काश: क्या दूर हुई कुसुम की शिकायत

‘‘नहीं, पापाजी नहीं, आप ने गलत चाल चली है. यह तो चीटिंग है. गुलाम घोड़े की चाल नहीं चल सकता,’’ मैं जोरजोर से चिल्ला रही थी. जबकि, पापाजी अपनी चाल पर अड़े हुए थे.

वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘तो क्या हो गया बेटा, चाल तो चाल है, घोड़ा चले या गुलाम.’’

दूर खड़े प्रवीण अंकल पास आते हुए बोले, ‘‘सही बात है, अनुराग. अब लाड़ली को हराना है तो कुछ हथकंडे तो अपनाने ही होंगे, वरना वह कहां जीतने देगी आप को? आप दोनों झगड़ते खूब हो, पर जानता हूं मैं, आप प्यार भी उसे बहुत करते हो.’’

‘‘क्या करूं प्रवीण, एक यही तो है जो बिलकुल मेरे जैसी है. मुझे समझती भी है और मेरे साथ मस्ती भी कर लेती है. वरना, आज के बच्चों के पास बुजुर्गों के लिए समय ही कहां है.’’

‘‘यह लीजिए पापाजी, शह. बचाइए अपना राजा,’’ मैं खुशी से तालियां बजाती हुई बोली. फिर सहसा खयाल आया कि पापाजी और प्रवीण अंकल को चाय देने का समय हो गया है.

‘‘पापाजी, चाय बना लाती हूं,’’ मैं उठती हुई बोली तो पापाजी प्रवीण अंकल से फिर मेरी तारीफ करने लगे.

वाकई, मैं और पापाजी बिलकुल एक से हैं. हमारी पसंदनापसंद हमारी सोच या कहिए पूरा व्यक्तित्व ही एकसा है. पापाजी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं जहां उन के साथ मस्ती करती हूं, तरहतरह के गेम्स खेलती हूं तो वहीं गंभीर विषयों पर चर्र्चा भी करती हूं. वे मुझे हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, मेरी केयर करते हैं.

वैसे, बता दूं, हमारा कोई खून का रिश्ता नहीं और न ही उन्होंने मुझे गोद लिया है. अब आप सोच रहे होंगे कि वे मेरे पापा कैसे हुए? दरअसल, ‘पापाजी’ मैं अपने ससुर को कहती हूं. वे भी मुझे बेटी से कम नहीं समझते. बहू और ससुर का हमारा रिश्ता बापबेटी के रिश्ते सा मधुर और खूबसूरत है.

मैं जब इस घर में ब्याह कर आईर् थी तो असमंजस में थी कि इस नए घर में ऐडजस्ट कैसे कर पाऊंगी? तब जेठजेठानी ऊपर के फ्लोर पर रहते थे और देवर व सासससुर हमारे साथ थे. जेठजेठानी कुछ माह बाद ही दूसरे शहर में शिफ्ट हो गए थे.

सासुमां का स्वभाव थोड़ा अलग था. वे अपने रिश्तेदारों, महल्ले वालों, पूजापाठ वगैरह में ही लगी रहतीं. पति और बच्चों के लिए वक्त नहीं था उन के पास. देवर पढ़ाई और दोस्तों में व्यस्त रहते तो मेरे पति यानी कुणाल औफिस के कामों में ओवरबिजी थे. मेरे पति स्वभाव से अपनी मां की तरह ही रूखे थे. रह गए मैं और पापाजी. पापाजी रिटायर हो चुके थे. सासुमां के विपरीत पूजापाठ और पोंगापंथी में उन का जरा सा भी विश्वास नहीं था. वे अपना समय पढ़नेलिखने और हलकेफुलके मनोरंजन करने में बिताते.

मैं तब बीए पास थी. पापाजी ने मुझे प्रेरित किया कि मैं प्राइवेट एमए की परीक्षा दूं. घर में इस बात को ले कर काफी हंगामा हुआ. सासुमां ने भुनभुनाते हुए कहा था, ‘क्या करेगी पढ़ाई कर के? आखिर, घर ही तो संभालना है.’

मेरे पति ने भी टोका था, ‘कुसुम, तू ग्रेजुएट है. यही काफी है मेरे लिए. बेकार झंझट क्यों पाल रही है?’

मगर पापाजी मुझे पढ़ा कर आगे बढ़ाने को कृतसंकल्प थे. वे मानते थे कि ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता. उन के प्रयत्नों से मैं ने एमए पास कर लिया. इस बीच, मैं ने बेबी कंसीव कर लिया था. घर में खुशियां उमड़ पड़ीं. सब खुश थे. उन दिनों सास भी मेरी खास देखभाल करने लगी थीं. मगर ऐनवक्त पर मेरा छोटा ऐक्सिडैंट हुआ और मिसकैरिज हो गया. इस घटना के बाद कुणाल मुझ से कटेकटे से रहने लगे. मेरी सास ने भी मुझे ही दोषी ठहराया. मगर पापाजी ने मुझे संभाला, ‘‘बेटा, इस तरह की घटनाएं कभी भी हो सकती हैं. इस की वजह से स्वयं को टूटने नहीं देना. रास्ते फिर निकलेंगे. वक्त जैसी परिस्थितियां सामने लाता है, उसी के हिसाब से सब मैनेज करना होता है. तुम केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान रखो. बाकी चीजें स्वयं सुधर जाएंगी.’’

मुझे पापाजी के शब्दों से ताकत मिलती. पापाजी को मेरे प्रति असीम स्नेह की एक वजह यह भी थी कि उन की कोई बहन नहीं थी. वे 4 भाई थे. उन की कोई बेटी भी नहीं हुई. 2 बेटे ही थे. शायद यही वजह थी कि वे मुझ में अपनी बेटी देखते थे. एक वजह यह भी थी कि कुछ समय पहले जब वे बीमार पड़े तो मैं ने जीजान से उन की देखभाल की थी. तब से वे मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार रहते. उन्होंने मुझे पीएचडी करने की सलाह दी तो मैं सोच में पड़ गई. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे मेरी हर संभव सहायता करेंगे. वे स्वयं इंटर कालेज में लैक्चरर हो कर रिटायर हुए थे. निश्ंिचत हो कर मैं ने फौर्म भर दिया.

समय यों ही गुजरता जा रहा था. देवर को बेंगलुरु में नौकरी मिल गई. वह वहां चला गया. सासुमां अपनी कीर्तनमंडली में और भी ज्यादा व्यस्त रहने लगीं जबकि मेरा ज्यादा समय पापाजी के साथ बीतता. इधर, मेरा रूटीन चेंज होने लगा था. सुबहसुबह मैं पापाजी के साथ जौगिंग के लिए जाती. दिन में उन की मदद से प्रोजैक्ट का काम करती और शाम को हम कभी बैडमिंटन, कभी चैस तो कभी ताश खेलते.

हम दोनों का प्रिय खेल शतरंज, प्रिय पेय ग्रीन टी, प्रिय भोजन कढ़ीचावल, प्रिय टाइमपास किताबें, प्रिय म्यूजिक गायक मुकेश के गाने थे. कुछ वे मौडर्न सोच वाले थे और कुछ मैं ‘ओल्ड इज गोल्ड’ में विश्वास रखने वाली. इसलिए हमारी खूब बन रही थी.

सासुमां भले ही हर मामले में पारंपरिक सोच रखती थीं पर परदा प्रथा पर ऐतबार नहीं था उन का. मुझे घर में किसी से परदा नहीं कराया जाता. कभीकभी जींस पहन लेने पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं थी. सबकुछ अच्छा चल रहा था. पर मुझे कभीकभी लगता कि सासुमां और कुणाल के बीच कोई खिचड़ी पक रही है.

मैं दोबारा कंसीव नहीं कर पा रही थी. इस बात को ले कर वे दोनों उखड़ेउखड़े रहते. सासुमां अकसर मुझे इस के लिए बातें सुनातीं. उन की जिद पर मेरी मैडिकल जांच हुई. रिपोर्ट आई तो मेरी जिंदगी में हलचल मच गई. मैं कभी मां नहीं बन सकती थी.

इस खबर ने सब को गम के सागर में डुबो दिया. मैं स्वयं अंदर से टूट रही थी पर मुझे संभालने के बजाय उलटा कुणाल मेरा बातबेबात पर अपमान करने लगा. पापाजी इस बात पर कुणाल से नाराज रहने लगे. पर सासुमां कुणाल का ही पक्ष लेतीं.

इस बीच, कुणाल ने यह खबर दे कर सब को अचंभित कर दिया कि उसे कंपनी की तरफ से 2 सालों के लिए बेंगलुरु भेजा जा रहा है. मैं कुछ कहती, इस से पहले ही वह फैसला सुनाता हुआ बोला, ‘‘कुसुम, तुम मेरे साथ नहीं चल रहीं. मैं अकेला ही जाऊंगा. तुम मम्मीपापा की देखभाल करो.’’

मैं चुप रह गई. वैसे भी कुणाल के दिल में अब मुझे अपने लिए खास जगह नहीं दिखती थी. कुणाल चला गया. मैं अपनी पीएचडी पूरी करने में व्यस्त हो गई. महीनों बीत गए. कुणाल का फोन गाहेबगाहे ही आता और बहुत संक्षेप में हालसमाचार पूछ कर रख देता. मैं फोन करती तो कहता कि अभी व्यस्त हूं या रास्ते में हूं वगैरह.

एक दिन मेरी बेंगलुरु की एक सहेली ने फोन किया और बताया कि कुणाल आजकल एक लड़की के साथ बहुत घूमफिर रहा है. पापाजी ने सुना तो तुरंत फोन उठा कर उसे डांट लगाई पर कुणाल और भी भड़क गया.

