शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा और…

पहले की तरह घर बैठे खरीदारी अब फिर धूमधड़ाके से होने लगी है. भारत में ही नहीं, दुनिया भर में पहले दुकानें घरों तक पहुंचती थीं. व्यापारी सिर पर या पीठ पर सामान लादे घरघर जाते और घरवालियों को सामान दिखा कर बिक्री करते थे. एक घर में घुसे नहीं कि पूरा महल्ला जमा हो गया. मगर शहरों के बनने और बड़ेबड़े स्टोर बनने से यह परंपरा गायब हो गई थी. पर अब औनलाइन तरीके से लौट रही है.

कंप्यूटर खोलो, सामान के गुण, फोटो देखो, क्रैडिट कार्ड निकालो, पेमैंट करो और 2 दिन में सामान हाजिर. पहले यह आयोजन किताबों के लिए किया गया, अब हर चीज के लिए होने लगा है और छोटा बिचौलिया गायब होने लगा है. रिलायंस ने मुंबई में दालचावल व सब्जियां भी बेचनी शुरू कर दी हैं. पिज्जा की तरह घर बैठे रसोई का सामान हाजिर, सजावट का सामान भी व कपड़े भी. पर इस धंधे में जल्दी ही शातिर लोग उतरेंगे, जो दिखाएंगे कुछ भेजेंगे कुछ. ऐसे लोगों की कमी नहीं जो व्यापार को बिगाड़ने में कसर न छोड़ेंगे. यह आज के युग की सुविधा है, क्योंकि अब बाजारों में पार्किंग की किल्लत है और भीड़, धूलधक्कड़ असहनीय होने लगी है. बाजारों में दुकानों को महंगी जमीन पर सामान बेचना होता है और दुकान की सजावट भी महंगी हो गई है. यही नहीं, बेचने वालियां अब सजीधजी हों, यह भी जरूरी है.

औनलाइन खरीदारी में चाहे मजा नहीं आए पर सुविधा भरपूर है. यदि उस के पीछे नाम वाली कंपनियां हों तो थोड़ा संतोष रहता है कि सामान में खराबी नहीं होगी और जो कहा जाएगा वही बेचा जाएगा. औनलाइन शौपिंग में घर बैठे सामान का पैकेट खोलते हुए वैसा ही लगता है जैसा बच्चों को जन्मदिन पर मिले उपहारों को खोलते हुए लगता है.

औनलाइन खरीदारी की जड़ में विश्वसनीयता का बड़ा अहम रोल है. फ्लिपकार्ट कंपनी ने एक रोज बड़े विज्ञापन दे कर बेहद सस्ते में बहुत सारी चीजें बेचने का प्रस्ताव रखा पर जब लोगों ने कंप्यूटर खोला तो पता चला कि या तो साइट खुल ही नहीं रही या सस्ता माल खत्म हो गया और अब महंगा बचा है. लोगों को लगा कि वे ठगे गए. कंप्यूटर पर बैठ कर सस्ते की चाह में जो समय उन्होंने लगाया वे उस की कीमत भी सामान में जोड़ने लगे.

औनलाइन शौपिंग में डिस्काउंट के चक्कर में नामी कंपनियां उत्पादकों को सस्ता माल बेचने को मजबूर कर रही हैं और उत्पादकों को क्वालिटी घटानी पड़ रही है. चूंकि ग्राहक को पता नहीं होता कि सामान 2-4 माह बाद खराब हो जाए तो वह कहां जाए, किस से शिकायत करे, इसलिए ऐसा कुछ होने पर वह मन मार कर रह जाता है.

औनलाइन शौपिंग फेरी वालों की तरह सिद्ध होगी यह पक्का है. भारत में सिर पर गठरी रख कर सामान बेचा जाता था और अमेरिका में पीठ पर संदूक लाद कर, जिस में 100 किलोग्राम तक का सामान लादा जाता था. बाद में लोगों ने ट्रकों तक में दुकानें लगा ली थीं. उन में भी एक बार बिका माल वापस न होगा जैसी शर्त साफसाफ लिखी होती थी और यही इस औनलाइन व्यापार में कूद रही बड़ी कंपनियां भी कर सकती हैं, यह पक्का है.

उस की खरीदारी में क्रैडिट कार्ड जरूरी हो गया है पर क्रैडिट कार्ड कंपनियां बेहद दंभी और एकतरफा हो गई हैं. उन्होंने मिल कर क्रैडिट रेटिंग सौफ्टवेयर तैयार कर लिए हैं और यदि नाराज हो कर आप ने एक कंपनी का पैसा रख लिया तो दूसरी कंपनी क्रैडिट कार्ड नहीं देगी. यही औनलाइन व्यापार में भी हो सकता है. जो ग्राहक सेवा मांगने में झिकझिक करेंगे उन्हें अब नई कंप्यूटर टैक्नोलौजी के सहारे आसानी से ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है. बड़ी कंपनियां अब ग्राहकों को बंधक बना सकती हैं यानी छूट का लालच देख कर जाल में मक्खी की तरह फंस जाओ और निकल न पाओ. ‘मैं सर्वव्यापी हूं, मैं सर्वमयी हूं, मैं सर्वशक्तिशाली हूं, मेरी शरण में रहो तो ही उद्धार है,’ यह महामंत्र चाहे बोला न जाए, चलेगा जरूर.

जमाना टैक्नोस्मार्ट औरतों का

इक्कीसवीं सदी ने दुनिया का स्वरूप कई मानों में बदल दिया है और इस बदलाव में सब से प्रमुख है तकनीक, जो हमारे लिए उतनी ही जरूरी बन गई है जितना कि सांस लेना. हालांकि कुछ वर्षों पहले तक माना जाता था कि इस पर केवल पुरुषों का अधिकार है और औरतों की इस में कोई दिलचस्पी नहीं है. लेकिन अब समय बदल गया है. कौरपोरेट जगत में अपनी पैठ बना चुकी औरतें अपनी तकनीकी जरूरतों के लिए स्मार्ट सोल्यूशंस को तलाश रही हैं, इसीलिए आज बोल्ड और ब्यूटीफुल मोबाइल हैंडसैट, स्लीक टच स्क्रीन आई पैड्स इन औरतों को आकर्षित कर रहे हैं.

कौरपोरेट जगत में अपनी एक खास जगह बनाने वाली अनन्या वर्मा उन औरतों में से हैं, जो तकनीक को ले कर न सिर्फ सजग हैं, बल्कि अपडेट भी रहना पसंद करती हैं. उन के लिए गैजेट्स ट्रैंड को अपनाना वैसा ही है, जैसे लेटैस्ट डिजाइन के कपड़ों को सलैक्ट करना. मार्केट में जैसे ही कोई नया गैजेट आता है, वे उसे अवश्य खरीदती हैं. लेकिन उन्हें स्लीक और बोल्ड डिजाइंस पसंद हैं, फिर चाहे वे मोबाइल में हों या लैपटौप में.

तकनीक के आसान और यूजर फैं्रडली होने के कारण कामकाजी महिलाएं, गैजेट्स को अपना बैस्ट फ्रैंड मानने लगी हैं. अगर वे मीटिंग में व्यस्त होती हैं तो    टैबलेट मेल चैक करने, वीडियो काल्स करने, अपनी प्रैजेंटेशन डाउनलोड करने तथा अपने परिवार से संपर्क में रहने का बेहतरीन साधन होता है.

टारगेट हैं औरतें

विज्ञापनों से होने वाले प्रचार और बाजार के रुख की ओर अगर देखें तो पाएंगे कि इन दिनों गैजेट्स के बाजार में एक जबरदस्त विस्तार आया है. लेकिन इस बार इन्हें बनाने वाली कंपनियों का टारगेट पुरुषों के बजाय औरतें हैं. यही वजह है कि कंपनियां अलगअलग रंगों में औरतों के लिए लैपटौप और मोबाइल बाजार में उतार रही हैं. दूसरी ओर अब इस तरह के मोबाइल अपनी पैठ जमा रहे हैं, जो फिटनैस के प्रति सतर्क औरतों की सेहत पर नजर रखेंगे. फिटनैस टे्रनर की तरह काम करने के साथ ये फोन स्ट्रैस लैवल व हार्ट रेट को भी मौनीटर करेंगे. कैमरा, म्यूजिक प्लेयर और इंटरनैट का फायदा उठाने से कहीं आगे ऐडवांस हो चुके इस मोबाइल की सहायता से अब औरतें अपने शरीर के फैट व सांसों की बदबू तक की जांच कर सकेंगी.

कैमरे के एक क्लिक के साथ खूबसूरत पलों को कैद करना और घर में तमाम जिम्मेदारियां पूरी करना, यही खाका है टैक्नो स्मार्ट औरत का जो कौरपोरेट वर्ल्ड में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के साथसाथ अपनी राह तलाशने और मंजिल पाने की कोशिश में किसी भी विकल्प को खोने देना नहीं चाहती.

हिचकिचाहट है अभी भी

फिर भी कुछ प्रतिशत महिलाएं अभी भी ऐसी हैं, जो गैजेट्स का इस्तेमाल करने की इच्छुक तो हैं, पर उन्हें अपनाने से कतराती हैं. कई महिलाएं मोबाइल फोन का उपयोग केवल फोन करने और रिसीव करने के लिए ही करती हैं, बाकी ऐप्लिकेशंस का उपयोग करना या तो उन को आवश्यक नहीं लगता या फिर वे सीखने में उलझन महसूस करती हैं. घरेलू उपकरणों को हालांकि महिलाओं ने जरूरत और सुविधाजनक जिंदगी पाने की चाह में अपना लिया है, पर बाकी लेटैस्ट गैजेट्स अभी भी उन्हें इतने आकर्षित नहीं करते. मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि गैजेट्स का इस्तेमाल करने में जो हिचकिचाहट या घबराहट आज के तकनीकी युग में महिलाओं में देखने को मिलती है, उस की वजह एक ही है और वह है किसी भी नई चीज को अपनाने में शौक की कमी. जबकि पुरुष रिस्क फैक्टर से कम डरते हैं और ऐक्सपैरिमैंट करने के इरादे से चीजों का प्रयोग करते हैं. इस के विपरीत महिलाएं इस मामले में ‘कौन सीखे’ की सोच ले कर चलती हैं. गैजेट्स गुरुओं का मानना है कि किसी भी गैजेट को खरीदने से पहले महिलाएं पूरी रिसर्च करती हैं और विज्ञापनों से कम ही प्रभावित होती हैं.

सीख गई हैं अपडेट होना

अगर आज के संदर्भ में यह बात कही जाए कि ज्वैलरी महिलाओं की पहली पसंद है तो कोई भी वर्ग इसे मानने को तैयार नहीं होगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि अब वे तकनीकी खिलौनों जैसे, प्लाज्मा टीवी, सैलफोन, लैपटौप या आईपौड को अपनी जिंदगी में शामिल कर चुकी हैं. कीबोर्ड पर तेजी से चलती उन की उंगलियों ने इंटरनैट और ब्लौग की दुनिया का सफर बड़ी कुशलता से तय करना सीख लिया है. औनलाइन बिजनैस में सफलता पाती आज की महिला भारी साड़ी या कीमती जेवरों में लिपटी गुडि़या नहीं रही है, बल्कि वह टैक्नोलौजी के विकास के साथ अपडेट होना सीख गई है.

वीजे सोफिया चौधरी के अनुसार, मेरे लिए तकनीक का अर्थ है एक नया संसार. इस का अर्थ है अपनी उंगलियों से असंभव को भी संभव बनाना. मेरे गैजेट्स मेरे लिए यही करते हैं. सैलफोन मेरा सही माने में साथी है. मेरा आईपोड एक अमूल्य वस्तु है. उस पर मैं सिर्फ गाने नहीं सुनती, वरन जब भी मैं रिकौर्डिंग कर रही होती हूं तो अपने म्यूजिक डायरैक्टर को यह बताने में मुझे आसानी होती है कि कौन सा यंत्र किस गाने के साथ अच्छा लगेगा.

पिछले कुछ दशकों में महिलाओं ने जिस तेजी से अपनी कामयाबी का परचम लहराते हुए समाज में अपनी एक जगह बनाई है, उस का असर सिर्फ उन की सोच पर नहीं दिखाई दे रहा, बल्कि उन की जीवनशैली और कार्यशैली में भी दिख रहा है. पिछले कुछ दशकों में महिलाओं की सोच ने जिस तरह से करवट ली है, उस ने तो उन की दिशा ही बदल दी है.

मददगार हैं गैजेट्स

 आज की औरत जानती है कि वह क्या चाहती है. आईटी कंपनी में कार्यरत मनीषा का कहना है, ‘‘लैपटौप ने मेरी जिंदगी को बहुत आसान बना दिया है. इस की वजह से मैं घर में रह कर भी काम कर पाती हूं. यहां तक कि अपने पारिवारिक दायित्वों को निभाते हुए भी मुझे इतना मौका तो मिल ही जाता है कि अपने क्लाइंट को ईमेल कर सकूं या डाटा भेज सकूं.’’

कौरपोरेट वर्ल्ड में महिला की घुसपैठ ने जहां उस के लिए तरक्की की राह खोली है, वहीं एक से एक गैजेट्स चुनने की आजादी भी दे दी है. कैमरे से तसवीरें उतारना या लैपटौप पर काम करने पर अब केवल पुरुषों का ही अधिकार नहीं रहा है, एक आम महिला भी इन के प्रति चैतन्य हो गई है. वह तकनीक से जुड़े हर साधन को पूर्ण रूप से अपना रही है. लेकिन वह इन साधनों का प्रयोग केवल इसलिए नहीं करती कि वह खुद को आधुनिक साबित करना चाहती है, बल्कि इसलिए करती है क्योंकि वह इन के द्वारा पूरा लाभ उठाना चाहती है. ये साधन उस के कार्य में उस की मदद करते हैं, इसलिए वह उन्हीं चीजों को अपना रही है, जो उस की क्षमता में इजाफा करते हैं. जैसे, वह इंटरनैट का प्रयोग इसलिए करती है, क्योंकि जानकारी हासिल करने के साथसाथ वह दूर रहने वाले उस के परिवार के सदस्यों से उसे जोडे़ रखता है.

आउटसोर्सिंग कंपनी ग्लोबल लौजिक की सीनियर मैनेजर, एचआर, माधवी गोयल के अनुसार, आज अधिकतम औरतें कौरपोरेट कल्चर का हिस्सा बन रही हैं. वे तमाम ग्लास सीलिंग्स को तोड़ते हुए ऐसे उच्च पदों पर पहुंच गई हैं, जहां जिम्मेदारियां बहुत हैं. परिवार व काम के बीच संतुलन बनाए रखने व अपनी विभिन्न भूमिकाओं को निभाने में तकनीक उन की बहुत सहायता कर रही है. औफिस से बाहर होने पर या यात्रा करने पर ये गैजेट्स, खास कर लैपटौप और मोबाइल बहुत ही काम आते हैं. मैं जब भी औफिस की किसी और ब्रांच में होती हूं तो अपनी टीम के सदस्यों से संपर्क कायम रखना मुश्किल नहीं होता. आज की औरत ऐसे गैजेट्स पसंद कर रही है, जो पर्सनैलिटी को बढ़ाएं.

आत्मनिर्भरता है वजह

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट डा. मेघा गोरे के अनुसार, औरत के टैक्नो स्मार्ट होने की सब से बड़ी वजह है उस का आत्मनिर्भर होना. वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ अपनी सोच से भी आत्मनिर्भर हुई है. उसे समाज में समान दर्जा मिल रहा है, यह प्रत्यक्ष ढंग से दिख रहा है, इसीलिए वह आज अपनी बात कहने में घुटन महसूस नहीं करती. समाज व परिवार का सहयोग व समर्थन उसे मिल रहा है, जिस ने उसे शक्ति व सामर्थ्य प्रदान किया है. तकनीक से उस की जिंदगी में लचीलापन आ गया है, क्योंकि उस के माध्यम से वह अपनी विभिन्न भूमिकाओं को एकसाथ निभा पाती है. परिवार व अपनी इच्छाओं को पूरा करने की एक क्षमता उसे तकनीक ने दी है.

इन दिनों इलैक्ट्रौनिक स्टोर्स में न सिर्फ औरतों को तकनीक में हो रहे विकास व लेटैस्ट मौडल की जानकारी दी जाती है, वरन सेल भी बहुत लगती है. वैसे भी आज की नारी अब खुद यह तय करती है कि उसे क्या खरीदना है. इन सब चीजों को खरीदने के लिए उसे अब पुरुषों की राय नहीं लेनी पड़ती. वह इतनी काबिल हो चुकी है कि अपने हिसाब से हर स्तर पर जी सके. अपनी मांगों को ले कर मुखर होने के बाद बाजार का रुख उस की सुविधाओं को जुटाने की ओर हो गया है.

स्टाइल में करते हैं इजाफा

हैदराबाद स्थित सौफ्टवेयर टैस्टिंग कंपनी एपलैब की असिस्टैंट वाइस प्रैसिडैंट रीमा सरीन का मानना है, ‘‘कौरपोरेट वर्ल्ड में काम करने के कारण मुझे हर समय अपने लैपटौप की आवश्यकता पड़ती है. मुझे लगता है कि यह समय की मांग है जिस ने मार्केट का रुख बदल कर औरतों को एक नई सोच व दिशा दी है.’’

टैक्नो ऐक्सैसरीज की मौजूदा चीजों पर अगर एक नजर डालें तो पाएंगे कि मोटोरोला ने महिलाओं के लिए पिंक कलर का और सीमंस ने फूलों के डिजाइन वाला मोबाइल उतारा और उस की डिसप्ले स्क्रीन को ऐसा बनाया कि वह शीशे का काम भी कर सके. सैमसंग के एक फोन में अरोमा थेरैपी व खुशबू की गाइड इनबिल्ट है. उस में कैलोरी काउंटर, बौडी मास इंडैक्स कैलकुलेटर व शौपिंग लिस्ट और्गनाइजर भी है. लेकिन केवल इन सुविधाओं के आधार पर ही औरतें उन्हें नहीं खरीदतीं. वे जब टैक्नो ऐक्सैसरीज को अपनाती हैं तो एक भारी दाम चुकाते हुए भी उस से होने वाले फायदों को नजरअंदाज नहीं करतीं. वे पैनी निगाहों से उस की तमाम बारीकियों को भी जांचती हैं.

कला के क्षेत्र में अगर औरत डिजिटल हो रही है तो अपनेआप को फिट रखने के लिए भी मशीनों को बड़ी तेजी से अपना रही है. बाजार में मौजूद विभिन्न उपकरण और जिम में बढ़ती औरतों की तादाद इस का प्रमाण है.

जि स तरह औरत ने सुंदरता के पैमानों को अपनी काबिलीयत के द्वारा नया आयाम दिया है, उसी तरह वह अपने स्टाइल कोतकनीक के माध्यम से संवार चुकी है.

अंधविश्वास के घेरे में विवाह के फेरे

इंसान के जीवन में जन्म से ले कर मृत्युपर्यंत 16 संस्कारों की बात की जाती है. विवाह को इन में सर्वश्रेष्ठ करार किया गया है. रूढिवादी सोच वाले मानते हैं कि शास्त्रसम्मत विधिवत विवाह संपन्न होने पर ही व्यक्ति का दांपत्य बिना किसी अवरोध के व्यतीत होगा वरना मुसीबतें गले पड़ती रहेंगी. उन के मुताबिक विवाह मोक्षप्राप्ति का साधन भी है और इसीलिए दांपत्य की बुनियाद धार्मिक अंधविश्वासों की नींव पर रखी जानी चाहिए ताकि किसी भी अनिष्ट की आशंका के खौफ से बचा जा सके.

अंधविश्वास यानी बगैर सोचेसमझे किया जाने वाला विश्वास या बेतुकी बातों पर टिका मत जिसे परंपरागत रिवाजों के नाम पर स्वीकृति मिली होती है. अज्ञानजनित, अविवेकपूर्ण अंधविश्वास से भरी मान्यताएं पारलौकिक शक्तियों के रुष्ट होने के खौफ के साथ स्वीकार की जाती हैं. जाहिर है, सदियों से लोगों द्वारा पोषित इन अंधविश्वासों ने विवाह को भी अपनी चपेट में ले रखा है.

सब से पहले ज्योतिषी वर और कन्या की जन्मपत्री देखते हैं और अष्टकूट मिलान मंगलदोष, विषकन्या आदि योगों का विश्लेषण कर के अपना फैसला सुनाते हैं कि इस शख्स से शादी करना उचित होगा या नहीं. अष्टकूट मिलान के तहत तारागुण, वशीगुण, गण गुण, नाड़ी गुण, वर्ण गुण, भकूट गुण, योनि गुण और गृह गुण चक्र का मिलान किया जाता है. इसी तरह मांगलिक दोष पर भी गंभीरता से विचार किया जाता है.

विवाह में मंगल द्वारा अमंगल की मान्यता

हिंदू ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक यदि मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में स्थित हो तो मंगलदोष माना जाता है. किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में यह योग हो तो उसे मंगली कहा जाता है. वरवधू में से किसी एक की कुंडली में इन भावों में मंगल हो तथा दूसरे की कुंडली में न हो तो ऐसी परिस्थिति को वैवाहिक जीवन के लिए अनिष्टकारक कहा जाता है तथा ज्योतिषी उन दोनों को विवाह न करने की सलाह देते हैं.

शुभअशुभ का चक्कर

कई दफा शुभ दिन के चक्कर में व्यक्ति को उस दिन शादी करनी पड़ती है, जो उस के व्यस्ततम दिनों में आता है. शुभ मुहूर्त का हाथ से निकलना अनिष्टकारी करार दिया जाता है. रात भर पूरे तामझाम के साथ शादी की रस्में चलती रहती हैं. वर या कन्या में से कोई बीमार है या कोई और प्रौब्लम है तो भी इन रस्मों और श्लोकों को पूरी श्रद्धा के साथ बैठ कर संपन्न कराया जाता है.

पंडितों की मंशा यही होती है कि उन के लिए बैठेबैठाए धनागमन का प्रबंध हो जाए. विवाह तो वैसे भी हर इंसान करता ही है. अत: इस की वजह से पंडितों के क्लाइंटों की संख्या कभी नहीं घटती है. जाहिर है, दांपत्य की बुनियाद धार्मिक अंधविश्वासों पर रखी जाती है और फिर ताउम्र दंपती इन सड़ेगले रीतिरिवाजों और धार्मिक ढकोसलों का बोझ उठाए जीया जाता है.

कितने ताज्जुब की बात है कि आज जब हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, हमारी सोच वही पुरानी और घिसीपिटी है. हम कुंडली मिलान तो करते हैं पर लड़केलड़की के गुणों, शिक्षा, योग्यता, पसंदनापसंद, जीने के मकसद व अंदाज का मिलान नहीं करते.

विवाह से जुड़े प्रमुख अंधविश्वास

दुलहन को सगाई के बाद हमेशा अपने साथ चाकू या लोहे की कोई धारदार वस्तु रखनी होती है ताकि उसे किसी की बुरी नजर न लगे. शादी से पहले वाली रात दुलहन के हाथों और पैरों में मेहंदी लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है. इस से बहुत सारे अंधविश्वास जुड़े हैं. मसलन, जितना मेहंदी का रंग गहरा रचेगा, वैवाहिक संबंध उतना ही ज्यादा मजबूत रहेगा. दूसरा अंधविश्वास यह है कि यदि दुलहन के हाथों की मेहंदी दूल्हे के हाथों में लगी मेहंदी से ज्यादा टिकती है तो उसे अपनी ससुराल में बहुत ज्यादा प्यार मिलेगा.

भारत के कुछ इलाकों में यह भी मान्यता है कि शादी के दिन होने वाली बारिश सुख व सौभाग्य का संदेश लाती है.

अपनी शादी की ड्रैस स्वयं बनाना भावी दुलहन के लिए अशुभ माना जाता है.

यह भी मान्यता है कि शादी के पहले, बाद में या इस दौरान दूध का उबल कर गिरना कोई अनिष्ट होने का लक्षण है.

शादी की एक प्रमुख रस्म यह भी है कि घर के बड़ेबुजुर्ग व रिश्तेदार नवदंपती के ऊपर चावल फेंक कर उन्हें अपना आशीर्वाद दें. इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. अंधविश्वास यह है कि ऐसा करने से नया जोड़ा किसी भी बुरी नजर या बुरी आत्मा के प्रभाव से बचता है.

यदि आप शादी के दिन इंद्रधनुष या काली बिल्ली देखते हैं तो यह शुभ है और यदि सूअर, छिपकली या कब्र देखते हैं, तो इसे दुर्भाग्य का द्योतक माना जाता है.

यदि दुलहन अपने बाएं पैर को पहले रख कर घर में प्रवेश करती है तो इसे अपशगुन माना जाता है. इसलिए दुलहन से कहा जाता है कि वह दहलीज पार करते वक्त पहले दायां पैर अंदर करे.

घर में घुसने के बाद दुलहन को नए घर में चांदी के बरतन जमीन से उठाने होते हैं. यदि इन बरतनों को उठाते समय ज्यादा आवाज हो तो इस का मतलब यह समझा जाता कि नवदंपती के बीच झगड़े होंगे.

हिंदू विवाह के दौरान यह भी मान्यता है कि दुलहन का चेहरा घूंघट से ढका रहे. ऐसा उसे दुर्भाग्य व बुरी नजर से बचाने के लिए किया जाता है. यहां तक कि दूल्हा भी पगड़ी व सेहरा बांधता है ताकि कोई दुष्ट आत्मा उसे न देख सके.

सौ करोड़ी फिल्मों की हकीकत

मिस्टर परफैक्शनिस्ट आमिर खान ने फिल्मों के हिट होने और किस तरह फ्लौप फिल्में 100 करोड़ी फिल्में बनती हैं इस राज पर से परदा उठाया. आमिर ने पिछले दिनों एक प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि फिल्मों के हिट होने के 99% आंकड़े गलत होते हैं. कभीकभी इन आंकड़ों को इतना बढ़ाचढ़ा कर बताया जाता है. कि दर्शक सच में उस फिल्म को हिट मान लेते हैं. दरअसल, आंकड़े निर्देशक और ऐक्टर द्वारा दिए जाते हैं. लेकिन बिजनैस जगत में बात छिपी नहीं रहती.  कई बार फिल्म को दर्शकों द्वारा नकार देने पर उस फिल्म का बिजनैस ठीक नहीं होता तब भी उसे बढ़ाचढ़ा कर बताया जाता है. मैं इतना बता सकता हूं कि लोगों को जब फिल्म पसंद नहीं आती है तो चलती नहीं है. आमिर ने आगे कहा कि अमेरिका में एक रेन ट्रैक कंपनी है. वह सभी फिल्मों के आंकड़े जारी करती है. उस के भारत में भी आने की संभावना है. इस से सच सामने आएगा. तब अगर कोई मेरी फिल्म की कमाई का रिकौर्ड तोड़ेगा तो मुझे खुशी होगी पर वास्तव में तोड़े तो. सचिन तेंदुलकर ने अगर रिकौर्ड तोड़ा है तो वाकई तोड़ा है. झूठ बोल कर नहीं.

सोनाक्षी की डेट्स प्रौब्लम

सोनाक्षी सिन्हा की इन दिनों 3 फिल्में एक के बाद एक आने वाली हैं. पर उन्हें परेशान कर रही है उन फिल्मों की रिलीजिंग डेट जिस की वजह से वे यह तय नहीं कर पा रही हैं कि उन के प्रमोशन के लिए कैसे समय निकाला जाए. उन की फिल्म ‘ऐक्शन जैक्सन’ और रजनीकांत के साथ ‘लिंगा’ दोनों दिसंबर में एक के बाद एक रिलीज हो रही हैं. जबकि अर्जुन कपूर के साथ बनी उन की फिल्म ‘तेवर’ जनवरी की शुरुआत में रिलीज होगी. लेकिन फिल्मी जानकारों का कहना है कि सोनाक्षी को फिल्म ‘लिंगा’ को ज्यादा प्रमोट करना चाहिए क्योंकि वह उन की पहली तमिल फिल्म है. एक तरफ ऐसा है तो दूसरी तरफ दबंग सलमान की बहन अर्पिता की शादी में सोनाक्षी के न शामिल होने की अलगअलग अफवाहें गरम हैं. खबर यह उड़ रही है कि दबंग गर्ल और दबंग के बीच कोल्ड वार अभी भी चल रहा है.

मैं आउट स्पोकन हूं – गौहर खान

18 साल की उम्र में फेमिना मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा ले कर चौथा स्थान पाने वाली मौडल, ऐक्ट्रैस, डांसर, ‘बिग बौस-7’ की विनर और अब ‘इंडियाज रौ स्टार’ की होस्ट बनीं खूबसूरत गौहर खान ने 2009 में यशराज बैनर की फिल्म ‘रौकेट सिंह सेल्समैन औफ द ईयर’ से अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत की. इस फिल्म में उन के साथ रणबीर कपूर थे. फिर ‘गेम’ और ‘इशकजादे’ मूवी में वे नजर आईं. उन्होंने छोटे परदे पर भी अपने जलवे बिखेरे. वे ‘झलक दिखला जा 3’ की फर्स्ट रनरअप रहीं, तो ‘बिग बौस-7’ की विनर. इस के अलावा वे टीवी शो ‘द खान सिस्टर्स’ और ‘खतरों के खिलाड़ी-5’ में भी नजर आईं.

अभी हाल में एक मुलाकात के दौरान उन से उन के व्यक्तित्व और कैरियर को ले कर दिलचस्प बातचीत हुई. पेश हैं बातचीत के खास अंश

सब से पहले आप अपनी ब्यूटी और फिटनैस के बारे में बताइए?

खूबसूरती तो प्रकृति ने दी है. फिटनैस का राज यह है कि मैं हैल्दी फूड खाती हूं. वैसे मुझे चौकलेट, पेस्ट्री वगैरह खानी होती है तो मैं खा लेती हूं, लेकिन उस के बाद 3 दिन मैं हैल्दी डाइट लेती हूं और जिम जाती हूं.

टीवी शो ‘इंडियाज रौ स्टार’ में आने का मौका कैसे मिला?

ऐक्चुअली जब मैं आउट औफ कंट्री थी तब मेरे पास औफर आया. मुझ से कहा गया कि यह एक नौन फिक्शन शो है. मैं ने कहा कि आई एम नौट इंटरेस्टेड तो फिर मेरे पास संदीप महावीर का फोन आया जो साहिबाबाद के टैलीफिल्म से जुड़े हुए हैं. उन्होंने मुझे अच्छे से ऐक्सप्लेन किया कि यह कैसा शो है और वे मुझे ऐंकरिंग का होस्ट बनाने की बात सोच रहे हैं. मैं सोलो होस्ट बनने के लिए ऐक्साइटेड थी क्योंकि मैं ने अभी तक सोलो होस्ट का काम नहीं किया था, इसलिए मैं ने हां कर दिया. स्टार प्लस के साथ यह मेरा पहला ऐसोसिएशन है.

‘इंडियाज रौ स्टार’ शो अन्य सिंगिंग शोज से कितना अलग है?

बहुत अलग है क्योंकि बाकी सिंगिंग शोज में सिर्फ गायकी में कौंसंट्रेट किया जाता है. पर इस में हम ऐसा परफौर्मर ढूंढ़ते हैं, जो गीत लिखे भी, कंपोज भी करे और गाए भी.

अब तक आप ने जितने भी शो किए उन में से आप का बैस्ट शो कौन सा रहा?

वैसे सारे शोज एकदूसरे से अलग रहे, लेकिन ‘बिग बौस’ ने मुझे वह दिया जिस से इतना सब कुछ आज मुझे मिल रहा है.

आप की बहन निगार खान इस बार ‘बिग बौस’ में गई हैं. तो क्या आप ने निगार को वहां जाने के कुछ खास टिप्स दिए हैं?

आई थिंक निगार को टिप्स की जरूरत नहीं. वह तो खुद ही बहुत स्ट्रौंग है.

निजी जिंदगी में गौहर खान कैसी हैं?

ठीक वैसी ही जैसी आप ने ‘बिग बौस’ में देखी. खासतौर से आउट स्पोकन. यानी अगर मुझे कुछ बुरा लगा तो मैं बोल दूंगी कि बुरा लगा.

आप के शौक क्याक्या हैं?

मुझे अच्छा दिखने का बहुत शौक है, जिस के लिए अच्छे कपड़े पहनने और शौपिंग में मेरी बहुत दिलचस्पी है.

4 पिलर्स प्यार की इमारत के

विवाह के अवसर पर संबंधों की एक ऐसी मजबूत नींव तैयार की जाए, जो बड़ी से बड़ी आपदा को भी आसानी से झेल ले, यह जरूरी है. जैसे किसी भी इमारत को बनाने के लिए मजबूत पिलर्स की जरूरत होती है, ठीक उसी तरह हमारा हाउस औफ लव भी प्यार, विश्वास, सम्मान और आपसी समझदारी जैसे 4 पिलर्स की मजबूती पर टिका होता है. अगर इन में से कोई भी एक पिलर मजबूत नहीं होगा तो संबंधों में अस्थिरता आ सकती है. साथ ही यह भी सच है कि कोई भी पिलर दूसरे पिलर का विकल्प नहीं बन सकता है, इसलिए इन चारों पिलर्स का अपनेअपने स्थान पर मजबूती से खड़े रहना बहुत जरूरी है.

पिलर औफ लव

खुद से प्यार करना भी बहुत फायदा पहुंचाता है. आप के जीवन में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जिन की मौजूदगी में आप खुद के बारे में सोच सकती हैं, क्योंकि आप उन पर विश्वास करती हैं, उन की सुरक्षा के कारण आप अपना सुरक्षा कवच छोड़ कर उन की मौजूदगी का आनंद उठाती हैं.

चूंकि हम सामाजिक प्राणी हैं, इसलिए यह बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि कौन हमें स्वीकारता है और कौन नहीं. कारण अलगअलग होते हैं, लेकिन उस का दर्द भलीभांति पता होता है. यही वजह है कि हमारे लिए यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि हम संबंधों में ऐसे व्यक्ति से जुडे़ं, जो हमारी रुचियों और मूल्यों को बेहतर ढंग से समझे, हमें हतोत्साहित न करे.

किसी की केयर करने का मतलब है कि आप के दिल में उस के लिए खास जगह होगी और अपनी केयर की सचाई बताने के लिए आप त्याग करने में भी पीछे नहीं रहते, हालांकि यह सच है कि किसी व्यक्ति के लिए त्याग करना हमेशा संभव नहीं होता और बिना त्याग के आप अपनी केयर को दूसरे व्यक्ति को बता भी नहीं सकते. लेकिन इस में भी ऐसा न हो कि आप सिर्फ त्याग ही करते जाएं.

पिलर औफ ट्रस्ट

दूसरों पर विश्वास करना कुछ लोगों के लिए आसान होता है, लेकिन कुछ लोगों के लिए कठिन खासकर तब जब उन पर ऐसे व्यक्ति पर विश्वास करने के लिए दबाव हो, जो विश्वास योग्य नहीं हो. यही वजह है कि जब ऐसी परिस्थिति आती है, तो उस का सामना ज्यादा सावधानी से करना चाहिए. ‘मुझ पर विश्वास करो तुम्हें जब भी मेरी जरूरत होगी मैं तुम्हारे साथ रहूंगा, मैं सच कहता हूं, मैं बदलूंगा नहीं’, आदि बातों पर उस समय तो विश्वास करना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन यह भी सच है कि यही हमें एकदूसरे के भरोसे का एहसास कराते हैं, क्योंकि संबंधों में विश्वसनीयता बहुत जरूरी है.

पिलर औफ रिस्पैक्ट

सम्मान बहुत जरूरी है. रिस्पैक्ट का मतलब है कि आप दूसरे व्यक्ति की वैल्यू की जानकारी रखती हैं. दूसरों का सम्मान करने से पहले सब से जरूरी है कि आप पहले खुद का सम्मान करना सीखें. अगर आप खुद का सम्मान नहीं करतीं, तो दूसरों का सम्मान कैसे कर सकती हैं? अपने जीवनसाथी या सच्चे दोस्त की खुल कर प्रशंसा करें और उसे बताएं कि आप को उस की योग्यता और खूबियों पर नाज है और उन खूबियों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाने की पूरी कोशिश करेंगी.

पिलर औफ अंडरस्टैंडिंग

पहले तीनों पिलर्स इस आखिरी पिलर यानी एकदूसरे को समझने पर निर्भर हैं. इस पिलर को बनने में थोड़ा वक्त लगता है, क्योंकि इसे बनने के लिए अंतरंग बातचीत, पार्टनर की बखूबी पहचान, क्या महसूस करता है, की समझ और पार्टनर आप के बारे में क्या सोचता है, पर निर्भर करता है. अगर आप खुलेंगी नहीं और साफसाफ बात नहीं करेंगी, तो आप का पार्टनर आप को समझ नहीं पाएगा. आप का पार्टनर कोई भी काम करता है, तो आप दिल की गहराइयों से यह बताएं कि आप को उस का काम कैसा लगा और आप को उस पर कितना विश्वास है. अगर आप के संबंधों के सारे पिलर्स मजबूत हैं, तो इस का मतलब है कि आप का यह संबंध बेहद खूबसूरत, वास्तविक और अंत तक साथ चलने वाला है.

ब्राइडल ब्यूटी की मैडिकल डोज

चाहे लड़का हो या लड़की, अपनी शादी का दिन हर किसी के लिए खास होता है और इस दिन वह सब से खूबसूरत दिखना चाहता है, अपने व्यक्तित्व को आकर्षक दिखाना चाहता है.

आजकल ऐसे बहुत से सर्जिकल ट्रीटमैंट्स उपलब्ध हैं, जो आप को खूबसूरत बनाने में मददगार हैं. मगर कोई भी ट्रीटमैंट कराने से पहले यह तय करना जरूरी है कि आप के पास वक्त कितना है. आप शादी से 5-6 माह पहले कुछ खास इनवेसिव सर्जिकल ट्रीटमैंट्स ले सकते हैं.

इनवेसिव सर्जिकल ट्रीटमैंट्स

शादी के कुछ माह पहले आप निम्न तरह के ट्रीटमैंटस के बारे में सोच सकते हैं, जैसे नाक के आकार को बदलने के लिए राइनोप्लास्टी करा सकते हैं. यदि नाक बड़ी है तो उसे छोटा और छोटी है तो बड़ा करा सकते हैं. यदि चपटी है तो उसे नुकीला करा सकते हैं. बहरहाल, सुंदर शेप आने में करीब 3-4 महीने का समय लग जाता है. इस तरह के औपरेशन में महज 1 से 11/2 घंटे का वक्त लगता है और खर्च क्व35 हजार से क्वसवा लाख तक आ सकता है.

ब्रैस्ट औग्मैंटेशन

बहुत सी महिलाओं को शिकायत होती है कि उन की ब्रैस्ट का आकार कम है या फिर उस का सही विकास नहीं हुआ है. इस समस्या से नजात पाने के लिए आप ब्रैस्ट औग्मैंटेशन करा सकती हैं. इस के लिए सिलिकौन इंप्लांट्स लगवा सकती हैं. इस सर्जरी में 11/2-2 घंटे का समय लगता है और खर्च क्व1 लाख से क्वपौने 2 लाख तक आता है. कुछ समय तक एहतियात भी बरतना होता है. ऐसी सर्जरी शादी से 6-7 माह पहले करा लेनी चाहिए.

पुरुष अपनी छाती को कम कराने के लिए गाइनेकामास्टिया करा सकते हैं. लोकल ऐनेस्थीसिया दे कर यह सर्जरी कर दी जाती है. सर्जरी के बाद उन्हें कुछ समय तक वर्कआउट न करने की सलाह दी जाती है.

इसी तरह चीकबोंस को वौल्यूम देने के लिए चीक औग्मैंटेशन कराया जा सकता है. यह क्व25 हजार से क्व1 लाख तक के खर्च में हो जाता है. शादी के 3-4 माह पहले यह सर्जरी करा लेनी चाहिए.

त्वचा की खूबसूरती

त्वचा की रंगत में निखार लाने के लिए डीप मैडिकल स्कार रिमूवल ट्रीटमैंट्स जैसे सर्जिकल डर्माब्रेशन कराने की सलाह दी जाती है. डर्माबे्रशन त्वचा की मृत परतों को हटा देता है, जिस से एक बच्चे के जैसी कोमल और दागधब्बों से मुक्त त्वचा निखर कर सामने आती है. त्वचा के फैलने की वजह से होने वाले स्ट्रैच मार्क्स का उपचार भी सर्जिकल डर्माबे्रशन की मदद से किया जा सकता है.

यदि आप अपने किसी टैटू को हटाना चाह रहे हैं, तो इस प्रोसैस को भी 3 माह पहले करा लें तब शादी तक त्वचा को नैचुरल लुक मिल जाएगा. इस ट्रीटमैंट में एक सिटिंग में करीब 70 से 80 हजार तक का खर्च आ सकता है.

लेजर द्वारा दागों का इलाज

मुंहासों के दाग हटाने और त्वचा के ऊतकों में सुधार के लिए लेजर प्रक्रिया आजकल प्रिय बनी हुई है. कई सालों से लेजर प्रक्रिया में लगातार सुधार आ रहा है. गहरे रंग की और संवेदनशील त्वचा की समस्याओं के उपचार हेतु भी यह एक लोकप्रिय विकल्प है. यह उपचार काफी आसान होता है और साइडइफैक्ट्स की संभावना भी न के बराबर होती है. इस ट्रीटमैंट की मदद से मुंहासों के निशान हट जाते हैं और असमान स्किनटोन फिर से सामान्य हो जाती है. इस से लाली भी नहीं आती.

यह ट्रीटमैंट शादी के 3-4 माह पहले ले लेना चाहिए. पूरे लाभ के लिए 6-7 सिटिंग्स लेनी होती हैं. 45-50 मिनट की 1 सिटिंग के लिए 5 हजार से 15 हजार तक का खर्च आ सकता है. पहली सिटिंग के बाद दूसरी सिटिंग 2 हफ्ते बाद लेनी होती है. डीप और मीडियम ग्रेड का मैडिकल पील पिग्मैंटेशन की समस्या के लिए एक अच्छा विकल्प है.

सैल्यूलाइट ट्रीटमैंट्स जैसे जीएक्स-99 तथा मीजोथेरैपी आप की स्किन को मुलायम और स्वस्थ बना सकते हैं.

अनचाहे बालों से छुटकारा

लेजर द्वारा अनचाहे बालों को स्थायी रूप से हटाया जा सकता है. लेजर से प्रकाश की तीव्र किरणों को शरीर के बालों वाले किसी हिस्से पर डाला जाता है, जो बालों की जड़ों यानी फोलिकल को अवशोषित कर लेता है. यह फोलिकल की फिर से बाल बनाने की क्षमता को खत्म कर देता है. आसपास की त्वचा को कोई नुकसान न पहुंचे, इस के लिए कूलिंग डिवाइस काम में लाई जाती हैं. इलैक्ट्रोलाइसिस के बजाय लेजर का एक फायदा यह है कि यह ज्यादा बड़े हिस्से को स्कैन कर सकता है. इसलिए इस के लिए कम सिटिंग्स की आवश्यकता होती है और ये ज्यादा घने नहीं होते.

अंडरआई सर्कल्स का उपचार

कर्बोक्सी थेरैपी सैशन: यदि आप अपनी आंखों के नीचे के काले घेरों की समस्या से पीडि़त हैं, तो शादी से पहले उन्हें दूर करा लें और इस के लिए कार्बोक्सी थेरैपी से अच्छा कोई उपाय नहीं. इस थेरैपी में आप की स्किन सरफेस के ठीक नीचे इंजैक्शन द्वारा गैस इंजैक्ट किया जाता है, जिस से सर्कुलेशन बढ़ता है और कोलोजन का प्रोडक्शन बढ़ जाता है. कोलोजन स्किन की रंगत साफ करता है. इस तरह बिना दर्द और किसी रिस्क के महज 5-10 मिनटों में यह प्रक्रिया पूरी की जाती है. इस में आप को 1-1 हफ्ता छोड़ कर 6-7 सिटिंग्स लेनी होती हैं. कार्बोक्सी थेरैपी के द्वारा आंखों के नीचे का कालापन, चेहरे के गड्ढे, असमान रंगत और स्ट्रैच मार्क्स आदि समस्याओं का निदान होता है. एक सिटिंग में क्व3 हजार तक का खर्च आता है. यदि कैमिकल्स पील्स के साथ यह कराया जाए तो खर्च क्व5 हजार तक आता है पर फायदा काफी ज्यादा होता है.

लाइपोसक्शन

पेट की चरबी घटाने के लिए लाइपोसक्शन का सहारा लिया जा सकता है. इस की मदद से फैट को हटा कर शरीर को बेहतर आकार दिया जाता है. इस में 30 हजार से ले कर डेढ़ लाख तक का खर्च आता है और 1/2 घंटे से 2 घंटे तक का समय प्रत्येक सिटिंग में लगता है.

अगर आप अपने लिप्स या चीक्स को वौल्यूम देना चाहती हैं तो आप के लिए सेफ फिलर्स हैं, जो यूएसएफडीए के द्वारा अनुमोदित हैं. यह एक आउटपेशैंट प्रक्रिया है, जिस में 30 मिनट से ले कर 1 घंटा तक लगता है.

गालों पर डिंपल्स बनाना

डिंपल्स से खूबसूरती बढ़ती है. आप भी यह आजमा सकती हैं. इस के लिए एक प्रशिक्षित विशेषज्ञ की सहायता से डिंपलप्लास्टी कराई जा सकती है. यह एक बेहद साधारण एवं सुरक्षित सर्जरी है, जिस में आप के गालों पर डिंपल्स बनाए जाते हैं. कई लोगों में ये डिंपल्स प्राकृतिक रूप से पेशियों में एक दोष के कारण होते हैं. इस में त्वचा की निचली सतह, गालों के गहरे मुलायम ऊतकों से जुड़ी होती है, जिस से व्यक्ति जब हंसता या मुसकराता है, तो उस के गालों पर डिंपल्स पड़ते हैं.

डिंपल्स सर्जरी एक ऐसी तकनीक है, जिस में बेहद सुरक्षित तरीके से व्यक्ति के चेहरे पर डिंपल्स बनाए जाते हैं, जो बिलकुल प्राकृतिक डिंपल्स जैसे होते हैं.

(डा. रोहित बत्रा, सीनियर डर्मेटोलौजिस्ट, सर गंगाराम हौस्पिटल एवं डा. अजय कश्यप, चीफ हैड सर्जन औफ कौस्मैटिक ऐंड  प्लास्टिक, फोर्टिस ला फेम हौस्पिटल से बातचीत पर आधारित.)

करैक्टिव मेकअप

आजकल प्लास्टिक सर्जरी के द्वारा शरीर की हर कमी को दूर किया जा सकता है. लेकिन यह थोड़ी महंगी होती है. सौंदर्य विशेषज्ञाएं चेहरे की कमियों मसलन, मोटी नाक, धंसी आंखें, डबल चिन, उभरा माथा, मोटे होंठ आदि को मेकअप से छिपा देती हैं, जिसे करैक्टिव मेकअप कहा जाता है. इस के लिए मेकअप के उचित तरीके व सौंदर्य प्रसाधनों की पूरी जानकारी होना अति आवश्यक है.

मेकअप की उचित तकनीकों को अपना कर चेहरे की छोटीमोटी कमियों को छिपाया जा सकता है.

दिल्ली प्रैस कार्यालय में आयोजित फेब कार्यक्रम में फेसेस कौस्मैटिक प्राइवेट इंडिया लिमिटेड की मेकअप कंसल्टैंट संगीत सबरवाल ने फेब मैंबर्स को करैक्टिव मेकअप के बारे में व कंपनी के रीजनल सेल्स मैनेजर, मुकेश भनोट ने फेसेस के प्रोडक्ट्स के बारे में जानकारी दी.

संगीत सबरवाल ने बताया कि करैक्टिव मेकअप करते समय 3 मुख्य बातों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है-

पहली, चेहरे की त्वचा, केशों व आंखों का रंग.

दूसरी, चेहरे का आकार व प्रकार.

तीसरी, कौस्मैटिक्स प्रोडक्ट्स के रंगों का उचित चुनाव.

मेकअप के जरीए चेहरे की कमियों को छिपाना ही करैक्टिव मेकअप कहलाता है. करैक्टिव मेकअप शुरू करने से पहले चेहरे की त्वचा की रंगत को अच्छी तरह से जांच लें. प्राय: क ई लोगों के चेहरे के किसी भाग की स्किन टोन गहरी होती है, तो किसी की हलकी. स्किन टोन एक समान बनाने के लिए कंसीलर का प्रयोग किया जाता है. त्वचा के अनुसार क्लींजिंग, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग करने के बाद काले धब्बों, झांइयों, जलने व चोट आदि के निशान छिपाने के लिए उतने हिस्से में नौर्मल स्किन कलर का कंसीलर लगाएं.

यदि चेहरे पर सफेद दाग हों तो उस हिस्से में नौर्मल स्किन से 2 शेड गहरा कंसीलर गीले स्पंज से लगाएं. इस से त्वचा की रंगत एक समान हो जाएगी. इस के बाद फाउंडेशन का चुनाव करें. आजकल वाटरप्रूफ कौस्मैटिक्स का ही इस्तेमाल अधिक किया जाता है, क्योंकि करैक्शंस करने के बाद चेहरे पर पसीना या औयल आ जाने से मेकअप के बिगड़ने का डर नहीं रहता.

उचित फाउंडेशन की सहायता से फेशियल फीचर्स को उचित तरीके से हाईलाइटिंग कर के उभारा जा सकता है और शैडोइंग या शेडिंग से दबाया जा सकता है. यदि चेहरे का कोई हिस्सा दबा हुआ है तो वहां बाकी फेस पर लगाए गए फाउंडेशन से 1 शेड हलका लगाएं. दबे माथे को उभारने के लिए भौंहों के बीचोबीच व हेयरलाइन के साथ

2 शेड हलक फाउंडेशन लगाएं. उभरे हुए माथे को थोड़ा दबाने के लिए 1 शेड गहरे रंग का फाउंडेशन लगाएं.

नाक को कैसे दें उचित आकार 

बड़ी व उठी हुई नाक : नाक को उचित आकार देने के लिएनोज लाइन भौंहों के बीच से शुरू कर के टिप ऐंड तक 1 लैवल डार्क फाउंडेशन लगाएं व नाक की साइड्स पर लाइट शेड लगाएं.

छोटी व चपटी नाक: छोटी व चपटी नाक को उचित आकार देने के लिए नाक के बीचोबीच लाइट शेड का फाउंडेशन लगाएं. फाउंडेशन को लाफ लाइन तक  न फैलाएं.

मोटी नाक: मोटी नाक को पतला दिखाने के लिए नाक के दोनों ओर कौर्नर पर डार्क फाउंडेशन व सैंट्रल ऐरिया पर लाइट फाउंडेशन का इस्तेमाल करें.

दबी नाक व उभरी ठोड़ी: उभरी चिन को डार्क फाउंडेशन से शैडो करें व फैली हुई अथवा दबी नाक के सैंटर में लाइट शैडो से हाईलाइट करें और साइड्स में 1 शेड डार्क फाउंडेशन का इस्तेमाल करें. दोहरी ठोड़ी के भाग पर डार्क शैडो लगाएं व छोटी ठोड़ी पर लाइट फाउंडेशन का प्रयोग करें. भिंचे हुए जबड़ों को हाईलाइट करने के लिए दोनों तरफ हलके शेड का प्रयोग करें. फाउंडेशन को कानों के नीचे से शुरू करते हुए नीचे की तरफ लाएं.

गोल, चौकोर व त्रिकोणीय चेहरे के लिए जा (जबड़ा) लाइन के मुख्य भाग पर डार्क शेड लगाएं और नाक के साथसाथ हलके रंग का प्रयोग करें. ऐसा करने से चेहरे को अंडाकार व सौफ्ट लुक मिलेगा.

छोटा चेहरा, मोटी गरदन: छोटे चेहरे व मोटी गरदन को लंबा दिखाने के लिए बाकी चेहरे के फाउंडेशन शेड से 1 शेड गहरा लगाएं. लंबे चेहरे व मोटी गरदन को उचित आकार देने के लिए चेहरे पर लगाए गए फाउंडेशन से 1 शेड लाइट कलर लगाएं.

आंखों का मेकअप

आंखें चेहरे के आकार को संतुलित करती हैं. गोल आंखों को लंबाई देने के लिए आईशैडो को आंखों के बाहरी कौर्नर तक लगाएं व आईलाइनर को पलकों की लंबाई से बाहर की ओर बढ़ा कर लगाएं.

पासपासस्थित आंखें: आंखों के ऊपर आईशैडो बाहरी कोनों से भौंहों की तरफ उठाएं और आईलाइनर आंखों के अंदरूनी किनारे को थोड़ा छोड़ कर लगाएं व बाहरी किनारों से आगे लंबाई में खींचें.

उभरी हुई आंखें: आंखों को दबा हुआ दिखाने के लिए डार्क आईशैडो का प्रयोग करें. लैशेज के साथसाथ पतला आईलाइनर लगाएं.

हैवी लिडेड आंखें: इन के लिए हलके आईशैडो का प्रयोग करें. सिल्वर या लाइट कलर से भौंहों के नीचे हाईलाइट करें.

छोटी आंखें: छोटी आंखों को बड़ा दिखाने के लिए लाइट कलर का शैडो थोड़ा ऊंचा व थोड़ा कौर्नर से बाहर की तरफ निकलता हुआ लगाएं व नीचे गहरे रंग की आईपैंसिल लगा कर ऊपर के आईलाइनर से जोड़ दें. आंखों के अंदर काजल न लगा कर, गे्र पैंसिल लगाएं. यदि दोनों आंखों के बीच गैप अधिक है, तो आईलाइनर भीतरी किनारे से शुरू करें व शैडो अंदर की ओर हलका और बाहर की ओर गहरा लगाएं.

धंसी हुई आंखें: इन पर आईशैडो न लगाएं. नीचे की आईलिड के साथ मोटा काजल लगाएं.

डार्क सर्कल्स: इन को छिपाने के लिए यलो कलर का कंसीलर प्रयोग करें और काजल या पैंसिल आंखों की अंदर की तरफ लगाएं.

भौंहें : भौंहों की शेप चेहरे के भावों को प्रभावित करती है. इसलिए भौंहों की शेप पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है.

झुका हुआ माथा : झुके माथे को लो अर्च आईब्रोज शेप से ऊंचा दिखा सकती हैं. यदि दोनों आंखों के बीच गैप अधिक है, तो आईब्रोज के नीचे के बालों को न निकालें व आईब्रो पैंसिल से अंदर की ओर शेडिंग करें.

गोल चेहरा : गोल चेहरे को ओवल शेप देने के लिए हाई अर्च आईब्रोज बनाएं. अंदरूनी कौर्नर से आईब्रो के अंत तक पैंसिल लगा सकती हैं.

लंबा चेहरा : लंबे चेहरे को छोटा दिखाने के लिए सीधी आईब्रो की शेप दें. तिकोने चेहरे को नौर्मल शेप देने के लिए अर्च आईब्रो के अंत में देनी चाहिए.

चौकोर चेहरा: इस फेस कट को नैरो दिखाने के लिए आईब्रोज के अंत पर हाई अर्च बना सकती हैं.

आईब्रो पैंसिल या शैडो का रंग आईबौल से मैच करता होना चाहिए. अगर आईब्रोज के बाल कर्ली हों, तो जैल लगा कर सैट कर सकती हैं.

होंठ

कुछ महिलाओं के होंठ बहुत मोटे या बहुत पतले अथवा एक मोटा और एक पतला होता है. पतले होंठों को मोटा दिखाने के लिए लिपलाइनर का इस्तेमाल करें.

मोटे होंठ : नैचुरल लिपलाइन को छिपाने के लिए फाउंडेशन का इस्तेमाल पूरे होंठों पर करें. फिर मनचाही आउटर लाइन खींचें और लाइट शेड लिपस्टिक से फिलिंग करें.

अधिक पतले होंठ : मोटे होंठों को पतला दिखाने के लिए नैचुरल लिपलाइन को कवर कर के लिपलाइनर से अंदर की ओर लिपलाइन बनाएं व लाइट कलर से फिल करें.

फैले हुए होंठ : ऐसे होंठों को लिपलाइनर से वी या राउंड शेप दी जाती है. यदि होंठ लंबाई में बहुत छोटे हों तो आउटर कौर्नर को प्रमुखता दें.

इस तरह सौंदर्य विशेषज्ञाएं आसानी से चेहरे की कमियों को मेकअप से छिपा देती हैं. लेकिन इस के लिए अनुभव होने और सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है.

फेसेस कौस्मैटिक प्राइवेट इंडिया लिमिटेड की मेकअप कंसल्टैंट संगीत सबरवाल से दिल्ली प्रैस के फेब कार्यक्रम में बुशरा द्वारा की गई बातचीत.

प्रकाश की गंगाजल 2

‘सत्याग्रह’ के बाद प्रकाश झा अजय देवगन के साथ मिल कर ‘गंगाजल 2’ बना रहे हैं, लेकिन इस फिल्म में अजय देवगन अभिनय नहीं करेंगे. ‘गंगाजल 2’ की कहानी मध्य प्रदेश की एक महिला की जिंदगी और उपलब्धियों से प्रेरित है.

प्रकाश झा ने बताया कि मैं ने इस फिल्म में महिला के किरदार को मुख्य रखा है, क्योंकि यह फिल्म मध्य प्रदेश की एक महिला पुलिस अधिकारी के सम्मान में है. मैं इस वक्त उन के नाम का खुलासा नहीं कर सकता. इस फिल्म के बारे में अटकलें ये लगाई जा रही हैं कि मुख्य किरदार के लिए करीना कपूर से संपर्क किया गया है, तो प्रकाश झा के लिए यह भी कहा जा रहा है कि वे इस बार लोगों को एकसाथ कई फिल्मों का तोहफा देने वाले हैं. ‘गंगाजल 2’, ‘सत्संग’, ‘राजनीति 2’, ‘फ्रौड सैयां’, ‘लिपस्टिक वाले सपने’ और ‘क्रेज कुक्कड़ फैमिली’ उन की आने वाली फिल्मों की लिस्ट है. बहरहाल, उम्मीद करते हैं कि प्रकाश झा दर्शकों के सामने इस बार भी कुछ उम्दा कहानियां परोसेंगे.

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