Tips For Sex Life : सैक्स और्गेज्म बनाएं बेहतर

Tips For Sex Life : शादी के कुछ ही वर्षों के बाद अकसर महिलाओं के स्वभाव में काफी हद तक यह परिवर्तन देखने को मिलता है कि वे गुस्सैल और चिड़चिड़ी हो जाती हैं. उन के बातबात पर गुस्सा होने और स्वभाव में चिड़चिड़ेपन का कारण सैक्स लाइफ में असंतुष्टि भी हो सकती है. सफल सैक्स और और्गेज्म को ले कर किए गए कई सर्वों में यह बात सामने आई है कि एक रात में दुनियाभर में जितने भी कपल सैक्स करते हैं उन में से केवल 20% पुरुष ही अपनी महिला साथी को और्गेज्म तक पहुंचा पाते हैं. बाकी की 80% महिलाएं अधूरे सैक्स का आनंद ले कर यों ही मन मसोस कर सो जाती हैं.

चिंता की बात यह है कि वे अपनी यौन संतुष्टि का जिक्र कभी अपने पुरुष साथी या महिला मित्र से भी नहीं करतीं. यदि कभी उन का पार्टनर उन से यह पूछता है कि मजा आया? तो जवाब में वे शरमाते हुए हां में सिर हिला देती हैं. हां में सिर हिलाने के अलावा उन के पास कोई औप्शन भी नहीं होता. सैक्स संबंध के दौरान अकसर पति अपनी संतुष्टि को पत्नी की संतुष्टि मान लेने की भूल कर देता है, जिस का बुरा नतीजा यह होता है कि सैक्स के आनंद से वंचित पत्नी चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो जाती है.

क्यों जरूरी है फोरप्ले

स्त्रीपुरुष के यौन अंगों की संरचना ही इस तरह है कि एक पुरुष के लिए संतुष्टि तक पहुंचना बहुत आसान है लेकिन अपने साथी को पहुंचाना एक साधना से कम नहीं. एक महिला को चरमोत्कर्ष तक पहुंचने के लिए पुरुष से ज्यादा वक्त लगता है. इतना आनंद उसे हार्ड सैक्स (इंटरकोर्स) में नहीं आता जितना सौफ्ट सैक्स (फोरप्ले) में आता है और जब तक अच्छी तरह से फोरप्ले नहीं होगा तब तक उसे संतुष्ट करना आसान नहीं है. लेकिन इतना वक्त कोई उसे देना ही नहीं चाहता.

जब आदमी को अपने शरीर की उत्तेजना को बाहर निकाल वह करवट बदल कर सो जाता है. पत्नी भी इस रोज के अधूरे खेल की आदी हो चुकी होती है. वह इस काम को भी नित्य कार्यों की तरह फटाफट निबटाने की कोशिश करती है. सैक्स में पति का साथ नहीं देती फिर पुरुष अपने दोस्तों से बात करते हैं कि मेरी पत्नी ठंडी है सैक्स ऐंजौय नहीं करती.

हर पुरुष हर बार स्खलित होता है लेकिन हर औरत हर बार स्खलित नहीं होती. एक सर्वे के अनुसार हर महिला अपने वैवाहिक जीवन में 50% से भी कम बार क्लाइमैक्स तक पहुंचती है, जिस का कारण केवल ये नामर्द पुरुष हैं. पत्नी यदि एक बार भी सैक्स को मना कर दे तो पति को गुस्सा आ जाता है लेकिन पत्नी की सहनशक्ति देखो, वह रोज रात को अधूरी सो जाती है लेकिन कभी अपने पति की नामर्दानगी को ले कर शिकायत तक नहीं करती.

विवाह के शुरुआती दिनों में सभी ऐसा सोचते हैं कि पूरी रात जीजान से जुटे रह कर ही पत्नी को संतुष्ट कर सकते हैं. मगर एक नवविवाहिता को सैक्स में चरम आनंद तक ले जाना ठंडे तवे पर रोटी सेंकने जैसा है क्योंकि इस वक्त युवती को मालूम ही नहीं चलता कि वह सैक्स के दौरान कितनी बार पिघली और कितनी बार फिर से तैयार हो गई? उसे यह बात

समझने के लिए महीनों लग जाते हैं. कभीकभी तो कुछ साल भी. हकीकत यह है कि पार्टनर की सहमति, तालमेल और एकदूसरे की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर पूरी तैयारी के साथ किया गया एक बार का सैक्स ही संतुष्टि करा देता है. इस के लिए पूरीपूरी रात लिप्त रहने की जरूरत नहीं है.

विवाहेतर संबंधों की शुरुआत

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि संबंधों में यह बदलाव स्वाभाविक है. शादी के आरंभिक सालों में पतिपत्नी एकदूसरे के प्रति जो खिंचाव महसूस करते हैं, वह समय के साथ खत्म होता जाता है और तब शुरू होती है रिश्तों में उकताहट. आर्थिक, पारिवारिक और बच्चों की परेशानियां इस उकताहट को बढ़ावा देती हैं. फिर इस उकताहट को दूर करने के लिए पतिपत्नी बाहर कहीं सुकून तलाशते हैं जहां उन्हें फिर से अपने वैवाहिक जीवन के आरंभिक वर्षों का रोमांच महसूस हो. यहीं से विवाहेतर संबंधों की शुरुआत होती है.

रिसर्च से पता चलता है कि अलगअलग लोगों में इन संबंधों के अलगअलग कारण हैं. किसी से भावनात्मक जुड़ाव, सैक्स लाइफ से असंतुष्टि, सैक्स से जुड़े कुछ नए अनुभव लेने की लालसा, वक्त के साथ आपसी संबंधों में प्रेम का अभाव, अपने पार्टनर की किसी आदत से तंग होना और एकदूसरे को जलाने के लिए ऐसा करना विवाहेतर संबंधों के कारण होते हैं.

स्त्री के प्रति दोयमदर्जे की सोच

भारतीय संस्कृति में स्त्रियों के प्रति दोयमदर्जे का व्यवहार आज भी देखने को मिलता है. सामाजिक परंपराओं की गहराई में स्त्रीद्वेष छिपा है और यह पीढि़यों से महिलाओं को गुलाम से अधिक कुछ नहीं मानता है. जहां उन्हें ढाला जाता है कि वे अपने शरीर के आकार से ले कर निजी साजसज्जा तक के लिए अनुमति लें. जो महिला अपने ढंग से जीने के लिए परंपराओं और वर्जनाओं को तोड़ने का प्रयास करती है उस पर समाज चरित्रहीन होने का कलंक लगा देता है.

पुरुष को घर में व्यवस्था, पत्नी का समय व बढि़या तृप्तिदायक खाना, सुखचैन का वातावरण और देह संतुष्टि चाहिए. मगर कभी पुरुष उस की सुखसुविधाओं और शाररिक जरूरतों का उतना ख्याल नहीं रखता. पत्नी से यह अपेक्षा जरूर की जाती है कि वह पति की नैसर्गिक चाहें पूरी करती रहे.

सैक्स के जानकारों के अनुसार, विवाहेतर संबंधों को रोकने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. यदि आपसी रिश्तों की गरमाहट कम हो गई है तो रिश्तों को पुराने कपड़े की तरह निकाल कर नए कपड़ों की तरह नए रिश्ते बनाना समस्या का हल नहीं है. अपने पार्टनर को सम?ाने के कई तरीके हैं. उस से बातचीत कर समस्या को सुल?ाया जा सकता है. सैक्स को ले कर की गई बातचीत, सैक्स के नएनए तरीके प्रयोग में ला कर एकदूसरे की शारीरिक संतुष्टि का ध्यान रख कर विवाहेत्तर संबंधों से बचा जा सकता है.

फोरप्ले से और्गेज्म तक का सफर

एक नामी फैशन मैगजीन के सर्वेक्षण के अनुसार, महिलाओं के और्गेज्म को ले कर कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं. इस औनलाइन शोध में 18 से 40 साल की आयु 3300 महिलाओं से प्रश्न किए गए जिन में 67% महिलाओं ने माना कि वे फेक और्गेज्म यानी और्गेज्म होने का नाटक करती हैं. 72% महिलाओं ने माना कि उन का साथी स्खलित होने के बाद उन के और्गेज्म पर ध्यान नहीं देता है.

सैक्स को केवल रात्रिकालीन क्रिया मान कर निबटाने से सहसंतुष्टि नहीं मिलती. जब दोनों पार्टनर को और्गेज्म का सुख मिलेगा तभी सहसंतुष्टि प्राप्त होगी. स्त्री और पुरुष का एकसाथ स्खलित होना और्गेज्म कहलाता है. सुखद सैक्स संबंधों की सफलता में और्गेज्म या चरमसुख की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. और्गेज्म पाने में फोरप्ले का रोल अहम रहता है.

पतिपत्नी का एकदूसरे के नाजुक अंगों को चूमने, मसलने और सहलाने से आनंद की अनुभूति होती है. होंठों को मुंह में रख कर चूसने, स्तनों को दबा कर निप्पल पर जीभ फेरने तथा गरदन, आंख, कान, होंठों को चूमने से दिलोदिमाग में सैक्स की तरंगें प्रवाहित होने लगती हैं. फोरप्ले के दौरान होने वाला स्राव जब महिला और पुरुष के यौन अंगों को अच्छे ढंग से गीला कर दे तभी सैक्स की ओर बढ़ना चाहिए. कभीकभी और्गेज्म प्राप्त न होने की स्थिति में जो पहले स्खलित हो जाए उसे पार्टनर के स्खलित होने तक यौन अंगों को हिला कर सहयोग करने से सहसंतुष्टि का सुख मिल जाता है.

सैक्स को शारीरिक तैयारी के साथसाथ मानसिक तैयारी के साथ भी किया जाना चाहिए जो दोनों की आपस की जुगलबंदी से ही संभव है. सैक्स करने से पहले की गई सैक्स से संबंधित चुहल और छेड़छाड़ भूमिका बनाने में सहायक होती है. कमरे का वातावरण, बिस्तर की सजावट, अंडरगारमैंट्स जैसी छोटीछोटी बातें सैक्स के लिए उद्दीपक का कार्य करती हैं.

रिश्तों में बनाएं गरमाहट

सैक्स के दौरान घरपरिवार की समस्याएं बीच में नहीं आनी चाहिए. सैक्स संबंध के दौरान छोटीछोटी बातों को ले कर की जाने वाली यही शिकायतें संबंध को बोझिल बनातीं और सैक्स के प्रति अरुचि भी उत्पन्न करती हैं. सैक्स के लिए नए स्थान और नए तरीकों के प्रयोग कर संबंध को प्रगाढ़ बनाया जा सकता है. सैक्स की सहसंतुष्टि निश्चित तौर पर दांपत्य जीवन को सफल बनाने के साथसाथ विवाहेतर संबंधों को रोकने में भी मददगार साबित हो सकती है.

Hindi Folk Tales : रिश्ते की अहमियत – क्या निकिता और देवेश एक हो पाए

Hindi Folk Tales : सुबहके समय जब मेड आती और घंटी बजाती तो  निकिता नींद से जागती थी पर आज मेड के छुट्टी होने के कारण सुबह उस की नींद देर से खुली.

उनींदीं आंखों से सामने दीवार घड़ी में समय देखा 8 बज गए थे. निकिता हबड़बड़ी में उठी कि मेड आने पर तो 7 बजे उठना ही पड़ता था, सारे काम आराम से निबट जाते थे, लेकिन अब सब कैसे मैनेज होगा? झाड़ूपोंछा, बरतन उस पर देवेश के लिए लंच भी बनाना है.

बेटे मयंक की औनलाइन क्लास का भी समय हो रहा है. उसे नाश्ता भी देना है. लंच में तो आज उसे पिज्जा खाना था. मैं तो कैंटीन से ले कर कुछ खा लूंगी, लेकिन देवेश का क्या करूं. उन्हें तो घर का खाना ही चाहिए. मन में सोचा, देवेश को बोलती हूं कि आज लंच के समय औफिस की कैंटीन से कुछ ले कर खा लेंगे.

यही सोचतेसोचते निकिता ने देवेश को आवाज लगाई, लेकिन रिस्पौंस नहीं मिला. सोचा शायद सुना नहीं होगा. निकिता ने फिर आवाज लगाई. नो रिस्पौंस.

निकिता को गुस्सा आ गया कि सारा काम  पड़ा है और ये जनाब हैं कि सुन ही नहीं रहे हैं जैसे कानों में रूई ठुंसी हो.

वह लिविंगरूम की ओर गई. अंदर जाने पर देखा यह क्या? सारा कमरा ही अस्तव्यस्त है, लिविंगरूम के वार्डरोब से आधे कपड़े अंदर और आधे बाहर बिखरे पड़े हैं और देवेश फोन पर किसी से बात कर रहे हैं.

यह सब देख निकिता ने हाथ झटक तलखी में बोला, ‘‘देवेश यह सब क्या है?’’

देवेश ने निकिता की ओर ध्यान नहीं दिया और फोन पर ही बात करते रहे. जवाब नहीं मिल ने पर निकिता ने फिर बोला, लेकिन देवेश फोन पर ही लगे रहे.

फिर तो निकिता भड़क गई और कहा,

‘‘मैं कब से बोले जा रही हूं और आप हैं कि

फोन पर लगे हैं. अरे, हूंहां कुछ तो बोलो,’’ निकिता ने गुस्से से देवेश के हाथ से फोन छीन लिया.

देवेश को यह अच्छा नहीं लगा. गुस्से में बोला, ‘‘यह क्या बतमीजी है?’’

‘‘अच्छा यह बतमीजी है और मैं जो इतनी देर से भुंके जा रही हूं उस का जवाब देने का मतलब नहीं? वह तहजीब है? मुझ से कह रहे हैं यह क्या बतमीजी है?’’

‘‘मैं फोन पर बात कर रहा था. दिख नहीं रहा था तुम्हें? इतनी भी तसल्ली नहीं रही तुम में?’’

‘‘दिख रहा था, लेकिन हूंहां तो.’’

‘‘बोलो इतनी भी क्या आफत आ गई?’’

‘‘बोलूं क्या? बात तो लंच के लिए करनी थी, लेकिन पहले वार्डरोब और रूम की हालत देखो. अभी 2 दिन पहले ही तो ठीक किया था सब. फिर तुम ने कपड़े इधरउधर फेंक दिए.

‘‘अरे कोई तो काम ढंग से कर लिया करो.’’

देवेश ने फोन म्यूट कर दिया था. उस की फोन पर मीटिंग चल रही थी. उसे औफिस भी जल्दी जाना था.

देवेश को निकिता से ऐसे लहजे की उम्मीद नहीं थी. उसे इस तरह बोलने पर

देवेश भी भड़क गया और बोला, ‘‘यह बात आराम से भी तो की जा सकती थी?’’

‘‘हां, की जा सकती थी, लेकिन सुना जाए तब न.’’

‘‘खबरदार जो कल से मेरी अलमारी को हाथ भी लगाया तो. कर लूंगा अपनेआप सब. सम?ाती क्या हो अपने को,’’ देवेश बोला.

‘‘अजी कल से क्या आज ही से और

अभी से. हाथ नचाते हुए मैं भी तो देखूं,’’

निकिता बोली.

‘‘पता नहीं आज इसे क्या हो गया जो सुबहसुबह ही लड़ने बैठ गई. देखो निकिता अब बहुत हो गया. मेरी जरूरी मीटिंग है और मुझे औफिस जाना है, मेरा मूड मत खराब करो.’’

‘‘तो जाओ न किस ने रोका है. मुझे तो

जैसे औफिस जाना ही नहीं. एक तुम ही हो औफिस वाले.’’

‘‘देखो निकिता मैं एक बार फिर तुम्हें समझ रहा हूं ये जो तुम्हारे मुंह के बोल हैं न

वही दूरियां पैदा कर रहे हैं. अपने बोले गए शब्दों को सुधारो. इन शब्दों का ही हमारे जीवन में ‘अहम’ किरदार है समझ. तुम्हें इतनी सी

बात समझ में क्यों नहीं आती? जहां तक नौकरी की बात है? मैं ने नहीं कहा कि तुम नौकरी करो? यह तुम्हारा अपना शौक था. मैं ने तो तुम्हें सपोर्ट किया और हमेशा से करता आया हूं.’’

इसे सपोर्ट करना कहते हैं जनाब. कपड़े बिखरे पड़े हैं, अखबार कहीं पड़ा है. और तो और बैड पर तौलिया भी पड़ा है. ये सपोर्ट है?’’

देवेश गुस्से से बोला, ‘‘जब देखो डंडा

लिए फिरेगी.’’

‘‘हां मैं तो डंडा लिए फिरती हूं. अभी तक तो लिया नहीं, अब देखना कल से डंडा लिए

ही फिरूंगी.’’

‘‘मैं उस डंडे की बात नहीं कर रहा, अरे मुंह ही तेरा डंडा है.’’

निकिता के तनबदन में आग लग गई, ‘‘क्या कहा तुम ने मुंह ही डंडा

है? तो गूंगी ले आते. देवेश मुझे क्या पागल

कुत्ते ने काटा है? कोई कसर नहीं छोड़ती नीचा दिखाने में.’’

‘‘निकिता पता नहीं मां ने क्या देख कर मेरी शादी तुम से कर दी.’’

‘‘मां को दोष मत दो, तुम्हारी रजामंदी भी थी. तब ही यह रिश्ता हुआ था.’’

‘‘अरे मैं ही निभा रहा हूं तुम जैसी को.’’

‘‘क्या कहा तुम जैसी?’’

‘‘हांहां तुम जैसी?’’

‘‘अच्छा तो अब मैं जनाब के लिए तुम

जैसी हो गई. मेरी तारीफ करते तो मुंह नहीं सूखता था जनाब का. अब इतनी कड़वाहट? चलो कोई बात नहीं, देखना ‘यह तुम जैसी’ क्याक्या कर सकती है. लगता है मुझे भी आज तो औफिस ड्रौप करना पड़ेगा.’’

देवेश ने भी घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘ऊफ, औफिस को देर हो गई,’’ और फिर बार्डरोब से कमीज निकाल कर प्रैस करने लगा कि तभी लाइट चली गई.

‘‘ऊफ, लाइट को भी अभी जाना था,’’ कह कर दूसरी कमीज निकाली तो उस का बटन टूटा था. सूईधागा ढूंढ़ कर बटन लगाया. बटन टांकने के बाद जूते पौलिश किए.

यह सब देख निकिता मन ही मन कुढ़ रही थी. गरदन झटकते हुए बोली कि चलो

कोई बात नहीं करने दो बच्चू को पता तो चले यह ‘तुम जैसी’ क्याक्या कर सकती है.

देवेश के नहाने जाने पर अपनी चिढ़न उतारने के लिए निकिता ने एक ब्लेड ला कर जो बटन देवेश ने टांका था, उस बटन के धागे पर कट लगा दिया और फिर जूतों पर कौलगेट फेर कर मन ही मन हंसने लगी.

देवेश ने बाथरूम से निकल कर शर्ट पहन कर बटन चढ़ाया तो वह हाथ में आ गया. वह बड़बड़ाया कि अरे यह क्या अभी तो मैं ने लगाया था. शायद ठीक से लगा नहीं होगा. और यह

जूतों को क्या हुआ. अभी तो पौलिश किए थे. कहीं यह निकिता ने तो नहीं किया… अच्छा अब समझ में आया.

खैर छोड़ो बेकार में झगड़ा और बढ़ेगा. अब ऐसा करता हूं औफिस फोन कर देता हूं कि आज नहीं आऊंगा मीटिंग रवि अटैंड करेगा.

यह देख निकिता को बहुत मजा आ रहा था. मन ही मन कह रही थी कि बच्चू मेरे संग पंगा लिया तो ऐसे ही होगा. यह ‘तुम जैसी’ बहुत कुछ कर सकती है. मान लो गलती वरना पछताओगे.

बेटे मयंक की औनलाइन क्लास चल रही थी. अंदर से बहुत शोर आ रहा था. वह पढ़ नहीं पा रहा था. मयंक को गुस्सा आ गया. वह गुस्से से बाहर आया और चीखता हुआ सा बोला, ‘‘फिर झगड़ा, बिना झगड़े आप लोगों का दिन नहीं गुजरता, आप दोनों कब समझेंगें? मैं परेशान हो गया हूं मौमडैड. मेरे फ्रैंड्स के पेरैंट्स को देखो कितने प्यार से रहते हैं. मैं गिल्टी फील करने लगा हूं. यह बात मैं आप दोनों को पहले भी बता चुका हूं. आप दोनों की झगड़ते झगड़ते रात होती है और झगड़ते झगड़ते सुबह. कब तक चलेगा ये सब. मेरी पढ़ाई सफर कर रही है मेरे मार्क्स कम आने लगे हैं. आप दोनों को मेरी और मेरी पढ़ाई की चिंता नहीं. कब सोचेंगे मेरे बारे में बोलो,’’ मयंक एक सांस बोलता चला गया.

निकिता ने गुस्से से एक थप्पड़ जड़ दिया, और कहा, ‘‘यह तरीका है पेरैंट्स से बात करने का?’’

मयंक रोंआसा बोला, ‘‘मौम, तरीके की बात तो आप रहने ही दो,’’ और फिर डैड की ओर मुखातिब हो बोला, ‘‘डैड, मैं जानना चाहता हूं आखिर अब क्या हुआ?’’

‘‘बेटे, अपनी मौम से बात करो इस बारे में.’’

‘‘मौम कहती हैं डैड से बात करो, डैड कहते हैं मौम से बात करो. मैं क्या पागल हूं? मौम कुछ बता रही हो या नहीं?’’

‘‘क्यों डैड के मुंह में दही जम गया? कहने में तो कोई कसर नहीं छोड़ी उन्होंने. अंदर जा कर देख कमरे की हालत,’’ कह कर निकिता ने मंयक का झटके से हाथ खींचा और कमरे की ओर ले गई, फिर कहा, ‘‘देख.’’

