Romantic Stories Hindi : यह कैसा प्यार – क्या दूर हुई शिवानी की नफरत

Romantic Stories Hindi : आज मैं ने वह सब देखा जिसे देखने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी. कालिज से घर लौटते समय मुझे डैडी अपनी कार में एक बेहद खूबसूरत औरत के साथ बैठे दिखाई दिए. जिस अंदाज में वह औरत डैडी से बात कर रही थी, उसे देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि वह डैडी के बेहद करीब थी.

10 साल पहले जब मेरी मां की मृत्यु हुई थी तब सारे रिश्तेदारों ने डैडी को दूसरा विवाह करने की सलाह दी थी लेकिन डैडी ने सख्ती से मना करते हुए कहा था कि मैं अपनी बेटी शिवानी के लिए दूसरी मां किसी भी सूरत में नहीं लाऊंगा और डैडी अपने वादे पर अब तक कायम रहे थे, लेकिन आज अचानक ऐसा क्या हो गया, जो वह एक औरत के करीब हो कर मेरे वजूद को उपेक्षा की गरम सलाखों से भेद रहे थे.

मुझे अच्छी तरह  से याद है कि मम्मी और डैडी के बीच कभी नहीं बनी थी. मम्मी के खानदान के मुकाबले में डैडी के खानदान की हैसियत कम थी, इसलिए मम्मी बातबात पर अपनी अमीरी के किस्से बयान कर के डैडी को मानसिक पीड़ा पहुंचाया करती थीं. मेरी समझ में आज तक यह बात नहीं आई कि जब डैडी और मम्मी के विचार आपस में मिलते नहीं थे तब डैडी ने उन्हें अपनी जीवनसंगिनी क्यों बनाया था.

कालिज से घर आते ही काकी मां ने मुझ से चाय के लिए पूछा तो मैं उन्हें मना कर अपने कमरे मेें आ गई और अपने आंसुओं से तकिए को भिगोने लगी.

5 बजे के आसपास डैडी का फोन आया तो मैं अपने गुस्से पर जबरन काबू पाते हुए बोली, ‘‘डैडी, इस वक्त आप कहां हैं?’’

‘‘बेटे, इस वक्त मैं अपनी कार ड्राइव कर रहा हूं,’’ डैडी बडे़ प्यार से बोले.

‘‘आप के साथ कोई और भी है?’’ मैं ने शक भरे अंदाज में पूछा.

‘‘अरे, तुम्हें कैसे पता चला कि इस समय मेरे साथ कोई और भी है. क्या तुम्हें फोन पर किसी की खुशबू आ गई?’’ डैडी हंसते हुए बोले.

‘‘हां, मैं आप की इकलौती बेटी हूं, इसलिए मुझे आप के बारे में सब पता चल जाता है. बताइए, कौन है आप के साथ?’’

‘‘देखा तुम ने अरुणिमा, मेरी बेटी मेरे बारे मेें हर खबर रखती है.’’

मुझे समझते देर नहीं लगी कि डैडी के साथ कार में बैठी औरत का नाम अरुणिमा है.

‘‘जनाब, यहां आप गलत फरमा रहे हैं,’’ डैडी के मोबाइल से मुझे एक औरत की खनकती आवाज सुनाई दी, ‘‘अब वह आप की नहीं, मेरी भी बेटी है.’’

उस औरत का यह जुमला जहरीले तीर की तरह मेरे सीने में लगा. एकाएक मेरे दिमाग की नसें तनने लगीं और मेरा जी चाहा कि मैं सारी दुनिया को आग लगा दूं.

‘‘शिवानी बेटे, तुम लाइन पर तो हो न?’’ मुझे डैडी का बेफिक्री से भरा स्वर सुनाई दिया.

‘‘हां,’’ मैं बेजान स्वर में बोली, ‘‘डैडी, यह सब क्या हो रहा है? आप के साथ कौन है?’’

‘‘बेटे, मैं तुम्हें घर आ कर सब बताता हूं,’’ इसी के साथ डैडी ने फोन काट दिया और मैं सोचती रह गई कि यह अरुणिमा कौन है? यह डैडी के जीवन में कब और कैसे आ गई?

डैडी और अरुणिमा के बारे में सोचतेसोचते कब मेरी आंख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला.

7 बजे शाम को काकी मां ने मुझे उठाया और चिंतित स्वर में बोलीं, ‘‘बेटी शिवानी, क्या बात है? आज तुम ने चाय नहीं पी. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘काकी मां, मेरी तबीयत ठीक है. डैडी आ गए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां, और वह तुम्हें बुला रहे हैं. उन्होंने कहा है कि तुम अच्छी तरह से तैयार हो कर आना,’’ इतना कह      कर काकी मां कमरे से बाहर निकल गईं.

थोड़ी देर बाद मैं ड्राइंगरूम में आई तो मुझे सोफे पर वही औरत बैठी दिखाई दी जिसे आज मैं ने डैडी के साथ उन की कार में देखा था.

‘‘अरु, यह है मेरी बेटी, शिवानी,’’ डैडी उस औरत से मेरा परिचय कराते हुए बोले.

न चाहते हुए भी मेरे हाथ नमस्कार करने की मुद्रा में जुड़ गए.

‘‘जीती रहो,’’ वह खुद ही उठ कर मेरे करीब आ गईं और फिर मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर उन्होंने मेरे माथे पर एक प्यारा चुंबन अंकित कर दिया.

‘‘अगर मेरी कोई बेटी होती तो वह बिलकुल तुम्हारे जैसी होती. सच में तुम बहुत प्यारी हो.’’

‘‘अरु, यह भी तो तुम्हारी बेटी है,’’ डैडी हंसते हुए बोले.

डैडी के ये शब्द पिघले सीसे की तरह मेरे कानों में उतरते चले गए. मेरा जी चाहा कि मैं अपने कमरे में जाऊं और खूब फूटफूट कर रोऊं. आखिर डैडी ने मेरे विश्वास का खून जो किया था.

‘‘बेटी, तुम करती क्या हो?’’  अरुणिमाजी ने मुझे अपने साथ बैठाते हुए पूछा.

उस वक्त मेरी हालत बड़ी अजीब सी थी. जिस औरत से मुझे नफरत करनी चाहिए थी वह औरत मेरे वजूद पर अपने आप छाती जा रही थी.

मैं उन्हें अपनी पढ़ाई के बारे में बताने लगी. हम दोनों के बीच बहुत देर तक बातें हुईं.

‘‘काकी मां, देखो तो कौन आया है?’’ डैडी ने काकी मां को आवाज दी.

‘‘मैं जानती हूं, कौन आया है,’’ काकी मां ने वहां चाय की ट्राली के साथ कदम रखा.

‘‘अरे, काकी मां आप,’’  अरुणिमा उन्हें देखते ही खड़ी हो गईं.

चाय की ट्राली मेज पर रख कर काकी मां उन की तरफ बढ़ीं. फिर दोनों प्यार से गले मिलीं तो मैं दोनों को उलझन भरी निगाहों से देखने लगी.

अरुणिमा का इस घर से पूर्व में गहरा संबंध था, यह बात तो मैं समझ गई थी, लेकिन कोई सिरा मेरे हाथों में नहीं आ रहा था.

‘‘काकी मां, आप इन्हें जानती हैं?’’ मैं ने हैरत भरे स्वर में काकी मां से पूछा.

काकी मां के बोलने से पहले ही डैडी बोल पड़े, ‘‘बेटी, अरुणिमाजी का इस घर से गहरा संबंध रहा है. हम दोनों एक ही स्कूल और एक ही कालिज में पढ़े हैं.’’

तभी अरुणिमाजी ने डैडी को इशारा किया तो डैडी ने फौरन अपनी बात पलटी और सब को चाय पीने के लिए कहने लगे.

अब मेरी समझ में कुछकुछ आने लगा था कि मम्मीडैडी के बीच ऐसा क्या था जो वे एकदूसरे से बात करना तो दूर, देखना तक पसंद नहीं करते थे. निसंदेह डैडी शादी से पहले इसी अरुणिमाजी से प्यार करते थे.

चाय पीने के दौरान मैं ने अरुणिमाजी से काफी बातें कीं. वह बहुत जहीन थीं. वह हर विषय पर खुल कर बोल सकती थीं. उन की नालेज को देख कर मेरी उन के प्रति कुछ देर पहले जमी नफरत की बर्फ तेजी से पिघलने लगी.

उन की बातों से मुझे यह भी पता चला कि वह एक प्रोफेसर थीं. कुछ साल पहले उन के पति का देहांत हो गया था. उन का अपना कहने को इकलौता बेटा नितिन था, जो बिजनेस के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए लंदन गया हुआ था.

रात का डिनर करने के बाद जब अरुणिमा गईं तो मैं अपने कमरे में आ गई. मैं ने कहीं पढ़ा था कि कुछ औरतों की भृकुटियों में संसार भर की राजनीति की लिपि होती है, जब उन की पलकें झुक जाती हैं तो न जाने कितने सिंहासन उठ जाते हैं और जब उन की पलकें उठती हैं तो न जाने कितने राजवंश गौरव से गिर जाते हैं.

अरुणिमाजी भी शायद उन्हीं औरतों में एक थीं, तभी डैडी ने दूसरी शादी न करने की जो कसम खाई थी, उसे आज वह तोड़ने के लिए हरगिज तैयार नहीं होते. मैं बिलकुल नहीं चाहती कि इस उम्र में डैडी अरुणिमाजी से शादी कर के दीनदुनिया की नजरों में उपहास का पात्र बनें.

सुबह टेलीफोन की घंटी से मेरी आंख खुली. मैं ने फोन उठाया तो मुझे अरुणिमाजी की मधुर आवाज सुनाई दी. ‘‘स्वीट बेबी, मैं ने तुम्हें डिस्टर्ब तो नहीं किया?’’

‘‘नहीं, आंटीजी,’’ मैं जरा संभल कर बोली, ‘‘आज मेरे कालिज की छुट्टी थी, इसलिए मैं देर तक सोने का मजा लेना चाह रही थी.’’

‘‘इस का मतलब मैं ने तुम्हारी नींद में खलल डाला. सौरी, बेटे.’’

‘‘नहीं, आंटीजी, ऐसी कोई बात नहीं है. कहिए, कैसे याद किया?’’

‘‘आज तुम्हारी छुट्टी है. तुम मेरे घर आ जाओ. हम खूब बातें करेंगे. सच कहूं तो बेटे, कल तुम से बात कर के बहुत अच्छा लगा था.’’

‘‘लेकिन आंटी, डैडी की इजाजत के बिना…’’ मैं ने अपना वाक्य जानबूझ कर अधूरा छोड़ दिया.

‘‘तुम्हारे डैडी से मैं बात कर लूंगी,’’ वह बडे़ हक से बोली, ‘‘वह मना नहीं करेंगे.’’

उस पल जेहन में एक ही सवाल परेशान कर रहा था कि जिस से मुझे बेहद नफरत होनी चाहिए, मैं धीरेधीरे उस के करीब क्यों होती जा रही हूं?

1 घंटे बाद मैं अरुणिमाजी के सामने थी.

उन्होंने पहले तो मुझे गले लगाया, फिर बड़े प्यार से सोफे पर बैठाया. इस के बाद वह मेरे लिए नाश्ता बना कर लाईं. नाश्ते के दौरान मैं ने उन से पूछा, ‘‘आंटी, मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि आप से मिले हुए मुझे अभी सिर्फ 1 दिन हुआ है. सच कहूं तो मैं कल से सिर्फ आप के बारे में ही सोचे जा रही हूं. अगर आप मुझे पहले मिल जातीं तो कितना अच्छा होता,’’ यह कह कर मैं उन के घर को देखने लगी.

उन का सलीका और हुनर ड्राइंग रूम से बैडरूम तक हर जगह दिखाई दे रहा था. हर चीज करीने से रखी हुई थी. उन का घर इतना साफसुथरा और खूबसूरत था कि वह मुझे मुहब्बतों का आईना जान पड़ा.

उन के सलीके और हुनर को देख कर मेरे दिल में एक हूक सी उठ रही थी. मैं सोच रही थी कि काश, उन के जैसी मेरी मां होतीं. तभी मेरी आंखों के सामने मेरी मम्मी का चेहरा घूम गया. मेरी मम्मी एक मगरूर औरत थीं, उन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर वक्त डैडी से लड़ते हुए बिताया था.

मेरी मम्मी ने बेशक मेरे डैडी के शरीर पर कब्जा कर लिया था, लेकिन वह उन के दिल में जगह नहीं बना पाई थीं, जोकि एक स्त्री अपने पति के दिल में बनाती है.

अब अरुणिमाजी की जिंदगी एक खुली किताब की तरह मेरे सामने आ गई थी. उन के दिल के किसी कोने में मेरे डैडी के लिए जगह जरूर थी. लेकिन उन्होंने डैडी से शादी क्यों नहीं की थी, यह बात मेरी समझ से बाहर थी.

शाम होते ही डैडी मुझे लेने आ गए. रास्ते में मैं ने उन से पूछा, ‘‘डैडी, अगर आप बुरा न मानें तो मैं आप से एक बात पूछ सकती हूं?’’

डैडी ने बड़ी हैरानी से मुझे देखा, फिर आहत भाव से बोले, ‘‘बेटे, मैं ने आज तक  तुम्हारी किसी बात का बुरा माना है, जो आज तुम ऐसी बात कह रही हो. तुम जो पूछना चाहती हो पूछ सकती हो. मैं तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं मानूंगा.’’

‘‘आप अरुणिमाजी से प्यार करते हैं न?’’ मैं ने बिना किसी भूमिका के कहा.

डैडी पहले काफी देर तक चुप रहे फिर एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोले, ‘‘यह सच है कि एक वक्त था जब हम दोनों एकदूसरे को हद से ज्यादा चाहते थे और हमेशा के लिए एकदूसरे का होने का फैसला कर चुके थे.’’

‘‘ऐसी बात थी तो आप ने एकदूसरे से शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि तुम्हारे दादा ने मुझे अरुणिमा से शादी करने से मना किया था. तब मैं ने अपने मांबाप की मर्जी के बिना घर से भाग कर अरुणिमा से शादी करने का फैसला किया, लेकिन उस वक्त अरुणिमा ने मेरा साथ नहीं दिया था. तब उस का यही कहना था कि हमारे मांबाप के हम पर बहुत एहसान हैं, हमें उन के एहसानों का सिला उन के अरमानों का खून कर के नहीं देना चाहिए. उन की खुशियों के लिए हमें अपने प्यार का बलिदान करना पडे़गा.

‘‘मैं ने तब अरुणिमा को काफी समझाया, लेकिन वह नहीं मानी. इसलिए हमें एकदूसरे की जिंदगी से दूर जाना पड़ा. कुछ दिन पहले वह मुझे एक पार्टी में नहीं मिलती तो मैं उसे तुम्हारी मम्मी कभी नहीं बना पाता. आज की तारीख में उस का एक ही लड़का है, जिसे अरुणिमा के तुम्हारी मम्मी बनने से कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘लेकिन डैडी, मुझे एतराज है,’’ मैं कड़े स्वर में बोली.

‘‘क्यों?’’ डैडी की भवें तन उठीं.

‘‘क्योंकि मैं नहीं चाहती कि आप की जगहंसाई हो.’’

‘‘मुझे किसी की परवा नहीं है,’’ डैडी सख्ती से बोले, ‘‘तुम्हें मेरा कहा मानना ही होगा. तुम अपने को दिमागी तौर पर तैयार कर लो. कुछ ही दिनों        में वह तुम्हारी मम्मी बनने जा रही है.’’

उस वक्त मुझे अपने डैडी एक इनसान न लग कर एक हैवान लगे थे, जो दूसरों की इच्छाओं को अपने नुकीले नाखूनों से नोंचनोंच कर तारतार कर देता है.

2 दिन पहले ही अरुणिमाजी का इकलौता बेटा नितिन लंदन से वापस लौटा तो उन्होंने उस से सब से पहले मुझे मिलाया. नितिन के बारे में मैं केवल इतना ही कहूंगी कि वह मेरे सपनों का राजकुमार है. मैं ने अपने जीवन साथी की जो कल्पना की थी वह हूबहू नितिन जैसा ही था.

कितनी अजीब बात है, जिस बाप को शादी की उम्र की दहलीज पर खड़ी अपनी औलाद के हाथ पीले करने के बारे में सोचना चाहिए वह बाप अपने स्वार्थ के लिए अपनी औलाद की खुशियों का खून कर के अपने सिर पर सेहरा बांधने की सोच रहा है.

आज अरुणिमाजी खरीदारी के लिए मुझे अपने साथ ले गई थीं. मैं उन के साथ नहीं जाना चाहती थी, लेकिन डैडी के कहने पर मुझे उन के साथ जाना पड़ा.

शौपिंग के दौरान जब अरुणिमाजी ने एक नई नवेली दुलहन के कपड़े और जेवर खरीदे, तो मुझे उन से भी नफरत होने लगी थी.

मैं ने मन ही मन निश्चय कर अपनी डायरी में लिख दिया कि जिस दिन डैडी अपने माथे पर सेहरा बांधेंगे, उसी दिन इस घर से मेरी अर्थी उठेगी.

आज मुझे अपने नसीब पर रोना आ रहा है और हंसना भी. रोना इस बात पर आ रहा है कि जो मैं ने सोचा था वह हुआ नहीं और जो मैं ने नहीं सोचा था वह हो गया.

यह बात मुझे पता चल गई थी कि डैडी को अरुणिमा आंटी को मेरी मां बनाने का फैसला आगे आने वाले दिन 28 नवंबर को करना था और यह विवाह बहुत सादगी से गिनेचुने लोगों के बीच ही होना था.

28 नवंबर को सुबह होते ही मैं ने खुदकुशी करने की पूरी तैयारी कर ली थी. मैं ने सोच लिया था कि डैडी जैसे ही अरुणिमा आंटी के साथ सात फेरे लेंगे, वैसे ही मैं अपने कमरे में आ कर पंखे से लटक कर फांसी लगा लूंगी.

दोपहर को जब मैं अपने कमरे में मायूस बैठी थी तभी काकी मां ने कुछ सामान के साथ वहां कदम रखा और धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘ये कपड़े तुम्हारे डैडी की पसंद के हैं, जोकि उन्होंने अरुणिमा बेटी से खरीदवाए थे. उन्होंने कहा है कि तुम जल्दी से ये कपड़े पहन कर नीचे आ जाओ.’’

मैं काकी मां से कुछ पूछ पाती उस से पहले वह कमरे से बाहर निकल गईं और कुछ लड़कियां मेरे कमरे में आ कर मुझे संवारने लगीं.

थोड़ी देर बाद मैं ने ड्राइंगरूम में कदम रखा तो वहां काफी मेहमान बैठे थे. मेहमानों की गहमागहमी देख कर मेरी समझ में कुछ नहीं आया.

मैं सोफे पर बैठी ही थी कि वहां अरुणिमाजी आ गईं. उन के साथ नितिन नहीं आया था.

‘‘शिशिर, हमें इजाजत है?’’ उन्होंने डैडी से पूछा.

‘‘हां, हां, क्यों नहीं, यह रही तुम्हारी अमानत. इसे संभाल कर रखिएगा,’’  डैडी भावुक स्वर में बोले.

तभी वहां नितिन ने कदम रखा, जो दूल्हा बना हुआ था.

मेरा सिर घूम गया. मैं ने उलझन भरी निगाहों से डैडी की तरफ देखा तो वह मेरे करीब आ कर बोले, ‘‘मैं ने तुम से कहा था न कि मैं अरुणिमा आंटी को तुम्हारी मम्मी बनाऊंगा. आज से अरुणिमा आंटी तुम्हारी मम्मी हैं. इन्हें हमेशा खुश रखना.’’

एकाएक मेरी रुलाई फूट पड़ी. मैं डैडी के गले लग गई और फूटफूट कर रोने लगी.

इस के बाद पवित्र अग्नि के सात फेरे ले कर मैं नितिन की हमसफर और अरुणिमाजी की बेटी बन गई.

Hindi Love Stories : अतीत के झरोखे

Hindi Love Stories : राधा और अविनाश न्यूयौर्क एअरपोर्ट से ज्योंही बाहर निकले आकाश उन से लिपट गया. इतने दिनों के बाद बेटे को देख कर दोनों की आंखें भर आईं. तभी उन के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी. आकाश ने उन का सामान डिक्की में रखा और उन दोनों को बैठने को कह आगे जा बैठा. जूही ने पीछे मुड़ कर अपनी मोहिनी मुसकान बिखेरते हुए उन दोनों का आंखों से ही अभिवादन किया तो राधा को ऐसा लगा मानों कोई परी धरती पर उतर आई हो.

राधा ने मन ही मन बेटे के पसंद की दाद दी. करीब घंटे भर की ड्राइव के बाद गाड़ी एक अपार्टमैंट के सामने रुकी. उतरते ही जूही का उन दोनों का पैर छू कर प्रणाम करना राधा का मन मोह गया. बड़े प्यार से उन्होंने जूही को गले लगा लिया. आकाश का 1 कमरे का घर अच्छा ही लगा उन्हें. जूही और आकाश दोनों मिल कर सामान अंदर ले आए. जब वे दोनों फ्रैश हो गए, तो जूही चाय बना लाई.

चाय पीते हुए राधा जूही को निहारती रहीं. लंच कर अविनाश और राधा सो गए.

‘‘उठिए न मम्मी… आप के उठने का इंतजार कर के जूही चली गई.’’

उठने की इच्छा न होते हुए भी राधा को उठना पड़ा. फिर बड़े दुलार से बेटे का माथा सहलाती हुई बोलीं, ‘‘अरे, चिंता क्यों कर रहा है? मुझे और तेरे पापा को तेरी जूही बहुत पसंद है… सब कुछ अपने जैसा ही तो है उस में… अमेरिका में भी तुम ने अपनी बिरादरी की लड़की ढूंढ़ी यही क्या कम है हमारे लिए? अब जल्दी से उस के परिवार वालों से मिलवा दे. जब यहीं पर शादी करनी है, तो फिर इंतजार क्यों?’’

राधा की बातों से आकाश उत्साहित हो उठा. बोला, ‘‘उस के परिवार में केवल उस के पापा हैं. अपनी मां को तो वह बचपन में ही खो चुकी है. उस के पापा ने फिर शादी नहीं की. जूही को उस की नानी ने ही पाला है. उस के पापा चाहते हैं कि शादी के बाद हम उन्हीं के साथ रहें. लेकिन मैं ने इनकार कर दिया. जिस घर में हम शिफ्ट करने वाले हैं वह उसी एरिया में है. कल चल कर देख लीजिएगा.’’

बेटे की बातों से राधा भावविभोर हो रही थीं. उन के अमेरिका आने से पहले आकाश की पसंद को ले कर सभी ने उन्हें कितना भड़काया था. आकाश तो वैसा ही है… कहीं कोई बदलाव नहीं है उस में… दूसरों की खुशी देख कर लोग जलते भी तो हैं. ऐसे भी आकाश स्कूल से ले कर इंजीनियरिंग करने तक टौप ही तो करता रहा था. आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आ रहा था तो भी लोगों को कितनी जलन हुई थी. शादी के बाद जूही को ले कर जब इंडिया जाऊंगी तो उस के रूपरंग को देख कर सभी ईर्ष्या करेंगे, ऐसा सोचते ही राधा मुसकरा उठीं.

‘‘क्या सोच कर मुसकरा रही हैं मां?’’ आकाश के पूछने पर राधा वर्तमान में लौट आईं.

‘‘कुछ भी तो नहीं रे… सब कुछ ठीक हो जाए तो सियाटल से अनीता और आदित्य भी आ जाएंगे… सारा इंतजाम कर के मैं आई ही हूं,’’ राधा बोलीं.

आकाश ने फोन पर ही जूही को बता दिया कि वह मम्मी को बहुत पसंद है. दूसरे दिन सवेरे ही जूही पहुंच गई. देखते ही राधा ने उसे गले लगा लिया. फिर उस के घर के बारे में पूछने लगीं.

जूही भी उन से कुछ खुल गई. उस ने उन से पूछा, ‘‘आकाश की तरह क्या मैं भी आप दोनों को मम्मीपापा कह सकती हूं?’’

राधा खुशी से बोलीं, ‘‘क्यों नहीं? अब आकाश से तुम अलग थोड़े ही हो,’’ कुछ ही दिनों की बात है जब तुम भी पूरी तरह से हमारी हो जाओगी.’’

राधा की बात पर जूही ने शरमा कर सिर झुका लिया.

‘‘अच्छा तो मम्मीजी आप लोग पापा और नानी से मिलने कब चल रहे हैं? वे दोनों आप से मिलने के लिए उत्सुक हैं.’’

फिर अगले दिन का करार ले कर ही जूही मानी.

दूसरे दिन सुबह से ही राधा को जूही के घर जाने के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साहित देख कर अविनाश उन से छेड़खानी कर रहे थे. इसी बीच जूही गाड़ी ले कर आ गई.

तैयार हो कर राधा और अविनाश कमरे से बाहर निकले. ‘एक युवा बेटे की मां भी इस उम्र में इतनी कमनीय हो सकती है?’ सोच जूही मुसकरा उठी.

रास्ते में सड़क के दोनों ओर की प्राकृतिक सुंदरता देख कर राधा मुग्ध हो उठीं कि सच में अमेरिका परियों और फूलों का देश है.

1 घंटे के बाद फूलों से सजे एक बड़े से घर के सामने गाड़ी रुकी तो उतरते ही एक बड़ी उम्र की संभ्रांत महिला ने सौम्य मुसकान के साथ उन का स्वागत किया, जो जूही की नानी थीं. लिविंगरूम में जूही के पापा अविनाश के पास आ कर बैठ गए. राधा की ओर मुड़े ही थे कि वे चौंक  गए और उन के अभिवादन में उठे हाथ हवा में झूल गए. उधर राधा के जुड़े हाथ भी उन की गोद में गिर गए, जिसे अविनाश के सिवा और कोई न देख सका. राधा के चेहरे पर स्तब्धता थी. सारी खुशियां काफूर हो गई थीं. उन की महीनों की चहचहाट पर अचानक चुप्पी का कुहरा छा गया था. वे असहज हो कर सिर को इधरउधर घुमाते हुए अपनी हथेलियों को मसल रही थीं.

जूही की नानी ही बोले जा रही थीं.

माहौल गरम हो गया था जिसे सहज बनाने का अविनाश अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे थे.

लंच के समय भी अनमनी सी राधा को देख कर आकाश और जूही हैरान थे कि अचानक इन्हें क्या हो गया?

आखिर जूही की नानी ने राधा को टोक ही दिया, ‘‘क्या बात है राधाजी, क्या मैं और आशीष आप को पसंद नहीं आए? हमें देखते ही चुप हो गईं… छोडि़ए, आप को हमारी जूही तो पसंद है न?’’

यह सुनते ही राधा सकुचा तो गईं, लेकिन बड़े ही रूखे शब्दों में कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है… अचानक सिरदर्द होने लगा.’’

‘‘कुछ भी कहिए, लेकिन अमेरिका में जन्म लेने के बावजूद जूही की परवरिश बेमिसाल है. इस का सारा श्रेय आप लोगों को जाता है. जूही हम दोनों को बहुत पसंद है… शायद इंडिया में भी हम आकाश के लिए ऐसी लड़की नहीं ढूंढ़ पाते… क्यों राधा ठीक कहा न मैं ने?’’

राधा ने उन की बातें अनसुनी कर दीं.

अविनाश की बातों से आशीष थोड़ा मुखर हो उठे. बोले, ‘‘तो अब बताइए कि कैसे आगे का कार्यक्रम रखा जाए?’’

जवाब में राधा ने कहा, ‘‘हम आप को सूचित कर देंगे… अब हम चलना चाहेंगे. आकाश, उठो और टैक्सी बुलाओ… मुझे मानहट्टन होते हुए जाना है… क्यों न हम नीति से मिलते चलें. मामामामी के आने से वह भी बड़ी उत्साहित है. इन सब बातों के लिए जूही को तकलीफ देना ठीक नहीं है.’’

राधा की बातों से सभी चौंक गए.

‘‘इस में तकलीफ जैसी कोई बात नहीं है,’’ आशीषजी बोले, ‘‘अविनाशजी, अगर आप की इजाजत हो तो 2 मिनट मैं अकेले में आप की पत्नीजी से कुछ बातें करना चाहूंगा… जूही जब मात्र 10 साल की थी तभी उस की मां गुजर गईं. अपने कुछ किए गलत कामों का प्रायश्चित्त करने के लिए सभी के आग्रह करने के बावजूद मैं ने दूसरी शादी नहीं की… मैं ने अकेले ही मांबाप दोनों का प्यार, संस्कार दे कर उसे पाला है… जब तक मैं राधाजी की सहमति से पूर्ण संतुष्ट नहीं हो जाता इस रिश्ते के लिए स्वयं को कैसे तैयार कर पाऊंगा?

जवाब में अविनाश का हंसना ही सहमति दे गया. फिर आशीषजी और राधा को छोड़ कर बाकी सभी बाहर निकल गए.

आशीष राधा के समक्ष जा कर खड़े हो गए और फिर भर आए गले से बोले, ‘‘राधा, तुम से छल करने वाला, तुम्हें रुसवा करने वाला तुम्हारे सामाने खड़ा है… जो भी सजा दोगी मुझे मंजूर होगी… मेरी बेटी का कोई कुसूर नहीं है इस में… तुम से मेरी यही प्रार्थना है कि जूही और आकाश को कभी अलग नहीं करना वरना दोनों टूट जाएंगे. एकदूसरे के बगैर वे जी नहीं पाएंगे… सभी की खुशियां अब तुम्हारे हाथ में हैं. जूही ही तुम लोगों को छोड़ने जाएगी. इतनी ही देर में उस का चेहरा उदास हो कर कुम्हला गया है,’’ कह कर आशीष बाहर निकल आए और फिर जूही को इन सब के साथ जाने को कहा तो जूही और आकाश के मुरझाए चेहरे खिल उठे.

पूरा रास्ता राधा आंखें बंद किए चुप रहीं. लौटने के बाद भी वे अनमनी सी लेट गईं, जबकि बाहर से आ कर बिना चेंज किए बैड पर जाना उन्हें कतई पसंद नहीं था.

अविनाश लिविंग रूम में बैठ कर टीवी देखते रहे. शाम हो गई थी. राधा उठ गई थीं. बोलीं, ‘‘सुनिए मैं सामने ही घूम रही हूं. आकाश आ जाए तो आप भी आ जाइएगा,’’ और फिर चप्पलें पहनते हुए सीढि़यां उतर गईं.

बच्चों के पार्क में रखी बैंच पर जा बैठीं. आंखें बंद करते ही 32 साल से बंद अतीत चलचित्र की तरह आंखों के आगे घूम गया…

बड़ी ही धूमधाम से राधा की मंगनी आशीष के साथ हुई थी. किसी फंक्शन में आशीष ने उन्हें देखा था और फिर उस की नजरों में बस गई थीं. मंगनी होने के बाद वे आशीष से कुछ ज्यादा ही खुल गई थीं. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. सब के सो जाने के बाद धीरे से वे फोन को उठा कर अपने कमरे में ले जाती. और फिर शुरू होता प्यार भरी बातों का सिलसिला जो देर रात तक चलता. 2 महीने बाद ही शादी का मुहूर्त्त निकला था. इसी बीच अचानक आशीष को किसी प्रोजैक्ट वर्क के सिलसिले में 6 महीने के लिए न्यूयौर्क जाना पड़ा.

शादी नवंबर तक के लिए टल गई. वे मन मसोस कर रह गईं. लेकिन आशीष उज्ज्वल भविष्य के सपनों को आंखों में लिए अमेरिका के लिए रवाना हो गया. फिर राधा अपनी एम.एससी. की परीक्षा की तैयारी में लग गईं. आशीष फिर कभी नहीं लौटा. अमेरिका जाने पर आशीष एक गुजराती परिवार में पेइंगगैस्ट बन कर रहने लगे. अमेरिका उन्हें इतना भाया कि वह वहां से न लौटने का निश्चय कर किसी कीमत पर वहां रहने का जुगाड़ बैठाता रहा. यहां तक कि अपनी कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी. सब से सरल उपाय यही था कि वह वहां की किसी नागरिकता प्राप्त लड़की से ब्याह कर ले. फिर आशीष ने उसी गुजराती परिवार की इकलौती लड़की से शादी कर ली. उस के इस धोखे से राधा टूट गई थी. उन्हें ब्याह नाम से चिढ़ सी हो गई थी. फिर कुछ महीने बाद अविनाश के घर से आए रिश्ते के लिए न नहीं की. सब कुछ भुला अविनाश की पत्नी बन गईं. समय के साथ 2 बच्चों की मां भी बन गईं. दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश की. पढ़नेलिखने में ही नहीं, बल्कि सारी गतिविधियों में दोनों बड़े काबिल निकले. बी.टैक करते ही बेटी की शादी सुयोग्य पात्र से कर दी. बेटी यहीं सियाट्टल में है. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. बड़े अरमान के साथ बेटे की शादी का सपना आंखों में लिए यहां आई थीं.

टैनिस टूरनामैंट में आकाश और जूही पार्टनर बने और विजयी हुए. ऐसे ही मिलतेजुलते दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. आकाश ने फेसबुक पर मां यानी राधा से जूही का परिचय करा दिया था. राधा को जूही में कोई कमी नजर नहीं आई. सलिए उन के रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी. अब तक के जीवन में सभी प्रमुख निर्णय राधा ही लेती आई थीं, तो अविनाश को क्यों ऐतराज होता? राधा की खुशी ही उन के लिए सर्वोपरि थी. चूंकि जूही की मां नहीं थी और उसे नानी ने ही पाला था और वे इंडिया आने में लाचार थे, इसलिए निर्णय यही हुआ था कि अगर सब कुछ ठीकठाक हुआ तो वहीं शादी कर देंगे. इस निर्णय से उन की बेटी और दामाद दोनों बहुत खुश हुए. जूही के पिता के परिवार के बारे में उन्होंने ज्यादा छानबीन नहीं की और यहीं धोखा खा गईं. कितना सुंदर सब कुछ हो रहा था कि इस मोड़ पर वे आशीष से टकरा गईं और बंद स्मृतियों के कपाट खुल कर उन्हें विचलित कर गए… बेटे से भी नहीं कह सकतीं कि इस स्वार्थी, धोखेबाज की बेटी के साथ रिश्ता न जोड़ो… सिर से पैर तक उस के प्यार में डूबा हुआ है. वह भी क्यों मानने लगा अपनी मां की बात. दर्द से फटते माथे को दोनों हाथों से थाम वे सिसक उठीं.

तभी अचानक कंधों पर किसी का स्पर्श पा कर मुड़ीं तो पीछे अविनाश को खड़ा पाया.

राधा के हाथों को सहलाते हुए वे उन की बगल में बैठ गए और बड़े सधे स्वर में कहने लगे, ‘‘राधा, अंदर से तुम इतनी कमजोर हो, मैं ने कभी सोचा न था. इतनी छोटी बात को दिल से लगाए बैठी हो. कुछ सुना था और कुछ अनुमान लगा लिया. अरे, आशीष ने तुम्हारे साथ जो किया वह कोई नई बात थोड़े है. यह देश उसे सपनों की मंजिल लगा. जूही की सुंदरता से साफ पता चलता है कि उस की मां कितनी सुंदर रही होगी… वीजा, फिर नागरिकता, रहने को घर, सुंदर पत्नी, सारी सुखसुविधाएं जब उसे इतनी सहजता से मिल गईं तो वह क्या पागल था कि देश लौट आता सिर्फ इसलिए कि उस की मंगनी हुई है? फिर जीवन में सब कुछ होना पहले से ही निर्धारित रहता है तुम्हारी ही तो ऐसी सोच है. तुम्हें मेरी बनना था तो ये महाशय तुम्हें कैसे ले जाते? माना कि बहुत सारी सुखसुविधाएं तुम्हें नहीं दे पाया लेकिन मन में संचित सारे प्यार को अब तक उड़ेलता रहा हूं. अचानक कल से मम्मी को हो क्या गया है, पापा? आकाश का यह पूछना मुझे पसोपेश में डाल गया है. हो सकता है वह सब कुछ समझ भी रहा हो. इतना नासमझ भी तो नहीं है.’’

राधा की आंखों से बहते आंसुओं ने अविनाश को आगे और कुछ नहीं कहने दिया. कुछ देर बाद आंचल से अपने आंसुओं को पोंछती हुई राधा ने कहा, ‘‘मैं कल से सोच रही हूं कि अगर जूही का जैनेटिक्स भी अपने बाप जैसा हुआ तो यह हमारे बेटे को हम से छीन लेगी… कितनी निर्ममता से आशीष अपनों को भूल गया था… उसे देखने के लिए मांबाप की आंखें सारी उम्र तरसती रह गईं और वह घरजमाई बन कर रह गया. इस की बेटी ने कहीं मेरे सीधेसादे बेटे को घरजमाई बना लिया तो हम भी बेटे को देखने को तरसते रह जाएंगे.’’

राधा की बातें सुन कर अविनाश को हंसी आ गई. तभी आकाश भी उन दोनों को खोजते हुए वहां आ गया. सकुचाई हुई मम्मी और हंसते हुए पापा को देख कर प्रश्न भरी आंखों से उन्हें देखा. अविनाश अपनेआप को अब रोक नहीं सके और सारी बात बता दी.

इतना सुनना था कि आकाश छोटे बच्चे की तरह राधा से लिपट गया. बोला, ‘‘मम्मी, आप के लिए जूही तो क्या पूरी दुनिया को छोड़ सकता हूं… इतना ही जाना है आप ने अपने बेटे को? फिर आप दोनों को भी मेरे साथ ही रहना है… आप दोनों के लिए ही तो इतना बड़ा घर लिया है… ऐसे भी इंडिया में है ही कौन आप दोनों का…. एक घर ही तो है? आराम से अब मेरे पास रहें. बीचबीच में दीदी से भी मिलते रहें.’’

आकाश की बातों से राधा के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और फिर से 2 हफ्ते बाद ही बड़ी धूमधाम के साथ आकाश और जूही शादी के बंधन में बंध कर हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड चले गए.

1 महीने बाद आने का वादा ले कर बेटी, दामाद एवं नाती सियाट्टल चले गए तो अविनाश ने भी हंसते हुए राधा से कहा, ‘‘क्यों न हम भी हनीमून मना लें… हमारी शादी के बाद तो हमारे साथ हमारे पूरे परिवार ने भी हनीमून मनाया था… याद तो होगा तुम्हें… तुम से मिलने को भी हम तरस कर रह जाते थे. अब बेटे ने विदेश में अवसर दिया है तो हम क्यों चूकें और फिर अभी हम इतने बूढ़े भी तो नहीं हुए हैं.’’

अविनाश की बातें सुन राधा मुसकरा दीं और फिर शरमा कर अविनाश से लिपटते हुए अपनी सहमति जता दी.

Plane Crash : कांपते हाथों, बहते आंसुओं संग बुढ़े बाप ने पायलट बेटे सुमित को कहा अलविदा 

Plane Crash : May Day, May Day, नो पावर, नो थ्रस्ट, गोइंग डाउन…. ये मैसेज पायलट सुमित सभरवाल ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल को भेजे थे. उन्हें खतरे का अहसास हो गया था.  एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर क्रैश होने के ठीक पहले बोले गए ये शब्द उनके आखिरी शब्द बन गए. यह घटना 12 जून को हुई थी.
इस घटना में विमान में सवार 242 लोगों में से 241 मारे गए, जिसमें कैप्टन सुमित सभरवाल भी शामिल थे. आज उनके पार्थिव शरीर को मुंबई लाया गया, जहां पवई स्थित उनके आवास पर उन्हें अंतिम विदाई दी गई.    

 Plane Crash :  8200 घंटे की उड़ान का अनुभव

अभी तक सोशल मीडिया के जरिए ,एयर इंडिया के पायलट सुमित सभरवाल की जो भी तस्वीरें सामने आई हैं, सभी में वह मुसकुरा रहे हैं. चेहरे से सौम्य दिखने वाले सुमित के पास उड़ान का गहरा अनुभव था.  नागरिक उड्डयन महानिदेशालय यानि डीजीसीए की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि सुमित के पास 8200 घंटे की उड़ान का अनुभव था. 

90 साल के पिता ने बेटे को दी अंतिम विदाई

17 जून को कैप्टन सुमित के शव को जब मुंबई में उनके घर लाया तो सभी उन्हें अंतिम बार देखने को उमड़ पड़े. ऐसे में वहां मौजूद लोगों के लिए यह देखना बेहद दुखद था कि करीब 90 साल का पिता अपने बेटे को किस तरह रो रो कर आखिरी विदाई दे रहा है.
जिस बेटे को उंगुली पकड़ कर चलना सिखाया था वह हमेशा के लिए उनसे हाथ छुड़ा कर चला गया. जिसे अपने बुर्जुग पिता का सहारा बनना था, वह खुद गहरी नींद में सो चुका था. उसके शव के सामने आंखों में आंसू लिए बुढ़ा बाप अपने कांपते हाथों को जोड़ कर अपने जिगर के टुकड़े को अलविदा कह रहा था.
ह क्षण बेहद मार्मिक था.
बुर्जुग पिता रोतेरोते बेटे के शव पर झुक जा रहे थे, यह दृश्य किसी को भी रोने पर मजबूर करने वाला था. सुमित ने तीन दिन पहले अपने पापा से कहा था कि मैं अब नौकरी छोड़ कर आपकी सेवा करूंगा लेकिन नौकरी छोड़ने के पहले वह दुनिया छोड़ कर चला गया. Plane Crash ने उनका सबकुछ छीन लिया था.

अब कौन रखेगा ख्याल 

कैप्टन सुमित के पिता नागर विमानन महानिदेशालय यानि डीजीसीए के रिटायर्ड अधिकारी रह चुके हैं. कैप्टन सुमित अनमैरिड थे. जब कभी वह फ्लाइट लेकर जाते थे तो पड़ोसियों को अपने पापा का ध्यान रखने के लिए कहते थे. सुमित की बहन उनके साथ रहती थी. उनके भतीजे भी कमर्शियल पायलट हैं.  

 

Plane Crash : रिक्शा वाले की बेटी पायल लंदन पढ़ने जा रही थी, पहली विमान यात्रा बनी आखिरी

Plane Crash : 12 जून को अहमदाबाद से लंदन के गैटविक एयरपोर्ट के लिए एयर इंडिया का विमान उड़ान भरने वाला था. इस विमान में 242 लोग शामिल थे, जिसमें 230 पैसेंजर्स थे. कोई अपने परिवार के साथ बकरीद मनाने आया था, तो कोई शादी के बाद लंदन अपने पति के पास घर बसाने जा रहा थी.
इन्हीं पैसेंजर्स में एक मासूम सी लड़की भी शामिल थी, जो अपने रिक्शा चलाने वाले पापा के सपनों को पूरा करने के लिए लंदन जा रही थी.  नाम था पायल खटिक. 

पायल, सुरेश भाई खटिक की वो बेटी थी जिससे उसके परिवार को बहुत सारी उम्मीदें थी. वह बचपन से पढ़ने में होशियार थी शायद यही वजह थी कि अपनी आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उसके पापा ने उसकी पढ़ाई जारी रखी. पायल के पिता सुरेश भाई खटिक लोड रिक्शा चलाते हैं. 

लंदन पढ़ने जा रही थी पायल खटिक

गुजरात के हिम्मत नगर के इस परिवार की यह होनहार बेटी बचपन से ही हर परीक्षा में टॉप करती रही थी. अब पायल को लंदन की एक बड़ी यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिला था इसलिए वह अहमदाबाद से लंदन जाने वाली विमान में ढेरों सपने लिए बैठी थी, जो उसके साथ ही इस जहां से चले गए.
दरअसल, यह विमान उड़ान भरने के 32 सेकंड्स बाद ही आसमान से जमीन पर आ गिरा (plane crash) और धू धू कर जलने लगा और देखते ही देखते एक पिता और बेटी का सपना खाक हो गया.  

पहली और आखिरी उड़ान 

12 जून की दोपहर 1.39 बजे उड़ान भरने के बाद ही Plane Crash हो गया जो पहले मेघानी नगर में  बीजे मेडिकल कॉलेज की मेस की बिल्डिंग से टकराया, इसके बाद अतुल्यम होस्टल से टकराया, जिसके बाद तुरंत चीख पुकार मच गई.
जैसा कि मीडिया रिपोर्ट्स में आया कि इस दुर्घटना में प्लेन में मौजूद 242 में से 241 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई .

अधूरे रह गए ख्वाब

पायल एक लोड रिक्शेवाले की बेटी थी, पहली बार प्लेन में बैठी थी. उसे महसूस हो रहा होगा कि अब उसके और उसके परिवार के दुखों के दिन दूर होने वाले हैं.  उसे लगा होगा कि जब वह लंदन से लौट कर आएगी, तो मोहल्ले वालों को उस पर गर्व होगा.
उसे अच्छी नौकरी करता देख दूसरे गरीब मातापिता भी उसके पेरेंट्स की तरह बेटियों की स्टडी पर ध्यान देंगे, लेकिन किसे पता था कि एयर इंडिया की एआई 171 फ्लाइट के साथ ही  पायल खटिक के सपने क्रैश हो जाएंगे. इस प्लेन में सवार 242 लोगों में से 241 मारे गए. 

Family Story In Hindi : ग्रहण – मां के एक फैसले का क्या था अंजाम

Family Story In Hindi : शाम से ही तेज हवा चल रही थी, घंटेभर बाद मूसलाधार बारिश होने लगी और बिजली चली गई. मेरे पति गठिया की वजह से ज्यादा चलफिर नहीं पाते थे. दफ्तर से आतेजाते बुरी तरह थक जाते थे. मैं ने घर की सारी खिड़कियां बंद कीं और रसोई में जा कर खिचड़ी बनाने लगी. अंधेरे में और कुछ बनाने की हिम्मत ही नहीं थी.

साढ़े 8 बजे ही हम दोनों खापी कर सोने चले गए. पंखा न चलने की वजह से नींद तो नहीं आ रही थी, लेकिन उठने का मन भी नहीं कर रहा था. मेरी आंख अभी लगी ही थी कि किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज से उठ बैठी. टौर्च जला कर देखा, साढ़े 9 बजे थे. सोचा कि इस वक्त कौन होगा? आजकल तो मिलने वाले, परिचित भी कभीकभार ही आते हैं और वह भी छुट्टी के दिन.

मैं धीरे से उठी. टौर्च की रोशनी के सहारे टटोलतेटटोलते दरवाजे तक पहुंची.

मेरे पति पीछे से आवाज लगा रहे थे, ‘‘शांता, जरा देख कर खोलना, पहले कड़ी लगा कर देख लेना, इस इलाके में आजकल चोरियां होने लगी हैं.’’

मैं ने दरवाजे के पास पहुंच कर चिल्ला कर पूछा, ‘‘कौन है?’’

2 क्षण बाद धीरे से आवाज आई, ‘‘अम्मा, मैं हूं, कविता.’’

कविता, मेरी बहू. मेरे इकलौते लाड़ले बेटे प्रमोद की पत्नी. मेरी घनिष्ठ सहेली कुंती की बेटी. 10 महीने पहले ही तो मैं ने बड़े चाव से उन की शादी रचाई थी. मैं ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोल दिया.

बरसात में भीगीभागी कविता एक हाथ में सूटकेस और कंधे पर बैग लिए खड़ी थी.

‘‘कविता, इतनी रात गए? प्रमोद भी आया है क्या?’’

उस ने ‘नहीं’ में सिर हिलाया और अंदर आ गई. मेरा दिल धड़क उठा, ‘‘वह ठीक तो है न?’’

‘‘हां,’’ उस ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

‘‘वह कहां…मेरा मतलब है, प्रमोद क्यों नहीं आया?’’

‘‘वे भोपाल गए हैं?’’ वह शांत स्वर में बोली.

‘‘भोपाल?’’ मैं चौंक गई, ‘‘किसी से मिलने या दफ्तर के काम से?’’

‘प्रभा से मिलने गए हैं,’’ उस का स्वर इतना ठंडा था कि लगा, मेरे सीने पर बर्फ की छुरी चल गई हो.

‘‘प्रभा,’’ मैं कुछ जोर से बोली. उसी समय बिजली आ गई. कविता ने बात बदलते हुए कहा, ‘‘अम्मा, मैं भीग गई हूं, कपड़े बदल कर आती हूं.’’

वह सूटकेस खोल कर कपड़े निकालने लगी और फिर नहाने चली गई. मैं वहीं बैठ गई. अंदर से पति लगातार पूछ रहे थे, ‘‘शांता, कौन आया है?’’

फिर वे खुद ही उठ कर बाहर चले आए, ‘‘क्या बहू आई है? कुछ झगड़ा हुआ क्या प्रमोद के साथ?’’

‘‘पता नहीं, कह रही थी कि प्रमोद भोपाल गया है प्रभा से मिलने,’’ मैं धीरे से बोली.

‘‘मुझे पता था, एक दिन यही होगा. किस ने तुम से कहा था प्रमोद के साथ जबरदस्ती करने को? तुम्हारी जिद और झूठे अहं ने एक नहीं, 3-3 लोगों की जिंदगी खराब कर दी. लो, अब भुगतो,’’ वे बड़बड़ाते हुए वापस चले गए.

कविता कपड़े बदल कर आई. अचानक मुझे खयाल आया कि वह भूखी होगी. वह सुबह की गाड़ी से चली होगी. पता नहीं रास्ते में कुछ खाया भी होगा या नहीं. वह जिस हालत में थी, लग तो नहीं रहा था कि कुछ खाया होगा.

मैं ने फ्रिज से उबले आलू निकाल कर फटाफट तल दिए और मसाले में छौंक दिए. फिर डबलरोटी को सेंक कर उस के सामने रख दिए. वह चुपचाप खाने लगी. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे वह अपने सीने में एक तूफान छिपाए बैठी हो.

मैं ने उस का बिस्तर सामने वाले कमरे में लगा दिया. वह हाथ धो कर आई तो मैं ने मुलायम स्वर में कहा, ‘‘कविता, तुम थक गई होगी, सो जाओ. कल सवेरे बात करेंगे.’’

‘‘कल सवेरे मैं, मां के पास दिल्ली चली जाऊंगी.’’

‘‘इतनी जल्दी?’’ मैं अचकचा गई.

‘‘मैं तो यहां आप से सिर्फ यह पूछने आई हूं कि आप ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?’’ उस की सवालिया निगाहें मुझ पर तन गईं.

‘‘बेटी, मैं ने सोचा था…’’

‘‘आप ने सोचा कि मुझ से शादी करने के बाद प्रमोद प्रभा को भूल जाएंगे, पर सच तो यह है कि वे एक क्षण भी उस को भुला नहीं पाए.’’

‘‘क्या तुम्हें प्रभा के बारे में सब पता है?’’ मैं ने डरतेडरते पूछा.

‘‘हां, प्रमोद ने शादी के पहले ही मुझे सबकुछ बता दिया था. इधर आप की जिद थी, उधर मेरी मां की. उस वक्त तो मैं ने भी यही सोचा था कि शादी के बाद वे सब भूलने लगेंगे. पर…’’

‘‘क्या प्रमोद ने तेरे साथ कुछ…’’

‘‘नहीं अम्मा, वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं. पर प्रभा उन पर कुछ इस तरह हावी है कि वे मेरे साथ कभी सामान्य नहीं रहते.’’

मुझे प्रमोद पर गुस्सा आने लगा. इस तरह कविता को अकेले छोड़ कर भोपाल जाने का क्या मतलब?

मुझे सालभर पहले प्रमोद का कहा याद आया, ‘अम्मा, कविता को दूसरे अच्छे घर के लड़के मिल जाएंगे. पर प्रभा का मेरे अलावा और कोई नहीं है. उस के पिता नहीं हैं, मां बीमार रहती हैं. छोटे भाईबहन…’

‘तो क्या प्रभा से तुम इसलिए शादी करना चाहते हो कि उस का कोई नहीं? मैं तो उसे बहू के रूप में स्वीकार नहीं कर सकती.’

‘मां,’ प्रमोद ने दयनीय स्वर में प्रतिवाद किया था.

‘देख प्रमोद, तेरी शादी कविता से ही होगी. मैं अपनी बचपन की सहेली कुंती को वचन दे चुकी हूं. फिर शादीब्याह में खानदान भी तो देखना पड़ता है. कविता के पिता की 2 फैक्टरियां हैं, एक होटल है. तेरा कितना अरसे से फैक्टरी लगाने का मन है. शादी के बाद चुटकियों में तेरा काम हो जाएगा.’

‘मां, मैं किसी और के पैसे से नहीं, अपने पैसों से फैक्टरी लगाऊंगा. फिर इतनी जल्दी क्या है? अभी 3 साल ही तो हुए हैं मुझे इंजीनियर बने हुए.’

‘मैं कुछ नहीं जानती. अगर तू ने ज्यादा जिद की तो मैं आत्महत्या कर लूंगी. वैसी भी सहेली के सामने जलील होने से तो अच्छा है मर जाऊं.’

फिर मैं ने सचमुच भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, तब मजबूरी में प्रमोद को मेरी बात माननी पड़ी.

प्रमोद के ‘हां’ कहने भर से मैं खुश हो कर शादी की तैयारी में जुट गई. कविता के लिए साडि़यां मैं ने अपनी पसंद से लीं. नई डिजाइन के गहने बनवाए. मेरे सारे दूरदराज के रिश्तेदार सप्ताहभर पहले आ गए.

लेकिन प्रमोद को तो जैसे इस सब से कोई मतलब ही नहीं था. वह शादी से 1 दिन पहले घर आया. सुबह बरात जानी थी और रात को उस ने मुझ से कहा, ‘मां, तुम्हारी जिद और झूठे अहं की वजह से मेरी जिंदगी बरबाद होने वाली है. तुम चाहो तो अब भी सबकुछ ठीक हो सकता है. तुम सिर्फ एक बार, सिर्फ एक बार प्रभा से मिल लो. अगर मैं ने उस से शादी न की तो न मैं खुश रहूंगा, न कविता और न प्रभा. मुझ से अपनी ममता का बदला इस तरह चुकाने को न कहो, मां.’

मैं गुस्से से फुफकार उठी, ‘अगर तुझे अपनी मरजी से जीना है तो जहां चाहे शादी कर ले. पर याद रख, जिस क्षण तू उस कलमुंही के साथ फेरे ले रहा होगा, तब से मैं तेरे लिए मर चुकी होऊंगी.’

फिर मैं हलवाई के पास से मिट्टी के तेल का कनस्तर उठा लाई और प्रलाप करते हुए कहा, ‘ले प्रमोद, मैं खुद ही तेरे रास्ते से हट जाती हूं.’

प्रमोद ने मुझे रोका. वह रो रहा था. मैं उस के आंसुओं को देख कर पिघली नहीं, बल्कि विजयी ढंग से मुसकराई.

अगले दिन बरात में दूल्हा के अलावा बाकी सब मस्ती में झूम रहे थे, गा रहे थे, नाच रहे थे.

उन की शादी के बाद मैं चाहती थी कि वे दोनों कहीं घूमने जाएं. पर प्रमोद ने मना कर दिया. 2 दिनों बाद वह वापस मुंबई चला गया. मैं भी कविता के साथ उस की नई गृहस्थी बसाने गई. हम दोनों ने बड़े चाव से पूरे घर को सजाया.

सप्ताहभर बाद जब मैं पूना लौटी तो मन बड़ा भराभरा सा था, लग रहा था जैसे बरसों से देखा एक सपना पूरा हो गया. मेरे गुड्डेगुड्डी का घर बस गया.

उस वक्त मैं ने यह सोचा ही नहीं कि जीतेजागते इंसान गुड्डेगुडि़या जैसे नहीं होते. अगर सोचा होता तो कविता आधी रात को अकेली आ कर मुझ से यह सवाल न पूछती…

अचानक मेरी तंद्रा भंग हुई तो कहा, ‘‘कविता, तुम कल दिल्ली नहीं जाओगी. हम दोनों भोपाल जाएंगी,’’ मैं ने निर्णायक स्वर में कहा.

‘‘इस से क्या होगा, अम्मा?’’

‘‘देख कविता, प्रमोद तेरा पति है. उसे अब वही करना होगा जो तू चाहती है. शादी से पहले वह क्या करता था, मुझे इस से मतलब नहीं. पर अब…’’

‘‘अम्मा, आप ने उन दोनों की शादी क्यों नहीं की? न मुझे बीच में लातीं, न…’’ उस ने प्रतिवाद किया.

‘‘वह लड़की प्रमोद के लायक नहीं है,’’ मैं ने शुष्क स्वर में कहा.

‘‘क्यों नहीं है, अम्मा? वह भी पढ़ीलिखी है, सुशील है. सिर्फ इसलिए आप ने उसे नहीं स्वीकारा कि वह पैसे वाले घर की नहीं है, या…?’’ उस ने मेरे मर्म पर चोट की.

‘‘कविता, तुम्हें पता नहीं है, तुम क्या कह रही हो, मैं और कुंती बहुत पहले तुम दोनों की शादी तय कर चुकी थीं. शादीब्याह में खानदान का भी महत्त्व होता है, बेटी.’’

‘‘अम्मा, अगर मुझे पता होता कि आप ने इस शादी के लिए प्रमोद से जबरदस्ती की थी तो मैं कभी तैयार न होती. आप को भी तो पता था कि मैं फैशन डिजाइनिंग सीखने विदेश जाना चाहती थी. आप दोनों सहेलियों की वजह से प्रमोद भी दुखी हुए और मैं भी. आप ने ऐसा क्यों किया?’’ कविता फूटफूट कर रोने लगी.

मेरा दिल दहल उठा. मैं ने बड़े प्यार से उस का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘न रो बेटी, मैं वादा करती हूं कि तुझे तेरा पति वापस ला दूंगी.’’

पर उस की हिचकियां कम न हुईं. शायद उसे अब मुझ पर विश्वास नहीं रहा था.

पूना से मुंबई और फिर वहां से भोपाल…हम दोनों ही थक कर चूर हो चुकी थीं. मुझे पता था कि प्रभा ‘भारत कैमिकल्स’ में काम करती है. एक बार प्रमोद ने ही बताया था. वे दोनों भोपाल के इंजीनियरिंग कालेज में साथसाथ पढ़ते थे.

प्रमोद छुट्टियों में जब भी घर आता, प्रभा का जिक्र जरूर करता. पर मेरा उस से मिलने का कभी मन न हुआ. हमेशा यही लगता कि वह मेरे प्रमोद को मुझ से दूर ले जाएगी.

स्टेशन के ही विश्रामगृह में नहाधो कर हम एक रिकशा में बैठ कर ‘भारत कैमिकल्स’ के दफ्तर में पहुंचीं. वहां जा कर पता चला कि पिछले कुछ दिनों से प्रभा दफ्तर ही नहीं आ रही.

आखिरकार दफ्तर के एक चपरासी से प्रभा के घर का पता ले कर हम वहां चल पड़ीं. कविता पूरे रास्ते शांत थी. लग रहा था, जैसे वह इस नाटक की पात्र नहीं, बल्कि दर्शक है. प्रभा के घर के सामने रिकशे से उतरने के बाद कविता ने कहा, ‘‘अम्मा, आप अंदर जाइए. मैं यहीं बरामदे में बैठती हूं.’’

मैं ने घर की घंटी बजाई. 15-16 साल की एक लड़की ने दरवाजा खोला. मैं ने सीधे सवाल किया, ‘‘प्रमोद है?’’

वह चौंक गई. फिर संभल कर बोली, ‘‘वे तो दीदी के साथ अस्पताल गए हैं, आप अंदर आइए न.’’

उस की आवाज इतनी विनम्र थी कि मैं अंदर जा कर बैठ गई. घर सादा सा था, पर साफसुथरा था. वह मेरे लिए पानी ले कर आई और बोली, ‘‘मैं प्रभा दीदी की बहन हूं, विभा.’’

मैं ने अपना परिचय देने के बजाय फिर से सवाल पूछा, ‘‘प्रमोद यहां कब से है?’’

‘‘वे 2 दिनों पहले आए थे. मां जब से अस्पताल में भरती हुईं, तब से…’’ उस की आवाज भारी हो गई. फिर संयत स्वर में उस ने पूछा, ‘‘आप प्रमोदजी की मां हैं न? उन्होंने आप की तसवीर दिखाई थी.’’

‘‘घर में और कौनकौन हैं?’’

‘‘दीदी, मैं, छोटा भाई और मां.’’

विभा से छोटा भाई, यानी अभी स्कूल में ही होगा. मैं उठने ही लगी थी कि विभा बोल पड़ी, ‘‘आप बैठिए. मैं आप के लिए चाय बना कर लाती हूं, फिर प्रमोदजी को यहां बुला लाऊंगी. अस्पताल यहां से ज्यादा दूर नहीं है.’’

‘‘बाहर मेरी बहू बैठी है, उसे भी अंदर बुला लाओ,’’ मुझे इतनी देर में पहली बार कविता का ध्यान आया.

‘‘जी, अच्छा,’’ कहती हुई विभा बाहर चली गई.

‘‘कविता के चेहरे से लग रहा था कि वह बहुत असहज महसूस कर रही है. विभा हम दोनों के लिए चाय और नाश्ता ले आई. उस के अंदर जाते ही कविता शुरू हो गई, ‘‘अम्मा, हम वापस चलते हैं. प्रमोद को बुरा लगेगा.’’

‘‘क्या बुरा लगेगा? मैं उस की मां हूं, तुम उस की पत्नी हो, बुरा तो हमें लगना चाहिए,’’ मैं ने गुस्से में कहा.

विभा तैयार हो कर आ गई, ‘‘आप लोग यहां बैठिए. मैं अभी उन्हें बुला कर लाती हूं.’’

‘‘नहीं, हम भी चलेंगे,’’ मैं उठ खड़ी हुई.

वह अचकचा गई, ‘‘आप क्यों…’’

‘‘चलो कविता,’’ मैं ने उसे भी उठने का इशारा किया. एक बार मैं जो तय कर लेती थी, कर के ही रहती थी. प्रमोद तो जानता ही था कि मैं कितनी जिद्दी हूं.

विभा अस्पताल पहुंच कर कुछ तेज कदमों से चलने लगी. वार्ड के बाहर तख्ती लगी थी, ‘कैंसर के मरीजों के लिए’. वह निसंकोच अंदर चली गई. कुछ मिनटों बाद प्रमोद लगभग दौड़ता हुआ बाहर आया, ‘‘मां, आप यहां?’’

मेरे पीछे खड़ी कविता शायद उसे दिखी नहीं. पर मुझे प्रमोद के पीछे आती एक दुबलीपतली, कंधे तक कटे बालों वाली सांवली, लेकिन अच्छे नैननक्श वाली लड़की दिख ही गई. मैं समझ गई कि यही प्रभा है.

प्रमोद के कुछ कहने से पहले मैं फट पड़ी, ‘‘तुम्हें कुछ खयाल भी है कि तुम्हारा घरबार है, पत्नी है, मां है, और…’’

‘‘मुझे सब पता है, मां. मैं भूलना चाहता हूं तो भी आप भूलने कहां देती हैं? आप जरा धीरे बोलिए, यह अस्पताल है,’’ उस के स्वर में कड़वाहट थी. वह पहली बार मुझ से इस ढंग से बोल रहा था.

अचानक विभा बाहर दौड़ती हुई आई. ‘‘दीदी, जल्दी अंदर चलो. मां को होश आ गया है.’’

प्रभा और प्रमोद तेजी से अंदर भागे. मेरे कदम भी उसी दिशा में बढ़ गए. कविता भी मेरे पीछे चली आई.

कमरे में एक कृशकाय महिला बड़े प्यार से प्रमोद का हाथ थामे बैठी थी. मुझे देख कर प्रमोद ने कुछ हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘आप इतने दिनों से मेरी मां से मिलने को कह रही थीं. देखिए, वे आप से मिलने आई हैं.’’

मुझे देख कर उस महिला की आंखों में आंसू उभर आए. वह हौले से बोली, ‘‘बहनजी, मैं मरने से पहले आप से एक बार मिलना चाहती थी. आप का बेटा प्रमोद मेरे लिए देवदूत जैसा है. पता नहीं, प्रभा ने ऐसा क्या कर्म किए हैं, जो उसे प्रमोद जैसा…’’ उन की आवाज आंसुओं में धुल गई.

मैं हतप्रभ सी खड़ी रही. अचानक प्रभा की मां का ध्यान कविता की ओर गया, ‘‘यह कौन है, बेटा?’’

प्रमोद ने तुरंत धीरे से कह डाला, ‘‘मेरी मौसेरी बहन है, मां के साथ आई है.’’

कविता के चेहरे का रंग लाल हो उठा. वह एक झटके में कमरे से बाहर निकल गई. उस के पीछेपीछे मैं भी बाहर जा पहुंची. वार्ड के बाहर एक कुरसी पर बैठ कर वह सिसकियां भरने लगी.

मेरी लाड़ली बहू रो रही थी और मेरा गुस्सा लगातार बढ़ रहा था. दो कौड़ी की महिला के सामने प्रमोद ने कविता को जलील किया, उस की यह हिम्मत?

प्रमोद वार्ड से बाहर आया और मेरे पास न आ कर सीधे कविता के पास पहुंचा और रूंधे स्वर से बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हें जलील करने के इरादे से ऐसा नहीं कहा था. उस वक्त मुझे कुछ और नहीं सूझा. दरअसल, प्रभा की मां मेरी शादी के बारे में नहीं जानती. उस की जिंदगी में एकमात्र आशा की किरण प्रभा से मेरी शादी है. इस वक्त जब वह कैंसर के अंतिम चरण से गुजर रही है, मैं अपनी शादी की बात बता कर समय से पहले उसे मारना नहीं चाहता. तुम समझ रही हो न?’’

कविता की सिसकियां धीरेधीरे रुकने लगीं. प्रमोद उसे बता रहा था, ‘‘मुझे प्रभा की मां से बहुत प्यार मिला है. मैं घर से दूर था. मुझे कभी उन्होंने घर की कमी न खटकने दी. मैं बीमार पड़ता तो पूरा परिवार दिनरात मेरी सेवा करता. प्रभा से मैं ने खुद विवाह का प्रस्ताव रखा था. इस पर भी मेरी शादी के बाद उस ने मुझे एक बार भी गलत नहीं कहा.

‘‘क्या इस परिवार के प्रति मेरा कोई कर्तव्य नहीं है? मुझ से ये लोग किसी चीज की आशा नहीं रखते. पर अगर मैं इस वक्त इन का साथ नहीं दूंगा तो खुद की नजरों में गिर जाऊंगा. कविता, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. मैं ने तो तुम से कहा था कि मैं 3-4 दिनों बाद वापस आऊंगा. फिर भी तुम्हें सब्र क्यों न हुआ?’’

कविता का रोना रुक चुका था. वह गंभीर स्वर में बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो, प्रमोद, मैं ने तुम्हें गलत समझा. दरअसल, शादी से पहले जब तुम मुझ से मिले थे और प्रभा के बारे में बताया था, तभी मुझे समझ जाना चाहिए था. मैं तो बेकार में ही तुम दोनों के बीच आ गई.

‘‘तुम्हारी जरूरत मुझ से ज्यादा प्रभा और उस के परिवार को है. तुम चाहो तो अब भी अपनी गलती सुधार सकते हो. मैं तुम्हें आजाद करती हूं, प्रमोद. मैं दिल्ली लौट जाऊंगी और फैशन डिजाइनर बनने का सपना साकार करूंगी.’’

मैं हक्कीबक्की खड़ी रह गई. मुझे लग रहा था, मेरा अस्तित्व है ही नहीं, मेरे बनाए गुड्डेगुड्डी अब इंसानों की भाषा में बोलने लगे थे.

‘‘कविता, इतनी जल्दी कोई निर्णय मत लो. शादी कोई खेल नहीं है,’’ प्रमोद कठोर स्वर में बोला.

‘‘हां, वाकई खेल नहीं है. पर मैं अब और कठपुतली नहीं बन सकती,’’ कविता दृढ़ स्वर में बोली.

प्रभा और विभा हमारे पास आ गईं. प्रभा शांत स्वर में बोली, ‘‘आप लोग घर चलिए. खाना खा कर जाइएगा.’’

घर आ कर प्रभा और विभा ने फटाफट खाना तैयार किया. बिना एक भी शब्द कहे हम सब ने खाना खाया.

रात घिर आई थी. प्रभा ने बाहर वाले कमरे में हम सब के सोने का इंतजाम किया. प्रभा का व्यवहार देख कर मैं चकित रह गई. शांत, सुशील, कहीं से ऐसा नहीं लगा कि वह मुझ से नाराज है. उसे तो निश्चित ही पता होगा कि प्रमोद ने उस से शादी क्यों नहीं की? रात को मैं प्रमोद से कुछ न कह पाई, क्योंकि प्रभा का भाई अरुण हमारे कमरे में सोने चला आया और कविता प्रभा के साथ अंदर वाले कमरे में.

मुझे सारी रात नींद न आई. मैं जिंदगी में पहली बार अपने को पराजित महसूस कर रही थी, पर फिर भी हार मानने को तैयार न थी.

सवेरे उठते ही कविता ने घोषणा कर दी, ‘‘मैं आज ही दिल्ली चली जाऊंगी.’’

मैं ने प्रमोद से कहा, ‘‘देख बेटा, कविता को रोक ले. तू उसे अपने साथ मुंबई ले जा.’’

‘‘अम्मा, उसे कुछ दिनों के लिए दिल्ली हो आने दो. अब तुम हमारी जिंदगी में दखल न ही दो तो अच्छा है. हमारी जिंदगी है, हम रोते या हंसते हुए इसे काट लेंगे. आप जो करना चाहती थीं, वह तो हो ही गया. मैं जब जानबुझ कर गड्ढे में गिरा हूं तो शिकायत क्यों करूं?’’

प्रमोद भी उसी शाम की गाड़ी से मुंबई लौटना चाहता था. उस ने मुझे भी पूना तक का टिकट ला दिया. मेरे चलते समय प्रभा सामने आई ही नहीं. पता नहीं क्यों, मेरा दिल उस सहनशील लड़की के लिए कसक उठा. विभा और अरुण हमें स्टेशन तक छोड़ने आए.

कविता की गाड़ी पहले छूटनी थी. वह विभा से भावुक स्वर में बोली, ‘‘अपनी दीदी से कहना, मैं उस के बीच की दीवार नहीं हूं. जिंदगी में रोशनी के हकदार हम सभी हैं,’’ फिर प्रमोद से कहा, ‘‘इस बार तुम निर्णय स्वयं लेना.’’

प्रमोद ने संयत हो कर कहा, ‘‘इस समय तुम भावना में बह रही हो. कोई भी रिश्ता इतनी आसानी से काट कर फेंका नहीं जा सकता. तुम सोच कर जवाब देना, मैं इंतजार करूंगा.’’

फिर कविता ने मेरी तरफ देख कर हाथ जोड़ दिए. प्रमोद ने मुझे महिला डब्बे में बैठा दिया और खुद मुंबई जाने के लिए बसस्टैंड की तरफ बढ़ गया.

ज्यों ही गाड़ी चली, मुझे चक्कर सा आने लगा कि यह मैं ने क्या कर दिया? अपने स्वार्थ के लिए 3 युवाओं को दुखी कर दिया. ये तीनों अब कभी खुश नहीं हो पाएंगे, इन के सपनों के एक हिस्से में ग्रहण लग गया…और वह ग्रहण मैं हूं. मैं फूटफूट कर रोने लगी. आखिरकार मैं हार गई, मैं हार गई.

Body Shaming से घबराने के बजाय इससे ऐसे निपटें

Body Shaming : असल में खूबसूरती 2 प्रकार की होती है. एक वह जो कुदरती होती है, जो हमें अपने मांबाप के अच्छे दिखने की वजह से उन के जीन्स के जरीए हम प्राकृतिक रूप से ही खूबसूरत हो जाते हैं. मगर यह खूबसूरती कुछ समय की होती है क्योंकि अगर हम उम्र के साथसाथ मोटे होते जाते हैं और जवानी में मुंहासों की वजह से अगर चेहरे पर दागधब्बे पड़ जाएं तो यह प्राकृतिक खूबसूरती को भी नष्ट कर देते हैं.

जैसे कि लड़कियां कम उम्र में कितनी खूबसूरत और कोमल होती हैं. लेकिन वही लड़कियां कुछ सालों बाद शादी, बच्चा होते ही बेडौल सी हो जाती हैं, शादी के बाद यही लड़कियां अपने ऊपर पूरा ध्यान देना बंद कर देती हैं और जो प्राकृतिक खूबसूरती होती है वह जाती रहती है. इस के अलावा अक्ल और मेहनत कर के जो लड़कियां अपनेआप को खूबसूरत बनाती हैं वे आत्मविश्वास से भरी होती हैं.

अपनेआप को खूबसूरत बनाना भी एक कला है, जिस में आत्मविश्वास, अपने लुक्स और शारीरिक रखरखाव पर कड़ी मेहनत कर के साधारण सी दिखने वाली लड़कियां भी बेहद खूबसूरत नजर आने लगती हैं. उसे अक्ल से पैदा की गई खूबसूरती कहते हैं. इस में हम अपने शरीर को अच्छा बनाने के लिए तनमनधन से जुट जाते हैं. ऐसी खूबसूरती हमेशा टिकी रहती है. मेहनतमशक्कत से संवारी गई खूबसूरती हमें समाज में एक मुकाम भी दिलाती है.

मेहनत और आत्मविश्वास जरूरी

यह खूबसूरती साबित करती है कि अगर एक आम लड़की भी चाहे तो वह अपनेआप को खूबसूरत बना कर मिस वर्ल्ड, मिस यूनिवर्स का खिताब तक जीत सकती है. सुष्मिता सेन और प्रियंका चोपड़ा इस बात का उदाहरण हैं जो मध्यवर्ग की सांवली रंगत वाली लड़कियां थीं. ये न तो बहुत ज्यादा खूबसूरती थीं और न ही अपनेआप को खूबसूरत बनाने के लिए उन के पास ढेर सारा पैसा था. मगर अपनी बुद्धिमत्ता, मेहनत और आत्मविश्वास के साथ न सिर्फ ये खूबसूरती की मिसाल बनीं बल्कि मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड का खिताब जीत कर हिंदुस्तान का नाम भी रोशन किया.

ऐसा नहीं है कि इन्हें लोगों के ताने नहीं सुननी पड़े या इस की कभी आलोचना नहीं हुई. यह सब इन के साथ भी हुआ लेकिन इन्होंने अपना आत्मविश्वास डगमगाने नहीं दिया उलटे अपनेआप को दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की साबित किया और राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय ख्याति पाई.

बौडी शेमिंग से घबराए नहीं

इस में कोई दोराय नहीं है कि कोई भी इंसान परफैक्ट नहीं होता. हर किसी में कोई न कोई कमी होती है जो उस का आत्मबल कमजोर करने के लिए काफी होती है. लेकिन अगर आप ने उस कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया तो कोई भी आप को नीचा नहीं दिखा सकता, जैसेकि ऐक्टर ऋतिक रोशन को हकलाने की आदत थी, अमिताभ बच्चन जरूरत से ज्यादा लंबे और पतले थे, कौमेडियन जौनी लीवर काले और साधारण से दिखने वाले इंसान थे, शहनाज गिल, सोनाक्षी सिन्हा, सारा अली खान का वजन बहुत ज्यादा था, शाहिद कपूर बहुत दुबलेपतले थे जिस वजह से उन्हें हीरो बनने का चांस नहीं मिल रहा था.

इन सभी लोगों ने अपने ऊपर काम कर के अपनेआप को न सिर्फ बदला बल्कि अपनेआप को इतना खूबसूरत बना लिया कि आज उन के लाखोंकरोड़ों फैन हैं. कहने का मतलब यह है कि आज के समय में खूबसूरती किसी की बपौती नहीं. अगर एक आम इंसान भी चाहे तो वह अपने ऊपर मेहनत कर के खूबसूरत और नामचीन बन सकता है.

दुनिया झुकाने वाला बनें

कहते हैं खूबसूरती देखने वाले की नजर में होती है जैसेकि एक मां की नजर में उस का बच्चा दुनिया का सब से खूबसूरत बच्चा होता है. कहने का मतलब यह है कि खूबसूरती सिर्फ शक्ल से नहीं बल्कि टेलैंट से, अच्छे स्वभाव से, अच्छी पर्सनैलिटी और बात करने के स्टाइल से भी झलकती है. जैसेकि एक लड़की अगर खूबसूरत है लेकिन बदतमीज है, बात करने का तरीका नहीं है, स्वार्थी और खराब स्वभाव की है तो आप खुद उसे 5 मिनट भी अपने साथ खड़ा नहीं रखेंगे.

वहीं दूसरी तरफ अगर आप टेलैंटेड हैं, आप में कूटकूट कर हुनर भरा है, आप अपनी बातों से सब का दिल जीतना जानती हैं तो कई सारी खूबसूरत लड़कियां आप के अंडर काम कर रही होंगी, जैसे कौमेडियन भारती सिंह बतौर ऐंकर न सिर्फ पूरा शो अपने दम पर चलाती हैं बल्कि मिथुन चक्रवर्ती, सलमान खान, अमिताभ बच्चन, सुनील शेट्टी जैसे दिग्गज कलाकारों को भी शो के दौरान अपने इशारों पर नचाती हैं और सभी कलाकार उन्हें सपोर्ट भी करते हैं. इसी तरह कोरियोग्राफर निर्मातानिर्देशक फराह खान, दिवंगत कोरियोग्राफर सरोज खान बहुत ज्यादा खूबसूरत न होते हुए भी पूरी इंडस्ट्री पर रूल करती हैं.

फैसला आप के हाथ

कहने का मतलब यही है कि अगर आप को कोई आप की कमजोरी बता कर जलील करने की कोशिश करता है, आप का कोई खास, कोई करीबी बौडी शेमिंग के नाम पर आप को दुख पहुंचाता है तो आप दुखी या निराश न हों बल्कि अपने हुनर, अपने काम, अपने टेलैंट के जरीए उस इंसान को ईंट का जवाब पत्थर से दें और अपनी वैल्यू कराने पर मजबूर कर दें यह कहते हुए कि हम किसी से कम नहीं.

सच्ची बात तो यह है कि जो आप से प्यार करते हैं वे आप को हर रूप में पसंद करते हैं. आप मोटे हैं, काले हैं, ठिगने हैं इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. आप से प्यार करने वाले आप की कमियों को गिनाने के बजाय आप की तारीफ कर के आप का आत्मविश्वास बढ़ाने की कोशिश करेंगे.

Sneakers पहनते हैं, तो जरूर रखें ध्यान

Sneakers : कुछ समय पूर्व तक पैरों में केवल चमड़े या कपड़े के जूते ही मुख्य रूप से पहने जाते थे. चमड़े के जूते डेली वियर में और स्पोर्ट्स शूज को खेलते या कोई खेल गतिविधि करते समय पहना जाता था पर आजकल जूतों की बाजार में भरमार हैं, जहां दैनिक जीवन की प्रत्येक गतिविधि के लिए अलगअलग जूते हैं. इन की कीमतें भी हजार से ले कर लाखों तक हैं.

इन्हीं में से एक स्नीकर आजकल के युवाओं की पहली पसंद और स्टाइल स्टेटमैंट है. कंफर्टेबल, रंगों और डिजाइन वाले स्नीकर्स अच्छीखासी कीमत वाले होते हैं. इन स्नीकर्स की खासियत है कि आप इन्हें कस्टमाइज भी करवा सकते हैं. ये आमतौर पर चमड़े, कैनवास और सुएड मैटीरियल से बने होते हैं. अन्य शूज की अपेक्षा इन्हें अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है.

यदि आप भी स्नीकर्स का उपयोग करते हैं, तो निम्न टिप्स बहुत काम के साबित होंगे :

प्रोडक्ट डिटेल देखें

प्रत्येक स्नीकर पर उस की प्रोडक्ट डिटेल लिखी रहती है कि वे किस मैटीरियल से बने हैं ताकि आप उस के अनुसार ही उन की साफसफाई कर सकें.

धूलमिट्टी साफ करें

सब से पहले आप स्नीकर की धूलमिट्टी को आपस में हलके से रगड़ कर साफ कर दें. आप इस के लिए किसी नर्म कपड़े और सौफ्ट ब्रश का प्रयोग भी कर सकते हैं. इस से आप को स्नीकर पर लगे दागधब्बे आसानी से नजर आने लगेंगे और फिर आप को सफाई करने में आसानी रहेगी.

घर में बनाएं क्लीनिंग सौल्यूशंस

कैनवास और मैश मैटीरियल के स्नीकर्स के लिए बराबर मात्रा में व्हाइट वेनेगर और बेकिंग सोडा ले कर एक कटोरी में मिलाएं फिर 1 बङा चम्मच गरम पानी मिला कर एक सोल्यूशन बनाएं। अब इसे स्नीकर्स के दागधब्बे वाली जगह पर टूथब्रश या अन्य किसी सौफ्ट ब्रश की मदद से हलके हाथ से रब करें। कुछ देर बाद गीले कपड़े से साफ कर दें.

लेदर के स्नीकर्स को साफ करने के लिए 1 बङा चम्मच हैंडवाश में आधा बङा चम्मच गरम पानी मिला कर सोल्यूशन बनाएं, इस सोल्यूशन को किसी सौफ्ट कपड़े या स्पंज से स्नीकर की सतह को धीरेधीरे पोंछ कर सूखे कपड़े से सुखा कर प्रयोग करें.

सुएड स्नीकर्स को खास सुएड ब्रश या सौफ्ट ब्रश से साफ करें. ब्रशिंग हमेशा एक ही दिशा में करें ताकि मैटीरियल खराब न हों. गहरे दागों को साफ करने के लिए सुएड इरेजर का प्रयोग करें. दागधब्बे साफ करने के लिए आप व्हाइट विनेगर का प्रयोग कर सकते हैं.

ऐसे सुखाएं

साफ करने के बाद कैनवास या मैश स्नीकर्स को पानी में भिगो कर साफ करने के बजाए गीले कपड़े से साफ करें. इन्हें मशीन में डाल कर धोने और सुखाने की भी गलती न करें, नहीं तो इन का पूरा शेप और फैब्रिक खराब हो जाएगा. छांव वाली खुली जगह पर सुखा कर जिपलौक बैग या किसी पौलीथिन में रखें ताकि धूल से बचे रहें.

लेदर और सुएड स्नीकर्स को सीधे धूप में रखने के स्थान पर कमरे के नैचुरल तापमान पर सुखा कर प्रयोग करें. पूरी तरह सूख जाने पर ही इन में फीते डालें.

रखें इन बातों का ध्यान

● फीतों को अलग से सर्फ में डाल कर हाथ से धोएं और यदि आप मशीन में धो रहे हैं तो मैश बैग में डाल कर धोएं और अलग से ही सुखाएं.

● जब स्नीकर्स पूरी तरह सूख जाएं तो फीते डाल दें और स्नीकर प्रोटेक्टर का प्रयोग करें ताकि आप के स्नीकर्स लंबे समय तक नए दिखें.

● व्हाइट स्नीकर्स में बहुत जल्दी दागधब्बे लग जाते हैं इसलिए खरीदते समय ध्यान रखें कि आप उन की पर्याप्त देखभाल कर पाएंगे या नहीं.

● खरीदने से पहले दुकान पर एक बार पहन कर अवश्य देखें ताकि गलत प्रोडक्ट लेने से बचे रहें.

● स्नीकर खरीदते समय अपने कंफर्ट का ध्यान रखें.

Comedy Movies : ऐक्शन और थ्रिलर फिल्मों के बाद अब कौमेडी फिल्मों का दौर…

Comedy Movies : शायद यही वजह है कि जब कोई इंसान बहुत ज्यादा टैंशन में रहता है तो अपने दिमाग को हलकाफुलका करने के लिए कौमेडी फिल्में देखना पसंद करता है. हास्य से भरी कौमेडी फिल्में किस भाषा में हैं इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. कौमेडी फिल्मों का एक ही लक्ष्य होता है सामने वाले के चेहरे पर हंसी लाना.

वैसे तो दर्शकों की अपनी अलगअलग पसंद होती है. किसी को कौमेडी पसंद है तो किसी को ऐक्शन और थ्रिलर फिल्म, लेकिन कौमेडी फिल्में ऐसी होती हैं जिसे हरकोई देखना पसंद करता है। कुछ समय के लिए ही सही लेकिन ये फिल्में दुख और टैंशन को दूर करने में सफल रहती हैं.

बौलीवुड की कई ऐसी फिल्में हैं जिसे लोग कई बार देखने के बाद भी बोर नहीं होते जैसे गोविंदा की फिल्में ‘दूल्हे राजा’, ‘राजा बाबू’, ‘साजन चले ससुराल’, ‘कुली नंबर वन’, ‘दीवाना मस्ताना…’ तो आमिर खान की फिल्में ‘अंदाज अपनाअपना’, ‘इश्क…’ अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘नमक हलाल’, ‘बड़े मियां छोटे मियां…’ संजय दत्त की ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस…’ शाहरुख खान की ‘बादशाह’ और अजय देवगन की ‘गोलमाल’ आदि कई फिल्में हैं जिसे दर्शक बारबार देख कर ऐंजौय करते हैं और बिलकुल भी बोर नहीं होते।

हास्य कौमेडी फिल्में हों या कार्टून फिल्में, बच्चे से ले कर जवान व बूढ़े सभी देखना पसंद करते हैं. अगर बच्चे ‘लौरेन हार्डी’, ‘चार्ली चैपलिन’ ‘शींग चैंग’, ‘मोटू पतलू’ आदि फिल्में देख कर ऐंजौय करते हैं तो जवान ‘चार्ली चैपलिन’, ‘मिस्टर बीन’ आदि कौमेडी फिल्में देख कर ऐंजौय करते हैं.

साल 2024 ऐक्शन और थ्रिलर फिल्मों से भरा रहा लेकिन 2025 में कई सारी कौमेडी फिल्में आ रही हैं जो दर्शकों के मनोरंजन के लिए बनाई गई हैं. कई कौमेडी फिल्में पुरानी कौमेडी हिट फिल्मों की रीमेक हैं तो कई कौमेडी फिल्में नए अंदाज में पेश की जा रही हैं.

पेश हैं, 2025 में आने वाली हास्य से भरपूर फिल्मों पर एक नजर :

दमदार कौमेडी फिल्में, जो दर्शकों को हंसाहंसा कर लोटपोट करेंगी

2025 में अक्षय कुमार, अजय देवगन, संजय दत्त सहित कई बड़े स्टारों की कौमेडी फिल्में आ रही हैं, क्योंकि कौमेडी फिल्मों को हमेशा पसंद किया जाता है.

तरुण मनसुखानी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘हाउसफुल 5’ मनोरंजन से भरपूर है। इस से पहले भी ‘हाउसफुल’ फिल्म के 4 भाग आ चुके हैं, जिस ने दर्शकों का मनोरंजन किया है. ‘हाउसफुल 5’ फिल्म में अक्षय कुमार, फरदीन खान, संजय दत्त, अभिषेक बच्चन, रितेश देशमुख आदि कई सारे कलाकार हैं, इन में से कुछ तो कौमेडी करने में माहिर हैं. यह फिल्म रिलीज हो चुकी है.

वैलकम टू जंगल

अहमद खान के निर्देशन में बनी फिल्म ‘वैलकम टू जंगल’ 2025 में ही रिलीज होने जा रही है. यह फिल्म पहले 2024 में रिलीज होने वाली थी लेकिन किन्हीं कारणों से अब 2025 में रिलीज होने जा रही है. इस फिल्म में मुख्य कलाकार परेश रावल, संजय दत्त, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी आदि हैं. इन कलाकारों के अलावा भी इस फिल्म में कई सारे जानेमाने कलाकार हैं जैसे लारा दत्ता, रवीना टंडन, जैकलीन फर्नांडिस, दिशा पटानी, मीका सिंह सिंगर, तुषार कपूर, जौनी लीवर, दलेर मेहंदी, श्रेयस तलपडे.

पुरानी जोङी की वापसी

फिल्म ‘भूलभुलैया’ की शुरुआत अक्षय कुमार और विद्या बालन के साथ हुई थी जो सुपरहिट रही थी. उस के बाद ‘भूलभुलैया 2’ में कार्तिक आर्यन मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म भी अच्छी चली. अब एक बार फिर अक्षय कुमार और विद्या बालन एकसाथ ‘भूलभुलैया 3’ में नजर आने वाले हैं. फिल्म की रिलीज डेट अभी तक फाइनल नहीं है.

फिल्म ‘धड़क’ से प्रसिद्ध डाइरैक्टर शशांक खेतान अब एक कौमेडी फिल्म ले कर आ रहे हैं जिस का नाम सनी संस्कारी की तुलसी कुमारी है. यह रोमांटिक कौमेडी फिल्म है जिस के मुख्य कलाकार वरुण धवन और जाह्नवी कपूर हैं. काफी सालों बाद साउथ के प्रसिद्ध डाइरैक्टर प्रियदर्शन अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘भूत बंगला’ ले कर आ रहे हैं। यह हौरर कौमेडी फिल्म है. यह फिल्म सितंबर 2025 को रिलीज होगी। इस फिल्म का अनाउंसमैंट और पोस्टर रिलीज हो चुका है. माना जा रहा है ‘भूत बंगला’ अक्षय कुमार के फ्लौप कैरियर में बड़ा बदलाव लाएगी.

फिर मचाएंगे हंगामा

अरशद वारसी अभिनीत ‘जौली एलएलबी’ ने बौक्स औफिस पर हंगामा मचाया था. उस के बाद ‘जौली एलएलबी 2’ अक्षय कुमार के साथ आई जो कि एवरेज रही.

अब एक बार फिर ‘जौली एलएलबी 3’ बनने जा रही है, जिस में अरशद वारसी और अक्षय कुमार दोनों ही नजर आएंगे. यह फिल्म कोर्ट रूम ड्रामा पर केंद्रित कौमेडी फिल्म है.

ऐक्शन डाइरैक्टर रोहित शेट्टी जो कौमेडी फिल्में बनाने के लिए भी चर्चित हैं और शाहरुख खान के साथ ‘चैन्नई एक्सप्रेस’ हिट फिल्म बना चुके हैं। इस के अलावा भी रोहित शेट्टी अजय देवगन अभिनीत फिल्म ‘गोलमाल’ के 4 भागों को प्रदर्शित किया है.

अब एक बार फिर रोहित शेट्टी ‘गोलमाल 5’ ले कर आ रहे हैं जिस के मुख्य कलाकार अजय देवगन, अरशद वारसी, कुणाल खेमू, तुषार कपूर और श्रेयस तलपडे हैं.

एक बार फिर हेराफेरी

अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी और परेश रावल फिल्म ‘हेराफेरी’ में नजर आए थे. अब यही जोड़ी एक बार फिर ‘हेराफेरी 3’ में भी नजर आएगी.

इंद्र कुमार एक बार फिर ‘धमाल 4’ ले कर आ रहे हैं. इस फिल्म में मुख्य भूमिका अजय देवगन निभाएंगे. सलमान खान जल्दी ही ‘नो ऐंट्री 2’ की शूटिंग शुरू करने जा रहे हैं.

इसके अलावा ‘आवारा पागल दीवाना 2’ में अक्षय, सुनील शेट्टी परेश रावल और जौन अब्राहम एक बार फिर साथ में काम कर रहे हैं। इस फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है.

Ahmedabad Plane Crash : क्रैश के बाद भी रिंग होता रहा एयरहोस्टेस नगंथोई का मोबाइल, पापा कॉल करते रहे, फोन नहीं उठा 

Ahmedabad Plane Crash : एयरहोस्टेस नगंथोई शर्मा केवल 20 साल की थी. तीन साल पहले ही स्वीट सी चेहरे वाली इस लड़की ने एयर इंडिया जॉइन किया था.  मणिपुर की कोंगराबैलाटपम नगंथोई की फोटो और वीडियो देखने भर से आपको यह यकीन हो जाएगा कि यह लड़की जिंदगी से भरपूर थी लेकिन जिंदगी से उसे जीने की ज्यादा मोहलत नहीं दी थी.

https://youtube.com/shorts/pBX1QuYRy4g?feature=share

12 जून को अहमदाबाद में हुए भयंकर विमान हादसे (Ahmedabad Plane Crash ) में यह हसता मुसकराता चेहरा सदा के लिए शांत हो गया. उस चेहरे पर किसी तरह के भाव शेष नहीं रह गए थे. उसका परिवार उसके मुसकुराते चेहरे को अलबम में देख कर सिसकियां ले रहा है. पूरे घर में मातम पसरा है.

मणिपुर की दो एयर होस्टेस मारे गए क्रू में शामिल 

नगंथोई शर्मा उन 12 क्रू (दो पायलट समेत) मेंबर्स में शामिल थी, जो इस प्लेन हादसे में चल बसे. मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा कि अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया के विमान दुर्घटना में राज्य की दो युवा विमानकर्मी मारे गए हैं.
नगंथोई के परिवार को जब इसकी सूचना मिली, तो उन्होंने उसकी तस्वीरों का अलबम निकाला और उसे कलेजे से लगा कर फूटफूट कर रोने लगे. यह जानने के बाद भी प्लेन बुरी तरह से क्रैश हो गया है, उसके पापा बारबार बेटी के नंबर पर कॉल करते रहे.
फोन रिंग होता रहा और उस पिता को ऐसा लगता रहा कि उनकी बेटी जरूर कॉल उठाएगी. पड़ोसियों के पास इस परिवार को सांत्वना देने के लिए शब्द नहीं थे, वह चाह कर भी यह नहीं कह पा रहे थे कि नगंथोई अब कभी वापस नहीं आएगी. 

मोबाइल रिंग होता रहा पर कॉल रिसीव नहीं हुआ 

नगंथोई तीन बहनों में से एक थी. आखिरी उड़ाने के पहले अपनी बड़ी बहन को फोन करके उसने यह बताया था कि उसका विमान लंदन के लिए उड़ान भरनेवाला है इसलिए कुछ देर के लिए किसी से कॉन्टैक्ट नहीं हो पाएगा. उसने यह भी बताया कि अब वह 15 जून को वापस आएगी.
विमान क्रैश की घटना की खबर मिलते ही एयरहोस्टेस नगंथोई के पापा ने बेटी से संपर्क करने के लिए उसे तुरंत कॉल किया, फोन रिंग हुआ लेकिन उठा नहीं. बार बार घरवाले फोन करते रहे और मोबाइल के रिंग होने की आवाज आती रही लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया. हर कॉल को करते समय उसके पापा को लगता रहा कि शायद अगली कॉल को बेटी फोन उठा लेगी. घटना के बाद से सबकी आंखें रो रो कर सूज गई है.
Ahmedabad Plane Crash में प्लेन में बैठे 242 लोगों में से 241 मारे गए, जिसमें नगंथोई भी एक है, जिसकी यादें उसके पापा या बहनों के लिए फोन की गैलेरी में सिमट कर रह गई है.

Relationship : मेरे ब्रौयफ्रैंड ने ऐसे समय में मुझसे रिश्ता तोड़ लिया जब मुझे उस की जरूरत थी…

Relationship : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 27 वर्षीय युवती हूं. कुछ महीने पहले मेरा ऐक्सिडैंट हुआ. मैं स्कूटी से जा रही थीपीछे से कार ने मुझे हिट किया. मुझे काफी चोट आई. आगे के 4 दांत टूट गए. हाथ में फ्रैक्चर हो गया. चेहरे पर भी चोट आई. मैंने सब सहा लेकिन यह नहीं सहा जा रहा कि मेरे ब्रौयफ्रैंड ने ऐसे समय में मुझसे रिश्ता तोड़ लिया जब मुझे उस की सब से ज्यादा जरूरत थी. बसएक बार मुझे देखने अस्पताल आया था. अब फोन करती हूं तो मेरा फोन पिक नहीं करता. कहां तो मेरे साथ जीनेमरने की कसमें खाता था. मैं उसे बहुत प्यार करती हूं. उस की यह हरकत मुझे हर्ट कर रही है. मुझे उस का मैंटली सपोर्ट चाहिए था लेकिन उस ने तो मुझ से मुंह ही फेर लिया. अब आप ही बताइएक्या मुझे भी उसे छोड़ देना चाहिए या उस का इंतजार करूं कि शायद वापस आ जाए?

जवाब

आप भी कमाल करती हैं. जिस वक्त आप को अपने ब्रौयफ्रैंड की सब से ज्यादा जरूरत थी, उस वक्त उस ने आप का साथ छोड़ दिया. उस बौयफ्रैंड का आप इंतजार करेंगी, हद है. यह तो आंखों पर पट्टी बांधना जैसा है. किसी के लिए इतना भी पागल मत बनिए कि उस का सहीगलत भी आप न समझे.

आप का ब्रौयफ्रैंड खुदगर्ज इंसान है. ऐक्सिडैंट तो कभी भी किसी के साथ हो सकता है. ऐसे वक्त में तो अपनों का साथ दिया जाता है, न कि साथ छोड़ना चाहिए. वह बिलकुल भी सर्पोटिव नहीं है. मुसीबत में पल्ला ?ाड़ कर भाग जाने वालों में से है. ऐसे इंसान को प्यार करना आप की भूल साबित होगा. अच्छा हुआ वक्त रहते आप को उस की नीयत के बारे में पता चल गया, वरना पछताना ही पड़ता.

आप अपनी सेहत की तरफ ध्यान दें. स्ट्रैस में सेहत को खराब न होने दें. आजकल बहुत अच्छेअच्छे मैडिकल ट्रीटमैंट आ गए हैं. डैंटल ट्रीटमैंट भी हो जाएगा. फ्रैक्चर तो डेढ़दो महीने में ठीक हो जाता है. चेहरे की चोटों के निशान फेशियल सर्जरी से दूर हो जाएंगे. हां, आप के दिल पर जो जख्म लगा है, वह गहरा है लेकिन कोई बात नहीं. ऐसे स्वार्थी ब्रौयफ्रैंड का न रहना ही अच्छा है, पूरी लाइफ आप के सामने है. आप सम?ादार लड़की लगती हैं, हर फैसला अपने हित में ले कर कीजिए. बौयफ्रैंड को बायबाय कीजिए और जिंदगी को हाय करते हुए उस से हाथ मिलाइए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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