Hindi Folk Tales : सर घड़ी तो देखिए रात के 8 बज गए.’’
‘‘तो? वे तो रोज बजते हैं. उस में क्या? जाओ अपना काम करो.’’
‘‘आप जानते हैं कि मेरा घर यहां से बहुत दूर है और मैं अपनी छोटी बच्ची पड़ोस में छोड़ कर यहां काम करने आती हूं.’’
‘‘इस में हम क्या करें?’’
‘‘सर, प्लीज मु?ो जाने दीजिए कल सुबह जितनी जल्दी बुलाएंगे मैं पक्का आ जाऊंगी.’’
कविता फैक्टरी के मैनेजर राणे से हाथ जोड़ कर विनती करती रही पर उस की जायज याचना उस ने उस के साथ होने वाले परिणाम को बिना विचारे सिरे से नकार दी.
‘‘देखो हम ने आप को नौकरी पर रखने से पहले सारी बातें पानी की तरह साफ कर रखी थीं कि जब ज्यादा और्डर आएंगे तो आप को देर रात काम करना पड़ेगा. तब कोई बहाना नहीं चलेगा.’’
‘‘सर, प्लीज.’’
‘‘आप को जाना है तो बेशक जाइए पर फिर कल से काम पर आने की कोई जरूरत नहीं है.’’
मैनेजर राणे ने अपने असिस्टैंट को उस के सामने ही आवाज देते हुए कहा, ‘‘पुजारी., देखो ये मैडम जाना चाहती हैं, इन का हिसाब कर इन की छुट्टी कर दो और कल से गेट में घुसने मत देना. यहां हर किसी की सुनने बैठे रहे तो फिर चल गई फैक्टरी.’’
सब के सामने कविता को जिल्लत भरी बातें सुना कर अपने कड़वे मुंह में अपनी ऐंठनी हंसी दबाते मैनेजर राणे फैक्टरी में काम देखने चले गए.
कविता के पास कोई चारा न बचा. मजबूरी न होती तो आज ही नौकरी छोड़ देती पर अपनी लाचारी के आगे कोई ऐसावैसा कदम उठाने की हिम्मत न कर पाई. बु?ो मन से उस ने अपना ऐप्रन वापस पहना और काम पर लग गई.
आखिरकार रात के 10 बजे घंटाघर से काम समाप्ति का सायरन बजा और अन्य पुरुष स्टाफ के बीच गिनीचुनी महिलाओं की टुकड़ी लेडीज स्टाफरूम पहुंच लौकर से अपनाअपना सामान ले कर वहां से बाहर निकलने लगीं.
कइयों के घर वाले फैक्टरी के बाहर उन का इंतजार कर रहे थे और कुछ के घर पास की बस्ती में थे. उन में से मात्र कविता थी जिसे इतनी देर रात बिना किसी निर्धारित साधन के अपने घर का लंबा सफर तह करना था.
धीरधीरे कर स्टाफरूम में वह अब अकेली रह गई. अपना सामान लौकर से निकालते उस का दिमाग अन्य विषय में चलना बंद हो गया. उसे सिर्फ एक ही खयाल खाए जा रहा था कि क्या इतनी देर रात ऐसे निकलना उस के लिए सुरक्षित होगा? बिना यहां से न जाए उस के पास कोई और रास्ता भी तो नहीं है.
उस ने अपना पर्स निकाल कर लौकर बंद किया और उसी पल उसे कुछ अजीब सा आभास हुआ जैसे उस का मन उसे आने वाले अदृश्य प्रहार से सचेत कर रहा हो और वह अपना पर्स थाम कर यहांवहां देखते हुए कमरे से बाहर निकलते दौरान रूम पर लगे आईने के रिफ्लैक्शन से पाया कि मैनेजर राणे अपनी गरदन पर हाथ मल उसे आह भरते चुपचाप निहार रहे हैं.
कविता ने ऐसी प्रतिक्रिया दिखाई जैसे उस ने उन्हें देखा ही नहीं और उस जगह पर खुद को असहज महसूस कर वहां से जाने लगी.
इतने में कुछ घंटे पहले अपनी जबान से जहर के बाण चलाने वाले मैनेजर राणे ने इस पल पिघले हुए मक्खन की तरह बड़ी नरमी से कविता को पुकारा, ‘‘कविता ओ कविता, कहां भागी जा रही हो? तनिक 2 मिनट रुको तो सही.’’
‘‘जी सर, कहिए.’’
‘‘आज तुम्हें बहुत देर हो गई है, तुम्हें यहीं स्टाफ क्वार्टर में रुक जाना चाहिए. मैं भी यहीं रुक रहा हूं, तुम से कई सारी बातें भी हो जाएंगी और तुम चाहो तो उस से ज्यादा भी बहुत कुछ हो सकता है.’’
‘‘सर मैं समझ नहीं?’’
‘‘रुकोगी तब सब समझ दूंगा. तुम समझने को तैयार हो गई तो तनख्वाह में भी इजाफा होगा सो अलग,’’ मैनेजर राणे कविता के पहने ढीलेढाले कपड़ों से भी उस के स्तनों और नितंबों के उभारों को अपनी भद्दी आंखों से छूते हुए पूछने लगे.
‘‘आप का शुक्रिया सर, मेरी बच्ची मेरा इंतजार कर रही होगी, मैं निकलती हूं,’’ अपने स्तनों को अपने पर्स से छिपा वह कमरे से तुरंत बाहर निकल गई.
कविता का सहकर्मी अगर भरोसेमंद होता तो वहां रुकने की सोच भी सकती थी, पर उस की इंद्रियां राणे की बुरी नियत का पूर्वाभास कर उसे सचेत करने लगीं.
‘‘बसस्टौप पहुंचते रात के 11 बज जाएंगे. इतने समय में तुम्हें कौन सी बस मिलेगी?’’ मैनेजर राणे ने जाती हुई कविता को तेज अवाज लगाते हुए कहा जो उस की मजबूरी बखूबी जानता था. आज जानबू?ा कर फैक्टरी के काम के नाम पर वह उसे रोकने में सफल रहा, जिस से वह घर जाने को लेट हो व वहीं रुकने को बाध्य हो जाए और वह अपने महीनों से उबलते अपने नापाक इरादों को अंजाम दे सके.
‘‘कुछ न कुछ तो मिल ही जाएगा सर. मु?ो अब निकालना चाहिए.’’
‘‘रास्ते में तुम्हारे साथ कोई ऊंचनीच हो गई तो इस के लिए मु?ो जिम्मेदार मत ठहराना. यह बात याद रखना कि तुम्हारा शुभचिंतक तुम्हें जाने से रोक रहा था बाकी तुम्हारी मरजी.’’
कविता ने उन की बात का कोई उत्तर देना उचित न सम?ा और उसी बीच राणे एकदम से उस के समीप आ कर उस के कंधे पर हाथ फेरने लगा.
राणे की नीयत भांप कविता तुरंत वहां से चल दी.
आधी रात अकेले यात्रा करने से ज्यादा खतरा क्या उसे वहां कम था? वह वहां रुकती तो मैनेजर उसे नोच खाता. वह यही सोचती फैक्टरी के गेट तक आ पहुंची और रजिस्टर में साइन आउट करने लगी.
कविता ने अपने एक खतरे को तो टाल दिया पर आगे कितने खतरे उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे उसे बिलकुल अंदाजा न था.
सिर्फ फैक्टरी से घर जाने तक का यह साधारण सा रास्ता तय करना आज उस के लिए किसी कांटों की सेज से कमतर नही साबित होने वाला है, कदम दर कदम वह अपने हर पड़ाव पर एकएक युद्ध का सामना करने को बाध्य हो उठेगी.
कविता फैक्टरी से बाहर निकल गई. चारों तरफ दूरदूर तक रोशनी नदारद थी, पेड़ों की पत्तियों की सरसराहट उस के कानों में फुसफुसाती जा रही थी कि कोई उसे चुपचाप छिप कर देख रहा है, उस के अकेलेपन का फायदा उठाने एक बेनामी साया उस का पीछा कर रहा है.
अपने विचारों की सिकुड़न महसूस करते कविता कुछ कदम आगे बढ़ी थी कि अचानक उस खौफनाक अंधेरे को चीरती एक चिखती हुई बिल्ली की डरावनी मियाऊं ने उस के रोंगटे खड़े कर दिए, दिन में शांत और रात में मुस्तैद कीटपतंगों की दूरदूर से आती अजीबोगरीब भयानक आवाजों से वह बुरी तरह डरने लगी. उस का मन और शरीर उस घोर अंधेरे के आगे हार मानने लगा.
वह घना सन्नाटा उसे दबोच कर जैसे उस पर हावी होना चाहता था. डरतीघबराती कविता अपना 1-1 कदम घसीटते रोड के करीब आ पहुंची.
दूर से दिखती जलती स्ट्रीट लाइट ने उस की थोड़ी हिम्मत बांध दी और वह उस की रोशनी की आड़ में अपनी चुन्नी को सिर से ढक अपना चेहरा छिपाती बसस्टौप की ओर जल्दीजल्दी तेज कदमों से कभी आगे तो कभी पीछे देख बढ़ती रही.
अकेली बसस्टौप पर आधे घंटे से खड़ी थी. इस बीच उस का फोन वाइब्रेंट होता जोरजोर से बजने लगा और उस की कंपन अपने हाथों में महसूस कर उस का कलेजा जैसे फट कर बाहर आ निकला.
‘कोई नहीं है, यह तो बस फोन था, इतना क्यों डरना? आराम से गहरी सांस ले और अपना फोन उठा,’ कविता ने खुद से कहा.
कविता ने अपने पर्स के भीतर हाथ डाला पर लो बैटरी के कारण फोन निकालने से पहले बंद हो गया.
‘‘जरूर लता दीदी का ही फोन होगा, 8 बजे तक तो मैं घर पहुंच जाती थी. अब तो रात के 11 बज चुके हैं. न जाने कब घर पहुंच पाऊंगी. मुझे उन्हें एक मैसेज ही दे देना था कि आज देर हो जाएगी. बिना वजह उन्हें मेरी फिक्र सता रही होगी या कहीं पाखी को तो कुछ न हो गया हो. उस ने मन ही मन हाथ जोड़ कर विनती की कि उस के घर पहुंचने तक सब सही रखना. तभी बिलकुल खाली बस देख उस ने हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ उस बस की नंबर प्लेट का फोटो खींचने का नाटक करते हुए उसे अच्छे से याद कर लिया. कान पर फोन और स्पीकर पर हाथ लगाते हुए जिस से ड्राइवर को लगे कि चलती बस की आवाजें उस की बात पर बाधा न लाएं इसलिए ऐसा किया गया है न कि मोबाइल की लाइट न जलती देख उस के फोन औफ होने की शंका को छिपाना था.
फोन कान में दबाए बस के भीतर घुसने से पहले एक पैर रोड से उठा बस की सीढि़यों में रख जूते ठीक करने के बहाने वह ?ाकी और बस के भीतर जलती लाइट की रोशनी से सीट के नीचे चारों तरफ नजर घुमाने लगी. किसी के पैर न पा कर उसे थोड़ा आश्वासन मिला कि कोई छिपा नहीं है और वह सजगता के साथ खड़ी हो सामान्य से थोड़ा ऊंचा बात करते आपातकालीन निकास की खिड़की कहां है उसे देख पलट कर शुरुआती सीट में जा बैठी, जहां से ड्राइवर के संदेहजनक हावभाव साफसाफ देखे जा सकें और वह आगे क्या बात करने वाली वह उसे भलीभांति सुना सके.
‘‘हैलो भैया, हां. नहींनहीं आप को आने की जरूरत नहीं है, मुझे बस मिल गई है.’’
‘‘बस का नंबर? हां उस का फोटो ले लिया है आप को भेजती हूं.’’
‘‘ड्राइवर का नाम? एक मिनट पूछती हूं.’’
‘‘भैया आप का नाम क्या है? वह मेरे भैया कौंस्टेबल हैं न तो पूछपरख करते रहते हैं.’’
‘‘सुमेध.’’
‘‘भैया इन का नाम सुमेध है. ठीक है, ठीक है, मैं आप को निर्मला पारा स्टौप पर मिलती हूं,’’ यह कह कर कविता ने फोन काटने का नाटक कर अपने पर्स में रखा रामपुरी, मिर्ची स्प्रे और अपने कुछ जरूरी कागजात टटोले.
ऊपर से सामान्य दिखती हर पल अपनी रक्षा करने की प्रार्थना करती कविता का यह मात्र 35 मिनट का सफर रोज के मुकाबले आज देर रात सफर व मोबाइल बंद हो जाने के कारण ज्यादा धुकधुकी लिए गुजर रहा था क्योंकि खुद को सुरक्षित रखने वाला उस का ऐप एक बार बिना इंटरनैट, फोन लौक होने पर और लोकेशन चालू किए बिना काम तो कर सकता है पर बंद मोबाइल पर नहीं.
बस में सवार करीब सवा 11 बजे एक अकेली जवान औरत जिस का पति उस को और अपनी दुधमुंही बच्ची पाखी को इंसान के भेष में गिद्ध बने भेडि़यों के बीच शिकार बनने 2 वर्ष पहले भुखहाली में छोड़ कर भाग गया था.
अपने घर लौट कर आने के अलावा कोई और विकल्प न बचा पर बिन मां के घर ने उसे तिरस्कार के अलावा कुछ न दिया.
‘‘यहां मरने के लिए भी जीना पड़ता, जा खुद दो पैसे कमा तब सम?ा आएगा कि औरत की जिंदगी में एक मर्द की क्या कीमत होती है. भले वह मेरी तरह नकारा, पियक्कड़ क्यों न हो, चल दफा हो और यहां कभी पलट कर मत आना.’’
जब वह अपने मायके लौट आई तब जन्म देने वाले पिता ने अपनाने से ठुकरा दिया. काश, जब वह 8 वर्ष की थी तब अपनी आंखों के सामने पिता द्वारा मां को घासलेट छिड़क ?ालसाते वह उस रात उन्हें बचा पाने सामर्थ्य जुटा पाती तो उस की परवाह करने वाला आज कोई जिंदा होता.
पिता की कही एकएक कड़वी बात आकाशवाणी की तरह सही निकलती गई, अपना घर छोड़ने के उपरांत एक किराए के कमरे के लिए वह दरदर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गई और अपनी एडि़यां हजार जगह घिसने के बाद घर से इतनी दूर यह नौकरी हासिल हुई.
उस के मन में, उस के न सुनने की इच्छा के विरुद्ध, औरों की कही कचोट भरी बातें रहरह कर एक टेप रिकौर्डर की तरह अनवरत बजने लगीं.
‘‘अकेली औरत ऊपर से बच्चा. क्या कमाएगी जो किराया भर सके, हम घर नहीं दे सकते,जा कहीं और ढूंढ़.’’
‘‘अभी तो जवान हो, चाहो तो ऐसा काम कर सकती हो जिस में मुंह मांगा दाम मिल सकता है.’’
‘‘अरे पति नहीं है तुम्हारा? तो क्या हुआ हर रात हम सेवा दे जाएंगे.’’
‘‘नौकरी तो दे दे पर यह बच्चा साथ नहीं ला सकती.’’
‘‘कई बार देर रात तक काम चलता है तब न नहीं कह सकती.’’
कविता ने किसी को कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने लगी. समय ने भी साथ दिया और वे सब एक सीमा के बाद बक कर चुप होते चले गए.
वह तो भला हो पड़ोस में रहने वाली लता दीदी का, जिन्होंने एक मां की तरह कविता की हर कदम पर मदद की और पाखी को संभालने की जिम्मेदारी निभाई.
बस की तेज रफ्तार अचानक धीमी होने लगीं. कविता ने अपनी पिछली जिंदगी के खयालों को विराम देते हुए इस बात का कारण जानना चाहा और वह ड्राइवर के हावभाव देखने लगी जो बाहर मुसकराता किसी को हाथ हिलाता दिखाई दिया.
कविता को अंदेशा हुआ कि वह अपने किसी जानकार को प्रतिक्रिया दिखा रहा है. उस ने ?ाटपट अपनी गरदन घुमाई और खिड़की के बाहर उस घने अंधेरे के बीच बस की हैडलाइट की रोशनी से देखने का प्रयास किया. उसे कुछ दूर पर स्थित अगले स्टौप पर कुछ लफंगे लड़कों का ?ांड बस में चढ़ने के लिए हुड़दंग मचाते ड्राइवर को हाथ दिखाते हुए खड़े दिखे.
बस जैसेजैसे उन के समीप जा रही थी, कविता का मन किसी उनहोनी होने की चेतावनी चीखचीख कर उसे बता सजग करने लगा. वह अपनी कभी यहां नहीं तो वहां होती रोज की धुकधुक से बखूबी वाकिफ थी जो वर्तमान परिस्थिति में अपनी चरम पर जा पहुंची थी. वह उन 5 लड़कों को अपनी तरफ इशारा कर निहारते, ड्राइवर के साथ घटिया हंसीहंस करते देख घबराने लगी.
वे नशे में चूर एक के पीछे एक उस की ओर लड़खड़ाते बढ़ने लगे.
‘‘क्या मैडम इतनी रात इस बस में कैसे?’’
‘‘क्या हमारा इंतजार कर रही हो क्या?’’
‘‘लो हम आ गए बताओ आगे क्या करने का इरादा है?’’
‘‘अरे क्या मैडम कुछ तो कहिए?’’
‘‘क्या आप की खामोशी को हम आप की हामी भरता सम?ा लें?’’
‘‘देखदेख मैडम शरमा गई.’’
5 मुस्टंडे उस के सामने खड़े हो हंस रहे थे और अश्लील बातें कर रहे थे.
उन लड़कों को उसे अपनी संपत्ति सम?ाते देख कविता के मन ने उसे सिसकारते हुए पुकारा और कहा कि तू इन जैसे लफंगों से हार कतई नहीं मान सकती.
कविता को इतनी देर में समझ आ चुका था कि ड्राइवर उस की कोई मदद नहीं करने वाला, उस का मदद के लिए पुकार लगाना निरर्थक प्रयास होगा. जो भी करना है उसे ही करना है. अगर वह उन से डर गई और अपनी हार मान ली तो दोनों तरफ से नुकसान उसी का होगा. अगर साहस व सू?ाबू?ा से काम किया तो शायद इन से बच निकला जा सकता है.
उस ने उन की ओर देखते हुए चुपचाप पर्स के अंदर अपना हाथ सफाई से डाल रामपुरी निकाल कर अपनी जेब में रख लिया, अपने मिर्ची स्प्रे को टटोला और अपने हाथों में उस का स्प्रेयर बिलकुल ऐंगल में सैट कर मजबूती से पकड़ लिया.
लड़के जैसे ही उस के काफी नजदीक आ गए वह फट से खड़ी हो गई और अपना मिर्ची स्प्रे निकाल तुरंत 3 लड़कों की आंखों में डालने में कामयाब रही, पर इतनी देर में बाकी 2 ने उस का हाथ पकड़ कर स्प्रे पट लिया.
वे 3 चीखतेचिल्लाते बस में गिरतेपड़ते पिछली सीटों पर बैठ कर कराहने लगे.
अपने 3 साथियों की उम्मीद के बिलकुल विपरीत ऐसी हालत वह भी एक कमजोर सी दिखने वाली लड़की द्वारा करता देख बाकी बचे 2 बौखला गए.
‘‘कुत्तिया साली. होशियार बनती है, इस का पर्स छीन कर देख और क्याक्या सामान भर के रखा इस ने. तब तक मैं इस के किए की सजा देता हूं,’’ एक ने उस का पर्स लिया और दूसरा उस पर जैसे ही ?ापटा कविता अपना पूरा बल लगा कर उस से बचने का प्रयास करने लगी. अपने जूते के सोल पर लगी नुकीली कील उस की छाती पर कस कर दे मारी.
‘‘यह क्या पहन रखा है. हटा इसे,’’ वी उस के पैर से उस का जूता उतारने का प्रयास करने लगा और वह अपने दूसरे पैर से उस के हाथ पर जोरदार लात मारी.
‘‘अरे रुक जा अगले बसस्टौप में यात्री खड़ा है. लफड़ा हो जाएगा, तुम सब उतरो चलो शायद यह उस का कौंस्टेबल भाई हो सकता है,’’ ड्राइवर ने पीछे मुड़ कर आवाज लगाई.
‘‘जो भी हो इस को तो मैं आज छोड़ने नहीं वाला,’’ कविता ने जैसे ही उस की गरदन ड्राइवर की ओर घूमते हुए पाई उस ने जोरजोर से आवाज लगाना शुरू कर दिया, ‘‘बचाओ… बचाओ…’’
‘‘अबे ड्राइवर. बस को आगे बढ़ा बिलकुल रोकना मत नहीं तो तेरी खैर नहीं,’’ जिस ने कविता का पर्स पकड़ा था उस ने कहा.
बस मोड़ की वजह से धीमी जरूर हुई मगर स्टौप पर रुकी नहीं. उस बस का इंतजार करते नौजवान ने कविता के चीखने की आवाज सुनी और दौड़ कर उस चलती बस में सवार होने में सफल रहा.
‘‘क्या ड्राइवर तुम्हें को यात्री नहीं दिखता है?’’
‘‘वे ब्रेक नहीं लगे.’’
‘‘ब्रेक नहीं लगे. अब तेरी नौकरी में जरूर ब्रेक लगवाता हूं रुक,’’ उस ने चढ़ते ही ड्राइवर को सुनाया और जैसे ही उस ने पीछे देखा तो पाया कि 3 लड़के पिछली सीट पर अपनी आंखें मलते कराह रहे हैं, चौथे के हाथ में लेडीज पर्स और 5वां एक अकेली लड़की के हावभाव देख ऐसा लग रहा है जैसे वह उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा है.
उसे स्थिति का आकलन करते 2 मिनट न लगे और सीधा कविता के पास गुस्से से गया और चिल्लाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें मैं कब से फोन लगा रहा हूं? अपना फोन क्यों नहीं उठाती? और कितना नाराज होना है तुम्हें? भाई साहब जरा हटे मुझे अपनी पत्नी से बात करनी है,’’ उस नवयुवक ने उस चौथे लड़के से कहा.
वे 5 थे और ड्राइवर को मिला कर 6. उन के सामने अपना बल दिखाना सम?ादारी नहीं होगी इसलिए उस ने अपने दिमाग का इस्तेमाल करना सही समझ कविता भी समझ गई कि व्यक्ति उस की मदद करना चाह रहा है.
‘‘जा नहीं हटता क्या कर लेगा? तेरी बीवी से पहले मैं तेरे से निबटता हूं.’’
‘‘ठीक है मत हटिए आप को कोई आपत्ति तो नहीं जो मैं यहीं खड़ा रहूं?’’
‘‘नहीं.’’
वह नहीं हटा और जबरन उस का हाथ पकड़ने लगा. कविता ने अपना पैर उठाया और अपनी कील लगी हवाईचप्पल उस के अधखुले पैर पर दे मारी.
‘‘छोड़ साली. कभी यहां से मार रही है कभी वहां से,’’ वह 5वां जान चुका था कि यह लड़की उस के बस की नहीं, अब उस ने उसे परेशान करना छोड़ दिया पर अपनी जिद्द में उस सीट से नहीं हटा.
वह नवयुवक उस सीट के साथ उस लड़के के सिर पर खड़ा रहा. इतनी देर में उस चौथे लड़के ने उस का पूरा पर्स टटोल लिया और एक दस्तावेज देखपढ़ उस के हाथपैर ठंडे होने लगे.
‘‘दोस्त वहां से जल्दी उठ और इन तीनों
को ले कर नीचे उतर. अच्छा हुआ इस के साथ कुछ ऐसावैसा नहीं किया, नहीं तो हम सब बहुत बुरा मरते.’’
‘‘क्यों क्या हुआ? यह कोई कहीं की कमिश्नर है?’’
‘‘नहीं पागल इस कमीनी को एड्स है,’’ चौथे ने कहा और डरते, घबराते हुए पांचों बस से तुरंत अपनी जान कविता से बचा कर भागने की तैयारी करने लगे.
इतने में कविता ने अपने साथ बैठे लड़के का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘तुम को तो मैं जाने नहीं दूंगी राजा. यह बीमारी मैं आज तुम को दे कर रहूंगी, आजा.’’
उस ने अपना हाथ छुड़ाना चाहा पर कविता शेरनी की तरह दहाड़ने लगी.
‘‘नहीं दीदी मु?ो माफ कर दो ऐसी भूल मैं क्या हम में से कोई कभी नहीं करेगा. प्लीज हमें छोड़ दो.’’
‘‘चुप बैठ. ज्यादा हिला तो तेरी गरदन चीर कर रख दूंगी. पति जी आप इन्हें कस कर पकड़े रहिए,’’ कविता ने अपनी जेब में छिपाया रामपुरी निकालते हुए कहा.
‘‘जो हुकुम.’’
‘‘अरे सालो कहां रह गए. यहां आ कर मुझे छुड़ाओ,’’ बाकी 4 ड्राइवर के पास दुबके खड़े कांपने लगे.
‘‘जो किसी ने भी ज्यादा दोस्ती निभानी चाही तो यह कांड तुम सब के साथ करूंगी. सम?ा आई. खड़े रहो वहीं के वहीं.’’
कविता अपनी फुलफौर्म में आ चुकी थी. उस ने एक हाथ से उस की कालर पकड़ी, दूसरे हाथ से अपनी रामपुरी निकाल अपने हाथ पर कट मारा और फिर उस के हाथ पर कट मार अपने खून को उस के खून में जबरदस्ती मिलाने लगी.
‘‘जा भाग यहां से,’’ कविता ने उसे धक्का मार कर भगाया और वह अपना बहता खून बारबार पोछता भाग खड़ा हुआ.
कविता ने राहत की सांस ली. वह देश में औरतों पर होते जुल्म और असुरक्षित महसूस करने की धुकधुक को बचपन से अनुभव करती आई थी. उस ने सम?ादारी आतेआते यह बात गांठ बांध ली थी कि यहां राह चलते अनेक सिरफिरे मर्द शिकारी के भेस में घात लगाए बैठे मिलेंगे, जिन्हें शिकार करने के लिए बस मौके की तलाश है. अगर नारी अपनी छठी इंद्री के संकेत, बल, बुद्धि का सही उपयोग करे तो इस पुरुषप्रधान समाज में अपने अलग रास्ते पर चल सकने की हिम्मत जुटा सकती है.
‘‘अबे देख क्या रहा है बस जल्दी रोक,’’ उन लड़कों में से एक ने कहा तो ड्राइवर ने ?ाटके से ब्रेक लगाए और वे सभी तुरंत उतर गए.
इसी बीच वह नवयुवक अचानक ब्रेक लगने के कारण अपना बैलेंस खो लड़खड़ा कविता की साथ वाली सीट पर जा गिरा.
‘‘माफ किजिएगा. मैं पीछे चला जाता हूं आप आराम से यहां बैठिए,’’ उस ने विनम्रतापूर्वक कहा.
‘‘आप यहा बैठ सकते हैं, मुझे कोई आपत्ति नहीं. कविता मुसकराई.
उस नवयुवक के साथ बैठ कर उसे जरा भी धुकधुक न हुई. वह अच्छी तरह सम?ा रही थी कि इस युवक के अंदर उस के प्रति कोई गलत भावना नहीं है.
उस लड़के ने मुसकराते हुए कविता से पूछा, ‘‘वैसे आप को कौन से स्टौप पर उतरना है? अगर आप न बताना चाहें तो कोई दिक्कत नहीं, मैं तो बस ऐसे ही…’’
‘‘जी मुझे बुढ़ापारा उतरना है. आप कहां जा रहे हैं?’’
‘‘मैं उस के पहले स्टौप पर निर्मला पारा.’’
उस नवयुवक ने अपना मोबाइल उस में कुछ टाइप कर किसी को सैंड कर दिया. कविता को अंदेशा हुआ कि इस युवक ने जरूर कुछ उस के संबंध में किसी को कुछ लिख कर भेजा है. उस ने मन ही मन सोचा कि अच्छा हुआ मैं ने उसे सचाई नहीं बताई कि मैं कहां उतरने वाली हूं और वह सामान्य रही.’’
कुछ सैकंड पश्चात उस ने संशय से पूछा, ‘‘क्या आप को सच में?’’
‘‘आप को क्या लगता है?’’ कविता ने उस की ओर देख कर पूछा.
‘‘मुझे नहीं लगता.’’
‘‘ऐसा हमारी बस्ती में एक औरत के साथ हुआ था न जाने क्या सोच कर मैं ने उस की कलर फोटो कौपी लेमिनेट करा कर रखी ली और देखिए आज काम आ गई.’’
‘‘वैसे आइडिया बुरा नहीं है.’’
‘‘ये सब लड़कियों के साथ रोज नहीं होता. मगर हर लड़की को अपनी तैयारी रोज कर के अपने घर से निकलना चाहिए.’’
‘‘वह तो ठीक है मगर ऐन टाइम पर अपनी हिम्मत दिखाना भी तो बहुत बड़ी बात है.’’
‘‘कई बार हम औरतों के पास कोई औप्शन नहीं होता, करो या मरो की स्थिति आ पड़ती है, इसलिए इस दुनिया में टिकना है तो मजबूत होना ही एकमात्र औप्शन होता है.’’
‘‘वैसे यह एड्स के सर्टिफिकेट की बात आप ने उन्हें पहले क्यों नहीं बताई? शायद वे यह जान कर आप के साथ कुछ न करते?’’
‘‘उन्हें मैं अपने बचाव की तैयारी शुरू में ही दिखा देती तो उन्हें मेरे फर्जी सर्टिफिकेट पर पक्का शक हो जाता.’’
‘‘और जो यह सर्टिफिकेट न देखते और बैग बाहर फेंक देते या अनपढ़ होते तो?’’
‘‘इसलिए मैं ने रामपुरी पहले से निकाल कर अपने पास रख लिया था. ऐसी स्थिति में हमेशा एक जगह सारा जरूरत का सामान नहीं रखना चाहिए.’’
‘‘चाकू भी छीन लेते तो?’’
‘‘फिर ये कीलों वाले जूते हैं और यह कमर पर बंधी मेरी मजबूत भारी बक्कल वाली बैल्ट, सच पूछिए बड़ी जोरदार लगती है इस से.’’
‘‘आप तो फुल तैयारी से निकलती हैं मैडम,’’ तैयारी तो हम लड़के अपने जोब इंटरव्यू के लिए न करें.’’
वह नवयुवक यहांवहां की बातें करता रहा. कुछ देर बाद आखिरकार उस की मंजिल करीब आने लगी. दूर अपने उतरने वाले स्टौप पर कुछ पहचान के लोगों को देख उस के चेहरे पर मुसकान जाग उठी. उस स्टौप के नजदीक एक लालबत्ती की गाड़ी भी दिखी. उस ने उस का कारण नहीं जानना चाहा और वह उतरने के लिए उस नवयुवक के साथ खड़ी हो गई.
‘‘निर्मला पारा बसस्टौप,’’ उस के कानों में ड्राइवर की तेज अवाज पड़ी. वह आज भी अपनी सजगता, सूझबूझ और आत्मविश्वास से सकुशल घर पहुंचने में कामयाब हुई.
‘‘आप का स्टौप अगला है यह बुढ़ापारा स्टौप है.’’
‘‘जी मुझे भी यहीं उतरना है.’’
‘‘पर आप ने तो कहा था कि…’’
‘‘जी मैं अपनी मंजिल का पता किसी अनजान को नहीं बताती.’’
‘‘मैं ने आप की मदद करनी चाही फिर भी आप को मुझ पर भरोसा नहीं?’’
‘‘नहीं, चलिए मैं निकलती हूं.’’
‘‘एक बात का उत्तर दीजिए, आप के साथ आज इतनी बड़ी वारदात हो गई, आप अब आगे क्या करेंगी?’’
‘‘देखिए कोर्टकचहरी के ?ां?ाट में मैं फंसना नहीं चाहती.’’
‘‘मतलब कोई रिपोर्ट नहीं लिखवाएंगी.’’
‘‘जी नहीं.’’
वह नौजवान उस के साथ पीछेपीछे उतरने लगा और उस ने उस ड्राइवर से कहा, ‘‘भैया आप भी जरा साथ में उतरिए.’’
‘‘क्यों तेरी बरात आनी है क्या?’’
‘‘नीचे उतरिए फिर सब सम?ा आ जाएगा. उस ने बस की चाबी निकाल कर अपनी जेब में रखते हुए कहा.
कविता तब तक नीचे उतर चुकी थी और अपने पहचान वालों के पास जा पहुंची.
‘‘लता दीदी आप इन सब को इतनी देर रात क्यों लाई हो?’’
‘‘ऐसे फोन कभी बंद नहीं रहता तेरा इसलिए घबरा गई थी, तेरी आखिरी लोकेशन देख आभास हुआ कि तू बस में होगी, जो कुछ देर और न आती तो रिपोर्ट करने जाते. अब घर चल पाखी तु?ो देखे बिना नहीं सोने वाली.’’
‘‘दीदी आप न होतीं तो मेरा क्या होता,’’ वह उन्हें गले लगा कर बोली.
जीवन में जरूरी नहीं जिन रिश्तों को समाज की सहमती और जन्म के नाते नाम दिया जाता है वही सच्चे और अपने होते हैं. उस की निम्न हालत में कुछ बेनाम रिश्ते उस का कदमकदम पर हौसला बढ़ाते रहे. ये वही लोग हैं जिन्हें वह कोई नाम तो नहीं दे पाई पर वे आज उस के सबकुछ हैं.
उन्हें विदा करने के उपरांत कविता ने पलट कर उस नौजवान को देखना चाहा जो लालबत्ती गाड़ी के ड्राइवर से बात कर रहा था. इस बीच पुलिस की वैन भी आ पहुंची. कुछ बातचीत के बाद उस ड्राइवर को गिरफ्तार कर पुलिस की एक टोली उसे अपने साथ ले गई.
कविता को मामला समझ नहीं आया, ‘‘लता दीदी आप घर जाए मैं 5 मिनट में आती हूं,’’ वह यह कह कर उस नवयुवक के पास पहुंची.
जैसे ही वह उस से बात करने लगी तभी एक पुलिसकर्मी ने उसे रोकते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है? क्या बात करनी है? देख नहीं रहीं साहबजी अभी बिजी हैं.’’
‘‘उस ड्राइवर ने उन 5 लड़कों का बराबरी से साथ दिया है, अगर उस की नीयत साफ होती तो जरूर उन्हें रोकने का प्रयास करता मगर उस ने ऐसा कुछ नहीं किया. उस से कड़ाई से पूछताछ करिए और उन 5 लड़कों का पता निकलवाइए और तुरंत उन्हें ढूंढ़ने अपनी टीम रवाना करिए. मु?ो 2 घंटों के भीतर रिपोर्ट चाहिए,’’ वह नवयुवक रमेश नामक पुलिसकर्मी से बोला.
‘‘जी सर.’’
‘‘और यह अनिकेत फूड सर्विसेज में जा कर कल उन के मैनेजर से पूछताछ करीए. यह क्या नियम फौलो कर रहे हैं? देर रात बिना किसी महिला कर्मचारी की सहमति के रोक कर काम करवाया जा रहा है? जरा कड़ाई से पूछिए और ज्यादा नानाकुर करें तो सीधा केस फाइल करीए,’’ उस नवयुवक ने सब को अपनी ड्यूटी बता दी.
कविता उसे ऐसे रूप में देखती रह गई. उस ने उस पुलिस वाले से पूछा, ‘‘भैया ये हक्े कौन?’’
‘‘ये कौन है? बहनजी ये यहां के नए जिलाधिकारी हैं अविनाशजी.’’
‘‘जिलाधिकारी और वह भी लोकल बस में रात के 12 बजे क्या कर रहे थे?’’
‘‘सरजी कब क्या कर जाएं कोई नहीं बता सकता न समझ सकता है. आज की बात ही देख लो. बिना सिक्युरिटी रात को इलाके की ग्राउंड जीरो लैवल रिपोर्ट लेने ऐसे ही अकेले निकल पड़े और सब गड़बड़ पाया.’’
इतने सामान्य, इतने सरल बिलकुल आम नागरिक की तरह, न कोई अपने पद का अहंकार न रोब. उसे लगा जैसे ऐसे लोग मानवीय जाति से विलुप्त हो चुके होंगे. कविता ने मन ही मन सोचती रही.
इतने में अविनाश की नजर कविता पर पड़ी और उस ने सिपाही को उस के पास लाने का इशारा किया.
‘‘चलिए आप को साहब बुला रहे हैं.’’
‘‘अविनाशजी आप ने बताया क्यों नहीं कि आप इतने बड़े अफसर हैं?’’
‘‘इस में बताने जैसी कोई बात नहीं थी. मैं भी आप लोगों के बीच का ही हूं.’’
‘‘आप ने उस ड्राइवर को गिरफ्तार करवाया और उन 5 पर भी ऐक्शन लेने वाले हैं, उस के लिए धन्यवाद.’’
‘‘मैं जानता हूं आप रिपोर्ट लिखवाना
नहीं चाहतीं.’’
‘‘जी.’’
‘‘मगर क्या आप जानती हैं आप के रिपोर्ट न लिखाने की वजह से हम उन पर वह ऐक्शन नहीं ले पाएंगे जिस के लिए वे डिजरव करते हैं और टेसटिमोनी के अभाव के कारण उन्हें कुछ दिनों बाद छोड़ दिया जाएगा.’’
‘‘जी समझती हूं.’’
‘‘आप ने अपनी बहादुरी दिखा तो दी पर जब असली बहादुरी निभाने की बात आई तो आप पीछे हट कर उन का सीधेसीधे से मनोबल बढ़ा रही हैं.’’
‘‘सर, मेरी छोटी बच्ची है, कामकाज में पूरा दिन निकल जाता है फिर ये कोर्टकचहरी के चक्कर कैसे काट पाऊंगी.’’
‘‘जो आज आप ने उन्हें ढील दे दी तो मेरी एक बात याद रखिएगा, जो इन के हौसले बुलंद हुए तो इन की बदतमीजी सिर चढ़ कर कर बोलने लगेगी. आज ये 5 हैं तो कल 10 हो जाएंगे, फिर क्या करेगी? बेटी आप की भी है, इस इलाके में लाखों आप के जैसी औरतें हैं जो देर रात काम कर घर लौटती हैं. कुछ नहीं तो उन के लिए आप को एक भयमुक्त समाज की नींव रखनी चाहिए. जब तक आम नागरिक इस समाज में बदलाव लाने की चेष्टा नहीं करेगा यह दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी और हम दोष सरकार पर मढ़ते रहेंगे. खैर, यह रहा मेरा कार्ड, अगर आप का मन कभी बदले तो मु?ो एक कौल करिएगा,’’ वह अपना विजिटिंग कार्ड देते बोला.
इसी बीच सिपाही फोन ले कर आ उस नवयुवक के पास आ पहुंचा.
‘‘साहब वायरलैस मैं इंस्पेक्टर रमेश लाइन पर हैं.’’
‘‘सर उन पांचों का पता चल गया है. हम उन्हें गोल बाजार थाने ले कर निकल रहे हैं.’’
‘‘गुड जौब.’’
कविता उन का कार्ड ले कर अपने पर्स में डाल उन की बातों सुन कर चुपचाप वहां से चली गई.
अगले दिन सुबह. कविता रोज की तरह फैक्टरी में काम करने लगी. कुछ घंटो बाद वहां इंस्पैक्टर रमेश और वह सिपाही मैनेजर राणे से पूछताछ करते दिखे.
वह कल रात से कुछ संशय में थी कि क्या उसे अविनाशजी की बात मान कर रिपोर्ट लिखाने का कदम उठाना चाहिए या नहीं? पर वह साहस न जुटा पाई और अपने साथ हुए उस हादसे को एक बुरा सपना मान कर भूलने का प्रयास करने लगी.
अगले कुछ दिन ऐसे ही गुजरते गए और एक दिन उसे घर लौटने में फिर से देर हो गई.
बस का इंतजार करते वह बसस्टौप पर
खड़ी थी कि दूसरी ओर से जाती खाली बस में वही 5 लफंगे लड़के 2 असहाय लड़कियों के साथ छेड़खानी करते दिखे.
उस की धुकधुक फिर से बढ़ने लगी. वह क्या करे. उसे ऐसे भाव आने लगे जैसे उन के
साथ बड़ी अनहोनी होने वाली है. उन के साथ होती इस घटना की जिम्मेदार कहीं न कहीं वह भी है इस बात का उसे भलीभांति एहसास होने लगा.
अविनाशजी ने सही कहा था आप को बहादुरी दिखाने के साथसाथ बहादुरी निभानी भी चाहिए. अगर उस दिन निभा जातीं तो ये बदमाश सलाखों के पीछे होते न कि अभी उन लड़कियों की इज्जत तारतार करते होते.
कविता ने आननफानन में अपने पर्स से अविनाशजी का दिया कार्ड निकाल तुरंत उन्हें फोन लगाया.
‘‘हैलोहैलो अविनाशजी मैं कविता बोल
रही हूं.’’
‘‘हां बोलिए आप ठीक तो हैं?’’
‘‘जी मैं तो ठीक हूं पर वे 2 लड़कियां.
‘‘कौन 2 लड़कियां?’’
और उस ने सारी बात विस्तार से बता दी.
‘‘ये लड़के आज सुबह ही कस्टडी से छूटे हैं. अगला दिन नहीं लगा और अपनी फितरत में लौट आए.’’
‘‘मु?ो अंदाजा नहीं था कि मेरी रिपोर्ट न लिखाने से आगे क्या हो सकता है.’’
‘‘आप को पता है 2018 में भारत को महिलाओं के लिए असुरक्षित स्थान घोषित किया गया था और आज भी हालात में ज्यादा बदलाव नहीं आया है, पता है क्यों?’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि लोकल सर्कल्स द्वारा निकाले गए आंकड़ों के अनुसार वे जो 29 फीसदी महिलाएं जिन के साथ पब्लिक प्लेस पर छेड़खानी की घटना हुई होती हैं, उन में से अपने साथ हुए यौन शोषण के विरुद्ध 75% पीडि़ताओं ने अपनी शिकायत फाइल तक नहीं की. उन में से एक आप भी हैं.’’
‘‘अविनाशजी मैं बहुत शर्मिंदा हूं पर अब और नहीं, मैं कल सुबह ही रिपोर्ट दर्ज कराऊंगी.’’
‘‘यह हुई न बात. मैं आप को ऐसे ही नहीं कह रहा था, समाज तब तक नहीं बदल सकता जब तक हम आम नागरिक अपनी ड्यूटी न निभाएं. मेरी बात मानने का आप का शुक्रिया.’’
‘‘आप का भी शुक्रिया.’’
कविता ने इस पल अपने भीतर बदलाव महसूस किया जो उस के खुद के विचार जोकि इन मुस्टंडों से अस्थाई रूप से बचाव करने भर के थे उलटफेर कर रहे थे. इस उलटफेर के साथ अब इस बात की पुष्टि उस का मन निश्चित रूप से कर रहा था कि इन का इलाज दोनों तरीकों से होना नितांत जरूरी है. एक वह जो वह अब तक करती आई थी और उस के बाद एक जरूरी कदम उठाना है वह यह कि बिना समय बरबाद किए उन के विरुद्ध रिपोर्ट लिखा देनी है.
एक औरत को तकलीफ तो कभी केस वापस लेने के दबाव के रूप में तो कभी धमकी के रूप में तब भी आएगी पर उस मुश्किल घड़ी में खुद को और मजबूत बनाए, खुद से कहे कि मैं ने बहुत सशक्त और सराहनीय काम किया है.
आप का यह कदम उन मुस्टंडों के कारनामों पर हमेशा के लिए अंकुश लगाने से आप खुद तो बचेंगी ही साथ ही अनेक को बचाते हुए उन सभी मुस्टंडों को और उन जैसे बनने वाले अन्य अनेक लड़कों को एक कड़ा संदेश दे जाएगी कि भई अब छेड़खानी पड़ेगी भारी. जब जरूरत आ पड़े तो बहादुरी दिखाएं भी और बहादुरी निभाएं भी.