ऊंची उड़ान: स्नेहा को क्या पता चली दुनिया की सच्चाई

‘‘दीदी, तुम्हारे लिए जतिन का फोन है,’’ कह कर मैं हंसती हुई दीदी के हाथ में फोन दे कर बाहर चली गई.

तभी पिताजी की आवाज आई, ‘‘किस का फोन है इतनी रात में?’’ ‘‘जी पापा, वो…. दीदी की एक सहेली का.’’

‘‘पर मैं ने तुम दोनों से क्या कह रखा है?’’ पापा चिल्लाए तो उन की ऊंची आवाज सुन कर मैं सहम गई. मुझे लगा आज तो दीदी की खैर नहीं. वह हमारे कमरे में चले आए और दीदी को फोन पर हंसते हुए देख कर गरज पड़े.

‘‘स्नेहा, क्या हो रहा है?’’पापा की आवाज से दीदी के हाथ से रिसीवर छूट गया. पापा ने रिसीवर उठाया और उसी लहजे में बोले, ‘‘हैलो, कौन है वहां?’’

उधर से कोई आवाज न पा कर उन्होंने रिसीवर पटक दिया.

‘‘बताओ कौन था?’’

‘‘कोई नहीं पापा. नीरज भैया थे. आप उन से हमेशा नाराज रहते हैं न. इसलिए उन्होंने आप से बात नहीं की,’’ दीदी को कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने बड़ी मौसी के बेटे का नाम ले लिया.

नीरज भैया पढ़ाई पर जरा कम ध्यान देते थे. इस वजह से पापा उन्हें पसंद नहीं करते थे.

‘‘इस समय क्यों फोन किया था उस नालायक ने?’’

‘‘पापा, उन्हें मेरी कुछ पुरानी किताबें चाहिए थीं.’’

‘‘उसे कब से किताबें अच्छी लगने लगीं? 11 बज गए हैं घड़ी में अलार्म लगाओ और बत्ती बंद कर सो जाओ.’’

पापा के जाते ही मेरे मुंह से निकला, ‘‘बच गए दीदी.’’

बस, यही थी हमारी जिंदगी. मम्मीपापा, दोनों के अनुशासन के बीच झूठ के सहारे हमारी जिंदगी कट रही थी. मम्मी तो कभीकभी मनमानी करने भी देती थीं पर पिताजी, वह तो लगता था कि पूर्वजन्म के हिटलर थे.

हम दोनों बहनों पर वे ऐसी नजर रखते थे जैसे जेलर कैदियों पर रखता है. घर से बाहर हमें सिर्फ कालिज जाने की इजाजत थी. हमारे हर फोन, हर चिट्ठी, हर दोस्त पर उन की निगाह रहती और हमारे दिलों में उन का एक अजीब सा खौफ बैठ गया था. अकसर जब हम दोनों बहनें दूसरी लड़कियों को फिल्म देखने या घूमने जाने का कार्यक्रम बनाते देखते तो हमें बहुत दुख होता पर इस के अलावा हमारे बस में कुछ था भी नहीं.

इस सब के बावजूद हम दोनों बहनें एकदूसरे के बहुत करीब थीं. मैं तो फिर भी इस सब के बारे में ज्यादा नहीं सोचती थी और खुश रहती थी पर दीदी अपनों का यह व्यवहार देख कर दुखी होती थीं और उन्हें गुस्सा भी बहुत आता था. उन्हें इस बात पर बहुत हैरानी होती थी कि हमारे अपने इतना मानसिक कष्ट कैसे दे सकते हैं.

अगली सुबह जब हम कालिज जा रहे थे तो रास्ते में दीदी ने मुझ से पूछा, ‘‘नेहा, मातापिता इतना दुख क्यों देते हैं?’’

मैं कुछ पल सोचती रही कि क्या कहूं फिर चलतेचलते रुक कर बोली, ‘‘दीदी, पालने वाले जो भी दें, ले लेना चाहिए.’’

‘‘नेहा, तुम्हें इतने अच्छे खयाल कहां से आते हैं?’’ दीदी ने मेरी तरफ देखकर पूछा.

मैं ने आसमान की तरफ देखा और फिर हम हंस पड़े.

ऐसे ही खट्टेमीठे लम्हों के बीच दीदी का बी.ए. हो गया. उन दिनों मेरे पेपर चल रहे थे. जब मैं आखरी पेपर दे कर घर लौटी तो दीदी के बारे में ऐसी बातें सुनने को मिलीं जिस की कल्पना मैं ने सपने में भी नहीं की थी. मम्मीपापा दोनों मुझ पर सवाल बरसाए जा रहे थे.

‘‘बताती क्यों नहीं, किस के साथ भाग गई वह? इसी दिन के लिए पढ़ालिखा रहा था तुम दोनों को.’’

मम्मी बैठेबैठे रोए जा रही थीं. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं.

उन के पास जा कर मैं ने कहा, ‘‘मम्मी, दीदी यहीं कहीं होंगी. आप रो क्यों रही हैं?’’

‘‘उस की सब सहेलियों से पूछ लिया है, कहीं नहीं है वह,’’ मम्मी ने रोते हुए बस, इतना ही कहा था कि पापा फिर चिल्ला पड़े, ‘‘कालिख पोत दी हमारे मुंह पर.’’

इतना कह कर वह अपने कमरे में गए और दरवाजा बंद कर लिया. मैं दौड़ कर अपने कमरे में गई और हर चीज को उठाउठा कर देखा. फिर जतिन को फोन मिलाया तो उसे भी दीदी के बारे में कुछ मालूम नहीं था. मैं पलंग पर बैठ कर रोने लगी. तभी मेज पर रखी दीदी की डायरी पर नजर पड़ी. मैं ने उस के पन्ने पलटे तो एक कागज मिला जिस पर लिखा था :

प्रिय नेहा,

तुम्हें याद होगा, कुछ दिनों पहले कालिज में कैंपस इंटरव्यू हुए थे. इस के कुछ दिनों बाद ही मुझे एक कंपनी की ओर से ‘कस्टमरकेयर एग्जिक्यूटिव’ का नियुक्ति पत्र मिला था. मैं मम्मीपापा से इजाजत मांगती तो वे मुझे यह नौकरी नहीं करने देते, इसलिए बिना बताए जा रही हूं.

मुझे मालूम है, उन्हें दुख होगा पर नेहा थोड़े दिन ही सही, मैं खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं. यह मत करो, वह मत करो, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, यह मत पहनो, ये बातें सुनसुन कर मैं थक गई हूं. मुझे वहां अच्छा नहीं लगा तो मैं वापस लौट आऊंगी. तुम अपना और मम्मीपापा का ध्यान रखना.

तुम्हारी दीदी,

स्नेहा

इस खत को पढ़ने के बाद मुझे बहुत सुकून मिला. मैं ने पत्र ले जा कर मम्मी को थमा दिया.

‘‘अरे, उसे इस तरह जाने की क्या जरूरत थी? हम से पूछा तो होता…’’

‘‘अगर दीदी पूछतीं तो क्या आप उन्हें जाने देतीं?’’

उन के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. वह बुत सी बैठी रहीं और फिर रोने लगीं.

दीदी के जाने के बाद मैं ने मम्मीपापा का एक नया ही रूप देखा. दोनों हमेशा उदास रहते थे. ऐसा लगता था जैसे अंदर ही अंदर टूट रहे हों. जबकि पहले लगता था कि उन के दिल पत्थर के हैं पर अब पता चला कि ऐसा नहीं है. मम्मी की सेहत गिरती जा रही थी और पापा भी घंटों चुपचाप कमरे में बैठे रहते.

उन की तकलीफ इस बात से और बढ़ती जा रही थी कि दीदी ने जाने के बाद कोई खबर नहीं भेजी. मेरी बड़ी अजीब सी स्थिति थी. मम्मीपापा के दुख से दुखी थी पर दिल में दीदी के लिए खुशी भी थी. उन के न होने से अकसर अपनेआप से बातें कर लिया करती कि अगर मम्मीपापा दीदी से इतना ही प्यार करते थे तो उन्हें इतना दुखी क्यों किया जाता था.

कभीकभी लगता कि अच्छा ही हुआ जो दीदी चली गईं. कम से कम थोड़ा सुकून तो पाया उन्होंने.

