पर्स है भानुमती का पिटारा नहीं

वैसे तो सदियों से पर्स का इस्तेमाल रुपएपैसे और जरूरत की वस्तुएं रखने के लिए किया जाता रहा है. परंतु वर्तमान में पर्स पर्स न रह कर झोला बन गया है, जिस में रुपएपैसे के अलावा मेकअप की चीजें, लिपस्टिक, कांपैक्ट, फाउंडेशन, परफ्यूम, झुमके, टौप्स, पाजेब, बैंगल्स, क्लिप, हेयर बैंड, बालों में उलझी कंघी, 2-4 गंदे रूमाल, एकाध इंगलिश नौवल के साथसाथ लंचबाक्स और पानी की बोतल मिल जाएगी. कुछ महिलाओं के पर्स की स्थिति उस डस्टबिन जैसी होती है जिस में कूड़ा डाला तो जाता है पर निकाला नहीं जाता. कुछ के पर्स में टौफी, चौकलेट के साथ बर्गर, पैटीज और समोसे के अवशेष भी मिल जाते हैं, जिन की बदबू को पर्स में रखी परफ्यूम की खुशबू भी मिटा नहीं पाती. पर्स में बिना ध्यान दिए अनावश्यक चीजें ठूंसते रहने के कारण उस का वजन बढ़ जाता है और भारी पर्स उठाने के कारण कई प्रकार की बीमारियों का खतरा भी पैदा हो जाता है.

कैलिफोर्निया के डा. एडम हाल ने अपने एक अनुसंधान में पाया कि भारी पर्स की वजह से महिलाएं कंधे, गरदन व कमर के दर्द की शिकार हो सकती हैं. डा. एडम ने अपनी खोज में पाया कि स्पोंडिलाइटिस, रीढ़ की हड्डी में दर्द, हाथों की उंगलियों में दर्द, कलाई में दर्द आदि की शिकायत भारी पर्स लटकाने की वजह से हो सकती है. डा. एडम का मानना है महिलाओं का शरीर नाजुक होता है. ऐसे में भारी पर्स अधिक समय तक कंधे पर लटकाए रहने से ढेर सारी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. भारी पर्स स्वास्थ्य ही नहीं, व्यक्तित्व को भी प्रभावित करता है. भारी पर्स चाल को बिगाड़ता है जोकि व्यक्तित्व का माइनस प्वाइंट है.

क्या रखें पर्स में

एक आदर्श पर्स में एक नोटबुक, ढेर सारे विजिटिंग कार्ड्स और छोटेछोटे कागज पर लिखे नंबर और पते के बजाय एक छोटी टेलीफोन डायरी, 2 साफ रूमाल, कुछ दवाएं, जो आप के लिए जरूरी हों, 1 लिपस्टिक, कंघी, 2 पेन और जरूरत भर के पैसे ही होने चाहिए. लंचबाक्स और पानी की बोतल पर्स में न ठूंसें.

कैसा पर्स लें

  • पर्स न तो ज्यादा बड़ा हो, न ही छोटा.
  • जिस उद्देश्य के लिए पर्स ले रही हैं, उस का ध्यान रखें.
  • पर्स सस्ता, सुंदर व टिकाऊ हो.
  • रैक्सीन के बजाय लेदर या जूट का पर्स लें.
  • पर्स में जरूरत के मुताबिक ही पाकेट्स हों.

ध्यान देने योग्य बातें

  • पर्स में फालतू व भारी सामान न रखें.
  • समयसमय पर पर्स की सफाई करें और उस में रखा फालतू सामान निकाल दें.
  • पर्स में पूरी डे्रसिंग टेबल ही न समेट लें. 1-2 जरूरत की चीजें ही रखें.
  • पायल, झुमके, कंगन, चूडि़यां आदि उतार कर पर्स में न रखें.
  • पानी की बोतल, लंचबाक्स, छतरी आदि पर्स में ठूंसने के बजाय अलग पोलीथिन या बैग में ले जाएं.
  • पर्स को घरेलू सामान, सब्जी आदि ले जाने का झोला न बनाएं.
  • पर्स में खाने की सामग्री मसलन टौफी, बिस्कुट, चौकलेट आदि न रखें. इस से पर्स में चींटियां आ सकती हैं. 

आसिफी गोश्त कोरमा

सामग्री

1 किलोग्राम मटन द्य  5 बडे चम्मच घी द्य  3 बड़े प्याज कटे द्य  2 बड़े चम्मच प्याज का पेस्ट द्य  2 छोटे चम्मच काजू का पेस्ट द्य  2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर द्य  1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट द्य  1 छोटा चम्मच लहसुन का पेस्ट

1 छोटा चम्मच गरममसाला द्य  4-5 लौंगद्य  10 हरी इलाइची द्य  1 कप दही द्य  नमक स्वादानुसार

विधि

एक पीतल की हांडी या पैन को धीमी आंच पर रखें और इस में घी डालें. घी गरम होने के बाद कटे हुए आधे प्याज को डालें और हलका भूरा होने तक भूनें. फिर इस में अदरकलहसुन का पेस्ट डाल कर 2-3 मिनट कर धीमी आंच पर पकाएं. अब इस में मटन डालें और 3-4 मिनट तक बीचबीच में चलाते हुए पकाएं. अब इस में बाकी बचा प्याज, काजू का पेस्ट, दही, धनिया पाउडर, लालमिर्च पाउडर, हलदी पाउडर, लौंग व हरी इलाइची डालें और आधा लिटर पानी डाल कर धीमी आंच पर ढक्कन लगा कर 20 मिनट के लिए छोड़ दें. जब मटन उबल जाए तब इस में शोरबा के लिए और आधा लिटर पानी और प्याज का पेस्ट डाल कर फिर 20 मिनट के लिए धीमी आंच पर छोड़ दें. लेकिन इसे 5 मिनट के अंतराल पर चलाते रहे. आंच से नीचे उतारने से पहले इस में गरममसाला व इलाइची पाउडर डाल कर 1-2 मिनट तक पकाएं. फिर इसे गरमगरम रोटी व नान के साथ नयासा की डिश में सर्व करें.