‘‘ऊफ मौम यह भी कोई तरीका है? मेरे हाथ में भी दर्द कर दिया. मौम, यह बात आराम से भी तो की जा सकती थी. इस बात पर इतना बड़ा हंगामा? वैसे मैं आप को बता दूं कि यह सब मैं ने किया था. मु?ो देर हो रही थी. मैं पहले ही पढ़ाई में पिछड़ रहा हूं, कपड़े नहीं मिल रहे थे, इसलिए यह सब हुआ इस के लिए सौरी. बेचारे पापा गाज उन पर गिरी.’’

‘‘हांहां 2 ही तो बेचारे हैं- एक तुम और एक तुम्हारे पापा.’’

देवेश बोल पड़ा, ‘‘पानी तो आग की गरमी पा कर ही गरम होता है उस का अपना स्वभाव तो ठंडा होता है.’’

‘‘बड़े आए ठंडे स्वभाव वाले. खड़ूस कही के.’’

‘‘मौम, डैड अब बस भी करो. बहुत हो गया. कब तक चलेगा,’’ मयंक सिर पकड़ते

हुए गुस्से से बोला, ‘‘मैं जा रहा हूं मैं अपने

दोस्त स्पर्श के घर. यहां मेरी पढ़ाई हो ही नहीं सकती और न ही मैं इस माहौल में अपने फ्रैंड्स को बुला सकता,’’ और वह आननफानन में हाथ झटकता, पैर पटकता बैग और लैपटौप ले कर चला गया.

देवेश ने आवाज लगाई, ‘‘मयंक बेटा ऐसा मत करो,’’ मगर अब तक मयंक सीढि़यां उतर चुका था.

यह देख निकिता बिना चप्पलें पहने मयंक को आवाज लगाते हुए भागी. उसे पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वह हार गई.

देवेश को ऐसी उम्मीद नहीं थी. वह छटपटा कर रह गया. समझ नहीं पाया कि क्या करूं. कमरे में जा कर तकिए से मुंह ढांप कर रोने लगा. फिर बेचैनी में न्यूज पेपर पढ़ने लगा. पेपर पढ़ने में दिल नहीं लगा. ध्यान दिया तो देखा पेपर ही उलटा पकड़ा हुआ था.

सोचने लगा कि यह क्या होता जा रहा है. बेकार में झगड़ा बढ़ गया. पहले झगड़े होते थे, लेकिन इतने नहीं. इन 10 सालों में हमारी जिंदगी नर्क बन कर रह गई. दिन पर दिन झगड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. नहींनहीं हम अपने उलझे हुए रिश्तों को और नहीं उलझने देंगे. हमारा बेटा सफर कर रहा है.

फिर सोचने लगा कि निकिता भी कहां गलत थी. ठीक ही तो कह रही थी. घर में कितने काम होते हैं. उस पर मेड भी छुट्टी पर थी. उस को भी जौब पर जाना था, बेटे मंयक को भी देखना होता है.

उधर निकिता भी मयंक को जाने से नहीं रोक पाई थी. खीजीखीजी बिस्तर पर जा कर लेट गई और सोचने लगी, यह तो रोज की ही बातें थीं, सबकुछ मुझे ही मैनेज करना होता था. देवेश तो शुरू से ही ऐसे थे. उन्हें घर के काम में हाथ बंटाने की आदत ही कहां थी, फिर आज मुझे इतना गुस्सा क्यों आया? पता नहीं कभीकभी मुझे इतना गुस्सा क्यों आता है.

निकिता को मां के कहे शब्द याद आ गए. मां की दी सीख आज फिर से ताजा हो गई कि बेटी तुम पराए घर जाओगी, बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, हिम्मत मत हारना. मैं जानती हूं, तुम हर हाल में अपनेआप को ऐडजस्ट कर लोगी, धैर्य रखना. एकदूसरे को माफ करना ही, दांपत्य के लिए अच्छा है. अगर कोई बात हो भी जाती है, तो एक बार को चुप रहना, बाद में दिमाग ठंडा होने पर अपनी बात रखोगी तो अच्छा रहेगा. दोनों बोलोगे तो बात बढ़ती जाएगी. ऐडजस्टमैंट बहुत जरूरी है. अपनी प्रौब्लम शेयर करोगी तो दिल जीत लोगी वरना दूरियां बढ़ेंगी. काले बादल कितने भी घने क्यों न हों उन्हें छंटना ही पड़ता है बेटी. हां, लेकिन गलत को बरदाश्त मत करना, वहां कमजोर मत पड़ना.

उस पर मैं ने कहा था कि अरे मां चिंता मत करो, अभी तो मैं तुम्हारे पास ही हूं. मां, मैं तेरी शिक्षा हमेशा याद रखूंगी. फिर निकिता ने अपने से सवाल किया कि मैं मां की दी शिक्षा कैसे भूल गई?

फिर सोचने लगी कि नहींनहीं हम अपने उलझे हुए रिश्ते को और नहीं उल?ाएंगे. एक के बाद एक तसवीरें उस के मानसपटल पर घूम गईं…

हमारे पड़ोस में नए किराएदार आए थे. उन के बेटे थे देवेश. धीरेधीरे पड़ोसियों से घनिष्ठता बढ़ी और आनाजाना शुरू हो गया था. बातोंबातों में पता चला था कि देवेश इंजीनियर थे. वे एमएनसी में एक अच्छी पोस्ट पर थे. अपने मातापिता की अकेली औलाद थे.

उन के पिता बैंक में मैनेजर की पोस्ट पर थे. वे ट्रांसफर हो कर हमारे पड़ोस में आ बसे थे. देवेश बहुत केयरिंग थे. एक बार मेरी मां के बीमार होने पर देवेश ने रातदिन एक कर दिया था. तभी से मेरी मां देवेश को पसंद करने लगी थी. सोचती थी, मेरे लिए देवेश से अच्छा कोई और लड़का हो ही

नहीं सकता. उसी के बाद से मां मुझे शिक्षा देती रहती. मैं भी मन ही मन देवेश को पसंद करने लगी थी.

देवेश के पेरैंट्स भी मुझे पसंद करने लगे थे. बातोंबातों में अंकलआंटी ने मेरे बारे में सारी जानकारी ले कर मेरा मन टटोलना चाहा और कहा कि देवेश ने होस्टल में रह कर पढ़ाई की है बेटी, बाहर रह कर भी उसे काम करने की आदत नहीं पड़ी. वह जब चाहे कपड़े इधरउधर छोड़ देता है.

उस का कहना है कि हम होस्टल में ऐसे ही रहते हैं. वह घर में आ कर 1 गिलास पानी ले कर भी नहीं पीता है. क्या तुम उस के साथ ऐडजस्ट कर पाओगी? नौकरी के साथ घर की जिम्मेदारी निभा पाओगी?

उस समय मेरी हया कुछ कह न पाई और होंठों पर हलकी सी मुसकान तैर गई थी. वह मुसकान ‘हां’ का सबब बनी.

बेकार में इतना सबकुछ हो गया. देवेश को घर के काम करने की आदत ही कहां थी. बस अब और नहीं, बेटा हम से दूर हो रहा है. उस को भी गुस्सा बहुत आने लगा है.

फिर निकिता ने सोचा कि हम अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करेंगे. देखा देवेश कमरा बंद किए हैं.

उधर देवेश के हृदय में अनेक सवाल उठ रहे थे, जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ. वह उठा दरवाजा खोला. देखा दरवाजे के बाहर खड़ी निकिता आंसू बहा रही थी. दोनों की आंखें चार हुईं. निकिता आगे बढ़ी और देवेश को दोनों बांहों में भर कर रोने लगी, ‘‘अब और नहीं देवेश हमारा बेटा नाराज हो कर चला गया. देवेश चलो मयंक को ले आएं.’’

देवेश ने निकिता की गिरफ्त से अपनेआप को हटाया और कहा, ‘‘उस से पहले

मैं तुम से बात करना चाहता हूं. देखो निकिता, पतिपत्नी का रिश्ता एक धागे की तरह होता है. धागा टूटा तो सम?ा लो गांठ पड़ते देर नहीं लगेगी. अभी भी वक्त है, हमारी समझदारी इसी में है कि हम अपने रिश्ते को बचाएं और अपने रिश्ते की अहमियत को समझें.

‘‘कहते हैं कि त्याग और समर्पण से ही आपसी प्यार बढ़ता है. हम यह भूल गए और लड़ाईझगड़े करने लगे. अब जब रिश्ता टूटने की कगार पर हुआ तब हमें समझ आया. हमारी कड़वाहट भी अपनी चरम सीमा तक पहुंच गई. इस में अकेली तुम दोषी नहीं हो. मैं भी उतना ही दोषी हूं. पता नहीं कहां कमी रह गई.’’

निकिता ने देवेश के होंठों पर हाथ रखा  और कहा, ‘‘हम कोशिश करेंगे देवेश, अपने बेजान रिश्ते में जान डालने की. चलो आज फिर से हम एक नई शुरुआत करते हैं. सब बातों को भूल आज से और अभी से अपने परिवार को नए ढंग से सजाते हैं. चलो देवेश हम अपने बेटे मयंक को ले आएं.

Satire : हाय रे क्लीनअप

Satire : शहर के एक मशहूर अखबार में एक ब्यूटीपार्लर विज्ञापन छपा था जिस में कुछ सेवाएं बिलकुल मुफ्त थीं. कुछ भी मुफ्त में मिलना लोगों को बड़ा आकर्षित करता है. प्रीति ने गौर से विज्ञापन को पढ़ा, लेकिन बाल कटवाने को छोड़ कर बाकी कुछ समझ में नहीं आया. मगर अच्छी बात यह थी कि विज्ञापन में जो पता दिया गया था, वह उस के घर के पास ही था. उस ने मन ही मन सोचा कि क्यों न समय निकाल कर वहां चली जाए. मगर यह समय ही तो आज के दौर में बड़ी समस्या है. यह किसी को मिलता ही नहीं. लेकिन प्रीति औफिस में भी लगातार विज्ञापन के बारे में सोचे जा रही थी. तभी मोबाइल बजा. देखा तो फोन आरती का था. वह बोली, ‘‘पेपर देखा क्या? तेरे घर के पास ही है वह ब्यूटीपार्लर, जिस का विज्ञापन निकला है. कल संडे है, चल न चलते हैं.’’

संडे को घर के सारे काम छोड़ कर जाना थोड़ा मुश्किल था मगर फिर भी प्रीति ने आरती को मना नहीं किया और दिए गए पते पर सुबह 10 बजे मिलने का वादा किया. आरती और प्रीति दोनों अखबार में दिए पते पर पहुंच गईं. ब्यूटीपार्लर, जिसे शायद सैलून कहना ज्यादा ठीक होगा, के बाहर बहुत सारी लड़कियां खड़ी थीं. अंदर जा कर रिसैप्शन पर प्रीति ने जानकारी ली, तो पता चला कि कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि बाल काटने वाला कोई भी बंदा फ्री नहीं है. तब कौन सी मुफ्त सेवा का लाभ उठाना चाहिए, इस बात को ले कर आरती और प्रीति ने काफी बात की. मगर समस्या यह थी कि बाकी सेवाओं के बारे में कुछ भी पता नहीं था और फिर इस हाईफाई से दिखने वाले सैलून में किस से पूछें? ये लोग सोचेंगे कि इन्हें इतनी छोटी बातें भी नहीं पता. इसलिए दोनों ने बाल ही कटवाने का फैसला किया.

‘‘मैडम, आप को बाल कटवाना है तो यहां बैठिए,’’ एक लड़की ने प्रीति से कहा तो प्रीति उठ कर आईने के सामने वाली कुरसी पर बैठ गई. फिर लड़की ने पूछा कि आप ने बाल कब धोए थे? तो प्रीति झूठ बोली कि 2 दिन पहले. फिर लड़की ने हर तरह से जांच कर कहा, ‘‘आप के बाल धोने पड़ेंगे मगर धोने का चार्ज लगेगा.’’

‘‘कितना चार्ज लगेगा?’’

‘‘400.’’

प्रीति ने सोचा कि म्यूनिसिपैलिटी का पानी और क2 का शैंपू ही बाल धोने के लिए काफी होता है. एक बार मन में आया कि 400 की वजह से बाल नहीं कटावाऊंगी तो लड़की क्या सोचेगी? मगर वह उठ गई और वापस अपनी जगह पर आ कर बैठ गई. अब आरती की बारी थी. मगर उस के बाल भी धुले नहीं थे और 400 खर्च करने के लिए वह भी तैयार नहीं थी.

फिर दोनों परेशान कि अब क्या करें, मुफ्त की सेवा इतनी महंगी? अचानक उन की नजर मुफ्त सेवाओं की लिस्ट में क्लीनअप पर पड़ी, मगर उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह क्या है? वे इस के लिए भी हिचकिचा रही थीं कि किसी से कैसे पूछें कि क्लीनअप क्या होता है? अंतत: आरती ने वैक्सिंग कराने का फैसला किया और प्रीति ने सोचा कि चलो क्लीनअप ही करा लेते हैं, जो होगा देखा जाएगा. उस ने रिसैप्शन पर बैठी लड़की से इस के लिए कहा तो लड़की ने जवाब दिया कि आप को इंतजार करना पड़ेगा. एक बार फिर इंतजार शुरू हो गया. हौल में कोई अंगरेजी गाना बज रहा था और लोगों का आनाजाना जारी था. ज्यादातर लोग विज्ञापन देख कर मुफ्त की सेवाओं का लाभ उठाने आए थे. कुछ तथाकथित हाई सोसाइटी की लड़कियां और औरतें भी थीं. देर होती जा रही थी और इंतजार करतेकरते प्रीति और आरती दोनों परेशान हो गई थीं. उन का धैर्य तो जवाब देने लगा था.

‘‘इतनी देर इंतजार किया थोड़ी देर और देखते हैं,’’ प्रीति ने समझाया. तभी एक लड़की ने आ कर प्रीति से पूछा, ‘‘आप को क्लीनअप करवाना है न?’’

प्रीति ने ‘हां’ कह कर अपना बैग आरती के पास छोड़ा और लड़की के साथ चल दी, लेकिन क्लीनअप को ले कर उस के मन में तरहतरह के सवाल उठ रहे थे. उस लड़की ने प्रीति को एक छोटे से कमरे के अंदर ले जा कर छोड़ दिया और कहा, ‘‘वेट मैम, आई एम जस्ट कमिंग.’’ प्रीति ने नजर दौड़ाई. कमरा क्या था एक डब्बे जैसा था और उस में से अजीब सी गंध आ रही थी. प्रीति को आंखों में जलन सी होने लगी तो वह सोचने लगी कि ये मैं कहां आ गई? लगभग 10 मिनट बाद लड़की आई और उस ने टेबल पर लेट जाने और गले से चेन निकालने को कहा तो प्रीति डर गई. मन में खयाल आया कि सोने की चेन को कहीं कुछ हो न जाए. पहले पता होता तो मोबाइल, चेन और अंगूठी आरती को दे कर आती. खैर, जींस की एक जेब में चेन और दूसरी में मोबाइल रख आने वाली संभावित परिस्थितियों का सामना करने का फैसला कर प्रीति टेबल पर लेट गई.

उस की आंखें बंद थीं. लड़की उस के चेहरे पर न जाने कौनकौन सी क्रीम लगा रही थी और बारबार हट रही थी. कभी गरम तो कभी ठंडा अनुभव. चलो पता तो चला कि क्लीनअप इसे कहते हैं. प्रीति के दोनों हाथ जींस की दोनों जेबों पर जमे थे. करीब 15 मिनट तक लड़की ने अपने करतब दिखाए, लेकिन उस ने किया क्या प्रीति को ठीक से नहीं पता चला क्योंकि उस की आंखें बंद थीं. फिर लड़की ने चेहरे पर कोई और क्रीम लगाई और पंखा चला व लाइट बंद कर वह कमरे से बाहर चली गई. प्रीति डर गई क्योंकि उस की आंखें बंद थीं और कमरे में अंधेरा था. उस पर क्लीनअप का चेहरे पर असर क्या होगा, इस का डर अलग था. तभी लड़की ने दरवाजा खोला और कहा कि आप की दोस्त आप का फोन मांग रही है. पूरे 20 मिनट बाद लड़की आई, लाइट जलाई और गरमठंडे पानी से क्रीम हटाई. प्रीति की जान में जान आई कि चलो चेन और अंगूठी तो बच गई पर पता नहीं मोबाइल कहां है? आंखों में बहुत तेज जलन हो रही थी और चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे सारा खून निकाल लिया हो किसी ने.

उस के मन में बारबार यह बात आ रही थी कि हाय रे क्लीनअप, इस से अच्छी तो पहले थी. हौल में आरती इंतजार कर रही थी और उस का मोबाइल उस के पास था. वे दोनों सुबह 10 बजे आई थीं और अब शाम के 4 बज चुके थे. उन की कीमती छुट्टी तो बरबाद हो गई थी पर दोनों को तसल्ली इस बात की थी कि चलो इतना तो पता चल गया कि क्लीनअप क्या होता है

Hindi Love Stories : मेरा वसंत – क्या निधि को समझ पाया वसंत

Hindi Love Stories : मैं ने तुम से पूछा, ‘बुरा लगा?’

‘नहीं,’ तुम्हारा यह जवाब सुन मैं स्तब्ध रह गई कि क्या मेरे बात करने न करने से तुम को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता? पर मैं जब भी तुम से नाराज़ हो कर बात करना बंद करती हूं, दिल धड़कना भूल जाता है और दिमाग सोचना. मन करता है कि तुम मुझे आवाज़ दो और मैं उस आवाज़ में खो दूं अपनेआप को. कभी लगता, क्यों न कौल कर के सुन लूं तुम्हारी आवाज़, पर है न मेरे पास भी अहं की भावना कि क्यों करूं जब तुम्हें चाहत ही नहीं मुझे सुनने की.

मैं ने कहीं सुना था- ‘ज़िंदगी को लाइटली लेने का’. लेकिन ज़िदंगी का हरेक पन्ना जब तुम से जुड़ा हो तो कैसे इस को हलके में ले लूं.

कुछ लोग कहते हैं कि प्यारव्यार कुछ नहीं होता. बस, रासायनिक क्रिया है जो दिल और दिमाग़ को बंद कर देती है और सोचनेसमझने की क्रिया समाप्त कर देती है. पर अगर ऐसा है तो किसी एक के लिए ही दिल क्यों धड़कता है. समझ के बाहर है न, यह ये प्यारव्यार…

कितना अच्छा होता न, मेरी तरह तुम्हारा भी दिल सिर्फ़ मेरे लिए धड़कता और मेरा ही नाम तुम्हारी ज़बान पर होता. पर तुम्हारे लिए तो मेरे सिवा सभी लोग ख़ास हैं और हां, काम की अधिकता भी तो कारण है न मुझ से दूर जाने का.

कुछ प्यार अधूरा ही रहता है, क्या मेरे प्यार को भी अधूरापन ही मिलेगा. पर, मैं तो तुम्हारे ही रंगों में रंगी हूं, सो, तुम्हारा द्वारा दिया हुआ अधूरापन भी स्वीकार है मुझे.

तुम खुश रहो. जानते हो, चाहती हूं कि अपनी खुशी भी तुम्हें दे दूं, पर अपनी खुशी तुम्हें नहीं दे सकती क्योंकि मैं अधूरी हो कर कभी खुश नहीं रह सकती.

जा रही हूं तुम से दूर, कुछ दूर जहां से मैं तुम्हें तो देख सकूं पर तुम मुझे न देख सकोगे. जब मुझे लगेगा कि जितनी बेक़रारी मेरे दिल में है उतनी ही तुम्हारे दिल में पनपने लगी, तब मैं वापस आ जाऊंगी. तुम्हारी बांहों की गरमाहट मुझे बेचैन करेगी. पर इस बेचैनी में भी बहुत प्यारा एहसास कैद रहेगा.

फिर से आतुर मन मिलन के लिए.

तुम्हारी,

निधि.

यह पत्र पढ़ कर मैं कुछ देर सन्न रह गया. काठ बना खड़ा चुपचाप इस खत को बारबार पढ़ता रहा. परसों रात ही तो आया था एक सप्ताह के बाद. नाराज़ निधि को मनाने में एक घंटा लग गया. उस की नाराज़गी दूर नहीं हुई. अबोलापन 2 दिन रहा घर में. आज रात ही तो इस घुटनभरे अबोलापन से छुटकारा मिला था. फिर उस ने पूछा तो था, ‘मेरे नाराज़ होने से तुम को बुरा लगता है न?’ और मैं ने सहजता से कह दिया था, ‘नहीं.’

ओह, निधि, तुम बात नहीं करती हो, तो मैं भी परेशान हो जाता हूं. लेकिन मैं दर्शाना नहीं चाहता. मुझे लगता, अगर इस बात को तुम्हारे सामने कहूंगा तो तुम और ज़्यादा रूठने लगोगी और अगर मैं कह दूं कि नहीं बुरा लगता तुम बात करो या न करो तो तुम रूठना कम कर दोगी. मैं ने अपना फ़ायदा देखा, तुम्हारी भावनाओं को नजरअंदाज किया. मुझे माफ़ कर दो, निधि. तुम आ जाओ वापस. अब मैं सबकुछ तुम्हारे हिसाब से करूंगा. मैं चाहता हूं कि तुम्हें समय दूं, पर…

मुझे पता है, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो. तभी तो इतना गुस्सा करती हो. गुस्सा भी प्यार का ही एक रूप है. पर मैं उस समय इसलिए नहीं मनाता क्योंकि तुम उस समय मेरी बात बिलकुल नहीं समझ पातीं. इंसान जब किसी से नाराज़ होता है तो वह उस समय हर हाल में गलत लगता है. तब समझाना गुस्से को बढ़ाना ही होता है. तुम समझती हो कि उन लमहों में मैं बहुत आराम से रहता हूं, तुम्हें क्या पता कि मैं हर रात जागता हूं सिर्फ तुम्हारी याद में, शायद कौल आ जाए और मैं सुन न पाऊं. लमहालमहा बेचैनी और बेक़रारी छाई रहती है. तब सिर्फ तुम खयालों में मेरे रहती हो. वक्त का पता नहीं चलता और खानापीना सब भूला रहता.

