महाराष्ट्र में धोनी की फिल्म पर लगा बैन!

लंबे वक्त से टीम इंडिया के सबसे सफल कैप्टन महेन्द्र सिंह धोनी की लाइफ पर बनी फिल्म का  इंतजार हो रहा है. देश के इस रीयल स्टार की लाइफ को जानने को हर कोई बेताब है जिसमें आम से लेकर खास लोग शामिल हैं लेकिन ऐसा भी कोई है जिसे इस फिल्म पर एतराज है.

हम बात कर रहे हैं मनसे प्रमुख राज ठाकरे की, जिनका गुस्सा इस बार धोनी की बॉयोपिक फिल्म ‘एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ पर फूटा है. उन्हें धोनी पर नहीं धोनी की फिल्म पर गुस्सा आ रहा है क्योंकि इस फिल्म को हाल ही में मराठी भाषा में डब किया गया है. जिसका विरोध करते हुए राज ठाकरे ने कहा कि मराठी डबिंग से मराठी सिनेमा को खतरा है.

इसलिए मनसे मनसे की चित्रपट शाखा ने कहा है कि मराठी में डब की गई फिल्म को सिनेमाघरों में प्रदर्शित नहीं किया जायेगा. मनसे का कहना है कि अगर इसी तरह से फिल्मों की डबिंग की जाती रही तो एक दिन मराठी सिनेमा बंद हो जायेगा इसलिए हम ‘एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ को मराठी सिनेमाघरों में रिलीज नहीं होने देंगे.

हम पहले हम पहले फिल्म निर्माता नीरज पांडे से निवेदन करेंगे कि वे इस फिल्म का मराठी डब संस्करण प्रदर्शित ना करें अगर वो मान गये तो ठीक वरना आंदोलन होगा.

गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं

हमारे समाज के लोग भी बड़े अजीब हैं. उन की अपने से ज्यादा दूसरों के मामले में ताकनेझांकने में रुचि होती है. एक उदाहरण देखिए. जैसे ही किसी लड़की के विवाह की उम्र होने लगती है, लोग उस से यह पूछपूछ कर उसे परेशान कर देते हैं कि शादी कब कर रही हो? कब सैटल हो रही हो? अगर किसी तरह इन सवालों से पीछा छुड़ाने के लिए वह शादी कर ले, तो वे यह नया राग अलापना शुरू कर देते हैं कि खुशखबरी कब सुना रही हो? अरे भई, उसे अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का तो मौका दीजिए. अपनी जिंदगी में लोगों के पास अपने लिए सोचने लायक क्या कुछ भी नहीं है?

विवाह के बाद अगर लोगों को यह पता चल जाए कि वह मां बनने वाली है, तो सच मानिए वे अपनी नसीहतों का पुलिंदा देदे कर उसे पूरी तरह पका देंगे और अच्छेभले इनसान को बीमार बना देंगे.

गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं

दरअसल, हम बात कर रहे हैं गर्भावस्था के दौरान मिलने वाली ऐक्सपर्ट ऐडवाइजेज की. अरे भई, गर्भावस्था कोई बीमारी थोड़े न है, जो लोग बिना मांगे अपनी ऐक्सपर्ट हिदायतें दे कर अच्छीभली महिला को जिस के लिए मातृत्व एक सुखद अनुभव होना चाहिए, उसे बीमार बना दें. आम लोगों के साथ तो ऐसा ही होता है. लेकिन जब ऐसा ही कुछ फिल्म अभिनेत्री करीना कपूर के साथ हुआ और बारबार उन की प्रैगनैंसी पर मीडिया के अटैंशन के कारण जब उन की बरदाश्त करने की सीमा खत्म हो गई तो उन्होंने जम कर अपनी भड़ास निकाली और गुजारिश की कि मीडिया उन की प्रैगनैंसी को नैशनल कैजुअलिटी इशू न बनाए.

मुंहतोड़ जवाब

दरअसल, करीना इन दिनों प्रैगनैंसी के बावजूद रिया कपूर की फिल्म ‘वीरे दी वैडिंग’ की शूटिंग कर रही हैं. इस बात पर जब उन से पूछा गया कि वे मैटरनिटी लीव क्यों नहीं ले रहीं, तो यह सुनते ही उन्हें गुस्सा आ गया जो वाजिब भी था.

वे गुस्से में बोलीं, ‘‘मैं प्रैगनैंट हुई हूं, मरी नहीं हूं और किस बात की मैटरनिटी लीव? बच्चा पैदा करना इस दुनिया में नौर्मल बात है. मुझे उस से अलग दिखाना बंद करें. जिसे परेशानी है वह मेरे साथ काम न करे. लेकिन मेरा काम हमेशा की तरह चलता रहेगा. हम 21वीं सदी में जी रहे हैं 18वीं में नहीं. लोगों के लिए मेरा मैसेज है कि शादी करना या फैमिली बढ़ाना मेरे कैरियर के आड़े नहीं आ सकता.’’

वाह करीनाजी, आखिर आप ने एक आम महिला की समस्या को समझा और उस का मुंहतोड़ जवाब दिया.

आप को बता दें जिस तरह करीना कपूर ने अपनी अपकमिंग फिल्म ‘वीरे दी वैडिंग’ की शूटिंग को जारी रखने का फैसला किया है, उसी तरह फिल्म इंडस्ट्री में अनेक हीरोइनें हुई हैं, जिन्होंने अपनी प्रैगनैंसी के दौरान बेबी बंप के साथ अपना काम जारी रखा था. काजोल ने ‘वी आर फैमिली’ की शूटिंग प्रैगनैंसी के दौरान की थी. जूही चावला फिल्म ‘झंकार’ की शूटिंग के दौरान 7 महीने की गर्भवती थीं. नंदिता दास जिस समय निर्माता ओनीर की फिल्म ‘आई एम’ की शूटिंग कर रही थीं, तो वे 5 महीने की गर्भवती थीं. अभिनेत्री जया बच्चन फिल्म ‘शोले’ की शूटिंग के दौरान 3 महीने की गर्भवती थीं.

