अंशिका: भाग 1- क्या दोबारा अपने बचपन का प्यार छोड़ पाएगी वो?

प्रशांत और मैं पटना शहर के एक ही महल्ले में रहते थे और एक ही स्कूल में पढ़ते थे. यह भी इत्तफाक ही था कि दोनों अपने मातापिता की एकलौती संतान थे. एक ही गली में थोड़ी दूरी के फासले पर दोनों के घर थे. प्रशांत के पिता रेलवे में गोदाम बाबू थे तो मेरे पिता म्यूनिसिपल कौरपोरेशन में ओवरसियर. दोनों अच्छेखासे खातेपीते परिवार से थे. पर एक फर्क था वह यह कि प्रशांत बंगाली बनिया था तो मैं हिंदी भाषी ब्राह्मण थी. पर प्रशांत के पूर्वज 50 सालों से यहीं बिहार में थे.

हम एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. प्रशांत मेधावी विद्यार्थी था तो मैं औसत छात्रा थी. हमारा स्कूल आनाजाना साथ ही होता था. हम दोनों अच्छे दोस्त बन चुके थे.

ऐसा नहीं था कि मेरी कक्षा में और लड़कियां नहीं थीं, पर मेरी गली से स्कूल में जाने वाली मैं अकेली लड़की थी. हमारा स्कूल ज्यादा दूर नहीं था. करीब पौना किलोमीटर दूर था, इसलिए हम पैदल ही जाते थे. मैं प्रशांत को शांत बुलाया करती थी, क्योंकि वह और लड़कों से अलग शांत स्वभाव का था. प्रशांत मुझे तनुजा की जगह तनु ही पुकारता था. हमारी दोस्ती निश्छल थी. पर स्कूल के विद्यार्थी कभी छींटाकाशी भी कर देते थे. उन की कुछ बातें उस समय मेरी समझ से बाहर थीं तो कुछ को मैं नजरअंदाज कर देती थी.

जब मैं 9वीं कक्षा में पहुंची तो एक दिन मां ने मुझ से कहा कि तू अब प्रशांत के साथ स्कूल न जाया कर. तब मैं ने कहा कि इस में क्या बुराई है? वह हमेशा कक्षा में अव्वल रहता है… पढ़ाई में मेरी मदद कर देता है.

जब मैं 10वीं कक्षा में पहुंची थी तो एक दिन शांत ने पूछा था कि आगे मैं क्या पढ़ना चाहूंगी तब मैं ने कहा था कि इंजीनियरिंग करने का मन है, पर मेरी मैथ थोड़ी कमजोर है. उस दिन से शांत गणित के कठिन सवालों को समझने में मेरी सहायता कर देता था. कभीकभार नोट्स या किताबें लेनेदेने मेरे घर भी आ जाता, पर घर के अंदर नहीं आता था, बाहर से ही चला जाता था. मेरी मां को वह अच्छा नहीं लगता था, इसलिए मैं चाह कर भी अंदर आने को नहीं कहती थी. पर मुझे उस का साथ, उस का पास आना अच्छा लगता था. मन में एक अजीब सी खुशी होती थी.

देखते ही देखते बोर्ड की परीक्षा भी शुरू हो गई. 3 सप्ताह तक हम इस बीच काफी व्यस्त रहे. शांत की सहयाता से मेरा मैथ का पेपर भी अच्छा हो गया. अब स्कूल आनाजाना बंद था तो शांत से मिले भी काफी दिन हो गए थे. अब तो बोर्ड परीक्षा के परिणाम का बेसब्री से इंतजार था.

परीक्षा परिणाम भी घोषित हो गया. मैं अपनी मार्कशीट लेने स्कूल पहुंची. वहां मुझे प्रशांत भी मिला. जैसे कि पूरे स्कूल को अपेक्षा थी शांत अपने स्कूल में अव्वल था. मैं ने उसे बधाई दी. मुझे भी अपने मार्क्स पर खुशी थी. आशा से अधिक ही मिले थे. जब प्रशांत ने भी मुझे बधाई दी तो मैं ने उस से कहा कि इस में तुम्हारा भी सहयोग है. तब शांत ने कहा था कि मुझे भी इसी स्कूल में प्लस टू में साइंस विषय मिल जाना चाहिए.

अब मैं 11वीं कक्षा में थी. मुझे भी साइंस विषय मिला पर मैं ने मैथ चुना था, जबकि शांत ने बायोलौजी ली थी. वह डाक्टर बनना चाहता था. अब मेरे और शांत के सैक्शन अलग थे. फिर भी ब्रेक में हम अकसर मिल लेते थे. कभीकभी प्रयोगशाला में भी मुलाकात हो जाती थी.

उस की बातों से अब मुझे ऐसा एहसास होता कि वह मुझ में कुछ ज्यादा ही रुचि ले रहा है. इस बात से मैं भी मन से आनंदित थी पर दोनों में ही खुल कर मन की बात कहने का साहस न था. पर शांत कहा करता था कि हमारे विषय भिन्न हैं तो पता नहीं 12वीं कक्षा के बाद हम दोनों कहां होंगे. एक बार मुझे जो नोटबुक उस ने दिया था उस के पहले पन्ने पर लिखा था तनु ईलू. मैं ने भी उस के नीचे ‘शांत…’ लिख कर लौटा दिया था. देखते ही देखते हम दोनों की बोर्ड की परीक्षा खत्म हो गई. शांत ने मैडिकल का ऐंट्रेंस टैस्ट दिया और मैं ने इंजीनियरिंग का. 12वीं कक्षा का परिणाम भी आ गया था. प्रशांत फिर अव्वल आया था. मुझे भी अच्छे मार्क्स मिले थे. शांत मैडिकल के लिए कंपीट कर चुका था. मैं ने उसे बधाई दी, परंतु मैं इंजीनियरिंग में कंपीट नहीं कर सकी थी. शांत ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है. मुझे अपने मनपसंद विषय में औनर्स ले कर गै्रजुएशन की पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी थी. कुदरत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया. मुझे पटना साइंस कालेज में फिजिक्स औनर्स में दाखिला मिल गया और शांत ने पटना मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. दोनों कालेज में कुछ ही दूरी थी. यहां भी हम लौंग बे्रक में मिल कर साथ चाय पी लेते थे.

मुझे याद है एक बार शांत ने कहा था, ‘‘तनु, चलो आज तुम्हें कौफ्टी पिलाता हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘शांत यह कौफ्टी क्या बला है? कभीकभी तुम्हारी बातें मुझे मिस्ट्री लगती हैं बिलकुल वैसे ही जैसे ईलू.’’

उस ने कहा, ‘‘तो तनु मैडम को अभी तक ईलू समझ नहीं आया…कोई बात नहीं…उस पर बाद में बात करते हैं. फिलहाल कौफ्टी से तुम्हारा परिचय करा दूं,’’ और मुझे मैडिकल कालेज के गेट के सामने फुटपाथ पर एक चाय वाले ढाबे पर ले गया. फिर 2 कौफ्टी बनाने को कहा. ढाबे वाले ने चंद मिनटों में 2 कप कौफ्टी बना दिए. सच, गजब का स्वाद था. दरअसल, यह चाय और कौफी का मिश्रण था, पर बनाने वाले के हाथ का जादू था कि ऐसा निराला स्वाद था.

कुछ दिनों तक शांत और मैं एक ही बस से कालेज आते थे. वह तो शांत का संरक्षण था जो बस की भीड़ में भी सहीसलामत आनाजाना संभव था वरना बस में पटना के मनचले लड़कों की कमी न थी. फिर भी उन के व्यंग्यबाण के शिकार हम दोनों थे पर हम नजरअंदाज करना ही बेहतर समझते थे. चूंकि बस में आनेजाने में काफी समय बरबाद होता था, इसलिए शांत के पिता ने उस के लिए एक स्कूटर ले दिया. अब तो दोनों के वारेन्यारे थे. रास्ते में पहले मेरा कालेज पड़ता था. शांत मुझे ड्रौप करते हुए अपने कालेज जाता था. हालांकि लौटने में कभी मुझे अकेले ही बस या रिकशा लेना पड़ता था. ऐसा उस दिन होता था जब मेरे या शांत की क्लास खत्म होने के बीच का अंतराल ज्यादा होता था.

Raksha Bandhan: बहनें- भाग 1- रिश्तों में जलन का दर्द झेल चुकीं वृंदा का बेटिंयों के लिए क्या था फैसला?

स्वप्न इतना डरावना तो नहीं था किंतु न जाने कैसे वृंदा पसीने से तरबतर हो गई. गला सूख गया था उस का. आजकल अकसर ऐसा होता है. स्वप्न से?डरना. यद्यपि वह इन मान्यताओं को नहीं मानती थी कि स्वप्न किसी शुभाशुभ फल को ले कर आता है, पर पता नहीं क्यों, आजकल वह उस कलैंडर की तलाश में रहने लगी है जिस में स्वप्न के शुभाशुभ फल दिए रहते हैं. क्या करे, सहेलियां डरा जो देती हैं उसे.

कभीकभी जब वह अपना कोई स्वप्न बता कर पूछती है कि मरा हाथी देखने से क्या होता है? या फिर मकान गिरते हुए देखने का क्या फल मिलता है? तब सहेलियां चिंतित हो कर अपनी बड़ीबड़ी आंखें घुमा कर उस का भविष्य बताने लगतीं, ‘लगता है, अभी तुम्हारी मुसीबत खत्म नहीं हुई है. कोई बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है तुम पर. अपनी बेटियों की देखभाल जरा ध्यान से करना.’

तब वृंदा मारे डर के कांपने लगती है. अब ये मासूम बेटियां ही तो उस की सबकुछ हैं. कैसे नहीं ध्यान रखेगी इन का? दोनों कितनी गहरी नींद में सो रही हैं? वृंदा अरसे से ऐसी गहरी नींद के लिए तरस रही है. यदि किसी रात नींद आ भी जाती है तो कमबख्त डरावने स्वप्न आ धमकते हैं और नींद छूमंतर हो जाती है.

वृंदा ने घड़ी की तरफ देखा, रात के 3 बज रहे थे. स्वप्न की बेचैनी और घबराहट से माथे पर पसीने की बूंदें छलछला आई थीं. वह बिस्तर से उठी, मटके से गिलास भर पानी निकाला व एक ही सांस में गटागट पी गई. माथे पर आए पसीने को साड़ी के आंचल से पोंछती हुई वह फिर बिस्तर पर आ कर लेट गई. वृंदा ने पूरे कमरे में नजर घुमाई. यह छोटा सा कमरा ही अब उस का घर था. न अलग से रसोई, न स्टोर, न बैठक. सबकुछ इसी कमरे में था. गैस चूल्हे की आंच से जो गरमी निकलती वह रातभर भभकती रहती.

कमरे से लगा एक छोटा सा बाथरूम था और एक छोटी सी बालकनी भी. वृंदा का मन हुआ कि बालकनी का दरवाजा खोल दे, बाहर की थोड़ी हवा तो अंदर आएगी, किंतु उस की हिम्मत नहीं पड़ी. रात के 3 बजे सवेरा तो नहीं हो जाता. वृंदा मन मार कर लेटी रही.

उस का ध्यान फिर से स्वप्न पर गया. एक बड़े से गड्ढे में गिर कर उस की बड़ी बेटी प्राची रो रही थी और रश्मि बड़ी बहन को रोता देख कर खिलखिला रही थी. यह भी कोई स्वप्न है? इतना डरने लायक? वह डरी क्यों? इस स्वप्न के किस हिस्से ने उसे डराया? प्राची का गड्ढे में गिरना या रश्मि का किनारे खड़े हो कर खिलखिलाना? रश्मि हंस क्यों रही थी? शायद प्राची को गड्ढे में उस ने ही धकेला था. वृंदा फिर कांप गई.

स्वप्न, स्वप्न था. आया और चला गया. किंतु उस की परछाईं किसी सच्ची घटना की तरह उसे डरा रही थी. वह इस प्रकार डरी मानो अभी घर में तूफान आया हो और घर की दीवारें तक हिल गई हों.

यह स्वप्न उसे अतीत के बिंबों की तरफ ले जा रहा था जिस में न जाने की उस ने सैकड़ों बार प्रतिज्ञा की थी.

बिंब अभी थोड़े धुंधले थे. उसे थोड़ा संतोष हुआ. वह इन्हें और चटक नहीं होने देगी. यहीं से उबर जाएगी. किंतु उस का प्रयास अधिक देर तक टिक नहीं पाया. शीघ्र ही एक के बाद एक सारे बिंब चमकदार होने लगे हैं जिन्हें देखते ही उस की धड़कनें अधिक तेज हो गईं.

उस की भी एक छोटी बहन थी, कुंदा. हमेशा उस के चौकलेट, खिलौनों तथा कपड़ों को हथिया लेती थी. वृंदा या तो उस से जीत नहीं पाती थी या जीतने का भाव मन में लाती ही नहीं थी. छोटी बहन से क्या जीतना और क्या हारना? खुशीखुशी अपने चौकलेट, खिलौने और कपड़े कुंदा को दे देती थी. कुंदा विजयी भाव से उस की चीजों का इस्तेमाल करती थी. वृंदा को बस उस का यह विजयभाव ही खटकता था. वह सोचती, ‘काश, कुंदा समझ पाती कि उस की विजय का कारण मेरी कमजोरी नहीं बल्कि प्रेम है, छोटी बहन के प्रति प्रेम.’ पर कुंदा को न समझना था, न ही समझी.

बचपन छूटता गया पर कुंदा का स्वभाव न बदला. रश्मि के जन्म के समय वृंदा के घर आई कुंदा ने उस से उस का पति भी छीन लिया. वृंदा हतप्रभ थी. 5 वर्ष के संबंध चंद दिनों की परछाईं में दब कर सिसकने लगे.

वृंदा का विश्वास टूटा था, वह स्वयं नहीं. उस ने अपने घर को संभालने का पूरा प्रयास किया. सब से पहले उस ने अपने पति से बात की.

‘यह सब क्यों हुआ रवि…बोलो, ऐसा क्यों किया तुम ने? तुम्हारे जीवन में मैं इतनी महत्त्वहीन हो गई? इतनी जल्दी? मात्र 5 वर्षों में?’

‘ऐसी बात नहीं है वृंदा, तुम्हारा महत्त्व तनिक भी कम नहीं है,’ एकदम सपाट और भावशून्य शब्दों में जवाब दिया था रवि ने. वृंदा कुछ संतुष्ट हुई, ‘तो फिर यह महज भूल थी जो हो गई होगी. कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’ मन में सोचा था उस ने, पर ऊपर से कठोर बनी प्रश्न करती रही.

‘जब तुम्हारे जीवन में मेरा महत्त्व कम नहीं हुआ है तो तुम ने ऐसा क्यों किया…? कुंदा तो नासमझ है, पर तुम्हें तो कुछ सोचना था?’

‘तुम इतनी छोटी बात का बतंगड़ बना रही हो?’ रवि की आवाज में खीज थी. वृंदा सब्र खो बैठी. क्षणभर पहले उस के मन में रवि के लिए उठे विचार विलीन हो गए.

‘मैं बतंगड़ बना रही हूं…? मैं? तुम्हारी नजर में यह इतनी छोटी बात है? अरे, तुम ने मेरे विश्वास का गला घोंटा है रवि, जिंदगीभर की चुभन दी है तुम ने मुझे. समय बीत जाएगा, ये बातें समाप्त हो जाएंगी लेकिन मेरे दिल में पहले जैसे भाव कभी नहीं आएंगे. हमेशा एक अविश्वास घेरे रहेगा मुझे. मुझे तो तुम ने जिंदगीभर की पीड़ा दी ही, साथ ही मेरी बहन को भी बेवकूफ बनाया.’

‘क्या बकवास कर रही हो? मैं ने किसी को बेवकूफ नहीं बनाया है…किसी को कोई पीड़ा नहीं दी है,’ क्रोध में रवि चिल्ला पड़े थे. फिर थोड़ी देर बाद संयत हो कर अपने एकएक शब्द पर जोर देते हुए बोले, ‘कुंदा से मेरी बात हो चुकी है. मैं उस से शादी करूंगा. वह भी राजी है. हां, तुम इस घर में पूरे मानसम्मान के साथ रह सकती हो. अब यह तुम्हारे ऊपर निर्भर है कि तुम बात का बतंगड़ बनाती हो या अपना और कुंदा का जीवन बरबाद करती हो,’ रवि ने बेपरवाह उद्दंडता से जवाब दिया.

वृंदा अवाक् रवि का मुंह ताकती रह गई. हाथपैर जम गए उस के. मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. बात यहां तक बढ़ गई और वह कुछ जान ही न पाई. किस दुनिया में रहती है वह.

छत पर पंखा धीमी गति से घूम रहा है. दोनों बेटियां अब भी गहरी नींद में सो रही हैं. वृंदा ने पंखे को कुछ तेज किया किंतु उस की रफ्तार ज्यों की त्यों रही. बेटियों के माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को वृंदा ने अपने आंचल से थपथपा कर सुखाया, फिर छत निहारती हुई लेट गई.

पति के जवाब से आहत वृंदा के मन में उम्मीद की डोर अभी बाकी थी. सास से उम्मीद. वे कुछ करेंगी. वैसे थीं वे कड़क गुस्से वाली. वृंदा को उन के साथ रहते हुए 5 वर्ष बीत चुके थे किंतु हिम्मत थी कि उन के सामने सिकुड़ कर रह जाती थी. मुंह ही नहीं खुलता था. पर बात तो करनी थी, आखिर उसे इस घर से अलगथलग कर देने का षड्यंत्र रचा जा रहा है.

इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यह उस के अस्तित्व का प्रश्न है. वह बात करेगी. अनुचित के विरोध में बोलना अपने अस्तित्व को बनाए रखने की बुनियादी जरूरत है. कुंदा के साथ अपने खिलौनों को बांटना छोटी बहन के प्रति प्यार है, बड़ी बहन का बड़प्पन है. पति खिलौना नहीं है, वह उसे कैसे बांटेगी? कैसे बंट जाने देगी? पर क्या करे वह, जब पति खुद ही बंटना चाहता हो. बंटना ही नहीं पूरी तरह से निकल जाना चाहता हो. फिर भी वह प्रयास करेगी.

मौका देख कर वृंदा ने सास से बात शुरू की, ‘मां, रवि कुंदा से शादी करने की सोच रहे हैं.’

‘हां, कह तो रहा था,’ एकदम ठंडी आवाज में जवाब दिया था सास ने.

‘तो मां, आप को पता है?’ वृंदा की आवाज में आश्चर्य समाया था.

‘हां, पता है.’

‘तो क्या आप यह सब होने देंगी?’

‘क्या करूंगी मैं? तुम देखो. तुम्हारी ही तो बहन है…उसे नहीं सोचना था तुम्हारे बारे में? चौबीस घंटे आगेपीछे नाचेगी तब तो यही होगा न?’ 

Raksha Bandhan:अंतत- भाग 3- क्या भाई के सितमों का जवाब दे पाई माधवी

बूआ के दर्दभरे पत्र दादी के मर्म पर कहीं भीतर तक चोट कर जाते थे. मन की घनीभूत पीड़ा जबतब आंसू बन कर बहने लगती थी. कई बार मैं ने स्वयं दादी के आंसू पोंछे. मैं समझ नहीं पाती कि वे इस तरह क्यों घुटती रहती हैं, क्यों नहीं बूआ के लिए कुछ करतीं? यदि फूफाजी निर्दोष हैं तो उन्हें किसी से भी डरने की क्या आवश्यकता है?

लेकिन मेरी अल्पबुद्धि इन प्रश्नों का उत्तर नहीं ढूंढ़ पाती थी. बूआ के पत्र बदस्तूर आते रहते. उन्हीं के पत्रों से पता चला कि फूफाजी का स्वास्थ ठीक नहीं चल रहा. वे अकसर बीमार रहे और एक दिन उसी हालत में चल बसे.

फूफाजी क्या गए, बूआ की तो दुनिया ही उजड़ गई. दादी अपने को रोक नहीं पाईं और उन दुखद क्षणों में बेटी के आंसू पोंछने उन के पास जा पहुंचीं. जाने से पूर्व उन्होंने पिताजी से पहली बार कहा था, ‘जिसे तू अपना बैरी समझता था वह तो चला गया. अब तू क्यों अड़ा बैठा है. चल कर बहन को सांत्वना दे.’

मगर पिताजी जैसे एकदम कठोर और हृदयहीन हो गए थे. उन पर दादी की बातों का कोई प्रभाव न पड़ा. दादी क्रोधित हो उठीं. और उस दिन पहली बार पिताजी को खूब धिक्कारा था. इस के बाद दादी को ताऊजी से कुछ कहने का साहस ही नहीं हुआ था.

बूआ ने भाइयों के न आने पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. उन्होंने सारे दुख को पी कर स्वयं को कठोर बना लिया था. पति की मौत पर न वे रोईं, न चिल्लाईं, बल्कि वृद्ध ससुर और बच्चों को धीरज बंधाती रहीं और उन्हीं के सहयोग से सारे काम निबटाए. बूआ का यह अदम्य धैर्य देख कर दादी भी चकित रह गई थीं, साथ ही खुश भी हुईं. फूफाजी की भांति यदि बूआ भी टूट जातीं तो वृद्ध ससुर और मासूम बच्चों का क्या होता?

फूफाजी के न रहने के बाद अकेली बूआ के लिए इतने बड़े शहर में रहना और बचेखुचे काम को संभालना संभव न था. सो, उन्होंने व्यवसाय को पति के मित्र के हवाले किया और स्वयं बच्चों को ले कर ससुर के साथ गांव चली गईं, जहां अपना पैतृक मकान था और थोड़ी खेतीबाड़ी भी.

बूआ को पहली बार मैं ने तब देखा था जब वे 3 वर्ष पूर्व ताऊजी के निधन का समाचार पा कर आई थीं, हालांकि उन्हें बुलाया किसी ने नहीं था. ताऊजी एक सड़क दुर्घटना में अचानक चल बसे थे. विदेश में पढ़ रहे उन के बड़े बेटे ने भारत आ कर सारा कामकाज संभाल लिया था.

दूसरी बार बूआ तब आईं जब पिछले साल समीर भैया की शादी हुई थी. पहली बार तो मौका गमी का था, लेकिन इस बार खुशी के मौके पर भी किसी को बूआ को बुलाना याद नहीं रहा, लेकिन वे फिर भी आईं. पिताजी को बूआ का आना अच्छा नहीं लगा था. दादी सारा समय इस बात को ले कर डरती रहीं कि बूआ की घोर उपेक्षा तो हो ही रही है, कहीं पिताजी उन का अपमान न कर दें. लेकिन जाने क्या सोच कर वे मौन ही रहे.

पिताजी का रवैया मुझे बेहद खला था. बूआ कितनी स्नेहशील और उदार थीं. भाई द्वारा इतनी अपमानित, तिरस्कृत हो कर क्या कोई बहन दोबारा उस के पास आती, वह भी बिन बुलाए. यह तो बूआ की महानता थी कि इतना सब सहने के बाद भी उन्होंने भाई के लिए दिल में कुछ नहीं रखा था.

चलो, मान लिया कि फूफाजी ने पिताजी के साथ विश्वासघात किया था और उन्हें गहरी चोट पहुंची थी, लेकिन उस के बाद स्वयं फूफाजी ने जो तकलीफें उठाईं और उन के बाद बूआ और बच्चों को जो कष्ट झेलने पड़े, वे क्या किसी भयंकर सजा से कम थे. यह पिताजी की महानता होती यदि वे उन्हें माफ कर के अपना लेते.

अब जबकि बूआ ने बेटी की शादी पर कितनी उम्मीदों से बुलाया है, तो पिताजी का मन अब भी नहीं पसीज रहा. क्या नफरत की आग इंसान की तमाम संवेदनाओं को जला देती है?

दादी ने उस के बाद पिताजी को बहुतेरा समझाने व मनाने की कोशिशें कीं. मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. विवाह का दिन जैसेजैसे करीब आता जा रहा था, दादी की चिंता और मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

ऐसे में ही दादी के नाम बूआ का एक पत्र आ गया. उन्होंने भावपूर्ण शब्दों में लिखा था, ‘अगले हफ्ते तान्या की शादी है. लेकिन भैया नहीं आए, न ही उन्होंने या तुम ने ऐसा कोई संकेत दिया है, जिस से मैं निश्चिंत हो जाऊं. मैं जानती हूं कि तुम ने भैया को मनाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी होगी, मगर शायद इस बार भी हमेशा की तरह मेरी झोली में भैया की नफरत ही आई है.

‘मां, मैं भैया के स्वभाव से खूब परिचित हूं. जानती हूं कि कोई उन के फैसले को नहीं बदल सकता. पर मां, मैं भी उन की ही बहन हूं. अपने फैसले पर दृढ़ रहना मुझे भी आता है. मैं ने फैसला किया है कि तान्या का कन्यादान भैया के हाथों से होगा. बात केवल परंपरा के निर्वाह की नहीं है बल्कि एक बहन के प्यार और भांजी के अधिकार की है. मैं अपना फैसला बदल नहीं सकती. यदि भैया नहीं आए तो तान्या की शादी रुक जाएगी, टूट भी जाए तो कोई बात नहीं.’

पत्र पढ़ कर दादी एकदम खामोश हो गईं. मेरा तो दिमाग ही घूम गया. यह बूआ ने कैसा फैसला कर डाला? क्या उन्हें तान्या दीदी के भविष्य की कोई चिंता नहीं? मेरा मन तरहतरह की आशंकाओं से घिरने लगा.

आखिर में दादी से पूछ ही बैठी, ‘‘अब क्या होगा, बूआ को ऐसा करने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘तू नहीं समझेगी, यह एक बहन के हृदय से निकली करुण पुकार है,’’ दादी द्रवित हो उठीं, ‘‘माधवी आज तक चुपचाप भाइयों की नफरत सहती रही, उन के खिलाफ मुंह से एक शब्द भी नहीं निकाला. आज पहली बार उस ने भाई से कुछ मांगा है. जाने कितने वर्षों बाद उस के जीवन में वह क्षण आया है, जब वह सब की तरह मुसकराना चाहती है. मगर तेरा बाप उस के होंठों की यह मुसकान भी छीन लेना चाहता है. पर ऐसा नहीं होगा, कभी नहीं,’’ उन का स्वर कठोर होता चला गया.

दादी की बातों ने मुझे अचंभे में डाल दिया. मुझे लगा उन्होंने कोई फैसला कर लिया है. किंतु उन की गंभीर मुखमुद्रा देख कर मैं कुछ पूछने का साहस न कर सकी. पर ऐसा लग रहा था कि अब कुछ ऐसा घटित होने वाला है, जिस की किसी को कल्पना तक नहीं.

शाम को पिताजी घर आए तो दादी ने बूआ का पत्र ला कर उन के सामने रख दिया. पिताजी ने एक निगाह डाल कर मुंह फेर लिया तो दादी ने डांट कर कहा, ‘‘पूरा पत्र पढ़, रघुवीर.’’

पिताजी चौंक से गए. मैं कमरे के दरवाजे से सटी भीतर झांक रही थी कि पता नहीं क्या होने वाला है.

पिताजी ने सरसरी तौर पर पत्र पढ़ा और बोले, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तुम्हें क्या करना चाहिए, इतना भी नहीं जानते,’’ दादी के स्वर ने सब को चौंका दिया था. मां रसोई का काम छोड़ कर कमरे में चली आईं.

‘‘मां, मैं तुम से पहले भी कह चुका हूं.’’

‘‘कि तू वहां नहीं जाएगा,’’ दादी ने व्यंग्यभरे, कटु स्वर में कहा, ‘‘चाहे तान्या की शादी हो, न हो…वाह बेटे.’’

क्षणिक मौन के बाद वे फिर बोलीं, ‘‘लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. मैं आज तक तेरी हठधर्मिता को चुपचाप सहती रही. तुम दोनों भाइयों के कारण माधवी का तो जीवन बरबाद हो ही गया, पर मैं तान्या का जीवन नष्ट नहीं होने दूंगी.’’

दादी का स्वर भर्रा गया, ‘‘तेरी जिद ने आज मुझे वह सब कहने पर मजबूर कर दिया है, जिसे मैं नहीं कहना चाहती थी. मैं ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस बेटे के जीतेजी उस के अपराध पर परदा डाले रही, आज उस के न रहने के बाद उस के बारे में यह सब कहना पड़ेगा. पर मैं और चुप नहीं रहूंगी. मेरी चुप्पी ने हर बार मुझे छला है.

‘‘सुन रहा है रघुवीर, फर्म में गबन धीरेंद्र ने नहीं बल्कि तेरे सगे भाई ने किया था.’’

मैं सकते में आ गई. पिताजी फटीफटी आंखों से दादी की तरफ देख रहे थे, ‘‘नहीं, नहीं, मां, यह नहीं हो सकता.’’

दादी गंभीर स्वर में बोलीं, ‘‘लेकिन सच यही है, बेटा. क्या मैं तुझ से झूठ बोलूंगी? क्या कोई मां अपने मृत बेटे पर इस तरह का झूठा लांछन लगा सकती है? बोल, जवाब दे?’’

‘‘नहीं मां, नहीं,’’ पिताजी का समूचा शरीर थरथरा उठा. उन की मुट्ठियां कस गईं, जबड़े भिंच गए और होंठों से एक गुर्राहट सी खारिज हुई, ‘‘इतना बड़ा विश्वासघात…’’

फिर सहसा उन्होंने चौंक कर दादी से पूछा, ‘‘यह सब तुम्हें कैसे पता चला, मां?’’

‘‘शायद मैं भी तुम्हारी तरह अंधेरे में रहती और झूठ को सच मान बैठती. लेकिन मुझे शुरू से ही सचाई का पता चल गया था. हुआ यों कि एक दिन मैं ने सुधीर और बड़ी बहू की कुछ ऐसी बातें सुन लीं, जिन से मुझे शक हुआ. बाद में एकांत में मैं ने सुधीर को धमकाते हुए पूछा तो उस ने सब सचसच बता दिया.’’

‘‘तो तुम ने मुझे यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’ पिताजी ने तड़प कर पूछा.

‘‘कैसे बताती, बेटा, मैं जानती थी कि सचाई सामने आने के बाद तुम दोनों भाई एकदूसरे के दुश्मन बन जाओगे. मैं अपने जीतेजी इस बात को कैसे बरदाश्त कर सकती थी. मगर दूसरी तरफ मैं यह भी नहीं चाहती थी कि बेकुसूर दामाद को अपराधी कहा जाए और तुम सभी उस से नफरत करो. किंतु दोनों ही बातें नहीं हो सकती थीं. मुझे एक का परित्याग करना ही था.

‘‘मैं ने बहुत बार कोशिश की कि सचाई कह दूं. पर हर बार मेरी जबान लड़खड़ा गई, मैं कुछ नहीं कह पाई और तभी से अपने सीने पर एक भारी बोझ लिए जी रही हूं. बेटी की बरबादी की असली जिम्मेदार मैं ही हूं,’’ कहतेकहते दादी की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

‘‘मां, यह तुम ने अच्छा नहीं किया. तुम्हारी खामोशी ने बहुत बड़ा अनर्थ कर दिया,’’ पिताजी दोनों हाथों से सिर थाम कर धड़ाम से बिस्तर पर गिर गए. मां और मैं घबरा कर उन की ओर लपकीं.

पिताजी रो पड़े, ‘‘अब तक मैं क्या करता रहा. अपनी बहन के साथ कैसा अन्याय करता रहा. मैं गुनाहगार हूं, हत्यारा हूं. मैं ने अपनी बहन का सुहाग उजाड़ दिया, उसे घर से बेघर कर डाला. मैं अपनेआप को कभी क्षमा नहीं कर पाऊंगा.’’

पिताजी का आर्तनाद सुन कर मां और मेरे लिए आंसुओं को रोक पाना कठिन हो गया. हम तीनों ही रो पड़े.

दादी ही हमें समझाती रहीं, सांत्वना देती रहीं, विशेषकर पिताजी को. कुछ देर बाद जब आंसुओं का सैलाब थमा तो दादी ने पिताजी को समझाते हुए कहा, ‘‘नहीं, बेटा, इस तरह अपनेआप को दोषी मान कर सजा मत दे. दोष किसी एक का नहीं, हम सब का है. वह वक्त ही कुछ ऐसा था, हम सब परिस्थितियों के शिकार हो गए. लेकिन अब समय अपनी गलतियों पर रोने का नहीं बल्कि उन्हें सुधारने का है. बेटा, अभी भी बहुतकुछ ऐसा है, जो तू संवार सकता है.’’

दादी की बातों ने पिताजी के संतप्त मन को ऐसा संबल प्रदान किया कि वे उठ खड़े हुए और एकदम से पूछा, ‘‘समीर कहां है?’’

समीर भैया उसी समय बाहर से लौटे थे, ‘‘जी, पिताजी.’’

‘‘तुम जाओ और इसी समय कानपुर जाने वाली ट्रेन के टिकट ले कर आओ, पर सुनो, ट्रेन को छोड़ो… मालूम नहीं, कब छूटती होगी. तुम एक टैक्सी बुक करा लो और ज्योत्सना, माया तुम दोनों जल्दी से सामान बांध लो. मां, हम लोग इसी समय दीदी के पास चल रहे हैं,’’ पिताजी ने एक ही सांस में हस सब को आदेश दे डाला.

फिर वे शिथिल से हो गए और कातर नजरों से दादी की तरफ देखा, ‘‘मां, दीदी मुझे माफ कर देंगी?’’ स्वर में जाने कैसा भय छिपा हुआ था.

‘‘हां, बेटा, उस का मन बहुत बड़ा है. वह न केवल तुम्हें माफ कर देगी, बल्कि तुम्हारी वही नन्हीमुन्नी बहन बन जाएगी,’’ दादी धीरे से कह उठीं.

अंतत: भाईबहन के बीच वर्षों से खड़ी नफरत और गलतफहमी की दीवार गिर ही गई. मैं खड़ी हुई सोच रही थी कि वह दृश्य कितना सुखद होगा, जब पिताजी बूआ को गले से लगाएंगे.

Film Review: मस्ताने-रोमांचक कथा सत्य कथा के माध्यम से सिख संस्कृति का ज्ञान

रेटिंगः पांच में से साढ़े तीन स्टार

निर्माताः मनप्रीत जोहल और आषु मुनीष

लेखकः शरन आर्ट और हरनव बीर सिंह

निर्देशकः शरन आर्ट

कलाकारः तरसेम जास्सर, सिमी चहल,गुरप्रीत घुग्गी, करमजीत अनमोल, आरिफ जकरिया,  राहुल देव,बिंदु भुल्लर, हनी माटू, अवतार गिल व अन्य.

अवधिः दो घंटे 25 मिनट

भाषा: पंजाबी,हिंदी,तेलुगु व मलयालम

‘सरदार मोहम्मद‘, ‘गलवाकडी‘ और ‘रब दा रेडियो 2‘ जैसी सफलतम पंजाबी फिल्मों के  निर्देशक शरण आर्ट ने इस बार पीरियड,ऐतिहासिक व रोमांचक फिल्म ‘मस्ताने‘ में 1739 की सत्यकथा को पेष करने के साथ ही सिख योद्धाओं की वीरता उनके दृढ़ साहस और अटूट दृढ़ संकल्प की कहानी को पूरी ईमानदारी के साथ पेश किया है.फिल्म मुगल षासकों के खिलाफ होने के साथ ही हमारी जड़ों से जुड़ी हुई है.यह फिल्म देषभक्ति की बात करने के साथ ही हर इंसान को अपनी जड़ों से जुड़े रहने का भी आव्हान रोमांचक तरीके से करती है.तो वहीं फिल्म में एक रोचक प्रेम कहानी भी है.बौलीवुड में देषभक्ति के नाम पर फिल्में परोसने वाले हर फिल्मकार को फिल्म ‘मस्ताने’ से सबक सीखना चाहिए.बहरहाल, पंजाबी सिनेमा को पैन इंडिया पहुॅचाने के लिए यह एक बेहतरीन फिल्म है.

कहानीः

फिल्म की कहानी 1739 की है.जब ईरान के तत्कालीन शासक नादिर शाह(  राहुल देव ) हिंदुस्तान को लूटकर हिदुंस्तानी औरतों को गुलाम बनाकर बेच रहा था,जिसके खिलाफ कुछ सिखों ने विरोध कर दिया था, जिन्हें सिख विद्रोही की संज्ञा दी गयी थी.उत्तरी पंजाब से होते हुए ईरान लौटते समय पहली बार नादिर षाह का सामना सिख विद्रोहियों से हुआ.

चंद सिख योद्धाओं ने नादिरशाह के सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे. काफी विचार करने के बाद नादिर शाह को अहसास हुआ कि इन सिख विद्रोहियों के पीछे लाहौर के शासक का हाथ हो सकता है.तब नादिर षाह सीधे लाहौर षासक के दरबार में पहुंच जाता है और अपने मन की बता कह देता है. लाहौर शासक मना करते है कि उनका सिख विद्रोहियों के संग कोई वास्ता नही है.

तब नादिर शाह लाहौर के शासक से यह जानने की मांग करता है कि सिख कौन हैं? लाहौर शासक अपने मंत्री की सलाह पर पांच आम इंसानों को पकड़कर दरबार में लाते हैं और उन्हें सारी सुविधा देते हैं.लाहौर षासक का मकसद इन पांचों को सिख विद्रोहियों के रूप में नादिर शाह के सामने पेश करना है. यह पांचों ,नादिर शाह के सामने दुम हिलाएंगे. मगर इन पांच मे से कलंदर बाकी के चार को सिखाता है कि सिख क्या हैं? अरदास की शक्ति क्या है.नियत तारीख को जब नादिर शाह के सामने

इन पांचों को पेश किया जाता है,तो यह पांचो मरने से पहले कई सैनिको को मौत के घाट उतार देेते हैं.नादिर षाह स्वयं सिखों की वीरता देख दांतो तले उंगली दबा लेता है.

लेखन व निर्देशनः

पटकथा काफी रोचक व रोमांचक है. फिल्म कहीं भी बोर नही करती. जबकि इंटरवल से पहले फिल्म काफी सुस्त गति से आगे बढ़ती है. इंटरवल से पहले फिल्म पांच मस्तानों को स्थापित करने के चक्कर में सिख विद्रोहियों को नजरंदाज करती है.फिल्मकार ने सिख संस्कृति की गहरी जानकारी देने का प्रयास किया है.इसके लिए फिल्मकार ने बेवजह की नाटकीय दृष्य अथवा भाषणबाजी नुमा संवाद नही रखे हैं.  बल्कि फिल्मकार ने मनोरंजन के साथ सिख धर्म के बारे में सिखाने के लिए ऐतिहासिक सत्य कथा का सहारा लिया है.यहां न तो केाई गुस्से में हैंडपंप उखड़ता है और न ही गला फा़कर चिल्लाता है.

यह फिल्म सिख संस्कृति, उनकी जड़ों, प्रकृति से लड़ने के लिए तैयार रहने के साथ ही हर इंसान को षांत आचरण का अद्भुत संदेष देती है. इस कहानी के समांतर एक बहुत ही खूबसूरत सी प्रेम कहानी भी चलती है जिसमें जहूर(तरसेम जस्सर) और नूर (सिमी चहल) के बीच रूमानी एहसासों की अच्छी झलक मिलती है.फिल्म देखते हुए दर्षक उस दृढ़ विश्वास और सच्चे इरादे को समझता है. यह फिल्म उन सिख समुदाय की वीरता के दर्षन कराती है,जिन सिखों को बौलीवुड फिल्मों में अब तक महज हास्य किरदारों के रूप में पेष किया जाता रहा है. बतौर निर्देशक शरण आर्ट की कला हर दृष्य में नजर आती है.युद्ध के दृष्यों में उनका निर्देषन कौशल कुछ ज्यादा ही उभरकर आता है. फिल्म की कमजोर कड़ी इसका गीत व संगीत है. यह आष्चर्य की बात है. क्योंकि पंजाबी संगीत का दीवाना तो पूरा विष्व है.कुछ संवाद बहुत बेहतरीन बने हैं,जो कि दिल को छू जाते हैं. कैमरामैन जायपे सिंह ने 18वीं शताब्दी के लाहौर को अपने कैमरे से खूबसूरती से पेश किया है.

अभिनयः

नूर के किरदार में सिमी चहल न सिर्फ सुंदर नजर आयी हैं बल्कि उन्होने अपने अभिनय की अमिट छाप भी छोड़ी है. जहूर के किरदार में अभिनेता तरसेम जस्सर में गजब का आकर्षण है. परदे पर उनकी उपस्थिति बहुत दिलचस्प है. प्रेम दृष्यों के साथ ही युद्ध के दृष्यों में भी वह अपने सषक्त अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं. पंजाबी सिनेमा में गुरप्रीत घुग्गी की पहचान हास्य अभिनेता के रूप में हैं. मगर इस फिल्म में कलंदर के गंभीर किरदार निभाते हुए कमाल का अभिनय किया है. राहुल देव और आरिफ जकारिया के हिस्से करने को कुछ खास आया ही नहीं.

Anupamaa: पाखी को मिला रोमिल का साथ, डिंपल की हुई बत्ती गुल

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ में इन दिनों काफी ड्रामा चल रहा है. ‘अनुपमा’ में इतना ड्रामा देखकर दर्शक का दिमाग हिल गया है. सीरियल में पाखी-अधिक करेंट ट्रेक चल रहा है. पाखी नें अधिक को माफ कर दिया है. जिस वजह से पूरा शाह परिवार में टैंशन में है.

डिंपल की वाट लगाएगी अनुपमा

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि शाह हाउस में अनुपमा आती है. सभी लोग घर के हॉल में बैठकर बात कर रहे होते हैं, तभी डिंपल को पता चलता है कि उसके फ्लोर पर बिजली नहीं आ रही, लेकिन नीचे तो बिजली आ रही है.

 

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इस बारे में वह अनुपमा से बात करती है, तो डिंपल को सीधा बिजली का बिल करने के लिए कह दिया जाता है. इस दौरान जब डिंपल बोलती है कि वह शाम को भर देगी, अभी आप लोग भर दीजिए तो अनुपमा साफ इनकार कर देती है. ऐसे में डिंपल सबसे बदतमीजी करती है. तब अनुपमा डिंपल को करारा जवाब देती है, जिससे डिंपल की बोलती बंद हो जाती है. इसके बाद डिंपल समर को भी बोल देती है कि अब से घर में बिजली कम ही जलेगी.

पाखी को मिला रोमिल का साथ

टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में आगे देखने को मिलेगा कि पाखी अधिक के लिए केक बनाएंगी. तभी वहां पर रोमिल आ जाता है. वह दोनों आपस में बात करने लगते है. रोमिल इशारों में पाखी से कहता है उसे अपने पति अधिक का टेस्ट लेना चाहिए. वह आगे कहता है कि अगर अधिक सही होगा तो वह आगे यह सब नहीं करेगा. एक बार टेस्ट लेने में कोई बुराई नहीं है. वह दोनों आखिर में हाथ मिलाते है, अनुपमा इन दोनों को साथ में देखकर खुश हो जाती है.

दिशा परमार की गोदभराई पति के साथ कटा केक, चेहरे पर दिखा प्रेग्नेंसी ग्लो

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस दिशा परमार इन दिनों प्रेग्नेंसी फेज को काफी एन्जॉय कर रहीं है. एक्ट्रेस जल्द ही मां बनने वाली है. वहीं दिशा को लास्ट सीरियल बड़े अच्छे लगते हैं में देखा गया था, लेकिन अब ये सीरियल ऑफ एयर हो गया है. इस समय दिशा परमार अपने पति राहुल वैद्य के साथ अपना समय बीता रही हैं. इस बीच सोशल मीडिया पर उनकी गोदभराई की तस्वीरें वायरल हो रही है. वह अपने पति राहुल वैद्य के साथ केक काटती नजर आ रही है.

कपल ने दिए पोज

दरअसल, बीती रात दिशा परमार की गोद भराई की रस्म हुई, जिसमें राहुल वैद्य ने पत्नी दिशा परमार के साथ पैपराजी को ढेर सारे पोज दिए. राहुल वैद्य ने अपनी पत्नी के बेबी बंप पर हाथ रखकर पोज देते नजर आ रहे है.

लैवेंडर ड्रेस में दिशा दिखीं बेहद खूबसूरत

अपने खास दिन के लिए दिशा ने लैवेंडर कलर की ऑफ-शोल्डर रुच्ड ड्रेस में अपना बेबी बंप फ्लॉन्ट किया. डैंगलिंग इयररिंग्स, एक घड़ी और ब्लिंगी फ्लैट्स के साथ अपने लुक को पूरा करते हुए उन्होंने अपनी प्रेग्नेंसी ग्लो को बिखेरा था.

दिशा का लुक डेवी मेकअप के साथ पूरा हुआ था, जिसमें शिमरी आईशैडो, ग्लॉसी न्यूड लिप्स, हाईलाइटेड चीकबोन्स और खुले बाल में बेहद खूबसूरत लग रही थीं. वहीं दूसरी ओर, पति राहुल व्हाइट कलर की प्रिंटेड शर्ट पहने हुए दिख रहे थे, जिसे उन्होंने व्हाइट पैंट के साथ कैरी किया था.

 

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पति के साथ कटा केक

दिशा परमार और उनके पति राहुल वैद्य ने अपनी गोद भराई में एक यूनिक टू-टियर केक भी कट किया. केक पर दो बेबीज बने हुए थे, जो हाथ में गुब्बारे लिए हुए थे. इसके ​अलावा, केक पर “दिशूल बेबी” भी लिखा था

मनीषा रानी से लीजिए फैशन टिप्स, रक्षा बंधन पर ट्राय करें बिग बॉस गर्ल के ये लुक्स

बिग बॉस ओटीटी 2 से फेमस हुई बिहार की रानी उर्फ मनीषा रानी से आप सभी बखूबी वाकिफ हैं। अपनी कातिल अदाएं से मनीषा सबके छक्के छुड़ा लेती है। बिग बॉस ओटीटी 2 में मनीषा रानी का स्टाइल और ड्रेसिंग सेंस बेहद शानदार था। वह वीकेंड के वार पर अपने ड्रेसिंग स्टाइल से जलवा बिखेरती थी। रक्षाबंधन का त्योहार जल्द ही आने वाला है। आप भी स्टाइलिश आउटफिट देख रहे हैं तो मनीषा रानी से  लीजिए राखी फेस्टिवल के लिए ये फैशन टिप्स.

इन फैशन टिप्स से आप अपनी राखी लुक को परफेक्ट बना सकते हैं

  1. ग्रे सेक्विन साड़ी

बिग बॉस ओटीटी 2 की फेम मनीषा रानी अपने फैशन के लिए जानी जाती है. मनीषा रानी के इस साड़ी लुक को अपनाकर आप भी इस रक्षाबंधन काफी खूबसूरत और ग्लैमर दिख सकते है. ग्रे सेक्विन साड़ी लड़कियों के लिए राखी पर सबसे बेस्ट है. इस राखी आप भी ट्राई करें ये लुक.

 

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  1. पर्पल मिरर लहंगा

मनीषा रानी ने पर्पल मिरर लहंगा बिग बॉस ओटीटी 2 में भी पहना था. इस लहंगा में वह एकदम जबरदस्त लग रही थी. इस राखी पर मनीषा रानी का यह लुक आप भी ट्राई करें. सबकी निगाहें आप पर होगी .

 

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3. लाइट पिंक सेक्विन साड़ी

मनीषा रानी अपने स्टाइल और फैशन से सबका दिल जीत लेती है. अगर इस रक्षा बंधन पर आप भी सबका दिल जीतना चाहते है तो मनीषा का यह लुक जरूर ट्राई करें. लाइट पिंक सेक्विन साड़ी में आप बला की खूबसूरत लगेंगी.

 

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4. स्काई ब्लू लहंगा

भई यह तो मानना ही पड़ेगा मनीषा रानी अपने फैशन से जलवा बिखरती रहती है. बिग बॉस ओटीटी 2 में भी अपनी अंदाओं से सबका दिल जीती है मनीषा. इस रक्षाबंधन आप भी मनीषा का ये लुक ट्राई करें. इस लुक में आप काफी हॉट एड़ खूबसूरत देखेंगी.

 

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5. ब्लैक सेक्विन साड़ी

आज के समय में ब्लैक लवर काफी मिल जाएंगे. अगर आप भी ब्लैक लवर है तो मनीषा रानी का ये लुक आपके लिए बहुत ही परफेक्ट रहेगा. इस रक्षाबंधन मनीषा की ब्लैक सेक्विन साड़ी वाला लुक जरूर ट्राई करें.

 

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पीरियड्स में अब नो टैंशन

पीरियड्स के दिन किसी भी महिला के लिए आसान नहीं होते हैं. कामकाजी महिलाओं के लिए तो ये और भी मुश्किल होते हैं क्योंकि उन्हें पूरा दिन औफिस और घर का काम करना होता है. ऐसे में वे पीरियड के दर्द को भूल कर किस तरह काम कर सकती हैं, आइए जानते हैं:

  1. कौटन अंडरवियर

इस में कौटन अंडरविअर बैस्ट चौइस होती है. यह कंफर्ट के साथसाथ स्किन इरिटेशन को दूर रखने में में भी मदद करती है. फिटिंग और कवरेज एरिया भी अच्छा होता है, जो पैड को सही जगह पर रखने में हैल्प करता है. इसके दिनों शरीर में सूजन आ सकती है. इसलिए इन दिनों कौटन बेस्ड और नौनवायर्ड ब्रा ही पहनें.

2. ढीले और कंफर्टेबल कपड़े

पीरियड्स के दिनों में महिलाएं ढीले और कंफर्टेबल कपड़े पहनें. इन दिनों डार्क कलर के ही कपड़े पहनें और टाइट कपड़ों को अवौइड करें.

3. हाइजीन है मस्ट

पीरियड्स के दिनों में हाइजीन का खास खयाल रखें. वाशरूम का इस्तेमाल करने या पैड बदलने के बाद हाथों को हैंडवाश से जरूर धोएं. प्राइवेट पार्ट को साफ करते वक्त ध्यान रखें कि उसे आगे से पीछे की ओर ही धोएं. मैंस्ट्रुएशन के दौरान अगर साफसफाई का ध्यान न रखा जाए तो महिलाओं को कई बीमारियां हो सकती हैं. इन में से एक है रीप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फैक्शन. इस की वजह से कई बार महिलाएं मां नहीं बन पाती हैं.

4. पीरियड्स प्रोडक्ट

पीरियड्स के दिनों में महिलाएं सैनिटरी पैड (जैविक, कौटन), टैंपोन, मैंस्ट्रुअल कप और पीरियड पैंटी का इस्तेमाल करती हैं.

पीरियड्स के प्रोडक्ट आप के पीरियड्स को आरामदायक बना सकते हैं. आप का पीरियड प्रोडक्ट आप के ब्लड फ्लो के हिसाब से होना चाहिए. जब ब्लड फ्लो ज्यादा हो तो ओवरनाइट पीरियड सैनिटरी पैड या पीरियड पैंटी का इस्तेमाल करें. जब ब्लड फ्लो कम हो या पीरियड का आखिरी दिन हो तो पैंटी लाइनर्स का इस्तेमाल किया जा सकता है.

5. पीरियड पेन रिलीफ प्रोडक्ट

ऐसे बहुत से तरीके हैं जिन से पीरियड क्रैंप्स में रिलीफ पाया जा सकता है. आजकल मार्केट में पेन रिलीफ पैचिस छाए हुए हैं.

पीरियड पैचिस नैचुरली तरीके से दर्द से राहत दिलाने में हैल्प करते हैं. इन में मैंथोल और नीलगिरी का तेल शामिल होता है, जो दर्द और पीरियड्स में होने वाली परेशानियों को कम करने में सहायक होता है.

इस के अलावा आप हिटिंग पैड का भी यूज कर सकती हैं. पानी की बोतल में गरम पानी भर कर भी अपने पेट और उस के आसपास की सिंकाई की जा सकती है. इस के अलावा पीरियड पेन रिलीफ रोलऔन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

6. बौडी स्ट्रैचिंग

अगर आप वर्किंग वूमन हैं और पीरियड्स में हैं तो अपनेआप को ऐक्टिव रखने के लिए बीचबीच में बौडी स्ट्रैच कर सकती हैं. इसे करने से बौडी रिलैक्स होती है. पीरियड्स के दौरान किसी भी तरह का वर्कआउट करने से ऐंडोर्फिन नाम का हारमोन रिलीज होता है, जो दर्द से राहत दिलाता है.

7. योग है दर्दनिवारक

योग से पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द से राहत मिलती है. योग से एकाग्रता बनी रहती है और मन भी शांत रहता है. इस से काम करने में आसानी होती है.

8. वाक का लें सहारा

पीरियड्स में दर्द से छुटकारा पाने के लिए बीचबीच में वोक कर सकती हैं. इस से आप का मूड ठीक रहेगा और आप अपने काम पर फोकस कर पाएंगी.

9. ढेर सारा पानी पीएं

पानी पीना हैल्थ के लिए बहुत ही लाभदायक है. लेकिन पीरियड्स में यह और भी ज्यादा हैल्थफुल हो जाता है. वर्किंग वूमन अपनी पानी की बोतल को टेबल पर भर कर रखें और थोड़ीथोड़ी देर में पानी पीती रहें. पूरे दिन में कम से कम 2 लिटर पानी जरूर पीएं. पानी पीने से आप खुद को डिहाइड्रेट होने से बचा सकती हैं.

10. डार्क चौकलेट ही खाएं

चौकलेट हर किसी की पहली पसंद होती है, लेकिन पीरियड्स के दौरान लड़कियों को चौकलेट खाना बहुत भाता है. अगर आप को भी पीरियड्स के दौरान चौकलेट खाने की क्रेविंग होती है तो आप डार्क चौकलेट ही खाएं. यह आप के पीरियड के दर्द को कम करने में हैल्प करेगी.

11. कैफीन युक्त ड्रिंक्स को कहें बायबाय

पीरियड्स के दौरान कौफी या कैफीन युक्त ड्रिंक्स पीने पर पेट फूलने की दिक्क्त हो सकती है, जिस से आप की प्रौब्लम बढ़ेगी.

कैफीन के अलावा कोल्ड ड्रिंक्स या सोडा वाली ड्रिंक्स का सेवन भी न करें. इस दौरान वे चीजें खाएं जिन में पानी की मात्रा ज्यादा होती है जैसे तरबूज, खीरा. क्रैंप्स को कम करने के लिए बिना कैफीन वाली चाय या ग्रीन टी पी जा सकती है.

12. पीरियड्स एप्स का करें इस्तेमाल

पीरियड ऐप्स से महिलाओं को पीरियड डेट याद रखने का झंझट नहीं लेना पड़ता. बिजी लाइफस्टाइल में कई बार महिलाएं अपनी पीरियड डेट भूल जाती हैं. इस का खमियाजा उन्हें अनसेफ सैक्स और अनवांटेड प्रैगनैंसी जैसी प्रौब्लम्स के रूप में भुगतना पड़ता है. लेकिन अब मार्केंट में ढेरों ऐसे ऐप्स मौजूद हैं जो उन की पीरियड प्रौब्लम को सौल्व कर सकते हैं जैसे पीरियड ट्रैकर, फ्लो, ग्लो, क्लू और पिंक पैड. ये ऐप्स महिलाओं के लिए काफी हैल्पफुल हैं.

13. मैंटल हैल्थ का रखें ध्यान

पीरियड्स के दिनों में महिलाओं का मूड स्विंग होता रहता है. इस में उदास होना, बिना बात के गुस्सा होना, चिड़चिड़ापन आम बात है. ऐसा हारमोनल बदलाव की वजह से होता है. अपने बदलते मूड को कंट्रोल करने की कोशिश करें ताकि इस से आप के काम पर कोई साइड इफैक्ट न पड़े और आप अपना काम बिना किसी मैंटल स्ट्रैस के कर पाएं. मैंटल हैल्थ को मैनेज करने के लिए आप सौफ्ट सौंग भी सुन सकती हैं.

इन तरीकों के अलावा कुछ बातों का ध्यान रख कर आप पीरियड के दिनों में अपने काम को आसानी से कर सकती हैं जैसे नैगेटिव लोगों से दूरी, क्रैंप्स से ध्यान हटा कर काम पर ध्यान लगाना, पीरियड के दौरान खुश रहना.

Cook Book special: बेहतरीन बंगाली कुजीन

बंगाल के खाने के गजब ही स्वाद होता है. वैसे तो बंगाल का रसगुला, मिष्टी दोई और विरयानी बहुत फैमस है. तो आज हम आपको बंगाल की फेमस फूड की रेसिपी बताने जा रहे है. तो देर किस बात की. आइए बनाते है बंगाली जायके.

  1. कोशा मांगशो

सामग्री

1.  500 ग्राम मटन कटा 

2.  1/2 कप सरसों का तेल 

3.  4 लौंग, हरी इलायची और दालचीनी के कुछ छोटे टुकड़े 

4.  1/2 कप प्याज ग्रेट किया 

5.  1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट 

6. लालमिर्च पाउडर स्वादानुसार

  7. 1/2 बड़ा चम्मच हल्दी 

8.  1 बड़ा चम्मच जीरा भुना 

9.  500 ग्राम हंग कर्ड 

10. नमक स्वादानुसार.

विधि

तेल गरम कर लौंग, इलायची और दालचीनी डालें. फिर प्याज डाल कर उस के मुलायम होने तक सौते करें. अब अदरकलहसुन पेस्ट, मिर्च पाउडर और हलदी मिला कर चलाते हुए फ्राई करें. मटन मिला कर तेज आंच पर फ्राई करें. आंच धीमी करें और फैट के अलग होने तक सौते करें. अब दही, जीरा और नमक मिलाएं. फैट के अलग होने तक फिर सौते करें. ढक कर धीमी आंच पर पकने दें. फिर गरमगरम सर्व करें.

2. मिष्टी दोई

सामग्री

1. 1 लिटर दूध फुल क्रीम 

  2. 300 ग्राम पाम गुड़

  3. 2 छोटे चम्मच दही

विधि

एक भारी पैंदी वाले पैन में दूध को तब तक गरम करें जब तक कि वह 1/4 न रह जाए. फिर भारी पैंदी वाले सौसपैन में गुड़ गरम करें. 10 एमएल पानी की सहायता से उसे ठंडा करें. अब उबलते दूध में गुड़ डाल कर उसे अच्छी तरह मिलाएं. 5 मिनट तक पका कर 40 डिग्री सैल्सियस पर ठंडा करें. अब उस में दही मिलाएं. दही मिलाते समय दूध बहुत ज्यादा गरम न हो. इस मिश्रण को किसी टैराकोटा या मिट्टी के बरतन में निकालें. हलकी गरम जगह सैट होने रख दें. ठंडा हो जाने पर सर्व करें.

3. कोलकाता बिरयानी

सामग्री

1. बिरयानी मसाला की

 2.  6-7 हरी इलायची 

  3. 1-2 काली इलायची

  4. 1 छोटा चम्मच लौंग

   5. 1 इंच के 2 टुकड़े दालचीनी

   6. 1 फ्लोरेट मेस 

    7. 1/4 जायफलद्य 1 स्टार अनाइस 

     8. 1 छोटा चम्मच जीरा

     9. 1 छोटा चम्मच फेनेल

    10. 1 छोटा चम्मच कालीमिर्च.

सामग्री मटन की

  1. 500 ग्राम हड्डी वाला मटन

2.  2-3 छोटे चम्मच हंग कर्ड 

 3. छोटा चम्मच क्रश्ड लहसुन

  4. 1 छोटा चम्मच अदरक कसा 

   5. 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर 

   6. 1/2 छोटा चम्मच कश्मीरी लालमिर्च पाउडर

   7. 1/3 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर 

8. 1 बड़ा चम्मच बिरयानी मसाला

 9. नमक स्वादानुसार

सामग्री बिरयानी चावल की

1.  2 कप चावल 

  2. 1 बे लीफ 

  3. 6-7 हरी इलायची 

  4. 1-2 काली इलायची 

  5. 1 छोटा चम्मच लौंग 

   6. 1 इंच के 2 टुकड़े दालचीनी

   7. 1 फ्लोरेट मेस

   8. 1/4 जायफल 

  9. 1 छोटा चम्मच जीरा 

10. 1 छोटा चम्मच फेनेल

 11. 1 छोटा चम्मच कालीमिर्च 

12. थोड़ा सा घी या मक्खन

 13. 4 कप पानी 

14. नमक स्वादानुसार 

 15. 2 प्याज बड़े

  16. 2-3 आलू बड़े 

   17. 3 अंडे उबले 

  18. 8-10 केसर की पत्तियां

  19. 1/3 कप कुनकुना दूध 

  20. 2-3 बूंदें गुलाब ऐसेंस 

   21. 1/2 छोटा चम्मच केवड़े का पानी

   22. 5-6 बड़े चम्मच घी या मक्खन.

विधि

लोहे के तवे पर हर सामग्री को अलगअलग भून लें. भुने सूखे मसालों का पाउडर बना लें. इसे बिरयानी मसाला कहते हैं. एक बड़े बाउल में हंग कर्ड फेंट कर उस में नमक और मटन के अलावा बाकी सारी सामग्री मिला कर गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें. फिर मटन और नमक मिला कर 4-5 घंटे या कम से कम 1 घंटे के लिए अलग रख दें. चावलों को धो कर 30 मिनट तक पानी में भिगो कर रखें. फिर चावल वाली सारी सामग्री से मुस्लिन का पाउच बना कर सील कर दें. उस में चावल, नमक, घी और बे लीफ न मिलाएं. बड़े बरतन में उबलते पानी में बे लीफ, नमक, घी और मसालों की पोटली डालें. चावल मिला कर चावल आधा पकने तक पकाती रहें.

पानी निकालें और चावलों को किसी समतल बरतन में निकालें. बे लीफ और मसालों की पोटली को हटा दें. एक कड़ाही में 3 बड़े चम्मच घी गरम कर प्याज के पतले व लंबे टुकड़े कर सुनहरा होने तक तल लें. मटन मिलाएं और धीमी आंच पर भूनती रहें. आलू और मटन के पकने तक भूनती रहें. केसर को कुनकुने पानी में भिगो कर 5 मिनट के लिए अलग रख दें. केसर की लड़ों को दूध में रब करती रहें ताकि पूरी तरह से घुल जाए. उस में गुलाब ऐसेंस और केवड़ा पानी मिला कर 15 मिनट के लिए अलग रख दें. अब एक बड़े बरतन में चावल, ग्रेवी, मटनआलू और अंडों की लेयर्स सजाएं. उन लेयर्स को घी और केसर वाले दूध से अलग करें. सर्विंग प्लेट में निकाल कर गरमगरम परोसें.

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