तुम सोचती हो कि मैं तुम्हें अनदेखा करता हूं पर कभी तुम खुद को मेरी जगह रख कर देखो तब समझ आएगा कि काम का कितना प्रैशर रहता है मेरे ऊपर. तब तुम कहोगी कि क्यों करते हो इतना काम. तो मेरी जान, काम नहीं करूंगा तो तुम्हारी ज़रूरतें और रोज की फ़रमाइश कौन पूरा करेगा.

ऐसा क्यों किया निधि? तुम जानती हो मैं तुम्हारे बगैर एक पल नहीं रह सकता. थोड़ी व्यस्तता थी और कभीकभी दोस्तों के पास बैठ जाता था, लेकिन मैं फिर भी समय निकालता था तुम्हारे लिए. हां, इधर कुछ ज़्यादा झगड़ा होने लगा था. लेकिन वज़ह मैं या तुम नहीं थीं. वज़ह थीं परिस्थितियां. पर क्या करता, नौकरी ही ऐसी है कि उस के लिए चौबीस घंटे भी कम ही हैं. तुम को कितनी बार समझाया- तुम नहीं समझोगी तो और कौन समझेगा, बताओ.

रोने का मन हुआ मेरा. दिल किया नौकरी छोड़ वहां भाग जाऊं जहां निधि मेरी प्रतीक्षा कर रही है. पर उस ने बताया ही नहीं कि कहां गई है. वसंत के मौसम में मेरी वसंत पता नहीं कहां चली गई? दिल ने जैसे धड़कना ही बंद कर दिया. कुछ पलों की जुदाई इतनी तकलीफदेह. अब समझ आ रहा है कि क्यों निधि मेरे कईकई दिनों बाद घर आने पर रूठ जाती थी. सच, अकेलापन बहुत उबाऊ होता है.

खिड़की के खुली रहने के बावजूद दम घुट रहा था. हवा ने भी जैसे मुंह मोड़ लिया हो. बाहर निकला. बागबानी की शौकीन निधि क्यारियों में एक से बढ़ कर एक पौधे लगाए हुए थी. इस पर पहले कभी ध्यान नहीं गया था मेरा. मन वहां भी नहीं लगा.

आज फिर लखनऊ जाना था. मन नहीं कर रहा था. फिर भी जाना तो था ही. और फिर इस अकेलेपन से दूर भी जाना चाहता था.

चाय पीने की इच्छा हुई. किचेन में जाते ही निधि की याद आई और मैं लौट आया. आंसुओं को पोंछते हुए तैयार हुआ और निकल गया घर से. महसूस हुआ, पीठ पर किसी की आंखों का स्पर्श. पलट कर देखा, कोई न था.

लखनऊ जाने के बाद मेरा मन वापस अपने घर जाने के लिए बेचैन होने लगा. ऐसा लगता, निधि मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी. वापस आ गया इलाहाबाद.

घर पहुंच कर जब देखा नहीं है निधि, मन झुंझलाया और निधि पर गुस्सा भी आया. क्या वह नहीं जानती कि नौकरी उसी के सुखसुविधा के लिए करता हूं. सोचता हूं कि उसे दुनिया की सारी खुशियां मिलें. मेरा मन भी करता कि उस के साथ बैठ सारी ज़िंदगी गुजार दूं. पर बैठने से सबकुछ नहीं मिल जाता- वह यह क्यों नहीं समझती है. मन खीझ आया अपनेआप पर. निकल गया घर से. निरुद्देश्य घूमता रहा सड़कों पर. बनारस जाने वाली बस दिखी. और मैं जा बैठा उसी में.

भूख से पेट में जलन उठी. प्यास भी महसूस हुई. 2 दिनों से भूखेप्यासे बेवजह चलते जा रहा था मैं.

एक जगह बस रुकी. पारले जी बिस्कुट के साथ एक कप चाय गटक लिया. दुख हो या सुख, पेट कब शांत रहा है.

गंगाघाट पर घंटों बैठा रहा. पानी को रौंदते हुए नाव, स्टीमर की आवाज़, पंक्षियों की चहचहाहट, मछलियों का बारबार उछल कर पानी की सतह पर आना, बच्चों की हंसी, प्रेमीप्रेमिकाओं की प्यारभरी बातें, प्यारेप्यारे जोड़ों की मदमस्त हंसी, बुजुर्ग की आस्थाभरी निगाह- उदासी के गर्त में मुझे धकेलने लगीं.

सब खुश है, सिवा मेरे. मेरे हिस्से दुख क्यों दे गई निधि? गंगाआरती की तैयारी शुरू हो गई. भीड़ का बढ़ता रेला और मेरा मन इस भीड़ से मुक्ति के लिए छटपटाने लगा. मन किया कि आरती देख लूं, पर आस्था-अनास्था के बीच त्रिशंकु जैसा मन डोलने लगा और मैं चुपचाप वहां से निकल गया.

मन किया एक बार निधि को फोन करूं, शायद वह मान जाए और आ जाए फिर से मेरी बांहों में. पौकेट में हाथ डाला, मोबाइल नहीं था. बेचैन मन ने सोचा, कहां छोड़ दिया मोबाइल. फिर मन ने ही समझाया कि शायद हड़बड़ी में छोड़ आया हूं घर पर.

ठंडी हवा का झोंका आया, चला गया. आसमान की ओर देखा- साफ और सफेद बादल तैर रहे थे. कुछेक तारे भी दिख रहे थे. चांद बादलों में छिप शरारत कर रहा था. यही चांद कई बार हमारे प्यार को देखा करता था जब खुले छत पर, आसमान के नीचे मैं और निधि एकदूसरे की बांहों में खोए रहते थे. निधि कभीकभी शरमा कर कहती, ‘धत, चांद मुझे देख रहा है.’

मैं हंसते हुए कहता, ‘चांद भी तुम्हारी तरह शरमा कर छिप रहा है.’

‘कहां हो गुड़िया?’ मैं यह कहता और हंसी आ जाती. जब भी उसे गुड़िया कहता, वह आंखों को गोलगोल घुमा कर कहती, ‘मैं निधि हूं, छोटी सी गुड़िया नहीं. जिसे जब चाहो, चाबी से चला लो. यहां मेरी मरजी चलती है, समझे.’

तुम्हारी मरजी ही तो चलती थी सोना. सोना कहने पर वह मूर्ति जैसी खड़ी हो जाती और कहती, ‘सोना में सजीव का लक्षण कहां से लाओगे.’

पलकों पर आंसू आ गए. क्या कभी लौट कर नहीं आएगी निधि…

रात एक ढाबे पर सो कर गुजारा. सुबह हुई. समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाऊं. आखिरकार घर जाने के लिए बस में बैठ गया. तभी ‘मूंगफली ले लो मूंगफली’ की आवाज़ आई. 9 या 10 साल के बच्चे की आवाज़ थी. मैं ने उस के चेहरे पर भोली मुसकान देखी. खरीद लिया एक पाव मूंगफली. निधि को बहुत पसंद है. जब भी हम सफ़र पर होते, वह जरूर खरीदती.

बस चलने लगी. कुछ यात्री ऊंघने लगे, कुछ बातों में मशगूल और कुछ खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने में. ऊब कर मैं भी बाहर की ओर देखने लगा. मन कहीं भी नहीं लग रहा था.

वापस घर ही जाने का मन हुआ. सोचा, वहां निधि की यादों के साथ रह लूंगा.

घर पहुंचा, लौन में लगे पौधे मुरझा रहे थे. निधि की याद इन को भी आती होगी. सुना था कि पेड़पौधे भी उस के लिए उदास होते हैं जो उन्हें प्यार से सींचते व उन की देखभाल करते हैं. प्यारभरी नजरों से उन्हें देख, मुख्य दरवाजे का ताला खोल अंदर गया. अंदर किचेन से बरतन की आवाज़ आ रही थी. देखा, निधि चाय बना रही थी. मैं पागलों की तरह उस से लिपट गया, “मेरी जान, कहां चली गई थीं, तुम जानती हो कि तुम्हारे बगैर मैं नहीं रह सकता. एकएक पल एकएक बरस जैसा लग रहा था.”

निधि मुसकराई, “एहसास होना जरूरी है मेरी जान. किसी ने सच कहा है, ‘दूरियां प्यार को बढ़ाती हैं.’ मैं देख रही थी तुम्हारी बेचैनी, दिल कर रहा था, आ जाऊं तुम्हारे पास. पर कुछ देर और परेशान हाल देखने की चाहत के कारण मैं छिपी रही. तुम मुझे बहुत प्यार करते हो, राज. मैं तुम्हें छोड़ कर कभी नहीं जाऊंगी.”

“आज का दिन मेरे लिए खुशियोंभरा है. आज ही मेरा वसंत है और तुम मेरी बसंती,” मैं ने उसे चूमते हुए कहा.

Hindi Stories Online : हैप्पी फैमिली

Hindi Stories Online : मैं  वंदे भारत ट्रेन के एसी चेयर कार कंपार्टमैंट में अपनी सीट पर पहुंची और सामान जमा कर बैठी तो देखा सामने से एक 10-12 साल की लड़की बैगपैक टांगे तेज कदमों से मेरी ही बगल वाली सीट की तरफ आ रही थी जहां एक मोटा व्यक्ति पहले से बैठा था.

बच्ची ने उस आदमी को संबोधित करते हुए तेज आवाज में कहा, ‘‘अंकल, आप मेरी सीट पर बैठे हो. प्लीज आप अपनी सीट पर चले जाओ.’’

वह आदमी उठा नहीं बल्कि लड़की से कहने लगा, ‘‘अरे बेटा मैं यहां बैठ गया हूं अब उठना मुश्किल होगा. मुझे विंडो सीट अच्छी लगती है. यह आंटी की बगल वाली मेरी सीट है. तू उस पर बैठ जा.’’

दरअसल, 3 सीटों की उस रौ में मेरी सीट बीच की थी. मेरी दाईं तरफ विंडो सीट थी जिस पर वह आदमी बैठा था और बच्ची को मेरे लैफ्ट साइड वाली सीट पर बैठने को कह रहा था.

मगर बच्ची अपनी बात पर डटी रही, ‘‘अंकल मैं अपनी सीट पर ही बैठूंगी. आप उठ जाओ प्लीज.’’

मुंह बनाता हुआ वह आदमी उठ गया. लड़की ने जल्दी से अपना सामान जमाया और मेरी तरफ देख कर मुसकराई. फिर पूछने लगी,  ‘‘दीदी, आप भी मसूरी जा रही हो?’’

मैं ने भी प्यार से उसे जवाब देते हुए कहा, ‘‘मैं देहरादून तक जाऊंगी. तुम्हें मसूरी जाना है क्या?’’

‘‘हां जी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अकेली जा रही हो?’’ मैं ने फिर पूछा.

‘‘हां जी,’’ उस ने आत्मविश्वास के साथ कहा.

‘‘किसलिए?’’

‘‘मैं वहां पढ़ती हूं.’’

‘‘मगर तुम्हारे साथ कोई नहीं? तुम्हारे मम्मीडैडी?’’

‘‘मम्मीडैडी इस दुनिया में नहीं रहे,’’ उस ने बु?ो स्वर में जवाब दिया.

‘‘उफ, मगर कैसे? अब किस के साथ रहती हो?’’ मैं उस के बारे में सबकुछ जानना चाहती थी.

‘‘एक ट्रेन ऐक्सीडैंट में मेरे मम्मीडैडी और भाभी तीनों चले गए. तब से मैं भैया के साथ रह रही हूं. भैया की शिफ्ट वाली जौब है और कई बार 3-4 दिनों के लिए शहर से बाहर भी जाते रहते हैं, इसलिए भैया ने मसूरी के एक बढि़या स्कूल में मेरा एडमिशन करा दिया ताकि मु?ो घर में अकेला न रहना पड़े और मैं आराम से होस्टल में रह सकूं,’’ उस ने बताया.

‘‘मगर अभी तो स्कूलों में गरमी की छुट्टियां चल रही हैं. वहां तो कोई नहीं होगा,’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘वहां बच्चे नहीं होंगे दीदी पर वार्डन तो होंगी न. दरअसल, भैया को 1 सप्ताह के लिए कहीं जाना था. ऐसे में मैं बिलकुल अकेली रह जाती सो भैया ने कहा कि तुम होस्टल ही चली जाओ.’’

‘‘मगर एकदम अकेले यात्रा करने में डर नहीं लगता तुम्हें?’’

‘‘डर कैसा दीदी मैं तो अकसर आतीजाती रहती हूं. शुरुआत में

1-2 बार थोड़ी टैंशन रही थी मगर अब तो आदत हो गई है,’’ उस ने बहुत सहजता से जवाब दिया.

हम बातों में लगे थे और ट्रेन चल चुकी थी. थोड़ी देर में खाने का समय भी हो गया. मैं किसी भी ट्रेन में रहूं अपना खाना हमेशा ले कर चलती हूं.

मैं ने उस लड़की यानी पूजा से पूछा, ‘‘तुम खाना ले कर निकली हो या ट्रेन वाला खाना खाओगी?’’

‘‘मैं तो ट्रेन का खाना ही खा लेती हूं,’’ उस ने जवाब दिया.

 

थोड़ी देर में उस का भी खाना आ गया तो हम ने बातें करते हुए खाना खत्म

किया. थोड़ी ही देर बाद पूजा को तबीयत खराब लगने लगी. हलकी उलटी हुई और लूज मोशन भी होने लगे. मैं सम?ा गई कि उस खाने में कुछ गड़बड़ थी तभी पूजा की तबीयत बिगड़ रही है. मैं ने जल्दी से अपनी दवा वाला डब्बा निकाला. उसे ऐवोमिन और टीजेड दी. उसे आराम आ गया. मैं ने उसे ग्लूकोस पानी भी पिलाया. मेरे बैग में ऐसी चीजें हमेशा होती हैं.

वह मु?ो थैंक्स कहने लगी. मैं ने उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘डौंट वरी मैं तुम्हारे साथ हूं,’’ मु?ो उस बच्ची पर सहानुभूति के साथसाथ प्यार भी आ रहा था.

तभी ट्रेन एक ?ाटके से रुक गई. पता किया तो जानकारी मिली कि आगे लाइन में कुछ समस्या है इसलिए ट्रेन कुछ देर बाद चलेगी. समय गुजरता गया और ट्रेन करीब 6 घंटे उसी जगह खड़ी रही. इस तरह ट्रेन देहरादून में जहां दोपहर 1. 45 बजे तक पहुंचनी थी वह 6 बजे के बाद पहुंची. अभी भी ट्रेन की स्पीड स्लो थी.

मैं ने पूजा की तरफ देखा. उस की तबीयत खराब थी और अब रात भी होने लगी थी.

मैं ने पूछा, ‘‘अब क्या करोगी? रात में अकेली होस्टल तक कैसे जाओगी?’’

‘‘कोई नहीं आंटी ट्रेन 8-9 बजे तक पहुंच ही जाएगी. फिर मैं कैब या औटो कर लूंगी,’’ पूजा ने निडरता से कहा मगर मु?ो यह सही नहीं लगा.

मैं ने उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘पूजा क्या पता ट्रेन और भी लेट हो जाए और तुम देर रात तक होस्टल पहुंचो. खतरा मोल लेना उचित नहीं. तुम्हारी तबीयत भी ठीक नहीं है. तुम ऐसा करो मेरे साथ मेरे घर चलो. मेरा घर यहीं पास में है. रात में मेरे यहां रुक जाओ फिर कल सोचेंगे आगे क्या करना है.’’

पूजा ने प्यार से मेरी तरफ देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘मगर आंटी आप को बेवजह मेरे कारण परेशानी होगी.’’

मैं हंस पड़ी, ‘‘ज्यादा दादी अम्मां मत बनो और सीधा उतर चलो मेरे साथ.’’

उस ने फिर कुछ नहीं कहा और सामान उठा कर मेरे पीछेपीछे ट्रेन से उतर गई. मैं ने कैब बुक कर ली. हम दोनों घर पहुंचे. मैं ने हाथमुंह धो कर जल्दी से डिनर बनाया और पूजा के साथ खुद भी खाया.

‘‘आप घर में अकेली रहती हैं?’’ उस ने इधरउधर नजर दौड़ाते हुए पूछा.

‘‘हां मैं फिलहाल अकेली ही रहती हूं,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘और आप के हस्बैंड?’’ उस ने फिर से सवाल किया.

‘‘मेरा तलाक हो चुका है,’’ मैं ने साफसाफ शब्दों में कहा तो वह एकदम शांत हो गई. मगर उस के दिमाग में अभी भी बहुत से सवाल कुलबुला रहे थे.

‘‘दीदी, आप के घर में और कोई तो होगा मतलब पापामम्मी या भाईबहन? आप उन के साथ नहीं रहतीं?’’

‘‘देखो बेटा मेरे भी पापा नहीं रहे. एक बहन है जो दूसरे शहर में रहती हैं. मेरी मां गांव में रहती हैं. वे थोड़े अलग तरीके से जीने की आदी हैं. मसलन, मिट्टी के चूल्हे पर रोटियां बनाना, खेतखलिहान के बीच रहना, साडि़यां पहनना, अपने घर के सारे काम खुद करना, गाय का दूध, घी आदि उपयोग करना आदि. उन की परवरिश बचपन से ऐसे ही माहौल में हुई है सो उन्हें वैसे ही रहना पसंद है. यहां आ कर उन का दम घुटता है. वहां वे बड़े से खुले घर में रहती हैं पर यहां तीसरे फ्लोर पर मेरा घर है. यहां औरतें साडि़यां नहीं पहनतीं पर वे सिर्फ साड़ी ही पहनती हैं और वह भी अपने अलग स्टाइल में. उन्हें घर में मेड लगाना अच्छा नहीं लगता जबकि मेड के बिना मेरा काम ही नहीं चलता. वहां उन की बहुत सी सहेलियां हैं जिन के साथ वे दिनभर बातें करती हैं मगर यहां सारे घर बंद पड़े होते हैं. यही सब कारण हैं कि उन्हें वहां गांव में ही अच्छा लगता है. कभीकभी वह आ जाती हैं मगर ज्यादा दिन नहीं रुकतीं.’’

‘‘ओके दीदी मैं सम?ा गई. आंटी थोड़े पुराने खयालात की हैं. फिर तो आप भी बचपन में उसी तरह रहते होंगे?’’

‘‘बिलकुल मैं वैसे ही रहती थी. गांव में ही मेरी पढ़ाईलिखाई हुई. फर्क यही है कि मैं ने पढ़ाई ज्यादा कर ली. वैसे हमारी कास्ट में औरतों को ज्यादा पढ़ाया नहीं जाता. मैं पिछड़ी कास्ट की हूं न. हमारी कास्ट में लड़कियों की जल्दी शादी कर दी जाती है. मगर मैं ने तय किया था कि मैं अच्छे से पढ़लिख कर कोई अच्छा काम करूंगी और सैल्फ डिपैंडैंट बनूंगी.’’

‘‘बहुत अच्छी सोच है आप की दीदी और आप की स्किन भी कितनी अच्छी है. भले ही थोड़ी डस्की स्किन है मगर कितनी चमक है.’’

‘‘थैंक यू बेटा.’’

‘‘अच्छा मैं आप को अपनी भाभी का फोटो दिखाती हूं. वे भी बहुत सुंदर थीं,’’ और उस ने अपने पर्स में रखी भाभी की तसवीर दिखाई जो काफी खूबसूरत थी. एकदम गोरा रंग, तेज नैननक्श और प्यारी सी मुसकान. फिर उस ने अपने मम्मीपापा की फोटो दिखाया. फोटो दिखाते समय उस की आंखों में आंसू आ गए तो मैं ने उसे सीने से लगा लिया.

‘‘अब चलो तुम्हें सोने का कमरा दिखा दूं,’’ यह कहते हुए मैं उसे बैडरूम में ले गई.

उस समय हम दोनों ही थके थे सो जल्दी सो गए. सुबह सो कर उठने के बाद पूजा बाहर बालकनी में जा कर मेरे पेड़पौधों और फूलों को देखने लगी जिन्हें मैं ने बहुत प्यार और मेहनत से लगाया था. मेरी बालकनी में कनेर की कई प्रजातियां थीं जिन में 2 बड़े पौधों में ढेर सारे गुलाबी रंग के कनेर के फूल खिले हुए थे. उन के अलावा करीपत्ता, गिलोय, तुलसी, गुलाब, गेंदे और ऐलोवेरा के पौधे भी थे.

वह उन्हें देखती हुई उत्साह से बोली, ‘‘अरे वाह दीदी, आप के यहां तो बहार छाई हुई है.’’

उस के इस कमैंट पर मैं मुसकराए बिना नहीं रह सकी.

‘‘दीदी आप का घर तो बहुत सुंदर है,’’ वह पूरे घर में घूमती हुई बोली.

‘‘सच में?’’

‘‘हां,’’ उस की आंखों में चमक थी.

मैं ने प्यार से उस के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘अगर यह घर इतना ही सुंदर लग रहा है तो यहीं ठहर जाओ न.’’

‘‘अरे नहीं दीदी. ऐसा कैसे हो सकता है?’’

‘‘क्यों नहीं हो सकता?’’

‘‘क्योंकि मैं यहां रहूंगी तो आप को परेशान करूंगी. वैसे भी आप तो मु?ो जानते भी नहीं.’’

‘‘मैं तो तुम्हें बहुत अच्छी तरह जानती हूं. मु?ो तो तुम बहुत प्यारी लगती हो और यहां रहोगी तो परेशान भी नहीं करोगी बल्कि मेरा मन लगेगा. तुम भी तो होस्टल में अकेली हो और मैं यहां अकेली हूं. हम दोनों एकसाथ रह लेंगे. दोनों एकदूसरे का साथ देंगे, खूब बातें करेंगे, मस्ती करेंगे और अच्छाअच्छा पका कर खाएंगे. क्या तुम्हें यह सब अच्छा नहीं लगेगा? मैं तुम्हें पढ़ा भी दूंगी,’’ मैं ने उसे प्रलोभन दिए.

‘‘दीदी लेकिन भैया क्या कहेंगे?’’ उस की आवाज में चिंता थी.

‘‘भैया से पूछ लो वे क्या कहते हैं. तुम उन्हें बता दो कि होस्टल में अकेली रहने से अच्छा दीदी के साथ रहना है.’’

‘‘अच्छा ठीक है. फिर मैं उन्हें सबकुछ बता देती हूं,’’ कह कर उस ने फोन उठाया और अपने भैया से थोड़ी देर बात कर के मेरे पास आई.

‘‘भैया तो तैयार हो गए दीदी. ठीक है मैं यहां रह जाती हूं. मगर वे कह रहे थे एक बार आप की उन से व्हाट्सएप कौल पर बात करा दूं,’’ उस ने बताया.

‘‘जरूर यह लो,’’ मैं तुरंत तैयार हो गई.

मैं ने व्हाट्सऐप कौल पर उस के भैया से बात की. उस के भैया अधिक उम्र के नहीं थे. घुंघराले बाल, गोरा रंग और अच्छी पर्सनैलिटी. चेहरे से भी शांतसौम्य थे. मैं ने उन्हें सम?ा दिया कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं. पूजा यहां बिलकुल सुरक्षित और अच्छे से रहेगी.

करीब 15-20 दिन पूजा मेरे साथ रही. फिर उस का स्कूल खुल गया तो मैं ने उसे मसूरी पहुंचा दिया. उस के जाने के बाद बहुत दिनों तक मेरा मन नहीं लगा. एक तरह से उस की आदत सी हो गई थी. उधर उस का भी वही हाल था. वह रोज रात में मु?ो फोन करने लगी थी और मु?ो पूरे दिनभर की बातें बताती.

एक दिन कहने लगी, ‘‘जानती हो दीदी आप से मैं वे सब बातें भी कह देती हूं जो भैया को नहीं बता पाती. पता नहीं क्यों आप को हर बात बताने का मन करता है.’’

मैं मुसकराती हुई बोली, ‘‘यही सही है पूजा. तुम अपने मन में कोई भी बात मत रखा करो. जो भी दिल कहे मु?ो बताओ. कोई समस्या हो, कोई अच्छी बात हो या परेशान करने वाली वह सब मु?ो बताओ. मैं तुम्हारी मम्मी जैसी हूं न तो फिर मु?ा से क्या छिपाना?’’

समय गुजरता गया. हम दोनों बहुत क्लोज हो चुके थे. एक दिन पूजा ने मु?ो कौल किया और बोली, ‘‘दीदी भैया आने वाले हैं. हमारी टीचर पेरैंट्स मीटिंग है न. मैं ने उन्हें बुलाया है.’’

‘‘अच्छा यह तो बहुत सही किया,’’ मैं ने कहा.

‘‘भैया कह रहे थे रास्ते में आप से मिलते हुए जाएंगे. पर उन्हें अकेले जाने में थोड़ी ?ि?ाक हो रही थी तो मैं ने कहा कि ठीक है आप यहां आओ. उस के बाद हम दोनों चलेंगे.’’

‘‘हां यह सही रहेगा. तुम दोनों सैटरडेसंडे मेरे यहां रहो. आराम से हम बातें करेंगे, अच्छेअच्छे पकवान बनाएंगे और खाएंगे. कहीं घूमने भी जाएंगे.’’

‘‘वाह दीदी फिर तो मजा आ जाएगा,’’ वह चहक उठी.

अगले सैटरडे पूजा और उस के भैया मयंक मेरे घर आ गए. मयंक ज्यादा बातें नहीं कर रहे थे मगर पूजा का बोलना ही नहीं रुक रहा था. वह भैया को मु?ा से जुड़ी हर बात विस्तार से बता रही थी और मयंक मंदमंद मुसकरा रहे थे.

बाद में जब पूजा थोड़ी देर के लिए बालकनी में गई तो मयंक मु?ा से मेरी पिछली जिंदगी के बारे में पूछने लगे. मैं ने बताया कि कैसे राघव के साथ मेरा तलाक हुआ और कैसे मैं यहां आ कर अकेली रहते हुए जौब करने लगी.

अगले 2 दिन हम तीनों ने साथ में बहुत अच्छा समय बिताया. प्लान के मुताबिक हम देहरादून के सहस्त्रधारा में घूमने भी गए. वहां के खूबसूरत माहौल को देख कर पूजा खिल उठी. मयंक ने बताया कि वे इतने सालों बाद पहली बार पूजा को इतना खुश देख रहे हैं. वे अब पूजा की तरफ से निश्चिंत हो गए थे क्योंकि उस की परवाह के लिए अब मैं भी थी.

एक दिन पूजा छुट्टियों में जब मेरे घर आई तो बहुत गुमसुम सी लगी. मैं ने उस से पूछना चाहा मगर उस ने बात टाल दी. इस तरह करीब 3 दिन बीत गए. मैं ने उस के चेहरे पर मुसकान नहीं देखी जबकि वह ऐसी लड़की थी जो दिन में कई दफा हंसती थी.

एक दिन दोपहर में खाना खा कर जब वह रैस्ट करने कमरे में गई तो मैं उस के पास जा कर बैठ गई. मैं ने उस का हाथ थाम लिया और उस की तरफ ध्यान से देखती हुई बोली, ‘‘बताओ पूजा क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी,’’ उस ने फिर से बात टालनी चाही मगर मैं ने उस का माथा सहलाते हुए उसे करीब खींच लिया और सीने से लगाते हुए फिर वही सवाल किया, ‘‘बताओ पूजा मु?ा से कुछ मत छिपाओ. मैं तुम्हारी मां जैसी हूं न. कोई भी प्रोब्लम है तो मु?ो बताओ.’’

अब पूजा अपने जज्बातों को संभाल नहीं सकी और बेतहाशा रोते हुए मु?ा से चिपक गई. फिर थोड़ी देर रोने के बाद सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा अब होस्टल जाने का बिलकुल मन नहीं करता. वहां 3-4 दीदियां हैं जो मु?ो टौर्चर करती हैं. बहुत सताती हैं मुझे. ’’

‘‘वे क्या करती हैं मुझे बताओ पूजा.’’

‘‘कैसे बताऊं दीदी. वे मेरे साथ क्याक्या करती हैं यह मैं किसी से कह ही नहीं पाती. आप को पता है वे मुझे कहती हैं अपने कपड़े खोलो. सारे कपड़े खोल कर हमारे सामने आओ. दीदी पहले दिन जब उन्होंने ऐसा कहा तो मैं बहुत डर गई और कमरा अंदर से बंद कर लिया. मगर वे खिड़की के रास्ते अंदर आ गईं और बैल्ट से मुझे पीटा. उस के बाद कई दिन वह मुझे कपड़े उतारने को कहती रही. एक दिन मेरे पूरे शरीर पर मेहंदी लगा दी तो एक दिन मुझे ब्रा पहना कर घुमाया,’’ कहते हुए पूजा फिर से जोरजोर से रोने लगी.

पूजा की बात सुन कर मैं हैरान रह गई.

‘‘मगर वे तुम्हारे साथ यह सब क्यों करती हैं?’’ मैं ने सवाल किया.

‘‘दीदी मु?ो खुद सम?ा नहीं आता कि वे मेरे साथ यह सब क्यों करती हैं. शायद उन्हें लगता है कि मैं उन के जैसी हाईफाई फैमिली से नहीं हूं. मेरे घर में केवल भैया हैं और वे भी साधारण नौकरी करते हैं. मैं उन के जैसे रोज नए स्टाइलिश कपड़े नहीं पहनती और चुपचाप अपनी पढ़ाई में रहती हूं. इसी वजह से वे मु?ा से चिढ़ती हैं और कमजोर सम?ाती हैं और हां एक बार जब वे देर रात होस्टल लौटीं तो मैं ने यह बात वार्डन से कह दी. शायद वे इसी बात का गुस्सा निकालती हैं और मु?ो इस तरह परेशान करती हैं.’’

‘‘तो तुम ने इस बारे में वार्डन से शिकायत क्यों नहीं की?’’

‘‘दीदी मैं ने की थी शिकायत. मैं ने वार्डन से सिर्फ इतना कहा था कि तीनों मु?ो टौर्चर करती हैं तो वार्डन मु?ो ही डांटने लगीं. दीदी, उन तीनों के पिता बहुत अमीर हैं. वे स्कूल को इकौनोमिक हैल्प भी करते हैं. इसलिए कोई उन से कुछ कहना नहीं चाहता.’’

‘‘तुम चिंता मत करो. इन लड़कियों को तो मैं सबक सिखाऊंगी,’’ मैं ने पूजा को गले से लगाते हुए वादा किया.

थोड़ी देर सोचने के बाद मैं ने अपनी सहेली अमिता को कौल की. वह आईपीएस फिसर थी. अच्छी बात यह थी कि उस की पोस्टिंग मसूरी में ही थी. मैं ने उसे पूजा की सारी बात बताई.

2 दिन बाद ही अमिता पूजा के स्कूल पहुंची. उस ने उन तीनों लड़कियों को बुला कर डांटाडपटा और कानून की भाषा में सब समझा दिया. उन पर कौन सी धाराएं लग सकती हैं और नतीजा कितना बुरा हो सकता है यह भी भलीभांति बताया. एहसास दिला दिया कि पूजा अकेली या कमजोर नहीं और आइंदा उन्होंने पूजा के साथ कुछ भी गलत किया तो अंजाम बहुत भयंकर हो सकता है. अमिता ने वार्डन से बात की और सारा मामला बताया. वार्डन ने भी अपनी गलती सम?ा और वादा किया कि ऐसा फिर कभी नहीं होने दिया जाएगा.

अमिता के रुतबे और सम?ाने के अंदाज का गहरा असर हुआ और इस के बाद पूजा को कभी किसी ने तंग नहीं किया. पूजा अब बहुत खुश रहती थी और उसे लगने लगा था कि मैं उस की हर समस्या का समाधान हूं.

समय गुजरता गया. पूजा मयंक को किसी न किसी बहाने अपने पास मसूरी बुलाती और फिर दोनों मेरे घर आ जाते. फिर तीनों मिल कर कुछ अच्छा वक्त साथ बिताते. पूजा अपनी छुट्टियों में भी मेरे पास आ जाती. इस तरह एकदूसरे से मिलतेमिलाते 2 साल बीत चुके थे. मु?ो मयंक अच्छे लगते थे और मयंक की आंखों में भी मैं ने अपने लिए हमेशा प्यार देखा था. मगर संकोचवश हम दोनों ने आज तक केवल पूजा के इर्दगिर्द रह कर ही उस से जुड़ी बातें ही की थीं. एकदूसरे से किसी और विषय पर या अपनी फीलिंग्स को ले कर कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हुई.

उस दिन जब पूजा और मयंक मेरे घर में थे तो पूजा ने हम दोनों की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘भैया आप लखनऊ में रहते हो, दीदी आप देहरादून में रहते हो और मैं खुद मसूरी में रहती हूं. क्या यह नहीं हो सकता कि हम तीनों एक ही जगह रहें? दीदी क्या मैं आप को मम्मी बुला सकती हूं?’’

पूजा की बात सुनते ही हम सकते में आ गए. मैं ने मयंक की तरफ देखा. वे मंदमंद मुसकरा रहे थे. मु?ो भी हंसी आ गई. पूजा ने हमारी समस्या हल कर दी थी. यह बात तो हम दोनों के मन में भी चल रही थी. बस उसे शब्दों में कहने की हिम्मत नहीं थी. मगर पूजा ने यह काम कर दिया.

मैं ने मयंक की आंखों में स्वीकृति देखी तो पूजा की बात का जवाब देते हुए कहा, ‘‘ठीक है मैं लखनऊ में रहने को तैयार हूं. लखनऊ में हमारा मेन औफिस है. यहां तो मैं ब्रांच औफिस में काम करती हूं और हां तुम मुझे मम्मी जरूर बुला सकती हो.’’

मैं ने और मयंक ने साथ रहने और शादी करने का फैसला कर लिया. मगर मयंक अपनी मां की वजह से असमंजस में थे. मां गांव में रहती थीं और जातपांत का भेदभाव बहुत ज्यादा मानती थीं. मयंक के चेहरे पर कुछ उलझन के भाव मैं ने पढ़ लिए. मैं ने मयंक से कहा कि वे मां की अनुमति ले लें उस के बाद ही हम कोई कदम उठाएंगे. मयंक ने भरोसा दिलाया कि वे इस महीने के अंत तक गांव जाएंगे और मां को तसल्ली से सारी बात समझाएगा.

अगले महीने जब पूजा मेरे घर आई तो फिर से थोड़ी उदास लगी. मैं ने कारण पूछा तो कहने लगी कि उस के भैया ने दादी से बात की थी मगर वे इस शादी के लिए तैयार नहीं हैं.

मैं ने पूजा से पूछा, ‘‘क्या तुम ने अपनी तरफ से दादी से बात की?’’

‘‘नहीं. भैया ही गांव गए थे. मैं तो होस्टल में थी.’’

‘‘ठीक है फिर ऐसा करो कि दादी से अभी बात कर लो.’’

‘‘मगर मैं कहूंगी क्या दीदी?’’ पूजा उल?ान में थी.

‘‘वही कहो जो तुम्हारे दिल में है. बच्चों की बातों में सचाई होती है जिसे अनसुना नहीं किया जा सकता. तुम दादी से अपने मन की बात कहो.’’

पूजा ने मेरी बात मान ली और तुरंत दादी से बात करने के लिए मोबाइल उठा लिया.

‘‘दादी मैं ने अपने लिए मां जैसी भाभी ढूंढ़ ली है प्लीज आप भी उन्हें पसंद कर लो.’’

‘‘मगर बेटा मैं ने बताया न वह हमारे जात की नहीं है. नीची जाति की है. तेरे भैया की उस से शादी नहीं हो सकती,’’ दादी ने फैसला सुना दिया.

‘‘दादी मुझे जाति से कोई मतलब नहीं मुझे तो बस यह पता है कि नेहा दीदी हमेशा मेरे साथ रहती हैं. मेरी हर परेशानी पल में दूर कर देती हैं. मेरे ऊपर कोई मुश्किल आए उस से पहले मुझे बचाने के उपाय कर देती हैं. मेरी सुरक्षा के लिए हमेशा सोचती हैं. मुझे उन के सीने से लग कर लगता है जैसे मैं बहुत सुरक्षित हाथों में हूं. उन के हाथों से खाना खा कर लगता है जैसे अपनी मां खिला रही हैं,’’ पूजा ने अपने दिल की बात कहनी शुरू की.

‘‘बेटा मैं तेरी भावनाएं सम?ा रही हूं मगर…’’ दादी ने बात बीच में ही छोड़ दी.

पूजा की आंखों में आंसू आ गए थे. मैं ने उस के आंसू पोंछ दिए और प्यार से माथा सहलाने लगी.

पूजा की आवाज में दर्द उभर आया था,  ‘‘मगर क्या दादी? दादी आप को पता है

2 साल पहले मेरी फ्रैंड निशा ने सुसाइड कर लिया था. जानते हो क्यों क्योंकि उस की सौतेली मां उसे बहुत सताती थी, बहुत मारतीपीटती थी. दादी उस की जातिधर्म की थी मगर उसे केवल आंसू देती थी, जबकि नेहा दीदी ने हमेशा मेरी आंखों में आंसू आने से पहले ही उन्हें पोंछ दिया है. नेहा दीदी ने हमेशा मु?ो हंसाया है. मां जैसा प्यार दिया है. प्लीज दादी मु?ा से इस मां को मत छीनो. आप जाति देख रही हैं जबकि मुझे सिर्फ प्यार दिखाई देता है. क्या जाति प्यार से बढ़ कर होती है दादी?’’

दादी थोड़ी देर मौन रहीं फिर मुसकराती आवाज में बोलीं, ‘‘बेटा आज मु?ो तेरे शब्दों में छिपे प्यार का एहसास हो गया है. इतनी प्यारी मां से तु?ो दूर कैसे रख सकती हूं. तेरी बातों ने मेरे मन को पिघला दिया है. तू हमेशा अपनी मां जैसी भाभी के साथ खुश रह बस यही चाहती हूं. तू चिंता मत कर मैं आ कर उन दोनों की शादी कराती हूं.’’

पूजा ने दादी के बदले हुए फैसले को सुना तो खुशी से चीख पड़ी. वह मेरे गले लग कर देर तक रोती रही. फिर अपने भैया को कौल कर के बोली, ‘‘भैया दादी मान गई हैं. अब हम तीनों मिल कर बनाएंगे एक हैप्पी फैमिली,’’ बात करते हुए वह मेरी तरफ देख कर मुसकरा रही थी.

मैं सोचने लगी कि सच है बच्चों का मन बिलकुल सच्चा होता है. उन की बात दिल तक पहुंचती है क्योंकि वे दिल से बात रखते हैं. तभी तो हमारी हैप्पी फैमिली का सपना पूरा होने वाला है. मेरी आंखें भी भर आई थीं और दिल में खुशी की लहर दौड़ गई थी.

Hindi Story Collection : उस पार का प्यार

Hindi Story Collection : समिता बेटा, तुम्हारे ऊपर जो बीत रही है, हम लोग सब समझते हैं. मगर बेटी तुम्हारी यह पहाड़ जैसी जिंदगी अकेले कैसे कटेगी और फिर एक छोटे से बेटे की जिम्मेदारी. 1 साल हो गया है शाश्वत को गुजरे हुए. हम लोग तुम्हारे मातापिता हैं, कोई दुश्मन नहीं हैं. हम लोग चाहते हैं कि तुम अब अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत करो,’’ गिरधारीलाल अपनी बेटी को प्यार से सम?ा रहे थे.

‘‘नहीं पापा, मैं दूसरी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं. प्लीज, आप लोग मु?ा पर दबाव न डालें,’’ समिता ने कहा.

समिता की मम्मी बोलीं, ‘‘बेटा, हम लोग तो चाहते थे कि शाश्वत के जाने के बाद तुम अपना ट्रांसफर आगरा करवा लो और अपने मायके आ कर हम लोगों के साथ रहो. लेकिन तुम ने नहीं सुनी और यहीं कानपुर में अपने सासससुर के साथ रहने की जिद पर अड़ गईं. मगर मेरी बच्ची, इतनी लंबी जिंदगी क्या ऐसे ही काट दोगी? बहुत शोक मना लिया. अब कुछ अपनी जिंदगी के बारे में भी सोचो.’’

समिता थोड़ा झल्ला कर बोली, ‘‘मम्मीपापा आप लोग बारबार एक ही बात क्यों बोल रहे

हो? न तो मैं दूसरी शादी करूंगी और न ही मैं यहां से कहीं और जाऊंगी. अब तो यही मेरा घर है और अम्मांबाबूजी की जिम्मेदारी मेरी है. मैं अपनी बाकी की सारी जिंदगी शाश्वत की यादों के सहारे और अपने बेटे समिश्वत के साथ

गुजार लूंगी.’’

समिता के मम्मीपापा दुखी मन से आगरा के लिए चले गए थे. समिता के पति शाश्वत को गुजरे 1 साल बीत चुका था. पति के जाने के बाद भी समिता बेटे समिश्वत के साथ अपने सासससुर के पास ही कानपुर में रहती थी. वह कानपुर के पौलिटैक्निक कालेज में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत थी. पति के देहांत के बाद से ही उस के मम्मीपापा को उस की चिंता लगी रहती थी. वे चाहते थे कि समिता एक बार फिर से शादी कर ले और खुशहाल वैवाहिक जिंदगी बिताए पर समिता न तो अपने मायके में रहना चाहती थी और न ही दोबारा शादी करना चाहती थी. समिता ने बड़ी जिद कर के शाश्वत से विवाह किया था जबकि शाश्वत की बीमारी की वजह से समिता के मम्मीपापा इस शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. शादी के मात्र 2 सालों के बाद अब समिता वैधव्य की पीड़ा झेल रही थी. उस के सासससुर ने कभी उसे यहां पर अपने साथ रहने के लिए नहीं कहा. वे तो बस यही चाहते थे कि बहू समिता जिस तरह से भी जहां रहना चाहे, खुशी से रहे.

समिता ने बड़ी हिम्मत से अपने पति के देहांत के बाद अपने बेटे और अपने वृद्ध सासससुर को संभाला था. इतनी बड़ी त्रासदी में जहां समिता का तो सबकुछ ही लुट गया था, वहीं  उस के सासससुर ने भी अपना इकलौता पुत्र असमय ही खो दिया था. वे दोनों बिलकुल टूट गए थे. समिता अपने सासससुर की जीजान से सेवा करती थी. उन की हर छोटी से छोटी आवश्यकता का पूरा ध्यान रखती थी. जब वह कालेज जाती थी तो उस का बेटा समिश्वत अपने दादीदादी के पास ही रहता था. बेटे के असमय देहांत के बाद तो अम्मांबाबूजी के लिए उन का पोता ही उन के जीने का सहारा बन गया था. उस के साथ समय बिताने पर वे अपने सारे गम भूल जाते थे. उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे वे अपने बेटे के साथ ही खेल रहे हों.

अब समिश्वत 3 साल का हो गया था. समिता ने उसे अपने घर के बिलकुल पास के स्कूल ‘हैप्पी मौडल स्कूल’ में प्लेगु्रप में दाखिल कर दिया था. दिन तेजी से बीत रहे थे. समिश्वत ने इस साल 5वीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. समिता ने अब उसे देहली पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया था. समिश्वत रोज स्कूल बस से स्कूल जाने लगा था. वह बहुत ही सम?ादार लड़का था. वह जानता था कि उस की मां उसे कितनी मेहनत से पालपोस रही है. अब वह अपनी मां का हाथ बंटाने का भी प्रयास करने लगा था. समिता को ये सब देख कर बहुत सुख महसूस होता था.

‘‘अम्मां, मैं ने आज छुट्टी ले ली है. आज समिश्वत के स्कूल में पेरैंटटीचर्स मीटिंग है. मैं उसे अपने साथ स्कूल ले जा रही हूं. फिर मीटिंग अटैंड कर के समिश्वत को ले कर वापस आती हूं. तब हम सब साथ बैठ कर लंच करेंगे.’’

‘‘समिता बिटिया, तुम मटर निकाल कर मुझे दे दो, मैं तब तक छील देती हूं. तुम्हारे बाबूजी तो नाश्ता करके टहलने चले गए हैं. मेरी तो सुनते नहीं हैं. अब तुम्हीं उन्हें सम?ाओ कि सर्दियां पड़ने लगी हैं तो जरा देर से बाहर जाया करें.’’

तब तक बाबूजी गेट खोल कर घर में प्रवेश कर रहे थे. बोले, ‘‘अरे बहू से मेरी क्या शिकायत हो रही है? बाहर कार में बैठे समिश्वत ने मुझे चुपके से सब बता दिया है और मैं ने भी गेट खोलते समय तुम दोनों को मेरी बात करते सुना है. तुम चाहे जो कहो, मगर समिता तो मेरी ही तरफ रहेगी. तुम बस ऐसे ही चिल्लाती रहो.’’

समिता मुसकराई और बोली, ‘‘बाबूजी, फरवरी की शुरुआत तक थोड़ा देर से ही निकला करिए टहलने के लिए. आप की खांसी की दवा भी तो खत्म होने वाली है. मैं आते समय ले आऊंगी.’’

‘‘वह तो तुम्हीं जानो बहू. मुझे तो कुछ याद रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती, तुम जो सारी जिम्मेदारी अपने सिर पर उठाए रहती हो. मेरे कोट में रखे पर्स से कुछ रुपए ले लो और आज समिश्वत को मेरी तरफ  से कुछ खिलौने खरीदवा देना, छठी क्लास में आ गया है मगर कल शाम को मेरे साथ खेलते समय खिलौनों के लिए मुझ से जिद कर रहा था, शरारती कहीं का.’’

समिता स्कूल पहुंच गई थी. क्लास टीचर ने समिता से कहा, ‘‘समिश्वत बेहद गंभीर और अनुशासन में रहने वाला स्टूडैंट है. वह प्रत्येक विषय को गहराई से सम?ाने का प्रयास करता है और अच्छे अंक लाता है. बस थोड़ा चुपचुप रहता है.’’

समिता ने क्लास टीचर को धन्यवाद दिया और समिश्वत को अपने साथ ले कर कार से घर की तरफ रवाना हो गई. समिश्वत ने अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मा, कल मैं जब बाबा के साथ खेल रहा था तो वे अचानक हंस पड़े और बोले कि तुम भी अपने डैडी की तरह नटखट हो. शाश्वत भी बचपन में मु?ो खेलते समय बहुत दौड़ाता था. मम्मा, बाबा यह कहतेकहते अपने आंसू पोंछने लगे थे और उन्होंने मु?ो कस कर अपने गले से लगा लिया था.’’

शाश्वत की बातें सुन कर समिता की भी पलकें भीग गईं पर उस ने बड़ी सफाई से उन्हें छलकने से रोक लिया.

‘‘मम्मा, तुम ने कभी यह नहीं बताया कि तुम मेरे डैडी से कब और कैसे मिली थीं क्यों नानाजी तो आगरा में रहते हैं. तुम यहां कानपुर कैसे आईं?’’

‘‘तुम क्या करोगे ये सब जान कर?’’ समिता ने सावधानी से ड्राइव करते हुए समिश्वत के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.

‘‘अरे मम्मा, अब मैं बड़ा हो गया हूं. तुम डैडी की तारीफ तो बहुत करती हो लेकिन यह तो बताओ कि तुम लोग आपस में कैसे मिले और फिर कैसे तुम लोगों की शादी हुई?’’ समिश्वत ने थोडा शरारत से पूछा.

समिता ने एक गहरी सांस ली और वह आज से 15 साल पहले कानपुर शहर में अपने प्रथम आगमन के बारे में सोचने लगी…

समिता तो आगरा की रहने वाली थी. कानपुर के टैक्स्टाइल संस्थान में पढ़ने के लिए वह अपने पिताजी के साथ कानपुर आई थी. पिताजी उसे वहां होस्टल में छोड़ कर शाम की ट्रेन से आगरा के लिए निकलने वाले थे.

‘‘जी पापा, आप चिंता न करिए, मैं यहां गर्ल्स होस्टल में आराम से रहूंगी. आप निकलिए, नहीं तो आप की ट्रेन छूट जाएगी. सुमित और मम्मी का खयाल रखिएगा.’’

‘‘बेटा, पहली बार तुम घर से बाहर दूसरे शहर में पढ़ने के लिए आई हो तो चिंता तो बनी ही रहेगी लेकिन क्या किया जाए. तुम्हारी पढ़ाई भी तो जरूरी है. तुम्हारा सलैक्शन इस टैक्स्टाइल इंस्टिट्यूट में हो गया तो हम लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई. पूरे यूपी का यह एकमात्र टैक्स्टाइल टैक्नोलौजी इंस्टिट्यूट है. यह कानपुर का ही नहीं पूरे देश का प्रतिष्ठित संस्थान है.’’

‘‘जी पापा, मैं सम?ा रही हूं. मैं यहां पर मन लगा कर पढ़ाई करूंगी और अच्छी रैंक ला कर दिखाऊंगी. फिर कानपुर से आगरा है ही कितनी दूर. मैं छुट्टियों में ट्रेन से आप लोगों के पास आ जाया करूंगी.’’

समिता की आंखें अब भीग चुकी थीं. उस ने सोचा यह तो अच्छा हुआ कि मम्मी नहीं आईं नहीं तो न तो उन के आंसू रुकते और न मेरे.

गिरधारीलाल ने अपनी पलकों से बाहर आने को बेताब आंसुओं को रोकते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है बेटा, अब मैं चलता हूं. पैसे बराबर तुम्हारे अकाउंट में डालता रहूंगा.’’

गिरधारीलाल फिर बिना पीछे देखे तेजी से चले गए थे. समिता जानती थी कि आज उस के पापा और मम्मी कितने दुखी हैं. वह भी बहुत दुखी थी लेकिन यहां होस्टल में सारी लड़कियों का यही हाल नहीं था. कुछ लड़कियां तो बेहद प्रसन्न नजर आ रही थीं जैसेकि वे किसी कैद से छूट कर आई हों और अब उन का आजाद पंछी की तरह रहने का बहुप्रतीक्षित सपना हकीकत में बदल रहा हो.

समिता आगरा के दयालबाग इलाके की रहने वाली थी. उस के पिता गिरधारीलाल आगरा में एक सरकारी बैंक की कमला नगर शाखा में क्लर्क थे. उन्होंने कभी अपने बैंक में अधिकारी के कैडर में प्रमोशन के लिए अप्लाई ही नहीं किया था. इस के 2 मुख्य कारण थे. पहला तो वे अपने बच्चों की पढ़ाई के कारण आगरा छोड़ कर कहीं जाना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्होंने अपने साथ के अनेक सहकर्मियों को प्रमोशन ले कर देश के विभिन्न राज्यों में ट्रांसफर होते और अकसर घरपरिवार से दूर रहते हुए देखा था. संयोग से उन की बेटी का दाखिला इतने अच्छे संस्थान में हो गया था और उन का बेटा सुमित अभी 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

समिता ने दूसरे दिन से ही नियमित प्रथम वर्ष की कक्षाएं अटैंड करना शुरू कर दिया था. यहां लड़के और लड़कियों के होस्टल तो अलगअलग थे किंतु पढ़ते सभी लड़केलड़कियां साथसाथ ही थे. समिता देख रही थी कि अभी यहां आए हुए 1 महीना भी नहीं हुआ है और अधिकतर लड़केलड़कियों के आपस में बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड बन चुके हैं. स्टूडैंट्स शाम को घूमने के लिए भी जोड़ों में ही साथ निकलते थे. कई लड़कों ने समिता की तरफ  भी अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन उस ने कक्षा के भीतर तक की सीमा में दोस्ती को अच्छा सम?ा. उसे यह अच्छी तरह पता था कि यह दोस्ती जब कक्षा की सीमा से बाहर की हो जाती है तो प्राय: नैतिक व सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ कर ही दम लेती है.

एक दिन समिता शाम को क्लासरूम से होस्टल जाने के लिए निकली. अभी वह थोड़ी दूर ही जा पाई थी कि एक दुबलापतला लड़का दौड़ते हुए उस के पास पहुंचा. वह हांफ रहा था और उस के हाथ में एक मोबाइल था जो बज रहा था. उस ने समिता की ओर मोबाइल देते हुए कहा, ‘‘आप का फोन क्लास में ही रह गया था. देखिए शायद आप के पापाजी की कौल है.’’

समिता ने फोन ले लिया और अपने पापा से बात करने लगी. इस बीच वह लड़का वहां से चला गया. समिता होस्टल में अपने रूम में लेटे हुए उसी लड़के के बारे में सोच रही थी. इस लड़के को तो मैं ने क्लास में हमेशा सीरियस ही देखा है. यह किसी से ज्यादा बात करता दिखाई नहीं पड़ता है. अभी पिछले टैस्ट में इसे काफी अच्छे नंबर मिले थे. इस का नाम क्या है ? चलो कल उस भले मानुष को थैंक्यू कह दूंगी.

अगले दिन समिता ने उस लड़के के पास जा कर कहा, ‘‘धन्यवाद आप का,

मेरा फोन मुझ तक पहुंचाने के लिए.’’

लड़के ने कहा, ‘‘नहीं इस में धन्यवाद देने जैसी कोई बात नहीं है. मैं ने देखा कि फोन डैस्क पर बज रहा है तो आप तक पहुंचा दिया, बस.’’

‘‘आप का नाम क्या है और आप क्या बौयज होस्टल में नहीं रहते हैं?’’

लड़का थोड़ा मुसकरा कर बोला, ‘‘मेरा नाम शाश्वत है. मैं कानपुर का ही रहने वाला हूं, इसलिए होस्टल में नहीं रहता हूं. मेरा घर यहां से लगभग 10 किलोमीटर की ही दूरी पर है.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है कि आप अपने घर पर रह कर ही यह कोर्स कर रहे हैं. ऐसा मौका तो कम को ही मिलता है. अच्छा ठीक है, क्लास शुरू होने वाली है. मैं अपनी सीट पर जाती हूं.’’

1 सप्ताह तक फिर शाश्वत क्लास में नहीं दिखा. जब वह 1 सप्ताह बाद क्लास में आया तो समिता ने गौर किया कि वह काफी थकाथका सा दिखाई दे रहा है. समिता ने लंच टाइम पर शाश्वत से बात करने की सोची. जब लंच हुआ तो उस ने देखा कि शाश्वत अपना बैग ले कर क्लास से बाहर निकल गया. पीछे से समिता जब क्लास से बाहर आई तो देखा कि वह दूर एक पेड़ के नीचे बैठा फल खा रहा. समिता ठीक उस के पीछे आ कर खड़ी हो गई. शाश्वत उस के होने से अनजान बैठा फल खाता रहा. फिर उस ने अपने बैग से कुछ दवाएं निकालीं और पानी के साथ गटक गया. समिता ये सब देख कर उस के सामने आ गई तो वह एकदम चौंक सा गया.

‘‘अकेलेअकेले फल खाए जा रहे हैं.’’ समिता मुसकरा कर बोली.

शाश्वत शरमा सा गया फिर और फल समिता की ओर बढ़ाता हुआ बोला, ‘‘तुम भी लो न.’’

समिता हाथ के इशारे से मना करती हुई बोली, ‘‘अरे नहीं, मैं तो बस मजाक में कह रही थी. मैं तो बस तुम से यह पूछना चाह रही थी कि तुम पिछले सप्ताह तो बिलकुल गायब ही हो गए थे. अभी तुम टैबलेट्स भी ले रहे थे. क्या हुआ? सब ठीक है न?’’ अचानक दोनों आप से तुम पर आ गए थे.

शाश्वत ने हंसते हुए कहा, ‘‘अरे कुछ नहीं. मैं पिछले सप्ताह थोड़ा बीमार हो गया था. तो डाक्टर ने रैस्ट के लिए कहा था.’’

तब समिता ने चलते हुए कहा, ‘‘ओके, अपना ध्यान रखना.’’

समिता गौर कर रही थी कि यह शाश्वत बाकी स्टूडैंट्स से बिलकुल अलग ही था. बेहद कम बात करना. चुपचाप अपने काम में लगे रहना. बीचबीच में अब्सैट रहने के बावजूद अच्छे नंबर लाना. गुमसुम रहना. उसे अब शाश्वत के बारे में जानने की जिज्ञासा हो गई थी.

एक दिन शाश्वत की बगल वाली सीट का स्टूडैंट नहीं आया था. समिता जा कर वहीं बैठ गई. शाश्वत ने उसे एक नजर देखा, तब तक लेक्चरर ने क्लास में ऐंट्री ले ली थी. शाश्वत उन की तरफ देखने लगा. 4 पीरियड्स के बाद लंच ब्रेक हो गया.

समिता ने शाश्वत से कहा, ‘‘चलो, कैंटीन चलते हैं. मुझे तो बहुत भूख लगी है.’’

शाश्वत झिझकते हुए बोला, ‘‘मगर मैं तो तबीयत ठीक न रहने की वजह से बाहर का बिलकुल नहीं खाता हूं.’’

‘‘उफ, लेकिन चाय या नींबू पानी तो पी ही सकते हो.’’

‘‘हां, वह तो पी सकता हूं.’’

‘‘फिर जल्दी से चलो नहीं तो यहीं पर बातों में समय निकल जाएगा और प्रैक्टिकल क्लासेज शुरू हो जाएंगी.’’

दोनों कैंटीन के एक कोने में रखी टेबल पर बैठ गए.

‘‘और तुम्हारे घर पर कौनकौन हैं?’’ समिता ने बात शुरू की.

‘‘मैं और मेरे मम्मीपापा बस.’’

‘‘अच्छा तो तुम इकलौते बेटे हो अपने मदरफादर के. मेरे तो एक छोटा शैतान भाई है. नाम है सुमित.’’

‘‘चलो अच्छा है कि घर पर इस समय वह तो है तुम्हारे मम्मीपापा के पास नहीं तो वे बेचारे इस समय बिलकुल अकेले होते.’’

‘‘हां, वह तो है. मगर एक बात बताओ तुम यह बीचबीच में गायब क्यों हो जाते हो? क्या घर पर पढ़ाई करते हो टौप करने के लिए? तभी तुम्हारे नंबर अच्छे आते हैं,’’ समिता बोली.

शाश्वत आंखों से मुसकरा दिया और बोला, ‘‘अरे अगर पढ़ाई ही करनी है तो कालेज क्या बुरा है पढ़ने के लिए. मेरी तो मजबूरी है. दरअसल, मेरी तबीयत अकसर खराब हो जाती है. दवा लेने से कुछ दिन ठीक रहता हूं लेकिन कुछ दिन बाद फिर से तबीयत बिगड़ जाती है.’’

‘‘अरे तुम ने किसी अच्छे डाक्टर को नहीं दिखाया और आखिर तुम्हें हो क्या जाता है?’’

शाश्वत ने एक गहरी सांस ली और बोला, ‘‘यह मेरी जिंदगी का एक दुखद पहलू है, जिसे मैं ने आज तक बाहर किसी से भी शेयर नहीं किया है क्योंकि मेरा यह मानना है कि किसी व्यक्ति के जीवन की जो तीव्र, गहन, असाध्य पीढ़ाएं होती हैं वे भी प्रकृति की उसे दी हुई थाती यानी धरोहर होती हैं और इस धरोहर को हृदय की तिजोरी में महफूज रख कर उस के विदीर्ण कर देने वाले दर्द और कसक को केवल स्वयं महसूस करना चाहिए. किसी अन्य से बांटते समय के क्षणों में आप कुछ पलों के लिए उसे विस्मृत हो जाने के भ्रम में हो सकते हैं परंतु इस सा?ा करने की प्रवृत्ति से उस धरोहर की गरिमा को चोट पहुंचती है. जब आप अपने जीवन में उस दर्द की धरोहर को संजो लेते हैं तब वह संजोना और सहेजना ही उस पीड़ा का उपचार अथवा औषधि हो जाता है.’’

समिता स्तब्ध और मौन रह गई थी. तब तक प्रैक्टिकल क्लासेज का टाइम हो चुका था. दोनों सीधे क्लास के लिए चले गए. रात को बिस्तर पर समिता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. पीड़ा की ऐसी अद्भुत उल?ा देने वाली व्याख्या उस ने पहली बार सुनी थी. इस युवक के दिल में कितना कुछ उमड़घुमड़ रहा है, जिसे वह स्वयं तक सीमित रखे है.

कुछ दिनों तक तो समिता की शाश्वत से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुई. अकसर दोनों का आमनासामना हो जाता था लेकिन केवल हायहैलो तक ही सीमित रह जाता. शाश्वत पूर्ववत कालेज अटैंड करता था और कभीकभी अब्सैंट रहता. पहला सेमैस्टर समाप्त हो गया था. शाश्वत के अंक काफी अच्छे आए थे. सैकंड सेमैस्टर में 4-4 स्टूडैंट्स के गु्रप बना कर 1-1 प्रोजैक्ट हर गु्रप को आवंटित कर दिया गया था. हर ग्रुप में जिस भी स्टूडैंट्स के सब से अधिक अंक आए थे वह उस गु्रप का लीडर था. संयोग से शाश्वत के गु्रप में समिता भी थी. उन के अलावा एक लड़का अमित और एक लड़की रत्ना भी थी.

शाश्वत ने पहले दिन ही अपने गु्रप के सदस्यों से कहा, ‘‘देखो हालांकि अधिक अंक आने के कारण मु?ो इस गु्रप का लीडर बनाया गया है लेकिन इसे एक औपचारिकता ही सम?ा. हमारे गु्रप का प्रत्येक सदस्य इस गु्रप का लीडर है और वह अपने प्रोजैक्ट की बेहतरी के लिए अपने सु?ाव दे सकता है और सब का मार्गदर्शन भी कर सकता है. हम लोग मिल कर इस प्रोजैक्ट को सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में कार्य करेंगे. मैं अकसर अपने स्वास्थ्य की वजह से अनुपस्थित रहता हूं लेकिन इस प्रोजैक्ट के संबंध में हर सदस्य मुझ से फोन पर डिस्कस कर सकता है.’’

समिता, रत्ना, अमित और शाश्वत ने प्रोजैक्ट पर कार्य करना आरंभ कर दिया था. समिता देख और सम?ा रही थी कि शाश्वत की हर बात कितनी नपीतुली और सामयिक होती है. जो वह कहना चाहता था, सामने वाले तक ठीक वैसा ही संप्रेषित भी कर पाने में सक्षम था. समिता को पूरा विश्वास था कि उस के गु्रप का प्रोजैक्ट तो टौप करेगा ही करेगा. धीरेधीरे प्रोजैक्ट को कंप्लीट कर के सबमिट करने का समय नजदीक आ रहा था. सारे स्टूडैंट्स बड़े परिश्रम से लगे हुए थे. अब बस थोड़ा ही कार्य शेष बचा था इस प्रोजैक्ट को कंप्लीट करने में. तीन दिन पहले ही शाश्वत ने कालेज आना बंद कर दिया था. पहले दिन तो किसी ने शाश्वत को फोन से संपर्क नहीं किया और सोचा कि शायद कल आ जाएगा लेकिन जब दूसरे दिन भी नहीं आया तो चिंता हुई कि आज का दिन मिला कर केवल 2 ही दिन बचे हैं प्रोजैक्ट को जमा करने में.

मजबूरीवश समिता ने शाश्वत के मोबाइल पर कौल की लेकिन कौल उठी नहीं. फिर उस ने 4-5 बार कौल करने का प्रयास किया लेकिन काल नहीं उठी. समिता कालेज के प्रशासनिक विभाग में गई और संबंधित कर्मचारी से शाश्वत के निवासस्थल का पता मांगा. थोड़ी देर के बाद कर्मचारी ने शाश्वत का पता फाइल से देख कर नोट करवा दिया. क्लासेज समाप्त होने के बाद समिता ने होस्टल के वार्डन को बता कर शाश्वत के घर के लिए एक ओला बुक कर के रवाना हो गई. कैब में उस ने नोट किया हुआ पता दोबारा देखा. पता इस प्रकार था- अमरकांत, सी/401, इन्द्रानगर, कानपुर. नीयर धीरज मार्केट.

कानपुर शहर समिता के लिए अपरिचित था. वह गूगल मैप में भी देखती जा रही थी कि कैब सही रास्ते पर चल रही है या नहीं. सूटरगंज से कैब वीआईपी रोड पर ही चलती हुई कंपनीबाग पहुंची फिर वहां से कानपुर चिडि़याघर होते हुए गुरुदेव पैलेस जाने वाले रोड पर चलने लगी. फिर कैब सीएनजी पंप रोड पर मुड़ गई और 3 किलोमीटर चलने के बाद बाईं ओर इंद्रानगर महल्ला बसा था. सुंदरसुंदर घर और हर गली में 1-1 पार्क बना था. वाटर हार्वेस्टिंग पार्क के निकट ही था शाश्वत का घर. दोमंजिला खूबसूरत घर. बाहर अमरकांत की नेमप्लेट लगी थी. समिता ने कौलबैल दबा दी. एक सभ्रांत से दिखने वाले बुजुर्ग ने लोहे का गेट खोला और प्रश्नवाचक निगाहों से समिता की ओर देखा.

समिता ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘अंकल नमस्ते, मैं समिता हूं और मैं शाश्वत की क्लास में ही पढ़ती हूं. शाश्वत 2 दिनों से कालेज नहीं आया और प्रोजैक्ट भी सबमिट होना था तो मैं ने उसे कई बार फोन मिलाया, जब फोन नहीं उठा तो मैं औफिस से पता ले कर चली आई. कैसा है वह?’’

बुजुर्ग ने आंखों के इशारे से समिता को अंदर आने को कहा. समिता को अंदर ले जा कर ड्राइंगरूम में बैठा दिया. फिर वह बुजुर्ग महोदय धीमी आवाज में बोले, ‘‘बेटा, शाश्वत की तबीयत परसों ज्यादा खराब हो गई थी तो हम लोग उसे डाक्टर के पास ले गए थे. डाक्टर ने दवा वगैरह तो दे दी है लेकिन उसे अभी आराम नहीं है. शायद शाश्वत अभी 2-3 दिन और कालेज नहीं आ पाएगा. तुम चाहो तो थोड़ी देर के लिए उस से मिल सकती हो लेकिन उसे अभी ज्यादा स्ट्रैस नहीं होना चाहिए.’’

‘‘जी अंकल, मैं बस 5 मिनट मिल कर फिर चली जाऊंगी.’’

अमरकांत समिता को भीतर ले गए. बैडरूम में शाश्वत एक चादर ओढ़े दूसरी करवट लेटा था. उस की मां उस के पास ही बैड पर बैठी हुई उस के धीरेधीरे पैर दबा रही थीं. समिता ने मां को सिर ?ाका कर नमस्ते की.

अमरकांत ने शाश्वत की मां से कहा, ‘‘यह अपने शाश्वत की क्लास में ही पढ़ती है. समिता नाम है इस का. शाश्वत से मिलने के लिए आई है.’’

बोलने की आवाजें सुन कर शाश्वत ने आंखें खोल दीं और पलट कर देखा तो समिता खड़ी थी. वह अचंभित हो कर मुसकराया और बोला, ‘‘अरे समिता, आओ बैठो, तुम यहां मेरे घर पर आ गई?’’

‘‘मैं ने तुम्हें फोन तो मिलाया लेकिन जब नहीं उठाया तो मजबूरी में मु?ो यहां आना पड़ा वरना मैं आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहती थी,’’ समिता ने पहले शाश्वत की ओर देखा और फिर उस के मातापिता को देखते हुए अपनी बात समाप्त की.

अमरकांत बोले, ‘‘अरे नहीं बेटी, यह तुम्हारा ही घर है. जब चाहो आओ.’’

‘‘अच्छा तुम दोनों बातें करो. तब तक मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कहते हुए मां चाय बनाने के लिए किचेन में चली गईं.

अमरकांत भी उठ कर ड्राइंगरूम में चले गए.

समिता बोली, ‘‘अब तबीयत कैसी है तुम्हारी?’’

‘‘तबीयत को क्या हुआ है? मैं बिलकुल ठीक हूं. ये सब तो लगा ही रहता है. अम्मांबाबूजी तो नाहक परेशान होते रहते हैं. तुम बताओ प्रोजैक्ट तो लगभग पूरा हो ही गया था.’’

‘‘अरे कहां, अभी फाइनल टच तो देना रह गया है और तुम्हारे बिना तो…’’ समिता ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘क्या रह गया है, बताओ

तो मुझे?’’

तब तक मां चाय की ट्रे ले कर अंदर आ गई थीं. उस ने मां से कहा, ‘‘आंटी, मैं 5 मिनट के लिए अपने लैपटौप से इन को कुछ दिखा कर पूछ लूं?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ मां ने कहा.

समिता ने तुरंत लैपटौप निकाला और औन कर दिया. प्रोजैक्ट की फाइल ओपन हो गई थी. शाश्वत ने 5 मिनट के भीतर ही समिता की बताई हुई दिक्कतों को दूर कर दिया और प्रोजैक्ट फाइनल कर दिया.

‘‘यह लो अपना प्रोजैक्ट कंप्लीट हो गया है. अभी तो हो सकता है कि मैं 2-3 दिन और न आ पाऊं तुम यह प्रोजैक्ट सबमिट करा देना और थैंक्स यहां तक आने के लिए.’’

‘‘और तुम्हारा भी थैंक्स कि इसे पूरा करा दिया.‘‘ समिता ने चाय पीते हुए मुसकरा कर कहा.

शाश्वत अपनी मां की ओर देख कर बोला, ‘‘यह तो अच्छा हुआ अम्मां कि समिता अपना लैपटौप ले कर आ गई नहीं तो हम लोगों का प्रोजैक्ट टाइम से सबमिट नहीं हो पाता.’’

इस के बाद समिता वापस होस्टल आ गई. दिन बीतते जा रहे थे. अब समिता और शाश्वत अच्छे दोस्त बन गए थे. लेकिन अभी तक समिता को शाश्वत की बीमारी के बारे में ढंग से कुछ भी पता नहीं था.

एक दिन समिता ने शाश्वत से कहा, ‘‘मैं अकेले तो होस्टल से कहीं बाहर जाती नहीं हूं और तुम हो कि तुम ने मु?ो अपने कानपुर का कुछ भी नहीं दिखाया है अभी तक. तुम अगर मेरे आगरा में होते तो मैं अब तक तुम्हें पूरा आगरा घुमा डालती.’’

‘‘अच्छा अकेले तो तुम खूब निकलती हो. अभी उसी दिन मेरे घर नहीं आ गई थीं?’’

‘‘अरे वह तो जरूरी था इसलिए… वह कोई घूमना थोड़े ही था.’’

‘‘अच्छा ठीक है. शनिवार को मैं तुम्हें अपने इंस्टिट्यूट के बिलकुल पास ही एक अच्छी जगह ले चलूंगा.’’

समिता खुश होते हुए बोली, ‘‘सच, चलो शनिवार का वेट करते हैं.’’

शाश्वत शनिवार को समिता को अपनी बाइक पर बैठा कर गंगा बैराज ले गया. दोनों टहलतेटहलते गंगा के किनारेकिनारे चले जा रहे थे. गंगा के बहते पानी को देख कर समिता थोड़ा रोमांचित और प्रफुल्लित हो रही थी. उस ने ?ाक कर अपने हाथों से पानी को अपनी अंजुलि में ले कर अपने ऊपर और फिर शाश्वत के ऊपर डाल दिया और खिलखिला कर हंस पड़ी.

शाश्वत थोड़ा ?ोंपता हुआ मुसकराया और रेत पर धीरेधीरे चलने लगा.

समिता ने कहा, ‘‘हम लोग तो चलतेचलते काफी दूर आ गए हैं. चलो वापस बैराज चलते हैं और कुछ खाते हैं. मुझे तो भूख लग रही है.’’

‘‘हां ठीक है चलो. मैं भी थकान महसूस कर रहा हूं,’’ शाश्वत के चेहरे पर शिथिलता नजर आ रही थी.

फिर दोनों बैराज से सटे बने गंगा पुल पर आ गए. पुल के किनारों पर और पुल के दोनों छोरों पर दूर तक तमाम आइसक्रीम वाले, भेलपूरी वाले, पानी के बताशे वाले और भी तरहतरह के ठेले लगे हुए थे. प्रेमी जोड़े कुछ अधिक ही थे. उन में आपस में रूठनेमनाने और अठखेलियां करने का क्रम जारी था. कानपुर वालों के लिए तो यही मरीन ड्राइव था. कुछ लोग अपने बच्चों के साथ घूमने आए थे. सब से ज्यादा परेशानी उन्हें ही हो रही थी क्योंकिअपने छोटे बच्चों को इन प्रेमी पंछियों की उन्मुक्त किलोंलों के दृश्यों को देखने से रोकने का कोई उपाय उन्हें सूझ ही नहीं रहा था. परंतु वे मन ही मन अपने पुराने समय को भी कोस रहे थे कि जब अपने चाहने वाले को एक नजर देखना ही बहुत था और एकाध बार बात कर लेने का अवसर मिल जाने को तो नियामत समझा जाता था. स्पर्श, चुंबन और आलिंगन इत्यादि तो बस स्वप्नों में ही हो पाते थे.

आज देखो शादी तो बस एक सामाजिक औपचारिकता भर ही रह गई है.

विवाह पश्चात के कार्य अब विवाहपूर्व ही संपन्न होने लगे हैं और अब सरकारें भी लिव इन रिलेशन को मान्यता दे चुकी हैं. आजकल महीनोंसालों के प्यारमुहब्बत और लिव इन रिलेशन में रहने के बाद भी तलाक के मामले पुराने जमाने की अपेक्षा घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं.’’

गंगा पुल पर समिता ने एक प्लेट भेलपूरी खाई और शाश्वत चुपचाप खड़ा उसे खाते देखता रहा और समिता उसे देख कर मुसकराती रही. अब तो अकसर शाश्वत और समिता कानपुर के विभिन्न दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए निकल जाते थे. जैसे गंगा बैराज, जेड स्क्वायर, ब्लू वर्ड, जेके मंदिर, इस्कौन मंदिर, मोती?ाल इत्यादि परंतु समिता ने कभी शाश्वत से उस के निजी जीवन की व्यथा नहीं पूछी थी क्योंकि उस दिन शाश्वत ने ही उसे अपनी पीड़ा अपने तक ही रखने का कारण बताया था.

टैक्स्टाइल इंजीनियरिंग में पढ़ाई का दूसरा वर्ष प्रारंभ हो चुका था. सबकुछ पूर्ववत ही चल रहा था. शाम को समिता ने शाश्वत से कहा, ‘‘शाश्वत, तुम मुझे बारबार उन्हीं जगहों पर घुमाने ले जाते हो. अब तुम्हारे इस कानपुर में देखने के लिए कुछ भी नहीं बचा क्या?’’

शाश्वत कुछ पल सोचता रहा फिर बोला, ‘‘जितनी देखने वाली जगहें थीं सब मैं ने तुम्हें घुमा दी हैं लेकिन अब जब तुम ने नई जगह घुमाने के लिए कह ही दिया है तो इस रविवार को मैं तुम्हें एक नई जगह ले चलता हूं लेकिन अभी से उस के बारे में कुछ नहीं बताऊंगा.’’

रविवार को शाश्वत अपनी बाइक में समिता को बैठा कर कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक कसबे बिठूर ले गया. वहां पहुंच कर शाश्वत ने समिता से कहा, ‘‘गंगा नदी के किनारे बसे इस बिठूर कसबे का ऐतिहासिक महत्त्व है. नानाराव पेशवा और तातिया टोपे ने अंगरेजों से यहीं पर लोहा लिया था. ?ांसी की रानी लक्ष्मीबाई का बचपन भी यहीं बीता था.’’

उन दोनों ने पेशवा का किला और संग्रहालय देखा फिर वे कुछ दूरी पर बह रही गंगा के किनारे आ गए. यहां पर कोई पक्का घाट नहीं था. दूरदूर तक बालू फैली थी और गंगा नदी बह रही थी. यहां पर शहर के घाटों जैसी कोई भीड़भाड़ नहीं थी. दोनों गंगा के किनारे अपने कपड़ों को समेटे हुए घुटनों तक पानी में बातें करते हुए धीरेधीरे चल रहे थे. दोनों चलतेचलते कब गहराई की तरफ बढ़ते गए उन्हें बातोंबातों में याद ही नहीं रहा. वहां पर कुछ दूरी पर 2-4 ग्रामीण नहा रहे थे. अचानक शाश्वत का पैर एक गहरे गड्ढे में चला गया और वह डूबने लगा. समिता एक सैकंड के लिए स्तब्ध रह गई और चिल्लाई. उधर शाश्वत बाहर निकलने के लिए हाथपैर मार रहा था. उसे तैरना भी नहीं आता था. समिता ने शाश्वत के पास ही छलांग लगा दी. गनीमत से समिता एक अच्छी तैराक थी. उस ने शाश्वत का हाथ कस कर पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचते हुए किनारे लाने का प्रयास करने लगी. शाश्वत डूबने से बचने के लिए उसे अपनी ओर खींच रहा था जैसाकि आमतौर पर सभी डूबने वाले किया करते हैं. समिता बड़ी चतुराई से अपने को शाश्वत की पकड़ से बचाते हुए उसे खींच कर किनारे ले आई. तब तक वहीं नहा रहे ग्रामीण भी आ गए थे.

उन में से एक ने कहा, ‘‘हम लोग तो मजे से दूर नहा रहे थे. जब तक हम आते तब तक तो इस लड़की ने छलांग लगा कर इसे बचा लिया. बड़ी दिलेर लड़की है यह.’’

दूसरा आदमी बोला, ‘‘थोड़ी देर सुस्ता लो. फिर सब ठीक हो जाएगा.’’

थोड़ी देर रेत पर दोनों ऐसे ही लेटे रहे. थोड़ा ठीक होने पर दोनों उठ कर बाइक के पास आए. शाश्वत ने कहा, ‘‘आज समिता तुम ने मेरी जान बचा कर मेरी अम्मां और पिताजी को कुछ बरसों के लिए नया जीवन दे दिया.’’

‘‘अरे यार, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने तो उस समय जो सू?ा वह किया लेकिन तुम तो बड़े उस्ताद हो. अपने साथ मु?ो भी डुबो रहे थे,’’ कह कर वह हंस पड़ी.

शाश्वत ने बाइक स्टार्ट की और दोनों चल दिए. समिता ने कहा, ‘‘अभी तुम कह रहे थे कि तुम्हारे अम्मां और पिताजी को मैं ने कुछ बरसों के लिए नया जीवन दे दिया? मैं तुम्हारी यह बात सम?ा नहीं?’’

शाश्वत बोला, ‘‘आज तुम ने मुझे मौत के मुंह से बचाया है तो अब तुम्हें मेरे अतीत के बारे में सबकुछ जानने का पूरा अधिकार है. मैं तुम्हें अपने जन्म से ले कर आज तक की पूरी कहानी सुनाता हूं. जब मैं अपनी अम्मां के गर्भ में आया तो वे मेरे पिताजी के साथ बहुत ही खुश थीं. हालांकि उस समय भी गर्भवती महिलाओं की जांचें होती थीं लेकिन आजकल जैसी एडवांस जांचें नहीं थीं.

‘‘डाक्टर भी इस गर्भावस्था को एक सामान्य केस ही मान रहे थे. खैर, मेरा जन्म हुआ. सब लोग बेहद खुश थे. प्रसव चूंकि नौर्मल ही हुआ था इसलिए दूसरे दिन ही मु?ो ले कर अम्मां घर आ गई थीं. शाम को जब मैं ने मल त्याग किया तो उस के साथ ही कुछ खून भी आया. अम्मां तो घबरा गईं कि 3 दिन का बच्चा और यह क्या हो रहा है. वे पिताजी के साथ तुरंत डाक्टर के पास पहुंचीं.

‘‘डाक्टर ने कुछ दवाएं दे दीं और मेरे कुछ टैस्ट कराने को कहा. 2 दिन बाद जब टैस्ट की रिपोर्ट आ गई तो डाक्टर ने मेरी अम्मां और पिताजी से कहा, ‘‘इस बच्चे का जीवन अनिश्चित ही रहेगा. इस की मृत्यु कब हो जाएगी कुछ कह नहीं सकता. हो सकता है कि यह बच्चा 10-12 वर्ष तक भी जी जाए. अगर कुछ चमत्कार हो जाए तो यह भी हो सकता है कि 20-25 वर्ष तक खींच ले जाए. कुछ कहा नहीं जा सकता है. इसे गैस्ट्रोइंटेसटाइनल ब्लीडिंग है जोकि पेनक्रीएटिक ट्यूमर की वजह से है. इतने छोटे बच्चे को इस बीमारी से बचाने के लिए कोई औपरेशन भी नहीं किया जा सकता है और केवल दवाओं और इंजैक्शनों से इस बीमारी को रोकने की कोशिश की जा सकती है.

‘‘10-12 साल का होने पर हम लोग इस के औपरेशन के बारे में सोच सकते हैं बशर्ते तब तक ये ट्यूमर कैंसर में तबदील न होने पाएं.

‘‘तब से मैं दवाओं पर ही निर्भर हो गया हूं. शौच के रास्ते से रक्त आना मेरे लिए एक आम बात हो गई थी. मैं काफी कमजोर और थकाथका सा रहता था. मेरे पिताजी ने मेरे इलाज में कोई कमी नहीं रखी. वे मु?ो ले कर मुंबईदिल्ली के बड़ेबड़े अस्पतालों में गए. 12 साल का होने पर मेरे ट्यूमर में कैंसर के भी कुछ लक्षण पाए गए और मुंबई के टाटा मैमोरियल हौस्पिटल के डाक्टरों ने कहा कि ट्यूमर तो हम निकाल देंगे लेकिन औपरेशन के दौरान मेरी मृत्यु भी हो सकती है. तब मेरी अम्मां ने घबरा कर मेरा औपरेशन करवाने का विचार त्याग दिया और मु?ो दवा के सहारे ही जिंन्दा रखने का निर्णय लिया. तब से ले कर आज तक मैं बस कभी थोड़ा ठीक हो जाता हूं तो कभी बीमार हो जाता हूं. मेरा कोई ठिकाना नहीं है कि कब तक जी पाऊंगा. एक तरीके से मैं अब बोनस की जिंदगी जी रहा हूं क्योंकि शायद मेरी मृत्यु तो अब तक हो ही जाती. इसलिए मैं ने तुम से कहा कि आज डूबने से बचाने पर तुम ने मेरे मांबाप को कुछ समय के लिए सहारा दे दिया.’’

होस्टल आ चुका था. समिता ने डबडबाई आंखों से शाश्वत को विदा किया. रात के 2 बज रहे थे. समिता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह सोच रही थी कि आदमी की जिंदगी कितनी अनिश्चित होती है और मनुष्य बेचारा कितना असहाय. जिन का जीवन आज स्वास्थ्य, धन और प्रतिष्ठा से परिपूर्ण हैं वे भी सुखमय जीवन के लिए आवश्यक सारे संसाधन प्रचुरता से उपलब्ध होने के बाद भी प्रसन्नतापूर्वक नहीं जी पाते हैं. वे आने वाले अनजाने अनिष्ट के डर से वर्तमान समय के सुख को भी डरतेडरते भोग पाते हैं. स्वयं से जुड़े लोग कहीं हम से बिछड़ तो नहीं जाएंगे, कहीं यह न हो जाए, कहीं वह न हो जाए. बस यही सोचते रहते हैं. ये तो एक आम इंसान की कहानी हो गई.

अब यदि किसी को पहले से ही पता हो जाए कि यह विपत्ति आने वाली है तो फिर उस का क्या हाल होगा? शाश्वत और उस के मातापिता तो उस के जन्म के बाद से ही रोज ही जीते और मरते होंगे. हर पल मौत का डर. कब जीवन की डोर टूट जाएगी. जब तक आने वाले अनिष्ट का ज्ञान ही नहीं होता है तो फिर भी मनुष्य थोड़ा तो प्रसन्नतापूर्वक जी ही लेता है लेकिन जब मौत बिलकुल सन्निकट दिखाई देती है, फिर तो हौसला टूट ही जाता है. ये 3 लोगों का परिवार किस तरह से पिछले 20 सालों से हर पल मौत के खौफ में ही जी रहा होगा.

समिता जब इस बार छुट्टियों में अपने घर गई तो अपनी मां से शाश्वत के बारे में जिक्र किया. मां ने जब पूरी कहानी सुनी तो बोलीं, ‘‘यह तो बहुत दुखभरी कहानी तुम ने सुनाई. वो लड़कह तो चला जाएगा लेकिन उस के बाद उस के मांबाप का क्या हाल होगा. वे भी उस के गम में जल्द ही मर जाएंगे. यह तो अच्छा हुआ कि उस के परिवार को सबकुछ पहले से पता है नहीं तो वे अनजाने में किसी लड़की से उस की शादी कर देते तो उस बेचारी की भी जिंदगी बरबाद हो जाती.’’

समिता बोली, ‘‘लेकिन मम्मी, जिन लड़कियों की शादी सबकुछ देखभाल कर की जाती है और फिर भी किसी दुर्घटना या बीमारी से उन के पति की मौत हो जाती है तो फिर क्या किया जा सकता है. मौत का कुछ पता तो होता नहीं है कि किसे, कब, क्यों, कहां और कैसे अपने आगोश में ले लेगी.’’

‘‘वह सब तो बेटा ठीक है लेकिन जानबूझ कर तो कोई मक्खी नहीं निगलता है.’’

समिता खामोश हो कर सोचने लगी थी. समय धीरेधीरे बीत रहा था. समिता पहले की तरह ही शाश्वत से मिलती थी, साथ घूमती थी और कभीकभी उस के घर भी जाती थी. शाश्वत भी पहले की तरह बीचबीच में बीमार हो जाता था. पढ़ाई का अंतिम वर्ष आ गया था. फिर इधर 3 दिनों से शाश्वत कालेज नहीं आ रहा था. रविवार को समिता होस्टल से शाश्वत के घर के लिए ओला बुक कर के चल दी. कानपुर का इंदिरानगर अब समिता के लिए अनजाना नहीं रहा था. पिछले तीन वर्षों में वो कई बार शाश्वत के घर आ चुकी थी. शाश्वत की अम्मां समिता से बहुत अपनत्व से बात करती थीं. घर के सामने कैब से उतर कर उस ने किराया दिया. शाश्वत का घर पार्क फेसिंग था. सामने ही पार्क में बच्चे खेल रहे थे. कुछ बिलकुल छोटे बच्चे अपनी मांओं की गोद में दुबके थे तो कुछ पार्क की नर्ममुलायम मखमली घास में घुटनों के बल चलने की कोशिश कर रहे थे.

बच्चों को देख कर समिता को अपना बचपन याद आ गया. कैसे उम्र इतनी तेजी से भागती है कि बचपन कहीं दूर पीछे छूट जाता है. समिता ने घर का गेट खोला और अंदर प्रवेश कर गई. देखा तो बरामदे में ही अम्मां बैठी साग के लिए बथुआ की पत्तियों को तोड़ कर रख रही थीं.

समिता को देख कर वे खुश हो गईं और बोलीं, ‘‘आओ बिटिया, बैठो मेरे पास. शाश्वत अंदर थोड़ा सो रहा है. दर्द से रातभर बेचारा जागता रहा है.’’

समिता वहीं बरामदे में ही अम्मां की बगल में फर्श पर ही बैठ गई और साग तोड़ने में हाथ बंटाने लगी. समिता बोली, ‘‘अम्मां, अब तो शाश्वत का कैंपस सलैक्शन हो जाएगा तो फिर आप बहू ले आओ तो आप को भी थोड़ा आराम मिले.’’

अम्मां की आंखों में आंसू भर आए और रुंधे गले से बोलीं, ‘‘बिटिया, हम लोग भी जब दूसरे लोगों के घरों में हंसतेखेलते बेटेबहुओं और पोतेपोतियों को देखते हैं तो हमारे कलेजे में एक कसक सी उठती है कि ये सब खुशियां तो हमारे हिस्से में नहीं हैं. न जाने पिछले जन्मों में हम लोगों से क्या कर्म किए हैं जो हम लोग बस

एक आने वाली विपदा के डर में ही जी रहे हैं. तुम्हें तो सब पता है ही बिटिया कि हमारे बेटे को क्या बीमारी है. हम तो वे मांबाप हैं, जो इस के जन्म के बाद से ही ढंग से न हंस पाए और न जी पाए. बस यह डाक्टर वह डाक्टर, यह शहर तो वह शहर. मारेमारे ही घूमते रहे. लेकिन सब बेकार. बस यही गनीमत है कि बेटा अभी तक तो हमारे साथ ही है. उस का मुंह देख कर ही जी रहे हैं हम.’’

समिता ने अम्मां के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘अम्मां आप धीरज रखो. सोचो कि जिस इंसान के ऊपर ये सब बीत रही है वह कैसे मुसकरा कर ये सब झेल रहा है.’’

अम्मां फफक पड़ीं, ‘‘बिटिया, हमारा बेटा तो जन्म से ये सब देख रहा है. जब यह छोटा था तब तो हम इसे बहला देते थे कि तुम तो मेरे बहादुर बेटे हो. तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे लेकिन जैसेजैसे बड़ा हुआ और बीमारी ठीक नहीं हुई तो इसे भी सम?ा आने लगा कि वह और बच्चों जैसा नहीं है. फिर भी बहुत हिम्मत वाला है. हमेशा हम लोगों को दिलासा देता रहता है.’’

एक मां के लिए इस से बढ़ कर तकलीफ और लाचारी की बात और क्या हो सकती है जब मृत्यु उस के कलेजे के टुकड़े को उस की ही आंखों के सामने, क्रूरतापूर्वक अपने पंजों से बस दबोचने के लिए तत्पर बैठी हो. अम्मां की व्यथा और आंसुओं से समिता का मन दुख और करुणा से छलक उठा था. उस दिन उस की हिम्मत शाश्वत से मिलने की नहीं हुई और वह उस से बिना मिले ही होस्टल लौट आई.

कुछ दिनों के बाद शाश्वत को डाक्टर ने चैकअप कर बताया था कि कैंसर धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा है. बेहतरीन से बेहतरीन दवाओं से कुछ समय के लिए कैंसर की ग्रोथ थम जाती लेकिन फिर से बढ़ने लगती.

एक दिन शाश्वत और समिता 25 दिसंबर की छुट्टी के दिन दोपहर को कानपुर के एलन फौरेस्ट के सफारी में एकांत में बैठे थे. सामने विशाल गहरी झील थी, जिस में बत्तखें और कई विदेशी साइबेरियन पक्षी तैर रहे थे या किनारों पर कुनकुनी धूप का मजा ले रहे थे. कुछ मगरमच्छ भी कभीकभी दिखाई दे रहे थे.

शाश्वत ने समिता से कहा, ‘‘सुना है कि तुम गाना बहुत अच्छा गाती हो?’’

‘‘हां गुनगुना लेती हूं लेकिन तुम्हें कैसे पता चला?’’

‘‘वह तुम्हारे होस्टल के कमरे में तुम्हारे साथ रहने वाली पुनीता ने बातोंबातों में बताया था एक दिन. आज एक गीत मु?ो भी सुनाओ न तुम अपनी पसंद का.’’

समिता ने मना नहीं किया और एक फिल्मी गीत गाने लगी:

‘‘अगर मु?ा से मुहब्बत है, मुझे सब अपने गम दे दो इन आंखों का हर एक आंसू मु?ो मेरी कसम दे दो तुम्हारे गम को अपना गम बना लूं तो करार आए तुम्हारा दर्द सीने में छिपा लूं तो करार आए. वो हर शय जो, तुम्हें दुख दे, मुझे मेरे सनम दे दो अगर मुझ से मुहब्बत है…’’

गाना समाप्त हो गया था और शाश्वत बिना कुछ बोले चुपचाप बैठा रह गया था. उसे लग रहा था जैसे समिता गाने के जरीए अपने दिल की बात कह रही हो.

आखिर समिता ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘शाश्वत, तुम इतने खामोश रहते हो. तुम्हारी बीवी तो तुम से बोर हो जाएगी.’’

शाश्वत ने समिता की ओर देखा फिर बोला, ‘‘क्यों मजे ले रही हो. मेरे अल्पजीवन को जानते हुए कोई क्यों मुझ से शादी करेगा और अगर कोई मुझ से हमदर्दी या मजबूरी में शादी करने को राजी हो भी जाए तो मैं क्यों अपनी शादी कर के किसी मासूम को शीघ्र विधवा बनाने के लिए तैयार हो जाऊंगा?’’

‘‘तुम कह तो ठीक रहे हो बाबू लेकिन यह बताओ कि इस की क्या गारंटी है कि तुम्हारी जिंदगी जल्द ही खत्म हो जाएगी और जो लोग पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं वे भी तो कभीकभी विवाह के पश्चात शीघ्र मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं तो इस का मतलब यह है कि मृत्यु के भय से किसी को शादी ही नहीं करनी चाहिए?’’

‘‘फिर वही बात आ जाती है कि जानतेबूझते किसी को भी अपनी या दूसरे की जिंदगी बरबाद करने का कोई हक नहीं है,’’ शाश्वत बोला.

 Famous Hindi Stories : मंगली लड़की – बादल के पिता नताशो को क्यों बहू मानने से इनकार कर रहे थे?

Famous Hindi Stories : नताशा का मोबाइल बहुत देर से शोर कर रहा था लेकिन वह वहां हो तो मोबाइल अटैंड करे. वह तो मौनिंग वाक पर गई थी. नताशा की आदत थी कि मौनिंग वाक पर मोबाइल साथ में नहीं रखती थी. उस की यह आदत बादल जानता था. फिर भी उस ने नताशा को फोन कर दिया. इतनी बड़ी खुशखबरी जो देनी थी. खुशी के उत्साह में वह भूल गया. चलो जाने दो. वाक से आएगी तब कौल बैक कर लेगी. यह सोच कर बादल अपना लैपटौप खोल कर औफिस का काम करने लगा. सुबह 8 बजे नताशा का मोबाइल आया. वह नाराज थी.

बादल ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

नताशा बोली, ‘‘तुम्हें पता है मैं मौर्निंग वाक में मोबाइल साथ नहीं रखती, फिर भी तुम ने इस समय फोन किया.’’

‘‘बाबा, सौरी. बात ही

ऐसी थी.’’

‘‘क्यों क्या हुआ?’’

नताशा बोली.

‘‘तुम ने जो वह कुंडली भेजी थी मैं ने वह अपने परिवार वालों को व्हाट्सऐप कर दी थी. उन्होंने मेरीतुम्हारी कुंडली मैच करवाई हैं पूरे 36 गुण मिल गए हैं. इसलिए शादी पक्की है हमारी.’’

नताशा जोर से हंसने लगी. जब हंसी रुकी तो बोली, ‘‘बादल ये सब फुजूल की बातें हैं. तुम भी क्या सोचने लगे.’’

‘‘यार, विश्वास तो मैं भी नहीं करता पर शादी की शर्त पापा ने यही बताई थी कि कुंडली अगर मिल गई तो मु?ो ऐतराज नहीं है. इसलिए करना पड़ा. सम?ा करो,’’ बादल बोला.

‘‘यह भी ठीक है. चलो आज शाम को डिनर पर मिलते हैं. तब बात करेंगे. मुझे भी तैयार होना है. तुम भी रैडी हो जाओ.’’

शाम ने सितारों की चुनर ओढ़ ली थी. चांद आवारा हो चला था. झील के चमकीले पानी में चांद अपना चेहरा देखदेख कर मुसकरा उठता था. झील के सामने बना खूबसूरत होटल था ‘स्टार.’ नताशा इंतजार कर रही थी. बादल नहीं आया था. नताशा को 20 मिनट हो गए थे. वह फोन नहीं करना चाहती थी क्योंकि उसे कार ड्राइव करते समय मोबाइल पर बात करना पसंद न था. थोड़ा इंतजार और सही.

तभी बादल आता दिखाई दिया. जल्दीजल्दी कदम उठाता वह नताशा के नजदीक पहुंचा, ‘‘सौरी यार ट्रैफिक में फस गया था,’’ बादल बोला.

‘‘ओकेओके,’’ नताशा मुसकरा दी.

‘‘कुछ और्डर किया या यों ही बैठी हो?’’

‘‘तुम्हारा इंतजार कर रही थी,’’ नताशा बोली.

‘‘ओके बाबा कर देते हैं और्डर,’’ नताशा बोली और मेनू कार्ड उठा लिया.

बादल नताशा की सुंदरता में खो गया. लगभग 25 वर्षीय नताशा गोरी न हो कर बदामी रंग की थी. कंधों तक कटे बाल, कानों में डायमंड के छोटेछोटे टौप्स, एक हाथ में ब्रेसलेट और होंठों  पर हलकी सी लिपस्टिक. सिंपल सा लुक.बादल को यों भी ज्यादा मेकअप से चिढ़ थी. नताशा उसे इसलिए पसंद थी.

नताशा ने और्डर दे कर बादल की तरफ देखा तो वह उसे ही देख रहा था.

‘‘क्या हुआ?’’ नताशा ने पूछा.

‘‘नताशा कितनी प्यारी लग रही हो,’’ बादल रोमांटिक होने लगा.

‘‘पहली बार देख रहे हो? हम

1 साल से एकदूसरे के करीब है.’’

तभी बादल के मोबाइल पर मैसेज आया. देखा तो मां का मैसेज था कि बेटा कब आ रहे हो? शादी की तारीख पक्की करनी है. बादल ने नताशा को बताया.

नताशा बोली, ‘‘संडे को मिल लेते हैं.

1 दिन की छुट्टी ले लेते हैं.’’

‘‘ठीक है तुम भी अपने मौमडैड को बोल देना.’’

वेटर डिनर टेबल पर सजा गया था. दोनों डिनर में व्यस्त हो गए. नताशा स्कूल में टीचर थी. बादल एक प्राइवेट कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर था. बादल अपने दोस्त के साथ नताशा के स्कूल गया था वहां नताशा और बादल की मुलाकात हुई थी. लगभग 1 वर्ष की रिलेशनशिप में दोनों ने शादी का फैसला लिया था. बादल के मम्मीपापा वाराणसी में थे. नताशा का परिवार अहमदाबाद में था. जौब उस की भी अहमदाबाद में थी. बादल ने डिनर के बाद घर फोन लगा कर बता दिया कि वह नताशा के मौमडैड के साथ नैक्स्ट वीक वाराणसी पहुंच जाएगा. 3 दिन बाद ही संडे था. जनवरी का महीना था. 1-2 छुट्टियां भी आ रही थीं. संडे के साथ उन का भी फायदा मिल गया.

जब नताशा के परिवार वाले बादल के साथ वाराणसी पहुंचे तो अंधेरा होने लगा था. बादल के परिवार ने गरमजोशी से स्वागत किया. बादल के मम्मीपापा अपनी होने वाली बहू को देख कर खुश थे. बादल के पापा सरकारी नौकरी में थे. उन्होंने स्वेच्छा से रिटायरमैंट ले लिया था. पुश्तैनी बड़ा मकान था. पैंशन आ रही थी. वे संतुष्ट और खुश थे.बादल उन का इकलौता बेटा था.

नताशा और उस के मौमडैड भी खुश थे. नताशा के डैड की अहमदाबाद में शौप थी. नताशा उन की इकलौती बेटी थी.

सुबह से ही घर में चहलपहल शुरू हो गई थी. दोनों परिवारों ने तय किया कि शाम को सगाई की रस्म कर दी जाए. नताशा के परिवार वाले दामाद के लिए शौपिंग करने मार्केट निकल गए. नताशा और बादल अपनी बाइक पर गंगा घाट चले गए. गंगा में नोका विहार करते हुए  नताशा के चेहरे से खुशी ?ालक रही थी. बादल के फोन की मधुर आवाज गूंजने लगी. बादल ने देखा उस के मामा थे.

‘‘हैलो भानजे बधाई हो शाम को हम भी समय पर पहुंच जाएंगे बहू को आशीर्वाद देने.’’

‘‘हां, मामाजी, थैंक्यू मिलते हैं शाम को.’’

शाम को सब परिवार वाले तैयार हो चुके थे. नताशा ने बड़ी प्यारी साड़ी पहन रखी थी. बादल ने भी लौग कुरते पर सिल्क का दुपट्टा ले रखा था. उस में वह बेहद हैंडसम लग रहा था. बादल के पापा ने शादी की तारीख के लिए पंडितजी को भी बुला लिया था. पंडितजी वहीं थे जिन्होंने कुंडली मिलाई थी. सिर्फ परिवार के लोग थे. बादल के मामा और बादल के करीबी दोस्त जो वाराणसी के ही थे.

बड़े ही खुशनुमा माहौल में सगाई की रस्म पूरी हो चुकी थी. सभी डिनर का आनंद लेने लगे थे. पंडितजी शादी के शुभ मुहूर्त के लिए अपनी पोथी देख रहे थे. डिनर समाप्त हो रहा था. सभी बादल की मां के हाथ की बनाई खीर की मिठास में खोए थे.

बादल नताशा से बोला, ‘‘नताशा, मम्मी से खीर बनाना सीख लेना. मुझे पसंद है मेवो वाली खीर.’’

नताशा हंस दी.

तभी बादल के मामा की कड़क आवाज गूंजी, ‘‘यह शादी नहीं होगी… यह शादी गलत है.’’

सभी चौंक गए. नताशा के डैड अचानक हुई इस बात से घबरा गए. खीर का स्वाद कड़वा लगने लगा.

‘‘क्यों क्या हुआ?’’ बादल के पापा घबरा गए.

बादल गुस्से में बोला, ‘‘मामाजी क्या बोले जा रहे हो? कुछ होश है?’’

‘‘बेटा में होश में हूं,’’ मामा बोले.

‘‘क्या बात है?’’ नताशा बोली.

‘‘पहले पूरी बात सुनो,’’ मामा बोले.

पंडितजी भी घबरा गए. बोले, ‘‘ऐसी अशुभ बातें क्यों बोले जा रहे हो?’’

‘‘मैं ने कोई अशुभ बात नहीं बोली. अशुभ तो आप करवा रहे हो,’’ मामा बोले.

‘‘मैं ने क्या किया?’’ पंडितजी बोले

‘‘आप ने नताशा की कुंडली नहीं देखी? आप मुहूर्त देख रहे थे. नताशा और बादल की कुंडली मैं ने भी अच्छी तरह देखी. नताशा तो मंगली है. इस की शादी बादल से होगी तो बादल पर संकट आएगा.’’

‘‘मैं नहीं मानता हूं,’’ बादल बोला.

कुछ नहीं होता अंगलीमंगली.’’

‘‘तुम्हारे मानने न मानने से बात बदलेगी नहीं. नताशा मंगली है तो शादी हम भी नहीं करेंगे,’’ बादल के पापा बोले.

‘‘आप इतने शिक्षित हो कर कैसी बात करते हैं? पंडितजी ने कुंडली मिलाई थी तब तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा था,’’ नताशा के डैड बोले.

‘‘पंडितजी झूठ क्यों बोलेंगे?’’ बादल की मां ने सवाल किया.

‘‘मंगली वाली बात छिपा गए हैं.’’

‘‘ऐसा नहीं है. नताशा की कुंडली में मंगल है, यह बात मैं ने बादल से कही थी. बादल ने

ही कहा था कि पंडितजी यह कोई खास बात नहीं है. आप घर पर इस का जिक्र मत करना. बाकी 36 गुण मिल गए थे. इसलिए मैं ने बताना उचित नहीं सम?ा,’’ पडितजी बोले.

‘‘आप ने अच्छा नहीं किया पंडितजी,’’ बादल की मां ने कहा, ‘‘मैं मंगली लड़की से बादल की शादी नहीं कर सकती. मेरा इकलौता बेटा है,’’ बादल की मां ने रोना शुरू कर दिया.

मामा अपनी बहन को चुप कराने में लग गए.

‘‘मां किस युग में जी रही हो ऐसा कुछ भी नहीं होता,’’ बादल बोला.

सारा माहौल बदल गया था. जो पहले खुश थे नताशा की सुंदरता को ले कर उन को नताशा अब बुरी लगने लगी थी. नताशा और उस के डैड भी परेशान थे. उन्होंने भी समझने की कोशिश की लेकिन बादल की मां और पापा अब नताशा को बहू नहीं बनाना चाहते थे.

आखिर नताशा ने कहा, ‘‘फिलहाल घर वालों की सोच इतनी जल्दी नहीं बदलेगी.

हम बाद में सोचेंगे. हम लोग कल अहमदाबाद लौट जाएंगे.’’

बादल की आंखों में आंसू भर आए. बोला, ‘‘नताशा इतनी जल्दी हमारे सपने टूट गए.’’

‘‘बादल टैंशन लेने की जरूरत नहीं है. अपनी जौब पर फोकस करो.’’

नताशा के डैड जानते थे उन की बेटी समझदार है कुछ सोचा ही होगा. नताशा यों भी मानसिक रूप से मजबूत लड़की थी. उन्हें नताशा पर पूरा भरोसा था.

‘‘जैसा तुम्हें ठीक लगे,’’ बादल बोला. वह उदास और दुखी था.

दूसरे ही दिन नताशा का परिवार अहमदाबाद लौट गया.

बादल का मूड भी खराब हो चुका था. उस के करीबी दोस्तों ने भी बादल के परिवार वालों को सम?ाने की कोशिश की. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. बादल को अपने मामा दुश्मन नजर आने लगे थे. मामा की लगाई आग थी? जिस में उस का प्यार जल गया. उस की शादी पक्की होतेहोते रह गई. बादल भी कुछ दिन रहा फिर वापस लाने की तैयारी करने लगा.

बादल के पापा बोले, ‘‘बेटा चिंता मत करो तुम्हें नताशा से भी अच्छी लड़की मिलेगी, यहीं वाराणसी में.’’

‘‘बेटा नताशा पर ही जिंदगी खत्म नहीं होती,’’ मामा भी बोले.

‘‘नताशा से अच्छी लड़की नहीं चाहिए. मुझे नताशा से ही शादी करनी है. वह एक अच्छी बहू साबित होगी. आप एक बार अपने फैसले पर फिर सोच कर देखो. इस युग में अंधविश्वासी मत बनो मां. बादल ने एक बार दोबारा कोशिश की.

‘‘देखो बेटा शादी करने पर तुम पर कोई संकट आ गया तो?’’ बादल की मां का रोना फिर शुरू हो गया.

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा चिंता मत करो,’’ बादल गुस्से में आ गया. वह अब थक गया था सम?ातेसम?ाते.

बादल भी वापस आ गया अहमदाबाद. जौब से ज्यादा दिन छुट्टी नहीं ले सकता था.

वापस अहमदाबाद आ कर जीवन उसी रूटीन पर चलने लगा. थोड़ेथोड़े दिनों में बादल के पापा लड़कियों के फोटो बादल के पास भेजते रहते थे. बेटा लड़की देख कर पसंद करो जिस से कि आगे बात चलाई जाए. लेकिन बादल टालता रहता.

लगभग सालभर बाद एक दिन बादल ने पापा को फोन कर बोला, ‘‘पापा मैं ने एक लड़की पसंद की है. जल्द ही आप से मुलाकात कराऊंगा. आप मु?ो लड़कियों के फोटो भेजना बंद कर दो.’’

‘‘अरे वाह, अच्छी बात है कब आएं हम लोग?’’ पापा बोले.

‘‘पापा मेरा प्रमोशन ड्यू है कुछ महीनों में मैं ही आ जाता हूं आप की बहू को ले कर.’’

‘‘बेटा तुम ने मेरा मान रख नताशा का पीछा छोड़ दिया. हम सब को तुम पर गर्व है,’’ बादल के पापा खुश थे.

कुछ महीनों बाद ही बादल अपनी पत्नी को ले कर वाराणसी पहुंच गया. गुलाबी जोड़े में सजी दुलहन सुंदर लग रही थी. हाथों में मेहंदी का रंग गहरा था.

‘‘अरे वाह, मेहंदी का रंग गहरा है. दुलहन संस्कारी भी है, सिर नहीं उघाडे़ हैं, सिर, चेहरा ढके हैं.

‘‘आओ बेटी अंदर आओ,’’ बादल की मां खुश थीं. मां ने महल्ले की महिलाओं को बुलाया था.

बादल के कुछ करीबी दोस्त भी जो मंदमंद मुसकरा रहे थे.

दुलहन बादल की मां के पैर छूने के लिए झुकी ही कि मां ने उसे गले लगा लिया. तब तक दुलहन चेहरे से घूंघट हटा चुकी थी.

‘‘अरे, यह नताशा है मंगली,’’ बादल की मां ने दुलहन को एकदम से दूर कर दिया.

बादल के पापा गुस्से से बोले, ‘‘नाक कटा दी तुम ने… नताशा को नहीं छोड़ा था तुम ने?’’

‘‘पापा आप लोगों ने मंगली होने की वजह से नताशा को छोड़ा था, जबकि नताशा में कोई कमी नहीं थी. मैं ने अहमदाबाद जाते ही नताशा से कोर्ट मैरिज कर ली थी. हमारी शादी को डेढ़ साल होने वाला है लेकिन मैं सहीसलामत हूं. मुझे कुछ नहीं हुआ है. न ही कोई दुर्घटना हुई मेरे साथ. बताइए आप की मंगली वाली बात गलत हुई?’’

‘‘क्या बात करता है तू? तुझ पर कोई प्रभाव नहीं?’’ बादल के पापा आश्चर्य से बोले.

‘‘हां पापा सबकुछ बढि़या है. मुझे मामा पर कुछ शक हुआ था जब उन्होंने नताशा के घर अपने साले के बेटे का रिश्ता भेजा था. उन्हें पता था कि नताशा के पेरैंट्स के पास बहुत पैसा है. मामा ने यह पौलिटिक्स खेली थी. नताशा की जौब भी अच्छी चल रही है. मेरा प्रमोशन भी हो गई है. आप की प्रमोशन भी होने वाली है,’’ बादल मुसकराया.

मेरी क्यों प्रमोशन होगी? मैं तो रिटायर हो गया हूं,’’ बादल के पापा बोले.

‘‘आप जौब से रिटायर हुए हैं. परिवार की जौब से रिटायर नहीं हुए हैं. कुछ महीनों में पापा आप दादा बनने जा रहे हो. नताशा ने मैटरनिटी लीव ले ली है. आप के पास ही रहेगी डिलिवरी तक.’’

‘‘बेटा, तुम ने तो मेरी बरसों की सोच ही बदल दी,’’ बादल की मां की आंखों में खुशी के आंसू भर आए, ‘‘नताशा बेटा मुझे माफ कर दो.’’

नताशा मुसकरा दी और फिर सासूमां के पैरों में झुक गई. सास ने भी उसे गले लगा लिया.

घर में मंगल गान शुरू हो गया था. सब शुभ और मंगल जो हो गया था.

Smelly Scalp : स्मैली स्कैल्प्स से ऐसे पाएं छुटकारा

Smelly Scalp :  क्या आप के स्कैल्प से अजीब सी गंध निकलती है? क्या कई लोग आप को टोक चुके हैं कि आप के सिर से बदबू आती है? अगर ऐसा है, तो परेशान होने की जरूरत नहीं है, इस का उपाय है. दरअसल, यह आप के स्कैल्प पर पनप रहे बैक्टीरिया हैं जो इस के लिए जिम्मेदार हैं.

वैसे, स्कैल्प से बदबू आने के कई कारण हो सकते हैं जैसेकि हारमोनल चैंज के कारण भी स्कैल्प से बदबू आने की संभावना अधिक होती है. साथ ही जैसेजैसे गरमी बढ़ेगी वैसेवैसे शरीर और बालों से पसीने की समस्या भी बढ़ने लगेगी. यह भी स्कैल्प से आने वाली बदबू का एक कारण होता है. कई बार यह समस्या स्कैल्प के पीएच बैलेंस के बिगड़ने की वजह से होती है. इसलिए स्कैल्प की फंगस, बैक्टीरिया, ड्राई फ्लैक्स आदि के बारे में जानें और उसे ठीक करने की कोशिश करें.

इस के अलावा सैबोरिक डर्मैटाइटिस (Seborrheic Dermatitis) एक मैडिकल कंडीशन है जो फंगल और तेल के अत्यधिक प्रोडक्शन का कारण बनती है, जिस से सिर में असंतुलित निर्माण होता है, जिस से बालों और सिर से दुर्गंध आती है. इसे बदबूदार स्कैल्प सिंड्रोम के नाम से भी जाना जाता है.

साथ ही सोराइसिस, एक औटोइम्यून विकार है, जो स्कैल्प को भी प्रभावित करता है जिस से वह ड्राई हो जाती है. इस के अलावा, यह माइक्रोबियल विकास के असंतुलन का कारण बनता है, जिसे द्वितीयक संक्रमण कहा जाता है, जिस से दुर्गंध आती है.

प्यूबर्टी और टैंशन के दौरान हारमोंस ग्रंथियों की गतिविधियां बढ़ जाती हैं, जिस से सीबम और पसीने का प्रोडक्शन बढ़ जाता है.

ऐंड्रोजन (पुरुष हारमोन) के अत्यधिक स्राव से ग्रंथियां अतिसक्रिय हो जाती हैं, जिस से सिर की त्वचा में जमाव और दुर्गंध तेज हो जाती है.

लेकिन आप के स्कैल्प में क्या समस्या हो रही है इस का पता लगाए बिना कुछ भी उपयोग न करें. बैक्टीरियल, फंगल, वायरल अलगअलग तरह के इन्फैक्शन में अलग ट्रीटमैंट दिया जाता है और जब तक आप को यह न पता चले कि बदबू क्यों आ रही है तब तक कुछ भी स्कैल्प में इस्तेमाल करने से न सिर्फ बालों के झड़ने की प्रौब्लम बढ़ सकती है बल्कि इस से स्कैल्प का पीएच बैलेंस गड़बड़ा सकता है.

इसलिए सब से पहले डाक्टर को दिखा कर बीमारी का पता लगाएं और उस के बाद डाक्टर द्वारा बताए निर्देश को ही फौलो करें.

मैडिकल ट्रीटमैंट के विकल्प

ऐंटीफंगल शैंपू : स्कैल्प पर मौजूद फंगस को मारने के लिए ऐंटीफंगल शैंपू ठीक रहता है. यह शैंपू फंगल इन्फैक्शन को कंट्रोल करता है जिस से धीरेधीरे स्मैल आनी कम हो जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह फंगस को आगे बढ़ने नहीं देता और ठीक करता है. इस से बालों में होने वाली खुजली और जलन भी कम होती है. जब यह सब ठीक होने लगता है तो बदबू आनी अपनेआप ठीक हो जाती है.

इस का इस्तेमाल करना भी बहुत आसान है. शैंपू को स्कैल्प पर लगाएं और हलके हाथों से मालिश करें. इसे कुछ मिनट के लिए लगा रहने दें. फिर ठंडे पानी से धो लें.
ऐंटीफंगल शैंपू का इस्तेमाल हफ्ते में 2-3 बार करें.

ऐंटीफंगल शैंपू कई तरह के आते हैं

पायरिथियोन जिंक युक्त शैंपू : यदि कारण मालासेजिया जैसा कोई फंगस है, तो डाक्टर पायरिथियोन जिंक युक्त एक विशेष प्रकार के ऐंटी डैंड्रफ शैंपू का सुझाव दे सकते हैं. यह शैंपू फंगस को मारने और उस के प्रसार को रोकने में मदद करता है.

सेबोसोरिस शैंपू : यह शैंपू फंगस से होने वाले सोरायसिस के इलाज में मदद करता है.

सैलिसिलिक एसिड युक्त शैंपू : सैलिसिलिक एसिड शैंपू एक दवा है जो रूसी, सोरायसिस, ऐक्जिमा और डर्मेटाइटिस का इलाज करता है. आप इस शैंपू को अपने गीले बालों पर लगा सकते हैं और मालिश कर सकते हैं. आप इसे धोने से पहले कई मिनट तक अपने सिर पर लगा रहने दे सकते हैं. यह शैंपू फंगल संक्रमण को कम करने के साथसाथ अतिरिक्त तेल और मृत त्वचा कोशिकाओं को भी हटाता है.

कैटोकोनैजोल (Ketoconazole) : कैटोकोनैजोल शैंपू का इस्तेमाल आमतौर पर स्कैल्प पर होने वाले संक्रमण के इलाज के लिए एक ऐंटीफंगल दवा के रूप में किया जाता है जो मालासेजिया नामक फंगस के कारण होने वाले रूसी और अन्य फंगल संक्रमण को कम करने में मदद करता है. इस का उपयोग स्कैल्प के इन्फैक्शन का इलाज करने के लिए किया जाता है.

केटोकोनैजोल का उपयोग बैक्टीरिया या फंगल वृद्धि जैसे दादखाज, खुजली, सेबोरहाइक डर्मेटाइटिस या यहां तक ​​कि रूसी के कारण होने वाले कई तरह के स्किन इन्फैक्शन के लिए किया जाता है. इस का उपयोग सोरायसिस के इलाज के लिए भी किया जाता है.

ऐंटीफंगल शैंपू के इस्तेमाल से पहले

यदि आप को स्कैल्प पर फंगल संक्रमण की समस्या है, तो डाक्टर से सलाह लेना बेहतर होगा. डाक्टर आप की समस्या के अनुसार सही शैंपू और इलाज की सलाह दे सकते हैं.

ओरल ऐंटीफंगल या ऐंटीबैक्टीरियल दवा

यदि इन्फैक्शन गंभीर है या स्थानीय उपचार से ठीक नहीं हो रहा है, तो डाक्टर ओरल ऐंटीफंगल या ऐंटीबैक्टीरियल दवा लिख सकते हैं.

ऐंटीफंगल क्रीम या लोशन

फंगल इन्फैक्शन के लिए डाक्टर ऐंटीफंगल क्रीम या लोशन (जैसेकि क्लोट्रिमेजोल या माइकोजोल) की सलाह दे सकते हैं.

ऐंटीफंगल क्रीम या लोशन के विकल्प

क्लोट्रिमेजोल (Clotrimazole) : क्लोट्रिमाजोल 2% क्रीम एक ऐंटीफंगल दवा है जो त्वचा के फंगल संक्रमण के इलाज में मदद करती है. यह फंगस की वृद्धि को रोकता है और मारता है. जैसेकि दाद या जौक खुजली. आप इसे सिर के स्कैल्प पर और आसपास की त्वचा पर पतली परत में लगा सकते हैं. यह इन्फैक्शन के कारण होने वाले लक्षणों से राहत देता है.

*सैलीसिलिक एसिड (Salicylic Acid) : सैलिसिलिक एसिड एक बीटा हाइड्रौक्सी एसिड है. रूसी, सोरायसिस के इलाज में इस की प्रभावशीलता के कारण इसे ‘केराटोलिटिक एसिड’ कहा जाता है. सैलिसिलिक एसिड त्वचा को ऐक्सफोलिएट करने और त्वचा के छिद्रों को साफ बनाए रखने का काम करता है. यह रूसी और अन्य फंगल संक्रमण के इलाज में मदद कर सकता है.

ध्यान रखें

आप को डर्मेटोलौजिस्ट को एक बार दिखा लेना चाहिए. हेयर स्मैल के लिए मैडिकल ट्रीटमैंट तो हमेशा ही कारगर सिद्ध होता है. डर्मेटोलौजिस्ट आप को सूटेबल मैडिकेटेड हेयर केयर प्रोडक्ट्स प्रिस्क्राइब करेगा और प्रौपर हेयर केयर रूटीन भी सजैस्ट करेगा, जो आप के बालों को सूट हो.

औरतों को कमजोर करने की साजिश

सूटकेस में लाशें भर कर ले जाने के मामले तो बहुत से आए हैं पर जिंदा लड़की को उस की मरजी से ले जाने के मामले कम ही आते हैं. दिल्ली के पास की जिंदल यूनिवर्सिटी में बौयज होस्टल में एक लड़की को स्मगल करने के लिए लड़कों ने सूटकेस का इस्तेमाल करना चाहा पर 25-30 किलोग्राम का वजन भी मुश्किल से ले जाने के लिए बने सूटकेस में अगर 50-60 किलोग्राम की लड़की को किसी तरह फिट भी कर लिया जाए तो लड़की का चाहे कुछ हो, सूटकेस के अंजरपंजर ढीले हो जाएंगे.

इस सूटकेस को घसीटने के चक्कर में उस का एक व्हील टूट गया और अंदर छिपी लड़की घबरा कर चीख उठी तो सिक्युरिटी स्टाफ को शक हो गया. जब सूटकेस खोला तो उस में जिंदा लड़की निकली. इस मामले में जबरदस्ती कहीं नहीं थी, यह सिर्फ सिक्युरिटी की आंखों में धूल झोंक कर बौयज होस्टल में लड़की को स्मगल करने का प्रैंक था.

सवाल उठता है कि बौयज होस्टलों में लड़कियों के आनेजाने पर बैन ही क्यों हो? जब होस्टलों में सब एडल्ट हैं और आने वाली लड़कियां भी एडल्ट हैं तो कौन सी मोरैलिटी की परतें गल जाएंगी अगर लड़कियां खुलेआम दिनरात साथ न बिता सकें.

असल में तो होस्टल स्टूडैंट्स होस्टल होने चाहिए. बौयज या गर्ल्स होस्टल नहीं. यह डिवीजन असल में उस मोरैलिटी का नतीजा है कि अगर लड़केलड़कियों को साथ मिलने दिया तो लड़कियां बिगड़ जाएंगी. यह नितांत बेवकूफी वाली बात है क्योंकि सदियों से मेलफीमेल संबंध सहमति से या जबरन समाजों के नियमों के बावजूद बनते रहे हैं और उन के बाद भी समाज में न अराजकता है न कोई लंबाचौड़ा डर.

घरों में लड़कियां सेफ रहती हैं, यह सिर्फ इसलिए है कि लड़के सोशल लिमिट्स जानते हैं. अगर लड़के चाहें तो वे किसी भी घर में घुस सकते हैं और कोई लड़की सेफ नहीं होती. सोशल मोरैलिटी तो वैसे ही पूरे जोरशोर से मानी जाती रही है और कुछ थोड़े से अपवाद होते तो उन के कारण बेमतलब का मंदिरोंमसजिदों की तरह औरतोंआदमियों के अलगअलग खेमे बना देना यूजलैस ही है.

अगर जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के मैनेजमैंट को अपने स्टूडैंट्स पर इतना भी भरोसा नहीं कि वे मेलफीमेल के साथ रहते थे तो वे क्या चैलेज की बात करेंगे, क्या पढ़ाएंगे, क्या राइट और रौंग का फर्क बताएंगे?

गनीमत है कि रेलवे ने स्लीपर्स में अभी तक मेलफीमेल का भेद नहीं किया है. अगर जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी जैसी सोच चलती रही तो पता चलेगा कि फैमिलीज को भी अलगअलग उसी तरह परदे लगा कर बांटना पड़ेगा जैसा 100 साल पहले कुछ मसलों में होता था. समाज में खुली छूट से कोई बिगड़ जाएगा यह सोच असल में औरतों को कमजोर करने की साजिश है. उन्हें सिर्फ भोगने की चीज बना दी गई है जिस की कीमत भोगे जाने पर कम हो जाती है. यह मैरिज मार्केट का फंडा है कि शादी के समय लड़की वर्जिन हो, अक्षत योनि वाली हो.

Health Issue : धड़कन अचानक तेज होने की वजह से सीने में भारीपन महसूस होता है, मैं क्या करूं?

Health Issue :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी समस्या यह है कि  कई बार मेरी धड़कन अचानक तेज हो जाती है और कई बार सामान्य से धीमी हो जाती है. ऐसा होने पर मुझे सीने में भारीपन महसूस होता है. ऐसा क्यों  होता है और इस का समाधान क्या है?

जवाब

जिस समस्या का आप ने जिक्र किया है इसे एरिथमिया कहते हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिस में दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है. एरिथमिया तब होता है जब दिल की धड़कन को नियंत्रित करने वाली इलेक्ट्रिक वेव्स ठीक से काम करना बंद कर देती हैं. इसी के कारण आप को सीने में भारीपन महसूस होता है. सीने में तेज दर्द, बोलने में समस्या, सांस लेने में मुश्किल, थकान आदि इस बीमारी के आम लक्षण हैं. धड़कनों में गड़बड़ी के चलते दिल की गतिविधि में कठिनाई आ जाती है, जिस के कारण व्यक्ति में दिल के दौरे, स्ट्रोक, दिल के फैल होने और दिल से जुड़ी कई अन्य गंभीर समस्याओं की संभावनाएं बढ़ जाती है. हालांकि, पहले इस की जांच कराना आवश्यक है. कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलौजी दिल की धड़कनों की गड़बड़ी का पता लगाने के लिए दिल की गतिविधियों को रिकौर्ड करती है.

सवाल

मेरी उम्र 32 साल है. दरअसल, कुछ साल पहले मुझे हार्ट अटैक आया था लेकिन सही समय पर अस्पताल पहुंचने के कारण मेरी जान बच गई. लोग कहते हैं कि दिल के रोगियों को कोरोना होने की संभावना ज्यादा है तो क्या मुझे भी कोरोना हो सकता है? कृपया मुझे इस से बचने का उपाय बताएं?

जवाब

जी हां, हृदय रोगियों को कोरोना आसानी से हो सकता है लेकिन आप को इस से घबराने की आवश्यकता नहीं है. यदि आप नियमों का पालन करते हैं और स्वयं का खयाल रखते हैं तो यह बीमारी आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकती है. इस से बचने के लिए सोशल डिस्टैंसिंग, हाथ धोना, मास्क लगाना आदि जरूरी है. दवाइयां या घर का राशन खरीदते वक्त डिस्पोजेबल दस्ताने अवश्य पहनें. इस के अलावा डाक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों का नियमित रूप से सेवन करें. व्यक्तिगत साफसफाई और खानपान का पूरा ध्यान रखें. बाहर से आने के तुरंत बाद अपने हाथ अच्छे से धोएं. छत पर या बालकनी में कुछ देर बैठ कर धूप सेंके.

सवाल

मेरी उम्र 38 साल है. 6 महीने पहले मुझे हार्ट अटैक आया था. हालांकि यह अटैक गंभीर नहीं था और अब मैं पहले से काफी बेहतर महसूस करती हूं. लेकिन मुझे डर है कि कहीं मुझे फिर से हार्ट?अटैक न आ जाए. इस से बचाव का तरीका बताएं?

जवाब

हार्ट अटैक एक ऐसी समस्या है जो हमारी जीवनशैली की आदतों पर निर्भर करती है. इस से बचाव का एकमात्र तरीका स्वस्थ जीवनशैली और सही आहार है. रोजाना ऐक्सरसाइज करें, सही आहार लें, तेलमसाले वाले खाने से दूर रहें, सुबह की सुनहरी धूप लें, खाने के बाद आधा घंटा टहलें, डाक्टर की सलाह से पानी की सही मात्रा का सेवन करें. आप की ये आदतें आप को दूसरे हार्ट अटैक से बचाएंगी हालांकि, हार्ट अटैक के लक्षणों को भी जानना जरूरी है इसलिए यदि आप को तेज खांसी, जी मिचलाना, उल्टी, सीने में दर्द, बैचेनी, चक्कर, थकान, सांस लेने में परेशानी आदि समस्याएं बारबार हों तो तुरंत किसी अच्छे डाक्टर से संपर्क करें.

सवाल

मेरी उम्र 31 साल है. मुझे छोटीछोटी बात पर बहुत जल्दी गुस्सा आता है. शौपिंग में ज्यादा समय लगना, भीड़भाड़ वाली जगह, गरमी आदि में मुझे बैचेनी होने लगती है और सिर पीटने का मन करता है. मेरे सीने में दर्द और भारीपन भी महसूस होता है. साथ ही पसीना भी आता है. इस का क्या कारण हो सकता है और इस से राहत कैसे मिलेगी?

जवाब

आप के द्वारा बताए गए लक्षणों से उच्च रक्तचाप का पता चलता है. इसे हाइपरटेंशन या हाई बीपी के नाम से भी जाना जाता है. हाई बीपी के दौरान धमनियों में खून का दबाव है. हाई बीपी के दौरान धमनियों के खून का दबाव तेज हो जाता है. इस दबाव की वजह से धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाए रखने के लिए दिल को सामान्य से अधिक काम करने की आवश्यकता पड़ती है. यह समस्या धूम्रपान, मोटापा, शारीरिक गतिविधियों में कमी, शराब का अत्यधिक सेवन, तनाव आदि के कारण होती है. हाइपरटेंशन एक गंभीर समस्या है, जिसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन नियंत्रित जरूर किया जा सकता है. हालांकि, हाई ब्लडप्रैशर के उपचार के लिए बाजार में कई दवाइयां मिल जाएंगी, लेकिन इस समस्या को कुछ हद तक घर बैठे ही नियंत्रित किया जा सकता है. डाक्टर की सलाह से हर रोज सुबहशाम एक चम्मच शहद के साथ लहसुन की एक कली खाएं. एक गिलास पानी में 2 चम्मच आंवले का रस मिलाएं. इसे हर सुबह खाली पेट पीएं. बैचेनी होने पर ठंडा पानी पीएं. इस से राहत मिलेगी.

सवाल

दरअसल समस्या मेरे बेटे की है जो अभी 11 साल का है. उस का चेहरा अचानक नीला पड़ जाता है फिर कुछ देर में खुद ही सामान्य हो जाता है. उसे कई बार सांस लेने में भी परेशानी होती है, उस का वजन नहीं बढ़ता है और वह कमजोर भी बहुत है. कई बार उसे अचानक पसीना आने लगता है. कृपया इस का कारण और समाधान बताएं?

जवाब

आप की बातों से ऐसा लगता है कि आप के बेटे को जन्मजात हृदय दोष है. जन्मजात हृदय दोष वह परेशानी होती है, जो गर्भावस्था में ही शिशु के दिल में पैदा हो जाती है. जब बच्चा गर्भ में होता है, कुछ लक्षणों की मदद से बीमारी की पहचान उसी दौरान हो जाती है लेकिन कुछ मामलों में यह तब तक पहचान में नहीं आती जब तक कि बच्चा बड़ा नहीं हो जाता और कभीकभी तो वयस्क होने तक यह पहचान में नहीं आती. इन में से कुछ हृदय दोषों को भी ठीक नहीं किया जा सकता है, जबकि कुछ का इलाज संभव है. हालांकि बीमारी की स्पष्ट पहचान के लिए जांच कराना जरूरी है. डाक्टर बीमारी की पहचान और गंभीरता के अनुसार उचित इलाज की सलाह देगा.

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