Combination Skin: कौंबिनेशन स्किन की देखभाल कैसे करें

Combination Skin: क्या आप की भी स्किन कहीं ड्राई तो कहीं औयली रहती है? दरअसल, कुछ लोगों की स्किन न पूरी तरह ड्राई होती है और न ही पूरी तरह औयली. कभी यह मौसम के हिसाब से बदलती रहती है, तो कभी चेहरे का कुछ हिस्सा औयली और कुछ ड्राई होता है. इस त्वचा को कौंबिनेशन स्किन कहा जाता है.  इस में एक सामान्य पैटर्न होता है जैसेकि नाक और फोरहेड की स्किन औयली होती है. गालों की स्किन सैंसिटिव होती है और साथ ही बाकि चेहरे की स्किन ड्राई होती है यानि आमतौर पर टीजोन (माथा, नाक और ठोड़ी) में अधिक तेल होता है जबकि गालों पर त्वचा सूखी रहती है.

कौंबिनेशन स्किन की समस्या विशेषरूप से यंग ऐज में देखने को मिलती है क्योंकि हार्मोनल चेंज के कारण सीबम ग्रंथियों का असंतुलन बढ़ जाता है. इस का इलाज करने के लिए सही स्किन केयर रूटीन का पालन करना जरूरी होता है.

नैशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसिन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकतर कौंबिनेशन स्किन टाइप वाले लोगों को पता ही नहीं होता कि उन की स्किन का टाइप कौंबिनेशन है. ऐसे लोगों को अपनी स्किन की देखभाल के लिए उपयुक्त प्रोडक्ट्स का चयन करना महत्त्वपूर्ण है, जिस में फेसवाश, मोइस्चराइजर, ऐक्सफोलिएशन और सनस्क्रीन का उपयोग शामिल है.

कैसे पहचानें कौंबिनेशन स्किन है

-अगर आप की टीजोन औयली रहती है, लेकिन गाल ड्राई होते हैं.

-चेहरे पर कुछ जगह पिंपल्स होते हैं, जबकि बाकी जगह रूखी रहती है.

-स्किन सीबम और ड्राईनैस के बीच बैलेंस नहीं रहती.

-मेकअप लंबे समय तक नहीं टिकता. अगर ऐसा है तो समझ लें कि आप की कौंबिनेशन स्किन है

कौंबिनेशन स्किन की देखभाल कैसे करें

क्लींजिंग : आप को अपनी स्किन को रोजाना क्लींज करना चाहिए. ऐसा क्लींजर का उपयोग करें जो आप के औयली टी जोन को मैटीफाय करे. साथ ही आप के गाल और अंडरआई एरिया को ज्यादा ड्राई भी न करे. दिनभर की धूलमिट्टी,औयल और मेकअप को हटाना बेहद जरूरी है. इस के लिए एक माइल्ड फेस क्लींजर लें जो आप की स्किन टाइप के अनुसार हो. चेहरे पर हलके हाथों से मसाज करते हुए लगाएं और फिर गुनगुने पानी से धो लें. साफ त्वचा आगे के प्रोडक्ट्स को बेहतर तरीके से सोखती है.

टोनर या स्क्रब लगाएं

अगर आप की स्किन टाइप कौंबिनेशन है तो आप को स्क्रब भी जरूर करना चाहिए. इस से हाइड्रेट रहती है और डार्क स्पौट्स कम होते हैं. टोनर स्किन टोनिंग में मदद करता है जिस से स्किन में औयल कंट्रोल रहता है. टोनर का इस्तेमाल करने के लिए एक कौटन पैड लें और उस पर टोनर लगा लें. इस के बाद थपथपाते हुए उस टोनर को पुरे फेस पर अप्लाई करें.

ऐक्सफोलिएशन : हफ्ते में कम से कम 2 बार स्किन को ऐक्सफोलिएट जरूर करें. इस के लिए आप फिजिकल या कैमिकल स्क्रब इस्तेमाल कर सकते हैं. इस से स्किन पोर्स भी खुल जाते हैं और स्किन क्लीन रहती है. अगर आप को ऐक्ने, पिंपल्स की समस्या है तो यह स्टेप आप को अवाइड करना चाहिए.

मोइस्चराइजर : स्किन को हाइड्रेट रखना भी जरूरी होता है. आप इस के लिए बाजार में मिलने वाली अच्छे मोइश्चराइजर क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं. कौंबिनेशन स्किन के लिए कोई लाइट और औयल फ्री मोइस्चराइजर इस्तेमाल करें. इस से स्किन हाइड्रेट और मोइस्चराइजर रहेगी. साथ ही स्किन में औयल प्रोडक्शन भी कंट्रोल रहता है. इस से स्किन टी जोन एरिया से भी हाइड्रेट रहेगी. मोइस्चराइजर ऐसा होना चाहिए, जो तेजी से स्किन में मिल जाए. इस मोइश्चराइजर को रूखी त्वचा पर अच्छे से लगाएं. यह आप को त्वचा की दिक्कतों जैसे इरिटेशन और टाइटनैस से बचाएगा.

सनस्क्रीन : आज के समय में सनस्क्रीन लगाना बहुत जरूरी है. हमारी स्किन सूरज की किरणों से बहुत ज्यादा डैमेज हो जाती है. अगर आप अपनी स्किन को झुर्रियों, डार्क स्पौटस और स्किन कैंसर से बचाना चाहते हैं, तो सनस्क्रीन का प्रयोग अपनी स्किन पर जरूर करें. ऐक्सपर्ट्स की सलाह है कि कम से कम बिल्टइन ब्रौड स्पैक्ट्रम एसपीएफ 30 युक्त डेली मोइस्चराइजर का प्रयोग करना ही चाहिए.

सूरज की किरणों के संपर्क में जाने से आधे घंटे पहले सनस्क्रीन लगाना चाहिए और इसे हर 2 घंटे के बाद दोबारा लगाना चाहिए.

सीरम या नाइट क्रीम से दें पोषण : अब बारी है स्किन को गहराई से हाइड्रेट और रिपेयर करने की. अपनी स्किन टाइप के अनुसार कोई अच्छा सीरम या नाइट क्रीम चुनें जिस में हाइड्रेटिंग और ऐंटी एजिंग गुण हों. इसे चेहरे पर लगा कर हलके हाथों से मसाज करें और रातभर के लिए छोड़ दें.

कौंबिनेशन स्किन के लिए कुछ ऐसे प्रोडक्ट यूज करें

क्लिन 3 फेसवाश : अगर आप को बहुत महंगा फेसवाश नहीं चाहिए तो यह आप के लिए अच्छा है. डेड स्किन और कौंबिनेशन स्किन के लिए यह बहुत अच्छा है. ऐक्ने की प्रौब्लम भी इस से दूर हो सकती है.

सेटाफिल (Cetaphil) फोमिंग फेसवाश : यह काफी जैंटल फेसवाश है जो हर तरह की स्किन टाइप पर असर कर सकता है. यह काफी ज्यादा फोम बनाता है और अगर आप के चेहरे पर बहुत ज्यादा पोर्स दिखते हैं तो यह एक अच्छा औप्शन साबित हो सकता है. स्किन पोर्स को मिनिमाइज करने और उन की सफाई करने के लिए यह फेसवाश अच्छा साबित हो सकता है.

इनिसफ्री (Innisfree) ग्रीन टी फोम क्लींजर : अगर आप की कौंबिनेशन स्किन में टी जोन काफी औयली रहता है, लेकिन गालों की स्किन फ्लैकी है तो यस आप के लिए काफी अच्छा साबित होगा. इस की रेंज भी ठीक है पर क्वांटिटी काफी कम है. अगर आप को पसंद आता है तो आप इसे रिपीट कर सकते हैं. अगर आप की स्किन सैंसिटिव है तो यह उस पर भी अच्छा काम करता है.

स्किन डाइट कंपनी बीटरूट मोइस्चराइजर : यह एक हाइड्रेटिंग फौर्मूला है जो चुकंदर के अर्क के साथ पूरी तरह से मिश्रित होता है और जोजोबा और एवोकैडो तेल जैसे आवश्यक तेलों से समृद्ध होता है. यह तेल आप की त्वचा को चमकदार बनाने, त्वचा की बनावट में सुधार करने और इसे पूरे दिन हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है. यह चिकनाई रहित और चिपचिपा नहीं है और त्वचा को तुरंत कोमलता प्रदान करता है. कौंबिनेशन स्किन के लिए यह काफी अच्छा है क्योंकि यह लंबे समय तक हाइड्रेशन प्रदान करता है और सब से अच्छी बात यह है कि यह मेकअप बेस के नीचे बहुत अच्छी तरह से सेट हो जाता है.

डा. शेथ्स सेरामाइड और विटामिन सी ब्राइटनिंग औयल फ्री मोइस्चराइजर : यह बहुत हलका और गैर चिपचिपा फौर्मूला है जो कौंबिनेशन स्किन के लिए बैस्ट है. यह मोइस्चराइजर पोषण से भरपूर है. इसलिए यह अल्ट्रा स्मूद चमक देता है और मुलायम त्वचा प्रदान करता है. सेरामाइड कौंप्लेक्स और विटामिन सी से समृद्ध यह मोइस्चराइजर स्किन की सभी प्रौब्लम को दूर करता है.

मोइस्चराइजर में मौजूद विटामिन सी त्वचा को चमकदार बनाता है और मुंहासों को रोकने में मदद करता है और काले दागधब्बे को भी हटाता है.

थ्योरी बैरियर रिपेयर मोइस्चराइजर : यह सेरामाइड्स और फैटी एसिड से समृद्ध है, जो न केवल त्वचा को तुरंत हाइड्रेशन प्रदान करता है बल्कि बैरियर रिपेयर फंक्शन को भी तेज करता है. कौंबिनेशन स्किन वाले लोगों के लिए यह एक आदर्श विकल्प है क्योंकि यह त्वचा को रूखा बनाता है और गहन पोषण प्रदान करता है.

Combination Skin

Family Story in Hindi: ठंडक का एहसास

Family Story in Hindi: हमारे चाचाजी अपनी लड़की के लिए वर खोज रहे थे. लड़की कालेज में पढ़ाती थी. अपने विषय में शोध भी कर रही थी. जाहिर है लड़की को पढ़ालिखा कर चाचाजी किसी ढोरडंगर के साथ तो नहीं बांध सकते. वर ऐसा हो जिस का दिमागी स्तर लड़की से मेल तो खाए. हर रोज अखबार पलटते, लाल पैन से निशान लगाते. बातचीत होती, नतीजा फिर भी शून्य.

‘‘वकीलों के रिश्ते आज ज्यादा थे अखबार में…’’ चाचाजी ने कहा.

‘‘वकील भी अच्छे होते हैं, चाचाजी.’’

‘‘नहीं बेटा, हमारे साथ वे फिट नहीं हो सकते.’’

‘‘क्यों, चाचाजी? अच्छाखासा कमाते हैं…’’

‘‘कमाई का तो मैं ने उल्लेख ही नहीं किया. जरूर कमाते होंगे और हम से कहीं ज्यादा समझदार भी होंगे. सवाल यह है कि हमें भी उतना ही चुस्तचालाक होना चाहिए न…हम जैसों को तो एक अदना सा वकील बेच कर खा जाए. ऐसा है कि एक वकील का पेशा साफसुथरा नहीं हो सकता न. उस का अपना कोई जमीर हो सकता है या नहीं, मेरी तो यही समझ में नहीं आता. उस की सारी की सारी निष्ठा इतनी लचर होती है कि जिस का खाता है उस के साथ भी नहीं होती. एक विषधर नाग पर भरोसा किया जा सकता है लेकिन इस काले कोट पर नहीं. नहीं भाई, मुझे अपने घर में एक वकील तो कभी नहीं चाहिए.’’

चाचाजी के शब्द कहीं भी गलत नहीं थे. वे सच कह रहे थे. इस पेशे में सचझूठ का तो कोई अर्थ है ही नहीं. सच है कहां? वह तो बेचारा कहीं दम तोड़ चुका नजर आता है. एक ‘नोबल प्रोफैशन’ माना जाने वाला पेशा भी आज के युग में ‘नोबल’ नहीं रह गया तो इस पेशे से तो उम्मीद भी क्या की जा सकती है.

दोपहर को हम धूप सेंक रहे थे तभी पुराने कपड़ों के बदले नए बरतन देने वाली चली आई. उम्रदराज औरत है. साल में 2-3 बार ही आती है. कह सकती हूं अपनी सी लगती है. बरतन देखतेदेखते मैं ने हालचाल पूछा. पिछली बार मैं ने 2 जरी की साडि़यां उसे दे दी थीं. उस की बेटी की शादी जो थी.

‘‘शादी अच्छे से हो गई न रमिया… लड़की खुश है न अपने घर में?’’

‘‘जी, बीबीजी, खुश है…कृपा है आप लोगों की.’’

‘‘साडि़यां उसे पसंद आई थीं कि नहीं?’’

फीकी सी हंसी हंस गरदन हिला दी उस ने.

‘‘साडि़यां तो थानेदार ने निकाल ली थीं बीबीजी. आदमी को अफीम का इलजाम लगा कर पकड़ लिया था. छुड़ाने गई तो टोकरा खुलवा कर बरतन भी निकाल लिए और सारे कपड़े भी. पुलिस वालों ने आपस में बांट लिए. तब हमारा बड़ा नुकसान हो गया था. चलो, हो गया किसी तरह लड़की का ब्याह, यह सब तो हम गरीबों के साथ होता ही रहता है.’’

उस की बातें सुन कर मैं अवाक् रह गई थी. लोगों की उतरन क्या पुलिस वालों ने आपस में बांट ली. इतने गएगुजरे होते हैं क्या ये पुलिस वाले?

सहसा मेरे मन में कुछ कौंधा. कुछ दिन पहले मेरी एक मित्र के घर कोई उत्सव था और उस के घर हूबहू मेरी वही जरी की साड़ी पहने एक महिला आई थी. मित्र ने मुझे उस से मिलाया भी था. उस ने बताया था कि उस के पति पुलिस में हैं. तो क्या वह मेरी साड़ी थी? कितनी ठसक थी उस औरत में. क्या वह जानती होगी कि उस ने जिस की उतरन पहन रखी है, उसी के सामने ही वह इतरा रही है.

