Hindi Family Story: यह घर मेरा भी है

Hindi Family Story: मैं और मेरे पति समीर अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ एक रैस्टोरैंट में डिनर कर रहे थे, अचानक बेटी चीनू के हाथ के दबाव से चम्मच उस की प्लेट से छिटक कर उस के कपड़ों पर गिर गया और सब्जी छलक कर फैल गई.

यह देखते ही समीर ने आंखें तरेरते हुए उसे डांटते हुए कहा, ‘‘चीनू, तुम्हें कब अक्ल आएगी? कितनी बार समझाया है कि प्लेट को संभाल कर पकड़ा करो, लेकिन तुम्हें समझ ही नहीं आता… आखिर अपनी मां के गंवारपन के गुण तो तुम में आएंगे ही न.’’

यह सुनते ही मैं तमतमा कर बोली, ‘‘अभी बच्ची है… यदि प्लेट से सब्जी गिर भी गई तो कौन सी आफत आ गई है… तुम से क्या कभी कोई गलती नहीं होती और इस में गंवारपन वाली कौन सी बात है? बस तुम्हें मुझे नीचा दिखाने का कोई न कोई बहाना चाहिए.’’

‘‘सुमन, तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है… इसे टेबल मैनर्स आने चाहिए. मैं नहीं चाहता इस में तुम्हारे गुण आएं… मैं जो चाहूंगा, इसे सीखना पड़ेगा…’’

मैं ने रोष में आ कर उस की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ की कठपुतली नहीं है कि उसे जिस तरह चाहो नचा लो और फिर कभी तुम ने सोचा है कि इतनी सख्ती करने का इस नन्ही सी जान पर क्या असर होगा? वह तुम से दूर भागने लगेगी.’’

‘‘मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी,’’ कहते हुए समीर चम्मच प्लेट में पटक कर बड़बड़ाता हुआ रैस्टोरैंट के बाहर निकल गया और गाड़ी स्टार्ट कर घर लौट गया.

मेरी नजर चीनू पर पड़ी. वह चम्मच को हाथ में

पकड़े हमारी बातें मूक दर्शक बनी सुन रही थी. उस का चेहरा बुझ गया था, उस के हावभाव से लग रहा था, जैसे वह बहुत आहत है कि उस से ऐसी गलती हुई, जिस की वजह से हमारा झगड़ा हुआ. मैं ने उस का फ्रौक नैपकिन से साफ किया और फिर पुचकारते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, गलती तो किसी से भी हो सकती है. तुम अपना खाना खाओ.’’

‘‘नहीं ममा मुझे भूख नहीं है… मैं ने खा लिया,’’ कहते हुए वह उठ गई.

मुझे पता था कि अब वह नहीं खाएगी. सुबह वह कितनी खुश थी, जब उसे पता चला था कि आज हम बाहर डिनर पर जाएंगे. यह सोच कर मेरा मन रोंआसा हो गया कि मैं समीर की बात पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो बात इतनी नहीं बढ़ती. मगर मैं भी क्या करती. आखिर कब तक बरदाश्त करती? मुझे नीचा दिखाने के लिए बातबात में चीनू को मेरा उदाहरण दे कर कि आपनी मां जैसी मत बन जाना, उसे डांटता रहता है. मेरी चिढ़ को उस पर निकालने की उस की आदत बनती जा रही थी.

हम दोनों कैब ले कर घर आए तो देखा समीर दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में था. हम भी आ कर सो गए, लेकिन मेरा मन इतना अशांत था कि उस के कारण मेरी आंखों में नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं ने बगल में लेटी चीनू को भरपूर दृष्टि से देखा, कितनी मासूम लग रही थी वह. आखिर उस की क्या गलती थी कि वह हम दोनों के झगड़े में पिसे?

विवाह होते ही समीर का पैशाचिक व्यवहार मुझे खलने लगा था. मुझे हैरानी होती थी यह देख कर कि विवाह के पहले प्रेमी समीर के व्यवहार में पति बनते ही कितना अंतर आ गया. वह मेरे हर काम में मीनमेख निकाल कर यह जताना कभी नहीं चूकता कि मैं छोटे शहर में पली हूं. यहां तक कि वह किसी और की उपस्थिति का भी ध्यान नहीं रखता था.

इस से पहले कि मैं समीर को अच्छी तरह समझूं, चीनू मेरे गर्भ में आ गई. उस के बाद तो मेरा पूरा ध्यान ही आने वाले बच्चे की अगवानी की तैयारी में लग गया था. मैं ने सोचा कि बच्चा होने के बाद शायद उस का व्यवहार बदल जाएगा. मैं उस के पालनपोषण में इतनी व्यस्त हो गई कि अपने मानअपमान पर ध्यान देने का मुझे वक्त ही नहीं मिला. वैसे चीनू की भौतिक सुखसुविधा में वह कभी कोई कमी नहीं छोड़ता था.

वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता गया और चीनू 3 साल की हो गई. इन सालों में मेरे प्रति समीर के व्यवहार में रत्तीभर परिवर्तन नहीं आया. खुद तो चीनू के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करा कर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझता था, लेकिन उस के पालनपोषण में मेरी कमी निकाल कर वह मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

धीरेधीरे वह इस के लिए चीनू को अपना हथियार बनाने लगा कि वह भी

मेरी आदतें सीख रही है, जोकि मेरे लिए असहनीय होने लगा था. इस प्रकार का वादविवाद रोज का ही हिस्सा बन गया था और बढ़ता ही जा रहा था. मैं नहीं चाहती थी कि वह हमारे झगड़े के दलदल में चीनू को भी घसीटे. चीनू तो सहमी हुई मूकदर्शक बनी रहती थी और आज तो हद हो गई थी. वास्तविकता तो यह है कि समीर को इस बात का बड़ा घमंड है कि वह इतना कमाता है और उस ने सारी सुखसुविधाएं हमें दे रखी हैं और वह पैसे से सारे रिश्ते खरीद सकता है.

मैं सोच में पड़ गई कि स्त्री को हर अवस्था में पुरुष का सुरक्षा कवच चाहिए होता है. फिर चाहे वह सुरक्षाकवच स्त्री के लिए सोने के पिंजरे में कैद होने के समान ही क्यों न हो? इस कैद में रह कर स्त्री बाहरी दुनिया से तो सुरक्षित हो जाती है, लेकिन इस के अंदर की यातनाएं भी कम नहीं होतीं. पिछली पीढ़ी में स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती थीं, इसलिए असहाय होने के कारण पति द्वारा दी गई यातनाओं को मनमार कर स्वीकार लेती थीं. उन्हें बचपन से ही घुट्टी पिला दी जाती थी कि उन के लिए विवाह करना आवश्यक है और पति के साथ रह कर ही वे सामाजिक मान्यता प्राप्त कर सकती हैं, इस के इतर उन का कोई वजूद ही नहीं है.

मगर अब स्त्रियां आत्मनिर्भर होने के साथसाथ अपने अधिकारों के लिए भी जागरूक हो गई हैं. फिर भी कितनी स्त्रियां हैं जो पुरुष के बिना रहने का निर्णय ले पा रही हैं? लेकिन मैं यह निर्णय ले कर समाज की सोच को झुठला कर रहूंगी. तलाक ले कर नहीं, बल्कि साथ रह कर. तलाक ही हर दुखद वैवाहिक रिश्ते का अंत नहीं होता. आखिर यह मेरा भी घर है, जिसे मैं ने तनमनधन से संवारा है. इसे छोड़ कर मैं क्यों जाऊं?

लड़कियों का विवाह हो जाता है तो उन का अपने मायके पर अधिकार नहीं रहता, विवाह के बाद पति से अलग रहने की सोचें तो वही उस घर को छोड़ कर जाती हैं, फिर उन का अपना घर कौन सा है, जिस पर वे अपना पूरा अधिकार जता सकें? अधिकार मांगने से नहीं मिलता, उसे छीनना पड़ता है. मैं ने मन ही मन एक निर्णय लिया और बेफिक्र हो कर सो गई.

सुबह उठी तो मन बड़ा भारी हो रहा था. समीर अभी भी सामान्य नहीं था. वह

औफिस के लिए तैयार हो रहा था तो मैं ने टेबल पर नाश्ता लगाया, लेकिन वह ‘मैं औफिस में नाश्ता कर लूंगा’ बड़बड़ाते हुए निकल गया. मैं ने भी उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

चीनू आ कर मुझ से लिपट गई. बोली, ‘‘ममा, पापा को इतना गुस्सा क्यों आता है? मुझ से थोड़ी सब्जी ही तो गिरी थी…आप को याद है उन से भी चाय का कप लुढ़क गया था और आप ने उन से कहा था कि कोई बात नहीं, ऐसा हो जाता है. फिर तुरंत कपड़ा ला कर आप ने सफाई की थी. मेरी गलती पर पापा ऐसा क्यों नहीं कहते? मुझे पापा बिलकुल अच्छे नहीं लगते. जब वे औफिस चले जाते हैं, तब घर में कितना अच्छा लगता है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा बेटा, तू परेशान मत हो… मैं हूं न,’’ कह कर मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और सोचने लगी कि इतनी प्यारी बच्ची पर कोई कैसे गुस्सा कर सकता है? यह समीर के व्यवहार का कितना अवलोकन करती है और इस के बालसुलभ मन पर उस का कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

समीर और मुझ में बोलचाल बंद रही. कभीकभी वह औपचारिकतावश चीनू से पूछता कहीं जाने के लिए तो वह यह देख कर कि वह मुझ से बात नहीं करता है, उसे साफ मना कर देती थी. वह सोचता था कि कोई प्रलोभन दे कर वह चीनू को अपने पक्ष में कर लेगा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. समीर की बेरुखी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मनमानी भी धीरेधीरे बढ़ रही थी. जबतब घर का खाना छोड़ कर बाहर खाने चला जाता, मैं भी उस के व्यवहार को अनदेखा कर के चीनू के साथ खुश रहती. यह स्थिति 15 दिन रही.

एक दिन मैं चीनू के साथ कहीं से लौटी तो देखा समीर औफिस से अप्रत्याशित जल्दी लौट कर घर में बैठा था. मुझे देखते ही गुस्से में बोला, ‘‘क्या बात है, आजकल कहां जाती हो बताने की भीजरूरत नहीं समझी जाती…’’ उस की बात बीच में काट कर मैं बोली, ‘‘तुम बताते हो कि तुम कहां जाते हो?’’

‘‘मेरी बात और है.’’

‘‘क्यों? तुम्हें गुलछर्रे उड़ाने की इजाजत है, क्योंकि तुम पुरुष हो, मुझे नहीं. क्योंकि…’’

‘‘लेकिन तुम्हें तकलीफ क्या है? तुम्हें किस चीज की कमी है? हर सुख घर में मौजूद है. पैसे की कोई कमी नहीं. जो चाहे कर सकती हो,’’ गुलछर्रे उड़ाने वाली बात सुन कर वह थोड़ा संयत हो कर मेरी बात को बीच में ही रोक कर बोला, क्योंकि उस के और उस की कुलीग सुमन के विवाहेतर संबंध से मैं अनभिज्ञ नहीं थी.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन भौतिक सुखों के लिए ही स्त्री अपने पूर्व रिश्तों को विवाह की सप्तपदी लेते समय ही हवनकुंड में झोंक देती है और बदले में पुरुष उस के शरीर पर अपना प्रभुत्व समझ कर जब चाहे नोचखसोट कर अपनी मर्दानगी दिखाता है… स्त्री भी हाड़मांस की बनी होती है, उस के पास भी दिल होता है, उस का भी स्वाभिमान होता है, वह अपने पति से आर्थिक सुरक्षा के साथसाथ मानसिक और सामाजिक सुरक्षा की भी अपेक्षा करती है. तुम्हारे घर वाले तुम्हारे सामने मुझे कितना भी नीचा दिखा लें, लेकिन तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. तुम मूकदर्शक बने खड़े देखते रहते हो… स्वयं हर समय मुझे नीचा दिखा कर मेरे मन को कितना आहत करते हो, यह कभी सोचा है?’’

‘‘ठीक है यदि तुम यहां खुश नहीं हो तो अपने मायके जा कर रहो, लेकिन चीनू तुम्हारे साथ नहीं जाएगी, वह मेरी बेटी है, उस की परवरिश में मैं कोई कमी नहीं रहने देना चाहता. मैं उस का पालनपोषण अपने तरीके से करूंगा… मैं नहीं चाहता कि वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारे स्तर की बने,’’ समीर के पास जवाब देने को कुछ नहीं बचा था, इसलिए अधिकतर पुरुषों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अंतिम वार करते हुए चिल्ला कर बोला.

‘‘चिल्लाओ मत. सिर्फ पैदा करने से ही तुम चीनू के बाप बनने के अधिकारी नहीं हो सकते. वह तुम्हारे व्यवहार से आहत होती है. आजकल के बच्चे हमारे जमाने के बच्चे नहीं हैं कि उन पर अपने विचारों को थोपा जाए, हम उन को उस तरह नहीं पाल सकते जैसे हमें पाला गया है. इन के पैदा होने तक समय बहुत बदल गया है.

‘‘मैं उसे तुम्हारे शाश्नात्मक तरीके की परवरिश के दलदल में नहीं धंसने दूंगी…

मैं उस के लिए वह सब करूंगी जिस से कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके और मैं तुम्हारी पत्नी हूं, तुम्हारी संपत्ति नहीं. यह घर मेरा भी है. जाना है तो तुम जाओ. मैं क्यों जाऊं?

‘‘इस घर पर जितना तुम्हारा अधिकार है, उतना ही मेरा भी है. समाज के सामने मुझ से विवाह किया है. तुम्हारी रखैल नहीं हूं… जमाना बदल गया, लेकिन तुम पुरुषों की स्त्रियों के प्रति सोच नहीं बदली. सारी वर्जनाएं, सारे कर्तव्य स्त्रियों के लिए ही क्यों? उन की इच्छाओं, आकांक्षाओं का तुम पुरुषों की नजरों में कोई मूल्य नहीं है.

‘‘उन के वजूद का किसी को एहसास तक भी नहीं. लेकिन स्त्रियां भी क्यों उर्मिला की तरह अपने पति के निर्णय को ही अपनी नियत समझ कर स्वीकार लेती हैं? क्यों अपने सपनों का गला घोंट कर पुरुषों के दिखाए मार्ग पर आंख मूंद कर चल देती हैं? क्यों अपने जीवन के निर्णय स्वयं नहीं ले पातीं? क्यों औरों के सुख के लिए अपना बलिदान करती हैं? अभी तक मैं ने भी यही किया, लेकिन अब नहीं करूंगी. मैं इसी घर में स्वतंत्र हो कर अपनी इच्छानुसार रहूंगी,’’ समीर पहली बार मुझे भाषणात्मक तरीके से बोलते हुए देख कर अवाक रह गया.

‘‘पापा, मैं आप के पास नहीं रहूंगी, आप मुझे प्यार नहीं करते. हमेशा डांटते रहते हैं… मैं ममा के साथ रहूंगी और मैं उन की तरह ही बनना चाहती हूं… आई हेट यू पापा…’’ परदे के पीछे खड़ी चीनू, जोकि हमारी सारी बातें सुन रही थी, बाहर निकल कर रोष और खुशी के मिश्रित आंसू बहने लगी. मैं ने देखा कि समीर पहली बार चेहरे पर हारे हुए खिलाड़ी के से भाव लिए मूकदर्शक बना रह गया. Hindi Family Story

Romantic Story: एक प्यार ऐसा भी

Romantic Story: इंटर कॉलेज वादविवाद प्रतियोगिता में विजयी प्रतिभागी के रूप में मेरा नाम सुनते ही कॉलेज के सभी छात्र खुशी से तालियां पीटने लगे. जैसे ही मैं स्टेज से टॉफी ले कर नीचे उतरा मेरे दोस्तों ने मुझे कंधों पर बिठा लिया. मुझे लगा जैसे मैं सातवें आसमान पर पहुंच गया हूं. हर किसी की निगाहें मुझ पर टिकी हुई थीं.

चमचमाती ट्रॉफी को चूमते हुए मैं ने चीयर करते छात्रछात्राओं की तरफ देखा. सहसा ही मेरी नजरें सामने की रो में बैठी एक लड़की की नजरों से टकराईं. कुछ पलों के लिए हमारी नजरें उलझ कर रह गईं. तब तक नीचे उतारते हुए मेरे दोस्त मुझे गले लगाने लगे और मेरी तारीफें करने लगे.

“यार तूने तो कमाल ही कर दिया. पिछले 2 साल से हमारा कॉलेज तेरी वजह से ही जीत रहा है.”

“अरे नहीं ऐसी कोई बात नहीं. मैं तो शुक्रगुजार हूं तुम सबों का जो मुझे इतना प्यार देते हो और विनोद सर का भी जिन्होंने हमेशा मेरा मार्गदर्शन किया है.”

“पर आप हो कमाल के. वाकई कितनी फर्राटेदार इंग्लिश बोलते हो. मैं श्वेता मिश्रा… न्यू एडमिशन.”

सामने वही लड़की मुस्कुराती हुई हाथ बढ़ाए खड़ी थी जिस से कुछ वक्त पहले मेरी नजरें टकराई थीं. उस की मुस्कुराती हुई आंखों में अजीब सी कशिश थी. चेहरे पर नूर और आवाज में संगीत की स्वर लहरी थी. हल्के गुलाबी रंग के फ्रॉक सूट और नेट के दुपट्टे में वह आसमान से उतरी परी जैसी खूबसूरत लग रही थी. मैं उस से हाथ मिलाने का लोभ छोड़ न सका और तुरंत उस के हाथों को थाम लिया.

उस पल लगा जैसे मेरी धड़कनें रुक जाएंगी. मगर मैं ने मन के भाव चेहरे पर नहीं आने दिए और दूर होता हुआ बोला,”श्वेता मिश्रा यानी एक ऊंची जाति की कन्या. आई गेस ब्राह्मण हो न तुम.”

“हां वह तो मैं हूं वैसे तुम भी कम नहीं लगते.”

“अरे कहां मैडम, मैं तो किसान का छोरा, पूरा जाट हूं. वैसे कोई नहीं. आप से मिल कर दिल खुश हो गया. अब चलता हूं.” कह कर मैं आगे बढ़ गया.

पीछेपीछे मेरे दोस्त भी आ गये और मुझे छेड़ने लगे. तभी मेरा जिगरी दोस्त वासु बोला,” यह क्या यार, तेरे पिता नगर पार्षद हैं न फिर तुम ने उस से झूठ क्यों कहा?”

“वह इसलिए मेरे भाई … क्योंकि हमारे घर के लड़कों को लड़कियों से दोस्ती करने की इजाजत नहीं है. जानता है मां ने कॉलेज के पहले दिन मुझ से क्या कहा था?”

“क्या कहा था ?”

“यही कि कभी भी किसी लड़की के प्यार में मत पड़ना. हमारे खानदान में प्यार के चक्कर में कई जानें जा चुकी हैं. सख्त हिदायत दी थी उन्होंने मुझे.”

“अच्छा तो यही वजह है कि तू लड़कियों से दूर भागता है.”

“हां यार पर यह लड़की तो बिल्कुल ही अलग है. एक नजर में ही मन को भा गई. इसलिए इस से और भी ज्यादा दूर भागना पड़ेगा.”

श्वेता के साथ यह थी मेरी पहली मुलाकात. उस दिन के बाद से श्वेता अक्सर मुझ से टकरा जाती.

कभीकभी लगता कि वह मेरा पीछा करती है. पर मन का भ्रम मान कर मैं इग्नोर कर देता. यह बात अलग थी कि आजकल मन के गलियारे में उसी के ख्याल चक्कर लगाते रहते थे. वह कैसे हंसती है, कैसे चोर नजरों से मेरी तरफ देखती है, कैसे चलती है, वगैरह वगैरह .

धीरेधीरे मैं ने उस के बारे में जानकारियां जुटानी शुरू कीं तो पता चला कि वह अपने कॉलेज की टॉपर है और गाने बहुत अच्छे गाती है. उस के पिता ज्यादा अमीर तो नहीं मगर शहर में एक कोठी जरूर बना रखी है. वह अकेली बहन है और 2 बड़े भाई हैं.

न चाहते हुए भी मेरी नजरें उस से टकरा ही जातीं. मैं हौले से मुस्कुरा कर दूसरी तरफ देखने लगता. कई बार वह मुझे लाइब्रेरी में भी मिली. किसी न किसी बहाने बातें करने का प्रयास करती. कभी कोई सवाल पूछती तो कभी टीचर्स के बारे में बातें करने के नाम पर मेरे पास आ कर बैठ जाती.

वह जैसे ही पास आती मेरी धड़कनें बेकाबू होने लगतीं और मैं उसे इग्नोर कर के उठ जाता.

एक दिन उस ने मुझ से पूछ ही लिया,”तुम्हें किसी और से प्यार है क्या?”

उस का सवाल सुन कर मैं चौंक उठा. मुस्कुराते हुए उस की तरफ देखा और फिर नज़रें नीचे कर बाहर की तरफ देखने लगा. श्वेता ने शायद इस का मतलब हां समझा था. उसे विश्वास हो गया था कि मैं उस में इंटरेस्टेड नहीं हूं और मेरे जीवन में कोई और है.

अब वह मुझ से कटीकटी रहने लगी. दो माह बाद ही सुनने में आया कि उस की शादी कहीं और हो गई है. उस ने पिता की मर्जी से शादी कर ली थी. अब उस का कॉलेज आना भी बंद हो गया.

इस तरह मेरे जीवन का एक खूबसूरत अध्याय अचानक ही बंद हो गया. मैं अंदर से खालीपन महसूस करने लगा.

इस बीच पिताजी ने मेरी शादी निभा नाम की लड़की से करा दी. वह हमारी जाति की थी और काफी पढ़ीलिखी भी थी. उस के पिता काफी अमीर बिजनेसमैन थे. हमारी शुरू में तो ठीक ही निभ गई मगर धीरेधीरे विवाद होने लगे. छोटीछोटी बातों पर हम झगड़ पड़ते. हम दोनों का ही ईगो आड़े आ जाता. वैसे भी निभा के लिए मैं कभी वैसा आकर्षण महसूस नहीं कर पाया जैसा श्वेता के लिए महसूस करता था. निभा अब अक्सर मायके में ही रहने लगी.

इधर मैं राजनीति में सक्रिय हो गया. पहले कार्यकर्ता फिर एमएलए और फिर राज्य का मुख्यमंत्री भी बन गया. यह सब इतनी तेजी से हुआ कि कभीकभी मैं भी यकीन नहीं कर पाता था. राजनीतिक गलियारे में मेरा अच्छाखासा नाम था. लोग मुझे होशियार, शरीफ और फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले युवा नेता के रूप में पहचानते थे. विदेश तक में मेरी धाक थी. मैं कई पत्रिकाओं के कवर पेज पर आने लगा था. जनता मुझे प्यार करती. मेरे काम की तारीफ होती. मैं हर काम में अपनी नई सोच और युवा कार्यशैली को अपनाता था. पीएम भी मेरी कद्र करते. अक्सर देश की छोटीबड़ी समस्याओं पर मुझ से विचारविमर्श करते.

इसी दरम्यान निभा और मैं ने आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया. वह अब मेरे साथ रहना नहीं चाहती थी. मैं ने भी तुरंत सहमति दे दी. क्योंकि मैं भी यही चाहता था.

मैं अभी तक श्वेता को भूल नहीं पाया था. जब भी कोई दूसरी शादी की बात करता तो श्वेता का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता. जब कोई रोमांटिक मूवी देखता तो भी श्वेता का ख्याल आ जाता. जब बादलों के पीछे चांद छिपता देखता तो भी श्वेता का ही ख्याल आता.

एक दिन मेरे जिगरी यार वासु ने मुझे खबर दी कि मेरा पहला प्यार यानी श्वेता इसी शहर में है.

मैं ने उत्साहित हो कर पूछा,” श्वेता कहां है? कैसी है वह ? किस के साथ है?”

“अरे यार अपने पति के साथ है. पति का काम सही नहीं चल रहा है इसलिए इधर ट्रांसफर करवा लिया है.”

“ओके तू पता दे. मैं मिल कर आता हूं.”

“यह क्या कह रहा है? अब तू साधारण आदमी नहीं एक सीएम है.”

“तो क्या हुआ? उस के लिए तो वही हूं न जो 15 साल पहले था.”

मैं ने वासु से पता लिया और अगले ही दिन उस के घर पहुंच गया. निभा मुझे पहचान नहीं पाई मगर उस के पति ने मुझे पहचान लिया और पैर छूता हुआ बोला,”सीएम साहब आप इस गरीब की कुटिया में ? मैं तो धन्य हो गया ”

“मैं श्वेता से यानी अपनी पुरानी सहपाठी से मिलने आया हूं.”

श्वेता ने आश्चर्य से मेरी तरफ देखा. अब तक वह भी मुझे पहचान गई थी. नजरें झुका कर बोली,” आप कॉलेज के सुपर हीरो मतलब कुशल राज हैं न?”

“हां मैं वही कुशल हूं. तुम बताओ कैसी हो?”

“मैं ठीक हूं मगर आप मेरे घर?”

वह चकित भी थी और खुश भी. तभी उस के पति ने मुझे बैठाते हुए श्वेता से चायनाश्ता लगाने को कहा और हाथ जोड़ कर पास में ही बैठ गया.

मैं ने उस के बारे में पूछा तो वह कहने लगा कि हाल ही में उस की नौकरी छूट गई है. अब वह यहां नौकरी की तलाश में आया है.

मैं ने तुरंत अपने एक दोस्त को फोन किया और श्वेता के पति को उस के यहां अकाउंटेंट का काम दिलवा दिया. श्वेता का पति मेरे आगे नतमस्तक हो गया. बारबार धन्यवाद कहने लगा.

तबतक श्वेता चायनाश्ता ले आई. श्वेता अब भी थोड़ी ज्यादा कांशस हो रही थी. वह खुल कर बात नहीं कर पा रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे हमदोनों के बीच एक अजीब सी दूरी आ गई है.

दोचार दिन बाद मैं फिर से श्वेता के यहां पहुंचा. आज श्वेता घर में अकेली थी. मुझे खुल कर बात करने का मौका मिल गया.

मैं ने उस के करीब बैठते हुए कहा,” श्वेता क्या तुम जानती हो तुम ही मेरा पहला प्यार हो. तुम ही एकमात्र ऐसी लड़की हो जिसे मेरे दिल ने चाहा है. आज से 15 साल पहले जब पहली दफा तुम्हें देखा था उसी दिन तुम्हें अपना दिल दे दिया था. तभी तो जब मैं ने किसी और से शादी की तो उसे प्यार कर ही नहीं पाया. मेरा दिल तो मेरे पास था ही नहीं न. ये धड़कनें तो बस तुम्हें देख कर ही बढ़ती हैं.”

श्वेता एकटक मेरी तरफ देख रही थी. जैसे मेरी नजरों से मेरी रूह तक झांक लेना चाहती हो.

थोड़े शिकायत भरे स्वर में उस ने कहा,” यदि ऐसा था तो फिर मुझ से दूर क्यों भागते थे? कभी भी मेरे प्यार को स्वीकार क्यों नहीं किया तुम ने ?”

“…क्योंकि हमारी जाति अलग थी. मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि मैं समाज से लड़ पाता. प्यार में जान गंवाना आसान है. मगर प्यार दिल में रख कर दूर रहना कठिन है. मैं तुम से दूर भले ही रहा पर दिल तुम्हारे पास ही था. आज मुझ में हिम्मत है कि मैं तुम से खुल कर कह सकूं कि बस तुम ही हो जिस से मैं ने प्यार किया है. मेरी पत्नी निभा के साथ रह कर भी मैं उस से दूर था. अब तो हम ने  आपसी सहमति से तलाक भी ले लिया है.”

श्वेता ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. हम दोनों की आंखों में आंसू और धड़कनें तेज थीं. हम एकदूसरे के दिल में अपने हिस्से की मोहब्बत महसूस कर रहे थे.

अब हम दोनों ही 40 साल के करीब थे. लोग कहते हैं कि प्यार तो युवावस्था में होता है. हमें भी तो प्यार युवावस्था में ही हुआ था. मगर इस प्यार को जीने का वक्त हमें अब मिला था. श्वेता को कहीं न कहीं समाज और पति का डर अब भी था. मगर हमारा प्यार पवित्र था. यह रिश्ता ऐसा था जिसे हम बंद आंखों से भी महसूस कर सकते थे.

धीरेधीरे हमारा रिश्ता गहरा होता गया. अब हम साथ होते तो कॉलेज जैसी मस्ती करते. कहीं घूमने निकल जाते. आजाद पंछियों की तरह गीत गुनगुनाते. हंसीमजाक करते. कभी आइसक्रीम खाते तो कभी गोलगप्पे. कभी श्वेता कुछ खास बना कर मुझे बुलाती तो कभी मैं श्वेता को अपना एस्टेट दिखाने ले जाता.

ऐसा नहीं था कि हम यह सब लोगों से या श्वेता के पति से छुपा कर करते. हमारे मन में मैल नहीं था. एक परिवार के सदस्य की तरह मैं उस के घर में दाखिल होता. उस के लिए तोहफे खरीदता.

एक दिन मैं शाम के समय श्वेता के घर पहुंचा. इस वक्त उस का पति ऑफिस में होता है. हम खुल कर बातें कर रहे थे. तभी श्वेता का पति दाखिल हुआ. वह आज जल्दी आ गया था.

श्वेता उठ कर चाय बनाने चली गई.  श्वेता के पति ने मुझ से कहा,”जानते हैं आज मेरा एक दोस्त क्या पूछ रहा था?”

“क्या पूछ रहा था ?”

“यही कि तुम्हारी बीवी और सीएम साहब के बीच क्या चल रहा है ?”

अब तक श्वेता भी चाय ले कर आ गई थी. वह अवाक पति का मुंह देखने लगी.

“फिर क्या कहा आप ने ?” मैं ने पूछा .

कहीं न कहीं मेरे दिल में एक अपराधबोध पैदा हो गया था. श्वेता के पति के लिए तो आखिर मैं एक दूसरा पुरुष ही हूं न.

मगर श्वेता के पति ने मेरी सोच से अलग जवाब दिया. हंसता हुआ बोला,” मैं ने उसे कह दिया कि सीएम साहब श्वेता के दोस्त हैं. उन के प्यार में कोई मैल नहीं. उन के प्यार में कोई धोखा नहीं. मेरा और श्वेता का रिश्ता अलग है. जबकि कुशल जी वह एहसास बन कर श्वेता की जिंदगी में आए हैं जिस की वजह से श्वेता के मन में जो एक खालीपन था वह भर गया है. मैं उन दोनों के रिश्ते का सम्मान करता हूं.”

श्वेता अपने पति के कंधे पर सर रखती हुई बोली,” दुनिया में प्यार तो बहुतों ने किया है मगर इस प्यार पर जो विश्वास आपने किया वह शायद ही किसी ने किया हो. मैं वादा करती हूं आप का यह विश्वास कभी नहीं टूटने दूंगी.”

उस पर मुझे लगा जैसे आज हमारे प्यार को एक नया आयाम मिल गया था. Romantic Story

Grihshobha’s ‘Empower Her’ Event: A Grand Celebration of Women’s Strength in Bangaluru

Grihshobha’s ‘Empower Her’ Event: Grihshobha, with the aim of fostering special development, personality building, and upliftment of its women readers, recently organized the grand “Empower Her” event in collaboration with Delhi Press Publications and the Grihshobha monthly magazine. The event was majestically held with key sponsors including:

  • Financial Education Partner: HDFC

  • Silk Purity Partner: Silk Mark

  • Jewelry Partner: GRT Jewellers

  • Beauty Partner: Green Leaf

  • Associate Sponsor: Nandini

  • Media Partners: Prajapragati and Pragati TV

grihshobha empower her
grihshobha empower her

The event took place on 22nd June at The Capitol Hotel, Raj Bhavan Road, Bangalore, focusing entirely on women’s empowerment. Hundreds of women from the city gathered enthusiastically to gain insights on skincare, health, financial literacy, Silk Mark-related knowledge, and entertainment.

Mental Health Session

Dr. Bhavana Prasad, a renowned Consultant Neuropsychiatrist, Child Psychiatry Specialist, and De-addiction Motivational Speaker from Tumkur, highlighted how women often face mental stress due to daily household chores, caregiving for husbands, children, and elders, office work (for working women), and routine responsibilities.

She emphasized that women can experience mental health issues at any stage of life—from childhood to old age. Just like physical ailments, mental health problems also require professional treatment. Dr. Bhavana debunked myths and taboos surrounding mental health, discussing issues like bedwetting in children, postpartum problems, and depression in teenagers, while also answering attendees’ questions.

SIP Saheli Session

Girija Rani Kavdappu, Joint AVP at HDFC AMC Ltd. with over 20 years of experience in finance, explained the basics of Morgan Assets and Kotak Mutual Funds. She discussed why women should invest in mutual funds, how they outperform traditional bank SB and RD accounts, and the benefits of Systematic Investment Plans (SIPs) for wealth growth. She also elaborated on different types of mutual funds and women’s participation in them.

Skincare & Beauty Session

Anita Shirley, President of the All-Karnataka Beauticians Association, celebrity makeup artist, and senior beautician at Shreele Beauty Training Academy, demonstrated how makeup boosts confidence and its importance for modern women. Through live demos with models, she shared tips on avoiding common makeup mistakes and maintaining skincare routines.

Silk Mark Session

D.N. Sandeep, Assistant Director (Inspection) at the Central Silk Board, explained how Silk Mark Organization of India certifies the purity of silk. He detailed the origins, history, and four types of silk—Mulberry, Tussar, Eri, and Muga—along with topics like cocoons, wild silk, flame tests, washing care, storage, chemical tests, and the importance of buying Silk Mark-labeled products.

Social Media Influencer Session

Asha Somanath, a well-known cooking expert and TV personality, inspired women to pursue their passions with confidence and become successful influencers. She shared motivating real-life examples to encourage attendees.

Fun & Games Session

Anchor Samayra kept the event lively with engaging entertainment, including music, dance, and interactive quizzes. Winners received attractive on-the-spot prizes from the Grihshobha team.

The event successfully empowered women with knowledge, inspiration, and entertainment, making it a memorable experience for all attendees.

Hindi Story: कारावास- क्यों सुनीता का मन खुशी से नाच उठा?

Hindi Story: ‘‘नहीं दीदी, आप न नहीं कहोगी. पहले भी तो 2 बार आप ऐसे टूर टाल चुकी हैं. अब फिर आप को मौका दिया जा रहा है, तो फायदा उठाइए न. फिर आप ही तो बता रही थीं कि इस ट्रेनिंग के बाद प्रमोशन का चांस भी मिल सकता है,’’ पम्मी ने चाय की ट्रे मेज पर रखते हुए फिर से वही जिक्र छेड़ दिया.

सुनीता अपना चाय का कप उठाते हुए बोली, ‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुन. मुझे इस ट्रेनिंग से कोई खास फायदा नहीं होगा और न ही मैं अगले प्रमोशन के लिए अधिक लालायित हूं. हां, हमारे ही बैंक के किसी और सहयोगी को अगर यह चांस मिलता है, तो उस को व उस के परिवार को अधिक लाभ पहुंचेगा. फिर रामबाबू, सुधीरजी जैसे लोग तो अपनेअपने परिवार को भी साथ ले जाना चाह रहे हैं, घूमने के लिए.’’

‘‘दीदी, जब बौस ने आप की सिफारिश की है, तो रामबाबू, सुधीर, ये सब कहां से टपक पड़े? आप सब से सीनियर हो, आप को चांस मिल रहा है बस… मैं अब और कुछ सुनने वाली नहीं हूं. मैं तो 3 दिन की छुट्टी ले कर आई ही इसलिए हूं कि आप के जाने की तैयारी करा दूं… आप तैयार हो जाओ, बाजार चलती हैं. मैं तब तक आप की वार्डरोब चैक करती हूं कि क्याक्या लेना है आप को,’’ कहते हुए पम्मी ने चाय के बरतन समेटने शुरू कर दिए.

‘‘तू भी जिद की पक्की है,’’ कह सुनीता को हंसी आ गई.

वैसे देखा जाए तो सुनीता से रिश्ता भी क्या है पम्मी का… बस जब तक यहां इस की नौकरी थी तो इसी फ्लैट में सुनीता के साथ रही थी. फिर अपनापन इतना बढ़ा कि सगी बहन से भी अधिक स्नेह हो गया. अब शादी कर के दूसरे शहर चली गई तो भी आए दिन फोन पर बात करती रहती है. फिर पता नहीं कैसे इसे टूर की भनक लगी तो बिना बताए आ धमकी.

‘‘तू तो शादी कर के अब बड़ी बहन की तरह रोब झाड़ने लगी है मुझ पर.’’

‘‘वह तो है ही… अब कोई तो आप को सही राय देगा. चलो, अब और बातें नहीं, आप जल्दी से नहा कर तैयार हो जाओ, तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूं,’’ कह पम्मी रसोई में चली गई.

जब तक सुनीता नहा कर निकली तब तक पम्मी ने उस की अलमारी भी टटोल ली थी. बोली, ‘‘यह क्या दीदी, सारे पुराने फैशन के कपड़े हैं और इतने फीके रंगों के… अरे, विदेश जा रही हो तो थोड़े चटक रंग भी लो न… आज मैं पसंद करूंगी आप के लिए कपड़े. आप टोकना मत… मैं पिछली बार कुछ सूट लाई थी आप के लिए, आप ने सिलवाए नहीं?’’

‘‘अरे हां, उन्हें तो मैं रश्मि और आशा को दे आई थी. उन के गोरे रंग पर वे बहुत फब रहे थे और फिर उन की उम्र भी है.’’

‘‘दीदी, फिर वही बात. अभी आप कौन सी बुढ़ा गई हो कि वे कपड़े उन पर फबते और आप पर नहीं… अरे, मैं इतने शौक से आप के लिए लाई थी और आप भी बस… विनी, रश्मि, गीता, आशा आदि के बारे में ही सोचती रहती हो.’’

‘‘पम्मी, मेरा परिवार है यह,’’ सुनीता ने धीरे से कहा.

‘‘मैं कब कह रही हूं कि आप का परिवार नहीं है यह, पर वे लोग भी तो कभी आप के बारे में सोचें. कभी आएं आप के पास… आप ने अपने फ्लैट में गृहप्रवेश किया था तो आया था कोई? आप इतनी बीमार पड़ीं कि अस्पताल में भरती रहीं. क्या कोई आया था आप को देखने? तब कहां था यह परिवार?’’

फिर सुनीता को चुप देख कर आगे बोली, ‘‘सौरी दीदी, मेरा मकसद आप का दिल दुखाना नहीं था. मैं तो बस यही कहना चाह रही थी कि कभी तो आप अपने बारे में सोचें कि आप को क्या अच्छा लगता है, किस बात से खुशी मिलती है… क्या इतना भी हक नहीं बनता आप का…? चलें अब नाश्ता कर लें, ठंडा हो रहा है.’’

सुनीता सोच रही थी कि बातों का रुख बदलने में कितनी माहिर हो गई है यह लड़की. जब अपने बारे में सोचने का समय था तब नहीं सोचा तो अब उम्र के इस पड़ाव पर क्या सोचना. फिर नाश्ता करते हुए बोली, ‘‘तो इस बार तू मुझे लंदन भेज कर ही मानेगी.’’

‘‘हां दीदी, मैं आई ही इसलिए हूं कि आप कहीं पहले की तरह इस बार भी अपना ट्रिप कैंसिल न कर दें.’’

नाश्ता करने के बाद दोनों औटोरिकशा से बाजार चल दीं. बाजार पहुंच जब पम्मी ने औटो रूपाली ब्यूटीपार्लर के सामने रुकवाया तो सुनीता चौंक उठी. बोली, ‘‘अरे, यहां क्या करना है?’’

‘‘दीदी, आप जल्दी अंदर चलिए, मैं रूपाली से आप का अपौइंटमैंट ले चुकी हूं,’’ पम्मी सुनीता की बात को अनसुना कर औटो वाले को रुपए देती हुई बोली.

पम्मी ने सुनीता के केश सैट करवाए, कलरिंग भी करवाई, फेशियल के लिए भी जिद कर के बैठा ही दिया और फिर बोली, ‘‘दीदी, आप को यहां थोड़ी देर लगेगी. तब तक मैं बाजार से कुछ सामान खरीद लाती हूं.’’

बाजार पहुंच कर पम्मी ने कुछ कौस्मैटिक्स और महंगे सूट खरीदे. जब ब्यूटीपार्लर लौटी तो सुनीता का एकदम बदला रूप पाया. बोली, ‘‘वाह दीदी, आप की तो उम्र ही 10 साल कम कर दी रूपाली ने. चलिए, अब आप को टेलर के यहां नाप देना है. कपड़े मैं ले चुकी हूं. मुझे पता था, आप के सामने लेती तो आप खरीदने नहीं देतीं.’’

‘‘पम्मी, आखिर तू चाहती क्या है?’’

‘‘देखो दीदी, अच्छी तरह से तैयार होने पर स्वयं को भी अच्छा लगता है और दूसरों को भी और फिर इस में बुराई क्या है. अब मैं जैसे डिजाइन पसंद करूं, आप मना मत करना,’’ और पम्मी ने टेलर को सूटों के डिजाइन बता दिए.

वे खाना बाहर ही खा कर घर लौटीं तो सुनीता को थकान महसूस होने लगी थी, पर पम्मी सूटकेस खोल कर उस का सामान जमाती रही. रात को उस ने कह भी दिया, ‘‘दीदी, आप की सारी तैयारी कर दी है. अब टिकट, वीजा वगैरह का इंतजाम तो आप के औफिस की तरफ से हो रहा है. आप यात्रा का पूरापूरा आनंद उठाना,’’ कहते हुए पम्मी भावुक हो उठी.

‘‘अच्छा अब तू इतमीनान रख, मैं यात्रा का पूर्ण आनंद लूंगी और कुछ नहीं सोचूंगी,’’ कहतेकहते सुनीता का भी गला भर आया था कि कोई तो है उस की जिंदगी में, जो उस के बारे में इतना सोचता है.

पम्पी के जाने के बाद 3-4 दिन सफर की तैयारी की अफरातफरी में बीत गए. जब सारी औपचारिकताएं पूरी कर के दिल्ली से हवाईजहाज में बैठी तो इतमीनान की सांस ली उस ने.

ऐसे टूर के मौके तो पहले भी कई बार आए थे उस की जिंदगी में पर वही टालती रही थी. क्या करती, मन ही नहीं करता था इतने लंबे और अकेले सफर पर जाने का… छुट्टी मिलती तो बस भाईबहनों के पास आनाजाना हो जाता… वही काफी था. इस बार पम्मी ने तो उसे मना ही किया था कि जब दीदी और भैया लोग पसंद ही नहीं करते कि आप कहीं जाओ तो आप उन्हें बताना भी नहीं.

सुनीता तब फीकी हंसी हंस कर रह गई.

पम्मी उस के परिवार के लोगों की मानसिकता से परिचित हो गई थी इसीलिए सब कुछ कह देती थी. कई बार तो यह भी कह चुकी थी कि अच्छा हुआ आप ने यह फ्लैट खरीद लिया, रिटायरमैंट के बाद कोई ठिकाना तो होगा रहने के लिए… भाईबहनों से अपेक्षा रखो तो बुढ़ापे में ठोकरें ही खानी पड़ती हैं. आप को तो पैंशन भी अच्छीखासी मिलेगी. आराम से रहना, यह नहीं कि सब लुटाती रहो…

पम्मी की बातें कभीकभी सुनीता को चुभ तो जाती थीं, पर वह ठीक ही बोलती थी, क्योंकि ऐसे कई उदाहरण सुनीता देख भी चुकी है, कब तक आंखें मूंदे रहे सब से…

प्लेन में बैठेबैठे सुनीता का मन अतीत में डूबने लगा था. पूरे 44 वर्ष की हो गई है वह. क्या खोया, क्या पाया… कभीकभी विश्लेषण करती है तो लगता है कि खोया ही खोया है उस ने.

पढ़ाई में मेधावी रही तो कम उम्र में ही बैंक में नौकरी लग गई. फिर अकस्मात पिता का देहांत हो गया तो भाईबहनों का दायित्व आ पड़ा उस के कमजोर कंधों पर. दीदी की शादी, भैया की पढ़ाई, छोटी बहनों के खर्चे… सब वहन करतेकरते अपनी शादी का खयाल तो उसे बस एक बार ही आया था जब प्रखर को देखा था. प्रखर आर्मी मेजर था. वहीं झांसी में ट्रेनिंग के लिए आया था. तब उस की सहेली ने ही परिचय करवाया था. प्रखर शानदार व्यक्तित्व और हंसमुख स्वभाव का था. उस ने तो बातों ही बातों में प्रपोज भी कर दिया था, पर घर वालों का विरोध… वह नौकरी छोड़ कर प्रखर के साथ चली गई तो भाईबहनों का दायित्व कौन वहन करेगा? प्रखर इस दोटूक इनकार से इतना नाराज हुआ कि अपनी ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ कर चला गया था.

सुनीता भी तो कई दिनों तक भूल नहीं पाई थी उसे… कई दिनों तक ही क्यों, प्रखर का व्यक्तित्व तो आज भी ताजा है उस की आंखों में… बाद में भी कई बार रिश्ते की बात चली पर कभी किसी तो कभी किसी कारण अस्वीकार होती रही.

पूर्वा दीदी ने तो एक बार अपनी तरफ से रिश्ता तय ही कर दिया. बोलीं, ‘सुनीता, दीपक भी बैंक में ही अफसर है, पारिवारिक कारणों से अब तक विवाह नहीं किया. मैं ने तेरी बात चलाई है, शाम को खाने पर बुला लिया है उसे… ठीक तरह से तैयार हो कर आ जाना. पुरानी किसी बात का जिक्र मत करना, समझी?’

वह ठीक समय पर पहुंच गई थी. खानेपीने तक माहौल सामान्य रहा. दीपक देखने में ठीकठाक ही था.

फिर पूर्वा ने ही प्रस्ताव रखा, ‘दीपक, अब तुम सुनीता को ले कर कहीं घूम आओ.’

‘ठीक है.’

दीपक के साथ बगल में कार में बैठते समय सुनीता कुछ असहज हो गई थी. पुराने रिश्ते याद आए… कई बार अस्वीकार होने का बोध हुआ… दीपक ने धीरे से उस का हाथ सहलाया था, पर वह तो पसीने से नहा उठी थी.

‘क्या बात है… तबीयत ठीक नहीं है क्या?’

‘हां, शायद ऐसा ही कुछ…’ वह स्वयं नहीं समझ पाई थी कि हुआ क्या है?

‘और लड़कियां तो शादी के नाम से ही खुश हो जाती हैं, पर आप तो इतनी ठंडी…’

दीपक के ये शब्द भीतर तक चुभते चले गए थे सुनीता के. वह जिद कर के बीच रास्ते में ही उतर गई थी. उस ने निश्चय कर लिया था कि अब कभी विवाह के बारे में सोचेगी भी नहीं.

‘‘मैडम, आप शायद सो गई थीं, आप का नाश्ता,’’ एयरहोस्टेस पूछ रही थी.

सुनीता को तब खयाल आया कि शायद उनींदेपन में भी मन विचारतंद्रा में ही डूबा रहा. थोड़ा जूस ले कर वह कुछ सहज हुई तो साथ लाई पुस्तक के पन्ने पलटने चाहे, पर मन तो फिर पुरानी बातों में भटकने लगा था…

अब पम्मी को कैसे बताए अपने मन की स्थिति? वह तो जबतब कह देती है दीदी, अभी आप की ऐसी उम्र नहीं हुई है कि शादी के बारे में सोचें ही नहीं. कोई मनपसंद साथी मिले तो जरूर विचार करना, बड़ी उम्र में भी एक अच्छे साथी की जरूरत होती ही है.

‘पम्मी, अब मैं एक तरह से वैरागिनी हो गई हूं,’ उस दिन पता नहीं कैसे सुनीता के मुंह से निकल गया था.

‘कोई वैरागिनी नहीं हुई हैं. मैं ने आप की एक डायरी देखी है… कितनी प्रेमकविताएं लिखी हैं आप ने.’

पम्मी के कहे एकएक शब्द के बारे में गंभीरता से सोचती सुनीता को पता ही नहीं चला कि उस का प्लेन हीथ्रो एअरपोर्ट पर लैंड कर रहा है.

हीथ्रो एअरपोर्ट की चकाचौंध मन को लुभा गई थी… कस्टम औफिस से बाहर आते ही चमकती दुकानें, लोगों की भीड़भाड़… लंबाचौड़ा एअरपोर्ट… फिर बाहर औफिस की ही टैक्सी लेने आ गई थी.

विदेशी धरती पर पहला कदम, सब कुछ बदलाबदला… साफसुथरा और मन को मोह लेने वाला था. फिर होटल में रिसैप्शन से चाबी लेते समय पता चला कि उस का कमरा नंबर 302 है और 303 में भी एक भारतीय ही हैं, नारायण… जो बेंगलुरु से आए हैं.

‘‘हैलो, आई एम नारायण,’’ नारायण ने हाथ आगे बढ़ाया था.

‘‘आई एम सुनीता,’’ सुनीता ने भी हाथ बढ़ा दिया था.

एक बार तो चौंक ही गई थी सुनीता… लगा, जैसे प्रखर ही सामने आ गया हो… वही डीलडौल… वही कद… कानों के पास के बालों में जरूर हलकी सफेदी झांक रही थी… पर प्रखर भी इस उम्र में…

‘‘चलिए, हमारे कमरे पासपास ही हैं,’’ कह कर नारायण ने उस का बैग उठा लिया.

नारायण उसे पहली मुलाकात में ही काफी मिलनसार और मजाकिया स्वभाव का लगा था. बातों से लगा ही नहीं कि अब वे विदेशी भूमि पर हैं.

कमरे में सामान रख कर दोनों कौफी पीने लाउंज में आ गए थे और कौफी पीतेपीते ही नारायण ने उसे होटल की सारी व्यवस्थाओं से भी परिचित करवा दिया था.

‘‘चलिए, अब आप कमरे में जा कर काम कीजिए, मैं थोड़ी देर अपने लैपटौप पर काम करूंगा, शाम को खाने पर मिलते हैं,’’ नारायण ने बड़े अपनेपन से कहा था.

सुनीता स्वयं सोच रही थी कि प्लेन में तो ठीक से सो नहीं पाई, अब नहाधो कर गहरी नींद लेगी ताकि शाम तक कुछ ताजगी महसूस हो.

शाम को खाने के समय और भी सहयोगियों से परिचय हुआ, नारायण ने सब से मिलवा दिया था.

‘‘आप दोनों पुराने परिचित हैं?’’ एक विदेशी ने तो सुनीता से पूछ ही लिया था और तब नारायण उसे देख कर मुसकरा दिया था.

कुल मिला कर सुनीता को सारा माहौल सौहार्दपूर्ण लगा था… कहीं कुछ पूछना हो तो नारायण बड़े अपनेपन से मदद कर देता था.

1 हफ्ता कौन्फ्रैंस चली और फिर 1 हफ्ते का वहीं से यूरोप घूमने का प्रोग्राम बन गया.

नए शहर, ऐतिहासिक इमारतें, खूबसूरत वादियां, झीलें, फूलों से लहलहाते बगीचे, सभी कुछ भव्य था… और नारायण के सान्निध्य ने दोनों को काफी पास ला दिया था. इतने दिन कब बीत गए, सुनीता को पता ही नहीं चला था. एक बार भी अपने घर, पुराने परिचितों की याद नहीं आई.

लंदन से वापसी की उड़ान थी अत: फिर उसी होटल में 1 रात रुकना था. दूसरे दिन लौटना था, लग रहा था जैसे वह और नारायण दोनों ही कुछ मिस कर रहे हैं… नारायण अपने स्वभाव के विपरीत उस दिन बहुत गंभीर और चुपचुप सा था.

‘‘आप का सान्निध्य बहुत अच्छा लगा,’’ सुनीता ने अपनी तरफ से धन्यवाद देने का प्रयास किया.

नारायण फिर भी चुप ही था, आंखों में उदासी की झलक थी.

‘‘चलो, कमरे में चल कर कौफी पीते हैं,’’ कह सुनीता ने कौफी का और्डर दिया.

कौफी पीते समय भी दोनों चुप थे. बहुत कुछ कहना चाहते हुए भी कुछ कह नहीं पा रहे थे.

फिर कब क्या हुआ… कब नारायण उठ कर उस के पास सोफे पर इतने करीब आ गया… कब वह उस के कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी… कब उस ने उसे बांहों में ले लिया… कब… कब…

‘‘तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा सुनीता… हो सके तो मुझे माफ कर देना… मैं… मैं… अपनेआप को रोक नहीं पाया…’’

‘‘नहीं,’’ सुनीता ने धीरे से उस के होंठों को छुआ, ‘‘माफी क्यों और किस से? बहुत अच्छी यादें ले कर जा रहे हैं हम दोनों… थैंक्स ए लौट…’’

फिर लगा कि शायद शब्दों से वह सब कुछ बयान नहीं कर पा रही है, जो महसूस कर रही है… आखिर आज नारायण ने उसे एक स्वनिर्मित कारावास से मुक्त जो कर दिया था.

Monsoon Special: सोया स्प्रिंग रोल्स को ऐसे बनाएंगी तो बच्चे भी खुश हो जाएंगे

Monsoon Special: सोया कीमा करी

सामग्री

– 100 ग्राम सोया कीमा

– 50 ग्राम प्याज

– 50 ग्राम टमाटर

– 5 ग्राम जीरा

– 5 ग्राम लहसुन

– 5 ग्राम अदरक

– 5 ग्राम देगी मिर्च

– 5 ग्राम गरममसाला

– 5 ग्राम हलदी पाउडर

– 5 ग्राम जीरा पाउडर

– 5 ग्राम धनिया पाउडर

– 5 ग्राम देसी घी

– 5 ग्राम मक्खन

– थोड़ी सी धनियापत्ती

– 10 ग्राम चीज

– 10 ग्राम तेल

– 10 एमएल गार्लिक सौस

– थोड़ी सी राई

– 4 स्प्रिंग रोल शीट.

विधि

स्प्रिंग रोल मिश्रण के लिए सोया कीमा को 2 घंटों के लिए भिगो दें. सोया कीमा सारी सामग्री के साथ सारे मसाले डाल कर तब तक पकाएं जब तक कि वह मुलायम हो कर तेल न छोड़ने लगे. अब इसे ठंडा होने दें. स्प्रिंग रोल शीट फैलाएं. मिश्रण को शीट पर फैला कर रोल करें. तैयार स्प्रिंग रोल को सुनहरा होने तक तलें और फिर गार्लिक सौस के साथ गरमगरम सर्व करें.

Family Story: मैं नहीं बेवफा

Family Story: औफिस का समय समाप्त होने में करीब 10 मिनट थे, जब आलोक के पास शिखा का फोन आया.

‘‘मुझे घर तक लिफ्ट दे देना, जीजू. मैं गेट के पास आप के बाहर आने का इंतजार कर रही हूं.’’

अपनी पत्नी रितु की सब से पक्की सहेली का ऐसा संदेश पा कर आलोक ने अपना काम जल्दी समेटना शुरू कर दिया.

अपनी दराज में ताला लगाने के बाद आलोक ने रितु को फोन कर के शिखा के साथ जाने की सूचना दे दी.

मोटरसाइकिल पर शिखा उस के पीछे कुछ ज्यादा ही चिपक कर बैठी है, इस बात का एहसास आलोक को सारे रास्ते बना रहा. आलोक ने उसे पहुंचा कर घर जाने की बात कही, तो शिखा चाय पिलाने का आग्रह कर उसे जबरदस्ती अपने घर तक ले आई. उसे ताला खोलते देख आलोक ने सवाल किया, ‘‘तुम्हारे भैयाभाभी और मम्मीपापा कहां गए हुए हैं?’’

‘‘भाभी रूठ कर मायके में जमी हुई हैं, इसलिए भैया उन्हें वापस लाने के लिए ससुराल गए हैं. वे कल लौटेंगे. मम्मी अपनी बीमार बड़ी बहन का हालचाल पूछने गई हैं, पापा के साथ,’’ शिखा ने मुसकराते हुए जानकारी दी.

‘‘तब तुम आराम करो. मैं रितु के साथ बाद में चाय पीने आता हूं,’’ आलोक ने फिर अंदर जाने से बचने का प्रयास किया.

‘‘मेरे साथ अकेले में कुछ समय बिताने से डर रहे हो, जीजू?’’ शिखा ने उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.

‘‘अरे, मैं क्यों डरूं, तुम डरो. लड़की तो तुम ही हो न,’’ आलोक ने हंस कर जवाब दिया.

‘‘मुझे लेकर तुम्हारी नीयत खराब है क्या?’’

‘‘न बाबा न.’’

‘‘मेरी है.’’

‘‘तुम्हारी क्या है?’’ आलोक उलझन में पड़ गया.

‘‘कुछ नहीं,’’ शिखा अचानक खिलखिला के हंस पड़ी और फिर दोस्ताना अंदाज में उस ने आलोक का हाथ पकड़ा और ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

‘‘चाय लोगे या कौफी?’’ अंदर आ कर भी शिखा ने आलोक का हाथ नहीं छोड़ा.

‘‘चाय चलेगी.’’

‘‘आओ, रसोई में गपशप भी करेंगे,’’ उस का हाथ पकड़ेपकड़े ही शिखा रसोई की तरफ चल पड़ी?

चाय का पानी गैस पर रखते हुए अचानक शिखा का मूड बदला और वह शिकायती लहजे में बोलने लगी, ‘‘देख रहे हो जीजू, यह रसोई और सारा घर कितना गंदा और बेतरतीब हुआ पड़ा है. मेरी भाभी बहुत लापरवाह और कामचोर है.’’

‘‘अभी उस की शादी को 2 महीने ही तो हुए हैं, शिखा. धीरेधीरे सब सीख लेगी… सब करने लगेगी,’’ आलोक ने उसे सांत्वना दी.

‘‘रितु और तुम्हारी शादी को भी तो 2 महीने ही हुए हैं. तुम्हारा घर तो हर समय साफसुथरा रहता है.’’

‘‘रितु एक समझदार और सलीकेदार लड़की है.’’

‘‘और मेरी भाभी एकदम फूहड़. मेरा इस घर में रहने का बिलकुल मन नहीं करता.’’

‘‘तुम्हारा ससुराल जाने का नंबर जल्दी आ जाएगा, फिक्र न करो.’

आलोक के मजाक को नजरअंदाज कर शिखा आक्रामक से लहजे में बोली, ‘‘भैया की शादी के बाद से इस घर में 24 घंटे क्लेश और लड़ाई झगड़ा रहता है. मुझे अपना भविष्य तो बिलकुल अनिश्चित और असुरक्षित नजर आता है. इस के लिए पता है मैं किसे जिम्मेदार मानती हूं.’’

‘‘किसे?’’

‘‘रितु को.’’

‘‘उसे क्यों?’’ आलोक ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि उसे ही इस घर में मेरी भाभी बन कर आना था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’

‘‘मैं सच कह रही हूं, जीजू. मेरे भैया और मेरी सब से अच्छी सहेली आपस में प्रेम करते थे. फिर रितु ने रिश्ता तोड़ लिया, क्योंकि मेरे भाई के पास न दौलत है, न बढि़या नौकरी. उस के बदले जो लड़की मेरी भाभी बन कर आई है, वह इस घर के बिगड़ने का कारण हो गई है,’’ शिखा का स्वर बेहद कड़वा हो उठा था.

‘‘घर का माहौल खराब करने में क्या तुम्हारे भाई की शराब पीने की आदत जिम्मेदार नहीं है, शिखा?’’ आलोक ने गंभीर स्वर में सवाल किया. ‘‘अपने वैवाहिक जीवन से तंग आ कर वह ज्यादा पीने लगा है.’’

‘‘अपनी घरगृहस्थी में उसे अगर सुखशांति व खुशियां चाहिए, तो उसे शराब छोड़नी ही होगी,’’ आलोक ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘न रितु उसे धोखा देती, न इस घर पर काले बादल मंडराते,’’ शिखा का अचानक गला भर आया.

‘‘सब ठीक हो जाएगा,’’ आलोक ने उस का कंधा छू कर हौसला ही बढ़ाया पर शिखा तो पलट कर उस की छाती से लग गई.

‘‘कभीकभी मुझे बहुत डर लगता है, आलोक,’’ शिखा का स्वर अचानक कोमल और भावुक हो गया.

‘‘शादी कर लो, तो डर चला जाएगा,’’ आलोक ने मजाक कर के माहौल सामान्य करना चाहा.

‘‘मुझे तुम जैसा जीवनसाथी चाहिए,’’ शिखा ने कहा.

‘‘तुम्हें मुझ से बेहतर जीवनसाथी मिलेगा, शिखा.’’

‘‘मैं तुम से प्यार करने लगी हूं, आलोक.’’

‘‘पगली, मैं तो तुम्हारी बैस्ट फ्रैंड का पति हूं. तुम मेरी अच्छी दोस्त बनी रहो और प्रेम को अपने भावी पति के लिए बचा कर रखो.’’

‘‘मेरा दिल अब मेरे बस में नहीं है,’’ शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘रितु को तुम्हारे इरादों का पता लग गया, तो हम दोनों की खैर नहीं.’’

‘‘उसे हम शक करने ही नहीं देंगे, आलोक. सब के सामने तुम मेरे जीजू ही रहोगे. मुझे और कुछ नहीं चाहिए तुम से… बस, मेरे प्रेम को स्वीकार कर लो, आलोक.’’ ‘‘और अगर मुझे और कुछ चाहिए हो तो?’’ आलोक शरारती अंदाज में मुसकराया.

‘‘तुम्हें जो चाहिए, ले लो,’’ शिखा ने आंखें मूंद कर अपना सुंदर चेहरा आलोक के चेहरे के बहुत करीब कर दिया.

‘‘यू आर वैरी ब्यूटीफुल, साली साहिबा,’’ आलोक ने उस के माथे को हलके से चूमा और फिर शिखा को गैस के सामने खड़ा कर के हंसता हुआ बोला, ‘‘चाय उबलउबल कर कड़वी हो जाएगी, मैडम. तुम चाय पलटो, इतने में मैं रितु को फोन कर लेता हूं.’’

‘‘उसे क्यों फोन कर रहे हो?’’ शिखा बेचैन नजर आने लगी.

‘‘आज का दिन हमेशा के लिए यादगार बन जाए, इस के लिए मैं तुम तीनों को शानदार पार्टी देने जा रहा हूं.’’

‘‘तीनों को? यह तीसरा कौन होगा?’’

‘‘तुम्हारी पक्की सहेली वंदना.’’

‘‘पार्टी के लिए मैं कभी मना नहीं करती हूं, लेकिन रितु को मेरे दिल की बात मत बताना.’’

‘‘मैं न बताऊं, पर इश्क छिपाने से छिपता नहीं है, शिखा.’’

‘‘यह बात भी ठीक है.’’

‘‘तब रितु से दोस्ती टूट जाने का तुम्हें दुख नहीं होगा?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा, क्योंकि मेरा

इरादा तुम्हें उस से छीनने का कतई नहीं है. 2 लड़कियां क्या एक ही पुरुष से प्यार करते हुए अच्छी सहेलियां नहीं बनी रह सकती हैं?’’

‘‘तुम्हारे इस सवाल का जवाब रितु से पूछ कर दूंगा,’’ आलोक ने हंसते हुए जवाब दिया और फिर अपनी पत्नी को फोन करने ड्राइंगरूम की तरफ चला गया.

रितु और वंदना सिर्फ 15 मिनट में शिखा के घर पहुंच गईं. दोनों ही गंभीर नजर आ रही थीं, पर बड़े प्यार से शिखा से गले मिलीं.

‘‘किस खुशी में पार्टी दे रहे हो, जीजाजी?’’

‘‘शिखा के साथ एक नया रिश्ता कायम करने जा रहा हूं, पार्टी इसी खुशी में होगी,’’ आलोक ने शिखा का हाथ दोस्ताना अंदाज में पकड़ते हुए जवाब दिया.

शिखा ने अपना हाथ छुड़ाने का कोई प्रयास नहीं किया. वैसे उस की आंखों में तनाव के भाव झलक उठे थे. रितु और वंदना की तरफ वह निडर व विद्रोही अंदाज में देख रही थी. ‘‘किस तरह का नया रिश्ता, जीजाजी?’’ वंदना ने उत्सुकता जताई. ‘‘कुछ देर में मालूम पड़ जाएगा, सालीजी.’’

‘‘पार्टी कितनी देर में और कहां होगी?’’

‘‘जब तुम और रितु इस घर में करीब

8 महीने पहले घटी घटना का ब्योरा सुना चुकी होगी, तब हम बढि़या सी जगह डिनर करने निकलेंगे.’’

‘‘यहां कौन सी घटना घटी थी?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘उस का ब्योरा मैं बताना शुरू करती हूं, सहेली,’’ रितु ने पास आ कर शिखा का दूसरा हाथ थामा और उस के पास में बैठ गई, ‘‘गरमियों की उस शाम को वंदना और मैं ने तुम से तुम्हारे घर पर मिलने का कार्यक्रम बनाया था. वंदना मु?ा से पहले यहां आ पहुंची थी.’’

घटना के ब्योरे को वंदना ने आगे बढ़ाया, ‘‘मैं  ने घंटी बजाई तो दरवाजा तुम्हारे भाई समीर ने खोला. वह घर में अकेला था. उस के साथ अंदर बैठने में मैं जरा भी नहीं हिचकिचाई क्योंकि वह तो मेरी सब से अच्छी सहेली रितु का जीवनसाथी बनने जा रहा था.’’

‘‘समीर पर विश्वास करना उस शाम वंदना को बड़ा महंगा पड़ा, शिखा,’’ रितु की आंखों में अचानक आंसू आ गए.

‘‘क्या हुआ था उस शाम?’’ शिखा ने कांपती आवाज में वंदना से पूछा.

‘‘अचानक बिजली चली गई और समीर ने मुझे रेप करने की कोशिश की. वह शराब के नशे में न होता तो शायद ऐसा न करता.

‘‘मैं ने उस का विरोध किया, तो उस ने मेरा गला दबा कर मुझे डराया… मेरा कुरता फाड़ डाला. उस का पागलपन देख कर मेरे हाथपैर और दिमाग बिलकुल सुन्न पड़ गए थे. अगर उसी समय रितु ने पहुंच कर घंटी न बजाई होती, तो बड़ी आसानी से तुम्हारा भाई अपनी हवस पूरी कर लेता, शिखा,’’ वंदना ने अपना भयानक अनुभव शिखा को बता दिया.

‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है इस बात पर,’’ शिखा बोली.

‘‘उस शाम वंदना को तुम्हारा नीला सूट पहन कर लौटना पड़ा था. जब उस ने वह सूट लौटाया था तो तुम ने मु?ा से पूछा भी था कि वंदना सूट क्यों ले गई तुम्हारे घर से. उस सवाल का सही जवाब आज मिल रहा है तुम्हें, शिखा,’’ रितु का स्पष्टीकरण सुन शिखा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम दोनों ने यह बात आज तक मुझ से छिपाई क्यों?’’ शिखा रोंआसी हो उठी.

‘‘समीर की प्रार्थना पर… एक भाई को हम उस की बहन की नजरों में गिराना नहीं चाहते थे,’’ वंदना भी उठ कर शिखा के पास आ गई.

‘‘मैं समीर की जिंदगी से क्यों निकल गई, इस का सही कारण भी आज तुम्हें पता चल गया है. मैं बेवफा नहीं, बल्कि समीर कमजोर चरित्र का इंसान निकला. उसे अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरे दिल ने साफ इनकार कर दिया था. वह आज दुखी है, इस बात का मुझे अफसोस है. पर उस की घिनौनी हरकत के बाद मैं उस से जुड़ी नहीं रह सकती थी,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तुम्हें कितना गलत समझती रही,’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

आलोक ने कहा, ‘‘मेरी सलाह पर ही आज इन दोनों ने सचाई को तुम्हारे सामने प्रकट किया है, शिखा. ऐसा करने के पीछे कारण यही था कि हम सब तुम्हारी दोस्ती को खोना नहीं चाहते हैं.’’

शिखा ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदगी से बोली, ‘‘मैं अपने कुसूर को समझ रही हूं. मैं तुम सब की अच्छी दोस्त कहलाने के लायक नहीं हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों की सब से अच्छी, सब से प्यारी सहेली हो, यार,’’ रितु बोली.

‘‘मैं तो तुम्हारे ही हक पर डाका डाल रही थी, रितु,’’ शिखा की आवाज भर्रा उठी, ‘‘अपने भाई को धोखा देने का दोषी मैं तुम्हें मान रही थी. इस घर की खुशियां और सुखशांति नष्ट करने की जिम्मेदारी तुम्हारे कंधों पर डाल रही थी.

‘‘मेरे मन में गुस्सा था… गहरी शिकायत और कड़वाहट थी. तभी तो मैं ने आज तुम्हारे आलोक को अपने प्रेमजाल में फांसने की कोशिश की. मैं तुम्हें सजा देना चाहती थी… तुम्हें जलाना और तड़पाना चाहती थी… मुझे माफ कर दो, रितु… मेरी गिरी हुई हरकत के लिए मुझे क्षमा कर दो, प्लीज.’’

रितु ने उसे समझया, ‘‘पगली, तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि हम तुम्हें किसी भी तरह का दोषी नहीं मानते हैं.’’

‘‘रितु ठीक कह रही है, साली साहिबा,’’ आलोक ने कहा, ‘‘तुम्हारे गुस्से को हम सब समझ रहे थे. मुझे अपनी तरफ आकर्षित करने के तुम्हारे प्रयास हमारी नजरों से छिपे नहीं थे. इस विषय पर हम तीनों अकसर चर्चा करते थे.’’

‘‘आज मजबूरन उस पुरानी घटना की चर्चा हमें तुम्हारे सामने करनी पड़ी है. मेरी प्रार्थना है कि तुम इस बारे में कभी अपने भाई से कहासुनी मत करना. हम ने उस से वादा किया था कि सचाई तुम्हें कभी नहीं पता चलेगी,’’ वंदना ने शिखा से विनती की.

‘‘हम सब को पक्का विश्वास है कि तुम्हारा गुस्सा अब हमेशा के लिए शांत हो जाएगा और मेरे पतिदेव पर तुम अपने रंगरूप का जादू चलाना बंद कर दोगी,’’ रितु ने मजाकिया लहजे में शिखा को छेड़ा, तो  वह मुसकरा उठी.

‘‘आई एम सौरी, रितु.’’

‘‘जो अब तक नासमझ में घटा है, उस के लिए सौरी कभी मत कहना,’’ रितु ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.

‘‘साली साहिबा, वैसे तो तुम्हें प्रेमिका बना कर भी मैं खुश रहता, पर…’’

‘‘शक्ल देखी है कभी शीशे में? मेरी इन सहेलियों को प्रेमिका बनाने का सपना भी देखा, तो पत्नी से ही हाथ धो बैठोगे,’’ रितु बोली.

आलोक मुसकराते हुए बोला, तो फिर दोस्ती के नाम पर देता हूं बढि़या सी पार्टी… हम चारों के बीच दोस्ती और विश्वास का रिश्ता सदा मजबूत बना रहे. Family Story

Best Family Story: सुलझे लोग

सड़क दुर्घटना में हुई मिहिर की आकस्मिक मृत्यु ने सपना के परिवार को बुरी तरह झकझोर दिया था. सब से ज्यादा फिक्र सब लोगों को सपना को ले कर थी. बी.ए. की परीक्षा के तुरंत बाद सपना की सास ने सपना को एक शादी में देख कर अपने बेटे के लिए पसंद कर लिया था और शादी के लिए जल्दी मचा दी थी. सपना के घर वालों ने कहा भी था कि सपना को कोई प्रोफैशनल कोर्स कर लेने दें लेकिन उस की सास ने बड़े दर्प से कहा था, ‘‘हमारे घर की बहू को कभी नौकरी नहीं करनी पड़ेगी. मिहिर सरकारी प्रतिष्ठान में इंजीनियर है, अच्छी तनख्वाह पाता है. घरपरिवार की उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं है. वकील बाप ने बढि़या कोठी बनवा ही दी है, इतना कैश भी छोड़ ही जाएंगे कि दोनों बेटे अपने बच्चों को अच्छा भविष्य दे सकें.’’

उन की बात गलत भी नहीं थी. सपना मिहिर के साथ बहुत खुश थी, पैसे की तो खैर, कमी थी ही नहीं. लेकिन शादी के 7 साल ही के बाद मिहिर उसे 2 बच्चों के साथ यों छोड़ कर चला जाएगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. वैसे सपना के सासससुर का व्यवहार उस के साथ बहुत स्नेहपूर्ण और संवेदनशील था. सपना के भाई और पिता आश्वस्त थे कि उस का देवर और सासससुर उस का और बच्चों का पूरा खयाल रखेंगे, मगर सपना की चाची का कहना था कि यह सब मुंह देखी बातें हैं. हम लोगों को अभी सब बातें साफ कर लेनी चाहिए और उठावनी होते ही उन्होंने सपना की मां से कहा कि वह उस की सास से पूछें कि सपना अब कहां रहेगी?

‘‘हमारे साथ दिल्ली में रहेगी, बच्चों की छुट्टियों में आप लोगों के पास मेरठ आ जाया करेगी. मिहिर की बरसी के बाद उस के लिए उपयुक्त घरवर देखना शुरू करेंगे,’’ सास का स्वर कोशिश करने के बावजूद भी भर्रा गया.

‘‘आजकल कुंआरी लड़कियों के लिए तो उपयुक्त घरवर मिलते नहीं, बहनजी, सपना बेचारी के तो 2 बच्चे हैं,’’ चाची बोलीं.

‘‘मनोयोग से चेष्टा करने पर सब मिल जाता है, बहनजी. कोई न कोई विकल्प तो तलाशना ही होगा, क्योंकि सपना को हम ने न तो कभी बेचारी कहलवाना है, न ही उसे एक बेवा की निरीह और बोसीदा जिंदगी जीने देना है,’’ उस की सास ने दृढ़ स्वर में कहा और सपना की मां की ओर मुड़ीं, ‘‘फिलहाल तो हमें यह सोचना है कि अभी सपना के पास कौन रहेगा, आप या मैं? खैर, कोई जल्दी नहीं है, रिश्तेदारों के जाने के बाद तय कर लेंगे.’’

सब ने यही मुनासिब समझा कि सपना की मां उस के साथ रहे. सपना का देवर शिशिर नागपुर के एक कालेज में व्याख्याता था. वह हर दूसरे सप्ताहांत में आ जाता था. उस के आने से बच्चे तो खुश होते ही थे, सपना भी उस की पसंद का खाना बनाने में रुचि लेती थी. देवरभाभी में थोड़ी नोकझोंक भी हो जाती थी. शिशिर उम्र में सपना से कुछ महीने बड़ा था. कहता तो भाभी ही था लेकिन व्यवहार दोस्ती का था.

‘‘तुम्हारे आने से सब का दिल बहल जाता है, शिशिर, लेकिन तुम्हारी छुट्टियां खराब हो जाती हैं,’’ सपना की मां ने कहा.

‘‘यहां आ कर मेरी छुट्टियां भी मजे से गुजर जाती हैं, मांजी. वहां छुट्टी के दिन सोने या पढ़ने के सिवा कुछ नहीं करता.’’

‘‘दोस्तों के साथ समय नहीं गुजारते?’’

‘‘दोस्त हैं ही नहीं. पीएच.डी. करने के दौरान खानेसोने का समय ही नहीं मिला. जो दोस्त थे उन से भी संपर्क नहीं रहा और लड़कियां तो मांजी मुझ जैसे पुस्तक प्रेमी की ओर देखतीं भी नहीं,’’ शिशिर हंसा.

‘‘अब तो पीएच.डी. कर ली है, इसलिए दोस्त बनाओ.’’

‘‘बनाऊंगा मांजी, मगर दिल्ली जा कर. मैं बंटीबन्नी के साथ रहने के लिए दिल्ली में नौकरी की कोशिश कर रहा हूं, उम्मीद है जल्दी ही मिल जाएगी,’’ शिशिर ने बताया.

बच्चों की परीक्षा होने तक सपना भी संभल चुकी थी और बड़ी शांति से अपनी गृहस्थी को समेट रही थी. शिशिर को भी दिल्ली में नौकरी मिल गई थी. जब सपना की मां मेरठ लौट कर आई तो वह सपना की ओर से पूर्णतया निश्चिंत थी. सब के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘मिहिर को तो वे वापस नहीं ला सकते, मगर ससुराल वाले बहुत सुलझे हुए लोग हैं और इसी कोशिश में रहते हैं कि सपना को हर तरह सुखी रखें. देवर ने भी बच्चों के साथ रहने की खातिर दिल्ली में नौकरी ढूंढ़ ली है.’’

‘‘बच्चों के साथ रहने को या यह देखने को कि कहीं सारी कोठी पर सपना का कब्जा न हो जाए,’’ चाची ने मुंह बिचकाया.

‘‘चलो, इसीलिए सही, पर उस के रहने से हमारी बेटी और बच्चों का मन तो बहला रहेगा,’’ मां ने कहा.

‘‘तब तक जब तक उस की शादी नहीं होती. अपना घरसंसार बसाने के बाद कौन भाई के उजड़े चमन को सींचने आता है. मेरी मानो, तुम उन लोगों की बातों में न आ कर सपना के सासससुर से कहो कि वे उसे कोई अच्छा सा बिजनेस करा दें. उस का दिल भी लगा रहेगा और निजी आमदनी भी हो जाएगी,’’ चाची ने सलाह दी.

‘‘मगर सपना को तो बिजनेस का क ख ग भी नहीं मालूम,’’ मां ने कहा.

‘‘सपना को न सही, जतिन को तो मालूम है. एम.बी.ए. कर रहा है, बहन की मदद करने को नौकरी के बजाय उस के साथ काम कर लेगा,’’ चाची बोलीं.

एक बार मेरठ आने पर जब वह सब को बता रही थी कि उसे आशंका थी कि भोपाल में पलेबढ़े बच्चे दिल्ली के बच्चों के साथ शायद न चल सकें, मगर बंटी और बन्नी ने तो बड़ी आसानी से नए परिवेश को अपना लिया है तो चाची ने पूछा, ‘‘लेकिन इन्हें संवारने के चक्कर में तुम ने अपने लिए भी कुछ सोचा है या नहीं?’’

‘‘मेरा सर्वस्व या जीवन तो अब ये बच्चे ही हैं, चाची. इन का भविष्य संवारने के अलावा मुझे और क्या सोचना है?’’

इस से पहले कि चाची कुछ और बोलती, बच्चों ने आ कर कहा कि वे वापस दिल्ली जाना चाहते हैं. चाची की वजह पूछने पर बोले, ‘‘यहां हमारा दिल नहीं लग रहा. दिल्ली में तो चाचा के साथ छुट्टी के रोज सुबह घुड़सवारी करने जाते हैं और टैनिस तो रोज ही शाम को खेलते हैं. हम ने चाचा को भी फोन किया था. उन का भी दिल नहीं लग रहा. कहते थे, मम्मी से पूछ लो, अगर वे कहती हैं, तो मैं अभी लेने आ जाता हूं, आप क्या कहती हैं, मम्मी?’’

‘‘तुम्हें और तुम्हारे चाचा को उदास तो कर नहीं सकती. इसलिए चलो, ड्राइवर से कहो, हमें छोड़ आएगा.’’

लेकिन तब तक बन्नी ने शिशिर को आने के लिए फोन कर दिया. शिशिर के आने से बच्चे बहुत खुश हुए.

‘‘बाप की कमी महसूस नहीं होने देता बच्चों को,’’ सब के जाने के बाद सपना के पिता ने कहा.

‘‘जब तक अपनी शादी नहीं हो जाती, भाई साहब. हमें शिशिर की शादी अपने परिवार की लड़की से करवानी चाहिए ताकि अगर वह सपना को कुछ तकलीफ दे तो हम उस की लगाम तो कस सकें,’’ चाची बोलीं.

‘‘मगर अपने परिवार में लड़कियां हैं ही कहां?’’

‘‘मेरे पीहर में हैं. मैं देखती हूं,’’ चाची ने बड़े इतमीनान से कहा.

मिहिर की बरसी के कुछ दिन बाद ही चाची अपनी भांजी का रिश्ता शिशिर के लिए ले कर सपना की ससुराल पहुंच गईं.

‘‘अब घर में कुछ खुशी भी आनी चाहिए.’’

‘‘जरूर आएगी, बहनजी, लेकिन पहले सपना की जिंदगी में,’’ सपना की सास ने कहा, ‘‘उसे व्यवस्थित करने के बाद ही हम शिशिर के बारे में सोचेंगे.’’

‘‘व्यवस्थित करने वाली बात आप सही कह रही हैं. सपना को कोई बिजनेस करा दीजिए. मेरे बेटे ने अभी एम.बी.ए. किया है, वह सपना के अनुकूल अच्छा प्रोजैक्ट सुझा सकता है,’’ चाची उत्साह से बोलीं.

‘‘सपना को रोजीरोटी कमाने की कोई मुसीबत नहीं है. मिहिर ही उस के लिए बहुत कुछ छोड़ गया है और ससुर भी बहुत कमा रहे हैं. लेकिन जीने के लिए पैसा ही सब कुछ नहीं होता. मैं ने पहले भी कहा था कि हम लोग सपना को बेवा की बोसीदा जिंदगी

ज्यादा दिन तक नहीं जीने देंगे. आप लोगों को उस की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है,’’ न चाहते हुए भी सपना की सास का स्वर तल्ख हो गया था.

‘‘मगर सपना ने तो बच्चों को अपना सर्वस्व बना लिया है. वह उन की जिम्मेदारी किसी अनजान आदमी से बांटने या शादी करने को तैयार नहीं होगी.’’

सपना की सास कुछ सोचने लगी, ‘‘कहती तो आप सही हैं. फिर भी सपना को अब मैं ज्यादा रोज तक उदास या सादे लिबास में नहीं देख सकती. कोई न कोई विकल्प तो खोजना ही होगा,’’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

चाची ने उस की ओर देखा. हमेशा ठसके से सजीसंवरी रहने वाली सपना की सास सादी सी शिफौन की साड़ी पहने थी.

‘अगर बहू बेवा की वेशभूषा में रही तो तुम्हार सिंगारपिटार कैसे होगा, महारानी,’ चाची ने विद्रूपता से सोचा.

अगले सप्ताहांत सपना के ससुर ने सपना के पिता को फोन किया कि वे उन लोगों से कुछ विचारविमर्श करना चाहते हैं, इसलिए क्या वह सपरिवार दिल्ली आ सकते हैं?

‘‘मुझे पता है क्या विचारविमर्श करेंगे,’’ चाची ने हाथ नचा कर कहा, ‘‘सपना शादी के लिए तैयार नहीं हो रही होगी, इसलिए चाहते होंगे कि हम उसे अपने पास रख लें ताकि उस की सास फिर सजसंवर सके.’’

‘‘सपना की ससुराल वाले बड़े सुलझे हुए लोग हैं, वे ऐसा सोच भी नहीं सकते. हमें उन की बात सुनने से पहले न अटकल लगानी है, न सलाह देनी है,’’ सपना के पिता ने कहा.

शिशिर और सपना के सासससुर तो सामान्य लग रहे थे, मगर सपना कुछ अनमनी सी थी.

‘‘जैसा कि मैं ने आप को पहले बताया था, हम लोग सपना का पूर्ण विवाह करना चाहते हैं,’’ सपना की सास ने कहते हुए चाची की ओर देखा.

‘‘और इन्होंने ठीक सोचा था कि सपना अपने बच्चों की जिम्मेदारी किसी और के साथ बांटने को तैयार नहीं होगी. सपना ही नहीं, शिशिर भी बन्नीबंटी की जिम्मेदारी किसी गैर को सौंपने को तैयार नहीं है.’’

‘‘शिशिर का कहना है कि वह आजीवन उन्हें संभालेगा और अविवाहित रहेगा, क्योंकि बीवी को उस का दिवंगत भाई के बच्चों पर जान छिड़कना पसंद नहीं आएगा,’’ सपना के ससुर बोले, ‘‘मैं भी उस के विचारों से सहमत हूं, क्योंकि एक अतिरिक्त परिवार की जिम्मेदारी संभालने वाले व्यक्ति का अपना विवाहित जीवन तो कदापि सुखद नहीं हो सकता, वैसे भी शिशिर को लड़कियों या शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘मगर शादी से एतराज भी नहीं है, अगर सपना से हो तो,’’ सपना की सास ने कहा. ‘‘दोनों ही बच्चों को किसी तीसरे से बांटना नहीं चाहते और उन की परवरिश में जिंदगी गुजारने को कटिबद्ध हैं. जब तक बच्चे छोटे हैं तब तक तो ठीक है, मगर जब ये समझने लायक होंगे कि लोग उन की मां और चाचा को ले कर क्या कहते हैं, तब सोचिए, उन पर क्या बीतेगी? वैसे लोग तो कहेंगे ही, उन का मुंह बंद करने का तो एक ही तरीका है, शिशिर और सपना की शादी. मगर उस के लिए सपना नहीं मान रही.’’

‘‘मगर क्यों? शिशिर में कोई कमी तो है नहीं,’’ सपना की मां ने कहा.

‘‘इसीलिए तो मैं उस से शादी नहीं

करना चाहती, मां. उसे एक से बढि़या एक कुंआरी लड़की मिल सकती है, तो फिर वह 2 बच्चों की मां से शादी क्यों करे?’’ सपना ने पूछा.

‘‘इसलिए सपना कि वे दोनों बच्चे मेरी जिंदगी का अभिन्न अंग हैं, जिन्हें सिर्फ तुम स्वीकार कर सकती हो, कोई कुंआरी लड़की नहीं,’’ शिशिर ने किसी के बोलने से पहले कहा.

‘‘एक बात और सपना, मैं किसी मजबूरी या दयावश तुम से शादी नहीं कर रहा बल्कि इसलिए कि जब शादी करनी ही है तो किसी अनजान लड़की के बजाय जानीपहचानी तुम बेहतर रहोगी. तुम्हें ले कर मेरे मन में कोई पूर्वाग्रह नहीं है, मैं ने तुम्हें भाभी जरूर कहा है लेकिन देखा एक दोस्त की नजर से ही है.’’

‘‘और दोस्त तो अकसर शादी कर लेते हैं,’’ सपना का भाई सुनील बोला.

‘‘खुद हिम्मत न करें तो दोस्त बढ़ कर करवा देते हैं, यार,’’ शिशिर हंसा.

‘‘तो तुम्हारी शादी हम करवा देते हैं,’’ सुनील भी हंसा.

‘‘मगर सपना माने तब न. उसे बेकार का वहम यह भी है कि उसे सुहाग का सुख है ही नहीं, तभी मिहिर की असमय मृत्यु हो गई.’’

‘‘जब उस के घर वाले मान गए हैं तो सपना भी मान जाएगी,’’ सपना के ससुर बोले. ‘‘उस की यह शंका कि दूसरी शादी कर के वह मिहिर की यादों के साथ बेवफाई कर रही है, मैं दूर कर देता हूं. मिहिर तुम्हें बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर गया है, जो तुम अकेले तो निभा नहीं सकतीं. हम तुम्हारा पूर्ण विवाह करना तो चाहते थे लेकिन साथ ही यह सोच कर भी विह्वल हो जाते थे कि किसी अनजान आदमी को अपने मिहिर की निशानियां कैसे सौंपेंगे? लेकिन शिशिर के साथ ऐसी कोई परेशानी नहीं है. दूसरे, मिहिर की जितनी आयु थी वह उतनी जी कर मरा है. शिशिर की जितनी आयु है, वह तुम से शादी करे या न करे, उतनी ही जिएगा और कोई शंका या एतराज?’’

‘‘नहीं, पापाजी,’’ सपना ने सिर झुका कर कहा लेकिन उस के रक्तिम होते गाल बहुत कुछ कह गए.

‘‘आप ठीक कहते थे, भाई साहब, सपना के ससुराल वाले बहुत सुलझे हुए लोग हैं,’’ चाची के स्वर में अपनी हार के बावजूद भी उल्लास था. Best Family Story

Family Story in Hindi: परफैक्ट बैलेंस

Family Story in Hindi: ‘‘नेहा बहुत थक गया हूं, एक गरमगरम चाय का कप और प्याज के पकौड़े हो जाएं. जरा जल्दी डार्लिंग,’’ राज ने औफिस से आते ही सोफे पर फैलते हुए कहा.

फीकी सी मुसकान बिखेरते नेहा ने पति को पानी का गिलास दिया और फिर उस के पास ही बैठ गई. फिर थकी सी आवाज में बोली, ‘‘चाय और पकौड़े थोड़ी देर में तैयार करती हूं. आज जल्दीजल्दी नहीं हो सकेगा.’’

‘‘क्यों, सब ठीक तो है?’’ राज की आवाज में खिन्नता साफ थी.

‘‘पिछले कुछ दिनों से थोड़ी कमजोरी महसूस कर रही हूं. थकीथकी सी रहती हूं,’’ पति की खिन्नता को भांप कर नेहा ने अपनी बढ़ती कमजोरी को थोड़ी बातों में समेट दिया था. यही तो वह करती आ रही है कई सालों से. कोई भी समस्या हो वह यथासंभव स्वयं ही सुलझा लेती या फिर हलके से उसे राज के सामने रखती ताकि उसे किसी प्रकार का तनाव न हो. ऐसा करने में नेहा को बहुत खुशी मिलती.

‘‘ठीक है पकौड़े न सही चाय के साथ बिस्कुट तो दे सकती हो मेरी नाजुक रानी,’’ राज ताना मारने से नहीं चूका. फिर नेहा की कमजोरी वाली बात को अनसुना कर फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ गया.

नाजुक नेहा के मन रूपी दर्पण पर जैसे किसी ने पत्थर दे मारा हो. कब थी वह नाजुक. 15 सालों की गृहस्थी में उस ने हर छोटेबड़े काम को कुशलता से निभाया था. कब टपटप करता बिगड़ा नल ठीक हो गया, कब पंखा दोबारा चलने लगा, कब बाथरूम की दीवार से रिसता पानी बंद हो गया उस ने राज को पता ही नहीं लगने दिया. बच्चों की देखरेख, पढ़ाईलिखाई, बैंक का काम, कितने ही और घरबाहर से जुड़े काम वह चुपचाप सुचारु रूप से संपन्न करती आ रही थी.

इतना ही नहीं नेहा छोटी कक्षा के 8-10 बच्चों को घर पर ही ट्यूशन भी पढ़ा देती थी. ताकि घर की आमदनी में थोड़ीबहुत वृद्धि हो सके.

पति और अपने बच्चों को प्रसन्न रखने में ही उस ने खुद को भुला दिया था. राज जबजब उसे गुलाबो या झांसी की रानी कह कर छेड़ता तो वह फूली न समाती थी. यही तो उस का प्यारा सा संसार था. यही उस की मनचाही साधना. अपने शौक, अपनी चाहतें सब कुछ उस ने सहर्ष भुला दिए थे. इस बात का नेहा को कभी कोई मलाल नहीं था, कोई गिला नहीं था. पर आज उसे मलाल हुआ कि मेरी कमजोरी, मेरी तकलीफ राज की नजर में कुछ अर्थ नहीं रखती. खुद को ताक पर रख दिया, यही मुझ से गलती हुई.

विचारों की उठतीउफनती लहरों में नेहा ने जैसेतैसे चाय बनाई.

राज फ्रैश हो कर आ गया था. खोईखोई सी नेहा ने उस के सामने चाय और बिस्कुट रख दिए. बस एक रोबोट की तरह यंत्रवत. कहते हैं कि सूखी आंखों से भी आंसू गिरते हैं, पर उन्हें समझने या देखने वाले बिरले ही होते हैं.

‘‘क्या कमाल की चाय बनाई है मेरी गुलाबो ने,’’ चाय की चुसकियां लेते हुए राज ने घाव पर मरहम लगाने की असफल चेष्टा की.

‘गुलाबो, हूं… अब लगे हैं मेरी खुशामद करने. चाय, बिस्कुट मिल गए… मेरी कमजोरी गई भाड़ में. दिल रखने के लिए ही सही कुछ तो पूछते मेरी कमजोरी के बारे में. इन्हें क्या? गलती मेरी ही है जो कभी इन के सामने अपनी तकलीफ नहीं रखी… यही तो सजा मिली है,’ मन ही मन बुदबुदा कर नेहा ने अपनी खीज निकाली.

‘‘नीरू और उमेश कहां हैं?’’ राज के प्रश्न पर नेहा का ध्यान भंग हुआ.

‘‘ट्यूशन वाले बच्चों का कैसा चल रहा है?’’

‘‘अच्छा चल रहा है. उन्हें भी आजकल अधिक समय देना पड़ रहा है. परीक्षा जो नजदीक है,’’ अनमनी सी नेहा बोली.

हर पौधे की तरह मानव हृदय के कोमल पौधे को भी समयसमय पर प्रेमजल से सींचना  पड़ता है, सहृदयता एवं सहानुभूति की खाद को जड़ों में यदाकदा डालना पड़ता है अन्यथा पौधा मुरझा जाता है. विशेषकर नारी का संवेदनशील हृदय जो प्रेम की हलकी सी थाप से छलकछलक जाता है, किंतु अवहेलना की तनिक सी चोट पर मरुस्थल सा शुष्क बन जाता है.

‘‘वह तो है. परीक्षा आ रही है तो समय देना ही पड़ेगा. इतना तो शुक्र है कि घर बैठे ही कमा लेती हो. बाहर नौकरी करती तो आए दिन थक जाती… आनाजाना पड़ता तो पता चलता,’’ घायल मन पर राज ने फिर चोट की.

यह चोट नेहा के लिए असहनीय थी. बोली, ‘‘घर पर ही अंदरबाहर के हजारों काम होते हैं. ये काम आप को दिखते ही नहीं. सब कियाकराया जो मिल जाता है… इतने सालों की गृहस्थी में मैं ने आप पर किसी भी काम का कम से कम बोझ डाला है. इसीलिए मेरी थकान, मेरी कमजोरी आप को पच नहीं रही. आखिर बढ़ती उम्र है… शरीर हमेशा एकजैसा तो नहीं रहता… पर नहीं, मैं तो सदैव गुलाब की तरह खिली रहूं, तरोताजा रहूं… है न?’’ क्रोध और क्षोभ से नेहा की आंखें छलछला आईं.

‘‘अब यह भी क्या बात हुई नाराज होने की? तुम तो मेरी झांसी की रानी हो. कुछ भी कहो आज भी तुम मुझे पहले जैसी गुलाबो ही दिखती हो,’’ राज ने बढ़ती कड़वाहट में मिठास घोलनी चाही.

‘‘रहने दो अपने चोंचले. आप का चैक बैंक में जमा करा दिया था और इंश्योरैंस वाले को फोन कर दिया था,’’ नेहा ने मात्र सूचना दी.

‘‘यह हुई न बात. पढ़ीलिखी, मौडर्न बीवी का कितना सुख होता है. मौडर्न औरत वाकई चुस्त और दुरुस्त होती है.’’

‘‘मौडर्न औरत बेमतलब पिसतीघुटती नहीं है और न ही इतनी मूर्ख कि अपने वजूद को भुला दे चाहे कोई कद्र करे या न करे,’’ नेहा के स्वर तीखे हो चले थे.

‘‘तिल का ताड़ मत बनाओ नेहा. तुम ही एकमात्र स्त्री नहीं हो जो घर और बाहर संभाल रही है. इस बढ़ती महंगाई के युग में हर सजग स्त्री कुछ न कुछ कर के पैसा कमा रही है. घर और परिवार में बैलेंस आजकल की स्त्री को बखूबी आता है. तनिक सूझबूझ से सब हो जाता है,’’ राज ने आग में घी डाल ही दिया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? क्या मुझ में सूझबूझ नहीं? इतने सालों से क्या मैं झकझोर रही हूं? क्या कमी रखी है किसी भी बात में? बैलेंस ही तो करती आ रही हूं अब तक… पर सच ही कहा है कि घर की मुरगी दाल बराबर,’’ नेहा आपे से बाहर हो चुकी थी.

सच सब से गहरे घाव भी उन्हीं से मिलते हैं जिन्हें हम बहुत चाहते हैं. उसी समय नीरू और उमेश आ गए. तूफान थम सा गया. नेहा ने उन्हें नाश्ता कराया. फिर उन्हें पढ़ाने बैठ गई.

वातावरण बोझिल हो चुका था.

‘‘मैं जरा बाहर घूमने जा रहा हूं,’’ कह कर राज बाहर निकल गया.

राज और नेहा की गृहस्थी सुखी और सामान्य थी. थोड़ी बहुत नोकझोंक होती रहती थी. यह सब तो गृहस्थ जीवन का अभिन्न अंग है. बहुत मिठास भी बनावटी लगती है.

नेहा राज को बहुत परिश्रम करता देखती. महीने में 2-3 टूअर भी हो जाते. देर रात तक राज नएनए प्रोजैक्ट पर काम करता. अपने पति पर नेहा को गर्व था. वह राज को प्रसन्न रखने की भरसक कोशिश करती.

सच तो यह था कि दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. लेकिन प्यार करने और दूसरे के मन की गहराई को समझने में काफी अंतर है. दिल महंगी भेंट नहीं मांगता. 2 शब्द प्रेम, प्रशंसा या सहानुभूति के ही पर्याप्त होते हैं. भावनाओं का स्थान भौतिक पदार्थ कमी नहीं ले सकते.

चूंकि नेहा हमेशा खिलीखिली रहती, इसलिए राज को उसे इसी प्रकार देखने की आदत हो चुकी थी. उस ने कभी इस बात को न जाना न समझा कि नेहा हर कार्य को कैसे कुशलतापूर्वक निबटा लेती. बहुत कम ऐसे अवसर आए जब नेहा ने अपनी परेशानी राज को बताई. प्रेमविभोर नेहा से शायद जानेअनजाने यही गलती हो गई थी. आज झगड़े का मूल कारण भी यही था. रात को डिनर के समय पतिपत्नी चुपचाप से थे. अंदर की पीड़ा जो थी सो थी.

बच्चे स्वभावानुसार चहक रहे थे, ‘‘पापा, मम्मी ने आज दमआलू कितने स्वादिष्ठ बनाए हैं,’’ नीरू ने चटकारे लेते हुए कहा.

‘‘हां बेटा, बहुत स्वादिष्ठ बने हैं,’’ राज ने स्वीकार किया.

उमेश भी नेहा को अपनी विज्ञान शिक्षिका और स्कूल की विज्ञान प्रदर्शिनी के बारे में बता रहा था. नेहा भी जैसेतैसे बेटे के उत्साह में भाग ले रही थी.

बच्चों का भोलापन वास्तव में कलकल करते निर्मल शीतल जलप्रपात सा है, जो पतिपत्नी के गिलेशिकवों के जलतेबुझते अंगारों को शांत कर देता है.

डिनर समाप्त हुआ तो बच्चे अपने बैडरूम में चले गए. नेहा ने जल्दी से बचे काम निबटाए और कपड़े बदल कर राज की तरफ पीठ कर के लेट गई. राज लेटेलेटे कुछ पढ़ रहा था. 11 बज रहे थे. नेहा के लेटते ही राज ने बत्ती बुझा दी.

‘‘नाराज हो क्या?’’ राज की आवाज में मलाई जैसी चिकनाहट थी.

नेहा चुप. कांटा बहुत गहरा चुभा था. पीड़ा हो रही थी.

‘‘डार्लिंग कल शाम मैं टूअर पर निकल जाऊंगा. 2-3 दिन के बाद ही आऊंगा. तुम बात नहीं करोगी तो कैसे चलेगा.’’

‘‘मेरा सिर दुख रहा है. आप सो जाएं,’’ नेहा ने टालना चाहा.

‘‘लाओ मैं तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ राज नेहा को मना रहा था.

नेहा अब तक मन ही मन कोई फैसला ले चुकी थी. इसलिए प्रतिकार किए बिना उस ने करवट बदली और राज की ओर देखा. राज ने समझा बिगड़ी बात बनने लगी है. वह नेहा का सिर दबाने लगा.

‘अच्छा है… होने दो सेवा,’ नेहा मन ही मन मुसकराई. मन हलका हुआ तो आंख लग गई. राज भी हलके मन से सो गया.

अगला दिन सामान्य ही रहा. राज औफिस निकल गया. बच्चे स्कूल. नेहा

रोज के कार्यों में व्यस्त हो गई. पर कल रात उस ने जो फैसला लिया था. उसे भूली नहीं थी.

शाम हुई. बच्चे स्कूल से लौटे और राज औफिस से. कुछ खापी कर राज टूअर पर निकल गया. निकलने से पहले नेहा को आलिंगन में लिया. बच्चों को प्यार किया. सब ठीकठाक था. हमेशा की तरह.

3 दिन बाद राज सुबह 9 बजे घर लौटा. बच्चे स्कूल जा चुके थे. नेहा ने हंसते हुए स्वागत किया, ‘‘आप नहाधो लें. तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूं,’’

राज को लगा सब पहले जैसा नौर्मल है. दिल को सुकून मिला.

राज जैसे ही तरोताजा हुआ नेहा ने उस के सामने गरमगरम चाय और प्याज के पकौड़े रख दिए. साथ में पुदीने की चटनी.

‘‘मैं जानता था मेरी गुलाबो कभी बदल नहीं सकती,’’ राज बहुत खुश था.

‘‘कैसा रहा आप का टूअर?’’

‘‘अच्छा रहा. बहुत काम करना पड़ा पर मैं संतुष्ट हूं.’’

‘‘औफिस कितने बजे जाना है?’’

‘‘दोपहर 3 बजे निकलना है. थोड़ा आराम करूंगा. तुम अपनी कहो. क्याक्या किया इन 3 दिनों में?’’ राज ने पकौड़ों का आनंद लेते हुए उत्सुकता से नेहा की ओर देखा.

‘‘बहुत कुछ किया,’’ नेहा के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी.

‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘एक स्कूल में इंटरव्यू दे कर आई हूं. पार्टटाइम जौब है. छठी और 7वीं कक्षा के बच्चों को अंगरेजी और समाजशास्त्र पढ़ाना है. मेरी ही पसंद के विषय हैं.’’

‘‘इंटरव्यू… यह सब क्या है,’’ राज सकपका गया.

‘‘हां डार्लिंग इंटरव्यू. नौकरी लगभग तय है. अगले महीने से जाना होगा. मेरी 1-2 सहेलियां भी वहां पढ़ा रही हैं. वेतन भी अच्छा है. मेरी सहेली ने ही मेरी सिफारिश की थी. अत: बात बन गई,’’ नेहा ने डट कर अपनी बात कह डाली. वह जानती थी कि राज को यह बात अच्छी नहीं लगेगी. लगे न लगे पर अब पता चलेगा कि परफैक्ट बैलेंस रखना क्या होता है.

‘‘अचानक यह नौकरी की क्या सूझी?’’ राज हैरान और खिन्न था.

‘‘अब इस में सूझने की क्या बात है?

जब हर आधुनिक स्त्री नौकरी कर रही है तो फिर मैं क्यों नहीं,’’ नेहा ने चटनी के चटखारे लेते हुए कहा.

‘‘तुम्हें मेरी उस दिन की बात बुरी लग गई?’’

‘‘बिलकुल नहीं. आप ठीक कहते थे. बैलेंस करने की ही तो बात है,’’ नेहा को मजा आ रहा था.

‘‘तुम्हारी कमजोरी… थकावट का क्या… सेहत भी देखनी पड़ती है.’’

‘‘भई कमाल है. आज आप को मेरी सेहत की बहुत चिंता होने लगी. पर सुन कर अच्छा लगा. चिंता न करें यह सब तो चलता ही है.’’

‘‘नेहा, बात उड़ाओ मत. मैं सीरियस हूं,’’ राज परेशान हो उठा.

‘‘धीरज रखें. मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट भी आ गई है.

सब ठीक है हीमोग्लोबिन कम है. डाक्टर की बताई दवा लेनी शुरू कर दी है और खानपान भी डाक्टर के निर्देशानुसार ले रही हूं.’’

‘‘और तुम्हारी ट्यूशनें?’’

‘‘पार्टटाइम नौकरी है. दोपहर 12:30 बजे तक लौट आऊंगी. ट्यूशन तो 3 बजे शुरू होती है. वह भी सप्ताह में 4 बार. महरी फुलटाइम सुबह से शाम तक आ जाया करेगी. बच्चे तो शाम 5 बजे तक ही लौटते हैं. स्कूल मुझे सप्ताह में 5 दिन ही जाना है. शनिर विवार छुट्टी. सब बैलेंस हो जाएगा,’’ नेहा मोरचे पर डटी थी.

‘‘तुम जानती हो अगले महीने बड़े भाईसाहब और भाभी आ रहे हैं,’’ राज ने हारे सिपाही के स्वर में कहा.

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. भाभीजी तो बहुत सुघड़ हैं. मेरी बहुत मदद हो जाएगी. वे भी थोड़ीबहुत घर की देखभाल कर लेंगी और भाईसाहब बच्चों को गणित और विज्ञान पढ़ा दिया करेंगे. इन विषयों में तो वे माहिर हैं,’’ नेहा आज घुटने टेकने वाली नहीं थी.

‘‘तो तुम ने नौकरी करने का निश्चय कर ही लिया है,’’ राज ने हथियार डाल दिए.

‘‘बिलकुल. आप देखना आप की झांसी की रानी घरबाहर को कैसा बैलेंस करती है. आप से ही तो मुझे प्रेरणा मिली है. खैर, छोडि़ए इन बातों को. आप थके हुए हैं. आओ सिर में तेल की मालिश कर देती हूं. आराम मिलेगा,’’ नेहा चाश्नी से सने तीर छोड़ रही थी.

‘‘लंच में क्या है?’’

‘‘सब आप की मनपसंद की चीजें.

लौकी के कोफ्ते, बैगन का भरता और मीठे में बासमती चावल की खीर. आया न मुंह में पानी?’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ राज निरुत्तर हो चुका था.

कहना न होगा कि नेहा परफैक्ट बैलेंस का अंदाज सीख चुकी थी. Family Story in Hindi

Marriage: शादी जरूरत या मजबूरी

Marriage: मध्य प्रदेश की सोनम रघुवंशी का मामला इन दिनों सुर्खियों में है. सोनम पर आरोप है कि उस ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर अपने पति की हत्या करा दी. कुछ दिन पहले मेरठ की मुसकान का मामला भी सुर्खियों में था. मुसकान ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी. औरैया की प्रगति की दिलीप से शादी हुई और शादी के 14वें दिन ही प्रगति ने भाड़े के हत्यारों से अपने पति की हत्या करा दी. हैदराबाद के गुरुमूर्ति ने अपनी पत्नी माधवी को मार कर उस के टुकड़ेटुकड़े किए और फिर उन टुकड़ों को कुकर में उबाल दिया.

अमरोहा की रहने वाली शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिल कर 14-15 अप्रैल, 2008 की रात को अपने ही परिवार के 7 लोगों को नशीला पदार्थ दे कर उन का गला काट दिया. सलीम और शबनम के बीच शारीरिक संबंध थे जिस से शबनम कुंआरी ही प्रैगनैंट हो गई थी. सहारनपुर के योगेश रोहिला को अपनी पत्नी नेहा पर शक था. उस ने पत्नी को गोली मार दी और साथ ही अपने 3 बच्चों को भी गोली मार कर उन्हें छत से नीचे फेंक दिया. सवाल यह है कि इस तरह की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं?

समाज है दोषी

ऐसी तमाम घटनाओं के पीछे कई सामाजिक कारण भी छिपे होते हैं जिन पर बात नहीं होती. स्त्रीपुरुष के बीच प्रेम संबंध होना स्वाभाविक होता है. यह प्रेम संबंध शादी से पहले भी हो सकता हैं और शादी के बाद भी लेकिन समाज तो शादी से पहले के ही संबंधों को स्वीकार नहीं करता. शादी के बाद होने वाले संबंधों को तो हमारा समाज पाप या गुनाह के तौर पर देखता है. समाज की यह मानसिकता धर्म से निकलती है और यहीं से समस्याएं शुरू होती हैं. पुरोहित वर्ग कभी नहीं चाहता कि औरतें उस के हाथों से निकल जाएं इसलिए वह इस तरह के प्रेम संबंधों में शामिल औरतों को कुलटा, बदचलन या रंडी शब्द से नवाजता है.

किसी औरत को अपने पति के अलावा किसी और से प्रेम हो जाए यह बात समाज हजम नहीं कर पाता. यहां समाज के अंदर बैठा पुरुषवाद हावी हो जाता है. योगेश ने अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या इसी वजह से की क्योंकि वह अपनी पत्नी के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को बरदाश्त नहीं कर पाया. सवाल यह है कि पुरुषों में योगेश जैसी मानसिकता के होते हुए क्या कोई महिला हिम्मत कर सकती है कि वह अपनी जिंदगी को स्वयं तय कर सके? अगर किसी शादीशुदा औरत को किसी और मर्द से प्यार हो जाए तो उस के पास क्या विकल्प बचता है? यही न कि वह अपने पति से तलाक ले ले लेकिन अगर पति तलाक न देना चाहे तब वह क्या करे? इस तरह की परिस्थितियों में समाज का रवैया कभी भी औरतों के पक्ष में नहीं होता क्योंकि समाज औरतों को इस लायक सम  झता ही नहीं कि वह अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीएं.

कई ऐसे मामले भी हैं जिन में पति का किसी और महिला से अफेयर होने के बाद उस ने अपनी पत्नी को ठिकाने लगा दिया. यहां भी पुरुषवादी सोच ही जिम्मेदार है. क्या मर्द अपनी पहली पत्नी को तलाक दे कर दूसरी से शादी नहीं कर सकता था? लेकिन ऐसा करने पर उस की पहली पत्नी दूसरी शादी कर लेती या अपने पति की बेवफाई का बदला लेने के लिए कहीं और अफेयर चलाती यह मर्द बरदाश्त नहीं कर सकता इसलिए वह अपनी पहली बीवी की हत्या कर देता है.

‘2012 मूवी’ की शुरुआत में एक सीन है जिस में फिल्म का हीरो अपने दोनों बच्चों को लेने अपनी पत्नी के घर जाता है जो अपने बौयफ्रैंड के साथ लिव इन में रहती है. एक सीन में हीरो और उस के बीवी बच्चों के साथ उस की बीवी का बौयफ्रैंड भी हवाईजहाज में साथ होता है. फिल्म का यह दृश्य अमेरिकन समाज की हकीकत है. वहां औरतों को इतनी आजादी है कि वे अपने रास्ते खुद तय कर सके.

क्या भारत में ऐसी कल्पना भी की जा सकती है

सभ्य समाज में इंसान के हाथों इंसान का कत्ल कभी भी माफी के काबिल नहीं. ऐसे हर अपराध में अपराधी को सजा जरूर मिलनी चाहिए. मुसकान हो शबनम हो या प्रगति ये  सब समाज के अपराधी हैं. इन्हें कठोर सजा जरूर मिलनी चाहिए लेकिन इन के अपराधी बनने में सिर्फ और सिर्फ यही जिम्मेदार नहीं हैं, हमारा समाज और हमारी सामाजिकता की संकीर्णताओं से उपजी वृहद विकृतियों में ऐसी उर्वरकता हमेशा मौजूद होती है जहां से थोक के भाव में ऐसे अपराधी जन्म लेते हैं.

जब कुदरत किसी लड़की को प्रेम के लिए तैयार कर देती है तब समाज उस की इच्छाओं के आगे कई दीवारें खड़ी कर देता है. यहीं से शबनम, प्रगति और मुसकान जैसी चुड़ैलों का उदय होता है. शादी से पहले सैक्स तो दूर की बात है लड़की के लिए तो खुल कर हंसना भी वर्जित है. वह क्या करे जब उसे प्रेम हो जाए? वह क्या करे जब वह कुंआरी प्रैगनैंट हो जाए? वह क्या करे जब उसे अपने पति से प्रेम न हो? वह क्या करे जब उसे शादी के बाद किसी और से प्यार हो जाए? समाज में इस तरह की बातों को स्वीकार करने की कोई गुंजाइश नहीं. कोई खिड़की, कोई दरवाजा भी तो नहीं जहां से इसे हजम करने की कोई गुंजाइश बाकी हो?

2 प्यार करने वालों को खुदकुशी पर मजबूर करने वाला समाज या प्रेमी जोड़ों की थोक के भाव में हत्याएं करने वाला समाज कभी शबनम, मुसकान और प्रगति के सच को नहीं सम  झ पाएगा.

शादी की जरूरत ही क्यों

प्रकृति में नर और मादा के मिलन से नया जीवन पैदा होता है. इस में कहीं किसी धर्म की जरूरत नहीं. जन्म की तरह मृत्यु भी एक प्राकृतिक घटना है इस में भी किसी धर्म की जरूरत नहीं. नर और मादा मिल कर नया जीवन पैदा करें यह भी प्राकृतिक है. पशुपक्षी भी जोड़ी बनाते हैं, सहवास करते हैं और अपनी नस्ल आगे बढ़ाते हैं. इंसान एक सामाजिक पशु ही है इसलिए उसे भी सहवास के लिए विपरीत लिंग की जरूरत पड़ती है. सामाजिक प्राणी होने के नाते जोड़ी बनाने के लिए सामाजिक नियम तय किए गए ताकि सामाजिक व्यवस्था में असंतुलन पैदा न हो इसलिए कबीलाई दौर में वयस्क होने पर लड़का और लड़की को साथ रहने की अनुमति समाज से लेनी पड़ती थी. यहीं से विवाह, शादी या निकाह की परंपरा शुरू हुई. आज भी कई आदिवासी जनजातियों में जहां कोई धर्म

नहीं पहुंचा वहां उन के अपने कस्टम फौलो किए जाते हैं जिन में किसी पुरोहित की जरूरत नहीं होती और ये परंपराएं हजारों वर्षों से यों ही चली आ रही हैं.

स्त्री को पुरुष की और पुरुष को स्त्री की जरूरत है. इसी जरूरत को पूरा करने की खातिर कबीलाई युग मे शादियों का प्रचलन शुरू हुआ. उस से पहले नर और मादा स्वछंद हो कर जोडि़यां बनाते थे और तब तक साथ रहते थे जब तक दोनों को एकदूजे की जरूरत होते थे. मातृसत्तात्मक समाज में औरत के लिए बंदिशें नहीं थीं लेकिन जैसेजैसे हम कबीलों से सभ्यताओं की ओर आगे बढ़ते गए पितृसत्तात्मक समाज बनता गया और इस मर्दवादी समाज में औरतों के दायरे सिमटते चले गए. धीरेधीरे सभ्यताओं के विस्तार का यह दौर सत्ता ताकत और वर्चस्व की होड़ में बदल गया.

ताकत, सत्ता या वर्चस्व की लड़ाई में मरनेमारने वाले लोगों में औरतें नहीं होती थीं. वे घर में रह कर पति के लौटने का इंतजार करतीं. यदि पति मर जाए तो उस के नाम पर पूरी जिंदगी गुजार देतीं और जिंदगीभर ससुराल में रह कर पति के परिवार की गुलामी करतीं. कभी शिकायत न करतीं. जीवनभर की इस गुलामी के एवज में उन्हें ‘आदर्श नारी’ का खिताब मिलता था. जो औरत जितनी शिद्दत और वफादारी के साथ अपनी गुलामी को निभाती वह उतनी ही अच्छी मानी जाती थी.

सहना औरत का गहना हो गया. उस का अस्तित्व पति, पिता, भाई और बेटे के बिना कुछ नहीं था. इस तरह धीरेधीरे आधी आबादी गुलाम हो कर रह गई. आदर्श नारी के इस कौंसैप्ट में बदचलनी के लिए कोई जगह नहीं थी. किसी भी मामले में नारी की मरजी का तो सवाल ही नहीं था. शादी से पहले उस के जीवन की डोर उस के पिता या भाई के हाथों में थी तो शादी के बाद उस का पति ही उस का मालिक था.

ऐसे दौर में लड़कियां खरीदी जाती थीं, बेची जाती थीं, जीती जाती थीं या चुरा ली जाती थीं. सब ताकत का खेल था. जो जितना धनी था उस के पास उसी अनुपात में औरतें होती थीं. संवेदनाओं और मानवता के धरातल पर औरतों की कीमत लगातार घटती चली गई.

गरीब हो या मिडल क्लास, विवाह सभी के लिए खुशी कम और मुसीबत ज्यादा है. सक्षम वर्ग या एलीट क्लास के लिए परंपराएं कभी बेडि़यां नहीं बनतीं. 90त्न आबादी परंपराओं के बो  झ तले दब कर कराह रही होती है. ऊपर की 10त्न आबादी उन्हीं अकीदों को ऐंजौय करती है. शादियों के मामले में भी यही होता है.

क्या ‘विवाह व्यवस्था’ खत्म होने से मनुष्य जानवर हो जाएगा?

कुछ लोग यह कुतर्क कर सकते हैं कि शादी के बिना तो हम जानवर जैसे हो जाएंगे? शादियों पर होने वाले खर्च के मामले में भारत सब से आगे है और शादियों के बाद दहेज उत्पीड़न, घरेलू कलह या घरेलू हिंसा के मामलों में भी हमारा देश दुनिया में सब से आगे है.

शादी की व्यवस्था कई सामाजिक बुराइयों को जन्म देती है, साथ ही यह व्यवस्था महिला विरोधी भी होती है. औरतों का सब से ज्यादा उत्पीड़न शादियों के नाम पर ही होता है. गरीब तबके की ज्यादातर शादियों में लड़की मैच्योर नहीं होती. जब तक उसे दुनियादारी की सम  झ होती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. ऐसे में उस के पास रिश्ते को   झेलने के अलावा कोई और दूसरा विकल्प बचता ही नहीं.

शादी खत्म तो तलाक का झंझट भी खत्म और दोनों के खत्म होते ही शादियों के नाम पर होने वाली सामाजिक हरामखोरी भी खत्म हो जाएगी. जब तक दिल मिले साथ रहें जब रिश्ता बोझ बन जाए तो अलग हो जाएं. इस में गलत क्या है?

हमारा समाज नर और मादा की नैचुरल नीड को जन्मजन्मांतर का रिश्ता बताने का ढोंग करता है और एक औरत को एक मर्द के साथ संस्कारों की मजबूत जंजीरों से बांध कर आशीर्वाद के रूप में दोनों को ताउम्र साथ रहने की जिद थमा देता है और इस गठबंधन पर ईश्वरीय मुहर लगा कर इसे विवाह का नाम दे देता है. इस अमानवीय और अप्राकृतिक प्रायोजन में नारी की संवेदनाओं के लिए कोई जगह नहीं होती. भारतीय उपमहाद्वीप में विवाहपद्धति चाहे जो हो शादी का मतलब बस यही होता है.

ठंडे दिमाग से इस सवाल पर विचार कीजिए कि 2 जवां इंसानों को साथ रहने के लिए शादी की जरूरत ही क्यों?    Marriage

Neena Gupta: बिस्कुट ब्रा ने बिखेरा जलवा

Neena Gupta: अपने बोल्ड फैसलों से समाज को चौंकाने वाली नीना गुप्ता ‘बिस्कुट ब्रा’ पहनने को ले कर चर्चा में है. सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया जा रहा है. ऐक्ट्रैस नीना गुप्ता ने अपने 66वें जन्मदिन की पार्टी का जश्न ‘मैट्रो इन दिनों’ की टीम के साथ मनाया. इस मौके पर वे खास बोल्ड अंदाज में दिख रही थी. ‘मैट्रो इन दिनों’उन की आने वाली फिल्म है. इस पार्टी में नीना ने एक स्टेटमैंट आउटफिट पहना था.

इस ड्रैस को ‘बिस्कुट ब्रा’ के नाम से जाना जाता है. इस ड्रैस में नीना गुप्ता के फोटो और वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर आए तहलका मच गए. नीना गुप्ता का अंदाज देख कर कुछ लोगों ने तो खूब तारीफ की लेकिन कुछ लोग इस की आलोचना भी करने लगे. पूरी पार्टी में सब की निगाहें नीना पर टिकी थीं. उन्होंने एक सफेद काफ्तान ड्रैस पहनी थी. इस के साथ ही ट्रैंडी ‘बिस्कुट ब्रा’ भी थी. यह ड्रैस उन की बेटी मसाबा गुप्ता के फैशन लेबल से थी.

1985 में टीवी शो ‘खानदान’ से उन को पहचान मिली. उस के बाद ‘यात्रा,’ ‘गुलजार मिर्जा साहिब गालिब,’ ‘दर्द,’ ‘गुमराह,’ ‘सांस,’ ‘सात फेरे,’ ‘सलोनी का सफर,’ ‘चिट्ठी,’ ‘मेरी बीवी का जवाब नहीं’ और ‘कितनी मोहब्बत है,’ ‘जस्सी जैसा कोई नहीं’ टीवी सीरियल किए.

नीना ने अपने हिंदी फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1982 में फिल्म ‘ये नजदीकियां’ से की थी. इस के बाद वे कई अन्य हिंदी फिल्मों में नजर आईं. उन में ‘साथसाथ,’ ‘जाने भी दो यारो,’ ‘मंडी,’ ‘त्रिकाल’ आदि शामिल हैं. इस के अलावा वे हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध गाने ‘चोली के पीछे क्या है’ के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने टैली फिल्म्स ‘लाजवंती…’ और ‘बाजार सीताराम’ निर्मित की हैं, जिस में उन्हें बैस्ट फर्स्ट गैरफीचर फिल्म के लिए 1993 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

बिना विवाह के मां बनी थी नीना गुप्ता

‘बिस्कुट ब्रा’ पहनने पर नीना गुप्ता की आलोचना करने वाले लोग यह नहीं जानते कि वे किसकिस तरह से रूढि़वादी सोच को तोड़ चुकी हैं. नीना गुप्ता क्रिकेट खिलाड़ी विवियन रिचर्ड्स के साथ रिलेशनशिप में थीं. इस बीच वह गर्भवती हो गई. नीना गुप्ता को जब मालूम पड़ा कि वे विवियन रिचर्ड्स के बच्चे की मां बनने वाली हैं तो उन्होंने तुरंत विवियन रिचर्ड्स को इस बारे में बताया. विवियन ने नीना गुप्ता को प्रैगनैंसी जारी रखने की सलाह दी. नीना गुप्ता ने बताया कि उन के परिवार ने इस फैसले में उन्हें सपोर्ट नहीं किया था. लेकिन बाद में उन के पिता मान गए थे.

नीना गुप्ता ने अपनी जिंदगी को हमेशा से बिंदास जीया है. वे दौर जब बिना शादी किए मां बनने पर समाज दुतकारता था, उस दौर में नीना गुप्ता ने बच्चे को जन्म दिया और सिंगल पेरैंट बन कर पाला. प्रैगनैंसी के उन पलों में नीना गुप्ता के पिता उन के सब से बड़े सपोर्टर बन कर सामने आए थे. उन की बेटी मसाबा डिजाइनर और ऐक्टर हैं.

नीना ने कभी अपनी बेटी मसाबा को अंधेरे में नहीं रखा. नीना कहती है, ‘‘मैं ने मसाबा को सबकुछ फ्रैंकली बताया. बच्चे को सच बताना जरूरी है वरना उसे यह सच किसी और से पता चलेगा. अकेले बेटी को बड़ा करना आसान नहीं था. प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ में बैलेंस करना मुश्किल था पर मुश्किल की इस घड़ी में मुझे पिता ने काफी सपोर्ट किया था.’’

चुनौतियों से डरती नहीं है नीना गुप्ता

नीना गुप्ता आलोचनाओं और चुनौतियों से डरती नहीं हैं. सुभाष घई ने फिल्म ‘खलनायक’ में ‘चोली के पीछे क्या है…’ गाने के हिस्से में रखा था. इला अरुण का गाया यह गाना नीना गुप्ता पर फिट बैठ रहा था. इस गाने में माधुरी दीक्षित भी थीं, उन का सीन बड़ा था. नीना गुप्ता ने पहले इस गाने में हिस्सा लेने से मना किया था. नीना को लगता था कि उन्हें गाने में कम सीन में रखा जा रहा है. बाद में वे तैयार हो गईं. गाने में हिस्सा लेने के लिए उन्हें पैड्स पहनने पड़े. बाद में यह गाना पूरी फिल्म पर भारी पड़ा. आज भी पार्टियों में शान से बजता है.

नीना गुप्ता का पूरा जीवन बिंदास रहा है. वे किसी से डरती नहीं हैं. ऐसे में ‘बिस्कुट ब्रा’ पहनने को ले कर जो लोग आलोचना कर रहे हैं उन्हें सम  झना चाहिए कि नीना का अपना अलग अंदाज होता है. वे डरती नहीं हैं. एक तरफ वे ‘बिस्कुट ब्रा’ पहन कर पार्टी कर सकती हें तो दूसरी तरफ वे प्रधान मंजू देवी बन कर पूरे गांव को संभाल सकती हैं. वे अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ में पूरी तरह से बैलेंस कर के काम कर सकती हैं. चुनौतियों से डरती नहीं हैं. ऐसे में सोशल मीडिया पर उन की ड्रैस को ट्रोल करने वाले खुद ही चुप हो जाएंगे.

नीना कहती हैं, ‘‘ट्रोलर को जवाब देने के लिए अपने कमैंट बौक्स को बंद करना ही सही कदम होता है.’’  Neena Gupta.

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