Best Hindi Story: आजादी- राधिका नीरज से शादी क्यों नहीं करना चाहती थी?

Best Hindi Story: फैमिली कोर्ट की सीढि़यां उतरते हुए पीछे से आती हुई आवाज सुन कर वह ठिठक कर वहीं रुक गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा. वहां होते कोलाहल के बीच लोगों की भीड़ को चीरता हुआ नीरज उस की तरफ तेज कदमों से चला आ रहा था. ‘‘थैंक्स राधिका,’’ उस के नजदीक पहुंच नीरज ने अपने मुंह से जब आभार के दो शब्द निकाले तो राधिका का चेहरा एक अनचाही पीड़ा के दर्द से तन गया. उस ने नीरज के चेहरे पर नजर डाली. उस की आंखों में उसे मुक्ति की चमक दिखाई दे रही थी. अभी चंद मिनटों पहले ही तो एक साइन कर वह एक रिश्ते के भार को टेबल पर रखे कागज पर छोड़ आगे बढ़ गई थी.

‘‘थैंक्स राधिका टू डू फेवर. मु?ो तो डर था कि कहीं तुम सभी के सामने सचाई जाहिर कर मु?ो जीने लायक भी न छोड़ोगी,’’ राधिका को चुप पा कर नीरज ने आगे कहा. राधिका ने एक बार फिर ध्यान से नीरज के चेहरे को देखा और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई. फैमिली कोर्ट के बाहर से रिकशा ले कर वह सीधे औफिस ही पहुंच गई. उस के मन में था कि औफिस के कामों में अपने को व्यस्त रख कर मन में उठ रही टीस को वह कम कर पाएगी. लेकिन वहां पहुंच कर भी उस का मन किसी भी काम में नहीं लगा.

उस ने घड़ी पर नजर डाली. एक बज रहा था. औफिस में आए उसे अभी एक घंटा ही हुआ था. अपनी तबीयत ठीक न होने का बहाना कर उस ने हाफडे लीव को फुल डे सिकलीव में कन्वर्ट करवा लिया और औफिस से निकल कर सीधे घर जाने के लिए रिकशा पकड़ लिया.

सोसाइटी कंपाउंड में प्रवेश कर उस ने लिफ्ट का बटन दबाया, पर सहसा याद आया कि आज सुबह से बिजली बंद है और शाम 5 बजे के बाद ही सप्लाई वापस चालू होगी. बु?ो मन से वह सीढि़यां चढ़ कर तीसरी मंजिल पर आई. फ्लैट नंबर सी-302 का ताला खोल कर अंदर से दरवाजा बंद कर वह सीधे जा कर बिस्तर पर पसर गई. कुछ देर पहले बरस कर थम चुकी बारिश की वजह से वातावरण में ठंडक छा गई थी. लेकिन उस का मन अंदर से एक आग की तपिश से जला जा रहा था. नेहा अपने बौस के साथ बिजनैस टूर पर गई हुई थी और कल सुबह से पहले नहीं आने वाली थी वरना मन में उठ रही टीस उस के संग बांट कर अपने को कुछ हलका कर लेती. बैडरूम में उसे घबराहट होने लगी, तो वह उठ कर हौल में आ कर सोफे पर सिर टिका कर बैठ गई. उस की आंखों के आगे जिंदगी के पिछले 4 साल घूमने लगे…

‘चलो अच्छा ही है 2 दोस्तों के बच्चे अब शादी की गांठ से बंध जाएंगे तो दोस्ती अब रिश्तेदारी में बदल कर और पक्की हो जाएगी,’ राधिका के नीरज से शादी के लिए हां कहते ही जैसे पूरे घर में खुशियां छा गई थीं. राधिका के पिता ने अपने दोस्त का मुंह मीठा करवाया और गले से लगा लिया.

राधिका ने अपने सामने बैठे नीरज को चोरीछिपे नजरें उठा कर देखा. वह शरमाता हुआ नीची नजरें किए हुए चुपचाप बैठा था. न्यूजर्सी से अपनी पढ़ाई पूरी कर अभी कुछ महीने पहले ही आया नीरज शायद यहां के माहौल में अपनेआप को फिर से पूरी तरह से एडजस्ट नहीं कर पाया. यही सोच कर राधिका उस वक्त उस के चेहरे के भाव नहीं पढ़ पाई. अपने पापा के दोस्त दीनानाथजी को वह बचपन से जानती थी लेकिन नीरज से उस की मुलाकात इस रिश्ते की नींव बनने से पहले कभीकभी ही हुई थी. 12वीं पास करने के बाद नीरज 5 साल के लिए स्टूडैंट वीजा पर न्यूजर्सी चला गया था और जब वापस आया तो पहली ही मुलाकात में चंद घंटों की बातों के बाद उन की शादी का फैसला हो गया.

‘‘नीरज, मैं तुम्हें पसंद तो हूं न?’’ बगीचे में नीरज का हाथ थाम कर चलती राधिका ने पूछा. ‘‘हां. लेकिन क्यों ऐसा पूछ रही हो?’’ उस की बात का जवाब देते हुए नीरज ने पूछा. ‘बस ऐसे ही. अगले महीने हमारी शादी होने वाली है. पर तुम्हारे चेहरे पर कोई उत्साह न देख कर मु?ो डर सा लगता है. कहीं तुम ने किसी दबाव में आ कर तो इस शादी के लिए हां नहीं की न?’ पास ही लगी बैंच पर बैठते हुए राधिका ने नीरज को देखा.

‘वैल. अपना बिजनैस सैट करने की थोड़ी टैंशन है. इसी उल?ान में रहता हूं कि कहीं शादी का यह फैसला जल्दी तो नहीं ले लिया,’ कहते हुए नीरज ने अपनी पैंट की जेब से रूमाल निकाला और माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछ डाला.‘इस में टैंशन लेने वाली बात ही क्या है? शादी तो समय पर हो ही जानी चाहिए. वैसे भी, जीने के लिए पैसा नहीं, अपने लोगों के पास होने की जरूरत होती है,’ कहती हुई राधिका ने नीरज के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

डर सा बना रहता है,’ नीरज ने अपने हाथ में अभी भी रूमाल पकड़ रखा था.‘छोड़ो भी अब यह डर और कोई रोमांटिक बात करो न मु?ा से,’ कहती हुई राधिका ने आसपास नजर दौड़ाई. बगीचे में अधिकांश जोड़े अपनी ही मस्ती में खोए हुए थे. सहसा राधिका नीरज के और करीब आ गई और उस के हाथ की उंगलियां उस की छाती पर हरकत करने लगीं.

‘यह क्या हरकत है राधिका?’ कहते हुए नीरज ने एक ?ाटके से राधिका को अपने से दूर कर दिया और अपनी जगह से खड़ा हो गया. राधिका के लिए नीरज का यह व्यवहार अप्रत्याशित था. वह नीरज की इस हरकत से सहम गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. राधिका अपनी यादों से बाहर निकल कर खड़ी हुई और दरवाजा खोला. ‘‘नेहा प्रधान हैं?’’

दरवाजे पर कूरियर वाला खड़ा था. ‘‘जी, इस वक्त वह घर पर नहीं है. लाइए मैं साइन कर देती हूं,’’ राधिका ने पैकेट लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया. पैकेट दे कर कूरियर वाला चला गया. दरवाजा बंद करती हुई राधिका ने पैकेट को देख कर उस के अंदर कोई पुस्तक होने का अंदाजा लगाया. नेहा अकसर कोई न कोई पुस्तक मंगाती रहती थी. उस ने पैकेट टेबल पर रख दिया और वापस सोफे पर बैठ गई.

4 वर्षों का साथ आज यों ही एक ?ाटके में तो नहीं टूट गया था. उस के पीछे की भूमिका तो शायद शादी के पहले से ही बन चुकी थी. पर नीरज का मौन राधिका की जिंदगी भी दांव पर लगा गया. नीरज के बारे में और सोचते हुए उस का चेहरा तन गया. ‘नीरज,  तुम्हारे मन में आखिर चल क्या रहा है? हमारी शादी हुए एक महीने से ज्यादा हो गया और 10 दिनों के अच्छेखासे हनीमून के बाद भी तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी वाली खुशी नदारद सी है. बात क्या है? मु?ा से तो खुल कर कहो,’ पूरे हनीमून के दौरान राधिका ने महसूस किया कि नीरज हमेशा उस से एक सीमित अंतर बना कर रह रहा है. रात के हसीन पल भी उसे रोमांचित नहीं कर पा रहे थे. वह, बस, शादी के बाद की रातों को एक जिम्मेदारी मान कर जैसेतैसे निभा ही रहा था. हनीमून से लौट कर आने के बाद राधिका के चेहरे पर अतृप्ति के भाव छाए हुए थे.

‘कुछ नहीं राधिका. मु?ो लगता है हम ने शादी करने में जल्दबाजी कर दी है,’ राधिका की बात सुन कर नीरज इतना ही बोल पाया. ‘जनाब, अब ये सब बातें सोचने का समय बीत चुका है. बेहतर होगा हम मिल कर अपनी शादी का जश्न पूरे मन से मनाएं,’ राधिका ने नीरज की बात सुन कर कहा.

‘तुम नहीं सम?ा पाओगी राधिका और मैं तुम्हें अपनी समस्या सम?ा भी नहीं पाऊंगा,’ कह कर नीरज राधिका की प्रतिक्रिया की परवा किए बिना ही कमरे से बाहर चला गया. अकेले बैठी हुई राधिका का मन बारबार पिछली बातों में जा कर अटक रहा था. लाइट भी नहीं थी जो टीवी औन कर अपना मन बहला पाती. तभी उस के मन में कुछ कौंधा और उस ने नेहा के नाम से अभी आया पैकेट खोल लिया. उस के हाथों में किसी नवोदित लेखक की पुस्तक थी. पुस्तक के कवर पर एक स्त्री की एक पुरुष के साथ हाथों में हाथ डाले हुए मनमोहक छवि थी और उस के ऊपर पुस्तक का शीर्षक छपा हुआ था- ‘उस के हिस्से का प्यार’. कहानियों की इस पुस्तक की विषय सूची पर नजर डालते हुए उस ने एक के बाद एक कुछ कहानियां पढ़नी शुरू कर दीं. बच्चे के यौन उत्पीड़न और फिर उस को ले कर वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्या को ले कर लिखी गई एक कहानी पढ़ कर वह फिर से नीरज की यादों में खो गई.

उस दिन नीरज बेहद खुश था. वह घर खाने पर अपने किसी विदेशी दोस्त को ले कर आया था. ‘राधिका, 2 दिनों पहले मैं अपने जिस दोस्त की बात कर रहा था वह यह माइक है. न्यूजर्सी में हम दोनों रूममेट थे और साथ ही पढ़ते थे,’ नीरज ने राधिका को माइक का परिचय देते हुए कहा.

राधिका ने अपने पति की बाजू में खड़े उस श्वेतवर्णी स्निग्ध त्वचा वाले लंबे व छरहरे युवक पर नजर डाली. राधिका को पहली ही नजर में नीरज का यह दोस्त बिलकुल पसंद नहीं आया. उस का क्लीनशेव्ड नाजुक चेहरा और उस पर सिर पर थोड़े लंबे बालों को बांध कर बनाई गई छोटी सी चोटी देख कर राधिका को आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा लड़का नीरज का दोस्त कैसे हो सकता है. नीरज तो खुद अपने पहनावे और लुक को ले कर काफी कौन्शियस रहता है. उस वक्त इस बात को नजरअंदाज कर वह इस बात पर ज्यादा कुछ न सोचते हुए खाना बनाने में जुट गई.

उसी रात नीरज ने जब राधिका से सीधेसीधे तलाक लेने की बात छेड़ी तो राधिका के पैरोंतले जमीन खिसक गई. ‘लेकिन बात क्या हुई नीरज? न हमारे बीच कोई ?ागड़ा है न कोई परेशानी. सबकुछ तो बराबर चल रहा है. कहीं तुम्हारा किसी के संग अफेयर तो…’ रिश्तों को बांधे रखने की दुहाई देते हुए सहसा उस का मन एक आशंका से भर गया.

‘अफेयर ही सम?ा लो. अब तुम से मैं आगे कुछ और नहीं छिपाऊंगा,’ कहते हुए नीरज चुप हो गया. राधिका ने नीरज के चेहरे को देखते हुए उस की आंखों में अजीब सी मदहोशी महसूस की. ‘तुम कहना क्या चाहते हो नीरज?’ राधिका नीरज की अधूरी छोड़ी बात पूरी सुनना चाहती थी. उस के बाद नीरज ने जो कुछ उस से कहा, उन में से आधी बात तो वह ठीक से सुन ही नहीं पाई.

‘तुम्हारे संग मेरी शादी मेरे लिए एक जुआ ही थी. मैं अपनी सारी जिंदगी इसी तरह कशमकश में गुजार देता पर अब यह कुछ नामुमकिन सा लगता है राधिका. बेहतर होगा हम अपनेअपने रास्ते अलगअलग ही तय करें,’ नीरज से शादी टूटने से पहले कहे गए आखिरी वाक्य उस के दिमाग में बारबार कौंधने लगे.

राधिका ने कमरे की लाइट बंद कर दी और चुपचाप लेट कर सारी रात अपनी बरबादी पर आंसू बहाती रही.अब एक ही घर में नीरज के साथ रहते हुए वह अपनेआप को एक अजनबी महसूस कर रही थी. अपने मन की बात राधिका को जता कर जैसे नीरज के मन का भार हलका हो चुका था लेकिन राधिका जैसे मन पर एक अनचाहा भार ले कर जी रही थी. जब उस के मन का भार असहनीय हो गया तो वह नीरज के घर की दहलीज छोड़ कर अपने पिता के घर आ गई.

फिर जो हुआ वह आज के दिन में परिणत हो कर उस के सामने खड़ा था. कानूनी तौर पर वह भले ही नीरज से अलग हो चुकी थी लेकिन नीरज की सचाई और उस के द्वारा दी गई अनचाही पीड़ा अब भी उस के मन के कोने में कैद थी जिसे वह चाह कर भी किसी से बयान नहीं कर सकती थी. घर में बैठेबैठे अकेले घुटन होने से वह घर लौक कर बाहर निकल गई और एमजी रोड पर स्थित मौल में दिल बहलाने के लिए चक्कर लगाने लगी.

रात देर से नींद आने की वजह से सुबह उस की नींद देर से ही खुली. वैसे भी आज उस का वीकली औफ होने से औफिस जाने का कोई ?ां?ाट न था. उस ने उठ कर समाचार सुनने के लिए टीवी औन ही किया था कि डोरबेल बज उठी.

‘‘हाय राधिका. हाऊ आर यू?’’ दरवाजा खोलते ही नेहा राधिका से लिपट गई. ‘‘मैं ठीक हूं. तेरा टूर कैसा रहा?’’ राधिका के चेहरे पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई. ‘‘बौस के साथ टूर हमेशा ही मजेदार रहता है. वैसे भी अब जिंदगी ऐसे मोड़ तक पहुंच गई है जहां से वापस लौटना संभव ही नहीं. यह टूर तो एक बहाना होता है एकांत पाने का,’’ कहती हुई नेहा सोफे पर पसर गई.

राधिका ने रिमोट उठा कर चुपचाप न्यूज चैनल शुरू कर दिया. ‘‘सुन, कल तेरी आखिरी सुनवाई थी न फैमिली कोर्ट में. क्या फैसला आया?’’ नेहा ने राधिका को अपने पास खींचते हुए उस से पूछा.

