कर्ज: क्या फिर से अपने सपनों को पूरा करेगी सीमा?

मेरी देवरानी साक्षी 14 साल सर्विस करने के बाद अपने विभाग की हैड बन गई है. उस ने अपनी पदोन्नति की खुशी में आज जो पार्टी दी है, उस में उस के औफिस की सारी सहेलियां बहुत सजधज कर आई थीं.

मैं ने काफी कोशिश करी पर मुझ से बातें करने में किसी की दिलचस्पी ही नहीं थी. उन के बीच चह रहे वार्त्तालाप के लगभग सारे विषय उन की औफिस की जिंदगी से जुड़े थे.

उन के रुखे व्यवहार के कारण मेरा मन आहत हुआ, अचानक मैं खुद को बहुत अलगथलग, उदास व उपेक्षित सा महसूस करने लगी थी. मु लगा कि ये सब मुझे अपनी कंपनी में शामिल करने के लायक नहीं समझ रही थीं.

मैं एक तरफ कोने में बैठ कर उस समय को याद करने लगी जब मैं भी औफिस जाती थी. इन सब की तरह ढंग से तैयार हो कर घर से निकलना कितना अच्छा लगता था. औफिस में मैं भी नईनई चुनौतियों का सामना करने के लिए इन की तरह आत्मविश्वास से भरी नजर आती थी.

शादी के सालभर बाद मेरी बेटी मानसी पैदा हुई थी. उस के होने से 3 महीने पहले मैं ने नौकरी से त्यागपत्र तो दे दिया पर मेरा इरादा था कि जब वह कुछ बड़ी हो जाएगी तो मैं फिर से नौकरी करना शुरू कर दूंगी.

मगर वह समय मेरी जिंदगी में फिर लौट कर कभी नहीं आया. मानसी के होेने के 2 साल बाद मेरे बेटे सुमित का जन्म हो गया. मैं कुछ सालों के बाद नौकरी करना शुरू कर देती पर अपनी देवरानी साक्षी के कारण ऐसा नहीं कर सकी थी.

सुमित के होने के सालभर बाद मेरे देवर वसुराज की शादी साक्षी से हुई थी. वह एमबीए थी और अच्छे पद पर नौकरी करती थी.

हमारी तेजतर्रार स्वभाव वाली सास को साक्षी का देर से औफिस से लौटना व रसोई के कामों में बहुत कम हाथ बंटाना अच्छा नहीं लगता था. इस कारण सासूमां को उसे डांटने व अपमानित करने के मौके बड़ी आसानी से रोज ही मिल जाते थे.

ऐसा कर के सासू साक्षी को दबाना चाहती थीं पर साक्षी दबने को तैयार नहीं थी. इस कारण घर का माहौल कुछ दिनों में ही इतना खराब हो गया कि साक्षी घर से अलग होने की सोचने लगी.

साक्षी ने मु?ा से एक शाम साफसाफ कह दिया, ‘‘भाभी, मैं अगर नौकरी छोड़ कर घर में बैठी तो पागल हो जाऊंगी. मेरे लिए अच्छा कैरियर बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है.’’

एक दिन साक्षी को घर लौटने में रात के

11 बज गए क्योंकि वह औफिस से ही अपने एक सहयोगी की शादी में शामिल होने चली गई थी.

उस दिन घर में सासूमां की बहन का पूरा परिवार भी डिनर के लिए आया हुआ था. साक्षी देवरजी की इजाजत ले कर शादी के समारोह में शामिल होने गई थी, पर सासूमां ने उस के देर से लौटने पर सब मेहमानों के सामने बहुत क्लेश किया था.

साक्षी अपने कमरे में जा कर ऐसी बंद हुई कि किसी के बुलाने पर भी बाहर नहीं आई. मैं जब देर रात को उस के कमरे में खाना ले कर गई, तो वह छोटी बच्ची की तरह मुझ से लिपट कर बहुत जोर से रो पड़ी थी.

तब भावुक हो कर मैं ने उस से वादा कर लिया था, ‘‘साक्षी, तुम घर की चिंता छोड़ो और

बेफिक्र हो कर नौकरी करो. मेरे होते तुम्हारे नौकरी करने पर कभी आंच नहीं आएगी. घर तो मैं संभाल ही रही हूं और आगे भी संभालती रहूंगी. इस मामले में मांजी की डांटफटकार को एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दिया करो.’’

मगर आज अपने उस फैसले के कारण मेरे मन में गुस्सा, चिड़ व गहरा असंतोष पैदा हो रहा था. साक्षी की औफिस की सहेलियों को देख कर मन बारबार सोच रहा था कि कितनी चुस्तदुरुस्त और आत्मविश्वास से भरी नजर आ रही हैं ये सब की सब. मेरा व्यक्तित्व इन की तुलना में कितना फीका लग रहा है.

अपने व साक्षी के बच्चों को संभालतेसंभालते मेरी विवाहित जिंदगी के 30 साल निकल गए हैं. उन चारों को ढंग से पालपोस कर बड़ा करने के लिए सुबह से रात तक चकरघिन्नी सी घूमती

रही हूं.

इस कारण मुझे इज्जत और वाहवाही तो खूब मिली पर मेरा व्यक्तित्व मुरझा गया और यह बात आज मेरे मन को बहुत कचोट रही थी.

वैसे मुझे साक्षी से कोई शिकायत नहीं है. उस ने अलग तरह से हमारे संयुक्त परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियां पूरी करी हैं. बिजलीपानी के बिल देवरजी ही भरते रहे हैं. मकान की मरम्मत व रंगरोगन सदा उन्होंने ही कराया है. मेरी बेटी मानसी की पढ़ाई का आधे से ज्यादा खर्चा मेरे देवर ने ही उठाया था.

आज यह बात मन में बहुत जोर से चुभ रही है कि  घरगृहस्थी के कामों में उलझे रहने से मेरे व्यक्तित्व का विकास रुक गया. तभी तो साक्षी की सहेलियों के साथ खुल कर बातें करने में मुझे अजीब सा डर लग रहा है. मुझे साफ महसूस हो रहा है कि मेरे अंदर नए लोगों से मिलनेजुलने का आत्मविश्वास खो गया है.

‘‘भाभी, किस सोच में डूबी हो,’’ साक्षी ने अचानक पास आ कर सवाल पूछा तो मैं चौंक गई.

‘‘कुछ नहीं,’’ न चाहते हुए भी मेरा स्वर उदास हो गया.

‘‘फिर भी जो मन में चल रहा है मुझे बताओ न,’’ वह मेरा हाथ थाम कर बड़े अपनेपन से मुसकराई.

‘‘मैं सोच रही थी कि तुम्हारी इन स्मार्ट, सुंदर सहेलियों के सामने मेरा व्यक्तित्व कितना बौना और बेजान आ रहा है. आज महसूस कर रही हूं कि मुझे हमेशा के लिए नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए थी,’’ अपने मन की पीड़ा को मैं ने उसे बता ही दिया.

‘‘भाभी, अगर आप नौकरी नहीं छोड़तीं

तो आज यह प्रमोशन पार्टी न हो रही होती. आप ने घर की जिम्मेदारियां संभालीं, तो ही मैं पूरी लगन व मेहनत से औफिस में काम कर तरक्की के इतने ऊंचे मुकाम तक पहुंच पाई हूं,’’ यह जवाब दे कर साक्षी ने मेरा मूड ठीक करने का प्रयास किया.

मैं ने साक्षी की बात का कोई जवाब नहीं दिया पर मेरी आंखों से एकाएक आंसू बहने लगे. साक्षी ने पहले अपने रूमाल से मेरे आंसू पोंछे और फिर अचानक तालियां बजा कर सब मेहमानों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने लगी.

‘‘साक्षी, यह क्या कर रही हो. मेरा तमाशा न बनाना, प्लीज,’’ मैं ने उसे रोकने की कोशिश करी पर उस ने तालियां बजाना जारी रखते हुए खुद और मुझे सारे मेहमानों की नजरों का केंद्र बिंदु बना ही दिया.

जब सब का ध्यान हमारी तरफ हो गया तो उस ने ऊंची आवाज में बोलना शुरू किया, ‘‘मैं आप सब का एक खास इंसान से परिचय कराना चाहती हूं. मुझे प्रमोशन दिलाने में, मेरी लगन और मेहनत के साथसाथ इस इंसान का सहयोग भी बहुत महत्त्वपूर्ण रहा है.

‘‘आप सब को लग रहा होगा कि अब मैं अपने जीवनसाथी का गुणगान करूंगी तो मैं वैसा कुछ नहीं करने जा रही हूं. वे तो उलटा हमेशा मुझे डांटते थे कि मैं अपनी कमाई का घमंड न करूं और आए दिन नौकरी छुड़वा देने की धमकी देते रहते थे.’’

साक्षी के इस मजाक पर जब मेहमानों का हंसना रुक गया तो वो आगे बोली, ‘‘आज मेरा बेटा मोहित 10वीं कक्षा में है और बेटी तान्या 12वीं कक्षा में. दोनों हमेशा फर्स्ट आते हैं. आज मैं हर तरह से सुखी और संतुष्ट हूं. क्या आप सब जानना चाहेंगे कि मेरी व मेरे बच्चों की सफलता व खुशियों के लिए सब से महत्त्वपूर्ण योगदान किस का है?

‘‘कहा जाता है कि हर पुरुष की सफलता के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है. मेरे जीवन को अपार खुशियों से भरने में भी एक स्त्री का हाथ है और वह हैं बहुत सीधीसादी व सब के सुखदुख बांटने वाली मेरी ये सीमा भाभी. मैं चाहती हूं कि आप सब इन का एक बार जोर से तालियां बजा कर स्वागत करें.’’

सभी मेहमानों ने बड़े जोरशोर से तालियां बजा कर मेरा अभिनंदन किया. सच कहूं तो इस वक्त मैं खुश होने के साथ बहुत शरमा भी उठी थी.

साक्षी भावुक अंदाज में मेहमानों से आगे बोली, ‘‘मेरी इन सीमा भाभी के पास

सोेने का दिल है. इन के कारण मैं शादी के बाद से ही अपने दोनों बच्चों की देखभाल की चिंता से पूरी तरह मुक्त रही हूं. जब मेरे बच्चे स्कूल से लौटते थे तो उन्हें किसी आया की डांटफटकार नहीं बल्कि अपनी ताईजी का प्यार मिलता था. ये सीमा भाभी ही थीं जिन के कारण उन्हें हमेशा खाना गरम और अपनी मनपसंद का मिला. इन्होंने दोपहर का अपना आराम त्याग कर उन्हें होमवर्क कराया. मेरे बच्चों को बहुत अच्छे संस्कार इन्होंने ही दिए हैं.