उधर, सासुमां भी बेटे का पक्ष ले कर भुनभुनाती रहीं. उस रात मैं ने पहली बार देखा कि पापाजी रातभर जागते रहे हैं. बारबार दरवाजा खोल कर आंगन में टहलने लगते या किचन में जा कर कभी कौफी बनाते तो कभी पानी ले कर आते. मैं खुद भी जागी हुई थी और मेरे कमरे तक ये सारी आवाजें आती रहीं.

सुबह उठ कर उन्होंने जो फैसला सुनाया वह हतप्रभ करने वाला था. पापाजी सासुमां से कह रहे थे, ‘‘आशा, मैं अपना यह घर बहू के नाम कर रहा हूं. मेरे और तुम्हारे बाद इस पर कुणाल का नहीं, बल्कि बहू का अधिकार होगा.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो? कुणाल हमारा बेटा है,’’ सासुमां ने प्रतिरोध किया पर पापाजी अपनी बात पर अड़े रहे.

मैं ने तुरंत आगे बढ़ कर उन से ऐसा करने को मना किया, मगर पापाजी नहीं माने. वकील बुला कर सारी कागजी कार्यवाही पूरी कर ली. मैं समझ रही थी कि पापाजी आने वाले तूफान से लड़ने के लिए मुझे मजबूत बना रहे हैं. सचमुच

2-3 माह बाद ही कुणाल ने मुझे तलाक के कागजात भेज दिए.

पहले तो मैं कुणाल के आगे रोईगिड़गिड़ाई, पर फिर पापाजी के कहने पर मैं ने सहमति से तलाक दे दिया.

जल्द ही खबर आ गई कि कुणाल ने दूसरी शादी कर ली है. पापाजी ने कुणाल से सारे संबंध काट लिए थे. जबकि, मैं बापबेटे को फिर से मिलाना चाहती थी. पापाजी इस बात के लिए कतई तैयार न थे. वे मुझे अपनी बेटी मानते थे. इस बात पर सासुमां ने कई दिनों तक बखेड़े किए. वे बीमार भी रहने लगी थीं. मैं समझ नहीं पाती कि क्या करूं? मेरे घर में मां,

2 बहनें और एक छोटा भाई है. घरवालों ने मुझे पापाजी के हिसाब से चलने की सलाह दी थी. उन्हें पापाजी का नजरिया बहुत पसंद था. वैसे भी, तलाकशुदा बन कर वापस मायके में रहना मेरे लिए आसान नहीं था. ऐसे में पापाजी की बात मान कर मैं इसी घर में रहती रही. सासुमां अब ज्यादा ही बीमार रहने लगी थीं. एक दिन तेज बुखार में उन्होंने सदा के लिए आंखें बंद कर लीं. अब तक देवर की भी शादी हो चुकी थी. वह बेंगलुरु में ही सैटल हो चुका था.

मैं और पापाजी बिलकुल अकेले रह गए. मैं ने पीएचडी पूरी कर ली और पापाजी की प्रेरणा से एक कालेज में लैक्चरर भी बन गई. इधर, कुणाल से हमारा संपर्क न के बराबर था. कभी होलीदीवाली वह फोन करता तो पापाजी औपचारिक बातें कर के फोन रख देते.

वक्त इसी तरह गुजरता रहा. कुणाल पापाजी से इस बात पर नाराज था कि उन्होंने अपनी संपत्ति मेरे नाम कर दी थी और मेरी वजह से उस से नाता तोड़ दिया. उधर, पापाजी कुणाल से इस वजह से नाराज थे कि उन की बात न मानते हुए कुणाल ने मुझे तलाक दे कर दूसरी शादी की.

एक दिन शाम के समय कुणाल का फोन आया. पापाजी ने फोन मुझे थमा दिया. कुणाल भड़क उठा और मुझे जलीकटी सुनाने लगा. पापाजी ने फोन स्पीकर पर कर दिया था. हद तो तब हुई जब उत्तेजित कुणाल मेरे और पापाजी के संबंधों पर कीचड़ उछालने लगा. कुणाल कह रहा था, ‘मैं समझ रहा हूं, पापाजी ने मुझे घर से बेदखल कर तुम्हें क्यों रखा हुआ है. तुम दोनों के बीच क्या चक्कर चल रहा है, इन सब की खबर है मुझे. ससुर के साथ ऐसा रिश्ता रखते हुए शर्म नहीं आई तुम्हें?’

वह अपना आपा खो चुका था. पापाजी के कानों में उस की ये बातें पहुंच रही थीं. उन्होंने मोबाइल बंद करते हुए उसे उठा कर फेंक दिया. मैं भी इस अप्रत्याशित इलजाम से सदमे में थी और मेरी आंखों से आंसू बहने लगे. पापाजी ने मुझे सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, जमाना जो कहे, जितना भी कीचड़ उछाले, मैं ने तुझे अपनी बेटी माना है और अंतिम समय तक एक बाप का दायित्व निभाऊंगा.’’

अगले ही दिन से उन्होंने मुझे वास्तव में दत्तक पुत्री बनाने की कागजी कार्यवाही शुरू कर दी. रिश्ते को कानूनी मान्यता मिलने के बाद उन्होंने फाइनल डौक्यूमैंट्स की एक कौपी कुणाल को भी भेज दी.

अब मैं भी निश्ंिचत हो कर पूरे अधिकार के साथ अपने पिता के साथ रहने लगी. इधर, घर का ऊपरी हिस्सा पापाजी ने पेइंगगैस्ट के तौर पर

4 लड़कियों को दे दिया. उन लड़कियों के साथ मेरा मन लगा रहता और मेरे पीछे वे लड़कियां पापाजी की सहायता करतीं.

वक्त का चक्का अपनी गति से चलता रहा. मैं ने अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया था. पर शायद कुणाल की जिंदगी के इम्तिहान अभी बाकी थे. कुणाल की बीवी की एक ऐक्सिडैंट में मौत हो गई. उस के 5 साल के बच्चे की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहा. ऐसे में कुणाल को मेरी और पापाजी की याद आई. उस ने मुझे फोन किया, ‘‘प्लीज कुसुम, तुम्हीं इस बिन मां के बच्चे को संभाल सकती हो. मैं तो पूरे दिन बाहर रहता हूं. रात में लौटने का भी कोई टाइम नहीं है. श्रुति के घरवालों में भी कोई ऐसा नहीं जो इस की देखभाल करने को तैयार हो. अब मेरा बच्चा तुम्हारे आसरे ही है. इसे मां का प्यार दे दो. तुम्हें ही पापाजी से भी बात करनी होगी.’’

मैं ने उसे ऊपरी तौर पर तो हां कह दिया पर अंदर से जानती थी कि पापाजी कभी तैयार नहीं होंगे. मेरे अंदर की औरत उस बच्चे को स्वीकारने को व्यग्र थी. सो, मैं ने पापाजी से इस संदर्भ में बात की. वे भड़क उठे, ‘‘नहीं, यह मुमकिन नहीं. उसे अपने किए की सजा पाने दो.’’

‘‘मैं मानती हूं पापाजी कि कुणाल ने हमारे साथ गलत किया. उस ने आप का दिल दुखाया है. पर पापाजी उस नन्हे से बच्चे का क्या कुसूर? उसे किस बात की सजा मिले?’’

पापाजी के पास मेरी इस बात का कोई जवाब नहीं था. मैं ने भीगी पलकों से आगे कहा, ‘‘पापाजी, मुझे जिंदगी ने बच्चा नहीं दिया है. पर क्या कुणाल के इस बच्चे को अस्वीकार कर मैं आने वाली खुशियों के दरवाजे पर ताला नहीं लगा रही?’’

‘‘ठीक है बेटी,’’ पापाजी का गंभीर स्वर उभरा, ‘‘तुम उस बच्चे को रखना चाहती हो तो रख लो. जिंदगी तेरी गोद में खुशियां डालना चाहती है तो मैं कतई नहीं रोकूंगा, वैसे भी, वह मेरा पोता है. उस का हक है इस घर पर. मगर याद रखना कुणाल ने मुझ पर और मेरे घर पर अपना हक खो दिया है.’’

मैं ने यह बात कुणाल से कही तो वह खामोश हो गया. मैं समझ रही थी कि किसी भी बाप के लिए अपना बच्चा किसी और को सौंप देना आसान नहीं होता. कुणाल ऐसे मोड़ पर था जहां वह अपना पिता तो खो ही चुका था, अब बच्चे को भी पूर्व पत्नी के हाथ सौंप कर क्या वह बिलकुल अकेला नहीं हो जाएगा?

मैं कुणाल की मनोदशा समझ रही थी. 2-3 दिन बीत गए. फोन कर कुणाल से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई. उस दिन इतवार था. मैं घर पर थी और पापाजी के लिए दलिया बना रही थी. पापाजी कमरे में बैठे अखबार पढ़ रहे थे. अचानक दरवाजे की घंटी बजी.

दरवाजा खोला तो चौंक पड़ी. सामने कुणाल खड़ा था, 5 साल के प्यारे से बच्चे के साथ.

‘‘कुसुम, यह है मेरा बेटा नील. आज से मैं इस की जिम्मेदारी तुम्हें सौंपता हूं. तुम ही इस की मां हो और तुम्हें ही इस का खयाल रखना होगा. हो सके तो मुझे माफ कर देना. पापाजी से कहना कि कुणाल माफी के लायक तो नहीं, फिर भी मांग रहा था,’’ यह कहते हुए उस ने नील का हाथ मेरे हाथों में थमाया और तेजी से बाहर निकल गया.

मैं नील को लिए अंदर पहुंची तो पापाजी को सामने खड़ा पाया. वे भीगी पलकों से एकटक नील की तरफ ही देख रहे थे. उन्होंने बढ़ कर नील को गले लगा लिया.

मैं सोच रही थी, काश, पापाजी के इन आंसुओं के साथ कुणाल के प्रति उन की नाराजगी भी धुल जाए और काश, नील बापबेटे के बीच सेतु का काम करे. काश, हमारी बिखरी खुशियां फिर से हमें मिल जाएं.

ये भी पढ़ें- घोंसले का तिनका: क्या टोनी के मन में जागा देश प्रेम

बने एक-दूजे के लिए: क्या एक हो पाए भावना और विवेक

घर में कई दिनों से चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था, लेकिन आज घर में खटपट चल रही थी. मामाजी कभी ऊपर, कभी नीचे और कभी गार्डन में आ जा रहे थे. उन के पहाड़ जैसे दुख को बांटने वाला कोई सगासंबंधी पास न था. घर में सब से बड़ा होने के नाते सभी जिम्मेदारियों का बोझ उन्हीं के कंधों पर आ पड़ा था. वे तो खुल कर रो भी नहीं सकते थे. उन के भीतर की आवाज उन्हें कचोटकचोट कर कह रही थी कि अमृत, अगर तुम ही टूट गए तो बाकी घर वालों को कैसे संभालोगे? कितना विवश हो जाता है मनुष्य ऐसी स्थितियों में. उन का भानजा, उन का दोस्त विवेक इस संसार को छोड़ कर जा चुका था, लेकिन वे ऊहापोह में पड़े रहने के सिवा और कुछ कर नहीं पा रहे थे.

अपने दुख को समेटे, भावनाओं से जूझते वे बोले, ‘‘बस उन्हीं की प्रतीक्षा में 2 दिन बीत गए. मंजू, पता तो लगाओ, अभी तक वे लोग पहुंचे क्यों नहीं? कोई उत्सव में थोड़े ही आ रहे हैं. अभी थोड़ी देर में बड़ीबड़ी गाडि़यों में फ्यूनरल डायरैक्टर पहुंच जाएंगे. इंतजार थोड़े ही करेंगे वे.’’

‘‘मामाजी, अभीअभी पता चला है कि धुंध के कारण उन की फ्लाइट थोड़ी देर से उतरी. वे बस 15-20 मिनट में यहां पहुंच जाएंगे. वे रास्ते में ही हैं.’’

‘‘अंत्येष्टि तो 4 दिन पहले ही हो जानी चाहिए थी लेकिन…’’

‘‘मामाजी, फ्यूनरल वालों से तारीख और समय मुकर्रर कर के ही अंत्येष्टि होती है,’’ मंजू ने उन्हें समझाते हुए कहा.

‘‘उन से कह दो कि सीधे चर्च में ही पहुंच जाएं. घर आ कर करेंगे भी क्या? विवेक को कितना समझाया था, कितने उदाहरण दिए थे, कितना चौकन्ना किया था लोगों ने तजुर्बों से कि आ तो गए हो चमकती सोने की नगरी में लेकिन बच के रहना. बरबाद कर देती हैं गोरी चमड़ी वाली गोरियां. पहले गोरे रंग और मीठीमीठी बातों के जाल में फंसाती हैं. फिर जैसे ही शिकार की अंगूठी उंगली में पड़ी, उसे लट्टू सा घुमाती हैं. फिर किनारा कर लेती हैं.’’

‘‘छोडि़ए मामाजी, समय को भी कोई वापस लाया है कभी? सभी को एक मापदंड से तो नहीं माप सकते. इंतजार तो करना ही पड़ेगा, क्योंकि हिंदू विधि के अनुसार बेटा ही बाप की चिता को अग्नि देता है. सच तो यही है कि जेम्स विवेक का बेटा है. यह उसी का हक है.’’

‘‘मंजू, उस हक की बात करती हो, जो धोखे से छीना गया हो. तुम तो उस की दोस्त हो. उसी के विभाग में काम करती रही हो. बाकी तुम भी तो समझदार हो. तुम्हें तो मालूम है यहां के चलन.

‘‘और भावना को देखो. उसे बहुत समझाया कि उस गोरी मेम को बुलाने की कोई जरूरत नहीं. अवैध रिश्तों की गठरी बंद ही रहने दो. अगर मेम आ गईं तो पड़ोसिन छाया बेवजह ‘न्यूज औफ द वर्ल्ड’ का काम करेगी, लेकिन वह नहीं मानी.’’

‘‘मामाजी, आप बेवजह परेशान हो रहे हैं. ऐसी बातें तो होती रहती हैं इन देशों में. वे तो जीवन का अंग बन चुकी हैं. मैं ने भी भावना से बात की थी. वह बोली कि पोलीन भी तो विवेक के जीवन का हिस्सा थी. दोनों कभी हमसफर थे. फिर जेम्स भी तो है.’’ इतने में एक गाड़ी पोर्टिको आ खड़ी हुई.

‘‘लो आ गई गोरी और उस की नाजायज औलाद,’’ मामाजी ने कड़वाहट से कहा.

‘‘मामाजी, प्लीज शांत रहिए. यह भी विवेक का परिवार है. पोलीन उस की ऐक्स वाइफ तथा जेम्स बेटा है. उसे झुठलाया भी तो नहीं जा सकता,’’ मंजू ने समझाते हुए कहा.

विवेक का पार्थिव शरीर बैठक में सफेद झालरों से सजे बौक्स में अंतिम दर्शन के लिए पड़ा था. काले नए सूट, सफेद कमीज, मैचिंग टाई में ऐसा लग रहा था जैसे अभी बोल पड़ेगा. बैठक फूलों के बने रीथ (गोल आकार में सजाए फूल), क्रौस तथा गुलदस्तों से भरी पड़ी थी.

आसपास के लोग तो नहीं आए थे लेकिन उन के कुलीग वहां मौजूद थे. लोगों ने अपनेअपने घरों के परदे तान लिए थे, क्योंकि विदेशों में ऐसा चलन है.

पोलीन और जेम्स के आते ही उन्हें विवेक के साथ कुछ क्षण के लिए अकेला छोड़ दिया गया. मामाजी ने बाकी लोगों को गाडि़यों में बैठने का आदेश दिया. हर्श (शव वाहन) के पीछे की गाड़ी में विवेक का परिवार बैठने वाला था. अन्य लोग बाकी गाडि़यों में.

‘‘मंजू, किसी ने पुलिस को सूचना दी क्या? शव यात्रा रोप लेन से गुजरने वाली है?’’ (यू.के. में जहां से शवयात्रा निकलती है, वह सड़क कुछ समय के लिए बंद कर दी जाती है. कोई गाड़ी उसे ओवरटेक भी नहीं कर सकती या फिर पुलिस साथसाथ चलती है शव के सम्मान के लिए).

‘‘यह काम तो चर्च के पादरीजी ने कर दिया है.’’

‘‘और हर्श में फूल कौन रखेगा?’’

‘‘फ्यूनरल डायरैक्टर.’’

‘‘मंजू, औरतें और बच्चे तो घर पर ही रहेंगे न?’’

‘‘नहीं मामाजी, यह भारत नहीं है. यहां सभी जाते हैं.’’

‘‘मैं जानता हूं लेकिन घर को खाली कैसे छोड़ दूं?’’

‘‘मैं जो हूं,’’ मामीजी ने कहा.

‘‘तुम तो इस शहर को जानतीं तक नहीं.’’

‘‘मैं मामीजी के साथ रहूंगी,’’ पड़ोसिन छाया बोली.

अब घर पर केवल छाया तथा मामीजी थीं. मामाजी तथा मंजू की बातें सुनने के बाद छाया की जिज्ञासा पर अंकुश लगाना कठिन था.

छाया थोड़ी देर बाद भूमिका बांधते बोली, ‘‘मामीजी, अच्छी हैं यह गोरी मेम.

कितनी दूर से आई हैं बेटे को ले कर. आजकल तो अपने सगेसंबंधी तक नहीं पहुंचते. लेकिन मामीजी, एक बात समझ में नहीं आ रही कि आप उसे कैसे जानती हैं? ऐसा तो नहीं लगता कि आप उस से पहली बार मिली हों?’’

अब मामीजी का धैर्य जवाब दे गया. वे झुंझलाते हुए बोलीं, ‘‘जानना चाहती हो तो सुनो. भावना से विवाह होने से पहले पोलीन ही हमारे घर की बहू थी. विवेक और भावना एकदूसरे को वर्षों से जानते थे. मुझे याद है कि विवेक भावना का हाथ पकड़ कर उसे स्कूल ले कर जाता और उसे स्कूल से ले कर भी आता. वह भावना के बिना कहीं न जाता. यहां तक कि अगर विवेक को कोई टौफी खाने को देता तो विवेक उसे तब तक मुंह में न डालता जब तक वह भावना के साथ बांट न लेता. धीरेधीरे दोनों के बचपन की दोस्ती प्रेम में बदल गई. वह प्रेम बढ़तेबढ़ते इतना प्रगाढ़ हो गया कि पासपड़ोस, महल्ले वालों ने भी इन दोनों को ‘दो हंसों की जोड़ी’ का नाम दे दिया. उस प्रेम का रंग दिनबदिन गहरा होता गया. विवेक एअरफोर्स में चला गया और भावना आगे की पढ़ाई करने में लग गई.

‘‘लेकिन जैसे ही विवेक पायलट बना, उस की मां दहेज में कोठियों के ख्वाब देखने लगी, जो भावना के घर वालों की हैसियत से कहीं बाहर था. विवेक ने विद्रोह में अविवाहित रहने का फैसला कर लिया और दोस्तों से पैसे ले कर मांबाप को बिना बताए ही जरमनी जा पहुंचा. किंतु उस की मां अड़ी रहीं. जिस ने भी समझाने का प्रयत्न किया, उस ने दुश्मनी मोल ली.’’

‘‘तब तक तो दोनों बालिग हो चुके होंगे, उन्होंने भाग कर शादी क्यों नहीं कर ली?’’ छाया ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘दोनों ही संस्कारी बच्चे थे. घर में बड़े बच्चे होने के नाते दोनों को अपनी जिम्मेदारियों का पूरा एहसास था. दोनों अपने इस बंधन को बदनाम होने नहीं देना चाहते थे. लेकिन वही हुआ जिस का सभी को डर था. विकट परिस्थितियों से बचताबचता विवेक दलदल में फंसता ही गया. उसे किसी कारणवश पोलीन से शादी करनी पड़ी. दोनों एक ही विभाग में काम करते थे.

‘‘विवेक की शादी की खबर सुन भावना के परिवार को बड़ा धक्का लगा. भावना तो गुमसुम हो गई. भावना के घर वालों ने पहला रिश्ता आते ही बिना पूछताछ किए भावना को खूंटे से बांध दिया. 1 वर्ष बाद उसे एक बच्ची भी हो गई.

‘‘लेकिन भावना तथा विवेक दोनों के ही विवाह संबंध कच्ची बुनियाद पर खड़े थे, इसलिए अधिक देर तक न टिक सके. दोनों ही बेमन से बने जीवन से आजाद तो हो गए, किंतु पूर्ण रूप से खोखले हो चुके थे. विवेक की शादी टूटने के बाद उस के मामाजी ने जरमनी से उसे यू.के. में बुला लिया. वहां उसे रौयल एअरफोर्स में नौकरी भी मिल गई.

‘‘फिर समय भागता गया. एक दिन अचानक एक संयोग ने एक बार फिर विवेक और भावना को एकदूसरे के सामने ला खड़ा किया. ऐसा हुआ तो दोनों के हृदय का वेग बांध तोड़ कर उष्ण लावा सा बहने लगा. दोनों एक बार फिर सब कुछ भूल कर अपनत्व की मीठी फुहार से भीगने लगे. कुछ महीनों बाद दोनों विवाह के बंधन में बंध गए, लेकिन शादी के कुछ समय बाद विवेक प्लेन क्रैश में चल बसा. विवेक की मृत्यु की खबर सुनते ही हमारी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. हम दोनों स्तब्ध थे कि उन दोनों का पुनर्मिलन कल ही की तो बात थी.’’

इतने में फोन की घंटी बजी. फोन पर मामाजी थे, ‘‘हैलो सुनो, हमें घर पहुंचतेपहुंचते

5 बज जाएंगे. चाय तैयार रखना.’’

सर्दियों का मौसम था. वे लोग लौट कर आए तो सब चुप बैठ कर चाय पीने लगे. भावना स्तब्ध, निर्जीव बर्फ की प्रतिमा सी एक तरफ बैठी सोच रही थी कि कितना भद्दा और कू्रर मजाक किया है कुदरत ने उस के साथ. अभी तक उस की आंखों से एक भी आंसू नहीं छलका था. मानो आंसू सूख ही गए हों. सभी को विवेक के चले जाने के गम के साथसाथ भावना की चिंता सताए जा रही थी.

‘‘भावना रोतीं क्यों नहीं तुम? अब वह लौट कर नहीं आएगा,’’ मामीजी ने भावना को समझाते हुए कहा.

अंधेरा बढ़ता जा रहा था. भावना गठरी सी बैठी टकटकी लगाए न जाने क्या सोच रही थी. उस की दशा देख सभी चिंतित थे. 4 दिन से उस के गले में निवाला तक न उतरा था. मामीजी से उस की यह दशा और देखी नहीं गई. उन्होंने भावना को झकझोरते, जोर से उसे एक चांटा

मारा और रोतेरोते बोलीं, ‘‘रोती क्यों नहीं? पगली, अब विवेक लौट कर नहीं आएगा. तुम्हें संभलना होगा अपने और बच्ची के लिए. यह जीवन कोई 4 दिन का जीवन नहीं है. संभाल बेटा, संभाल अपने को.’’

फिर वे भावना को ऊपर उस के कमरे में ले गईं. पोलीन तथा जेम्स अपने कमरे में जा चुके थे. भावना कमरे में विवेक के कपड़ों से लिपट कर फूटफूट कर रोती रही. इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई, ‘‘मे आई कम इन?’’

‘‘यस, आओ बैठो पोलीन,’’ भावना ने इशारा करते हुए कहा. दोनों एकदूसरे से लिपट कर खूब रोईं. दोनों का दुख सांझा था. दोनों की चुभन एक सी थी. पोलीन ने भावना को संभालते तथा खुद को समेटते स्मृतियों का घड़ा उड़ेल दिया. वह एक लाल रंग की अंगूठी निकाल कर बोली, ‘‘मुझे पूरा यकीन है तुम इसे पहचानती होगी?’’

भावना की आंखों से बहते आंसुओं ने बिना कुछ कहे सब कुछ कह डाला. वह मन ही मन सोचने लगी कि पोलीन, मैं इसे कैसे भूल सकती हूं? इसे तो मैं ने विवेक को जरमनी जाते वक्त दिया था. यह तो मेरी सगाई की अंगूठी है. तुम ने इस का कहां मान रखा? फिर धीरेधीरे पोलीन ने एकएक कर के भावना के बुने सभी स्वैटर, कमीजें तथा दूसरे तोहफे उस के सामने रखे. स्वैटर तो सिकुड़ कर छोटे हो गए थे.

पोलीन ने बताया, ‘‘भावना, विवेक तुम से बहुत प्रेम करता था. तुम्हारी हर दी हुई चीज उस के लिए अनमोल थी. 2 औडियो टेप्स उसे जान से प्यारी थीं. उस के 2 गाने ‘कभीकभी मेरे दिल में खयाल आता है…’ और ‘जब हम होंगे 60 साल के और तुम होगी

55 की, बोलो प्रीत निभाओगी न तुम भी अपने बचपन की… वह बारबार सुनता था. ये दोनों गाने जेम्स ने भी गाने शुरू कर दिए थे. तुम्हारी दी हुई किसी भी चीज को दूर करने के नाम से वह तड़प उठता था. जब कभी वह उदास होता या हमारी तकरार हो जाती तो वह कमरे में जा कर और स्वैटरों को सीने से लगा कर उन्हें सहलातेसहलाते वहीं सो जाता था. कभीकभी तुम्हारे एहसास के लिए सिकुड़े स्वैटर को किसी तरह शरीर पर चढ़ा ही लेता था. घंटों इन चीजों से लिपट कर तुम्हारे गम में डूबा रहता था. जितना वह तुम्हारे गम में डूबता, उतना मुझे अपराधबोध सताता. मुझे तुम से जलन होती थी. मैं सोचती थी यह कैसा प्यार है? क्या कभी कोई इतना भी प्यार किसी से कर सकता है? मैं ने विवेक को पा तो लिया था, लेकिन वह मेरा कभी न बन सका. जब उस ने तुम से विवाह किया, मैं अपने लिए दुखी कम, तुम्हारे लिए अधिक प्रसन्न थी. मैं जानती थी कि विवेक अब वहीं है, जहां उसे होना चाहिए था. मैं भी उसे खुश देखना चाहती थी. तुम दोनों बने ही एकदूसरे के लिए ही थे. मुझे खुशी है कि मरने से पहले विवेक ने कुछ समय तुम्हारे साथ तो बिताया.

‘‘मुझे अब कुछ नहीं चाहिए. उस ने मुझे बहुत कुछ दिया है. तुम जब चाहोगी मैं जेम्स को तुम्हारे पास भेज दूंगी. जेम्स बिलकुल विवेक की फोटोकौपी है. वैसा ही चेहरा, वैसी ही हंसी.’’

फिर पोलीन और भावना दोनों आंखें बंद किए, एकदूसरे के गले में बांहें डाले, अपनाअपना दुख समेटे, अतीत की स्मृतियों के वे अमूल्य क्षण बीनबीन कर अपनी पलकों पर सजाने लगीं. दोनों का एक ही दुख था. पोलीन बारबार यही दोहरा रही थी. ‘‘आई एम सौरी भावना. फौरगिव मी प्लीज.’’

Mother’s Day 2024: देसी Recipe को ऐसे दें विदेशी टच

पिज़्ज़ा, पास्ता, नूडल्स जैसे फ़ास्ट फ़ूड आजकल के बच्चों की कमजोरी है फ़ास्ट फ़ूड का यदि सीमित मात्रा में सेवन किया जाये तो ये नुकसानदायक नहीं होते परन्तु इनका अत्यधिक प्रयोग मोटापा, और पेट की अनेकों बीमारियों को न्योता देना है क्योंकि एक तो इन्हें मैदा से बनाया जाता है दूसरे इन्हें संरक्षित करने के लिए प्रिजर्वेटिव का भरपूर प्रयोग किया जाता है परन्तु बाजार की अपेक्षा यदि इन्हें घर पर अधिकाधिक सब्जियों के साथ बनाकर बच्चों को खिलाया जाये तो उनका स्वाद भी पूरा हो जाता है दूसरे उनकी सेहत पर भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता. आज हम आपको कुछ एसी ही देशी रेसिपीज विदेशी टच के साथ बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बहुत थोड़े से ट्विस्ट के साथ बनाकर अपने बच्चों को खिला सकतीं हैं तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं-

-नूडल्स ब्रेड रोल

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाईप                        वेज

सामग्री

हाका नूडल्स                1/2 स्लाइस

ब्रेड स्लाइस                    6

दूध                                2 कप

बारीक कटी शिमला मिर्च      1/2

बारीक कटी गाजर                 1

बारीक कटा प्याज                 1

लहसुन, अदरक पेस्ट           1/2 टीस्पून

बारीक कटी पत्तागोभी           1/2 कप

बारीक कटी बीन्स                8

तेल                                   1 टीस्पून

नमक                                1/2 टीस्पून

टोमेटो सॉस                       1 टीस्पून

रेड चिली सॉस                    1/2 टीस्पून

सोया सॉस                        1/2 टीस्पून

वेनेगर                               1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर             1/4 टीस्पून

तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

विधि

एक पैन में 1/2 लीटर पानी, 1/4 टीस्पून नमक और 1/2 टीस्पून तेल डालें, जब पानी उबलने लगे तो नूडल्स डालकर उबालें, अब इन्हें छलनी में छानकर पानी अलग कर दें. दूसरे पैन में 1 टीस्पून तेल डालकर प्याज, लहसुन, अदरक पेस्ट डालकर सौते करें. सभी कटी सब्जियां डालकर नमक डाल दें. जब सब्जियां हल्की सी नरम हो जायें तो उबले नूडल्स, मसाले व सभी सॉसेज डालकर अच्छी तरह चलायें. 5 मिनट तक पकाकर गैस बंद कर दें. ब्रेड स्लाइस के किनारे काटकर अलग कर दें. ब्रेड स्लाइस को दूध में भिगोकर दोनों हथेली के बीच में रखकर निचोड़ें, बीच में एक टीस्पून नूडल्स रखकर रोल का शेप देते हुए चारों तरफ से बंद कर दें. इसी प्रकार सारे रोल्स तैयार करें. तैयार रोल्स को गरम तेल में सुनहरा होने तक तलकर टिश्यू पेपर पर निकालकर टोमेटो सौस के साथ सर्व करें.

-पिज़्ज़ा परांठा

कितने लोगों के लिए                   4

बनने में लगने वाला समय         30 मिनट

मील टाइप                           वेज

सामग्री

गेहूं का आटा                          1 कप

मैदा                                 1/4 कप

नमक                                1 चुटकी

पिज्जा सीजनिंग                   1 टीस्पून

तेल                                    1 टीस्पून

प्याज                                1

टमाटर                                1

हरी शिमला मिर्च                   1/2

लाल शिमला मिर्च                  1/2

पीली शिमला मिर्च                 1/2

उबले कॉर्न                           1 टीस्पून

किसा मोजरेला चीज               1 कप

पिज़्ज़ा सौस                          1 टेबलस्पून

ओरेगेनो                                1/2 टीस्पून

मिक्स हर्ब्स                          1/2 टीस्पून

बटर                                   1 टीस्पून

विधि

सभी सब्जियों को छोटे छोटे चौकोर टुकड़ों में काट लें. गेहूं के आटे में मैदा, पिज़्ज़ा सीजनिंग, और नमक मिलाकर रोटी जैसा नरम आटा गूंथ लें. तैयार आटे से 2 रोटी की मोटाई के बराबर मोटे 4 परांठे दोनों तरफ तेल लगाकर सेंक लें. ध्यान रखें कि हमें इन्हें बहुत हल्का सा ही सेंकना है.

अब चारों परांठों पर बटर लगाकर पिज़्ज़ा सौस लगाकर सभी सब्जियां और कॉर्न थोड़ी थोड़ी दूरी पर फैलाकर रख दें. ऊपर से मोजरेला चीज डालकर ओरेगेनो और मिक्स हर्ब्स बुरक दें. अब इन्हें 5 मिनट तक 180 डिग्री पर माइक्रोवेब में बेक करके सर्व करें.

 

चश्मे के साथ कैसा हो मेकअप

आज करीब 75% से ज्यादा लोगों, जिन में बच्चे भी शामिल हैं की नजर कमजोर है, उन में अगर लड़कियों की बात की जाए तो यह एक मिथ करीब हर जगह दिखाई देगा कि लड़कियां चश्मा लगाती हैं तो उन के नैननक्श चाहे कितने भी सुंदर क्यों न हों, वे आकर्षक दिखाई नहीं देतीं. यही मिथ उन के आत्मविश्वास को गिराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आखिर क्यों हमेशा नारी को ही सुंदरता के पैमाने पर तोला जाता है, भले वह पुरुष के मुकाबले ज्यादा प्रतिभाशाली हो. महिला के व्यक्तित्व का साथी चश्मा उन के उपहास का और पुरुष की आंखों पर लगा चश्मा उन की गे्रसफुल पर्सनैलिटी का साक्षी कैसे बन जाता है?

दोहरी सोच को करें दरकिनार

इस पुरातन दोहरी सोच को दरकिनार कर के कितनी प्रतिभासंपन्न महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने हुनर का परचम हर क्षेत्र में लहराया है. अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी कमजोरी आप की प्रतिभा पर भारी नहीं पड़ सकती है. ऐसी कई प्रतिभासंपन्न हस्तियां हैं, जिन की चश्मे के साथ ही सुंदरता और हुनर को हर कोई पहचानता है. जैसे लिंडसे लोहन, अमेरिकन मौडल, पौप सिंगर व ऐक्ट्रैस, मैडोना, फेमस पौप क्वीन. जेनिफर गार्नर, अमेरिकन ऐक्ट्रैस व फिल्म प्रोड्यूसर. इन के अलावा फेमस इंडियन ऐक्ट्रैस भी हैं, जिन की खूबसूरती के हजारों दीवाने हैं. कैटआईज क्वीन बिपाशा बसु, रानी मुखर्जी, काजोल, सोनम कपूर, दीपिका पादुकोण, प्रियंका, श्रुति हसन आदि.

परफैक्ट मेकअप

चश्मे के साथ हौट व गौर्जियस नजर आने के लिए जरूरी है मेकअप की सही जानकारी होना:

करैक्टर कंसीलर: डार्क सर्कल्स और चश्मे की वजह से आंखें और ज्यादा काली नजर आने लगती हैं, इसलिए पीच व यलो टोन कंसीलर को ब्रश की मदद से लोअर लैश की शुरुआत से ले कर ऐंड तक ब्लैंड करते हुए लगाएं. आंखों के इनर कौर्नर तककंसीलर लगाना बिलकुल न भूलें.

फाउंडेशन व पाउडर: फाउंडेशन को अपने चेहरे पर अप्पर डाइरैक्शन में ईवनली लगाएं. आंखों के किनारों और नाक के आसपास लगाना न भूलें. कानों पर भी फाउंडेशन जरूर लगाएं ताकि चश्मा लगाने पर उन की त्वचा अलग नजर न आए. फिर जिंजर टोन फेस पाउडर का इस्तेमाल करें. आंखों के आसपास पाउडर पफ से डैब करते हुए लगाएं.

आईशैडो: सब से पहले आंखों पर बेस कोट लगाएं. बेस कोट अपनी त्वचा के रंग से एक शेड लाइट लें और वह भी शिमररहित, क्योंकि चश्मे के साथ अप्पर लिड पर ऐक्स्ट्रा शाइन आप की आंखों को छोटा दर्शाएगी, इसलिए शिमर का प्रयोग लोअर लिड पर सिर्फ टचअप के रूप में ही करें. आईशैडो में नैचुरल लुक के लिए न्यूट्रल पेस्टल शेड व ग्लैमरस लुक के लिए चश्मे के फ्रेम व आईबौल के विपरीत शेड्स का इस्तेमाल कर के उन्हें ईवनली स्मज करें. ध्यान रखें कि कोई अननैचुरल क्रीजलाइन न रहे.

आईलाइनर: अगर आप चश्मा पहन रही हैं तो कभी आईलाइनर लगाना न भूलें. इस के लिए जैलबेस लाइनर का चुनाव बेहतर रहता है, क्योंकि यह आंखों को अननैचुरल शाइन नहीं देता. लाइनर को जितना हो सके लैशलाइन के करीब लगाएं ताकि आप की आंखों की खूबसूरती डिफाइन हो सके. इनर कौर्नर से पतला लगाते हुए आउटर कौर्नर पर थोड़ी मोटाई देते हुए लगाएं.

मसकारा व लैशेज: यह एक मिथ है कि चश्मे के साथ मसकारा व आर्टिफिशियल लैशेज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, बल्कि मसकारा आंखों की सुंदरता को और अधिक निखारता है, इसलिए आर्टिफिशियल लैशेज का भी इस्तेमाल करें और मसकारा के 2 कोट लगा कर आंखों की खूबसूरती बढ़ाएं.

ब्लशर: चश्मा लगाती हैं तो ब्लशर लगाना न भूलें ताकि आप का चेहरा हाईलाइट हो. चीकबोंस से लाइट पिंक या पीच शेड के ब्लशर को ब्लैंड करते हुए कानों के ऊपरी तरफ लेते हुए जाएं व शिमरी विजन हाईलाइटिंग का हलके हाथ से स्मूथ स्ट्रोक दें.

लिप्स: इस मेकअप में आंखों को हाईलाइट किया गया है इसलिए लिप्स के लिए सौफ्ट व न्यूड शेड्स का ही इस्तेमाल करें. चाहें तो सिर्फ हाईग्लौस का ही इस्तेमाल करें.

आईब्रोज: आईब्रोज को आर्च शेप में ही बनवाएं. अगर वे पतली हैं तो जरूरत के अनुरूप ब्रो पाउडर या आईब्रो पैंसिल का इस्तेमाल आईब्रोज की शेप को परफैक्ट लुक देने के लिए करें. आर्च शेप की आईब्रोज से आप को गौर्जियस लुक मिलेगा.

हेयरस्टाइल: चश्मे के साथ हेयरस्टाइल ऐसा बनाएं, जिस से बालों को बाउंसी व पफी लुक मिले. चाहें तो रोल्स या क्रिपिंग मशीन का प्रयोग करें. बालों में वौल्यूम लाने के लिए वौल्यूमाइजिंग स्प्रे का भी प्रयोग कर सकती हैं.

रिश्तों को बिगाड़ रहा वर्क फ्रौम होम

जब से कोविड-19 के कारण वर्क फ्रौम होम शुरू हुआ और टैक्नोलौजी ने उसे बल दिया, शुरू में पत्नियों को लगा कि यह तो वरदान है पर अब जब यह कोविड के बाद भी चलता जा रहा है, घर से बाहर की विशेषता पता चलने लगी है. अब पता चलने लगा है कि वास्तव में दफ्तर में जा कर काम करने वाले पति या पत्नी असल में कितना काम करते थे, कितनी मौज करते थे.इंडस्ट्रियल या सेल्स जौब्स की छोड़ दें तो अब विशाल दफ्तरों में होने वाला काम कंप्यूटरों से ही होता है और हर डैस्क पर एक कंप्यूटर लगा होता है. कभीकभार मीटिंग कमरे में मिलते हैं, प्रेजैंटेशन देते हैं, डिस्कशन करते हैं पर कोई पहाड़ नहीं खोदा जाता, कोई सामान नहीं उठाया जाता.

असल में दफ्तरों में होता क्या है यह पतियों और पत्नियों को अब पता चलने लगा है.ब्रिक ऐंड मोर्टर कंपनियों के अलावा सारी नौकरियों में 7-8 घंटे औफिस में रहने के बावजूद वर्कर आधापौना टाइम बेकार की गप में लगाते हैं. मिनटों नहीं घंटों टौयलेट जाने के बहाने इधरउधर घूमते हैं. मीटिंगों के नाम पर समय बरबाद करते हैं क्योंकि किसी भी मीटिंग में 2-4 मिनट मिलते हैं कुछ कहने के. मीटिंग में 2-3 लोगों का काम लैक्चर    झाड़ना होता है, बाकी चुपचाप सुनते हैं और मन में खयाली पुलाव बनाते रहते हैं या ताकते रहते हैं कि किस लड़की की ड्रैस का ब्लाउज कितना गहरा है या किस लड़की के बालों में हाथ फिराने में कितना मजा आएगा.वर्क फ्रौम होम से यह पोल खोली जा रही है कि असल में दफ्तरों में कितना काम होता है.सब काम करने के बावजूद रात को 2 बजे जूम मीटिंग इंटरनैशनल बायर के साथ करने के बावजूद, कंप्यूटर पर रिसर्च करने के बावजूद, घंटों घर के सोफे पर मजे करे जा रहे हैं या जूम मीटिंग के साथ पास रखे मोबाइल पर इंडिया वर्सेज पाकिस्तान का मैच देखा जा रहा है.

दोनों पतिपत्नियों की पोलें खुलने लगी हैं कि वे वर्क फ्रौम औफिस के बाद लौटने पर शाम तक थक गए हैं. यह थकान असल में उस मौजमस्ती की थी जो दफ्तरों में की जाती थी. रेस में पूरा दिन सट्टेबाजी में लगाने और बार में8 पैग पीने या पार्टी में 4 घंटे डांस करने के बाद भी तो थकान होती है. वर्क फ्रौम औफिस से इस थकान के रहस्य पर से परदा उठने लगा है.इस से अब पतिपत्नियों में खीज बढ़ने लगी है. 24 घंटे एकदूसरे के सिर पर सवार रहो या बच्चों की चिखचिख, एक कप कौफी तो बना देना, जरा फोन सुन लेना, आज पकौड़े तो बना लेना, डिलिवरी बौय से खाना या सामान तो ले लेना जैसे वाक्य 18 घंटे गूंजते रहते हैं. मेरा साथी मेरे साथ है पर है भी नहीं. कुछ घंटों का भी काम नहीं करता/करती.

बस बातें बनवा लो.पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं पर जब घर से काम कर रहे हों तो बच्चों को भी एहसास हो जाता है कि काम का मतलब तो टीवी देखना, सोफे पर सोना, फालतू में मोबाइल पर गेम खेलना, टैक्सटिंग करना शामिल है. बच्चों के मौडल मांबाप असल में कितने निकम्मे हैं, यह पता चल रहा है.वर्क फ्रौम होम न केवल पतिपत्नी के रिश्तों को बिगाड़ रहा है, यह बच्चों को भी बिगाड़ रहा है. दूसरी तरफ अकेले रहने वालों को अपना घर जेल सा भी बना रहा है जहां से वह अरविंद केजरीवाल की तरह सौलिटरी सैल में रह कर ध्यान लगाने को मजबूर रहते हैं और कभीकभार मुलाकाती आता है, जेलर आता है या खाना देने वाला आता है.वर्क फ्रौम होम मानव का चालचरित्र और चेहरा बिगाड़ न दे यह डर लगने लगा है. व्हाइट कौलर वर्करों से तो ब्लू कौलर वर्कर अच्छे हैं जो फैक्टरियों, सड़कों, खेलों, खदानों में हैं जहां हरदम लोगों के चेहरे देखते हैं. सैकड़ों से हायहैलो करते हैं. पड़ोसिनों से चुगली में जो मजा आता है वह जूम मीटिंग या टैक्सटिंग से थोड़े ही संभव है.

क्या मैं पेनलैस डिलिवरी करवा सकती हूं?

सवाल

मेरी उम्र 28 वर्ष है और मैं 7 महीने की गर्भवती हूं. जैसेजैसे वक्त गुजर रहा है डिलिवरी के बारे में सोचसोच कर घबरा जाती हूं, क्योंकि मैं ने सुना है कि प्रसव का दर्द बेहद असहनीय होता है. मैं जानना चाहती हूं कि  क्या मैं पेनलैस डिलिवरी करवा सकती हूं? इस तरीके से प्रसव करने पर मेरे या होने वाले बच्चे की सेहत पर कोई दुष्प्रभाव तो नहीं होगा?

जवाब

आजकल ऐपिड्यूरल ऐनेस्थीसिया के द्वारा पेनलैस डिलिवरी करना बेहद सामान्य प्रक्रिया है. यह पूरी तरह से सुरक्षित है. इस का कोई साइड इफैक्ट नहीं होता. इस प्रक्रिया में एक छोटे कैथेटर की मदद से ऐपिड्यूरल ऐनेस्थीसिया को लोअर बौडी के ऐपिड्यूरल पार्ट में डाल दिया जाता है. हालांकि शुरुआती कुछ समय के लिए आप का ब्लड प्रैशर कम हो सकता हैलेकिन डाक्टरों और ऐनेस्थीसिया ऐक्सपर्ट की देखरेख में स्थिति को नियंत्रित कर लिया जाता है.

आलोचना से न हो दुखी, ये ही आपको बना देंगी असली सोना

‘निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’ सदियों पहले संत कबीर दास जी ने एक लाइन में हमें समझा दिया था कि जीवन में निंदा यानी आलोचना भी उतनी ही जरूरी हैं, जितनी कि अच्छाइयां और तारीफें.आलोचनाएं न सिर्फ हमें गलतियों को सुधारने का मौका देती हैं, बल्कि ये हमें कुछ नया भी सिखाती हैं.हालांकि अब समय बदल गया है लोग अपनी गलतियों पर भी आलोचना सुनना पसंद नहीं करते हैं.कुछ लोग तो इसे दिल पर लगा लेते हैं.वहीं कुछ इसे पर्सनल अटैक समझकर लड़ाई झगड़े तक पहुंच जाते हैं.लेकिन क्या आप जानते हैं आलोचना, निंदा या क्रिटिसाइज होना भी जिंदगी का जरूरी हिस्सा है.इसके कई फायदे हैं, बस आपको इससे डील करना आना चाहिए।

आलोचना से बनेंगे अनुभवी

ये बात सच है कि अपनी तारीफ सुनना सभी को पसंद होता है, लेकिन अगर आपसे बड़ा, अनुभवी और समझदार शख्स आपकी आलोचना करता है तो आप अपनी गलती जानने की और उसे स्वीकारने की कोशिश करें.इससे आपको अपनी गलती का पता चलेगा और आप उसे सुधार पाएंगे.यह आपके पर्सनालिटी डेवलपमेंट के लिए जरूरी कदम है.ऐसे ही आप जीवन में अनुभवी बन पाएंगे।

पॉजिटिव सोच और एटिट्यूड जरूरी

कई बार लोग अपनी आलोचना से इस कदर दुखी हो जाते हैं कि उनका सारा दिन खराब हो जाता है.उनका किसी काम में मन नहीं लगता और वह अपनी आलोचना के बारे में ही सोचते रहते हैं.इससे उनके बाकी काम भी बिगड़ जाते हैं.इसलिए अपनी सोच हमेशा पॉजिटिव रखें.सामने वाले की बात को समझने की कोशिश करें.इससे आप सिक्के के दोनों पहलू देख पाएंगे.यही पॉजिटिव सोच और एटिट्यूड आपको जिंदगी में आगे लेकर जाएगा.

खुलकर बात करें

कभी कभी मुद्दे पर खुलकर बात करना तस्वीर को काफी हद तक साफ कर देता है.हो सकता है जिसे आप अपनी आलोचना समझ रहें हैं वो सिर्फ नजरिए का अंतर हो.ऐसे में सामने वाले से खुलकर उसका विचार जानें और उतना ही स्पष्ट तौर पर अपना विचार उसे बताएं.जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए टू वे कम्यूनिकेशन आपके हमेशा काम आएगा।

रिएक्ट करने से पहले सोचें

जाहिर है आलोचना किसी को भी अच्छी नहीं लगती, लेकिन इसे सुनकर तुरंत रिएक्ट न करें.पहले मामले को शांत होने दें, उसे समझें और उसके बाद ही अपना रिएक्शन दें.अगर आपको पता है कि गलती आपकी है, तो उसे दिल से स्वीकार करें.ये आपका बड़प्पन कहलाएगा.अगर आप गलत को सही साबित करने पर उतारू रहेंगे तो ये आपकी मूर्खता होगी.पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों लाइफ में इस मंत्र को फॉलो करना जरूरी है.

सिचुएशन को करें हैंडल

समझदार शख्स आलोचना को कभी भी दिल पर नहीं लेता.इसके उल्ट वह सिचुएशन को बहुत ही संभलकर हैंडल करता है.इसलिए अगर कोई आपकी आलोचना कर रहा है या आपकी कमियां गिना रहा है तो उसका धन्यवाद करें.ऐसा करके आप अपने विरोधियों को शांत रहकर भी करारा जवाब दे पाएंगे.

 

रिलेशनशिप के लिए ग्रहण है ओवरथिंकिंग, आपको भर देगी नेगेटिव सोच से

रिश्ते में एक दूसरे की केयर करना, उसे जताना, पार्टनर के पास मौजूद न होने पर भी उसे महसूस करना आदि आपके प्यार को बढ़ाता है.लेकिन अगर ये केयर और प्यार जुनून बन जाए तो ये रिश्ते की खुशियों के लिए सबसे घातक स्थिति है.ओवरथिंकिंग भी ऐसा ही जुनून है.जो आपको आज में नहीं जीने देती.या तो आप अतीत के अंधेरे में घूमते रहते हैं या फिर आने वाले कल की चिंता में घुटते रहते हैं.ओवरथिंकिंग किसी भी रिश्ते को टॉक्सिक बना सकती है.यह आपको इतना इनसिक्योर बना देती है कि आप सही और गलत का अंतर ही नहीं कर पाते.इससे शक, शंका, संदेह पैदा होने लगते हैं और ये सभी मिलकर आपके रिश्ते को अंधेरे में धकेल देते हैं.शायद यही कारण है कि हमारे बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि अति हर बात की बुरी होती है.किसी भी शख्स या रिश्ते के बारे में ज्यादा सोचना आपके लिए हानिकारक हो सकती है.

आपके रिश्ते को ऐसे प्रभावित करती है ओवर थिंकिंग

कहते हैं गुजरा हुआ समय लौटकर नहीं आता.अगर आप भी अपने रिश्ते को लेकर ओवर थिंक कर रहे हैं तो याद रखिए आपका अच्छा समय निकल सकता है, जो फिर वापस लौटकर कभी नहीं आएगा.ओवरथिंकिंग आपके रिश्ते को खोखला कर सकती है.

1. बात कम, झगड़े ज्यादा : जब आप अपने रिश्ते को लेकर ओवरथिंक करने लगते हैं तो आप दिमाग में उसकी एक छवि बना लेते हैं.आप उसी के अनुसार सोचने लगते हैं.सामने वाले की हर बात आपको गलत लगने लगती है.या फिर आप उसका गलत अर्थ निकालने लगते हैं.पार्टनर की हर बात में आप नेगेटिव एंगल खोजने लगते हैं, जिससे रिश्ता कमजोर हो जाता है.

2. बढ़ती है टेंशन : जब आप लगातार बातों और घटनाओं को तोलने में लगते हैं तो ये टेंशन का कारण बन जाता है.यह आपको मेंटली और फिजिकली दोनों तरीकों से प्रभावित करता है.ऐसे में आप हमेशा चिड़चिड़े, उदास या गुस्से में रहने लगते हैं.ये सभी बातें आपके रिश्ते के लिए घातक हो जाती हैं.

3. बेवजह बात बढ़ाना : ये बात सही है कि किसी भी परेशानी या समस्या का हल निकाला जा सकता है, लेकिन हर वक्त सिर्फ उसी के बारे में सोचने से आप परेशान हो जाएंगे और सही हल भी नहीं खोज पाएंगे.जब आप किसी बात पर ओवरथिंक करते हैं तो मुख्य बात से भटक जाते हैं और उससे कनेक्ट दूसरी बातों के बारे में ज्यादा सोचने लगते हैं.ऐसे में समस्या वहीं की वहीं खड़ी रहती है.

4. अविश्वास : किसी भी रिश्ते या व्यक्ति के बारे में बहुत ज्यादा सोचने का मतलब है रिश्ते की नींव को कमजोर करना.ओवरथिंकिंग के कारण आप किसी पर पूरा विश्वास नहीं कर पाते.आप हर किसी को संदेह की नजरों से देखने लगते हैं.आप सही काम के पीछे भी गलत उद्देश्य को खोजने में जुट जाते हैं.पार्टनर अगर आपको कुछ गिफ्ट दे तो खुश होने की जगह उसके पीछे के कारण खोजना, आपके अविश्वास को दिखाता है.

5. खत्म हो जाता है अपनापन : ओवर थिंकिंग को अपनेपन का दुश्मन कह सकते हैं.जब आप हमेशा पार्टनर की हर बात और एक्शन को लेकर ओवरथिंक करेंगे तो आपस में अविश्वास पैदा होने लगता है.ऐसे में आप न ही फिजिकली साथ रह पाते हैं और न ही मेंटली.धीरे-धीरे रिश्ते में नजदीकियां, अपनापन, प्यार, सहानुभूति, खुशियां सब कम होने लगती हैं.क्योंकि इन सभी की जगह ओवर थिंकिंग के कारण संदेह और नेगेटिव विचार ले लेते हैं.ऐसे में रिश्ते की नाजुक डोर बोझिल होकर टूटने लगती है.

6. फैसला लेने में परेशानी : आपने देखा होगा कि कुछ लोग बहुत छोटे-छोटे फैसले भी बहुत ही मुश्किल से कर पाते हैं.ये ओवरथिंकिंग का नतीजा भी हो सकता है.ओवरथिंकर अक्सर आसानी से फैसले नहीं ले पाते.वे हमेशा इसी कन्फ्यूजन में रहते हैं कि हमने ऐसा किया तो क्या होगा.या फिर हमने ऐसा नहीं किया तो क्या होगा.इसी फेर में वे आज को ठीक से जी ही नहीं पाते।

बंद आकाश, खुला आकाश : आजाद पंछियों को कैद करना सही है क्या

एक दिन मैं तोते का बच्चा खरीद कर घर ले आया. उस के खानेपीने के लिए 2 कटोरियां पिंजरे में रख दीं. नयानया कैदी था इसलिए अकसर चुप ही रहता था. हां, कभीकभी टें…टें की आवाज में चीखने लगता.

घर के लोग कभीकभी उस निर्दोष कैदी को छेड़ कर आनंद ले लेते. लेकिन खाने के वक्त उसे भी खाना और पानी बड़े प्यार से देते थे. वह 1-2 कौर कुटकुटा कर बाकी छोड़ देता और टें…टें शुरू कर देता. फिर चुपचाप सीखचों से बाहर देखता रहता.

उसे रोज इनसानी भाषा बोलने का अभ्यास कराया जाता. पहले तो वह ‘हं…हं’ कहता था जिस से उस की समझ में न आने और आश्चर्य का भाव जाहिर होता पर धीरेधीरे वह आमाम…आमाम कहने लगा.

अब वह रोज के समय पर खाना या पानी न मिलने पर कटोरी मुंह से गिरा कर संकेत भी करने लगा, फिर भी कभीकभी वह बड़ा उदास बैठा रहता और छेड़ने पर भी ऐसा प्रतिरोध करता जैसे चिंतन में बाधा पड़ने पर कोई मनीषी क्रोध जाहिर कर फिर चिंतन में लीन हो जाता है.

एक दिन तोतों का एक बड़ा झुंड हमारे आंगन के पेड़ों पर आ बैठा, उन की टें…टें से सारा आंगन गूंज उठा. मैं ने देखा कि उन की आवाज सुनते ही पिंजरे में मानो भूचाल आ गया. पंखों की निरंतर फड़फड़ाहट, टें…टें की चीखों और चोंच के क्रुद्ध आघातों से वह पिंजरे के सीखचों को जैसे उखाड़ फेंकना चाहता था. उस के पंखों के टुकड़े हवा में बिखर रहे थे. चोंच लहूलुहान हो गई थी. फिर भी वह उस कैद से किसी तरह मुक्त होना चाहता था. झुंड के तोते भी उसे आवाज दे कर प्रोत्साहित करते से लग रहे थे.

झुंड के जाने के बाद उस का उफान कुछ शांत जरूर हो गया था लेकिन क्षतविक्षत उस कैदी की आंखों में गुस्से की लाल धारियां बहुत देर तक दिखाई देती रहीं. उस की इस बेचारगी ने घर के लोगों को भी विचलित कर दिया और वे उसे मुक्त करने की बात करने लगे, लेकिन बाद में बात आईगई हो गई.

कुछ दिनों बाद की बात है. एक दिन मैं ने इस अनुमान से उस का पिंजरा खोल दिया कि शायद वह उड़ना भूल गया होगा, द्वार खुला. वह धीरेधीरे पिंजरे से बाहर आया. एक क्षण रुक कर उस ने फुरकी ली और आंगन की मुंडेर पर जा बैठा. उस के पंखों और पैरों में लड़खड़ाहट थी. फिर भी वह अपनी स्वाभाविक टें…टें के साथ एक डाल से दूसरी डाल पर फुदकता जा रहा था. उस के बाद वह पहाड़ी, सीढ़ीदार खेतों पर बैठताउड़ता हुआ घर से दूर होने लगा.

अपनी भूल पर पछताता मैं, और गांव भर के बच्चे, तोते के पीछेपीछे उसे पुचकार कर बुलाते जा रहे थे और वह हम से दूर होता जा रहा था. मैं ने गौर किया कि उस की उड़ान में और तोतों जैसी फुरती नहीं थी. उस की इस कमी को लक्ष्य कर के मुझे शंका होने लगी कि अगर वह लौटा नहीं तो न तो अपने साथियों के साथ खुले आकाश में उड़ पाएगा और न ही अपना दाना जुटा पाएगा.

तोते को भी जैसे अपनी लड़खड़ाहट का एहसास हो चुका था. इसीलिए कुछ दूर जाने पर वह एक पेड़ की डाल पर बैठा ही रह गया और उसे पुचकारते हए मैं उस के पास पहुंचा तो उस ने भी डरतेझिझकते अपनेआप को मेरे हवाले कर दिया.

काश, उस ने अपनी लड़खड़ाहट को अपनी कमजोरी न मान लिया होता तो वह उसी दिन नीलगगन का उन्मुक्त पंछी होता. मगर वह अपनी लड़खड़ाहट से घबरा कर हिम्मत हार बैठा और फिर से पिंजरे का पंछी हो कर रह गया.

करीब साल भर के बाद, एक दिन फिर उस के उड़ने की जांच हुई. अब की बार खुले में पिंजरा खोलने का जोखिम नहीं लिया गया. घर की बैठक में 2 बड़ी जालीदार खिड़कियों को छोड़ कर बाकी रास्ते बंद कर दिए गए. पिंजरा खोला गया. कुछ दूर खड़े हो कर हम सबउसे ही देखने लगे. पहले वह खुले द्वार की ओर बढ़ा. फिर रुक कर गौर से उसे देखने लगा.

उस ने एक फुरकी ली लेकिन द्वार की ओर नहीं बढ़ा. हमें लगा कि हमारे डर से वह बाहर नहीं आ रहा है. हम सब ओट में हो कर उसे देखने लगे. लेकिन वह दरवाजे की तरफ फिर भी नहीं बढ़ा. कुछ देर बाद वह दरवाजे की ओर बढ़ा जरूर लेकिन एक निगाह बाहर डाल कर फिर पिंजरे में मुड़ गया. फिर पिंजरे से निकल कर बाहर आया. हम सब उत्सुकता से उसे ही देख रहे थे. उस ने एक लंबी फुरकी ली, जैसे उड़ने से पहले पंखों को तोल रहा हो. वह पहली मुक्ति के समय की अपनी बेबसी को शायद भूल गया था.

उस ने 2-3 जगह अपने पंखों को चोंच से खुजलाया और झटके से पंखों को फैलाया कि एक ही उड़ान में वहां से फुर्र हो जाए लेकिन पंख केवल फड़फड़ा कर रह गए. वह चकित था. उस ने एक उड़ान भर कर पास के पीढ़े तक पहुंचना चाहा, लेकिन किनारे तक पहुंचने से पहले ही जमीन पर गिर पड़ा और फड़फड़ाने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हो क्या गया है. वह बारबार उड़ने की कोशिश करता और हर बार मुंह की खाता.

अंत में, थकाहारा, पिंजरे की परिक्रमा करने के बाद वह द्वार पर आ रुका. उस ने एक निराश नजर अपने चारों ओर डाली और सिर झुका कर धीरेधीरे पिंजरे के अंदर चला गया. मुड़ कर एक बार फिर ललचाई नजरों से उस ने पिंजरे के खुले द्वार को निहारा और हताशा से मुंह फेर लिया. पिंजरे में अपनी चोंच को पंखों के बीच छिपा कर आंख मूंद खामोश बैठ गया. अब चाह कर भी वह उस दिन पिंजरे को छोड़ कर नहीं जा सकता था.

वह शायद पछता रहा था कि मैं ने उस दिन उड़ जाने का मौका क्यों खो दिया. काश, उस दिन थोड़ी हिम्मत कर के मैं उड़ गया होता तो फिर चाहे मेरा जो होता, इस गुलामी से लाख गुना बेहतर होता, पर अब क्या करूं? उस ने मान लिया कि मुक्त उड़ान का, खुले आकाश का, बागों और खेतों की सैर का, प्रकृति की ममतामयी गोद का और नन्हे से अपने घोंसले का उस का सपना भी उसी की तरह इस पिंजरे में कैद हो कर रह जाएगा और एक दिन शायद उसी के साथ दफन भी हो जाएगा.

मुझे लगा जैसे आज उस का रोमरोम रो रहा है और वह पूरी मानव जाति को कोसते हुए कह रहा है:

‘यह आदमी नामक प्राणी कितना स्वार्थी है. खुद तो आजाद रहना चाहता है पर आजाद पंछियों को कैद कर के रखता है. ऊपर से हुक्म चलाता है, यह जताने के लिए कि कोई ऐसा भी है जो उस के इशारों पर नाचता है. मुझे कैद कर दिया पिंजरे में. ऊपर से हुक्म देता है, यह बोलो, वह बोलो. बोल दिया तो ‘शाबाश’ कहेगा, लाल फल खाने को देगा. न बोलो तो डांट पिलाएगा.

‘मुझे नहीं सीखनी इनसान की भाषा. खुद तो बोलबोल कर इनसानों ने इनसानियत का सत्यानाश कर रखा है. और हमें उन के बोल बोलने की सीख देते हैं. कहां बोलना है, कैसे बोलना है और कितना बोलना है यह इनसान अभी तक समझ नहीं पाया. इसे इनसान समझ लेता तो बहुत से दंगेफसाद, झगड़े और उपद्रव खत्म हो जाते.

‘चला है मुझे सिखाने, मेरी चुप्पी से ही कुछ सीख लेता कि दर्द अकेले ही सहना पड़ता है. फिर चीखपुकार क्यों? इतना भी इनसान की समझ में नहीं आता. बहुत श्रेष्ठ समझता है अपनेआप को. शौक के नाम पर पशुपक्षियों को कैद कर के उन पर हुक्म चलाता है और कहता है ‘पाल’ रखा है.

‘कुत्तेबिल्ली इसलिए पालता है कि उन पर धौंस जमा सके. दुनिया को दिखाना चाहता है कि देखो, ये कैसे मेरा हुक्म बजा लाते हैं. कैसे मेरे इशारों पर जीतेमरते हैं. हुक्म चलाने की, शासन करने की, अपनी आदम इच्छा को आदमी न जाने कब काबू कर पाएगा? इसीलिए तो निरंकुश घूम रहा है सारी सृष्टि में.

‘इनसान मिलजुल कर क्या खाक रहेगा, जबकि इसे दूसरा कोई ऐसा चाहिए जिस पर यह हुक्म चलाए. जब तक लोग हैं तो लोगों पर राज करता है. लोग न मिलें तो हम पशुपक्षियों पर रौब गांठता है. जब लोगों ने हुक्म मानने से यह कहते हुए मना कर दिया कि जैसे तुम, वैसे हम. तो फिर तुम कौन होते हो हम पर राज करने वाले? तब शामत हम सीधेसादे पशुपक्षियों पर आई. किसी ने मेरी बिरादरी को पिंजरे में डाला तो किसी ने प्यारी मैना को. किसी ने बंदर को धर पकड़ा तो किसी ने रीछ की नाक में नकेल डाल दी.

‘इनसान है कि हमें अपने इशारों पर नचाए जा रहा है. हमें नाचना है. हमारी मजबूरी है कि हम इनसान से कमजोर हैं. हमारे पास इनसान जैसा शरीर नहीं. हमारे पास आदमी जैसा फितरती दिमाग नहीं. आदमी जैसा सख्त दिल नहीं. हम आदमी जैसे मुंहजोर नहीं. इसीलिए हम बेबस हैं, लाचार हैं और इनसान हम पर अत्याचार करता चला आ रहा है.

काश, इनसान में यह चेतना आ जाए कि वह किसी को गुलाम बनाए ही क्यों? खुद भी आजाद रहे और दूसरे प्राणियों को भी आजाद रहने दे. जैसेजैसे ऐसा होता जाएगा वैसेवैसे यह दुनिया सुघड़ होती जाएगी, सुंदर होती जाएगी, सरस होती जाएगी. जब आदमी के ऊपर न तो किसी का शासन होगा और न ही आदमी किसी पर शासन करेगा तब उस की समझ में आएगा कि आजाद रहने और आजाद रहने देने का आनंद क्या है. बंद आकाश और खुले आकाश का अंतर क्या है? तब आदमी महसूस करेगा कि जब वह हम पशुपक्षियों को अपना गुलाम बनाता है तो हम पर और हमारे दिल पर क्या गुजरती है.’

तोते की टें…टें की आवाज ने मेरी तंद्रा भंग कर दी. मैं झटके से उठा. खूंटी पर से तोते का पिंजरा उतारा और चल पड़ा झुरमुट वाले खेतों की ओर.

खेत शुरू हो गए थे. पकी फसल की बालियां खाने के लिए हरे चिकने तोते झुरमुट से खेतों तक उड़ान भरते और चोंच में अनाज की बाली लिए लौटते. झुरमुट और खेत दोनों में उन के टें…टें के स्वर छाए थे. पिंजरे का तोता भी अब चहकने लगा था.

मैं रुक गया और पिंजरे को अपने चेहरे के सामने ले आया और ‘पट्टूपट्टू’ पुकारने लगा. वह पिंजरे में इधर से उधर, उधर से इधर व्याकुलता से घूमता जा रहा था. बीचबीच में पंख भी फड़फड़ाता जाता. उस में अप्रत्याशित चपलता आ गई थी. शायद यह दूसरे तोतों की आवाज का करिश्मा था जो वह मुक्ति के लिए आतुर हो रहा था.

मैं ने ज्यादा देर करना ठीक नहीं समझा. पिंजरे का द्वार झुरमुटों की तरफ कर के खोला और प्यार से बोला, ‘‘जा, उड़ जा. जा, शाबाश, जा.’’

वह सतर्क सा द्वार तक आया. गरदन बाहर निकाल कर जाने क्या सूंघा, पंख फड़फड़ाए और उड़ गया.  एक छोटी सी उड़ान. वह सामने के पत्थर पर जा टिका. एक क्षण वहां रुक कर पंख फड़फड़ाए और फिर उडान ली. यह उड़ान, पहली उड़ान से कुछ लंबी थी.

अब वह एक झाड़ी पर जा बैठा. उस के बाद उड़ा तो एक जवान पेड़ की लचकदार डाल पर जा बैठा. उस के बैठते ही डाल झूलने लगी. उस ने 1-2 झूले खाए और फिर यह जा, वह जा, तोतों के झुंड में शामिल हो गया.

मैं ने संतोष की सांस ली.

लौटने लगा तो हाथ में खाली पिंजरे की तरफ ध्यान गया. एक पल पिंजरे को देखा और विचार कौंधा कि सारे खुराफात की जड़ तो यह पिंजरा ही है. यह रहेगा, तो न जाने कब किस पक्षी को कैद करने का लालच मन में आ जाए.

मैं ने घाटी की ओर एक सरसरी नजर डाली और पिंजरे को टांगने वाले हुक से पकड़ कर हाथ में तोलते हुए एक ही झटके से उसे घाटी की तरफ उछाल दिया. पहाड़ी ढलान पर शोर से लुढ़कता पिंजरा जल्दी ही मेरी आंखों से ओझल हो गया.

घर लौटते समय मैं खुद को ऐसा हलका महसूस कर रहा था जैसे मेरे भी पंख उग आए हों.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें