करिश्मा कपूर के एक्स हसबैंड Sunjay Kapur की मौत का कारण बनी मधुमक्खी…

Sunjay Kapur Death : बौलीवुड की जानीमानी हीरोइन करिश्मा कपूर प्यार और शादी के मामले में बहुत ज्यादा अनलकी है, सबसे पहले तो उनका अभिषेक बच्चन से प्यार हुआ जो 7 साल चला उसके बाद पब्लिकली अनाउंसमेंट करके सगाई भी हुई , लेकिन अचानक ही यह प्यार भरा रिश्ता हमेशा के लिए टूट गया, इससे पहले भी करिश्मा कपूर के रोमांस की खबरें अजय देवगन के साथ जुड़ी थी. लेकिन वह बात भी आई गई हो गई.

उसके बाद उनकी शादी 2007 में बिजनेसमैन संजय कपूर से हुई जिससे उन्हें दो बच्चे भी हुए एक बेटा और एक बेटी. संजय कपूर से भी उनका रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टीका और फाइनली संजय कपूर से भी तलाक हो गया. संजय कपूर ने तीसरी शादी भी कर ली और उससे भी उनकी एक बेटा है. लेकिन करिश्मा कपूर को यह नहीं पता था कि उनकी जिंदगी में विधवा योग भी है, करिश्मा कपूर के तलाकशुदा पति संजय कपूर का अचानक ही लंदन में पोलो मैच खेलते हुए हार्ट अटैक हो गया. उनके आखिरी शब्द थे मैंने कुछ निगल लिया है, काफी दौड़ भाग के साथ उनको अस्पताल ले जाया गया लेकिन वहां जाकर हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई.

अचानक हुई मौत ने सबको सरप्राइज कर दिया लिहाजा डॉक्टरों द्वारा जांच पड़ताल करने पर पता चला कि संजय कपूर ने पोलो खेलते हुए अचानक एक मधुमक्खी को भूल से निगल लिया और उस मधुमक्खी ने संजय कपूर के गले में डंक मार दिया, जिस वजह से संजय को सांस लेने में तकलीफ होने लगी और इसी वजह से उनको दिल का दौरा पड़ गया.

संजय कपूर की निजी जिंदगी के बारे में बात करें तो उनकी पहली पत्नी नंदिता महतानी थी जिनसे संजय का सन 2000 में तलाक हो गया उसके बाद संजय कपूर ने 2003 में करिश्मा कपूर से शादी की जिनसे उनका दो बच्चे हैं संजय कपूर करिश्मा की बड़ी बेटी से बहुत प्यार करते थे. लेकिन बावजूद इसके आपसी मनमुटाव के चलते 2016 में करिश्मा से संजय का तलाक हो गया. उसके बाद 2017 में संजय ने तीसरी शादी प्रिया सचदेव सिंह की जिससे उनको एक बेटा है.

1.2 बिलियन डॉलर के मलिक संजय कपूर की मौत इस तरह होगी, यह खुद संजय कपूर ने भी नहीं सोचा होगा. शायद इसलिए कहते हैं होनी को कोई नहीं डाल सकता.

Moral Story Hindi : व्यवस्था – किसी का दोष निकालने से पहले अपनी कमियों को देखें

Moral Story Hindi : एक रात को मैं अपनी सहकर्मी साक्षी के घर भोजन पर आमंत्रित थी. पतिपत्नी दोनों ने बहुत आग्रह किया था. तभी हम ने हां कर दी थी.

साक्षी के घर पहुंची. उन का बड़ा सा ड्राइंगरूम रोशनी में नहाया हुआ था. साक्षी ने सोफे पर बैठे अपने पति के मित्र आनंदजी से हमारा परिचय कराया.  साक्षी के पति सुमित भी आ गए. हम लोग सोफे पर बैठ गए थे. कुछ देर सिर्फ गपें मारीं. साक्षी के पति ने इतने बढि़या और मजेदार जोक सुनाए कि हम लोग टैलीविजन पर आने वाले घिसेपिटे जोक्स भूल गए थे. तय हुआ कि महीने में एक बार किसी न किसी के घर पर बैठक किया करेंगे.

हंसी का दौर थमा. भूख बहुत जोर से लग रही थी. रूम के एक हिस्से में ही डाइनिंग टेबल थी. टेबल खाना खाने से पहले ही तैयार थी और हौटकेस में खाना, टेबल पर लगा हुआ था. प्लेट्स सजी थीं. जैसे ही हम खाने के लिए उठने लगे, लाइट चली गई. एक चुटकुले के सहारे 5-10 मिनटों तक इंतजार किया. पर लाइट नहीं आई. आनंद ने पूछा, ‘‘अरे यार, तुम्हारे पास तो इनवर्टर था?’’

उन की जगह साक्षी ने जवाब दिया, ‘‘हां भाईसाहब है, पर खराब है. कब से कह रही हूं कि मरम्मत करने वाले के यहां दे दें. पर ये तो आजकलआजकल करते रहते हैं.’’

सुमित ने कहा, ‘‘बस भी करो. जाओ, माचिस तलाश करो. फिर मोमबत्ती ढूंढ़ो. कैंडललाइट डिनर हीसही.’’

साक्षी उठ कर किचन की तरफ गई. इधरउधर माचिस तलाशती रही, पर माचिस नहीं मिली. वहीं से चिल्लाई, ‘‘अरे भई, न तो माचिस मिल रही है, न ही गैसलाइटर जो गैस जला कर थोड़ी रोशनी कर लूं. अब क्या करूं?’’

‘‘करोगी क्या? यहां आ जाओ, मिल कर निकम्मी सरकार को ही कोस लें. इस का कौन काम सही है?’’ सुमित ने कहा. अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वे बोले, ‘‘बिजली का कोई भरोसा नहीं है कि कब आएगी, कब जाएगी. 4 घंटे का घोषित कट है, पर रहता है 8 घंटे. और बीचबीच में आंखमिचौली.

कभी अगर ट्रांसफौर्मर खराब हो जाए, तो समझ लो 2-3 दिनों तक बिजली गायब.’’

तभी आनंद ने कहा, ‘‘अरे भाईसाहब, रुकिए. मेरे पास माचिस है. यह मुझे ध्यान ही नहीं रहा. यह लीजिए.’’

उन्होंने एक तीली जला कर रोशनी की. सुमित तीली और माचिस लिए हुए चिल्लाए, ‘‘जल्दी मोमबत्ती ढूंढ़ कर लाओ.’’

‘‘मोमबत्ती…यहीं तो साइड में रखी हुई थी,’’ साक्षी ने कहा. दोनों पतिपत्नी मेज के पास पहुंच कर दियासलाई जलाजला कर मोमबत्तियां ढूंढ़ते रहे. पर वह नहीं मिली. कई जगहों पर देखी, लेकिन बेकार. इतने में ही उन्हें एक मोमबत्ती ड्रैसिंग टेबल की दराज में मिल गई. वहीं से वह चिल्लाई, ‘‘मिल गई.’’

जब काफी देर तक मोमबत्ती नहीं जली तो आनंद ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, मोमबत्ती क्यों नहीं जलाते? क्या अंधेरे में रोमांस चल रहा है?’’

तब तक सुमित ड्राइंगरूम में आ चुके थे, बोले, ‘‘लानत है यार ऐसी जिंदगी पर. जब मोमबत्ती मिली, तो माचिस की तीलियां ही खत्म हो गईं.’’

आनंद कुछ कहते, उस से पहले ही बिजली आ गई.

सुमित ने मोमबत्ती एक कोने में फेंक दी और बोले, ‘‘खैर, बत्ती आने से सब काम ठीक हो गया.’’

मौके की नजाकत पर आनंद ने एक जोक और मारा तो सब खिलखिला उठे. प्रसन्नचित्त सब ने भोजन किया. थोड़ी देर में साक्षी फ्रिज में से 4 बाउल्स निकाल कर लाई. सभी लोग खीर खाने लगे.

तो मैं ने कहा, ‘‘अरे भाईसाहब, मीठी खीर के साथ एक बात कहूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगे?’’

सुमित ने खीर मुंह में भरे हुए ही ?कहा, ‘‘नहीं. आप तो बस कहिए, क्या चाहती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी आप सरकार को उस की बदइंतजामी के लिए कोस रहे थे. मैं सरकार की पक्षधर नहीं हूं, फिर भी क्षमाप्रार्थना के साथ कहती हूं कि जब आप के इस छोटे से परिवार में इतनी अव्यवस्था है, आप को पता नहीं कि माचिस कहां रखी है? मोमबत्ती कहां पर है? तो इतने बड़े प्रदेश का भार उठाने वाली सरकार को क्यों कोसते हैं?

‘‘जिले के ट्रांसफौर्मर के शीघ्र न ठीक होने की शिकायत तो आप करते हैं पर घर पर रखे इनवर्टर की आप समय से मरम्मत नहीं करवाते. कभी सोचा है कि ट्रांसफौर्मर के फुंक जाने के कई कारणों में से एक प्रमुख कारण उस पर अधिक लोड होना है. आप के इस रूम में जरूरत से ज्यादा बल्ब लगे हैं. अच्छा हो पहले हम अपने घर की व्यवस्था ठीक कर लें, फिर किसी और को उस की अव्यवस्था के लिए कोसें. मेरी बात बुरी लगे, तो माफ कर दीजिएगा.’’

आनंद ने ताली बजाते हुए कहा, ‘‘दोस्तो, हास्य के बीच, आज का यह सब से गहरा व्यंग्य. चलो, अब मीटिंग बरखास्त होती है.’’

Stories Hindi : तीमारदारी – आखिर क्या हुआ राज के साथ ?

Stories Hindi : सरकारी अस्पताल का बरामदा मरीजों से खचाखच भरा हुआ था. छींक आने के साथ गले में दर्द, सर्दी, खांसी, बुखार से सम्बंधित मरीजों की तादाद यहां अचानक ही बढ़ गई थी.

मरीजों को सुबह से ही तमाम सरकारी अस्पताल में लंबीलंबी लाइनों में खड़े देखा जा सकता था क्योंकि इन अस्पतालों में मरीजों को पहले ओपीडी में पर्ची बनवाने के बाद ही डाक्टर के पास जाना होता था. देखने के बाद डाक्टर दवा दे कर घर भेज देते थे.

तब तक कोरोना अपने देश में आया नहीं था. एक सरकारी अस्पताल में ऐसे मरीजों की तादाद ज्यादा ही बढ़ गई.

सरकार ने इन मरीजों को गंभीर बता कर भर्ती करने के लिए कहा तो ऐसे में वहां डाक्टरों की जिम्मेदारी बढ़ गई. स्टाफ की भी जरूरत आ पड़ी.

इन मरीजों को अलग ही वार्ड में रखा गया था. छूत की बीमारी बता कर इन मरीजों को दूर से ही दवा, खाना दिया जाता था. मरीजों के साथ एक तरह से अलग तरह का ही बरताव किया जाता था.

इन मरीजों की देखरेख के लिए सीनियर डाक्टर कमल ने अपने से जूनियर डाक्टर सुनील से कुछ को मैडिकल अटेंडेंट के तौर पर रखने के लिए कहा.डाक्टर सुनील ने किसी नर्स के माध्यम से राज को मैडिकल अटेंडेंट के तौर पर रख लिया.

‘‘बधाई हो राज, तुम नौकरी पर रख लिए गए हो. अपने काम में मन लगाना ताकि किसी को कहने का मौका न मिले. तुम यहां इनसानियत के लिए भी काम कर सकोगे. किसी लाचार के काम आ सकोगे.’’ डाक्टर सुनील ने राज का हौसला बढ़ाते हुए कहा.

“जी डाक्टर साहब,” इतना ही कह सका राज.

जो भी हो, राज  की समझ में तो यही आया कि उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है.अस्पताल में राज को 6 महीने की पहले ट्रेनिंग दी गई. पर उसे इस छूत की बीमारी के बारे में ज्यादा नहीं बताया गया था.

जब डाक्टरों को खुद ही नहीं पता था, तो वे उसे क्या बताते. राज को अस्पताल में सबकुछ करना पड़ता था. मरीजों के टैंपरेचर, ब्लडप्रैशर वगैरह के रिकौर्ड रखने से ले कर उन्हें बिस्तर पर सुलाने तक की जिम्मेदारी उस पर थी. हर बिस्तर तक जा कर उसे मरीजों को दवा देनी पड़ती थी.

वैसे, राज अस्पताल के आसपास ही रहता था और पैदल ही चला आता था. वह एक पिछड़े इलाके से ताल्लुक रखता था और गरीब भी.

यहां  अस्पताल की नर्स से ले कर कंपाउंडर, डाक्टर तक मरीजों को डांटते रहते थे. किसी से मिलने की मनाही थी. एकएक इंजैक्शन लगाने के लिए नर्स फीस लेती थी. डाक्टरों से बात करने में डर लगता था कि कहीं डांटने न लगें.

यहां नर्सों का दबदबा था. राज को पहले ही ताकीद कर दी गई थी कि किसी मरीज से कभी भी चाय मत पीना, वरना निकाला जा सकता है.राज को पलपल यही खयाल रहता था कि कैसे नौकरी महफूज रखी जाए.

एक दिन जब राज अपनी शिफ्ट ड्यूटी पर गया, तो उस से पहले काम कर रहे साथी उमेश ने बताया, ‘‘एक नया मरीज भरती हुआ है. उसे दवा दे देना.’’यह कह कर वह उमेश अपनी ड्यूटी खत्म कर घर चला गया.

 राज ने उस मरीज को गौर से देखा. उस के गले में बेहद दर्द था. उसे छींकें भी बहुत आ रही थीं. बुखार से उस का बदन तप रहा था. पर राज ने डाक्टर को न बुला कर डाक्टर द्वारा दी गई पर्ची के मुताबिक उसे दवा दे दी. पर उस मरीज की तबियत बिगड़ने लगी.

अगले दिन उस मरीज की जांच की गई. डाक्टर कमल राज पर चिल्लाया, ‘‘यह क्या है…? तुम ने तो मरीज का कोई केयर ही नहीं किया है?’’यह सुन कर राज के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह बोला, ‘‘सर, मैं ने उसे दवा दी थी.’’

“पर, दवा से कुछ असर नहीं हुआ.” राज ने अपनी बात कही. उस की बात सुन कर डाक्टर कमल उस पर बिगड़ा, ‘‘तुम्हारी समझाने की ड्यूटी नहीं है. तुम्हारी लापरवाही के चलते इस मरीज की हालत बिगड़ी है. कहीं दवा से कोई इंफैक्शन न हो जाए.’’

यह सुन कर राज की बोलती बंद हो गई. डाक्टर द्वारा डांट खा कर राज अपने को अपमानित सा महसूस करने लगा.राज को बड़ी कुंठा होने लगी.अब वह अपनेआप को बड़ा बेबस महसूस कर रहा था.

यही सोच कर राज कुछ दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव जाने की योजना बनाने लगा.अगले दिन यही सोच कर राज  सीनियर डाक्टर कमल के पास चला गया, ‘‘सर, मुझे तो अपनेआप पर शर्म आ रही है, इसलिए मैं कुछ दिन की छुट्टी ले कर गांव जाना चाहता हूं.’’

वह सीनियर डाक्टर तुरंत मुड़ा और दूसरे मरीज को आवाज दी. वह मरीज उस के चैंबर में आया. राज वहीं खड़ा उस डाक्टर और मरीज को देखने लगा.

उस मरीज को देखने के बाद सीनियर डाक्टर कमल ने राज से समझाते हुए कहा, ‘‘उस दिन उस मरीज की जान चली जाती, अगर थोड़ी देर और होती.”

“क्या तुम ने खबर देखी है कि सरकार ने इस तरह के मरीजों को कोरोना होने की बात कही है, इसलिए इन्हें भर्ती किया जा रहा है. मरीज भी पहले से ज्यादा हो गए हैं. इन मरीजों को ले कर सरकार बहुत गंभीर है. और तुम ऐसे समय में छुट्टियां मांग रहे हो. ऐसे समय में तो तुम्हें इन मरीजों की तीमारदारी करनी चाहिए. यह भी एक तरह की देशभक्ति है.”

इतना कह कर सीनियर डाक्टर कमल अपने चैंबर से चला गया.यह सुन कर राज को दुख होने लगा. डाक्टर द्वारा समझाए जाने पर उस ने छुट्टी पर न जाने का मन बनाया. उसे अब इस नौकरी का असली माने पता चला था. यही तो उस का असली काम था, जिसे करने से वह चूक रहा था.

Hindi Stories : पापा कूलकूल

Hindi Stories  : ‘‘मुझे ‘सू’ कह कर पुकारो, पापा. कालिज में सभी मुझे इसी नाम से पुकारते  हैं.’’ ‘‘अरे, अच्छाभला नाम रखा है हम ने…सुगंधा…अब इस नाम मेें भला क्या कमी है, बता तो,’’ नरेंद्र ने हैरान हो कर कहा.

‘‘बड़ा ओल्ड फैशन है…ऐसा लगता है जैसे रामायण या महाभारत का कोई करेक्टर है,’’ सुगंधा इतराती हुई बोली.

‘‘बातें सुनो इस की…कुल जमा 19 की है और बातें ऐसी करती है जैसे बहुत बड़ी हो,’’ नरेंद्र बड़बड़ाए, ‘‘अपनी मर्जी के कपड़े पहनती है…कालिज जाने के लिए सजना शुरू करती है तो पूरा घंटा लगाती है.’’

‘‘हमारी एक ही बेटी है,’’ नरेंद्र का बड़बड़ाना सुन कर रेवती चिल्लाई, ‘‘उसे भी ढंग से जीने नहीं देते…’’

‘‘अरे…मैं कौन होता हूं जो उस के काम में टांग अड़ाऊं ,’’ नरेंद्र तल्खी से बोले.

‘‘अड़ाना भी मत…अभी तो दिन हैं उस के फैशन के…कहीं तुम्हारी तरह इसे भी ऐसा ही पति मिल गया तो सारे अरमान चूल्हे में झोंकने पड़ेंगे.’’

‘‘अच्छा, तो आप हमारे साथ रह कर अपने अरमान चूल्हे में झोंक रही हैं…’’

‘‘एक कमी हो तो कहूं…’’

‘‘बात सुगंधा की हो रही है और तुम अपनी…’’

‘‘हूं, पापा…फिर वही सुगंधा…सू कहिए न.’’

‘‘अच्छा सू बेटी…तुम्हें कितने कपड़े चाहिए…अभी 15 दिन पहले ही तुम अपनी मम्मी के साथ शापिंग करने गई थीं… मैचिंग टाप, मैचिंग इयर रिंग्स, हेयर बैंड, ब्रेसलेट…न जाने क्याक्या खरीद कर लाईं.’’

‘‘पापा…मैचिंग हैंडबैग और शूज

भी चाहिए थे…वह तो पैसे ही खत्म हो गए थे.’’

‘‘क्या…’’ नरेंद्र चिल्लाए, ‘‘हमारे जमाने में तुम्हारी बूआ केवल 2 जोड़ी चप्पलों में पूरा साल निकाल देती थीं.’’

‘‘वह आप का जमाना था…यहां तो यह सब न होने पर हम लोग आउटडेटेड फील करते हैं…’’

‘‘और पढ़ाई के लिए कब वक्त निकलता है…जरा बताओ तो.’’

‘‘पढ़ाई…हमारे इंगलिश टीचर

पैपी यानी प्रभात हैं न…उन्होंने हमें अपने नोट्स फोटोस्टेट करने के लिए दे दिए हैं.’’

‘‘तुम्हारे इस पैपी की शिकायत मैं प्रिंसिपल से करूंगा.’’

‘‘पिं्रसी क्या कर लेगा…वह तो खुद पैपी के आगे चूहा बन जाता है…आखिर, पैपी यूनियन का प्रेसी है.’’

‘‘प्रेसी…तुम्हारा मतलब प्रेसीडेंट…’’ नरेंद्र ने उस की बात समझ कर कहा, ‘‘बेटा, बात को समझो…हम मध्यवर्गीय परिवार के  सदस्य हैं…इस तरह फुजूलखर्ची हमें सूट नहीं करती.’’

‘‘बस…शुरू हो गया आप का टेपरिकार्डर,’’ रेवती चिढ़कर बोली, ‘‘हर वक्त मध्यवर्गीय…मध्यवर्गीय. अरे, कभी तो हमें उच्चवर्गीय होने दिया करो.’’

‘‘रेवती…तुम इसे बिगाड़ कर ही मानोगी…देख लेना पछताओगी,’’ नरेंद्र आपे से बाहर हो गए.

‘‘क्यों, क्या किया मैं ने? केवल उसे फैशनेबल कपड़े दिलवाने की तरफदारी मैं ने की…आप तो बिगड़ ही उठे,’’ सुगंधा की मां ने थोड़ी शांति से कहा.

‘‘मैं भी उसे कपड़े खरीदने से कब मना करता हूं…लेकिन जो भी करो सीमा में रह कर करो…जरा इसे कुछ रहनेसहने का सही सलीका समझाओ.’’

‘‘लो, अब कपड़े की बात छोड़ी तो सलीके पर आ गए…अब उस में क्या दिक्कत है, पापा,’’ सुगंधा ठुनकी.

‘‘तुम जब कालिज चली जाती हो तो तुम्हारी मां को घंटा भर लग कर तुम्हारा कमरा ठीक करना पड़ता है.’’

‘‘मैं ने कब कहा कि वह मेरे पीछे मेरा कमरा ठीक करें…मेरा कमरा जितना बेतरतीब रहे वही मुझे अच्छा लगता है…यही आजकल का फैशन है.’’

‘‘और साफसफाई रखना…सलीके से रहना?’’

‘‘ओल्ड फैशन…हर वक्त नीट- क्लीन और टाइडी जमाने के लोग रहते हैं…नए जमाने के यंगस्टर तो बस, कूल दिखना चाहते हैं…अच्छा, मैं चलती हूं…नहीं तो कालिज के लिए देर हो जाएगी.’’

अपने मोबाइल को छल्ले की तरह नचाती हुई वह चलती बनी. रेवती ने भी चिढ़ कर नाश्ते के बरतन उठाए और किचन में चली गई.

‘कहां गलती कर दी मैं ने इस बच्ची को संस्कार देने में,’ नरेंद्र अपनेआप से बोले, ‘नई पीढ़ी हमेशा फैशन के हिसाब से चलना पसंद करती है…इसे तो कुछ समझ ही नहीं है…एक बार मन में ठान ली उसे कर के ही मानती है. ऊपर से रेवती के लाड़प्यार ने इसे कामचोर और आरामतलब अलग बना दिया है. मैं रेवती को समझाता हूं कि पढ़ाई के साथ घर के कामकाज व उठनेबैठने, पहनने का सलीका तो इसे सिखाओ वरना इस की शादी में बड़ी मुश्किल होगी, तब वह तमक कर कहती है कि मेरी इतनी रूपवती बेटी को तो कोई भी पसंद कर लेगा…’

‘‘क्या बड़बड़ा रहे हैं अकेले में आप?’’ रेवती नरेंद्र से बोली.

‘‘तुम्हारी लाड़ली के बारे में सोच रहा हूं,’’ नरेंद्र ने चिढ़ कर कहा.

‘‘ओहो, अब आप शांत हो जाओ… कितना खून जलाते हो अपना…’’

‘‘सब तुम्हारे ही कारण जल रहा है…तुम उसे दिशाहीन कर रही हो.’’

‘‘आप ऐसा क्यों समझते हो जी, कि मैं उसे दिशाहीन कर रही हूं,’’ रेवती रहस्यमय ढंग से कहने लगी, ‘‘मुझे तो लगता है कि आप ने अपनी सुविधा के लिए उस से बहुत सी आशाएं लगा रखी हैं.’’

‘‘अब इकलौती संतान है तो उस से आशा करना क्या गलत है…बोलो, गलत है.’’

‘‘देखो,’’ रेवती समझाने के ढंग से बोली, ‘‘पुरानी पीढ़ी अकसर परंपरागत मान्यताओं, रूढि़यों और अपने तंग नजरिए को युवा पीढ़ी पर थोपना चाहती है जिसे युवा मन सहसा स्वीकार करने में संकोच करता है.’’

‘‘ठीक है, मेरा तंग नजरिया है… तुम लोगों का आधुनिक, तो आधुनिक ही सही,’’ नरेंद्र के बोलने में उन का निश्चय झलकने लगा था, ‘‘जब सारे समाज में ही परिवर्तन हो रहा है तो मेरा इस तरह से पिछड़ापन दिखाना तुम दोनों को गलत ही महसूस होगा.’’

