बच्चों को जितनी अच्छी शिक्षा मिलेगी उन का भविष्य उतना ही अच्छा होगा. अगर बच्चे सही से पढ़ाई नहीं कर पाते हैं तो जीवन भर परेशान रहते हैं. ऐसे में जरूरी है कि पेरैंट्स बच्चों की पढ़ाई के बारे में पहले से ही सोचना शुरू कर दें और उच्च शिक्षा के लिए अलग से बचत करना शुरू करें ताकि कालेज का चयन करते समय बजट की समस्या न रहे.
जिस तरह से बच्चों की शादी, घर और मैडिकल सुविधाओं के लिए पहले से तैयारी की जाती है उसी तरह उच्च शिक्षा का भी बजट तैयार किया जाना चाहिए. प्राइवेट कालेज में उच्च शिक्षा की फीस कालेज की गुडविल, कोर्स और वहां मिलने वाली सुविधाओं पर निर्भर करती है.
एसआर ग्रुप औफ इंस्टिट्यूट्स, लखनऊ के चेयरमैन, पवन सिंह चौहान कहते हैं, ‘अब पेरैंट्स बहुत जागरूक हो रहे हैं. वे बच्चे की उच्च शिक्षा के लिए अपना बजट पहले से बना लेते हैं. इस के अलावा प्राइवेट और सरकारी स्तर पर छात्रों को छात्रवृत्ति की व्यवस्था भी है. लेकिन पेरैंट्स को छात्रवृत्ति को बजट में नहीं जोड़ना चाहिए. कई बार यह नहीं मिलती तो परेशानी होती है.’
जैसी सुविधा वैसा खर्च
उच्च शिक्षा में बीए की पढ़ाई से ले कर इंजीनियरिंग तक की पढ़ाई शामिल होती है. हर कोर्स की फीस अलगअलग होती है. यह 20 रुपए हजार सालाना से ले कर 2 लाख रुपए सालाना तक हो सकती है. डाक्टरी की पढ़ाई की फीस सब से ज्यादा है. इस का कारण यह है कि डाक्टरी की पढ़ाई के लिए निजी शिक्षण संस्थान बहुत कम हैं.
उच्च शिक्षा में पढ़ाई के बाद दूसरा बड़ा खर्च होस्टल का होता है. सरकारी कालेजों के मुकाबले प्राइवेट कालेजों के होस्टल बहुत अच्छे होते हैं. यहां रहने के लिए अच्छे हवादार कमरों के साथसाथ बिजली, जिम, इंटरनैट जैसी सुविधाएं भी होती हैं. दिन में 2 बार खाने के साथ-साथ सुबह-शाम नाश्ते का भी इंतजाम कालेज की ओर से रहता है. बच्चों के मनोरंजन के लिए कौमनरूम में टीवी और होम थिएटर तक की व्यवस्था होती है.
होस्टल की फीस 45 हजार रुपए सालाना से ले कर 90 हजार रुपए तक हो सकती है. कुछ कालेजों में एसी की सुविधा भी है. ज्यादातर होस्टल 1 कमरे में 2 बच्चों को रखते हैं. कुछ कालेजों में 3 बच्चों को भी रखा जाता है, तो कुछ कालेज 1 कमरे में 1 बच्चे के रहने की भी सुविधा देते हैं. इन सुविधाओं के हिसाब से होस्टल की फीस भी तय होती है.
उच्च शिक्षा में इंटरनेट का महत्त्व बढ़ गया है. ऐसे में कालेजों के होस्टल में भी इंटरनैट सुविधाएं मिलने लगी हैं. कई कालेज होस्टल में इंटरनैट न दे कर कौमनरूम में देते हैं. इस के अलावा होस्टल में मैडिकल सेवाएं भी मिलती हैं. प्राइवेट कालेजों में वातानुकूलित होस्टल सुविधा दी जाती है.
सुरक्षित और सुविधाजनक माहौल
मेरठ के सुभारती विश्वविद्यालय में फाइन आर्ट के प्रिंसिपल पिंटू मिश्रा कहते हैं, ‘आज उच्च शिक्षा के लिए लड़कियां अपने घरों से दूर दूसरे शहरों के प्राइवेट कालेजों तक जाने लगी हैं. ऐसे में पेरैंट्स की प्राथमिकता यह होती है कि वे किस तरह के माहौल में रह रही हैं. प्राइवेट कालेजों में शिक्षा और रहने का माहौल सुरक्षित और सुविधाजनक होता है. ऐसे में लड़कियों को भी घर से दूर आने के बाद किसी तरह की परेशानी का अनुभव नहीं होता है. जिन शिक्षण संस्थानों में लड़के-लड़कियां साथ पढ़ते हैं वहां के होस्टल पूरी तरह से लड़कियों के लिए सुरक्षित हैं.’
कालेज में रह रहे छात्रों का सही तरह से विकास हो सके, इस का पूरा खयाल रखा जाता है. सरकारी और प्राइवेट कालेजों में यही अंतर होता है. सरकारी कालेजों में जहां केवल पढ़ाई पर ध्यान दिया जाता है वहीं प्राइवेट कालेजों में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के सर्वांगीण विकास का ध्यान रख कर काम किया जाता है. इस से छात्र बेहतर तरीके से उच्च शिक्षा का लाभ ले सकते हैं. पेरैंट्स को इस तरह की सुविधाओं को ध्यान में रखना चाहिए.
कई बार पेरैंट्स सही तरह से इन बातों का अंदाजा नहीं लगा पाते. ऐसे में बाद में उन को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार पेरैंट्स कालेज के अंदर होस्टल लेने के बजाय खर्च कम करने के लिए कालेज के बाहर होस्टल ले लेते हैं. कालेज के बाहर के होस्टल पूरी तरह सुरक्षित और सुविधाजनक नहीं होते हैं. कालेज के होस्टल ज्यादा सुरक्षित रहते हैं.
अन्य खर्च
शिक्षा में कालेज फीस और होस्टल की फीस के अलावा तीसरा महत्त्वपूर्ण खर्च बच्चे की पौकेटमनी का होता है. यह हर माह पेरैंट्स को देना होता है. सामान्य तौर पर इस की लिमिट बच्चे और खर्च पर तय होती है. सामान्य रूप से यह खर्च 2 हजार रुपए से ले कर 5 हजार रुपए तक होती है. इस पैसे से बच्चे अपनी जरूरतें पूरी करते हैं. पौकेटमनी से उन का आत्मविश्वास बढ़ता है. जरूरत इस बात की है कि पौकेटमनी का सही तरह से उपयोग हो. पढ़ाई में कई प्रकार के खर्च पहले से तय नहीं होते. इस में ऐजुकेशन टूअर, कई तरह के आयोजन आदि होते हैं. इन में बच्चों से कुछ फीस अलग से ली जाती है. इस तरह से उच्च शिक्षा के खर्च का अंदाजा लगा कर पेरैंट्स अपना बजट तैयार कर सकते हैं ताकि उन के बच्चों को अच्छा कालेज और मनपसंद शिक्षा मिल सके.
अच्छी पहल है
‘‘बच्चे को उस की रुचि के अनुसार शिक्षा दिलानी चाहिए. प्राइवेट कालेज अब पेरैंट्स की जरूरत के हिसाब से फीस और होस्टल फीस को किस्तों में भी लेते हैं. इस से पेरैंट्स को बजट मैंटेन करने में मदद मिलती है.किस्तों में फीस देना सुविधाजनक होता है,’’
–पवन सिंह चौहान, चेयरमैन,
एसआर ग्रुप औफ इंस्टिट्यूट्स, लखनऊ
बढ़ता है आत्मविश्वास
‘‘कई कालेज छात्रवृत्ति भी देते हैं. इस के लिए छात्रों को टैस्ट देना होता है. नंबरों के हिसाब से छात्रवृत्ति का पैसा तय होता है. इस से छात्र पढ़ने की तरफ ज्यादा ध्यान देते हैं. छात्र में आत्मविश्वास भी आता है. उसे लगता है कि अपनी मेहनत से वह अपनी पढ़ाई में योगदान दे सकता है,’’
-पिंटू मिश्रा, प्रिंसिपल, फाइन आर्ट डिपार्टमैंट सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