आखिर एक्ट्रेस विद्या बालन क्यों बनी ‘शेरनी’, पढ़ें खबर

अभिनेत्री विद्या बालन की फिल्म ‘शेरनी’ की एक टाइटल म्यूजिकका लौंच अमेजन प्राइम विडियो पर किया गया, जिसमें विद्या ने फारेस्ट ऑफिसर विद्या विंसेट की भूमिका निभाई है, जो अपनी बात सबके सामने एक शेरनी की तरह रख सकती है.उनके साथ 9 ऐसी महिलायें है, जो कठिन परिस्थिति से गुजर कर अपनी मंजिल पायी है. विद्या कहती है कि मैं एक अभिनेत्री होने की वजह से लोग मुझे और मेरे काम को देखते और सराहते है, लेकिन ऐसी बहुत सी महिलाएं है जिन्हें हम नहीं जानते और उन्होंने भी अपने रास्ते एक शेरनी की तरह तय कर अपनी मंजिल पायी है.

असल में हर महिला में एक शेरनी होती है और वे इसे समझती नहीं. ऐसी महिलाएं बिना कुछ कहे लगातार चुनौती का सामनाकरती रहती है.मैंने देखा है कि अधिकतर घरेलू महिलाएं चुपचाप, शांत और अपनी भावनाओं को बिना बताये रहती है और वह परिवार में अदृश्य रहती है, कोई उसकी मौजूदगी को महसूस नहीं करता. मैं उन सभी महिलाओं को इस संगीत के द्वारा सैल्यूट करना चाहती हूं. मेरे जीवन में मेरी माँ शेरनी है, उन्होंने बिना कुछ कहे समस्याओं का सामना कर मुझे बड़ा किया और हमेशा मेरा साथ दिया है. उम्र के इस पढ़ाव में भी वह डांस, फिटनेस, संगीत सीखती और खुश रहती है. माँ हमेशा कहती है कि जितना तुम झुकोगे, लोग उतना ही तुमको झुकायेंगे. इसलिए डटकर किसी समस्या का समाधान करो. इसके अलावा मेरी बहन और भतीजी भी शेरनी की तरह घने जंगल में अपना रास्ता बना लेने में सक्षम है.

 

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इसके आगे विद्या कहती है कि इस म्यूजिक वीडियो को करते वक्त जब मैं जंगल में गयी, तो वहां की ताज़ी हवा, आकर्षक हरियाली, पर्वत, जलाशय आदि को देखकर मैंने प्रकृति के इस क्रिएशन को धन्यवाद दिया. इसके अलावा मेरे अंदर एक शक्ति है, जो किसी भी समस्या का हल निकाल सकती है, क्योंकि जंगल नष्ट कर दिए जाने पर भी प्रकृति उसे बार-बार सहेजती है.

 

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15 साल के इस कैरियर में विद्या ने फिल्म ‘परिणीता’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई फिल्मों से अभिनय कीलोहा मनवा चुकी है. फिल्म‘लगे रहो मुन्ना भाई’विद्या कैरियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उसे पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा.उसने बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते.साल 2014 में उसे पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है. विद्या ने फिल्म ‘मिशन मंगल’ और ‘शकुंतला’ जैसी महिला प्रधान फिल्में की है, इसकी वजह के बारें में वह कहती है किमैं महिला प्रधान फिल्म सोचकर नहीं करती. मैं उन कहानियों को चुनती हूं, जो सबको कही जाय और सब पसंद करें, ऐसे में अगर महिला प्रधान फिल्म हो तो मुझे कोई समस्या नहीं और जिस फिल्म में मेरी भूमिका मेरे लायक हो, उसे मैं चुनती हूं. हर चरित्र कुछ न कुछ सिखाती है. मैंने इस फिल्म से भी बहुत कुछ सीखा है. ऐसी फिल्में आपको अंदर से पूरा करती है. इसके अलावा एक अच्छी स्टोरी ही एक सफल फिल्म दे सकती है.

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‘बुसान फिल्म फेस्टिवल’ के बाद अब न्यूयार्क फिल्म फेस्टिवल में आशापूर्णा देवी की ‘नजरबंद’ का हुआ प्रदर्शन

4 से 13 जून तक अमरीका के न्यूयार्क शहर में संपन्न ‘‘न्यूयार्क इंडियन फिल्म फेस्टिवल’’में मशहूर फिल्मकार सुमन मुखेपाध्याय निर्देशित फिल्म‘‘नजरबंद’’का यूएस प्रीमियर संपन्न हुआ. ज्ञातब्य है कि इससे पहले फिल्म‘‘नजरबंद’’का विश्व प्रीमियर ‘‘25 वें बुसान अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव’’में हो चुका है. आशापूर्णा देवी की लघु कहानी ‘‘चुटी नकोच’’ पर आधारित इस फिल्म में तन्मय धनानिया और इंदिरा तिवारी ने मुख्य भूमिका निभायी है.

सुमन मुखोपाध्याय ने इस फिल्म के निर्माण व शूटिंग के लिए एक अपरंपरागत दृष्टिकोण अपनाया. आशापूर्णा देवी ने इस लघु कहानी को दशको पहले लिखा था, पर फिल्मकार सुमन मुखोपाध्याय ने इसे समसामायिक बनाकर चित्रित किया है.  कोलकाता में दो ‘बाहरी लोगों‘ की कहानी ‘नजरबंद’वास्तव में समाज में हाशिए पर मौजूद वर्गों पर एक दिलचस्प दृश्य प्रस्तुत करती है.

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मशहूर बंगला फिल्मकार व रंगकर्मी के लिए यह पहला मौका नही है?जब उनकी फिल्म अंतरराष्ट्ीय फिल्म समारोहों में ेधूम मचा रही हो. खुद सुमन मुखोपाधय कहते हैं-‘‘इस फिल्म को लंदन इंडियन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया जाएगा.  एनवाईआईएफएफ एक आभासी फिल्म समारोह है, लेकिन एलआईएफएफ जून के मध्य में ब्रिटिश फिल्म संस्थान में और बर्मिंघम में भी एक भौतिक संस्करण आयोजित करने जा रहा है. दोनों स्थान विज्ञान और कला के लिए प्रमुख स्थल हैं और मैं वहां स्क्रीनिंग के लिए बहुत खुश हूं. मैं चैथी बार एनवाईआईएफएफ में भाग लूंगा. फिल्मोउत्सव में ‘चतुरंगा’ (2008),  ‘महानगर एट कोलकाता’ (2010) और ‘शेषर कोबिता’ (2015) का भी प्रदर्शन हुआ था. ’’

सुमन मुखोपाध्याय बंगला  भाषा की फिल्में व नाटक बनाते रहे हैं. लेकिन उन्होने ‘पोशम पा’को हिंदी भाषा में बनाया था. अब उन्होने आशापूर्णा देवकी की कहानी पर आधारित इस फिल्म को भी हिंदी भाषा में ही बनाया है. वह कहते हैं-‘‘मैंने शुरू से ही गैर-बंगाली आप्रवासियों के रूप में पात्रों की कल्पना की और उन्हें हाशिए पर रहने वाले लोगों के रूप में उजागर करना चाहता था. साथ ही,  इन दिनों ‘बाहरी लोगों‘ का विचार बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य की हवा में है.  विचार सिर्फ भाषा के लिए हिंदी फिल्म बनाने का नहीं था, बल्कि मैंने हिंदी में फिल्म बनाने की कल्पना की थी. ’’

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Sushant Singh Rajput 1st Death Anniversary: Ankita से लेकर Aly तक इमोशनल हुए सेलेब्स¸ किया ये काम

