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उन्मुक्त : कैसा था प्रौफेसर सोहनलाल का बुढ़ापे का जीवन

लेखक- श्रीप्रकाश

फिर प्रोफैसर ने नाश्ता और चाय लिया. रीमा बगल में ही बैठी थी पहले की तरह और आदतन टेबल पर पोर्टेबल टूइनवन में गाना भी बज रहा था. रीमा बोली, ‘‘आजकल आप कुछ ज्यादा ही रोमांटिक गाने सुनने लगे हैं. कमला मैडम के समय ऐसे नहीं थे.’’

उन्होंने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘अभी तुम ने मेरा रोमांस देखा कहां है?’’

रीमा बोली, ‘‘वह भी देख लूंगी, समय आने पर. फिलहाल कुछ पैसे दीजिए राशन पानी वगैरह के लिए.’’

प्रोफैसर ने 500 के 2 नोट उसे देते हुए कहा, ‘‘इसे रखो. खत्म होने के पहले ही और मांग लेना. हां, कोई और भी जरूरत हो, तो निसंकोच बताना.’’

रीमा बोली, ‘‘जानकी बेटी के लिए कुछ किताबें और कपड़े चाहिए थे.’’ उन्होंने 2 हजार रुपए का नोट उस को देते हुए कहा, ‘‘जानकी की पढ़ाई का खर्चा मैं दूंगा. आगे उस की चिंता मत करना.’’

कुछ देर बाद रीमा बोली, ‘‘मैं आप का खानापीना दोनों टाइम का रख कर जरा जल्दी जा रही हूं. बेटी के लिए खरीदारी करनी है.’’

प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जाओ, पर एक बार गले तो मिल लो, और हां, मैडम की अलमारी से एकदो अपनी पसंद की साडि़यां ले लो. अब तो यहां इस को पहनने वाला कोई नहीं है.’’

रीमा ने अलमारी से 2 अच्छी साडि़यां और मैचिंग पेटीकोट निकाले. फिर उन से गले मिल कर चली गई.

अगले दिन रीमा कमला के कपड़े पहन कर आई थी. सुबह का नाश्तापानी हुआ. पहले की तरह फिर उस ने लंच भी बना कर रख दिया और अब फ्री थी. प्रोफैसर बैडरूम में लेटेलेटे अपने पसंदीदा गाने सुन रहे थे. उन्होंने रीमा से 2 कौफी ले कर बैडरूम में आने को कहा. दोनों ने साथ ही बैड पर बैठेबैठे कौफी पी थी. इस के बाद प्रोफैसर ने उसे बांहों में जकड़ कर पहली बार किस किया और कुछ देर दोनों आलिंगनबद्ध थे. उन के रेगिस्तान जैसे तपते होंठ एकदूसरे की प्यास बु झा रहे थे. दोनों के उन्माद चरमसीमा लांघने को तत्पर थे. रीमा ने भी कोई विरोध नहीं किया, उसे भी वर्षों बाद मर्द का इतना सामीप्य मिला था.

अब रीमा घर में गृहिणी की तरह रहने लगी थी. कमला के जो भी कपड़े चाहिए थे, उसे इस्तेमाल करने की छूट थी. डै्रसिंग टेबल से पाउडर क्रीम जो भी चाहिए वह लेने के लिए स्वतंत्र थी.

कुछ दिनों बाद नवल बेटे का स्काइप पर वीडियो कौल आया. रीमा घर में कमला की साड़ी पहने थी. प्रोफैसर की बहू रेखा ने भी एक ही  झलक में सास की साड़ी पहचान ली थी. औरतों की नजर इन सब चीजों में पैनी होती है. रीमा ने उसे नमस्ते भी किया था. रेखा ने देखा कि रीमा और उस के ससुर दोनों पहले की अपेक्षा ज्यादा खुश और तरोताजा लग रहे थे.

बात खत्म होने के बाद रेखा ने अपने पति नवल से कहा, ‘‘तुम ने गौर किया, रीमा ने मम्मी की साड़ी पहनी थी और पहले की तुलना में ज्यादा खुशमिजाज व सजीसंवरी लग रही थी. मु झे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘तुम औरतों का स्वभाव ही शक करने का होता है. पापा ने मम्मी की पुरानी साड़ी उसे दे दी तो इस में क्या गलत है? और पापा खुश हैं तो हमारे लिए अच्छी बात है न?’’

‘‘इतना ही नहीं, शायद तुम ने ध्यान नहीं दिया. घर में पापा लैपटौप ले कर जहांजहां जा रहे थे, रीमा उन के साथ थी. मैं ने मम्मी की ड्रैसिंग टेबल भी सजी हुई देखी है,’’ रेखा बोली.

नवल बोला, ‘‘पिछले 2-3 सालों से पापामम्मी की बीमारी से और फिर उन की मौत से परेशान थे, अब थोड़ा सुकून मिला है, तो उन्हें भी जिंदगी जीने दो.’’

प्रोफैसर और रीमा का रोमांस अब बेरोकटोक की दिनचर्या हो गई थी. अब बेटेबहू का फोन या स्काइप कौल

आता तो वे उन से बातचीत में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते थे और जल्दी ही कौल समाप्त कर देना चाहते थे. इस बात को नवल और रेखा दोनों ने महसूस किया था.

कुछ दिनों बाद बेटे ने पापा को फोन कर स्काइप पर वीडियो पर आने को कहा, और फिर बोला, ‘‘पापा, थोड़ा पूरा घर दिखाइए. देखें तो मम्मी के जाने के बाद अब घर ठीकठाक है कि नहीं?’’

प्रोफैसर ने पूरा घर घूम कर दिखाया और कहा, ‘‘देखो, घर बिलकुल ठीकठाक है. रीमा सब चीजों का खयाल ठीक से रखती है.’’

नवल बोला, ‘‘हां पापा, वह तो देख रहे हैं. अच्छी बात है. मम्मी के जाने के बाद अब आप का दिल लग गया घर में.’’

जब प्रोफैसर कैमरे से पूरा घर दिखा रहे थे तब बहू, बेटे दोनों ने रीमा को मम्मी की दूसरी साड़ी में देखा था. इतना ही नहीं, बैड पर भी मम्मी की एक साड़ी बिखरी पड़ी थी. तब रेखा ने नवल से पूछा, ‘‘तुम्हें सबकुछ ठीक लग रहा है, मु झे तो दाल में काला नजर आ रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘हां, अब तो मु झे भी कुछ शक होने लगा है. खुद जा कर देखना होगा, तभी तसल्ली मिलेगी.’’

इधर कुछ दिनों के लिए रीमा की बेटी किसी रिश्तेदार के साथ अपने ननिहाल गई हुई थी. तब दोनों ने इस का भरपूर लाभ उठाया था. पहले तो रीमा डिनर टेबल पर सजा कर शाम के पहले ही घर चली जाती थी. प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जानकी जब तक ननिहाल से लौट कर नहीं आती है, तुम रात को भी यहीं साथ में खाना खा कर चली जाना.’’

आज रात 8 बजे की गाड़ी से जानकी लौटने वाली थी. रीमा ने उसे प्रोफैसर साहब के घर ही आने को कहा था क्योंकि चाबी उसी के पास थी. इधर नवल ने भी अचानक घर आ कर सरप्राइज चैकिंग करने का प्रोग्राम बनाया था. उस की गाड़ी भी आज शाम को पहुंच रही थी.

अभी 8 बजने में कुछ देर थी. प्रोफैसर और रीमा दोनों घर में अपना रोमांस कर रहे थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी तो उन्होंने कहा, ‘‘रुको, मैं देखता हूं. शायद जानकी होगी.’’ और उन्होंने लुंगी की गांठ बांधते हुए दरवाजा खोला तो सामने बेटे को खड़ा देखा. कुछ पलों के लिए दोनों आश्चर्य से एकदूसरे को देखते रहे थे, फिर उन्होंने नवल को अंदर आने को कहा. तब तक रीमा भी साड़ी ठीक करते हुए बैडरूम से निकली जिसे नवल ने देख लिया था.

रीमा बोली, ‘‘आज दिन में नहीं आ सकी थी तो शाम को खाना बनाने आई हूं. थोड़ी देर हो गई है, आप दोनों चल कर खाना खा लें.’’

खैर, बापबेटे दोनों ने खाना खाया. तब तक जानकी भी आ गई थी. रीमा अपनी बेटी के साथ लौट गई थी. रातभर नवल को चिंता के कारण नींद नहीं आ रही थी. अब उस को भी पत्नी की बातों पर विश्वास हो गया था. अगले दिन सुबह जब प्रोफैसर साहब मौर्निंग वौक पर गए थे, नवल ने उन के बैडरूम का मुआयना किया. उन के बाथरूम में गया तो देखा कि बाथटब में एक ब्रा पड़ी थी और मम्मी की एक साड़ी भी वहां हैंगर पर लटक रही थी. उस का खून गुस्से से खौलने लगा था. उस ने सोचा, यह तो घोर अनैतिकता हुई और मम्मी की आत्मा से छल हुआ. उस ने निश्चय किया कि वह अब चुप नहीं रहेगा, पापा से खरीखरी बात करेगा.

रीमा तो सुबह बेटी को स्कूल भेज कर 8 बजे के बाद ही आती थी. उस के पहले जब प्रोफैसर साहब वौक से लौट कर आए तो नवल ने कहा, ‘‘पापा, आप मेरे साथ इधर बैठिए. आप से जरूरी बात करनी है.’’

वे बैठ गए और बोले, ‘‘हां, बोलो बेटा.’’

नवल बोला, ‘‘रीमा इस घर में किस हैसियत से रह रही है? आप के बाथरूम में ब्रा कहां से आई और मम्मी की साड़ी वहां क्यों है? मम्मी की साडि़यों में मैं ने और रेखा दोनों ने रीमा को बारबार स्काइप पर देखा है. मम्मी की डै्रसिंग टेबल पर मेकअप के सामान क्यों पड़े हैं? इन सब का क्या मतलब है?’’

प्रोफैसर साहब को बेटे से इतने सारे सवालों की उम्मीद न थी. वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे. तब नवल ने गरजते हुए कहा, ‘‘पापा बोलिए, मैं आप से ही पूछ रहा हूं. मु झे तो लग रहा है कि रीमा सिर्फ कामवाली ही नहीं है, वह मेरी मम्मी की जगह लेने जा रही है.’’

प्रोफैसर साहब तैश में आ चुके थे. उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा, ‘‘तुम्हारी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता है. पर क्या मु झे खुश रहने का अधिकार नहीं है?’’

नवल बोला, ‘‘यह तो हम भी चाहते हैं कि आप खुश रहें. आप हमारे यहां आ कर मन लगाएं. पोतापोती और बहू हम सब आप को खुश रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे.’’

‘‘भूखा रह कर कोईर् खुश नहीं रह सकता है,’’ वे बोले.

नवल बोला, ‘‘आप को भूखा रहने का सवाल कहां है?’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘खुश रहने के लिए पेट की भूख मिटाना ही काफी नहीं है. मैं कोई संन्यासी नहीं हूं. मैं भी मर्द हूं. तुम्हारी मां लगभग पिछले 3 सालों से बीमार चल रही थीं. मैं अपनी इच्छाओं का दमन करता रहा हूं. अब उन्हें मुक्त करना चाहता हूं. मु झे व्यक्तिगत मामलों में दखलअंदाजी नहीं चाहिए. और मैं ने किसी से जोरजबरदस्ती नहीं की है. जो हुआ, दोनों की सहमति से हुआ.’’ एक ही सांस में इतना कुछ बोल गए वे.

नवल बोला, ‘‘इस का मतलब मैं जो सम झ रहा था वह सही है. पर 70 साल की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘तुम्हें जो भी लगे. जहां तक बुढ़ापे का सवाल है, मैं अभी अपने को बूढ़ा नहीं महसूस करता हूं. मैं अभी भी बाकी जीवन उन्मुक्त हो कर जीना चाहता हूं.’’

नवल बोला, ‘‘ठीक है, आप हम लोगों की तरफ से मुक्त हैं. आज के बाद हम से आप का कोई रिश्ता नहीं रहेगा.’’ और नवल ने अपना बैग उठाया, वापस चल पड़ा. तभी दरवाजे की घंटी बजी थी. नवल दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल पड़ा था. रीमा आई थी. वह कुछ पलों तक बाहर खड़ेखड़े नवल को जाते देखते रही थी.

तब प्रोफैसर साहब ने हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया था. फिर उसे बांहों में कस कर जकड़ लिया और कहा, ‘‘आज मैं आजाद हूं.”

मुहब्बत पर फतवा : रजिया की कहानी

लेखक- अब्बास खान ‘संगदिल’

रजिया को छोड़ कर उस के वालिद ने दुनिया को अलविदा कह दिया. उस समय रजिया की उम्र तकरीबन 2 साल की रही होगी. रजिया को पालने, बेहतर तालीम दिलाने का जिम्मा उस की मां नुसरत बानो पर आ पड़ा. खानदान में सिर्फ रजिया के चाचा, चाची और एक लड़का नफीस था. माली हालत बेहतर थी. घर में 2 बच्चों की परवरिश बेहतर ढंग से हो सके, इस का माकूल इंतजाम था. अपने शौहर की बात को गांठ बांध कर नुसरत बानो ने दूसरे निकाह का ख्वाब पाला ही नहीं. वे रजिया को खूब पढ़ालिखा कर डाक्टर बनाने का सपना देखने लगीं. ‘‘देखो बेटी, तुम्हारी प्राइमरी की पढ़ाई यहां हो चुकी है. तुम्हें आगे पढ़ना है, तो शहर जा कर पढ़ाई करनी पड़ेगी. शहर भी पास में ही है. तुम्हारे रहनेपढ़ाने का इंतजाम हम करा देंगे, पर मन लगा कर पढ़ना होगा… समझी?’’ यह बात रजिया के चाचा रहमत ने कही थी.

दोनों बच्चों ने उन की बात पर अपनी रजामंदी जताई. अब रजिया और उस के चाचा का लड़का नफीस साथसाथ आटोरिकशे से शहर पढ़ने जाने लगे. दोनों बच्चे धीरेधीरे आपस में काफी घुलमिल गए थे. स्कूल से आ कर वे दोनों अकसर साथसाथ रहते थे. चानक एक दिन बादल छाए, गरज के साथ पानी बरसने लगा. रजिया ने आटोरिकशे वाले से जल्दी घर चलने को कहा. इस पर आटोरिकशा वाले ने कुछ देर बरसात के थमने का इंतजार करने को कहा, पर रजिया नहीं मानी और जल्दी घर चलने की जिद करने लगी. भारी बारिश के बीच तेज रफ्तार से चल रहा आटोरिकशा अचानक एक मोड़ पर आ कर पलट गया. ड्राइवर आटोरिकशा वहीं छोड़ कर भाग गया.

रजिया आटोरिकशा के बीच फंस गई, जबकि नफीस यह हादसा होते ही उछल कर दूर जा गिरा. उस ने बहादुरी से पीछे आ रहे अनजान मोटरसाइकिल वाले की मदद से आटोरिकशे में फंसी रजिया को बाहर निकाला.

‘‘मामूली चोट है. उसे 2-3 दिन अस्पताल में रहना होगा,’’ डाक्टर ने कहा.

‘‘ठीक है. आप भरती कर लें डाक्टर साहब,’’ रजिया के चाचा रहमत ने कहा. नफीस अपने परिवार वालों के साथ रजिया की तीमारदारी में लग गया. परिवार वाले दोनों के प्यार को देख कर खुश होते.

‘‘नफीस, अब तुम सो जाओ. रात ज्यादा हो गई है. मुझे जब नींद आ जाएगी, तो मैं भी सो जाऊंगी,’’  रजिया ने कहा.

‘‘नहीं, जब तक तुम्हें नींद नहीं आएगी, तब तक मैं भी जागूंगा,’’ नफीस बोला. नफीस ने रजिया की देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस की इस खिदमत से रजिया उसे अब और ज्यादा चाहने लगी थी.

‘‘अम्मी देखो, मैं और नफीस मैरिट में पास हो गए हैं.’’

अम्मी यह सुन कर खुश हो गईं. थोड़ी देर के बाद वे बोलीं, ‘‘अब तुम दोनों अलगअलग कालेज में पढ़ोगे.’’

‘‘पर, क्यों अम्मी?’’ रजिया ने पूछा.

‘‘तुम डाक्टर की पढ़ाई करोगी और नफीस इंजीनियरिंग की. दोनों के अलगअलग कालेज हैं. अब तुम दोनों एकसाथ थोड़े ही पढ़ पाओगे. नफीस के अब्बू उसे इंजीनियर बनाना चाहते हैं. हां, पर रहोगे एक ही शहर में,’’ अम्मी ने रजिया को प्यार से समझाया.

‘‘ठीक है अम्मी,’’ रजिया ने छोटा सा जवाब दिया. उन दोनों का अलगअलग कालेज में दाखिला हो गया. दाखिला मिलते ही वे दोनों अलगअलग होस्टल में रहने लगे. एक रात अचानक 11 बजे नफीस के मोबाइल फोन की घंटी बजी.

‘‘नफीस, सो गए क्या?’’ रजिया ने पूछा.

‘‘नहीं रजिया, तुम्हारी याद मुझे बेचैन कर रही है. साथ ही, अम्मीअब्बू और बड़ी अम्मी की याद भी आ रही है,’’ कह कर नफीस सिसक उठा.

‘‘जो हाल तुम्हारा है, वही हाल मेरा भी है. कैसे बताऊं कि दिनरात तुम्हारे बिना कैसे गुजर रहे हैं,’’ रजिया बोली.

वे दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे और फिर ‘शब्बाखैर’ कह कर सो गए.

‘‘मैडम, यह मेरे देवर का लड़का नफीस है. अब तक इन दोनों बच्चों ने साथसाथ खेलकूद कर पढ़ाई की है. अब ये परिवार से दूर अलगअलग रहेंगे. अगर नफीस अपनी बहन से मिलने आता है, तो इसे आप मिलने की इजाजत दे दें. इस बाबत आप वार्डन को भी बता दें, तो आप की मेहरबानी होगी,’’ रजिया की अम्मी ने कालेज की प्रिंसिपल से कहा.

‘‘ठीक है, पर हफ्ते में सिर्फ छुट्टी के दिन रविवार को ही मिल सकते हैं,’’ प्रिंसिपल ने कहा.

‘‘जी ठीक है, हमें मंजूर है.’’

रविवार का इंतजार करना नफीस को भारी पड़ता था. रविवार आते ही वह रजिया से मिलने उस के होस्टल मोटरसाइकिल से पहुंच जाता था. वे दोनों घंटों बैठ कर बातें करते थे. जातेजाते नफीस होस्टल के गेटकीपर को इनाम देना नहीं भूलता था. वह वार्डन को भी तोहफे देता था. एक बार नफीस अपने दोस्त के साथ रजिया से मिलने पहुंचा और बोला, ‘‘रजिया, यह मेरा दोस्त अमान है. हम दोनों एक ही कमरे में रहते हैं.’’

‘‘अच्छा, आप कहां के रहने वाले हैं?’’ रजिया ने अमान से पूछा.

‘‘जी, आप के गांव के पास का.’’

इस तरह नफीस ने अमान का परिचय करा कर उस की खूब तारीफ की. अब तो अमान भी रजिया से मिलने नफीस के साथ आ जाता था. वे एकदूसरे से इतने घुलमिल गए, जैसे बरसों की पहचान हो.

‘‘रजिया, क्या तुम नफीस को चाहती हो?’’ अमान ने अकेले में रजिया से पूछा.

‘‘हां, कोई शक?’’ रजिया बोली.

‘‘नहीं,’’ अमान ने कहा.

अमान इस फैसले पर नहीं पहुंच पा रहा था कि उन का प्यार दोनों भाईबहन जैसा था या प्रेमीप्रेमिका जैसा. समय का पहिया घूमा. रजिया के एकतरफा प्यार में डूबा अमान उसे पा लेने के सपने संजोने लगा. इम्तिहान खत्म हो गए थे. बुलावे पर रजिया की मां उसे घर में अपने देवर के भरोसे छोड़ कर मायके चली गई थीं. टैलीविजन देखने के बहाने नफीस देर रात तक रजिया के कमरे में रहा. ज्यादा रात होने पर रजिया ने कहा, ‘‘तुम यहीं बाहर बरामदे में सो जाओ. मुझे अकेले में डर लगता है.’’ नफीस बरामदे में अपना बिस्तर डाल कर सोने की कोशिश करने लगा, पर आंखों में नींद कहां. वह तो रजिया के प्यार के सपने बुनने लगा था. रात बीतती जा रही थी. नफीस को अचानक अंदर से रजिया के कराहने की आवाज आई. वह बिस्तर से उठ बैठा. दरवाजे के पास जा कर जोर से दरवाजा खटखटाया. दरवाजा पहले से खुला था. वह अंदर गया.

नफीस ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ रजिया?’’

‘‘पेट में दर्द हो रहा है,’’ रजिया ने कराहते हुए कहा.

‘‘मैं अम्मी को बुला कर लाता हूं,’’ सुन कर नफीस ने कहा.

‘‘नहीं, अम्मी को बुला कर मत लाओ. मैं ने दवा खा ली है. ठीक हो जाऊंगी. किसी को भी परेशान करने की जरूरत नहीं है… तुम मेरे पास आ कर बैठो. जरा मेरे पेट को सहलाओ. इस से शायद मुझे राहत मिले.’’

नफीस उस के पेट को सहलाने लगा. नफीस के हाथ की छुअन पाते ही रजिया के मन में सैक्स उभरने लगा. इधर नफीस भी आंखें बंद कर के पेट सहलाता जा रहा था, तभी रजिया ने नफीस का हाथ पकड़ कर अपने उभारों पर रख दिया. नफीस के हाथ रखते ही वह गुलाब की तरह खिल उठी.

‘‘जरा जोर से सहलाओ,’’ रजिया अब पूरी तरह बहक चुकी थी. उस ने एक झटके से नफीस को खींच कर अपने बगल में लिटा लिया और ऊपर से रजाई ढक ली. और वह सबकुछ हो गया, जिस की उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी. उधर अमान को भी रजिया की जुदाई तड़पा रही थी. जब उस से रहा नहीं गया, तो वह नफीस से मिलने के बहाने उस के गांव जा पहुंचा. नफीस ने उस की खूब खातिरदारी की. वह रजिया से भी मिला. अमान ने रजिया से उस का मोबाइल नंबर मांगा, पर रजिया ने बहाना बना कर नहीं दिया, न ही फोन पर बात करने को कहा. अमान भारी मन से लौट गया.

पढ़ाई का यह आखिरी साल था. नफीस की उम्र 21 साल की होने जा रही थी, वहीं रजिया 18वां वसंत पार कर 19वें की ओर बढ़ रही थी. उस की बोलचाल किसी को भी अपना बनाने के लिए दावत देती थी. बादलों के बीच चमकती बिजली सी जब वह घर से बाहर निकलती, तो कई उस के दीवाने हो जाते.कालेज खुल चुके थे. वे दोनों अपनेअपने होस्टल में पहुंच चुके थे.

एक दिन रजिया ने अपनी प्रिंसिपल से कहा, ‘‘मैडम, हमें बाहर खाना खाने के लिए 2 घंटे का समय मिलना चाहिए, क्योंकि होस्टल में शाकाहारी खाना मिलता है और हम…’’

‘‘ठीक है, रविवार को चली जाया करो,’’ प्रिंसिपल ने अपनी रजामंदी दे दी.

इस के बाद नफीस और रजिया मोटरसाइकिल पर सवार हो कर एक होटल पहुंच गए. नफीस ने पहले ही वहां एक कमरा बुक करा रखा था. अब तो सिलसिला चल पड़ा और वे दोनों अपने तन की प्यास बुझाने होटल आ जाते थे. एक दिन अमान भी होटल में नफीस और रजिया को देख कर पहुंच गया.

‘‘मैनेजर, अभीअभी एक लड़का और एक लड़की आप के होटल में आए हैं. वे किस कमरे में ठहरे हैं?’’ अमान ने पूछा.

‘‘मुझे पता नहीं. कई लोग आतेजाते हैं. आप खुद देख लो,’’ मैनेजर ने कहा.

अमान ने सारा होटल देख डाला, पर उसे वे दोनों नहीं मिले. अब अमान की जिज्ञासा और बढ़ गई.

अगले दिन अमान ने नफीस से पूछा, ‘‘कल मैं ने तुम्हें और रजिया को एक होटल में जाते हुए देखा था, पर तुम वहां अंदर कहीं नहीं दिखे.’’

नफीस चुपचाप सबकुछ सुनता रहा, पर बोला कुछ नहीं. अमान के जाने के बाद नफीस रजिया से मिला और बोला, ‘‘रजिया, ऐसा लगता है, जैसे अमान हमारी जासूसी कर रहा है. वह हमें ढूंढ़तेढूंढ़ते होटल में जा पहुंचा था.’’

‘‘हमें अब दूरी कम करनी होगी, नहीं तो बवाल खड़ा हो जाएगा,’’ रजिया डरते हुए बोली.

समय तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था. कैसे एक साल बीत गया, पता नहीं चला. अमान ने सोचा कि अगर रजिया को पाना है, तो नफीस से दोस्ती बना कर रखनी होगी. इम्तिहान शुरू हो गए थे. आज रजिया का आखिरी पेपर था. दूसरे दिन घर वापस आना था. अमान का रजिया से मिलने का सपना टूटने लगा. प्यार से बेखबर रजिया के पेट में नफीस का 4 महीने का बच्चा पल रहा था. कहा गया है कि आदमी जोश में होश खो बैठता है. डाक्टरी की पढ़ाई करने के बाद भी रजिया अपना बचाव नहीं कर पाई.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनिए. अगर आप ने पेट गिराने की कोशिश की, तो लड़की की जान जा सकती है. आगे आप जानें. आप मरीज को घर ले जाइए,’’ डाक्टर ने रजिया का मुआयना कर के कहा.

डाक्टर की बात सुन कर रजिया की अम्मी, चाचाचाची सकते में आ गए. रजिया को घर ले आए. सभी ने रजिया से पूछा कि किस का पाप पेट में पल रहा है, पर वह खामोश रही. आंसू बहाती रही. नफीस पर कोई शक नहीं कर रहा था. बात धीरेधीरे गांव में फैल गई. हर किसी की जबान पर रजिया का नाम था. अगर उसे शहर में पढ़ने को नहीं भेजते, तो ऐसा नहीं होता. अमान पर शक की सूई घूमी, उस से ही निकाह कर दिया जाए. एक रिश्तेदार कासिद को उस के घर भेजा गया, पर वह पैगाम ले कर खाली हाथ लौटा. गांव की जमात इकट्ठा हुई. पंचायत बैठी. मौलाना ने सब के सामने खत पढ़ कर सुनाने को कहा. लिखा था:

‘आप की जमात का पैगाम मिला, पर हम एक बेहया और बदचलन लड़की से अपने लड़के का निकाह कर के खानदान पर दाग नहीं लगाना चाहते. न जाने किस कौम की नाजायज औलाद पाल रखी है उस ने.’ मौलाना कुछ देर खामोश बैठे रहे. कुछ सोचने के बाद मौलाना ने अपना फैसला सुनाया, ‘‘बात सही लिखी है. जमात आज से इन का हुक्कापानी बंद करती है. जमात का कोई भी शख्स इन से कोई ताल्लुक नहीं रखेगा.

‘‘लड़की को फौरन गांव से बाहर कर दिया जाए. मुहब्बत करने चली थी, मजहब के उसूलों का जरा भी खयाल नहीं आया उसे. यही मुहब्बत करने वालों की सजा है.’’ मौलाना का मुहब्बत पर फतवा सुन कर रजिया का खानदान सहम गया. जमात उठ गई. रजिया के घर मायूसी पसरी थी. रात में सभी फिक्र में डूबे थे. जब सुबह आंख खुली, तो रजिया को न पा कर सब उस की खोजखबर लेने लगे. नफीस और रजिया मौलाना के फतवे को ठोकर मारते हुए दूर निकल गए थे, अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने के लिए.

सांवली सूरत खूबसूरती का वरदान मगर रंगभेद का जाल क्यों ?

‘‘आज समाज में यह धारणा बहुत गहरे पैठ जमाए है कि सांवली, काली या यों कहें कि गहरे रंग की त्वचा सुंदर नहीं होती. इसी धारणा के कारण लड़कियों को समाज में भेदभाव, दबाव का सामना करना पड़ता है. वैवाहिक विज्ञापनों में भी सांवले रंग को स्वीकार नहीं किया जाता. आज हमारे यहां हजारों मैट्रिमोनियल साइट्स हैं. अखबारों में विज्ञापन छपते हैं. इन सब में अगर आप वैवाहिक विज्ञापन के स्टाइल पर गौर करेंगे तो सब से जरूरी बात जो निकलती है वह है लड़की का गोरा, पतला और लंबा होना…’’

प्रकृति ने हर किसी को एक अलग रंगरूप से नवाजा है. हर किसी के अंदर कुछ खूबियां हैं तो कुछ कमियां. किसी का रंग  सांवला है तो किसी का गोरा. दुनिया की कोई क्रीम किसी को गोरा या काला नहीं कर सकती है. यह सब जन्म से होता है. तो फिर उसे ले कर हीनभावना या घमंड क्यों?

दरअसल, हीनभावना या घमंड की वजह हमारा सामाजिक परिवेश है जो सांवले को कमतर और गोरे को श्रेष्ठ और बेहतर मानता है. ऐसा नहीं है कि गोरेपन की सोच केवल भारत में ही है बल्कि पूरी दुनिया में इस की जड़ें गहरी हैं. गोरे होने का मतलब यह नहीं कि आप खूबसूरत ही हैं जबकि बहुत सी सांवली लड़कियां भी बेहद खूबसूरत होती हैं.

गोरेकाले का भेद

दुनिया की अलगअलग जगहों में अलग रंग, प्रजाति और भाषाओं के लोग मौजूद हैं. सैकड़ों साल पहले भारत के मूल निवासी द्रविड़ प्रजाति के लोग थे. उन की त्वचा का रंग सांवला और काला था. जब गोरे अंगरेज हमारे देश में आए तो वे हमारे राजा बन बैठे और हम उन की प्रजा बनने को मजबूर हो गए. अंगरेजों की त्वचा गोरी थी और हम भारतीय सांवले या काले थे. ऐसे में उसी समय से हम भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई कि जो गोरा है वह शासक है और जो काला है वह उस का सेवक है.

भारत में जाति व्यवस्था भी हजारों सालों से चली आ रही है. इस के आधार पर ब्राह्मण सब से ऊपर आते थे और शूद्र इस व्यवस्था के अंत में. ब्राह्मण मंदिरों और घरों में बैठ कर ही पूजापाठ करते थे इसलिए उन का रंग अन्य लोगों की तुलना में साफ होता था. वहीं मजदूर वर्ग के लोग कड़ी धूप में भी काम करने को मजबूर थे इसलिए उन की त्वचा धूप में और काली हो जाती थी. इस तरह हमारे देश में जाति और कर्म के आधार पर भी रंग का भेदभाव शुरू हुआ और आज तक चल रहा है.

पूरी दुनिया में रंगभेद का जाल

आज दुनियाभर में रंगभेद मौजूद है और इस के खिलाफ आवाज भी लगातार मुखर हो रही है. आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, अमेरिका में रंगभेदी हमलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. जापान के ईदो काल में महिलाओं द्वारा अपने चेहरे को चावल के पाउडर से सफेद करने का चलन ‘नैतिक कर्तव्य’ के रूप में शुरू हुआ. हौंगकौंग, मलयेशिया, फिलिपींस और दक्षिण कोरिया में सर्वेक्षण में शामिल 10 में से 4 महिलाएं त्वचा को गोरा करने वाली क्रीम का उपयोग करती हैं. कई एशियाई संस्कृतियों में बच्चों को परियों की कहानियों के रूप में रंगवाद सिखाया जाता है. परियों की कहानियों में परियां या राजकुमारियां हमेशा गोरी होती हैं.

अफ्रीका के कुछ हिस्सों में हलकी त्वचा वाली महिलाओं को अधिक सुंदर माना जाता है और गहरे रंग की त्वचा वाली महिलाओं की तुलना में उन्हें अधिक सफलता मिलने की संभावना होती है. अकसर यह धारणा गहरी त्वचा वाली महिलाओं को त्वचा को गोरा करने वाले उपचारों की ओर ले जाती है जिन में से कई शरीर के लिए हानिकारक होते हैं.

श्वेतों और अश्वेतों का झगड़ा

दक्षिण अफ्रीका में नैशनल पार्टी की सरकार द्वारा 1948 में विधान बना कर काले और गोरे लोगों को अलग निवास करने की प्रणाली लागू की गई थी. इसे ही रंगभेद नीति या अपार्थीड कहते हैं. अफ्रीका की भाषा में अपार्थीड का शाब्दिक अर्थ है अलगाव या पृथकता. यह नीति 1994 में समाप्त कर दी गई. इस के विरुद्ध नैल्सन मंडेला ने बहुत संघर्ष किया जिस के लिए उन्हें लंबे समय तक जेल में रखा गया.

अमेरिका में भी श्वेतों और अश्वेतों का  झगड़ा पुराना है. श्वेत खुद को अश्वेतों से बेहतर मानते हैं जबकि अश्वेत खुद के लिए बराबरी का हक मांग रहे हैं. संविधान बराबरी की इजाजत देता भी है लेकिन अब भी लोगों की मानसिकता नहीं बदल पाई है. कुछ समय पहले अमेरिका में अश्वेत जौर्ज फ्लाइड की पुलिस के हाथों बर्बर हत्या के बाद ब्लैक लाइव्स मैटर मूवमैंट तेज हुआ. इस के बाद भी वहां ऐसी हत्याएं होती रही हैं.

दरअसल, अमेरिका के राज्य वर्जीनिया से अमेरिका में दास प्रथा की शुरुआत हुई थी. इसी राज्य ने 1662 में एक कानून बनाया. यह कानून कहता था कि देश में पैदा हुए बच्चों का स्टेटस उन की मां के स्टेटस से तय होगा. इस का मतलब यह था कि अगर मां गुलाम है तो बच्चा भी गुलाम होगा और अगर मां आजाद है तो बच्चा भी आजाद होगा. लेकिन वर्जीनिया में आजाद कौन था? सिर्फ श्वेत. जितने भी अश्वेत थे सब गुलाम थे. उन की आने वाली पीढि़यां भी गुलाम ही पैदा होने वाली थीं.

इस कानून को बने फिलहाल 350 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका था. अब यह कानून खत्म हो चुका है. अमेरिका में नया संविधान लागू है जो सब को बराबरी का अधिकार देता है. इसी संविधान की बदौलत अमेरिका में अश्वेत जज, अश्वेत गवर्नर और अश्वेत राष्ट्रपति तक बन चुके हैं. मगर अब भी अश्वेत श्वेतों के मुकाबले बराबरी में नहीं हैं.

एक आम धारणा

वाशिंगटन पोस्ट की 2018 की एक रिपोर्ट बताती है कि श्वेतों की तुलना में दोगुने अश्वेत पुलिस की प्रताड़ना का शिकार बनते हैं. अगर अमेरिका में श्वेत और अश्वेत की हत्या होती है तो श्वेत लोगों की हत्याओं का केस सुल झने की दर ज्यादा है. अगर किसी अश्वेत ने श्वेत की हत्या कर दी है तो अश्वेत को फांसी होने के चांसेज 80 फीसदी से ज्यादा हैं.

इस के अलावा शायद ही कभी ऐसा मौका हो जब अपराध में अश्वेत शामिल हो और उस की गिरफ्तारी न हुई हो. अगर किसी श्वेत और अश्वेत को एक ही अपराध के लिए सजा हो रही हो तो अश्वेत की सजा श्वेतों की तुलना में 20 फीसदी ज्यादा होगी.

अमेरिका के श्वेतों में यह धारणा आम है कि वे अश्वेतों से बेहतर हैं, उन की नस्ल बेहतर है और अश्वेत उन के हमेशा से गुलाम रहे हैं. यही वजह है कि अमेरिका में हर साल 10 हजार से ज्यादा नस्लभेदी मामले दर्ज किए जाते हैं और इन के शिकार सिर्फ और सिर्फ अश्वेत होते हैं.

विज्ञापनों और फिल्मों में भी कालेगोरों का भेद

गोरी करने वाली क्रीमों का बाजार इतनी मजबूती से हमारे देश के बाजार पर कब्जा कर चुका है कि हर औरत चाहे उस का रंग कैसा भी हो, इन के चंगुल से बची नहीं है. गोरेपन को खूबसूरती और सफलता का पर्याय बना कर बाजार ने हमारी कमजोरियों से अपनी खूब जेबें भरी हैं.

गोरेपन की क्रीम वाले ऐड लगभग एकजैसे ही होते हैं. इन में एक लड़की होती है जो बहुत पढ़ीलिखी है लेकिन उसे कहीं नौकरी नहीं मिल रही. वजह है उस का सांवला रंग. हर जगह से उसे सिर्फ रिजैक्शन ही रिजैक्शन मिलता है. लेकिन फिर उसे मिलती है सांवलापन घटाने वाली फेयरनैस क्रीम.

बस, क्रीम लगाते ही उस की जिंदगी बदल जाती है. उसे नौकरी मिलती है, प्यार मिलता है. मांबाप भी अब अपनी गोरी हो चुकी बेटी पर दुलार लुटाते हैं. मतलब यह हुआ कि सिर्फ त्वचा का रंग बदलने से एक इंसान की पूरी शख्सियत ही लोगों की नजरों में बदल जाती है.

फिल्मों ने भी हमेशा गोरे चेहरों को वरीयता दी. जो सांवले थे उन्हें मेकअप पोत कर गोरा बना दिया गया. बौलीवुड में जहां आप काले या ब्राउन हैं तो आप को गांव और गरीब परिवार की लड़की दिखाया जाएगा लेकिन अमीर, शहरी और प्रभावशाली लड़की फिल्म में गोरी ही होनी चाहिए. कितनी ऐसी हीरोइनें हैं जिन की पुरानी फिल्मों में आप उन्हें सांवला देखेंगे लेकिन सर्जरी और दूसरे ट्रीटमैंट्स के जरीए उन्होंने खुद को 5 शेड गोरा बना लिया.

चाहे रेखा हो, शिल्पा शेट्टी हो, काजोल हो, रानी मुखर्जी हो या प्रियंका चोपड़ा, हरकोई इसी भेड़चाल का हिस्सा बनी और हम आम लड़कियों को भी अपने सांवले रंग से नफरत करना सिखाया.

आज समाज में यह धारणा बहुत गहरे पैठ जमाए है कि सांवली, काली या यों कहें कि गहरे रंग की त्वचा सुंदर नहीं होती. इसी धारणा के कारण लड़कियों को समाज में भेदभाव, दबाव का सामना करना पड़ता है. वैवाहिक विज्ञापनों में भी सांवले रंग को स्वीकार नहीं किया जाता. आज हमारे यहां हजारों मैट्रिमोनियल साइट्स हैं. अखबारों में विज्ञापन छपते हैं. इन सब में अगर आप वैवाहिक विज्ञापन के स्टाइल पर गौर करेंगे तो सब से जरूरी बात जो निकलती है वह है लड़की का गोरा, पतला और लंबा होना.

ऐसे में सांवली लड़कियां अकसर आत्मसम्मान में कमी की भावना, निराशा, अवसाद और पारिवारिक दबाव का शिकार होती हैं. यह स्थिति लड़कियों की ही नहीं बल्कि बाजार ने गहरे रंग वाले लड़कों को भी अपने तथाकथित गोरेपन की श्रेष्ठता के जाल में फंसा लिया है, जिन्हें हैंडसम बनाने के लिए फेयरनैस क्रीम बेची जा रही है. फिल्में हों या उद्योग, सभी ने इस धारणा को बेचा है, पैसे कमाए हैं.

सुंदरता का त्वचा के रंग से कोई लेनादेना नहीं है यह बात सभी को सम झनी होगी और सब को समान इंसान सम झना होगा. स्त्री हो या पुरुष उन की पहचान उन की खूबियों से होनी चाहिए न कि त्वचा के रंग से.

कैंपेन की शुरुआत

भारत में रंगभेद के खिलाफ 2009 से ‘डार्क इज ब्यूटीफुल’ नाम से एक कैंपेन शुरू हुआ था. फिल्म अभिनेत्री नंदिता दास इस अभियान का चेहरा बनीं. देश में इस अभियान से गोरेपन की चाहत की मानसिकता के खिलाफ फिर बहस शुरू हुई थी लेकिन इसे लोकप्रियता उस समय मिली जब बौलीवुड के सुपर स्टार शाहरुख खान सांवले रंग के व्यक्ति को गोरेपन की क्रीम का डब्बा थमाते नजर आए थे. इस विज्ञापन के खिलाफ कई समाजसेवियों, सिने और उद्योग जगत की सैलिब्रिटीज ने आवाज उठाते हुए इसे वापस लेने की मांग उठाई थी. कंगना रनौत और अभय देओल ने भी गोरेपन के विज्ञापन करने वालों को निशाने पर लिया था.

25 जून, 2020 को लिए गए एक क्रांतिकारी निर्णय में हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड ने घोषणा की कि वह अपने पुराने उत्पाद फेयर ऐंड लवली का नाम बदल कर ग्लो एंड लवली कर देगी. पुरुषों की रेंज के इस उत्पाद का नाम बदल कर ग्लो एंड हैंडसम कर दिया गया है. पहली बार ऐसी पहल हुई जब एक क्रीम से गोरेपन और उस के जरीए सफलता के सपने को बेच कर लोगों को बेवकूफ बना रही और करोड़ोंअरबों कमा रही एक कंपनी ने  झुकना स्वीकार किया.

गोरे रंग से मापी जाती है काबिलीयत

आज बात चाहे किसी लड़की की शादी की हो या फिर किसी मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी नौकरी के चुनाव की प्राथमिकता गोरा रंग ही होता है. भारतीय समाज में लड़की का गोरा होना जरूरी माना जाता है वरना उसे ज्यादातर मामलों में नाकामी ही हासिल होती है. एक गहरी रंगत वाली लड़की को अकसर भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.

यदि कोई लड़की मौडल, ऐंकर या अभिनेत्री बनना चाहती है तो इन कैरियर क्षेत्र को चुनने की पहली शर्त लड़की का गोरा होना होता है. इसी तरह शादी की मार्केट में भी गोरी रंगत वाली लड़कियों की ही पूछ होती है.

आखिर एक लड़की की त्वचा का रंग काला या गोरा होना समाज के लोगों के लिए इतने माने क्यों रखता है?

दरअसल, भारतीय समाज हमेशा से पुरुषप्रधान रहा है. स्त्रियों को हमेशा से घर के काम करने, बच्चे पालने या फिर सजाधजा कर घर में रखने की वस्तु के रूप में देखा जाता है. भारतीय मानसिकता के अनुसार घर में रखी जाने वाली कोई भी चीज सुंदर होनी चाहिए. जब स्त्री को भोगविलास की वस्तु के रूप में देखा जाता है तो अपेक्षा की जाती है कि घर की स्त्री भी गोरी और सुंदर हो. वहीं अधिकतर पुरुषों की मानसिकता होती है कि वे शिक्षित, कम सुंदर लड़की को गर्लफ्रैंड तो बना सकते हैं लेकिन उन्हें पत्नी सुंदर और गोरीचिट्टी ही चाहिए.

पुरुष चाहता है कि अगर कभी वह पत्नी के साथ बाहर निकले तो उस के साथ गोरी खूबसूरत बीवी हो तभी दूसरों के सामने वह रोब दिखा सकता है क्योंकि गोरी बीवी को वे और उस के घर वाले एक उपलब्धि के तौर पर मानते हैं. इसी तरह गोरी स्त्री से पैदा होने वाली संतान गोरी होगी ऐसी अपेक्षा करते हैं. इसलिए सांवली रंगत वाली लड़की की खूबियों को भी नकार दिया जाता है.

टीवी पर दिखाए जाने वाले कई विज्ञापनों में भी दिखाया जाता है कि सांवली रंगत वाली लड़की को छोड़ कर गोरी रंगत वाली लड़की को नौकरी पर रख लिया जाता है. इसी तरह सांवली लड़की से कोई प्यार नहीं करता मगर गोरी लड़की देखते ही लड़के पागल हो उठते हैं. यह सब देख कर लोगों के मन में यह भावना बैठ जाती है कि लोगों का प्यार और जीवन में सफलता हासिल करने के लिए काबिलीयत के साथसाथ गोरी रंगत होना भी जरूरी है.

यहां तक कि पुराने साहित्य में भी हमेशा गोरी रंगत की ही महिमा गाई गई है. हमारे देश में रचनाकारों व कवियों द्वारा रचे गए साहित्य व कविताओं में सुंदर नारी की छवि जहां भी प्रस्तुत की है उस में गोरे रंग को सुंदरता का प्रतीक दर्शाया गया है.

गोरा रंग कोई सफलता का पैमाना तो नहीं

इतिहास पर नजर डालें तो हमें कितने नाम ऐसे मिलेंगे जो गोरे नहीं थे लेकिन विश्व में अपनी सफलता के  झंडे गाड़े. जिन अंगरेजों ने महात्मा गांधी को अश्वेत कह कर ट्रेन से उतार दिया था उन्हीं गांधीजी ने अंगरेजों की गुलामी से भारत को आजादी दिलाई और देश से बाहर निकाल फेंका. द. अफ्रीका में रंगभेद की लड़ाई जीतने वाले नैल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग अश्वेत ही तो थे. अश्वेत बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने. एगबानी डेरेगो पहली अश्वेत मिस वर्ल्ड बनीं.

हमारे देश के महान खिलाड़ी क्रिकेटर, कपिल देव, महेंद्र सिंह धोनी, मिताली राज, ओलिंपिक खेलों में भारत की विजयपताका फहराने वाली वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी, बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु, कुश्ती में अपने दांवपेचों से पटखनी देने वाली साक्षी मलिक इन में से कोई गोरा नहीं है.

इसी तरह लेखन की धनी महादेवी वर्मा, स्वर कोकिला लता मंगेशकर ये सभी वे शख्सियतें हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा, काम, समर्पण और मेहनत से सफलता का परचम फहराया है. इन की सफलता में इन के रंग की कोई भूमिका नहीं थी.

कैसे दूर करें इस समस्या को

त्वचा गोरी हो या काली इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. व्यक्ति में आत्मविश्वास होना चाहिए. किसी को इतना हक नहीं दें कि वह आप की रंगत को ले कर ताना दे सके क्योंकि कुछ बनना या बनाना आप के हाथ में होता है. जागरूक बनें और चीजों को देखने का अपना अलग नजरिया विकसित करें. परिवार के लोगों को सम झाएं. रंगों के आधार पर किसी के गुणों का पता लगाना सही मानसिकता नहीं है.

वर्षों से चली आ रही इस सोच को एकदम से बदलना संभव नहीं मगर धीरेधीरे सब बेहतर हो सकता है और सांवली लड़कियां भी अपनी काबिलीयत और फिटनैस के जलवे दिखा कर वही रुतबा हासिल कर सकती हैं.

अपनी फिटनैस पर काम करें. अगर आप गोरी नहीं मगर आप की फिगर मैंटेन है तो आप किसी भी गोरी लड़की से सुंदर दिखेंगी. अपनी फिगर को आकर्षक बनाएं. इस के लिए डांस, ऐक्सरसाइज, सही खानपान  जो भी हो सके वह करें. फिट और स्मार्ट बनें.

कपड़ों का चुनाव

अपने कपड़ों का चुनाव सावधानी से करें. वैसे ही कपड़े पहनें जो रंग और डिजाइन आप पर फबे. हमेशा कौस्टली कपड़े ही अच्छे लगें यह जरूरी नहीं. कई दफा कोई खास रंग या डिजाइन आप के लुक को आकर्षक बना सकती है. उसे सम झें और वैसा ही पहनें. दरअसल, स्किनटोन कभी माने नहीं रखती. इस के बजाय यह माने रखता है कि आप अपनेआप को कैसे कैरी करते हैं, आप कौन से रंग पहनते हैं और आप कैसे दिखना पसंद करते हैं. जैसे आइवरी या पिंक हर स्किनटोन खासकर डार्क कौंप्लैक्शन के लिए एक सदाबहार शेड रहा है.

सांवली रंगत वाली लड़कियों के ये खास रंग ज्यादा अच्छे लगते हैं:

गहरे रंग जैसे नीला, हरा, पर्पल, मैरून ये सभी सांवली रंगत वाली लड़कियों पर बहुत अच्छे लगते हैं.

सुनहरे रंग जैसे सुनहरा और पीला ये दोनों भी सांवली रंगत वाली लड़कियों को आकर्षक लुक देते हैं.

उजले रंग जैसे औफव्हाइट, क्रीम या पेस्टल रंगों का चयन कर सकती हैं.

Skin Care Tips : किन कारणों से स्किन पर होते हैं ओपनपोर्स, जानें इसे कम करने के उपाय

एक गांव था जहां सभी लोग अपनी त्वचा (Skin Care Tips) को ले कर बहुत सजग रहते थे. उस गांव में एक प्यारी सी लड़की रहती थी जिस का नाम राधा था. राधा की त्वचा स्वाभाविक रूप से मुलायम और चमकदार थी. लोग उस की सुंदरता की तारीफ करते नहीं थकते थे. एक दिन राधा ने देखा कि उस के चेहरे पर कुछ छोटेछोटे छिद्र दिखाई दे रहे हैं. पहले तो उस ने इसे नजरअंदाज किया, लेकिन समय के साथ ये छिद्र और अधिक बड़े और गहरे होते चले गए. ये खुले छिद्र(ओपन पोर्स) उस के चेहरे की सुंदरता को प्रभावित करने लगे. राधा इस से बहुत परेशान हो गई और सोचने लगी कि यह क्यों हो रहा है?

वह अपनी मां के पास गई और उन से पूछा, “मां, ये मेरे चेहरे पर छोटेछोटे छिद्र क्यों दिखाई देने लगे हैं?”

राधा की मां समझदार और अनुभवी थीं. उन्होंने कहा, “बेटी, यह छिद्र हमारी त्वचा का एक सामान्य हिस्सा होते हैं और जब हमारी त्वचा की देखभाल नहीं की जाती है, तो ये खुले और बड़े हो जाते हैं. यह तब होता है जब हमारी त्वचा में ज्यादा तेल, धूलमिट्टी, और मृत त्वचा समा जाती है.”

राधा ने मां से पूछा, “तो इस का क्या इलाज है, मां? मैं क्या कर सकती हूं?”

मां ने मुसकराते हुए कहा, “तुम्हें बस अपनी त्वचा की देखभाल के लिए नियमित रूप से कुछ आदतें अपनानी होंगी. रोजाना चेहरे को अच्छी तरह धोया करो, ताकि त्वचा पर जमी धूलमिट्टी साफ हो सके. हफ्ते में 2 बार त्वचा की ऐक्सफोलिएशन करो, ताकि मृत त्वचा निकल जाए और छिद्र बंद न हों और याद रखना, त्वचा को मौइस्चराइज करना भी बहुत जरूरी है, ताकि वह स्वस्थ और संतुलित रहे.”

राधा ने मां की बातें ध्यान से सुनीं और उन की सलाह के अनुसार अपने चेहरे की देखभाल शुरू कर दी. धीरेधीरे उस ने देखा कि उस के छिद्र छोटे होने लगे और उस की त्वचा फिर से साफ और चमकदार हो गई.

खुले छिद्र (ओपन पोर्स) त्वचा की एक सामान्य समस्या है, विशेषकर तैलीय और मिश्रित त्वचा वाले लोगों में. ये छोटेछोटे छिद्र, जो हमारी त्वचा पर प्राकृतिक रूप से होते हैं, त्वचा की सुंदरता को प्रभावित कर सकते हैं. समय के साथ अगर इन की देखभाल सही से न हो, तो ये छिद्र बड़े दिखने लगते हैं और त्वचा अस्वच्छ और असमान दिखाई देती है.

आइए जानते हैं कि खुले छिद्र क्यों होते हैं और उन्हें कैसे कम किया जा सकता है :

खुले छिद्र क्या होते हैं

हमारी त्वचा पर मौजूद छिद्र तैलीय और पसीने की ग्रंथियों से जुड़े होते हैं. इन छिद्रों से सेबम (तेल) और पसीना त्वचा की सतह पर निकलता है. ये छिद्र नौर्मल रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन जब छिद्रों में तेल, गंदगी और मृत त्वचा के कण जमा हो जाते हैं, तो ये बढ़ कर बड़े और अधिक दिखाई देने लगते हैं. ये खुले छिद्र चेहरे की चिकनाई और सुगठित त्वचा को प्रभावित करते हैं.

खुले छिद्रों के कारण

  1. तैलीय त्वचा : तैलीय त्वचा वाले व्यक्तियों में सीबम (तेल) का स्राव अधिक होता है, जिस से छिद्र जल्दी बंद हो जाते हैं और बड़े दिखाई देने लगते हैं.

2. उम्र बढ़ना : उम्र बढ़ने के साथ त्वचा की लोच (इलास्टिसिटी) कम हो जाती है, जिस से छिद्रों का आकार बढ़ने लगता है.

3. अनुचित स्किन केयर : त्वचा की सफाई और देखभाल न करने से छिद्रों में गंदगी, मृत त्वचा और तेल जमा हो जाते हैं, जिस से वे बड़े हो जाते हैं.

4. अधिक सूरज का संपर्क : सूर्य की किरणें त्वचा के कोलेजन को नुकसान पहुंचाती हैं, जिस से त्वचा ढीली पड़ जाती है और छिद्र अधिक खुले हुए नजर आते हैं.

खुले छिद्रों को रोकने और कम करने के उपाय

  1. रोजाना सफाई : अपनी त्वचा को रोजाना 2 बार साफ करें. इस से त्वचा से अतिरिक्त तेल और गंदगी निकल जाएगी और छिद्र साफ रहेंगे. तैलीय त्वचा के लिए हलके क्लींजर का इस्तेमाल करें.

2. टोनर का इस्तेमाल : छिद्रों को सिकोड़ने के लिए टोनर का प्रयोग करें. टोनर त्वचा को ताजगी प्रदान करता है और छिद्रों को कम करने में मदद करता है. विलो बर्क या विच हेज़ल युक्त टोनर इस काम के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं.

3. सप्ताह में एक बार ऐक्सफोलिएशन : मृत त्वचा और गंदगी को हटाने के लिए हफ्ते में 1 या 2 बार स्क्रब करें. इस से छिद्रों में जमा अशुद्धियां साफ हो जाती हैं और छिद्र खुलने की समस्या कम होती है.

4. सनस्क्रीन का इस्तेमाल : सूरज की किरणों से बचाव के लिए हमेशा सनस्क्रीन का उपयोग करें. एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन त्वचा को सुरक्षित रखता है और छिद्रों को बढ़ने से रोकता है.

5. फेस मास्क का उपयोग : सप्ताह में एक बार मिट्टी का मास्क (क्ले मास्क) या चारकोल मास्क का प्रयोग करें. ये मास्क त्वचा से अतिरिक्त तेल और गंदगी को निकालते हैं और छिद्रों को सिकोड़ने में मदद करते हैं.

6. मौइस्चराइजिंग : हाइड्रेटेड त्वचा हमेशा स्वस्थ रहती है. सही मौइस्चराइजर का इस्तेमाल कर के त्वचा को नमी प्रदान करें ताकि त्वचा संतुलित रहे और छिद्र बड़े न दिखें.

घरेलू उपाय

  1. बर्फ के टुकड़े : चेहरे पर बर्फ के टुकड़े लगाने से छिद्र सिकुड़ते हैं और त्वचा टाइट होती है. यह त्वरित परिणाम के लिए बहुत अच्छा उपाय है.

2. शहद और नीबू का मास्क : शहद और नीबू का मिश्रण त्वचा के छिद्रों को साफ और टाइट करने में मदद करता है. इसे हफ्ते में 1 बार लगाएं.

रिश्ते को बनाना चाहते हैं मजबूत, तो इन बातों का रखें ध्यान

आजकल हम अपने स्वास्थ्य को ले कर काफी जागरूक रहते हैं. इस के लिए हम अपने खानपान, पोषण, फिटनैस, जैविक उत्पादों और पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं पर अधिक ध्यान देते हैं. मगर क्या हम ने कभी अस्वस्थ रिश्तों के बारे में सोचा है? खराब या अस्वस्थ रिश्ते भी हमारे स्वास्थ्य के लिए फास्ट फूड और प्रदूषण की तरह ही हानिकारक हो सकते हैं अस्वस्थ रिश्ते हमें असहज, उदास, डरा हुआ महसूस करा सकते हैं, साथ ही मानसिक रूप से बीमार और कमजोर भी बना सकते हैं.

रिश्ते हमारे जन्म से ले कर मरने तक हमारे बीच बने रहते हैं. रिश्ते हमारे मातापिता, परिवार, सहपाठियों, दोस्तों आदि से शुरू होते हैं. इन में से हर रिश्ता हमारी मदद कर सकता है और हमें एक समृद्ध और बेहतर इंसान बना सकता है, साथ ही हमें खुशी भी दे सकता है. अस्वस्थ रिश्ते कभी इन में से किसी भी भावना को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं.

हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम अपनी भावनात्मक और मानसिक सेहत को उसी तरह सुरक्षित रखें जिस तरह हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखते हैं.

वास्तव में स्वस्थ और अस्वस्थ रिश्ते हमारे व्यक्तित्व का आईना भी होते हैं, कुछ रिश्ते तो हमें जन्म लेते ही मिल जाते हैं जैसे मातापिता, भाईबहन, मौसी या बूआ आदि जिन्हें हमें स्वीकारना ही पड़ता है लेकिन कुछ रिश्ते जैसे पतिपत्नी, दोस्ती, पड़ोसियों, औफिस आदि में जो बनते हैं उन्हें हम अपनी मरजी या पसंद से बनाते हैं. हां एक बात याद रखने योग्य है कि रिश्ते बनाना भले आसान हो पर उन्हें बचाना या निभाना एक कला है. इसे कोई भी व्यक्ति साथ ले कर जन्म नहीं लेता बल्कि इसे समय के साथ सीखा जा सकता है.

किसी भी व्यक्तिकी सफलता सिर्फ उस की आर्थिक स्थिति या कैरियर से ही तय नहीं होती बल्कि यह भी देखा जाता है कि उस के दोस्तों, रिश्तेदारों से संबंध कैसे हैं. यदि रिश्ते स्वस्थ हैं तो उसे एक अच्छा सफल इंसान माना जाता है और यदि वह अस्वस्थ रिश्तों के साथ रहता है तो उस की गिनती एक असफल और बुरे इंसान के रूप में की जाती है इसलिए स्वस्थ और अस्वस्थ रिश्ते हमारे व्यक्तित्व का आईना भी होते हैं.

स्वस्थ रिश्तों के लिए कुछ बातें मददगार हो सकती हैं:

बनें अच्छे श्रोता

रिश्ते लंबे समय तक बेहतर बनाए रखने के लिए जरूरी है कि आप एक श्रोता हों यानी दूसरे की बात भी सुनें अपनी ही न चलाएं. प्राय: यह देखा जाता है कि जिन लोगों को सिर्फ अपनी ही बात रखते रहने की आदत होती है लोग उन से कटने लगते हैं, जबकि जो लोग धैर्यपूर्वक औरों की भी बात सुनते हैं, उन्हें सभी प्यार करते हैं और लंबे समय तक उन से जुड़े रहना चाहते हैं.

अपेक्षाएं कम से कम हों

रिश्ते तभी स्वस्थ बने रह सकते हैं जब अपेक्षाएं कम से कम हों अधिकांश रिश्ते इसलिए टूटते हैं कि हम उन से जरूरत से ज्यादा अपेक्षा रखने लगते हैं और बातबात पर अपनी शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जाते हैं तथा यह भी भूल जाते हैं कि हम ने उन्हें क्या दिया? कैसा व्यवहार रखा? आदि. स्वस्थ रिश्तों में हमेशा देने की आदत डालें. चाहने की आदत जितनी कम होगी रिश्तात उतना ज्यादा खूबसूरत और लंबे समय तक रहेगा.

रिश्ते की अच्छी बौंडिंग के लिए निकालें समय

आज के भागमभाग वाले लाइफस्टाइल या जीवनशैली में रिश्तों के लिए समय निकलाना थोड़ा मुश्किल होता जा रहा है. रिश्ता कोई भी हो अच्छी बौंडिंग के लिए समय देना आवश्यक होता है ताकि एकदूसरे को सम झना आसान हो वरना बहस और मनमुटाव की आशंका बनी रहती है क्योंकि अकसर किसी भी रिश्ते में यह सुना जा सकता है कि देखो अब जरूरत पड़ी तो फोन लगा लिया या आ गए, अब मिलने की फुरसत मिल गई या अब याद आ गई न हमारी वगैरहवगैरह. तो इन सब से बचने के लिए और एक स्वस्थ रिश्ते के लिए अपनी व्यस्त लाइफ में से कुछ समय अवश्य निकालें.

यूज ऐंड थ्रो से बचें

किसी भी स्वस्थ रिश्ते के लिए जरूरी है कि सिर्फ काम के लिए ही नहीं बल्कि हमेशा हर समय अपने प्रियजनों के संपर्क में रहें. अगर आप अपने दोस्तोंरिश्तेदारों को सिर्फ काम के समय याद करते हैं तो मान कर चलिए कि आप के रिश्ते बहुत समय तक चलने वाले नहीं हैं. इस से लोगों को लगने लगता है कि आप स्वार्थी हैं और केवल काम के समय औरों को याद करते हैं. रिश्ते यूज ऐंड थ्रो की श्रेणी में नहीं आते. इसलिए सिर्फ काम के लिए नहीं बल्कि हमेशा अपने प्रियजनों के संपर्क में रहें. इस के लिए विशेष अवसर जैसे त्योहार, नया साल, बर्थडे, ऐनिवर्सरी  आदि पर कुछ समय निकाल कर यदि संभव हो तो मिलेंजुलें नहीं तो फोन जरूर लगाएं और उन्हें शुभकामनाएं, बधाई अवश्य दें ताकि रिश्तों में मधुरता बनी रहे.

प्रशंसा करें

प्रशंसा सभी को पसंद आती है इसलिए प्रशंसा करने में कंजूसी न करें. यह उन के लिए मानसिक खुराक हो सकती है. जब भी आप के लिए कोई कुछ अच्छा करे, अपने निजी, पारिवारिक या व्यावसायिक जीवन में सफलता हासिल करे तो उस की प्रशंसा जरूर करें. हर किसी को स्पैशल फील होना अच्छा लगता है इसलिए कभीकभी यह मौका देते रहें. ऐसा करना रिश्ते को तनाव से दूर रखता है.

ईगो को रखें दूर

यदि किसी कारण से रिश्तों में कड़वाहट या दूरियां आ जाएं या मनमुटाव हो जाए तो अपने ईगो को आड़े न आने दें और रिश्तों को दोबारा बनाने या जोड़ने, मनमुटाव को दूर करने में देरी न करें पहले आप पहले आप के चक्कर में न पड़ें. पहले पहल कर अपनी सम झदारी का परिचय दें और रिश्ते को स्वस्थ बनाएं.

तुलना से बचें

अकसर हर रिश्ते में प्राय: देखा जाता है कि हम हर समय तुलना करते रहते हैं. हम या मैं क्यों ऐसा करूं, हम क्यों वैसा करें, उन्होंने भी ऐसा नहीं किया तो हम ही क्यों करें. उन्होंने हमें नहीं बुलाया तो हम क्यों बुलाए वैगरहवैगरह कुछ ऐसे ही सवाल हमें बेवजह परेशान करते हैं इसलिए किसी रिश्ते को स्वस्थ रखने के लिए तुलना न करें. आप वही करें जो आप करना चाहते हैं सामने वाले के व्यवहार या देनेलेने से तुलना न करें. तभी आप अपने रिश्तों को स्वस्थ रख पाएंगे.

लें तकनीक की मदद

आज के डिजिटल युग में टैक्नोलौजी हमारी रोजमर्रा की लाइफ का एक अहम हिस्सा बन चुकी है. यहां तक कि हम हमारे स्मार्टफोन से सोशल मीडिया और वीडियो कौल तक अपने करीबियों से जुड़े रहने पर काफी भरोसा करने लगे हैं. एडवांस टैक्नोलौजी ने हमारे करीबियों के साथ जुड़ना पहले से कहीं ज्यादा आसान बना दिया है इसलिए यदि विशेष मौकसें जैसे बर्थडे, ऐनिवर्सरी या किसी और अवसर पर अपने दोस्तों, परिवारजनों से कनैक्ट या जुड़े रहने के लिए टैक्नोलौजी की मदद लें. आजकल की व्यस्तता भरी लाइफ में यह आप के रिश्ते को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक है.

ईर्ष्या की भावना से बचें

रिश्ता कोई भी हो यदि आप उसे ईर्ष्या की भावना से दूर रखेंगे तो यकीनन वह रिश्ता बेहद खुशियों से भरा, तनाव रहित और खूबसूरत होगा क्योंकि अकसर यह देखा जाता है जब भी हमारे किसी परिचित या रिश्तेदार या किसी दोस्त अथवा भाईबहन के यहां कुछ भी अच्छा होता है जैसे उन के यहां नई कार आ जाए, नया मकान खरीद लें, अच्छी नौकरी लग जाए या उन का बच्चा पढ़ने में अच्छा हो आदि तो हमें जलन या ईर्ष्या होने लगती है कि इस के यहां क्यों कुछ अच्छा हो गया जिस के कारण हम बेवजह परेशान बने रहते हैं या होते हैं. फिर मजबूरी में हम उन्हें बधाई भी देते हैं और  झूठी प्रसंशा भी करते हैं लेकिन बहुत ही दुखी मन से और यह भावना हमें मानसिक रूप से बीमार भी बना सकती है.

पितृदोष : डर के आगे पंडों की मौज

सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त भोपाल के 71 वर्षीय श्रीराम को एक दिन उन के परिजन धोखे से एक वृद्धाश्रम में छोड़ गए. परिजनों द्वारा प्रताड़ित श्रीराम ने क्षुब्ध हो कर अपनी वसीयत वृद्धाश्रम के नाम कर कहा कि मृत्यु के बाद उन की देह को रिसर्च के लिए हौस्पिटल को दान कर दिया जाए.

3 साल पहले जब उन की मृत्यु हुई तो उन की देह हौस्पिटल को दान कर दी गई. बारबार सूचना देने के बाद भी उन के परिजन अंतिम संस्कार में नहीं आए. श्री हरि वृद्धाश्रम के संचालक के अनुसार, अब 3 साल बाद उन के बच्चे अपने पिता की कोई निशानी लेने आ रहे हैं ताकि अपने पिता का तर्पण कर सकें और अपने जीवन में आ रही तमाम परेशानियों से मुक्ति पा सकें.

भोपाल में ही आसरा वृद्धाश्रम की संचालिका राधा चौबे के अनुसार, कई बार परिजन सूचना देने के बाद भी मुखाग्नि देने तक नहीं आते. बाद में उन की चप्पलें, जूते, छड़ी, चश्मा, कपड़े जैसी निशानियां लेने आते हैं ताकि उन वस्तुओं को प्रतीक मान कर अपने पितरों का अंतिम संस्कार और तर्पण कर सकें.

डर है मुख्य कारण

वरिष्ठ काउंसलर निधि तिवारी कहतीं हैं, “दरअसल, अपने परिजन की मृत्यु के बाद उन का सामान लेने आने के पीछे मुख्य वजह डर है. अपने मातापिता के साथ किए गए दुर्व्यवहार के कारण कहीं न कहीं बच्चों के मन में अपराधबोध रहता है कि कहीं मर कर आत्मा उन्हें परेशान न करने लगे.”

वे आगे कहतीं हैं, ”आश्चर्य होता है कि जो बच्चे जीतेजी अपने मातापिता को एक गिलास पानी तक को नहीं पूछते वे बच्चे उन के जाने के बाद उन की निशानियां खोजते नजर आते हैं, इस की अपेक्षा यदि जीतेजी उन्हें थोड़ा प्यार और इज्जत दे कर दो मीठे बोल लें तो वे भी शांति से इस संसार से जा पाएंगे और बाद में इन्हें भी डर नहीं सताएगा.”

अपना घर नामक वृद्धाश्रम की संचालिका माधुरी मिश्रा कहतीं हैं, “मातापिता की निशानी लेने आने वालों का कहना होता है कि उन के जीतेजी तो कभी डर नहीं लगा पर अब उन के जाने के बाद हर दिन डर लगता है कि उन की आत्मा परेशान न करे.”

वे आगे कहतीं हैं,”लोग अपने परिजन की मृत्यु पर आना तो भूल जाते हैं पर मरने के बाद उन का सामान और मृत्यु प्रमाणपत्र ले जाना नहीं भूलते.”

इस से यह जाहिर होता है कि श्राद्ध पक्ष में पितरों का तर्पण केवल अपनी आत्मा और मन की शांति के लिए किया जाता है, इस पक्ष में उन्हें तृप्त करने का उद्देश्य भी यही है कि वे ऊपर जा कर भी खुश रहें और जमीन पर रह रहे अपने बच्चों को किसी प्रकार का कोई श्राप आदि न दें.

अस्मित ने अपने नए घर में प्रवेश किया. अगले दिन ही फर्श पर पानी पड़े होने के कारण उस की पत्नी वर्षा का पैर फिसल गया जिस से पैर में फ्रैक्चर हो गया. 2 दिन बाद ही गांव से उस के चाचाजी की मौत की सूचना आ गई. जब तक वह इन सब से निबट पाता तभी उस के बेटे का ऐक्सीडैंट हो गया. एक के बाद एक आई परेशानियों से घबरा कर एक पंडितजी के पास पहुंच कर उस ने सारी व्यथा बताई तो पंडितजी ने पितृदोष बताया और इस के निराकरण के लिए पूजा कराने के लिए कहा. पंडितजी के पास आने के बाद अस्मित को अपने पिता की बहुत याद तो आने ही लगी साथ ही उन के साथ किया गया अपना व्यवहार भी उसे परेशान करने लगा.

दिनरात वह यही सोचता रहा कि काश, उस ने अपने पिता को वृद्धाश्रम में न छोड़ा होता. दिनरात यही सोचने से उसे सपने में भी पिताजी आने लगे और भयभीत हो कर जब उस ने पितृदोष की पूजा करवाई तब जा कर कहीं उस के मन को शांति मिली.

पंडों और पुजारियों का फैलाया जाल

अस्मित की ही तरह जब भी आम आदमी अपने जीवन में आने वाली परेशानियों से मुक्ति के लिए पंडित के पास जाते हैं तो पंडित परेशानियों का कारण पितृदोष बताते हैं और इस के लिए एक विशेष पूजा करवाते हैं जिसे पितृदोष से मुक्त करने वाली पूजा माना जाता है.

पंडितों के अनुसार, इस पूजा को करवाने के बाद पितृदोष समाप्त हो जाता है और जीवन की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है.

उज्जैन के एक पंडित के अनुसार, “यों तो सालभर ही पितृदोष की पूजा करवाई जा सकती है पर पितृपक्ष में इस पूजा को करवाने का विशेष महत्त्व होता है. एक दिन की पूजा का ₹5,100 और 3 दिन की पूजा का ₹21 से 25 हजार तक का खर्च आता है. पूजा की समस्त सामग्री हमारी ही होती है, यजमान को सिर्फ तैयार हो कर आना होता है.”

यही कारण है कि इन दिनों वाराणसी, उज्जैन जैसे तीर्थस्थलों पर पितृपक्ष में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और पंडितों को मोटी राशि दक्षिणा के रूप में दी जाती है.

यही नहीं, बिहार के गया को तर्पण के लिए विशेष स्थान माना गया है। पंडितों के अनुसार यहां तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है.

हाल ही में एक समाचारपत्र में छपी खबर के अनुसार, इन दिनों गया के सभी होटल और धर्मशालाएं महंगे रेट होने के बाद भी पूरी तरह फुल हैं. देश ही नहीं विदेशों से भी लोग इन दिनों अपने पितरों के तर्पण के लिए आते हैं.

समाचारपत्र के अनुसार, इन दिनों यहां के पंडित इस कदर व्यस्त होते हैं कि वे अपनी मदद के लिए विदेशों में महंगे कोर्स कर रहे या फिर नौकरी कर रहे अपने बच्चों को भी 15 दिनों के लिए अपने पास बुला लेते हैं। इस से उन की मोटी कमाई का अंदाजा लगाया जा सकता है.

इस तरह की पूजाओं में पंडितों की जमकर चांदी होती है. इन पूजाओं में प्रयोग किए जाने वाले चांदी, तांबा और पीतल के बर्तनों और विविध प्रकार की दालों आदि को एक बार खरीदने के बाद बारबार प्रयोग किया जाता है। पूजा के बाद बर्तनों और समस्त सूखी सामग्री को अलगअलग थैलियों में भर लिया जाता है जिस से उन का दोबारा आराम से प्रयोग हो सकें और इस तरह पूजा के लिए बारबार ली गई पूरी की पूरी धनराशि बच जाती है और यही उन की असली कमाई होती है.

वर्तमान को सुखद बनाने की जरूरत

जन्म और मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, यानि जिस ने इस धरती पर जन्म लिया है उस की मृत्यु निश्चित है. माता पिता बच्चे के जन्म होने के बाद से ही अपना पूरा जीवन अपने बच्चों की खुशी में ही समर्पित कर देते हैं। ऐसे में बड़े होने के बाद बच्चों के द्वारा अपनी उपेक्षा वे सहन नहीं कर पाते और हरदम अपनी परवरिश को ही कोसना प्रारंभ कर देते हैं. यहां तक कि इसी उधेड़बुन में जीतेजीते वे बीमार रहने लगते हैं और एक दिन इस दुनिया से कूच कर जाते हैं.

मातापिता के जीतेजी तो बच्चों को उन की अहमियत समझ नहीं आती पर जब वे इस संसार से चले जाते हैं तो उन्हें उन के प्रति किया गया अपना व्यवहार अंदर ही अंदर कचोटने लगता है. यही डर उन्हें अपने पितरों को संतुष्ट करने के लिए तर्पण करने को विवश करने लगता है.

आज जरूरत इस बात की है कि अपने परिजनों के जीतेजी ही उन की भलीभांति देखभाल की जाए, उन्हें भरपूर प्यार और सम्मान दिया जाए, उन की छोटीछोटी जरूरतों को समझ कर उन्हें पूरा करने का प्रयास किया जाए ताकि वे जब तक जिएं, खुश हो कर जिएं और संतुष्ट हो कर इस संसार से जाएं.

यह सब करने के लिए किसी पंडे या पुजारी की नहीं बल्कि हमारी तार्किक और सकारात्मक सोच की आवश्यकता होगी.

मलहम: प्यार में मिले धोखे का बदला कैसे लिया गुंजन ने?

गुंजन जल्दीजल्दी काम निबटा रही थी. दाल और सब्जी बना चुकी थी बस फुलके बनाने बाकी थे. तभी अभिनव किचन में दाखिल हुआ और गुंजन के करीब रखे गिलास को उठाने लगा. उस ने जानबूझ कर गुंजन को हौले से स्पर्श करते हुए गिलास उठाया और पानी ले कर बाहर निकल गया.

गुंजन की धड़कनें बढ़ गईं. एक नशा सा उस के बदन को महकाने लगा. उस ने चाहत भरी नजरों से अभिनव की तरफ देखा जो उसे ही निहार रहा था. गुंजन की धड़कनें फिर से ठहर गईं. लगा जैसे पूरे जहान का प्यार लिए अभिनव ने उसे आगोश में ले लिया हो और वह दुनिया को भूल कर अभिनव में खो गई हो.

तभी अम्मांजी अखबार ढूंढ़ती हुई कमरे में दाखिल हुईं और गुंजन का सपना टूट गया. नजरें चुराती हुई गुंजन फिर से काम में लग गई.

गुंजन अभिनव के यहां खाना बनाने का काम करती है. अम्मांजी का बड़ा बेटा अनुज और बहु सारिका जौब पर जाते हैं. छोटा बेटा अभिनव भी एक आईटी कंपनी में काम करता है. उस की अभी शादी नहीं हुई है और वह गुंजन की तरफ आकृष्ट है.

22 साल की गुंजन बेहद खूबसूरत है और वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. मातापिता ने उसे बहुत लाड़प्यार से पाला है. इंटर तक पढ़ाया भी है. मगर घर की माली हालत सही नहीं होने की वजह से उसे दूसरों के घरों में खाना बनाने का काम शुरू करना पड़ा.

गुंजन जानती है कि अभिनव ऊंची जाति का पढ़ालिखा लड़का है और अभिनव के साथ उस का कोई मेल नहीं हो सकता. मगर कहते हैं न कि प्यार ऐसा नशा है जो अच्छेअच्छों की बुद्धि पर ताला लगा देता है. प्यार के एहसास में डूबा व्यक्ति सहीगलत, ऊंचनीच, अच्छाबुरा कुछ भी नहीं समझता. उसे तो बस किसी एक शख्स का खयाल ही हर पल रहने लगता है और यही हो रहा था गुंजन के साथ भी. उसे सोतेजागते हर समय अभिनव ही नजर आने लगा था.

धीरेधीरे वक्त गुजरता गया. अभिनव की हिम्मत बढ़ती गई और गुंजन भी उस के आगे कमजोर पड़ती गई. एक दिन मौका देख कर अभिनव ने उसे बांहों में भर लिया. गुंजन ने खुद को छुड़ाने का प्रयास करते हुए कहा,” अभिनवजी, अम्मां जी ने देख लिया तो क्या सोचेंगी?”

“अम्मां सो रही हैैं गुंजन. तुम उन की चिंता मत करो. बहुत मुश्किल से आज हमें ये पल मिले हैं. इन्हें यों ही बरबाद न करो.”

“मगर अभिनवजी, यह सही नहीं है. आप का और मेरा कोई मेल नहीं,” गुंजन अब भी सहज नहीं थी.

“ऐसी बात नहीं है गुंजन. मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. प्यार में कोई छोटाबड़ा नहीं होता. बस मुझे इन जुल्फों में कैद हो जाने दो. गुलाब की पंखुड़ी जैसे इन लबों को एक दफा छू लेने दो.”

अभिनव किसी भी तरह गुंजन को पाना चाहता था. गुंजन अंदर से डरी हुई थी मगर अभिनव का प्यार उसे अपनी तरफ खींच रहा था. आखिर गुंजन ने भी हथियार डाल दिए. वह एक प्रेयसी की भांति अभिनव के सीने से लग गई. दोनों एकदूसरे के आलिंगन में बंधे प्यार की गहराई में डूबते रहे. जब होश आया तो गुंजन की आंखें छलछला आईं. वह बोली,”आप मेरा साथ तो दोगे न? जमाने की भीड़ में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?”

“पागल हो क्या? प्यार करता हूं. छोड़ कैसे दूंगा?” कह कर उस ने फिर से गुंजन को चूम लिया. गुंजन फिर से उस के सीने में दुबक गई. वक्त फिर से ठहर गया.

अब तो ऐसा अकसर होने लगा. अभिनव प्यार का दावा कर के गुंजन को करीब ले आता.

दोनों ने ही प्यार के रास्ते पर बढ़ते हुए मर्यादाओं की सीमारेखाएं तोड़ दी थीं. गुंजन प्यार के सुहाने सपनों के साथ सुंदर घरसंसार के सपने भी देखने लगी थी.

मगर एक दिन वह देख कर भौंचक्की रह गई कि अभिनव के रिश्ते की बात करने के लिए एक परिवार आया हुआ है. मांबाप के साथ एक आधुनिक, आकर्षक और स्टाइलिश लड़की बैठी हुई थी.

अम्मांजी ने गुंजन से कुछ खास बनाने की गुजारिश की तो गुंजन ने सीधा पूछ लिया,” ये कौन लोग हैं अम्मांजी?”

“ये अपने अभि को देखने आए हैं. इस लड़की से अभि की शादी की बात चल रही है. सुंदर है न लड़की?” अम्मांजी ने पूछा तो गुंजन ने हां में सिर हिला दिया.

उस के दिलोदिमाग में तो एक भूचाल सा आ गया था. उस दिन घर जा कर भी गुंजन की आंखों के आगे उसी लड़की का चेहरा नाचता रहा. आंखों से नींद कोसों दूर थी.

अगले दिन जब वह अभिनव के घर खाना बनाने गई तो सब से पहले मौका देख कर उस ने अभिनव से बात की,” यह सब क्या है अभिनव? आप की शादी की बात चल रही है? आप ने अपने घर वालों को हमारे प्यार की बात क्यों नहीं बताई?”

“नहीं गुंजन, हमारे प्यार की बात मैं उन्हें नहीं बता सकता.”

“मगर क्यों? ”

“क्योंकि हमारा प्यार समाज स्वीकार नहीं करेगा. मेरे मांबाप कभी नहीं मानेंगे कि मैं एक नीची जाति की लड़की से शादी करूं,” अभिनव ने बेशर्मी से कहा.

“तो फिर प्यार क्यों किया था आप ने? शादी नहीं करनी थी तो मुझे सपने क्यों दिखाए थे?” तड़प कर गुंजन बोली.

“देखो गुंजन, समझने का प्रयास करो. प्यार हम दोनों ने किया है. प्यार के लिए केवल हम दोनों की रजामंदी चाहिए थी. मगर शादी एक सामाजिक रिश्ता है. शादी के लिए समाज की अनुमति भी चाहिए. शादी तो मुझे घर वालों के कहे अनुसार ही करनी होगी.”

“यानी प्यार नहीं, आप ने प्यार का नाटक खेला है मेरे साथ. मैं नहीं केवल मेरा शरीर चाहिए था. क्यों कहा था मुझे कि कभी अकेला नहीं छोड़ोगे?”

“मैं तुम्हें अकेला कहां छोड़ रहा हूं गुंजन? मैं तो अब भी तुम ही से प्यार करता हूं मेरी जान. यकीन मानो हमारा यह प्यार हमेशा बना रहेगा. शादी भले ही उस से कर लूं मगर हम दोनों पहले की तरह ही मिलते रहेंगे. हमारा रिश्ता वैसा ही चलता रहेगा. मैं हमेशा तुम्हारा बना रहूंगा,” गुंजन को कस कर पकड़ते हुए अभि ने कहा.

गुंजन को लगा जैसे हजारों बिच्छुओं ने उसे जकङ रखा हो. वह खुद को अभिनव के बंधन से आजाद कर काम में लग गई. आंखों से आंसू बहे जा रहे थे और दिल रो रहा था.

घर आ कर वह सारी रात सोचती रही. अभिनव की बेवफाई और अपनी मजबूरी उसे रहरह कर कचोट रही थी. अभिनव के लिए भले ही यह प्यार तन की भूख थी मगर उस ने तो हृदय से चाहा था उसे. तभी तो अपना सबकुछ समर्पित कर दिया था. इतनी आसानी से वह अभिनव को माफ नहीं कर सकती थी. उस के किए की सजा तो देनी ही होगी. वह पूरी रात यही सोचती रही कि अभिनव को सबक कैसे सिखाया जाए.

आखिर उसे समझ आ गया कि वह अभिनव से बदला कैसे ले सकती है. अगले दिन से ही उस ने बदले की पटकथा लिखनी शुरू कर दी.

उस दिन वह ज्यादा ही बनसंवर कर अभि के घर खाना बनाने पहुंची. अभि शाम 4 बजे की शिफ्ट में औफिस जाता था. अम्मांजी हर दूसरे दिन 12 से 4 बजे तक के लिए घर से बाहर अपनी सखियों से मिलने जाती थीं. पिताजी के पैर में तकलीफ थी इसलिए वे बिस्तर पर ही रहते थे.

12 बजे अम्मांजी के जाने के बाद वह अभि के पास चली आई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, “अभिनव आप की शादी की बात सुन कर मैं दुखी हो गई थी. मगर अब मैं ने खुद को संभाल लिया है. शादी से पहले के इन दिनों को मैं भरपूर ऐंजौय करना चाहती हूं. आप की बांहों में खो जाना चाहती हूं.”

अभिनव की तो मनमांगी मुराद पूरी हो रही थी. उस ने झट गुंजन को करीब खींच लिया. दोनों एकदूसरे के आगोश में खोते चले गए. बैड पर अभि की बांहों में मचलती गुंजन ने सवाल किया,” कल आप सच कह रहे थे अभिनव ? शादी के बाद भी आप मुझ से यह रिश्ता बनाए रखोगे न ?”

“हां गुंजन इस में तुम्हें शक क्यों है? शादी एक चीज होती है और प्यार दूसरी चीज. हम दोनों का प्यार और शरीर का यह मिलन हमेशा कायम रहेगा. शादी के बाद भी यह रिश्ता ऐसा ही चलता रहेगा,” कह कर अभिनव फिर से गुंजन को बेतहाशा चूमने लगा.

शाम को गुंजन अपने घर लौट आई. उसे खुद से घिन आ रही थी. वह बाथरूम में गई और नहा कर बाहर निकली. फिर मोबाइल ले कर बैठ गई. आज के उन के शारीरिक मिलन का एकएक पल इस मोबाइल में कैद था. उस ने बड़ी होशियारी से मोबाइल का कैमरा औन कर के ऐसी जगह रखा था जहां से दोनों की सारी हरकतें कैद हो गई थीं.

यह काफी देर तक का लंबा अंतरंग वीडियो था. 10 दिन के अंदर उस ने ऐसे 3 -4 वीडियो और शूट कर लिए. फिर वीडियोज में ऐडिट कर के बड़ी चतुराई से उस ने अपने चेहरे को छिपा दिया.

कुछ दिनों में अभिनव की शादी हो गई. 8-10 दिनों के अंदर ही उस ने अभिनव की पत्नी से दोस्ती कर ली और उस का मोबाइल नंबर ले लिया. अगले दिन उस ने अम्मांजी को कह दिया कि उसे मुंबई में जौब लग गई है और अब काम पर नहीं आ पाएगी. उस दिन वह अभिनव से मिली भी नहीं और घर चली आई.

अगले दिन सुबहसुबह उस ने अपने और अभिनव के 2 अंतरंग वीडियो अभिनव की पत्नी को व्हाट्सऐप कर दिए. 2 घंटे बाद उस ने 2 और वीडियो व्हाट्सऐप किए और चैन से घर के काम निबटाने लगी.

शाम 4 बजे के करीब अभिनव का फोन आया. गुंजन को इस का अंदाजा पहले से था. उस ने मुसकराते हुए फोन उठाया तो सामने से अभिनव का रोता हुआ स्वर सुनाई दिया,” गुंजन तुम ने यह क्या किया मेरे साथ? मेरी शादीशुदा जिंदगी की अभी ठीक से शुरुआत भी नहीं हुई थी और तुम ने ये वीडियो भेज दिए. तुम्हें पता है माया सुबह से ही मुझ से लड़ रही थी और अभीअभी सूटकेस ले कर हमेशा के लिए अपने घर चली गई. गुंजन, तुम ने यह क्या कर दिया मेरे साथ? अब मैं…”

“…अब तुम न घर के रहोगे न घाट के. गुडबाय मिस्टर अभिनव,” वाक्य पूरा करते हुए गुंजन ने कहा और फोन काट दिया.

उस ने आज अभिनव से बदला ले लिया था. खुद को मिले हर आंसुओं का बदला. आज उसे महसूस हो रहा था जैसे उस के जख्मों पर किसी ने मलहम लगा दिया हो.

ओवर ईटिंग की आदत से हैं परेशान, तो अपनाएं ये तरीके

कई बार ज्यादा खाने की आदत से बचना मुश्किल हो जाता है. आप घर में स्वस्थ खाना खाती हैं, तो आप को लगता है कि सब ठीक है और फिर बाहर जा कर खुद को जंक फूड से घिरा हुआ पाती हैं. उसे देख कर भूख लगने लगती है और आप डाइट भूल कर जंक फूड का मजा लेने पहुंच जाती हैं, तो पेश हैं, कुछ तरीके जो आप की इस आदत को छुड़ाने में आप की सहायता करेंगे.

खाने में सिरका और दालचीनी डालें

खाने को स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के लिए बहुत से मसाले और फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं. सिरके से ग्लाइसैमिक इंडैक्स कम होता है. खाने में कैलोरी की मात्रा को बढ़ाए बगैर सलाद की ड्रैसिंग, सौस और भुनी हुई सब्जियों में इस से ऐसिडिक फ्लेवर मिलता है.

भूख न लगने पर खाएं

भूख तेज लगने की स्थिति में व्यक्ति ज्यादा खा लेता है. ज्यादा खा लेने से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करेंगी, जिस से इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है और आप थकान महसूस करने लगती हैं. उस के बाद भूख भी जल्दी लगती है और आप फिर जरूरत से ज्यादा खा लेती हैं. भूख को मारने के बजाय दूसरे तरीके को आजमा कर देखें. जब आप को भूख न लग रही हो या हल्की लग रही हो, तब खाएं. इस से आप कम खाएंगी और धीरेधीरे भी. दिन भर में कम खाने के कई लाभ हैं. इस के अलावा इस आदत से व्यक्ति ऊर्जावान भी रहता है.

पेय कैलोरीज के बजाय पानी पीएं

जूस और सोडा जैसे पेय कैलोरीज से कोई फायदा नहीं मिलता है, बल्कि ये इंसुलिन के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. बेहतर होगा कि इन पेयपदार्थों के बजाय आप पानी पीएं. स्वाद के लिए उस में नीबू, स्ट्राबैरी या खीरा मिला सकते हैं. अपनी ड्रिंक्स में कभी कैलोरी न मिलाएं. प्रतिदिन 8-10 गिलास पानी पीने का लक्ष्य निर्धारित करें. अपनी भूख को नियंत्रित करने के लिए हर भोजन से 20 मिनट पहले 1 गिलास पानी पीने की आदत जरूर डालें.

धीरेधीरे खाएं

खाने को निगलने की स्थिति में उस से तुष्ट होने में कुछ समय लगता है. यह देरी करीब 10-30 मिनट तक की हो सकती है. इसी देरी की वजह से हम कई बार जरूरत व इच्छा से ज्यादा खाना खा लेते हैं. हम जितना तेज खाते हैं उतना ही अधिक मात्रा में खाना भी खाते जाते हैं. हर कौर को कम से कम 10 बार चबा कर खाएं. इस साधारण से नियम का पालन कर आप का खाने की मात्रा पर नियंत्रण बना रहेगा और आप अपने भोजन का आनंद लेते हुए खा सकेंगी.

स्नैक्स लेते रहें

भोजन के  बीच में औलिव औयल या चीनी मिश्रित 1 गिलास पानी लिया जा सकता है. बिना नमक वाले बादाम भी ले सकती हैं. दिन में एक बार ऐसा करने से अपनी भूख पर नियंत्रण रखा जा सकता है. यह तरीका बहुत कारगर साबित हो सकता है, अगर आप को अपना वजन कम करना हो. इस से घ्रेलिन नियंत्रित होता है, जोकि भूख बढ़ाने वाला हारमोन है और फिर फ्लेवर व कैलोरी के बीच का संबंध कमजोर हो जाता है. अगर आप चाहते हैं कि यह तरीका काम करे तो हल्के स्नैक्स लें और ध्यान रखें कि स्नैक्स लेने के आधे घंटे पहले और बाद तक आप पानी के सिवा और कुछ न लें.

फ्रंट डोर स्नैक

आप को यह बात अच्छी तरह पता होगी कि अत्यधिक भूख के समय किसी प्रकार का दृढ़ निश्चय काम नहीं करता है. घर से निकलते ही बाहर लुभावना जंक फूड नजर आने लगता है, इसलिए कोशिश करें कि घर से निकलने से पहले स्वस्थ खाना खा कर या ले कर चलें. घर के मेन दरवाजे के पास बादाम या केले के चिप्स जैसी चीजें रखें और निकलने से तुरंत पहले उन का सेवन करना न भूलें. इस से आप को बाहर निकलते ही भूख नहीं लगेगी.

कंजूस: आखिर क्या था विमल का दर्दभरा सच

विमल जब अपनी दुकान बंद कर घर लौटे तो रात के 10 बजने वाले थे. वे रोज की तरह सीधे बाथरूम में गए जहां उन की पत्नी श्रद्धा ने उन के कपड़े, तौलिया वगैरा पहले से रख दिए थे. नवंबर का महीना आधे से अधिक बीत जाने से ठंड का मौसम शुरू हो गया था. विशेषकर, रात में ठंड का एहसास होने लगा था. इसलिए विमल ने दुकान से आने पर रात में नहाना बंद कर दिया था. बस, अच्छे से हाथमुंह धो कर कपड़े बदलते और सीधे खाना खाने पहुंचते. उन की इच्छा या बल्कि हुक्म के अनुसार, खाने की मेज पर उन की पत्नी, दोनों बेटे और बेटी उन का साथ देते. विमल का यही विचार था कि कम से कम रात का खाना पूरे परिवार को एकसाथ खाना चाहिए. इस से जहां सब को एकदूसरे का पूरे दिन का हालचाल मिल जाता है, आपस में बातचीत का एक अनिवार्य ठिकाना व बहाना मिलता है, वहीं पारिवारिक रिश्ते भी मधुर व सुदृढ़ होते हैं.

विमल ने खाने को देखा तो चौंक गए. एक कटोरी में उन की मनपसंद पनीर की सब्जी, ठीक उसी तरह से ही बनी थी जैसे उन को बचपन से अच्छी लगती थी. श्रद्धा तो किचन में थी पर सामने बैठे तीनों बच्चों को अपनी हंसी रोकने की कोशिश करते देख वे बोल ही उठे, ‘‘क्या रज्जो आई है?’’ उन का इतना कहना था कि सामने बैठे बच्चों के साथसाथ किचन से उन की पत्नी श्रद्धा, बहन रजनी और उस की बेटी की हंसी से सारा घर गूंज उठा. ‘‘अरे रज्जो कब आई? कम से कम मुझ को दुकान में फोन कर के बता देतीं तो रज्जो के लिए कुछ लेता आता,’’ विमल ने शिकायती लहजे में पत्नी से कहा ही था कि रजनी किचन से बाहर आ कर कहने लगी, ‘‘भैया, उस बेचारी को क्यों कह रहे हो. भाभी तो तुम को फोन कर के बताने ही वाली थीं पर मैं ने ही मना कर दिया कि तुम्हारे लिए सरप्राइज होगा. आजकल के बच्चों को देख कर मैं ने भी सरप्राइज देना सीख लिया.’’

‘‘अरे मामा, आप लोग तो फन, थ्रिल या प्रैंक कुछ भी नहीं जानते. मैं ने ही मां से कहा था कि इस बार आप को सरप्राइज दें. इसलिए हम लोगों ने दिन में आप को नहीं बताया. क्या आप को अच्छा नहीं लगा?’’ रजनी की नटखट बेटी बोल उठी. ‘‘अरे नहीं बेटा, सच कहूं तो तुम लोगों का यह सरप्राइज मुझे बहुत अच्छा लगा. बस, अफसोस इस बात का है कि अगर तुम लोगों के आने के बारे में दिन में ही पता चल जाता तो रज्जो की मनपसंद देशी घी की बालूशाही लेता आता,’’ विमल ने कहा. ‘‘वो तो मैं ने 2 किलो बालूशाही शाम को मंगवा ली थीं और वह भी आप की मनपसंद दुकान से. मुझे पता नहीं है कि बहन का तो नाम होगा लेकिन सब से पहले आप ही बालूशाही खाएंगे,’’ श्रद्धा ने कहा ही था कि सब के कहकहों से घर फिर गूंज उठा.खाना निबटने के बाद श्रद्धा ने  उन सब की रुचि के अनुसार जमीन पर कई गद्दे बिछवा कर उन पर मसनद, कुशन, तकिये व कंबल रखवा दिए. और ढेर सारी मूंगफली मंगा ली थीं. उसे पता था कि भाईबहन का रिश्ता तो स्नेहपूर्ण है ही, बूआ का व्यवहार भी सारे बच्चों को बेहद अच्छा लगता है. जब भी सब लोग इकट्ठे होते हैं तो फिर देर रात तक बातें होती रहती हैं. विशेषकर जाड़े के इस मौसम में देर रात तक मूंगफली खाने के साथसाथ बातें करने का आनंद की कुछ अलग होता है.

रजनी अपने समय की बातें इस रोचक अंदाज में बता रही थी कि बच्चे हंसहंस कर लोटपोट हुए जा रहे थे. विमल और श्रद्धा भी इन सब का आनंद ले रहे थे. बातों का सिलसिला रोकते हुए रजनी ने विमल से कहा, ‘‘अच्छा भैया, एक बात कहूं, ये बच्चे मेरे साथ पिकनिक मनाना चाह रहे हैं. कल रविवार की छुट्टी भी है. अब इतने दिनों बाद अपने शहर आई हूं तो मैं भी भाभी के साथ शौपिंग कर लूंगी. इसी बहाने हम सब मौल घूमेंगे, मल्टीप्लैक्स में सिनेमा देखेंगे और समय मिला तो टूरिस्ट प्लेस भी जाएंगे. अब पूरे दिन बाहर रहेंगे तो हम सब खाना भी बाहर ही खाएंगे. बस, तुम्हारी इजाजत चाहिए.’’ विमल ने देखा कि उस के बच्चों ने अपनी निगाहें झुकाई हुई थीं. यह उन की ही योजना थी लेकिन शायद वे सोच रहे थे कहीं विमल मना न कर दें. ‘‘ठीक है, तुम लोगों के घूमनेफिरने में मुझे क्यों एतराज होगा. मैं सुबह ही ट्रैवल एजेंसी को फोन कर पूरे दिन के लिए एक बड़ी गाड़ी मंगा दूंगा. तुम लोग अपना प्रोग्राम बना कर कल खूब मजे से पिकनिक मना लो. हां, मैं नहीं जा पाऊंगा क्योंकि कल दुकान खुली है,’’ विमल ने सहजता से कहा.

तीनों बच्चों ने विमल की ओर आश्चर्य से देखा. शायद उन को इस बात की तनिक भी आशा नहीं थी कि विमल इतनी आसानी से हामी भर देंगे क्योंकि जाने क्यों उन लोगों के मन में यह धारणा बनी हुई थी कि उन के पिता कंजूस हैं. इस का कारण यह था कि उन के साथी जितना अधिक शौपिंग करते थे, अकसर ही मोबाइल फोन के मौडल बदलते थे या आएदिन बाहर खाना खाते थे, वे सब उस तरीके से नहीं कर पाते थे. हालांकि विमल को भी अपने बच्चों की सोच का एहसास तो हो गया था पर उन्होंने बच्चों से कभी कुछ कहा नहीं था. लेकिन विमल को यह जरूर लगता था कि बच्चों को भी अपने घर के हालात तो पता होने ही चाहिए, साथ ही अपनी जिम्मेदारियां भी जाननी चाहिए, क्योंकि अब वे बड़े हो रहे हैं. आज कुछ सोच कर विमल पूछने लगे, ‘‘रज्जो, यह प्रोग्राम तुम ने बच्चों के साथ बनाया है न?’’

रज्जो ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘बच्चों को लग रहा था कि तुम मना न कर दो, इसलिए मैं भी जिद करने को तैयार थी पर तुम ने तो एक बार में ही हामी भर दी.’’ इस पर विमल मुसकराए और एकएक कर सब के चेहरे देखने के बाद सहज हो कर कहने लगे, ‘‘रज्जो, तुम शायद इस का कारण नहीं जानती हो कि बच्चों ने ऐसा क्यों कहा होगा. जानना चाहोगी? इस का कारण यह है कि मेरे बच्चे समझते हैं कि मैं, उन का पिता, कंजूस हूं.’’ विमल का इतना कहना था कि तीनों बच्चे शर्मिंदा हो गए और अपने पिता से निगाहें चुराने लगे. एक तो उन को यह पता नहीं था कि उन के पिता उन की इस सोच को जान गए हैं, दूसरे, विमल द्वारा इतनी स्पष्टवादिता के साथ उसे सब के सामने कह देने से वे और भी शर्मिंदगी महसूस करने लगे थे. विमल किन्हीं कारणों से ये सारी बातें करना चाह रहे थे और संयोगवश, आज उन को मौका भी मिल गया.

‘‘वैसे रज्जो, अगर देखा जाए तो इस में बच्चों का उतना दोष भी नहीं है. दरअसल, मैं ही आजकल की जिंदगी नहीं जी पाता हूं. न तो आएदिन बाहर खाना, घूमनाफिरना, न ही रोजरोज शौपिंग करना, नएनए मौडल के टीवी, मोबाइल बदलना, अकसर नए कपड़े खरीदते रहना. ऐसा नहीं है कि मैं इन बातों के एकदम खिलाफ हूं या यह बात एकदम गलत है पर क्या करूं, मेरी ऐसी आदत बन गई है. मगर इस का भी एक कारण है और आज मैं तुम सब को अपने स्वभाव का कारण भी बताता हूं,’’ इतना कह कर विमल गंभीर हो गए तो सब ध्यान से सुनने लगे.

विमल बोले, ‘‘रज्जो, तुझे अपना बचपन तो याद होगा?’’

‘‘हांहां, अच्छी तरह से याद है, भैया.’’

‘‘लेकिन रज्जो, तुझे अपने घर के अंदरूनी हालात उतने अधिक पता नहीं होंगे क्योंकि तू उस समय छोटी ही थी,’’ इतना कह कर विमल अपने बचपन की कहानी सुनाने लगे : उन के पिता लाला दीनदयाल की गिनती खातेपीते व्यापारियों में होती थी. उन के पास पुरखों का दोमंजिला मकान था और बड़े बाजार में गेहूंचावल का थोक का व्यापार था. विमल ने अपने बचपन में संपन्नता का ही समय देखा था. घर में अनाज के भंडार भरे रहते थे, सारे त्योहार कई दिनों तक पूरी धूमधाम से परंपरा के अनुसार मनाए जाते थे. होली हो या दशहरा, दिल खोल कर चंदा देने की परंपरा उस के पूर्वजों के समय से चली आ रही थी. विमल जब कभी अपने दोस्तों के साथ रामलीला देखने जाता तो उन लोगों को सब से आगे की कुरसियों पर बैठाया जाता. इन सब बातों से विमल की खुशी देखने लायक होती थी. विमल उस समय 7वीं कक्षा में था पर उसे अच्छी तरह से याद है कि पूरी कक्षा में वे 2-3 ही छात्र थे जो धनी परिवारों के थे क्योंकि उन के बस्ते, पैन आदि एकदम अलग से होते थे. उन के घर में उस समय के हिसाब से ऐशोआराम की सारी वस्तुएं उपलब्ध रहती थीं. उस महल्ले में सब से पहले टैलीविजन विमल के ही घर में आया था और जब रविवार को फिल्म या बुधवार को चित्रहार देखने आने वालों से बाहर का बड़ा कमरा भर जाता था तो विमल को बहुत अच्छा लगता था. उस समय टैलीफोन दुर्लभ होते थे पर उस के घर में टैलीफोन भी था. आकस्मिकता होने पर आसपड़ोस के लोगों के फोन आ जाते थे. इन सारी बातों से विमल को कहीं न कहीं विशिष्टता का एहसास तो होेता ही था. उसे यह भी लगता था कि उस का परिवार समाज का एक प्रतिष्ठित परिवार है.

पिछले कुछ समय से जाने कैसे दीनदयाल को सट्टे, फिर लौटरी व जुए की लत पड़ गई थी. उन का अच्छाखासा समय इन सब गतिविधियों में जाने लगा. जुए या ऐसी लत की यह खासीयत होती है कि जीतने वाला और अधिक जीतने के लालच में खेलता है तो हारने वाला अपने गंवाए हुए धन को वापस पा लेने की आशा में खेलता है. दलदल की भांति जो इस में एक बार फंस जाता है, उस के पैर अंदर ही धंसते जाते हैं और निकलना एकदम कठिन हो जाता है. पहले तो कुछ समय तक दीनदयाल जीतते रहे मगर होनी को कौन टाल सकता है. एक बार जो हारने का सिलसिला शुरू हुआ तो धीरेधीरे वे अपनी धनदौलत हारते गए और इन्हीं सब  चिंता व समस्याओं से व्यवसाय पर पूरा ध्यान भी नहीं दे पाते थे. उन की सेहत भी गिर रही थी, साथ ही व्यापार में और भी नुकसान होने लगा. विमल को वे दिन अच्छी तरह से याद हैं जब वह कारण तो नहीं समझ पाया था पर उस के माता और पिता इस तरह पहली बार झगड़े थे. उस ने मां को जहां अपने स्वभाव के विपरीत पिता से ऊंची आवाज में बात करते सुना था वहीं पिता को पहली बार मां पर हाथ उठाते देखा था. उस दिन जाने क्यों पहली बार विमल को अपने पिता से नफरत का एहसास हुआ था. फिर एक दिन ऐसा आया कि उधार चुकता न कर पाने के कारण उन का पुश्तैनी मकान, जो पहले से ही गिरवी रखा जा चुका था, के नीलाम होने की नौबत आ गई. इस के बाद दीनदयाल अपने परिवार को ले कर वहां से दूर एक दूसरे महल्ले में किराए के एक छोटे से मकान में रहने को विवश हो गए. हाथ आई थोड़ीबहुत पूंजी से वे कुछ धंधा करने की सेचते पर उस के पहले ही उन का दिल इस आघात को सहन नहीं कर सका और वे परिवार को बेसहारा छोड़ कर चल बसे.

यह घटना सुनते हुए रजनी की आंखें नम हो आईं और उस का गला रुंध गया. कटु स्मृतियों के दंश बेसाख्ता याद आने से पुराने दर्द फिर उभर आए. कुछ पल ठहर कर उस ने अपनेआप को संयत किया फिर कहने लगी, ‘‘मुझे आज भी याद है कि भैया के ऊपर बचपन से ही कितनी जिम्मेदारियां आ गई थीं. हम लोगों के लिए फिर से अपना काम शुरू करना कितना कठिन था. वह तो जाने कैसे भैया ने कुछ सामान उधार ले कर बेचना शुरू किया था और अपनी मेहनत से ही सारी जिम्मेदारियां पूरी की थीं.’’ ‘‘रज्जो सच कह रही है. इसी शहर में मेरे एक मित्र के पिता का थोक का कारोबार था. हालांकि वह मित्र मेरी आर्थिक रूप से मदद तो नहीं कर सका मगर उस ने मुझे जो हौसला दिया, वह कम नहीं था. मैं ने कैसेकैसे मिन्नतें कर के सामान उधार लेना शुरू किया था और उसे किसी तरह बेच कर उधार चुकाता था. वह सब याद आता है तो हैरान रह जाता हूं कि कैसे मैं यह सब कर पाया था. जैसेतैसे जब कुछ पैसे आने शुरू हुए तो मैं ने अम्मा, दीदी और रज्जो के साथ दूसरे मकान में रहना शुरू किया. हमारे साथ जो कुछ घटित हुआ, इस तरह की खबरें बहुत तेजी से फैलती हैं और जानते हो इस का सब से बड़ा नुकसान क्या होता है? आर्थिक नुकसान तो कुछ भी नहीं है क्योंकि पैसों का क्या है, आज नहीं तो कल आ सकते हैं पर पारिवारिक प्रतिष्ठा को जो चोट पहुंचती है और पुरखों की इज्जत जिस तरह मिटती है उस की भरपाई कभी नहीं हो सकती. मैं अपना बचपन अपने बाकी साथियों की तरह सही तरीके से नहीं जी पाया और उस की भरपाई आज क्या, कभी नहीं हो सकती.

‘‘लेकिन यह मत समझो कि इस की वजह केवल पैसों का अभाव रहा है. अपना सम्मान खोने के बाद भी सिर उठा कर जीना आसान नहीं होता. मुझे अच्छी तरह से याद है कि इन सब घटनाओं से मैं कितनी शर्मिंदगी महसूस करता था और अपने दोस्तों का सामना करने से बचता था. तू तो छोटी थी पर मां तो जैसे काफी दिन गुमसुम सी रही थीं और मेरी खुशमिजाज व टौपर दीदी भी इन सब घटनाओं से जाने कितने दिन डिप्रैशन में रही थीं. इन सारी घटनाओं की चोट मेरे अंतर्मन में आज भी ताजा है और मैं अकेले में उस पीड़ा को आज भी ऐसे महसूस करता हूं जैसे कल की घटना हो. अब मुझे पता चला कि एक आदमी की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी का खमियाजा उस के परिवार के जाने कितने लोगों को और कितने समय तक भुगतना पड़ सकता है. आज भी अगर कोई पुराना परिचित मिल जाता है तो भले ही वह हमारा अतीत भूल चुका हो परंतु मैं उस को देख कर भीतर ही भीतर शर्मिंदा सा महसूस करता हूं. मुझे ऐसा लगता है कि मेरे सामने वह व्यक्ति नहीं कोई आईना आ गया है, जिस में मेरा अतीत मुझे दिख रहा है.

‘‘जीतोड़ मेहनत से काम करने से धीरेधीरे पैसे इकट्ठे होते गए और मेरा काम बढ़ता गया. फिर मैं ने अपनी एक दुकान खोली, जिस में डेयरी का दूध, ब्रैड और इस तरह के बस एकदो ही सामान रखना शुरू किया. जब कोई पूरी ईमानदारी और मेहनत से अपना काम करता है तो वक्त भी उस की सहायता करता है. मेरा उसूल रहा है कि न तो किसी की बेईमानी करो, न किसी का बुरा करो और मेहनत से कभी पीछे मत हटो. मेरी लगन और मेहनत का परिणाम यह है कि आज वही दुकान एक जनरल स्टोर बन चुकी है और उसी की बदौलत यह मकान खरीद सका हूं. श्रद्धा तो थोड़ाबहुत जानती है पर बच्चे कुछ नहीं जानते क्योंकि वे तो शुरू से ही यह मकान और मेरा जनरल स्टोर देख रहे हैं. वे शायद समझते हैं कि उन के पिता पैदायशी अमीर रहे हैं, जिन को पारिवारिक व्यवसाय विरासत में मिला है. उन को क्या पता कि मैं कितना संघर्ष कर इस मुकाम पर पहुंचा हूं.’’

विमल की बातें सुन कर बच्चे तो जैसे हैरान रह गए. वास्तव में वे यही सोचते थे कि  उन के पिता का जनरल स्टोर उन को विरासत में मिला होगा. उन को न तो यह पता था न ही वे कल्पना कर सकते थे कि उन के पिता ने अपने बचपन में कितने उतारचढ़ाव देखे हैं, कैसे गरीबी का जीवन भी जिया है और कैसी विषम परिस्थितियों में किस तरह संघर्ष करते हुए यहां तक पहुंचे हैं. पुरानी स्मृतियों का झंझावात गुजर गया था पर जैसे तूफान गुजर जाने के बाद धूलमिट्टी, टूटी डालियां व पत्ते बिखरे होने से स्थितियां सामान्य नहीं लगतीं, कुछ इसी तरह अब माहौल एकदम गंभीर व करुण सा हो गया था. बात बदलते हुए श्रद्धा बोली, ‘‘अच्छा चलिए, वे दुखभरे दिन बीत गए हैं और आप की मेहनत की बदौलत अब तो हमारे अच्छे दिन हैं. आज हमें किसी बात की कमी नहीं है. आप सही माने में सैल्फमेडमैन हैं.’’ ‘‘श्रद्धा, इसीलिए मेरी यही कोशिश रहती है कि न तो हमारे बच्चों को किसी बात की कमी रहे, न ही वे किसी बात में हीनता का अनुभव करें. यही सोच कर तो मैं मेहनत, लगन और ईमानदारी से अपना कारोबार करता हूं. बच्चो, तुम लोग कभी किसी बात की चिंता न करना. तुम्हारी पढ़ाई में कोई कमी नहीं रहेगी. जिस का जो सपना है वह उसे पूरा करे. मैं उस के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं रहूंगा.’’

‘‘यह बात हुई न. अब तो कल का प्रोग्राम पक्का रहा. चलो बच्चो, अब कल की तैयारी करो,’’ बूआ के इतना कहते ही सारे बच्चे चहकने लगे मगर जाने क्यों विमल का 15 वर्षीय बड़ा बेटा रजत अभी भी गंभीर ही था.‘‘क्या हुआ रजत, अब क्यों चिंतित हो?’’ बूआ ने पूछा ही था कि रजत उसी गंभीर मुद्रा में कहने लगा, ‘‘बूआ, अब पुराना समय बीत गया जब पापा को पैसों की तंगी रहती थी. अब हमारे पास पैसे या किसी चीज की कमी नहीं है बल्कि हम अमीर ही हो गए हैं. तो फिर पापा क्यों ऐसे रहते हैं. अब तो वे अपनी वे इच्छाएं भी पूरी कर सकते हैं जो वे गरीबी के कारण पूरी नहीं कर सके होंगे.’’रजत के प्रश्न से विमल चौंक गया, फिर कुछ सोच कर कहने लगा, ‘‘बेटा, मुझे खुशी है कि तुम ने यह प्रश्न पूछा. वास्तव में हमारी आज की जीवनशैली, आदतें या खर्च करने का तरीका इस बात पर निर्भर नहीं होता कि हमारी आज की आर्थिक स्थिति कैसी है बल्कि हमारे जीने के तरीके तय करने में हमारा बचपन भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. अपने बचपन में मैं ने जैसा जीवन जिया है, उस प्रकार का जीवन जीने वालों के मन में कटु माहौल सा बन जाता है, जिस से वे चाह कर भी बाहर नहीं आ सकते. जो आर्थिक संकट वे भुगत चुके होते हैं, पैसे के अभावों की जो पीड़ा उन का मासूम बचपन झेल चुका होता है, उस के कारण वे अमीर हो जाने पर भी फुजूलखर्ची नहीं कर सकते.

‘‘आर्थिक असुरक्षा के भय, अपमानजनक परिस्थितियों की यादों के कष्टप्रद दंश, एकएक पैसे का महत्त्व या पैसों की तंगी की वजह से अभावों में गुजरे समय की जो पीड़ा  अंतर्मन में कहीं गहरे बैठ जाती है उस से चाह कर भी उबरना बहुत कठिन होता है. हकीकत तो यह है कि हमारा आज कितना भी बेहतर हो जाए या मैं कितना भी अमीर क्यों न हो जाऊं लेकिन मैं जिस तरह का बचपन और संघर्षमय अतीत जी चुका हूं वह मुझे इस तरह से खर्च नहीं करने देगा. लेकिन क्या तुम जानते हो कि वास्तव में कंजूस तो वह होता है जो जरूरी आवश्यकताओं पर खर्च नहीं करता है. ‘‘तुम लोगों को पता होगा कि घर में दूध, मौसम के फलसब्जियों या मेवों की कमी नहीं रहती. हां, मैं तुम लोगों को फास्ट फूड या कोल्ड डिं्रक्स के लिए जरूर मना करता हूं क्योंकि आज भले ही ये सब फैशन बन गया है पर ऐसी चीजें सेहत के लिए अच्छी नहीं होतीं. इस के अलावा तुम लोगों की वे सारी जरूरतें, जो आवश्यक हैं, उन को पूरा करने से न तो कभी हिचकता हूं न ही कभी पीछे हटूंगा. तुम्हारे लिए लैपटौप भी मैं ने सब से अच्छा खरीदा है. तुम लोगों के कपड़े हमेशा अच्छे से अच्छे ही खरीदता हूं. इसी तरह तुम लोगों की जरूरी चीजें हमेशा अच्छी क्वालिटी की ही लाता हूं. मैं अपने अनुभव के आधार पर एक बात कहता हूं जिसे हमेशा याद रखो कि जो इंसान अपनी आमदनी के अनुसार खर्च करता और बचत करता है, अपने आने वाले कल के लिए सोच कर चलता है, वह कभी परेशान नहीं होता. अच्छा, अब रात बहुत हो गई है और सब को कल घूमना भी है, इसलिए चलो, अब सोने की तैयारी की जाए.’’

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सवाल

मैं 21 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 2 वर्ष हुए हैं और मेरे पति की सैक्स के प्रति अभी से रूचि कम हो गई है. कोई उपाय बताएं, जिस से उन की सैक्स में दिलचस्पी बढ़ जाए. क्या कोई दवा कारगर होगी?

जवाब

सैक्स करने की इच्छा (कामेच्छा) हर व्यक्ति की अलग अलग होती है. इस का कोई निश्चित मानदंड नहीं है. यह व्यक्ति की इच्छा और क्षमता पर निर्भर करती है.

ऐसी कोई दवा नहीं है, जो व्यक्ति की यौनेच्छा को बढ़ा सके. अलबत्ता इस बात पर गौर करें कि आप के पति को अपनी नौकरी या व्यवसाय को ले कर कोई परेशानी तो नहीं है या फिर औफिस में काम का बोझ ज्यादा तो नहीं, क्योंकि कई बार ऐसी किसी परेशानी के कारण भी व्यक्ति का सैक्स करने को मन नहीं करता. थकान की वजह से नींद जल्दी आ जाती है. सैक्स के लिए प्रवृत्त होने के लिए व्यक्ति का तन और मन दोनों का स्वस्थ और सक्रिय होना आवश्यक होता है.

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हर काम युवा जल्दबाजी में करना चाहते हैं. युवा ऊर्जा और जोश की यह खासीयत भी है कि गरम खून और उत्साह से भरी यह पीढ़ी हर काम को खुद करना जानती है. प्रेम भी युवा खुल कर करते हैं. समाज की सीमाओं से परे इन के रिश्ते दकियानूसी दौर को पार कर चुके हैं और सैक्स संबंधों के लिए किसी से परमिशन नहीं लेनी पड़ती.

एक शोध में पाया गया कि शारीरिक संसर्ग की गुणवत्ता बोझिल होने से रिश्ते बोझ लगने लगते हैं और युवा भूल जाते हैं कि असल रोमांस क्या है. आजकल युवाओं में बढ़ती थकान, दबाव या निराशा के कारण अपनी गर्लफ्रैंड के साथ सैक्सुअल रिलेशन बोझिल होते जा रहे हैं, जिस का नकारात्मक असर उन के रिश्ते पर भी दिखता है.

युवकयुवती के बीच अगर सैक्स संबंधों में मधुरता है तो दोनों के रिश्तों में नई ऊर्जा का भी संचार होता है, लेकिन अगर सैक्स संबंध ही बोझिल हो चुके हैं तो रिश्ता भी बोझिल हुआ समझो. आइए, जानते हैं कि सैक्स संबंधों की बोझिलता दूर कर किस तरह युवा अपने रिलेशन में नई जान फूंक सकते हैं :

खुल कर करें इजहार

युवाओं के बीच अगर सैक्स में डिजायर्स नहीं है तो रिश्ते में भी ऊष्मा नहीं आएगी. ज्यादातर युवतियां अपने साथी से संकोचवश सैक्स के बारे में अपनी फीलिंग्स छिपाती हैं, जिस के चलते उन्हें उस तरह का सैक्सुअल प्लेजर नहीं मिल पाता जिस की उन्हें चाहत होती है. मन की बात मन में ही रह जाती है. पार्टनर के सामने खुल न पाने के चलते सैक्स संबंध बोझिल लगने लगते हैं. अगर आप चाहते हैं कि रिश्तों में रोमांस का तड़का लगा रहे तो अपनी डिजायर्स पार्टनर से शेयर करें, जो अच्छा लग रहा है, उसे बताएं और बुरी फीलिंग्स को भी छिपाएं नहीं. अपने साथी के साथ हर बात शेयर करें और सैक्सुअल रिलेशन बनाते समय संकोच को किनारे कर उस का पूरा आनंद लें, आप पाएंगे कि रिश्तों की खोई ऊष्मा वापस आ रही है.

जराजरा टचमी… टचमी…

स्पर्श प्रेम और सैक्स का सब से अहम टूल होता है. एक स्पर्श अंगअंग में गुदगुदी भर सकता है जबकि गलत तरीके से किया गया स्पर्श मन को घृणा से भर देता है. सैक्स संबंध बनाते समय अगर अपने साथी को स्पर्श करने की कला आप को आती है तो सैक्स का आनंद कई गुणा बढ़ जाता है. सैक्स ऐक्सपर्ट मानते हैं कि स्पर्श का प्यार और सैक्स से गहरा रिश्ता है. इस के पीछे वजह है कि स्किनटूस्किन कौंटैक्ट से आप का औक्सिटोसिन लैवल बढ़ेगा. इस से आप रिलैक्स महसूस करेंगी और अपने पार्टनर के और करीब जाएंगी. थोड़ा तन से छेड़छाड़ और तन से तन का स्पर्श ही कामइच्छा को जागृत करता है. स्पर्श से कामइच्छा में इजाफा होता है और संबंधों में प्रगाढ़ता आती है. पार्टनर को प्रेमस्पर्श देना सब से कारगर तरीका है. पार्टनर का मूड बनाने के लिए कान के पीछे, आंखों पर किस भी कर सकते हैं.

शरारती बातें और चाइनीज फुसफुस

सैक्स एक कला है और इस में जितने प्रयोग किए जाएं यह उतनी निखरती है. इसलिए जब भी आप सैक्स संबंध बनाएं नए प्रयोग आजमाने से हिचकें नहीं. जब भी आप को मौका मिले पार्टनर को फोन मिलाएं और रोमांटिक तथा शरारत भरी बातें करें साथ ही उन्हें हिंट दें कि शाम को जब आप दोनों की मुलाकात होगी, तो क्या सरप्राइज मिलने वाला है. इशारा सैक्स को ले कर हो तो ज्यादा मजेदार होगा. अगर और प्लेजर खोज रहे हैं तो कान में फुसफुस वाला गेम भी खेल सकते हैं. इसे चाइनीजविस्पर गेम कहा जाता है. इस खेल को कइयों ने बचपन में खेला होगा. इस में नौटी बातों का तड़का लगा कर खेलेंगे तो मजा दोगुना हो जाएगा. जब अपने पार्टनर के साथ यह खेल खेलें तो उस के कानों में कुछ सिडक्टिव बातें कहें.

माहौल हो खुशनुमा

सैक्स कहीं भी और कभी भी करने वाली क्रिया नहीं है. जिस तरह खाना बिना भूख और स्वाद के गले नहीं उतरता, बेस्वाद लगने लगता है, ठीक उसी तरह सैक्स भी जबरन या गलत मूड और माहौल में करने से बेहद नीरस लगने लगता है. जिस से कई बार रिश्ते बोझिल लगने लगते हैं. सैक्स में माहौल और मूड जरूरी फैक्टर्स हैं. पुराने समय में तरहतरह के इत्र का इस्तेमाल होता था, क्योंकि सुगंध का सैक्स से रोचक रिश्ता है. महकता बदन और मदहोश करने वाली सुगंध से सैक्स की डिजायर और बढ़ जाती है. इसलिए अपने कमरे या जहां भी सैक्स करते हैं, वहां का माहौल खुशनुमा बना लें, कमरा सजाएं. कमरे का इंटीरियर बदलें. कमरे की लाइट डिम हो और रोमांटिक म्यूजिक चला हो, फिर दिनभर की थकान दूर करने के लिए पार्टनर की मसाज करें.

रोल प्ले और साथ में बाथ

रोजरोज एक ही काम करने से उस में बोझिलता आना स्वाभाविक है. हर रिश्ता कुछ नया और एडवैंचर्स की मांग करता है. कई बार उस के लिए खुद को बदलना भी पड़ता है. सैक्सुअल रिलेशन में इसी काम को रोल प्ले भी कहते हैं. इस में कुछ फिक्शन और नौन फिक्शन किरदारों को मिला कर एक किरदार बना लें और अपने साथी के साथ सैक्स के दौरान उस किरदार में रहें. आप पाएंगे कि आप को सैक्स की कुछ अलग अनुभूति हो रही है और नया रोमांचकारी अनुभव भी मिलेगा. पार्टनर के साथ एक रोमांटिक कहानी बनाएं, दोनों रोल बांट लें और बैडरूम में रोल प्ले करें या फिर रोल निभाएं, जो आप निभाना चाहते हैं. एकदूसरे के करीब आने का यह क्रिएटिव तरीका है. साथ ही अपनी सैक्स अपील उभारने के लिए ट्रांसपेरैंट ड्रैसेज और इरोटिक लिंजरी का सहारा लेने से भी सैक्स में तड़का लगता है. सैक्स ड्राइव बढ़ाने के लिए यह भी एक नायाब तरीका हो सकता है. बाथरूम में अच्छा परफ्यूम स्प्रे करें. बाथटब में एकसाथ बाथ लें.

स्ट्रैसफ्री सैक्स, पोर्न की लत और हैल्दी फूड

युवाओं में काम की टैंशन, नौकरी का तनाव और थकान सैक्स को बेमजा करते हैं. लिहाजा, रिश्ते भी अपना आकर्षण खोने लगते हैं. इसलिए किसी भी तरह खुद को रिलैक्स करिए तभी स्वस्थ सैक्स का मजा ले सकेंगे. जब स्ट्रैसफ्री रहेंगे तभी अपने साथी की डिजायर समझेंगे और उसे सैक्स का पूरा आनंद दे सकेंगे वरना सैक्स तो होता है, लेकिन एकतरफा और अधूरा सा रहता है, जिस में एक साथी असंतुष्ट रहता है. जिस का गुस्सा उस रिश्ते को खराब भी कर सकता है. सैक्स का स्वस्थ खाने और हैल्थ से भी कनैक्शन है. वैसे तो स्वास्थ्य के लिहाज से भी यही सलाह दी जाती है. यहां भी हम यही सुझाव देंगे. यदि आप सैक्स करना चाहते हैं तो कम खाना खाएं या फिर घंटेभर पहले खाना खा लें. इस से बैड पर आप को आलस नहीं आएगा.

पोर्न की लत को ले कर सैक्स ऐक्सपर्ट्स का कहना है कि एक सीमा तक पोर्न देखना रिलेशनशिप के लिए अच्छा है. लेकिन शोध बताते हैं कि सैक्स में आती बोझिलता के चलते रिश्तों की गर्माहट खत्म हो रही है, जिस के नतीजे ब्रेकअप के रूप में सामने आ रहे हैं.

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