चौक ऐंड डस्टर बहुत कुछ सिखाएगी

वैसे तो हम सभी की जिंदगी में चौक ऐंड डस्टर की कई यादें बसी होगी क्योंकि इन ही कि बदौलत ही सब उस मुकाम पर पहुंचे जहां वे पहुंचना चाहते थे. अब निर्देशक जयंत गिलानी अपनी फिल्म ‘चौक ऐंड डस्टर’ ले कर आए हैं जिस में जैकी श्रौफ, शबाना आजमी, दिव्या दत्ता और जूही चावला मुख्य भूमिका निभा रहे हैं. फिल्म के बारे में जूही चावला ने बताया कि यह दर्शकों को गहराई से छुएगी. इसे देखने के बाद आप का मन शिक्षकों को गले लगाने और उन के लिए तालियां बजाने का करेगा. उन का मानना है कि बच्चों की शिक्षा और मुश्किलों पर आधारित है यह फिल्म ‘तारे जमीं पर’ और ‘स्टैनली का डब्बा’ की तर्ज पर है.

Chocolate Shooter and chocolate trifle

Hi,
This festive season we present you a delicious recipe.

Chocolate is everyone’s Favorite.Chocolate is an Ingredents from which you can do variation from.. Here are Two Recipe From Chocolate that you can do Variation from, with the help of simple Ingredients.

Ingredients for Chocolate Shooter:
Milk
Chocolate Mousse
Wiped Cream
Chili Powder

Ingredients for chocolate trifle:
Chocolate Mousse
Whipped Cream
Fresh Fruits
Vanilla Sponge
Mint
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तकनीक ने बेसुरों को भी गायक बना दिया : कुमार सानू

मुंबई के अंधेरी पश्चिम के लोखंडवाला क्षेत्र में जहां फिल्मी दुनिया की जानीमानी सैलिब्रिटीज के घर हैं, मशहूर पार्श्वगायक कुमार सानू भी रहते हैं. करीब 20 हजार गानों का रिकौर्ड बना चुके कुमार सानू ने कई भाषाओं में गीत गाए हैं और 1 दिन में 28 गाने गा कर अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज करवाया है. वे प्लेबैक सिंगिंग की लीजैंड माने जाते हैं और लगातार 5 बार फिल्मफेयर अवार्ड पा चुके हैं. 2009 में उन की उत्कृष्ट गायकी के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा गया. कोलकाता में जन्मे कुमार सानू का मूल नाम केदारनाथ भट्टाचार्य है. उन के पिता पशुपतिनाथ भट्टाचार्य एक अच्छे गायक और संगीतकार थे. उन की मां भी गाती थीं. बड़ी बहन आज भी रेडियो में गाती हैं और पिता का संगीत स्कूल चला रही हैं. उन के पिता ने उन्हें गायन और तबला वादन सिखाया और उन के परिवार का माहौल ही उन के गायन का प्रेरणास्रोत बन गया.

स्टेज से शुरुआत

उन्होंने 1979 से स्टेज पर परफौर्म करना शुरू कर दिया था और वे किशोर कुमार के प्रशंसक थे, इसलिए उन के ही गाने स्टेज पर गाते थे. पर बाद में उन्होंने अपनी अलग गायन शैली से अपनी पहचान बनाई. धीरेधीरे उन के प्रशंसकों की संख्या बढ़ती गई, तो उन्हें कोलकाता के कई रैस्तरां में गाने का मौका मिला. वे उन में गाते रहे और मुंबई जाने के लिए पैसा इकट्ठा करते रहे. उसी दौरान उन्होंने बांग्लादेशी फिल्म ‘तीन कन्या’ में गाने गाए. फिर मुंबई आए तो वहां भी कई रैस्टोरैंट में गाने गाते रहे. लेकिन वे इस काम के साथसाथ संगीत निर्देशकों से भी मिलते रहे. 1987 में उन्हें फिल्म ‘आंधियां’ में गाने का मौका मिला, जिस में उन की आवाज सभी संगीतकारों को पसंद आई. उसी समय कल्याणजी आनंदजी ने उन्हें ‘जादूगर’ फिल्म में गाने का औफर दिया. इस की वजह यह थी कि एक बार अमिताभ बच्चन ने कहा था कि किशोर कुमार के बाद इस लड़के की आवाज मुझ से मिलती है.

ऐसा भी हुआ

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए सानू कहते हैं कि आज भी मुझे एक बात सोच कर हंसी आती है. जब शुरुआत में मैं बप्पी लहरी से मिलने उन के बंगले पर गया तो वहां काफी देर तक बाहर खड़ा हो कर अंदर उन से मिलने जाने की सोचता रहा. फिर सोचा कि जब वे बाहर आएंगे तो उन से मिल कर अपनी बात कहूंगा. लेकिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी वे बाहर नहीं आए और मैं वहीं बैठा रहा. तभी मेरे पास एक पहरेदार आया और पूछने लगा कि मैं कौन हूं और यहां क्यों बैठा हूं? तो मैं ने कहा कि मैं एक सिंगर हूं, बप्पी दा के संगीत निर्देशन में गीत गाना चाहता हूं, इसलिए उन से मिलना चाहता हूं. पहरेदार ने कहा कि बप्पी दा ने तुम्हें सुबह से यहां इस तरह बैठा देख कर पुलिस को सूचना दे दी है. पुलिस अभी आती ही होगी. तुम अगर इस सब से बचना चाहते हो तो तुरंत यहां से चले जाओ. यह सुन कर मैं तुरंत वहां से निकला. इस के बाद जब मैं ने उन के संगीत निर्देशन में गाने गाए तो एक बार उन को जब यह बात बताई तो वे खूब हंसे. फिर मैं ने करीब 34 फिल्मों में उन के साथ काम किया. कुमार सानू 26 साल से लगातार गा रहे हैं. पहले की तुलना में कम गीत गाने की वजह के बारे में उन का कहना है कि यह सही है कि पहले की तरह मुझे गीत गाने को नहीं मिल रहे, क्योंकि मैं अपनी पसंद के अनुसार ही गीत गाना चाहता हूं. लेकिन सीनियर सिंगर्स को कम गीत मिलने की एक वजह यह भी है कि आजकल 45 की उम्र से अधिक के कुछ अभिनेता यह मानते हैं कि अगर युवा गायक उन के लिए प्लेबैक सिंगिंग करेंगे, तो उन का व्यक्तित्व अधिक निखरेगा. इस के अलावा आजकल सभी गा रहे हैं, क्योंकि रिकौर्डिंग की नई तकनीक की वजह से बेसुरे गायक भी सुर में आ जाते हैं. जबकि अच्छा गायक वही है जिस का गीत श्रोताओं के दिल को छू ले. मेरे ‘आशिकी’ फिल्म के गानों को आज भी लोगों को सुनने का दिल करता है.

संघर्ष भरा जीवन

कुमार सानू का निजी जीवन कई समस्याओं से गुजरा. उन का विवाह, डिवोर्स और अब उन की दूसरी पत्नी हैं जो 16 साल से उन के साथ हैं. उन की 2 बेटियां हैं जो विदेश में हैं और संगीत पर काम कर रही हैं और उन का एक बेटा जान है जो बहुत अच्छा गाता है. उन्हें अपने पुराने दिनों को याद करना आज भी अच्छा लगता है. वे कोलकाता से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए जब भी मौका मिलता है वहां जाते हैं और वहां के स्ट्रीट फूड का मजा लेते हैं क्योंकि उन्हें खाने का बहुत शौक है. कुमार सानू ने गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए कोलकाता और दिल्ली में ‘कुमार सानू विद्यानिकेतन’ की स्थापना की है. वे कहते हैं कि शिक्षा से ही व्यक्ति के विचार बदल सकते हैं और लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठ सकते हैं. वे मुंबई में भी इस स्कूल की नींव रखेंगे. इस विद्यालय में बच्चों को यूनिफौर्म व किताबें दी जाएंगी, तो उन के मातापिता को हर महीने पैसे भी दिए जाएंगे ताकि वे अपने बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल भेजे, पैसे के लिए काम पर न लगाएं. कुमार सानू राजनीति में भी आए, जिस के बारे में उन का कहना है कि राजनीति में मेरा जाने का मकसद पैसा बनाना नहीं था, क्योंकि मैं ने काफी कमाया है. जब 1987 में किशोर कुमार की मृत्यु हुई, तो उस ‘वैक्यूम’ को भरने के लिए टी सीरीज के ओनर गुलशन कुमार ने मुझ से काफी गाने किशोर कुमार के गवाए. उस वक्त उस के कैसेट सस्ते होने की वजह से खूब बिके. फिर ‘आशिकी’ मेरे जीवन की ‘टर्निंग पौइंट’ थी जिस के बाद मैं ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. राजनीति में मेरे आने का मकसद गरीब परिवार और बच्चों को ऊपर उठाने का था पर वह मुमकिन नहीं हो सका. गृहशोभा के जरीए मेरा कहना है कि हर मां को चाहिए कि वह अपने बच्चे के भविष्य और प्रतिभा को समझ कर उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा दे. मां जन्म से बच्चे के साथ रहती है, इसलिए सहीगल का ज्ञान उस से अच्छा कोई और उसे दे नहीं सकता. परिवार को बनाने में उस का बहुत बड़ा हाथ होता है. मैं भी अपनी मां के बहुत करीब था और आज भी उन्हें मिस करता हूं.

फैस्टिवल के रंग फैशन और ब्यूटी के संग

फैस्टिवल यानी त्योहार अब पहले जैसे नहीं रह गए. इन के मनाने का तरीका अब बदल गया है. पहले घर के लोगों के लिए 1 जोड़ी नए कपड़े खरीद लिए, घर की साफसफाई कर ली और त्योहार वाले दिन कुछ पकवान बना लिए, बस मन गया त्योहार. पर समय के साथ त्योहार मनाने का कल्चर भी बदल गया है और यह बदलाव महिलाओं और पुरुषों दोनों में दिखने लगा है. महिलाएं जिन से पहले घर सजाने और व्यंजन बनाने का ही काम लिया जाता था, वे अब ज्यादा प्रभावी हो कर फैस्टिवल का आनंद लेने लगी हैं. फैशनेबल कपड़ों से ले कर मेकअप और खरीदारी तक में उन की भूमिका सब से अहम रहती है. यही वजह है कि त्योहार आते ही हर तरफ रौनक आ जाती है. अक्तूबर से ले कर जनवरी तक पूरा माहौल सीजनमय बना रहता है. पहले दशहरा फिर दीवाली, क्रिसमस और उस के बाद न्यू ईयर सैलिब्रेशन यानी अक्तूबर माह के शुरू होते ही बाजारों में रौनक आ जाती है.

कई दुकानदारों से जब बात की गई तो पता चला कि जितनी उन्हें साल भर में कमाई होती है उतनी कमाई वे अक्तूबर से दिसंबर तक में ही कर लेते हैं. त्योहारों में सब से बड़ी भूमिका फैशन और ब्यूटी बाजार की होती है. पहले लोग डिजाइनर कपड़े कम ही पहनते थे, क्योंकि वे काफी महंगे होते थे. उन के महंगे होने का सब से बड़ा कारण यह था कि वे हाथ से तैयार होते थे. बाद में डिजाइनरों को महसूस होने लगा कि जब तक कपड़े सस्ते नहीं होंगे ज्यादा लोग इन्हें खरीदेंगे नहीं. इसी वजह से अब डिजाइनर कपड़ों को मशीनों से तैयार किया जाने लगा है, जिस से ये सस्ते हो कर आम लोगों की पहुंच में भी आ गए. पर कहते हैं न कि केवल अच्छी ड्रैस पहन लेने से कुछ नहीं होता, खुद को सुंदर दिखाना भी जरूरी है. इसीलिए फैशन के साथसाथ ब्यूटी का बाजार भी बढ़ गया. पर सजधज कर घर में भी तो नहीं बैठा जाता. इसलिए शौपिंग भी खूब होने लगी.

फैशन के रंग में रंग गए त्योहार

फैस्टिवल सीजन की बात आते ही सब से पहले यह सोचा जाता है कि नया फैशन ट्रैंड क्या है. फैशन डिजाइनर अदिति जग्गी रस्तोगी कहती हैं, ‘‘फैस्टिवल में पहले केवल साडि़यों की खरीदारी होती थी. समय बदला तो डिजाइनर सलवारसूट खरीदे जाने लगे. अब तो ढेर सारी ड्रैसेज जैसे ऐंब्रौयडरी वाले फ्लोर लैंथ गाउन, ऐंब्रौयडरी वाले स्कर्टटौप, लहंगाचोली, लौंग स्कर्ट, शौर्ट कुरती आदि फैस्टिवल में पहनी जा रही हैं. डिजाइनर सलवारसूट की तो बहुत सारी डिजाइनें आने लगी हैं. सब से खास बात यह कि सब कुछ आप के बजट में मिलने लगा है और इस के लिए आप को कहीं किसी बड़े शहर जाने की जरूरत नहीं. सब कुछ आप के शहर में मिलने लगा है.’’ औनलाइन शौपिंग ने फैस्टिवल शौपिंग को और भी मजेदार बना दिया है. औनलाइन शौपिंग में सब से अधिक खरीदारी महिलाएं अपनी ड्रैस की कर रही हैं. खरीदारी के लिए अब उन्हें मार्केट जाने की जरूरत नहीं होती. घर बैठे अपने मनपसंद कपड़ों की खरीदारी कर सकती हैं. एक से बढ़ कर एक डिजाइनर ड्रैसेज घर बैठे मिल जाती हैं.

इस संबंध में नेहा निगम कहती हैं, ‘‘डिजाइनर ड्रैस बहुत ही सस्ती कीमत पर औनलाइन मिल जाती है. फैस्टिवल में वहां भी सेल और कई तरह के औफर मिने लगे हैं. पैसे सामान की डिलीवरी के समय देने होते हैं. ड्रैस पसंद न आने पर उस की वापसी भी आसानी से हो जाती है. फैशनेबल ड्रैसेज ही नहीं, अब महिलाएं लिंजरी तक की औनलाइन खरीदारी करने लगी हैं.’’ डिजाइनर अदिति जग्गी रस्तोगी कहती हैं, ‘‘पहले एक ड्रैस में पूरा त्योहार मना लिया जाता था. मगर अब फैशन का ट्रैंड बदल गया है. अब फैस्टिवल सीजन में हर दिन नई डै्रस पहन कर उत्सव मनाने का चलन है. ऐसे में साड़ी ही नहीं तमाम तरह की ड्रैसेज पहनी जाने लगी हैं. तरहतरह की फैशनेबल ड्रैसेज त्योहारों के आने से पहले ही बाजार में आ जाती हैं. कुछ लोग डिजाइनर शौप्स और डिजाइनर स्टूडियो से अपने लिए अलगअलग तरह की ड्रैसेज भी तैयार कराने लगे हैं.’’

खुद को भी संवारिए

आप पर कोई भी ड्रैस तभी अच्छी लगेगी जब आप खुद भी सजीसंवरी होंगी. फैस्टिवल सीजन में फैशन के साथसाथ ब्यूटी का कारोबार भी बढ़ जाता है. ब्यूटी का कारोबार सब से अधिक तेजी से बढ़ रहा है. छोटे शहरों में भी ब्रैंडेड ब्यूटी सैलून खुलने लगे हैं और इन में तेजी से इजाफा भी हो रहा है. अब लोगों को यह समझ आने लगा है कि ब्यूटी का असली सामान ही प्रयोग करना चाहिए. जिन ब्यूटी पार्लर्स में नकली ब्यूटी प्रोडक्ट्स के प्रयोग होने की संभावना होती है महिलाएं वहां जाना बंद कर देती हैं. नकली और स्तरहीन ब्यूटी प्रोडक्ट्स का प्रयोग केवल कसबों और गांवों तक सिमट कर रह गया है. ब्यूटी ऐक्सपर्ट अनीता मिश्रा कहती हैं, ‘‘सही तरह से मेकअप तभी असर करता है जब आप फैस्टिवल के कुछ दिन पहले से अपनी केयर शुरू कर देती हैं. स्किन और हेयर को अच्छा दिखाने के लिए इन का ट्रीटमैंट लेना चाहिए. यह हर किसी में अपनी जरूरत के हिसाब से होता है. जिन्हें ज्यादा जरूरी होता है वे थोड़ा समय पहले से केयर शुरू कर दें.’’

मेकअप और ड्रैस के हिसाब से ही हेयरस्टाइल भी तैयार किया जाता है. अनीता मिश्रा कहती हैं, ‘‘ब्यूटी की परफैक्ट पिक्चर तभी बनती है जब ड्रैस, मेकअप और हेयरस्टाइल के बीच बेहतर तालमेल हो. डाइट और स्किन केयर बौडी को अंदर से खूबसूरत बनाती है. इस से मेकअप का रिजल्ट और भी अच्छा हो जाता है. कई बार जब शरीर का पोषण सही तरह से न हो तो अच्छी ड्रैस और खूबसूरत मेकअप भी पूरा असर नहीं डाल पाता है. इसलिए पोषणयुक्त डाइट जरूर लें. फैस्टिवल में फैटी खाना बहुत हो जाता है. इस से बचें. यह ब्यूटी के लिए ठीक नहीं होता है. बौडी पौलिशिंग और मसाज से शरीर को सुंदर बनाया जा सकता है.’’

फिटनैस जरूरी

किसी भी ड्रैस को सही तरह से पहनने के लिए जरूरी है कि बौडी फिट हो. आप फिट रहें तभी पूरे फैस्टिवल सीजन का आनंद ले सकेंगी. ऐसे में आप की फिटनैस आप को बीमारी से दूर रखेगी. फिट बौडी की जब बात होती है तो यह जरूरी नहीं होता कि आप फिल्मी हीरोइन की तरह जीरो फिगर वाली हों. फिटनैस का मतलब इतना होता है कि आप फूहड़ तरह से मोटी न दिखें. अगर आप की फिगर बहुत अच्छी नहीं है तो अपनी ड्रैस उसी तरह की पहनें. वैसे केवल खानपान और ऐक्सरसाइज के बल पर 6-7 माह में 8 से 10 किलोग्राम तक वजन कम किया जा सकता है. वजन कम करते समय हार्ड डाइटिंग न करें. इस से स्किन पर असर पड़ता है. तेजी से वजन घटता है तो स्किन में झुर्रियां आ जाती हैं. वजन का धीरेधीरे घटना ही शरीर के लिए सही रहता है. रूटीन ऐक्सरसाइज से बौडी फिट रहती है, जिस से शरीर तमाम तरह की बीमारियों से भी दूर रहता है.

ज्वैलरी और फुटवियर भी हो खास

फैस्टिवल के लिए जरूरी है कि आप की ज्वैलरी और फुटवियर भी स्टाइलिश हों. आजकल तमाम तरह की आर्टिफिशियल ज्वैलरी पहनी जाती है, जो नग, पत्थर और मोतियों से तैयार होती है. ट्रैडिशनल दिखने वाली यह ज्वैलरी फैस्टिवल में बहुत अच्छी लगती है. आजकल सब से अधिक बदलाव फुटवियर बाजार में देखने को मिल रहा है. अब बहुत सस्ते और डिजाइनर फुटवियर मिलने लगे हैं. ये टिकाऊ भी बहुत होते हैं. कई लोग तो फैस्टिवल में ही बिजनैस करते हैं. ऐसे ही लोगों में संजय गुप्ता भी हैं. वे कहते हैं, ‘‘फैस्टिवल आते ही बाजार का मूड खिल जाता है. मैं साल भर प्राइवेट नौकरी करता हूं. फैस्टिवल सीजन शुरू होने से पहले कोलकाता या दिल्ली जा कर थोक बाजार से डिजाइनर कपड़े लाता हूं, जिन्हें लोकल बाजारों में बेच कर मुनाफा कमाता हूं. त्योहारों पर कपड़ों का ही नहीं, ज्वैलरी, फुटवियर और कौस्मैटिक का बिजनैस भी बढ़ जाता है. तमाम लोग फैस्टिवल सीजन आने का साल भर इंतजार करते हैं. अब लोग पूजापाठ की सामग्री के बजाय घर की सजावट की वस्तुओं की खरीदारी ज्यादा करते हैं.’’

लेटैस्ट फैस्टिवल फैशन ट्रैंड

घाघरा विद टौप वैस्टर्न और इंडियन ड्रैस से तैयार फ्यूजन ट्रैंड है. घाघरा फैस्टिवल के लुक को दिखाता है. घाघरे के साथ फिटिंग वाले टौप ही पसंद किए जाते हैं. अगर इस पर शौर्ट कशीदाकारी की गई कुरती का प्रयोग करें तो कम खर्च में दूसरी ड्रैस तैयार हो जाती है. ट्रैडिशनल पोशाकों में पेस्टल कलर्स इन दिनों चलन में हैं. 3 अलगअलग रंगों के घाघरा, चोली और दुपट्टा फैस्टिवल लुक को और बढ़ा देते हैं. घाघरा और चोली फैस्टिवल की सब से ज्यादा पसंदीदा ड्रैस है. मेकअप के जरीए इसे और खास बनाया जा सकता है. इस ड्रैस के साथ हेयरस्टाइल भी कुछ खास होना चाहिए. कुछ जुल्फें चेहरे पर लहराती रहें तो अच्छी लगती हैं. बदले रूप में गाउन भी अब फैस्टिवल ड्रैस बन गई है. फ्लोर लैंथ गाउन आज के लेटैस्ट फैशन ट्रैंड में शामिल है. इस के साथ ज्वैलरी न के बराबर ही पहनें, क्योंकि ज्यादा ज्वैलरी इस पर अच्छी नहीं लगती है. इस ड्रैस के साथ खास बात यह होती है कि इस में हेयरस्टाइल नहीं बनाना पड़ता है. ताजे फूलों से तैयार टियारा को बालों में लगा कर नया लुक दिया जा सकता है. फैस्टिवल सीजन में डैनिम ड्रैस भी ट्राई कर सकती हैं. डैनिम से बने ब्लाउज के साथ लहंगा पहना जा सकता है. इस में डैनिम से खास डिजाइन वाला ब्लाउज तैयार करवाया जा सकता है. लहंगा प्लेन कपड़े का हो. इस में कई रंगों के कपड़े प्रयोग किए जा सकते हैं. इस के साथ पहनी जाने वाली ज्वैलरी कलर्ड हो सकती है. मेकअप सादा हो. आई मेकअप को ज्यादा उभारा जा सकता है.

त्योहार पर घर जाने की मारामारी क्यों

कार्यालय में अपनी सीट पर बैठेबैठे अचानक मोनिका की नजर टेबल पर लगे कैलैंडर पर चली गई. दीवाली की तारीख नजदीक आते देख सब से पहले जो सवाल उस के जेहन में कौंधा वह था कि रिजर्वेशन मिलेगा या नहीं? अगले ही पल उस की उंगलियां लैपटौप के कीबोर्ड पर दौड़ने लगीं, लेकिन उसे हताशा हाथ लगी. सभी सीटें फुल हो चुकी थीं. ट्रेन का ही नहीं उसे बस और हवाईजहाज का भी टिकट न मिला. अब वह सोच में पड़ गई कि घर कैसे जाए और यदि न जा पाए तो परिवार से दूर कैसे त्योहार मनाए?

मोनिका की ही तरह और भी न जाने कितने लोग अपने घरपरिवार से दूर दूसरे शहरों में रहते हैं. सब की घरपरिवार से दूर रहने की अपनी वजह है. कोई पढ़ाई के लिए तो कोई नौकरी की वजह से दूसरे शहर में बसेरा डाले हुए है. काम और पढ़ाई में उलझे ऐसे लोगों को हर दिन तो नहीं लेकिन तीजत्योहार पर परिवार वालों की कमी बहुत खलती है. इसीलिए वे त्योहारों पर घर जाने की जद्दोजेहद में लगे रहते हैं. रिजर्वेशन खुलते ही लोग अपनी सीट बुक कराने के लिए इंटरनैट से चिपक जाते हैं. कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो खासतौर पर रिजर्वेशन कराने के लिए दफ्तर से छुट्टी ले कर रेलवे स्टेशन में लगी लंबी कतार में घंटों खड़े रहते हैं. मगर उस के बाद भी कई बार रिजर्वेशन नहीं हो पाता है. ऐसे में कभीकभी  अपने ही शहर में रहने वाले यारदोस्तों, जिन को घर जाने के लिए सीट मिल चुकी होती है, उन की खुशामद करनी पड़ती है, तो कभी रिश्वत का सहारा लेना पड़ता है.

हो सकते हैं नुकसान कई

ऐसे में सवाल उठता है कि एक दिन के त्योहार के लिए इतनी मारामारी क्यों? आखिर त्योहार उस स्थान पर भी तो मनाया जा सकता है जहां आप रहते हैं. यदि घर जाने की व्यवस्था नहीं हो पा रही है तो बेमतलब की परेशानी उठाने की क्या जरूरत है? त्योहार के बाद भी तो समय निकाल कर घर जाया जा सकता है? हां, यह स्वाभाविक है कि त्योहारों का मजा अपनों के संग ही आता है. इस के लिए सचेत रहने की जरूरत होती है. यानी पहले से घर जाने की व्यवस्था करने में ही समझदारी है वरना इस मारामारी के कई नुकसान भी उठाने पड़ सकते हैं.

आइए, जानते हैं कि हड़बड़ी में सफर करने के क्याक्या नुकसान हो सकते हैं:

सब से पहला और बड़ा नुकसान तो आप की जेब को होता है. यदि आप समय पर टिकट बुक नहीं करवा पाए हैं, तो जाहिर है कि तत्काल टिकट मिलना असंभव होता है. यदि किसी दलाल से तत्काल टिकट बुक कराते हैं तो जाहिर है कि वह आप को काफी महंगा पड़ेगा. इस के अलावा यदि आप बस या फ्लाइट से जाने की सोचते हैं तो वहां भी आप की जेब को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

पैसों के अलावा दूसरा नुकसान होता है दफ्तर के काम का. जब आप ने तय ही कर लिया है कि जैसेतैसे घर जाना ही है तो जाहिर है आप हर वक्त यही सोचते रहेंगे कि घर जाने से पहले सारे काम निबटा लिए जाएं. होना भी यही चाहिए कि आप की अनुपस्थिति में आप के द्वारा किए जाने वाले कार्य का बोझ और किसी पर न आए. लेकिन काम को आननफानन कर पाना संभव नहीं होता है. घर जाने की जल्दी में जिस काम में अधिक समय लगता है उसे कम समय में सिर्फ निबटा देने के उद्देश्य से किया जाए तो आप सोच सकते हैं कि उस काम की क्या गुणवत्ता होगी? ऐसे में काम को कुशलता से न कर पाने का जोखिम आप को तब उठाना पड़ता है जब आप के अप्रेजल का समय आता है, क्योंकि संस्थानों में कर्मचारी की काम के प्रति ईमानदारी, मेहनत और लगन को ऐसे मौकों पर ही परखा जाता है. ऐसे में यह एक माइनस पौइंट आप की साल भर की मेहनत पर पानी फेर सकता है.

कई बार काम को निबटाने और घर जाने की व्यवस्था करने की चिंता में अकसर खाने को नजरअंदाज किया जाता है या फिर बेवक्त खाना खाया जाता है. यह भी सेहत को बिगाड़ने का ही इंतजाम है.

अूममन लोग ट्रेन में बिना टिकट यह सोच कर चढ़ जाते हैं कि टीटी को रिश्वत दे देंगे. सीट भले न मिले, लेकिन खड़े होने की जगह तो मिल ही जाएगी. लेकिन क्या आप को पता है कि रिश्वत देना अपराध है और इस की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है?

सीट कन्फर्म न होने पर केवल स्थान पाने की ही जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती, बल्कि सामान के खोने का डर भी बढ़ जाता है, क्योंकि आप पूरा सफर सामान को कंधे पर उठाए तो सफर नहीं कर सकते. कहीं तो आप को सामान रखना ही पड़ेगा. इस स्थिति में सामान कहीं और आप कहीं और होते हैं. ऐसे में सामान के चोरी होने का डर बना रहता है.

पहले से करें तैयारी

त्योहार घर पर मनाने का मन बना ही लिया है, तो इस की प्लानिंग भी सुनियोजित तरीके से करें. आइए, आप को इस के कुछ टिप्स बताते हैं:

यह बात सभी को पता है कि ट्रेन में सीट रिजर्वेशन के लिए 4 महीने पहले से टिकट मिलने शुरू हो जाते हैं. लेकिन यह याद रखना आप की जिम्मेदारी है. यदि आप घर जाने की सोच रही हैं खासतौर पर दीवाली जैसे मौके पर तो जिस दिन इस तारीख के लिए रिजर्वेशन खुलता है उसी दिन आप को टिकट बुक करा लेना चाहिए. त्योहार के 1 महीना या हफ्ता भर पहले टिकट मिलना नामुमकिन होता है, यह हमेशा ध्यान रखें. यह भी खयाल रखें कि जरूरी नहीं कि दलाल से आप को पक्का ही टिकट मिल जाएगा, क्योंकि यह ऐसा वक्त होता है जब आप की ही तरह बहुत लोग दलाल की दुकान के आगे कतार में खड़े मिलते हैं. यहां पर फर्स्ट कम फर्स्ट सर्विस वाला हिसाब होता है. यदि यहां भी देर हो गई तो आप के पास अफरातफरी में सफर करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचेगा.

लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि त्योहार के दिन या उस के आसपास के दिनों में लोकल कनवेंस तक में जगह नहीं मिलती. इसलिए

जाने के लिए टिकट का इंतजाम पहले से कर लें.

बौस को कम से कम 1 माह पूर्व घर जाने की बात बता दें. इस से जो भी महत्त्वपूर्ण काम होंगे उन्हें वे आप को पहले करने को कह देंगे. तब आप उन्हें पूरी कुशलता से और समय से पूरा कर पाएंगे.

कालेज में त्योहार पर भले ही आप को छुट्टी दी जा रही हो, लेकिन त्योहार के आसपास आप के इम्तिहान तो नहीं हैं या कोई जरूरी प्रोजैक्ट तो आप को जमा नहीं करना, इस बात का भी ध्यान रखें. यदि ऐसा कुछ है तो उस की तैयारी पहले से करें और फिर उसी के हिसाब से रिजर्वेशन कराएं.

न जा पाएं घर तो क्या करें

तमाम कोशिश के बाद भी यदि आप घर जाने में असफल रहते हैं तो उदास न हों और न ही त्योहार के उत्साह को कम होने दें. जिस शहर में आप हैं उसी शहर में आप त्योहार को अपनी तरह से मना सकते हैं. अपने परिवार के साथ तो आप ने कई बार त्योहार मनाया होगा, लेकिन इस बार नए लोगों के साथ नए तरीके से त्योहार मना कर भी देखें.

यदि महल्ले में कोई आप के जैसा हो, जो त्योहार पर अपने घर न जा सका हो तो उस के साथ त्योहार का आनंद लें.

आजकल त्योहारों पर कुछ समुदायों और संस्थानों द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है. यदि आप को ऐसे आयोजनों का हिस्सा बनने में आनंद आता हो तो जरूर उन का हिस्सा बनें. ऐसा करने पर आप त्योहार का मजा एक नए अंदाज में ले सकेंगे.

आप जिस शहर में हैं उस के आसपास सैरसपाटे का कोई स्थान हो तो आप त्योहार के दिन वहां भी जा सकते हैं. यदि आप को इस छोटे से सफर में कोई साथी मिल जाए तो और भी अच्छा रहेगा.

त्योहार के दिन कुछ ऐसा करें जो आप ने कभी न किया हो. आप हर बार त्योहार पर अपने और अपने घर वालों के लिए ढेर सारा सामान खरीदते हैं, तो इस बार उन के लिए खरीदिए जिन के लिए कोई नहीं खरीदता और जो खुद भी अपने लिए कुछ खरीद पाने में असमर्थ होते हैं. आप त्योहार का मजा अनाथ बच्चों, वृद्धों और स्पैस्टिक सैंटर जा कर वहां के लोगों के साथ भी ले सकते हैं. त्योहार को मनाने का यह नया अंदाज आप को जो अनुभूति देगा उसे आप कभी नहीं भुला पाएंगे.

त्योहारों की थकान ऐसे करें दूर

फैस्टिवल सीजन आते ही महिलाओं के मन में उत्साह व उमंग दौड़ने लगता है. लेकिन ऐसे में घर की साफसफाई और भागदौड़ वगैरह में वे इतनी मेहनत करती हैं कि फैस्टिवल आतेआते उन का ऐनर्जी लैवल डाउन होने लगता है. इसी वजह से वे अकसर फैस्टिवल का सही तरीके से आनंद नहीं उठा पातीं. ऐसे में ऐनर्जी लेवल बढ़ाने के लिए फूड सप्लिमैंट्स पर ध्यान देना बहुत जरूरी होता है, जिस के कुछ आसान तरीके बता रही हैं न्यूट्रिशनिस्ट सोनिया नारंग.

फूड सप्लिमैंट के आसान विकल्प

लगातार काम करने से आप थकान महसूस करती हैं. अगर आप थकान से लड़ने के लिए अपने शरीर को मजबूत बनाना और ऐनर्जी लेवल बढ़ाना चाहती हैं तो नियमित रूप से नाश्ता करना कभी न भूलें. सुबह किया हुआ नाश्ता आप के शरीर को पूरे दिन ऐनर्जी देता है, इसलिए सुबह के समय ऐसा नाश्ता करें जिस में प्रोटीन और फाइबर की मात्रा अधिक और शुगर व वसा की मात्रा कम हो. इस के लिए अपने नाश्ते में फल, स्प्राउट्स आदि शामिल करें. इस के अलावा थकान मिटाने के लिए आप ऐसा पौष्टिक आहार लें, जिस से थकान झटपट दूर हो जाए. अगर आप अपने आहार में कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन, फाइबर और विटामिन सी से भरपूर चीजें लेती रहेंगी तो ये तत्त्व आप की बौडी को ऐक्टिंव रखेंगे जिस से आप ऐनर्जी महसूस करेंगी.

आइए अब जानिए कुछ ऐसी चीजों के बारे में, जिन में ये तत्त्व खूब होते हैं:

ओटमील: थकान मिटाने के लिए ओटमील परफैक्ट फूड है. इस में मौजूद कार्बोहाइड्रेट्स ग्लाइकोजिन के रूप में शरीर में जमा हो जाते हैं और दिन भर दिमाग और मांसपेशियों को ऐनर्जी देते हैं. साथ ही इस में मौजूद पौष्टिक तत्त्व ऐनर्जी लैवल बढ़ाते हैं.

हर्बल ड्रिंक: हर्बल ड्रिंक, जैसे आंवला या एलोवेरा जूस या ग्रीन टी पीने से शरीर में ऐनर्जी बरकरार रहती है क्योंकि इस में अधिक मात्रा में पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं जो हमारे इम्यून सिस्टम को स्ट्रौंग बनाते हैं. हर्बल टी में तो ऐंटीऔक्सीडैंट फ्लैवोनाइड तत्त्व भरपूर मात्रा में होते हैं, इसलिए इस के नियमित सेवन से कई फायदे होते हैं. जैसे पाचनतंत्र मजबूत रहता है और शरीर अंदर से साफ रहता है. ऐनर्जी भी भरपूर बनी रहती है.

केला: केले में पर्याप्त पोटैशियम होता है जो शरीर में मौजूद शुगर को ऐनर्जी में बदल देता है. इस के साथ ही केले में कई और पौष्टिक तत्त्व होते हैं जो सुस्ती को दूर करते हैं, मसल्स पेन में आराम देते हैं और थकान मिटाने में मददगार होते हैं.

अखरोट: वर्कआउट के बाद होने वाली थकान को दूर करने के लिए फाइबरयुक्त अखरोट खाना चाहिए. ओमेगा 3 फैटी ऐसिड से भरपूर अखरोट डिप्रेशन दूर करने में मदद करता है और थकान मिटाने में भी मददगार होता है.

दही: प्रोटीन से भरपूर दही में कार्बोहाइड्रेट भी होता है जो थकान से लड़ने में मदद करता है. जब भी आप को ऐनर्जी चाहिए तब आप दही खा सकती हैं पर दही मलाई वाला नहीं होना चाहिए.

पालक: थकान मिटाने के लिए आयरन से भरपूर पालक भी खाया जा सकता है. मेटाबौलिज्म बढ़ाना हो या ऐनर्जी के घटते स्तर को नियंत्रित करना हो, पालक फायदेमंद होता है.

मूंगफली: इस में न्यूट्रिऐंट्स, मिनरल, ऐंटी औक्सीडैंट और विटामिन जैसे पदार्थ पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक हैं. इस में मोनो इनसैचुरेटेड फैटी ऐसिड भी पाया जाता है जो खराब कोलैस्ट्रौल को कम कर के अच्छे कौलैस्ट्रौल को बढ़ाता है.

स्प्राउट: स्प्राउट यानी अंकुरित दाल का सेवन भी शरीर को बेहतर बनाता है व ताकत देता है. मूंग की दाल का स्प्राउट सब से अच्छा होता है.

कौफी: कौफी का सही मात्रा में सेवन शरीर में ऊर्जा को बूस्टअप करता है और थकान से दूर भगाता है. ऐसे में शरीर में अंदरूनी ताकत का एहसास होता है.

ड्राई फू्रट्स: गरी, छुहारा, मुनक्का, चिलगोजा, बादाम आदि ड्राई फू्रट्स शरीर में अंदरूनी ताकत लाते हैं. इन के रोजाना सेवन करने से बौडी में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिस से शरीर को बीमारियों से लड़ने की ताकत मिल जाती है.

पानी: पानी शरीर की थकान हटाने के लिए एक अच्छा स्रोत है. खूब पानी पीएं, जिस से डिहाइड्रेशन नहीं होगा और थकान महसूस नहीं होगी.

ऐअरब्रश मेकअप बारीकियां और फायदे

भले ही मेकअप ने आप की शक्लसूरत बदली हो पर आप स्क्रीन ब्यूटी जैसी रीफ्रैशिंग क्यों नहीं लग रहीं, अकसर आप ऐसा सोचती होंगी, जानना चाहती होंगी कि स्क्रीन, पेज थ्री सैलिब्रिटीज और रैंप मेकअप व आप के मेकअप में क्या अंतर है? आप भी ग्लैमरस मेकअप की तरह बेस चेहरे पर लगाती हैं, फिर भी वह इतना आर्टिफिशियल क्यों लगता है? ऐसे तमाम सवालों का एक ही जवाब है, ऐअरब्रश मेकअप.

क्या है ऐअरब्रश मेकअप

चेहरे की रंगत निखारने के लिए, दागधब्बों को छिपाने के लिए हाथ या ब्रश से लगाया फाउंडेशन चेहरे पर एकसार नहीं लग पाता. नतीजतन, चेहरे पर मेकअप बेस व ब्लशर की परतें दिखाई देती हैं यानी चेहरा नैचुरल कम, बनावटी ज्यादा दिखता है. ऐसे में सचाई यह है कि ट्रैडिशनल मेकअप नैचुरल नहीं लग पाता. वहीं ऐअरब्रश मेकअप में चेहरे पर हैवी मेकअप के बावजूद चेहरा नैचुरल लगता है. असल में ऐअरब्रश मेकअप एक किस्म का लिक्विड मेकअप है, जिस में फांउडेशन से ले कर आईशैडो तक मशीन से लगाया जाता है.

परफैक्शन है अहम

मेकअप आर्टिस्ट नीलम हरीश कहती हैं, ‘‘इस मेकअप के लिए जरूरी है कि आर्टिस्ट का हाथ ऐअरगन पर तेजी से चले. आर्टिस्ट का हाथ जितने करीने व तेजी से ऐअरगन पर चलेगा, उतना ही नैचुरल व ग्लोइंग मेकअप होगा.’’ इस मेकअप की बेसिक ऐप्लिकेशन के बारे में नीलम कहती हैं, ‘‘यह मेकअप स्वयं तभी करना चाहिए जब आप ऐअरगन को औपरेट व कंट्रोल करने से बखूबी परिचित हों.’’ इस मेकअप में लिक्विड कौस्मैटिक्स का इस्तेमाल होता है यानी ऐअरगन के होज (मिनी टैंक) में कुछ बूंदें फाउंडेशन व ब्लशर की भरी जाती हैं. ध्यान रहे इस में साधारण फाउंडेशन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है अन्यथा यह ऐअरगन को जाम (चोक) कर देगा. ऐअरगन में वाटरबेस्ड फाउंडेशन या सिलिकौनबेस्ड फाउंडेशन और लिक्विड ब्लशर का इस्तेमाल किया जाता है.

ऐसे होता है मेकअप

मेकअप शुरू करने से पहले चेहरे की क्लींजिंग और टोनिंग की जाती है और उस के बाद चेहरे की खामियों जैसे मुहांसों के निशानों, मस्सों, काले घेरों, दागधब्बों आदि को कंसीलर से छिपाया जाता है. फिर ऐअरब्रश मेकअप की शुरुआत की जाती है. यानी बेस, नोज शेपिंग, चीक मेकअप और आंखों के आसपास मेकअप लगाया जाता है. इस मेकअप में ऐअरगन का इस्तेमाल किया जाता है, जिस के 3 प्रमुख भाग हैं- गन, होज और कंप्रैसर. होज में लिक्विड फाउंडेशन, ब्लशर और आईशैडो का इस्तेमाल किया जाता है. फाउंडेशन (लिक्विडबेस्ड या सिलिकौन) को स्प्रे करने के बाद सौफ्ट टिश्यू पेपर पर दोबारा स्प्रे करना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि प्रोडक्ट डालने पर पहले वाला दूसरे के साथ मिल जाता है यानी बदरंग हो जाता है. इस से बचने के लिए पहले स्प्रे को बाहर निकालना बहुत जरूरी होता है.

उतारें ध्यान से

मेकअप कैसा भी हो उसे मेकअप रिमूवर से ही साफ करना चाहिए. साबुन से साधारण मेकअप उतर जाता है (त्वचा रूखीसूखी हो जाती है), लेकिन ऐअरब्रश मेकअप नहीं. इसे उतारने के लिए मेकअप रिमूवर का इस्तेमाल करें. यदि मेकअप रिमूवर उपलब्ध न हो तो क्लींजिंग मिल्क का प्रयोग किया जा सकता है.

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