साल 2020 में कई सितारों ने दुनिया को अलविदा कहा, जिनमें बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) भी शामिल हैं. वहीं सुशांत सिंह राजपूत की मौत को आज यानी 14 जून को एक साल  की मौत को एक साल पूरा हो गया है. लेकिन आज भी फैंस और सेलेब्स उन्हें भुला नहीं पा रहे हैं. जहां फैंस उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. तो सेलेब्स सोशलमीडिया पर उनके लिए खास मैसेज देकर इमोशनल होते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं सितारों के इमोशनल पोस्ट…

अंकिता लोखंडे ने किया ये काम

 

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सुशांत की पहली बरसी पर उनकी फैमिली और फैंस से लेकर बौलीवुड और टीवी सेलेब्स अंकिता लोखंडे, अशोक पंडित, पुलकित सम्राट, अर्जुन बिजलानी, भूमि पेडनेकर समेत कई सेलेब्स ने उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. सुशांत की एक्स गर्लफ्रैंड रह चुकीं अंकिता लोखंडे ने अपनी इंस्टा स्टोरी पर एक वीडियो शेयर किया है जिसमें वे हवन करती नजर आ रही हैं. वहीं सुशांत को याद करते हुए अर्जुन बिजलानी ने लिखा, ‘हम दोनों बाइक्स के शौकीन थे. एक दिन उन्होंने मुझे सरप्राइज करते हुए कहा कि अर्जुन नीचे आओ. मुझे तुम्हें कुछ दिखाना है. जैसे ही मैं नीचे गया तो मैंने देखा कि वो एक नई फैंसी बाइक पर बैठे थे.’

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भूमि पेडनेकर ने लिखी ये बात

 

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भूमि पेडनेकर ने लिखा, ‘तुम्हें, तुम्हारे सवालों और हमारी बातचीत को मिस करती हूं. तारों से लेकर अनजानी चीजों तक, तुमने मुझे वो दुनिया दिखाई जिसे मैंने पहले कभी नहीं देखा था. मुझे उम्मीद है कि तुम्हें उस दुनिया में शांति मिल गई होगी. ओम शांति.’ वहीं एक्टर अली गोनी ने सशांत सिंह को याद करते हुए अपनी प्रोफाइल फोटो पर सुशांत की फोटो लगा ली है.

 

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आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले एक्ट्रेस कृति सेनन ने फिल्म राब्ता से जुड़ी एक वीडियो शेयर की थी, जिसमें सुशांत संग वह नजर आ रही थीं.

 

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REVIEW: कीर्ति कुल्हारी का शानदार अभिनय दिखाती ‘शादीस्तान’

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताःफेमस डिजिटल स्टूडियो

निर्देशकः राज सिंह चैधरी

कलाकारः कीर्ति कुल्हारी, मेधा शंकर, निवेदिता भट्टाचार्य, केके मेेनन, रंजन मोदी, अजय जयनाथ, अपूर्व डोगरा, निशंक वर्मा व अन्य.  

अवधिः एक घंटा तेंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिज्नी हॉट स्टार

दो पीढ़ियों के बीच विचारों का टकराव सामान्य सी बात है. इस मुद्दे पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. मगर लेखक निर्देशक राज सिंह चैधरी अपनी फिल्म‘‘शादीस्थान’’में दकियानूसी, सामंती व पितृसत्तात्मक सोच तथा आधुनिक सोच के टकराव का मुद्दा उठाते हुए फिल्म को जिस तरह से मनोरंजक कहानी के सॉंचे में ढाला है, उसमें गंभीरता व गहराई का अभाव खलता है. ‘‘शादीस्थान’’ ग्यारह जून की शाम से ‘डिज्नी हॉटस्टार’ पर स्ट्रीम हो रही है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी एक रूढ़िवादी परिवार की मुंबई से अजमेर तक की सड़क यात्रा है. कहानी शुरू होती है मुंबई से. जहां संजय शर्मा(राजन मोदी ) गुस्से में हैं, क्योंकि उन्हें अपने भांजे चोलू की शादी में हवाई जहाज पकड़कर पत्नी कमला शर्मा (निवेदिता भट्टाचार्य )व बेटी आर्शी शर्मा(मेधा शंकर) के साथ अजमेर पहुंचना है, मगर फ्लाइट छूट गयी. जिसके लिए वह बेटी आर्शी शर्मा को दोषी मानते हैं. चोलू की शादी में संगीत पार्टी मुंबई से निजी बस से जा रही होती है, चोलू के कहने पर संजय शर्मा अपनी पत्नी व बेटी के साथ इसी बस में सवार हो जाते हैं. गुस्सैल संजय शर्मा को बस में मौजूद म्यूजीशियन का रंग ढंग पसंद नही आता. बस में गायिका साशा(कीर्ति कुल्हारी)और उसके बैंड के सदस्य,  अपूर्व डोगरा (फ्रेडी),  जिम्मी (शेनपेन खिमसर) और इमाद (अजय जयंती)हैं. यह सिगरेट पीते हैं, बियर पीते हैं. गाना गाते हैं. पुराने व दकियानूसी ख्यालों के संजय शर्मा को बस के अंदर का माहौल पसंद नही आता. परिणामतः संस्कृति व संवेदनाओं का टकराव होता है. धीरे धीरे कहानी स्पष्ट होती है कि आर्शी आज रात 18 वर्ष की पूरी होगी. उसके पिता ने उसकी शादी बिना उससे पूछे अजमेर में ही बुआ के कहने पर तय कर दी है, जबकि अभी वह शादी नही करना चाहती. इसीलिए वह अजमेर भी नही आना चाहती थी. इसीलिए आर्शी शर्मा अपनी सहेली के घर चली गयी थी. मगर फोन पर मॉं के रोने से उसने अपना निर्णय बदल दिया और घर वापस आ गयी और इसी चक्कर में फ्लाइट छूटी थी. बस रास्ते में टाइगर (के के मेनन) के होटल में रूकती है, उस वक्त संजय शर्मा अपनी दीदी के किसी काम को करने के लिए उदयपुर शहर जाते हैं. उस वक्त जहां साशा व कमला शर्मा, साशा व आर्शी शर्मा, इमाद और आर्शी शर्मा के बीच बातचीत होती है. यहां पारिवारिक व सामाजिक ढांचे में बंधी कमला शर्मा और आजाद ख्याल की साशा के बीच बातचीत होती है. पर जैसे ही इमाद,  आर्शी को 18 वर्ष पूरे होने यानीकि जन्मदिन की बधाई देता है,  वैसे ही संजय शर्मा वहां पहुॅच जाते हैं और इमाद पर आग बबुला होते हैं, इमाद उन्हे ऐसा जवाब देता है कि वह गुमसुम रहने लगते हैं. अजमेर में छोलू की शादी में पहुंचते है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं और फिल्म की कहानी को शादीस्थान पर एक नया अंजाम मिलता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार राज सिंह चैधरी इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होने समाज में टैबू या यॅू कहें कि कलंक समझे जाने वाले विषय को फिल्म में उठाया है, जिसके बारे में सतत बातें की जानी चाहिए,  लेकिन फिल्म का अंत आम फिल्मों की ही तरह है. संजय शर्मा का हृदय परिवर्तन जिस तरह से होता है, वह गले नही उतरता. यदि राज सिंह चैधरी ने थोड़ा गहराई व गंभीरता से इस फिल्म को बनाया होता, तो लड़कियों व औरतों की आजादी तथा समाज के चक्रव्यूह में फंसे लोगों की चेतना जगाने को लेकर अति बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. पर कमजोर पटकथा के चलते फिल्म अपने दर्शकों को सही मायने में नही जोड़ पाती. जबकि फिल्मकार ने बिना किसी भाषण बाजी के सामंती,  दकियानूसी व पितृ सत्तात्मक सोच रखने वाले पुरूषों पर चोट करने की कोशिश जरुर की है. नारीवाद का मसला नही है, मगर फिल्मकार ने इस मुद्दे को बड़ी साफगोई से उठाया है कि वर्तमान समय की लड़कियां किस तरह पारिवारिक व सामाजिक जकड़न से बाहर निकलने को बेताब हैं. तो वहीं टाइगर के होटल के प्रांगण में पेय पदार्थ के प्रभाव में मॉं बेटी का नृत्य बनावटी नजर आता है.