‘‘कौन से थाने में गई थी तू अपने आदमी को छुड़ाने?’’

‘‘बीबीजी, यही जो रेलवे फाटक के पीछे पड़ता है. वहां तो आएदिन किसी न किसी को पकड़ कर ले जाते हैं. जहान के कुत्ते भरे पड़े हैं उस थाने में. कपड़ा, बरतन न निकले तो बोटियां चबाने को रोक लेते हैं. मां पसंद आ जाए तो मां, बेटी पसंद आ जाए तो बेटी…’’

‘‘कोई कुछ कहता नहीं क्या?’’

‘‘कौन कहेगा और किसे कहेगा. उस से ऊपर वाला उस से बड़ा चोर होगा. कहां जाएं हम…बस, उस मालिक का ही भरोसा है. वही न्याय करेगा. इनसान से तो कोई उम्मीद है नहीं.’’

आसमान की तरफ देखा रमिया ने तो मन अजीब सा होने लगा मेरा. क्या कोई इतना भी नीचे गिर सकता है. थाली की रोटी तोड़ने से पहले इनसान यह तो देखता ही है कि थाली साफसुथरी है कि नहीं. लाख भूखा हो कोई पर नाली की गंदगी तो उठा कर नहीं खाई जा सकती.

रमिया से ऐसा कहा तो उस की आंखें भर आईं.

‘‘पेट की भूख और तन की भूख मैलीउजली थाली नहीं देखती बीबीजी. हम लोगों की हाय उन्हें दिनरात लगती है. अब देखना है कि उन्हें अपने किए की सजा कब मिलती है.’’

उस थानेदारनी के प्रति एक जिज्ञासा भाव मेरे मन में जाग उठा. एक दिन मैं अपनी उसी मित्र से मिलने गई. बातोंबातों में किसी बहाने उस का जिक्र छेड़ दिया.

‘‘उस की साड़ी बड़ी सुंदर थी. मेरी मां के पास भी ऐसी ही जरी की साड़ी थी. पीछे से उसे देख कर लग रहा था कि मेरी मां ही खड़ी हैं. कैसे लोग हैं…इस इलाके में नएनए आए हैं…वे कोई नई किट्टी शुरू कर रही थीं और कह रही थीं कि मैंबर बनना चाहें तो…तुम कैसे जानती हो उन्हें?’’

‘‘उन का बेटा मेरे राजू की क्लास में है. ज्यादा जानपहचान नहीं करना चाहती हूं मैं…इन पुलिस वालों के मुंह कौन लगे. अब राजू ने बुला लिया तो मैं क्या कहती. तुम किट्टी के चक्कर में उसे मत डालना. ऐसा न हो कि उस की किट्टी निकल आए और बाकी की सारी तुम्हें भरनी पड़े. उस की हवा अच्छी नहीं है. शरीफ आदमी नहीं हैं वे लोग. औरत आदमी से भी दो कदम आगे है. मुंह पर तो कोई कुछ नहीं कहता पर इज्जत कोई नहीं करता.’’

अपनी मित्र का बड़बड़ाना मैं देर तक सुनती रही. अपने राजू की उन के बेटे के साथ दोस्ती से वे परेशान थीं.

‘‘कापीकिताब लेने अकसर उस का लड़का आता रहता है. एक दिन राजू ने मना किया तो कहने लगा कि शराफत से दे दो, नहीं तो पापा से कह कर अंदर करवा दूंगा.’’

‘‘क्या सच में ऐसा…?’’

मेरी हैरानी का एक और कारण था.

‘‘इन पुलिस वालों की न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी. मैं तो परेशान हूं उस के लड़के से. अपनी कुरसी का ऐसा नाजायज फायदा…समझ में नहीं आता कि राजू को कैसे समझाऊं. बच्चा है कहीं कह देगा कि मेरी मां ने मना किया है तो…’’

एक बेईमान इनसान अपने आसपास कितने लोगों को प्रभावित करता है, यह मुझे शीशे की तरह साफ नजर आ रहा था. एक चरित्रहीन इनसान अपनी वजह से क्याक्या बटोर रहा है. बदनामी और गंदगी भी. क्या डर नहीं लगता है आने वाले कल से? सब से ज्यादा विकार तो वह अपने ही लिए संजो रहा है. कहांकहां क्याक्या होगा, जब यही सब प्रश्नचिह्न बन कर सामने खड़ा होगा तब उत्तर कहां से लाएगा.

सच है, अपने दंभ में मनुष्य क्याक्या कर जाता है. पता तो तब चलता है जब कोई उत्तर ही नहीं सूझता. वक्त की लाठी में आवाज नहीं होती और जब पड़ती है तब सूद समेत सब वापस भी कर देती है.

कहने को तो हम सभ्य समाज में रहते हैं और सभ्यता का ही कहांकहां रक्त बह रहा है, हमें समझ में ही नहीं आता. अगर दिखाई दे भी जाए तो हम उस से आंखें फेर लेते हैं. बुराई को पचा जाने की कितनी अच्छी तरह सीख मिल चुकी है हमें.

गरीब बरतन वाली की पीड़ा और उस जैसी औरों पर गिरती थानेदार की गाज ने कई दिन सोने नहीं दिया मुझे. क्या हम पढ़ेलिखे लोग उन के लिए कुछ नहीं कर सकते? क्या हमारी मानसिकता इतनी नपुंसक है कि किसी का दुख, किसी की पीड़ा हमें जरा सा भी नहीं रुलाती? अगर ऊंचनीच का भेद मिटा दें तो एक मानवीय भाव तो जागना ही चाहिए हमारे मन में. अपने पति से इस बारे में बात की तो उन्होंने गरदन हिला दी.

समाज इतना गंदा हो चुका है कि अपनी चादर को ही बचा पाना आज आसान नहीं रहा. दिन निकलता है तो उम्मीद ही नहीं कर सकते कि रात सहीसलामत आएगी कि नहीं. फूंकफूंक कर पैर रखो तो भी कीचड़ की छींटों से बचाव नहीं हो पाता. क्या करें हम? अपना मानसम्मान ही बचाना भारी पड़ता है और किसी को कोई कैसे बचाए.

मेरे पति जिस विभाग में कार्यरत हैं वहां हर पल पैसों का ही लेनदेन होता है. पैसा लेना और पैसा देना ही उन का काम है. एक ऐसा इनसान जिसे दिनरात रुपयों में ही जीना है, वही रुपए कब गले में फांसी का फंदा बन कर सूली पर लटका दें पता ही नहीं चल सकता. कार्यालय में आने वाला चोर है या साधु…समझ ही नहीं पाते. कैसे कोई काम कर पाए और कैसे कोई अपनी चादर दागदार होने से बचाए?

आज ईमानदारी और बेईमानी का अर्थ बदल चुका है. आप लाख चोरी करें, जी भर कर अपना और सामने वाले का चरित्रहनन करें. बस, इतना खयाल रखिए कि कोई सुबूत न छोड़ें. पकड़े न जाएं. यहीं पर आप की महानता और समझदारी प्रमाणित होती है. कच्चे चोर मत बनिए. जो पकड़ा गया वही बेईमान, जो कभी पकड़ा ही न जाए वह तो है ही ईमानदार, उस पर कैसा दोष?

इसी कुलबुलाहट में कितने दिन बीत गए. ‘कबिरा तेरी झोपड़ी गल कटियन के पास, करन गे सो भरन गे तू क्यों भेया उदास’ की तर्ज पर अपने मन को समझाने का मैं प्रयास करती रही. बुराई का अंत कब होगा…कौन करेगा…किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था मुझे.

एक शाम मुझे जम्मू से फोन आया :

‘‘आप के शहर में कर्फ्यू लग गया है. क्या हुआ…आप ठीक हैं न?’’ मेरी बहन का फोन था.

‘‘नहीं तो, मुझे तो नहीं पता.’’

‘‘टीवी पर तो खबर आ रही है,’’ बहन बोली, ‘‘आप देखिए न.’’

मैं ने झट से टीवी खोला. शहर का एक कोना वास्तव में जल रहा था. वाहन और सरकारी इमारतें धूधू कर जल रही थीं. रेलवे स्टेशन पर भीड़ थी. रेलों की आवाजाही ठप थी.

एक विशेष वर्ग पर ही सारा आरोप आ रहा था. शहर के बाहर से आया मजदूर तबका ही मारकाट और आगजनी कर रहा था. एसएसपी सहित 12-15 पुलिसकर्मी भी घायल अवस्था में अस्पताल पहुंच चुके थे. मजदूरों के एक संगठन ने पुलिस पर हमला कर दिया था. मैं ने झट से पति को फोन किया. पता चला, उस तरफ भी बहुत तनाव है. अपना कार्यालय बंद कर के वे लोग बैठे हैं. कब हालात शांत होेंगे, कब वे घर आ पाएंगे, पता नहीं. बच्चों  के स्कूल फोन किया, पता चला वे भी डी.सी. के और्डर पर अभी छुट्टी नहीं कर पा रहे क्योंकि सड़कों पर बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. दम घुटने लगा मेरा. क्या सभी दुबके रहेंगे अपनेअपने डेरों में. पुलिस खुद मार खा रही है, वह बचाएगी क्या?

अपनी सहेली को फोन किया. कुछ तो रास्ता निकले. उस का बेटा राजू भी अभी स्कूल में ही है क्या?

‘‘क्या तुम्हें कुछ भी पता नहीं है? कहां रहती हो तुम? मैं ने तो राजू को स्कूल जाने ही नहीं दिया था.’’

‘‘क्यों, तुम्हें कैसे पता था कि आज कर्फ्यू लगने वाला है?’’

‘‘उस थानेदार की खबर नहीं सुनी क्या तुम ने? सुबह उस की पत्नी और बेटे का अधकटा शव पटरी पर से मिला है. थानेदार के भी दोनों हाथ काट दिए गए हैं. भीड़ ने पुलिस चौकी पर हमला कर दिया था.’’

काटो तो खून नहीं रहा मुझ में. यह क्या सुना रही है मेरी मित्र? वह बहुत कुछ और भी कहतीसुनती रही. सब जैसे मेरे कानों से टकराटकरा कर लौट गया. जो सुना उसे तो आज नहीं कल होना ही था. सच कहा है किसी ने, अपनी लड़ाई सदा खुद ही लड़नी पड़ती है.

रमिया की सारी बातें याद आने लगीं मुझे. हम तो उस के लिए कुछ नहीं कर पाए. हम जैसा एक सफेदपोश आदमी जो अपनी ही पगड़ी बड़ी मुश्किल से बचा पाता है किसी की इज्जत कैसे बचा सकता है. यह पुलिस और मजदूर वर्ग की लड़ाई सामान्य लड़ाई कहां है, यह तो मानसम्मान की लड़ाई है. सब को फैलती आग दिखाई दे रही है पर किसी को वह आग क्यों नहीं दिखती जिस ने न जाने कितनों के घर का मानसम्मान जला दिया?

थानेदारनी और उस के बच्चे का अधकटा शव तो अखबार के पन्नों पर भी आ जाएगा, उन का क्या, जिन की पीड़ा अनसुनी रह गई. क्या करते गरीब लोग? तरीका गलत सही, सही तरीका है कहां? कानून हाथ में ले लिया, कानून है कहां? सुलगती आग एक न एक दिन तो ज्वाला बन कर जलाती ही.

‘‘शुभा, तू सुन रही है न, मैं क्या कह रही हूं. घर के दरवाजे बंद रखना, सुना है वे घरों में घुस कर सब को मारने वाले हैं. अपना बचाव खुद ही करना पड़ेगा.’’

फोन रख दिया मैं ने. अपना बचाव खुद करने के लिए सारे दरवाजेखिड़कियां तो बंद कर लीं मैं ने लेकिन मन की गहराई में कहीं विचित्र सी मुक्ति का भाव जागा. सच कहा है उस ने, अपना बचाव खुद ही करना पड़ता है. अपनी लड़ाई हमेशा खुद ही लड़नी पड़ती है. यह आग कब थमेगी, मुझे पता नहीं, मगर वास्तव में मेरी छाती में ठंडक का एहसास हो रहा था.

Family Story in Hindi

पक्की सहेलियां: किराएदार पंखुड़ी के आने क्यों डर गई थी विनिता?

पति निशांत की प्रमोशन और स्थानांतरण के बाद विनिता अपने 5 वर्षीय बेटे विहान को ले कर हजारीबाग से रांची आ गई. महत्त्वाकांक्षी निशांत को वहां की पौश कालोनी अशोक नगर में कपंनी द्वारा किराए का मकान मिला था, जिस में रांची पहुंचते ही वे शिफ्ट हो गए. मकान बड़ा, हवादार और दोमंजिला था. नीचे मकानमालिक रहते थे और ऊपर विनिता का परिवार.

मकान के पार्श्व में बने बड़े गैरेज के ऊपर भी एक बैडरूम वाला छोटा सा फ्लैट बना था, जो खाली पड़ा था. उस फ्लैट को ऊपरी मंजिल से इस तरह जोड़ा गया था कि दोनों फ्लैटों में रहने वाले आनेजाने के लिए कौमन सीढि़यों का उपयोग कर सकें.

रांची आते ही निशांत ने विहान का ऐडमिशन एक अच्छे स्कूल में करवा कर

औफिस जौइन कर लिया. स्कूल ज्यादा दूर नहीं था पर विनिता को स्कूटी चलाना न आने के कारण निशांत को अपनी कार से औफिस जाते समय विहान को स्कूल छोड़ना और लंच टाइम में आते वक्त उसे वापस लाना पड़ता था. कुछ दिनों तक तो ठीक चला पर नई जगह, नया पद और जिम्मेदारियां, इन सब ने निशांत को धीरेधीरे काफी व्यस्त कर दिया. अब निशांत सुबह 9 बजे निकल जाता और शाम के 7-8 बजे तक ही लौट पाता था, वह भी बिलकुल थका हुआ.