‘‘फैसला तो पहले से ही तय था. बस, साइन ही करने तो जाना था,’’ राधिका ने बु?ोमन से जवाब दिया. ‘‘लेकिन तू ने अभी तक नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो तू ने नीरज से अलग होने का फैसला ले लिया?’’ पिछले एक साल से साथ रहने के बावजूद राधिका ने अपनी जिंदगी का एक अधूरा सच नेहा से अब तक छिपाए रखा था.

‘भारत की न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक फैसला सैक्शन 377 के तहत अब गे और लैस्बियन संबंध वैध.’ तभी टीवी स्क्रीन पर आती ब्रैकिंग न्यूज देख कर राधिका असहज हो गई.

‘‘स्ट्रैंज,’’ नेहा ने न्यूज पर अपनी छोटी सी प्रतिक्रिया जताते हुए राधिका से फिर से पूछा, ‘‘तू ने बताया नहीं राधिका? कुछ कारण तो रहा होगा न?’’

‘‘बस, समझ ले कल उसे एक अनचाहे रिश्ते से कानूनीतौर पर मुक्ति मिली और आज उस मुक्ति की खुशी मनाने का मौका भी उसी कानून ने उसे दे दिया,’’ राधिका की नजरें अभी भी टीवी स्क्रीन पर जमी हुई थीं. लेकिन नेहा उस की नम हो चुकी आंखों में तैर रही खामोशी को पढ़ चुकी थी.

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Long Story in Hindi: किटी पार्टी- राधिका ने क्या जवाब दिया

Long Story in Hindi: पौश कालोनी का एक इलाका. उस में मिसेज खुशबू की एक दोमंजिला आलीशान कोठी. उस में नीचे वह स्वयं रहती हैं और ऊपर के पोर्शन को अपनी सामाजिक गतिविधियों और मेहमानों के लिए खाली रखती हैं. उन की एक ‘महिला सत्संग’ नाम की संस्था है. उसी के तहत वह महिलाओं की किटी पार्टी करती हैं. अगर यह कहा जाए कि ‘महिला सत्संग’ का मतलब किटी पार्टी ही है, तो गलत न होगा.

किटी पार्टी में शामिल होने वाली महिलाएं हालांकि आती तो संभ्रांत परिवारों से हैं, पर असल में वे बैठीठाली महिलाएं हैं, जिन के पति या तो हैं नहीं या फिर वे बाहर रहते हैं और अकसर वे महिलाएं अकेली रहती हैं.

मिसेज खुशबू भी अकेली रहती हैं. लेकिन उन के बारे में चर्चा यह है कि उन के पति का देहांत हो चुका है, और वह इस शहर में एक प्रतिष्ठित मिशन स्कूल में टीचर रह चुकी हैं. नौकरी से मुक्त होने के बाद वह अपने मूल शहर वापस नहीं गईं, और इसी शहर में अपनी कोठी बना कर बस गईं.

शाम के 6 बजे थे. मिसेज खुशबू ने चाय के लिए अपनी मेड को आवाज दी. उसी समय दरवाजे की बेल बजी. मिसेज खुशबू ने बाहर का गेट खोला, देखा, एक खूबसूरत स्त्री हाथ में बेग लिए खड़ी है. उन्होंने नीचे से ऊपर तक इस स्त्री पर नजर डाली, टौप और नीली जींस में, आंखों पर काला चश्मा लगाए एक गौर वर्ण की खूबसूरत युवती खड़ी है. मिसेज खुशबू ने मुसकरा कर हेलो किया, फिर पूछा, ‘जी, बताइए?’

‘मैं राधिका हूं. क्या मैं आप से मिल सकती हूं?’

‘ओ… यस, कम… कम,’ और मिसेज खुशबू राधिका को अंदर ड्राइंगरूम में ले गईं.

मेड को आवाज दे कर पानी लाने और एक कप चाय और बना कर लाने के लिए कहा.

चाय पर बातचीत शुरू हुई. मिसेज खुशबू ने पूछा, ‘हां तो बताइए, आप क्या बात करना चाहती थीं?’

‘दरअसल मैम, मैं आप के क्लब की मेंबर बनना चाहती हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘ओह, नाइस. क्या करती हैं आप?’

‘जी मेम, मैं भी टीचर हूं.’

‘मैं भी का क्या मतलब…? कोई और भी है?’

‘जी, आप भी टीचर थीं ना?’

‘ओह,’ मिसेज खुशबू मुसकराईं.

‘कहां पढ़ाती हैं आप?’

‘जी, गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज में.’

‘क्यों मेंबर बनना चाहती हैं?’

राधिका ने विनम्रता से कहा, ‘क्या है कि मैम, कुछ मेलजोल बढ़ेगा, विचारों के आदानप्रदान से लाभ होगा, और समय भी कटेगा.’

मिसेज खुशबू ने कागजी कार्यवाही पूरी कर के राधिका को ‘महिला सत्संग’ का सदस्य बना लिया. फिर कहा, ‘वैसे तो हर महीने के दूसरे और आखिरी वीकेंड पर हमारी सभा होती है. लेकिन कभीकभी खास सभाएं होती हैं, तो फोन से सब को सूचित कर दिया जाता है.’

कोई एक हफ्ते बाद राधिका के फोन पर मिसेज खुशबू का मैसेज आया, ‘इसी संडे को कुछ नए सदस्यों का परिचय कराने के लिए पार्टी रखी गई है. आप शाम 6 बजे आइएगा.’

राधिका ने मैसेज पढ़ा और ओके लिख कर रिप्लाई सेंड कर दिया.

उस दिन राधिका ने सारे जरूरी काम शाम 5 बजे से पहले ही निबटा लिए. वह ठीक शाम के 6 बजे मिसेज खुशबू की कोठी पर पहुंच गई.

पार्टी ऊपर के कमरे में थी. राधिका ने प्रवेश किया तो देखा कि कई महिलाएं सोफे पर विराजमान थीं. वह उन में से किसी को नहीं जानती थी. उस ने सभी उपस्थित महिलाओं को सिर झुका कर हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा और एक खाली सोफे पर बैठ गई. कुछ देर में संस्था की बाकी सदस्य भी आ गईं. सब से अंत में आईं, मिसेज खुशबू. उन्होंने पार्टी की कुछ औपचारिक कार्यवाही के बाद नए सदस्यों का परिचय कराना शुरू किया, ‘ये मिस कल्पना हैं. आकाशवाणी में ये अनाउंसर थीं. अब सोशल वर्कर हैं. ये मिसेज नीलम सिंह हैं, फ्रीलांसर हैं. ये मिसेज मधु हैं, इन का खुद का गारमेंट बिजनेस है और सिलाईकढ़ाई का केंद्र भी चलाती हैं. ये हैं हमारी संस्था की सब से महत्वपूर्ण मेंबर सविता भटनागर, स्त्री मामलों की विशेषज्ञ और मशहूर वकील. फिर वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोलीं, ‘और ये हैं ब्यूटीफुल लेडी राधिका, जो गवर्नमेंट कालेज में अंगरेजी पढ़ाती हैं और खुले विचारों की हैं.’

‘खुले विचारों से मतलब…?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

राधिका ही बोल पड़ी, ‘प्रगतिशील और वैज्ञानिक भी.’

‘तो क्या हम प्रगतिशील नहीं हैं?’ स्वाति मिश्रा ने सवाल किया.

‘जरूर हो सकती हो. क्यों नहीं हो सकती?’ राधिका ने जवाब दिया.

इस के बाद मनीषा त्रिपाठी ने सभी सदस्यों को रामनवमी की अग्रिम बधाई दी. राधिका ने पूछा, ‘अगर कोई रामनवमी न मनाता हो तो…?’

‘क्या आप रामनवमी नहीं मनाती हैं?’ स्वाति ने पूछा.

‘नहीं, मैं क्यों रामनवमी मनाऊं?’ राधिका ने जवाब दिया.

‘क्या आप हिंदू नहीं हैं?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

‘जरूर हिंदू हूं, पर मैं अंधविश्वासी नहीं हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘इस में अंधविश्वास कहां से आ गया? राम कल के दिन पैदा हुए थे,’ मनीषा ने बताया.

राधिका ने शांत हो कर कहा, ‘देखिए, बुरा न मानिए. पहले तो राम ऐतिहासिक नहीं हैं, जैसे बुद्ध हैं, महावीर हैं. दूसरी बात यह कि जो जन्म लेता है, वह भगवान कैसे हुआ? वह तो मनुष्य ही हुआ.’

‘हां, वह मनुष्य रूप में अवतार थे विष्णु के,’ मनीषा ने बताया.

‘उन्हें मनुष्य रूप में अवतार लेने की जरूरत क्यों पड़ी?’

‘रावण और राक्षसों का वध करने के लिए उन्हें अवतार लेना पड़ा था.’

‘रावण और राक्षस लोग विष्णु का क्या नुकसान कर रहे थे, जो उन को मारने के लिए उन्हें धरती पर आना पड़ा?’

‘आप को इतना भी नहीं पता,’ स्वाति ने कहा, ‘रावण और राक्षस लोग ब्राह्मणों के शत्रु थे, उन्हें सताते थे और मार कर खा जाते थे.’

‘ओह, तो इस का मतलब यह हुआ कि राम का अवतार ब्राह्मणों की रक्षा के लिए हुआ था, मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए नहीं. जैसे बुद्ध ने संपूर्ण मानवता को करुणा, मैत्री और अहिंसा का संदेश दिया था.’

फिर राधिका ने आगे कहा, ‘ये राम ब्राह्मणों के भगवान थे, फिर तो आप ने ठीक ही उन की पूजा की.’

मिसेज खुशबू ने देखा, मनीषा और स्वाति के चेहरों पर विषाद की रेखाएं उभर आई थीं. वातावरण में तनाव पैदा हो गया था. उन्होंने तनाव को हलका करने के लिए मधु को गजल सुनाने को कहा, पर तनाव के बीच ही मनीषा और स्वाति पार्टी से उठ कर चली गईं.

‘वादविवाद तो किटी पार्टी का हिस्सा है. इस से गुस्सा हो कर जाना तो ठीक नहीं,’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘किटी पार्टी का मतलब सिर्फ पीनाखाना ही नहीं है, वरन इस का उद्देश्य हर तरह के विषयों पर तार्किक बहस चलाना भी है. यहां आज तक ऐसे विषयों पर कभी बहस ही नहीं हुई. सिर्फ खानापीना और घरगृहस्थी की निजी बातें ही ज्यादा हुई हैं.

‘आज पहली बार राधिका के आने से किटी पार्टी में विमर्श की शुरुआत हुई है. और पहली बार मुझे पता चला कि यह कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया.’

‘लेकिन मैम, मैं ने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जिस से वे नाराज हो कर चली गईं?’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘इट्स ओके.’

इस के बाद पार्टी समाप्त हो गई.

दूसरे दिन मिसेज खुशबू के घर की घंटी फिर बजी. मिसेज खुशबू ने दरवाजा खोला, तो सामने स्वाति मिश्रा को देख कर चौंकी.

‘ओह स्वाति आप? कैसे आना हुआ?’ मिसेज खुशबू ने पूछा.

‘मेम, मुझे कुछ बात करनी है आप से,’ स्वाति ने कहा.

‘ओह, कम… कम,’ मिसेज खुशबू उन्हें घर में ले गईं. ड्राइंगरूम में बैठा कर पूछा, ‘हां बताओ, क्या बात करनी है?’

‘मेम, आप जानती हैं, ये राधिका कौन है?’ स्वाति ने पूछा.

‘ओह, राधिका. वह हमारे ‘महिला सत्संग’ की नई सदस्य बनी हैं. लेकिन तुम इतना परेशान क्यों लग रही हो?’

‘मेम, वह कोटे वाली है,’ स्वाति ने कहा.

‘वाट…? कोठेवाली…? क्या कह रही हो? तुम होश में तो हो? वह टीचर है गवर्नमेंट स्कूल में. कोठेवाली कैसे हो सकती है?’ मिसेज खुशबू ने आश्चर्य के साथ पूछा.

‘सौरी मेम, कोठेवाली नहीं, कोटे वाली.’

‘मतलब…?’

‘मतलब, वह दलित जाति से है. डा. अंबेडकर को मानने वाली है. इसीलिए तो वह राम को नहीं मानती.’

‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था यह सब नहीं मानती. हम न तो किसी की जाति पूछते हैं और न ही लिखवाते हैं. आप ने हमारी संस्था के फार्म में जाति का कालम देखा है क्या?’ मिसेज खुशबू ने कठोरता से कहा.

स्वाति ने परेशान हो कर कहा, ‘लेकिन मेम, हम उस के साथ सहज नहीं रह पाएंगे.’

‘क्यों…?’

‘इसलिए कि हम ब्राह्मण हैं… और वह अछूत.’

‘यह क्या ब्राह्मणअछूत लगा रखी है? कौन सी दुनिया में जी रही हो तुम स्वाति ?’ मिसेज खुशबू ने थोड़ा कठोर हो कर कहा.

‘लेकिन, तुम कैसे कह सकती हो, तुम ब्राह्मण हो?’ खुशबू ने पूछा.

स्वाति एकदम चौंक गई. फिर बोली, ‘आप ऐसा कैसे कह रही हैं?’

‘क्यों नहीं कहूं? आप एक सुंदर और सुशिक्षित महिला को अपनी नफरत के काबिल समझती हैं कि वह दलित है? और आप अपने को सम्मान के काबिल समझती हैं कि आप ब्राह्मण हैं? किधर से आप ब्राह्मण हैं और किधर से राधिका दलित है?’ खुशबू ने थोड़ा नाराज हो कर कहा.

स्वाति को इस तरह के सवाल की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. वह यही समझती थी कि समाज में ब्राह्मण ही सब से ऊंचा वर्ग है और दलित सब से नीचा. उसे अपने घरपरिवार में इसी तरह के भेदभाव वाले संस्कार मिले थे. एक नीच स्त्री की इतनी हैसियत नहीं कि वह किटी पार्टी में धर्म पर बहस करे और मिसेज खुशबू हैं कि ब्राह्मण और दलित में कोई भेद ही नहीं कर रही हैं. कहीं मिसेज खुशबू भी तो दलित नहीं हैं? उस के मन में संदेह पैदा हुआ. उस ने सोचा कि क्यों न संदेह मिटा लिया जाए. अत: स्वाति ने पूछा, ‘मैम, आप किस जाति की हैं?’

मिसेज खुशबू जरा भी विचलित नहीं हुईं. शुरू में वह ऐसे सवालों से जरूर परेशान होती थीं, लेकिन अब नहीं होतीं. उन्हें समझ में आ गया था कि अगर समाज को बदलना है, तो जाति के बंधन से मुक्त होना जरूरी है. इसलिए उन्होंने स्वाति से ही पूछ लिया, ‘आप ही बताओ, मेरी जाति क्या हो सकती है? मैं पेड़ हूं? पक्षी हूं? पशु हूं या मनुष्य हूं?’

‘औफ कोर्स मैम, आप मनुष्य हैं,’ स्वाति ने जवाब दिया.

‘फिर आप जाति क्यों पूछ रही हैं? जातियां तो पशुपक्षियों में होती हैं.’

‘मैम, जातियां मनुष्यों में भी होती हैं.’

खुशबू ने कहा, ‘मुझे तो मनुष्यों में जातियां नहीं दिखाई देतीं. अगर आप को लगता है कि जातियां होती हैं, तो अलगअलग जातियों की कुछ फिजिकली पहचान भी जरूर होनी चाहिए. यह क्या पहचान है, जरा हमें भी बताइए कि किस चीज से कोई ब्राह्मण होता है, और कोई दलित?’

स्वाति इस सवाल से परेशान सी हो गई थी, पर उस ने अपनी परेशानी को छिपाते हुए पूछा, ‘क्या पहचान…? मैं समझी नहीं.’

खुशबू ने दोहराया, ‘मेरे कहने का मतलब यह है कि आप के पास ब्राह्मण होने की क्या पहचान है, जो राधिका के पास नहीं है. और राधिका के पास दलित होने की क्या पहचान है, जो आप के पास नहीं है?’

स्वाति मौन हो गई. खुशबू ने समझाने के लहजे में फिर कहा, ‘क्या स्वाति, आप का और राधिका का रंग अलगअलग है?’

स्वाति ने कहा, ‘नहीं.’

खुशबू ने फिर कहा, ‘तब क्या शरीर की बनावट अलगअलग है? आप की नाक कहीं और जगह लगी है, और राधिका की कहीं और जगह?’

स्वाति ने जवाब दिया, ‘नहीं.’

खुशबू पूछने लगी, ‘तब क्या आप के और राधिका के हाथपैरों की बनावट में कोई अंतर है यानी आप के हाथपैर बड़े हों और राधिका के छोटे?’

स्वाति सहमते हुए बोली, ‘नहीं मैम, ऐसा कुछ नहीं है. सब बराबर हैं.’

खुशबू ने अपनी बात फिर दोहराई, ‘फिर क्या पहचान है…? आप अपने ब्राह्मण होने की कुछ तो पहचान बताइए.’

स्वाति मौन.

खुशबू ने कहा, ‘अच्छा अपनी पहचान नहीं बताना चाहती, तो मत बताओ. पर, कम से कम आप राधिका के ही दलित होने की पहचान बता दीजिए कि आप ने कैसे पहचाना कि वह दलित है?’

स्वाति के पास कोई जवाब नहीं था, पर वह मिसेज खुशबू की कोई भी दलील मानने को तैयार नहीं थी. अगर मानती तो उसे अपनी उच्चता की भावना छोड़नी पड़ती, जिस का मिथ्या दंभ उस की नसनस में भरा हुआ था. उसे वह छोड़ना नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने मिसेज खुशबू से कहा, ‘मैम, मैं अब आप के महिला मंडल में नहीं रहना चाहूंगी. मुझे इजाजत दीजिए, मैं चलती हूं, अपना इस्तीफा भिजवा दूंगी.’

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘आप ने सही फैसला किया है. आप जैसी जातिवादी और मनुष्य विरोधी अशिक्षित महिला की मेरे ‘महिला सत्संग’ में जरूरत भी नहीं है. और केवल मेरे ‘महिला सत्संग’ को ही नहीं, आप किसी भी संस्था, समाज के लिए अवांछित तत्व हैं.’

Long Story in Hindi

Family Kahani: दाखिले का चक्रव्यूह- सीमा को परिवार का प्यार मिला

Family Kahani: रविवार को सुबह 10 बजे जब सीमा के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे लपक कर उठा लिया. स्क्रीन पर अपने बचपन की सहेली नीता का नाम पढ़ा तो वह भावुक हो गई और खुद से ही बोली कि चलो किसी को तो याद है आज का दिन.

लेकिन अपनी सहेली से बातें कर उसे निराशा ही हाथ लगी. नीता ने उसे कहीं घूमने चले का निमंत्रण भर ही दिया. उसे भी शायद आज के दिन की विशेषता याद नहीं थी.

‘‘मैं घंटे भर में तेरे पास पहुंच जाऊंगी,’’ यह कह कर सीमा ने फोन काट दिया.

‘सब अपनीअपनी जिंदगियों में मस्त हैं. अब न मेरी किसी को फिक्र है और न जरूरत. क्या आगे सारी जिंदगी मुझे इसी तरह की उपेक्षा व अपमान का सामना करना पड़ेगा?’ यह सोच उस की आंखों में आंसू भर आए.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर निकली और रसोई में काम कर रही अपनी मां को बताया, ‘‘मां, मैं नीता के पास जा रही हूं.’’

‘‘कब तक लौट आएगी?’’ मां ने पूछा.

‘‘जब दिल करेगा,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर उस ने अपनी नाराजगी प्रकट की.

‘‘ठीक है,’’ मां का लापरवाही भरा जवाब सुन कर उदास हो गई.

सीमा का भाई नवीन ड्राइंगरूम में अखबार पढ़ रहा था. वह उस की तरफ देख कर मुसकराया जरूर पर उस के बाहर जाने के बारे में कोई पूछताछ नहीं की.

नवीन से छोटा भाई नीरज बरामदे में अपने बेटे के साथ खेल रहा था.

‘‘कहां जा रही हो, दीदी?’’ उस ने अपना गाल अपने बेटे के गाल से रगड़ते हुए सवाल किया.

‘‘नीता के घर जा रही हूं,’’ सीमा ने शुष्क लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं कार से छोड़ दूं उस के घर तक?’’

‘‘नहीं, मैं रिकशा से चली जाऊंगी.’’

‘‘आप को सुबहसुबह किस ने गुस्सा दिला दिया है?’’

‘‘यह मत पूछो…’’ ऐसा तीखा जवाब दे कर वह गेट की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.

कुछ देर बाद नीता के घर में प्रवेश करते ही सीमा गुस्से से फट पड़ी, ‘‘अपने भैयाभाभियों की मैं क्या शिकायत करूं, अब तो मां को भी मेरे सुखदुख की कोई चिंता नहीं रही.’’

‘‘हुआ क्या है, यह तो बता?’’ नीता ने कहा.

‘‘मैं अब अपनी मां और भैयाभाभियों की नजरों में चुभने लगी हूं… उन्हें बोझ लगती हूं.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारे घर वालों के व्यवहार में कोई बदलाव महसूस नहीं किया है. हां, कुछ दिनों से तू जरूर चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई है.’’

‘‘रातदिन की उपेक्षा और अपमान किसी भी इंसान को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना देता है.’’

‘‘देख, हम बाहर घूमने जा रहे हैं, इसलिए फालतू का शोर मचा कर न अपना मूड खराब कर, न मेरा,’’ नीता ने उसे प्यार से डपट दिया.

‘‘तुझे भी सिर्फ अपनी ही चिंता सता रही है. मैं ने नोट किया है कि तुझे अब मेरी याद तभी आती है, जब तेरे मियांजी टूर पर बाहर गए हुए होते हैं. नीता, अब तू भी बदल गई है,’’ सीमा का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘अब मैं ने ऐसा क्या कह दिया है, जो तू मेरे पीछे पड़ गई है?’’ नीता नाराज होने के बजाय मुसकरा उठी.

‘‘किसी ने भी कुछ नहीं किया है… बस, मैं ही बोझ बन गई हूं सब पर,’’ सीमा रोंआसी हो उठी.

‘‘तुम्हें कोई बोझ नहीं मानता है, जानेमन. किसी ने कुछ उलटासीधा कहा है तो मुझे बता. मैं इसी वक्त उस कमअक्ल इंसान को ऐसा डांटूंगी कि वह जिंदगी भर तेरी शान में गुस्ताखी करने की हिम्मत नहीं करेगा,’’ नीता ने उस का हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गई.

‘‘किसकिस को डांटेगी तू. जब मतलब निकल जाता है तो लोग आंखें फेर लेते हैं. अब मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार मेरे दोनों भाई और उन की पत्नियां कर रही हैं तो इस में हैरानी की कोई बात नहीं है. मैं बेवकूफ पता नहीं क्यों आंसू बहाने पर तुली हुई हूं,’’ सीमा की आंखों से सचमुच आंसू बहने लगे थे.

‘‘क्या नवीन से कुछ कहासुनी हो गई है?’’

‘‘उसे आजकल अपने बिजनैस के कामों से फुरसत ही कहां है. वह भूल चुका है कि कभी मैं ने अपने सहयोगियों के सामने हाथ फैला कर कर्ज मांगा था उस का बिजनैस शुरू करवाने के लिए.’’

‘‘अगर वह कुसूरवार नहीं है तब क्या नीरज ने कुछ कहा है?’’

‘‘उसे अपने बेटे के साथ खेलने और पत्नी की जीहुजूरी करने से फुरसत ही नहीं मिलती. पहले बहन की याद उसे तब आती थी, जब जेब में पैसे नहीं होते थे. अब इंजीनियर बन जाने के बाद वह खुद तो खूब कमा ही रहा है, उस के सासससुर भी उस की जेबें भरते हैं. उस के पास अब अपनी बहन से झगड़ने तक का वक्त नहीं है.’’

‘‘अगर दोनों भाइयों ने कुछ गलत नहीं कहा है तो क्या अंजु या निशा ने कोई गुस्ताखी की है?’’

‘‘मैं अब अपने ही घर में बोझ हूं, ऐसा दिखाने के लिए किसी को अपनी जबान से कड़वे या तीखे शब्द निकालने की जरूरतनहीं है. लेकिन सब के बदले व्यवहार की वजह से आजकल मैं अपने कमरे में बंद हो कर खून के आंसू बहाती हूं. जिन छोटे भाइयों को मैं ने अपने दिवंगत पिता की जगह ले कर सहारा दिया, आज उन्होंने मुझे पूरी तरह से भुला दिया है. पूरे घर में किसी को भी ध्यान नहीं है कि मैं आज 32 साल की हो गई हूं…

तू भी तो मेरा जन्मदिन भूल गई… अपने दोनों भाइयों का जीवन संवारते और उन की घरगृहस्थी बसातेबसाते मैं कितनी अकेली रह गई हूं.’’

नीता ने उसे गले से लगाया और बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘इंसान से कभीकभी ऐसी भूल हो जाती है कि वह अपने किसी बहुत खास का जन्मदिन याद नहीं रख पाता. मैं तुम्हें शुभकामनाएं देती हूं.’’

उस के गले से लगेलगे सीमा सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा घर नहीं बसा, मैं इस बात की शिकायत नहीं कर रही हूं, नीता. मैं शादी कर लेती तो मेरे दोनों छोटे भाई कभी अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते. शादी न होने का मुझे कोई दुख नहीं है.

‘‘अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवार का हिस्सा बन कर मैं खुशीखुशी जिंदगी गुजार लूंगी, मैं तो ऐसा ही सोचती थी. लेकिन आजकल मैं खुद को बिलकुल अलगथलग व अकेला महसूस करती हूं. कैसे काटूंगी मैं इस घर में अपनी बाकी जिंदगी?’’

‘‘इतनी दुखी और मायूस मत हो, प्लीज. तू ने नवीन और नीरज के लिए जो कुरबानियां दी हैं, उन का बहुत अच्छा फल तुझे मिलेगा, तू देखना.’’

‘‘मैं इन सब के साथ घुलमिल कर जीना…’’

‘‘बस, अब अगर और ज्यादा आंसू बहाएगी तो घर से बाहर निकलने पर तेरी लाल, सूजी आंखें तुझे तमाशा बना देंगी.

तू उठ कर मुंह धो ले फिर हम घूमने चलते हैं,’’ नीता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खड़ा कर दिया.

‘‘मैं घर वापस जाती हूं. कहीं घूमने जाने का अब मेरा बिलकुल मूड नहीं है.’’

‘‘बेकार की बात मत कर,’’ नीता उसे खींचते हुए गुसलखाने के अंदर धकेल आई.

जब वह 15 मिनट बाद बाहर आई, तो नीता ने उस के एक हाथ में एक नई काली साड़ी, मैचिंग ब्लाउज वगैरह पकड़ा दिया.

‘‘हैप्पी बर्थडे, ये तेरा गिफ्ट है, जो मैं कुछ दिन पहले खरीद लाई थी,’’ नीता की आंखों में शरारत भरी चमक साफ नजर आ रही थी.

‘‘अगर तुझे मेरा गिफ्ट खरीदना याद रहा, तो मुझे जन्मदिन की मुबारकबाद देना कैसे भूल गई?’’ सीमा की आंखों में उलझन के भाव उभरे.

‘‘अरे, मैं भूली नहीं थी. बात यह है कि आज हम सब तुझे एक के बाद एक सरप्राइज देने के मूड में हैं.’’

‘‘इस हम सब में और कौनकौन शामिल है?’’

‘‘उन के नाम सीक्रेट हैं. अब तू फटाफट तैयार हो जा. ठीक 1 बजे हमें कहीं पहुंचना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘उस जगह का नाम भी सीके्रट है.’’

सीमा ने काफी जोर डाला पर नीता ने उसे इन सीक्रेट्स के बारे में और कुछ भी

नहीं बताया. सीमा को अच्छी तरह से तैयार करने में नीता ने उस की पूरी सहायता की. फिर वे दोनों नीता की कार से अप्सरा बैंक्वेट हौल पहुंचे.

‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘मुझ से ऐसे सवाल मत पूछ और सरप्राइज का मजा ले, यार,’’ नीता बहुत खुश और उत्तेजित सी नजर आ रही थी.

उलझन से भरी सीमा ने जब बैंक्वेट हौल में कदम रखा, तो अपने स्वागत में बजी तालियों की तेज आवाज सुन कर वह चौंक पड़ी. पूरा हौल ‘हैप्पी बर्थडे’ के शोर से गूंज उठा.

मेहमानों की भीड़ में उस के औफिस की खास सहेलियां, नजदीकी रिश्तेदार और परिचित शामिल थे. उन सब की नजरों का केंद्र बन कर वह बहुत खुश होने के साथसाथ शरमा भी उठी.

सब से आगे खड़े दोनों भाई व भाभियों को देख कर सीमा की आंखों में आंसू छलक आए. अपनी मां के गले से लग कर उस के मन ने गहरी शांति महसूस की.

‘‘ये सब क्या है? इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’ उस की डांट को सुन कर नवीन और नीरज हंस पड़े.

दोनों भाइयों ने उस का एकएक बाजू पकड़ा और मेहमानों की भीड़ में से गुजरते हुए उसे हौल के ठीक बीच में ले आए.

नवीन ने हाथ हवा में उठा कर सब से खामोश होने की अपील की. जब सब चुप हो गए तो वह ऊंची आवाज में बोला,

‘‘सीमा दीदी सुबह से बहुत खफा हैं. ये सोच रही थीं कि हम इन के जन्मदिन की तारीख भूल गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था. आज हम इन्हें बहुत सारे सरप्राइज देना चाहते हैं.’’

सरप्राइज शब्द सुन कर सीमा की नजरों ने एक तरफ खड़ी नीता को ढूंढ़ निकाला. उस को दूर से घूंसा दिखाते हुए वह हंस पड़ी.

अब ये उसे भलीभांति समझ में आ गया था कि नीता भी इस पार्टी को सरप्राइज बनाने की साजिश में उस के घर वालों के साथ मिली हुई थी.

नवीन रुका तो नीरज ने सीमा का हाथ प्यार से पकड़ कर बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हमारी दीदी ने पापा की आकस्मिक मौत के बाद उन की जगह संभाली और हम दोनों भाइयों की जिंदगी संवारने के लिए अपनी खुशियां व इच्छाएं इन के एहसानों का बदला हम कभी नहीं भूल गईं.’’

‘‘लेकिन हम इन के एहसानों व कुरबानियों को भूले नहीं हैं,’’ नवीन ने फिर

से बोलना शुरू कर दिया, ‘‘कभी ऐसा वक्त था जब पैसे की तंगी के चलते हमारी आदरणीय दीदी को हमारे सुखद भविष्य की खातिर अपने मन को मार कर जीना पड़ रहा था. आज दीदी के कारण हमारे पास बहुत कुछ है.

‘‘और अपनी आज की सुखसमृद्धि को अब हम अपनी दीदी के साथ बांटेंगे.

‘‘मैं ने अपना राजनगर वाला फ्लैट दीदी के नाम कर दिया है,’’ ऊंची आवाज में ये घोषणा करते हुए नवीन ने रजिस्ट्री के कागजों का लिफाफा सीमा के हाथ में पकड़ा दिया.

‘‘और ये दीदी की नई कार की चाबी है. दीदी को उन के जन्मदिन का ये जगमगाता हुआ उपहार निशा और मेरी तरफ से.’’

‘‘और ये 2 लाख रुपए का चैक फ्लैट की जरूरत व सुखसुविधा की चीजें खरीदने

के लिए.

‘‘और ये 2 लाख का चैक दीदी को अपनी व्यक्तिगत खरीदारी करने के लिए.’’

‘‘और ये 5 लाख का चैक हम सब की तरफ से बरात की आवभगत के लिए.

‘‘अब आप लोग ये सोच कर हैरान हो रहे होंगे कि दीदी की शादी कहीं पक्की होने की कोई खबर है नहीं और यहां बरात के स्वागत की बातें हो रही हैं. तो आप सब लोग हमारी एक निवेदन ध्यान से सुन लें. अपनी दीदी का घर इसी साल बसवाने का संकल्प लिया है हम दोनों भाइयों ने. हमारे इस संकल्प को पूरा कराने में आप सब दिल से पूरा सहयोग करें, प्लीज.’’

बहुत भावुक नजर आ रहे नवीन और नीरज ने जब एकसाथ झुक कर सीमा के पैर छुए, तो पूरा हौल एक बार फिर तालियों की आवाज से गूंज उठा.

सीमा की मां अपनी दोनों बहुओं व पोतों के साथ उन के पास आ गईं. अब पूरा परिवार एकदूसरे का मजबूत सहारा बन कर एकसाथ खड़ा हुआ था. सभी की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे.

बहुत दिनों से चली आ रही सीमा के मन की व्याकुलता गायब हो गई. अपने दोनों छोटे भाइयों के बीच खड़ी वह इस वक्त अपने सुखद, सुरक्षित भविष्य के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रही थी.

Family Kahani

Hindi Drama Story: हम तुम कुछ और बनेंगे

Hindi Drama Story: बगल के कमरे से अब फुसफुसाहट सुनाई दे रही थी. कुछ देर पहले तक उन की आवाजें लगभग स्पष्ट आ रही थीं. बात कुछ ऐसी भी नहीं थी. फिर दोनों इतने ठहाके क्योंकर लगा रहे? जाने क्या चल रहा है दोनों के बीच. वार्त्तालाप और ठहाकों का सामंजस्य उस की सोच के परे जा रहा था. उफ, तीर से चुभ रहे हैं, बिलकुल निशाना बैठा कर नश्तर चुभो रही है उन की हंसी. रमण का मन किया कि वह कोने वाले कमरे में चला जाए और दरवाजा बंद कर तेज संगीत चला दुनिया की सारी आवाजों से खुद को काट ले. परंतु एक कीड़ा था जो कुलबुला रहा था, काट रहा था, हृदय क्षतविक्षत कर भेद रहा था, पर कदमों में बेडि़यां भी उसी ने डाल रखी थीं. वह कीड़ा बारबार विवश कर रहा था कि वह ध्यान से सुने कि बगल के कमरे से क्या आवाजें आ रही हैं:

‘‘जीवन की बगिया महकेगी, लहकेगी, चहकेगी,

खुशियों की कलियां झूमेंगी,

झूलेंगी, फूलेंगी,

जीवन की बगिया…’’ काजल इन पंक्तियों को गुनगुना रही थी.

‘रोहन को अब सीटियां बजाने की क्या जरूरत है इस पर? बेशर्म कहीं का,’ सोफे पर अधलेटे रमण ने सोचा. उस का सर्वांग सुलग रहा था. अब जाने उस ने क्या कहा जो काजल को इतनी हंसी आ रही है. रमण अनुमान लगाने की कोशिश कर ही रहा था कि रोहन के ठहाकों ने उस के सब्र के पैमाने को छलका ही दिया. रमण ने कुशन को गुस्से से पटका और सोफे से उठ खड़ा हुआ.

‘‘क्या हो रहा है ये सब? कितनी देर से तुम दोनों की खीखी सुन रहा हूं. आदमी अपने घर में भी कुछ पल चैनसुकून से नहीं रह सकता है,’’ रमण के गुस्से ने मानो खौलते दूध में नीबू निचोड़ दिया.

रोहन, सौरीसौरी बोलता हुआ उठ कर चला गया. पर काजल अभी भी कुछ गुनगुना रही थी. रोहन के जाने के बाद काजल का गुनगुनाना उस की रूह को मानो ठंडक पहुंचाने लगा. उस ने भरपूर नजरों से काजल को देखा. 7वां महीना लग गया है. इतनी खूबसूरत उस ने अपनी ब्याहता को पहले कभी नहीं देखा था. गालों पर एक हलकी सी ललाई और गोलाई प्रत्यक्ष परिलक्षित थी. रंगत निखर कर एक सुनहरी आभा से मानो आलोकित हो दिल को रूहानी सुकून पहुंचा रही थी. सदा की दुबलीपतली छरहरी काजल आज अंग भर जाने के पश्चात अपूर्व व्यक्तित्व की स्वामिनी लग रही थी.

कोई स्त्री गर्भावस्था में ही शायद सर्वाधिक रूपवती होती है. रोमरोम से छलकती मातृत्व से परिपूर्ण सुंदरता अतुलनीय है. रमण अपने दोनों चक्षुओं सहित सभी ज्ञानेंद्रियों से अपनी ही बीवी के इस अद्भुत नवरूप का रसास्वादन कर ही रहा था कि रोहन फिर आ गया और रमण हकीकत की विकृत सचाई से आंखें चुराता हुआ झट कमरे से निकल गया.

रोहन के हाथ में विभिन्न फलों को काट कर बनाया गया फ्रूट सलाद था.

इस बार रमण सच में कोने वाले कमरे में चला गया और तेज संगीत बजा वहीं पलंग पर लेट गया. म्यूजिक भले ही कानफोड़ू हो गया, परंतु उस कमरे से आती फुसफुसाहट को रोकने में अभी भी असमर्थ ही था. रोहन की 1-1 सीटी इस संगीत को मध्यम किए जा रही थी, साथ ही साथ बीचबीच में काजल की दबीदबी खिलखिलाहट भी. ऐसा लग रहा था कि दोनों कर्ण मार्ग से प्रवेश कर उस के मानस को क्षतविक्षत कर के ही दम लेंगे.

इसी बीच स्मृति कपाट पर विगत की दस्तक शुरू हो गई. इस नवआगंतुक ने मानो उस की सुधबुध को ही हर लिया. बगल के कमरे की फुसफुसाहट, तेज संगीत और अब स्मृतियों की थाप. इस स्वर मिश्रण ने उसे आभास दिला दिया कि शायद जहन्नुम यही है.

सच इन दिनों उसे आभास होने लगा है कि वह मानो जहन्नुम की अग्नि में झुलस रहा हो. जिस उत्कंठा से उस ने इस खुशी को पाने की तमन्ना की थी, वह इस अग्नि कुंड से हो कर निकलेगी, यह उस के लिए कल्पनातीत थी.

‘कुछ महीने पहले तक सब कितना मधुर था,’ रमण ने सोचा, ‘पर कैसे कहा जाए कि मधुर था तब तो कुछ और ही शूल चुभ रहे थे,’ चेतना की बखिया उधड़ने लगीं.

विवाह के 10 वर्ष होने को थे. शुरू के वर्षों में नौकरी, कैरियर, पदोन्नति और घर की जिम्मेदारियों के चलते रमण और काजल परिवार बढ़ाने की अपनी योजना को टालते रहे. आदर्श जोड़ी रही है दोनों की. कितना दबाव था सब का कि उन के बच्चे होने चाहिए. काजल के मातापिता, रमण के मातापिता, नातेरिश्तेदार यहां तक कि दोस्त भी टोकने लगे थे. रमण के सासससुर उस की शादी की 7वीं वर्षगांठ परआए थे.

‘‘तुम लोगों ने बड़ा ही अच्छा आयोजन किया अपनी 7वीं वर्षगांठ पर. इस से पहले तो तुम लोग वर्षगांठ मनाने के ही विरुद्ध होते थे. बहुत खुशी हो रही है.’’

रमण के ससुरजी ने ऐसा कहा तो काजल झट से बोल पड़ी, ‘‘हां पापा, इस बार बात ही कुछ ऐसी थी. मेरे देवर ने अपनी पढ़ाई बहुत हद तक पूरी कर ली है. अपने आगे की पढ़ाई का खर्च अब वह खुद वहन कर सकता है. मेरा देवर डाक्टर बन गया, हमारी तपस्या सफल हुई. वर्षगांठ तो बस एक बहाना है अपनी खुशियों को सैलिब्रेट करने का.’’

‘‘बहनजी, अब आप ही रमण और काजल को समझाएं कि ये जल्दी से हमें खुशखबरी सुनाएं. मेरी तो आंखें तरस गई हैं कि कोई शिशु मेरे आंगन में खेले. ऐसा न हो कि कहीं देर हो जाए,’’ रमण की मां ने अपनी समधिन से कहा.

‘‘हां बहनजी, आप सही कह रही हैं. हर चीज का एक वक्त होता है, जो सही वक्त पर पूरी हो जानी चाहिए. हम भी तो बूढ़े हो चले हैं,’’ रमण की सास ने कहा.

कुछ ही महीनों में काजल को यह भान होने लगा कि कहीं तो कुछ गड़बड़ है. फिर शुरू हुआ जांचरिपोर्ट का अंतहीन सिलसिला. जब तक चाह नहीं थी तब तक इतनी बेसब्री और संवेदनाएं भी जाग्रत नहीं थीं. अब जब असफलता और अनचाहे परिणाम मिलने लगे तो दोनों की बच्चे के प्रति उत्कंठा भी उतनी ही तीव्र हो गई. घर के बुजुर्गों की आशंकाएं मूर्त हो रही थीं. रमण की प्रजनन क्षमता ही संदेह के दायरे में आ गई थी. किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि हर तरह से स्वस्थ दिखने वाले और स्वस्थ जीवनशैली जीने वाले रमण को यह समस्या होगी.

‘‘अब जब विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, तो हर चीज का समाधान है. हम किसी अच्छे क्लिनिक या अस्पताल से बात करने की सोच रहे हैं, जहां से शुक्राणु ले कर मेरे गर्भ में निषेचित किया जाएगा,’’ पूरे परिवार के सामने काजल ने रमण के हाथ को थामे हुए रहस्योद्घाटन किया.

‘‘आप कहीं और जाने की क्यों सोच रहे हैं? मेरे ही हौस्पिटल में कृत्रिम शुक्राणु निषेचन का अच्छा डिपार्टमैंट है. मैं संबंधित डाक्टर से बात कर लूंगा. सब अच्छी तरह निष्पादित हो जाएगा,’’ रोहन ने कहा.

फिर तो दोनों के मातापिता सिर जोड़े इस समस्या के निदान में जुट गए. वहीं काजल और रमण ने बालकनी से नीचे पार्क में खेलते छोटे बच्चों को देख ख्वाबों का एक लिहाफ बुन लिया.

उन दिनों काजल उस का हाथ मानो एक क्षण को भी नहीं छोड़ती थी. रमण को उस ने यह एहसास ही नहीं होने दिया कि कमी उस में है. दोनों ने इस आती रुकावट को पार करने हेतु जमीनआसमान एक कर दिया. दोनों दो शरीर एक जान हो गए थे.

‘‘लेकिन…पर…’’ अपनी सास की बनतीबिगड़ती माथे की लकीरों को काजल भांप रही थी.

‘‘उस तरीके से जन्मा बच्चा क्या पूरी तरह स्वस्थ होगा?’’ रमण के पिताजी ने पूछा था.

‘‘फिर जाने किस कुल या गोत्र का होगा वह?’’ रमण की सास ने बुझी वाणी में कहा.

‘‘देर तक एक लंबी चुप्पी छाई रही. जब चुप्पी के नुकीले नख रक्तवाहिनियों से खून टपकाने की हद तक पहुंच गए तो रमण ने ही चुप्पी तोड़ी, हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है. हम चाहते तो किसी को कुछ नहीं बताते पर आप सब को जानने का हक है.’’

‘‘एक रास्ता है. यदि घर का ही कोई स्वस्थ पुरुष अपने शुक्राणु दान करे इस हेतु तो वह अनजाना कुलपरिवार की भांति नहीं रहेगा,’’ काजल के पिताजी ने कहा.

‘‘आप सब निश्चिंत रहें, बहुत लोग इस विधि से बच्चे प्राप्त कर रहे हैं. हर नए आविष्कार को संशय और अविश्वास की दृष्टि से देखा ही जाता है. मैं खुद ध्यान रखूंगा कि सब अच्छे से संपन्न हो,’’ रोहन के इस आश्वासन ने उन्हें फौरी तौर पर थोड़ी राहत दे दी.

आखिर वर्षों बाद वह दिन आया जब काजल के गर्भवती होने की डाक्टर ने पुष्टि की. काजल ने अपनी नौकरी से अनिश्चितकालीन छुट्टी ले ली. एक बच्चे की आहट से परिवार में हर्ष की लहर दौड़ गई. आंगन में घुटनों के बल चलते शिशु की कल्पना से ओतप्रोत हरेक सदस्य अपनी तरह से खुशियां जाहिर कर रहा था. अचानक घर में काजल सब से महत्त्वपूर्ण हो गई. आखिर क्यों न होती? आती खुशियों को तो उसी ने अपने में सहेज रखा था.

रमण देखता उस की प्रिया उस से ज्यादा उस के मातापिता के साथ वक्त गुजार रही है. आजकल उस के सासससुर भी जल्दीजल्दी आते. रमण भी एक विजयी भाव से हर जाते पल को महसूस कर रहा था. पापापापा सुनने को बेचैन उस के दिल को कुछ ही दिनों में सुकून जो मिलने वाला था.

सब ठीक चल रहा था. डाक्टर हर चैकअप के बाद संतुष्टि जाहिर करते. माह दर माह बीत रहे थे. इस दौरान रमण महसूस कर रहा था कि आजकल रोहन भी कुछ ज्यादा ही जल्दीजल्दी आने लगा है. जल्दी आना तो तब भी चलता, आखिर उस का भी घर है, ऊपर से डाक्टर. सब को उस की जरूरत रहती. कभी मां को, कभी पिताजी को. बूढ़े जो हो चले थे. पर देखता जब रोहन आता, वह काजल की कुछ अधिक ही देखभाल करता. यह बात रमण को अब चुभने लगी थी. शक का बुलबुला उस के मानस में आकार पाने लगा था कि कहीं यह वीर्यदान रोहन ने तो नहीं किया है?

हालांकि उस के पास इस बात का कोई सुबूत नहीं था पर जब कमी खुद में होती है तो शायद ऐसे विचार उठने स्वाभाविक हैं.

रोहन को देखते ही उसे अपनी कमी और बड़ेबड़े स्पष्ट अक्षरों में परिलक्षित होने लगती. रोहन का काजल के साथ वक्त गुजारना उसे बड़ा ही नागवार गुजरता. धीरेधीरे उसे महसूस हो रहा था कि जब तक वह कुछ करने की सोचता है काजल के लिए, रोहन तब तक वह कर गुजरता है. रोहन सहित घर के सभी सदस्य जब आपस में हंसीमजाक कर रहे होते, रमण कोई न कोई बहाना बना वहां से खिसक लेता. धीरेधीरे रमण अपने पलकपांवड़े समेटने लगा जो बिछा रखे थे नव अंकुरण के लिए. एक अजीब सी विरक्ति हो चली उसे जिंदगी से. रमण खुद को बिलकुल अनचाहा सा महसूस कर रहा था. काजल बुलाती रह जाती. वह उस के पास नहीं जाता.

रोहन और काजल की घनिष्ठता उसे बेहद नागवार गुजर रही थी. रमण सोचता, ‘यदि बच्चे का पिता रोहन ही है तो मैं क्यों दालभात में मूसलचंद बनूं?’

इस सोच ने उस की दुनिया पलट दी थी. वह अपना ज्यादा वक्त दफ्तर में गुजारता. कभीकभी तो टूअर का बहाना कर कईकई दिनों तक घर भी नहीं आता था. गर्भावस्था के आखिर के दिन बड़े ही तकलीफदेह थे. काजल को बैठानाउठाना सब रोहन करता. रिश्ते बेहद उलझ गए थे. सिरा अदृश्य था और उलझनों का मकड़जाल पूरे शबाब पर. रमण को याद आता, जब उस की शादी हुई थी तब रोहन छोटा ही था. काजल को भाभी मां कहता था. काजल कितनी फिक्रमंद रहती थी उस की पढ़ाई के लिए.

‘छि: सब गडमड हो गया… इस से अच्छा बेऔलाद रहता.’ बेसिरपैर के खयालात रमण के सहभागी बन उस की मतिभ्रष्ट किए जा रहे थे. तभी रोहन की आवाज आई, ‘‘भैया जल्दी आइए भाभी की तबीयत खराब हो रही है. हौस्पिटल ले जाना होगा तुरंत.’’

‘‘तुम ले जाओ… मैं भला जा कर क्या करूंगा. कोई डाक्टर तो हूं नहीं. मुझे आज ही 15 दिनों के लिए हैदराबाद जाना है,’’ रमण ने उचटती हुई आवाज में कहा.

काजल को लग रहा था कि रमण की यह उदासीनता उस के अपराधभाव के कारण है कि वह होने वाले बच्चे का जैविक पिता नहीं है. डाक्टर ने पहले ही काजल को सचेत कर दिया था कि बहुत से पिता इस तरह का व्यवहार करते हैं और नकारात्मक रवैया अपनाते हैं. उस ने जानबूझ कर बखेड़ा नहीं खड़ा किया.

करीब 10 दिनों के बाद काजल भरी गोद वापस आई. इस बीच रमण एक बार भी हौस्पिटल नहीं गया. 15वें दिन वापस आया था.

मां से उसे पता चला. पहले दिन तो बच्चे को छुआ भी नहीं. काजल से बेहतर उस के मनोभावों को कौन समझता पर उस ने भी शायद अब वही रुख इख्तियार कर लिया था जो रमण ने. उस दिन उसी कोने वाले कमरे में तेज संगीत को चीरती एक मधुर सी रुनझुन संगीतमय लहरी रमण को बेचैन किए जा रही थी.

‘हां, यह तो बच्चे की आवाज है,’ रमण ने कानफोड़ू म्यूजिक औफ किया और ध्यानमग्न हो शिशु की स्वरलहरियों को सुनने लगा. जाने लड़का है या लड़की? उफ कोई चुप क्यों नहीं करा रहा. मन उद्वेलित होने लगा. एक क्षण को चुप्पी छाई फिर रुदन…

रमण कमरे में चहलकदमी करने लगा. अब तो लग रहा था जैसे बच्चे का कंठ सूख रहा हो. इस आरोहअवरोह ने शीत शिला को धीमी आंच पर पिघलाना आरंभ कर दिया. मां भी न जाने क्यों उन्हें छोड़ कर चली गईं. अभी कुछ दिन तो रहना चाहिए था.

इसी बीच उस का मोबाइल बजने लगा. जाने कौन है. नया नंबर है… सोचते उस ने कान से लगाया.

‘‘भैया, मैं रोहन बोल रहा हूं, प्लीज, फोन मत काटिएगा. मैं आज सुबह ही सिडनी, आस्ट्रेलिया आ गया हूं. यहां के एक अस्पताल में मुझे काम मिल गया है. साथ ही मैं कुछ कोर्स भी करूंगा. आप और भाभी मां ने जीवन में मेरे लिए बहुत कुछ किया है. भैया, पिछले कुछ महीनों में भाभी मां बेहद मानसिक संत्रास से गुजरी हैं. आप की बेरुखी उन्हें जीने नहीं दे रही. छोटा मुंह बड़ी बात हो जाएगी पर मैं कहना चाहूंगा कि आप ने भाभी मां को उस वक्त छोड़ दिया जब उन को सर्वाधिक आप की जरूरत थी,’’ इतना कह रोहन फूटफूट कर रोने लगा. एक लंबी सी चुप्पी पसरी रही कुछ क्षण रिसीवर के दोनों तरफ…

‘‘कितना बड़ा और समझदार हो गया है रोहन. मैं ने ही खुद को अदृश्य उलझनों और विकारों में कैद कर लिया था.’’

रमण शायद कुछ और भी कहता कि तभी रोहन बोल पड़ा, ‘‘भैया बच्चे क्यों रो रहे हैं? मुझे उन के रोने की आवाजें आ रही हैं.’’

‘‘बच्चे क्या जुड़वा हैं?’’ रमण उछल पड़ा और दौड़ पड़ा उन की तरफ. 2 नर्मनर्म गुलाबी रुई के फाहे हाथपैर फेंकते समवेत स्वर में आसमान सिर पर उठाए थे.

‘‘धन्यवाद रोहन, धन्यवाद भाई. घर जल्दीजल्दी आते रहना,’’ कह उस ने यह सोचते हुए बच्चों को छाती से लगा लिया कि क्या फर्क पड़ता है कि बच्चे रोहन के स्पर्म से पैदा हुए हैं या किसी और के. अब ये बच्चे उस के हैं. वही उन का पिता है. रोहन के होते तो शायद वह उन्हें छोड़ कर नहीं जाता. यह तसल्ली कम नही है.

Hindi Drama Story

Long Story: ब्रदरहुड- क्या शुरु हो पाया रैस्टोरैंट

Long Story: कहते हैं समय राजा को रंक, रंक को राजा बना देता है. कभी यह अधूरा सच लगता है, जब हम गलतियां करते हैं तब करनी को समय से जोड़ देते हैं. इस कहानी के किरदारों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. 2 सगे भाई एकदूसरे के दुश्मन बन गए. जब तक मांबाप थे, रैस्टोरैंट अन्नपूर्णा का शहर में बड़ा नाम था. रैस्टोरैंट खुलने से देररात तक ग्राहकों का तांता लगा रहता. फुरसत ही न मिलती. पैसों की ऐसी बरसात मानो एक ही जगह बादल फट रहे हों.

समय हमेशा एक सा नहीं रहता. करवटें बदलने लगा. बाप का साया सिर से क्या उठा, भाइयों में प्रौपर्टी को ले कर विवाद शुरू हो गया. किसी तरह जमापूंजी का बंटवारा हो गया लेकिन पेंच रैस्टोरैंट को ले कर फंस गया. आपस में खींचतान चलती रही. घर में स्त्रियां झगड़ती रहीं, बाहर दोनों भाई. एक कहता, मैं लूंगा, दूसरा कहता मैं. खबर को पंख लगे. उधर रिश्ते के मामा नेमीचंद के कान खड़े हो गए. बिना विलंब किए वह अपनी पत्नी और बड़े बेटे को ले कर उन के घर पहुंच गया. बड़ी चतुराई से उस ने ज्ञानी व्यक्ति की तरह दोनों भाइयों, उन की पत्नियों को घंटों आध्यात्म की बातें सुनाईं. सुखदुख पर लंबा प्रवचन दिया. जब देखा कि सभी उस की बातों में रुचि ले रहे हैं, तब वह मतलब की बात पर आया, ‘‘आपस में प्रेमभाव बनाए रखो. जिंदगी की यही सब से बड़ी पूंजी है. रैस्टोरैंट तो बाद की चीज है.’’ नवीन ने चिंता जताई,

‘‘हमारी समस्या यह है कि इसे बेचेंगे, तो लोग थूथू करेंगे.’’ ‘‘थूथू पहले ही क्या कम हो रही है,’’ नेमीचंद सम झाते हुए बोला, ‘‘रैस्टोरैंट ही सारे फसाद की जड़ है. यदि इसे किसी बाहरी को बेचोगे तो बिरादरी के बीच रहीसही नाक भी कट जाएगी.’’ सभी सोच में पड़ गए. ‘‘रैस्टोरैंट एक है. हक दोनों का है. पहले तो मिल कर चलाओ. नहीं चलाना चाहते तो मैं खरीदने की कोशिश कर सकता हूं. समाज यही कहेगा कि रिश्तेदारी में रैस्टोरैंट बिका है…’’ नेमीचंद का शातिर दिमाग चालें चल रहा था. उसे पता था कि सुलह तो होगी नहीं. रैस्टोरैंट दोनों ही रखना चाहते हैं, यही उन की समस्या है. रैस्टोरैंट बेचना इन की मजबूरी है और उसे सोने के अंडे देने वाली मुरगी को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए. आखिरकार, उस की कूटनीति सफल हुई. दोनों भाई रैस्टोरैंट उसे बेचने को राजी हो गए. नेमीचंद ने सप्ताहभर में ही जमाजमाया रैस्टोरैंट 2 करोड़ रुपए में खरीद लिया. बड़े भाई प्रवीण और छोटे भाई नवीन के बीच मसला हल हो गया,

किंतु मन में कड़वाहट बढ़ गई. नेमीचंद ने ‘रैस्टोरैंट अन्नपूर्णा’ के बोर्ड के नीचे पुराना नाम बदल कर प्रो. नेमीचंद एंड संस लिखवा दिया. रैस्टोरैंट के पुराने स्टाफ से ले कर फर्नीचर, काउंटर कुछ नहीं बदला. एकमात्र मालिकाना हक बदल गया था. दोनों भाई जब भी रैस्टोरैंट के पास से गुजरते, खुद को ठगा महसूस करते. अब दोनों पश्चात्ताप की आग में जलने लगे. दोनों के परिवार पुश्तैनी मकानों में अलगअलग रहा करते थे. दोनों के प्रवेशद्वार अगलबगल थे. बरामदे जुड़े हुए थे, लेकिन बीच में ऊंची दीवार खड़ी थी. दोनों भाइयों की पत्नियां एकदूसरे को फूटी आंख न देखतीं. बच्चे सम झदार थे, मगर मजबूर. भाइयों के बीच कटुता इतनी थी कि एक बाहर निकलता तो दूसरा उस के दूर जाने का इंतजार करता. सभी एकदूसरे की शक्ल देखना पसंद न करते.

रैस्टोरैंट खरीदने के बाद नेमीचंद के दर्शन दुर्लभ हो गए. पहले कुशलक्षेम पूछ लिया करता था. धीरेधीरे नेमीचंद उन की कहानी से गायब ही हो गया. लेदे कर एक बुजुर्ग थे गोकुल प्रसाद. उन के पारिवारिक मित्र थे. जब उन्हें इस घटना की जानकारी हुई तो बड़े दुखी हुए. उसी दिन वे दोनों से मिलने उन के घर चले आए. पहुंचते ही उन्होंने दोनों को एकांत में बुला कर अपनी नाराजगी जताई. फिर बैठ कर सम झाया, ‘‘इस झगड़े में कितना नुकसान हुआ, तुम लोग अच्छी तरह जानते हो. नेमीचंद ने चालाकी की है लेकिन इस में सारा दोष तुम लोगों का है.’’ ‘‘गलती हो गई दादा, रैस्टोरैंट हमारे भविष्य में न था, सो चला गया,’’ प्रवीण पीडि़त स्वर में बोला और दोनों हथेलियों से चेहरा ढक लिया. ‘‘मूर्खता करते हो, दोष भविष्य और समय पर डालते हो,’’ गोकुल प्रसाद ने निराश हो कर लंबी सांस ली, ‘‘सारे शहर में कितनी साख थी रैस्टोरैंट की. खूनपसीने से सींचा था उसे तुम्हारे बापदादा ने.’’ नवीन बेचैन हो गया,

‘‘छोडि़ए, अब जी जलता है मेरा.’’ ‘‘रुपया है तुम्हारे पास. अब सम झदारी दिखाओ. दोनों भाई अलगअलग रैस्टोरैंट खोलो. इस की सम झ तुम लोग रखते हो क्योंकि यह धंधा तुम्हारा पुश्तैनी है.’’ प्रवीण को बात जम गई, ‘‘सब ठीक है. पर एक ही इलाके में पहले से ही एक रैस्टोरैंट है?’’ ‘‘खानदान का नाम भी कुछ माने रखता है,’’ गोकुल प्रसाद ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पिता का दोस्त हूं, गलत नहीं कहूंगा. खूब चलेगा.’’ ‘‘मैं आप की बात मान लेता हूं,’’ प्रवीण ने कहा, ‘‘इस से भी पूछ लो. इसे रैस्टोरैंट खोलना है या नहीं.’’ नवीन भड़क उठा, ‘‘क्या सम झते हो, तुम खोलो और मैं हाथ पे हाथ धरे बैठा रहूं? ठीक तुम्हारे ही सामने खोलूंगा, देखना.’’ ‘‘क्या हो गया दोनों को? भाई हो कि क्या हो? इतना तो दुश्मन भी नहीं लड़ते,’’ गोकुल प्रसाद झल्लाए और उठने लगे. ‘‘रुकिए दादा. भोजन कर के जाना,’’ प्रवीण ने आग्रह किया. ‘‘आज नहीं. जब दोनों के मन मिलेंगे तब भोजन जरूर करूंगा.’’ गोकुल प्रसाद ने अपनी छड़ी उठाई और अपने घर के लिए चल दिए. दोनों को आइडिया सही लगा.

घर में पत्नियों की राय ली गई और जल्दी ही किराए की जगह पर रैस्टोरैंट खोल दिए. संयोग ऐसा बना कि दोनों को रैस्टोरैंट के लिए जगह आमनेसामने ही मिली. दोनों रैस्टोरैंट चल पड़े. कमाई पहले जैसी तो नहीं थी, तो कम भी न थी. रुपया आने लगा. लेकिन कटुता नहीं गई. दोनों में प्रतिस्पर्धा भी जम कर होने लगी. तू डालडाल, मैं पातपात वाली बात हो गई. दोनों भाइयों में बड़े का रैस्टोरैंट ज्यादा ग्राहक खींच रहा था. इस बात को ले कर नवीन को खासी परेशानी थी. आखिरकार उस ने एक बोर्ड टांग दिया- ‘लंच और डिनर- 100 रुपए मात्र.’ प्रवीण ने भी देखादेखी रेट गिरा दिया, ‘लंच और डिनर- 80 रुपए मात्र.’ ग्राहक को यही सब चाहिए. शहर के लोग लड़ाई का मजा ले रहे थे. मालिकों में तकरार बनी रहे और अपना फायदा होता रहे. नवीन भी चुप नहीं बैठा रहा. कुछ महीनों बाद ही उस ने फिर रेट 75 रुपए कर दिया.

मजबूरन प्रवीण को 60 रुपए पर आना पड़ा. इस तनातनी में 6-7 महीने गुजर गए और आखिर में दोनों रैस्टोरैंट के शटर गिए गए. प्रवीण से सदमा बरदाश्त न हो पाया, उसे एक दिन पक्षाघात हो गया. पासपड़ोसी समय रहते उसे अस्पताल ले गए. आईसीयू में एक सप्ताह बीता, फिर हालत में सुधार दिखा. मोटी रकम इलाज में खर्च हो गई. घर आया, शरीर में जान आने लगी लेकिन आर्थिक तंगी ने उसे मानसिक रूप से बीमार कर दिया. घर की माली हालत अब पहले जैसी न थी. पहले ही झगड़े में काफी नुकसान हो गया था. नवीन की एक बेटी थी मनु. जब भी उसे अकेला पाती, मिलने चली आती. कई दिनों के बाद बरसात आज थम गई थी. आसमान साफ था. प्रवीण स्टिक के सहारे लौन में टहल रहा था. मनु ने उसे देखा तो गेट खोल कर भीतर आ गई. उस ने स्नेह से मनु को देखा और बड़ी उम्मीद से कहा, ‘‘बेटी, पापा से कहना कि ताऊजी एक जरूरी काम से मिलना चाहते हैं.’’ मनु ने हां में सिर हिलाया और पैर छू कर गेट पर खड़ी स्कूटी को फुरती से स्टार्ट किया और कालेज के लिए निकल गई. धूप ढलने लगी, तब मनु कालेज से लौटी. नवीन तब ड्राइंगरूम में बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था. मनु ने किताबें रैक पर रखीं और पापा के सामने वाले सोफे पर जा बैठी. ‘‘पापा, आप कल दिनभर कहां थे?’’ उस ने पूछा.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ ‘‘ऐसे ही पूछ रही हूं,’’ मनु ने सोफे पर बैठे हुए आगे की ओर शरीर झुकाते हुए कहा. ‘‘महल्ले में एक बुजुर्ग की डैथ हो गई थी, इसलिए जाना पड़ा,’’ नवीन ने बताया. ‘‘आप को वहां जाने की जरूरत क्या थी? उन के पासपड़ोसी, रिलेटिव्स तो रहे ही होंगे,’’ मनु ने प्रश्न किया. ‘‘कैसी बेवकूफों वाली बातें कर रही हो. समाज में जीना है तो सब के सुखदुख में शामिल होना चाहिए,’’ नवीन ने सम झाया. ‘‘दैट्स करैक्ट. यही सुनना चाहती थी मैं. जब ताऊजी बीमार पड़े तब यह बात आप की सम झ में क्यों नहीं आई?’’ नवीन को काटो तो खून नहीं. भौंचक्का सा मनु को देखता ही रह गया वह. ‘‘आप और मम्मी ताऊजी को देखने नहीं गए. मैं गई थी सीधे कालेज से, लगातार 3 दिन. मनु कहती रही, ‘‘रौकी भैया भी अस्पताल में थे. मैं ने उन्हें घर चलने को कहा तो बोले, ‘यहां से सीधे होस्टल जाऊंगा.

घर अब रहने लायक नहीं रहा.’’’ ‘‘यह सब मु झे क्यों सुना रही हो?’’ नवीन ने प्रश्न किया. ‘‘इसलिए कि ताऊजी कोई पराए नहीं हैं. आज उन्हें आप की जरूरत है. मिलना चाहते हैं आप से.’’ नवीन ठगा सा रह गया. इस उम्र तक वह जो सम झ न सका, वह छोटी सी उम्र में उसे सिखा रही है. मनु उठी और पापा के गले से लग कर बोली, ‘‘समाज के लिए नहीं, रिश्ते निभाने के लिए ताऊजी से मिलिए. आज और अभी.’’ उधर प्रवीण, नवीन से मिलने को बेचैन था. वह बारबार कलाई घड़ी की सुइयों पर नजरें टिका देता. कभी बरामदे से नीचे मेन गेट की ओर देखने लगता. अंधेरा बढ़ने लगा. रोशनी में कीटपतंगे सिर के ऊपर मंडराने लगे. थक कर वह उठने को हुआ, तभी नवीन आते हुए दिखा. उस ने इशारे से सामने की चेयर पर बैठने को कहा. नवीन कुछ देर असहज खड़ा रहा. मस्तिष्क में मनु की बातें रहरह कर दिमाग में आ रही थीं. वह आगे बढ़ा और चेयर को खींच कर अनमना सा बैठ गया. दोनों बहुत देर तक खामोश रहे.

आखिरकार नवीन ने औपचारिकतावश पूछा, ‘‘तबीयत ठीक है अब?’’ उस ने ‘हां’ कहते हुए असल मुद्दे की बात शुरू कर दी, ‘‘मु झे पैसों की सख्त जरूरत है. मैं ने सोचा है कि मेरे हिस्से का मकान कोई और खरीदे, उस से अच्छा, तु झे बेच दूं. जितना भी देगा, मैं ले लूंगा.’’ नवीन खामोश बैठा रहा. ‘‘सुन रहा है मैं क्या कह रहा हूं?’’ उस ने जोर दे कर कहा. ‘‘सुन रहा हूं, सोच भी रहा हूं. किस बात का झगड़ा था जो हम पर ऐसी नौबत आई. हमारा खून तो एक था, फिर क्यों दूसरों के बहकावे में आए.’’ ‘‘अब पछता कर क्या फायदा? खेत तो चिडि़या कब की चुग गई. मैं ऐसी हालत में न जाने कब तक जिऊंगा. तु झ से दुश्मनी ले कर जाना नहीं चाहता,’’ प्रवीण ने उदास हो कर बरामदे की छत को ताकते हुए कहा. ‘‘तुम तो बड़े थे, बड़े का फर्ज नहीं निभा पाए. मैं तो छोटा था,’’ नवीन ने उखड़े स्वर में कहा, फिर चश्मा उतार कर रूमाल से नम आंखें साफ करने लगा. ‘‘बड़ा हूं, तो क्या हुआ. छोटे का कोई फर्ज नहीं बनता? खैर छोड़, जो हुआ सो हुआ. अब बता, मेरा हिस्सा खरीदेगा?’’ ‘‘नहीं,’’ नवीन ने सपाट सा जवाब दिया.

‘‘क्यों, क्या हुआ? रैस्टोरैंट बेच कर हम से गलती हो चुकी है. अब मेरी मजबूरी सम झ. भले ही रुपए किस्तों में देना. मैं अब किसी और को बचाखुचा जमीर बेचना नहीं चाहता,’’ प्रवीण ने फिर दुखी हो कर वजह बताई, ‘‘रौकी की इंजीनियरिंग पूरी हो जाए. यह मेरी अंतिम ख्वाहिश है. शरीर ने साथ दिया तो कहीं किराए पर घर ले कर छोटामोटा धंधा शुरू कर लूंगा.’’ ‘‘हम ने आपस में जंग लड़ी. तुम भी हारे, मैं भी हारा. नुकसान दोनों का हुआ, तो भरपाई भी दोनों को ही करनी है.’’ ‘‘तेरी मंशा क्या है, मैं नहीं जानता. मु झे इतना पता है कि मु झ में अब लड़ने की ताकत नहीं है और लड़ना भी नहीं चाहता,’’ प्रवीण ने टूटे स्वर में कहा. ‘‘मैं लड़ने की नहीं, जोड़ने की बात कह रहा हूं,’’ नवीन ने कुछ देर सोचते हुए जोर दे कर अपनी बात रखी, ‘‘हम लोग मिल कर फिर से रैस्टोरैंट खोलेंगे. अब हम बेचेंगे नहीं, खरीदेंगे.’’ नवीन उठते हुए बोला, ‘‘आज मनु मेरी आंखें न खोलती तो पुरखों की एक और निशानी हाथ से निकल जाती.

’’ प्रवीण आश्चर्य से नवीन को देखता रह गया. उस की आंखें एकाएक बरसने लगीं. गिलेशिकवे खरपतवार की तरह दूर बहते चले गए. ‘‘मकान बेचने की कोई जरूरत नहीं है. सब ठीक हो जाएगा. बिजनैस के लायक पैसा है मेरे पास,’’ जातेजाते नवीन कहता गया. इस बात को लगभग 4 मास हो गए. रैस्टोरैंट के शुभारंभ की तैयारियां शुरू हो गई थीं. इश्तिहार बांटे जा चुके थे. दशहरा का दिन था. रैस्टोरैंट रंगीन फूलों से बेहद करीने से सजा था. शहर के व्यस्ततम इलाके में इस से व्यवस्थित और आकर्षक रैस्टोरैंट दूसरा न था. परिचित लोग दोनों भाइयों को बधाई दे रहे थे. घर की बहुएं वयोवृद्ध गोकुल प्रसाद से उद्घाटन की रस्म निभाने के लिए निवेदन कर रही थीं. गोकुल प्रसाद कोई सगेसंबंधी न थे. पारिवारिक मित्र थे. एक मित्र के नाते उन के स्नेह और समर्पण पर सभी गौरवान्वित हो रहे थे. मनु सितारों जड़े आसमानी लहंगे में सजीधजी आगंतुकों का स्वागत कर रही थी. रौकी, प्रवीण और नवीन के बीच खड़ा तसवीरें खिंचवा रहा था. सड़क पर गुजरते हुए लोग रैस्टोरैंट के बाहर चमचमाते सुनहरे बोर्ड की ओर मुड़मुड़ कर देख रहे थे, जिस पर लिखा था- ‘रैस्टोरैंट अन्नपूर्णा ब्रदरहुड.’’

Long Story

Short Story: बहारो वायरस बरसाओ…

Short Story: आजकल हमें उतना डर स्वाइन फ्लू, आई फ्लू और बर्ड फ्लू से नहीं लग रहा जितना हम वाइफ फ्लू से परेशान हैं. बाकी फ्लू तो देरसबेर दवा लेने से ठीक हो जाते हैं, लेकिन वाइफ फ्लू की आज तक कोई दवा ही नहीं बन पाई है.

और तो और कुंआरेपन में हमें मूंछें रखने का बहुत शौक था, लेकिन सुहागरात को ही वाइफ ने पहला वार मूंछों पर ही किया और साफसाफ शब्दों में कह दिया कि देखोजी, आज के बाद तुम्हारे चेहरे पर मूंछें नहीं दिखनी चाहिए.

हम ने इसे कोरी धमकी समझा, लेकिन अगली सुबह सो कर उठने के बाद जब ब्रश करने गए तब आईने में मूंछविहीन चेहरा देख कर हम सहम गए और समझ गए कि यह वाइफ जो कहती है, उसे कर के भी दिखा देती है, इसलिए अपनी भलाई इसी में है कि अब बाकी की जिंदगी वाइफदास बन कर गुजारी जाए.

अगली सुबह हम अभी आधा घंटा और सोने के मूड में थे, तभी गरजती हुई आवाज आई, ‘‘देखोजी, यह सोनावोना बहुत हो गया, मैं उन पत्नियों में से नहीं हूं, जो सुबह से शाम तक अकेले ही घर में खटती रहती हैं, चलो उठो…पानी आ गया है, पानी भरो, इस के बाद सब्जी लेने जाओ और हां, दूध भी लेते आना.’’

इस के बाद थोड़े प्यार से बोली, ‘‘तुम चाय बना कर लाना अपन साथसाथ पिएंगे.’’

अभी तक तो हम कुछ समझ नहीं पाए थे, लेकिन फिर ऐसा लगा कि हमें वाइफ फ्लू ने जकड़ लिया है, जो कभी गरमी के साथ चढ़ता है तो कभी ठंड के साथ उतरता है…वाइफ को देखते ही हमारे बदन में झुरझुरी सी फैल जाती है.

अब हमारे लिए यह शोध का विषय हो गया कि आखिर यह वाइफ फ्लू होता क्या है? यह क्यों आता है? इस के लक्षण क्या हैं और इस के वायरस कहां से फैलते हैं?

सीधी सी बात है, वाइफ फ्लू शादी के बाद होता है. अब यह हसबैंड की शक्ति पर निर्भर करता है कि वह वाइफ फ्लू को कितना झेल पाता है. वाइफ फ्लू से एक बार पीडि़त होने के बाद ताजिंदगी इस की गिरफ्त में रहना पड़ता है.

लगातार वाइफ फ्लू की चपेट में आने के बाद हसबैंड हमेशा डराडरा सा रहने लगता है, उस की आंखें नीची रहती हैं, बोलने की शक्ति क्षीण होती जाती है, परंतु श्रवणशक्ति बढ़ जाती है. इसी के साथ उस का ब्लडप्रैशर एकदम बढ़ जाता है.

ऐसे मरीज ज्यादा से ज्यादा समय घर से बाहर गुजारने लगते हैं तथा बद से बदतर स्थितियों में भी जीने का जज्बा रखते हैं. वाइफ  फ्लू से पीडि़त मरीजों में काम करने की आदत सी पड़ जाती है और उन्हें थकान कम महसूस होती है.

कोल्हू के बैल की तरह काम करते हुए वे वाइफ से प्रशंसा पाने के भूखे रहते हैं. ऐसे हसबैंडों को गुस्सा कम आता है, लेकिन ये मन ही मन कुढ़ते रहते हैं.

इस फ्लू के वायरस शादीब्याह के समय बरात आदि की जगहों पर बहुतायत से पाए जाते हैं और कुंआरे लड़कों पर एकदम अटैक करते हैं.

ये वायरस पहले मीठे सपने दिखाते हैं, फिर सपने साकार करने की ललक जगाते हैं और उस के बाद जिंदगी भर रोने का कारण बन जाते हैं.

हमारी शादी के समय भी जब हमें हमारी भाभी ने, इशारे से उस कमसिन, नाजुक सी लड़की को दिखाते हुए हमारे अरमान जगाए थे तब हम हवा में ऐसे उछले थे कि सीधे उसी के पास जा कर गिरे थे.

लेकिन हम ने अपने दोस्तों को वाइफ फ्लू से जूझते देखा था, इसलिए दूरी बनाने की कोशिश करने लगे. तब उस ने बड़ी नजाकत के साथ कहा था, ‘‘तुम तो जी मुझ से ऐसे डर रहे हो जैसे मैं कोई वायरस हूं. अरे, भौंरा भी मुहब्बत में अपनेआप को कुरबान कर देता है, तो फिर तुम तो इंसान हो. हमारी मुहब्बत की कीमत समझा करो.’’

उस ने जिस अंदाज में ये सब बातें कही थीं, उस से हम भौंरे की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगे थे.

‘‘बहारो वायरस बरसाओ, मेरा हसबैंड आ रहा है…’’ हमारी होने वाली वाइफ जोरजोर से यह गाना गाने लगी.

खैर, जनाब शादी तो होनी थी, सो हो गई और हम लगातार वाइफ फ्लू से जकड़ते गए. जब हम वाइफ फ्लू से बचने के उपायों पर विचार करने लगे तब हम ने पाया कि वाइफ फ्लू से पीडि़त हसबैंड को हमेशा अपनी वाइफ की तारीफ करने की ऐंटीबायोटिक्स डोज लेते रहना चाहिए. इस में कमी होने पर ये वायरस तेजी से हमला करते हैं.

जब वाइफ बनठन कर बाजार जाए तब एक कंधे पर सामान वाला झोला और दूसरे पर बच्चों को लादने में देर नहीं करनी चाहिए. जब वाइफ किसी सामान को पसंद कर रही हो एवं मोलभाव कर रही हो तब बीच में टांग नहीं अड़ानी चाहिए. हसबैंड को तो बस जेब में भरपूर पैसा रखना चाहिए और उसे खर्च करने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए.

वाइफ फ्लू से पीडि़त हसबैंड को अपने बचाव के लिए सुबह से शाम तक ‘वाइफाय नम:’ का जाप करते रहना चाहिए और अपने दिन की शुरुआत राशिफल देख कर करनी चाहिए.

यदि दिन अच्छा नहीं हो तो उस दिन वाइफ के बेलन से डरते रहना चाहिए और यदि दिन अच्छा हो तो समझिए कि खाली डांटडपट से जान छूट जाएगी.

वाइफ फ्लू पर हमारा शोध जब चरमसीमा पर था, तभी एक गरजती आवाज से हम सहम गए.

‘‘चलो जल्दी उठो, बहुत आलसी हो गए हो. आज इतवार है और सुबह से शाम तक के सारे काम तुम्हारे ही जिम्मे हैं…’’

तभी हमें छींक आ गई, तो उस ने कहा, ‘‘सुनोजी, ऐसा लगता है, तुम्हें स्वाइन फ्लू के वायरसों ने जकड़ लिया है, जल्दी से डाक्टर के पास जाओ.’’

हम ने कहा, ‘‘अरे, जो सालों से वाइफ फ्लू से लड़ रहा हो, उस के लिए यह स्वाइन फ्लूव्लू कुछ नहीं है.’’

तभी हमारी कामवाली रमिया ने आगे आ कर बड़े प्यार से कहा, ‘‘ओ साब, तुम जल्दी से स्वाइन फ्लू का इलाज करवा लो, यह बहुत खतरनाक है. इस से तुम को डर नहीं लगे पर अपुन को लगता है. मैं यह काम छोड़ कर चली जाऊंगी. फिर मेरे वाले काम भी तुम को ही करने होंगे. सही माने में साब, अपुन तुम्हारे ऊपर ही तो तरस खाती है…’’

वाइफ फ्लू वाले हमारे जख्मों पर रमिया ही मरहम लगाती रहती है यानी वाइफ फ्लू के वायरस को कम करने का एकमात्र सहारा रमिया ही है, क्योंकि जब हम उस के साथ बरतन मंजवाते, कपड़े धुलवाते तब वाइफ हमें हटा कर खुद काम करने लगती, इसलिए हम उस की बात नहीं टाल सके और डाक्टर के पास गए. डाक्टर ने हमारा चैकअप करने के बाद लंबेचौड़े परचे पर स्वाइन फ्लू की जगह वाइफ फ्लू से पीडि़त लिख कर परचा हमें थमा दिया और बताया कि इस वायरस का प्रभाव पति या पत्नी में से किसी एक के चले जाने पर स्वयं ही समाप्त हो जाता है, इसलिए सहने और झेलने की आदत ही इस का उपचार है.

Short Story

Hindi Drama Story: विकलांग- क्या हुआ था फ्लैट में ऐसा

Hindi Drama Story: इस बार किट्टी पार्टी रेखा के यहां थी. सब आ चुकी थीं. ड्राइंगरूम में सब को एक नया चेहरा नजर आया, सब ने प्रश्नवाचक नजरों से रेखा को देखा. रेखा ने नए चेहरे का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह है दीपा, मंजू, यह तुम्हारी बिल्डिंग में तुम्हारे फ्लैट के ऊपर ही तो रहने आई है.’’

मंजू ने कहा, ‘‘हां, कोई शिफ्ट तो कर रहा था, पर तुम्हें इतनी जल्दी कैसे पता चल गया?’’

‘‘इन के पति अनिल मेरे पति संदीप के कुलीग हैं और अगर आप लोगों को कोई

परेशानी न हो तो यह भी हमारी किट्टी में शामिल हो रही हैं.’’

सुमन ने कहा, ‘‘अरे परेशानी कैसी? 10 से 11 हो जाएंगे, नो प्रौब्लम.’’

सब अपनाअपना परिचय दीपा को देने लगीं. सब बनारस की तुलसीधाम सोसायटी ही रहती थीं.

दीपा ने अपने हंसमुख स्वभाव से सब को प्रभावित किया. वह काफी सुंदर और स्मार्ट थी. सब हमेशा की तरह ऐंजौय कर रही थीं. खानापीना हुआ, गेम्स खेले गए, गप्पें हुईं. फिर दीपा ने कहा, ‘‘अगले हफ्ते आप सब मेरे यहां लंच पर आइएगा, तब तक घर पूरी तरह सैट

हो जाएगा.’’

सब ने खुशीखुशी निमंत्रण स्वीकार किया. सब चलने के लिए उठीं तो दीपा ने साइड में रखी अपनी छड़ी उठाई और चलने के लिए कदम बढ़ाया. छड़ी ले कर चलते हुए वह एक पैर पर काफी झकी तो सब हैरान रह गईं.

मंजू ने पूछा, ‘‘यह क्या?’’

दीपा ने सरल हंसी बिखेर दी, ‘‘अभी तक मैं बैठी हुई थी न, आप लोगों को अंदाजा नहीं हुआ… मेरा एक पैर ठीक नहीं है.’’

अनीता ने हैरानी से पूछा, ‘‘पर हुआ क्या है?’’

‘‘फिर बैठ जाइए, बताती हूं सब.’’

सब बैठ गईं तो दीपा कहने लगी, ‘‘मैं जब

3 महीने की थी तो मुझे तेज बुखार हुआ.

मम्मीपापा कहीं बाहर गए हुए थे, घर पर बस नानी थी. नानी ने डाक्टर को बुलाया, लेकिन डाक्टर की लापरवाही से ओवरडोज होने के कारण मुझे इंजैक्शन का रिएक्शन हो गया. इस पैर ने फिर कभी हरकत नहीं की. बहुत जगह दिखाया, लेकिन यह ठीक नहीं हुआ. मैं ने किसी तरह बीए किया और बस फिर मेरा विवाह हो गया.’’

सुमन ने पूछा, ‘‘आप

के विवाह में कोई समस्या नहीं हुई?’’

‘‘मैं एक बार टे्रन से अपनी बूआ के साथ कानपुर जा रही थी. उसी डब्बे में अनिल के मामा भी थे. वे मुझ से रास्ते में बातें करते रहे और बातोंबातों में बूआ से मेरा पता भी ले लिया और हमारे घर पहुंच कर यह रिश्ता तय कर दिया. उन्हें मेरी जैसी ही लड़की की तलाश थी क्योंकि अनिल का भी एक पैर पोलियो से प्रभावित है, यह तकलीफ उन्होंने भी सही है. बस, हम जैसे एकदूसरे के लिए ही बने थे, हम और हमारा बेटा वीर, यही छोटा सा परिवार है हमारा.’’

सब उस का मुंह देखती रह गईं, तो दीपा मुसकराई, ‘‘आप लोग तो सीरियस हो गईं,

अब चलें?’’

मंजू ने कहा, ‘‘चलो साथ ही चलते हैं, एक जगह ही तो जाना है,’’ सब अपनेअपने घर चली गईं. पहले फ्लोर पर सुमन, उस के ऊपर वाले फ्लैट में मंजू और उस के ऊपर दीपा का फ्लैट था. सब का एकदूसरे से मिलना चलता रहता था. सुमन और मंजू तो दीपा और अनिल को देख हैरान रह जातीं. दीपा और अनिल सामान्य और स्वस्थ लोगों से ज्यादा ऐक्टिव थे. अनिल इंजीनियर था, दोनों ड्राइविंग में ऐक्सपर्ट थे. सामान्य रूप से चलनेफिरने में असमर्थ लोगों के लिए कारों में विशेषरूप से जो परिवर्तन किए जाते हैं उन के कारण अनिल और दीपा को कार चलाने में काफी सुविधा रहती थी.

सोसायटी में लोग दोनों को जल्दी ही पहचान गए, एक तो दोनों के चलने का ढंग सामान्य नहीं था, दूसरे दोनों सब से ज्यादा जिंदादिल पतिपत्नी थे. उन का 10 वर्षीय बेटा वीर सामान्य और ऐक्टिव बच्चा था. दीपा तो कार से ही बनारस से लखनऊ अपने मायके चली जाती थी, दोनों को लाइफस्टाइल देख कर सब दांतों तले उंगली दबा लेते थे.

मंजू और सुमन पहले तो दीपा की तारीफ दिल खोल कर करती थीं लेकिन अब दोनों के दिलों में सहानुभूति की जगह ईर्ष्या ने ले ली थी. दीपा हर समय अपने को व्यस्त रखती, कभी घर में ड्राइंग क्लास शुरू कर देती, कभी बच्चों को फ्लौवरमेकिंग सिखाती, कभी टपरवेयर का काम करती, कभी किसी प्रसाधन कंपनी की एजेंसी ले लेती, उसे खुद भी नईनई चीजें सीखने का शौक था. कभी किसी ने उसे घर पर खाली बैठे आराम करते नहीं देखा था. अनिल अच्छे पद पर था, पैसे की कोई कमी नहीं थी,

मंजू अब अकसर सुमन से कहने लगी, ‘‘हमें तो टाइम नहीं मिलता कुछ करने का और यहां तो विकलांग लोग सारा दिन घूमतेफिरते है.’’

सुमन भी हां में हां मिलाई, ‘‘पता नहीं इसे क्या जरूरत है सारा दिन छड़ी टकटक करते घूमने की… आदमी अच्छाभला कमाता है, पैर का यह हाल है, ये लोग आराम से नहीं बैठ सकते क्या?’’

मंजू मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘कुदरत ने एक पैर खराब दिया तो यह हाल है, सोचो दोनों पैर से चलती तो क्याक्या करती.’’

सुमन ने भी हंस कर गरदन हिलाई. ईर्ष्या का अंधेरा नम्रता और प्रेम को अपने पास नहीं फटकने देता. दीपा के सामने सब उस के गुणों की प्रशंसा करती, लेकिन पीछे खूब बुराई होती जिस में बस ईर्ष्या का ही रंग दिखता. इन सब बातों से बेखबर दीपा हर दिन कुछ करने की चाह में डूबी रहती.

दीपा अपने घर अकसर सहेलियों को बुला कर अपने हाथ के स्वादिष्ठ व्यंजन खिलाती, मंजू और सुमन जैसी सहेलियां माल उड़ा कर सामने वाहवाह कर पीछे बुराई करतीं. जहां मंजू और सुमन जैसी ईर्ष्यालु सहेलियां थी तो वहीं अनिता, नीरा, रेखा जैसी भी थीं जो अनिल और दीपा की जिंदादिली की तारीफ करतीं, उन की किसी भी सहायता के लिए हमेशा तैयार रहतीं, लेकिन ऐसा मौका कभी नहीं आया था. अनिल और दीपा ने बस खुशियां ही सब के साथ बांटने का निश्चय कर लिया था, अपने दुखदर्द बस उन के ही थे. इसलिए लोग उन की इज्जत भी करते थे. दीपा को यहां आए 1 साल हो गया था.

सर्दियों के दिन थे, अंधेरा जल्दी होने लगा था. सुमन के पति विनोद किसी काम से शहर से बाहर थे. वह 8 वर्षीय बेटी श्वेता के साथ अकेली थी. इस बिल्डिंग के किसी फ्लैट के बैडरूम के बाहर की बालकनी में ग्रिल नहीं थी, खुली जगह थी और बराबर के पाइप के सहारे एक फ्लैट से दूसरे फ्लैट में जाना किसी चोर के लिए मुश्किल काम नहीं था. 3 फ्लोर की ही बिल्डिंग थी और उस दिन कोई चौकीदार भी नहीं था. रात 11 बजे के आसपास 2 चोर सुमन के बैडरूम की बालकनी में कूद गए, सर्दी के कारण आसपास सन्नाटा था. कहींकहीं टीवी चलने की आवाजें आ रही थीं.

श्वेता गहरी नींद में सोई हुई थी. बालकनी में आहट सी हुई तो पत्रिका पढ़ती हुई

सुमन चौंकी और बेखयाली में ही बालकनी का दरवाजा खोल कर देखने लगी कि एक चोर ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया. दूसरे ने चाकू दिखा कर बच्ची को मारने का इशारा कर चुप रहने का संकेत दिया. पहला चोर उस के मुंह

पर हाथ रखेरखे अंदर ले गया और सब रुपएजेबरात निकालने के लिए कहा. डर के मारे थरथर कांपती सुमन ने जल्दीजल्दी अपने पहने हुए सब गहने और पर्स से सब रुपए निकाल कर उन्हें पकड़ा दिए.

दूसरे चोर ने उसे बाथरूम में बंद करते हुए कहा, ‘‘चुपचाप यहां बैठी रह, अगर आवाज निकाली तो लड़की को मार देंगे.’’

बाथरूम की कुंडी बाहर से बंद कर के दोनों चोर अंधेरे में

पाइप से मंजू के फ्लैट की बालकनी में पहुंच गए और खिड़की की

?िर्री से इंदर का जायजा लिया.

मंजू की कोई संतान नहीं थी. उस का पति विपिन और वह ड्राइंगरूम में टीवी देख रहे थे. थोड़ी देर मेहनत के बाद चोरों ने दरवाजे की कुंडी खोल ली और फिर चाकू निकाल कर ड्राइंगरूम की ओर बढ़ गए. टीवी देख रहे पतिपत्नी की गरदन पर चाकू रख टीवी बंद

करने के लिए कहा, विपिन और मंजू की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई, विपिन का हाथ जैसे ही मोबाइल फोन की तरफ बढ़ा, एक चोर ने फोन को एक लात मारी तो फोन दूर जा गिरा.

चोर गुर्राया, ‘‘ज्यादा होशियारी मत करना, जान से मार दूंगा.’’

मंजू ने जैसे ही चिल्लाने के लिए मुंह खोला, चोर ने कस कर उस का गला दबाते हुए कहा, ‘‘आवाज मत निकालना.’’

दूसरा चोर अनिल के गले पर चाकू रख कर बोला, ‘‘फटाफट रुपएगहने निकालो, जरा भी होशियारी नहीं.’’

मंजू ने जो भी था सब निकाल कर चोरों को दे.दिया, चोरों ने

अपने थैले से रस्सी निकाल कर दोनों को अलगअलग कमरे में हाथपैर व मुंह बांध कर छोड़ दिया और बाहर से कुंडी लगा दी और फिर दीपा और अनिल के फ्लैट की तरफ बढ़ गए.

पाइप से बालकनी में कूद कर खिड़की से चोरों ने झांका. दीपा छड़ी के सहारे चलती हुई किचन से आ रही थी. अनिल अपनी छड़ी के सहारे चलता हुआ लैपटौप हाथ में ले कर बैडरूम की तरफ आ रहा था. चोर हंसे, ‘‘ये तो बेचारे चल भी नहीं पा रहे, इन से क्या डर, यहां तो मेहनत करनी ही नहीं पड़ेगी. बड़ी आसानी से काम होगा. वीर अपने रूम में पढ़ रहा था. चोरों ने निडर हो कर दरवाजे की कुंडी एक झटके में तोड़ दी.

पलभर में ही चोरों को देख कर अनिल और दीपा ने आंखों ही आंखें में एकदूसरे से पता नहीं क्या तय कर लिया, चोरों को पता ही नहीं चला. जैसे ही एक चोर ने अनिल के गले पर चाकू रखने की कोशिश की, अनिल ने अपनी छड़ी इतनी जोर से उस चोर की जांघ में मारी कि वह दर्द से चीख पड़ा.

वीर चीख सुन कर भागा आया और वहां का दृश्य देख कर घबरा गया. इतने में दूसरे चोर को दीपा अपने ठीक पैर से जोर से लाते मार चुकी थी और अपनी छड़ी से दूसरे चोर के चाकू को दूर फेंक चुकी थी.

दीपा चिल्लाई, ‘‘वीर, दोनों चाकुओं को बाहर फेंक दो.’’

दोनों चोरों को इस तरह से चोट लगी थी कि  वे

हिलडुल नहीं पा रहे थे. उस के बाद अनिल और दीपा ने अपनी छड़ी से चोरों को पीटते हुए कहा, ‘‘वीर, सामने वालों को बुला लाओ.’’

वीर भाग कर सामने फ्लैट में रहे नमन परिवार को बुला लाया. वहां का दृश्य देख कर सब हैरान रह गए. अनिल और दीपा ने चोरों को पूरी तरह से काबू में किया हुआ था.

इस बीच नमनजी का बेटा पुलिस को फोन कर चुका था. बाकी पड़ोसी भी इकट्ठा हो गए थे. चोरों को एक कोने में बैठा दिया गया. सब अनिल और दीपा की हिम्मत की प्रशंसा कर रहे थे.

पुलिस आ गई. चोरों के थैले की तलाशी ली तो उन्होंने नीचे के फ्लैट की चोरी भी कुबूल ली. हैरान हो कर सब नीचे भागे, कुछ मंजू के फ्लैट की तरफ कुछ सुमन के. दोनों का दरवाजा नहीं खुला तो कुछ लड़कों ने पाइप के सहारे बालकनी में उतर कर घर के दरवाजे खोले. मंजू और विपिन बंधे पड़े थे. सुमन बाथरूम से चिल्ला रही थी, श्वेता अभी सोई हुई ही थी.

उन तीनों को जब सारी घटना पता चली तो मंजू और सुमन शर्मिंदगी से घिर गए, दोनों अपनी आंखों से बहते शर्मिंदगी के आंसू पोंछने लगीं. दोनों को ही लगा एक मीठा सा रिश्ता अभीअभी जुड़ा है दीपा से. बहते आंसू ईर्ष्या को बहाते रहे.

Hindi Drama Story

Kirthi Jayakumar: मानव तस्करी विरोधी विधेयक में सक्रिय भूमिका

Kirthi Jayakumar: (सोशल इंपैक्ट आइकन अवार्ड)- कीर्ति जयकुमार एक ऐक्टिविस्ट, आर्टिस्ट, ऐंटरप्रन्योर और राइटर हैं, जिन्होंने 2013 में ‘रैड एलिफेंट फाउंडेशन’ की स्थापना की. यह एक यूथ नेतृत्व वाली शांति निर्माण पहल है जो ‘एडवोकेसी,’ ‘स्टोरी टैलिंग,’ ‘टेक फौर गुड’ और डिजिटल मीडिया के माध्यम से लिंग समानता, शांति और सामाजिक न्याय पर फोकस करता है.

कीर्ति जयकुमार का जन्म 15 दिसंबर, 1987 को बैंगलुरु में हुआ था. उन्होंने चैन्नई के ‘स्कूल औफ ऐक्सीलैंस इन ला’ से कानून की डिगरी प्राप्त की और बाद में कोस्टारिका में ‘यूनिवर्सिटी फौर पीस’ से शांति अध्ययन और संघर्ष समाधान में मास्टर डिगरी प्राप्त की.

कीर्ति ने कानून की डिगरी के साथसाथ ‘पीस ऐंड कनफ्लिक्ट स्टडीज’ में मास्टर डिगरी प्राप्त की है. कीर्ति जयकुमार का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है लेकिन उन की मां ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया और उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया.

कीर्ति जयकुमार ने ‘साहस’ नामक एक जीपीएस इनेबल्ड वैब और मोबाइल ऐप विकसित किया है जो महिलाओं को हिंसा से बचने और मदद प्राप्त करने में सहायता करता है. यह ऐप 197 देशों में उपलब्ध है और महिलाओं को चिकित्सा, कानूनी और अन्य प्रकार की मदद प्रदान करता है.

कीर्ति जयकुमार का कहना है कि उन का उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करना है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं महिलाओं को साहस देना चाहती हूं ताकि वे अपने जीवन को बदल सकें.’’

मुख्य कार्य और योगदान

– महिलाओं के भले के लिए ‘साहस’ ऐप विकसित किया.

– 112 से अधिक वर्कशौप किए, जिन में 3,500 से अधिक बच्चों और युवाओं को जैंडर और पीस से जुड़ी शिक्षा दी.

– न्याय, समानता जैसे विषयों पर उपन्यास और कविताएं प्रकाशित कीं.

– यूएन औनलाइन वालंटियरिंग प्रोग्राम के माध्यम से स्कूलों, कालेजों, यूएन एजेंसियों के साथ कोलैबोरेशन.

पुरस्कार और मान्यता

– यूएस प्रैसिडैंशियल सर्विस अवार्ड (2012) तत्कालीन प्रैसिडैंट बराक ओबामा द्वारा स्वयंसेवी कार्य के लिए.

– 3 बार यूएन औनलाइन वालंटियर औफ द ईयर अवार्ड प्राप्तकर्ता.

– फिक्की फ्लो आउटस्टैंडिंग वूमन अचीवर औफ द ईयर (2018).

– फरवरी, 2018 में फेसबुक इंडिया की 6 महिलाओं में से एक के रूप में नामित.

– व्हाइट हाउस में यूनाइटेड स्टेट्स औफ वूमन समिट (2016) में आमंत्रित.

– न्यू दिल्ली में प्रैसिडैंट ओबामा के टाउन हाल (2017) में आमंत्रित.

कीर्ति के नेतृत्व ने लिंग समानता, शांति निर्माण की ओर मानसिकता में बदलाव को बढ़ावा दिया है. कीर्ति जयकुमार का ‘रैड एलिफेंट फाउंडेशन’ के माध्यम से काम समर्पित सक्रियता का एक उदाहरण है जो लिंग समानता और शांति को बढ़ावा देने के लिए कानूनी ज्ञान, तकनीक और कहानी कहने को जोड़ता है.

कीर्ति जयकुमार की कहानी एक प्रेरणा है कि कैसे एक महिला अपने सपनों को पूरा कर सकती है और समाज में बदलाव ला सकती है. उन्होंने अपनी कला के माध्यम से समाज में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उन की कहानी आने वाली पीढि़यों के लिए एक प्रेरणा होगी.

Kirthi Jayakumar

Neha Bagaria: महिलाओं की आजादी और लीडरशिप की बड़ी आवाज

Neha Bagaria: नेहा बगारिया बेंगलुरु, कर्नाटक में रहने वाली एक जानी-मानी उद्यमी हैं. उन्होंने अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया (व्हार्टन स्कूल) से ड्यूल डिग्री हासिल की है. नेहा HerKey (पहले JobsForHer) की संस्थापक और सीईओ हैं जो आज भारत का सबसे बड़ा AI-पावर्ड करियर एंगेजमेंट प्लेटफॉर्म है, खासतौर पर महिलाओं के लिए बनाया गया.

नेहा को इस प्लेटफॉर्म का आइडिया तब आया जब उन्होंने मां बनने के बाद करीब 3.6 साल का करियर ब्रेक लिया. उस दौरान उन्होंने महसूस किया कि भारत में लाखों महिलाएं बच्चे या पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण काम छोड़ देती हैं और फिर दोबारा काम पर लौटने में उन्हें कितनी मुश्किलें होती हैं. इसी सोच से 2015 में उन्होंने JobsForHer की शुरुआत की, जो अब HerKey के नाम से जाना जाता है.

आज HerKey पर 40 लाख से ज़्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं और 15,000 से ज़्यादा कंपनियां इस प्लेटफॉर्म के जरिए डाइवर्सिटी हायरिंग, ट्रेनिंग, और महिला लीडरशिप प्रोग्राम्स चला रही हैं. यहां सिर्फ नौकरियां नहीं, बल्कि अपस्किलिंग कोर्स, मेंटरशिप, नेटवर्किंग और प्रोफेशनल ग्रोथ के मौके भी मिलते हैं.

नेहा का सफर भी काफी दिलचस्प रहा है. अपने करियर की शुरुआत उन्होंने पैरागौन नाम की कंपनी से की थी, जिसके जरिए उन्होंने भारत में एडवांस्ड प्लेसमेंट (AP) प्रोग्राम लाया. इसके बाद वे अपने परिवार की बायोफार्मा कंपनी Kemwell में बिजनेस स्ट्रैटेजी और मार्केटिंग का काम देखने लगीं. लेकिन जब उन्होंने कुछ साल का ब्रेक लिया, तब उन्हें एहसास हुआ कि महिलाओं के लिए दोबारा काम शुरू करना कितना मुश्किल होता है और यहीं से शुरू हुई HerKey की नींव.

शुरुआत में नेहा ने सिर्फ पांच महिलाओं की टीम के साथ अपने घर की छत से यह काम शुरू किया था. आज HerKey के पास 100 से ज़्यादा लोगों की टीम है और Amazon, Accenture, Capgemini, Myntra जैसी बड़ी कंपनियां इसकी क्लाइंट हैं. कंपनी का मॉडल भी दिलचस्प है महिलाओं के लिए प्लेटफॉर्म पूरी तरह फ्री है, जबकि कंपनियां हायरिंग और टैलेंट एंगेजमेंट सेवाओं के लिए भुगतान करती हैं.

अब तक HerKey ने Kalaari Capital, 360 ONE Asset और कुछ एंजल इन्वेस्टर्स से करीब 4 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई है. कंपनी का मकसद सिर्फ महिलाओं को नौकरियां दिलाना नहीं, बल्कि उनके करियर को दोबारा संवारना और समाज में बराबरी का माहौल बनाना है.

नेहा बगारिया को कई अवॉर्ड्स से नवाजा जा चुका है- Forbes India’s WPower Trailblazers, BusinessLine Changemaker Award 2023 (Social Transformation) और NITI Aayog व संयुक्त राष्ट्र (UN) से महिला सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए सम्मान मिला है.

वो आज महिलाओं की आर्थिक आजादी, लीडरशिप और फाइनेंशियल इंक्लूजन की बड़ी आवाज़ बन चुकी हैं. HerKey में ज्यादातर महिलाएं काम करती हैं चाहे वो करियर रिटर्नी हों, फ्रेशर्स, लीडर्स या टेक प्रोफेशनल्स.

नेहा का अगला सपना है कि HerKey के जरिए 1 करोड़ महिलाओं को उनके करियर में आगे बढ़ने में मदद मिले. वो चाहती हैं कि भारत की हर महिला को सीखने, बढ़ने और लीडर बनने का मौका मिले और कंपनियां भी महिलाओं की टैलेंट और पोटेंशियल को सही मायने में पहचानें.

Neha Bagaria

Aishwarya Pissay: देश की युवतियों और मोटरस्पोर्ट्स प्रेमियों की रोल मौडल

Aishwarya Pissay: ऐश्वर्या पिस्से बेंगलुरु, कर्नाटक की रहने वाली एक जानी-मानी रेसर हैं. वो भारत की पहली मोटरस्पोर्ट्स एथलीट हैं जिन्होंने वर्ल्ड टाइटल जीता, जब उन्होंने 2019 में FIM Bajas World Cup (महिला कैटेगरी) में इतिहास रचा. आज वो TVS Racing टीम की प्रोफेशनल राइडर हैं और देश-विदेश में अपने दमदार परफॉर्मेंस से पहचान बना चुकी हैं.

ऐश्वर्या का जन्म 14 अगस्त 1995 को बेंगलुरु में हुआ था. उन्होंने महिला सेवा समाज सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पढ़ाई की और फिर सुराना कॉलेज से साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन किया. उन्हें बचपन से एडवेंचर पसंद था, लेकिन बाइक रेसिंग का जुनून उन्हें 18 साल की उम्र में हुआ. इसी उम्र में उन्होंने Apex Racing Academy से ट्रेनिंग लेकर रेसिंग की शुरुआत की और जल्द ही मोटरस्पोर्ट्स की दुनिया में नाम कमाना शुरू कर दिया.

2016 और 2017 में ऐश्वर्या ने Honda One Make Championship और TVS One Make Road Racing टाइटल्स जीते. इसके बाद उन्होंने लगातार सात FMSCI नेशनल टाइटल्स जीते जिनमें से छह लगातार इंडियन नेशनल रैली चैम्पियनशिप के खिताब थे.

2018 में ऐश्वर्या ने एक और इतिहास रचा जब वो Baja Aragon Rally (Spain) में भाग लेने वाली भारत की पहली महिला रेसर बनीं. यह रैली दुनिया की सबसे कठिन रेसों में से एक मानी जाती है. लेकिन उनका सफर आसान नहीं रहा. कई बार उन्हें गंभीर चोटें आईं एक बार तो उनकी पैंक्रियाज फट गई थी, जिससे उनकी जान को भी खतरा था. लेकिन ऐश्वर्या ने हार नहीं मानी. उन्होंने लंबे इलाज और ट्रेनिंग के बाद फिर से ट्रैक पर वापसी की और अपने जज़्बे से सबको चौंका दिया.

2019 में उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय महिलाएं किसी से कम नहीं हैं उन्होंने FIM Bajas World Cup (महिला वर्ग) जीतकर भारत का नाम गर्व से ऊँचा किया. यह वर्ल्ड कप उन्होंने दुबई, पुर्तगाल, स्पेन और हंगरी में खेले गए चार राउंड्स में हिस्सा लेकर 65 पॉइंट्स के साथ जीता. इस जीत के साथ वो भारत की पहली वर्ल्ड चैम्पियन मोटरस्पोर्ट्स एथलीट बन गईं.

ऐश्वर्या को अब तक कई अवॉर्ड्स और सम्मान मिल चुके हैं —

* TiE Young Achiever of the Year (2016)

* Outstanding Women in Motorsports Award (FMSCI द्वारा 2016 और 2017)

* CEAT Sprint Rally Champion

* Asia Road Racing Cup में सेकंड पोज़िशन (2016)

* और हाल ही में 2024 में उन्होंने FIM Bajas World Cup में तीसरा स्थान हासिल किया, यानी तीसरी बार वर्ल्ड चैम्पियनशिप पोडियम पर जगह बनाई.

जज्बा और हिम्मत

ऐश्वर्या पिस्से सिर्फ एक रेसर नहीं बल्कि एक प्रेरणा हैं. उन्होंने साबित किया है कि अगर जज्बा और हिम्मत हो तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती. आज वे देशभर की युवतियों और मोटरस्पोर्ट्स प्रेमियों के लिए रोल मौडल बन चुकी हैं. वे खुद भी अब इस दिशा में काम कर रही हैं कि महिलाओं को मोटरस्पोर्ट्स में ज्यादा मौके और सही प्लेटफौर्म मिल सके.

उन का मानना है कि खुद पर भरोसा रखो, रास्ता अपनेआप बन जाएगा और शायद यही लाइन उन की जिंदगी और कामयाबी की सब से सही पहचान है.

Aishwarya Pissay

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