लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फायदा लड़कों को ज्यादा होता है या लड़कियों को?

एक समय था जबकि लोग शादी कर के सात जनमों तक साथ रहने की कसमें खाते थे. लेकिन आज के दौर में एक जन्म भी साथ नहीं रह पाते, क्योंकि प्यार करना या शादी करना जितना आसान है, उस शादी को निभा पाना उतना ही मुश्किल है. ऐसा नहीं है कि लोगों का शादी पर से विश्वास उठ गया है या आज के समय में शादियां टिकती नहीं हैं. आज भी कई शादियां चाहे वह ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़े लोगों की हों या आम लोगों की, कई शादियां सालों तक टिकती हैं, जिसे कई बार समझौते का नाम दिया जाता है, क्योंकि ऐसी टिकने वाली शादियों में पति या पत्नी में से किसी एक को घर में शांति बनाए रखने के लिए गलत बातों पर भी समझौता करना पड़ता है, ताकि पतिपत्नी के बीच झगड़ा न हो.

अगर पति बिजनैसमैन या सैलिब्रिटी है तो पत्नी की तरफ से ज्यादा समझौता करना पड़ता है, क्योंकि पति पैसे कमाता है, घर चलाता है और पत्नी हाउसवाइफ या पति पर निर्भर है तो उस पत्नी को अपने पति के दूसरी औरतों से संबंध, लेट नाइट पार्टी से शराब पी कर पत्नी से दुर्व्यवहार करना आदि कई बातों को सहन करना पड़ता है, क्योंकि वह अगर ऐसा नहीं करेगी तो लंबे समय तक चलती आई शादी टूट जाएगी. ऐसे में पति पत्नी को अपना गुलाम बना कर रखता है, जिस के चलते कई बार ऐसी पत्नियां पति से तंग आ कर कई सालों बाद भी तलाक ले लेती हैं.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या लोगों का शादी पर से पूरी तरह विश्वास उठ गया है? क्या शादी अब कैद का बंधन बन गया है? लिवइन रिलेशनशिप में रहने के क्या फायदेनुकसान हैं? लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फायदा लड़कों को ज्यादा होता है या लड़कियों को? पेश है, इसी पर एक तीखी नजर :

कोई आम लड़की हो या बौलीवुड हीरोइन वह शादी करने से या शादी के बंधन में बंधने से कतराती है. शादी के बजाय वह लिवइन रिलेशनशिप में रहना ज्यादा पसंद करती है. इस के पीछे कई सारी वजहें है कि इंडिपैंडैंस होने के बाद वह जिम्मेदारी न के बराबर लेती है, क्योंकि अच्छा पैसा कमाने की वजह से उन्हें घर का काम करने की कोई जरूरत नहीं पड़ती. घर वाले उस लड़की का सारा काम कर देते हैं.

हाल ही में टीवी की एक प्रसिद्ध हीरोइन ने इसी बात के मद्देनजर कहा कि शादी के बाद वह बहुत दुखी हो गई है, क्योंकि उसे घर का काम या घर की कोई जिम्मेदारी उठाने की आदत नहीं है और शादी के बाद सारी जिम्मेदारी उसे उठानी पड़ रही है. ऐसे में शादी करने के बाद पति और बच्चों की जिम्मेदारी उस की आजादी को पूरी तरह खत्म कर देती है, जिस के चलते कई बौलीवुड हीरोइनों ने शादी तो की, लेकिन कुछ सालों बाद ही तलाक भी ले लिया. तलाक के पीछे की वजह पति का दूसरी लड़कियों के साथ गलत संबंध और पति की जीहजूरी करते रहने की दिनचर्या हीरोइनो से बरदाश्त नहीं होती, जिस के चलते बौलीवुड की कई पुरानी हीरोइनों ने भी अपनी शादी तोड़ कर ऐक्टिंग में फिर से प्रवेश किया है.

इसके विपरीत छोटे और बड़े परदे से जुड़ी कई नायिकाएं कई सालों से लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हैं और अपने इस रिश्ते में वे खुश भी हैं. क्योंकि न तो कोई रोकटोक है और न ही इस रिलेशनशिप में कोई एटीट्यूड प्रौब्लम है. साथ में रहने वाले लड़के को पता है कि अगर उस ने नखरे दिखाए तो लड़की कभी भी उस से नाता तोड़ सकती है. और क्योंकि लड़की अच्छा पैसा कमाने वाली है, तो उसे उसे उस लड़के जैसे दस लड़के और मिल जाएंगे, जिस के चलते लिवइन रिलेशनशिप में रहने वाला पार्टनर लड़की के नखरे भी उठाता है और उस की बात भी मानता है.

बौलीवुड सितारे जो लंबे समय से लिवइन रिलेशनशिप में हैं

कैटरीना कैफ सलमान खान के बाद रणबीर कपूर के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह चुकी हैं. बाद में उन्होंने विकी कौशल से शादी कर ली. इसके अलावा रानी मुखर्जी आदित्य चोपड़ा के साथ 6 साल तक रिलेशनशिप रिलेशनशिप में रही थीं. करीना कपूर सैफ अली खान के साथ कई सालों तक रिलेशनशिप में रही थीं. दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह 6 साल रिलेशनशिप में रहे, मलाइका अरोड़ा खान अर्जुन कपूर के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही हैं. करिश्मा कपूर अभिषेक बच्चन के साथ 7 साल तक साथ थीं. करिश्मा कपूर और अभिषेक बच्चन की सगाई तक हो गई थी. समांथा प्रभु 4 साल तक नागा चैतन्य के साथ लिवइन रिलेशनशिप में थीं, पर 4 साल बाद शादी की और फिर तलाक भी हो गया. जौन अब्राहम और बिपाशा बसु काफी सालों तक साथ रहे, लेकिन बाद में उन का ब्रेकअप हो गया. अक्षय कुमार शिल्पा शेट्टी और रवीना टंडन के साथ रिलेशनशिप में रहे, लेकिन बाद में उन की शादी ट्विंकल खन्ना से हुई. सैफ अली खान की बहन सोहा अली खान भी लिवइन रिलेशनशिप में रह चुकी हैं. अंकिता लोखंडे सुशांत सिंह राजपूत के साथ कई सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रहीं, लेकिन बाद में उन का ब्रेकअप हो गया था. दिव्यंका त्रिपाठी शरद मल्होत्रा के साथ कई सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रही हैं.

बौलीवुड हीरोइन लारा दत्ता केली दोरजी के साथ सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रहीं. सिंगर अनुष्का दांडेकर करण कुंद्रा के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह चुकी हैं. रितिक रोशन सुजैन खान से शादी टूटने के बाद अपनी प्रेमिका के साथ 3 सालों से लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. सुष्मिता सेन अपने प्रेमी के साथ, जो फिल्म इंडस्ट्री से नहीं था,, कई सालों तक लिवइन रिलेशनशिप में रहीं, लेकिन बाद में उन का रिश्ता दोस्ती तक ही सीमित रहा.

इस के अलावा कई बौलीवुड हीरोइन हैं, जिन्होंने शादी तो की लेकिन उन की शादी टिकी नहीं जैसे महिमा चौधरी, मनीषा कोइराला, चित्रांगदा सिंह आदि. बड़े परदे के अलावा छोटे परदे पर भी कई ऐसे हीरोइन हैं जो लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हैं जैसे जैस्मिन भसीन अली गोनी के साथ, तेजस्विनी प्रकाश करण कुंद्रा के साथ, लिवइन रिलेशनशिप में रह रही हैं.

लिवइन रिलेशनशिप में रहने के नुकसान

लिवइन रिलेशनशिप में रहने का सब से बड़ा नुकसान यह है कि उन को वह मानसम्मान समाज में नहीं मिलता जो एक पति या पत्नी को मिलता है. चाहे इस रिश्ते में कितनी भी आजादी हो, प्यार हो, लेकिन समाज इस को गलत नजर से ही देखता है. और ऐसे रिश्ते को कहीं भी कोई मान्यता नहीं मिलती. इस रिश्ते की कोई मंजिल नहीं होती और न ही कोई गारंटी होती है. यह रिश्ता आपसी अंडरस्टैंडिंग के साथ चलता है और अगर दोनों में से कोई भी एक बेवफा निकल जाए, तो उसे रोकने का हक भी दूसरे पार्टनर को नहीं होता है. इस के अलावा इस रिश्ते में कई सालों तक साथ रहने के बावजूद दोनों में से अगर कोई मर जाता है तो उस की प्रोपर्टी साथ रहने वाले पार्टनर को नहीं मिलती, बल्कि मरने वाले के रिश्तेदारों को मिल जाती है. यह रिश्ता चाइना के माल की तरह होता है… चला तो चांद तक और न चला तो शाम तक.

बेबस आंखें: क्यों पश्चात्ताप कर रहे थे स्वरा के पिता

‘डियर डैड, गुड मौर्निंग. यह रही आप के लिए ग्रीन टी. आप रेडी हैं मौर्निंग वौक के लिए?’’

‘‘यस, माई डियर डौटर.’’ वह दीवार पर निगाह गड़ाए हुए बोली, ‘‘डैड, यह पेंटिंग कब लगवाई? पहले तो यहां शायद बच्चों वाली कोई पेंटिंग थी.’’

‘‘हां, यह कल ही लगाई है. मैं पिछली बार जब मुंबई गया था तो वहां की आर्ट गैलरी से इसे खरीदा था. क्यों, अच्छी नहीं है क्या?’’

‘बेबस आंखें’ टाइटल मन ही मन पढ़ती हुई वह बोली, ‘‘डैड, आप की कंपनी का ‘लोगो’ भी आंखें है और अब कमरे में इतनी बड़ी पेंटिंग भी खरीद कर लगा ली है. आंखों के साथ कोई खास घटना जुड़ी है क्या?’’ केशव के हाथ जूते के फीते बांधते हुए कांप उठे थे. उन्होंने अपने को संभालते हुए बात बदली, ‘‘स्वरा, तुम विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी हो, अब आगे तुम्हारा क्या इरादा है?’’

‘‘डैड, क्या बात है? आप की तबीयत तो ठीक है न. आज आप के चेहरे पर रोज जैसी ताजगी नहीं दिख रही है. पहले मैं आप का ब्लडप्रैशर चैक करूंगी. उस के बाद घूमने चलेंगे.’’

स्वरा ने डैड का ब्लडप्रैशर चैक किया और बोली, ‘‘ब्लडप्रैशर तो आप का बिलकुल नौर्मल है, फिर क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं, आज तुम्हारी दादी की पुण्यतिथि है, इसलिए उन की याद आ गई.’’

‘‘डैड, आप दादी को बहुत प्यार करते थे?’’

धीमी आवाज में ‘हां’ कहते हुए उन की अंतरात्मा कांप उठी. वे किस मुंह से अपनी बेटी को अपनी सचाई बताएं. उन्होंने फिर बात बदलते हुए कहा, ‘‘तुम ने बताया नहीं कि आगे तुम्हें क्या करना है?’’

‘‘डैड, मैं सोच रही हूं कि आप का औफिस जौइन कर लूं’’ केशव ने प्रसन्नता के अतिरेक में बेटी को गले से लगा लिया, ‘‘मैं बहुत खुश हूं जो मुझे तुम जैसी बेटी मिली.’’

‘‘डैड, आज कुछ खास है?’’

‘‘हां, सुबह 8 बजे हवन और शांतिपाठ. फिर अनाथाश्रम में बच्चों को भोजन व कपड़े बांटना. दोपहर 2 बजे वृद्धाश्रम के नए भवन का उद्घाटन और वहां पर तुम्हारी दादी की मूर्ति का अनावरण. आई हौस्पिटल में कंपनी की ओर से निशुल्क मोतियाबिंद का औपरेशन शिविर लगवाया गया है. शाम 6 बजे औफिस में दादी की स्मृति में जो बुकलैट बनाई गई है उस का वितरण और सभी कर्मचारियों के लिए बोनस की घोषणा. तुम साथ रहोगी न?’’

‘‘यस पापा, क्यों नहीं? मैं दिनभर आप के साथ रहूंगी.’’

‘‘थैंक्स, बेटा.’’

केशव जिस काम में हाथ लगाते हैं, सोना बरसने लगता है. देशभर में उन का व्यापार फैला हुआ है. 20-22 वर्ष के व्यवसायिक दौर में वे देश की जानीमानी हस्ती बन गए हैं. उन्होंने अपना बिजनैस अपनी मां भगवती देवी के नाम पर भगवती स्टील, भगवती फैब्रिक्स, भगवती रियल एस्टेट आदि क्षेत्रों में फैलाया हुआ है. शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने अपना हाथ आजमाया है. ‘भगवती मैनेजमैंट इंस्टिट्यूट’ देश में उच्च श्रेणी में गिना जाता है. दिनभर के व्यस्त कार्यक्रम के बाद केशव रात में जब बैड पर लेटे तो सोचने लगे कि स्वरा को कंपनी जौइन करने के अवसर को वे किस तरह से भव्य बनाएं. फ्रांस के साथ ब्यूटी प्रोडक्ट्स की एक डीड फाइनल स्टेज पर थी. उन्होंने मन ही मन स्वरा फैशन एवं ब्यूटी प्रोडक्ट्स लौंच करने का निश्चय किया. अब उन का मन हलका हो गया था. उन्होंने नींद की गोली खाई और सो गए.

अगली सुबह औफिस पहुंचते ही उन्होंने अपनी सैक्रेटरी जया को बुलाया, ‘‘मेरे आज के अपौइंटमैंट्स बताओ.’’ ‘‘सर, सुबह 10 बजे औफिस के नए प्रोजैक्ट का डिमौंस्ट्रेशन देखना और उस पर बातचीत करनी है. 2 बजे फ्रैंच डैलिगेशन के साथ नई कंपनी को ले कर अपनी मीटिंग है. डीड फाइनल स्टेज पर है. शाम 7 बजे सरकारी अफसरों के साथ मीटिंग है.’’ वे दिनभर काम में लगे रहे. शाम को 6 बजे वे थका हुआ महसूस करने लगे. उन्होंने डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने हाई ब्लडप्रैशर होने की वजह से उन्हें घर पर आराम करने की सलाह दी. वे मीटिंग कैंसिल कर के उदास व मायूस चेहरे के साथ घर पहुंचे. आज वे समय से पहले घर पहुंच गए थे. आलीशान महल जैसी कोठी में नौकरों की भीड़ तो थी परंतु उन का अपना कहने वाला कोई नहीं था. बेटा अंबर अब 22 वर्ष का हो चुका था. दाढ़ीमूंछें आ गई हैं, परंतु उसे छोटे बच्चों सी हरकत करते देख केशव मन ही मन रो पड़ते हैं. वह कौपीपैंसिल ले कर पापापापा लिखता रहता है. वह सहमासिकुड़ा, बड़े से आलीशान कमरे के एक कोने में बैठा हुआ या तो टीवी देखता रहता है या कौपी में पैन से कुछकुछ लिखता रहता है. जब कभी वे उस के खाने के समय पर आ जाते हैं तो डाइनिंग टेबल पर उन को देख कर मुसकरा कर वह खुशी जाहिर करता है.

जिस बेटे के पैदा होने पर उन्होंने घरघर लड्डू बांटे थे उसी बेटे को अपनी आंखों से देख कर वे पलपल मरते हैं और जिस तकलीफदेह पीड़ा से वे गुजरते हैं, यह उन का दिल ही जानता है. दुनिया की दृष्टि में वे सफलतम व्यक्ति हैं परंतु सबकुछ होते हुए भी वे अंदर से हर क्षण आंसू बहाते हैं. पत्नी कनकलता और बेटे अंबर के लिए उन्होंने क्या नहीं किया. परंतु उन के हाथ कुछ नहीं लगा. मांस के लोथड़े जैसे बेटे को गोद में ले कर कनकलता सदमे की शिकार हो गई. एक ओर पत्नी को पड़ने वाले लंबेलंबे दौरे, दूसरी ओर मैंटली रिटार्डेड बच्चा और साथ में बढ़ता हुआ बिजनैस. गरीबी की मार को झेले हुए केशव ने पैसे को प्राथमिकता देते हुए अपने बिजनैस पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन आज अथाह धन होते हुए भी संसार में वे अपने को अकेला महसूस कर रहे थे. बेटी स्वरा ही उन की जिंदगी थी. उस को देखते ही उन्हें पत्नी कनकलता का चेहरा याद आ जाता. वह हूबहू अपनी मां पर गई थी.

अचानक उन की निगाहें घड़ी पर गईं. रात के 9 बज रहे थे. अभी तक स्वरा नहीं आई थी. उन की बेचैनी बढ़ने लगी थी. वह कभी भी देररात तक घर से बाहर नहीं रहती. यदि देर से आना होता था तो वह मैसेज जरूर कर देती थी. वे परेशान हो कर अपने कमरे से बाहर आ कर बरामदे में चहलकदमी करने लगे. तभी उन के फोन की घंटी बज उठी. उस तरफ बेटी स्वरा की घबराई हुई आवाज थी, ‘‘पापा, मेरी गाड़ी का ऐक्सिडैंट…’’ उस के बाद किसी दूसरे आदमी ने फोन ले कर कहा, ‘‘हम लोग इसे अस्पताल ले कर जा रहे हैं. खून बहुत तेजी से बह रहा है, आप तुरंत पहुंचिए.’’ यह खबर सुनते ही केशव अपना होश खो बैठे. यह सब उन के अपने कर्मों का फल था. जब उन के पास पैसा नहीं था तो वे ज्यादा खुश थे. कितने अच्छे दिन थे, उन का छोटा सा परिवार था. वे अपने अतीत में खो गए.

वे थे और थी उन की अम्मा. पिताजी बचपन में ही उन का साथ छोड़ गए थे. अम्मा ने कपड़े सिलसिल कर उन को बड़ा किया. अम्मा ने अपने दम पर उन को पढ़ायालिखाया. उन की नौकरी लगते ही अम्मा को उन के विवाह की सूझी. छोटी उम्र में ही उन की शादी कर दी. पत्नी कनकलता सुंदर और साथ में समझदार भी थी. उन की माली हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी. छोटी सी तनख्वाह में हर समय पैसे की किचकिच से वे परेशान रहते थे. फिर भी जब अम्मा शाम को गरमगरम रोटियां सेंक कर खिलाती थीं तो वे कितनी संतुष्टि महसूस करते थे. परंतु उन की पैसे की हवस ने उन के हाथ से उन की सारी खुशियां छीन लीं. बचपन से ही उन्हें पैसा कमाने की धुन थी. जब वे बहुत छोटे थे तो लौटरी का टिकट खरीदा करते थे. एक बार उन का 1 लाख रुपए का इनाम भी निकला था. दिनरात पैसा कमाने की नित नई तरकीबें उन के दिमाग में घूमती रहती थीं. एक दिन अखबार में उन्होंने एक चलती हुई फैक्टरी के बहुत कम कीमत में बिकने का विज्ञापन पढ़ा. उन्होंने मन ही मन उस फैक्टरी को हर सूरत में खरीदने का निश्चय कर लिया.

स्वरा का जन्म हो चुका था. खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो गया था. उन्होंने फैक्टरी खरीदने के लिए अम्मा को घर बेचने पर मजबूर कर दिया. अम्मा बेटे की जिद और जबरदस्ती देख, सकते में थीं.

वे रोती हुई बोली थीं, ‘लल्ला, हम रहेंगे कहां?’ ‘अम्मा, कुछ दिनों की ही तो बात है, मैं आप को बहुत बड़ी कोठी खरीद कर दूंगा. यह मेरा वादा है आप से.’ अम्मा ने सिसकते हुए बहती आंखों से कागज पर दस्तखत कर दिए थे. लेकिन अपने नालायक बेटे की शक्ल से उस समय उन्हें नफरत हो रही थी. अपनी मजबूरी पर वे रातदिन आंसू बहाती थीं. घर खाली करते समय वे अपने घर को अपनी सूनी, पथराई आंखों से घंटों निहारती रही थीं. घर बिकने के सदमे से अम्मा उबर नहीं पा रही थीं. वे न तो ढंग से खाती थीं, न किसी से बात करती थीं. बस, हर समय चुपचाप आंसू बहाती रहती थीं.

एक दिन पड़ोस की मंगला मौसी,  जोकि अम्मा की बहन जैसी थीं,  उन से मिलने आईं, ‘क्या कर रही हो, बहन?’ आंसू पोंछते हुए अम्मा बोलीं, ‘कुछ नहीं मंगला, इस घर में मेरा बिलकुल भी मन नहीं लग रहा है. मुझे यहां अच्छा नहीं लगता. वहां सब लोग कैसे हैं?’ ‘सब अपनीअपनी दालरोटी में लगे हुए हैं. हां, हम चारधाम की यात्रा पर जा रहे हैं.’

अम्मा लहक कर बोलीं, ‘चारधाम, मेरे तो सब धाम यहीं हैं. अब तो मर कर ही घर से निकलेंगे.’ ‘अपने लोगों की तो सारी जिंदगी बेटाबेटी और चूल्हेचौके में बीत गई. कुछ कभी अपने बारे में भी सोचोगी?’

‘तीर्थयात्रा में जाने का तो बहुत मन है, लेकिन क्या करूं, स्वरा अभी छोटी है. नई जगह है. अकेली बहू को छोड़ कर कैसे जाऊं?’ ‘मैं तो चारधाम यात्रा वाली सरकारी बस से यात्रा पर जा रही हूं. किसी तरह रोतेधोते, हायहाय कर के यह जिंदगी बिताई है. कुछ ज्यादा नहीं कर सकती तो चारधाम की यात्रा ही कर आऊं.’

‘बहुत अच्छा सोचा है, बहन.’

‘मेरी तो आवर्ती जमा की एक स्कीम पूरी हुई थी. उस के 4 हजार रुपए मिले थे. एक हजार रुपए कम पड़ रहे थे तो रंजीत से कहा. उस ने मुंह बनाया लेकिन बहू अच्छी है, उस ने रंजीत से कहसुन कर दिलवा दिया. अब वह मेरे जाने की तैयारी में लगी हुई है.’ अम्मा उत्सुक हो कर बोलीं, ‘कब जाना है?’

‘अभी तो जाने में एक महीना बाकी है. लेकिन बुकिंग तो अभी से करवानी पड़ेगी. जब पूरी सीटें भर जाएंगी तभी तो बस जाएगी.’ तभी बहू कनकलता चाय ले कर अंदर आई तो अम्मा उसे सुनाते हुए बोलीं, मैं भला कैसे जा पाऊंगी, बिटिया छोटी है. केशव को रातदिन अपनी फैक्टरी के सिवा किसी बात से मतलब नहीं है. बहू को छोड़ कर मैं नहीं जाऊंगी.’

‘बहन, तुम भी खूब हो इस उम्र में तीर्थयात्रा पर नहीं जाओगी तो कब जाओगी, जब हाथपैर बेकार हो जाएंगे? बिस्तर पर लेटेलेटे सोचती रहना कि सब मन की मन में ही रह गई. हम ने सब का किया लेकिन अपने लिए कुछ न कर पाए. रुपए तो तुम ने भी जोड़ कर रखे ही होंगे. काहे को किसी के आगे हाथ पसारो. चेन की ओर इशारा करती हुई वह बोली, गले में सोने की जंजीर न पहनोगी तो कुछ बिगड़ थोड़े ही जाएगा. फिर तुम्हारा जैसा मन हो, वैसा करो. लेकिन जीवन में मौके बारबार नहीं मिलते.’ ‘अरे नहीं, तुम ने बहुत अच्छा किया जो मुझे बता दिया. तीर्थयात्रा पर तो जाने का मेरा भी मन कब से है. लेकिन कोई बात नहीं, भविष्य में कभी जाएंगे.’ ड्राइवर की आवाज से केशव की

विचारशृंखला भंग हुई. वे वर्तमान में लौटते ही स्वरा स्वरा पुकारने लगे. इमरजैंसी वार्ड के बाहर स्वरा को चहलकदमी करता देख उन के कलेजे में ठंडक पड़ी. उन्होंने दौड़ कर स्वरा को सीने से लगा लिया. उन की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

‘‘बेटी, तुम्हें ठीक देख मेरी जान में जान आई. वह तो कह रहा था, खून बहुत बह रहा था.’’

‘‘पापा, राधे काका के सिर में चोट आई है. उन की हालत सीरियस है.’’ वे तेजी से दौड़ कर डाक्टर के पास गए और उस का अच्छा से अच्छा इलाज करने को कहा. राधे की पत्नी और बेटे को सांत्वना देते हुए बोले, ‘‘तुम लोगों को घबराने को जरूरत नहीं है. मैं ने डाक्टर से बात कर ली है. मैं इन का अच्छा से अच्छा इलाज करवाऊंगा. तुम लोगों का घरखर्च के लिए रुपए घर पर पहुंच जाएंगे. इस के सिवा तुम्हें आधी रात को भी कोई जरूरत हो तो निसंकोच मुझे फोन करना.’’

‘‘मालिक, आप की कृपा है,’’ रोती हुई राधे की पत्नी बोली थी. अब केशव स्वरा की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘बेटी, तुम्हें फोन कर के अपनी कुशलता की खबर देनी चाहिए थी कि नहीं? ऐक्सिडैंट शब्द सुनते ही मेरे तो प्राण सूख गए थे.’’

‘‘पापा, मैं ने कई बार आप को फोन किया, परंतु आप ने फोन ही नहीं उठाया.’’ केशव ने अपना फोन निकाल कर देखा, उस में स्वरा के 6 मिस्डकौल थे. जाने कैसे फोन साइलैंट मोड पर चला गया था. राधे की हालत नाजुक थी, इसलिए केशव ने रात को वहीं रुकने का निश्चय किया. स्वरा अकेले घर जाने को तैयार नहीं थी, इसलिए अस्पताल के ही एक प्राइवेट रूम में दोनों जा कर बैठ गए. बेटी स्वरा के ऐक्सिडैंट की खबर से आज वे ऐसी मानसिक यंत्रणा से गुजरे थे कि उन का संपूर्ण अस्तित्व ही हिल उठा था. अपने जीवन में घटने वाली हर दुर्घटना के लिए उन्होंने हमेशा स्वयं के द्वारा किए गए अपराध की वजह से अपने को ही दोषी मानते आए थे. आज उन्होंने मन ही मन पूर्ण निश्चय कर लिया था कि वे आज अपनी बेटी के समक्ष अपने गुनाह को स्वीकार कर के अपने दिल का बोझ हलका कर लेंगे. अब उन के लिए यह बोझ असहनीय हो चुका है.

मन ही मन सोचना और मुंह से बोलना 2 अलग अलग बातें हैं. ऊहापोह की बेचैन मानसिक अवस्था में वे लगातार चहलकदमी कर रहे थे. ‘पापा, राधे काका ठीक हो जाएंगे. आप इतना परेशान क्यों हैं?’’

‘‘स्वरा, मैं बहुत नर्वस हूं. मैं तुम से कैसे कहूं अपने दिल का हाल. पता नहीं, तुम मुझे माफ करोगी या नहीं? जीवन में सबकुछ होते हुए भी तुम्हारे सिवा मेरा दुनिया में कोई नहीं है. लेकिन ठीक है, अब तुम मुझे चाहे सजा देना, चाहे माफी.’’

‘‘पापा, आप कहिए, जो कुछ कहना चाह रहे हैं.’’

केशव अपनी बेटी स्वरा से आंखें नहीं मिला पा रहे थे. इसलिए उन्होंने अपना मुंह दीवार की तरफ कर लिया. फिर बोले, ‘‘बेटी, ध्यान से सुनो, तुम लगभग 3 वर्ष की थीं. मेरी आर्थिक दशा अच्छी नहीं थी. पैसा कमाने का मन में जनून था. मैं ने अम्मा से जबरदस्ती कर के उन का घर बेच दिया और उन्हीं पैसों से पहली फैक्टरी खरीदी. लेकिन खरीदना और उसे चलाना अलग बात होती है. मैं परेशान रहता था. तभी एक दिन अम्मा के मुंह से सुना, वे मंगला मौसी से कह रही थीं, ‘अपनेअपने समय की बात है. अच्छा समय होता तो मेरा अपना घर ही काहे को छूटता.’ तुम्हारी मां से मालूम हुआ कि अम्मा तीर्थयात्रा पर जाना चाहती हैं.

‘‘अम्मा की जिद के आगे मैं झुक गया और तुम्हारी मां और मैं ने उन्हें तीर्थयात्रा पर भेजने का निश्चय कर लिया. अम्मा के चेहरे पर से उदासी के बादल छंट गए. कनकलता उन के जाने की तैयारी में लग गई. आखिर वह घड़ी आ गई जब अम्मा को बस पर तीर्थयात्रा के लिए जाना था. मैं और कनकलता दोनों उन्हें बस पर बिठा कर आए. तेरा माथा चूमते हुए अम्मा की आंखों से झरझर आंसू बह निकले थे. ‘‘तुम्हारी मां बहुत खुश थी कि चलो, अम्मा की कोई इच्छा तो वह पूरी कर पाई थी. कनकलता ने अपने पैसे से एक नया मोबाइल फोन ला कर अम्मा को दिया था. अम्मा रोज एक बार फोन कर के बताना कि कहां पहुंची? क्या देखा? और कैसी हो? अम्मा बहू का लाड़ देख उस को गले से लगा कर रो पड़ी थीं.‘‘मुझे फैक्टरी चलाने के लिए ब्याज पर रुपया लेना पड़ता था, इसलिए जो फायदा होता था वह ब्याज में चला जाता था. मुझे कोई उपाय नहीं सूझता था.

‘‘अम्मा को गए एक हफ्ता हो गया था. घर में सन्नाटा लगता था. कनकलता को घर के कामों से फुरसत नहीं मिलती थी. छोटी सी गुडि़या सी तुम दादी दादी पुकार कर उन्हें यहां वहां ढूंढ़ा करती थीं. ‘‘अम्मा अपनी यात्रा में बहुत खुश थीं. वे अपनी तीर्थयात्रा पूरी कर के लौट रही थीं. उस के बाद उन से संपर्क टूट गया. तेरी मां बहुत चिंतित थीं. मैं अपनी उलझनों में था कि मंगला मौसी के बेटे मोहन का फोन आया कि बस का ऐक्सिडैंट हो गया है. इसलिए किसी भी यात्री के बारे में कुछ पता नहीं लग रहा है. उस ने सूचना दे कर फोन काट दिया था.

‘‘टीवी पर हैल्पलाइन नंबर देख हम लोग किसी तरह से घटनास्थल पर पहुंचे. वहां का दर्दनाक दृश्य देख कनकलता तो बेहोश ही हो गई थी. बस के आधे से अधिक यात्री अपनी जीवनलीला समाप्त कर चुके थे. कुछ के हाथपैर कटे हुए थे, किसी का मुंह पिचका हुआ था. कोहराम मचा हुआ था. घर वालों की चीत्कार और प्रियजनों का रोनाबिलखना, बहुत ही वीभत्स दृश्य था. बदहवास रिश्तेदार अपने प्रियजनों को खोजने के लिए शवों को पलटपलट कर देख रहे थे. ‘‘बस चूंकि सरकारी थी, इसलिए सरकार ने मुआवजा घोषित किया था. यात्रियों का बीमा भी हुआ था, इसलिए बीमा कंपनी की ओर से भी रुपया मिलना था. घायलों को सरकार 20 हजार रुपए दे रही थी और मृतकों को 20 लाख रुपए देने की घोषणा मंत्री महोदय ने स्वयं की. वे घटनास्थल पर चैक बांटने के लिए आने वाले थे. ‘‘बेटी, मैं लालच में अंधा हो गया था. मैं मन ही मन प्रार्थना कर रहा था कि अम्मा का शव दिख जाए और मुझे 20 लाख रुपए का चैक मिल जाए. तभी एक एनजीओ कार्यकर्ता की आवाज कानों में पड़ी, ‘कुदरत ने कैसा अन्याय किया है हाथपैर दोनों कट गए हैं, आंते भी बाहर निकली पड़ रही हैं.’

‘‘वह अपने साथी से बोला, ‘देखो, जरा यह बूढ़ी अम्मा शायद अपने बेटे की आस में पलकें खोले रखे हैं. काहे अम्मा, अपने लड़के को ढूंढ़ रही हो?’

‘‘उन लोगों की बातें सुन महज जिज्ञासावश मेरी नजरें अम्मा की बेबस आंखों से टकराईं. पलभर को मैं सहम गया था. मुझे अपना 20 लाख रुपए का चैक हाथ से जाता हुआ दिख रहा था. ‘‘गंभीररूप से घायल बेजबान अम्मा की आवाज अवश्य जा चुकी थी परंतु उन की लाचार आंखों ने अपने स्वार्थी बेटे की इस हरकत पर कुदरत से अवश्य मौत मांगी होगी.

‘‘मैं पैसे का लालची और स्वार्थ में अंधा बेटा दूसरी लाश की शिनाख्त कर, उसे अपनी अम्मा बता कर 20 लाख रुपए का चैक ले कर धंधे में लग गया. परंतु तुम्हारी मां कनकलता को कतई कभी विश्वास नहीं हुआ कि अम्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं. उसी समय कनकलता गर्भवती भी हो गई थी. परंतु वह सदमे में थी. मैं अपने धंधे में व्यस्त था. न तो मुझे दिन का होश, न रात का. मुझे कनक को देखने की फुरसत ही नहीं थी. और जब अंबर पैदा हुआ तो मैं ने खूब खुशी मनाई परंतु कनक अभी भी गुमसुम रहती थी. जब 3-4 महीने के बाद अंबर के मैंटली रिटार्डेड होने का पता लगा तो पहली बार कनकलता को हिस्टीरिया का तेज दौरा पड़ा. धीरेधीरे उस की मानसिक स्थिति बिगड़ती गई. दोबारा होने वाले इस सदमे से वह फिर उबर नहीं पाई. वह पूर्णरूप से मानसिक रोगी बन चुकी थी. मजबूरन मुझे उसे कमरे में बंद करना पड़ा.

‘‘स्वरा, मैं धन के ढेर पर बैठा हुआ उल्लू हूं. मैं ने अपनी अम्मा के साथ अन्याय किया. धन के लालच में मैं अंधा हो गया था. धन तो मुझे अथाह मिल गया परंतु जीवन से सबकुछ छिन गया. मां के प्रति किए गए अपराध के अवसाद से पत्नी पागल हो गई और बेटा अपाहिज रह गया. वह जीवित लाश की तरह है. मैं मात्र तुम्हारे सहारे, तेरी उम्मीद पर जीवित हूं. परंतु आज तुम्हारे ऐक्सिडैंट की खबर से मैं अंदर तक कांप उठा. अब भविष्य में मुझ में कुछ भी खोने की शक्ति नहीं है. अम्मा की बेबस आंखें आज भी मुझे डराती हैं. मैं आज तक एक दिन भी चैन की नींद नहीं सो सका हूं. मैं पैसे के लालच में ऐसा अंधा था कि अपनी जीवित मां को भी पहचानने से इनकार कर दिया. मैं अपराधी हूं. मेरा अपराध क्षमायोग्य भी नहीं है. अपने कलेजे पर अपराध के बोझ के भार को उठा कर घूम रहा हूं. ‘‘मेरी बेटी, अब इस के बाद मैं तुम्हें नहीं खोना चाहता. मेरी बच्ची, मैं ने तुम्हारे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया है. तुम जो चाहे वह सजा मुझे दो. मेरा सिर तुम्हारे सामने झुका है.’’

केशव सिर झुका कर बच्चों की तरह फूटफूट कर रो पड़े थे. स्वरा किंकर्तव्यविमूढ़ कुछ समय निश्छल खड़ी रही. आज वह पापा की बेबस आंखों को पश्चात्ताप के आंसू बहाते देख रही थी. आखिरकार, वह पापा के गले से लिपट गई. अब 2 जोड़ी बेबस आंखों से आंसू बह रहे थे.

गोद लिए बच्चे से कभी भी न छिपाएं सच

‘‘मां तुम ने अब तक यह सचाई मुझ से खुल कर क्यों नहीं कही कि मैं एक अडौप्टेड चाइल्ड हूं?’’ सत्यन अंतिकाड़ की एक फिल्म में अच्चू का किरदार निभा रही कलाकार मीरा जास्मीन अपनी मां का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री उर्वशी से यह पूछती है. फिल्म में वनजा अपनी अडौप्टेड बेटी से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती कि वह उस की गोद ली बेटी है. वनजा सिंगल पेरैंट है, वह सोचती है कि अब तक पिता के बारे में कुछ न जान पाने का ही दुख उस की बेटी को था, अब मां भी झूठी है, यह जानेगी तो इन सब बातों को कैसे बरदाश्त करेगी. इसी कारण उस ने बेटी से यह सचाई छिपा कर रखी थी. अनाथ बच्चों को गोद ले कर अपना बनाने की इच्छा लिए हमारे बीच न जाने कितने लोग होंगे, लेकिन बच्चे को गोद ले लेने के बाद उस को यह सचाई खुल कर बताने से सब हिचकिचाते हैं कि वह उन की गोद ली संतान है. दरअसल, इस के पीछे यह धारणा रहती है कि यदि बच्चे और समाज को यह पता चलेगा तो समाज का नजरिया उन के बच्चे के प्रति बदल जाएगा और बच्चा भी यह सब जानने के बाद अपने पेरैंट्स से नफरत करने लगेगा. इसी डर के कारण लोग बच्चों को सचाई बताने से डरते हैं.

लेकिन आज जमाना बदल रहा है. नई पीढ़ी इन समस्याओं से अवगत होने के बावजूद इस सचाई के साथ जिंदगी जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार है.

नई पीढ़ी का दृष्टिकोण

गोद लिए बच्चों से सारे तथ्य खुल कर कहने की आवश्यकता पर अर्चकुलम, केरल के एक ओपन फोरम में चर्चा की गई. इस चर्चा में इस विषय पर नई पीढ़ी का बेहद सकारात्मक दृष्टिकोण देखने को मिला. अनेक तरह के इलाज करवाने व धन और समय को व्यय कर बायोलौजिकल बच्चे को पाने से बेहतर एक अनाथ बच्चे का सहारा बनने की ललक नई पीढ़ी में देखने को मिली. लाइफस्टाइल, दृष्टिकोण, विचारों में बदलाव, साक्षरता, स्त्री की आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता व पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव आदि से अडौप्शन द्वारा पेरैंट्स कहलाने को प्रोत्साहन मिला है. अविवाहित महिलाएं भी अपने जीवन में सिंगल पेरैंट बनना चाहती हैं. इस के लिए वे बच्चे को गोद लेना पसंद करती हैं.

सामाजिक प्रभाव

राजगरी कालेज औफ सोशल साइंस, कलमशेरी, केरल की अडौप्शन कोआरडिनेटिंग एजेंसी की प्रोग्राम कोआरडिनेटर मीना करुविला बताती हैं, ‘‘बच्चे को गोद लेने की बात पर नई पीढ़ी बहुत लिबरल है.’’ पास बैठे 30 वर्ष से कम उम्र के दंपतियों की ओर इशारा कर के मीना कहती हैं, ‘‘इन की शादी को कई साल हो गए लेकिन अब तक बच्चे नहीं हुए, इसलिए ये बच्चे को गोद लेने के लिए यहां आए हैं. युवा पीढ़ी आज बेहिचक बच्चे को गोद लेने के लिए सामने आ रही है. इस से पुराना सामाजिक प्रभाव कम हुआ है. ज्यादातर वे लोग ही बच्चे को गोद लेने के लिए सामने आते हैं, जो बचपन से बच्चों से प्रेम व लगाव महसूस करते हैं. साथ ही, गोद लिए बच्चों से बिना सचाई छिपाए उन को समाज के सामने लाने के लिए नई पीढ़ी तत्पर है.

‘‘गोद लिए बच्चे यदि अपने पेरैंट्स से यह सचाई जानें तो बेहतर रहता है. मातापिता स्वयं तैयार रहें कि बच्चे से ये सब बातें कब और कैसे कहनी हैं. अडौप्शन क्या है, इस के बारे में भी बच्चे को लगभग 4 साल की उम्र से ही कहानियों के जरिए समझाना शुरू कर दें. अन्य परिवारों, जिन्होंने बच्चे गोद लिए हैं, से मिल कर इन सब बातों को शेयर करें. ‘‘बच्चों को डांटतेडपटते समय ऐसी बातें न कहें, जिस से बच्चे के मन पर कोई नकारात्मक भाव पैदा हो. किशोरावस्था तक पहुंचने से पहले ही बच्चे को सारी बातें बता दें, लेकिन बचपन में ही बच्चे से इन बातों को कह देना ज्यादा बेहतर होगा.’’  गोद लिए बच्चे को रिश्तेदारों, स्कूली मित्रों व पासपड़ोस के बच्चों आदि द्वारा असलियत बताए जाने की ज्यादा संभावना होती है. बच्चा अन्य किसी से इन बातों को जाने, इस से बेहतर होगा कि पेरैंट्स स्वयं ही बच्चे को इस बारे में बताएं. ऐसा होगा तो बच्चे में आत्मविश्वास की कमी या मानसिक परेशानी होने की संभावना कम होगी.

एकाएक बदलाव

मीना बताती हैं, ‘‘कुछ मातापिता बच्चों को सोशल वर्कर्स के पास ले जाते हैं ताकि वे उन्हें सचाई बताएं, लेकिन हम उन्हें सलाह देते हैं कि ये सब बातें बच्चे मातापिता से ही जानें तो बेहतर होगा. सोशल वर्कर की मदद लेने आए एक दंपती जिन्होंने 15-16 साल तक बच्चे को सचाई नहीं बताई थी, का कहना था कि उन के बच्चे के बरताव में एकाएक बदलाव आ गया है, उसे हर समय गुस्सा आता है. ‘‘जब बच्चे से बात की तो पता चला कि उस ने अलमारी में रखे अडौप्शन पेपर्स पढ़ लिए थे, जिस से वह जान गया था कि वह गोद लिया बच्चा है. अचानक पता चली इसी बात से बच्चा बेहद विचलित हो गया था.’’

सचाई जल्दी से जल्दी बताएं

सिंगल पेरैंट को भी बच्चे से सारी बातें खुल कर कह देनी चाहिए. गोद लेने की बात बच्चे को जितनी जल्दी पता चल जाए, अच्छा है. सिंगल पेरैंट होने की आयु सीमा 45 वर्ष तक है, वहीं दंपती 55 वर्ष तक बच्चा गोद ले सकते हैं. 45 से कम उम्र के दंपती को अडौप्शन एजेंसी 1 वर्ष की आयु के बच्चे को गोद देती है. केरल में लोग लड़कियों को गोद लेने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं, क्योंकि लड़कियां ज्यादा स्नेहमयी होती हैं. उन में पेरैंट्स को छोड़ कर जाने की आशंका कम होती है.

कानूनी अधिकार

एडवोकेट टी.एस. उन्नीकृष्णन बताते हैं कि बच्चा गोद लेने के लिए बहुत से लोग सामने आ रहे हैं, लेकिन कानूनी रूप से अडौप्शन के प्रति लोग ज्यादा रुचि नहीं दिखाते हैं. जुवानाइल जस्टिस ऐक्ट के मुताबिक, बच्चे को कानूनी तौर पर स्वतंत्र घोषित करें तो बच्चे के ऊपर से बायोलौजिकल पेरैंट्स का अधिकार खत्म होगा. अडौप्शन से पहले और बाद में पेरैंट्स के साथ काउंसलिंग की जाती है. इस के बाद बच्चे से परिचय व बातचीत करने का मौका भी दिया जाता है. बच्चे और पेरैंट्स के बीच इमोशनल बौंडिंग बहुत जरूरी है और यह एकदूसरे से पहली बार मिलते समय हो तो ज्यादा अच्छा होता है. इस से जाति, धर्म, रंग, भाषा आदि का भेद समाप्त हो जाता है.   

अप्पा की लुलुकुट्टी

5 वर्षीय लुलुकुट्टी का असली नाम लया है, जो गायक रमेश मुरली एवं ब्यूटीशियन सीमा की गोद ली बेटी है. रमेश मुरली मलयालम के प्रोफैशनल सिंगर हैं. लया सेंट आंटणीस के यू.के.जी. में पढ़ रही है. रमेश और सीमा लया को अर्नाकुलम निर्मला शिशु भवन अनाथालय से उस समय लाए थे, जब वह 2 महीने की थी. जब बच्चा पाने के लिए रमेश और सीमा ने इलाज करवा लिए, लेकिन उन के आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंजी तो उन्होंने यह फैसला लिया. सीमा व रमेश अब वे तनाव भरे दिन याद भी नहीं करना चाहते. रमेश के पिता मुरलीधरन एक रिटायर्ड बैंक कर्मचारी हैं. वह 27 वर्ष तक आकाशवाणी में वोकल आर्टिस्ट भी रह चुके हैं. रमेश की मां नृत्य की अध्यापिका हैं. दोनों का कहना है कि घर में लुलुकुट्टी के आ जाने के बाद हमें रिटायर्ड जिंदगी की ऊब महसूस नहीं होती. वह अपनी तोतली जबान में छोटीछोटी बातें करती है तो मन खुश हो जाता है. रमेश की मां बताती हैं, ‘‘लुलु पढ़ाईलिखाई में हमेशा आगे रहती है और 2 साल की आयु में ही वह नृत्य मुद्राएं बनाती एवं गाने की इच्छा जाहिर करती है.’’

सानी के प्यारे घर में

‘‘हम अपने दोनों बच्चों के बारे में बात करने को तैयार हैं, बशर्ते आप उन का नाम व पता न लिखें,’’ 2 बच्चों को गोद लेने वाली सानी कहती हैं. 10 व 5 वर्षीय उन के दोनों गोद लिए बच्चों, अरुण और किरण को आंखों से कम दिखाई देता है. सानी कहती हैं, ‘‘मेरे बच्चे अपने बारे में सब कुछ जानते हैं, लेकिन स्कूल में उन के साथ पढ़ने वाले दोस्तों को उन की सचाई नहीं मालूम है. मैं अपने बच्चों की पहचान बताने से इसलिए हिचकती हूं कि कहीं यह सब जानने के बाद उन के साथ पढ़ने वाले दोस्त उन्हें किसी तरह का कोई मानसिक कष्ट न पहुंचाएं. ‘‘हम ने बच्चा गोद लेने के लिए कई अनाथालयों में बात की लेकिन हर जगह से ‘न’ सुनने को मिला. इसी बीच वैत्तिरी में बात हुई तो उन्होंने बताया कि एक बच्चा है, जिसे कम दिखाई देता है. इसलिए उसे कोई गोद लेने को तैयार नहीं है. ‘‘मात्र आंखों से कम दिखाई देने के कारण हम उस बच्चे को छोड़ना नहीं चाहते थे, इसलिए सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे घर ले आए. यह जान कर कि बच्चा अडौप्टेड है, करुनागपल्लि प्रियंका अस्पताल के डाक्टर राजीव कम खर्च में मेरे बेटे का इलाज करने के लिए तैयार हो गए. ‘‘मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी, इसलिए अकेलेपन का तनाव मैं ने हमेशा झेला है. यह सोच कर कि कहीं मेरा बेटा भी इस तनाव को न झेले, मैं ने एक और बच्चे को गोद लेने का निर्णय किया. आश्चर्य की बात यह थी कि मावेलीक्कारा के अनाथालय में जब हम ने बात की तो वहां भी एक ऐसा बालक था, जिसे आंखों से कम दिखाई देता था. हम ने उसे भी गोद ले लिया और उस की आंखों का भी इलाज करवाया.’’

मैं अपने शादीशुदा लाइफ में तालमेल नहीं बैठा पा रही, क्या करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं अपने 4 सालों के वैवाहिक जीवन में तालमेल नहीं बैठा पाई. अपने अड़ियल स्वभाव के कारण बात इतनी बढ़ गई कि मेरा तलाक हो गया. पति से अलग हो जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं ने जिंदगी में क्या खो दिया है. मुझे अपनी गलतियों और व्यवहार के लिए बहुत पछतावा है. मैं ने अपने पति से कई बार माफी मांगी है. उन से कहा कि मैं कुसूरवार हूं और बहुत शर्मिंदा हूं. वे मुझे माफ कर दें. पर वे कहते हैं कि उन्हें मुझ से कोई मतलब नहीं है. वे मुझ से बात भी नहीं करना चाहते. बताएं क्या करूं?

जवाब-

वैवाहिक जीवन में तालमेल बैठाने का प्रयास करने के बजाय आप ने संबंधविच्छेद करने का फैसला ले लिया. तलाक किसी समस्या का हल नहीं है. तलाक लेने के बाद आप पछता रही हैं लेकिन अब पछताने से कुछ हासिल नहीं होने वाला. इतना बड़ा फैसला लेने से पहले आप ने ठंडे दिमाग से सोचा होता तो आज आप को अपराधबोध न होता. अब चूंकि आप निर्णय ले चुकी हैं और तलाक भी हो चुका है तो अब पति के सम्मुख जा कर माफी मांगने या गिड़गिड़ाने से कुछ नहीं होगा.

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जब लेना ही पड़े तलाक तो जिंदगी में कुछ इस तरह आगे बढ़ें

गणेशस्पीक्स डौटकौम नाम के वैब पोर्टल द्वारा किए गए एक सर्वे में पाया गया है कि  65% महिलाएं तलाक या जीवनसाथी द्वारा धोखा दिए जाने के मसलों को ले कर काफी परेशान रहती हैं जबकि 35% पुरुषों में ही यह तनाव पाया गया.

यह आकलन पोर्टल द्वारा फोन पर उपलब्ध कराई जाने वाली परामर्श काल सेवा से मिले डाटा के आधार पर तैयार किया गया है. 2016 में महिलाओं द्वारा रिलेशनशिप से संबंधित मुद्दों के लिए की गईं काल्स में पिछले वर्ष की तुलना में 45% का इजाफा हुआ. जाहिर है आज की महिलाएं अपने विवाह को जन्मजन्मांतर का बंधन मान कर हर ज्यादती चुपचाप सहने को तैयार नहीं हैं. उन्हें अपने जीवनसाथी का पूरा भरोसा एवं बीवी होने का पूरा हक चाहिए. पति या ससुराल वालों के अत्याचार सहने के बजाय वे तलाक ले कर अलग हो जाने को बेहतर मानती हैं.

दरअसल, अब लड़कियां पढ़लिख कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. शादी के बाद वे अपने कैरियर को पूरा महत्त्व देती हैं और पति से भी बराबरी का हक चाहती हैं. ऐसे में जब दोनों के अहं टकराते हैं, तो आत्मसम्मान खोने के बजाय वे अलग दुनिया बसाना पसंद करती हैं. यही नहीं आज लोगों के मन में कम समय में अधिक से अधिक हासिल करने की प्रवृत्ति भी जोर पकड़ती जा रही है. पतिपत्नी

दोनों ही परिवार को कम वक्त दे पाते हैं, जिस से घर में तनाव रहता है. पतिपत्नी के बीच तालमेल का अभाव और शक की दीवारें भी दूरियां बढ़ाती हैं.

तलाक का फैसला लेना आसान है पर आज भी तलाक के बाद जिंदगी खासतौर पर एक महिला की उतनी आसान नहीं रह जाती. इस संदर्भ में अपनी किताब ‘द गुड इनफ’ में डाक्टर ब्रैड साक्स का कथन सही है कि पतिपत्नी सोचते हैं तलाक के बाद उन की जिंदगी में सुकून आ जाएगा. रोजरोज के झगड़ों का अंत हो जाएगा. पर यह उसी तरह संभव नहीं जैसे एक ऐसी शादीशुदा जिंदगी की कल्पना जिस में केवल खुशियां ही खुशियां हों. इसलिए प्रयास यही होना चाहिए कि जितना हो सके तलाक को टाला जाए.

कब जरूरी है तलाक

जब पतिपत्नी के बीच ‘तीसरा’ मौजूद हो: पति हो या पत्नी, किसी के लिए भी बेवफाई का गम सहना आसान नहीं होता. पतिपत्नी के बीच इस मसले पर झगड़े बढ़ते हैं और बात मरनेमारने तक पहुंच जाती है. समझदारी इसी में है कि ऐसे हालात में दोनों आपसी सहमति से अलग हो जाएं.

बेमेल जोड़े: कई दफा परिस्थितिवश बेमेल जोड़े बन जाते हैं. पतिपत्नी की आदतें, विचार, जीवन के प्रति नजरिया, स्टेटस, शिक्षा वगैरह सब अलगअलग होते हैं. उन के मन भी नहीं मिलते. ऐसे में उम्र भर खुद को या परिस्थितियों को कोसते रहने से बेहतर है तलाक ले कर मनपसंद साथी के साथ नया जीवन शुरू करना.

तनाव और घुटन: कभीकभी रिश्तों में इतनी कड़वाहट भर जाती है कि पतिपत्नी के लिए एक ही छत के नीचे रहना कठिन हो जाता है. रोजरोज के लड़ाईझगड़ों से उन का दम घुटने लगता है. इस का बुरा असर काम और बच्चों पर भी पड़ता है. ऐसे में जीवन को बिखरने से बचाने के लिए बुरी यादों को अलविदा कहना जरूरी है.

जाहिर है कि जब वैवाहिक जिंदगी बोझ बन जाए तो उस बोझ को उतार देना ही बेहतर है. तलाक के बाद परेशानियां आएंगी पर मन में विश्वास रखिए कि लंबी काली सुरंग का दूसरा सिरा रोशनी में खुलता है. यदि आप धैर्य और समझदारी से काम लेंगे तो कोई वजह नहीं कि परेशानियां खुद हार मान लें. तलाक यदि दलदल है तो गंद तो लगेगा ही पर प्रयास किया जाए तो इस दलदल से उबरना नामुमकिन नहीं.

लंदन की किंग्सटन यूनिवर्सिटी द्वारा 16 से 60 साल की उम्र के 10 हजार लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि तलाक के करीब5 साल बाद नकारात्मक वित्तीय अवस्था के बावजूद महिलाएं ज्यादा खुश और संतुष्ट पाई गईं और इस की वजह काफी हद तक उन की आजादी थी.

तलाक के बाद आने वाली परेशानियों को समझदारी से दूर किया जा सकता है. आइए, जानते हैं कि कैसे:

आर्थिक परेशानियां

तलाक के बाद रहनसहन का स्तर प्रभावित होता है. आमदनी के स्रोत तो घट जाते हैं पर जिम्मेदारियां और खर्च दोगुने हो जाते हैं. घर अलग होता है, तो स्वाभाविक है कि उसे चलाने का खर्च भी बढ़ेगा.

सामान्य कंफर्ट की चीजों के अलावा खानेपीने, घूमनेफिरने, रहने का सारा खर्च

अकेले वहन करना पड़ता है. मनोरंजन हो या नई ड्रैसेज पर किया जाने वाला खर्च, आप को कम से कम रुपयों में बेहतर पाने का प्रयास करना सीखना पड़ेगा.

भविष्य में संभावित आर्थिक परेशानियों से बचने के लिए तलाक की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही फाइनैंशियल मसलों पर सतर्क रहना बहुत जरूरी है. तलाक के बाद संपत्ति में से मिलने वाला हिस्सा और ऐलीमनी आप के भविष्य को आसान या कठिन बना सकती है.

यदि आप जौब नहीं कर रहीं तब तो फाइनैंशियल सिक्योरिटी और भी अहम हो जाती है. अकसर शादी के दौरान महिलाएं फाइनैंशियल मामलों को पूरी तरह पति पर छोड़ देती हैं. यह उचित नहीं. अपने पति की इनकम, टैक्स पेमैंट्स, लोन इंस्टालमैंट्स, एफडीज, क्रैडिट बैलेंस और डिसपोजिशन, बैंक अकाउंट्स, मंथली बिल्स आदि के बारे में पूरी जानकारी रखें. इस के अलावा मैरिटल प्रौपर्टीज, ज्वैलरीज, व्हीकल्स और इंश्योरैंस पौलिसीज जैसी चीजों को नजरअंदाज करने की गंभीर गलती न करें.

ये सब ऐलीमनी तय करने के काम आते हैं. यही नहीं, शेयर्स और म्यूचुअल फंड्स में भी अपने पति के निवेश का ट्रैक रखें. तलाक से पहले ये फाइनैंशियल डिसीजन लेने में देर न करें:

  • क्रैडिट कार्ड्स ब्लौक कर दें.
  • जौइंट अकाउंट्स क्लोज करें.
  • अपने पीएफ अकाउंट, डिमैट अकाउंट, सेविंग अकाउंट्स वगैरह में नौमिनी बदल दें.
  • इंश्योरैंस नौमिनी भी बदल दें.
  • वसीयत में बदलाव लाएं.
  • ईसीएस टर्मिनेट करें. किसी भी जौइंट लोन के लिए अपने बैंक को सूचित कर दें.

यह भी ध्यान रखें कि स्त्रीधन आप का अपना है, उसे पति के साथ तलाक के समय बांटने की जरूरत नहीं है. कोई भी फैसला लेते समय अपने बच्चों के भविष्य को फाइनैंशियल रूप से मजबूत करने के बारे में जरूर सोचें.

बच्चों पर असर

कहीं न कहीं तलाक का गहरा असर बच्चों के मन पर पड़ता है. तलाक यानी बच्चों की दुनिया का बंट जाना. 2 शख्स जिन्हें वह दुनिया में सब से ज्यादा प्यार करता था, उन का आपस में एकदूसरे से प्यार नहीं करने का एहसास बच्चों को भयभीत, चिड़चिड़ा और विद्रोही बना देता है. स्कूलकालेज में उन की परफौर्मैंस खराब रहने लगती है. कई दफा वे खुद को तलाक का दोषी मानने लगते हैं.

इन बातों का मतलब यह नहीं कि बच्चों की खातिर आप टूटे हुए रिश्ते को ढोने का प्रयास करती रहें, क्योंकि घर के तनाव एवं लड़ाईझगड़ों का असर वैसे भी बच्चों के दिमाग को कुंद कर देता है.

बेहतर होगा कि आप प्यार से बच्चों को समझाएं कि इस सब के पीछे उन का कोई दोष नहीं. ईमानदारी के साथ उन के हर सवाल का जवाब दें. अपने जीवन की हकीकत बताएं और हौसला बढ़ाएं कि सब ठीक हो जाएगा. अलग होने के बावजूद मांबाप दोनों बच्चों को क्वालिटी टाइम दें, तो धीरेधीरे वे सामान्य जीवन जीने लगेंगे.

सामाजिक बहिष्कार

तलाक के बाद अकसर महिलाएं सामाजिक रूप से अलगथलग पड़ जाती हैं. कई दफा वे लोग भी उन्हें नजरअंदाज करने लगते हैं जिन्हें वे खुद के करीब मानती थीं.

संभव है कि तलाक के बाद कौमन फ्रैंड्स आप के ऐक्स को तो इनवाइट करें पर आप की काल्स को भी नजरअंदाज कर दें. आप की मां आप के ऐक्स की साइड ले कर बात कर आप के दोष गिनाएं.

इन बुरे दिनों में आप को हर जगह कपल्स नजर आएंगे. आप वीकैंड भी ऐंजौय नहीं कर सकेंगी, क्योंकि यह फैमिली टाइम होता है, जबकि फैमिली आप के पास है ही नहीं. बच्चों से मिलने के लिए भी अपनी बारी का इंतजार करना बहुत कष्टकारी होगा.

सिनेमा हाल, मौल, मार्केट, रैस्टोरैंट वगैरह कहीं भी जाने से आप बचना चाहेंगी. आप को महसूस होगा जैसे लोग आप को ही घूर रहे हैं या दया की नजरों से देख रहे हैं. आप के दोस्त/रिश्तेदार अपने पति, बच्चों या दोस्तों के साथ व्यस्त मिलेंगे.

ऐसे हालात में टूटने या सिमट जाने से बेहतर है कि रिश्तों की असलियत स्वीकारते हुए नए दोस्त बनाएं, अपने जैसी स्थिति वालों से मिलें. आप को जीने का नया नजरिया, नया अंदाज मिलेगा. मुमकिन है कि आप को नया जीवनसाथी भी मिल जाए, जो आप की कद्र करे, आप को समझे.

लोलुप नजरों का सामना

प्राय: तलाक के बाद औफिस और आसपास के कुछ पुरुष स्त्रियों को लोलुप नजरों से देखने लगते हैं. यदि आप सिंगल हैं और सिंगल होने को तैयार नहीं तो भी पुरुष आप के आगेपीछे घूमने से बाज नहीं आते. ऐसे लोग चांस मारने का कोई मौका नहीं छोड़ते. जाहिर है, आप बहुत असहज महसूस करेंगी.

ध्यान रखें, आप नहीं वरन आप की स्थितियों की वजह से लोग इस नजर से देख रहे हैं. परेशान होने के बजाय इन बातों को हैंडल करना सीखें. बिंदास बनें. जमाने की परवाह करने से जमाना और भी पीछे पड़ जाता है. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीएं.

असर आप पर

तलाक के दौरान आप के आत्मविश्वास की धज्जियां उड़ती हैं. लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं कि आप अपने रिश्ते को बना कर नहीं रख पाईं. आपसी सहमति से तलाक नहीं मिला तो कोर्ट में लंबे समय तक मामला खिंचता है. इस दौरान आप के चरित्र पर प्रश्नचिह्न लगाने और कीचड़ उछालने वालों की कमी नहीं रहती.

तलाक के बाद प्राय: आप का खुद से और रिश्तों से भी विश्वास उठ जाता है. आप यह बात फिर स्वीकार नहीं कर पातीं कि कोई आप से सच्चा प्यार भी कर सकता है. कहीं दोबारा शादी करने पर फिर ऐसा ही हुआ तो? यह सवाल आप के जेहन में उठता रहता है.

यही नहीं, एक तरफ आप अपने पूर्व साथी से अभी भी प्यार करती होंगी, क्योंकि बीते वक्त में आप एक मन और 2 शरीर थे. वहीं दूसरी तरफ आप को उस पर गुस्सा भी आता होगा. आप खुद को उलझन में, अपमानित और बेसहारा महसूस करती होंगी. साथ बिताए हसीन पल आप को रहरह कर याद आएंगे.

इन सब से आप को खुद उबरना होगा. सामाजिक बनें, नई नौकरी जौइन करें, साथ ही पुरानी बातें भूल कर जिंदगी को नए सिरे से देखें, नया कल आप को बांहों में थाम लेगा.

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या हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- sampadak@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अपनी फैमिली को परोसें Healthy और टेस्टी ‘स्टफ्ड मूंग दाल चीला’, फौलो करें ये स्टेप्स

दाल एक ऐसी चीज है, जिसे हर एक भारतीय परिवार अपने नियमित आहार में शामिल करता है. इसकी आसान उपलब्धता के कारन दालें, वयस्कों और बच्चों के लिए सबसे अच्छे प्रोटीन स्रोतों में से एक हैं. खासकर जब बच्चों की बात आती है, तो दाल एक सुपर फ़ूड है, जो बढ़ते हुए बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व प्रदान करता है.

हमारे देश में दालों को अलगअलग स्थानों पर अलगअलग तरीको से प्रयोग में लाया जाता है. हालांकि, कभीकभी हम दालों का प्रयोग एक ही तरह से करके अपने रोजाना के भोजन को उबाऊ स्टेपल में बदल देते हैं. जिसकी वजह से बच्चे से लेकर बड़े तक रोज़-रोज़ इसे खाने से कतराते है और यही कारण है कि अधिकांश भारतीयों में प्रोटीन की कमी पायी जाती है.

इसलिए आज हम एक ऐसी रेसिपी बताने जा रहे हैं जो स्वाद के साथ-साथ आपके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखेगी.

जी हां आज हम बनायेंगे ‘स्टफ्ड मूंग दाल चीला’.

पनीर और सब्जियों की स्टफिंग और मूंग दाल से बना ये चीला विटामिन और प्रोटीन का पॉवर-हाउस है.कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स और फाइबर की अधिकता के कारन ये मधुमेह रोगियों के लिए भी भोजन या नाश्ते का एक आदर्श विकल्प है और साथ ही साथ यह पचाने में आसान और खाने में स्वादिष्ट होता है.

और इसकी सबसे ख़ास बात ये है की इसको बनाने में तेल की मात्रा बहुत ही कम प्रयोग होती है, तो अगर जिनको ज्यादा तले खाने से परहेज है वे भी इसे बड़े स्वाद से खायेंगे..
तो चलिए बनाते है स्वादिष्ट और पौष्टिक ‘स्टफ्ड मूंग दाल चीला’.

हमें चाहिए-

मूंग दाल- 200 ग्राम भीगी हुई( 4 से 5 घंटे )
पनीर- 100 ग्राम(घिसी हुई )
प्याज-1 कप (बारीक कटी हुई)
शिमला मिर्च- ½ कप (बारीक कटी हुई)
गाजर- ½ कप (बारीक कटा हुआ)
फ्रेंच बीन्स-1/4 कप
अदरक लहसुन का पेस्ट- ¾ छोटी चम्मच
हरा धनिया- 3 से 4 टेबल स्पून (बारीक कटा हुआ)
नमक- स्वादानुसार
हरी मिर्च- 1 (बारीक कटी हुई)
तेल- 2 टेबल स्पून

बनाने का तरीका-

स्टफिंग के लिए-

1-सबसे पहले गैस पर एक पैन चढ़ा दीजिये, अब इसमें 1 चम्मच तेल डाल दीजिये. अब इसमें बारीक कटी हरी मिर्च डालकर हल्का सा भून लीजिए. इसके बाद, इसमें प्याज डाल कर बस थोडा सा भूनिए ,ज्यादा लाल नहीं करना है.

2- 1 मिनिट बाद, इसमें शिमला मिर्च,गाज़र,फ्रेंच बीन्स और नमक डालकर करीब 2 से 3 मिनट मध्यम आंच पर भून लीजिए. सब्जियों को क्रन्ची ही रखना है. अब गैस को बंद कर दीजिए.

3-अब भुनी हुई सब्जियों को एक प्लेट में निकाल लीजिए ताकि ये जल्दी से ठंडा हो जाएं. फिर, सब्जियों में पनीर कद्दूकस करके डाल लीजिए और पनीर को सब्जियों में अच्छी तरह से मिला लीजिए. स्टफिंग बनकर तैयार है.

चीला बनाने के लिए-

1- सबसे पहले मिक्सर जार में भीगी हुई मूंग की दाल डाल दीजिए. साथ ही 1 से 2 टेबल स्पून पानी, 1 हरी मिर्च मोटी-मोटी काटकर, ¾ छोटी चम्मच अदरक का पेस्ट और ¾ छोटी चम्मच नमक भी डाल दीजिए और इन्हें हल्का दरदरा पीसकर तैयार कर लीजिए.

2-अब इसे एक बाउल में निकाल लीजिये और इसमें थोडा सा पानी डालकर बिल्कुल डोसे जैसा बैटर तैयार कर लीजिये.

(NOTE:बैटर ज्यादा गाढ़ा या ज्यादा पतला नही होना चाहिए)

3-चीला सेकने के लिए, गैस पर गरम होने रख दीजिए. तवे पर थोड़ा सा तेल डाल लीजिए और चारों ओर एक जैसा फैला दीजिए और तवे को और गरम होने दीजिए. दाल में थोड़ा सा हरा धनिया डाल दीजिए.

4-तवे के गरम होने के बाद, गैस बिल्कुल धीमी कर दीजिए और तवे को थोड़ा सा ठंडा कर लीजिए. चीला फैलाने के लिए एक चमचा भरकर बैटर तवे पर डाल दीजिए और चमचे को गोल-गोल घुमाते हुए पतला चीला फैला लीजिए. चीला फैलाने के बाद, गैस तेज कर लीजिए और चम्मच से चीले के चारों ओर थोड़ा-थोड़ा तेल डाल दीजिए. जरा सा तेल चीले के ऊपर भी डाल दीजिए और चीले को नीचे की ओर से अच्छा गोल्डन ब्राउन होने तक सेक लीजिए.

5-चीले के ऊपर से थोड़ा सा गहरे रंग का होते ही, इसे पलट दीजिए और दूसरी ओर से हल्की ब्राउन चित्ती आने तक सेक लीजिए. अब फिर चीले को पलट कर गैस को एकदम धीमा कर दीजिए.

6-अब 2 से 3 छोटी चम्मच स्टफिंग रख दीजिए और चीले को दोनों किनारों से स्टफिंग को ढकते हुए मोड़ दीजिए. चीले को एक प्लेट में निकालकर रख लीजिए और इसी तरीके से सारे चीले बनाकर तैयार कर लीजिए.

7-तैयार है मूंग दाल का स्टफ्ड चीला .आप इसे दही और पुदीने की चटनी के साथ खा सकते हैं.

मेरे घुटने में दर्द रहता है, इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

सवाल

मेरी उम्र 30 साल है. मैं जब भी बैठने वाले काम करती हूं तो उठते वक्त मेरे घुटनों में दर्द होने लगता है. दर्द के कारण मुझे हर काम में समस्या होती है. ऐसा क्यों हो रहा है और इस से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

जवाब

नियमित जीवन में छोटीछोटी चीजें घुटने का दर्द दे सकती हैं. सामूहिक भोजन करना हो, घर का कामकाज करना हो या आपस में बातें करनी हों इन सभी कामों में घुटने मोड़ कर ही बैठना पड़ता है. यहां तक कि भारतीय शैली के शौचालय में भी घुटने के बल बैठना पड़ता है. बैठने के इस तरीके में घुटने पर दबाव पड़ता है, जिस से कम उम्र में ही घुटने खराब होने की आशंका बढ़ती है.

आप को अपने बैठने का तरीका बदलना चाहिए. समस्या को हलके में न लें क्योंकि धीरेधीरे आप का चलनाफिरना तक दूभर हो सकता है. इस समस्या से बचने का सब से अच्छा तरीका व्यायाम है. व्यायाम से जोड़ों की मांसपेशियां मजबूत रहती हैं, उन का लचीलापन बना रहता है और जोड़ों को उन से सपोर्ट भी मिलती है. वजन कम होने से जोड़ों पर दबाव भी कम पड़ता है. इस के अलावा शरीर को विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में मिलना चाहिए. पैर मोड़ कर बैठने से बचें, आलथीपालथी मार कर न बैठें. लंबे समय तक खड़े होने से बचें.

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मैं 26 वर्षीय इंजीनियर हूं. मुझे दौड़नाभागना और खेलनाकूदना काफी पसंद है बावजूद इस के मेरे घुटनों में अभी से दर्द की समस्या होने लगी है. भागते वक्त ऐसा लगता है जैसे मेरे घुटनों के कप टूट जाएंगे. ऐसा क्यों है और इस का समाधान क्या है?

आप को रनर्स नी यानी पैटेलोफेमोर पेन सिंड्रोम की समस्या हो गई है, जो घुटनों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण होती है. जो लोग बहुत ज्यादा कसरत करते हैं उन के घुटने की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं जिस के कारण घुटनों में दर्द उठता है. लेकिन आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ अभ्यास से न सिर्फ इस समस्या की रोकथाम की जा सकती है बल्कि इस का इलाज भी संभव है. ऐसे में आप को ज्यादा से ज्यादा आराम करने की आवश्यकता है.

बर्फ को कपड़े में लपेट कर 2-3 दिन घुटनों की अच्छे से सिकाई करें. इस के अलावा आप क्रीप बैंडेज यानी गरम पट्टी भी बांध कर रख सकते हैं. यदि बावजूद इस के समस्या में राहत नहीं मिल रही है तो आप किसी अच्छे डाक्टर या फिजियोथेरैपिस्ट से परामर्श ले सकते हैं.

-डा. अखिलेश यादववरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन, जौइंट रिप्लेसमैंट, सैंटर फौर नी ऐंड हिप केयर, गाजियाबाद. 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Winter Special : सर्दियों में रखें अपने बालों का खास खयाल, अपनाएं ये आसान तरीके

आप की त्वचा की तरह आप के बाल भी मौसम की मार झेलते हैं. चिलचिलाती गरमी बालों को बेहद रूखा बना देती है तो मौनसून की नमी उन की सतह पर फंगल इन्फैक्शन के खतरे को बढ़ा देती है. इस के बाद ठंड आने पर बाल काफी कमजोर और डल से हो जाते हैं.

ऐसे में आप अगर सर्दी के मौसम में अपने बालों की केयर के लिए निम्न खास तरीके अपनाएंगी तो आप अपने बालों को स्वस्थ और खूबसूरत रख सकती हैं.

हेल्दी डाइट

अगर आप अंदर से स्ट्रौंग हैं, तो इस का असर आप के बालों पर साफ नजर आता है. अगर आप अपनी डाइट में हेल्दी न्यूट्रिशन लेती हैं, तो इस से आप का शरीर स्वस्थ रहेगा और त्वचा पर भी चमक नजर आएगी. इस का असर बालों पर भी दिखेगा. इस के लिए आप ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन युक्त डाइट लें, जिस में अंडे, चिकन, ओमेगा-3 फैटी ऐसिड, आयरन, काजू व बादाम आदि शामिल हों. इसके अलावा आयरन व फोलिक ऐसिड के सप्लिमैंट भी ले सकती हैं. ये आप के बालों को हेल्दी रखते हैं.

अगर आप की डाइट में न्यूट्रिशन की भरपूर मात्रा न हो तो सप्लिमैंट की जरूरत होती है. अत: अपने बालों को सर्दी की मार से बचाने के लिए आप विटामिन बी कौंप्लैक्स, प्रोटीन और कैल्सियम के सप्लिमैंट ले सकती हैं. अगर आप बहुत ज्यादा हेयरफौल से परेशान हैं तो डर्मेटोलौजिस्ट की सलाह लें.

ब्लोड्रायर का इस्तेमाल

पतझड़ के मौसम में नमी काफी कम होती है. ऐसे में ड्रायर और हौट आयरन का इस्तेमाल बालों पर कम करें. ऐसा करने पर आप के बाल सर्दी के मौसम में ब्लोड्रायर्स के इस्तेमाल के लिए तैयार रहेंगे. बालों पर ड्रायर का ज्यादा इस्तेमाल करने से सिर की परत के रोमछिद्र खुल जाते हैं. जिस से गंदगी रोमछिद्रों से अंदर प्रवेश कर जाती है. इस से बालों की जड़ें बेहद कमजोर हो जाती हैं. अत: बालों को ड्रायर करने से पहले अगर सिर की सतह पर बालों को सौफ्ट करने वाली क्रीम लगा ली जाए तो ड्रायर से होने वाला नुकसान काफी कम हो जाएगा.

रोजाना सिर की मसाज

बालों व सिर की सतह की मसाज के लिए हलका जैतून या नारियल का तेल इस्तेमाल करें. इस से बालों में नमी बनी रहती है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि आप बहुत ज्यादा औयलिंग शुरू कर दें. बहुत ज्यादा औयल को साफ करने के लिए आप को ज्यादा शैंपू का इस्तेमाल करना होगा जोकि बालों को नुकसान पहुंचा सकता है. आमतौर पर बालों में हफ्ते में 2 बार औयलिंग और मसाज करने से बाल स्वस्थ रहते हैं. लेकिन ठंड से पहले व ठंड के मौसम में रोजाना औयलिंग व मसाज करनी चाहिए.

मौइश्चराइजिंग शैंपू व कंडीशनर

सर्दी के मौसम में बालों का रूखा हो जाना आम बात है. ऐसे में अभी से मौइश्चराइजिंग शैंपू व कंडीशनर का इस्तेमाल शुरू कर दें. दही, अंडे व हिना के इस्तेमाल से बालों की नमी को बनाए रखा जा सकता है. अगर बालों में डैंड्रफ है तो नीबू का इस्तेमाल करें.

सिर की सतह रखें स्वस्थ

सिर की सतह को स्वस्थ रखने के लिए कुछ किस्म के ट्रीटमैंट भी ले सकती हैं. ये ट्रीटमैंट मैडिकल थेरैपी के रूप में उपलब्ध हैं जैसे, लेजर लाइट थेरैपी, ओजोन थेरैपी, स्टेम सैल थेरैपी और एलईडी थेरैपी. इन सभी थेरैपियों के जरीए बालों की सतह को स्वस्थ रखा जा सकता है. इन से डैंड्रफ के साथसाथ बालों की अन्य समस्याओं से भी छुटकारा मिल जाता है.

लेजर लाइट थेरैपी

हेयरफौल और स्कैल्प इन्फैक्शन के लिए: जब आप के सिर की सतह पर रक्त का प्रवाह सही न हो रहा हो या फिर हारमोन डैफिसिएंसी हो जिस में कि डीहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन प्रमुख है, इन दोनों ही परेशानियों में सिर की सतह को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचता है. ऐसे में लेजर फोटोथेरैपी के जरीए सिर की सतह को इन परेशानियों से दूर किया जा सकता है.

इस थेरैपी में बालों की सतह को जैंटल व नरिशिंग लाइट से नहलाया जाता है. इस तरीके से बालों की सतह पर फिर से ऊर्जा का संचार होने लगता है और बालों की फिर से ग्रोथ होने लगती है. इस के अलावा लेजर थेरैपी से बालों की सतह के रुक चुके रक्तप्रवाह को भी सही किया जा सकता है.

ओजोन थेरैपी

यह बालों की ग्रोथ और रिपेयर के लिए है. शरीर के किसी भी हिस्से में औक्सीजन के प्रवाह को ओजोन थेरैपी के नाम से जाना जाता है. औक्सीजन के ये फ्रीरैडिकल्स शरीर में मौजूद हानिकारक तत्त्वों को शरीर से बाहर करने में सहायक होते हैं. ऐसे ही तत्त्व हमारे सिर की सतह पर भी होते हैं जोकि ओजोन थेरैपी के जरीए सतह से बाहर निकल जाते हैं. इस थेरैपी के असर से बालों का गिरना पूरी तरह बंद हो जाता है और नए बाल भी उगने शुरू हो जाते हैं.

स्टेम सैल थेरैपी

इस ट्रीटमैंट में हम विटामिन, अमीनोऐसिड्स व पैप्टाइड्स के मिक्सचर को दूसरे ऐक्टिव इनग्रीडिएंट्स के साथ मिला कर सिर की सतह के स्टेम सैल्स को ऐक्टिव करते हैं. इस से बालों की ग्रोथ तेज हो जाती है. यह ट्रीटमैंट कई सैशन में पूरा होता है. तेज रिकवरी के लिए हेयर लेजर एलईडी थेरैपी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

एलईडी थेरैपी

एलईडी यानी लाइट इमिटिंग डायोड थेरैपी के जरीए अलगअलग कम ऐनर्जी की लेजर लाइट को मिला कर ट्रीटमैंट किया जाता है. कई किस्म की लेजर्स को मिला कर ट्रीटमैंट करने से यह हेयरलौस और हेयरग्रोथ ट्रीटमैंट में काफी प्रभावी होती है.

प्लेटलेट रिच प्लाज्मा

इस ट्रीटमैंट में मरीज के खून में मौजूद सीरम को अलग किया जाता है. इस से ऐक्टिव प्लेटलेट्स अलग किए जाते हैं. इस के बाद इसे सिर की सतह पर इस्तेमाल किया जाता है ताकि बालों की ग्रोथ और भी तेजी से हो सके.

स्पर्श दंश: कौनसी घटना घटी थी सुरेश के साथ

लेखक- सुरेंद्र कुमार

एक छोटी सी घटना भी इनसान के जीवन को कैसे बदल सकती है, इस को वह अब महसूस कर रहा था. सुरेश अपनी ही सोच का कैदी हो अपने ही घर में, अपनों के बीच बेगाना और अजनबी बन गया था.

सुनंदा उस में आए बदलाव को पिछले कुछ दिनों से खामोश देख रही थी. आदमी के व्यवहार में अगर तनिक भी बदलाव आए तो सब से पहले उस की पत्नी को ही इस बात का एहसास होता है.

सुनंदा शायद अभी कुछ दिन और चुप रह कर उस में आए बदलाव का कारण खोजती लेकिन आहत मासूम मानसी की पीड़ा ने उस के सब्र के पैमाने को एकाएक ही छलका दिया.

अपनी बेटी के साथ सुरेश का बेरुखा व्यवहार सुनंदा कब तक चुपचाप देख सकती थी. वह भी उस बेटी के साथ जिस में हमेशा एक पिता के रूप में सुरेश की सारी खुशियां सिमटी रहती थीं.

रविवार की सुबह सुरेश ने मानसी के साथ जरूरत से ज्यादा रूखा और कठोर व्यवहार कर डाला था. वह भी तब जब मानसी ने लाड़ से भर कर अपने पापा से लिपटने की कोशिश की थी.

बेटी का शारीरिक स्पर्श सुरेश को एक दंश जैसा लगा था. उस ने बड़ी बेरुखी से बेटी को यह कहते हुए कि मानसी, तुम अब बड़ी हो गई हो, तुम्हारा यह बचपना अब अच्छा नहीं लगता, अपने से अलग कर दिया था. सुरेश ने बेटी को झिड़कते हुए जिस अंदाज से यह कहा था उस से मानसी सहम गई थी. उस की आंखों में आंसू आ गए थे. साफ लगता था कि सुरेश के व्यवहार से उस को गहरी चोट लगी थी. वह तुरंत ही वहां से चली गई थी.

बेटी के साथ अपने इस व्यवहार पर सुरेश को बहुत पछतावा हुआ था. वह ऐसा नहीं चाहता था मगर उस से ऐसा हो गया था. तब उस को लगा भी था कि सचमुच व्यवहार पर उस का नियंत्रण नहीं रहा.

सुरेश जानता था कि कई दिनों से खामोश सबकुछ देख रही सुनंदा अब शायद खामोश नहीं रहे. मानसी ने जरूर उस के सामने अपनी पीड़ा जाहिर की होगी.

सुरेश का सोचना गलत नहीं था. रसोई के काम से फारिग हो सुनंदा कमरे में आ गई और आते ही उस ने सुरेश के हाथ में पकड़ा अखबार छीन कर फेंक दिया. वह तैश में थी.

‘‘इस बार जब से तुम टूर से वापस आए हो तुम को आखिर हो क्या गया है? अगर बिजनेस की कोई परेशानी है तो कहते क्यों नहीं, इस तरह सब से बेरुखी से पेश आने का क्या मतलब?’’

‘‘मैं किस से बेरुखी से पेश आता हूं, पहले यह भी तो पता चले?’’ अनजान बनते हुए सुरेश ने पूछा.

‘‘इतने भी अनजान न बनो,’’ सुनंदा ने कहा, ‘‘जैसे कुछ जानते ही नहीं हो. जानते हो तुम्हारे व्यवहार से दुखी मानसी आज मेरे सामने कितनी रोई है. वह तो यहां तक कह रही थी कि पापा अब पहले वाले पापा नहीं रहे और अब वह तुम से बात नहीं करेगी.’’

‘‘अगर मानसी ऐसा कह रही है तो जरूर ही मुझ से गलती हुई है. मैं अपनी बेटी को सौरी कह दूंगा. मैं जानता हूं, मेरी बेटी ज्यादा देर तक मुझ से रूठी नहीं रह सकती.’’

‘‘क्या हम दोनों उस के बगैर रह सकते हैं? एक ही तो बेटी है हमारी,’’ सुनंदा ने कहा.

इस पर सुरेश ने पत्नी का हाथ थाम उसे अपने पास बिठा लिया और बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ सुनंदा, क्या तुम को ऐसा नहीं लगता कि हमारी नन्ही बेटी अब बड़ी हो गई है?’’

सुरेश की बात को सुन कर सुनंदा हंस पड़ी और कहने लगी, ‘‘जनाब, इस बार आप केवल 10 दिन ही घर से बाहर रहे हैं और इतने दिनों में कोई लड़की जवान नहीं हो जाती. बेटी बड़ी जरूर हो जाती है, पर इतनी बड़ी भी नहीं कि हम उस की शादी की चिंता करने लगें. अगले महीने मानसी केवल 15 साल की होगी. अभी कम से कम 5-6 वर्ष हैं हमारे पास इस बारे में सोचने को.’’

‘‘मैं ने तो यह बात सरसरी तौर पर की थी, तुम तो बहुत दूर तक सोच गईं.’’

‘‘मुझ को जो महसूस हुआ मैं ने कह दिया. वैसे इस तरह की बातें तुम ने पहले कभी की भी नहीं थीं. इस बार जब से टूर से आए हो बदलेबदले से हो. बुरा मत मानना, मैं कोई गिलाशिकवा नहीं कर रही हूं. लेकिन न जाने क्यों मुझ को ऐसा लगने लगा है कि तुम अपनी परेशानियां अब मुझ से छिपाने लगे हो. तुम्हारे मन में जरूर कुछ है, अपनी खीज दूसरों पर उतारने के बजाय बेहतर यही होगा कि मन की बात कह कर अपना बोझ हलका कर लो,’’ सुरेश के कंधे पर हाथ रखते हुए सुनंदा ने कहा.

‘‘तुम को वहम हो गया है, मेरे मन में न कोई परेशानी है और न ही कोई बोझ.’’

‘‘मेरी सौगंध खा कर और आंखों में आंखें डाल कर तो कहो कि तुम को कोई परेशानी नहीं,’’ सुनंदा ने कहा.

उस के ऐसा करने से सुरेश की परेशानी जैसे और भी बढ़ गई. सुनंदा से आंखें न मिला कर उस ने कहा, ‘‘तुम भी कभीकभी बचपना दिखलाती हो. कारोबार में कोई न कोई परेशानी तो हमेशा लगी ही रहती है.’’

‘‘मैं कब कहती हूं कि ऐसा नहीं होता मगर पहले कभी तुम्हारी कोई कारोबारी परेशानी तुम्हारे घरेलू व्यवहार पर हावी नहीं हुई. इस बार तुम्हारी परेशानी का एक सुबूत यह भी है कि तुम अपनी बेटी की फरमाइश पर उस की बार्बी लाना भी भूल गए, वह भी तब जब उस ने मोबाइल से 2 बार तुम को इस के लिए कहा था. एक तो तुम मुंबई से उस की बार्बी नहीं लाए, उस पर उस से इतना रूखा व्यवहार, वह आहत हो रोएगी नहीं तो क्या करेगी?’’

‘बार्बी’ के जिक्र से ही सुरेश के शरीर को जैसे कोई झटका सा लगा. जिस गुनाह के एहसास ने उस को अपनी बेटी से बेगाना बना दिया था उस गुनाह के नागपाश ने एकाएक ही उस के सर्वस्व को जकड़ लिया. सुरेश की मजबूरी यह थी कि वह आपबीती किसी से कह नहीं सकता था. सुनंदा से तो एकदम नहीं, जो शादी के बाद से ही इस भ्रम को पाले हुए है कि उस के जीवन में किसी दूसरी औरत की कोई भूमिका नहीं रही.

सुनंदा ही नहीं दुनिया की बहुत सी औरतें जीवन भर इस विश्वास का दामन थामे रहती हैं कि उन के पति को उस के अलावा किसी दूसरी औरत से शारीरिक सुख का कोई अनुभव नहीं. मर्द इस मामले में चालाक होता है. पत्नी से बेईमानी कर के भी उस की नजरों में पाकसाफ ही बना रहता है.

लेकिन कभीकभी मर्द की बेईमानी और उस का गोपनीय गुनाह कैसे उस के जीवन से उस के अपनों को दूर कर सकता है, सुरेश की कहानी तो यही बतलाती थी.

सुनंदा ने गलत नहीं कहा था. मानसी ने 2 बार मोबाइल से अपने पापा सुरेश से ‘बार्बी’ लाने की बात याद दिलाई थी. लेकिन न तो मानसी इस बात को जानती थी और न ही सुनंदा कि जब दूसरी बार मानसी ने सुरेश से बार्बी लाने की बात की थी तब वह मुंबई में नहीं गोआ में था.

सुरेश बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के पहली बार गोआ गया था और गोआ ने उस के लिए रिश्तों के माने इतने बदल डाले कि वह अपनी बेटी से मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत दूर हो गया था.

मानसी का बचपन बीत गया था पर उस का गुडि़यों के संग्रह का शौक अभी गया नहीं था. मानसी के होश संभालने के बाद से सुरेश जब कभी भी टूर पर जाता था वह अपने पापा से बार्बी की नईनई गुडि़या लाने को कहती थी. ऐसा कभी नहीं हुआ था कि सुरेश अपनी बेटी की मांगी कोई चीज लाना भूला हो. इस बार भी सुरेश नहीं भूला था. यह अलग बात है कि इस बार उस ने बार्बी मुंबई से नहीं गोआ से खरीदी थी. मगर उसी बार्बी ने सुरेश को बेटी से दूर कर दिया था.

सुनंदा भले ही सुरेश के बारे में कितने भी भ्रम पाले रही हो मगर सच था कि शादी के बाद भी वह जिस्म का कारोबार करने वाली औरतों से यौनसंपर्क बनाता रहा था. ऐसा वह तभी करता था जब वह अपने कारोबार के सिलसिले में घर से बाहर दूसरे शहर में होता था. अगर कभी सुरेश का अपना मन बेईमान न हो तो कारोबारी दोस्तों की बेईमानी में साथी बनना पड़ता था. अब की बार इसी तरह के एक चक्कर में सुरेश के साथ जो घटना घटी थी उस ने उस की अंदर की आत्मा को झकझोर डाला था.

गोआ जाने का सुरेश का कोई कार्यक्रम नहीं था. यह तो सुरेश का मुंबई वाला कारोबारी दोस्त युगल था जिस ने अचानक ही गोआ का कार्यक्रम बना डाला था. युगल बाजारू औरतों का रसिया था और अपनी पत्नी के साथ विवाद के चलते वह चैंबूर इलाके में फ्लैट ले कर अकेले ही रह रहा था.

औरतों की तो मुंबई में भी कोई कमी नहीं थी मगर गोआ में उस के जाने का आकर्षण बालवेश्याएं थीं. 12-13 से ले कर 15-16 साल की उम्र तक की वे लड़कियां जो तन और मन दोनों से ही अभी सेक्स के लायक नहीं थीं. मगर अय्याश तबीयत मर्दों की विकृत सोच इन्हीं में पाशविक आनंद तलाशती है.

गोआ में बालवेश्यावृत्ति के बारे में सुरेश ने भी पढ़ा था. इस को ले कर जब युगल ने सुरेश से बात की तो उस का मन भी ललचा गया था.

सारी रात बस का सफर कर के सुरेश और युगल सुबह गोआ की राजधानी पणजी पहुंचे थे. गोआ सुरेश के लिए नई जगह थी, युगल के लिए नहीं. पणजी में कहां और किस होटल में ठहरना था और क्या करना था यह युगल को मालूम था.

होटल में लगभग 4 घंटे आराम करने के बाद सुरेश और युगल बाहर घूमने निकले. दोनों गोआ के खूबसूरत बीचों पर घूम कर अपना समय गुजारते रहे क्योंकि उन्हें तो रात होने का इंतजार था.

शाम होटल लौटते समय सुरेश बाजार से मानसी के लिए बार्बी गुडि़या खरीदना नहीं भूला. मुंबई के मुकाबले गोआ में बार्बी थोड़ी महंगी जरूर मिली थी, मगर उस को खरीदने के बाद सुरेश काफी निश्ंिचत हो गया था कि अब घर वापस जाने पर उसे अपनी बेटी की नाराजगी नहीं झेलनी पड़ेगी.

होटल के अपने कमरे में आ कर सुरेश ने मानसी के लिए खरीदी बार्बी को यह सोच कर मेज पर रख दिया था कि यहां से जाते समय वह अपने बैग में जगह बना कर इसे रख लेगा.

पणजी में आ कर युगल ने होटल में एक नहीं 2 कमरे बुक करवाए थे. एक सुरेश के नाम से और दूसरा अपने नाम से. बेशक दोनों पणजी पहुंचने के बाद एक ही कमरे में साथसाथ थे, लेकिन रात को उन दोनों को अलग- अलग कमरे में रहना था.

शाम को होटल में वापस आ कर युगल लगभग 1 घंटा गायब रहा था. उस को रात का इंतजाम जो करना था.

1 घंटे बाद युगल वापस आया और अपने होंठों पर जबान फेरते हुए एक खास अंदाज में बोला, ‘‘सुरेश, सारा इंतजाम हो गया है. रात 11 बजे के बाद लड़की तुम्हारे कमरे में होगी. सुबह होने से पहले तुम्हें उस को फारिग करना है. लड़की के साथ पैसों का कोई लेनदेन नहीं होगा. जो उस को छोड़ने आएगा, पैसे वही लेगा.’’

इस के बाद युगल ने गोआ की मशहूर शराब की बोतल खोली. खाना उन दोनों ने होटल के कमरे में ही मंगवा लिया था. खाना खाने के बाद दोनों ने थोड़ी देर गपशप की. रात के लगभग साढे़ 10 बजे अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देख युगल ने अपनी एक आंख दबाते हुए सुरेश से ‘गुडनाइट’ कहा और अपने नाम से बुक दूसरे कमरे में चला गया.

सवा 11 बजे के आसपास सुरेश के कमरे के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी.

सुरेश के ‘यस, कम इन’ कहने पर एक आदमी अपने साथ एक लड़की लिए कमरे में दाखिल हो गया. लड़की की उम्र 14 साल से ज्यादा नहीं थी. लड़की का कद भी छोटा था और उस के अंग विकास के शुरुआती दौर में थे.

लड़की को कमरे में छोड़ कर वह आदमी सुरेश से 700 रुपए ले कर चला गया. यह उस लड़की की एक रात की कीमत थी.

उस आदमी के जाने के बाद सुरेश ने कमरे की चिटखनी लगा दी थी.

लड़की सिर झुकाए अपनी उंगली के नाखून कुतर रही थी. उस के चेहरे पर किसी तरह की कोई घबराहट नहीं थी. मगर कोई दूसरा भाव भी नहीं था.

इतना तय था कि उसे यह जरूर पता था कि उस के साथ रात भर क्या होने वाला था. मगर उस के साथ जो होना था उस के बारे में शायद उस को पूरा ज्ञान नहीं था. उस की उम्र अभी शायद इन चीजों के बारे में जानने की थी ही नहीं.

सुरेश ने उस का नाम भी पूछा था. नाम से लगता था कि वह क्रिश्चियन थी. मारिया नाम बतलाया था उस ने अपना.

अपने शरीर के निशानों को सहलाने के बाद भी उस की आंखों में मासूमियत बरकरार थी. उस मासूमियत में दम तोड़ते कई सवाल भी थे.

इनसान की जिंदगी में ऐसे कई मौके आते हैं जब वह खुद अपनी ही नजरों में अपने किए पर शर्मिंदा नजर आता है. यही हालत उस वक्त सुरेश की थी.

कपडे़ पहनने के बाद मारिया कमरे में इधरउधर देखने लगी. फिर उस की भटकती नजरें किसी चीज पर टिक गई थीं.

उसी पल सुरेश ने उस के चेहरे पर बच्चों की निर्दोष और स्वाभाविक ललक देखी.

सुरेश ने देखा, मारिया की नजरें उस बार्बी पर टिकी थीं जोकि उस ने मानसी के लिए खरीदी थी.

वह ज्यादा देर बार्बी को दूर से निहारते नहीं रह सकी थी. उम्र और सोच से वह थी तो एक बच्ची ही. उस ने मामूली सी झिझक के बाद मेज पर रखी बार्बी उठाई और उस को अपने सीने से लगा कर सुरेश को देखते हुए बोली, ‘‘साहब, आप ने जो कहा, रात भर मैं ने वही किया. अगर आप मेरी सेवा से खुश हैं तो बख्शीश में यह गुडि़या मुझे दे दो. मैं कभी किसी गुडि़या से नहीं खेली साहब, क्योंकि कोई भी मुझ को गुडि़या ले कर नहीं देता.’’

मारिया के मुख से निकले ये शब्द किसी कटार की तरह सुरेश के सीने के आरपार हो गए थे. एक पल के लिए उस को ऐसा लगा था कि ‘बार्बी’ को अपने सीने से चिपकाए उस के सामने उस की अपनी बेटी मानसी खड़ी थी…वही मासूम आंखें…मासूम आंखों में वैसी ही ललक, वही अरमान…

उसी रात सुरेश की अपनी नजरों में अपनी ही मौत हो गई थी. वह मौत जिस को किसी दूसरे ने नहीं देखा था. इस गुपचुप मौत के बाद उस में कुछ भी सामान्य नहीं रहा था. अपनी बेटी के शरीर का स्पर्श ही सुरेश के लिए एक ऐसे दंश जैसा बन गया था जिस का दर्द उस से सहन नहीं होता था.

गोआ के एक होटल के कमरे में सुरेश को मारिया नाम की उस लड़की में मानसी नजर आई थी, अब मानसी में उस को मारिया नाम की लड़की की सूरत दिखने लगी थी. वह उन दोनों को अलग करने में स्वयं को असमर्थ महसूस कर रहा था.

Sharda Sinha का जन्मदिन ऐसे मनाते थे उनके पति, फेसबुक पोस्ट हो रहा है वायरल

शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) को कई उपनाम मिले. बिहार की लता मंगेशकर, मिथिला की बेगम जैसे कई नाम शारदा सिन्हा को दिए गए. भोजपुरी कोकिला की मौत से उनके फैंस काफी दुखी हैं, कल रात से ही लोग शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. बिहार की शान थीं शारदा सिन्हा, ये दिए गए उपनाम बताते हैं कि उनकी लोक गायकी को कितना पसंद किया जाता है.

पति की मौत से टूट गईं थीं शारदा सिन्हा

शारदा सिन्हा की संगीत की यात्रा के साथ लोग उनके प्राइवेट लाइफ के बारे में भी जानने के लिए उत्सुक रहते हैं. बिहार कोकिला की निधन के बाद एक फेसबुक पोस्ट वायरल हो रहा है. यह पोस्ट उन्होंने अपने पति के निधन के बाद लिखा था. शारदा सिन्हा ने अपने पति की मौत के गम में ये पोस्ट शेयर किया था. इस वायरल पोस्ट में उन्होंने अपने पति को याद करके लिखा, कि मैं जल्द आऊंगी. हालांकि पति के निधन के डेढ़ महीने बाद ही शारदा सिन्हा ने मौत को गले लगा लिया.

शादी के बाद 54 साल रहें साथ

शारदा सिन्हा अपने पति से बेहद प्रेम करती थीं. सोशल मीडिया पर उनके कई पोस्ट पढ़ने के बाद अंदाजा लगाया जा सकता है कि शारदा और उनके पति के बीच अटूट प्रेम था. दोनों ने शादी के बाद 54 साल साथ बिताएं, इसी साल सितंबर शारदा सिन्हा के पति का निधन हुआ.

स्वर कोकिला का ऐसे जन्मदिन मनाते थे उनके पति

शारदा सिन्हा ने फेसबुक पर ये भी शेयर किया था कि कैसे उनके पति उनका जन्मदिन मनाते थे. एक पोस्ट में उन्होंने अपने पति से जुड़ी यादें शेयर की थीं. उन्होंने लिखा था कि सुबह-सुबह उनके पति तकिया के नीचे गुलाब के फूल रखते थे. फिर प्यार भरी संदेश देते थे और नाश्ता भी तैयार करते थे. बिहार कोकिला ने ये भी लिखा था कि बिना सिन्हा साहब ये दिन शूल सा गड़ता है मुझे, कौनसा तोहफा दे गए सिन्हा साहब…?

डबडबाती आंखों से की थी आखिरी मुलाकात

इसके बाद पोस्ट में आगे लिखा था कि सिन्हा साहब से अंतिम मुलाकात 17 सितंबर की शाम हुई. मैंने उनसे कहा था, 3 दिनों में लौटकर आऊंगी. उन्होंने मुझसे कहा, मैं बिल्कुल ठीक हूं. आप बस स्वस्थ रहिए और जल्दी लौट आइएगा. ये कौन जानता था, उस दिन हाथ जोड़कर डबडबाती आंखें आखिरी बार देख रही थीं. आज का दिन बहुत भारी है…

60 साल के व्यक्ति से रहा अफेयर, Kamla Harris पर लगा घर तोड़ने का आरोप

अमेरिका इन दिनों चुनाव को लेकर चर्चा में है. कई राज्यों की वोटों की गिनती शुरू हो चुकी है. कई लोगों का कहना है कि अमेरिका के राष्ट्रपति का ताज इस बार डोनाल्‍ड ट्रंप को जाएगा, तो वहीं कुछ लोग चाहते हैं कि अगली राष्ट्रपति कमला हैरिस (Kamla Harris) बनें. खैर ये तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि कौन बनेगा अमेरिका का राष्‍ट्रपति. . .

अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं, जो एक मजबूत महिला के रूप में दुनियाभर में जानी जाती हैं. देश की पहली भारतीय अमेरिकी सीनेटर कमला हैरिस थीं और वह कैलिफोर्निया की पहली महिला और दक्षिण एशियाई अटार्नी जनरल भी थीं. कमला हैरिस की जिंदगी काफी उतारचढ़ाव से भरी है. उनकी पर्सनल लाइफ भी सामान्य नहीं थी. आइए जानते हैं उनकी निजी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें.

शादी के 9 साल बाद कमला हैरिस की मां अपने पति से हो गईं अलग

1964 में कैलिफोर्निया के आकलैंड में कमला हैरिस का जन्म हुआ था. 19 साल की उम्र में उनकी मां श्यामला गोपालन अमेरिका चली गई थीं. उस समय वहां अश्वेतों का आंदोलन तेज था. वहां उनकी मुलाकात डोनाल्ड हैरिस से हुई थी. दोनों की विचारधारा काफी मिलतीजुलती थी जिससे वो दोनों एकदूजे के करीब आए. पांच साल तक दोनों ने एकदूसरे को डेट किया और 1963 में शादी कर ली.

हैरिस की मां ने अकेले की परवरिश

श्यामला ने दो बेटियों को जन्म दिया. बड़ी बेटी कमला हैरिस थीं और दूसरी छोटी बेटी माया. हालांकि शादी के कुछ दिनों बाद ही कमला हैरिस के मातापिता में अनबन होने लगी. शादी के 9 सालों बाद  हैरिस के मातापिता अलग हो गए. उस समय कमला हैरिस महज 7 साल की थी. श्यामला गोपालन कनाडा जाकर एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगी. उन्होंने अपने दोनों बेटियों की अकेले ही परवरिश कीं. हैरिस की स्कूली पढ़ाई कनाडा में हुई और फिर अमेरिका चली गईं.

60 साल के व्यक्ति के साथ रिलेशनशिप में थीं हैरिस

कमला हैरिस ने राजनीति शास्त्र में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया. इसके बाद उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की. इसी बीच उनकी मुलाकात 60 साल के विली ब्राउन से हुई. उस समय वह कैलिफोर्निया में विधानसभा अध्यक्ष थे. उस समय कमला हैरिस की उम्र 30 साल थी. उम्र में इतना अंतर होने के बावजूद भी ये दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे और इनके अफेयर के चर्चे होने लगे. इनके रिश्ते पर जगजीत सिंह का ये गाना फिट बैठता है- ‘ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन, जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन…’

घर तोड़ने का लगा आरोप

इस अफेयर के कारण कमला हैरिस पर विली के घर तोड़ने का भी आरोप लगा. कहा जाता है कि विली से हेरिस ने रिश्ते बनाकर राजनीति की सीढ़ि‍यां चढ़ी. उन पर आरोप है कि इस रिश्‍ते का फायदा उठा कर कमला हैरिस ने दो सरकारी पद हासिल किए थे.

दूसरा अफेयर तलाकशुदा विलियम्स से रहा

कमला हैरिस का दूसरा अफेयर एंकर मोंटेल विलियम्स के साथ रहा. तलाकशुदा विलियम्स और हैरिस ने एकदूसरे को डेट किया. विलियम्स कई फेमस अमेरिकी टीवी शोज को होस्ट करते थे. हालांकि दोनों का रिश्ता लंबे समय तक नहीं चला. इसके बाद कमला हैरिस अपने करियर को मजबूत करने में जुट गईं. साल 2010 में वह कैलिफोर्निया राज्य की अटार्नी जनरल चुनी गई. इस पद को हासिल करने वह पहली अश्वेत महिला थीं.

तीसरा अफेयर शादी में बदला

कैलिफोर्निया की अटार्नी बनने के 3 साल बाद ही हैरिस की मुलाकात डगलस एमहाफ से हुई. दोनों की मुलाकात को कमला की दोस्त क्रिसेट हडलिन ने करवाया था. दोनों की ब्लाइंड डेट थी. डगलस तलाकशुदा व्यक्ति थे, वह पेशे से एक वकील भी हैं. एक इंटरव्यू के अनुसार, कमला हैरिस ने बताया था कि उन्हें डगलस का सेंस औफ ह्यूमर पसंद आया था. यह अफेयर शादी में बदली. दोनों ने एक साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद साल 2014 में शादी कर ली.

2 सौतेले बच्चों की मां हैं हैरिस

हैरिस के खुद के बच्चे नहीं है. हालांकि, कमला अपने 2 सौतेले बच्चों की परवरिश में हाथ बंटाती हैं. विपक्षी पार्टी अकसर उन पर तंज कसती रहती है. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रिपब्लिकन पार्टी के उप-राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेडी वेंस ने 2021 में कमला का नाम लिए बिना कहा था, “देश बिना बच्चों वाली कैट लेडी (बिल्ली पालने वाली) चला रही हैं’ जिनके अपने बच्चे तक नहीं हैं, जिनकी अपनी पर्सनल जिंदगी ठीक नहीं है, वे देश को खराब कर रही हैं’.

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