‘‘मैं आज सीमा भाभी को बताना चाहती हूं कि हम नौकरी करने वाली औरतें तो घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों को निभाते हुए मशीन बन कर रह जाती हैं. हमारे चमकदार व्यक्तित्व में बहुत कुछ नकली और बनावटी होता है. मैं अपने बच्चों को कभी इतने अच्छे ढंग से नहीं पाल सकती थी जैसे इन्होंने ने पाला है.

‘‘मेरी सीमा भाभी ने हमारे इस घर को जोड़ कर रखा है. ये स्नेह व त्याग की जीतीजागती मिसाल हैं. मैं ने कभी नहीं कहा है पर आज आप सब के सामने कहती हूं कि इस जिंदगी में तो मैं इन के प्यार, स्नेह और त्याग का कर्ज कभी नहीं उतार पाऊंगी. पर मैं जो कर रही हूं उस की प्लानिंग मैं ने और बसु ने कई महीनों से कर रखी थी. हम ने गोमतीनगर के एक कमर्शियल कौंप्लैक्स में एक दुकान खरीदी है जिस में भाभी के बनाए और डिजाइन किए कपड़े बिकेंगे. यह हमारी ओर से एहसानों का बदला नहीं है, प्यार का मान है. भाभी यह लो सारे कागज, दुकान आप के नाम पर है,’’ कहते हुए साक्षी ने सीमा के हाथ में एक फाइल पकड़ा दी.

आंखों से आंसू बहा रही साक्षी ने वहीं सब के सामने मेरे पैर छू कर आशीर्वाद लिया तो तालियों की तेज आवाज से पूरा पंडाल एक बार फिर गूंज उठा. उसे प्यार से गले लगाते हुए मेरे मन की सारी शिकायतें, हीनभावना व कड़वाहट जड़ से दूर हो गई थी.

मुझे परिवार के सारे सदस्यों ने घेर लिया. सब की आंखों में मुझे अपने लिए प्रशंसा व आदर के भाव साफ नजर आ रहे थे. मेरी आंखों से अब जो आंसू बह रहे थे तो वे खुशी और गहरे संतोष के थे.

झगड़ा: प्रिया आखिर क्यों अपने पति से तलाक लेना चाहती थी?

सुबह सुबह शालू को प्ले स्कूल पहुंचा कर प्रिया घर के काम समाप्त कर औफिस पहुंच गई. शालू के स्कूल जाने से पहले ही वह 2 घंटों में फुरती से घर के काम निबटाती है. प्रिया ने औफिस में घड़ी देखी. 2 बज चुके थे. वह शालू को लेने स्कूल पहुंची क्योंकि टीचर ने नोट भेजा था कि प्रिंसिपल से मिल लें. वरना रिकशे वाला रोज उसे घर के पास बने क्रैच में छोड़ आता था जहां प्रिया उस का लंच सुबह ही दे आती थी. उस के कपड़ों का बैग भी रहता था.

‘‘प्रियाजी आप की बेटी आजकल ज्यादा ही गुस्से में रहती है. जब देखो साथी बच्चों के साथ लड़ाई झगड़ा करती है. कल तो इस ने बगल में बैठे पीयूष को बोतल फेंक कर मार दी. 2 दिन पहले वह पायल के साथ ?झगड़ा करने लगी. पायल लंच में सैंडविच लाई थी. उस ने शालू को सैंडविच नहीं दिए तो शालू ने उस का टिफिन ही उठा कर नीचे फेंक दिया. बताइए इस तरह की हरकतें कब तक सही जाएंगी. पता नहीं इतनी छोटी सी बच्ची इतनी अग्रैसिव क्यों है,’’ टीचर ने यह शिकायत क्लास प्रिंसिपल से की थी.

‘‘हां मैं ने भी देखा है. घर में भी शालू गुस्से में चीजें उठा कर फेंक देती है.’’

‘‘देखिए मैं बस यही कह सकती हूं कि बच्चे घर में जैसा बड़ों को करते देखते हैं उस का काफी असर उन पर पड़ता है. इस बात का खयाल रखें कि ऐसा कुछ बच्ची के आगे न हो.’’

‘‘मैं बिलकुल इस बात का खयाल रखूंगी,’’ कह कर प्रिया शालू को ले कर घर चली आई मगर दिल में तूफान मचा था. कहीं न कहीं शालू के इस रवैए की वजह घर में होने वाले  झगड़े ही थे. शालू अकसर अपने मांबाप के  झगड़े देखती थी.

दरअसल, प्रिया और विवेक ने भले ही लव मैरिज की थी मगर

अब दोनों के बीच बिलकुल नहीं बनती थी. विवेक अकसर झगड़े के दौरान प्रिया पर चीखता था और चीजें भी उठा कर फेंकता था. वह खुद भी गुस्से में आपा खो बैठती थी. जब दोनों थकहार कर औफिस से आते तो दोनों के पास शिकायतें होतीं. प्यार करनेकी फुरसत नहीं होती.

प्रिया ने खाना खिला कर शालू को सुला दिया. वह खुद भी लेट गई. उस का सिर भारी हो रहा था. पिछली रात विवेक के साथ हुए  झगड़े ने उसे अंदर तक तोड़ दिया था. वह पिछली रात की बात सोचने लगी. कल रात विवेक देर रात लौटा तो प्रिया ने टोक दिया. प्रिया ने उसे सुबह कहा भी था कि वह जल्दी आ जाए ताकि दोनों शालू कुछ किताबें और ड्रैसेज ले आएं.

तब तक प्रिया को उस की एक कुलीग ने बता दिया था कि विवेक का चक्कर चल रहा है. इसलिए प्रिया ने उस से सीधा सवाल किया, ‘‘मुझे पता चला है कि तुम सोनल के साथ डिनर के लिए गए थे. क्या यह सच है?’’

‘‘हां सच है. क्या प्रौब्लम है तुम्हें? अच्छा अब समझ दरअसल तुम्हारे जैसी औरतों की सोच हमेशा से छोटी ही रहती है. अगर मैं ने सोनल के साथ हंसीमजाक कर लिया, कहीं

घूमने चला गया तो कौन सी बड़ी बात हो गई. सोनल मेरी कुलीग है. दोस्ती हो गई तो क्या हो गया. तुम मेरी जासूसी करवाओगी?’’ विवेक चिढ़ कर बोला.

‘‘मैं ने आज तक कभी सोनल से तुम्हारी दोस्ती को ले कर कोई सवाल नहीं किया. मगर अब पानी सिर के ऊपर जा रह है. आज तुम उस के साथ डिनर के चक्कर में इतनी रात को लौटे हो, जबकि मैं यहां तुम्हारा मनपसंद खाना बना कर इंतजार करती रही. हमें शालू की किताबें लाने के लिए भी जाना था. मगर तुम यह भी भूल गए. क्या यह सही था,’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘सहीगलत मैं नहीं जानता. तुम मुझ पर बेकार का शक करती हो. इस बात से मुझ कोफ्त होती है.’’

‘‘अच्छा और जब मेरा पुराना क्लासमेट अजीत मुझ से मिलने घर आ गया तो क्या तुम ने तमाशा नहीं किया था.’’

‘‘किया था मगर इस की वजह तुम जानती हो? वह मुझे जरा भी पसंद नहीं,’’ विवेक चिल्लाया.

‘‘तो फिर सोनल भी मुझे पसंद नहीं.

सोनल को छोड़ो मुझे तुम्हारा ऐटीट्यूड ही पसंद नहीं. शादी के बाद तुम ने कभी मुझे समझने

की कोशिश नहीं की. कभी मेरे साथ समय

बिताने की कोशिश नहीं की,’’ प्रिया ने अपनी भड़ास निकाली.

‘‘समय क्या बिताऊं पूरा दिन तुम्हारी बकवास सुनूं. वैसे भी तुम्हारे पास समय कहां रहता है. औफिस से छुट्टी मिले तो गुरु की सेवा में लग जाती हो. पूरा संडे तो भजन, कीर्तन और सत्संग में बिताती हो. वहां से आती हो तो तुम्हारे गुरु की चेली का फोन आ जाता है.’’

प्रिया जानती थी कि विवेक पूजापाठ और गुरु के नाम से बहुत चिढ़ता. यह भी सच था कि आजकल उस का बहुत सारा समय पूजापाठ में जाने लगा था. वह पूजा पहले भी करती थी लेकिन अब समय के साथ पूजापाठ में उस का ज्यादा समय लगने लगा था. अपनी सहेली की बात मान कर उस ने अपना एक गुरु बना लिया था. दोनों सहेलियां अकसर सत्संग में गुरु की सेवा के लिए जातीं और पूरा दिन गुजार कर वापस आतीं. पूजापाठ, सत्संग, भजनकीर्तन में लगने वाले समय की वजह से उस के पास घर संभालने या बच्चे के लिए कुछ बेहतर कर पाने का समय कम होता था. खुद को आकर्षक बनाए रखने का भी कोई प्रयास नहीं करती थी क्योंकि उस के दिमाग में  झगड़े की बातें घूमती रहती थीं. हमेशा की तरह छोटी सी बात पर शुरू हुआ यह  झगड़ा खिंचता चला गया.

पिछले संडे दोनों ने प्लान बनाया था कि लंच के बाद शालू को ले कर मौल जाएंगे. कुछ जरूरी शौपिंग के साथ कोई मूवी भी देख लेंगे. निकलने से पहले प्रिया ने जल्दीजल्दी खाना बना कर थाली लगाई और विवेक को खाने को बुलाया. फिर वह किचन समेटने अंदर चली गई.

तभी विवेक के जोर से चिल्लाने की आवाज आई, ‘‘सब्जी है या केवल नमक भर दिया है. काम में मन नहीं लगता तुम्हारा. न जाने क्या करती हो पूरा दिन.’’

‘‘तुम्हारी गृहस्थी ही संभालती हूं. औफिस भी जाती हूं. तुम्हारी तरह देर रात तक किसी के साथ घूमती नहीं.’’

प्रिया ने तंज कसा तो विवेक को गुस्सा आ गया. उस ने थाली उठा कर जमीन पर फेंक दी. फिर दोनों के बीच देर तक लड़ाई चलती रही और सारा प्लान कैंसिल हो गया.

प्रिया समझने लगी थी कि अब विवेक के साथ निभाना उस के वश का नहीं रहा. विवेक छोटीछोटी बात पर उस से  झगड़ता था. ऐसा लंबे समय से चलता आ रहा था.

आज शालू की जो मारपीट की शिकायत स्कूल से सुनने को मिली थी वह कहीं न कहीं शालू ने रोज मांबाप के हो रहे  झगड़ों को देख कर ही सीखा. घर पहुंच कर प्रिया ने प्यार से शालू को अपने सामने बैठाया और पूछा, ‘‘बेटा एक बात बताओ आप ने पीयूष को क्यों मारा था?’’

‘‘मम्मा वह मुझे चिढ़ा रहा

था कि तू गंदी है,’’ शालू ने

जवाब दिया.

‘‘तब तुम ने क्या किया?’’

‘‘मुझे गुस्सा आ गया. वह  झठ बोल रहा था. इसीलिए मैं ने उसे बोतल

से मारा,’’ वह मासूमियत से बोली.

प्रिया ने अगला सवाल किया, ‘‘फिर तुम्हारी टीचर ने क्या किया?’’

‘‘टीचर ने मुझे दूसरे कमरे में भेज दिया.’’

‘‘इस के बाद तो तुम दोनों के बीच  झगड़ा नहीं हुआ न,’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘नहीं मम्मा, फिर पूरा दिन हम ने एकदूसरे को देखा ही नहीं इसलिए  झगड़ा भी नहीं हुआ,’’ शालू ने सहजता से कहा.

‘‘अच्छा आज मैं तुम्हें एक बात सम?ाती हूं. बेटा, ध्यान से सुनना. तुम देखती हो न कि मैं और तुम्हारे पापा आपस में  झगड़ते हैं.’’

‘‘हां मम्मा.’’

‘‘तुम्हें अच्छा नहीं लगता न?’’

‘‘हां मम्मा मुझ बिलकुल अच्छा नहीं लगता,’’ शालू उदास हो कर शालू बोली.

‘‘अब बताओ अगर तुम टीचर होती तो हम दोनों को अलगअलग कमरे में भेज देती न जैसे तुम्हारी टीचर ने किया.’’

‘‘हां,’’ वह भोलेपन से मुसकराई.

प्रिया ने फिर समझया, ‘‘देखो तुम और पीयूष छोटे बच्चे हो इसलिए टीचर

ने  तुम्हें अलगअलग कमरे में बैठा दिया और तुम्हारा  झगड़ा खत्म हो गया. लेकिन मैं और पापा तो बड़े हैं न. हमें अलगअलग कमरे में नहीं बल्कि अलगअलग घर में रहना होगा तभी हमारा  झगड़ा खत्म हो पाएगा. तब हम सब हैप्पी रहेंगे, है न?’’

‘‘तब मैं पापा के घर में रहूंगी,’’ शालू बोली.

‘‘तुम्हें पापा ज्यादा अच्छे लगते हैं?’’

‘‘नहीं लेकिन पापा से दूर नहीं होना मुझे. मेरी फ्रैंड सोनल के पापा दूर रहते हैं. वह रोती रहती है. मुझे ऐसे दूर नहीं रहना.’’

‘‘पर बेटा पापा के साथ रहोगी तो मम्मा अकेली रह जाएंगी न?’’ प्रिया ने पूछा.

‘‘मुझे आप के साथ भी रहना है. मैं तो आप दोनों के साथ रहूंगी,’’ शालू मचल कर बोली.

‘‘नहीं तुम मम्मा के साथ रहना और पापा कभीकभी तुम से मिलने आते रहेंगे. फिर तो ठीक है न,’’ प्रिया ने समझना चाहा.

मगर शालू रोने लगी, ‘‘नहीं मम्मी आप दोनों दूर मत होना मु?ो आप दोनों चाहिए.’’

प्रिया ने शालू को बांहों में ले कर चूम लिया. वह सम?ा रही थी कि इतनी छोटी सी बच्ची को मांबाप दोनों की जरूरत है. तभी तो वह किसी भी तरह विवेक के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रही थी. वह अपनी तरफ से हर संभव कोशिश करती है पर कमी हमेशा विवेक की तरफ से रही. वह शालू के कारण पति से अलग नहीं हो सकती थी मगर साथ रहना भी दूभर हो रहा था. यही वजह थी कि वह कशमकश भरी जिंदगी जी रही थी.

वक्त गुजरता रहा. विवेक और प्रिया के झगड़े पहले की तरह चलते रहे. अब  झगड़े छोटीछोटी बातों पर होेने लगे थे. झगड़ों के बाद कई बार प्रिया ने फिर शालू को समझया कि वह मम्मा और पापा को अलग होने दे मगर शालू उदास हो जाती.

एक दिन सोनल को ले कर प्रिया और विवेक के बीच फिर से  झगड़ा हुआ. दरअसल प्रिया को अपनी कुलीग के जरीए पता चला कि विवेक सोनल के साथ फिल्म देखने गया था. यह सुनते ही प्रिया के अंदर गुस्से का लावा फूट पड़ा. वह गुस्से में थी. देर रात जब विवेक लौटा और आते ही बैडरूम का रुख किया तो वह चीख उठी, ‘‘सोनल के घर ही सोने चले जाते न, यहां क्यों आए हो?’’

‘‘यहां क्यों आए हो से क्या मतलब है तुम्हारा?’’ विवेक भी ताव में आ गया, ‘‘यह

मेरा घर है. यहां नहीं आऊंगा तो कहां जाऊंगा? बेमतलब का इलजाम लगाते शर्म नहीं आती तुम्हें?’’

‘‘शर्म तुम्हें आनी चाहिए मुझे नहीं. तुम शर्मनाक हरकतें करते हो तब कुछ नहीं होता. मैं ने हकीकत बता दी तो इतना बुरा लग रहा है,’’ प्रिया गुस्से में थी.

‘‘ठीक है मैं ने बहुत बड़ी शर्मनाक हरकत कर दी. मैं ने किसी और को अपने दिल में बसा लिया. जब तुम इस लायक हो नहीं तो किसी और को ही ढूंढ़ूंगा. बस खुश हो या कुछ और बोलूं?’’ विवेक चीखा.

‘‘बोलना क्या है. सचाई तो बता ही दी तुम ने. मैं अब पसंद नहीं तो

किसी और को ही ढूंढ़ोगे. मैं ने तुम्हें खुली छूट दे दी है. जाओ जो करना है कर लो. बस मु?ा से कोई उम्मीद मत रखना. न ही कभी मेरे करीब आने की कोशिश करना.’’

‘‘तुम्हारे करीब आना चाहता ही कौन है. तुम्हारी तरफ देखना भी नहीं चाहता,’’ कहते हुए उस ने साइड टेबल पर रखी अपनी और प्रिया की तसवीर नीचे गिरा दी और खुद कमरे का दरवाजा जोर से बंद करता हुआ और प्रिया को धक्का देता गैस्टरूम में चला गया.

कोने में खड़ी शालू यह सब देख रही थी. उस के चेहरे पर अजीब से भाव थे और नन्हे दिल में बहुत से सवाल घूम रहे थे.

उस दिन प्रिया देर तक आईने के सामने खड़ी हो कर खुद को देखती रही. आईना देख कर उसे पहले तरह खुद पर गुमान नहीं हुआ. एक समय था जब प्रिया बहुत खूबसूरत थी. लंबी, छरहरी, गोरा रंग और उस पर घने स्टाइल में कटे हुए काले, लहराते बाल ऐसे कि कोई भी उसे पहली नजर में देख कर दीवाना हो जाता था. ऐसा ही हुआ था जब विवेक ने उसे देखा तो देखता रह गया था. पहली नजर का प्यार था उन का मगर अब उम्र बढ़ने के साथ प्रिया के अंदर काफी बदलाव आए थे. उस में वह कशिश नहीं रह गई थी जो एक समय में उस में थी. उस के पेट पर काफी चरबी जम चुकी थी और अब वह थोड़ी मोटी महिलाओं की श्रेणी में आने लगी थी. उस के बाल भी अब  झड़ने लगे थे और वह अब बालों को बांध कर रखती थी. आंखों पर चश्मा लग चुका था. घर, औफिस और बच्चे को संभालने में पूरी तरह थक जाती थी इसलिए कुछ चिड़चिड़ी भी हो गई थी.

इसी तरह समय गुजरता रहा. सोनल की वजह से प्रिया और विवेक के बीच आएदिन  झगड़े होते रहे. इन ?झगड़ों का सीधा असर नादान शालू पर पड़ रहा था. प्रिया यह बात सम?ाती थी मगर उसे कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था. वह सही समय का इंतजार कर रही थी जब शालू खुद उस की बात समझ जाए और पापा से अलग होना स्वीकार कर ले.

एक दिन प्रिया औफिस में थी तभी उस के फोन की घंटी बजी. फोन स्कूल से था.

शालू को सिर में चोट लग गई थी. प्रिया भागती हुई अस्पताल पहुंची. शालू को माथे पर चोट लगी थी और थोड़ा खून भी बह गया था.

शालू मां से लिपट कर रोने लगी, ‘‘मम्मा आज मेरा अमित से  झगड़ा हुआ और उस ने मुझे इतनी जोर से धक्का मारा कि मेरा सिर फट गया. आज के बाद मैं अमित का चेहरा भी नहीं देखूंगी. वह मुझ से हमेशा लड़ता रहता है.’’

प्रिया उसे शांत करा कर घर ले आई और सुला दिया. उस रात विवेक फिर से काफी देर से घर लौटा और प्रिया के एतराज जताने पर भड़क उठा. जोर से चीखता हुआ बोला, ‘‘तुम्हारे साथ रह कर मेरी जिंदगी खराब हो रही है.

पता नहीं कैसी घड़ी में तुझ से प्यार किया और शादी की.’’

‘‘शादी करना ही काफी नहीं होता. उसे निभाना भी पड़ता है,’’ प्रिया ने कहा.

‘‘अच्छा क्या नहीं निभाया मैं ने?’’

‘‘ज्यादा मुंह मत खुलवाओ. 1-1 कच्चा चिट्ठा जानती हूं,’’ प्रिया बोली.

‘‘क्या जानती हो. आज बता ही दो.’’

‘‘तुम्हारी रंगीनमिजाजी, तुम्हारी बेवफाई और तुम्हारा इस रिश्ते से भागना…’’

अचानक गुस्से में विवेक ने प्रिया को जोर से थप्पड़ मार दिया. दूर

खड़ी शालू सबकुछ देख रही थी. थप्पड़ मारते देखते ही शालू भड़क उठी और प्रिया का हाथ पकड़ कर उसे खींचती हुई दूसरे कमरे में ले

आई. फिर उस ने प्रिया से कहा, ‘‘मम्मा आज के बाद आप पापा के साथ नहीं रहोगी. आप ने

कहा था न कि पापा और आप अलगअलग घर में रहोगे तो  झगड़े नहीं होंगे. आप अलग घर लो. पापा से दूर हो जाओ वरना आप को भी मेरी

तरह चोट लग जाएगी.  झगड़ा हो उस से दूर हो जाना चाहिए.

मैं भी उस स्कूल में नहीं पढ़ूंगी और आप के साथ किसी दूसरे घर में रहूंगी और दूसरे स्कूल में जाऊंगी. अब मैं कभी झगड़ा नहीं करूंगी और ममा आप भी मत करना. आप को पापा गुस्सा दिलाते हैं, झगड़े करते हैं तो बस आप उन से दूर हो जाओ. मैं भी अमित से दूर हो जाऊंगी. ठीक है न मम्मा?’’

एक सांस में सारी बात कह कर शालू ने पूछा तो प्रिया ने उसे गले से लगा लिया. बेटी की इतनी समझदारी भरी बातों से वह चकित थी. फिर बोली, ‘‘हां बेटा मगर तू पापा के बिना रह लेगी न.’’

‘‘हां मम्मा. आप ने कहा था न पापा कभीकभी आएंगे ही मिलने. मैं आप के साथ रहूंगी. बस आप कभी झगड़ा मत करना.’’

प्रिया ने बेटी को सीने से लगा लिया. आज शालू ने प्रिया की कशमकश दूर कर दी थी. अब वह बिना किसी गिल्ट विवेक को तलाक दे कर सुकून से रह सकती थी. वह अपनी बच्ची को एक सुंदर भविष्य देना चाहती थी और इस के लिए उस का विवेक से दूर जाना ही उचित था.

मौनसून हेयर केयर मिस्टेक्स

बारिश का मौसम बालों और स्कैल्प के लिए काफी खराब माना जाता है. मौनसून में हेयर फौल और डैंड्रफ की समस्या होना सब से आम है. इसलिए इस मौसम में बालों की अधिक देखभाल की जरूरत पड़ती है.

आइए जानते हैं ये कौन सी समस्याएं हैं और यह भी कि हम खुद इस मौसम में ऐसी कौन सी गलतियां करते हैं जिन की वजह से ये समस्याएं ज्यादा परेशान करने लगती हैं:

मौनसून में होने वाली बालों की समस्याएं

1.बालों का झड़ना

मौनसून में अकसर महिलाओं को हेयर फौल की समस्या का सामना करना पड़ता है. दरअसल, बारिश के मौसम का मिजाज ही ऐसा होता है कि उमस भरी गरमी स्कैल्प का पीएच संतुलन बिगाड़ देती है. इस से हेयर लौस की आशंका काफी बढ़ जाती है. वैसे तो हेयर फौल किसी भी मौसम में हो सकता है लेकिन मौनसून में अधिक देखने को मिलता है.

2. स्कैल्प इन्फैक्शन

मौनसून में स्कैल्प इन्फैक्शन होना आम बात है. स्कैल्प पर बैक्टीरियल और फंगल इन्फैक्शन की समस्या हो सकती है. दरअसल, मौनसून में बाल कई बार बारिश के पानी से गीले हो जाते हैं और इस से स्कैल्प पर बैक्टीरिया और फंगस पैदा हो जाता है. साथ ही फोड़ेफुंसियां भी हो सकती हैं.

3. डैंड्रफ

बारिश के मौसम में बढ़ते प्रदूषण, धूलमिट्टी और गंदगी के कारण बालों में जूंएं या रूसी पैदा हो सकती है. इस से बाल कमजोर हो जाते हैं और अधिक ?ाड़ने लगते हैं. मौनसून में डैंड्रफ की समस्या अधिक इसलिए होती है क्योंकि इस के लिए जिम्मेदार कवक नमी वाले इस मौसम में ही पनपता है.

4.खुजली

बारिश के मौसम में बालों और स्कैल्प में नमी रहती है. इस से बाल जल्दी चिपचिपे हो जाते हैं और खुजली होने लगती है. डैंड्रफ और इन्फैक्शन की वजह से भी सिर में खुजली हो सकती है.

कौमन हेयर केयर मिस्टेक्स

इस संदर्भ में एनी मुंजाल (एमडी, आश्मीन मुंजाल स्टार मेकअप अकादमी) कुछ सामान्य हेयर केयर गलतियां बता रही हैं जिन से मौनसून के मौसम में बचना चाहिए:

1.अपने बालों को बारिश और नमी से न बचाना

बारिश का पानी बालों को बहुत नुकसान पहुंचाता है. हम बारिश में भीगने का मजा लेते समय यह बात भूल जाते हैं और बालों से जुड़ी समस्याओं को न्योता देते हैं. इसलिए जरूरी है कि जब बाहर बारिश होने लगे तो अपने बालों को टोपी, दुपट्टे या छाते से ढक लें. यह आप के बालों को गीला होने और उल?ाने से बचाने में मदद करेगा.

2. बहुत अधिक स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स का उपयोग करना

ज्यादातर स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स हार्श होते हैं और बालों को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए मौनसून में अपने बालों पर बहुत अधिक स्टाइलिंग प्रोडक्ट्स का प्रयोग करने से बचें. इन के बजाय ऐसे प्राकृतिक प्रोडक्ट्स का चयन करें जो आप के बालों के लिए कोमल हों.

3.अपने बालों को साफ न रखना

मौनसून एक ऐसा समय होता है जब आप के बाल आसानी से गंदे और चिकने हो जाते हैं. अत: सुनिश्चित करें कि आप अपने बालों को साफ और स्वस्थ रखने के लिए नियमित रूप से हलके शैंपू से धोती हैं. किसी भी तरह की गंदगी को हटाने के लिए अपने बालों को अच्छी तरह से धोना जरूरी है.

4.कंडीशनर स्किप करना

मौनसून में अपने बालों को रूखापन और उल?ाने से बचाने के लिए अतिरिक्त नमी की आवश्यकता होती है. कंडीशनर न लगाने से आप के बाल बेजान नजर आएंगे. इसलिए अपने बालों में नमी वापस लाने के लिए हफ्ते में 1 बार डीप कंडीशनिंग हेयर मास्क का इस्तेमाल करें. बालों को मुलायम और हाइड्रेटेड रखने के लिए शैंपू करने के बाद अच्छी क्वालिटी वाले कंडीशनर का उपयोग करें. यह आप के बालों को सुल?ाने में भी मदद करेगा.

5. हौट स्टाइलिंग टूल्स का इस्तेमाल

फ्लैट आयरन और कर्लर जैसे हौट स्टाइलिंग टूल्स मौनसून में आप के बालों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. अत: हौट स्टाइलिंग टूल्स का इस्तेमाल करने के बजाय अपने बालों को हवा में सुखाने का विकल्प चुनें.

6. अपने बालों को नियमित रूप से ट्रिम न करना

मौनसून के दौरान हवा में नमी बढ़ने के कारण बाल टूटने का खतरा रहता है. नियमित ट्रिमिंग दोमुंहे बालों को रोक सकती है और बालों को स्वस्थ रख सकती है.

7. कैमिकल ट्रीटमैंट्स से दूरी

कैमिकल ट्रीटमैंट्स बालों को नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए मौनसून के दौरान किसी भी तरह के बालों के रंग या कैमिकल ट्रीटमैंट्स से बचना सब से अच्छा है क्योंकि हाई ह्यूमिडिटी रंग को जल्दी फीका कर सकती है और कैमिकल आप के बालों को कमजोर बना सकते हैं.

मौनसून में ऐसे करें बालों की देखभाल

1.बालों को अच्छी तरह से कवर कर के रखें

भले लगातार बारिश न हो रही हो मगर इस मौसम में नमी के कारण बाल  झड़ते हैं. ऐसे में बालों को अगर झड़ने से बचाना है तो एक अच्छा स्कार्फ ले कर अपने सिर के चारों ओर लपेटें. यह न सिर्फ बालों की बल्कि स्कैल्प की भी रक्षा करेगा.

2. ऐसैंशियल औयल का इस्तेमाल

अपनी स्कैल्प की मालिश करने के लिए टी ट्री, लैवेंडर और मेहंदी जैसे आवश्यक तेलों का उपयोग करें जो रक्त परिसंचरण में सुधार करने और बालों के विकास को बढ़ावा देने में मदद करेगा.

3. हेयर सीरम का इस्तेमाल करना

हेयर सीरम का इस्तेमाल करने से बालों का  झड़ना कम हो सकता है और मौनसून के मौसम में आप के बालों में चमक आ सकती है. अपने बालों को अच्छी तरह से पोषण देने के लिए उन पर लाइट औयल बेस्ड सीरम लगाएं और सुनिश्चित करें कि आप हर 15 दिनों में 1 बार बालों की डीप कंडीशनिंग भी करें.

4.खानपान सही रखें

इस मौसम में बाल झड़ने से रोकने हैं तो आप को जंक फूड से बचना चाहिए. औयली फूड मूल रूप से रक्त परिसंचरण को धीमा कर देता है और आप के बालों और स्किन की हैल्थ के साथ खिलवाड़ करता है. स्वस्थ बाल और पौष्टिक आहार के बीच सीधा संबंध है. आप की डाइट बैलेंस होनी चाहिए. बैलेंस का मतलब उस में सारे न्यूट्रीएंट्स शामिल होने चाहिए. मसलन, आप का भोजन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटामिन, मिनरल्स और वाटर का एक संतुलित कौंबिनेशन हो. प्रोटीन, ओमेगा 3 फैटी ऐसिड और बायोटिन प्रचुरता वाली चीजों को अपनी डाइट में शामिल करना होगा. ये बालों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी न्यूट्रिएंट्स हैं. खूब पानी पीएं और बहुत ज्यादा कैफीन पीने से भी बचें.

5. बालों को छोटा रखें

अगर आप के बाल लंबे हैं तो बारिश के मौसम में उन्हें छोटा कटवा लें. ऐसा करने से बालों की देखभाल अच्छे से हो जाएगी. इस के साथ ही बालों को और आप को नया लुक भी मिल जाएगा.

6. बालों की साफसफाई का खयाल रखें

सफाई का मतलब यह कतई नहीं है कि हमें प्रतिदिन शैंपू से ही बालों की सफाई करनी है. आप एक दिन छोड़ कर दूसरे दिन शैंपू से बालों की सफाई कर सकती हैं यानी एक दिन शैंपू से तो उस के अगले दिन सिर्फ नौर्मल वाटर से.

7. गीले बाल न बांधें

अगर आप के बाल लंबे हैं तो जाहिर है आप बरसात के दिनों में अकसर बाल बांध कर रखना पसंद करती हैं. अगर आप ऐसा करना चाहती हैं तो कोई दिक्कत नहीं है. बस एक एहतियात जरूर बरतें. गीले बालों को कतई न बांधें. बालों की नमी दूर होने दें. जब वे सूख जाएं तभी बांधें.

8. हेयर ट्रिमिंग

आप को प्रत्येक 5-6 सप्ताह तक अपने बाल ट्रिम करवा लेने चाहिए. ट्रिम करवाने से आप को डैड हेयर से छुटकारा मिलेगा. इस की जगह जो नए बाल उगेंगे वे पुराने बालों जैसे बेजान नहीं होंगे बल्कि बेहद जानदार और खूबसूरत होंगे.

9. सही शैंपू का चुनाव

अपनी पसंद का शैंपू चूज करते समय ब्रैंड, कीमत, फ्रैगरैंस और कंपोनैंट पर ध्यान होना चाहिए. कोई भी शैंपू चुनने से पहले यह जरूर देख लें कि वह सल्फेट और क्लोराइड फ्री शैंपू हो. बेहतर होगा अगर आप इस मौसम में प्रोटीन शैंपू का इस्तेमाल करें.

10. पानी का सही टैंपरेचर

सिर पर डालने वाला पानी किसी भी हाल में गरम नहीं होना चाहिए. इस से स्कैल्प के ड्राई होने और बालों के डैमेज होने की आशंका बढ़ जाती है. इसी तरह हार्ड वाटर मतलब जिस पानी में लवण और मिनरल्स की मात्रा तय मानक से ज्यादा हो उससे न नहाएं यानी जो पानी पीने योग्य और खाना बनाने योग्य नहीं है वह नहाने के योग्य भी नहीं है.

11. हेयर कौस्मैटिक्स

बालों के सौंदर्य के लिए बाजार में तरहतरह के कौस्मैटिक्स मौजूद हैं जैसे विभिन्न किस्म के हेयर जैल और स्टाइलिंग क्रीम्स. कभीकभार पार्टीफंक्शन में इस्तेमाल कर लिया तो कर लिया, लेकिन इस के इस्तेमाल को अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल न करें. लंबे समय तक इस्तेमाल करने से यह बालों को काफी डैमेज कर देता है.

12. गीले बालों को तुरंत करें क्लीन

अगर बारिश में आप के बाल गीले हो गए हैं तो आप तुरंत बालों में शैंपू करें. ऐसा करने से बालों से बरसाती पानी और पसीना निकल जाएगा और वे गिरेंगे नहीं. बारिश के पानी की वजह से भी बालों में हेयर फौल की समस्या शुरू हो जाती है.

प्रजनन क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध और कोविड-19 का प्रभाव

हालांकि मानसिक स्वास्थ्य और निःसंतानता को अलग-अलग माना जा सकता है, परन्तु यह दोनों एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और समानताएं साझा करती हैं. हमारे समाज में इन दोनों स्थितियों को हीन माना जाता है और इन विषयों के बारे में सामाजिक चर्चा को भी अस्वीकृत किया जाता है. इसके अलावा इन दोनों मुद्दों पर जागरूकता की भी कमी है. सामान्यतया, मानसिक स्थिति के लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाता है और ऐसे व्यक्तियों को समुदाय में “पागल” या “सनकी” कहा जाता है. वहीं निःसंतानता को एक महिला-केंद्रित स्थिति माना जाता है क्योंकि महिलाएं गर्भाधारण से प्रसव और पोषण करने तक, पूरी प्रक्रिया के केंद्र में रहती हैं. इसके अलावा, सोसाइटल नोमर्स के अनुसार एक महिला की प्राथमिक जिम्मेदारी शादी करना और संतान पैदा करना है.

डॉ क्षितिज मुर्डिया, सीईओ और सह-संस्थापक, इंदिरा आईवीएफ का कहना है कि – आज भी, हमारे देश मे मानसिक बीमारी और निःसंतानता से ग्रसित कई लोग ठीक होने के लिए झाड़-फुंक और तांत्रिक उपायों का सहारा लेते हैं.

हमारे देश मे शारीरिक स्वास्थ्य को मानसिक स्वास्थ्य के मुकाबले ज्यादा महत्व दिया जाता है क्यों की ये प्रत्यक्ष दिखाई देता है. किसी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य उनकी समग्र भावनात्मक, सामाजिक, व्यवहारिक और मनोवैज्ञानिक सेहत होता है. ऐतिहासिक और कुछ सामाजिक परम्पराओं के कारण लोग मानसिक और भावनात्मक कमजोरी का प्रदर्शन करने से बचते हैं इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को हमेशा इतना महत्व नहीं दिया जाता है जिसके वह योग्य है.  नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (एनआईएमएचएएनएस) का अनुमान है कि लगभग 150 मिलियन भारतीयों को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए सक्रिय मदद की आवश्यकता है.

जब 12 महीने या नियमित असुरक्षित संभोग के बाद गर्भधारण करने में विफलता होती है तो इस स्थिति को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रजनन प्रणाली के रोग- निःसंतानता के रूप में परिभाषित किया गया है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआईआईएमएस) के अनुसार भारत की अनुमानित 1.3 बिलियन आबादी में से 10-15 प्रतिशत आबादी निःसंतानता से प्रभावित है – इसका मतलब है कि देश में लगभग 195 मिलियन लोग गर्भधारण करने में समस्याओं का सामना करते हैं.

मानसिक स्वास्थ्य और निःसंतानता पर व्यापक चर्चा हाल ही में शुरू हुई है। इन जानकारियों के प्रभाव स्वरुप हमारी सोच मे बदलाव आ रहा है और अब इस बात को समझ लिया गया है कि मानसिक स्थितियों का उसी तरह से इलाज करना होगा जिस तरह से किसी शारीरिक बीमारी का इलाज किया जाता है. लोग अब यह भी समझते हैं कि जिस तरह डायबिटीज जैसी बीमारी की अगर जांच नहीं की जाएं तो जटिलताएं हो सकती हैं, उसी तरह  मानसिक रोगों की जांच और इलाज न होने से भविष्य में हालात अधिक गंभीर हो सकते हैं.

निःसंतानता के मामलों मे , अत्यधिक शोध और तकनिकी साधनो द्वारा आज,दंपती में गर्भधारण न कर पाने में पुरुष की जिम्मेदारी को प्रकाश में लाया गया है. वास्तविकता मे निःसंतानता के सभी मामलों में यह देखा गया है कि एक तिहाई मामलों में महिला में अंतर्निहित स्थितिया,  एक तिहाई में पुरुष में अंतर्निहित स्थितिया और शेष में दोनों पुरुष और महिला की समस्याएं जिम्मेदार होती हैं.

इनफर्टिलिटी और इस से सम्बंधित परिस्थितियाँ बहुत लंबे समय से दुनिया में मौजूद हैं. जागरूकता में कमी और जीवन शैली में नुकसानदेह परिवर्तन के कारण इसकी संख्या में वृद्धि हुई  है. निःसंतानता के कुछ कारण निम्नलिखित हैं –

  • आयु
  • शराब की लत, ड्रग्स, सिगरेट पीना
  • पर्यावरणीय विषाक्त (जैसे सीसा, कीटनाशक), प्रदूषण
  • विकिरण/ रेडिएशन और कीमोथेरेपी
  • कुछ दवाएं
  • तनाव, खराब आहार, वजन
  • स्वास्थ्य की स्थितियां जैसे पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस), प्राथमिक ओवेरियन अपर्याप्तता, अवरुद्ध फैलोपियन ट्यूब, एंडोमेट्रियोसिस, गर्भाशय फाइब्रॉएड, मम्स (गला संबंधी बीमारी), गुर्दे की बीमारी, हार्मोनल समस्याएं, कैंसर, अन्य.

भारतीय संदर्भ में निःसंतानता शारीरिक स्वास्थ से जुड़ी स्थिति है. देश मैं  वैज्ञानिक तरीके से प्रजनन तकनीक (एआरटी) द्वारा पहला गर्भधारण डॉ.सुभाष मुखर्जी द्वारा चार दशक पहले 1978 में शुरू हुआ जब देश की पहली टेस्ट ट्यूब बेबी का जन्म हुआ था. हालांकि, तकनीकी सहयोग द्वारा गर्भधारण का, सामाजिक परिस्तिथियों के कारणवश अस्वीकृत होने की वजह से उनका काम कई साल तक सामने नहीं आ पाया. यह वाक्या उस काल में लोगों के पारिवारिक जीवन पर सामाजिक प्रभाव को प्रकाशित करता है.

निःसंतान दंपती में मानसिक स्वास्थ्य समस्या का दिखना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। चिंता, अवसाद, अनियंत्रित जीवन, आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान में कमी आदि कई लक्षण इनमें नजर आते है. वे अपनी स्थिति की वजह से समाज से अलग-थलग भी महसूस कर सकते हैं. यह भावनाएं पुरुषों और महिलाओं, दोनों में देखी गयी है जो इंगित करतीं हैं कि निःसंतानता से संबंधित धारणा और ज्ञान में कुछ बदलाव आया है.

2016 में फर्टिलिटी एंड स्टेरिलिटी नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि अध्ययन किए गए सेम्पल में, महिलाओं में, अवसाद और चिंता के लक्षण क्रमशः 56 प्रतिशत और 76 प्रतिशत व्याप्त हैं और पुरुषों में यह अनुपात क्रमशः 32 प्रतिशत और 61 प्रतिशत है. प्रजनन क्षमता में जटिलताओं वाली महिलाओं द्वारा अनुभव किए गए मानसिक संकट को उन लोगों के समान पाया गया जो कैंसर और उच्च रक्तचाप के रोगी है.

इससे निःसंतानता वश, महिलाओं में अपने परिवार और दोस्तों द्वारा दिए गए दबाव,  स्वयं के माँ बनने की इक्षा साथ ही दीर्घकालिक बीमारी से उत्पन तनाव , इन सभी बातो का पता चलता है जिसका वे हर समय सामना करतीं हैं. इसके अलावा वह लोग जो दवा, एआरटी, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ), अत्यादि द्वारा निःसंतानता के उपचार का विकल्प चुनते हैं, वे वित्तीय बोझ और प्रक्रिया की सफलता में अनिश्चितता के कारण तनाव महसूस करते हैं.

SARS-CoV-2 नोवेल कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण ऐसे व्यक्तियों की स्थिति को और जटिल बना दिया है. कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका में 20 से 45 वर्ष की आयु की महिलाओं पर एक अध्ययन किया गया जिनका प्रजनन उपचार हो रहा था , जिसमें कोरोना वायरस की वजह से 86 प्रतिशत में उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव देखा. इस महामारी ने महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खराब किया है और  इन दोनों का प्रजनन स्वास्थ्य के साथ सीधा संबंध भी है. यह महत्वपूर्ण है कि महिलाओं को अब उनके हिस्से का आराम और मानसिक शांति मिले, ताकि आने वाली पीढ़ियां मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें.

आज, विशेष रूप से यह जरूरी है कि मरीजों को न केवल उनके प्रजनन स्वास्थ्य के संदर्भ में बल्कि उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी परामर्श दिया जाए. जाहिर है फर्टिलिटी चिकित्सा को निःसंतान दम्पति  के उपचार में श्रेष्ठता के साथ साथ उनके मानसिक तनाव के उपचार मे भी निपूर्ण बनना होगा.

मेरी स्किन बहुत औयली है और स्किन पर ऐक्ने है, ऐसे में क्या करूं?

सवाल

मेरी स्किन बहुत औयली है. गरमी आ चुकी है और मेरे चेहरे पर ब्लैकहैड्स और ऐक्ने शुरू हो गए हैं. मुझे डर लग रहा है कि कहीं ऐक्नों के दाग मेरे फेस पर न पड़ जाएंमुझे बताइए कि मैं क्या करूं

 जवाब

गरमियों में स्किन ज्यादा औयल प्रोड्यूस करती है और उस के ऊपर धूलमिट्टी व गंदगी मिल कर ब्लैकहैड्स बन जाते हैं. अगर इन्हें निकाला न जाए तो इन में इन्फैक्शन हो कर ऐक्नों में तबदील हो जाते हैं. सब से ज्यादा जरूरी है कि चेहरे को साफ रखा जाए. अगर ऐक्ने नहीं हैं सिर्फ ब्लैकहैड्स हैं तो फेस पर रोज स्क्रब करने से ऐक्ने होने के चांसेज कम हो जाते हैं और अगर ऐक्टिव ऐक्ने हो चुके हैं तो स्किन टोनर से फेस को साफ करती रहें. औयली स्किन के लिए घर में ही स्किन टोन बनाया जा सकता है.

नीम के पत्तों को धो कर पानी में डाल कर उबालने के बाद जब पानी वनथर्ड रह जाए तो उसे छान लें और फ्रिज में रख दें. इसे 1 बोतल में डाल कर फेस पर स्प्रे करती रहें. यह एक बहुत ही अच्छा टोनर है जिस से आप की स्किन साफ भी होती है और टोन भी होती है, साथ में ऐक्ने भी कम होते हैं. चकले पर 2 बूंदें दूध की डाल कर लौंग घिस लें और उसे ऐक्टिव ऐक्नों पर दिन में 2 या 3 बार लगाएं. इस से ऐक्ने निकलने भी कम हो जाते हैं.

ज्यादा मीठा खाने से बचें. जब भी आम खाएं तो साथ में ठंडी लस्सी जरूर पीएं. गरमियों में आम खाने की वजह से भी ऐक्ने बढ़ जाते हैं. गरमियों में खूब पानी पीएं. नीबू पानी भी पीती रहें.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा  
पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभाई-8रानी झांसी मार्गनई दिल्ली-110055.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

भोपाल में सस्ते शॉपिंग के लिए बेस्ट स्ट्रीट हब

अपनी मनपसंद चीजे सस्ते में खरीदना हर किसी को पसंद आता है. अगर आपको यह पता हो की आपके घर से 50 किलोमीटर की दूरी पर घर सजाने के लिए सामान, खाने के लिए लजीज स्ट्रीट फ़ूड, कपड़ा आदि चीजें सस्ते दाम पर मिल रही हैं तो कोई भी शॉपिंग के लिए पैर अपने आप वहाँ पहुंच ही जाता है. ऐसे में भोपाल शहर में भी ऐसे कई स्ट्रीट मार्केट्स हैं जो सस्ती-सस्ती चीजों के लिए पूरे मध्य प्रदेश में फेमस हैं. इन मार्केट्स में सिर्फ स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग भी खरीददारी करने के लिए आते हैं.

न्यू मार्केट 

भोपाल शहर का न्यू मार्केट काफी लोकप्रिय मार्केट है, इसे मिनी बाम्बे भी कहते है. यहाँ पर कपड़ो की लेटेस्ट फैशन से लेकर पारम्परिक ट्रेडिशनल वेस्टर्न और इंडो वेस्टर्न सस्ते और महंगे मिल जाएंगे इसके साथ ही लेडीज़ बैग फुटवियर्स ज्यूलरी की भी वेराइटी उपलब्ध है.

बिट्टन मार्केट( बोर्ड कालोनी के पास)

बिट्टन मार्केट भोपाल शहर का सबसे प्राचीन और फेमस स्ट्रीट मार्केट माना जाता है. अगर आप अपने घर को सजाने के लिए सामान खरीदना चाहते हैं तो फिर आपको यहां ज़रूर आना चाहिए. यह मार्केट बेकरी के सामान के लिए भी सस्ती है और शहर की सस्ती सब्ज़ी मंडी भी यहां लगती हो यहां से आप सस्ते इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स भी खरीद सकते है. बिट्टन मार्केट लेटेस्ट ट्रेंडी बूट्स के लिए भी जाना जाता है. इस मार्केट में शॉपिंग के साथ-साथ स्ट्रीट फ़ूड का स्वाद चखना न भूलें.

चौक बाजार ओल्ड भोपाल

चौक बाजार एक भोपाल का लोकप्रिय मार्केट है। यह मार्केट उन लोगों के बीच काफी फेमस है जो सस्ते में चंदेरी साड़ी, मखमली पर्स, कुर्ती, टी-शर्ट, जींस आदि ड्रेस खरीदना चाहते हैं. घर की सजावट के लिए भी कई चीजों को आप बहुत कम दाम में शॉपिंग कर सकते हैं. हैंडीक्राफ्ट के लिए भी यह मार्केट लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है. कई लोगों का मानना है बहुत कम दाम पर सेकंड हैंड सामान भी यहां मिल जाते हैं. चौक बाजार में भोपाल से ही नहीं आस पास के लोग भी खरीददारी करने के लिए आते है.

हबीबगंज मार्केट

भोपाल शहर में आप किफायती दामों पर फैशनेबल कपड़े या फैशनेबल फुटवियर खरीदना चाहते हैं तो फिर आपको हबीबगंज मार्केट को ज़रूर एक्सप्लोर करना चाहिए. सड़क किनारे हजारों ऐसी दुकाने लगी होती हैं जहां से आप टी-शर्ट, जींस आदि ड्रेस खरीद सकते हैं.

इस मार्केट में सिर्फ फैशनेबल ड्रेस ही नहीं बल्कि सस्ते हैंड बैग और हैंडीक्राफ्ट के सामान भी कम दाम पर मिल जाते हैं। कहा जाता है कि यह मार्केट देशी मसालों के लिए फेमस है.

लूट सके तो लूटो

धर्म एक लूट का धंधा है, यह तो हम अरसे से कह ही रहे हैं पर हर अंधभक्त यह जानता है कि धर्म के नाम पर वह पगपग पर लुटता है और फिर भी उस का ब्रेनवाश इस कदर किया जाता है कि धर्म में लूट को भाग्य का फल मानता है और कहीं पूजापाठ के बाद उसे कोई लाभ हो जाए तो वह धर्म का कमाल मानता है.

चारधामों का प्रचार हाल में खूब जोरशोर से किया गया है और लाखों धर्मांधों को पर्यटन और पूजापाठ के दोहरे गुण गिना कर उन्हें इन स्थलों पर भेजा जा रहा है. अब पता चला है कि चारधाम के नाम पर लूट बाकायदा कंप्यूटर विज्ञान के साथ होने लगी है और अंतर्यामी चारधामों के देवता इसे रोकने में हमेशा की तरह असफल हैं.

साइबर ठगों ने चारधामों की यात्राओं की बुकिंग करने के लिए फर्जी वैबसाइटें बना रखी हैं जो गूगल को पैसे देने पर सब से ऊपर आ जाती हैं. लोग इन वैबसाइटों पर हर तरह की सुविधा, पक्की बुकिंग, टाइम, दाम, जगह जब पाते हैं तो उन्हें विश्वास हो जाता है और नैटवर्किंग या क्रैडिट कार्ड से भुगतान कर डालते हैं.

ये शातिर लोग हैलिकौप्टर बुकिंग, मंदिर टिकट बुकिंग, ट्रैवल बुकिंग, होटल बुकिंग, पंडित बुकिंग, स्वास्थ्य सेवा बुकिंग करते हैं और पैसे पहले रखा लेते हैं. शुरू में इन्हें सेवा लेने के जम कर फोन भी आते हैं और एक बार पैसे खाते से गए नहीं कि सन्नाटा छा जाता है. बेईमानीईमानदारी का चोलीदामन का साथ है. दोनों साथ चलते हैं पर जिस धर्म को जीवन को सुधारने, शराफत सिखाने, कल्याण करने और लक्ष्मी बरसाने वाला कह कर रातदिन प्रचारित किया जाता है वहीं पहले कदम पर लूट होनी शुरू हो जाए तो आश्चर्य तो नहीं लगता पर धर्म की पोल जरूर खोलता है.

धर्म का बाजार लूटता है. दुनियाभर में भव्य चर्च, मसजिदें, बौध बिहार, गुरुद्वारे, मंदिर उस चंदे और दान से बने हैं जो काल्पनिक वादों के बल पर वसूला गया है. हर धर्म में पोल ही पोल हैं और इसीलिए हर धर्म पोल खोलने को ईशनिंदा कहता है और राजाओं व सरकारों को पटा कर ईशनिंदा को धार्मिक भावनाएं भड़काने का नाम दे कर अपराध घोषित कर रखा गया है.

जो वैबसाइटें बेईमानी कर के पैसा लूट रही हैं वे असल में तो चंदा और दान ही जमा कर रही हैं. क्व10 हजार चढ़ाओ अवश्य संतान होगी. अदालत में केस डालेंगे, शेयरों के दाम बढ़ेेंगे, जल्दी शादी होगी और हैलिकौप्टर बुकिंग मिलेगी, टैक्सी स्टेशन पर खड़ी मिलेगी, गाइड हर जगह मिलेगा के  झूठों में आखिर अंतर क्या है. न पहले मामले में कुछ मिलता है न दूसरे में. धर्मांध तो खोएगा ही, चाहे मूर्ति के आगे खोए या मूर्ति के असलीनकली एजेंट के आगे.

वसीयत: भाग 3- क्या अनिता को अनिरूद्ध का प्यार मिला?

इस में चेतना को सजग रखने की बात कही गई है. दृष्टि का केवल एक ही जीवन पर केंद्रित रहना किसी छलावे से कम नहीं है और इंसान ताउम्र यही दुराग्रह करता रहता है कि उस की मृत्यु एक अंत है. अनीता चाहे मृत्यु को कितना भी बौद्धिक दृष्टिकोण से देख रही थीं, लेकिन वे अंदर से सिहर जातीं, जब भी उन्हें खयाल आता कि यह सुंदर देह वाला उन का प्रेमी 2-3 महीने से ज्यादा का मेहमान नहीं है.

लेकिन अनीता सशक्त महिला थीं, किसी दूसरे को स्नेह और करुणा देने के लिए व्यक्ति को पहले अपने भीतर से शक्तिशाली होना पड़ता है और वे तो भावनात्मक तौर पर हर दिन मजबूत और परिपक्व हो रही थीं. अनिरुद्ध की हालत खस्ता थी लेकिन अनीता के साथ के कारण वह जीवंत था. पलपल करीब आती मृत्यु को साक्षी भाव से देख रहा था जैसा अनीता उसे उन दिनों सिखा रही थीं.

एक शाम सहसा अनिरुद्ध ने अनीता का हाथ पकड़ लिया और अपने पास बैठने को बोल दिया. यह कुछ अटपटा सा था क्योंकि उन दोनों के रिश्ते में कभी इतनी अंतरंगता नहीं थी.  ‘‘तुम अपना ध्यान रखना मेरे जाने के बाद,’’ कह वह बच्चे की तरह अनीता से लिपट गया. अनीता में वात्सल्य से ले कर रति तक के सब भाव उमड़ने लगे.

दोनों मौन में चले गए. उन के स्पर्श एकदूसरे में घुलते रहे. अंधेरा उतर आया था. अंधकार, मौन और प्रेम उन दोनों को अभिन्न कर रहा था. सभी विचार और तत्त्व विलीन हो रहे थे और केवल सजगता बची हुई थी. केंद्रित, शुद्ध, निर्दोष.

अगले दिन अनिरुद्ध की तबीयत काफी बिगड़ गई. उस के पिता और अनीता उस को फिर से अस्पताल ले गए. रास्तेभर अनीता अनिरुद्ध से अस्पष्ट और खंडित वार्त्तालाप करती रहीं, ‘‘जाना मत अनिरुद्ध. मेरे लिए रुक जाओ.’’ मगर हुआ वही जो होना तय था.

अनिरुद्ध चला गया. अगली सुबह अनिरुद्ध का अंतिम संस्कार कर दिया गया. अनीताजी का गला रुंधा हुआ था. अनिरुद्ध के पिता 4 साल पहले अपनी पत्नी को खो चुके थे और अब बेटा भी… 1 हफ्ता बीत चुका था. अनीता किसी से कुछ बोल नहीं पाईं और आंसू छिपाती हुईं उस कमरे में चली जातीं, जहां अनिरुद्ध रहता था.

उस की तसवीर के सामने खड़ी हो कर अनीता के सब्र का बांध टूट जाता और वे बेतहाशा रोने लगतीं.  एक सुबह अनीता शिमला वापस जाने की तैयारी कर रही थीं. इतने में अनिरुद्ध के पिता उन के कमरे में आ गए और बोले, ‘‘बेटी, सोच रहा हूं किसी युग में तुम ऋषिपुत्री या तिब्बती योगिनी रही होगी.

नारीमन की अंतरंग तरंगों में बहने के लिए संसार को विकास क्रम की एक लंबी यात्रा पूरी करनी है अभी, तुम स्त्रियां किस आयाम में रहतीं. संभव कर लेतीं तुम लोग असंभव को भी. इतनी बड़ी बीमारी के बावजूद मेरा बेटा बिना कष्ट के बहुत शांति से अपनी अगली यात्रा पर चला गया.

सम्यक ज्ञान का वह मानदंड जहां जाने वाले की अनुपस्थिति भी उपस्थिति बन जाती है और समस्त प्रयोजनों की स्वत: सिद्धि बन जाती… काश, मैं वक्त रहते समझ पाता तुम दोनों के अव्यक्त संवाद तो आज,’’ उन का गला भर आया. कुछ संभल कर वे फिर बोले, ‘‘तुम ने जो अनिरुद्ध के लिए किया वह कोई और नहीं कर सकता था.

कोई शब्द ऐसा नहीं जो धन्यवाद कर सकूं. मैं अपनी सारी संपत्ति तुम्हारे नाम कर रहा हूं. वकील साहब नई वसीयत ले कर नीचे आ गए हैं, उन से आ कर मिल लो.’’ अनीता सिसक उठीं. उन्हें किसी सांसारिक जीवन की वसीयत की जरूरत नहीं थी.

उन्हें अनिरुद्ध वसीयत में मिल चुका था, पूर्णरूप से अविभाज्य, पूरी तरह उपस्थित. उस का प्यार, उस की यादें अनीता की अंतर्जात पारदर्शी प्रभा को अवलोकित कर रही थीं. यह संपूर्ण प्राचुर्य का मामला था, जो द्वैत सीमाओं और अंतरिक्ष से भी विस्तृत था.

Film review: ‘‘जरा हट के जरा बच के- अहम मुद्दे को उठाने के बावजूद निराश करती…..’’

रेटिंगः पांच में से डेढ़ स्टार

निर्माताः जियो स्टूडियो और मैडॉक फिल्मस

लेखकः लक्ष्मण उतेकर, मैत्रेयी बाजपेयी और रामिज इल्हाम खान

निर्देशकः लक्ष्मण उतेकर

कलाकार: विक्की कौशल,सारा अली खान, राकेश बेदी, सुष्मिता मुखर्जी, इनामुल हक, नीरज सूद, शारिब हाशमी व अन्य

अवधि: दो घंटे 12 मिनट

2007 में ‘‘खन्ना एंड अय्यर’’ से बतौर कैमरामैन कैरियर की शुरूआत करने वाले लक्ष्मण उतेकर बाद में ‘इंग्लिश विंग्लिश’,‘डिअर जिंदगी’,‘हिंदी मीडियम’ और ‘ 102 नॉट आउट’ में बतौर कैमरामैन काम करते नजर आए. इस बीच उन्होने दो मराठी फिल्मों ‘टपाल’ व ‘लालबागची राणी’ का निर्देश किया.

2109 में उन्होने हिंदी फिल्म ‘लुका छिपी’ का निर्देशन किया. फिर ‘मिमी’ निर्देशित की. अब वह ‘जरा हटके जरा बच के ’’ लेकर आए हैं. इस फिल्म में विक्की कौशल और सारा अली खान की जोड़ी है.बतौर निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने फिल्म ‘‘लुका छिपी’’ में ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने वाले कपल की कहानी पेश की थी,जो कि अपने माता पिता को झांसा देने के लिए नकली शादी करते हैं. अब उन्होने नई फिल्म ‘‘जरा हटके जरा बच के’’ में ऐसे शादीशुदा जोड़े की काहनी बयां की है,जो कि मकान के लिए तलाक ले लेता है. उनके माता पिता को सिर्फ यह पता है कि बेटे ने बहू को तलाक दे दिया. मजेदार बात यह है कि ‘जरा हटके जरा बचके’ में मकान के लिए तलाक का नाटक करने वाले विक्की कोशल ने नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही फिल्म  ‘‘लव पर स्क्वायर फुट’’ में मकान के लिए सुविधाजनक शादी करते हैं. मतलब इंसानी रिश्ते और विवाह संस्था इतनी कमजोर है कि ‘मकान’ की अहमियत बढ़ गयी है. तीन तीन लेखकों ने मिलकर फिल्म का सत्यानाश कर दिया है.वैसे फिल्मकार ने सरकार द्वारा मुफ्त में बांटे जा रहे पक्के मकान पर माफिया की पकड़ की पोल खेली है,पर बात जमी नहीं.

कहानीः

फिल्म की कहानी शुरू होती है इंदौर में अपनीं मां ममता( अनुभा  ) व पिता वेदप्रकाश दुबे(आकाश खुराना ) के साथ रहे रहे कपिल दुबे(विक्की कौशल ) की दूसरी शादी की दूसरी सालगिरह के दिन से.कपिल दुबे ने सौम्या आहुजा(सारा अली खान ) से प्रेम विवाह किया है. इंदौर में मकान छोटा है.अब उसी मकान में कपिल के मामा(नीरज सूद ) व मामी (कनुप्रिया पंडित ) भी रहने आ गए हैं, जिसके चलते कपिल व सौम्या को अपना कमरा मामा मामी को देना पड़ा है और अब उनकी अपनी प्रायवेसी खत्म हो गयी है. छह माह हो गए पर मामा मामी जाने का नाम नही ले रहे. उपर से कपिल व सौम्या के खिलाफ कपिल के माता पिता को भड़काते रहते हैं.कपिल योगा शिक्षक है. सौम्या  एक कोचिंग क्लास में पढ़ाती हैं.कपिल व सौम्या नया मकान खरीदना चाहते हैं,पर पैसे नही है. तभी ‘जन सुविधा आवास योजना’ का पता चलता है,पर कपिल के पिता के नाम पर पक्का मकान है. इसलिए एक एजेंट की सलाह पर कपिल व सौम्या अजीबीगरीब तरीके से तलाक लेते हैं.सौम्या किराए के मकान में रहने जाती है और ‘जन सुविधा आवास योजना’ में आवेदन करती हैं. लाटरी में नाम आ जाए इसके लिए एजेंट भगवानदास (इनामुल हक )को चार लाख रूपए दिए जाते हैं.

अब कपिल,सौम्या का भाई बनकर सौम्या से मिलने जाते रहते हैं.सौम्या जिस कालोनी में किराए के मकान में है,उसके चौकीदार (षाबिर हाषमी  ) को दाल में काला नजर आता है. खैर,कई घटनाक्रम बदलते हैं और फिर सौम्या को ‘‘जन सुविधा आवास योजना’ से मकान मिल जाता है.पर कपिल के मामा का सच जानने के बाद कपिल व सौम्या को शर्मिंदगी होती है और वह प्र्रायष्चित के तौर पर अपना ‘जन सुविधा आवास योजना’ का मकान चौकीदार को देकर पुनः शादी के बंधन में बंध जाते हैं.

लेखन व निर्देशनः

बतौर निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने अपनी पहली फिल्म ‘‘लुका छिपी’’ में संकेत दे दिया था कि उन्हे विवाह संस्था में यकीन नही है. पर अब लग रहा है कि लक्ष्मण उतेकर व उनके लेखकों को भारतीय समाज व रिष्तों की भी समझ नही है. बहरहाल,लक्ष्मण उतेकर ने इस बार अपने आपस पास घट रहे घटनाक्रमों को पकड़ते हुए सरकार द्वारा मुफ्ट में बांटे जा रहे पक्के मकान पर किस तरह माफिया का कब्जा है,इसकी पोल डरते डरते खोलने का प्रयास किया है.

इसे वह सही ढंग से फिल्म में चित्रित नही कर पाए.पर इसके लिए उन्होने बहुत ही अजीबोगरीब कहानी बुनी है,जो कि दर्शकों को निराश करती है. वास्तव में समाज के किसी मुद्दे को उठाना आसान है,पर उस मुद्दे के इर्द गिर्द सही पटकथा लिखना आसान नही होता. फिल्म में अदालत के दृष्य में वकील मनोज(हिमांशु कोहली),वकील की बजाय अपराधी गिरोह का सरगाना/ड्ग माफिया ही नजर आता है. लोगों को हंसाने के मकसद से जिस तरह से अदालत की काररवाही रखी गयी है,वह लेखकों व निर्देशक के दिमागी दिवालियापन का प्रतीक है.

फिल्म का गलत ढंग से किया गया प्रचार भी इस फिल्म को ले डूबा. फिल्म में रोमांस या प्यार तो नही है. कुछ जगहों पर हवश का नजारा मिल सकता है.पर फिल्म को प्रेम कहानी के तौर पर प्रचारित किया गया.लेखक व निर्देशक देश की जनता को मूर्ख समझते हैं. तभी तो जो फिल्म मे नही है,उसी का प्रचार किया गया.ट्रेलर लांच के दौरान एंकर ने जमकर तलाक की तारीफें की थीं. आखिर किस तरह का समाज लेखक व निर्देशक चाहते हैं? सच यह है कि आज की तारीख में अच्छे लेखकों, निर्देषकों के साथ ही फिल्म प्रचारको का घोर अभाव है. फिल्म प्रचारक का काम होता है कि वह फिल्म को इस तरह से प्रचारित करे कि दर्षक के मन में उस फिल्म को देखने की उत्सुकता जागृत हो. हो सकता है कि फिल्म प्रचारक की बात निर्माता व निर्देशक सुनने की बजाय अपने इशारे पर उन्हे नचाते हो.

महज कालेज के मैदान या सिनेमाघरों के अंदर कुछ लोगों के बीच हीरो हीरोइन के नाचने गाने या कुछ संवाद बोलने से  फिल्म के प्रति दर्शकों के मन में उत्सकुता जागृत नही होती. लोग भूल जाते हैं कि सोशल मीडिया युग में इस तरह के प्रचार इवेंट में सेल्फी खींचने भीड़ आती हैं और उस सेल्फी को सोशल मीडिया पर डालकर अपने दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बनने के बाद वह फिल्म को भूल जाता है. यह उसी तरह से होता है जैसे कि चुनाव की सभा में चंद पैसे लेकर इकट्ठा हुई भीड़ वोट नहीं देती.वोट देने के लिए तो जेब से पैसे नही खर्च होेते,पर फिल्म देखने के लिए दर्षक को अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं.फिल्मकार व प्रचारक को फिल्म की विषयवस्तु को इस तरह से प्रचारित करना चाहिए कि दर्शके अपनी जेब से पैसे निकालने के लिए उत्सुक हो जाए.इस तर्ज पर भी ‘जरा हट के जरा बच के’ मार खा गयी. फिल्म का गलत प्रचार भी इसे ले डूबा. इन दिनों हर प्रेस  में कलाकार के फैंस के नाम पर भाड़े के लोग बुलाए जाते हैं,जो कि सिनेमाघर में नकली हंसी हंसने से लेकर फिल्म के बेहतर होने का गुणगान तक करते हैं. सिनेमाघर में मेरे पीछे बैठ कर खूब हंस रहे चार लड़के प्रेस शो खत्म होने के बाद बस में हमारे साथ थे और वह अपने दोस्तांे को फोन पर बता रहे थे कि उनका वक्त बर्बाद हो गया.वह लोग अपना पैसा व वक्त बर्बाद न करे.टिकट खरीदकर इस फिल्म को न देखें…यह है कड़वा सच..

फिल्मकार ने बेवजह के बाथरूम में विक्की कौशल के अर्धनग्न नहाने के दृष्य रखकर लोगों को जबरन हंसाने का प्रयास किया है,पर वह असफल ही रहते हैं.

पूरी फिल्म देखकर अहसास होता है कि फिल्म के तीनो लेखक व निर्देषक देश व समाज से पूरी तरह कटे हुए हैं. उन्हे यही नही पता कि किसी भी सरकारी योजना के मकान को वह यॅूं ही किसी को नही दे सकते. इस तरह की योजना के अंतर्गत मिले मकान के मालिक का नाम नही बदलता. ईएमआई व किश्ते भरना आसान नही होता. मुंबई में म्हाड़ा के मकान जिन्हे पूरा पैसा देकर खरीदा जाता है,उन्हे भी मकान मालिक कई वर्षों तक बेच या दूसरो को नही दे सकता.

किसी भी सरकारी योजना के मकान की चाभी पोस्ट आफिस या कूरियर के माध्यम से नही भेजे जाते. लाभार्थी को स्वयं लेने जाना पड़ता है. फिल्मकार ने फिल्म के अंदर इंदौर की आंचलिक भाषा मालवी व निमाड़ी  में कलाकारों से संवाद बुलवाकर इंदौर शहर को स्थापित करने में सफल रहे हैं.  इसके अलावा फिल्म को एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. पता नही क्यो निर्देशक ने बेवजह कुछ दृष्यों को रबर की तरह खींचा है.फिल्म के संवाद भी प्रभावषाली नही है. शुरू से फिल्म जिस टोन मे चलती रहती है,क्लायमेक्स में जाकर वह टोन एकदम से हास्य से इमोशनल हो जाता है. उन दृष्यों को देखकर दर्षक सोचता है कि क्ष इतनी बड़ी बीमारी की षिकार मामी अपने भांजे के परिवार को बर्बाद करने के लिए हमेशा उल्टा सुल्टा बोलती रह सकती हैं? छह माह के दौरान घर में कोई भांप नही पाया कि वह इस कदर बीमार हैं. उन्हे दर्द तक नही हुआ. यहां आकर निर्देशक व लेखक एक बार फिर बुरी तरह से मात खा जाते हैं.

अभिनयः

विक्की कौशल को यह समझ लेना चाहिए कि अपने शारीरिक सौश ठव का प्रदर्शन कर वह अच्छे अभिनेता नही बन सकते. यदि वह अपने अभिनय कैरियर को डूबने से बचना चाहते है तो उन्हे अपनी अभिनय शैली पर विचार करने के साथ ही बेहतरीन कथानक वाली फिल्में चुननी पड़ेंगी.बड़े बड़े स्टूडियो के नाम के झांसे या निर्देशक की चिकनी चुपड़ी बातों से उन्हे बचना होगा.

चेहरे पर काला बिंदू चिपका लेने या दो बड़े दांत चिपका लेने से वह अच्छे कलाकार कभी नही बन सकते. विक्की कौषल को अभिनेता गुलषन ग्रोवर से कुछ सीखना चाहिए कि नकली बड़े दांतों का उपयोग किस तरह से कर अपने अभिनय का जलवा विखेरते थे. यूं तो यह फिल्म सारा अली खान के किरदार सौम्या के ही इर्द गिर्द घूमती है. विक्की का कपिल का किरदार तो महज उसका सहायक ही है.जब शुरूआत में साड़ी पहने हुए बिंदी लगाए सौम्या के किरदार  में सारा अली खान परदे पर नजर आती हैं,तो अहसास होता है कि इसमें सारा अली खान के अभिनय का जादू नजर आएगा.मगर चंद दृष्यों बाद यह भ्रम दूर हो जाता है.वह साड़ी में न सिर्फ सुंदर बल्कि ग्लैमरस भी नजर आती हैं. मगर अंतरंग दृष्यों मेें उनका अभिनय शून्य है. गुस्सा तो वह हो ही नही सकती. उनके चेहरे पर गुस्से के भाव आते ही नही है.

सौम्या के पिता आहुजा के किरदार में राकेश बेदी और मां के किरदार मे सुष्मिता मुखर्जी अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं.सरकारी मकान दिलाने वाले एजेंट भगवानदास के किरदार में इनामुल हक के अभिनय में वह चमक नजर नही आती,जिसे वह अपनी पिछली फिल्मों में दिखा चुके हैं.वाचमैन के किरदार में षारिब हाषमी का अभिनय ठीक ठाक है. कपिल की मामी के किरदार में कनुप्रिया पंडित जमी हैं.मगर मामा के किरदार मंे नीरज सूद निराष करते हैं.वकील मनोज के किरदार में हिमांषु कोहली ने महज ओवर एक्टिंग की है.उन्हे समझना चाहिए कि अदालत में अंडरवर्ल्ड सरगना की तरह दहाड़ना अभिनय नही है.

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