूरी नींद न होने की वजह से दिनभर ऊर्जा से भरे हुए नहीं रहते और फिर औफिस या अपने काम के दौरान आलस और टैंशन को दूर भगाने के लिए चाय और कौफी का सेवन करते हैं ताकि ऐक्टिव बने रहे लेकिन कौफी और चाय में अधिक मात्रा में कैफीन होता है जो हमारी नींद को प्रभावित करता है. फिर नींद न आने की स्थिति में डार्क सर्कल्स और सिर में दर्द हो सकता है.

डाइजैशन को करें ठीक

हमारा व्यस्त लाइफस्टाइल ही हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है. भागदौड़भरी जिंदगी में लोग न तो समय पर खाना खा पा रहे हैं और न ही सही डाइट ले पा रहे हैं. यही वजह है बाहर का मसालेदार खाना, फास्ट फूड और बिगड़ता लाइफस्टाइल हमारे डाइजैशन को बिगाड़ रहा है क्योंकिगलत लाइफस्टाइल या आदतों की वजह से खाना ठीक तरीके से पच नहीं पाता और यही गैस बनने की वजह बन जाता है.

अगर आप अपना डाइजैशन बेहतर रखना चाहते हैं तो अपने लाइफस्टाइल को सुधारना बहुत जरूरी है. इस के लिए उन खाने की चीजों को शामिल करें जो आप के डाइजैशन को बेहतर करती हैं. डाइजैशन के लिए बैस्ट हैं ये फूड दही, इडली और चीज. ये फूड आप की आंतों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं. ये अपचन से दूर रखते हैं. इन फूड आइटम्स में प्रोबायोटिक्स होते हैं जो गट हैल्थ को हानिकारक बैक्टीरिया से बचाने में मदद करते हैं.

साबूत अनाज

साबूत गेहूं, जई, जौ, ब्राउन राइस, पौपकार्न आदि साबूत अनाज के बेहतरीन उदाहरण हैं. इन में भी प्रीबायोटिक्स होते हैं जो स्वस्थ बैक्टीरिया के लिए भोजन हैं. इन के सेवन से पाचन संबंधी समस्याएं खत्म हो जाती हैं.

फूट

फल पोषक तत्त्वों का भंडार होते हैं खासकर सेब, नाशपाती, केला, रसभरी, पपीता आप के पेट के लिए बहुत अच्छे होते हैं. फल फाइबर, विटामिन और खनिजों से भरे होते हैं जो डाइजैशन में मदद करते हैं.

ग्रीन टी, पुदीना, अदरक, सौंफ, तुलसी, नीबू की बनी चाय की मदद से पाचन संबंधी समस्याओं को सुल?ाया जा सकता है. खाने के बाद गरम चाय पीने से पेट फूलना, गैस और सीने में जलन जैसी समस्याओं से राहत मिलती है.

वजन को रखें नियंत्रण में

अपने वजन को नियंत्रण में रखने के लिए डाइट में कम कैलोरी युक्त खानपान की चीजें शामिल करना आवश्यक है साथ ही वेट लौस ऐक्सरसाइज को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना भी जरूरी है.

यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो आप कैलोरी इन, कैलोरी आउट डाइट को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना सकते हैं. यह डाइट आप के प्रतिदिन कैलोरी इन्टेक से जुड़ी डाइट है. यह वजन घटाने और वजन बढ़ाने दोनों के लिए ही उपयुक्त है क्योंकि यह आप की कैलोरी की खपत को पूरी तरह से नियंत्रित रख सकती है. जब आप का कैलोरी इन्टेक कम होता है और खपत ज्यादा होती है तो कैलोरी डैफिसिट माना जाता है जिस की वजह से आप का वजन तेजी से कम होता है. इस डाइट को करने के लिए आप को अपना बीएमआर यानी बैसल मैटाबोलिक रेट कैलकुलेट करना पड़ता है. इस के बाद कैलोरी को डैफिसिट करते हैं ताकि आप का वजन कम हो सके.

वजन कम करने के लिए आवशयक नहीं कि आप अपनी कैलोरी को काउंट करें. आप इस के लिए एक बेहतर डाइट प्लान बना सकते हैं ताकि शरीर में पोषक तत्त्वों की कमी न हो और कमजोरी महसूस न हो तथा आप का शरीर स्वस्थ बना रहे.

मारिया: भारतीय परंपराओं में जकड़ा राहुल क्या कशमकश से निकल पाया

दिल्ली का इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. जहाज से बाहर निकल कर इस धरती पर पांव रखते ही सारे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई. लगा यहां कुछ तो ऐसा है जो अपना है और बरबस अपनी तरफ खींच रहा है. यहां की माटी की सौंधीसौंधी खुशबू के लिए तो पूरे 2 साल तक तरसता रहा है.

ट्राली पर सामान लादे एअरपोर्ट से बाहर निकला. दर्शक दीर्घा में मेरी नजर चारों तरफ घूमने लगी. लंबी कतारों में खड़ी भीड़ में मैं अपनों को तलाश रहा था. मेरे पांव ट्राली के साथसाथ धीरेधीरे आगे बढ़ रहे थे कि पास से ही चाचू की आवाज आई.

मेरी नजर आवाज की ओर घूम गई.

‘‘अरे, नेहा तू?’’ मैं ने हैरानी से उस की ओर देखा.

‘‘हां, चाचू, इधर से आ जाइए. सभी लोग आए हुए हैं,’’ नेहा बोली.

‘‘सब लोग?’’ मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी. अपनों से मिलने के लिए मन एकदम बेचैन हो उठा. सामने दीदी, मांबाबूजी को देखा तो मन एकदम भावुक हो गया. मेरी आंखें छलछला आईं. मां ने कस कर मुझे अपने सीने में भींच लिया. भाभी के हाथ में आरती की थाली थी.

‘‘मारिया कहां है,’’ भाभी ने इधरउधर झांकते हुए पूछा.

‘‘भाभी, अचानक उस की तबीयत खराब हो गई इसलिए वह नहीं आ सकी. वैसे आखिरी समय तक वह एकदम आने को तैयार थी.’’

मेरा इतना कहना था कि भाभी का चेहरा उतर गया जिसे मैं ने बड़े करीब से महसूस किया.

‘‘हम लोग तो यह सोच कर यहां आए थे कि बहू को सबकुछ अटपटा न लगे. पर चलो…’’ कहतेकहते मां चुप हो गईं.

‘‘चलो, मारिया न सही तुम ही तिलक करा लो,’’ भाभी ने कहा तो मैं झेंप गया.

‘‘नहीं भाभी, मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता. सब लोग क्या सोचेंगे.’’

‘‘यही सोचेंगे न कि कितने प्यार से भाभी देवर का स्वागत कर रही है. आखिर हमारा भरापूरा परिवार है. भारतीय परंपराएं हैं…’’ बाबूजी बोले.

सच, ऐसे घर को तो मैं तरस गया था. सभी घर आ गए.

‘‘मारिया नहीं आई कोई बात नहीं, तू तो आ गया न,’’ मां ने कहा.

‘‘राहुल क्यों नहीं आता? आखिर अपना खून है, फिर बहन की शादी है. तब तक तो मारिया भी आ जाएगी क्यों बाबू…’’ भाभी ने चुहल की.

‘‘हां भाभी,’’ मैं ने यों ही टालने के लिए कह दिया. बातों का सिलसिला मारिया से आगे बढ़ ही नहीं रहा था फिर उठ कर अनमने मन से सोफे पर लेट गया और सोने का प्रयास करने लगा. तब तक भाभी चाय बना कर ले आईं.

मुझे ऐसे लेटा देख कर बोलीं, ‘‘भैया, आप बहुत थक गए होंगे. भीतर कमरे में चल कर लेट जाइए. बातें तो सुबह भी हो जाएंगी.’’

मेरी आंखों में नींद कहां. परिवारजनों का इतना स्नेह उस विदेशी लड़की के लिए जिस को मैं ने चुना था. मांबाबूजी कितने दिन मुझ से नाराज रहे थे. महीनों तक फोन भी नहीं किया था. आखिर मां ने ही चुप्पी तोड़ी और बेमन से ही सही सबकुछ स्वीकार कर लिया था. स्नेह को बटोरने के लिए वह नहीं थी जिस के लिए यह सबकुछ हुआ था. मुझे रहरह कर बीते दिन याद आने लगे.

मेरी कंपनी ने मुझे अनुभव और योग्यता के आधार पर यूनान भेजने का निर्णय लिया था. मैं भरसक प्रयास करता रहा कि मुझे वहां न जाना पड़े क्योंकि एक तो मुझे विदेशी भाषा नहीं आती थी दूसरे वहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या नहीं के बराबर थी. अत: शाकाहारी भोजन मिलने की कोई संभावना न थी. मेरे स्थान पर कोई  और व्यक्ति न मिल पाने के कारण वहां जाना मेरी मजबूरी बन गई थी.

मुझे एथेंस आए 15 दिन हो चुके थे. खाने के नाम पर उबले हुए चावल, ग्रीक सलाद, फ्राई किए टमाटर और गोल सख्त डबलरोटी थी जिन को 15 दिनों से लगातार खा कर मैं पूरी तरह से ऊब चुका था.

भारतीय रेस्तरां मेरे आफिस से 20 किलोमीटर दूर एअरपोर्ट के पास था जहां हर रोज खाने के लिए जाना आसान नहीं था. मेरे आफिस वाले भी इस मामले में मेरी कोई ज्यादा मदद नहीं कर पाए क्योंकि मैं उन्हें ठीक से यह समझा नहीं पाया कि मैं शाकाहारी क्यों हूं.

एथेंस यूरोप का प्रसिद्घ टूरिस्ट स्थान होने के कारण लोग यहां अकसर छुट्टियां मनाने आते हैं. यही वजह है कि यहां के हर चौराहे पर, सड़क के किनारे रेस्तरां तथा फास्टफूड का काफी प्रचलन है. घंटों बैठ कर ठंडी ग्रीक कौफी पीना तथा भीड़ को आतेजाते देखना भी यहां का एक फैशन और लोगों का शौक है.

उस दिन मैं यहां के मशहूर फास्टफूड चेन ‘एवरेस्ट’ के बाहर बिछी कुरसियों पर बैठा वेटर के आने का इंतजार कर ही रहा था कि लालसफेद ड्रेस में लिपटी एक महिला वेटर ने आ कर मुझे मीनू कार्ड पकड़ाना चाहा.

मैं ने उसे देखते ही कहा, ‘मुझे यह कार्र्ड नहीं, बस, एक वेज पिज्जा और कोक चाहिए.’

‘आप कुछ नया खाना नहीं खाना चाहेंगे. कल भी आप ने खाने के लिए यही मंगाया था. यहां का चिकन सूप, क्लब सैंडविच…’

उस महिला वेटर की बात को काटते हुए मैं ने कहा, ‘माफ कीजिए, मैं सिर्फ शाकाहारी हूं.’

‘तो शाकाहारी में वेजचीज सैंडविच, नूडल्स, मैश पोटेटो, फ्रेंच फाइज क्यों नहीं खाने की कोशिश करते?’ वह मुसकरा कर बोलती रही और मैं उस का मुंह देखता रहा कि कब वह चुप हो और मैं ‘नो थैंक्स’ कह कर उस को धन्यवाद दूं्.

मेरे चेहरे को देख कर शायद उस ने मेरे दिल की बात जान ली थी. इसलिए और भीतर आर्डर दे कर मेरे पास आ कर खड़ी हो गई.

‘आप कहां से आए हैं?’

‘इंडिया से,’ मैं ने छोटा सा उत्तर दिया.

‘पर्यटक हैं? ग्रीस घूमने अकेले

ही आए हैं.’

‘नहीं, मैं यहां वास निकोलस में काम करता हूं और कुछ दिन पहले ही यहां आया हूं…और आप?’

‘मैं पढ़ती हूं. यहां पार्र्ट टाइम वेटर  का काम करती हूं, शाम को 4 से 10 तक.’

तब तक भीतर के बोर्ड पर मेरे आर्डर का नंबर उभरा और वह बातों का सिलसिला बीच में ही छोड़ कर चली गई. मैं ने महसूस किया कि यूरोप के बाकी देशों से यूनान के लोग ज्यादा सुंदर, हंसमुख और मिलनसार होते हैं. खाने के साथ यहां भी भारत की तरह पीने को पानी मिल जाता है जिस की कोई कीमत नहीं ली जाती.

उस ने बड़ी तरतीब से मेरी मेज पर कांटे, छुरियों और पेपर नेपकिन के साथ पिज्जा सजा दिया, जिसे देखते ही मेरा मन फिर से कसैला सा हो गया. न जाने क्यों मैं यहां की चीज की गंध को बरदाश्त नहीं कर पा रहा था.

‘क्या हुआ, ठीक नहीं है क्या?’ मेरे चेहरे के भावों को पढ़ते हुए वह बोली.

‘नहीं यह बात नहीं है. 5 दिन से लगातार जंक फूड खातेखाते मैं बोर हो गया हूं. यहां आसपास कोई भारतीय रेस्तरां नहीं है क्या?’

‘नहीं, पर एक और शाकाहारी भोजनालय है, हरे रामा हरे कृष्णा वालों का, एकदम शुद्घ शाकाहारी. अंडा और चाय भी नहीं मिलती वहां.’

‘वह कहां है?’ मैं ने बड़ी उत्कंठा से पूछा.

‘मुझे उस का पता तो नहीं पर जगह मालूम है. आज मेरी ड्यूटी के बाद तक रुको तो मैं तुम को ले चलूंगी या फिर कल 4 बजे से पहले आना.’

‘मैं कल आऊंगा. क्या नाम है तुम्हारा?’ मैं ने पूछा.

‘मारिया.’

‘और मेरा राहुल.’

इस तरह हमारे मिलने का सिलसिला शुरू हुआ. अब हर शनिवार को हम साथ घूमते और खाते. वह सालोनीकी की रहने वाली थी जो एथेंस से 500 किलोमीटर दूर था. उस के पिता का वहां सिलेसिलाए वस्त्रों का स्टोर था. वह वहां पर अपनी एक सहेली के साथ किराए पर कमरा ले कर रहती थी जिस का खर्च दोनों ही मिलजुल कर वहन करती थीं.

एक दिन बातोंबातों में मारिया ने बताया कि उस के पिता भी मूलत: भारतीय हैं जो बरसों पहले यहां आ कर बस गए थे. परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई क्रिस्टोस भी है जो उन के पास ही रहता है. अपने पिता से उस ने भारत के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. उस की मां उस के पिता की भरपूर प्रशंसा करती हैं और कहा करती हैं कि भारतीय व्यक्ति से विवाह कर के मैं ने कोई भूल नहीं की. परिवार के प्रति संजीदा, व्यवहारकुशल, बेहद केयरिंग पति कम से कम यूनानी लोगों में तो कम ही होते हैं.

इस बार एकसाथ 4 छुट्टियां मिलीं तो मारिया बेहद खुश हुई और कहने लगी, ‘चलो, तुम को सैंतारीनी द्वीप ले चलती हूं. यहां के सब से खूबसूरत द्वीपों में से एक

है. वहां का सनसेट और

सन राईज देखने दुनिया भर से लोग आते हैं.’

मेरे तो मन में लाखों घंटियां एकसाथ बजने लगीं कि अब कई दिन एकसाथ रहने और घूमनेफिरने को मिलेगा. चूंकि साथ रहतेरहते वह अब मेरे बारे में बहुत कुछ जान चुकी थी इसलिए रेस्तरां में खुद ही आर्र्डर कर के सामान बनवाती और मुझे उस व्यंजन के बारे में विस्तार से समझाती. मेरी तो जैसे दुनिया ही बदल गई थी. हर चीज इतनी आसान हो गई थी कि मुझे अब एथेंस में रहना अच्छा लगने लगा था.

मारिया के साथ गुजारी गई उन छुट्टियों को मैं कभी नहीं भूल सकता. मैं ने यह भी महसूस किया कि उस को भी मेरा साथ अच्छा लगने लगा था. होटल में हम ने अलगअलग कमरे लिए थे पर उस शाम मारिया मेरे कमरे में आ कर मुझ से बुरी तरह लिपट गई और चुंबनों की बौछार कर दी. मैं भी उसे चाहने लगा था इसलिए सारा संकोच त्याग कर उसे कस कर पकड़ लिया और वह सबकुछ हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम एकदूसरे के और करीब आ गए.

दिन बीतते गए. एक दिन मारिया ने बताया कि उस की रूमपार्टनर वापस अपने शहर जा रही है. मारिया अकेली उस फ्लैट का किराया नहीं दे सकती थी और मुझे भी एक रूम की तलाश थी सो मैं होटल से सामान ले कर उस के साथ रहने लगा.

