Workload से बढ़ रही हैं रिश्तों में दूरियां? तो करें एक नई शुरुआत

Relationship Tips : रीमा और आदित्य, कभी एक-दूजे की आंखों में सुबह ढूंढ़ते थे, अब काम के मेलबौक्स में खो गए थे. मीटिंग्स, डेडलाइन और मोबाइल स्क्रीन ने रिश्ते में सन्नाटा भर दिया था. एक दिन आदित्य ने रीमा को बिना वजह कौफी पर बुलाया. दोनों अचकचाए, मुस्कुराए, और बातों में पुराने किस्से लौट आए. रीमा बोली, “हम थक गए थे… साथ चलना भूल गए थे.”

आदित्य ने उसका हाथ थामते हुए कहा, “तो क्या हुआ? फिर से चलना शुरू कर लेते हैं.”

कभी-कभी दूरी नहीं, एक कौफी और इरादा ही कौफी होता है… एक नई शुरुआत के लिए.

आजकल की ज़िंदगी में काम और करियर की रेस इतनी तेज हो गई है कि हम अक्सर वो लोग पीछे छोड़ देते हैं जिनके साथ ये सफर शुरू किया था. सुबह की नींद औफिस कौल्स से टूटती है और रातें लैपटौप की नीली रोशनी में बीत जाती हैं. ऐसे में ना जाने कब रिश्तों के बीच एक खामोशी आकर बैठ जाती है — जो बोलती कुछ नहीं, पर बहुत कुछ कह जाती है.

कभी जिनसे घंटों बात करते थे, अब उनसे हफ्तों तक सिर्फ “ठीक हूं” या “बिज़ी हूं” में बातचीत सिमट जाती है. क्या ये सच में बिज़ीनेस है या हम खुद ही अपने रिश्तों से दूरी बना बैठे हैं? लेकिन अच्छी बात ये है कि रिश्ते टूटते नहीं, बस थम जाते हैं. और हर थमे रिश्ते को फिर से चलाने के लिए बस एक छोटी-सी कोशिश काफी होती है.

  1. रिश्तों में भी रिचार्ज ज़रूरी है

जैसे मोबाइल बिना चार्ज के काम नहीं करता, वैसे ही रिश्ते भी बिना समय और संवाद के फीके पड़ जाते हैं. रोज नहीं तो हफ्ते में एक बार, बस 10 मिनट भी साथ बैठकर मुस्कुरा लेना रिश्तों की बैटरी को दोबारा जिंदा कर सकता है.

2. टेक्नोलौजी से नहीं, अपनी मौजूदगी से जुड़िए

वीडियो कॉल्स, वॉट्सऐप और ईमेल से भरे इस दौर में “असली” मौजूदगी की अहमियत और भी बढ़ गई है. एक कॉल के बजाय कभी-कभी एक चाय साथ पीना, या ऑफिस से लौटते हुए फूल ले आना — ये छोटे कदम दिलों को फिर से पास ला सकते हैं.

3. अपने रिश्ते को भी ‘डेडलाइन’ दीजिए

काम की डेडलाइन पर हम जान लगाते हैं, पर क्या अपने रिश्तों के लिए कभी टाइम फिक्स किया है? हफ्ते में एक दिन, एक तय समय जब सिर्फ आप और आपका रिश्ता — ना कोई फोन, ना लैपटॉप — सिर्फ साथ.

4. शिकायतें कम, यादें ज़्यादा बांटिए

हर रिश्ता कभी न कभी थकता है. ऐसे समय में एक-दूसरे को सुनना, बीती अच्छी बातों को याद करना और बिना जज किए सामने वाले की बात समझना बेहद जरूरी होता है. रिश्ते तब नहीं बिगड़ते जब लड़ाई हो, बल्कि तब जब बात ही बंद हो जाए.

5. नई शुरुआत के लिए बड़े प्लान की ज़रूरत नहीं

कभी-कभी एक कप कॉफी, एक वॉक, या बस “चलो बात करते हैं” कह देना भी नई शुरुआत बन सकता है. प्यार दिखाने के लिए बड़े जेस्चर नहीं, बस सच्चा इरादा चाहिए.

Salman Khan को प्यार और शादी से नहीं एली मनी और तलाक से लगता है डर ….

Salman Khan : कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर कर पीता है, ऐसा ही कुछ हाल सलमान खान का भी है , जिन्होंने शादी तो नहीं की लेकिन शादीशुदा लोगों की बर्बादी बहुत देखी है. उनके खुद के घर में ही दो दो तलाक हो चुके हैं, दोनों भाई अरबाज खान और सोहेल खान का. जिसके चलते हाल ही में जब सलमान को फिर से शादी को लेकर सवाल किया गया, तो सलमान ने जोर से हंसते हुए कहा अरे भाई शादी से तो मुझे बहुत डर लगता है , आज के समय में शादी करना खतरे से खाली नहीं है, क्योंकि आजकल की कुछ बीवियां तलाक दे के दिल तो तोड़ती ही है, लेकिन एलीमनी के नाम पर आधी जायदाद भी साथ ले जाती हैं.

मुझे बच्चे बहुत पसंद है लेकिन उनकी मां से डर लगता है क्योंकि मां पति को तो छोड़ती ही है, साथ ही बच्चों के नाम पर एली मनी के साथ-साथ बच्चों को पालने का खर्चा भी बाप से ही वसूल करती है , इस हिसाब से आज के समय में शादी करने से अच्छा कुंवारे रहना ही ठीक है. गौरतलब है जिस तरह से आजकल खबरों में पति नीले ड्रम में टुकड़ों में और पहाड़ से गिरा कर मारे जा रहे है , यह सब खबरों के बाद सलमान खान तो क्या बाकी लड़के भी शादी के नाम से डरने लगे हैं.

सलमान खान के अगर वर्कफ्रंट की बात करे तो आज कल सलमान अपने नए प्रोजेक्ट की तैयारी में लगे हैं. जल्दी ही वो वॉर ड्रामा पर आधारित अनाम फिल्म में नजर आएंगे, जिसका डायरेक्शन अपूर्व लाखिया कर रहे हैं. इस फिल्म के लिए सलमान स्पेशल ट्रेनिंग ले रहे हैं लेटेस्ट खबरों के मुताबिक इस फिल्म के लिए सलमान कम ऑक्सीजन वाले माहौल में ट्रेनिंग ले रहे हैं , ताकि शूटिंग के दौरान उन्हें परेशानी ना हो. सलमान की इस फिल्म की कहानी 2020 के गलवान घाटी संघर्ष को पर्दे पर लाने की कहानी है.

इस फिल्म में वह सीनियर आर्मी ऑफिसर करनल बीकू मल्ला संतोष बाबू का किरदार निभा रहे हैं. एक सूत्र के मुताबिक सलमान खान लेह जैसे हाई एल्टीट्यूड वाले इलाके में शूटिंग करने वाले हैं. जिसके लिए सलमान शारीरिक और मानसिक फिटनेस पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. और अपने आप को पूरी तरह तैयार कर रहे है.

TMKOC की बबीता जी दाल चावल खाकर रखती हैं खुद को फिट एंड फाइन

TMKOC : सब चैनल का अति लोकप्रिय धारावाहिक तारक मेहता का उल्टा चश्मा कई सालों से दर्शकों के दिल पर राज कर रहा है , इस सीरियल की सबसे खूबसूरत अदाकारा बबीता जी जिस पर इस शो के मुख्य किरदार जेठालाल पूरी तरह फिदा है, वही बबीता का किरदार निभाने वाली मुनमुन दत्ता 37 की उम्र में आज भी बला की खूबसूरत है.

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान बबीता अर्थात मुनमुन दत्ता ने अपनी फिटनेस का राज बताते हुए कहा कि मैंने कभी भी बहुत ज्यादा डाइटिंग नहीं की मैं वह सब खाती हूं जो एक आम इंसान खाता है, जैसे कि मुझे दाल और चावल बहुत पसंद है क्योंकि मैं बंगाली हूं इसलिए मैं रोटी से ज्यादा चावल खाना पसंद करती हूं. क्योंकि चावल के बिना मुझे खाना अधूरा लगता है.

अपनी दिनचर्या बताते हुए मुनमुन दत्ता ने कहा कि वह सुबह 5:30 तक उठ जाती है , सुबह उठते ही वह सबसे पहले दो-तीन गिलास पानी पीती है. उसके बाद जिम जाने से पहले वह भीगे हुए बादाम और केला खाती है. उसके बाद नाश्ते में वह दौसा , पोहा उपमा जैसी आयल फ्री चीज खाते हैं , वही दोपहर के खाने में वह दाल चावल रोटी सब्जी सलाद सब कुछ खाती है . कई बार जब नाश्ता खाने के लिए टाइम नहीं होता तो नाश्ता स्किप कर देती है उसकी जगह मैं दूध पी लेती हैं.

मुनमुन दत्ता के अनुसार मैं डाइटिंग में विश्वास नहीं करती लेकिन बहुत ज्यादा खाना भी गलत है, मेरा मानना है कोई भी चीज की अति बुरी है , फिर चाहे वह खाना हो शराब हो या कोई और चीज . मैं कभी अपने मन को नहीं मारती लेकिन सब कुछ खा पी कर भी मैं अपनी सेहत का भी पूरा ख्याल रखती हूं , और 37 वर्ष की उम्र में फिट रहती है .

Monsoon 2025 : बरसात में किचन को रखना चाहती हैं स्मैल फ्री, तो बड़े काम के हैं ये टिप्स

Monsoon 2025 : मौनसून में नमी बहुत बढ़ जाती है. यह नमी सीधे असर डालती है आप की किचन की चीजों दालें, मसाले, आटा, सब्जियां और यहां तक कि लकड़ी की अलमारियां भी.

अगर इन का ध्यान न रखा जाए तो चीजें खराब हो जाती हैं और फंगस व बैक्टीरिया घर कर लेते हैं, जिस से किचन से बदबू से आने लगती है साथ ही बीमारियां और चीजें खराब होने से ऐक्स्ट्रा खर्च भी आप की जेब पर बढ़ जाता है. तो इसलिए जरूरी है कि आप थोड़ा पहले से ही किचन को तैयार कर लें.

मसाले और दालें फ्रैश रखने के देसी जुगाड़ जानिए :

एअरटाइट डब्बे का करें इस्तेमाल : सभी मसाले और दालों को प्लास्टिक की थैलियों से निकाल कर एअरटाइट कंटेनर में डालें. इस से नमी से बचाव होगा और खुशबू भी बनी रहेगी.

तेजपत्ता और लौंग का कमाल : चावल, आटा और दालों में 1-2 तेजपत्ते या लौंग डाल दें. इस से कीड़े नहीं लगते और एक हलकी सी नैचुरल खुशबू भी बनी रहती है. कोशिश करें कि ज्यादा दालचावल स्टोर कर के न रखें. हफ्ते या 10 दिन के हिसाब से चीजें खरीदें.

दालों को धूप दिखाएं : अगर 1-2 दिन धूप निकलती है तो दालों को प्लेट में निकाल कर छांव में सुखा लें. इस से अंदर की सीलन निकल जाती है.

ड्रायर्स या सिलिका जैल का उपयोग : मसालों के डब्बों में एक छोटा सा ड्रायर पैकेट रखें (जैसे जो जूतों या दवाइयों में आते हैं ), नमी सोखने में मदद करेगा. यह सस्ता और सफल तरीका है चीजों को सीलन से बचाने का.

प्याज व आलू को स्टोर करें स्मार्टली, इस तरह : कपड़े की बोरियों या टोकरी में रखें : प्लास्टिक की थैली में प्याज व आलू जल्दी गलते हैं. इन्हें खुले जूट बैग या बांस की टोकरी में रखें. हर 2 से 3 दिन में इन को उलटपलट दें ताकि हवा पास होती रहे और ये सड़ें नहीं.

एकसाथ न रखें : प्याज और आलू को कभी एकसाथ न रखें. दोनों से निकलने वाली गैसें एकदूसरे को जल्दी सड़ा देती हैं.

सूखे व हवादार स्थान पर रखें : किसी ऐसी जगह रखें जहां थोड़ी हवा आती रहे. बिलकुल बंद जगह में न रखें वरना नमी से सड़न बढ़ती है.

नीचे पेपर या अखबार बिछाएं : इस से नमी सोखने में मदद मिलेगी और सड़ने पर साफ करना भी आसान रहेगा.

किचन क्लीनिंग

बेकिंग सोडा + विनेगर = मैजिक क्लीनर : यह कौंबो न केवल चिकनाई हटाता है, बल्कि बदबू को भी भगाता है. टाइल्स, गैस चूल्हा, सिंक आदि सब के लिए एकदम सही.

नीबू और नमक से चमकाएं स्टील के बर्तन : यह पुराना नुसखा आज भी सब से असरदार है. साथ ही हाथों को नुकसान भी नहीं पहुंचाता.

हैवी ड्यूटी क्लीनर इस्तेमाल करें : मार्केट में कोलीन हैवी ड्यूटी, लाइजोल किचन डीग्रेसर, मि. मसल व डी-40 (Colin Heavy Duty, Lizol Kitchen Degreaser, Mr Muscle, D40) जैसे बजट फ्रैंडली क्लीनर आते हैं जो बिना ज्यादा मेहनत के तेल की परतें हटा देते हैं.

चिमनी की टाइम टू टाइम सफाई जरूरी है : हर 15 दिन में चिमनी के फिल्टर को निकाल कर गरम पानी, बेकिंग सोडा और डिशवौशिंग लिक्विड में भिगो कर साफ करें, वरना तेल जमने से बदबू और कीड़े पनप सकते हैं. आप मार्केट में उपलब्ध ग्रीस क्लीनर भी यूज कर सकते हैं.

स्मार्ट स्टोरेज से नहीं होगी सीलन और गंदगी, इस तरह :

● किचन कैबिनेट्स में नैफ्थलीन बौल्स या कपूर रखें, ताकि फफूंदी न पनपे.

● डस्टबिन में अखबार बिछाएं और रोज खाली करें, नहीं तो नमी और कीड़े पैदा होंगे.

● खाली जगहों में विनेगर और नीम की पत्तियां रखें. यह एक नैचुरल फंगस रिमूवर है.

Skin Care : स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

Skin Care : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

पौल्यूशन का असर मेरी स्किन पर साफ दिखाई देता है. कृपया बताएं मुझे स्किन को पौल्यूशन से बचाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब-

प्रदूषित हवा में ऐसिड अधिक होने की वजह से स्किन रूखी हो जाती है और प्रदूषण के कण उन के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. लिहाजा, ऐसा क्लींजर यूज करें जो स्किन से नमी निकाले बिना उसे मौइस्चराइज करे. स्किन पर मौइस्चराइजर लगाने के बजाय फेशियल औयल यूज करें. यह हानिकारक तत्वों को स्किन में प्रवेश करने से रोकता है. स्किन में मौजूद औयल प्रदूषण के हानिकारक कण और धूलमिट्टी को हटाने में टोनर मदद करता है.इसलिए मौइस्चराइजर के बाद टोनर लगाएं. समयसमय पर स्किन की स्क्रबिंग करना भी जरूरी है, लेकिन हलके हाथों से ताकि स्किन धूलमिट्टी और औयल से पूरी तरह फ्री हो जाए. आप चाहें तो फेशियल की जगह हलदी वाला या फिर आलू वाला फेस मास्क भी लगा सकती हैं. यह भी स्किन पर प्रदूषण के असर को कम करने में मदद करेगा.

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गोरी काया हर स्त्री की चाहत होती है. पहले महिलाएं अपने कामकाज से समय निकाल कर बेसन, चंदन, हलदी व मुलतानी मिट्टी के लेप बना कर अपनी त्वचा पर लगाती थीं, परंतु आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में इतना समय कहां. शरीर में चेहरे की त्वचा सब से ज्यादा संवेदनशील होती है और भागमभाग से भरपूर दिनचर्या का सब से ज्यादा बुरा असर इसी पर पड़ता है. यदि सही देखभाल न की जाए तो हवा के थपेड़ों व धूप की तपिश से चेहरे की त्वचा अपनी आभा खोने लगती है.

त्वचा के प्रकार

यदि 2 से 4 घंटों के अंतराल पर आप को अपनी त्वचा चिपचिपी प्रतीत होती है तो त्वचा का स्वभाव तैलीय है और इस प्रकार की त्वचा के रखरखाव की ज्यादा जरूरत होती है.

घर से बाहर निकलने के कुछ समय बाद ही यदि आप त्वचा में खिंचाव महसूस करती हैं तो आप की त्वचा रूखी है.

यदि धूप और हवा का असर त्वचा पर तुरंत नजर आने लगे तो आप की त्वचा अति संवेदनशील है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Short Story : अधिक्रमण – क्या सही था प्रिया का शक

Short Story : ‘‘देखो प्रिया, मैं ने तो हां कर दी,’’ सुनील ने कौफी में चीनी डाल कर चम्मच से हिलाते हुए कहा, ‘‘अब तुम्हारी हां का इंतजार है. कह दो न.’’

‘‘इस में कहना क्या है, मेरी भी हां है,’’ बिना ध्यान दिए सुनील का प्याला उठाते हुए प्रिया ने कहा, ‘‘तुम मेरी मजबूरी जानते तो हो.’’

‘‘भई वाह, पत्नी हो तो ऐसी,’’ सुनील ने हंस कर कहा, ‘‘मैडम, अभी तो आप ने मेरे प्याले पर अधिकार किया है, कल को मेरी जेब पर अधिकार जमा लेंगी और फिर मेरे समूचे जीवन पर तो होगा ही.’’

‘‘क्या मैं ने तुम्हारा प्याला उठा लिया,’’ प्रिया ने आश्चर्य से कहा, ‘‘ओह हां, पता नहीं क्या सोच रही थी.  लो, तुम्हारा प्याला वापस किया.’’

‘‘धन्यवाद,’’ सुनील मुसकराया, ‘‘तो हम तुम्हारी समस्या के बारे में सोच रहे थे.’’

‘‘अब समस्या मेरी है. कुछ मुझे ही सोचना पड़ेगा,’’ प्रिया ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘बहनजी,’’ सुनील चिढ़ाने के लिए अकसर प्रिया को बहनजी कहता था, ‘‘हर समस्या का कोई न कोई समाधान अवश्य होता है.’’

‘‘तो मां का क्या करूं? पिताजी की असमय मौत के बाद वह मेरे ऊपर पूरी तरह निर्भर हैं,’’ प्रिया ने मेज पर कोहनी टिका कर कहा, ‘‘मैं उन्हें छोड़ नहीं सकती, सुनील.’’

‘‘तो मां को साथ ले आओ,’’ सुनील हंसा, ‘‘इस से बढ़ कर और दहेज क्या हो सकता है.’’

‘‘यह हंसी की बात नहीं है,’’ प्रिया ने गंभीरता से कहा, ‘‘उस घर के साथ मां की इतनी यादें जुड़ी हैं कि वह कभी भी घर छोड़ने को तैयार नहीं होंगी. दूसरी बात, अगर मां हमारे साथ रहने को तैयार हो भी गईं तो क्या तुम्हारे घर वाले इसे कभी स्वीकार करेंगे?’’

‘‘मेरे लिए तो कोई समस्या ही नहीं है,’’ सुनील ने कहा, ‘‘मातापिता तो सांसारिक दुनिया को त्याग कर ऋषिकेश के एक आश्रम में रहते हैं. एक बड़ा भाई है जो शादी कर के चेन्नई में रहने लगा है. मैं अपनी मरजी का मालिक हूं.’’

अचानक प्रिया की आंखों में चमक आ गई, ‘‘तुम मेरी मां से मिलोगे? शायद उन्हें समझा पाओ.’’

सुनील ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘बताओ, उन्हें पटाने का कोई नुस्खा है क्या?’’

‘‘शरम करो, अपनी सास के लिए क्या कोई ऐसे कहता है,’’ प्रिया को हंसी आ गई.

‘‘तो फिर कब आना है?’’ सुनील ने पूछा.

‘‘पहले मां से बात कर लूं फिर तुम्हें बता दूंगी.’’

घंटी बजने पर जब दरवाजा खुला तो सुनील चौंक गया. प्रिया ने आज तक उसे यह नहीं बताया था कि घर में बड़ी बहन भी है. बिलकुल प्रिया की शक्ल की.

‘‘नमस्ते, दीदी,’’ सुनील ने कहा, ‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’

‘‘हांहां, आओ न, तुम्हारा ही तो इंतजार था,’’ मां ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मैं प्रिया की मां हूं.’’

बिलकुल कल्पना से परे, वह एकदम चुस्तदुरुस्त और स्मार्ट लग रही थीं. सुनील ने सोचा था कि मां तो वृद्धा होती हैं. उन के चेहरे पर बुढ़ापा झलक रहा होगा. पर यहां तो सबकुछ उलटा था. मां ने आधुनिक स्टाइल के कपड़े पहने हुए थे. और उन की आंखों में हंसी नाच रही थी.

प्रिया उन के पीछे खड़ी हो शरारत से मुसकरा रही थी, ‘‘जब भी हम दोनों बाजार जाते हैं तो सब हमें बहनें ही समझते हैं. तुम भी धोखा खा गए.’’

सोफे पर बैठते हुए सुनील ने शिकायत की, ‘‘प्रिया, तुम्हें मुझे सतर्क कर देना चाहिए था.’’

‘‘तो फिर क्या करते?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘अरे, मांजी के लिए विदेशी परफ्यूम लाता. साथ में कोई और अच्छा सा उपहार लाता.’’

‘‘ठीक है, तुम मां से बातें करो,’’ प्रिया ने कहा, ‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

कुछ ही देर में सुनील मां से घुलमिल गया. अपने बारे में पूरी जानकारी दी और प्रिया से शादी करने की इच्छा भी जता दी.

‘‘मुझे तो कोई आपत्ति नहीं है,’’ मां ने सहजता से कहा, ‘‘प्रिया ने तुम्हारे बारे में इतना कुछ बता दिया है कि तुम बिलकुल अजनबी नहीं लगे.’’

‘‘तो आप ने मुझे पसंद कर लिया?’’ सुनील ने द्विअर्थी संवाद का सहारा लिया.

‘‘प्रिया की पसंद मेरी पसंद,’’ मां ने भी नहले पर दहला मारा.

सुनील ने प्रिया से आते ही कहा, ‘‘मांजी तो राजी हैं.’’

मां के गले में बांहें डाल कर प्रिया ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘मां, तुम हमारे साथ आ कर रहोगी न?’’

‘‘तुम्हारे साथ?’’ मां ने आश्चर्य से कहा, ‘‘तुम्हारे साथ क्यों रहूंगी?’’

‘‘क्यों, सुनील ने कहा नहीं कि दहेज में मुझे मां चाहिए,’’ प्रिया ने हंसते हुए कहा.

‘‘ऐसी तो हमारे बीच कोई बात नहीं हुई,’’ मां ने कहा.

आत्मीयता से मां का हाथ अपने हाथों में लेते हुए सुनील बोला, ‘‘अरे मां, शादी के बाद आप अकेली थोड़े ही रहेंगी. आप साथ रहेंगी तो प्रिया को भी तसल्ली रहेगी.’’

‘‘साथ रहने में मुझे कोई एतराज नहीं,’’ मां ने थोड़ा हिचकिचा कर कहा, ‘‘लेकिन तुम्हारे घर में…’’

‘‘ओह मां, एक ही बात है,’’ सुनील ने समझाया, ‘‘हम तीनों एकसाथ मेरे घर में रहें या इस घर में, क्या फर्क पड़ता है?’’

तुम्हारे घर में रहना अच्छा नहीं लगेगा,’’ मां ने कहा, ‘‘लोग क्या कहेंगे?’’

थोड़ी देर की बहस के बाद सुनील ने मां को इतना राजी कर लिया कि वह शादी के बाद सुनील के घर कुछ समय रह कर देखेंगी अगर मन नहीं लगा तो सब यहां आ जाएंगे.

बिना धूमधाम के कोर्ट में शादी हो गई. सुनील का घर व कमरा मां ने खुद सजाया था. लगता था सजावट करने में उन्हें विशेष रुचि थी. घर पूरी तरह से मां ने संभाल लिया था.

एक सप्ताह बाद सुनील और प्रिया को अपनेअपने कार्यालय जाना था. प्रिया का दफ्तर सुनील के दफ्तर से अधिक दूर नहीं था. बीच में एक दक्षिण भारतीय रेस्तरां था जहां दोनों का परिचय, दोस्ती व प्रणयलीला का आरंभ हुआ था. उन के जीवन में इस रेस्तरां का विशेष स्थान था.

नाश्ता करने के बाद मां ने दोनों को अपनाअपना टिफनबाक्स पकड़ा दिया.

‘‘आप जितनी अच्छी हैं उतनी ही पाक कला में भी निपुण हैं,’’ सुनील ने टिफनबाक्स लेते हुए कहा, ‘‘मुझे अगर पहले पता होता तो शादी के मामले में इतनी देर न लगाता. यह सारी गलती आप की बेटी की है.’’

प्रिया ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम तो शादी करने को ही राजी नहीं थे. कहते थे न कि ऐसे ही साथ क्यों नहीं रहते?’’

मां ने हंस कर कहा, ‘‘अरेअरे, लड़ो मत. जो कुछ इतने दिनों में तुम ने खोया है वह सब मैं पूरा कर दूंगी.’’

‘‘बहुत चटोरे हैं मां, इन्हें ज्यादा मुंह न लगाओ,’’ प्रिया ने इठला कर कहा, ‘‘अब चलो भी.’’

मां उन्हें जाते हुए देखती रहीं. कहां गए वे दिन जब वह इसी तरह अपने पति को विदा करती थीं. उन के जाने के बाद वह घर की सफाई में लग गईं.

दिन में 2 बार फोन कर के सुनील ने मां से बात कर ली. मां को अच्छा लगा. प्रिया को तो अकसर समय ही नहीं मिलता था और अगर फोन करती भी थी तो केवल अपने मतलब से.

मोटरसाइकिल की आवाज सुनते ही मां ने दरवाजा खोला और दोनों का हंस कर स्वागत किया.

सुनील ने देखा कि मां भी एकदम तरोताजा लग रही थीं. अच्छी साड़ी के साथ हलका सा शृंगार कर लिया था. प्रिया की ओर देखा तो वह दफ्तर से हारीथकी आई थी. बालों की लटें बिखर रही थीं. चेहरे का रंग किसी बरतन की कलई की तरह उतर रहा था.

एक दिन सुनील मां से कह बैठा, ‘‘मां, आप प्रिया को अपनी तरह स्मार्ट रहना क्यों नहीं सिखातीं?’’

प्रिया चिढ़ गई और नाराज हो कर अपने कमरे में चली गई.

थोड़ी देर तक कमरे में से सुनील और प्रिया के बीच झगड़ने की आवाजें आती रहीं.

मां ने आवाज लगाई, ‘‘अरे भई, जल्दी से बाहर आओ. मैं गरमागरम पालक की पकौडि़यां बना रही हूं. बैगन की पकौड़ी भी तो तुम्हें अच्छी लगती हैं. वह भी काट रखा है.’’

सुनील उत्साह से बाहर आया, ‘‘लो, मैं आ गया. मांजी, आप ने तो मेरी कमजोरी पकड़ ली है. वाहवाह, साथ में धनिए की चटनी भी है.’’

हाथमुंह धो कर प्रिया भी बाहर आ गई. उस का क्रोध ठंडा हो गया था लेकिन मुंह फूला हुआ था.

‘‘खाओखाओ,’’ सुनील ने कहा, ‘‘प्रिया, तुम भी मांजी के कुछ गुण सीख लो.’’

‘‘मुझे आता है. वह तो मां ही किचन में नहीं घुसने देतीं.’’

‘‘अरे, अभी बच्ची है,’’ मां ने मुसकरा कर कहा, ‘‘और जब तक मैं हूं उसे कुछ करने की जरूरत क्या है?’’

‘‘मां, मुझे क्षमा करो. मैं भूल गया था. नजरें कमजोर हो गईं लगता है,’’ सुनील ने विनोद से प्रिया को ऊपर से नीचे तक देखा और कहा, ‘‘सच ही तो, प्रिया अभी बच्ची है.’’

सुनील रोज सुबहशाम मां की प्रशंसा करते नहीं थकता था. लेकिन इस बीच परिस्थिति कुछ ऐसी हो गई कि प्रिया को अंदर से बुरा लगने लगा. फिर भी वह चुप रह कर झगड़ा अधिक न बढ़े इस की चेष्टा करती थी.

एक दिन जब प्रिया नहा कर बाथरूम से बाहर आई तो देखा सुनील मां की गोद में सिर रख कर लेटा हुआ था और मां उस के ललाट पर बाम लगा रही थीं. यह देख कर वह चकित रह गई.

इस बीच मां ने मुसकरा कर सुनील से पूछा, ‘‘कैसा लग रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा,’’ सुनील ने उठने की चेष्टा की.

‘‘लेटे रहो. आराम करो,’’ मां ने उठते हुए कहा, ‘‘प्रिया, एक प्याला गरम चाय बना दे. थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा.’’

‘‘सिर में दर्द था तो मुझ से क्यों नहीं कहा?’’ प्रिया ने शिकायत की, ‘‘मां को नाहक कष्ट दिया. मां, आप ही चाय बना दो. मैं यहां बैठी हूं.’’

कुछ दिनों से प्रिया महसूस कर रही थी कि मां अब छोटेमोटे कामों के लिए उसे ही दौड़ा देती थीं जबकि पहले सारे काम खुद ही करती थीं, उसे हाथ तक नहीं लगाने देती थीं. कहीं मां से ईर्ष्या तो नहीं होने लगी उसे?

एक दिन उत्साह से सुनील ने कहा, ‘‘चलो, आज दिल्ली हाट चलते हैं. दक्षिण की हस्तकला की प्रदर्शनी है और विशेष व्यंजनों के स्टाल भी लगे हैं.’’

मां ने खुश हो कर कहा, ‘‘हांहां चलो. मेरी तो बहुत इच्छा थी ऐसी प्रदर्शनियां देखने की पर क्या करूं, अकेली जा नहीं सकती और कोई अवसर भी नहीं मिलता.’’

‘‘चलो, प्रिया, झटपट तैयार हो जाओ,’’ सुनील ने आग्रह किया.

प्रिया ने सोचा कि अगर वह नहीं जाएगी तो कोई नहीं जाएगा. इसलिए उस ने कह दिया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं नहीं जाऊंगी.

‘‘अरे, चल भी,’’ मां ने कहा, ‘‘बाहर चलेगी तो तबीयत ठीक हो जाएगी.’’

‘‘नहीं मां, सारे बदन में दर्द हो रहा है. मैं तो कुछ देर सोऊंगी,’’ प्रिया ने सोचा दर्द की बात सुन कर सुनील कोई गोली खिलाएगा या डाक्टर के पास चलने को कहेगा.

‘‘तो ऐसा करो,’’ सुनील ने कहा, ‘‘तुम आराम करो. मैं मां को ले जाता हूं. वैसे भी मोटरसाइकिल पर 2 ही लोग बैठ सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, प्रिया. तू आराम कर,’’ मां ने कहा और तैयार होने चली गईं. प्रिया आश्चर्य से उन्हें देखती रह गई. मां को क्या हो गया है?

कुछ देर बाद मां और सुनील अपनेअपने कमरों से तैयार हो कर बाहर आ गए. आश्चर्य से आंखें फाड़ कर वह दोनों को देख रही थी. मां ने सुनील की दी हुई साड़ी पहन रखी थी. गले और कानों में आभूषण भी थे. लिपस्टिक व पाउडर का भी इस्तेमाल किया था. बगल में छिड़के मादक परफ्यूम से कमरा महक रहा था.

‘‘हाय, हम चलते हैं, अपना खयाल रखना,’’ सुनील ने चलते हुए कहा.

‘‘ठीक है प्रिया, फ्रिज में खिचड़ी रखी है. उसे गरम कर के जरूर खा लेना और आराम करना,’’ मां ने बिना मुड़े कहा.

उन के जाने के बाद प्रिया बहुत देर तक सूनी आंखों से छत को देखती रही और फिर जब अपने पर नियंत्रण न कर पाई तो सिसकसिसक कर रोने लगी. लगता है मां और सुनील के बीच चक्कर चल रहा है. मां कोई इतनी बूढ़ी तो हुई नहीं हैं…इस के आगे प्रिया बस, यही सोच सकी कि क्या यह उस के अधिकारों पर अधिक्रमण है? प्रिया ने सोचा, चलो, मां के व्यवहार का कोई कारण था तो सुनील को क्या हो गया? शादी उस से और प्यार मां से? नहीं, समस्या और परिस्थिति दोनों पर अंकुश लगाना पड़ेगा.

वे लौट कर आए तो बहुत खुश थे. सुनील मां का बारबार हाथ पकड़ लेता था और मां की ओर से कोई आपत्ति भी उसे नजर नहीं आई. इस खुलेआम प्रेम प्रदर्शन को देख कर उस का मन और भी दुखी हो उठा.

‘‘सच प्रिया, बहुत मजा आया. अच्छा होता तुम भी साथ चलतीं. दक्षिण भारतीय खाना तो बड़ा ही स्वादिष्ठ था,’’ सुनील ने हंस कर कहा, ‘‘चलो, फिर सही.’’

मां स्वयं विस्तार से मौजमस्ती का बखान कर रही थीं.

सब अपनीअपनी हांक रहे थे. किसी ने उस से यह तक नहीं पूछा कि उस की तबीयत कैसी है. उस ने कुछ खाया भी या नहीं. क्रोध से प्रिया अंदर ही अंदर उबल रही थी. सोचा, नहीं, यह तमाशा वह और नहीं चलने देगी.

बहुत रात हो गई थी. प्रिया मुंह ढक कर लेटी जरूर थी पर उसे नींद नहीं आ रही थी.

‘‘क्या बात है, प्रिया,’’ सुनील ने पूछा, ‘‘कोई तकलीफ है क्या?’’

‘‘हां, है,’’ प्रिया बिफर पड़ी, ‘‘मां को अपने घर जाना होगा. तुम दोनों का नाटक अब और अधिक बरदाश्त नहीं होता.’’

‘‘यह अचानक तुम्हें क्या हो गया,’’ सुनील ने पूछा. वैसे वह सब समझ रहा था. मां के प्रति वह आकर्षित तो हो गया था, लेकिन कुछ अपराधबोध भी था. इस संकट से उबरना होगा.

‘‘तुम सब समझ रहे हो, इतने मूर्ख नहीं हो,’’ प्रिया ने क्रोध से कहा, ‘‘मां को किसी भी तरह उन के घर छोड़ आओ.’’

‘‘लेकिन साथ रखने की शर्त तो तुम्हारी थी,’’ सुनील ने कहा.

‘‘वह मेरी भूल थी,’’ प्रिया ने कटुता से पूछा, ‘‘तुम मेरे साथ क्या खेल खेल रहे हो? मां को क्यों बहका रहे हो?’’

सुनील उठ कर बैठ गया, ‘‘सुनना चाहती हो तो सुनो. मैं ने मां को हमेशा मां की नजरों से ही देखा है. अगर मेरी मां यहां होतीं तो भी मैं ऐसा ही करता. अभी तक मैं ने कोई अनुचित सोच उन के प्रति मन में कायम ही नहीं की है.’’

‘‘यह तुम कह रहे हो? निर्लज्जता की भी कोई हद होती है,’’ प्रिया ने क्रोध से कहा.

‘‘मैं चाहता था कि तुम अच्छे कपड़े पहनो, ठीक शृंगार करो, स्मार्ट दिखो, लेकिन दिन पर दिन तुम लापरवाह होती गईं, मानो शादी कर ली तो जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया. अरे, शादी के पहले भी तो तुम अच्छीखासी थीं,’’ सुनील ने कहा.

‘‘नहीं करता मेरा मन तो…’’ प्रिया का वाक्य अधूरा रह गया.

‘‘वही तो. मेरी कितनी तमन्ना थी कि साथ चलो तो नईनवेली पत्नी लगो, कोई नौकरानी नहीं,’’ सुनील ने कहा, ‘‘और इसीलिए मैं ने यह नाटक किया कि ईर्ष्या के मारे तुम सही दिखने की कोशिश करो, लेकिन तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आया.’’

प्रिया काफी देर तक चुप रही. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुनील, तुम सच बोल रहे हो या मुझे बेवकूफ बना रहे हो.’’

‘‘सच, एकदम सच,’’ सुनील ने प्रिया को पास खींचा. मां पानी पीने कमरे से बाहर आई थीं. बेटी और दामाद की बातें कानों में पड़ीं. सुना और चुपचाप दबेपांव अपने कमरे में चली गईं. अगले दिन बहुत स्वादिष्ठ नाश्ता परोसते हुए मां ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यहां रहते बहुत दिन हो गए हैं. अब मुझे जाना पड़ेगा.’’

‘‘क्यों, मां?’’ प्रिया ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अकेली कैसे रहोगी?’’

‘‘आदत तो डालनी पड़ेगी न बेटी,’’ मां ने कहा, ‘‘और फिर तुम लोग तो आतेजाते रहोगे. है न बेटे?’’ प्रिया ने सुना. आज मां ने पहली बार सुनील को बेटा कह कर संबोधन किया था.

Stories In Hindi Love : इजहार – सीमा के लिए गुलदस्ता भेजने वाले का क्या था राज?

Stories In Hindi Love : मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

‘‘यह कैसी दिल तोड़ने वाली बात कर दी तुम ने, सीमा? मैं तो अपनी पूरी पगार हर महीने तुम्हारे चरणों में रख देता हूं,’’ मैं ने अपनी आवाज में दर्द पैदा करते हुए शिकायत करी.

‘‘और पाईपाई का हिसाब न दूं तो झगड़ते हो. मेरी पगार चली जाती है फ्लैट और कार की किस्तें देने में. मुझे अपनी मरजी से खर्च करने को सौ रुपए भी कभी नहीं मिलते.’’

‘‘यह आरोप तुम लगा रही हो जिस की अलमारी में साडि़यां ठसाठस भरी पड़ी हैं. क्या जमाना आ गया है. पति को बेटी की नजरों में गिराने के लिए पत्नी झूठ बोल रही है.’’

‘‘नाटक करने से पहले यह तो बताओ कि उन में से तुम ने कितनी साडि़यां आज तक खरीदवाई हैं? अगर तीजत्योहारों पर साडि़यां मुझे मेरे मायके से न मिलती रहतीं तो मेरी नाक ही कट जाती सहेलियों के बीच.’’

‘‘पापा, मम्मी को खुश करने के लिए 2-4 दिन कहीं घुमा लाओ न,’’ मनीषा ने हमारी बहस रोकने के इरादे से विषय बदल दिया.

‘‘तू चुप कर, मनीषा. मैं इस घर के चक्करों से छूट कर कहीं बाहर घूमने जाऊं, ऐसा मेरे हिस्से में नहीं है,’’ सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना माथा ठोंका.

‘‘क्यों इतना बड़ा झूठ बोल रही हो? हर साल तो तुम अपने भाइयों के पास 2-4 हफ्ते रहने जाती हो,’’ मैं ने उसे फौरन याद दिलाया.

‘‘मैं शिमला या मसूरी घुमा लाने की बात कह रही थी, पापा,’’ मनीषा ने अपने सुझाव का और खुलासा किया.

‘‘तू क्यों लगातार मेरा खून जलाने वाली बातें मुंह से निकाले जा रही है? मैं ने जब भी किसी ठंडी पहाड़ी जगह घूम आने की इच्छा जताई, तो मालूम है इन का क्या जवाब होता था? जनाब कहते थे कि अगर नहाने के बाद छत पर गीले कपड़ों में टहलोगी तो इतनी ठंड लगेगी कि हिल स्टेशन पर घूमने का मजा आ जाएगा.’’

‘‘अरे, मजाक में कही गई बात बच्ची को सुना कर उसे मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही हो?’’ मैं नाराज हो उठा.

मेरी नाराजगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए सीमा ने अपनी शिकायतें मनीषा को सुनानी जारी रखीं, ‘‘इन की कंजूसी के कारण मेरा बहुत खून फुंका है. मेरा कभी भी बाहर खाने का दिल हुआ तो साहब मेरे हाथ के बनाए खाने की ऐसी बड़ाई करने लगे जैसे कि मुझ से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता.’’

‘‘पर मौम, यह तो अच्छा गुण हुआ पापा का,’’ मनीषा ने मेरा पक्ष लिया. बात सिर्फ बाहर खाने में होने वाले खर्च से बचने के लिए होती है.

‘‘उफ,’’ मेरी बेटी ने मेरी तरफ ऐसे अंदाज में देखा मानो उसे आज समझ में आया हो कि मैं बहुत बड़ा खलनायक हूं.

‘‘जन्मदिन हो या मैरिज डे, अथवा कोई और त्योहार, इन्हें मिठाई खिलाने के अलावा कोई अन्य उपहार मुझे देने की सूझती ही नहीं. हर खास मौके पर बस रसमलाई खाओ या गुलाबजामुन. कोई फूल, सैंट या ज्वैलरी देने का ध्यान इन्हें कभी नहीं आया.’’

‘‘तू अपनी मां की बकबक पर ध्यान न दे, मनीषा. इस वैलेंटाइनडे ने इस का दिमाग खराब कर दिया है, जो इस जैसी सीधीसादी औरत का दिमाग खराब कर सकता हो, उस दिन को मनाने की मूर्खता मैं तो कभी नहीं करूंगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुनाया तो मांबेटी दोनों ही मुझ से नाराज नजर आने लगीं.

दोनों में से कोई मेरे इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, उस से पहले ही किसी ने बाहर से घंटी बजाई.

मैं ने दरवाजा खोला और हैरानी भरी आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘‘देखो, कितना सुंदर गुलदस्ता आया है.’’

‘‘किस ने भेजा है?’’ मेरी बगल में आ खड़ी हुई सीमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘और किस को भेजा है?’’ मनीषा उस पर लगा कार्ड पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘इस कार्ड पर लिखा है ‘हैपी वेलैंटाइनडे, माई स्वीटहार्ट,’ कौन किसे स्वीटहार्ट बता रहा है, यह कुछ साफ नहीं हुआ?’’ मेरी आवाज में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मनीषा, किस ने भेजा है तुम्हें इतना प्यारा गुलदस्ता?’’ सीमा ने तुरंत मीठी आवाज में अपनी बेटी से सवाल किया.

मेरे हाथ से गुलदस्ता ले कर मनीषा ने उसे चारों तरफ से देखा और अंत में हैरानपरेशान नजर आते हुए जवाब दिया, ‘‘मौम, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘क्या इसे राजीव ने भेजा?’’

‘‘न…न… इतना महंगा गुलदस्ता उस के बजट से बाहर है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘वह तो आजकल रितु के आगेपीछे दुम हिलाता घूमता है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘नो मम्मी. वी डौंट लाइक इच अदर वैरी मच.’’

‘‘फिर किस ने भेजे हैं इतने सुंदर फूल?’’

‘‘जरा 1 मिनट रुकोगी तुम मांबेटी… यह अभी तुम किन लड़कों के नाम गिना रही थी, सीमा?’’ मैं ने अचंभित नजर आते हुए उन के वार्त्तालाप में दखल दिया.

‘‘वे सब मनीषा के कालेज के फ्रैंड हैं,’’ सीमा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें इन सब के नाम कैसे मालूम हैं?’’

‘‘अरे, मनीषा और मैं रोज कालेज की घटनाओं के बारे में चर्चा करती रहती हैं. आप की तरह मैं हमेशा रुपयों के हिसाबकिताब में नहीं खोई रहती हूं.’’

‘‘मैं हिसाबकिताब न रखूं तो हर महीने किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत आ जाए, पर इस वक्त बात कुछ और चल रही है… जिन लड़कों के तुम ने नाम लिए…’’

‘‘वे सब मनीषा के साथ पढ़ते हैं और इस के अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘मनीषा, तुम कालेज में कुछ पढ़ाई वगैरह भी कर रही हो या सिर्फ अपने सोशल सर्कल को बड़ा करने में ही तुम्हारा सारा वक्त निकल जाता है?’’ मैं ने नकली मुसकान के साथ कटाक्ष किया.

‘‘पापा, इनसान को अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करना चाहिए या नहीं?’’ मनीषा ने तुनक कर पूछा.

‘‘वह बात तो सही है पर यह गुलदस्ता भेजने वाले संभावित युवकों की लिस्ट इतनी लंबी होगी, यह बात मुझे थोड़ा परेशान कर रही है.’’

‘‘पापा, जस्ट रिलैक्स. आजकल फूलों का लेनादेना बस आपसी पसंद को दिखाता है. फूल देतेलेते हुए ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और अब सारी जिंदगी साथ गुजारने की तमन्ना है,’ ऐसे घिसेपिटे डायलौग आजकल नहीं बोले जाते हैं.’’

‘‘आजकल तलाक के मामले क्यों इतने ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, पर फिलहाल यह बताओ कि क्या तुम ने यह गुलदस्ता भेजने वाले की सही पहचान कर ली है?’’

‘‘सौरी, पापा. मुझे नहीं लगता कि यह गुलदस्ता मेरे लिए है.’’

उस का जवाब सुन कर मैं सीमा की तरफ घूमा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, ‘‘जो तुम्हें पसंद करते हों, उन चाहने वालों के 10-20 नाम तुम भी गिना दो, रानी पद्मावती. ’’

‘‘यह रानी पद्मावती बीच में कहां से आ गई?’’

‘‘अब कुछ देरे तुम चुप रहोगी, मिस इंडिया,’’ मैं ने मनीषा को नाराजगी से घूरा तो उस ने फौरन अपने होंठों पर उंगली रख ली.

‘‘मुझे फालतू के आशिक पालने का शौक नहीं है,’’ सीमा ने नाकभौं चढ़ा कर जवाब दिया.

‘‘पापा, मैं कुछ कहना चाहती हूं,’’ मनीषा की आंखों में शरारत के भाव मुझे साफ नजर आ रहे थे.

‘‘तुम औरतों को ज्यादा देर खामोश रख पाना हम मर्दों के बूते से बाहर की बात है. कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘पापा, हो सकता है मीना मौसी की बेटी की शादी में मिले आप के कजिन रवि चाचा के दोस्त नीरज ने मौम के लिए यह गुलदस्ता भेजा हो.’’

‘‘तेरे खयाल से उस मुच्छड़ ने तेरी मम्मी पर लाइन मारने की कोशिश की है?’’

‘‘मूंछों को छोड़ दो तो बंदा स्मार्ट है, पापा.’’

‘‘क्या कहना है तुम्हें इस बारे में?’’ मैं ने सीमा को नकली गुस्से के साथ घूरना शुरू कर दिया.

‘‘मैं क्यों कुछ कहूं? आप को जो पूछताछ करनी है, वह उस मुच्छड़ से जा कर करो,’’ सीमा ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘अरे, इतना तो बता दो कि क्या तुम ने अपनी तरफ से उसे कुछ बढ़ावा दिया था?’’

‘‘जिन्हें पराई औरतों पर लार टपकाने की आदत होती है, उन्हें किसी स्त्री का साधारण हंसनाबोलना भी बढ़ावा देने जैसा लगता है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि उस मुच्छड़ ने तेरी मां को ज्यादा प्रभावित किया होगा. किसी और कैंडिडेट के बारे में सोच, मनीषा.’’

‘‘मम्मी के सहयोगी आदित्य साहब इन के औफिस की हर पार्टी में मौम के चारों तरफ मंडराते रहते हैं,’’ कुछ पलों की सोच के बाद मेरी बेटी ने अपनी मम्मी में दिलचस्पी रखने वाले एक नए प्रत्याशी का नाम सुझाया.

‘‘वह इस गुलदस्ते को भेजने वाला आशिक नहीं हो सकता,’’ मैं ने अपनी गरदन दाएंबाएं हिलाई, ‘‘उस की पर्सनैलिटी में ज्यादा जान नहीं है. बोलते हुए वह सामने वाले पर थूक भी फेंकता है.’’

‘‘गली के कोने वाले घर में जो महेशजी रहते हैं, उन के बारे में क्या खयाल है.’’

‘‘उन का नाम लिस्ट में क्यों ला रही है?’’

‘‘पापा, उन का तलाक हो चुका है और मम्मी से सुबह घूमने के समय रोज पार्क में मिलते हैं. क्या पता पार्क में साथसाथ घूमते हुए वे गलतफहमी का शिकार भी हो गए हों?’’

‘‘तेरी इस बात में दम हो सकता है.’’

‘‘खाक दम हो सकता है,’’ सीमा एकदम भड़क उठी, ‘‘पार्क में सारे समय तो वे बलगम थूकते चलते हैं. प्लीज, मेरे साथ किसी ऐरेगैरे का नाम जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. अगर यह गुलदस्ता मेरे लिए है, तो मुझे पता है भेजने वाले का नाम.’’

‘‘क…क… कौन है वह?’’ उसे खुश हो कर मुसकराता देख मैं ऐसा परेशान हुआ कि सवाल पूछते हुए हकला गया.

‘‘नहीं बताऊंगी,’’ सीमा की मुसकराहट रहस्यमयी हो उठी तो मेरा दिल डूबने को हो गया.

‘‘मौम, क्या यह गुलदस्ता पापा के लिए नहीं हो सकता है?’’ मेरी परेशानी से अनजान मनीषा ने मेरी खिंचाई के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करी.

‘‘नहीं,’’ सीमा ने टका सा जवाब दे कर मेरी तरफ मेरी खिल्ली उड़ाने वाले भाव में देखा.

‘‘मेरे लिए क्यों नहीं हो सकता?’’ मैं फौरन चिढ़ उठा, ‘‘अभी भी मुझ पर औरतें लाइन मारती हैं.. मैं ने कई बार उन की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़े हैं.’’

‘‘पापा की पर्सनैलिटी इतनी बुरी भी नहीं है…’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी… पर्सनैलिटी बुरी नहीं है से तुम्हारा मतलब क्या है?’’ मैं ने अपनी बेटी को गुस्से से घूरा तो उस ने हंस कर जले पर नमक बुरकने जैसा काम किया.

‘‘बात पर्सनैलिटी की नहीं, बल्कि इन के कंजूस स्वभाव की है, गुडिया. जब ये किसी औरत पर पैसा खर्च करेंगे नहीं तो फिर वह औरत इन के साथ इश्क करेगी ही क्यों?’’

‘‘आप को किसी लेडी का भी नाम ध्यान नहीं आ रहा है, जिस ने पापा को यह गुलदस्ता भेजा हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘पापा, आप की मार्केट वैल्यू तो बहुत खराब है,’’ मेरी बेटी ने फौरन मुझ से सहानुभूति दर्शाई.

‘‘बिटिया, यह घर की मुरगी दाल बराबर समझने की भूल कर रही है,’’ मैं ने शान से कौलर ऊपर कर के छाती फुला ली तो सीमा अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी.

‘‘अब तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि इस गुलदस्ते को भेजा किस ने है और यह है किस के लिए?’’ मनीषा के इन सवालों को सुन कर उस की मां भी जबरदस्त उलझन का शिकार हो गई थी.

उन की खामोशी जब ज्यादा लंबी खिंच कर असहनीय हो गई तो मैं ने शाही मुसकान होंठों पर सजा कर पूछा, ‘‘सीमा, क्या यह प्रेम का इजहार करने वाला उपहार मैं ने तुम्हारे लिए नहीं खरीदा हो सकता है?’’

‘‘इंपौसिबल… आप की इन मामलों में कंजूसी तो विश्वविख्यात है,’’ सीमा ने मेरी भावनाओं को चोट पहुंचाने में 1 पल भी नहीं लगाया.

मेरे चेहरे पर उभरे पीड़ा के भावों को उन दोनों ने अभिनय समझ और अचानक ही दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

‘‘मेरे हिस्से में ऐसा कहां कि ऐसा खूबसूरत तोहफा मुझे कभी आप से मिले,’’ हंसी का दौरा थम जाने के बाद सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में उदास गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मेरे खयाल से फूल वाला लड़का गलती से यह गुलदस्ता हमारे घर दे गया है और जल्द ही इसे वापस लेने आता होगा,’’ मनीषा ने एक नया तुर्रा छोड़ा.

‘‘इस कागज को देखो. इस पर हमारे घर का पता लिखा है और इस लिखावट को तुम दोनों पहचान सकतीं,’’ मैं ने एक परची जेब से निकाल कर मनीषा को पकड़ा दी.

‘‘यह तो आप ही की लिखावट है,’’ मनीषा हैरान हो उठी.

‘‘आप इस कागज को हमें क्यों दिखा रहे हो?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘इसी परची को ले कर गुलदस्ता देने वाला लड़का हमारे घर तक पहुंचा था. लगता है कि तुम दोनों इस बात को भूल चुके हो कि मेरे अंदर भी प्यार करने वाला दिल धड़कता है… मैं जो हमेशा रुपएपैसों का हिसाबकिताब रखने में व्यस्त रहता हूं, मुझे पैसा कम कमाई और ज्यादा खर्च की मजबूरी ने बना दिया है,’’ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के बाद मैं थकाहारा सा उठ कर शयनकक्ष की तरफ चलने लगा तो वे दोनों फौरन उठ कर मुझ से लिपट गईं.

‘‘आई एम सौरी, पापा. आप तो दुनिया के सब से अच्छे पापा हो,’’ कहते हुए मनीषा की आंखें भर आईं.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, स्वीटहार्ट,’’ सीमा की आंखों में भी आंसू छलक आए.

मैं ने उन के सिरों पर प्यार से हाथ रख और भावुक हो कर बोला, ‘‘तुम दोनों के लिए माफी मांगना बिलकुल जरूरी नहीं है. आज वैलेंटाइनडे के दिन की यह घटना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण सबक बननी चाहिए. भविष्य में मैं प्यार का इजहार ज्यादा और जल्दीजल्दी किया करूंगा. मैं नहीं बदला तो मुझे डर है कि किसी वैलेंटाइनडे पर किसी और का भेजा गुलदस्ता मेरी रानी के लिए न आ जाए.’’

‘‘धत्, इस दिल में आप के अलावा किसी और की मूर्ति कभी नहीं सज सकती है, सीमा ने मेरी आंखों में प्यार से झांका और फिर शरमा कर मेरे सीने से लग गई.’’

‘‘मुझे भी दिल में 1 ही मूर्ति से संतोष करने की कला सिखाना, मौम,’’ शरारती मनीषा की इस इच्छा पर हम एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते हुए ठहाका मार कर हंस पडे़.

हिंदी कहानी : क्यों का प्रश्न नहीं

हिंदी कहानी :  सुबह के 10 बजे थे. डेरे के अपने औफिस में आ कर मैं बैठा ही था. लाइजन अफसर के रूप में पिछले 2 साल से मैं सेवा में था. हाल से गुजरते समय मैं ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि बाहर मिलने के लिए कौनकौन बैठा है. 10 और 12 बजे के बीच मिलने का समय था. सभी मिलने वाले एक पर्ची पर अपना नाम लिख कर बाहर खड़े सेवादार को दे देते और वह मेरे पास बारीबारी भेजता रहता. 12 बजे के करीब मेरे पास जिस नाम की पर्ची आई उसे देख कर मैं चौंका. यह जानापहचाना नाम था, मेरे एकमात्र बेटे का. मैं ने बाहर सेवादार को यह जानने के लिए बुलाया कि इस के साथ कोई और भी आया है.

‘‘जी, एक बूढ़ी औरत भी साथ है.’’

मैं समझ गया, यह बूढ़ी औरत और कोई नहीं, मेरी धर्मपत्नी राजी है. इतने समय बाद ये दोनों क्यों आए हैं, मैं समझ नहीं पाया. मेरे लिए ये अतीत के अतिरिक्त और कुछ नहीं थे. संबंध चटक कर कैसे टूट गए, कभी जान ही नहीं पाया. मैं ने इन के प्रति अपने कर्तव्यों को निश्चित कर लिया था.

‘‘साहब, इन दोनों को अंदर भेजूं?’’ सेवादार ने पूछा तो मैं ने कहा, ‘‘नहीं, ड्राइवर सुरिंदर को मेरे पास भेजो और इन दोनों को बाहर इंतजार करने को कहो.’’

