बौलीवुड के ये स्टार्स इंटिमेट सीन्स के दौरान हुए आउट औफ कंट्रोल

बौलीवुड की कई फिल्में सिर्फ इंटिमेट सीन्स की वजह से सुर्खियों में छायी रहीं. फिल्ममेकर्स इन फिल्मों को दिलचस्प बनाने के लिए इंटीमेट सीन्स को बढ़ावा देते हैं. कई बार इसी वजह से फिल्में हिट भी होती हैं और दर्शकों का भी भरपूर मनोरंजन होता है.

पहले किसिंग सीन के दौरान फूलों और हंसों का दिखाया जाता था मिलन

एक समय ऐसा भी था जब लोग सिनेमाघरों में मूवी देखने जाते थे और उस फिल्म में जब किसिंग सीन की बारी आती थी तो फूलों और हंसों का मिलन स्क्रीन पर दिखाया जाता था. लेकिन अब समय बदल चुका है, मूवीज या ओटीटी पर दिखाए जाने वाले वेब सीरिजों में बोल्ड सीन खुलेआम दिखाए जा रहे हैं. जो लोगों का ध्यान अपनी तरफ खिंच रहे हैं.

सैक्सी मूवीज या वेब सीरिज आप घर बैठे ही मोबाइल पर आराम से देख सकते हैं. ऐसे में आज हम आपको कुछ एक्टर्स और एक्ट्रैस के बारे में बताएंगे जो हौट सीन की शूटिंग करते दौरान आउट औफ कंट्रोल हो गए थे.

ये बौलीवुड सैलिब्रिटीज हौट सीन के दौरान हो गए थे बेकाबू

नरगिस फाखरी

फिल्म ‘अजहर’ में सीरियल किसर के नाम से जाने वाले इमरान हाशमी ने किसिंग सीन दिए थे. हालांकि इमरान ने कई फिल्मों में हौट सीन दिए हैं. इस फिल्म में इमरान को नरगिस के साथ लिपलौक करना था. दोनों की इस फिल्म में मुख्य भूमिका थी. किसिंग सीन की शूटिंग चल रही थी, यह सीन पूरा हुआ तो डायरेक्टर ने कट बोला, इसके बावजूद भी नरगिस इमरान को लगातार किस किए जा रही थी. ये भी सुनने में आया था कि इमरान हाशमी पीछे हटने लगे, इसके बावजूद नरगिस किस करती जा रही थी.

जैकलीन और टाइगर श्राफ

साल 2016 में आई फिल्म ” फ्लाइंग जट्ट” में लीड रोल में जैकलीन फर्नांडिज और टाइगर श्राफ और कई कलाकार थे. इस फिल्म में टाइगर और जैकलीन को लिपलौक करना था जिसे शूट किया जा रहा था और ये दोनों एकदूसरे में इतने डूब चुके थे कि डायरेक्टर के कट बोलने के बाद भी इन्हें कुछ सुनाई नहीं दिया और ये एकदूसरे के काफी क्लोज थे.

रणबीर कपूर

फिल्म ये जवानी है दीवानी को लोगों ने खूब पसंद किया था. इसमें दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर की ने शानदार एक्टिंग की थी, यह एक रोमांटिक फिल्म थी इनके अलावा और कई एक्टर्स ने अहम किरदार निभाए थे, इस फिल्म के एक सीन में रणबीर कपूर को एवलिन शर्मा के पैर को छूना था, इस दौरान रणबीर आउट औफ कंट्रोल हो गए और शूटिंग पूरा होने के बाद भी नहीं रुके.

चेतना और रूसलान मुमताज

फिल्म ‘आई डोंट लव यू’ में कई बोल्ड सींस दिखाए गए हैं. यह फिल्म सुर्खियों में थी. लेकिन शूटिंग के दौरान कुछ ऐसा हुआ जिसे देखकर सब दंग रह गए. इस फिल्म में चेतना और रूसलान मुमताज को किसिंग सीन करना था और इस सीन का शूटिंग खत्म होने के बाद भी दोनों एकदूसरे को किस किए जा रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक्टर रुसलान मुमताज ने एक सीन करते हुए ऐक्ट्रैस चेतना पांडे के कपड़े खोल दिए थे, जिससे ऐक्ट्रैस बुरी तरह भड़क गई थी. लेकिन बाद में रुसलान ने चेतना से माफी मांगी.

सिद्धार्थ मल्होत्रा

फिल्म ए जेंटलमैन में सिद्धार्थ मल्होत्रा और जैकलिन फर्नांडीज की रोमांटिक कैमिस्ट्री देखनो को मिली थी. यह काफी सुर्खियों में छायी हुई थी. इसी फिल्म के गाने लगी ना छूटे में जैकलीन और सिद्धार्थ का रोमांस देखने को मिला था. इस गाने की शूटिंग के दौरान दोनों को एकदूसरे को किस करना था, यह सीन खत्न होने के बाद भी दोनों उस मोमेंट में पूरी तरह से डब चुके थे.

नजरिया : अजन्मे बच्चे का लिंग परीक्षण

आज आशी जब अपनी जुड़वां बेटियों को स्कूल बस में छोड़ने आई तो रोज की तरह नहीं खिलखिला रही थी. मैं उस की चुप्पी देख कर समझ गई कि जरूर कोई बात है, क्योंकि आशी और चुप्पी का तो दूरदूर तक का वास्ता नहीं है.

आशी मेरी सब से प्यारी सहेली है, जिस की 2 जुड़वां बेटियां मेरी बेटी प्रिशा के स्कूल में साथसाथ पढ़ती हैं. मैं आशी को 3 सालों से जानती हूं. मात्र 21 वर्ष की उम्र में उस का अमीर परिवार में विवाह हो गया था और फिर 1 ही साल में 2 जुड़वां बेटियां पैदा हो गईं. रोज बच्चों को बस में बैठा कर हम दोनों सुबह की सैर को निकल जातीं. स्वास्थ्य लाभ के साथसाथ अपने मन की बातों का आदानप्रदान भी हो जाता. किंतु उस के चेहरे पर आज उदासी देख कर मेरा मन न माना तो मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है आशी, आज इतनी उदास क्यों हो?’’

‘‘क्या बताऊं ऋचा घर में सभी तीसरा बच्चा चाहते हैं. बड़ी मुश्किल से तो दोनों बेटियों को संभाल पाती हूं. तीसरे बच्चे को कैसे संभालूंगी? यदि एक बच्चा और हो गया तो मैं तो मशीन बन कर रह जाऊंगी.’’

‘‘तो यह बात है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे पति निखिल क्या कहते हैं?’’

‘‘निखिल को नहीं उन की मां को चाहिए बच्चा. उन का कहना है कि इतनी बड़ी जायदाद का कोई वारिस मिल जाता तो अच्छा रहता. असल में उन्हें एक पोता चाहिए.’’

‘‘पर क्या गारंटी है कि इस बार पोता ही होगा? यदि पोती हुई तो क्या वारिस पैदा करने के लिए चौथा बच्चा भी पैदा करोगी?’’

‘‘वही तो. पर निखिल की मां को कौन समझाए. फिर वे ही नहीं मेरे अपने मातापिता भी यही चाहते हैं. उन का कहना है कि बेटियां तो विवाह कर पराए घर चली जाएंगी. वंशवृद्धि तो बेटे से ही होती है.’’

‘‘तुम्हारे पति निखिल क्या कहते हैं?’’

‘‘वैसे तो निखिल बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं समझते. किंतु उन का भी कहना है कि पहली बार में ही जुड़वां बेटियां हो गईं वरना क्या हम दूसरी बार कोशिश न करते? एक कोशिश करने में कोई हरज नहीं… सब को वंशवृद्धि के लिए लड़का चाहिए बस… मेरे शरीर, मेरी इच्छाओं के बारे में तो कोई नहीं सोचता और न ही मेरे स्वास्थ्य के बारे में… जैसे मैं कोई औरत नहीं वंशवृद्धि की मशीन हूं… 2 बच्चे पहले से हैं और बेटे की चाह में तीसरे को लाना कहां तक उचित है?’’

मैं सोचती थी कि जमाना बदल गया है, लेकिन आशी की बात सुन कर लगा कि हमारा समाज आज भी पुरातन विचारों से जकड़ा हुआ है. बेटेबेटी का फर्क सिर्फ गांवों और अनपढ़ घरों में ही नहीं वरन बड़े शहरों व पढ़ेलिखे परिवारों में भी है. यह देख कर मैं बहुत आश्चर्यचकित थी. फिर मैं तो सोचती थी कि आशी का पति बहुत समझदार है… वह कैसे अपनी मां की बातों में आ गया?

आशी मन से तीसरा बच्चा नहीं चाहती थी. न बेटा न बेटी. अब आशी अकसर अनमनी सी रहती. मैं भी सोचती कि रोजरोज पूछना ठीक नहीं. यदि उस की इच्छा होगी तो खुद बताएगी. हां, हमारा बच्चों को बस में बैठा कर सुबह की सैर का सिलसिला जारी था.

एक दिन आशी ने बताया, ‘‘ऋचा मैं गर्भवती हूं… अब शायद रोज सुबह की सैर के लिए न जा सकूं.’’

उस की बात सुन मैं मन ही मन सोच रही थी कि यह शायद निखिल की बातों में आ गई या क्या मालूम निखिल ने इसे मजबूर किया हो. फिर भी पूछ ही लिया, ‘‘तो अब तुम्हें भी वारिस चाहिए?’’

‘‘नहीं. पर यदि मैं निखिल की बात न मानूं तो वे मुझे ताने देने लगेंगे… इसीलिए सोचा कि एक चांस और ले लेती हूं. अब वही फिर से 9 महीनों की परेड.’’

इस के बाद आशी को कभी मौर्निंग सिकनैस होती तो सैर पर नहीं आती. देखतेदेखते 3 माह बीत गए. फिर एक दिन अचानक आशी मेरे घर आई. उसे अचानक आया देख मुझे लगा कि कुछ बात जरूर है. अत: मैं ने पूछा, सब ठीक तो है? कोई खास वजह आने की? तबीयत कैसी है तुम्हारी आशी?’’

आशी कहने लगी, ‘‘कुछ ठीक नहीं चल रहा है ऋचा… निखिल की मम्मी को किसी ने बताया है कि आजकल अल्ट्रासाउंड द्वारा गर्भ में ही बच्चे का लिंग परीक्षण किया जाता है… लड़की होने पर गर्भपात भी करवा सकते हैं. अब मुझे मेरी सास के इरादे ठीक नहीं लग रहे हैं.

2 दिन से मेरे व निखिल के पीछे बच्चे के लिंग की जांच कराने के लिए पड़ी हैं.’’

‘‘यह तो गंभीर स्थिति है… तुम सास की बातों में मत आ जाना… निखिल को समझा दो कि तुम अपने बच्चे का लिंग परीक्षण नहीं करवाना चाहती,’’ मैं ने कहा.

15 दिन और बीत गए. आशी की सास रोज घर में आशी के बच्चे का लिंग परीक्षण करवाने के लिए कहतीं. निखिल की बहन भी फोन कर निखिल को समझाती कि आजकल तो उन की जातबिरादरी में सभी गर्भ में ही बच्चे का लिंग परीक्षण करवा लेते हैं ताकि यदि गर्भ में कन्या हो तो छुटकारा पा लिया जाए.

