Mother’s Day 2024: स्नैक्स में बनाएं स्वादिष्ट पनीर और आम के रोल्स

अगर आप भी बच्चों के लिए कोई नई हेल्दी और टेस्टी रेसिपी की तलाश कर रही हैं तो पनीर आम रोल्स की रेसिपी आप के लिए परफेक्ट है. पनीर आम रोल्स आसानी से बनने वाली रेसिपी है, जो आपको प्रोटीन का अच्छा सोर्स साबित होगा.

हमें चाहिए

– 1 दशहरी आम पका

– 50 ग्राम पनीर

– 1 बड़ा चम्मच बादाम फ्लैक्स

– 2 बड़े चम्मच चीनी पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

– थोड़ी सी स्ट्राबेरी लंबे पतले कटे टुकड़े

– थोड़ा सा बारीक कटा पिस्ता.

बनाने का तरीका

आम को छील कर लंबाई में स्लाइस कर लें. 7 स्लाइस बनेंगे. पनीर को हाथ से मसल कर इस में चीनी पाउडर, इलायची चूर्ण व बादाम के फ्लैक्स मिला दें. प्रत्येक स्लाइस पर थोड़ा सा पनीर वाला मिश्रण रख कर रोल कर दें. पिस्ता व स्ट्राबेरी से सजा कर सर्व करें.

इकलौती संतान की पेरेंट्स ऐसे करें देखभाल

आजकल लोगों की औसत आयु बढ़ गई है. लोग ज्यादा जीने लगे हैं. देश में बुजुर्गों की संख्या 1961 से लगातार बढ़ रही है और 2021 में देश में बुजुर्गों की आबादी 13.8 करोड़ पार हो गई है. 2031 में उन की कुल आबादी 19.38 करोड़ होने का अनुमान है. ‘नैशनल स्टैटिक्स औफिस’ की एक स्टडी में यह बात सामने आई. वैसे तो यह सुकून की बात है. लेकिन इन की आबादी बढ़ने से एक नई समस्या भी खड़ी हो गई है.

दरअसल, आज के समय में अकसर घरों में एक ही संतान होती है. बच्चों की जिम्मेदारी उठाना और उन की पढ़ाई का खर्च इतना महंगा हो गया है कि लोग एक से ज्यादा बच्चे अफोर्ड नहीं कर पाते. यही नहीं कामकाजी महिलाएं और सिंगल परिवार होने की वजह से भी बहुत से लोग एक से ज्यादा बच्चों के बारे में सोच नहीं पाते. ऐसे में समस्या तब आती है जब बच्चे बड़े होते हैं और मांबाप बूढ़े हो जाते हैं.

उम्र के इस दौर में पेरैंट्स को बच्चों के सहारे की जरूरत पढ़ती है. मगर उन की देखभाल करने के लिए घर में कोई नहीं रह जाता क्योंकि अकसर पढ़ाई या नौकरी के लिए लड़के मैट्रो सिटीज में चले जाते हैं या फिर अगर बेटी है तो उसे ससुराल जाना पड़ता है. अगर बेटा उसी शहर में नौकरी करता है या अपना बिजनैस है तो मांबाप के साथ रहता है, वरना दूर चला जाता है. मुसीबत तब आती है जब पेरैंट्स में से एक यानी माता या पिता की मौत हो जाती है. तब दूसरा शख्स घर में बिलकुल अकेला रह जाता है.

बड़ी जिम्मेदारी

जब कोई लड़का या लड़की अपने मां-बाप की इकलौती संतान होती है तो उस पर अपना कैरियर बनाने के साथसाथ पेरैंट्स की देखभाल की भी जिम्मेदारी होती है. उसे कई बार इस वजह से समझौता भी करना पड़ता है क्योंकि उस के अलावा पेरैंट्स का कोई और सहारा नहीं होता. पेरैंट्स अपनी जिंदगी में कमाई हुई सारी दौलत और अपना पूरा प्यार अपने इकलौते बच्चे के नाम करते हैं.

ऐसे में बच्चे का भी दायित्व बनता है कि वह अपने पेरैंट्स के लिए कुछ करे. ज्यादातर बच्चे अपने पेरैंट्स की देखभाल करना भी चाहते हैं, मगर परिस्थितियां अनुकूल नहीं होतीं.

आइए, जानते हैं किस परिस्थिति में आप किस तरह अपने पेरैंट्स की देखभाल कर सकते हैं:

जब बेटी इकलौती संतान है

29 साल की दिव्या अपने मांबाप की इकलौती संतान है. उसे एक बेटा और एक बेटी है. वह एक स्कूल में टीचर है. वैसे उस का पति विशाल उस से बहुत प्यार करता है और उस का खयाल भी रखता है, घर में किसी चीज की कमी नहीं है, मगर दिव्या अपने मम्मीपापा को ले कर परेशान रहती है क्योंकि विशाल अपने ससुराल से ज्यादा संबंध नहीं रखता.

दिव्या के पापा को 2 बार हार्ट अटैक आ चुका है. मां से उन की देखभाल ठीक से नहीं होती. उन की आमदनी का पैंशन के अलावा कोई और साधन नहीं. जो रुपए जमा थे वे बेटी की पढ़ाई और शादी में खर्च हो गए. ऐसे में आर्थिक समस्याएं भी पैदा हो जाती थीं. कभीकभार दिव्या उन को पैसे दे देती तो विशाल को अच्छा नहीं लगता क्योंकि दिव्या के घर वालों से उसे बिलकुल लगाव नहीं था.

कभी दिव्या के मांबाप आते तो भी उन के साथ विशाल नौर्मल बातचीत नहीं करता. इस बात से वह बहुत दुखी रहती. दिव्या को इस बात की टैंशन रहती है कि अपने बूढ़े हो चुके मांबाप का खयाल कैसे रखे. उन का खयाल रखने के लिए और कोई नहीं है. इकलौती संतान होने के नाते वह उन के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझती है, मगर कुछ कर नहीं पाती क्योंकि वह अपने पति से भी झगड़ा लेना मोल नहीं चाहती है.

उसका पति सास-ससुर की कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. वह कभीकभी तलाक लेने की बात सोचती है, मगर बच्चों की तरफ देख कर चुप रह जाती है. उस के मांबाप भी उसे ऐसा करने से साफ मना करते हैं.

ऐसे हालात में आखिर एक दिन दिव्या ने अपने पति विशाल से सवाल किया, ‘‘यदि मेरे मातापिता के स्थान पर तुम्हारे मातापिता होते तो भी क्या तुम ऐसा ही करते? जिस तरह से तुम्हारे बूढ़े मातापिता की जिम्मेदारी हम दोनों मिल कर उठाते हैं वैसे ही मेरे मातापिता का खयाल भी तो दोनों को ही रखना चाहिए. उन की मेरे सिवा कोई औलाद नहीं. मेरी पढ़ाई और शादी में उन्होंने सारे रुपए लगा दिए. ऐसे में उन्हें कभी डाक्टर को दिखाना हो या आर्थिक मदद करनी हो तब तुम पीछे क्यों हट जाते हो?’’

इस सवाल पर विशाल कोई जवाब नहीं दे सका. उस रात दिव्या ने देखा कि उस के सासससुर विशाल को कुछ समझ रहे हैं. अगली बार जब दिव्या मां को डाक्टर को दिखाने जा रही थी तब विशाल खुद आगे आया और कहने लगा कि चलो साथ चलते हैं. यह सुन दिव्या को अपने पति पर बहुत प्यार आया.

कोई सहारा नहीं

दरअसल, शादी के बाद पतिपत्नी जीवनसाथी बन जाते हैं. जीवन की राह में आने वाले हर सुखदुख में उन्हें एकदूसरे का साथ देना चाहिए. इस काम में केवल स्त्री के पति को ही नहीं बल्कि उस के सासससुर को भी खयाल रखना चाहिए कि यदि बहू की मां या बाप को कोई परेशानी है तो वे अपनी बहू की सहायता करें और उस का साथ दें, उस के पति यानी अपने बेटे को समझएं.

मगर हमारी सोसाइटी में स्थिति बहुत अलग रहती है. हमारे देश में लड़की की शादी करने के बाद लड़की के घर जाना या उस के घर खाना और रहना भी परंपराओं के अनुसार वर्जित माना गया है. घर में बेटा बहू हो तो यह रिवाज चल सकता है. लेकिन अगर वह पुत्री इकलौती संतान है और मांबाप का उस के सिवा कोई और सहारा नहीं है तो ऐसे में क्या पुत्री के दिल में यह सवाल नहीं उठेगा कि वह अपने बूढ़े मांबाप का सहारा क्यों नहीं बन सकती? खासकर जब मां या पिताजी में से कोई अकेला रह जाता है तब बेटी उन्हें अपने घर रखना चाहती है. पर अकसर ऐसे में उसे ससुराल वालों और खुद अपने पति की भी नाराजगी सहनी पड़ती है.

पेरैंट्स का सम्मान अपेक्षित

मुश्किल घड़ी में मांबाप का पुत्री के घर जा कर रहने में कोई हरज नहीं होना चाहिए. महत्त्वपूर्ण बात यह है कि के दामाद और उन के रिश्तेदार पेरैंट्स के साथ सम्मान से पेश आएं. सामान्यतया यह देखा जाता है कि माता या पिता का बेटी के घर जा कर रहने पर कुछ दिन तो बेटी के घर वाले उन का सम्मान करते हैं, लेकिन बाद में धीरेधीरे उन के व्यवहार में परिवर्तन आता जाता है. ऐसे में लड़की के मातापिता में हीनभावना उत्पन्न होने लग जाती है.

जब बेटा दूसरे शहर या विदेश में रहता हो

अकसर बच्चों को अच्छी पढ़ाई या फिर नौकरी के लिए अपना शहर छोड़ना पड़ता है. बाद में कई बार बच्चे विदेश या मैट्रो सिटीज में नौकरी मिलने पर शादी कर के वहीं सैटल भी हो जाते हैं. ऐसे में पुराने घर में मांबाप अकेले रह जाते हैं. अपने कैरियर के लिए बच्चे वापस लौटने का जोखिम नहीं उठाना चाहते, मगर वे ओल्ड पेरैंट्स के प्रति अपने दायित्व से भी मुंह नहीं मोड़ सकते. कई बार मां या बाप अकेले रह जाते हैं तब स्थिति ज्यादा खराब होती है. ऐसी स्थिति में बेटा अपने मांबाप की देखभाल के लिए कुछ इस तरह के तरीके अपना सकता है:

–  अपने पेरैंट्स के घर के पास रहने वाले किसी दोस्त को यह जिम्मेदारी दे सकता है कि रोज शाम में एक बार औफिस से लौटते हुए वह आप के पेरैंट्स से मिलता जाए ताकि किसी तरह की सेहत से जुड़ी परेशानी की जानकारी आप को समय रहते मिल जाए और अर्जेन्सी होने पर आप का दोस्त उन्हें अस्पताल पहुंचा सके. इस के बदले में आप अपने दोस्त की किसी और तरह से हैल्प कर सकते हैं.

–  अपने पेरैंट्स के साथ एक विश्वसनीय नौकरानी को पूरे दिन के लिए रख दें. वह खाना बनाने और साफसफाई के अलावा बुजुर्ग पेरैंट्स की देखभाल भी कर ले जैसे दवा देना, मालिश करना, टहलाना, बाल धोना, फल काटना जैसे छोटेमोटे कामों में भी मदद कर दे.

–  समय रहते उन का मैडिक्लेम जरूर करा लें.

सफेद परदे के पीछे: जब मिताली की जिंदगी बनी नर्क

‘‘देखी तुम ने अपने गुरू घंटाल की काली करतूतें? बाबा कृष्ण करीम… अरे, मुझे तो यह हमेशा ही योगी कम और भोगी ज्यादा लगता था… और लो, आज साबित भी हो गया… हर टीवी चैनल पर इस की रासलीला के चर्चे हो रहे हैं…’’ घर में घुसते ही देवेश ने पत्नी मिताली की तरफ कटाक्ष का तीर छोड़ा.

‘तुम्हें आज पता चला है… मैं तो वर्षों से यह राज जानती हूं… सिर्फ जानती ही नहीं, बल्कि भुक्तभोगी भी हूं…’ मन ही मन सोच कर मिताली को मितली सी आ गई. घिनौनी यादों के इस वमन में कितना सुकून था, यह देवेश महसूस नहीं कर पाया. उस ने फटाफट जूतेमोजे उतारे और टीवी औन कर के सोफे पर पसर गया.

‘‘एक और बाबा पर गिरी गाज… नाबालिग ने लगाया धार्मिक गुरु पर यौन दुराचार का आरोप… आरोपी फरार… पुलिस ने किया बाबा कृष्ण करीम का आश्रम सीज…’’ लगभग हर चैनल पर यही ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी. रसोई में चाय बनाती मिताली के कान उधर ही लगे हुए थे. देवेश को चाय का प्याला थमा वह बिस्तर पर लेट गई.

आज मिताली अपनेआप को बेहद हलका महसूस कर रही थी. एक बड़ा बोझ जिसे वह पिछले कई सालों से अपने दिलोदिमाग पर ढो रही थी वह अनायास उतर गया था. अब उसे यकीनन उस भयावह फोन कौल से आजादी मिल जाएगी जो उस की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ाए थी, जिस के चलते हर इनकमिंग फोन कौल पर उस का दिल उछल कर हलक में आ जाता था.

आंखें बंद होते ही मिताली की पलकों के पीछे एक दूसरी ही दुनिया सजीव हो उठी. चुपचाप से खड़े लमहे मिताली के इर्दगिर्द लिपट गए जैसे धुंध एकाएक आ कर पेड़ोंपहाड़ों से लिपट जाती है और वे वहां होते हुए भी अदृश्य हो जाते हैं. ठीक उसी तरह मिताली भी अपने आसपास की दुनिया से ओझल हो गई. परछाइयों की इस दुनिया में उस के साथ सुदीप है… बाबा का आश्रम… और सेवा के नाम पर जिस्म से होने वाला खिलवाड़ है…

सुदीप से उस की दोस्ती कालेज के समय से ही थी. इसे दोस्ती न कह कर प्यार कहें तो शायद ज्यादा उपयुक्त होगा. उन का कालेज शहर के बाहरी कोने पर था और कालेज से कुछ ही दूरी पर बाबा कृष्ण करीम का आश्रम था. हरेभरे पेड़ों से घिरा यह आश्रम देखने में बहुत ही रहस्यमय लगता था. दोनों अकसर एकांत की तलाश में उस तरफ निकल जाते थे. इस आश्रम का ऊंचा और भव्य मुख्यद्वार मिताली को सम्मोहित कर लेता था. वह इसे भीतर से देखना चाहती थी, लेकिन आश्रम में सिर्फ बाबा के भक्तों को ही प्रवेश की अनुमति थी.

मिताली अकसर सुदीप से अपने मन की बात कहती थी. एक दिन सुदीप ने उस से आश्रम के अंदर ले जाने का वादा किया जिसे बहुत जल्दी उस ने पूरा भी किया.

हुआ यों था कि रिश्ते में सुदीप की भाभी सुमन बाबा की भक्त थी और अकसर वहां आश्रम में सेवा के लिए जाती थी. उसी के साथ सुदीप मिताली को ले कर आश्रम गया.

आश्रम के दरवाजे पर सुरक्षा व्यवस्था बहुत सख्त थी. कई चरणों में जांच से गुजरने के बाद वे अब एक बड़े से चौगान में थे. मिताली हर तरफ आंखें फाड़फाड़ कर देख रही थी. आश्रम के बहुत बड़े भाग में ताजा सब्जियां लगी थीं. एक हिस्से में फलदार पेड़ भी थे. बहुत से भक्त जिन्हें सेवादार कहा जाता है, वहां निष्काम सेवा में जुटे थे. कुछ लोग सब्जियां तोड़ कर ला रहे थे और कुछ उन्हें तोलतोल कर वजन के अनुसार अलगअलग पैक कर रहे थे. कुछ लोग फलों को भी इसी तरह से पैक कर रहे थे. सुमन ने बताया कि ये फल और सब्जियां बाबा के भक्त ही प्रसादस्वरूप खरीद कर ले जाते हैं. सुमन स्वयं भी अपने घर के लिए फलसब्जियां यहीं से खरीद कर ले जाती है.

एक बड़े से रसोईघर में कुछ महिलाएं आश्रम में मौजूद सभी लोगों के लिए खाना बनाने में जुटी थीं तो कुछ सेवादार जूठे बरतन मांज कर अपनेआप को धन्य महसूस कर रहे थे.

मिताली ने देखा कि वहां लोगों से किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं बरता जा रहा था. हर व्यक्ति को समान सुविधा उपलब्ध थी. शायद यही समभाव सब को जोड़े था और यही बाबा की लोकप्रियता का कारण था.

मिताली को दूर आश्रम के कोने में गुफा जैसा एक कमरा दिखाई दिया. सुमन ने बताया कि यह बाबा का विशेष कक्ष है. जब भी वे यहां आश्रम में आते हैं इसी कक्ष में ठहरते हैं… यहां किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है.

सुमन के साथ होने के कारण उन दोनों को किसी ने नहीं टोका. मिताली और सुदीप ने पूरा आश्रम घूम कर देखा. घूमतेघूमते दोनों आश्रम के दूसरे कोने तक पहुंच गए. यहां घने पेड़ों के झुरमुट में घासफूस से बनी कलात्मक झोंपडि़यां बेहद आकर्षक लग रही थीं. जगह के एकांत का फायदा उठा कर सुदीप ने उसे चूम भी लिया था.

मिताली को आश्रम की व्यवस्था ने बहुत प्रभावित किया. उस ने आगे भी यहां आते रहने का मन बना लिया.

‘और कुछ न सही, सुदीप के साथ एकांत में कुछ लमहे साथ बिताने को मिल जाएंगे… शहर में तो लोगों के देखे जाने का भय हमेशा दिमाग पर हावी रहता है… आधा ध्यान तो इसी में बंट जाता है… प्यारमुहब्बत की बातें क्या खाक करते हैं…’ सोच मिताली का दिमाग आगे की योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की कवायद में जुट गया. उस ने सुदीप को अपनी योजना के बारे में बताया.

‘‘यह आश्रम है कोई पिकनिक स्पौट नहीं कि जब जी चाहा टहलते हुए आ गए… देखा नहीं सुरक्षा व्यवस्था कितनी कड़ी थी…’’ सुदीप ने उस के प्रस्ताव को नकार दिया.

‘‘तुम ऐसा करो… सुमन भाभी के साथ बाबा के शिष्य बन जाओ… रोज न सही, कभीकभार तो आया ही जा सकता है… मिलने का मौका मिला तो ठीक वरना ताजा फलसब्जियां तो मिल ही जाएंगी…’’ मिताली ने उसे उकसाया.

बात सुदीप को भी जम गई और फिर एक दिन सुदीप विधिवत बाबा कृष्ण करीम का शिष्य बन गया.

मिताली और सुदीप कभी सुमन के साथ तो कभी अकेले ही आश्रम में आने लगे. अकसर दोनों सब की नजरें बचा कर उन झोंपडि़यों की तरफ निकल जाया करते थे. कुछ देर एकांत में बिताने के बाद प्रफुल्लित से लौटते हुए फलसब्जियां खरीद ले जाते.

आश्रम में आनेजाने से उन्हें पता चला कि इस आश्रम की शाखाएं देश के हर बड़े शहर में फैली हैं. इतना ही नहीं, विदेशों में भी बाबा के अनुयायी हैं, जो उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं. इन आश्रमों से कई अन्य तरह की सामाजिक गतिविधियां भी संचालित होती हैं. कई हौस्पिटल और स्कूल हैं जो आश्रम की कमाई से चलते हैं.

मिताली ने महसूस किया कि जितना वे बाबा के बारे में जान रहे थे उतना ही सुदीप का झुकाव उन की तरफ होने लगा था. अब उन की बातों का केंद्र भी अकसर बाबा ही हुआ करते थे.

मुख्य सेवादार ने उस की निष्ठा देखते हुए उसे आश्रम से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंप दी थीं. इन सब का प्रभाव यह हुआ कि अब मिताली बेरोकटोक आश्रम के हर हिस्से में आनेजाने लगी थी.

देखते ही देखते उन का कालेज पूरा होने को आया. फाइनल ऐग्जाम का टाइमटेबल आ चुका था.

‘‘अब पढ़ाई में जुटना होगा… ऐग्जाम से पहले एक आखिरी बार आश्रम चलें?’’ मिताली ने अपनी बाईं आंख दबाते हुए इशारा किया.

‘‘हां कल चलते हैं… बाबा का आशीर्वाद भी तो लेना है,’’ सुदीप ने कहा.

‘‘हाउ अनरोमांटिक,’’ वह भुनभुनाई.

‘‘कल का दिन तुम्हारी जिंदगी का एक यादगार दिन होने वाला है,’’ सुदीप ने शरारत से मुसकराते हुए उस का गाल खींच दिया.

वह दिन सचमुच ही उस की जिंदगी का एक यादगार दिन था. उस दिन मौसम भी कुछ आशिकाना सा ही था. आसमान में काले बादल छा रहे थे. हवा में बारिश की बूंदें तैर रही थीं.

हमेशा की तरह चलतेचलते दोनों झोंपडि़यों की तरफ निकल आए. तभी अचानक मौसम खराब हो गया. तेज हवा के साथ बिजली कड़की और मूसलाधार बारिश होने लगी. उन्हें वापस आश्रम लौटने तक का वक्त नहीं मिला और वे भाग कर एक झोंपड़ी में घुस गए.

कुछ मौसम की साजिश और कुछ कुंआरे से इंद्रधनुष… मिताली 7 रंगों में नहा उठी. सुदीप उस के कान में धीरे से गुनगुनाया, ‘‘रूप तेरा मस्ताना… प्यार मेरा दीवाना… भूल कोई हम से न हो जाए…’’

मिताली लाज से सिकुड़ गई. इंद्रधनुष के रंग कुछ और गहरा गए.

भीगे बदन ने आग में घी का काम किया और फिर वह सब हो गया जो उन्होंने पुरानी हिंदी फिल्म ‘आराधना’ में देखा था. बारिश खत्म होने पर दोनों घर लौट गए. इस रोमानी शाम के यादगार लमहों के बोझ से मिताली की पलकें झुकी जा रही थीं.

परीक्षा खत्म हो गई. 2 दिन नींद पूरी करने और परीक्षा की थकान उतारने के बाद मिताली ने सुदीप को फोन किया. लेकिन यह क्या? उस का फोन तो स्विचऔफ आ रहा था.

‘लगता है जनाब की थकान अभी उतरी नहीं है,’ मिताली सोच कर मुसकराई. लेकिन यह सिर्फ उस का वहम ही था. अगले कई दिनों तक भी जब सुदीप का फोन बंद मिला तो उसे फिक्र हुई. उस ने सुदीप के 1-2 दोस्तों से उस के बारे में पता किया, लेकिन किसी ने भी उसे ऐग्जाम के बाद से नहीं देखा था. मिताली ने आश्रम जा कर सुमन से बात की, लेकिन उसे भी कुछ मालूम नहीं था.

सप्ताहभर बाद उसे सुमन से पता चला कि सुदीप अचानक कहीं गायब हो गया. उस के घर वालों ने भी उस की बहुत तलाश की, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. हार कर उन्होंने पुलिस को खबर कर दी और अब पुलिस उस की तलाश में जुटी है.

मिताली के सारे प्रयास विफल हो गए तो उस ने भी सबकुछ वक्त पर छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई की तैयारी करने लगी. तभी एक दिन दोपहर को उस के मोबाइल पर एक प्राइवेट नंबर से कौल आई, ‘‘मिताली, मैं बाबा का खास सहयोगी विद्यानंद बोल रहा हूं. बाबा तुम से भेंट करना चाहते हैं. कल दोपहर 3 बजे आश्रम आ जाना.’’

मिताली भीतर तक सिहर गई. बोली, ‘‘माफ कीजिएगा, मेरी आप के बाबा और आश्रम में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘तुम्हें न सही बाबा को तो है… और हां, जरा बाहर आओ, बाबा ने एक खास तोहफा तुम्हारे लिए भिजवाया है…’’ और फिर फोन कट गया.

मिताली दौड़ कर बाहर गई. मुख्य दरवाजे पर एक छोटा सा लिफाफा रखा था. मिताली ने खोल कर देखा. उस में एक पैन ड्राइव था. उस ने कांपते हाथों से उसे अपने फोन से कनैक्ट किया. उस में एक वीडियो क्लिप थी, जिसे देखते ही मिताली भय से पीली पड़ गई. यह उस के और सुदीप के उन अंतरंग पलों का वीडियो था जो उन्होंने आश्रम वाली झोंपड़ी में बिताए थे.

मरता क्या नहीं करता. मिताली अगले दिन दोपहर 3 बजे बाबा के आश्रम में थी. आज उसे उस विशेषरूप से बनी गुफा में ले जाया गया. भीतर ले जाने से पहले निर्वस्त्र कर के उस की तलाशी ली गई और उस के कपड़े भी बदल दिए गए. मोबाइल स्विचऔफ कर के अलग रखवा दिया गया. इतना ही नहीं उस की घड़ी और कानों में पहने टौप्स तक खुलवा लिए गए.

बाहर से साधारण सी दिखने वाली यह गुफा भीतर से किसी महल से कम नहीं थी. नीम अंधेरे में मिताली ने देखा कि उस के अंदर विलासिता का हर सामान मौजूद था. आज पहली बार वह बाबा से प्रत्यक्ष मिल रही थी. बाबा का व्यक्तित्व इतना रोबीला था कि वह आंख उठा कर उस की तरफ देख तक नहीं सकी. सम्मोहित सी मिताली 2 घंटे तक बाबा के हाथों की कठपुतली बनी उस के इशारों पर नाचती रही. शाम को जब घर लौटी तो लग रहा था जैसे पूरा शरीर वाशिंगमशीन में धोया गया हो.

2 साल तक यह सिलसिला चलता रहा. बाबा जब भी इस आश्रम में विश्राम के लिए आते, मिताली को उन की सेवा में हाजिर होना पड़ता. अपने प्रेम के राज को राज रखने की कीमत मिताली किश्तों में चुका रही थी.

सुदीप का अब तक भी कुछ पता नहीं चला था. आश्रम में कुछ दबे स्वरों से उसे सुनाई दिया था कि बाबा ने उसे अपने विदेश स्थित आश्रम में भेज दिया है. इसी बीच उस के लिए देवेश का रिश्ता आया. पहले तो मिताली ने इनकार करना चाहा, क्योंकि वह अपनी अपवित्र देह देवेश को नहीं सौंपना चाहती थी, पर फिर मन के किसी कोने से आवाज आई कि हो सकता है यह रिश्ता तुम्हें इस त्रासदी से आजादी दिला दे… हो सकता है कि तुम्हें आश्रम के नर्क से छुटकारा मिल जाए… और इस उम्मीद पर वह देवेश का हाथ थाम कर वह शहर छोड़ आई. शादी के बाद सरनेम के साथ उस ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया.

मगर कहते हैं कि दुख से पहले उस की परछाईं पहुंच जाती है… मिताली के साथ भी यही हुआ. शादी के बाद लगभग 6 महीने तो उस ने डर के साए में बिताए, लेकिन आश्रम से फोन नहीं आया तो धीरेधीरे पुराने दिनों को भूलने लगी थी कि इसी बीच एक दिन अचानक एक फोन आ गया, ‘‘हनीमून पीरियड खत्म हो गया होगा… कल दोपहर आश्रम आ जाना… बाबा ने याद किया है…’’

यह सुन कर मिताली डर के मारे सूखे पत्ते सी कांपने लगी. उस के मुंह से बोल नहीं फूटे.

‘‘तुम ने क्या सोचा था, शहर और फोन नंबर बदलने से तुम छिप जाओगी? अरे बाबा तो समुद्र में सूई खोजने की ताकत रखते हैं… तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम अपनी औकात न भूलो… समझी?’’ एक धमकी भरी चेतावनी के साथ फोन कट गया.

फिर से वही पुराना सिलसिला शुरू हो गया. मिताली अब बुरी तरह से कसमसाने लगी थी. वह इस दोहरी जिंदगी से आजादी चाहने लगी थी. पानी जब सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो उस ने आरपार की लड़ाई की ठान ली.

‘ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? देवेश मुझे छोड़ देगा? ठीक ही करेगा… मैं भी कहां न्याय कर पा रही हूं उस के साथ… हर रात जैसे एक जूठी थाली परोसती हूं उसे… नहीं… अब और नहीं… अब मेरा चाहे जो भी हो… मैं अब आश्रम नहीं जाऊंगी… बाबा मेरे खिलाफ कोई कदम उठाए, उस से पहले ही मैं उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर दूंगी,’ मिताली ने मन ही मन निश्चय कर लिया.

‘क्या तुम ऐसा कर पाओगी? है इतनी हिम्मत?’ उस के मन ने उसे ललकारा.

‘क्यों नहीं, बहुत सी महिलाएं ‘मीटू’ अभियान में शामिल हो कर ऐसे सफेदपोशों के नकाब उतार रही हैं… मैं भी यह हिम्मत जुटाऊंगी,’ मिताली ने अपनेआप से वादा किया.

अभी वह आगे की रणनीति तैयार करने की सोच ही रही थी कि किसी लड़की ने यह हिम्मत दिखा दी. बाबा और उस के आश्रम का काला सच समाज के सामने लाने का हौसला दिखा ही दिया.

‘‘अरे भई, आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’ देवेश ने कमरे में आ कर कहा तो मिताली पलकों के पीछे की दुनिया से वर्तमान में लौटी.

‘‘सिर्फ खाना नहीं जनाब. आज तो आप को विशेष ट्रीट दी जाएगी… एक ग्रैंड पार्टी… आखिर समाज को एक काले धब्बे से मुक्ति जो मिली है,’’ कह मिताली रहस्यमय ढंग से मुसकराई.

देवेश इस रहस्य को भेद नहीं पाया, लेकिन वह मिताली की खुशी में खुश था. मिताली मन ही मन उस अनजान लड़की को धन्यवाद देते हुए तैयार होने चल दी जिस ने उस में फिर से जीने की ललक जगा दी थी.

पीरियड्स होने में हो रही है देरी तो इन टिप्स से हो सकते हैं रेगुलर

आजकल की भाग-दौड़ भरी लाइफ में अनयिमित माहवारी होना बिल्‍कुल ही आम बात हो चुकी है. अचानक वजन बढ़ना या फिर कम होना, स्‍मोकिंग करना, कॉफी,दवाइयां और खराब खान-पान की वजह से यह समस्‍या पैदा होती है. भावनात्मक तनाव भी आपके शरीर में हार्मोन में परिवर्तन, आपकी माहवारी को अनियमित बनाने के लिए कारण हो सकता है.

किसी महीने में माहवारी हुई तो किसी महीने में टल गई, ऐसे में शरीर को भी नुकसान होता है. आइये जानते हैं कि अनियमित महावारी से बचने के लिये प्राकृतिक रूप से कौन-कौन से तरीके हैं.

टिप्‍स जो करे पीरियड को रेगुलर –

  1. इस समस्‍या को ठीक करने के लिये सहिजन,तरोई, सफेद कद्दू, तिल का बीज और करेला का नियमित सेवन करें. रोजाना दिन में दो बार करेले की जड़ का काढा पीजिये और देखिये कि यह प्राकृतिक तरीके से कैसे ठीक हो जाता है.
  2. कब्‍ज पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ से दूर रहें खास कर के महावारी के आखिरी चक्र में. खट्टे खाघ पदार्थ,फ्राइड फूड और प्रोटीन से भरी दालों का सेवन ना करें.
  3. अपनी डाइट में मछली का प्रयोग करें क्‍योंकि इसमें ओमेगा3 फैटी एसिड होता है जो कि मासिक चक्र के दौरान बहुत ही लाभकारी होता है.
  4. बैंगन,मीट, पीला कद्दू और आलू को पीरियड्स शुरु होने के एक हफ्ते पहले ना खाएं.
  5. सौंफ खान से पीरियड्स टाइम पर आते हैं. यहां तक की तिल का तेल भी बहुत ही लाभकारी होता है. मासिक चक्र शुरु होने के एक हफ्ते पहले सौंफ का बना काढा लें.
  6. तिल के बीज को जीरा पाउडर और गुड के साथ मिला कर खाएं. इससे पीरियड टाइम पर होगा.
  7. रोजाना अंगूर का जूस पीने से भी आपको अनियमित महावारी से मुक्‍ती मिलेगी.
  8. रोजाना व्‍यायाम करें जिससे शरीर का टंपरेचर सामान्‍य बना रहे और अनियमित महावारी कंट्रोल में रहे.
  9. कच्‍चा पपीता खाइये. यह एक प्राकृतिक तरीका है जो कि ज्‍यादातर महिलाएं पीरियड को टाइम पर लाने के लिये और प्रेगनेंसी से मुक्‍ती पाने के लिये करती हैं.

पति की आदतों से परेशान हो गई हूं, मै क्या करुं?

सवाल

मैं 23 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 2 साल हो चुके हैं पर मेरे पति आज भी उतने ही रोमांटिक मूड में रहते हैं. हर रोज सहवास करना चाहते हैं. मायके भी नहीं जाने देते. मैं 2 सालों में मुश्किल से 8-10 दिन मायके में रही होऊंगी, जबकि मेरी सहेलियां कई महीने मायके में रहती हैं. किसी भी सहेली का पति इतना सैक्सी नहीं है जितने मेरे पति हैं. कभी कभी तो मुझे डर लगने लगता है कि कहीं वे सैक्स ऐडिक्ट तो नहीं हैं? बताएं क्या करूं?

जवाब

आप को खुश होना चाहिए कि आप को इतना प्रेम करने वाला पति मिला है और आप बेवजह परेशान हैं. जहां तक कामुकता या सैक्स के प्रति अधिक रुझान की बात है, तो यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है. इसलिए अपनी सहेलियों के पतियों से न तो आप को पति की तुलना करनी चाहिए और न ही इतनी अंतरंग बातें दूसरों के सामने उजागर करनी चाहिए. पति के साथ का बेहिचक आनंद उठाएं.

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प्यार, रोमांस फिर शादी ये चलन सदियों से चला आ रहा है. दो युगलों के बीच प्यार एक पराकाष्ठा को पार तब करता है जब दोनों का मिलन आत्मा से होता है. प्यार का समागम आत्मा और शरीर दोनों से ही होता है. जब नवविवाहिता आती है तो धारणा यह बनती है कि अब दोनों का शारीरिक मिलन तय है, पर यह गलत है. हालांकि, शारीरिक मिलन यानि कि सेक्स जीवन का एक आधार है एक नई पीढ़ी को तैयार करने का. पर नवविवाहित जोड़ों को सेक्स से संबंधी कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है. या यूं कहें कि कुछ मतभेद जो उनके दिलों में कई सवाल बनकर खड़े हो जाते हैं. सेक्स से जुड़े वो कौन-से मतभेद हैं जो उनको एक-दूसरे के करीब नहीं आने देते –

  • सेक्स से जुड़ा संदेह
  • गर्भ निरोधकों का प्रयोग
  • पराकाष्ठा का अभाव
  • कुछ मिथक
  • संचार का अभाव

सेक्स से जुड़ा संदेह –

सेक्स से जुड़ा सबसे बड़ा मतभेद तो संदेह होता है. जिनकी नई शादी हुई होती है उनके लिए सब कुछ नया-नया होता है. वह अपने आपको असहज महसूस करते हैं. उन्हें संदेह रहता है कि क्या वह अपने जीवनसाथी को संतुष्ट कर सकेंगे. शादी के बाद कुछ व्यक्ति अपने आपको नियंत्रण कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं. इसीलिए उन्हें डाउट रहता है. शादी के बाद वह दिन में कई बार सेक्स करना पसंद करते हैं. दोनों ही युगल यह सोचकर सुख का आनंद नहीं ले पाते कि कहीं उनका साथी उनके बारे में क्या सोच रहा होगा. वो असहज फील करते हैं. हालांकि एक समय बाद  वह यह सोचकर सहज हो जाते हैं कि दोनों के लिए सेक्स वास्तव में कितना सामान्य है. एक दूसरे के प्रति वह जरूरतमंद महसूस कर सकता है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- न्यूली मैरिड कपल और सेक्स मिथक

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

मदर्स डे पर खाने में बनाए कुछ स्पेशल, ट्राई करें ये रेसिपी

मदर्स डे आने वाला है और इस दिन आप अपनी मां को स्पेशल फील कराने के लिए उनके लिए कुछ खास बना सकती हैं. मां के इस दिन को और स्पेशल बनाने के लिए आपके साथ हम शेयर कर रहे हैं कुछ स्पेशल रेसिपी.

दाल के कबाब


सामग्री
काली मसूर की दाल- ½ किलो
देसी घी- 2 बड़े चम्मच
नमक- स्वादानुसार
हरी मिर्च- 2से4 बारीक कटी हुई
प्याज सादा गोल कटा हुआ

बनाने की विधि

सबसे पहले एक बर्तन में काली मसूर की दाल ले लीजिए. इसके बाद गैस पर कुकर गर्म होने के लिए रख दें. अब इसमें देसी घी डाले और उसमें ज़रा से जीरे के साथ भीगी हुई दाल में पानी और नमक मिलाकर उसमें 2-4 सीटी आने दें और फिर कुकर बंद कर दें.

थोड़ी देर के बाद कुकर खोले और मिश्रण को अच्छे से मैश कर लें. मैश करने के बाद इसकी छोटी-छोटी टिकिया बना लें फिर तवे पर या नॉन स्टिक पैन में इन टिक्कियों को हल्की आंच पर चपटा करके सेक लें. जब टिक्कियां तैयार हो जाएं तो उसे कटे प्याज के साथ नींबू डालकर परोसे. गार्निश के लिए आप उस पर धनिया रख भी रख सकते हैं.

चीज बौल्स

ग्रेटिड चीज 1/2 किलो
आलू-10 से 12
प्याज- 2 से 3 कटे हुए
हरी मिर्च – 2 से 3 बारीक कटी हुईं
लाल मिर्च- 2 छोटे चम्मच
ब्रेड का चूरा – 250 ग्राम
खट्टाई- 250 ग्राम
नमक- स्वादानुसार

बनाने की विधि

सबसे पहले आलू को उबाल लें. फिर इसके छिलके निकाल दें और इसे मैश कर लें फिर इसमें कटी हुई प्याज, हरी मिर्च, लाल मिर्च, खट्टाई और नमक मिला लें. अब आलू के बॉल्स बनाना शुरू करें. बॉल्स के बीच में थोड़ा सा चीज भरें और इसके बाद ब्रेड के चूरे में रोल करें डीप फ्राई कर लें। अब इन गरम गरम बॉल्स को टमैटो केचअप या फिर धनिये की चटनी के साथ परोसें.

चावल के लड्डू

सामग्री
चावल का पिसा हुआ आटा 1 किलो

पिसी हुई चीनी- 1 किलो

देसी घी-1/2 किलो

बनाने की विधि 
सबसे पहले एक साफ बर्तन ले लें. उसके बाद फिर उसमें पिसी हुई चीनी मिलाएं और लडडू बनाना शुरू कर दें. यह सबसे आसान रेसिपी है क्योंकि इसमें हमें सिर्फ तीन चीजों को अच्छे से मिलाकर लड्डू बनाने हैं.

अपने नाखूनों को बनाएं खूबसूरत, ट्राई करें नेल आर्ट के डिफरेंट पैटर्न

हमारे हाथों की खूबसूरती में सबसे बड़ा रोल नाखूनों का है. नाखूनों को सजाने की कला को नेल आर्ट कहते हैं. इसके कई प्रकार होते हैं आज हम आपको डिफरेंट टाइप्स की नेल आर्ट बताने जा रहे हैं.

1) डॉट्स- ये नेल आर्ट का सबसे आसान तरीका है. इसमें सबसे पहले अपने नेल्स को कलर कर लें. इसके बाद नेलपॉलिश के ब्रश की मदद से डॉटिंग करना शुरू करें. 90 डिग्री के एंगल पर डॉट्स करना शुरू करें.

2) स्ट्राइपस- इस डिजाइन को नाखूनों पर करने के लिए सबसे पहले नेल कलर कर लें. उसके बाद स्ट्राइपिंग ब्रश से नाखूनों के ऊपर की ओर से नीचे की तरफ स्ट्राइप बनाना शुरू करें. यहां आप सिंपल लाइन या डॉटिड लाइन भी बना सकते हैं.

 

3) हाफ मून – इस आर्ट को करने के लिए अपने नाखूनों पर पहले बेस कोट कर लें, इसके बाद नेल पर कलरफुल स्ट्राइप्स लगाएं और कुछ देर बाद इसे हटा दें. देखे यह बहुत सुंदर इफेक्ट आएगा.

4) रोज क्वार्ट्स- इस आर्ट को करने के लिए सबसे पहवे बेस कोट लगाकर फिर सफेद नेल पौलिश लगाएं. इसके बाद नाखूनों के किनारे वाइट लाइंस बनाएं. फिर आर देखेंगे कि स्टोन इफेक्ट आएगा.

5) क्लाउड्स- पहले नाखूनों पर बेस कोट लगाएं. इसके बाद ब्लू नेल पौलिश की मदद से बादलों की शेप बनाएं इसके बाद इसमें हल्का का वाइट कलर से आउटलाइन करें. आपको अच्छा इफेक्ट मिलेगा. लास्ट स्टेप में आखिर में वाइट कोट करें.

 

Mother’s Day 2024: स्किन टोन के अनुसार करें मेकअप

चेहरा हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है और इस आईने को बेदाग व खूबसूरत बनाने के लिए फेस मेकअप की सही जानकारी जरूरी है. किसी भी मेकअप की शुरुआत बेस से होती है. इसीलिए उसे स्किन का बैकड्रौप माना जाता है, जो मेकअप के लिए परफैक्ट स्किन देता है. आमतौर पर हम सभी अपने चेहरे के लिए बेस का चयन अपनी स्किनटोन के मुताबिक करते हैं. लेकिन परफैक्ट स्किन के लिए यह जरूरी है कि आप का बेस आप की स्किन के भी अनुसार हो.

आइए, जानें कि बेस का चयन कैसे करें:

बेस फौर ड्राई स्किन

यदि आप की स्किन ड्राई है तो आप टिंटिड मौइश्चराइजर, क्रीम बेस्ड फाउंडेशन या सूफले का इस्तेमाल कर सकती हैं.

टिंटिड मौइश्चराइजर

यदि आप की त्वचा साफ, बेदाग व निखरी हुई है, तो आप बेस बनाने के लिए केवल टिंटिड मौइश्चराइजर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे लगाना बेहद आसान है. अपने हाथ में मौइश्चराइजर की कुछ बूंदें लें और अपनी उंगली से चेहरे पर जगहजगह डौट्स लगा कर एकसार फैला लें. यह एसपीएफ यानी सनप्रोटैक्शन फैक्टर के साथ भी आता है, जिस के कारण यह हमारी त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है. इस के अलावा यह हमारी स्किन को तेज हवाओं व अन्य वजह से होने वाली ड्राईनैस से बचा कर मौइश्चराइज भी करता है.

क्रीम बेस्ड फाउंडेशन

यह स्किन के रूखेपन को कम कर के उसे मौइश्चराइज करता है, इसलिए यह ड्राई स्किन वालों के लिए काफी अच्छा होता है. इसे लगाने से स्किन को प्रौपर मौइश्चर मिलता है. इसे यूज करना भी आसान है. स्पैचुला से थोड़ा सा बेस हथेली पर लें और स्पंज या ब्रश की मदद से एकसार पूरे फेस पर लगा लें. इसे सैट करने के लिए पाउडर की एक परत लगाना जरूरी है. इस से बेस ज्यादा देर तक टिका रहता है.

सूफले

यह बेहद हलका होता है और फेस पर लाइट कवरेज देता है. सूफले को स्पैचुला की मदद से थोड़ा सा हथेली पर लें. फिर ब्रश या स्पंज की मदद से पूरे फेस पर एकसार फैला लें.

बेस फौर औयली स्किन

यदि आप की स्किन औयली है और पसीना बहुत आता है, तो टू वे केक का इस्तेमाल आप के लिए बेहतर है, क्योंकि यह एक वाटरपू्रफ बेस है. इस के अलावा आप अपनी स्किन के लिए पैन स्टिक और मूज का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

पैन स्टिक

यह क्रीमी फौर्म में होती है, जिस कारण स्किन को मौइश्चराइज करती है और साथ ही वाटरपू्रफ होने के कारण औयली स्किन के लिए अच्छी होती है.

टू वे केक

यह एक क्विक वाटरपू्रफ बेस है. इसे आप अपने पर्स में कैरी कर सकती हैं और कहीं भी टचअप दे सकती हैं. टू वे केक के साथ स्पंज मिलता है. इसे बेस की तरह इस्तेमाल करने के लिए स्पंज को गीला कर लें और पूरे चेहरे पर फैलाएं. टचअप देने के लिए आप सूखे स्पंज का इस्तेमाल कर सकती हैं. बस ध्यान रखें कि टू वे केक आप की स्किन से मैच करता ही हो.

मूज

मूज का इस्तेमाल औयली स्किन वालों के लिए काफी उपयुक्त रहता है. मूज चेहरे पर लगाते ही पाउडर फौर्म में तबदील हो जाता है, जिस कारण पसीना नहीं आता. यह अतिरिक्त औयल रिमूव कर के फेस को मैट फिनिश और लाइट लुक देता है. इसे हथेली में लें और स्पंज या ब्रश की मदद से चेहरे पर एकसार फैला लें.

बेस फौर नौर्मल स्किन

अगर आप की स्किन नौर्मल है, तो फाउंडेशन और कौंपैक्ट आप के लिए अच्छे औप्शन हैं.

फाउंडेशन

यह लिक्विड फौर्म में होता है. आजकल मार्केट में हर स्किन के हिसाब से ढेरों शेड्स में मिलते हैं. इसे लगाते ही स्किन एकसार दिखती है. फाउंडेशन अपनी स्किन से मैच करता या एक शेड फेयर लगाएं. इसे हथेली में लें और फिर इंडैक्स फिंगर से माथे, नाक, गालों और ठोढ़ी पर डौट्स लगाएं. स्पंज या ब्रश की सहायता से ब्लैंड कर लें. चाहें तो हाथ का भी इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे सैट करने के लिए पाउडर की एक परत लगाना जरूरी है. इस से बेस ज्यादा समय तक टिका रहता है.

कौंपैक्ट

यह पाउडर और फाउंडेशन दोनों का मिक्स फौर्म होता है. अगर आप को कहीं जल्दी में जाना है और आप के पास समय नहीं है, तो आप सिर्फ कौंपैक्ट का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे केवल पफ की मदद से ही लगाएं. आजकल हर स्किन से मैच करते कौंपैक्ट पाउडर बाजार में उपलब्ध हैं. अपनी स्किनटोन से मैच करता कौंपैक्ट लगाएं. कौंपैक्ट का इस्तेमाल टचअप देने के लिए भी कर सकती हैं.

न्यू फाउंडेशन इन मार्केट

स्टूडियो फिक्स, डर्मा फाउंडेशन, मूज व सूफले इन दिनों मार्केट में काफी इन हैं.

स्टूडियो फिक्स

यह पाउडर और फाउंडेशन का कंबाइंड सल्यूशन है, जो लगाते वक्त क्रीमी होता है और लगाने के बाद पाउडर फार्म में तबदील हो जाता है. यह स्किन पर लाइट होते हुए भी फुल कवरेज देता है और चेहरे पर लंबे समय तक टिका रहता है.

डर्मा फाउंडेशन

यह स्टिक फार्म में होता है. यह कंसीलर व बेस दोनों का काम करता है. यह चेहरे के सभी स्कार्स व अंडरआईज डार्क सर्कल्स को छिपा के चेहरे को फुल कवरेज देता है.   

Mother’s Day 2024: किचन से जुड़ी है हमारी सेहत

क्या आप जानती हैं कि किचन के वर्किंग स्लैब, बरतन मांजने, सब्जी आदि धोने के लिए सिंक व बरतन और खाद्य सामग्री रखने के लिए मौजूद शैल्फ आदि के साथ हमारी सेहत का गहरा रिश्ता है? वर्किंग स्लैब, सिंक आदि सही ऊंचाई पर न बने हों और किचन का अन्य सामान सही तरीके से व्यवस्थित न रखा गया हो तो उस का असर शरीर पर पड़ता है, पोश्चर बिगड़ता है और इस के कारण सरवाइकल पेन, बैक पेन, पैरों में सूजन आदि समस्याओं से शरीर ग्रस्त हो जाता है. ऐसे में सवाल उठता है कि किचन में हमारा पोश्चर कैसे ठीक रहे ताकि सेहत ठीक रहे? यह सब बता रही हैं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की फिजियोथैरेपिस्ट पूजा ठाकुर:

किचन में सब से जरूरी बात है कि हमारी वर्किंग स्लैब, जिस पर हम कुकिंग करते हैं, सब्जियां काटते हैं, आटा गूंधते हैं यानी अधिकांश काम इसी पर होता है, उस की ऊंचाई हमारी कमर तक होनी चाहिए. यदि वर्किंग स्लैब ऊंचा होगा तो हमें उचकना पड़ेगा और नीचा होगा तो झुकना पड़ेगा. दोनों ही स्थितियां पोश्चर बिगाड़ सकती हैं.

अकसर महिलाएं एक हाथ से आटा गूंधती हैं और प्रैशर हाथ से लगाती हैं, जो सही नहीं है, क्योंकि इस से एक हाथ की मसल्स पर, शोल्डर पर और कमर पर प्रैशर पड़ने पर उस का असर

शरीर पर पड़ता है. सही तरीका है कि 1 फुट ऊंचा पटरा लें, उस पर खड़े हो कर दोनों हाथों से आटा गूंधें और प्रैशर बौडी से लगाएं ताकि पोश्चर सही रहे.

जरूरी सामान नजदीक रखें

अकसर किचन में महिलाएं नीचे के कपबोर्ड में ज्यादा सामान रखती हैं, जिस के कारण जरूरत पड़ने पर बारबार झुक कर सामान निकालती हैं, जिस का असर उन की रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है. जरूरत है अपने किचन को व्यवस्थित करने की. ज्यादा काम में आने वाले रोजमर्रा के सामान को अपनी आंख के लैवल या स्टैंडिंग लैवल पर रखें, जिस से बारबार झुकना न पड़े. बहुत ऊंचाई वाली शैल्फ पर भी रोजमर्रा का जरूरी सामान नहीं रखना चाहिए. अन्यथा उचकना पड़ेगा, वह भी सही नहीं है.

नीचे के कपबोर्ड से सामान निकालने का सही तरीका है कि दोनों पैरों को खोल कर, घुटनों को मोड़ कर बैठ कर सामान निकालें, झुक कर नहीं निकालें. इस के साथ यह भी ध्यान में रखें कि नीचे के कपबोर्ड से जो भी

सामान निकालना है, उसे बारबार बैठने के बजाय एक बार में ही निकालें.

बरतन धोने अथवा सब्जी, दालचावल आदि धोने के लिए सिंक की ऊंचाई भी कमर के लेवल पर होनी चाहिए अन्यथा झुकने पर कमर में दर्द हो सकता है.

जब आंच पर ज्यादा देर कुकिंग करनी होती है तो महिलाएं स्लैब से चिपक कर खड़ी होती हैं, जिस से पीछे की तरफ झुकना हो जाता है. ऐसे में पोश्चर खराब हो जाता है, साथ ही कमर में दर्द भी. इस का सही तरीका है कि एक छोटा पटरा या स्टूल चन में रखें. एक पैर फर्श पर रखें और दूसरा स्टूल पर. 5-7 मिनट बाद दूसरा पैर स्टूल पर रखें और पहला फर्श पर. ऐसा करने से कमर सीधी रहेगी और दर्द भी नहीं होगा. इस का कारण यह है कि पटरे पर पांव रखने से कमर के निचले हिस्से का जो कर्व है वह सीधा रहता है और शरीर का वजन भी दोनों भागों पर समानांतर विभाजित होता रहता है और थकान भी कम होती है. बहुत सी महिलाओं के पैरों में सूजन आ जाती है, वह भी इस उपाय से कम हो जाती है.

ज्यादा झुकने से बचें

यदि किचन में काफी देर काम करना है तो अच्छा है कि हर आधे घंटे बाद किचन में ही या आसपास चहलकदमी कर लें अथवा किचन में एक कुरसी रखें, उस पर बैठ जाएं. काफी देर खड़े होने से पांव की मांसपेशियां हर समय तनी रहती हैं तो दर्द होता है. पांव में सूजन आ जाती हो तो किचन में कुरसी के अलावा एक दूसरी कुरसी अथवा मूढ़ा या स्टूल रखें. उस पर आधे घंटे बाद पांव रखें और पंजों को क्लाक वाइज और एंटी क्लाकवाइज घुमाएं. 10-15 बार ऐसा करें.

किचन में काफी देर तक सब्जी आदि चलाते रहने पर सरवाइकल पेन हो जाता है और जिन्हें है उन का बढ़ जाता है. कारण है, हर समय गरदन की मांसपेशियों का तना रहना. इस के लिए थोड़ीथोड़ी देर में गरदन दाएंबाएं ऊपरनीचे घुमाते रहें.

रोटी बेलते समय, चौपिंग व कटिंग करते समय सब कुछ कमर को बिना झुकाए सही ऊंचाई पर स्थित स्लैब पर करें. पोश्चर सही रहेगा. रोटी बेलते समय गरदन को झुकाना न पड़े, यह सही स्थिति रहती है.

यदि वर्किंग स्लैब नीचा है तो उसे ऊंचा करने के लिए एक वुडन स्लैब लगाया जा सकता है पर यदि ऊंचा है तो अच्छा रहेगा कि अपनी ऊंचाई के हिसाब से पुन: बनवा लें ताकि पोश्चर ठीक रहे.

 

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