क्या है कौग्निटिव ओवरलोडिंग

आजकल की भागदौड़ भरी दिनचर्या में सभी को बस एक ही शिकायत है कि यह काम करने समय का ही नहीं मिला यानी आज समय कम और काम ज्यादा हैं जिस के कारण कुछ काम अधूरे ही छूट जाते हैं. इसे आजकल की शब्दावली में कौग्निटिव ओवरलोड कहा जाता है.

कौग्निटिव ओवरलोड एक तरह की मानसिक थकावट की एक स्थिति है जो तब होती है जब हमारी वर्किंग मैमोरी पर लोड उस की  क्षमता से अधिक हो जाता  है और वह चीजों को याद नहीं रख पाती.

आजकल बच्चे हों या बड़े सभी दबाव में हैं. सभी के पास सूचनाओं और जानकारी की भरमार है. दिनभर इंटरनैट, सोशल मीडिया पर आती खबरें, जानकारी, अलर्ट और नोटिफिकेशन उन की मैमोरी को भरने का काम करते रहते हैं और दिमाग को पूरा समय व्यस्त रखते हैं जिस के कारण हमारी मैमोरी ओवरलोड हो रही है और हमें चीजों को याद करने में परेशानियों का सामना भी करना पड़ रहा है.

सिर्फ वही जानकारी या काम याद रख पा रहे हैं जो हमारी दिनचर्या का हिस्सा हैं या जिन कामों को हम रोज कर रहे हैं जैसे कंप्यूटर को शटडाउन करना, औफिस जाते समय घर को लौक करना, लाइट्स बंद करना, औफिस से घर लौटते समय दूध, ब्रैड आदि सामान लेना और व्यवस्थित रखना. यदि इस के आलावा कोई और ऐक्स्ट्रा काम यदि बीच में आ जाए तो उसे करने और याद रखने में परेशानी हो रही है क्योंकि यह ऐक्स्ट्रा काम हमारी औटोमैटिक मैमोरी का हिस्सा नहीं है.

अपनी मस्तिष्क यानी दिमाग की संरचना के हिसाब से हम एक बार में एक काम ही अच्छे से कर सकते हैं और यदि एक से ज्यादा काम करते हैं तो काम प्रभावित होता है और वह अच्छे से पूरा नहीं हो पाता है. ठीक इसी तरह जब किसी को एक बार में बहुत अधिक जानकारी दी जाती है या एकसाथ बहुत सारे कार्य दिए जाते हैं, जिस के परिणामस्वरूप जानकारी को मैमोराइज करने और फिर उस के अनुसार काम को करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है या हम कार्य को अच्छे से कर पाने में सक्षम नहीं होते हैं.

अमूनन जानकारी और सूचना की अधिकता के कुछ लक्षण देखने को मिलते हैं. जैसे काम अच्छे से न कर पाना, भ्रम, निर्णय लेने में देरी, जानकारी, सूचना सही है या गलत उस की आलोचना का मूल्यांकन सही न कर पाना, सूचना पर नियंत्रण की हानि, जानकारी प्राप्त करने से इंकार, काम में गलती के प्रति अधिक सहनशीलता, चिंता, तनाव, आत्मविश्वास में कमी, नकारात्मकता बढ़ना आदि. इसलिए मैमोरी के ओवरलोड और कौग्निटिव ओवरलोड से बचने के लिए अनावश्यक कंटैंट से बनाएं दूरी. आजकल इंटरनैट आसानी से उपलब्ध है और इस पर जानकारी का असीमित भंडार है. ऐसे में धैर्य रखते हुए केवल वही कंटैंट देखना चाहिए जो आप के काम का हो. अनावश्यक कंटैंट और जानकारी से दूर रहने की कोशिश करना चाहिए ताकि अपने दिमाग को कुछ आराम दे सकें और मैमोरी ओवरलोड से बच सके.

करें डिस्कनैक्ट

कुछ समय के लिए दिन में कम से कम 1-2 घंटों के लिए खुद को मोबाइल और इंटरनैट की दुनिया से डिस्कनैक्ट करें और सारा फोकस या ध्यान खुद पर केंद्रित करें ताकि आत्मावलोकन कर सकें. इस के लिए मैडिटेशन और योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाए रखें. ऐसा करने से निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होगा और रचनात्मकता बढ़ेगी.

रुकावटें कम करें

एक समय में एक ही चीज पर काम करें. ईमेल, फोन कौल और अन्य संदेशों के जवाब देने के लिए प्रत्येक दिन एक समय निर्धारित करें. अपने साथ वालों को बताएं कि तुरंत रिप्लाई की अपेक्षा न करें. ऐसे अलर्ट को बंद करें जो आप की एकाग्रता को बाधित करते हों. ऐसा करने से कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होगी साथ ही आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

सूचनाओं को करें फिल्टर

एक अच्छी मैमोरी के लिए हमें अपने मस्तिष्क को आराम देने की आवश्यकता होती है ताकि हम प्राथमिकता वाले अपने सारे कामों पर अच्छे ढंग से ध्यान केंद्रित कर सकें क्योंकि आजकल जानकारी की अधिकता के कारण हम मैमोरी में बहुत अधिक मात्रा में जानकारी संग्रहित करने की कोशिश करते हैं और ऐसा कर के लगातार सिस्टम और मस्तिष्क पर भार डालते हैं जिस की वजह से मस्तिष्क को आराम नहीं मिलता और वह धीरेधीरे याद रखने की क्षमता को खोने लगता है. इस से बचने के लिए अपनी सूचनाओं को फिल्टर करें यानी वही जानकारी पढ़ें या देखें जो आप के काम की हो.

काग्निटिव ओवरलोड से बचने के लिए करें ये उपाय

जटिल कामों के बीच में ब्रेक लेते रहें ताकि दिमाग को आराम मिल सके. द्य सूचनाओं और जानकारी को छोटेछोटे हिस्सों मे बांट लें ताकि उन्हें याद रखने में परेशानी न हो और आप उन पर अच्छे से काम कर पाएं.

द्य अनुशासित और व्यवस्थित दिनचर्या अपनाएं ताकि सारे काम समय पूरा हो सकें और आप कुछ समय सुकून से बैठ सकें एवं तनाव से दूर रहें और रात में भरपूर नींद ले सकें ताकि अगले दिन ऊर्जा से भरे हुए रहें और अपना पूरा फोकस काम पर अच्छे से लगा पाएं.

कामों की प्राथमिकता तय करें

अपने कामों की प्राथमिकता के अनुसार उन की सूची बनाएं और उस के अनुसार काम करें. यदि कुछ काम ऐसे हों जिन्हें आप एकसाथ कर सकते हों उन्हें करें जैसे महिलाएं खाना बनाते हुए किसी से बात कर सकती हैं या कुछ और काम  जैसे कपड़ों की तह लगाना, बरतन जमाना, सब्जी धोना आदि पूरे कर सकती हैं, बच्चों को होमवर्क कराते हुए बीच में चाय आदि बना सकती हैं.

ऐसा कर आप समय की बचत कर सकती हैं

और बचे हुए समय में उन कामों को कर सकती हैं जो एकसाथ नहीं किए जा सकते जैसे सिलाईबुनाई, पेंटिंग, कपड़े धोना, औफिस का कोई काम करना आदि, साथ ही उन कामों को पहले करें जो जल्दी हो जाएं और कम थकाने वाले हों.

करें समय का सही प्रबंधन

अपने कामों की सूची उसे पूरा करने की समय सीमा और काम को करने में कितना समय लगेगा के अनुसार बनाएं ताकि आप के पास जो समय है और जो काम पहले पूरा करना है उसे दे सकें. कुछ काम एकसाथ करना संभव हो तो कामों को उन की जटिलता के हिसाब से बांटें और उस के अनुसार उन्हें समय दें.

 

 

Holi 2024: होली पर रखें स्किन और हेयर का ध्यान

होली भारत ही नहीं दुनियाभर में बड़ी ही ऐक्साइटमैंट के साथ मनाई जाती है. गुलाल, गुब्बारे और पिचकारी बच्चों से ले कर बड़ों तक में एक नई जान फूक देते हैं. हरकोई हवा में गुलाल उड़ाता हुआ गानों की धुन पर नाच रहा होता है. लेकिन ऐंजौय करते हुए अकसर लोग अपनी स्किन और बालों का ध्यान रखना भूल जाते हैं.

होली में इस्तेमाल होने वाले रंगों को हार्मफुल कैमिकल्स की मदद से बनाया जाता है जो ह्यूमन बौडी पर बड़े ही नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. कई बार सिचुएशन इतनी गंभीर हो जाती है कि मैडिकल ट्रीटमैंट के बिना सौल्व नहीं होती. इन रंगों में मौजूद कैमिकल्स के कारण स्किन और बालों से रिलेटेड परेशानियां शुरू हो जाती हैं, जिन में बालों का ?ाड़ना और स्किन रैशेज, इचिंग व ऐलर्जी जैसी समस्याएं शामिल हैं.

प्री होली केयर

होली में रंग आप की त्वचा पर कुछ दिनों तक बने रहते हैं. ये आप की त्वचा को नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, इस से आप को अगले दिन औफिस जाने में या घर से बाहर निकलने में अनकंफर्टेबल भी लगता है. इस से बचने के लिए आप होली खेलने से पहले अपने चेहरे पर अच्छे से हाइड्रेटिंग क्रीम या मौइस्चराइजर लगाएं. इस के लिए आप डाट ऐंड का हाइड्रेटिंग मौइस्चराइजर जैल या पौंड्स का सुपर लाइट जैल (स्किन टाइप के अनुसार) लगा सकते हैं. उस के बाद सनक्रीम जरूरी लगाएं. इसे स्किन द्वारा सोख लिए जाने के बाद पैरासूट कोकोनट औयल लागा लें. इस से फेस पर एक प्रोटैक्टिव लेयर बन जाएगी, जो रंगों को स्किन में अंदर तक जाने से रोकेगी.

बादाम या नारियल तेल

होली पर रंग खेलने से पहले अपनी फुल बौडी को पूरी तरह तेल से कवर कर लें. ऐसा करने से तेल आप की स्किन और रंगों के बीच बैरियर का काम करता है, जो रंगों में मौजूद हानिकारक तत्त्वों को स्किन के अंदर जाने से रोकता है. इस से बाद में रंगों को पोंछना भी आसान हो जाता है. इस के लिए यदि आप बादाम का तेल इस्तेमाल करते हैं, तो वह बेहतर साबित हो सकता है. इस के लिए आप अरबन बोटैनिक का प्योर कोल्ड स्वीट औयल इस्तेमाल भी कर सकते हैं या फिर पैरासूट का कोकोनट औयल. दोनों ही आप की त्वचा को प्रोटैक्ट करने में कारगर रहेंगे.

पैट्रोलियम जैली

फेस के साथसाथ होंठ भी हार्मफुल कैमिकल से प्रभावित होते हैं. इस से उन में जलन या ड्राई होने जैसी समस्या आ सकती है. इस से बचने के लिए आप होली खेलने से पहले अच्छी तरह से अपने होंठों पर पैट्रोलियम जैली लगा लें. इस के लिए आप वैसलीन या डाट ऐंड की पैट्रोलियम जैली का इस्तेमाल कर सकते हैं. यह आप के होंठों को पूरा दिन सुरक्षित और हाइड्रेटेड रखेगी.

फुलस्लीव कपड़े पहनें

होली के दिन फुलस्लीव, लंबी पैंट और ढीली टीशर्ट पहनने का प्रयास करें. यह आप की स्किन को एक सैकंड लेयर देगी और रंगों से प्रोटैक्ट करेगी. स्किन जितनी कम ऐक्सपोज होगी उस के रंगों के संपर्क में आने का खतरा उतना ही कम होगा और होली खेलने का मजा कम नहीं होगा.

अपने नाखूनों पर रंग लगाएं

लड़कियों की खूबसूरती का एक हिस्सा होते है उन के लंबे नाखून. होली खेलने के बाद नाखूनों से रंगों को छुड़ाना सब से मुश्किल हो जाता है. अधिक्तर केसों में तो रंग नाखूनों से छूटता ही नहीं है और उन के वापस सफेद होने का टाइम बड़ा लंबा हो जाता है. इस के लिए बेहतर होगा कि आप होली से पहले अपने नाखूनों को रंग लें, उन पर नेल पेंट लगा लें ताकि रंग ज्यादा न चढ़ पाएं.

बालों को बांध कर रखें

बालों में रंग कम से कम जाए इस के लिए बालों को कस कर बांध लें, उन का जूड़ा या फिर गुथ बना लें ताकि रंग जड़ों तक न पहुंच पाएं. बालों में पहुंचा रंग उन के ?ाड़ने का कारण बन सकता है. इस के साथ ही बालों में तेल लगाना न भूलें. बालों में अच्छे से पैरासूट का नारियल तेल लगा लें. इस से रंग बालों में अपनी पकड़ नहीं बना पाएगा और इस से होने वाले नुकसान कम रहेंगे.

वैक्सिंग या शेविंग से बचें

होली से पहले वैक्सिंग या शेविंग कराने से बचें. वैक्सिंग या शेविंग आप की स्किन के पोर्स खोल देती है. ऐसे में रंगों में घुले कैमिकल का स्किन में अंदर तक आसानी से चले जाने का खतरा बन जाता है, जिस के गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं. इस से बचने के लिए होली खेलने से 1 सप्ताह पहले वैक्सिंग या शेविंग जैसा कोई भी और ट्रीटमैंट न कराएं.

आंखों को भी बचाएं

स्किन और हेयर के साथसाथ ही जरूरी है कि आप आंखों का भी ध्यान रखें ताकि रंग आखों में न चला जाए. इस के लिए होली खेलते समय आंखों पर चश्मा पहनें ताकि वह रंगों को आंखों में जाने से रोक सके.

 

Holi 2024: मौन निमंत्रण- क्या अलग हो गए प्रशांत और प्राची

‘‘क्या प्राची, अभी तक ऐसे ही बैठी हो अस्तव्यस्त सी? मैं ने सोचा तैयार बैठी होगी तुम, ड्राइवर तुम्हें रिंकी के यहां छोड़ देगा,’’ बहुत सारी खरीदारी कर के लौटी थीं नीलाजी पर, प्राची को देखते ही उस पर बरस पड़ीं.

‘‘मेरा मन नहीं है रिंकी के यहां जाने का,’’ प्राची रिमोट से चैनल बदलते हुए बेमन से बोली.

‘‘अरे तो समझाओ अपने मन को. अपने मन पर काबू रखना सीखो. पर यहां तो उलटा ही हो रहा है. मन ही तुम्हें अपने पंजों में जकड़ता जा रहा है,’’ नीलाजी ने प्राची को समझाया.

‘‘मेरा मन मेरी सुनता कहां है मम्मी,’’ प्राची खोखली हंसी हंस दी.

‘‘ऐसा नहीं कहते. रिंकी तुम्हारी सब से प्यारी सहेली है. कितना आग्रह कर के गई थी कि मेहंदी की रस्म से ले कर विवाह की समाप्ति तक तुम्हें उस के घर में ही रहना है. तुम ने छुट्टी ले ली है. 2 महीनों से तुम्हारी तैयारी चल रही थी. ढेरों कपडे़ खरीद डाले तुम ने. फिर अचानक ऐसी बेरुखी क्यों?’’

‘‘कोई बेरुखी नहीं है. बस जाने का मन नहीं है. मुझे कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो मम्मी.’’

‘‘क्या हो गया है मेरी बच्ची को? इस तरह तो तू घर की चारदीवारी में घुट कर रह जाएगी. जीवन है तो उस के सुखदुख भी होंगे. रिंकी के यहां तेरी अन्य सहेलियां भी आएंगी, मन बदल जाएगा,’’ नीलाजी ने उसे जबरदस्ती उठा दिया. नीलाजी देर तक शून्य में बनतीबिगड़ती आकृतियों को देखती रहीं… क्या नहीं था उन के पास धन, प्रतिष्ठा और प्राची व प्रखर जैसी मेधावी संतानें. पर प्राची का विवाह होते ही जैसे इस सुख को ग्रहण लग गया. प्राची ने जब प्रशांत से विवाह का प्रस्ताव रखा था तो उन की खुशी की सीमा नहीं थी. प्रशांत था भी लाखों में एक. 35 वर्ष का प्रशांत अपनी कंपनी का सर्वेसर्वा था. उस के शालीन व सुसंस्कृत व्यवहार ने सभी का मन जीत लिया था.

पर विवाह होते ही नवविवाहित जोड़े को न जाने क्यों ग्रहण लग गया. हर बात पर दोनों का अहं टकराता. प्राची ने हनीमून के बाद से ही प्रशांत में मीनमेख निकालना जो शुरू किया तो कभी रुकी ही नहीं. पहले तो प्राची ने इन छोटीमोटी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया. वह तो यही सोचती रही कि हर विवाह में एकदूसरे को जाननेसमझने में समय लगता ही है. पर जब तक वह चेती शायद बहुत देर हो चुकी थी. एक दिन अचानक ही प्राची ने घोषणा कर दी कि अब उस का प्रशांत के साथ रहना संभव नहीं है. यह सुन कर नीलाजी कुछ क्षणों तक स्तब्ध रह गईं. उन्होंने और उन के पति ने बात संभालने का भरसक प्रयत्न किया पर प्राची तो जैसे कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थी. उन्होंने प्रशांत को अलग से समझाया, पर उस का उत्तर सुन कर नीलाजी निरुत्तर हो गईं.

‘‘प्राची पढ़ीलिखी, स्वावलंबी युवती है. यदि उसे लगता है कि वह मेरे साथ नहीं रह सकती तो उसे बांध कर तो नहीं रखा जा सकता न मम्मी?’’ प्रशांत का तर्क अकाट्य था. 2 वर्षों से प्राची और प्रशांत का तलाक का केस चल रहा है. अब तो नीलाजी की यही इच्छा है कि प्राची को शीघ्र मुक्ति मिल जाए ताकि वे भी इस झमेले से छुटकारा पा सकें. प्राची का हाल तोे उन से भी बुरा है. कई बार पूछने पर ही किसी बात का उत्तर देती है. हंसनाखेलना तो वह जैसे भूल ही चुकी है. रिंकी अपने विवाह का निमंत्रणपत्र देने आई तो नीलाजी की बांछें खिल गईं. रिंकी प्राची की सब से प्रिय सहेली है. इसी बहाने प्राची कुछ लोगों से मिलेगी. कम से कम कुछ दिनों के लिए तो अपनी घुटन से बाहर निकलेगी.

पिछले 2 महीनों से प्राची रिंकी के विवाह की तैयारी में व्यस्त थी. सप्ताहांत दोनों सखियां साथ बितातीं. जब तक प्राची रिंकी के साथ रहती घर दोनों की खिलखिलाहटों से गूंजता रहता. प्राची ने मेहंदी की रस्म से ले कर विदाई तक हर अवसर के लिए अलगअलग परिधान बनवाए थे. हर परिधान के साथ मेल खाते गहने तथा पर्स खरीदे थे. तरहतरह की चप्पलों और सैंडलों का चुनाव किया गया था. सब कुछ संजो कर करीने से सूटकेस में सजा कर पैक किया था और अचानक आज विवाह में जाने से मना कर दिया. नीलाजी की विचारशृंखला टूटी तो पुन: प्राची पर नजर गई. वह अब भी समाचारपत्र में मुंह गड़ाए बैठी थी. वे कुछ कहतीं उस से पहले ही फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो, रिंकी,’’ प्राची ने फोन उठा कर कहा.

‘‘कहां हो प्राची? हम सब कब से इंतजार कर रहे हैं,’’ रिंकी का स्वर उभरा.

‘‘मैं नहीं आ सकूंगी. तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ तबीयत को? यह बहानेबाजी मुझ से नहीं चलेगी. 10 मिनट में नहीं पहुंची तो मैं स्वयं आ रही हूं लेने,’’ रिंकी ने धमकी दे डाली.

‘‘अब तो जाओ वरना रिंकी यहीं आ धमकेगी,’’ नीलाजी बोलीं.

‘‘बात वह नहीं है मम्मी. मैं तो कुछ और ही सोच रही थी.’’

‘‘क्या?’’

‘‘रिंकी वहां अकेली तो होगी नहीं, घर मित्रों और संबंधियों से भरा होगा. मुझे देख कर किसी ने कुछ कह दिया तो? मेरा मतलब किसी ने आपत्ति उठाई तो?’’

‘‘आपत्ति? कैसी आपत्ति?’’ नीलाजी अचरज भरे स्वर में बोलीं.

‘‘आप समझीं नहीं, विवाह में सभी नवविवाहितों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं. वहां मेरी मौजूदगी मेरा मतलब मैं तो असफल विवाह का प्रतीक हूं न मम्मी,’’ प्राची ने किसी तरह अपनी बात पूरी की.

‘‘क्या? ऐसी बात तुम्हारे मन में आई भी कैसे? कुदरत की कृपा से प्रशांत सहीसलामत है,’’ नीलाजी स्तब्ध रह गईं.

‘‘मन में विचार मेरी इच्छानुसार थोड़े ही आते हैं. अनायास यह बात मन में कौंधी,’’ चाह कर भी प्राची अपनी भर आई आंखों को न छिपा पाई.

‘‘चलो उठ कर तैयार हो जाओ. रिंकी को तो तुम अच्छी तरह जानती हो, वह सचमुच यहां आ धमकेगी,’’ नीलाजी आदेश भरे स्वर में बोलीं.

‘‘कितनी देर कर दी प्राची, कब से तेरी राह देख रही हूं. कहा था न आज छुट्टी ले लेना,’’ रिंकी ने प्राची को देखते ही शिकायत की.

‘‘छुट्टी ली थी रिंकी पर…’’

‘‘पर क्या?’’

‘‘मन को अजीब से संशय ने घेर लिया था.’’

‘‘कैसा संशय?’’

‘‘यही कि तेरे शुभ विवाह में मेरा क्या काम…’’

‘‘तेरे दिमाग में बड़ी ऊटपटांग बातें आने लगी हैं प्राची… खबरदार जो आज के बाद ऐसी बात मुंह से निकाली,’’ कह रिंकी ने उसे चुप करा दिया. मेहंदी की रस्म हंसीखुशी संपन्न हो गई. सब खानेपीने और बातचीत में व्यस्त थे पर प्राची को लगता सब उसी की बातें कर रहे हैं. रिंकी लगातार फोन करने में व्यस्त थी. बधाई देने वालों का तांता लगा था. उन से फुरसत मिलती तो सूरज का फोन आ जाता. वह अपने यहां होने वाले उत्सव का विवरण देता. फिर रिंकी उसे विस्तार से अपने मित्रों, संबंधियों और मेहंदी की रस्म के बारे में बताती. ‘‘आज रात को नृत्य और संगीत का कार्यक्रम है. प्राची मेरी अच्छी तरह फोटो लेना, मैं पूरा अलबम सूरज को भेंट करूंगी, फोटोग्राफर तो कल से आएगा,’’ रिंकी ने आग्रह किया.

‘‘ठीक है,’’ प्राची ने अनजाने ही सिर हिला दिया. वह तो अपनी ही सोच में डूबी थी. उसे स्वयं पर आश्चर्य हो रहा था कि कितनी बदल गई है वह, बिलकुल अकेली और उदास. मन में अजीब सा शून्य पसरा हुआ है. कोई फोन पर बात करने वाला भी नहीं है. अपना मोबाइल निकाल कर देर तक उस में सुरक्षित नंबरों को आगेपीछे करती रही. प्रशांत का नंबर अभी तक सुरक्षित था. सोचा फोन मिला कर देखे नंबर वही है या बदल गया है. अनजाने नंबर डायल कर दिया. उधर से प्रशांत का स्वर उभरा तो घबरा कर फोन बंद कर दिया. स्वयं पर ही क्रोध आया, प्रशांत न जाने क्या सोचता होगा. अगले दिन ढेर सारे काम थे. रिंकी की मम्मी साधनाजी ने रिंकी को ब्यूटीपार्लर ले जाने का काम उसे सौंप दिया. प्राची भी प्रसन्न थी. कम से कम लोगों की तीखी निगाहें तो नहीं झेलनी पड़ेंगी.

‘‘तेरी बूआजी तो मुझे ऐसे घूरघूर कर देख रही थीं गोया दिव्यदृष्टि से सब उगलवा लेंगी,’’ प्राची कार में बैठते ही बोली.

‘‘कौन? रमा बूआजी?’’

‘‘हां, तू कह रही थी न बड़ी अंधविश्वासी हैं वे.’’

‘‘प्राची क्या हो गया है तुझे? मैं ने किसी को नहीं बताया कि तेरा तलाक का मुकदमा चल रहा है… और तू क्या सोचती है पूरी दुनिया को केवल तेरी ही चिंता है? अरे, प्राची होश में आ. लोग अपनी उलझनों में ऐसे उलझे हैं कि किसी और के संबंध में सोचते तक नहीं,’’ रिंकी ने अपनी बातों से प्राची को दर्पण में अपनी छवि निहारने को मजबूर कर दिया था. ‘‘तू ठीक कहती है रिंकी, किसी को क्या पड़ी है मुझ जैसी तुच्छ युवती के बारे में सोचे,’’ प्राची सुबकने लगी.

‘‘यह क्या है प्राची… हर बात को अपनी सुविधानुसार मोड़ लेती है. पता है रमा बूआजी क्या कह रही थीं?’’

‘‘क्या?’’ प्राची ने आंसू पोंछ लिए थे.

‘‘कह रही थीं, तेरी सहेली तो बड़ी सुंदर है. मेरी नजर में एक बड़ा अच्छा लड़का है. उस से शादी करवाऊंगी तेरी सहेली की.’’

‘‘तो तूने क्या कहा?’’ प्राची आंसुओं के बीच भी मुसकरा दी.

‘‘मैं ने कहा कि मेरी सहेली न केवल सुंदर है वरन बहुत गुणी भी है. 50 हजार प्रति माह वेतन है उस का.’’

‘‘रिंकी तू जब भी मेरी प्रशंसा के पुल बांधती है तो मैं ठगी सी रह जाती हूं,’’ प्राची बोली.

‘‘मैं ने कुछ गलत कहा क्या?’’

‘‘नहीं, मैं ने यह तो नहीं कहा. सच कहूं तो तेरे जैसी मित्र पर नाज है मुझे.’’

‘‘नाज है न मुझ पर? तो प्रशांत से समझौता कर ले.’’

‘‘क्या कह रही है… तू तो हमारे केस को सुन रहे जज की तरह बात करने लगी है. पिछली सुनवाई में वे यही कह रहे थे. विवाह एक अनुबंध नहीं बंधन है बेटी. यह कोई गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं है कि आज खेला कल भूल गए.’’

‘‘तो तूने क्या कहा?’’

‘‘मैं क्या कहती. वे समझौते की बात कर रहे थे पर प्रशांत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई.’’

‘‘तो क्या हुआ. तुम भी पहल कर सकती थीं. पहले आप पहले आप में तुम दोनों की गाड़ी निकल जाएगी.’’

‘‘यदि उसे मेरी जरूरत नहीं है तो मुझे भी परवाह नहीं है,’’ प्राची क्रोधित स्वर में बोली.

‘‘प्राची अक्ल से काम ले. क्या बुराई है प्रशांत में, नशे में धुत्त घर लौटता है? मारतापीटता है? किसी और के चक्कर में है?’’

‘‘नहीं… नहीं… नहीं… पर वह मेरी चिंता ही नहीं करता. उस ने तो अपने काम से विवाह किया है. मेरा तो उसे जन्मदिन तक याद नहीं रहता.’’

‘‘पर विवाह से पहले तो उस के अपने काम के प्रति समर्पण पर ही तू मरमिटी थी प्राची,’’ रिंकी ने याद दिलाया.

‘‘तब की बात और थी. तब मैं नासमझ थी.’’ ‘‘अब तो समझदार हो गई है न तू. तो इस समझ का ठीक से प्रयोग क्यों नहीं करती?’’

रिंकी की बात का उत्तर दे पाती प्राची, उस से पहले ही गाड़ी ब्यूटीपार्लर के सामने रुक चुकी थी. दोनों सहेलियां नीचे उतर गईं. रिंकी से बातचीत कर के प्राची बहुत हलका महसूस करती है. यही तो खासीयत है रिंकी की. बड़ी सुलझी हुई बातें करती है. ऐसे मित्र बड़ी मुश्किल से मिलते हैं. ब्यूटीपार्लर में भी प्राची की विचारधारा अनवरत चल रही थी… विवाह का दिन गहमागहमी से भरा था. सजनेधजने से रिंकी का रूप और निखर आया था.

‘‘कितनी सुंदर लग रही है रिंकी. हैं न आंटी?’’ प्राची रिंकी को एकटक देखते हुए बोली.

‘‘तुम दोनों सहेलियां सब को मात कर रहीं…’’

रिंकी की मम्मी अपनी बात पूरी कर पातीं तभी आवाजें आने लगीं कि बरात आ गई. सब उसी ओर दौड़ गए. प्राची रिंकी के पास बैठी थी.

‘‘चल, बालकनी से बरात देखते हैं. देखें तो दूल्हे के वेश में सूरज कैसा लगता है,’’ प्राची बोली.

‘‘चल, वैसे बरात में तेरे लिए भी एक आश्चर्य है,’’ रिंकी बोली.

‘‘मेरे लिए? वह क्या?’’

‘‘स्वयं ही देख लेना.’’

बालकनी में पहुंच कर प्राची हैरान रह गई. बरातियों की भीड़ में माला पहने प्रशांत भी खड़ा था.

‘‘तुम ने प्रशांत को भी आमंत्रित किया था?’’

‘‘मैं ने नहीं, सूरज ने बुलाया है, दोनों अच्छे मित्र हैं,’’ रिंकी बोली. प्राची चुप रह गई. मन में हूक सी उठी कि सब ठीक होता तो दोनों साथ ही आते. जयमाला के समय दोनों आमनेसामने पड़ ही गए.

‘‘कैसी हो प्राची? बड़ी सुंदर लग रही हो,’’ प्रशांत बोला तो प्राची उसे गहरी नजरों से देखती रह गई कि अब प्रशांत को सामान्य शिष्टाचार समझ आने लगा है.

‘‘तुम भी कम सुंदर नहीं लग रहे हो,’’ प्राची ने पलट कर उत्तर दिया.

‘‘धन्यवाद, तुम्हारे मुंह से यह सुन कर बहुत अच्छा लगा,’’ कह प्रशांत मुसकराया. विवाह की अन्य रस्मों के बीच भी दोनों में आंखमिचौली चलती रही. प्रशांत कभी प्राची के लिए आइसक्रीम ले आता तो कभी और कोई खाने की चीज. प्राची झुंझला कर रह जाती. विवाह संपन्न हुआ तो मित्रों ने रिंकी और सूरज को घेर लिया. दोनों पर प्रश्नों की बौछार होने लगी. कब, कहां, कैसे मिले थे दोनों? संपर्क कैसे बढ़ा? विवाह करने का निर्णय कब लिया? दोनों हासपरिहास समझ कर हर प्रश्न का उत्तर दे रहे थे.

तभी मित्रगण आग्रह करने लगे कि दोनों एकदूसरे का नाम लेंगे.

‘‘यह कौन सा कठिन काम है रिंकी,’’ सूरज हंसते हुए बोला.

‘‘ऐसे नहीं. प्रशांत बाबू, कुछ सिखाओ अपने मित्र को,’’ मित्रों का समवेत स्वर गूंजा.

‘‘प्राची भई प्रशांत की रिंकी हुई उदास,’’ प्रशांत मुसकराते हुए बोला.

‘‘रिंकी सूरज की हुई, प्राची हुई उदास,’’ सूरज ने तुरंत ही दोहरा दिया. अब रिंकी की बारी थी पर प्राची न कुछ बोल रही थी न सुन. अपने विवाह की 1-1 घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी.

‘‘प्राची भई प्रशांत की…’’ यही तो कहा था प्रशांत ने, फिर यह अलगाव की भावना कहां से आ गई? प्राची का चेहरा आंसुओं से भीग गया. सब ने सोचा बेचारी सहेली की विदाई का दुख नहीं सह पा रही. तभी प्रशांत ने आगे बढ़ कर रूमाल पकड़ाया कि आंसू पोंछ डालो प्राची. क्या आज इस मंडप के नीचे एक और विदाई संभव है? मैं आज पुन: वचन देता हूं कि तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं आने दूंगा. प्राची ने मौन स्वीकृति में नजरें उठाईं तो प्रशांत की आंखों में उभरे मौन निमंत्रण को देख कर दंग रह गई. कौन कहता है कि मौन की भाषा नहीं होती.

Holi 2024: गुलाब यूं ही खिले रहें- क्या हुआ था रिया के साथ

शादी की शहनाइयां बज रही थीं. सभी मंडप के बाहर खड़े बरात का इंतजार कर रहे थे. शिखा अपने दोनों बच्चों को सजेधजे और मस्ती करते देख कर बहुत खुश हो रही थी और शादी के मजे लेते हुए उन पर नजर रखे हुए थी. तभी उस की नजर रिया पर पड़ी जो एक कोने में गुमसुम सी अपनी मां के साथ चिपकी खड़ी थी. रिया और शिखा दूर के रिश्ते की चचेरी बहनें थीं. दोनों बचपन से ही अकसर शादीब्याह जैसे पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलती थीं. रिया को देख शिखा ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘रिया…रिया…’’

शायद रिया अपनेआप में ही खोई हुई थी. उसे शिखा की आवाज सुनाई भी न दी. शिखा स्वयं ही उस के पास पहुंची और चहक कर बोली, ‘‘कैसी है रिया?’’

रिया ने जैसे ही शिखा को देखा, मुसकरा कर बोली, ‘‘ठीक हूं, तू कैसी है?’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, कितने साल हुए न हम दोनों को मिले, शादी क्या हुई बस, ससुराल के ही हो कर रह गए.’’

शिखा ने कहा, ‘‘आओ, मैं तुम्हें अपने बच्चे से मिलवाती हूं.’’

रिया उन्हें देख कर बस मुसकरा दी. शिखा को लगा रिया कुछ बदलीबदली है. पहले तो वह चिडि़या सी फुदकती और चहकती रहती थी, अब इसे क्या हो गया? मायके में है, फिर भी गम की घटाएं चेहरे पर क्यों?

जब वह सभी रिश्तेदारों से मिली तो उसे मालूम हुआ कि रिया की उस के पति से तलाक की बात चल रही है. वह सोचने लगी, ‘ऐसा क्या हो गया, शादी को इतने वर्ष हो गए और अब तलाक?’ उस से रहा न गया इसलिए मौका ढूंढ़ने लगी कि कब रिया अकेले में मिले और कब वह इस बारे में बात करे.

शिखा ने देखा कि शादी में फेरों के समय रिया अपने कमरे में गई है तो वह भी उस के पीछेपीछे चली गई. शिखा ने कुछ औपचारिक बातें कर कहा, ‘‘मेरी प्यारी बहना, बदलीबदली सी क्यों लगती है? कोई बात है तो मुझे बता.’’

पहले तो रिया नानुकर करती रही, लेकिन जब शिखा ने उसे बचपन में साथ बिताए पलों की याद दिलाई तो उस की रुलाई फूट पड़ी. उसे रोते देख शिखा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, पति से तलाक क्यों ले रही है, तुझे परेशान करता है क्या?’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं, वे तो बहुत नेक इंसान हैं.,’’ रिया ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर क्या बात है रिया, तलाक क्यों?’’ शिखा ने पूछा.

रिया के नयनों की शांत धारा सिसकियों में बदल गई, ‘‘कमी मुझ में है, मैं ही अपने पति को वैवाहिक सुख नहीं दे पाती.’’ मुझे पति के पास जाना भी अच्छा नहीं लगता. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं, लेकिन मेरा अतीत मेरा पीछा ही नहीं छोड़ता.’’

‘‘कौन सा अतीत?’’

आज रिया सबकुछ बता देना चाहती थी, वह राज, जो बरसों से घुन की मानिंद उसे अंदर से खोखला कर रहा था. जब उस ने अपनी मां को बताया था तो उन्होंने भी उसे कितना डांटा था. उस की आधीअधूरी सी बात सुन कर शिखा कुछ समझ न पाई और बोली, ‘‘रिया, मैं तुम्हारी मदद करूंगी, मुझे सचसच बताओ, क्या बात है?’’

रिया उस के गले लग खूब रोई और बोली, ‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के दादा हैं न गांव वाले, किसी शादी में हमारे शहर आए थे और एक दिन हमारे घर भी रुके थे. मां को उस दिन डाक्टर के पास जाना था. मां को लगा कि दादा हैं इसलिए मुझे भाई के भरोसे घर में छोड़ गईं. जब भैया खेलने गए तो दादा मुझे छत पर ले गए और…’’ कह कर वह रोने लगी.

उस की बात सुन कर शिखा की आंखों में मानो खून उतर आया. उस के मुंह से अनायास ही निकला, ‘‘राक्षस, वहशी, दरिंदा और न जाने कितनी युवतियों को उस ने अपना शिकार बनाया होगा. तुम्हें मालूम है वह बुड्ढा तो मर चुका है. उस ने सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी अपना शिकार बनाया था. मैं एक शादी में गई थी. वह भी वहां आया हुआ था. मेरी मां मुझे शादी के फेरों के समय कमरे में अकेली छोड़ गई थीं. सभी लोग फेरों की रस्म में व्यस्त थे. उस ने मौका देख मेरे साथ बलात्कार किया. मात्र 15 वर्ष की थी मैं उस वक्त, जब मेरे चीखने की आवाज सुनाई दी तो मेरी मां दौड़ कर आईं और पिताजी ने उन दादाजी को खूब भलाबुरा कहा, लेकिन रिश्तेदारों और समाज में बदनामी के डर से यह बात छिपाई गईं.’’

‘‘वही तो,’’ रिया कहने लगी, ‘‘मेरी मां ने तो उलटा मुझे ही डांटा और कहा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो गया. बिन ब्याहे ही यह संबंध. न जाने अब कोई मुझ से विवाह करेगा भी या नहीं.

‘‘जैसे कुसूर मेरा ही हो, मैं क्या करती. उस समय सिर्फ 15 वर्ष की थी, इस लिए समझती भी नहीं थी कि बलात्कार क्या होता है, लेकिन शादी के बाद जब भी मेरे पति नजदीक आए तो मुझे बारबार वही हादसा याद आया और मैं उन से दूर जा खड़ी हुई. जब वे मेरे नजदीक आते हैं तो मुझे लगता है एक और बलात्कार होने वाला है.’’

शिखा ने पूछा, ‘‘तो फिर वे तुम से जबरदस्ती तो नहीं करते?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ रिया बोली.

‘‘तब तो तुम्हारे पति सच में बहुत नेक इंसान हैं.’’

‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण वे दुख की जिंदगी जिएं इसलिए मैं ने ही उन से तलाक मांगा है. मैं तो उन्हें वैवाहिक सुख नहीं दे पाती पर उन्हें तो आजाद करूं इस बंधन से.’’

‘‘ओह, तो यह बात है. मतलब तुम मन ही मन उन्हें पसंद तो करती हो?’’

‘‘हां,’’ रिया बोली, ‘‘मुझे अच्छे लगते हैं वे, किंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तुम ने मुझे अपना सब से बड़ा राज बताया है, तो क्या तुम मुझे एक मौका नहीं दोगी कि मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं. देखो रिया, मेरे साथ भी यह हादसा हुआ लेकिन मांपिताजी ने मुझे समझा दिया कि मेरी कोई गलती नहीं, पर तुम्हें तो उलटा तुम्हारी मां ने ही कुसूरवार ठहरा दिया. शायद इसलिए तुम अपनेआप को गुनाहगार समझती हो,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम कहो तो मैं तुम्हारे पति से बात करूं इस बारे में?’’

‘‘नहींनहीं, तुम ऐसा कभी न करना,’’ रिया ने कहा.

‘‘अच्छा नहीं करूंगी, लेकिन अभी हम 3-4 दिन तो हैं यहां शादी में, तो चलो, मैं तुम्हें काउंसलर के पास ले चलती हूं.’’

‘‘वह, क्यों?’’ रिया ने पूछा

‘‘तुम मेरा विश्वास करती हो न, तो सवाल मत पूछो. बस, सुबह तैयार रहना.’’

अगले दिन शिखा सुबह ही रिया को एक जानेमाने काउंसलर के पास ले गई. काउंसलर ने बड़े प्यार से रिया से सारी बात पूछी. एक बार तो रिया झिझकी, लेकिन शिखा के कहने पर उस ने सारी बात काउंसलर को बता दी. यह सुन कर काउंसलर ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘देखो बेटी, तुम बहुत अच्छी हो, जो तुम ने अपनी मां की बात मान कर यह राज छिपाए रखा, लेकिन इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं. तुम अपनेआप को दोषी क्यों समझती हो? क्या हो गया अगर किसी ने जोरजबरदस्ती से तुम से संबंध बना भी लिए तो?’’

रिया बोली, ‘‘मां ने कहा, मैं अपवित्र हो गई, अब मुझे अपनेआप से ही घिन आती है. इसलिए मुझे अपने पति के नजदीक आना भी अच्छा नहीं लगता.’’

काउंसलर ने समझाते हुए कहा, ‘‘लेकिन इस में अपवित्र जैसी तो कोईर् बात ही नहीं और इस काम में कुछ गलत भी नहीं. यह तो हमारे समाज के नियम हैं कि ये संबंध हम विवाह बाद ही बनाते हैं.

‘‘लेकिन समाज में बलात्कार के लिए तो कोई कठोर नियम व सजा नहीं. इसलिए पुरुष इस का फायदा उठा लेते हैं और दोषी लड़कियों को माना जाता है. बेचारी अनखिली कली सी लड़कियां फूल बनने से पहले ही मुरझा जाती हैं. अब तुम मेरी बात मानो और यह बात बिलकुल दिमाग से निकाल दो कि तुम्हारा कोई दोष है और तुम अपवित्र हो. चलो, अब मुसकराओ.’’

रिया मुसकरा उठी. शिखा उसे अपने साथ घर लाई और बोली, ‘‘अब तलाक की बात दिमाग से निकाल दो और अपने पति के पास जाने की पहल तुम खुद करो, इतने वर्ष बहुत सताया तुम ने अपने पति को. अब चलो, प्रायश्चित्त भी तुम ही करो.’’

रिया विवाह संपन्न होते ही ससुराल चली गई. उस ने अपने पति के पास जाने की पहल की और साथ ही साथ काउंसलर ने भी उस का फोन पर मार्गदर्शन किया. उस के व्यवहार में बदलाव देख उस के पति भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने रिया को एक दिन अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘क्या बात है रिया, आजकल तुम्हारा चेहरा गुलाब सा खिला रहता है?’’

वह जवाब में सिर्फ मुसकरा दी और बोली, ‘‘अब मैं सदा के लिए तुम्हारे साथ खिली रहना चाहती हूं, मैं तुम से तलाक नहीं चाहती.’’

उस के पति ने कहा, ‘‘थैंक्स रिया, लेकिन यह मैजिक कैसे?’’

वह बोली, ‘‘थैंक्स शिखा को कहो. अभी फोन मिलाती हूं उसे,’’ कह कर उस ने शिखा का फोन मिला दिया.

उधर से शिखा ने रिया के पति से कहा, ‘‘थैंक्स की बात नहीं. बस, यह ध्यान रखना कि गुलाब यों ही खिले रहें. ’’

सांवली स्किन पर बालों का रंग कौन सा हो, कृपया मुझे बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 19 वर्ष है. मेरा रंग सांवला है और मेरे बाल काले हैं. एक सहेली की सलाह पर मैं ने अपने बालों में बरगंडी कलर कराया. लेकिन उस से मेरा रंग काफी दबा हुआ लग रहा है. मुझे लगता है कि वह रंग मुझ पर जरा भी नहीं फब रहा है. कृपया बताएं कि मेरे बालों का यह रंग कैसे और कितनी जल्दी हट सकता है साथ ही मेरे चेहरे और बालों पर कौन सा रंग ज्यादा फबेगा?

जवाब-

आप बालों के रंग को ले कर परेशान न हों. सब से पहले किसी अच्छे ब्यूटी क्लिनिक में जा कर अपने बालों में नैचुरल कलर वाली डाई करवाएं और बालों की कंडीशनिंग सही तरीके से लें. हमेशा अच्छी क्वालिटी के शैंपू का ही इस्तेमाल करें ताकि बालों को नुकसान न पहुंचे. आप की सांवली रंगत पर वाइन और वालनट कलर अच्छे लगेंगे. कोई जरूरी नहीं है कि पूरे बालों को कलर कराया जाए. आप चाहें तो हेयर कलर्स से बालों की स्ट्रीकिंग भी ले सकती हैं.

ये भी पढ़ें- 

आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में जहां आप बालों की केयर करना भूल जाती हैं, वही केयर न करने की वजह से फर्क आपकी उम्र पर भी पड़ता है. वहीं इस प्रौबल्म के बारे में हेयर स्टाइलिस्ट व मेकअप आर्टिस्ट, निकिता कहती हैं, ‘‘मैं भी मां हूं और मैं जानती हूं कि बच्चों के साथ अपने लिए समय निकालना कितना मुश्किल हो जाता है. लेकिन फिर भी मां के लिए अपने लुक में बदलाव करना बेहद जरूरी होता है और यह बदलाव उनकी पर्सनैलिटी को भी निखारता है. बालों में हेयर कलर करवा कर भी अपने लुक में बदलाव किया जा सकता है. हेयर कलर करवाना काफी ट्रैंड में हैं, जिसमें आप अपनी पसंद और लुक के अनुसार ब्राउन, कौफी, बर्गेंडी, रैड आदि कोई भी कलर करवा सकती हैं. आजकल बाजार में नामी कंपनियों के अमोनिया फ्री कलर्स भी मौजूद हैं. इससे बालों को कोई भी नुकसान नहीं होता है.’’

Holi 2024: समानांतर- क्या सही था मीता का फैसला

रात का पहला पहर बीत रहा था. दूर तक चांदनी छिटकी हुई थी. रातरानी के फूलों की खुशबू और मद्धम हवा रात को और भी रोमानी बना रहे थे. मीता की आंखों में नींद नहीं थी. बालकनी में बैठी वह चांद को निहारे जा रही थी. हवाएं उस की बिखरी लटों से खेल रही थीं. तभी कहीं से भटके हुए आवारा बादलों ने चांद को ढक लिया तो मीता की तंद्रा भंग हुई. अब चारों और घुप्प अंधेरा था. मीता उठ कर अपने कमरे में चली गई. मोहन की बातें अभी भी उस के दिल और दिमाग दोनों को परेशान कर रही थीं. बिस्तर पर करवट बदलते हुए मीता देर तक सोने की कोशिश करती रही, लेकिन नींद नहीं आई. इतनी रात गए मीता राजन को भी फोन नहीं कर सकती थी. राजन दिन भर इतना व्यस्त रहता है कि रात में 11 बजते ही वह गहरी नींद में होता है. फिर तो सुबह 7 बजे से पहले उस की नींद कभी नहीं खुलती. दोनों के बीच बातों के लिए समय तय है. उस के अलावा कभी मीता का मन करता है बातें करने का तो इंतजार करना पड़ता है. पहले अकसर मीता चिढ़ जाया करती थी. अब मीता को भी इस की आदत हो गई है. यही सब सोचतेसोचते मीता बिस्तर से उठी और कमरे के कोने में रखी कुरसी पर बैठ गई. कुछ पढ़ने के लिए उस ने टेबल लैंप जला लिया. लेकिन आज उस का मन पढ़ने में भी नहीं लग रहा था. एक ही सवाल उस के दिमाग को परेशान कर रहा था. सिर्फ 5 महीने ही तो हुए थे मोहन से मिले हुए. क्या उम्र के इस पड़ाव पर आ कर सिर्फ 5 महीने की दोस्ती प्यार का रूप ले सकती है? उस पर तुर्रा यह कि दोनों शादीशुदा. मोहन की बातों ने उस के दिमाग को झकझोर कर रख दिया था. मीता फिर से बिस्तर पर आ कर लेट गई. मोहन के बारे में सोचतेसोचते कब उस की आंखें बंद हो गईं और वह नींद की आगोश में चली गई, उसे पता ही नहीं चला.

सुबह उस ने निश्चय किया कि आज मोहन को सीधेसीधे बोल देगी कि ऐसा बिलकुल भी संभव नहीं है. मेरी दुनिया अलग है और तुम्हारी अलग. इसलिए जो रिश्ता हमारे दरम्यान है वही सही है और उसे ही निभाना चाहिए. लेकिन मोहन के सामने उस की जबान बिलकुल बंद हो गई. ऐसा लगा जैसे किसी बाह्य शक्ति ने उस की जबान को बंद कर दिया हो. मोहन ने कौफी का घूंट भरते हुए मीता से पूछा, ‘‘फिर क्या सोचा है?’’ मीता ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘मोहन, ऐसा नहीं हो सकता. देखो, तुम भी शादीशुदा हो और मैं भी. यह बात और है कि हम दोनों ‘डिस्टैंस रिलेशनशिप’ में बंधे हुए हैं. न तुम्हारी पत्नी और बच्चा यहां रहते हैं और न ही मेरे पति, लेकिन हम दोनों ही अपनेअपने परिवार से बेहद प्यार करते हैं. फिर हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता तो है ही.’’ मोहन ने मीता की ओर देखे बगैर कौफी का दूसरा घूंट लिया और बोला, ‘‘मीता, शादीशुदा होने से क्या हमारा मन, प्यार सब गुलाम हो जाते हैं? क्या हमारी व्यक्तिगत पसंदनापसंद कुछ नहीं हो सकती?’’

‘‘जो भी हो मोहन लेकिन दोस्ती तक ठीक है. उस से आगे न तो मैं सोच सकती हूं और न ही तुम्हें सोचने का हक दे सकती हूं,’’ मीता थोड़ा सख्त होते हुए बोली. मोहन ने कहा, ‘‘मीता तुम अपनी बात कह सकती हो, मेरी सोच पर तुम लगाम कैसे लगा सकती हो?’’ मोहन का स्वर अब भी बेहद संयत था.मोहन की कौफी खत्म हो चुकी थी और मीता की कौफी अब भी जस की तस पड़ी थी. मोहन ने याद दिलाया, ‘‘कौफी ठंडी हो चुकी है मीता, कहो तो दूसरी मंगवा दूं?’’

मीता ने ‘न’ में सिर हिलाया और ठंडी ही कौफी पीने लगी. पूरे वातावरण में एक सन्नाटा छा गया था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई समुद्र जोरजोर से शोर मचाने के बाद थक कर बिलकुल शांत हो गया हो या फिर जैसे कोई तूफान आने वाला हो. काफी देर तक दोनों खामोश बैठे रहे. फिर चुप्पी को तोड़ते हुए मोहन ने मीता से कहा, ‘‘चलो, घर छोड़ देता हूं.’’

मीता ने मना कर दिया और फिर दोनों अलगअलग दिशा में चल पड़े. मीता रास्ते भर यही सोचती रही कि आखिर उस से कहां चूक हुई? मोहन ने ऐसा प्रस्ताव क्यों रखा? लेकिन हर बार उस के मन में उठ रहे प्रश्न अनुत्तरित रह जा रहे थे. अकसर ऐसा होता है कि अगर मनमुताबिक जवाब न मिले तो व्यक्ति आत्मसंतुष्टि के लिए अपने अनुसार जवाब खुद ही तय कर लेता है. मीता ने भी खुद को संतुष्ट करने के लिए एक जवाब तय कर लिया कि वही कुछ ज्यादा ही खुल कर बातें करने लगी थी मोहन से, इसीलिए ऐसा हुआ. घर आ कर मीता ने अपने पति राजन से फोन पर ढेर सारी बातें कीं. फिर निश्चिंत हो कर अपने मन में उठ रहे गैरजरूरी विचारों को झाड़ा. वह स्वयं से बोली जैसे खुद को समझाने और आश्वस्त करने की कोशिश कर रही हो, ‘मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूं. जो तुम ने कहा वैसा कभी नहीं हो सकता मोहन, तुम देखना, जिस आकर्षण को तुम प्यार समझ बैठे हो वह जल्द ही खत्म हो जाएगा.’

ऐसा सोचने के बाद मीता की कोशिश यही रही कि वह मोहन से कम से कम मिले. हालांकि एक ही संस्थान में दोनों शिक्षक थे, इसलिए एकदूसरे से मुलाकातें तो हो ही जाती थीं. वैसे समय में उन दोनों के बीच बातें होतीं प्रोफैशन की, साहित्य की, क्योंकि दोनों को साहित्य से गहरा लगाव था. लेकिन अब मीता थोड़ी चुपचुप सी रहती, खुल कर बातें नहीं करती. मोहन भी अपनी भावनाओं को छिपाता था. उस ने उस बारे में फिर कभी कुछ नहीं कहा. एक शाम एक पत्रिका में छपे मोहन के आलेख पर चर्चा हो रही थी. आलेख निजी संबंध पर था. कुछ चीजें मीता को खटक रही थीं जिस पर उस ने आपत्ति जताई. फिर दोनों में बहस शुरू हो गई. बाकी साथी मूकदर्शक बन गए. अपना पक्ष रखते हुए मोहन ने मीता से पूछा, ‘‘क्या आप ने प्यार किया है?’’ फिर खुद ही जवाब भी देने लगा, ‘‘अगर किया होता तो फिर इस आलेख की गहराई को समझतीं और आप को आपत्ति भी नहीं होती.’’

मीता ने तल्खी से जवाब दिया, ‘‘ये कैसा बेतुका सवाल है. मैं एक शादीशुदा औरत हूं. मेरे पति हैं जिन से मैं बहुत प्यार करती हूं. भले ही वे काम की वजह से मुझ से दूर रहते हों, लेकिन हम दोनों एकदूसरे के बेहद करीब हैं.’’ मोहन ने कहा, ‘‘फिर तो प्रेम की समझ आप में बेहतर होनी चाहिए थी.’’

मीता ने तंज कसा, ‘‘लगता है आप अपनी पत्नी से प्रेम नहीं करते.’’ मोहन ने जवाब दिया, ‘‘जी नहीं, हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं. हम एक आदर्श पतिपत्नी हैं, लेकिन मैं ने उन्हें किसी और से प्रेम करने से नहीं रोका. देखो मीता, इश्क का इतिहास तहजीब की उम्र से पुराना है. विवाह करना और प्यार करना दोनों अलग चीजें हैं. मानव मन गुलाम बनने के लिए बना ही नहीं है. प्रकृति ने मनुष्य को आजाद पैदा किया है. ये सामाजिक बंधन तो हमारे बनाए हुए हैं. प्राकृतिक रूप से हम ऐसे नहीं हैं.’’ पहले तो मीता सुनती रही फिर कहा, ‘‘अपनी गलती को न्यायोचित सिद्ध करने के लिए कुछ भी तर्क दिया जा सकता है. मैं इसे प्यार नहीं मानती. मेरी समझ से यह सिर्फ अपनी जरूरत पूरी करने के लिए दिया गया एक तर्क भर है.’’

उस शाम मोहन ने अपने जीवन में आई लड़कियों की कहानियां, अपने तर्क को सच साबित करने के क्रम में सुनाईं, लेकिन मीता उस की कोई बात मानने को तैयार नहीं थी. हां, इस घटना के बाद फिर से दोनों आपस में पहले की तरह या यों कहें पहले से ज्यादा खुल कर बातें करने लगे. जाने कब वे दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि जानेअनजाने दोनों की बातों में ज्यादातर दोनों का जिक्र होता. मीता को तो कई बार उस के पति राजन ने मजाक में फोन पर टोका था, ‘‘कहीं मोहन से तुम्हें प्यार तो नहीं हो गया मीता?’’ तब मीता खिलखिला देती, लेकिन राजन का यह मजाक कब गंभीर आरोप में बदल गया मीता समझ ही नहीं पाई और उस दिन तो सारी हदें पार हो गईं. मीता ने अभी क्लास खत्म ही की थी कि राजन का फोन आया. उस दिन राजन के स्वर से प्यार गायब था. ऐसा लग रहा था जैसे उस ने कुछ तय कर रखा हो. मीता हमेशा की तरह चहक रही थी. बातोंबातों में यह भी बोल गई कि आज दोपहर का खाना मोहन के साथ खाएगी. फिर तो जैसे शांत माहौल में तूफान आ गया.

राजन, जिस ने आज तक कभी उस से ऊंची आवाज में बात नहीं की थी, आज उस के चरित्र पर उंगली उठा रहा था. तब मीता अपनी सफाई में कुछ नहीं बोल सकी थी. हालांकि उस दिन के बाद इस के लिए राजन ने जाने कितनी बार माफी मांगी, लेकिन मीता के सीने में तो नश्तर चुभा था. जख्म भरना बड़ा ही मुश्किल था. वह अपनी ओर से बहुत कोशिश करती उन बातों को भुलाने की, लेकिन वे शब्द नासूर बन चुके थे. अकसर अकेले में रिसते रहते. मोहन जब तक साथ रहता मीता हंसती रहती, खुश रहती. लेकिन मोहन के जाते ही फिर से नकारात्मक सोच हावी होने लगता. इस दौरान जानेअनजाने मोहन ज्यादा से ज्यादा वक्त मीता के साथ गुजारने लगा. शायद दोनों को अब एकदूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था. दोनों के रिश्ते की गरमाहट की आंच दोनों के परिवार वालों तक पहुंचने लगी. शुरुआत मीता के परिवार में हुई और अब मोहन के घर में भी मातम मनाया जाने लगा. मीता मोहन के करीब आती जा रही थी और राजन से दूरी बढ़ती जा रही थी. मोहन का भी हाल ऐसा ही था. एक शाम मोहन ने फिर से मीता के सामने प्रेम प्रस्ताव रखा साथ ही यह भी कहा, ‘‘जवाब देने की कोई हड़बड़ी नहीं है. कल रविवार है. सुबह तुम्हारे घर आता हूं. सोचसमझ लो, रात भर का समय है तुम्हारे पास.’’

मीता घर आ कर देर तक मोहन के प्रस्ताव के बारे में सोचती रही. फिर राजन के बारे में सोचा तो मुंह कसैला हो गया. यह सब सोचतेसोचते धीरेधीरे मीता की पलकें भारी होने लगीं. फिर वह यह सोचते हुए सो गई कि आखिर कल उसे मोहन को सब कुछ सचसच बताना है. मीता सूरज की पहली किरण के साथ जागी. वह बेहद ताजगी महसूस कर रही थी, क्योंकि आज उस की जिंदगी एक नई करवट ले रही थी. वह पुरानी सभी यादों को अपनी जिंदगी से मिटा देना चाहती थी. राजन की दी हुई जिस पायल की रुनझुन से उस का मन नाच उठता था आज वही उसे बेडि़यां लगने लगी थी. जिस कुमकुम की बिंदी लगा कर वह अपना चेहरा देर तक आईने में निहारा करती थी आज वही उसे दाग सी लगने लगी थी. मीता ने अपना लैपटौप खोला और राजन को सारी बातें लिख डालीं. यह भी लिखा कि जिस दिन तुम ने पहली बार मुझे शक की नजर से देखा था राजन, तब तक जिंदगी में सिर्फ तुम थे. लेकिन मेरे प्रति तुम्हारा अविश्वास और मेरे लिए वक्त नहीं होना, मुझे मोहन के करीब लाता गया. मुझे जब भी तुम्हारी जरूरत होती थी राजन, तुम मेरे पास नहीं होते थे. लेकिन मोहन हमेशा साथ रहा और इस के लिए मैं तुम्हारी हमेशा शुक्रगुजार रहूंगी, क्योंकि अगर तुम ऐसा नहीं करते तो मैं मोहन की अहमियत को कभी समझ नहीं पाती. मुझे ढूंढ़ने की कोशिश मत करना. मैं तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर जा रही हूं.

इतना लिखने के बाद मीता ने गहरी सांस ली. आज सालों बाद वह अपने को तनावमुक्त और आजाद महसूस कर रही थी. उस ने अपने पांवों से पायल को उतार फेंका और कुमकुम की बिंदी मिटा कर उस की जगह काली छोटी सी बिंदी, जो वह कालेज के दिनों में लगाया करती थी, एक बार फिर से लगा ली. मोहन अपने अंदर चल रहे तूफान पर नियंत्रण रखने की कोशिश करता हुआ बैठक में मीता का इंतजार कर रहा था. इंतजार ने कौफी के स्वाद को फीका कर दिया था. लंबे इंतजार के बाद जब मीता मोहन के सामने आई तो बिलकुल पहचान में नहीं आ रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे अभीअभी उस ने कालेज में एडमिशन लिया हो. अपनी उम्र से 20 साल छोटी लग रही थी वह. मोहन उत्सुकता से उस के चेहरे की ओर देख रहा था. उसे अपना जवाब चाहिए था और ऐसा लग रहा था जैसे उस का जवाब मीता के चेहरे पर लिखा है.

मीता ने मुसकरा कर मोहन से कहा, ‘‘मोहन, कभीकभी सोच साहित्यिक होने लगती है. ऐसा लगने लगता है कि हम किसी कहानी का हिस्सा भर हैं. लेकिन सच कहूं मोहन, तो ऐसा लगता है कि तुम जब पहली बार उस शिक्षिका साहिबा से इश्क कर रहे थे, मेरे पास ही थे. फिर तुम जबजब जितनी भी स्त्रियों के पास गए, हर बार मेरे और पास आते गए और अब जब सारी दूरियां खत्म हो गईं हम और तुम एक हो गए. क्या ऐसा नहीं हो सकता हम किसी ऐसी जगह चले जाएं, जहां न कोई हमें पहचाने, न हम किसी को जानें. जहां न राजन हो न तुम्हारी प्रिया. बोलो मोहन, क्या ऐसा हो सकता है?’’ मोहन ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ मीता के आंसुओं से भीगे चेहरे को सांसों की गरमी देते हुए अपने हाथों में थाम लिया. थोड़ी देर बाद दोनों एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले चल पड़े एक अनजाने सफर पर जहां थोड़ा दर्द लेकिन सुकून था. खुली हवा थी, उम्मीदों से भरापूरा जीवन था.

Holi 202: होली के दुश्मन नकली रंग

होली मौजमस्ती का त्योहार है. इसे ले कर बच्चों, बूढ़ों, युवाओं सभी में उत्साह रहता है. पर कुछ लोग रंगों के डर से घर में छिप कर बैठ जाते हैं, जो ठीक नहीं होता. वर्ष में एक बार आने वाले इस पर्व का मजा तभी है, जब सभी एकदूसरे को रंगों से सराबोर करें. अगर आप को होली के रंगों से डर लगता है तो थोड़ी सी सूझबूझ से आप होली को सुरक्षित बना सकते हैं. यह तो देखना ही चाहिए कि जिन रंगों से हम होली खेलते हैं, क्या वे सेहत के लिए सुरक्षित भी हैं? कहीं वे सेहत को नुकसान तो नहीं पहुंचाएंगे?

कृत्रिम रंगगुलाल का सेहत पर प्रभाव

प्राकृतिक रंग और गुलाल सेहत के लिए सुरक्षित होते हैं, जबकि कृत्रिम रंग, कृत्रिम गुलाल आदि सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं. फिर भी इन्हीं का इस्तेमाल ज्यादा होता है, क्योंकि ये सस्ते भी होते हैं और आसानी से उपलब्ध भी. ऐसे रंगगुलाल से होली खेलने के दौरान हाथमुंह रंगों में रंगे होते हैं, ऐसे में कोई भी चीज आप खाते या पीते हैं तो रंगों का कुछ अंश मुंह के जरिए शरीर के अंदर पहुंच जाता है, जो किसी विष से कम घातक नहीं होता है. अधिकांश लोगों को कृत्रिम या रासायनिक रंगों से ऐलर्जी भी होती है. कुछ को तो गंभीर किस्म की ऐलर्जी हो जाती है, जिस का उपचार बड़ी मुश्किल से होता है. इस के अलावा शरीर पर छोटेछोटे दाने या फुंसियां निकलना, त्वचा में जलन, घाव, खुजली, फफोले होना तो आम बात है. यदि शरीर पर कहीं चोट या घाव है, तो उस पर लगे रंग निश्चित तौर पर हानि पहुंचाते हैं.

होली पर लोग रंग, गुलाल ही नहीं वार्निश, पेंट, तारकोल, ग्रीस आदि भी एकदूसरे के चेहरे पर लगा देते हैं. जाहिर है, ये सब त्वचा के अनुकूल नहीं होते हैं और फिर इन्हें छुड़ाना भी मुश्किल होता है.

होली खेलने से पूर्व बरतें सावधानी

होली खेलने से पूर्व शरीर पर वैसलीन या कोल्डक्रीम अच्छी तरह से लगा लें ताकि त्वचा पर रंगों का प्रभाव कम पड़े.

होली खेलने से पूर्व अपने शरीर के खुले भागों पर सरसों का तेल मल लें. चिकनाई की वजह से रंगों का त्वचा पर असर कम होगा.

नाखूनों पर नेलपौलिश लगा लें ताकि पक्के रंग नाखूनों पर न चढ़ें. बाद में नेलपौलिश रिमूवर से वह आसानी से उतर जाएगी.

होली जूते पहन कर ही खेलें. चाहें तो मौजे भी पहन लें. इस से पैर रंगों से सुरक्षित रहेंगे.

बालों को रंगों से खराब होने से बचाने के लिए उन में तेल लगा लें तथा खुला रखने के बजाय उन की चोटी या जूड़ा बना लें ताकि रंग बालों में न समाएं.

रंगों का सर्वाधिक दुष्प्रभाव आंखों पर पड़ता है, इसलिए उन्हें बचाना बहुत जरूरी है. यदि कोई चेहरे पर रंग लगाने की कोशिश करे तो तुरंत आंखें बंद कर लें.

होली खेलने के लिए नायलन, पौलिऐस्टर अथवा टैरीकौट के कपड़े पहनें, क्योंकि इन पर रंग ठहरता नहीं है, इसलिए त्वचा पर असर भी कम होता है. ऐसे कपड़े पहनें जिन से आप के शरीर का अधिकांश भाग ढक जाता हो ताकि रंग सीधे तौर पर त्वचा को प्रभावित न कर सकें.

कैसे छुड़ाएं रंग

जब भी कोई आप के बालों या शरीर पर सूखा रंग डाले, तुरंत उसे झाड़ दें ताकि वह शरीर के संपर्क में ज्यादा देर न रहे.

गीले रंग को भी यदि तत्काल सूखे कपड़े से पोंछ लिया जाए तो उस का असर कम होता है और वह जल्दी छूट जाता है.

गुलाल को कभी पानी से न धोएं अन्यथा वह आप को रंगना शुरू कर देगा. बेहतर यही होगा कि उसे सूखे कपड़े से झाड़ लें. सिर में गुलाल पड़ा हो तो कंघी कर लें और फिर शैंपू से धो लें.

रंग छुड़ाने के लिए मिट्टी के तेल, चूने के पानी आदि का इस्तेमाल न करें. उसे साबुन, पानी और उबटन से ही छुड़ाएं.

गरम पानी के बजाय ठंडे पानी का इस्तेमाल करें, क्योंकि गरम पानी से रंग पक्के हो जाते हैं.

रंग छुड़ाने के लिए घटिया डिटरजैंट का इस्तेमाल भी ठीक नहीं, क्योंकि इस से त्वचा छिल सकती है.

रंग छुड़ाने के लिए नहाने वाले किसी भी साबुन का इस्तेमाल करें. साबुन से उत्पन्न झाग को कपड़े से पोंछते जाएं. इस से रंग कपड़े पर उतर जाएगा और शरीर पर लगा रंग हलका होता जाएगा.

कभी भी खुरदरे पत्थर आदि का इस्तेमाल न करें अन्यथा त्वचा छिल जाएगी.

रंग छुड़ाने का आसान तरीका है नारियल के तेल में रुई को भिगो कर उस से धीरेधीरे रंग छुड़ाएं. ऐसा करने से जलन भी नहीं होगी.

यदि त्वचा पर गहरा रंग लगा है तो बेहतर होगा कि पहले नीबू से त्वचा को साफ कर लें, फिर उबटन लगाने से रंग छूट जाएगा.

बालों के रंग निकालते समय गरदन को इस प्रकार रखें कि रंग शरीर के अन्य हिस्सों पर न पड़े.

यदि नाखूनों के भीतर रंग चढ़ जाए तो उस जगह नीबू को रगड़ें.

रंग छुड़ाने के बाद त्वचा में जलन न हो, इस के लिए दूध व हलदी का लेप लगा लें.

रंग छुड़ाने के बाद हलकी सी जलन महसूस हो तो ग्लिसरीन में गुलाबजल मिला कर जलन वाली जगह पर कुछ देर लगाएं और फिर थोड़ी देर बाद कुनकुने पानी से धो लें.

यदि एक बार में रंग न निकले तो परेशान न हों. 1-2 दिन में निकल जाएगा. एक बार में ही सारा रंग निकालने की कोशिश त्वचा पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी.

ऐसे करें हर्बल रंग तैयार

रासायनिक रंगों के बजाय घर पर हर्बल रंग तैयार कर उन से होली खेलना सुरक्षित रहता है. केसरिया रंग बनाने के लिए पानी में चंदन पाउडर तथा टेसू के फूलों का इस्तेमाल किया जा सकता है. गुलाबी रंग चुकंदर को रात भर पानी में भिगो कर उस से तैयार किया जा सकता है. लाल रंग बनाने के लिए लाल चंदन पाउडर का इस्तेमाल किया जा सकता है. मेहंदी पाउडर को पानी में भिगो कर हरा रंग बना सकते हैं, जबकि पीला रंग तैयार करने के लिए आटे में हलदी पाउडर मिलाया जा सकता है. गेंदे के फूलों को उबाल कर भी पीला रंग तैयार कर सकते हैं. नारंगी रंग बनाने के लिए पलाश के फूलों को रात भर पानी में भिगो दें. सुबह रंग तैयार मिलेगा. यदि आप भूरा रंग चाहते हैं तो कत्थे को पानी में घोल सकते हैं. काला रंग बनाने के लिए रात को लोहे की कड़ाही में थोड़ा आंवला चूर्ण मिला दें. सुबह काला रंग तैयार मिलेगा.होली मौजमस्ती का त्योहार है. इसे ले कर बच्चों, बूढ़ों, युवाओं सभी में उत्साह रहता है. पर कुछ लोग रंगों के डर से घर में छिप कर बैठ जाते हैं, जो ठीक नहीं होता. वर्ष में एक बार आने वाले इस पर्व का मजा तभी है, जब सभी एकदूसरे को रंगों से सराबोर करें. अगर आप को होली के रंगों से डर लगता है तो थोड़ी सी सूझबूझ से आप होली को सुरक्षित बना सकते हैं.

Holi 2024: पलाश- अर्पिता ने क्यों किया शलभ को अपनी जिंदगी से दूर?

रखैल…बदचलन… आवारा… अपने लिए ऐसे अलंकरण सुन कर अर्पिता कुछ देर के लिए अवाक रह गई. उस की इच्छा हुई कि बस धरती फट जाए और वह उस में समा जाए… ऐसी जगह जा कर छिपे जहां उसे कोई देख न पाए. रिश्तेदार तो कानाफूसी कर ही रहे थे, पर क्या शलभ की पत्नी भी इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर सकती है? वह तो उस की अच्छी दोस्त बन गई थी. फिर वह ऐसा कैसे बोल सकती है?

अर्पिता का नाम शलभ के साथ जोड़ा जा रहा था, उस के संबंध को नाजायज बताया जा रहा था. उस ने रुंधे गले से शलभ से पूछा, ‘‘सब मुझे गलत कह रहे हैं… हमारे रिश्ते को नाजायज बता रहे हैं… सच ही तो है, तुम ठहरे शादीशुदा. तुम्हारे साथ रहने का मुझे कोई अधिकार नहीं… क्या मैं सच में तुम्हारी रखैल हूं?’’

शलभ को शीशे की तरह चुभा था यह सवाल. अर्पिता की सिसकियां थम नहीं रही थीं. रोतेरोते ही बोली, ‘‘इतनी बदनामी के बाद अब मुझ से कौन शादी करेगा?’’

शलभ ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘मैं ढूंढ़ूगा तुम्हारे लिए लड़का… तुम्हारे विवाह की सारी जिम्मेदारी मैं निभाऊंगा.’’

‘‘तुम मेरे बिना रह सकोगे?’’

शलभ अर्पिता के सवाल का जवाब देने के बजाय उस का सिर अपनी गोद में रख कर थपकियां देने लगा. थोड़ी ही देर में अर्पिता नींद में डूब गई. शलभ उस के मासूम चेहरे को देर तक देखता रहा, जो अब भी आंसुओं से भीगा था.

1-1 कर उसे अर्पिता से जुड़ी सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. यादें समुद्र की लहरों सी होती हैं. उठती हैं, गिरती हैं और फिर छोड़ जाती हैं एक खालीपन, एक एकाकीपन जिसे भर पाना मुश्किल हो जाता है…

अर्पिता रिश्ते में शलभ की कजिन थी. दोनों के बीच उम्र का बड़ा फासला भी था. उस फासले का असर दोनों के व्यक्तित्व, पसंदनापसंद में नजर आता था. शलभ के जेहन में नन्ही सी अर्पिता की धुंधली सी तसवीर थी, जबकि अर्पिता को तो शलभ बिलकुल याद नहीं था.

हो भी कैसे? तब से अब तक उस की जिंदगी ने बहुत उतारचढ़ाव देख लिए. मां गुजर गईं, पिता ने दूसरी शादी कर ली, इसे ननिहाल भेज दिया गया. जिंदगी के थपेड़ों ने उम्र के लिहाज से अनुभव थोड़ा ज्यादा दे दिया था, जो कभीकभी उस के स्वभाव से भी झलकता था.

वर्षों बाद अर्पिता शलभ से मिली थी. फिर भी उस के व्यवहार में बिलकुल भी अजनबियत नहीं दिखी. एक अपनापन था. चंद रोज में ही शलभ उस का राजदार बन गया. अर्पिता ने शलभ को अपने बचपन के प्यार के बारे में बताया. यह भी बताया कि दोनों शादी करना चाहते हैं.

‘‘घर वालों को शादी के लिए नहीं मना सकते, तो मुझे ही दिल्ली ले चलो. आसिफ वहीं नौकरी करता है. मैं भी पीजी में रहूंगी और नौकरी करूंगी. कोर्ट मैरिज करने के बाद घर वालों को बता दूंगी,’’ एक सांस में अर्पिता ने अपनी बात शलभ से कह डाली.

शलभ ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन फिर उस की जिद के आगे हार गया.

उन दिनों शलभ दिल्ली में कार्यरत था. अच्छी कंपनी, अच्छी कमाई, खुशहाल परिवार. अर्पिता के घर में शलभ की बड़ी इज्जत थी. अर्पिता के दिल्ली जाने की बात पर उस के घर वालों को समझाना पड़ा. आखिरकार अर्पिता को दिल्ली जाने की इजाजत मिल गई.

अर्पिता को तो पंख लग गए. उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह दिन भी आ गया जब शलभ के साथ अर्पिता अपने सपनों की नगरी की ओर निकल पड़ी. अर्पिता के पिता ने उस की सारी जिम्मेदारी शलभ के कंधों पर डाल थी. शलभ ने भी इस जिम्मेदारी को खुशीखुशी स्वीकार लिया था.

दिल्ली पहुंचने के बाद शलभ ने अर्पिता के रहने का इंतजाम पीजी में करा दिया. गुजरते समय के साथ ही अर्पिता ने भी दिल्ली की रफ्तार भरी जिंदगी से तालमेल बैठा लिया. शलभ अपने काम में व्यस्त हो गया. अर्पिता इस नई और पसंद की दुनिया में बेहद खुश थी. वीकैंड पर आसिफ के साथ कभी कनाट प्लेस के चक्कर लगाती तो कभी बाइक से देर रात दोनों इंडिया गेट कुल्फी खाने निकल जाते.

मार्च का महीना था. पलाश के पेड़ों में हरे पत्तों की जगह सुर्ख फूलों ने ले ली थी. यही तो वे फूल हैं, जो बचपन से ही उसे बेहद पसंद हैं, सुर्ख रंग उस का पसंदीदा. उस के घर के सामने भी पलाश का पेड़ था. दिल्ली में कहीं भी सुर्ख फूल देख कर उसे घर जैसा महसूस होता.

होली आने में बस चंद दिन ही रह गए थे. इस बार की होली को ले कर अर्पिता बेहद उत्साहित थी. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. होली से चंद रोज पहले शलभ के पास अर्पिता के अस्वस्थ होने की खबर पहुंची. शलभ पीजी पहुंचा तो अर्पिता को तेज बुखार में तड़पता पाया.

अर्पिता की रूममेट्स से पता चला कि आसिफ ने प्यार और शादी का वादा कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए और फिर उस पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने लगा. एक रोज धर्म को शादी की अड़चन बता कर उसे हमेशा के लिए छोड़ गया. जिस ख्वाब को आंखों में सजाए अर्पिता दिल्ली आई थी, वह टूट चुका था. कल्पना की उड़ान में उस के पंख लहूलुहान हो चले थे.

शलभ रात भर वहीं अर्पिता के पास बैठा रहा. उस के पिता को फोन पर सारी बातें बताने की कोशिश भी की, लेकिन उन की इस में कोई दिलचस्पी नहीं थी. सूर्योदय के साथ ही शलभ अर्पिता को अपने फ्लैट में ले आया. उस ने अर्पिता की देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ी. अर्पिता बचपन के प्यार और फिर उस से मिले धोखे से उबर नहीं पा रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस के प्रेम में जातिधर्म कैसे आड़े आ गए.

संघर्ष और दुख भरा समय गुजर गया. हफ्ते भर में अर्पिता स्वस्थ हो गई. शलभ ने उसे अपने औफिस में ही नौकरी दिला दी. अर्पिता का मन भी नौकरी में रमने लगा. खाली वक्त में वह खुद को घर के कामों में व्यस्त रखने लगी. शलभ की छोटीमोटी चीजों की जिम्मेदारी भी उठा ली. सुबह उठती, चाय बनाती, फिर शलभ को उठाती, नास्ता बनाती और फिर औफिस के लिए तैयार हो जाती. दोनों साथसाथ औफिस निकल पड़ते.

शाम को शलभ के साथ घर आ जाती. जिस रात शलभ को देर तक औफिस में रुकना होता, वह तब तक जागती रहती जब तक शलभ आ नहीं जाता. रात में कभी डर जाती तो चुपके से शलभ के पास बिस्तर पर आ कर सो जाती. शलभ भी उसे थपकियां देने लगता. लेकिन दोनों के बीच एक तकिए की दूरी बनी रहती. मगर एक रात यह एक तकिए की दूरी भी खत्म हो गई.

मुश्किल दिनों का साथ अकसर मजबूत होता है. संघर्ष रिश्ते बनाता है

तो कुछ रिश्तों को कमजोर भी करता है. 3-4 हफ्ते ही बीते थे. लेकिन ऐसा लगने लगा था जैसे सदियों से दोनों साथ रह रहे हों. वे एकदूसरे का चेहरा पढ़ सकते थे. शलभ का अपने गृह शहर जाना भी कम होने लगा था. अगर घर जाता भी तो लौटने की बुकिंग अर्पिता पहले से ही करवा देती.

एक तरफ शलभ और अर्पिता के बीच का फासला कम होता जा रहा था तो दूसरी तरफ घर और परिवार से शलभ का फासला बढ़ता जा रहा था. शलभ और उस की पत्नी के रिश्ते में कड़वाहट घुलती जा रही थी. कई बार तो शलभ ने अर्पिता से विवाह के बारे में भी सोचा, लेकिन हर बार उस की आंखों के सामने बेटे का मासूम चेहरा आ जाता. एक वही तो था जो उस के आने का बेसब्री से इंतजार करता था.

दोनों के घरों में व रिश्तेदारों के बीच कानाफूसी का दौर शुरू हो गया था. कानाफूसी धीरेधीरे आरोप में बदल गई और शलभ के शांत जीवन में भूचाल आ गया. रिश्तों के अग्निपथ पर चलते हुए पांवों में छाले पड़ने तो तय था, लेकिन छाले इतने दर्द भरे हो सकते हैं, इस का एहसास दोनों को अब होने लगा.

अचानक शलभ को घुटन सी महसूस हुई तो सोच का सिलसिला थम गया. शलभ ने अपनी गोद से उतार कर अर्पिता को बिस्तर पर सुला दिया और स्वयं बालकनी में आ गया. सुबह की लालिमा क्षितिज पर छाई थी. ऐसा लग रहा था जैसे ढेर सारे पलाश के फूलों को मसल कर आसमान में बिखेर दिया गया हो. शलभ सामने लगे पलाश के पेड़ को देखने लगा. उस के सारे पत्ते गिर चुके थे और लाल फूलों से लदा वृक्ष ऐसा लग रहा था जैसे नए रिश्ते बन गए हों और पुरानों से नाता टूट रहा हो.

शलभ के ऊपर एक नई जिम्मेदारी आ चुकी थी. अर्पिता के विवाह की जिम्मेदारी और इसे ले कर वह बेहद संजीदा था. शलभ ने औफिस में ही कार्य करने वाले अपने दोस्त के छोटे भाई से अर्पिता के विवाह की बात की. लड़का और उस के परिवार वालों ने इस प्रस्ताव को मान लिया. अर्पिता के हाथ पीले किए जाने की तैयारी शुरू हो गई.

पत्नी के खिलाफ जा कर शलभ ने अर्पिता की शादी की सारी जिम्मेदारी, सारा खर्च उठा लिया. शादी की तैयारी में दिन गुजरने लगे. शलभ के पास अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं रहती थी. पिता और सौतेली मां को अर्पिता की जिंदगी में कुछ खास रुचि थी नहीं. अर्पिता के लिए तो शलभ में ही उस का पूरा परिवार समाहित था.

नए रिश्ते को आत्मसात करने की जद्दोजहद में जानेअनजाने अर्पिता शलभ की उपेक्षा भी कर जाती थी. जिस अर्पिता के लिए शलभ ने अपने सभी रिश्तेदारों, यहां तक कि अपनी अर्धांगिनी से भी रिश्ता तोड़ लिया, अब वही उस से दूर होती जा रही थी. रात में देर से लौटने पर अब अर्पिता इंतजार करती नहीं मिलती थी, न ही सुबह की चाय के साथ उस की आवाज आती.

मौसम बदल रहा था. शलभ को इस का एहसास होने लगा था. वह स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगा था. उस ने अपने चारों ओर अकेलेपन की दीवार खड़ी करनी शुरू कर दी. जल्द ही अर्पिता के विवाह का दिन भी आ गया. शलभ की संवेदनाएं जड़ हो चुकी थीं. यंत्रवत वह सारे काम करता जा रहा था.

विदाई की बेला आ गई. हमेशा चहकने वाली अर्पिता की आंखें भर आईं.

वह बिलखने लगी. कमरे की हर दीवार उस की पसंद के रंग में रंगी थी, हर परदा उस की पसंद का था. बालकनी की छोटी सी बगिया में भी उस की पसंद के ही फूल सजे थे. वह नम आंखों से उन्हें निहार रही थी.

घर के सामने उस का पसंदीदा पलाश का पेड़ अकेला खड़ा था. शलभ जड़वत था. उसे एहसास था कि उस की जिंदगी की रंगत को भी वह अपने संग लिए जा रही है, लेकिन दिल पर पड़ा बोझ उतर गया था. उस ने अपनी जिम्मेदारी जो पूरी कर दी थी.

‘आज न छोड़ेंगे’ से लेकर ‘अंग से अंग लगाना सजन’ तक, इस होली में गानों को प्लेलिस्ट में करें शामिल

Bollywood Holi Songs 2024: ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली’ और ‘अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..’ जैसे गाने जब तक न बजे लगता ही नहीं कि होली आ गई है. इन गानों का बजना और लोगों का थिरकना जैसे किसी परंपरा की तरह हो गया है. होली के त्यौहार का उत्साह बढ़ाने में बॉलीवुड ने हमारा खूब साथ दिया है.

1958 से लेकर आज तक फिल्मों में होली के गीत फिल्माएं जाते हैं और वे सुर्खियां भी बटोरते हैं. आज हम आपको बॉलीवुड के ऐसे ही यादगार होली सांग्स के सफर पर ले चल रहे हैं जिन्होंने हमारी होली का मजा दोगुना कर दिया.

1. होली आई रे कन्हाई

साल 1958 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’ का गाना ‘होली आई रे कन्हाई..’ किसे याद नहीं होगा. हमारे बुजुर्ग तो आज भी इसी गाने से होली का आगाज करते हैं.

2. आज न छोड़ेंगे… हम तेरी चोली, खेलेंगे हम होली

‘आज न छोड़ेंगे… हम तेरी चोली, खेलेंगे हम होली’ फिल्म ‘कटी पतंग’ (1970) से इस सदाबहार गीत को ही ले लीजिये. भला इसकी मस्ती और अल्हड़पन से कौन बच सकता है.

3. होली के दिन दिल खिल जाते हैं…

‘शोले’ (1975) फिल्म का गीत ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं…’ होली पर जैसे सबसे पॉपुलर गीतों में से एक है. इसे सुनकर सभी जैसे होली की मस्ती में डूब जाते हैं.

4. रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे..

1981 में आई फिल्म ‘सिलसिला’ का यह गीत ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे..’ का तो मिजाज ही अलग है. होली की छेड़छाड़ और मस्ती को सलीके से बयां करता है. अमिताभ-रेखा, जया-संजीव कुमार पर फिल्माया यह गीत खूब गाया-सुना जाता है.

5. अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..

साल 1993 में आई फिल्म ‘डर’ का गाना ‘अंग से अंग लगाना सजन हमें ऐसे रंग लगाना..’ किसे याद नहीं होगा. फिल्म में शाहरुख के नकारात्मक रोल को आज भी याद किया जाता है.

6. होली खेले रघुवीरा..

2003 में आई फिल्म बागबान में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी पर फिल्माए गए गीत ‘होली खेले रघुवीरा..’ ने भी लोगों के दिलों को धड़का दिया.

7. डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली..

साल 2005 में आई फिल्म ‘वक्त- द रेस अगेंस्ड टाइम’ में अक्षय कुमार और प्रियंका चोपडा़ पर फिल्माया गया गीत ‘डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली..’ का गीत कुछ मॉर्डन टच लिए हुए था लेकिन युवाओं ने इसे काफी पसंद किया.

8. बलम पिचकारी..

साल 2013 ये ‘जवानी है दीवानी’ का गाना ‘बलम पिचकारी..’ युवाओं में लोकप्रिय है.

9. जा रे हट नटखट..

वी शांताराम की फिल्म नवरंग का गीत ‘जा रे हट नटखट..’ आज भी झूमने पर मजबूर कर देता है.

10. सोणी सोणी..

साल 2000 में आई शाहरुख-ऐश्वर्या की ‘मोहब्बतें’ फिल्म से ‘सोणी सोणी..’ सांग कौन भूल सकता है. इस गीत ने जैसे होली को फिर से रिवाइव कर दिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें