एक बिंदास लड़की : शादी के बाद क्यों बदलती है लड़की की ज़िन्दगी

बुजुर्गों की तरफ से तो रिश्ता तय हो चुका था. कुंडली मिलान, लेनदेन सब कुछ. बस, अब सब लड़कालड़की की आपसी बातचीत पर निर्भर था. बुजुर्गों ने तय किया कि लड़कालड़की आपस में बात कर एकदूसरे को समझ लें. कुछ पूछना हो तो आपस में पूछ लें. उन्हें एकांत दिया गया.

लड़के को शांत देख लड़की ने कहा, ‘‘आप कुछ पूछना चाहते हैं?’’ लड़का शरमीला था. मध्यमवर्गीय परिवार से था. उस ने कहा, ‘‘नहीं, बुजुर्गों ने तो सब

देखपरख लिया है. उन्होंने तय किया है तो सब ठीक ही होगा. आप दिखने में अच्छी हैं. मुझे पसंद हैं, बस इतना पूछना था कि…’’ लड़का पूछने में लड़खड़ाने लगा तो उस पढ़ीलिखी सभ्य लड़की ने कहा, ‘‘पूछिए, निस्संकोच पूछिए, आखिर हमारीआप की जिंदगी का सवाल है.’’

लड़के ने पूछा, ‘‘यह शादी आप की मरजी से… मेरे कहने का अर्थ यह है कि आप राजी हैं, आप खुश हैं न.’’

‘‘हां, लड़की ने बड़ी सरलता और सहजता से कहा. नहीं होती तो पहले ही मना कर देती.’’ लड़का चुप रहा. अब लड़की ने कहा, ‘‘मैं भी कुछ पूछना चाहती हूं आखिर मेरी भी जिंदगी का सवाल है. उम्मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, निस्संकोच पूछिए,’’ लड़के ने कहा. वह मन ही मन सोचने लगा, ‘लड़की पढ़ीलिखी है तो तेज तो होगी ही लेकिन इतनी बिंदास और बेबाक.’

‘‘आप का शादी के पहले कोई चक्कर, मेरा मतलब कोई अफेयर था क्या?’’

‘‘क्या,’’ लड़के ने लड़की की तरफ देखा.

‘‘अरे, आप घबरा क्यों गए? कालेज में पढ़े हो. इश्क वगैरा हो जाता है. इस में आश्चर्य की क्या बात है? सच बताना. एकदूसरे से क्या छिपाना?’’

‘‘जी, वह एक लड़की से. बस, यों ही कुछ दिन तक. अब सब खत्म है,’’ लड़के ने झेंपते हुए कहा.

‘‘मेरा भी था,’’ लड़की ने बेझिझक कहा.

‘‘अब नहीं है.’’

लड़का लड़की का मुंह ताकने लगा.

‘‘क्यों, क्या हुआ? जब आप ने कहा तब मैं ने तो ऐसा रिएक्ट नहीं किया जैसा आप कर रहे हैं. आप ने तो पूछने पर बताया, मैं ने तो ईमानदारी से बिना पूछे ही बता दिया.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि महीने में कितना कमा लेते हो?’’ लड़की ने आगे पूछा.

‘‘जी, 10 हजार रुपए.’’

‘‘मैं ने वेतन नहीं पूछा, टोटल कमाई पूछी है.’’

‘‘जी, मैं घूस नहीं लेता,’’ लड़के ने ताव से कहा.

‘‘अच्छा, पैदाइशी हरिश्चंद्र हो या अन्ना आंदोलन का असर है या फिर, डरते हो’’ लड़की हंस कर बोली.

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’

‘‘तो आप ईमानदार हैं.’’

‘‘जी, बिलकुल.’’

‘‘फिर घर कैसे चलाएंगे 10 हजार रुपए में, खासकर शादी के बाद. कम से कम 5 हजार रुपए तो मेरे ऊपर ही खर्च होंगे. क्या शादी के बाद अपनी पत्नी को घुमाने नहीं ले जाएंगे. बाजार, सिनेमा, कपड़े, जेवर वगैरावगैरा.’’

लड़के बेचारे के तो होश गुम थे. अच्छाखासा इंटरव्यू हो रहा था उस का. अब उसे लड़की बड़ी बेशर्म और उजड्ड मालूम हुई.

लड़की ने कहा, ‘‘देखो, शादी के बाद मुझे कोई झंझट नहीं चाहिए. अपनी मांबहन को पहले ही समझा कर रखना. मुझे सुबह आराम से उठने की आदत है और हां, शादी के बाद अकसर लड़झगड़ कर लड़के अलग हो जाते हैं. और सारी गलती बहुओं की गिना दी जाती है. सो अच्छा है कि हम पहले ही तय कर लें कि किसी भी बहाने से बिना लड़ाईझगड़े के अलग हो जाएं. तुम्हारा तो सरकारी जौब है, ट्रांसफर करा लेना. दूसरी बात रही पहनावे की तो मुझे साड़ी पहनने की आदत नहीं है. कभी शौक से, कभी मजबूरी में पहन ली तो और बात है. मैं सलवारसूट, जींस पहनती हूं और घर में बरमूड़ा, रात में नाइटी. बाद की टैंशन नहीं चाहिए, यह मत पहनो, वह मत करो, पहले ही बता देती हूं कि पूजापाठ मैं करती नहीं.’’

लड़की कहे जा रही थी और लड़का सुने जा रहा था. लड़के को लगा कि वह भी क्या समय था कि जब लड़की लजाते, शरमाते उत्तर देती थी, हां या न में. लड़का पूछता था, खाना बनाना आता है, गाना गाना जानती हो, कोई वाद्ययंत्र गिटार, सितार वगैरा बजा लेती हो, सिलाईबुनाई आती है, मेरे मातापिता का ध्यान रखना होगा और लड़की जीजी, हांहां करती रहती थी और अब जमाना इतना बदल गया.

उसे तो यह लगा मानो वह साक्षात्कार दे रहा हो. यह भी सही है कि अधिकतर जोड़े शादी के बाद अलग हो जाते हैं. दुल्हनें अपनी मांगों पर अड़ कर परिवार के 2 टुकड़े कर देती हैं. फिर अपनी मनमरजी का ओढ़नेपहनने से ले कर खाने में नमक, मिर्च कम ज्यादा होने पर सासबहू की खिचखिच शुरू हो जाती है. यह कह तो ठीक ही रही है, लेकिन शादी से पहले ही इतनी बेखौफ और निडर हो कर बात कर रही है तो बाद में न जाने क्या करेगी? यह तो नीति और मर्यादा के विरुद्ध हो गया. अभी पत्नी बनी नहीं और पहले से ही ये रंगढंग. लड़का तो फिर लड़का था. उस ने भी कहा, ‘‘शादी से पहले का भी बता दिया और शादी के बाद का भी. तुम से शादी करने का मतलब मांबाप, भाईबहन सब छोड़ दूं, तुम्हारे शौक पूरे करता रहूं. कर्तव्य एक भी नहीं और अधिकार गिना दिए. यह क्या बात हुई?’’

लड़की ने कहा, ‘‘जो होता ही है वह बता दिया तो क्या गुनाह किया. सच ही तो कहा है, इस में क्या जुर्म हो गया.’’

‘‘यह कोई तरीका है कहने का. यह कहती कि तुम्हारा घर संभालूंगी, बड़ेबूढ़ों का आदर करूंगी, सब का ध्यान रखूंगी तो अच्छा लगता.’’

‘‘ये सब तो आया के काम हैं. बाई है घर पर काम वाली या हमेशा मुझ से ही सब करवाने के चक्कर में हो. धोबिन भी मैं, बरतन, झाड़ूपोंछा वाली भी मैं. पत्नी चाहिए या नौकरानी,’’ लड़का भी उत्तर देने लगा, ‘‘क्या जो पत्नियां अपने घर का काम करती हैं वे नौकरानी होती हैं?’’

‘‘अरे, आप तो नाराज हो गए,’’ लड़की ने अपनी हंसी दबाते हुए कहा. सरकारी नौकरी में हो, ऊपरी कमाई तो होगी ही. फिर मेरे पिता दहेज में वाशिंग मशीन तो देंगे ही, कपड़े धुलाई का काम आसान हो जाएगा. मैं तो कुछ बातें पहले से ही स्पष्ट कर रही हूं जैसे मुझे 3-4 सीरियल देखने का शौक है और उन्हें मैं कभी मिस नहीं करती. अब ऐसे में कोई काम बताए तो मैं तो टस से मस नहीं होने वाली, अपने दहेज के टीवी पर देखूंगी. चिंता मत करना. किसी और के मनपसंद सीरियल के बीच में नहीं घुसूंगी.

लड़के के चेहरे के बदलते रंग को देख कर लड़की ने कहा, ‘‘आप को बुरा तो लग रहा होगा, लेकिन ये सब नौर्मल बातें हैं जो हर घर में होती हैं. मेरी ईमानदारी और साफगोई पर आप को खुश होना चाहिए और आप हैं कि नाराज दिख रहे हैं.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं हूं मुझे कुछ कहना है,’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, मुझे गोलगप्पे, चाट, पकोड़ी खाने का बड़ा शौक है, कम से कम हफ्ते में एक बार तो ले ही जाना होगा.’’

लड़की बोले जा रही थी, बोले जा रही थी. बेवकूफ थी, कमअक्ल थी. समझ नहीं आ रहा था लड़के को.

लड़की ने फिर पूछा, ‘‘सुनो, तुम शराब, सिगरेट तो नहीं पीते. तंबाकू तो नहीं खाते.’’

‘‘जी…जी…’’ लड़के की जबान फिर लड़खड़ाई.

‘‘जी…जी, क्या हां या नहीं,’’ लड़की ने थोड़े तेज स्वर में पूछा.

अब आप ने इतना सच बोला है तो मैं भी क्यों झूठ बोलूं. कभीकभी दोस्तों के साथ पार्टी वगैरा में.

‘‘देखो, मुझे शराब और सिगरेट से सख्त नफरत है. इस की बदबू से जी मिचलाने लगता है. तंबाकू खा कर बारबार थूकने वालों से तो मुझे घिन आती है. सब छोड़ना होगा. पहले सोच लो. तुम्हारे मातापिता को ये सब पहले बताना चाहिए था, वे तो कह रहे थे कि लड़का बड़ा शरीफ और सज्जन है. झूठ बोलने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘आप मेरे मातापिता को अभी से झूठा कह रही हैं,’’ लड़के ने गुस्से में कहा. आप में शर्म नाम की कोई चीज ही नहीं है. लड़की भी गुस्से में बोली, ‘‘शराबीकबाबी, तुम झूठे और तुम्हारे मांबाप भी. शर्म तुम्हें आनी चाहिए कि मुझे. तगड़ा दहेज भी चाहिए. लड़की भी ऐसी चाहिए कि तुम कुछ भी करो. लड़की मुंह बंद कर के रहे. कल शराब पी कर हाथ भी उठाओगे. फिर सुबह माफी मांगोगे कि नशे में हो गया. ये सब मैं सहने वाली नहीं. सीधा रिपोर्ट करूंगी. सब के सब अंदर हो जाओगे. नए जमाने की पढ़ीलिखी लड़की हूं. अपने राइट्स जानती हूं.’’

इस से ज्यादा सुनना लड़के के बस में नहीं था. वह गुस्से से बाहर निकल आया. मांबाप कुछ समझतेपूछते कि उस ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. फौरन वापस चलिए,’’ लड़का गाड़ी में बैठ गया.

‘‘क्या हुआ? क्या हुआ?’’ कहते हुए लड़की के परिवार वाले दौड़े.

लड़के ने कहा, ‘‘अपनी लड़की से पूछ लेना.’’

लड़का अपने परिवार के साथ गाड़ी में बैठ कर उड़नछू हो गया.

‘‘अरे, अभागिन, क्या कह दिया तूने,’’ लड़की की मां ने गुस्से से लड़की से कहा. इतना अच्छा रिश्ता हाथ से निकल गया. जन्मपत्री भी मिल रही थी. सरकारी नौकरी वाला लड़का मिलता कहां है आजकल.

लड़की ने अपने बचाव में कह दिया लागलपेट कर, ‘‘अरे मां, अच्छा हुआ, बात करवा दी आप ने. लड़का एक नंबर का शराबीकबाबी है. किसी लड़की से अफेयर की बात भी कह रहा था और भी न जाने क्याक्या बताया मां उस ने.’’

लड़की के मांबाप ने मान भी लिया. जब अपनी ही लड़की बताए तो मांबाप विश्वास क्यों नहीं करेंगे. फिर कौन सी लड़की होगी जो अपनी शादी अपने हाथ से तोड़ कर अपना भविष्य बरबाद करेगी.

रात को लड़की ने अपने कमरे में जा कर मोबाइल लगाया.

‘‘हाय, जानेमन कैसे हो?’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘होना क्या था. उलटे पांव भगा दिया साले को.’’

‘‘वैरी गुड डार्लिंग, लेकिन अब आगे?’’

‘‘आगे क्या? प्यार करते हो तो आ कर बात करो मेरे मांबाप से.’’

‘‘नहीं माने तो.’’

‘‘नहीं माने तो हमें कौन सा लैलामजनूं बन कर भटकना है. कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन उस में 1 महीना लगता है. उस के पहले कोई और आ गया तो.’’

‘‘तो ठीक है यार, मंदिर में कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन यह बताओ, आखिर तुम ने कहा क्या उस लड़के से जो वह भाग गया.’’

‘‘सच कहा, केवल सच.’’

‘‘सच सुन कर भाग गया.’’

‘‘अरे, आजकल सच बरदाश्त कौन करता है.’’

‘‘और तुम्हारा सच बरदाश्त कर लेता तो.’’

‘‘तो कर लेती.’’

‘‘क्या…क्या…कहा?’’

‘‘हां, कर लेती यार, आजकल सच्चा आदमी मिलता कहां है?’’

‘‘और मेरा क्या होता?’’

‘‘तुम कौन से देवदास बने घूमते. ढूंढ़ लेते कोई और.’’

‘‘बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करतेकरते हम सचमुच कितने प्रैक्टिकल हो गए हैं. दिल तो जैसे है ही नहीं. न आत्मा, न मन, न जमीन, बस मुनाफा मोटी तनख्वाह, कितनी बेशर्म और बेहया हो गई है हमारी सोच. बिलकुल मशीन हो गए हैं हम लोग,’’ उधर से पे्रमी का दार्शनिक स्वर सुनाई दिया.

लड़की ने कहा, ‘‘ओए, ज्यादा जज्बातजमीर की बातें मत कर. जल्दी से कंपनी का टारगेट पूरा कर. 4 भोलेभाले, भविष्य की चिंता करने वालों को सपने दिखा, कमा, लूट और अपनी जगह पक्की कर.’’

‘‘मान लो, मैं किसी वजह से तुम से शादी न कर सकूं, मना कर दूं किसी मजबूरी के कारण या कोई और पसंद आ जाए, तब क्या होगा तुम्हारा,’’ पे्रमी का स्वर गंभीर था.

‘‘तो क्या होगा कुछ नहीं, मुझे पुरानी फिल्मों की मीनाकुमारी समझ रखा है क्या? तुम नहीं तो और सही, नहीं तो…’’

‘‘अच्छा, ठीक है. अब यह बकवास बंद कर. रात बहुत हो गई है. आई लव यू बोल और फोन रख,’’ लड़का हंसते हुए बोला.

‘‘ओ के कल मिलते हैं.’’

‘‘ओ के, बाय गुडनाइट.’’

‘‘बाय, स्वीट ड्रीम्स’’

‘‘और दोनों तरफ से मोबाइल बंद हो गया.’’

Monsoon Special: बारिश में इंफेक्शन से रहना है दूर, तो खाएं Immunity बूस्टर फूड्स

मौनसून आ गया है, ऐसे में चिलचिलाती गरमी से छुटकारा मिलता है. जीभर कर इस मौसम को जी लेने का मन करता है, फ्रैंड्स व अपनों के साथ इस मौसम में मस्ती करने को मन बेताब रहता है. इस मौसम में खानेपीने का भी अपना ही मजा होता है, लेकिन यह मौसम दिल व दिमाग को जितना सुकून पहुंचाता है, उतना ही इस मौसम में अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट करने की भी जरूरत होती है क्योंकि बारिश के मौसम में इन्फैक्शन व फ्लू जैसी बीमारियों का खतरा सब से ज्यादा होता है.

ऐसे में स्ट्रौंग इम्यूनिटी वाला व्यक्ति ही हैल्दी लाइफ जीने के साथसाथ बीमारियों को खुद पर हावी होने से रोक पाता है.

तो आइए जानते हैं इस संबंध में वाशी के फोर्टिस हीरानंदानी हौस्पिटल के इंटरनल मैडिसिन की डाइरैक्टर डाक्टर फराह इंगले से:

क्या है इम्यूनिटी

इम्यूनिटी जिसे रोगप्रतिरोधक क्षमता भी कहते हैं शरीर की आंतरिक प्रतिरक्षा प्रणाली होती है, जो शरीर को बाहरी तत्त्वों से सुरक्षा प्रदान करने में मदद करती है. जैसे ही कोई वायरस, बैक्टीरिया शरीर पर हमला करता है, तो यह प्रतिरक्षा प्रणाली उस पर हमला करने के लिए सक्रिय हो जाती है. यह प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल होती है क्योंकि इस कार्य में अलगअलग तरह की कोशिकाएं लगी होती हैं, जो बाहरी तत्त्वों से शरीर को सुरक्षा प्रदान कर के उसे हैल्दी बनाए रखने की कोशिश करती हैं.

इम्यूनिटी कई तरह की होती है जैसे ऐक्टिव इम्यूनिटी. यह हमारे शरीर को तब मिलती है, जब हम किसी बैक्टीरिया, वायरस के संपर्क में आते हैं. ऐसे में हमें पहले से मिली ऐंटीबौडीज व इम्यून सैल्स उस बाहरी तत्त्व को नष्ट करने में जुट जाती हैं.

इम्यूनिटी का दूसरा प्रकार है पैसिव इम्यूनिटी, जिस में वायरस बगैरा से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बाहरी मदद से ऐंटीबौडीज प्रदान की जाती हैं. लेकिन शरीर तभी बाहरी तत्त्वों से लड़ने में सक्षम हो पाता है, जब वह अंदर से स्ट्रौंग हो और शरीर को अंदर से स्ट्रौंग बनाने के लिए जरूरी है अच्छे खानपान के साथसाथ कुछ हैल्दी हैबिट्स को भी अपनाने की खासकर के मौनसून के मौसम में.

ईट राइट फूड

शरीर की भूख को शांत करने के लिए खाना तो सभी खाते हैं, लेकिन हमें यह सम?ाना बहुत जरूरी है कि सिर्फ पेट भर लेने से शरीर की इम्यूनिटी बूस्ट नहीं होती है बल्कि सही फूड का चुनाव करना बहुत जरूरी है ताकि शरीर की न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतें पूरी होने से आप की इम्यूनिटी भी बूस्ट हो सके. इस के लिए बारिश के मौसम में इन चीजों को अपनी डाइट व रूटीन में जरूर शामिल करें. ये फूड्स आप को हैल्दी रखने के साथसाथ आप को पूरा दिन ऐनर्जेटिक भी रखने का काम करेंगे.

विटामिन सी रिच फूड्स

अगर आप अपनी इम्यूनिटी पर वर्क कर रहे हैं, तो खासकर के मौनसून के मौसम में अपनी डाइट में विटामिन सी रिच फूड्स व फ्रूट्स जैसे अनार, औरेंज, केला, ऐप्पल, अंगूर, कीवी, ब्रोकली, यलो बेल पेपर्स, टमाटर, पपीता, हरी पत्तेदार सब्जियां जरूर शामिल करें क्योंकि ये सभी न्यूट्रिएंट्स से भरे होने के साथसाथ ऐंटीऔक्सीडैंट्स में भी रिच होते हैं, जो बैक्टीरिया, वायरस से शरीर को फुल प्रोटैक्शन देने के साथसाथ हमें अंदर से स्ट्रौंग बनाने का काम भी करते हैं.

इस से हम मौसमी बीमारियों जैसे कोल्ड व फ्लू से भी बच सकते हैं. शरीर खुद से विटामिन सी उत्पन्न नहीं करता है, इसलिए इस की शरीर में जरूरत को पूरा करने के लिए हमें फूड्स व सप्लिमैंट से ही इसे लेने की जरूरत होती है.

गुड इन्टेक औफ प्रोटीन

आप भले ही बाहर क्या हो रहा है, उसे कंट्रोल करने में असमर्थ हो सकते हों, लेकिन आप के शरीर में क्या हो रहा है इसे आप काफी हद तक अपनी डाइट से कंट्रोल कर के अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट कर सकते हैं. इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन ए, सी, डी, बी6 व विटामिन बी12 बहुत जरूरी होते हैं, लेकिन जितने जरूरी ये विटामिंस होते हैं, उतना ही जरूरी न्यूट्रिएंट इम्यूनिटी को बढ़ाने के लिए होता है.

एक औसत स्वस्थ वयस्क को प्रतिदिन अपने वजन के हिसाब से हर किलोग्राम पर 1 ग्राम प्रोटीन लेने की जरूरत होती है जैसे अगर आप का वजन 60 किलोग्राम है तो आप को रोजाना 60 ग्राम प्रोटीन लेना होगा.

इस के लिए आप अपनी डाइट में मूंग दाल, एग, सोयाबीन, पनीर, मिक्स्ड स्प्राउट्स, बेक्ड रागी चकली, ओट्स ब्रैड, सीड्स, नट्स, डेयरी प्रोडक्ट्स, पीनट बटर, दालें आदि को अपनी डाइट में शामिल करें. इस से आप खुद को फिट रखने के साथसाथ अपनी इम्यूनिटी को बूस्ट कर के खुद को बीमारियों से भी बचा सकेंगे.

मिनरल्स भी बेहद जरूरी

अगर आप को खुद को स्वस्थ रखना है तो विटामिंस के साथसाथ शरीर की मिनरल्स संबंधित जरूरतों को भी पूरा करना होगा. मिनरल्स हड्डियों को मजबूत बनाने और मांसपेशियों को दुरुस्त रखने के लिए जरूरी होते हैं. लेकिन अगर शरीर में इन की कमी हो जाए तो न्यू हैल्दी सैल्स नहीं बन पाते हैं, जो हमारी इम्यूनिटी को लो करने के साथसाथ हमें इन्फैक्शन होने का भी ज्यादा डर बना रहता है. ऐसे में हमें अगर अपनी इम्यूनिटी पर वर्क करना है और मौनसून में बीमारियों से खुद को बचाए रखना है तो अपनी डाइट में जरूरी मिनरल्स को शामिल करना न भूलें.

इस के लिए आप आयरन, जिंक, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सेलेनियम को अपनी डाइट में शामिल करें. इन से मांसपेशियां मजबूत होने के साथसाथ दिमाग के विकास में तो मदद मिलती ही है, साथ ही नई कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद मिलती है.

खुद को रखें हाइड्रेट

चाहे मौसम कोई भी क्यों न हो, खुद को हर मौसम में हाइड्रेट रखना बहुत ही जरूरी है खासकर मौनसून के सीजन में क्योंकि सुहावना मौसम व मौसम में ठंडक के कारण हमारे शरीर को पानी की जरूरत भले ही महसूस न हो, लेकिन पानी शरीर में बहुत ही अहम रोल निभाता है. यह शरीर की कोशिकाओं तक औक्सीजन पहुंचाने का काम करता है, जिस से शरीर सुचारु ढंग से काम करने में सक्षम हो पाता है. यह शरीर से टौक्सिंस को बाहर निकाल कर आप की इम्यूनिटी पर इस का खराब प्रभाव होने से रोकने में भी मददगार होता है.

हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली हमारे रक्त प्रवाह में पोषक तत्त्वों पर अत्यधिक निर्भर होती है और हमारी ब्लड स्ट्रीम यानी रक्त प्रवाह काफी हद तक पानी पर, लेकिन अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीते हैं तो हर और्गन सिस्टम तक न्यूट्रिएंट्स आसानी से व ठीक से नहीं पहुंच पाते हैं, इसलिए खुद को हाइड्रेट रखने व बौडी को डिटौक्स करने के लिए रोज 9-10 गिलास पानी का सेवन जरूर करें. इस के लिए आप नीबू पानी, नारियल पानी, जूस का भी सहारा ले सकते हैं.

क्वालिटी स्लीप

आप ने कुछ लोगों को कहते सुना होगा कि हम ने 10-12 घंटे की नींद भी ली, लेकिन फिर भी हम खुद को फ्रैश फील नहीं कर रहे हैं. लेकिन कोई व्यक्ति 5 घंटे की नींद के बाद भी खुद को काफी रिफ्रैश फील करने लगता है. बता दें कि क्वालिटी स्लीप हमारे इम्यून सिस्टम को सपोर्ट करने का काम करती है. अनेक स्टडीज से पता चला है कि जो लोग पूरी व अच्छी नींद नहीं लेते हैं, वे जल्दीजल्दी बीमार होने के साथासथ उन्हें कोल्ड वायरस होने का खतरा भी सब से ज्यादा रहता है.

इसलिए खुद को रिचार्ज करने व इम्यून सिस्टम को स्ट्रौंग बनाने के लिए हर व्यक्ति को रोजाना 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद जरूर लेनी चाहिए क्योंकि यह शरीर का रक्षा नैटवर्क होता है, जो शरीर में संक्रमण को रोकता व सीमित करता है.

स्ट्रैस बस्टिंग ऐक्सरसाइज

ऐक्सरसाइज न सिर्फ स्ट्रैस से दूर रखने का काम करती है, बल्कि आप की मांसपेशियों व हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के साथसाथ आप की इम्यूनिटी को स्ट्रौंग बनाने का भी काम करती है. यही नहीं बल्कि ऐक्सरसाइज ब्लड सर्कुलेशन को इंप्रूव करने, वेट को मैनेज करने के साथसाथ आप के गुड स्लीप में भी मददगार होती है. इसलिए रोज 30 मिनट ऐक्सरसाइज जरूर करें. डीप ब्रीथ, ब्रिस्क वाक, साइक्लिंग, डांसिंग, रनिंग, जौगिंग, ऐरोबिक्स जैसी ऐक्सरसाइज करें.

लिपस्टिक से कम खर्च में मिलते हैं tinted lipbalm, यह न्यू ट्रैंड अच्छा है न 


टिंटैंड लिपबाम अक्सर स्कूल की टीनएजर्स गर्ल्स लगाती थी, ताकि टीचर्स की नजरों से बची रहें और यंग लड़कियों की तरह होठों को रंगने का शौक भी पूरा हो जाए. पैरेंट्स भी इनको आंखें तरेर कर नहीं देखते क्योंकि इसका कलर बहुत ही लाइट होता है.  टिंटैड लिपबाम नाम से ही पता चल जाता है कि कलर का टिंट यानी रंग की नाममात्र की मात्रा.  

बेस्ट क्वालिटी के लिपबाम में वैजिटेबल औइल, वैजिटेबल बटर्स और वैजिटेबल वैक्स जैसी चीजें मिली रहती है, इस वजह से यह होठों को अच्छी तरह मौइश्चराइज करने का काम करता है और यही वजह है कि बहुत सारी महिलाएं इसी क्वालिटी के कारण इसका इस्तेमाल करती है

वर्किंग वुमन में यह काफी ट्रैंड में है क्योंकि वह रोज घर से बाहर निकलती है, बदलते मौसम का असर उनके होठों पर पड़ता है, इस कारण वह फट जाते हैं या बहुत ही ज्यादा रुखे हो जाते हैं, ऐसे में लिपकलर का इस्तेमाल करने से यह और भी बुरे नजर आते हैं और इनका रुखापन भी नहीं जाता.  इसके ठीक विपरीत टिंटैड लिपबाम में मौजूद  नैचुरल एनिमल या वैजिटेबल वैक्स की वजह से यह फटे या डैमेज्ड होठों को अच्छी तरह से रिपेयर कर देता है.  

 

टिटैंड लिपबाम के ट्रैंडी होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि इससे चेहरे का नैचुरल टच बना रहता है, जो गर्ल्स फैशनेबल दिखना चाहती है लेकिन इसे दिखाने से बचती हैं, उनके लिए यह बेस्ट औप्शन है.  टिंटैड लिपबाम के मार्केट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज हर छोटीबड़ी ब्यूटी बनानेवाली कंपनी इस प्रोडक्ट को लौन्च कर चुकी है.   यही वजह है कि हर लड़की की पौकेटमनी में आसानी से आ जाती है. स्कूल गर्ल्स के बीच फेमस होने की यह वजह भी है, कम पैसे में मिलने के कारण मां इसे दिलाने में बजट नहीं देखती जबकि लिपस्टिक उन्हें मंहगी लगती है. 

ब्यूटी एक्सपर्ट के अनुसार, टिंटैड लिपबाम को लिपस्टिक और लिपबाम का हाइब्रीड कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें दोनों की क्ववालिटीज मौजूद है. आमतौर पर यह मोव, बेबी पिंक, पीचीश पिंक कलर्स में मिल रहे हैं, इसके अलावा भी यह कई बार डार्क शेड्स में भी मिलते हैं, ताकि जिन लोगों को गहरे रंगों के साथ बाम वाली क्वालिटी चाहिए, वह इससे पूरी हो जाए.  

बात लिपकलर और लिपबाम की हो ही रही है, तो क्यों न, कुछ ब्यूटी से जुड़े नौलेज की भी बात हो जाए.  एक शोधकर्ता निकोलस गुएगुएन ने अपनी स्टडी में यह जानने की कोशिश की क्या लाल लिपस्टिक सही में पुरुषों को अपनी ओर अट्रैक्ट करने का काम करती है, इसके लिए महिलाओं को अलगअलग कलर की लिपस्टिक जैसे लाल, गुलाबी, भूरा लगाने को कहा गया. इसमें से कुछ महिलाओं ने होठों को सादा ही रहने दिया. यह पाया गया कि रेड लिपस्टिक लगाने वाली महिलाएं उस जगह पर आने वाले पुरुषों को अधिक पसंद आई. इस अध्ययन के लिए बार को चुना गया था.

टिंटैंड लिपबाम का एक खास फायदा यह है कि पार्टी में जाने के पहले ड्रैस के साथ मैचिंग ब्लश या आईशैडो घर में न हो, तो लड़कियां इसका इस्तेमाल गालों के ऊपरी हिस्से या पलकों पर लगाने में करती है. इसका इस्तेमाल चेहरे के किसी खास हिस्से को हाईलाइट करने के लिए भी किया जाता है यानी आपके कौस्मेटिक प्रोडक्ट्स की किटी में अगर हाईलाइटर की कमी है, तो वह इससे पूरी हो जाती है. सबसे मजेदार बात यह है कि यह केवल कई शेड्स में ही नहीं कई स्वाद और खुशबू में भी पाई जाती है.   जो केवल वुमन कस्टमर को लुभाने का ट्रिक है 

 

किस मौके पर कौन सा High Bun बनाना है जानेंगी, तभी कहलाएंगी fashionista

अक्सर रेड कार्पेट पर सेलिब्रिटीज को फिगर टाइट गाउन के साथ हाईबन या मेसीबन में देखा गया है. आप भी अगर इस हेयर स्टाइल की शौकीन है, तो केवल हाईबन के दो हेयर स्टाइल तक खुद को समेट कर रखने की जरूरत नही है.  किस फंक्शन में किस तरह का हाईबन बना कर जाना है जानें 

Classic high bun : औफिस, फॉर्मल इवेंट्स के लिए क्लासिकल हाईबन बनाएं.  इसके लिए पूरे बालों को सिर के सबसे ऊंचे हिस्से पर लाएं और उसका पोनीटेल बना लें. अब इसे लपेट कर बन बना लें.  इस बन को बौबी पिन्स और हेयर स्प्रे से सेट कर लें.  शौर्ट हाइट की लड़कियों पर यह स्टाइल बहुत ही अच्छा लगेगा.

 


Messy high bun :   मेस्सी हाईबन में बालों को बहुत अच्छी कौम्बिंग करने की जरूरत नहीं है. बालों से ढीलाढीला सा हाईबन बनाएं लेकिन कुछ बालों को सामने की पार्टिंग से दोनों तरफ बाहर निकाल दें, लेकिन बहुत ही सलीके से.  कानों के ऊपर के बालों को भी हल्का बाहर निकाल दें.  फ्रेंड्स के साथ गेटटूगेदर के समय इस तरह का मेस्सी हाईबन ट्राई करें. जिम जानेवाली वुमन के लिए यह काफी कंफर्टेबल फील देता है.  कैजुअल मौकों के लिए भी परफैक्ट है. 


Double High bun : वीकेंड पार्टी के लिए स्पेस बन  सबसे बेस्ट रहेगा.  इसमें बालों की सेंट्रल पार्टिंग बनाकर दो हिस्से में बांट कर हाई पोनी बना लें.  इसे लपेट कर और पिन से फिक्स कर बन बना लें.  इसे डबल हाई बन भी कहत हैं.  टीनएजर्स अपनी थीम पार्टीज के लिए इस हेयर स्टाइल को जरूर बनाएं.  

Braided High Bun : शादी जैसे मौकों पर कुछ नए तरीके का बन ट्राई करना चाहती हैं, तो ब्रेडेड हाई बन ट्राई करें.  पीछे की तरह को बालों को समेटकर हाई पोनी टेल बनाएं.  इसकी चोटी बनाकर लपेट लें, इसे ढेर सारे हेयर पिन्स से प्रोटैक्ट करें. 

High Bun With Accessories : किसी फैशनेबल इवेंट्स में जा रही हैं या फिर फ्रेशर पार्टी करने का इरादा है, तो ऐसे मौकों के लिए हाईबन विद एक्सेसरीज ट्राई करें क्लासिक हाईबन बनाकर उसमें स्कार्फ बांधें, स्कार्फ की जगह रिबन का यूज भी कर सकती हैं, आजकल बड़ी साइज के स्टोन्स लगे हेयर क्लिप्स भी ट्रेंड्स में है, इससे भी बालों को सजा सकती हैं यह बन पिकनिक जैसे मौकों के लिए भी बेस्ट है.

Flower High Bun : एनीवर्सरी जैसे खास मौकों पर साड़ी पहन रही हैं, तो उसके साथ फ्लावर हाई बन बनाकर देखें. सगाई और शादी जैसे खास मौकों पर भी इस तरह के बन काफी अच्छे लगते हैं . इसमें हाईबन बनाकर उसे बड़ेबड़े फूलों से सजाएं. रियल फ्लावर नहीं है,तो आर्टियल फ्लावर्स से भी बालों को सजा सकती हैं. 

Chinese High Bun : लंबी जर्नी पर हो या फिर कूल दिखना चाहती हैं, तो  चाइनीज हाईबन बेस्ट है, सभी बालों को समेट कर सीधे सिर के ऊपर ले जाएं, लपेट कर बन बनाएं और इसे फिक्स करने के लिए चौपस्टिक का युज करें. आपको अमेजिंग लुक मिलेगा. 

 

 

खिलौना : क्या हुआ पलक के साथ मां रीना के घर?

पलक बहुत ही खोईखोई सी घर के एक कोने में बैठी थी. न जाने क्यों उसे यह घर बहुत अजनबी सा लगता था.

बिजनौर में सबकुछ कितना अपनाअपना सा था. सबकुछ जानापहचाना, कितने मस्त दिन थे वे…

पासपड़ोस में घंटों खेलती थी और बड़ी मम्मी कितने प्यार से पकवान बनाती थीं. स्कूल में हमेशा प्रथम
आती थी वह. वादविवाद प्रतियोगिता हो या गायन, पलक हमेशा ही अव्वल आती.

रविवार का दिन तो जैसे एक त्यौहार होता था। पासपड़ोस के अंकलआंटी आते थे और फिर घर की छत पर
मूंगफली और रेवड़ी की बैठक होती थी. बड़े पापा, मम्मी अपने बचपन के किस्से सुनाते थे. पलक घंटों अपनी
सहेलियों के साथ बैठ कर उन पलों में सारा बचपन जी लेती थी.

पूरा दिन 24 घंटों में ही बंटा हुआ था। यहां की तरह नही था कि कुछ पलों में ही खत्म हो जाता है।

तभी ऋषभ भैया अंदर आए और बोले,”पलक, तुम यहां क्यों एक कोने में बैठी रहती हो? क्या प्रौब्लम है।”

ऋषभ भैया अनवरत बोले जा रहे थे,”यह दिल्ली है, बिजनौर नहीं। यह क्या अजीब किस्म की जींस और ढीली कुरती पहन रखी हैं…पता है कल मेरे दोस्त तुम्हें देख कर कितना हंस रहे थे।”

पलक को समझ नहीं आ रहा था, जो कपड़े बिजनौर में मौडर्न कहलाते थे वे यहां पर बेकार कहलाते हैं. पलक
सोच रही थी कि बड़ी मम्मी, पापा ने तो उसे दिल्ली में पढ़ने के लिए भेजा था पर यहां के स्कूल में तो लगता है पढ़ाई के अलावा सारे काम होते हैं. सब लोग धड़ाधड़ इंग्लिश बोलते हैं, कैसीकैसी गालियां देते हैं कि उस के कान लाल हो जाते हैं।

वैसे इंग्लिश तो पलक की भी अच्छी थी पर न जाने क्यों दिल्ली में उसे बहुत झिझक होती है.

आज ऋषभ भैया और मम्मीपापा पलक को मौल ले कर गए थे, शौपिंग कराने के लिए। इतना बड़ा मौल पलक ने इस से पहले कभी नहीं देखा था.

जब पलक छोटी थी तो बारबार उस के दिमाग मे यही बात आती थी कि वह नानानानी के साथ क्यों रहती है?

पेरैंटटीचर मीटिंग में वह अपने नानानानी को ले कर नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि सब की मम्मी इतनी सुंदर, जवान और नएनए स्टाइल के कपड़े पहनती हैं और उस की नानी खिचड़ी बाल और उलटीसीधी साड़ी पहन कर जाती थी.

एक बार उस ने अपनी नानी से पूछ ही लिया,”मैं अपने मम्मीपापा के साथ क्यों नही रहती हूँ?”

नानी हंसते हुए बोली थीं,”क्योंकि कुदरत ने तुम्हें अपने नानानानी के जीवन मे रंग भरने भेजा है।”

पलक को कुछ समझ नहीं आता था पर यह दुविधा उस के बालमन में हमेशा रहती थी. बस इस के अलावा उस की जिंदगी में सब कुछ परफैक्ट था.

जब कभी कभी पलक की मम्मी रीना दिल्ली से अपने बेटे ऋषभ के साथ आती थी तो पलक को बहुत बुरा लगता था. उन दिनों पलक की नानी कितनी अजनबी हो जाती थीं. सारा दिन वह रीना के चारों तरफ घूमती थीं. ऋषभ भैया उसे कितनी हेयदृष्टि से देखते थे.

पलक जब 11 साल की हुई तो उस के जन्मदिन पर उस की मम्मी ने उसे पूरी कहानी बताई कि पलक की
बेहतर देखभाल के लिए ही वह नानानानी के पास रहती है और जल्द ही पलक को वे लोग दिल्ली ले जाएंगे.

कितनी खुश हुई थी पलक यह सुन कर कि जल्द ही वह अपने मम्मीपापा के साथ चली जाएगी.

उस बार जब छुट्टियों में रीना बिजनौर आई हुई थी तो पलक रीना को कर अपने स्कूल पेरैंटटीचर मीटिंग में ले कर गई. दोस्तों को उस ने बहुत शान से अपनी मम्मी से मिलवाया था.

रीना बहुत खुश हो कर पलक के साथ उस के स्कूल गई थी, क्योंकि अब वह अपनी बेटी को उस के बेहतर भविष्य
के लिए दिल्ली ले कर जाना चाहती थी.

पलक का स्कूल देख कर रीना को धक्का लगा था, क्योंकि पलक का
स्कूल छोटा और पुरानी तकनीक पर आधारित था.

आते ही रीना अपनी मां से बोली,”मम्मी, अब पलक को दिल्ली ले कर जाना ही होगा। इस छोटे शहर में पलक का ठीक से विकास नहीं हो पाएगा। इस के स्कूल में कुछ भी ठीक नही है।”

पलक की नानी रुआंसी हो कर बोलीं,”रीना, तुम भी तो इसी स्कूल में पढ़ी थीं और बेटा तुम तो पलक को इस दुनिया मे लाना ही नहीं चाहती थी। वह तो जब मैं ने सारी जिम्मेदारी उठाने की बात की थी तब तुम उसे जन्म देने के लिए तैयार हुई थी।”

रीना बेहद महत्त्वाकांक्षी युवती थी. जब उस का बेटा ऋषभ 3 वर्ष का ही हुआ था तब पलक के आने की आहट रीना को मिली थी। ऋषभ की जिम्मेदारी, नौकरी और घर की भागदौड़ में रीना थक कर चूर हो जाती थी. ऐसे में एक नई
जिम्मेदारी के लिए वह तैयार नहीं थी. वैसे भी उन्हें बस एक ही बच्चा चाहिए था, ऐसे में पलक के लिए उन की जिंदगी में कोई जगह नहीं थी.

दिल्ली में आसानी से गर्भपात नहीं हो सकता था इसलिए रीना बिजनौर गर्भपात कराने आयी थी. पर
रीना के मम्मीपापा अपने अकेलेपन से ऊब चुके थे. बेटा विदेश में बस गया था. रीना को भी घरपरिवार और
नौकरी के कारण यहां आने की फुरसत नहीं थी. इसलिए रीना के मम्मीपापा, जानकीजी और कृष्णकांतजी को ऐसा लगा जैसे यह कुदरत की इच्छा हो और यह बच्चा उन के पास आना चाह रहा हो…

कितनी मुश्किल से जानकी ने रीना को मनाया था। पूरे समय वे रीना के साथ बनी रही थीं ताकि उसे किसी बात की तकलीफ न हो।

पलक के जन्म के 2 माह बाद जानकी पलक को ले कर बिजनौर आ गई थी. रीना किसी
भी कीमत पर पलक की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उस ने पलक को अपना दूध भी नहीं पिलाया
था.

मां का दूध न मिलने के कारण पहले 2 साल तक पलक बेहद बीमार रही. जानकी और कृष्णकांतजी का एक पैर घर और दूसरा हौस्पिटल में रहता।

पासपड़ोस वाले कहते भी,”आराम के वक्त इस उम्र में यह क्या झंझाल मोल ले लिया है…”

पर जानकी की जिंदगी को एक मकसद मिल गया था। उन की दुनियाभर की बीमारियां एकाएक गायब हो गई थीं.

सारा दिन कैसे बीत जाता था जानकी को पता भी नहीं लगता था। पलक के साथ जानकी ने बहुत मेहनत की थी।

4 वर्ष की होतेहोते पलक एकदम जापानी गुड़िया सी लगने लगी थी.
अब जब भी छुट्टियों में रीना घर जाती तो पलक की बालसुलभ हरकतें और उस का भोलापन देख कर उस की सोई हुई ममता जाग उठती थी. पर रीना किस मुंह से अपनी मां से यह कहती, क्योंकि वह तो पलक को इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहती थी और न उस की कोई जिम्मेदारी उठाना चाहती थी। इसलिए कितनेकितने दिनों तक वह अपने मम्मीपापा के पास बिजनौर फोन भी नहीं करती थी.

धीरेधीरे समय बीतता गया और ऋषभ भी अब किशोरवस्था
में पहुंच गया था. ऋषभ अब अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहता।.

जब रीना ने अपने पति पराग से इस बात का जिक्र किया तो उस ने भी रीना को झिड़क दिया,”तुम कितनी खुदगर्ज हो रीना, अब पलक बड़ी हो गई है और ऋषभ की तरफ से तुम फ्री हो तो तुम्हें पलक याद आने लगी है और तुम्हें यह एहसास होने लगा है कि तुम पलक की मम्मी हो?

“याद है तुम्हें जब वह 7 महीने की थी और बेहद बीमार थी, तुम्हारी मम्मी ने तुम से आने के लिए कहा था पर
तुम औफिस के काम का हवाला दे अमेरिका चली गई थी।

“हर वर्ष जब हम छुट्टियों में घूमने जाते थे तो मैं कितना कहता था कि पलक को भी साथ ले लेते हैं पर तुम हमेशा कतराती थीं क्योंकि तुम 2 बच्चों की जिम्मेदारी एकसाथ नहीं उठा सकती थीं…”

रीना चुपचाप बैठी रही और पलक को अपने घर लाने के लिए मंथन करती रही.

समय बीतता गया और रीना हर
संभव कोशिश करती रही अपनी मम्मी को यह जताने की कि उन का पालनपोषण करने का तरीका पुराना है।

वह यह जताना चाहती थी कि पलक की बेहतर परवरिश के लिए उसे दिल्ली भेज देना चाहिए.

आज रीना को पलक के स्कूल जाने से यह मौका मिल भी गया. पलक 12 वर्ष की हो चुकी थी। रीना अपनी बेटी को अपने जैसा ही स्मार्ट बनाना चाहती थी. जब रीना की मम्मी ने अपनी बेटी की बात को अनसुना कर दिया तो रीना ने अपने पापा से बात की कि पलक की आगे की पढ़ाई के लिए उसे दिल्ली भेज देना चाहिए।

कृष्णकांतजी एक व्यवहारिक किस्म के इंसान थे। दिल से न चाहते हुए भी कृष्णकांतजी को पलक की
भविष्य की खातिर रीना की बात माननी पड़ी.

पलक को जब पता चला कि वह अपने मम्मीपापा के साथ दिल्ली जा रही है तो वह बेहद खुश थी. पर जब सारा सामान पैक हो गया तो पलक एकाएक रोने लगी कि वह किसी भी कीमत पर नानानानी को छोड़ कर नहीं जाना चाहती…

उधर जानकीजी का घोंसला एक बार फिर से खाली हो गया था पर इस बार पंछी के उड़ने का दर्द अधिक
था. कृष्णकांतजी जितना जानकीजी को समझाते,”वह रीना की ही बेटी है और तुम्हे खुश होना चाहिए कि हमारी पलक बड़े और अच्छे स्कूल में पढ़ेगी पर जानकीजी को तो जैसे उस की दुनिया ही वीरान लगने लगी थी।

जानकीजी को पूरा विश्वास था कि पलक उन के बिना रह नहीं पाएगी. बेटी ने एक बार भी नहीं कहा था, इसलिए उन्हें खुद तो दिल्ली जाने की हिम्मत नही हुई थी पर पति कृष्णकांतजी की चिरौरी कर के घर के पुराने नौकर मातादीन को ढेर सारी मिठाईयों के साथ दिल्ली भेज दिया.

नई दुनिया, नए लोग और चमकदमक सभी को अच्छी लगती हैं और पलक तो फिर भी बच्ची ही थी. वह इस टीमटाम में अपने पुराने घर और साथियों को भूल गई थी. मातादीन को देख कर एक पल के लिए पलक की आंखों
में चमक तो आई पर नए रिश्तों के बीच फिर वह चमक भी धीमी पड़ गई थी.

मातादीन पलक को खुश देख कर उसे आशीष दे कर अगले दिन विदा हो गया था. मातादीन को विदा करते हुये रीना का स्वर कसैला हो उठा और
बोली,”काका, मम्मी को बोलिएगा, पलक की चिंता छोड़ दे, वह मेरी बेटी है, मैं अपनेआप संभाल लूँगी।”

दिल्ली आ कर मातादीन ने कहा,”बीबीजी, चिंता छोड़ दीजिए। पलक बिटिया नई दुनिया में रचबस गयी हैं।”

पर जानकीजी खुश होने के बजाए दुखी हो गई थीं और फिर से उन का शरीर बीमारियों का अड्डा बन गया था.

उधर 1 माह बीत गया था और पलक के ऊपर से चमकदमक की खुमारी उतर गई थी. अब पलक चाह कर भी अपनेआप को दिल्ली की भागतीदौड़ती जिंदगी में ठीक से ढाल नहीं पा रही थी.

स्कूल का माहौल उस के पुराने स्कूल से बिलकुल अलग था. घर आ कर पलक किस से अपने मन की बात कहे, उसे समझ ही नहीं आता था.

पलक बहुत कोशिश करती थी अपनेआप को ढालने की पर असफल ही रहती. नानानानी का जब भी बिजनौर से फोन आता तो पलक हर बार यही ही बोलती कि उसे दिल्ली में बहुत मजा आ रहा है. पलक
अपने नानानानी को परेशान नहीं करना चाहती थी.

पलक के मम्मीपापा सुबह निकल कर रात को ही आते थे. ऋषभ भैया अपने दोस्तों और दुनिया में व्यस्त रहते। पासपड़ोस न के बराबर था. यहां के बच्चे उसे बेहद अलग लगते थे।

जब पलक ने अपनी मम्मी से इस बारे में बात की तो 12 साल की बच्ची का अकेलपन दूर करने के लिए उस की मम्मी ने उसे समय देने के बजाए विभन्न प्रकार की हौबीज क्लासेज में डाल दिया।

पहले ही पलक स्कूल में ही ऐडजस्ट नहीं कर पा रही थी और अब गिटार क्लास, डांस क्लास, अबेकस क्लास
पलक को हौबी क्लासेज के बजाए स्ट्रैस क्लासेज लगती थी.

पलक की नन्हीं सी जान इतनी अधिक भागदौड़ और तनाव को झेल नहीं पाई थी. उस के हौंसले पस्त हो गए थे.

वार्षिक परीक्षाफल आ गया था और पलक 2 विषयो में फेल हो गई थी.

परीक्षाफल देखते ही रीना पलक पर
आगबबूला हो उठी,”बेवकूफ लड़की, कितना कुछ कर रही हूं मैं तुम्हारे लिए… दिल्ली के सलीके सिखाने के लिए कितनी हौबी क्लासेज पर पैसे खर्च हो गए पर तुम तो रहोगी वही छोटे शहर की सिलबिल।”

पराग रीना को समझाने की कोशिश भी करता कि पलक और ऋषभ को एक तराज़ू पर ना तौले. पलक को थोड़ा समय दे, वह जैसे रहना चाहती है उसे रहने दे.

इतने तनाव का यह असर हुआ कि पलक को बहुत तेज बुखार हो गया था. पराग रात भर पलक के माथे पर गीली पट्टियां बदलता रहा था. रीना यह कह कर जल्दी सो गई कि अगले दिन औफिस में उस की जरूरी मीटिंग है.

रात भर बुखार में पलक तड़पती रही. अपनी बेटी को तड़पता देख कर पराग ने निर्णय ले लिया था.
पराग ने जानकीजी को फोन कर दिया और वे जल्दी ही शाम पलक के पास पहुंच गईं.

पराग ने खुद यह महसूस किया कि जानकीजी के आते ही पलक का बुझा हुआ चेहरा चमक उठा था.
जब रात को रीना औफिस से लौटी तो जानकीजी को देख कर वह सकपका गई.

रात में खाने की मेज पर बहुत दिनों
बाद पलक ने मन से खाया और बोली,”नानी, यहां पर किसी को ढंग से खाना बनाना नहीं आता।”

रीना कट कर रह गई और बोली,”मम्मी, आप ने पलक की आदत खराब कर रखी है, हैल्थी फूड उसे पसंद ही नही हैं।”

जानकीजी कुछ न बोलीं बस पलक को दुलारती रहीं। 2 दिनों के अंदर ही पलक स्वस्थ हो कर चिड़िया की तरह
चहकने लगी.

एक हफ्ते बाद जब जानकीजी अपना सामान बांधने लगीं तो पलक भी अपना बैग पैक करने लगी.

जानकीजी बोलीं,”पलक, तुम कहां जा रही हो?”

पलक बोली,”नानी, मैं आप के बिना नहीं रह सकती हूं, मुझे यहां नहीं पढ़ना।”

रीना चिल्लाने लगी,”मम्मी इसलिए मैं नहीं चाहती थी आप यहां आओ…

“आप ने उसे बिगाड़ दिया है, बिलकुल भी प्रतिस्पर्धा नही है पलक में, बिलकुल छुईमुई खिलौना बना कर छोड़ दिया है। मेरी बेटी इस दुनिया में कभी कुछ कर भी पाएगी या नहीं…”

जानकीजी इस से पहले कुछ बोलतीं कि तभी पराग बोल उठा,”खिलौना पलक को मम्मीजी ने बनाया है या तुम ने?”

“जब तुम्हारा मन था तुम पलक को बिजनौर छोड़ देती हो और जब मन करता है तब तुम सब की अनदेखी कर के पलक को दिल्ली ले कर आ जाती हो, बिना यह जाने कि इस में पलक की मरजी है या नहीं…”

रीना ने हलका सा विरोध किया और बोली,”मां हूं मैं उस की…”

पराग बोला,”हां तुम उस की मां हो और वह तुम्हारी बेटी है मगर कोई चाबी वाला खिलौना नहीं।”

रीना पराग पर कटाक्ष करते हुए बोली,”लगता है तुम बेटी की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते हो, इसलिये यह सब बोल रहे हो।”

पराग रीना की बात सुन कर तिलमिला उठा क्योंकि उस में लेशमात्र भी सचाई नहीं थी।

इस से पहले पराग कुछ
कहता, पलक ने धीरे से कहा,”मम्मी, मेरी खुशी मेरे अपने घर मे है, जो बिजनौर में है. यह भागदौड़, यह कंपीटिशन मेरे लिए नहीं हैं।”

इस से पहले कि रीना कुछ बोलती, जानकीजी बोलीं,”रीना, जो जहां का पौधा है वह वहीं पर पनपता है।”

रीना ने आगे कुछ नहीं कहा और चुपचाप अपने कमरे में चली गई. जाने से पहले पराग ने पलक को गले लगाते हुए कहा,”पलक जब भी तुम्हारा मन करे बिना एक पल सोचे चली आना और बेटा तुम्हारे 2 घर हैं एक बिजनौर में और दूसरा दिल्ली में।

“बेटा, कामयाबी कभी भी किसी जगह की मुहताज नहीं होती.”

पलक और जानकीजी को जाते हुए देख कर पराग सोच रहा था कि शायद खिलौने की चाबी अब खिलौने के पास ही है.

अब पराग अपनी बेटी की भविष्य को ले कर निश्चिंत हो गया था.

Monsoon Special: बारिश के मौसम में हेल्दी रहने के लिए फौलो करें ये डाइट प्लान

मौनसून में रिमझिम बारिश की बूंदें मन को छू जाती है, लेकिन यह मौसम जितना सुहावना होता है, उतना ही बीमारियों को बढ़ाने वाला भी, क्योंकि इस मौसम में नमी होने के कारण हवा में कई बैक्टीरिया और वायरस उत्पन्न होते हैं, जो हमारे खानपान के जरीए हमारे शरीर में प्रवेश कर के हमें संक्रमित कर सकते हैं.

इसलिए इस समय खानेपीने की चीजों का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है ताकि हम अपनी हैल्दी ईटिंग हैबिट्स से अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाने के साथसाथ खुद को बीमारियों से भी दूर रख पाएं.

इस संबंध में जानते हैं ‘डाइट पोडियम’ की फाउंडर ऐंड होलिस्टिक न्यूट्रिशनिस्ट डाइटीशियन शिखा महाजन से कि किन चीजों को अपनी डाइट में शामिल करें और किन से दूरी बनाएं:

कप औफ सूप

चाहे बच्चे हों या बड़े, किसी को कोई सब्जी पसंद नहीं होती तो किसी को कोई. इस कारण भूख लगने पर कभी फास्ट फूड बनाया जाता है तो कभी बाहर का खाना मंगवाया जाता है, जबकि फास्ट फूड में कैलोरीज, सोडियम और अनहैल्दी फैट्स होते हैं और न्यूट्रिशन व फाइबर न के बराबर. हम एक टाइम में फास्ट फूड से उतनी कैलोरीज ले लेते हैं, जितनी हमें पूरे दिन में जरूरत होती है.

इसलिए जब भी पूरे दिन में फास्ट फूड खाने को मन करे तो आप वैजिटेबल सूप, किचन सूप से अपनी टमी को लंबे समय तक फुल रखें. इस से आप को जरूरी सब्जियां भी मिल जाएंगी और आप की इम्यूनिटी भी बूस्ट होगी, जो मौसमी बीमारियों से आप को बचाने का काम करेगी.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ बेटियन सूप- 50 कैलोरीज, लो कार्ब्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ चिकन सूप- 50 ग्राम चिकन में 64-70 कैलोरीज,  6-7 प्रोटीन, 1 ग्राम फैट.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ कौर्न सूप- 1/2 कप कौर्न में 70-80 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप औफ टोमैटो सूप 70-80 कैलोरीज.

गौर करें

बाहर के वैजिटेबल सूप में कैलोरीज  150-170 कैलोरीज.

क्या ध्यान रखें: इस बात का ध्यान रखें कि सूप होममेड ही हो, क्योंकि बाहर के सूप को टेस्टी और गाढ़ा बनाने के लिए, उस में सब्जियों की मात्रा कम व बटर व कौर्न फ्लोर भरभर कर डाला जाता है, जो ब्लड शुगर लैवल को बढ़ाने के साथसाथ दिल की सेहत को भी बिगाड़ने का काम करता है.

फाइबर के लिए साबूत अनाज

आप ने सुना ही होगा कि अगर अपनी डाइट में साबूत अनाज को शामिल करेंगे तो बीमारियां आप के पास तक नहीं फटकेंगी. असल में साबूत अनाज जैसे ओट्समील, केनोआ, पोहा, ब्राउन राइस, बाजरा, जवार, रागी इत्यादि में फाइबर बहुत ज्यादा मात्रा में होता है, जो लंबे समय तक पेट को फुल रखने के साथसाथ पाचनतंत्र को भी दुरुस्त बनाए रखने का काम करता है. साथ ही इस में प्रोबायोटिक भी होते हैं, जो आंतों में गुड बैक्टीरिया को बढ़ाने में मददगार होते हैं. इस से इम्यूनिटी भी मजबूत बनती है.

साथ ही यह खतरनाक बीमारियों जैसे डायबिटीज, कैंसर, ब्लड प्रैशर के खतरे को कई गुणा कम करने का काम करती है.

इसलिए आप अपनी डाइट में ओट्स, वैजिटेबल केनोआ, पोहा, साबूत अनाज से बनी रोटी, ब्राउन राइस मील, चने आदि को शामिल करें. ये आप की फिटनैस का भी ध्यान रखने का काम करेंगे, क्योंकि इन में फाइबर आप की भूख को शांत जो करेगा.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल वैजिटेबल केनोआ- 250 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल बौइल ब्राउन राइस- 200 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन 2-3 रागी रोटी- 100 कैलोरीज पर रोटी.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल मसाला ऐंड वैजिटेबल ओट्स- 150 कैलोरीज.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल शुगर  ओट्स- 350 कैलोरीज. इस में फू्रट्स, शहद व दूध ऐड किया हुआ है.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल व्हाइट  पोहा- 120 कैलोरीज. गौर करें

न्यूट्रिशन वैल्यू इन 2-3 बाइट रोटी में- 130 कैलोरीज पर रोटी.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन बाउल व्हाइट राइस में- 250 कैलोरीज.

वैजिटेबल्स व दालें

सब्जियां जैसे लौकी, कद्दू, तुरई, टिंडा, करेला, बींस को अपने मील में जरूर शामिल करें, क्योंकि ये सब्जियां फाइबर, विटामिंस, मिनरलस व ऐंटीऔक्सीडैंट्स में रिच होती हैं. इन्हें आप अलगअलग तरीके से बना सकती हैं. जैसे कभी लौकी की सब्जी, तो कभी लौकी का कोफ्ता तो कभी टिंडे की भरवा आलू जैसी सब्जी. यहीं नहीं इन सब सब्जियों को बारीकबारीक काट कर इन का कटलेट या इन से उत्तपम भी बनाया जा सकता है.

ठीक इसी तरह प्रोटीन, विटामिंस व मिनरल्स से संबंधित शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए एक बाउल दाल व स्प्राउट्स रोजाना जरूर खाएं. इस के लिए जरूरी है कि एक दाल से चिपके न रहें बल्कि रोजाना बदलबदल कर दाल बनाएं.

इस से शरीर को प्रोटीन भी मिल जाएगा और दाल खाने से आप ऊबेंगे भी नहीं. जिन लोगों को डायबिटीज, पीसीओएस की शिकायत होती है, वे दालों से फाइबर की कमी को पूरा कर के इंसुलिन के लैवल को मैंटेन रख सकते हैं.

इन दिनों बालों व स्किन की चिंता भी बहुत अधिक सताती है. ऐसे में कुल्थ की दाल उन्हें अनेक फायदे पहुंचाने का काम करेगी, क्योंकि इस दाल में पौलीफिनोल्स नामक ऐंटीऔक्सीडैंट्स आप को हैल्दी रखते हैं.

साथ ही इस दाल के सेवन से यूरिन का फ्लो बढ़ता है, जो बौडी से टौक्सिंस को बाहर निकालने के साथसाथ किडनी स्टोन से भी नजात दिलाने का काम करता है. इस में आयरन, प्रोटीन, कैल्सियम होने के कारण यह बालों की हैल्थ व आप की अनियमित पीरियड्स की समस्या को भी दूर करने में मददगार होता है.

हरी पत्तेदार सब्जियां खाने से बचें

वैसे तो हरी पत्तेदार सब्जियां खाने की सलाह दी जाती है, लेकिन मौनसून के मौसम में इन्हें खाने से बचना चाहिए, क्योंकि एक तो मौसम में नमी और दूसरा पत्तेदार सब्जियों में प्राकृतिक नमी इसे कीटाणुओं के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती है और जब हम हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, पत्तागोभी, साग इत्यादि खाते हैं, तो उन के जरीए कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर के हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर बना कर हमें बीमार कर सकते हैं.

वहीं मशरूम भी नमी वाली जगह पर लगाई जाती है, इसलिए इस में बैक्टीरियल इन्फैक्शन होने का खतरा सब से अधिक रहता है. इसलिए मौनसून के मौसम में इन चीजों से दूरी बना कर रखें वरना इन से नजदीकी आप को बीमार बना सकती है.

ठंडी चीजों से परहेज रखें

अगर खानेपीने की चीजों का सही समय पर सेवन किया जाता है तो उस के शरीर को ढेरों फायदे मिलते हैं वरना वे शरीर को नुकसान पहुंचाने का ही काम करती हैं. जैसे दही, छाछ, जूस न सिर्फ शरीर की न्यूट्रिएंट संबंधित जरूरतों को पूरा करने का काम करते हैं, बल्कि इन से शरीर हाइड्रेट भी रहता है.

लेकिन अगर मौनसून के सीजन में इन चीजों का सेवन किया जाता है तो आप को जल्द ही सर्दी, खांसीजुकाम होने का डर बना रहता है, क्योंकि गरमी के बाद एकदम से तापमान में गिरावट आती है व फ्लू के चांसेज ज्यादा बढ़ जाते हैं.

साथ ही हमारा पाचनतंत्र भी मौनसून के मौसम में थोड़ा कमजोर हो जाता है, जिस से मौसमी बीमारी तुरंत हमें अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं. इसलिए इस दौरान ठंडी चीजों से दूरी ही सही है. इस बात का भी ध्यान रखें कि कटे हुए फल न खाएं, क्योंकि हवा में संक्रमण होने के कारण बीमार होने की संभावना ज्यादा रहती है.

हर्बल टी है बैस्ट विकल्प

गरमी के बाद जैसे ही मौसम में थोड़ी ठंडक आती है, तो चाय पीने का मजा ही अलग होता है, क्योंकि एक तो यह शरीर को ठंडक पहुंचाने का काम करती है, दूसरा हर्बल टी में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट्स प्रौपर्टीज आप के इम्यून सिस्टम को बूस्ट कर के आप को विभिन्न तरह के बैक्टीरिया इन्फैक्शन से बचा कर आप को कोल्ड और फ्लू से प्रोटैक्ट करने में मददगार होती है.

साथ ही शरीर से टौक्सिंस को भी फ्लश आउट करने में मददगार है और अगर आप को ग्रीन टी पीना पसंद नहीं है तो आप उस के टेस्ट को बढ़ाने के लिए उस में चीनी की जगह गुड़ या फिर शहद डाल सकते हैं, क्योंकि चीनी डालने से उस की कैलोरीज काफी बढ़ जाती है, जिस से बचना जरूरी है.

लैमन टी भी लो शुगर व लो कैलोरी वाली होने के साथसाथ विटामिंस व मिनरल्स से भरपूर होती है. इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट्स आप की इम्यूनिटी को बूस्ट करने के साथसाथ आप को मौसमी बीमारियों से बचाए रखने का भी काम करते हैं.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप ग्रीन टी- 5 कैलोरीज पर टी बैग, लेकिन अगर आप उस में शहद व गुड़ ऐड करते हैं तो उस में 70-80 कैलोरीज हो जाती हैं.

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप लैमन टी- 3-4 कैलोरीज.

डेयरी प्रोडक्ट्स से दोस्ती जरूरी

वैसे तो मौनसून के मौसम में डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन कम मात्रा में करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि पाचनतंत्र बहुत अधिक संवेदनशील हो जाता है और इन उत्पादों का बहुत अधिक सेवन करने से दस्त व पाचन संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं. लेकिन यह भी सच है कि अगर आप ठंडे दूध के बजाय हलदी वाला दूध लें.

चीज को भी अपनी डाइट में शामिल करें तो यह आप की इम्यूनिटी को भी बूस्ट करेगा और जिन्हें जल्दी सर्दीखांसी हो जाती है, उन्हें भी इस से बचाए रखेगा, क्योंकि इस में ऐंटीवायरस, ऐंटीफंगल व ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टीज जो होती हैं.

काम की बात

न्यूट्रिशन वैल्यू इन वन कप हलदी मिल्क- 100-120 कैलोरीज.

एक कमरे में बंद दो एटम बम  

वे चारों डाइनिंग टेबल पर जैसे तैसे आखरी कौर समेट कर उठने के फिराक में थे. दिल के दरवाजे और खिड़कियां अंदुरनी शोर शराबों से धूम धड़ाका कर रहीं थीं.

नीना और लीना दोनों टीन एज बच्चियां अब उठकर अपने कमरे में चली गईं है और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया है.

समीर और श्रीजा का चेहरा मेंढ़क के फूले गाल की तरह सूजा है, और उन दोनों के मन में एक दूसरे पर लात घुंसो की बारिश कर देने की इच्छा बलवती हो रही है.

” मै कुछ भी वीडियो फारवर्ड करूं ,किसी से कुछ भी कहूं ,तुम्हे क्या – तुमने मेरे मामले में दुबारा टांग अड़ाने की कोशिश भी की तो अंजाम देखने के लिए तैयार रहना! तुम औरत हो,देश और दुनिया के बारे में ज्यादा नाक न गलाओ! समझी?”

“अरे! इतनी क्यों कट्टर सोच है  तुम्हारी ! तुम सारे ग्रुप्स में फेक वीडियो डाल रहे हो ,भड़काऊ संदेश भेज रहे हो, कोरोना वाले लौक डाउन में जहां लोगों को शांत रहकर एक जुट होने का संदेश देना चाहिए, ताकि बिना वैमनस्य के लोग एक दूसरे की मदद कर सकें, तुम असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हो, और मुझसे सहा नहीं जा रहा तो मै इसलिए चुप रहूं क्योंकि मै औरत हूं!”

“हां ,इसलिए ही तुम  मुझसे मुंह मत लगो! तुम लेडिस लोग समझती कुछ नहीं बस मुंह फाड़कर चिल्लाने लगती हो!”

“लडकियां भी समझ रही हैं, कि औरतों के प्रति तुम्हारा नजरिया कितना पूराना और कमतर है!”

“जानना ही चाहिए! उन्हें अपनी तरह नाच मत नचाओ!

औरत का जन्म है तो जिंदगी भर औरत ही रहेगी,मर्द बनकर  तो नहीं रह सकती!”

उफ़ इसका क्या इलाज! बात बढ़ने से बच्चियां परेशान होंगी, श्रीजा मन मसोस कर रह गई.

कोरोना की वजह से लौक डाउन था.औफिस बंद था,यानी अब अपनी मर्जी का था,दवाब नहीं था. सैर सपाटा,दोस्ती यारी ,शराब कबाब बन्द था , बिन बताए घर से घंटों गायब रहना बन्द था, इस बन्द में सब कुछ तो बन्द था – फिर श्रीजा का खुलकर सांस लेना तो बन्द होना ही था ! मन लगाने को भड़काऊ संदेश फारवर्ड और पत्नी और बेटियों पर कट्टर पंथी सोचों का वार! लौक डाउन ने वाकई श्रीजा की जिंदगी तोड़ मरोड़ कर रख दी थी.

वह बेटियों के पास जाकर बैठ गई.छोटी बेटी ने पूछा – मां क्या पापा के दूसरे धर्मों के दोस्त नहीं है? मेरे तो बहुत सारे दोस्त हैं पक्के पक्के, जिनकी धर्म जाति  मुझसे अलग है.उनके घर जाती हूं तो पता तो नहीं चलता कि वे अलग धर्म के है, हम तो उनके घर खूब मज़े करते हैं!”

“बेटा खुराफात लोगों का यह अच्छा टाइम पास है! यहां इस लौक डाउन में  कितने ही लोगों को कितनी मुश्किलें हो रहीं हैं ,हम चाहे तो उन्हें मदद करें, ये क्या कि आपस में रंजिश बढ़ाएं! हर जाति धर्म में बुरे लोग होते हैं, जो अपराध करते हैं, उनका धर्म अपराध होता है, और कुछ नहीं! लेकिन कट्टर सोच वालों को कैसे समझाया जाय!”

“क्या हमारे पापा भी कट्टर ही हैं?”

“ये तुम खुद ही समझना , मै नहीं बता सकती!”

डिनर जैसे तैसे खत्म कर अब सोने की तैयारी थी.

निबाहना भी भारी काम है .श्रीजा को निभाना पड़ता ही है, बात सिर्फ बच्चों के भविष्य की ही नहीं, इस मरदुए से वो भी तो जाने अनजाने लगाव की डोर से बंधी है! दिमाग में कितनी ही भिन्नता हो, दिल में कितनी ही खिन्नता हो, निभाना सिर्फ निभाना नहीं, दिल का कहा मानना भी है!

काश ! पति अगर शांति प्रिय होता, उदार और समझदार होता, तो घर में ताला बन्दी कितनी रूमानी होती! हसरतें अनुराग से भरी भरी -बल्लियों उछलती पतिदेव के गले में झुल सी जाती!

पर यहां तो कूप मंडूक को देखते ही तन बदन में आग लहक जाती है!

कमरा साफ सुंदर, नीली रोशनी जैसे मादक नील परी सी अपनी चुनरी फैलाए थी!

करीने से बिस्तर लगाकर श्रीजा एक किनारे सिमट गई .

“श्रीजा ! इधर आओ ”

“मन नहीं है!”

“तुम्हारे मन से क्या होता है?”

“लौक डाउन!”

“वो बाहर है!”

“दिल में भी!”

“अरे! छोड़ो मै दिल की बात नहीं कर रहा!”

” मेरे घर का दरवाजा दिल से होकर गुजरता है! मेरा दिल चकनाचूर है! तुम देश वासियों में नफरत क्यों बांट रहे हो? उदार बनो,कट्टर नहीं! ”

“भाड़ में जाओ! इतना लेक्चर चौराहे पर जाकर दो!”

यार एक तो घर में कैद होकर रह गया ,ऊपर से तुम एटम बम फोड़े जा रही हो! घर है कि ब्लास्ट फर्नेस!”

“तुम ही बताओ! तुम भी कोरोना बम से कम हो क्या!

इतनी नफरत और उंच नीच का भेद भाव!”

अचानक  एक तकिया श्रीजा की पीठ पर आकर लगा. वो समीर की तरफ पीठ दिखाकर लड़ती जा रही थी, कि अचानक यह झटका !

धमाके सा समीर मेन गेट खोलकर बाहर निकल चुका था.

दिमाग भन्ना गया था समीर का. आखिर एक औरत को इतनी हिम्मत पड़ी कैसे कि वह अपने पति से जवाब तलब करे ! कहीं उसने श्रीजा को ज्यादा ढील तो न दे दी? समीर अपने विचारों में इतना ही खो चुका था कि कब वह अपनी कालोनी से निकलकर मेन रोड में चलता जा रहा था उसे पता ही न चला!

होश तो तब हुआ जब पुलिस पेट्रोलिंग गाड़ी ने उसे आकर रोका!

“अरे !सर जी कुछ नहीं, बीबी घर में बड़ा चिक चिक कर रही थी!

मजाक है ?बिना मास्क बाहर घूम रहे हैं, वो भी रात के बारह बजे इस 144 में!”

लाख मिन्नतें कर किसी  तरह समीर पुलिस से जान छुड़ाने में कामयाब हुआ लेकिन पुलिस की गाड़ी उसे घर तक छोड़ने आई.

क्या हुआ मैडम! हम तो इन्हे थाने ले जा रहे थे.बड़ा गिड़गिड़ाया इन्होंने. क्या अनबन हो गई?”

“अहंकार के फुले हुए कुप्पे का यूं पिचक जाना श्रीजा के लिए बड़ा संतोष कारी था.उसने समीर की ओर भेद भरी नजरों से देख इतना ही पूछा- “क्या हुआ था बताऊं?”

“अरे सर जी! गलती मेरी भी थी! अब घर के अंदर ही रहूंगा और बीबी की बात मानुंगा.”

श्रीजा के अंदर हंसी का गुबार भर भर निकलने को हुआ,लेकिन वो समीर के घिघियाए चेहरे को हंसी में टालना नहीं चाहती थी.

फिर से दोनो बिस्तर पर थे.समीर इस बार अपना खार खाया हाइड्रोजन बम दिल में ही दबाकर चुप सो गया!

करम फूटे जो ऐसी एटम बम को छुए!

एक रात की उजास : क्या उस रात बदल गई उन की जिंदगी

शाम ढलने लगी थी. पार्क में बैठे वयोवृद्घ उठने लगे थे. मालतीजी भी उठीं. थके कदमों से यह सोच कर उन्होंने घर की राह पकड़ी कि और देर हो गई तो आंखों का मोतियाबिंद रास्ता पहचानने में रुकावट बन जाएगा. बहू अंजलि से इसी बात पर बहस हुआ करती थी कि शाम को कहां चली जाती हैं. आंखों से ठीक से दिखता नहीं, कहीं किसी रोज वाहन से टकरा गईं तो न जाने क्या होगा. तब बेटा भी बहू के सुर में अपना सुर मिला देता था.

उस समय तो फिर भी इतना सूनापन नहीं था. बेटा अभीअभी नौकरी से रिटायर हुआ था. तीनों मिल कर ताश की बाजी जमा लेते. कभीकभी बहू ऊनसलाई ले कर दोपहर में उन के साथ बरामदे मेें बैठ जाती और उन से पूछ कर डिजाइन के नमूने उतारती. स्वेटर बुनने में उन्हें महारत हासिल थी. आंखों की रोशनी कम होने के बाद भी वह सीधाउलटा बुन लेती थीं. धीरेधीरे चलते हुए एकाएक वह अतीत में खो गईं.

पोते की बिटिया का जन्म हुआ था. उसी के लिए स्वेटर, टोपे, मोजे बुने जा रहे थे. इंग्लैंड में रह रहे पोते के पास 1 माह बाद बेटेबहू को जाना था. घर में उमंग का वातावरण था. अंजलि बेटे की पसंद की चीजें चुनचुन कर सूटकेस में रख रही थी. उस की अंगरेज पत्नी के लिए भी उस ने कुछ संकोच से एक बनारसी साड़ी रख ली थी. पोते ने अंगरेज लड़की से शादी की थी. अत: मालती उसे अभी तक माफ नहीं कर पाई थीं. इस शादी पर नीहार व अंजलि ने भी नाराजगी जाहिर की थी पर बेटे के आग्रह और पोती होने की खुशी का इजहार करने से वे अपने को रोक नहीं पाए थे और इंग्लैंड जाने का कार्यक्रम बना लिया था.

उस दिन नीहार और अंजलि पोती के लिए कुछ खरीदारी करने कार से जा रहे थे. उन्होंने मांजी को भी साथ चलने का आग्रह किया था लेकिन हरारत होने से उन्होंने जाने से मना कर दिया था. कुछ ही देर बाद लौटी उन दोनों की निष्प्राण देह देख कर उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ था. उस से अधिक आश्चर्य उन्हें इस बात पर होता है कि इस भयंकर हादसे के 7 साल बाद भी वह जीवित हैं.

उस हादसे के बाद पोते ने उन्हें अपने साथ इंग्लैंड चलने का आग्रह किया था पर उन्होंने यह सोच कर मना कर दिया कि पता नहीं अंगरेज पतोहू के साथ उन की निभ भी पाएगी कि नहीं. लेकिन आज लगता है वह किसी भी प्राणी के साथ निबाह कर लेंगी. कोई तो होता, उन्हें आदर न सही, उलाहने ही देने वाला. आज इतना घोर एकांत तो नहीं सहना पड़ता उन्हें. पोते के बच्चे भी अब लगभग 6-7 साल के होंगे. अब तो संपर्क भी टूट गया. अचानक जा कर कैसे लाड़प्यार लुटाएंगी वह. उन बच्चों को भी कितना अस्वाभाविक लगेगा यह सब. इतने सालों की दूरियां पाटना क्या कोई आसान काम है. उस समय गलत फैसला लिया सो लिया. मालतीजी पश्चात्ताप की माला फेरने लगीं. उस समय ही क्यों, जब नीहार और अंजलि खरीदारी के लिए जा रहे थे तब वह भी उन के साथ निकल जातीं तो आज यह एकाकी जिंदगी का बोझ अपने झुके हुए, दुर्बल कंधों पर उठाए न घूम रही होतीं.

अतीत की उन घटनाओं को बारबार याद कर के पछताने की आदत ने मालतीजी को घोर निराशावादी बना डाला था. शायद यही वजह थी जो चिड़चिड़ी बुढि़या के नाम से वह महल्ले में मशहूर थीं. अपने ही खोल में आवृत्त रह कर दिन भर वह पुरानी बातें याद किया करतीं. शाम को उन्हें घर के अंदर घुटन महसूस होती तो पार्क में आ कर बैठ जातीं. वहां की हलचल, हंसतेखेलते बच्चे, उन्हें भावविभोर हो कर देखती माताएं और अपने हमउम्र लोगों को देख कर उन के मन में अगले नीरस दिन को काटने की ऊर्जा उत्पन्न होती. यही लालसा उन्हें देर तक पार्क में बैठाए रखती थी.

आज पार्क में बैठेबैठे उन के मन में अजीब सा खयाल आया. मौत आगे बढ़े तो बढ़े, वह क्या उसे खींच कर पास नहीं बुला सकतीं, नींद की गोलियां उदरस्थ कर के.

इतना आसान उपाय उन्हें अब तक भला क्यों नहीं सूझा? उन के पास बहुत सी नींद की गोलियां इकट्ठी हो गई थीं.

नींद की गोलियां एकत्र करने का उन का जुनून किसी जमाने में बरतन जमा करने जैसा था. उन के पति उन्हें टोका भी करते, ‘मालती, पुराने कपड़ों से बरतन खरीदने की बजाय उन्हें गरीबों, जरूरतमंदों को दान करो, पुण्य जोड़ो.’

वह फिर पछताने लगीं. अपनी लंबी आयु का संबंध कपड़े दे कर बरतन खरीदने से जोड़ती रहीं. आज वे सारे बरतन उन्हें मुंह चिढ़ा रहे थे. उन्हीं 4-6 बरतनों में खाना बनता. खुद को कोसना, पछताना और अकेले रह जाने का संबंध अतीत की अच्छीबुरी बातों से जोड़ना, इसी विचारक्रम में सारा दिन बीत जाता. ऐसे ही सोचतेसोचते दिमाग इतना पीछे चला जाता कि वर्तमान से वह बिलकुल कट ही जातीं. लेकिन आज वह अपने इस अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहती हैं. ताज्जुब है. यह उपाय उन्हें इतने सालों की पीड़ा झेलने के बाद सूझा.

पार्क से लौटते समय रास्ते में रेल लाइन पड़ती है. ट्रेन की चीख सुन कर इस उम्र मेें भी वह डर जाती हैं. ट्रेन अभी काफी दूर थी फिर भी उन्होंने कुछ देर रुक कर लाइन पार करना ही ठीक समझा. दाईं ओर देखा तो कुछ दूरी पर एक लड़का पटरी पर सिर झुकाए बैठा था. वह धीरेधीरे चल कर उस तक पहुंचीं. लड़का उन के आने से बिलकुल बेखबर था. ट्रेन की आवाज निकट आती जा रही थी पर वह लड़का वहां पत्थर बना बैठा था. उन्होंने उस के खतरनाक इरादे को भांप लिया और फिर पता नहीं उन में इतनी ताकत कहां से आ गई कि एक झटके में ही उस लड़के को पीछे खींच लिया. ट्रेन धड़धड़ाती हुई निकल गई.

‘‘क्यों मरना चाहते हो, बेटा? जानते नहीं, कुदरत कोमल कोंपलों को खिलने के लिए विकसित करती है.’’

‘‘आप से मतलब?’’ तीखे स्वर में वह लड़का बोल पड़ा और अपने दोनों हाथों से मुंह ढक फूटफूट कर रोने लगा.

मालतीजी उस की पीठ को, उस के बालों को सहलाती रहीं, ‘‘तुम अभी बहुत छोटे हो. तुम्हें इस बात का अनुभव नहीं है कि इस से कैसी दर्दनाक मौत होती है.’’ मालतीजी की सर्द आवाज में आसन्न मृत्यु की सिहरन थी.

‘‘बिना खुद मरे किसी को यह अनुभव हो भी नहीं सकता.’’

लड़के का यह अवज्ञापूर्ण स्वर सुन कर मालतीजी समझाने की मुद्रा में बोलीं, ‘‘बेटा, तुम ठीक कहते हो लेकिन हमारा घर रेलवे लाइन के पास होने से मैं ने यहां कई मौतें देखी हैं. उन के शरीर की जो दुर्दशा होती है, देखते नहीं बनती.’’

लड़का कुछ सोचने लगा फिर धीमी आवाज में बोला,‘‘मैं मरने से नहीं डरता.’’

‘‘यह बताने की तुम्हें जरूरत नहीं है…लेकिन मेरे  बच्चे, इस में इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि पूरी तरह मौत हो ही जाए. हाथपैर भी कट सकते हैं. पूरी जिंदगी अपाहिजों की तरह गुजारनी पड़ सकती है. बोलो, है मंजूर?’’

लड़के ने इनकार में गरदन हिला दी.

‘‘मेरे पास दूसरा तरीका है,’’ मालतीजी बोलीं, ‘‘उस से नींद में ही मौत आ जाएगी. तुम मेरे साथ मेरे घर चलो. आराम से अपनी समस्या बताओ फिर दोनों एकसाथ ही नींद की गोलियां खाएंगे. मेरा भी मरने का इरादा है.’’

लड़का पहले तो उन्हें हैरान नजरों से देखता रहा फिर अचानक बोला, ‘‘ठीक है, चलिए.’’

अंधेरा गहरा गया था. अब उन्हें बिलकुल धुंधला दिखाई दे रहा था. लड़के ने उन का हाथ पकड़ लिया. वह रास्ता बताती चलती रहीं.

उन्हें नीहार के हाथ का स्पर्श याद आया. उस समय वह जवान थीं और छोटा सा नीहार उन की उंगली थामे इधरउधर कूदताफांदता चलता था.

फिर उन का पोता अंकुर अपनी दादी को बड़ी सावधानी से उंगली पकड़ कर बाजार ले जाता था.

आज इस किशोर के साथ जाते समय वह वाकई असहाय हैं. यह न होता तो शायद गिर ही पड़तीं. वह तो उन्हेें बड़ी सावधानी से पत्थरों, गड्ढों और वाहनों से बचाता हुआ ले जा रहा था. उस ने मालतीजी के हाथ से चाबी ले कर ताला खोला और अंदर जा कर बत्ती जलाई तब उन की जान में जान आई.

‘‘खाना तो खाओगे न?’’

‘‘जी, भूख तो बड़ी जोर की लगी है. क्योंकि आज परीक्षाफल निकलते ही घर में बहुत मार पड़ी. खाना भी नहीं दिया मम्मी ने.’’

‘‘आज तो 10वीं बोर्ड का परीक्षाफल निकला है.’’

‘‘जी, मेरे नंबर द्वितीय श्रेणी के हैं. पापा जानते हैं कि मैं पढ़ने में औसत हूं फिर भी मुझ से डाक्टर बनने की उम्मीद करते हैं और जब भी रिजल्ट आता है धुन कर रख देते हैं. फिर मुझ पर हुए खर्च की फेहरिस्त सुनाने लगते हैं. स्कूल का खर्च, ट्यूशन का खर्च, यहां तक कि खाने का खर्च भी गिनवाते हैं. कहते हैं, मेरे जैसा मूर्ख उन के खानदान में आज तक पैदा नहीं हुआ. सो, मैं इस खानदान से अपना नामोनिशान मिटा देना चाहता हूं.’’

किशोर की आंखों से विद्रोह की चिंगारियां फूट रही थीं.

‘‘ठीक है, अब शांत हो जाओ,’’ मालती सांत्वना देते बोलीं, ‘‘कुछ ही देर बाद तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे.’’

‘…और मेरे भी,’ उन्होंने मन ही मन जोड़ा और रसोईघर में चली आईं. परिश्रम से लौकी के कोफ्ते बनाए. थोड़ा दही रखा था उस में बूंदी डाल कर स्वादिष्ठ रायता तैयार किया. फिर गरमगरम परांठे सेंक कर उसे खिलाने लगीं.

‘‘दादीजी, आप के हाथों में गजब का स्वाद है,’’ वह खुश हो कर किलक रहा था. कुछ देर पहले का आक्रोश अब गायब था.

उसे खिला कर खुद खाने बैठीं तो लगा जैसे बरसों बाद अन्नपूर्णा फिर उन के हाथों में अवतरित हो गई थीं. लंबे अरसे बाद इतना स्वादिष्ठ खाना बनाया था. आज रात को कोफ्तेपरांठे उन्होेंने निर्भय हो कर खा लिए. न बदहजमी का डर न ब्लडप्रेशर की चिंता. आत्महत्या के खयाल ने ही उन्हें निश्चिंत कर   दिया था.

खाना खाने के बाद मालती बैठक का दरवाजा बंद करने गईं तो देखा वह किशोर आराम से गहरी नींद में सो रहा था. उन के मन में एक अजीब सा खयाल आया कि सालों से तो वह अकेली जी रही हैं. चलो, मरने के लिए तो किसी का साथ मिला.

मालती उस किशोर को जगाने को हुईं लेकिन नींद में उस का चेहरा इस कदर लुभावना और मासूम लग रहा था कि उसे जगाना उन्हें नींद की गोलियां खिलाने से भी बड़ा क्रूर काम लगा. उस के दोनों पैर फैले हुए थे. बंद आंखें शायद कोई मीठा सा सपना देख रही थीं क्योंकि होंठों के कोनों पर स्मितरेखा उभर आई थी. किशोर पर उन की ममता उमड़ी. उन्होंने उसे चादर ओढ़ा दी.

‘चलो, अकेले ही नींद की गोलियां खा ली जाएं,’ उन्होंने सोचा और फिर अपने स्वार्थी मन को फटकारा कि तू तो मर जाएगी और सजा भुगतेगा यह निरपराध बच्चा. इस से तो अच्छा है वह 1 दिन और रुक जाए और वह आत्महत्या की योजना स्थगित कर लेट गईं.

उस किशोर की तरह वह खुशकिस्मत तो थी नहीं कि लेटते ही नींद आ जाती. दृश्य जागती आंखों में किसी दुखांत फिल्म की तरह जीवन के कई टुकड़ोंटुकड़ों में चल रहे थे कि तभी उन्हें हलका कंपन महसूस हुआ. खिड़की, दरवाजों की आवाज से उन्हें तुरंत समझ में आया कि यह भूकंप का झटका है.

‘‘उठो, उठो…भूकंप आया है,’’ उन्होंने किशोर को झकझोर कर हिलाया. और दोनों हाथ पकड़ कर तेज गति से बाहर भागीं.

उन के जागते रहने के कारण उन्हें झटके का आभास हो गया. झटका लगभग 30 सेकंड का था लेकिन बहुत तेज नहीं था फिर भी लोग चीखते- चिल्लाते बाहर निकल आए थे. कुछ सेकंड बाद  सबकुछ सामान्य था लेकिन दिल की धड़कन अभी भी कनपटियों पर चोट कर रही थी.

जब भूकंप के इस धक्के से वह उबरीं तो अपनी जिजीविषा पर उन्हें अचंभा हुआ. वह तो सोच रही थीं कि उन्हें जीवन से कतई मोह नहीं बचा लेकिन जिस तेजी से वह भागी थीं, वह इस बात को झुठला रही थी. 82 साल की उम्र में निपट अकेली हो कर भी जब वह जीवन का मोह नहीं त्याग सकतीं तो यह किशोर? इस ने अभी देखा ही क्या है, इस की जिंदगी में तो भूकंप का भी यह पहला ही झटका है. उफ, यह क्या करने जा रही थीं वह. किस हक से उस मासूम किशोर को वे मृत्युदान करने जा रही थीं. क्या उम्र और अकेलेपन ने उन की दिमागी हालत को पागलपन की कगार पर ला कर खड़ा कर दिया है?

मालतीजी ने मिचमिची आंखों से किशोर की ओर देखा, वह उन से लिपट गया.

‘‘दादी, मैं अपने घर जाना चाहता हूं, मैं मरना नहीं चाहता…’’ आवाज कांप रही थी.

वह उस के सिर पर प्यार भरी थपकियां दे रही थीं. लोग अब साहस कर के अपनेअपने घरों में जा रहे थे. वह भी उस किशोर को संभाले भीतर आ गईं.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘उदय जयराज.’’

अभी थोड़ी देर पहले तक उन्हें इस परिचय की जरूरत महसूस नहीं हुई थी. मृत्यु की इच्छा ने अनेक प्रश्नों पर परदा डाल दिया था, पर जिंदगी के सामने तो समस्याएं भी होती हैं और समाधान भी.

ऐसा ही समाधान मालतीजी को भी सूझ गया. उन्होंने उदय को आदेश दिया कि अपने मम्मीपापा को फोन करो और अपने सकुशल होने की सूचना दो.

उदय भय से कांप रहा था, ‘‘नहीं, वे लोग मुझे मारेंगे, सूचना आप दीजिए.’’

उन्होेंने उस से पूछ कर नंबर मिलाया. सुबह के 4 बज रहे थे. आधे घंटे बाद उन के घर के सामने एक कार रुकी. उदय के मम्मीपापा और उस का छोटा भाई बदहवास से भीतर आए. यह जान कर कि वह रेललाइन पर आत्महत्या करने चला था, उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. रात तक उन्होेंने उस का इंतजार किया था फिर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

उदय को बचाने के लिए उन्होेंने मालतीजी को शतश: धन्यवाद दिया. मां के आंसू तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

‘‘आप दोनों से मैं एक बात कहना चाहती हूं,’’ मालतीजी ने भावनाओं का सैलाब कुछ थमने के बाद कहा, ‘‘देखिए, हर बच्चे की अपनी बौद्घिक क्षमता होती है. उस से ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं होता. उस की बुद्घि की दिशा पहचानिए और उसी दिशा में प्रयत्न कीजिए. ऐसा नहीं कि सिर्फ डाक्टर या इंजीनियर बन कर ही इनसान को मंजिल मिलती है. भविष्य का आसमान हर बढ़ते पौधे के लिए खुला है. जरूरत है सिर्फ अच्छी तरह सींचने की.’’

अश्रुपूर्ण आंखों से उस परिवार ने एकएक कर के उन के पैर छू कर उन से विदा ली.

उस पूरी घटना पर वह पुन: विचार करने लगीं तो उन का दिल धक् से रह गया. जब उदय अपने घर वालों को बताएगा कि वह उसे नींद की गोलियां खिलाने वाली थीं, तो क्या गुजरेगी उन पर.

अब तो वह शरम से गड़ गईं. उस मासूम बचपन के साथ वह कितना बड़ा क्रूर मजाक करने जा रही थीं. ऐन वक्त पर उस की बेखबर नींद ने ही उन्हें इस भयंकर पाप से बचा लिया था.

अंतहीन विचारशृंखला चल पड़ी तो वह फोन की घंटी बजने पर ही टूटी. उस ओर उदय की मम्मी थीं. अब क्या होगा. उन के आरोपों का वह क्या कह कर खंडन करेंगी.

‘‘नमस्ते, मांजी,’’ उस तरफ चहकती हुई आवाज थी, ‘‘उदय के लौट आने की खुशी में हम ने कल शाम को एक पार्टी रखी है. आप की वजह से उदय का दूसरा जन्म हुआ है इसलिए आप की गोद में उसे बिठा कर केक काटा जाएगा. आप के आशीर्वाद से वह अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करेगा. आप के अनुभवों को बांटने के लिए हमारे इष्टमित्र भी लालायित हैं. उदय के पापा आप को लेने के लिए आएंगे. कल शाम 6 बजे तैयार रहिएगा.’’

‘‘लेकिन मैं…’’ उन का गला रुंध गया.

‘‘प्लीज, इनकार मत कीजिएगा. आप को एक और बात के लिए भी धन्यवाद देना है. उदय ने बताया कि आप उसे नींद की गोलियां खिलाने के बहाने अपने घर ले गईं. इस मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाने के कारण ही वह आप के साथ आप के घर गया. समय गुजरने के साथ धीरेधीरे उस का उन्माद भी उतर गया. हमारा सौभाग्य कि वह जिद्दी लड़का आप के हाथ पड़ा. यह सिर्फ आप जैसी अनुभवी महिला के ही बस की बात थी. आप के इस एहसान का प्रतिदान हम किसी तरह नहीं दे सकते. बस, इतना ही कह सकते हैं कि अब से आप हमारे परिवार का अभिन्न अंग हैं.’’

उन्हें लगा कि बस, इस से आगे वह नहीं सुन पाएंगी. आंखों में चुभन होने लगी. फिर उन्होंने अपनेआप को समझाया. चाहे उन के मन में कुविचार ही था पर किसी दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं था. आखिरकार परिणाम तो सुखद ही रहा न. अब वे पापपुण्य के चक्कर में पड़ कर इस परिवार में विष नहीं घोलेंगी.

इस नए सकारात्मक विचार पर उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ. कहां गए वे पश्चात्ताप के स्वर, हर पल स्वयं को कोसते रहना, बीती बातों के सिर्फ बुरे पहलुओं को याद करना.

उदय का ही नहीं जैसे उन का भी पुनर्जन्म हुआ था. रात को उन्होंने खाना खाया. पीने के पानी के बरतन उत्साह से साफ किए. हां, कल सुबह उन्हेें इन की जरूरत पड़ेगी. टीवी चालू किया. पुरानी फिल्मों के गीत चल रहे थे, जो उन्हें भीतर तक गुदगुदा रहे थे. बिस्तर साफ किया. टेबल पर नींद की गोलियां रखी हुई थीं. उन्होंने अत्यंत घृणा से उन गोलियों को देखा और उठा कर कूड़े की टोकरी में फेंक दिया. अब उन्हें इस की जरूरत नहीं थी. उन्हें विश्वास था कि अब उन्हें दुस्वप्नरहित अच्छी नींद आएगी.

दूरी: समाज और परस्थितियों से क्यों अनजान थी वह

लेखक- भावना सक्सेना

फरीदाबाद बसअड्डे पर बस खाली हो रही थी. जब वह बस में बैठी थी तो नहीं सोचा था कहां जाना है. बाहर अंधेरा घिर चुका था. जब तक उजाला था, कोई चिंता न थी. दोपहर से सड़कें नापती, बसों में इधरउधर घूमती रही. दिल्ली छोड़ना चाहती थी. जाना कहां है, सोचा न था. चार्ल्स डिकेन्स के डेविड कौपरफील्ड की मानिंद बस चल पड़ी थी. भूल गई थी कि वह तो सिर्फ एक कहानी थी, और उस में कुछ सचाई हो भी तो उस समय का समाज और परिस्थितियां एकदम अलग थीं.

वह सुबह स्कूल के लिए सामान्यरूप से निकली थी. पूरा दिन स्कूल में उपस्थित भी रही. अनमनी थी, उदास थी पर यों निकल जाने का कोई इरादा न था. छुट्टी के समय न जाने क्या सूझा. बस्ता पेड़ पर टांग कर गई तो थी कैंटीन से एक चिप्स का पैकेट लेने, लेकिन कैंटीन के पास वाले छोटे गेट को खुला देख कर बाहर निकल आई. खाली हाथ स्कूल के पीछे के पहाड़ी रास्ते पर आ गई. कहां जा रही है, कुछ पता न था. कुछ सोचा भी नहीं था. बारबार, बस, मां के बोल मस्तिष्क में घूम रहे थे. अंधेरा घिरने पर जी घबराने लगा था. अब कदम वापस मोड़ भी नहीं सकती थी. मां का रौद्र रूप बारबार सामने आ जाता था. उस गुस्से से बचने के लिए ही वह निकली थी. निकली भी क्या, बस यों लगा था जैसे कुछ देर के लिए सबकुछ से बहुत दूर हो जाना चाहती है, कोई बोल न पड़े कान में…

पर अब कहां जाए? उसे किसी सराय का पता न था. जो पैसे थे, उन से उस ने बस की टिकट ली थी. अंधेरे में बस से उतरने की हिम्मत न हुई. चुपचाप बैठी रही. कुछ ऐसे नीचे सरक गई कि आगे, पीछे से खड़े हो कर देखने पर किसी को दिखाई न दे. सोचा था ड्राइवर बस खड़ी कर के चला जाएगा और वह रातभर बस में सुरक्षित रह सकेगी.

बाहर हवा में खुनक थी. अंदर पेट में कुलबुलाहट थी. प्यास से होंठ सूख रहे थे. पर वह चुपचाप बैठी रही. नानीमामी बहुत याद आ रही थीं. घर से कोई भी कहीं जाता, पूड़ीसब्जी बांध कर पानी के साथ देती थीं. पर वह कहां किसी से कह कर आई थी. न घर से आई थी, न कहीं जाने को आई थी. बस, चली आई थी. किसी के बस में चढ़ने की आहट आई. उस ने अपनी आंखें कस कर भींच लीं. पदचाप बहुत करीब आ गई और फिर रुक गई. उस की सांस भी लगभग रुक गई. न आंखें खोलते बन रहा था, न बंद रखी जा रही थीं. जीवविज्ञान में जहां हृदय का स्थान बताया था वहां बहुत भारी लग रहा था. गले में कुछ आ कर फंस गया था. वह एक पल था जैसे एक सदी. अनंत सा लगा था.

‘‘कौन हो तुम? आंख खोलो,’’ कंडक्टर सामने खड़ा था, ‘‘मैं तो यों ही देखने चढ़ गया था कि किसी का सामान वगैरा तो नहीं छूट गया. तुम उतरी क्यों नहीं? जानती नहीं, यह बस आगे नहीं जाएगी.’’ उस के चेहरे का असमंजस, भय वह एक ही पल में पढ़ गया था, ‘‘कहां जाओगी?’’

उस समय, उस के मुंह से अटकते हुए निकला, ‘‘जी…जी, मैं सुबह दूसरी बस से चली जाऊंगी, मुझे रात में यहीं बैठे रहने दीजिए.’’

‘‘जाना कहां है?’’

…यह तो उसे भी नहीं पता था कि जाना कहां है.

कुछ जवाब न पा कर कंडक्टर फिर बोला, ‘‘घर कहां है?’’

यह वह बताना नहीं चाहती थी, डर था वह घर फोन करेगा और उस के आगे की तो कल्पना से ही वह घबरा गई. बस, इतना ही बोली, ‘‘मैं सुबह चली जाऊंगी.’’

‘‘तुम यहां बस में नहीं रह सकती, मुझे बस बंद कर के घर जाना है.’’

‘‘मुझे अंदर ही बंद कर दें, प्लीज.’’

‘‘अजीब लड़की हो, मैं रातभर यहां खड़ा नहीं रह सकता,’’ वह झल्ला उठा था, ‘‘मेरे साथ चलो.’’

कोई दूसरा रास्ता न था उस के पास. इसलिए न कोई प्रश्न, न डर, पीछेपीछे चल पड़ी.

बसअड्डे तक पहुंचे तो कंडक्टर ने इशारा कर एक रिकशा रुकवाया और बोला, ‘‘बैठो.’’ रिकशा तेज चलने से ठंडी हवा लगने लगी थी. कुछ हवा, कुछ अंधेरा, वह कांप गई.

उस की सिहरन को सहयात्री ने महसूस करते हुए भी अनदेखा किया और फिर एक प्रश्न उस की ओर उछाल दिया, ‘‘घर क्यों छोड़ कर आई हो?’’

‘‘मैं वहां रहना नहीं चाहती.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कोई मुझे प्यार नहीं करता, मैं वहां अनचाही हूं, अवांछित हूं.’’

‘‘सुबह कहां जाओगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘कहां रहोगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘कोई तो होगा जो तुम्हें खोजेगा.’’

‘‘वे सब खोजेंगे.’’

‘‘फिर?’’

‘‘परेशान होंगे, और मैं यही चाहती हूं क्योंकि वे मुझे प्यार नहीं करते.’’

‘‘तुम सब से ज्यादा किसे प्यार करती हो?’’

‘‘अपनी नानी से, मैं 3 महीने की थी जब मेरी मां ने मुझे उन के पास छोड़ दिया.’’

‘‘वे कहां रहती हैं?’’

‘‘मथुरा में.’’

‘‘तो मथुरा ही चली जाओ?’’

‘‘मेरे पास टिकट के पैसे नहीं हैं.’’ अब वह लगभग रोंआसी हो उठी थी.

वह ‘हूंह’ कह कर चुप हो गया था.

हवा को चीरता मोड़ों पर घंटी टुनटुनाता रिकशा आगे बढ़ता रहा और जब एक संकरी गली में मुड़ा तो वह कसमसा गई थी. आंखें फाड़ कर देखना चाहा था घर. घुप्प अंधेरी रात में लंबी पतली गली के सिवा कुछ न दिखा था. कुछ फिल्मों के खौफनाक दृश्यों के नजारे उभर आए थे. देखी तो उस ने ‘उमराव जान’ भी थी. आवाज से उस की तंद्रा टूटी.

‘‘बस भइया, इधर ही रोकना,’’ उस ने कहा तो रिकशा रुक गया और उन के उतरते ही अपने पैसे ले कर रिकशेवाला अंधेरे को चीरता सा उसी में समा गया था. वह वहां से भाग जाना चाहती थी. कंडक्टर ने उस का हाथ पकड़ एक दरवाजे पर दस्तक दी थी. सांकल खटखटाने की आवाज सारी गली में गूंज गई थी.

भीतर से हलकी आवाज आई थी, ‘‘कौन?’’

‘‘दरवाजा खोलो, पूनम,’’ और दरवाजा खोलते ही अंदर का प्रकाश क्षीण हो सड़क पर फैल गया. उस पर नजर पड़ते ही दरवाजा खोलने वाली युवती अचकचा गई थी. एक ओर हट कर उन्हें अंदर तो आने दिया पर उस का सारा वजूद उसे बाहर धकेलरहा था. दरवाजा एक छोटे से कमरे में खुला था, ठीक सामने एक कार्निस पर 2 फूलदान सजे थे, बीच में कुछ मोहक तसवीरें. एक कोने में एक छोटा सा रैक था जिस पर कुछ डब्बे थे, कुछ कनस्तर, एक स्टोव और कुछ बरतन, सब करीने से लगे थे. एक ओर छोटा पलंग जिस पर साफ धुली चादर बिछी थी और 2 तकिए थे. चादर पर कोई सिलवट तक न थी.

कुल मिला कर कम आय में सुचारु रूप से चल रही सुघड़ गृहस्थी का आदर्श चित्र था. वह भी ऐसा ही चित्र बनाना चाहती थी. बस, अभी तक उस चित्र में वह अकेली थी. अकेली, हां यही तो वह कह रहा था. ‘‘पूनम, यह लड़की बसअड्डे पर अकेली थी. मैं साथ ले आया. सुबह बस पर बिठा दूंगा, अपनी नानी के घर मथुरा चली जाएगी.’ युवती की आंखों में शिकायत थी, गरदन की अकड़ नाराजगी दिखा रही थी. वह भी समझ रहा था और शायद स्थिति को सहज करने की गरज से बोला, ‘‘अरे, आज दोपहर से कुछ नहीं खाया, कुछ मिलेगा क्या?’’

युवती चुपचाप 2 थालियां परोस लाई और पलंग के आगे स्टूल पर रखते हुए बोली, ‘‘हाथमुंह धो कर खा लो, ज्यादा कुछ नहीं है. बस, तुम्हारे लिए ही रखा था.’’ दोपहर से तो उस ने भी कुछ नहीं खाया था किंतु इस अवांछिता से उस की भूख बिलकुल मर गई थी. घर का खाना याद हो आया, सब तो खापी कर सो गए होंगे, शायद. क्या कोई उस के लिए परेशान भी हो रहा होगा? जैसेतैसे एक रोटी निगल कर उस ने कमरे के कोने में बनी मोरी पर हाथ धो लिए और सिमट कर कमरे में पड़ी इकलौती प्लास्टिक की कुरसी पर बैठ गई.

पूनम नाम की उस युवती ने पलंग पर पड़ी चादर को झाड़ा और चादर के साथ शायद नाराजगी को भी. फिर जरा कोमल स्वर में बोली, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा, घर क्यों छोड़ आई?’’ ‘‘जी’’ कह कर वह अचकचा गई.

‘‘नहीं बताना चाहती, कोई बात नहीं. सो जाओ, बहुत थकी होगी.’’ शायद वह उस की आंखों के भाव समझ गई थी. एक ही पलंग दुविधा उत्पन्न कर रहा था. तय हुआ महिलाएं पलंग पर सोएंगी और वह आदमी नीचे दरी बिछा कर. वे दोनों दिनभर के कामों से थके, लेटते ही सो गए थे. हलके खर्राटों की आवाजें कमरे में गूंजने लगीं. उस की आंख में तो नींद थी ही नहीं, प्रश्न ही प्रश्न थे. ऐसे प्रश्न जिन का वह उत्तर खोजती रही थी सदा.

वह समझ नहीं पाती थी कि मां उस से इतनी नफरत क्यों करती है. वह जो भी करती है, मां के सामने गलत क्यों हो जाता है. उस ने तो सोचा था मां को आश्चर्यचकित करेगी. दरअसल, उस के स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता हुई थी और वह प्रथम आई थी. अगले दिन एक जलसे में प्रमाणपत्र और मैडल मिलने वाले थे. बड़ी मुश्किल से यह बात अपने तक रखी थी.

सोचा था कि प्रमाणपत्र और मैडल ला कर मां के हाथों में रखेगी तो मां बहुत खुश हो जाएगी. उसे सीने से लगा लेगी. लेकिन ऐसा हो न पाया था. मां की पड़ोस की सहेली नीरा आंटी की बेटी ऋतु उसी की कक्षा में पढ़ती थी. वह भूल गई थी कि उस रोज वीरवार था. हर वीरवार को उन की कालोनी के बाहर वीर बाजार लगता था और मां नीरा आंटी के साथ वीर बाजार जाया करती थीं.

शाम को जब मां नीरा आंटी को बुलाने उन के घर गई तो ऋतु ने उन्हें सब बता दिया था. मां तमतमाई हुई वापस आई थीं और आते ही उस के चेहरे पर एक तमाचा रसीद किया था, ‘अब हमें तुम्हारी बातें बाहर से पता चलेंगी?’

‘मां, मैं कल बताने वाली थी मैडल ला कर.’

‘क्यों, आज क्यों नहीं बताया, जाने क्याक्या छिपा कर रखती है,’ बड़ी हिकारत से मां ने कहा था.

वह अपनी बात तो मां को न समझा सकी थी लेकिन 13 बरस के किशोर मन में एक प्रश्न बारबार उठ रहा था- मां मेरे प्रथम आने पर खुश क्यों नहीं हुई, क्या सरप्राइज देना कोई बुरी बात है? छोटा रवि तो सांत्वना पुरस्कार लाया था तब भी मां ने उसे बहुत प्यार किया था. फिर अगले दिन तो मैडल ला कर भी उस ने कुछ नहीं कहा था. और कल तो हद ही हो गई थी.

स्कूल में रसायन विज्ञान की कक्षा में छात्रछात्राएं प्रैक्टिकल पूरा नहीं कर सके थे तो अध्यापिका ने कहा था, ‘अपनाअपना लवण (सौल्ट) संभाल कर रख लेना, कल यही प्रयोग दोबारा दोहराएंगे.’ सफेद पाउडर की वह पुडि़या बस्ते के आगे की जेब में संभाल कर रख ली थी उस ने. कल फिर अलगअलग द्रव्यों में मिला कर प्रतिक्रिया के अनुसार उस लवण का नाम खोजना था और विभिन्न द्रव्यों के साथ उस की प्रतिक्रिया को विस्तार से लिखना था. विज्ञान के ये प्रयोग उसे बड़े रोचक लगते थे.

स्कूल में वापस पहुंच कर, खाना खा कर, होमवर्क किया था और रोजाना की तरह, ऋतु के बुलाने पर दीदी के साथ शाम को पार्क की सैर करने चली गई थी. वापस लौटी तो मां क्रोध से तमतमाई उस के बस्ते के पास खड़ी थी. दोनों छोटे भाई उसे अजीब से देख रहे थे. मां को देख कर और मां के हाथ में लवण की पुडि़या देख कर वह जड़ हो गई थी, और उस के शब्द सुन कर पत्थर- ‘यह जहर कहां से लाई हो? खा कर हम सब को जेल भेजना चाहती हो?’ ‘मां, वह…वह कैमिस्ट्री प्रैक्टिकल का सौल्ट है.’ वह नहीं समझ पाई कि मां को क्यों लगा कि वह जहर है, और है भी तो वह उसे क्यों खाएगी. उस ने कभी मरने की सोची न थी. उसे समझ न आया कि सच के अलावा और क्या कहे जिस से मां को उस पर विश्वास हो जाए. ‘मां…’ उस ने कुछ कहना चाहा था लेकिन मां चिल्लाए जा रही थी, ‘घर पर क्यों लाई हो?’ मां की फुफकार के आगे उस की बोलती फिर बंद हो गई थी.

वह फिर नहीं समझा सकी थी, वह कभी भी अपना पक्ष सामने नहीं रख पाती. मां उस की बात सुनती क्यों नहीं, फिर एक प्रश्न परेशान करने लगा था- मां उस के बस्ते की तलाशी क्यों ले रही थी, क्या रोज ऐसा करती हैं. उसे लगा छोटे भाइयों के आगे उसे निर्वस्त्र कर दिया गया हो. मां उस पर बिलकुल विश्वास नहीं करती. वह बचपन से नानी के घर रही, तो उस की क्या गलती है, अपने मन से तो नहीं गई थी.

13 बरस की होने पर उसे यह तो समझ आता है कि घरेलू परिस्थितियों के कारण मां का नौकरी करना जरूरी रहा होगा लेकिन वह यह नहीं समझ पाती कि 4 भाईबहनों में से नानी के घर में सिर्फ उसे भेजना ही जरूरी क्यों हो गया था. जिस तरह मां ने परिवार को आर्थिक संबल प्रदान किया, वह उस पर गर्व करती है.

पुराने स्कूल में वह सब को बड़े गर्व से बताती थी कि उस की मां एक कामकाजी महिला है. लेकिन सिर्फ उस की बारी में उसे अलग करना नौकरी की कौन सी जरूरत थी, वह नहीं समझ पाती थी और यदि उस के लालनपालन का इतना बड़ा प्रश्न था तो मां इतनी जल्दी एक और बेबी क्यों लाई थी और लाई भी तो उसे भी नानी के पास क्यों नहीं छोड़ा. काश, मां उसे अपने साथ ले जाती और बेबी को नानी के पास छोड़ जाती. शायद नानी का कहना सही था, बेबी तो लड़का था, मां उसे ही अपने पास रखेगी, भोला मन नहीं जान पाता था कि लड़का होने में क्या खास बात है.

वह चाहती थी नानी कहें कि इसे ले जा, अब यह अपना सब काम कर लेती है, बेबी को यहां छोड़ दे, पर न नानी ने कहा और न मां ने सोचा. छोटा बेबी मां के पास रहा और वह नानी के पास जब तक कि नानी के गांव में आगे की पढ़ाई का साधन न रहा. पिता हमेशा से उसे अच्छे स्कूल में भेजना चाहते थे और भेजा भी था.

वह 5 बरस की थी, जब पापा ने उसे दिल्ली लाने की बात कही थी. किंतु नानानानी का कहना था कि वह उन के घर की रौनक है, उस के बिना उन का दिल न लगेगा. मामामामी भी उसे बहुत लाड़ करते थे. मामी के तब तक कोई संतान न थी. उन के विवाह को कई वर्ष हो गए थे. मामी की ममता का वास्ता दे कर नानी ने उसे वहीं रोक लिया था. पापा उसे वहां नए खुले कौन्वैंट स्कूल में दाखिल करा आए थे. उसे कोई तकलीफ न थी. लाड़प्यार की तो इफरात थी. उसे किसी चीज के लिए मुंह खोलना न पड़ता था. लेकिन फिर भी वह दिन पर दिन संजीदा होती जा रही थी. एक अजीब सा खिंचाव मां और मामी के बीच अनुभव करती थी.

ज्योंज्यों बड़ी हो रही थी, मां से दूर होती जा रही थी. मां के आने या उस के दिल्ली जाने पर भी वह अपने दूसरे भाईबहनों के समान मां की गोद में सिर नहीं रख पाती थी, हठ नहीं कर पाती थी. मां तक हर राह नानी से गुजर कर जाती थी. गरमी की छुट्टियों में मांपापा उसे दिल्ली आने को कहते थे. वह नानी से साथ चलने की जिद करती. नानी कुछ दिन रह कर लौट आती और फिर सबकुछ असहज हो जाता. उस ने ‘दो कलियां’ फिल्म देखी थी. उस का गीत, ‘मैं ने मां को देखा है, मां का प्यार नहीं देखा…’ उस के जेहन में गूंजता रहता था. नानी के जाने के बाद वह बालकनी के कोने में खड़ी हो कर गुनगुनाती, ‘चाहे मेरी जान जाए चाहे मेरा दिल जाए नानी मुझे मिल जाए.’

…न जाने कब आंख लग गई थी, भोर की किरण फूटते ही पूनम ने उसे जगा दिया था. शायद, अजनबी से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाना चाहती थी. ब्रैड को तवे पर सेंक, उस पर मक्खन लगा कर चाय के साथ परोस दिया था और 4 स्लाइस ब्रैड साथ ले जाने के लिए ब्रैड के कागज में लपेट कर, उसे पकड़ा दिए थे. ‘‘न जाने कब घर पहुंचेगी, रास्ते में खा लेना.’’ पूनम ने एक छोटा सा थैला और पानी की बोतल भी उस के लिए सहेज दी थी. उस की कृतज्ञतापूर्ण दृष्टि नम हो आई थी, अजनबी कितने दयालु हो जाते हैं और अपने कितने निष्ठुर.

जागते हुए कसबे में सड़क बुहारने की आवाजों और दिन की तैयारी के छिटपुट संकेतों के बीच एक रिकशा फिर उन्हें बसअड्डे तक ले आया था. उस अजनबी, जिस का वह अभी तक नाम भी नहीं जानती थी, ने मथुरा की टिकट ले, उसे बस में बिठा दिया था. कृतज्ञ व नम आंखों से उसे देखती वह बोली थी, ‘‘शुक्रिया, क्या आप का नाम जान सकती हूं?’’ मुसकान के साथ उत्तर मिला था, ‘‘भाई ही कह लो.’’

‘‘आप के पैसे?’’

‘‘लौटाने की जरूरत नहीं है, कभी किसी की मदद कर देना.’’

बस चल पड़ी थी, वह दूर तक हाथ हिलाती रही. मन में एक कसक लिए, क्या वह फिर कभी इन परोपकारियों से मिल पाएगी? नाम, पता, कुछ भी तो न मालूम था. और न ही उन दोनों ने उस का नामपता जोर दे कर पूछा था. शायद जोर देने पर वह बता भी देती. बस, राह के दोकदम के साथी उस की यात्रा को सुरक्षित कर ओझल हो रहे थे.

बस खड़खड़ाती मंथर गति से चलती रही. वह 2 सीट वाली तरफ बैठी थी और उस के साथ एक वृद्धा बैठी थी. वह वृद्धा बस में बैठते ही ऊंघने लगी थी, बीचबीच में उस की गरदन एक ओर लुढ़क जाती. वह अधखुली आंखों से बस का जायजा ले, फिर ऊंघने लगती. और वह यह राहत पा कर सुकून से बैठी थी कि सहयात्री उस से कोई प्रश्न नहीं कर रहा. स्कूल के कपड़ों में उस का वहां होना ही किसी की उत्सुकता का कारण हो सकता था.

वह खिड़की से बाहर देखने लगी थी. किनारे के पेड़ों की कतारें, उन के परे फैले खेत और खेतों के परे के पेड़ों को लगातार देखने पर आभास होता था जैसे कि उस पार और इस पार के पेड़ों का एक बड़ा घेरा हो जो बारबार घूम कर आगे आ रहा हो. उसे सदा से यह घेरा बहुत आकर्षक लगता था. मानो वही पेड़ फिर घूम कर सड़क किनारे आ जाते हैं.

खेतों के इस पार और उस पार पेड़ों की कतारें चलती बस से यों लगतीं मानो धरती पर वृक्षों का एक घेरा हो जो गोल घूमता जा रहा हो. उसे यह घेरा देखते रहना बहुत अच्छा लगता था. वह जब भी बस में बैठती, बस, शहर निकल जाने का बेसब्री से इंतजार करती ताकि उन गोल घूमते पेड़ों में खो सके. पेड़ों और खयालों में उलझे, अपने ही झंझावातों से थके मस्तिष्क को बस की मंथर गति ने जाने कब नींद की गोद में सरका दिया.

आंख खुली तो बस मथुरा पहुंच चुकी थी. बिना किसी घबराहट के उस ने अपनेआप को समेट कर बस से नीचे उतारा. एक पुलकभर आई थी मन में कि नानीमामी उसे अचानक आया देख क्या कहेंगी, नाराज होंगी या गले से लगा लेंगी, वह सोच ही न पा रही थी. रिकशेवाले को देने के पैसे नहीं थे उस के पास, पर नाना का नाम ही काफी था.

इस शहर में कदम रखने भर से एक यकीन था शंकर विहार, पानी की टंकी के नजदीक, नानी के पास पहुंचते ही सब ठीक हो जाएगा. नानीनाना ने बहुत लाड़ से पाला थाउसे. बचपन में इस शहर की गलियों में खूब रोब से घूमा करती थी वह. नानाजी कद्दावर, जानापहचाना व बहुत इज्जतदार नाम थे. शहरभर में नाम था उन का. तभी आज बरसों बाद भी उन का नाम लेते ही रिकशेवाले ने बड़े अदब से उसे उस के गंतव्य पर पहुंचा दिया था.

रिकशेवाले से बाद में पैसे ले जाने को कह कर वह गली के मोड़ पर ही उतर गई थी और चुपचाप चलती हमेशा की भांति खुले दरवाजे से अंदर आंगन में दाखिल हो गई थी. शाम के 4 बज रहे थे शायद, मामी आंगन में बंधी रस्सी पर से सूखे कपड़े उतार रही थीं. उसे देखते ही कपड़े वहीं पर छोड़ कर उस की ओर बढ़ीं और उसे अपनी बांहों में कस कर भींच लिया और रोतेरोते हिचकियों के बीच बोलीं, ‘‘शुक्र है, तू सहीसलामत है.’’ वे क्यों रो रही हैं, उस की समझ में न आया था.

वह बरामदे की ओर बढ़ी तो मामी उस का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले जाते हुए बोलीं, ‘‘जरा ठहर, वहां कुछ लोग बैठे हैं.’’ नानी को इशारे से बुलाया. उन्होंने भी उसे देखते ही गले लगा लिया, ‘‘तू ठीक तो है? रात कहां रही? स्कूल के कपड़ों में यों क्यों चली आई?’’ न जाने वो कितने सवाल पूछ रही थीं.

उसे बस सुनाई दे रहा था, समझ नहीं आ रहा था. शायद एकएक कर के पूछतीं तो वह कुछ कह भी पाती. आखिरकार मामा ने सब को शांत किया और उस से कपड़े बदलने को कहा. वह नहाधो कर ताजा महसूस कर रही थी. लेकिन एक अजीब सी घबराहट ने उसे घेर लिया था. घर में कुछ बदलाबदला था. कुछ था जो उसे संशय के घेरे में रखे था.

आज वह यहां एक अजनबी सा महसूस कर रही थी, मानो यह उस का घर नहीं था. ऐसा माहौल होगा, उस ने सोचा नहीं था. सब के सब कुछ घबरा भी रहे थे. वह नानी के कमरे में चली गई. पीछेपीछे मामी चाय और नाश्ता ले कर आ गईं. तीनों ने वहीं चाय पी. मामी और नानी शायद उस के कुछ कहने का इंतजार कर रहे थे और वह उन के कुछ पूछने का. कहा किसी ने कुछ भी नहीं.

मामी बरतन वापस रखने गईं तो वह नानी की गोद में सिर टिका कर लेट गई. सुकून और सुरक्षा के अनुभव से न जाने कब वह सो गई. आंख खुली तो बहुत सी आवाजें आ रही थीं. और उन के बीच से मां की आवाज, रुलाईभरी आवाज सुनाई दे रही थी. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी, लगता था उस की सारी शक्ति किसी ने खींच ली हो. काश, वह यहां न आ कर किसी कब्रिस्तान में चली गई होती.

मां और मामा उस के व्यवहार और चले आने के कारणों का विश्लेषण कर रहे थे. उसे उठा देख मां जोरजोर से रोने लगी थी और उसे उठा कर भींच लिया था. तेल के लैंप की रोशनी के रहस्यमय वातावरण में सब उसे समझाने लगे थे, वापस जाने की मनुहार करने लगे थे. वह चीख कर कहना चाहती थी कि वापस नहीं जाएगी लेकिन उस के गले से आवाज नहीं निकल रही थी.

कस कर आंखें मींचे वह मन ही मन से मना रही थी कि काश, यह सपना हो. काश, तेल का लैंप बुझ जाए और वे सब घुप अंधेरे में विलीन हो जाएं. उस की आंख खुले तो कोई न हो. लेकिन वह जड़ हो गई थी और सब उसे समझा रहे थे. हां, सब उसे ही समझा रहे थे. वह तो वैसे भी अपनी बात समझा ही नहीं पाती थी किसी को. सब ने उस से कहा, उसे समझाया कि मां उस से बहुत प्यार करती है.

सब कहते रहे तो उस ने मान ही लिया. उस के पास विकल्प भी तो न था. वह मातापिता के साथ लौट आई. अब मां शब्दों में ज्यादा कुछ न कहती. बस, एक बार ही कहा था, हम तो डर गए हैं तुम से, तुम ने हमारा नाम खराब किया, सब कोई जान गए हैं. वह घर में कैद हो गई. कम से कम स्कूल में कोई नहीं जानता. प्रिंसिपल जानती थी, उसे एक दिन अपने कमरे में बुलाया था.

अपने को दोस्त समझने को कहा था. वह न समझ सकी. दिन गुजरते रहे. बरस बीतते रहे. जिंदगी चलती रही. पढ़ाई पूरी हुई. नौकरी लगी. विवाह हुआ. पदोन्नति हुई. और आज जब उस के दफ्तर में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी ने छुट्टी मांगते हुए बताया कि वह अपनी एक वर्ष की बिटिया को नानी के घर में छोड़ना चाहती है तो ये बरसों पुरानी बातें उस के मस्तिष्क को यों झिंझोड़ गईं जैसे कल की ही बातें हों.

आज एक बड़े ओहदे पर हो कर, बेहद संजीदा और संतुलित व्यवहार की छवि रखने वाली, वह अपना नियंत्रण खोती हुई उस पर बरस पड़ी थी, ‘‘तुम ऐसा नहीं कर सकती, सुवर्णा. यदि तुम्हारे पास बच्चे की देखभाल का समय नहीं था तो तुम्हें एक नन्हीं सी जान को इस दुनिया में लाने का अधिकार भी नहीं था. और जब तुम ने उसे जन्म दिया है तो तुम अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकती.

‘‘नानी, मामी, दादी, बूआ सब प्यार कर सकती हैं, बेइंतहा प्यार कर सकती हैं पर वे मां नहीं हो सकतीं. आज तुम उसे छोड़ कर आओगी, वह शायद न समझ पाए. वह धीरेधीरे अपनी परिस्थितियों से सामंजस्य बिठा लेगी. खुश भी रहेगी और सुखी भी. तुम भी आराम से रह सकोगी. लेकिन तुम दोनों के बीच जो दूरी होगी उस का न आज तुम अंदाजा लगा सकती हो और न कभी उसे कम कर सकोगी. ‘‘जिंदगी बहुत जटिल है, सुवर्णा, वह तुम्हें और तुम्हारी बच्ची को अपने पेंचों में बेइंतहा उलझा देगी. उसे अपने से अलग न करो.’’ वह बिना रुके बोलती जा रही थी और सुवर्णा हतप्रभ उसे देखती रह गई.+

‘गृहशोभिका’ ‘एम्पावर हर’

Writer- नम्रता पवार

दिल्ली प्रेस पब्लिकेशन की तरफ से गृहशोभिका ‘एम्पावर हर’ कार्यक्रम का आयोजन किया था. 29 जून, दादर, मुंबई की वनमाळी सभागृह मे आयोजित यह कार्यक्रम बडे उत्साह के साथ हुआ. महिलाओ की चहेती पत्रिका गृहशोभिका ‘एम्पावर हर’ कार्यक्रम के लिए मुंबई, उपनगर, थाने, कल्याण, नवी मुंबई, बोरिवली, विरार, पालघर सें कई महिलांए इस कार्यक्रम के लिए उपस्थित थी. ११ बजे शुरू होने वाले इस कार्यक्रम के लिए बारिश का मौसम होकर भी १० बजे से कई महिलाये उपस्थित थी.

होस्ट रूपाली सकपाल के धमाकेदार निवेदन से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. रूपालीने पुरे कार्यक्रम की रूपरेखा सें सभी को रुबरू करवाया. साथ ही दिल्ली प्रेस प्रकाशन की सभी पत्रिकाए और प्रकाशन की शुरुवात का एक एव्ही दिखाया गया. ‘गृहशोभा’ और कार्यक्रम के प्रायोजकोंका भी एव्ही दिखाया गया.

सबसे पहले कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हास्पिटल की चीफ डायटीशियन डॉक्टर प्रतीक्षा कदमने डायट का महत्व समजाते हुए हार्मोनल प्रॉब्लेम्स, इंटरमिटेंट फास्टिंग, एक्सरसाइज इन सभी का महत्व समझाया. उन्होने आगे कहा की अगर महिला को एम्पॉवर किया तो वह पुरी दुनिया को एम्पॉवर कर सकती है. स्त्री एक शक्ती है. महिलाओं के शरीर में जो पॉवरफुल हार्मोन्स है, वह बाकी किसी को नही दिये है. आज हर एक महिला को हार्मोनल प्रॉब्लेम हैं. लेकिन कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल हार्मोनल प्रॉब्लेम एक्झिट्स ही नही करती है. बडे हॉस्पिटल मे जाने के लिए लोग डरते है. लेकिन वहा पर हीं सही डायग्नोसीस होते है और उसके उपर उपाय किए जाते है. बडे बडे अस्पताल अच्छे पॅकेजेस देते है. उसका फायदा उठाईये.

अगर एक बार जब आपने हेल्दी लाईफ का स्वीकार किया तो मोटापा, पीसीओडी, डायबिटीज पुरी तरह निकल जाता है.

डौक्टर प्रतीक्षा कदमजीने उपस्थित सभी महिलाओं को एक गुरु मंत्र दिया वो था ‘वेट लॉस’ पूरी तरह फ्री मे होता है. चलना फ्री है सिर्फ इच्छाशक्ती अपने हाथ मे है.

वेट लास करने के लिए  हेल्दी लाइफ का भी स्वीकार करने के लिए उन्होने कहा.

इस सेशन के बाद उपस्थित महिलाओं के लिए एक सवाल-जवाब का खेल खेला गया. विजेता महिलाओं को एसबीएल की तरफ से गिफ्ट दिये गये.

इस के बाद डौक्टर सुधा वर्मा होमिओपॅथी डॉक्टर (होमिओपॅथी प्रॅक्टिशनर, एसबीएल) नें महावारी के दरम्यान कई महिलांए और यंग एज लडकीयों को माहवारी तय दिनसे पहले आना या दिन आगे जाना, माहवारी के दरम्यान पेट दर्द, उलटिया जैसी समस्या होती रहती है. प्रॅक्टिस करते वक्त ७० से ८० टक्के महिलाओ को पीसीओडी की समस्या उन्हें दिखाई दी. इसके लिए उन्होने बॅलन्सड डाएट, योगा और एसबीएलकी ड्रॉप नं. 2 और डिसमेंट टॅबलेट लेने की सलाह दि. यह दवाई महावारी के दरम्यान लगातार 3 महिने लेने से पेट दर्द बंद होती है. उन्होने कहा अॅलोपॅथी बुरी नही है लेकिन अगर आप के दर्द के लिए पेन किलर ले रहे हैं तो आगे जाकर वो आपके शरीर का नुकसान कर सकती है.

इन दो सेशन के बाद फायनान्स और इन्व्हेस्टमेंट पर सीए आदित्य प्रधानजीने उपस्थित महिलाओ को मार्गदर्शन किया. आदित्य प्रधानजीने एलएलबी न्यू लॉ कॉलेजसें और उनका ग्रॅज्युएशन आर. ए. पोद्दार कॉलेज से किया है. प्रधानजी टॅक्सेशन और कन्सल्टन्सी के एक्सपर्ट हैं.

सीए प्रधानजीनें फायनांशियल फ्रीडम क्या होता हैं? सेविंग्स का क्या महत्व है और सेव्हिंग कैसे करना है, रिटायरमेंट प्लॅनिंग, घर खर्चे का प्लॅनिंग, मेडिक्लेम, टर्म इन्शुरन्स, एज्युकेशन प्लॅनिंगपर मार्गदर्शन किया. इसके लिये पुरे साल का चार्ट घर पर ही बनाने के लिए कहा.

उन्होने मेडिक्लेम, लाइफ इन्शुरन्स के लिये एलआयसी कैसे फायदेमंद हैं, उसी के साथ एलआयसी रिटायरमेंट पॉलिसीज के बारे मे बताया.

घर पर इन्वेस्टमेंट करने की सलाह दी. बच्चों की पढाई और शादी के लिए उन्होने बच्चो के नाम पे इन्व्हेस्टमेंट करने को कहा. इसके लिए फायनान्शियल कन्सल्टंट से सलाह लेने के लिए कहा.

उनको एलआयसी दादर की सीनियर ब्रांच मॅनेजर मिस शिल्पा की तरफ सें नवाजा गया. इस सेशन के बाद महिलाओ के लिए फिर से एक बार सवाल-जवाब का खेल खेला गया. पारस घी की तरफ से विजेता महिलाओ को गिफ्ट्स दिए गये.

हेल्थ इन्शुरन्स के लिए एक डिस्ट्रीब्यूटर क्या कर सकता है इस पर मणिपाल सिग्ना की तरफ से मार्गदर्शन किया गया. मणिपाल सिग्ना की फिमेल डिस्ट्रीब्यूटर अॅडव्हायझर निरूपमा कामदार का व्हिडिओ दिखाया गया. मुंबई मे इसके लिए बहुत सारी संधीया उपलब्ध हैं. उसी के साथ महिला को डिस्ट्रीब्यूटर होने के लिए प्रवृत्त किया गया. मणिपाल सिग्नाकी फायनान्शियल लाइफ इन्शुरन्स म्युच्युअल फंड्स अॅडव्हायझर प्रीती कोचरिया का एक उदाहरण देकर मार्गदर्शन किया गया. हेल्थ इन्शुरन्स करोना के कारण अचानक कैसे लोकप्रिय हुआ इसका एक उदाहरण देते हुए वह कितना महत्वपूर्ण है उसके बारे मे कहा गया. लास्ट 5 सालसे मनिपाल सिग्ना बहुत ही लोकप्रिय हुआ है, इसका इन्सेंटिंव्हज लाइफ लॉन्ग है और उनकी टिम हमे त्वरित मदद के लीए तयार रहती है.

टुरिझम इंडस्ट्रि में चालीस साल से लोकप्रिय नाम है केसरी टूर्स. केसरी टूर्स माय फेवर लेडीज सिर्फ महिलाओ के लिए, स्टूडेंट स्पेशल टूर, सेकंड इनिंग सीनियर स्पेशल सिटीजन स्पेशल टूर, छोटा ब्रेक कन्सेप्ट आणि हनीमुन्स के लिये हनिमून कपल जैसे कई टूर्स अरेंज करते है. ‘बाई पण भारी देवा’ इस मराठी लोकप्रिय सिनेमा की पूरी टीम इस टूर पे आई थी. सिनेमा की कलाकारो के साथ कई महिलाओनें विदेश मे मंगळागौरव खेलने का लुफत उठाया था. जिंदगी सुकून से जीने लिये साल मे एक बार तो केसरी के एक टूर करनी ही चाहिये ऐसे उनकी प्रतिनिधी ने कहा.

फायनान्शियल एक्सपर्ट मिस्टर सतीश शेवडे लास्ट 24-25 साल सें एक फायनान्शियल अॅडव्हायझर के रूप में कार्यरत हैं. लाईफ अँड हेल्थ इन्शुरन्स, म्युच्यूअल फण्ड्स, एमपीएस, रिटायर्डमेंट प्लॅनिंग के माध्यम से वह कस्टमर सर्विस देते है. उनका कहना हैं की फॅमिली का एक इन्शुरन्स होना महत्वपूर्ण है, उसके साथ रिटायरमेंट प्लॅनिंग के उपर एक फोकस करना जरूरी हैं. घर की सभी महिलाओ की सहकार्य के कारण पुरुष बाहर मेहनत से काम कर सकता है. उपस्थित सभी महिलाओ को उन्होने इसका श्रेय दीया. फॅमिली कि जो जरुरते है, बच्चो की पढाई, उनकी शादी, उसका रिटायरमेंट प्लॅनिंग के लिए पैसा लगता है. अगर वो पैसा आपके पास रेडी है तो उसका प्लॅनिंग करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं. अपने पैसे कहा पर और कैसे इन्व्हेस्ट करना है जो भविष्य के दृष्टी से फायदेशीर हो सकता है इसके लिये एक फायनान्शियल अॅडव्हायझर ही हमे मदद कर सकता है.

कार्यक्रम के आखिर मे सभी महिला को भूख लगी थी लेकिन सेलिब्रिटी मेकअप आर्टिस्ट अँड हेअर स्टाईलिस्ट ओजस राजानीनें अपनी ओजस वाणी से सभी महिलाओं को मंत्रमुग्ध किया. सौंदर्य के साथ ही अंदर का सौंदर्य महत्त्वपूर्ण हैं ऐसा उन्होने कहा. अपने इस यश का श्रेय उन्होने अपने मातापिता और गुरू को दिया.

गृहशोभिका ‘एम्पॉवर हर’ कार्यक्रम के प्रायोजक थे : गोल्डी मसाले, पारस घी, एसबीआय होमिओपॅथी, हेल्थ इन्शुरन्स इंडस्ट्रीज का जाना माना नाम मणिपाल सिग्ना ग्रुप अँड इन्शुरन्स एलआयसी, एलआयसी यानी विश्वास भारत की एक नंबर की इन्शुरन्स पॉलिसी एलआयसी, केसरी टूर्स अँड ट्रॅव्हल्स प्रायव्हेट लिमिटेड.

सभी निमंत्रित वक्ताओ का स्वागत दिल्ली प्रेस नॅशनल सेल्स हेड दीपक सरकार, श्वेता रॉबर्ट्स, ईला जीने भेटवस्तू देकर किया.

उपस्थित महिलाओ ने इस कार्यक्रम की तहें दिल सें सराहना की और स्वादिष्ट नाश्ता, खाना और गिफ्ट के लिए धन्यवाद किया. अभी आगे यह इव्हेंट कब और कहा होने वाला है इसके बारे मे देखिल उन्होने पूछताछ की.

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