फिर ऐसे ही एक शाम बैठेबैठे दीदी की बात याद आने लगी.

‘नेहा, एक दिन मैं पर लगा कर आसमान के उस पार उड़ जाऊंगी और सितारों से दोस्ती करूंगी.’

‘फिर मेरा क्या होगा?’

‘तुझे भी अपने साथ ले जाऊंगी.’

‘और जतिन का क्या होगा?’

‘वह…वह तो बस, मेरा दोस्त है जो पता नहीं कैसे बन गया? उसे धरती पर ही रहने दो. आसमान पर सिर्फ हम दोनों चलेंगे.’

और फिर हम जोर से हंस पड़े थे.

वक्त अच्छा हो या बुरा, थमता नहीं है. मेरे आसपास सबकुछ ठहर गया था. मुझे अब दीदी की चिंता होने लगी थी. 3 महीने गुजर जाने के बाद भी उन्होंने कोई खबर नहीं भेजी. इस बीच मुझे यह भी एहसास हो गया कि मातापिता भले ही पत्थर से लगते हों, उन का दिल तितली के पंखों से भी नाजुक होता है.

रविवार के दिन मम्मीपापा को चाय दे कर मैं बरामदे में बैठी ही थी कि गेट खुलने की आवाज आई. देखा तो दीदी थीं. मैं दौड़ कर उन के पास  गई. जब हम गले मिले तो हमारी आंखें भर आईं. मैं ने वहीं से मम्मीपापा को बाहर आने की आवाज दी.

दोनों जब बाहर आए तो दीदी उन के सामने हाथ जोड़ कर रोने लगीं. दोनों ने कुछ भी नहीं कहा. मैं ने उन का सामान उठाया और हम अंदर आ गए.

दीदी को मैं ने पानी दिया. थोड़ा सा पानी पी कर वह पापा से बोलीं, ‘‘आप बहुत नाराज हैं न पापा मुझ से?’’

‘‘नहीं…हां, बच्चे गलती करेंगे तो मांबाप नाराज नहीं होंगे?’’

‘‘होंगे न पापा. होना भी चाहिए. वहां हास्टल में आप तीनों को मैं बहुत मिस करती थी. सितारों से दोस्ती करने गई थी पर उन के पास जा कर पता चला कि वे सिर्फ धरती से ही खूबसूरत दिखाई देते हैं. उन्हें छूना चाहो तो हाथ जल जाता है. मैं अपनी जमीन पर लौट आई हूं पापा. मुझे माफ करेंगे न?’’

पापा ने प्यार से दीदी के सिर पर हाथ फेरा. उस के बाद दीदी ने मम्मी से भी माफी मांगी. उस रात हम लोग चैन से सोए.

‘‘मैं तुम दोनों को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए ही पढ़ा रहा हूं. तुम्हें नौकरी करनी है तो कर लेना पर पहले अच्छी तरह से पढ़ तो लो, बेटा. उच्च शिक्षा लोगे तो और भी अच्छी नौकरी मिलेगी,’’ नाश्ते की मेज पर पापा की यह बात सुन कर हमें बहुत अच्छा लगा.

दीदी ने एम.ए. में एडमिशन लिया. अब घर में ज्यादा सुकून था. हमारे सारे दोस्त व सहेलियां घर आजा सकते थे और कभीकभी हमें भी उन के साथ बाहर जाने की इजाजत मिल जाती. दीदी को यकीन हो गया था कि सच्ची खुशियां अपनों के ही बीच मिलती हैं.

ऐसे ही एक खुशी के पल में दीदी के साथ मैं एक पार्क के बाहर खड़ी हो कर नारियल पानी पी रही थी. अचानक मुझे एक खयाल आया तो बोल पड़ी, ‘‘दीदी, क्या आप को नहीं लगता कि मांबाप नारियल की तरह होते हैं या ये कहें कि कुछ रिश्ते नारियल जैसे होते हैं, यानी अंदर से मीठे और बाहर से रूखे.’’

दीदी ने मुझे अपने पुराने अंदाज में देखा और बोलीं, ‘‘नेहा, तुम्हें इतने अच्छे खयाल कहां से आते हैं?’’

और इसी के साथ हम दोनों आसमान की ओर देख कर हंस पड़े.

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जिंदगी की धूप: मौली के मां बनने के लिए क्यों राजी नहीं था डेविड

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अभिनेत्री महिमा मकवाना के संघर्ष और सफलता का राज क्या है, जानिए खुद उन्हीं से…

खूबसूरत और हंसमुख महिमा मकवाना टीवी और फिल्म अभिनेत्री हैं. उन्होंने मुख्य रूप से हिंदी टीवी सीरियल में काम कर अपनी पहचान बनाई है. महिमा का टीवी इंडस्ट्री में डेब्यू, शो ‘सपने सुहाने लड़कपन के’ साथ हुआ, जिस के बाद महिमा कई टीवी सीरियल्स मसलन, ‘रिश्तों का चक्रव्यूह,’ ‘मरियम खान’ और ‘शुभारंभ’ जैसे टीवी धारावाहिकों में काम किया.

2017 में महिमा ने सब से पहले तेलुगु फिल्म ‘वेंकटपुरम’ से अपना डेब्यू किया था. उन का बचपन मुंबई में ही गुजरा और उन की पढ़ाई भी मुंबई में हुई. महिमा जब 5 महीने की थीं, तब उन के पिता का निधन हो गया था. उन्होंने बाल कलाकार के रूप में अभिनय शुरू किया. महिमा और उन के बड़े भाई की मां ने ही परवरिश की, जो एक सोशल वर्कर रहीं.

करियर की शुरुआत

महिमा ने बचपन में ही टीवी की दुनिया में काम करना शुरू कर दिया था. दरअसल, सब से पहले वे ‘मिले जब हम तुम’ और ‘बालिका वधू’ में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट नजर आई थीं. हालांकि महिमा ने बतौर ऐक्ट्रैस सीरियल ‘मोहे रंग दे’ से टीवी की दुनिया में डेब्यू किया था. महिमा को सफलता सीरियल ‘सपने सुहाने लड़कपन के’ से मिली, जिस के बाद वे घरघर में पहचानी जाने लगीं. इस के अलावा वे ‘सीआईडी,’ ‘आहट,’ ‘मिले जब हम तुम’ और ‘?ांसी की रानी’ में नजर आ चुकी हैं.

बड़े परदे पर महिमा ने तेलुगु फिल्म ‘वेंकटपुरम’ से फिल्म डेब्यू किया था. इस के बाद वे शौर्ट फिल्म ‘टेक 2’ में नजर आई. वैब सीरीज की दुनिया में भी महिमा अपना नाम रोशन कर चुकी हैं. सब से पहले वे ‘रंगबाज सीजन 2’ में नजर आई थीं. इस के बाद उन्होंने ‘फ्लैश’ में भी काम किया. इस के अलावा उन्होंने सलमान खान की फिल्म ‘अंतिम: द फाइनल ट्रुथ’ से बौलीवुड डेब्यू किया था, जो कमोवेश सफल रही. उन की वैब सीरीज ‘शोटाइम’ को लोगों ने काफी पसंद किया. उन्होंने इंडस्ट्री में अपनी जर्नी के बारे में बात की, आइए जानें:

राह नहीं थी आसान

टीवी से फिल्मों में आना महिमा के लिए आसान नहीं था. वे कहती हैं, ‘‘जब आप का चेहरा बारबार टीवी पर दिखने लगता है तो टाइपकास्ट होना स्वाभाविक होता है, लेकिन कठिन परिश्रम करने से उस में सफलता मिलती है. इस में जरूरी होता है, छोटा या बड़ा मौका मिलना क्योंकि बिना मौके के आप कुछ भी पू्रव नहीं कर सकते. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ है. फिल्म ‘अंतिम द फाइनल ट्रुथ’ में सिर्फ 15 मिनट का चरित्र था, लेकिन मैं ने उसे अच्छा कर दिखाया और दर्शकों ने पसंद किया.

‘‘मैं एक मध्यवर्गीय परिवार से हूं और इंडस्ट्री से न जुड़े होने की वजह से थोड़ी मुश्किलें आती हैं, लेकिन धीरज और शांत रह कर आप को मौके की तलाश करते रहना पड़ता है, हालांकि यह बहुत कठिन होता है, पर नामुमकिन भी नहीं होता. धर्मा प्रोडक्शन के साथ इस सीरीज में काम करना मेरे लिए अच्छी बात रही है. जब काम नहीं था तो मेरे मन में भी कई बार नकारात्मक विचार आते थे कि मेरा फिल्मी कैरियर सफल होगा या नहीं, लेकिन मैं ने नैगेटिव बातों से निकल कर सकारात्मक सोच बनाए रखी.’’

रखना पड़ता है विश्वास

महिमा कहती हैं, ‘‘खुद पर हमेशा विश्वास रखना पड़ता है और यह कठिन होता है. फिल्म ‘अंतिम द फाइनल ट्रुथ,’ 2021 में रिलीज हुई थी. उस के बाद मु?ो अच्छी सीरीज में काम मिला. अपनी जर्नी को अगर मैं देखती हूं तो मैं ने 2011 से टीवी पर अच्छी शुरुआत की थी. तब से ले कर आज तक बहुत समय बीत गया है, जब मैं खुद को कुछ सफल मान रही हूं, लेकिन इन 3 सालों में खुद को व्यस्त रखना काफी मुश्किल था. जब मैं टीवी पर काम कर रही थी तो लगातार व्यस्त रहती थी. लाइफ नहीं रहती.

‘‘पहली फिल्म के बाद मैं ने कई फिल्मों के लिए शूट किया भी था, लेकिन रिलीज नहीं हुईं, ऐसा कई बार हुआ कि औडिशन दिया, सबकुछ सही था, लेकिन अंत में भूमिका किसी दूसरे को मिल गई. मैं कुछ कर नहीं सकती थी. तभी शोटाइम सीरीज आ गई, फिर मैं ने खुद पर काम किया. असल में टीवी पर काम करने पर पूरी लाइफ प्रोफैशन बन जाती है, निजी जिंदगी खत्म हो जाती है. फिल्म में काम करते वक्त समय काफी होता है और उसे सही तरह से बिताने के लिए सोचना पड़ता है.’’

काम पर अधिक ध्यान

आलोचकों का महिमा के जीवन में अधिक प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि वे उन के हिसाब से फिल्म की कहानी को जज करते हैं. महिमा का कहना है, ‘‘एक फिल्म को बनाने में सालों का समय लगता है. ऐसे में आलोचक इस बात को बिना ध्यान रखे. अपनी राय रख देते हैं. मैं उस बारे में अधिक नहीं सोचती और उस फिल्म को अपने नजरिए से देखना पसंद करती हूं. रिव्यू हमेशा पर्सनल होते हैं और किसी को टारगेट करना ही उन का काम होता है.

‘‘मेरी फिल्म ‘अंतिम: द फाइनल ट्रुथ’ के बारे में काफी लोगों ने मेरे काम की तारीफ की. मुझे अच्छा लगा क्योंकि इस से मैं अपने काम को ले कर सब के बीच जांची गई. इस का फायदा मैं तब मानती हूं, जब मेरे दूसरे अधिक प्रोजैक्ट मुझे करने को मिलें.’’

बदली है जिंदगी

पहले और आज की महिमा में काफी बदलाव आया है. वे कहती हैं, ‘‘आज की महिमा धैर्यवान हो चुकी है. पहले अगर कुछ नहीं होता था तो बहुत गुस्से में आ जाती थी. 24 साल की उम्र में मैं अभी भी बहुत कुछ सीख रही हूं. मैं अभी हर चीज को स्वीकार करना सीख रही हूं, जो मु?ो आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है. इस के अलावा मैं अभी भी वही मिडल क्लास लड़की हूं, जो मां से हमेशा डांट खाती है क्योंकि वे बहुत स्ट्रिक्ट हैं. वित्तीय रूप से मैं थोड़ी सफल हूं.

‘‘मैं अभी भी परिवार की अकेली कमाने वाली हूं. मैं ने अपने पिता को 9 साल की उम्र में खोया है. वित्तीय रूप से इंडस्ट्री में कभी भी कोई सुरक्षित नहीं होता. आज काम है तो कल का पता नहीं होता. यह सही है कि कई बार पैसे के लिए भी सही काम न होने पर भी कर लेना पड़ता है और मुझे इसे स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं. इंडस्ट्री आसान नहीं है. यहां सही काम मिलना बहुत कठिन होता है.’’             –

 

जब ममता ने दिखाई क्षमता तो मिली कामयाबी

दुनिया में बच्चे को सब से ज्यादा प्यार करने वाली महिला मां होती है. मां एक बच्चे की न सिर्फ परवरिश करती है बल्कि उस के हर नखरे भी सहती है. अपनी जरूरतें भूल कर बच्चे के लिए जीने लगती है. बच्चे को सही तालीम देने और लायक बनाने का दायित्व निभाती है. बच्चे के दर्द को अपना दर्द सम?ाती है और उस की हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है. किसी भी मुसीबत से लड़ जाती है. मगर कई दफा हम इस मां के दर्द को नहीं सम?ा पाते. उसे इग्नोर करने लगते हैं.

आसान नहीं मां होना

बच्चे के पैदा होने से ले कर उस की देखभाल करना, पालनपोषण करना, उस का खयाल रखना, बच्चे की हर जरूरत को पूरा करते हुए घर भी संभालना और परिवार के बाकी सदस्यों के शैड्यूल के हिसाब से तालमेल बैठा कर चलना इन सब के पीछे एक मां का काफी वक्त और मेहनत लगती है. दरअसल, बच्चों की देखभाल करना किसी फुलटाइम जौब से कम नहीं है और वह भी एक नहीं बल्कि ढाई फुलटाइम जौब के बराबर.

सच तो यह है कि बच्चे के जन्म के साथ ही मां अपनेआप को भूल जाती है. कामकाजी महिलाओं के लिए खासतौर पर अपने काम और बच्चे की देखभाल को मैनेज करना कठिन होने लगता है. ऐसे में वह अपने कैरियर के बदले बच्चे को प्राथमिकता देती है. मगर क्या यह उचित है?

हफ्ते में 98 घंटे का वक्त मां देती है

बच्चे को

एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मांएं बच्चों की देखभाल के पीछे 1 हफ्ते में अपना 98 घंटे का वक्त देती हैं. यूएस में हुए एक सर्वे में वैसी 2 हजार मांओं को शामिल किया गया था जिन के बच्चों की उम्र 5 साल से 12 साल के बीच थी. इस सर्वे में यह बात सामने आई कि एक सामान्य दिन में औसतन एक मां का दिन सुबह 6 बज कर 23 मिनट पर शुरू होता है जो रात में 8 बज कर 31 मिनट तक जारी रहता है.

इतने वक्त को अगर वर्किंग शिफ्ट में देखा जाए तो यह हफ्ते के सातों दिन 14 घंटे की शिफ्ट के बराबर है जो किसी भी नौर्मल फुलटाइम जौब से कहीं अधिक है. वैसे देखा जाए तो भारतीय मांएं सुबह 5 बजे से ही बच्चों के कामों में लग जाती हैं और रात 11 बजे तक काम ही निबटाती रहती हैं.

इस सर्वे में यह बात भी सामने आई कि औसतन हर दिन एक मां अपने लिए सिर्फ 1 घंटा 7 मिनट का समय ही बचा पाती है, साथ ही करीब 40त्न मांओं को ऐसा लगता है कि उन के जीवन में कभी न खत्म होने वाले काम हावी रहते हैं.

इस से पहले 2013 में हुई एक स्टडी में यह बात सामने आई थी कि औसतन एक मां के हर दिन के टूडू लिस्ट में 26 काम शामिल होते हैं जिन में ब्रेकफास्ट बनाने से ले कर टिफिन तैयार करना और जरूरी अपौइंटमैंट डेट्स को याद रखना शामिल है.

रोमांटिक रिश्ते भी हो सकते हैं बरबाद

जब लोग शादी करते हैं तो वे आमतौर पर प्यार में होते हैं और शादी के बंधन में बंधने से खुश होते हैं. लेकिन उस के बाद चीजें बदल जाती हैं. शादी के पहले वर्षों के दौरान जोड़ों की अपनी शादी से संतुष्टि में गिरावट आती है और यदि गिरावट विशेषरूप से तीव्र है तो तलाक हो सकता है. लगभग 30 वर्षों तक शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया है कि बच्चे होने का विवाह पर क्या प्रभाव पड़ता है. दरअसल, बच्चे आने के बाद पतिपत्नी के बीच संबंध खराब हो जाते हैं.

बच्चों वाले और बिना बच्चों वाले जोड़ों की तुलना करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि निस्संतान जोड़ों की तुलना में उन जोड़ों में रिश्ते की संतुष्टि में गिरावट की दर लगभग दोगुनी है जिन के बच्चे हैं.

ऐसी स्थिति में जब गर्भावस्था अनियोजित होती है तो मातापिता अपने रिश्ते पर और भी अधिक नकारात्मक प्रभाव का अनुभव करते हैं.

वैवाहिक संतुष्टि में यह कमी सामान्य जीवन की खुशियों में भी कमी लाती है. बहुत से युवा जोड़े सोचते हैं कि बच्चे होने से वे एकदूसरे के करीब आएंगे मगर होता उलटा है.

प्रेमी जोड़ा मातापिता में बदल जाता है

घर में एक बच्चे के आने से जोड़ों के बातचीत करने के तरीके में बदलाव आता है. वे अकसर एकदूसरे से अधिक दूर और व्यावहारिक हो जाते हैं क्योंकि उन की जिंदगी की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. वे बच्चे के पालनपोषण की बारीकियों पर ध्यान देते हैं.

बच्चों को खाना खिलाना, नहलाना और कपड़े पहनाना जैसी बुनियादी बातों में ऊर्जा और समय लगाने लगते हैं. रोमांटिक प्यार भरी बातों के बदले वे बच्चे के डायपर और कपड़ों की दुकानों पर चर्चा करते हैं. दोस्तों या पति के साथ टाइम आउट, डेट नाइट्स, लौंग शौवर्स जैसी चीजें माताओं को न चाहते हुए भी त्यागनी पड़ती है.

क्या कहते हैं आंकड़े

अगर आंकड़ों पर ध्यान दें तो 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों वाली 70.6त्न माताएं कामकाजी हैं. 44त्न कामकाजी माताएं अंशकालिक काम करती हैं जबकि अन्य

56त्न पूर्णकालिक काम करती हैं. 2021 में 39त्न कामकाजी माताएं अपने परिवार की प्राथमिक कमाने वाली थीं.

40त्न कामकाजी माताओं को लगता है कि मातापिता बनने की जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने कैरियर के अवसर गवां दिए हैं. 2017 में बच्चों वाले सभी विवाहित दंपती परिवारों में से 63त्न दोहरे कमाने वाले जोड़े थे. 78त्न कामकाजी माताओं का कहना है कि उन की नौकरी उन्हें मातापिता होने के अलावा पहचान की भावना भी देती है.

जो माताएं घर से काम करती हैं वे बच्चों की देखभाल पर प्रतिदिन अतिरिक्त 49 मिनट खर्च करती हैं, उन की तुलना में जो विशेष रूप से कार्यालय में काम करती हैं. 54त्न कामकाजी माताएं कार्य जीवन संतुलन को एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बताती हैं. 36त्न कामकाजी माताओं की रिपोर्ट है कि बच्चे पैदा करने के परिणामस्वरूप उन के कैरियर की प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

यह आंकड़ा उन चुनौतियों की याद दिलाता है जिन का कामकाजी मांएं अपने कैरियर में सामना करती हैं. हाल के वर्षों में हुई प्रगति के बावजूद कामकाजी माताओं को समान अवसर प्रदान करने के मामले में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है.

मां कामकाजी हो या घरेलू उसे परेशानियां तो आएंगी ही मगर इन का सामना खुश हो कर करना जरूरी है. वैसे भी मातृत्व का तोहफा हर किसी को नहीं मिलता.  आप को इस तोहफे से नवाजा गया है तो बस इस की वैल्यू और सबकुछ मैनेज करने के तरीके सम?ाने होंगे:

मां बनना आप की प्रमोशन है

मां बनना अपनेआप में आप की जिंदगी की एक प्रमोशन है. आप की जिंदगी एक स्टैप आगे बढ़ती है. आप के पास आप का एक अंश होता है जिसे आप अपने हिसाब से बड़ा करेंगे और कामयाब बनाएंगे. यह एहसास कि वह आप के जैसा है और जिसे आप को काबिल इंसान बनाना है. मां बनने के बाद स्त्री अपने बच्चों के लिए कुछ भी त्याग करने को तैयार होती है. उस के अंदर जिम्मेदारी की भावना आती है. वह अधिक अनुशासन और व्यस्त जिंदगी जीती है.

वह अपनी जिंदगी में सबकुछ अच्छा करना चाहती है ताकि उस का बच्चा कुछ अच्छा सीखे. यही वजह है कि बच्चे पैदा होने के बाद महिला हो या पुरुष वह ज्यादा बेहतर इंसान बनता है.

बेहतर बनती हैं आप

एक महिला जब मां बनती है तो वह अपने अंदर एक बेहतर महिला को पाती है. यह आप का बहुत बड़ा अचीवमैंट है. मातृत्व आप की जिंदगी का एक बहुत बड़ा तोहफा है. इसे बहुत ही सकारात्मक रूप में लेना चाहिए. जिन के बच्चों नहीं होता उन के अंदर एक कमी का एहसास रहता है. आप उस एहसास से आजाद हो चुकी हैं. आप मां बन चुकी हैं.

मां बनने के लिए आप को अगर थोड़ाबहुत त्याग करना पड़े, अपना कैरियर कुछ समय के लिए होल्ड पर रखना पड़े तो घबराए नहीं बल्कि कुछ और रास्ते चुनें ताकि आप मां बनने और इस की जिम्मेदारी निभाने के साथसाथ अपने कैरियर को अलग अंदाज में आगे बढ़ाएं. मां बन जाने का मतलब यह नहीं होता कि अब आप का कैरियर नहीं है या आप को पूरी तरह बच्चों में इन्वौल्व रहना है. ऐसा नहीं है.

बेवजह ऐनर्जी बरबाद न करें

आप मां बनती हैं और बच्चे को बड़ा करती हैं लेकिन इस दौरान अपनेआप को बेहतर बनाना न छोड़ें. आप अपनी पूरी ऐनर्जी बच्चे पर ही खत्म न करें. अपना एक निश्चित समय बच्चे को जरूर दें लेकिन कुछ समय अपने लिए भी रखें.

बहुत सी महिलाएं होती हैं जो बच्चों के लिए जरूरत नहीं हैं तो भी कपड़े खरीद कर ला रही हैं, खिलौने ला रही हैं. किसी चीज की कोई सीमा ही नहीं रखतीं. वे पूरा समय बच्चे के साथ ही उस के कमरे को सजाती रहती हैं. उस की जो जरूरत की चीज नहीं है वह भी तैयार करती हैं या खरीद कर लाती हैं. खिलौनों से कमरे भर देती हैं. स्वैटर बुनती हैं जबकि मार्केट में रैडीमेड अच्छे से अच्छे स्वैटर उपलब्ध हैं.

खुद पर भी काम कीजिए

इन सब चीजों में अपनी ऐनर्जी जाया करने के बजाय आप एक निश्चित समय अपने बच्चों को दीजिए. जितनी जरूरत है उतना समय जरूर दीजिए. लेकिन थोड़ा सा समय और ऐनर्जी अपने लिए भी खर्च कीजिए. आप अभी औफिस नहीं जा रही हैं या जौब छोड़ दी है या छुट्टी पर हैं, जो भी हो पर अपने समय का उपयोग कीजिए. अपनी स्किल को बेहतर बनाने के लिए कुछ नया सीखिए.

अपने काम से रिलेटेड कुछ नई स्किल्स सीखिए या घर से ही ऐसा कुछ काम करिए ताकि अर्निंग हो और आप का मनोबल बढ़े. आप को लगे कि आप कुछ कर रही हैं. छोटीछोटी चीज जो आप सीखती हैं वह आगे काम आएगी. इसलिए आप को जितना मौका मिले अपनेआप को स्किलफुल बनाएं, कुछ नया करें, कुछ नया सीखें. मां बनने का मतलब अपनेआप से अलग होना नहीं है.

बच्चे के लिए सेफ प्रोडक्ट्स की तलाश में

मामार्थ कंपनी की फाउंडर गजल अलग को ‘बिजनैस टुडे’ और ‘फौर्च्यून इंडिया मोस्ट पावरफुल वूमन 2023,’ ‘ईटी 40 अंडर 40,’ ‘सीएनबीसी वूमन फास्ट फौरवर्ड वूमन अचीवर अवार्ड,’ ‘बिजनैस टुडे मोस्ट पावरफुल वूमन 2024,’ ‘बिजनैस वर्ल्ड 40 अंडर 40’ जैसे कई अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है. वे देश की शीर्ष 10 महिला कलाकारों की सूची में शामिल हैं. एक कौरपोरेट ट्रेनर, एक कलाकार और नामचीन बिजनैस वूमन होने के साथ गजल एक मां भी हैं.

मां होने के नाते गजल को भी अपने बच्चे की परवरिश के दौरान कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा मगर उन्होंने महसूस की गईं अपनी प्रौब्लम्स का न सिर्फ खुद के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी ऐसा सौल्यूशन निकाला कि एक बड़ा बिजनैस ही खड़ा कर दिया. उन्होंने नैचुरल बेबी और ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी मामार्थ की शुरुआत की ताकि नन्हे बच्चों को टौक्सिक कैमिकल्स का सामना न करना पड़े.

गजल बताती हैं कि जब बड़ा बेटा पैदा हुआ तब बेटे के लिए वे नैचुरल और टौक्सिन फ्री प्रोडक्ट्स ढूंढ़ रही थीं. उन्हें इस की जानकारी थी क्योंकि वे यू एस रह कर आई थीं. उस दौरान वहां दुकानों की सैल्फ से एक खास ब्रैंड के प्रोडक्ट्स हटाए जा रहे थे क्योंकि माना जा रहा था कि उन में कार्सिनोजेंस इनग्रीडिऐंट्स होते हैं. उन के बेटे अगस्त्य के लिए जो गिफ्ट्स आए थे उन में उस ब्रैंड के प्रोडक्ट्स भी थे. गजल ने उन का उपयोग करना रोका. इधर अगस्त्य को स्किन इशू था. उस की स्किन काफी सैंसिटिव थी. उस समय गजल ने महसूस किया कि भारत के ज्यादातर प्रोडक्ट्स उसे सूट नहीं कर रहे थे.

एक दिन पति से इस बारे में बात की कि इंडिया में कोई ब्रैंड इस बारे में कुछ कर क्यों नहीं रहा? इंडियन बच्चों को भी अच्छे प्रोडक्ट्स चाहिए. तब वरुण ने कहा कि कोई नहीं कर रहा है तो फिर आप क्यों नहीं करतीं? तब उन्होंने रिसर्च करनी शुरू की और मामार्थ की शुरुआत का फैसला लिया. दिसंबर, 2016 में 6 बेबी केयर प्रोडक्ट्स के साथ उन्होंने इस की शुरुआत की.

मामार्थ के बेबी प्रोडक्ट्स सेफ, टौक्सिन फ्री और नैचुरल इनग्रीडिऐंट्स से तैयार होते हैं. उन्होंने मेड सेफ और्गेनाइजेशन से अपने प्रोडक्ट्स सर्टिफाइड कराए. मामार्थ एशिया का पहला ब्रैंड था जो मेड सेफ सर्टिफाइड था. इस तरह अपने बच्चे को सेफ प्रोडक्ट्स दिलाने की जंग में उन्होंने सेफ टौक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट्स बनाने शुरू किए और बड़ा ऐंपायर खड़ा कर लिया.

परिवार की सपोर्ट से आगे बढ़ीं रिद्धि भगत

रिद्धि भगत एक कौरपोरेट लीगल कंसल्टैंट हैं और ‘बिंज औन बेक्ड’ की फाउंडर भी हैं. बेकिंग उन के लिए किसी जनून से कम नहीं है. हर किसी की जिंदगी में किसी एक काम को ले कर पैशन होता है उसी तरह बेकिंग हमेशा से उन का पैशन रहा. बतौर कौरपोरेट लीगल कंसल्टैंट काम करते हुए उन्होंने ‘बिंज औन बेक्ड’ की शुरुआत की. ‘बिंज औन बेक्ड’ को लौंच करने का मकसद लोगों को एक सेहतमंद अनुभव से रूबरू करवाना था और इस में वे बहुत हद तक सफल भी रही हैं. उन के सब से अहम प्रोडक्ट्स में कुकीज, केक, पफ्स, पिज्जा, क्रस्ट, ब्रैड, बंस, रस्क और अन्य स्वादिष्ठ स्नैक्स शामिल हैं.

आगरा की रहने वाली 33 साल की रिद्धि  कहती हैं कि जब हम अपने जनून को पाने और उसे पूरा करने की राह चुनते हैं तो हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां आती हैं. मु?ो भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. मेरे 2 बच्चे हैं और उन के साथ अपने बिजनैस को संभालना एक बहुत बड़ी चुनौती थी खासकर जब मेरे बच्चे बीमार पड़ते.

ऐसे में मेरा अपने काम पर जाना भी बहुत जरूरी होता तो उस वक्त फैसला लेना आसान नहीं होता था. मगर मेरे सासससुर और परिवार ने मुश्किल वक्त में मेरा पूरा साथ दिया. उन की बदौलत ही मैं अपने काम और परिवार के बीच संतुलन बना सकी.

बच्चे के साथ काम संभाला अपेक्षा निरंजन ने करीब 40 साल की अपेक्षा निरंजन भरतनाट्यम डांसर, कोरियोग्राफर और टीचर हैं. वे अन्य भाषाओं के ज्ञान में भी रुचि रखती हैं जैसेकि अंगरेजी, हिंदी, मराठी, पोलिश, संस्कृत, और तमिल. उन का नृत्य सफर कोल्हापुर से शुरू हुआ जहां उन्होंने कथक का अध्ययन किया. बाद में उन्हें भरतनाट्यम से प्रेम हुआ. मुंबई के अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय मंडल से मास्टर्स डिगरी हासिल की और नालंदा नृत्य अनुसंधान केंद्र से भरतनाट्यम में एक एडवांस्ड डिप्लोमा किया. उन्होंने कई मराठी फिल्मों में अभिनय किया है. इस में ‘जुं?ार,’ ‘मिंगो,’ ‘संग प्रिये तू कुनाची,’ ‘अता लग्नाला चाला,’ ‘आमची दीदी’ और ‘ओवलानी’ जैसी प्रमुख फिल्में शामिल हैं.

अपेक्षा निरंजन पिछले 19 वर्षों से नवी मुंबई में स्थित अपने संस्थान, नृत्यांजलि परफौर्मिंग आर्ट्स के माध्यम से भरतनाट्यम की कला दूसरों तक पहुंचा रही हैं. उन्हें प्राप्त पुरस्कारों में राष्ट्रीय सर्वोत्तम कलाकार पुरस्कार, नृत्य शिरोमणि पुरस्कार, युवा कला रत्न पुरस्कार, वेंगी कला रत्न पुरस्कार, नूपुर कला रत्न पुरस्कार, नटराज सम्मान, नृत्य ज्योति उपाधि, नाट्यकला चूड़ामणि उपाधि, नृत्यरंजिनी उपाधि आदि शामिल हैं.

अपेक्षा निरंजन बताती हैं कि जब मेरा बेटा रूद्र हुआ. उस समय मैं डांस क्लासेज कर रही थी और छोटेछोटे प्रदर्शन कर रही थी. भरतनाट्यम की पढ़ाई भी कर रही थी. बच्चों का ध्यान

रखना, उन की देखभाल करना मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था.

जब मैं क्लास कर रही थी मैं हमेशा रूद्र को साथ लेती और उसे सुलाती. उस के बाद मैं अपने काम शुरू करती. ऐसा ही रूटीन हम ने उस के स्कूल जाने के बाद भी जारी रखा. जब वह घर पर नहीं होता था तब मैं अपनी क्लासेज और प्रैक्टिस समाप्त कर लेती थी. मु?ो हमेशा अपने परिवार का समर्थन मिलता रहा है. मेरे पति ने मु?ो हमेशा सहारा दिया, चाहे वे घर के काम हों या मेरी क्लासेज.

जौब के साथ बच्चे की परवरिश

डा. रेनी जौय ने अपने कैरियर की शुरुआत बैंकिंग सैक्टर से की और ‘सिटी बैंक,’ ‘जीई मनी’ और ‘आरबीएस’ जैसे बड़े बैंकों में उच्च पदों पर काम किया. उस के बाद खुद का काम शुरू करने के मकसद से बैंकिंग सैक्टर की नौकरी छोड़ने का फैसला किया. नौकरी छोड़ने के बाद ला फर्म शुरू की और बतौर कौरपोरेट लायर काम शुरू कर दिया. फिर आलेख फाउंडेशन की शुरुआत की जो एक एनजीओ है. यह महिलाओं और युवाओं के अधिकारों के लिए काम करता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण जैसे मुद्दों पर भी लोगों को जागरूक करता है.

डा. रेनी जौय बताती हैं कि जब मेरी बेटी का जन्म हुआ तो मेरे सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी हो गईं. बैकिंग सैक्टर में एक फुलटाइम जौब और उस के साथ मां के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को निभाना उस वक्त काफी मुश्किल साबित हो रहा था. एक चुनौती यह भी थी कि इन सब मुश्किलों के बीच घर के माहौल को सकारात्मक बनाए रखा जाए. उस मुश्किल वक्त में मेरी मां और नानानानी ने बच्चों की देखभाल में मेरी मदद की.

अपने काम के लिए मु?ो अकसर एक जगह से दूसरी जगह की लंबी यात्रा करनी होती थी और उस टाइम को भी मैं ने बहुत सही तरीके से मैनेज किया. फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरी बेटी बीमार पड़ गई. तब मेरे लिए घर और काम के बीच संतुलन बनाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो गया था. लेकिन परिवार के समर्थन से वह मुश्किल दौर भी गुजर गया.

 

कर्ली बाल और अंडरआर्म्स के कालेपन से छुटकारा पाने का तरीका बताएं?

सवाल- 

मेरी उम्र 24 साल है. मेरे सिर के आगे के बाल कर्ली हैं. कृपया उन्हें ठीक करने का उपाय बताएं?

जवाब-

आप के बालों का नैचुरल टैक्स्चर तो बदलेगा नहीं पर हां, अपने बालों में रीबौंडिंग करा कर आप उन्हें कुछ समय के लिए ठीक करा सकती हैं. इस के अलावा बालों को प्रैसिंग द्वारा भी ठीक करा सकती हैं. पर इसे नियमित न करें, क्योंकि इस प्रक्रिया से बालों को नुकसान होता है. सीरम या जैल द्वारा भी बालों की सैटिंग की जा सकती है.

सवाल-

मैं 30 वर्षीय हूं. मेरी गरदन और अंडरआर्म्स पर कालापन है. जिस के कारण मुझे शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. कृपया मेरी समस्या का कोई उपाय बताएं?

जवाब-

यह कोलैस्ट्रौल की कमी से होता है. त्वचा के कालेपन को दूर करने के लिए नीबू के रस में खाने का सोडा मिला कर नीबू के छिलके से रगड़ें. कुछ समय ग्लिसरीन, नीबू, गुलाबजल और मुलतानी मिट्टी का पैक बना कर चेहरे पर लगाएं. उसे 20 मिनट तक लगा रहने दें. सूखने पर ठंडे पानी से धो लें. गरदन में कालापन आर्टिफिशियल चैन पहनने से भी होता है, क्योंकि उस की पौलिश त्वचा के लिए हार्मफुल होती है. इसे पहनने से बचें.

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चेहरे की रंगत निखारने के लिए आप कई तरह के क्रीम, लोशन और मास्क का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन क्या आपने कभी अपने अंडरआर्म्स पर गौर किया है? समय की कमी के कारण आप रेजर यूज कर लेती हैं लेकिन रेजर यूज करने के साइड-इफेक्ट बहुत बाद में उनके सामने आते हैं. कुछ लोग हेयर-रीमूवल क्रीम  का भी इस्तेमाल करते हैं लेकिन इनमें भी मौजूद केमिकल्स भी स्क‍िन पर बुरा असर डालते हैं.

अगर आपको भी अंडरआर्म्स से जुड़ी ये परेशानी होती हैं तो इन घरेलू टिप्स को अपनाकर आप इससे छुटकारा पा सकती हैं.

1. नारियल तेल

शरीर पर मौजूद हर तरह के दाग-धब्बों के लिए नारियल तेल लगाने की सलाह दी जाती है. नारियल तेल को आप चाहें तो कपूर के साथ मिलाकर भी लगा सकते हैं. इसमें मौइश्चराइज करने का गुण पाया जाता है.

2. आलू

आलू एक नेचुरल ब्लीच है. आलू को गोलाई में पतले-पतले स्लाइस में काट लें. इन स्लाइस से पांच से सात मिनट तक अंडरआर्म्स की मसाज करें. फिर ठंडे पानी से अंडरआर्म्स साफ कर लें. सप्ताह में दो से तीन बार करने से आपको फायदा होगा.

3. नींबू और बेकिंग सोडा का मिश्रण

नींबू भी एक नेचुरल ब्लीच है. लेकिन अगर आपके अंडरआर्म्स बहुत अधि‍क काले हो चुके हैं तो इसमें थोड़ी सी मात्रा में बेकिंग सोडा भी मिला सकती हैं. नींबू और बेकिंग सोडा के मिश्रण को आप स्क्रब की तरह भी यूज कर सकती हैं. इस उपाय को भी आप सप्ताह में दो से तीन बार प्रयोग में ला सकती हैं.

 

ऐसे जिएं खुद की जिंदगी

जिस व्यक्ति से आप प्यार कर रहे हैं, वह आप के प्यार के काबिल नहीं है तो फिर क्या करें ‘है तुझे भी इजाजत कर ले तू भी मुहब्बत…’ यही गाना बज रहा था और मैं सोचने लगी की मुहब्बत करने के लिए किसी से इजाजत लेनी पड़ती है क्या? मुहब्बत के बारे में तो कहा जाता है कि यह वह आग है जो लगाए न लगे और बु  झाए न बु  झे. तो अगर यह आग किसी के मन में किसी के प्रति लग गई तो वह स्त्री या पुरुष क्या करे.

अब क्या ही फर्क पड़ता है कि वह शादीशुदा है या कुंआरी. अगर शादीशुदा जिंदगी में बहुत फीकापन है. बस जिंदगी को काटा जा रहा है. जिम्मेदारी के बोझ को अनचाहे ढोना ही जिंदगी नहीं कहलाती है.

अपने जीवनसाथी से वैचारिक मतभेद है या मन नहीं मिल रहा है और आप बच्चों और घरपरिवार की खातिर समाज में एकसाथ है. मन में कोई उमंग या तरंग नहीं है तो ऐसे में आप को कोई अच्छा लगता है जिस से आप अपना मन सा  झा कर लेती हैं या वह आप से 2 प्रेम के शब्द बोल देता है? और उन शब्दों का जादू आप दिन भर महसूस करती हैं, गुनगुनाती हैं, आईना देख खुद को संवारती हैं तो इस में क्या गलत है? मेरे हिसाब से तो कुछ गलत नहीं है.

खुद की संतुष्टि जरूरी

आप अपने तनमन की संतुष्टि कर सकती हैं और इश्कमुहब्बत हर काल में हुआ था, हो रहा है और आगे भी होगा. माना कि शादीशुदा जिंदगी में किसी परपुरुष से प्यार नहीं होना चाहिए किंतु अगर शादीशुदा जिंदगी में आपस में प्यार नहीं है तो फिर अगर बाहर किसी से प्यार हो जाता है तो उस में गलत तो कुछ नहीं है.

यह प्रकृति का नियम है, जो जमीन खाली होती है प्रकृति उसे अपने हिसाब से घासफूस से भर देती है यानी अमूमन तो शादीशुदा लोगों का दिलरूपी गमला खाली नहीं रहना चाहिए, किंतु अगर खाली या उजड़ा हुआ है तो प्रकृति उस में अपने हिसाब से कोई वनस्पति उगा देती है. यह नियम शाश्वत है.

कहां की बुद्धिमानी

तो नैतिकता की दुहाई देते हुए खुद को मार डालना कहां की बुद्धिमानी है और यह तो हम पौराणिक कथाओं में भी पढ़ते हैं. देवताओं को भी प्रेम हो जाता था फिर आप तो इंसान हैं. यदि किसी से सच्चा प्यार मिल रहा है तो उसे  ठुकराना कोई सम  झदारी नहीं है. आप अगर किन्हीं कारणों से जीवनसाथी के साथ खुश नहीं हैं तो आप उसे भी कोई खुशी दे नहीं सकती हैं. तो अगर आप अपना तनमन किसी से सा  झा कर रही हैं तो कोई ऐसा गलत कार्य नहीं है. थोड़ा अजीब लग सकता है लोगों को क्योंकि हमारे देश में आज भी कुछ मुद्दों पर लोग खुल कर बात नहीं करना चाहते हैं.

समय बदल गया है

हां कुढ़कुढ़ कर खुद को तिलतिल कर मार देने को बड़ी ही इज्जत की नजर से देखा जाता है. लेकिन अब समय बदल गया है. आप को जीने के लिए एक ही जीवन मिला है और उसे आप को भरपूर जीना चाहिए.

आप अपने परिवार को भी खुशी तब ही दे सकती हैं जब स्वयं अंदर से खुश होंगी. और खुश रहने के लिए आप को अपने दिल की बात माननी चाहिए. लेकिन अब इस बात का निर्णय आप को ही करना होगा कि जिस व्यक्ति से आप प्यार कर रही हैं वह आप के प्यार के काबिल है या नहीं.

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

ऐसा नहीं होना चाहिए कि कल को वह आप को ब्लैकमेल करे और आप समाज में मुंह दिखाने लायक भी न बचें और हंसी का पात्र अलग से बनें. किंतु यदि कोई अच्छा सच्चा प्यार आप को मिलता है जो किन्हीं कारणों से आप के दांपत्य जीवन में नहीं है तो बेशक आप को उस प्यार को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि जिंदगी न मिलेगी दोबारा.

जिंदगी जीने के लिए ही बनी है और जीने के लिए साथी चाहिए होगा और जरूरी नहीं है कि जीवनसाथी ही आप का सच्चा साथी हो. आदर्श व्यवस्था तो यही है कि जीवनसाथी से भरपूर प्यार, सहयोग और सहकार मिले किंतु यदि किन्हीं कारणों से नहीं मिलता है तो आप को पूरा हक है उस प्यार को पाने का.

याद रखें जीवन जीना सहज न जानें बहुत बड़ी फनकारी है खुद को भी खुश रखना खुद की ही जिम्मेदारी है यानी सब को खुश रखना ही काफी नहीं है खुद को भी खुश रखना होगा. –

 

जायका मटन करी का

संडे के दिन ब्रेकफास्ट के बाद ज्यादातर घरों में एक ही मील बनता है जो सभी घरवालों का फेवरिट होता है. नॉनवेज पसंद करने वाले लोग इस दिन घर पर बनी मटन करी शौक से खाते हैं. लेकिन जैसे ही बात मटन डिश बनाने की आती है तो महिलाएं अलग-अलग मसालों को सही मात्रा में मिक्स करने और ज्यादा समय लगने की बात सोच कर टेंशन में आ जाती हैं.लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि महिलाओं की मटन मसाला तैयार करने की समस्या को हल करने के लिए पेश है सनराइज़ मीट मसाला. यह मटन करी में ऐसा स्वाद जगाता है कि खाने वाले बनाने वाले की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाते. आइए, बनाते हैं मटन करी.

मटन करी

सामग्री

1 किलोग्राम मटन, 1 कप फेंटा हुआ दही, 1/2 छोट चम्मच हल्दी, 4?प्याज कटे,?

थोड़ा अदरक-लहसुन का पेस्ट, 4-5 हरीमिर्चें स्लिटेड, 1 चम्मच सनराइज़ मीट मसाला, जरूरतानुसार सरसों का तेल,

थोड़ा सा देशी घी, थोड़ी धनियापत्ती,

नमक स्वादानुसार.

विधि

मटन को धो कर उसका सारा पानी

निकाल दें. मटन को दही, हल्दी और

नमक मिला कर अच्छी तरह मिक्स करें

और 3?घंटों तक मैरीनेट होने के लिए रखें. अब बड़े बर्तन में तेल गरम कर प्याज, हरीमिर्चें और अदरक-लहसुन का पेस्ट अच्छी तरह भूनें. मैरीनेट किया मटन, सनराइज़ मीट मसाला और नमक मिक्स कर अच्छी तरह मिलाएं और धीमी आंच पर पानी छोड़ने तक भूनें. अब देशी घी मिलाएं और जरूरतानुसार पानी मिला कर मटन पका लें. धनियापत्ती से गार्निश कर राइस या रोटी के परोसें.

जानें क्या है बौडी पौलिशिंग के फायदे और इसे करने का सही तरीका

क्या आप की स्किन भी बहुत डल दिखती है और उस पर समय समय पर पिंपल्स या विभिन्न प्रकार की खामियां देखने को मिलती हैं. तो हो सकता है आप का शरीर आप को यह संकेत देना चाहता हो कि उसे अब केयर की आवश्यकता है.

बॉडी पॉलिशिंग में आप के पूरे शरीर पर एक क्रीम व तेल की सहायता से मालिश की जाती है और इसके साथ उसे स्क्रब व एक्सफोलिएट भी किया जाता है ताकि आप की सारी डैड स्किन निकल जाए और आप को एक क्लीयर व साफ स्किन मिले. तो आइए जानते हैं बॉडी पॉलिशिंग के क्या क्या लाभ होते हैं और बॉडी पॉलिशिंग कैसे की जाती है.

बॉडी पॉलिशिंग के लाभ

1. आप के ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाता है और इसी वजह से आप की स्किन और अधिक बढ़िया व फ्लोलेस दिखती है.

2. आप के स्किन पर जमी गन्दगी, धूल व पिंपल्स आदि को हटाता है और ब्लैकहेड्स से भी स्किन को मुक्त करता है.

3. आप के दिमाग को रिलैक्स करता है और आप को बॉडी को एक ताजगी प्रकार करता है.

4. आप की स्किन को मॉइश्चराइज करता है, आप की झुर्रियां व फाइन लाइन भी कम करता है.

5. सूर्य से होने वाले नुक़सान को कम करता है.

6. यह आप की स्किन को डिटॉक्सिफाई करता है और आप को ड्राई स्किन से भी बचाता है.

7. स्किन की नई ग्रोथ को प्रोत्साहित करता है और डैड स्किन को साफ करता है.

8. आप को एक कोमल स्किन देता है.

कैसे करें घर पर ही बॉडी पॉलिशिंग?

यदि आप घर पर ही बॉडी पॉलिशिंग करने की सोच रहे हैं तो आप को निम्नलिखित चीजों की आवश्यकता पड़ेगी.

  • पुमिक स्टोन
  • स्वयं बनाई हुई बॉडी पॉलिश
  • लूफा व ऑलिव ऑयल

प्रक्रिया

  • सबसे पहले थोड़े गुनगुने पानी में नहा लें और सभी चीजों को तैयार कर लें.
  • तीन चम्मच ऑलिव ऑयल के साथ आराम आराम से अपनी बॉडी की मालिश करें. इसके बाद बॉडी पॉलिश को अपनी बॉडी पर अप्लाई करे.
  • लूफा पर थोड़ा सा तेल लगाएं व अपनी बॉडी पर मसाज करें. अपने शरीर को लगभग 10-15 मिनट तक मसाज करें.
  • अपने शरीर के कोहनी, घुटने व गरदन जैसे सभी हिस्सों को सही तरीके से मसाज करें ताकि आप की सारी डैड स्किन निकल जाए.
  • मसाज करने के बाद एक बार नहा लें और सारा तेल व सारी पॉलिश अपने शरीर से निकाल दे.

बॉडी पॉलिश कैसे बनाएं?

यदि आप घर पर ही आसानी से बनने वाला बॉडी पॉलिश बनाना चाहते हैं तो निम्नलिखित चीजों का प्रयोग करें.

  • एक तिहाई कप चावल का आटा.
  • एक तिहाई कप सी साल्ट.
  • एक चम्मच हल्दी.
  • नारियल का तेल.

प्रक्रिया

  • नमक व चावल के आटे को एक कटोरे में रख लें और दोनो को अच्छे से एक दूसरे के अंदर मिक्स कर लें.
  • अब इसमें हल्दी मिलाएं व अच्छे से स्टिर करें.
  • अब इस मिक्सचर में नारियल का तेल मिलाएं ताकि यह मिक्सचर थोड़ा सा गाढ़ा बन जाए.
  • इसे अपने बॉडी स्क्रब के रूप में प्रयोग करें. आप इस का प्रयोग नहाते समय कर सकते हैं और यह बहुत ही बढ़िया काम करता है.
  • यह स्क्रब आप की स्किन पर बहुत अच्छा काम करता है और आप इसे एक बॉडी पॉलिश के रूप में भी प्रयोग कर सकते हैं. यह घर पर उपलब्ध समान से ही बहुत आसानी से बन जाता है.

कोरियन जैसी ग्लासी स्किन चाहती हैं तो करें आइस वाटर फेशियल

आज के समय में कोरियन ग्लास स्किन पाना एक ट्रेंड बन गया है क्योंकि अब कोरियन लड़कियों की तरह शीशे जैसी चमकती त्वचा हर लड़की चाहती है. ऐसे में घर बैठे कौन से ब्यूटी सीक्रेट्स अपनाएं जो कोरियन की तरह आपकी स्किन में नैचुरली ग्लो ला सके. इस बारे में बता रही है मेकअप एक्सपर्ट रेनू माहेश्वरी.

आइस वाटर फेशियल- आइस वॉटर फेशियल को करने का तरीका सामान्य फेशियल जैसा नही होता है. बल्कि यह एक ब्यूटी रिचुअल है जिससे त्वचा बेहतर बनती है. सबसे पहले एक बड़ा बाउल ले फिर इसमें एक कटोरी बर्फ का पानी डाल कर 4-5 आइस क्यूब डाले. फिर इसमें आप अपने चेहरे को 30 सेकंड के लिए डिप करे. फिर सॉफ्ट टॉवल से चेहरे को थपथपाते हुए ड्राई करे फिर मॉइस्चराइज लगाए जब आपके चेहरे का टेम्प्रेचर नॉर्मल हो जाए तो दोबारा 30 सेकेंड के लिए चेहरे को डिप करे ऐसा आप दिन दो बार जरूर करें इससे आपके चेहरे पर चमक आएगी. अगर आप चेहरा डिप नही कर सकती तो आप एक कॉटन के कपड़े में बर्फ लपेटकर चेहरे पर रब भी कर सकती हैं.

आइस वॉटर फेशियल के फायदे-

आइस वॉटर फेशियल चेहरे के पोर्स को खोलने का काम करता है. स्किन में कसाव भी लाता है. यह आंखों के पास की पफीनेस को कम कर फ्रेश दिखाने में मदद करता है. इससे चेहरे के पोर्स सिकुड़ जाते हैं, जिससे मेकअप लगाने में आसानी होती है. चेहरे का ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने में मदद करता है, एक्ने की इन्फलेशन कम करता है. एजिंग के इफेक्ट्स कम करता है. सनबर्न से आराम दिलाता है. चेहरे के आयल को कम करता है.

कुछ बातों का ध्यान रखें-

आइस वॉटर फेशियल करने से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है. जिससे त्वचा पर कोई नेगेटिव असर ना पड़े. आइस वॉटर फेशियल करने से पहले अपनी त्वचा को अच्छे से साफ कर ले. क्योंकि बर्फ के पानी में चेहरा डुबोने से हमारे रोम छिद्र कस जाते हैं. ऐसे में यदि त्वचा पर पहले से गंदगी जमा हो तो वह हमारे त्वचा के रोमछिद्रों के भीतर ही जमा हो जाएगी.

चेहरे की सफाई के लिए गुनगुने पानी का ही इस्तेमाल करें. चेहरे को अच्छे से साफ करने के बाद ही उस पर ठंडे पानी का इस्तेमाल करना चाहिए.

चेहरे पर बर्फ के टुकड़ों का सीधा इस्तेमाल न करें. उन्हें हमेशा किसी कॉटन के सॉफ्ट कपड़े में लपेटकर ही चेहरे पर लगाएं. चेहरे को एक बार में 30 सेकंड से ज्यादा बर्फ के पानी में डिप न करे.

महिला कुलपति : 120 साल का इंतजार

यह आश्चर्य की बात है जिस समाज और देश में महिलाओं को हमेशा आगे रखने की बात कही जाती है. आज के समय में भी महिलाएं अनेक ऊंचे पदों पर नहीं है. यह कुछ ऐसा है कि पर्दे के पीछे कुछ और पर्दे के बाहर का प्रहसन कुछ और. बड़ा ही खेद होता है जब ऐसे समाचार आते हैं जिन्हें पढ़कर लगता है कि हमारा देश आज भी दुनिया के अन्य देश से बहुत-बहुत पीछे है. हम भले ही ढोग करते रहें मगर नीचे बताएं गए कथानक को आप पढ़ेंगे तो यही सोच विचार करेंगे.

दरअसल, देश भर में आज “अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय को आखिरकार एक महिला कुलपति मिल ही गई” खबर पर विमर्श हो रहा है. और खबर में बताया जा रहा है कि इसके लिए कुर्सी को 104 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा.

हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रोफेसर नईमा खातून की नियुक्ति का आदेश जारी किया है. बताते चलें कि वर्ष 1920 में बने एएमयू में अब तक 21 कुलपति हो चुके हैं और ये सब पुरुष थे. हालांकि दिलचस्प बात यह है कि जिस विश्वविद्यालय को अपनी पहली महिला वीसी पाने में 104 साल लगे उसकी पहली कुलाधिपति सुल्तान जहां बेगम (बेगम भोपाल) खुद एक महिला थीं.

लोकसभा चुनाव को देखते हुए चुनाव आयोग की सशर्त मंजूरी के बाद नईमा खातून की नियुक्ति हुई है. बाकी इसके पीछे भी एक राजनीति को समझा जा सकता है मगर यह बीजेपी एक खेल कर गई है. इससे पहले नवंबर, 2023 में तीन उम्मीदवारों का पैनल जिसमें प्रोफेसर नईमा खातून, प्रोफेसर एमयू रब्बानी और प्रोफेसर फैजान मुस्तफा का नाम राष्ट्रपति (विजिटर, सेंट्रल यूनिवर्सिटीज) द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा गया था.राष्ट्रपति ने प्रोफेसर नईमा खातून के पक्ष में फैसला किया.

एएमयू की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी को देखें तो हम पाते हैं कि नईमा खातून मूल रूप से आदिवासी बाहुल्य ओड़ीशा राज्य की हैं.उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई ओड़ीशा से ही की. और अप्रैल 1998 से एसोसिएट प्रोफेसर और जुलाई 2006 से प्रोफेसर रहीं. प्रोफेसर नईमा खातून जुलाई 2014 में महिला कालेज की प्राचार्य बनीं.

इन्होंने मध्य अफ्रीका के रवांडा के राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एक साल पढ़ाया. आपके पास राजनीतिक मनोविज्ञान में पीएचडी की डिग्री है.वश आप अक्टूबर 2015 से सेंटर फार स्किल डेवलपमेंट एंड करिअर प्लानिंग, एएमयू, अलीगढ़ के निदेशक के रूप में भी कार्यरत रहीं.उन्होंने मनोविज्ञान विषय पर कई किताबें लिखी हैं और उनके 31 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं.

प्रोफेसर खातून ने लुइस विले विवि अमेरिका, चुलालोंगकोर्न विवि बैंकाक, हालिंग्स इस्तानबुल, लूलिया सेंटर अल्बा विवि रोमानिया और हालिंग्स सेंटर फार इंटरनेशनल में भी दौरा किया है और लेक्चर दिए हैं.नईमा खातून ने छह पुस्तकों लिखी हैं. वह महिला कालेज छात्र संघ के लिए दो बार चुनी गई. उन्होंने अब्दुल्ला हाल और सरोजिनी नायडू हाल के साहित्यिक सचिव और वरिष्ठ हाल मानिटर का पद भी संभाला है.

नईमा खातून ने यह पद कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज से लिया हैं जो उनके पति भी हैं.प्रोफेसर गुलरेज से पहले एएमयू के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर थे. प्रोफेसर तारिक मंसूर ने दो अप्रैल 2023 को कुलपति का पद त्याग दिया था जिसके बाद से ही प्रोफेसर गुलरेज कार्यवाहक कुलपति के तौर पर काम कर रहे थे. इस्तीफा देने के बाद प्रोफेसर मंसूर भाजपा में शामिल हो गए.

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