गर्भावस्था में भी शूटिंग

जो लोग गर्भावस्था को कैजुअलिटी इशू बना देते हैं उन्हें यह बता दें कि गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है. यह एक सुखद एहसास है और इस अवधि में एक महिला की खुश और फिट रहना चाहिए न कि खुद को बीमार मान कर सारे कामकाज छोड़ कर बैठ जाना चाहिए. बेवजह की शंकाओं से खुद को डिप्रैस नहीं करना चाहिए, क्योंकि आने वाले बच्चे का स्वास्थ्य व भावनात्मक स्थिति गर्भवती महिला के स्वास्थ्य व मूड पर निर्भर करती है.

बेकार की नसीहतें

गर्भावस्था किसी भी महिला के शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह के परिवर्तनों का कारण बनती है और कोई भी महिला किसी भी स्थिति में इन बदलावों के लिए पूरी तरह से तैयार होती है. अपने बच्चे के बारे में एक मां से बेहतर और कोई नहीं सोच सकता. लेकिन जैसे ही कोई महिला गर्भवती होती है, लोग सलाह या नसीहतें देना शुरू कर देते हैं कि ऐसे न बैठो, यह न खाओ, वह न खाओ, ज्याद काम न करो, आराम करो आदि. ऐसे में गर्भवती महिला की समझ में नहीं आता कि वह इन बातों को माने या नहीं, क्योंकि कई बार ऐसी सलाह अटपटी या उलझन पैदा करने वाली भी होती है.

वैज्ञानिक सोच अपनाएं

गर्भवती महिला को इन दिनों तनाव से दूर रहना चाहिए. लेकिन बारबार की रोकटोक उसे चिंता में डाल देती है. सचाई यह है कि इन में से ज्यादातर नसीहतें सुनीसुनाई बातों पर या अंधविश्वास पर आधारित होती हैं, जिन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता. कुछ लोग तो महिला की चालढाल और उस के खानेपीने की आदतों को देख कर यह भी अनुमान लगाना शुरू कर देते हैं कि होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की? गर्भावस्था में अधिक से अधिक आराम करना चाहिए वाली सोच बिलकुल गलत है. अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान सक्रिय रहने वाली महिलाओं में बेचैनी की शिकायत कम होती है और उन्हें प्रसव के दौरान भी कम परेशानी का सामना करना पड़ता है.               

झोली भरने का जुगाड़ है दान

एक भिखारी रोज की तरह भीख मांगने निकला. शगुन के तौर पर 1 मुट्ठी जौ अपनी खाली झोली में डाल कर निकला. रास्ते में उस ने राजा की सवारी आते देखी. उसे अच्छी भीख की उम्मीद बंधी. लेकिन यह क्या? भिखारी के सामने राजा ने खुद अपनी झोली फैला दी. भिखारी क्या करता, कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह तो खुद दूसरों से भीख लेता था. आज राजा ने भीख के लिए अपनी झोली उस के सामने फैला दी.

आखिर उस ने अपनी झोली में हाथ डाला और मन मार कर जौ के 2 दाने निकाल कर राजा की झोली में डाल दिए. लेकिन सारा दिन उसे जौ के 2 दाने चले जाने का मलाल सालता रहा. बहरहाल, सारा दिन घूमघूम कर भीख मांगने के बाद भिखारी घर लौटा. जब उस ने अपनी झोली को पलटा तो हैरानी से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. दान में मिली चीजों के साथ झोली से जौ के 2 सोने के दाने भी मिले. वह पछताने लगा, काश, उस ने मुट्ठी भर कर जौ राजा की झोली में डाल दिए होते. किस्से की सीख : दान की महिमा.

दानवीर कर्ण का भी किस्सा है. दान ने ही कर्ण के प्राण ले लिए. महाभारत के युद्ध में अर्जुन की रक्षा के मद्देनजर देवराज इंद्र ने कर्ण से उस का कवच दान में मांग लिया था.

हालांकि बदले में इंद्र ने कर्ण को 5 तीर दिए. लेकिन कृष्ण ने कुंती को भेज कर वे पांचों तीर मंगवा लिए. इसी दानी स्वभाव के कारण कर्ण की मौत हुई वरना कर्ण अर्जुन से भी बड़ा योद्धा था और महाभारत के युद्ध में इस तरह मारा नहीं जाता.

दानदक्षिणा की बात की जाए और एकलव्य का जिक्र न हो, यह भला कैसे हो सकता है. निषाद पुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया. तब एकलव्य ने दूर से देखदेख कर धनुष चलाना सीखा और वन में द्रोणाचार्य की मूर्ति बना कर धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा. जल्द ही वह इस विद्या में निपुण हो गया. एक दिन द्रोणाचार्य के आगे एकलव्य की धनुर्विद्या उजागर हुई. अर्जुन की तुलना में एकलव्य की धनुर्विद्या के प्रति निष्ठा और पारंगतता से द्रोणाचार्य कांप गए और उन्होंने उस से गुरुदक्षिणा में अंगूठा मांग लिया ताकि अर्जुन के अलावा और कोई धनुर्विद्या में पारंगत न रहे. यह और बात है कि एकलव्य ने तर्जनी और मध्यम उंगली से तीर चलाने का अभ्यास करना शुरू कर दिया. लेकिन यह कितनी अजीब बात है कि एकलव्य को बगैर कुछ सिखाए द्रोणाचार्य ने दक्षिणा में उस का अंगूठा मांग लिया.

दान परंपरा की शुरुआत

वैसे सनातन हिंदू धर्म में हैं तो कई कर्मकांडी ढकोसले, पर दानदक्षिणा इन सब में सब से बड़ा ढकोसला है. हिंदू धर्म में दान को महापुण्य बताया गया है. वेदों में भी दान की महिमा का तरहतरह से बखान किया गया है. ऋग्वेद के 10वें अध्याय के 117 विभिन्न सूक्तों में दान की महिमा का वर्णन है. अर्थवेद के तीसरे अध्याय में भी सहस्र हाथों से दान करने की बात की गई है. ऐतरेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण, मनुसंहिता में ब्राह्मण की महत्ता और दान से प्राप्त होने वाले पुण्य का बखान भरा पड़ा है. पर यह सब धन कमाने और बटोरने की ब्राह्मणों की जुगत है. इन का दरअसल, धर्म से कुछ खास लेनादेना नहीं है.

दान परंपरा की शुरुआत इसीलिए हुई, क्योंकि वर्णव्यवस्था में सब से ऊपर रहने के बावजूद आर्थिक रूप से ब्राह्मणों की स्थिति अच्छी नहीं थी. उन के बुरे दिन चल रहे थे. तब ब्राह्मणों ने अपनी रोजीरोटी और आजीविका के लिए दान परंपरा की शुरुआत की. इस के लिए तरहतरह के धार्मिक पाखंड रचे गए. बताया जाता है कि कृष्ण का द्वापर युग बहुत हद तक ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ था. अनुभव, ज्ञान और कौशल के कारण कृष्ण की व्यवस्था में वृद्धों का महत्त्व कहीं अधिक था. इसलिए एक आख्यान के अनुसार द्वारिका का निर्माण कृष्ण ने विश्वकर्मा से कराया था और विश्वकर्मा को हमेशा वृद्ध के रूप में प्रदर्शित किया जाता है.

कलयुग का हौआ

इतिहासकार आर.एन. नंदी कहते हैं कि चौथी सदी के आरंभ से ले कर 5वीं सदी के अंत तक ब्राह्मणों ने पुरोहिताई, दानदक्षिणा के अलावा आजीविका के और नएनए रास्ते तलाशने शुरू किए. इस दौरान ब्राह्मणों ने नए सिरे से जजमान (यजमान) बनाना शुरू किया.

स्वरोजगार के कई तरीके ईजाद किए, जो दरअसल में गैरपरंपरावादी तरीके से हट कर थे. जीविका निर्वाह के नएनए तरीके फलित ज्योतिष, भविष्य कथन आदि तरीके ढूंढ़े गए.

शूद्रों पर अलग से धार्मिक कर्मकांड थोपे गए. इसी दौरान वेदाध्ययन, मूर्तिपूजा शुरू हुई. इसी कड़ी में तीसरी से 5वीं सदी के बीच पुराण साहित्य रचे गए. इन में विष्णु पुराण, वायु पुराण और मत्स्य पुराण विशेष उल्लेखनीय हैं. इन पुराणों में दान की महत्ता और दान संबंधी कर्मकांडों का बढ़चढ़ कर उल्लेख किया गया. इन सब के पीछे ब्राह्मणों का मकसद धर्म और कर्मकांड से विरक्त रहने वाले यजमानों को पाप का भय दिखा कर उन से पीछा छुड़ाने का उपाय सुझा कर अपने लिए जीवन निर्वाह का साधन जुटाना था. अपने इसी उद्देश्य के मद्देनजर कलियुग का हौआ फैलाया गया और कहा गया कि इस युग में पुण्य स्वत: कम हो जाएंगे और पाप की वृद्धि होगी. पातकों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए दानपुण्य करने की बात कही गई.

इसी तरह अक्षय तृतीया या आखा तीज को दान के लिए ही जाना जाता है. ब्राह्मणों ने लोगों के दिमाग में यह बात ठूंस दी है कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान का कभी क्षय नहीं होता है. इसी परंपरा के तहत बड़े पैमाने पर कन्यादान की परंपरा चल पड़ी. इस परंपरा ने बालविवाह का चलन भी शुरू किया. अक्षय तृतीया के दिन राजस्थान समेत उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर बाल विवाह होते हैं.

दानदक्षिणा की महिमा

बहरहाल, दान की महिमा पर एक नजर डाल ली जाए. इस की लंबी सूची है. यही नहीं सूची में श्रेष्ठ दान के ढेर सारे स्तर बताए गए हैं. गोदान को श्रेष्ठ दान बताया गया है.

इस के बाद अन्नदान, वस्त्रदान, स्वर्णदान और भूमिदान भी है. धर्मशास्त्रों में अष्टदान की बात कही गई है. अष्टदान के अंतर्गत तिल, लोहा, सोना, कपास, नमक, सप्तधान, भूमि और गोदान को शामिल किया गया है.

अष्टदान की महिमा इस तरह बताई गई है. तिल के दान से असुर, दैत्य और दानव तृप्त होते हैं. लोहे के दान से यम प्रसन्न होते हैं. सोने के दान से धर्मराज की सभा के ब्रह्मादि देवता और ऋषिमुनि प्रसन्न होते हैं. स्वर्ण दान से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. कपास के दान से यम का दूत प्रसन्न होता है. नमकदान से यम का भय जाता रहता है. चावल, जौ, गेहूं, उरद, चना जैसे सप्तधान से यमलोक में संतोष की प्राप्ति होती है. भूमिदान से स्वर्ग का द्वार खुल जाता है. गोदान से स्वर्ग की नदी वैतरणी पार कर के मोक्ष प्राप्त होता है.

सिर्फ इतना ही नहीं, अगर ब्राह्मण की अकाल मौत हो जाए तो ब्राह्मण की बेटी का कन्यादान अपना दायित्व समझ कर कराना चाहिए. कोई सर्पदंश से मर गया हो तो ब्राह्मण को सोने का सांप बना कर देना चाहिए. हाथी से मौत होने पर स्वर्ण हाथी, राजा द्वारा मृत्यु हो जाने पर स्वर्ण पुरुष, शत्रु ने मार डाला हो तो स्वर्ण बैल, शैया पर मृत्यु हुई हो तो स्वर्ण विष्णु, सूअर ने मार डाला हो तो भैंस दान, पेड़ की वजह से मौत होने पर वस्त्र, अन्नदान के साथ स्वर्ण वृक्ष दान देने का शास्त्र प्रावधान किया गया है. पर्वत की चोटी से गिर कर मौत हुई हो तो अनाज का पहाड़ बना कर दान करने का विधान बताया गया है. आग से जल कर मृत्यु होने पर यथाशक्ति कुआं खोद कर ब्राह्मण को उत्सर्ग करने की बात कही गई है.

कहा गया है कि जो मनुष्य परलोक में अक्षय सुख की अभिलाषा रखता है, उसे अपने लिए संसार या घर में जो वस्तु सर्वाधिक प्रिय है, उसे गुणवान ब्राह्मण को दान करना चाहिए, जो सामान्य किस्म का दान है, उसे किसी को भी दान कर के पुण्य कमाया जा सकता है. मिसाल के तौर पर विद्यादान, कन्यादान, जलदान से तृप्ति, अन्नदान से कभी न खत्म होने वाले सुख की प्राप्ति होती है. तिलदान से संतान की प्राप्ति, दीपदान से आंखें नीरोग रहने की बात कही गई है.

दान देने की सीख के पीछे बहुत सारे लोचे हैं. कुल मिला कर आशय यह है कि जीतेजी ही नहीं, मरने के बाद भी ब्राह्मणों की ही सुखसुविधा का ध्यान रखने की बात तमाम धर्मग्रंथ कहते हैं और कुछ नहीं तो पिता के मरने के बाद बेटे के लिए दशक्रिया का नियम बना कर पिता के ऋण से मुक्ति का रास्ता बताया गया है. पिंडदान के साथ 5 या 7 या 9 ब्राह्मणों को दानदक्षिणा देने के नाम पर उन के लिए जीने के तमाम साधन दान में देने को कहा गया है.

बहरहाल, धर्मग्रंथों में अलगअलग तरह के दान के महत्त्व का बखान किया गया है. मसलन, भूमिदान से तमाम तरह के इच्छित फलों की प्राप्ति, स्वर्णदान से दीर्घायु होने, चांदीदान से उत्तम रूप की प्राप्ति और वस्त्रदान से चंद्रलोक, अश्वदान से अश्विनी कुमार के लोक और गोदान से सूर्यलोक की प्राप्ति, गृहदान से उत्तम घर आदि का लालच दिया गया है. इतना कुछ अगर किसी ब्राह्मण को दान में मिल जाए तो और क्या चाहिए.

बेबी बंप: फोटोशूट का नया ट्रैंड

शादी, पार्टी, मौडलिंग फोटोशूट के बारे में तो आप ने काफी सुना होगा, लेकिन आज एक नए फोटोशूट का ट्रैंड शुरू हुआ है और वह है बेबी बंप का. पहले जहां महिलाएं अपने बेबी बंप को ढक कर रखती थीं, वहीं आज वे अपनी इस खूबसूरती को कैप्चर कर हमेशा के लिए अपने साथ रखना चाहती हैं. यह उन के फैशन और लाइफस्टाइल का हिस्सा बनता जा रहा है.

पहले बेबी बंप केवल हौलीवुड सैलिब्रिटीज ही दिखाया करती थीं, लेकिन अब यह ट्रैंड बौलीवुड सैलिब्रिटीज भी फौलो कर रही हैं. वे अपने फैंस के बीच बने रहने के लिए सोशल मीडिया पर अपने बेबी बंप्स की तसवीरें शेयर कर रही हैं. लैक्मे फैशन वीक समर 2016 में मौडल कैरोल ग्रेसियस ने साड़ी पहन कर रैंप पर वाक कर के इस ट्रैंड को और ज्यादा पौपुलर बना दिया है.

इन सैलिब्रिटीज ने करवाई बेबी बंप फोटोशूट

कोंकणा सेन: अपनी औफ बीट परफौर्मैंस के लिए जानी जाने वाली कोंकणा ने अपने बेबी बंप के साथ भी कुछ ऐसा

ही किया. उन्होंने एक मैगजीन के कवर पेज के लिए बेबी बंप के साथ फोटोशूट करवाया.

श्वेता साल्वे: इन के बेबी बंप ऐक्सपैरिमैंट को देख कर आप हैरान हो जाएंगे कि बेबी बंप के साथ इतनी क्रिएटिविटी की जा सकती है. श्वेता ने अलगअलग स्टाइल में काफी फोटोशूट करवाए.

लारा दत्ता: अपनी प्रैगनैंसी के दौरान लारा दत्ता ने कभी अपनी सोशल लाइफ खत्म नहीं की, बल्कि वे हमेशा अपने बेबी बंप के साथ ट्रैंडी आउटफिट्स में छाई रहीं.

जैनेलिया डिसूजा: बौलीवुड के क्यूट कपल जैनेलिया और रितेश देशमुख ने भी अपने दूसरे बेटे के जन्म पर ब्लैक ऐंड व्हाइट फोटोशूट करवाया.

अर्पिता खान और आयूष शर्मा: इस कपल ने भी मैटरनिटी फोटोशूट करवाया है. व्हाइट ड्रैस में दोनों काफी ऐलिगैंट लग रहे हैं.

बेबी बंप फोटोशूट अपने बच्चे के साथ अपने खूबसूरत एहसास को सहेज कर रखने का एक तरीका है. अगर आप भी प्लानिंग कर रही हैं मैटरनिटी फोटोशूट की, तो हिचक न करें, बल्कि अपने खूबसूरत पलों को यादों के अलबम में रखने के लिए कुछ टिप्स का सहारा लें.

कब कराएं फोटोशूट

आप के दिमाग में यह बात अवश्य आ रही होगी कि प्रैगनैंसी में कब फोटोशूट करवाएं, तो हम आप को बता दें कि छठे और 7वें महीने के बीच का समय बेबी बंप फोटोशूट के लिए बैस्ट होता है. इस समय आप का बंप गोलमटोल और खूबसूरत लगता है.

क्या पहनें और क्या नहीं

वैसे कपड़े पहनें जो आप के बंप को उभारें. बहुत ज्यादा ढीले कपड़े पहनने से बचें, क्योंकि इस से आप के बंप की खूबसूरती नजर नहीं आती.

आप बटन वाली शर्ट भी पहन सकती हैं. इसे थोड़ा सैक्सी लुक देने के लिए बंप के पास के बटन को खुला रखें. आप चाहें तो टीशर्ट भी ट्राई कर सकती हैं, लेकिन ध्यान रहे टीशर्ट फिटिंग वाली न हो.

कलर में आप लाइट कलर जैसे क्रीम, बेज, ग्रे, व्हाइट इत्यादि कलर का चुनाव करें. डार्क कलर, फ्लोरल प्रिंट और चैक वाले कपड़े पहनने से बचें.

बेबी बंप फोटोशूट में हैवी ज्वैलरी न पहनें, क्योंकि अगर आप हैवी ज्वैलरी पहनती हैं तो बेबी बंप की खूबसूरती कम हो जाती है, इसलिए कोशिश करें सिंपल व नैचुरल दिखने की.

हेयरस्टाइल व मेकअप भी हो सिंपल: आप फोटोशूट करवा रही हैं इस का यह मतलब नहीं है कि आप ढेर सारा मेकअप अप्लाई करें. लेटैस्ट हेयरस्टाइल बनवाएं. कोशिश करें ज्यादा से ज्यादा नैचुरल दिखने की, क्योंकि आप जितना नैचुरल दिखेंगी फोटो में आप की खूबसूरती उतनी ही निखर कर आएगी. मेकअप में आप हलका सा फाउंडेशन, लाइट कलर के आईशैडो, काजल, मसकारा और नैचुरल टोन की लिपस्टिक लगा सकती हैं. बालों को खुला रखने की कोशिश करें, आप चाहें तो एक पोनी भी बना सकती हैं.

फोटोशूट के लिए कुछ टिप्स

– आप अपने बंप पर अपने हाथ रख कर फोटो क्लिक करवा सकती हैं. आप कुछ प्रौप्स का भी इस्तेमाल कर सकती हैं, जैसे बेबी का पहला अल्ट्रासाउंड, बेबी शूज इत्यादि. पर एक ही फोटो में बहुत सारे प्रौप्स का इस्तेमाल न करें.

– आप सैल्फी के माध्यम से भी अपने बेबी बंप को शूट कर सकती हैं. इस के लिए बस आप को अपने कैमरे का ऐंगल सैट करना होगा ताकि आप का बंप नजर आए. आप आईने में देख कर भी क्लिक कर सकती हैं.

– सिर्फ अपना फोटो ही न क्लिक करवाती रहें, कुछ रोमांटिक कपल शौट्स भी लें. आप का बच्चा आप के लिए जितना खास है, उतना ही आप के पार्टनर के लिए भी है. आप चाहें तो कुछ फोटोज में अपने फैमिली मैंबर्स को भी शामिल कर सकती हैं.

– आप घर, बाहर या फिर स्टूडियो में फोटोशूट करवा रही हों, तो अपने खानेपीने और बाकी जरूरत की सारी चीजें कैरी करें ताकि फोटोशूट के दौरान भी आप अपनी सेहत का ध्यान रख सकें.

– लगातार फोटोशूट न करवाती रहें, बल्कि बीचबीच में थोड़ा ब्रेक लें. थकान से बचने का सब से अच्छा तरीका यह है कि आप फोटोग्राफर के साथ बैठ कर पहले ही बातचीत कर लें कि वह कैसा शौट लेने वाला है और आप को कैसा फोटो चाहिए ताकि शूट में ज्यादा समय न लगे. आप चाहें तो जिस फोटोग्राफर से फोटो खिंचवा रही हैं उस के द्वारा क्लिक किए फोटो देख लें. आप को एक आइडिया मिल जाएगा और आप फोटोग्राफर को सही से समझा पाएंगी.

– जैसे ही कैमरा औन होता है हम सब कुछ भूल जाते हैं. फोटो अच्छा आए, इसलिए डिफरैंट पोज ट्राई करने लगते हैं, लेकिन आप अपना थोड़ा ध्यान रखें. आप जिस पोज में कंफर्टेबल फील करें, वही पोज लें. ऐसा न करें कि आप ने फेसबुक पर किसी सैलिब्रिटी की कोई तसवीर देखी और फिर वैसा ही पोज ट्राई करने लगीं.                      

सरकार 3 में नहीं होंगे ऐश्वर्या-अभिषेक

फिल्मकार राम गोपाल वर्मा ने कहा है कि ‘सरकार’ के तीसरे भाग में अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन नहीं होंगे. फिल्म के दूसरे भाग ‘सरकार राज’ में वे दोनों थे. राम गोपाल वर्मा ने बताया कि फिल्म की पहली झलक वह 26 अगस्त को जारी करेंगे.

निर्देशक ने ट्वीट किया, ‘सरकार-3 की पहली झलक 26 अगस्त को… कहानी के मुताबिक अभिषेक और ऐश्वर्या दोनों ही इसका हिस्सा नहीं होंगे.’

उन्होंने आगे लिखा, ‘सरकार-3′ पहली दोनों फिल्मों से कई अधिक रोमांचक होगी. फिल्म के अन्य कलाकारों की घोषणा जल्द ही की जाएगी..’

‘सरकार’ श्रृंखला का पहला भाग 2005 में रिलीज हुआ था जिसमें अमिताभ बच्चन थे. बिग बी के आगामी थ्रिलर में होने या न होने की अभी कोई जानकारी नहीं है.

ऋतिक ने तोड़ा अपना ही रिकॉर्ड

जब से मोहनजोदड़ो रिलीज हुई है तब से ऋतिक रोशन की मोहनजोदड़ो के लिए अच्छी खबरें नहीं आई और अब इस खबर से फैन्स का दिल जोर से टूटने वाला है. दरअसल, मोहनजोदड़ो ने किसी तरह बॉक्स ऑफिस पर 50 करोड़ का आंकड़ा छुआ है और देखा जाए तो ये उनकी सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म है.

जी हां, मोहनजोदड़ो ऋतिक रोशन की सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म है, ना तुम जानो ना हम और गुजारिश से भी बड़ी फ्लॉप है. और ये जानकर सबका दिल जोर से टूटा होगा.  सबसे बड़ी फ्लॉप मोहनजोदड़ो में कुछ भी अच्छा नहीं था सेट से लेकर वीएफएक्स तक. फिल्म बॉक्स ऑफिस पर डूब गई. इस कदर कि ऋतिक की दो सबसे बड़ी फ्लॉप फिल्म भी इससे ज़्यादा कमा चुकी थी.

ना तुम जानो ना हम का बजट था 14 करोड़ और फिल्म ने 8 करोड़ कमाए थे वहीं गुजारिश ने भी अपने 74 करोड़ में से 30 करोड़ कमा लिए थे. इसलिए हम आपको देते हैं कुछ कारण कि क्यों मोहनजोदड़ो निकली इतनी बड़ी फ्लॉप…

नापसंद किया गया ट्रेलर

फिल्म की सबसे बड़ी कमी थी फिल्म का ट्रेलर. फिल्म का ट्रेलर रिलीज होते ही बुरी तरह नापसंद किया गया लेकिन आशुतोष गोवारिकर गलती सुधारने के चक्कर में गलतियां करते गए. उसी ट्रेलर के सीन बार बार निकाल कर नए छोटे ट्रेलर रिलीज किए गए जो दर्शकों को और इरिटेट कर गए.

अजीब से कॉस्ट्यूम

फिल्म के कॉस्ट्यूम इतने अजीब थे कि पूछिए मत. फिल्म के कुछ सीन में तो ये कपड़े बिल्कुल ही फिट नहीं बैठ रहे थे. वहीं पूजा हेगड़े के कॉसट्यूम की लोगों ने जमकर बुराई की तो ऋतिक के मेकअप की.

अजीब इतिहास

फिल्म में इतिहास भूगोल जैसी किसी चीज का संबंध वास्तविकता से रखा ही नहीं गया. और आशुतोष गोवारिकर-ऋतिक रोशन के फैन्स का पढ़ा लिखा वर्ग फिल्म नहीं झेल पाया.

अमीर-गरीब की लव स्टोरी

फिल्म की स्टोरी इतनी आम थी कि उसके लिए मोहनजोदड़ो तक जाने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए. और यही आम सी कहानी दर्शक नहीं पचा पाए. यहां तक कि फिल्म बाहुबली, अग्निपथ जैसी फिल्मों से जोड़ दी गई.

रुस्तम की टक्कर

रुस्तम से टक्कर लेना ऋतिक रोशन के लिए सुसाइड करने जैसा रहा. हालांकि उन्होंने पूरी कोशिश की पर दोनों ही फिल्में अपनी जगह पर अड़ी रहीं और इसका नुकसान फिल्म को बुरी तरह से हुआ.

कम से कम प्रमोशन

फिल्म का प्रमोशन बहुत ही कम किया गया. अब इसका कारण क्या था पता नहीं, पर रुस्तम के आगे मोहनजोदड़ो की चमक फीकी पड़ गई. हालांकि उससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए था क्योंकि फिल्म में ही कुछ नहीं था.

देर से रिलीज

मोहनजोदड़ो 2 साल से बन रही है और लोग बस इंतजार कर रहे हैं कि कब फिल्म रिलीज होगी. इस बीच फिल्म के बारे में ऐसा बहुत कुछ बाहर आया जो नहीं आना चाहिए था और फिल्म को इससे काफी नुकसान हुआ.

ऋतिक की इमेज

ऋतिक रोशन की इमेज कंगना रनौत की वजह से कुछ खास नहीं बची थी और जब उन्होंने कंगना की लिखी एक एक चिट्ठी वायरल की तो कुछ भी नहीं बचा था. इन सबके कारण उनके निगेटिव पब्लिसिटी लोग नहीं भूले.

गोवारिकर का ओवरकॉन्फिडेंस

आशुतोष गोवारिकर को ओवरकॉन्फिडेंस था कि मोहनजोदड़ो जैसा भारी भरकम नाम इस्तेमाल कर वो भीड़ जुटाएंगे. भीड़ जुटी भी पर आशुतोष इस भारी भरकम सभ्यता को दिखाने में एक इंच भी सफल नहीं हो पाए.

हद से ज़्यादा बजट

फिल्म का बजट हद से ज्यादा था जिसे पार करने के लिए फिल्म को उतना कमाना बहुत मुश्किल हो गया. नतीजा ये था कि 120 करोड़ की फिल्म 50 करोड़ भी पार नहीं कर पाई. वहीं सूत्रों की मानें तो फिल्म का बजट कहीं ज्यादा है पर छिपा लिया गया.

बेबी डॉल करेंगी सीरियल किसर संग आइटम डांस

जल्द ही बॉलीवुड के सीरियल किसर इमरान हाशमी और बेबी डॉल सनी लियोन एक आइटम नम्बर करते नजर आएंगे. जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना.

खबर है कि इमरान हाशमी की आने वाली फिल्म ‘बादशाहों’ में दोनों एक आइटम नम्बर कर रहे हैं. गाने की शूटिंग मुंबई या राजस्थान में होगी. इमरान कहते हैं, सनी का गानों के साथ रिकॉर्ड काफी अच्छा है. यह सॉन्ग भी अच्छा है और जिस तरह मिलन और कोरियोग्राफर ने इस गाने का कॉन्सेप्ट सोचा है उसे देखकर तो यही लगता है कि यह सॉन्ग हिट साबित होगा.’

बता दें कि फिल्ममेकर मिलन लुथरिया, अजय देवगन और इमरान हाशमी की जोड़ी ‘वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई’ के बाद एक बार फिर ‘बादशाहों’ में बन रही है और इस फिल्म में लोगों के मनोरंजन के सारे एलिमेंट्स मौजूद हैं.

शिल्पा को है आइटम नम्बर शब्द से नफरत

शिल्पा शेट्टी कुंद्रा इन दिनों सोनी टीवी पर आने वाले किड्स डांस रियलिटी शो ‘इंडियाज सुपर डांसर’ को प्रमोट करने में व्यस्त हैं. इस शो को वह अनुराग बसु और गीता कपूर के साथ जज करेंगी.

शो के प्रमोशन के लिए हाल ही में वह दिल्ली आई थीं. इस दौरान उन्होंने डांस के प्रति अपने लगाव के बारे में भी ढेर सारी बातें कीं. इस दौरान उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें आइटम नम्बर शब्द से नफरत क्यों हैं, हालांकि उन्होंने साफ किया कि उन्हें सिर्फ शब्द से नफरत हैं, आइटम डांस उन्हें भी पसंद है.

शिल्पा ने कहा, “मुझे डांस से बेहद प्यार है, इसलिए में इस डांस रियल्टी शो का हिस्सा बनी हूं. यह बच्चों के साथ मेरा पहला शो होगा, इसलिए एक व्यक्ति और जज के तौर पर काफी अलग अनुभव होगा. मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं और यह देखकर भी अच्छा लगता है कि हमारे देश में कितना टैलेंट छिपा है.”

शिल्पा ने बताया कि उन्हें आइटम नम्बर शब्द से क्यों नफरत है. शिल्पा ने कहा, “दरअसल महिलाओं के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करना सही नहीं लगता. शुरुआत में हेलन जी जो डांस करती थीं उसे कैबरे कहा जाता था, अब हिरोइन एक स्पेशल सॉन्ग पर डांस करती हैं, उसे आइटम कहा जाना ठीक नहीं.”

इसके अलावा उन्होंने कहा कि डांस हमेशा से ही एक महान कला के रूप में रहा है और अब तो इसे कॅरियर के तौर पर भी अपनाया जा सकता है.

किसके नाम पर है आपकी जायदाद?

पुरानी कहावत है जहां चाह, वहां राह. वसीयत (Will) के अभाव में भविष्‍य में कुछ रास्‍ते मुश्किल ही नहीं बल्कि बहुत पेंचीदा भी हो सकते हैं. आपके सामने बिड़ला, रैनबैक्सी और अंबानी परिवार का उदाहरण है. इनके परिवारों में भी वसीयत न होने की वजह से संपत्ति को लेकर विवाद हुए हैं और बंटवारे में दिक्‍कत आई है. भारत में मुश्किल से वित्तीय प्रबंधन में वसीयत बनाने की योजना देखने को मिलती है. वसीयत की महत्वता और इसके प्रबंधन के बारे में जानने से पहले हम यह जानते हैं कि वसीयत वास्‍तव में है क्‍या.

क्या होती है वसीयत

यह एक कानूनी दस्तावेज होता है जिसमें संपत्ति के मालिक की मृत्यु के बाद पूंजी और पद के हकदार के लिए एक या एक से ज्यादा लोगों के नाम होते हैं. संपत्ति रखने वाला व्यक्ति अपने जीवनकाल में कभी भी अपनी वसीयत को वापस ले सकता है और उसमें बदलाव भी कर सकता है.

वसीयत बनाना क्यों है जरुरी

वसीयत बनाना इसलिए जरुरी है क्योंकि व्यक्ति की मृत्यु के बाद यह दस्तावेज सुनिश्चित करता है कि उसकी संपत्ति सुरक्षित हाथों में रखेगी. एक साफ और अच्छी लिखी वसीयत उसके असली वारिस को आपसी झगड़े से बचाती है. यदि व्यक्ति अपनी वसीयत को अपने वारीस को देने के बजाए किसी और को देना चाहता है तो ऐसी स्थिती में वह वसीयत उत्तम अहमियत रखता है.

कौन बना सकता है वसीयत

कोई भी बालिग व्यक्ति जिसकी मानसिक स्थिति स्वस्थ हो वह वसीयत बना सकता है. मूक बधिर और नेत्रहीन व्यक्ति भी वसीयत बनवा सकते हैं. मानसिक तौर पर कमजोर लोग वसीयत नहीं बना सकते हैं.

वसीयत का पंजीकरण

वसीयत का पंजिकृत होना जरूरी नहीं है. किसी भी सफेद कागज पर लिखी वसीयत का रजिस्टर्ड वसीयत जितना ही महत्व होता है. लेकिन किसी भी प्रकार का संदेह या अविश्वसनियता को दूर रखने के लिए बेहतर है कि इसका पंजीकरण कराएं. वसीयत का पंजीकरण कराने के लिए गवाहों के साथ सब-रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर संबंधित व्यक्ति से रजिस्टर कराएं.

कानूनी प्रमाण

वसीयत के पंजीकरण के बाद यह एक कानूनी प्रमाण बन जाता है. इसमें लिखित में यह बात स्पष्ट होनी चाहिए कि वसीयत बनाने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ है और वह अपनी मर्जी से इसे बनवा रहा है. वसीयत पर निर्वाहक के हस्ताक्षर के बाद इसे दो गवाहों से अटेस्ट कराना होता है. आपको बात दें कि वसीयत पर कोई स्टाम्प ड्यूटी नही देनी होती है.

वसीयत के प्रकार

वसीयत दो प्रकार की होती है, विशेषाधिकार प्राप्त (privileged) और आम (unprivileged) वसीयत. विशेषाधिकार प्राप्त वसीयत अनौपचारिक वसीयत होती है जो कि सैनिक, विमानक और जल सैनिक के लिए होती है. इसके अवाला अन्य सभी वसीयत आम कहलाती है. विशेषाधिकार प्राप्त वसीयत में व्यक्ति आअपनी मृत्यु के चंद घंटों पहले लिखित या मौखिक वर्णन के आदार पर वसीयत बनवा सकता है, जबकि आम वसीयत में पहले औपचारिकताओं का पालन करना होता है.

वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर

आम वसीयत में वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं. यदि वसीयतकर्ता शारीरिक रुप से अस्व्स्थ है तो वसीयतकर्ता की मौजूदगी में कोई और उनकी जगह हस्ताक्षर कर सकता है. बाद में होने वाले किसी भी विवाद से बचने के लिए बेहतर है कि पहले से वसीयतकर्ता को हस्ताक्षर करा कर रख ले. आम वसीयत में दो गवाहों की मौजूदगी में एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिए.

वसीयत की सुरक्षा

भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत वसीयत की सुरक्षा का प्रावधान है. सिलबंद कवर के ऊपर वसीयतकर्ता के नाम के साथ किसी भी रजिस्ट्रार के पास सुरक्षित रखवाया जा सकता है. वसीयत को प्रामाणिक बनाने के लिए उत्तराधिकारी गवाह के रुप में नहीं होना चाहिए.

वसीयत का खण्डन

वसीयत का खण्डन स्वैच्छिक या अनैच्छिक हो सकता है. अनैच्छिक खण्डन कानून के तहत होता है. शादी के बाद वसीयतकर्ता की वसीयत रद्द हो जाती है. साथ ही अगर वह दूसरी सादी करता है तो पहली शादी के दौरान बनाई गई वसीयत अपने आप रद्द हो जाती है. वसीयतकर्ता अपने जीवन काल में जितनी चाहे उतनी वसीयत बना सकता है, लेकिन मृत्यु से पहले आखिरी बनाई गई वसीयत ही वैध मानी जाती है.

वैज राइस पेपर रोल

सामग्री

– 2 शीट राइस पेपर

– 1/2 लाल शिमलामिर्च पतली कटी हुई

– 1/2 देशी खीरा पतला कटा हुआ

– 1/2 कप लाल पत्तागोभी पतली कटी हुई

– 1/4 मध्यम आकार का आम पतला कटा हुआ

– 1/2 हरा सेब पतला कटा हुआ

– 1 कप राइस नूडल्स

– 2 बड़े चम्मच संबल सौस सर्व करने के लिए.

विधि

सब से पहले राइस नूडल को गरम पानी में भिगो कर कुछ देर के लिए रख दें. नूडल्स मुलायम होने पर पानी निकाल लें. एक बड़े बाउल में गरम पानी भरें और उस में 1-1 कर के राइस पेपर डालें. राइस पेपर के मुलायम होने पर उस के बीच सब्जियां, फल व नूडल्स रखें. अब राइस पेपर को रोल करें. फिर इसे ऊपर से नीचे की ओर कस कर रोल करें. अब रोल को सौस में डिप कर सर्व करें. इस रोल को फ्रिज में 1 दिन तक रखा जा सकता है.

व्यंजन सहयोग:

रणवीर बरार, सैलिब्रिटी शैफ

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