दीवाली मेलों में छाया ‘देसीपन’ 

दीवाली में चाइनीज सामान के बहिष्कार से बाजार की खरीददारी में देसीपन को बढ़ावा देने का काम किया है. दीवाली में इस बार दियों, मोमबत्ती, के साथ एलइडी वाली लाइटों की खरीदारी बढ़ गई है. लोग घर की सजावट के लिये प्लास्टिक के चाइनीज प्रोडक्टस की जगह पर लकड़ी, जूट और दूसरी तरह से तैयार देसी सामान खरीद रहे हैं.

सामान्य बाजारों के अलावा मौल्स और बाजारों में देसी सामान बेचने वालों के मेले लग गये हैं. लखनऊ में ऐसे तमाम मेले लगे हैं. लखनऊ का गोमती नगर इलाका पौश कालोनी में शुमार है. यहां के सिटी मौल में पहले 2 दिन का दीवाली मेला ‘हथकरघा’ का आयोजन किया गया था. ‘हथकरघा’ की आयोजक दीपिका निगम और मीनाक्षी अग्रवाल कहती हैं ‘दीवाली मेले के पहले 2 दिन लोगों का उत्साह देखकर हमें इसे एक दिन के लिये बढ़ाना पड़ा.’

‘हथकरघा’ दीवाली मेले में घर की सजावट के सामान, पहनने के लिये खादी, कौटन और हैंडलूम के कपड़े, मिटटी के दिए, हैंडमेंड एलईडी लाइट, मिरर, पेंटिंग जैसी चीजों की दुकाने लगाई गई. दीपिका ने बताया कि इस मेले में आने वाले सभी लोग हैंडीक्राफ्ट वर्क के लिये बहुत मशहूर है. यहां खरीददारी कर रहे लोगों से बात करने पर पता चला कि वह इस  दीवाली को पूरे देसीपन के साथ मनाना पसंद कर रहे हैं.

यहां खरीदारी करने आई सलोनी केसरवानी ने बताया ‘दीवाली को पूरी तरह से ट्रेडिशनल तरीके से मनाना है. हमारी ड्रेस से लेकर सजावट तक में देसीपन की झलक दिखाई देगी. वह कहती है ‘यहां के सामान बड़ी शौप के मुकाबले किफायती और बेहतर हैं’ रेखाकृति नाम से हैंडीक्राफ्ट वर्क की शौप चला रही रेखा सिन्हा ने बताया ‘हर साल दीवाली में इस तरह की खरीददारी बढ़ जाती थी. इस बार यह ट्रेंड ज्यादा देखने को मिल रहा है.’

दीवाली के बाजारों में बात करने पर पता चल रहा है कि बाजार से चाइनीज सामानों की ब्रिकी आधी हो गई है. लोगों ने इस बात को समझते हुये पहले से ही चाइनीज सामान कम मंगवाये थे. ज्यादातर चाइनीज प्रोडक्टस बिजली और पटाखों के होते थे. बिजली के सजावट के लिये तो लोगों ने चाइनीज सामान ले भी लिये पर सजावट के लिये चाइनीज सामान पूरी तरह से नहीं लिया. चाइनीज पटाखों की खरीददारी पूरी तरह से प्रभावित हो गई है. देसी बनाम चाइनीज के इस पंसद में देसी कितना भारी पड़ा यह तो त्योहार के बाद ही सही तरह से पता चल सकेगा पर यह बाजार को देखने में साफ दिखा कि पहले के मुकाबले देसीपन बाजार पर छाया रहा.

इस दीवाली हर महीने शुरू करें 900 रुपए की सेविंग

अगर आप करोड़पति बनना चाहते हैं तो आपके लिए बेहतर मौका है. आप इसी दीवाली से हर माह 900 रुपए की सेविंग शुरू करके करोड़पति बन सकते हैं. करोड़पति बनाने की प्‍लानिंग में यह अहम नहीं है कि आपकी इनकम कितनी है. अहम बात यह है कि आप सेविंग और सही जगह पर निवेश करना कब शुरू करते हैं.

कितनी करनी होगी सेविंग

अगर आप 25 साल के हैं और हर माह 900 रुपए की सेविंग करते हैं तो आप इस रकम को सिस्‍टमैटिक इन्‍वेस्‍टमेंट प्‍लानिंग (एसआईपी) के जरिए डाय‍वर्सिफाइड म्‍यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. लंबी अवधि में कपाउंडिंग यानी चक्रवृद्धि ब्‍याज की ताकत आपको करोड़पति बना देगी.

