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Home Decortaion : फैस्टिव सीजन में अपने आशियाने को दें नया लुक, देखते रह जाएंगे मेहमान

एक खूबसूरत सपनों के आशियाने की (Home Decortaion) चाह सभी को होती है. आप का घर सिर्फ रहने की जगह नहीं है बल्कि यह दर्शाता है कि आप कौन हैं. आप घररूपी इस कैनवस पर अपने व्यक्तित्व, सोच और अनुभवों को व्यक्त कर सकते हैं. यह आप का घर ही है जहां दुनिया की किसी भी जगह से अधिक सुकून मिलता है. घर के बिस्तर पर जो आराम मिलता है वह महंगे होटलों में भी नहीं मिलता.

दरअसल, आप का घर आप के व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है. यह एक ऐसी जगह है जहां आप आराम कर सकते हैं, मनोरंजन कर सकते हैं, अपनों के साथ रह सकते हैं और स्थायी यादें बना सकते हैं. आप का घर आप के व्यक्तित्व, सोच, लाइफस्टाइल और यौन जीवन के बारे में बहुत कुछ कहता है. घर कई तरह के हो सकते हैं:

आप का घर आप के व्यक्तित्व को दर्शाता है

सवाल यह है कि आप का घर आप के व्यक्तित्व को कैसे दर्शाता है? अगर आप किसी के व्यक्तित्व के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो बस उस के कार्यालय या बैडरूम में झांकें. ‘ए रूम विद ए क्यू’ नामक एक अध्ययन में मनोवैज्ञानिक सैमुअल डी. गोसलिंग और उन के सहयोगियों ने पाया कि लोग किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत सामान, सजावट के तरीके, साफसफाई और उस के कमरे की व्यवस्था को देख कर काफी सटीक रूप से अनुमान लगा सकते हैं कि वह कितना व्यवस्थित, ओपन माइंडेड और जिम्मेदार है.

आप का घर न केवल यह दर्शाता है कि आप एक व्यक्ति के रूप में कौन हैं बल्कि यह भी कि आप के पास कितना पैसा है, आप का लाइफस्टाइल कैसा है और आप कुछ चीजों को कितना महत्त्व देते हैं. याद रखिए आप के घर का बाहरी हिस्सा अंदर से बहुत अलग हो सकता है. इसलिए जब आप के मित्र या रिश्तेदार आप के घर के अंदर आते हैं तो वे कुछ चीजों पर सब से पहले ध्यान देते हैं. मसलन, घर की सजावट और दूसरा सामान जो एक नजर में दिख जाता है और यही सब देख कर वे आप के बारे में कोई धारणा बनाते हैं.

एक अव्यवस्थित घर आमतौर पर अव्यवस्थित दिमाग का संकेत देता है. अव्यवस्थित दिमाग आगे चल कर कई समस्याओं का कारण बनता है.

यदि कोई पहली बार आप के घर आता है तो आप के घर के बारे में उस की पहली धारणा आप के व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ कह देती है. वह बता पाएंगा कि आप साफसुथरे व्यक्ति हैं या अव्यवस्थित? क्या आप कलात्मक और रचनात्मक किस्म के व्यक्ति हैं या आप ज्यादा रूढि़वादी हैं? क्या आप को अच्छी क्वालिटी की चीजें पसंद हैं या कीमत की ज्यादा परवाह है? क्या आप के लिए मिनिमलिज्म बेहतर है या आप को अव्यवस्था ज्यादा पसंद है? इन सवालों के जवाब आप के घर में इस्तेमाल की जाने वाली चीजों को देख कर मिल सकते हैं.

दरअसल, लोगों को जन्म से एक खास व्यक्तित्व मिलता है. हम अपने व्यक्तित्व का फैसला नहीं कर सकते. इस के विपरीत घर कैसा रखना है यह हमारी सोच पर निर्भर है. हम उसे अपने अनुसार ढाल सकते हैं. यह वह वातावरण है जिस पर हमारा एक हद तक नियंत्रण होता है. इसलिए हम तय कर सकते हैं कि हमें इस के माध्यम से खुद को किस तरह प्रोजैक्ट करना है.

व्यक्तित्व के कई अलगअलग प्रकार हैं लेकिन 2 को विशेष रूप से आधार माना जाता है- अंतर्मुखी और बहिर्मुखी. ये 2 चरम स्थितियां हैं:

अंतर्मुखी

अंतर्मुखी व्यक्तित्व के लोग बाहरी चीजों के बजाय आंतरिक भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं. इंटीरियर डिजाइन के संदर्भ में इस का मतलब है कि अंतर्मुखी लोग आमतौर पर एक साफ, अव्यवस्थामुक्त वातावरण में अधिक सहज महसूस करते हैं. अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले लोग सफेद रंग अधिक पसंद करते हैं तथा विभिन्न रंगों और सामग्री का मिश्रण नहीं करते. इन का घर साफसुथरा होता है. अंतर्मुखी लोग आमतौर पर व्यक्तिगत यानी पर्सनल वस्तुओं को प्रदर्शित नहीं करते हैं. वे उन्हें दरवाजों के पीछे छिपाते हैं या उन्हें अंदर रखते हैं.

ऐसे लोग शांत, सादगीपूर्ण वातावरण पसंद करते हैं. उन्हें अपने घर में एक शांत कोना बनाना चाहिए जहां आप बैठ कर पढ़ सकें, सोच सकें या अपना पसंदीदा पेय पी सकें.

बहिर्मुखी

बहिर्मुखी लोग बहुत बातूनी होते हैं और वे सामाजिक संपर्क से ऊर्जा प्राप्त करते हैं. इस का मतलब यह है कि इंटीरियर डिजाइन में वे अपने आसपास के वातावरण में जान डालने वाली चीजें रखना पसंद करते हैं. उन्हें अव्यवस्थित चीजें पसंद होती हैं. उन्हें अव्यवस्थित कमरे से कोई परेशानी नहीं होती इसलिए इस व्यक्तित्व वाले लोग आसानी से अपने घर को बच्चों की मौजूदगी के हिसाब से ढाल लेते हैं.

इस के विपरीत बच्चों वाले अंतर्मुखी लोगों को हर चीज को साफसुथरा रखने की जरूरत से काफी संघर्ष करना पड़ सकता है. बहिर्मुखी लोग अकसर बोल्ड और ब्राइट रंग पसंद करते हैं.

घर का डैकोरेशन लाइफस्टाइल पर भी डिपैंड करता है. आप की लाइफस्टाइल कैसा है? क्या आप दोनों बहुत ज्यादा दोस्तीयारी रखते हैं? घर में अकसर दोस्त आते रहते हैं, आप पार्टियां करते हैं, दोस्तों या रिश्तेदारों को खाने पर बुलाते रहते हैं? आप को काम के सिलसिले में लोगों के साथ घर में मीटिंग्स रखनी होती हैं या फिर आप अकेला रहना पसंद करते हैं? ज्यादा दोस्तबाजी नहीं करते और सुकून से जीवनसाथी के साथ घर में वक्त बिताते हैं या फिर आप घर में रहते ही बहुत कम समय हैं? आप का ज्यादा समय काम के सिलसिले में बाहर रहने या औफिस में बिताते हैं? इन सब बातों के मद्देनजर भी घर को डैकोरेट किया जाता है.

उदाहरण के लिए ज्यादा पार्टी घर में करते हैं तो उस हिसाब से घर को भी मैंटेन करना होगा. ड्राइंगरूम और किचन को खासतौर पर एक लैवल का बनाना होगा. इस के विपरीत यदि घर में रहते ही कम हैं तो किसी दिखावे की जरूरत नहीं. घर की सेफ्टी और सुविधाजनक होने पर जोर देना होगा.

लाइफस्टाइल के अनुसार घर की सजावट करने से आप का घर न केवल सुंदर दिखता है बल्कि यह आप के जीवन को भी आसान और आरामदायक बनाता है. कुछ टिप्स जिन्हें अपना कर आप अपने लाइफस्टाइल के अनुसार घर की सजावट कर सकते हैं:

आधुनिक और मिनिमलिस्ट: यदि आप एक व्यस्त जीवन जीते हैं और आप के पास बहुत कम समय है तो आधुनिक और मिनिमलिस्ट सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में कम सजावटी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है और अधिक खुली जगह रखी जाती है. घर में जो सामान होता है वह लेटैस्ट टैक्नीक वाला और सुविधाजनक होता है मगर सामान का अंबार नहीं होता.

पारंपरिक और आरामदायक: यदि आप एक परिवारिक व्यक्ति हैं और आप को अपने घर में आराम और सुकून चाहिए तो पारंपरिक और आरामदायक सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में अधिक सजावटी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है और घर को अच्छे से सजा कर रखा जाता है ताकि मेहमानों में धाक जमे.

ईकोफ्रैंडली: यदि आप पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं और ईकोफ्रैंडली जीवन जीना चाहते हैं तो ईकोफ्रैंडली सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में नैचुरल चीजों का अधिक उपयोग होता है. फर्नीचर से ले कर सजावटी सामान तक नैचुरल और ग्रीनिश लुक वाला होता है. ऐनर्जी सेविंग उपकरणों का उपयोग किया जाता है.

मौडर्न और टेकफ्रैंडली: यदि आप एक तकनीक प्रेमी हैं और अपने घर में नवीनतम तकनीक चाहते हैं तो मौडर्न और टेकफ्रैंडली सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में स्मार्ट होम उपकरणों का उपयोग किया जाता है और घर का इंटीरियर भी आधुनिक डिजाइन में होता है.

आर्टिस्टिक: यदि आप एक कलात्मक व्यक्ति हैं और अपने घर में रंग, सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह चाहते हैं तो आर्टिस्टिक और कलरफुल सजावट आप के लिए उपयुक्त हो सकती है. इस में विभिन्न रंगों और कलात्मक सजावटी वस्तुओं का उपयोग किया जाता है.

फर्नीचर, सजावट और पेंट के रंग भी बहुत कुछ कहते हैं

आप के घर के कमरों के लिए आप के द्वारा चुने गए रंग महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकते हैं कि आप वहां समय बिताते समय कैसा महसूस करते हैं. अपने घर के कमरों के रंग की योजना बनाते समय उन का उपयोग यह दर्शाने के लिए करें कि आप कौन हैं और आप के लिए क्या महत्त्वपूर्ण है.

नीला रंग अकसर शांति चाहने वाले लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है, लाल बोल्ड और आत्मविश्वासी प्रवृत्ति को दर्शाता है, हरा प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है, बेज तटस्थ है और किसी भी चीज के साथ जाता है, बैगनी रचनात्मकता या रौयल्टी से जुड़ा होता है, जबकि काला सीक्रेसी लाता है.

कलर डिसाइड करने के लिए उन भावनाओं के बारे में सोचें जो आप उस स्थान में पैदा करना चाहते हैं या वे चीजें जो आप के लिए सब से ज्यादा माने रखती हैं. उदाहरण के लिए यदि आप प्रकृति से प्यार करते हैं तो दीवारों को हरे रंग से रंगना आप को हर दिन उस से जुड़ा हुआ महसूस कराएगा. आप खिड़कियों के चारों ओर पौधे लगा सकते हैं या भूरे और हरे जैसे मिट्टी के रंगों में फर्नीचर चुन सकते हैं.

घर को अपने व्यक्तित्व, उम्र और वर्क प्रोफाइल के हिसाब से डैकोरेट करें. यानी घर की सजावट आप की एज, पर्सनैलिटी और वर्क को जाहिर करे.

यंग और सिंगल

अगर आप यंग और सिंगल हैं तो घर को डैकोरेट करते हुए आप को ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं होगी. आप को बहुत बड़े घर या ज्यादा सामान की आवश्यकता ही नहीं. घर में थोड़ा सामान रखें ताकि उसे संभालने में दिक्कत न आए. आप अपनी पसंद के गैजेट्स और फर्नीचर से घर को सजा सकते हैं. अगर कलाप्रेमी हैं तो कुछ अच्छी पेंटिंग्स और कलाकृतियों से घर को आकर्षक लुक दें. अगर आप नवदंपती हैं और दोनों वर्किंग हैं तो उस स्थिति में भी घर में ज्यादा कुछ भरना उचित नहीं.

यदि आप कलाकार हैं या लेखन करते हैं तो घर में एक शांत कमरा जरूर होना चाहिए जिस में आप अपनी पसंद की किताबें या पेंटिंग्स रखें. यहां आप सुकून से अपना काम कर सकें इस के लिए ज्यादा सामान न हो मगर काम की चीजें जरूर हों. लेखकों या कलाकारों को घर सजाने का शौक नहीं होता मगर प्रकृति आसपास हो यह पसंद आता है. आप चाहें तो घर की सजावट में थोड़ा फेरबदल कर नेचर को करीब रख सकते हैं.

कामकाजी दंपती

अगर पति या पत्नी घर से काम करते हैं तो घर का इंटीरियर कुछ इस हिसाब से हो कि घर का एक अंदर वाला कमरा इसी पर्पज से डिजाइन किया गया हो. एक अलमारी हो जिस में काम की चीजें रखी हों. प्रौपर टेबलकुरसी और कंप्यूटर, प्रिंटर वगैरह सही से अरेंज किए गए हों. उस कमरे में बच्चों का कोई सामान न हो ताकि उन का दखल वहां न हो. बाकी जो कमरे हैं उन्हीं में कपड़े, टीवी, डैक या अन्य जरूरत की चीजें रखी गई हों.

छोटे बच्चों वाली फैमिली

छोटे बच्चों वाली फैमिली का घर अलग तरह का और बड़े बच्चों वालों का अलग होना चाहिए. दरअसल, बच्चे जब छोटे होते हैं तो उन का सामान बहुत ज्यादा होता है. खिलौने, कपड़े, टैडीवियर, किताबें, बस्ते और न जाने क्या क्या. आप अपने बच्चों की हर समय निगरानी भी नहीं कर सकते.

ऐसे में बच्चे जानेअनजाने काफी नुकसान भी करते रहते हैं. इसलिए बच्चे छोटे हों तो एक कमरा उन के नाम का जरूर रखें जिस में उन्हीं का सामान हो. छोटे बच्चों के साथ आप ज्यादा कीमती सजावटी सामान नहीं रख सकते. आप को ऐसे घर की खोज करनी होती है जिस में बहुत सारे दराज या आलमारियां हों ताकि आप अपना कुछ भी सामान खुला न छोड़ें बल्कि अंदर दराजों में रखें वरना बच्चों के हाथ में आई चीज के खराब होते देर नहीं लगती. बच्चों के कारण घर बिखरा हुआ दिखता है इसलिए ज्यादा सौफिस्टिकेटेड डैकोरेशन माने नहीं रखती. आप को बच्चों के हिसाब से कमरे को रंगबिरंगा और खुलाखुला रखना होगा भले ही वह दीवारों और परदों के कलर हों या फिर दूसरा सामान.

छोटे बच्चों के लिए घर का इंटीरियर इस तरह से डिजाइन करना चाहिए जिस से उन की सुरक्षा, आराम और विकास को बढ़ावा मिले. यहां कुछ और खास सुझाव प्रस्तुत हैं:

सुरक्षा

  • उन के कमरे में रखे सामान में नुकीले कोने वाली और धारदार वस्तुएं न हों.
  • इलैक्ट्रिकल आउटलेट और स्विच आदि बच्चों की पहुंच से दूर हों.
  • दरवाजों और खिड़कियों पर सेफ्टी ग्रिल और लोहे की जालियां लगाई जाएं.
  • फर्श पर कारपेट या मैट रखें जो उन्हें फिसलने या चोट लगने से बचाएं.

आराम

  • बच्चों के कमरे में पर्याप्त प्रकाश और हवा की व्यवस्था हो.
  • उन के लिए आरामदायक बिस्तर और गद्दे हों.
  • बच्चों के लिए पर्याप्त खेलने की खुली जगह हो.
  • उन के कमरे की दीवारों और परदों के लिए कूल और कलरफुल रंगों का उपयोग करें.

विकास

  • बच्चों के लिए पढ़ाई की उपयुक्त जगह हो. मेज और कुरसियां अंदर के कमरे में हों जहां वे शांति से बैठ कर पढ़ाई कर सकें.
  • खेलने के लिए उपयुक्त खिलौने और बगीचा हो, हरेभरे पौधे लगे हों.
  • खिलौने और सजावटी वस्तुएं हों.
  • बच्चों की ऊंचाई के अनुसार अलमारी और शैल्फ लगाए जाएं.
  • बच्चों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस हो.

सजावट

  • रंगीन और आकर्षक दीवारें.
  • कमरों में बच्चों के पसंदीदा कार्टून या पात्रों की तसवीरें.

बच्चे बड़े हो जाने के बाद

बच्चे बड़े हो जाने के बाद घर की सजावट और इंटीरियर में बदलाव करना एक अच्छा विचार है क्योंकि उन की जरूरतें और रुचियां बदल जाती हैं.पेश हैं कुछ सुझाव

  • घर की दीवारों या परदों के लिए अधिक सोबर और कूल रंगों का उपयोग करें.
  • अधिक बड़े और आरामदायक बिस्तर हों.
  • अधिक आधुनिक और स्टाइलिश फर्नीचर का उपयोग करें.
  • दीवारों पर कलाकतियां या फोटोफ्रेम्स लगाएं.
  • अधिक बड़ी और व्यवस्थित अलमारी और शैल्फ हों. बच्चों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस बनाएं.
  • घर में एक होम औफिस या स्टडीरूम होना चाहिए जहां जरूरत की सभी चीजें हों.
  • नई टैक्नोलौजी का प्रयोग जरूरी हो जाता है. स्मार्ट होम डिवाइसेज का उपयोग करें. वाईफाई और इंटरनैट की व्यवस्था हो.
  • होम थिएटर या साउंड सिस्टम का उपयोग करें.
  • सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाएं.

जब अकसर गैस्ट आते हों

गैस्ट आएंगे उस समय कैसे उन्हें एडजस्ट किया जाएगा इस पर विचार जरूर करें. घर छोटा हो और अलग कमरा नहीं दे सकते हैं तो भी उन के लिए हलका सा भी सैपरेशन जरूरी है. अगर यंग पतिपत्नी हैं तो ध्यान रखें कि रिश्तेदार उसी शहर में हैं या अलग शहरों में हैं.

घर डिजाइन करते समय गैस्ट के बारे में पहले से सोचना चाहिए. क्या आप के यहां अकसर गैस्ट आते रहते हैं? क्या सारे रिश्तेदार उसी शहर में हैं या बाहर के हैं? अगर आप की हाल ही में शादी हुई है, आप यंग हैं और घर छोटा है तब रिश्तेदारों को कैसे एडजस्ट करेंगे? बच्चों के साथ रिश्तेदारों को अलग जगह कैसे देंगे? इस तरह की बातों के जवाब जरूर ढूंढ़ लें.

अगर आप के यहां रिश्तेदार कभीकभार आते हैं तो आप 1-2 दिन के लिए किसी तरह एडजस्ट कर सकते हैं. मगर यदि सभी रिश्तेदार उसी शहर में हैं और अकसर आनाजाना लगा रहता है तो उन के लिए एक अलग कमरा यानी गैस्टरूम रखना जरूरी हो जाता है. भले ही उस कमरे को आप बच्चों के कमरे का नाम दें और गैस्ट आने पर बच्चों को अपने कमरे में एडजस्ट कर लें मगर कमरा अलग होना सही है.

इसी तरह जरूरी है कि मेहमानों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस बनाएं. अलमारी और शैल्फ को व्यवस्थित रखें. जूतों और कपड़ों के लिए अलग से स्टोरेज स्पेस बनाएं. आरामदायक और स्टाइलिश सोफे और कुरसियां रखें.

अतिरिक्त सीटिंग व्यवस्था करें कई दफा घर छोटा होता है और आप के पास अलग कमरे का विकल्प नहीं होता.

ऐसे में थोड़ा सा भी सैपरेशन बनाने की जिम्मेदारी आप की है. आप को यह पहले से ही डिसाइड करना होगा और उसी हिसाब से घर को डैकोरेट करना होगा कि जरूरत पड़ने पर रिश्तेदारों को अलग स्पेस दे सकें. खासतौर पर अगर आप यंग हैं तो अपनी पर्सनल लाइफ की प्राइवेसी भी बनाए रखनी आवश्यक हो जाता है वरना बाद में आप दोनों के ही बीच कलह शुरू हो जाएगी.

मैं पड़ोस में रहने वाली लड़की को पसंद करता हूं, उसे आई लव यू कैसे कहूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 12वीं कक्षा का छात्र हूं और एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं, वह मेरे पड़ोस में ही रहती है. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि उसे आई लव यू कैसे कहूं? मेरी सहायता करें?

जवाब

वाह भई, आप ने तो पड़ोसिन पर ही नजर गढ़ा ली. खैर, वैसे तो अभी आप को नयनमटक्का की सलाह नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह उम्र आप की कैरियर बनाने की है. पर अब आप ने पड़ोसिन पर नजर गढ़ा ही ली है तो आप को बता दें कि उस से अकसर आप की बातचीत भी होती ही होगी और उस के घर आनाजाना भी होता होगा. आप उस के मम्मीपापा से हायहैलो भी करते होंगे. ऐसे में प्रेम की बात आप की परेशानी बढ़ा सकती है.

फिर भी मिलते रहिए, बातचीत में हंसतेहंसाते, आपसी लेनदेन बढ़ाते हुए नजदीकियां बढ़ाइए और उचित समय आने पर आई लव यू भी कह डालिए. हां, यह जरूर जान लीजिएगा कि उधर भी प्रेम की आग है या नहीं. कहीं वह आप को सिर्फ एक पड़ोसी के तौर पर जानती हो, तो पेरैंट्स में मनमुटाव पैदा करने वाली बात भी बन सकती है.

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प्यार में इजहार जरूरी

वैशाली ने एमबीए में ऐडमिशन लिया. पहले दिन जब वह कालेज गई तो अपनी ही क्लास के एक लड़के पर उस की नजर टिक गई. लड़के का नाम रोहित था, जो दिखने में काफी हैंडसम था. वैशाली ने जब से रोहित को देखा तो वह उस की दीवानी हो गई. उस ने रोहित को मन में बसा लिया, लेकिन किसी को मन की बात नहीं बताई. कालेज में कई बार उस का रोहित से आमनासामना होता पर वह प्यार का इजहार न कर पाती. एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में दोनों को एकसाथ काम करने का मौका मिला. वैशाली ने सोचा कि इस दौरान वह अपने मन की बात उस से कह देगी, लेकिन प्रोजैक्ट पूरा होने पर भी वह अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाई. कुछ महीने बाद जब वैशाली को पता चला कि रोहित की सगाई हो रही है, तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. उसे लगा वह रोहित के बगैर जी नहीं पाएगी. उसे अपनेआप से कोफ्त होने लगी कि समय रहते उस ने अपने दिल की बात रोहित के सामने बयां क्यों नहीं की?

समय के साथ वैशाली के लिए भी एक रिश्ता आया. परिजनों ने जब इस रिश्ते के लिए उस की प्रतिक्रिया पूछी, तो उस ने शादी से ही इनकार कर दिया. वैशाली की भांति अनेक युवतियां हैं जो किसी से प्यार तो कर बैठती हैं, लेकिन उस के समक्ष प्यार का इजहार नहीं कर पातीं, जिस से उन का प्यार एकतरफा हो जाता है व कभी परवान नहीं चढ़ता. एकतरफा प्यार में मिली असफलता युवतियों को निराश और कुंठाग्रस्त कर देती है. युवतियां अपने पहले प्यार को, भले ही वह एकतरफा ही क्यों न हो, ताउम्र नहीं भूल पातीं. यदि आप भी किसी को अपना दिल दे बैठी हैं और अपने प्यार के प्रति गंभीर हैं तो जल्दी से जल्दी उसे अपने दिल की बात बता दें. हो सकता है सामने वाला इस बारे में सोचेविचारे या उस नजरिए से आप को देखे. यदि उस के दिल में पहले से ही कोई लड़की होगी तो वह स्पष्ट इनकार कर देगा. इस से आप समय रहते अपने कदम पीछे खींच सकती हैं. यदि उस का अफेयर किसी से नहीं हुआ तो वह आप के बारे में गौर कर सकता है. हो सकता है वह भी आप को चाहने लगे. जब आग दोनों ओर बराबर लगी हो, तभी प्यार परवान चढ़ सकता है अन्यथा एकतरफा प्यार चाहे वह किसी भी तरफ से हो, उस का हश्र अच्छा नहीं होता.

याद रखें, आप के किसी को चाहने मात्र से बात नहीं बनती. बात तभी बनती है जब सामने वाला भी आप को उसी शिद्दत से चाहे, लेकिन यह तभी संभव है जब सामने वाले को आप के मन की बात पता हो. फिर देखिए उस का चमत्कार.

यदि आप आमनेसामने हो कर अपने प्यार का इजहार करने में संकोच करती हैं तो इस के लिए अन्य तरीके भी अपना सकती हैं, जैसे उस से मोबाइल पर बात कर सकती हैं या उसे एसएमएस भेज सकती हैं. चाहें तो किसी मध्यस्थ का सहयोग ले सकती हैं जो उस से आप को मिलवा सके. वैसे भी कालेज में बहुत से स्थान और मौके मिलते हैं जहां आप उस से अपने दिल की बात कर सकती हैं. उसे लाइब्रेरी में, कैंटीन में या किसी कौफीशौप में बुला सकती हैं. प्यार हो जाना जितना आसान है, उस का इजहार उतना ही मुश्किल. ऐसा प्राय: एकतरफा प्यार करने वालों के साथ होता है. अपने प्यार का इजहार आप कई अवसरों पर कर सकती हैं जैसे यदि गु्रप में कहीं बाहर घूमने गई हों तो कोशिश करें कि आप उस युवक के आसपास ही रहें और उसे इस बात का एहसास कराएं कि आप के लिए वह खास है

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

आंखों के अलावा फेस Makeup में भी करें आईलाइनर का इस्तेमाल, जानें ये तरीका

आईलाइनर आपके मेकअप (Makeup) का एक बड़ा ही अहम हिस्सा होता है. लेकिन क्या आप जानती हैं कि आईलाइनर का इस्तेमाल आप आंखों को सजाने के अलावा अपने चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने के लिए भी कर सकती हैं. जी हां, आप अपने आईलाइनर को आंखों को शेप देने के लिये तो प्रयोग कर ही सकती हैं, साथ में बिंदी, मस्‍कारा आदि के तौर पर भी प्रयोग कर सकती हैं. आइये जानते हैं इसके बारें में.

 

1 हल्‍की आइब्रो को डार्क करें

अगर आपकी आइब्रो बहुत ही पलती है, तो आप उसे गहरा बनाने के लिये आईलाइनर का प्रयोग करें. इसके लिये आप पेन्‍सिल आईलाइनर का प्रयोग कर सकती हैं. लेकिन इसको हद से ज्‍यादा डार्क ना करें वरना आपकी आइब्रो आपके बालों से ज्‍यादा गहरे लगने लगेंगे.

2 सफेद बाल को करें काला

जिस तरह आप अपनी आइब्रो को काला करने के लिये आईलाइनर का प्रयोग करेंगी, ठीक उसी तरह से आप सफेद हो चुके एकआद बाल को काला कर सकती हैं. इस काम को करने के लिये गीली आईलाइनर का ही प्रयोग करें, इससे आपका काम जल्‍दी होगा.

3 झट से बिन्‍दी लगाएं

कई भारतीय महिलाएं रोजाना आईलाइनर को बिन्‍दी या टीका बना कर लगाती हैं. यह बहुत ही सरल कार्य होता है क्‍योंकि आईलाइनर में बहुत ही पतला ब्रश आता है. इस प्रकार की बिन्‍दी, स्‍टीकर वाली बिन्दी से कहीं बेहतर होती हैं. अगर आपको रंगबिरंगे आईलाइनर का शौक है तो आप अपने कपड़े के रंग के मुताबिक बिंदी लगा सकती हैं.

4 लगाएं मस्‍कारा

वो मंजर याद कीजिये जब शीशी में पूरा पस्‍कारा सूख जाता है और आप उसे यूज नहीं कर पाती. अगर ऐसा हुआ है तो आप अपनी गीली आईलाइनर को मस्‍कारे के रूप में प्रयोग कर के अपनी आंखों को नया लुक दे सकती हैं.

5 ब्‍यूटी स्‍पौट बनाएं

चेहरे पर एक छोटासा तिल कितना खूबसूरत लगता है. अगर आप चाहें तो अपने होठों के नीचे या ठुड्डी पर एक छोटा सा टीका रख सकती हैं. लेकिन यह काम बहुत ही ध्‍यान से करें, ऐसा ना हो कि आईलाइनर फैल जाए.

रत्ना नहीं रुकेगी : क्या रत्ना अपमान बर्दाश्त कर पाई?

रोली और रमण इतने बच्चे भी नहीं हैं कि उन्हें अपनी मां की तकलीफ दिखाई नहीं दे. जब एक नवजात भी संवेदनाओं और स्पर्श की भाषा को समझ सकता है तो ये दोनों तो किशोर बच्चे हैं. ये भला अपनी मां के रोज होने वाले अपमान और तिरस्कार को नहीं पहचानेंगे क्या? कड़वी गोली पर लगी मिठास भला कितनी देर तक उस की असलियत को छिपा सकती है? दादी और पापा भी तो मां को सब के सामने घर की लक्ष्मी कहते नहीं थकते लेकिन रोली और रमण जानते हैं कि उन के घर में इस लक्ष्मी का असली आसन क्या है.

दादी को पता नहीं मां से क्या परेशानी है. मां सुबह जल्दी नहीं उठे तो उन्हें आलसी और कामचोर का तमगा दे दिया जाता है और जल्दी उठ जाए तो नींद खराब करने का ताना दे कर कोसा जाता है. केवल दादी ही नहीं बल्कि पापा भी उनकी हां में हां मिलाते हुए मम्मी को नीचा दिखाने का कोई अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देते. और जब पापा ऐसा करते हैं तो दादी के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी दर्प वाली मुसकान आ जाती है. बहुत बार रोली का मन करता कि वह मां की ढाल बन कर खड़ी हो जाए और दादी को पलट कर जवाब दे लेकिन मां उसे आंखों के इशारे से ऐसा करने से रोक देती है. पता नहीं मां की ऐसी कौनसी मजबूरी है जो वह यह सब बिना प्रतिकार किए सहन करती रहती है.

‘‘मैं तो एक पल के लिए भी नहीं सहन करूं. आप क्यों कभी कुछ नहीं बोलती?’’

कहती हुई रोली अकसर अपनी मां रत्ना को विरोध करने के लिए उकसाती लेकिन रत्ना उस की बात केवल सुन कर रह जाती. कहती कुछ भी नहीं.

ऐसा नहीं है कि रत्ना अनपढ़ या बदसूरत है जिस ने अपनी किसी कमी को ले कर कोई हीनग्रंथि पाल रखी है बल्कि खूबसूरत रत्ना तो इंग्लिश में मास्टर्स के साथसाथ बैचलर इन ऐजुकेशन भी है और उस की इसी योग्यता के कारण ही दादी ने उसे अपने क्लर्क बेटे के लिए चुना था. यह अलग बात है कि रत्ना ने अपनी पढ़ाई का उपयोग अपने बच्चों को स्कूल का होमवर्क करवाने के अलावा कभी अन्यत्र नहीं किया. हां, कभीकभार बच्चों की पीटीएम में जरूर उसे उस के पढ़ेलिखे होने का विशेष सम्मान मिलता था लेकिन वह एक क्षणिक अनुभूति होती थी जो घर जाते ही घर की मुरगी दाल बराबर हो जाती थी.

रोली और रमण अब बड़े हो चुके हैं. दोनों ही हाई स्कूल के विद्यार्थी हैं. जब तक बच्चे थे तब तक उन्हें मां का डांट खाना अजीब नहीं लगता था क्योंकि वे सम?ाते थे कि जिस तरह गलतियां करने पर उन दोनों को डांट या सजा मिलती है, उसी तरह मां को भी उन की किसी गलती के कारण ही प्रताडि़त किया जा रहा होगा लेकिन जैसेजैसे उन की समझ बढ़ती गई वे दोनों सम?ाने लगे कि मां को पड़ने वाली डांट और तिरस्कार का कारण उन की कोई गलती नहीं है बल्कि दादी को ऐसा करने पर एक आत्मिक संतोष मिलता है.

‘‘पता नहीं मां दादी और पापा का विरोध क्यों नहीं कर पाती जबकि वह तो स्वयं बहुत सक्षम है,’’ एक दिन रोली ने रमण से कहा.

‘‘तुझे याद है, बचपन में दादी वह हनुमानजी के समुद्र लांघने वाली कहानी सुनाया करती थी? हनुमानजी को अपनी ताकत का अनुमान नहीं था तब जामवंतजी ने उन्हें याद दिलाया था कि वे चाहें तो क्याक्या कर सकते हैं. मां भी नहीं जानती कि वी क्या कर सकती है,’’ कहते हुए रमण थोड़ा उदास था.

‘‘हां, याद है मुझे भी. लगता है मां को भी उन की शक्ति याद दिलानी पड़ेगी,’’ रोली ने उसे सामान्य करने के लिहाज से हंसते हुए कहा. बढ़ते बच्चे सब समझते हैं. अपनी सामर्थ्य के अनुसार विरोध भी दर्ज करवाते हैं लेकिन छोटा होने के कारण उन के विरोध को अधिक महत्त्व नहीं दिया जाता और फिर रत्ना स्वयं भी तो अपने पक्ष में नहीं खड़ी होती.

पिछले दिनों पड़ोस में एक नया परिवार रहने आया है. परिवार में पति राघव, पत्नी रिया के अलावा 7 वर्ष की एक बच्ची मीनू है. आमनेसामने फ्लैट होने के कारण रत्ना का अकसर रिया से टकराव हो जाता है. साथसाथ सब्जीराशन लातेलाते दोनों में ठीकठाक जानपहचान हो गई. मीनू तो रत्ना के फ्लैट का दरवाजा खुला देखते ही दौड़ कर उन के घर में घुसा जाती थी और फिर जब तक रिया उसे खींच कर वापस नहीं ले जाए तब तक वहीं टिकी रहती थी. अकेले बच्चे भी तो साथ ढूंढ़ते ही हैं और जब नहीं मिलता तो धीरेधीरे अपने अकेलेपन को ही अपना साथी बना लेते हैं. फिर बड़ों को यह शिकायत रहती है कि आजकल के बच्चे सोशल नहीं हैं.

रिया इस जानपहचान को मित्रता में बदलना चाहती थी लेकिन रत्ना अपनी सास और पति की अनुमति के बिना दोस्त बनाने का साहस भी कहां जुटा पाती थी. शादी से पहले कितना बड़ा दोस्तों का सर्किल था उस का. कुछ दोस्त तो शहर छूटने के साथ ही छूट गए लेकिन कुछ ने संपर्क बनाए रखा था. पति का शक्की स्वभाव और सास का बातबात पर ताने देना रत्ना खुद के लिए तो सहन कर भी ले लेकिन दोस्तों की अकारण बेइज्जती वह नहीं देख सकती थी इसलिए न चाहते हुए भी उस ने खुद पर अंकुश लगा रखा था.

मीनू इन सब दुनियावी ?ामेलों से दूर रत्ना के आसपास ही बने रहने की कोशिश करती. धीरेधीरे रत्ना का मन उस के साथ रमने लगा. अब तो मीनू बहुत अधिकार के साथ रत्ना से खाना भी मांग कर खाने लगी थी. रत्ना के लिए भी यह मीनू के बचपन के साथ अपने बच्चों के बचपन को दोबारा जीने का अवसर था जिसे वह किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. हां, सास को मीनू का व्यवस्थित घर को बिखेरना पसंद नहीं आता था लेकिन रत्ना मीनू के लौटते ही बहुत तत्परता के साथ सब बिखरा हुआ सामान यथास्थान रख कर मीनू को उन की नाराजगी से बचा लेती थी.

‘‘मीनू , चलो होमवर्क कर लो,’’ यह लगभग हर रोज सुनाई देने वाला वाक्य था जिस के बाद का दृश्य रत्ना के परिवार में सब को याद हो गया.

‘‘अब आंटी इस का हाथ पकड़ कर खींचेंगी और इस का गाना शुरू हो जाएगा,’’ कहती हुई रोली अपने मुंह से ऊं…ऊं… की आवाज निकाल कर मीनू की नकल करने लगती और सभी खिलखिला उठते.

एक दिन जब यही दृश्य दोहराया गया तो रत्ना से रहा नहीं गया और उसने मीनू का दूसरा हाथ अपनी तरफ खींच लिया, ‘‘रहने दो रिया, मैं करवा दूंगी इसे होमवर्क’’ रत्ना ने कहा तो रिया आश्चर्य में पड़ गई.

‘‘अरे दीदी, यह पूरी शैतान की नानी है. आप को प्रश्न पूछपूछ कर परेशान कर देगी,’’ रिया उस के प्रस्ताव को सुन कर थोड़ी खिसिया गई थी क्योंकि रत्ना के घर बारबार आनेजाने के कारण इतना अंदाजा तो उसे भी हो ही गया था कि दादी को मीनू का आना एक सीमा तक ही पसंद आता है.

‘‘कोई बात नहीं मैं देख लूंगी. तुम चिंता मत करो,’’ रत्ना ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा तो रिया कुछ देर खड़ी रह कर अपने घर चली गई.

रत्ना मीनू को ले कर बैठ गई और उसे होमवर्क कराने लगी. बीचबीच में रत्ना कोई मजेदार बात सुनाती तो पूरा घर मीनू की खिलखिलाहट से गूंज जाता.

रोली अपनी मां के इस नए रूप से आज पहली बार ही परिचित हो रही थी.

ऐसा नहीं है कि रत्ना ने उन्हें कभी होमवर्क नहीं कराया था लेकिन तब वह उसे केवल मां लगती थी वहीं आज रत्ना उसे एक प्रशिक्षित अध्यापिका लग रही थी.

कुछ ही देर में मीनू ने होमवर्क निबटा कर अपना बैग पैक कर लिया तो रत्ना उसे कल

आने का न्योता दे कर उस के घर के दरवाजे तक छोड़ आई.

‘‘अरे वाह मां. आप तो छिपी रुस्तम निकलीं. हमें तो पता ही नहीं था कि आप इतनी अच्छी तरह पढ़ा सकती है,’’ रमण ने रत्ना की तरफ गर्व से देखते हुए कहा.

‘‘पता क्यों नहीं है? क्या तुम लोगों को बचपन में होमवर्क कोई दूसरा कराता था?’’ रत्ना ने तारीफ को दरकिनार करते हुए कहा.

‘‘तब हम कहां ये सब जानते थे. तब तो किसी तरह काम निबटाओ और खेलने भागो… इतना ही सम?ा में आता था,’’ कहती हुई रोली भी बातों में शामिल हो गई.

‘‘मां, आप बच्चों को ट्यूशन क्यों नहीं पढ़ातीं? जिस समय मीनू को पढ़ाया उस समय तो रोज आप खाली ही रहती हो,’’ रमण भी उत्साह से भरा हुआ था. शायद भीतर कहीं न कहीं अपनी मां को आत्मनिर्भर देखने की चाह सिर उठाने लगी थी.

‘‘नहीं रे. एक दिन की बात अलग है और रोज की बात अलग. मुझे कहां इतनी फुरसत रोज मिलने वाली है,’’ कहते हुए रत्ना ने रमण के आग्रह को अनसुना कर दिया.

मीनू रोज तय समय पर आती और रत्ना के साथ मस्ती करते हुए अपना होमवर्क करती.

एक दिन मीनू ने बताया कि 2 दिन बाद उस के मिड टर्म ऐग्जाम हैं और उसे 5 फलों और सब्जियों के नाम याद कर के ले जाने हैं. बहुत कोशिश करने के बाद भी याद नहीं हो रहे. कभी कोई भूल जाती है तो कभी कोई.

‘‘बस, इतनी सी बात. लो, आप को याद करने का बहुत ही आसान सा तरीका बताते हैं. हम ऐल्फाबेट से शुरू करते हैं. जैसे ऐ फार ऐप्पल, ऐप्रीकाट, बी फार बनाना, सी फार चीकू, चेरी और कोकोनट. ये लो, 3 ऐल्फाबेट में ही सिक्स फू्रट याद हो गए,’’ रत्ना ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे वाह आंटी. यह तो बहुत मजेदार है. ऐसे तो मैं सब्जियों के नाम भी याद कर सकती हूं और कलर्स के भी,’’ मीनू खुशी से उछलने लगी.

रोली को भी मां की यह ट्रिक बहुत अच्छी लगी. उसे याद आया कि बचपन में मां द्वारा सिखाई गई इसी तरह की ट्रिक्स के कारण दोनों भाईबहन को कभी पहाड़े और फौर्मूले याद करने में दिक्कत नहीं आई थी.

मीनू बहुत खुश थी और रिया भी. इस बार मीनू  को हर बार से अधिक मार्क्स मिले थे और वे भी बिना किसी मानसिक दबाव के. 2 दिन बाद जब मीनू रत्ना के घर आई तब उस के साथ उस की एक सहेली वन्या भी थी.

‘‘आंटी, आज ये भी मेरे साथ टेबल्स लर्न करेगी,’’ मीनू के स्वर में थोड़ा आग्रह भी था.

रत्ना ने मुसकरा कर इजाजत दे दी. रत्ना ने पहले दोनों बच्चियों से थ्री की टेबल सुनाने के लिए कहा जिसे दोनों ने ही अटकअटक कर सुनाया. अब रत्ना ने उसी पहाड़े को कविता की तरह लय में गा कर सुनाया. 1-2 बार के अभ्यास के बाद मीनू और वन्या ने बहुत आसानी के साथ पहाड़ा याद कर लिया. दोनों के चेहरों पर जीत की खुशी जैसा उजास था.

रात को रत्ना ने सुना, दादी भी धीरेधीरे उसी लय के साथ तीन का पहाड़ा गुनगुना रही थी. रत्ना के होठों पर मुस्कराहट तैर गई.

धीरेधीरे मीनू के दोस्तों की संख्या बढ़ने लगी. अब तो दोपहर बाद 4 बजे मीनू सहित 5 बच्चे रत्ना के पास आ जाते हैं. सब की मम्मियों की जिद के बाद नानुकुर करते हुए रत्ना ने सब से नाममात्र की फीस लेनी शुरू  कर दी. पहली बार जब रिया ने सब बच्चों की फीस के रूप में दस हजार रुपए रत्ना के हाथ में थमाए तो उस के हाथ कांपने लगे. यों तो हर महीने पति उसे घर खर्च के लिए रुपए देते ही हैं लेकिन अपनी कमाई की खुशी क्या होती है यह उसे आज पहली बार महसूस हुआ. रत्ना ने खीर बना कर खुशी सब के साथ साझा की.

‘‘पूरे महीने दिमाग खपा कर यह कमाई की है क्या?’’ सास ने ताना कसा. पति ने भी कोई खास खुशी जाहिर नहीं की. रत्ना उदास होती इस से पहले ही रोली और रमण ने उसे फूलों का एक गुलदस्ता भेंट कर के उस की मुसकराहट को जाया होने से बचा लिया.

रत्ना ने अब विधिवत अपने घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते उस के पास आसपास के बहुत से बच्चे आने लगे. शाम के समय बच्चे अधिक होने के कारण उस ने घर के काम में मदद के लिए एक सहायिका को रख लिया. सास ने कुछ दिन तो मुंह चढ़ाए रखा लेकिन जब देखा कि रत्ना अब रुकने वाली नहीं है तो उन्होंने भी समय के साथ समझौता कर लिया.

सबकुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन रत्ना की सहेली माया उस से मिलने आई. माया की उदास रंगत देख कर रत्ना ने पहचान लिया कि अवश्य कोई गंभीर मसला है. चायपानी के साथ थोड़ा कुरेदने के बाद माया ने जो बताया वह वाकई चिंताजनक था.

‘‘2 साल पहले बेटी की शादी की थी. बेचारी तुम्हारी तरह पूरा दिन घर में खटती है लेकिन उस के किए को जस नहीं. सास तो सास, पति भी खुश नहीं रहता. बिलकुल तेरी सी ही कहानी है,’’ कहते हुए माया ने ठंडी सांस भरी.

‘‘जब कहानी की शुरुआत मेरी जैसी ही है तो घबरा क्यों रही है? इस कहानी का अंत भी मेरे जैसा ही करते हैं न,’’ रत्ना ने मुसकुरा कर कहा.

माया कुछ समझ नहीं. वह उस का चेहरा पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘जैसे मैं अपने पैरों पर खड़ी हुई, वैसे ही उसे भी करते हैं न. तू उसे मेरे पास भेज देना. बहुत से बच्चे आते हैं मेरे पास. बहुतों को मना करना पड़ता था. अब नहीं करना पड़ेगा. बिटिया के हाथ को काम मिल जाएगा और मुझे थोड़ी राहत. आत्मनिर्भर बनेगी तो आत्मविश्वास भी आएगा और तब वह अपने हक में कोई भी कठोर निर्णय ले सकती है. अपने पैरों पर खड़ी स्त्री खुद के लिए भी आदर्श होती है. समझ?’’ रत्ना ने माया को सम?ाया तो माया के चेहरे पर भी भविष्य को ले कर उम्मीद की रोशनी चमकने लगी. रत्ना ने देखा उस की सास उन की बातें सुन रही थीं.

‘‘सही कह रही है रत्ना. भले ही मैं बोल कर नहीं कहती लेकिन जबसे यह अपने पैरों पर खड़ी हुई है, मुझे भी अच्छा लगता है. मेरे मन में इस के लिए इज्जत बढ़ गई है. पहले तो लगता था कि यह मेरे बेटे की कमाई पर पल रही है इसलिए मैं भी इसे 2 बातें सुना दिया करती थी. जानती थी कि बुरा मान भी लेगी तो जाएगी कहां? रहना तो इसे इसी घर में पड़ेगा लेकिन अब तो मैं भी इसे कुछ कहने से पहले 4 बार सोचती हूं. अपने पैरों पर खड़ी है, कहीं गुस्से में आ कर घर छोड़ दिया तो? न बाबा न. बुढ़ापे में मैं अब कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती,’’ सास ने झिझकते हुए अपनी सचाई को स्वीकार किया.

रत्ना उन के इस रूप को आश्चर्य से देख रही थी. तभी मीनू अपने दोस्तों के साथ 7 की टेबल को कविता की तरह गाते हुए अंदर घुसी. बच्चों को इस तरह खेलखेल में पढ़ाई करते हुए देखकर तीनों महिलाएं मुसकरा दीं.

रोली और रमण को आज रत्ना वैसी ही लग रही थी जैसी वे उसे बरसों से देखना चाहते थे.

बहार: क्या पति की शराब की लत छुड़ाने में कामयाब हो पाई संगीता

अपने सास ससुर के रहने आने की खबर सुन कर संगीता का मूड खराब हो गया. यह बात उस के पति रवि की नजरों में भी आ गई.

सप्ताहभर पहले संगीता की बड़ी ननद मीनाक्षी अपने दोनों बच्चों के साथ पूरे 10 दिन उस के घर रह कर गई थी. अब इतनी जल्दी सासससुर का रहने आना उसे बहुत खल रहा था.

‘‘इतना सड़ा सा मुंह मत बनाओ संगीता क्योंकि 10-15 दिनों की ही बात है. पहली बार दोनों अपने छोटे से कसबे में रहने आ रहे हैं, इसलिए मैं टालमटोल नहीं कर सकता था.’’

रवि के इन शब्दों को सुन कर संगीता का मूड और ज्यादा उखड़ गया. बोली, ‘‘मेरी खुद की तबीयत ठीक नहीं रहती है. उन की देखभाल के लिए नौकरानी ला दो, तो मुझे कोई शिकायत नहीं. फिर कितने भी दिन रुकें, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ तीखे स्वर में जवाब दे कर संगीता ने चादर से मुंह ढका और लंबी चुप्पी साध ली.

अपने मातापिता के आने से परेशान रवि भी था. मीनाक्षी के सामने संगीता के साथ उस का कई बार झगड़ा हुआ था. उन सब झगड़ों की खबर उस के मातापिता तक निश्चित रूप से मीनाक्षी ने पहुंचा दी होगी. वह जानता था कि मातापिता अपना पुरातनपंथी रवैया नहीं छोड़ेंगे और पूरी सोयायटी में उस की जगहंसाई हो सकती है.

शादी होने के सिर्फ 5 महीने बाद बेटाबहू खूब लड़तेझगड़ने लगे थे. इस तथ्य ने उस के मातापिता का दिल दुखा कर उन्हें चिंता से भर दिया होगा. अब रवि उन का सामना करने का हौसला अपने भीतर जुटा नहीं पा रहा था. वह कोविड-19 का बहाना बना कर उन्हें टालता रहा था पर अब वह बहाना चल नहीं रहा था.

लगभग ऐसी ही मनोस्थिति संगीता की भी थी. काम के बोझ का तो उस ने बहाना बनाया था. वह भी अपने सासससुर की नजरों के सामने खराब छवि के साथ आना नहीं चाहती थी. उन का चिंता करना या समझना उसे अपमानजनक महसूस होगा और वह उस स्थिति का सामना करने से बचना चाहती थी. रवि के मातापिता कोविड-19 के दिनों में अकेले ही रहे थे और अकेलेपन को सहज लेते रहे थे.

अगले दिन शाम को उस के सासससुर उन के घर पहुंच गए. दोनों में से किसी

ने भी रवि और उस के बीच 2 साल से चलने वाले झगड़ों की चर्चा नहीं छेड़ी. उसे 2 सुंदर साडि़यों का उपहार भी मिला. सोने जाने तक का समय इधरउधर की बातें करते हुए बड़ी अच्छी तरह से गुजरा और संगीता ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस करी.

‘‘अपने सासससुर के सामने न मैं आप से उलझंगी, न आप मुझ से झगड़ना,’’ संगीता के इस प्रस्ताव पर रवि ने फौरन अपनी सहमति की मुहर सोने से पहले लगा दी थी.

अगले दिन शाम को जो घटा उस की कल्पना भी उन दोनों ने कभी नहीं करी थी.

रवि अपने दोस्तों के साथ शराब पीने के बाद घर लौटा. वह ऐसा अकसर सप्ताह में

3-4 बार करता था. इसी क ारण उस का संगीता से खूब झगड़ा भी होता.

उस शाम संगीता की नाक से शराब का भभका टकराया, तो उस की आंखों में गुस्से की लपटें फौरन उठीं, पर वह मुंह से एक शब्द नहीं बोली.

रवि के दोस्तों में से ज्यादातर पियक्कड़ किस्म के थे. रवि की जमात के लोगों को ऊंची जाति के लोग दोस्त नहीं बनाते थे और उसे सड़क छाप आधे पढ़े लोगों को अपना दोस्त बनाना पड़ता था जो सस्ती शराब भरभर कर

पीते थे.

उस की मां आरती मुसकराती हुई अपने

बेटे के करीब आईं, तो शराब की गंध उन्होंने

भी पकड़ी.

‘‘रवि, तूने शराब पी रखी है?’’ आरती ने चौंक कर पूछा.

‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी थी. थोड़ी सी जबरदस्ती पिला दी उन लोगों ने,’’ उन से बच कर रवि अपने शयनकक्ष की तरफ बढ़ा.

आरती ने अपने पति रमाकांत की तरफ घूम कर उन से शिकायती लहजे में

कहा, ‘‘मेरे बेटे को यह गंदी लत आप की बदौलत मिली है.’’

‘‘बेकार की बकवास मत करो,’’ रमाकांत ने उन्हें फौरन डपट दिया.

‘‘मैं ठीक कह रही हूं,’’ आरती निडर बनी रहीं, ‘‘जब यह बच्चा था तब इस ने आप को शराब पीते देखा और आज खुद पीने लगा है.’’

‘‘मुझे शराब छोड़े 10 साल हो गए हैं.’’

‘‘जब ब्लडप्रैशर बढ़ गया और लिवर खराब होने लगा, तब छोड़ा आप ने पीना. मैं लगातार शोर मचाती थी कि बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा, पर मेरी कभी नहीं सुनी आप ने. मेरा बेटा अपना स्वास्थ्य अब बरबाद करेगा और उस के जिम्मेदार आप होंगे.’’

‘‘अपनी बेकार की बकबक बंद कर, बेवकूफ औरत.’’

उन की गुस्से से भरी चेतावनी के बावजूद आरती ने चुप्पी नहीं साधी, तो उन के बीच झगड़ा बढ़ता गया. संगीता अपनी सास को दूसरे कमरे में ले जाना चाहती थी, पर असफल रही. रवि ने बारबार रमाकांत से चुप हो जाने की प्रार्थना करी, पर उन्होंने बोलना बंद नहीं किया.

रमाकांत को अचानक इतना गुस्सा आया कि नौबत आरती पर हाथ उठाने की आ गई. तब संगीता अपनी सास को जबरदस्ती खींच कर दूसरे कमरे में ले गई.

रवि देर तक अपने पिता को गुस्सा न करने के लिए समझता रहा. रमाकांत खामोशी से उस की बातें सिर झकाए सुनते रहे

उन के पास से उठने के समय तक रवि का नशा यों गायब हो चुका था जैसे उस ने शराब पी ही नहीं थी. सारा झगड़ा उस के पिता की शराब पीने की पुरानी आदत को ले कर हुआ था. कमाल की बात यह थी कि उसे दिमाग पर बहुत जोर डालने पर भी याद नहीं आया कि उस ने कभी अपने पिता को शराब पीते देखा हो.

शादी के बाद संगीता ज्यादा दिन अपने सासससुर के साथ नहीं रही थी. उन की आपस में लड़नेझगड़ने की क्षमता देख कर उसे अपने रवि के साथ हुए झगड़े बौने लगने लगे थे.

रविवार के दिन आरती और रमाकांत का एक

और नया रूप उन दोनों को देखने के लिए मिला.

संगीता ने आरती द्वारा पूछे

गए एक सवाल के जवाब में

कहा, ‘‘इन्हें घूमने जाने या फिल्म देखने को बिलकुल शौक नहीं है. मुझे फिल्म देखे हुए महीनों बीत गए हैं.’’

‘‘बकवास हिंदी फिल्में सिनेमाहौल पर देखने में 3 घंटे बरबाद करने की क्या तुक है?’’ रवि ने सफाई दी, ‘‘फिर केबल

पर दिनरात फिल्में आती रहती हैं. टीवी पर फिल्में देख कर यह अपना शौक पूरा कर लेती है, मां. नैट विलक्स भी है. बहुत सीरीज हैं, उन्हें देखे न.’’

‘‘असल में तुम बापबेटे दोनों को ही अपनीअपनी पत्नी के शौक पर खर्चा करना अच्छा नहीं लगता है,’’ आरती ने अपनी बहू का हाथ प्यार से अपने हाथ में ले कर शरारती स्वर में टिप्पणी करी.

‘‘तुम हर बात में मुझे क्यों बीच में घसीट लेती हो? अरे, मैं ने तो शादी के बाद तुम्हें पहले साल में कम से कम 50 फिल्में दिखाई होंगी,’’ रमाकांत ने तुनक कर सफाई दी.

‘‘फिल्में देखने का शौक आप को था, मुझे नहीं.’’

‘‘तू तो हौल में आंखें बंद कर के बैठी रहती होगी.’’

अपने पति के कटाक्ष को नजरअंदाज कर आरती ने मुसकराते हुए संगीता से कहा, ‘‘मुझे चाट खाने का शौक था और इन्हें एसिडिटी हो जाती थी बाहर का कुछ खा कर… तुम्हें एक घटना सुनाऊं?’’

‘‘सुनाइए, मम्मी,’’ संगीता ने फौरन उत्सुकता दिखाई.

‘‘तेरे ससुर शादी की पहली सालगिरह पर मुझे आलू की टिक्की खिलाने ले गए. टिक्की की प्लेट मुझे पकड़ाते हुए बड़ी शान से बोले कि जानेमन, आज फिर से करारी टिकियों का आनंद लो. तब मैं ने चौंक कर पूछा कि मुझे आप ने पहले टिक्की कब खिलाई? इस पर जनाब बड़ी अकड़ के साथ बोले कि इतनी जल्दी भूल गई. अरे, शादी के बाद हनीमून मनाने जब मसूरी गए थे, क्या तब नहीं खिलाई थी एक प्लेट टिक्की?’’

आरती की बात पर संगीता और रवि खिलखिला कर हंसे. रमाकांत झेंपेझेंपे अंदाज में मुसकराते रहे. शरारत भरी चमक आंखें में ला कर आरती उन्हें बड़े प्यार से निहारती रहीं.

अचानक रमाकांत खड़े हुए और नाटकीय अंदाज में छाती फुलाते हुए रवि से बोले, ‘‘झठीसच्ची कहानियां सुना कर मेरी मां मेरा मजाक उड़ा रही है यह मैं बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

‘‘आप को इस बारे में कुछ करना चाहिए, पापा,’’ रवि बड़ी कठिनाई से अपनी आवाज में गंभीरता पैदा कर पाया.

‘‘तू अभी जा और पूरे सौ रुपए की टिक्कीचाट ला कर इस के सामने रखे दे. इसे अपना पेट खराब करना है, तो मुझे क्या?’’

‘‘बात मेरी चाट की नहीं बल्कि संगीता के फिल्म न देख

पाने की चल रही थी, साहब,’’ आरती ने आंखें मटका कर उन्हें याद दिलाया.

‘‘रवि,’’ रमाकांत ने सामने बैठे बेटे को उत्तेजित लहजे में फिर से आवाज दी.

‘‘जी, पिताजी,’’ रवि ने फौरन मदारी के जमूरे वाले अंदाज में जवाब दिया.

‘‘क्या तू जिंदगीभर अपनी बहू से फिल्म न दिखाने के ताने सुन कर अपमानित होना चाहेगा?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘तब 4 टिकट फिल्म के भी ले आ, मेरे लाल.’’

‘‘ले आता हूं, पर 4 टिकट क्यों?’’

‘‘हम दोनों भी इन की खुशी की खातिर 3 घंटे की यातना सह लेंगे.’’

‘‘जी,’’ रवि की आवाज कुछ कमजोर पड़ गई.

‘‘अपने घटिया मुकद्दर पर आंसू वहां लेंगे.’’

‘‘जी.’’

‘‘कभीकभी आंसू बहाना आंखों के लिए अच्छा होता है, बेटे.’’

‘‘जी.’’

‘‘जा फिर चाट और टिकट

ले आ.’’

‘‘लाइए, पैसे दीजिए.’’

‘‘अरे, अभी तू खर्च कर दे. मैं बाद में दे दूंगा.’’

‘‘उधार नहीं चलेगा.’’

‘‘मेरे पास सिर्फ 2-2 हजार के नोट हैं.’’

‘‘मैं तुड़ा देता हूं.’’

‘‘मुझ पर विश्वास नहीं तुझे?’’

रवि मुसकराता हुआ खामोश खड़ा रहा. तभी संगीता और आरती ने ‘‘कंजूस… कंजूस,’’ का नारा बारबार लगाना शुरू कर दिया.

रमाकांत ने उन्हें नकली गुस्से से घूरा, पर उन पर कोई असर नहीं हुआ. तब वे अचानक मुसकराए और फिर अपने पर्स से निकाल कर उन्होंने 5 सौ के 2 नोट रवि को पकड़ा दिए.

संगीता और आरती अपनी जीत पर खुश हो कर खूब जोर से हंसीं. उन की हंसी में रवि और रमाकांत भी शामिल हुए.

उस रात संगीता और रवि एकदूसरे की बांहों में कैद हो कर गहरी नींद सोए. उन का वाह रविवार बड़ा अच्छा गुजरा था. एक लंबे समय के बाद रवि ने दिल की गहराइयों से संगीता को प्रेम किया था. प्रेम से मिली तृप्ति के बाद उन्हें गहरी नींद तो आनी ही थी.

अगले दिन सुबह 6 बजे

के करीब रसोई से आ रही खटपट की आवाजें सुन कर संगीता की नींद टूटी. वह देर तक सोने की आदी थी. नींद जल्दी खुल जाए

तो उसे सिरदर्द पूरा दिन परेशान करता था.

सुबह बैड टी उसे रवि ही

7 बजे के बाद पिलाता था. उसे अपनी बगल में लेटा देख संगीता ने अंदाजा लगाया कि उस के सासससुर रसोई में कुछ कर रहे हैं.

संगीता उठे या लेटी रहे की उलझन को सुलझ नहीं पाई थी कि तभी आरती ने शयनकक्ष का दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खोलने पर उस ने अपनी सास को

चाय की ट्रे हाथ में लिए खड़ा पाया.

‘‘रवि को उठा दो बहू और दोनों चाय पी लो. आज की चाय तुम्हारे ससुर ने बनाई है. वे नाश्ता बनाने के मूड में भी हैं,’’ ट्रे संगीता के हाथों में पकड़ा कर आरती उलटे पैर वापस चली गईं.

संगीता मन ही मन कुढ़ गई. रवि को जागा हुआ देख उस ने मुंह फुला कर कहा, ‘‘नींद टूट जाने से सारा दिन मेरा सिरदर्द से फटता रहेगा. अपने मातापिता से कहो मुझे जल्दी न उठाया करें.’’

रवि ने हाथ बढ़ा कर चाय का गिलास उठाया और सोचपूर्ण लहजे में बोला, ‘‘पापा को तो चाय तब बनानी नहीं आती थी. फिर वे आज नाश्ता बनाएंगे? यह चक्कर कुछ समझ में नहीं आया.’’

संगीता और सोना चाहती थी, पर वैसा कर नहीं सकी. रमाकांत और आरती ने रसोई में खटरपटर मचा कर उसे दबाव में डाल दिया था. बहू होने के नाते रसोई में जाना अब उस की मजबूरी थी.

चाय पीने के बाद जब संगीता रसोई में पहुंची, तब रवि उस के पीछपीछे था.

रसोई में रमाकांत पोहा बनाने की तैयारी में लगे थे. आरती एक तरफ स्टूल पर बैठी अखबार पढ़ रही थीं.

उन दोनों के पैर छूने के बाद संगीता ने जबरन मुसकराते हुए कहा, ‘‘पापा, आप यह क्या कर रहे हैं? पोहा मैं तैयार करती हूं… आप कुछ देर बाहर घूम आइए.’’

रमाकांत ने हंस कर कहा, ‘‘तेरी सास

से मैं ने 2-4 चीजें बनानी

सीखी हैं. ये सब करना मुझे अब बड़ा अच्छा लगता है. बाहर घूमने का काम आज तुम और रवि कर आओ.’’

‘‘मां, पापा ने रसोई के काम कब सीख लिए और उन्हें ऐसा करने की जरूरत क्या आ पड़ी थी?’’ रवि ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘तेरे पिता की जिद के आगे किसी की चलती है क्या? पतिपत्नी को घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां आपस में मिलजुल कर निभानी चाहिए, यह भूत इन के सिर पर अचानक कोविड-19 के लौकडाउन के दौरान चढ़ा और सिर्फ सप्ताहभर में पोहा, आमलेट, उपमा, सूजी की खीर, सादे परांठे और आलू की सूखी सब्जी बनाना सीख कर ही माने,’’ आरती ने रमाकांत को प्यार से निहारते हुए जवाब दिया.

‘‘यह तो कमाल हो गया,’’ रवि की आंखों में प्रशंसा के भाव उभरे.

‘‘जब तक मैं यहां हूं, तुम सब को नाश्ता कराना अब मेरा काम है,’’ रमाकांत ने जोशीले अंदाज में कहा.

‘‘आज पोहा खा कर ही हमें मालूम पड़ेगा कि रोजरोज आप का बनाया नाश्ता हम झेल पाएंगे या नहीं,’’ अपने इस मजाक पर सिर्फ रवि ही खुद हंसा.

‘‘आप रसोई में काम करें, यह ठीक नहीं है,’’ संगीता ने हरीमिर्च काट रहे रमाकांत के हाथ से चाकू लेने की कोशिश करी.

‘‘छोड़ न, बहू,’’ आरती ने उठ कर उस का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘ये रवि करेगा अपने पिता की सहायता. चल तू और मैं कुछ देर सामने वाले पार्क में घूम आएं. बड़ा सुंदर बना हुआ है पार्क.’’

संगीता ‘न… न,’ करती रही, पर आरती उसे घुमाने के लिए घर से बाहर ले ही गईं. इधर रमाकांत ने रवि को जबरदस्ती अपनी बगल में खड़ा कर पोहा बनाने की विधि सिखाई.

कितने तरह के होते हैं Arthritis, दर्द से राहत पाने के लिए ऐक्सपर्ट ने दिए ये सुझाव

आर्थ्राइटिस (Arthritis) को अकसर एक बुजुर्गों की समस्या माना जाता है लेकिन यह केवल बुजुर्गों तक ही सीमित नहीं है. आजकल युवा भी इस दर्दनाक और जटिल समस्या का सामना कर रहे हैं. आर्थ्राइटिस एक ऐसी स्थिति है जिस में जोड़ों में सूजन और दर्द होता है. यह समस्या हड्डियों के बीच के कार्टिलेज के घिस जाने या शरीर के इम्यून सिस्टम द्वारा गलती से खुद के जोड़ों पर हमला करने से होती है. इस के कई प्रकार होते हैं जो युवाओं को अलगअलग तरीकों से प्रभावित कर सकते हैं.

मैक्स अस्पताल वैशाली के डा. अखिलेश यादव से जानते हैं कि युवाओं में आर्थ्राइटिस कितने तरह के होते हैं और उन से कैसे बचा जाए? युवाओं में मुख्य रूप से 5 तरह के आर्थ्राइटिस होते हैं:औस्टियोआर्थ्राइटिसऔस्टियोआर्थ्राइटिस आर्थ्राइटिस का सब से कौमन प्रकार है. यह तब होता है जब हड्डियों के बीच के कार्टिलेज जो हड्डियों को घिसने से बचाता है, धीरेधीरे टूटने लगता है. इस प्रकार का आर्थ्राइटिस आमतौर पर बुजुर्गों में होता है लेकिन आजकल युवाओं में भी इस का प्रभाव बढ़ता जा रहा है खासकर उन युवाओं में जो शारीरिक गतिविधियों में बहुत अधिक भाग लेते हैं या जिन का वजन ज्यादा होता है.औस्टियोआर्थ्राइटिस मुख्य रूप से घुटनों, हिप और रीढ़ की हड्डी के जोड़ों को प्रभावित करता है. इस में जोड़ों में दर्द, जकड़न और सूजन होती है जो धीरेधीरे बढ़ती जाती है. वजन कम करना, नियमित व्यायाम और जोड़ों को आराम देने से इस समस्या को कम किया जा सकता है.

रूमैटौइड आर्थ्राइटिसरूमैटौइड आर्थ्राइटिस एक औटोइम्यून बीमारी है, जिस में शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से अपने ही जोड़ों को नुकसान पहुंचाता है. यह बीमारी खासकर हाथों, कलाइयों और पैरों के जोड़ों को प्रभावित करती है. इस के लक्षणों में जोड़ों में दर्द, सूजन और जकड़न शामिल है.अगर इस का समय पर इलाज न किया जाए तो यह समस्या धीरेधीरे जोड़ों को परमानैंट रूप से नुकसान पहुंचा सकती है.

रूमैटौइड आर्थ्राइटिस किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन यह अधिकतर 30-50 साल की उम्र के लोगों को प्रभावित करता है. इस के इलाज के लिए दवाइयों के साथसाथ शारीरिक व्यायाम और योग जरूरी होते हैं.एंकिलोजिंग स्पौंडिलाइटिसएंकिलोजिंग स्पौंडिलाइटिस एक प्रकार का आर्थ्राइटिस है जो मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है. इस के लक्षणों में पीठ के निचले हिस्से में दर्द और जकड़न शामिल है. यह बीमारी खासकर 20-30 साल के युवाओं में होती है.

इस समस्या में रीढ़ की हड्डी के जोड़ों में सूजन आ जाती है, जिस से दर्द और जकड़न होती है. अगर समय पर इस का इलाज न किया जाए, तो यह समस्या रीढ़ की हड्डी को परमानैंट नुकसान पहुंचा सकती है. फिजियोथेरैपी, व्यायाम और कुछ विशेष दवाइयों के माध्यम से इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है.गठियागठिया भी एक प्रकार का आर्थ्राइटिस है जो शरीर में यूरिक ऐसिड के बढ़ने से होता है. इस से अचानक जोड़ों में तेज दर्द, सूजन और रैडनेड हो जाती है.

यह समस्या आमतौर पर पैरों के अंगूठों, घुटनों और ऐंकल में होती है.गठिया के हमले आमतौर पर अचानक होते हैं और ये बेहद दर्दनाक होते हैं. इसे कंट्रोल करने के लिए सही खानपान और दवाओं की जरूरत होती है. खानपान में नमक और प्रोटीन की मात्रा को कंट्रोल रखना चाहिए, साथ ही दवाओं से यूरिक ऐसिड के स्तर को कम किया जाता है.जुवेनाइल आर्थ्राइटिसजुवेनाइल आर्थ्राइटिस एक प्रकार का आर्थ्राइटिस है जो बच्चों और टीनऐजर्स को प्रभावित करता है. इस के लक्षणों में जोड़ों में सूजन, दर्द और कभीकभी बुखार या त्वचा पर रैशेज भी हो सकते हैं. यह समस्या बच्चों में कम उम्र में शुरू होती है लेकिन इस का असर 20 साल की उम्र तक रह सकता है.जुवेनाइल आर्थ्राइटिस के कारण बच्चे की शारीरिक गतिविधियों में रुकावट आ सकती है. इस का इलाज समय पर करना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में इस समस्या के गंभीर परिणामों से बचा जा सके.

आर्थ्राइटिस के कारणयुवाओं में आर्थ्राइटिस होने के कई कारण हो सकते हैं, जिन में हैरीडिटी, चोट और अस्वस्थ जीवनशैली शामिल है. आर्थ्राइटिस होने का मुख्य कारण जोड़ों में सूजन और कार्टिलेज का घिस जाना होता है जो समय के साथ बिगड़ता जाता है. खेलकूद में चोट लगना, ज्यादा वजन और शारीरिक गतिविधियों की कमी भी आर्थ्राइटिस को बढ़ा सकती हैं.आर्थ्राइटिस से बचाव के उपायआर्थ्राइटिस की समस्या को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है लेकिन इसे कंट्रोल किया जा सकता है.

इस के लिए निम्न आसान उपाय अपनाए जा सकते हैं:

वजन को कंट्रोल में रखना: वजन ज्यादा होने पर जोड़ों पर दबाव बढ़ता है, जिस से आर्थ्राइटिस की समस्या और बढ़ सकती है. सही खानपान और व्यायाम से वजन को कंट्रोल में रखा जा सकता है.

नियमित व्यायाम: व्यायाम से जोड़ों की ताकत और फ्लैक्सिबिलिटी को बढ़ाया जा सकता है, जिस से आर्थ्राइटिस की समस्या कम होती है. स्विमिंग, साइकिल चलाना, योग अच्छे औप्शन हो सकते हैं.संतुलित आहार: सही खानपान, जिस में फल, सब्जियां और अनाज शामिल हो जो शरीर में आवश्यक पोषक तत्त्वों की सप्लाई करता है. इस से हड्डियां और जोड़ों को मजबूती मिलती है.

दवाओं का सही समय पर सेवन: आर्थ्राइटिस के इलाज में दवाइयां महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. डाक्टर द्वारा सुझाई गई दवाओं का सही समय पर सेवन करें और नियमित जांच करवाते रहें.

आराम देना: जब जोड़ों में अधिक दर्द या सूजन हो तो उन्हें आराम देना जरूरी होता है. ज्यादा काम करने से जोड़ों पर और अधिक दबाव बढ़ सकता है.आर्थ्राइटिस अब केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रहा है.

युवाओं में भी इस समस्या का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है. इस के विभिन्न प्रकार अलगअलग जोड़ों को प्रभावित करते हैं, जिस से दैनिक जीवन में कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं.

अगर आप को जोड़ों में किसी भी तरह का दर्द, सूजन या असुविधा महसूस हो तो तुरंत डाक्टर से सलाह लें. समय पर डाक्टर से परामर्श लेना, स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और सही खानपान का पालन करना आर्थ्राइटिस को कंट्रोल करने के महत्त्वपूर्ण उपाय हैं.

इस फुटबौलर को डेट कर रही हैं उर्वशी रौतेला, क्या जल्द करेंगी शादी?

बौलीवुड की खूबसूरत अदाकारा उर्वशी रौतेला (Urvashi Rautela) जो अपनी खूबसूरती के लिए अभिनय से ज्यादा जानी जाती हैं. उनका खेल से गहरा नाता रहा है. फिर चाहे वह खेल क्रिकेट का हो या फुटबौल का. उर्वशी रौतेला इन खेल के खिलाड़ियों पर प्यार लुटाती नजर आती हैं. ऐसा ही कुछ एक बार फिर सामने आया है. फिलहाल ऐक्ट्रैस का नाम फुटबौल प्लेयर के साथ जुड़ रहा है.

खबरों के अनुसार आजकल उर्वशी रौतेला की दोस्ती अरबपति फ्रेंच फुटबौलर करीम बेनजेमा के साथ खूब निभ रही है . हालांकि उर्वशी रौतेला ने फुटबौलर करीम को सिर्फ अच्छा दोस्त बताया है . लेकिन साथ ही उन्होंने इस फुटबौलर की तारीफ में कसीदे पढ़ने में भी कसर नहीं छोड़ी. एक इंटरव्यू के दौरान उर्वशी ने फुटबौल प्लेयर करीम के साथ न सिर्फ अपनी दोस्ती को कबूल किया. बल्कि यह भी कहा कि वह इस प्लेयर से बेहद प्रभावित है.

क्योंकि फुटबौल प्लेयर करीम न सिर्फ अनुशासित है बल्कि लोगों की कद्र करना भी जानते हैं, मेरी नजर में वह दुनिया के सबसे टौप फुटबौलर्स में से एक हैं. उनका दिमाग बहुत तेज दौड़ता है. मुझे उनकी सोच भी बहुत पसंद है. मुझे वह एकदम शानदार आदमी लगते हैं. जब एक इंटरव्यू के दौरान ऊर्वशी से शादी के लिए परफैक्ट हसबैंड के बारे में पूछा गया तो उन्होंने वही सारी क्वालिटी बताई जो फुटबौलर करीम में नजर आती हैं. उनके अनुसार उन्हें ऐसे लोग बहुत पसंद हैं स्पेशली शादी के लिए, जो फेमस हो और अच्छे इंसान हो और अगर स्पोर्ट्समैन हो तो और अच्छा है.

उर्वशी रौतेला की इन बातों से यह तो समझ आ ही गया कि उनका फुटबौल प्लेयर करीम पर कितना क्रश है. पिछले दिनों उर्वशी रौतेला की अरबपति फ्रेंच फुटबौलर करीम बेनजेमा के साथ कई फोटोज इंटरनेट पर भी वायरल भी हुई है, इसके बाद इस खबर ने और तूल पकड़ा है. गौरतलब है इससे पहले उर्वशी रौतेला का नाम इंडियन क्रिकेटर ऋषभ पंत के साथ जुड़ा था. दोनों का लव हेट रिलेशनशिप हमेशा चर्चा में रहा है. उर्वशी रौतेला के अगर वर्क फ्रंट की बात करें तो वह फिलहाल घुसपैठिया फिल्म में नजर आई है .

Paris Fashion Week : सोनम कपूर ने बिखेरा फैशन का जलवा, ब्लैक लुक में ढाया कहर

Paris Fashion Week : ग्लोबल फैशन आइकौन सोनम कपूर ने पेरिस में आयोजित क्रिश्चियन डिओर स्प्रिंग-समर 2025 वीमेंस वियर शो में अपनी शानदार उपस्थिति से सभी को एक बार फिर मंत्रमुग्ध कर दिया. उन्होंने क्रिश्चियन डिओर क्रूज 2025 कलेक्शन से एक आकर्षक ब्लैक एंसेंबल पहनकर सबका ध्यान खींचा. फैशन की दुनिया में अपनी पहचान साबित करते हुए, सोनम की यह उपस्थिति उनकी ग्लोबल फैशन म्यूज की छवि को और भी मजबूत करती है. यह प्रतिष्ठित और अत्यधिक महत्वपूर्ण इवेंट, जो ग्लोबल फैशन कैलेंडर के सबसे बहुप्रतीक्षित आयोजनों में से एक है, इसमें सोनम एकमात्र भारतीय सेलिब्रिटी थीं.

सोनम ने ब्लैक रंग का एक शानदार आउटफिट पहना था, जिसमें कंधे पर नाजुक फूलों की कढ़ाई से सजे एक सजीले ट्रैंच कोट के साथ एक वाल्यूमिनस स्कर्ट और स्ट्रक्चर्ड कौर्सेट शामिल था. उनका लुक आधुनिक एलिगेंस और पेरिसियन इतिहास का बेहतरीन मिश्रण था. उन्होंने चेन डिटेल्स वाले बोल्ड कौम्बैट बूट्स के साथ अपने लुक को पूरा किया, जो उनकी उपस्थिति में एक सशक्त और अद्वितीय स्टाइल जोड़ता है. उनका यह एंसेंबल डिओर की कालातीत कला और समकालीन नवाचार को दर्शाते हुए एक फैशन और व्यक्तित्व का प्रतीक बना.

क्रिश्चियन डिओर स्प्रिंग-समर 2025 वीमेंस वियर शो में शामिल होकर सोनम कपूर ने कहा, “डिओर ने हमेशा क्रिएटिविटी और एलिगेंस की सीमाओं को आगे बढ़ाया है, और उनकी इस दृष्टि को साकार होते देखना हमेशा एक सौभाग्य की बात होती है. यह कलेक्शन, अपनी जटिल कारीगरी और विरासत के अनूठे उत्सव के साथ, एक सच्ची कृति थी. हर डिओर शो कला और फैशन के सफर जैसा लगता है, और आज का इवेंट भी इससे अलग नहीं था. मैं डिओर पहनने और इस प्रतिष्ठित ग्लोबल मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए बेहद सम्मानित महसूस कर रही हूं, जहां परंपरा और आधुनिकता का मेल अद्भुत तरीके से गूंजता है.”

सोनम कपूर की इस शो में उपस्थिति ने डिओर के साथ उनके लंबे जुड़ाव को और पुख्ता किया है. बौलीवुड स्टार सोनम निस्संदेह पौप कल्चर की प्रेरणा हैं और भारत में फैशन की आखिरी आवाज मानी जाती हैं!

क्या Anupama और अनुज कभी नहीं करेंगे शादी ? अपने प्यार की खातिर आवाज उठाएगी मीनू

रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) और गौरव खन्ना (Gaurav Khanna) का शो अनुपमा (Anupama) दर्शकों का कई सालों से फेवरेट बना हुआ है. शो के हर एपिसोड में हाईवोल्टेज ड्रामा दिखाया जाता है, जिससे दर्शकों का इंट्रैस्ट बना रहता है. शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि तोषु और सागर के बीच हाथापाई होती है, तो दूसरी तरफ अनु के सामने मीनू की पोलपट्टी खुल जाती है. आइए जानते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में…

अनुज से अपना दर्द बयां करेगी अनुपमा

सीरियल में दिखाया जा रहा है कि अनुपमा की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. सीरियल के लेटेस्ट एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज सागर और मीनू के बारे में अनुपमा को समझाएगा और कहेगा कि वो दोनों एडल्ट है और समझदार भी. शो के अपकमिंग एपिसोड में अनुपमा अनुज से अपना दर्द बांटती है और कहती है कि उसके दुख कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेते. अकसर कुछ न कुछ लगा रहता है.

डौली अपनी बेटी की शादी के लिए ढूढेगी लड़का

शो में धमाकेदार ट्विस्ट आपको देखने को मिलेगा जब डौली अपनी बेटी मीनू की शादी का ऐलान करेगी. ये बात सुनकर सब हैरान हो जाएंगे. डौली किसी की भी नहीं सुनेगी. तोषू और पाखी मिलकर सागर के सामने मीनू के लिए लड़का सिलैक्ट करेंगे. दूसरी तरफ अनुज अनुपमा को समझाता है कि उसे मीनू और सागर का साथ देना चाहिए. अनुज अपनी अनु से ये भी कहता है कि वह सगार और मीनू से मुंह नहीं मोड़ सकती और उन दोनों को प्यार करने से मना भी करने का हक नहीं है.

डौली को सही ठहराएगी अनुपमा

सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में ये भी देखने को मिलेगा कि अनुपमा डौली को सही ठहराती है और कहती है कि हर मां चाहती है उसकी बेटी की शादी बड़े घर में हो. तो दूसरी तरफ अनुज अनुपमा को समझाता है. लेकिन एक मां होने के नाते अनुपमा कहती है कि अगर मीनू और सागर परिवार के खिलाफ जाकर कुछ भी करते हैं तो ये उनके लिए गलत होगा.

बा और डौली को आईना दिखाएगी मीनू 

सीरियल में ये भी दिखाया जाएगा कि डौली और बा मीनू को सागर को भूलने की सलाह देते हैं. बा घर के इज्जत की बात करती है और कहती है कि लव मैरिज गलत फैसला है. वह मीनू को समझाने की कोशिश करती हैं, लेकिन मीनू भी चुप नहीं बैठती, वह कहती है कि आप किसी इज्जत की बात कर रही हैं, पूरे मोहल्ले का सामने हमारी बेइज्जती हुई, घर का सारा सामान बाहर फेंक दिया गया. मीनू ने आगे ये भी कहा कि शाह परिवार को अनुपमा के कारण शरण मिली है.

क्या अनुपमा और अनुज की नहीं होगी शादी

इतना ही नहीं वह वनराज के बारे में भी जिक्र करती है. मीनू कहती है कि आप फिर भी इज्जत की बात कर रही हैं, मामू पैसे लेकर भाग गए. शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया था कि अनुज अनुपमा को शादी के लिए प्रपोज किया था लेकिन अनु ने कुछ समय मांगा. वह फिर से शादी करने से डरती है. अनुज उसे समझाता है.

पत्नियों के मारे पति बेचारे

पत्नी पीडि़त पतियों की संस्था से एक पैंफलेट आया था, जिस में छपा था – हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. घर व महल्ले की तो बात छोड़ो, अब तो चौराहे, औफिस में भी पति सुरक्षित नहीं हैं. इस ज्वलंत समस्या पर एक गोष्ठी का आयोजन संस्था द्वारा किया जा रहा है. संस्था के सदस्य पूरी तैयारी के साथ आएं और सदस्य बनने के इच्छुक विचारों के साथ फीस भी ले आएं. नए सदस्यों का तहेदिल से स्वागत है.

मेरा दिल तड़प गया. कब से इस संस्था का सदस्य बनने के लिए बेकरार था पर श्रीमतीजी इजाजत ही नहीं दे रही थीं. उन्हें इस बात के लिए मनाना बड़ी टेढ़ी खीर था. जबकि पत्नियों से त्रस्त पति में मेरा नाम तो शीर्ष पर आना चाहिए. मैं बेचारा पत्नी का मारा. पता नहीं क्या खिलापिला व सिखापढ़ा कर भेजा है इन के घर वालों ने इन्हें मेरे पास. जब से आई हैं खून चूस रही हैं मेरा. ‘ये लाओ वो लाओ’, ‘इस के पास ऐसा, उस के पास वैसा’, ‘मुझे भी ये चाहिए वो चाहिए’, ऐसी बातें रोज सुनो और सुनने पर कुछ न कहो, तो ताने व्यंग्यबाण उठतेबैठते झेलो. उन का रवैया मेरे प्रति तो ऐसा रहता है जैसे मैं पति न हो कर कोई जिन्न हूं यानी वे फरमाइशें करें तो मैं कहूं, ‘जो हुकुम मेरे आका’ और उन की सारी फरमाइशें पूरी हो जाएं. मेरा मन रोष से भर उठा. मैं ने सोच लिया कि मैं अब पत्नी के दंशों को और नहीं सहूंगा. पत्नी पीडि़त पतियों की इस संस्था का सदस्य बन पत्नियों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाऊंगा. सब से पहले तो आज की इस गोष्ठी के लिए एक विचारोत्तेजक परचा तैयार करूंगा. उसे मंच पर पढ़ूंगा और पत्नियों के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाऊंगा.

अभी परचे की भूमिका के बारे में सोच ही रहा था कि अंदर से गरजती आवाज आई, ‘‘साधुमहात्मा की तरह मौन धारण कर बैठे रहने का इरादा है या औफिसवौफिस भी जाना है? तंग आ गई हूं मैं इस आदमी के फक्कड़पन से. न घर की फिक्र न बीवीबच्चों की. बस सिकुड़ी सी सूरत ले बैठे रहने की आदत. न कमाने का जनून न घर में कुछ लाने का. सुबहशाम बस पेट भर लिया इस से ज्यादा कुछ नहीं. अरे मैं तो कहती हूं कि पेट तो ढोर भी भर लेते हैं. इंसान हो तो इंसान की तरह तो बरताव करो. पर मैं जानती हूं इस आदमी के साथ कितना भी सिर फोड़ो कुछ नहीं होने वाला. अपना ही सिर फूटेगा. इस चिकने घड़े पर कुछ असर न होगा. अब आ जाओ, खाना लगा दिया है मैं ने…’’ मैं अपने विचारों को वहीं छोड़ चुपचाप खाना खाने चला गया. लेकिन खाना खाते भी चैन नहीं. ‘‘अब मुंह लटकाए क्यों खा रहे हो? बता तो दो कैसा बना है. सुबह से मरमर कर, जीजान लगा कर पकाओखिलाओ. पर मजाल है कि मुंह से एक शब्द भी तारीफ का निकल जाए. खाएंगे भी ऐसे जैसे कोई जहर खिला रहा हो.’’अब सुनो, अरे कोई इन से कहे तो इन्हें पता चले कि इस तरह खाना खाने से तो जहर ही खाना अच्छा है. और ये जो बनाया है वह क्या जहर से कम है. वही उबला बेस्वाद खाना. ऊपर से तारीफ और करो कि अच्छा बना है. रोजरोज वही टिंडा, भिंडी, कद्दू खाओ. ऊपर से तुर्रा यह कि शक्ल पाइनऐप्पल की बनाओ. नहीं, अब इस टौर्चर से मुक्ति पानी ही पड़ेगी, सोचतासोचता मैं औफिस गया. परचा तैयार करना था, इसलिए हाफ डे ले कर घर आ गया. घर आ कर ब्रीफकेस सोफे पर रख कर जूतेमोजे खोले ही थे कि फिर दहाड़ सुनाई दे गई.

‘‘साफसफाई से रहना तो सुहाता ही नहीं है. सुबह से मरमर इस फटीचर से घर को घर बनाने के लिए मेहनत व साफसफाई करो, सजाओसंवारो पर जिसे कचरे में ही रहने की आदत हो, वह नहीं बदल सकता. इन की मां ने न जाने कैसे पाला कि बिगाड़ कर रख दिया और मेरे हवाले कर दिया. ये तक नहीं सिखाया कि टौवेल बिस्तर पर नहीं पटका जाता, जूतेमोजे इधरउधर नहीं फेंके जाते, अखबार पढ़ने के बाद बिखरे हुए नहीं छोड़े जाते. पर यह मुफ्त की नौकरानी मिल गई है, तो बनाए जाओ इस को कचराघर. मजाल है कभी खुद कोई चीज सही ठिकाने पर रखी हो. अब उठाओ अपना यह ब्रीफकेस, ये जूतेमोजे, ये कपड़े और सही जगह पर रखो इन्हें…’’ मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर कर कुछ नहीं सकता था, इसलिए चुप रहा. बताओ बंदा क्या अपने घर में भी अपने हिसाब से नहीं रह सकता, चीजें नहीं रख सकता? सब कुछ इन के हिसाब से चलेगा. अरे मेरा घर मेरी मरजी. मैं टौवेल चाहे जहां पटकूं, जूतेमोजे, किताबें, कागज जहां चाहूं वहां रखूं. पर अब यह मेरा घर कहां रहा. अब तो यह उस का घर हो गया है जिसे मैं बड़ी शान से बाजेगाजे के साथ ले कर आया था. सच कहा है किसी ने, ‘दिल में बसा के प्यार का तूफान ले चले, हम आज अपनी मौत का सामान ले चले…’

हाय, एक आह मेरे दिल से निकल गई. महारानी बन कर बैठी हैं और खुद को नौकरानी बता रही हैं. अरे नौकर तो मैं बन कर रह गया हूं बिना पगार का. सुबह से शाम तक कोल्हू के बैल की तरह जुते रहो और इन के ताने, व्यंग्य सुनो.भरे दिल से मैं परचा तैयार करने बैठा, जिस में लिखा- पत्नियों के मारो, समदुखी बेचारो, हालात सचमुच बहुत बिगड़ गए हैं. स्थितियां नियंत्रण से बाहर हो रही हैं. दोस्तो, अब इस देश में पति कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, क्योंकि पत्नियों के अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं. घर के काम करवाना, पूरी तनख्वाह ले लेना, कम कमाई करने के ताने देना, जबरदस्ती सालेसालियों के ऊपर खर्चा करवाना, उस पर भी आए दिन फरमाइशें करना और पूरी न करो तो तनख्वाह को कोसना और व्यंग्य बाणों से सीना छलनी करना तो आए दिन की बात है. अब तो नौबत चौराहों पर उठकबैठक लगवाने के साथ औफिस में मारपिटाई तक पहुंच गई है. मित्रो, आप सब जानते हैं गुजरात में एक पत्नी ने पति से चौराहे पर महज इसलिए उठकबैठक लगवाई, क्योंकि वह उस के साथ बरतन खरीदने बाजार नहीं गया. यह अत्याचार नहीं तो और क्या है?

अच्छा इस की तो छोड़ो, ये तो बेचारा आम आदमी है पर वह मंत्री… उस की पत्नी ने उस के औफिस में आ कर उसे पूरे स्टाफ के सामने पीट दिया और कोई कुछ न कर सका. दोस्तों, इस देश में मंत्रीसंत्री तक, जिन पर देश की रक्षा का भार है, अपनी पत्नी से सुरक्षित नहीं हैं, तो आप की और हमारी क्या बिसात है. इसलिए मैं कहता हूं समय रहते सचेत होना बहुत जरूरी है. मेरे पीडि़त भाइयो, उठो, जागो स्वयं को पत्नियों के चंगुल से मुक्त करो ताकि बेरोकटोक कहीं भी आजा सको. यारदोस्तों के साथ ऐश व मौजमस्ती कर सको और जिंदगी का लुत्फ उठा सको. तो आओ दोस्तो, हम सब एक हो जाएं. इस गुलामी की जंजीर को तोड़ें और आजादी प्राप्त करें.परचा तैयार कर उसे एक बार और पढ़ संतुष्टि से सिर हिलाता मैं जाने के लिए तैयार होने ही लगा था कि दनदनाती श्रीमतीजी कमरे में आईं, ‘‘मैं पूछती हूं मैं ने क्या आप की चाकरी करने का ठेका ले रखा है या आप की खरीदी हुई बांदी हूं? 10 आवाजें लगा चुकी हूं बाहर से पर सुनाई नहीं पड़ रहा. क्या कान में तेल डाल कर बैठे हैं? मैं भी देखूं ऐसा किस को प्रेमपत्र लिखा जा रहा है, जिस की वजह से मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही?’’

और उन्होंने वहीं पड़ा मेरा लिखा परचा उठा लिया. मैं उन्हें रोकता उस से पहले ही वे उसे एक सांस में पूरा पढ़ गईं. उस के बाद मेरी जो शामत आई उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. पत्नी पीडि़त पतियों की संस्था का मैंबर बनना तो छोड़ो, मुझे अब अकेले घर से बाहर जाने की भी इजाजत नहीं है.बस आप इतना जान लें कि मेरी हालत अब बिलकुल गधे जैसी हो गई है. गधा कम से कम ढेंचूढेंचू तो कर सकता है, मैं तो मुंह भी नहीं खोल सकता. इस को पढ़ने के बाद आप को यदि मेरी दशा पर तरस आए तो मुझे इस के चंगुल से जरूर छुड़ाएं. बशर्ते आप खुद चंगुल में फंसे हुए न हों.

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