वह ‘जी’ कह कर चला गया.

सुरिंदर आया तो मैं ने दोनों को कोठी ले जाने के लिए कहा और कहलवाया, ‘‘वे फ्रैश हो लें, लंच के समय बात होगी.’’

बेबे, जिस के पास मेरे लिए खाना बनाने की सेवा थी, इन का खाना बनाने के लिए भी कहा. वे चले गए और मैं दूसरे कामों में व्यस्त हो गया.

लंच हम तीनों ने चुपचाप किया. फिर मैं उन को स्टडीरूम में ले आया. दोनों सामने की कुरसियों पर बैठ गए और मैं भी बैठ गया. गहरी नजरों से देखने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘तकरीबन 2 साल बाद मिले हैं, फिर भी कहिए मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

भाषा में न चाहते हुए भी रूखापन था. इस में रिश्तों के टूटन की बू थी. डेरे की परंपरा को निभा पाने में शायद मैं फेल हो गया था. सब से प्यार से बोलो, मीठा बोलो, चाहे वह तुम्हारा कितना ही बड़ा दुश्मन क्यों न हो. देखा, राजी के होंठ फड़फड़ाए, निराशा से सिर हिलाया परंतु कहा कुछ नहीं.

बेटे ने कहा, ‘‘मैं मम्मी को छोड़ने आया हूं.’’

‘‘क्यों, मन भर गया? जीवन भर पास रखने और सेवा करने का जो वादा और दावा, मुझे घर से निकालते समय किया था, उस से जी भर गया या अपने ऊपर से मां का बोझ उतारने आए हो या मुझ पर विश्वास करने लगे हो कि मैं चरित्रहीन नहीं हूं?’’

थोड़ी देर वह शांत रहा, फिर बोला, ‘‘आप चरित्रहीन कभी थे ही नहीं. मैं अपनी पत्नी सुमन की बातों से बहक गया था. उस ने अपनी बात इस ढंग से रखी, मुझे यकीन करना पड़ा कि आप ने ऐसा किया होगा.’’

‘‘मैं तुम्हारा जन्मदाता था. पालपोस कर तुम्हें बड़ा किया था. पढ़ायालिखाया था. बचपन से तुम मेरे हावभाव, विचारव्यवहार, मेरी अच्छाइयों और कमजोरियों को देखते आए हो. तुम ने कल की आई लड़की पर यकीन कर लिया पर अपने पिता पर नहीं. और राजी, तुम ने तो मेरे साथ 35 वर्ष गुजारे थे. तुम भी मुझे जान न पाईं? तुम्हें भी यकीन नहीं हुआ. जिस लड़की को बहू के रूप में बेटी बना कर घर में लाया था, क्या उस के साथ मैं ऐसी भद्दी हरकत कर सकता था? सात जन्मों का साथ तो क्या निभाना था, तुम तो एक जन्म भी साथ न निभा पाईं. तुम्हारी बहनें तुम से और सुमन से कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, मैं उन के प्रति तो चरित्रहीन हुआ नहीं? उस समय तो मैं जवान भी था. तुम्हें भी यकीन हो गया…?’’

‘‘शायद, यह यकीन बना रहता, यदि पिछले सप्ताह सुमन को अपनी मां से यह कहते न सुना होता, ‘एक को तो उस ने झूठा आरोप लगा कर घर से निकलवा दिया है. यह बुढि़या नहीं गई तो वह उसे जहर दे कर मार देगी,’’’ बेटे ने कहा, ‘‘तब मुझे पता चला कि आप पर लगाया आरोप कितना झूठा था. मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. मैं ने मम्मी को भी इस बारे में बताया. तब से ये रो रही हैं. मन में यह भय भी था कि कहीं सचमुच सुमन, मम्मी को जहर न दे दे.’’

‘‘अब इस का क्या फायदा. तब तो मैं कहता ही रह गया था कि मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. मैं ऐसा कर ही नहीं सकता था, पर किसी ने मेरी एक न सुनी. किस प्रकार आप सब ने मुझे धक्के दे कर घर से बाहर निकाला, मुझे कहने की जरूरत नहीं है. मैं आज भी उन धक्कों की, उन दुहत्थड़ों की पीड़ा अपनी पीठ पर महसूस करता हूं. मैं इस पीड़ा को कभी भूल नहीं पाया. भूल पाऊंगा भी नहीं.

‘‘मुझे आज भी सर्दी की वह उफनती रात याद है. बड़ी मुश्किल से कुछ कपड़े, फौज के डौक्यूमैंट, एक डैबिट कार्ड, जिस में कुछ रुपए पड़े थे, घर से ले कर निकला था. बाहर निकलते ही सर्दी के जबरदस्त झोंके ने मेरे बूढ़े शरीर को घेर लिया था. धुंध इतनी थी कि हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता था. सड़क भी सुनसान थी. दूरदूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था. रात, मेरे जीवन की तरह सुनसान पसरी पड़ी थी. रिश्तों के टूटन की कड़वाहट से मैं निराश था.फिर मैं ने स्वयं को संभाला और पास के

एटीएम से कुछ रुपए निकाले. अभी सोच ही रहा था कि मुख्य सड़क तक कैसे पहुंचा जाए कि पुलिस की जिप्सी बे्रक की भयानक आवाज के साथ मेरे पास आ कर रुकी. उस में बैठे एक इंस्पैक्टर ने कहा, ‘क्यों भई, इतनी सर्द रात में एटीएम के पास क्या कर रहे हो? कोई चोरवोर तो नहीं हो?’ मैं पुलिस की ऐसी भाषा से वाकिफ था.

‘‘‘नहीं, इंस्पैक्टर साहब, मैं सेना का रिटायर्ड कर्नल हूं. यह रहा मेरा आई कार्ड. इमरजैंसी में मुझे कहीं जाना पड़ रहा है. एटीएम से पैसे निकालने आया था. मुख्य सड़क तक जाने के लिए कोई सवारी ढूंढ़ रहा था कि आप आ गए.’

‘‘‘घर में सड़क तक छोड़ने के लिए कोई नहीं है?’ इंस्पैक्टर की भाषा बदल गई थी. वह सेना के रिटायर्ड कर्नल से ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता था.

‘‘‘नहीं, यहां मैं अकेले ही रहता हूं,’ मैं कैसे कहता, घर से मैं धक्के दे कर निकाला गया हूं.

‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘आओ साहब, मैं आप को सड़क तक छोड़ देता हूं.’ उन्होंने न केवल सड़क तक छोड़ा बल्कि स्टेशन जाने वाली बस को रोक कर मुझे बैठाया भी. ‘जयहिंद’ कह कर सैल्यूट भी किया, कहा, ‘सर, पुलिस आप की सेवा में हमेशा हाजिर है.’ कैसी विडंबना थी, घर में धक्के और बाहर सैल्यूट. जीवन की इस पहेली को मैं समझ नहीं पाया था.

‘‘स्टेशन पहुंच कर मैं सैनिक आरामगृह में गया. वहां न केवल मुझे कमरा मिला बल्कि नरमगरम बिस्तर भी मिला. तुम्हारे जैसे हृदयहीन लोग इस बात का अनुमान ही नहीं लगा सकते कि उस ठिठुरती रात में बेगाने यदि मदद नहीं करते तो मेरी क्या हालत होती. मैं खुद के जीवन से त्रस्त था. मन के भीतर यह विचार दृढ़ हो रहा था कि ऐसी स्थिति में मैं कैसे जी पाऊंगा. मन में यह विचार भी था, मैं एक सैनिक हूं. मैं अप्राकृतिक मौत मर ही नहीं सकता. मैं डेरे में पनाह मिलने के प्रति भी अनिश्चित था.

पर डेरे ने मुझे दोनों हाथों से लिया. पैसे की तंगी ने मुझे बहुत तंग किया. डेरे के लंगर में खाते समय मुझे जो आत्मग्लानि होती थी, उस से उबरने के लिए मुझे दूरदूर तक कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. आप ने मुझे मेरी पैंशन में से हजार रुपया महीना देना भी स्वीकार नहीं किया तो मेरे पास इस के अलावा और कोई चारा नहीं था कि पहले का पैंशन डेबिट कार्ड कैंसिल करवा कर नया कार्ड इश्यू करवाऊं. मेरे जीतेजी पैंशन पर केवल मेरा अधिकार था.

‘‘मैं जीवनभर ‘क्यों’ के प्रश्नों का उत्तर देतेदेते थक गया हूं. बचपन में, ‘खोता हो गया है, अभी तक बिस्तर में शूशू क्यों करता हूं? अच्छा, अब फैशन करने लगा है. पैंट में बटन के बजाय जिप क्यों लगवा ली? अरे, तुम ने नई पैंट क्यों पहन ली? मौडल टाउन में मौसी के यहां दरियां देने ही तो जाना है. नई पैंट आनेजाने के लिए क्यों नहीं रख लेता? चल, नेकर पहन कर जा.’

‘‘काश, उस रोज मैं नेकर पहन कर न गया होता. मैं अभी भंडारी ब्रिज चढ़ ही रहा था कि साइकिल पर आ रहे लड़के ने मुझे रोका. ‘काम करोगे?’ मुझे उस की बात समझ नहीं आई, इसलिए मैं ने पूछा था, ‘कैसा काम?’ ‘घर का काम, मुंडू वाला.’ उस ने मेरे हुलिए, बिना प्रैस किए पहनी कमीज, बिना कंघी के बेतरतीब बाल, ढीली नेकर, कैंची चप्पल, बगल में दरियां उठाए किसी घर में काम करने वाला मुंडू समझ लिया था.

‘‘मैं ने उसे कहा था, ‘नहीं, मैं ने नहीं करना है, मैं 7वीं में पढ़ता हूं.’ फिर उस ने कहा था, ‘अरे, अच्छे पैसे मिलेंगे. खाना, कपड़ा, रहने की जगह मिलेगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’ जब मैं ने उसे सख्ती से झिड़क कर कहा कि मैं पढ़ रहा हूं और मुझे मुंडू नहीं बनना है तब जा कर उस ने मेरा पीछा छोड़ा था. बाद में शीशे में अपना हुलिया देखा तो वह किसी मुंडू से भी गयागुजरा था. मेरे कपड़े ऐसे क्यों थे? मेरे पास इस का भी उत्तर नहीं था. बाऊजी के अतिरिक्त सभी मेरा मजाक उड़ाते रहे.

‘‘मेरे दूसरे उपनामों के साथ ‘मुंडू’ उपनाम भी जुड़ गया था. उस भाई से कभी ‘क्यों’ का प्रश्न नहीं पूछा गया जो गली की एक लड़की के लिए पागल हुआ था. अफीम खा कर उस की चौखट पर मरने का नाटक करता रहा. गली में उसे दूसरी चौखट मिलती ही नहीं थी. उस बहन से भी कभी क्यों का प्रश्न नहीं पूछा गया जो संगीत के शौक के विपरीत लेडी हैल्थविजिटर के कोर्स में दाखिला ले कर कोर्स पूरा नहीं कर सकी, पैसा और समय बरबाद किया और परिवार को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया. उस भाई से भी क्यों का प्रश्न नहीं किया गया जो पहले नेवी में गया. छोड़ कर आया पढ़ने लगा, किसी बात पर झगड़ा किया तो फौज में चला गया. वहां बीमार हुआ, फौज से छुट्टी हुई, फिर पढ़ने लगा. पढ़ाई फिर भी पूरी नहीं की. सब से छोटे ने तो परिवार की लुटिया ही डुबो दी. मैं ने बाऊजी को चुपकेचुपके रोते देखा था. मैं पढ़ने में इतना तेज नहीं था. मुझ पर प्रश्नों की बौछार लगा दी जाती. पढ़ना नहीं आता तो इस में पैसा क्यों बरबाद कर रहे हो? इस क्यों का उत्तर उस समय भी मेरे पास नहीं था और आज भी नहीं है.

‘‘17 साल की उम्र में फौज में गया तो वहां भी इस क्यों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा. सही होता तो भी क्यों का प्रश्न किया जाता और सही न होता तो भी. 11 साल तक तन, मन, धन से घर वालों की सेवा की. परिवार छूटते समय मेरे समक्ष फिर यह क्यों का प्रश्न था कि मैं ने अपने लिए क्यों कुछ बचा कर नहीं रखा. तुम से शादी हुई, पहली रात तुम्हें कुछ दे नहीं पाया, मुझे पता ही नहीं था कि कुछ देना होता है. पता होता भी तो दे नहीं पाता. मेरे पास कुछ था ही नहीं. 2 महीने की छुट्टी में मिले पैसे से मैं ने शादी की थी. मैं तुम्हें सब कैसे बताता और तुम क्यों सुनतीं? बताने पर शायद कहतीं, ऐसा था तो शादी क्यों की?

‘‘तुम्हारे समक्ष मेरी इमेज क्या थी? मैं बड़ी अच्छी तरह जानता हूं. तुम ने इस इमेज को कभी सुधरने का मौका नहीं दिया, अफसर बनने पर भी. उलटे मुझे ही दोष देती रहीं. तुम्हारे रिश्तेदार मेरे मुंह पर मुझे आहत कर के जाते रहे, कभी तुम ने इस का विरोध नहीं किया. मुझे याद है, तुम्हारी बहन रचना की नईनई शादी हुई थी. रचना और उस के पति को अपने यहां बुलाना था. तुम चाहती थीं, शायद रचना भी चाहती थी कि इस के लिए मैं उस के ससुर को लिखूं.

‘‘मैं ने साफ कहा था, मेरा लिखना केवल उस के पति को बनता है, उस के ससुर को नहीं. जैसे मैं साहनी परिवार का दामाद हूं, वैसे वह है. मैं उस का ससुर नहीं हूं. बात बड़ी व्यावहारिक थी परंतु तुम ने इस को अपनी इज्जत का सवाल बना लिया था. मन के भीतर अनेक क्यों के प्रश्न होते हुए भी मैं तुम्हारे सामने झुक गया था. मैं ने इस के लिए उस के ससुर को लिखा था.

‘‘जीवन में तुम ने कभी मेरे साथ समझौता नहीं किया. हमेशा मैं ने वह किया जो तुम चाहती थीं. रचना और उस का पति आए तो मिलन के लिए वे रात तक इंतजार नहीं कर सके थे. हमें दिन में ही उन के लिए एकांत का प्रबंध करना पड़ा. मुझे बहुत बुरा लगा था.

‘‘मैं समझ नहीं पाया था कि ऐसा कर के वे हमें क्या बताना चाहते थे? यदि हम उन के यहां जाते तो क्या वे ऐसा कह और कर सकते थे?

‘‘तुम्हें याद होगा, अपनी सीमा से अधिक हम ने उन को दिया था. रचना ने क्या कहा था, वह अपने ससुराल में अपनी ओर से इतना और कह देगी कि यह दीदीजीजाजी ने दिया है. जिस का साफ मतलब था कि जो कुछ दिया गया है, वह कम था. मैं मन से बड़ा आहत हुआ था.

‘‘रचना को इस प्रकार आहत करने, बेइज्जत करने और इस कमी का एहसास दिलाने का कोई हक नहीं था. मैं ने तुम्हारी ओर देखा था, शायद तुम इस प्रकार उत्तर दो पर तुम्हें अपने रिश्तेदारों के सामने मेरे इस प्रकार आहत और बेइज्जत होने का कभी एहसास नहीं हुआ.

‘‘क्यों, मैं इस का उत्तर कभी ढूंढ़ नहीं पाया. रचना को मैं ने उत्तर दिया था, ‘तुम्हें कमी लगी थी तो कह देतीं, जहां इतना दिया था, वहां उसे भी पूरा कर देते पर तुम्हें इस कमी का एहसास दिलाने का कोई अधिकार नहीं था. तुम अपने ससुराल में अपनी और हमारी इज्जत बनाना चाहती थीं न? मजा तब था कि बिना एहसास दिलाए इस कमी को पूरा कर देतीं. पर इस झूठ की जरूरत क्या है? क्या इस प्रकार तुम हमारी इज्जत बना पातीं? मुझे नहीं लगता, क्योंकि झूठ, झूठ ही होता है. कभी न कभी खुल जाता. उस समय तुम्हारी स्थिति क्या होती, तुम ने कभी सोचा है?’

‘‘रचना मेरे इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाई थी. जो बात तुम्हें कहनी चाहिए थी, उसे मैं ने कहा था. उन के जाने के बाद कई दिनों तक तुम ने मेरे साथ बात नहीं की थी. उस रोज तो हद हो गई थी जब मैं अपने एक रिश्तेदार की मृत्यु पर गया था. वे केवल मेरे रिश्तेदार नहीं थे बल्कि उन के साथ तुम्हारा भी संबंध था. उन्होंने किस तरह मुझ से तुम्हारे ब्याह के लिए प्रयत्न किया था, तुम भूल गईं. उसी परिवार ने बाऊजी के मरने पर भी सहयोग किया था.

‘‘वहां मुझ से 500 रुपए खर्च हो गए थे. उस के लिए तुम ने किस प्रकार झगड़ा किया था, कहने की जरूरत नहीं है. तुम ने तो यहां तक कह दिया था कि तुम मेरे पैसे को सौ जूते मारती हो. मेरे पैसे को सौ जूते मारने का मतलब मुझे भी सौ जूते मारना.

‘‘मैं तुम्हारे किन रिश्तेदारों की मौत के सियापे करने नहीं गया. उन्हीं रिश्तेदारों ने माताजी के मरने पर आना तो दूर, किसी ने फोन तक नहीं किया. किसी को डिप्रैशन था, किसी के घुटनों में दर्द था. तुम्हारी भाषा की कड़वाहट आज भी भीतर तक कड़वाहट से भर देती है. पर अब इन सब बातों का क्या फायदा? मैं तो केवल इतना जानता हूं कि आप लोगों के सामने मैं हमेशा गरीब बना रहा. किसी बाप को गरीब नहीं होना चाहिए. गरीब हो तो उस में ताने सुनने की ताकत होनी चाहिए. अगर सुनने की ताकत न हो तो उस की हालत घर के कुत्ते से भी बदतर होती है.

‘‘घर के कुत्ते को जितना मरजी दुत्कारो, वह घर की ओर ही आता है. घर को छोड़ कर न जाना उस की मजबूरी होती है. यह मजबूरी जीवनभर चलती है. काश, मैं पहले ही घर को छोड़ कर चला आया होता. मैं खुद ही अपने आत्मसम्मान को रख नहीं पाया था. यदि ऐसा करता तो मेरे उन कर्मों का क्या होता जो मुझे हर हाल में भुगतने थे.’’

‘‘गलतियां हुई हैं, मैं मानती हूं. क्या इन सब को भूल कर आगे की जिंदगी अच्छी तरह से नहीं जी जा सकती,’’ इतनी देर से चुप मेरी पत्नी ने कहा.

‘‘हर रोज यही कोशिश करता हूं कि सब भूल जाऊं. भूल जाऊं कि जिंदगी के हर मोड़ पर मुझे लताड़ा गया है. हर कदम पर मैं ने आत्मसम्मान को खोया है. भूल जाऊं कि हर गलती के लिए मुझे ही दोषी ठहराया जाता रहा है. चाहे वह सोफे के खराब होने की बात हो या कुरसियों के टूटने की. मैं कैसे कहता कि ये बच्चों की उछलकूद से हुआ है. अगर कहता भी तो इसे कौन मानता.

‘‘मैं ने बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला है, अपने ढंग से जिंदगी को सैट किया है. चाहे पहले की यादें मुझे हर रोज पीडि़त करती हैं तो भी मुझे यहां राजी के साथ से कोई एतराज नहीं है परंतु इसे अपनी जिंदगी के दिन दूसरे कमरे में गुजारने होंगे. इस की पूरी सेवा होगी. इस की सारी जरूरतों का ध्यान रखा जाएगा. इस की तकलीफों के बारे में हर रोज पूछा जाएगा और इलाज करवाया जाएगा. इस ने चाहे मुझे हजार रुपया महीना देना स्वीकार न किया हो पर मैं इसे 5 हजार रुपए महीना दूंगा.

‘‘24 घंटे टैलीफोन इस के सिरहाने रहेगा, चाहे जिस से बात करे. पर मेरे जीवन में इस का कोई दखल नहीं होगा. मैं कहां जाता हूं, क्या करता हूं, इस पर कोई क्यों का प्रश्न नहीं होगा. मुझे कोई भी फौरमैलिटी बरदाश्त नहीं होगी. बस, इतना ही.’’

वे दोनों चुप रहे. शायद उन को मेरी बातें मंजूर थीं. मैं ने बेबे से कह कर राजी का सामान दूसरे कमरे में रखवा दिया.

Stories Hindi : धक्का – मनीषा का दिल क्यों टूट गया?

Stories Hindi : ‘‘खैर, खुशी तो हमें तुम्हारी हर सफलता पर होती रही है और यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) द्वारा तुम्हारे चुने जाने पर अब हमें गर्व भी हो रहा है मगर एक बात रहरह कर खटक रही है,’’ उदयशंकर अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए बीच में थोड़ा रुक गए, ‘‘तुम्हारे इतने दूर जाने के बाद तुम्हारी मम्मी एकदम अकेली रह जाएंगी.’’

‘‘छोडि़ए भी, उदय भैया, अकेली रह जाऊंगी? आप सब जो हैं यहां,’’ मनीषा जल्दी से बोली. अपने मन की बात उदयशंकर की जबान पर आती देख कर वह विह्वल हो उठी थी.

‘‘हम तो खैर मरते दम तक यहीं रहेंगे. लेकिन हम में और जितेन में बहुत फर्क है.’’

‘‘वह फर्क तो आप की नजरों में होगा, चाचाजी. पापा के गुजरने के बाद मैं ने आप को ही उन की जगह समझा है. आप को अपना बुजुर्ग और मम्मी का संरक्षक समझता हूं,’’ जितेन बोला.

‘‘लीजिए, उदय भैया. अब आप केवल राजन के मित्र ही नहीं, जितेन द्वारा बनाए गए मेरे संरक्षक भी हो गए हैं,’’ मनीषा हंसी.

‘‘उस में मुझे कोई एतराज नहीं है, मनीषा. मुझ से जो भी हो सकेगा तुम्हारे लिए करूंगा. मगर, मनीषा, मैं या मेरे बच्चे हमेशा गैर रहेंगे. सोचता हूं अगर जितेन यूनेस्को की नौकरी का विचार छोड़ दे तो कैसा रहे?’’

‘‘क्या बात कर रहे हैं, चाचाजी? लोग तो ऐसी नौकरी का सपना देखते रहते हैं, इस के लिए नाक रगड़ने को तैयार रहते हैं और मुझे तो फिर इस नौकरी के लिए खास बुलाया गया है और आप कहते हैं कि मैं न जाऊं. कमाल है,’’ जितेन चिढ़ कर बोला.

‘‘लेकिन, तुम्हारी यह नौकरी भी क्या बुरी है? यहां भी तुम्हें खास बुलाया गया था और आगे तरक्की के मौके भी बहुत हैं. भविष्य तो तुम्हारा यहां भी उज्ज्वल है.’’

‘‘चाचाजी, आप ने अपने क्लब का स्विमिंग पूल भी देखा है और समुद्र भी. सो, दोनों का फर्क भी आप समझते ही होंगे,’’ जितेन मुसकराया.

‘‘मैं तो समझता हूं, बरखुरदार, लेकिन लगता है तुम नहीं समझते. क्लब के स्विमिंग पूल का पानी अकसर बदला जाता है, सो साफसुथरा रहता है. मगर समुद्र में तो दुनियाजहान का कचरा बह कर जाता है. फिर उस में तूफान भी हैं, चट्टानें भी और खतरनाक समुद्री जीव भी. यूनेस्को की नौकरी का मतलब है पिछड़े देशों में जा कर अविकसित चीजों का विकास करना, पिछड़ी जातियों का आधुनिकीकरण करना. काफी टेढ़ा काम होगा.’’

‘‘जिंदगी में तरक्की करने के लिए टेढ़े और मुश्किल काम तो करने ही पड़ते हैं, चाचाजी. और फिर जिन्हें समुद्र में तैरने का शौक पड़ जाए वे स्विमिंग पूल में नहीं तैर पाते.’’

‘‘यही सोच कर तो कह रहा हूं, बेटे, कि तुम समुद्र के शौक में मत पड़ो. उस में फंस कर तुम मनीषा से बहुत दूर हो जाओगे. माना कि अब संपर्क साधनों की कमी नहीं, लगता है मानो आमनेसामने बैठ कर बातें कर रहे हैं. फिर भी, दूरी तो दूरी ही है. राजन के गुजरने के बाद मनीषा सिर्फ तुम्हारे लिए ही जी रही है. तुम्हारा क्या खयाल है? सिर्फ आपसी बातचीत के सहारे वह जी सकेगी, टूट नहीं जाएगी?’’

‘‘जानता हूं, चाचाजी. तभी तो मम्मी को आप के सुपुर्द कर के जा रहा हूं. मैं कोशिश करूंगा कि जल्दी ही इन्हें वहां बुला लूं.’’

‘‘और भी ज्यादा परेशान होने को. यहां की इतने साल की प्रभुत्व की नौकरी, पुराने दोस्त और रिश्ते छोड़ कर नए माहौल को अपनाना मनीषा के लिए आसान होगा? अगर कोई अच्छी जगह होती तो भी ठीक था, लेकिन तुम तो अफ्रीकी या अरब इलाकों में ही जाओगे. वहां खुश रहना मनीषा के लिए मुमकिन न होगा.’’

‘‘फिर भी हालात से समझौता तो करना ही पड़ेगा, चाचाजी. महज इस वजह से कि मेरे जाने से मम्मी अकेली रह जाएंगी, इत्तफाक से मिला यह सुनहरा अवसर मैं छोड़ने वाला नहीं हूं.’’

‘‘बहुत अच्छा हुआ, यह बात तू ने मम्मी के जाने के बाद कही,’’ उदयशंकर ने एक गहरी सांस खींच कर कहा.

‘‘क्यों? मम्मी तो स्वयं ही यह नहीं चाहेंगी कि उन की वजह से मेरा कैरियर खराब हो या मैं जिंदगी में आगे न बढ़ सकूं.’’

‘‘बेशक, लेकिन जो बात तुम ने अभी कही थी न, वही तुम्हारे पापा ने उन्हें आज से 25 वर्षों पहले बताई थी.’’

उसे सुन कर उन्हें राजन की याद आ जाना स्वाभाविक ही था. दरवाजे के पीछे खड़ी मनीषा का दिल धक्क से हो गया.

‘‘क्या बताया था पापा ने मम्मी को?’’ जितेन आश्चर्य से पूछ रहा था.

नीषा ने चाहा कि वह जा कर उदयशंकर को रोक दे. उस ने जो बात उदयशंकर को अपना घनिष्ठ मित्र समझ कर बताई थी उसे जितेन को बताने का उदय को कोई हक नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात सुन कर जितेन उदारता अथवा एहसान के बोझ से दब जाए और मनीषा के प्रति उतना कृतज्ञ न हो पाने की वजह से उस के दिल में अपराधभावना आ जाए, मगर मनीषा के पैर जैसे जमीन से चिपक कर रह गए.

उदयशंकर बता रहे थे, ‘‘तुम्हारी मम्मी कितनी मेधावी थीं, शायद इस का तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा. उन जैसी प्रतिभाशाली लड़की को इतनी जल्दी प्यार और शादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए था और अगर शादी कर भी ली थी तो कम से कम घर और बच्चों के मोह से तो बचे ही रहना चाहिए था. पर मनीषा ने घर और बच्चों के चक्कर में अपनी प्रतिभा आम घरेलू औरतों की तरह नष्ट कर दी.’’

‘‘खैर, यह तो आप ज्यादती कर रहे हैं, चाचाजी. मम्मी आम घरेलू औरत एकदम नहीं हैं,’’ जितेन ने प्रतिवाद किया, ‘‘मगर पापा ने क्या कहा था, वह बताइए न?’’

‘‘वही बता रहा हूं. तुम्हारी मम्मी ने कभी तुम से जिक्र भी नहीं किया होगा कि उन्हें एक बार हाइडलबर्ग के इंस्टिट्यूट औफ एडवांस्ड साइंसैज ऐंड टैक्नोलौजी में पीएचडी के लिए चुना गया था. तुम्हारी दादी और राजन ने तुम्हारी पूरी देखभाल करने का आश्वासन दिया था.  फिर भी मनीषा जाने को तैयार नहीं हुईं, महज तुम्हारी वजह से.’’

‘‘मैं उस समय कितना बड़ा था?’’

‘‘यही कोई 5-6 महीने के यानी जिस उम्र में मां ही होती है जो दूध पिला दे. और दूध तुम बोतल से पीते थे. सो, तुम्हारी दादी और पापा तुम्हारी देखभाल मजे से कर सकते थे. लेकिन तुम्हारी मम्मी को तसल्ली नहीं हो रही थी. उन के अपने शब्दों में कहूं तो ‘इतने छोटे बच्चे को छोड़ने को मन नहीं मानता. वह मुझे पहचानने लग गया है. मेरे जाने के बाद वह मुझे जरूर ढूंढ़ेगा. बोल तो सकता नहीं कि कुछ पूछ सके या बताए जाने पर समझ सके. उस के दिल पर न जाने इस का क्या असर पड़ेगा? हो सकता है इस से उस के दिल में कोई हीनभावना उत्पन्न हो जाए और मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा किसी हीनभावना के साथ बड़ा हो. मैं, डा. मनीषा, एक जानीमानी औयल टैक्नोलौजिस्ट की जगह एक स्वस्थ, होनहार बच्चे की मां कहलाना ज्यादा पसंद करूंगी.’’’

मनीषा और ज्यादा नहीं सुन सकी. उसे उस शाम की अपनी और राजन की बातचीत याद हो आई.

‘तुम्हारा बच्चा अभी तुम्हें ढूंढ़ने, कुछ सोचने और ग्रंथि बनाने की उम्र में नहीं है. पर जब वह कुछ सोचनेसमझने की उम्र में पहुंचेगा तब वह अपनी ही जिंदगी जीना चाहेगा और तुम्हारी खुशी के लिए अपनी किसी भी खुशी का गला नहीं घोंटेगा. यह समझ लो, मनीषा,’ राजन ने उसे समझाना चाहा था.

‘उस की नौबत ही नहीं आएगी, राजन. मेरी और मेरे बेटे की खुशियां अलगअलग नहीं होंगी. बेटे की खुशी ही मेरी खुशी होगी,’ उस ने बड़े दर्द से कहा था.

‘यानी तुम अपना अस्तित्व अपने बेटे के लिए ऐसे ही लुप्त कर दोगी. याद रखो, मनीषा, चंद सालों के बाद तुम पाओगी कि न तुम्हारे पास बेटा है और न अपना अस्तित्व, और फिर तुम अस्तित्वविहीन हो कर शून्य में भटकती फिरोगी, खुद को और अपने बेटे को कोसती जिस के लिए तुम ने स्वयं को नष्ट कर दिया.’

‘नहीं, मैं बेटे की ख्याति, सुख और समृद्धि के सागर में तैरूंगी. जब मेरा बेटा गर्व से यह कहेगा कि आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मम्मी की वजह से हूं तो उस समय मेरे गौरव की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती.’

‘यह सब तुम्हारी खुशफहमी है, मनीषा. जब तक तुम्हारा बेटा बड़ा होगा उस समय तक अपनी सफलता का श्रेय दूसरों को देने का चलन ही नहीं रहेगा. तुम्हारा बेटा कहेगा कि मैं जो कुछ भी हूं अपनी मेहनत और अपनी बुद्धि के बल पर हूं. यदि मांबाप ने बुद्धि के विकास के लिए कुछ सुविधाएं जुटा दी थीं तो यह उन की जिम्मेदारी थी. उन्होंने अपनी मरजी से हमें पैदा किया है, हमारे कहने से नहीं.’

‘चलिए, आप की यह बात भी मान ली. लेकिन दूर से चुप रह कर भी तो अपने बेटे की सुखसमृद्धि का आनंद उठाया जा सकता है.’

‘हां, अगर दूर और तटस्थ रह कर उस की खुशी में खुश रह सकती हो, तो बात अलग है. लेकिन अगर तुम चाहो कि तुम ने उस के लिए जो त्याग किया है उस के प्रतिदानस्वरूप वह भी तुम्हारे लिए कुछ त्याग कर के दे, तो नामुमकिन है. जहां तक मेरा खयाल है, वह अधिक समय तक तुम्हारे पास भी नहीं रहेगा. आजकल पढ़ाई काफी विस्तृत हो रही है.’

‘चलिए, बेटा रहे न रहे, बेटे के पापा तो मेरे पास ही रहेंगे न?’ मनीषा ने कहा था और सफाई से बात बदल दी थी. ‘वैसे मूर्खताओं में साथ देने के पक्ष में मैं नहीं हूं लेकिन तुम्हारा साथ तो देना ही पड़ेगा,’ राजन हंस कर बोले थे.

लेकिन, कहां दे पाए थे राजन साथ. जितेन अभी कालेज के प्रथम वर्ष में ही था कि एक दिन सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो कर वे उस का साथ छोड़ गए थे.

‘‘मम्मी, कहां हो तुम?’’ जितेन के उत्तेजित स्वर से मनीषा चौंक पड़ी. कर दिया न उदयशंकर ने सर्वनाश. जितेन को बता दिया और अब वह कहने आ रहा है कि यूनेस्को की नौकरी से इनकार कर देगा. मनीषा ने मन ही मन फैसला किया कि वह उसे क्या कह कर और क्याक्या कसमें दे कर जाने को मजबूर करेगी.

‘‘हां, बेटे, क्या बात है?’’

‘‘उदय चाचा कह रहे थे कि तुम ने मेरे लिए जीवन में आया एक सुनहरा मौका खो दिया?’’

‘‘हां, मगर वह मैं ने तुम्हारे लिए नहीं, अपनी ममता के लिए किया था. उस का तुम पर कोई एहसान नहीं है.’’

‘‘तुम एहसान की बात कर रही हो, मम्मी, और मैं समझता हूं कि इस से बड़ा मेरा कोई और उपकार नहीं कर सकती थीं,’’ जितेन तड़प कर बोला, ‘‘मैं आप को काफी समझदार औरत समझता था, लेकिन आप भी बस प्यार में ही बच्चे का भला समझने वाली औरत निकलीं. उस समय आप ने शायद यह नहीं सोचा कि आप की ज्यादा लियाकत का असर आप के बेटे के भविष्य पर क्या पड़ेगा?’’

जितेन की बात सुन कर मनीषा चुप रही, तो वह फिर बोला, ‘‘आज अगर आप के पास डौक्टरेट की डिगरी होती तो शायद पापा के गुजरने के बाद आप की पुरानी यूनिवर्सिटी आप को बुला लेती. हम लोग वहीं जा कर रहने लगते और मैं बजाय अफ्रीकीएशियाई देशों में जा कर, एक पश्चिमी औद्योगिक देश में काम करने का मौका पाता. यही नहीं, मेरी पढ़ाई पर इस का काफी असर पड़ता. निश्चित ही आप की आय तब ज्यादा होती. घर में ही एक प्रयोगशाला बनाने की जो मेरी तमन्ना थी, वह अगर हमारे पास ज्यादा पैसा होता तो पूरी हो जाती और उस का असर मेरे रिजल्ट पर भी पड़ता.’’ जितेन के स्वर में भर्त्सना थी.

‘‘हमेशा ही विश्वविद्यालय में फर्स्ट आता है. अरे छोड़ भी. उस से ज्यादा अच्छा रिजल्ट और क्या लाता?’’ मनीषा ने हंस कर बात टालनी चाही.

‘‘वही तो आप समझने की कोशिश नहीं करतीं. 85 प्रतिशत अंकों की जगह 95 प्रतिशत अंक पाना क्या बेहतर नहीं है? खैर, आप जो भी कहिए, आप ने वह फैलोशिप अस्वीकार कर के मेरा जो अहित किया है उस के लिए मैं आप को कभी माफ नहीं कर सकता,’’ कह कर जितेन तेजी से बाहर चला गया.

मनीषा जैसे टूट कर कुरसी पर गिर पड़ी. जितेन की कृतघ्नता या उदासीनता के लिए वह अपने को बरसों से तैयार करती आ रही थी, पर उस के इस आरोप के धक्के को सह सकना जरा मुश्किल था.

Story : एक संबंध ऐसा भी – जब निशा ने कांतजी को गले लगाया

Story : मैं ने शादी का कार्ड निशा को देते हुए कहा, ‘‘देखना, यह कार्ड हम दोनों की शादी के लिए ठीक रहेगा. अगले महीने की 10 तारीख का कार्ड है.’’

निशा आश्चर्यचकित एकटक मेरी ओर देख रही थी. गुस्से से बोली, ‘‘ऐसा भद्दा मजाक आप करोगे, मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.’’ फिर मेरे गंभीर चेहरे को गौर से देखते हुए वह बोली, ‘‘मैं आप को बता चुकी हूं कि मैं राहुल को तलाक देने के पक्ष में नहीं हूं. आप का सम्मान करती हूं लेकिन राहुल को जीजान से चाहती हूं. मैं उस के बगैर कदापि नहीं रह सकती. मैं अपना टूटता हुआ घर दोबारा बसाना चाहती हूं.’’

‘‘निशा, धीरज रखो. मैं अपनी योजना तुम्हें बताता हूं. यह मेरी अद्भुत सी कोशिश है. शायद इस से तुम्हारी बिगड़ी हुई बात बन जाए,’’ यह सुन कर निशा खुश दिखाई दी.

मैं ने निशा की पीठ प्यार से थपथपाई और उसे आश्वस्त करते हुए विनम्रता से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा दोस्त हूं और यह चाहता हूं कि जब राहुल को यह कार्ड दिखाया जाएगा तो उस के अहं को चोट पहुंचेगी. वह अवश्य सोचेगा कि तुम्हारे दूसरे विवाह की कोई संभावना नहीं होनी चाहिए. वैसे भी वह तुम से दूर रह कर पछता रहा होगा.’’

‘‘मुझे नहीं लगता है कि मुझ से दूर रह कर वह परेशान है. मुझे तो पता चला है कि दोस्तों के साथ उस की हर शाम मौजमस्ती में गुजर रही है. उस की एक महिला दोस्त उस के साथ विवाह के सपने देख रही है,’’ निशा ने कहा.

मैं ने निशा को आगे बताया कि शादी के कार्ड की कुछ गिनीचुनी प्रतियां ही छपवाई हैं. राहुल के एक मित्र को कार्ड दिखा भी दिया है. अब तक तो वह उसे कार्ड दिखा चुका होगा. वैसे एक कार्ड मैं ने उसे राहुल के लिए भी दे दिया था.

राहुल को जब निशा के विवाह के बारे में पता चला तो उस ने तीव्र प्रतिक्रिया दिखाते हुए निशा से फोन पर बात की.

‘‘तुम अगर यह समझती हो कि मैं तुम्हें किसी और से शादी करने दूंगा तो गलत समझती हो. जिस घमंड के साथ तुम मुझे छोड़ कर अपने मायके चली गई थीं वह एक दिन टूटेगा और विवश हो कर तुम मेरे घर रहने के लिए वापस लौटने को मजबूर हो जाओगी. मैं देखता हूं कि तुम कैसे कांतजी से विवाह करती हो.’’

निशा राहुल की प्रतिक्रिया से मन ही मन खुश थी. उसे लगा राहुल अभी भी उस से बहुत प्यार करता है और कोर्र्टकचहरी की भागदौड़ से तंग आ चुका है. उस ने संक्षेप में राहुल से कहा, ‘‘लगता है जब मैं तुम्हारे साथ मौजूद नहीं हूं, तुम्हें मेरी अहमियत और जरूरत महसूस हो रही है. यह बात मेरे लिए अच्छी है. मिथ्या अभिमान त्याग कर खुशीखुशी मुझे और हमारी बेटी रिंकू को यहां आ कर अपने घर ले जाओ.’’

राहुल ने बगैर कोई उत्तर दिए फोन का रिसीवर रख दिया था.

निशा को अब तक साफतौर पर यह पता नहीं चल पा रहा था कि आखिर राहुल की मां उस से क्या चाहती हैं. वे अपनी बहू में किस प्रकार के गुण ढूंढ़ती हैं. जिस बात के लिए वे अपने बेटे से उस का तलाक चाहती थीं वह बात थी उन के घर एक बेटी (रिंकू ) का जन्म होना. उन की चाहत थी कि उन के घर एक लड़के का जन्म हो. वैसे भी शुरू से ही राहुल की मां को निशा पसंद नहीं थी क्योंकि निशा के मायके जाने के बाद उन्हें दोनों वक्त का खाना बनाना पड़ता था. घर का सारा काम करना पड़ता था. वे अपना अहम भी बरकरार रखना चाहती थीं.

एक दिन राहुल किसी काम से मौल गया हुआ था तो उस ने देखा कि निशा, कार में मेरे साथ आई हुई थी. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. निशा कार से बाहर निकल कर मौल में चली गई और वह मन ही मन कुछ सोचता वहीं खड़ा रहा.

‘निशा एक सुंदर और आकर्षक लड़की है जिसे कोई भी प्रेम करने से इनकार नहीं करेगा. उस में कुछ ऐसी बातें अवश्य हैं जिन से प्रभावित हो कर मैं उसे अपनाना चाहूंगा. वास्तव में मैं कई बार निशा को आश्वस्त कर चुका हूं कि उसे राहुल से अधिक प्यार करूंगा. हम दोनों का बारबार मिलना इस बात का प्रमाण है. जब कभी भी हम दोनों एक हो पाए तो निशा के जीवन में कोई कमी नहीं रहेगी,’ मैं कार में बैठा सोचता रहा.

‘मैं आप की बात जरूर मानूंगी. अगर तलाक के कारण राहुल ने मुझे छोड़ दिया तो…इस के लिए कांतजी आप को इंतजार करना होगा,’ निशा ने एक दिन मुझ से कहा था.

निशा जैसे ही मौल से बाहर आई मैं ने आगे बढ़ कर हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया. वह मुसकराते हुए मेरी ओर आ रही थी. उस ने पूरे उत्साह से मुझ से हाथ मिलाया. उस की आंख में चमक थी. वह बहुत खुश दिखाई दे रही थी.

राहुल यह देख कर जलभुन उठा. मेरी गाड़ी से वह थोड़ी दूरी पर खड़ा था. हम दोनों ने उसे जानबूझ कर अनदेखा किया हुआ था. मैं ने कार का दरवाजा खोल कर निशा को बैठने का संकेत किया. वह ड्राइविंग सीट के साथ वाली सीट पर बैठ गई और मैं ने कार स्टार्ट कर के उसे मेन रोड पर ले लिया. देखते ही देखते मेरी कार राहुल की आंखों से ओझल हो गई.

राहुल के पास मोटरबाइक थी. उस ने हम दोनों का पीछा नहीं किया. राहुल को एक झटका सा लगा. अगर वह निशा को दोबारा घर में ला कर बसा नहीं पाया तो मेरे संबंध में उस के लिए एक विकल्प मौजूद है. उसे इस बात का एहसास था. निशा इतनी खूबसूरत है कि कोई भी उसे सहर्ष पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेगा. वैसे निशा मेरे बारे में राहुल को सविस्तार बता चुकी थी कि मैं उसे स्वीकार करने के लिए तत्पर हूं और जैसे ही तलाक की कार्यवाही पूरी होगी, मैं उस से विवाह में देर नहीं लगाऊंगा. मैं निशा को आश्वस्त कर चुका था.

एक दिन निशा आफिस के बाद सीधे मेरे घर आई. मैं उस समय अकेला ही था. वह बहुत परेशान लग रही थी. कारण पूछने पर बताया कि राहुल ने फोन पर उस से कहा है कि अगर तुम सीधी तरह से तलाक के कागज पर स्वीकृति के हस्ताक्षर नहीं करोगी तो मैं तुम पर चरित्रहीनता का आरोप लगा दूंगा. मैं ने मोबाइल से तुम्हारी और कांतजी की फोटो ले कर तैयार करवा ली है. रिंकू और स्वयं के लिए जो खर्चे का आवेदन- पत्र दिया है उसे भी वापस लो. मैं कोई भी रकम तुम्हें जीवननिर्वाह के लिए देने के पक्ष में नहीं हूं.

यह बताने के बाद निशा मेरे कंधे पर सिर रख कर जोरजोर से रोने लगी. मेरा हृदय उस के दुख से द्रवित हो रहा था. मैं ने उसे अपने आलिंगन में ले कर प्यार से उस का माथा चूम लिया.

‘‘मेरा धीरज अब मेरा साथ नहीं दे रहा है. मैं फोन पर राहुल द्वारा दी जाने वाली धमकियों से बहुत परेशान हो चुकी हूं. एक तरफ दफ्तर के काम का बोझ, दूसरी तरफ रिंकू के लालनपालन की जिम्मेदारी. कांतजी, मैं बुरी तरह से टूट रही हूं. इतनी अच्छी शैक्षिक योग्यता हासिल करने के बाद लगता है कि बहुत कम योग्यता वाले राहुल को अपनाकर मैं ने जिंदगी की बहुत बड़ी भूल की है, जिस की कीमत मुझे मानसिक यातना से चुकानी पड़ रही है.’’

निशा ने सिसकियों के बीच कहना जारी रखा, ‘‘मां के हठ के कारण राहुल घर बसाने का साहस नहीं बटोर पा रहा है. मुझे पता चला है कि अब उस ने शराब पीना भी शुरू कर दिया है. रिंकू का मोह तो उसे रत्ती भर भी नहीं है. प्यार पर हम दोनों का अहम भारी हो गया है.’’

मैं चुपचाप निशा की बातें सुन रहा था. प्यार से उस की पीठ थपथपाते हुए सांत्वना भरे स्वर में बोला, ‘‘निशू, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, तुम्हें इस तरह मानसिक दबाव में टूटते हुए तो मैं बिलकुल नहीं देख सकता हूं. जमाने की मुझे कोई चिंता नहीं है. जब किसी को अपनाना होता है तो यह जरूरी होता है कि बगैर शर्त के उसे उस की जिम्मेदारियों के साथ अपना बना लिया जाए. रिंकू को मैं अपनी पुत्री की तरह पालने की जिम्मेदारी के एहसास के साथ अपनाऊंगा. आज से तुम्हारी चिंताएं मेरी हैं.’’

‘‘सर, मुझे आप पर पूरा यकीन है,’’ निशा ने पहली बार ‘सर’ के संबोधन से, मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘अगर आप मेरे विवाह से पहले मिले होते तो आज बात कुछ और ही होती. बेशक आप अधिक उम्र के हैं पर एक सुलझे हुए व्यक्तित्व वाले पुरुष हैं. मैं अपने तलाक के कागज हस्ताक्षर कर के आप के द्वारा ही अपने वकील को भिजवा दूंगी,’’ भावुकतावश निशा की आंखें भर आईं थीं. अपनेआप को संभाल पाना उसे मुश्किल लग रहा था.

मैं ने निशा को समझाने का प्रयत्न करते हुए कहा, ‘‘तुम अभी धैर्य का साथ मत छोड़ो. तुम अपनी समस्या का समाधान तलाश रही हो. तुम्हें अपने हित को ताक पर रख कर किसी भी हाल में समझौता नहीं करना चाहिए. रिंकू का भविष्य सर्वोपरि है. अगर तुम राहुल के पास लौट जाती हो तो क्या तुम आश्वस्त हो कि किसी प्रकार तुम्हारे प्रति हिंसा या दुर्व्यवहार नहीं किया जाएगा.’’

इस का निशा के पास कोई उत्तर नहीं था. इसलिए उस की प्रतिक्रिया मूक थी. थोड़ी देर बाद निशा ने मौन तोड़ा.

‘‘मेरे बारे में जो धमकी राहुल ने दी है कि वह मुझे चरित्रहीन ठहराते हुए कोर्ट में इस आशय का एफिडेविट देगा, वह कोरी बकवास है. जब रिंकू का नामकरण था तो राहुल की एक गर्लफ्रैंड, जिस का नाम पूजा है, हमारे यहां उस के साथ आई थी और इस तरह व्यवहार कर रही थी जैसे वह राहुल की पत्नी है. यदि तलाक की प्रक्रिया पूरी हो गई तो राहुल के आगेपीछे घूमने वाली पूजा को खुला मौका मिल जाएगा. वह उस के साथ शादी करना चाहेगी,’’ निशा ने मुझे बताया.

निशा अकसर अपने व्यक्तिगत जीवन की सारी बातें मुझे बता दिया करती थी.

निशा एक सशक्त नारी की भांति हमेशा अपने पैरों पर खड़ी रही. दफ्तर में पूरी मुस्तैदी से कार्य करती थी. जिस प्रधानाचार्य के साथ काम करती थी वह उस से बेहद खुश था. मेरा उस कालेज में आनाजाना था और यह जान कर कि व्यक्तिगत जीवन में ढेरों तनाव के रहते हुए भी वह दफ्तर की सभी जरूरतों पर खरी उतरती थी. मैं भी उस के इस गुण से प्रभावित था.

सास और पति से प्रताडि़त होने पर भी निशा सबकुछ धैर्य से सहती रही. अपनी लालसाओं की पूर्ति न होने पर सास अपने बेटे का दूसरा विवाह करने के लिए तलाक करवाना चाहती थी, इसलिए वह निशा को अपने घर से निकाल कर खुश थी.

महिला का दुश्मन महिला का ही होना कोई नई बात नहीं है. यह तो कई परिवारों में होता रहा है. निशा के विवाह के समय उस के मातापिता ने राहुल को कोई दहेज नहीं दिया था. राहुल की मां चाहती थीं कि दूसरी शादी करवा कर राहुल को बहुत बढि़या दहेज मिले. उन के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. राहुल न तो नौकरी कर सकता था और न उस के पास कोई पूंजी थी कि वह व्यापार में पैसे लगा कर आमदनी का जरिया बना सके.

मैं ने जब कभी निशा को सलाह दी कि वह कभीकभी राहुल की मां से मिलने चली जाया करे, शायद उन से मेलजोल से बिगड़ी बात बन जाए तो निशा का उत्तर होता था, ‘मेरी सास के मन में मेरी छवि खराब हो चुकी है. मेरा कोई भी प्रयत्न सफल नहीं हो पाएगा. मुझ में उन्हें अच्छी बहू का कोई गुण नजर नहीं आता है. राहुल भी हमेशा अपनी मां के पक्ष में ही बात करता है.’

जब कभी निशा मेरे घर पर होती थी बहुत प्यारा और खुशी का माहौल होता था. अकसर बातें करतेकरते वह खिलखिला कर अनायास ही हंसने लग जाती थी. मुझे ऐसे समय में यही लगता था, जैसे वह एक नन्ही सी बच्ची है जो छोटीछोटी बातों से अपना मन बहला कर खुश होना जानती है. निशा ने जिंदगी में बहुत दुख झेले हैं जिन की भरपाई उस के जीवन में आने वाले खुशी के पल शायद ही कर पाएं.

एक दिन निशा ने बताया, ‘कांतजी, मैं आगे अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हूं. आज की स्पर्धा के युग में नारी को सक्षम बनना बहुत जरूरी हो गया है.’ मुझे उस के कथन में दृढ़ता का आभास हो रहा था.

मैं ने निशा को आश्वस्त करते हुए कहा, ‘तुम अवश्य ऐसा करो. मैं तुम्हारी सहायता करूंगा. उच्च शिक्षा प्राप्त करो. मुझे विश्वास है, तुम कामयाब होगी.’

वह मेरी बात बहुत ध्यान से सुन रही थी. सच कहूं तो नितप्रति मेरे मन में एक आशा हिलोरे मार रही थी कि अगर निशा राहुल के साथ घर नहीं बसा पाई तो मेरे घर आने में उसे कोई संकोच नहीं होगा. एक निराश नारी के हृदय में मैं प्राण फूंक सकूं. उस की पुत्री का पिता बन कर उसे सहारा दे सकूं तो स्वयं को मैं धन्य समझूंगा.

निशा को दिया जाने वाला हर आश्वासन मुझे उस की ओर ले जा रहा था. निशा भी यह बात अच्छी तरह जान चुकी थी कि मेरा आकर्षण उस के प्रति किसी शारीरिक मोह से प्रेरित नहीं है और न ही मैं उस की हालत पर तरस खा कर उसे अपनाना चाहता हूं. ऐसा केवल स्वभाववश है.

कई बार निशा मुझ से कह चुकी है, ‘‘कांतजी, न जाने कुदरत ने आप को किस मिट्टी से बनाया है. आप हर शख्स के साथ मोहब्बत और करुणा से पेश आते हैं.’’

आखिर वह दिन आ ही गया जब राहुल और निशा दोनों ने कोर्ट में तलाक के कागज पर हस्ताक्षर कर दिए. जिस दिन जज ने फैसले पर अपनी मुहर लगा दी और केस का निबटारा हो गया उसी दिन शाम के समय निशा मेरे घर आई.

वह दिन हमारी जिंदगी का बेहद अनमोल दिन था. खबर मिलने के बाद मैं रिंकू के लिए ढेरों उपहार और खिलौने बाजार से ले आया था. मैं ने इस अवसर को किसी खास तरीके से मनाने की बात को महत्त्व नहीं दिया. मैं अकेले ही निशा के साथ समय बिताना चाहता था.

घंटी बजने पर मैं ने दरवाजा खोला तो मैं आश्चर्यचकित रह गया. निशा लाल जोड़े में बेहद खूबसूरत शृंगार से सजीधजी सामने खड़ी थी. आंखों में नए जीवन की उम्मीद की चमक, होंठों पर न भुलाई जाने वाली मुसकान. स्वागत करते हुए मैं निशा के साथ ड्राइंगरूम में आ कर उस के समीप बैठ गया.

‘‘निशा, बड़े धैर्य के साथ मेरी बात सुनना,’’ मैं ने बड़े प्यार भरे शब्दों में उस से कहा, ‘‘बुरा मत मानना, बहुत विचार और चिंतन के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि मुझे तुम से विवाह करने के फैसले को बदलना होगा. दुनिया को यही लगे कि तुम मेरी पत्नी हो. अत: रिंकू के साथ मेरे घर आ जाओ. हम दोनों मिल कर रिंकू का लालनपालन करेंगे. यह एक प्रकार की लिव इन रिलेशनशिप ही होगी.

‘‘मेरी बढ़ती उम्र का तकाजा है कि मैं तुम्हें बेटी की तरह प्यार दूं. जहां इस दुनिया में भू्रणहत्या जैसे अपराध में लिप्त परिवार हैं वहीं हम दोनों मिल कर एक बेटी को पाल कर यह आदर्श स्थापित करें कि बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं होता है. अपना सबकुछ मैं आज से तुम्हारे नाम कर रहा हूं.’’

निशा किंकर्तव्यविमूढ़ मेरी ओर बड़े आदरभाव से देख रही थी. मेरे निकट आ कर उस ने मुझे गले से लगा लिया. आंसुओं को रोक पाना उस के बस में नहीं था. उस का मेरे निकट आना और मुझे गले लगाना कुछ ऐसा लगा जैसे किसी शिकारी ने एक चिडि़या को अपने तीर का निशाना बना दिया हो और वह घायल चिडि़या मेरी नरम हथेलियों पर सुरक्षा की तलाश में आ गिरी हो. वाल्मीकि ने अपनी प्रथम कविता की पंक्ति में ठीक ही लिखा था :

‘मां निषाद प्रतिष्ठाम् त्वमगम: शाश्वती समा:.

यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधीम् काममोहित:’

-अर्थात् हे बहेलिया, काममोहित क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से एक (नर) को तुम ने मार डाला. इसलिए अनंत वर्षों तक तुम्हें प्रतिष्ठा न मिले.

क्या राहुल को मैं भी वाल्मीकि जैसी बद्दुआ दूं, यह सोचने के तुरंत बाद मुझे लगा कि शायद इस की जरूरत नहीं, क्योंकि राहुल का तीर राहुल को ही ज्यादा घायल कर चुका होगा. पक्षी तो अब सुरक्षित है.

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