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बेईमान बनाया प्रेम ने: क्या हुआ था पुष्पक के साथ

लेखिका- रफत बेगम

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं. ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे. इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया. इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा. इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है. जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ. घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था. नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’

बेटी का सुख: बेटा-बेटी में क्या फर्क समझ पाए माता पिता

मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

हमारे जूतेचप्पलों की खबर भी खूब रखती है. चलने में मां को तकलीफ होगी, सो डाक्टर सोल की चप्पल ले आती है. पापा के जौगिंग शूज घिस गए हैं, चलो, नए ले आते हैं. वे सफाई देते हैं, ‘अभी तो लाया था.’ ‘कहां पापा, 2 साल पुराना है, फिर आप रोज घूमने जाते हैं, आप को अच्छे ब्रैंड के जौगिंग शूज पहनने चाहिए.’ बाप के पैरों के प्रति बेटी की चिंता देख कर सोचती हूं, ‘बेटे इस से अधिक और क्या करते होंगे.’ जब हम बेटी के घर जाते हैं तब जिस क्षण हवाईजहाज के पहिए धरती को छूते हैं, उस का फोन आ जाता है, ‘जल्दी मत करना, आराम से उतरना, मैं बाहर ही खड़ी हूं.’ एअरपोर्ट के बाहर एक ड्राइवर की तरह गाड़ी बिलकुल पास लगा कर सूटकेस उठाने और कार की डिक्की में रखने में दोनों के बीच प्यारी, मीठी तकरार कानों में पड़ती रहती है, ‘पापा, आप नहीं उठाओ, मम्मी तुम बैठ जाओ, हटो पापा, आप की कमर में दर्द होगा…’

‘तेरे से तो मैं ज्यादा मजबूत हूं, अभी भी.’ उन दोनों की बातें कानों में चाशनी घोल देती हैं. घर के दरवाजे पर स्वागत करती वैलकम नानानानी की पेंटिंग हमारी तसवीरों के साथ चिपकाई होती है. घर का कोनाकोना चहक रहा होता है, शीशे सा साफसुथरा घर हमारे रहने की व्यवस्था, छोटीछोटी चीजों को हमारे लिए पहले से ला कर कमरे में, बाथरूम में रख दिया गया होता है. पापा के लिए उन की पसंद का नाश्ता, चायबिस्कुट मेज पर रखा होता है. उन की पसंद की सब्जियां जैसे करेले, लौकी, तुरई, विशेषरूप से इंडियन शौप से ला कर रखे गए होते हैं.

हमारी पसंद के पकवान ऐसे परोसे जाते मानो हम शाही मेहमान हों. कितने बजे पापा चाय पिएंगे, अपनी कामवाली को सौसौ हिदायतें, ट्रे में गिलास, जग और पानी का खयाल, बिजली का स्विच कहां है, लिफ्ट कौन से फ्लोर पर रुकती है, सुबह पापा घूमने निकलें, उस से पहले उन का फोन वहां के सिमकार्ड के साथ उन के साथ दे देना. दोपहर हो या रात या दिन, हमारे रुटीन का इतना ध्यान रखती है. तकिया ठीक है कि नहीं, एसी अधिक ठंडा तो नहीं है, रात में कमरे का चक्कर मार जाती है मानो हम कोई छोटे बच्चे हों.

‘बेटा, तू सो जा, इतनी चिंता क्यों करती है, तेरा इतना व्यस्त दिन जाता है, पूरा दिन चक्करघिन्नी सी घूमती है, दसदस बार गाड़ी चलाती है, सड़कें नापती है…’ पर वह सुनीअनसुनी कर देती है. बेटियां, बस, ऐसी ही होती हैं. नहीं जानती कि बेटे क्या करते हैं पर बेटी तो चेहरे के भाव पढ़ कर अंतर्मन तक उतर जाती है.

मुझे अपनी 65 वर्षीय मां की बरबस याद चली आई. उस दिन भी 11 बजे थे. लगभग 20-25 साल पहले हम दिल्ली में पोस्टेड थे. मायका पास था, करीब 2 घंटे दूर. सो महीनेपंद्रह दिनों में वृद्ध मातापिता से मिलने चली जाया करती थी. सुबह की बस पकड़ कर घर पहुंची. रिकशा से उतर कर अम्मा को ढूंढ़ा, देखा, घर के एक किनारे खामोश बैठी थीं. बहुत क्षीण लग रही थीं. चेहरा उतरा हुआ. आंखें विस्फारित, फटीफटी सी. पैनी कंटीली झाड़ी सी सूखी झुरियों को, देखते ही समझ गई कि उन्हें प्यास लगी है. भाग कर रसोई में गई. एक लोटा ठंडा नीबू पानी बनाया.

जब उन्होंने 2 गिलास पानी एक के बाद एक गले से नीचे उतार लिए तब अपनी धोती से गिलास पकड़ेपकड़े रुंधे गले से बोलीं, ‘आज मेरा व्रत है, सुबह से किसी ने नहीं पूछा कि तुम ने कुछ लिया कि नहीं.’ वे अपने पति, मेरे पिता के बड़े से घर में रहती थीं, जहां उन का बेटाबहू व 2 पोतियां, आधा दर्जन नौकरचाकर दिनरात काम करते थे. पुत्रवती खुशहाल अवश्य होती है, किंतु उस दिन पुत्रवती मां की गीली आंखें मेरे मानस पर शिलालेख की भांति अमिट छाप छोड़ गईं. ‘आज बड़ी ढीली लग रही हो?’ बेटी ने एक दिन मुझे देर तक सोते देखा तब पास आ कर माथे पर हाथ रखा और थर्मामीटर लगाया. लगभग 100 डिगरी बुखार था. उसी क्षण ब्लडप्रैशर, शुगर आदि सब चैक होने शुरू हो गए. सारे काम एक तरफ, मां की तबीयत पर सब का ध्यान केंद्रित हो गया, बारीबारी, सब हाल पूछने आते.

‘नानी, यू औलराइट?’ धेवता गले लगा कर के स्कूल जाता, धेवती ‘टेक केयर, नानी’ कह कर जाती. बेटी मेरी पसंद की किताबें लाइब्रेरी से ले आई थी. दामाद से ले कर कामवाली तक मात्र थोड़े से बुखार में ऐसी सेवा कर रहे थे मानो मैं अंतिम सांसें ले रही हूं. यह बात जब मैं ने कह दी तो बिटिया के झरझर आंसू टपकने लगे, ‘अच्छा बाबा, मैं अभी नहीं मर रही, पर तू ही बता, 70वें साल में चल रही हूं…’ उस का उदास चेहरा देख कर चुप हो गई. किंतु बोझिल यादों का पुलिंदा अपने बूढ़े मांबाप के बुढ़ापे की ओर एक बार फिर खुल गया. अपने बूढ़े मातापिता को उन के बेटे यानी मेरे भाई के घर में नितांत अकेले समय काटते देखा था. मैं यह नहीं कहती कि उन्होंने क्या किया, किंतु उन्होंने क्या नहीं किया, उस का दर्द टीस बन कर शिरायों में उमड़ताघुमड़ता अवश्य है.

एक प्रोफैसर पिता ने कभी अच्छे दिनों में जमीन खरीद कर एक साधारण सा घर बनाया था. बिना मार्बल, बिना ग्रेनाइट लगाए. उन के जाने के बाद घर, बंगला बन गया. उसे करोड़ों की संपत्ति का दरजा मिल गया. मातापिता की जबानी ख्वाहिश तथा लिखित वसीयत, पांचों बेटों को बराबर दी गई संपत्ति की धज्जियां उड़ा दी गईं. उन का आदेश, उन की इच्छा को झूठ, उन की लिखी वसीयत को बकवास कह कर पुत्र ने रद्दी में फेंक दिया. बेटियां पराई हो जाती हैं, फिर भी आप से जुड़ी रहती हैं. वे एक नहीं, 3 घरों में बंटी रहती हैं. बेटियां पलपल की खबर रखने वाली, मन की धड़कन सुनने वाली बेटियां होती हैं. बेटे क्या करते हैं मुझे नहीं मालूम, किंतु बेटियां क्या करती हैं, अनुभव कर रही हूं. अपने रिटायर्ड पैंशनयाफ्ता पिता के बैंक बैलेंस की धड़कन पर पूरी नजर रखती हैं, उन के आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे, चुपचाप उन के पर्स में डौलर सरका जाती हैं.

देखो, बावली कितने डौलर रख गई है मेरे पर्स में… जानती है उस के पापा को सब्जीफल खरीदने का शौक है, किंतु अपने रुपए से कितना सामान ला सकेंगे.

मेरे ही एक भाई ने मुझे प्रैक्टिकल होने का पाठ पढ़ाया था, जब मां बीमार थीं और मृत्यु से पहले कोमा में चली गई थीं. चेन्नई से आए भाई वापस जाना चाहते थे, उन्होंने अपनी पत्नी से फोन पर मेरे सामने ही बात की थी, ‘क्या करूं? वापस आ जाऊं, कुछ औफिस का काम है.’

उधर से, ‘नहीं, वहीं रुको, एक ही बार आना.’ (निधन के बाद, 2 बार का हवाई खर्च क्यों करना, मां आज नहीं तो 2-4 दिनों में निबट जाएंगी) अनकही हिदायत का अर्थ. और एक तरफ यूरोप से मात्र 15 दिनों के लिए बेटी अपनी बीमार मां से मिलने चली आई थी, जरा भी प्रैक्टिकल नहीं थी. बेटे क्या करते हैं, क्या नहीं, निष्कर्ष निकालना, निर्णय लेना उचित नहीं. बहुत से बेटों वाले उपरोक्त तर्क का जोरदार खंडन करेंगे. मैं तो सिर्फ आपबीती बता रही हूं क्योंकि मेरा कोई बेटा नहीं है. आपबीती ही नहीं, जगबीती का उदाहरण समक्ष आया जब डाक्टर रवि वर्मा ने अपना अनुभव शेयर किया.

उन के पिता ने वृद्धाश्रम बनाया था जिस में 30 कमरे थे और वे बिना शुल्क उन बुजुर्गों की सेवा कर रहे थे जिन को देखने वाला कोई नहीं था. वे बता रहे थे, ‘बुजुर्गों के रिश्तेदार आदि, अलबत्ता तो कोई नहीं आता है, आता है तो भी हम उन्हें उन के कमरे में नहीं जाने देते.’ वे आगे बताते हैं, ‘अकसर बेटे आते थे और अपने पिता को मारपीट कर उन की 8-10 हजार रुपए की पैंशन की रकम छीन कर ले जाते थे. अब हम ने नियम बना दिया है कि मिलने वाले हमारे सामने सिर्फ औफिस में मिल सकते हैं.’ और फिर उन्होंने जोड़ा, ‘बेटियां आती हैं तो अपने वृद्ध मातापिता के लिए कुछ फल, मिठाई, कपड़ालत्ता ले कर आती हैं, बेटे तो सिर्फ छीनने आते हैं.’ यह उन का अनुभव है, मेरा नहीं.

हमारे यहां 13 से ले कर 25 वर्ष की लड़कियां घरों में काम करने आती हैं. उन के भाई महंगे मोबाइल फोन, मोटरसाइकिल, नए फैशन की जींस, और सारा दिन चौराहे पर जमघट लगाए धींगामस्ती करते हैं. 16 वर्षीय मेरी कामवाली रोज अपना मोबाइल याद करती है, ‘तीन बहनों में एक ही तो है, उस ने मांग लिया मैं कैसे न करती. हम अपने भाई को कभी न नहीं करते.’ जन्म से एक मानसिकता, बेटे को घीचुपड़ी, बेटी को बचीखुची. निश्चित रूप से बेटे भी बहुतकुछ करते होंगे, किंतु बेटियां क्या करती हैं, यह मैं दावे से कह सकती हूं. बेटियां मन से जुड़ी रहती हैं, वे कदम से कदम मिला कर अपना समय आप को देती हैं और यकीन मानिए, बुढ़ापे में समय बेशकीमती है, 5 बेटों के मेरे बाऊजी कितने अकेले थे, देखा है उन के चेहरे पर व्यथा के बादलों को.

5 में से 4 तो बाहर रहते थे. साल में एकाध बार मिलने आते थे. किंतु जो उन के साथ उन के घर में रहता था उस के बारे में बाऊजी एक दिन मुझ से बोले, ‘देख, तेरा छोटा भाई सामने के दरवाजे से अंदर आएगा और, परेड करता बाएं मुड़, सीधा अपने कमरे में चला जाएगा. मैं सामने बैठा उसे दिखाई नहीं देता.’ और ऐसा ही हुआ. 6 महीने बाद जब मिलने गई तो पता चला भाई ने अब सामने का दरवाजा छोड़, बरामदे से ही अलग प्रवेशद्वार प्रयोग करना शुरू कर दिया था. बूढ़ा व्यक्ति अपनी स्मृति के गलियारों में भटकता है. वह अपने गांव, अपने पुराने दिनों को किसी के साथ बांटना चाहता है. बस, यही बेटियां घंटों अपने बाप के साथ उन के देहात के मास्टरजी के रोचक किस्से सुनती हैं.

इसलिए, मैं शायद नहीं जानती, पूरी तरह वाकिफ नहीं हूं कि बेटे भी ये सब करत हैं, किंतु अपनी बेटी अपने पापा के साथ समय जैसे धन को खूब लुटाती है. समय बदल रहा है, आज का वृद्ध कह रहा है, हमें अपना स्पेस चाहिए, आधुनिक युग में फाइवस्टार ओल्डएज होम बन रहे हैं. वे ओल्डएज होम नहीं, कब्र कहलाते हैं. न बेटे की न बेटी की किसी की जरूरत नहीं. सभी सुविधाओं से लैस इस प्रकार की व्यवस्था की जा रही है जहां, खाना, रहना, अस्पताल, जिम, मनोरंजन के साधन, हरेभरे लौन, पार्क आदि घरजैसी बल्कि घर से बढ़ कर तमाम जरूरतों का ध्यान रखते हुए, प्रौपर्टी बन और बिक रही हैं.

दृष्टिकोण बदल रहा है. मांबाप कह रहे हैं, यदि बच्चों को पालापोसा तो क्या उन से हम बदला लें? हम ने उन्हें जन्म दे कर उन पर कोई एहसान नहीं किया. सो, उन्हें बुढ़ापे की लाठी की तरह इस्तेमाल करना बंद करो. इस प्रकार की अवधारणा तूल पकड़ रही है. तब तो बेटेबेटी का किस्सा ही खत्म. बेटे कैसे होते हैं? बेटियों से बेहतर, कि बदतर, टौपिक निरर्थक, चर्चा बेमानी और तर्क अर्थहीन. किंतु ऐसे पांचसितारा कब्र में रहने वाले कितने और कौन हैं, अपने देश की कितनी फीसदी जनता उस का उपभोग कर सकती है? मेरे देश का अधिकांश वयोवृद्ध आज भी बेटीबेटे की ओर आशातीत नजरों से निहारता है.

क्या मोटापे के कारण प्रैग्नेंसी में प्रौब्लम आ सकती है?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 28 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरी लंबाई 5 फुट 4 इंच और वजन 85 किलोग्राम है. मैं और मेरे पति फैमिली प्लान करना चाहते हैं. क्या मोटापे के कारण गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा बढ़ जाता है?

जवाब-

यह बात बिलकुल सही है कि मोटापे के कारण गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आप गर्भावस्था के दौरान वजन नहीं घटा सकतीं न ही आप को प्रयास करना चाहिए. अगर आप का वजन अधिक है या आप मोटी हैं तो आप को कम से कम 1 साल पहले अपनी प्रैगनैंसी प्लान करना चाहिए ताकि गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान जटिलताएं न हों और आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, प्रतिदिन 100-200 कैलोरी का इनटेक कम कर दें, इस से 1 वर्ष में आप बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के 5 से 10 किलोग्राम तक वजन कम कर लेंगी. अगर कोई महिला मोटापे से छुटकारा पाने के लिए वेट लौस सर्जरी करना चाहती है, तो यह जरूरी सुझाव है कि इसे गर्भधारण की योजना बनाने से कम से कम 18 महीने पहले कराएं.

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गर्भधारण करना किसी भी महिला के लिए सब से बड़ी खुशी की बात और शानदार अनुभव होता है. जब आप गर्भवती होती हैं, तो उस दौरान किए जाने वाले प्रीनेटल टैस्ट आप को आप के व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं. इस से ऐसी किसी भी समस्या का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से शिशु के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है जैसे संक्रमण, जन्मजात विकार या कोई जैनेटिक बीमारी. ये नतीजे आप को शिशु के जन्म के पहले ही स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में मदद करते हैं.

यों तो प्रीनेटल टैस्ट बेहद मददगार साबित होते हैं, लेकिन यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि उन के परिणामों की व्याख्या कैसे करनी है. पौजिटिव टैस्ट का हमेशा यह मतलब नहीं होता है कि आप के शिशु को कोई जन्मजात विकार होगा. आप टैस्ट के नतीजों के बारे में अपने डाक्टर से बात करें और उन्हें समझें. आप को यह भी पता होना चाहिए कि नतीजे मिलने के बाद आप को सब से पहले क्या करना है.

डाक्टर सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टैस्ट कराने की सलाह देते हैं. कुछ महिलाओं के मामले में ही जैनेटिक समस्याओं की जांच के लिए अन्य स्क्रीनिंग टैस्ट कराने की जरूरत पड़ती है.

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पतिव्रता : धीरज क्यों मांग रहा था दया की भीख

पूरे समर्पण के साथ पतिव्रता का धर्म निभाने वाली वैदेही के प्रति उस के पति की मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ चुकी थीं. रात की खामोशी को तोड़ते हुए दरवाजा पीटने की बढ़ती आवाज से चौंक कर भास्कर बाबू जाग गए थे. घड़ी पर नजर डाली तो रात के 2 बजे थे. इस समय कौन हो सकता है? यह सोच कर दिल किसी आशंका से धड़क उठा.

उन्होंने एक नजर गहरी नींद में सोती अपनी पत्नी सौंदर्या पर डाली और दूसरे ही क्षण उसे झकझोर कर जगा दिया. ‘‘क्या हुआ? कौन है?’’ वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. ‘‘क्या हुआ, यह तो मुझे भी नहीं पता पर काफी देर से कोई हमारा दरवाजा पीट रहा है,’’ भास्कर ने स्पष्ट किया. ‘‘अच्छा, पर आधी रात को कौन हो सकता है?’’ सौंदर्या ने कहा और दरवाजे के पास जा कर खड़ी हो गई. ‘‘कौन है? कौन दरवाजा पीट रहा है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘आंटी, मैं हूं प्रिंसी.’’ ‘‘यह तो धीरज बाबू की बेटी प्रिंसी का स्वर है,’’ सौंदर्या बोली और उस ने दरवाजा खोल दिया. देखा तो प्रिंसी और उस की छोटी बहन शुचि खड़ी हैं. ‘‘क्या हुआ, बेटी?’’ सौंदर्या ने चिंतित स्वर में पूछा. ‘‘मेरी मम्मी के सिर में चोट लगी है, आंटी. बहुत खून बह रहा है,’’ प्रिंसी बदहवास स्वर में बोली. ‘‘तुम्हारे पापा कहां हैं?’’ ‘‘पता नहीं आंटी, मम्मी को मारनेपीटने के बाद कहीं चले गए,’’ प्रिंसी सुबक उठी. सौंदर्या दोनों बच्चियों का हाथ थामे सामने के फ्लैट में चली गई. वहां का दृश्य देख कर तो उस के होश उड़ गए. उस की पड़ोसिन वैदेही खून में लथपथ बेसुध पड़ी थी.

वह उलटे पांव लगभग दौड़ते हुए अपने घर पहुंची और पति से बोली, ‘‘भास्कर, वैदेही बेहोश पड़ी है. सिर से खून बह रहा है. लगता है उस के पति भास्कर ने सिर फाड़ दिया है. बच्चियां रोरो कर बेहाल हुई जा रही हैं.’’ ‘‘तो कहो न उस के पति से कि वह अस्पताल ले जाए, हम कब तक पड़ोसियों के झमेले में पड़ते रहेंगे.’’ ‘‘वह घर में नहीं है.’’ ‘‘क्या? घर में नहीं है….पत्नी को मरने के लिए छोड़ कर आधी रात को कहां भाग गया डरपोक?’’ ‘‘मुझे क्या पता, पर जल्दी कुछ करो नहीं तो वैदेही मर जाएगी.’’ ‘‘तुम्हीं बताओ, आधी रात को बच्चों को अकेले छोड़ कर कहां जाएं?’’ भास्कर खीज उठा. ‘‘तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं, बस, जल्दी से फोन कर के एंबुलेंस बुला लो. तब तक मैं श्यामा बहन को जगा कर बच्चों के पास रहने की उन से विनती करती हूं,’’ इतना कह कर सौंदर्या पड़ोसिन श्यामा के दरवाजे पर दस्तक देने चली गई थी और भास्कर बेमन से फोन कर एंबुलेंस बुलाने की कोशिश करने लगा. श्यामा सुनते ही दौड़ी आई और दोनों पड़ोसिनें मिल कर वैदेही के बहते खून को रोकने की कोशिश करने लगीं. एंबुलेंस आते ही बच्चों को श्यामा की देखरेख में छोड़ कर भास्कर और सौंदर्या वैदेही को ले कर अस्पताल चले गए.

‘‘इस बेचारी की ऐसी दशा किस ने की है? कैसे इस का सिर फटा है?’’ आपातकालीन कक्ष की नर्स ने वैदेही को देखते ही प्रश्नों की झड़ी लगा दी. ‘‘देखिए, सिस्टर, यह समय इन सब बातों को जानने का नहीं है. आप तुरंत इन की चिकित्सा शुरू कीजिए.’’ ‘‘यह तो पुलिस केस है. आप इन्हें सरकारी अस्पताल ले जाइए,’’ नर्स पर वैदेही की गंभीर दशा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. भास्कर नर्स के साथ बहस करने के बजाय मरीज को सरकारी अस्पताल ले कर चल पडे़. वैदेही को अस्पताल में दाखिल करते ही गहन चिकित्सा कक्ष में ले जाया गया. कक्ष के बाहर बैठे भास्कर और सौंदर्या वैदेही के होश में आने की प्रतीक्षा करने लगे. बहुत देर से खुद पर नियंत्रण रखती सौंदर्या अचानक फूटफूट कर रो पड़ी. झिलमिलाते आंसुओं के बीच पिछले कुछ समय की घटनाएं उस के दिलोदिमाग पर हथौडे़ जैसी चोट कर रही थीं. कुछ बातें तो उस के स्मृति पटल पर आज भी ज्यों की त्यों अंकित थीं. उस रात कुछ चीखनेचिल्लाने के स्वर सुन कर सौंदर्या चौंक कर उठ बैठी थी. कुछ देर ध्यान से सुनने के बाद उस की समझ में आया था कि जो कुछ उस ने सुना वह कोई स्वप्न नहीं बल्कि हकीकत थी. चीखनेचिल्लाने के स्वर लगातार पड़ोस से आ रहे थे. अवश्य ही कहीं कोई मारपीट पर उतर आया था. सौंदर्या ने पास सोते भास्कर पर एक नजर डाली थी. क्या गहरी नींद है.

एक बार सोचा कि भास्कर को जगा दे पर उस की गहरी नींद देख कर साहस नहीं हुआ था. वह करवट बदल कर खुद भी सोने का उपक्रम करने लगी पर चीखनेचिल्लाने के पूर्ववत आते स्वर उसे परेशान करते रहे थे. सौंदर्या सुबह उठी तो सिर बहुत भारी था. ‘क्या हो गया? सुबह के 7 बजे हैं. अब सो कर उठी हो? आज बच्चों की छुट्टी है क्या?’ भास्कर ने चाय की प्याली थामे कमरे में प्रवेश किया था. ‘पता नहीं क्या हुआ है जो सुबह ही सुबह सिरदर्द से फटा जा रहा है.’ ‘चाय पी कर कुछ देर सो जाओ. जगह बदल गई है इसीलिए शायद रात में ठीक से नींद न आई हो,’ भास्कर ने आश्वासन दिया तो सौंदर्या रोंआसी हो उठी थी. ‘सोचा था अपने नए फ्लैट में आराम से चैन की बंसी बजाएंगे. पर यहां तो पहली ही रात को सारा रोमांच जाता रहा.’ ‘ऐसा क्या हो गया? उस दिन तो तुम बेहद उत्साहित थीं कि पुरानी गलियों से पीछा छूटा. नई पौश कालोनी मेें सभ्य और सलीकेदार लोगों के बीच रहने का अवसर मिलेगा,’ भास्कर ने प्रश्न किया था. ‘यहां तो पहली रात को ही भ्रम टूट गया.’ ‘ऐसा क्या हो गया जो सारी रात नींद नहीं आई,’ भास्कर ने कुछ रोमांटिक अंदाज में कहा, ‘प्रिय, देखो तो कितना सुंदर परिदृश्य है. उगता हुआ सूरज और दूर तक फैला हुआ सजासंवरा हराभरा बगीचा. एक अपना वह पुराना बारादरी महल्ला था जहां सूर्य निकलने से पहले ही लोग कुत्तेबिल्लियों की तरह झगड़ते थे. वह भी छोटीछोटी बातों को ले कर. ‘इतना प्रसन्न होने की जरूरत नहीं है. वह घर हम अवश्य छोड़ आए हैं पर वहां का वातावरण हमारे साथ ही आया है.’ ‘क्या तात्पर्य है तुम्हारा?’ ‘यही कि जगह बदलने से मानव स्वभाव नहीं बदल जाता. रात को पड़ोस के फ्लैट से रोनेबिलखने के ऐसे दयनीय स्वर उभर रहे थे कि मेरी तो आंखों की नींद ही उड़ गई. बच्चे भी जोर से चीख कर कह रहे थे कि पापा मत मारो, मत मारो मम्मी को.’ ‘अच्छा, मैं ने तो समझा था कि यह सभ्य लोगों की बस्ती है, पुरानी बारादरी थोडे़ ही है. यहां के लोग तो मानवीय संबंधों का महत्त्व समझते होंगे पर लगता है कि…

सौंदर्या ने पति की बात बीच में काट कर वाक्य पूरा किया, ‘कि मानव स्वभाव कभी नहीं बदलता, फिर चाहे वह पुरानी बारादरी महल्ला हो या फिर शहर का सभ्य सुसंस्कृत आधुनिक महल्ला.’ ‘तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं, मैं तभी जा कर उस वीर पति को सबक सिखा देता. अपने से कमजोर पर रौब दिखाना, हाथ उठाना बड़ा सरल है. ऐसे लोगों के तो हाथ तोड़ कर हाथ में दे देना चाहिए.’ ‘देखो, बारादरी की बात अलग थी. यहां हम नए आए हैं. हम क्यों व्यर्थ ही दूसरों के फटे में पांव डालें,’ सौंदर्या ने सलाह दी. ‘यही तो बुराई है हम भारतीयों में, पड़ोस में खून तक हो जाए पर कोई खिड़की तक नहीं खुलती,’ भास्कर खीज गया था. दिनचर्या शुरू हुई तो रात की बात सौंदर्या भूल ही गई थी पर नीलम और नीलेश को स्कूल बस मेें बिठा कर लौटी तो सामने के फ्लैट से 3 प्यारी सी बच्चियों को निकलते देख कर ठिठक गई थी. सब से बड़ी 10 वर्षीय और दूसरी दोनों उस से छोटी थीं. तीनों लड़कियां मानों सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थीं. सीढि़यां चढ़ते ही सामने के फ्लैट का दरवाजा पकडे़ एक महिला खड़ी थी.

दूधिया रंगत, तीखे नाकनक्श. सौंदर्या ने महिला का अभिवादन किया तो वह मुसकरा दी थी. बेहद उदास फीकी सी मुसकान. ‘मैं आप की नई पड़ोसिन सौंदर्या हूं,’ उस ने अपना परिचय दिया था. ‘जी, मैं वैदेही’ इतना कहतेकहते उस ने अपने फ्लैट में घुस कर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया था, मानो कोई उस का पीछा कर रहा हो. भारी कदमों से सौंदर्या अपने फ्लैट में आई थी. अजीब बस्ती है. यहां कोई किसी से बात तक नहीं करता. इस से तो अपनी पुरानी बारादरी अच्छी थी कि लोग आतेजाते हालचाल तो पूछ लेते थे. दालचावल बीनते, सब्जी काटते पड़ोसिनें बालकनी में भी छत पर खड़ी हो सुखदुख की बातें तो कर लेती थीं और मन हलका हो जाता था. पर इस नए परिवेश में तो दो मीठे बोल सुनने को मन तरस जाता था. यही क्रम जब हर 2-3 दिन पर दोहराया जाने लगा तो सौंदर्या का जीना दूभर हो गया. बारादरी में तो ऐसा कुछ होने पर पड़ोसी मिल कर बात को सुलझाने का प्रयत्न करते थे, पर यहां तो भास्कर ने साफ कह दिया था कि वह इस झमेले में नहीं पड़ने वाला. और वह कानों में रूई के फाहे लगा कर चैन की नींद सोता था. पड़ोसियों के पचडे़ में न पड़ने के अपने फैसले पर भास्कर भी अधिक दिनों तक टिक नहीं पाया. हुआ यों कि कार्यालय से लौटते समय अपने फ्लैट के ठीक सामने वाले फ्लैट के पड़ोसी धीरज द्वारा अपनी पत्नी पर लातघूंसों की बरसात को भास्कर सह नहीं सका था.

उस ने लपक कर उस का गिरेबान पकड़ा था और दोचार हाथ जमा दिए. ‘मैं तो आप को सज्जन इनसान समझता था पर आप का व्यवहार तो जानवरों से भी गयागुजरा निकला,’ भास्कर ने पड़ोसी की बांह इस प्रकार मरोड़ी कि वह दर्द से कराह उठा था. भास्कर ने जैसे ही धीरज का हाथ छोड़ा वह शेर हो गया. ‘आप होते कौन हैं हमारे व्यक्तिगत मामलों में दखल देने वाले. मेरी पत्नी है वह. मेरी इच्छा, मैं उस से कैसा भी व्यवहार करूं.’ ‘लानत है तुम्हारे पति होने पर जो मारपीट को ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हो,’ दांत पीसते हुए भास्कर पड़ोसी की ओर बढ़ा पर दूसरे ही क्षण वैदेही हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगी थी. ‘भाई साहब, मैं आप के हाथ जोड़ती हूं, आप हमारे बीच पड़ कर नई मुसीबत न खड़ी करें.’ भास्कर को झटका सा लगा था. दूसरी ओर अपने फ्लैट का द्वार खोले सौंदर्या खड़ी थी. वैदेही पर एक पैनी नजर डाल कर भास्कर अपने फ्लैट की ओर मुड़ गया था. सौंदर्या उस के पीछे आई थी. वह सौंदर्या पर ही बरस पड़ा था. ‘कोई जरूरत नहीं है ऐसे पड़ोसियों से सहानुभूति रखने की. अपने काम से काम रखो, पड़ोस में कोई मरे या जिए. नहीं सहन होता तो दरवाजेखिड़कियां बंद कर लो, कानों में रूई डाल लो और चैन की नींद सो जाओ.’ सौंदर्या भास्कर की बात भली प्रकार समझती थी. उस का क्रोध सही था पर चुप रहने के अलावा किया भी क्या जा सकता था. धीरेधीरे सौंदर्या और वैदेही के बीच मित्रता पनपने लगी थी. ‘क्या है वैदेही, ऐसे भी कोई अत्याचार सहता है क्या? सिर पर गुलम्मा पड़ा है, आंखों के नीचे नील पडे़ हैं जगहजगह चोट के निशान हैं… तुम कुछ करती क्यों नहीं,’ एक दिन सौंदर्या ने पूछ ही लिया था. ‘क्या करूं दीदी, तुम्हीं बताओ. मेरे पिता और भाइयों ने साम, दाम, दंड, भेद सभी का प्रयोग किया पर कुछ नहीं हुआ. आखिर उन्होंने मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया. मुझे तो लगता है एक दिन ऐसे ही मेरा अंत आ जाएगा.’ ‘क्या कह रही हो. इस आधुनिक युग में भी औरतों की ऐसी दुर्दशा? मुझे तो तुम्हारी बातें आदिम युग की जान पड़ती हैं.’ ‘समय भले ही बदला हो दीदी पर समाज नहीं बदला. जिस समाज में सीताद्रौपदी जैसी महारानियों की भी घोर अवमानना हुई हो वहां मेरी जैसी साधारण औरत किस खेत की मूली है.’ ‘मैं नहीं मानती, पतिपत्नी यदि एकदूसरे का सम्मान न करें तो दांपत्य का अर्थ ही क्या है.’ ‘हमारे समाज में यह संबंध स्वामी और सेवक का है,’ वैदेही बोली थी.

‘बहस में तो तुम से कोई जीत नहीं सकता. इतनी अच्छी बातें करती हो तुम पर धीरज को समझाती क्यों नहीं,’ सौंदर्या मुसकरा दी थी. ‘समझाया इनसान को जाता है हैवान को नहीं,’ वैदेही की आंखें डबडबा आईं और गला भर आया था. सौंदर्या गहन चिकित्सा कक्ष के बाहर बेंच पर बैठी थी कि चौंक कर उठ खड़ी हुई. अचानक ही वर्तमान में लौट आई वह. ‘‘मरीज को होश आ गया है,’’ सामने खड़ी नर्स कह रही थी, ‘‘आप चाहें तो मरीज से मिल सकती हैं.’’ सौंदर्या को देखते ही वैदेही की आंखों से आंसुओं की धारा बह चली. ‘‘मैं घर चलता हूं. कल काम पर भी जाना है,’’ भास्कर ने कहा. ‘‘भाई साहब, अब भी नाराज हैं क्या? कोई भूल हो गई हो तो क्षमा कर दीजिए इस अभागिन को,’’ वैदेही का स्वर बेहद धीमा था, मानो कहीं दूर से आ रहा हो. ‘‘गांधी नगर में मेरी बहन रहती है. उसे आप फोन कर दीजिएगा,’’ इतना कह कर वैदेही ने फोन नंबर दिया पर वह चिंतित थी कि न जाने कब तक अस्पताल में रहना पड़ेगा. भास्कर घर पहुंचा तो धीरज वापस आ चुका था. उसे देख कर बाहर निकल आया. ‘‘वैदेही कहां है?’’ उस ने प्रश्न किया. ‘‘कौन वैदेही? मैं किसी वैदेही को नहीं जानता,’’ भास्कर तीखे स्वर में बोला. ‘‘देखो, सीधे से बता दो नहीं तो मैं पुलिस को सूचित करूंगा,’’ धीरज ने धमकी दी. ‘‘उस की चिंता मत करो, पुलिस खुद तुम्हें ढूंढ़ती आ रही होगी.

वैसे तुम्हारी पतिव्रता पत्नी तो तुम्हारे विरोध में कुछ कहेगी नहीं, पर हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं,’’ भास्कर का क्रोध हर पल बढ़ता जा रहा था. तभी भास्कर ने देखा कि उस माउंट अपार्टमेंट के फ्लैटों के दरवाजे एकएक कर खुल गए थे और उन में रहने वाले लोग मुट्ठियां ताने धीरज की ओर बढ़ने लगे थे. ‘‘इस राक्षस को सबक हम सिखाएंगे,’’ वे चीख रहे थे. भास्कर के होंठों पर मुसकान खेल गई. इस सभ्यसुसंस्कृत लोगों की बस्ती में भी मानवीय संवेदना अभी पूरी तरह मरी नहीं है. उसे वैदेही और उस की बच्चियों के भविष्य के लिए आशा की नई किरण नजर आई. उधर धीरज वहां से भागने की राह न पा कर हाथ जोडे़ सब से दया की भीख मांग रहा था.

मेरी गर्लफ्रैंड की शादी हो चुकी है, लेकिन वह मेरे बच्चे की मां बनने वाली है…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी गर्लफ्रैंड की शादी 1 महीने पहले हुई. लेकिन हमारे बीच पहले फिजिकल रिलेशन था. अब कह रही है कि वह प्रेग्नेंट है और मैं उस बच्चे का पिता हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं ?

Unhappy depressed Indian woman holding head in hands sitting alone on couch at home stressed young female worried about bad relationship

जवाब

देखिए अब आपकी गर्लफ्रैंड की शादी हो चुकी है. और ये बात बाहर आती है, तो शादी तो टूटेगी, इसके अलावा आपको भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में बेहतर है कि आप अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड को समझाएं और उनसे कहें कि ये बच्चा किसका है, इस बात का भूल से भी अपने पति से जिक्र न करें. शादी के बाद जाहिर सी बात है उन दोनों पतिपत्नी का संबंध बना ही होगा, लेकिन ये बात सिर्फ एक लड़की ही जान सकती है, उसके बच्चे का पिता कौन है. इसी में भलाई है कि आप अपने गर्लफ्रैंड को कहें कि वह अपने शादी पर ध्यान दें और प्रेग्नेंसी एंजौय करें.

लौन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में इस तरह बढ़ाएं प्यार

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  • भले ही आप दोनों नौकरी, पढ़ाई या परिवार की वजह से अलगअलग शहर में रहते हैं, लेकिन हमेशा एकदूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहें. अगर आपको लगे कि आपके पार्टनर को पैसे या इमोशनल सपोर्ट की जरूरत है, तो  बेझिझक आप अपने पार्टनर की सपोर्ट करें. जब उसे जरूरत हो, तो बिना कहे उसके पास चले जाएं.
  • आजकल मोबाइल का जमाना है, जब चाहे बात कर सकते हैं. इसके अलावा आप दिन में एक-दो बार वीडियो कौल जरूर करें. वीडियो कौल पर आप अपने प्यार का इजहार करें. ऐसे में आप दूर होते हुए भी एकदूसरे को महसूस कर पाएंगे.
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कौन अपना कौन पराया: अमर ने क्या किया था

कहानी- करुणा कोछर

घुटनों के असहनीय दर्द के चलते मेरे लिए खड़ा होना मुश्किल हो रहा था किंतु मजबूरी थी. इस अनजान जगह पर मुझे दूरदूर तक कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था.

विराट को परसों जबरदस्त हार्ट अटैक पड़ा था और देहरादून में उचित व्यवस्था न होने के कारण वहां के डाक्टरों की सलाह से विराट को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में लाना पड़ा. हालांकि विराट की तबीयत खराब होने की खबर बच्चों को कर दी थी लेकिन उन की सुध लेने कोई नहीं आया. यह सोच कर मेरी आंखें भर आईं कि क्या इसी दिन के लिए लोग औलाद चाहते हैं? दर्द असहनीय होता जा रहा था. चक्कर सा आने लगा कि अचानक किसी ने आ कर थाम लिया और अधिकार के साथ बोला, ‘‘आप हटिए यहां से, मैं पैसे जमा करवा दूंगा,’’ आवाज सुन कर मैं ने चौंक कर ऊपर देखा तो मेरी निगाहें जम सी गईं.

‘‘तुम…तुम यहां कैसे पहुंचे?’’ मैं ने कांपते स्वर में पूछा.

‘‘कैसे भी? पर आप ने तो नहीं बताया न. हमेशा की तरह मुझे गैर ही समझा न,’’ उस के स्वर में शिकायत थी, ‘‘खैर छोडि़ए, आप बाबा के पास जाइए, मैं पैसे जमा करवा कर और डाक्टर से बात कर के अभी आता हूं,’’ वह बोला.

मैं धीरेधीरे चलती हुई विराट के कमरे तक पहुंची. वह आंखें मूंदे लेटे थे. मैं धीरे से पास रखे स्टूल पर बैठ गई. बुद्धि शून्य हुई जा रही थी. थोड़ी देर में वह भी कमरे में आया और विराट के पैर छूने लगा. विराट ने जैसे ही आंखें खोलीं और उसे सामने देखा तो खिल उठे, और अपनी दोनों बांहें फैला दीं तो वह छोटे बच्चे की तरह सुबकता हुआ उन बांहों में सिमट गया. थोड़ी देर बाद सिर उठा कर बोला, ‘‘मैं आप से बहुत नाराज हूं बाबा, आप ने भी मुझे पराया कर दिया. 2 दिन से घर पर घंटी बज रही थी, कोई फोन नहीं उठा रहा था सो मुझ से रहा नहीं गया और मैं घर पहुंचा तो पड़ोसियों से पता चला कि आप बीमार हैं और मैं यहां चला आया.

‘‘बाबा, आप इतने बीमार रहे लेकिन मुझे कभी बताया तक नहीं. क्या मेरा इतना हक भी आप पर नहीं है. बोलो न, बाबा?’’

वह लगातार प्रश्न करता रहा और विराट मुसकराते रहे. उस ने कहा, ‘‘अब आप बिलकुल चिंता न करना बाबा, अब मैं सब संभाल लूंगा.’’

विराट काफी निश्चिंत लग रहे थे. मन ही मन मुझे भी उस के आने से काफी खुशी हो रही थी. फिर वह मेरी तरफ मुड़ा और बोला, ‘‘बाहर मेरा अर्दली खड़ा है. आप उस के साथ मेरे गेस्ट हाउस पर चली जाइए. आप भी थक गई होंगी. थोड़ा आराम कर लीजिए. बाबा की आप बिलकुल चिंता न करें. मैं इन का पूरा खयाल रखूंगा,’’ उस ने कहा और मैं ने शायद जीवन में पहली बार उस की किसी बात की अवहेलना नहीं की. सिर झुका कर अपनी मौन स्वीकृति दे दी.

बाहर आ कर उस ने अपने अर्दली को कुछ निर्देश दिए और मैं उस की जीप में चुपचाप बैठ कर उस के गेस्ट हाउस पहुंच गई. नहाधो कर जब मैं लौन में आ कर बैठी तो अर्दली चाय और बिस्कुट ले आया. चाय पी कर थोड़ी राहत महसूस हुई. अंदर आ कर मैं ने कमरा बंद किया और सोने का उपक्रम करने लगी किंतु नींद मेरी आंखों से कोसों दूर थी. बीता समय मानस पटल पर उजागर होने लगा.

जब मेरी शादी विराट से हुई थी तो वह वकालत में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे. वैसे मेरे ससुरजी एक कामयाब वकील थे. धीरेधीरे विराट भी वकालत के पेशे में पैर जमाने लगे और इन की भी गिनती नामी वकीलों में की जाने लगी. हमारे 2 बेटे हुए जिन्हें हम ने लाड़प्यार से पाला. कुछ समय बाद ससुरजी की मृत्यु हो गई तो उन के एक बहुत पुराने मुंशीजी को विराट ने अपने साथ रख लिया.

मुंशीजी की विश्वसनीयता और कर्मठता के कारण विराट उन पर बहुत निर्भर हो गए. एक दिन अचानक मुंशीजी घबराए हुए आए और एक हफ्ते की छुट्टी मांगने लगे. विराट के पूछने पर उन्होंने बताया कि उन का गांव भूकंप की चपेट में आ गया है और वह अपने परिवार के लिए चिंतित हैं. तब पहली बार मैं ने जाना कि मुंशीजी का अपना परिवार भी है.

करीब 10 दिन बाद मुंशीजी लौटे तो उन के साथ एक 12 साल का लड़का था. विराट को देखते ही मुंशीजी बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगे. रोतेरोते उन्होंने बताया कि भूकंप की चपेट में उन के दोनों बेटेबहुएं और पोतेपोतियों की मृत्यु हो गई है. केवल यही एक बच्चा बच पाया है. चूंकि गांव में अपना कोई बचा नहीं है इसलिए अपने इस छोटे पोते को साथ लेता आया हूं.

विराट एक नरमदिल इनसान हैं सो मुंशीजी को सांत्वना देते हुए बोले, ‘घबराइए मत मुंशीजी, होनी को तो कोई टाल नहीं सकता. हम सब आप के दुख में आप के साथ हैं,’ फिर बच्चे की ओर देख कर विराट बोले, ‘क्या नाम है बेटा?’

‘जी अमर… अमरदीप,’ वह बच्चा हकलाते हुए बोला.

‘अरे वाह, बड़ा अच्छा नाम है. पढ़ते हो?’

उस ने सिर हिला कर ‘हां’ कहा.

‘कौन सी क्लास में?’ विराट ने पूछा.

‘जी, 5वीं में,’ अमर बोला.

‘साहब, आप इस का दाखिला सेंट्रल स्कूल में करवा दीजिए. थोड़ा पढ़लिख जाएगा तो कमा खा लेगा. मेरा क्या भरोसा?’ मुंशीजी लाचारी से बोले.

‘क्यों नहीं, मुंशीजी, पर सेंट्रल स्कूल में क्यों, मैं इस का दाखिला वरुण के स्कूल में करवा दूंगा,’ विराट ने दरियादिली दिखाई, ‘और आप अमर की चिंता न करें, इस की पढ़ाई का सारा खर्चा मेरे जिम्मे होगा.’

हालांकि मुझे यह बात नागवार लगी किंतु मैं चुप रही. बाद में विरोध जताने पर विराट मुझे समझाते हुए बोले, ‘क्या फर्क पड़ता है सुमि, अनाथ बच्चा है, पढ़लिख जाएगा तो तुम्हें दुआ देगा.’

‘नहीं चाहिए मुझे दुआ,’ मैं खीज कर बोली, ‘आप इसे सरकारी स्कूल में ही भरती करवा दें. वहां किताबें और यूनीफार्म भी मुफ्त में मिल जाएगी.’

‘इस की फीस भर कर और साल में एक बार किताबकापियों और यूनीफार्म पर खर्च कर के तुम्हारा खजाना खाली हो जाएगा. है न,’ विराट व्यंग्यात्मक मुसकराहट से बोले तो मैं कुढ़ गई. मुझे यह कतई गवारा न था कि मेरे नौकर का बच्चा मेरे बच्चों की बराबरी में पढ़े.

विराट ने अपने मन की मानी और अमर का दाखिला मेरे बच्चों के स्कूल में ही हो गया और वह भी मेरे बच्चों के साथ गाड़ी में स्कूल आताजाता था.

मुंशीजी अपने परिवार के सदमे से टूट गए थे अत: 6 महीने के भीतर ही उन की भी मृत्यु हो गई. विराट अमर को घर ले आए. उस दिन मैं ने विराट से खूब लड़ाई की. किंतु वह यही तर्क देते रहे कि मुंशीजी उन के पुराने वफादार मुलाजिम थे अत: उन के पोते के प्रति उन का नैतिक कर्तव्य बनता था.

मेरे तर्कवितर्कों का विराट पर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि अब वह अमर पर ज्यादा ध्यान देने लगे. उस की पढ़ाई, उस का खानापीना, उस के कपड़े आदि का खास ध्यान रखते.

हालांकि अमर अपनी पढ़ाई के साथसाथ मेरे कामों में भी मेरी मदद कराता. बाजार के भी काम कर देता. जिस समय मेरे बच्चे कंप्यूटर गेम खेल रहे होते वह उन का होमवर्क भी कर देता. फिर भी मेरी नाराजगी कम न होती. मेरे बच्चे भी जबतब उसे जलील करते रहते किंतु वह उफ तक नहीं करता.

मेरे बच्चों की देखादेखी एक बार मेरे लिए अमर के मुंह से ‘मम्मी’ निकला तो मैं ने उसे झिड़क दिया. फिर एक बार बाजार से आ कर सौदा सौंपते हुए उस ने मुझे ‘मांजी’ कहा तो मैं चिल्ला उठी, ‘खबरदार, मुझे मम्मी या मांजी कहा तो. कहना है तो मालकिन कहो.’

वह सहम गया. उस दिन के बाद से उस ने मुझे कोई भी संबोधन नहीं दिया.

अमर पढ़ाई में बहुत होशियार था. अपनी कक्षा में वह हमेशा प्रथम आता था. इस से विराट बहुत खुश होते थे. 12वीं की परीक्षा समाप्त होने पर एक दिन विराट बोले, ‘मैं सोचता हूं अमर को पी.एम.टी. की परीक्षा में बिठाऊं और…’

विराट अभी बात पूरी भी न कह पाए थे कि मेरे सब्र का बांध टूट गया और उस दिन मेरे क्रोध की भी सीमा न रही.

‘बस कीजिए, अब क्या इस ढोल को सारी जिंदगी मुझे बजाते रहना पड़ेगा. डाक्टरी की पढ़ाई 5-6 साल से कम नहीं और खर्चा बेतहाशा. मैं ने क्या इस का ठेका उठाया है जो अपने बच्चों के हिस्से का पैसा भी इस पर खर्च करूंगी. 12वीं तक पढ़ा दिया अब यह कोई छोटामोटा काम करे और हमारा पीछा छोड़े. मैं अब इसे और बरदाश्त नहीं करूंगी.’

मैं ने गुस्से में यह भी न सोचा कि कहीं अमर ने यह सब सुन लिया तो? और शायद उस ने मेरी बातें सुन ली थीं.

2 दिन बाद विराट के पास जा कर अमर धीरे से बोला, ‘बाबूजी, मैं डाक्टर या इंजीनियर नहीं बनना चाहता बल्कि मैं सैनिक बनना चाहता हूं. मैं एन.डी.ए. का फार्म लाया हूं. आप इस पर हस्ताक्षर कर दें.’

विराट ने न चाहते हुए भी उस पर दस्तखत कर दिए. और फिर एक दिन अमर को एन.डी.ए. की परीक्षा में शामिल होने का पत्र भी आ गया. 5 दिन की कड़ी परीक्षा दे कर जब वह देहरादून से लौटा तो उस का चेहरा खुशी से दमक रहा था. उस का चयन हो गया था. जिस दिन वह अपना सामान ले कर टे्रनिंग पर जा रहा था विराट की आंखों में आंसू थे.

‘बेटा, मैं तुम्हारे लिए ज्यादा कर नहीं पाया,’ अमर को गले लगाते हुए विराट बोले.

‘ऐसा न कहें बाबूजी, मैं आज जो भी हूं और भविष्य में जो भी बन पाऊंगा सिर्फ आप की वजह से. मेरा रोमरोम आप का सदा आभारी रहेगा,’ अमर रोते हुए बोला. जब वह मेरे चरणस्पर्श करने आया तो मैं ने बेरुखी से कहा, ‘ठीक है…ठीक है’ और वह चला गया. मैं ने भी चैन की सांस ली.

मेरे दोनों बच्चे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. वरुण ने आई.आई.टी. मुंबई से एम.टेक. किया. उसे विदेश में नौकरी मिल गई. वहीं उस ने एक लड़की से शादी कर ली. उस दिन मैं बहुत रोई थी. छोटे बेटे शशांक को बोकारो, जमशेदपुर में नौकरी मिल गई. उस ने भी एक विजातीय लड़की से प्रेम विवाह किया जिस ने कभी हमें अपना नहीं माना.

अमर के पत्र लगातार विराट के पास आते रहते. टे्रनिंग पूरी कर के उस की लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति हुई. एक बार हम से मिलने के लिए अमर 2 दिन के लिए आया था. किंतु मेरा व्यवहार उस के प्रति रूखा ही रहा. हां, उन 2 दिनों में मैं ने विराट को कहकहे लगाते देखा था.

फिर विराट को पक्षाघात हुआ तो मैं ने दोनों बच्चों को खबर दी. वे आए भी लेकिन किसी ने भी हमें अपने साथ रखने की बात नहीं की और न ही कोई पैसे से मदद की. उलटे दोनों बेटे नसीहत देने लगे कि हम अपना बंगला बेच दें और एक छोटा सा फ्लैट ले लें. पहली बार मुझे अपनी कोख पर अफसोस हुआ और एक पल को अमर की याद भी आई किंतु मेरा अहम आड़े आ गया.

कभीकभी अमर का फोन आता तो मैं टाल देती. विराट की बीमारी पर काफी पैसा लगा. आमदनी रही नहीं, सिर्फ खर्चे ही खर्चे. रोजरोज पानी उलीचने से तो कुआं भी खाली हो जाता है तो हमारे बैंक में जमा पैसे का क्या. हार कर अपना बंगला मुझे बेचना पड़ा.

देहरादून में पुश्तैनी टूटाफूटा घर था. उसी की मरम्मत करवा कर हम वहां रहने के लिए आ गए. मैं ने गुस्से के मारे अपने बेटों को खबर भी नहीं दी. हां, विराट के बहुत आग्रह पर 2 लाइनें अमर को लिख दीं जिस में अपना नया पता व टेलीफोन नंबर था.

पत्र मिलते ही अमर देहरादून आया. अब वह कैप्टन बन चुका था. सारी बात पता चलने पर उस ने अपने साथ चलने के लिए बहुत जिद की लेकिन विराट ने उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया.

अमर नियमित रूप से पत्र भेजता रहता. हालांकि वह पैसे से भी मदद करना चाहता था लेकिन मेरे अहम को यह गवारा न था.

अमर की शादी का निमंत्रण आया तो मैं ने कार्ड छिपा दिया. किसी कर्नल की बेटी से उस की शादी हो रही थी. उस का फोन भी आया तो मैं ने विराट को नहीं बताया. फिर एक दिन वह अपनी पत्नी को ले कर ही देहरादून आ गया. हालांकि बड़ी प्यारी और संस्कारी लड़की थी लेकिन मैं उन लोगों से खिंचीखिंची ही रही. उन के जाने पर विराट ने मुझ से झगड़ा किया कि मैं ने शादी के बारे में क्यों नहीं बताया.

अब विराट कुछ चुपचुप से रहने लगे थे. एक तो अपनी अपंगता के कारण, दूसरे, बच्चों की बेरुखी से वह आशाहीन से हो गए थे. शायद इसी कारण उन्हें यह अटैक पड़ा था. मैं ने घबराहट में दोनों बच्चों को फोन पर सूचना दी तो दोनों ने ही आने में अपनी असमर्थता जाहिर की. इस बार चाहते हुए भी मैं अमर को मदद के लिए नहीं बुला पाई. हां, दिल्ली आते समय पड़ोसियों को अस्पताल का पता दे कर आई थी एक उम्मीद में और वही हुआ. आखिर अमर पहुंच ही गया.

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक से मेरी तंद्रा भंग हो गई. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने नौकर खड़ा था.

‘‘मांजी, खाना तैयार है. आप खा लीजिए. अस्पताल का खाना भी मैं ने पैक कर लिया है. फिर हम अस्पताल चलेंगे.’’

मैं ने जल्दीजल्दी कुछ कौर निगले और उस अर्दली के साथ अस्पताल पहुंच गई. देखा तो विराट काफी खुश लग रहे थे. मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा. अमर ने बताया 2 दिन बाद आपरेशन है.

आपरेशन कामयाब रहा. सारी भागदौड़ और खर्च अमर ने ही किया. इस बार मैं ने उसे नहीं रोका. जब विराट को अस्पताल से छुट्टी मिली तो अमर ने एक बार फिर अपने साथ उस के घर डलहौजी चलने का आग्रह किया. जब विराट ने प्रश्नसूचक नजरों से मेरी ओर देखा तो मैं ने मुसकराते हुए मौन स्वीकृति दे दी. अमर को तो जैसे कुबेर का खजाना मिल गया. उस ने फौरन फोन कर के अपनी पत्नी भावना को बता दिया.

हम जब डलहौजी में अमर के बंगले पर पहुंचे तो भावना बाहर खड़ी मिली. जीप से उतरते ही उस ने सिर पर आंचल डाल कर मेरे पैर छुए. अमर सहारा दे कर विराट को अंदर ले गया.

विराट काफी खुश नजर आ रहे थे. मुझे भी काफी सुकून सा महसूस हुआ. अपनी बहुओं का तो मैं ने सुख देखा नहीं. पहली बार सास बनने का एहसास हो रहा था.

रात का खाना अमर ने अपने हाथों से अपने बाबूजी को खिलाया. काफी देर तक दोनों गप्पें मारते रहे. भावना बारबार आ कर मेरी जरूरतों के बारे में पूछ जाती.

खाने के बाद जब मैं बिस्तर पर लेटी थी तो अचानक मुझे दरवाजे के बाहर अमर की आवाज सुनाई पड़ी. मैं ने ध्यान से सुना तो वह भावना को मेरे लिए कौफी बनाने को कह रहा था.

मेरा मन भीग गया. उसे अभी भी याद है कि मैं खाने के बाद कौफी पीती हूं. थोड़ी देर में भावना टे्र में कौफी का मग ले कर आई, ‘‘मांजी, आप की कौफी लाई हूं साथ में आप का मीठा पान भी है.’’

अमर को याद रहा कि मीठा पान मेरी कमजोरी है. विराट को मेरा पान खाना पसंद नहीं था सो मैं कभीकभी अमर से ही पान मंगवाया करती थी. मैं द्रवित हो उठी.

2-3 सप्ताह बाद जब विराट की तबीयत में काफी सुधार आ गया तो मैं ने अमर से अपने घर जाने की बात की. अमर उदास हो गया और कहने लगा, ‘‘क्या आप यहां खुश नहीं हैं? क्या आप को कोई तकलीफ है?’’

‘‘ऐसी बात नहीं है बेटा,’’ मेरे मुंह से अचानक निकल गया.

‘‘बेटा भी कह रही हैं और बेटे का हक भी नहीं दे रही हैं,’’ अमर भावुक हो कर बोला.

‘‘एक शर्त पर बेटे का हक दे सकती हूं, यदि तुम मुझे ‘मां’ कहो तो,’’ अपनी भावनाओं को मैं रोक नहीं पाई और अपनी दोनों बांहें पसार दीं. वह एक मासूम बच्चे की तरह मेरी गोद में समा गया और रोतेरोते बोला, ‘‘मां, अब मैं आप को और बाबूजी को कहीं नहीं जाने दूंगा. अब आप दोनों मेरे पास ही रहेंगे. बोलो मां, रहोगी न?’’ वह लगातार यह पूछता जा रहा था और मैं उस के बालों को सहलाते हुए बोली, ‘‘अपने बच्चों को छोड़ कर कौन मांबाप अकेले रहना चाहते हैं. हम यहीं रहेंगे, अपने बेटे के पास.’’

मैं भावुकता में बोले जा रही थी और मेरी आंखों से गंगायमुना बह रही थी. थोड़ी देर में तालियां बजने लगीं. मैं ने नजर उठा कर देखा तो विराट और भावना तालियां बजा रहे थे और हंस रहे थे.

उस रात मैं ने विराट से कहा, ‘‘अमर मेरी कोख से क्यों न हुआ?’’ तो वह बोले, ‘‘इस से क्या फर्क पड़ता है. है तो वह मेरा ही बेटा.’’

‘‘मेरा नहीं हमारा बेटा,’’ मैं तुरंत बोली और हम दोनों ठठा कर हंस पड़े.

YRKKH : विद्दा पोद्दार हाउस से अभिरा को निकालेगी बाहर, अपनी मां की बात मानेगा अरमान?

टीवी का चर्चित सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) के दर्शकों की संख्या अनगिनत है. यह सीरियल साल 2009 से दिखाया जा रहा है. इन बिते सालों में शो की कहानी में कई उतारचढ़ाव और लीप दिखाए गए. लेकिन दर्शकों का इस शो को लेकर इंट्रैस्ट बढ़ता ही गया. शो में अब तक कई कालाकर बदल चुके हैं. सीरियल में रोजाना एक से बढ़कर एक ट्विस्ट देखने को मिलता है. आज आपको इस सीरियल के नए अपडेट के बारे में बताएंगे.

ये रिश्ता क्या कहलाता है की कहानी में अब तक दिखाया गया है कि शादी से ठीक पहले रूही जमकर आंसू बहाती है और अभिरा से माफी मांगती है. तो दूसरी तरफ अभिरा अरमान के साथ मंडप में बैठ जाती है. दोनों की शादी होती है और वो दोनों परिवार का आशीर्वाद लेते हैं.

yeh rihsta kya kehlata hai

अरमान और अभिरा छोड़ेंंगे अपना घर

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अरमान की मां विद्दा अभिरा और अपने बेटे की बेइज्जती खुद को कमरे में बंद कर लेगी. अरमान अपनी मां की ये हालत देखकर घबरा जाएगा. वह बिना देर किए अपनी मां को मनाने जाएगा. हालांकि विद्या अपने कमरे का दरवाजा खोल देगी, अरमान अपनी मां से माफी मांगेगा लेकिन वह कहेगी कि अगर अरमान अभिरा को छोड़ेगा तभी उसको माफी मिलेगी.

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अपनी मां को याद करेगा अरमान

शो में आप आगे देखेंगे कि अरमान अभिरा इसके लिए राजी हो जाएगा, लेकिन वह भी अभिरा के साथ घर छोड़ देगा. पोद्दार हाउस से निकलने के बाद अरमान और अभिरा को काफी संघर्ष करना पड़ेगा और दोनों आम आदमी की तरह जिंदगी जिएंगे. अरमान को अपनी मां की याद आएगी, लेकिन वह कठोर बनकर फैसला करेगा कि वह कभी भी अपने परिवार को अपना चेहरा नहीं दिखाएगा.

अरमान ने रूही को किया जमकर जलील

सीरियल के बिते एपिसोड में आपने देखा था कि शादी के बाद अरमान और अभिरा को कई चैलेंजेस का सामना करना पड़ा. अरमान की मां ही उसकी दुश्मन बन गई. तो दूसरी तरफ अरमान ने रूही को जमकर जलील किया. उसने दावा किया कि रूही उससे प्यार नहीं करती है. रूही को सबक सिखाने के बाद अरमान अभिरा के पास गया और उसने अपने दिल की बात कही. अरमान ने कहा कि वह सिर्फ और सिर्फ अभिरा से प्यार करता है. जिसके बाद दोनों शादी करने के लिए मंडप में गए.

तो इधर अरमान की मां विद्या आगबबूला हो गई और कहा कि कि शादी के बाद अरमान और अभिरा  कभी भी खुश नहीं रहेंगे. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि परिवार से दूर अरमान और अभिरा अपनी नई जिंदगी में आने वाली मुश्किलों का कैसे सामना करेंगे?

अपनाअपना नजरिया : शादी के बाद अदिति और मिलिंद के रिश्ते में क्या बदलाव आया?

पिछले हफ्ते ही मिलिंद का चेन्नई वाली एडवरटाइजिंग एजेंसी की ब्रांच से नई दिल्ली वाली ब्रांच में ट्रांसफर किया गया था. बचपन से ही मिलिंद चेन्नई में अपने मामा के पास ज्यादा रहा था इसलिए उस की हिंदी भाषा पर ज्यादा पकड़ नहीं थी. दिल्ली में जब औफिस में अदिति से नजदीकियां बढ़ीं तो वह कई बार मजाक में उस की हिंदी सुधारती रहती थी.

जल्द ही दोनों की दोस्ती प्रेमपथ पर चलने लगी और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. कंपनी में दोनों ही सेल्स डिपार्टमैंट में ऐग्जिक्यूटिव थे पर जल्द ही अदिति की रीजनल मैनेजर की पोस्ट पर प्रमोशन हो गई.

हालांकि मिलिंद को इस बात से रती भर भी फर्क नहीं पड़ा था परंतु औफिस में उस के दोस्त और अन्य स्टाफ उस की पीठ पीछे इस बात पर मुंह दबाए हंसना अपना हक सम?ाते थे और मिलिंद को समयसमय पर यह एहसास दिलवाना भूलते नहीं थे कि शादी से पहले ही अब तो अदिति से मिलने की उस की इजाजत लेनी पड़ती है तो शादी के बाद तो उसे जोरू का गुलाम बनने से कोई नहीं रोक सकता.

उन सब की ये बातें मिलिंद एक कान से सुनता था और दूसरे से निकाल देता था. दीवाली की छुट्टियों में उस ने अपने मातापिता को इंदौर से बुलवा लिया और अदिति के मातापिता से मिलवाया.

दोनों के ही मातापिता ने थोड़ी नानुकुर के बाद इस रिश्ते को मंजूरी दे दी. दिसंबर के मध्य में विवाह हुआ तो दोनों नववर्ष की संध्या हनीमून मनाने के बाद वापस लौटे.

जिंदगी रोजमर्रा के ढर्रे पर चलने लगी तो कुछ ही महीनों बाद दोनों के परिवारों में दोनों की सासू मांओं ने अदिति से चुहल करना शुरू कर दिया और कोई गुड न्यूज सुनाओ, खुशखबरी कब दे रही हो? तुम दोनों के बीच सब ठीक तो है? पहले तो अदिति ने इन बातों पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी बल्कि इन बातों को सुन कर हंस दिया करती थी पर साल बीतते न बीतते यही बातें अब तानेबाजी में बदलने लगी थीं.

अदिति पर पद की जिम्मेदारियां अधिक थीं और मिलिंद भी तरक्की चाहता था. हालफिलहाल उसे 1-2 अन्य कंपनियों में भी इंटरव्यू देना था. अत: अभी दोनों ही अपनेअपने कैरियर को ले कर व्यस्त थे इसलिए उन्होंने अभी अभिभावक बनने के फैसले को टाला हुआ था परंतु यह बात उन के परिवार वाले न सम?ा रहे थे और न ही समझना चाहते थे.

मिलिंद की बहन जब कनाडा से भारत आई तो मिलिंद की मां के साथ वह कुछ दिनों के लिए मिलिंद के घर भी रहने आई.

‘‘अरे मम्मी, मन्नू तो कब का औफिस से आ कर कमरे में पड़ा है और तुम्हारी बहुरानी अभी तक नदारद है, लगता है भाई ने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है.’’

‘‘भाई क्या करेगा तेरा, औफिस में भी उस से नीचे काम करता है. हम दोनों भी इंदौर वाला घर किराए पर चढ़ा कर दिल्ली वाले फ्लैट में आ गए कि अब तो इस बच्ची से सेवाभाव पा कर बाकी की जिंदगी आराम से गुजारेंगे पर इन दोनों ने तो अपना अलग ही फ्लैट ले लिया. यह तो तू आई है तो मैं कुछ दिन यहां रहने चली आई वरना तो इस घर में बहू होने के बाद भी खुद ही रसोई में खटना होगा यह सोच कर हम तो यहां रहने आते ही नहीं हैं.’’

‘‘ठीक ही कहती हो मम्मी, मन्नू भी न जाने कैसे आप के हाथ का स्वाद भूल कर यहां कच्चापक्का खा रहा है.’’

मिलिंद की आंख खुल चुकी थी और कानों में उसे रश्मि और मां की बातें अच्छी तरह से सुनाई दे रही थीं. वह बाहर आया और बोला, ‘‘दीदी, कैसी बातें कर रही हो. आप समझ सकती हो कि जब हम दोनों ही नौकरीपेशा है तो घर के कामों में बाहर वालों की मदद तो लेनी होगी न और वैसे भी श्यामा खाना बहुत अच्छा बनाती है और घर का भी काफी अच्छे से ध्यान रखती है. आजकल ऐसी हैल्पर मिलती कहां है.’’

‘‘अब अगर इतनी ही वकालत कर रहा है अपने रिश्ते की तो यह भी बता कि अब तक तेरी बीवी घर क्यों नहीं आई? तू तो उस से पहले का आया हुआ है?’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘उफ मम्मी, जरूरी मीटिंग है, नए प्रोजैक्ट की डैडलाइन सिर पर है, सभी काम में लगे हुए हैं मु?ो भी रुकना था पर सिर इतनी जोर से फट रहा था कि चाह कर भी रुकने की हालत नहीं थी मेरी. अब सोच रहा हूं कि अगर मैं भी औफिस में ही रहता तो ज्यादा अच्छा रहता.’’

‘‘चलो मम्मी, इतनी आजादी तो विदेश में नहीं जितनी यहां देख रही हूं, पर हमें क्या, भविष्य में खुद ही पछताएगा. आज अदिति को कुछ नहीं कह रहा न. कल देखना इस के सिर पर सवार होगी वह.’’

‘‘तभी तो बच्चा भी नहीं कर रही. वह क्या होता है रश्मि आजकल की लड़कियों में कि हमारी फिगर न खराब हो जाए, यही सोच इस की मैडम ने भी पाल रखी होगी.’’

‘‘कोई बात नहीं है मम्मी, बच्चे का पालनपोषण सही तरीके से करने के लिए सिर्फ सही टाइम का वेट है हम दोनों को,’’ मिलिंद चाह कर भी यह बात कभी अपने परिवार वालों को नहीं सम?ा पाता.

‘‘हां, हम ने तो जैसे बच्चे बेवक्त ही पैदा कर दिए. ये सही वक्तजैसी बातें बस आजकल की पीढ़ी के चोंचले भर हैं.’’

‘‘अब मम्मी आप की सोच कैसे बदलू मैं,’’ इतना कह कर मिलिंद वापस अपने कमरे में चला गया.

15 दिन बाद आशा और रश्मि चले गए तो लगभग सप्ताह भर बाद अदिति की मां सुधा और छोटा भाई वरुण 4-5 दिनों के लिए रहने आए.

‘‘अदिति, तू अपने पैसों का हिसाब तो अच्छे से रखती है न, कहीं प्रेम विवाह के चक्कर में अपने दोनों हाथ मत खाली कर लेना, सुधा ने अपनी शिक्षा का पिटारा खोला.

‘‘अरे मम्मी, दीदी को तो आप कुछ भी सम?ाना रहने ही दो, इन्हें सम?ा कर आप अपना टाइम ही बरबाद कर रही हो,’’ वरुण चिप्स चबाता हुआ बोला.

‘‘ऐसा क्यों कहता है. हम नहीं समझाएंगे तो कौन समझाएगा इसे?’’

‘‘इसलिए कह रहा हूं कि पिछले महीने जब मैं ने दीदी से अपने लिए क्रिकेट किट और खंडाला ट्रिप के लिए पैसे मांगे तो इन्होंने साफ मना कर दिया. कहा कि इस महीने कार की आखिरी ईएमआई भरनी है तो पैसे अगले महीने ले लेना पर देख लो उस अगले महीने को 3 महीने बीत चुके हैं अभी तक दीदी ने पैसों के दर्शन भी नहीं करवाए.’’

‘‘हां भई, बेटी को यों ही पराया धन नहीं कहते. पराई भी हो गई और धन भी परायों को ही सौंप रही है,’’ सुधा का ताना सुन कर अदिति का मन कसैला हो उठा.

‘‘मम्मी, ये कैसी बातें कर रही हो? मेरा अपना पति, मेरे ससुराल वाले मेरे लिए पराए कैसे हो सकते हैं? वे भी मेरे लिए उतने ही अपने हैं जितने आप लोग. मुझे कोई दिक्कत नहीं है वरुण को कुछ भी दिलवाने में पर ईएमआई भरनी जरूरी थी और उस के बाद आप जानती हैं कि मिलिंद के पापा की हार्ट सर्जरी हुई थी और कुछ पैसा उन्हें घर के ऊपर लगाने के लिए भी चाहिए था.’’

‘‘हां तो सारी जिम्मेदारियां तू ही निभा, मिलिंद के मातापिता हैं तो क्या उस का उन के प्रति कोई फर्ज नहीं है और रश्मि, उस के पास पैसों की क्या कमी है. वहां बैठी डौलर कमा रही है और यहां कुछ मदद नहीं होती उस से अपने मांबाप की,’’ सुधा तमतमाए स्वर में बोली.

‘‘मम्मी, उन्होंने ने भी मिलिंद के लिए बहुत किया है और अपने मम्मीपापा के लिए भी करती हैं. जबान की थोड़ी कड़वी जरूर हैं पर मैं यह नहीं भूल सकती कि हमारी शादी के लिए उन्होंने ही मम्मीपापा को मनाया था और मम्मी, शादी में यह तेरामेरा नहीं होता बल्कि विवाह तो वह खूबसूरत नैनों की जोड़ी होती है जो साथ ही भोर का सवेरा देखती हैं और एकसाथ ही सपनों में खोती हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा रहता है सदा और क्या मुझे यह याद दिलवाने की जरूरत है कि 7 महीने पहले जब जीजाजी की कंपनी से उन की छंटनी कर दी गई थी तब मिलिंद ने कितनी भागदौड़ कर के उन की दूसरी नौकरी लगवाई थी और दीदी के लाडले का स्कूल में एडमिशन करवाया था?

रही बात रश्मि दीदी की तो अगर इस बार किसी कारणवश वे मदद नहीं कर सकीं तो क्या हम भी मम्मीपापा की तरफ से मुंह मोड लें?’’

‘‘चल वरुण, कल ही घर वापस चलते हैं, अपनी ही औलाद दूसरों का पक्ष ले रही है.’’

अदिति ने भी लैपटौप बंद किया और आंखें मूंद कर सिर पीछे सोफे पर टिका दिया.

आखिरकार मिलिंद की मेहनत रंग लाई. अपने वर्षों के अनुभव और बेहतरीन इंटरव्यू के कारण वह जल्द ही एक नामी कंपनी में मैनेजर बना दिया गया. उस की जौब को 6 महीने हुए थे कि एक दिन उसे औफिस में अदिति का फोन आया.

‘‘हैलो अदिति क्या बात है, घबराई हुई सी क्यों बोल रही हो?’’ मिलिंद उस की भर्राई सी आवाज सुन कर बेचैन हो उठा.

उस दिन अदिति अपनी गर्भ की जांच की रिपोर्ट्स ले कर हौस्पिटल गई थी. वहां उस की सहेली किरण गाइनेकोलौजिस्ट के पद पर नियुक्त हुई थी.

मिलिंद जब तक हौस्पिटल पहुंच नहीं गया वह पूरा रास्ता असहज ही रहा.

डाक्टर के कैबिन में पहुंचा तो उस ने देखा कि अदिति की आंखें भरी हुई थीं और चेहरा मुरझाया हुआ था. मिलिंद को देखते ही उस की रुलाई फूट पड़ी. किसी तरह से मिलिंद ने उसे संभाला और किरण से सारी बात पूछी.

अदिति की फैलोपियन ट्यूब्स बिलकुल खराब हो चुकी थीं जिस वजह से उस का मां बनना अब नामुमकिन था. जब मिलिंद को यह बात पता चली तो वह भी एकबारगी भीतर तक हिल गया पर सब से पहले इस वक्त उसे अदिति को संभालना था इसलिए अपना मन पत्थर समान मजबूत कर लिया था उस ने.

‘‘पर आजकल तो आईवीएफ की मदद से महिलाएं बच्चा पैदा करने में सफल होती हैं न,’’ मिलिंद ने किरण से पूछा.

‘‘हां, आजकल यह काफी नौर्मल है पर अदिति के केस में एक और प्रौब्लम है और वह यह है कि अदिति के पीरियड्स कभी रैग्युलर नहीं रहे और पीसीओडी की वजह से अदिति को ओव्यूलेशन भी नहीं होता.

‘‘ओव्यूलेशन क्या होता है?’’ मिलिंद ने पूछा.

‘‘महिलाओं के शरीर में हर महीने ओवरी से अंडे निकलते हैं जोकि अदिति के केस में नहीं हो रहा.’’

‘‘तो फिर अब क्या हो सकता है?’’

‘‘फिलहाल तुम दोनों इस विषय पर ज्यादा कुछ मत सोचो, कुछ वक्त गुजरने दो, मैं अदिति से मिलती रहूंगी,’’ किरण ने बहुत प्यार और अपनेपन से दोनों को दिलासा दिया.

गाड़ी में घर वापस जाते हुए अदिति के चेहरे पर मायूसी ही मायूसी थी. मिलिंद उसे इस तरह से देख नहीं पा रहा था.

अगले दिन सुधा अदिति से मिलने आई, ‘‘मैं ने तुझे समझाया था न कि अपनी नौकरी के चक्कर में कोई फैमिली प्लानिंग मत करना पर तूने कभी घर वालों की सुनी है? अब कल को मिलिंद का मन तु?ा से भर गया तो?’’

‘‘मम्मी,’’ चीख सी पड़ी अदिति, ‘‘आप जानती भी हैं कि आप क्या कह रही हैं?’’

‘‘हां, अच्छी तरह से जानती समझती हूं कि मैं क्या कह रही हूं. पहले जैसे हालात अब नहीं हैं. जब मिलिंद कुछ नहीं था तब तो तेरे आगेपीछे घूमघूम कर तुझ से शादी कर ली और अब तो मिलिंद भी मैनेजर है, तेरे फ्लैट, तेरी गाड़ी सब की किश्तें पूरी हो चुकी हैं और अब तू मां बन नहीं सकती तो तुझ से पीछा छुड़वाने में उसे कौन सी देर लगेगी?’’

‘‘पर मिलिंद को ऐसा करने की क्या

जरूरत है? बहुत प्यार करता है वह मुझे,’’ सुधा की बातों ने अदिति का मन बिलकुल अशांत कर दिया.

‘‘यह प्यारव्यार सब हवा हो जाएगा जब उस के घर वाले बच्चे के लिए शोर मचाएंगे, तेरी सासननद से तो वैसे ही कुछ खास नहीं बनती.’’

‘‘तो पसंद तो आप लोग भी मिलिंद को नहीं करते,’’ अदिति धीमे स्वर में बोली.

‘‘कुछ कहा क्या तूने?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं मम्मी.’’

इधर मिलिंद अपनी मम्मी से मिलने आया था.

‘‘अब आगे की सोच मन्न, हमें भी मरने से पहले तेरी औलाद देखनी है,’’ आशा अपनी आवाज में मिठास घोलते हुई बोली.

‘‘अब मम्मी जो हो रहा है उस में हम दोनों का तो कोई फाल्ट नहीं है.’’

‘‘कैसी बातें कर रहा है, तुझ में क्या कमी है, कमी तो अदिति में है, तू तो उसे छोड़ दे,’’ आशा तुनक कर बोली.

‘‘अच्छा, फिर उसे छोड़ कर क्या करूं?’’ मिलिंद सब समझते हुए भी आशा से सुनना चाहता था.

‘‘देख यह बात इतनी छोटी नहीं है कि जितना तू इसे इतने हलके में ले रहा है, अपने भविष्य का सोच, क्या तू पापा नहीं बनना चाहता? दूसरी शादी का सोच,’’ आशा जैसे एक ही सांस में यह बोल गई.

यह सुन कर मिलिंद ने कुछ पल आशा को देखा और फिर बोला, ‘‘और अगर कमी मु?ा में होती तो भी क्या आप अदिति को यही एडवाइज देतीं?’’

आशा ने कोई जवाब नहीं दिया

‘‘मम्मी, मैं तो आप के पास आया था कि आप हमारे पास कुछ दिनों के लिए रहने आए, पिछली बार रश्मि दीदी की कुछ बातों की वजह से सब का मूड कुछ बुझ सा गया था. आप और अदिति की मम्मी उसे कुछ हौसला दें क्योंकि इस वक्त उसे प्यार और अपनेपन की बेहद जरूरत है पर आप तो बिलकुल अलग बात कर रही हैं,’’ मिलिंद के स्वर में गुस्सा नहीं दुख झलक रहा था. वह उठ कर जाने को हुआ तो तभी उस के पापा उसे दरवाजे पर मिले.

‘‘अरे मन्नू कितने दिनों बाद आया है, आ बैठ तो सही, जा कहां रहा है,’’ सुनील उसे देख कर खुशी से बोले.

‘‘बस पापा, आज थोड़ी जल्दी है, मैं आता हूं 1-2 दिन में फिर,’’ मिलिंद उदास स्वर में बोलता हुआ घर से बाहर निकल गया.

‘‘कोई अपनी सम?ादारी भरी बात तो

नहीं कर दी अदिति के लिए?’’ सुनील ने आशा से पूछा.

‘‘लो मैं ने भला क्या कहा होगा यही न कि तू दूसरी शादी के बारे में सोच, अब इस में क्या गलत है? क्या अपने बच्चे का भला भी न सोचे एक मां,’’ यह कह कर आशा बिना कुछ सुनील से सुने वहां से उठ कर चली गईं.

सुनील का आशा की बातों पर कोई ध्यान नहीं था. वे बस एक ठंडी सांस ले कर रह गए. मिलिंद घर आया तो अदिति का चेहरा देख कर ही भांप गया कि सवेरे अदिति की मम्मी आई हुई थीं और यह यहां भी उस की गलतफहमी ही साबित हुई कि उन्होंने भी अदिति को प्यार से कुछ सम?ाया होगा, उस से उस के दिल की बातें सुनी होंगी, कुछ उसे दिलासा दिया होगा. जरूर आज उसे हताश करने वाली बातें कर के गई होंगी.

‘‘क्या कहा मम्मी ने? क्यों उदास हो उन की बातें सोचसोच कर?’’  मिलिंद ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

अदिति ने एक पल को चौंक कर उस की तरफ देखा. मिलिंद ने आंखों के हावभाव से ही उस से दोबारा पूछा.

‘‘उन्होंने कहा कि अब तुम मु?ो छोड़ कर दूसरी शादी कर लोगे,’’ इतना कह कर वह रोने लग गई.

यह सुन कर मिलिंद ठहाका लगा कर हंस पड़ा, ‘‘देखो, मु?ो नहीं पता था कि मम्मी वह क्या कहते हैं अंतर्यामी भी हैं.’’

‘‘क्या मतलब, क्या कहना चाह रहे हो?’’ अदिति उलझे से स्वर में बोली.

‘‘मतलब सच में मेरी मम्मी मेरी दूसरी शादी करवाना चाह रही हैं.’’

यह सुन कर तो अदिति और जोर से रोने लग गई.

‘‘और सुनो, मम्मी ने तो लड़की भी देख ली है,’’ मिलिंद पूरी तरह से अदिति के साथ आज मजाक के मूड में था.

‘‘हांहां कर लो, अब तुम्हारा दिल जो भर गया है मु?ा से,’’ कह कर अदिति उस के पास से उठ कर जाने लगी.

‘‘अरेअरे, कहां जा रही हो,’’ मिलिंद ने उस की बांह खींच कर अपने करीब कर लिया.

‘‘अच्छा, अब रोना बंद करो, सुनो अदिति, तुम्हारी मैंटली और फिजिकली सेहत खराब हो इस कीमत पर मम्मीपापा बनना मेरा सपना नहीं है, बच्चे के लिए और भी औप्शंस हैं, हम आईवीएफ ट्राई कर सकते हैं. हम बच्चा गोद

ले सकते हैं, सब ठीक हो जाएगा बस तुम थोड़ा धैर्य रखो.’’

‘‘पर हम दोनों के घर वाले, क्या वे लोग भी…’’ अदिति कुछ आशंकित सी हो कर बोली.

अदिति की बात बीच में ही काट कर मिलिंद बोला, ‘‘देखो अदिति वे अपने हिसाब से लाइफ को देखते हैं. यह चीज हम सिर्फ बदलने की कोशिश कर सकते हैं पर इस में हम पूरी तरह कामयाब होंगे या नहीं इस की गारंटी नहीं है और आखिर में हमें भी अपनी लाइफ अपने तरीके से जीने का हक है, लाइफ के लिए यह मेरा पेस्पैक्टिव है मतलब परिशेप है सम?ा,’’ मिलिंद ने प्यार से उस का चेहरा पकड़ कर कहा.

‘‘परिशेप नहीं परिप्रेक्ष्य,’’ अदिति ने हंसते हुए कहा.

‘‘टीचरजी,’’ मिलिंद भी अपने कान पकड़ कर हंस दिया.

‘‘वैसे नजरिया भी कहा जा सकता है,’’ अब अदिति भी खिले स्वर में बोली.

‘‘बिलकुल, अपनीअपनी सोच,

अपनाअपना नजरिया,’’ मिलिंद अब हर प्रकार से संतुष्ट था.

न्यूज चैनल क्यों करते हैं झूठ का प्रचार

भक्तों को किस तरह छोटीछोटी बातों पर टीवी चैनलों ने पिछले 10 साल बहकाया और भरमाया है, वह इस से साबित होता है कि जब नरेंद्र मोदी ने खुद दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से पहले 8 फिर 12 चीते मंगवा कर मध्य प्रदेश के कूनो नैशनल पार्क अभयारण्य में छोड़े थे. इस तरह का पुण्य काम न प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी थी न उन्होंने यह शुरू किया था. ऐसा वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ हर जगह करते रहते हैं और एक तरह का ऐक्सपैरिमैंट होता है कि क्या एक कौंटीनैंट के लुप्त होने के कगार पर पशुओं को दूसरे कौंटीनैंट में बसाया जा सकता है?

कितने चीते आए, उन का क्या हुआ, अब कितने हैं, वे बच्चे दे पा रहे हैं या नहीं, यह इतना इंपौर्टैंट नहीं है. यह एक सामान्य सी बात थी पर कई दिनों तक नैशनल चैनल चीतामयी हो गए क्योंकि उन्हेें नरेंद्र मोदी को खुश करना था.

अब लगभग 2 साल बाद हालत यह है कि चीते कितने बचे हैं, यहां तक कि मध्य प्रदेश के वाइल्ड लाइफ अफसर बताने को तैयार नहीं हैं और अपने देवताओं की तरह झूठ बोल रहे हैं कि चीतों की संख्या बताना नैशनल सिक्युरिटी या इंटरनैशनल रिलेशंस का गोपनीय मामला है.

जब चैनल लाइव टैलिकास्ट कर रहे थे तो क्या यह नैशनल सिक्युरिटी का मामला नहीं था? क्या तब इंटरनैशनल रिलेशंस की सीक्रेट बातें बाहर नहीं आ रही थीं?

हमारी शिकायत न चैनलों से है, न वाइल्ड लाइफ अफसरों से है, न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है कि उन्होंने क्यों चीतों की अगवानी इस तरह की मानो वे कोई ट्रौफी जीत कर लाएं हैं, हमारी शिकायत तो उन चैनलों को देखने वालों से है जो अपना 8-10 घंटे का समय इस बकवास को देखने में लगाते हैं. ये चैनल आप को न समाचार देते हैं, न जानकारी देते हैं.

ये चैनल ब्रेकिंग न्यूज कहकह कर एक चींटी के हाथी पर चढ़ जाने का लाइव कास्ट शुरू कर देते हैं और दर्शक भरमा जाते हैं कि मानो यही सत्य है, यह अकेला तथ्य है, यही सही बात है. ये चैनल दर्शकों की सोच को कुंद कर रहे हैं क्योंकि ये झूठ का प्रचार उसी तरह कर रहे हैं जैसे धर्म प्रवचक करते हैं. आज का युग विज्ञान का है. हमारे चारों ओर जो कुछ है वह नए विज्ञान की देन है, ऋषियोंमुनियों के ज्ञान की देन नहीं है. स्वयं टीवी भी विज्ञान की देन है. चीतों को भारत उन हवाईजहाजों में लाया गया जो विज्ञान की देन हैं, ऋषियों की गप्पों वाले पुष्पक विमानों में नहीं.

नरेंद्र मोदी ने इन चीतों की अगवानी ऐसे की थी जैसे उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की सब से बड़ी रक्षक संसद के नए भवन के बनाने पर भगवाधारियों की की थी. दोनों का लाइव प्रसारण लगातार करना गलत था, अवैज्ञानिक था. संसद को राष्ट्रपति के हाथों समर्पित कराना था, चीतों का ट्रांसफर वाइल्ड लाइफ ऐक्सपर्ट्स द्वारा ही देखा जाना चाहिए था.

Weight Loss Tips : तेजी से वजन बढ़ने के क्या हैं कारण, ऐक्सपर्ट से जानें कैसे करना है कंट्रोल

Weight Loss Tips : मोटापा आज की एक आम स्वास्थ्य समस्या बन गई है. बेशक शरीर में वसा यानी फैट अपनेआप में कोई बीमारी नहीं है लेकिन जब आप के शरीर में बहुत ज्यादा अतिरिक्त वसा होती है तो यह उस के काम करने के तरीके को बदल सकती है और जिस से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. यही वजह है कि यह न केवल हमारे शरीर को भारी बनाता है बल्कि कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकता है.

 

वयस्कों में 30 या उस से ज्यादा का बीएमआई होना मोटापे की निशानी है जबकि 40 या उस से ज्यादा का बीएमआई गंभीर मोटापा माना जाता है. बचपन के मोटापे को विकास चार्ट के आधार पर मापा जाता है. मोटापा केवल खानेपीने की गलत आदतों के कारण नहीं होता बल्कि इस में जीवनशैली, मानसिक तनाव और अन्य कई कारण जुड़े होते हैं.

मैक्स हौस्पिटल, वैशाली के डा. विवेक बिंदल बता रहे हैं कि इस की सही समय पर पहचान कर कैसे रोकें ताकि हम स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें:

मोटापे के कारण

गलत खानपान: हमारे भोजन में जब ज्यादा कैलोरीज, तलेभुने और जंक फूड्स का अधिक सेवन होता है तो यह हमारे शरीर में फैट को जमा करता है. असंतुलित आहार जैसे अधिक मिठाई, चौकलेट, पिज्जा, बर्गर इत्यादि मोटापे का मुख्य कारण हैं.

व्यायाम की कमी: आजकल की जीवनशैली में ज्यादातर लोग बैठेबैठे काम करते हैं, जिस से शारीरिक गतिविधियों की कमी हो जाती है. यदि हम नियमित रूप से व्यायाम नहीं करते हैं तो शरीर की कैलोरी बर्न नहीं होती और फैट बढ़ता जाता है.

मानसिक तनाव: स्ट्रैस से बचने के लिए लोग अधिक खाने लगते हैं खासकर तलीभुनी चीजों और मिठाइयों का सेवन बढ़ जाता है. तनाव के दौरान हमारा शरीर अधिक फैट स्टोर करता है, जिस से वजन तेजी से बढ़ता है.

पारिवारिक इतिहास (जेनेटिक): यदि परिवार में किसी को मोटापा है तो उस की संभावना बच्चों में भी बढ़ जाती है. यह जेनेटिक कारणों से हो सकता है लेकिन इस में जीवनशैली का भी बहुत बड़ा योगदान होता है.

नींद की कमी: नींद पूरी न होने पर शरीर की ऐनर्जी कम हो जाती है, जिस से हमारा शरीर अधिक खाने की मांग करता है. इस से अनावश्यक कैलोरीज बढ़ती हैं जो मोटापे का कारण बनती हैं.

हारमोनल असंतुलन: कुछ विशेष हारमोनल समस्याएं जैसे थायराइड, पीसीओडी/पीसीओएस भी मोटापे का कारण बन सकती हैं. इन स्थितियों में शरीर का मैटाबौलिज्म धीमा हो जाता है और वजन तेजी से बढ़ने लगता है.

दवाइयों का सेवन: कुछ दवाइयां जैसे ऐंटीडिप्रैशन, स्टेराइड्स आदि का लंबे समय तक सेवन मोटापे का कारण बन सकता है. ये दवाइयां शरीर में पानी और फैट को बढ़ाती हैं, जिस से वजन बढ़ता है.

प्रिवैंशन

संतुलित आहार: सब से पहले यह जरूरी है कि हमारा भोजन संतुलित और पौष्टिक हो. अधिक तलाभुना, जंक फूड और चीनी युक्त खाद्यपदार्थों से दूरी बनाएं. खाने में हरी सब्जियां, फल, अनाज और प्रोटीन युक्त चीजों का अधिक सेवन करें. छोटेछोटे हिस्सों में खाना खाएं और भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं ताकि पेट भरा हुआ महसूस हो और अधिक खाने की इच्छा न हो.

नियमित व्यायाम: मोटापे को कंट्रोल के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना बहुत जरूरी है. रोजाना कम से कम 30 मिनट पैदल चलना, दौड़ना, स्विमिंग, योग या कोई अन्य शारीरिक गतिविधि करनी चाहिए. इस से शरीर की कैलोरी बर्न होती है और वजन कंट्रोल में रहता है.

नींद पूरी करना: दिन में 7-8 घंटे की अच्छी नींद लेना बहुत जरूरी है. पूरी नींद लेने से शरीर का मैटाबोलिज्म सही रहता है और वजन कंट्रोल में रहता है. नींद की कमी से भूख बढ़ाने वाले हारमोन ऐक्टिव हो जाते हैं जो अधिक खाने की इच्छा पैदा करते हैं.

सही समय पर खाना: भोजन को समय पर करना और रात को हलका भोजन लेना वजन को कंट्रोल रखने में मदद करता है. रात को देर से और भारी भोजन करने से पेट में फैट बढ़ने की संभावना रहती है.

पानी अधिक पीना: पानी शरीर से टौक्सिक पदार्थों को बाहर निकालता है और मैटाबोलिज्म को बेहतर बनाता है. दिन में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए. पानी पीने से भूख कम लगती है और अधिक खाने की संभावना कम होती है.

डाक्टर से नियमित जांच: यदि आप को हारमोनल समस्या है तो डाक्टर से नियमित जांच करानी चाहिए. समयसमय पर ब्लड टैस्ट, थायराइड और शुगर की जांच कराएं. सही समय पर बीमारी की पहचान होने से मोटापे को नियंत्रित किया जा सकता है.

स्वास्थ्य शिक्षा: मोटापे की रोकथाम के लिए लोगों में स्वास्थ्य शिक्षा का प्रसार होना चाहिए. उन्हें सही खानपान, व्यायाम और स्वस्थ जीवनशैली के बारे में जागरूक करना जरूरी है. स्कूलों, कालेजों और औफिसों में भी स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए.

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