पहले तो निखिल को ये सब बातें दकियानूसी लगीं, पर फिर धीरेधीरे उसे भी लगने लगा कि यदि सभी ऐसा करवाते हैं, तो इस में बुराई भी क्या है?

उस दिन आशी अचानक फिर से मेरे घर आई. इधरउधर की बातों के बाद मैं ने पूछा, ‘‘कैसा महसूस करती हो अब? मौर्निंग सिकनैस ठीक हुई या नहीं? अब तो 4 महीने हो गए न?’’

‘‘ऋचा क्या बताऊं. आजकल न जाने निखिल को भी क्या हो गया है. कुछ सुनते ही नहीं मेरी. इस बार जब चैकअप के लिए गई तो डाक्टर से बोले कि देख लीजिए आप. पहले ही हमारी 2 बेटियां हैं, इस बार हम बेटी नहीं चाहते. ऋचा मुझे बहुत डर लग रहा है. अब तक तो बच्चे में धड़कन भी शुरू हो गई है… यदि निखिल न समझे और फिर से लड़की हुई तो कहीं मुझे गर्भपात न करवाना पड़े,’’ वह रोतेरोते कह रही थी, ‘‘नहीं ऋचा यह तो हत्या है, अपराध है… यह बच्चा गर्भ में है, तो किसी को नजर नहीं आ रहा. पैदा होने के बाद तो क्या पता मेरी दोनों बेटियों जैसा हो और उन जैसा न भी हो तो क्या फर्क पड़ता है. उस में भी जान तो है. उसे भी जीने का हक है. हमें क्या हक है अजन्मी बेटी की जान लेने का… यह तो जघन्य अपराध है और कानूनन भी यह गलत है. यदि पता लग जाए तो इस की तो सजा भी है. लिंग परीक्षण कर गर्भपात करने वाले डाक्टर भी सजा के हकदार हैं.’’

आशी बोले जा रही थी और उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहे जा रही थी. मेरी आंखें भी नम हो गई थीं.

अत: मैं ने कहा, ‘‘देखो आशी, तुम्हें यह समय हंसीखुशी गुजारना चाहिए. मगर तुम रोज दुखी रहती हो… इस का पैदा होने वाले बच्चे पर भी असर पड़ता है. मैं तुम्हें एक उपाय बताती हूं. यदि निखिल तुम्हारी बात समझ जाए तो शायद तुम्हारी समस्या हल हो जाए… तुम्हें उसे यह समझाना होगा कि यह उस का भी बच्चा है. इस में उस का भी अंश है… एक मूवी है ‘साइलैंट स्क्रीम’ जिस में पूरी गर्भपात की प्रक्रिया दिखाई गई है. तुम आज ही निखिल को वह मूवी दिखाओ. शायद उसे देख कर उस का मन पिघल जाए. उस में सब दिखाया गया है कि कैसे अजन्मे भू्रण को सक्शन से टुकड़ेटुकड़े कर दिया जाता है और उस से पहले जब डाक्टर अपने औजार उस के पास लाता है तो वह कैसे तड़पता है, छटपटाता है और बारबार मुंह खोल कर रोता है, जिस की हम आवाज तो नहीं सुन सकते, किंतु देख तो सकते हैं. किंतु यदि उस के अपने मातापिता ही उस की हत्या करने पर उतारू हों तो वह किसे पुकारे? जब उस का शरीर मांस के लोथड़ों के रूप में बाहर आता है तो बेचारे का अंत हो जाता है. उस का सिर क्योंकि हड्डियों का बना होता है, इसलिए वह सक्शन द्वारा बाहर नहीं आ पाता तो किसी औजार से दबा कर उसे चूरचूर कर दिया जाता है… उस अजन्मे भू्रण का वहीं खात्मा हो जाता है. बेचारे की अपनी मां की कोख ही उस की कब्र हो जाती है. कितना दर्दनाक है… यदि वह भू्रण कुछ माह और अपनी मां के गर्भ में रह ले तो एक मासूम, खिलखिलाता हुआ बच्चा बन जाता है. फिर शायद सभी उसे बड़े प्यार व दुलार से गोद में उठाए फिरें. मुझे ऐसा लगता है कि शायद निखिल इस मूवी को देख लें तो फिर शायद अपनी मां की बात न मानें.

‘‘ठीक है, कोशिश करती हूं,’’ कह आशी थोड़ी देर बैठ घर चली गई.

मैं मन ही मन सोच रही थी कि एक औरत पुरुष के सामने इतना विवश क्यों हो जाती है कि अपने बच्चे को जन्म देने में भी उसे अपने पति की स्वीकृति लेनी होती है?

खैर, आशी ने रात को अपने पति निखिल को ‘साइलैंट स्क्रीम’ मूवी दिखाई. मैं बहुत उत्सुक थी कि अगले दिन आशी क्या खबर लाती है?

अगले दिन जब आशी बेटियों को स्कूल बस में बैठाने आई तो कुछ चहक सी रही थी, जो अच्छा संकेत था. फिर भी मेरा मन न माना तो मैं उसे सैर के लिए ले गई और फिर एकांत मिलते ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ आशी, निखिल तुम्हारी बात मान गए? तुम ने मूवी दिखाई उन्हें?’’

वह कहने लगी, ‘‘हां ऋचा तुम कितनी अच्छी हो. तुम ने मेरे लिए कितना सोचा… जब रात को मैं ने निखिल को ‘साइलैंट स्क्रीम’ यूट्यूब पर दिखाई तो वे मुझे देख स्वयं भी रोने लगे और जब मैं ने बताया कि देखिए बच्चा कैसे तड़प रहा है तो फूटफूट कर रोने लगे. फिर मैं ने कहा कि यदि हमारे बच्चे का लिंग परीक्षण कर गर्भपात करवाया तो उस का भी यही हाल होगा… अब निखिल ने वादा किया है कि वे ऐसा नहीं होने देंगे. चाहे कुछ भी हो जाए.’’

मैं ने सोचा काश, आशी जो कह रही है वैसा ही हो. किंतु जैसे ही निखिल ने मां को अपना फैसला सुनाया कि चाहे बेटा हो या बेटी उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. वह अपने बच्चे का लिंग परीक्षण नहीं करवाएगा तो उस की मां बिफर पड़ीं. कहने लगीं कि क्या तू ने भी आशी से पट्टी पढ़ ली है?’’

‘‘मां, यह मेरा फैसला है और मैं इसे हरगिज नहीं बदलूंगा,’’ निखिल बोला.

अब तो निखिल की मां आशी को रोज ताने मारतीं. निखिल का भी जीना हराम कर दिया था. निखिल ने मां को समझाने की बहुत कोशिश की कि वह आशी को ताने न दें. वह गर्भवती है, इस बात का ध्यान रखें.

आशी तो अपने मातापिता के घर भी नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि वे भी तो यही चाहते थे कि बस आशी को एक बेटा हो जाए.

निखिल मां को समझाता, ‘‘मां, ये सब समाज के लोगों के बनाए नियम हैं कि बेटा वंश बढ़ाता है, बेटियां नहीं. इन के चलते ही लोग बेटियों की कोख में ही हत्या कर देते हैं. मां यह घोर अपराध है… तुम्हारी और दीदी की बातों में आ कर मैं यह अपराध करने जा रहा था, किंतु अब ऐसा नहीं होगा.’’

निखिल की बातें सुन कर एक बार को तो उस की मां को झटका सा लगा, पर पोते की चाह मन से निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी.

अगले दिन जब निखिल दफ्तर गया तो उस की मां आशी को कोसने लगीं, ‘‘मेरा बेटा कल तक मेरी सारी बातें मानता था… अब तुम ने न जाने क्या पट्टी पढ़ा दी कि मेरी सुनता ही नहीं.’’

अब घर में ये कलह बढ़ती ही जा रही थी. आज आशी और निखिल दोनों ही मां से परेशान हो कर मेरे घर आए. मैं ने जब उन की सारी बातें सुन लीं तो कहा, ‘‘एक समस्या सुलझती नहीं की दूसरी आ जाती है. पर समाधान तो हर समस्या का होता है.’’

अब मां का क्या करें? रोज घर में क्लेश होगा तो आशी के होने वाले बच्चे पर भी तो उस का बुरा प्रभाव पड़ेगा,’’ निखिल बोला.

मैं ने उन के जाने के बाद अपनी मां से आशी व निखिल की मजबूरी बताते हुए कहा, ‘‘मां, क्या आप आशी की डिलिवरी नहीं करवा सकतीं? बच्चा होने तक आशी तुम्हारे पास रह ले तो ठीक रहेगा.’’

मां कहने लगीं, ‘‘बेटी, इस से तो नेक कोई काम हो ही नहीं सकता. यह तो सब से बड़ा मानवता का काम है. मेरे लिए तो जैसे तुम वैसे ही आशी, पर क्या उस के पति मानेंगे?’’

‘‘पूछती हूं मां,’’ कह मैं ने फोन काट दिया.

अब मैं ने निखिल के सामने सारी स्थिति रख दी कि वह आशी को मेरी मां के घर छोड़ दे.

मेरी बात सुन कर निखिल को हिचकिचाहट हुई.

तब मैं ने कहा, ‘‘निखिल आप भी तो मेरे पति जब यहां नहीं होते हैं तो हर संभव मदद करते हैं. क्या मुझे मेरा फर्ज निभाने का मौका नहीं देंगे?’’

मेरी बात सुन कर निखिल मुसकरा दिया, बोला, ‘‘जैसा आप ठीक समझें.’’

‘‘और आशी जब तुम स्वस्थ हो जाओ तो तुम भी मेरी कोई मदद कर देना,’’ मैं ने कहा. यदि हम एकदूसरे के सुखदुख में काम न आएं तो सहेली का रिश्ता कैसा?

मेरी बात सुन आशी ने भी मुसकरा कर हामी भर दी. फिर क्या था. निखिल आशी की जरूरत का सारा सामान पैक कर आशी को मेरी मां के पास छोड़ आ गया.

वक्त बीता. 9 माह पूरे हुए. आशी ने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया, जिस की शक्ल हूबहू आशी की सास व पति से मिलती थी.

उस के पति निखिल ने जब अपनी बेटी को देखा तो फूला न समाया. वह आशी को अपने घर चलने को कहने लगा, लेकिन मेरी मां ने कहा कि बेटी थोड़ी बड़ी हो जाए तब ले जाना ताकि आशी स्वयं भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सके.

इधर आशी की मां निखिल से रोज पूछतीं, ‘‘निखिल बेटा, आशी को क्या हुआ बेटा या बेटी?’’

‘‘मां, बेटी हुई है पर जाने दो मां तुम्हें तो पोता चाहिए था न.’’

मां जब पूछतीं कि किस जैसी है बेटी तेरे जैसी या आशी जैसी. तो वह कहता कि मां क्या फर्क पड़ता है, है तो लड़की ही न.

अब आशी की सास से रहा नहीं जा

रहा था. अत: एक दिन बोलीं, ‘‘आशी को कब लाएगा?’’

‘‘मां अभी बच्ची छोटी है. थोड़ी बड़ी हो जाने दो फिर लाऊंगा. यहां 3 बच्चों को अकेली कैसे पालेगी?’’

यह सुन आशी की सास कहने लगीं, ‘‘और कितना सताएगा निखिल… क्या तेरी बच्ची पर हमारा कोई हक नहीं? माना कि मैं पोता चाहती थी पर यह बच्ची भी तो हमारी ही है. हम इसे फेंक तो न देंगे? अब तू मुझे आशी और मेरी पोती से कब मिलवाएगा यह बता?’’

निखिल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगले संडे को मां.’’

अगले रविवार ही निखिल अपनी मां को मेरी मां के घर ले गया. निखिल की मां आशी की बच्ची को देखने को बहुत उत्सुक थीं. उसे देखते ही लगीं शक्ल मिलाने. बोलीं, ‘‘अरे, इस की नाक तो बिलकुल आशी जैसी है और चेहरा निखिल तुम्हारे जैसा… रंग तो देखो कितना निखरा हुआ है,’’ वे अपनी पोती की नाजुक उंगलियों को छू कर देख रही थीं और उस के चेहरे को निहारे जा रही थीं.

तभी आशी ने कहा, ‘‘मां, अभी तो यह सोई है, जागेगी तब देखिएगा आंखें बिलकुल आप के जैसी हैं नीलीनीली… आप की पोती बिलकुल आप पर गई है मां.’’

यह सुन आशी की सास खुश हो उठीं और फिर मेरी मां को धन्यवाद देते हुए बोलीं, ‘‘आप ने बहुत नेक काम किया है बहनजी, जो आशी की इतनी संभाल की… मैं किन शब्दों में आप का शुक्रिया अदा करूं… अब आप इजाजत दें तो मैं आशी को अपने साथ ले जाऊं.’’

‘‘आप ही की बेटी है बेशक ले जाएं… बस इस का सामान समेट देती हूं.’’

‘‘अरे, आप परेशान न हों. सामान तो निखिल समेट लेगा और अगले रविवार को वह आशी को ले जाएगा. अभी जल्दबाजी न करें. तब तक मैं आशी के स्वागत की तैयारियां भी कर लेती हूं.’’

अगले रविवार को निखिल आशी व उस की बेटी को ले कर अपने घर आ गया. उस की मां ने घर को ऐसे सजाया था मानो दीवाली हो. आशी का कमरा खूब सारे खिलौनों से सजा था. आशी की सास उस की बेटी के लिए ढेर सारे कपड़े लाई थीं.

जब आशी घर पहुंची तो निखिल की मां दरवाजे पर खड़ी थीं. उन्होंने झट से अपनी पोती को गोद में ले कर कहा, ‘‘आशी, मुझे माफ कर दो. मैं अज्ञान थी या यों कहो कि पोते की चाह में अंधी हो गई थी और सोचनेसमझने की क्षमता खत्म हो गई थी. लेकिन बहू तुम बहुत समझदार हो. तुम ने मेरी आंखें खोल दीं… मुझे व हमारे पूरे घर को एक घोर अपराध करने से बचा लिया. अब सारा घर खुशियों से भर गया है. फिर वे अपनी बेटी व अन्य रिश्तेदारों को समझाने लगीं कि कन्या भू्रण हत्या अपराध है… उन्हें भी बेटेबेटी में फर्क नहीं करना चाहिए. बेटियां भी वंश बढ़ा सकती हैं, जमीनजायदाद संभाल सकती हैं. जरूरत है तो सिर्फ हमें अपना नजरिया बदलने की.’’

अटूट बंधन: प्रकाश ने आखिर कैसी लड़की का हाथ थामा

बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. आधे घंटे से लगातार हो रही थी. 1 घंटा पहले जब वे दोनों रैस्टोरैंट में आए थे, तब तो मौसम बिलकुल साफ था. फिर यह अचानक बिन मौसम की बरसात कैसी? खैर, यह इस शहर के लिए कोई नई बात तो नहीं थी परंतु फिर भी आज की बारिश में कुछ ऐसी बात थी, जो उन दोनों के बोझिल मन को भिगो रही थी. दोनों के हलक तक कुछ शब्द आते, लेकिन होंठों तक आने का साहस न जुटा पा रहे थे. घंटे भर से एकाध आवश्यक संवाद के अलावा और कोई बात संभव नहीं हो पाई थी.

कौफी पहले ही खत्म हो चुकी थी. वेटर प्याले और दूसरे बरतन ले जा चुका था. परंतु उन्होंने अभी तक बिल नहीं मंगवाया था. मौन इतना गहरा था कि दोनों सहमे हुए स्कूली बच्चों की तरह उसे तोड़ने से डर रहे थे. प्रकाश त्रिशा के बुझे चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करता पर अगले ही पल सहम कर अपनी पलकें झुका लेता. कितनी बड़ीबड़ी और गहरी आंखें थीं त्रिशा की. त्रिशा कुछ कहे न कहे, उस की आंखें सब कह देती थीं.

इतनी उदासी आज से पहले प्रकाश ने इन आंखों में कभी नहीं देखी थी. ‘क्या सचमुच मैं ने इतनी बड़ी गलती कर दी, पर इस में आखिर गलत क्या है?’ प्रकाश का मन इस उधेड़बुन में लगा हुआ था.

‘होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है…’ दोनों की पसंदीदा यह गजल धीमी आवाज में चल रही थी. कोई दिन होता तो दोनों इस के साथसाथ गुनगुनाना शुरू कर देते पर आज…

आखिरकार त्रिशा ने ही बात शुरू करनी चाही. उस के होंठ कुछ फड़फड़ाए, ‘‘तुम…’’

‘‘तुम कुछ पूछना चाहती हो?’’ प्रकाश ने पूछ ही लिया.

‘‘हां, कल तुम्हारा टैक्स्ट मैसेज पढ़ कर मैं बहुत हैरान हुई.’’

‘‘जानता हूं पर इस में हैरानी की क्या बात है?’’

‘‘पर सबकुछ जानते हुए भी तुम यह सब कैसे सोच सकते हो, प्रकाश?’’ इस बार त्रिशा की आवाज पहले से ज्यादा ऊंची थी.

प्रकाश बिना कुछ जवाब दिए फर्श की तरफ देखने लगा.

‘‘देखो, मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए. क्या है यह सब?’’ त्रिशा ने उखड़ी हुई आवाज से पूछा.

‘‘जो मैं महसूस करने लगा हूं और जो मेरे दिल में है, उसे मैं ने जाहिर कर दिया और कुछ नहीं. अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो मुझे माफ कर दो, लेकिन मैं ने जो कहा है उस पर गौर करो.’’ प्रकाश रुकरुक कर बोल रहा था, लेकिन वह यह भी जानता था कि त्रिशा अपने फैसले पर अटल रहने वाली लड़की है.

पिछले 3 वर्षों से जानता है उसे वह, फिर भी न जाने कैसे साहस कर बैठा. पर शायद प्रकाश उस का मन बदल पाए.

त्रिशा अचानक खड़ी हो गई. ‘‘हमें चलना चाहिए. तुम बिल मंगवा लो.’’

बिल अदा कर के प्रकाश ने त्रिशा का हाथ पकड़ा और दोनों बाहर चले आए. बारिश धीमी हो चुकी थी. बूंदाबांदी भर हो रही थी. प्रकाश बड़ी सावधानी से त्रिशा को कीचड़ से बचाते हुए गाड़ी तक ले आया.

त्रिशा और प्रकाश पिछले 3 वर्ष से बेंगलरु की एक प्रतिष्ठित मल्टीनैशनल कंपनी में कार्य करते थे. त्रिशा की आंखों की रोशनी बचपन से ही जाती रही थी. अब वह बिलकुल नहीं देख सकती थी. यही वजह थी कि उसे पढ़नेलिखने व नौकरी हासिल करने में हमेशा बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. पर यहां प्रकाश और दूसरे कई सहकर्मियों व दोस्तों को पा कर वह खुद को पूरा महसूस करने लगी थी. वह तो भूल ही गई थी कि उस में कोई कमी है.

वैसे भी उस को देख कर कोई यह अनुमान ही नहीं लगा सकता था कि वह देख नहीं सकती. उस का व्यक्तित्व जितना आकर्षक था, स्वभाव भी उतना ही अच्छा था. वह बेहद हंसमुख और मिलनसार लड़की थी. वह मूलतया दिल्ली की रहने वाली थी. बेंगलुरु में वह एक वर्किंग वुमेन होस्टल में रह रही थी. प्रकाश अपने 2 दोस्तों के साथ शेयरिंग वाले किराए के फ्लैट में रहता था. प्रकाश का फ्लैट त्रिशा के होस्टल से आधे किलोमीटर की दूरी पर ही था.

रोजाना त्रिशा जब होस्टल लौटती तो प्रकाश कुछ न कुछ ऐसी हंसीमजाक की बात कर देता, जिस कारण त्रिशा होस्टल आ कर भी उस बात को याद करकर के देर तक हंसती रहती. परंतु आज जब प्रकाश उसे होस्टल छोड़ने आया तो दोनों में से किसी ने भी कोई बात नहीं की. होस्टल आते ही त्रिशा चुपचाप उतर गई. उस का सिर दर्द से फटा जा रहा था. तबीयत कुछ ठीक नहीं मालूम होती थी.

डिनर के वक्त उस की सहेलियों ने महसूस किया कि आज वह कुछ अनमनी सी है. सो, डिनर के बाद उस की रूममेट और सब से अच्छी सहेली शालिनी ने पूछा, ‘‘क्या बात है त्रिशा, आज तुम्हें आने में देरी क्यों हो गई? सब ठीक तो है न.’’

‘‘हां, बिलकुल ठीक है. बस, आज औफिस में काम कुछ ज्यादा था,’’ त्रिशा ने जवाब तो दिया पर आज उस के बात करने में रोज जैसी आत्मीयता नहीं थी.

शालिनी को ऐसा लगा जैसे त्रिशा उस से कुछ छिपा रही थी. फिर भी त्रिशा को छेड़ने के लिए गुदगुदाते हुए उस ने कहा, ‘‘अब इतनी भी उदास मत हो जाओ, उन को याद कर के. जानती हूं भई, याद तो आती है, पर अब कुछ ही दिन तो बाकी हैं न.’’

त्रिशा अपनी आदत के अनुसार मुसकरा उठी. शालिनी को जरा परे धकेलते हुए बोली, ‘‘जाओ, मैं नहीं करती तुम से बात. जब देखो एक ही रट.’’

तभी अचानक त्रिशा का मोबाइल बज उठा.

‘‘उफ, कितनी लंबी उम्र है उन की. नाम लिया और फोन हाजिर,’’ शालिनी उछल पड़ी. ‘‘खूब इत्मीनान से जी हलका कर लो. मैं तो चली,’’ कहती हुई शालिनी कमरे से बाहर निकल गई.

दरअसल, बात यह थी कि कुछ ही दिनों में त्रिशा का प्रेमविवाह होने वाला था. डा. आजाद, जिन से जल्द ही त्रिशा का विवाह होने वाला था, लखनऊ विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक थे. त्रिशा और आजाद ने दिल्ली के एक स्पैशल स्कूल से साथसाथ ही पढ़ाई पूरी की थी. उस के बाद आजाद अपने घर लखनऊ वापस आ गए थे. वहीं से उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की और फिर अपनी रिसर्च भी पूरी की. रिसर्च पूरी करने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल गई. ऐसा लगता था कि त्रिशा और आजाद एकदूसरे के लिए ही बने थे.

स्कूल में लगातार पनपने वाला लगाव  और आकर्षण एकदूसरे से दूर हो कर प्यार में कब बदल गया, पता ही नहीं चला. शीघ्र ही दोनों ने विवाह के अटूट बंधन में बंधने का फैसला कर लिया. दोनों के न देख पाने के कारण जाहिर है परिवार वालों को स्वीकृति देने में कुछ समय तो लगा, पर उन दोनों के आत्मविश्वास और निश्छल प्रेम के आगे एकएक कर सब को झुकना ही पड़ा.

त्रिशा के बेंगलुरु आने के बाद आजाद बहुत खुश थे. ‘‘चलो अच्छा है, वहां तुम्हें इतने अच्छे दोस्त मिल गए हैं. अब मुझे तुम्हारी इतनी चिंता नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘अच्छी बात तो है, पर इस बेफिक्री का यह मतलब नहीं कि आप हमें भूल जाएं,’’ त्रिशा आजाद को परेशान करने के लिए यह कहती तो आजाद का जवाब हमेशा यही होता, ‘‘खुद को भी कोई भूल सकता है क्या.’’

आज जब त्रिशा आजाद से बात कर रही थी तो आजाद को समझते देर न लगी कि त्रिशा आज उन से कुछ छिपा रही है, ‘‘क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान हो?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘त्रिशा, इंसान अगर खुद से ही कुछ छिपाना चाहे तो नहीं छिपा सकता,’’ आजाद की आवाज में कुछ ऐसा था, जिसे सुन कर त्रिशा की आंखें डबडबा आईं. ‘‘मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है. मैं आप से कल बात करती हूं,’’ यह कह कर त्रिशा ने फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

अगले दिन त्रिशा और प्रकाश के बीच औफिस में भी कोई बात नहीं हुई. ऐसा पहली बार ही हुआ था. प्रकाश का मिजाज आज एकदम उखड़ाउखड़ा था.

‘‘चलो,’’ शाम को उस ने त्रिशा के पास आ कर कहा. रास्तेभर दोनों ने कोई बात नहीं की. होस्टल आने ही वाला था कि त्रिशा ने खीझ कर कहा, ‘‘तुम कुछ बोलोगे भी कि नहीं?’’

‘‘मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए.’’

कितनी डूबती हुई आवाज थी प्रकाश की. 3 साल में त्रिशा ने प्रकाश को इतना खोया हुआ कभी नहीं देखा था. पिछले 2 दिन में प्रकाश में जो बदलाव आए थे, उन पर गौर कर के त्रिशा सहम गई. ‘क्या वाकई प्रकाश… क्या प्रकाश… नहीं, ऐसा नहीं हो सकता,’ त्रिशा का मन विचलित हो उठा. ‘मुझे तुम से कल बात करनी है. कल छुट्टी भी है. कल सुबह 11 बजे मिलते हैं. गुडनाइट,’’ कहते हुए त्रिशा गाड़ी से उतर गई.

जैसा तय था, अगले दिन दोनों 11 बजे मिले. बिना कुछ कहेसुने दोनों के कदम अनायास ही पार्क की ओर बढ़ते चले गए. त्रिशा के होस्टल से एक किलोमीटर की दूरी पर ही शहर का सब से बड़ा व खूबसूरत पार्क था. ऐसे ही छुट्टी के दिनों में न जाने कितनी ही बार वे दोनों यहां आ चुके थे. पार्क के भीतरी गेट पर पहुंच कर दोनों को ऐसा लगा जैसे आज असाधारण भीड़ उमड़ पड़ी हो.

भीड़भाड़ और चहलपहल तो हमेशा ही रहती है यहां, पर आज की भीड़ में कुछ खास था. सैकड़ों जोड़े एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले अंदर चले जा रहे थे. बहुतों के हाथ में गुलाब का फूल, किसी के पास चौकलेट तो किसी के हाथ में गिफ्ट पैक. पर प्रकाश का मन इतना अशांत था कि वह कुछ समझ ही नहीं सका.

हवा जोरों से चलने लगी थी. बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर ऐसा मालूम होता था कि किसी भी पल बरस पड़ेंगे. मौसम की तरह प्रकाश का मन भी आशंकाओं से घिर आया था. त्रिशा को लगा, शायद आज यहां नहीं आना चाहिए था. तभी अचानक उस का मोबाइल बज उठा. ‘‘हैप्पी वैलेंटाइंस डे, मैडम,’’ आजाद की आवाज थी.

‘‘ओह, मैं तो बिलकुल भूल ही गई थी,’’ त्रिशा बोली.

‘‘आजकल आप भूलती बहुत हैं. कोई बात नहीं. अब आप का गिफ्ट नहीं मिलेगा, बस, इतनी सी सजा है,’’ आजाद ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, अभी हम थोड़ा जल्दी में हैं. शाम को बात करते हैं.’’

आज बैंच खाली मिलने का तो सवाल नहीं था. सो, साफसुथरी जगह देख दोनों घास पर ही बैठ गए. त्रिशा अकस्मात पूछ बैठी, ‘‘क्या तुम वाकई सीरियस हो?’’

‘‘तुम समझती हो कि मैं मजाक कर रहा हूं?’’ प्रकाश का स्वर रोंआसा हो उठा.

त्रिशा ने रुकरुक कर बोलना शुरू किया, ‘‘देखो, 3 वर्ष में हम एकदूसरे को पूरी तरह जानने लगे हैं. मेरा तो कोई काम तुम्हारे बगैर नहीं होता. सच तो यह है, इस शहर में आ कर मैं तो अपनी जिम्मेदारियां ही भुला बैठी हूं. मैं ने तो अभी सोचा भी नहीं कि यहां से जाने के बाद मैं कैसे मैनेज करूंगी. पर प्रकाश, आजाद को मैं ने अपने जीवनसाथी के रूप में देखा है. उन के सिवा मैं किसी और के बारे में सोच भी कैसे…’’

प्रकाश बीच में ही बोल उठा, ‘‘मैं सब जानता हूं, लेकिन जिंदगी इतनी आसान भी नहीं होती, जितना तुम लोग सोच रहे हो. मुझे तुम्हारी फिक्र सताती है. पैसे खर्च कर के ही क्या सबकुछ मिल सकता है? इन सब बातों से अलग, सच तो यह भी है कि मेरे दिल में तुम्हारे लिए चाहत कब पैदा हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. मैं तुम्हें ऐसे अकेले नहीं छोड़ सकता. प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश करो, त्रिशा.’’

अगले कुछ पल रुक कर त्रिशा ने कहा, ‘‘मैं अच्छी तरह जानती हूं, तुम मेरी कितनी फिक्र करते हो लेकिन जो प्रस्ताव तुम्हारा है, उस के बारे में सोचने का मेरे लिए सवाल ही पैदा नहीं होता. मैं ने हमेशा यही चाहा था कि मैं जिस कमी के साथ जी रही हूं, जीवनसाथी भी वैसा ही चुनूंगी ताकि हम एकदूसरे की ताकत बन कर कदमकदम पर हौसलाअफजाई कर सकें और आत्मनिर्भर हो कर जी सकें. फिर, आजाद तो मेरे जीवन में एक अलग ही खुशी ले कर आए हैं.

मैं यकीन के साथ कह सकती हूं, उन की खूबियां और जीवन के प्रति उन का पौजिटिव रुख ही हमारे घर को खुशियों से भर देगा. जानती हूं, जीवन के हर मोड़ पर चुनौतियां होंगी, लेकिन हम दोनों का एकदूसरे के प्रति विश्वास, सम्मान और प्यार ही हमें उन चुनौतियों से उबरने की ताकत देगा. रही बात तुम्हारी, तो मैं अपने इतने अच्छे दोस्त को कभी खोना नहीं चाहती. मेरे लिए, प्लीज, मेरे लिए मुझे मेरा सब से अच्छा दोस्त वापस दे दो. अगले महीने मेरी इंगेजमैंट है. अगर तुम इसी तरह परेशान रहोगे तो क्या मुझे तकलीफ नहीं होगी?’’ इतने दिनों का सैलाब अब प्रकाश की आंखों से बह चला.

त्रिशा की जिद और कोशिशों के चलते प्रकाश धीरेधीरे नौर्मल होने लगा. त्रिशा की इंगेजमैंट हुई और फिर शादी के दिन भी करीब आ गए. त्रिशा ने आधी से ज्यादा शौपिंग प्रकाश और शालिनी के साथ ही कर ली थी.

एक शाम त्रिशा के पास प्रकाश के मम्मीपापा का फोन आया. लंबी बातचीत के बाद प्रकाश के पापा ने त्रिशा से कहा, ‘‘बेटा, प्रकाश को शादी के लिए तुम ही तैयार कर सकती हो. हो सके तो उसे समझाओ, इतनी देर करना भी अच्छी बात नहीं. हमारी तो बात ही टाल देता है.’’

त्रिशा हंस पड़ी, ‘‘बस, इतनी सी बात है, अंकल. आप बिलकुल चिंता मत कीजिए. मैं उसे राजी कर लूंगी.’’

यों तो त्रिशा ने पहले भी उस से शादी का जिक्र छेड़ा था, पर हर बार वह उस की बात अनसुनी कर देता था. एक दिन प्रकाश ने त्रिशा से पूछा, ‘‘अच्छा बताओ, तुम्हें शादी पर क्या गिफ्ट दूं?’’

त्रिशा का उत्तर था, ‘‘तुम मुझे जो चाहे गिफ्ट दे देना, पर तुम्हारी शादी के लिए तुम्हारी हां मेरे लिए सब से कीमती गिफ्ट होगा.’’

प्रकाश उस दिन खामोश रहा. त्रिशा की शादी की तैयारियों में प्रकाश ने खुद को इतना उलझा लिया कि उसे अपनी सुध ही नहीं रही. हफ्तेभर पहले छुट्टी ले कर प्रकाश भी त्रिशा के साथ दिल्ली चला आया. यहां आ कर शादी की लगभग सभी जिम्मेदारियां प्रकाश ने संभाल लीं. मेहंदी, हलदी, कोर्ट मैरिज और फिर ग्रैंड रिसैप्शन पार्टी.

यह तय था कि शादी के बाद आजाद भी कुछ दिनों के लिए बेंगलुरु घूम आएंगे. त्रिशा की कंपनी का औफिस लखनऊ में नहीं था, इसलिए बेंगलुरु आ कर त्रिशा ने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उस ने सोच रखा था कि लखनऊ जा कर कुछ दिन घरगृहस्थी ठीकठाक कर के थोड़ा उस शहर के बारे में समझने के बाद वहीं किसी दूसरी नौकरी की तलाश करेगी.

‘‘भई, हम जानते हैं, आप बहुत थक गए हैं, पर हमें बेंगलुरु तो आप ही घुमाएंगे,’’ आजाद ने प्रकाश से कहा तो प्रकाश बोला, ‘‘सोच लीजिए, बदले में आप को हमें लखनऊ की सैर करवानी पड़ेगी.’’

‘‘कब आ रहे हैं आप?’’

‘‘बहुत जल्द, अपनी शादी के बाद.’’

‘‘अच्छा, तो जनाब ने शादी का फैसला कर लियाऔर हमें खबर तक नहीं हुई. सुन रही हो त्रिशा.’’

त्रिशा को भी यह सुन कर तसल्ली हुई, ‘‘फैसला तो नहीं किया पर…’’ प्रकाश बोलतेबोलते रुक गया और फिर उस ने बात बदल दी. बेंगलुरु में वह हफ्ता तो जैसे चुटकियों में कट गया.

प्रकाश ने त्रिशा और आजाद को गाड़ी में बैठा कर उन का सारा सामान व्यवस्थित करवा दिया. गाड़ी यहीं से बन कर चलती थी, इसलिए लेट होने का तो सवाल ही नहीं था. जैसे ही गाड़ी प्लेटफौर्म छोड़ने लगी, सभी का मन भारी हो गया. प्रकाश शायद बिना कुछ बोले ही चला गया था. त्रिशा की आंखें भी नम हो आईं.

तभी अचानक सामने बैठे पैसेंजर ने आजाद का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘‘आप का छोटा बैग मैं इस साइड टेबल पर रख देता हूं. मैं भी लखनऊ जा रहा हूं. आप के सामने की लोअर बर्थ मेरी ही है. कोई भी जरूरत हो तो आप लोग बेझिझक मुझे आवाज दे दीजिएगा. मेरा नाम प्रकाश है.’’ अनजाने ही त्रिशा के होंठों पर मुसकान छा गई.

अगली सुबह घर पहुंचने के कुछ ही देर बाद उन्हें एक कूरियर मिला. यह त्रिशा के नाम का कूरियर था. ‘‘हैप्पी बर्थडे त्रिशा. तुम्हारा सब से कीमती तोहफा भेज रहा हूं,’’ प्रकाश ने लिखा था. उस में त्रिशा के लिए खूबसूरत सी ब्रेल घड़ी थी और एक शादी का कार्ड.

त्रिशा उछल पड़ी, ‘‘वाह, इतना बड़ा सरप्राइज. इतनी जल्दी कैसे होगा सब? महीनेभर बाद की ही तो तारीख है.’’

शादी से 2 दिन पहले आजाद और त्रिशा भोपाल पहुंचे तो प्रकाश ने रचना से उन का परिचय करवाया. ‘‘इतने कम समय में प्रकाश को तो कुछ बताने की फुरसत ही नहीं मिली. अब तुम ही कुछ बताओ न रचना अपने बारे में?’’ त्रिशा ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘बस, अभी आई. पहले जरा मुंह तो मीठा कीजिए, फिर बैठ कर ढेर सारी बातें करते हैं,’’ कहते हुए रचना उठी तो दाहिनी तरफ के सोफे पर बैठे आजाद से टकरातेटकराते बची. अचानक लगने वाले धक्के से आजाद के हाथ से मोबाइल छूट कर फर्श पर गिर पड़ा.

‘‘अरे, आराम से,’’ कहते हुए प्रकाश आजाद का मोबाइल उठाने के लिए झुका.

अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए अनायास ही रचना के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘ओह, माफी चाहती हूं, डाक्टर साहब. दरअसल, मैं देख नहीं सकती.’’

साइबर अरेस्ट का खेल शिकारी आएगा जाल बिछाएगा

आधुनिक समय में साइबर अरेस्ट की अनेक घटनाएं देश में घटित हो रही हैं, लोग फर्जी साइबर अरेस्ट के चक्कर में लाखों रुपए की ठगी का शिकार हो रहे हैं.

आइए, आज आप को बताते हैं इस तरह की घटनाओं और इस से बचाव के बारे में :

देश की राजधानी दिल्ली के सुभाष नगर में एक युवती को औनलाइन बंधक (डिजिटल अरेस्ट) कर ₹2 लाख की ठगी कर ली गई. आरोपियों ने पीड़ता को बताया कि उस ने जो पार्सल भेजा है, उस में मादक पदार्थ व दूसरी गैरकानूनी चीजें हैं और इस मामले में उसे गिरफ्तार किया जा सकता है. इस धमकी से युवती घबरा गई। ठगों ने पीड़िता का बैंक खाता जांच करने के नाम पर ₹2 लाख ऐंठ लिए.

ठगी हो जाने के एहसास के बाद

पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर मामला दर्ज कर लिया है. पीड़िता अपने परिवार के साथ सुभाष नगर इलाके में परिवार के साथ रहती है. दरअसल, 28 जुलाई, 2024 को उस के मोबाइल पर अज्ञात नंबर से फोन आया,”मैडम, मैं मुंबई से फेडेक्स कूरियर कंपनी का प्रतिनिधि बोल रहा हूं। आप के नाम का एक पार्सल ताइवान जा रहा है. पार्सल में 8 विदेशी पासपोर्ट, 5 एसबीआई क्रैडिट कार्ड, 300 ग्राम मादक पदार्थ, एक लैपटौप और कपड़े हैं.”

इस के बाद ठगों ने कानूनी काररवाई की बात कह कर उसे डरा दिया. पीड़िता को डराने के लिए किसी को कुछ न बताने और कमरे में बंद रहने के लिए कहा. इस मामले में बचने के लिए ठगों ने उसे बैंक खाता वैरिफिकेशन करवाने के लिए कहा और बताय कि इस के लिए उसे ₹2 लाख अपने खाते से एक दूसरे खाते में भेजने होंगे. रिजर्व बैंक औफ इंडिया इस रकम को वैरीफाई करेगा और 15 मिनट में रकम वापस कर दिया जाएगा.

पीड़िता आरोपियों के झांसे में आ गई और उस ने रकम आरोपियों के खाते में भेज दी. पुलिस मामले की जांच कर रही है और आरोपियों की तलाश कर रही है.

क्या ऐसी घटनाओं से अवगत हैं

साइबर ठगी : एक व्यक्ति को सोशल मीडिया पर एक अज्ञात व्यक्ति ने संपर्क किया और उसे एक बड़ी रकम का लालच दे कर ठग लिया.

फ्रौड कौल : एक व्यक्ति को एक फ्रौड कौल आया, जिस में उसे बताया गया कि उस का बैंक खाता हैक हो गया है और उसे अपनी व्यक्तिगत जानकारी देनी होगी.

औनलाइन शौपिंग फ्रौड: एक व्यक्ति ने औनलाइन शौपिंग की और भुगतान किया, लेकिन सामान नहीं मिला.

जौब फ्रौड: एक व्यक्ति को नौकरी का लालच दे कर ठग लिया गया.

रोमांस स्कैम: एक व्यक्ति को सोशल मीडिया पर एक अज्ञात व्यक्ति ने संपर्क किया और उसे प्यार का लालच दे कर ठग लिया.

बैंक खाता हैक: एक व्यक्ति का बैंक खाता हैक हो गया और उस की रकम निकाल ली गई।

फेक वैबसाइट: एक व्यक्ति ने एक फेक वैबसाइट पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी दी और ठग लिया गया.

सोशल मीडिया फ्रौड: एक व्यक्ति को सोशल मीडिया पर एक अज्ञात व्यक्ति ने संपर्क किया और उसे ठग लिया.

इन घटनाओं से आपशको सावधान रहने की आवश्यकता है और साइबर सुरक्षा के बारे में जागरूक रहने की जरूरत है.

बिना जागरूकता के ठगे जाएंगे

औनलाइन अरेस्ट, जिसे डिजिटल अरेस्ट या साइबर अरेस्ट भी कहा जाता है, एक प्रकार की साइबर ठगी है जिसवमें आरोपी व्यक्ति को औनलाइन प्लेटफौर्म पर गिरफ्तार किया जाता है और उसे झूठे आरोपों में फंसाया जाता है.

दरअसल, औनलाइन अरेस्ट की कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह साइबर ठगी के तहत आता है जोकि एक दंडनीय अपराध है.

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत साइबर ठगी के मामलों में काररवाई की जा सकती है. जो व्यक्ति किसी व्यक्ति को धोखा दे कर या झूठे आरोपों में फंसा कर उस की संपत्ति या मूल्य की चीजें प्राप्त करता है, वह दंडनीय अपराध का दोषी होता है.

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत, जो व्यक्ति किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग कर के या झूठे आरोपों में फंसा कर उस की संपत्ति या मूल्य की चीजें प्राप्त करता है, वह दंडनीय अपराध का दोषी होता है.

औनलाइन अरेस्ट के मामलों में पीड़ित व्यक्ति को तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज करानी चाहिए और साइबर सेल की मदद लेनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट और अन्य कोर्ट्स ने औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी के मामलों में टिप्पणी की है. यहां कुछ उदाहरण हैं :

सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा कि औनलाइन ठगी के मामलों में पुलिस को तुरंत काररवाई करनी चाहिए और पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में एक मामले में कहा कि साइबर ठगी के मामलों में आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले पुलिस को सावधानी से जांच करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि आरोपी व्यक्ति दोषी है.

कोर्ट्स औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी के मामलों में सख्ती से निबटने के लिए कह रहे हैं और पुलिस को सावधानी से जांच करने और पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए कह रहे हैं.

दिल्ली: दिल्ली में एक व्यक्ति को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹50 हजार की ठगी का शिकार बनाया गया. आरोपी ने व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के एक जिले में एक महिला को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹2 लाख की ठगी का शिकार बनाया गया. आरोपी ने महिला को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

महाराष्ट्र: महाराष्ट्र के एक शहर में एक व्यक्ति को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹1 लाख की ठगी का शिकार बनाया गया.आरोपी ने व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

राजस्थान: राजस्थान के एक जिले में एक व्यक्ति को औनलाइन अरेस्ट किया गया और उसे ₹30 हजार की ठगी का शिकार बनाया गया. आरोपी ने व्यक्ति को झूठे आरोपों में फंसाया और पैसे मांगे.

इन घटनाओं से पता चलता है कि औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी के मामले पूरे देश में बढ़ रहे हैं और लोगों को सावधान रहने की आवश्यकता है.

विधि विद्वानों ने औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी से बचने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं :

औनलाइन लेनदेन करते समय सावधानी बरतें और अनजान लोगों से पैसे न मांगें। साइबर ठगी से बचने के लिए अपने पासवर्ड और सुरक्षा जानकारी को सुरक्षित रखें। औनलाइन अरेस्ट के मामलों में पुलिस को तुरंत सूचित करें और साइबर सेल की मदद लें. अपने बैंक खाते और क्रैडिट कार्ड की जानकारी को सुरक्षित रखें और अनजान लोगों से साझा न करें.

औनलाइन लेनदेन करते समय सुनिश्चित करें कि वैबसाइट सुरक्षित है और निर्धारित प्रोटोकौल का उपयोग करती है.

इन सुझावों को अपना कर हम औनलाइन अरेस्ट और साइबर ठगी से बच सकते हैं और अपनी वित्तीय सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकते हैं.

स्नैक्स में दलिए से बनाएं नवाबी शेजवान रोल, नोट करें बनाने का ये आसान तरीका

स्नैक्स यानि ऐसा नाश्ता जिसे ब्रैकफास्ट अथवा लंच और डिनर के बीच खाया जा सके इस के अतिरिक्त घर में बर्थडे अथवा अन्य कोई छोटीमोटी पार्टी हो तो उस में भी स्नैक्स से ही भोजन की शुरुआत की जाती है.

चूंकि इसे लंच और डिनर के बीच में खाया जाता है इसलिए इसशका हैल्दी होना बेहद आवश्यक होता है ताकि शरीर को पर्याप्त पोषण तो मिले पर कैलोरी सीमित रहे.

गेहूं का दलिया आमतौर पर प्रत्येक घर में उपलब्ध होता है. इस में फाइबर, विटामिंस, ऐंटीऔक्सिडेंट, मिनरल्स, आयरन, कैल्सियम और अमीनो ऐसिड भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं इसलिए इसे खाना सेहत के लिए फायदेमंद होता है.

कितने लोगों के लिए : 8

बनने में लगने वाला समय : 20 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री (कवर के लिए)

पका दलिया : 1 कप
ब्रेड क्रंब्स : 1 कप
शेजवान सौस : 1 टीस्पून
नमक : ¼ टीस्पून
जीरा : ¼ टीस्पून
हलदी पाउडर : ¼ टीस्पून
तलने के लिए तेल पर्याप्त मात्रा में

सामग्री(फिलिंग के लिए)

उबले आलू : 2
उबली मटर : 1 कप
बारीक कटी गाजर : 1
बारीक कटी हरीमिर्च : 2
कटा प्याज : 1
कटा अदरक : 1 इंच
बारीक कटे काजू : 10
कटी किशमिश : 8-10
जीरा : ¼ टीस्पून
लालमिर्च पाउडर : ¼ टीस्पून
शेजवान चटनी : 1 टेबलस्पून
अमचूर पाउडर : ¼ टीस्पून
नमक स्वादानुसार
तेल : 1 टीस्पून
बारीक कटा हरा धनियापत्ती : 1टीस्पून

विधि

उबले दलिया में ब्रेड क्रंब्स, शेजवान सौस, नमक, जीरा और हलदी पाउडर अच्छी तरह मिला कर 20 मिनट के लिए ढक कर रख दें. फिलिंग बनाने के लिए गरम तेल में हरीमिर्च, अदरक और प्याज भून कर कटे काजू और किशमिश डाल कर चलाएं. अब गाजर और मटर डाल कर सभी मसाले, नमक और 1 टेबलस्पून पानी डाल कर ढक कर गाजर व मटर के गलने तक पकाएं. उबले आलू और शेजवान चटनी डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. हरा धनिया डाल कर मिश्रण को ठंडा होने दें. जब यह ठंडा हो जाए तो 1 बड़ा चम्मच मिश्रण ले कर आधा इंच लंबे रोल्स बना लें.

दलिए के मिश्रण से रोटी के बराबर की लोई ले कर हथेली पर फैलाएं और बीच में आलू का रोल रख कर चारों तरफ से अच्छी तरह बंद कर दें. इसी तरह सारे रोल्स तैयार कर लें. इन रोल्स को गरम तेल में मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक तल कर बटर पेपर पर निकालें और टोमैटो सौस के साथ सर्व करें.

नोट : यदि आप इन्हें किसी पार्टी के लिए बनाना चाहतीं हैं तो पहले से बना कर सिल्वर फौइल से कवर कर के फ्रिज में रखें और मेहमानों के आने पर सर्व करें.

आप डीप फ्राई करने के स्थान पर तेल से हलका सा ब्रश कर के एअर फ्रायर में भी 220 डिग्री पर 25 मिनट तक फ्रा भी कर सकती हैं.

इस फेस्टिव सीजन को बनाना चाहते हैं स्पैशल, तो बढ़ाएं दोस्ती का हाथ

फेस्टिव सीजन दस्तक देने को है. ऐसे में कहीं दिवाली पर घर में व्हाइट वाश कराने की चर्चा है, तो कहीं लोग डेकोरेशन के लिए DIY करने की तैयारी में हैं. कुछ को तोहफों की फिक्र सता रही है, वो क्या है कि पिछली बार रीता ने अपने सास और ननद को जो गिफ्ट दी वो उन्हें खास पसंद नहीं आई, अब सास को पसंद है बनारसी लेकिन रीता ने उन्हें गिफ्ट की कौटन साड़ी. ऐसे में सास का मूड खराब की उनकी पसंदनापसंद को अच्छे से जानते हुए रीता ने उन्हें ऐसा गिफ्ट क्यों दिया. दूसरी ओर रीता का भी मूड औफ हो गया, वो सोच रही है कि पूरा दिन घर में सजावट, तरहतरह के पकवान बनाने के बाद अगर गिफ्ट थोड़ा आम हो गया तो क्या ही बात है. लेकिन उसकी सास की सोच जरा उससे जुदा है. उन्होंने तो गिफ्ट पसंद न आने की नाराज़गी भी सब रिश्तेदारों के सामने ही बयां कर दी. ऐसे में रिश्तेदारों, दोस्तों से भरे घर का मौहोल थोड़ा भारी हो गया. और रही बात रीता की तो, इतनी मेहनत के बाद भी वो फेस्टिवल का मजा नहीं उठा पाई, सिर्फ किचन और डाइनिंग रूम के चक्कर ही काटती रह गयी कि कहीं मेहमानों की आवभगत में कोई कमी न रह जाए.

दोस्ती का हाथ बढ़ाएं

त्योहार हम सब के जीवन में कुछ अच्छा होने की उम्मीद लेकर आते हैं. जहां हमें अपने खास लोगों से मिलने और खुशियां बांटने का मौका मिलता है. हम एक दूसरे को ऐसा तोहफा देना चाहते हैं, जिसे देख उनका चेहरा दिवाली की लाइटों की तरह ही मुस्कुराहट से जगमगा जाए. लेकिन इस सब साजसज्जा, गिफ्ट्स, कपड़ों के चक्कर में हम भूल जाते हैं कि त्यौहार सिर्फ मैटेरियलिस्टिक चीजों से नहीं रिश्तों से खास बनते हैं. तो क्यों न इस बार हम रिश्तों को एक नया नज़रिया दें. सास को सास न समझ कर उन्हें अपनी दोस्त बनाएं. ननद को मेहमान न समझकर एक दोस्त की तरह पेश आएं. बहरहाल ताली एक हाथ से नहीं बजती इसलिए हर रिश्ते को अपनी ओर से दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा. सोचिए अगर घर में रिश्तों की बंदिश न हो और सब छोटे-बड़े एक दूसरे दोस्तों की तरह पेश आएं तो क्या ही नजारा होगा.

मूड लाइट करने के लिए सिंपल फन गेम्स खेलें

जब किटी पार्टी में जातें तो सभी फ्रेंड्स मिलकर नएनए गेम्स खेलते हैं. कोई मेजबान कोई मेहमान नहीं होता. पार्टी को सक्सेस करने के लिए सब एक बराबर मेहनत और एंजौय करते हैं. हाउस पार्टी में रंग भरने में सिंपल गेम्स आपकी मदद करते सकते हैं. जैसे, हुला हूप चैलेंज( इसमें जो सबसे ज्यादा देर तक हुला हूप को अपने कमर के इर्दगिर्द घुमाएगा वो विजता होगा), पिंग पोंग (टेबल के एक ओर प्लास्टिक के कप से पिरामिड बनाकर सबको 3 चांस मिलेंगे, जिसमें जो सबसे ज्यादा कप गिराएगा वो विजेता बनेगा), तंबोला जैसे गेम्स खेले जा सकते हैं. जिससे आपके घर आए मेहमान खूब मजे करे. हां, जीतने वाले का हौंसला बढ़ाने के लिए आप चौकलेट्स जैसे कोई गिफ्ट भी ज़रूर रखें. इन गेम्स में बच्चों से लेकर दादादादी सब हिस्सा करके एजौय कर सकते हैं.

गपशप करें

किसी पार्टी की जान ही उसमें होने वाली गपशप है. तो जैसे आप अपने दोस्तों से मिलकर अपने दिल की बात उनसे कहने का इंतजार करती हैं, ठीक वैसे ही अपने रिश्तों में भारीपन को हटाने की कोशिश करें. अपने मन की बात, अपनी पसंद, ना पसंद शेयर करें. फ्रैंडशिप में नो एक्सपेक्टेशन के नियम को रिश्तों में भी लागू करें. एक दूसरे से रिश्ते में महंगे गिफ्ट्स, मेहमान नवाज़ी या जबरदस्ती की इज्ज़त की अपेक्षा न करें. खुद पहल करें, दोस्ती का हाथ बढ़ाएं. एक दूसरे को बिना जजमेंट स्वीकार करें. जब आपस में मिलें तो नकचड़े रिश्तेदारों की तरह कमियां गिनाने पर नहीं, बल्कि दोस्तों की तरह खूबियां गिनाने और अच्छे काम पर तारीफ करना शुरु करें.

गिफ्ट हो थोड़ा हटके

ऐसा क्यों है कि आपको अपनी सास या नंद को साड़ी या शाल ही गिफ्ट करनी है. या फिर ससुर हैं तो उन्हें कुर्ता सेट ही गिफ्ट किया जाए. जब रिश्तों में दोस्ती की मिठास घोलनी है तों क्यों न गिफ्ट भी जरा हटके हों?. आप अपने सासससुर को अच्छे टीशर्ट और पेंट या जैकेट भी गिफ्ट कर सकते हैं. जब दोस्तों में गिफ्ट देना हो तो हम कुछ ऐसा तलाश करते हैं जिसे देखकर दोस्त को खुशी मिले, पर्सनलाइज मग पर भी हम उनकी सबसे खूबसूरत की बजाए सबसे फनी फोटो ही प्रिंट कराते हैं. तो क्यों न ऐसा ही परिवार में भी करें. पर्सनलाइज़ मग, फोटो कोलाज, पर्नलाइज़ की-चैन जैसे तमाम गिफ्ट औप्शन आपको किफायती दामों में मिल जाएगें. बस गूगल पर जाकर सर्च कीजिए ‘पर्सनाइज़ गिफ्ट औप्शन’ और आपको एक लंबी लिस्ट आ जाएगी, जहां से गिफ्ट लिया जा सकता है.

मेजबान को दें थोड़ा आराम

अकसर पार्टी में मेजबान मेहमानों के आने से पहले से तैयारियों में लगा होता है, पार्टी के दौरान और बाद के कामों के चलते, वो लंबे अर्से बाद हुए गेटटुगेदर का मज़ा नहीं ले पाते. ऐसे में मेज़बान को भी पार्टी का आनंद लेने दें, सेल्फ सर्व करें और दोस्तों की तरह जिम्मेदारियों को बाटें. अगर मेजबान ने खाने में एक डिश बनाई है तो पहले से उनसे चर्चा कर दूसरी डिश आप तैयार करके ले जाएं. इससे किसी एक पर बोझ नहीं पड़ता. फेस्टिवल सबके लिए एक जैसे होते हैं उसमें हमें तोहफों और मेहमान नवाजी करने और कराने की भावना को त्याग कर दोस्ती की ओर कदम बढ़ाना चाहिए. फिर देखिएगा कैसे आपके त्योहारों में रौनक आती है.

घर को दें मौडर्न टच, व्हाइट वाश से बदलें हर कोने की रंगत

त्योहारों का मौसम आते ही हमारे दिलों में उत्साह और उमंग की एक नई लहर दौड़ जाती है और घर की साफसफाई शुरू हो जाती है वैसे तो घर को सजाना-संवारना हमारी भारतीय परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन इसमे घर की सफेदी यानी व्हाइट वाश का एक विशेष स्थान है. सफेदी से घर न केवल साफ और नया दिखता है, बल्कि इसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है जिससे हमारे मन और शरीर को सुकून मिलता है .

त्यौहारों के समय घर में मेहमानों का आनाजाना भी लगा रहता है. ऐसे में घर की सफेदी और सजावट आपके घर की शोभा को और बढ़ा देती है. सफेदी के बाद घर का वातावरण इतना आकर्षक और सुंदर हो जाता है कि बस घर निहारते रहने का मन करता है. अगर आप भी अपने घर को क्लासी और फ्रेश लुक देना चाहते हैं तो इन पेंट ट्रेंड्स को चुनकर अपने घर की दीवारो को चमका दीजिए .

सस्टेनेबल पेंट्स

पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते, 2024 में बायोफ्रेंडली और लोवोक (Low VOC) पेंट्स का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है. यह पेंट्स स्वास्थ्य के लिए कम हानिकारक होते हैं और पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हैं.

नेचुरल कलर्स

2024 में प्राकृतिक रंगों का उपयोग बढ़ता जा रहा है. जैसे मिट्टी के रंग, हरा, नीला और हल्के भूरे रंगों का ज्यादा चलन हो रहा है. ये रंग घर में एक शांत और प्रकृति के करीब महसूस कराने वाला माहौल बनाते हैं.

बोल्ड एक्सेंट्स

हल्के रंगों के साथ बोल्ड और गहरे रंगों के एक्सेंट्स का उपयोग भी 2024 में ट्रेंड कर रहा है. जैसे दीवार के एक हिस्से को गहरे रंग में पेंट करना या फर्नीचर को चमकीले रंगों से सजाना.

मेटालिक फिनिश

मेटालिक पेंट्स का उपयोग घर को एक ग्लैमरस और मॉडर्न लुक देने के लिए किया जा रहा है. सोने, कांस्य और चांदी जैसे मेटालिक रंगों का उपयोग विशेष रूप से लिविंग रूम और डाइनिंग रूम में किया जा रहा है.

टैक्स्चर पेंट

दीवारों में टेक्स्चर देने के लिए टेक्स्चर पेंट्स का चलन भी बढ़ा है. यह घर की दीवारों को एक खास लुक देते हैं और एक साधारण कमरे को भी आकर्षक बना सकते हैं.

रंगों के साथ प्रयोग

2024 में लोग ज्यादा नए और अनूठे रंगों के साथ प्रयोग कर रहे हैं. जैसे, पीच, मिंट ग्रीन, और टेराकोटा जैसे रंगों का चलन बढ़ रहा है, जो घर को एक विशिष्ट और ताजगी भरा लुक देता है.

ग्रैडिएंट पेंटिंग

दीवारों पर एक ही रंग के विभिन्न शेड्स का प्रयोग भी 2024 में काफी लोकप्रिय हो रहा है. यह एक आधुनिक और स्टाइलिश लुक देता है और कमरे में गहराई लाने में मदद करता है.

टिप्स और ट्रिक्

फ़ेस्टिवल में हमारे घर में काम दोगुना होता है और वाइट वाश करने में काफी समय लगता है ऐसे मे अगर इस काम को जल्दी निपटाना चाहते हैं, तो वाइट वाश कांट्रेक्टर को खड़े होकर सिर्फ़ सलाह न दें बल्कि उसकी मदद भी करे.बाज़ार में मिलने वाली पीपीई किट या पुराने कपड़े पहनकर आप पेंट कर सकते हैं और छोटी छोटी मदद से पेंटर के काम को तेज़ी से आगे बढ़ा सकते हैं साथ ही ख़ाली समय का अच्छा उपयोग भी कर सकते है.

फर्नीचर हटाना

सफ़ेदी के दौरान कमरे के फर्नीचर को हटाने या ढकने में मदद कर सकते हैं ताकि पेंट के धब्बे उन पर न पड़ें.

सही सामग्री उपलब्ध कराना

पेंटर को सभी आवश्यक पेंट, ब्रश, रोलर, सीढ़ी, टेप आदि उपलब्ध कराना ताकि काम में कोई रुकावट न आए.

रोशनी का ध्यान रखना

पेंटिंग के लिए कमरे में पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था करना ताकि पेंटर को स्पष्ट रूप से काम करने में आसानी हो.

टूल्स की सफ़ाई में मदद करना

पेंट करने के बाद जो ब्रश और रोलर है उनकी सफ़ाई में मदद करे ये एक छोटा काम है जो आप आसानी से कर सकते है जिससे समय भी बचेगा.इस तरह आप पेंटर के काम को सुगम बना सकते हैं और काम जल्दी और अच्छे से पूरा करवा सकते है.

दिल धड़कने दो : क्या उनका रिश्ता शादी से पहले था ?

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा तो तन्वी उठ कर हमारे 10 साल के बेटे राहुल को स्कूल भेजने की तैयारी में व्यस्त हो गई. मैं भी साथ ही उठ गया. फ्रैश हो कर रोज की तरह 5वीं मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट में राहुल के बैडरूम की खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया. कुछ दूर वाली बिल्डिंग की तीसरी मंजिल के फ्लैट में उस के बैडरूम की भी लाइट जल रही थी.

इस का मतलब वह भी आज जल्दी उठ गई है. कल तो उस के बैडरूम की खिड़की का परदा 7 बजे के बाद ही हटा था. उस की जलती लाइट देख कर मेरा दिल धड़का, अब वह किसी भी पल दिखाई दे जाएगी. मेरे फ्लैट की बस इसी खिड़की से उस के बैडरूम की खिड़की, उस की किचन का थोड़ा सा हिस्सा और उस के फ्लैट का वाशिंग ऐरिया दिखता है.

तभी वह खिड़की के पास आ खड़ी हुई. अब वह अपने बाल ऊपर बांधेगी, कुछ पल खड़ी रहेगी और फिर तार से सूखे कपड़े उतारेगी. उस के बाद किचन में जलती लाइट से मुझे अंदाजा होता है कि वह किचन में है. 10 साल से मैं उसे ऐसे ही देख रहा हूं. इस सोसायटी में उस से पहले मैं ही आया था. वह शाम को गार्डन में नियमित रूप से जाती है. वहीं से मेरी उस से हायहैलो शुरू हुई थी. अब तो कहीं भी मिलती है, तो मुसकराहट और हायहैलो का आदानप्रदान जरूर होता है. मैं कोई 20-25 साल का नवयुवक तो हूं नहीं जो मुझे उस से प्यारव्यार का चक्कर हो. मेरा दिल तो बस यों ही उसे देख कर धड़क उठता है. अच्छी लगती है वह मुझे, बस. उस के 2 युवा बच्चे हैं. वह उम्र में मुझ से बड़ी ही होगी. मैं उस के पति और

बच्चों को अच्छी तरह पहचानने लगा हूं. मुझे उस का नाम भी नहीं पता और न उसे मेरा पता होगा. बस सालों से यही रूटीन चल रहा है.

अभी औफिस जाऊंगा तो वह खिड़की के पास खड़ी होगी. हमारी नजरें मिलेंगी और फिर हम दोनों मुसकरा देंगे.

औफिस से आने पर रात के सोने तक मैं इस खिड़की के चक्कर काटता रहता हूं. वह दिखती रहती है, तो अच्छा लगता है वरना जीवन तो एक ताल पर चल ही रहा है. कभी वह कहीं जाती है तो मुझे समझ आ जाता है वह घर पर नहीं है… सन्नाटा सा दिखता है उस फ्लैट में फिर. कई बार सोचता हूं किसी की पत्नी, किसी की मां को चोरीछिपे देखना, उस के हर क्रियाकलाप को निहारना गलत है. पर क्या करूं, अच्छा लगता है उसे देखना.

तन्वी मुझ से पहले औफिस निकलती है और मेरे बाद ही घर लौटती है. राहुल स्कूल से सीधे सोसायटी के डे केयर सैंटर में चला जाता है. मैं शाम को उसे लेते हुए घर आता हूं. कई बार जब वह मुझ से सोसायटी की मार्केट में या नीचे किसी काम से आतीजाती दिखती है तो सामान्य अभिवादन के साथ कुछ और भी होता है हमारी आंखों में अब. शायद अपने पति और बच्चों में व्यस्त रह कर भी उस के दिल में मेरे लिए भी कुछ तो है, क्योंकि रोज यह इत्तेफाक तो नहीं कि जब मैं औफिस के लिए निकलता हूं, वह खिड़की के पास खड़ी मुझे देख रही होती है.

वैसे कई बार सोचता हूं कि मुझे अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए. क्यों रोज मैं उसे सुबह देखने यहां खड़ा होता हूं  फिर सोचता हूं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं… उसे देख कर कुछ पल चैन मिलता है तो इस में क्या बुरा है  किसी का क्या नुकसान हो रहा है.

तभी वह सूखे कपड़े उतारने आ गई. उस ने ब्लैक गाउन पहना है. बहुत अच्छी लगती है वह इस में. मन करता है वह अचानक मेरी तरफ देख ले तो मैं हाथ हिला दूं पर उस ने कभी नहीं देखा. पता नहीं उसे पता भी है या नहीं… यह खिड़की मेरी है और मैं यहां खड़ा होता हूं. नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां आजकल मेरी इस खिड़की तक पहुंच गई हैं. उन्हीं के झुरमुट से उसे देखा करता हूं.

कई बार सोचता हूं हाथ बढ़ा कर टहनियां तोड़ दूं पर फिर मैं उसे शायद साफसाफ दिख जाऊंगा… सोचेगी… हर समय यहीं खड़ा रहता है… नहीं, इन्हें रहने ही देता हूं. वह कपड़े उतार कर किचन में चली गई तो मैं भी औफिस जाने की तैयारी करने लगा. बीचबीच में मैं उसे अपने पति और बच्चों को ‘बाय’ करने के लिए भी खड़ा देखता हूं. यह उस का रोज का नियम है. कुल मिला कर उस का सारा रूटीन देख कर मुझे अंदाजा होता है कि वह एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां है.

औफिस में भी कभीकभी उस का यों ही खयाल आ जाता है कि वह क्या कर रही होगी. दोपहर में सोई होगी… अब उठ गई होगी… अब उस सोफे पर बैठ कर चाय पी रही होगी, जो मेरी खिड़की से दिखता है.

औफिस से आ कर मैं फ्रैश हो कर सीधा खिड़की के पास पहुंचा. राहुल कार्टून देखने बैठ गया था. मेरा दिल जोर से धड़का. वह खिड़की में खड़ी थी. मन किया उसे हाथ हिला दूं… कई बार मन होता है उस से कुछ बातें करने का, कुछ कहने का, कुछसुनने का, पर जीवन में कई इच्छाओं को, एक मर्यादा में, एक सीमा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक दायित्व भी तो होते हैं… फिर सोचता हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

दो

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा. मैं ने तेजी से उठ कर फ्रैश हो कर अपने बैडरूम की लाइट जला दी. समीर भी साथ ही उठ गए थे.

वे सुबह की सैर पर जाते हैं. मैं ने बैडरूम की खिड़की का परदा हटाया. अपने बाल बांधे. जानती हूं वह सामने अपने फ्लैट की खिड़की में खड़ा होगा, आजकल नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां उस की खिड़की तक जा पहुंची हैं. कई बार सोचती हूं वह हाथ बढ़ा कर उन्हें तोड़ क्यों नहीं देता पर नहीं, यह ठीक नहीं होगा. फिर वह साफसाफ देख लेगा कि मैं उसे चोरीचोरी देखती रहती हूं. नहीं, ऐसे ही ठीक है. तार से कपड़े उतारते हुए मैं कई बार उसे देखती हूं, कपड़े तो मैं दिन में कभी भी उतार सकती हूं, कोई जल्दी नहीं होती इन की पर इस समय वह खड़ा होता है न, न चाहते हुए भी उसे देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती हूं.

मैं ने कपड़े उतारते हुए कनखियों से उसे देखा. हां, वह खड़ा था. मन हुआ हाथ हिला कर हैलो कर दूं पर नहीं, एक विवाहिता की कुछ अपनी मर्यादाएं होती हैं. मेरा दिल जोर से धड़कता है जब मैं महसूस करती हूं वह अपनी खिड़की में खड़ा हो कर मेरी तरफ देख रहा है. स्त्री हूं न, बहुत कुछ महसूस कर लेती हूं, बिना किसी के कुछ कहेसुने. मैं समीर और अपने बच्चों के नाश्ते और टिफिन की तैयारी मैं व्यस्त हो गई.

तीनों शाम तक ही वापस आते हैं. मेरी किचन के एक हिस्से से उस की खिड़की का थोड़ा सा हिस्सा दिखता है, जिस खिड़की के पास वह खड़ा होता है वह शायद बैडरूम की है. किचन में काम करतेकरते मैं उस पर नजर डालती रहती हूं. सब समझ आता रहता है, वह अब तैयार हो रहा है. मुझे अंदाजा है उस के कमरे की किस दीवार पर शीशा है. मैं ने उसे वहां कई बार बाल ठीक करते देखा है.

जानती हूं किसी के पति को, किसी के पिता को ऐसे देखना मर्यादासंगत नहीं है पर क्या करूं, कुछ है, जो दिल धड़कता है उस के सामने होने पर. 10 साल से कुछ है जो उसे कहीं देखने पर, नजरें मिलने पर, हायहैलो होने पर दिल धड़क उठता है. वह अपनी कामकाजी पत्नी की घर के काम में काफी मदद करता है, बेटे को ले कर आता है, घर का सामान लाता है, कभी अपनी पत्नी को छोड़ने और लेने भी जाता है… सब दिखता है मुझे अपने घर की खिड़की से. कुल मिला कर वह एक अच्छा पति और अच्छा पिता है. कई बार तो मैं ने उसे कपड़े सुखाते भी देखा है… न मुझे उस का नाम पता है न उसे मेरा पता होगा. बस, उसे देखना मुझे अच्छा लगता है. मैं कोई युवा लड़की तो हूं नहीं जो प्यारव्यार का चक्कर हो. बस, यों ही तो देख लेती हूं उसे. वैसे दिन में कई बार खयाल आ जाता है कि क्या काम करता है वह  कहां है उस का औफिस  वह औफिस से आते ही अपनी खिड़की खोल देता है. मुझे अंदाजा हो जाता है वह आ गया है, फिर वह कई बार खिड़की के पास आताजाता रहता है. वह कई बारछुट्टियों में बाहर चला जाता है तो बड़ा खालीखाली लगता है.

10 साल से यों ही देखते रहना एक आदत सी बन गई है. वह दिखता रहता है पेड़ की पत्तियों के बीच से. दिल करता है उस से कुछ बातें करूं, कुछ कहूं, कुछ सुनूं पर नहीं जीवन में कई इच्छाओं को एक मर्यादा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक उसूल भी तो हैं, फिर सोचती हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

अगर आप भी हैं कौस्मेटिक्स की दीवानी, तो जान लें ये जरूरी बातें

आजकल खूबसूरत, स्वस्थ और सुंदर त्वचा पाना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस आपके पास कौस्मेटिक्स होना चाहिए. कई लोग ऐसे होते हैं जो सुंदर दिखने के लिए रोज कौस्मेटिक्स का इस्तेमाल करते हैं. उनकी जिंदगी तो कौस्मेटिक पर ही आधारित हो जाती है. सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक उनके लिए कौस्मेटिक बेहद जरूरी हो जाता है.

अगर आप में भी ऐसी ही कोई आदत है तो हम आपको बताते हैं कि रोजमर्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले कौस्मेटिक किस तरह आपके लिए हानिकारक हैं.

1. मौश्चराइजर

नहाने के बाद हर कोई त्वचा की नमी बरकरार रखने के लिए मौश्चराइजर का इस्तेमाल करता है. कुछ लोग तो जितनी बार पानी के संपर्क में आते हैं उन्हें मॉश्चराइजर की जरूरत पड़ती है. अगर आपकी भी आदत कुछ ऐसी ही है तो इसे सुधारे क्योंकि बाजार में मिलने वाले ज्यादातर मॉश्चराइजर में डिटर्जेंट वाले केमिकल पाए जाते हैं जो आपकी त्वचा की नमी को छीन लेते हैं. इसलिए अगर संभव हो तो घर पर बने या प्राकृतिक मॉश्चराइजर का ही इस्तेमाल करें.

2. ब्लीच

बहुत सी लड़किया चेहरे की गंदगी साफ करने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल करती हैं. ब्लीच में मौजूद रसायन आपकी त्वचा की नमी छीन लेते है. जब त्वचा की गहराई से सारा ऑयल निकल जाता है तो त्वचा रूखी और बेजान हो जाती है. इसकी वजह से कई बार त्वचा में झुर्रियां भी हो जाती हैं.

3. लिपस्टिक

कई लड़कियों के लिपस्टिक का बड़ा शौक होता है. उनके पास इसके शेड्स का बेहतर से बेहतर कलेक्शन होता लेकिन शायद उन्हें ये नहीं पता कि लिपस्टिक आपके होंठों की नमी को छीन लेता है. कुछ लिपस्टिक का रंग गाढ़ा करने के लिए उसमें अत्यधिक मात्रा में लेड का उपयोग किया जाता है. ये लेड आपके दिमाग को भी नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए लिपस्टिक की जगह लिप बाम का उपयोग करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है.

4. काजल

आंखों की सुंदरता बढ़ाने का सबसे आसान उपाय है, काजल. कुछ लड़कियां तो बिना काजल लगाए घर से बाहर ही नहीं निकलती हैं. इसमें भी कई ऐसे केमिकल पाए जाते हैं. जिसकी वजह से आपकी आंखों में कई तरह के संक्रमण, कंजेक्टिव आई, ग्लूकोमा और ड्राई आई जैसी समस्या हो जाती है. इसलिए कोशिश करें कि सूरमें और काजल का प्रयोग कम से कम से करें. या फिर आंखों पर किसी भी तरह का मेकअप करने से बचें.

5. नेलपौलिश

नेलपौलिश आपके नाखूनों को बेहद सुंदर बनाता है लेकिन इसमें मौजूद एक कठोर केमिकल आपके नाखूनों को कमजोर बना देता है. कई बार डार्क कलर की नेलपॉलिश आपके नाखूनों पर धब्बे छोड़ जाती है और उन्हें पीला और कमजोर बना देती है. इसलिए नाखूनों की जैतून के तेल से मसाज करें और जितना हो सके नेलपॉलिश के इस्तेमाल से बचें.

मैंने परिवार को बिना बताए शादी कर ली है, जिसके कारण मैं परेशान हूं…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं एक युवक से 1 साल 4 महीने से प्यार करती हूं. 2 महीने बात करने के बाद मैंने 6 अप्रैल, 2014 को उस से शादी कर ली. यह बात हम दोनों के परिवार वाले नहीं जानते. हम ने कोर्टमैरिज नहीं की. मैं अपना घर छोड़ कर 5 महीने से दिल्ली में जौब करके अकेली रहती हूं. वह युवक आर्मी में है और मुझ से बात करता रहता है. मैं अब 2 माह से गर्भवती हूं. मैं अकेली क्या करूं? वह अप्रैल में मेरे पास आया था. ऐसे में मैं अपने घर भी नहीं जा सकती.

जवाब

आप अपने परिवार वालों से बात करें. अपनी वास्तविकता से उन्हें अवगत करवाना जरूरी है. आप अपने पति से कहें कि वे अपने परिवार वालों से बात करें. आप दोनों की शादी हुई है, इस का आप के पास कानूनी सुबूत क्या है? आप जिस स्थिति में हैं इस में आप को भावनात्मक रूप से पति की, परिवार वालों की खास जरूरत है. आप अपने पति से खुल कर बात करें कि वे कब आएंगे? उन की अनुपस्थिति में आप स्थिति संभाल पाएं इस के लिए उन्हें विशेष प्रबंध करना होगा. ये सब आप जितनी जल्दी करें, उतना ही बेहतर होगा.

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जिंदगी के प्रति आप के नजरिए को बदल देती है प्रैगनैंसी

गर्भावस्था महिलाओं के लिए वह समय होता है जब वे शिशु की सुरक्षा के लिए अपने खानेपीने और स्वास्थ्य का हर संभव ध्यान रखती हैं. गर्भवती महिलाएं हमेशा खुश रहने और अपना ज्यादा से ज्यादा ध्यान रखने की कोशिश करती हैं.

कुछ महिलाओं के लिए गर्भावस्था तकलीफदेह हो सकती है जैसे उन्हें मौर्निंग सिकनैस, पैरों में सूजन, चक्कर और मितली आना आदि परेशानियां हो सकती हैं. मगर आमतौर पर गर्भावस्था हमेशा महिलाओं में सकारात्मक बदलाव ले कर आती है. इस से उन के शरीर और दिमाग दोनों में संपूर्ण रूप से सकारात्मक बदलाव आते हैं.

शरीर पर गर्भावस्था के सकारात्मक प्रभाव

– गर्भावस्था का अर्थ है कम मासिकस्राव, जिस से ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोन का संपर्क सीमित हो जाता है. ये हारमोंस स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, क्योंकि ये कोशिकाओं की वृद्धि को प्रेरित करते हैं और महिलाओं के स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं. साथ ही गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान ब्रैस्ट सैल्स में जिस तरह के बदलाव होते हैं, वे उन्हें कैंसर कोशिकाओं में बदलने के प्रति अधिक प्रतिरोधक बना देते हैं.

– गर्भावस्था के दौरान पेल्विक क्षेत्र में रक्तसंचार बढ़ जाता है, प्रसव और डिलिवरी से गुजरने के बाद महिलाओं को खुद में एक नई ताकत महसूस होती है.

दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव

– बच्चा होने से औटोइम्यून डिसऔर्डस जैसे मल्टीपल स्केल्रोसिस के होने का खतरा कम हो जाता है.

– गर्भावस्था सकारात्मक व्यवहार ले कर आती है और महिला को मजबूत बनाती है. इस से जीवन में आने वाले बदलावों से लड़ने में आसानी हो जाती है, साथ ही नकारात्मक सोच व चिंता से भी बचाव होता है.

शिशु के जन्म के बाद सकारात्मक प्रभाव

– अधिकांश महिलाओं ने पाया है कि पहले बच्चे के जन्म के बाद उन की मासिकस्राव से जुड़ी तकलीफें काफी कम हो गई हैं.

– प्रसव के बाद अधिकांश महिलाओं के स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव आते हैं और वे शराब, धूम्रपान जैसी बुरी लतें छोड़ देती हैं.

– एक मां अपने आसपास खुशियों का खजाना देख कर खुशी और उत्साह से भर जाती है. जब भी मां अपने बच्चे को गोद में लेती या उसे स्तनपान कराती है तो औक्सीटोसिन हारमोन इस गहरे रिश्ते को जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है. यह बहुत ही ताकतवर होता है, जिस की वजह से कोई भी कुछ घंटों के लिए और कई बार कुछ दिनों के लिए भी चिंता को भूल सकता है.

– शिशु के जन्म के बाद त्वचा चमकदार और बाल चमकीले हो जाते हैं, साथ ही कीलमुंहासों की समस्या से भी मुक्ति मिल जाती है.

 

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