Winter Special: सर्दियों में महिलाएं रखें अपनी सेहत का ख्याल, शरीर को दें बेहतर पोषण

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

सर्दियों का मौसम हमारी दिनचर्या में कई तरह के बदलाव लेकर आता है. खाने-पीने से लेकर हमारी सोने तक का रूटीन बहुत गड़बड़ा जाता है, जिसका असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. अगर आप एक महिला हैं, तो सर्दियों के मौसम में आपको अपने परिवार के साथ खुद की देखभाल करने की भी जरूरत है. दरअसल, इस मौसम में महिलाएं अपने पोषण पर ध्यान नहीं देती . विशेषज्ञ कहते हैं कि किसी व्यक्ति की पोषण संबंधी जरूरतें मौसम के आधार पर अलग होती हैं. इसलिए शरीर को हर मौसम में हर तरह के पोषक तत्व प्रदान करना आपकी जिम्मेदारी है. इसलिए अपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों को शामिल करना चाहिए, जो पोषक तत्वों से भरपूर हों. यहां हम आपको ऐसे पोषण संबंधी टिप्स बता रहे हैं, जिससे शरीर में पोषण की कमी दूर हो जाएगी और आप एक खुश और स्वस्थ सर्दी का आनंद ले सकेंगे.

विटामिन -सी का सेवन करें

यह जादुई विटामिन अपनी एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए जाना जाता है, जो सर्दियों के लिए जरूरी भी है. खट्टे फल जैसे संतरे, नींबू , कीवी, पपीता, अमरूद में पाया जाने वाला विटामिन सी हमारी त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखने में मदद करता है. इस वंडर विटामिन का एक और फायदा यह है कि यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है. इस मौसम में बीमारियों से बचने के लिए अपने आहार में विटामिन -सी का सेवन बढ़ाएं.

हरी सब्जियां खाएं

सर्दियों का मौसम हरी पत्तेदार सब्जियों के लिए जाना जाता है. हरी सब्जियां कई एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन से भरपूर होती हैं. यह हमारे शरीर के कार्य के लिए बहुत जरूरी हैं. इसमें मौजूद प्रोटीन, विटामिन, मिनरल और आयरन कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का घरेलू उपचार हैं. इसलिए इन दिनों में महिलाओं को अपने आहार में हरी सब्जियों को जरूर शामिल करना चाहिए.

दूध और चाय में करें मसालों का उपयोग

केसर, हल्दी, दालचीनी और इलायची जैसे भारतीय मसाले सर्दियों के लिए बहुत अच्छे माने जाते हैं. इन सभी मसालों की तासीर गर्म होती है, जिसके सेवन से शरीर को गर्माहट मिलती है. इसके अलावा सर्दी और फ्लू जैसी सामान्य मौसमी बीमारियों से बचने के लिए इन मसालों का सेवन जरूरी है. इनका इस्तेमाल आप चाय या हल्दी के दूध में मिलाकर कर सकते हैं.

सूखे मेवे खाएं-

सूखे मेवे भी ठंड और शुष्क मौसम में गर्मी पाने करने का बेहतरीन तरीका है. वैसे खजूर और अंजीर भारत में सर्दियों में सबसे ज्यादा खाए जाते हैं. इन दोनों में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. ये सर्दियों में सुस्त हो रहे शरीर में ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने में मदद करते हैं. वैसे गर्म दूध के साथ इनका सेवन करना अचछा माना जाता है.

आहार में शामिल करें घी –

कड़ाके की ठंड हमारी त्वचा और बालों को बेजान और सूखा बना देती है. इसलिए शरीर को भीतर से पोषण देने के लिए उपाय करना जरूरी है. खुद को भीतर से पोषित रखने के लिए ठंड के दिनों में रोजाना घी का अच्छा सेवन करना चाहिए. घी इस मौसम में आपके शरीर को गर्माहट देता है. इसलिए हो सके, तो इसे अपने आहार में जरूर शामिल करें.

यहां बताए गए खाद्य पदार्थों के सेवन न केवल शरीर में पोषक तत्वों की कमी दूर होगी, बल्कि अपनी सेहत को अनदेखा करने वाली महिलाएं बिना बीमार पड़े सर्दियों का आनंद ले पाएंगी.

खोखले चमत्कार: कैसे दूर हुआ दादी का अंधविश्वास

लेखक- ललित डबराल

संजू की दादी का मन सुबह से ही उखड़ा हुआ था. कारण यह था कि जब वे मंदिर से पूजा कर के लौट रही थीं तो चौराहे पर उन का पैर एक बुझे हुए दीए पर पड़ गया था. पास ही फूल, चावल, काली दाल, काले तिल तथा सिंदूर बिखरा हुआ था. वे डर गईं और अपशकुन मनाती हुई अपने घर आ पहुंचीं .

घर पर संजू अकेला बैठा हुआ पढ़ रहा था. उस की मां को बाहर काम था. वे घर से जा चुकी थीं. पिताजी औफिस के काम से शहर से बाहर चले गए थे. उन्हें 2 दिन बाद लौटना था.

दादी के बड़बड़ाने से संजू चुप न रह सका. वह अपनी दादी से पूछ बैठा, ‘‘दादी, क्या बात हुई? क्यों सुबहसुबह परेशान हो रही हो?’’

अंधविश्वासी दादी ने सोचा, ‘संजू मुझे टोक रहा है.’ इसलिए वे उसे डांटती हुई फौरन बोलीं, ‘‘संजू, तू भी कैसी बातें करता है. बड़ा अपशकुन हो गया. किसी ने चौराहे पर टोनाटोटका कर रखा था. उसी में मेरा पैर पड़ गया. उस वक्त से मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

संजू बोला, ‘‘दादी, अगर ऐसा है तो मैं डाक्टर को बुला लाता हूं.’’  पर दादी अकड़ गईं और बोलीं, ‘‘तेरा भेजा तो नहीं फिर गया कहीं. ऐसे टोनेटोटके में डाक्टर को बुलाया जाता है या ओझा को. रहने दे, मैं अपनेआप संभाल लूंगी. वैसे भी आज सारा दिन बुरा निकलेगा.’’

संजू ने उन की बात पर कोई ध्यान न दिया और अपना होमवर्क करने लगा. संजू स्कूल चला गया तो दादी घर पर अकेली रह गईं. पर दादी का मन बेचैन था. उन्हें लगा कि कहीं किसी के साथ कोई अप्रिय घटना न घट जाए, क्योंकि जब से चौराहे में टोनेटोटके पर उन का पैर पड़ा था, वे अपशकुन की आशंका से कांप रही थीं. तभी कुरियर वाला आया और उन से हस्ताक्षर करवा उन्हें एक लिफाफा थमा कर चला गया. अब तो उन का दिल ही बैठ गया. लिफाफे में एक पत्र था जो अंगरेजी में था और अंगरेजी वे जानती नहीं थीं. उन्हें लगा जरूर इस में कोई बुरी खबर होगी.

इसी डर से उन्होंने वह पत्र किसी से नहीं पढ़वाया. दिन भर परेशान रहीं कि कहीं इस में कोई बुरी खबर न हो. शाम को जब संजू और उस की मां घर लौटे, तब दादी कांपते हाथों से संजू की मां जानकी को पत्र देती हुई बोलीं, ‘‘बहू, जरूर कोई बुरी खबर है. अपशकुन तो सुबह ही हो गया था. अब पढ़ो, यह पत्र कहां से आया है और इस में क्या लिखा है? जरूर कोई संकट आने वाला है. हाय, अब क्या होगा?’’

जानकी ने तार खोल कर पढ़ा लिखा था, ‘‘बधाई, संजय ने छात्रवृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है.’’

पढ़ कर जानकी खिलखिला उठीं और अपनी सास से बोलीं, ‘‘मांजी, आप बेकार घबरा रही थीं, खबर बुरी नहीं बल्कि अच्छी है. हमारे संजू को छात्रवृत्ति मिलेगी. उस ने जो परीक्षा दी थी, उत्तीर्ण कर ली.’’ तब दादी का चेहरा देखने लायक था. किंतु दादी अंधविश्वास पर टिकी रहीं. वे रोज मंदिर जाया करती थीं. एक रोज सुबहसुबह दादी मंदिर गईं. थाली में नारियल, केला और लड्डू ले गईं. थाली मूर्ति के सामने ही रख दी और आंखें बंद कर के मन ही मन जाप करने लगीं. इसी बीच वहीं पेड़ पर बैठा एक बंदर पेड़ से उतरा और चुपके से केला व लड्डू ले कर पेड़ पर चढ़ गया.

दादी ने जब आंखें खोलीं और थाली में से केला व लड्डू गायब पाया तो खुश हो कर अपनेआप से बोलीं, ‘‘प्रभु, चमत्कार हो गया. आज आप ने स्वयं ही भोजन ग्रहण कर लिया.’’ वे खुशीखुशी मंदिर से घर लौट आईं. घर पर जब उन्हें सब ने खुश देखा तो संजू कहने लगा, ‘‘दादी, आज तो लगता है कोई वरदान मिल गया?’’

दादी प्रसन्न थी, बोलीं, ‘‘और नहीं तो क्या?’’

फिर दादी ने सारा किस्सा कह सुनाया. संजू खिलखिला कर हंस पड़ा तथा यह कहता हुआ बाहर दौड़ गया, ‘‘इस महल्ले में चोरउचक्कों की भी कमी नहीं है. फिर पिछले कुछ समय से यहां काफी बंदर आए हुए हैं लगता है प्रसाद कोई बंदर ही ले गया होगा.’’ सुन कर दादी ने मुंह बिचकाया. फिर सोचने लगीं कि आज शुभ दिन है. आज मेरी मनौती पूरी हुई. मैं चाहती थी कि मेरा बुढ़ापा सुखचैन से बीते. रोज की तरह उस शाम को दादी टहलने निकल गईं. वे पार्क में जाने के लिए सड़क के किनारे चली जा रही थीं. साथ ही सुबह हुए चमत्कार के बारे में सोच रही थीं.

तभी एक किशोर स्कूटी सीखता हुआ आया और दादी को धकियाता हुआ आगे बढ़ गया. दादी को पता ही नहीं चला, वे लड़खड़ा कर हाथों के बल सड़क पर जा गिरीं. हड़बड़ाहट में उठ तो गईं, पर घर आतेआते उन के दाएं हाथ में सूजन आ गई. वे दर्द के मारे कराहने लगीं. उन्हें फौरन डाक्टर को दिखाया गया. एक्सरे करने पर पता चला कि कलाई की हड्डी चटक गई है.

एक माह के लिए प्लास्टर बंध गया. दादी ‘हाय मर गई, हाय मर गई’ की दुहाई देती रहीं.संजू चुटकी लेता हुआ दादी से बोला, ‘‘दादी, यही है वह चमत्कार, जिस के लिए आप सुबह से ही खुश हो रही थीं. तुम्हारी दोनों बातें गलत निकलीं. इसलिए भविष्य में ऐसे अंधविश्वासों के चक्कर में मत पड़ना.’’  दादी रोंआसी हो कर बोलीं, ‘‘हां बेटा, तुम ठीक कहते हो. हम ने तो सारी जिंदगी ही ऐसे भ्रमों में बिता दी पर मैं अब कभी शेष जीवन में इन खोखले चमत्कारों के जाल में नहीं पडूंगी.’’

मैं जानना चाहती हूं कि क्या मैं अपने Future पति के साथ खुश रह पाऊंगी या नहीं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 26 वर्षीय युवती हूं. एक युवक से प्रेम करती थी. 6 वर्ष तक हमारा प्रेम संबंध चला. हम ने कई बार शारीरिक संबंध भी बनाए पर मैं कभी गर्भवती नहीं हुई जबकि हम कोई एहतिय तक नहीं बरतते थे. मेरे बौयफ्रैंड से मेरा ब्रेकअप हो चुका है. अब मेरे घर वाले मेरी शादी के लिए प्रयास कर रहे हैं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या मैं अपने भावी पति को यौन सुख दे पाऊंगी या नहीं और क्या मैं भविष्य में मां बन पाऊंगी या नहीं?

जवाब

यदि आप अपने बौयफ्रैंड से संबंध बनाने के दौरान कभी गर्भवती नहीं हुईं तो इस का अभिप्राय यह नहीं कि आप में कोई कमी है. इसलिए अपने मन में किसी तरह का पूर्वाग्रह न पालें और विवाह कर लें.

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कामुकता का राज

मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

सैक्स जीवन को बेहतर बनाने और रिश्ते में प्यार कायम रखने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? रिश्ते में प्रगाढ़ता कैसे आएगी? हमें कोई बहुत अच्छा क्यों लगने लगता है? किसी की धूर्तता या दीवानगी के पीछे सैक्स की कामुकता के बदलाव का राज क्या है? खुश रहने के लिए कितना सैक्स जरूरी है? सैक्स में फ्लर्ट किस हद तक किया जाना चाहिए?

इन सवालों के अलावा सब से चिंताजनक सवाल अंग के साइज और शीघ्र स्खलन की समस्या को ले कर भी होता है. इन सारे सवालों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा है, जबकि सामान्य पुरुष उन से अनजान बने रह कर भावनात्मक स्तर पर कमजोर बन जाता है या फिर आत्मविश्वास खो बैठता है.

वैज्ञानिक शोध : संसर्ग का संघर्ष

हाल में किए गए वैज्ञानिक शोध के अनुसार, यौन सुख का चरमोत्कर्ष पुरुषों के दिमाग में तय होता है, जबकि महिलाओं के लिए सैक्स के दौरान विविध तरीके माने रखते हैं. चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक बताते हैं कि पुरुष गलत तरीके के यौन संबंध को खुद नियंत्रित कर सकता है, जो उस की शारीरिक संरचना पर निर्भर है.

पुरुषों के लिए बेहतर यौनानंद और सहज यौन संबंध उस के यौनांग, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर निर्भर करता है. पुरुषों में यदि रीढ़ की हड्डी की चोट या न्यूरोट्रांसमीटर सुखद यौन प्रक्रिया में बाधक बन सकता है, तो महिलाओं के लिए जननांग की दीवारें इस के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं और कामोत्तेजना में बाधक बन सकती हैं.

शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक पुरुष में संसर्ग सुख तक पहुंचने की क्षमता काफी हद तक उस के अपने शरीर की संरचना पर निर्भर है, जिस का नियंत्रण आसानी से नहीं हो पाता है. इस के लिए पुरुषों में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और शिश्न जिम्मेदार होते हैं.

मैडिसन के इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल और मायो क्सीविक स्थित वैज्ञानिकों ने सैक्सुअल और न्यूरो एनाटोमी से संबंधित संसर्ग के प्रचलित तथ्यों का अध्ययन कर विश्लेषण किया. विश्लेषण के अनुसार,

डा. सीगल बताते हैं, ‘‘पुरुष के अंग के आकार के विपरीत किसी भी स्वस्थ पुरुष में संसर्ग करने की क्षमता काफी हद तक उस के तंत्रिकातंत्र पर निर्भर है. शरीर को नियंत्रित करने वाले तंत्रिकातंत्र और सहानुभूतिक तंत्रिकातंत्र के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए, जो शरीर के भीतर जूझने या स्वच्छंद होने की स्थिति को नियंत्रित करता है.’’

डा. सीगल अपने शोध के आधार पर बताते हैं कि शारीरिक संबंध के दौरान संवेदना मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी द्वारा पहुंचती है और फिर इस के दूसरे छोर को संकेत मिलता है कि आगे क्या करना है. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तेजना 2 तथ्यों पर निर्भर है.

एक मनोवैज्ञानिक और दूसरी शारीरिक, जिस में शिश्न की उत्तेजना प्रत्यक्ष तौर पर बनती है.

इन 2 कारणों में से सामान्य मनोवैज्ञानिक तर्क की मान्यता में पूरी सचाई नहीं है. डा. सीगल का कहना है कि रीढ़ की हड्डी की चोट से शिश्न की उत्तेजना में कमी आने से संसर्ग सुख की प्राप्ति प्रभावित हो जाती है. इसी तरह से मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक समस्याओं में अवसाद आदि से तंत्रिका रसायन में बदलाव आने से संसर्ग और अधिक असहज या कष्टप्रद बन जाता है.

स्त्री की यौन तृप्ति

कोई युवती कितनी कामुक या सैक्स के प्रति उन्मादी हो सकती है? इस के लिए बड़ा सवाल यह है कि उसे यौन तृप्ति किस हद तक कितने समय में मिल पाती है? विश्लेषणों के अनुसार, शोधकर्ता वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ऐसे लोगों को चिकित्सकीय सहायता मिल सकती है और वे सुखद यौन संबंध में बाधक बनने वाली बहुचर्चित भ्रांतियों से बच सकते हैं.

इस शोध में यह भी पाया गया है कि युवतियों के लिए यौन तृप्ति का अनुभव कहीं अधिक जटिल समस्या है. इस बारे में पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप के जरिए युवतियों के अंग की दीवारों में होने वाले बदलावों और असंगत प्रभाव बनने वाली स्थिति का पता लगाया है.

वैज्ञानिकों ने एमआरआई स्कैन के जरिए महिला के दिमाग में संसर्ग के दौरान की  सक्रियता मालूम कर उत्तेजना की समस्या से जूझने वाले पुरुषों को सुझाव दिया है कि वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं. उन्हें सैक्सुअल समस्याओं के निबटारे के लिए डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए, न कि नीम हकीम की सलाह या सुनीसुनाई बातों को महत्त्व देना चाहिए. इस अध्ययन को जर्नल औफ क्लीनिकल एनाटौमी में प्रकाशित किया गया है.

महत्त्वपूर्ण है संसर्ग की शैली

डा. सीगल के अनुसार, महिलाओं के लिए संसर्ग के सिलसिले में अपनाई गई पोजिशन महत्त्वपूर्ण है. विभिन्न सैक्सुअल पोजिशंस के संदर्भ में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में भी पाया गया है कि स्त्री के यौनांग की दीवारों को विभिन्न तरीके से उत्तेजित किया जा सकता है.

आज की भागदौड़भरी जीवनशैली में मानसिक तनाव के साथसाथ शारीरिक अस्वस्थता भी सैक्स जीवन को प्रभावित कर देती है. ऐसे में कोई पुरुष चाहे तो अपनी सैक्स संबंधी समस्याओं को डाक्टरी सलाह के जरिए दूर कर सकता है.

कठिनाई यह है कि ऐसे डाक्टर कम होते हैं और जो प्रचार करते हैं वे दवाएं बेचने के इच्छुक होते हैं, सलाह देने में कम. वैसे, बड़े अस्पतालों में स्किन व वीडी रोग (वैस्कुलर डिजीज) विभाग होता है. अगर कोई युगल किसी सैक्स समस्या से जूझ रहा है तो वह इस विभाग में डाक्टर को दिखा कर सलाह ले सकता है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर 8588843415 पर  भेजें. 

या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अंधेरे की छाया: बुढ़ापे में बेटे ने छोड़ा जब महेंद्र और प्रमिला का साथ

लेखक-  गुलजार राजस्थानी

महेंद्र सिंह ने अपनी पत्नी प्रमिला के कमरे में झांक कर देखा. अंदर पासपड़ोस की 5-6 महिलाएं बैठी थीं. वे न केवल प्रमिला का हालचाल पूछने आई थीं बल्कि उस से इसलिए भी बतिया रही थीं कि उस की दिलजोई होती रहे. जब से प्रमिला फालिज की शिकार हुई थी, महल्ले के जानपहचान वालों ने अपना यह रोज का क्रम बना लिया था कि 2-4 की टोलियों में सुबह से शाम तक उस का मन बहलाने के लिए उस के पास मौजूद रहते थे. पुरुष नीचे बैठक में महेंद्र सिंह के पास बैठ जाते थे औैर औरतें ऊपर प्रमिला के कमरे में फर्श पर बिछी दरी पर विराजमान रहती थीं.

वे लोग प्रमिला एवं महेंद्र की प्रत्येक छोटीबड़ी जरूरतों का ध्यान रखते थे. महेंद्र को पिछले 3-4 महीनों के दौरान उसे कुछ कहना या मांगना नहीं पड़ा था. आसपास मौजूद लोग मुंह से निकलने से पहले ही उस की जरूरत का एहसास कर लेते थे और तुरंत इस तरह उस की पूर्ति करते थे मानो वे उस घर के ही लोग हों. उस समय भी 2 औरतें प्रमिला की सेवाटहल में लगी थीं. एक स्टोव पर पानी गरम कर रही थी ताकि उसे रबर की थैली में भर कर प्रमिला के सुन्न अंगों का सेंक किया जा सके. दूसरी औरत प्रमिला के सुन्न हुए अंगों की मालिश कर रही थी ताकि पुट्ठों की अकड़न व पीड़ा कम हो. कमरे में झांकने से पहले महेंद्र सिंह ने सुना था कि प्रमिला वहां बैठी महिलाओं से कह रही थी, ‘‘तुम देखना, मेरा गौरव मेरी बीमारी का पत्र मिलते ही दौड़ादौड़ा चला आएगा. लाठी मारे से पानी जुदा थोड़े ही होता है. मां का दर्द उसे नहीं आएगा तो किस को आएगा? मेरी यह दशा देख कर वह मुझे पीठ पर उठाएउठाए फिरेगा. तुरंत मुझे दिल्ली ले जाएगा और बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा.’’ महेंद्र के कमरे में घुसते ही वहां मौन छा गया था. कोई महिला दबी जबान से बोली थी, ‘‘चलो, खिसको यहां से निठल्लियो, मुंशीजी चाची से कुछ जरूरी बातें करने आए हैं.’’ देखतेदेखते वहां बैठी स्त्रियां उठ कर कमरे के दूसरे दरवाजे से निकल गईं. महेंद्र्र ऐेनक ठीक करता हुआ प्रमिला के पलंग के समीप पहुंचा. उस ने बिस्तर पर लेटी हुई प्रमिला को ध्यान से देखा.

शरीर के पूरे बाएं भाग पर पक्षाघात का असर हुआ था. मुंह पर भी हलका सा टेढ़ापन आ गया था और बोलने में जीभ लड़खड़ाने लगी थी. महेंद्र प्रमिला से आंखें चार होते ही जबरदस्ती मुसकराया था और पूछा था, ‘‘नए इंजेक्शनों से कोई फर्क पड़ा?’’ ‘‘हां जी, दर्द बहुत कम हो गया है,’’ प्रमिला ने लड़खड़ाती आवाज में जवाब दिया था और बाएं हाथ को थोड़ा उठा कर बताया था, ‘‘यह देखो, अब तो मैं हाथ को थोड़ा हरकत दे सकती हूं. पहले तो दर्द के मारे जोर ही नहीं दे पाती थी.’’ ‘‘और टांग?’’ ‘‘यह तो बिलकुल पथरा गई है. जाने कब तक मैं यों ही अपंगों की तरह पलंग पर पड़ी रहूंगी.’’ ‘‘बीमारी आती हाथी की चाल से है औैर जाती चींटी की चाल से है. देखो, 3 महीने के इलाज से कितना मामूली अंतर आया है, लेकिन अब मैं तुम्हारा और इलाज नहीं करा सकता. सारा पैसा खत्म हो चुका है. तमाम जेवर भी ठिकाने लग गए हैं. बस, 50 रुपए और तुम्हारे 6 तोले के कंगन और चूडि़यां बची हैं.’’ ‘‘हां,’’ प्रमिला ने लंबी सांस ली, ‘‘तुम तो पहले ही बहुत सारा रुपया गौरव और उस के बच्चों के लिए यह घर बनाने में लगा चुके थे. पर वे नहीं आए. अब मेरी बीमारी की सुन कर तो आएंगे. फिर मेरा गौरव रुपयों का ढेर…’’ ‘‘नहीं, मैं और इंतजार नहीं कर सकता,’’ महेंद्र बाहर जाते हुए बोला, ‘‘तुम इंतजार कर लो अपने बेटे का. मैं डा. बिहारी के पास जा रहा हूं, कंपाउंडर की नौकरी के लिए…’’ ‘‘तुम करोगे वही जो तुम्हारे मन में होगा,’’ प्रमिला चिढ़ कर बोली, ‘‘आने दो गौरव को, एक मिनट में छुड़वा देगा वह तुम्हारी नौकरी.’’ ‘‘आने तो दें,’’ महेंद्र बाहर निकल कर जोर से बोला, ‘‘लो, सलमा बाजी और उन की बहुएं आ गई हैं तुम्हारी सेवा को.’’ ‘‘हांहां तुम जाओ, मेरी सेवा करने वाले बहुत हैं यहां. पूरा महल्ला क्या, पूरा कसबा मेरा परिवार है. अच्छी थी तो मैं इन सब के घरों पर जा कर सिलाईकढ़ाई सिखाती थी. कितना आनंद आता था दूसरों की सेवा में. ऐसा सुख तो अपनी संतान की सेवा में भी नहीं मिलता था.’’ ‘‘हां, प्रमिला भाभी,’’ सलमा ने अपनी दोनों बहुओं के साथ कमरे में आ कर आदाब किया और प्रमिला की बात के जवाब में बोली, ‘‘तुम से ज्यादा मुंशीजी को मजा आता था दूसरों की खिदमत में.

अपनी दवाओं की दुकान लुटा दी दीनदुखियों की सेवा में. डाक्टरों का धंधा चौपट कर रखा था इन्होंने. कहते थे गौरव हजारों रुपया महीना कमाता है, अब मुझे दुकान की क्या जरूरत है. बस, गरीबों की खिदमत के लिए ही खोल रखी है. वरना घर बैठ कर आराम करने के दिन हैं.’’ ‘‘ठीक कहती हो, बाजी,’’ प्रमिला का कलेजा फटने लगा, ‘‘क्या दिन थे वे भी. कैसा सुखी परिवार था हमारा.’’ कभी महेंद्र और प्रमिला का परिवार बहुत सुखी था. दुख तो जैसे उन लोगों ने देखा ही नहीं था. जहां आज शानदार गौरव निवास खड़ा है वहां कभी 2 कमरों का एक कच्चापक्का घर था. महेंद्र का परिवार छोटा सा था. पतिपत्नी और इकलौता बेटा गौरव. महेंद्र की स्टेशन रोड पर दवाओं की दुकान थी, जिस से अच्छी आय थी. उसी आय से उन्होंने गौरव को उच्च शिक्षादीक्षा दिला कर इस योग्य बनाया था कि आज वह दिल्ली में मुख्य इंजीनियर है. अशोक विहार में उस की लाखों की कोठी है. वह देश का हाकी का जानामाना खिलाड़ी भी तो था. बड़ेबडे़ लोगों तक उस की पहुंच थी और आएदिन देश की विख्यात पत्रपत्रिकाओं में उस के चर्चे होते रहते थे. गौरव ने दिल्ली में नौकरी मिलने के साथ ही अपनी एक प्रशंसक शीला से शादी कर ली थी. महेंद्र व प्रमिला ने सहर्ष खुद दिल्ली जा कर अपने हाथों से यह कार्य संपन्न किया था. शीला न केवल बहुत सुंदर थी बल्कि बहुत धनवान एवं कुलीन घराने से थी. बस, यहीं वे चूक गए. चूंकि शादी गौरव एवं शीला की सहमति से हुई थी, इसलिए वे महेंद्र और प्रमिला को अपनी हर बात से अलग रखने लगे. यहां तक कि शीला शादी के बाद सिर्फ एक बार अपनी ससुराल नसीराबाद आई थी.

फिर वह उन्हें गंवार और उन के घर को जानवरों के रहने का तबेला कह कर दिल्ली चली गई थी. पिछले 15 वर्षों में उस ने कभी पलट कर नहीं झांका था. महेंद्र और प्रमिला पहले तो खुद भी ख्ंिचेखिंचे रहे थे, लेकिन जब उन के पोता और पोती शिखा औैर सुदीप हो गए तो वे खुद को न रोक सके. किसी न किसी बहाने वे बहूबेटे के पास दिल्ली पहुंच जाते. गौरव और शीला उन का स्वागत करते, उन्हें पूरा मानसम्मान देते. लेकिन 2-4 दिन बाद वे अपने बड़प्पन के अधिकारों का प्रयोग शुरू कर देते, उन के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर देते. वे उन्हें अपने फैसले मानने और उन की इच्छानुसार चलने पर विवश करते. यहीं बात बिगड़ जाती. संबंध बोझ लगने लगते और छोटीछोटी बातों को ले कर कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि महेंद्र और प्रमिला को वहां से भागना पड़ जाता. प्रमिला और महेंद्र आखिरी बार शीला के पिता की मृत्यु पर दिल्ली गए थे. तब शिखा और सुदीप क्रमश: 10 और 8 वर्ष के हो चुके थे.

उन के मन में हर बात को जानने और समझने की जिज्ञासा थी. उन्होंने दादादादी से बारबार आग्रह किया था कि वे उन्हें अपने कसबे ले जाएं ताकि वे वहां का जीवन व रहनसहन देख सकें. गौरव के दिल में मांबाप के लिए बहुत प्यार व आदर था. उस ने घर ठीक कराने के लिए शीला से छिपा कर मां को 10 हजार रुपए दे दिए ताकि शीला को बच्चों को ले कर वहां जाने में कोई आपत्ति न हो. परंतु प्रमिला की असावधानी से बात खुल गई. सासबहू में महाभारत छिड़ गया और एकदूसरे की शक्ल न देखने की सौगंध खा ली गई. परंतु नसीराबाद पहुंचते ही प्रमिला का क्रोध शांत हो गया. वह पोतापोती और गौरव को नसीराबाद लाने के लिए मकान बनवाने लगी. गृहप्रवेश के दिन वे नहीं आए तो प्रमिला को ऐसा दुख पहुंचा कि वह पक्षाघात का शिकार हो गईर् औैर अब प्रमिला को चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दीख रहा था.

महेंद्र डा. बिहारी के यहां से लौटा तो अंधेरा हो चुका था. पर घर का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया. प्रमिला का कमरा अड़ोसपड़ोस के लोगों से भरा हुआ था. प्रमिला अपने पलंग पर रखी नोटों की गड्डियां उठाउठा कर एक अजनबी आदमी पर फेंकती हुई चीख रही थी, ‘‘ले जाओ इन को मेरे पास से और उस से कहना, न मुझे इन की जरूरत है, न उस की.’’ आदमी नोट उठा कर बौखलाया हुआ बाहर आ गया था. उसे भीतर खड़े लोगों ने जबरदस्ती बाहर धकेल दिया था. कमरे से कईकई तरह की आवाजें आ रही थीं. ‘‘जाओ, भाई साहब, जाओ. देखते नहीं यह कितनी बीमार हैं.’’ ‘‘रक्तचाप बढ़ गया तो फिर कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. जल्दी निकालो इन्हें यहां से.’’ और 2 लड़के उस आदमी को बाजुओं से पकड़ कर जबरदस्ती बाहर ले गए. वह अजनबी महेंद्र से टकरताटकराता बचा था. महेंद्र ने भी गुस्से में पूछा था, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘मैं गौरव का निजी सहायक हूं, जगदीश. साहब ने ये 50 हजार रुपए भेजे हैं और यह पत्र.’’ महेंद्र ने नोटोें को तो नहीं छुआ, लेकिन जगदीश के हाथ से पत्र ले लिया. पत्र को पहले ही खोला जा चुका था और शायद पढ़ा भी जा चुका था. महेंद्र ने तत्काल फटे लिफाफे से पत्र निकाल कर खोला. पत्र गौरव ने लिखा था: पूज्य पिताजी एवं माताजी, सादर प्रणाम, आप का पत्र मिला. माताजी के बारे में पढ़ कर बहुत दुख हुआ. मन तो करता है कि उड़ कर आ जाऊं, मगर मजबूरी है. शीला और बच्चे इसलिए नहीं आ सकते, क्योंकि वे परीक्षा की तैयारी में लगे हैं. मैं एशियाड के कारण इतना व्यस्त हूं कि दम लेने की भी फुरसत नहीं है. बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर ये चंद पंक्तियां लिख रहा हूं. मैं समय मिलते ही आऊंगा. फिलहाल अपने सहायक को 50 हजार रुपए दे कर भेज रहा हूं ताकि मां का उचित इलाज हो सके. आप ने लिखा है कि आप ने हर तरफ से पैसा समेट कर नए मकान के निर्माण में लगा दिया है, जो बचा मां की बीमारी खा गईर्.

यह आप ने ठीक नहीं किया. बेकार मकान बनवाया, हम लोगों के लिए वह किसी काम का नहीं है. हम कभी नसीराबाद आ कर नहीं बसेंगे. मां की बीमारी पर भी व्यर्थ खर्च किया. पक्षाघात के रोग का कोई इलाज नहीं है. मैं ने कईर् विशेषज्ञ डाक्टरों से पूछा है. उन सब का यही कहना है मां को अधिकाधिक आराम दें. यही इलाज है इस रोग का. मां को दिल्ली लाने की भूल तो कभी न करें. यात्रा उन के लिए बहुत कष्टदायक होगी. रक्तचाप बढ़ गया तो दूसरा आक्रमण जानलेवा सिद्ध होगा. एक्यूपंक्चर विधि से भी इस रोग में कोई लाभ नहीं होता. सब धोखा है… महेंद्र इस से आगे न पढ़ सका. उस का मन हुआ कि उस पत्र को लाने वाले के मुंह पर दे मारे. लेकिन उस में उस का क्या दोष था. उस ने बड़ी कठिनाई से अपने को संभाला और जगदीश को पत्र लौटाते हुए कहा, ‘‘आप उस से जा कर वही कहिए जो उसे जन्म देने वाली ने कहा है. मेरी तरफ से इतना और जोड़ दीजिए कि हम तो उस के लिए मरे हुए ही थे, आज से वह हमारे लिए मर गया.

काश, वह पैदा होते ही मर जाता.’’ जगदीश सिर झुका कर चला गया. महेंद्र प्रमिला के कमरे में घुसा. उस ने देखा कि वहां सब लोग मुसकरा रहे थे. प्रमिला की आंखें भीग रही थीं, लेकिन उस के होंठ बहुत दिनों के बाद हंसना चाह रहे थे. महेंद्र ने प्रमिला के पास जाते हुए कहा, ‘‘तुम ने बिलकुल ठीक किया, पम्मी.’’ तभी बिजली चली गई. कमरे में अंधेरा छा गया. प्रमिला ने देखा कि अंधेरे में खड़े लोगों की परछाइयां उस के समीप आती जा रही हैं. कोई चिल्लाया, ‘‘अरे, कोई मोमबत्ती जलाओ.’’ ‘‘नहीं, कमरे में अंधेरा रहने दो,’’ प्रमिला तत्काल चीख उठी, ‘‘यह अंधेरा मुझे अच्छा लग रहा है. कहते हैं कि अंधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है. मगर मेरे चारों तरफ फैले अंधेरे में तो साए ही साए हैं. मैं हाथ बढ़ा कर इन सायों का सहारा ले सकती हूं,’’ प्रमिला ने पास खड़े लोगों को छूना शुरू किया, ‘‘अब मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता, अंधेरे में भी कुछ साए हैं जो धोखा नहीं हैं, ये साए नहीं हैं बल्कि मेरे अपने हैं, मेरे असली संबंधी, मेरा सहारा…यह तुम हो न जी?’’ ‘‘हां, पम्मी, यह मैं हूं,’’ महेंद्र ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारे अंधेरों का भी साथी, तुम्हारा साया.’’ ‘‘तुम नौकरी करना डा. बिहारी की. रोगियों की सेवा करना. अपनी संतान से भी ज्यादा सुख मिलता है परोपकार में. मुझे संभालने वाले यहां मेरे अपने बहुत हैं. मैं निचली मंजिल पर सिलाई स्कूल खोल लूंगी, मेरे कंगन औैर चूडि़यां बेच कर सिलाई की कुछ मशीनें ले आना औैर पहियों वाली एक कुरसी ला देना.’’ ‘‘पम्मी.’’ ‘‘हां जी, मेरा एक हाथ तो चलता है. ऊपर की मंजिल किराए पर उठा देना. वह पैसा भी मैं अपने इन परिवार वालों की भलाई पर खर्च करना चाहती हूं. हमारे मरने के बाद हमारा जो कुछ है, इन्हें ही तो मिलेगा.’’ एकाएक बिजली आ गई. कमरे में उजाला फैल गया. सब के साथ महेंद्र ने देखा था कि प्रमिला अपने एक हाथ पर जोर लगा कर उठ बैठी थी. इस से पहले वह सहारा देने पर ही बैठ पाती थी. महेंद्र ने खुशी से छलकती आवाज में कहा, ‘‘पम्पी, तुम तो बिना सहारे के उठ बैठी हो.’’ ‘‘हां, इनसान को झूठे सहारे ही बेसहारा करते हैं.

मैं इस आशा में पड़ी रही कि कोई आएगा, मुझे अपनी पीठ पर उठा कर ले जाएगा औैर दुनिया के बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा. मेरा यह झूठा सहारा खत्म हो चुका है. मुझे सच्चा सहारा मिल चुका है…अपनी हिम्मत का सहारा. फिर मुझे किस बात की कमी है? मेरा इतना बड़ा परिवार जो खड़ा है यहां, जो जरा से पुकारने पर दौड़ कर मेरे चारों ओर इकट्ठा हो जाता है.’’ यह सुन कर महेंद्र की छलछलाई आंखें बरस पड़ीं. उसे रोता देख कर वहां खड़े लोगों की आंखें भी गीली होने लगीं. महेंद्र आंसुओं को पोंछते हुए सोच रहा था, ‘ये कैसे दुख हैं, जो बूंद बन कर मन की सीप में टपकते हैं और प्यार व त्याग की गरमी पा कर खुशी के मोती बन जाते हैं.

दोस्ती की आड़ में न उठाएं फायदा, ‘खुद को इस तरह रखें सेफ’

लेखक- श्रीप्रकाश शर्मा

अंतरा ने जब अपने पिता के ट्रांसफर के कारण नए शहर के एक नए स्कूल में दाखिला लिया तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि उस की खूबसूरती के कारण स्कूल के अधिकांश युवक उस से दोस्ती करना चाहते थे. जिस की वजह से कभी कोई उसे गिफ्ट देता तो कोई चौकलेट. किंतु शहरी लाइफस्टाइल और विपरीतलिंगी दोस्ती के गहरे अर्थों से अनजान अंतरा को यह रहस्य बिलकुल भी पता नहीं था कि इस के पीछे हकीकत क्या है.

शुरू-शुरू में तो अंतरा को यह सब अच्छा लगता था, क्योंकि उस से दोस्ती करने वालों और उसे चाहने वालों की लाइन जो लगी रहती थी, लेकिन अंतरा वह सब नहीं देख पा रही थी जो असल में इस दोस्ती के पीछे छिपा हुआ था. उस के लिए ऐसी दोस्ती का मतलब केवल बाहर होटल या रेस्तरां में लंच तथा डिनर करना, स्कूल कैंटीन और कौफी हाउस में कोल्डड्रिंक ऐंजौय करना और चौकलेट्स शेयर करना तथा दोस्तों की बर्थडे पार्टियों में केक खाना और मस्ती के साथ नाचगाना करने के रूप में सीमित था.

इन सब पार्टियों के कारण अंतरा अकसर स्कूल से अपने घर बड़ी देर से लौटती थी. उस के मम्मीपापा भी ज्यादा टोकाटाकी नहीं करते थे. इसलिए अंतरा खुल कर इन पलों को जी रही थी, लेकिन अंतरा के साथ एक दिन जो घटा उस की उस ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी

संयोग से एक दिन गौरव का बर्थडे था, जिसे अंतरा अपना सब से अच्छा दोस्त समझती थी, उस दिन अंतरा स्कूल के बाद अन्य दोस्तों के साथ गौरव का बर्थडे सैलिब्रेट करने के लिए शहर से कुछ दूर स्थित गौरव के फार्म हाउस गई. वहां केक, मिठाइयों और चौकलेट्स के साथसाथ शराब और बियर की बोतलें भी खुलीं. अंतरा इस से बच न सकी. नशे में बेखबर अंतरा वह सबकुछ कर रही थी, जिस का उसे जरा भी अंदाजा नहीं था.

नशे की हालत में धीरेधीरे उस के दोस्तों ने अंतरा के साथ छेड़खानी शुरू कर दी. पार्र्टी में अंतरा 10-12 दोस्तों के बीच अकेली लड़की थी. अपने बदन पर अपने दोस्तों की छुअन की सिहरन को अंतरा खूब महसूस कर रही थी, लेकिन जब अंतरा को लगा कि उस के साथ जबरदस्ती की जा रही है तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. ऐसे में अपने दोस्तों से उस ने छोड़ने की मिन्नतें कीं, लेकिन वे सभी अंतरा की खूबसूरती के नशे में अंधे हो चुके थे.

अंतरा को जब लगा कि वे ऐसे नहीं मानेंगे तो वह जोरजोर से चिल्लाने लगी और पास में रखी खाली बोतलें खिड़कियों के शीशे पर मारने लगी. कहीं लोग इकट्ठे न हो जाएं इस भय से अंतरा के दोस्तों ने उसे छोड़ दिया. इस जाल से निकलने के बाद अंतरा को नए अनुभव के साथ नई जिंदगी मिली थी, जो उस के लिए बड़ी सीख थी.

सच पूछिए तो अंतरा जैसी निर्दोष और मासूम युवती के जीवन की व्यथा की यह कहानी एक लेखक की कोरी कल्पना हो सकती है, लेकिन वास्तविक दुनिया में इस तरह की सच्ची और कड़वी कहानियों से प्रिंट मीडिया के पेज और टैलीविजन के चैनल्स भरे रहते हैं. यह भी सच है कि इस तरह की घटना का शिकार होने वाली अंतरा वास्तविक जीवन और मौडर्न दुनिया में अकेली नहीं है. अंतरा जैसी कुछ युवतियां परिवार और समाज के भय से या तो आत्महत्या कर लेती हैं या फिर अपने पर किए गए जुल्मों को चुपचाप सह लेती हैं.

अहम प्रश्न यह उठता है कि जिस दोस्ती को मानव जीवन का अनमोल उपहार माना जाता है, आखिर उसी पवित्र रिश्ते को कलंकित करने की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए कौन जिम्मेदार होता है? साइकोलौजी के जनक कहे जाने वाले सिगमंड फ्रायड का यह मानना था कि मानो जीवन की हरेक ऐक्टिविटी केवल 2 उद्देश्यों से प्रभावित होती है, प्रसिद्धि पाने की लालसा और सैक्स. इस तरह सैक्स को मानव जीवन में एक कुदरती आवश्यकता के रूप में शुमार किया जाता है.

सच पूछिए तो किसी युवक और युवती के बीच दोस्ती संबंधों की मर्यादा और उस की पवित्रता का वहन करना कोईर् आसान काम नहीं होता. दोस्ती का यह रिश्ता जिस नाजुक डोर से बंधा होता है वह तनमन की हलकी सी गरमी से भी दरक उठता है. लिहाजा, यदि आप भी तथाकथित दोस्ती के किसी ऐसे बंधन से बंधे हुए हैं तो आप को इस पवित्र रिश्ते को स्वच्छ रखने के लिए अपने मन पर बड़ी कठोरता से नियंत्रण रखने की आवश्यकता है, क्योंकि युवक और युवतियों की दोस्ती के बंधन की उम्र बहुत छोटी होती है. ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की दोस्ती की आड़ में केवल युवक ही सैक्सुअल रिलेशन बनाने की ताक में रहते हैं बल्कि युवतियां भी इस में पीछे नहीं रहतीं.

संस्कार जब एक छोटे से गांव से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी कर कालेज की पढ़ाई के लिए शहर आया तो उसे शुरू में सबकुछ अजीब सा लगता था. वह बहुत शर्मीले स्वभाव का था और वह युवतियां तो दूर युवकों से भी बड़ी मुश्किल से बात करता था. लेकिन वह बहुत होशियार था और पेरैंट्स उसे एक आईएएस औफिसर के रूप में देखना चाहते थे. वर्षा भी उसी की क्लास में पढ़ती थी और संस्कार के रिजर्व नेचर और होशियार होने के कारण उसे मन ही मन काफी चाहती भी थी, लेकिन वह संस्कार को इस बारे में बता पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी.

संयोग से एक दिन उस के कालेज का एक हिल स्टेशन पर जाने का प्रोग्राम बना और इस दौरान दोनों को बस में एकसाथ बैठने का मौका मिल गया. मौका पा कर वर्षा ने संस्कार के हाथों में हाथ डाल कर अपने मन की बात कह डाली. यह सुन संस्कार के होश उड़ गए और उस ने बिना सोचेसमझे ही उसे मना कर दिया, क्योंकि वह जिस बैकग्राउंड से आया था उस में उस के लिए इन सब चीजों को ऐक्सैप्ट करना संभव नहीं था.

ठीक है, तुम मुझे प्यार नहीं कर सकते तो हम दोनों दोस्त बन कर तो रह ही सकते हैं. क्या तुम मेरी फ्रैंडशिप भी ऐक्सैप्ट नहीं करोगे? वर्षा ने प्यार के अंतिम तीर के रूप में जब यह प्रश्न संस्कार के सामने रखा तो संस्कार भावनाओं के सागर में गोते लगाने लगा और इस के लिए उस ने हामी भर दी.

दोस्ती के नाम पर अब वे दोनों साथ घूमतेफिरते, मस्ती करते. वक्त के साथ उन दोनों के बीच दोस्ती और भी गहरी होती गई और धीरेधीरे साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई जाने लगीं. वैलेंटाइन डे के दिन जब पूरा कालेज डांस और म्यूजिक में बिजी था तो संस्कार और वर्षा फरवरी की उस कुनकुनी ठंड में शहर के एक खूबसूरत पार्क में साथसाथ जीवन जीने के सपने बुन रहे थे.

सूरज डूब चुका था और शाम के साए में रोशनी धीरेधीरे खत्म हो रही थी. वहां से लौटते हुए वर्षा और संस्कार की करीबी में जीवन की सारी मर्यादाओं की रेखा मिट चुकी थी. दोस्ती के बंधन में प्यार और वासना की भूख ने कब सेंध लगा दी, इस का एहसास भी प्रेमी युगल को नहीं हो पाया.

जब इस प्रकार दोस्ती निभाने का प्रश्न उठता है तो ऐसा करना किसी तलवार की धार पर चलने से कम खतरनाक नहीं होता. पहले तो आप इस प्रकार के रिश्ते को अपने परिवार वालों से छिपा कर न रखें. महंगे गिफ्ट्स के ऐक्सचेंज से दूर रहने की कोशिश करें, क्योंकि जब इस प्रकार के महंगे गिफ्ट्स के ऐक्सचेंज की शुरुआत होती है तो एकदूसरे से अपेक्षाओं का दायरा काफी बढ़ जाता है और इस के साथ सब से बड़ी बात यह होती है कि इस प्रकार की अपेक्षाओं की कोई लक्ष्मण रेखा नहीं होती.

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी पार्टी और फंक्शन में अपने फ्रैंड्स के साथ अकेले जाने से परहेज करें, क्योंकि मन के आवेग का कोई भरोसा नहीं होता. यदि ऐसी पार्टियों में जाना निहायत जरूरी हो तो अपने परिवार के किसी सदस्य या फिर कौमन फ्रैंड्स के साथ जाएं. ऐसा करने से आप सेफ रहेंगी.

मुझे शक है कि मेरे पति का औफिस में अफेयर चल रहा है, सच्चाई कैसे पता करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं शादीशुदा गृहिणी हूं. पति स्मार्ट व हैंडसम हैं और अपनी उम्र से काफी छोटे दिखते हैं. वे सरकारी महकमे में अधिकारी हैं. 2 बेटे हैं जो अपनेअपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन जी रहे हैं. मेरी समस्या यह है कि पिछले 1 साल से पति ने मेरे साथ सैक्स नहीं किया, हालांकि हमारे में कोई विवाद नहीं है. 1-2 लोगों ने मुझे बताया है कि उन के अपनी सहकर्मी से संबंध हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

जैसाकि आप ने बताया कि आप दोनों के बीच कोई विवाद नहीं है पर पति सैक्स में दिलचस्पी नहीं लेते तो आप को इस की वजह जानने की कोशिश करनी होगी. संभव है कि वे बतौर अधिकारी काम के बोझ तले दबे हों और तनाव में रहते हों या फिर उन्हें कोई अंदरूनी परेशानी हो. वक्त और मूड देख कर आप को पति से बात करनी चाहिए. रही बात उन का अपनी सहकर्मी से संबंध की, तो सुनीसुनाई बातों पर भरोसा करना दांपत्य जीवन में जहर ही घोलता है. दूसरों की कही बातों पर भरोसा न करें. वैसे भी विवाहेतर संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं टिकते. देरसवेर इस रिश्ते पर विराम लग ही जाता है. बावजूद इस के अगर आप अपने रिश्ते में जान फूंकना चाहती हैं तो पति के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताएं, उन्हें भरपूर प्यार दें, कामकाज के बारे में पूछें, साथ घूमने जाएं. हां, अगर उन में किसी शारीरिक विकार के लक्षण दिखें तो डाक्टर से परामर्श लें.

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अगर आप भी वर्किंग वुमन है तो सावधान रहिए. कभी-कभी औफिस के अफेयर भारी पड़ सकते हैं.अक्सर औफिस में ऐसे अफेयर तो हो ही जाते हैं किसी न किसी से. किसी का प्यार परवान चढ़ जाता है तो कोई बस टाइम पास के लिए ऐसा करता है साथ ही उसको फिर किसी चीज की परवाह नहीं होती और वो अपनी पर्सनल लाइफ और औफिस की लाइफ को मिक्स करने लगता है.ये बात केवल लड़की पर नहीं बल्कि लड़के पर भी लागू होती है. कई मर्द तो शादीशुदा होते हुए भी ऐसे चक्कर चलाते हैं,लेकिन ये अफेयर कभी-कभी आप पर बहुत भारी पड़ता है. इसका असर आपकी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों पर ही पड़ता है.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

“कैंसर कैपिटल” बनने की ओर है भारत, जानें इस बीमारी का सामाधान

National Cancer Awareness Day : कैंसर जिसे कभी एक दुर्लभ और घातक बीमारी माना जाता था आज वैश्विक और भारतीय स्तर पर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गया है. चिंता का विषय यह है कि भारत उन देशों में शामिल हो रहा है जहां कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और इसे अक्सर “विश्व का कैंसर कैपिटल” कहा जा रहा है. जीवनशैली में बदलाव, पर्यावरणीय कारक और आहार संबंधी आदतें इस महामारी को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही हैं जिससे न केवल बुजुर्ग बल्कि युवा भी प्रभावित हो रहे हैं.

भारत में कैंसर के मामले: “कैंसर कैपिटल” बनने की ओर

हाल के अध्ययनों से भारत में कैंसर के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिली है. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार, देश में हर साल 1.3 मिलियन से अधिक नए कैंसर के मामले सामने आते हैं और अगले दशक में यह संख्या तेजी से बढ़ने की संभावना है. 2040 तक भारत में कैंसर की घटनाओं के दोगुना होने का अनुमान है जो स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है. भारत में कैंसर से होने वाली मृत्यु दर मुख्य रूप से देर से निदान और ग्रामीण क्षेत्रों में उन्नत इलाज की सीमित पहुंच के कारण वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (IARC) के आंकड़े बताते हैं कि भारत में कैंसर मौत के प्रमुख कारणों में से एक बन चुका है. भारत में मुख, फेफड़े, स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और पेट के कैंसर की घटनाएं बहुत अधिक हैं जो मुख्य रूप से सांस्कृतिक और पर्यावरणीय कारणों से जुड़ी हुई हैं.

इस संदर्भ में डॉ. अरुण कुमार गोयल ( चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी,
एंड्रोमेडा कैंसर अस्पताल ) ने विस्तार से जानकारी दी;

दृष्टिकोण में बदलाव: “मौत की सजा” से एक दीर्घकालिक स्थिति तक पहले कैंसर का निदान अक्सर एक मौत की सजा के समान माना जाता था लेकिन चिकित्सा में प्रगति ने इसे एक अधिक प्रबंधनीय बीमारी में बदल दिया है. कुछ प्रकार के कैंसर, जैसे कि स्तन, प्रोस्टेट और कोलोरेक्टल कैंसर, में शुरुआती पहचान से जीवित रहने की दर में काफी सुधार हुआ है. तकनीकी प्रगति, जैसे रोबोटिक सर्जरी का बढ़ता उपयोग, उन्नत विकिरण चिकित्सा, इम्यूनोथेरेपी, टारगेटेड थेरेपी और उन्नत कीमोथेरेपी ने कैंसर के उपचार में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं. अब कैंसर को एक दीर्घकालिक स्थिति के रूप में देखा जा रहा है जहां मरीज कई वर्षों तक अच्छा जीवन जी सकते हैं.

भारत में कैंसर के मामलों में वृद्धि के कारण

भारत में कैंसर की घटनाओं में वृद्धि के कई नए और तेजी से बदलते कारण हैं:

1. बदलते आहार और मिलावटी भोजन: भारत में खाद्य मिलावट एक बढ़ती समस्या है, जहां भोजन के रंग और अवधि को बढ़ाने के लिए फार्मेलिन, कीटनाशकों और कृत्रिम रंगों का उपयोग किया जा रहा है. इसके अलावा अस्वास्थ्यकर वसा, शर्करा और प्रोसेस्ड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की ओर झुकाव पाचन और कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम को बढ़ा रहा है.

2. जीवनशैली में बदलाव: शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव ने कैंसर के जोखिम को प्रभावित किया है. गतिहीनता, व्यायाम की कमी, धूम्रपान और शराब का सेवन, विशेष रूप से शहरों में कैंसर से जुड़े हुए हैं. भारत में पारंपरिक आहार से फास्ट फूड और शर्करा युक्त आहार की ओर झुकाव के साथ मोटापा बढ़ रहा है जो कई प्रकार के कैंसर के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है.

3. पर्यावरण प्रदूषण: भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण स्तर दुनिया में सबसे अधिक हैं और प्रदूषकों के संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है खासकर फेफड़ों के कैंसर का. इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में जल प्रदूषण और औद्योगिक कचरे के संपर्क में आने से उन क्षेत्रों में कैंसर की घटनाएं अधिक हो गई हैं.

4. युवाओं में बढ़ता कैंसर: पहले जो कैंसर बुजुर्गों में देखे जाते थे वे अब 20, 30 और 40 की उम्र के युवाओं में अधिक देखने को मिल रहे हैं. इस बदलाव का कारण आंशिक रूप से जीवनशैली से जुड़ा है जैसे कि धूम्रपान, शराब का सेवन, उच्च तनाव स्तर और अस्वास्थ्यकर आहार.

5. मोटापे का बढ़ता प्रचलन: मोटापा एक ज्ञात जोखिम कारक है जो हार्मोन-आधारित कैंसर जैसे कि स्तन, एंडोमेट्रियल और कोलोरेक्टल कैंसर से जुड़ा है. भारत में विशेष रूप से शहरी केंद्रों में मोटापे की घटनाएं
तेजी से बढ़ रही हैं, जहां गतिहीन जीवनशैली और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ अधिक प्रचलित हैं.

6. आनुवंशिक कारक और पारिवारिक प्रवृत्ति: कुछ व्यक्तियों में स्तन, अंडाशय और कोलोरेक्टल कैंसर का उच्च आनुवंशिक जोखिम होता है.

भारत के कैंसर संकट का समाधान

1. जन जागरूकता और स्क्रीनिंग बढ़ाना: आम जनता को शुरुआती चेतावनी संकेतों के बारे में शिक्षित करना और स्तन, गर्भाशय ग्रीवा और मौखिक कैंसर के लिए स्क्रीनिंग को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है.

2. स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देना: संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, और तंबाकू और शराब से बचने जैसी स्वस्थ जीवन शैली विकल्पों को प्रोत्साहित करना.

3. खाद्य गुणवत्ता का नियमन: खाद्य सुरक्षा पर कड़े नियम लागू करना ताकि मिलावट और प्रदूषण से बचाव हो सके.

4. पर्यावरण संरक्षण: प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करना कैंसर से जुड़े पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने में सहायक हो सकता है.

मेरा बौयफ्रैंड मुझसे 10 साल बड़ा है, क्या संबंध बनाने में हमें समस्या होगी?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 25 साल की हूं और मेरा बौयफ्रैंड मुझ से 10 साल बड़ा है. हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं, कुछ सालों बाद हम शादी भी करेंगे. हालांकि अभी हम लिव इन रिलेशनशिप में है. कभीकभी लगता है कि इंटिमेट होने के दौरान उसे परेशानी होती है.

ऐसा लगता है कि वह मेरा साथ नहीं दे पाता, क्योंकि वह फोरप्ले तो कर लेता है, लेकिन जब मेन कोर्स की बात आती है, तो वह थक जाता है. बारबार कोशिशों के बावजूद भी वह सफल नहीं हो पाता… मुझे ऐसा लगता है कि उसकी उम्र ज्यादा है, तो इसलिए उसे परेशानी होती है… कृपया सलाह दें…

जवाब-

आप के पार्टनर की उम्र इतनी भी ज्यादा नहीं है कि सैक्स करने में उन्हें परेशानी आए. सच तो यह है कि अगर कोई फिजिकली फिट है, तो वह लंबी उम्र तक सैक्स का आनंद उठा सकता है.

आमतौर पर सैक्सुअल इंटरकोर्स जानकारी के अभाव में या हड़बड़ी के कारण अधूरा रह जाता है. सैक्स संबंध बनाते समय पार्टनर को कम्फर्ट फील कराना पड़ता है. ये जल्दबाजी में नहीं की जाती है, सैक्स आराम करने वाली प्रक्रिया है, न कि जल्दबाजी में निबटाने की… सैक्स करने से पहले दोनों पार्टनर को फोरप्ले का आनंद लेना चाहिए. जब पार्टनर पूरी तरह सैक्स के लिए तैयार हो जाए, तो इंटरकोर्स करना चाहिए. तभी आप अपनी सेक्सुअल लाइफ को एंजौय कर पाएंगे. अगर आप सेफ सैक्स करना चाहते हैं, तो कंडोम का इस्तेमाल जरूर करें. जिससे आप दोनों सैक्स को भरपूर मजा लें.

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खुद से भी करें प्यार

अधिकतर महिलाएं सारा दिन घर परिवार की चिंता व जरूरतों को पूरा करने में लगी रहती हैं जिस के चलते खुद पर ध्यान तक नहीं देती. यहां तक की कुछ पल के लिए भी वो खुद को खुद से मिलने भी नहीं देती.जिससे उसका शरारिक के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी कमजोर पड़ने लगता है. लेकिन इससे बचना बहुत ही आसान है जिसके लिए आपको करने होंगे ये काम.

सबसे ज्यादा जरूरी है अच्छी नींद लेना. पूरे दिन में कम से कम 7 घंटे की नींद आवश्यक लें.नींद को लोग हल्के में ले लेते हैं लेकिन यह हमारे स्वस्थ्य जीवन के लिए इतनी ही जरूरी है जितना की स्वस्थ्य भोजन. अच्छी नींद लेने से दिल स्वस्थ रहता है तनाव कम होता है रक्त शर्करा को स्थिर रखने में मदद मिलती है, वजन कम होता है और यादास्त अच्छी होती है.

एक पल ऐसा भी आता है जब हम हर चीज से ऊब जाते हैं. रोजाना के रूटीन से बच निकलना चाहते हैं लेकिन ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता.इसके लिए खुद को क्रिएटिव बनाएं. जिस भी कार्य में आपकी रूचि है या हौबी रही है उसको निखारे क्योंकि जो काम करने की इच्छा हमारे अंदर समय की व्यस्तता के साथ मन के किसी कोने में दबी रह जाती है वो दबीश कुछ समय बाद हमें दुख देने लगती है इसके लिए अपनी दबी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर कोशिश करें.

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ईश्वर और आतंकवाद : क्या है दोनों में समानता

रामभरोसे ईश्वर की तलाश में है. सरकार आतंकवादी की तलाश में है. दोनों परेशान हैं कि दोनों को दोनों ही नहीं मिल रहे.

दोनों ही छिपे रहते हैं. उन के तो बस कारनामों का ही पता चलता है जिस से उन की उपस्थिति का भ्रम बनता है. काम चाहे जिस ने किया हो पर नाम इन के मढ़ दिया जाता है.

रामभरोसे के 8 बच्चे हैं और वह इन सब के लिए कह देता है कि सब ईश्वर की देन हैं जबकि महल्ले भर को उस के एकएक बच्चे के बारे में पता है. शाखा के एक भाई साहब रात को चोरीचोरी उस के  घर के बाहर एक स्टिकर चिपका गए थे, ‘हिंदू घटा देश बंटा.’ तब से राम भरोसेजी ने अपने घर में हिंदुओं को घटने नहीं दिया. बच्चों के हिस्से की रोटी घट गई. दूध घट गया. पत्नी के तन का कपड़ा जहांजहां से फटता गया वहांवहां से घटता गया पर रामभरोसे ने हिंदू नहीं घटने दिया. हर साल जब ताली ठोंक कर बधाई देने वाले अपनी खरखरी आवाज में नाचगा कर बधाई दे रहे होते तो महल्ले के लोगों को पता चलता कि रामभरोसे ने एक हिंदू और बढ़ा दिया है. रामभरोसे मुश्किल से 5 रुपए निकाल पाते जबकि वे 500 मांग रहे होते. अंतत: वे 5 रुपए रामभरोसे के मुंह पर मार कर और थूक कर चले जाते. रामभरोसे देशभक्ति से अपनी शर्म उसी तरह ढक लेते जिस तरह बहुत सारे लोग अपने पाप ढक लेते हैं, अपनी सांप्र- दायिकता ढक लेते हैं.

आतंकवादी भी 10 घटनाएं करता है और 100 घटनाएं अपने नाम पर जुड़वा लेता है. शाम को दफ्तर का चपरासी जाते समय बाहर लगा बल्ब खींच ले जाता है और अगले दिन कह देता है कि आतंकवाद बढ़ गया है, देखो आतंकवादी रात में बल्ब खींच कर ले गए. अब छिपा आतंकवादी सफाई देने थोड़े ही आ सकता है.

हत्या, चोरी, डकैती, अपहरण सारे अपराध आतंकवादियों के नाम लिख कर पुलिस दिनदहाड़े टांगें पसार कर सो जाती है. जब जागती है तो जा कर 2-4 डकैती डाल लीं, राहजनी कर ली, दारू पी मुर्गा खाया, वीआईपी ड्यूटी की और सो गए. प्रेस वालों से कह दिया कि सारे अपराध आतंकवादी कर गए.

ज्यादातर आतंकवादी विदेशी या विदेश प्रेरित माने जाते हैं इसलिए मामला विदेश मंत्रालय से संबंधित माना जाता है. बेचारे विदेश मंत्री ओबामा और हिलेरी के नखरे देखें या तुम्हारी चोरीडकैती की चिंता करें. उन का भी काम यह कह कर चल जाता है कि विदेश प्रभावित आतंकवाद बहुत बढ़ गया है.

सरकार परमाणु बम फोड़ सकती है, सीमा पर फौज खड़ी कर सकती है, मिसाइल का परीक्षण कर सकती है पर आतंकवादी नहीं तलाश सकती. जैसे रामभरोसे को ईश्वर नहीं मिलता वैसे ही सरकार को आतंकवादी नहीं मिलता.

मिल भी जाए तो आतंकवादी को पकड़ने की परंपरा हमारे पास नहीं है, उसे मार दिया जाता है. अगर उसे पकड़ लिया गया तो वह बता सकता है कि मैं ने पुलिस के रास्ते में बम जरूर बिछाए थे पर दफ्तर का बल्ब नहीं चुराया, डकैती नहीं डाली, राहजनी नहीं की, इसलिए उसे मार दिया जाना जरूरी है.

ज्ञात तो ज्ञात अज्ञात आतंकवादी तक मार गिराए जाते हैं. देश ने शायद ऐसी गोलियां तैयार कर ली हैं जो आंख मूंद कर चलाए जाने पर भी किसी आतंकवादी को ही लगती हैं और उसे मार गिराती हैं. सैनिक की गोली से मारा जाने वाला हर व्यक्ति आतंकवादी होता है. उस की धर्मप्राण गोली किसी निर्दोष को लगती ही नहीं.

रामभरोसे ईश्वर की आराधना करते हैं, पूजा करते हैं, आरती करते हैं, व्रत- उपवास करते हैं, माथा रंगीन रखते हैं, चोटी रखते हैं, हाथ में कलावा बांधते हैं, जहां कहीं सिंदूर लगा पत्थर दिख जाए तो माथा झुकाते हैं, पर ईश्वर नहीं मिलता.

सरकार के सैनिक भी इधर से उधर गाडि़यां दौड़ाते हैं, मुखबिर पालते हैं, संदेशों की रिकार्डिंग करते हैं, डिकोडिंग करते हैं, रातरात भर जागते हैं, कंबिंग आपरेशन करते हैं, रिश्तेदारों को टार्चर करते हैं पर आतंकवादी नहीं मिलते.

दोनों की ही ग्रहदशा एक जैसी है. दोनों के ही आराध्य अंतर्धान हैं. रामभरोसे ने मंदिर में उस की संभावित मूर्ति बैठा रखी है. सुरक्षा सैनिकों ने उन के संभावित चित्र बनवा रखे हैं. दोनों ही सोचते हैं कि एक बार मिल जाए तब देखते हैं कि फिर कैसे छूटते हैं हमारी पकड़ से. शायद उसी खतरे को सूंघ कर ही न ईश्वर खुले में आता है और न ही आतंकवादी.

ईश्वर सर्वत्र है. आतंकवादी भी सर्वत्र हैं. सरकारी नेताओं की भाषा में कहें तो वर्ल्डवाइड फिनोमिना. वे पंजाब में रहे हैं, वे कश्मीर की जन्नत में रह रहे हैं, वे असम में हैं वे त्रिपुरा में हैं, नागालैंड में हैं, वे तमिलनाडु में हैं, वे बस्तर में हैं, बिहार, उड़ीसा, झारखंड में हैं. वे केरल में उभर आते हैं व पश्चिम बंगाल में वारदातें कर के भाग जाते हैं. वे कभी अयोध्या में दिखते हैं तो बनारस और मथुरा में भी दिख सकते हैं, वे मालेगांव में होते हैं तो बेलगांव में भी होते हैं. वे कहां नहीं हैं. वे लंका में हैं, वे अफगानिस्तान में हैं, नेपाल में हैं और यहां तक कि अमेरिका की चांद पर भी बाजे बजाते रहते हैं.

वे चित्र प्रदर्शनियों में चित्र फाड़ते हैं, फिल्में नहीं बनने देते, बन जाती हैं तो चलने नहीं देते, वे क्रिकेट के मैदान में पिचें खोद देते हैं, वे लाखों संगीत प्रेमियों को प्रभावित करने वाले गजल गायकों के कार्यक्रम नहीं होने देते, वे दिलीप कुमार के घर के बाहर प्रदर्शन करते हैं. वे मंदिर तोड़ते हैं, गिरजा तोड़ते हैं, मसजिद तोड़ते हैं. वेलेंटाइन डे पर प्रेमियों का दिल तोड़ते हैं.

अगर सरकार की आंख भेंगी न हो और वह विकलांग न हो तो बहुत सा आतंक साफसाफ देखा जा सकता है. और उसी तरह अगर रामभरोसे का मन साफ हो तो उसे भी ईश्वर दिख सकता है जैसे गांधीजी को दरिद्र में दिख गया था और उन्होंने उसे दरिद्र नारायण का नाम दिया था. पर अभी न तो सरकार को आतंकवादी दिख रहा है और न ही रामभरोसे को ईश्वर.

सामने वाला फ्लैट: जोया और शिवा की कहानी

ठाणे के भिवंडी एरिया में नई बनी सोसाइटी ‘फ्लौवर वैली’ की एक बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर के एक फ्लैट में 28 वर्षीय शिव त्रिपाठी सुबह अपनी पूजा में लीन था. तभी डोरबैल बजी. किचन में काम करती उस की पत्नी आरती ने दरवाजा खोला.

सामने वाले फ्लैट की नैना ने चहकते हुए कहा, ”गुडमौर्निंग आरती, दही जमाने के लिए खट्टा देना, प्लीज. रात को मैं और ज़ोया सारी दही खा गए, खट्टा बचाना याद ही नहीं रहा,” फिर गहरी सांस अंदर की तरफ खींचती हुई बोली, ”क्या बना रही हो, बड़ी खुशबू आ रही है. अरे, डोसा बना रही हो क्या?”

आरती ने कहा, ”हां, आ जाओ, दही ले लो.”

”बस, जल्दी से दे दो, एक मीटिंग है, लैपटौप खोल कर आई हूं. और हां, दोतीन डोसे हमारे लिए भी बना लेना, घर के डोसे की बात ही अलग है.”

आरती ने मुसकरा कर कहा, ”हां, तुम दोनों के लिए भी बनाने वाली ही थी.”

फिर अंदर झांकते हुए नैना हंसी, ”तुम्हारे शिव ‘जी’ पूजा में बैठे हैं क्या?”

”हां,” आरती को उस के कहने के ढंग पर हंसी आ गई.

नैना चली गई. शिव वैसे तो पूजा कर रहा था पर उस ने दरवाजे पर हुई पूरी बात सुनी थी. पूजा कर के उठा तो नैना ने अपना और उस का नाश्ता लगा लिया. शिव ने पूछा, ”यह सामने वाले फ्लैट से अब कौन सी लड़की क्या मांगने आई थी? इसे खुद किसी चीज का होश नहीं रहता क्या?”

”अरे, तो क्या हुआ, अकेली लड़कियां हैं, कितनी प्यारी हैं दोनों, मुझे तो बहुत ही अच्छी लगती हैं दोनों.”

शिव ने अचानक पूछा, ”अरे, तुम बिना नहाए नाश्ता कर रही हो आज?”

”हां, आराम से नहा लूंगी, थोड़ी सफाई करनी है.”

”खूब मनमानी करती हो मुंबई आ कर. मेरे मांपिताजी देख लें कि बनारस के इतने बड़े ब्राह्मण परिवार की बहू बिना नहाए खाने बैठ जाती है तो बेचारे यह धक्का कैसे सहन करेंगे,” कह कर शिव व्यंग्य से मुसकराया.

आरती ने हंस कर कहा, ”मैं तो जी ही रही हूं यहां आ कर, वहां पहले अपना परिवार, फिर तुम्हारा कट्टर परिवार, ऐसे अपनी मरजी से जीना तो वहां बड़ा मुश्किल था. बहुत सही समय पर शादी होते ही तुम्हारा ट्रांसफर यहां हो गया, मजा आ गया.” यह कहते हुए उठ कर आरती ने शिव के गले में बांहें डाल दीं.

दोनों के विवाह को सालभर ही हुआ था और शादी होते ही शिव का ट्रांसफर बनारस से मुंबई हो गया था. शिव ने भी उसे अपने करीब कर लिया. नए विवाह का रोमांस जोरों पर था. इतने में डोरबैल बजी. इस बार सामने वाले फ्लैट से ज़ोया थी. शिव ने उठ कर दरवाजा खोला था.

ज़ोया ने गुडमौर्निंग कह जल्दी से पूछा, ”अरे आरती, तुम हमें डोसे देने वाली थी न. भाई, जल्दी दो. नैना ने बताया तो सुनते ही भूख लग आई है.”

आरती ने हंसते हुए कहा, ”हांहां, बस दो मिनट, बना रही हूं.”

”ठीक है, हमारा दरवाजा खुला ही है, जरा पकड़ा देना.’’ शिव अब तक दरवाजे पर ही खड़ा था, ज़ोया जाते हुए बोली, ”भई शिवजी, आप की पत्नी बड़ी सुघड़ है.”

वह चली गई तो शिव ने किचन में आरती के पास जा कर ज़ोया की नक़ल लगाई,”भई, शिवजी, आपकी पत्नी बड़ी सुघड़ है. हुंह, तुम दोनों क्यों नहीं सीख लेतीं कुछ फिर मेरी सुघड़ पत्नी से. बस, बातें बनवा लो इन से. नाक में दम कर के रखती हैं दोनों, पता नहीं कहां से आ गईं यहां रहने.”

आरती मुसकराती रही और नैना व ज़ोया के लिए डोसे बनाती रही. 6 डोसे और नारियल की चटनी ले कर उन के पास गई, प्यार से कहा, ”लो, दोनों गरमगरम खा लो.”

नैना और ज़ोया फौरन अपने लैपटौप को स्लीप मोड पर डाल नाश्ता करने बैठ गईं. आरती से कहा, ”तुम भी बैठो, अपने शिव जी के साथ नाश्ता तो कर ही लिया तुम ने, अब चाय हमारे साथ पी कर जाना या ऐसा करो, तब तक चाय चढ़ा ही दो, साथ पीते हैं,” कह कर दोनों नाश्ते पर टूट सी पड़ीं. आरती ने उन्हें स्नेह से देखा और उन के ही किचन में चाय चढ़ा दी और फिर चौंकते हुए वापस आई, ”यह क्या, चाय की पत्ती ख़त्म है क्या?”

दोनों ने एकदूसरे को घूर कर देखा. फिर दोनों हंस पड़ीं. ज़ोया ने कहा, ”आरती, कौफ़ी ही बना लो फिर. हम मंगाना भूल गए. एक तो यह नई सोसाइटी है, ठीक से अभी दुकानें भी नहीं हैं, दूर जाने का मन नहीं करता, कल औनलाइन और्डर दे रहे थे तो चाय की पत्ती भूल गए. तुम्हारे शिवजी कुछ सामान लेने निकलें तो हमारी भी चाय की पत्ती मंगा देना.”

तीनों ने हंसीठहाके के बीच कौफ़ी पी. नैना और ज़ोया ने आरती को बारबार थैंक्स कहा. फिर नैना के औफिस से कौल आ गई तो वह व्यस्त हो गई. आरती जानती थी कि ज़ोया भी अब औफिस के काम करेगी, वह जल्दी ही अपने फ्लैट में लौट आई.

‘फ्लौवर वैली’ अभी नई ही बनी थी, यहां अभी बहुत कम दुकानें थीं. अभी तो बिल्डिंग्स में सारे फ्लैट्स में लोग रहने भी नहीं आए थे. आरती के फ्लोर पर 4 फ्लैट थे, जिन में से 2 अभी बंद ही थे. इस सामने वाले फ्लैट में 27 साल की नैना और ज़ोया कुछ महीने पहले ही रहने आई थीं. दोनों अभी अविवाहित थीं. ज़ोया लखनऊ की थी. नैना दिल्ली से आई थी. दोनों ही खूब सुंदर, हंसमुख और बेहद मिलनसार स्वभाव की थीं. आते ही उन की दोस्ती आरती से हो गई थी. आरती उन दोनों से मिल कर बहुत खुश थी. बाकी लोग अभी इस बिल्डिंग में महाराष्ट्रियन थे. भाषा की समस्या और अलग तरह के स्वभाव, व्यवहार के कारण आरती और किसी से खुल नहीं पाई थी. वह यहां अकेलापन महसूस कर रही थी कि ये दोनों लड़कियां जैसे ही रहने आईं, आरती का मन खिल उठा था.

दोनों ही किरायदार थीं और एक ही औफिस में काम करती थीं. दोनों के धर्म अलग थे. लेकिन दोनों ऐसे रहतीं जैसी सगी बहनें हों. अब आरती के साथ भी उन की खूब पटने लगी थी. शिव बनारस के एक कट्टर परिवार का पुरातनपंथी सोच वाला लड़का था. उसे मुंबई में अकेले रहने वाली इन लड़कियों पर अकसर झुंझलाहट ही होती रहती. वह एक पढ़ालिखा, अच्छे पद पर काम जरूर करता था पर मन से बहुत पुरानी सोच का लड़का था. उस की भी कोई गलती नहीं थी क्योंकि वह जिस परिवार में पलाबढ़ा था, वहां हर चीज अलग कसौटी पर परखी जाती. उस के परिवार ने आरती को पसंद ही इसलिए किया था क्योंकि आरती का परिवार भी घर की औरतों को धर्म और आस्था के नाम पर पुरानी जंजीरों में बांध कर रखने वाला था. आज़ादी देने के पक्ष में बिलकुल नहीं था.

आरती तो जब से इन दोनों लड़कियों से मिली थी, उस के सोचने का, जीने का नजरिया ही बदल गया था. नैना और ज़ोया के जीवन के ढंग को देख कर आरती रोज हैरान होती. एक दिन तो वह सामने वाले फ्लैट में गई तो लिविंगरूम में ही एक कोने की टेबल पर ज़ोया की औफिस की वीडियोकौल चल रही थी. ज़ोया ने बहुत ही अच्छी वाइट शर्ट पहन रखी थी. नैना किचन में थी. नैना ने बताया, ‘आज इस की अपने बौस से मीटिंग चल रही है.’

पर आरती को बहुत हंसी आ रही थी. ज़ोया ने शर्ट के नीचे बहुत ही छोटी शौर्ट्स पहनी हुई थी, बोली, ‘यह बताओ, तुम लोग नीचे क्याक्या पहन कर बैठी रहती हो, किसी काम से उठना पड़ जाए सब के सामने तो?’

नैना खुल कर हंसी, ‘तो क्या? औफिस वाले भी देख लेंगे कि कितनी हौट लड़की है उन के औफिस में.’ इस के बाद तो आरती उन के स्वभाव, व्यवहार, खुल कर जीने की अदा पर निसार होती रहती.

शिव और आरती ने अपने घरों में एक अलग माहौल देखा था. शिव तो फिर भी औफिस में मुंबई की वर्किंग लड़कियों के संपर्क में था. आरती के लिए नैना और ज़ोया जैसे 2 परियां सी थीं, अलग ही दुनिया में रहतीं, बड़े मजे से दोनों स्वीकार करतीं, ‘देखो भाई, आरती, घर के कामवाम तो हमें इतने आते नहीं, जो बनता है, खा लेते हैं. बस, तुम्हारे जैसे पड़ोसी मिलते रहें, अच्छी गुजर जाएगी.’

शिव ने यह बात सुन ली थी, अंदर आ कर बड़बड़ाता रहा, ‘बस बातें करवा लो इन से, कुछ नहीं आता, यह भी बड़ी शान से बताती हैं. पता नहीं, क्या लड़कियां हैं ये, इन के मांबाप ने इन्हें सिखाया क्या है? बस, छोड़ दिया पढ़ालिखा कर पैसे कमाने के लिए.’

आरती शांतिप्रिय थी. शिव की हर बात को मुसकरा कर टाल देती. यह सोचती कि शिव की अपनी सोच है. उसे भी अपनी बात कहने का पूरा हक़ है. दरवाजे की घंटी बजी, तो शिव ने ही दरवाजा खोला, कोरोना के चक्कर में सब घर से ही काम कर रहे थे, नैना थी, ‘अरे, शिवजी, आप? आरती कहां है?’

”वाशरूम में.”

शिव को उन के शिवजी कहने पर बड़ी चिढ़ होती, पर कुछ कह भी नहीं सकता था. उस ने पूछा, ”कुछ काम था?” फिर मन में सोचा, काम ही होगा, सारा दिन काम से ही तो आती रहती हैं. नैना ने मुसकराते हुए कहा, ”हां शिव जी, काम ही है, हम तो काम से ही आते हैं. अभी आप यही सोच रहे थे न? फिर खुद ही हंस पड़ी, ”कुछ सामान लेने जाएंगे तो हमारी भी ये एकदो चीजें ले आना.” इतने में पीछे से ज़ोया की आवाज आई, “नैना, हैंडवाश भी लिख दे लिस्ट में, ख़त्म हो रहा है.”

इतने में आरती भी आ गई, ”अरे, अंदर आओ न, अब तो औफिस का पैकअप हो गया होगा न?”

”अरे, कहां, पैकअप! वर्क फ्रौम होम में तो काम ख़त्म ही नहीं होता. अभी एक मीटिंग है हम दोनों की, आरती. बस, इस लिस्ट में हमारा हैंडवाश लिख लेना, थैंक यू,शिव जी. आप को हम बड़ी तकलीफ देते हैं, क्या करें, इस समय दुकान वाला होम डिलीवरी कर नहीं रहा है, कल औनलाइन सामान मंगवाने में कुछ चीजें भूल गए हैं. चलो, बाय, मीटिंग है हमारी.” फिर जातेजाते पलटी, ”अरे आरती, एक बात बताओ, दूध बहुत रखा है हमारा, पनीर कैसे बनाएं उस का?”

शिव ने जवाब दिया, ”आजकल तो गूगल और यूट्यूब पर सब पता चल जाता है न, अकेले रहने वालों के लिए यह बड़ी हैल्प है.”

नैना हंसी, ”आरती ही गूगल है हमारी, हमें तो आरती से पूछना अच्छा लगता है. ऐसा लगता है जैसे किसी घर के मैंबर से बात करते हैं.”

उस के जाने के बाद शिव अंदर आ कर बोला, “क्या लड़कियां हैं, बस बातें करवा लो इन से.”

आरती ने उस के सीने से लगते हुए कहा, ”कुछ मत कहा करो उन्हें, अच्छी हैं दोनों.”

”हां, मुझे लिस्ट पकड़ा कर चली जाती हैं. आजकल अपना सामान लाने का टाइम नहीं है, इन का और ले कर दूं.”

और यह ज़ोया तो है भी दूसरे धर्म की, नैना तो फिर भी चलो, पंजाबी है, पर यह ज़ोया से मैं कम्फर्टेबल नहीं हो पाता.”

आरती का चेहरा उतर गया तो शिव चुपचाप सामान लेने चला गया. आरती की ज़ोया और नैना से दोस्ती दिन पर दिन पक्की होती जा रही थी पर शिव को उन दोनों की लाइफस्टाइल से बड़ी दिक्कत थी. उस का मन होता था कि आरती से कहे कि कोई जरूरत नहीं इतना मिक्स होने की, पर आरती को उन के साथ खुश, हंसतेबोलते देख वह चुप रह जाता.

अब कोरोना की दूसरी वेव शुरू हो गई थी. इस नई सोसाइटी में पहले से ही अभी लोग कम थे. जो थे वे अब घरों में बंद होते जा रहे थे. हर तरफ एक डर का माहौल था. नैना और ज़ोया भी अब कम दिखने लगी थीं. शिव लैपटौप में व्यस्त रहता. आरती का चेहरा कुछ बुझा सा रहता. अचानक शिव कोरोना की चपेट में आ गया. बुखार और गले के दर्द से जब वह सुबह जागा तो समझ गया कि कोरोना के लक्षण हैं. उस की तबीयत काफी खराब होने लगी.

आरती घबरा गई. उस ने इंटरकौम से नैना को सूचना दी और रोने लगी.

नैना ने कहा, ”जरा भी परेशान न होना, हम हैं न. बोलो, किस डाक्टर को दिखाना है?”

”अभी तक तो जरूरत ही नहीं पड़ी थी कभी किसी डाक्टर की. सुना है, सोसाइटी के आसपास अभी कोई डाक्टर है भी नहीं, क्या करूं?”

”तुम हम पर छोड़ दो सबकुछ, हम सब कर लेंगे.”

नैना ने ज़ोया से बात की. सब से पहले शिव का टैस्ट करवाना जरूरी था. नैना ने दिल्ली में अपने डाक्टर कजिन रवि से सलाह ली और फिर आरती की डोरबैल बजा दी. आरती की आंखें रोरो कर लाल थीं. ज़ोया भी नैना के साथ ही दरवाजे पर खड़ी थी, कहा, ”यह इतना रोने की क्या जरूरत है, तुम्हारे शिव जी अभी ठीक हो जाएंगे. चिंता मत करो. उन्हें तैयार करो. हम उन का टैस्ट करवाने ले जा रहे हैं. हम ने सब समझ लिया है कि क्या करना है.”

नैना और ज़ोया ने अपनेआप को पूरी तरह से कवर कर रखा था. आरती ने कहा, ”कैसे ले कर जाओगी?”

”मुझे तो ड्राइविंग नहीं आती, पर ज़ोया के पास कार चलने का लाइसैंस है. अपने शिवजी की कार की चाबी दो. ज़ोया कार चला लेगी. तुम घर में रुको. हम सब करवा लेंगे.” फिर अचानक नैना ने कहा, ”तुम तो ठीक हो न?”

आरती ने कहा, ”मेरा गला तो दिन से दुख रहा है और शरीर में दर्द है.”

”ओह्ह, तुम भी चलो, टैस्ट जरूरी हैं.”

आरती और शिव को पीछे बिठा कर नैना और ज़ोया आगे बैठ गईं. नैना के हाथ में ही सैनिटाइज़र था. शिव ने कमजोर आवाज में कहा, ”आप दोनों को हमारे साथ रहने का रिस्क नहीं लेना चाहिए.”

नैना ने कहा, ‘’अभी आप यह सब न सोचें, आप दोनों के लिए रिस्क लेने से हमें कोई डर नहीं लग रहा है.”

टैस्ट हो गए, दोनों पौजिटिव थे. हौस्पिटल्स में जगह नहीं थी. नैना ने किसी तरह एक डाक्टर से वीडियोकौल करवा कर आरती और शिव से बात करवाई. डाक्टर ने दवाई और बाकी चीजों के निर्देश दे दिए. नगरपालिका वाले आ कर शिव और आरती के फ्लैट के दरवाजे पर आ कर स्टीकर लगा कर चले गए. दोनों से फ्लैट के बाहर ही नैना ने कहा, ”आरती, खाने की चिंता मत करना. हम अभी पेपर प्लेट्स का इंतज़ाम कर लेंगे. हमें जो भी आता है, हम खाना बना कर देते रहेंगे. किसी भी टाइम किसी भी चीज की जरूरत हो, हम हैं. तुम लोग, बस, आराम करो. अपने खानेपीने की चिंता बिलकुल न करना. एक डस्टबिन बैग में पेपर प्लेट्स इकट्ठा करती रहना. फिर हमें दे देना. हम कचरे में डाल देंगे.”

नैना और ज़ोया सुबह से ले कर चाय, नाश्ता, लंच, डिनर सबकुछ शिव और आरती के लिए बना रही थीं. उन के फ्लैट के बाहर एक छोटा सा स्टूल रख दिया था. उस पर ही दूर से वे खाना रख देतीं. आरती या शिव कोई भी आ कर उठा लेता. इंटरकौम था ही, उस पर हालचाल जान कर, कोई जरूरत पूछ कर नैना और ज़ोया अपनी किसी भी चीज की चिंता किए बिना आरती और शिव की सेवा में लगी थीं. करीब 10 दिनों बाद दोनों को कुछ बेहतर लगा. कुछ रुक कर ज़ोया फिर दोनों को टैस्टिंग के लिए ले गई. दोनों की रिपोर्ट नैगेटिव आई. चारों बहुत खुश हुए. आरती को बहुत कमजोरी थी. शिव को खांसी अभी भी बहुत थी. दोनों काफी कमजोर हो गए थे. ज़ोया ने कहा, ”अभी कुछ दिन और आराम कर लो, आरती. हम चारों का खाना बनाते रहेंगे अभी. अब तो शायद हमारा हाथ कुकिंग में कुछ ठीक हो गया है न. तुम्हारे चक्कर में पहली बार यूट्यूब पर देखदेख कर अच्छी तरह बनाने की कोशिश कर रहे थे. ये कुकिंग तो हमें हमारे पेरैंट्स भी नहीं सिखा पाए जो तुम दोनों ने सिखा दी.”

शिव इस बात पर खुल कर हंसा तो नैना ने कहा, ”अरे, आप हंसते भी हैं!”

शिव झेंप गया. आरती की आंखें भीग गई थीं. वह बोली, ”तुम लोगों ने जो किया, हम उसे कभी भुला नहीं पाएंगे.”

ज़ोया ने प्यार से झिड़का, ”एनर्जी अभी नहीं है तो ये बेकार की बातें मत करो. अभी कुछ दिन और आराम कर लो. कमजोरी अभी काफी दिन रहेगी.”

लगभग एक महीना ज़ोया और नैना ने दोनों की बहुत सेवा की, खूब ध्यान रखा. दोनों अब ठीक हो रहे थे. एक दिन संडे को आरती की डोरबैल बजी. शिव ने दरवाजा खोला. ज़ोया थी. शिव ने स्नेह से कहा, ”आओ, ज़ोया.”

”नहीं, जरा जल्दी है, कुछ सब्जी लेने जा रही हूं, आरती, कुछ चाहिए?”

शिव ने कहा, ”अरे, मैं अब ठीक हूं, मैं ले आऊंगा. तुम्हें भी कुछ चाहिए तो बता दो.”

”पक्का? आप इतने ठीक हैं कि बाहर जा कर कुछ लाएंगे?”

”हां, काफी ठीक लग रहा है. आजकल दुकानें थोड़ी देर के लिए ही खुलती हैं, भीड़ हो सकती है, तुम लोग अभी मत जाओ, मैं ले आऊंगा. तुम लोगों को भी कोरोना से बचना है.”

”तो ठीक है, यह लिस्ट है और अपने पास रख लेना सामान. मैं थोड़ा और सो लेती हूं फिर. उठ कर ले लेंगे सामान. नैना भी सोई हुई है,’’ फिर अंदर झांकते हुए बोली, ”अरे आरती, तुम क्या बनाने लगी आज?”

”पोहा बना रही हूं, तुम लोगों के लिए भी.”

”वाह, बढ़िया, सुनो, गरमगरम ही दे देना फिर, खा कर ही सो जाऊंगी,’’ कह कर ज़ोया जोर से हंसी.

ज़ोया सामने वाले अपने फ्लैट में चली गई. शिव के होंठों पर आज आरती को देख कर जो मुसकान उभरी, उसे देख आरती का दिल आज अनोखी ख़ुशी से भर उठा था.

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