ऐसे बन जाएंगे करोड़पति

-आप 25 वर्ष का युवा है

-आप हर माह 900 रुपए बचाता है

-आप हर माह 900 रुपए एसआईपी के जरिए डायवर्सिफाइड म्‍यूचुअल फंड में निवेश करता है.

– म्‍यूचुअल फंड सालाना 12.5 फीसदी रिटर्न देता है.

-अगर आप अगले 40 साल तक हर माह 900 रुपए निवेश जारी रखता है तो वह 65 वर्ष की उम्र में करोड़पति बन जाएगा.

ऐसे करें कैलकुलेशन

– शुरुआती निवेश राशि- 900 रुपए

– मासिक निवेश- 900 रुपए

– निवेश पर सालाना रिटर्न- 12.5 फीसदी (अनुमानित)

– निवेश की अवधि- 40 वर्ष

– कुल राशि- 1,01,55,160 रुपए

30 साल में भी बन सकते हैं करोड़पति

करोड़पति बनने का मौका अधिक उम्र के लोगों के लिए भी है. अगर आपकी उम्र 30 वर्ष है तो आपको रोज 95 रुपये यानी हर माह 2,850 रुपए  बचाने होंगे. उम्र बढ़ने के साथ निवेश की अवधि कम हो जाती है तो सेविंग बढ़ाने की जरूरत होती है. समान निवेश पैटर्न और सालाना 12.5 फीसदी अनुमानित रिटर्न के साथ 60 वर्ष की उम्र में आप करोड़पति बन जाएंगे.

FILM REVIEW : शिवाय

अजय देवगन कि बैनर तले बनी फिल्म शिवाय एक एक्शन और थ्रिलर फिल्म है, जिसे अजय देवगन ने लिखा और निर्देशित भी किया है. फिल्म की कहानी नई नहीं है, ऐसी कई फिल्में पहले भी आ चुकी हैं, एक पिता का अपनी पुत्री से स्नेह और इमोशन उसे कहां से कहां तक ले आता है, ये बताने की कोशिश की गयी है. फिल्म का एक्शन और सिनेमेटोग्राफी अच्छी है. हुत सारे खतरनाक स्टंट और वीएसऍफ का प्रभाव फिल्म में देखने को मिला, जो अधिकतर विदेशी फिल्मों में होता है. इसके अलावा बुल्गारिया और मसूरी के बर्फीले पहाड़ों पर स्टंट भी देखने लायक था, लेकिन फिल्म में एक निर्देशक के रूप में अजय देवगन काम करने में असमर्थ रहे, फिल्म के कई दृश्य बेवजह ठूसे हुए लगे. अजय देवगन अभिनेता के रूप मे ठीक थे. कहानी इस प्रकार है.

शिवाय (अजय देवगन) एक हिमालय का पर्वतारोही है और सभी पर्यटकों को ट्रैकिंग करवाता है. ऐसे में ट्रैकिंग करते वक्त बर्फीले तूफान में घिरकर वह बुल्गारियन लड़की ओल्गा (एर्रिका कार) के नजदीक आता है. ओल्गा जब अपने देश बुल्गारिया जाने वाली होती है, तब पता चलता है कि वह मां बनने वाली है. शिवाय की जिद पर वह एक गूंगी बच्ची गौरा (अबीगैल यामेस) को जन्म देकर वापस अपने देश चली जाती है. बेटी के बड़ी होने पर मां से मिलने की जिद करने पर शिवाय उसे लेकर बुल्गारिया जाता है, जहां उसकी बेटी किडनैप हो जाती है. उसे कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. बेटी की खोज में वहां के दूतावास में काम करने वाली सायशा सहगल उसे मदद करती है. इसी तरह कहानी पिता और बेटी के इर्दगिर्द घूमती हुई अंजाम तक पहुंचती है.

फिल्म में गिरीश कर्नाड पिता के रूप में जचें. फिल्म की स्क्रिप्ट जरुरत से अधिक लम्बी थी, इसे कम करने पर फिल्म शायद बेहतर होती. सायसा को बहुत कुछ करने का मौका नहीं मिला, जितना मिला उतना ठीक था. गाने की बात करें तो वह ठीकठाक थे. मिथुन का टाइटल सोंग ‘बोलो हर हर’ अच्छा था. एक्शन फिल्मों को पसंद करने वाले इसे एक बार देख सकते हैं. इसे टू स्टार दिया जा सकता है.

महिला जेबकतरी: आंख बंद माल गायब

गत 22 मार्च को देश के दूसरे हिस्सों की तरह भोपाल में भी होली के त्योहार की गहमागहमी थी. इस के चलते मिनी बसों और लो फ्लोर बसों में बहुत भीड़ थी. ऐसे ही एक लो फ्लोर बस रूट क्रमांक एस.आर. 5 में मंत्रालय स्टौप से एक महिला बस में चढ़ी, जो बेहद सुंदर थी. महंगी साड़ी पहनने का उस का सलीका भी उस के कुलीन होने का संकेत दे रहा था.

रईसी और ठसक के भाव भी इस महिला के चेहरे पर थे जिन्हें बस में मौजूद यात्रियों ने भी महसूस किया. बस में इस ने इधरउधर ऐसे देखा मानों बता रही हो कि आमतौर पर वह बस में बैठने वाली नहीं है, इसलिए असहज महसूस कर रही है. पूरी बस का मुआयाना करने के बाद उस ने अपने बैठने की जो सीट चुनी उस की बगल में एक और महिला यात्री बैठी थी.

सीट में बैठ कर उस ने लंबी सांस ली और फिर कुछ सोचने की मुद्रा में आ गई पर उस का ध्यान अपनी बगल में बैठी महिला के पर्स पर था. जल्द ही उस की उंगलियों ने पर्स टटोल भी डाला और जब काम का कुछ नहीं मिला तो दूसरे स्टौप पर ही उतरने का उपक्रम करती हुई अगली सीट पर जा बैठी. पर वह यह नहीं समझ पाई कि उस महिला ने उसे पर्स टटोलते हुए देख लिया है पर वह न जाने क्यों कुछ बोली नहीं.

दूसरी सीट पर बैठने के बाद भी उस ने वही दोहराना चाहा लेकिन इस दफा कामयाब नहीं हो पाई. जैसे ही उस ने अपनी सहयात्री का पर्स खोला दूसरी यात्री ने उस का हाथ पकड़ लिया. दरअसल, वह महिला पुलिसकर्मी थी, जिस ने इस कथित संपन्न दिखने वाली महिला को रंगे हाथों पकड़ लिया.

गिरफ्तार करने के बाद जब उस से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस का नाम निशा है और वह इटारसी की रहने वाली है. वह केवलजेबकतरी के लिए इटारसीभोपाल अपडाउन करती थी. लेकिन उस दिन भोपाल ट्रैफिक पुलिस ने एडीशनल एस.पी. ट्रैफिक समीर यादव की अगुआई में एक मुहिम छेड़ी हुई थी, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि शहर में महिला जेबकतरों का गिरोह सक्रिय है. इसलिए पुलिस वाले सादी ड्रैस में लो फ्लोर बसें और मिनी बसों में चल रहे थे. उन्हें निशा पहचान नहीं पाई और पकड़ी गई.

कैसे पहचानें इन्हें

देश भर में निशा जैसी बहुत सारी महिलाएं ट्रेनों, मिनी बसों और स्थानीय बसों में मौजूद रह कर कैसे अपराध को अंजाम देती हैं यह बात किसी से छिपी नहीं रह गई है. पर इन्हें वक्त पर पहचान पाना हर किसी के बस की बात नहीं. सभ्य समाज में आमतौर पर लोग महिलाओं से इस स्तर के अपराधों की उम्मीद नहीं करते, इसलिए लुटपिट जाते हैं. बाद में पछताते देखे जाते हैं.

क्या इन महिला जेबकतरों को पहचाना जा सकता है? इस सवाल का जवाब कई लोगों और पुलिस वालों ने ‘नहीं’ में दिया. लेकिन यह जरूर माना कि इन के हावभाव देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन की मंशा असल में है क्या.

आमतौर पर सफर में लोग महिलाओं को ले कर शिष्टता दिखाते हैं पर चूंकि ये महिलाएं एक खास मकसद ले कर चढ़ी या बैठी होती हैं, इसलिए कुछ असामान्य भी दिखती हैं. अगर बारीकी से एक नजर में इन की हरकतों को ताड़ लिया जाए तो लुटने से बचा जा सकता है. मसलन:

– जेबकतरी महिलाएं आमतौर पर शिष्ट, सभ्य और संपन्न या मध्यवर्गीय दिखने की कोशिश करती हैं, इसलिए इन के चेहरे पर बनावटीपन, बेचैनी या तनाव भी रहता है.

– ये खुद को व्यस्त दिखाने की कोशिश करती हैं जिस से लोग इन की मंशा के बारे में सोच ही नहीं पाते.

– अधिकांश जेबकतरी महिलाएं बैठते ही इधरउधर की बातचीत करती हैं. मसलन, आज मौसम ऐसा या वैसा है, आप कहां जा रहे हैं, यह कौन सा स्टेशन या स्टौप आ गया वगैरहवगैरह.