‘‘ये हुई न समझदारी वाली बात,’’ रेवती ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आप की और सू की लड़ाइयों से आजकल घर भी महाभारत बना हुआ है…आप उसे और उस की पीढ़ी को दोष देते हो…वह आप को और आप की पुरानी पीढ़ी को दोष देती है…’’

‘‘तुम ही बताओ, रेवती,’’ नरेंद्र ने अब हथियार डाल दिए, ‘‘क्या सुगंधा और उस की पीढ़ी के बच्चे दिशाहीन नहीं हैं?’’

रेवती चिढ़ कर बोली, ‘‘आप को  तो एक ही रट लग गई है…अरे भई, दिशाहीनता के लिए युवा वर्ग दोषी नहीं है…दोषी समाज, शिक्षा, समय और राजनीति है.’’

नरेंद्र फिर चुप हो गए. लेकिन गहन चिंता में खो गए. ‘जैसे भी हो आज इस समस्या का हल ढूंढ़ना ही होगा,’ वह बड़बड़ाए, ‘सच ही है, हमारा भी समय था. मुझे भी पिताजी बहुत टोकते थे, ढंग के कपड़े पहनो…करीने से बाल बनाओ…समय पर खाना खाओ…रेडियो ज्यादा मत सुनो…बड़ों से अदब से बोलो…पैसा इतना खर्च मत करो. सही भाषा बोलो…ओह, कितनी वर्जनाएं होती थीं उन की, किंतु मैं और छुटकी उन की बातें मान जाते थे…यहां तो सुगंधा हमारी एक भी बात सुनने को तैयार नहीं.

‘उस से यही सुनने को मिलता है कि ओहो पापा, आप कुछ नहीं जानते. लेकिन मैं भी उसे क्यों दोष दे रहा हूं… जरूर मेरे समझाने का ढंग कुछ अलग है तभी उसे समझ नहीं आ रहा…उस की फुजूलखर्ची और फैशनपरस्ती से ध्यान हटाने के लिए मुझे कुछ न कुछ करना ही होगा.’

नरेंद्र अब उठ कर कमरे में चहलकदमी करने लगे. रेवती ने उन्हें कमरे में टहलते देखा तो चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं. अचानक नरेंद्र की आवाज आई, ‘‘रेवती, दरवाजा बंद कर लो. मैं अभी आता हूं.’’

रेवती दौड़ कर बाहर आई. दरवाजे से झांक कर देखा तो नरेंद्र कालोनी के छोर पर लंबेलंबे डग भरते नजर आए… उस ने गहरी सांस भर कर दरवाजा बंद किया.

अब उन्हें दुख तो होना ही है जब सुगंधा ने उन के द्वारा रखे अच्छेखासे नाम को बदल कर सू रख दिया.

वह भी घर में शांति चाहती है इसलिए विभिन्न तर्क दे दे कर दोनों को

चुप कराती रहती है…यह सही है

कि बेटी के लिए उस के मन में बहुत ज्यादा ममता है…वह नरेंद्र की

कही बात पर कांप उठती है, ‘रेवती, तुम्हारी अंधी ममता सुगंधा को कहीं बिगाड़ न दे.’

‘कहीं सचमुच सुगंधा दिशाहीन हो गई तो वह क्या करेगी…’ रेवती स्वयं से सवाल कर उठी, ‘सुगंधा जिस उम्र में पहुंची है वहां तो हमारा प्यार और धैर्य ही उसे काबू में रख सकता है. सुगंधा को उस की गलती का एहसास बुद्धिमानी से करवाना होगा…जिस से वह सोचने पर मजबूर हो कि वह गलत है, उसे ऐसा नहीं करना चाहिए.’ सुगंधा का बिखरा कमरा समेटते हुए रेवती सोचती जा रही थी.

शाम घिर आई थी…सुबह 11 बजे के निकले नरेंद्र अभी तक नहीं लौटे थे… अचानक बजी कालबेल ने उस का ध्यान खींचा. दरवाजा खोला तो नरेंद्र थे…हाथों में 4 बडे़बडे़ पैकेट लिए.

‘‘सुगंधा आ गई क्या?’’ नरेंद्र ने बेसब्री से पूछा.

‘‘नहीं…’’

‘‘आप कहां रह गए थे?’’

उस के प्रश्न को अनसुना कर के नरेंद्र बोले, ‘‘रेवती, जरा पानी ले आओ… बड़ी प्यास लगी है.’’

गिलास में पानी भरते समय उस के मन में कई प्रश्न घुमड़ रहे थे.

‘‘क्या है इन पैकेटों में?’’ गिलास पकड़ाते हुए उस ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम खुद देख लो,’’ नरेंद्र ने संक्षिप्त उत्तर दिया, ‘‘और सुनो, मेरा सामान दे दो…मैं जरा उन्हें ट्राई कर लूं… फिर तुम भी अपना सामान ट्राई कर लेना.’’

रेवती की हंसी कमरे में गूंज गई, ‘‘ये क्या, अपने लिए आसमानी रंग की पीले फूलों वाली शर्ट लाए हो क्या?’’ वह हंसती हुई बोली.

नरेंद्र ने उस के हाथ से शर्र्ट खींच कर कहा, ‘‘हां भई, हमारी लाड़ली फैशनपरस्त है. अब तो उस के पापा भी फैशनपरस्त बनेंगे तभी काम चलेगा.’’

‘‘और यह मजेंटा कलर का बरमूडा…यह भी आप का है?’’ रेवती के पेट में हंसतेहंसते बल पड़ रहे थे.

‘‘यह हंसी तुम संभाल कर रखो… अभी कहीं और न हंसना पडे़…ये देखो… तुम अपनी डे्रस देखो.’’

‘‘ये…ये क्या?’’ रेवती चौंक कर बोली, ‘‘आप का दिमाग खराब तो नहीं हो गया…खुद तो चटकीले ऊलजलूल कपडे़ ले आए, अब मुझे ये मिडी पहनाओगे….’’

‘‘क्यों भई, फैशनपरस्त बेटी की फैशनपरस्ती को तो खूब सराहती हो. अब मैं भी तो तुम्हें सराह लूं. चलो, जरा ये मिडी पहन कर दिखाओ.’’

‘‘आप का दिमाग तो सही है…इस उम्र में मैं मिडी पहनूंगी…मुझे नहीं पहननी,’’ रेवती भुनभुनाई.

‘‘चलो, जैसी तुम्हारी मर्जी. तुम्हें नहीं पहननी, न पहनो. मैं तो पहन रहा हूं,’’ कहते हुए नरेंद्र कपड़ों को हाथ में लिए बाथरूम में घुस गए.

‘‘अब समझ आया,’’ रेवती बोली, ‘‘देखें, आज पितापुत्री का युद्ध कहां तक खिंचता है…’’ वह मुसकराई किंतु साथ ही उस के दिमाग में विचार आया…उस ने फटाफट सामान समेटा और किचन में घुस गई.

‘‘ममा…ममा…’’ सुगंधा के चीखने की आवाज उसे सुनाई दी.

‘‘आ गई मेरी लाडली…’’ वह मुसकराती हुई कमरे में आई. सुगंधा की पीठ उस की ओर थी, ‘‘ममा, मेरा पिंक टाप नहीं दिखाई दे रहा. आप ने देखा… और आज आप ने मेरा रूम भी ठीक नहीं किया,’’ कहतेकहते सुगंधा मुड़ी तो हैरानी से उस का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘ममा, आप मिडी में…वह भी स्लीवलेस मिडी में.’’

क्यों, ‘‘क्या हुआ…क्या तुम ही फैशन कर सकती हो…हम नहीं,’’ नरेंद्र ने पीछे से आ कर कहा.

‘‘ऐं…पापा, आप बरमूडा में…क्या चक्कर है. पापा, आप तो ये ड्रेस चेंज कीजिए. कैसे अजीब लग रहे हैं…और मम्मी आप भी…कोई देखेगा तो क्या कहेगा.’’

‘‘क्यों, क्या कहेगा…यही कि हम 21वीं सदी के पेरेंट्स हैं…तुम्हें इन ड्रेसेस में क्या खराबी नजर आ रही है?’’

‘‘इन ड्रेसेस में कोई खराबी नहीं है,’’ सुगंधा ने सिर झटका, ‘‘कैसे दिख रहे हैं इन ड्रेसेस को पहन कर आप लोग.’’

‘‘मुझे पापा मत कहो, डैड कहो,’’ नरेंद्र बोले.

‘‘ऐं, डैड…’’ सुगंधा चौंकी, ‘‘क्या हो गया है आप को…ममा, पानी ले कर आओ…पापा की तबीयत वाकई खराब है.’’

तब तक रेवती कोल्डड्रिंक की बोतल ले कर पहुंच गई…सुगंधा ने कोल्डडिं्रक देख कर कहा, ‘‘हां, ममा, ये मुझे दो…आप पापा के लिए पानी ले कर आओ.’’

‘‘अरी हट….ये कोल्डडिं्रक तेरे पापा के लिए ही है…कह रहे हैं पानीवानी सब बंद, ओल्ड फैशन है…पीऊंगा तो केवल कोल्डडिं्रक या हार्डडिं्रक…’’

‘‘ऐं… ममा,’’ सुगंधा रोंआसी हो गई, ‘‘यह पापा को क्या हो गया है…’’

‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र ने फिर बीच में टोका.

‘‘अरे, छोड़ अपने पापा को,’’  रेवती बोली, ‘‘बोल, आज डिनर में क्या बनाऊं? पिज्जा, बर्गर, सैंडविच, मैगी…या…’’

‘‘ममा, सचमुच आज आप यह सब बनाओगी…’’ सुगंधा खुश हो कर बोली.

‘‘आज ही नहीं, हमेशा ही बनाऊंगी,’’ रेवती ने पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब ?’’ सुगंधा फिर चौंकी.

‘‘मतलब यह कि आज से मैं ने  और तेरे पापा ने निर्णय लिया है कि जो तुझे पसंद है वही इस घर में होगा…तुझे अपने पापा से शिकायत रहती है न कि वे तुझे टोकते रहते हैं.’’

‘‘ममा, आज क्या हो गया है आप लोगों को.’’

‘‘हमें कुछ नहीं हुआ है, बेटा,’’ नरेंद्र ने प्यार से कहा, ‘‘हम तो अपनी बेटी के रंग में रंगना चाहते हैं ताकि घर में शांति बनी रहे.’’

‘‘हां, हां…ये बरमूडा और मिडी पहन कर आप लोग घर में शांति जरूर करवा दोगे लेकिन बाहर अशांति छा जाएगी…लोग क्या कहेंगे कि…’’

‘‘यही तो मैं कहता हूं…आज तुम्हें भी समझ आ गई, सू…’’

‘‘हां, आप लोगों को देख कर मुझे यह बात समझ आ रही है कि फैशन उतना ही अच्छा लगता है जो दूसरों की निगाह में न खटके.’’

‘‘मेरी समझदार बच्ची,’’ रेवती भावविह्वल हो कर बोली.

‘‘बेटा…क्या हमारे पास एकमात्र यही रास्ता रह गया है कि बदलते हुए परिवेश से समझौता कर लें या पुराणपंथी दकियानूसी लकीर के फकीर कहलाएं…’’

सुगंधा अवाक् अपने पिता को देख रही थी.

नरेंद्र कह रहे थे, ‘‘तुम लोगों के पास जोश तो है बेटा लेकिन होश नहीं…तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि तुम्हारी पीढ़ी भी कल पुरानी हो जाएगी…तुम्हें भी नई पीढ़ी से ऐसा ही व्यवहार मिलेगा तब तुम्हारी बात कोई सुनने को तैयार नहीं होगा…’’

‘‘ठीक कहते हैं आप…युवा वर्ग और बुजुर्ग आपस में एकदूसरे के पूरक हैं…केवल दृष्टिकोण और कार्यों में दोनों  एकदूसरे से बिलकुल विपरीत हैं,’’  सुगंधा ने कहते हुए सिर हिलाया.

‘‘और इन दोनों में जब आपसी समझदारी हो तो दोनों वर्गों के कार्यों और परिणामों में सफलता मिलनी ही निश्चित  है.’’

‘‘आज से मेरा उलटीसीधी बातों पर जिद करना बंद. मुझे पता होता

कि आप मुझे इतना प्यार करते हैं तो मैं आप को कभी दुखी नहीं करती, पापा.’’

‘‘पापा नहीं, डैड…’’ नरेंद्र की इस बात पर तीनों खुल कर हंस पडे़ और हंसतेहंसते रेवती की आंखें बरस पड़ी यह सोच कर कि उस के समझदार पति ने उसे और उस की बेटी को दिशाहीन होने से बचा लिया.

Moral Story Hindi : टैंपल सैट – क्या थी सुरभि की जिद

Moral Story Hindi : दिनभर की भागदौड़ और साफसफाई के चक्कर में सुरभि एकदम पस्त हो चुकी थी. दीवाली के दिन घर में जाने कहां से इतने सारे काम निकल आते हैं, जिन्हें स्वयं ही निबटाना पड़ता है. और काम हैं कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेते. उस पर शाम के वक्त का तो कहना ही क्या. मिठाई, पकवान बनातेबनाते कब अंधेरा घिर गया, पता ही नहीं चला. सुरभि जल्दी से तैयार हो कर दीयों और मोमबत्तियों से घरबाहर सजाने लगी. बच्चों को कितना भी कहो कि वे इस काम में सहयोग करें, मगर उन्हें तो जैसे अपने खिलौनों और पटाखों से फुरसत न थी.

शोभा तो फिर भी थोड़ाबहुत सहयोग करती थी, मगर सूरज ने तो जैसे अपने खिलौने पिस्तौल को न छोड़ने का प्रण कर रखा था. सुरभि को उस की इस मानसिकता से डर भी लगता था कि अभी से गोलीबंदूक का शौक लग रहा है. आगे जाने क्या हो.

सूरज का अकेले खेलने में मन भी नहीं लग रहा था और शोभा को भी दीए सजाने में ऊब महसूस हो रही थी. अत: उसे मौका मिला नहीं कि वह सूरज के साथ फ्लैट के नीचे खिसक

गई. सुरभि ?ाल्लाने लगी, तो राजीव उस की तरफदारी करते हुए बोले, ‘‘खेलने दो उन्हें, अभी बच्चे हैं.’’

‘‘तो आप ही मेरी सहायता कीजिए न,’’ वह हंस कर बोली, ‘‘यह त्योहार सिर्फ मेरे लिए ही तो नहीं है.’’

‘‘यह सब मेरे बस का नहीं,’’ वह हंस कर बोले, ‘‘मेरा काम बस सारा सामान लाना था, वह ला दिया. अब तुम्हारे जो जी में आए करो,’’ कह कर वे पुन: वीडियोगेम खेलने में व्यस्त हो गए.

सुरभि को काफी गुस्सा आया कि आखिर वह इतनी साफसफाई और सजावट किस के लिए कर रही है? उस ने तुरंत टीवी का स्विच औफ कर दिया और रिमोट उन के हाथ से ले कर बोली, ‘‘आप तो बच्चों से भी छोटे बन गए. आज दीवाली है और आज भी आप को टीवी और वीडियोगेम से फुरसत नहीं. घर में आंख उठा कर भी नहीं देख सकते तो न सही, मगर जरा बाहर का नजारा तो देख लीजिए.’’

‘‘सुरभि, तुम मु?ो चैन से बैठने नहीं देतीं,’’ वे हंसते हुए बोले और फिर फ्लैट के बाहर ?ारोखे में कुरसी डाल कर बैठे रहे.

सुरभि भी उन की बगल में आ खड़ी हुई और बोली, ‘‘आप को महल्ले की सजावट अच्छी नहीं लग रही क्या? रंगीन बल्बों, ?ालरों और कंदीलों से सजा वातावरण कितना सुहाना लग रहा है.

थोड़ी देर बाद जब दीए और मोमबत्तियां जल उठेंगी तो अमावस की यह स्याह रात रोशनी से नहा उठेगी.’’

‘‘अच्छा तो लग रहा है सुरभि,’’ वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘मगर यह पटाखों

की आवाज…’’

‘‘अब त्योहारों के वक्त परंपराओं के अनुसार तो चलना ही पड़ता है,’’ वह बोली, ‘‘फिर बच्चों को तो इसी में ज्यादा आनंद आता है. आप ने ही तो बच्चों को पटाखे ला कर दिए हैं, तो उन्हें छुड़ाएंगे ही.’’

सुरभि दीए जलाने लगी थी. राजीव स्टीरियो में कैसेट लगा कर गाने सुनने लगे थे.

दीयों और मोमबत्तियों को सजानेजलाने का काम पूरा कर सुरभि ने सब को मिठाई बांटी और फिर खाना खिलाया. फिर इतमीनान से ?ारोखे के पास आ खड़ी हुई. बाहर का दृश्य कितना मनभावन था. जलते हुए दीए और मोमबत्तियों की शृंखला कितनी अच्छी लग रही थी.

सचमुच एक जलता हुआ दीपक सिर्फ स्वयं को नहीं, बल्कि औरों को भी आलोकित करता है, प्रकाश और ऊर्जा देता है. और जब एकसाथ इतने दीए जल रहे हों, तो कहने ही

क्या. तभी तो इस प्रकाशपर्व दीवाली की इतनी महत्ता है.

समय बीतने के साथ दीयों के बु?ाने का क्रम भी शुरू हो चुका था. इन बु?ाते दीयों में

तेल डालो, तो ही ये साथ दे पाते हैं. जीवन का भी तो यही क्रम है कि उस में सदैव स्नेह का ईंधन देना होता है अन्यथा उसे खत्म होते देर नहीं लगती. वह दीयों में तेल डालने लगी.

वातावरण में अभी भी पटाखों का शोर गूंज रहा था. सड़क पर लोगों के आनेजाने का क्रम थम सा गया था. अचानक उस ने रश्मि और मनोज को अपने घर की तरफ आते देखा, तो उसे आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई.

दीवाली के दिन तो आमतौर पर लोग अपने ही घर रहते हैं. फिर आज क्या बात है कि वे अपने घर से बाहर निकले हैं. चेहरा देख कर तो ऐसा कुछ नहीं लगता कि कोई गंभीर बात है. कोई बात नहीं, आज उस के घर कोई मेहमान तो आया. यही सब सोचते सुरभि उठी और उन के आने से पहले ही घर की देहरी पर आ खड़ी हुई. रश्मि के हाथ में मिठाई का डब्बा था. अंदर आने के साथ ही वह बोली, ‘‘आज हमारा आना आप लोगों को अजीब लग रहा होगा. मगर सच पूछो तो आज ही का दिन ऐसा है जब मु?ो आप के दर्शन करना ज्यादा जरूरी लगा. आप सचमुच लक्ष्मी समान हैं.’’

‘‘अब ज्यादा बातें मत बनाओ और बैठो,’’ सुरभि उन्हें ड्राइंगरूम में ले जा कर बैठाती हुई बोली, ‘‘चलो यह तो बताओ कि कैसी लग रही है मेरे घर की सजावट? इन्हें तो आंख उठा कर देखने की फुरसत ही नहीं मिलती.’’

‘‘जहां आप का हाथ लगेगा, वह दिव्य और मनभावन हो उठेगा भाभी,’’ मनोज जैसे कृतज्ञ भाव से बोल रहा था, ‘‘सचमुच हम आप के बहुत आभारी हैं.’’

‘‘अच्छाअच्छा, अब रहने भी दो. ज्यादा मस्काबाजी ठीक नहीं,’’ राजीव बोले, ‘‘और मिठाई पर हाथ साफ करो.’’

‘‘आप लोग सिर्फ मिठाई ही खाएंगे तो इन खीलबताशों का क्या होगा?’’ रश्मि बोली, तो सभी हंस पड़े. हंसती हुई रश्मि की ओर अब सुरभि ने गौर किया तो उस ने आज भारीभरकम कांजीवरम की साड़ी के साथ वही स्वर्णाभूषण टैंपल सैट पहना हुआ था, जिस से उस के चेहरे में निखार आ गया था.

‘‘आज के दिन को ताजा रखने के लिए ही तो मैं ने यह टैंपल सैट पहन रखा है भाभी,’’ रश्मि बोली, ‘‘आप को कुछ याद हो न हो, मगर हमें तो है.’’

दक्षिण भारत के मंदिरों के तर्ज पर बने उस स्वर्णाभूषण टैंपल सैट को वह अपलक निहारती रही. मंदिरों की आकृति में बने हार, ?ामके, बाजूबंद और अंगूठी की बनावट बेहद कलात्मक और सुंदर थी. गत वर्ष ही मनोज चैन्नई से उस टैंपल सैट को खरीद कर लाया था. मगर इसी के साथ एक दुखद हादसा भी जुड़ा था.

‘‘बीती बात को क्या याद करना,’’ सुरभि शांत स्वर में बोली, ‘‘यह टैंपल सैट तुम पर बहुत जंच रहा है. यही मेरे लिए बहुत है.’’उन लोगों के जाने के बाद सुरभि पुन:

बाहर ?ारोखे में आ खड़ी हुई और बु?ाते दीयों में फिर से तेल डालने लगी थी. उस की नजरों के सामने रश्मि का वह टैंपल सैट रहरह कर घूम जाता था. गत वर्ष दीवाली के कुछ ही दिन पूर्व की बात थी. उस दिन जब बहुत रात हो गई और

राजीव नहीं आए, तो उसे चिंता हुई. उन के कार्यालय में और परिचितों को फोन किया, मगर उन का कोई पता नहीं चला.

रात के 11 बज रहे थे और उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. उसी समय फोन खुद रश्मि ने किया था कि राजीवजी अभीअभी थोड़ी देर पहले उन के घर मनोज के साथ आए थे. उन्हें उन से कोई जरूरी सामान लेना था और अब अपने घर पहुंचने ही वाले होंगे.

रात 12 बजे के आसपास जब राजीव घर पहुंचे, तो उसे अजीब सा लगा. उन्होंने ड्रिंक

कर रखी थी. वह जानती थी कि कार्यालय के कार्यों के वजह से उन्हें कभीकभार देर हो जाती है. मगर आज की बात ही कुछ और थी. उन

के हाथ में एक पैकेट था, जिसे वे मजबूती से पकड़े थे. बच्चे सो गए थे… उसे काफी

उत्सुकता हो रही थी कि आखिर उस पैकेट में है क्या चीज?

राजीव ने उस पैकेट को काफी आहिस्ते से खोला. पैकेट में लाल मखमली कपड़े से ढका एक जेवर का डब्बा था. जैसे ही राजीव ने उसे खोला, उस की आंखें चौंधिया गईं. उस में वही टैंपल सैट था, जिस की मनोज द्वारा चेन्नई में खरीदे जाने की चर्चा कई बार कर चुका था.

‘‘यह आप के पास कैसे?’’ वह बोली, ‘‘शायद यह मनोजजी का है.’’

‘‘जरा आहिस्ता बोलो,’’ राजीव बोले, ‘‘वैसे तुम ने ठीक सोचा. मगर अब यह हमारा है, क्योंकि मैं ने इसे खरीद लिया है.’’

‘‘मगर उस ने बेचा क्यों?’’

‘‘क्योंकि उसे रुपयों की जरूरत थी. वह कंपनी के पैसे जुए में हार गया था और उसे कल ही अपने कुछ मजदूरों को बोनस के रूप में रुपए बांटने थे अन्यथा हंगामा हो जाता.’’

‘‘मगर आप के पास अचानक इतने रुपए कैसे आ गए, जो इसे खरीद लिया? मैं ने तो कभी आप से जेवर लाने को नहीं कहा,’’ वह नाराज हो कर बोली, ‘‘आप को नहीं पता कि मु?ो जेवरों का कोई शौक नहीं?’’

‘‘तुम्हें अच्छा नहीं लगा क्या?’’ राजीव बात बदलते हुए बोले, ‘‘जरा इस नई डिजाइन के टैंपल सैट को आंख भर कर तो देखो. ऐसा टैंपल सैट किसी के पास न होगा.’’

‘‘मैं पूछ रही हूं कि आज अचानक आप के पास इतने रुपए कहां से आ गए, जो इसे देखतेदेखते खरीद लिया?’’

‘‘मैं ने जुए में इतने रुपए जीते थे कि उन से ही इसे खरीद लिया.’’

‘‘क्या?’’ वह एकदम से जैसे आसमान से गिरी, ‘‘तो यह टैंपल सैट आप की कमाई का नहीं, बल्कि जुए का है,’’ सुरभि का उस सैट की तरफ देखने तक का मन नहीं हुआ. उसने तुरंत डब्बा बंद कर राजीव के हवाले कर दिया और फिर बिस्तर पर निढाल सी पड़ गई.

रात भर सो नहीं पाई. करवटें बदलती रही. मनोज की जगह यदि वह खुद हार जाते तो क्या होता? कहां से आते इतने ढेर सारे रुपए. बारबार कानों में युधिष्ठिर जैसे जुएबाजों की कहानियां गूंजती रहीं.

क्या आज तक किसी का जुए से भला हुआ है, जो हमारा होगा? क्या इस गलत कमाई को घर में रखना ठीक होगा? आखिर इस की जरूरत क्या है?

अंतत: दूसरे दिन सुरभि ने राजीव के समक्ष ये प्रश्न रख ही दिए, तो उन से जवाब

देते नहीं बना. सुरभि के लगातार के प्रश्नों से ऊब कर वे बोले, ‘‘दरअसल, कुछ दोस्त मिल गए थे. उन का साथ देने की खातिर बैठना पड़ा. मगर अब कान पकड़ता हूं कि उधर का रुख कभी नहीं करूंगा.’’

‘‘जब ऐसा ही है तो आप मेरा कहना मानेंगे?’’

‘‘अब से मैं तुम्हारा हर कहना मानूंगा.’’

‘‘तो आप यह टैंपल सैट मनोजजी को लौटा दो,’’ सुरभि दृढ़तापूर्वक एक सांस में कह गई, ‘‘आखिर इस में आप की कमाई का एक पैसा भी नहीं लगा है, इसलिए इसे लौटाने से आप को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

‘‘क्या तुम्हें भी तकलीफ न होगी?’’ वे आश्चर्य से भर कर सुरभि का मुंह देखते हुए बोले, ‘‘इस तरह आती हुई लक्ष्मी को कोई लौटाता है क्या?’’

‘‘मैं इस तरह की हराम की कमाई को लक्ष्मी नहीं मानती,’’ वह जोर से बोली, ‘‘लक्ष्मी वह है, जो व्यक्ति की मेहनत, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता से आती है. इसे रश्मि और मनोज को लौटा दो.’’

सुरभि की जिद के आगे अंतत: राजीव को ?ाकना पड़ा. वे स्वयं मनोज के घर गए और उन्हें दीवाली का उपहार कह कर लौटा आए. रश्मि

की आंखों में आभार के आंसू थे तो सुरभि स्वयं एक बहुत बड़े बो?ा से मुक्ति का एहसास कर रही थी.‘‘अब रात भर दीए ही जलाती रहोगी क्या?’’ राजीव पीछे से आ कर बोले तो उस की तंद्रा टूट गई.‘‘जब तक संभव हो, दीए तो जलाने ही चाहिए,’’ वह हंस कर बोली, ‘‘ताकि उजाला बना रहे.’’

Family Story Hindi : विरासत – क्या हुआ था शादी के बाद कामना के साथ

Family Story Hindi : आती है तो खोईखोई सी रहती है, भाईबहन के साथ की वह धींगामस्ती भी अब नजर नहीं आती. छोटे भाईबहन को कभीकभार आइसक्रीम खिलाने ले जाना, कोई पिक्चर दिखाना या शापिंग के लिए ले जाना, सब ‘रुटीन वे’ में होता है. आज तो उस ने हद ही कर दी. मैं उस की पसंद का मूंग की दाल का हलवा बनाने में व्यस्त थी तभी मैं ने सुना वह अपनी छोटी बहन भावना से कह रही थी, ‘‘भानु, अब की बार मैं जल्दी चली जाऊंगी. तेरे जीजाजी आने वाले हैं. कैंटीन का खाना उन को बिलकुल सूट नहीं करता. आज शाम को बाजार चलते हैं, मुझे मम्मीजी की साड़ी भी लेनी है.’’

यह मम्मीजी कौन हैं? आप को बताने की जरूरत नहीं है. वही हैं जो ससुराल जाने पर हर लड़की की अधिकारपूर्वक मम्मीजी बन जाती हैं, चाहे वह उसे असली मम्मी की तरह मानें या न मानें.

मैं गलत नहीं कह रही हूं. पिछले 10 दिनोें से मुझे वायरल फीवर भी था. थोड़ी कमजोरी भी महसूस कर रही थी, पर उस कालिज से, जहां मैं पढ़ा रही थी, मैं ने छुट््टी ले ली थी. मुझे बस एक ही धुन थी कि बेटी को वह सब चीजें खिला दूं जो उसे पसंद थीं और वह थी कि अपनी बहन से जाने की जल्दी बता रही थी. जैसे मैं अब उस के लिए कुछ नहीं थी.

तभी मैं ने यह भी सुना, ‘‘भानु, इस सितार पर तो धूल जम गई है, तू क्या इसे कभी नहीं बजाती? मैं तो पहले ही जानती थी कि तू साइंस की स्टूडेंट है, भला तुझे कहां समय मिलेगा सितार बजाने का? मां से कह कर मैं इस बार यह सितार लेती जाऊंगी. मैं वहां क्लास ज्वाइन कर के सितार बजाना सीख लूंगी, वैसे भी अकेले बोर होती हूं.’’

हलवा बन चुका था पर कड़ाही कपड़े से पकड़ कर उतारना भूल गई तो उंगलियां जल गईं. अब किसी को बुला कर सितार पैक कराना होगा, जिस से लंबे सफर में कुछ टूटेफूटे नहीं. बेटी है न, उस के जाने के खयाल से ही मेरी आंखें भर आई थीं. मैं ने जल्दी से आंखें आंचल से पोंछ लीं. लगता है, मेरी बेटी अपनी सारी चीजें जिन से मेरी यादें जुड़ी हुई हैं, मुझ से दूर कर ही देगी.

पिछली बार जब वह आई थी, मैं उस के रूखे, घने, लंबे केशों में तेल लगा रही थी कि अचानक ही मैं ने सुना, ‘मां, मैं वह मसूरी वाली ‘पोट्रेट’ ले जाऊं जो आप ने ‘एम्ब्रायडरी कंपीटीशन’ के लिए बनाई थी. वही वाली जो आप ने प्रथम पुरस्कार पाने के बाद मुझे मेरे जन्मदिन पर प्रेजेंट कर दी थी. मम्मीजी उसे देख कर बहुत खुश होंगी. आप ने कितनी सुंदर कढ़ाई की है. पहाड़ लगता है बर्फ से भरे हैं.’’

मैं हां कहने में थोड़ी हिचकिचाई. कितने पापड़ बेलने पड़े थे उस तसवीर को काढ़ने में. कितने प्रकार की स्टिचेज सीखनी पड़ी थीं उसे पूरा करने में, और वह मुझ से ले कर उसे अपनी उन मम्मीजी को दे देगी. पर कोई बात नहीं, मैं तो उसे खुश देखने के लिए अपनी कोई भी प्रिय वस्तु देने को तैयार थी, यह तो फ्रेम में जड़ी केवल एक तसवीर ही थी.

अनुराग उसे लेने सुबह ही आ गया था. शाम को जब मैं दोनों को चाय के लिए बुलाने गई तो देखा दोनों दीवार से तसवीर उतार कर यत्नपूर्वक ब्राउन पेपर  के ऊपर अखबार लपेट रहे थे.

मैं ने दीवार की तरफ देखा, कितनी सूनी, बदरंग सी लग रही थी. ठीक उसी तरह जैसे कामना के चले जाने के बाद उस का कमरा लगता था. मैं बिना कुछ बोले तेज कदमों से वापस लौट आई. कब सुबह हुई, जल्दीजल्दी नाश्ता हुआ फिर साथ ले जाने का खाना पैक हुआ और कामना विदा हो गई, पता ही न चला. भावना सिसक रही थी, ‘‘दीदी, जल्दी आना.’’ मैं चुपचाप उसे देखती रही जब तक कि वह आंखों से ओझल न हो गई.

हर बार की तरह तीसरेचौथे महीने कामना नहीं आई. मैं सोचसोच कर परेशान थी कि क्या कारण हो सकता है उस के न आने का. तभी उस की मम्मीजी का एक छोटा सा पत्र मुझे मिला.

‘अत्यंत प्रसन्नता से आप को सूचित कर रही हूं कि हम दोनों की पदोन्नति हो गई है, यानी कि आप नानी और मैं दादी बनने वाली हूं. कामना को एकदम डाक्टर ने बेड रेस्ट बताया है, इसलिए कुछ महीने बाद ही जा सकेगी वह. हां, गोदभराई के लिए आप को हमारे यहां आना होगा क्योंकि हमारे घर की परंपरा है कि पहला बच्चा ससुराल में ही होता है. अत: डिलीवरी भी यहीं होगी. आप बिलकुल निश्ंिचत रहिएगा क्योंकि मैं भी तो कामना की मम्मी हूं.’

पत्र पढ़ कर कामना के न आने का दुख तो मैं भूल ही गई और खुशी से भावना को जोर से आवाज दी. खबर सुन कर वह भी नाच उठी. घर में कितनी ही देर तक हर्षोल्लास का वातावरण बना रहा. कामना के पापा जहां पोस्टेड थे वहां से घर वह छुट््टियों में ही आते थे. इस बार हमसब एकसाथ गए रस्म अदा करने. बेटी को देख कर उतनी ही खुशी हुई जितनी अपने हाथों से लगाए वृक्ष को फूलतेफलते देख कर होती है.

रस्म अदा करने के बाद कामना मेरा हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, चलो, तुम्हें कुछ दिखाते हैं.’’

एक कमरे के पास आ कर वह रुक गई और बोली, ‘‘देखो मां, यह बच्चे की नर्सरी है.’’ अंदर जा कर मैं चकित रह गई. दीवार पर हलके रंग का प्लास्टिक पेंट, फूलपत्तियां बनी हुईं, छोटेछोटे बच्चे ऐंजेल बने हुए थे. एक तरफ ‘क्रिब’ में बिछी हुई गुलाबी प्रिंटेड और गुलाबी उढ़ाने की चादर भी. दूसरे कोने में तरहतरह के खिलौने, नर्सरी राइम्स की किताबें करीने से सजी हुईं.

‘‘मां, तुम मेरी वह छोटी कुरसीमेज भेज देना जिस पर मैं बचपन में पढ़ती थी.’’

मैं ने प्यार से उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाई, ‘‘हां, मैं जाते ही शिबू से तुम्हारी मेजकुरसी पहुंचवा दूंगी.’’

कहना नहीं होगा, शिबू ही उस की देखभाल करता था जब मैं कालिज पढ़ाने चली जाती थी. घर पहुंचते ही कामना का कमरा खोला, दीवार पर उस के बचपन की कितनी ही तसवीरें लगी हुई थीं. एक कोने में उस की छोटी कुरसीमेज, मेज पर उस का एक छोटा सा बाक्स भी रखा हुआ था. बाक्स नीचे रखा और कुरसीमेज पेंट करा के उसे कामना की ससुराल पहुंचाने की बात मैं ने शिबू को बताई.

वह दिन भी आया कि कामना अपने छोटे से बेटे को साथ लिए आई. साथ में उस का पति अनुराग भी था. मैं तो कब से तीनों की राह देखती दरवाजे पर खड़ी थी. आगे बढ़ कर मैं ने बच्चे को गोद में ले लिया और चूम लिया.‘‘मां, तुम मुझे प्यार करना भूल गईं.’’

‘‘अब तुम बड़ी जो हो गई हो,’’ मैं ने हंस कर कहा.

हंसीखुशी के बीच महीना कैसे बीत गया, पता ही न चला. कामना अकसर बच्चे को अपने कमरे में ले जाती, खिलाती, सुलाती.

कल ही उस की ट्रेन थी. मैं बरामदे की आरामकुरसी पर लेटी ही थी कि कामना आ पहुंची.

‘‘मां, बहुत थक गई हो न. लाओ न पैर दबा दूं थोड़ा,’’ और हाथ में ली हुई फाइल उस ने पास की कुरसी पर रख दी, पर मैं ने अपने पैर समेट लिए थे.

‘‘अरे, मैं तो ऐसे ही लेट गई थी’’ तभी बेटे के रोने की आवाज सुन कर वह चल दी. उत्सुकतावश मैं ने फाइल उठा ली. देखने में पुरानी किंतु नए रंगीन ग्लेज  पेपर, रिबन से बंधी हुई. मैं सीधे बैठ गई. अंदर लिखाई जानीपहचानी सी लग रही थी. फाइल में कितनी ही कटिंग थीं, समाचारपत्रों की, कालिज की पत्रिकाओं की. मेरी लिखी हुई टिप्पणियां भी थीं.

हां, वह पहली कटिंग भी थी जब कामना 8वीं में पढ़ती थी. मुझे याद आ गया, कामना 100 मीटर की रेस में भाग लेने वाली थी, कितनी ही बार वह खेलों में भाग ले कर पुरस्कार भी पा चुकी थी. पर उस दिन उस के पैर में भयानक दर्द था. कुछ मलहम मला, सिंकाई की, दवाई खिलाई, पैर में कस कर पट््टी बांध दी, पर उस के पैर के ‘क्रैंप’ न गए. उधर उस की जिद थी कि वह रेस में भाग जरूर लेगी. मुझे भी अपने कालिज पहुंचना जरूरी था. मैं ने शिबू द्वारा थर्मस में गरम दूध में कौफी डाल कर और एक नोट लिख कर भेजा, ‘बेटी कामना, रेस में हार कर दुखी मत होना. जीवन में ऐसी बहुत सी रेस आएंगी और तुम जरूर ही जीतोगी. तुम मेरी रानी बेटी हो न, हारने पर मन छोटा मत करना.’

मैं जब कालिज का काम खत्म कर कामना के स्कूल के सालाना स्पोर्ट्स देखने पहुंची तो कामना अपनी कक्षा की लड़कियों के साथ पिरामिड बनाने में लगी थी. सब से ऊपर वही थी. तालियों से मैदान गूंज उठा.

मुझे सुकून हुआ कि मेरी बेटी हार कर भी निराश नहीं थी. खेल खत्म होने पर जब वह मेरे पास आई तो उस की आंसू भरी आंखों को मैं ने चूम लिया था, इस की कटिंग भी थी.

ऐसी ही कितनी कटिंग काट कर उस ने संजो कर करीने से लगाई थीं. अकसर हम दोनों ही व्यस्त हो जाते थे, दूर हो जाते. मैं कभी परीक्षा लेने दूसरे शहर चली जाती तो मेरी अनुपस्थिति में उसे ही घर सुचारु रूप से चलाना है, मैं उसे लिख कर भेजती. लौट कर देखती कि वह थोड़े ही दिनों में और भी बड़ी हो गई है. किसी को मेरी याद तक न आती थी. कामना, जो घर में थी उन्हें संभालने के लिए.

मैं तल्लीन हो कर पेज पलटने में लगी थी तभी कामना आ पहुंची. एक शरारत भरी हंसी उस के अधरों पर फैल गई, ‘‘मां, अपनी फाइल ले जाऊं मैं,’’ मैं ने उठ कर कामना को सीने से लगा लिया. कौन कहता है कि बेटियां अपने उस घर के लिए बटोरती ही रहती हैं? सच तो यह है कि ये बेटियां ही तो मांबाप की सिखाई हुई अच्छीअच्छी बातों की विरासत से अपने उस दूसरे घर को भी प्रकाशमान करती हैं. मेरी इस बेटी ने इस विरासत को अपना कर मेरा सिर कितना ऊंचा कर दिया था.

Hindi Short Story : एक दिन के दोस्त – क्या बरकरार रह पाई पति पत्नी की दोस्ती

Hindi Short Story : “बच्चे नहीं दिख रहे इला? कहां गए हैं?”

“दोस्तों के साथ डिनर पर गए हैं.”

“तुम उदास सी लग रही हो. क्या बात है?”

“कुछ नहीं, सुवीर. यहां तो मेरे कोई दोस्त ही नहीं बचे. या तो सब बाहर बस गए हैं या सब दूरदूर ही हैं. फोन पर भी कोई कितना बात करे,” मैं ने एक ठंडी सी सांस लेते हुए कहा.

सुवीर ने जैसे पति धर्म निभाते हुए मुझे तसल्ली दी, “अरे, ऐसा क्यों कहती हो? चलो, बताओ, कहां जाना है?”

“तुम तो पति हो, मेरे दोस्त थोड़े ही हो.”

“अरे डार्लिंग, ऐसा क्यों सोच रही हो? पतिपत्नी भी अच्छे दोस्त हो सकते हैं.”

“नहीं, मुझे नहीं लगता.”

“अच्छा, बताओ तो ज़रा. पतिपत्नी एकदूसरे के दोस्त क्यों नहीं हो सकते? इतनी अच्छी तरह से एकदूसरे को जानने वाले, रोज साथ में रहने वाले दो लोग दोस्त क्यों नहीं हो सकते?”

“दोस्तों से तो हम अपने मन की बातें आराम से कर सकते हैं.”

“अरे, तो क्या तुम अपने मन की बातें मुझ से नहीं करतीं?”

मैं चुप रही. यह शनिवार की शाम की बात है. सुवीर शायद आज कुछ ज़्यादा ही फ्री थे, पर इतनी बात क्यों कर रहे हैं मुझ से? मैं ने इधरउधर नजर डाली, उन के हाथ देखे, समझ आया, फोन चार्जिंग में लगा कर आए हैं, अब टाइम पास कर रहे हैं. कितने चालाक हैं. फोन हाथ में होता है तो किसी और  बात में ज़नाब का मन नहीं लगता. हर समय सोशल मीडिया पर रहने वाले इनसान हैं.

सुवीर अचानक मेरे पास आ कर बैठ गए और मेरी गोद में सिर रख कर लेट गए. बच्चों के घर में न होने का फायदा उठाने के मूड में आए ही थे कि मैं ने फिर पूछ लिया, शायद मेरी मति मारी गई थी, “सचमुच तुम्हें लगता है कि पतिपत्नी अच्छे दोस्त हो सकते हैं? कल संडे है, हम कल एकदूसरे के साथ पूरा दिन ऐसे रह कर देखें जैसे अपने दोस्तों के साथ रहते हैं? एक दिन के दोस्त बन कर देखें?”

“हां, मेरी जान. हम अच्छे दोस्त हैं ही, बन कर क्या देखना. फिर भी तुम कहती हो तो कल सिर्फ दोस्त बन कर रहेंगे, एक गेम खेल ही लेते हैं, मजा आएगा, फिलहाल तो पति बनने का मन कर रहा है,” शरारत से हंसते हुए वह मेरा हाथ पकड़ कर बेडरूम में ले गए. मैं तो यों ही छोटीछोटी बातों में एक्ससाइटेड हो ही जाती हूं, बस अब आने वाले कल की कल्पना में डूबी जोश से भर उठी.

बच्चे विवान और आर्या रात को आए तो मैं ने उन्हें बड़े उत्साह से अपना संडे का प्रोग्राम बताते हुए कहा, “कल बहुत मजा आएगा. हम दोनों कल दोस्तों की तरह रहने वाले हैं, जो मन होगा, वो बात करेंगे.”

विवान और आर्या ने एकदूसरे पर जैसे नजर डाली, मैं भड़क गई, “मजाक उड़ाने वाली क्या बात है?”

”पर मौम, हम ने तो कुछ भी नहीं कहा,” विवान ने अपनी हंसी रोकते हुए कहा.

“हां, जैसे मैं जानती नहीं दोनों को. हुंह,” कहते हुए मैं सोने की तैयारी करने लगी, तो आर्या की शरारत भरी आवाज आई, “आल द बेस्ट, मौम एंड डैड.”

विवान ने धीरे से आर्या से कहा, “बहन, क्या तुम कल के एंटरटेनमेंट के लिए तैयार हो? मौमडैड कल बहुत ड्रामा करने वाले हैं न? कोई बहाना कर के हम सुबह ही निकल लें दोस्तों के साथ?”

“नहीं भाई, ड्रामा होगा तो देखने वाले भी होने चाहिए न?”

मुझे उन की बातें साफसाफ सुनाई दे रही थीं, हद से ज्यादा उस्ताद बच्चे हैं, वे भी जान रहे थे कि मुझे सुनाई दे रहा होगा.

सुबह फ्रेश होने के बाद सुवीर ने कहा, “डार्लिंग, एक कप बढ़िया सी चाय तो पिला दो.”

मैं ने कहा, “हां, बना रही हूं, याद है न. आज हम दोस्त हैं. बीवी समझ कर ज्यादा फरमाइश न करना.”

सुवीर हंस पड़े, पूछा, “नाश्ते में क्या बनाओगी?”

“सैंडविच.”

“ठीक है.”

हम दोनों ने चाय हलकेफुलके मूड में ही पी, छुट्टी वाले दिन बच्चे थोड़ा लेट ही उठते हैं. वे दोनों सीधा लंच ही करते हैं, जब तक मेड आ कर काम निबटा कर गई, मैं रोज के कामों से थोड़ा फ्री हो कर सुस्ताने लगी, सुवीर आ कर पास ही बैठ गए, उन के हाथ में फोन था, वे मुसकरा रहे थे. मैं ने पूछ लिया, “क्यों हंस रहे हो?”

“अपने कलीग अजय की बात पर.”

“मुझे भी सुनाओ.”

“नहीं, रहने दो.”

सुवीर जिस तरह से फोन में आंखें गड़ाए मुसकरा रहे थे, मुझे उन की यह हंसी हजम नहीं हुई, इतनी आसानी से तो नहीं हंसते हैं. क्या बात है.

“बताओ न, सुवीर. आज तो हम दोस्त हैं न. दोस्तों से क्या परदा.”

“पक्का? आज दोस्त बन कर ही सुनोगी न? नाराज तो नहीं  होगी?”

“नहीं बाबा, बताओ न.”

“अरे, ये अजय है न, बहुत शैतान है, औफिस में जो नई प्रोडक्ट मैनेजर रोमा आई है न, कुछ ज्यादा ही स्टाइलिश है. उसी पर हंस रहा है.”

मेरे अंदर की पत्नी ऐसे जागी कि पूछिए मत… फिर याद आया कि आज दोस्त हैं, मैं ने नकली हंसी से पूछा, “वाह, बढ़िया है, खूब मन लग रहा होगा आजकल औफिस में.”

सुवीर फंस गए मेरी ऐक्टिंग में. बेचारे मर्द. चहक कर बोले, “हां यार, अच्छा टाइम पास होता है आजकल. और ये रोमा मुझे कुछ फ्लर्ट भी लग रही है. लड़कियों के पास कम, हमीं लोगों के आसपास ज्यादा मंडराती रहती है. ऐसेऐसे कपड़े पहन कर आती है कि हमारी ही आंखें झुक जाएं.”

मेरा मन हुआ, अभी रोमा को ढूंढ़ निकालूं और उस के बाल नोच लूं. औफिस में काम करने आती है या इन शादीशुदा मूर्ख मर्दों के साथ फ्लर्ट करने.

वैसे तो हर नारी में एक अभिनेत्री होती है, पर मुझे अभी ही पता चला कि मैं कितनी अच्छी ऐक्टिंग कर सकती हूं, बहुत ही प्यारी स्माइल के साथ कहा, “अच्छा? तुम्हें वो कैसी लगती है?”

सुवीर चहक उठे, “ये तो अच्छा है कि आज दोस्त बन कर पूछ रही हो, नहीं तो इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल था, पति बन कर तो मैं जवाब देता ही न. यार, बहुत हौट है वह.”

मेरा मन किया, सुवीर को बेड से नीचे गिरा दूं, पर चुप रह गई. वे बीचबीच में फोन देख रहे थे, मैं ने पूछा, “किस से चैट कर रहे हो? अब भी अजय से ?”

“हां यार, कह रहा है कि आज छुट्टी है, रोमा को नहीं देख पाए,” कह कर सुवीर जोर से हंसे. मैं ने अपनेआप को कोसा कि काश, मैं अभी ये दोस्तदोस्त न खेल रही होती तो अच्छे से बताती, इन्हें भी और अजय की वाइफ को भी.

मैं उठ कर जाने लगी, तो सुवीर बोले, “अरे, कहां चली?”

“नाश्ता बनाने.”

नहीं बनाए मैं ने सुवीर की पसंद के सैंडविच. नहीं की उन के लिए मेहनत. जाएं और बनवाएं उस हौट रोमा से. दूध में मयूसली डाली, सुवीर को मयूसली पसंद नहीं है न, इसलिए आज इस समय वही खिलाने का मन कर आया.

दूध का बाउल देख कर सुवीर का मुंह उतर गया, “अरे, तुम तो सैंडविच बनाने वाली थी न.”

“हां यार, मूड नहीं रहा. शार्टकट का मूड हो गया.”

उतरे मुंह से सुवीर ने नाश्ता खत्म किया. मैं भी रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गई, पर दिल ही दिल में रोमा को गालियां  दे रही थी. रोमा की बच्ची. शर्म नहीं आती तुम्हें. देखो, इन पतियों को. छुट्टी वाले दिन भी तुम याद आ रही हो. और यह अजय… कितना सीधा लगता है. मिलने पर अपनी पत्नी के आगेपीछे घूमता रहता है. हाय, कैसे होते हैं ये लोग. जब इस समय उस की पत्नी घर के काम कर रही होगी, वह नालायक सुवीर से रोमा पर जोक मार रहा है.

“और सुवीर, हौट कहा है रोमा को इस ने. नहीं बनाऊंगी लंच में भी कुछ. अच्छा, आराम से नेटफ्लिक्स पर ‘फेमगेम’ देखूंगी.

इतने में सुवीर मेरा हाथ पकड़ कर वापस बैडरूम में ले गए और बोले, “काम बाद में करती रहना. आज छुट्टी है. बच्चे  भी सो रहे हैं. आओ न, बैठो मेरे पास.”

मैं ने पूछा, “तुम्हारा फोन कहां है? हो गई गप्पें?”

वे हंस दिए, कहा, “आज हलकाहलका लग रहा है न. थोड़ा चेंज लग रहा है न दोस्त बन कर? नहीं तो तुम सुबह ही चिढ़ना शुरू हो जाती थी.”

“मैं चिढ़ना शुरू करती थी?”

“छोड़ो न. तुम्हें बताना भूल गया कि अगले हफ्ते मीना यहां लखनऊ हमारे घर  आने वाली है.”

मुझे जैसे करंट लगा, “क्यों…?”

“अरे, उस का भाई हूं, मेरी बहन जब चाहे यहां आ सकती है.”

“फैमिली के साथ?”

“हां, जतिन को कुछ काम है, बच्चों को अपने सासससुर के पास छोड़ कर आ रही है.”

“अच्छा, जतिन भी आ रहा है?”

“हां.”

“बढ़िया, ”मैं ने खुश होते हुए कहा, “तुम्हें पता है कि मैं आजकल फेमगेम देख रही हूं न, जतिन बिलकुल मानव कौल लगता है. मानव कौल मुझे बहुत ही अच्छा  लग रहा है. जब भी स्क्रीन पर मानव कौल आता है, मुझे जतिन का ध्यान आता है, हाय, इस शो में  तो मानव कौल ने मेरा दिल जीत लिया. वैसे, क्या जतिन अब भी फिटनेस पर उतना ध्यान देता है? अब भी उस के सिक्स पैक एब्स हैं?”

एक चिढ़ी सी आवाज आई, “मुझे क्या पता? मैं ने कभी उस की फिटनेस पर इतना ध्यान नहीं  दिया.”

मैं ने कहा, “वैसे, एक बात सचसच बताऊं, मुझे तुम्हारी बहन इतनी नहीं पसंद जितना उस का हस्बैंड पसंद है.”

सुवीर को भी जैसे याद आया कि आज हम दोस्त बने हैं तो पति जैसा कोई ताना मारना ठीक नहीं होगा, ऐक्टिंग भी नहीं कर पा रहे थे. सो इतना ही बोले, “थोड़ी देर सोने का मन कर रहा है.”

मैं ने कहा, “तुम्हारी अम्मा तो नहीं आने वाली?”

“तुम्हारी कुछ नहीं लगती.”

“आज तो ऐसे बोल सकती हूं न? तुम ने कहा था न कि अपने मन की बात आज दोनों ही कर सकते हैं.”

“तो अपने मन में तुम उन्हें अपनी अम्मा नहीं समझतीं?”

“सास हैं, सास ही समझती हूं.”

इस बार सुवीर ने फ्लौप ऐक्टिंग करते हुए मुसकराने की कोशिश की. बच्चे उठ गए. फ्रेश हो कर पास बैठते हुए वे बोले, “अरे हां, तो फिर आज आप दोनों दोस्त बन कर बातें कर रहे हो ?”

हम ने हां में सिर हिलाया, तो शैतानों ने हमें ध्यान से देखते हुए कहा, “दोस्त बन कर ज्यादा मजा नहीं आ रहा क्या?”

उन के पूछने के ढंग पर हम दोनों हंस पड़े. मैं ने कहा, “तुम्हारी बूआफूफा आ रहे हैं अगले हफ्ते ?”

आर्या बोली, “मौम, आप तो बहुत खुश लग रही हैं उन के आने से.”

फिर एक जली हुई आवाज आई, “जतिन भी आ रहा है न. मुझे भी आज ही पता चला कि मीना से ज्यादा जतिन को देख कर तुम्हारी मां खुश होती है.”

मैं ने सुवीर को घूरा तो बोले, “ऐसे क्या देख रही हो? तुम ने ही तो बताया है न कि जतिन तुम्हें अच्छा लगता है.”

“कम से कम मैं किसी दोस्त से उस के कपड़े और उस की हौटनेस तो डिसकस नहीं कर रही न?”

तीर निशाने पर लगा, सुवीर चुप हो गए, पर बच्चे कुछ समझे नहीं. विवान ने पूछा, “क्या हुआ डैड?”

“कुछ नहीं, बच्चो. मैं लंच की तैयारी करती हूं,” कह कर मैं किचन में चली गई. लंच कर के बच्चे अपने रूम में थोड़ी देर टीवी चला कर बैठ गए, सुवीर और मैं भी थोड़ी देर आराम करने लगे. शायद हम दोनों ही मन ही मन कुछ उलझे से थे, पर फिर भी मैं ने ही बात छेड़ी, “रोमा मैरिड है?”

“उस ने शादी नहीं की।”

“क्यों?”

“पता नहीं, कभी पूछा नहीं.”

सुवीर ने मेरी तरफ करवट ली और बोले, “शाम को क्या बनाओगी?”

“कोफ्ते सोचा है.”

“डिनर पर बाहर चलना है?”

“कोफ्ते नहीं खाने?”

“ना.”

“क्यों?”

“पसंद नहीं.”

“अरे, हमेशा तो बच्चों के साथ मिल कर तारीफ करते हो.”

“बच्चे तुम्हारे बनाए कोफ्ते शौक से खाते हैं, इसीलिए झूठ बोल देता हूं. आज दोस्त बन कर बोल रहा हूं, पति बन कर ऐसे सच बोलना मुश्किल होता है. मुझ से कोफ्ते खाए नहीं जाते, कोफ्ते प्लेट में अलग घूम रहे होते हैं, ग्रेवी अलग. बेसन कच्चाकच्चा सा लगता है. आज बाहर चल कर कुछ चाटपकोड़ी खा कर आते हैं.”

मन हुआ कि फ्रिज में रखी लौकी ही इन के सिर पर दे मारूं. सारी दुनिया मेरे बनाए कोफ्तों की फैन है, ये जनाब आज दोस्त बन कर बहुत बोल रहे हैं, ये पति ही ठीक हैं, दोस्त बनाने लायक ही नहीं. मैं ने कहा, “ठीक है, बाहर चलते हैं, जतिन और मीना आएंगे तो कोफ्ते बना लूंगी, जतिन तो पिछली बार दूसरे टाइम भी वही कोफ्ते से खाना खा रहा था.”

“मैं जानता हूं इन मर्दों को. ये ऐसे ही दूसरी औरतों को इम्प्रेस करते हैं, आने दो इस बार. अच्छे से देखता हूं इसे.”

इस बार सुवीर का स्वर तेज हुआ, तो किचन में पानी पीने आई आर्या हमारे रूम में आती हुई बोली, “क्या हुआ, डैड?”

हम दोनों के चेहरे गुस्से से लाल से हो रहे थे, वह भागी गई और विवान  को बुला लाई. दोनों हमारे बीच में बैठ कर ध्यान से हमें देखने लगे, फिर विवान ने कहा, “मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि आप दोस्त बन कर आज उतने खुश नहीं हो जितने हमेशा रहते हो. कुछ ज्यादा बातें शेयर कर लीं क्या?”

आर्या और विवान के चेहरों पर गजब की मस्ती दिखी, हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे, फिर मैं ही बोल पड़ी, “अच्छा हुआ कि आज दोस्त बनने का नाटक किया. तुम्हारे पापा को तो मेरे बनाए कोफ्ते ही नहीं पसंद. आज बता रहे हैं. मैं ही पागल हूं, जो इन की हर बात पर विश्वास कर लेती हूं और वो रोमा की बच्ची… उस के बारे में भी आज बता रहे हैं.”

आर्या ने सुवीर को घूरा, वे अपना सिर पकड़ कर बैठते हुए बोले, “अरे यार, औफिस में नई आई है, बस इतना बताया. मुझे उस से क्या मतलब? और दोनों  मुझे क्या घूर रहे हो? अपनी मां से पूछो कि जतिन के सिक्स पैक एब्स में इन्हें कितना इंटरेस्ट है.”

मैं ने सुवीर को घूरा, उन्होंने मुझे. दोनों बच्चे अचानक हंसतेहंसते हमारे ऊपर ही गिरने लगे. हम दोनों झेंप गए. अपने पापा की लाड़ली आर्या ने कहा, “बस इस से ज्यादा ड्रामा हम नहीं झेल पाएंगे. पतिपत्नी हो, वही रहो.”

विवान ने सुवीर को हमदर्दी दिखाने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, “आप दोस्त बन कर अपना जो नुकसान कर चुके हैं, उसे संभालने में मैं आप के साथ हूं.”

हम दोनों को ही बच्चों की बातों पर हंसी आ गई. मैं ने कहा, “सुवीर, रहने दो. हम पतिपत्नी ही ठीक हैं, खुश हैं. बस तुम मुझे जरा रोमा के अपडेट्स ईमानदारी से देते रहना.”

“तुम भी इस बार जतिन के लिए कोफ्ते मत बनाना.”

यह सुन कर मैं खुल कर हंसी, “हां, नहीं बनाऊंगी. कहते हुए मैं ने गुनगुनाया, ‘जो तुम को हो पसंद वही बात करेंगे, दोस्त नहीं बनना, पतिपत्नी ही रहेंगे’.”

Monsoon Food : बारिश के दिनों में बनाएं ये स्नैक्स, ये रही रैसिपीज

Monsoon Food : दिन चाहे छोटे हों या बड़े शाम की चाय के साथ कुछ हल्के फुल्के नाश्ते की दरकरार होती ही है. मानसून के इन दिनों में बाहर का नाश्ता न तो हाइजीनिक होता है, न ही पौष्टिक और न ही जेब के अनुकूल इसलिए जहां तक सम्भव हो इन दिनों में घर पर ही नाश्ता बनाने का प्रयास करना चाहिए आज हम आपको ऐसे ही कुछ स्नैक्स बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से घर पर बनाकर परिवार के सदस्यों को खिला सकते हैं, तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-पेरी पेरी कॉर्न रोल

कितने लोगों के लिए           6

बनने में लगने वाला समय      30 मिनट

मील टाईप                   वेज

सामग्री(रोल के लिए)

गेहूं का आटा                 1 कप

सूजी                        1/4 कप

नमक                       स्वादानुसार

अजवाइन                    1/4 टीस्पून

तेल                         4 टेबल स्पून

सामग्री(भरावन के लिए)

उबले कॉर्न                      1 कप

बारीक कटा प्याज            1

बारीक कटी हरी मिर्च          4

अदरक, लहसुन पेस्ट           1/4 टीस्पून

हींग                                 चुटकी भर

जीरा                               1/4 टीस्पून

उबला आलू                       1

नमक                               1/4 टीस्पून

चाट मसाला                        1/4 टीस्पून

पेरी पेरी मसाला                1 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया           1 टीस्पून

तेल                                     1 टीस्पून

विधि

गेहूं के आटे में नमक, अजवाइन और सूजी मिलाकर गुनगुने पानी से गूंथकर आधे घंटे के लिए ढककर रख दें.

कॉर्न को मिक्सी में बिना पानी के दरदरा पीस लें. गर्म तेल में हींग और जीरा तड़काकर  प्याज को सुनहरा होने तक भूनकर अदरक, लहसुन भून लें. अब इसमें पिसे कॉर्न और उबले आलू को मैश करके डालें. समस्त मसाले डालकर अच्छी तरह चलायें. 5 मिनट धीमी आंच पर भूनकर गैस बंद कर दें. हरा धनिया डालकर ठंडा होने दें. ठंडा होने पर इसे 6 भागों में

बांटकर लम्बा रोल कर लें. तैयार रोल को रोटी के ऊपरी किनारे पर रखकर अच्छी तरह भरावन को अंदर की तरफ दबाते हुए रोल करें. इसी प्रकार सारे रोल तैयार कर लें. एक भगौने में पानी डालकर गर्म होने रखें. भगौने के ऊपर चलनी रखकर सभी रोल रख दें और 10 मिनट तक धीमी आंच पर ढककर पकाएं. ठंडा होने पर इन्हें गर्म तेल में सुनहरा तलकर 1-1 इंच के टुकड़ों में काटकर टोमेटो सौस के साथ सर्व करें.

-शेजवान चीज़ बॉल्स

कितने लोगों के लिए                       6

बनने में लगने वाला समय                   30 मिनट

मील टाईप                                वेज

सामग्री (बॉल्स के लिए)

रेडीमेड इंस्टेंट इडली मिक्स पाउडर 2 कटोरी

बेसन                                  1 टेबल स्पून

शेजवान चटनी                    1/2 टीस्पून

तलने के लिए तेल

सामग्री(भरावन के लिए)

उबले आलू                              250 ग्राम

चीज क्यूब्स                             4

बारीक कटी हरी मिर्च                4

जीरा                                  1/4  टी स्पून

बारीक कटा प्याज                        1

अदरक, लहसुन पेस्ट             1/2 टीस्पून

गरम मसाला                       1/4 टी स्पून

अमचूर पाउडर                     1/2  टी स्पून

शेजवान चटनी                    1 टीस्पून

नमक                                 स्वादानुसार

बारीक कटा हरा धनिया        1 टेबल स्पून

तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल

विधि-

गरम तेल में कटा प्याज, अदरक लहसुन पेस्ट, हरी मिर्च और जीरा डालकर भूनें। आलू को मेश करके उसमें समस्त मसाले व शेजवान चटनी डालें और तेज आंच पर 3-4 मिनट भूनकर उतार लें। आधा हरा धनिया मिलाएं. चीज  को किसकर 6 भाग में बांट लें. तैयार आलू के मिश्रण की भी 6 बॉल्स बना लें. आलू की एक बाल को हथेली पर रखकर फैलाएं और बीच में चीज रखकर चारों तरफ से पैक कर दें. इसी प्रकार सारे बाल्स तैयार कर लें. एक बाउल में इडली मिक्स, बेसन, शेजवान चटनी को अच्छी तरह मिक्स करके गाढा घोल बनाएं. इसमें तैयार आलू चीज की बाल को डुबोएं और गरम तेल में सुनहरा होने तकतलकर  बटर पेपर पर निकालकर हरी चटनी या सॉस के साथ सर्व करें.

राइटर – प्रतिभा अग्निहोत्री

Creative Bouquet Ideas : सिर्फ फूल नहीं फलों से भी सजाएं बुके, जानें यूनिक आइडिया

Creative Bouquet Ideas : हम सभी को बुके देना और लेना पसंद है, लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि जिन फूलों पर आप ने ₹500-1000 खर्च किए, वे 2-3 दिनों में ही मुरझा जाते हैं और अंत में डस्टबिन में जाते हैं? इसलिए हम में से अधिकतर लोगों को फूलों के बुके भेंट करना पैसों की बरबादी लगता है. लेकिन क्या करें किसी को स्पेशल फील कराने के लिए बुके आप की मदद भी तो करते हैं.

अब समय है बुके को एक नया मोड़ देने का, तो क्यों न हम बुके के ऐसे विकल्पों की तलाश करें जो न सिर्फ आप के लिए पौकेट फ्रैंडली हों, साथ ही दिखने में भी सुंदर हों, भीड़ से अलग दिखें, और जिन का रिसीवर को भी फायदा भी हो.

कट फ्रूट बुके

फूलों की जगह ताजे फलों के स्लाइस या कटे हुए फलों को खूबसूरती से सजा कर बुके बनाइए.
सेब, अनन्नास, अंगूर, स्ट्राबेरी से बना बुके न सिर्फ हैल्दी होता है, बल्कि बच्चों और बड़ों को तुरंत पसंद आ जाता है. ये बुके किड्स बर्थडे पार्टी, हौस्पिटल विजिट, हैल्थ कौंशियस लोगों के लिए परफैक्ट हैं. ये आप को क्राउड से हट कर अलग खड़ा होने का मौका भी देते हैं जिस से रिसीवर को भी लगता है कि आप ने वाकई उन के लिए गिफ्ट पसंद करने में अपना दिल लगाया है न कि सड़क चलते राह में पड़ी किसी शौप से फूलों का गुलदस्ता उठा लिया.

किड्स ड्रैस और टौयज बुके

छोटे बच्चों के लिए बुके में फूल नहीं, रंगबिरंगी फ्रौक, रैपर्स, सौफ्ट टौयज, हेयरबैंड आदि सजाइए. बुके के बाद ये सभी चीजें काम में भी आती हैं. न्यू बौर्न बेबी, बेबी शौवर या बच्चों के जन्मदिन पर इस तरीके के बुके तैयार करा सकते हैं. इस में आप का गिफ्ट कौमन होने के बाद भी स्टैंडआउट करेगा.

मनी बुके

गिफ्ट में पैसे देने का चलन तो बरसों से है. अगर आप भी किसी चीज को खरीदने के बजाए पैसे ही देने का मन रखते हैं तो आप अपने बजट के अनुसार ₹50, ₹100, ₹500 के नोटों को फूलों की तरह मोड़ कर बुके बनावा सकते हैं. इस में आप चाहें तो बीचबीच में चौकलेट, मिठाई भी जोड़ सकते हैं.

शादी, इंगेजमैंट, फेयरवेल या कोई विशेष जश्न हो तो इस तरीके के बुके आप के काम आएंगे.

हेयर क्लिप/ब्यूटी ऐक्सैसरीज बुके

महिलाओं के पास कितने भी हेयर क्लिप्स क्यों न हों वे उन्हें कम ही लगते हैं. इसलिए आप अपनी फ्रैंड को उन के खास दिन पर हेयर क्लीप या ब्यूटी ऐक्सैसरीज से बना बुके दे सकते हैं, जिस में महिलाओं को हेयर क्लिप, बिंदी, नेल पेंट, स्क्रंचीज ऐड की जा सकती है.
ये सजावटी भी हैं और यूजफुल भी.

राखी, बर्थडे, गर्ल्स डे आउट या टीनऐज फ्रैंड्स को गिफ्ट देने के लिए ये आइडिया बैस्ट है. बाजार में फूल और तितली के आकार के रंगबिरंगे क्लचर औप्शन मौजूद हैं, आप उन का इस्तेमाल कर सकते हैं.

चौकलेट बुके

इस की डिमांड हमेशा रहती है. डेरी मिल्क, फाइवस्टार, अमूल जैसी चौकलेट्स को आकर्षक पेपर और रैपिंग से बुके में बदलें. वैलेंटाइन डे, ऐनिवर्सरी, बर्थडे आदि किसी भी मौके पर यह बुके आप के काम आएगा. साथ ही बजट फ्रैंडली भी है. आप इस में बीचबीच में चाहें तो कुछ फूल भी ऐड करा सकते हैं, जिस से आप के बुके के रंग निखर कर आएं.

क्रोशे फ्लौवर बुके

क्रोशे से बने फूल कभी मुरझाते नहीं. इन्हें घर पर भी बनाया जा सकता है और सालों तक सजाया जा सकता है. चाहे तो आप मार्केट में मौजूद क्रोशे फ्लौवर खरीद सकते हैं. गृहप्रवेश, आर्ट लवर्स को गिफ्ट, सजावट के शौकीनों के लिए यह बेहतरीन तोहफा है, जो हमेशा रिसीवर के घर में रंग बिखेरेगा.

रियल प्लांट बुके

पौधे जीवन देते हैं. ऐसे में आप अगर किसी प्लांट लवर को बुके गिफ्ट करने का मन बना रहे हैं तो मनी प्लांट, लैवेंडर, तुलसी आदि को सजा कर बुके का रूप दीजिए. लोग इसे घर में रख सकते हैं और लंबे समय तक उस का लाभ उठा सकते हैं.

गिफ्ट ऐसा हो जो सिर्फ दिल को न भाए, बल्कि किसी के काम भी आए. इसलिए अगर आप के पास समय है तो आप पहले से इस तरह के बुके प्लान कर सकते हैं.

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सवाल-

20 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती हूं. उस के कहने पर मैं ने 3 बार उस के साथ सहवास किया है. अब मेरी शादी किसी दूसरे युवक से होने जा रही है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या सुहागरात में मेरे भावी पति को पता चल जाएगा कि मैं किसी से संबंध बना चुकी हूं? ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आ रही है, मेरी चिंता बढ़ती जा रही है कि पता नहीं क्या होगा. बताएं क्या करूं?

जवाब-

विवाहपूर्व बनाए गए अवैध संबंध भविष्य के लिए चिंता का सबब तो बनते ही हैं इन्हें अनैतिक और वर्जित भी माना जाता है. पर आप चूंकि यह गलती कर चुकी हैं जिसे सुधारा नहीं जा सकता, इसलिए अब आप अपना मुंह बंद रखें. इस बाबत पति को भूल कर भी कुछ न बताएं.

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नेहा की शादी बड़ी धूम-धाम से हुई थी. पति के नये घर-परिवार में नेहा को स्पेशल ट्रीटमेेंट मिल रहा था. अक्षय अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, ऐसे में उसकी पत्नी नेहा की आव-भगत भला क्यों न होती? तीन महीने हो गये थे, सास ने उसे रसोई में घुसने भी नहीं दिया था. नेहा 15 दिन के हनीमून के बाद लौटी, तो जरूरत की हर चीज उसके कमरे में ही पहुंच जाती थी. घर के तीनों नौकर हर वक्त उसकी खिदमत में हाजिर रहते थे. किट्टी पार्टी, रिश्तेदारों और मोहल्ले भर में उसकी सास उसकी खूबसूरती और व्यवहार के कसीदे काढ़ते घूमती थी. शाम को नेहा अक्सर सजधज कर हसबैंड के साथ घूमने निकल जाती. दोनों फिल्म देखते, रेस्ट्रां में खाना खाते, शॉपिंग करते. जिन्दगी मस्त बीत रही थी. मगर अचानक एक दिन नेहा के सुखी वैवाहिक जीवन का महल भरभरा कर गिर पड़ा.

उस दिन उसकी सास पड़ोसी के वहां बैठी थी, जब पड़ोसी के बेटे ने अपने कम्प्यूटर पर नेहा के अश्लील चित्र उसकी सास को दिखाये. ये चित्र उसने नेहा के फेसबुक अकाउंट से डाउनलोड किये थे, जहां वह अपनी अर्द्धनग्न तस्वीरें पोस्ट करके सेक्स के लिए युवकों को आमंत्रित करती थी. शर्म, अपमान और दुख से भरी नेहा की सास ने बेटे को फोन करके तुरंत घर बुलाया. पड़ोसी के कम्प्यूटर पर बैठ कर नेहा का फेसबुक अकाउंट चेक किया गया तो अक्षय के भी पैरों तले धरती डोल गयी. तस्वीरें देखकर इस बात से इनकार ही नहीं किया जा सकता था कि यह नेहा नहीं थी और इस अकाउंट से यह साफ था कि वह एक प्रॉस्टीट्यूट थी. उसने वहां पर बकायदा घंटे के हिसाब से अपने रेट डाल रखे थे. अपनी अश्लील कहानियां तस्वीरों के साथ डाल रखी थीं. बड़ा हंगामा खड़ा हो गया. नेहा के परिवार वालों को बुलाया गया. खूब कहा-सुनी हुई. नेहा मानने को ही तैयार नहीं थी कि वह फेसबुक अकाउंट उसका था, मगर जो तस्वीरें सामने थीं वह उसी की थीं. नेहा के माता-पिता भी हैरान थे.

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