एक दिन निशांत ने विनिता से कहा, ‘‘तुम स्कूटी चलाना क्यों नहीं सीख लेतीं? कम से कम विहान को स्कूल पहुंचाने व लाने का तथा दूसरे छोटेमोटे काम तो कर ही सकती हो.’’

‘‘अरे मुझे क्या जरूरत है स्कूटी सीखने या बाहर के काम करने की. ये काम तो मर्दों के होते हैं, मैं तो घर में ही भली,’’ विनिता बोली.

मजबूरन विहान के लिए निशांत ने औटोरिकशा लगवा दिया. उस के बाद निशांत ने इस संबंध में कोई बात नहीं की. घरेलू और मिलनसार स्वभाव की विनिता खुद को घरगृहस्थी के कामों में ही व्यस्त रखती थी. लगभग डेढ़दो महीने उसे अपने घर को सुव्यवस्थित करने में लग गए. मकानमालकिन की मदद से अच्छी बाई मिल गई, तो विनिता ने चैन की सांस ली. विहान के स्कूल से आने के बाद अब वह उसी के साथ व्यस्त रहती.

घर सैट हो गया तो विनिता ने पासपड़ोस में अपनी पहचान बनानी शुरू करनी चाही पर छोटी जगह से आई विनिता को यह पता नहीं था कि ज्यादातर पौश कालोनी में रहने वाले पड़ोसियों का संबंध सिर्फ हायहैलो और स्माइल तक ही सीमित रहता है. कारण, वे सभी अपनेआप में हर तरह की सुविधा से आत्मनिर्भर होते हैं. 1-2 लोगों के साथ दोस्ती भी हुई पर सिर्फ औपचारिक तौर पर. अत: घर का काम खत्म होने पर जब कभी उसे खाली समय मिलता तो या तो वह टीवी देखती या फिर दिल बहलाने के लिए नीचे मकानमालिक के घर चली जाती.

मकानमालिक बुजुर्ग दंपती थे, जिन के बच्चे विदेश में बसे थे. वे साल में 6 महीने विदेश में ही रहते थे अपने बच्चों के पास. गृहकार्य में दक्ष विनिता कभी कुछ विशेष खाना बनाती तो नीचे जरूर भेजती. नए किराएदार निशांत और विनीता के व्यवहार से बुजुर्ग दंपती बहुत संतुष्ट थे. उन तीनों को अपने बच्चों की तरह प्यार करने लगे थे. ये दोनों भी उन्हें आंटीअंकल कह कर बुलाने लगे. ज्यादातर संडे को छुट्टी होने के कारण चारों कभी ऊपर तो कभी नीचे एकसाथ चाय पी लिया करते थे.

ऐसे ही एक संडे की शाम को निशांत और विनिता नीचे आंटीअंकल के साथ चाय पी रहे थे. तभी अंकल ने पूछा, ‘‘बेटा, आप दोनों को अभी छुट्टी ले कर घर तो नहीं जाना है?’’

निशांत ने कहा, ‘‘नहीं अंकल, अभी अगले 6-7 महीने तो सोच भी नहीं सकता, क्योंकि औफिस का बहुत सारा काम पूरा करना है मुझे.’’

विनिता से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘मगर अंकल आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’

‘‘वह इसलिए कि हम दोनों निश्चिंत हो कर कुछ महीनों के लिए अपने बच्चों से मिलने विदेश उन के पास जा सकें,’’ आंटी ने कहा तो विनिता मन ही मन घबरा गई.

घर आ कर भी विनिता सोचती रही कि इन दोनों के जाने के बाद तो घर सूना हो जाएगा, वह बिलकुल अकेली हो जाएगी. भले ही वह रोज नहीं मिलती उन से, पर कम से कम उन की आवाजें तो आती रहती हैं उस के कानों में.

सोते समय निशांत ने विनिता को सीरियस देखा तो पूछ लिया, ‘‘क्या बात है,

आंटीअंकल के जाने से तुम परेशान क्यों हो रही हो?’’

विनिता ने अपने दिल की बात बताई तो निशांत को भी एहसास हुआ कि वाकई इतने बड़े घर में विनिता अकेली हो जाएगी.

थोड़ी देर बाद विनिता ने कहा, ‘‘निशांत, क्यों न आंटीअंकल को गैरेज वाले फ्लैट में एक किराएदार रखने की सलाह दी जाए, जिस से उन को इनकम हो जाएगी और हम लोगों का सूनापन दूर हो जाएगा.’’

निशांत को विनिता की बात जंच गई. अगले दिन औफिस जाते वक्त निशांत ने जब अंकल से इस बात की चर्चा की तो उन्होंने न केवल किराएदार रखने वाली उन की बात का स्वागत किया, बल्कि नया किराएदार ढूंढ़ने का जिम्मा भी निशांत को ही सौंप दिया.

3-4 दिनों के बाद शाम के समय विनिता नीचे आंटीअंकल के पास बैठी हुई निशांत का इंतजार कर रही थी. तभी चुस्त कपड़े, हाई हील पहने और बड़ा सा बैग कंधे से लटकाए एक आधुनिक सी दिखने वाली लड़की कार से उतर गेट खोल कर अंदर दाखिल हुई. आते ही उस ने बड़ी संजीदगी से पूछा, ‘‘माफ कीजिएगा, क्या उमेशजी का यही घर है?’’

‘‘जी हां, बताइए क्या काम है? मैं ही हूं उमेश,’’ अंकल बोले.

‘‘गुड ईवनिंग सर, मैं पंखुड़ी,’’ कह कर उस ने अंकल से हाथ मिलाया. फिर कहने लगी, ‘‘आज निशांत से पता चला कि आप के घर में एक फ्लैट खाली है किराए के लिए. मैं उसी सिलसिले में आई हूं.’’

‘अच्छा तो यह फैशनेबल सी लड़की किराएदार बनने आई है,’ सोच संकोची स्वभाव की विनिता उठ कर ऊपर जाने लगी. तभी अंकल ने अपनी पत्नी और विनिता से उस का परिचय करवाया. पंखुड़ी ने दोनों की तरफ मुखातिब होते हुए ‘हैलो’ कहा. फिर अंकल से बातचीत करने और फ्लैट देखने चली गई. बड़ा अटपटा लगा विनिता को कि उम्र में इतनी छोटी होने पर भी कितने आराम से उस ने सिर्फ हैलो कहा. कम से कम वह उसे न सही आंटी को नमस्ते तो कह सकती थी, उन की उम्र का लिहाज कर के. खैर, उसे क्या. उस ने मन ही मन सोचा.

अंकल से बात करते समय विनिता ने सुना कि पंखुड़ी एक मल्टी नैशनल कंपनी में ऐग्जीक्यूटिव पद पर है. वह अंकल से कह रही थी, ‘‘देखिए मेरे वर्किंग आवर्स फिक्स नहीं हैं, शिफ्टों में ड्यूटी करनी पड़ती है. मेरे आनेजाने का समय भी कोई निश्चित नहीं है, कभी देर रात आती हूं तो कभी मुंह अंधेरे निकल जाती हूं. कभीकभी तो टूअर पर भी जाना पड़ता है 2-3 दिनों के लिए. आप को कोई आपत्ति तो नहीं?

‘मैं इस बात को पहले ही पूछ लेना चाहती हूं, क्योंकि अभी जहां मैं रह रही हूं उन्हें इस बात पर आपत्ति है… लोग लड़की के देर रात घर आने को सीधे उस के करैक्टर से जोड़ कर देखते हैं… एकदम घटिया सोच,’’ कह कर वह चुप हो गई.

इस के बाद क्या हुआ, यह पता नहीं. विनिता वहां से अपने घर चली आई. उसे वह लड़की बहुत तेजतर्रार और बिंदास लगी.

उस शाम निशांत काफी देर से घर लौटा. खापी कर तुरंत सो गया. पंखुड़ी के बारे में पूछने का मौका ही नहीं मिला विनिता को. अगले शनिवार की शाम जब देर रात विनिता परिवार सहित शौपिंग कर के लौटी तो देखा खाली पड़े फ्लैट की लाइट जल रही है. शायद कोई नया किराएदार आ गया है. नीचे सीढ़ी का दरवाजा बंद कर के विनिता हैलो करने की नीयत से मिलने गई तो देखा ताला लगा था.

रात करीब 12 बजे घंटी की आवाज से विनिता की नींद खुली. उस ने निशांत को

उठाया और नीचे यह सोच कर भेजा कि अंकलआंटी को कुछ जरूरत तो नहीं?

थोड़ी देर में निशांत वापस आया और सोने लगा तो विनिता ने पूछा, ‘‘कौन था?’’

निशांत ने कहा, ‘‘अंकल की नई किराएदार पंखुड़ी.’’

विनिता ने तुरंत कहा, ‘‘निशांत, तुम कोई घरेलू, समझदार, किराएदार नहीं ढूंढ़ सकते थे अंकल के लिए? वक्तबेवक्त आ जा कर हमें डिस्टर्ब करती रहेगी. अंकल तो चले जाएंगे अपने बच्चों के पास, पर साथ रहना तो हम दोनों को ही है.’’

नींद से भरा निशांत उस समय बात करने के मूड में नहीं था. गुस्से से बोला, ‘‘अरे वह पढ़ीलिखी नौकरी करने वाली लड़की है. वह कब जाए या कब आए इस से हमें क्या फर्क पड़ेगा भला? आज पहला दिन है, अपने साथ सीढ़ी के दरवाजे की चाबी ले जाना भूल गई थी वह,’’ कह कर वह गहरी नींद में सो गया.

विनिता को निशांत का इस तरह बोलना बहुत बुरा लगा. उस दिन पंखुड़ी पर और भी गुस्सा आया. मृदुभाषी और समझदार स्वभाव की विनिता पति की व्यस्तता को समझती थी. उसे इस बात से कोई शिकायत नहीं रहती कि निशांत देर से घर क्यों आता है, बल्कि पति के आने पर मुसकराते हुए वह उसे गरमगरम चाय पिलाती ताकि उस की थकान मिट जाए.

अगली सुबह सब थोड़ी देर से उठे. चाय बनाने लगी तो विनिता को पंखुड़ी का ध्यान आया. उस ने निशांत से पूछे बगैर उस के लिए भी चाय बना दी और दरवाजा खटखटा कर चाय पहुंचा आई. उनींदी आंखों से पंखुड़ी ने दरवाजा खोल कप ले कर थैंक्स कह झट दरवाजा बंद कर लिया.

विनिता सकपका गई. कोई तमीज नहीं कि 2 मिनट बात ही कर लेती. शायद नींद डिस्टर्ब हो गई थी उस की. सारा दिन घर बंद रहा. सो रही होगी, शाम को सजधज

कर पंखुड़ी चाय का कप वापस करने विनिता के पास आई. वैसे तो वह विनिता से मिलने आई थी, पर सारा समय निशांत और विहान से ही इधरउधर की बातें करती रही.

विनिता के पूछने पर कि चाय बनाऊं तुम्हारे लिए पंखुड़ी ने कहा, ‘‘थैंक्स, मैं चाय नहीं पीती.’’ ‘चाय की जगह जरूर यह कुछ और पीती होगी यानी बोतल वाली चाय’ विनिता ने सोचा. फिर यह पूछने पर कि किचन में खाना बनाना अभी शुरू किया या नहीं. पंखुड़ी तपाक से बोली, ‘‘अरे, किचन का झमेला मैं नहीं रखती. कौन कुकिंग करे? समय की बरबादी है. बाहर ही खाती हूं या पैक्ड खाना मंगवा लेती हूं.’’

थोड़ी देर बाद उस ने अपनी कार निकाली और चली दी कहीं घूमने. जाते वक्त हंसते हुए कहा, ‘‘डौंट वरी निशांत आज मैं चाबी साथ लिए जा रही हूं.’’ इस बात पर निशांत और पंखुड़ी ने एक जोरदार ठहाका लगाया, पर पता नहीं हंसमुख स्वभाव वाली विनिता को हंसी क्यों नहीं आई.

रात को सोते समय विनिता ने निशांत से कहा, ‘‘हाय, कैसी है यह पंखुड़ी… लड़कियों वाले तो लक्षण ही नहीं हैं इस में. सारे काम मर्दों वाले करती है, शादी कर के कैसे घर बसाएगी यह? ऐसी ही लड़कियों की ससुराल और पति से नहीं बनती है. पति दुखी रहता है या तलाक हो जाता है. एक मैं थी कालेज पहुंचतेपहुंचते सिलाईकढ़ाई के अलावा घरगृहस्थी का भी सारा काम सीख लिया था?’’

निशांत ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘वह खाना बनाना नहीं जानती है, यह कौन सी बुराई हुई उस की? देखती नहीं कितनी स्मार्ट, मेहनती, आत्मनिर्भर और औफिस के कामों में दक्ष है वह… दुखी सिर्फ इस जैसी लड़की के पति ही क्यों, दुखी तो उन

घरेलू पत्नियों के पति भी हो सकते हैं, जो इस आधुनिक जमाने में भी खुद को बस घर की चारदीवारी में ही कैद रखना पसंद करती हैं. छोटेमोटे कामों के लिए भी पूर्णतया पिता, पति, भाई या बेटे पर निर्भर… बदलते समय के साथ ये खुद नहीं बदलती हैं उलटे जो बदल रहा है उस में भी कुछ न कुछ खोट निकालती रहती हैं.’’

विनिता ने निशांत का इशारा समझ लिया था कि पूर्णतया निर्भर होने वाली बात किसे इंगित कर के कही जा रही है. इस के अलावा निशांत द्वारा पंखुड़ी की इतनी तारीफ करना उसे जरा भी नहीं सुहाया. दिल ने हौले से कहा कि सावधान विनिता. ऐसी ही लड़कियां दूसरों का घर तोड़ती हैं. आजकल जब देखो निशांत पंखुड़ी की तारीफ करता रहता है.

कुछ दिनों बाद आंटीअंकल विदेश चले गए. पंखुड़ी अपनी दुनिया में मस्त और विनिता अपनी गृहस्थी में. मगर जानेअनजाने विनिता पंखुड़ी की हर गतिविधि पर ध्यान देने लगी थी कि कब वह आतीजाती है या कौन उसे ले जाने या छोड़ने आता है. ऐसा नहीं था कि पंखुड़ी को इस बात का पता नहीं था. वह सब समझती थी पर जानबूझ कर उसे इगनोर करती, क्योंकि उस के दिमाग में था कि विनिता जैसी हाउसवाइफ के पास कोई काम नहीं होता दिन भर सिवा खाना बनाने और लोगों की जासूसी करने के.

इस तरह आपस में हायहैलो होते हुए भी एक अदृश्य सी दीवार खिंच गई थी दोनों में.

2 नारियां, पढ़ीलिखी, लगभग समान उम्र की पर बिलकुल विपरीत सोच और संस्कारों वाली. एक के लिए पति, बच्चा और घरगृहस्थी ही पूरी दुनिया थी तो दूसरी के लिए घर सिर्फ रहने और सोने का स्थान भर.

एक बार विनिता ने पंखुड़ी को पिछले 24 घंटों से कहीं आतेजाते नहीं देखा. पहले

सोचा कि उसे क्या, वह क्यों चिंता करे पंखुड़ी की? उस की चिंता करने वाले तो कई लोग होंगे या फिर आज कहीं जाने के मूड में नहीं होगी स्मार्ट मैडम. पर जब दिल नहीं माना तो बहाना कर के विहान को भेज दिया यह कह कर कि जाओ पंखुड़ी आंटी के साथ थोड़ी देर खेल आओ. मगर कुछ ही देर में विहान दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘मम्मी… मम्मी… मैं कैसे खेल सकता हूं आंटी के साथ, उन्हें तो बुखार है.’’

बुखार का नाम सुनते ही विनिता तुरंत पंखुड़ी के घर पहुंच गई. घंटी बजाई तो अंदर से धीमी आवाज आई, ‘‘दरवाजा खुला है. अंदर आ जाइए.’’

अंदर दाखिल होने पर विनिता ने देखा कि पंखुड़ी कंबल ओढ़े बिस्तर पर बेसुध पड़ी है. छू कर देखा तो तेज बुखार से बदन तप रहा था. चारों तरफ निगाहें दौड़ाईं, सारा घर अस्तव्यस्त दिख रहा था. एक भी सामान अपनी जगह नहीं. तुरंत भाग कर अपने घर आई, थर्मामीटर और ठंडे पानी से भरा कटोरा लिया और वापस पहुंची पंखुड़ी के पास. बुखार नापा, सिर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखनी शुरू कीं. थोड़ी देर बाद बुखार कम हुआ और जब पंखुड़ी ने आंखें खोलीं तो विनिता ने पूछा, ‘‘दवाई ली है या नहीं?’’

पंखुड़ी ने न कहा और फिर इशारे से बताया कि दवा कहां रखी है? विनिता ने उसे बिस्कुट खिला दवा खिलाई और फिर देर तक उस का सिर दबाती रही. जब पंखुड़ी को थोड़ा आराम हुआ तो विनिता अपने घर लौट गई. आधे घंटे बाद वह ब्रैड और गरमगरम सूप ले कर पंखुड़ी के पास लौटी. उस के मना करने पर भी उसे बड़े प्यार से खिलाया. इस तरह पंखुड़ी के ठीक होने तक विनिता ने उस का हर तरह से खयाल रखा.

पंखुड़ी विनिता की नि:स्वार्थ सेवा देख शर्मिंदा थी. उसे अपनी इस सोच पर अफसोस हो रहा था कि विनिता जैसी हाउसवाइफ के पास कोई काम नहीं होता सिवा जासूसी करने और खाना पकाने के. अगर विनिता ने समय पर उस का हाल नहीं लिया होता तो पता नहीं उसे कितने दिनों तक बिस्तर पर रहना पड़ता.

खैर, इस के बाद विनिता के प्रति पंखुड़ी का नजरिया बदल गया. अब जब भी विनिता के घर आती तो निशांत, विहान के साथसाथ विनिता से भी बातें करती. विनिता की संगति में रह कर अब उस ने अपने घर को भी सुव्यवस्थित रखना शुरू कर दिया था.

आजकल निशांत पहले से भी ज्यादा व्यस्त रहने लगा था. फिर एक दिन चहकता हुआ घर आया. चाय पीते हुए निशांत बता रहा था कि उस के काम से खुश हो कंपनी की तरफ से उसे फ्रांस भेजा जा रहा है प्रशिक्षण लेने के लिए. अगर वह अपने प्रशिक्षण में अच्छा करेगा तो अनुभव हासिल करने के लिए परिवार सहित 2 साल तक उसे फ्रांस में रहने का मौका भी मिल सकता है.

पति की इस उपलब्धि पर विनिता बहुत खुश हुई, लेकिन यह सुन कर कि प्रशिक्षण के दौरान निशांत को अकेले ही जाना है, उस का कोमल मन घबरा उठा. निशांत के बिना अकेले कैसे रह पाएगी वह विहान को ले कर? घर में भी कोई ऐसा फ्री नहीं है, जिसे 3 महीनों के लिए बुला सके. विनिता ने निशांत को बधाई दी फिर धीरे से कहा, ‘‘अगर फ्रांस जाना है तो हम दोनों को भी अपने साथ ले चलो वरना मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगी, क्या तुम ने तनिक सोचा है कि तुम्हारे जाने के बाद यहां मैं अकेले विहान के साथ कैसे रह पाऊंगी 3 महीने?’’

भविष्य के सुनहरे ख्वाब देखने में डूबे निशांत को विनिता की यह बात जरा भी नहीं भाई. झल्लाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी समस्या है मेरी नहीं. कितनी बार कहा कि समय के साथ खुद को बदलो, नईनई जानकारी हासिल करो. बाहर का काम

निबटाना सीखो पर तुम ने तो इन कामों को भी औरतों और मर्दों के नाम पर बांट रखा है.

‘‘अब दिनरात मेहनत करने के बाद यह अवसर हाथ आया है तो क्या तुम्हारी इन बेवकूफियों के चक्कर में मैं इसे हाथ से गंवा दूं? हरगिज नहीं. अगर तुम अकेली नहीं रह सकती तो अभी चली जाओ विहान को ले कर अपनी मां या मेरी मां के घर. मेरी तो जिंदगी ही बरबाद हो गई ऐसी पिछड़ी मानसिकता वाली बीवी पा कर,’’ और फिर फ्रैश होने चला गया.

विनिता का दिल धक से रह गया. पति के इस कटु व्यवहार से उस की आंखों से आंसू बहने लगे. लगा उस की तो बसीबसाई गृहस्थी उजड़ जाएगी. साथ ही यह भी महसूस होने लगा कि निशांत भी क्या करे बेचारा, उस के कैरियर का सवाल है. दिल ने कहा इस स्थिति की जिम्मेदार भी काफी हद तक वह खुद ही है.

अब यह बात उस की समझ में आ चुकी थी कि वर्तमान समय में हाउसवाइफ को सिर्फ घर के अंदर वाले काम ही नहीं, बल्कि बाहर वाले जरूरी काम भी आने चाहिए. आज पढ़ीलिखी होने के बावजूद अपने को असफल, हीन और असहाय समझ रही थी. कारण घर के बाहर का कोई काम वह करने के लायक नहीं थी. इतनी बड़ी खुशी मिलने पर भी पतिपत्नी में तनाव उत्पन्न हो गया था.

अगले दिन चाय पीते समय पंखुड़ी भी वहां पहुंच गई. आते ही जोश के साथ निशांत को बधाई दी और पार्टी की मांग करने लगी.

निशांत का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ था. उस ने कहा, ‘‘अरे कैसी बधाई और कैसी पार्टी पंखुड़ी? मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा इस जिंदगी में कभी.’’

पंखुड़ी को निशांत की बात कुछ समझ नहीं आई. विनिता ने बात छिपानी चाही कि इस बिंदास लड़की से बताने का क्या फायदा, उलटे कहीं इस ने जान लिया तो खूब हंसी उड़ाएगी मेरी, पर गुस्से में निशांत ने अपनी सारी परेशानी पंखुड़ी को सुना

डाली.

विनिता तो मानो शर्म के मारे धरती के अंदर धंसी जा रही थी. मगर सारी बात ध्यान से सुनने के बाद पंखुड़ी हंसने लगी और फिर हंसतेहंसते ही बोली, ‘‘डौंट वरी निशांत, यह भी कोई परेशानी है भला? इस का समाधान तो कुछ दिनों में ही हो जाएगा. आप अपनी पैकिंग और मेरी पार्टी की तैयारी शुरू कर दीजिए.’’

निशांत हैरान सा पंखुड़ी का मुंह देखने लगा. विनिता की तरफ मुखातिब होते हुए पंखुड़ी ने कहा, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं विनिता. अगर कुछ सीखने का पक्का निर्णय कर लिया हो तो आज से ही मैं तुम्हें इंटरनैट का काम सिखाना शुरू कर सकती हूं और निशांत के जाने के पहले धीरेधीरे बाहर के सारे काम भी मैं सिखा दूंगी,’’ और फिर अपना लैपटौप लेने अपने घर चली गई.

विनिता सन्न थी अपनी संकीर्ण सोच पर. जिस पंखुड़ी को वह तेजतर्रार और दूसरों का घर तोड़ने वाली लड़की समझती थी, वह इतनी जिम्मेदार और उसे ले कर इतनी संवेदनशील होगी, इस की तो कल्पना भी विनिता ने नहीं की थी.

मिनटों में पंखुड़ी वापस आ गई. अपना लैपटौप औन करते हुए बोली, ‘‘विनिता मैं तुम्हारी गुरु तो बनूंगी, पर एक शर्त है तुम्हें भी गुरु बनना पड़ेगा मेरी.’’

विनिता के मुंह से निकला, ‘‘भला वह क्यो?’’

पंखुड़ी ने कहा, ‘‘देखो, तुम्हें देख कर मैं ने भी अपना घर बसाने का फैसला कर लिया है, पर घरगृहस्थी के काम में मैं बिलकुल जीरो हूं. मैं ने महसूस किया है अगर आज के जमाने में हाउसवाइफ के लिए बाहर का काम सीखना जरूरी होता है तो उसी तरह सफल और शांतिपूर्ण घरगृहस्थी चलाने के लिए वर्किंग लेडी को भी घर और किचन का थोड़ाबहुत काम जरूर आना चाहिए. अगर तुम चाहो तो अब हम

दोनों एकदूसरे की टीचर और स्टूडैंट बन कर सीखनेसिखाने का काम कर सकती हैं. मैं तुम्हें बाहर का काम करना सिखाऊंगी और तुम मुझे किचन और घर संभालना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. यह भी कोई पूछने की बात है?’’ खुश हो कर विनिता ने पंखुड़ी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘पर मेरी भी एक शर्त है कि यह सीखनेसिखाने का काम हम दोनों स्टूडैंटटीचर की तरह नहीं, बल्कि पक्की सहेलियां बन कर करेंगी.’’

‘‘मंजूर है,’’ पंखुड़ी बोली.

फिर एक जोरदार ठहाका लगा, जिस में इन दोनों के अलावा निशांत की आवाज भी शामिल थी. माहौल खुशनुमा बन चुका था.

Short Story in Hindi: पेशी- क्या थी न्यायाधीश के बदले व्यवहार की वजह?

लेखक- डा. नंदकिशोर चौरसिया

Short Story in Hindi: प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, शिवपुर में डा. राजेश इकलौते चिकित्सक हैं. आज वे बहुत जल्दी में हैं क्योंकि उन्हें सरकारी गवाह के तौर पर गवाही देने के लिए 25 किलोमीटर दूर शाहगांव की अदालत में जाना है.

डा. राजेश ने चिकित्सालय में 2-4 मरीज देखे, फिर सिस्टर को बुला कर कहा, ‘‘सिस्टर, मैं शाहगांव कोर्ट जा रहा हूं, आप मरीजों को दवाएं दे दीजिएगा, कोई अधिक बीमार हो तो रेफर कर दीजिएगा.’’

डा. राजेश बाइक से शाहगांव के लिए चल दिए, वे ठीक 11 बजे न्यायालय पहुंच गए. न्यायालय के बाहर सन्नाटा था. कुछ पक्षी, विपक्षी और निष्पक्षी लोग, चायपान की दुकान में चायपान कर रहे थे.

डा. राजेश ने सोचा कि बयान हो जाए तभी खाना खाऊंगा और 1 बजे तक शिवपुर पहुंच जाऊंगा. इसलिए वे सीधे न्यायालय के कक्ष में चले गए. न्यायालय के कक्ष में 1-2 बाबू और 1 पुलिस वाला फाइलें उलटपलट रहे थे. डा. राजेश ने पुलिस वाले को समन दिखा कर उस को पदोन्नत करते हुए कहा, ‘‘चीफ साहब, मेरा बयान शीघ्र करा दें, अपने अस्पताल में मैं अकेला हूं.’’

‘‘साहब अभी चैंबर में हैं, उन के आने पर बात कर लीजिएगा,’’ पुलिस वाले ने

डा. राजेश से कहा.

डा. राजेश कक्ष में पड़ी एक बैंच पर बैठ गए. उन्होंने देखा कि न्यायाधीश की टेबल पर एक लैपटौप रखा है और टेबल के दोनों छोर पर एकएक टाइपिंग मशीन रखी थी. न्यायाधीश महोदय की कुरसी के पीछे की दीवार पर हृष्टपुष्ट और मुसकराते हुए गांधीजी की तसवीर टंगी थी. तसवीर के  गांधीजी अदालत की ओर न देख कर बाहर खिड़की की ओर देख रहे थे. तसवीर पर 4-5 माह पुरानी, सूखी फूलों की एक माला टंगी थी. केवल जज साहब की कुरसी के ऊपर पंखा चल रहा था. तब डा. राजेश ने न्यायालय के सेवक से कहा, ‘‘भाई, गरमी लग रही है, पंखा चला दो.’’

सेवक तपाक से बोला, ‘‘इन्वर्टर का कनैक्शन केवल साहब के लिए है.’’

कमरे के सारे लोग पसीनापसीना हो रहे थे. पक्षीविपक्षी (वादी, प्रतिवादी) अपने वकीलों के साथ आ कर बाबू से बात कर रहे थे, वे शायद अगली पेशी की सुविधाजनक तारीख ले रहे थे.

बाबू लोग फाइलें व कागज ले कर साहब के कक्ष में आजा रहे थे. फिर जज साहब के कक्ष से डिक्टेशन और टाइपिंग की आवाजें आने लगीं. वे शायद कोई फैसला लिखवा रहे थे. अब तक 1 बज गया था. डा. राजेश गरमी और अनावश्यक बैठने के कारण विचलित हो कर सोचने लगे कि जैसे उन्होंने अपराध किया हो. उन के मन में बचाव पक्ष के वकील के प्रश्नों, तर्कों, वितर्कों का भय और चिंतन भी था. तभी सेवक, साहब की टेबल पर 1 गिलास पानी रख गया.

साहब कुरसी पर आए. उन के चेहरे पर शासन और अभिजात्य की आभा प्रदीप्त थी. उन्होंने दो घूंट पानी पिया, कुछ फाइलें देखीं. तभी लोक अभियोजक, कुछ वकील और कुछ वादीप्रतिवादी आ गए. साहब ने जब तक फैसला सुनाया तब तक भोजनावकाश हो गया था.

भोजनावकाश के बाद जज साहब आए तब डा. राजेश ने विनती की, ‘‘सर, मैं डा. राजेश हूं, मेरा बयान हो जाए तो अच्छा है.’’

न्यायाधीश महोदय ने उन का समन देखा, फाइल देखी. उन्होंने प्रतिवादी को आवाज लगवाई परंतु तब तक प्रतिवादी का वकील नहीं आया था. तब जज साहब ने कहा, ‘‘डाक्टर साहब, थोड़ा और रुकें, आप को प्रमाणपत्र तो पूरे दिन का ही दिया जाएगा.’’

प्रतिवादी ने वकील को बुलवाया, वह करीब 4 बजे आया. वकील ने फाइल देख कर कहा कि डाक्टर ने तो वादी को कोई चोट ही नहीं लिखी, इसलिए बयान की कोई आवश्यकता नहीं है. डाक्टर को कोर्ट आने का प्रमाणपत्र दिया गया. डा. राजेश खिन्न मन से, भुनभुनाते हुए वापस शिवपुर लौट गए.

न्यायाधीश महोदय अवकाश के बाद शाहगांव लौट रहे थे. शिवपुर के पास ही दिन के 3 बजे उन की गाड़ी का ऐक्सीडैंट हो गया. उन के साथी को कई जगह चोट आई और सिर से खून बहने लगा. साथी को ले कर जज साहब शिवपुर अस्पताल आए पर अस्पताल में ताला लगा था. डाक्टर के आवास में भी ताला लगा था. अस्पताल का सेवक दौड़ कर सिस्टर को बुला लाया.

जज साहब ने सिस्टर को डांटते हुए कहा, ‘‘अस्पताल क्यों बंद है, डाक्टर कहां है?’’

सिस्टर ने धीरे से बताया, ‘‘सर, अस्पताल तो 1 बजे बंद हो जाता है और डाक्टर साहब तो पेशी पर गए हैं.’’

जज साहब ने सिस्टर से कहा, ‘‘फोन कर के तुरंत डाक्टर को बुलाओ.’’

सिस्टर ने डाक्टर को फोन लगाया और रिंग जाने पर उस ने फोन जज साहब को दे दिया.

उधर से आवाज आई, ‘‘हैलो.’’

‘‘मैं, सिविल जज, आप के अस्पताल से बोल रहा हूं. मेरे साथी को काफी चोट लगी है.’’

‘‘सर, मैं अभी आप के कोर्ट में ही हूं, जितनी देर में मैं आऊंगा उतनी देर में तो आप शाहगांव आ जाएंगे, फिर यहां पर सुविधा भी अधिक है,’’ डा. राजेश ने विनयपूर्वक  कहा.

जज साहब जब तक साथी को ले कर शाहगांव आए तब तक काफी खून बह चुका था. 2 यूनिट खून देने के बाद साथी को होश आया.

न्यायालय में आ कर जज साहब ने स्टाफ को निर्देशित किया कि अगर कोई चिकित्सक गवाही को आए तो यथाशीघ्र उस का बयान करा कर उसे जाने दिया जाए क्योंकि अस्पताल में बहुत से मरीज उस की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं.

Short Story in Hindi

Crime Story: दो खजूर- मुस्तफा क्या साबित करना चाहता था?

Crime Story: बगदाद के बादशाह मीर काफूर ने अपने विश्वासी सलाहकार आसिफ मुस्तफा को बगदाद का नया काजी नियुक्त किया, क्योंकि निवर्तमान काजी रमीज अबेदिन अब बूढ़े हो चले थे और उन्होंने बादशाह से गुजारिश की थी कि अब उन का शरीर साथ नहीं दे रहा है इसलिए उन्हें राज्य के काजी पद की खिदमत से मुक्त कर दें. बगदाद राज्य का काजी पद बहुत महत्त्वपूर्ण और जिम्मेदारी भरा होता था. बगदाद के काजी पद पर नियुक्ति की खुशी में आसिफ मुस्तफा ने एक जोरदार दावत दी. उस दावत में उस के मातहत राज्य के सभी न्यायिक दंडाधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी आमंत्रित थे. राज्य के लगभग सभी सम्मानित व्यक्ति भी दावत में उपस्थित थे.

सब लोग दावत की खूब तारीफ कर रहे थे, क्योंकि वहां हर चीज मजेदार बनी थी. आसिफ मुस्तफा सारा इंतजाम खुद देख रहा था. सुरीले संगीत की धुनें वातावरण को और भी रसमय बना रही थीं. अचानक आसिफ मुस्तफा को ध्यान आया कि उस ने एक चीज तो मंगवाईर् ही नहीं. आजकल खजूर का मौसम चल रहा है. अत: उस फल का दावत में होना जरूरी है. बगदाद में पाया जाने वाला अरबी खजूर बहुत स्वादिष्ठ होता है. दावतों में भी उसे चाव से खाया जाता है.

आसिफ ने अपने सब से विश्वसनीय सेवक करीम को बुलाया और उसे सोने का एक सिक्का देते हुए कहा, ‘‘जल्दी से बाजार से 500 अच्छे खजूर ले आओ.’’ बगदाद में खजूर वजन के हिसाब से नहीं बल्कि संख्या के हिसाब से मिलते थे. सेवक फौरन रवाना हो गया. थोड़ी देर बाद लौटा तो उस के पास खजूरों से भरा हुआ एक बड़ा थैला था.

आसिफ मुस्तफा ने कहा, ‘‘थैला जमीन पर उलटो और मेरे सामने सब खजूर गिनो.’’

करीम अपने मालिक के इस आदेश पर दंग रह गया. वह सोच भी नहीं सकता था कि उस का मालिक उस जैसे पुराने विश्वसनीय सेवक पर इस तरह शक करेगा. सब मेहमान भी हैरत से आसिफ की तरफ देखने लगे.

करीम ने फल गिनने शुरू किए. जब गिनती पूरी हुई तो वह थरथर कांपने लगा. खजूर 498 ही थे. आसिफ बिगड़ कर बोला, ‘‘तुम ने बेईमानी की है. तुम ने 2 खजूर रास्ते में खा लिए हैं. तुम्हें इस जुर्म की सजा अवश्य मिलेगी.’’

करीम ‘रहमरहम…’ चिल्लाता रहा, लेकिन आसिफ मुस्तफा जरा भी नहीं पसीजा. उस ने सिपाहियों को आदेश दिया कि करीम को फौरन गिरफ्तार कर लिया जाए. आसिफ के इस बरताव से सारे मेहमान हक्केबक्के थे कि इतनी सी बात पर एक पुराने वफादार सेवक को सजा देना कहां का इंसाफ है.

आसिफ ने आदेश दिया, ‘‘करीम की पीठ पर तब तक कोड़े बरसाए जाएं, जब तक वह अपना अपराध कबूल न कर ले.’’ उस के आदेश का पालन किया जाने लगा. करीम की चीखें शामियाने में गूंजने लगीं. जब पिटतेपिटते करीम लहूलुहान हो गया तो उस ने चिल्ला कर कहा, ‘‘हां, मैं ने 2 खजूर चुरा लिए, 2 खजूर चुरा लिए. मीठेमीठे खजूर देख कर मेरा जी ललचा गया था. मैं अपराध कबूल करता हूं. मुझे छोड़ दो.’’

उस की इस बात पर मेहमानों में खुसुरफुसुर होने लगी कि अब ईमानदारी का जमाना नहीं रहा. जिसे देखो, वही बेईमानी करता है. किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वफादार सेवक पर भी नहीं. सभी करीम को कोस रहे थे, जिस की वजह से दावत का मजा किरकिरा हो गया था. तभी आसिफ मुस्तफा ने कहा, ‘‘सिपाहियो, खोल दो इस की जंजीरें.’’

जंजीरें खोल दी गईं. करीम को आसिफ के सामने पेश किया गया. सारे मेहमान चुपचाप देख रहे थे कि अब आसिफ मुस्तफा उस के साथ क्या व्यवहार करता है. सब का विचार था कि करीम ने अपराध स्वीकार कर लिया है इसलिए इसे बंदीगृह में भेज दिया जाएगा या नौकरी से निकाल दिया जाएगा. लेकिन इस के बाद आसिफ मुस्तफा अपनी जगह से उठ कर करीम के पास आया. उस के शरीर से रिसते खून को अपने रूमाल से साफ किया. उस की मरहमपट्टी की और दूसरे साफ कपड़े पहनाए. सभी आश्चर्य करने लगे कि यह क्या तमाशा है. जब करीम रहम की भीख मांग रहा था, तब तो उस की पुरानी वफादारी का लिहाज नहीं किया और अब कबूल चुका है तो उस की मरहमपट्टी हो रही है.

आसिफ मुस्तफा ने करीम से माफी मांगी. फिर मेहमानों से कहने लगा, ‘‘मैं जानता हूं करीम बेकुसूर है. इस ने कोई अपराध नहीं किया. यह देखिए,’’ उस ने अपने कुरते की आस्तीन में से 2 खजूर निकाल कर कहा, ‘‘ये हैं वे 2 खजूर जिन्हें मैं ने पहले ही फुरती से निकाल लिया था. ऐसा मैं ने इसलिए किया था कि आप को बता सकूं कि लोगों को कठोर दंड दे कर जुर्म कबूल करवाना कितनी बड़ी बेइंसाफी है, लेकिन ऐसा हो रहा है.

हमारा काम अपराधियों का पता लगाना और उन के अपराध के लिए उन्हें सजा देना है न कि किसी भी निर्दोष को मार कर उसे चोर साबित करना.’’ सभी आसिफ मुस्तफा की इस सच्ची बात पर वाहवाह कर उठे. उन्हें विश्वास हो गया कि आसिफ वाकई काजी के पद के योग्य है. उस के कार्यकाल में किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलेगी और कुसूरवार बच नहीं पाएगा.

Best Hindi Stories: अरविंद संग अनीता

Best Hindi Stories: ‘‘हैलो…    हां सुनो.’’

‘‘हां बोलो.’’

‘‘बारात बड़ी धूमधाम से निकल गई है.’’

‘‘क्या? जरा जोर से कहो कुछ सुनाई नहीं दे रहा.’’

‘‘अरे मैं बोल रहा हूं कि बरात निकल

गई है.’’

‘‘अच्छा. इतने शोरशराबे में तुम्हारी अवाज ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी.’’

‘‘यहां सब बहुत मस्ती कर रहे हैं. सब बैंड वाले से अपनीअपनी फरमाइश कर उसे परेशान कर रहे हैं.’’

तभी घोड़ी चढ़े दूल्हे राजा का किसी ने फोन झपटा.

‘‘हैलो मैं सविता भाभी बोल रही हूं. देवरानीजी. आज के लिए मेरे देवरजी को छोड़ दो, फिर कल से तो आप के ही हो कर रह जाएंगे. जल्दी मिलते हैं नमस्ते.’’

‘‘अरविंद भैया, यह संभालो अपने शरारती चीकू को और यह फोन अब अपने भैया से ही वापस लेना. हम सब को थोड़ा जश्न मनाते तो देख लो.. उस के बाद तो आप का ही ढोल बजना है,’’ सविता भाभी आज अलग ही मूड में थीं.

खुश वह भीतर से इसलिए भी थीं क्योंकि उन्हें अपनी शादी में पहना हुआ वह 9 किलोग्राम का जोड़ा आज भी बिना अल्टर किए फिट हो रहा था. वे सच में आज किसी दुलहन से कम नहीं लग रही है. वे अपने 4 साल के बेटे को उन की घोड़ी में चढ़ा इठलाते हुए उन का फोन ले उड़ीं.

अरविंद मुसकराता बच्चों से ले कर बूढ़ों तक सब का एकसाथ जबरदस्त उत्साह देख प्रफुल्लित होने लगा.

‘‘चीकू आज क्या है पता है?’’

‘‘आज मेरी शादी है,’’ चीकू अपने चाचा से कहने लगा.

‘‘चीकू, आज तेरी नहीं मेरी शादी है.’’

‘‘नहीं मेरी है… मम्मी से पूछ लो…’’ चीकू ये कह रोंआसा सा होने लगा.

‘‘अच्छा अच्छा ठीक है तेरी ही शादी है. अब तो खुश हो जा.’’

बड़ी मुश्किल से चीकू का मूड ठीक हुआ और बैंड वाले ने ‘आज मेरी यार की शादी है…’ गाना शुरू कर दिया. इसे सुन अरविंद के सारे दोस्त खूब नाचने लगे और वही वीडियो वाला उन सब के हावभाव कैद करने में दिलोजान से जुट गया.

‘दीदी तेरा देवर दीवाना…’ ने जहां रोजमर्रा की भागदौड़ में हैरानपरेशान रहने वाली सभी भाभियों को अपनीअपनी सास को नजरअंदाज कर, साड़ी को कमर में कस ठुमके पर ठुमके लगाने शुरू कर दिए. वहीं ‘मेहंदी लगा के रखना…’ पर सभी नएपुराने जोड़े रोमांटिक हो एकसाथ रंग बिखेरने लगे.

पर हर गाने पर बच्चा पार्टी का कोई मुकाबला नहीं. वे छोटेछोटे हीरो कोई धुन बजी नहीं की कि पूरी ताकत से हाथपैर बिना तालमेल के हिलाते.

उन सब के हर्षोउल्लास देख घोड़ी पर बैठे दोनों दूल्हों अरविंद और चीकू को बड़ा मजा आ रहा था. अरविंद की छोटी बूआ पीछे भीड़ के साथ हौलेहौले छिप कर चलते दूल्हे के पिताजी व अपने भाई को खोज कर खींच कर सभी के बीच ले आई.

वे न न करते रह गए पर सब की जिद्द के सामने कभी न ठुमकने वाले अपने पिताजी को दोनों हाथ ऊपर कर बेफिक्री में गोलमोल घूमते हुए देख अरविंद भावविभोर हो उठा.

वीडियो वाला इन खूबसूरत पलों को भी कैद करने में सफल रहा. बरात में सब से आगे बाल कलाकार व युवावर्ग, उन के पीछे बैंड वाले. उस के पीछे घोड़ी पर बैठे अरविंद और चीकू, उन के पीछे बरात के साथ चलते 50 वर्ष के ऊपर बराती और उन के पीछे एक वीआईपी गाड़ी भी चल रही थी, जिस में ताईजी और बड़े फूफा, जिन्हें शुगर तो पहले से थी ही ऊपर से अभीअभी घुटनों के नए औपरेशन का दर्द. उफ, वे किसे कितनी ज्यादा तकलीफ है की प्रतिस्पर्धा करते आराम से भीतर विराजमान बैठे थे.

‘‘अरे पिंकी, रिंकू कहां रह गईं. बरात द्वार पर आ गई. जरा अनु को देख आओ. वह तैयार हुई कि नहीं…’’ दुलहन की मां सुषमा ने चिंतित हो अपनी दोनों भतीजियों से कहा.

वे सिर से पैर तक रंगीन चमकदार कपड़े पहन सजीं. अपनाअपना घाघरा नजाकत से कुछ इंच उठा अपने सुनहरे सैंडल की टकटक करतीं अपनी दीदी के कमरे की ओर बढ़ गईं.

‘‘अनीता दीदी आप तैयार हो गई?’’ भीतर बैठी अनीता के कानो में पिंकीरिंकू की बांसुरी सी आवाज पड़ी.

‘‘हां 1 मिनट रुको फोटोग्राफर फोटो ले

रहे हैं.’’

‘‘दीदी हमें भी देखना है, हमें भी देखना है,’’ वे खुशी से उछलती हुई कहने लगीं.

‘‘भैया जरा दरवाजा खोल कर इन्हें आने देना.’’

कभी कुरसी पर बैठ, कभी आडे़तिरछे खड़े हो, कभी गजरा पकड़े मेहंदी देखते. अनीता को मुसकराते पोज देते मारते देख पिंकीरिंकू कहीं अपनीअपनी शादी के सपनों में गोते मारने लगीं.

‘‘तुम किसी काम से आई थीं?’’ अनीता ने अपने फोटो सैशन के बीच में पूछा.

‘‘अरे हां दीदी, वह बरात आ चुकी है हम वही बताने आई थीं.’’

‘‘उफ, इतनी देर से क्यों नहीं बताया? भैया आप खत्म करो बस हो गया,’’ अनीता अपनेआप को आईने में निहारते हुए जल्दीजल्दी चुन्नी, मेकअप ठीक करने लगी.

बाहर से किसी ने दरवाजे को खटखटाते हुए कहा, ‘‘दीदी जल्दी करो… जीजाजी स्टेज पर पहुंच गए हैं…’’

‘‘हां, बस हो गया. चलो…’’ शरमाती, घबराती अनीता बारबार अपनी सहेलियों से एक ही सवाल पूछती रही. ‘‘मैं अच्छी तो दिख रही हूं न? मैं अच्छी तो दिख रही हूं न?’’

2-4 बार, ‘हां तू बहुत सुंदर दिख रही है…’ सुनने के बाद अचानक अनीता का आत्मविश्वास बढ़ गया.

अनीता की सहेलियां, भाईबहन बड़े प्रेम से उसे धीरेधीरे खुले आसमान के नीचे हरे लौन में, हौलेहौले चलती पवन के बीच, लाल कालीन से गुजरते, उसे फूलों से सजे स्टेज की ओर बढ़ाने लगे.

वहीं डीजे वाले बाबू ने उन्हें आते देख अपनी धुन झट से बदल कर ‘बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है…’ बजाया.

यह सुन वरवधू दोनों ओर के वीडियो व फोटोग्राफर अरविंद को अकेला छोड़ तुरंत अनीता की तरफ भागे.

एक उसे आहिस्ताआहिस्ता चलने को कहने लगा तो दूसरा थोड़ा ऊपर देखो थोड़ा ओर बसबस थोड़ा सा नीचे कहने लगा.

लड़की के पिता केशवजी दूर से बेटी को दुलहन सजी देख अपने जज्बातों पर काबू न कर पाए और वे अपने दिल पर हाथ रख कुरसी पर धम्म से बैठ गए.

‘मेरी बेटी इतनी सी थी. कैसे इतनी जल्दी बड़ी हो गई. आज बाप का आंगन छोड़ कर अपने पिया के घर चली जाएगी मेरी बच्ची,’ मन ही मन सोच वे रोंआसे हो गए.

अपनी लाडली अनु को आज ऐसे देख कर उन की हालत जरूर ऐसी होनी है, यह उन की पत्नी बरसों पहले से जानती थी.

‘‘आप अपनेआप को संभालो. इसी शहर में तो विदा हो रही है. देखना उस का एक पैर मायके और दूसरा ससुराल में होगा,’’ सुषमाजी उन के कंधे को थपथपाते हुए कहने लगीं.

‘‘आज तुम्हारे बाबूजी को नमन सुषमा. एक बाप के लिए कितना कठिन पल होता है. अपने कलेजे के टुकड़े को किसी और को सौंपना.’’

‘‘यह तो विधि का विधान है… हर पिता को करना होता है. अब चलिए आंसू पोंछो खुशी का मौका है. ऐसे उदास होना अच्छा लगता है क्या?’’

स्टेज पर थर्मोकोल पर बने दिल आकार पर तीर चीरते के बीच लिखित, ‘अरविंद संग अनीता’ की सजावट के सामने खड़ी नवजोड़ी स्टेज पर आतेजाते मेहमानों के साथ फोटो खिंचवा रही थी तो चीकू बारबार उन के बीच घुसने की कोशिश कर रहा था.

चीकू को संभालने के लिए सविता भाभी को बुलवाया गया. वे उसे आइसक्रीम का लालच दे स्टेज से अखिरकार उतारने में कामयाब रहीं. फिर भी चीकू कई फोटो में खुद को कैद कराने में सफल रहा.

फोटोग्राफर के कहे अनुसार मोहक अंदाज में एक के बाद एक फोटो खिंचवाता रहा. इन पलों में नवजोड़ा अपनेआप को किसी सैलिब्रिटी से कम नहीं समझ रहा था.

जिन्हें जाने की जल्दी थी वे एक कुरसीटेबल पर बैठे रजिस्टरपैन थामे समाज के वरिष्ठ की ओर अपनाअपना लिफाफा लिए बढ़ते चले गए. उन में उतना ही नेग था जितना कि केशवजी द्वारा उन के यहां की शादी में दिया गया था. उस का रिकौर्ड उन सभी के पास ऐसे ही शादी वाले रजिस्टर में लिखा हुआ था.

जो शादी का भरपूर आनंद उठाने आए थे वे बरात आने के पहले ही आधे व्यंजनों का स्वाद चख चुके थे और अब उन की प्लानिंग एक राउंड और मारने की थी.

जो पहली बार केशवजी के किसी समारोह में शामिल हुए थे वे अपने लिफाफे की राशि शादी पर किए हुए खर्च को देख बढ़ातेघटाते रहे और अधिकतर मेहमान जिनके सभी बच्चों की शादियों निबट गई थीं वे अपने घर की शादियों में मिले उपहार जिन में अधिकांश ठंडे पानी की बोतल, हौट केस सैट, डिनर सेट इत्यादि को उसी पैकिंग की हटाई गई टेप को फिर से लगा कर नजाकत से अपना नाम बड़ी कलाकृति से लिख कर दूल्हेदुलहन को टीका लगा कर गिफ्ट दे मुसकराते फोटो खिंचवाते आगे बढ़ते गए.

अब यही प्रथा अरविंदअनीता अन्य की शादियों में करते दिखाई देंगे. संपूर्ण शादी के उपहारों के बीच शायद ही कुछ ऐसे तोहफे होंगे जिन्हें सच में उन की शादी के लिए विशेष खरीदा गया होगा और जो उन के किसी काम के होंगे.

एक दिन की चमकदमक के लिए अपनी सालों की जमापूंजी स्वाहा करने वाले दोनों पक्ष, अपने करीबियों को आधी रात नवदंपती को 7 फेरे लेते देख, उन्हें ऊंघते और शादी में कमियां गिनाते गौर से देखतेसुनते रहे. सुबह हुई, बेटी विदा हुई. दोनों के मांबाप ‘कुदरत ने सब अच्छे से निबटा दिया,’ कह उसे धन्यवाद देते रहे.

अगले दिन दोनों घरों के सभी मेहमानों के चले जाने के बाद एक एकांत कमरे में घर के भरोसेमंद को पूरे नेग का कुल निकालने की जिम्मेदारी सौंपी गई जो अपनेआप में बड़े सम्मान की बात होती है. फिर उसी राशि से अधिकतम शादी के बचे खर्च का भुगतान किया जाता है.

कुछ दिनों बाद उन की शादी का अल्बम और वीडियो हाथों में पहुंच गया, जिसे सब बड़े चाव से उन सभी खूबसूरत यादों को बारबार देख कर ताजा करने का क्रम महीनों चलाते रहे. अब आगे घर आने वाले मेहमानों को चाय के साथ अलबम भी परोसा जाना निश्चित है.

सच में भारतीय शादियों की अपनी अलग खट्टीमीठी कहानियां होती हैं. कितने अनगिनत रिश्ते दूर के रिश्तेदारों द्वारा दूसरों की शादियों में ही तय किए जाते हैं. कई युवाओं के दिल भी आपस में मिल जाते हैं. सालों न मिलने वाले रिश्तेदारप्रियजन शादी का एक निमंत्रणपत्र पा कर प्रफुल्लित हो उठते हैं. इसीलिए तो शादी किसी उत्सव से कम कहां कहलाती है. ऐसी कई बातें हमें अपनीअपनी शादी की आजीवन स्मरण रहती हैं, जो कभी गुदगुदाती है तो कभी जिन से हम बिछड़ गए होते हैं उन की तसवीरें हमें रुलाती भी हैं. आप अपनी शादी का कोई खूबसूरत वाकेआ हम से जरूर साझ करिएगा.

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Social Story: मार्बल- खनक के साथ कौन-सी घटना घटी

Social Story: खनक बहुत देर तक शून्य में ताक रही थी. आज फिर उसे बहुत देर तक उसकी मम्मी समझ रही थी क्योंकि आज फिर उस के लिए रिश्ता आया था.

खनक बैंक में नौकरी करती थी वहीं पर गर्व अपना बैंक अकाउंट खुलवाने आया था. खनक की उदासीनता गर्व को बहुत भा गई थी. गर्व ने अब तक अपने चारों ओर बस झनझन बजती लड़कियों को ही देखा था, जो हवा से भी तेज बहती थी. ऐसे में खनक की चुप्पी, उदासीनता, सादगी भरा शृंगार सभी कुछ गर्व को अपनी ओर खींच रहा था. इधरउधर से पता कर के गर्व ने खनक का पता खोजा और एक तरह से अपने परिवार को ठेल कर भेज ही दिया.

खनक के मम्मीपापा जानते थे कि खनक का जवाब न ही होगा मगर गर्व जैसा अच्छा रिश्ता बारबार नहीं आएगा इसलिए खनक की मम्मी खनक को समझ रही थी, ‘‘खनक बेटा क्या प्रौब्लम है, कब तक तुम शादी से भागती रहोगी. बचपन में हुई एक छोटी सी बात को तुम कब तक सीने से लगा बैठी रहोगी?’’

खनक अपनी मम्मी को गहरी नजरों से देखते हुए बोली, ‘‘छोटी सी बात मम्मी… मेरा पूरा वजूद छलनी हो गया है और आप को छोटी सी बात लग रही.’’

खनक की मम्मी बोली, ‘‘बेटा, अगर मैं तब चुप्पी न लगाती तो मेरा मायका सदा के लिए मुझ से छूट जाता.’’

खनक मन ही मन सोच रही थी कि और जो एक घुटन भरा तूफान सदा के लिए मेरे अंदर कैद हो गया है उस का क्या. आज भी खनक को जून की वह काली शाम रहरह कर याद आती है. खनक अपनी नानी के घर गई हुई थी. मामी भी अपने मायके गई हुई थी. मगर खनक का ममेरा भाई हर्ष नहीं गया था क्योंकि उस के कालेज के ऐग्जाम चल रहे थे. खनक तब 12 साल की और हर्ष 20 साल का था. खनक को हर्ष से बातें करना बड़ा पसंद था क्योंकि हर्ष उस की बातें बड़े आराम से सुनता था और कभीकभी उस की तारीफ भी कर देता था, जो खनक के लिए उस उम्र में नई बात थी. खनक सदा हर्ष के आसपास बनी रहती थी. हर्ष जब मन करता खनक को एकाध धौल भी जमा देता था. कभीकभार उस के हाथ सहला देता था जो खनक को अजीब लगने के साथसाथ रोमांचित भी करता था.

एक दिन खनक की नानी सत्संग में गई हुई थी. मामा औफिस के काम से गए हुए थे. खनक और हर्ष घर पर अकेले थे. हर्ष ने उस शाम खनक के लिए उस की पसंदीदा मैगी बनाई और फिर न जाने कैसे हर्ष ने खनक को किस कर दिया.

खनक को थोड़ा अजीब लगा, मगर वह कुछ समझ नहीं पाई. फिर हर्ष और खनक बिस्तर पर लेट कर बात करने लगे. खनक छोटी थी मगर उस की छठी इंद्री उस से कह रही थी कि कुछ ठीक नहीं है इसलिए जैसे ही खनक बाहर जाने लगी तो हर्ष ने उस का हाथ पकड़ लिया और बिस्तर पर गिरा दिया. खनक एकाएक घबरा गई पर तब तक हर्ष के अंदर का जानवर जाग उठा था. खनक बस छटपटाती रही मगर कुछ न कर पाई. जब तक हर्ष को होश आया तब तक काफी देर हो चुकी थी. खनक का दर्द और डर के कारण बुरा हाल था.जब खनक की नानी आई तो वहां का नजारा देख कर सिर पकड़ कर बैठ गई. उन्होंने हर्ष को 3-4 तमाचे जड़ दिए और खनक को अपने साथ कमरे में बंद कर लिया.

अगले दिन सुबहसवेरे ही खनक की मम्मी आ गई. खनक अपनी मम्मी के गले लग कर खूब रोई. मम्मी उस के सिर पर धीमेधीमे हाथ फेर रही थी.

तभी नानी फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘यह बात बस नहीं खत्म कर दे, हर्ष को मैं ने अच्छे से डांट लगा दी है. इस बात को इधरउधर करने की जरूरत नहीं है. कल को खनक की ही बदनामी होगी. फिर अगर तू अपने भाभी से बात करेगी तो वह कभी इस बात पर विश्वास नहीं करेगी. तेरे और तेरे भाई का रिश्ता जरूर टूट जाएगा और सच कहूं तो असलियत क्या है किसे पता. दोनों ही उम्र के उस नाजुक दौर से गुजर रहे हैं. हो सकता है खनक भी बहक गई हो मगर फिर डर गई हो.’’

खनक बारबार सोच रही थी कि क्या उस की मम्मी भी उस पर विश्वास नहीं कर रही है. मगर इस पूरे प्रकरण में किसी ने खनक के बारे में नहीं सोचा. खनक की नानी को अपने पोते हर्ष के भविष्य और अपने बुढ़ापे की चिंता थी. खनक की मम्मी को अपने मायके की इज्जत की, उन्हें लग रहा था कि अगर यह बात ससुराल तक पहुंची तो मायके की बदनामी के साथसाथ उन का रिश्ता भी मायके से टूट जाएगा जो वह नहीं चाहती थी. खनक उस समय इतनी छोटी थी कि उसे लग रहा था कि शायद वही गलत है, शायद उसे ही हर्ष से बात नहीं करनी चाहिए थी.

बहरहाल जो भी हो चिडि़या जैसी चहचहाती और फुदकती हुई खनक उस दिन के बाद से मार्बल जैसी ठंडी और पत्थर बन गई थी. उस समय वह इतनी छोटी थी कि अपनी नानी या मम्मी से कोई सवालजवाब नहीं कर पाई थी. मगर इस घटना ने उस के अंदर की भावनाओं को पथरीला बना दिया था. खनक अपने पापा की छाया से भी बचने लगी थी.

खनक की मम्मी इस बात को यह कह कर टाल देती, ‘‘खनक बड़ी हो रही है… यह नौर्मल है.’’

खनक हर समय एक वहम में रहती थी. उसे किसी पर विश्वास नहीं था, इसलिए उस का कोई दोस्त भी नहीं था.

खनक ने अपनी सारी ऊर्जा उस घटना के बाद पढ़ाई में लगा दी थी. जब खनक कालेज के प्रथम वर्ष में थी तो उस के आगेपीछे लड़कों की लंबी लाइन थी, मगर उस की उदासीनता देख कर ही कालेज में उस का नाम मार्बल पड़ गया था. संगमरमर की तरह खूबसूरत, शांत मगर पथरीली और ठंडी.

खनक को काउंसलर की जरूरत थी मगर खनक की मम्मी काउंसलर के बजाय खनक के लिए पंडितों के चक्कर काटने लगी थी. कभी शांति पाठ तो कभी सिद्धि पाठ मगर कोई भी पाठ या कोई भी पूजा खनक के घाव पर मलहम नहीं लगा पा रही थी.

खनक अपने में सिमटती चली गई, सब के साथ हो कर भी वह अकेली और उदासीन रहती थी.बस पहले उस की पढ़ाई और अब उस का काम उस को सुकून देता था. पहले पढ़ाई के कारण और फिर नई नौकरी के कारण मार्बल शादी से इनकार करती रही पर अब उस के पास कोई कारण नहीं रह गया था सिवा इस के कि उस का मन नहीं है.

उस घटना के बाद से मार्बल का अपने ननिहाल से नाता टूट गया था, मगर मां के कारण उसे वहां की खबरें मिलती रहती थीं. हर्ष की शादी हो गई थी और उस के पास एक बेटी भी थी. बहुत बार मार्बल का मन किया कि वह सबकुछ जा कर हर्ष की बीबी को बता दे. मगर घुटने के अलावा खनक कुछ नहीं कर पाई थी.

शाम को जब खनक औफिस से घर आई तो गर्व अपने परिवार के साथ पहले से ही बैठा था. खनक की इस बार कुछ नहीं चल पाई, गर्व न जाने क्यों खनक के मन को भी भा गया था. मगर खनक गर्व से कुछ छिपाना नहीं चाहती थी.

गर्व और खनक का रिश्ता तय हो गया था. खनक की मम्मी इस शादी को जल्द से जल्द करना चाहती थी. खनक विवाह से पहले 3 बार गर्व से मिली थी और तीनों ही बार जब भी खनक ने अपने अतीत की बात बतानी चाही तो गर्व ने बोल दिया, ‘‘तुम्हारे और मेरे बीच में बस आज रहेगा जो बेहद खूबसूरत है.’’

खनक गर्व से जितनी बार शादी से पहले मिली, उस के व्यवहार से खनक का डर काफी कम हो गया. उस ने पहली बार किसी लड़के को अपनी जिंदगी में शमिल किया था, मार्बल की ठंडक धीरेधीरे कम हो रही थी. ऐसा लग रहा था मार्बल अब सुंदर मूर्ति का रूप ले रही है जिस में गर्व ने जान डाल दी है.

पूरे परिवार में हंसीखुशी का माहौल था. खनक ने फिर से खनखनाना शुरू कर दिया था. विवाह संपन्न हो गया और पहले के कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. गर्व को आभास था कि खनक थोड़ी सैंसिटिव है, इसलिए उस ने शुरुआत के कुछ दिनों तक नजदीकी के लिए कोई जल्दबाजी नहीं करी. उस ने 1 हफ्ते बाद घूमने के लिए टिकट करा रखे थे. खनक बेहद खुश थी. उस रात गर्व और खनक दोनों ने ड्रिंक लिया, मगर ड्रिंक करने के बाद गर्व एकाएक नजदीकी के लिए आतुर हो उठा.

खनक ने प्यार से कहा, ‘‘गर्व मैं अभी तैयार नहीं हूं.’’

गर्व लड़खड़ाती आवाज में बोला, ‘‘क्यों पहले भी तो तुम्हारे संबंध रहे होंगे और मैं तो तुम्हारा पति हूं,’’ यह कह कर वह खनक के ऊपर बल का प्रयोग करने लगा.

खनक की घिग्घी बंध गई और न जाने उस के हाथ में कैसे एक ब्रास का गुलदस्ता आ गया जो उस ने गर्व के सिर पर दे मारा.

गर्व दर्द से तिलमिला उठा. खनक घबरा गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस ने सही किया या गलत. अगली सुबह गर्व ने खनक से समान बांधने के लिए कह दिया. पूरे रास्ते गर्व ने खनक से कोई बात नहीं करी. गर्व और खनक को इतनी जल्दी लौटा देख कर सब का माथा ठनक गया.

गर्व ने मगर एक झूठी कहानी बता कर सब का मुंह तो बंद कर दिया मगर उन के रिश्ते में तनाव के बादल ऐसे घिरे जैसे जम से गए. गर्व चाहे कितना भी खनक को पसंद करता हो मगर उस की भी कुछ जरूरतें थी. खनक का उस से दूर रहना और नजदीक आते ही पत्थर बन जाना सबकुछ उसे तनाव दे रहा था.

उधर खनक भी शादी को बचाने के लिए कोशिश कर रही थी. मगर रात होते ही वह बेचैन हो उठती थी. हर रात उसे सजा जैसी महसूस होती थी. उधर गर्व को ऐसा लगता था मानो खनक कोई औरत नहीं है बल्कि एक ठंडा पत्थर है मार्बल की तरह.

गर्व को समझ नहीं आ रहा था कि वह मार्बल के साथ पूरा जीवन कैसे गुजारेगा. दोनों पढ़ेलिखे थे. अगर वे चाहते तो आराम से एक डाक्टर और काउंसलर के पास जा सकते थे मगर हमारे समाज में आज भी सैक्स को ले कर इतना खुलापन नहीं है, इसलिए दोनों एकदूसरे से खुल कर बात नहीं कर पा रहे थे.

मार्बल बहुत बार कोशिश करती मगर उस की जबान तक बात ही नहीं आ पा रही थी.

उधर गर्व को समझ नहीं आ रहा था कि क्या उस का कोई दोष है या खनक उस से प्यार ही नहीं करती है.

गर्व ने जब यह बात अपने एक बेहद नजदीकी दोस्त के साथ शेयर करी तो उस ने उस की मर्दानगी पर ही ताना कसा कि वह अपनी बीवी को काबू में नहीं कर पाया है. मार्बल जब अपने घर गई और उस ने अपनी मम्मी को यह बात बताई तो वे भी डाक्टर को नहीं, ज्योतिषियों को चुना.

जन्मपत्री देखते हुए आनंदमणि पंडितजी ने खनक को मूंगा और सोमवार का व्रत बता दिया.

इसी आंखमिचौली में 3 माह बीत गए. गर्व और खनक के बीच दूरियां बढ़ती चली गईं. 4 माह के पश्चात गर्व ने खनक को बोल दिया कि वह इस तरह से वो आगे की जिंदगी नहीं बिता सकता है, खनक एक बार शांति से अपने घर जा कर सोच ले कि उसे करना क्या है?

गर्व ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘‘मुझे नहीं पता खनक कि गलती किस की है, मगर तुम्हारा मार्बल जैसा ठंडापन मुझे बेहद नर्वस कर देता है. हो सकता हैं मैं तुम्हारे अंदर वह प्यार जगाने में नाकामयाब रहा हूं, मगर इस तरह तो हम जिंदगी नहीं गुजार पाएंगे.’’

खनक फिर से पुरानी उदासीन खनक बन गई थी जिस की रुनझन कहीं खो गई थी. घर आ कर खनक बेहद रोई. अपनी मम्मी के गले लग कर खनक बोली, ‘‘मम्मी, मेरा यह अभिशाप, मेरा यह नाम मार्बल शायद मेरे जीवन का सत्य बन गया है.’’

खनक बोली, ‘‘मम्मी वह रात मेरी जिंदगी में एक अंधी सुरंग बन कर रह गई है, जो खत्म ही नहीं हो रही है. जब भी गर्व मेरे करीब आने की कोशिश करता है मैं मार्बल जैसी ठंडी और पत्थर बन जाती हूं. मैं गर्व को अपनी सचाई बताना चाहती हूं मम्मी मगर फिर आप का और पापा का रिश्ता सामने आ जाता है. मेरी सचाई से आप और पापा के रिश्ते में दरार आ जाएगी.’’

खनक की मम्मी खनक की बात सुन कर बुत सी बन कर बैठ गई. वह काली रात खनक के भविष्य को इतना काला कर देगी, मां ने सपने में भी नहीं सोचा था. अब अगर वह यह सच अपने पति को बता देगी तो न जाने क्या होगा, मगर खनक उस के भविष्य का क्या.

क्या एक मां हो कर इतनी स्वार्थी हो सकती, पहले अपने मायके का मोह और अब अपनी शादी का मोह. पूरी रात न खनक और न ही उस की मम्मी सो पाई.

अगले दिन जब खनक औफिस के लिए तैयार हो रही थी तो उस की मम्मी ने खनक से कहा, ‘‘आज औफिस मत जा, हम दोनों बात करेंगे और बाहर ही लंच भी कर लेंगे.’’

खनक और उस की मम्मी शायद जीवन में पहली बार इतना पारदर्शी हो कर बातचीत कर रही थीं. खनक का दर्द था कि उस की मां ने उस के लिए कभी स्टैंड नहीं लिया. यह सच है कि खनक की मम्मी उस रात में जो भी हुआ वह उसे रोक नहीं सकती थी, मगर मां की चुप्पी, सब से इस बात को छिपाना के कारण खनक अंदर से संवेदनहींन हो गई है. काश, हर्ष को भी उसी दर्द से गुजरना पड़े, जिस से वह गुजर रही है, मगर हर्ष से तो किसी ने आज तक इस बात का जिक्र भी नहीं किया. उस के मम्मीपापा को भी नहीं पता कि उन के बेटे ने कैसे उस की आत्मा को रौंद कर पत्थर बना दिया है.

अभी खनक ये सब बातें कर ही रही थी कि गर्व आ कर बैठ गया. खनक की मम्मी ने धाराप्रवाह उस रात की आपबीती गर्व को बता दी और फिर बोली, ‘‘बेटा, इस सब के लिए खनक नहीं मैं जिम्मेदार हूं, मेरे ही कारण खनक तुम से कुछ कह नहीं पा रही थी.’’

खनक गर्व को देख कर सुबकने लगी और बोली, ‘‘गर्व, पहली बार मुझे किसी पुरुष के साथ अपनेपन का अनुभव हुआ है, मगर मैं कुछ भी जानबूझ कर नहीं करती हूं.’’

गर्व खनक के हाथों को सहलाते हुए बोला, ‘‘इतने सालों तक इतना दर्द अकेले ही पीती रही हो? खनक को ज्योतिषों या व्रत की नहीं खुल कर बोलने की जरूरत है.’’

खनक की मम्मी बोली, ‘‘बेटा, जो सच था उसे कहने का साहस मैं आज कर पाई हूं.’’

खनक ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘गर्व, शादी से पहले मैं परिवार की बदनामी के कारण तुम्हें कुछ नहीं बता पाई थी. मगर तुम्हें पूरा हक है कि तुम्हें जो खुशी दे वही फैसला करो. गलती मेरी है, तुम क्यों अपनी खुशियों के साथ सम?ाता करोगे.’’

गर्व खनक और उस की मम्मी से बोला, ‘‘मुझे थोड़ा समय चाहिए कोई भी फैसला करने से पहले. मगर मेरा जो भी फैसला होगा, उस का आप या आप के परिवार पर कोई असर नहीं होगा.’’

खनक को इतने सालों बाद ऐसा लगा जैसे उस के अंदर कुछ पिघल रहा है. गर्व को समझ नहीं आ रहा था.

Social Story

Raj Kapoor: जब शो मेन ने महज एक गाने को सुन कर बनाया पूरी फिल्म

Raj Kapoor: एक समय वह भी था जब कुछ दिग्गज फिल्म निर्माण के दौरान क्रिएटिविटी के चलते दिमाग से ज्यादा दिल से काम लेते थे. एक बार जो चीज उन को भा गई फिर वह उस को किसी भी तरह नहीं छोड़ते थे और बाद में उन की वही खोज पूरी दुनिया पसंद करती थी.

ऐसा ही कुछ एक इंटरव्यू के दौरान रणधीर कपूर ने बताया कि उन के पिता राज कपूर ने कैसे सिर्फ एक गाना सुनने के बाद इतना मोहित हो गए कि उस गाने को आधार बना कर न सिर्फ फिल्म की कहानी लिख दी, बल्कि उस कहानी पर एक सुपरहिट फिल्म भी बनाई. फिल्म का नाम था ‘राम तेरी गंगा मैली’, जिस में राज कपूर ने पहाड़ों से आई एक लड़की मंदाकिनी को हीरोइन बना दिया था।

कौन सा गाना था वह

रणधीर कपूर ने बताया कि एक बार मेरे पिताजी ने एक फंक्शन में संगीतकार रविंद्र जैन द्वारा गाया गीत ‘एक राधा, एक मीरा, दोनों ने शाम को चाहा…’ सुना. यह गाना मेरे पिताजी राज कपूर साहब को इतना पसंद आया कि उन्होंने रविंद्र जैन को घर में बुला कर अपनी पूरी फैमिली को वही गाना सुनाने के लिए बोला। उस के बाद पिताजी ने मुझे उस दौरान ₹25,000 का चेक रविंद्र जैन को देने के लिए कहा.

रणधीर ने आगे बताया कि बाद में मेरे पिता राज कपूर साहब ने रविंद्र जैन से कहा कि वह यह गाना अपनी फिल्म में लेंगे। मामला इतने में ही खत्म नहीं हुआ, राज कपूर साहब रविंद्र जैन के साथ 1 हफ्ते के लिए गायब हो गए और जब वे वापस लौटे तो उन्होंने रविंद्र जैन से और कई गाने गवाए जो वे अपनी फिल्म में लेने वाले थे। जब पिताजी राज साहब से पूछा गया कि इस फिल्म की कहानी क्या है तो उन्होंने रविंद्र जैन का गाना ‘एक राधा एक मीरा…’  को आधार बना कर फिल्म की कहानी लिखने का निर्णय लिया.

हिट रही फिल्म

रणधीर आगे कहते हैं कि राज कपूर साहब ने ही इस फिल्म की कहानी लिखी, जिस का नाम था ‘राम तेरी गंगा मैली’, जिस में हीरोइन यानि मंदाकिनी हीरो को राधा की तरह प्यार करती थी, तो दूसरी हीरोइन मीरा की तरह। इसी बेस पर फिल्म बनी।

रविंद्र जैन के सारे गाने इस फिल्म में इस्तेमाल किए गए और पिता राज कपूर ने ‘राम तेरी गंगा मैली’ जैसी फिल्म का निर्माण किया, जिसे आज भी एक बेहतरीन फिल्म के लिए याद किया जाता है और आज भी इस फिल्म के गाने बेहद लोकप्रिय हैं.

Raj Kapoor

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Red Lipstick: हर लड़की के लिए परफेक्ट है रेड लिपस्टिक

Red Lipstick: कई लड़कियों को लगता है रेड कलर की लिपस्टिक मुझ पर कहां अच्छी लगेगी वो तो सुन्दर और खूब गोरी स्किन टाइप वाली लड़कियों पर ही अच्छी लगती होगी. लेकिन बात गलत है. रेड कलर का गोरे रंग से कोई लेना देना नहीं है. बल्कि कई लड़कियों को यह पता ही नहीं होता कि रेड कलर में भी बहुत से शेड्स आते हैं जो हर तरह की स्किन कलर वाली लड़कियों पर सूट करते हैं. बस आपको उन शेड्स के बारे में और रेड लिपस्टिक के बारे में थोड़ी जानकारी पहले से होनी चाहिए, तो आइए जानें –

रेड लिपस्टिक कई तरह के शेड्स में आती हैं, जो हर स्किनटोन पर अच्छी लगती हैं आइये जाने कैसे होते हैं वे शेड्स –

ब्लू-टोन्ड रेड्स (Blue-Toned Reds)

अगर आपका रंग बहुत गोरा है, गेहुंआ या फिर सांवला तो यकीन मानिए यह लिपस्टिक आपके लिए है. इस लिपस्टिक से आपका फेस ही नहीं बल्कि आपके दांत भी चमकेंगे. ये शेड्स नीले रंग के अंडरटोन वाले होते हैं. इनमें भी कई टोन आते है जैसे-

रूबी रेड (Ruby Red): ये एक क्लासिक, सच्चा लाल रंग है.

क्रिमसन (Crimson): इसमें हल्का नीला या बैंगनी रंग का अंडरटोन होता है.

चेरी रेड (Cherry Red): ये हल्का और चमकदार लाल रंग होता है. गहरा लाल शेड होने के कारण यह गेहुंआ और सांवले स्किन टोन पर बेहद खूबसूरत लगता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह हर मौके और किसी भी आउटफिट के साथ मैच होने वाला एक वर्सेटाइल शेड है. अगर आप इसे सैटिन फिनिश में लगाती हैं तो होंठ ज्यादा जूसी और फ्रेश दिखते हैं.

बेरी रेड (berry red) ये शेड हल्का गुलाबी रंगत लिए हुए होता है. यह शेड गोरे, गेहुंआ और सांवली स्किन टोन पर सूट करता है. यह एक ट्रेंडी और मॉडर्न लुक देता है जो बेहद आकर्षक लगता है. इसे लिप लाइनर के साथ इस्तेमाल करने से होंठ पूरी तरह से डिफाइंड दिखते हैं जिससे लुक और भी शानदार लगता है.

ऑरेंज-टोन्ड रेड्स (Orange-Toned Reds)

जैसे कि इसके नाम से ही पता चल रहा है इनमे नारंगी रंग का अंडरटोन होता है. ये बहुत ज्यादा गोर लोगों पर कम अच्छे लगती है. लेकिन जिनका रंग थोड़ा दबा हुआ या सांवला होता है उनके लिए यह ठीक रहती है.

कोरल रेड (Coral Red): यह हल्का, नारंगी रंग का लाल शेड है. अगर आपका रंग गोरा है तो यह कलर आप पर अच्छा लगेगा. वैसे यह रेड शेड गोरी और मीडियम स्किन टोन के लिए सबसे बढ़िया है. यह आपके चेहरे को एक जिंदादिल और जवां लुक देता है.

पॉपी (Poppy): पॉपी मतलब लोलीपॉप जैसा नारंगी रंग के साथ एक चमकीला लाल शेड.

टेराकोटा (Terracotta): यह भूरे और नारंगी रंग का मिक्स शेड है।

ऑरेंज-रेड (गर्म अंडरटोन के साथ).

ब्रिक रेड- यह गहरा ब्राउनिश रेड शेड गेहुंआ और सांवली स्किन टोन पर बोल्ड और क्लासी लुक देता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह आपको भीड़ से अलग दिखाता है.शाम की पार्टी या किसी खास इवेंट के लिए यह एक आइडियल चॉइस है.

डीप रेड्स (Deep Reds)

ये शेड्स काफी डार्क और बोल्ड होते हैं जो पार्टीज़ के लिए परफेक्ट होते हैं. यह कलर हर तरह की स्किन टोन पर खूब फबता है.

बरगंडी (Burgundy): यह एक गहरा लाल रंग है जो गहरे रंग की त्वचा के लिए उपयुक्त है. इसमें भूरा या बैंगनी रंग का अंडरटोन होता है.

वाइन (Wine) : यह अंगूरी रंग का गहरा लाल शेड है.

मार्साला (Marsala) : इसमें भूरे और लाल रंग के अंडरटोन होते हैं.

रूबी रेड (rubi) यह गहरा लाल रंग होता है.

सही शेड चुनने के लिए आप अपनी त्वचा के अंडरटोन (warm, cool, or neutral) का भी ध्यान रख सकते हैं.

अपनी स्किन टोन के हिसाब से शेड्स चुनें –

गोरी त्वचा (Fair Skin) : गोरी त्वचा पर हल्के और चमकीले लाल शेड्स अच्छे लगते हैं. कोरल रेड और चेरी रेड जैसे शेड्स आपके चेहरे को फ्रेश लुक देते हैं.

गेहुंआ त्वचा (Medium/Wheatish Skin) यह भारत में सबसे आम स्किन टोन है और इस पर ज्यादातर लाल शेड्स अच्छे लगते हैं। क्लासिक रेड, वाइन रेड और क्रिमसन जैसे शेड्स आपको बोल्ड और खूबसूरत लुक दे सकते हैं.

सांवली त्वचा (Dusky Skin) सांवली त्वचा पर गहरे और बोल्ड लाल शेड्स बहुत जंचते हैं. बरगंडी, वाइन रेड और डीप ब्राउनिश रेड जैसे शेड्स आपके लुक को एक क्लासिक और स्टाइलिश टच देते हैं.

इस तरह अपने स्किन टोन को धयान में रखकर ही लिपस्टिक चुनें. जैसे की रुबी रेड शेड क्लासिक रेड है जो हर गोरी स्किन वाली लड़की को जंचती है. यदि आपका रंग गेहुआं है तो आप पर थोड़ा ब्राइट और अंडर टोन वाला रेड रंग का लिपस्टिक खिल सकता है जो आपको ग्लैमरस और बोल्ड लुक दे सकता है. आपकी त्वचा सांवली त्वचा है तो ब्रिक रेड्स या बरगंडी वाले मैट फिनिश आपको बोल्ड लुक देगा. इसी तरह अपनी स्किन टोन के अनुसार रेड लिपस्टिक के कलर चुने.

रेड लिपस्टिक लगाते समय इन बातों का धयान रखें-

मैट फिनिश या ग्लॉसी फिनिश लिपस्टिक में से चूज करें

इसके साथ ही फिनिश पर ध्यान देना जरूरी है कि यह मैट फिनिश है या ग्लॉसी. अगर आप बोल्ड, लंबे समय तक चलने वाले और क्लीन लुक के लिए तैयार हो रही हैं, तो मैट लिपस्टिक चुनें. मैट लिपस्टिक लंबे समय तक टिकी रह सकती है. लेकिन अगर आपके होंठ रूखे हैं या आप फ्रेश, ब्राइट और भरे हुए लुक की तलाश में हैं, तो ग्लॉसी लिपस्टिक चुनें. क्रीम फिनिश लिपस्टिक सॉफ्ट और होंठों को मॉइश्चराइजिंग रखने में मदद कर सकती है.

लिप्सिटक का ब्रांड भी देखें

आप लिपस्टिक खरीदते समय ब्रांड और इसकी क्वालिटी का जरूर ख्याल रखें, क्योंकि लोकल लिपस्टिक आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती है। मैक लिपस्टिक अपने हाई-क्वालिटी फ़ॉर्मूले और अलग-अलग शेड्स के लिए जानी जाती है. इनका आइकॉनिक शेड ‘रूबी वू (Ruby Woo)’ दुनिया भर में मशहूर है और यह एक क्लासिक ब्लू-टोन्ड रेड है जो ज़्यादातर स्किन टोन पर अच्छा लगता है. इसी तरह मेबेलिन एक बजट-फ्रेंडली ब्रांड है जो अच्छी क्वालिटी की लिपस्टिक देता है. इनकी ‘सुपरस्टे मैट इंक (SuperStay Matte Ink)’ रेंज की रेड लिपस्टिक बहुत पसंद की जाती है. यह भारतीय ब्रांड अपने बोल्ड और पिगमेंटेड शेड्स के लिए जाना जाता है. इनकी ‘मैट एज ए हेल लिक्विड लिपस्टिक (Matte As Hell Crayon Lipstick)’ रेंज की रेड लिपस्टिक बहुत ही अच्छी है.

Occasion के अकॉर्डिंग ही चुने रंग

हर Red Shade हर मौके के लिए नहीं होता, इसलिए यह ध्यान दें कि आप ऑफिस के लिए लाल Lipstick ले रही हैं तो थोड़ा लाइट रेड लें और वही पार्टी के लिए लेना हो तब आप ब्राइट या डीप रेड शेड ले सकती हैं.

Red Lipstick

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