Father’s Day 2023: पापा की जीवनसंगिनी- भाग 2

पापा की बात सुन कर नानी और मौसी का मुंह जरा सा रह गया. पापा को इतनी गंभीर मुद्रा में उन्होंने पहली बार देखा था. चूंकि दोनों के घर दिल्ली में ही थे सो वे उसी समय भनभनाती हुई अपने घर चली गईं पर पापा की बात सुन कर मेरी आंखों में बिजली सी कौंध गई. आज मैं 21वर्ष की होने को आई थी पर मैं ने पापा का इतना रौद्ररूप कभी नहीं देखा था.

हमारे घर में बस मां और उस के परिवार वालों का ही बोलबाला था. मां कालेज में प्रोफैसर थीं और बहुत लोकप्रिय भी. नानी और मौसी के जाने के साथ ही पापा ने तेजी से भड़ाक की आवाज के साथ दरवाजा बंद कर दिया और मेरी ओर मुड़ कर बोले, ‘‘अरे पीहू तुम अभी यहीं बैठी हो, कुछ हलका बना लो भूख लगी है.’’

पापा की आवाज सुन कर मुझ कुछ होश आया और मैं वर्तमान में लौटी- फटाफट खिचड़ी बना कर अचार, पापड़ और दही के साथ डाइनिंगटेबल पर लगा कर आ कर बैठ गई.

पापा जैसे ही डाइनिंगरूम में आए तो सब से पहले मेरे सिर पर वात्सल्य से हाथ फेरा

और प्यार से बोले, ‘‘बेटा, तुम्हारी मां हमें अनायास छोड़ कर चली गई. 21 साल की उम्र विवाह की नहीं होती. मैं चाहता हूं कि तुम आत्मनिर्भर बनो ताकि जीवन में कभी भी खुद को आर्थिक रूप से कमजोर न समझ. एक स्त्री के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना बेहद आवश्यक है क्योंकि आर्थिक आत्मनिर्भरता से आत्मविश्वास आता है और आत्मविश्वास से विश्वास जो आप को किसी भी अनुचित कार्य का प्रतिरोध करने का साहस प्रदान करता है. कल से ही अपनी पढ़ाई शुरू कर दो क्योंकि 2 माह बाद ही तुम्हारी परीक्षा है और जीवन में कुछ बनो. क्यों ठीक कह रहा हूं न मैं?’’ मुझे चुप बैठा देख कर पापा ने कहा.

‘‘जी,’’ पापा की बातें मेरे कानों में पड़ जरूर रहीं थीं परंतु मैं तो पापा को ही देखे ही जा रही थी. उन का ऐसा व्यक्तित्व, ऐसे उत्तम विचारों से तो मेरा आज पहली बार ही परिचय हो रहा था. मैं ने जब से होश संभाला था घर में मम्मी के मायके वालों का ही आधिपत्य पाया था. पापा बहुत ही कम बोलते थे पर पापा जब आज इतना बोल रहे थे तो मम्मी के सामने क्यों नहीं बोलते थे, क्यों घर में नानीमौसी का इतना हस्तक्षेप था? क्यों मम्मी पापा की जगह नानी और मौसी को अधिक तरजीह देती थीं और उन के अनुसार ही चलती थीं? क्यों पापा की घर में कोई वैल्यू नहीं थी? इन यक्ष प्रश्नों के उत्तर जानना मेरे लिए अभी भी शेष था.

उस रात तो मैं सो गई थी पर फिर अगले दिन सुबह नाश्ते की टेबल पर मैं ने साहस जुटा कर पापा से दबे स्वर में पूछा, ‘‘पापा जहां तक मुझे पता है आप और मम्मी की लव मैरिज हुई थी फिर बाद में ऐसा क्या हुआ कि आप और मम्मी इतने दूर हो गए कि मम्मी ने सूसाइड करने की कोशिश की?’’

मेरी बात सुन कर पापा कुछ देर शांत रहे, फिर मानो मम्मी के खयालों में खो से गए. अपनी आंखों की कोरों में आए आंसुओं को पोंछ कर वे बोले, ‘‘हम तुम्हारी मां के घर में किराएदार थे. मेरे पापा यूनिवर्सिटी में क्लर्क थे तो उन के पापा उसी यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर. हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. सो अकसर नोट्स का आदानप्रदान करते रहते थे. बस तभी नोट्स के साथ ही एकदूसरे को दिल दे बैठे हम दोनों. वह पढ़ने में होशियार थी और मैं बेहद औसत पर प्यार कहां बुद्धिमान, गरीब, अमीर, जातिपात और धर्म देखता है. प्यार तो बस प्यार है. एक सुखद एहसास है जिसे बयां नहीं किया जा सकता है बल्कि केवल महसूस किया जा सकता है और इस एहसास को हम दोनों ही बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहे थे. एमए करने के बाद तुम्हारी मम्मी पीएचडी कर के कालेज में प्रोफैसर बनी तो मैं बैंक में क्लर्क.

‘‘हम दोनों ही बड़े खुश थे. बस अब मातापिता की परमीशन से विवाह करना था पर जैसे ही हमारे परिवार वालों को पता चला तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया क्योंकि तुम्हारी मां सिंधी और मैं तमिल था. 3 साल तक हम दोनों ने अपनेअपने परिवार को मनाने की भरपूर कोशिश की पर जब दूरदूर तक बात बनते नहीं दिखाई दी तो एक दिन घर से भाग कर हम दोनों ने पहले कोर्ट और फिर मंदिर में शादी कर ली. तुम्हारी मम्मी के घर में एक अविवाहित बड़ी बहन और मां ही थी सो उन्होंने तो कुछ समय बाद ही हमें स्वीकार कर लिया पर मेरे घर वाले अत्यधिक जातिवादी और संकीर्ण मानसिकता के कट्टर धार्मिक थे इसलिए उन्होंने कभी माफ नहीं किया और शादी वाले दिन से ही हमेशा के लिए हम से सारे रिश्ते समाप्त कर लिए. उन्होंने अपना तबादला तमिलनाडु के ही रामेशवरम में करवा लिया और सदा के लिए यह शहर छोड़ कर चले गए.’’

‘‘इतने प्यार के बाद भी मम्मी…’’ पापा मानो मेरे अगले प्रश्न को सम?ा गए थे सो बोले, ‘‘विवाह के बाद जब तक हम भोपाल में थे तो सब कुछ ठीकठाक था. हम सुखपूर्वक अपना जीवनयापन कर रहे थे. उस समय तू 8 साल की थी जब तुम्हारी मम्मी का तबादला दिल्ली हुआ तो मैंने भी अपना ट्रांसफर करवा लिया. तुम्हारी मम्मी का मायका था दिल्ली सो वे बहुत खुश थीं. दिल्ली शिफ्ट होने के बाद तुम्हारी नानी और मौसी का आना जाना बहुत बढ गया था.

‘‘तुम्हारी मम्मी को उन पर बहुत भरोसा था. उन दोनों के जीने का तरीका एकदम भिन्न था. शापिंग करना, होटलिंग, किटी पार्टियां करना, बड़ेबड़े लोंगों से मेलजोल बढाना जैसे शाही शौक उन लोंगों ने पाल रखे थे. तुम्हारी मां बहुत भोली थी. वे कालेज में प्रोफैसर थी और मोटी तनख्वाह की मालकिन भी. इसीलिए ये दोनों उन्हें हमेशा अपने साथ रखतीं थी क्योंकि तुम्हारी मम्मी उनके सारे खर्चे उठाने में सक्षम थीं. एक बार जब मैं ने समझने का प्रयास किया.

‘‘अनु हमारे घर में इन लोंगों का इतना हस्तक्षेप अच्छा नहीं है. ये घर मेरा और तुम्हारा है तो इसे हम ही अपने विवेक से चलाएंगे न कि दूसरों की राय से. पर मेरी बात सुन कर वह उलटे मुझ पर ही बरस पड़ी कि देखो सुदेश तुम्हारे अपने परिवार वालों ने तो हम से किनारा ही कर लिया है. अब मेरे घर वाले तो आएंगेजाएंगे ही ये ही लोग तो हमारा संबल हैं यहां. मैं अपनी मांबहन के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकती. दीदी की शादी नहीं हुई है और मां को पापा की नाममात्र की पैंशन मिलती है अब तुम ही बताओ मैं उन के लिए नहीं करूंगी तो कौन करेगा?

Father’s Day 2023: पापा की जीवनसंगिनी, भाग- 3

‘‘अनु मैं करने या उन का ध्यान रखने को मना कब कर रहा हूं मैं तो बस इतना चाहता हूं कि अपने घर को हम अपने विवेक से, अपने अनुसार चलाएं… तुम तो अपना घर ही उन के अनुसार चलाती हो… मैं ने अनु को समझने की कोशिश की पर मेरी किसी भी बात पर ध्यान दिए बिना ही अनु तुनक कर दूसरे कमरे में सोने चली गई. मैं तो विचारशून्य ही हो गया था.

कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. खैर, इसी ऊहापोह के मध्य हमारी गृहस्थी रेंग रही थी. तुम अब 8 साल की नाजुक उम्र में पहुंच चुकी थी… तुम्हें वह दिन याद है न जब मैं ने जबरदस्ती तुम्हें अपने दोस्त नवीन के यहां रात्रि में उस की बेटी सायशा के साथ भेज दिया था क्योंकि मुझे पता था कि अनु देर रात्रि नशे की हालत में घर आएगी और मैं नहीं चाहता था कि तुम अपनी मां को उस हालत में देखो और हमारी बहस की साक्षी बनो.’’

‘‘आप को कैसे पता था कि मां उस हालत में आएगी?’’ पीहू अचानक बोल पड़ी.

‘‘क्योंकि अब तक मैं तुम्हारी मौसी और नानी की देर रात तक चलने वाली पार्टियों का मतलब बहुत अच्छी तरह समझ चुका था और उस दिन शाम को जब मैं बैंक से निकल रहा था तो अनु का फोन आया था कि मैं कालेज से सीधी दीदी के यहां आ गई हूं. देर से घर आऊंगी. दीदी के यहां एक पार्टी है. तुम पीहू को देख लेना. उस दिन देर रात तुम्हारी मम्मी एकदम आधुनिक बदनदिखाऊ ड्रैस पहने नशे में गिरतीपड़ती घर आई थी. किसी तरह उसे सुलाया था मैं ने. जब दूसरे दिन रात के बारे में बात की तो बोली कि देखो वे लोग बहुत मौडर्न हैं. तुम्हारी तरह दकियानूसी सोच वाले नहीं हैं. पार्टियांशार्टियां और ऐसी ड्रैसेज यह तो मौडर्न कल्चर है पर तुम नहीं समझगे. कल क्या पार्टी थी. मजा ही आ गया. मैं तो कहती हूं तुम भी चला करो, ‘‘अनु को अपने बीते कल पर कोई अफसोस नहीं था यह देख कर मैं हैरान था.

‘‘उस की नजर में पार्टियां करना, मौडर्न कपड़े पहनना, बड़े लोगों के साथ

बैठना, उठना और उन से हर प्रकार के संबंध बनाना उच्छृंखलता नहीं आधुनिकता के पर्याय हैं. व्यक्ति आधुनिक अपनी मानसिकता और विचारों से होता है न कि बदनउघाड़ू कपड़े पहनने और शराब पी कर फूहड़ता से भरे नृत्य करने से.

‘‘मेरे बारबार समझने पर भी कुछ असर नहीं हो रहा था बल्कि रोज घर में कलह होने लगी तो मेरे पास आंखें मूंदने के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचा था. तुम्हें वह न्यू ईयर याद है जिसे तुम ने सायशा के घर मनाया था और मैं ने खुद तुम्हें वहां तुम्हारी जरा सी जिद करने पर भेज दिया क्योंकि उस 31 दिसंबर को हम तीनों यानी मैं, तुम और तुम्हारी मम्मी ही एकसाथ मनाने वाले थे पर अचानक तुम्हारी नानी, मौसी ने अपनी पार्टी में चलने को तुम्हारी मम्मी को तैयार कर लिया और हमारा प्लान कैंसिल कर के मम्मी उन के साथ चली गई. जब मैं ने उस से कहा तो बोली कि पीहू तो यों भी सायशा के घर जाना चाहती है तो उसे भेज दो और तुम भी अपने दोस्तों के साथ कुछ प्लान कर लो.’’

‘‘तो उस दिन आप अकेले ही रहे थे?’’

‘‘हां वह न्यू ईअर मैं ने अकेले ही मनाया था और उस दिन तुम्हारी मम्मी से मेरी आखिरी बहस हुई थी क्योंकि उस दिन भी तुम्हारी मम्मी न्यू ईयर की पार्टी मनाने तुम्हारे दूर के मामाजी के फार्महाउस पर गई थी अपनी मां, बहन के साथ. रात्रि के 3 बजे घर लौटी थी नशे में मदहोश लड़खड़ाती हुई. सुबह जब मैं ने इस बावत बात करनी चाही तो वह फट पड़ी कि मेरी जिंदगी, मेरा पैसा, मेरा परिवार तुम्हारा तो कुछ नहीं ले रही हूं मैं, मैं कैसे भी जीऊं. जब मैं तुम से कोई अपेक्षा ही नहीं रखती तो तुम अपनी जिंदगी जीयो और मैं अपनी. तब मैं ने कहा कि अनु तुम भूल रही हो कि हमारी बेटी अब किशोर हो रही है और उसे अच्छा माहौल देना हम दोनों की ही जिम्मेदारी है. इस पर बोली कि अरे तो बेटी की परवरिश के नाम पर क्या मैं अपनी जिंदगी जीना छोड़ दूं? अपने शौक त्याग दूं. आदर्श भारतीय नारी की भांति घर में बैठ जाऊं? पल तो रही है किस चीज की कमी है उसे? मैं अपनी जीवनशैली में कोई बदलाव नहीं कर सकती. 2-2 मेड लगा रखी हैं, अच्छे कौंवेंट स्कूल में पढ़ रही है? अच्छी ट्यूशन लगा रखी है और क्या चाहिए उसे?’’

‘‘उस दिन मैं समझ गया था कि अब तुम्हारी मम्मी को नहीं सम?ाया जा सकता क्योंकि वह तो अपनी सोचनेसमझने की शक्ति ही खो चुकी थी. इसलिए मैं ने आंखें बंद कर के मौन धारण करना ही उचित समझ और उस दिन का इंतजार करने लगा जब तुम्हारी मम्मी अपने विवेक से कुछ सोचसमझ पाएं. जब अपना ही सिक्का खोटा था तो मैं तुम्हारी नानी और मौसी को क्या दोष देता. दरअसल, अति आधुनिकता के नाम पर उच्छृंखलता ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा था.

‘‘तुम्हारी मौसी और नानी ने उसे अपने अनुसार ढाल लिया था. उस के पैसे पर स्वयं ऐश करने लगी थीं क्योंकि उन्हें पता था कि तुम्हारी मां वही करेंगी जो वे कहेंगी. धीरेधीरे वे इस से पैसा ऐठने लगी थीं. कुछ समय पहले उसे शायद सब समझ में आने लगा था पर अब सब हाथ से रेत जैसे फिसल गया था.

अपनी मां, बहन को वह अपनी जिम्मेदारी समझ न तो छोड़ पा रही थी और न ही कुछ कह पा रही थी जिस से वह तनाव में रहने लगी थी. कुछ दिनों से वह चुप सी रहने लगी थी. पिछले कुछ समय से अनिद्रा की शिकार थी. मैं कुछ कर पाता उस से पहले ही उस ने नींद की गोलियां खा कर मौत को अपने गले लगा लिया और मेरा इंतजार अधूरा ही रह गया.

‘‘वह दिल की बुरी नहीं थी. बहुत भोली थी इसीलिए तो दूसरे की बातों पर सहज भरोसा कर लेती थी. अब शायद तुम्हें मेरे मौन का कारण समझ आ गया होगा. मैं बस इतना चाहता हूं कि तुम इस साल अपनी ग्रैजुएशन पूरी कर लो फिर कंपीटिशन लड़ो और आत्मनिर्भर बनो. उस के बाद ही मैं तुम्हारा विवाह करूंगा.’’

उस के बाद पापा ने मुझे पढ़ा कर आत्मनिर्भर बनाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. ग्रैजुएशन के बाद मैं ने बैंक का ऐग्जाम दिया और जब मेरा एकसाथ 2 बैंकों में चयन हुआ तो पापा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. पहली बार जब मैं अपनी छुट्टियों में घर आई थी तो पापा अपनी आंखों में आंसू भर कर बोले थे, ‘‘मेरी तपस्या पूरी हो गई बेटा अब बस तुम्हारा विवाह करना शेष है.’’

‘‘पापा मेरे बैंक में…’’

‘‘क्या कोई पसंद है तुम्हें… फिर तो मेरी सारी चिंता ही दूर हो गई… बताओ कौन है वह…’’ पापा खुशी और आश्चर्य से उछल पड़े.

‘‘हां पापा…पसंद तो है पर वह जाति… धर्म… आप को… परेशानी…’’ मेरे शब्द जैसे मुंह में ही बर्फ की भांति जमे से जा रहे थे.

‘‘नहीं बेटा मैं जातिधर्म को नहीं मानता. मेरी नजर में सिर्फ एक ही धर्म है और वह है इंसानियत का. ये जाति की दीवारें तो हम इंसानों ने खड़ी की है. तुम खुल कर अपनी पसंद बताओ मैं तुम्हारे द्वारा लिए गए हर फैसले में तुम्हारे साथ हूं,’’ पापा के इतना कहते ही मैं लिपट गई थी उन से और खुश होते हुए बोली, ‘‘मैं कल आप को उस से मिलवाऊंगी.’’

अगले दिन मैं अहमद के साथ पापा के सामने थी. अहमद से मिल कर पापा बहुत खुश हुए और कुछ ही दिनों में बिना कोई देर किए पापा ने हम दोनों को विवाह के पवित्र बंधन में बांध दिया. मु?ो आज भी विदाई के समय पापा के शब्द याद हैं.

‘‘बेटा बस यही आशीष दूंगा कि अपने घर को तुम दोनों अपने विवेक से मिलजुल कर चलाना… अपने घर में किसी का भी दखल बरदाश्त मत करना फिर चाहे वह मैं ही क्यों न होऊं.’’

‘‘उस के बाद घटनाक्रम कुछ ऐसा बदला कि हम दोनों का ट्रांसफर दिल्ली से आगरा हो गया और पापा रह गए दिल्ली में अकेले. अचानक अहमद की आवाज से पीहू चौंक गई.’’

‘‘पीहू दिल्ली आने वाला है गेट पर चलते हैं.’’

‘‘पीहू अहमद के पीछेपीछे चलने लगी. एम्स अस्पताल में आईसीयू में

तमाम नलियों में आबद्ध पापा को लेटे देख कर तो पीहू की रुलाई ही छूट गई. अहमद ने बड़ी मुश्किल से उसे संभाला. तभी उस के पड़ोस में रहने वाली मिशेल आंटी ने एक बैग के साथ प्रवेश किया.

‘गुम है किसी के प्यार में’ की ‘करिश्मा’ स्नेहा भावसार ने छोड़ा शो

स्टार प्लास का टॉप सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ दर्शको में काफी फेमस है. शो में करिश्मा च्वहाण का रोल प्ले कर रही स्नेहा भावसार. हाल ही में को एक्टर विहान वर्मा के साथ रिलेशनशिप की अफवाह को लेकर काफी सुर्खियों में रही हैं. लेकिन, स्नेहा भावसार ने एक इंटरव्यू में विहान को डेट करने की खबरों को खारिज किया और कहा कि वे सिर्फ अच्छे दोस्त हैं इससे ज्यादा कुछ नहीं. खबरों के मुताबिक, स्नेहा ने बताया है कि वे ‘गुम है किसी के प्यार में’ शो को छोड़ रही हैं.

क्या है वजह शो छोड़ने की

ई-टाइम्स को दिए इंटरव्यू में स्नेहा भावसार ने बताया “ शो छोड़ने का फैसला मैंने अभी हाल ही में नहीं लिया था. मैं शो से बाहर निकालने का इंतजार कर रही थी क्योंकि मैं कुछ नया करना चाहती थी. मैं शो इसलिए छोड़ रही हूं मुझे एक नया प्रोजेक्ट मिल गया है.

 

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सही समय का कर रही थी इंतजार

“मैं केवल नए मौके चाह रही थी क्योंकि यह मेरे लिए नीरस हो गया था क्योंकि मैंने इतने लंबे समय तक इस किरदार को निभाया. मैंने अपनी चिंताओं और व्यू पॉइंट को क्रिएटिव के साथ शेयर  किया. लेकिन शो को अचानक छोड़ना पॉसिबल नहीं था. जब शो में लीप लाने की बात आई तो मेरे क्रिएटिव डायरेक्टर ने मुझसे ये फैसला लेने के लिए कहा कि मैं जारी रखना चाहता हूं या नहीं. तो फिर मैंने फैसला किया कि अगर मेरे बाहर निकलने से ट्रैक पर असर नहीं पड़ेगा, तो मुझे बाहर निकलना अच्छा लगेगा. मैं सही टाइम का इंतजार कर रही था और अब ये आ गया है.”

शो के जेनरेशन लीप पर एक्ट्रेस ने कहा

गुम है किसी के प्यार में’ में जेनरेशन लीप के बारे में बात करते हुए, स्नेहा ने कहा, “ठीक है, मैं बस उन्हें शो के लिए शुभकामनाएं दे रही हूं. इसके अलावा, मैं लीप का हिस्सा नहीं हूं इसलिए मैं आपको कुछ नहीं बता सकती. मेरे पास है इसके बारे में कोई बात नहीं है.”

गलत है जैंडर के हिसाब से न्याय

दिसंबर, 2017 में एक आदमी की शादी हुई पर उस की पत्नी से नहीं बनी. 1 साल के भीतर ही ऐसे हालात हो गए कि उसे लगा इस रिश्ते में रहा तो मर जाएगा. इसलिए उस ने पत्नी से अलग होने का फैसला ले लिया और कोर्ट जा कर तलाक की अपील की. वह इंसान 10 साल तक केस लड़ता रहा, लेकिन इस दौरान उस पर क्या कुछ गुजरा वह बता नहीं सकता.

पत्नी ने 498-ए का केस कर दिया. वह जेल चला गया. लेकिन किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि सच क्या है. कहीं यह मुकदमा झठा तो नहीं है. खैर, किसी तरह उसे कोर्ट से जमानत मिली तो उस ने अपना केस खुद लड़ने का फैसला किया. फिजियोथेरैपिस्ट की नौकरी छोड़ कर उस ने वकालत की पढ़ाई की ताकि खुद को बेगुनाह साबित कर सके.

उस की मेहनत रंग लाई और वह बाइज्जत बरी हो गया. पत्नी से उसे तलाक भी मिल गया. लेकिन उसे पत्नी से आजाद होने की भारी कीमत चुकानी पड़ी. समय और पैसे की बाबादी हुई वह अलग.

टूट गया सब्र का बांध

ऐसा ही एक और मामला है जहां तलाक के बाद भी पत्नी ने अपने पति का पीछा नहीं छोड़ा. वह पति के औफिस जा कर हंगामा शुरू कर देती, उसे गालियां देती, शोर मचाती. आजिज आ कर वह इंसान नौकरी छोड़ कर भाग गया, तो वह उसे व्हाट्सऐप पर मैसेज कर परेशान करने लगी. उसे लोगों से पिटवाया, उसे अगवा करवा कर अपने घर में ला कर बंद कर दिया. फिर 100 नंबर पर कौल कर के पुलिस को बुला कर कहा कि वह उस का रेप करने की कोशिश कर रहा था. रेप केस में उस इंसान को जेल हो गई.

जेल से निकल कर जब वह फिर से जिंदगी जीने की कोशिश करने लगा तो वह फिर आ धमकी और उसे गालियां बकने लगी, मारा भी. अब उस इंसान के सब्र का बांध टूट गया था इसलिए उस ने 24 पन्ने का लंबा सुसाइड नोट लिख कर आत्महत्या कर ली.

आखिर उस इंसान की गलती क्या थी? पुरुष होने की? क्या कोर्ट को उस की बात नहीं सुननी चाहिए थी और क्या समाज का यह फर्ज नहीं बनता था कि वह दोनों का पक्ष सुने?

मेरठ की एक महिला ने सरकारी अस्पताल से फर्जी मैडिकल सर्टिफिकेट बनवा कर अपने पति के खिलाफ थाने में मुकदमा दर्ज करवाया. महिला की बातों में आ कर पुलिस ने उस के पति को गिरफ्तार भी कर लिया. लेकिन बाद में इस मामले की जांच में पता चला कि महिला का किसी गैरमर्द से नाजायज संबंध था और पति इस पर एतराज करता था. अपने पति को रास्ते से हटाने के लिए महिला ने यह योजना बनाई और पति को झूठे केस में फंसा कर उसे जेल करवा दी.

पुरुष भी होते हैं घरेलू हिंसा के शिकार

घरेलू हिंसा और शोषण की बात वैसे तो घर की चारदीवारी से बहुत मुश्किल से बाहर आ पाती है और अगर आती भी है तो अमूमन समझ जाता है कि पीडि़त महिला ही होगी. लेकिन कई बार पुरुष भी चुप रह कर यह सबकुछ झेलते हैं. शर्मिंदगी, समाज के डर के कारण वे अपना दर्द बयां नहीं कर पाते हैं और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं.

हौलीवुड सुपर स्टार जौनी डेप के साथ भी यही हुआ कि पत्नी के हाथों घरेलू हिंसा के शिकार होते हुए भी वे चुप रहे कि लोग और समाज उन के बारे में क्या कहेंगे.

जौनी डेप की ऐक्स वाइफ ऐंबर डेप ने उन पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए कहा था कि नशे की हालत में डेप उस का यौन उत्पीड़न करते हैं और उसे मारने की धमकी देते हैं. ऐंबर की तरफ से उस की डाक्टर ने भी गवाही दी थी कि शराब के नशे में जान उस के साथ जबरन संबंध बनाने की कोशिश करते हैं और उस के साथ मारपीट भी करते हैं.

डाक्टर ने गवाही में यह भी कहा कि एक बार जौनी इतने हिंसक हो गए थे कि वे ऐंबर के प्राइवेट पार्ट में कोकीन ढूंढ़ने की कोशिश करने लगे. मगर तमाम गवाहों, सुबूतों, वीडियो, औडियो और सैकड़ों मैसेज खंगालने के बाद यही पता चला कि जान डेप पर लगाए गए सारे इलजाम झूठे थे.

कोरोनाकाल में पूरे देश में लौकडाउन के चलते लोग अपनेअपने घर में कैद हो कर रह गए थे. उस दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में भी काफी बढ़ोतरी हुई थी. लेकिन उस दौरान सिर्फ महिलाएं ही घरेलू हिंसा की शिकार नहीं हुईं, बल्कि कई पुरुष भी घरेलू हिंसा के शिकार हुए थे. यह बात अलग है कि भारत में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या सर्वेक्षण नहीं हुआ जिस से इस बात का पता चल सके कि घरेलू हिंसा में शिकार पुरुषों की तादाद कितनी है. लेकिन कुछ गैरसंस्थान इस दिशा में जरूर काम कर रहे हैं.

दुनियाभर में केवल महिलाओं और बच्चों के साथ ही नहीं, बल्कि पुरुषों के साथ भी अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं. सिर्फ भारत में हर साल लगभग 65 हजार से अधिक शादीशुदा पुरुष खुदकुशी कर लेते हैं, जिस का कारण उन पर दहेज, घरेलू हिंसा, रेप जैसे झूठे मुकदमों का दर्ज होना है.

महिलाओं की सुरक्षा के लिए बलात्कार, दहेज आदि कानून जरूरी हैं, लेकिन कहीं न कहीं इन कानूनों को हथियार बना कर कुछ महिलाएं इन का दुरुपयोग भी कर रही हैं. ऐसे केसों में जो पुरुष फंसे या फंसाए जा रहे हैं, उन की इज्जत, समय और जो पैसों की बरबादी होती है उस की भरपाई कौन करेगा? कानून का आज जो दुरुपयोग किया जा रहा है उसे रोकना बहुत जरूरी है नहीं तो निर्दोष पुरुषों की जिंदगी झूठे केसों में फंसती चली जाएगी.

हंसी के पात्र बन जाते हैं

‘सेव इंडिया फैमिली फाउंडेशन’ और ‘माई नेशन’ नाम की गैरसरकारी संस्थाओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में 90 फीसदी से कहीं ज्यादा पति 3 साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके होते हैं. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि पुरुष जब अपनी शिकायतें पुलिस या फिर किसी और प्लेटफौर्म में करनी चाहीं तो लोगों ने उन की बातों पर विश्वास नहीं किया, बल्कि वे और हंसी के पात्र बन गए.

एक स्टडी कहती है कि जीवन में कभी न कभी अपने पार्टनर के हाथों हिंसा ?ोलने में महिलाओं और पुरुषों की तादाद लगभग बराबर है. हालांकि गंभीर हिंसा के मामले पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले थोड़े कम होते हैं.

झूठे रेप केस में फंसते पुरुष

दिल्ली के आत्मा राम सनातन धर्म कालेज की आर्ट्स की स्टूडैंट आयुषी भाटिया ने पिछले 1 साल में 7 रेप केस अलगअलग पुलिस स्टेशनों में दर्ज कराए. लेकिन ये सारे फाल्स रेप केस थे. सख्ती करने पर पुलिस के सामने आयुषी ने स्वीकार किया कि वह लड़कों पर रेप के झूठे आरोप लगा कर उन से जबरन पैसे वसूलती थी.

उस ने बताया कि कैसे वह जिम, इंस्टा, औनलाइन डेटिंग ऐप पर 20 से 22 साल के लड़कों से दोस्ती करती और फिर उन से मिलती थी. लड़के के साथ फिजिकल रिलेशनशिप और किसी के साथ प्यार के वादे के बाद वह उस पर रेप का आरोप लगा दिया करती थी. सब से अजीब बात तो यह कि उस ने 1 साल में 7 झूठे रेप केस पुलिस स्टेशन में दर्ज करवाए.

बलात्कार एक घिनौना अपराध तो है ही, लेकिन उस से भी ज्यादा घिनौना अपराध यह है कि एक निर्दोष व्यक्ति पर बलात्कारी होने का ठप्पा लग जाना क्योंकि यहां पर एक निर्दोष व्यक्ति के मानप्रतिष्ठा दांव पर लग जाती है, साथ में उस की जिंदगी भी नर्क बन जाती है.

कुछ सालों पहले नई दिल्ली के करावल नगर के इब्राहिम खान पर बलात्कार का आरोप लगा था और आरोप भी किसी गैर ने नहीं, बल्कि उस की खुद की सगी बेटी ने लगाया था. संगीन आरोप था कि उस ने अपनी बेटी का रेप किया जिस से वह गर्भवती हो गई. इस आरोप के बाद इब्राहिम का सामाजिक बहिष्कार तो हुआ ही उसे जेल भी हुई. जेल में भी उसे कैदियों ने पीटा.

7 साल जेल में रहने के बाद साबित हुआ कि उस की बेटी ने उस पर झूठा इलजाम लगाया था क्योंकि वह बेटी के देह व्यापार में बाधक बन रहा था. बेटी के पेट में जो बच्चा था वह भी उस का नहीं था. अदालत ने इब्राहिम को बेगुनाह साबित होने पर उसे छोड़ तो दिया मगर तब तक उस की पूरी दुनिया तबाह हो चुकी थी.

एमपी में दर्ज हो रहे झूठे रेप केस

मध्य प्रदेश में सरकारी मुआवजा प्राप्त करने के लिए रेप केस के कई मामले दर्ज कराए गए. हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि अधिकतर केस झूठे और सरकारी मुआवजा लेने के लिए किए गए. दरअसल, एमपी में राज्य सरकार एससीएसटी एट्रोसिटी एक्ट के तहत पीडि़त महिला को 4 लाख रुपए का मुआवजा देती है. मामले में एफआईआर होने पर 1 लाख और कोर्ट में चार्ज शीट पेश होने पर 2 लाख रुपए दिए जाते हैं यानी 3 लाख रुपए तो सजा होने के पहले ही दे दिए जाते हैं. अगर आरोपी को सजा होती है तो 1 लाख रुपए और दिए जाते हैं. सजा न भी हो तो पहले दिया गया मुआवजा वापस नहीं मांगा जाता. यह प्रावधान केवल एससीएसटी वर्ग के लिए ही है, अन्य को नहीं.

झूठे रेप केस की अफवाह क्यों उठी

सागर की रहने वाली एक महिला ने एक व्यक्ति पर अपनी बेटी के बलात्कार का मामला दर्ज कराया. जब आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई तब दलित महिला ने ट्रायल कोर्ट में कबूला कि साधारण ?ागड़े में उस ने आरोपी पर अपनी नाबालिग बेटी से रेप का झूठा केस दर्ज करवाया था. यहां मुआवजे का लालच इस हद तक बढ़ चुका है कि झूठे आरोप लगा कर सरकारी मुआवजा हासिल किया जा रहा है.

यूपी के बरेली शहर की नेहा गुप्ता और साफिया नाम की 2 लड़कियां पैसे के लिए पुरुषों को फंसाने का रैकेट चला रही थीं. वे कई लड़कों पर बलात्कार के झूठे केस कर के पैसे हड़पने के बाद पकड़ी गईं.

बलात्कार की परिभाषा, जहां एक महिला के साथ उस की इच्छा के विरुद्ध, उस की सहमति के बिना, जबरदस्ती, गलत बयानी या धोखाधड़ी द्वारा या फिर ऐसे समय में जब वह नशे में या ठगी गई हो अथवा अस्वस्थ मानसिक स्वास्थ्य की हो और किसी भी मामले में यदि वह 18 साल से कम उम्र की हो, बलात्कार माना जाता है. लेकिन कुछ महिलाएं अपने लिए बनाए गए कानून का फायदा उठा कर पुरुषों को बदनाम करने का काम कर रही हैं.

पीडि़तों पर बुरा असर

उत्तरी इंगलैंड की रिसर्चर एलिजाबेथ बेट्स बताती हैं कि समाज पुरुषों को अपराधी मनाने में बिलकुल देर नहीं लगाता, लेकिन उन्हें पीडि़त मानने में उसे बड़ी दिक्कत होती है. वे कहती हैं टीवी पर कौमेडी शो में कई बार लोगों को हंसाने के लिए पुरुष पर अत्याचार होते दिखाया जाता है. इसलिए किसी महिला के हाथों पुरुष की पिटाई होते देख हमारा समाज हंसता है, जिस का अकसर पीडि़तों पर बुरा असर पड़ता है.

कई बार इस से जुड़ी शर्मिंदगी और मजाक उड़ाए जाने के डर से पुरुष सामने नहीं आते, हिंसा झूठलते हैं और मदद मांगने से शरमाते हैं. बेट्स की रिसर्च दिखाती है कि समाज में इसे जिस तरह से देखा जाता है उस का असर घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों पर पड़ता है. ऐसे पीडि़तों में हिंसा ?ोलने के कारण कई लौंग टर्म मानसिक और शारीरिक समस्याएं सामने आती हैं.

हमारे देश में जहां हर 15 मिनट पर एक रेप की घटना दर्ज होती है, हर 5वें मिनट में घरेलू हिंसा का मामला सामने आता है, हर 69वें मिनट में दहेज के लिए दुलहन की हत्या की जाती है और हर साल हजारों की संख्या में बेटियां पैदा होने से पहले ही मां के गर्भ में मार दी जाती हैं, ऐसे सामाजिक परिवेश में दीपिका नारायण भारद्वाज, जो कभी इन्फोसिस में सौफ्टवेयर इंजीनियर थी और फिर अपनी नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता में आ गईं वह डौक्यूमैंटरी फिल्म भी बनाती हैं उन का कहना है कि क्या मर्द असुरक्षित नहीं हैं? क्या उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता है? क्या वे पीडि़त नहीं हो सकते?

दीपिका ने 2012 में पुरुष पक्षधर के इस मुद्दे पर रिसर्च शुरू की थी और पाया कि ज्यादातर दहेज प्रताड़ना केस झूठे होते हैं. झूठे आरोप में फंसाए जाने के कारण कई बेटों के मातापिता ने बदनामी के डर से आत्महत्या कर ली. वह पहली महिला हैं जिन का कहना है कि भारत में असली प्रताड़ना पुरुष झेल रहे हैं. हालांकि ऐसी बात नहीं है. महिलाएं भी कम प्रताडि़त नहीं हो रही हैं.

दीपिका नारायण का कहना है कि बदलाव लाना है तो पुरुषों के सहयोग की जरूरत है, न कि कुछ प्रतिशत पुरुषों के दुर्व्यवहार का उदाहरण दे कर पूरी पुरुष जाति को आपराधिक मानसिकता का ठहरा देना. उन का कहना है कि ऐसे ज्यादातर संगठनों का नेतृत्व कर रही महिलाएं खुद को महान कहलवाने, दूसरों के किए कामों में मुफ्त की स्पोर्टलाइट लेने, कानून, संविधान और सरकार को अपनी तरफ झकाने ताकि बैठेबैठाए बिना कुछ किए मुफ्त की रोटी और तारीफ मिलती रहे, हमारी सामाजिक बनावट में गलत हस्तक्षेप कर रही हैं. उन के हठ से तमाम घर बरबाद हो रहे हैं.

पुरुष ही शोषक नहीं

यह बात सच है कि दुनिया की आधी आबादी आज भी हर स्तर पर संघर्ष कर रही है और पितृसत्तात्मक व्यवस्था में उसे वह स्थान नहीं मिल पा रहा है जिस की वह अधिकरिणी है. लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि समानता के इस संघर्ष के बीच एक ऐसी धारा बह निकली जहां पुरुषों को सदैव शोषक और महिलाओं को शोषित के रूप में दिखाया जाता रहा है. लेकिन सत्य तो यह है कि ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, प्रेम, जैसे मानवीय अमनीभव पुरुष और स्त्री में समान रूप से प्रभावित होते हैं तो सिर्फ पुरुष ही शोषक कैसे हो सकता है.

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि आमजन से ले कर हमारी न्यायिक व्यवस्था पुरुषों की पीड़ा की उपेक्षा करती है. घरेलू हिंसा, दहेज, यौन उत्पीड़न अधिनियम महिलाओं की सुरक्षा और सम्मानपूर्वक जीवन देने के लिए बनाए गए हैं. ये लैंगिक समानता को स्थापित करने के लिए आवश्यक भी हैं. लेकिन जब एक के साथ न्याय और दूसरे के साथ अन्याय हो तो समाज ही बिखर कर रह जाएगा.

कुछ महिलाएं इन कानूनों का इस्तेमाल अपने निजी हितों के लिए करने लगी हैं. वे इन्हें पुरुषों से बदला लेने का रास्ता समझने लगी हैं. 2005 में उच्चतम न्यायालय ने इसे कानूनी आतंकवाद की संज्ञा दी थी, वहीं विधि आयोग ने अपनी 154वीं रिपोर्ट में इस बात को स्पष्ट शब्दों में स्वीकारा था कि आईपीसी की धारा 498ए का दुरुपयोग हो रहा है.

शिवांगी जोशी-कुशाल टंडन के नए शो ‘बरसाते’ का प्रोमो रिलीज, देखें वीडियो

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस शिवांगी जोशी और एक्टर कुशाल टंडन का नया टीवी शो सोनी पर जल्द ही दस्तक देने वाला है. शिवांगी जोशी और एक्टर कुशाल टंडन अपने नए शो ‘बरसाते’ में जल्द नजर आएंगे. शो से जुड़ा प्रोमो भी रिलीज हो गया है, जिसमें दोनों की केमिस्ट्री देखने लायक लग रही है. बता दें, कुशाल टंडन लंबे समय बाद छोटे पर्दे पर वापसी करेंगे तो वहीं शिवांगी जोशी को आखिरी बार ‘बेकाबू’ में देखा गया था.

प्रोमो वीडियो देखकर लगा शिवांगी और कुशाल के प्यार की शुरूआत तकरार से होती है. सोशल मीडिया पर ‘बरसाते’ का प्रोमो तोजी से वायरल हो रहा है. प्रोमो वीडियो में दिखाया गया है कि पहली मुलाकात ही फुल टशन के साथ होती है. सूट-बूट पहनकर कुशाल टंडन एंट्री करते हैं. वहीं शिवांगी जोशी बारिश में खड़ होकर कैब का इंतजार करती हैं. वहीं जैसे ही उन्हें कैब मिलती है और वह उसका दरवाजा खोलती हैं, उसमें कुशाल टंडन आकर बैठ जाते हैं. प्रोमो में देख सकते है पहली मुलाकात में ही शिवांगी जोशी और कुशाल टंडन की तकरार हो जाती है. इसे लेकर माना जा रहा है कि दोनों के प्यार की शुरुआत तकरार से होगी.

फैंस दे रहे है रिएक्शन

सोनी पर जल्द ही एक्टर कुशाल टंडन और शिवांगी जोशी का नया सीरियल ‘बरसातें’ आ रहा है. शो का प्रोमो भी रिलीज हो गया है. प्रोमो देखकर उनके फैंस जमकर तरीफ कर रहे है. एक यूजर ने लिखा है कि “प्रोमो शानदार है. शिवांगी को उनके खूबसूरत लुक के साथ पर्दे पर देखने के लिए तैयार हैं. आपको और आपकी पूरी टीम को ‘बरसातें’ के लिए शुभकामनाएं.”

वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, “कुशाल टंडन और शिवांगी जोशी एक साथ, अच्छी जोड़ी है.” लेकिन इस प्रोमो को देखकर कुछ लोगों को मोहसिन खान की भी याद आई. एक यूजर ने लिखा, “काश इसमें कुशाल टंडन की जगह मोहसिन खान होते.” बता दें कि मोहसिन खान और शिवांगी जोशी की जोड़ी टीवी पर सबसे हिट जोड़ी है.

इस दिन से शुरु होगा ‘बरसातें’

कई मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक शिवांगी जोशी-कुशाल टंडन अपकमिंग शो ‘बरसातें’ इस महीने की 19 तारीख से शुरू हो सकता है. अब ये देखना होगा कि टीवी पर इन दोनों की जोड़ी हिट साबित होती है या नहीं, लेकिन शो के प्रोमो से खूब प्यार मिल रहा है.

मौनसून का मिलेट्स से क्या है रिश्ता

आजकल स्वास्थ्य को ले कर लोगों में जागरूकता बढ़ी है. नियमित वर्कआउट करना उन की दिनचर्या में शामिल हो चुका है, लेकिन उन की डाइट में जागरूकता की बहुत कमी है क्योंकि आज के युवा जंक फूड पर अधिक रहने लगे हैं. उन्हें घर का बना खाना पसंद नहीं. ऐसे में बहुत कम उम्र में उन्हें मोटापा, कोलैस्ट्रौल, ब्लडप्रैशर आदि कई बीमारियां घेर लेती हैं, जिन से निकल पाना उन के लिए मुश्किल होता है.

ऐसे में आज डाइटीशियन हर व्यक्ति को मिलेट्स को दैनिक जीवन में शामिल करने की सलाह बारबार दे रहे हैं. मिलेट्स यानी मोटा अनाज. यह 2 तरह का होता है- मोटा दाना और छोटा दाना. मिलेट्स की कैटेगरी में बाजरा, रागी, बैरी, झंझगोरा, कुटकी, चना और जौ आदि आते हैं.

जागरूकता है जरूरी

इस बारे में क्लीनिकल डाइटीशियन हेतल व्यास कहती है कि मिलेट्स इम्यूनिटी बूस्टर का काम करता है. 2023 को सरकार ने ‘मिलेट्स ईयर’ घोषित किया है ताकि लोगों में मिलेट्स के प्रति जागरूकता बढे़. मिलेट्स में कैल्सियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फाइबर, विटामिन बी-6 मौजूद होते हैं.

ऐसिडिटी की समस्या में मिलेट्स फायदेमंद साबित हो सकता है. इस में विटामिन बी-3 होता है, जो शरीर के मैटाबोलिज्म को बैलेंस रखता है. मिलेट्स में कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट रहता है, इसलिए फाइबर की मात्रा अधिक होती है. यह ग्लूटेन फ्री होता है. इस से वजन कम होता है. कुछ लोग ग्लूटेन सैंसिटिव होते हैं. इस से उन का वजन बढ़ जाता है. मिलेट्स में इन सब की मात्रा न होने की वजह से डाइजेशन शक्ति बढ़ती है.

मौनसून में अधिक उपयोगी

मौनसून में पूरा मौसम बदल जाता है. बच्चों से ले कर वयस्कों सभी को कोल्ड, कफ, डायरिया आदि हो जाता है. इस मौसम ने रोगप्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है, साथ ही पीने का पानी बदल जाता है. बारिश की वजह से उस समय लोगों की चटपटा खाने की इच्छा होती है. इस से पेट खराब हो जाता है. इस मौसम में मिलेट्स से बना भोजन अधिक लेना चाहिए क्योंकि यह हलका होने के साथसाथ पच भी जल्दी जाता है.

नाचनी की रोटी, पोरिज, ड्राईफू्रट के साथ उस के लड्डू आदि सभी चीजें इस मौसम में खाई जा सकती हैं. अगर मौनसून में बाहर का खाना खाते हैं तो कब्ज की शिकायत हो जाती है और पेट फूल जाता है. ऐसे में नाचनी, ज्वार, बाजरा आदि से बना भोजन अच्छा होता है. नाचनी को रेनी सीजन का बैस्ट भोजन माना जाता है.

वेट लौस का है मंत्र

हेतल कहती है कि वेट लौस का भी यही मंत्र है, अगर कोई व्यक्ति गेहूं की 4 रोटियां खाता है, तो वह ज्वार या बाजरा की 2 रोटी ही खा सकेगा. इस के अलावा रागी में कैल्सियम होता है. इस से ऐसिडिटी नहीं होती. हजम करना भी आसान होता है. डाइजेशन सिस्टम पर किसी प्रकार का प्रैशर नहीं होता. छोटे मिलेट्स जैसे कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी आते हैं. ये छोटे अवश्य हैं, लेकिन इन के फाइबर कंटैंट बहुत अधिक हैं. कुछ

फायदे मिलेट्स के निम्न हैं:

  •  मिलेट्स ब्लड सिर्कुलेशन को बढ़ाता है. इसे नियमित भोजन में शामिल करना अच्छा होता है, जिस से इम्यूनिटी बढ़ती है.
  • वजन कम करने में सहायक होता है क्योंकि मिलेट्स के सेवन से पेट भरा हुआ महसूस होता है, जिस से भूख कम लगती है.
  • मिलेट्स में ऐंटीऐजिंग के गुण होने की वजह से त्वचा पर काले धब्बे, डलनैस, पिंपल्स और ?ार्रियों में कमी आती है.
  • पाचनशक्ति को बढ़ाने में सहायक होने की वजह अधिक फाइबर का होना.
  • डायबिटीज को कम करने में सहायक होने की वजह ग्लूटेन फ्री होना.
  • कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि मिलेट्स में मौजूद मैग्नीशियम पीरियड्स क्रैंप्स से राहत देता है.
  • कैल्सियम अधिक होने की वजह से हड्डियां मजबूत होती हैं.
  • मिलेट्स में मैग्नीशियम बहुत अच्छी मात्रा में पाया जाता है, जो हार्ट अटैक से शरीर का बचाव करने में सहायक होता है क्योंकि यह मांसपेशियों को आराम दे कर ब्लड को निरंतर चलने में सहायता करता है.
  • मिलेट्स में ऐंटीऔक्सीडैंट्स शरीर में मौजूद सभी कैंसर कोशिकाओं पर नजर रखते हैं. इस से कैंसर का खतरा कम होता है.
  • बौडी डिटौक्स करने में सहायक होता है.

कैसे करें सेवन

हेतल कहती है कि दूध में नाचनी या ज्वार के आटे को डाल कर सुबह का नाश्ता यानी पोरिज बना सकते हैं. इस के लिए नाचनी के आटे को धीमी आंच पर थोड़ा घी डाल कर सेंक लें. उस में दूध या छाछ मिला कर ठंडा या गरम पोरिज ले सकते हैं. उस के ऊपर थोड़ा ड्राईफ्रूट डाल देने से वह और अधिक स्वादिष्ठ बन जाता है. दिन में 2 बार नाचनी, ज्वार, बाजरा की रोटी खाई जा सकती है.

मधुमेह के रोगी सांवा की रोटी चावल के स्थान पर खाते हैं. नाचनी के डोसे और इडली भी बनाई जा सकती है. खाने में हमेशा उस की मात्रा पर अधिक ध्यान देना पड़ता है. फाइबर अधिक होने से कम मात्रा में खाने से ही पेट भरा हुआ लगता है.

आज के यूथ को जंक फूड के अलावा कुछ और खिलाना मुश्किल होता है. ऐसे में नाचनी, ज्वार, बाजरा को गेहूं में मिला कर आटा बनाया जा सकता है. इस से बनी रोटी फायदेमंद होती है. इस के अलावा मखना, राजगिरा के मीठे लड्डू आदि सभी बच्चे आसानी से खा लेते हैं.

वसीयत: भाग 2- क्या अनिता को अनिरूद्ध का प्यार मिला?

कोटिधारा अभिषेक स्वरूप, जिस में अनीताजी भीग रही थीं. कुछ प्रेम प्रार्थना के अजस्र स्रोत हो वे उसे गले लगाना चाहती थीं, लेकिन… ‘‘आप को कोई तकलीफ तो नहीं. आप सारी रात कुरसी पर बैठी रहीं?’’ वह बोला. ‘‘तकलीफ,’’ अनीताजी सोच में पड़ गईं. मन के असंभावित और गुप्त कोष्ठ में जाना कब आसान है. नारी मन की भावयात्रा ही तकलीफ का पर्याय है.

लेकिन अनीता कुछ बोल नहीं पाईं. बस इतना कहा, ‘‘मैं ठीक हूं,’’ और सहसा उन्होंने आंखें बंद कर लीं, कहीं अनिरुद्ध उन की भावनाएं न पढ़ ले. ‘‘एक अकेलापन, कुछ निर्जन सा समाया हुआ है तुम्हारे अंदर, जो बिलकुल निकलता नहीं, तुम्हें खुद को संभालना होगा,’’

वह बोला. अनीताजी स्तब्ध थीं. बिलकुल चुप रहने वाला अनिरुद्ध आज ये सब क्या बोल रहा है?  ‘‘अनिरुद्ध, कभी दूर मत जाना मुझ से, वरना…’’ अनिरुद्ध मुसकराया, ‘‘आप खतरनाक भी हैं.’’ दोनों हंसने लगे. हालांकि अनीताजी को आज अनिरुद्ध के अंदर अपने प्रति सम्मान ही नहीं कुछ और भी नजर आ रहा था, एक तरह का आकर्षण. उसी दिन अनिरुद्ध की रिपोर्ट डाक्टर ने अनीताजी को दी और पता चला कि उसे चौथी स्टेज का ब्लड कैंसर है.

दोनों चुपचाप डाक्टर को खामोशी से सुनते रहे. छुट्टी मिलने के बाद दोनों बुझे-बुझे से घर की ओर चल पड़े.  अगले 3 दिन अनिरुद्ध की बीमारी की पैरवी करते हुए अनीताजी ने ज्यादा  समय उसी के कमरे में बिताया. रात को जब वह सो जाता तो अनीताजी उसे देखती रहतीं. लौकडाउन खुल रहा था. कंपनियां अपने कर्मचारियों को वापस बुला रही थीं.

अनिरुद्ध को भी बुला लिया गया. अनिरुद्ध कुछ दुखी था. शिमला जैसी सुंदर जगह छोड़नी थी और अनीता को छोड़ कर जाना उस के लिए असंभव था. वह रुकना चाहता था लेकिन रुकने का कोई ठोस कारण भी तो नहीं था उस के पास.

अनीताजी जो चाहती थीं या वह जो सपने खुद देख रहा था, अब वह कुछ भी संभव नहीं था, बीमारी ही कुछ ऐसी थी कि वह उन का वर्तमान और भविष्य खराब नहीं करना चाहता था.  जब उस ने अनीताजी को वापस जाने की खबर दी तो वे कुछ नहीं बोलीं. एकदम चुप.

जैसे जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ जाए तो एक नबंनैस आ जाती है, उन की वही स्थिति हो गई. जाते वक्तवह बाकी का किराया देने आया था जिस को लेने से अनीताजी ने मना कर दिया और जातेजाते उसे अपनी कविताओं की एक डायरी दे दी. उन्होंने उस को रुकने के लिए नहीं कहा. आखिर उस ने अपने दिल की बात उन से खुल कर कही भी तो नहीं थी.

अनीताजी उसे बेइंतहा प्यार देना चाहतीं थीं, लेकिन अनिरुद्ध के पास अब समय कम था.  जिस दिन अनिरुद्ध गया था उस सारा दिन अनीताजी बालकनी में बैठी रहीं. मैक्स  भी उन के पैरों के पास बैठा रहा. वे धीरेधीरे भग्न हृदय की मर्मांतक वेदना में गा रही थीं, ‘बैठ कर साया ए गुल में हम बहुत रोए वो जब याद आया, वो तेरी याद थी अब याद आया, दिल धड़कने का सबब याद आया…’

उन के गाने सिर्फ मैक्स सुनता था. नुकीले पश्चिमी भाग के पर्वत पर धुंधले से बादल, महान पर्वतीय शृंखलाएं सब नितांत अकेली. अनीताजी की तरह और पीछे का आकाश एकदम काला. शिमला की घाटी, स्याही जैसे रंग का तालाब लग रही थी. रात के सघन अंधेरे में केवल अनीताजी के अरमान जल रहे थे. सारी रात ऐसे ही बैठेबैठे बीत गई. क्या कोई इतना भी अकेला होता है.

प्रेममय होना बहुत श्रम चाहता है. मन पर काबू वैराग्य धारण करने के समान है और वह अनुशीलन का विषय है. न हो दैहिक संबंध. न की गई हों प्रेम भरी बातें. फिर भी जो स्थान किसी ने ले लिया वहां कोई और. नामुमकिन. शिमला जाग रहा था. गाडि़यों के हौर्न, लोगों की आवाजें. अनीताजी बेमन से उठीं और अंदर जा कर बिस्तर पर लेट गईं.

अनिरुद्ध नोएडा आ गया था, लेकिन शिमला से ज्यादा उसे अनीताजी याद आती रहीं. उस ने उन के बारे में बहुत सोचा. बहुत बार सोचा. लेकिन अब क्या हो सकता था, उस का शरीर भी अब उस का साथ छोड़ रहा था. उस ने बैग में से उन की लिखी डायरी निकाली और उन की कविताएं पढ़ने लगा. क्या कमाल का लिखती हैं अनीताजी.

सारी कविताओं में प्रेम और बिछोह के भाव सघन और संश्लिष्ट. नोएडा आ कर अनिरुद्ध ने थोड़े प्रयास किए और अंतत: एक ऐसी कंपनी मिली जो ‘वर्क फ्रौम होम’ के लिए राजी थी. शिमला छोड़े हुए 8 महीने हो चुके थे. अनीताजी से हफ्ते में 3-4 बार बात हो जाती थी लेकिन अनिरुद्ध ज्यादा बात नहीं करता था. ये मोह के बंधन बहुत कष्टकारी होते हैं, कल को जब वह न रहा तो ये बातें अनीताजी को और दुखी करेंगी, यही सोच कर वह बात करने से बचता.

एक दिन अनीता का फोन बजा. अनिरुद्ध के पिता बोल रहे थे. उन्होंने अनिरुद्ध को अनीता के स्केच बनाते देखा था और पूछने पर अनिरुद्ध ने सब बातें अपने पिता को बता दी थीं. उस के पिता अनीता को नोएडा बुला रहे थे ताकि आने वाले मुश्किल वक्त में वे अनिरुद्ध के साथ रह सकें.

अनीता ने कुछ नहीं सोचा और अगले ही दिन शिमला से नोएडा के लिए  निकल पड़ीं. लेकिन यह खबर वे अनिरुद्ध को नहीं देना चाहती थीं. यह सरप्राइज था. आज अनीताजी को भी नहीं पता था कि वे अनिरुद्ध के पास जाने के लिए इतनी बेचैन क्यों थीं… आज रास्ता कटते नहीं कट रहा था, सरप्राइज जो देना था उन्होंने. आखिर घुमावदार सड़कों से होते हुए शाम को अनीताजी नोएडा आ पहुंची.

ड्राइवर ने गाड़ी अनिरुद्ध के घर के बाहर पार्क की. गेट अनिरुद्ध के पिता ने खोला और अनीता ने उन के पैर छुए और अनिरुद्ध के कमरे की तरफ बढ़ गईं. अनिरुद्ध अचानक अनीता को देख कर चकित हो गया और उस के मुंह से एक शब्द नहीं निकला. वह पहले से काफी कमजोर और अपनी उम्र से बड़ा दिखाई दे रहा था.  ‘‘मिलीं भी तो किस मोड़ पर,’’ वह धीरे से बोला. ‘‘तुम्हें मेरी जरूरत है,’’ अनीता ने जवाब दिया. ‘‘अनीता मेरी बकाया जिंदगी अब सिवा दुख के तुम्हें कुछ नहीं दे सकती.’’ ‘‘मैं तुम से कुछ लेने नहीं देने आई हूं, अनिरुद्ध.’’ उस दिन के बाद से अनीता एक निष्ठावान और सच्चे साथी की तरह अनिरुद्ध की देखभाल में लग गईं.

वह ऊपर के फ्लोर पर अनिरुद्ध के साथ वाले कमरे में रहने लगीं. मैडिकल रिपोर्ट्स के हिसाब से अनिरुद्ध के पास 3 महीने से अधिक समय नहीं था. बारबार हौस्पिटल के चक्कर लगते रहते.  उन दिनों अनीता ‘जीवन और मरण की तिब्बती पुस्तक’ पढ़ रही थीं. वे न केवल  अनिरुद्ध के जीवन को संभाले हुए थीं बल्कि उस की आगे की यात्रा की भी तैयारी करवा रही थीं.

दोनों भावों के असीम सागर में डूबे रहते और उन के मृत्यु को ले कर संवाद चलते रहते.  अनीता उसे ‘बारदो’ के बारे में किताब से पढ़पढ़ कर बताती रहतीं. तिब्बती बुद्धिम में बारदो की अवस्था का वर्णन है जो मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच की अवस्था है.

मेरे सीने में लड़कियों की तरह उभार आ गए हैं, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल-

मैं 12वीं कक्षा का छात्र हूं और डाक्टर बनने का इच्छुक हूं. समस्या यह है कि 13 साल की उम्र से मेरी दोनों छातियां लड़कियों की छातियों की तरह कुछकुछ बाहर की तरफ उठ आई हैं.मुझे चिंता है कि कहीं इस कारण मैं मैडिकल प्रवेश परीक्षा से पहले शारीरिक जांच के समय अनुत्तीर्ण न हो जाऊं? कृपया मुझे इस समस्या से उबरने का उपाय बताएं?

जवाब-

जिस समय लड़केलड़कियां बचपन की दहलीज लांघ किशोर उम्र में पहुंचते है, उस समय उन के शरीर में पुरुष और स्त्री यौन हारमोन बनने लगते हैं. लड़कों में पुरुष हारमोन और लड़कियों में स्त्री हारमोन अधिक बनते हैं, पर कुछकुछ मात्रा में विपरीत सैक्स के हारमोन भी बनते हैं.इसी के फलस्वरूप कुछ लड़कों की छाती लड़कियों की छाती जैसी बढ़ जाती है औरकुछ लड़कियों में लड़कों कीतरह चेहरे पर बाल भी जाते हैं. ऐसा हो तो बहुत विचलित होने की जरूरत नहीं होती. कई लड़कों में समय के साथ छातियां अपनेआप घट जाती हैं. अगर 18-20 साल की उम्र तक भी छातियां कम न हों और अटपटा लगे तो किसी कौस्मैटिक सर्जन से मिल कर सलाह ली जा सकती है.अगर छातियां चरबी जमने से बढ़ी हुई हों, तो लाइपोसक्शन से चरबी घटाई जा सकती है.किंतु यदि छातियों में ग्रंथि ऊतक अधिक हों तो छोटे से आपरेशन से छातियों को छोटा किया जा सकता है.जहां तक मैडिकल कालेज में प्रवेश के समय होने वाली शारीरिक जांच का सवाल है, उस के बाबत आप चिंता त्याग दें. गाइनेकोमैस्टिया नामक यह समस्या मैडिकल जांच के समय अनुत्तीर्णता का कारण नहीं बन सकती.

अगली बार कब

उफ, कल फिर शनिवार है, तीनों घर पर होंगे. मेरे दोनों बच्चों सौरभ और सुरभि की भी छुट्टी रहेगी और अमित भी 2 दिन फ्री होते हैं. मैं तो गृहिणी हूं ही. अब 2 दिन बातबात पर चिकचिक होती रहेगी. कभी बच्चों का आपस में झगड़ा होगा, तो कभी अमित बच्चों को किसी न किसी बात पर टोकेंगे. आजकल मुझे हफ्ते के ये दिन सब से लंबे दिन लगने लगे हैं. पहले ऐसा नहीं था. मुझे सप्ताहांत का बेसब्री से इंतजार रहता था. हम चारों कभी कहीं घूमने जाते थे, तो कभी घर पर ही लूडो या और कोई खेल खेलते थे. मैं मन ही मन अपने परिवार को हंसतेखेलते देख कर फूली नहीं समाती थी.

धीरेधीरे बच्चे बड़े हो गए. अब सुरभि सी.ए. कर रही है, तो सौरभ 11वीं क्लास में है. अब साथ बैठ कर हंसनेखेलने के वे क्षण कहीं खो गए थे.

मैं ने फिर भी जबरदस्ती यह नियम बना दिया था कि सोने से पहले आधा घंटा हम चारों साथ जरूर बैठेंगे, चाहे कोई कितना भी थका हुआ क्यों न हो और यह नियम भी अच्छाखासा चल रहा था. मुझे इस आधे घंटे का बेसब्री से इंतजार रहता था. लेकिन अब इस आधे घंटे का जो अंत होता है, उसे देख कर तो लगता है कि यह नियम मुझे खुद ही तोड़ना पड़ेगा.

दरअसल, अब होता यह है कि हम चारों की बैठक खत्म होतेहोते किसी न किसी का, किसी न किसी बात पर झगड़ा हो जाता है. मैं कभी सौरभ को समझाती हूं, कभी सुरभि को, तो कभी अमित को.

सुरभि तो कई बार यह कह कर मुझे बहुत प्यार करती है कि मम्मी, आप ही हमारे घर की बाइंडिंग फोर्स हो. सुरभि और मैं अब मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं.

जब सप्ताहांत आता है, तो अमित फ्री होते हैं. थोड़ी देर मेल चैक करते हैं, फिर कुछ देर टीवी देखते हैं और फिर कभी सौरभ तो कभी सुरभि को किसी न किसी बात पर टोकते रहते हैं. बच्चे भी अपना तर्क रखते हुए बराबर जवाब देने लगते हैं, जिस से झगड़ा बढ़ जाता और फिर अमित का पारा हाई होता चला जाता है.

मैं अब सब के बीच तालमेल बैठातेबैठाते थक जाती हूं. मैं बहुत कोशिश करती हूं कि छुट्टी के दिन शांति प्यार से बीतें, लेकिन ऐसा होता नहीं है. कोई न कोई बात हो ही जाती है. बच्चों को लगता है कि पापा उन की बात नहीं समझ रहे हैं और अमित को लगता है कि बच्चों को उन की बात चुपचाप सुन लेनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि अमित बहुत रूखे, सख्त किस्म के इंसान हैं. वे बहुत शांत रहने और अपने परिवार को बहुत प्यार करने वाले इंसान हैं. लेकिन आजकल जब वे युवा बच्चों को किसी बात पर टोकते हैं, तो बच्चों के जवाब देने पर उन्हें गुस्सा आ जाता है. कभी बच्चे सही होते हैं, तो कभी अमित. जब मेरा मूड खराब होता है, तीनों एकदम सही हो जाते हैं.

वैसे मुझे जल्दी गुस्सा नहीं आता है, लेकिन जब आता है, तो मेरा अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता है. वैसे मेरा गुस्सा खत्म भी जल्दी हो जाता है. पहले मैं भी बच्चों पर चिल्लाने लगती थी, लेकिन अब बच्चे बड़े हो गए हैं, मुझे उन पर चिल्लाना अच्छा नहीं लगता.

अब मैं ने अपने गुस्से के पलों का यह हल निकाला है कि मैं घर से बाहर चली जाती हूं. घर से थोड़ी दूर स्थित पार्क में बैठ या टहल कर लौट आती हूं. इस से मेरे गुस्से में चिल्लाना, फिर सिरदर्द से परेशान रहना बंद हो गया है. लेकिन ये तीनों मेरे गुस्से में घर से निकलने के कारण घबरा जाते हैं और होता यह है कि इन तीनों में से कोई न कोई मेरे पीछे चलता रहता है और मुझे पीछे देखे बिना ही यह पता होता है कि इन तीनों में से एक मेरे पीछे ही है. जब मेरा गुस्सा ठंडा होने लगता है, मैं घर आने के लिए मुड़ जाती हूं और जो भी पीछे होता है, वह भी मेरे साथ घर लौट आता है.

एक संडे को छोटी सी बात पर अमित और बच्चों में बहस हो गई. मैं तीनों को शांत करने लगी, मगर मेरी किसी ने नहीं सुनी. मेरी तबीयत पहले ही खराब थी. सिर में बहुत दर्द हो रहा था. जून का महीना था, 2 बज रहे थे. मैं गुस्से में चप्पलें पहन कर बाहर निकल गई. चिलचिलाती गरमी थी. मैं पार्क की तरफ चलती गई. गरमी से तबीयत और ज्यादा खराब होती महसूस हुई. मेरी आंखों में आंसू आ गए. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि इतनी बहस क्यों करते हैं ये लोग. मैं ने मुड़ कर देखा. सुरभि चुपचाप पसीना पोंछते मेरे पीछेपीछे आ रही थी. ऐसे समय में मुझे उस पर बहुत प्यार आता है, मैं उस के लिए रुक गई.

सुरभि ने मेरे पास पहुंच कर कहा, ‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है, मम्मी. क्यों आप अपनेआप को तकलीफ दे रही हैं?’’

मैं बस पार्क की तरफ चलती गई, वह भी मेरे साथसाथ चलने लगी. मैं पार्क में बेंच पर बैठ गई. मैं ने घड़ी पर नजर डाली. 4 बज रहे थे. बहुत गरमी थी.

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी, कम से कम छाया में तो बैठो.’’

मैं उठ कर पेड़ के नीचे वाली बेंच पर बैठ गई. सुरभि ने मुझ से धीरेधीरे सामान्य बातें करनी शुरू कर दीं. वह मुझे हंसाने की कोशिश करने लगी. उस की कोशिश रंग लाई और मैं धीरेधीरे अपने सामान्य मूड में आ गई.

तब सुरभि बोली, ‘‘मम्मी, एक बात कहूं मानेंगी?’’

मैं ने ‘हां’ में सिर हिलाया तो वह बोली, ‘‘मम्मी, आप गुस्से में यहां आ कर बैठ जाती हैं… इतनी धूप में यहां बैठी हैं. इस से आप को ही तकलीफ हो रही है न? घर पर तो पापा और सौरभ एयरकंडीशंड कमरे में बैठे हैं… मैं आप को एक आइडिया दूं?’’

मैं उस की बात ध्यान से सुन रही थी, मैं ने बताया न कि अब हम मांबेटी कम, सहेलियां ज्यादा हैं. अत: मैं ने कहा, ‘‘बोलो.’’

‘‘मम्मी, अगली बार जब आप को गुस्सा आए तो बस मैं जैसा कहूं आप वैसा ही करना. ठीक है न?’’

मैं मुसकरा दी और फिर हम घर आ गईं. आ कर देखा दोनों बापबेटे अपनेअपने कमरे में आराम फरमा रहे थे.

सुरभि ने कहा, ‘‘देखा, इन लोगों के लिए आप गरमी में निकली थीं.’’ फिर उस ने चाय और सैंडविच बनाए. सभी साथ चायनाश्ता करने लगे. तभी अमित ने कहा, ‘‘मैं ने सुरभि को जाते देख कर अंदाजा लगा लिया था कि तुम जल्द ही आ जाओगी.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सौरभ ने मुझे हमेशा की तरह ‘सौरी’ कहा और थोड़ी देर में सब सामान्य हो गया.

10-15 दिन शांति रही. फिर एक शनिवार को सौरभ अपना फुटबाल मैच खेल कर आया और आते ही लेट गया. अमित उस से पढ़ाई की बातें करने लगे जिस पर सौरभ ने कह दिया, ‘‘पापा, अभी मूड नहीं है. मैच खेल कर थक गया हूं… थोड़ी देर सोने के बाद पढ़ाई कर लूंगा.’’

अमित को गुस्सा आ गया और वे शुरू हो गए. सुरभि टीवी देख रही थी, वह भी अमित की डांट का शिकार हो गई. मैं खाना बना रही थी. भागी आई. अमित को शांत किया, ‘‘रहने दो अमित, आज छुट्टी है, पूरा हफ्ता पढ़ाई ही में तो बिजी रहते हैं.’’

अमित शांत नहीं हुए. उधर मेरी सब्जी जल रही थी, मेरा एक पैर किचन में, तो दूसरा बच्चों के बैडरूम में. मामला हमेशा की तरह मेरे हाथ से निकलने लगा तो मुझे गुस्सा आने लगा. मैं ने कहा, ‘‘आज छुट्टी है और मैं यह सोच कर किचन में कुछ स्पैशल बनाने में बिजी हूं कि सब साथ खाएंगे और तुम लोग हो कि मेरा दिमाग खराब करने पर तुले हो.’’

अमित सौरभ को कह रहे थे, ‘‘मैं देखता हूं अब तुम कैसे कोई मैच खेलते हो.’’

सौरभ रोने लगा. मैं ने बात टाली, ‘‘चलो, खाना बन गया है, सब डाइनिंग टेबल पर आ जाओ.’’

सौरभ ने कहा, ‘‘अभी भूख नहीं है. समोसे खा कर आया हूं.’’

यह सुनते ही अमित और भड़क उठे. इस के बाद बात इतनी बढ़ गई कि मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा.

‘‘तुम लोगों की जो मरजी हो करो,’’ कह लंच छोड़ कर सुरभि पर एक नजर डाल कर मैं निकल गई. मैं मन ही मन थोड़ा चौंकी भी, क्योंकि मैं ने सुरभि को मुसकराते देखा. आज तक ऐसा नहीं हुआ था. मैं परेशान होऊं और मेरी बेटी मुसकराए. मैं थोड़ा आगे निकली तो सुरभि मेरे पास पहुंच कर बोली, ‘‘मम्मी, आप ने कहा था कि अगली बार मूड खराब होने पर आप मेरी बात मानेंगी?’’

‘‘हां, क्या बात है?’’

‘‘मम्मी, आप क्यों गरमी में इधरउधर भटकें? पापा और भैया दोनों सोचते हैं आप थोड़ी देर में मेरे साथ घर आ जाएंगी… आप आज मेरे साथ चलो,’’ कह कर उस ने अपने हाथ में लिया हुआ मेरा पर्स मुझे दिखाया.

मैं ने कहा, ‘‘मेरा पर्स क्यों लाई हो?’’

सुरभि हंसी, ‘‘चलो न मम्मी, आज गुस्सा ऐंजौय करते हैं,’’ और फिर एक आटो रोक कर उस में मेरा हाथ पकड़ती हुई बैठ गई.

मैं ने पूछा, ‘‘यह क्या है? हम कहां जा रहे हैं?’’ और मैं ने अपने कपड़ों पर नजर डाली, मैं कुरता और चूड़ीदार पहने हुए थी.

सुरभि बोली, ‘‘आप चिंता न करें, अच्छी लग रही हैं.’’

वंडरमौल पहुंच कर आटो से उतर कर हम  पिज्जा हट’ में घुस गए.

मैं हंसी तो सुरभि खुश हो गई, बोली, ‘‘यह हुई न बात. चलो, शांति से लंच करते हैं.’’

तभी सुरभि के सैल पर अमित का फोन आया. पूछा, ‘‘नेहा कहां है?’’

सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी मेरे साथ हैं… बहुत गुस्से में हैं… पापा, हम थोड़ी देर में आ जाएंगे.’’

फिर हम ने पिज्जा आर्डर किया. हम पिज्जा खा ही रहे थे कि फिर अमित का फोन आ गया. सुरभि से कहा कि नेहा से बात करवाओ.

मैं ने फोन लिया, तो अमित ने कहा, ‘‘उफ, नेहा सौरी, अब आ जाओ, बड़ी भूख लगी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी नहीं, थोड़ा और चिल्ला लो… खाना तैयार है किचन में, खा लेना दोनों, मैं थोड़ा दूर निकल आई हूं, आने में टाइम लगेगा.’’

कुछ ही देर में सौरभ का फोन आ गया, ‘‘सौरी मम्मी, जल्दी आ जाओ, भूख लगी है.’’

मैं ने उस से भी वही कहा, जो अमित से कहा था.

‘पिज्जा हट’ से हम निकले तो सुरभि ने कहा, ‘‘चलो मम्मी, पिक्चर भी देख लें.’’

मैं तैयार हो गई. मेरा भी घर जाने का मन नहीं कर रहा था. वैसे भी पिक्चर देखना मुझे पसंद है. हम ने टिकट लिए और आराम से फिल्म देखने बैठ गए. बीचबीच में सुरभि अमित और सौरभ को मैसज देती रही कि हमें आने में देर होगी… आज मम्मी का मूड बहुत खराब है. जब अमित बहुत परेशान हो गए तो उन्होंने कहा कि वे हमें लेने आ रहे हैं. पूछा हम कहां हैं. तब मैं ने ही अमित से कहा कि मैं जहां भी हूं शांति से हूं, थोड़ी देर में आ जाऊंगी.

फिल्म खत्म होते ही हम ने जल्दी से आटो लिया. रास्ता भर हंसते रहे हम… बहुत मजा आया था. घर पहुंचे तो बेचैन से अमित ने ही दरवाजा खोला. मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोले, ‘‘ओह नेहा, इतना गुस्सा, आज तो जैसे तुम घर आने को ही तैयार नहीं थी, मैं पार्क में भी देखने गया था.’’

सुरभि ने मुझे आंख मारी. मैं ने किसी तरह अपनी हंसी रोकी. सौरभ भी रोनी सूरत लिए मुझ से लिपट गया. बोला, ‘‘अच्छा मम्मी अब मैं कभी कोई उलटा जवाब नहीं दूंगा.’’

दोनों ने खाना नहीं खाया था, मुझे बुरा लगा.

अमित बोले, ‘‘चलो, अब कुछ खिला दो और खुद भी कुछ खा लो.’’

सुरभि ने मुझे देखा तो मैं ने उसे खाना लगाने का इशारा किया और फिर खुद भी उस के साथ किचन में सब के लिए खाना गरम करने लगी. हम दोनों ने तो नाम के कौर ही मुंह में डाले. मैं गंभीर बनी बैठी थी.

अमित ने कहा, ‘‘चलो, आज से कोई किसी पर नहीं चिल्लाएगा, तुम कहीं मत जाया करो.’’

सौरभ भी कहने लगा, ‘‘हां मम्मी, अब कोई गुस्सा नहीं करेगा, आप कहीं मत जाया करो… बहुत खराब लगता है.’’

और सुरभि वह तो आज के प्रोग्राम से इतनी उत्साहित थी कि उस का मुसकराता चेहरा और चमकती आंखें मानो मुझ से पूछ रही थीं कि अगली बार आप को गुस्सा कब आएगा?

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