फिल्म के कुछ संवाद बेहतर बन पड़े हैं. मसलन-साशा का संवाद-‘हम जैसी औरतें लड़ाई करती हैं, ताकि आप जैसी औरतों को अपनी दुनिया में लड़ाई न करनी पड़े. ’’

फिल्म में राहुल भाटिया व नकुल शर्मा का संगीत कथानक के अनुरूप व कर्ण प्रिय है.

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अभिनयः

महिलाओं के अधिकारों के लिए मजबूत नेतृत्व वाली महिला साशा के किरदार को कीर्ति कुल्हारी ने बेहतर तरीके से निभाया है, पर कुछ दृश्यों में वह मजबूर नजर आती हैं. पितृसत्ता की सोच और अपनी बेटी से परेशान संजय शर्मा के किरदार में अभिनेता राजन मोदी तथा विवेकशील और बुद्धिमान कमला के किरदार में निवेदिता भट्टाचार्य भी अपनी छाप छोड़ जाती हैं. छोटी सी भूमिका में के के मेनन अपनी छाप छोड़ जाते हैं.

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रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः रिलायंस इंटरटनमेंट

क्रिएटरः विकास बहल

लेखकः विकास बहल व चैताली परमार

निर्देशकः विकास बहल व राहुल सेन गुप्ता

कलाकारः सुनील ग्रोवर, रणवीर शोरी, आशीश विद्यार्थी, रिया नलावडे,  मुकुल चड्ढा,  डायाना एरप्पा, अश्विन कौशल,  सलोनी खन्ना, सोनल झा,  गिरीश कुलकर्णी, शोनाली नागरानी व अन्य

अवधिः पांच घंटे पांच मिनट,  30 से 45 मिनट के आठ एपीसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5 ,  ग्यारह जून से

फिल्म‘‘क्वीन’’सहित कई फिल्मों के लेखक व निर्देशक विकास बहल इस बार क्राइम थ्रिलर व डार्क ह्यूमर मिश्रित वेब सीरीज ‘‘सनफ्लावर’’ लेकर आए हैं, जो कि इंसान को अवसाद की ओर ही ले जाती है और यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ‘‘क्वीन’’जैसी बेहतरीन फिल्म के लेखक व निर्देशक विकास बहल ही इस वेब सीरीज के क्रिएटर, सह लेखक व निर्देशक हैं.

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कहानीः

मुंबई शहर में समाज के  प्रतिष्ठित लोगों से युक्त एक सोसायटी है सनफ्लावर. इस सोसायटी के दिलचस्प किरदारो में हिंदी रसायन शास्त्र शिक्षक आहूजा (मुकुल चड्ढा), अमीर अभिमानी पड़ोसी राजकपूर (अश्विन कौशल),  नैतिक पुलिसिंग के ध्वजवाहक दिलीप अय्यर (आशीष विद्यार्थी), मासूम मगर विचित्र सोनू (सुनील ग्रोवर) व अन्य. अमीर घमंड में चूर राज कपूर हर दिन अपने पड़ोसियों को परेाान करते है. एक सुबह राज कपूर की नौकरानी कामनी(सुश्री अन्नपूर्णा सोनी) लोगों को तथा पुलिस को सूचित करती है कि कपूर की मौत हो गयी है. वैसे दर्शक को अहसास हो जाता है कि कपूर की हत्या कैसे हुई है. पर कपूर की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए शांत और नियंत्रित पुलिस इंस्पेक्टर  देवेंद्र (रणवीर शौरी) और उनके आकर्षक जूनियर सहयोगी तांबे (गिरीश कुलकर्णी)आते हैं.

इधर पुलिस मामले की जांच कर रही है, तो वहीं सनफ्लावर सोसाइटी के लिए एक नेक सचिव की तलाश शुरू करती है, जो समाज की तथाकथित गरिमा और शांति को बनाए रख सके. दिलीप अय्यर (आशीष विद्यार्थी) नैतिक पुलिस व्यवस्था के आदर्श रूपक के रूप में सेवा करते हुए संस्कृति और परंपरा के नाम पर कठोर नियमों और विनियमों के साथ आते हैं. डॉ. आहुजा बुराइयों का अवतार हैं. वह रूढ़िवादी,  हिंसक,  दोहरे चेहरे वाले,  पितृसत्तात्मक सोच के साथ ही इस कदर मंत्रमुग्ध इंसान है, जो बिस्तर पर पत्नी संग अंतरंग होने पर चाहते हैं कि पत्नी उनकी प्रशंसा करे. कहानी धीरे धीरे घिसटती रहती है. कई किरदार आते रहते हैं. कई बार इमानदार, तो कई बार मानसिक रोगी नजर आने वाले सोनू सिंह अपने आफिस की सहकर्मी  आंचल (सलोनी खन्ना)पर प्यार की डोर डालने के प्रयास मे लगे नजर आते है, आठवें एपीसोड में पता चलता है कि उनकी पहली प्रेमिका जुही ने उन्हे छोड़कर अशीश कपूर का हाथ थाम लिया था. प्रोफेसर आहुजा गुस्सैल हैं, यह बात सामने आती रहती है. वह अपना अपराध छिपाने के प्रयास में असफल होते रहतें हैं, मगर बार बार दोषारोपण अपनी पत्नी(राधा भट्ट ) पर करते रहते हैं.

सातवें एपीसोड में इंस्पेक्टर तांबे को सोनू सिंह हत्यारा नजर आात है जबकि इंस्पेक्टर देवेंद्र को प्रोफेसर आहूजा . आठवें एपीसोड में पुलिस सोनू सिंह की ही तलाश करती रह जाती है और सोनू सिंह अपहृत होकर चंडीगढ़ गुरलीन के पिता के पास पहुंच जाता है.

लेखन व निर्देशनः

‘सनफ्लावर’’नाम रूपक के तौर पर है. इस मर्डर मिस्ट्री व ब्लैक कॉमेडी वाली वेब सीरीज को इतना नुकीला ऐसा होना चाहिए था कि दर्शक देखते ही रह जाए, मगर यहां तो सब कुछ सपाट सा है. बेहतरीन कलाकारों के बावजूद वेब सीरीज सही नही बन पायी.  इस वेब सीरीज की अति कमजोर कड़ी है इसकी कहानी व पटकथा. कहानी इतनी धीमी गति से आगे बढ़ती है कि दर्शक अवसाद से ग्रस्त हो जाता है. यह अधपकी खिचड़ी के अलावा कुछ नही है. कई किरदारों का चरित्र चित्रण भी सही ढंग से नही हो पाया है.       ‘

कहानी अति धीमी गति से आगे बढ़ती है. सोनू सिंह यानी कि सुनील ग्रोवर का अपने घर को बंद कर आफिस जाने का दृश्य काफी बोरिंग है और इसे कई एपीसोड में दोहराया गया है. कैब ड्राइवर संग सोनू सिंह का मंुबई की सड़कों पर पकड़ा पकड़ी एकदम बचकानी हरकत लगती है और यह काफी लंबा दृश्य है, जो कि दर्शकों को बोर करता है.

यूं तो यह एक मर्डर मिस्ट्री है, मगर लेखक व निर्देशक ने इसमें कुछ विचित्र सामाजिक टिप्पणियां की है. मसलन-सोसायटी में बैचलर लड़कियों को किराए पर मकान न देना, तीन तीन शादीयां कर चुके पुरूषों,  ट्रांसजेंडर और पान बेचने वाले को सोसायटी में फ्लैट खरीदने पर पाबंदी लगाना वगैरह. . इस तरह की बातें समाज व देश को एकजुट नही खंडित करने का ही काम करती है.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो अजीब, विचित्र और मजाकिया मासूमियत के सोनू सिंह के किरदार को जीवंत करने में सुनील गा्रेवर सफल रहे हैं. इंस्पेक्टर के किरदार में रणवीर शौरी भी ठीक हैं. इंस्पेक्टर तांबे की भूमिका में गिरीश कुलकर्णी अपने अंदाज में लोगों का मनोरंजन करने में सफल और लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं. गुरलीन के किरदार में सिमरन नेरूरकर प्रभावित करती हैं. उनके चेहरे व उनकी आवाज में मासूमियत हमेशा रहती है. आशीष विद्यार्थी,  मुकुल चड्ढा, अश्विन कौशल, दयाना इरप्पा, सलोनी खन्ना, सोनल झा का अभिनय ठीक ठाक है.

Shilpa Shetty ने कुछ इस अंदाज में मनाया 46वां बर्थडे, देखें फोटोज

बौलीवुड की फिटनेस एंड फैशन के लिए फैंस के बीच पौपुलर एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) ने हाल ही में अपना 46वां बर्थडे सेलिब्रेट किया है. कोरोना से जंग जीतने के बाद शिल्पा शेट्टी(Shilpa Shetty) का ये बर्थडे और भी खास बन गया है, जिसके चलते शिल्पा ने जर्नलिस्ट्स के साथ मिलकर अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया. इसी बीच उनके बर्थडे सेलिब्रेशन की इन्साइड फोटोज भी सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं बर्थडे की लेटेस्ट फोटोज…

मीडिया के साथ मनाया बर्थडे

एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty)ने मीडियावालों के साथ भी अपने बर्थडे के मौके पर जश्न मनाया. दरअसल, अदाकारा बर्थडे के मौके पर अपने घरवालों के साथ ही नजर आईं. वहीं शिल्पा शेट्टी के जन्मदिन पर बहन शमिता शेट्टी केक लेकर आई थीं. हालांकि इस दौरान शिल्पा शेट्टी ने कोरोना नियमों का पालन भी किया.

 

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 फैमिली के संग भी किया सेलिब्रेट

मीडिया के अलावा शिल्पा शेट्टी (Shilpa Shetty) ने अपना बर्थडे खास अंदाज में सेलिब्रेट किया. इस दौरान केवल उनकी फैमिली साथ नजर आईं. वहीं ढेर सारे केक को देखकर शिल्पा बेहद खुश दिखीं, जिसका अंदाजा उनकी बर्थडे वीडियो से लगाया जा सकता है. वहीं अपने बर्थडे पर विश करने वाले सभा लोगों को शिल्पा ने सोशलमीडिया के जरिए थैंक्यू भी कहा.

पति ने ऐसे किया विश

 

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सोशलमीडिया पोस्ट को लेकरअक्सर सुर्खियों में रहने वाले राज कुंद्रा ने वाइफ शिल्पा को सोशलमीडिया पर एक प्यारा सा वीडियो शेयर करके किया, जिसमें वह बेहद खुश लग रही थीं.

बता दें, बीते दिनों एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी कुंद्रा (Shilpa Shetty) का पूरा परिवार कोरोना की चपेट में आ गया था, जिसमें उनका छोटा बेटा भी शामिल था. हालांकि शिल्पा ने पूरे परिवार के हेल्दी होने की जानकारी फैंस को दे दी थी और कहा था कि वह मेरी फैमिली के लिए प्रार्थना करें.

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शादी के बाद पति रोहनप्रीत ने सेलिब्रेट किया Neha Kakkar का Birthday, दिए ढेरों गिफ्ट

बौलीवुड की पौपुलर सिंगर नेहा कक्कड़ आए दिन सुर्खियों में रहती है. हाल ही में नेहा कक्कड़ ने अपना 36वां बर्थडे सेलिब्रेट किया, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं. वहीं नेहा कक्कड़ के पति रोहनप्रीत की वाइफ के लिए रखी इस पार्टी की तारीफें फैंस करते नहीं थक रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं नेहा कक्कड़ की खास बर्थडे पार्टी की झलक…

शादी के बाद मनाया पहला जन्मदिन

बीते साल 2020 में रोहनप्रीत संग शादी करने वाली सिंगर नेहा कक्कड़ ने शादी के बाद अपना पहला जन्मदिन ससुराल में मनाया, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर शेयर करते हुए फैंस को अपनी पार्टी और पति के प्यार भरे गिफ्ट की झलक दिखाई.

 

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कुछ ऐसी थी नेहा की बर्थडे पार्टी की झलक

कोरोना को देखते हुए नेहा कक्कड़ ने अपनी फैमिली संग बर्थडे सेलिब्रेट किया. हालांकि इस दौरान भी उनकी पार्टी बेहद खास थी. क्योंकि इस पार्टी में जहां कई केक मौजूद थे तो वहीं पति रोहनप्रीत ने नेहा के लिए ढेर सारे गिफ्ट का इंतजाम किया था.

रोहनप्रीत ने की थी खास तैयारियां

नेहा कक्कड़ के जन्मदिन को खास बनाने के लिए पति रोहनप्रीत ने कई सारी तैयारियां की थीं. जहां रोहनप्रीत ने पत्नी नेहा कक्कड़ को जन्मदिन के मौके पर कई सारे गिफ्ट दिए. तो वहीं नेहा के फैंस ने भी उन्हें ढेर सारी बधाईयां सोशलमीडिया के जरिए दी. वहीं इन सब तैयारियों को देखकर नेहा कक्कड़ बेहद खुश नजर आईं.

भाई टोनी कक्कड़ भी बने पार्टी में मेहमान

नेहा कक्कड़ के भाई टोनी कक्कड़ इस पार्टी में मेहमान बनकर पहुंचे. जहां नेहा और उनकी फैमिली ने कई सारी फोटोज क्लिक करवाई, जिसमें उनकी खुशी देखते ही बन रही थी.

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Varun Dhawan की ऑनस्क्रीन मां Evelyn Sharma ने बॉयफ्रेंड संग की शादी, देखें फोटोज

कोरोना काल में कई स्टार्स शादी के बंधन में बंध चुके हैं. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस यामी गौतम ने शादी की थी तो वहीं अब बौलीवुड एक्टर वरुण धवन की औनस्क्रीन मां के रोल में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस एवलिन शर्मा (Evelyn Sharma) ने अपने लॉन्ग टाइम ब्वॉयफ्रेंड तुषान भिंडी (Tushaan Bhindi) संग शादी कर ली हैं. आइए आपको दिखाते हैं इस कपल की स्मौल वेडिंग की झलक…

ऑस्ट्रेलिया में की शादी

 

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यारियां एक्ट्रेस एवलिन शर्मा ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में तुषान भिंडी के साथ शादी की है, जिसमें कोरोना वायरस के चलते परिवार के कुछ खास लोग ही शामिल हुए थे. वहीं अपने फैंस के लिए एवलिन ने अपनी शादी की झलक दिखाते हुए कुछ फोटोज शेयर की हैं, जो सोशलमीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं.

 

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ऐसा था एक्ट्रेस का लुक

 

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एवलिन शर्मा ने शादी के लिए व्हाइट कलर का शानदार ब्राइडल गाउन पसंद किया. तो वहीं तुषान भिंडी ने ब्लू सूट को कैरी किया. वहीं एवलिन शर्मा सिंपल दुल्हन बनकर अपनी शादी में पोज देती हुई नजर आईं. दूसरी तरफ कपल फोटोज में दोनों की जोड़ी परफेक्ट लग रही थी.

 

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फैंस दे रहे बधाई

 

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एक्ट्रेस की शादी की खबर से जहां फैंस हैरान हैं तो वहीं सेलेब्स उन्हें शादी की बधाइयां दे रहे हैं. दूसरी तरफ कपल की बात करें तो फोटोज को साथ देखकर लग रहा है कि दोनों को शादी का बेसब्री से इंतजार था.

 

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बौलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुकी एक्ट्रेस एवलिन शर्मा कई बौलीवुड स्टार्स संग काम कर चुकी हैं. वहीं उनके पति की बात करें तो ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले तुषान भिंडी एक डेंटल सर्जन हैं. दोनों लंबे समय से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं. वहीं हाल ही में दोनों ने अपनी सगाई की खबर भी फैंस को दी थी.

तुषार कपूर के इंडस्ट्री में हुए 20 साल पूरे, सिंगल फादर का निभा रहे हैं फर्ज

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 20 साल पूरे कर चुके अभिनेता और निर्माता तुषार कपूर को ख़ुशी इस बात से है कि उन्होंने एक अच्छी जर्नी इंडस्ट्री में तय किया है. हालांकि इस दौरान उनकी कुछ फिल्में सफल तो कुछ असफल भी रही, पर उन्होंने कभी इसे असहज नहीं समझा, क्योंकि सफलता और असफलता नदी के दो किनारे है. सफलता से ख़ुशी मिलती है और असफलता से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ से उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश किया, जिसमें उनके साथ अभिनेत्री करीना कपूर थी. पहली फिल्म सफल रही, उन्हें सर्वश्रेष्ठ डेब्यू कलाकार का ख़िताब मिला. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में की, जो असफल साबित हुई. करीब दो वर्षों तक उन्हें असफलता मिलती रही, लेकिन फिल्म ‘खाकी’ से उनका कैरियर ग्राफ फिर चढ़ा और उन्होंने कई सफल फिल्में मसलन, ‘क्या कूल है हम’, गोलमाल, गोलमाल 3, ‘शूट आउट एट लोखंडवाला’ ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘गोलमाल रिटर्न्स’,आदि फिल्में की.तुषार की कोशिश हमेशा अलग-अलग फिल्मों में अलग किरदार निभाने की रही,लेकिन उन्हें कई बार टाइपकास्ट का शिकार होना पड़ा, क्योंकि कॉमेडी में वे अधिक सफल रहे और वैसी ही भूमिका उन्हें बार-बार मिलने लगी थी, जिससे निकलना मुश्किल हो रहा था. तब तुषार ने इसे चुनौती समझ,सफलता के बारें में न सोचकर अलग भूमिका करने लगे, क्योंकि वे फिल्म मेकिंग प्रोसेस को एन्जॉय करते है. शांत और विनम्र तुषार फ़िल्मी परिवार से होने के बावजूद उन्हें लोग कैरियर की शुरुआत में खुलकर बात करने की सलाह देते थे, जो उन्हें पसंद नहीं था.

कैरियर के दौरान एक समय ऐसा आया, जब तुषार कपूर अपने जीवन में कुछ परिवर्तन चाहते थे, जिसमें उनकी इच्छा एक बच्चे की थी. सरोगेसी का सहारा लेकर वे सिंगल फादर बने.उनका बेटालक्ष्य कपूर अभी 5 साल के हो चुके है. तुषार बेटे को भी वही आज़ादी देना चाहते है, जितना उन्हें अपनी माँ शोभा कपूर,पिता जीतेन्द्र और बहन एकता कपूर से मिला है. 20 साल पूरे होने के उपलक्ष्य पर उन्होंने बात की,जो बहुत रोचक थी पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-आपको सिंगल फादर होने की वजह से किस तरह के फायदे मिले?

टाइम मेनेजमेंट अच्छी तरह से हो जाता है. छोटी-छोटी बातों पर ध्यान न देकर जरुरी चीजों पर अधिक ध्यान देने लगा हूं. अब अच्छी ऑर्गनाइज्ड, फोकस्ड,कॉन्फिडेंस और पर्पजफुल लाइफ हो चुकी है, जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था.

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सवाल-इतने सालों में इंडस्ट्री में किस प्रकार का बदलाव देखते है?

मोटे तौर पर कहा जाय तो इंडस्ट्री के नियम सालों से एक जैसे ही होती है, केवल पैकेजिंग बदल जाती है. ओटीटी माध्यम जुड़ गया है, पहले सिंगल स्क्रीन था, अब मल्टीप्लेक्स का समय आ गया है. इसके अलावा लोगों तक पहुँचने का जरिया, फिल्म मेकिंग का तरीका बदला है, लेकिन कहानियां वही बनायीं जाती है, जो दर्शकों को पसंद आये और कलाकारों के अभिनय का दायरा वही रहता है. मनोरंजन के साथ अच्छी कहानी की मांग कभी कम नहीं होती.

सवाल-आज से 21 साल पहले दिन की शूटिंग के अनुभव क्या थे?

पहला शॉट मैंने जून साल 2000 को फिल्म ‘मुझे कुछ कहना है’ के लिए दिया था, जिसे करते हुए 21 साल हो गए. शूटिंग के पहले दिन मेरा पहला शॉट एक छड़ी पकड़कर करीना के घर आना था और करीना को प्यार का इजहार कर देना था. वह गुस्सा हो जाती है और मैं शॉक्ड होकर नींद से उठ जाता हूं और समझ में आता है कि ये एक सपना था, हकीकत नहीं और मैंने सोच लिया था कि उसे मैं कभी भी प्रपोज नहीं करूँगा. एक नाईटमेयर वाला सीक्वेंस था. उसे करने से पहले मैं बहुत खुश था, लेकिन अंदर से नर्वस भी था. सेट का वातावरण बड़ा फ़िल्मी लग रहा था. ये बहुत गलत कहा जाता है कि स्टार किड को रेड कारपेट दिया जाता है,जबकि सभी को जीरो से ही शुरू करना पड़ता है. जब समस्या आती है तो कोई सामने नहीं आता और मुझे वहां खड़े होकर सब कुछ सम्हालना पड़ा था. पहला दिन बहुत ख़राब गया, लेकिन धीरे-धीरे ये ठीक होता गया.

सवाल-आपने फिल्म ‘लक्ष्मी’ को प्रोड्यूस किया है, क्या अभिनय में आना नहीं चाहते?

मैं अभिनय अवश्य करूँगा,लेकिन लक्ष्मी की कहानी मुझे अच्छी लगी थीऔर अक्षय कुमार इसे करने के लिए राज़ी हुए इसलिए मैंने प्रोड्यूस किया. रिलीज में समस्या कोविड की वजह से आ गयी थी, लेकिन मुझे रिलीज करना था और मैंने ओटीटी पर रिलीज कर दिया और लोगों ने लॉकडाउन में इस फिल्म को देखकर हिट बना दिया.फिल्म को लेकर जितनी कमाई हुई, उससे मैं संतुष्ट हूं. मैं प्रोड्यूस अभिनय छोड़कर नहीं करना चाहता. अभी फिल्म ‘मारीच’  का काम मैंने ख़त्म किया है, जिसमें मैं अभिनय और प्रोड्यूस दोनों कर रहा हूं. अभिनय मेरे खून में है, जो कभी जा नहीं सकता. मैं अधिकतर साल में एक फिल्म या दो साल में एक फिल्म ही करता हूं. फिल्म प्रोड्यूस करना भी मुझे पसंद है, क्योंकि इसमें मैं कई तरह की फिल्मों का निर्माण कर सकता हूं. इस पेंडेमिक में ओटीटी और सेटेलाइट ही फिल्मों को रिलीज करने में वरदान सिद्ध हो रही है.

सवाल-आप विदेश में पढने गए और आकर फिल्में की, वहां की पढ़ाई से आपको अभिनय में किस प्रकार सहायता मिली और फिल्मों में अभिनय करने का फैसला कैसे लिया?

मैं वहां चार्टेड एकाउंटेंट बनने गया था, मेनेजमेंट किया और चार्टेड एकाउंटेंसी पढ़ा, जिसका फायदा मुझे बहुत मिला है. मैं अपनी एकाउंट, पिता और माँ की एकाउंट को सम्हालता हूं. फिल्म प्रोड्यूस करने में भी बजट के पूरा ख्याल, मैंने इस शिक्षा की वजह से कर पाया, क्योंकि किसी भी काम में पैसा सही जगह लग रहा है कि नहीं, देखना जरुरी होता है. केवल हस्ताक्षर कर देने से कई बार समस्या भी आती है. एजुकेशन हमेशा ही किसी न किसी रूप में काम आती है.

डिग्री लेने के बाद मैंने एक जॉब अमेरिका में लिया, उसे करने के बाद लगा कि कोर्पोरेट वर्ल्ड में काम करना संभव नहीं. कुछ क्रिएटिव काम करने की इच्छा होती थी. फिर मैं इंडिया आकर डेविड धवन के साथ एसिस्टेंट डायरेक्टर का काम किया. उस दौरान ‘मुझे कुछ कहना है’ में मुझे अभिनय का अवसर मिला. मैंने उसे जॉब के रूप में लिया और अभिनय को समझा.

सवाल-आपके पिता ने आपको अभिनय में किस तरह का सहयोग दिया?

मेरे पिता ने मेरी पहले काम की प्रसंशा की और आगे और अच्छा करने की सलाह दी. फिर एक्टिंग क्लासेस, फाइट क्लासेस की शुरुआत कर दी और थोड़े दिनों बाद मैंने एक्टिंग शुरू किया. उनका कहना है कि मुझे खुद काम करके ही खुद की कमी को समझकर ठीक कर सकता हूं.उन्होंने हमेशा मेहनत से काम किया है और मुझे भी करने की सलाह दी.

सवाल-कब शादी करने वाले है?

मैं आज अपने बेटे के लिए काफी हूं और वैसे ही जीना चाहता हूं, क्योंकि शादी कर मैं अपने बेटे को किसी के साथ शेयर नहीं कर सकता. मुझे शादी करना है या नहीं,अभी इस बारें में सोचा नहीं है. मैंने कभी नहीं कहा है कि मैं शादी नहीं करूँगा. हर कोई अपना लाइफ पार्टनर चाहता है, फिर मैं क्यों नहीं चाहूंगा.

सवाल-आपके अभिनय को लेकर क्या किसी ने कुछ सलाह दी?

हाँ कुछ ने कहा था कि मैं थोडा शांत हूं, मुझे फिल्मी हो जाना चाहिए,क्योंकि शांत इंसान हीरो नहीं बन सकता, जो शरारती, शैतान टाइप के होते है, वे ही हीरो बनते है, लेकिन मुझे ये बात समझ में कभी नहीं आई. वे शायद मुझे पहले के हीरो के जैसे देखना चाहते थे, जो अकेला होकर भी कईयों को पीट सकता है. उसकी लम्बाई 6 फीट की हो और मीडिया में हमेशा उसके अफेयर की चर्चा हो आदि. उस समय हीरो मटेरियल होना जरुरी होता था. आज लोग हर तरह की कहानियों की एक्सपेरिमेंट कर रहे है. अभी दर्शकों की पसंद के आधार पर कोई हीरो बनता है.

सवाल-लॉकडाउन में अपने परिवार और बेटे के साथ समय कैसे बिताया?

मैंने लक्ष्य के साथ काफी समय बिताया, उसके स्कूल की पढाई पर ध्यान दिया. मेरे माता- पिता के साथ लक्ष्य दिन में रहता है, इसलिए मैं वहां जाकर समय बिता लेता हूं. जिम जाता हूं, स्क्रिप्ट पढता हूं, डबिंग करता हूं. इस तरह कुछ न कुछ चलता रहता है, लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि मैं बेटे के साथ कम समय बिता रहा हूं.

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सवाल-अभी कोविड कि तीसरी लहर आने वाली है, जो बच्चों के लिए खतरनाक है,लोग डरे हुए है, आपने लक्ष्य के लिए क्या तैयारी की है?

मैंने कोविड को खतरनाक हमेशा से ही माना है और सावधानी से बच्चे को दोस्त या दादी के घर ले जाते है. अधिक दूर मैं उसे लेकर नहीं जाता, जहाँ हायजिन और वैक्सीन लगाये लोग है, वहां ले जाता हूं.ऐसी कोई पक्की सबूत नहीं है कि तीसरा वेव आएगा और बच्चों के लिए खतरनाक है. सभी को सावधान रहने की जरुरत है. हमारे व्यवहार से ही वायरस को बढ़ने का मौका मिलता है. डर लगना जरुरी है, ताकि लोग घर से न निकले.

सवाल-आपकी पहली फिल्म की कुछ यादगार पल जिसे आप शेयर करना चाहे?

मेरी करीना के साथ कई यादें है, वह एक खुबसूरत अभिनेत्री है,मेरे साथ उसकी भी पहली फिल्म थी. उसकी फ्रेशनेस और ग्लैमर बहुत ही अलग थी. फिल्म के सफल होने में उसका काम दर्शकों को पसंद आना था. तब अधिक बात मैंने नहीं की थी. गोलमाल फिल्म के बाद हमारी अच्छी दोस्तीहो गयी थी.लॉकडाउन से पहले तैमूर और मेरा बेटा लक्ष्य साथ-साथ खेलते थे,लेकिन अभी कोरोना की वजह से जाना नहीं होता.

सवाल-फिल्मों की असफलता को आपने कैसे लिया?

कुछ फिल्मों के असफल होने पर मैंने परिवार से मोरल सपोर्ट लिया.असल में खुद को ही किसी असफलता की कर्व से गुजर कर आगे बढ़ना पड़ता है. सबसे बड़े स्टार भी कई बार गलत फिल्म ले लेते है और उससे निकलकर एक अच्छी फिल्म करते है और खुद को स्थापित करते है. मुझे थोडा समय लगा, क्योंकिमैं भी वैसी ही एक फिल्म चाहता था, ताकि लोग मुझे पसंद करने लगे और वह मेरी फिल्म ‘खाकी’ से हुआ.

सवाल-इन 20 सालों में फ़िल्मी कहानियों में कितना बदलाव देखते है?

कमर्शियल कहानियों में बदलाव आया है. पैकेजिंग पहले से अलग हो गयी है.आज किसी एक्शन फिल्म के लिए टीम को विदेश ले जाया जाता है, लेकिन हमारे देश के दर्शक इमोशनल है, इसलिए उन्हें इमोशन वाली कहानियां, जो मिट्टी से जुडी हुई हो, आज भी चलती है और कहानियों में जो ग्लैमर है, उसे भी नहीं जाना चाहिए. आज भी हीरो रोमांस, एक्शन और कॉमेडी करता है. ये भी सही है कि अभी ऑफ़बीट, रीयलिस्टिक फिल्मों को भी दर्शक पसंद करने लगे है, जिसे पहले लोग देखना पसंद नहीं करते थे.

कोरोना की नई लहर बदहाली में फंसे सिनेमाघर

कोरोना संक्रमण के डर से 2-3 माह सिनेमाघर खुले रहे पर उन के अंदर देखने के लिए दर्शक नहीं आ रहे थे. उम्मीद थी कि ‘राधे,’ ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के प्रदर्शन से दर्शक सिनेमाघर की तरफ लौटेंगे और इस से सिनेमाघर की रौनक लौटने के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री को भी कुछ राहत मिलेगी, मगर कोरोना की नई लहर के चलते महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के सिनेमाघर 25 मार्च से बंद कर दिए गए. परिणामत: अब ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी,’ ‘थलाइवी’ जैसी बड़े बजट की फिल्मों का प्रदर्शन अनिश्चित काल के लिए टल गया है.

सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि मराठी भाषा की ‘जोंमीवली,’ ‘फ्री हिट डंका,’ ‘झिम्मा,’ ‘बली,’ ‘गोदावरी’ फिल्मों का प्रदर्शन भी अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया.

सलमान खान ने अपनी फिल्म ‘राधे’ को ले कर यहां तक कह दिया है कि इस ईद पर हालात बेहतर नहीं रहे तो इसे अगली ईद पर सिनेमाघरों में ही रिलीज किया जाएगा. ‘सूर्यवंशी’ और ‘चेहरे’ के निर्माता भी कह रहे हैं कि मई से हालात बेहतर हो जाएंगे तब फिल्में सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करेंगे.

यों तो ‘ओटीटी’ प्लेटफौर्म इन बड़े बजट वाली फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म पर प्रदर्शित करने का अपने हिसाब से निर्माताओं पर जोरदार दबाव बना रहे हैं. मगर एक कड़वा सच यह है कि ओटीटी पर बड़े बजट की फिल्म के आने से फिल्म इंडस्ट्री का भला कदापि नहीं हो सकता.

फिल्म इंडस्ट्री को खत्म करने की साजिश

वास्तव में इस वक्त बरबादी के कगार पर पहुंच चुकी फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा के लिए खत्म करने की साजिश के तहत कुछ लोगों द्वारा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का एक खतरनाक प्रयास किया जा रहा है. यह फिल्म इंडस्ट्री के लिए अति नाजुक मोड़ है.

निर्माता को यकीनन अपनी फिल्म को बड़े परदे यानी सिनेमाघरों में प्रदर्शन पर ही दांव लगाना चाहिए. अगर बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए नहीं बचीं तो सिंगल थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स को तबाह होने से कोई नहीं बचा पाएगा. यदि थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स खत्म होना शुरू हुए तो फिल्म उद्योग की कमर टूटने से कोई नहीं बचा सकता. इस से फिल्म इंडस्ट्री हमेशा के लिए तबाह हो जाएगी और इस का पुन: उठना शायद संभव न हो पाए. ओटीटी प्लेटफौर्म का मकसद फिल्म इंडस्ट्री को बचाना कदापि नहीं है. इन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से कोई सराकोर ही नहीं है. ये तो हौलीवुड के नक्शेकदम पर काम कर रहे हैं. हौलीवुड ने अपनी कार्यशैली से पूरे यूरोप के सिनेमा को खत्म कर हर जगह अपनी पैठ बना ली.

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एक कड़वा सच

यह एक कड़वा सच है. फिल्मों के ओटीटी पर आने से निर्माता को भी कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है. अब तक अपनी फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म ‘हौटस्टार प्लस डिजनी’ पर आनंद पंडित की फिल्म ‘बिग बुल’ आई थी. मगर अब आनंद पंडित अपनी अमिताभ बच्चन व इमरान हाशमी के अभिनय से सजी फिल्म ‘चेहरे’ को किसी भी सूरत में ओटीटी प्लेटफौर्म को देने को तैयार नहीं हैं, जबकि ओटीटी प्लेटफौर्म की तरफ से उन पर काफी दबाव बनाया जा रहा है.

खुद आनंद पंडित कहते हैं, ‘‘यह सच है कि हम पर फिल्म ‘चेहरे’ को ओटीटी पर लाने का जबरदस्त दबाव है. इस की मूल वजह यह है कि हमारे देश मे 5-6 बड़ी ओटीटी कंपनियां हैं. इन्हें बड़ी फिल्में ही चाहिए. खासकर रोमांच थ्रिलर की और जिन में उत्तर भारत की पहाडि़यों का एहसास हो.

मगर ‘द बिग बुल’ से हमें कटु अनुभव हुए. फिल्म ‘बिग बुल’ से हमें टेबल प्रौफिट हुआ है, मगर इस का उतना फायदा नहीं हुआ जितना सिनेमाघर के बौक्स औफिस से मिल सकता था. इसलिए हम ने ‘चेहरे’ को सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करने के लिए रोका है. वैसे हमें भरोसा है कि मई के अंतिम सप्ताह तक सिनेमाघर खुल जाएंगे तो हम जून या जुलाई तक फिल्म को सिनेमाघर में ले कर जाएंगे.’’

आनंद पंडित की बातों में काफी सचाई है. माना कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म को देने से निर्माता को तुरंत लाभ मिल जाता है, मगर किसी भी फिल्म के लिए ओटीटी प्लेटफौर्म उतना लाभ नहीं दे सकता जितना सिनेमाघरों के बौक्स औफिस से मिल सकता है.

इस का सब से बड़ा उदाहरण राजकुमार राव की फिल्म ‘स्त्री’ है. इस फिल्म की निर्माण लागत 2 करोड़ रुपए थी और इस ने सिनेमाघर के बौक्स औफिस पर 150 करोड़ रुपए कमाए थे. जबकि ओटीटी पर इसे अधिकाधिक 15 करोड़ रुपए ही मिलते. सूत्रों के अनुसार फिल्म इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्र यह मान कर चल रहे हैं कि

यदि ‘सूर्यवंशी’ ओटीटी पर आई तो 50 करोड़ रुपए और अगर सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई तो 100 करोड़ रुपए का फायदा होगा.

हमें यहां यह भी याद रखना होगा कि फिल्म इंडस्ट्री को बंद होने के खतरे से बचाने के लिए आवश्यक है कि फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हों और अपनी गुणवत्ता के आधार पर अधिकाधिक कमाई करें.

बेदम फिल्म इंडस्ट्री

यों तो कोरोना की वजह से पिछले 1 साल से जिस तरह के हालात बने हुए हैं उन्हें देखते हुए इस बात की कल्पना करना कि 2021 में फिल्मों को बौक्स औफिस पर बड़ी सफलता मिलेगी सपने देखने के समान ही है. ‘राधे’ या ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के सिनेमाघरों में प्रदर्शन की खबरों से कुछ उम्मीदें जरूर बंधी थीं पर उस पर कोरोना की नई लहर ने कुठाराघात कर दिया.

सिनेमाघर भी तबाह

कोरोना महामारी के चलते 17 मार्च से पूरी तरह से बंद हो चुके मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर के मालिकों व इन से जुड़े कर्मचारियों पर दोहरी मार पड़ी है. मल्टीप्लैक्स चला रहे लोगों की कमाई व इन के कर्मचारियों के वेतन ठप्प हुए और ऊपर से कर्ज भी हो गया.

नवंबर माह से सरकार द्वारा सब कुछ खोल देने व सिनेमाघरों में 50% दर्शकों की उपस्थिति की शर्त से सिनेमाघर मालिकों की कमाई बढ़ने के बजाय उन का संकट बढ़ गया. ऐसे में कोई भी सिनेमाघरों के हालात पूरी तरह से सुधरने तक उन्हें नहीं खोलना चाहता था. कई शहरों के कई मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर नवंबर या फरवरी 2021 में भी नहीं खुले.

तो फिर सवाल उठता है कि जो मल्टीप्लैक्स खुले हैं वे क्यों खुले हैं और इन की स्थिति क्या है? देखिए, पूरे देश में पीवीआर के सर्वाधिक मल्टीप्लैक्स हैं और ये मल्टीप्लैक्स किसी न किसी शौपिंग मौल में हैं और किराए पर लिए गए हैं. जब शौपिंग मौल्स खुल गए तो इन पर मल्टीप्लैक्स खोलने का दबाव बढ़ा.

शौपिंग मौल के मालिक को किराया चाहिए. अब पूरे माह मल्टीप्लैक्स में भले ही 1-2 शो हो रहे हों पर उन्हें कोरोना की एसओपी के तहत सैनीटाइजर से ले कर साफसफाई पर पैसा खर्च करना पड़ रहा है. कर्मचारियों को पूरे माह की तनख्वाह देनी पड़ रही है.

बिजली का लंबाचौड़ा बिल भरना पड़ रहा है, जबकि हर शो में 3-4 ज्यादा दर्शक नहीं आ रहे हैं. परिणामत: सिनेमाघर वालों को अपनी जेब से सारे खर्च वहन करने पड़ रहे हैं. तो यह इन के लिए पूर्णरूपेण का सौदा है. इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ रहा है. सिनेमाघर फायदे में तब होंगे जब उन के सभी शो चलें और हर शो में काफी दर्शक हों.

सिनेमाघर में इन दिनों दर्शक न पहुंचने की कई वजहें हैं. पहली वजह तो दर्शक के मन में कोरोना का डार. दूसरी वजह कोरोना महामारी व लौकडाउन के चलते सभी की आर्थिक हालत का खराब होना है. ऐसे में दर्शक सिनेमाघर जा कर फिल्म देखने के लिए पैसे खर्च करने से पहले दस बार सोचता है. तीसरी वजह अच्छी फिल्मों का अभाव.

कुछ फिल्में लौकडाउन के वक्त निर्माताओं की जल्दबाजी के चलते पहले ही ओटीटी पर आ गईं. ‘राधे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी फिल्में सिनेमाघर में आने से पहले हालात बेहतर होने का इंतजार कर रही थीं, तो वहीं पूरे 6 माह तक एक भी शूटिंग न हो पाने के चलते भी फिल्मों का अभाव हो गया है.

कुछ फिल्मों की शूटिंग चल रही थी तो अनुमान था कि ‘राधे’ व ‘सूर्यवंशी’ के प्रदर्शन से एक माहौल बनेगा, दर्शक सिनेमाघरों की तरफ मुड़ेंगे और फिर जूनजुलाई 2021 से नई फिल्में प्रदर्शन के लिए तैयार हो जाएंगी. मगर अब यह उम्मीद भी खत्म हो चुकी है, क्योंकि कोरोना की नई लहर के चलते फिल्मों की शूटिंग में काफी बड़ा अड़ंगा लग चुका है.

अब तो कुछ जगह सिनेमाघर पूर्णरूपेण बंद हो चुके हैं. कुछ जगह पर नाइट कर्फ्यू है तो दिन में मुश्किल से ही 2 शो हो सकते हैं पर उन शो के लिए फिल्में नहीं हैं.

सिनेमाघरों की माली हालत तभी सुधरेगी और सभी सिनेमाघर तब खुल सकते हैं जब बड़े बजट या अच्छी कहानी वाली बेहतरीन फिल्में लगातार कई हफ्तों तक सिनेमाघरों मे प्रदर्शित होने के लिए उपलब्ध होंगी जोकि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए 2021 में तो नामुमकिन ही लग रहा है. इस से भी फिल्म इंडस्ट्री की नैया डूबी है.

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यहां इस बात पर भी विचार करना होगा कि जो सिनेमाघर बंद हैं क्या उन से फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान नहीं हो रहा है? ऐसा नहीं है. जो सिनेमाघर किराए पर नहीं हैं उन के मालिकों ने फिलहाल बंद रखा हुआ है, क्योंकि उन्हें किराया तो देना नहीं है.

सिनेमाघर जब तक बंद रहेंगे तब तक उन्हें बिजली का बिल भी न्यूनतम यानी यदि सिनेमाघर खुले रहने पर हजार रुपए देने पड़ते थे तो अब बंद रहने पर सिर्फ 100 रुपए देने पड़ते होंगे.

इस के अलावा इन्हें अपने कर्मचारियों को तनख्वाह भी नहीं देनी है. इस तरह ये खुद कम नुकसान में हैं, मगर इन की कमाई पूरी तरह बंद है. इस से फिल्म वितरक भी नुकसान में हैं. इस से घूमफिर कर फिल्म इंडस्ट्री को ही नुकसान पहुंच रहा है.

बड़े कलाकारों की भूमिका

कोरोना महामारी की वजह से फिल्मों व टीवी सीरियल के बजट में भी कटौती की गई है. जुलाई, 2020 माह में तय किया गया था कि कलाकार और वर्कर हर किसी की फीस में कटौती की जाएगी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के सूत्रों की मानें तो ऐसा सिर्फ वर्कर व तकनीशियन के साथ हुआ है.

फिल्म हो या टीवी सीरियल हर जगह कोरोना लहर की वापसी के बाद भी दिग्गज कलाकार अपनी मनमानी कीमत ही निर्माता से वसूल रहे हैं और निर्माता भी इन बड़े कलाकारों के सामने नतमस्तक हैं.

कोरोना लहर के दौरान फिल्मकार पहले की तरह अपनी फिल्म का प्रचार नहीं कर रहे हैं. फिल्म के विज्ञापन नहीं दे रहे हैं. मगर वे फिल्म के सिनेमाघर में प्रदर्शन के बाद अपने पीआरओ के माध्यम से जुटाए गए स्टार की सूची का विज्ञापन सोशल मीडिया के हर प्लेटफौर्म के अलावा चंद अंगरेजी के अखबारों में जरूर दे रहे हैं. जबकि दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है.

हाल ही में जब हम ने एक ऐसे ही पत्रकार के यूट्यूब चैनल पर जा कर उस की फिल्म ‘बिग बुल’ की समीक्षा देखी जिसे उस ने साढ़े तीन स्टार दिए थे तो पाया कि कई दर्शकों ने उस के कमैंट बौक्स में सवाल पूछा था कि क्या आप बता सकते हैं कि आप ने किस फिल्म को तीन से कम स्टार दिए हैं? यानी खराब से खराब फिल्म की समीक्षा में अच्छे स्टार दिलाने का भी एक नया व्यापार शुरू हो गया है. मगर इस संस्कृति से भी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान हो रहा है.

फिल्म इंडस्ट्री तभी संकट से उबर सकेगी जब उस से जुड़े हर तबके, वर्कर, तकनीशियन, निर्माता, निर्देशक व कलाकार के साथसाथ फिल्म वितरक, ऐग्जिविटर व सिनेमाघर मालिकों के हितों का भी ध्यान रखा जाए. मगर कोरोना की नई लहर के साथ जिस तरह का माहौल बना है उस से यही आभास होता है कि शायद अब फिल्म इंडस्ट्री कभी उबर नहीं पाएगी.

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