Hindi Story Collection : समिता बेटा, तुम्हारे ऊपर जो बीत रही है, हम लोग सब समझते हैं. मगर बेटी तुम्हारी यह पहाड़ जैसी जिंदगी अकेले कैसे कटेगी और फिर एक छोटे से बेटे की जिम्मेदारी. 1 साल हो गया है शाश्वत को गुजरे हुए. हम लोग तुम्हारे मातापिता हैं, कोई दुश्मन नहीं हैं. हम लोग चाहते हैं कि तुम अब अपनी जिंदगी की एक नई शुरुआत करो,’’ गिरधारीलाल अपनी बेटी को प्यार से सम?ा रहे थे.
‘‘नहीं पापा, मैं दूसरी शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं. प्लीज, आप लोग मु?ा पर दबाव न डालें,’’ समिता ने कहा.
समिता की मम्मी बोलीं, ‘‘बेटा, हम लोग तो चाहते थे कि शाश्वत के जाने के बाद तुम अपना ट्रांसफर आगरा करवा लो और अपने मायके आ कर हम लोगों के साथ रहो. लेकिन तुम ने नहीं सुनी और यहीं कानपुर में अपने सासससुर के साथ रहने की जिद पर अड़ गईं. मगर मेरी बच्ची, इतनी लंबी जिंदगी क्या ऐसे ही काट दोगी? बहुत शोक मना लिया. अब कुछ अपनी जिंदगी के बारे में भी सोचो.’’
समिता थोड़ा झल्ला कर बोली, ‘‘मम्मीपापा आप लोग बारबार एक ही बात क्यों बोल रहे
हो? न तो मैं दूसरी शादी करूंगी और न ही मैं यहां से कहीं और जाऊंगी. अब तो यही मेरा घर है और अम्मांबाबूजी की जिम्मेदारी मेरी है. मैं अपनी बाकी की सारी जिंदगी शाश्वत की यादों के सहारे और अपने बेटे समिश्वत के साथ
गुजार लूंगी.’’
समिता के मम्मीपापा दुखी मन से आगरा के लिए चले गए थे. समिता के पति शाश्वत को गुजरे 1 साल बीत चुका था. पति के जाने के बाद भी समिता बेटे समिश्वत के साथ अपने सासससुर के पास ही कानपुर में रहती थी. वह कानपुर के पौलिटैक्निक कालेज में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत थी. पति के देहांत के बाद से ही उस के मम्मीपापा को उस की चिंता लगी रहती थी. वे चाहते थे कि समिता एक बार फिर से शादी कर ले और खुशहाल वैवाहिक जिंदगी बिताए पर समिता न तो अपने मायके में रहना चाहती थी और न ही दोबारा शादी करना चाहती थी. समिता ने बड़ी जिद कर के शाश्वत से विवाह किया था जबकि शाश्वत की बीमारी की वजह से समिता के मम्मीपापा इस शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. शादी के मात्र 2 सालों के बाद अब समिता वैधव्य की पीड़ा झेल रही थी. उस के सासससुर ने कभी उसे यहां पर अपने साथ रहने के लिए नहीं कहा. वे तो बस यही चाहते थे कि बहू समिता जिस तरह से भी जहां रहना चाहे, खुशी से रहे.
समिता ने बड़ी हिम्मत से अपने पति के देहांत के बाद अपने बेटे और अपने वृद्ध सासससुर को संभाला था. इतनी बड़ी त्रासदी में जहां समिता का तो सबकुछ ही लुट गया था, वहीं उस के सासससुर ने भी अपना इकलौता पुत्र असमय ही खो दिया था. वे दोनों बिलकुल टूट गए थे. समिता अपने सासससुर की जीजान से सेवा करती थी. उन की हर छोटी से छोटी आवश्यकता का पूरा ध्यान रखती थी. जब वह कालेज जाती थी तो उस का बेटा समिश्वत अपने दादीदादी के पास ही रहता था. बेटे के असमय देहांत के बाद तो अम्मांबाबूजी के लिए उन का पोता ही उन के जीने का सहारा बन गया था. उस के साथ समय बिताने पर वे अपने सारे गम भूल जाते थे. उन्हें ऐसा लगता था कि जैसे वे अपने बेटे के साथ ही खेल रहे हों.
अब समिश्वत 3 साल का हो गया था. समिता ने उसे अपने घर के बिलकुल पास के स्कूल ‘हैप्पी मौडल स्कूल’ में प्लेगु्रप में दाखिल कर दिया था. दिन तेजी से बीत रहे थे. समिश्वत ने इस साल 5वीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. समिता ने अब उसे देहली पब्लिक स्कूल में दाखिल करा दिया था. समिश्वत रोज स्कूल बस से स्कूल जाने लगा था. वह बहुत ही सम?ादार लड़का था. वह जानता था कि उस की मां उसे कितनी मेहनत से पालपोस रही है. अब वह अपनी मां का हाथ बंटाने का भी प्रयास करने लगा था. समिता को ये सब देख कर बहुत सुख महसूस होता था.
‘‘अम्मां, मैं ने आज छुट्टी ले ली है. आज समिश्वत के स्कूल में पेरैंटटीचर्स मीटिंग है. मैं उसे अपने साथ स्कूल ले जा रही हूं. फिर मीटिंग अटैंड कर के समिश्वत को ले कर वापस आती हूं. तब हम सब साथ बैठ कर लंच करेंगे.’’
‘‘समिता बिटिया, तुम मटर निकाल कर मुझे दे दो, मैं तब तक छील देती हूं. तुम्हारे बाबूजी तो नाश्ता करके टहलने चले गए हैं. मेरी तो सुनते नहीं हैं. अब तुम्हीं उन्हें सम?ाओ कि सर्दियां पड़ने लगी हैं तो जरा देर से बाहर जाया करें.’’
तब तक बाबूजी गेट खोल कर घर में प्रवेश कर रहे थे. बोले, ‘‘अरे बहू से मेरी क्या शिकायत हो रही है? बाहर कार में बैठे समिश्वत ने मुझे चुपके से सब बता दिया है और मैं ने भी गेट खोलते समय तुम दोनों को मेरी बात करते सुना है. तुम चाहे जो कहो, मगर समिता तो मेरी ही तरफ रहेगी. तुम बस ऐसे ही चिल्लाती रहो.’’
समिता मुसकराई और बोली, ‘‘बाबूजी, फरवरी की शुरुआत तक थोड़ा देर से ही निकला करिए टहलने के लिए. आप की खांसी की दवा भी तो खत्म होने वाली है. मैं आते समय ले आऊंगी.’’
‘‘वह तो तुम्हीं जानो बहू. मुझे तो कुछ याद रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती, तुम जो सारी जिम्मेदारी अपने सिर पर उठाए रहती हो. मेरे कोट में रखे पर्स से कुछ रुपए ले लो और आज समिश्वत को मेरी तरफ से कुछ खिलौने खरीदवा देना, छठी क्लास में आ गया है मगर कल शाम को मेरे साथ खेलते समय खिलौनों के लिए मुझ से जिद कर रहा था, शरारती कहीं का.’’
समिता स्कूल पहुंच गई थी. क्लास टीचर ने समिता से कहा, ‘‘समिश्वत बेहद गंभीर और अनुशासन में रहने वाला स्टूडैंट है. वह प्रत्येक विषय को गहराई से सम?ाने का प्रयास करता है और अच्छे अंक लाता है. बस थोड़ा चुपचुप रहता है.’’
समिता ने क्लास टीचर को धन्यवाद दिया और समिश्वत को अपने साथ ले कर कार से घर की तरफ रवाना हो गई. समिश्वत ने अपनी मां से कहा, ‘‘मम्मा, कल मैं जब बाबा के साथ खेल रहा था तो वे अचानक हंस पड़े और बोले कि तुम भी अपने डैडी की तरह नटखट हो. शाश्वत भी बचपन में मु?ो खेलते समय बहुत दौड़ाता था. मम्मा, बाबा यह कहतेकहते अपने आंसू पोंछने लगे थे और उन्होंने मु?ो कस कर अपने गले से लगा लिया था.’’
शाश्वत की बातें सुन कर समिता की भी पलकें भीग गईं पर उस ने बड़ी सफाई से उन्हें छलकने से रोक लिया.
‘‘मम्मा, तुम ने कभी यह नहीं बताया कि तुम मेरे डैडी से कब और कैसे मिली थीं क्यों नानाजी तो आगरा में रहते हैं. तुम यहां कानपुर कैसे आईं?’’
‘‘तुम क्या करोगे ये सब जान कर?’’ समिता ने सावधानी से ड्राइव करते हुए समिश्वत के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा.
‘‘अरे मम्मा, अब मैं बड़ा हो गया हूं. तुम डैडी की तारीफ तो बहुत करती हो लेकिन यह तो बताओ कि तुम लोग आपस में कैसे मिले और फिर कैसे तुम लोगों की शादी हुई?’’ समिश्वत ने थोडा शरारत से पूछा.
समिता ने एक गहरी सांस ली और वह आज से 15 साल पहले कानपुर शहर में अपने प्रथम आगमन के बारे में सोचने लगी…
समिता तो आगरा की रहने वाली थी. कानपुर के टैक्स्टाइल संस्थान में पढ़ने के लिए वह अपने पिताजी के साथ कानपुर आई थी. पिताजी उसे वहां होस्टल में छोड़ कर शाम की ट्रेन से आगरा के लिए निकलने वाले थे.
‘‘जी पापा, आप चिंता न करिए, मैं यहां गर्ल्स होस्टल में आराम से रहूंगी. आप निकलिए, नहीं तो आप की ट्रेन छूट जाएगी. सुमित और मम्मी का खयाल रखिएगा.’’
‘‘बेटा, पहली बार तुम घर से बाहर दूसरे शहर में पढ़ने के लिए आई हो तो चिंता तो बनी ही रहेगी लेकिन क्या किया जाए. तुम्हारी पढ़ाई भी तो जरूरी है. तुम्हारा सलैक्शन इस टैक्स्टाइल इंस्टिट्यूट में हो गया तो हम लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई. पूरे यूपी का यह एकमात्र टैक्स्टाइल टैक्नोलौजी इंस्टिट्यूट है. यह कानपुर का ही नहीं पूरे देश का प्रतिष्ठित संस्थान है.’’
‘‘जी पापा, मैं सम?ा रही हूं. मैं यहां पर मन लगा कर पढ़ाई करूंगी और अच्छी रैंक ला कर दिखाऊंगी. फिर कानपुर से आगरा है ही कितनी दूर. मैं छुट्टियों में ट्रेन से आप लोगों के पास आ जाया करूंगी.’’
समिता की आंखें अब भीग चुकी थीं. उस ने सोचा यह तो अच्छा हुआ कि मम्मी नहीं आईं नहीं तो न तो उन के आंसू रुकते और न मेरे.
गिरधारीलाल ने अपनी पलकों से बाहर आने को बेताब आंसुओं को रोकते हुए कहा, ‘‘तो ठीक है बेटा, अब मैं चलता हूं. पैसे बराबर तुम्हारे अकाउंट में डालता रहूंगा.’’
गिरधारीलाल फिर बिना पीछे देखे तेजी से चले गए थे. समिता जानती थी कि आज उस के पापा और मम्मी कितने दुखी हैं. वह भी बहुत दुखी थी लेकिन यहां होस्टल में सारी लड़कियों का यही हाल नहीं था. कुछ लड़कियां तो बेहद प्रसन्न नजर आ रही थीं जैसेकि वे किसी कैद से छूट कर आई हों और अब उन का आजाद पंछी की तरह रहने का बहुप्रतीक्षित सपना हकीकत में बदल रहा हो.
समिता आगरा के दयालबाग इलाके की रहने वाली थी. उस के पिता गिरधारीलाल आगरा में एक सरकारी बैंक की कमला नगर शाखा में क्लर्क थे. उन्होंने कभी अपने बैंक में अधिकारी के कैडर में प्रमोशन के लिए अप्लाई ही नहीं किया था. इस के 2 मुख्य कारण थे. पहला तो वे अपने बच्चों की पढ़ाई के कारण आगरा छोड़ कर कहीं जाना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्होंने अपने साथ के अनेक सहकर्मियों को प्रमोशन ले कर देश के विभिन्न राज्यों में ट्रांसफर होते और अकसर घरपरिवार से दूर रहते हुए देखा था. संयोग से उन की बेटी का दाखिला इतने अच्छे संस्थान में हो गया था और उन का बेटा सुमित अभी 11वीं कक्षा में पढ़ रहा था.
समिता ने दूसरे दिन से ही नियमित प्रथम वर्ष की कक्षाएं अटैंड करना शुरू कर दिया था. यहां लड़के और लड़कियों के होस्टल तो अलगअलग थे किंतु पढ़ते सभी लड़केलड़कियां साथसाथ ही थे. समिता देख रही थी कि अभी यहां आए हुए 1 महीना भी नहीं हुआ है और अधिकतर लड़केलड़कियों के आपस में बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड बन चुके हैं. स्टूडैंट्स शाम को घूमने के लिए भी जोड़ों में ही साथ निकलते थे. कई लड़कों ने समिता की तरफ भी अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन उस ने कक्षा के भीतर तक की सीमा में दोस्ती को अच्छा सम?ा. उसे यह अच्छी तरह पता था कि यह दोस्ती जब कक्षा की सीमा से बाहर की हो जाती है तो प्राय: नैतिक व सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ कर ही दम लेती है.
एक दिन समिता शाम को क्लासरूम से होस्टल जाने के लिए निकली. अभी वह थोड़ी दूर ही जा पाई थी कि एक दुबलापतला लड़का दौड़ते हुए उस के पास पहुंचा. वह हांफ रहा था और उस के हाथ में एक मोबाइल था जो बज रहा था. उस ने समिता की ओर मोबाइल देते हुए कहा, ‘‘आप का फोन क्लास में ही रह गया था. देखिए शायद आप के पापाजी की कौल है.’’
समिता ने फोन ले लिया और अपने पापा से बात करने लगी. इस बीच वह लड़का वहां से चला गया. समिता होस्टल में अपने रूम में लेटे हुए उसी लड़के के बारे में सोच रही थी. इस लड़के को तो मैं ने क्लास में हमेशा सीरियस ही देखा है. यह किसी से ज्यादा बात करता दिखाई नहीं पड़ता है. अभी पिछले टैस्ट में इसे काफी अच्छे नंबर मिले थे. इस का नाम क्या है ? चलो कल उस भले मानुष को थैंक्यू कह दूंगी.
अगले दिन समिता ने उस लड़के के पास जा कर कहा, ‘‘धन्यवाद आप का,
मेरा फोन मुझ तक पहुंचाने के लिए.’’
लड़के ने कहा, ‘‘नहीं इस में धन्यवाद देने जैसी कोई बात नहीं है. मैं ने देखा कि फोन डैस्क पर बज रहा है तो आप तक पहुंचा दिया, बस.’’
‘‘आप का नाम क्या है और आप क्या बौयज होस्टल में नहीं रहते हैं?’’
लड़का थोड़ा मुसकरा कर बोला, ‘‘मेरा नाम शाश्वत है. मैं कानपुर का ही रहने वाला हूं, इसलिए होस्टल में नहीं रहता हूं. मेरा घर यहां से लगभग 10 किलोमीटर की ही दूरी पर है.’’
‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है कि आप अपने घर पर रह कर ही यह कोर्स कर रहे हैं. ऐसा मौका तो कम को ही मिलता है. अच्छा ठीक है, क्लास शुरू होने वाली है. मैं अपनी सीट पर जाती हूं.’’
1 सप्ताह तक फिर शाश्वत क्लास में नहीं दिखा. जब वह 1 सप्ताह बाद क्लास में आया तो समिता ने गौर किया कि वह काफी थकाथका सा दिखाई दे रहा है. समिता ने लंच टाइम पर शाश्वत से बात करने की सोची. जब लंच हुआ तो उस ने देखा कि शाश्वत अपना बैग ले कर क्लास से बाहर निकल गया. पीछे से समिता जब क्लास से बाहर आई तो देखा कि वह दूर एक पेड़ के नीचे बैठा फल खा रहा. समिता ठीक उस के पीछे आ कर खड़ी हो गई. शाश्वत उस के होने से अनजान बैठा फल खाता रहा. फिर उस ने अपने बैग से कुछ दवाएं निकालीं और पानी के साथ गटक गया. समिता ये सब देख कर उस के सामने आ गई तो वह एकदम चौंक सा गया.
‘‘अकेलेअकेले फल खाए जा रहे हैं.’’ समिता मुसकरा कर बोली.
शाश्वत शरमा सा गया फिर और फल समिता की ओर बढ़ाता हुआ बोला, ‘‘तुम भी लो न.’’
समिता हाथ के इशारे से मना करती हुई बोली, ‘‘अरे नहीं, मैं तो बस मजाक में कह रही थी. मैं तो बस तुम से यह पूछना चाह रही थी कि तुम पिछले सप्ताह तो बिलकुल गायब ही हो गए थे. अभी तुम टैबलेट्स भी ले रहे थे. क्या हुआ? सब ठीक है न?’’ अचानक दोनों आप से तुम पर आ गए थे.
शाश्वत ने हंसते हुए कहा, ‘‘अरे कुछ नहीं. मैं पिछले सप्ताह थोड़ा बीमार हो गया था. तो डाक्टर ने रैस्ट के लिए कहा था.’’
तब समिता ने चलते हुए कहा, ‘‘ओके, अपना ध्यान रखना.’’
समिता गौर कर रही थी कि यह शाश्वत बाकी स्टूडैंट्स से बिलकुल अलग ही था. बेहद कम बात करना. चुपचाप अपने काम में लगे रहना. बीचबीच में अब्सैट रहने के बावजूद अच्छे नंबर लाना. गुमसुम रहना. उसे अब शाश्वत के बारे में जानने की जिज्ञासा हो गई थी.
एक दिन शाश्वत की बगल वाली सीट का स्टूडैंट नहीं आया था. समिता जा कर वहीं बैठ गई. शाश्वत ने उसे एक नजर देखा, तब तक लेक्चरर ने क्लास में ऐंट्री ले ली थी. शाश्वत उन की तरफ देखने लगा. 4 पीरियड्स के बाद लंच ब्रेक हो गया.
समिता ने शाश्वत से कहा, ‘‘चलो, कैंटीन चलते हैं. मुझे तो बहुत भूख लगी है.’’
शाश्वत झिझकते हुए बोला, ‘‘मगर मैं तो तबीयत ठीक न रहने की वजह से बाहर का बिलकुल नहीं खाता हूं.’’
‘‘उफ, लेकिन चाय या नींबू पानी तो पी ही सकते हो.’’
‘‘हां, वह तो पी सकता हूं.’’
‘‘फिर जल्दी से चलो नहीं तो यहीं पर बातों में समय निकल जाएगा और प्रैक्टिकल क्लासेज शुरू हो जाएंगी.’’
दोनों कैंटीन के एक कोने में रखी टेबल पर बैठ गए.
‘‘और तुम्हारे घर पर कौनकौन हैं?’’ समिता ने बात शुरू की.
‘‘मैं और मेरे मम्मीपापा बस.’’
‘‘अच्छा तो तुम इकलौते बेटे हो अपने मदरफादर के. मेरे तो एक छोटा शैतान भाई है. नाम है सुमित.’’
‘‘चलो अच्छा है कि घर पर इस समय वह तो है तुम्हारे मम्मीपापा के पास नहीं तो वे बेचारे इस समय बिलकुल अकेले होते.’’
‘‘हां, वह तो है. मगर एक बात बताओ तुम यह बीचबीच में गायब क्यों हो जाते हो? क्या घर पर पढ़ाई करते हो टौप करने के लिए? तभी तुम्हारे नंबर अच्छे आते हैं,’’ समिता बोली.
शाश्वत आंखों से मुसकरा दिया और बोला, ‘‘अरे अगर पढ़ाई ही करनी है तो कालेज क्या बुरा है पढ़ने के लिए. मेरी तो मजबूरी है. दरअसल, मेरी तबीयत अकसर खराब हो जाती है. दवा लेने से कुछ दिन ठीक रहता हूं लेकिन कुछ दिन बाद फिर से तबीयत बिगड़ जाती है.’’
‘‘अरे तुम ने किसी अच्छे डाक्टर को नहीं दिखाया और आखिर तुम्हें हो क्या जाता है?’’
शाश्वत ने एक गहरी सांस ली और बोला, ‘‘यह मेरी जिंदगी का एक दुखद पहलू है, जिसे मैं ने आज तक बाहर किसी से भी शेयर नहीं किया है क्योंकि मेरा यह मानना है कि किसी व्यक्ति के जीवन की जो तीव्र, गहन, असाध्य पीढ़ाएं होती हैं वे भी प्रकृति की उसे दी हुई थाती यानी धरोहर होती हैं और इस धरोहर को हृदय की तिजोरी में महफूज रख कर उस के विदीर्ण कर देने वाले दर्द और कसक को केवल स्वयं महसूस करना चाहिए. किसी अन्य से बांटते समय के क्षणों में आप कुछ पलों के लिए उसे विस्मृत हो जाने के भ्रम में हो सकते हैं परंतु इस सा?ा करने की प्रवृत्ति से उस धरोहर की गरिमा को चोट पहुंचती है. जब आप अपने जीवन में उस दर्द की धरोहर को संजो लेते हैं तब वह संजोना और सहेजना ही उस पीड़ा का उपचार अथवा औषधि हो जाता है.’’
समिता स्तब्ध और मौन रह गई थी. तब तक प्रैक्टिकल क्लासेज का टाइम हो चुका था. दोनों सीधे क्लास के लिए चले गए. रात को बिस्तर पर समिता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. पीड़ा की ऐसी अद्भुत उल?ा देने वाली व्याख्या उस ने पहली बार सुनी थी. इस युवक के दिल में कितना कुछ उमड़घुमड़ रहा है, जिसे वह स्वयं तक सीमित रखे है.
कुछ दिनों तक तो समिता की शाश्वत से बात करने की हिम्मत ही नहीं हुई. अकसर दोनों का आमनासामना हो जाता था लेकिन केवल हायहैलो तक ही सीमित रह जाता. शाश्वत पूर्ववत कालेज अटैंड करता था और कभीकभी अब्सैंट रहता. पहला सेमैस्टर समाप्त हो गया था. शाश्वत के अंक काफी अच्छे आए थे. सैकंड सेमैस्टर में 4-4 स्टूडैंट्स के गु्रप बना कर 1-1 प्रोजैक्ट हर गु्रप को आवंटित कर दिया गया था. हर ग्रुप में जिस भी स्टूडैंट्स के सब से अधिक अंक आए थे वह उस गु्रप का लीडर था. संयोग से शाश्वत के गु्रप में समिता भी थी. उन के अलावा एक लड़का अमित और एक लड़की रत्ना भी थी.
शाश्वत ने पहले दिन ही अपने गु्रप के सदस्यों से कहा, ‘‘देखो हालांकि अधिक अंक आने के कारण मु?ो इस गु्रप का लीडर बनाया गया है लेकिन इसे एक औपचारिकता ही सम?ा. हमारे गु्रप का प्रत्येक सदस्य इस गु्रप का लीडर है और वह अपने प्रोजैक्ट की बेहतरी के लिए अपने सु?ाव दे सकता है और सब का मार्गदर्शन भी कर सकता है. हम लोग मिल कर इस प्रोजैक्ट को सर्वश्रेष्ठ बनाने की दिशा में कार्य करेंगे. मैं अकसर अपने स्वास्थ्य की वजह से अनुपस्थित रहता हूं लेकिन इस प्रोजैक्ट के संबंध में हर सदस्य मुझ से फोन पर डिस्कस कर सकता है.’’
समिता, रत्ना, अमित और शाश्वत ने प्रोजैक्ट पर कार्य करना आरंभ कर दिया था. समिता देख और सम?ा रही थी कि शाश्वत की हर बात कितनी नपीतुली और सामयिक होती है. जो वह कहना चाहता था, सामने वाले तक ठीक वैसा ही संप्रेषित भी कर पाने में सक्षम था. समिता को पूरा विश्वास था कि उस के गु्रप का प्रोजैक्ट तो टौप करेगा ही करेगा. धीरेधीरे प्रोजैक्ट को कंप्लीट कर के सबमिट करने का समय नजदीक आ रहा था. सारे स्टूडैंट्स बड़े परिश्रम से लगे हुए थे. अब बस थोड़ा ही कार्य शेष बचा था इस प्रोजैक्ट को कंप्लीट करने में. तीन दिन पहले ही शाश्वत ने कालेज आना बंद कर दिया था. पहले दिन तो किसी ने शाश्वत को फोन से संपर्क नहीं किया और सोचा कि शायद कल आ जाएगा लेकिन जब दूसरे दिन भी नहीं आया तो चिंता हुई कि आज का दिन मिला कर केवल 2 ही दिन बचे हैं प्रोजैक्ट को जमा करने में.
मजबूरीवश समिता ने शाश्वत के मोबाइल पर कौल की लेकिन कौल उठी नहीं. फिर उस ने 4-5 बार कौल करने का प्रयास किया लेकिन काल नहीं उठी. समिता कालेज के प्रशासनिक विभाग में गई और संबंधित कर्मचारी से शाश्वत के निवासस्थल का पता मांगा. थोड़ी देर के बाद कर्मचारी ने शाश्वत का पता फाइल से देख कर नोट करवा दिया. क्लासेज समाप्त होने के बाद समिता ने होस्टल के वार्डन को बता कर शाश्वत के घर के लिए एक ओला बुक कर के रवाना हो गई. कैब में उस ने नोट किया हुआ पता दोबारा देखा. पता इस प्रकार था- अमरकांत, सी/401, इन्द्रानगर, कानपुर. नीयर धीरज मार्केट.
कानपुर शहर समिता के लिए अपरिचित था. वह गूगल मैप में भी देखती जा रही थी कि कैब सही रास्ते पर चल रही है या नहीं. सूटरगंज से कैब वीआईपी रोड पर ही चलती हुई कंपनीबाग पहुंची फिर वहां से कानपुर चिडि़याघर होते हुए गुरुदेव पैलेस जाने वाले रोड पर चलने लगी. फिर कैब सीएनजी पंप रोड पर मुड़ गई और 3 किलोमीटर चलने के बाद बाईं ओर इंद्रानगर महल्ला बसा था. सुंदरसुंदर घर और हर गली में 1-1 पार्क बना था. वाटर हार्वेस्टिंग पार्क के निकट ही था शाश्वत का घर. दोमंजिला खूबसूरत घर. बाहर अमरकांत की नेमप्लेट लगी थी. समिता ने कौलबैल दबा दी. एक सभ्रांत से दिखने वाले बुजुर्ग ने लोहे का गेट खोला और प्रश्नवाचक निगाहों से समिता की ओर देखा.
समिता ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘अंकल नमस्ते, मैं समिता हूं और मैं शाश्वत की क्लास में ही पढ़ती हूं. शाश्वत 2 दिनों से कालेज नहीं आया और प्रोजैक्ट भी सबमिट होना था तो मैं ने उसे कई बार फोन मिलाया, जब फोन नहीं उठा तो मैं औफिस से पता ले कर चली आई. कैसा है वह?’’
बुजुर्ग ने आंखों के इशारे से समिता को अंदर आने को कहा. समिता को अंदर ले जा कर ड्राइंगरूम में बैठा दिया. फिर वह बुजुर्ग महोदय धीमी आवाज में बोले, ‘‘बेटा, शाश्वत की तबीयत परसों ज्यादा खराब हो गई थी तो हम लोग उसे डाक्टर के पास ले गए थे. डाक्टर ने दवा वगैरह तो दे दी है लेकिन उसे अभी आराम नहीं है. शायद शाश्वत अभी 2-3 दिन और कालेज नहीं आ पाएगा. तुम चाहो तो थोड़ी देर के लिए उस से मिल सकती हो लेकिन उसे अभी ज्यादा स्ट्रैस नहीं होना चाहिए.’’
‘‘जी अंकल, मैं बस 5 मिनट मिल कर फिर चली जाऊंगी.’’
अमरकांत समिता को भीतर ले गए. बैडरूम में शाश्वत एक चादर ओढ़े दूसरी करवट लेटा था. उस की मां उस के पास ही बैड पर बैठी हुई उस के धीरेधीरे पैर दबा रही थीं. समिता ने मां को सिर ?ाका कर नमस्ते की.
अमरकांत ने शाश्वत की मां से कहा, ‘‘यह अपने शाश्वत की क्लास में ही पढ़ती है. समिता नाम है इस का. शाश्वत से मिलने के लिए आई है.’’
बोलने की आवाजें सुन कर शाश्वत ने आंखें खोल दीं और पलट कर देखा तो समिता खड़ी थी. वह अचंभित हो कर मुसकराया और बोला, ‘‘अरे समिता, आओ बैठो, तुम यहां मेरे घर पर आ गई?’’
‘‘मैं ने तुम्हें फोन तो मिलाया लेकिन जब नहीं उठाया तो मजबूरी में मु?ो यहां आना पड़ा वरना मैं आप लोगों को परेशान नहीं करना चाहती थी,’’ समिता ने पहले शाश्वत की ओर देखा और फिर उस के मातापिता को देखते हुए अपनी बात समाप्त की.
अमरकांत बोले, ‘‘अरे नहीं बेटी, यह तुम्हारा ही घर है. जब चाहो आओ.’’
‘‘अच्छा तुम दोनों बातें करो. तब तक मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ कहते हुए मां चाय बनाने के लिए किचेन में चली गईं.
अमरकांत भी उठ कर ड्राइंगरूम में चले गए.
समिता बोली, ‘‘अब तबीयत कैसी है तुम्हारी?’’
‘‘तबीयत को क्या हुआ है? मैं बिलकुल ठीक हूं. ये सब तो लगा ही रहता है. अम्मांबाबूजी तो नाहक परेशान होते रहते हैं. तुम बताओ प्रोजैक्ट तो लगभग पूरा हो ही गया था.’’
‘‘अरे कहां, अभी फाइनल टच तो देना रह गया है और तुम्हारे बिना तो…’’ समिता ने बात अधूरी छोड़ दी.
‘‘क्या रह गया है, बताओ
तो मुझे?’’
तब तक मां चाय की ट्रे ले कर अंदर आ गई थीं. उस ने मां से कहा, ‘‘आंटी, मैं 5 मिनट के लिए अपने लैपटौप से इन को कुछ दिखा कर पूछ लूं?’’
‘‘हांहां क्यों नहीं,’’ मां ने कहा.
समिता ने तुरंत लैपटौप निकाला और औन कर दिया. प्रोजैक्ट की फाइल ओपन हो गई थी. शाश्वत ने 5 मिनट के भीतर ही समिता की बताई हुई दिक्कतों को दूर कर दिया और प्रोजैक्ट फाइनल कर दिया.
‘‘यह लो अपना प्रोजैक्ट कंप्लीट हो गया है. अभी तो हो सकता है कि मैं 2-3 दिन और न आ पाऊं तुम यह प्रोजैक्ट सबमिट करा देना और थैंक्स यहां तक आने के लिए.’’
‘‘और तुम्हारा भी थैंक्स कि इसे पूरा करा दिया.‘‘ समिता ने चाय पीते हुए मुसकरा कर कहा.
शाश्वत अपनी मां की ओर देख कर बोला, ‘‘यह तो अच्छा हुआ अम्मां कि समिता अपना लैपटौप ले कर आ गई नहीं तो हम लोगों का प्रोजैक्ट टाइम से सबमिट नहीं हो पाता.’’
इस के बाद समिता वापस होस्टल आ गई. दिन बीतते जा रहे थे. अब समिता और शाश्वत अच्छे दोस्त बन गए थे. लेकिन अभी तक समिता को शाश्वत की बीमारी के बारे में ढंग से कुछ भी पता नहीं था.
एक दिन समिता ने शाश्वत से कहा, ‘‘मैं अकेले तो होस्टल से कहीं बाहर जाती नहीं हूं और तुम हो कि तुम ने मु?ो अपने कानपुर का कुछ भी नहीं दिखाया है अभी तक. तुम अगर मेरे आगरा में होते तो मैं अब तक तुम्हें पूरा आगरा घुमा डालती.’’
‘‘अच्छा अकेले तो तुम खूब निकलती हो. अभी उसी दिन मेरे घर नहीं आ गई थीं?’’
‘‘अरे वह तो जरूरी था इसलिए… वह कोई घूमना थोड़े ही था.’’
‘‘अच्छा ठीक है. शनिवार को मैं तुम्हें अपने इंस्टिट्यूट के बिलकुल पास ही एक अच्छी जगह ले चलूंगा.’’
समिता खुश होते हुए बोली, ‘‘सच, चलो शनिवार का वेट करते हैं.’’
शाश्वत शनिवार को समिता को अपनी बाइक पर बैठा कर गंगा बैराज ले गया. दोनों टहलतेटहलते गंगा के किनारेकिनारे चले जा रहे थे. गंगा के बहते पानी को देख कर समिता थोड़ा रोमांचित और प्रफुल्लित हो रही थी. उस ने ?ाक कर अपने हाथों से पानी को अपनी अंजुलि में ले कर अपने ऊपर और फिर शाश्वत के ऊपर डाल दिया और खिलखिला कर हंस पड़ी.
शाश्वत थोड़ा ?ोंपता हुआ मुसकराया और रेत पर धीरेधीरे चलने लगा.
समिता ने कहा, ‘‘हम लोग तो चलतेचलते काफी दूर आ गए हैं. चलो वापस बैराज चलते हैं और कुछ खाते हैं. मुझे तो भूख लग रही है.’’
‘‘हां ठीक है चलो. मैं भी थकान महसूस कर रहा हूं,’’ शाश्वत के चेहरे पर शिथिलता नजर आ रही थी.
फिर दोनों बैराज से सटे बने गंगा पुल पर आ गए. पुल के किनारों पर और पुल के दोनों छोरों पर दूर तक तमाम आइसक्रीम वाले, भेलपूरी वाले, पानी के बताशे वाले और भी तरहतरह के ठेले लगे हुए थे. प्रेमी जोड़े कुछ अधिक ही थे. उन में आपस में रूठनेमनाने और अठखेलियां करने का क्रम जारी था. कानपुर वालों के लिए तो यही मरीन ड्राइव था. कुछ लोग अपने बच्चों के साथ घूमने आए थे. सब से ज्यादा परेशानी उन्हें ही हो रही थी क्योंकिअपने छोटे बच्चों को इन प्रेमी पंछियों की उन्मुक्त किलोंलों के दृश्यों को देखने से रोकने का कोई उपाय उन्हें सूझ ही नहीं रहा था. परंतु वे मन ही मन अपने पुराने समय को भी कोस रहे थे कि जब अपने चाहने वाले को एक नजर देखना ही बहुत था और एकाध बार बात कर लेने का अवसर मिल जाने को तो नियामत समझा जाता था. स्पर्श, चुंबन और आलिंगन इत्यादि तो बस स्वप्नों में ही हो पाते थे.
आज देखो शादी तो बस एक सामाजिक औपचारिकता भर ही रह गई है.
विवाह पश्चात के कार्य अब विवाहपूर्व ही संपन्न होने लगे हैं और अब सरकारें भी लिव इन रिलेशन को मान्यता दे चुकी हैं. आजकल महीनोंसालों के प्यारमुहब्बत और लिव इन रिलेशन में रहने के बाद भी तलाक के मामले पुराने जमाने की अपेक्षा घटने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं.’’
गंगा पुल पर समिता ने एक प्लेट भेलपूरी खाई और शाश्वत चुपचाप खड़ा उसे खाते देखता रहा और समिता उसे देख कर मुसकराती रही. अब तो अकसर शाश्वत और समिता कानपुर के विभिन्न दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए निकल जाते थे. जैसे गंगा बैराज, जेड स्क्वायर, ब्लू वर्ड, जेके मंदिर, इस्कौन मंदिर, मोती?ाल इत्यादि परंतु समिता ने कभी शाश्वत से उस के निजी जीवन की व्यथा नहीं पूछी थी क्योंकि उस दिन शाश्वत ने ही उसे अपनी पीड़ा अपने तक ही रखने का कारण बताया था.
टैक्स्टाइल इंजीनियरिंग में पढ़ाई का दूसरा वर्ष प्रारंभ हो चुका था. सबकुछ पूर्ववत ही चल रहा था. शाम को समिता ने शाश्वत से कहा, ‘‘शाश्वत, तुम मुझे बारबार उन्हीं जगहों पर घुमाने ले जाते हो. अब तुम्हारे इस कानपुर में देखने के लिए कुछ भी नहीं बचा क्या?’’
शाश्वत कुछ पल सोचता रहा फिर बोला, ‘‘जितनी देखने वाली जगहें थीं सब मैं ने तुम्हें घुमा दी हैं लेकिन अब जब तुम ने नई जगह घुमाने के लिए कह ही दिया है तो इस रविवार को मैं तुम्हें एक नई जगह ले चलता हूं लेकिन अभी से उस के बारे में कुछ नहीं बताऊंगा.’’
रविवार को शाश्वत अपनी बाइक में समिता को बैठा कर कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक कसबे बिठूर ले गया. वहां पहुंच कर शाश्वत ने समिता से कहा, ‘‘गंगा नदी के किनारे बसे इस बिठूर कसबे का ऐतिहासिक महत्त्व है. नानाराव पेशवा और तातिया टोपे ने अंगरेजों से यहीं पर लोहा लिया था. ?ांसी की रानी लक्ष्मीबाई का बचपन भी यहीं बीता था.’’
उन दोनों ने पेशवा का किला और संग्रहालय देखा फिर वे कुछ दूरी पर बह रही गंगा के किनारे आ गए. यहां पर कोई पक्का घाट नहीं था. दूरदूर तक बालू फैली थी और गंगा नदी बह रही थी. यहां पर शहर के घाटों जैसी कोई भीड़भाड़ नहीं थी. दोनों गंगा के किनारे अपने कपड़ों को समेटे हुए घुटनों तक पानी में बातें करते हुए धीरेधीरे चल रहे थे. दोनों चलतेचलते कब गहराई की तरफ बढ़ते गए उन्हें बातोंबातों में याद ही नहीं रहा. वहां पर कुछ दूरी पर 2-4 ग्रामीण नहा रहे थे. अचानक शाश्वत का पैर एक गहरे गड्ढे में चला गया और वह डूबने लगा. समिता एक सैकंड के लिए स्तब्ध रह गई और चिल्लाई. उधर शाश्वत बाहर निकलने के लिए हाथपैर मार रहा था. उसे तैरना भी नहीं आता था. समिता ने शाश्वत के पास ही छलांग लगा दी. गनीमत से समिता एक अच्छी तैराक थी. उस ने शाश्वत का हाथ कस कर पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचते हुए किनारे लाने का प्रयास करने लगी. शाश्वत डूबने से बचने के लिए उसे अपनी ओर खींच रहा था जैसाकि आमतौर पर सभी डूबने वाले किया करते हैं. समिता बड़ी चतुराई से अपने को शाश्वत की पकड़ से बचाते हुए उसे खींच कर किनारे ले आई. तब तक वहीं नहा रहे ग्रामीण भी आ गए थे.
उन में से एक ने कहा, ‘‘हम लोग तो मजे से दूर नहा रहे थे. जब तक हम आते तब तक तो इस लड़की ने छलांग लगा कर इसे बचा लिया. बड़ी दिलेर लड़की है यह.’’
दूसरा आदमी बोला, ‘‘थोड़ी देर सुस्ता लो. फिर सब ठीक हो जाएगा.’’
थोड़ी देर रेत पर दोनों ऐसे ही लेटे रहे. थोड़ा ठीक होने पर दोनों उठ कर बाइक के पास आए. शाश्वत ने कहा, ‘‘आज समिता तुम ने मेरी जान बचा कर मेरी अम्मां और पिताजी को कुछ बरसों के लिए नया जीवन दे दिया.’’
‘‘अरे यार, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने तो उस समय जो सू?ा वह किया लेकिन तुम तो बड़े उस्ताद हो. अपने साथ मु?ो भी डुबो रहे थे,’’ कह कर वह हंस पड़ी.
शाश्वत ने बाइक स्टार्ट की और दोनों चल दिए. समिता ने कहा, ‘‘अभी तुम कह रहे थे कि तुम्हारे अम्मां और पिताजी को मैं ने कुछ बरसों के लिए नया जीवन दे दिया? मैं तुम्हारी यह बात सम?ा नहीं?’’
शाश्वत बोला, ‘‘आज तुम ने मुझे मौत के मुंह से बचाया है तो अब तुम्हें मेरे अतीत के बारे में सबकुछ जानने का पूरा अधिकार है. मैं तुम्हें अपने जन्म से ले कर आज तक की पूरी कहानी सुनाता हूं. जब मैं अपनी अम्मां के गर्भ में आया तो वे मेरे पिताजी के साथ बहुत ही खुश थीं. हालांकि उस समय भी गर्भवती महिलाओं की जांचें होती थीं लेकिन आजकल जैसी एडवांस जांचें नहीं थीं.
‘‘डाक्टर भी इस गर्भावस्था को एक सामान्य केस ही मान रहे थे. खैर, मेरा जन्म हुआ. सब लोग बेहद खुश थे. प्रसव चूंकि नौर्मल ही हुआ था इसलिए दूसरे दिन ही मु?ो ले कर अम्मां घर आ गई थीं. शाम को जब मैं ने मल त्याग किया तो उस के साथ ही कुछ खून भी आया. अम्मां तो घबरा गईं कि 3 दिन का बच्चा और यह क्या हो रहा है. वे पिताजी के साथ तुरंत डाक्टर के पास पहुंचीं.
‘‘डाक्टर ने कुछ दवाएं दे दीं और मेरे कुछ टैस्ट कराने को कहा. 2 दिन बाद जब टैस्ट की रिपोर्ट आ गई तो डाक्टर ने मेरी अम्मां और पिताजी से कहा, ‘‘इस बच्चे का जीवन अनिश्चित ही रहेगा. इस की मृत्यु कब हो जाएगी कुछ कह नहीं सकता. हो सकता है कि यह बच्चा 10-12 वर्ष तक भी जी जाए. अगर कुछ चमत्कार हो जाए तो यह भी हो सकता है कि 20-25 वर्ष तक खींच ले जाए. कुछ कहा नहीं जा सकता है. इसे गैस्ट्रोइंटेसटाइनल ब्लीडिंग है जोकि पेनक्रीएटिक ट्यूमर की वजह से है. इतने छोटे बच्चे को इस बीमारी से बचाने के लिए कोई औपरेशन भी नहीं किया जा सकता है और केवल दवाओं और इंजैक्शनों से इस बीमारी को रोकने की कोशिश की जा सकती है.
‘‘10-12 साल का होने पर हम लोग इस के औपरेशन के बारे में सोच सकते हैं बशर्ते तब तक ये ट्यूमर कैंसर में तबदील न होने पाएं.
‘‘तब से मैं दवाओं पर ही निर्भर हो गया हूं. शौच के रास्ते से रक्त आना मेरे लिए एक आम बात हो गई थी. मैं काफी कमजोर और थकाथका सा रहता था. मेरे पिताजी ने मेरे इलाज में कोई कमी नहीं रखी. वे मु?ो ले कर मुंबईदिल्ली के बड़ेबड़े अस्पतालों में गए. 12 साल का होने पर मेरे ट्यूमर में कैंसर के भी कुछ लक्षण पाए गए और मुंबई के टाटा मैमोरियल हौस्पिटल के डाक्टरों ने कहा कि ट्यूमर तो हम निकाल देंगे लेकिन औपरेशन के दौरान मेरी मृत्यु भी हो सकती है. तब मेरी अम्मां ने घबरा कर मेरा औपरेशन करवाने का विचार त्याग दिया और मु?ो दवा के सहारे ही जिंन्दा रखने का निर्णय लिया. तब से ले कर आज तक मैं बस कभी थोड़ा ठीक हो जाता हूं तो कभी बीमार हो जाता हूं. मेरा कोई ठिकाना नहीं है कि कब तक जी पाऊंगा. एक तरीके से मैं अब बोनस की जिंदगी जी रहा हूं क्योंकि शायद मेरी मृत्यु तो अब तक हो ही जाती. इसलिए मैं ने तुम से कहा कि आज डूबने से बचाने पर तुम ने मेरे मांबाप को कुछ समय के लिए सहारा दे दिया.’’
होस्टल आ चुका था. समिता ने डबडबाई आंखों से शाश्वत को विदा किया. रात के 2 बज रहे थे. समिता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह सोच रही थी कि आदमी की जिंदगी कितनी अनिश्चित होती है और मनुष्य बेचारा कितना असहाय. जिन का जीवन आज स्वास्थ्य, धन और प्रतिष्ठा से परिपूर्ण हैं वे भी सुखमय जीवन के लिए आवश्यक सारे संसाधन प्रचुरता से उपलब्ध होने के बाद भी प्रसन्नतापूर्वक नहीं जी पाते हैं. वे आने वाले अनजाने अनिष्ट के डर से वर्तमान समय के सुख को भी डरतेडरते भोग पाते हैं. स्वयं से जुड़े लोग कहीं हम से बिछड़ तो नहीं जाएंगे, कहीं यह न हो जाए, कहीं वह न हो जाए. बस यही सोचते रहते हैं. ये तो एक आम इंसान की कहानी हो गई.
अब यदि किसी को पहले से ही पता हो जाए कि यह विपत्ति आने वाली है तो फिर उस का क्या हाल होगा? शाश्वत और उस के मातापिता तो उस के जन्म के बाद से ही रोज ही जीते और मरते होंगे. हर पल मौत का डर. कब जीवन की डोर टूट जाएगी. जब तक आने वाले अनिष्ट का ज्ञान ही नहीं होता है तो फिर भी मनुष्य थोड़ा तो प्रसन्नतापूर्वक जी ही लेता है लेकिन जब मौत बिलकुल सन्निकट दिखाई देती है, फिर तो हौसला टूट ही जाता है. ये 3 लोगों का परिवार किस तरह से पिछले 20 सालों से हर पल मौत के खौफ में ही जी रहा होगा.
समिता जब इस बार छुट्टियों में अपने घर गई तो अपनी मां से शाश्वत के बारे में जिक्र किया. मां ने जब पूरी कहानी सुनी तो बोलीं, ‘‘यह तो बहुत दुखभरी कहानी तुम ने सुनाई. वो लड़कह तो चला जाएगा लेकिन उस के बाद उस के मांबाप का क्या हाल होगा. वे भी उस के गम में जल्द ही मर जाएंगे. यह तो अच्छा हुआ कि उस के परिवार को सबकुछ पहले से पता है नहीं तो वे अनजाने में किसी लड़की से उस की शादी कर देते तो उस बेचारी की भी जिंदगी बरबाद हो जाती.’’
समिता बोली, ‘‘लेकिन मम्मी, जिन लड़कियों की शादी सबकुछ देखभाल कर की जाती है और फिर भी किसी दुर्घटना या बीमारी से उन के पति की मौत हो जाती है तो फिर क्या किया जा सकता है. मौत का कुछ पता तो होता नहीं है कि किसे, कब, क्यों, कहां और कैसे अपने आगोश में ले लेगी.’’
‘‘वह सब तो बेटा ठीक है लेकिन जानबूझ कर तो कोई मक्खी नहीं निगलता है.’’
समिता खामोश हो कर सोचने लगी थी. समय धीरेधीरे बीत रहा था. समिता पहले की तरह ही शाश्वत से मिलती थी, साथ घूमती थी और कभीकभी उस के घर भी जाती थी. शाश्वत भी पहले की तरह बीचबीच में बीमार हो जाता था. पढ़ाई का अंतिम वर्ष आ गया था. फिर इधर 3 दिनों से शाश्वत कालेज नहीं आ रहा था. रविवार को समिता होस्टल से शाश्वत के घर के लिए ओला बुक कर के चल दी. कानपुर का इंदिरानगर अब समिता के लिए अनजाना नहीं रहा था. पिछले तीन वर्षों में वो कई बार शाश्वत के घर आ चुकी थी. शाश्वत की अम्मां समिता से बहुत अपनत्व से बात करती थीं. घर के सामने कैब से उतर कर उस ने किराया दिया. शाश्वत का घर पार्क फेसिंग था. सामने ही पार्क में बच्चे खेल रहे थे. कुछ बिलकुल छोटे बच्चे अपनी मांओं की गोद में दुबके थे तो कुछ पार्क की नर्ममुलायम मखमली घास में घुटनों के बल चलने की कोशिश कर रहे थे.
बच्चों को देख कर समिता को अपना बचपन याद आ गया. कैसे उम्र इतनी तेजी से भागती है कि बचपन कहीं दूर पीछे छूट जाता है. समिता ने घर का गेट खोला और अंदर प्रवेश कर गई. देखा तो बरामदे में ही अम्मां बैठी साग के लिए बथुआ की पत्तियों को तोड़ कर रख रही थीं.
समिता को देख कर वे खुश हो गईं और बोलीं, ‘‘आओ बिटिया, बैठो मेरे पास. शाश्वत अंदर थोड़ा सो रहा है. दर्द से रातभर बेचारा जागता रहा है.’’
समिता वहीं बरामदे में ही अम्मां की बगल में फर्श पर ही बैठ गई और साग तोड़ने में हाथ बंटाने लगी. समिता बोली, ‘‘अम्मां, अब तो शाश्वत का कैंपस सलैक्शन हो जाएगा तो फिर आप बहू ले आओ तो आप को भी थोड़ा आराम मिले.’’
अम्मां की आंखों में आंसू भर आए और रुंधे गले से बोलीं, ‘‘बिटिया, हम लोग भी जब दूसरे लोगों के घरों में हंसतेखेलते बेटेबहुओं और पोतेपोतियों को देखते हैं तो हमारे कलेजे में एक कसक सी उठती है कि ये सब खुशियां तो हमारे हिस्से में नहीं हैं. न जाने पिछले जन्मों में हम लोगों से क्या कर्म किए हैं जो हम लोग बस
एक आने वाली विपदा के डर में ही जी रहे हैं. तुम्हें तो सब पता है ही बिटिया कि हमारे बेटे को क्या बीमारी है. हम तो वे मांबाप हैं, जो इस के जन्म के बाद से ही ढंग से न हंस पाए और न जी पाए. बस यह डाक्टर वह डाक्टर, यह शहर तो वह शहर. मारेमारे ही घूमते रहे. लेकिन सब बेकार. बस यही गनीमत है कि बेटा अभी तक तो हमारे साथ ही है. उस का मुंह देख कर ही जी रहे हैं हम.’’
समिता ने अम्मां के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘अम्मां आप धीरज रखो. सोचो कि जिस इंसान के ऊपर ये सब बीत रही है वह कैसे मुसकरा कर ये सब झेल रहा है.’’
अम्मां फफक पड़ीं, ‘‘बिटिया, हमारा बेटा तो जन्म से ये सब देख रहा है. जब यह छोटा था तब तो हम इसे बहला देते थे कि तुम तो मेरे बहादुर बेटे हो. तुम जल्द ही ठीक हो जाओगे लेकिन जैसेजैसे बड़ा हुआ और बीमारी ठीक नहीं हुई तो इसे भी सम?ा आने लगा कि वह और बच्चों जैसा नहीं है. फिर भी बहुत हिम्मत वाला है. हमेशा हम लोगों को दिलासा देता रहता है.’’
एक मां के लिए इस से बढ़ कर तकलीफ और लाचारी की बात और क्या हो सकती है जब मृत्यु उस के कलेजे के टुकड़े को उस की ही आंखों के सामने, क्रूरतापूर्वक अपने पंजों से बस दबोचने के लिए तत्पर बैठी हो. अम्मां की व्यथा और आंसुओं से समिता का मन दुख और करुणा से छलक उठा था. उस दिन उस की हिम्मत शाश्वत से मिलने की नहीं हुई और वह उस से बिना मिले ही होस्टल लौट आई.
कुछ दिनों के बाद शाश्वत को डाक्टर ने चैकअप कर बताया था कि कैंसर धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा है. बेहतरीन से बेहतरीन दवाओं से कुछ समय के लिए कैंसर की ग्रोथ थम जाती लेकिन फिर से बढ़ने लगती.
एक दिन शाश्वत और समिता 25 दिसंबर की छुट्टी के दिन दोपहर को कानपुर के एलन फौरेस्ट के सफारी में एकांत में बैठे थे. सामने विशाल गहरी झील थी, जिस में बत्तखें और कई विदेशी साइबेरियन पक्षी तैर रहे थे या किनारों पर कुनकुनी धूप का मजा ले रहे थे. कुछ मगरमच्छ भी कभीकभी दिखाई दे रहे थे.
शाश्वत ने समिता से कहा, ‘‘सुना है कि तुम गाना बहुत अच्छा गाती हो?’’
‘‘हां गुनगुना लेती हूं लेकिन तुम्हें कैसे पता चला?’’
‘‘वह तुम्हारे होस्टल के कमरे में तुम्हारे साथ रहने वाली पुनीता ने बातोंबातों में बताया था एक दिन. आज एक गीत मु?ो भी सुनाओ न तुम अपनी पसंद का.’’
समिता ने मना नहीं किया और एक फिल्मी गीत गाने लगी:
‘‘अगर मु?ा से मुहब्बत है, मुझे सब अपने गम दे दो इन आंखों का हर एक आंसू मु?ो मेरी कसम दे दो तुम्हारे गम को अपना गम बना लूं तो करार आए तुम्हारा दर्द सीने में छिपा लूं तो करार आए. वो हर शय जो, तुम्हें दुख दे, मुझे मेरे सनम दे दो अगर मुझ से मुहब्बत है…’’
गाना समाप्त हो गया था और शाश्वत बिना कुछ बोले चुपचाप बैठा रह गया था. उसे लग रहा था जैसे समिता गाने के जरीए अपने दिल की बात कह रही हो.
आखिर समिता ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘शाश्वत, तुम इतने खामोश रहते हो. तुम्हारी बीवी तो तुम से बोर हो जाएगी.’’
शाश्वत ने समिता की ओर देखा फिर बोला, ‘‘क्यों मजे ले रही हो. मेरे अल्पजीवन को जानते हुए कोई क्यों मुझ से शादी करेगा और अगर कोई मुझ से हमदर्दी या मजबूरी में शादी करने को राजी हो भी जाए तो मैं क्यों अपनी शादी कर के किसी मासूम को शीघ्र विधवा बनाने के लिए तैयार हो जाऊंगा?’’
‘‘तुम कह तो ठीक रहे हो बाबू लेकिन यह बताओ कि इस की क्या गारंटी है कि तुम्हारी जिंदगी जल्द ही खत्म हो जाएगी और जो लोग पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं वे भी तो कभीकभी विवाह के पश्चात शीघ्र मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं तो इस का मतलब यह है कि मृत्यु के भय से किसी को शादी ही नहीं करनी चाहिए?’’
‘‘फिर वही बात आ जाती है कि जानतेबूझते किसी को भी अपनी या दूसरे की जिंदगी बरबाद करने का कोई हक नहीं है,’’ शाश्वत बोला.