मौनसून में बालों को बनाना है हेल्दी, तो इन टिप्स को करें फौलो

मौनसून आ गया है. यह समय है जब हमें बारिश और नमी व बैक्टीरिया से अपने बालों की रक्षा करनी और अपने बालों को कमजोर होने से बचाने की खास जरुरत पड़ती है. वातावरण में बढ़ती नमी बालों के झड़ने का मुख्य कारण है. साथ ही इस मौसम में आप के बाल हाइड्रोजन को अवशोषित करते हैं जिस से ये रूखे और बेजान हो जाते हैं . लेकिन हमारे छोटे प्रयास हमारे बालों की सुरक्षा की ओर बड़ा अंतर ला सकते हैं . घर की छोटीछोटी रोजमर्रा की चीजो से आप अपने बालों का ख्याल रख सकती हैं. इस सन्दर्भ में डर्मेटोलौजी क्लिनिक की चेयरमैन व फाउंडर डाक्टर निवेदिता दादू के कुछ आसान उपायों को अपना कर आप अपने बालों को दे सकती हैं सेहत और आकर्षण भरी चमक…

1. डीप कंडीशनिंग करें

सूर्य से लंबे समय तक संपर्क अकसर हमारे बालों को रुखा और मुरझाया हुआ सा बनाता है. बालों को  फिर से जीवंत करने के लिए स्कैल्प तक डीप कंडीशनिंग महत्वपूर्ण है ताकि हमारे बाल और खोपड़ी को अतिरिक्त पोषण मिल सके.

2. अपने बालों को हीट से दूर रखें

मौनसून में नमी के कारण अपने गीले बालों पर हीट जनरेटिंग उत्पाद का ज्यादा प्रयोग करेंगे तो बाल पर इस का बुरा असर हो सकता है. इसीलिए, हमें ब्लोड्रायर, स्ट्रैटनर, कर्लिंग रॉड आदि जैसे सभी हीट जनरेटिंग उत्पादों से अपने बालों की दूरी बनाये रखनी चाहिए. यह हमारे बालों को बेजान बनाते हैं.

3. बालों की जड़ तक तेल पहुंचाए

इस मौसम में बालों पर तेल लगाना एक ज़रुरत बन जाता है . सप्ताह में कम से कम एक बार नारियल या जैतून का तेल की मालिश बहुत फायदेमंद और आरामदेह होती है .हलके हाथों से स्कैल्प पर तेल लगा  कर मालिश करें. लेकिन ध्यान रखें कि इस मौसम में आप के बाल पहले ही कमजोर हैं तो जितना हो सके बालों के साथ नरम रहें.

4. भरपूर आहार लें

अन्य सभी कारकों के अलावा एक चीज जो स्वस्थ बालों के लिए जरुरी है वह है आप की डाइट. अपनी डाइट में अंडे, मछली और स्प्राउट्स जैसे खाद्य पदार्थों को शामिल करना सुनिश्चित करें जो प्रोटीन और आयरन से भरपूर होते हैं. अखरोट भी आप के बालों को स्वस्थ रखने के लिए बहुत अच्छे हैं क्यों कि उस में ओमेगा-3, फैटी एसिड और विटामिन ई काफी मात्रा में होता है.

5. अपने बालों को ट्रिम करें

इस मौसम में अपने बालों को कटवाऐं और उन्हें एक स्टाइलिश लुक दें. रूखे या विभाजित सिरों के बालों से छुटकारा पाने के लिए बालों को ट्रिम करना तो बहुत ही महत्वपूर्ण है.

6. अपने बालों को कस कर बांधने से बचें

लूज बन्स, नॉट्स और मैसी ब्राइड्स बहुत ही फैशनेबल और ट्रेंडी दिखते हैं. मौनसून में वातावरण की अधिक नमी के कारण टाइट बाल बहुत असहज और परेशानदेह हो सकते हैं साथ ही हमारे बालों की जड़ों को भी कमज़ोर कर देते हैं जो बालों के झड़ने और टूटने का कारण बन सकता है. इसीलिए अपने बालों को लूज़ बांधकर ट्रेंडी बने और दिखें.

7. अपने बालों पर प्राकृतिक मास्क लगाएं

घर के बने हुए हेयर मास्क ट्राई करें क्यों कि प्राकृतिक रूप से तैयार मास्कबिना कोई नुक्सान पहुंचाए बालों को बहुत अच्छे ढंग से पोषण प्रदान करते है . घरेलू हेयर मास्क बनाना कुछ मुश्किल नहीं है. केवल एक केला, शहद और बादाम के तेल का मिश्रण, आधे घंटे तक छोड़ने पर स्कैल्प में अहम पोषक तत्वों का प्रवेश हो जाता है . इस को लगाने के बाद बालों पर थोड़ी देर के लिए गर्म तौलिये को लपेंटे और बाद में किसी अच्छे शैम्पू से बालों को धो लें और फिर कंडीशनर करें . आप अपने बालों में अंतर ज़रूर पाएंगे .

8. लिक्विड का सेवन अधिक करना शुरू करें

पानी, स्मूदीज, जूस, शेक्स, नींबू पानी और नारियल के पानी जैसे तरल पदार्थों का सेवन हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है. मौनसून में हाइड्रेटेड रहना हमारे शरीर के तापमान को बनाए रखता है, पेट को ठंडा रखता है साथ ही हमें हमेशा ताज़ा महसूस करवाता रहता है. इस से बालो  को भी पोषण और ताजगी मिलती  है.

9. छतरी रखें अपने पास

मौनसून में बहुत ज़रूरी है कि घर से बाहर निकलने से पहले आप छतरी अपने साथ ले कर निकलें. बारिश से उत्पन्न एसिडिक और धूल कण बालों को कमजोर कर सकते हैं जिस से कि आप के बाल बेजान और पतले हो जाते है.  ह्यूमिडिटी से बचने के लिए बारिश में गीला होने से ज़रूर बचें . अगर आप किसी तरह बारिश में भीग भी जातें है तो घर जा कर साफ पानी से अपने बालों को ज़रूर धोएं और फिर अच्छी तरह बालों को पोछ कर सूखा लें.

अभिषेक: मानस ने अपनी अम्मा से क्या सवाल किया

‘बमबम भोले…’ के जयजयकारे लग रहे थे. आगे से आवाज आई तो पीछे से भी जोर से सुर में सुर मिलाया गया.

‘हरहर महादेव…’ भीड़ के बीचोंबीच फंसी लगभग 80 साल की वृद्धा ने सम्मोहन की स्थिति में पुकार लगाई. ऐसा लगता था, वह इस अवस्था में काल पर विजय प्राप्त करने के लिए ही रातभर से भूखीप्यासी लाइन में लगी है.

मानस इस लाइन में 10वें नंबर पर खड़ा था. उसे स्वयं आश्चर्य हो रहा था कि वह यहां क्यों खड़ा है? दर्शन व अभिषेक कर वह ऐसा क्या प्राप्त कर लेगा जो उसे अभी तक नहीं मिल पाया? और जो नहीं भी मिला है, वह क्या आज के ही दिन दर्शन करने से मिलेगा, अन्य किसी दिन क्यों नहीं? ऐसी कई तार्किक बातें थीं जिन पर उस का विचारमंथन चल रहा था. वह था तो तार्किक पर अपनी पत्नी के अंधविश्वासी स्वभाव के सामने असहाय हो जाता था. इसलिए अनमने ही सही, वह भी एक हाथ में पानी से भरा तांबे का लोटा और दूसरे हाथ में बिल्व पत्र लिए रात 12 बजे से ही लाइन में धक्के खा रहा था. उसे स्वयं पर कोफ्त भी हो रही थी कि क्योंकर वह इस कुचक्र में फंस गया. उसे रहरह कर मां पर गुस्सा और पत्नी पर चिढ़ आती थी. उसे लगा कि उस के सारे तर्क मां व पत्नी की आस्था के सामने ढेर हो गए हैं.

लाइन में खड़ेखड़े मानस के पांव दुखने लगे, रहरह कर लगने वाले धक्के उस के विचारों के क्रम को तोड़ डालते थे. वह क्रम जोड़ता पर कुछ ही देर में वह फिर से टूट जाता था. इस टूटने व जुड़ने के क्रम के साथसाथ दर्शनार्थियों की लाइन भी इंच दर इंच आगे रेंग रही थी. मानस ने गति के साथ इस का तालमेल बिठाया तो पाया कि 1 घंटे में वह मात्र 2 फुट ही आगे बढ़ पाया है. उस दिन सोमवती अमावस्या थी. वैसे तो कई सोमवती अमावस्याओं पर उस ने रंगबिरंगे परिधानों से सजे ग्रामीण भक्तों की भीड़ देखी थी पर आज 27 वर्षों बाद बने दुर्लभ संयोग ने भीड़ को कई गुना बढ़ा दिया था. मानस 11 बजे रामघाट पहुंचा. तब घाट पर कीड़ेमकोड़ों की तरह भीड़ नजर आ रही थी जो सिर्फ इस बात का इंतजार कर रही थी कि जैसे ही 12 बजे अमावस लगे वैसे ही क्षिप्रा के पवित्र जल में डुबकी लगा ली जाए. लेकिन नहाने के विचार से ही मानस को उबकाई आने लगी. उसे लगा कि जरा से पानी में लाखों लोग हर डुबकी के साथ अपनी गंदगी पानी में धो लेंगे और उसी पानी में उसे नहाना होगा. वह अचकचा गया. वैसे भी, क्षिप्रा का पानी कब साफ रहता है. सारे शहर की गंदगी का नाला इस ‘पवित्र’ नदी में मिलता ही है, ऊपर से इतने लोगों का स्नान.

उस का जी वापस जाने को हुआ था. सोचा, ‘मां या पत्नी उसे देखने तो आ नहीं रहे हैं, कह दूंगा कि नहा लिया था.’

उस का मन फिरने ही लगा था कि वह एक बार फिर आस्था के आगे नतमस्तक हो गया.

एक जोर के धक्के ने उस की तंद्रा भंग की. वह जोर से चिल्ला पड़ा, ‘‘अरे भाई, धक्के मत मारो, बच्चे और बूढ़े भी लाइन में लगे हैं. ये भक्तों की लाइन है, कोई घासलेट, शक्कर की नहीं.’’

परंतु उस की आवाज संकरे गलियारे के मोड़ को भी पार न कर सकी. मानस ने पीछे गरदन घुमा कर देखा, कतार का कोई ओरछोर नजर नहीं आ रहा था. शायद पीछे वाले मोड़ के बाद खुले मैदान में भी चक्राकार कतार होगी. एकदूसरे को ठेल कर आगे बढ़ने का प्रयास करती भीड़ को पुलिस की लाठी ही संयमित कर सकती थी. फिर से मानस पर तक हावी हो गया. उस ने सोचा, क्या चाहती है यह भीड़? क्या ‘भगवान’ इतने सस्ते हैं कि एक बार चलतेचलते 2 बिल्व पत्रों और छटांकभर जल चढ़ाने से प्रसन्न हो जाएंगे? उस का मन किया कि इस भीड़ में फंसे लोगों में से किसी बनिए से पूछे कि ‘क्या वह आज के इस महादर्शन के बाद कभी डंडी नहीं मारेगा या किसी सूदखोर से पूछे कि क्या वह आज सूद न लेने का प्रण करेगा या फिर किसी वृद्धा से पूछे कि वह ऐसा प्रण कर सकती है कि आज के बाद वह अपनी बहू पर अत्याचार नहीं करेगी? पर अंधश्रद्धा से सराबोर इस भीड़ से इस तरह के प्रश्न करना मूर्खता ही होती, इसलिए वह चुप रहा.

मंदिर के एक ओर बना प्रवेशद्वार 5 मीटर चौड़े गलियारे में खुलता था. यह गलियारा, जिस में कि मानस खड़ा था, डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए इस द्वार को 2 मोड़ दिए गए थे. बीचबीच में छोटेछोटे मंदिरों के कारण गलियारा और भी संकरा हो गया था. गलियारा, जहां पर गर्भगृह के लिए खुलता था, वहां नीचे जाने के लिए सीढि़यां थीं. संगमरमर की होने से सीढि़यां धवल प्रकाश में जगमग चमकती थीं. सुबह 4 बजे का समय हो चला था. मानस अपनी जगह से मात्र 5 फुट ही आगे बढ़ पाया था. धक्कामुक्की में थकान के कारण कुछ शिथिलता आ गई थी. हलकीहलकी बारिश भी गरमी को कम नहीं कर पा रही थी. गलियारे में गरमी बढ़ती ही जा रही थी. लोगों के गले खुश्क और कपड़े तरबतर हो रहे थे. लाइन में लगे बच्चों की हिम्मत जवाब दे गई. 10 साल की एक बच्ची बेहाल हो कर गिर गई, शायद गरमी और प्यास के कारण ऐसा हुआ था. पर आगेपीछे खड़े किसी भी भक्त ने अभिषेक के लिए साथ में लिए लोटे से उसे पानी पिलाना उचित न समझा.

‘‘माताजी, इस बच्ची को पानी क्यों नहीं दे देतीं?’’ मानस बोला. माताजी कुछ सोचविचार में पड़ गईं, शायद धर्म का प्रश्न उन के मस्तिष्क में घूम रहा होगा. मानस ने देर न करते हुए अपने लोटे में से थोड़ा सा पानी उस लड़की को पिला दिया. चंद मिनटों बाद ही वह होश में आ गई. ‘‘दादी, दादी, भूख लगी है,’’ लड़की बोली.

अपनी धार्मिक भावना का बलपूर्वक पालन करवाने की गरज से दादी अपनी पोती को भी साथ लेती आई थी, अपने साथसाथ उस से भी उपवास करवाया लगता था. पर नन्ही बच्ची कब तक भूख सहती?

‘‘कहां से आई हो, अम्मा?’’ मानस ने समय गुजारने के लिए पूछा.

वृद्ध महिला कुछ संकोच में पड़ी हुई थी, बोली, ‘‘बेटा, औरंगाबाद से आई हूं.’’

‘‘कोई खास मन्नतवन्नत है क्या?’’ मानस ने बात बढ़ाई.

‘‘हां, इस ‘अभागी’ लड़की का भाई गूंगा है, उसी के लिए आई हूं,’’ वृद्धा ने थकी आवाज में कहा.

‘‘अम्मा, इस में लड़की कैसे अभागी हुई?’’ मानस की आवाज से हलका सा क्रोध झलक रहा था.

‘‘काहे नहीं, बहनों के ‘भाग’ से ही तो भाई का भाग होवे है,’’ वृद्धा ने जोर दे कर कहा.

मानस का जी तो किया कि इस बात पर वृद्धा को खरीखोटी सुना दे पर वह वक्त इस बात के लिए उसे ठीक न जान पड़ा. उस ने एक बार फिर उस समाज को मन ही मन कोसा जो सारे परिवार के दुख के कारण को नारी जाति से जोड़ देता है.

तभी जोर का एक धक्का आया और मानस ने अपनेआप को गलियारे के मोड़ पर खड़ा पाया, जहां से नीचे गर्भगृह में जाने की सीढि़यां शुरू होती हैं. पहले से ही संकरी जगह को बैरिकैड लगा कर और संकरा कर दिया गया था. 2 सालों के बाद ही मानस वहां गया था, उसे वहां की व्यवस्था पर आश्चर्य हो रहा था. इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए गलियारे में होमगार्ड के केवल 2 जवान थे, धक्कामुक्की पर नियंत्रण करना उन के वश में नहीं था. मानस के ठीक आगे औरंगाबाद वाली वृद्धा थी. मानस ने जानबूझ कर उस की पोती को बीच में खड़ा कर लिया था, उस के पीछे 3-4 वृद्ध और थे, जिन से वह बीचबीच में बतिया कर रातभर से उन की आस्था की थाह लेने का प्रयास कर रहा था. इसी बीच, जो लाइन धीरेधीरे रेंग रही थी, वह भी बंद हो गई. बताया जा रहा था कि भस्मारती शुरू हो गई है. भोले से रूबरू होने का समय 2 घंटे और आगे खिसक गया. संकरा मोड़ और ऊपर से उमस, उस पर शरीरों की आपसी रगड़, तपिश और जलन को मानस का पोरपोर महसूस कर रहा था. उस ने सोचा, जब उस की यह हालत है तो बच्चों और वृद्धों का क्या हाल होगा. लगता है, ये प्राणी आज ही भोले के दरबार में आवागमन चक्र से मुक्त हो जाएंगे.

भीड़ पर एकएक मिनट भारी था. व्याकुलता बढ़ती ही जाती थी. मुक्त होने पर वह और भीड़ कैसा महसूस करेगी, खुली हवा में कितनी शांति और शीतलता होगी, इस विचार ने कुछ क्षणों का कष्ट कम कर दिया. तभी बाहर दालान में तेजी से बूटों के चलने की आवाजें आईं, उसी के पीछे कई पैरों की पदचाप सुनाई पड़ी. मानस ने महज अंदाजा लगाया, कोई वीआईपी इस दुर्लभ अवसर के पुण्य को अपने खाते में डालने आया होगा. भीड़ की मुक्ति का समय कुछ और आगे बढ़ गया. आधे घंटे बाद फिर उन्हीं बूटों की आवाज गूंजी. ठीक उसी समय लोगों के लिए आगे का मार्ग खोल दिया गया. अकुलाई भीड़ ने बिना आगापीछा सोचे जोर का धक्का मारा. मानस ने आगे खड़ी लड़की का हाथ कस कर पकड़ लिया. बूढ़ी दादी को वह सहारा देता, लेकिन तब तक वह सीढि़यों पर लुढ़क गई थी. मानस ने स्वयं और लड़की को पूरा जोर लगा कर एक तरफ कर लिया. उस के बाद तो एक के बाद एक पके फल की तरह लोग गिरने लगे. मानस को कुछ सूझता, इस के पहले ही एक बड़ा रेला उन सब लोगों के ऊपर से गुजर गया.

वह पागलों की तरह चिल्ला रहा था, ‘‘अरे, आगे… मत बढ़ो. तुम्हारे भाईबंधु दब कर मर रहे हैं.’’

पर उस की कौन सुनता, सभी को भूतभावन के दरबार में जाने की जल्दी थी. जब तक भीड़ को होश आता, तब तक तो अनर्थ हो चुका था. जहां मंदिर में घंटियों का मधुर स्वर गूंजना चाहिए था वहां चारों ओर लोगों का करुणक्रंदन और चीत्कार गूंज रही थी. सभी हतप्रभ थे. मानस एक हाथ से उस लड़की को थामे था, उस के दूसरे हाथ में अभी भी जल से आधा भरा तांबे का लोटा था, जिस से शिवलिंग का अभिषेक करने का उस का मन था.

पर वह कैसे आगे बढ़ता, किस मन से करता अभिषेक? जबकि उस के इर्दगर्द व भीतर प्रलयंकारी तांडव हो रहा था. उस ने पास ही कराह रहे घायल के मुंह में अभिषेक करने की मुद्रा में जलधारा छोड़ दी. यही सच्चा अभिषेक था.

लेखक- हरिशंकर शर्मा26

तूफान: क्या हुआ था कुसुम के साथ

एक तूफान था जो जिंदगी में अचानक ही चला आया था. मन में कैसी बेचैनी, छटपटाहट और हैरानी थी. क्या करें कुसुमजी? ऐसा तो कभी नहीं हुआ, कभी नहीं सुना. संसार में आदमी की इज्जत ही तो हर चीज से बढ़ कर होती है. वह कैसे अपनी इज्जत जाने दे? कुसुमजी हैरान और दुखी हैं. इस के अलावा ऐसे में कोई कर भी क्या सकता है? बात शुरू से बताती हूं.

दरअसल, कुसुमजी एक संपन्न और सुखी घराने की बहू हैं. घर में सासससुर हैं. पति हैं. 3 प्यारेप्यारे बच्चे हैं. उन के घर में न रुपएपैसे का अभाव है न सुखशांति का. दूसरे घरों में आएदिन झगड़ेफसाद होते रहते हैं मगर कुसुमजी की छोटी सी गृहस्थी इस सब से बची हुई है. कुसुमजी के पति क्रोधी नहीं हैं. सास भी झगड़ालू नहीं हैं. सब प्रेमभाव से रहते हैं. घर में कोई मेहमान आ जाए तो भारी नहीं पड़ता. दो वक्त का भोजन उसे भी कराया जा सकता है. कोई नातेरिश्तेदार हो तो चलते समय छोटामोटा उपहार यानी कोई अच्छा कपड़ा या 11-21 रुपए देने में भी घर का बजट नहीं गड़बड़ होता. अतिथि बोझ न हो, सिर पर कर्ज न हो, घर में सुखशांति हो, इस से ज्यादा और क्या चाहिए? कुसुमजी छमछम करती अपने आंगन में घूमतीफिरती हैं और रसोई, दालान, बैठक आदि सब जगह की व्यवस्था स्वयं देखती रहती हैं. रसोई के लिए महाराजिन है और बरतन साफ करने के लिए महरी. बाजार का काम देखने को घर में कई नौकरचाकर भी हैं. सास सुशील, सुंदर बहू पा कर घर की जिम्मेदारी उसे सौंप चुकी हैं और आराम से जिंदगी के बाकी दिन गुजार रही हैं. ऐसे में क्या तूफान खड़ा हो सकता है?

क्या पति इधरउधर ताकझांक करता है? अजी नहीं, वह तो रहट का बैल है. बेचारा कंधे पर गृहस्थी का जुआ ले कर उसी धुरी के इर्दगिर्द घूमता रहता है. उस गरीब को तो घर की दालरोटी के अलावा कभी बाजार की चाटपकौड़ी की चाहत तक नहीं हुई. हुआ यह कि कुसुमजी के घर मेहमान आए. वह अकसर आते ही रहते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. वह ठाट से 2-3 दिन रहे. जिस काम से आए थे वह निबटाया और फिर शहर भी घूम आए. उस दिन वह सुबहसवेरे चलने को तैयार हुए. अटैची बंद की. बिस्तर बांधने लगे, आधा बिस्तर बिस्तरबंद में जमा चुके तो मालूम पड़ा कि उन का कंबल नहीं है. उन्होंने फिर से देखाजांचा. वह मेहमानों के जिस कमरे में टिके हुए थे उस में उन के अलावा और कोई नहीं ठहरा था. अपनी चारपाई देखी. नीचे झांक कर देखा कि शायद चारपाई के नीचे गिर गया हो, लेकिन कंबल वहां भी नहीं था. वह अपने सब कपड़े सहेज कर पहले ही अटैची में बंद कर चुके थे. कोई और जगह ऐसी नहीं थी जहां कंबल के पड़े होने की संभावना होती. मेहमान को घर के मालिक से कहने में संकोच हो आया.

क्या एक तुच्छ कंबल की बात इतने बड़े और इज्जत वाले आदमी से कहना उचित होगा? वैसे कंबल पुराना नहीं था. यात्रा के लिए ही खरीदा गया था. रुपए भी पूरे 300 खर्च हो गए थे. ऐसे में उस नए कंबल को संकोच के मारे छोड़ जाने के लिए भी दिल नहीं मानता था. मेहमान ने झिझकते हुए कुसुमजी के बच्चे शरद से पूछ लिया, ‘‘बेटा, यहां हमारा कंबल पड़ा था. अब मिल नहीं रहा है.’’ शरद ने इधरउधर नजर दौड़ाई. कंबल कहीं न पाया तो जा कर मां से कहा. उस वक्त कुसुमजी रसोई में महाराजिन को निर्देश दे रही थीं. शरद की बात सुन कर तुरंत मेहमान के पास दौड़ी आईं. उन्होंने देखा कंबल नहीं था. घर का कोई भी सदस्य मेहमान के कमरे में नहीं आता था. इसलिए किसी का वहां आ कर मेहमान का कंबल ले जाना समझ में नहीं आ रहा था. कुसुमजी ने यों ही दिल की तसल्ली के लिए घर के बिस्तर उलटपुलट डाले. हालांकि उन्हें यकीन तो पहले से ही था कि घर का कोई भी सदस्य कंबल नहीं उठा सकता, पर मेहमान और अपनी तसल्ली के लिए उसे ढूंढ़ना तो था ही. कुसुमजी मन ही मन बड़ी झेंप महसूस कर रही थीं.

मेहमान के सामने हेठी हो गई. क्या सोचेगा भला आदमी? कैसे लोग हैं? बिस्तर में से कंबल ही गायब कर दिया. कौन कर सकता है ऐसा गलत काम? सासससुर को ऐसी बातों से कोई मतलब नहीं. वह तो लाखों का व्यापार और घरबार सब बेटेबहू को सौंपे हुए बैठे हैं. भला वह कैसे मेहमान का एक कंबल ले लेंगे? ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता. और बच्चे? वे स्वयं अपना तो कोई काम करते नहीं, फिर मेहमान के कमरे में जा कर उस का बिस्तर क्यों ठीक करेंगे? और फिर जहां तक कंबल का सवाल है वे उस का क्या करेंगे? उन्हें किसी चीज की कमी है जो वे चोरी करेंगे? रही किसी के मजाक करने की बात तो उन के बड़ों से मजाक करने का सवाल ही नहीं उठता. कुसुमजी दिल ही दिल में सवाल करती रहीं. सारी संभावनाओं पर विचार करती रहीं पर उस से कुछ हासिल न हुआ. कंबल तो न मिलना था न मिला.

कुसुमजी का मन जैसे कोई भंवर बन गया था जिस में सबकुछ गोलगोल घूम रहा था. महाराजिन? वह तो चौके के अलावा कभी किसी के कमरे में भी नहीं जाती. उस के अलगथलग बने मेहमानों के कमरे में जाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था. महरी? वह बरतन मांज कर चौके से ही आंगन में हो कर पिछवाड़े के दरवाजे से निकल जाती है. गरीब आदमी के ईमान पर शक नहीं करना चाहिए. फिर कंबल गया तो गया कहां? अब मेहमान से भी क्या कहें? कुसुमजी की परेशानी सुलझने का नाम ही नहीं ले रही थी. तभी मेहमान ने अपना सामान ला कर आंगन में रख दिया. वह कुसुमजी को नमस्कार करने के लिए उद्यत हुआ. वह बिना कंबल के जा रहा है या कंबल मिल गया है यह जानने के लिए जैसे ही उन्होंने पूछा तो मेहमान ने झिझकते हुए कहा, ‘‘नहीं, भाभीजी, मिला तो नहीं. पर छोडि़ए इस बात को.’’ ‘‘नहींनहीं, अभी और देख लेते हैं. आप रुकिए तो.’’ कुसुमजी ने पति को बुलवा लिया. इत्तला की कि मेहमान का कंबल नहीं मिल रहा है. वह भी सुन कर सन्न रह गए. इस का सीधा सा अर्थ था कि कंबल खो गया है.

उन के घर में ही किसी ने चुरा लिया है. कुसुमजी ने बड़े अनुनय से मेहमान को रोका, ‘‘अभी रुकिए आप. कंबल जाएगा कहां? ढूंढ़ते हैं सब मिल कर.’’ कुसुमजी, उन के पति, बच्चे, सासससुर सब मिल कर घर को उलटपलट करने लगे. सारी अलमारियां, घर के बिस्तर, ऊपर परछत्ती, टांड, कोई ऐसी जगह नहीं छोड़ी जहां कंबल को न ढूंढ़ा गया हो. कुसुमजी ने पहली बार गृहस्वामी को ऊंची आवाज में बोलते सुना, ‘‘घर की कैसी देखभाल करती हो? घर में मेहमान का कंबल खो गया, इस से बड़ी शर्म की क्या बात होगी?’’ कुसुमजी तो पहले ही हैरानपरेशान थीं, पति की डांट खा कर उन का जी और छोटा हो गया. उन की आंखों से आंसू टपटप टपकने लगे. साथ ही वह सब जगह कंबल की तलाश करती रहीं. ऐसा लगता था जैसे घर में कोई भूचाल आ गया हो. दालान में बैठा मेहमान मन में पछताने लगा कि अच्छा होता कंबल खोने की बात बताए बिना ही वह चला जाता. क्यों शांत घर में सुबहसवेरे तूफान खड़ा कर दिया. इस दौरान गृहस्वामी का उग्र स्वर भी टुकड़ोंटुकड़ों में सुनने को मिल रहा था.

मेहमान सोचने लगा, 300 रुपए अपने लिए तो बड़ी रकम है पर इन लोगों के लिए वह कौन सी बड़ी रकम है, जो इस कंबल के लिए जमीनआसमान एक किए हुए हैं. मेहमान ने उठ कर फिर गृहस्वामी को आवाज दी, ‘‘भाई साहब, आप कंबल के लिए परेशान न हों. अब मैं चलता हूं.’’ ‘‘नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? आप बस 10 मिनट और रुकिए,’’ मेहमान को जबरदस्ती रोक कर गृहस्वामी बाहरी दरवाजे की तरफ लपक लिए. वह आधे घंटे बाद लौटे, हाथ में एक बड़ा सा कागज का पैकेट लिए. उन्होंने मेहमान के सामान पर पैकेट ला कर रखा और बोले, ‘‘भाई साहब, इनकार न कीजिएगा. आप का कंबल हमारे यहां खोया है. इस की शर्मिंदगी ही हमारे लिए काफी है.’’ मेहमान भी कनखियों से देख कर जान चुके थे कि पैकेट में नया कंबल है, जिसे गृहस्वामी अभीअभी बाजार से खरीद कर लाए हैं. थोड़ीबहुत नानुकर करने के बाद मेहमान कंबल सहित विदा हो लिए. मेहमान तो चले गए, पर कुसुमजी के लिए वह अपने पीछे एक तूफान छोड़ गए. मुसीबत तो टल गई थी, लेकिन कंबल के खोने का सवाल अब भी ज्यों का त्यों मुंहबाए खड़ा था.

कोई आदमी ऐसा नहीं था जिस पर कुसुमजी शक कर सकें. फिर कंबल गया तो कहां गया? बिना सचाई जाने छोड़ भी कैसे दें? इसी उधेड़बुन में कुसुमजी उस रात सो नहीं सकीं. सुबह उठीं तो सिर भारी और आंखें लाल थीं. इतना दुख कंबल खरीद कर देने का नहीं था जितना इस बात का था कि चोर घर में था. चोरी घर में हुई थी. कुसुमजी यह समझती थीं कि घर में उन की मरजी के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता, पर अचानक उन का यह विश्वास हिल गया था. किस से कहें कि ठीक उन की नाक के नीचे एक चोर भी मौजूद है जो आज कंबल चुरा सकता है तो कल घर की कोई भी चीज चुरा सकता है. घर में कुछ भी सुरक्षित नहीं है. कुसुमजी की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए. इसी परेशानी के आलम में उन की सहेली सविता ने परामर्श दिया कि पास में ही एक पहुंचे हुए ज्योतिषी बाबा हैं. वह बड़े तांत्रिक और सिद्ध पुरुष हैं. कैसा भी राज हो, बाबा को सब मालूम हो जाता है.

कुसुमजी का कभी किसी ज्योतिषी या तांत्रिक से वास्ता नहीं पड़ा था, इसलिए उन के मन में उन के प्रति अविश्वास की कोई भावना नहीं थी. दरअसल, उन के जीवन में ऐसा कोई टेढ़ामेढ़ा मोड़ ही नहीं आया था जिस में से निकलने की कोई उम्मीद ले कर उन्हें किसी बाबा आदि की शरण में जाना पड़ता. सविता का परामर्श मान कर कुसुमजी तैयार हो गईं. उन्हें यह जानने की उत्सुकता अवश्य थी कि अगर सचमुच ज्योतिष नाम की कोई विद्या है तो बाबा से जा कर पूछा जाए कि उन के अपने घर में आखिर कौन चोर हो गया है. जाने कितने गलीकूचों से हो कर कुसुमजी बाबा के पास पहुंचीं. भगवा वस्त्र, माथे पर त्रिपुंड, गले में रुद्राक्ष की माला, बंद आंखें और तेजस्वी मूर्ति. सविता ने उन्हें अपने आने का प्रयोजन बताया और चोर का नाम जानने की इच्छा प्रकट करते हुए बाबा के सामने फलों की टोकरी भेंटस्वरूप रख दी. बाबा ने उस की ओर ध्यान भी नहीं दिया, किंतु उन के शिष्य ने टोकरी उठा कर अंदर पहुंचा दी. बाबा ध्यानावस्थित हुए. कुसुमजी ने बड़ी आशा से उन की ओर देखा, यह सोच कर कि वह पिछले दिनों जिस सवाल का उत्तर खोजतेखोजते थक गई हैं शायद उस का कोई उत्तर बाबा दे सकें.

बाबा की पलकें धीरेधीरे खुलीं, उन्होंने सर्वज्ञ की भांति कुसुमजी पर एक दृष्टि डाली और गंभीर स्वर में घोषणा की, ‘‘चोर घर में ही है.’’ चोर तो घर में ही था. बाहर का कोई आदमी घर में आया ही नहीं था. पर सवाल यह था कि उन के अपने ही घर में चोर था कौन. बाबा ने कहा, ‘‘यह तो घर में आ कर ही बता सकेंगे कि चोर कौन है. हम चोर के मस्तक की लिखावट पढ़ सकते हैं. वारदात के मौके पर होंगे तो चोर से कंबल भी वहीं बरामद करा देंगे.’’ कुसुमजी ने बाबा की बात मान ली. बाबा ने 2 दिन बाद आने का समय दिया. 2 दिन बाद बाबा को लेने के लिए कार भेजी गई. बाबा पधारे. उन के सामने घर के सब लोग चोर की तरह उपस्थित हुए. बड़े आडंबर और दलबल के संग आने वाले बाबा के स्वागतसत्कार के बाद चोर की पहचान का काम शुरू हुआ. बाबा ने घर के हर सदस्य को ‘मैटल डिटेक्टर’ की तरह पैनी निगाहों से देखा.

फिर सिर हिलाया, ‘‘इन में से कोई नहीं है. इन के अलावा घर में कोई नौकरचाकर नहीं है क्या?’’ ‘‘महाराजिन और महरी हैं.’’ ‘‘दोनों को बुलाओ.’’ उन्हें बुलाया गया. वे दोनों गरीब और ईमानदार औरतें थीं. घर में बरसों से काम कर रही थीं. आज तक कभी कोई ऐसीवैसी बात नहीं हुई थी. लेकिन आज उन की चोरों की तरह पेशी हो रही थी. अपमान के कारण उन के मुंह से कोई बात नहीं निकल रही थी. उन्हें डर लग रहा था कि बाबा का क्या, चाहे जो कह दें. बाबा को कौन पकड़ता फिरेगा? सब में अपनी किरकिरी होगी. कही बात और लुटी इज्जत किस काम की? बाबा ने दोनों नौकरानियों की ओर देखा. महरी की ओर उन की रौद्र दृष्टि पड़ी. उंगली से इंगित किया, ‘‘यही है.’’ बेचारी महरी के सिर पर मानो पहाड़ टूट पड़ा. जिस पर घर के मालिक तक भरोसा करते आए थे, उस पर एक बाबा के कहने पर बिना सुबूत चोर होने का इलजाम लगाया जा रहा था. उस ने बड़ी हसरत से मालिकों की ओर देखा.

यह सोच कर कि शायद वे अभी कहेंगे कि नहीं, यह चोर नहीं हो सकती. यह तो बड़े भरोसे की औरत है. गरीब की तो इज्जत ही सब कुछ होती है. लेकिन नहीं. न मालिक बोले, न कोई और ही कुछ बोला. कुसुमजी ने कहा कि पुलिस को बुला लो. बाबा के अधरों पर विजय की मंदमंद मुसकान नाच रही थी. मालिक ने अगले क्षण झपट कर महरी की चोटी पकड़ ली. हमेशा के मितभाषी, मृदुभाषी पति के मुंह से झड़ती फूहड़ गालियों की बौछार से कुसुमजी भी अवाक् रह गईं. उन को भी महरी से कोई सहानुभूति नहीं थी. जिस पर भरोसा किया, वही चोर निकली. जाने कितनी देर तक महरी पिटती रही. मालिक का हाथ चाहे जहां पड़ता रहा. भरेपूरे घर के आंगन में निरीह औरत की पिटाई होती रही.

बाबा की आवाज गूंजी, ‘‘कंबल निकाल.’’ महरी ने महसूस किया कि पीटने वाले का हाथ रुक गया है. कमजोर, थकाटूटा सिसकतासिहरता स्वर निकला, ‘‘कंबल तो नहीं है मेरे पास.’’ ‘‘कहां गया. कहां छिपा दिया?’’ महरी चुप. ‘‘बेच दिया?’’ ‘‘हां,’’ पिटाई से अधमरी हो चुकी महरी के मुंह से एकाएक निकला. घर के सभी लोग सुन कर हैरत से बाबा की तरफ देखने लगे. कैसे त्रिकाल- दर्शी हैं बाबा. जिसे घर में इतने वर्षों काम करते देख कर हम नहीं पहचान सके उस की असलियत इतनी दूर बसे अनजान बाबा की नजरों में कैसे आई? कुसुमजी को ध्यान है कि उस के बाद सब ने मिल कर फैसला किया था कि महरी कंबल के 300 रुपए दे दे. 300 रुपए नकद न होने की हालत में महरी के कान की सोने की बालियां उतरवा ली गई थीं. नौकरी से तो उस की छुट्टी हो ही गई थी. कुसुमजी के सीने से एक बोझ तो हट गया था. चलो, चोर तो पहचाना गया. घर में रहती तो न जाने और कितना नुकसान करती. पहले भी न जाने कितना नुकसान होता रहा है. वह तो विश्वास में मारी गई. खैर, जब जागे, तभी सवेरा. इस परेशानी से निकलने के लिए बाबा की सेवा और भेंट आदि में 500 रुपए खर्च होने का कुसुमजी को कोई अफसोस नहीं था. अफसोस अपने विश्वास के छले जाने का था. आश्चर्य था तो बाबा के सर्वज्ञ होने का, वह कैसे जान गए कि असल चोर कौन था? कंबल की चोरी से घर में उठा यह तूफान थम गया था. पर आज हाथ में पकड़े पोस्टकार्ड को ले कर कुसुमजी फिर उसी तूफान से घिरी हुई थीं. अभी कुछ देर पहले डाकिया जो डाक दे गया है उसी में यह पोस्टकार्ड भी था. उस में लिखा है : ‘‘घर पहुंचा तो मालूम हुआ कि कंबल तो मैं यहीं छोड़ गया था.

आप को जो परेशानी हुई उस के लिए हृदय से क्षमा चाहता हूं. आप का कंबल या तो किसी के हाथ भिजवा दूंगा और नहीं तो आने पर स्वयं लेता आऊंगा.’’ कुसुमजी की आंखों के सामने यह पोस्टकार्ड, कान की वे बालियां, बाबा का गंभीर चेहरा और महरी की कातर दृष्टि सब गड्डमड्ड हो रहे थे. मन- मस्तिष्क में एक तूफान आया जो थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. एक पाखंडी बाबा के चक्कर में पड़ कर उन के हाथों से कितना बड़ा अनर्थ हो गया था.

कोयले की लकीर: क्या हार मान गई विनी

प्रसन्नता की सीमा नहीं थी. एमए का रिजल्ट निकल आया था. 80 प्रतिशत मार्क्स आए थे. अपनी मम्मी सुगंधा के लिए उस ने उन की पसंद की मिठाई खरीदी और घर की तरफ उत्साह से कदम बढ़ा दिए. सुगंधा अपनी बेटी की सफलता से अभिभूत हो गईं.

खुशी से आंखें झिलमिला गईं. दोनों मांबेटी एकदूसरे के गले लग गईं. एकदूसरे का मुंह मीठा करवाया. घर में 2 ही तो लोग थे. विनी के पिता आलोक का देहांत हो गया था. सुगंधा सीधीसरल हाउसवाइफ थीं. पति की पैंशन और दुकानों के किराए से घर का खर्च चल जाता था. शाम को वे कुछ ट्यूशंस भी पढ़ाती थीं. विनी ने ड्राइंग ऐंड पेंटिंग में एमए किया था. आलोक को आर्ट्स में विशेष रुचि थी. विनी की ड्राइंग में रुचि देख कर उन्होंने उसे भी इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया था.

विनी शाम को कुछ बच्चों को ड्राइंग सिखाया करती थी. पेंटिंग के सामान का खर्च वह इन्हीं ट्यूशंस से निकाल लेती थी. सुगंधा ने बेटी को गर्वभरी नजरों से देखते हुए उस से पूछा, ‘‘अब आगे क्या इरादा है?’’ फिर विनी के जवाब देने से पहले ही उसे छेड़ने लगी, ‘‘लड़का ढूंढ़ा जाए?’’ विनी ने आंखें तरेरीं, ‘‘नहीं, अभी नहीं, अभी मुझे बहुतकुछ करना है.’’ ‘‘क्या सोचा है?’’ ‘‘पीएचडी करनी है. सोच रही हूं आज ही शेखर सर से मिल आती हूं. उन्हें ही अपना गाइड बनाना चाहती हूं. मां, आप को पता है, उन में मुझे पापा की छवि दिखती है. बस, वे मुझे अपने अंडर में काम करने दें.’’ ‘‘मैं तुम्हारे भविष्य में कोई बाधा नहीं बनूंगी, खूब पढ़ाई करो, आगे बढ़ो.’’ विनी अपनी मां की बांहों में छोटी बच्ची की तरह समा गई. सुगंधा ने भी उसे खूब प्यार किया. सुगंधा को अपनी मेहनती, मेधावी बेटी पर नाज था.

रुड़की के आरपी कालेज में एमए करने के बाद वह अपने प्रोफैसर शेखर के अधीन ही पीएचडी करना चाहती थी. शेखर का बेटा रजत विनी का बहुत अच्छा दोस्त था. बचपन से दोनों साथ पढ़े थे. पर रजत को आर्ट्स में रुचि नहीं थी, वह इंजीनियरिंग कर अब जौब की तलाश में था. दोनों हर सुखदुख बांटते थे, एकदूसरे के घर भी आनाजाना लगा रहता था. इन दोनों की दोस्ती के कारण दोनों परिवारों में भी कभीकभी मुलाकात होती रहती थी. विनी ने रजत को फोन कर अपना रिजल्ट और आगे की इच्छा बताई. रजत बहुत खुश हुआ, ‘‘अरे, यह तो बहुत अच्छा रहेगा. पापा बिलकुल सही गाइड रहेंगे. किसी अंजान प्रोफैसर के साथ काम करने से अच्छा यही रहेगा कि तुम पापा के अंडर में ही काम करो. आज ही आ जाओ घर, पापा से बात कर लो.’’ शाम को ही विनी मिठाई ले कर रजत के घर गई. शेखर के पास कुछ स्टूडैंट्स बैठे थे. विनी का बचपन से ही घर में आनाजाना था. वह निसंकोच अंदर चली गई.

शेखर की पत्नी राधा विनी पर खूब स्नेह लुटाती थी. रजत और राधा के साथ बैठ कर विनी गप्पें मारने लगी. थोड़ी देर में शेखर भी उन के साथ शामिल हो गए. दोनों ने उस की सफलता पर शुभाशीष दिए. उस की पीएचडी की इच्छा जान कर शेखर ने कहा, ‘‘ठीक है, अभी कुछ दिन लाइब्रेरी में सभी बुक्स देखो. किसकिस टौपिक पर काम हो चुका है, किस टौपिक पर रिसर्च होनी चाहिए, पहले वह डिसाइड करेंगे. फिर उस पर काम करेंगे. अभी कालेज की लाइब्रेरी में काफी नई बुक्स आई हैं, उन पर एक नजर डाल लो. देखो, क्या आइडिया आता है तुम्हें.’’ विनी उत्साहपूर्वक बोली, ‘‘सर, कल से ही लाइब्रेरी जाऊंगी. शेखर कालेज में विनी का पीरियड लेते थे. विनी उन्हें सर कहने लगी थी. रजत ने हमेशा की तरह टोका, ‘‘अरे, घर में तो पापा को सर मत कहो, विनी, अंकल कहो.’’ विनी हंस पड़ी, ‘‘नहीं, सर ही ठीक है, कहीं अंकल कहने की आदत हो गई और क्लास में मुंह से अंकल निकल गया तो क्या होगा, यह सोचो.

’’ सब विनी की इस बात पर हंस पड़े. विनी ने जातेजाते शेखर के रूम में नजर डाली. शेखर की पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगती रहती थी. वह शेखर का बहुत सम्मान करती थी. हर पेंटिंग में स्त्री के अलगअलग भाव मुखर हो उठे थे. कहीं शक्ति बनी स्त्री, कहीं मातृत्व में डूबी स्त्री आकृति, कहीं प्रेयसी का रूप धरे मनोहारी आकृति, कहीं आराध्य का रूप लिए ओजपूर्ण स्त्री आकृति. शेखर के काम की मन ही मन सराहना करती हुई विनी घर लौट आई और सुगंधा को शेखर की सलाह बताई. अगले दिन से ही विनी लाइब्रेरी में किताबें पढ़ने में बिजी रहने लगी. 15 दिनों की खोजबीन के बाद उसे एक विषय सूझा. वह उत्साहित सी शेखर के घर की तरफ बढ़ गई. उसे पता था, रजत अपने दोस्तों के साथ कहीं गया हुआ था.

राधा तो अकसर घर में ही रहती थी. पर शाम को जिस समय विनी शेखर के घर पहुंची, राधा किसी काम से कहीं गई हुई थीं. शेखर घर में अकेले थे. विनी ने उन्हें विश किया. उन के हालचाल पूछे. पूछा, ‘‘आंटी नहीं हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘अभी आ जाएंगी.’’ ‘‘आज बाकी स्टूडैंट्स नहीं हैं?’’ ‘‘नहीं आजकल उन्हें कुछ काम दिया हुआ है, पूरा कर के आएंगे.’’ ‘‘सर, मैं ने लाइब्रेरी में काफीकुछ देखा, ‘भारतीय गुफाओं में भित्ति चित्रण’ इस पर कुछ काम कर सकते हैं?’’ ‘‘हां, शाबाश, कुछ विषय और देख लो, फिर फाइनल करेंगे,’’ शेखर आज उस के सामने बैठ कर जिस तरह उसे देख रहे थे, विनी कुछ असहज सी हुई. वह जाने के लिए उठती हुई बोली, ‘‘ठीक है, सर, मैं अभी और पढ़ कर आऊंगी.’’

सच है, गृहस्थ हो या संन्यासी, सभी पुरुषों के अंदर एक आदिम पाश्विक वृत्ति छिपी रहती है. किस रूप में, किस उम्र में वह पशु जाग कर अपना वीभत्स रूप दिखाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. ‘‘रुको जरा, विनी मेरे लिए एक कप चाय बना दो. कुछ सिरदर्द है,’’ विनी धर्मसंकट में फंस गई. उस का दिमाग कह रहा था, फौरन चली जा, पर पिता की सी छवि वाले गुरु की बात टालने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी. फिर अपने दिल को ही समझा लिया, नहीं, उस का वहम ही होगा. आजकल माहौल ही ऐसा है न, डर लगा ही रहता है. ‘जी, सर’ कहती हुई वह किचन की तरफ बढ़ गई.

उसे अपने पीछे दरवाजा बंद करने की आहट मिली तो वह चौंक गई. शेखर उस की तरफ आ रहे थे. चेहरे पर न पिता की सी छवि दिखी, न गुरु के से भाव, विनी को उन के चेहरे पर कुटिल मुसकान दिखी. उसे महसूस हुआ जैसे वह किसी खतरे में है. शेखर एकदम उस के पास आ कर खड़े हो गए. उस के कंधों पर हाथ रखा तो विनी पीछे हटने लगी. नारी हर उम्र में पुरुष के अनुचित स्पर्श को भांप लेती है. शेखर बोले, ‘‘घबराओ मत, यह तो अब चलता ही रहेगा. थोड़े और करीब आ जाएं हम दोनों, तो रिसर्च करने में तुम्हें आसानी होगी. तुम्हारी हर मदद करूंगा मैं.’’ नागिन सी फुंफकार उठी विनी, ‘‘शर्म नहीं आती आप को? आप की बेटी जैसी हूं मैं. आप में हमेशा पिता की छवि दिखी है मुझे.’’ ‘‘मैं ने तो तुम्हें कभी बेटी नहीं समझा. तुम अपने मन में मेरे बारे में क्या सोचती हो, उस से मुझे जरा भी मतलब नहीं. आओ मेरे साथ.’’ विनी ने पीछे हटते हुए कहा, ‘‘मैं आंटी, रजत सब को बताऊंगी, आप की यह गिरी हुई हरकत छिपी नहीं रहेगी.’’ ‘‘बाद में बताती रहना, मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा,’’

कहते हुए उस का हाथ पकड़ कर बलिष्ठ शेखर उसे बैडरूम तक ले गए. विनी ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश में उन्हें काफी धक्के दिए. उन का हाथ दांतों से काट भी लिया. पर उन के सिर पर ऐसा शैतान सवार था कि विनी के रोके न रुका और दुर्घटना घट गई. सालों का आदर, विश्वास सब रेत की तरह ढहता चला गया. विनी ने रोरो कर चीखचीख कर शोर मचाया. तो शेखर ने कहा, ‘‘चुपचाप चली जाओ यहां से और जो हुआ उसे भूल जाओ. इसी में तुम्हारी भलाई है. किसी को बताओगी भी, तो जानती हो न, कितने सवालों के घेरे में फंस जाओगी. परिवार, समाज में मेरी इमेज का अंदाजा तो है ही तुम्हें.’’ ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी मैं,’’ विनी चिल्लाई, ‘‘आने दो आंटी को, उन्हें और रजत को आप की करतूत बताए बिना मैं कहीं नहीं जाने वाली,’’ शेखर को अब हैरानी हुई, ‘‘बेवकूफी मत करो बदनाम हो जाओगी, कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी, समाज रोज तुम पर ही नएनए ढंग से कीचड़ उछालेगा, पुरुष का कुछ बिगड़ा है कभी?’’ विनी नफरतभरे स्वर में गुर्राई, ‘‘आप ने मेरा रेप किया है,

आप मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’ शेखर ने तो सोचा था विनी रोधो कर चुपचाप चली जाएगी पर वह तो अभी वैसी की वैसी बैठी हुई उन्हें गालियां दिए जा रही थी. हिली भी नहीं थी. इस स्थिति की तो उन्होंने कल्पना ही नहीं की थी. डोरबेल बजी तो उन के पसीने छूट गए, बोले, ‘‘भागो यहां से, जल्दी.’’ ‘‘मैं कहीं नहीं जा रही.’’ डोरबेल दोबारा बजी तो शेखर के हाथपैर फूल गए, दरवाजा खोला, राधा थीं. शेखर का उड़ा चेहरा देख चौंकी, ‘‘क्या हुआ?’’ शेखर इतना ही बोले, ‘‘सौरी, राधा.’’ ‘‘क्या हुआ, शेखर?’’ तभी बैडरूम से ‘आंटी’ कह कर विनी के तेजी से रोने की आवाज आई. राधा भागीं. बैड पर अर्धनग्न, बेहाल, रोने से फैले काजल की गालों पर सबकुछ स्पष्ट करती रेखा, बिखरे बाल, कराहतीरोती विनी राधा की बांहों में निढाल हो गईं. राधा जैसे पत्थर की बुत बन गई. विनी की हालत देख कर सबकुछ समझ गईं. फूटफूट कर रो पड़ीं. शेखर को धिक्कार उठीं, ‘‘यह क्या किया, हमारी बच्ची जैसी है यह. यह कुकर्म क्यों कर दिया? नफरत हो रही है तुम से.’’ राधा का रौद्र रूप देख कर शेखर सकपकाए. राधा ने उन की तरफ थूक दिया. तनमन में ऐसी आग लगी थी कि विनी को एक तरफ कर पास के कमरे में अगले हफ्ते होने वाली प्रदर्शनी के लिए रखी शेखर की तैयार 10-15 पेंटिंग्स पर वहीं रखे काले रंग से स्त्री के महान रूपों की तस्वीरों में कालिख भरती चली गईं. विनी को फिर अपने से चिपटा लिया. शेखर चुपचाप वहीं रखी एक चेयर पर बैठ गए थे. दोनों रोती रहीं, राधा और सुगंधा के अच्छे संबंध थे.

राधा ने सुगंधा को फोन किया और फौरन आने के लिए कहा. घर थोड़ी ही दूर था. सुगंधा और रजत लगभग साथसाथ ही घर में घुसे. सब स्थिति समझ कर सुगंधा तो विनी को, अपनी मृगछौने सी प्यारी बेटी को, गले से लगा कर बिलख उठी. रजत ने उन्हें संभाला. रजत ने रोते हुए विनी के आगे हाथ जोड़ दिए, ‘‘बहुत शर्मिंदा हूं, विनी, अब इस आदमी से मेरा कोई संबंध नहीं है.’’ राधा भी दृढ़ स्वर में बोल उठीं, ‘‘और मेरा भी कोई संबंध नहीं. रजत, मैं इस आदमी के साथ अब नहीं रहूंगी,’’ रजत विनी की हालत देख कर फूटफूट कर रो रहा था. बचपन की प्यारी सी दोस्त का यह हाल. वह भी उस के पिता ने, घिन्न आ रही थी उसे. सुगंधा का विलाप भी थमने का नाम नहीं ले रहा था. राधा कभी सुगंधा से माफी मांगती, कभी विनी से. शेखर को छोड़ कर सब गहरे दुख में डूबे थे. वे सोच रहे थे, सब रोधो कर अभी शांत हो जाएंगे. राधा कह रही थी, ‘‘काश, मैं विधवा होती, ऐसे पशु पति का साथ तो न होता. अपरिचितों से तो ये परिचित अधिक खतरनाक होते हैं. ये कुछ भी करें, इन्हें पता है, कोई कुछ बोलेगा नहीं. पर ऐसा नहीं होगा.’’ विनी के मुंह से जैसे ही निकला, ‘‘मेरा जीवन तो बरबाद हो गया,’’ राधा ने तुरंत कहा, ‘‘तुम्हारा क्यों बरबाद होगा, बेटी, तुम ने क्या किया है. तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है.

अपने दिल पर यह बोझ मत रखना. इस दुष्कर्म को याद ही नहीं रखना. दुखी नहीं रहना है तुम्हें. पाप कोई और करे, दुखी कोई और हो, यह कहां का न्याय है?’’ राधा के शब्दों से जैसे सुगंधा भी होश में आई. यह समय उस के रोने का कहां था. यह तो बेटी को मानसिक संबल देने की घड़ी थी. अपने आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘नहीं विनी, इस घृणित इंसान का दिया घाव जल्दी नहीं भरेगा, जानती हूं, पर भरेगा जरूर, यह भी भरोसा रखो. समझ लेना बेटा, सड़क पर चलते हुए किसी कुत्ते ने काट खाया है. इस दुष्कर्मी का कुकर्म मेरी बेटी के आत्मविश्वास की मजबूत चट्टान को भरभरा कर गिरा नहीं सकता.’’ विनी फिर रोने लगी, सिसकते हुए बोली, ‘‘मेरे सारे वजूद पर कालिख सी पोत दी गई है, कैसे जिऊंगी,’’ रजत उस के पास ही जमीन पर बैठते हुए बोला, ‘‘विनी, ताजमहल की सुंदरता ऐसे दुष्कर्मियों की खींची कोयले की लकीरों से खराब नहीं होती. इस लकीर पर पानी डालते हुए सिर ऊंचा रख कर आगे बढ़ना है तुम्हें. हम सब तुम्हारे साथ हैं. तुम्हारा जीवन यहां रुकेगा नहीं. बहुत आगे बढ़ेगा,’’

और फिर शेखर की तरफ देखता हुआ बोला, ‘‘और आप को तो मैं सजा दिलवा कर रहूंगा.’’ बात इस हद तक पहुंच जाएगी, इस की तो शेखर ने कल्पना भी नहीं की थी. अपने अधीन पीएचडी करने वाली अन्य छात्राओं का भी वे शारीरिक शोषण करते आए थे. किसी ने उन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की थी. उन्हें किसी का डर नहीं था. इस तरह के किसी भी आदमी को समाज, परिवार या कानून का डर नहीं होता क्योंकि उन के पास इज्जत, पद का ऐसा लबादा होता है जिस से नीचे की गंदगी कोई चाह कर भी नहीं देख सकता. वे कमजोर सी, आम परिवार की छात्राओं को अपना शिकार बनाया करते थे. विनी के बारे में भी यही सोचा था कि मांबेटी रोधो कर इज्जत के डर से चुप ही रह जाएंगी. पर उन की पत्नी और पुत्र ने स्थिति बदल दी थी. अब जो हो रहा था, वे हैरान थे. अकल्पनीय था. पत्नी और पुत्र के सामने शर्मिंदा होना पड़ गया था. राधा उठ कर खड़ी हो गई थी, ‘‘रजत, मैं इस घर में नहीं रहूंगी.’’ ‘‘हां, मां, मैं भी नहीं रह सकता.’’ शेखर ने उपहासपूर्वक पूछा, ‘‘कहां जाओगे दोनों? बड़ीबड़ी बातें तो कर रहे हो, कोई और ठिकाना है?’’ अपमान की पीड़ा से राधा तड़प उठी, ‘‘तुम्हारे जैसे बलात्कारी पुरुष के साथ रह कर सुविधाओं वाला जीवन नहीं चाहिए मुझे, मांबेटा कहीं भी रह लेंगे.

तुम से संबंध नहीं रखेंगे. तुम्हें सजा मिल कर रहेगी. ‘‘आज अपने बेटे के साथ मिल कर एक निर्दोष लड़की को एक साहस, एक सुरक्षा का एहसास सौंपना है. धरोहर के रूप में अपनी आने वाली पीढि़यों को भी यही सौंपना होगा.’’ राधा आगे बोली, ‘‘चलो रजत, मैं यह टूटन, यह शोषण स्वीकार नहीं करूंगी. अपने घर के अंदर अगर इस घिनौनी करतूत का विरोध नहीं किया तो बाहर भी औरत कैसे लड़ पाएगी और हमेशा रिश्तों की आड़ में शोषित ही होती रहेगी. परिवार की इज्जत, रिश्तेदारी और समाज के खयाल से मैं चुप नहीं रहूंगी.’’ सुगंधा भी विनी को संभालते हुए उस का हाथ पकड़ कर जाने के लिए खड़ी हो गईं. अचानक कुछ सोच कर बोली, ‘‘राधा, चाहो तो आज से तुम दोनों हमारे घर में रह सकते हो.’’ रजत उन के पैरों में झुक गया, ‘‘हां, आंटी, मैं भी आ रहा हूं आप के घर. चलो मां, अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी है. साथ रहेंगे तो अच्छा रहेगा. और विनी, तुम एक दिन भी इस कुकर्मी के कुकर्म को याद कर दुखी नहीं होगी. तुम्हें बहुत काम है. नया गाइड ढूढ़ंना है. पीएचडी करनी है.

इस आदमी की रिपोर्ट करनी है. इसे कोर्ट में घसीटना है. सजा दिलवानी है. बहुत काम है. विनी, चलो,’’ चारों उन के ऊपर नफरतभरी नजर डाल कर निकल गए. अब शेखर को साफसाफ दिख रहा था कि अब उन के किए की सजा उन्हें मिल कर रहेगी. अगर विनी और सुगंधा अकेले होते तो कमजोर पड़ सकते थे. पर अब चारों साथ थे, तो उन की हार तय थी. कितनी ही छात्राओं के साथ किया बलात्कार उन की आंखों के आगे घूम गया. वे सिर पकड़ कर बैठे रह गए थे. वे चारों गंभीर, चुपचाप चले जा रहे थे. ऐसे समाज से निबटना था जो बलात्कार की शिकार लड़की को ही सवालों के कठघरे में खड़ा कर देता है. उस के साथ ऐसा व्यवहार करता है जैसे उस ने कोई गुनाह किया हो. शारीरिक और मानसिक रूप से पहले से ही आहत लड़की को और सताया जाता है. लेकिन, इन चारों के इरादे, हौसले मजबूत थे. समाज की चिंता नहीं थी. लड़ाई मुश्किल, लंबी थी पर चारों के दिलों में इस लड़ाई में जीत का एहसास अपनी जगह बना चुका था. हार का संशय भी नहीं था. जीत निश्चित थी.

ऐसा भी होता है मनोहरजी का बेटा अपनी मां को लेने गांव आया था. उन की बहू का बच्चा होने वाला था. इसलिए बेटा मां को मुंबई ले जा रहा था. वह मनोहरजी के लिए पैंटकमीज का कपड़ा मुंबई से लाया था. बेटे ने कपड़ा मनोहरजी को देते हुए कहा, ‘‘इसे सिलवा लीजिएगा, आप पर बहुत अच्छा लगेगा.’’ पिताजी ने कहा, ‘‘इस की क्या जरूरत थी, मुझे धोतीकुरते में ही आराम मिलता है.’’ मनोहरजी कपड़े पा कर बहुत प्रसन्न थे. उन्होंने दर्जी को दे कर अपनी नाप की पैंटशर्ट सिलवा ली. कपड़े उन्होंने पहन कर नापे, वे खुद को बहुत सुंदर महसूस कर रहे थे. एक महीने बाद खबर आई कि बहू ने एक बेटे को जन्म दिया है. बेटे के जन्मोत्सव के लिए बेटे ने उन्हें भी मुंबई बुलाया था. वे मुंबई जाने की तैयारी करने लगे. नियत समय पर वे मुंबई पहुंचे. बेटा उन्हें लेने के लिए आया हुआ था. जब वे बेटे के घर पहुंचे तो बहुत प्रसन्न थे कि उस का रहनसहन कितना ऊंचा है. उन का बेटा कितना बड़ा अफसर है, उस के कितने ठाटबाट हैं. बेटे के जन्मोत्सव की पार्टी रखी गई. घर में तैयारी चल रही थी.

शाम को सभी लोग पार्टी के लिए तैयार हो रहे थे. मनोहरजी अपनी वही पैंटशर्ट पहने तैयार हुए जो उन का बेटा उन्हें गांव में दे गया था. बेटे ने जब उन्हें उन कपड़ों में देखा, तो चीखते हुए बोला, ‘‘आप के पास यही कपड़े पहनने को हैं.’’ बहू भी दौड़ती हुई आई कि क्या हो गया. तब बहू पिताजी को ले कर कमरे में आई और पिताजी से बोली, ‘‘आप दूसरे कपड़े पहन लीजिए. ये कपड़े यहां के इंजीनियरों की यूनिफौर्म के हैं. इंजीनियर को साल में 2 जोड़ी कपड़े मिलते हैं. वे उन्हें स्वयं न सिलवा कर अपने रिश्तेदारों में बांट देते हैं या दान कर देते हैं. आप को इन कपड़ों में देख कर लोग क्या सोचेंगे.’’ मनोहरजी बहू की बात सुन कर सकते में आ गए. उन्हें बड़ा दुख हो रहा था कि बेटे ने उन्हें कपड़ा देने के पहले यह बात क्यों नहीं बता दी थी.

सेलेब्रिटीज का अतरंगी फैशन इंस्टाग्राम पर जम कर हो रहा ट्रोल, बन रहे है मीम्‍स

बौलीवुड की दिग्गज एक्ट्रेस इस बार अपने गुस्से की वजह से नही बल्कि पहली बार अपनी ड्रेसिंग सेंस की वजह से सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल हो रही है, जी हां मैं बात कर रही हूं एक्ट्रेस और राज्यसभा की संसद सदस्य जया बच्चन की, जो हाल ही में अनंत अंबानी और राध‍िका अंबानी की शादी में अपने पति अमिताभ बच्चन और बेटी-दामाद, नाती और नात‍िन के साथ नजर आई.

अतरंगी स्टाइल-

जब जया बच्चन ने जियो वर्ल्ड सेंटर में एंट्री की तो उन्होंने खूबसूरत साड़ी के साथ ही नैक में बड़ा सा लंबा हार पहन रखा था जो ज्वेलरी का शोरूम लग रहा था. इसकी वजह से सरकता पल्‍लू हर क‍िसी का ध्‍यान खींच रहा था. दूसरी तरफ जया बच्‍चन जब मीड‍िया के कैमरों के सामने आईं, तो बहुत देर तक उनकी साड़ी का पल्‍लू नीचे ग‍िरा रहा. उन्हें इतना भी ख्याल नही रहा कि उनकी साड़ी का पल्लू गिरा हुआ है. ऐसे में कई लोग सोशल मीड‍िया पर जया के इस ग‍िरे हुए पल्‍लू पर मीम्‍स बना रहे हैं. उनका ये अतरंगी स्टाइल देख कर लोगों को लगा कि ये साड़ी पहनने का कोई नया ट्रेंड होगा, लेकिन उन्हें इस रूप में देखते ही उनकी पोती नव्या ने उन्हें टोका तब जया ने अपना पल्लू जल्दी से ठीक किया.

ड्रेसिंग सेंस पर मीम्स-

आपको बता दे इस अतरंगी फैशन के लिए सिर्फ जया बच्‍चन को ही नहीं, बल्‍कि उनकी बेटी श्‍वेता बच्‍चन नंदा की भी सोशल मीड‍िया पर जमकर ट्रोल किया जा रहा है मां-बेटी की जोड़ी के ड्रेसिंग सेंस को देख कर लोग खूब कमेंट्स कर रहे है. दोनों को लेकर खूब मीम्‍स बन रहे है.

नेकलेस है या सुरक्षा कवच-

अमिताभ और जया बच्चन की बेटी श्‍वेता बच्‍चन इस शादी में गोल्‍डन कलर का लहंगा पहनकर पहुंचीं. इस लहंगे पर गोटा पट्टी का काम था. लहंगे के साथ उन्होंने हैवी नेकलेस पहना था जो किसी को पसंद नही आया नेकलेस के लिए उन्हें लोगों ने ट्रोल करना शुरू कर दिया श्‍वेता का ये हार ‘युद्ध में लड़ने वाले योद्धाओं के कवच’ जैसा लग रहा है.

इस नेकलेस पर कमेंट करते हुए ट्रोलर्स ने कहा कि, “कोई श्‍वेता को बताओ भाई, शादी में जाना था किसी जंग में नहीं. नेकलेस पहनना था भाई, ये सुरक्षा कवच वाली जाली क्यों पहन कर आई है.”

जया बच्चन ने फिल्मों में खूब नाम कमाया अब राजनीति में भी चर्चा में रहती है. वो जब भी कैमरे के सामने आती है तो अक्‍सर उनके गुस्‍से और नाराजगी की ही खबरें सामने आती हैं. खैर अब वो अपनी ड्रेसिंग सेंस और ज्वैलरी की वजह से ट्रोल हो रहीं हैं.

 

New Trend : नीता अंंबानी के स्टाइलिश ब्लाउज में नातीनातिन, पोतेपोतियों के नाम

अपने लुक्स और फैशन स्टाइल को लेकर सोशल मीडिया में चर्चाओं में बनी रहने वाली अंबानी घर की महिलाएं एक बार फिर अपने स्टाइलिश ब्लाउज की वजह से सोशल मीडिया में छाई हुई है. अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के मैरिज फंक्शन में अंबानी परिवार की लेडिज जब ड्रेसअप होकर आई तो किसी की निगाहे उन से हटी नहीं. उन के डिफरेंट और स्टाइलिश ब्लाउज ने एक्ट्रैस के फैशन सेंस को भी मात दे दी. आज हम अपने इस आर्टिकल में इन्हीं स्टाइलिश ब्लाउज के बारे में आप को बताएंगे.

1. एम्ब्रॉयडरी वर्क विद नेम

नीता अंबानी के इस एम्ब्रॉयडरी ब्लाउज ने पूरी महफिल लूट ली थी. इस ब्लाउज को हैवी एम्ब्रॉयडरी वर्क के साथ डिजाइन किया गया था. जिस में नीता अंबानी के बेटे और बेटी के साथसाथ उन के ग्रैंड चिर्ल्डन वेदा, पृथ्वी, कृष्णा और आदित्य के नाम भी लिखे हुए थे. इस के लिए बैक में नेट के फैब्रिक का इस्तेमाल किया गया था. इस के बीच में मां लक्ष्मी के चिन्ह और हाथी के डिजाइन को बनाया गया था. इस के अलावा इस की बाजुओं पर मंत्र को भी लिखवाया था. इस में ब्लाउज में छोटेछोटे लटकन का भी इस्तेमाल किया गया था.

2. ईशा अंबानी का ज्वैलरी वाला ब्लाउज

इस ग्रैंड शादी में चल रहे फंक्शन में ईशा ने एक शानदार ब्लाउज पहना था, जिस में अलगअलग तरह के झुमके और नेकपीस लगे हुए थे. तरहतरह की ज्वैलरी से सजे इस ब्लाउज में ईशा के गहनों और उन के टुकड़ों के साथसाथ गुजरात और राजस्थान के सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्रों से मिले आभूषणों को भी शामिल किया गया था. इस ब्लाउज में कीमती आभूषणों को नए रूप में प्रस्तुत कर के उन का रूप बदल दिया गया था. ईशा के इस ब्लाउज ने सभी को चौंका दिया था और उन का लुक इस में देखते ही बन रहा था. गहनों का इतना अच्छा इस्तेमाल किसी ने सोचा भी नहीं था.

3. सोने का बेहतरीन ब्लाउज

अनंत राधिका की शादी से पहले नीता अंबानी ने अपने घर में एक पूजा रखी. इस पूजा में उन्होंने अबू जानी संदीप खोसला के हैवी कढ़ाई वाले लहंगा चोली को चुना. इस पर सोने के वर्क के साथ मिनट मिरर वर्क किया गया था. लेकिन इस लहंगे की शान था सोने से बना उन का यह ब्लाउज, जो चंदन हार और चांद के धागों से तैयार किया गया था. इस की गोल नेकलाइन पर सितारों के साथ लहंगे की तरह सोनी वर्क से डीटेलिंग की गई, वही स्लीव्स पर भी सेम डिजाइन किया गया था, इस के साथ उन्होंने साटन सिल्क का रॉयल ब्लू दुपट्टा कैरी किया गया था, जो उन्हें महारानी का लुक दे रहा था.

4. श्लोका मेहता का हॉल्टर नेक बो बैक ब्लाउज

श्लोका ने य फैंसी ब्लाउज अनंत और राधिका के संगीत सेरेमनी में पहना था. इस हॉल्टर नेक वाले स्लीवलेस ब्लाउस को छोटेबड़े वाइट पर्ल से सजाया गया है. ये इस के बैक साइड में टीजिंग एलिमेंट एड करते हुए क्रिस्टल से बने बो बैक बटन भी लगे हुए थे. ये ब्लाउज इतना एलिगेंट था कि इस की वजह से उन्होंने गले में कोई जूलरी भी नहीं पहनी थी.

5. राधिका मर्चेंट का कोटी ब्लाउज​

राधिका मर्चेंट ने अपनी शादी के फंक्शन में एक लहंगे के साथ विंटेग कोटी वाला ब्लाउज कैरी किया था. गुलाबी और ऑरेंज कलर की इस कोटी की नेकलाइन ‘वी ‘ थी. जिस की सीध पर नीचे की ओर बटन लगाए गए थे. वहीं, वेस्ट वाले पोर्शन पर हरी रंग की बॉर्डर वाली मोटी पट्टी की फिनिशिंग के साथ दोनों साइड से कट दिया गया था. स्लीव्स को हाफ रखते हुए उस की हेमलाइन पर छोटीछोटी गोल्डन कलर की लटकन लगाई गई थी. जिस की वजह से इस ब्लाउज की खूबसूरती देखते ही बन रही थी.

6. सिंगल शोल्डर ब्लाउज

इस सिंगल शोल्डर ब्लाउज को ईशा अंबानी ने स्टाइल किया था. ईशा ने इस ब्लाउज को ट्यूब स्टाइल में कैरी किया था. इसे मशहूर फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा द्वारा किया गया था. जो देखने में बेहद खूबसूरत लग रहा था. अगर आप भी ईशा अंबानी की तरह ब्लाउज पहनना चाहती है तो आप इसे बनवा सकती हैं और स्टाइल कर सकती हैं. इस में आप एक साइड पर फुल स्लीव्स और दूसरी तरह केवल सिंगल स्ट्रैप डिजाइन को बनवा सकती हैं. इस के अलावा आप इस ब्लाउज डिजाइन को ड्राप शोल्डर या हैंगिंग स्टाइल स्लीव्स की तरह भी बनवाकर लहंगे, साड़ी, स्ट्रैट शरारा के साथ पहन सकती हैं.

7. नीता अंबानी का पिंक एम्ब्रायड्री ब्लाउज​

नीता अंबानी ने इस पिंक कलर के हेवी बंधनी लहंगा के साथ पिंक कलर का ही ब्लाउज कैरी किया था, जिस का फ्रंट और बैक डिजाइन प्लेन था. लेकिन स्लीव्स को हेवी बॉर्डर और बाजुओं पर गोल्डन कढ़ाई के साथ डिजाइन किया गया था. अगर आप भी उन महिलाओं में से है जो सिंपल ब्लाउज कैरी करना पसंद करती हैं, तो नीता अंबानी के इस ब्लाउज डिजाइन को कौपी कर सकती हैं.

8. राधिका मर्चेंट का औफ शोल्डर ब्लाउज

राधिका मर्चेंट ने अपने संगीत सेरेमनी में लहंगे के साथ एक औफ शोल्डर ब्लाउज पर पहना था. इस ब्लाउज की खास बात यह थी कि इस की नेकलाइन और हाथों खूबसूरत डिजाइन और डिटेलिंग थी. इस ब्लाउज ने उन की खूबसूरती में चार चांद लगा दिए.

9. श्लोका मेहता का पफ स्लीव ब्लाउज​

अनंत राधिका के मामेरू फंंक्शन में श्लोका ने अपने पिंत कलर के घाघरे के साथ ऑरेंज रंग की चोली पहनी थी. जिस पर पिंक और गोल्डन सितारों का काम किया गया था. नेक डिजाइन को डायमंड शेप में रखा गया था, जिस में पिंक कलर की पाइपिंग से फिनिशिंग दी गई थी. इस की स्लीव्स बैलून स्टाइल में थी जिस ने लुक को और भी ज्यादा खूबसूरत बनाने का काम किया.

10. ईशा अंबानी का शॉर्ट रफल ब्लाउज​

जब से इंटरनेट पर ईशा अंबानी का शॉर्ट रफल ब्लाउज​ की फोटोज आई हैं, हर कोई उन के लुक की ही तारीफ कर रहा है. ईशा ने इस ब्लाउज की नेकलाइन को स्वीट हार्ट स्टाइल में रखा था. वहीं इस में स्ट्रैप डिजाइन के साथ शॉर्ट फ्लटर स्लीव को अटैच किया गया था, जो ब्लाउज के लुक को परफेक्ट फिनिशिंग दे रही थी. इस की वजह से ब्लाउज की रौनक देखते ही बन रही थी. इस ब्लाउज के फ्रंट और बैक का डिजाइन भी बहुत स्टाइलिश था, जिसे हुक वाला रखा गया था. इस ब्लाउज में टैसल वाली लटकन लगाई गई थी.

अंबानी महिलाओं के ये स्टाइलिश ब्लाउज अब ट्रेड में आ चुके हैं. हर महिला इन्हें पहनना चाहती है. ऐसे में आप भी इन स्टाइलिश ब्लाउज को पहनकर पार्टी में छा सकती है. तो देर किस बात की. जल्द ही इन्हें बुटीक से सिलवाए और अपना जलवा बिखेरे.

अवॉर्ड फंक्शन के दौरान एक्ट्रेस सोनिया बंसल को ले जाया गया कोकिलाबेन हॉस्पिटल. जानें वजह

27 वर्षीय मॉडल एक्ट्रेस सोनिया बंसल जो की कलर्स चैनल के अति चर्चित बिग बॉस 17 में बतौर प्रतियोगी नज़र आ चुकी है . वही सोनिया बंसल नेक्सा स्ट्रीमिंग अकादमी अवार्ड फंक्शन मे रेड कारपेट अटेंड करने पहुंची थी. जहां पर उनकी अचानक तबीयत खराब होने के चलते तुरंत उनको मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भर्ती किया गया. तबीयत खराब होने की वजह पैनिक अटैक बताया गया है जिस वजह से वह ठीक से बोल भी नहीं पा रही. अस्पताल में एडमिट होने के बाद वह क्या बोल रही हैं वह डॉक्टर को भी समझ नहीं आ रहा. सोनिया बंसल फिलहाल डॉक्टर की निगरानी में है और उनका इलाज चल रहा है.

सूत्रों के मुताबिक सोनिया पिछले 4 महीने से मानसिक तौर पर अस्वस्थ है इसकी वजह से उनको पैनिक अटैक आ रहे हैं. जिससे बाहर निकलने के लिए सोनिया काफी मेहनत भी कर रही हैं. उनको यह पैनिक अटैक अचानक से ही आ जाता है. इसी के चलते नेक्सा अवार्ड फंक्शन में रेड कारपेट के दौरान उनको पैनिक अटैक आया. और उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती किया गया

वर्क फ्रंट की बात करें तो सोनिया मॉडलिंग के अलावा तेलुगु और हिंदी फिल्मों की हीरोइन है. और कुछ म्यूजिक वीडियो में जैसे वीनस ग्रुप, टी-सीरीज, ज़ी के म्यूजिक वीडियो में सोनिया हुस्न के जलवे बिखेर चुकी हैं.

इसके अलावा सोनिया माइकल सिनको डिजाइनर के ड्रेस में सज कर 2023 में आईफा अवार्ड का रेट कारपेट भी अटेंड कर चुकी है.

जब एक साथ दो लड़कों से हो जाए प्यार, तो फौलो करें ये Tips and Tricks

आजकल के रिश्ते चाय की चुस्की की तरह सहज हो गए है कल तक जहां लड़के एक नहीं बल्कि कई लड़कियों का औप्शन लेकर चलते थे, वहीं आजकल लड़कियों का दिल भी एक पर जाकर नहीं टिकता वो भी एक से ज्यादा बौयफ्रेंड बनाने से पीछे नहीं हटती बल्कि उनको जो परफेक्ट लगता है, उसको वो बौयफ्रेंड के जोन में रखती हैं. इसके पीछे भी उनके कई कारण होते हैं.

इस बारे में रिलेशनशिप एक्सपर्ट अर्पणा चतुर्वेदी कहती हैं कि आज समय बहुत बदल गया है.अब लड़कियां पहले जैसी नहीं रही कि जहां घर वालों ने बोल दिया वही शादी कर ली.आज की लड़कियां इंडिपेंडेट हो गई हैं. वो अपना लाइफ पार्टनर ऐसा चुनना चाहती हैं जो परफेक्ट हो. इसके लिए उनके पास भी औप्शन की कमी नहीं होती अब वो भी कई लड़को से पहले दोस्ती फिर डेटिंग करने से पीछे नहीं हटती और देख परख कर अपनी लाइफ का फैसला करती है. लड़की को जिस तरह का लड़का पसंद है अगर वो उसको रियल में मिल जाए, तो वो उसको छोड़ना नहीं चाहेंगी और उसे पाने के लिए वो सारे जतन करेंगी जो उसको सही लगते हैं.

पर्सनल डिसीजन

किसी भी लड़की का एक या 2 लड़कों के साथ डेट करना उसका अपना खुद का डिसीजन होता है. उसको अपने डिसीजन पर विश्वास रहता है कि वह जो कर रही है वो कितना सही और गलत है. वह कोई भी कदम ऐसा नहीं उठाती, जिससे उसको बाद में पछताना पड़े.

डेयरिंग लाइफ

एक्सपर्ट का मानना है 2 या 2 ज्यादा लड़को के साथ डेटिंग करने से लाइफ में रोमांच बना रहता है और वह बिना किसी रोक-टोक के अपनी लाइफ एंजाय कर सकती है लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर एक लड़की इस डेयरिंग लाइफ को जी सके.

बोरियत को भगाए दूर

बौयफ्रेंड होने का ये फायदा होता है कि एक के साथ आप दुख दर्द बांट सकते हैं और दूसरे के साथ बोरियत दूर कर सकते हैं इस बारे में एक्सपर्ट का मानना है कि अगर आप अकेलेपन और दुख दर्द से बचना चाहते हैं तो एक से ज्‍यादा लोगों के साथ डेटिंग करना बोरियत और अकेलेपन से बचने का बेहतर तरीका है.

वैल्युएबल नोलेज

कई लोगों के साथ डेटिंग का प्रोसेस वैल्युएबल नोलेज प्रदान करता है जो फ्यूचर में अधिक
सैटिस्फैक्शन रिश्तों की ओर ले जा सकता है. एक्सपर्ट का मानना है जब तक रिश्तों में सैटिस्फैक्शन नहीं होता तब तक रिश्ते लंबे समय तक नहीं चल पाएंगे.

सेल्फकौन्फिडेन्स

कई लोगों के साथ डेटिंग करने से फ्रीडम और सेल्फकॉन्फिडेन्स को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि इमोशनल सपोर्ट के लिए व्यक्ति केवल एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं होता है.

पर्सोनल डेवेलपमेंट

एक से ज्यादा लोगों के साथ डेटिंग करना पर्सोनल डेवेलपमेंट और हैप्पीनेस के लिए एक पौजिटिव और ज्ञानवर्धक अनुभव हो सकता है.आप स्वयं किसी भी बात के लिए डिसीजन लेकर खुश रह सकती हैं.

ब्रेकअप का डर नहीं

इस तरह के रिश्ते में आप इमोशनल रूप से किसी एक के साथ ज्यादा अटैच्ड नही होती, जिससे दिल टूटने का डर भी नहीं रहता है और आप लाइफ को अपने तरीके से एंजॉय करती है.

मिलते है कई औप्शन

एक से ज्यादा लड़को से डेटिंग करने से आपको अपने औप्शन को तलाशने और अलगअलग इंटेरेस्ट आउट पर्सनाल्टी वाले अलगअलग लोगों को जानने का मौका मिलता है.यह अपने बारे में और अपने पार्टनर के बारे में जानने का एक बेहतर तरीका हो सकता है की आप लाइफ में क्या चाहते हैं.

मेंटल हेल्थ के लिए फायदेमंद

एक्सपर्ट का मानना है कि कई लोगों के साथ डेटिंग करना मेंटल हेल्थ के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे अलगअलग सोच को जानने का मौका मिलता है और इससे ये भी पता चलता है कि आप जिस पार्टनर की तलाश में है क्या ये वही है.

एक लड़की का 2 लड़को के साथ डेटिंग करना कितना सही है?

बात जब डेटिंग की होती है, तो 2 पार्टनर के साथ डेट करना प्रौब्लम में डाल सकता है फिर चाहे लड़की हो या लड़का.क्योंकि जब दूसरे पार्टनर को पता चलेगा की आप किसी और के साथ भी इनवाल्व हो तो वह इसे धोखे के रूप में लेगा इसलिए सोचना आपको है की स्वयं के मूल्यों और रिश्ते से आप क्या चाहती हैं.

दूसरों से ज्यादा खुद से प्यार करना है जरूरी, जानें कैसे बने खुद की पहली पसंद

खास कर महिलाओ के लिए तो यह सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि अधिकतर महिलाएं सारा दिन घर परिवार की चिंता व जरूरतों को पूरा करने में लगी रहती हैं जिस के चलते खुद पर ध्यान तक नहीं देती. यहां तक की कुछ पल के लिए भी वो खुद को खुद से मिलने भी नहीं देती.जिससे उसका शरारिक के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य भी कमजोर पड़ने लगता है. लेकिन इससे बचना बहुत ही आसान है जिसके लिए आपको करने होंगे यह काम.

अच्छी नींद लें

सबसे अहम कार्य है अच्छी नींद लेना. जरूरी है कि पूरे दिन में कम से कम 7 घंटे की नींद आवश्यक लें.नींद को लोग हल्के में ले लेते है लेकिन यह हमारे स्वस्थ्य जीवन के लिए इतनी ही जरूरी है जितना की स्वस्थ्य भोजन. अच्छी नींद लेने से दिल स्वस्थ रहता है तनाव कम होता है रक्त शर्करा को स्थिर रखने में मदद मिलती है, वजन कम होता है और यादास्त अच्छी होती है.

अपनी रूचि पर काम करें

एक पल. ऐसा भी आता है जब हम हर चीज से ऊब जाते हैं.रोजाना के रूटीन से बच निकलना चाहते हैं लेकिन ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता.इसके लिए खुद को क्रिएटिव बनाएँ. जिस भी कार्य में आपकी रूचि है या हॉबी रही है उसको निखारे क्योंकि जो काम करने की इच्छा हमारे अंदर समय की व्यस्तता के साथ मन के किसी कोने में दबी रह जाती है वो दबीश कुछ समय बाद हमें दुख देने लगती है इसके लिए अपनी दबी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर कोशिश करें.

ना करना सीखें

हमेशा हां जी वाली जी हजूरी में ना लगी रहें खुद को मल्टी टास्कर दिखाने के चक़्कर में खुद को भूल जाना कहा का इन्साफ है इसलिए उतना ही कार्य करें जितना आपके लिए ठीक हो,ओवरलोड आपको बीमार कर सकता है. जिससे आप चिड़चिड़ेपन, तनाव से घिर सकती हैं इस कारण आपके आसपास का माहौल भी बिगड़ता है.

खानपान

स्वस्थ खानपान स्वस्थ जीवन का मूल आधार होता है और यह बात हर महिला जानती भी है लेकिन खुद पर इस बात को लागु करना भूल जाती है. लेकिन यदि आप स्वस्थ रहेंगी तभी तो अपने प्रियजनों को स्वस्थ रख सकेंगी, इसलिए खुद पर ध्यान देना पहली प्राथमिकता बनाएँ और स्वस्थ आहार अवश्य लें.

खुद को चिल करें

लम्बे रूटीन से छुटी अवश्य लें, जिसके लिए आप महीने में एक बार कहीं घूमने जा सकती हैं, अपने प्रिय जन से अपने मन की बात साझा करें, गुस्से में भी अपने दिमाग़ को तकलीफ ना दें,यदि किसी बात को लेकर मन भारी है तो रो कर मन को हल्का कर लें, रोजाना एक लम्बी वाक आवश्य लें व माइंडफुलनेस एक्सरसाइज करें, इससे मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है व यादास्त अच्छी रहती है.

घर में लगाएं प्राकृतिक मौस्किटो रेपेलेंट पौधे, डेंगू-मलेरिया नहीं आएगा पास

Mosquito Repellent Plants : बारिश का मौसम हो और बीमारियां पास न आए ऐसा होना तो नामुमकिन ही लगता है. क्योंकि जगह जगह जलभराव के कारण मच्छर, किड़ों का पनपना इस मौसम की पहचान व बिमारियों की जड़ बन जाता है.जिनसे बचने के लिए बाजार में मिलने वाले हानिकारक मास्किटो रिप्लीयन्ट प्रयोग करते है कई बार इनसे त्वचा और सेहत को नुकसान पहुंचता हैं. लेकिन बारिश के मौसम में पेड़ पौधों पर बहार आ जाती है और चारो तरफ हरियाली छाने लगती है.ऐसे में आप अपने घर में कुछ ऐसे पौधे लगा सकते हैं जो आपको मछरों से तो बचाते ही हैं साथ ही आपके घर की सुंदरता भी बढ़ाते हैं और शुद्ध वातावरण भी देते हैं.

तुलसी

तुलसी के पौधे की महक मच्छरों को नहीं भाती जिस कारण मच्छर पास नहीं आते. तुलसी के पत्तों को पानी में उबालकर ठंडा कर ले और अपने हाथ पैरों पर लगा लें तो यह मछरो को भी दूर रखेंगा और एलर्जी से भी बचाएगा.

लेमनग्रास

लेमनग्रास के पौधे को घर कि बालकनी या खिड़की पर लगाएं जिससे इसे दो से तीन घंटे की धूप मिल जाए. इस पौधे की गंध इतनी ज्यादा होती है कि मच्छरों को घर के अंदर नहीं आने देती.इस ग्रास से निकलने वाला सिट्रोनेला ऑयल मोमबत्ती, परफ्यूम, लैम्प्स आदि हर्बल प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है.मार्किट में लेमनग्रास का तेल भी मिलता है जिसे आप बॉडी पर लगा सकते हैं.

गेंदा

गेंदा ना सिर्फ आपके आंगन की शोभा बढ़ाता है बल्कि यह मच्छरों से भी बचाता है इसमें स्कोपालेटीन,कैडिनोल जैसे कई तत्व होते हैं जिससे मच्छर व कीड़े मकोड़े दूर रहते हैं.

लैवेंडर

लैवेंडर की सुगंध इंसानों को तो खूब भाती है लेकिन मच्छरों कि दुश्मन कही जाती है मच्छरों को खुद से दूर रखने के लिए इस पौधे को घर में लगाना बहुत लकभकारी सिद्ध होता है लैवेंडर ऑयल को आप स्किन पर भी लगा सकते हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें