अम्मां जैसा कोई नहीं

अस्पताल के शांत वातावरण में वह न जाने कब तक सोती रहती, अगर नर्स की मधुर आवाज कानों में न गूंजती, ‘‘मैडमजी, ब्रश कर लो, चाय लाई हूं.’’

वह ब्रश करने को उठी तो उसे हलका सा चक्कर आ गया.

‘‘अरेअरे, मैडमजी, आप को बैड से उतरने की जरूरत नहीं. यहां बैठेबैठे ही ब्रश कर लीजिए.’’

साथ लाई ट्रौली खिसका कर नर्स ने उसे ब्रश कराया, तौलिए से मुंह पोंछा, बैड को पीछे से ऊपर किया. सहारे से बैठा कर चायबिस्कुट दिए. चाय पी कर वह पूरी तरह से चैतन्य हो गई. नर्स ने अखबार पकड़ाते हुए कहा, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो तो बैड के साथ लगा बटन दबा दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी.’’

50 वर्ष की उस की जिंदगी के ये सब से सुखद क्षण थे. इतने इतमीनान से सुबह की चाय पी कर अखबार पढ़ना उसे एक सपना सा लग रहा था. जब तक अखबार खत्म हुआ, नर्स नाश्ता व दूध ले कर हाजिर हो गई. साथ ही, वह कोई दवा भी खिला गई. उस के बाद वह फिर सो गई और तब उठी जब नर्स उसे खाना खाने के लिए जगाने आई. खाने में 2 सब्जियां, दाल, सलाद, दही, चावल, चपातियां और मिक्स फ्रूट्स थे. घर में तो दिन भर की भागदौड़ से थकने के बाद किसी तरह एक फुलका गले के नीचे उतरता था, लेकिन यहां वह सारा खाना बड़े इतमीनान से खा गई थी.

नर्स ने खिड़कियों के परदे खींच दिए थे. कमरे में अंधेरा हो गया था. एसी चल रहा था. निश्ंिचतता से लेटी वह सोच रही थी काश, सारी उम्र अस्पताल के इसी कमरे में गुजर जाए. कितनी शांति व सुकून है यहां. किंतु तभी चिंतित पति व असहाय अम्मां का चेहरा उस की आंखों के सामने घूमने लगा. उसे अपनी सोच पर ग्लानि होने लगी कि घर पर अम्मां बीमार हैं. 2 महीने से वे बिस्तर पर ही हैं.

2 दिन पहले तक तो वही उन्हें हर तरह से संभालती थी. पति निश्ंिचत भाव से अपना व्यवसाय संभाल रहे थे. अब न जाने घर की क्या हालत होगी. अम्मां उस के यानी अनु के अलावा किसी और की बात नहीं मानतीं.

अम्मां चाय, दूध, जूस, नाश्ता, खाना सब उसी के हाथ से लेती थीं. किसी और से अम्मां अपना काम नहीं करवातीं. अम्मां की हलके हाथों से मालिश करना, उन्हें नहलानाधुलाना, उन के बाल बनाना सभी काम अनु ही करती थी. सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अम्मां के साथसाथ आनेजाने वाले रिश्तेदारों की सुबह से ले कर रात तक खातिरदारी भी उसे ही करनी पड़ती थी. उसे हाई ब्लडप्रैशर था.

अम्मां और रिश्तेदारों के बीच चक्करघिन्नी बनी आखिर वह एक रात अत्यधिक घबराहट व ब्लडप्रैशर की वजह से फोर्टिस अस्पताल में पहुंच गई थी. आननफानन उसे औक्सीजन लगाई गई. 2 दिन बाद ऐंजियोग्राफी भी की गई, लेकिन सब ठीक निकला. आर्टरीज में कोई ब्लौकेज नहीं था.

जब स्ट्रैचर पर डाल कर उसे ऐंजियोग्राफी के लिए ले जा रहे थे तब फीकी मुसकान लिए पति उस के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘चिंता मत करना आजकल तो ब्लौकेज का इलाज दवाओं से हो जाता है.’’

वह मुसकरा दी थी, ‘‘आप व्यर्थ ही चिंता करते हैं. मुझे कुछ नहीं है.’’

उस की मजबूत इच्छाशक्ति के पीछे अम्मां का बहुत बड़ा योगदान रहा है.

अम्मां के बारे में सोचते हुए वह पुरानी यादों में घिरने लगी थी. उस की मां तो उसे जन्म देते ही चल बसी थीं. भैया उस से 15 साल बड़े थे. लड़की की चाह में बड़ी उम्र में मां ने डाक्टर के मना करने के बाद भी बच्ची पैदा करने का जोखिम उठाया था और उस के पैदा होते ही वह चल बसी थीं. पिताजी ने अनु की वजह से तलाकशुदा युवती से पुन: विवाह किया था, लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनती गईं कि अंतत: नानानानी के घर ही उस का पालनपोषण हुआ था. भैया होस्टल में रह कर पलेबढ़े. सौतेली मां की वजह से पिता, भैया और वह एक ही परिवार के होते हुए भी 3 अलगअलग किनारे बन चुके थे.

वह 12वीं की परीक्षा दे रही थी कि तभी अचानक नानी गुजर गईं. नाना ने उसे अपने पास रखने में असमर्थता दिखा दी थी, ‘‘दामादजी, मैं अकेला अब अनु की देखभाल नहीं कर सकता. जवान बच्ची है, अब आप इसे अपने साथ ले जाओ. न चाहते हुए भी उसे पिता और दूसरी मां के साथ जाना पड़ा. दूसरी पत्नी से पिता की एक नकचढ़ी बेटी विभू हुई थी, जो उसे बहन के रूप में बिलकुल बरदाश्त नहीं कर पा रही थी. घर में तनाव का वातावरण बना रहता था, जिस का हल नई मां ने उस की शादी के रूप में निकालना चाहा. वह अभी पढ़ना चाहती थी, मगर उस की मरजी कब चल पाई थी.

बचपन में जब पिता के साथ रहना चाहती थी, तब जबरन नानानानी के घर रहना पड़ा और जब वहां के वातावरण में रचबस गई तो अजनबी हो गए पिता के घर वापस आना पड़ा था. उन्हीं दिनों बड़ी बूआ की बेटी के विवाह में उसे भागदौड़ के साथ काम करते देख बूआ की देवरानी को अपने इकलौते बेटे दिनेश के लिए वह भा गई थी. अकेले में उन्होंने उस के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा तथा आश्वासन भी दिया कि वे उस की पढ़ाई जारी रखेंगी. पिताजी ने चट मंगनी पट ब्याह कर अपने सिर का बोझ उतार फेंका.

अनु की पसंदनापसंद का तो सवाल ही नहीं था. विवाह के समय छोटी बहन विभू जीजाजी के जूते छिपाने की जुगत में लगी थी, लेकिन जूते ननद ने पहले से ही एक थैली में डाल कर अपने पास रख लिए थे. मंडप में बैठी अम्मां यह सब देख मंदमंद मुसकरा रही थीं. तभी ननद के बच्चे ने कपड़े खराब कर दिए और वह जूतों की थैली अम्मां को पकड़ा कर उस के कपड़े बदलवाने चली गई. लौट कर आई तो अम्मां से थैली ले कर वह फिर मंडप में ही डटी रही.

विवाह संपन्न होने के बाद जब विभू ने जीजाजी से जूते छिपाई का नेग मांगा तो ननद झट से बोल पड़ी, ‘‘जूते तो हमारे पास हैं नेग किस बात का?’’

इसी के साथ उन्होंने थैली खोल कर झाड़ दी. लेकिन यह क्या, उस में तो जूतों की जगह चप्पलें थीं और वे भी अम्मां की. यह दृश्य देख कर ननद रानी भौचक्की रह गईं. उन्होंने शिकायती नजरों से अपनी अम्मां की ओर देखा, तो अम्मां ने शरारती मुसकान के साथ कंधे उचका दिए.

‘‘यह सब कैसे हुआ मुझे नहीं पता, लेकिन बेटा नेग तो अब देना ही पड़ेगा.’’

तब विभू ने इठलाते हुए जूते पेश किए और जीजाजी से नेग का लिफाफा लिया. इतनी प्यारी सास पा कर अनु के साथसाथ वहां उपस्थित सभी लोग भी हैरान हो उठे थे.

ससुराल पहुंचते ही अनु का जोरशोर से स्वागत हुआ, लेकिन उसी रात उस के ससुर को अस्थमा का दौरा पड़ा. उन्हें अस्पताल में भरती करवाना पड़ा. रिश्तेदार फुसफुसाने लगे कि बहू के कदम पड़ते ही ससुर को अस्पताल में भरती होना पड़ा. अम्मां के कानों में जब ये शब्द पड़े तो उन्होंने दिलेरी से सब को समझा दिया कि इस बदलते मौसम में हमेशा ही बाबूजी को अस्थमा का दौरा पड़ जाता है. अकसर उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ता है. बहू के घर आने से इस का कोई सरोकार नहीं है. अम्मां की इस जवाबदेही पर अनु उन की कायल हो गई थी.

विवाह के 2 दिन बाद बाबूजी अस्पताल से ठीक हो कर घर आ गए थे और बहू से मीठा बनवाने की रस्म के तहत अनु ने खीर बनाई थी. खीर को ननद ने चखा तो एकदम चिल्ला दी, ‘‘यह क्या भाभी, आप तो खीर में मीठा डालना ही भूल गईं?’’

इस से पहले कि बात सभी रिश्तेदारों में फैलती, अम्मां ने खीर चखी और ननद को प्यार से झिड़कते हुए कहा, ‘‘बिट्टो, तुझे तो मीठा ज्यादा खाने की बीमारी हो गई है, खीर में तो बिलकुल सही मीठा डाला है.’’

ननद को बाहर भेज अम्मां ने तुरंत खीर में चीनी डाल कर उसे आंच पर चढ़ा दिया. सास के इस अपनेपन व समझदारी को देख कर अनु की आंखें नम हो आई थीं. किसी को कानोंकान खबर न हो पाई थी. अम्मां ने खीर की तारीफ में इतने पुल बांधे कि सभी रिश्तेदार भी अनु की तारीफ करने लगे थे.

विवाह को 2 माह ही बीते थे कि साथ रहने वाले पति के ताऊजी हृदयाघात से चल बसे. उन के अफसोस में शामिल होने आई मेरी मां फुसफुसा रही थीं, ‘‘इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी, यहां आते ही 2 माह में ताऊजी चल बसे. बड़ी अभागिन है ये.’’

तब अम्मां ने चंडी का सा रूप धर लिया था, ‘‘खबरदार समधनजी, मेरी बहू के लिए इस तरह की बातें कीं तो… आप पढ़ीलिखी हो कर किसी के जाने का दोष एक निर्दोष पर लगा रही हैं. भाई साहब (ताऊजी) हृदयरोग से पीडि़त थे, वे अपनी स्वाभाविक मौत मरे हैं. एक मां हो कर अपनी बेटी के लिए ऐसा कहना आप को शोभा नहीं देता.’’

दूसरी मां ने झगड़े की जो चिनगारी हमारे आंगन में गिरानी चाही थी, वह अम्मां की वजह से बारूद बन कर मांपिताजी के रिश्तों में फटी थी. पहली बार पिताजी ने मां को आड़े हाथों लिया था.

अम्मां के इसी तरह के स्पष्ट व निष्पक्ष विचार अनु के व्यक्तित्व का हिस्सा बनने लगे. ऐसी कई बातें थीं, जिन की वजह से अम्मां और उस का रिश्ता स्नेहप्रेम के अटूट बंधन में बंध गया. एक बहू को बेटी की तरह कालेज में भेज कर पढ़ाई कराना और क्याक्या नहीं किया उन्होंने. कभी लगा ही नहीं कि अम्मां ने उसे जन्म नहीं दिया या कि वे उस की सास हैं. एक के बाद दूसरी पोती होने पर भी अम्मां के चेहरे पर शिकन नहीं आई. धूमधाम से दोनों पोतियों के नामकरण किए व सभी नातेरिश्तेदारों को जबरन नेग दिए. बाद में दोनों बेटियां उच्च शिक्षा के लिए बाहर चली गई थीं. अम्मां हर सुखदुख में छाया की तरह अनु के साथ रहीं.

बाबूजी के गुजर जाने से अम्मां कुछ विचलित जरूर हुई थीं, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने को संभाल कर सब को खुश रहने की सलाह दे डाली थी. तब रिश्तेदार आपस में कह रहे थे, ‘‘अब अम्मां ज्यादा नहीं जिएंगी, हम ने देखा है, वृद्धावस्था में पतिपत्नी में से एक जना पहले चला जाए तो दूसरा ज्यादा दिन नहीं जी पाता.’’

सुन कर अनु सहम गई थी. लेकिन अम्मां ने दोनों पोतियों के साथ मिलजुल कर अपने घर में ही सुकून ढूंढ़ लिया था.

बाबूजी को गुजरे 10 साल बीत चुके थे. अम्मां बिलकुल स्वस्थ थीं. एक दिन गुसलखाने में नहातीं अम्मां का पैर फिसल गया और उन के पैरों में गहरे नील पड़ गए. जिंदगी में पहली बार अम्मां को इतना असहाय पाया था. दिन भर इधरउधर घूमने वाली अम्मां 24 घंटे बिस्तर पर लेटने को मजबूर हो गई थीं.

अम्मां को सांत्वना देती अनु ने कहा, ‘‘अम्मां चिंता मत करो, थोड़े दिनों में ठीक

हो जाओगी. यह शुक्र करो कि कोई हड्डी नहीं टूटी.’’

अम्मां ने सहमति में सिर हिला कर उसे सख्ती से कहा था, ‘‘बेटी, मेरी बीमारी की खबर कहीं मत करना, व्यर्थ ही दुनिया भर के रिश्तेदारों, मिलने वालों का आनाजाना शुरू हो जाएगा, तू खुद हाई ब्लडप्रैशर की मरीज है, सब को संभालना तेरे लिए मुश्किल हो जाएगा.’’

अम्मां की बात मान उस ने व दिनेश ने किसी रिश्तेदार को अम्मां के बारे में नहीं बताया. लेकिन एक दिन दूर के एक रिश्तेदार के घर आने पर उन के द्वारा बढ़ाचढ़ा कर अम्मां की बीमारी सभी जानकारों में ऐसी फैली कि आनेजाने वालों का तांता सा लग गया. फलस्वरूप, मेरा ध्यान अम्मां से ज्यादा रिश्तेदारों के चायनाश्ते व खाने पर जा अटका.

सभी बिना मांगी मुफ्त की रोग निवारण राय देते तो कभी अलगअलग डाक्टर से इलाज कराने के सुझाव देते. साथ ही, अम्मां के लिए नर्स रखने का सुझाव देते हुए कुछ जुमले उछालने लगे. मसलन, ‘‘अरी, तू क्यों मुसीबत मोल लेती है. किसी नर्स को इन की सेवा के लिए रख ले. तूने क्या जिंदगी भर का ठेका ले रखा है. फिर तेरा ब्लडप्रैशर इतना बढ़ा रहता है. अब इन की कितनी उम्र है, नर्स संभाल लेगी.’’

इधर अम्मां को भी न जाने क्या हो गया था. वे भी चिड़चिड़ी हो गई थीं. हर 5 मिनट में उसे आवाज दे दे कर बुलातीं. कभी कहतीं कि पंखा बंद कर दे, कभी कहतीं पंखा चला दे, कभी कहतीं पानी दे दे, कभी पौटी पर बैठाने की जिद करतीं. अकसर कहतीं कि मैं मर जाना चाहती हूं. अनु हैरान रह जाती.

रिश्तेदारों की खातिरदारी और अम्मां की बढ़ती जिद के बीच भागभाग कर वह परेशान हो गई थी. ब्लडप्रैशर इतना बढ़ गया कि उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा.

3 दिन अस्पताल में रहने के बाद जब मैं घर आई तो देखा घर पर अम्मां की सेवा के लिए नर्स लगी हुई है. उस ने नर्स से पूछा, ‘‘अम्मां नाश्ताखाना आराम से खा रही हैं?’’

उस ने सहमति में सिर हिला दिया.

दोपहर को उस ने देखा कि अम्मां को परोसा गया खाना रसोई के डस्टबिन में पड़ा हुआ था.

नर्स से पूछा कि अम्मां ने खाना खा लिया है, तो उस ने स्वीकृति में सिर हिला दिया, यह देख कर वह परेशान हो उठी. इस का मतलब 3 दिन से अम्मां ने ढंग से खाना नहीं खाया है. नर्स को उस ने उस के कमरे में आराम करने भेज दिया और स्वयं अम्मां के पास चली गई.

अनु को देखते ही अम्मां की आंखों से आंसू बहने लगे. अवरुद्ध कंठ से वे बोलीं, ‘‘अनु बेटी, अगर मुझे नर्स के भरोसे छोड़ देगी तो रिश्तेदारों की कही बातें सच हो जाएंगी. मैं जल्द ही इस दुनिया से विदा हो जाऊंगी. वैसे ही सब रिश्तेदार कहते हैं कि अब मैं ज्यादा दिन नहीं जिऊंगी.’’

3 दिन में ही अम्मां की अस्तव्यस्त हालत देख कर अनु बेचैन हो उठी, ‘‘क्या कह रही हो अम्मां, आप से किस ने कहा? आप अभी खूब जिओगी. अभी दोनों बच्चों की शादी करनी है.’’

अम्मां बड़बड़ाईं, ‘‘क्या बताऊं बेटी, तेरे अस्पताल जाने के बाद आनेजाने वालों की सलाह व बातें सुन कर इतनी परेशान हो गई कि जिंदगी सच में एक बोझ सी लगने लगी. यह सब मेरी दी गई सलाह न मानने का नतीजा है. अब फिर से तुझ से वही कहती हूं, ध्यान से सुन…’’

अम्मां की बात सुन कर अनु ने उन के सिर पर स्नेह से हाथ फिराते हुए कहा, ‘‘अम्मां, आप बिलकुल चिंता न करो, आप की सलाह मान कर अब मैं अपना व आप का खयाल रखूंगी.’’

उस के बाद अम्मां की दी गई सलाह पर अनु के पति ने रिश्तेदारों को समझा दिया कि डाक्टर ने अम्मां व अनु दोनों को ही पूर्ण आराम की सलाह दी है, इसलिए वे लोग बारबार यहां आ कर ज्यादा परेशानी न उठाएं. साथ ही, झूठी नर्स को भी निकाल बाहर किया.

इस का बुरा पक्ष यह रहा कि जो रिश्तेदार दिनेश व अनु से सहानुभूति रखते थे, अम्मां के लिए नर्स रखने की सलाह दिया करते थे, अब दिनेश को भलाबुरा कहने लगे थे, ‘‘कैसा बेटा है, बीमार मां के लिए नर्स तक नहीं रखी, हमारे आनेजाने पर भी रोक लगा दी.’’

लेकिन इस सब का उजला पक्ष यह रहा कि 2 महीने में ही अम्मां बिलकुल ठीक हो गईं और अनु का ब्लडप्रैशर भी छूमंतर हो गया. इस उम्र में भी आखिर, अम्मां की सलाह ही फायदेमंद साबित हुई थी. अनु सोच रही थी, सच मेरी अम्मां जैसा कोई नहीं.

Father’s Day 2023: पापा की जीवनसंगिनी- भाग 1

रात्रिके अंधेरे को चीरती हुई शताब्दी ऐक्सप्रैस अपनी तीव्र गति से बढ़ती जा रही थी. इसी के ए.सी. कोच ए वन में सफर कर रही पीहू के दिल की धड़कनें भी शताब्दी ऐक्सप्रैस की गति की तरह तेजी से चल रही थीं.

‘‘कैसे होंगे पापा? डाक्टरों ने क्या कहा होगा? मुझे पापा को अपने पास ही ले आना चाहिए था. पापा ने मुझे कभी क्यों नहीं बताया अपनी बीमारी के बारे में? पापा मेरी जिम्मेदारी हैं. मैं इतनी गैरजिम्मेदार कैसे हो गई? मैं क्यों स्वयं में ही इतना खो गई कि पापा के बारे में सोच ही नहीं पाईं,’’ सोचते वह बेचैन से खिड़की से बाहर झंकने लगी.

अहमद उसेबहुत अच्छी तरह जानता था सो उस के मानसिक अंतर्द्वंद्व को भांप कर उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘पीहू इस हालत में इतनी परेशान मत होओ हम सुबह तक पापा के पास होंगे. इस तरह तो तुम अपना बीपी ही बढ़ा लोगी और एक नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. फिर न तुम खुद को संभाल पाओगी और न ही पापा को, इसलिए स्वयं को थोड़ा सा शांत रखने की कोशिश करो.’’

‘‘हां तुम ठीक कह रहे हो,’’ कह कर पीहू ने सीट पर अपना सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं. पर इंसान की फितरत होती है कि विषम परिस्थितियों में वह कितना भी शांत होने का प्रयास करे पर अशांति उस का पीछा नहीं छोड़ती. सो न चाहते हुए भी वह अपने प्यारे पापा के पास पहुंच गई. आखिर पापा उस के जीवन की सब से कीमती धरोहर हैं अगर उन्हें कुछ हो गया तो वह कैसे जी पाएगी. यों भी पापा का प्यार उसे बहुत समय के बाद मिला है. अभीअभी तो वह पापा के प्यार को महसूस करने लगी थी कि वे बीमार हो गए. कल ही तो उस के पड़ोस में रहने वाले अंकल ने फोन पर बताया, ‘‘बेटी पापा को बीमारी के चलते अस्पताल में भरती करवाया है.’’

सूचना मिलते ही वह पति अहमद के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ी थी. 10 साल पहले कैसे उस ने मम्मी की असामयिक मृत्यु के बाद अपने लिए पहली बार पापा की आवाज सुनी थी. उसे आज भी याद है मम्मी की 13वीं पर जब पहली बार घर में सभी एकत्रित हुए थे और शाम को जब सभी नातेरिश्तेदार चले गए थे तब मौसी ने नानी की ओर देखते हुए कहा था, ‘‘मां कुछ दिनों पहले पीहू के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता आया था. अनु को पसंद भी था पर जब तक वह कोई निर्णय ले पाती उस से पहले ही इस संसार से चली गई.’’

‘‘कहां से? कौन है? अगर जम गया तो मैं अगले शुभ मुहूर्त में ही इस के हाथ पीले कर दूंगी. मेरा क्या भरोसा कब ऊपर वाले के यहां का बुलावा आ जाए.

यह जिम्मेदारी पूरी कर दूं तो मैं शांति से मर तो पाऊंगी,’’ नानी ने मौसी की बात का उत्तर देते हुए कहा.

‘‘लड़का और उस का परिवार वर्षों से दुबई में रहता है. वहां उन का जमाजमाया बिजनैस है. अच्छेखासे पैसे वाले खानदानी परिवार का इकलौता लड़का है. बस उम्र अपनी पीहू से थोड़ी ज्यादा है. यहां उस की मौसी रहती हैं उन्हीं के जरीए यह रिश्ता मेरे पास आया है. उम्र देख लो यदि जम रही है तो इस से अच्छा रिश्ता नहीं हो सकता. अपनी पीहू 21 की है और लड़का 30 का है.’’

‘‘ठीक है 9-10 साल का अंतर तो चलता है. वैसे भी कम्मो सारी चीजें थोड़े ही मिलती हैं. हम ने कौन सी नौकरी करानी है जो उम्र के पीछे इतना अच्छा रिश्ता हाथ से जाने दें. इस के हाथ पीले हो जाएं तो मैं चैन से मर सकूंगी वरना मेरी लाड़ली तो कुंआरी ही रह जाएगी,’’ नानी ने पीहू के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘पीहू तू बोल, तुझे तो कोई परेशानी नहीं है न? अगर तेरी इस रिश्ते में रुचि है तो मैं बात आगे बढ़ाऊं?’’ मौसी ने मुझ से पूछा परंतु मैं कुछ बोल पाती उस से पहले ही पापा बोल उठे, ‘‘मुझे परेशानी है, मेरी बेटी कोई अनाथ नहीं है जो आप लोग उस के भविष्य का निर्धारण करेंगी. उस का पिता अभी जिंदा है. अभी उस की विवाह की नहीं कैरियर बनाने की उम्र है. आप सब से विनम्र अनुरोध है कि हमें अकेला छोड़ दें. आप ने हमारी बहुत मदद की उस के लिए शुक्रिया परंतु अब हमें आप की मदद की लेशमात्र भी आवश्यकता नहीं है,’’ पापा का अब तक का भरा हुआ गुबार मानो फूट पड़ा.

‘‘अरे देखो तो अनु के जाते ही इस की जवान निकल आई. आज तक इस के परिवार को संभाले रहे हम. अनु तो पिछले 1 माह से बीमार थी. हम सब अपना घरबार छोड़ कर यहां पड़े रहे और अब यह…’’ मौसी और नानी दोनों ने अपनी वाणी के तीखे वाणों से पापा पर कठोर प्रहार सा कर दिया.

मगर पापा बिना किसी की परवाह किए अनवरत बोलते जा रहे थे, ‘‘मेरे साथ तो आप ने आज तक कोई रिश्ता निभाया ही नहीं तो आगे क्या निभाएंगी. आप ने हमेशा अपनी बेटी से ही वास्ता रखा. अब आप की बेटी इस संसार से चली गई तो इस घर से भी आप का रिश्ता समाप्त. अपनी बेटी के रहते मेरा घरसंसार आप का ही था. मैं तो सिर्फ एक मेहमान था. अब यह घर और बेटी मेरी है. इस से जुड़े सभी फैसले अब सिर्फ मैं ही लूंगा. आप लोग भी अपनाअपना घर देखें. अपनी पत्नी से मैं बहुत प्यार करता था इसलिए आप को भी अपने घर में सहन कर रहा था.

वैसे भी आप ने तो मेरे गृहस्थ जीवन को बरबाद कर ही दिया. पैसे के लिए कोई कैसे अपनी बेटी और बहन की जिंदगी तबाह करता है यह मैं ने केवल पत्रपत्रिकाओं में पढ़ा और टीवी सीरियल्स में देखा ही था और हमेशा इसे अतिशयोक्ति मानता रहा परंतु आप लोगों को देख कर यकीन भी कर पाया कि सच में इस समाज में सबकुछ संभव है. अब आप लोग हमें हमारे हाल पर छोड़ दें,’’ कहतेकहते भावुक हो कर पापा ने मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए मुझे अपने सीने से लगा लिया.

Flim review: चिड़ियाखाना- कमजोर पटकथा व कमजोर निर्देशन

रेटिंग: पांच में से डेढ़ स्टार

 निर्माताः एन एफडी सी,कमल मिश्रा

लेखकः मनीष तिवारी और पद्मजा ठाकुर

निर्देषक: मनीष तिवारी

कलाकार: राजेश्वरी सचदेव,प्रशांत नारायण,रित्विक साहोर,गोविंद नाम देव,अंजन श्रीवास्तव,अवनीत कौर,रवि किशन,जयेश कार्डक,पुष्कर चिरपुतकर, नागेश भोसले,अजय जाधव मिलिंद जोशी व अन्य.

अवधिः दो घंटा एक मिनट

बिहार,अब झारखंड में जन्में, प्रारंभिक शिक्षा तिलैया सैनिक स्कूल से लेने के बाद दिल्ली,इंग्लैंड व अमरीका से शिक्षा ग्रहण करने के बाद भारत,रोम व नेपाल में संयुक्त राष्ट् संघ के खाद्य व कृषि विभाग में नौकरी की. आर्थिक व राजनीतिक विषयों पर कुछ लेख लिखे.उसके बाद उन्होने 2007 में प्रकाश झा निर्मित असफल फिल्म ‘‘दिल दोस्ती इस्टा’ का निर्देशन किया.

इसके बाद 2013 में प्रतीक बब्बर,अमायरा दस्तूर,रवि किशन व राजेश्वरी सचदेव को लेकर फिल्म ‘‘इसाक’’ का निर्देशन किया,जिसमें दो ‘भू माफिया’ के बच्चों की प्रेम कहानी पेश की थी. ‘इसाक’ का लेखन मनीष तिवारी और पद्मजा ठाकोर तिवारी ने किया था. फिल्म ‘इसाक’ अपनी आधी लागत भी वसूल नहीं कर पायी थी.अब पूरे दस वर्ष बाद मनीष तिवारी फिल्म ‘‘चिड़ियाखाना’’ लेकर आए हैं. इस फिल्म का निर्माण तो पांच वर्ष पहले ही पूरा हो गया था. 2019 में इसे सेंसर बोर्ड से प्रमाण पत्र भी मिल गया था.

मगर अफसोस यह फिल्म अब दो जून को सिनेमाघरों में पहुॅच रही है.पिछली फिल्म ‘इसाक’ की ही तरह इस फिल्म का लेखन भी मनीष तिवारी व पद्मजा ठाकोर ने किया है. इस बार मनीष तिवारी अपनी फिल्म ‘चिड़ियाखाना’ को लेकर मंबुई पहुॅच गए हैं. पर उनके दिमाग में ‘भू माफिया’,बिहार, ‘बाहरी’ यानी कि गैर मंबुईकर, झारखंड व बिहार का नक्सलवाद पूरी तरह से छाया हुआ है.

उन्होने एक अच्छी कहानी पर ‘‘चूं चूं का मुरब्बा’’ वाली फिल्म बनाकर पेश कर दी है. वास्तव में फिल्म ‘‘चिड़ियाखाना’’ का निर्माण ‘चिल्डन फिल्म सोसायटी’’ ने किया है, जिसका अब ‘एनएफडीसी’ में विलय हो चुका है. ‘चिल्डन फिल्म सोसायटी’ का दायित्व बच्चों के लिए उत्कृष्ट सिनेमा बनवाना रहा है, पर इसमें वह बुरी तरह से असफल रहा. यूं तो फिल्म ‘चिड़ियाखाना’’ एक ‘अंडरडाॅग’ की कहानी है,जो सफलता का मुकाम हासिल करता है.फिल्म के पोस्टरों में भी लिखा है-‘‘हर इंसान के अंदर एक टाइगर यानी कि षेर होता है.’मगर इस बात को सही परिप्रक्ष्य में चित्रित करने में मनीष तिवारी विफल रहे हैं.

कहानी

कहानी के केंद्र में 14 वर्ष का बिहारी लड़का सूरज (ऋत्विक साहोरे) और उसकी मां बिभा  (राजेश्वरी सचदेव) हैं. जो कि बिहार से भोपाल वगैरह होते हुए मंबुई पहुॅचा है. सूरज व उसकी मां एक झोपड़पट्टी मे रहती है.सूरज नगर पालिका यानी कि सरकारी स्कूल में पढ़ने जाने लगता है. जबकि मां बिभा एक घर में काम करने लगती है. सूरज के पिता नही है और बिभा,सूरज को उसके पिता का नाम बताना भी नही चाहती. सूरज का जुनून फुटबाल खेलना है,मगर स्कूल का मराठी भाषी गुंडा व स्कूल फुटबाल टीम का कैप्टन बाबू (जयेश कर्डक), सूरज को पसंद नही करता.

वह अपने दोस्तों के साथ सूरज का मजाक उड़ाता है. सूरज को हर लड़के में किसी न किसी जानवर का चेहरा नजर आता है. (शायद फिल्मकार ने अपनी फिल्म के नाम को जायज ठहराने के लिए ऐसा प्रतीकात्मक किया है). सूरज से उसकी सहपाठी मिली (अवनीत कौर ) प्यार करने लगती है.वह अपने तरीके से सूरज की मदद करने का प्रयास करती रहती है.

सूरज अपनी स्कूल टीम में जगह बनाने के लिए प्रयासरत रहता है,तो उसे झोपड़पट्टी के गुंडे /भाई प्रताप ( प्रशांत नारायणन ) की मदद मिलती है. जब से बिभा अपने बेटे सूरज के साथ इस बस्ती में रहने आयी है,तब से प्रताप मन ही मन बिभा को चाहने लगा है. प्रताप स्थानीय डाॅन भाउ (गोविंद नामदेव) के लिए काम करता है. यह स्थानीय डॉन बिल्डरों के एक समूह के साथ बीएमसी स्कूल के कब्जे वाली जमीन को हड़पने के लिए एक सौदा करता है,जहां यह बच्चे फुटबॉल खेलते हैं.

बीएमसी कमिश्नर भी स्कूल के प्रिंसिपल (अंजन श्रीवास्तव )की नही सुनते.पर प्रताप,भाउ की बजाय बच्चों के साथ मिलकर स्कूल के ग्राउंड को बचाना चाहता है.जिससे सूरज व अन्य बच्चे वहां पर फुटबाल खेल सके.कभी प्रताप भी इस स्कूल की फुटबाल टीम का कैप्टन रह चुका है. वह प्रिंसिपल को मेयर से मिलने की सलाह देता है. मेयर ग्राउंड बचाने के लिए षर्त रख देता है कि बीएमसी स्कूल के बच्चे एक प्रायवेट स्कूल के बच्चे की टीम को फुटबाल में हरा दे,तो वह ग्राउंड उनका रहेगा. इसी बीच बिभा का भाई  बिक्रम सिंह पांडे (रवि किशन ) ,बंदूक लेकर सूरज की हत्या करने आता है. पर प्रताप के आगे वह चला जाता है. तब पता चलता है कि बिभा ने अपने परिवार वालों के खिलाफ जाकर एक नक्सली महतो से षादी की थी. महतो की मोत हो चुकी है. पर बिभा का भाई बिभा व महतो के बेटे सूरज को खत्म करना चाहते हैं.खैर,दो स्कूलों की फुटबाल टीम के बीच मैच होता हैै.

लेखन व निर्देशनः

लेखकों के साथ ही फिल्मकार मनीष तिवारी का अधकचरा ज्ञान इस फिल्म को ले डूबा.एक अच्छी कहानी का सत्यानाश कैसे किया जाता है,यह मनीष तिवारी से सीखा जा सकता है.इसकी मूल वजह यह नजर आती है कि फिल्मकार खुद तय नही कर पाए है कि वह फुटबाल पर या घटतेे खेल के मैदान या भू माफिया द्वारा खेल के मैदान हड़पने या ‘मुंबई बाहरी’ या नक्सल में से किसे प्रधानता देना चाहते हैं.

फिल्म की पटकथा इतनी लचर है कि दर्शक को पहले से ही पता होता है कि अब यही होगा.इंटरवल से पहले फिल्म ठीक ठाक चलती है. लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म पर से मनीष तिवारी की पकड़ खत्म हो जाती है. वह तो जितने मसाले डाल सकते थे,वह सब डाल देते हैं.यहां तक बिहारी अस्मिता के लिए वह सूरज के मुंह से बिहारी भाषा में कुछ संवाद भी बुलवा देते हैं. फिल्म में 2001 में आयी फिल्म ‘लगान’ की नकल भी है. फिल्मकार ‘बाहरी’ का मुद्दा भी ठीक से नही उठा पाए. इसकी मूल वजह यह है कि मुंबई जैसे शहर में यह मुद्दा कई दशक से गौण हो चुका है.

मुंबई शहर में खेल के मैदानों पर बिल्डर लाॅबी का कब्जा अहम मुद्दा है. सिर्फ मुंबई से सटे भायंदर जैसे छोटे इलाके में भाजपा के विधायक रहते हुए नरेंद्र मेहता ने जिस तरह से खेल के मैदान पर कब्जा कर अपना निजी रिसोर्ट खड़ा कर किया है, वह जगजाहिर है. पर अब तक उनके खिलाफ कोई काररवाही नही हुई. पर अफसोस की बात यह है कि जब खेल के मैदान कई सौ करोड़ो में बिक रहे हों,चिल्डन पार्क खत्म हो रहे हैं,तब भी इस मुद्दे को फिल्मकार सही परिप्रेक्ष्य में चित्रित करने में बुरी तरह से विफल रहे हैं. जबकि महज इसी मुद्दे को फुटबाल खेल की पृष्ठभूमि में वह अच्छे से उठाते तो फिल्म अच्छी बन जाती.

अचानक नक्सलवाद का एंगल लाकर फिल्मकार कहानी के बहाव को रोकने का प्रयास करते हैं.बिभा के भाई बिक्रम के आगमन वाला दृष्य फिल्मकार के दिमागी दिवालियापन को ही दिखाता है.क्या बिक्रम ने वास्तव में सोचा था कि वह  एक विदेशी भूमि (मुंबई उसके लिए विदेशी है) की बस्ती में किसी की हत्या करके बच जाएगा?फिल्मकार खुद झारखंड से हैं,मगर उन्हे यही नहीं पता कि उत्तर भारत में लोगों के ‘सरनेम’ क्या होते हैं? ‘चिल्डन फिल्म ‘सोसायटी’ का दायित्व बच्चों के लिए षिक्षाप्रद फिल्मों का निर्माण करना हुआ करता था,पर वह ‘चिड़ियाखाना’ जैसी फिल्म का निर्माण कर अपने मकसद से  भटक गया था,शायद इसी वजह से इसे बंद कर दिया गया.

इस फिल्म में एक दृष्य में प्रताप ,बाबू को बंदूक देकर कहता है कि वह सूरज को गोली मार दे. भले ही बंदूक में गोली नही थी, मगर इस तरह के दृष्य बच्चों के मानस पटल पर किस तरह का असर डालते हैं. नक्सलवाद को जिस तरह से फिल्म में पेष किया गया है,उस तरह से एक नौसीखिया फिल्मकार भी नहीं करता. बिभा के अतीत को बेहतर ढंग से पेष किया जा सकता था. सूरज को फुटबाल खेलने का जुनून है,पर कब कहां से विकसित हुआ? वह बिहार व भोपाल होते हुए मुबई पहुॅचा है. पर इन जगहों पर फुटबाल के खेल को कम लो गही जानते हैं. मनीष तिवारी की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी विषय की नासमझी ही रही. इसी कारण वह बेहतरीन प्रतिभाषाली कलाकारों को फिल्म से जोड़ने के बाद भी अच्छी फिल्म ही बना सके.

अभिनयः

अपने बेटे की जिंदगी बचाने के लिए दर दर भटक रही मां के दर्द,अपने अतीत को अपने बेटे से छिपाने की कश्मकश,बेटे की सुरक्षा की चिंता, गरीबी, इन सारे भावों को बिभा के किरदार में जीते हुए राजेश्वरी सचदेव ने अपने अभिनय के कई नए आयामों को परदे पर उकेरा है.जबकि उन्हे अपने किरदार को निभाने के लिए पटकथा से कहीं कोई मदद नही मिलती.

उनकी अतीत की कहानी भी सही ढंग से चित्रित नहीं की गयी.सूरज के किरदार में रित्विक साहोर को देखकर कल्पना करना मुश्किल हो सकता है कि उसके अंदर कितनी प्रतिभा है. बाबू के जटिल किरदार को जिस तरह से जयेश कार्डक ने जिया है, उसे अनुभवी कलाकार भी नही निभा सकते थे,पर नवोदित कलाकार जयेश कार्डक ने तो कमाल कर दिया. प्रशांत नारायणन हमेशा नकारात्मक किरदारों में ही पसंद किए जाते रहे हैं. मगर इस फिल्म में उन्होने थोड़ा सा उससे हटकर प्रताप के किरदार को बेहतर ढंग से जिया है. प्रताप के किरदार में भाउ और स्कूल प्रिंसिपल  के किरदार में अंजन श्रीवास्तव से बेहतर कोई दूसरा कलाकार हो ही नही सकता था. वैसे यह दोनो किरदार अधपके ही रहे. मिली के किरदार मे बेबी अवनीत कौर अपनी छाप छोड़ जाती हैं. कैमरा कॉन्शस तो दूर वह हर पोज को एंजॉय करती नजर आती है. पुष्करराज चिरपुतकर, अजय जाधव, नागेश भोंसले, मिलिंद जोशी, माधवी जुवेकर, संजय भाटिया, शशि भूषण, प्रशांत तपस्वी, रीतिका मूर्ति, श्रीराज शर्मा, योगिराज, लरिल गंजू, स्वाति सेठ, योगेश, अखिलेश (दो रैपर्स) भी ठीक ठाक हैं.

6 tips for summer: गर्मियों में ऐसे रखे स्किन का ख्याल, ग्लो करेंगी स्किन

भीषण गर्मीं में स्किन की देखभाल करना बेहद जरूरी है. अब हर कोई चाहता है कि उसकी त्वचा गर्मी में खिली-खिली और जवां रहे. किंतु गर्मी के मौसम में त्वचा डल, ड्राई और बेजान हो जाती है. गर्मी में चिलचिलाती धूप में घूमने से स्किन पर टैनिंग हो जाती है. समर में स्किन की केयर ना की जाए तो स्किन प्रॉब्लम्स होने लगती है. आइए जानते हैं समर में स्किन को स्वस्थ रखने के लिए ये 6 टिप्स.

  1. वॉटर इंटेक ज्यादा करें

गर्मियों मे पसीना ज्यादा होने से वॉटर लॉस ज्यादा होता है. इसी वजह से हमारे शरीर को पर्याप्त हाइड्रेटेड रखने की जरूरत होती है. गर्मियों के दौरान आपको वॉटर इंटेक ज्यादा रखना चाहिए. इसके लिए आप फ्रेश फ्रूट जूस और नारियल पानी को भी डाइट में शामिल कर सकते हैं.

2. एंटीऑक्सीडेंट ज्यादा लें

समर के मौसम में एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर डाइट जरूर लें. एंटीऑक्सीडेंट आपकी त्वचा संबंधित समास्याओं को दूर करेगा. इसके साथ ही अपनी डाइट में कलरफुल और एंटीओक्सीडेंट भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे पपीता, टमाटर, आम भी डाइट में शामिल करें, जो फ्री रेडिकल्स डैमेज को कम करने में मदद कर सकते हैं.

3. दिन में दो बार नहाएं

एक्सपर्ट के मुताबिक समर में बॉडी को हाइजीन मेंटेन रखने और इंफेक्शन को कम करने के लिए दिन में दो बार नहाना चाहिए. यह स्वेटिंग से पैदा हुए बैक्टीरिया को खत्म करके बॉडी को रिलैक्स करने में मदद करेगा.

4. सनस्क्रीन का करें यूज
गर्मियों में सनस्क्रीन अवॉइड करना टैनिंग के साथ कई स्किन इंफेक्शन हो सकते है. अगर आप धूप में ज्यादा नहीं जाते तो एसपीएफ 30 की सनस्क्रीन इस्तेमाल करें, लेकिन अगर आपको काफी देर बाहर रहना पड़ता है, तो एसपीएफ 50 वाली सनस्क्रीन इस्तेमाल करें है.

5. घरेलू नुस्खे भी आजमाएं
होम मेड फेसपैक जैसे कि मुल्तानी मिट्टी, चंदन पाउडर और गुलाब जल का इस्तेमाल बेहद लाभकारी हो सकता है, क्योंकि यह चीजें त्वचा को कूलिंग इफेक्ट देने के साथ हाइड्रेड करने और फ्रेशनेस बनाए रखने में मदद करती हैं.

6. मॉइश्चराइजर करना न भूलें
समर मे हम सभी फेस पर मॉइश्चराइजर अवॉइड करना शुरू कर देते हैं, बल्कि यह स्किन केयर का जरूरी स्टेप होता है. स्किन एक्सपर्ट के मुताबिक, गर्मियों में आपको लाइट या वॉटर बेस मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे आपकी स्किन ऑयली और डल न लगे.

Anupama: वनराज और बरखा की खुलेगी पोल, माया करेंगी अनुज से तलाक की डिमांड

स्टार प्लस का नंबर वन टीवी सीरियल अनुपमा लगातर सुर्खियों में बना रहता है. रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ दर्शको के बीच काफी फेमस है. शो में आए दिन नए-नए ट्विस्ट और टर्न्स देखने को मिलते रहते है. फैंस के लाख चाहत के बाद भी शो के मेकर्स अनुपमा और अनुज को साथ नहीं कर रहे है. शो में वैसे ही अनुज के नाक में दम कर रखा है माया ने.

बीते दिन ‘अनुपमा’ में देखने को मिला कि अनुज और अनुपमा को साथ देखकर वनराज बौखला जाता है. यह सब देखकर माया अनुज की रट लगाने लगती है. लेकिन अनुपमा भी उसको मुंहतोड़ जवाब देती है. शो के ट्विस्ट और टर्न्स यहीं खत्म नहीं होते है.

 

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वनराज और बरखा की खुलेगी पोल

इस बार अनुपमा में देखने को मिलेगा कि बरखा गलती से बोल पड़ती है कि अनुपमा को अब पता चल गया है कि माया की उस दिन तबीयत खराब थी. बरखा की इस बात से अनुज और अनुपमा हैरान रह जाते हैं कि इन्हें ये बात कैसे पता थी. अनुज बरखा से सवाल करता है कि आपको कैसे पता और पता था तो आपने किसी को बताया क्यों नहीं. घबराहट में आकर बरखा वनराज का नाम भी ले लेती है कि उसे भी सबकुछ पता था. इसपर अनुपमा भड़क जाती है और उससे पूछती है कि आपने क्यों नहीं बताया कि अनुज की मजबूरी थी. ऐसे में आप मौके का फायदा उठाने में लगे थे.

अनुज से माया करेंगी तलाक की डिमांड

शो में आगे देखने को मिलेगा कि अनुज माया से साफ कर देगा कि वह कभी भी उसे पत्नी का दर्जा नहीं देगा. वहीं अनुपमा भी वनराज से साफ कर देती है कि उसकी जिंदगी में अनुज की जगह कोई नहीं ले सकता. इतना ही नहीं माया अनुज से कहती है कि आप मुझे बीवी का अधिकार नहीं दे सकते, लेकिन अनुपमा से तलाक तो ले सकते हो. माया पर अनुज भड़क जाता है और कहता है, “अनुज जान दे सकता है, लेकिन अनु को तलाक नहीं. इसलिए तलाक की बात बोलना तो दूर सोचना भी मत.”

काव्या वनराज को प्रेग्नेंसी का सच बताएगी

इस बार शो में भरपूर डोज मिलेगा. काव्या अपनी प्रेग्नेंसी का सच वनराज को बताएगी. शो में आगे देखने को मिलेग कि अनुपमा अपने समर की बारात के लिए तैयारी करती है. वहीं डिंपल शादी के बाद समर की जिंदगी नर्क बनाने का फैसला कर लेती है. दूसरी ओर काव्या वनराज को बताती है कि वह पिता बनने वाला है और अपनी प्रेग्नेंसी से पर्दा उठा देती है.

ई कौमर्स का फीका पड़ रहा नशा

ईकौमर्स आजकल तेजी से बढ़ रही है पर यह असल में हमारे निकम्मेपन और सस्ते डिलिवरी बौयज की देन है. हाल ही में जैप्टो और ब्लिंकिट ने अपने दरवाजे बंद कर दिए क्योंकि वे एक डिलिवरी के 15 रुपए डिलिवरी बौयज को दे रही थीं जिन्हें 10 मिनट में ग्राहकों तक सामान पहुंचाना होता था. मगर ग्राहकों को सेवा देर से मिलने की वजह से इन कंपनियों ने बहुत सी जगह डिलिवरी बंद कर दी.

ई कौमर्स का नशा अब धीरेधीरे फीका पड़ रहा है. अखबारों में भारी छूट के विज्ञापन बंद हो गए हैं. जो सामान दिखाया जाता है वह मिलता नहीं है. छूट भी दिखावटी होती है क्योंकि बाजार में इसी दाम पर सामान मिलने लगा है.

फिर भी सुविधा के कारण लोग अभी भी इस पर निर्भर हैं. कंपनियां भी खुल रही हैं जो अपने ब्रैंडों का सामान थोपने लगी हैं. ई कौमर्स डाउन लोड करना अब कोई मुश्किल नहीं है.

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर किसी के पास समय की कमी है. ऐसे में औनलाइन शौपिंग आज बहुत पौपुलर हो चुकी है. खरीदारी से ले कर बिक्री तक के सारे माध्यम इस के जरीए उपलब्ध हैं. मगर यदि आप ने सही ऐप डाउनलोड नहीं किया तो जितनी इस से सुविधा मिलती है, उस से कहीं अधिक हानि की भी संभावना बढ़ जाती है.

असल में इंटरनैट के जरीए बिक्री और खरीदारी को ही ई कौमर्स कहते हैं. इस में इलैक्ट्रौनिक रूप से धन 2 या 2 से अधिक पार्टियों के बीच स्थानांतरित होता है. डैविड कार्ड या क्रैडिट कार्ड की सहायता से किसी भी प्रकार का सामान घर बैठे खरीदा व बेचा जा सकता है.

ई कौमर्स कई

  •  बिजनैस टु कंज्यूमर्स में लेनदेन व्यापार और ग्राहक के बीच में होता है और यही सब से अधिक पौपुलर है. फ्लिप कार्ट, अमेजन इंडिया, इबे, स्नैपडील, जबोंग, मंत्रा आदि ऐसे ही कुछ ई कौमर्स के प्रमुख ऐप हैं.
  • बिजनैस टु बिजनैस के अंतर्गत 2 व्यवसायी आपस में व्यवसाय करते हैं. कई बार कोई कंपनी खुद प्रोडक्ट नहीं बनाती, बल्कि दूसरी कंपनी से खरीद कर सामान बेचती है.
  • कंज्यूमर्स टु बिजनैस में ग्राहक एक वैबसाइट बनाने के लिए कंपनी को औफर देता है और कंपनी उसे सही कीमत दे कर वैबसाइट बनाने की मंजूरी देती है.
  • कंज्मूमर्स टु कंज्युमर्स भी एक ऐप होता है, जिस में दोनों उपभोक्ताओं के बीच सामान खरीदा और बेचा जाता है.
  • बिजनैस टु गवर्नमैंट में कंपनियों और सार्वजनिक प्रशासन के बीच किया गया लेनदेन शामिल होता है. इस में बड़ीबड़ी सेवाएं शामिल होती हैं. मसलन, सामाजिक सुरक्षा, रोजगार, कानूनी दस्तावेज आदि में यह अधिक प्रयोग में लाई जाती है.
  • कंज्यूमर टु गवर्नमैंट के तहत सरकार और उपभोक्ता के बीच लेनदेन किया जाता है

जैसे स्वस्थ्य सेवाओं का भुगतान, कर का भुगतान आदि.

ई कौमर्स के बारे में जानने के बाद सब से पहले अपनी सोच निर्धारित करें कि आप को खरीदना या बेचना क्या है. इंटरनैट के सहारे ई कौमर्स की साइट पर जा कर या गूगल प्ले स्टोर पर जा कर डाउनलोड बटन पर क्लिक करें. डाउनलोड होने के बाद उसे इनस्टौल कर लें. इस के बाद उस ऐप के सहारे किसी भी वैबसाइट पर जा कर अपना मनपसंद सामान चुनें और भुगतान करें. नाम और दिए गए पते पर सामान की डिलिवरी करवाएं. इस पद्यति से सामान खरीदना और कुछ गलत होने पर वापस करना भी आसान होता है.

ई कौमर्स के फायदे

  •  दुनिया के किसी भी कोने से खरीदारी और बिक्री की जा सकती है, उत्पाद की पहुंच अधिक से अधिक ग्राहकों तक होती है, विदेशों से आए सामान पर कस्टम ड्यूटी देनी होती है.
  • इस की कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होती. इस पर आप कभी भी शौपिंग कर सकते हैं.
  • इस में ब्रिकी लागत कम होने की वजह से सामान सस्ते दाम में मिलता है.
  • लागत में कमी और विस्तार बाजार होने की वजह से अधिक उत्पाद कम समय में बेचे जा सकते हैं, इसलिए इस का लाभ मार्जिन बहुत अधिक होता है.
  • अधिक व्यस्तता की वजह से जो लोग दुकानों में नहीं जा सकते उन के लिए यह सब से बढि़या औप्शन है.
  • किसी भी सामान को खरीदने से पहले ग्राहक खोजबीन कर सामान की कीमत और उस की गुणवत्ता की जांचपरख कर और्डर दे सकता है ताकि उसे सही सामान सही दाम में मिले.

कौमर्स ऐप की सुविधा के साथसाथ कुछ हानियां भी हैं, जिन का ध्यान रखना आवश्यक है:

  •  यहां दुकान की तरह सामान को देख कर नहीं खरीदा जा सकता, इसलिए प्रोडक्ट की विश्वसनीयता पर संदेह रहता है, सामान सही होगा या नहीं इस की चिंता रहती है.
  • इंटरनैट की अच्छी सुविधा का होना ई कौमर्स के लिए बहुत जरूरी है, हालांकि आजकल इस की सुविधा है, लेकिन कई छोटे शहरों और अन्य क्षेत्रों में इस का अभी भी अभाव है.
  • तकनीक की सही जानकारी होना आवश्यक है ताकि सामान की सही खरीदारी या बिक्री की जा सके.
  • इस तरह के लेनदेन में सामान को निर्धारित स्थान पर पहुंचने में देर लगती है क्योंकि और्डर देने के बाद सामान कई प्रक्रियाओं से गुजर कर ग्राहक तक पहुंचता है.

बहुत सी ई कौमर्स कंपनियां कई बार मैसेज भेज कर या फोन कर के परेशान भी करती हैं. अगर आप को उन से तकलीफ न हो तो धड़ल्ले से ई कौमर्स से शौपिंग करें पर यह न भूलें कि असल मजा तो स्टोर में जाने पर होने पर आता है जब आप पूरी तरह से जांचपरख कर सामान खरीद सकते हैं.

प्री वैडिंग शूट: ऐसे करें तैयारी

हमारे समाज में कई तरह की रूढि़यां अब धीरेधीरे दरकिनार हो रही हैं. इन में से एक यह भी थी कि शादी से पहले लड़कालड़की मिलें नहीं. प्री वैडिंग के चलन से यह सोच अब टूट रही है. फिर भी अभी भी समाज का एक बड़ा हिस्सा है जो अपने बच्चों को इस से दूर रखता है. इस के बाद भी लड़के अपने जीवन के हर पल को यादगार बनाना चाहते हैं. अपनी खुशी को बनाए रखने के लिए वे प्री वैडिंग शूट कराते हैं.

इस से शादी के पहले के पलों को जीवनभर संजो कर रखना चाहते हैं. इस के लिए स्टाइलिश, कंफर्टेबल ड्रैस और अलगअलग लोकेशन का चुनाव करते हैं. इस के खास होने की वजह पार्टनर होने से पहले पार्टनर होने का एहसास करना है. एकदूसरे को जानने का मौका भी मिल जाता है. अपने पार्टनर को शादी से पहले और अच्छे से समझ पाते हैं.

मशहूर फोटोग्राफर और क्लीकर स्टूडियो के ओनर सूर्या गुप्ता कहते हैं, ‘‘प्री वैडिंग शूट आप की चाहत के हिसाब से हो इस के लिए समझदार और जानकार फोटोग्राफर पहली जरूरत होती है, जो प्लान करे. उस का एक विकल्प भी ले कर चलें. कई बार लोकेशन में दिक्कत आ जाती है. फोटोग्राफर से क्या चाहते हैं यह बात उस को बता दें. इस से वह आप की चाहत के हिसाब से रिजल्ट दे पाएगा.’’

कम बजट में कैसे करें शूट प्लान

बड़ी संख्या में परिवार प्री वैडिंग को अभी भी शादी का मुख्य हिस्सा नहीं मानते हैं. ऐसे में जरूरी यह होता है कि प्री वैडिंग शूट का प्लान इस तरह से करें कि वह कम बजट में हो सके. फोटोग्राफी के अलावा जो खर्चें होते हैं वह ड्रैस, मेकअप और लोकेशन को ले कर होता है. इस में खर्च बढ़ जाता है. हर शहर में कुछ खास स्थान होते हैं. वहां की लोकेशन को ले सकते हैं. किसी दूसरे शहर के मुकाबले इस का खर्च कम होगा. इसी तरह से ड्रैस और मेकअप के खर्च भी कम कर सकते हैं.

अपना बजट और आप क्या चाहते हैं यह फोटोग्राफर के साथ बैठ कर पहले प्लान कर लें. किसी के फोटो देख कर अपनी सोच न बनाएं. कुछ नई सोच बनाएं जिस से फोटो देखने वाला आप की समझदारी की तारीफ कर सके. शादी पर वैसे भी खर्चा ज्यादा होता है. ऐसे में फोटोशूट पर आप कितना खर्च कर सकते हैं यह पहले सोच लें. कम बजट के लिए डिजाइनर या खास तरह के कपड़े खरीदने से बेहतर होगा कि रैंट पर ले लें.

लोकेशन नजदीक चुनें

प्री वैडिंग शूट के लिए नजदीक की लोकेशन चुनें. प्रौप का चुनाव लोकेशन और ड्रैस के अलावा थीम को ध्यान में रखते हुए करें. कैसेकैसे पोज देने हैं यह भी सोच लें ताकि आखिरी समय पर दिक्कत न हो. फोटोग्राफर से मीटिंग करें तो यह सब डिस्कस कर लें. इसे डायरी में लिख लें. इस से फोटोग्राफर के साथ बेहतर तालमेल बनेगा जो वैडिंग फोटोशूट पर भी काम आएगा. प्री वैडिंग शूट में ले जाने वाले कपड़े, जेवर, मेकअप किट, नौर्मल और वेट टिशू, चादर जिस पर बैठ कर फोटोशूट के बीच में फ्री टाइम पर रिलैक्स कर सकें. शूट के पहले लोकेशन देख लें.

प्री वेडिंग शूट के लिए लोकेशन का चुनाव समझदारी के साथ करें. लोकेशन के बाद थीम  चुनना आसान होता है. हर थीम हर लोकेशन पर काम नहीं करता है. आप दोनों के मिलने की कहानी क्या है? लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज? आप कैसे मिले थे? कब कैसे रिश्ता शुरू हुआ था? इस से थीम और लोकेशन बनाना आसान होगा. लोकेशन वही रखें जहां आप दोनों कंफर्ट हों. थीम ऐसा हो जो लोकेशन से मैच करे. लोकेशन और थीम का चुनाव करते समय मौसम का भी ध्यान रखें. इस के हिसाब से फोटोग्राफर लैंस और बाकी चीजों का चुनाव करता है.

फोटोग्राफर कम से कम हों

बजट को कम करने के लिए कम फोटोग्राफर रखें. इस का दूसरा लाभ यह होगा कि आप आराम से फोटो शूट करवा सकते हैं. कई बार ज्यादा फोटोग्राफर होते हैं तो एकदूसरे की सोच के हिसाब से तालमेल नहीं बनता. समय भी ज्यादा लगता है. कई बार झिक झिक भी करनी पड़ती है. ऐसे में कम फोटोग्राफर ठीक रहते हैं. फोटोग्राफर का चुनाव ठीक देखभाल कर करें. समझदार और व्यवहारकुशल फोटोग्राफर अच्छा रहता है.

गैरजरूरी और महंगा है वीडियो बनवाना

प्री वैडिंग शूट के लिए वीडियो बनवाना बहुत जरूरी नहीं होता है. इस की उपयोगिता भी नहीं होती. ऐसे में इसे छोड़ा जा सकता है. शादी में वैसे भी वीडियो बनता ही है. ऐसे में वीडियो बनवाना महंगा होने के साथसाथ झंझट ही पैदा करता है.

वसीयत: भाग 1- क्या अनिता को अनिरूद्ध का प्यार मिला?

कभीकभी   प्यार जीवन में अप्रत्याशित रूप से दस्तक देता है, यह चंद्रमा समान है, जिस की शीतल चांदनी संसार की दग्ध अग्नि को शांत करती है. इस की बौछार के नीचे भीगने के लिए बस निरुपाय अंतर्भाव में रिक्त पात्र सहित खड़े रहना होता है. जिंदगी अनूठे, अप्रत्याशित स्वाद देती है और हम उन को कोई संज्ञा नहीं दे पाते. बाहरी तल पर हमें बारबार खो देना होता है एकदूसरे को लेकिन अंदर के तलों पर असंख्य कथाएं लिखी होती हैं.

अनंत यात्राओं की महागाथा के रूप में. अनीता के आसपास यही दुनिया थी, तिलिस्मी दुनिया, प्रेम की दुनिया. 48 वर्षीय संभ्रांत वर्ग की महिला, थिएटर से जुड़ी हुई. इस उम्र में भी बहुत दिलकश और हसीन, सूरज और चंद्रमा के बराबरबराबर हिस्सों से बनीं अनीताजी.

शिमला की एक शांत सी सड़क पर बड़ा सा उन का दोमंजिला घर, हरी छत वाला और सामने छोटीछोटी पहाडि़यां और पूर्व से पश्चिम की ओर विस्तारित होती हुई महान पर्वत शृंखला हिमालय.

यह वही क्षेत्र है जहां रहस्य कभी भी सर्वोच्च चोटियों को नहीं छोड़ता. अनीता अपने खयालों में गुम थीं कि मैक्स अलसाते हुए आगे आया और खुशी से गुर्राया. यह सफेद हस्की कुत्ता ही एकमात्र साथी था उन का. अनीताजी के जीवन में हस्की के अलावा कोई नहीं था.

नीचे का फ्लोर पिछले 1 साल से किराए पर दिया था, नोएडा से लड़का है अनिरुद्ध, लगभग 30 वर्ष का, वर्क फ्रौम होम करता है, यहीं शिमला में रह कर. लेकिन बिलकुल एकांत प्रेमी है, सिर्फ अपने काम से मतलब और जब खाली होता है तो बाहर बैठ कर सामने फैली हुई वृहत् शृंखलाओं को देखता रहता है डूब कर और कभीकभी पहाड़ों के स्कैच भी बनाता है.

आंखें एकदम शांत जैसे कोई ध्यान में बैठा हो, जैसे अपने दिमाग में सारे दृश्य, पहाड़, धुंध और रात का अंधकार समाहित कर रहा हो. अनीता उसे गौर से देखती रहतीं, उस से बात करने की कोशिश करतीं, लेकिन वह मतलब भर की बात कर के चला जाता.

आखिर ऐसा क्या था उस नवयुवक में जो उन्होंने कभी किसी की आंखों में  नहीं देखा था. कभीकभी वे उसे ऊपर वाले कमरे में बुला लेतीं, अपने हाथों से बनाया केक खिलाने और चाय के बहाने. अगर वह आ भी जाता तो एक अजीब से चुप्पी वहां छाई रहती और हवाएं बोझिल हो जातीं.

क्यों यह लड़का अनीताजी में बेचैनी और उत्सुकता पैदा कर रहा था? अनीता के मन की किताब के हर कोरे हिस्से पर नईनई कविताएं नाचती रहतीं. शून्य और सृष्टि जैसे एक हो रहे थे. उस के उठ के जाने के बाद अनीता कुहनियों को डाइनिंगटेबल पर टिकाए घंटों वह खाली कुरसी ताकती रहती थीं, जिस पर वह बैठ कर गया होता. फिर उस कप में चाय पीतीं, जिस में वह पी कर गया होता, शायद उस के होंठों का स्पर्श महसूसने की कोशिश करतीं.

इंसानी इश्क और जनूनी हसरतें क्या न करवा लें. उन्होंने उस पर कविताएं लिखीं. कभी भी सपनों के सच न हो पाने की लाचारी के बावजूद सहसा वे गुनगुनाने लगतीं, ‘अपनी आंखों के समंदर में उतर जाने दे, तेरा मुजरिम हूं मु?ो डूब कर मर जाने दे…’ अनीताजी अपने पिता की इकलौती संतान थीं और यह घर उन का पुश्तैनी था. मांबाप को गुजरे लगभग 10 साल हो चुके थे.

पूरा जीवन दिल्ली और मुंबई में थिएटर को दिया. ऐक्टिंग की, डाइरैक्शन की और इन सब के बीच जवानी के दिनों में प्यार में धोखा भी खाया और उस के बाद किसी और की नहीं हो पाईं, नतीजा आज वे बिलकुल अकेली थीं और अब इस उम्र में एक नवयुवक की तरफ आकर्षित हो रही थीं.

शायद वे इस लड़के के प्यार में थी. बेइंतहा प्यार में. अनीताजी खुद अपनी सोच से कभीकभी सहम जातीं कि नहीं अनीता, इस सफर की कोई मंजिल नहीं है, अपनी ही धज्जियां उड़ती हैं, कुछ भी शेष नहीं बचेगा क्यों उस की और अपनी जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना.

अकसर अटपटी और अजनबी लय जिंदगी के किसी भी मोड़ पर संगीतमय हो कर हम में चली आती है. मन के अंतिम प्रकोष्ठ के वाद्ययंत्र तरंगित हो जाते हैं और एक देवमूर्ति जो बरसों से खंडहर में रखी होती है वह भक्त का स्पर्श पाने के लिए तरसने लगती है.

एक अस्पष्ट मंत्र सुनने को कान आकुल हो जाते हैं. कहीं दूर पखावज बजने लगते हैं. एक दिन अचानक अनिरुद्ध की तबीयत खराब हो गई, भयंकर खराब. उलटियां रुक नहीं रही थीं और वह निढाल हो कर बिस्तर पर लेटा रहा. आधी रात को फिर उलटी आई. लेकिन इतनी कमजोरी कि बिस्तर पर उलटी हो गई. उस ने अपना मोबाइल उठाया और अनीताजी को फोन लगाया लेकिन कुछ बोल नहीं पाया.

अनीताजी कुछ ही क्षणों में उस के कमरे में थीं और अनिरुद्ध को बस इतना ही याद रहा कि वह उस के सिर को गोद में रख कर सहला रही थीं और बेचैनी में किसी को फोन पर बुला रही थीं. बाद में क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं. अगले दिन आंखें खुलीं तो वह शिमला सिटी हौस्पिटल के बिस्तर पर था. अनीताजी पास कुरसी पर बैठी सो रही थीं.

कमरे में खालीपन था और खालीपन में ही खूबसूरती समाती है. अनीताजी देखने में कितना खूबसूरत हैं… अनीताजी को एकटक देखते हुए अनिरुद्ध मायावी सपने देखता रहा. उन के स्पर्श को तरसता रहा. बाद में धीरे से सपनों की दुनिया से यथार्थ में आया. आकाशीय अभिलेखन का ब्रह्मांडीय ज्ञानरूपी सूर्य प्रकाश, पेड़ों की पत्तियों में से हो कर सामने की दीवार पर विभेदनयुक्त धब्बे बना रहा था. कमरे में धूप की चहलकदमी चालू थी. हिरण्यगर्भ से एक नई सृष्टि की उत्पत्ति हो रही थी, जिस में केवल 2 लोग थे- अनीता और अनिरुद्ध. अनिरुद्ध धीरे से बोला, ‘‘अनीता…’’

अनीताजी हड़बड़ा कर उठीं और उस की तरफ आ कर उस का हाथ पकड़ कर बैठ गईं. आज पहली बार उस ने इतनी आत्मीयता से उन्हें उन के नाम से पुकारा था. ‘‘तुम ठीक तो हो?’’ अनीताजी ने पूछा. अनिरुद्ध चुप रहा. वो उनके हाथ की नर्मी और गरमाहट महसूस करता रहा. घाटी की तलहटी पर बहती नदी की गूंज यहां तक आ रही थी. ऐसे पलों को पढ़ना ही नहीं होता, सहेजना भी होता है, इसलिए अनीताजी और अनिरुद्ध ने पढ़ना स्थगित रखा. अनीताजी को उस का स्पर्श सावन की अनुभूति करा गया. यह भावों से किया गया पावन अभिसिंचन था.

पर्सनल स्पेस- क्यों नेहा के पास जाने को बेताब हो उठा मोहित?

आज औफिस में मैं बिलकुल भी ढंग से काम नहीं कर सका था. इस कारण बौस से तो कई बार डांट खानी पड़ी ही, सहयोगियों के साथ भी झड़प हो गई थी.

आखिर में तंग आ कर मैं ने औफिस से1 घंटा पहले जाने की अनुमति बौस से मांगी, तो उन्होंने तीखे शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मोहित, आज सारा दिन तुम ने कोई भी काम ढंग से नहीं किया है. मुझे छोटीछोटी बातों पर

किसी को डांटना अच्छा नहीं लगता. मुझे उम्मीद है कि कल तुम्हारा चेहरा मुझे यों लटका हुआ नहीं दिखेगा.’’

‘‘बिलकुल नहीं दिखेगा, सर,’’ ऐसा वादा कर मैं उन के कक्ष से बाहर आ गया.

औफिस से निकल कर मैं मोटरसाइकिल से बाजार जाने को निकल पड़ा. मुझे अपनी पत्नी नेहा के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट लेना था.

हमारी शादी को अभी 4 महीने ही हुए हैं. वह मेरे सुख व खुशियों का बहुत ध्यान रखती है. मेरी पसंद पूछे बिना मजाल है वह कोई काम कर ले.

पिछले गुरुवार को उस का यही प्यार भरा व्यवहार मुझे ऐसा खला कि मैं ने उसे शादी के बाद पहली बार बहुत जोर से डांट दिया था.

उस दिन हमें रवि की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाना था. जगहजगह टै्रफिक जाम मिलने के कारण मुझे औफिस से घर पहुंचने में पहले ही देर हो गई थी. ऊपर से ये देख कर मेरा गुस्सा बढ़ने लगा कि नेहा समय से तैयार होना शुरू करने की बजाय मेरे घर पहुंचने का इंतजार कर रही थी.

‘‘इन में से मैं कौन सी साड़ी पहनूं, यह तो बता दो?’’ आदत के अनुरूप उस ने इस मामले में भी मेरी पसंद जाननी चाही थी.

‘‘नीली साड़ी पहन लो,’’ अपना व उस का मूड खराब करने से बचने के लिए मैं ने अपनी आवाज में गुस्से के भाव पैदा नहीं होने दिए थे.

‘‘मुझे लग रहा है कि मैं ने इसे तब भी पहना था, जब हम रवि के घर पहली बार डिनर करने गए थे.’’

‘‘तो कोई दूसरी साड़ी पहन लो.’’

‘‘आप प्लीज बताओ न कि कौन सी पहनूं?’’

इस बार मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं उस पर जोर से चिल्ला उठा, ‘‘यार, तुम जल्दी तैयार होने के बजाय फालतू की बातें करने में समय बरबाद क्यों कर रही हो? हर काम करने से पहले मेरी जान खाने की बजाय तुम अपनेआप फैसला क्यों नहीं करतीं कि क्या किया जाए, क्या न किया जाए? मुझे ऐसा बचकाना व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगता है.’’

पार्टी में पहुंच कर उस का मूड पूरी तरह से ठीक हो गया, पर मेरा मूड उस के चिपकू व्यवहार के कारण खराब बना रहा.

रवि मेरा कालेज का दोस्त है. उस पार्टी में शामिल होने कालेज के और भी बहुत से दोस्त आए थे. मैं कुछ समय अपने इन पुराने दोस्तों के साथ बिताना चाहता था, पर नेहा मेरा हाथ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी.

कुछ देर के लिए जब वह फ्रैश होने गई, तब मैं अपने दोस्तों के पास पहुंच गया था. मेरे दोस्त मौका नहीं चूके और नेहा का चिपकू व्यवहार मेरी खिंचाई का कारण बन गया था.

मुंहफट सुमित ने मेरा मजाक उड़ाते हुए कह भी दिया, ‘‘अबे मोहित, ऐसा लगता है कि तू ने तो किसी थानेदारनी के साथ शादी कर ली है. नेहा भाभी तो तुझे बिलकुल पर्सनल स्पेस नहीं देती हैं.’’

‘‘शायद मोहित शादी के बाद भी हर सुंदर लड़की के साथ इश्क लड़ाने को उतावला रहता होगा, तभी भाभी इस की इतनी जबरदस्त चौकीदारी करती हैं,’’ कुंआरे नीरज के इस मजाक पर सभी दोस्तों ने एकसाथ ठहाका लगाया था.

अपने मन की खीज को काबू में रखते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘वह थानेदारनी नहीं बल्कि बहुत डिवोटिड वाइफ है. तुम सब अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कितनी केयरिंग और घर संभालने में कितनी कुशल है.’’

‘‘अपना यार तो बेडि़यों को ही आभूषण समझने लगा है,’’ नीरज के इस मजाक पर जब दोस्तों ने एक और जोरदार ठहाका लगाया, तो मैं मन ही मन नेहा से चिढ़ उठा था.

पार्टी में हमारे साथ पढ़ी सीमा भी मौजूद थी. वह कुछ दिनों के लिए मुंबई से यहां मायके में अकेली रहने आई थी. पति के साथ न होने के कारण वह खूब खुल कर कालेज के पुराने दोस्तों से हंसबोल रही थी. मेरे मन में उस के ऊपर डोरे डालने जैसा कोई खोट नहीं था, पर कुछ देर उस के साथ हलकेफुलके अंदाज में फ्लर्ट करने का मजा मैं जरूर लेना चाहता था.

नेहा के हर समय चिपके रहने के कारण मैं उस के साथ कुछ देर भी मस्ती भरी गपशप नहीं कर सका. अपने सारे दोस्तों को उस के साथ खूब ठहाके लगाते देख मेरा मन खिन्न हो उठा.

मुझे थोड़ा सा भी समय अपने ढंग से जीने के लिए नहीं मिल रहा है, मेरे मन में इस शिकायत की जड़ें पलपल मजबूत होती चली गई थीं.

मैं खराब मूड के साथ पार्टी से घर लौटा था. मेरे माथे पर खिंची तनाव की रेखाएं देख कर नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘क्या सिर में दर्द हो रहा है?’’

‘‘हां, मुझे भयंकर सिरदर्द हो रहा है, पर तुम सिर दबाने की बात मुंह से निकालना भी मत,’’ मैं ने रूखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं सिर दबा दूंगी तो आप की तबीयत जल्दी ठीक हो जाएगी,’’ मेरी रुखाई देख कर उस का चेहरा फौरन उतर सा गया था.

‘‘मुझे सिरदर्द जल्दी ठीक नहीं करना है. अब तुम मेरा सिर खाना बंद करो, क्योंकि मैं कुछ देर शांति से अकेले बैठना चाहता हूं. मुझे खुशी व सुकून से जीने के लिए पर्सनल स्पेस चाहिए, यह बात तुम जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा,’’ मैं उस के ऊपर जोर से गुर्राया, तो वह आंसू बहाती हुई मेरे सामने से हट गई थी.

अगले दिन मैं ने उस के साथ ढंग से बात नहीं की. वह रात को मुझ से लिपट कर सोने लगी, तो मैं ने उसे दूर धकेला और करवट बदल ली. मुझे उस का अपने साथ चिपक कर रहना फिलहाल बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रहा था.

अगले दिन शनिवार की सुबह मैं जब औफिस जाने को घर से निकलने लगा, तब उस ने मुझ से दुखी व उदास लहजे में कहा था, ‘‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है. आज अपने भाई के साथ मैं कुछ दिनों के लिए मायके रहने जा रही हूं. मेरी अनुपस्थिति में आप जी भर कर पर्सनल स्पेस का मजा ले लेना.’’

मैं ने उसे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा, क्योंकि मैं सचमुच कुछ दिनों के लिए अपने ढंग से अकेले जीना चाहता था.

नेहा से मिली आजादी का फायदा उठाने के लिए मैं ने उस दिन औफिस खत्म होने के बाद अपने दोस्त नीरज को फोन किया. उस ने फौरन मुझे अपने घर आने की दावत दे दी, क्योंकि वह मुफ्त की शराब पीने को हमेशा ही तैयार रहता था.

हम दोनों ने उस के ड्राइंगरूम में बैठ कर शराब पी. हमारी महफिल सजने के कारण उस की पत्नी कविता का मूड खराब नजर आ रहा था, पर हम दोनों ने अपनी मस्ती के चलते इस बात की फिक्र नहीं की.

शराब खत्म हो जाने के बाद मुझे मालूम पड़ा कि मेरा दोस्त बदल चुका था. नीरज ने कविता के डर के कारण मुझे डिनर कराए बिना ही घर से विदा कर दिया.

मैं ने बाहर से बर्गर खाया और घर लौट कर नीरज को मन ही मन ढेर सारी गालियां देता पलंग पर ढेर हो गया.

पार्टी के दिन सीमा से खुल कर हंसीमजाक न कर पाने की बात अभी भी मेरे मन में अटकी हुई थी. इतवार की सुबह मैं ने रवि से उस का फोन नंबर ले कर उस के साथ लंच करने का कार्यक्रम बना लिया.

हम 12 बजे एक चाइनीज रेस्तरां में मिले. पहले मैं ने उसे बढि़या लंच कराया और फिर हम बाजार में घूमने लगे. उस की खनकती हंसी और बातें करने का दिलकश अंदाज लगातार मेरे मन को गुदगुदाए जा रहा था.

कुछ देर बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या हम मैटनी शो देखने चलें?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर जवाब दिया.

‘‘क्यों मना कर रही हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘हाल के अंधेरे में तुम अपने हाथों को काबू में नहीं रख पाओगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं कि बिलकुल शरीफ बच्चा बन कर फिल्म देखूंगा.’’

‘‘सौरी मोहित, शादी के बाद तुम्हें नेहा के प्रति वफादार रहना चाहिए.’’

उस का यह वाक्य मेरे मन को बुरी तरह चुभ गया. मैं ने उस से चिढ़ कर पूछा, ‘‘क्या तुम अपने पति के प्रति वफादार हो?’’

‘‘मैं उन के प्रति पूरी तरह से वफादार हूं,’’ उस का इतरा कर यह जवाब देना मेरी चिढ़ को और ज्यादा बढ़ा गया.

‘‘फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि अगर मैं जरा सी भी कोशिश करूं, तो तुम मेरे साथ सोने को राजी हो जाओगी.’’

‘‘शटअप.’’ उस ने मुझे चिढ़ कर डांटा, तो मैं उस का मजाक उड़ाने वाले अंदाज में हंस पड़ा था.

मेरे खराब व्यवहार के लिए उस ने मुझे माफ नहीं किया और कुछ मिनट बाद जरूरी काम होने का बहाना बना कर चली गई. मुझे उस के चले जाने का अफसोस तो नहीं हुआ, पर मन अजीब सी उदासी का शिकार जरूर हो गया.

मैं ने अकेले ही फिल्म देखी और बाद में देर रात तक बाजार में अकारण घूमता रहा. उस रात भी मैं ढंग से सो नहीं सका, क्योंकि नेहा की याद बहुत सता रही थी. बारबार उस से फोन पर बातें करने की इच्छा हो रही थी, पर उस के साथ गलत व्यवहार करने के अपराधबोध ने ऐसा नहीं करने दिया.

सोमवार को औफिस में दिन गुजारना मेरे लिए मुश्किल हो गया था. काम में मन न लगने के कारण बौस से कई बार डांट खाई. जब वहां रुकना बेहद कठिन हो गया, तो बौस से इजाजत ले कर मैं घंटा भर पहले औफिस से बाहर आ गया था.

औफिस से निकलने के घंटे भर बाद मैं ने नेहा को फोन कर के उलाहना दिया, ‘‘तुम इतनी ज्यादा निर्मोही कैसे हो गई हो? आज दिन भर फोन कर के मेरा हालचाल क्यों नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने तो आप की नाराजगी व डांट के डर से फोन नहीं किया,’’ उस की आवाज का कंपन बता रहा था कि मेरी आवाज सुन कर वह भावुक हो उठी थी.

‘‘तुम्हारा फोन आने से मैं नाराज क्यों होऊंगा?’’

‘‘मैं फोन करती तो आप जरूर डांट कर कहते कि मैं मायके में रह कर भी आप को चैन से जीने नहीं दे रही हूं.’’

‘‘मैं पागल हूं, जो तुम्हें अकारण डांटूंगा. मुझे लगता है कि मायके पहुंच कर तुम्हें मेरा ध्यान ही नहीं आया.’’

‘‘जिस के अंदर मेरी जान बसती है, उस का ध्यान मुझे कैसे नहीं आएगा?’’

‘‘तो वापस कब आओगी?’’

‘‘आप आज लेने आ जाओगे, तो आज ही साथ चल चलूंगी.’’

‘‘मैं तो आ गया हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है, पगली?’’

‘‘क्या बारबार घंटी आप बजा रहे हो?’’

‘‘दरवाजा खोल कर देख लो न मेरी जान.’’

‘‘मैं अभी आई.’’

उस की उतावलेपन व खुशी से भरी आवाज सुन कर मैं जोर से हंस पड़ा था.

दरवाजा खोल कर जब नेहा ने मुझे फूलों का बहुत सुंदर सा गुलदस्ता हाथ में लिए खड़ा देखा, तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. अपना उपहार स्वीकार करने के बाद वह मेरी छाती से लिपट कर खुशी के आंसू बहाने लगी.

मुझे इस समय उस की वह बात ध्यान आ रही थी, जो उस ने मायके आने से पहले कही थी, ‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है.’

मैं ने उस का माथा चूम कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ में यह आ गया

है कि तुम्हारे अलावा मेरी जिंदगी में खुशियां भरने की किसी के पास फुरसत नहीं है. मुझे अपनी जिंदगी में पर्सनल स्पेस नहीं, बल्कि तुम्हारा प्यार भरा साथ चाहिए. भविष्य में मेरी बातों का बुरा मान कर फिर कभी मुझे अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं छोड़ूंगी.’’ अपनी मम्मी की उपस्थिति की परवाह न करते हुए उस ने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित किया और फिर शरमा भी गई.

उस ने कुछ देर बाद ही मेरे साथ सट कर बैठते हुए ढेर सारे सवाल पूछने शुरू कर दिए. मुझे उस के सवालों का जवाब देने में अब कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही थी. उस से दूर रहने के मेरे अनुभव इतने घटिया रहे थे कि मेरे सिर से पर्सनल स्पेस में जीने का भूत पूरी तरह से उतर गया था.

एक दूजे के वास्ते: क्या हुआ था तूलिका के साथ

‘‘शादी की सालगिरह मुबारक हो तूलिका दी,’’ मेरी भाभी ने मुझे फोन पर मुबारकबाद देते हुए कहा.

‘‘शादी की सालगिरह मुबारक हो बेटा. दामादजी कहां हैं?’’ पापा ने भी फोन पर मुबारकबाद देते हुए पूछा.

‘‘पापा, वे औफिस गए हैं.’’

‘‘ठीक है बेटा, मैं उन से बाद में बात कर लूंगा.’’

मेरी छोटी बहन कनिका और उस के पति परेश सब ने मुझे बधाई दी, पर मेरे पति रवि ने मुझ से ठीक से बात भी नहीं की. आज हमारी शादी की सालगिरह है और रवि को कोई उत्साह ही नहीं है. माना कि उन्हें औफिस में बहुत काम होता है और सुबह जल्दी निकलना पड़ता है, पर शादी की सालगिरह कौन सी रोजरोज आती है.’’

रवि कह कर गए थे, ‘‘तूलिका, आज मैं जल्दी आ जाऊंगा… हम बाहर ही खाना खाएंगे.’’

‘सुबह से शाम हो गई और शाम से रात. रवि अभी तक नहीं आए. हो सकता है मेरे लिए कोई उपहार खरीद रहे हों, इसलिए देरी हो रही है,’ मन ही मन मैं सोच रही थी.

‘‘मां भूख लगी है,’’ मेरी 5 साल की बेटी निया कहने लगी. वह सो न जाए, उस से पहले ही मैं ने उसे कुछ बना कर खिला दिया.

तभी दरवाजे की घंटी बजी. वे आते ही बोले, ‘‘बहुत थक गया हूं… तूलिका माफ करना लेट हो गया… अचानक मीटिंग हो गई. शादी की सालगिरह मुबारक हो मेरी जान… यह तुम्हारा उपहार… फूलों सी नाजुक बीवी के लिए गुलदस्ता… आज हमारी शादी को 6 साल हो गए और तुम अभी भी पहले जैसी ही लगती हो.’’

पर मैं ने उन की किसी भी बात पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और उन के लाए गुलदस्ते को एक तरफ रख दिया. फिर बोलने लगे, ‘‘आज होटल में बहुत भीड़ थी… तुम्हारी पसंद का सारा खाना पैक करवा लाया हूं. जल्दी से निकालो… जोर की भूख लगी है.’’

‘‘जोर की भूख लगी थी तो बाहर से ही खा कर आ जाते… यह खाना लाने की तकलीफ क्यों की और इस गुलदस्ते पर पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी? आप खा लीजिए… मेरी भूख मर गई… मैं सोने जा रही हूं.’’

‘‘माफी तो मांग ली अब क्या करूं? बौस ने अचानक मीटिंग रख दी तो क्या करता? मुझे भी बुरा लग रहा है… खाना खा लो तूलिका भूखी मत सो,’’ रवि बोले.

कितना कहा पर मैं नहीं मानी और भूखी सो गई. मैं रात भर रोतीसिसकती रही कि किस बेवकूफ से मेरी शादी हो गई… शादी के 6 साल पूरे हो गए पर आज तक कभी मुझे मनचाहा उपहार नहीं दिया. मैं ने सुबह से कितना इंतजार किया, कम से कम होटल में तो खिला ही सकते थे.

 

आज तक कौन सी बड़ी खुशी दी है मुझे… हर छोटी से छोटी चीज के लिए

तरसती आई हूं. एक मेरी बहन का पति है, जो उसे कितना प्यार करता है. भूख से नींद भी नहीं आ रही थी. सोचा कुछ खा लूं पर मेरा गुस्सा भूख से ज्यादा तेज था. एक गिलास ठंडा पानी पी कर मैं सोने की कोशिश करने लगी पर नींद नहीं आ रही थी. क्या कभी रवि को महसूस नहीं होता कि मैं क्या चाहती हूं? फिर पता नहीं कब मुझे नींद आ गई.

‘‘गुड मौर्निंग मेरी जान…’’ कह रवि ने मुझे पीछे से पकड़ लिया जैसा हमेशा करते हैं. आज रवि की पकड़ से मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरे बदन पर बिच्छू रेंग रहा हो.

मैं ने उन्हें धक्का देते हुए कहा, ‘‘झूठे प्यार का दिखावा करना बंद कीजिए… इतने भी सीधे और सरल नहीं हैं आप जितना दिखाने की कोशिश करते हैं.’’

‘‘अब जैसा भी हूं तुम्हारा ही हूं. हां, मुझे पता है कल मैं ने तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती की पर मैं क्या करूं तूलिका नौकरी भी तो जरूरी है. अचानक मीटिंग रख दी बौस ने. अब बौस से जवाबतलब तो नहीं कर सकता न… इसी नौकरी पर तो रोजीरोटी चलती है हमारी,’’ रवि बोले.

‘‘कौन सा महीने का लाख रुपए देती है यह नौकरी? आज तक कौन सी बड़ी खुशी दी है आप ने मुझे? बस दो वक्त की रोटी, तन पर कपड़ा और यह घर. इस के अलावा कुछ भी तो नहीं दिया है,’’ मैं ने गुस्से में कहा.

‘‘बस इन्हीं 3 चीजों की तो जरूरत है हम सब की जिंदगी में… किसीकिसी को तो ये भी नहीं मिलती हैं तूलिका… जो भी हमारे पास है उसी में खुश रहना सीखो. अब छोड़ो यह गुस्सा.. गुस्से में तुम अच्छी नहीं लगती हो.

चलो आज कहीं बाहर घूमने चलेंगे और बाहर ही खाना खाएंगे… तुम कहो तो फिल्म भी देखेंगे… आज छुट्टी का दिन है… यार अब छोड़ो यह गुस्सा.’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना है दोबारा बोलने की कोशिश भी मत कीजिएगा. पछता रही हूं आप से शादी कर के… पता नहीं क्या देखा था मेरे पापा ने आप में… कितना कुछ ले कर आई थी मैं… सभी कुछ आप के परिवार वालों ने रख लिया. कितने अरमान संजोए आई थी ससुराल में… सब चकनाचूर हो गया. अब मुझे जो भी जरूरत होगी अपने पापा से मांगूंगी. आप से उम्मीद करना ही बेकार है. आप जैसे आदमी को तो शादी ही नहीं करनी चाहिए,’’ जो मन में आया वह बोले जा रही थी.

‘‘मैं ने पहले ही तुम्हारे पापा से कहा था कि मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरे जीवन का एक संकल्प है, उद्देश्य है और बिना संकल्प जीवन और मृत्यु का भेद समाप्त हो जाता है. क्या बेईमानी से करोड़ों कमा कर या किसी से पैसे मांग कर मैं तुम्हें ज्यादा सुखी रख सकता हूं?

मैं अपने परिवार को अपने बलबूते पर रखना चाहता हूं. मुझे किसी का 1 रुपया भी नहीं लेना है. अपने पापा का भी नहीं. अब तुम्हारे पापा ने दिए औैर मेरे पापा ने लिए तो इस में मैं क्या कर सकता हूं? अभी हमारे घर का लोन कट रहा है इसलिए पैसे की थोड़ी किल्लत है. फिर सब ठीक हो जाएगा तूलिका… मुझे भरोसा है अपनेआप पर कि मैं सारी खुशियां दूंगा तुम्हें एक दिन,’’ रवि बोले.

रवि ने मुझे बहुत मनाने की कोशिश की पर मैं अपने गुस्से पर कायम थी. रविवार की छुट्टी ऐसे ही बीत गई. शाम को निया बाहर घूमने की जिद्द करने लगी. रवि उसे घुमाने ले गए. मुझे भी कितनी बार कहा रवि ने पर मैं

नहीं गई.

तभी भाभी का फोन आया. ‘‘भाभी प्रणाम.’’ ‘‘तूलिका, कैसी हैं? आप दोनों को परेशान तो नहीं किया न?’’

‘‘अरे नहीं भाभी.. कहिए न.’’

‘‘कनिका अपने पति के साथ आई हुई है तो पापा चाह रहे थे कि अगर कुछ दिनों के लिए आप सब भी आ जाते तो अच्छा लगता,’’ भाभी ने मुझ से कहा.

‘‘हां भाभी, देखती हूं. वैसे भी आप सब से मिलने का बहुत मन कर रहा है,’’ कह फोन काट कर मैं सोचने लगी कि कितनी खुशहाल है कनिका… कुछ दिन पहले ही सिंगापुर घूम कर आई है अपने पति के साथ और एक मैं…

मैं ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए पापा के पास चली ही जाऊं. कम से कम कुछ दिनों के लिए इस घर के काम से दूर तो रहूंगी और फिर मुझे अपने पति को सबक भी सिखाना था, जो सिर्फ मुझे इस्तेमाल करना जानते हैं.

‘‘मां,’’ कह कर निया मुझ से लिपट गई. कहांकहां घूमी, क्याक्या खाया, सब बताया.

फिर बोली, ‘‘पापा आप के लिए भी आइसक्रीम लाए हैं.’’

‘‘मुझे नहीं खानी है… जाओ बोल दो अपने पापा को कि वही खा लें और यह भी बोलना कि तुम और मैं नाना के घर जाएंगे… टिकट करवा दें.’’

‘‘पापा, हमें नाना के घर जाना है. मां ने बोला है कि टिकट करवा दो,’’ निया बोली.

‘‘आप की मां आप के पापा से गुस्सा हैं, इसलिए पापा को छोड़ कर जाना चाहती हैं. ठीक है मैं टिकट करवा दूंगा,’’ रवि मेरी तरफ देखते हुए बोले.

रवि जब मुझे और निया को ट्रेन में बैठा कर अपना हाथ हिलाने लगे और ट्रेन भी अपनी गति पकड़ने लगी, तो निया पापा पापा कह कर चिल्लाने लगी. रवि का चेहरा उदास हो गया.

वे मुझे ही देखे जा रहे थे. तभी लगा कि आवेग में आ कर कहीं गलती तो नहीं कर रही हूं मायके जाने की? पर ट्रेन की रफ्तार तेज हो चुकी थी. पूरा रास्ता यही सोचती रही कि इतना नहीं बोलना चाहिए था मुझे… सुबह ही हम पटना पहुंच गए.

सब से मिल कर अच्छा लगा. पापा तो बहुत खुश हुए. सब रवि के बारे में पूछने लगे तो मैं ने कह दिया कि उन्हें काम था, इसलिए नहीं आ पाए.’’

यहां आए 4-5 दिन हो गए. रवि रोज सुबह शाम फोन करते. एक रोज कनिका ने पूछ ही लिया कि रवि ने सालगिरह पर मुझे क्या उपहार दिया तो मैं ने हंस कर टाल दिया.

कनिका और परेश हमेशा यही जताने की कोशिश करते कि दोनों में बहुत प्यार है. पापा ने ही दोनों के टिकट करवाए थे, सिंगापुर जाने के लिए. पापा ने रवि से भी पूछा था कि कहीं घूमने जाना हो तो टिकट करवा दूं पर मेरे पति तो राजा हरीशचंद हैं, उन्होंने मना कर दिया.

एक रात पापा और भाभी भैया किसी की शादी में गए थे. निया और मैं कमरे में टैलीविजन देख रहे थे.

‘‘दीदी, मैं ने खाना बना दिया है… मैं अपने घर जा रही हूं,’’ कामवाली कह कर चली गई.

थोड़ी देर बाद निया के खाने का वक्त हो गया. निया सो न जाए यह सोच कर मैं किचन मैं खाना लेने जाने लगी कि तभी कनिका के कमरे से हंसने की और अजीब सी आवाजें आने लगीं.

ये कनिका भी न… कम से कम कमरे का दरवाजा तो लगा लेती. मैं ने सोचा परेश के साथ अभी उसे समय मिला. मैं बुदबुदाई पर जैसे ही मैं किचन से खाना ले कर निकली तो मैं ने देखा कि कनिका तो बाहर से आ रही है.

‘‘कनिका तुम? तो तुम्हारे कमरे में कौन है? तुम कहीं बाहर गई थीं?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां दीदी, मैं पड़ोस की स्वाति भाभी के घर गई थी. कब से बुला रही थीं… देखो न कितनी देर तक बैठा लिया.’’

‘‘कनिका, निया के लिए खाना ले कर मेरे कमरे में आओ न जरा कुछ बातें करनी हैं तुम से,’’ मैं ने हड़बड़ाते हुए कनिका के हाथ में खाने की प्लेट थामते हुए कहा. मुझे लगा कहीं कनिका कुछ ऐसावैसा देख न ले, पर कौन है कमरे में? जैसे ही मैं पलटी देख कर दंग रह गई. सोना अपने ब्लाउज का बटन लगाते हुए कनिका के कमरे से निकल रही थी. उस के  बाल औैर कपड़े अस्तव्यस्त थे. मुझे देखते ही सकपका गई और भाग गई.

परेश का शारीरिक संबंध एक नौकरानी के साथ… छि:…

‘‘ दीदी, निया का खाना ले आई… कुछ बातें करनी थीं आप को मुझ से?’’

उफ, दिमाग से निकल गया कि क्या बातें करनी थीं. सुबह कर लूंगी… अभी तू जा कर आराम कर.’’

‘‘ठीक है दीदी.’’ उफ, क्या समझा था मैं ने परेश को और वह क्या निकला… अब तो परेश से घिन्न आने लगी है… और यह कनिका अपने पति की बड़ाई करते नहीं थकती है.

रवि तो मेरी खुशी में ही अपनी खुशी देखते हैं और मैं ने कितना कुछ सुना दिया उन्हें. आज तक कभी उन्होंने पराई औरत की तरफ नजर उठा कर नहीं देखा… मुझे रवि की याद सताने लगी. मन हुआ कि अभी फोन लगा कर बात कर लूं.

सुबह जब रवि का फोन नहीं आया तो मैं ने ही फोन लगाया पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. बारबार फोन लगा रही थी पर वे नहीं उठा रहे थे. मेरा मन बहुत बैचेन होने लगा. अब मुझे चिंता भी होने लगी, इसलिए मैं ने उन के औफिस में फोन किया तो रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि  रवि आज औफिस नहीं आए और कल भी जल्दी चले गए थे. उन की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी.

यह सुन कर मुझे और चिंता होने लगी.

‘‘पापा, रवि की तबीयत ठीक नहीं है. अभी औफिस से पता चला, इसलिए मैं कल की गाड़ी से चली जाऊंगी,’’ मैं ने पापा से कहा.

‘‘कोई चिंता की बात तो नहीं है न? मैं हवाईजहाज की टिकट करवा देता हूं,’’ पापा ने मुझ से कहा.

मैं ने सोचा कि जो बात मेरे पति को नहीं पसंद वह मैं नहीं करूंगी. अत: बोली, ‘‘नहीं पापा मैं ट्रेन से चली जाऊंगी. आप चिंता न करें. वैसे भी पटना से दिल्ली ज्यादा दूर नहीं है.’’

रास्ते भर मैं परेशान रही कि क्या हुआ होगा. ऐसा लग रहा था कि उड़ कर अपने घर पहुंच जाऊं. करीब 7 बजे सुबह हम अपने घर पहुंच गए. मैं बारबार दरवाजा खटखटा रही थी पर रवि दरवाजा नहीं खोल रहे थे. फिर मैं ने घर की दूसरी चाबी से दरवाजा खोला. अंदर गई तो देखा रवि बेसुध सोए थे. उन का बदन बुखार से तप रहा था. मैं ने तुरंत डाक्टर को बुलाया. डाक्टर ने रवि को इंजैक्शन दिया. धीरेधीरे उन का बुखार उतरने लगा.

जब उन की आंखें खुलीं तो चौंक कर बोले, ‘‘अरे तुम. मैं ने तुम्हें परेशान नहीं करना चाहा इसलिए बताया नहीं. माफ कर दो कि मायके से जल्दी आना पड़ा,’’ कहते हुए रवि रो पड़ा.

‘‘माफ आप मुझे कर दीजिए. मैं ही गलत थीं,’’ मेरी आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. फिर सोचने लगी कि मैं अपने अरमान उन पर लादती रही. कभी रवि के बारे में नहीं सोचा. कितने सौम्य, शालीन और सुव्यवस्थित किस्म के इनसान हैं मेरे पति. कितना प्यार और समर्पण दिया रवि ने मुझे पर मैं ही अपने पति को पहचान नहीं पाई.

‘‘अब कुछ मत सोचो तूलिका जो हुआ उसे भूल जाओ… हम दोनों एक हैं और कभी अलग नहीं होंगे, यह वादा रहा.’’

मैं ने भी हां में अपना सिर हिला दिया. सच में हम दोनों एकदूजे के वास्ते हैं.

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