– ऐसा करने के पीछे उन की मंशा खुद को सहज दिखाने और लोगों का ध्यान बंटाए रखने की होती है, क्योंकि अपराध करने के लिए इन के पास वक्त कम होता है.

– बस या ट्रेन में ये खाली सीट पर नहीं बैठतीं, बल्कि जहां कोई पहले से बैठा हो उस सीट को चुनती हैं.

– ये खुद को लापरवाह दिखाने की भी कोशिश करती हैं.

– इन की निगाहें बेहद सतर्क होती हैं और आप के सामान या जेब के इर्दगिर्द ज्यादा रहती हैं.

– अगर ये गिरोहबद्ध तरीके से काम करती हैं, तो एक के बाद एक स्टौप से चढ़ती हैं और एकदूसरे की मौजूदगी की तसल्ली करती हैं. इस दौरान अपने चेहरे के हावभाव और उतेजना वे नहीं छिपा पातीं पर यह सब इतनी जल्दी होता है कि आम लोग इस पासवर्ड को तोड़ नहीं पाते.

– अलगअलग स्टौप से चढ़ने की इन की मंशा या योजना यह रहती है कि एक जेब काटे, पर्स या मोबाइल उड़ाए और चुपचाप दूसरी को दे. इसे ये लोग पास करना बोलती हैं.

– कई बार बिलकुल फिल्मी स्टाइल में अपने गिरोह की महिला या पुरुष सदस्य से किसी भी बात पर झगड़ पड़ती हैं, जिस से दूसरों का ध्यान बंटे और ये अपने काम को कामयाबी से अंजाम दे पाएं. बीचबचाव के दौरान ही ये या इन का तीसरा साथी मौका देख माल उड़ा ले जाता है.

– ये अपने साथ ज्यादा सामान नहीं रखतीं.

– कई दफा ये खुद को काफी हैरानपरेशान या तनाव में दिखाने की कोशिश करती हैं ताकि लोग अपने सामान की हिफाजत के बजाय इन के बारे में सोचना शुरू कर दें.

ऐसे बचें इन से

जरूरी नहीं कि हर कोई इन्हें पहचान पाए या इन की मंशा ताड़ पाए, इसलिए ये अपने महिला होने का पूरा फायदा उठाती हैं. कुछ सावधानियां बरती जाएं तो इन से एक हद तक बचा जा सकता है:

– अगर खाली सीट है और उसे छोड़ महिला आप के पास आ बैठी है तो सतर्क हो जाएं. वह जेबकतरी हो सकती है.

– वह उपरोक्त बताए सवाल पूछे तो जवाब बहुत संक्षिप्त यानी हां, न या फिर पता नहीं में बेरुखी से दें और अपनी जेब, पर्स व सामान के प्रति सावधान हो जाएं.

– किसी भी आगुंतक महिला से दूरी बना कर बैठें, क्योंकि ऐसे अपराधों के लिए उन्हें कम दूरी चाहिए होती है.

– जेबकतरी महिलाएं ट्रेन में अकसर एक से दूसरे जंक्शन तक ही चलती हैं, इसलिए उन के चढ़नेउतरने को ले कर सावधान रहें. मसलन ट्रेन में भोपाल से सवार महिला खुद अपनी तरफ से यह बताने की कोशिश करे कि वह दिल्ली तक जा रही है, तो उस पर भरोसा न करें. आजकल ऐसी महिलाएं रिजर्वेशन तो दूर का करवाती हैं पर मौका मिलते ही दूसरे या तीसरे जंक्शन पर सामान ले कर गायब हो जाती हैं. किसी भी स्टेशन पर अपना सामान सहयात्री के भरोसे न छोड़ें.

– आजकल जो जेबकतरी महिलाएं पकड़ी जा रही हैं वे इतनी सफाई से पर्स की चैन खोल कर समान उड़ाती हैं कि लुटने वाले को

पता ही नहीं चलता कि कब नगदी पर्स से गायब हो गई. इसलिए कम से कम चैन वाला पर्स रखें और उसे साइड में रखने के बजाय गोद में रखें.

– अगर आप के साथ अपराध घटित हो जाए  तो नजदीकी थाने में रिपोर्ट जरूर दर्ज कराएं. यह न सोचें कि जो चला गया उस का क्या अफसोस करना या कि फिर वह नहीं मिलने वाला, बल्कि यह सोचें कि आप की यह उदासीनता जेबकतरों को प्रोत्साहन देने वाली साबित होगी.

पुलिस कुछ नहीं करती या इन लोगों से मिली रहती है जैसी सोच एक हद तक सच

हो सकती है, लेकिन भोपाल में इटारसी की निशा के पकड़े जाने की वजह लगातार हो रही शिकायतें व रिपोर्टों का ही दबाव था. इसलिए रिपोर्ट जरूर दर्ज कराएं और कोशिश करें कि अपराधी महिला का हुलिया ज्यादा से ज्यादा वक्त तक याद रख पाएं. 

समारोह में चाहिए अतिरिक्त सावधानी

विवाह समारोह से उड़ाए लाखों के जेवर जैसे शीर्षक वाले समाचार अब बेहद आम हो चले हैं और इन में से अधिकांश महिलाओं या बच्चों द्वारा किए जाते हैं. ऐसे में रेल या बस से सफर के बराबर ही सावधानी समारोहों में रखने की होती है. समारोहों में भी भीड़ इकट्ठा और अनुशासनहीन होती है और लोग अपनेआप में या दूसरों के साथ गप्पें लड़ाने में इतने खोए रहते हैं कि इन्हें पर्स या सामान उड़ाने में ज्यादा मेहनत नहीं करती पड़ती. इसलिए जब भी विवाह या दूसरे किसी समारोह में जाएं तो इन बातों का ध्यान रखें:

– यहां कीमती और नक्दी सुरक्षित रखने के ज्यादा विकल्प नहीं होते, इसलिए उन्हें कम से कम ले जाना चाहिए.

– कुरसी या किसी दूसरी जगह पर्स नहीं रखना चाहिए.

– स्टेज पर चढ़ते वक्त पर्स अपने साथ ही रखें. उसे नीचे किसी के भरोसे छोड़ कर न जाएं.

– अगर कोई महिला लगातार आसपास मंडराती दिख रही है, तो उस से सावधान हो जाएं. वह जेबकतरी हो सकती है. वजह आजकल शादियों में परिचित कम अपरिचित ज्यादा मिलते व दिखते हैं.

– खाने की मेजों पर आइटम लेने में हड़बड़ी न मचाएं न ही धक्कामुक्की के दौरान वहां जाएं. अगर कोई साथ है तो एक को पर्स व सामान की देखभाल के लिए रुकना चाहिए. उस के आने के बाद ही दूसरे को जाना चाहिए.

– पर्स को लटकाए या झुलाए रखने के बजाय कैरी बैग में रखें.

– अनावश्यक बातचीत करने वाले अपरिचितों से दूर रहें.

दांपत्य में न पनपने दें यह बीमारी

घर गृहस्थी की समस्याओं में उलझ कर आमतौर पर पतिपत्नी का प्रेमी एवं प्रेयसी रूप खोने लगता है. जहां कभी एक हुए 2 तन के अनुरागित मन में उत्साह, उमंग, प्यार, मनुहार, मानसम्मान का सागर पलपल एकदूसरे के लिए उमड़ता था उसी में संदेह, वहम एवं शंकाओं के झोंके आने लगते हैं.

एकदूसरे के दोषारोपण में सारे इंद्रधनुषी सपने बदरंग हो जाते हैं. शक जैसी घातक बीमारी का इलाज किसी डाक्टर के पास भी नहीं. यह एक मनोवैज्ञानिक व्याधि है, जो घरगृहस्थी को तबाह कर देती है.

यह एक ऐसी बीमारी है, जो जीवन में अशांति ला कर आएदिन न जाने कितने परिवारों को बरबाद कर देती है.

इस लाइलाज बीमारी के परिणाम से सभी वाकिफ होते हैं, फिर भी जानबूझ कर इस की चपेट में आ कर अपनी जिंदगी बरबाद कर लेते हैं.

दोनों के बीच प्यार और विश्वास हमेशा बना रहे यह कोशिश दोनों ओर से होनी चाहिए. एकदूसरे के प्रति प्रेम व विश्वास की धारा में संगसंग बहना, एकदूसरे की भावनाओं का मानसम्मान करना ही सुखी वैवाहिक जीवन की सच्ची कुंजी है. इस की सफलता दोनों की दूरदर्शिता पर निर्भर करती है अन्यथा आज के अवसाद एवं समस्याओं से भरे जीवन को नर्क बनते देर नहीं लगती है.

एक दूसरे की शक्ति

विवाह कुदरत का सब से खूबसूरत, पावन बंधन है, जिसे ताजिंदगी बनाए रखना दोनों का कर्तव्य है. पति घर की छत है, तो पत्नी उस की नींव. पत्नी विश्वसनीय सहचरी, सहगामिनी एवं सच्ची अर्द्धांगिनी होती है न कि पुरुष समाज द्वारा दिए दोयम दर्जे की नौकरानी. दोनों ही एकदूसरे की शक्ति हैं. शक के आधार पर पतिपत्नी के रिश्ते टूटते हैं, तो बच्चों का जीवन भी टूट कर बिखर जाता है. पति या पत्नी किसी को यह अधिकर नहीं है कि अपने ही नन्हेमुन्नों का जीवन बरबाद करें.

शाहरुख फिर बनेंगे डॉन

अमिताभ बच्चन के जूते में पैर डाल कर शाहरुख खान ने दस साल पहले ये साबित कर दिया था कि वो भी बड़े परदे के डॉन हैं और अब फिर से वैसा ही करने की बारी आ गई है जिसके संकेत साफ मिल रहे हैं.

दरअसल एक्सेल एंटरटेनमेंट के 15 साल पूरे होने के मौके पर इस फिल्मी प्रोडक्शन हाउस के ओनर और फरहान अख्तर के पार्टनर रितेश सिधवानी ने एक इंस्ट्राग्राम पोस्ट किया है, जिससे ये साफ संकेत मिल गए हैं कि शाहरुख खान को तीसरी बार डॉन बनाने की तैयारी शुरू हो गई है.

रितेश ने इस पोस्ट में शाहरुख की डॉन को उनकी सबसे कूल फिल्म बताया और ये संकेत दे दिया कि डॉन 3 भी बनाने जा रही है बस इन्तजार कीजिये. कुछ समय से ये खबर है कि रितेश और फरहान के साथ फिल्म ‘रईस’ की रिलीज के बाद किंग खान, डॉन-3 के लिए सहमति देने वाले हैं. फिलहाल वो अपनी अगली दोनों फिल्मों ‘डीयर ज़िंदगी’ और ‘द रिंग’ का काम खत्म करने में लगे हैं.

राहुल ढोलकिया निर्देशित उनकी ‘रईस’ अगले साल रिलीज होने वाली है और फिल्म में जिस तरह से उनका किरदार है वो डॉन 3 के लिए शाहरुख के मन बनाने के लिए काफी है. किंग खान ने 2006 में ‘डॉन’ में काम किया था जो काफी हिट रही और उसके बाद शाहरुख ने इसका सीक्वल भी बनाया जो पांच साल पहले रिलीज हुआ और इस फिल्म ने तब 200 करोड़ रूपये से ज्यादा की कमाई की थी.

एक बार फिर अक्षय ने दिखाई दरियादिली

बॉलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार हमेशा देश और देश के लोगों की सेवा के लिए आगे रहते हैं. हाल ही में उन्होंने एक बार फिर अपनी दरियादिली का उदारण दिया है. जी हां, सूत्रों के मुताबिक अक्षय ने महाराष्ट्र के उस गांव को गोद लेने की इच्छा जाहिर की है जहां कर्ज में दबे किसान सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं.

अक्षय राज्य के वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार से मिले और किसान आत्महत्या वाले गांव को गोद लेने की इच्छा जताई. उन्होंने कहा कि वह किसानों की मदद करना चाहते है, इसलिए राज्य के एक गरीब गांव को गोद लेंगे.

अक्षय ने कहा कि वे गोद लिए गांव में शिक्षा और रोजगार के लिए काम करेंगे ताकि कोई किसान आत्महत्या नहीं करे. साथ ही बेहतर शिक्षा पाकर नौकरी के साथ अपना रोजगार भी कर सकें.

महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं. इसलिए अक्षय ने भी इसी जिले के गांव को गोद की बात कही है जहां सर्वाधिक किसानों ने आत्महत्या की है. खबरों के मुताबिक यवतमाल के जिलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वे उस गांव का पता लगाएं जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या की घटना हुई है.

अक्षय इससे पहले मराठवाड़ा के सूखाग्रस्त गांवों को आर्थिक मदद देने की बात कह चुके हैं. उन्होंने सूखाग्रस्त गांवों के लिए 90 लाख रूपए की मदद देने की भी घोषणा की थी.

अक्षय की प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो वह जल्द ही ‘जॉली एलएलबी 2’ में नजर आने वाले हैं. फिलहाल वह अपनी फिल्म ‘नाम शबाना’ की शूटिंग में व्यस्त हैं.

मैंने मौके पर चौका मार दियाः रणबीर

फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ का ट्रेलर जब से रिलीज हुआ है, तब से सिर्फ रणबीर कपूर और ऐश्वर्या राय बच्चन के इंटिमेट सीन्स को लेकर ही चर्चा हो रही है. खबर थी कि इन सीन्स को देखकर अमिताभ बच्चन भी भड़क गए थे.

इधर सुनने को यह भी मिला था कि ऐश्वर्या खुद इन बोल्ड सीन्स को लेकर उत्साहित थीं. अब रणबीर ने बताया कि इन इंटिमेट सीन्स के दौरान उन्हें कैसा महसूस हो रहा था.

रणबीर इन दिनों ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की प्रमोशन में जुटे हुए हैं. रणबीर ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में बताया, ‘मैं जब ऐश्वर्या के साथ इंटिमेट सीन करता था, तो मुझे बहुत शर्म आती थी. मेरे हाथ कांपने लगते थे. मैं उनके गाल को छूने करने में झिझकता था.’

ऐश्वर्या ने ही शूटिंग के दौरान ऐश्वर्या की झिझक दूर की. रणबीर ने बताया, ‘फिर उन्होंने ही बोला, क्या परेशानी है? हम एक्टिंग कर रहे हैं और अपना काम सही से करो. फिर मैंने सोचा कभी ऐसा मौका मिलेगा नहीं, सो मैंने भी मौके पर चौका मार दिया. इसके साथ मेरी दो ख्वाहिश पूरी हुईं. एक माधुरी के साथ एक गाना करने की और दूसरी ऐश्वर्या के साथ काम करने की.’

रणबीर और ऐश्वर्या एक साथ फिल्म ‘आ अब लौट चलें’ में भी काम कर चुके हैं. हालांकि रणबीर ने इस फिल्म के लिए सिर्फ असिस्टेंट डायरेक्टर का काम किया था. उन्होंने बताया, ‘मैंने उस वक्त 10वीं पास की थी. पापा (ऋषि कपूर) की जो फिल्म थी आ अब लौट चलें, उसमें उन्होंने एक्टिंग की थी और मैं फिल्म में एक असिस्टेंट डायरेक्टर था और वहीं हमारी दोस्ती हो गई थी.

बता दें कि ‘ऐ दिल है मुश्किल’ कई मुश्किलों को पर कर रिलीज होने जा रही है. पाकिस्तानी कलाकारों को लेकर फिल्म का काफी विरोध हुआ. लेकिन आखिरकार फिल्म 28 अक्टूबर को रिलीज होने जा रही है. रणबीर, ऐश्वर्या के अलावा फिल्म में अनुष्का शर्मा और फवाद खान भी अहम किरदारों में नजर आएंगे.

‘नामकरण’ ने नहीं कमाया नाम

महेश भट्ट की फिल्म जख्म भले ही हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में शामिल है, लेकिन इस फिल्म पर आधारित टीवी शो ‘नामकरण’ को दर्शकों का सपोर्ट नहीं मिल सका, जिसके चलते शो को ऑफ एयर किया जा सकता है.

दरअसल, ‘नामकरण’ टीआरपी की रेस में पिछड़ रहा है. खबर है कि चैनल इस शो को मिल रही टीआरपी से बिल्कुल ख़ुश नहीं है और इस वजह से उन्होंने यह निर्णय लिया है कि शो को जल्द ही ऑफ एयर कर दिया जायेगा. गौरतलब है कि महेश भट्ट ने इस शो को बहुत अरमानों से तैयार किया था. शो का कांसेप्ट भी टेलीविजन के लिए नया रहा, लेकिन इसके बावजूद शो को अच्छी टीआरपी नहीं मिल पायी है.

इसलिए शो को वक्त से पहले बंद किया जा रहा है. यही वजह है कि मेकर्स को चैनल की तरफ से यह कहा गया है कि वे शो में इस तरह के ट्रैक्स तैयार करें कि शो का क्लाइमेक्स दिखाया जा सके और अच्छे नोट पर इस शो की समाप्ति हो.

‘नामकरण’ में बरखा बिष्ट, विराफ पटेल, रीमा लागू, सायंतनी घोष मुख्य किरदार निभा रहे हैं. शो महेश भट्ट की निजी ज़िंदगी पर बेस्ड है और इसकी लांचिंग काफी जोर-शोर से की गई थी.

चंडीगढ़: द सिटी ब्यूटीफुल

भारत के उत्तर क्षेत्र में स्थित चंडीगढ़ शहर देश का सबसे सुनियोजित क्षेत्र भी कहलाता है. शहर में प्रवेश करते ही आपको इसकी खूबसूरती का अंदाजा लग जायेगा.

यह खूबसूरत और नियोजित शहर, बुनियादी सुविधाओं के लिए डिजाइन किए गए रचनाओं और इमारतों के लिए प्रसिद्ध है. इन नियोजित रचनाओं के साथ प्रकृति को भी शहर से अच्छी तरह जोड़ा गया है, जिससे शहर की खूबसूरती में बढ़ जाती है.

1. द सिटी ब्यूटीफुल

शहर में पर्यारवण के अनुकूल शहरी परिदृश्य और सुनियोजित बुनियादी ढांचे के कारण इसे ‘द सिटी ब्यूटीफुल’ के नाम से भी जाना जाता है.

2. शहर का नाम

चंडीगढ़ शहर का नाम चंडी देवी मंदिर के नाम पर पड़ा, जो शहर में स्थापित एक हिन्दू मंदिर है.

3. शहर की दो अलग-अलग भूमिका

चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा दोनों ही राज्यों की राजधानी है. दो राज्यों की राजधानी होने के साथ-साथ यह दोहरी भूमिका में एक केंद्र शासित प्रदेश भी है.

4. ट्राइसिटी(त्रिशहर)

चंडीगढ़, हरियाणा के पंचकुला और पंजाब के मोहाली के साथ ट्राइसिटी(त्रिशहर) का निर्माण करता है.

5. फ्रेंच शैली

शहर का मुख्य डिजाइन फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कॉर्बुसिएर द्वारा तैयार किया गया था. हालांकि, कई लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि यह पहले के ही डिजाइन का विस्तारित रूप है, जिसे अमेरिकन आर्किटेक्ट अल्बर्ट मेयर द्वारा तैयार किया गया था.

6. रास्तों में बने रॉउंडबाउट्स

चंडीगढ़ की सड़कों पर बहुत सारे रॉउंडबाउट्स बने हुए हैं जो यहां के यातयात की प्रवाह में मदद करते हैं. ये रॉउंडबाउट्स शहर की खूबसूरती को भी बढ़ाते हैं.

7. सदाबहार शहर

चंडीगढ़ भारत के सबसे हरे-भरे शहर के रूप में सम्मानित है. शहर के विकास के दौरान वृक्षारोपण यहां की एक महत्वपूर्ण योजना थी. यहां पेड़-पौधों की कई प्रजातियां हैं.

8. द ओपन हैण्ड

शहर का द ओपन हैण्ड, चंडीगढ़ सरकार का प्रतीक है. यह स्मारकीय रचना ली कॉर्बुसिएर द्वारा बनाई गई थी. यह रचना यह दर्शाता है कि ‘यह हाथ शांति, समृद्धि और मानव जाति की एकता को देने और लेने के लिए है.

9. अशुभ नंबर 13

चंडीगढ़ के किसी भी सेक्टर में 13 नंबर नहीं है. यहां के विश्वास के मुताबिक 13 नंबर शुभ नहीं होता.

10. इतिहास के समीप

चंडीगढ़ से लगभग 43 किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित संघोल गांव यहां का सबसे नजदीकी पुरातात्विक स्थल है. प्राचीन हड़प्पा संस्कृति के कई अवशेष भी यहां पाए गए हैं. कई प्राचीन बौद्धिक स्तूप भी यहां की खुदाई के दौरान मिले हैं.

11. सेक्टर के अनुसार योजित

चंडीगढ़ शहर को सेक्टर्स के अनुसार योजित किया गया है. इन सेक्टर्स में ही आवासीय क्षेत्र, वाणिज्यिक क्षेत्र आदि बसे हुए हैं.

12. अस्थिर जलवायु

चंडीगढ़ शहर शिवालिक पर्वत श्रेणी के तलहटी के पास बसा हुआ है, इसलिए यहां बहुत गर्मी, रुक-रुक कर बारिश और हलकी ठण्ड का अनुभव होता है.

13. सेक्टर 17

सेक्टर 17 यहां का प्रमुख कमर्शियल केंद्र है. यहां के सेंट्रल प्लाजा में बड़े-बड़े स्टोर, रेस्टोरेंट आदि बने हुए हैं. इसे ‘पेडेस्ट्रिन्स पैराडाइस(पैदल चलने वालों का स्वर्ग)’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां लोग बिना ट्रैफिक के सैर का मजा ले सकते हैं.

14. साइकिल मार्ग

यहां के कई रास्तों में साइकिल चलाने के लिए अलग से रास्ते बने गए हैं जिससे की साइकिल चलाने वालों को सुविधा हो.

15. पेंशनियर्स पैराडाइस(पेंशनभोगियों का स्वर्ग)

चंडीगढ़ तीन सरकारों का मुख्य केंद्र है, इसलिए यहां के ज्यादातर लोग या तो सरकारी नौकरी में होते हैं या फिर सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त नागरिक. इसलिए इसे पेंशनभोगियों का स्वर्ग भी कहा जाता है.

16. साफ सुथरा शहर

राष्ट्रीय सरकार के अनुसार यह सबसे साफ सुथरे शहरों में से एक है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें