जानें क्या है बौडी पौलिशिंग के फायदे और इसे करने का सही तरीका

क्या आप की स्किन भी बहुत डल दिखती है और उस पर समय समय पर पिंपल्स या विभिन्न प्रकार की खामियां देखने को मिलती हैं. तो हो सकता है आप का शरीर आप को यह संकेत देना चाहता हो कि उसे अब केयर की आवश्यकता है.

बॉडी पॉलिशिंग में आप के पूरे शरीर पर एक क्रीम व तेल की सहायता से मालिश की जाती है और इसके साथ उसे स्क्रब व एक्सफोलिएट भी किया जाता है ताकि आप की सारी डैड स्किन निकल जाए और आप को एक क्लीयर व साफ स्किन मिले. तो आइए जानते हैं बॉडी पॉलिशिंग के क्या क्या लाभ होते हैं और बॉडी पॉलिशिंग कैसे की जाती है.

बॉडी पॉलिशिंग के लाभ

1. आप के ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है और इसी वजह से आप की स्किन और अधिक बढ़िया व फ्लोलेस दिखती है.

2. आप के स्किन पर जमी गन्दगी, धूल व पिंपल्स आदि को हटाता है और ब्लैकहेड्स से भी स्किन को मुक्त करता है.

3. आप के दिमाग को रिलैक्स करता है और आप को बॉडी को एक ताजगी प्रकार करता है.

4. आप की स्किन को मॉइश्चराइज करता है, आप की झुर्रियां व फाइन लाइन भी कम करता है.

5. सूर्य से होने वाले नुक़सान को कम करता है.

6. यह आप की स्किन को डिटॉक्सिफाई करता है और आप को ड्राई स्किन से भी बचाता है.

7. स्किन की नई ग्रोथ को प्रोत्साहित करता है और डैड स्किन को साफ करता है.

8. आप को एक कोमल स्किन देता है.

कैसे करें घर पर ही बॉडी पॉलिशिंग?

यदि आप घर पर ही बॉडी पॉलिशिंग करने की सोच रहे हैं तो आप को निम्नलिखित चीजों की आवश्यकता पड़ेगी.

  • पुमिक स्टोन
  • स्वयं बनाई हुई बॉडी पॉलिश
  • लूफा व ऑलिव ऑयल

प्रक्रिया

  • सबसे पहले थोड़े गुनगुने पानी में नहा लें और सभी चीजों को तैयार कर लें.
  • तीन चम्मच ऑलिव ऑयल के साथ आराम आराम से अपनी बॉडी की मालिश करें. इसके बाद बॉडी पॉलिश को अपनी बॉडी पर अप्लाई करे.
  • लूफा पर थोड़ा सा तेल लगाएं व अपनी बॉडी पर मसाज करें. अपने शरीर को लगभग 10-15 मिनट तक मसाज करें.
  • अपने शरीर के कोहनी, घुटने व गरदन जैसे सभी हिस्सों को सही तरीके से मसाज करें ताकि आप की सारी डैड स्किन निकल जाए.
  • मसाज करने के बाद एक बार नहा लें और सारा तेल व सारी पॉलिश अपने शरीर से निकाल दे.

बॉडी पॉलिश कैसे बनाएं?

यदि आप घर पर ही आसानी से बनने वाला बॉडी पॉलिश बनाना चाहते हैं तो निम्नलिखित चीजों का प्रयोग करें.

  • एक तिहाई कप चावल का आटा.
  • एक तिहाई कप सी साल्ट.
  • एक चम्मच हल्दी.
  • नारियल का तेल.

प्रक्रिया

  • नमक व चावल के आटे को एक कटोरे में रख लें और दोनो को अच्छे से एक दूसरे के अंदर मिक्स कर लें.
  • अब इसमें हल्दी मिलाएं व अच्छे से स्टिर करें.
  • अब इस मिक्सचर में नारियल का तेल मिलाएं ताकि यह मिक्सचर थोड़ा सा गाढ़ा बन जाए.
  • इसे अपने बॉडी स्क्रब के रूप में प्रयोग करें. आप इस का प्रयोग नहाते समय कर सकते हैं और यह बहुत ही बढ़िया काम करता है.
  • यह स्क्रब आप की स्किन पर बहुत अच्छा काम करता है और आप इसे एक बॉडी पॉलिश के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं. यह घर पर उपलब्ध समान से ही बहुत आसानी से बन जाता है.

कोरियन जैसी ग्लासी स्किन चाहती हैं तो करें आइस वाटर फेशियल

आज के समय में कोरियन ग्लास स्किन पाना एक ट्रेंड बन गया है क्योंकि अब कोरियन लड़कियों की तरह शीशे जैसी चमकती त्वचा हर लड़की चाहती है. ऐसे में घर बैठे कौन से ब्यूटी सीक्रेट्स अपनाएं जो कोरियन की तरह आपकी स्किन में नैचुरली ग्लो ला सके. इस बारे में बता रही है मेकअप एक्सपर्ट रेनू माहेश्वरी.

आइस वाटर फेशियल- आइस वॉटर फेशियल को करने का तरीका सामान्य फेशियल जैसा नही होता है. बल्कि यह एक ब्यूटी रिचुअल है जिससे त्वचा बेहतर बनती है. सबसे पहले एक बड़ा बाउल ले फिर इसमें एक कटोरी बर्फ का पानी डाल कर 4-5 आइस क्यूब डाले. फिर इसमें आप अपने चेहरे को 30 सेकंड के लिए डिप करे. फिर सॉफ्ट टॉवल से चेहरे को थपथपाते हुए ड्राई करे फिर मॉइस्चराइज लगाए जब आपके चेहरे का टेम्प्रेचर नॉर्मल हो जाए तो दोबारा 30 सेकेंड के लिए चेहरे को डिप करे ऐसा आप दिन दो बार जरूर करें इससे आपके चेहरे पर चमक आएगी. अगर आप चेहरा डिप नही कर सकती तो आप एक कॉटन के कपड़े में बर्फ लपेटकर चेहरे पर रब भी कर सकती हैं.

आइस वॉटर फेशियल के फायदे-

आइस वॉटर फेशियल चेहरे के पोर्स को खोलने का काम करता है. स्किन में कसाव भी लाता है. यह आंखों के पास की पफीनेस को कम कर फ्रेश दिखाने में मदद करता है. इससे चेहरे के पोर्स सिकुड़ जाते हैं, जिससे मेकअप लगाने में आसानी होती है. चेहरे का ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने में मदद करता है, एक्ने की इन्फलेशन कम करता है. एजिंग के इफेक्ट्स कम करता है. सनबर्न से आराम दिलाता है. चेहरे के आयल को कम करता है.

कुछ बातों का ध्यान रखें-

आइस वॉटर फेशियल करने से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है. जिससे त्वचा पर कोई नेगेटिव असर ना पड़े. आइस वॉटर फेशियल करने से पहले अपनी त्वचा को अच्छे से साफ कर ले. क्योंकि बर्फ के पानी में चेहरा डुबोने से हमारे रोम छिद्र कस जाते हैं. ऐसे में यदि त्वचा पर पहले से गंदगी जमा हो तो वह हमारे त्वचा के रोमछिद्रों के भीतर ही जमा हो जाएगी.

चेहरे की सफाई के लिए गुनगुने पानी का ही इस्तेमाल करें. चेहरे को अच्छे से साफ करने के बाद ही उस पर ठंडे पानी का इस्तेमाल करना चाहिए.

चेहरे पर बर्फ के टुकड़ों का सीधा इस्तेमाल न करें. उन्हें हमेशा किसी कॉटन के सॉफ्ट कपड़े में लपेटकर ही चेहरे पर लगाएं. चेहरे को एक बार में 30 सेकंड से ज्यादा बर्फ के पानी में डिप न करे.

महिला कुलपति : 120 साल का इंतजार

यह आश्चर्य की बात है जिस समाज और देश में महिलाओं को हमेशा आगे रखने की बात कही जाती है. आज के समय में भी महिलाएं अनेक ऊंचे पदों पर नहीं है. यह कुछ ऐसा है कि पर्दे के पीछे कुछ और पर्दे के बाहर का प्रहसन कुछ और. बड़ा ही खेद होता है जब ऐसे समाचार आते हैं जिन्हें पढ़कर लगता है कि हमारा देश आज भी दुनिया के अन्य देश से बहुत-बहुत पीछे है. हम भले ही ढोग करते रहें मगर नीचे बताएं गए कथानक को आप पढ़ेंगे तो यही सोच विचार करेंगे.

दरअसल, देश भर में आज “अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय को आखिरकार एक महिला कुलपति मिल ही गई” खबर पर विमर्श हो रहा है. और खबर में बताया जा रहा है कि इसके लिए कुर्सी को 104 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा.

हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति का आदेश जारी किया है. बताते चलें कि वर्ष 1920 में बने एएमयू में अब तक 21 कुलपति हो चुके हैं और ये सब पुरुष थे. हालांकि दिलचस्प बात यह है कि जिस विश्वविद्यालय को अपनी पहली महिला वीसी पाने में 104 साल लगे उसकी पहली कुलाधिपति सुल्तान जहां बेगम (बेगम भोपाल) खुद एक महिला थीं.

लोकसभा चुनाव को देखते हुए चुनाव आयोग की सशर्त मंजूरी के बाद नईमा खातून की नियुक्ति हुई है. बाकी इसके पीछे भी एक राजनीति को समझा जा सकता है मगर यह बीजेपी एक खेल कर गई है. इससे पहले नवंबर, 2023 में तीन उम्मीदवारों का पैनल जिसमें प्रोफेसर नईमा खातून, प्रोफेसर एमयू रब्बानी और प्रोफेसर फैजान मुस्तफा का नाम राष्ट्रपति (विजिटर, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज) द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा गया था.राष्ट्रपति ने प्रोफेसर नईमा खातून के पक्ष में फैसला किया.

एएमयू की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी को देखें तो हम पाते हैं कि नईमा खातून मूल रूप से आदिवासी बाहुल्य ओड़ीशा राज्य की हैं.उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई ओड़ीशा से ही की. और अप्रैल 1998 से एसोसिएट प्रोफेसर और जुलाई 2006 से प्रोफेसर रहीं. प्रोफेसर नईमा खातून जुलाई 2014 में महिला कालेज की प्राचार्य बनीं.

इन्होंने मध्य अफ्रीका के रवांडा के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक साल पढ़ाया. आपके पास राजनीतिक मनोविज्ञान में पीएचडी की डिग्री है.वश आप अक्टूबर 2015 से सेंटर फार स्किल डेवलपमेंट एंड करिअर प्लानिंग, एएमयू, अलीगढ़ के निदेशक के रूप में भी कार्यरत रहीं.उन्होंने मनोविज्ञान विषय पर कई किताबें लिखी हैं और उनके 31 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं.

प्रोफेसर खातून ने लुइस विले विवि अमेरिका, चुलालोंगकोर्न विवि बैंकाक, हालिंग्स इस्तानबुल, लूलिया सेंटर अल्बा विवि रोमानिया और हालिंग्स सेंटर फार इंटरनेशनल में भी दौरा किया है और लेक्चर दिए हैं.नईमा खातून ने छह पुस्तकों लिखी हैं. वह महिला कालेज छात्र संघ के लिए दो बार चुनी गई. उन्होंने अब्दुल्ला हाल और सरोजिनी नायडू हाल के साहित्यिक सचिव और वरिष्ठ हाल मानिटर का पद भी संभाला है.

नईमा खातून ने यह पद कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज से लिया हैं जो उनके पति भी हैं.प्रोफेसर गुलरेज से पहले एएमयू के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर थे. प्रोफेसर तारिक मंसूर ने दो अप्रैल 2023 को कुलपति का पद त्याग दिया था जिसके बाद से ही प्रोफेसर गुलरेज कार्यवाहक कुलपति के तौर पर काम कर रहे थे. इस्तीफा देने के बाद प्रोफेसर मंसूर भाजपा में शामिल हो गए.

गर्मियों में घूमने जाते समय रखें इन बातों का ध्यान

रक्षिता कब से सोचे बैठी थी कि इस बार गर्मियों की छुट्टी में मनाली हर हाल में घूमने जाएगी परन्तु जब तक उसने प्लान बनाया तब तक तो किसी भी ट्रेन में रिजर्वेशन ही नहीं था. बहुत कोशिश करने के बाद भी जब रिजर्वेशन नहीं मिला तो उसे उसी शहर में रहने वाली अपनी मम्मी के यहां जाकर अपनी छुट्टियां बितानी पड़ी.

आशिमा को बहुत कम पानी पीने की आदत थी उत्तराखंड घूमने जाते समय भी उसने अपने लिक्विड इंटेक पर ध्यान नहीं दिया जिसके परिणामस्वरूप वह बीमार हो गयी और ट्रिप पूरी होने के पहले ही उसे वापस आना पड़ा.

बच्चों के स्कूल बंद होते ही हम कहीं बाहर घूमने का प्लान बनाने लगते हैं क्योंकि पूरे साल में यही दिन होते हैं जब कुछ शान्ति से आप घर से बाहर जा पाते हैं परन्तु इस दिनों सबसे बड़ी समस्या धूप और लू की होती हैं क्योकिं इन दिनों सभी मैदानी इलाकों में बहुत अधिक लू चलती हैं और गर्मी भी अपना प्रकोप दिखाती ही है दूसरे यदि 6 महीने पहले प्लान न किया जाये तो ट्रेन में रिजर्वेशन भी नहीं मिलता. यदि आप भी इन गर्मियों में कहीं घूमने जाने का प्लान बना रहीं हैं तो ये टिप्स आपके बहुत काम के साबित होंगे.

1-आमतौर पर इन दिनों में अधिकांश मैदानी जगहों पर बहुत अधिक गर्मी होती है इसलिए घूमने के लिए पहाड़ी और ठंडे स्थान का चुनाव करना उचित रहता है परन्तु इन स्थानों पर जाने का प्लान तभी बनाएं जब आप रुकने के लिए पूर्व से ऑनलाइन बुकिंग कर लें क्योंकि इन दिनों ऐसी जगहों पर बहुत अधिक भीड़ भाड़ होती है जिससे आधिकंश होटल बुक्ड रहते हैं.

2–इन दिनों में गर्मी बहुत तेज और तीखी होती है इसलिए साटन, सिंथेटिक, या सिल्क फेब्रिक से बने कपड़ों के स्थान पर कॉटन, लिनेन, होजरी, खादी, चिकन और प्योर सूती फेब्रिक से बने ढीले ढाले कपड़ों का चयन करें. लेयरिंग करने से बचें साथ ही अस्तर वाले ड्रेसेज का प्रयोग भी न करें. स्लीवलेस या हाफ स्लीव के कपड़े गर्मियों के लिए श्रेष्ठ रहते हैं. काले, नीले, हरे, लाल जैसे गहरे रंग के कपड़ों के स्थान पर पेस्टल शेड्स और पिंक, व्हाइट. पीच जैसे हल्के रंगों से बने ड्रेसेज को प्राथमिकता दें.

3-गर्मियों में बाहर जाते समय चश्मा, हैट, गमछा, कॉटन स्टोल, अम्ब्रेला जैसे आवश्यक एसेसरीज को अपने साथ अवश्य रखें ताकि सूर्य की यू वी किरणों के प्रभाव से आप बचे रहें.

4-गर्मियों में सबसे बड़ी समस्या डिहाईडरेशन की होती है इससे बचने के लिए अपने साथ ग्लूकोज, नारियल पानी, ज्युसेज आदि अवश्य रखें और हर एक घंटे पर इन्हें लेते रहें ताकि आपके शरीर में पानी की कमी न होने पाए.

5-क्रोसिन, पेरासिटामोल, ओडोमास, डिस्प्रिन और सोर्बिटेट जैसी आवश्यक दवाइयों के साथ साथ बेंडेज, डेटोल, थर्मामीटर जैसी जरूरी चीजें भी अपने साथ अवश्य रखें ताकि जरूरत पड़ने पर इनका उपयोग किया जा सके और आपको इधर उधर भटकना न पड़े.

6-जिस किसी भी स्थान पर आप घूमने का प्लान बना रहे हैं उस स्थान के बारे में पूरी जानकारी आप पहले से लेकर जायें ताकि आप अनावश्यक भटकने से बचे रहें.

7-गर्मियों में प्रत्येक जगह पर मच्छरों का बहुत अधिक आतंक रहता है, इनके काटने से आप डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और वायरल फीवर बहुत जल्दी शिकार हो सकते हैं इससे बचने के लिए आप किसी भी मच्छर मार रिप्लेंट को अपने साथ लेकर जायें और उसका वहां प्रयोग करें.

8-आजकल अधिकांश होटल्स और रिजोर्ट में स्वीपिंग पूल होते हैं इनका भरपूर मजा लेने के लिए आप स्वीमिंग ड्रेस अपने साथ लेकर जायें साथ ही कुछ जोड़ी कपड़े भी अपने साथ अतिरिक्त लेकर जाएँ ताकि आप बार बार पूल में नहाने के बाद आप इनका प्रयोग कर सकें.

9-गर्मियों में सूर्य की यू वी किरणें अपने प्रभाव से आपके चेहरे को खराब न करें इसके लिए आप अपने साथ किसी अच्छी कम्पनी की सनस्क्रीन जरूर लेकर जायें और होटल से बहर निकलते समय इसका प्रयोग करें.

10-भाकरी, थेपले, खाखरा, मठरी, भेल, शकरपारे और लड्डू जैसे होममेड स्नैक्स अपने साथ रखें ताकि आप पूरी तरह बाहर के खाने पर ही निर्भर न रहें.

11-यदि आप मैदानी इलाकों में घूमने जा रहे हैं तो अल सुबह और शाम को ही घूमने का प्लान रखें दोपहर में बहर निकलने से बचें.

12-यदि आप अपनी पर्सनल गाडी से घूमने जा रहे हैं तो चलने से पहले अपनी कार की हवा और पेट्रोल चेक करें साथ ही बीच बीच में अपनी कार को कुछ देर के लिए आराम दें ताकि कार का इंजन गर्म होने से बचे रहें.

13-यदि कार, विमान या कार में बहुत लम्बा सफर करना है तो अपने साथ एक छोटा तकिया अवश्य लेकर जायें ताकि इसे आप अपनी गर्दन और कमर के लिए प्रयोग कर सकें.

Summer Tips: गर्मी की तपिश से राहत देंगें ये होममेड कन्सन्ट्रेट शरबत

गर्मी की तपिश लगातार बढती ही जा रही है. आहार विशेषज्ञों के अनुसार गर्मियों में शरीर को हाईड्रेट रखना बहुत जरूरी होता है. यदि इन दिनों पानी अथवा तरल पदार्थ भरपूर मात्रा में न पिये जाये तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है. कितनी भी कोशिश कर ली जाए पर हर बार खाली पानी पीना सम्भव नहीं हो पाता इसलिए यदि हम पानी में कोई शरबत या जूस मिला लें तो फ्लेवर्ड पानी पीना काफी आसान हो जाता है. बाजार में मिलने वाले शरबत न तो हाइजीनिक होते हैं और न ही प्योर दूसरे ये बहुत महंगे भी पड़ते हैं पर थोड़ी सी मेहनत से यदि इन्हें घर पर बना लिया जाये तो ये काफी सस्ते पड़ते हैं दूसरे घर पर हम इन्हें अपने टेस्ट के अनुसार भी बना सकते हैं. आज हम आपको ऐसे ही 2 कन्सन्ट्रेट शरबत बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप घर पर आसानी से बना सकती हैं. कन्सन्ट्रेट शरबत अर्थात वे शरबत जिन्हें पकाकर काफी गाढ़ा बना लिया जाता है और फिर सर्व करते समय इनमें सिर्फ पानी ही मिलाना होता है तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-पाइनएप्पल शरबत

कितने लोगों के लिए 8

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

पाइएप्पल 1
शक्कर 800 ग्राम
पानी 1/2 लीटर
काला नमक 1 टीस्पून
काली मिर्च 1/2 टीस्पून
चाट मसाला 1 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1 टीस्पून
नीबू का रस 1 टीस्पून
खाने वाला पीला रंग 1 बूंद

विधि

पाइनएप्पल को छीलकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें. अब इसे आधी शक्कर और 1 कप पानी डालकर प्रेशर कुकर में डालकर धीमी आंच पर 2 सीटी ले लें. जब प्रेशर निकल जाये तो इसे मिक्सी में पीस कर छान लें. अब छने गूदे को एक पैन में डालकर बची शक्कर डालकर लगातार चलाते हुए 5 मिनट तक पकाएं. गैस बंद करके नीबू का रस, चाट मसाला, फ़ूड कलर और एनी सभी मसाले डालकर अच्छी तरह चलायें. जब मिश्रण पूरी तरह ठंडा हो जाये तो किसी क्यूब्स ट्रे में डालकर फ्रीजर में जमाये अथवा किसी कांच की बोतल में भरकर फ्रिज में रखें. सर्व करते समय कांच के ग्लास में 1 टेबलस्पून कंसन्ट्रेट शरबत या जमे क्यूब्स डालकर ठंडा पानी डालकर ठंडा-ठंडा सर्व करें.

-बेल का शरबत

कितने लोगों के लिए 8

बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

बेल का फल 1
पानी आधा लीटर
गुड़ पाउडर 500 ग्राम
इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
भुना जीरा पाउडर 1/4 टीस्पून
चाट मसाला 1 टीस्पून

विधि

बेल के पके फल को किसी भारी चीज से दबाकर फोड़ लें और किसी बड़े चम्मच की मदद से इसका सारा गूदा निकाल लें. इस गूदे को एक बाउल में डालकर पानी में डालकर ढककर आधा घंटे के लिए रख दें. आधे घंटे बाद हाथ से मसलकर छलनी से छानकर गूदे और रेशे को अलग कर लें. अब इस गूदे को गुड़ डालकर 5 से 10 मिनट तक गाढ़ा होने तक पकाकर गैस बंद कर दें. ठंडा होने पर इलायची पाउडर, काला नमक और भुना जीरा पाउडर डालकर चलायें और कांच के जार में भरकर फ्रिज में रखकर प्रयोग करें. सर्व करते समय ग्लास में 1 टेबलस्पून तैयार कंसन्ट्रेट शरबत, आइस क्यूब्स और ठंडा पानी डालकर सर्व करें. आप चाहें तो इसमें स्वादानुसार नीबू का रस भी मिला सकते हैं.

मूत्र संबंधी समस्याओं में वरदान साबित हो रही रोबोटिक सर्जरी

रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी की मदद से यूरोलॉजी से जुड़े मामलों के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं. इस नई तकनीक ने इलाज के मायने ही बदल दिए हैं. परंपरागत ओपन सर्जरी में अन्य परेशानियों का खतरा रहता था, रिकवरी टाइम लंबा रहता था, वहीं अब रोबोट की मदद से मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाएं की जा रही हैं, जिनसे सटीकता बढ़ती है, दर्द कम रहता है और तेजी से मरीज की रिकवरी होती है.

रोबोट असिस्टेड यूरोलॉजिकल प्रक्रियाओं में न सिर्फ सर्जरी के लिहाज मरीज को फायदे पहुंचते हैं, बल्कि इससे मरीजों की क्वालिटी ऑफ लाइफ में भी सुधार हुआ है.

डॉक्टर विकास जैन, यूरोलॉजिस्ट, रोबोटिक और किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन के मुताबिक रोबोटिक यूरोलॉजिकल सर्जरी के लाभ काफी है.

रोबोटिक सर्जरी अपनी सटीकता के लिए जानी जाती है, जिसकी मदद से मुश्किल से मुश्किल मामलों में भी एकदम सही तरीके से सर्जरी को पूरा कर लिया जाता है. इस प्रक्रिया में सर्जरी की जगह की 3डी हाई डेफिनेशन तस्वीर मिलती है, जिससे डॉक्टर को पूरी स्पष्टता और कंट्रोल के साथ सर्जरी करने में मदद मिलती है. खासकर, जिन मामलों में नर्व और मसल्स टिशू को बचाना होता है जैसे कि प्रोस्टेटैक्टोमीज, जिसमें कैंसर वाले टिशू वाले टिशू को हटाया जाता है और इस बात का ध्यान रखा जाता है कि उसका असर यूरिनरी व इरेक्टाइल फंक्शन पर न पड़े.

रोबोटिक सर्जरी का एक और बड़ा फायदा ये होता है कि इसमें मरीज को ट्रॉमा फील नहीं होता. मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया से की जाने वाली इस सर्जरी में छोटे कट लगाए जाते हैं, जिसकी वजह से दर्द कम होता है, इंफेक्शन का रिस्क कम रहता है और जख्म जल्दी से भरता है. परंपरागत सर्जरी की तुलना में रोबोटिक सर्जरी का फायदा ये होता है कि मरीज अस्पताल से कम वक्त में ही डिस्चार्ज हो जाते हैं और वो अपनी सामान्य गतिविधियों में लग जाते हैं.

यूरोलॉजिकल सर्जरी

रोबोटिक तकनीक ने यूरोलॉजिकल सर्जरी यानी मूत्र संबंधी सर्जरी के हॉरिजन को काफी व्यापक बना दिया है. प्रोस्टेट कैंसर, किडनी कैंसर, मूत्राशय के कैंसर में ये तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. किडनी ट्रांसप्लांटेशन जैसे जटिल मामलों में भी रोबोटिक प्रक्रिया काफी सुरक्षित रहती है. रोबोटिक सिस्टम के साथ इस तरह की जटिल सर्जरी करने की क्षमता हमारी क्षमताओं में एक छलांग का प्रतीक है, जो जानलेवा समझी जाने वाली मूत्र संबंधी परेशानियों का सामना करने वाले मरीजों को एक उम्मीद देती है और उन्हें अच्छे रिजल्ट मिलते हैं.

मरीज के लिए आते हैं अच्छे रिजल्ट

रोबोटिक यूरोलॉजिकल सर्जरी मरीज के रिजल्ट में काफी अहम होती है. इसमें सर्जिकल ट्रॉमा कम होता है, ऑपरेशन के बाद की समस्याएं कम होती हैं, जिससे मरीज की रिकवरी आसानी से होती है. मरीज को मनोवैज्ञानिक लाभ भी मिलते हैं. कम निशान और रुटीन लाइफ में जल्दी वापस लौटने से उन्हें अपने अंदर संतुष्टि का अनुभव भी होता है.

कैंसर के मामलों में रोबोटिक सर्जरी के रिजल्ट ट्रेडिशनल ओपन सर्जरी से अगर उससे अच्छे न भी रहें तो उसके बराबर तो रहते ही हैं. हालांकि, इस एडवांस तकनीक से कुछ ज्यादा लाभ मिलते हैं जैसे कि दर्द कम होता है और अस्पताल में कम वक्त रहना पड़ता है.

डॉक्टरों को क्या लाभ?

डॉक्टरों के लिहाज से तो रोबोटिक असिस्टेड सर्जरी एक गेम चेंजर तकनीक है. कंसोल के डिजाइन की मदद से सर्जन पर फिजिकल दबाव कम हुआ है, वो लंबे समय तक सर्जरी में फोकस कर पाते हैं और थकान भी कम होती है. रोबोटिक आर्म से सर्जरी में जो सटीकता आती है वो डॉक्टरों की क्षमताओं को भी बढ़ाती है और उन्हें ऐसी परिस्थितियों को भी देखने में मदद देती है जिन्हें पहले छोड़ दिया जाता था.

तमाम फायदों के बावजूद रोबोटिक सर्जरी के खर्च पर भी गौर करने की जरूरत है. ओपन ट्रेडिशनल सर्जरी की तुलना में इसका खर्च ज्यादा होता है, जिसके चलते सभी मरीज इसका लाभ नहीं ले पाते. लेकिन अगर पूरे इलाज को देखा जाए तो रोबोटिक सर्जरी के बाद अस्पताल में कम रहना पड़ता है, मरीज जल्दी अपने काम पर लौट जाता है, सर्जरी के बाद की परेशानियां कम होती हैं, लिहाजा इन तमाम लॉन्ग टर्म फायदों को देखा जाए तो इसका ज्यादा खर्च भी फायदेमंद नजर आता है.

मूत्र संबंधी दिक्कतों में रोबोटिक सर्जरी के आने से मरीजों को काफी फायदा मिला है. जैसे जैसे इस तरह की तकनीक और बेहतर व सुलभ किया जा रहा है, वैसे वैसे मरीजों को इसका ज्यादा लाभ मिल रहा है. रोबोटिक यूरोलॉजिकल सर्जरी सिर्फ एक नई तकनीकभर नहीं है, बल्कि ये मेडिकल में जो संभव है उसकी फिर से कल्पना करने और मरीजों को बेहतर इलाज देने में बोल्ड स्टेप्स उठाने का भी प्रतीक है.

बुलावा आएगा जरूर : भाग्यश्री का मायका

तबीयत कैसी है मां?’’ दयनीय दृष्टि से देखती भाग्यश्री ने पूछा.

मां ने सिर हिला कर इशारा किया, ‘‘ठीक है.’’ कुछ पल मां जमीन की ओर देखती रही. अनायास आंखों से आंसू की  झड़ी  झड़ने लगी. सुस्त हाथों को धीरेधीरे ऊपर उठा कर अपने सिकुड़े कपोलों तक ले गई. आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘प्रकृति की मरजी है बेटा.’’

परिवार के प्रति आक्रोश दबाती हुई भाग्यश्री ने कहा, ‘‘प्रकृति की मरजी कोई नहीं जानता, किंतु तुम्हारे लापरवाह बेटे को सभी जानते हैं और… और पिताजी की तानाशाही. दोनों के प्रति तुम्हारे समर्पित भाव का प्रतिदान तुम्हें यह मिला कि तुम दोनों की मानसिक चोट से आहत हो कर यहां तक  पहुंच गईं? जिंदगी जकड़ कर रखना चाहती है, लेकिन मौत तुम्हें अपनी ओर खींच रही है.’’

मां ने आहत स्वर में कहा, ‘‘क्या किया जाए, सब समय की बात है.’’

भाग्यश्री ने अपनी आर्द्र आंखों को पोंछ कर कहा, ‘‘दवा तो ठीक से ले रही हो न, कोई कमी तो नहीं है न?’’

पलभर मां चुप रही, फिर बोली, ‘‘नहीं, दवा तो लाता ही है.’’

‘‘कौन? बाबू?’’ भाग्यश्री ने पूछा.

‘‘और नहीं तो कौन, तुम्हारे पिताजी लाएंगे क्या, गोबर भी काम में आ जाता है, गोथठे के रूप में. लेकिन वे? इस से भी गएगुजरे हैं. वही ठीक रहते तो किस बात का रोना था?’’ कुछ आक्रोश में मां ने कहा.

भाग्यश्री सिर  झुका कर बातें सुनती रही.

‘‘और एक बेटा है, वह अपनेआप में लीन रहता है, कमरे में  झांक कर भी नहीं देखता. आने में देरी हो जाए, तो मन घबराता है. देरी का कारण पूछती हूं, तो बरस पड़ता है. घर में नहीं रहने पर इधर बाप की चिल्लाहट सुनो और आने पर कुछ पूछो, तो बेटे की  िझड़की सुनो. बस, ऐसे ही दिन काट रही हूं,’’ आंसू पोंछती हुई मां ने कहा, ‘‘हां, लेकिन सेवा तुम्हारे पिताजी करते हैं मूड ठीक रहा तो, ठीक नहीं तो चार बातें सुना कर ही सही, मगर करते हैं.’’

भाग्यश्री ने कई बार सोचा कि मां की सेवा के लिए एक आया रख दे, मगर इस में भी समस्याएं थीं. एक तो यह कि इस माहौल में आया रहेगी नहीं, हरवक्त तनाव की स्थिति, बापबेटे के बीच वाकयुद्ध, अशांति ही अशांति. स्वयं कुछ भी खा लें, मगर आया को तो ढंग से खिलाना पड़ेगा न. दूसरा यह कि भाग्यश्री की सहायता घरवाले स्वीकार करेंगे? इन सब कारणों से वह लाचार थी. वह मां के पास बैठी थी, तभी उस के पिताजी आए. औपचारिकतावश भाग्यश्री ने प्रणाम किया. फिर चुपचाप बैठी रही.

भाग्यश्री ने अपने पिताजी की ओर देखा. उन के चेहरे पर क्रोध का भाव था. निसंदेह वह भाग्यश्री के प्रति था.

पिछले 10 वर्षों में वह बहुत कम यहां आईर् थी. जब उस ने अपनी मरजी से शादी की, पिताजी ने उसे त्याग दिया. मां भी पिताजी का समर्थन करती, किंतु मां तो मां होती है. मां अपना मोह त्याग नहीं पाई थी. शादी भी एक संयोग था. स्नेहदीप के बिना जीवन अंधकारमय रहता है. प्रकाश की खोज करना हर व्यक्ति की प्रवृत्ति है.

व्यक्ति को यदि अपने परिवेश में स्नेह न मिले तो बूंदभर स्नेह की लालसा लिए उस की दृष्टि आकाश को निहारती है, शायद स्वाति बूंद उस पर गिर पड़े. जहां आशा बंधती है, वहां वह स्वयं भी बंध जाता है. भाग्यश्री के साथ भी ऐसी ही बात थी. नाम के विपरीत विधाता का लिखा. दोष किस का है- इस सर्वेक्षण का अब समय नहीं रहा, लेकिन एक ओर जहां भाग्यश्री का खूबसूरत न होना उस के बुरे समय का कारण बना, वहीं, दूसरी ओर पिता का गुस्सैल स्वभाव भी. कभी भी उन्होंने घर की परिस्थिति को देखा ही नहीं, बस, जो चाहिए, मिलना चाहिए अन्यथा घर सिर पर उठा लेते.

घर की विषम परिस्थितियों ने ही भाग्यश्री को सम झदार बना दिया. न कोई इच्छा, न शौक. बस, उदासीनता की चादर ओढ़ कर वह वर्तमान में जीती गई. परिश्रमी तो वह बचपन से ही थी. छोटे बच्चों को पढ़ा कर उस ने अपनी पढ़ाई पूरी की. उस का एक छोटा भाई था. बहुत मन्नत के बाद उस का जन्म हुआ था. इसलिए उसे पा कर मातापिता का दर्प आसमान छूने लगा था. पुत्र के प्रति आसक्ति और भाग्यश्री के प्रति विरक्ति यह इस घर की पहचान थी.

लेकिन, उसे अपने एकांत जीवन से कभी ऊब नहीं हुई, बल्कि अपने एकाकीपन को उस ने जीवन का पर्याय बना लिया था. कालांतर में हरदेव के आत्मीय संसर्ग के कारण उस के जीवन की दिशा ही नहीं बल्कि परिभाषा भी बदल गई. बहुत ही साधारण युवक था वह, लेकिन विचारउदात्त था. सादगी में विचित्र आकर्षण था.

भाग्यश्री न तो खूबसूरत थी, न पिता के पास रुपए थे और न ही वह सभ्य माहौल में पलीबढ़ी थी. किंतु पता नहीं, हरदेव ने उस के हृदय में कौन सा अमृतरस का स्रोत देखा, जिस के आजीवन पान के लिए वह परिणयसूत्र में बंध गया. हरदेव के मातापिता ने इस रिश्ते को सहर्ष स्वीकार किया. भाग्यश्री के मातापिता ने उस के सामने कोई आपत्ति जाहिर नहीं की, मगर पीठपीछे बहुत कोसा. यहां तक कि वे लोग न इस से मिलने आए, न ही उन्होंने इसे घर बुलाया. खुश रह कर भी भाग्यश्री मायके के संभावित दुखद माहौल से दुखी हो जाती. उपेक्षा के बाद भी वह अपने मायके के प्रति लगाव को जब्त नहीं कर पाती और यदाकदा मांपिताजी, भाई से मिलने आती, किंतु लौटती तो अपमान के आंसू ले कर.

कुछ माह बाद ही भाग्यश्री को मालूम हुआ कि उस की मां लकवे का शिकार हो गई है. घबरा कर वह मायके आई. अपाहिज मां उसे देख कर रोने लगी, मानो बेटी के प्रति जितना भी दुर्भाव था, वह बह रहा हो. किंतु, पिताजी की मुद्रा कठोर थी. मां अपनी व्यथा सुनाती रही, लेकिन पिताजी मौन थे. आर्थिक तंगी तो घर में पहले से ही थी, अब तो कंगाली में आटा भी गीला हो गया था. मां के पास वह कुछ देर बैठी रही, फिर बहुत साहस जोड़ कर, मां को रुपए दे कर कहने लगी, ‘इलाज में कमी न करना मां. मैं तुम्हारा इलाज कराऊंगी, तुम चिंता न करना.’

उस की बातों को सुनते ही पिताजी का मौन भंग हुआ. बहुत ही उपेक्षित ढंग से उन्होंने कहा, ‘हम लोग यहां जैसे भी हैं, ठीक हैं. तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. मिट्टी में इज्जत मिला कर आई है जान बचाने.’ विकृत भाव चेहरे पर आच्छादित था. कुछ पल चुप रहे, फिर उन्होंने कहा, ‘तुम्हारे आने पर यह रोएगी ही, इसलिए न आओ तो अच्छा रहेगा.’

घर में उस की उपेक्षा नई बात नहीं थी. आंसूभरी आंखों से मां को देखती हुई उदासी के साथ वह लौट गई. मातापिता ने उसे त्याग दिया. मगर वह त्याग नहीं पाई थी. इस बार 5वीं बार वह सहमीसहमी मां के घर आई थी. इस बार न उसे उपेक्षा की चिंता थी, न पिताजी के क्रोध का भय था. और न आने पर संकोच. मां के दुख के आगे सभी मौन थे.

उसे याद आई. छोटे भाई के प्रति मातापिता का लगाव देख कर वह यही सम झ बैठी थी कि यह घर उस का नहीं. खिलौने आए तो उस भाई के लिए ही. उसे याद नहीं कि उस ने कभी खिलौने से खेला भी था. खीर बनी, तो पहले भाई ने ही खाई. उस के खाने के बाद ही उसे मिली. मां से पूछती, ‘हर बार उसी की सुनी जाती, मेरी बात क्यों नहीं? गलती अगर बाबू करे तो दोषी मैं ही हूं, क्यों?’

लापरवाही के साथ बड़े गर्व से मां कहती, ‘उस की बराबरी करोगी? वह बेटा है. मरने पर पिंडदान करेगा.’ मां के इस दुर्भाव को वह नहीं भूली. पति के घर में हर सुख होने के बाद भी वह अतीत से निकल नहीं पाई. बारबार उसे चुभन का एहसास होता रहा. लेकिन अब? मां की विवशता, लाचारी और कष्ट के सामने उस का अपना दुख तुच्छ था.

कुछ पल वह मां के पास बैठी रही. फिर बोली, ‘‘बाबू कहां है?’’ बचपन से ही, वह भाई को बाबू बोलती आई थी. यही उसे सिखाया गया था.

‘‘होगा अपने कमरे में,’’ विरक्तभाव से मां ने कहा.

भाग्यश्री कमरे में जा कर बाबू के पास बैठ गई. पत्थर पर फूल की क्यारी लगाने की लालसा में उसे कुछ पल अपलक देखती रही. फिर साहस समेट कर बोली, ‘‘आज तक इस घर ने मु झे कुछ नहीं दिया है. बहनबेटी को देना बड़ा पुण्य का काम होता है.’’

बाबू आश्चर्य से उसे देखने लगा, क्योंकि किसी से कुछ मांगना उस का स्वभाव नहीं था.

‘‘क्या कहती हो दीदी? क्या दूं,’’ बाबू ने पूछा.

‘‘मन का चैन,’’ याचक बन कर उस ने कहा.

बाबू चुप रहा. बाबू के चेहरे का भाव पढ़ कर उस ने आगे कहा, ‘‘देखो बाबू, हम दोनों यहीं पलेबढ़े. लेकिन, तुम्हें याद है? मांपिताजी का सारा ध्यान तुम्हीं पर रहता था. तुम्हीं उन के लिए सबकुछ हो. उन के विश्वास का मान रख लो. मु झे मेरे मन का चैन मिल जाएगा.’’ बोलतेबोलते उस का गला भर आया. कुछ रुक कर फिर बोली, ‘‘याद है न? मां तुम्हें छिप कर पैसा देती थीं जलेबियां खाने के लिए. मैं मांगती, तो कहतीं ‘इस की बराबरी करोगी? यह बेटा है, आजीवन मु झे देखेगा.’  और मैं चुप हो जाती. मां के इस प्रेम का मान रख लो बाबू. पहले उस के दुर्भाव पर दुख होता था और अब उस की विवशता पर. दुख मेरे समय में ही रहा.’’

‘‘तुम क्या कह रही हो, मैं सम झ नहीं पा रहा हूं,’’ कुछ खी झ कर बाबू ने कहा, ‘‘क्या कमी करता हूं? दवा, उचित खानापीना, सभी तो हो रहा है. क्या कमी है?’’

‘‘आत्मीयता की कमी है,’’ भाग्यश्री का संक्षिप्त उत्तर था. ‘चोर बोले जोर से’ यह लोकोक्ति प्रसिद्ध है. खी झ कर बाबू बोला, ‘‘हांहां, मैं गलत हूं. मगर तुम ने कौन सी आत्मीयता दिखाई? आज भी कोई पूछता है कि भाग्यश्री कैसी है, तो लगता है कि व्यंग्य से पूछ रहा है.’’

बाबू की यह बात उसे चुभ गई. आंखें नम हो गईं. मगर धीरे से कहने लगी, ‘‘हां, मैं ने गलत काम किया है. तुम लोगों के सताने पर भी मैं ने आत्माहत्या नहीं की, बल्कि जिंदगी को तलाशा है, यही गलती हुई है न?’’

बाबू चुप रहा.

‘‘देखो बाबू,’’ भरे हुए कंठ से उस ने कहा, ‘‘बहस नहीं करो. मैं इतना ही जानती हूं कि मांपिताजी, मांपिताजी होते हैं. मैं ने इतना अन्याय सह कर भी मन मैला न किया. फिर तुम्हें क्या शिकायत है कि इन के दुखसुख में हाल भी न पूछो? दवा से ज्यादा सद्भाव का असर होता है.’’

‘‘कौन कहता है?’’ बात का रुख बदलते हुए बाबू ने कहा, ‘‘कौन शिकायत करता है? क्या नहीं करता? तुम्हें पता है सारी बातें? कौन सा ऐसा दिन है, जब पिताजी मु झे नहीं कोसते? एक सरकारी नौकरी न मिली कि नालायक, निकम्मा विशेषणों से अलंकृत करते रहते हैं. बीती बातों को उखाड़उखाड़ कर घर में कुहराम मचाए रहते हैं. घर की शांति भंग हो गई है.’’ वह अपने आंसू पोंछने लगा.

बात जब पिताजी पर आई, तो कमरे में आ कर चीखते हुए भाग्यश्री को बोलने लगे, ‘‘हमारे घर के मामले में तुम कौन हो बोलने वाली? कौन तुम्हें यहां की बातें बताता है? यह मेरा बेटा है, मैं इसे कुछ बोलूं तो तुम्हें क्या? यह हमें लात मारे, तुम्हें क्या मतलब?’’

बात कहां से कहां पहुंच गई. भाग्यश्री को भी क्रोध आ गया. वह कुछ बोली नहीं, बस, आक्रोश से अपने पिताजी को देखती रही. पिताजी का चीखना जारी था, ‘‘तुम अपने घर में खुश रहो. हमारे घर के मामले में तुम्हें बोलने का अधिकार नहीं है.’’

‘हमारा घर?

‘पिताजी का घर?

‘बाबू का घर? मेरा नहीं? हां, पहले भी तो नहीं था. और अब? शादी के बाद?’ भाग्यश्री मन में सोच रही थी.

पिताजी को बोलते देख, मां ने आवाज लगाई. भाग्यश्री मां के पास चली गई. मां ने रोते हुए कहा, ‘‘समय तो किसी का कोई बदल नहीं सकता न बेटा? मेरे समय में ही दुख लिखा है, इसलिए तो बापबेटे की मत मारी गई. आपस में भिड़ कर एकदूसरे का सिर फोड़ते रहते हैं. तुम बेकार मेरी चिंता करती हो. तुम्हें यहां कोई नहीं सराहता, फिर क्यों आती हो.’’ यह कहती हुई वह फूटफूट कर रो पड़ी.

पिताजी के प्रति उत्पन्न आक्रोश ममता में घुल गया. कुछ देर तक भाग्यश्री सिर नीचे किए बैठी रही. आंखों से आंसू बहते रहे. अचानक उठी और बाबू से बोली, ‘‘मां, मेरी भी है. इस की हालत में सुधार यदि नहीं हुआ, तो बलपूर्वक मैं अपने साथ ले जाऊंगी,’’ कहती हुई वह चली गई.

महल्ले में ही उस का मुंहबोला एक भाई था, कुंदन. वह बाबू का दोस्त भी था. उदास हो कर लौटती भाग्यश्री को देख कर वह उस के पीछे दौड़ा, ‘‘दीदी, ओ दीदी.’’

भाग्यश्री ने पीछे मुड़ कर देखा. बनावटी मुसकान अधरों पर बिखेर कर हालचाल पूछने लगी. उसे मालूम हुआ कि फिजियोथेरैपी द्वारा वह इलाज करने लगा है. उस की उदास आंखें चमक उठीं. याचनाभरी आवाज में कहा, ‘‘भाई, मेरी मां को भी देख लो.’’

‘‘चाचीजी को? हां, स्थिति ठीक नहीं है, यह सुना, लेकिन किसी ने मु झ से कहा ही नहीं,’’ कुंदन ने कहा.

‘‘मैं कह रही हूं न,’’ व्यग्र होते हुए भाग्यश्री ने कहा.

दो पल दोनों चुप रहे. कुछ सोच कर भाग्यश्री ने फिर कहा, ‘‘लेकिन भाई, यह बताना नहीं कि मैं ने तुम्हें भेजा है. नहीं तो मां का इलाज करवाने नहीं देंगे सब.’’

‘‘लेकिन, लेकिन क्या कहूंगा?’’

‘‘यही कि, बाबू के मित्र हो, इसलिए इंसानियतवश. और हां,’’ भाग्यश्री ने अपने बटुए में से एक हजार रुपया निकाल कर देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरा पता लिख लो, मेरे घर आ कर ही अपना मेहनताना ले लेना.’’

कुंदन उसे देखता रहा. भाग्यश्री की आंखों में कृतज्ञता छाई थी, बोली, ‘‘भाई, तुम्हारा एहसान मैं याद रखूंगी. बस, मेरी मां को ठीक कर दो.’’

कुंदन सिर हिला कर कह रहा था, ‘‘ठीक है.’’

दो माह बाद वह फिर से मायके आई. हालांकि कुंदन से उसे मालूम हो गया था कि मां की स्थिति में बहुत सुधार है, फिर भी वह देखना चाहती थी. भाग्यश्री के मन में एक अज्ञात भय था. जैसे कोई किसी दूसरे के घर में प्रवेश कर रहा हो वह भी चोरीचोरी. जैसेजैसे घर निकट आ रहा था, उस के कदम की गति धीमी होती जा रही थी और हृदय की धड़कन बढ़ती जा रही थी.

वहां पहुंच कर उस ने बरामदे में  झांका. मां, पिताजी और बाबू तीनों बैठ कर चाय पी रहे थे. सभी प्रसन्न थे. आपस में बातें करते हुए हंस रहे थे. भाग्यश्री ने शायद ही कभी ऐसा दृश्य देखा होगा. भाग्यश्री वहीं ठहर गई. उस ने अपने भाई से ‘मन का चैन’ मांगा था, भाई ने उसे दे दिया. मायके से प्राप्त उपेक्षा, तो उस का दुख था ही, लेकिन यह ‘मन का चैन’ उस का सुख था.

‘ठीक ही है,’ उस ने सोचा, मैं तो इस घर के लिए कभी थी ही नहीं. फिर अपना स्थान क्यों ढूढ़ूं? आज मन का चैन मिला, इस से बड़ा मायके का उपहार क्या होगा. मन का चैन ले कर वह वहीं से लौट आई, बिन बुलाए कभी न जाने के लिए.

बाहर निकल कर नम आंखों से अपने मायके का घर देख रही थी. अनायास उस के अधरों पर वेदना के साथ एक मुसकान दौड़ आई. उंगली से इशारा करती हुई, भरे हुए कंठ से वह बुदबुदाई, ‘मुझे पता है पिताजी, एक दिन आप मु झे बुलाएंगे जरूर. मन का चैन पा कर वह प्रसन्न थी, किंतु मायके के विद्रोह से उस का अंतर्मन बिलख रहा था. उस ने मन से पूछा, ‘लेकिन कहां बुलाएंगे?’ मन ने उत्तर भी दे दिया, ‘जल्द ही बुलाएंगे.’

अपनी आंखों को पोंछती हुई वह एकाएक मुड़ी और अपने घर की ओर चल दी. मन में विश्वास था कि एक दिन बुलावा आएगा, हां, बुलावा आएगा जरूर.

Mother’s Day 2024: बंद लिफाफा – आखिर निर्णायक ने लिफाफे में क्या लिखा था

केशव को दिल्ली गए 2 दिन हो गए थे और लौटने में 4-5 दिन और लगने की संभावना थी. ये चंद दिन काटने भी रजनी के लिए बहुत मुश्किल हो रहे थे. केशव के बिना रहने का उस का यह पहला अवसर था. बिस्तर पर पड़ेपड़े आखिर कोई करवटें भी कब तक बदलता रहेगा. खीज कर उसे उठना पड़ा था. रजनी ने घड़ी में समय देखा, 9 बज गए थे और सारा घर बिखरा पड़ा था. केशव को इस तरह के बिखराव से बहुत चिढ़ थी. अगर वह होता तो रजनी को डांटने के बजाय खुद ही सामान सलीके से रखना शुरू कर देता और उसे काम में लगे देख कर रजनी सारा आलस्य भूल कर उठती और स्वयं भी काम में लग जाती. केशव की याद आते ही रजनी के गालों पर लालिमा छा गई. उस ने उठ कर घर को संवारना शुरू कर दिया.

बिस्तर की चादर उठाई ही थी कि एक बंद लिफाफे पर रजनी की नजर टिक गई. हाथ में उठा कर उसे कुछ क्षणों तक देखती रही. मां की चिट्ठी थी और पिछले 10 दिन से इसी तरह तकिए के नीचे दबी पड़ी थी. केशव ने तो कई बार कहा था, ‘‘खोल कर पढ़ लो, आखिर मां की ही तो चिट्ठी है.’’ पर रजनी का मन ही नहीं हुआ. वह समझती थी कि पत्र पढ़ कर उसे मानसिक तनाव ही होगा. फिर से उस लिफाफे को तकिए के नीचे दबाती हुई वह बिस्तर पर लेट गई और अतीत में विचरण करने लगी:

मां का नाराज होना स्वाभाविक था, परंतु इस में भी कोई शक नहीं कि वे रजनी को बहुत प्यार करती थीं. मां कहा करतीं, ‘मेरी रजनी तो परी है,’ अपनी खूबसूरत बेटी पर उन्हें बड़ा नाज था. पासपड़ोस और रिश्तेदारों में हर तरफ रजनी की सुंदरता के चर्चे थे. सिर्फ सुंदर ही नहीं, वह गुणवती भी थी. मां ने उसे सिलाईकढ़ाई, चित्रकला और नृत्य की भी शिक्षा दिलाई थी. रजनी के लिए तब से रिश्ते आने लगे थे जब वह बालिग भी नहीं हुई थी. पिताजी सिर्फ रजनी की पढ़ाई की ही चिंता करते, पर मां का तो सारा ध्यान लड़के की तलाश में लगा था.

यह तो अच्छा था कि उस के लिए जो भी रिश्ते आए, उन में से कोई भी लड़का मां को पसंद नहीं आया था. आसपड़ोस और रिश्तेदारों के सामने रजनी की सुंदरता का बखान करते हुए मां कहतीं, ‘कुंआरी बेटी छाती पर बोझ होती है और वह अगर सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी हो तो बोझ दोगुना हो जाता है. रजनी के लिए योग्य वर ढूंढ़ना बड़ा कठिन काम है. हम अकेले क्या कर लेंगे? आप भी ध्यान रखिएगा.’

बारबार मां के यही कहते रहने से उन की मुंहबोली बहन सुलभा अपने रिश्ते के एक लड़के का प्रस्ताव रजनी के लिए लाई लेकिन लड़के का फोटो देखते ही मां सुलभा पर बरस पड़ीं, ‘अरी सुलभा, तेरी आंखों को क्या हो गया है जो मेरी बेटी के लिए काना दूल्हा ढूंढ़ कर लाई है.’ ‘काना? यह तू क्या कह रही है, कमला. लड़के की एक आंख दूसरी से थोड़ी छोटी है तो क्या वह काना हो गया,’ सुलभा मौसी भी चिढ़ गईं.

‘और नहीं तो क्या…एक छोटी, दूसरी बड़ी, काना नहीं तो और क्या कहूं?’ मां हाथ नचाती बोलीं, ‘मेरी बेटी में कोई खोट नहीं, फिर मैं क्यों ब्याहने लगी इस से…’ मां का क्रोध दोगुना हो गया था. उस दिन मां ने सुलभा मौसी से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ दिया. इस घटना के बाद मां रिश्तेदारों में इस बात को ले कर मशहूर होती गईं कि उन्हें अपनी बेटी की सुंदरता पर बड़ा घमंड है, इसीलिए बेटी के लिए जो भी रिश्ता आता है, बस लड़के के दोष ही ढूंढ़ कर निकालती रहती हैं. मां का तनाव बढ़ रहा था पर रजनी और पिताजी मां की पीड़ा से अनभिज्ञ थे. रजनी जल्दी से जल्दी एम.ए. कर लेना चाहती थी. उसे स्वयं भी इस बात का डर था कि अगर मां को कोई अच्छा लड़का मिल जाएगा तो उस की पढ़ाई पूरी न हो पाएगी.

आखिर रजनी की एम.ए. की पढ़ाई भी हो गई पर मां अपनी तलाश में असफल ही रहीं. रजनी नौकरी करना चाहती थी तो पिताजी ने चुपके से उसे इजाजत भी दे दी. उस ने आवेदनपत्र भेजने शुरू कर दिए. इस बीच उस के लिए रिश्ते भी आते रहे. अब तो उस की सुंदरता के साथसाथ पढ़ाई को भी ध्यान में रखा जाने लगा, जिस से मां की परेशानी और बढ़ गई.

जब रजनी के लिए कानपुर के एक कालेज से व्याख्याता पद के लिए नियुक्तिपत्र आया तो मां और पिताजी के बीच जम कर झगड़ा हुआ और अंत में मां का निर्णयात्मक स्वर उभरा, ‘रजनी नहीं जाएगी.’ ‘क्यों नहीं?’ मां के निर्णय का खंडन करते हुए पिताजी का प्रश्न सुनाई दिया.

‘बेकार सवाल मत कीजिए. मैं अपनी खूबसूरत और जवान बेटी को अकेली दूसरे शहर जा कर नौकरी करने की इजाजत नहीं दे सकती और अगर इसे नौकरी करनी ही है तो यहीं शहर में करे.’ ‘कमला, समझने की कोशिश करो. रजनी अब छोटी बच्ची नहीं रही…और फिर अच्छी नौकरी बारबार नहीं मिलती. तुम यह न समझना कि मैं उस का पक्ष ले रहा हूं. वह अपना फैसला खुद कर चुकी है और हमें उस के निर्णय में दखलंदाजी का हक नहीं है,’ पिताजी ने मां को समझाते हुए कहा.

‘क्यों नहीं है हक? क्या हम उस के कोई…’ अब मां का स्वर भीग गया था. रजनी का दिल भर आया. मां उस की दुश्मन नहीं थीं पर रजनी भी हाथ आया मौका खोना नहीं चाहती थी. धीरे से उस ने मां के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘मां, मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं. मुझे मत रोको.’

रजनी के हाथों को अपने कंधों से झटकते हुए मां पिताजी पर ही बरस पड़ीं, ‘देख लीजिएगा, आप की लाड़ली हमारी नाक कटवा कर ही मानेगी. दूसरे शहर में कोई रोकटोक न रहेगी. अपनी मनमानी करती फिरेगी. घर की इज्जत मिट्टी में मिल गई तो सिर पीटने से कोई फायदा नहीं होगा.’ मां अनापशनाप कहे जा रही थीं और पिताजी सिर थामे सोफे पर चुप बैठे थे. रजनी उन्हें अकेला छोड़ कर कमरे से निकल गई थी.

मां की लाख कोशिशों के बावजूद पिताजी ने एक बार भी रजनी को जाने से मना नहीं किया. नए शहर, नए माहौल और एक नई व्यस्तता भरी जिंदगी में वह अपनेआप को ढालने का प्रयास करने लगी. देखने में रजनी स्वयं एक छात्रा सी लगती थी. अपने से ऊंचे कद के लड़कों को पढ़ाते समय प्राय: वह घबरा सी जाती थी. लड़के उस के इसी शांत और डरेडरे से स्वभाव का फायदा उठा कर उसे छेड़ बैठते और तब बेबस रजनी का मन होता कि नौकरी ही छोड़ दे. कभीकभी तो वह अपनेआप को बेहद अकेली महसूस करती. कालेज के अन्य प्राध्यापकों से वह वैसे भी घुलमिल नहीं पा रही थी. बस, अपने काम से ही मतलब रखती थी. एक दिन कुछ शरारती छात्रों ने कालेज से लौट रही रजनी को रास्ते में रोक लिया. हलकी सी बूंदाबांदी भी हो रही थी और लग रहा था कि कुछ ही मिनटों में जोरों की बारिश शुरू हो जाएगी. ऐसे में अपनेआप को इन लड़कों से घिरा पा कर उसे कंपकंपी छूटने लगी.

‘मैडम, आज आप ने जो कुछ पढ़ाया, वह हमारी समझ में नहीं आया. कृपया जरा समझा दीजिए,’ एक छात्र ने उस के समीप आ कर कहा. ‘क्यों, कक्षा में क्या करते रहते हैं आप लोग?’ चेहरे पर क्रोध भरा तनाव लाने का असफल प्रयास करते हुए रजनी ने पूछा.

‘दरअसल मैडम, हम कोशिश तो करते हैं कि पढ़ाई में ध्यान दें, पर आप हैं ही इतनी सुंदर कि पढ़ाई भूल कर बस आप को ही देखे चले जाते हैं…’ दूसरे छात्र ने कहा और जैसे ही उस ने अपना हाथ रजनी के चेहरे की ओर बढ़ाया, एक मजबूत हाथ ने उसे रोक लिया. प्रोफेसर केशव को पास पा कर रजनी को तसल्ली हुई. ‘कल सवेरे आप सब प्रिंसिपल साहब के कक्ष में मुझ से मिलिएगा. अब फूटिए यहां से…’ प्रोफेसर केशव के धीमे किंतु आदेशात्मक स्वर से सभी छात्र वहां से खिसक गए. रजनी चुपचाप केशव के साथ चल पड़ी. वैसे रजनी कई बार उन से मिल चुकी थी, पर ज्यादा बातचीत कभी नहीं हुई थी.

‘कहां रहती हैं आप?’ केशव ने चलतेचलते पूछा. ‘होस्टल में,’ रजनी ने धीमे से कहा.

‘पहले कहां थीं?’ ‘जयपुर में.’

 

फिर दोनों के बीच एक गहरी चुप्पी छा गई. वे चुपचाप चल रहे थे कि केशव ने कहा, ‘आप में अभी तक आत्म- विश्वास नहीं आया है. आप पढ़ाते समय इतना ज्यादा घबराती हैं कि छात्रछात्राओं पर गहरा प्रभाव नहीं छोड़ पातीं.’ ‘जी, मैं जानती हूं, पर यह मेरा पहला अवसर है.’

‘कोई बात नहीं,’ प्रोफेसर केशव मुसकरा दिए थे, ‘पर अब यह कोशिश कीजिएगा कि आत्मविश्वास हमेशा बना रहे. वैसे उन छात्रों से मैं निबट लूंगा. अब वे आप को कभी परेशान नहीं करेंगे.’ रजनी ने एक बार सिर उठा कर उन्हें देखा था. आकर्षक व्यक्तित्व वाले केशव के सांवले चेहरे का सब से बड़ा आकर्षण था उन की लंबी नाक. रजनी प्रभावित हुए बिना न रह सकी.

उस रात रजनी ढंग से सो भी न सकी. लड़कों की शरारत और केशव की शराफत का खयाल दिमाग में ऐसे कुलबुलाता रहा कि वह रात भर करवटें ही बदलती रही. उसे लगा कि वह केशव की मदद को आजीवन भूल न सकेगी.

दूसरे दिन रजनी केशव से मिली तो केशव के चेहरे पर उस घटना की याद का जैसे कोई चिह्न ही नहीं था. रजनी के नमस्कार का जवाब दे कर वे आगे बढ़ गए थे. धीरेधीरे रजनी का केशव के प्रति आकर्षण बढ़ता चला गया. केशव ने कभी भी यह जताने की कोशिश नहीं की थी कि रजनी की मदद कर के उन्होंने कोई एहसान किया हो. रजनी जब भी केशव को देखती, अपलक उन्हें देखती रह जाती. उसे इस प्रकार अपनी ओर देखते हुए पा कर केशव धीरे से मुसकरा देते और यही मुसकराहट एक तीर सी रजनी के हृदय को भेद जाती. धीरेधीरे रजनी का यह आकर्षण प्रेम बन कर फूटने लगा तो उस ने निर्णय लिया कि वह केशव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखेगी.

एक दिन रजनी ने प्रोफेसर केशव को दोपहर के खाने का आमंत्रण दे दिया. होटल में रजनी केशव के सामने यही सोच कर झेंपी सी बैठी रही कि वह इस बात को कहेगी कैसे. सोचतेसोचते वह परेशान सी हो गई.

‘क्या बात है, रजनी?’ केशव ने बातचीत में पहल की, ‘तुम खामोश क्यों हो?’ रजनी चुप रही.

‘कुछ कहना चाहती हो?’ ‘हां…’

‘क्या बात है? क्या फिर किसी ने परेशान किया?’ केशव ने शरारत और आत्मीयता से भरा प्रश्न किया तो रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे. प्रेम की विवशता और शर्म की खाई के बीच सिर्फ आंसुओं का ही सहारा था, जो शायद उस के प्रेम की गहराई को स्पष्ट कर पाते. वह धीरे से बोली, ‘मैं आप से प्रेम करती हूं और शादी भी करना चाहती हूं.’ ‘शादीब्याह में इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं,’ केशव ने कहा तो सुन कर रजनी चौंक गई. क्या केशव उस के प्यार को ठुकरा रहा है?

‘तुम मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानतीं,’ केशव ने आगे कहा, ‘पहले जान लो, फिर निर्णय लेना. ‘शादी के बाद शायद मैं तुम पर बोझ बन जाऊं,’ कहते हुए केशव ने अपनी पैंट को घुटने तक खींच लिया. उस का घुटने से नीचे नकली पैर लगा था.

देखते ही रजनी की चीख निकल गई. वह धीरे से बोली, ‘यह कैसे हुआ?’ ‘सड़क दुर्घटना से…’

रजनी की आंखों से अश्रुधारा बह चली थी. उस के निर्णय में एकाएक परिवर्तन आया. पल भर में ही उस ने सोच लिया कि वह शादी के बाद ही मां और पिताजी को सूचना देगी. वह जानती थी कि मां एक अपाहिज को अपने दामाद के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं कर पाएंगी. एक सादे से समारोह में रजनी ने केशव से विवाह कर लिया. मां को पत्र लिखने के कुछ ही दिन बाद उन का जवाब आ गया. पर रजनी लिफाफा खोल न सकी. वह सोचने लगी कि मां का दिल अवश्य ही टूटा होगा और पत्र भी उन्होंने उसे कोसते हुए ही लिखा होगा. रजनी को हमेशा पिताजी का खयाल आता था. मां इस घटना के लिए पिताजी को ही जिम्मेदार ठहराती होंगी. पिताजी को भी शायद अब पछतावा ही होता होगा कि रजनी को यहां क्यों भेजा.

अभी वह यह सब सोच ही रही थी कि नौकरानी की आवाज सुनाई दी तो वह अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई. ‘‘मालकिन, आप की माताजी आई हैं.’’

‘‘मां?’’ रजनी चौंक गई, ‘‘कब आईं?’’ ‘‘अभी कुछ देर पहले. नहा रही हैं.’’

रजनी के मन में कई तरह के विचार आने लगे. मां के आने से उस का मन शंकित हो उठा. न जाने वे क्या सोच कर आई हैं और केशव के साथ कैसा व्यवहार करेंगी? अचानक उसे लिफाफे का खयाल आया. दौड़ते हुए गई और तकिए के नीचे दबे लिफाफे को खोल कर पढ़ने लगी :

‘बेटी रजनी, नहीं जानती कि अगर तू ने शादी के पहले मुझे यह बताया होता कि केशव अपाहिज है तो मैं क्या निर्णय लेती, पर बाद में पता चला तो थोड़ी सी पीड़ा सिर्फ यह सोच कर हुई कि अपने हाथों से तुझे दुलहन न बना सकी.

धीरेधीरे मैं यह महसूस करने लगी हूं कि तू ने गलत निर्णय नहीं लिया है बल्कि अपने इस निर्णय से यह साबित कर दिया है कि तू अपनी मां की तरह शारीरिक सुंदरता को महत्त्व देने वाली नहीं, वरन हृदय की सुंदरता को पहचानने वाली पारखी है. तेरे निर्णय पर मुझे नाज है. मैं तुझ से मिलने आ रही हूं. तुम्हारी मां.’

रजनी को लगा कि मारे खुशी के वह पागल हो जाएगी. उसी तरह लिफाफे को तकिए के नीचे रख कर वह जोर से स्नानघर का दरवाजा पीटने लगी, ‘‘जल्दी आओ न मां, तुम्हें देखने को आंखें तरस गई हैं.’’ ‘‘इतनी बड़ी हो गई है, पर अभी बचपना नहीं गया,’’ मां का बुदबुदाता सा स्वर सुनाई दिया.

रजनी को लगा कि मां जल्दीजल्दी से शरीर पर पानी डालने लगी हैं.

नथ: क्या हो पाई मुन्नी की शादी

उस दिन बैंक से नोटिस आया कि बैंक की शाखा का स्थानांतरण हो रहा है. जिन ग्राहकों के लौकर हैं वे उसे खाली कर दें. सो पतिदेव लौकर से सारा सामान उठा कर घर ले आए. जैसे वेतनयाफ्ता, पेंशनप्राप्ता 60-70 वर्षीय बूढ़े के लौकर में कुछ फिक्स डिपौजिट के कागज तथा 2 बेटियों के विवाह उपरांत कुछ बचेखुचे गहनों के नाम पर टूटे कंगन, कान का एक बुंदा या फिर चांदी के सिक्के, इतना ही पड़ा था. उन दिनों, टिन के बने टौफी के डब्बे आया करते थे और वे बड़े उपयोगी सिद्ध होते थे, हमारे पिताजी तथा जेठ आदि सब की शेविंग का सामान उन्हीं डब्बों में सदियों रखा जाता रहा है, आज भी जंग लगे उन डब्बों से बिछुड़ना उन्हें पीड़ा पहुंचा जाता है, और उन्हीं डब्बों में सुरक्षित रखे जाते थे गहनेजेवर. वैसा ही डब्बा, जिस में सफेद रुई, जो अब पीली पड़ गई थी और लाल पतंगी कागज (फटा हुआ), ‘गुदड़ी में लाल’ मुहावरे को चरितार्थ करता हुआ, घर लाया गया तो हम ने अपनी जायदाद के मनोहारी दर्शन किए. एक गले की हंसली, जिस में सोना कम पीतल ज्यादा थी, सुनार ने बेईमानी की थी, कान के 2 झुमके अलगअलग भांति के, एकआध चूड़ी, दोचार अजीबोगरीब दिखने वाली अंगूठियां और अचानक दिखी 9 नगीनों जडि़त नाक की समूची नथ.

‘‘अरे, यह तो वही नथ है जोे रश्मि भाभी ने मेरी शादी पर पहनी थी,’’ अपनी हथेली पर उस को बड़े दुलार से लिटाया, उस का सौंदर्य निहारा. अनुपम रूपमति नथ. उस डब्बे की एकमात्र शोभा. अचानक यादों की बरात हमारी अपनी बरात के साथ, बैंडबाजे के साथ, मानस पर उमड़ पड़ी. याद आया वह दिन जब हमें दुलहन बनाया जा रहा था, नातेरिश्तेदारों से घर भरा था. दादीजी तो रही नहीं थीं, सो घर की सब से बड़ी या यों कहिए चौधराहट छांटने वाली बड़ी ताईजी, पुरखों के गांव से स्पैशली बुलाई गई थीं क्योंकि उन की सब से छोटी देवरानी यानी कि हमारी अम्मा को तो शादीब्याह करने की अक्ल नहीं थी. 7 बच्चों को जन्म देने वाली, उन्हें उच्चतम शिक्षा से पारंगत करने की क्षमता तो अम्मा कर सकती थीं किंतु शादीब्याह में ऊंचनीच का उन्हें क्या ज्ञान धरा था भला? रस्मों की भरमार, दिनभर में पच्चीसों रस्में, उन रस्मों में तो जैसे ताईजी ने पीएचडी कर रखी थी और मजाल कि उन की बात कोई टाल दे. अच्छेभले शिक्षित पिताजी, जो भौतिक शास्त्र के प्रोफैसर थे, न कोई देवीदेवता को मानते थे न किसी प्रपंच में पड़ते थे किंतु उस समय बेटी के ब्याह पर जैसा ताईजी ने कहा उन्होंने भी वैसा ही किया, शायद शिष्टतावश. लेकिन 21 वर्षीय, अंगरेजी में एमए पास मौडर्न कन्या को ताईजी की कोई बात फूटी आंख नहीं सुहाती थी.

गौर पूजा के समय ताईजी ने हुक्म दिया, ‘सिर धो कर नहाओ और सीधा बिना किसी को छुए, आंगन में बनी वेदी के पटरे पर बैठ जाओ.’ कन्या यानी मैं ने विद्रोह किया, शोर मचाया, ‘कल ही सिर धोया था.’  परंतु ताईजी ने एक नहीं सुनी, अम्मा सिर पर पल्ला रखे मुझे घूर रही थीं, मानो कह रही हों – मेरी इज्जत का फालूदा मत बना. झक मार कर मुझे दोबारा सिर धोना पड़ा और सफेद तौलिया बालों में लपेट कर आज्ञाकारी पुत्री का सा रोल अदा करने आंगन में बिछे पटरे पर बैठने का उपक्रम करने लगी. अभी आधी ही बैठी थी कि ताईजी ने झपट कर मेरे सिर पर बंधा तौलिया खींच कर खोल दिया, ‘अरे, घोर अपशुगन, सिर पर सफेद कपड़ा बांध कर क्यों बैठ गई?’ काटो तो खून नहीं, क्रोध से भुनभुनाती हुई कन्या वेदी से उठ खड़ी हुई,  ‘नहीं करनी मुझे ऐसी शादी, यह भी कोई तरीका है, कोई मैनर्स नहीं है? एक हजार टोनेटोटके लगा रखे हैं, तंग कर दिया.’

रिश्तेदारों में फुसफुसाहट शुरू हो गई, ‘हाय कैसी बेहया लड़की है,’  चाची, बूआ, पड़ोसिनों में यह ‘बे्रकिंग न्यूज’ की भांति करंट सी दौड़ गई. बड़ी मुश्किल से मौसी ने समझाबुझा कर गौरी पूजा की रस्म करवाई, सिर के गीले बालों पर गुलाबी दुपट्टा डाल कर. ऐसा लग रहा था जैसे सफेद तौलिया बांधने मात्र से मैं विधवा हो जाऊंगी. रीतिरिवाज, विवाहित जीवन में मंगल लाने वाली ‘इंश्योरैंस कंपनियों’ जैसी हैं कि प्रीमियम नहीं भरा तो विवाह टूट जाएगा. 33 करोड़ देवीदेवताओं को मनाना क्या इतना सरल होता है? कभी चंद्रमा को प्रसन्न किया जाता, कभी पुरखों को, कभी दीवार पर थापे, कभी गेहूं, हल्दी, चावल की शामत आती, शुभअशुभ नेग. पता नहीं कौन सी किताबों में ये सब लिखा था. और ताईजी को इतना याद कैसे रहता था? गांव से ताईजी बड़ेबडे पतीले, कड़ाही, ढेरों बरतनों के साथ रिकशा पर लद कर आई थीं.

मिसरानीजी, जिन का काम रसोई में चूल्हा मैनेज करना था और दूसरा उन का परमप्रिय काम था जब कोई शगुन का समय आया वे बेसुरी ढोलक बजाने बैठ जातीं. वे अपनी सफेद किनारी वाली धोती का पल्ला मुंह में दबा कर इतना बेसुरा गातीं कि उपस्थित श्रोता हंसी नहीं दबा पाते  मिसरानीजी से मजा लेने के लिए लड़केलड़कियां मनोरंजन करने की खातिर उन से फरमाइश करते. ‘मिसरानीजी, वह वाला गीत गाना.’ ले दे कर उन्हें एक ही तो ‘बन्नी’ आती थी और वे बड़ी खुश हो कर राग अलापने लगतीं. ‘पटरे पे बैठी लाड़ो भजन करे…’ और सब का हंसहंस कर बुरा हाल हो जाता. आखिर ‘लाड़ो’ अपनी शादी पर भजन क्यों कर रही होगी? कोई सोचे क्या संन्यास लेने जा रही थी? आखिर बरात आने का समय हुआ. दुलहन का इंस्पैक्शन करने ताईजी तथा पूरा प्रपंची स्त्री समाज नख से शिख तक बारीकी से जांच करने कमरे में आया. बड़े यत्न से मेरी प्रिय सखी ने मेरा शृंगार किया था. उस ने कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी थी किंतु उसे क्या पता कि कमी किस कोने से टपक पड़ेगी.

देखते ही ताईजी गरजीं, ‘नथ कहां है? नाक सूनी क्यों है? मामा के यहां से नथ आनी चाहिए थी?’ अब तो मानो कोहराम मच गया, एक बार फिर खुसुरफुसुर होने लगी, ‘हाय, नथ नहीं आई भात में?’ अम्मा के पीहर वालों को नीचा दिखाने का इस से बढि़या मौका और क्या हो सकता था. बेचारी अम्मा का चेहरा फक पड़ गया. अपनी सास को संकट में देख कर, रश्मि भाभी भाग कर अपनी नथ ले आईं और दुलहन को यानी मुझे पहना दी. सब ने राहत की सांस ली. उधर बैंडबाजे की आवाज कानों में पड़ते ही सब के सब बरात देखने भाग खड़े हुए. जैसेतैसे ब्याह पूर्ण हुआ और विदाई के गमगीन वातावरण के चलते जिसे देखो वही टसुए बहा रहा था. हमारे यहां लोगों को झूठमूठ का रोना खूब आता है. क्षणभर में रोने लगते हैं, क्षणभर में हंसने. विदा होती कन्या ने भी कुछ आंसू ताईजी के डर के मारे अपने नेत्रों से टपकाए. सोचा, रोना तो पड़ेगा वरना ताईजी कहेंगी, कैसी बेशर्म है. विदाई की तमाम रस्में खत्म हो चुकीं और मेरे पैर घर की दहलीज पार करने ही वाले थे कि एक क्षीण सी आवाज में किसी ने टोका, ‘रश्मि की नाक की नथ तो निकाल लो.’ यह सुनते ही ताईजी एकदम मैदानेजंग में आ खड़ी हुईं और बोलीं, ‘इस नथ में मुन्नी की भांवर पड़ गई है, अब यह इस की नाक से नहीं उतारी जा सकती.’

किस में इतना दमखम था कि हिटलरी ताईजी की अवज्ञा कर सकता. सो, मुन्नी यानी मेरी विदाई उसी नथ में हो गई. आज नथ को देखते ही मुन्नी को पूरी दास्तान-ए-नथ याद हो आई. व्यंग्य करते हुए मैं ने पति से कहा, ‘‘वाह रे ताईजी, वाह, आप का तर्क. इसी नथ में तो रश्मि भाभी के भी फेरे हुए होंगे, तब उसे पहनाने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुई?’’ पति उवाच, ‘‘होती भी क्यों? रश्मि भाभी तो बहू ठहरीं. बहू का जेवर बेटी को पहनाने में उन्हें क्यों और कैसे एतराज होता?’’ मुझे अपने पर क्रोध आया. क्या मैं भी इन दकियानूसी अंधविश्वासों से ग्रसित थी? मैं ने तब क्यों विरोध नहीं किया था और अब तक क्यों नहीं नथ वापस की? ढेरों प्रश्न मुझे विचलित करने लगे. मेरे विवाह को आज 47 वर्ष हो गए हैं, आज उस नथ का खयाल आया? आज मैं चेती हूं? अपने को धिक्कारते हुए मैं ने निश्चय किया कि अगली बार जब भी रश्मि भाभी से मिलूंगी तो उन की नथ उन्हें लौटा दूंगी. कथा का समापन पतिदेव ने यों कह कर किया कि पिछले 47 वर्षों से रश्मि भाभी का और तुम्हारा, ‘सुहाग’ बैंक के घटाटोप छोटे से लौकर में बंद पड़ा रहा.

बोल्ड कंटैंट से हंसाती स्टैंडअप कौमेडियन अदिति मित्तल

स्टेज पर रंगीन बालों वाली एक महिला ब्रा खरीदने के एक्सपीरियंस को बताते हुए कहती है, ‘‘ब्रा खरीदना बिलकुल अलग खेल है जैसे आप वहां जाते हैं और किसी कारण से, किसी अजीब कारण से वहां हमेशा कोई न कोई आदमी होता है, उस का नाम कुछ इस तरह होता है ‘छोटू’ या ‘बीजू’. तो आप पूरी तरह से डर और शर्मिंदगी महसूस कर रहे होते हैं. आप उस से अपनी ब्रा का साइज पूछने जाइए. ‘भाईसाहब (बुदबुदाते हुए) …साइज की ब्रा दे दीजिए.’ तब छोटू कहेगा, ‘मैडम आप 36सी साइज ले लीजिए.’ इस में सब से बुरी बात यह है कि वह हमेशा सही ही होगा.’’

सुनने में यह हास्यास्पद लग रहा है. शायद आप इसे सुन कर, मुंह छिपा कर हंसे भी हों. लेकिन क्या आप ने इस कौमेडी के पीछे छिपे सीरियस पौइंट को नोटिस किया. शायद नहीं, लेकिन अगर आप लड़की हैं तो आप ने जरूर इसे एक्सपीरियंस किया होगा. अब इस के पीछे छिपे मुद्दे को सम?ाते हैं. छोटू ने कैसे जाना कि मैडम को 36सी साइज की ब्रा ही आएगी? वह तो मैडम को नहीं जानता था. फिर कैसे? इस का जवाब है छोटू की नजरें. वही नजरें जो इस सोसाइटी के पुरुषों की हैं जिन से वे महिला के साइज का अपनी आंखों के जरिए पता कर लेते हैं.

सोसाइटी के इन्हीं सीरियस मुद्दों पर अदिति मित्तल अपनी कौमेडी स्किल्स के जरिए सब का ध्यान खींच रही है और वह इस में कामयाब भी रही. पिछले कई सालों पर नजर डालें तो अदिति मित्तल ने अपनी स्टैंडअप कौमेडी के जरिए कई ऐसे मुद्दों को उठाया जो इस सोसाइटी पर सवाल उठाते हैं.

मुद्दों का चुनाव यूनीक

अदिति जो विषय चुनती है, वे दिलचस्प होते हैं. दिलचस्प से भी ज्यादा उन में समाज पर तंज होता है. अदिति का ट्विटर अकाउंट भी इन्हीं मुद्दों को दर्शाता है. उन के हर शो में एक उद्देश्य और मैसेज छिपा होता है. वह अकसर महिलाओं से जुड़ी समस्याओं, फैशन, विकलांगता, जैंडर इनइक्वलिटी जैसे विषयों को अपने शो में शामिल करती है.

कुछ समय पहले अदिति ने ट्विटर पर गोरेपन की क्रीम बनाने वालों पर एक के बाद एक लगातार ट्वीट किए. ये ट्वी्ट इतने तीखे और ह्यूमर से भरे थे कि हजारों लोगों ने न सिर्फ इन्हें पढ़ा बल्कि इन्हें शेयर और रिट्वीट भी किया. अदिति ने चुटीले ट्वीट में प्रिंट, रेडियो और टैलीविजन मीडिया में प्रकाशित व प्रसारित हो रहे विज्ञापनों का खुल कर मजाक उड़ाया.

अदिति ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा- ‘‘मेरी प्रिय फेयरनैस क्रीम, अब शेड कार्ड के साथ भी आ रही है. अजी यह मेरी त्वचा है, नेरोलक पेंट लगाने वाली दीवार नहीं, जो शेड कार्ड के साथ बाजार में उपलब्ध हो.’’

वहीं एक दूसरे ट्वीट में अदिति ने लिखा- ‘‘जल्द ही बाजार में गर्भवती महिलाओं के लिए एक क्रीम आने वाली है. उस क्रीम को गर्भवती महिलाएं अपने पेट पर लगाएंगी तो अपनेआप गोरा बच्चा पैदा होगा.’’ अब आगे से ऐसे विज्ञापन भी आ सकते हैं, ‘‘ङ्गर्ङ्घं बेबी क्रीम का अब मैं और इंतजार नहीं कर सकती. क्या आप का बच्चा काला है, बच्चे का रंग बदलो, उस का फ्यूचर बदलो.’’

अदिति ने लिखा कि- ‘‘अब वक्त आ गया है कि हम अपने सौंदर्य के पैमाने बदलें और श्यामवर्ण को भी पूरा सम्मान दें.’’ ‘यशोमती मैया से बोले नंदलाला, राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला…’ जैसे गानों को भी अदिति ने ओवर इमोशनल बताया.

सोशल मीडिया पर ऐक्टिव

आज अदिति के इंस्टाग्राम पर 99.5 हजार फौलोअर्स, ट्विटर पर तकरीबन 3 लाख 80 हजार, फेसबुक पर भी 3 लाख और यूट्यूब पर ढाई लाख के आसपास सब्सक्राइबर्स हैं. 36 साल की उम्र में अदिति एक सैलिब्रिटी बन गई है.

अदिति के वीडियोज उस के सोशल मीडिया अकाउंट्स और यूट्यूब चैनल पर मौजूद हैं. वह अपने वीडियो में महिलाओं के एक्सपीरियंस, प्रौब्लम्स और सामाजिक मुद्दों पर हास्यास्पद कमैंटरी पेश करती है. इन वीडियोज में वह महिलाओं के साथ होने वाली चुनौतियों और स्थिति पर ध्यान आकर्षित करती है और इसे हंसी के माध्यम से प्रस्तुत करती है. उस ने अपने सैट्स में महिलाओं के एक्सपीरियंस और उन के नजरिए को रखा है, जिस से वह अपने दर्शकों को हंसाती है और सोचने पर मजबूर कर देती है.

अदिति एक सोचनेसम?ाने वाली कौमेडियन है जो समाज को महिलाओं के प्रति अपने नजरिए को बदलने की सीख दे रही है, लेकिन एक नए अंदाज में जो समाज सुनना भी चाहता है.

अदिति ने एक इंटरव्यू में बताया,  ‘‘एक बार, एक महिला ने मु?ो बताया कि मेरा एक शो देखने के बाद उस का पति सीधे अलमारी में गया जहां वह अपने पैड रखती है और उन में से एक को खोल कर उस पर बने डिजाइनों को देखने लगा.‘‘

लेखक और कौर्पोरेट स्टैंडअप कौमेडियन अनुभव पाल उस की तारीफ करते हुए कहते हैं, ‘‘वह आज एक महत्त्वपूर्ण आवाज है. उस की कौमेडी एक युवा, शहरी भारतीय महिला के नजरिए से है. वह कई तरह की चीजों के बारे में बोलती है. उन में मिस इंडिया प्रतियोगियों और दुनिया के बारे में उस के हास्यास्पद दृष्टिकोण से ले कर अंडरवियर के बारे में उस की धारणा तक शामिल है.’’

फ्रैशनैस के साथ सीरियसनैस

अदिति का तरीका इसलिए भी यूनीक है क्योंकि वह समाज को उसी के स्टाइल और भाषा में आईना दिखा रही है. अकसर यह देखा जाता है कि सीधे तरीके से कही बात सुन कर लोग बोर होने लगते हैं और कुछ देर याद रखने के बाद उसे भूल जाते हैं.

अदिति ने यहां लोगों की कमजोरी पकड़ ली और वूमन सैंट्रिक इश्यूज पर कौमेडी का तड़का लगा कर वह लोगों के सामने परोसती है. इस परोसे गए कंटैंट में फ्रैशनैस भी है और सीरियसनैस भी, जिस कारण यंग जनरेशन उस की फैन बनती जा रही है. साथ ही, लोग समाज की कुरीतियों और महिलाओं के प्रति अपने नजरिए को बदलने की ओर ध्यान दे रहे हैं.

अदिति मित्तल ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा रखा है. यूट्यूब पर उस की स्टैंडअप कौमेडी के अनेक वीडियोज वायरल हो रखे हैं. कई लोग उसे लेडी कपिल शर्मा भी कहते हैं. ‘एआईबी नौकआउट’ शो में भी वह देखी गई थी. लेकिन कई लोग उस के शो को फूहड़ मानते हैं. दरअसल वे उस का ह्यूमर नहीं सम?ा पाते. इस के बावजूद देशविदेश के कई चैनलों ने उसे टौप-10 कौमेडियंस में माना है. अदिति अपनी कौमेडी हिंग्लिश और इंग्लिश में करती है.

मल्टीटैलेंटेड कौमेडियन

अदिति सोशल मीडिया में सक्रिय रहने के साथ ही कई न्यूजपेपर और मैग्जींस में कौलम भी लिखती है. उस के कौलम इंडिया के अलावा इंगलैंड के न्यूजपेपर में भी छपते हैं. उसे भारत की प्रमुख स्टैंडअप कौमेडियन माना जाता है. बीबीसी उसे लंदन में बुलवा कर उस का स्पैशल शो कर चुका है. अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका के चैनलों पर भी उस के बारे में कार्यक्रम दिखाए जा चुके हैं.

 

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