एक दिन मारिया ने कहा कि वह मुझ से शादी करना चाहती है. नैतिक तौर पर यह मेरी जिम्मेदारी थी क्योंकि मैं भी उसे अब उतना ही चाहने लगा था जितना कि वह. पर तुरंत मैं कोई फैसला नहीं कर सका.

मैं ने कहा, ‘मारिया, मैं तुम्हें चाहता हूं फिर भी एक बार अपने घर वालों से इजाजत ले लूं तो…’

‘इजाजत,’ वह थोड़ा माथे पर त्योरियां चढ़ाते हुए बोली, ‘तुम सब काम उन की इजाजत ले कर करते हो. मेरे साथ घूमने और रहने के लिए भी इजाजत ली थी क्या? खाना खाने, रहने, सोने के लिए भी उन की इजाजत लेते हो क्या?’

‘ऐसी बात नहीं है मारिया, मैं भारतीय हूं. इजाजत न भी सही पर उन को बताना और आशीर्वाद लेना मेरा कर्तव्य है.’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की, ‘यह हमारी परंपराएं हैं.’

‘ये परंपराएं तुम्ही निभाओ,’ मारिया बोली, ‘मेरी बात का सीधा उत्तर दो क्योंकि मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनना चाहती हूं.’

एकदम सीधासीधा वाक्य उस ने मेरे ऊपर थोप दिया. मुझे उस से इस तरह के उत्तर की अपेक्षा नहीं थी.

‘मैं ने मम्मीपापा को यह सब बताया तो वे नाराज हो गए और मैं कितने ही दिन तक उन के रूठनेमनाने में लगा रहा. फिर जब मैं ने बताया कि लड़की के पिता भारतीय मूल के हैं तो उन्होंने बड़े अनमने मन से इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.

कुछ ही दिनों बाद पता चला कि मेरी छोटी बहन की शादी तय हो गई है. मेरा मन भारत जाने के लिए एकदम विचलित हो गया. इसी बहाने मुझे छुट्टी भी मिल गई और भारत जाने को टिकट भी.

मैं ने यह सब मारिया को बताया तो वह भी साथ चलने की तैयारी करने लगी लेकिन जाने से ठीक एक दिन पहले मारिया को न जाने क्या सूझा कि उस ने मेरे साथ जाने से मना कर दिया. मैं ने नाराज हो कर मारिया को कहा कि ऐसे कैसे तुम मना कर रही हो.

‘राहुल मैं अब भारत नहीं जाना चाहती, बस…’

‘परंतु मारिया, मैं ने वहां सब को बता दिया है कि तुम मेरे साथ आ रही हो. सब लोग तुम से मिलने की राह देख रहे हैं. सच तुम भी वहां चल कर बहुत खुश होगी.’

‘मुझे नहीं जाना तो जबरदस्ती क्यों कर रहे हो,’ वह उत्तेजित हो कर बोली.

मैं मायूस हो कर रह गया. मैं यह बात अच्छी तरह जानता था कि मारिया अब मेरे साथ नहीं जाएगी क्योंकि जिस बात को वह एक बार मन में बैठा ले उस पर फिर से विचार करना उस ने सीखा नहीं था.

सुबह काम करने वालों के शोर के साथ ही मेरी निद्रा टूटी. बहन की शादी की घर पर चहलपहल तो थी ही.

बहन को विदा करने के साथसाथ मैं भी पूरा थक चुका था. जब से यहां आया ठीक से मांबाबूजी के पास बैठ भी नहीं सका. मां का पुराना कमर दर्द फिर से उभर कर सामने आ गया और मां बिस्तर पर पड़ गईं.

जैसेजैसे मेरे जाने के दिन करीब आते गए मांबाबूजी की उदासी बढ़ती गई. मेरा भी मन भारी हो आया और मैं ने छुट्टी बढ़वा ली. सभी लोग मेरे इस कुछ दिन और रहने से बहुत खुश हो गए परंतु मारिया नाराज हो गई.

‘‘राहुल तुम वापस आ जाओ. मेरा मन अकेले नहीं लग रहा है.’’

‘‘मारिया, अभी तो सब से मैं ठीक से मिला भी नहीं हूं. शादी की भागदौड़ में इतना व्यस्त रहा कि…फिर अचानक मां की तबीयत खराब हो गई. मैं ने छुट्टी 15 दिन के लिए बढ़वा ली है फिर न जाने कब यहां आना हो सके…’’ यह कह कर मैं ने फोन काट दिया.

कुछ दिनों बाद मारिया का फिर फोन आया. वह थोड़ा गुस्से में थी.

‘‘अब क्या हुआ?’’ मैं ने थोड़ा खीज कर पूछा.

‘‘पापा ने रविवार को मेरे और तुम्हारे लिए एक पार्टी रखी है और उस में तुम को आना ही पड़ेगा,’’ वह निर्णायक से स्वर में बोली.

‘‘मारिया, तुम समझती क्यों नहीं हो,’’ मैं ने थोड़ा गुस्से से कहा, ‘‘यह सब हठ छोड़ दो. मैं जल्दी ही वहां पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘नहीं राहुल, जब पापा को पता चलेगा कि तुम नहीं आ रहे हो तो उन्हें कितना बुरा लगेगा. मैं ने ही जिद की थी कि आप पार्टी रख लो, राहुल तब तक आ जाएगा. उन के मन में तुम्हारे प्रति कितनी इज्जत है…’’

‘‘यही बात जब मैं ने तुम से कही थी कि मेरे घर वाले…’’

‘‘वह बात और थी डार्ल्ंिग…’’ मारिया बात को टालने की कोशिश करती रही.’’

‘‘नहीं, वह भी यही बात थी. सिर्फ सोच का फर्क है. हमारी परंपराएं इसीलिए तुम से अलग हैं. संयुक्त परिवारों की परंपराएं और एकदूसरे की भावनाओं का आदर करना ही हमारी सब से बड़ी धरोहर है.’’

‘‘देखो राहुल, तुम जानते हो कि यह सब मुझे बरदाश्त नहीं है. एक बार फिर सोच लो कि रविवार तक यहां आ रहे हो या नहीं.’’

‘‘मैं नहीं आ रहा हूं,’’ मैं ने स्पष्ट कहा.

‘‘फिर इस ढंग से तो यह रिश्ता नहीं निभ सकता. मुझे अब तुम्हारी जरूरत नहीं है,’’ मारिया तेज स्वर में बोली.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मारिया कि जो लड़की परिवार में घुलमिल नहीं सकती, मुझे भी उस की जरूरत नहीं है. मैं उन में से नहीं हूं कि विदेशी नागरिकता लेने के लिए अपनी आजादी खो दूं. अच्छा है मेरी तुम से शादी नहीं हुई.’’

मुझे आज लग रहा है कि उस से अलग हो कर मैं ने कोई गलती नहीं की है. मांबाबूजी की आंखों में मैं ने अजीब सी चमक देखी है. अपनी कंपनी से मैं ने अपने देश में ही ट्रांसफर करा लिया है.

इस गंभीर बीमारी से जूझ रही हैं 31 साल की Alia Bhatt, इंटरव्यू में खुद किया खुलासा

बौलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री आलिया भट्ट (Alia Bhatt) जिन्होंने अपनी छोटी उम्र में बड़ा नाम कमा लिया है. और कई सारी दमदार भूमिका निभा चुकी हैं. वही आलिया भट्ट आजकल अपनी जल्द ही रिलीज होने वाली फिल्म जिगरा को लेकर भी चर्चा में है, क्योंकि भाई बहन की कहानी पर आधारित इस फिल्म में आलिया बहन होकर भी भाई की रक्षा करती नजर आ रही है. जिसके चलते आलिया ने इस फिल्म मे खतरनाक स्टंट शौर्ट भी दिए है. इसके अलावा आलिया भट्ट परिस फैशन वीक में पहली बार रैंप वाक करने को लेकर भी चर्चा में है.

इन सभी प्रोफेशनल चर्चाओं के अलावा आलिया भट्ट पर्सनल लाइफ में अपनी एक खतरनाक बीमारी को लेकर भी चर्चा में है जिसका जिक्र आलिया भट्ट ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान किया था. आलिया के अनुसार वह इस बीमारी से बचपन से जूझ रही हैं और इस बीमारी की वजह से उनको कई सारी परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है.

इसका नाम अटेंशन डेफिसिट डिसऔर्डर है. जिसे अटेंशन डिफिशिएंट डिसऔर्डर के नाम से भी जाना जाता है. इस बीमारी के अंतर्गत एक ही जगह पर ज्यादा समय तक बैठना मुश्किल होता है . मन विचलित और घबराहट होने लगती है. इसमें हाइपर एक्टिविटी, और आवेगशीलता के लक्षण दिखाई देते हैं, एक ही जगह पर ध्यान केंद्रित करना भी मुश्किल होता है , ऐसे लोग जल्दी से जल्दी काम खत्म करके छुटकारा पाना चाहते हैं. आलिया भट्ट के अनुसार बचपन से ही वह इस बीमारी से जूझ रही हैं इस बीमारी का इलाज दवाई में नहीं बल्कि थेरेपी में है. वह इस बीमारी को दूर करने के लिए थेरेपी भी ले रही हैं

सेक्टर 36 से लेकर तुम्बाड़ 2 तक, इस वीकेंड को मजेदार बनाने के लिए देखें ये New Movies

वीकेंड का हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता है. हफ्ते में अगर दो दिन खुलकर एंजौय करने का मौका मिल जाए, तो ये वीकेंड हमारे लिए एनर्जी बूस्टर की तरह काम करता है. अगर आप भी इस वीकेंड अपनी छुट्टियों का भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं, तो ये नई हिंदी फिल्में (New Movies) जरूर देखें. इन फिल्मों को देखकर आपका वीकेंड मजेदार हो जाएगा.

 

स्त्री 2

यह फिल्म 15 अगस्त के मौके पर रिलीज हई. बौक्स औफिस पर इस फिल्म ने बम्पर कमाई की. अगर आपने यह फिल्म नहीं देखी है, तो इस वीकेंड जरूर देखें. यह हौरर कमेडी फिल्म आपका दिल जीत लेगी. अभी तक के कलैक्शन की बात करें तो स्त्री 2 ने 42 दिनों में लगभग 581 करोड़ रुपए का कलेक्शन कर लिया है. यह फिल्म जल्द ही 100 करोड़ रुपए के आंकड़े को छूने वाली है.

इस फिल्म में राजकुमार राव और श्रद्धा कपूर के अलावा पंकज त्रिपाठी, अभिषेक बनर्जी, अपारशक्ति खुराना, सुनीता राजवार ने अहम किरदार निभाया है. इस फिल्म की कहानी चंदेरी गांव में सरकटे के आतंक के ईर्दगिर्द घूमती है जिसने गांव की महिलाओं को अगवा कर दहशत फैलाया है.

कहां शुरू कहां खत्म

यह फिल्म 20 सितंबर को रिलिज हुई. यह फिल्म औरतों को घूंघट से बाहर निकालने का मैसेज देती है. आप इस फिल्म को भी वीकेंड लिस्ट में जोड़ सकते हैं. इस फिल्म से ध्वनि भानुशाली का डेब्यू हुआ है. जो एक पौपुलर सिंगर भी हैं.

फिल्म की कहानी ध्वनि भानुशाली यानी मीरा नाम की एक लड़की की है, जो अपनी शादी के दिन घर से भाग जाती है. इसका कारण ये है कि और शादी करने के लिए उससे पूछा तक नहीं गया. और उसकी शादी भी फिक्स कर दी गई. उस लड़की के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं. इस फिल्म की कहानी आपका दिल छू लेगी.

जो तेरा है वो मेरा है

राज त्रिवेदी द्वारा निर्देशित कौमेडी फिल्म जो तेरा है वो मेरा है दर्शकों को एंटरटेन करने के लिए शानदार फिल्म है. यह फिल्म एक साधारण कहानी के साथ पारिवारिक भी है. इस फिल्म में अमित सियाल , परेश रावल , सोनाली कुलकर्णी , सोनाली सहगल और अन्य कलाकार हैं.

इस फिल्म की कहानी मितेश (अमित सियाल) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो बचपन से ही एक बंगले का सपना देखता है. उसकी पत्नी और प्रेमिका दोनों है. वह कैसे सबको खुश रखने की कोशिश करता है. इस फिल्म में ये देखना काफी दिलचस्प है.

तुम्बाड़ 2

फिल्म तुम्बाड़ 2 कुछ दिनों पहले ही रिलीज हुई. आप इस मूवी को भी इस वीकेंड एंजौय कर सकते हैं. इस फिल्म का निर्देशन राही अनिल बर्वे ने किया है. यह फिल्म डरावनी है और इसमें कई विचित्र दृश्य हैं. तुम्बाड़ पार्ट 1 साल 2018 में रिलिज किया गया था, जो दर्शकों का काफी पसंद आया था.

सेक्टर 36

विक्रांत मेसी  की फिल्म सेक्टर 36 डरावनी है. अगर आपको डरावनी फिल्में पसंद है, तो इस वीकेंड ‘सेक्टर 36’ को मिस न करें. इस फिल्म में कोठी में काम करने वाला आदमी छोटे बच्चों को मारता है और लाशों के टुकड़ों  को कोठी में ही दफना देता है. वो ऐसा क्यों करता है, ये जानने के लिए पूरी फिल्म देखना होगा. 12 वीं फेल के बाद जिस विक्रांत मैसी  को दर्शकों से काफी प्यार मिला था. इस फिल्म के किरदार में भी उन्होंने जबरदस्त ऐक्टिंग की हैं. 14 सिंतबर को यह फिल्म रिलीज हुई थी.

लीप के बाद Anupama को टक्कर देने आएगी ये ऐक्ट्रैस, क्या आध्या का किरदार निभाएंंगी शिवांगी जोशी?

टीवी का पौपुलर सीरियल अनुपमा (Anupama) लगातार कई दिनों से सुर्खियों में हैं. इस शो में वनराज का किरदार निभाने वाले सुधांशु पांडे ने सीरियल को अलविदा कह दिया. तो वहीं कुछ दिनों पहले ये भी खबर आई कि काव्या यानी मदालसा शर्मा ने भी इस शो को छोड़ दिया है.

रिपोर्ट में बताया गया कि इस शो में 15 साल का लीप दिखाया जाएगा. जिसमें कई कलाकारों की छुट्टी होगी. रुपाली गांगुली (अनुपमा) और गौरव खन्ना (अनुज) भी इस शो में नजर नहीं आएंगे. जिससे फैंश काफी निराश हो गए थे. लेकिन वहीं इस सीरियल से जुड़ा एक बड़ा अपडेट सामने आया, जिसमें बताया गया कि लीप आने के बाद अनुपमा की लीड ऐक्ट्रैस रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना शो में नजर आएंगे.

लीप के बाद अनुपमा की कहानी में होगा ये बदलाव?

सीरियल में लीप आने के बाद शो की कहानी में कई नए बदलाव आएंगे. रिपोर्ट्स की माने तो शो की कहानी काजल नाम की लड़की के इर्दगिर्द घूमेगी. काजल एक जिंदा दिल, मौज मस्ती करने वाली लड़की का किरदार होगा. जो अपने पिता को बहुत प्यार करती है, लेकिन अपनी मां की गलती के कारण वह अपने पिता को खो देती है. वह अपनी मां को पिता की मौत का जिम्मेदार मानती है. ऐसे में वह अपना घर छोड़ देती है.

खबरों के अनुसार, सीरियल में दिखाया जाएगा कि काजल अकेले अपने पिता का सपना कैसे पूरा करने के लिए संघर्ष करती है. वह एक ऐसी लड़की है, जो गरीब लोगों का मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती है. किरदार के बारे में जानकर तो ऐसा लग रहा है कि यह लड़की अनुपमा की तरह लोगों को जमकर ज्ञान देने वाली है. खैर ये तो सीरियल में लीप के आने के बाद ही काजल के किरदार के बारे में विस्तार से पता चलेगा.

क्या शिवांगी जोशी अनुपमा में लेंगी एंट्री?

ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम शिवांगी जोश जो शो में 7 सालों तक नायरा का किरदार निभाया था. दर्शकों ने इस किरदार को खूब पसंद किया था. ऐसे में खबर आ रही है कि शिवांगी जोशी के आध्या के किरदार में नजर आ सकती है. एक रिपोर्ट में बताया गया है कि उन्हें इस किरदार के लिए अप्रोच किया गया है.

सीरियल के लेटेस्ट एपिसोड में लव एंगल दिखाया जा रहा है. जिसमें मीनू और सागर की प्रेम कहानी को फोकस किया जा रहा है. शो में आप देखेंगे कि सागर मीनू को लेकर टेंशन में रहता है. तो दूसरी तरफ डौली मीनू को लेकर अंदर आती है. तोषु और पाखी डांस करते हु आते हैं. डौली बताती है कि मीनू का रिश्ता पक्का कर दिया है और डौली मान गई है. ये सुनकर सब हैरान हो जाते हैं और सागर का दिल टूट जाता है.

पाखी को आध्या घर से निकालेगी बाहर

शो में आगे दिखाया जाएगा कि शाह परिवार के सभी लोग मीनू का इंतजार करते हैं. तभी डिंपी सबको बताती है कि मीनू और सागर घर से गायब है. ऐसे में डौली का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है. वह अनुपमा को खूब खरीखोटी सुनाती है. इतना ही नहीं अनुपमा पर सागर और मीनू को भगाने का आरोप भी लगाती है.  दूसरी तरफ आध्या भड़क जाती है और अपनी मां के साथ इस बदतमीजी का करारा जवाब देती है. आध्या पाखी को खूब सुनाती है और घर से बाहर निकलने के लिए कह देती है.

मीनू और सागर भागकर करेंगे शादी

दूसरी तरफ सागर और मीनू शादी करके आ जाते हैं. डौली ये बर्दाश्त नहीं कर पाती है. वह अपनी बेटी का मांग साफ करने लगती है, लेकिन अनुपमा बीच में आकर रोकती है. शो में ये देखना दिलचस्प होगा सागर और मीनू की शादी को लेकर अनुपमा क्या फैसला करेगी?

बबूल का माली: क्यों उस लड़के को देख चुप थी मालकिन

लेखक- नारायण शांत

लड़का अपने शहर रायपुर को छोड़ कर भिलाई पहुंच गया, वहां के बारे में वह बहुत कुछ सुन चुका था. वह किसी घरेलू नौकरी की तलाश में था ताकि उसे पढ़नेलिखने की सुविधा भी मिल सके. ऐसा ही एक परिवार था, जहां से दोचार दिन में ही नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चल देते, क्योंकि उस घर की मालकिन के कर्कश स्वभाव से तंग आ कर वे टिक ही नहीं पाते थे. एक दिन लड़का उसी बंगले के सामने जा खड़ा हुआ और उस मालकिन से नौकरी देने का आग्रह करने लगा.

पहले तो उस ने लड़के की बातों पर कोई गौर नहीं किया, लेकिन फिर बोली, ‘‘लड़के, तुम क्याक्या काम कर सकते हो ’’ लड़के का आग्रह सुन कर मालकिन को लगा कि जरूर वह पहले कहीं काम कर चुका है. वह उस से बोली, ‘‘ठीक है, आज और अभी से मैं तुम्हें काम पर रखती हूं.’’

‘‘मालकिन, एक शर्त मेरी भी है,’’ लड़के ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘बताइए, क्या है तुम्हारी शर्त ’’

‘‘मैं काम के बदले पैसा नहीं लूंगा बल्कि आप मुझे खाना, कपड़ा और मेरी पढ़ाईलिखाई की व्यवस्था कर दें,’’ लड़के ने दयनीय स्वर में कहा. पहले तो यह सुन कर मालकिन हड़बड़ा गई लेकिन अपनी मजबूरी को देखते हुए उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के कारण घर का काम प्रभावित नहीं होना चाहिए.’’ लड़के को उस घर में काम मिल गया. वह सब से आखिर में सोता और सवेरे सब से पहले उठ कर काम शुरू कर देता. फिर काम निबटा कर स्कूल जाता. लड़का इस घर, नौकरी और पढ़ाईलिखाई, सभी से बड़ा खुश था. वह अपना काम भी पूरी ईमानदारी, लगन और मेहनत से करता. मालकिन को घरेलू नौकरचाकरों पर रोब झाड़ने की बुरी आदत थी, लेकिन उसे भी लड़के में जरा भी खोट दिखाई नहीं दिया. वह उस के काम से खुश थी.

घर वालों से प्यार और अपनापन मिलने के बावजूद लड़का इस बात का बराबर खयाल रखता कि वह एक नौकर है और उसे पढ़लिख कर एक दिन अच्छा आदमी बनना है. अपनी विधवा मां और भाईबहनों का सहारा बनना है. इधर इतना अच्छा और गुणी नौकर आज तक इस परिवार को नहीं मिला था. घर के बच्चों और खुद मालिक को दिनरात इसी बात का खटका लगा रहता था कि कहीं मालकिन इसे भी निकाल न दे. उधर आदत से मजबूर मालकिन उस लड़के से लड़ने का बहाना ढूंढ़ रही थी. एक दिन वह सोचने लगी कि यह दो कौड़ी का छोकरा इस घर में इतना घुलमिल कैसे गया  न काम में सुस्ती, न अपनी पढ़ाईलिखाई में आलस और खाने के नाम पर बचाखुचा जो कुछ भी मिल जाए खा कर वह इतना खुश रहता है. एक दिन मालकिन ने सब की उपस्थिति में लड़के से कहा, ‘‘देखो, अब से तुम हर महीने अपना वेतन ले लिया करना, ताकि तुम अपने खानेपीने, रहने और पढ़नेलिखने का अलग से इंतजाम कर सको.’’

लड़का आश्चर्य से मालकिन की ओर देखने लगा. उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. उस ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘मालकिन, मुझे मौका दो मैं अपना काम और अच्छी तरह से करूंगा.’’ लड़के की बातों से ऐसा लगा जैसे मातापिता की सेवा करने वाले इकलौते और गरीब श्रवणकुमार को किसी राजा ने अपना शिकार समझ कर आहत कर दिया हो और बाकी लोग राजा के डर से मात्र मूकदर्शक बने बैठे हों. मालकिन को अपने पति और बच्चों की चुप्पी से ठेस लगी. वह भीतर ही भीतर तिलमिला कर रह गई, लेकिन कुछ नहीं बोली. अब तक ऐसे मौकों पर सभी उस का साथ दिया करते थे, लेकिन इस बार घर के सब से छोटे बच्चे ने ही टोक दिया, ‘‘मां, इस तरह इस बेचारे को अलग करना ठीक नहीं.’’

यह सुन कर मालकिन आगबबूला हो गई और चिढ़ कर बोली, ‘‘यह छोटा सा चूहा भी अच्छेबुरे की पहचान करने लगा है और मैं अकेली ही इस घर में अंधी हूं.’’वहां पर कुछ देर के लिए अदालत जैसा दृश्य उपस्थित हो गया. न्यायाधीश की मुद्रा में साहब ने कहा,  ‘‘किसी नौकर को निकालने या रखने के नाम से ही घर वाले आपस में लड़ने लगें तो नौकर समझ जाएगा कि इस घर में राज किया जा सकता है.’’

‘‘क्या मतलब ’’ मालकिन की आवाज में कड़कपन था.

‘‘मतलब साफ है, नौकर से मुकाबला करने के लिए हमें आपसी एकता मजबूत कर लेनी चाहिए,’’ साहब ने शांत स्वर में कहा. मालकिन अपनी गलती स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थी. बुरा सा मुंह बनाते हुए वह भीतर कमरे में चली गई. साहब ने बाहर जाते हुए लड़के को समझा दिया कि वह उन की बातों का बुरा न माने और भीतर कमरे में सब को समझाते हुए कहा कि लड़के पर कड़ी नजर रखी जाए. जहां तक हो सके उसे रंगेहाथों पकड़ा जाना चाहिए, ताकि उसे भी तो लगे कि उस ने गलती की है, चोरी की है और उस से अपराध हुआ है.

वह दिन भी आ गया, जब लड़के को निकालने के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाना था. लड़का उस समय रसोई साफ कर रहा था. घर के सभी सदस्य एक कमरे में बैठ गए. साहब ने पूछा, ‘‘अच्छा, किसी को कोई ऐसा कारण मिला है, जिस से लड़के को काम से अलग किया जा सके ’’ मालकिन चुप थी. उसे अपनेआप पर ही गुस्सा आ रहा था कि वह भी कैसी मालकिन है, जो एक गरीब नौकर में छोटी सी खोट भी नहीं निकाल सकी. मालकिन की गंभीरता और चुप्पी को देख कर साहब ने मजाक में ही कह दिया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि बबूल में भी गुलाब खिल सकते हैं.’’

‘‘जिस माली की सेवा में दम हो, वह बबूल और नागफनी में भी गुलाब खिला सकता है,’’ मालकिन के मुंह से ऐसी बात सुन कर, दोनों बच्चों और साहब का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया. जब बात बनने के लक्षण दिखने लगे तो साहब ने कहा, ‘‘देखो भाई, जो भी कहना है, साफसाफ कह दो. बेचारे लड़के का मन दुविधा में क्यों डाल रहे हो ’’ तब मालकिन ने चिल्ला कर उस लड़के को बुलाया. लड़का आया तो मालकिन ऐसे चुप हो गई, जैसे उस ने लड़के को पुकारा ही न हो. वह ऐसे मुंह फुला कर बैठ गई, जैसे लड़के की कोई बड़ी गलती उस ने पकड़ ली हो.

अभीअभी बबूल, नागफनी, गुलाब और माली की बातें करने वाली मालकिन को फिर यह कैसी चाल सूझी  यह सोच कर साहब ने कहा, ‘‘जो कहना है साफसाफ कह दो, बेचारा कहीं और काम कर लेगा.’’

‘‘मुझे साफसाफ कहने के लिए समय चाहिए,’’ मालकिन बोली और वैसे ही मुंह फुला कर बैठी रही.

‘‘और कब तक इस बेचारे को अधर में लटका कर रखोगी, जो कहना है अभी कह दो,’’ साहब ने कहा, इस बार साहब और बच्चों ने भी तय कर लिया था कि मालकिन की इस तरह बारबार नौकर बदलने की आदत को सुधार कर ही दम लेंगे. मालकिन ने ताव खा कर कहा, ‘‘तो सुनो, जब तक यह लड़का अपने पांव पर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक इसी घर में रहेगा, समझे.’’ एकाएक मालकिन में हुए इस परिवर्तन से सभी को आश्चर्य तथा अपार खुशी हुई. वैसे बबूल, नागफनी, गुलाब और माली वाली बातों का खयाल आते ही, सब को लगा कि मालकिन लड़के को पहले से ही अच्छी तरह परख चुकी थी और उस की जिंदगी संवारने के लिए मन ही मन अंतिम निर्णय भी ले चुकी थी.

जब 40 की उम्र के बाद मिले खोया हुआ प्यार…

हर स्त्री जब उम्र के इस दौर से गुजर रही होती है यानी 40 के पार. हलका भरा हुआ बदन, चेहरे पर जीवन के अनुभव से आया हुआ आत्मविश्वास, मांबाप, भाईबहन की बंदिशों से आजाद. बच्चे भी काफी हद तक निर्भर बन चुके होते हैं, पति भी अपने कार्यक्षेत्र में ज्यादा मशरूफ हो जाते हैं यानी कुल मिला कर औरत को थोड़ा समय मिलता है अपने ऊपर ध्यान देने का. फिर आज के समय में सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत से नए मित्र बन जाते हैं या पुराने बिछड़े हुए प्रेमी युगल इस सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर भी मिल जाते हैं.

अब जब नए मित्र  बनेंगे या पुराने मित्र मिलेंगे तो उन के बीच कुछ आकर्षण होना स्वाभाविक है. विवाह के बाद जीवन के 15 से 20 वर्ष तो घरपरिवार बनाने में, बच्चों की परवरिश में बीत जाते हैं यानी अब एक बार फिर स्त्री खुद को नजर उठा कर आईने में देखती है तो नजर आता है कि पहले का रूप तो गायब ही हो गया है. अचरज तो इस बात का है कि पता ही नहीं चला कि कहां गायब हुआ है.

खुद को अकेला न समझें

अब अवसाद में घिरने के बजाय स्त्री फिर कमर कसती है इस बार खुद को निखारने, संवारने की. खोए हुए शौक को पूरा करने के लिए. अब इस राह पर चलते हुए वह खुद को अकेला पाती है. पति व्यस्त हैं. बच्चे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए मेहनत कर रहे हैं. अब वह ढूंढ़ती है कोई हो जो उसे समय दे सके, उसे प्रोत्साहित कर सके और शायद इस में कुछ गलत भी नहीं है. अब अगर कोई उसे सराहता है, उस की खूबियां उसे गिनाता है तो आखिर स्त्री को अच्छा क्यों नहीं लगेगा? भई लगना भी चाहिए.

तो बहुत अच्छे से समझ लें. इस में कुछ भी गलत नहीं है. अब आप कोई 16 साल की लड़की नहीं हैं. आप किसी की मां हैं, पत्नी, सास, चाची, नानी, दादी, बुआ, मामी हैं तो किसी की महिला मित्र क्यों नहीं बन सकतीं क्योंकि इन सभी रिश्तों को निभाने के बाद भी एक स्त्री एक ऐसे पुरुष को ढूंढ़ती है जो उसे मन से पूर्ण कर दे. उस की रूह को छू ले क्योंकि जिस्म का कुंआरापन तो शादी के बाद मिट ही जाता है, किंतु रूह अनछुई ही रह जाती है. सब की नहीं तो बहुतों की. देह की दहलीज से कोसों दूर.

इस में कोई बुराई नहीं

अगर मन से मन मिल सकता है तो कोई बुराई नहीं है. बरसों पहले देखी ‘खामोशी’ फिल्म के एक गाने के पंक्तियां यहां लिखूंगी, ‘‘हम ने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलजाम न दो…’’

आप के मित्र भी किसी के पति, पिता, ससुर, चाचा, नाना, दादा होंगे तो अब यहां साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने का या

रिश्तों में बंधने या बांधने का कोई प्रश्न या औचित्य नहीं है. शायद उम्र के इस दौर में जिंदगी के खट्टेमीठे अनुभव साझा करने के लिए वे भी एक दोस्त ढूंढ़ रहे हों कि किसी को बता सकें कि उन्हें आज भी शाम को समुंदर के किनारे डूबता सूरज देखना अच्छा लगता है या वे डायरी में कभीकभी कुछ लिखते हैं आदिआदि.

एक बात और लिखूंगी कि कोई भी रिश्ता बुरा या गंदा नहीं होता है. हम उस रिश्ते को किस ढंग से निभाते हैं उस रिश्ते की सफलता या असफलता उस पर निर्भर करती है.

हमेशा खुश रहें

हमारी सब से बड़ी जिम्मेदारी खुद को खुश रखने की होती है. जब हम खुद खुश होंगे तभी हम अपने अपनों को भी ज्यादा खुशी दे पाएंगे. अब अगर हमारी खुशी कहीं गुम हो गई है तो उसे खोजने में अगर हमारा कोई मित्र या शुभचिंतक हमारी कोई मदद कर रहा है तो यह कोई गलत नहीं है. आप अब इतनी परिपक्व हो चुकी हैं कि किसी से चंद मिनट अकेले बात कर सकती हैं, कभी एक कौफी पी सकती है, कभी चैट कर सकती हैं.

तो बस अगर आप का कोई ऐसा मित्र है आप के जीवन में तो खुद को खुशहाल समझें न कि अपने को अपनी ही नजर में गिरी हुई, बदचलन औरत समझें.

तलाक लेने के बाद क्या अच्छे जीवन की शुरुआत नहीं हो सकती?

बचपन से सुनती आई थी बेटियां बाप की इज्जत होती हैं, भाई का मान होती हैं और विवाह के बाद पति का सम्मान होती हैं, बेटे का हौसला होती हैं. इसी लीक पर समाज की गाड़ी दौड़ रही है यानी जन्म से मृत्यु तक का सफर पुरुष संरक्षण में ही गुजरता है और सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहता है. किंतु प्रश्न तब खड़ा होता है जब किसी कारण से किसी लड़की का तलाक हो जाता है यानी गाड़ी पटरी से उतर जाती है.

यहां पर मैं पति के मृत्यु का मुद्दा नहीं उठाऊंगी वह एक अलग प्रश्न है. हालाकि पति की मृत्यु के बाद भी अकेली औरत को दिक्कत तो कमोबेश वैसी ही आती है. किंतु तलाक के केस में लड़की अपने पति से संबंध विच्छेद कर लेती है यानी अस्वीकार कर देती है रिश्ते को.

अमूमन तो लड़कियों को मानसिक रूप से इस बात के लिए बचपन से ही तैयार कर दिया जाता है कि तुम कितना भी पढ़लिख लो तुम्हें शादी के बाद अपने पति और उन के घर वालों के मुताबिक ही जीवन जीना होगा और आज भी मातापिता विवाह के वक्त यह तो देखते हैं कि लड़का आर्थिक रूप से कितना सफल है. किंतु वह नहीं देखते कि लड़की की परवरिश उन्होंने जिस परिवेश में की है उस की भावी ससुराल का परिवेश कमोबेश वैसा ही है या नहीं.

तलाक के बाद

जब हम एक छोटा पौधा ले कर आते हैं तो यह देखते हैं यह पौधा किस तरह की मिट्टी और जलवायु में फूलताफलता है. उसे वैसा ही वातावरण देते हैं या फिर उसे नए पर्यावरण में विकसित होने में ज्यादा समय लगने पर भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करते हैं. किंतु अफसोस बेटियों को नए घर में एकदम विपरीत परिस्थितियों में भी उन के मातापिता प्रत्यारोपित कर देते हैं और उन के ससुराल वाले भी उन से मनीप्लांट की तरह पानी में, मिट्टी में हर जगह हराभरा रहने की अपेक्षा करने लगते हैं. अगर बेचारी लड़की मनीप्लांट के बजाय गुलाब हुई तो फिर तो कांटों से उस का सामना हर दिन, हर पल होता है.

अब पुन: मूल प्रश्न पर आती हूं. एक पढ़ीलिखी आत्मनिर्भर लड़की या आत्मनिर्भरता की योग्यता रखने वाली लड़की का जीवन तलाक के बाद  सामान्य क्यों नहीं रह पाता?

वह कहां रहेगी, यह प्रश्न सौसौ मुंह वाले नाग की तरह फन उठाए डसने को तैयार रहता है. उसे मातापिता या भाईभाभी के साथ ही रहने को कहा जाता है. जहां चाहे उस के आत्मसम्मान को हर पल छलनी ही क्यों न किया जाता हो. वह कमाए भी और घर में दोयम दर्जे का स्थान भी पाए. भाभी के कटाक्ष सहे. मांबाप की आंखों में उन की परवरिश पर धब्बा लगाने का उल्हाना देखे. शायद ही कोई कहता है कि तुम ने ठीक किया. क्यों भई आखिर औरत को अपनी पसंद न पसंद से जीने का अधिकार क्यों नहीं है?

समाज जीने नहीं देता

लड़की अगर यह कह दे कि उन का चाल चलन ठीक नहीं है तो सबसे पहले मां ही कहती है बेटी सुधर जाएगा. तुम प्यार से सम?ाओ आदिआदि या पूरी शाकाहारी बेटी का पति मांसाहारी भोजन करता है तो उस को कहा जाता है तुम भी ढल जाओ. उदाहरण अनगिनत हैं. लड़कियां भी बहुत हद तक बरदाश्त कर जाती हैं या कह लें अंदर से मर जाती हैं. कुछ जिंदा लाश जैसी जीती हैं.

कुछ अगर साहस कर जीने के लिए उस बंधन को तोड़ने का साहस कर भी लेती हैं तो समाज उन्हें जीने नहीं देता. उन के अलग रहने के फैसले को उन की बदचलनी का सुबूत मान लिया जाता है. कुछ अपवाद भी होगे किंतु मैं बात बहुतायत लड़कियों की कर रही हूं. उन्हें सामान्य रूप से अगर ससुराल में कुछ ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों से दोचार होना पड़ता है जो उन्हें लगता है कि बरदाश्त करने योग्य नहीं हैं तो उन्हें बिना दबाव या तनाव के विवाह विच्छेद करने का मौका मिलना चाहिए.

कठिन है रिश्ते को धोना

यहां हम यह नहीं कह रहे कि आप अपनी ससुराल में सामंजस्य न बैठाएं. हम कह रहे हैं कि आप तलाक के बाद होने वाले संघर्षपूर्ण जीवन अपमान आदि से डर कर कुछ ऐसा मत सहें जो कि सहना गलत हो. चाहे पति का आचरण हो या उस के किसी दूरपास के रिश्तेदार द्वारा यौन शौषण हो या सास अथवा ससुराल वालों की अमानवीय यातनाएं हों. मैं उन परिस्थितियों का उदाहरण तो नहीं दे सकती किंतु इतना कहूंगी कि आप अपने आत्मसम्मान को बचा कर ही अपना रिश्ता कायम रखें.

अगर आप का आत्मसम्मान ही मर गया है तो फिर आप के रिश्ते की मृत्यु निश्चित है और मरा हुआ रिश्ता लाश के समान भारी हो जाता है जिसे ढोना बहुत कठिन हो जाता है. हर बीतते दिन के साथ उस से दुर्गंध आती है. फिर कुकुरमुत्ते से उगते हैं अवैथ संबंध. खराब होती हैं कई और जिंदगियां. इसलिए तलाक को समाज का कोढ़ नहीं समझें.

जैसे विवाह एक सामान्य बात है वैसे ही विवाह के टूटने को भी सामान्य रूप से ही लें और तलाक लिए हुए लड़के और लड़की को भी सामान्य इंसान ही सम?ों. उन को अपनी चटपटी खबरों का जरीया न बनाएं. वे जैसे रहना चाहें उन्हें रहने दें. अगर मातापिता के साथ बेटी नहीं रहना चाहती है तो उसे स्वावलंबी बनाने में मदद करें.

जीवन जीने के लिए

पैतृक संपत्ति में से उन के हिस्से को उन्हें दे कर उन्हें सहयोग करें. अगर बेटी पहले से स्वावलंबी है और तलाक के बाद आप के साथ रहती है तो उसे कभी अपमानित या कमतर मत जताएं. अब जब समाज बहुत आगे निकल गया है किसी भी कारण से अगर दोनों का सामंजस्य बहुत सारी ईमानदार कोशिश के बाद भी ठीकठाक नहीं चल रहा है तो दोनों को अपनी राहें अलगअलग करने दें न कि रीतिरिवाज, समाज के भय से जबरदस्ती के बो?ा तले दब कर पूरी जिंदगी बरबाद करने दें.

जीवन सिर्फ जीने के लिए होता है. तिलतिल कर मरने के लिए नहीं. मरना तो तय है तो क्यों न जी लें जरा. झूठी खुशी का मुखौटा पहन कर जो कर बनने से अच्छा है सच के साथ स्वावलंबी जीवन जीएं और किसी भी मोड़ पर कोई नया मुकाम आप को फिर मिल भी सकता है तो उसे सहज रूप से अपनाएं.

अगर आप खुश नहीं हैं तो आप इस बात को गंभीरता से लें. आप सिर्फ समाज के डर से या मातापिता भाई के सम्मान को ठेस लगेगी इस डर से मानसिक तनाव को ?ोलते हुए विवाह में मत बनी रहें. हां, आप को पूरी स्थिति का आकलन बहुत ही गंभीरता से करना होगा. मैं रिश्ते को तोड़ने की वकालत नहीं कर रही हूं बस इतना ही कह रही हूं कि आप अपने रिश्ते को बचाने की पूरी ईमानदार कोशिश करिए और करनी भी चहिए. किंतु अपने आत्मसम्मान और अपनी आजादी को दांव पर लगा कर नहीं. आप की सब से बड़ी जिम्मेदारी आप स्वयं हैं.

खुद को खुश रखिए

खुद के सम्मान और गरिमा को बनाए रखिए. खुद को हद से ज्यादा न झुकाएं न गिराएं और अगर आप को ईमानदारी से पूरी परिस्थिति का अवलोकन करने पर लगता है कि नहीं साथ में रहना संभव नहीं है तो बड़े ही व्यावहारिक रूप से कुछ प्रश्नों के उत्तर तलाशें जैसेकि पति का घर छोड़ने के बाद आप को कहां रहना होगा? क्या करना होगा? स्वावलंबी बनने के लिए आप क्या कर सकती हैं आदिआदि.

पैसों में आप का गुजारा सम्मानपूर्वक हो सकेगा? इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर खोज लेने के बाद ही आप कोई ठोस कदम उठाएं.

ध्यान रखें कि हो सकता है मातापिता या भाईबहन आप को ऐसा फैसला लेने में कोई सहयोग न करें. इस के 2 प्रमुख कारण हैं- पहला यह कि इन्हें ऐसा लगता है कि तलाक लेने को समाज अच्छी नजर से नहीं देखेगा और कहीं न कहीं उन के दामन पर भी दाग दिखेगा और दूसरा कारण है कि कहीं आप उन पर बोझ न बन जाएं. अत: अपने फैसले पर उन से बहुत ज्यादा सकारात्मक उत्तर की अपेक्षा न रखें.

