ग्रीन टी पीने का ये है सही तरीका

अगर आप फिटनेस के बारे में सोचते हैं और फिट रहने की कोशिश करते हैं तो हो न हो, ग्रीन टी जरूर पीते होंगे. बीते कुछ सालों में ग्रीन टी की लोकप्रियता काफी बढ़ी है.

वजन कम करने वालों का तो ये पसंदीदा पेय है. इसके अलावा स्क‍िन की क्वालिटी सुधारने, मेटाबॉलिज्म बूस्ट करने और लंबे समय तक एक्ट‍िव बने रहने के लिए भी ग्रीन टी पीना फायदेमंद है. ग्रीन टी फायदेमंद है लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि आप एक के बाद एक कई कप ग्रीन टी पी जाएं.

आमतौर पर लोग ऐसी गलती करते हैं. इसके साथ ही ग्रीन टी पीने का एक सही समय भी तय होना चाहिए, वरना ये नुकसानदेह भी हो सकता है. ग्रीन टी में कैफीन और टेनिन्स पाए जाते हैं, जो गैस्ट्रिक जूस को डाइल्यूट करके पेट को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसके बहुत अधि‍क इस्तेमाल से चक्कर आने, उल्टी आने और गैस होने जैसी प्रॉब्लम हो सकती हैं.

ग्रीन टी के फायदे पाने के लिए जरूरी है कि आप ग्रीन टी सही समय पर और सही मात्रा में लें.

अगर आपको भी ग्रीन टी के इस्तेमाल का सही समय और तरीका पता नहीं है तो ये टिप्स आपकी मदद करेंगे.

1. खाली पेट कभी भी ग्रीन टी न पिएं.

2. खाना खाने से एक या दो घंटे पहले ही ग्रीन टी पी लें.

3. कुछ लोग ग्रीन टी में दूध और चीनी मिलाकर पीते हैं. ग्रीन टी में चीनी और दूध मिलाने से परहेज करें.

4. ग्रीन टी को शहद के साथ मिलाकर पीना फायदेमंद रहेगा.

5. खाने के तुरंत बाद ग्रीन टी पीना खतरनाक हो सकता है.

6. एक दिन में दो या तीन कप ये ज्यादा ग्रीन टी पीना खतरनाक हो सकता है.

चलिए भारत के आखिरी गांव

बर्फ से लदी पर्वत चोटियों से सटे हरे-भरे घास के मैदानों के बीच से निकलती छोटी-छोटी नदियां, जिनकी सतह पर मौजूद सफेद पत्थरों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो अविरल धारा पर उभरते सफेद मोती जैसे प्रतिबिंब को देख ऐसा लगता है कि कहीं यह किसी चित्रकार की कल्पना तो नहीं. भारत-तिब्बत सीमा पर बसा चितकुल (छितकुल) गांव ऐसी ही एक जगह है. इसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है. यह समुद्र तल से करीब 3450 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित बास्पा घाटी का अंतिम और ऊंचा गांव है.

बास्पा नदी के दाहिने तट पर स्थित इस गांव में स्थानीय देवी माथी के तीन मंदिर बने हुए हैं. इस गांव को किन्नौर जिले का क्राउन भी कहा जाता है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 250 किलोमीटर की दूरी पर बसा यह गांव प्रकृति की अद्भुत सुंदरता को खुद में समेटे है.

हाटू मंदिर

घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर करीब 50 किलोमीटर चलने के बाद शिवालिक पर्वत श्रेणी से घिरे 2710 मीटर की ऊंचाई पर बसा है नारकंडा. नारकंडा भी लोकप्रिय हिल स्टेशन है. नारकंडा से 5 किलोमीटर दूर देवदार के पेड़ों से घिरे 3400 मीटर की ऊंचाई पर हाटू पीक है. यहां लकड़ी से बना हाटू माता का मंदिर है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यह मंदिर रावण की पत्नी मंदोदरी का है.

खतरनाक सड़कें

नारकंडा से रामपुर, सराहन, वांगटू, करच्छम, सांगला से होते हुए दुनिया की कुछ सबसे खतरनाक सड़कों हैं, इन्हें ड्राइविंग के लिए एक चुनौती माना जाता है. रक्छम रक्छम पहाड़ की ऊंचाइयों पर बसा खूबसूरत गांव है. बर्फ से लदी पर्वत चोटियों के बीच बसे छितकुल से 10 किलोमीटर पहले करीब 3050 मीटर की ऊंचाई पर यह गांव है. यहां से हरे-भरे घास के मैदानों से होते हुए छोटी-छोटी जल धाराएं निकलती हैं, जो आगे चलकर बास्पा नदी में समा जाती हैं.

ट्रैकर्स के लिए अद्भुत जगह

जो लोग एडवेंचर यानी ट्रैकिंग के शौकीन हैं, वे रक्छम से छितकुल के बीच 10 किलोमीटर की लंबी ट्रैकिंग कर सकते हैं. जो लोग इससे भी ज्यादा ट्रैकिंग करने का साहस रखते हैं, वे रक्छम से 12 किलोमीटर का ट्रैक कर रक्छम कांडा तक जा सकते हैं. यहां नदियों के उद्गम स्थल भी दिखाई देंगे.

दर्शनीय स्थल

सांगला वैली के कामरू गांव में करीब 2600 मीटर की ऊंचाई पर कामरू फोर्ट 15वीं शताब्दी में बना था. इसी के प्रांगण में कामाख्या देवी का मंदिर है. लकड़ी का बना यह फोर्ट लकड़ी पर की गई अद्भुत नक्काशी के लिए विख्यात है. यहां पहुंचने के लिए लगभग 500 मीटर पैदल चलना पड़ता है. यहीं से किन्नर कैलाश को भी देखा जा सकता है. यहां से आप रिकांगपियो, पूह विलेज, नाको, काजा होते हुए स्पीति वैली जा सकते हैं.

कब जाएं

छितकुल आने के लिए सही समय अप्रैल से मध्य जून और अगस्त से अक्टूबर तक माना जाता है. लेकिन याद रहे, चाहे चिलचिलाती गर्मी का ही मौसम क्यों न हो अपने साथ गर्म कपड़े हमेशा रखें, क्योंकि यहां बारिश के छींटे भी दिसंबर और जनवरी की कड़कड़ाती सर्दी का अहसास कराने के लिए काफी है.

कैसे पहुंचें

शिमला से किन्नौर के लिए बसें मिल जाती हैं. नजदीक का हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन शिमला में ही है. नेशनल हाईवे 22 पर शिमला से रिकांगपिओ तक का सफर लगभग 10 घंटे का है. आप रिकांगपिओ या फिर रक्छम से छितकुल के लिए बस या फिर किराये की गाड़ी भी ले सकते हैं.

कहां ठहरें

छितकुल में ठहरने और खाने-पीने की उचित व्यवस्था है. यहां आपको आधुनिक सुख-सुविधाओं वाले होटल मिल जाएंगे.

मां हॉस्पिटल में थी और मैं स्टेज पर: भारती

मूल रूप से अमृतसर, पंजाब की रहने वाली भारती सिंह स्टार वन पर आने वाले ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज सीजन 4’ की सेकेंड रनरअप रहीं, जहां वह लल्ली बन कर आईं थी. बाद में उन्होंने कॉमेडी के कई शोज में काम किया.

सैलिब्रिटी डांस रिऐलिटी शो ‘झलक दिखला जा’ में भी एक प्रतियोगी के तौर पर आईं. पहली महिला स्टैंडअप कौमेडियन के रूप में भारती अपनी जिंदगी को सिंड्रैला की कहानी जैसी मानती हैं.

वे अपनी मां से बहुत अटैच हैं. 2 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को खो दिया था. वे कहती हैं, ‘‘मैंने कभी नहीं जाना कि पापा का प्यार कैसा होता है? उनकी डांट कैसी होती है? इसलिए शादी के बाद यह तय है कि मैं अपने ससुर को बहुत प्यार करूंगी ताकि अपने पापा की कमी पूरी कर सकूं.’’

भारती कलर्स चैनल पर आने वाले शो ‘कॉमेडी नाइट लाइव’ में चिंटू बन कर लोगों को हंसा रही हैं. आइए, जानते हैं उन की जिंदगी के बारे में थोड़ा करीब से:

क्या आप घर में भी इसी तरह जौली मूड में रहती हैं?

बिलकुल, घर में भी मैं जौली मूड में रहती हूं. मैं ही क्या, मुझ से कहीं ज्यादा मेरी मां जौली मूड में रहती हैं. सच तो यह है कि यह क्वालिटी मुझे अपनी मां से ही मिली है. जब मैं घर जाती हूं तो वे खूब मजेदार बातें करती हैं. ऐसी बातें, जो मुझे बहुत पसंद हैं.

घर में सब आप को लल्ली के रूप में पसंद करते हैं या चिंटू के रूप में?

बचपन की चिंटू और लल्ली ही आज भारती बन गई है. सब मुझे हर रूप में पसंद करते हैं. मैं बहुत मस्तीखोर हूं, लेकिन घर में ज्यादा बोलने या मस्ती करने का समय ही नहीं मिलता. ज्यादातर मैं घर वालों को सोता छोड़ कर आती हूं. सुबह 7 बजे घर से निकल जाती हूं और शाम 5 बजे के बाद ही पैकअप होता है. संडे के दिन भी व्यस्त रहती हूं.

कॉलेज के दिनों में कैसी थीं भारती?

मैं कॉलेज में बहुत सीधी-सादी थी. बोलती अधिक थी पर ऍक्टर नहीं थी. राइफल शूटर थी. यह शौक काफी महंगा था. मगर इच्छा यही रहती थी कि मैं शूटिंग में जाऊं. आज मैं शूटिंग करती तो हूं, बस स्टाइल बदल गया है. राइफल शूटिंग के बजाय कॉमेडी शूटिंग करने लगी हूं.

फिर इस क्षेत्र में कैसे आना हुआ?

कॉमेडी के मेरे गुरु कपिल शर्मा, सुदेश लहरी, राजीव ठाकुर वगैरह मेरे कॉलेज में यूथ फैस्टिवल में आते थे. उन्हें मेरी आवाज पसंद आई थी. ‘लाफ्टर चैलेंज सीजन 4’ के समय उनके कहने पर मैंने इंटरव्यू दिया और मेरा चयन हो गया.

कोई ऐसा लमहा जब आप कमजोर पड़ गई हों?

2008 में मैं लाफ्टर चैलेंज में हिस्सा लेने मुंबई आई थी. हमें होटल में ठहराया गया था. मैं अपनी मां के साथ थी. उसी दौरान मां को अल्सर हो गया. उस दिन वे आईसीयू में थीं और मुझे परफॉरमेंस देने जाना था. मुझे बहुत बुरा लग रहा था. तब मां ने मुझ से कहा कि जा और सब को हंसा. मैंने मन को कड़ा किया. शो तो होना ही था. मैं स्टेज पर गई. ध्यान मां की तरफ लगा था. फिर भी दिल से परफॉर्म किया. सब को बहुत हंसाया. मुझे स्टैंडिंग ओवेशन मिला. सब ने मेरी बहुत तारीफ की. हॉस्पिटल आई तो मां की तबीयत भी बेहतर थी.

आप को डांस करना ज्यादा पसंद है या कॉमेडी?

मुझे दोनों ही बहुत पसंद हैं. मैं अमृतसर से हूं. पंजाबी वैसे ही नाचगाना पसंद करते हैं. फिर कॉमेडी तो मेरा पैशन है ही. तभी तो ऐंट्री लेती हूं, तो डांस करते हुए ताकि दोनों इच्छाएं पूरी हो जाएं.

किसी को डेट कर रही हैं?

नहीं, अभी ऐसा कुछ नहीं है. पर मेरा मानना है कि प्यार और शादी करना कहीं से भी गलत नहीं. इसलिए जब प्यार करूंगी तो बिंदास सब को बताऊंगी इस बारे में. जो अफवाहें उड़ी थीं, मुझे बहुत बुरा लगा था. आखिर जिस टीम के साथ आप हमेशा रहती हैं, घर भी आसपास हो तो उस के साथ आनाजाना

तो होगा ही न.

अपने जीवनसाथी में कैसे गुण चाहती हैं? वह जौली नेचर का होना चाहिए या सीरियस?

मुझे चुप रहने वाले शख्स पसंद हैं. जीवनसाथी ऐसा हो जो मेरी सुने, क्योंकि मैं बहुत बोलती हूं. मैं चाहती हूं कि मेरा जीवनसाथी मुझे समझने वाला हो, सपोर्टिव हो. यदि मैं अपनी कमाई परिवार को दूं तो वह कुछ बोले नहीं. मुझे अपने परिवार का ध्यान रखना है. वह मेरे साथ मेरे परिवार को भी सपोर्ट करे.

गृहशोभा पढ़ती हैं?

बिलकुल पढ़ती हूं. बहुत अच्छी और पुरानी पत्रिका है. यदि मुझे कोई नाम देना हो तो मैं इसे पत्रिकाओं का ‘अमिताभ बच्चन’ कहना चाहूंगी. इस में प्रकाशित कहानियां, लेख, पाठकों की समस्याएं, टिप्स वगैरह सब काफी दिलचस्प होते हैं.

इस हादसे ने किशोर को बना दिया सुरीला

यह कहना गलत नहीं होगा कि बीते जमाने के गायकों को आज की पीढ़ी लगभग बिसारती जा रही हैं. आज युवा पीढ़ी को तड़क-भड़क वाले ‘फास्‍ट सांग’ पसंद हैं, लेकिन किशोर दा इसके अपवाद हैं उनके नगमे आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं. शायद यही ‘खंडवा वाले किशोर कुमार’ की सबसे बड़ी खूबी है. समय भले ही बदल गया हो लेकिन किशोर अभी भी प्रासंगिक हैं.

किशोर को महज गायक के रूप में संबोधित करना उनके साथ ज्‍यादती होगी. बहुमुखी प्रतिभ के धनी यह शख्‍स अभिनेता, गायक, निर्देशक, निर्माता, गीतकार सब कुछ था. यह भी कहा जा सकता है कि हिंदी सिनेमा की गायकी के आसमान पर चकाचौंध बिखेरने के बाद अभिनेता किशोर को लगभग अनदेखा कर दिया गया.

अभिनेता किशोर को वह श्रेय नहीं मिला जिसके वे हकदार थे. 60-70 के दशक में किशोर की गायकी का आलम यह था कि वे राजेश खन्‍ना, देवानंद और अमिताभ बच्‍चन जैसे बड़े सितारों की ‘आवाज’ बन चुके थे.

किशोर की खूबी यही थी कि देव साहब जैसे सीनियर मोस्‍ट अभिनेताओं से लेकर संजय दत्‍त, राजीव कपूर, सनी देओल जैसे उनके समय के नवोदित अभिनेताओं तक पर उनकी आवाज सूट करती थी. योडलिंग और अपने चुलबुलाहट भरी आवाजों से वे गानों में जान फूंकते थे. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना’ और ‘चला जाता हूं किसी की धुन में धड़कते दिल के तराने लिये’ जैसे गाने इसका शानदार उदाहरण हैं.

लेकिन क्‍या आप यकीन करेंगे कि आभास कुमार गांगुली यानी फिल्‍मी दुनिया के किशोर कुमार बचपन में ‘बेसुरे’ थे. उनके गले से सही ढंग से आवाज नहीं निकलती थी लेकिन एक हादसे में उनके गले से इतनी ‘रियाज’ करवाई कि वे सुरीले बन गए.

किशोर कुमार के बड़े भाई अशोक कुमार ने एक इंटरव्‍यू में बताया था कि किशोर का पैर एक बार हंसिए पर पड़ गया. इससे पैर में जख्‍म हो गया. दर्द इतना ज्‍यादा था कि किशोर कई दिन तक रोते रहे.  इतना रोये कि गला खुल गया और उनकी आवाज में ‘जादुई असर’ आ गया.

हरदिल अजीज किशोर कुमार का जन्म मध्‍यप्रदेश के खंडवा में 4 अगस्त, 1929 को हुआ. पिता कुंजीलाल गांगुली मशहूर वकील थे. बचपन से ही किशोर को संगीत को शौक था.  कुंदनलाल (केएल) सहगल को वे आदर्श मानते थे और उन्‍हीं की तर्ज में गाया करते थे.

इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में उन्‍होंने पढ़ाई की. उनके सहपाठी बताते हैं कि मनमौजी किशोर को गाने उल्‍टे करके गाने का शौक था. नाम पूछने पर कहते थे ‘रशोकि रमाकु’. पढ़ाई में अपने प्रश्‍नों के जवाब भी वे गाने के लहजे में याद किया करते थे. चूंकि बड़े भाई अशोक कुमार हिंदी फिल्‍म जगत में सक्रिय थे, ऐसे में किशोर भी फिल्‍मों में किस्‍मत आजमाने बंबई (अब मुंबई) आ गए.

अभिनेता के रूप में उनकी शुरुआत 1946 की फिल्‍म ‘शिकारी’  से हुई. पहली बार गाने का मौका मिला फिल्‍म ‘जिद्दी’ में, इस गाने को देवानंद पर फिल्‍माया गया. यह वह दौर था जब अभिनेता किशोर को अपने गाने के लिए दूसरे सिंगर की आवाज उधार लेनी पड़ती थी.

वैसे तो किशोर ने कई फिल्‍मों में काम किया लेकिन ‘चलती का नाम गाड़ी’ और ‘पड़ोसन’ अभिनेता और गायक के रूप में उनके लिये मील का पत्‍थर रहीं. ‘चलती का नाम गाड़ी’ में उनके दो भाइयों अशोक कुमार और अनूप कुमार ने भी काम किया.

गायक के रूप में किशोर को शुरुआत में बहुत अधिक गंभीरता से नहीं लिया गया. एक बार एसडी बर्मन जैसे वरिष्‍ठ संगीतकार ने किशोर को सहगल साहब को कॉपी करने के बजाय खुद का स्‍टाइल अपनाने की सलाह दी. इसके बाद तो किशोर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

उन्‍होंने एक के बाद एक सुपरहिट सांग दिये. युवाओं पर उनकी गायकी का जादू चढ़ता गया. उन्‍होंने आठ आठ फिल्मफेयर पुरस्कार हासिल किये. अमर प्रेम, गाइड, आराधना और कटी पतंग, डॉन जैसी फिल्‍मों के आने के बाद तो लोग उनके दीवाने हो गए.

संजीदा हों,  रोमांटिक या फिर मस्‍ती भरे, हर मूड के गाने किशोर बेहद कुशलता से गाते थे. स्‍वर कोकिला लता मंगेशकर और आशा भोसले के साथ उन्‍हें कई सुपरहिट सांग दिये. आशा ने एक बार कहा था, ‘किशोर के साथ डुएट सांग गाते हुए मुझे अपने को बेहद तैयार करना पड़ता था. किशोर गाना गाते समय अलग तरह की आवाज निकाल इसमें खास टच’ देते थे और उनके मुकाबले के लिए मुझे भी इसी अंदाज में उनका जवाब देना पड़ता था.

गायकी महारत किशोर अपने मूडी और एक हद तक सनकी स्‍वभाव के कारण भी सुर्खियां बटोरते थे. 1975 में आपातकाल के समय एक सरकारी समारोह में भाग लेने से साफ मना कर देने पर तत्कालीन सरकार ने किशोर के गीत आकाशवाणी पर प्रसारित करने पर रोक लगा दी, लेकिन वे नहीं झुके.

किशोर कुमार ने चार शादियां कीं. पहली शादी रूमा देवी से हुई. उसके बाद अभिनेत्री (स्‍वर्गीय) मधुबाला और योगिता बाली से भी उन्‍होंने विवाह किया. रूमा और योगिता से उनकी शादी ज्‍यादा नहीं चल सकी. किशोर ने 1980 में चौथा विवाह एक अन्‍य अभिनेत्री लीना चंदावरकर से किया, जिनसे उनका एक बेटा सुमीत है.

13 अक्टूबर 1987 को 58 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. किशोर की इच्‍छा जिंदगी के अंतिम क्षणों में अपने शहर खंडवा में बसने की थी. उनकी यह इच्‍छा तो पूरी नहीं हो पाई लेकिन उनका अंतिम संस्‍कार खंडवा में ही किया गया. बेशक किशोर को ‘अलविदा’ कहे 25 से अधिक वर्ष हो गए हैं लेकिन उनकी आवाज अभी भी लोगों के दिलों पर राज करती है.

किंग खान की वजह से रो पड़े करण जौहर

बॉलीवुड फिल्म मेकर करण जौहर और शाहरुख खान की दोस्ती फिल्म इंडस्ट्री के खास दोस्तों में शुमार होती है. हाल ही में करण ने बताया कि जब शाहरुख खान ने उनकी आने वाली फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के गानों की तारीफ की तो उनकी आंखें भीग गई थीं.

करण ने बताया कि वह इस फिल्म और उसके संगीत को लेकर काफी उत्सुक हैं और शाहरुख की राय उनके लिए काफी मायने रखती है. ऐसे में जब शाहरुख ने इसकी तारीफ की उनकी आंखों में आंसू आ गए.

गौरतलब है कि शाहरुख ने कहा था ‘मैंने तीन गाने सुने हैं और ये कमाल के हैं. मैंने टाइटल ट्रैक भी सुना जो अद्भुत है. ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में रणबीर कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, अनुष्का शर्मा और फवाद खान की अहम भूमिका है.

करण ने शाहरुख को लेकर ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘कभी अलविदा ना कहना’ और ‘माई नेम इज खान’ जैसी कामयाब फिल्में बनाई हैं.

पिता का घर छोड़ लिव-इन में रहेंगे हर्षवर्द्धन

हर्षवर्द्धन कपूर की पहली फिल्म ‘मिर्जिया’ अभी रिलीज भी नहीं हुई है कि उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा है. गौर करने वाली बात ये है, कि ये उनका अपना फैसला है. इसके पीछे एक खास वजह है. हर्षवर्धन ने फैसला किया है कि वो अब घर से दूर किसी दोस्त के साथ लिव-इन में रहेंगे.

अब आप सोच रहे होगे की फिर तो पापा अनिल कपूर को बेटे पर बहुत गुस्सा आया होगा? जी नही! बल्कि अनिल कपूर हर्षवर्धन के इस फैसले से खुश हो गये. चौंक गये ना आप?

दरअसल, घर छोड़ना हर्षवर्द्धन की अगली फिल्म के लिए तैयारियों का हिस्सा है. जिस तरह ‘मिर्जिया’ के लिए हर्ष ने कई महीनों तक घुड़सवारी और तलवारबाजी की प्रैक्टिस की, उसी तरह ‘भावेश जोशी’ के लिए वो किराए के घर में रहकर रोल की तैयारी कर रहे हैं.

हर्षवर्द्धन अपने पापा का बंगला छोड़कर अब जुहू में अलग अपार्टमेंट में रहने जाएंगे. उनके फ्लैट मेट होंगे को-एक्टर प्रियांशु पैन्यूली, जो ‘भावेश जोशी’ में हर्षवर्द्धन के दोस्त बने हैं. फिल्म में हर्षवर्द्धन मध्यम वर्ग के एक सोशल विजिलांटे का रोल निभा रहे हैं.

इस किरदार में खुद को ढालने के लिए हर्षवर्द्धन ने ऐशो-आराम की ज़िंदगी को अलविदा कहा है. अभिनय के प्रति हर्ष की इस लगन को देखकर पिता अनिल कपूर बेहद खुश हैं.

हर्षवर्धन की अगली फिल्म ’भावेश जोशी’ निर्देशक विक्रम आदित्य मोटवानी हैं. विक्रमादित्य मोटवाने निर्देशित ‘भावेश जोशी’ की शूटिंग हाल ही में शुरू हुई है.

‘भावेश जोशी’ एक मिडिल क्लास लड़के की कहानी है और उस माहौल को समझने के लिए हर्ष अपनी असल जिंदगी में भी वही किरदार जीना चाहते हैं ताकि फिल्म में अपने रोल के साथ वह इंसाफ कर सकें.

बता दें कि हर्षवर्धन से पहले ‘भावेश जोशी’ का किरदार इमरान खान और बाद मे सिद्धार्थ मल्होत्रा करने वाले थे. पर फाइनली हर्ष सलेक्ट हुए. इस किरदार के लिए हर्ष ने अपना घर तक छोड़ दिया तो ऐसे में उम्मीद है कि दर्शकों को भी उनकी एक्टिंग पसंद आए.

पालक स्वीट पोटैटो

सामग्री

– 250 ग्राम ताजा पालक

– 250 ग्राम शक्करकंद

– 2 बड़े चम्मच जैलपीनो कटा

– 2 बड़े चम्मच प्याज कटा

– 1 बड़ा चम्मच अदरक

– 1 बड़ा चम्मच लहसुन कटा

– 1 चुटकी गरममसाला

– 1 चुटकी भुना जीरा

– 1 नीबू का रस

– नमक स्वादानुसार

– तलने के लिए पर्याप्त तेल.

विधि

पालक को साफ व धो कर काट लें. शक्करकंदी को ओवन में बेक करें. फिर छील कर कद्दूकस कर लें. अब पालक को नमक मिले पानी में 45 सैकंड उबालें. फिर गरम पानी से निकाल कर ठंडा पानी डालें. पालक को निचोड़ लें. अब सारी सामग्री को मिला कर छोटेछोटे बौल्स बना कर हथेली से दबाते हुए टिक्की का आकार दें. फिर तेल गरम कर के धीमी आंच पर सुनहरा होने तक फ्राई कर इमली की चटनी के साथ परोसें.

-व्यंजन सहयोग: संजय चौधरी

शैफ ऐंड डायरैक्टर, वर्ल्ड आर्ट डाइनिंग,

पंजाबी बाग    

विकल्प ढूंढ़ना गलत नहीं

पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू और उन की पत्नी नवजोत कौर का भारतीय जनता पार्टी को छोड़ जाना एक आश्चर्य की बात है. अब तक तो ऐसा लग रहा था कि दलबदल का ट्रैफिक केवल वन वे है, भारतीय जनता पार्टी की ओर. नवजोत सिंह सिद्धू को कुछ अरसा पहले ही खुश करने के लिए राज्य सभा में मनोनीत किया गया था, जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया था पर 2014 का अनुभव शायद वे भूले नहीं थे, जिस में उन्हें 10 साल की सेवा के बावजूद अमृतसर की लोक सभा सीट से

हटा दिया गया था ताकि अरुण जेटली को चुनाव लड़वाया जा सके. यह बात दूसरी थी कि मोदी लहर में भी अरुण जेटली चुनाव हार गए थे. नवजोत सिंह सिद्धू अब शायद आम आदमी पार्टी में जाएंगे, जो पंजाब में मुख्यमंत्री पद के लिए एक अच्छा चेहरा ढूंढ़ रही है. अरविंद केजरीवाल को भगवा ब्रिगेड और सोशल मीडिया चाहे जितना बुराभला कहता रहे, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी भले ही कोसे, थोड़ी समझदार चाहे अनपढ़ व गरीब ही सही, लोगों में आम आदमी पार्टी एक ठीकठाक पर्याय है.

पंजाब से आम आदमी पार्टी ने 2014 में 3 सीटें लोक सभा चुनावों में जीती थीं और वहां की जनता कांग्रेस और अकाली भाजपा दोनों से तंग आ गई हो तो बड़ी बात नहीं. आम आदमी पार्टी की तरह नवजोत सिंह सिद्धू सदा आम आदमी ही रहे. क्रिकेटर के रूप में तो वे आम आदमी के लिए ही खेलते थे. कपिल शर्मा के टैलीविजन कौमेडी शो में भी वे आम आदमी से जुड़े रहे हैं और उन में इन दोनों पार्टियों की राजसी बू नहीं घुसी है.

भारतीय जनता पार्टी की लड़खड़ाहट अब साफ दिख रही है. महंगाई पर नियंत्रण नहीं है. देश का विकास कागजों और आंकड़ों में ही हो रहा है. साफसुथरी सड़कों का जाल है पर वह मनमोहन सिंह सरकार की ज्यादा देन है. इन सड़कों के किनारे गरीबी पसरी किसी को भी दिख जाएगी.

काले धन को वापस लाने की बात को चुनावी जुमला कह कर उड़ा दिया गया है और यदि वह आ भी जाता तो कौन सा आम आदमी के पास जाता? यहां तो गैस की सब्सिडी भी समाप्त हो गई. टैक्स बढ़ गए हैं. ऐसे में लोगों का पर्याय ढूंढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है. जो लोग एक के बाद एक कतार लगा कर भारतीय जनता पार्टी से जुड़े थे,

वे सत्ता की मलाई के लिए गए थे, जनता की भलाई के लिए नहीं. अब अगर सारी सत्ता 1-2 हाथों में हो तो कहीं और जाने में हरज क्या है. वैसे भी पिछले राज्यों के चुनावों में असम के अलावा भाजपा कहीं और जीत भी नहीं पाई थी, इसलिए नवजोत सिंह सिद्धू का आईपीएल -इंडियन पौलिटिकल लीग में कंपनी बदल लेना गलत कैसे कहा जा सकता है?

शक्ति को जैंडर से न जोड़ें

जो यह सोच रहे थे कि सोनिया गांधी का युग समाप्त हो गया है, उन्हें निराशा हो रही होगी कि पश्चिम बंगाल व बिहार में कुछ सीटें जीतने के बाद सोनिया ने भारतीय जनता पार्टी की सरकारें गिराने की हर संभव कोशिशों के बावजूद उत्तराखंड और अरुणाचल में अपनी सरकारें बचा लीं. बिहार, बंगाल और इन 2 पहाड़ी राज्यों में कांग्रेस का अंत लगभग लिखा जा चुका था पर सोनिया गांधी ने हिम्मत नहीं हारी. यही हिम्मत उन्होंने 1997 में दिखाई थी, जब सीताराम केसरी से कांग्रेस अध्यक्ष पद छीना और यही हिम्मत 2004 में भी दिखाई जब लोकप्रिय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मुकाबला किया.

सोनिया ही नहीं, ममता बनर्जी, मायावती, जयललिता भी ऐसी विकट स्थितियों से निकली हैं, बिना किसी खास पुरुष संरक्षण के. जो औरतों को कमजोर समझते हैं उन के लिए ये 4-5 महिला नेता एक सबक हैं कि शक्ति को जैंडर से न जोड़ो, यह व्यक्तित्व का हिस्सा है, यह काफी कुछ गंवा देने के बाद भी हिम्मत न हारना है.

हमारा समाज हमारी औरतों को परतंत्र रहने का पाठ पहले दिन से सिखाता है. यौन रक्षा के नाम पर इस पर हजार बंधन लगा देता है, जो उस के पूरे व्यक्तित्व पर छा जाते हैं. वह अपनेआप में सिकुड़ जाती है, दया की भीख मांगने को मजबूर की जाती है. विफल होना उस का दोष नहीं है पर सजा उसे ही दी जाती है. विवाह न हो तो अपशकुनी मानी जाती है. बच्चे न हों तो पति को नहीं उसे दोषी माना जाता है. ऐसे समय सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, जयललिता, मायावती, हिलेरी क्लिंटन, ऐंजेला मार्केल एक नई ऊर्जा दे रही हैं कि शारीरिक बनावट का व्यक्तित्व से कुछ भी लेनादेना नहीं है.

जिन घरों में पत्नी की भी चलती है, वहां अनुशासन रहता है. वहां नए मंसूबे बनते हैं. वहां पतिपत्नी मिल कर जोखिम भरे फैसले ले सकते हैं. विवाह, प्रेम, सैक्स व बच्चों से जुड़े पतिपत्नी एकदूसरे के पूरक हैं, पर केवल तभी जब औरत को हाड़मांस की गुडि़या न समझा जाए.

अरुणाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे विधायकों को मुख्यमंत्री बदल कर सोनिया गांधी ने ऐसा पलटा मारा कि भारतीय जनता पार्टी, जिस ने राज्यपाल के पद का भरपूर दुरुपयोग किया और जिसे सुप्रीम कोर्ट से फटकार भी पड़ी, और भाजपा कानूनी, व्यावहारिक व राजनीतिक मामलों में सोनिया गांधी से बुरी तरह हार गई. सोनिया गांधी ने विद्रोही विधायकों में से एक को मुख्यमंत्री मान लिया.

हर औरत को इस तरह की हिम्मत दिखाने की जरूरत है. आज के बदलते परिवेश में औरत को अकेले घर भी चलाना है, काम भी करना है, छोटाबड़ा व्यवसाय भी चलाना है, नापसंद पति से छुटकारा भी पाना है, तो सौतनों से भी निबटना है. अगर उस में आत्मविश्वास होगा तो सब उस के साथ रहेंगे, उसे आदर देंगे. दया नहीं, भीख नहीं, हक मिलेगा. शास्त्र चाहे कुछ भी कहते रहें, चलेगी तो हिम्मत की. भाजपा और कांग्रेस की लड़ाई ने देश की औरतों को बहुत बड़ा संदेश दिया है.

एक नहीं तो दूजा सही

कभी-कभी मेकअप किट अपडेट रखने के बावजूद भी ड्रैसिंगटेबल के दराज से मेकअप किट निकालने पर फाउंडेशन सूख चुका होता है, तो लिपस्टिक गरमी में पिघल चुकी होती है. सारी मेकअप किट अस्तव्यस्त. ऐसे में गुस्सा आता है और पार्टी में जाने का मूड ही नहीं रहता. मगर ऐसी स्थिति में परेशान होने के बजाय खराब हुए कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स के विकल्प इस्तेमाल कर सकती हैं.

मसकारा: मसकारा न होने पर पैट्रोलियम जैली का प्रयोग किया जा सकता है. पलकों पर पैट्रोलियम जैली लगाएं. ऐसा करने से मसकारे के बिना भी आईलैशेज घनी व चमकदार नजर आती हैं.

ब्लशर: ब्लशर की जगह लिपस्टिक का प्रयोग किया जा सकता है. ध्यान रहे कि लिपस्टिक अधिक क्रीमी होती है. ऐसे में लिपस्टिक गालों पर उंगली से लगाने के बाद अच्छी तरह फैलाएं. फाइनल टच के लिए टिशू पेपर से अतिरिक्त शाइन व औयल पोंछ लें.

लिपस्टिक: होंठों पर ब्लशर के इस्तेमाल से लिपस्टिक की कमी नहीं खलती. सब से पहले क्रीम या मौइश्चराइजर लगा कर होंठों को सौफ्ट करें. अब ब्रौंज ब्लशर को उंगली से होंठों पर लगाएं और होंठों पर अच्छी तरह फैलाएं.

फाउंडेशन: यदि फाउंडेशन नहीं है, तो उस की जगह लूज पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर वह भी न हो तो कंसीलर का प्रयोग करें. दोनों को मौइश्चराइजर में मिला कर इस्तेमाल करना चाहिए.

आईशैडो: आईशैडो न होने पर ब्लशर का इस्तेमाल किया जा सकता है. कौटन बौल पर ब्लशर लगा कर दोनों आंखों पर लगाएं.

आईलाइनर: आईलाइनर की जगह आईशैडो का प्रयोग किया जा सकता है. इसे आईलाइनर की तरह इस्तेमाल करने के लिए आईशैडो ब्रश को थोड़े से पानी से नम करें. अब इस ब्रश पर आईशैडो (ब्लैक ग्रे या नेवी ब्लू) लगाएं और इसे हलके हाथों से अपर आईलिड पर लगाएं.

कंसीलर: अगर कंसीलर सूख चुका है, तो लिक्विड फाउंडेशन की बोतल के बाहर चिपकी फाउंडेशन की अधसूखी परतों का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सीरम: सीरम लगाने से बालों को चमक व घनापन मिलता है. सीरम की जगह हैंड लोशन या बौडी लोशन अथवा फेस मौइश्चराइजर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे बालों में लगाने के लिए दोनों हाथों में मौइश्चराइजर लगाएं. फिर बालों में लगाएं. ध्यान रहे मौइश्चराइजर की मात्रा कम होनी चाहिए वरना बाल औयली नजर आएंगे. 

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