फैसला खुद के हिसाब और परिस्थिति के हिसाब से लें. भावना में बह कर कोई फैसला न लें. बस एक बात कहूंगी कि रिश्तों को बचाने के लिए थोड़ा सा झुक जाएं लेकिन अगर बारबार आप को ही झुकना पड़े तो फिर रुक जाएं. तलाक खुशियों के लिए अपने दरवाजे बंद करना नहीं है. हो सकता है तलाक एक अच्छे जीवन की शुरुआत हो.

पुराने सोफे को दें न्यू लुक, घर पर ही आजमाएं ये आसान टिप्स एंड ट्रिक्स

पुराना सोफा देखने में उबाऊ लगने लगा है और किसी काम का नहीं रहा, इसलिए आप उसे बदलना चाहते हैं तो जरा रुकिए, कुछ आसान और सस्ते तरीकों से इसे नया लुक दिया जा सकता है. ये तरीके न केवल आप के पैसे बचाएंगे बल्कि सोफे को स्टाइलिश और नया भी बना देगा.

आइए, जानते हैं कि कैसे आप कम बजट में भी अपने पुराने सोफे को नया बना सकते हैं :

कपड़ा बदलना

सोफा का कपड़ा बदलवाने से पहले आप अपने इलाके में फर्नीचर रिपेयर करने वाले या अपहोल्स्ट्री विशेषज्ञों से बात करें. अच्छे से रिसर्च करें ताकि वे आप को सही सुझाव दे सकें कि कौन सा फैब्रिक या मैटीरियल आप के सोफे के लिए अच्छा रहेगा, साथ ही लागत के बारे में भी वे आप को सटीक जानकारी दे सकते हैं. यह सब से अच्छा और प्रभावी तरीका है कि आप अपने सोफे के पुराने कपड़े को बदलवा लें. यह प्रक्रिया रिअफोल्स्ट्री कहलाती है.

आप नए कपड़े का चुनाव अपने घर की सजावट के अनुसार कर सकते हैं. बाजार में कई तरह के विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे लेदर (चमड़ा), वैलवेट (मखमली कपड़ा), कौटन लिनेन. इस प्रक्रिया से आप का सोफा न केवल नया दिखेगा, बल्कि घर के इंटीरियर के साथ मेल भी खाएगी.

कुशन या फोम को बदलवाना

अगर सोफा के कुशन या फोम घिस चुके हैं और बैठने में आराम नहीं रह गया है, तो उन्हें बदलवाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है. नई फोम या कुशन से सोफा और आरामदायक हो जाएगा और इस की लाइफ भी बढ़ जाएगी.

लकड़ी के हिस्सों की मरम्मत और पौलिश

अगर आप के सोफे में लकड़ी का फ्रेम या आर्मरेस्ट हैं, तो उन्हें मरम्मत कर के और पौलिश करवा कर आप उसे एकदम नया लुक दे सकते हैं. पुरानी लकड़ी को ठीक करवा कर या फिर उसे नए रंग से पेंट करवा कर उस की चमक को वापस लाया जा सकता है. इस से सोफा का लुक काफी नया लगने लगेगा.

थ्रो कुशन और ऐक्सेसरीज

अगर आप अपने सोफे को थोड़ा और आकर्षक बनाना चाहते हैं, तो उस पर कुछ नए थ्रो कुशंस और ऐक्सेसरीज रख सकते हैं. रंगबिरंगे और स्टाइलिश कुशंस से सोफा का लुक तुरंत बदल जाता है. आप कंट्रास्ट रंगों का उपयोग कर सकते हैं ताकि सोफा और कमरे की सजावट में नयापन आ सके.

प्रोफैशनल सोफा रीडिजाइन सर्विस

अगर आप पूरी तरह से नया डिजाइन चाहते हैं, तो आप किसी प्रोफैशनल से सोफे की मरम्मत या डिजाइन बदलवा सकते हैं. प्रोफैशनल डिजाइनर या फर्नीचर मेकर सोफा के कपड़े, फोम और यहां तक कि फ्रेम को भी नया डिजाइन दे कर इसे बिलकुल नया रूप दे सकते हैं.

सोफा स्लिपकवर का इस्तेमाल

अगर आप सोफा को पूरी तरह बदलवाना नहीं चाहते हैं, तो आप एक अच्छा स्लिपकवर (सोफा कवर) भी इस्तेमाल कर सकते हैं. यह तुरंत सोफे का लुक बदलने का सस्ता और आसान तरीका है. बाजार में कई तरह के स्लिपकवर उपलब्ध हैं जो अलगअलग रंगों और डिजाइनों में आते हैं.

बजट बना कर चलें

मरम्मत की लागत आप के सोफे की हालत, कपड़े के प्रकार और इस्तेमाल की गई सामग्री पर निर्भर करेगी. साधारण मरम्मत के लिए यह ₹2,000 से ₹5,000 के बीच हो सकता है जबकि ज्यादा काम होगा तो थोड़ा अधिक खर्च हो सकता है.आप कारीगर से पहले ही बातचीत कर के एक अनुमानित बजट तय कर लें.

औनलाइन और औफलाइन तुलना

आजकल फर्नीचर नवीनीकरण के लिए औनलाइन और औफलाइन दोनों तरह के विकल्प मौजूद हैं. आप ई कौमर्स साइट्स जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट, अरबन लैदर आदि पर पुराने फर्नीचर को नया करने के लिए उपलब्ध कवर, गद्दे और कुशन जैसे विकल्प देख सकते हैं. वहीं, लोकल फर्नीचर मार्केट या फर्नीचर की दुकानों पर जा कर भी आप विभिन्न प्रकार के फैब्रिक और मरम्मत सेवाओं के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

ट्रैंड्स पर ध्यान दें

सोफे के डिजाइन और फैब्रिक में ट्रैंड्स तेजी से बदलते हैं. नए सोफे के डिजाइन और रंगों का अध्ययन करें और देखें कि कौन सा स्टाइल आजकल लोकप्रिय हैं. उदाहरण के लिए वैलवेट फैब्रिक, मिनिमलिस्ट डिजाइन और मौड्यूलर सोफे आजकल चलन में हैं. आप इंटरनैट पर चल रहे नए ट्रैंड्स के बारे में पिंटरेस्ट, इंस्टाग्राम या डिजाइन पत्रिकाओं से जानकारी ले सकते हैं.

फीडबैक को पढ़ें

सोफे से जुड़े औनलाइन ग्राहकों के फीडबैक आप को यह समझने में मदद कर सकते हैं कि जो सामान आप खरीद रहे हैं उस की क्वालिटी कैसी है.

उदाहरण के लिए, यदि आप किसी औनलाइन स्टोर से सोफा कवर या गद्दे खरीद रहे हैं, तो ग्राहकों के फीडबैक और रेटिंग्स को ध्यान में रखें. इस से आप घटिया उत्पादों से बच सकते हैं और सही चुनाव कर सकते हैं.

ऐक्सपर्ट्स से सलाह लें

सोफा बनवाने से पहले मार्केट रिसर्च करें. आप अपने इलाके में फर्नीचर रिपेयर करने वाले या अपहोल्स्ट्री विशेषज्ञों से संपर्क कर सकते हैं. वे आप को सही सुझाव दे सकते हैं कि कौन सा फैब्रिक या मैटीरियल आप के सोफे के लिए सब से अच्छा रहेगा, साथ ही लागत के बारे में भी सटीक जानकारी दे सकते हैं.

औफर्स और वारंटी जरूर लें

जब आप नए सोफे को बनवा रहे हैं , तो यह भी देखना महत्त्वपूर्ण है कि क्या वे स्पैशल औफर या स्कीम दे रहे हैं या कोई वारंटी मिल रही है. कुछ दुकानदार सोफा कवर या गद्दों पर वारंटी प्रदान करते हैं, जो आप को लौग लाइफ सुरक्षा देता है. इस के अलावा यदि आप किसी ऐक्सपर्ट से पुराने सोफे को नया करवा रहे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि वे अपने काम की गारंटी दे रहे हों.

बेईमान बनाया प्रेम ने: क्या हुआ था पुष्पक के साथ

लेखिका- रफत बेगम

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें