Dhivya Vikram: कौन्फिडैंस किसी साइज का मुहताज नहीं

Dhivya Vikram: (डिजिटल कंटैंट क्रिएटर अवार्ड)-  विक्रम, जिन्हें सोशल मीडिया पर लोग प्यार से Snazzy Tamilachi के नाम से जानते हैं, चैन्नई की एक खूब चर्चित डिजिटल क्रिएटर हैं. वे डांस, ऐक्टिंग, फैशन और अपनी बिंदास पर्सनैलिटी से यह साबित करती हैं कि कौन्फिडैंस किसी साइज का मुहताज नहीं होता. प्लस साइज कंटैंट क्रिएटर के तौर पर धिव्या ने साउथ इंडिया में एक अलग ही पहचान बनाई है.

धिव्या ने अपने कैरियर की शुरुआत एक प्रोफैशनल डांसर और ऐक्टर के रूप में की थी. लेकिन धीरेधीरे उन का झुकाव डिजिटल कंटैंट की तरफ बढ़ा और उन्होंने सोशल मीडिया को ही अपना पूरा मंच बना लिया. आज उन के इंस्टाग्राम, यूट्यूब और दूसरे प्लेटफौर्म्स पर लाखों लोग जुड़े हैं जो उन के डांस, उन के ह्यूमर और उन की ईमानदार बातों से इंस्पायर होते हैं.

क्या है मकसद

धिव्या सिर्फ एक क्रिएटर ही नहीं हैं वे एक ऐंटरप्रन्योर भी हैं. उन्होंने Size Beyond नाम का एक साइज इनक्लूसिव फैशन ब्रैंड कोफाउंड किया है जो XS से ले कर 10 XL तक के साइज में स्टाइलिश और कंफर्टेबल आउटफिट बनाता है. उन का मकसद साफ है, हर महिला को उस के शरीर के हिसाब से अच्छे कपड़े मिलें और फैशन सिर्फ एक वर्ग तक सीमित न रहे.

उन का कंटैंट उन की पहचान है. ऐनर्जी से भरा डांस, लाइफस्टाइल वीडियोज और बाडी पौजिटिविटी पर खुल कर की गई बातें. धिव्या अपने बोल्ड और दिल से जुड़े मैसेजों से यह दिखाती हैं कि खुद से प्यार करना कोई ऐटिट्यूड नहीं बल्कि जरूरी चीज है खासकर साउथ की युवा लड़कियों के लिए वे एक बड़ी प्रेरणा हैं क्योंकि वे उन्हें एक ऐसा चेहरा देती हैं जिस में वे खुद को देख पाती हैं बिना जजमैंट के, बिना ग्लैमर की ओवर फिल्टर परत के.

रंग लाई मेहनत

धिव्या की मेहनत और असर को पहचान भी मिली है. धिव्या को Blaze Summer Fest 2025 में डिजिटल ऐक्सीलैंस और पौजिटिव सोशल इंपैक्ट के लिए सम्मानित किया गया. आज वे 5 लाख से ज्यादा फौलोअर्स के साथ साउथ इंडिया की सब से प्रमुख प्लस साइज फैशन और लाइफस्टाइल इन्फ्लुएंसर्स में गिनी जाती हैं.

Snazzy Tamilachi के जरीए धिव्या विक्रम ने यह साबित कर दिया है कि रीयल कौन्फिडैंस तभी आता है जब आप खुद को जैसे हैं, वैसे ही अपनाते हैं. उन का सफर, उन की आवाज और उन का कंटैंट लगातार महिलाओं को यह भरोसा देता है कि सुंदरता एक ही सांचे में नहीं ढलती हर शरीर खूबसूरत है.

Dhivya Vikram

Dinaz Vervatwala: एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया, जहां फिटनैस टिकाऊ और मजेदार

Dinaz Vervatwala: डिजिटल कंटैंट क्रिएटर अवार्ड (हैल्थ ऐंड फिटनैस)- जहां आज भी कोई फिटनैस की बात छेड़ता है तो सब से पहले हमारे दिमाग में सुडौल पुरुष की छवि आती है क्योंकि बरसों से हम सेहत और ताकत का प्रतीक पुरुषों को ही मान रहे हैं. हमारी इसी सोच को चुनौती देते हुए दिनाज 3 दशकों से फिटनैस वर्ल्ड में अपना सिक्का जमाए हुए हैं. दिनाज का फिटनैस वर्ल्ड में हर चुनौती को पार करते हुए यों डटे रहना, उन सभी लड़कियों के लिए मिसाल है जो सिर्फ इस डर से आगे नहीं आतीं कि फिटनैस तो लड़कों की ताकत दिखाने का क्षेत्र है या फिटनैस वर्ल्ड में लड़कियों के लिए ज्यादा स्कोप या कमाई के मौके नहीं.

आज दिनाज को दुनिया में ऐरोबिक्स के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकौर्ड होल्डर और स्वास्थ्य एवं कल्याण कोचिंग के क्षेत्र में एक अग्रणी कोच के रूप में जाना जाता है. दिनाज शारीरिक प्रशिक्षण और माइंड प्रोग्रामिंग के माध्यम से व्यक्तियों, समुदायों और नैशनल ऐथलीटों को सशक्त बनाती हैं. दिनाज के इसी जोश को सलाम करते हुए गृहशोभा ने अपने इंस्पायर अवार्ड्स में उन्हें डिजिटल फिटनैस अवार्ड से नवाजा. दिनाज उन सभी लोगों के लिए एक बहुत बड़ा उदाहरण हैं जो फिटनैस वर्ल्ड में अपना नाम बनाने की चाह रखते हैं खासकर लड़कियां.

कौरपोरेट से फिटनैस कोच की राह

दिनाज मुंबई के एमएमके कालेज से कौमर्स ग्रैजुएट हैं और अपने कैरियर की शुरुआत उन्होंने बतौर एक प्रोफैशनल ट्रेंड चार्टर्ड अकाउंटैंट के रूप में की. अपने 1 साल के बेटे को संभालते समय ही उन्हें अपनी फिटनैस पर गौर करने की प्रेरणा मिली. उन्होंने फिटनैस के साथ ऐरोबिक्स क्लासेज जौइन कीं और देखते ही देखते अपनी कड़ी मेहनत से एक प्रसिद्ध उ-मी और फिटनैस ट्रेनर बन गईं. दिनाज अपने सोशल मीडिया हैंडल के द्वारा बहुत से लोगों को फिटनैस से जोड़ रही हैं. उन्हें फिट और हैल्दी रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. हैल्थ से जुड़ी बहुत सारे महत्त्वपूर्ण टिप्स ऐंड ट्रिक्स और आसान ऐक्सरसाइज शेयर कर उन के जीवन में हैल्दी बदलाव ला रही हैं, जिस वजह से उन्हें लोगों की बहुत तारीफ और शुभकामनाएं मिलती रहती हैं.

फिटनैस में अपने कैरियर को बढ़ाते हुए दिनाज ने 1992 में हैदराबाद के पहले महिला ऐरोबिक्स सैंटर की स्थापना की. आगे के 3 दशकों में उनका काम बहुत फूलाफला और दिनाज फिटनैस स्टूडियो पर्सनल कोचिंग, वैलनैस प्रोग्राम, बड़े कौरपोरेट्स और नामी एवं नैशनल ऐथलीटों के लिए फिटनैस प्रोग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया, साथ ही एक प्रेरक वक्ता के रूप में दिनाज भारत और विदेशों में फिटनैस, पोषण, वजन घटाने, मधुमेह शिक्षा और लचीलेपन पर कई वर्कशौप प्रदान करती हैं.

उल्लेखनीय भूमिका और उपलब्धियां

– 26 घंटे की नौनस्टौप ऐरोबिक्स मैराथन की गिनीज वर्ल्ड रिकौर्ड होल्डर.

– तीसरी रनर अप मिस फिटनैस यूनिवर्स (2011, रियो डी जनेरियो).

– संस्थापक और प्रबंध निदेशक, दिनाज फिटनैस स्टूडियो.

– ‘वेटलौस ऐक्सट्रीम’ कार्यक्रम के अंतर्गत लगभग 70 फिटनैस पेशेवरों को प्रशिक्षित किया गया.

– राष्ट्रीय खेल आइकनों की ट्रेनर (साइना नेहवाल, वी.वी.एस. लक्ष्मण, पुलेला गोपीचंद).

– प्रमुख मैराथन और सैन्य खेलों में 30 हजार प्रतिभागियों के लिए सामूहिक वार्मअप का नेतृत्व.

– पूरे भारत में चिकित्सा सम्मेलनों, TED3/TED कार्यक्रमों और संस्थानों में वक्ता.

– 2005 में एक भीषण अग्नि दुर्घटना से बचने पर- मनोबल और विपरीत स्थितियों पर दिमागी तालमेल पर चर्चा.

दक्षिण भारत ही नहीं संपूर्ण भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणा

दिनाज वर्वतवाला को दक्षिण भारत में ऐरोबिक्स और आधुनिक कल्याण की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है. दिनाज ने अपनी पहल से एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया, जहां फिटनैस सयुंक्त, टिकाऊ और मजेदार हो. विशिष्ट ऐथलीटों के लिए उन का मार्गदर्शन, युवा महिला प्रशिक्षकों के लिए समर्थन और प्रेरक भाषण ने आम स्तर और कौरपोरेट दोनों स्तरों पर स्वास्थ्य के प्रति अपनाई गई धारणा में बदलाव लाया है.

व्यक्तिगत मसलों से लड़ कर बाहर आ कर और अपनी असफलताओं को खुले तौर पर साझा कर वे हर महिला के लिए एकदृढ़ संकल्प और सशक्तीकरण के रोल मौडल के रूप में नजर आती हैं खासकर उन महिलाओं के लिए जो फिटनैस समुदायों से जुड़ी और इस में कुछ कर गुजरना चाहती हैं.

Dinaz Vervatwala

C. A. Bhavani Devi: भारत की पहली ओलिंपियन सेबर फेंसर

C. A. Bhavani Devi: (स्पोर्ट्स अचीवर अवार्ड)- चडालवाड़ा आनंदा भवानी देवी, जिन्हें हम भवानी देवी के नाम से जानते हैं, चैन्नई की रहने वाली भारत की सब से सफल सेबर फेंसर हैं. 27 अगस्त, 1993 को जन्मी भवानी आज भारतीय फेंसिंग की एक ऐसी पहचान बन चुकी हैं, जिन्होंने इस खेल को देश में एक नई जगह दिलाई है. वे 12 बार की नैशनल चैंपियन हैं और 2023 एशियन फेंसिंग चैंपियनशिप में ब्रौंज मैडल जीत कर पहली भारतीय बनीं, जिन्होंने इस टूरनामैंट में पदक जीता, साथ ही वे टोक्यो 2020 ओलिंपिक्स में हिस्सा लेने वाली भारत की पहली फेंसर भी हैं.

भवानी की फेंसिंग की शुरुआत स्कूल के दिनों में हुई. दरअसल, जब स्कूल में बाकी खेलों के लिए सीटें भर गईं तब उन्होंने मजबूरी में फेंसिंग चुन ली लेकिन यही मजबूरी धीरेधीरे उन का जनून बन गई. शुरुआती दिनों में सुविधाएं कम थीं, कोच और ट्रेनिंग के औप्शन भी बहुत सीमित थे, लेकिन उन की मां और परिवार ने हर कदम पर उन का साथ दिया. भवानी ने भारत के साथसाथ विदेशों में भी ट्रेनिंग ली और पढ़ाई के साथसाथ अपने खेल को भी बराबर बैलेंस किया. उन्होंने बीए और एमबीए करते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन किया.

बड़ी उपलब्धियां

भवानी के कैरियर में कई बड़ी उपलब्धियां शामिल हैं. वे कौमनवैल्थ फेंसिंग चैंपियनशिप में डबल गोल्ड मैडलिस्ट रह चुकी हैं और कई अंतर्राष्ट्रीय टूरनामैंट्स जैसे टूर्नोई सैटेलाइट इवेंट्स और एशियन चैंपियनशिप में भी मैडल जीत चुकी हैं. लेकिन 2023 का ब्रौंज मैडल उन के कैरियर की सब से ऐतिहासिक उपलब्धियों में से एक है क्योंकि यह भारत का इस प्रतियोगिता में पहला पदक था.

भवानी देवी ने भारत में फेंसिंग को पहचान दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई है. पहले यह एक ऐसा खेल था जिस के बारे में लोग बहुत कम जानते थे, लेकिन भवानी की मेहनत, फोकस और कामयाबी ने इसे युवाओं खासकर लड़कियों के बीच लोकप्रिय बना दिया.

आज वे सिर्फ एक चैंपियन नहीं बल्कि एक प्रेरणा हैं जो साबित करती हैं कि चाहे रास्ता कितना भी मुश्किल क्यों न हो लगातार मेहनत और भरोसा आप को आप की मंजिल तक जरूर पहुंचाता है.

C. A. Bhavani Devi

Yashoda Prakash: क्यों अलग हैं यशोदा की कहानियां

Yashoda Prakash: ऐंपावरमैंट थ्रू ऐंटरटेनमैंट अवार्ड (औफस्क्रीन)- जब एक सफल फाइनैंशियल एडवाइजर को उस के सपने, उस के जनून ने सोने नहीं दिया और फिर ले आया उसे कहानियों के एक ऐसे सफर में जिस का रोमाचंक मोड़ बना नैशनल फिल्म अवार्ड.

कोडागु, कर्नाटक की हरियाली की गोद में जन्मी बच्ची एक दिन नैशनल अवार्ड जीतेगी, यह कभी किसी ने सोचा नहीं था. अपने प्रांत, संस्कृति के रंगों और कहानियों के बीच खेलीकूदी यशोदा हमेशा से अपने भीतर कुछ बड़ा करने का जज्बा लिए हुए थी, जिस की वजह से आज वे पहली कोडावती महिला निर्माता बनी.

एक निर्माता की शुरुआत: स्वास्तिक ऐंटरटेनमैंट

अपने सपने को पूरा करते हुए यशोदा ने स्वास्तिक एंटरटेनमैंट बैनर की नींव रखी, जिस के नीचे यशोदा ने कई फिल्में बनाई. ‘बाक्के माना,’ ‘श्मशान मौन,’ ‘दीक्षा और नाडा पेड़ा आशा’ की वे सहनिर्माता रही. मगर 2023 में बनी फिल्म ‘कंदीलु दी रे औफ होप’ यशोदा के जीवन का एक लाइफ चेंजिंग पौइंट रहा. फिल्म ‘कंदीलु’ को 71वें नैशनल फिल्म अवार्ड्स के अंतर्गत बैस्ट कन्नड़ फिल्म का खिताब मिला.

स्वास्तिक ऐंटरटेनमैंट की स्थापना करने का मकसद शायद यही था कि वे संवेदनशील और ठोस कहानियों को दुनिया के सामने रख सकें ताकि समाज में उन की कहानियों के जरीए कुछ मजबूत बदलाव होने की एक शुरुआत हो सके.

क्यों अलग हैं यशोदा की कहानियां

यशोदा की हर फिल्म लोगों के दिलोदिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाती है, जिस से उन्हें दुनियाभर से प्यार और सम्मान मिलता है क्योंकि इन फिल्मों की कहानियां कोई काल्पनिक घटनाओं से नहीं बुनी रहतीं बल्कि जीवन और समाज की वास्तविकता की जमीनी सचाई से उठ कर आती हैं. आम लोगों की आम कहानियां जो जीवन के हर रंग यानी सुखदुख, रोनाहंसना, चीखपुकार को हम सब के सामने एक फिल्म के जरीए पेश करती हैं. इन की कहानियों में कोई सुपर हीरो या फालतू के ट्विस्ट नहीं होते बल्कि एक किसान की पीड़ा, महिला की दुखद जीवनी, परिवार का कठिन संघर्ष और समाज के ऐसे वर्ग के लोगों की कहानियां होती हैं, जिन्हें हम न अपनी दौड़तीभागती जिंदगी में देखते और शायद न देखना चाहते हैं.

यशोदा की अपनी कहानियों के द्वारा समाज को आईना दिखाने और महिलाओं को सशक्त करने के हौसले को नमन करते हुए और उन के इस जब्बे को और मजबूत करने की राह में गृहशोभा ने भी अपनी भूमिका निभाई.

गृहशोभा ने यशोदा को ‘ऐंपावरमैंट थ्रूऐंटरटेनमैंट’ का अवार्ड दे कर यह आशा कि यशोदा यों ही अपनी फिल्मों से महिलाओं को समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ खड़े होने की ताकत और उन से लड़ कर आगे बढ़ने की एक प्ररेणास्रोत बनी रहेंगी.

सम्मान और उपलब्धियां

यशोदा आज फिल्म इंडस्ट्री में उम्दा निर्देशक और निर्माता की श्रेणी में गिनी जाती हैं. उन का काम इंडस्ट्री के साथ आम जनता के दिल को जीतते हुए कई फिल्म फैस्टिवल की शान बन गया है. यशोदा के उन्हीं बेहतरीन फिल्मों की उपलब्धि पर एक नजर:

– ‘कंदीलु दी रे औफ होप’ बैस्ट कन्नड़ फिल्म 71वें नैशनल फिल्म अवार्ड्स (2025).

– ‘बाक्के माना’ कोलकाता इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल, 2017 में चयनित.

– ‘श्मशान माना’ बैंगलुरु इंटरनैशनल फिल्म फैस्टिवल, 2018 में चयनित.

– ‘दीक्षा’ कर्नाटक फिल्म फैस्टिवल में चयनित.

– ‘कंदीलु’ विभिन्न फैस्टिवल नौमिनेशन एवं बीआईएफ फैस्टिवल में दूसरे स्थान की बैस्ट कन्नड़ फिल्म.

सोच और निश्चय

यशोदा हर संभव प्रयास करती हैं कि उन की कहानियां, फिल्में समाज में जागरूकता और बदलाव लाएं. इसलिए उन की कहानियां महिला संदर्भ के साथ पारिवारिक चुनौतियों, समाज के दबे वर्ग, उस की अनसुनी पुकार के इर्दगिर्द ही रहती हैं. अपने निर्देशन कार्य में आने वाली कोई भी कठिनाई यशोदा को और अधिक परिश्रम करने की प्रेरणा देती है जो उन के प्रयासों को और भी निखारता है, जिस से हमें सिनेमा इंडस्ट्री में कई यूनीक फिल्में देखने को मिलती हैं.

यशोदा ने एक इंटरव्यू में यह जताया था कि वे अपनी कोडावा संस्कृति को सिनेमा के जरीए विश्वभर में प्रस्तुत करना चाहती हैं और उन की फिल्में खासकर फिल्म ‘कंदीलु’ उसी बात का सत्य प्रमाण दिखता है. यशोदा समाज की कुंठित सोच को तोड़ते हुए दुनिया को ऐसी कहानियां दिखा रही हैं जो कोई कथाकहानियां नहीं बल्कि कड़वी सचाई हैं.

Yashoda Prakash

Jamma Mallari: कला के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के लिए द्वार खोले

Jamma Mallari: (फोक हेरीटेज आइकन अवार्ड) 80 वर्षीय जम्मा मल्लारी ओग्गु कथा की एकलौती महिला कथाकार हैं. वे इस क्षेत्र में अर्थात ओग्गु कथा कला में बदलाव की क्रांति ले कर आईं, जहां हमेशा से पुरुषों का बोलबाला था. दशकों से अपने ओग्गु कथा के प्रति निष्ठा और समर्पण से कई खूबसूरत परफौर्मैंस पेश कर अपनी सांस्कृतिक कला को बड़ा भी कर रही हैं और अपनी कला के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को प्रेरित भी कर रही हैं.

जिस महिला ने अपनी 80 वर्ष की आयु में 70 वर्ष अपनी सांस्कृतिक कला की रक्षा में त्याग दिए, उस महिला से बड़ा फोक आइकन आखिर कौन होगा. जम्मा के इसी समर्पण और निष्ठा को प्रणाम करते हुए गृहशोभा ने उन्हें गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड में फोक हैरिटेज आइकन अवार्ड प्रदान किया. जम्मा का कलात्मक सफर और उस के प्रति उन की निष्ठा आने वाली पीढ़ी के लिए मिसाल तो है ही, साथ ही एक आत्मपुकार भी है कि उन्हें अपनी सांस्कृतिक कला से जुड़े रहना चाहिए.

पुरुषों के क्षेत्र में एक महिला की क्रांति

जम्मा का जन्म उस परिवार में हुआ जो परंपरागत रूप से ओग्गु कथा को पेश करता आ रहा था. इसलिए जम्मा के पहले गुरु और कोई नहीं उन के पिता ही थे. जहां औरतों का समाज में कई पिछड़ी धारणाओं के चलते अपने विचार व्यक्त करना, एक अलग सोच रखना भी अपराध माना जाता था, वहां जम्मा ने केवल 11 वर्ष की आयु में प्राचीन कला का ज्ञान अर्जित करना शुरू कर दिया. जिस समय में एक लड़की का घर के बाहर पैर रखना भी अच्छा और सुरक्षित नहीं माना जाता था उस समय अपनी कला प्रदर्शन के लिए जम्मा अपनी यात्राएं हर मुश्किल पार करते हुए पूरा करतीं और मल्लान्ना की कथा को अपने अभिनय द्वारा एक उम्दा कला के रूप में पेश करतीं. उन का जनून और ओग्गु कथा कला सीखने और निखारने के संकल्प ने उन्हें कभी रुकने नहीं दिया.

अध्ययन, अभिनय और प्रशंसा

1956 के पास जम्मा ने ओग्गु कथा में पारंगत होने के लिए गायन, संगीत, नृत्य और परंपरागत वा-यंत्र जैसे रोल ऐंड झांझ को सीखना आरंभ किया ताकि अपने अभिनय को और निखार दे सकें और भारतीय संस्कृति की महान कहानियों को अपनी कला से ओग्गु कथा के रूप में पेश कर सकें. ओग्गु कथा को देश के हर कोने तक पहुंचाने के लिए जम्मा ने पिछले 6 दशकों से हर संभव प्रयास किया. जम्मा तेलंगाना और उस के आसपास के राज्यों और उन के गांवों, शहरों और उत्सवों में जा कर अपनी कला से लोगों का दिल जीत रही हैं.

जम्मा की कला का सब से अनूठा रंग है उन की बहुमुखी प्रतिभा, जहां वे पुरुष का भेष धारण परफौर्मैंस करती हैं. पुरुष वेशभूषा में गाती भी हैं और अभिनय भी करती हैं, जिस से वे सभी दर्शकों का दिल जीतती हैं और पारंपरिक कथा प्रदर्शन के मानदंडों को भी पूरा करती आ रही हैं.

जम्मा की उपलब्धियां

– 1950 के मध्य से ओग्गु कथा का प्रदर्शन करते हुए लगभग 70 वर्ष हो गए.

– सदियों पुरानी पुरुष प्रधान कला शैली में महिला भागीदारी की शुरुआत की.

– लोक कला समुदायों द्वारा आध्यात्मिक और कलात्मक गुरु की मान्यता.

अवार्ड्स

– सर्वश्रेष्ठ महिला लोक कलाकार के लिए वूमन अचीवर अवार्ड, ‘तेलंगाना’ (2020).

– क्षेत्रीय मीडिया और सांस्कृतिक मंचों पर ओग्गु कथा की एक प्रभावशाली महिला कलाकार के रूप में व्यापक रूप से प्रदर्शित कलाकार.

एक संरक्षक और शक्ति के रूप में

जम्मा मल्लारी का योगदान सिर्फ एक कलाकार के रूप में ही नहीं बल्कि एक शक्ति के रूप में भी है. वह शक्ति जो भारत की मौखिक और लोक विरासत के भीतर लैंगिक सशक्तीकरण की आवाज भी है और निरंतर रूप से उस के किए कर्मठ भी है. पारंपरिक रूप से जिस कला में  महिलाओं को अस्वीकार किया जाता था, जम्मा ने उसी कला में अपनी अहम भूमिका निभाई और समाज की बहुत सी महिलाओं के लिए कई रास्ते खोल दिए, जिस से महिलाओं की भागीदारी और प्रेरणा को बढ़ावा मिला है.

Jamma Mallari

Sunitha Krishnan: निर्भीक मानव तस्करी विरोधी योद्धा

Sunitha Krishnan: सुनीता कृष्णन भारत की निर्भीक मानव तस्करी विरोधी योद्धा और ह्यूमन राइट्स ऐक्टिविस्ट हैं. प्रज्ज्वला की सहसंस्थापक के रूप में उन्होंने दुनिया का सब से बड़ा मानव तस्करी विरोधी संगठन बनाया है जिस ने 28,600 से अधिक पीडि़तों को बचाया और पुनर्वासित किया है. उन के पीडि़त नेतृत्व वाले सशक्तीकरण मौडल ने 12 देशों में मानव तस्करी विरोधी नीतियों को फिर से आकार दिया है.

बैंगलुरु के एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी सुनीता कृष्णन प्रज्ज्वला की सहसंस्थापक हैं. सुनीता को बचपन से ही समाज सेवा का शौक था. जब वे 8 साल की थीं तब उन्होंने मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को डांस सिखाना शुरू कर दिया था. 12 साल की उम्र में वे वंचित बच्चों के लिए झुग्गियों में स्कूल चलाती थीं.

15 की उम्र में जब वे दलित कम्युनिटी के लिए नव साक्षरता अभियान चला रही थीं तब 8 लोगों ने उन का सामूहिक बलात्कार किया था. उन्हें उन के पुरुष प्रधान समाज में एक महिला  की दखलंदाजी पसंद नहीं थी. सुनीता को बुरी तरह पीटा भी गया था. इस से उन का एक कान भी आंशिक रूप से डैमेज हो गया और उन्हें कम सुनाई देने लगा. मगर सुनीता ने हार नहीं मानी. नजरें झुका कर जीने, कुछ न कहने या आत्महत्या करने के बजाय सुनीता कृष्णन ने संघर्ष का रास्ता चुना.

किताब के जरीए जिंदगी की कहानी

कृष्णन कहती हैं, ‘‘आज मुझे जो याद है वह बलात्कार नहीं है. मुझे अपना गुस्सा याद है,’’ उन्होंने उस गुस्से का बखूबी इस्तेमाल किया है जो अब उन के जीवन का काम बन गया है. उन्होंने एक किताब के जरीए अपनी जिंदगी की कहानी भी बयां की. ‘आई एम, व्हाट आई एम’ नाम की इस किताब में अपनी आपबीती के साथ एक मुहिम की शुरुआत की दास्तां लोगों के सामने रखी.

सामूहिक बलात्कार की शिकार महिला अधिकारों की पैरोकार बनी सुनीता ने अपने साथ हुए हादसे को यौन तस्करी और जबरन वेश्यावृत्ति की शिकार महिलाओं को बचाने, पुनर्वास करने और समाज में वापस लाने के लिए प्रेरणा के रूप में इस्तेमाल किया. उन्होंने एक ऐसा संगठन बनाया, जिस ने 17,800 से ज्यादा महिलाओं और बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला है.  2016 में उन्हें देश का चौथा सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री दिया जा चुका है.

1996 में सुनीता ने हैदराबाद में यौन तस्करी के जाल में फंसी महिलाओं और बच्चों को बचाने के लिए गैर लाभकारी संगठन प्रज्ज्वला की सहस्थापना की थी. वे यौन तस्करी को ‘मानवाधिकारों के उल्लंघन का सब से बुरा रूप’ और ‘आधुनिक गुलामी’ बताती हैं. उन का संगठन हैदराबाद में एचआईवी/एड्स से संक्रमित 5 हजार बच्चों की शिक्षा का दायित्व भी निभाता है और वेश्याओं के हजारों बच्चों के लिए 17 केंद्र संचालित करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे दूसरी पीढ़ी के यौन शिकार न बनें.

पुरस्कार और सम्मान

अपने कट्टरपंथी विचारों के कारण सुनीता अपने परिवार से दूर हो गईं. उन के कट्टरपंथी काम ने उन की जान को बारबार खतरे में डाला है. सुनीता ने हजारों लड़कियों को बचाया है. 3 साल के बच्चों से ले कर 40 साल तक की महिलाओं को भी सुनीता ने न सिर्फ बचाया बल्कि प्रज्ज्वला के जरीए उन्हें आश्रय ढूंढ़ने और कोई काम सीखने में भी मदद करती हैं. ये लड़कियां आत्मविश्वास हासिल कर रही हैं और अपने जीवन में आशा का संचार कर रही हैं.

सुनीता ने मानव तस्करी विरोधी विधेयक का मसौदा तैयार करने में सक्रिय भूमिका निभाई है और #ShameTheRapist अभियान शुरू किया है. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित किया है, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कानून सुधारों को प्रभावित किया है और तकनीकी कंपनियों पर औनलाइन यौन शोषण को संबोधित करने के लिए दबाव डाला है.

उन्हें बहुत से पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं जिन में प्रमुख हैं, ‘पद्म श्री, भारत सरकार’ (2016), ‘टैल्बर्ग ग्लोबल लीडरशिप पुरस्कार,’ ‘फ्रैंकोजरमन अवार्ड फौर ह्यूमन राइट्स ऐंड रूल औफला,’ ‘सिविकस नेल्सन मंडेला इनोवेशन अवार्ड’ (2014), ‘जान जे कालेज इंटरनैशनल लीडरशिप अवार्ड, न्यूयार्क’ (2011), ‘ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स हीरो, यू.एस. डिपार्टमैंट आफ स्टेट’ (2009), ‘सीएनएनआईबीएन रियल हीरो अवार्ड’ (2008), ‘लिंविग लिजेंड्स अवार्ड,’ ‘ह्यूमन सिंफनी फाउंडेशन’ (2013), ‘डायने वान फर्स्टेंबर्ग फाउंडेशन ऐक्सप्लेंप्लरी वूमन अवार्ड’ (2013), ‘स्त्री शक्ति पुरस्कार, भारत सरकार’ (2003) और ‘अशोक फैलो फौर इनोवेटिव सोशल ऐंटरप्रन्योरशिप.’

Sunitha Krishnan

Fictional Story: हमदर्दों से दूर- क्या सही था अखिलेश और सरला का फैसला

Fictional Story: “हैलो अखिलेशजी, आप फ्री हों तो आज शाम मिलें?” “जी जरूर, मैं तो खाली ही हूं. मगर कहां?” हड़बड़ाते हुए अखिलेश ने पूछा. “जी वही बंजारा रेस्तरां में ठीक 6 बजे मिलते हैं,” सरला ने जवाब दिया.

“ओके…” अखिलेश सरला से खुद मिलना चाहता था. वह खुश था कि सरला ने ही फोन कर के मिलने बुला लिया. दरअसल, जब से उस ने मैट्रिमोनियल साइट में अपनी प्रोफाइल बनाई थी सरला पहली महिला थी जो उसे एक ही नजर में ही पसंद आ गई थी.

समय 6 बजे का था मगर अखिलेश 2 घंटे पहले ही तैयार हो गया. आखिर सरला से जो मिलने जाना था. हलके ग्रे कलर की शर्ट और पैंट पहन कर वह आईने में ठीक से अपना मुआयना करने लगा. हर ऐंगल से खुद को जांचापरखा. कान के पास

किनारेकिनारे झांक रहे सफेद बालों को छिपाने की कोशिश की. 4 दिन पहले ही डाई लगाई थी मगर सफेदी फिर सामने आ गई थी. आंखों का चश्मा और माथे की सिलवटें वह चाह कर भी छिपा नहीं सकता था. खुद ही दिल को यह सोच कर दिलासा देने लगा कि 60 साल की उम्र में इतना फिट और आकर्षक भला कौन नजर आता है? जेब में पर्स और हाथ में मोबाइल ले कर वह चल दिया.

अखिलेश की पत्नी का करीब 10 साल पहले देहांत हो गया था. उस वक्त बच्चे साथ थे इसलिए ज्यादा पता नहीं चला. मगर धीरेधीरे बच्चों की शादी हो गई और वे अपनीअपनी दुनिया में मशगूल हो गए. बेटी ब्याह कर दूसरे शहर चली गई और

छोटे बेटे ने भी जौब के चक्कर में यह शहर छोड़ दिया. बड़ा बेटा पहले ही शादी के बाद मुंबई में बस चुका था. इस तरह मेरठ के घर में वह नितांत अकेला रह गया था.

अब पत्नी की याद ज्यादा ही आने लगी थी. नौकरानी घर संभाल जाती. नाश्ताखाना भी बना देती. मगर पत्नी वाली केयर कैसे कर सकती थी. यही वजह थी कि अखिलेश ने फिर से शादी करने का फैसला लिया ताकि अपनी बची जिंदगी इस तरह अकेलेपन और उदासी के साथ गुजारने के बजाय किसी विधवा से पुनर्विवाह कर के गुजार सके.

इस के लिए उस ने मैट्रिमोनियल साइट में अपनी प्रोफाइल बना डाली. 3-4 दिनों के अंदर ही बहुत सारी महिलाओं ने उन्हें इंटरैस्ट भेज दिया. इन सबों में सरला सब से ज्यादा पसंद आई थी. रेस्तरां की मेज पर सरला और अखिलेश आमनेसामने बैठे थे. सरला की उम्र करीब 50 साल थी. वह भी विधवा थी. एक बेटी थी जिस की शादी हो चुकी थी.

गोरा रंग, तीखे नैननक्श और चेहरे की चमक बता रही थी कि किसी जमाने में वह बला की खूबसूरत रही होगी. सरला ने साफ शब्दों में अपनी बात रखी,” करीब 5 साल पहले एक सड़क दुर्घटना में मेरे पति की मौत हो गई. आप को पता ही होगा कि पति के जाते ही औरत की

जिंदगी से सारी रौनक चली जाती है. मेरी बेटी भी मायके चली गई. अब बिलकुल दिल नहीं लगता है. बस इसी अकेलेपन की वजह से शादी का फैसला लिया है.”

“सरलाजी, मेरे साथ भी बिलकुल यही बात है. मेरा भी खयाल रखने के लिए कोई अपना मेरे पास नहीं. अकेलापन खाने को दौड़ता है. क्यों न हम एकदूसरे के साथी बन कर इस अकेलेपन को हमेशा के लिए दूर कर दें. मुझे आप की जैसी

समझदार और सरल महिला की ही जरूरत है.” सरला ने हौले से मुसकरा कर अपनी सहमति दे दी. दोनों 1-2 घंटे वहीं बैठे बातें करते रहे. अगले दिन फिर मिलने का वादा कर अपनेअपने घर लौट आए.

आते ही अखिलेश ने मैट्रिमोनियल साइट से अपनी प्रोफाइल हटा दी. उसे जिस की तलाश थी वह मिल चुकी थी. देर रात बेटे का फोन आया तो अखिलेश ने बेटे से अपनी खुशी शेयर की. सुन कर बेटा एकदम चुप हो गया.

कुछ देर बाद समझाते हुए बोला,”पापा, यह क्या करने जा रहे हो? क्या जरूरत है इस उम्र में शादी की? वह औरत पता नहीं कैसी हो? किस मकसद से शादी कर रही हो?”

“बेटा तमीज से बात कर, वह औरत तेरी होने वाली मां है. मैं जो यहां अकेलापन महसूस करता हूं उसे मिटाने के लिए शादी कर रहा हूं.” “यार पापा, अकेलापन मिटाने के सौ तरीके हैं. इस के लिए शादी कौन सा

रास्ता है?” झुंझलाए स्वर में बेटे ने कहा. “शादी ही सही रास्ता है बेटा. मुझे जो उचित लगा वही कर रहा हूं.तुम लोग तो मेरे साथ नहीं रहते न. फिर मेरी समस्या कैसे समझोगे?”

“पापा, इस बार मैं कोशिश करूंगा कि अपना ट्रांसफर दिल्ली करा लूं. फिर पास रहूंगा तो हर वीकेंड आ जाया करूंगा. डोंट वरी पापा.”

“देख 5 साल से तू यही कह रहा है बेटे. पर क्या हुआ? तू आया यहां? ” अखिलेश ने बेटे से सवाल किया. “पापा आप तो समझ ही नहीं रहे.” “तू भी नहीं समझ रहा है सुजय. ”

बेटे ने गुस्से में फोन काट दिया. अखिलेश थोड़ी देर उदास पड़ा रहा फिर सहसा ही उस की आंखों में चमक उभरी. मोबाइल उठा कर सरला का नंबर लगाने

लगा. फिर देर रात तक दोनों बातें करने में मशगूल रहे. कुछ दिनों तक दोनों के बीच इसी तरह बातों और मुलाकातों का दौर चलता रहा. इधर अखिलेश के बच्चे उसे शादी न करने की सलाह देते रहे मगर सही समय देख अखिलेश ने बहुत सादगी के साथ सरला को अपना जीवनसाथी बना लिया.

शादी के लिए अखिलेश ने बहुत सादा समारोह रखा था. अखिलेश का छोटा बेटा और सरला की बेटी और भाई विवाहस्थल पर मौजूद थे. अखिलेश की बेटी नहीं आ पाई थी. उसने वीडियो कौल के जरीए अपने पिता की शादी देखी. बड़ा बेटा औफिस के काम में फंसा होने का बहाना बना कर नहीं आया. अखिलेश के बच्चे अपने पिता की दूसरी शादी से बिलकुल भी खुश नहीं थे.

उस दिन अखिलेश बेटे से बात कर रहा था. सरला बाहर गई हुई थी. अचानक वह लौट आई पर अखिलेश को इस की खबर नहीं थी. अखिलेश फोन स्पीकर पर रख कर बातें करता था क्योंकि उसे कम सुनाई देता था. हमेशा की तरह बेटा सरला के खिलाफ जहर उगल रहा था. मगर अखिलेश लगातार उस की हर बात का प्रतिकार सही दलीलों के साथ पूरे विश्वास से करता रहा. अखिलेश का अपने प्रति यह विश्वास देख कर सरला को बहुत अच्छा लगा.

उम्र की परवाह किए बिना नए जीवन की शुरुआत दोनों ने शिमला की वादियों में जा कर किया. उन्होंने वहां साथ में बहुत खूबसूरत वक्त बिताया. दोनों काफी खुश थे.

अकेलेपन का दर्द एकदूसरे का साथ पा कर कहीं गायब हो चुका था. मगर उन के बच्चों को अभी भी यह शादी रास नहीं आ रही थी. खासकर अखिलेश के बच्चों को डर था कि कहीं सरला उनकी जमीनजायदाद न हड़प ले.

एक दिन बड़ा बेटा सुजय बिना बताए अखिलेश से मिलने चला आया. आते ही उस ने सरला के प्रति रूखा व्यवहार दिखाना शुरू कर दिया. सरला और अखिलेश दोनों

ही जानते थे कि वह सरला को पसंद नहीं करता. सरला बहाना बना कर कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई. इधर सुजय को पिता से अकेले में बात करने का पूरा मौका मिल गया.

उस ने अखिलेश को समझाने की कोशिश की, “पापा, आप इस बात से अनजान हो कि इस उम्र में विधवा औरतें सिर्फ इसलिए किसी रईस पुरुष से शादी करती हैं ताकि उस की सारी संपत्ति पर अपना हक जमा सके. पापा वह आप की दौलत ले कर गायब हो जाएगी फिर क्या करोगे ? उस की नजर सिर्फ और सिर्फ आप के पैसों पर है.”

“पर तुम ऐसा कैसे कह सकते हो सुजय?” “क्यों नहीं पापा, यदि ऐसा नहीं तो उस ने आप से शादी क्यों की ?” सुजय ने सवाल किया. “तुम ने अपनी बीवी से शादी क्यों की थी?” अखिलेश ने उलटा सवाल किया.

“अरे पापा, यह तो हर कोई जानता है, परिवार बनाने और परिवार बढ़ाने के लिए. पर शादी की भी एक उम्र होती है. आप को कौन सा अब बच्चे पैदा करने हैं जो शादी करनी थी,” सुजय की आवाज में चिढ़ थी.

“ठीक है, बच्चे नहीं पैदा करने पर तुम्हें शादी के बाद बच्चों के अलावा और क्या मिला? पत्नी का साथ नहीं मिला? उस का प्यार नहीं मिला?” “पापा, अब इस उम्र में आप को कौन से प्यार की जरूरत है?”

“जरूरत हर उम्र में होती है बेटा, भले ही रूप बदल जाए और फिर एक साथ भी तो जरूरी है न,” अखिलेश ने उसे समझाने की कोशिश की. “पापा, आप चाहे कितनी भी दलीलें दे लो पर याद रखना, इस औरत की नजर सिर्फ और सिर्फ आप के पैसों पर है,” कहता हुआ सुजय उठ गया.

अखिलेश बोलना तो बहुत चाहता था पर चुप रहा. सुजय के बाद अखिलेश की बेटी भी फोन पर पिता को सावधान करने लग गई,” पापा, ध्यान रखना। ऐसी औरतें जमीनजायदाद अपने नाम करवाती हैं या फिर गहने और कैश लूट कर फरार हो जाती हैं. कई बार अपने पति की हत्या भी कर डालती हैं.”

“बेटे, ऐसी औरतों से क्या मतलब है तुम्हारा?” “मतलब विधवा औरतें जो बुढ़ापे में शादी करती हैं. मैं ने बहुत से मामले देखे हैं, पापा इसलिए समझा रही हूं,” बेटी ने कहा. बच्चों ने अखिलेश के मन में सरला के विरुद्ध इतनी बातें भर दीं कि अब उसे भी इस बात को ले कर शक होने लगा था कि कहीं ऐसा ही तो नहीं?

मैट्रिमोनियल साइट के अपने प्रोफाइल में उस ने इस बात का जिक्र भी काफी अच्छे से किया था कि उस के पास काफी संपत्ति है. इधर सरला मायके गई तो उस के घर वाले और बेटी उस का ब्रैनवाश करने के काम में लग गए. यह तो सच था कि सरला एक साधारण परिवार से संबंध रखती थी जबकि अखिलेश के पास काफी दौलत थी.

सरला की बेटी बहाने से मां को कहने लगी,”मां, तुम्हारे दामाद का काम ठीक नहीं चल रहा. पिछले महीने उन की बाइक भी बिक गई. मां हो सके तो अपने नए पति से कह कर इन के लिए बाइक या गाड़ी का इंतजाम करा दो न और एक दुकान भी खुलवा दो. वे तो बहुत पैसे वाले हैं न.”

“मगर वे तुम्हारे पति के लिए यह सब क्यों करेंगे?” सरला ने पूछा. “अरे मां क्यों नहीं करेंगे? आखिर मैं उन की बेटी ही हुई न भले ही सौतेली सही.””देख बेटी, तू ब्याहता लड़की है. तेरा अपना घरपरिवार है. तेरी देखभाल करना उन की जिम्मेदारी नहीं,” सरला ने दोटूक जवाब दिया.

तब तक भाई बोल पड़ा,”क्या दीदी, तुम तो ऐसे शब्द बोल रही हो जैसे यह तुम्हारी नहीं तुम्हारे पति की जबान हो. अरे दीदी, बच्ची के लिए नहीं तो अपने लिए तो सोचो. सुनहरा मौका है. रईस बुड्ढे से शादी की है. थोड़ा ब्लैकमेल करोगी तो मालामाल हो जाओगी. वरना बुड्ढे ने तो पहले से ही अपने तीनों बच्चों के नाम सब कुछ कर रखा होगा. कल को वह नहीं रहेगा तब तुम्हारा क्या होगा? अपने बुढ़ापे के लिए रुपए जोड़ कर रखना तो पड़ेगा न.

“जब पैसे आ जाएं तो थोड़ीबहुत मदद मेरी या अपने दामाद की भी कर लेना. आखिर हम तो अपने ही हैं न. तुम्हारे भले के लिए ही कह रहे हैं. “अब देखो न, पुराने जीजाजी के साथ तुम ने सारी जवानी गुजार दी मगर वह मरे तो तुम्हें क्या मिला? सब कुछ उन के भाइयों में बंट गया. इसलिए कह रहा हूं कि दीदी कि अपने पति की संपत्ति पर अपना कानूनी हक रखो फिर चाहे कुछ भी हो.”

“भाई मेरे तू ठीक कह रहा है. मैं सोचूंगी. अब ज्यादा नसीहतें न दे और अपने काम पर ध्यान दे,” कह कर सरला ने बात खत्म कर दी. 2-3 दिनों में सुजय चला गया. इधर सरला भी घर वापस लौट आई. दोनों ही थोड़े गुमसुम से थे. अपने बच्चों की बातें उन्हें रहरह कर याद आ रही थी.

इस बीच अखिलेश की तबीयत खराब हो गई. उसे ठंड लग कर तेज बुखार आया. सरला घबरा गई. उस ने जल्दी से डाक्टर को बुलवाया. डाक्टर ने दवाएं लिख दीं और खयाल रखने की बात कह कर चला गया. इधर सरला के भाई को पता चला कि अखिलेश को बुखार है तो वह उसे सलाह देने लगा,” यह बहुत सही समय है दीदी, अपना जाल फेंको ताकि अखिलेश हमेशा के लिए

ऊपर चला जाए. फिर तुम उस की सारी दौलत की अकेली मालकिन बन जाओगी.” सरला ने उसे झिड़का,” बेकार की बातें मत कर. वह मेरे पति हैं और मैं किसी भी तरह उन्हें ठीक कर के रहूंगी.”

इधर दवा खाने के बावजूद अखिलेश का माथा बुखार से तप रहा था. सरला ने जल्दी से उस के माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रखनी शुरू कीं. पूरी रात वह पति के सामने बैठी पट्टियां बदलती रही. अखिलेश बेहोश सा सोया हुआ था. बीचबीच में आंखें खुलती तो पानी मांगता. सरला जल्दी से उसे पानी पिलाती और साथ में कुछ खिलाने की भी कोशिश करती. मगर वह खाने से साफ इनकार कर देता.

सुबह होतेहोते अखिलेश का बुखार कम हो गया. खांसी भी कंट्रोल में आ गई. मगर इस बीच सरला को बुखार महसूस होने लगा. पति का बुखार उस ने अपने सिर ले लिया था. अगले दिन दोनों की भूमिका बदल गई थी. अब सरला बेड पर थी और अखिलेश उस की देखभाल कर रहा था.

इस तरह एकदूसरे का खयाल रखतेरखते दोनों ठीक हो गए. अब एक अलग तरह का बंधन दोनों एकदूसरे के लिए महसूस करने लगे थे.

एक दिन शाम में अखिलेश ने सरला से कहा,” मेरी सारी संपत्ति दोनों लड़कों के नाम की हुई है. यह मकान भी बड़े बेटे के नाम है. मैं चाहता हूं कि हम दोनों कहीं दूर जा कर एक नई जिंदगी की शुरुआत करें. क्या तुम इस के लिए तैयार हो?”

“हां ठीक है. इस में समस्या क्या है? हम सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर चलते हैं. बस रहने और खाने का प्रबंध हो जाए फिर हमें किस चीज की जरूरत? दोनों आराम से एक छोटा सा घर ले कर रह लेंगे. वैसे भी मेरे पहले पति ने मेरे लिए बैंक में थोड़ीबहुत रकम रख छोड़ी है. जरूरत पड़ी तो उस का भी उपयोग कर लेंगे.”

सरला की बात सुन कर अखिलेश की आंखें भीग गईं. एक तरफ बच्चे जिस महिला को दौलत का लालची बता रहे थे वही इस गृहस्थी में अपनी सारी जमापूंजी लगाने को तैयार थी. अखिलेश को यही सुनने की इच्छा थी.

उस ने सरला को गले से लगा लिया और बोला,” ऐसा कुछ नहीं है सरला. सारी संपत्ति अभी भी मेरे ही नाम है. मैं तो तुम्हारा रिएक्शन देख कर तुम्हें

परखना चाहता था. तुम से अच्छी पत्नी मुझे मिल ही नहीं सकती. वैसे कहीं दूर जाने का प्लान अच्छा है. यह घर बेच कर किसी खूबसूरत जगह घर लिया जा सकता है. ” “सच, मैं भी सब से दूर कहीं चली जाना चाहती हूं,”सरला ने कहा.

अगले ही दिन अखिलेश ने घर बेचने के कागज तैयार करा लिए. काफी समय से उस का एक दोस्त घर खरीदने की कोशिश में था. अखिलेश ने बात कर अपना घर उसे बेच दिया और मिलने वाली रकम से देहरादून के पास एक छोटा सा खूबसूरत मकान खरीद लिया.

उस ने अपना नया पता किसी को भी नहीं दिया था. फोन भी स्विच औफ कर दिया. अपना बैंकबैलेंस भी उस ने दूसरे बैंक में ट्रांसफर करा लिया और पूर्व पत्नी के गहने भी लौकर में रखवा दिए. सरला ने भी अपने घर में किसी को नया पता नहीं बताया.

सारे हमदर्द रिश्तेदारों से दूर दोनों ने अपना एक प्यारा सा आशियाना बना लिया था. यहां वे अपनी जिंदगी दूसरों की हर तरह की दखलंदाजी से दूर शांतिपूर्वक एकदूसरे के साथ बिताना चाहते थे.

Fictional Story

Family Story: सच्ची सीख: क्या नीरा की बेटे के लिए नारजगी दूर हुई

Family Story: हमेशा की तरह आज भी जब किशोर देर से घर लौटा और दबेपांव अपने कमरे की ओर बढ़ा तो नीरा ने आवाज लगाई, ‘‘कहां गए थे?’’ ‘‘कहीं नहीं, मां. बस, दोस्तों के साथ खेलने गया था,’’ कहता हुआ किशोर अपने कमरे में चला गया. नीरा पीछेपीछे कमरे में पहुंच गई, बोली, ‘‘क्यों, यह कोई खेल कर घर आने का समय है? इतनी रात हो गई है, अब पढ़ाई कब करोगे? तुम्हें पता है न, तुम्हारी बोर्ड की परीक्षा है और तुम ने पढ़ाई बिलकुल भी नहीं की है. तुम्हारे क्लासटीचर भी बोल रहे थे कि तुम नियमित रूप से स्कूल भी नहीं जाते और पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगाते. आखिर इरादा क्या है तुम्हारा?’’

‘‘जब देखो, आप मेरे पीछे पड़ी रहती हैं, चैन से जीने भी नहीं देतीं, जब देखो पढ़ोपढ़ो की रट लगाए रहती है. पढ़ कर आखिर करना भी क्या हैं, कौन सी नौकरी मिल जानी है. मेरे इतने दोस्तों के बड़े भाई पढ़ कर बेरोजगार ही तो बने बैठे हैं. इस से अच्छा है कि अभी तो मजे कर लो, बाद की बाद में देखेंगे,’’ कह कर उस ने अपने मोबाइल में म्यूजिक औन कर लिया और डांस करने लगा. नीरा बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में आ गई. नीरा किशोर की बिगड़ती आदतों से काफी परेशान रहने लगी थी. वह न तो पढ़ाई करता था और न ही घर का कोई काम. बस, दिनभर शैतानियां करता रहता था. दोस्तों के साथ मटरगश्ती करना और महल्ले वालों को परेशान करना, यही उस का काम था. जब भी नीरा उस से पढ़ने को कहती, वह किताब उठाता, थोड़ी देर पढ़ने का नाटक करता, फिर खाने या पानी पीने के बहाने से उठता और दोबारा पढ़ने को नहीं बैठता.

नीरा उस की आदतों से तंग आ चुकी थी. उसे किशोर को रास्ते पर लाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. किशोर के पिता एक सरकारी बैंक में अधिकारी थे. वे सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक बैंक के कार्यों में व्यस्त रहते थे. आमतौर पर वे रात को देर से लौटते थे. थकेहारे होने के कारण वे बच्चों से ज्यादा बात नहीं करते थे. किशोर जानता था कि पापा तो घर में रहते नहीं, इसलिए उसे कोई खतरा नहीं. किशोर की बहन साक्षी, उस से छोटी जरूर थी परंतु काफी समझदार थी और स्कूल का होमवर्क समय पर करती थी. वह हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आती थी. इस के अलावा वह अपनी मम्मी के काम में हाथ भी बंटाती थी. कई बार नीरा किशोर को समझाती और साक्षी का उदाहरण भी देती परंतु उस पर कोई असर नहीं होता था. किशोर स्कूल जाने के नाम पर घर से निकलता मगर स्कूल न जा कर वह सारा समय दोस्तों के साथ घूमनेफिरने और फिल्में देखने में बिता देता था. इस बात को ले कर एक दिन नीरा के डांटने पर वह उल्टा नीरा को ही चिल्ला कर बोला, ‘‘मुझे नहीं पढ़नावढ़ना. प्लीज, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. मुझे जो बनना होगा, बन जाऊंगा वरना बाद में अपना बिजनैस करूंगा. मेरे सारे दोस्तों के पापा बिजनैसमैन हैं और देखो, उन के पास कितना पैसा है और मेरे पापा सरकारी नौकरी में हैं पर हमारे पास कुछ भी नहीं है. क्या फायदा ऐसी नौकरी का. अब तो मैं और भी नहीं पढ़ूंगा, चाहे आप कुछ भी कर लो,’’ किशोर की इस बात से नीरा को गहरा सदमा लगा और उस ने किशोर को जोर से एक तमाचा जड़ दिया. किशोर जोरजोर से रोने लगा और रोतेरोते अपने कमरे में चला गया.

नीरा सोच में पड़ गई कि कैसे समझाए अपने लाड़ले को. यदि अभी से इस ने मेहनत करना नहीं सीखा तो इस का भविष्य बनने से पहले ही बिगड़ जाएगा. यह सोचती हुई वह किशोर के कमरे में पहुंची. किशोर का सिर गोद में रखा और बड़े प्यार से उस के बालों को सहलाती हुई बोली, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारी दुश्मन थोड़े ही हूं जो तुम्हें हमेशा पढ़ने के लिए बोलती रहती हूं. तुम पढ़ोगे तो तुम्हारा ही फायदा होगा और कल जब तुम बड़े आदमी बनोगे तो इस से तुम्हारी ही इज्जत बढ़ेगी, लोग तुम्हारे आगेपीछे घूमेंगे. जब तक हम हैं तब तक तुम्हें हर खुशी देने का प्रयास करेंगे लेकिन कल यदि हम नहीं रहे तो तुम्हारा क्या होगा? तुम्हारे पापा तुम्हें बिजनैस कराने के लिए इतने पैसे कहां से लाएंगे और बिजनैस में सफल होने के लिए भी तो पढ़नालिखना जरूरी है.’’ परंतु किशोर पर जैसे पागलपन सवार था, वह कुछ भी सुनना नहीं चाहता था. उस ने गुस्से में अपनी किताबेंकौपियां उठा कर फेंकते हुए चिल्ला कर कहा, ‘‘मां, मुझे नहीं पढ़नालिखना, आप जाओ यहां से.’’

किशोर के व्यवहार से नीरा की आंखों में आंसू आ गए. अपने पल्लू से आंसू पोंछते हुए वह कमरे से बाहर आ गई. वह अपनी व्यथा अपने पति समीर से भी नहीं कह सकती थी क्योंकि वे भी दिनभर की कड़ी मेहनत के बाद रात को देर से लौटते थे और खाना खा कर सो जाते थे. कई बार तो रविवार को भी उन्हें बैंक जाना पड़ता था, इसलिए उसे अपने पति से कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं थी. इसीलिए उस के सिर में तेज दर्द होने लगा था. वह अपने कमरे में आ कर लेट गई. समीर लौटे तो उन्होंने नीरा को लेटे हुए देखा, प्यार से उस के बालों को सहलाते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, नीरा? आज कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हो? कोई बात है क्या?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं. बस, ऐसे ही सिर में दर्द हो रहा था, इसलिए लेटी हुई थी,’’ नीरा ने कहा. वह किशोर के बारे में समीर को बता कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी.

समीर को लगा कि जरूर कुछ बात है वरना नीरा इतना परेशान कभी नहीं रहती. वे प्यार से बोले, ‘‘कोई बात नहीं, तुम आराम से लेटो, आज मैं तुम्हारे लिए गरमागरम चाय बना कर लाता हूं,’’ यह कह कर वे रसोई की ओर मुड़ गए. नीरा से रहा नहीं गया और वह भी पीछेपीछे रसोई में पहुंच गई. तब तक समीर चूल्हे पर चाय की पतीली चढ़ा चुके थे. नीरा बोली, ‘‘हटो जी, इतनी भी तबीयत खराब नहीं है कि आप के लिए चाय भी नहीं बना सकूं.’’ ‘‘और मैं भी इतना निष्ठुर नहीं कि बीवी की तबीयत ठीक नहीं और मैं उस के लिए एक कप चाय भी नहीं बना सकूं. कभी मुझे भी मौका दे दिया करो, श्रीमतीजी, मैं इतनी घटिया भी चाय नहीं बनाता कि तुम्हारे गले से नहीं उतर पाए,’’ समीर बोले. समीर की बातों से नीरा के होंठों पर हंसी आ गई और दोनों साथसाथ चाय बनाने लगे. थोड़ी ही देर में चाय तैयार हो गई. चाय की प्याली ले कर दोनों कमरे में आए. चाय की चुस्की लेते हुए समीर ने पूछा, ‘‘अब बताओ, क्यों इतना परेशान हो, मुझ से कुछ न छिपाओ, हो सकता है मेरे पास तुम्हारी समस्या का कोई समाधान हो, और जब तक तुम बताओगी नहीं तब तक मैं कैसे समझ पाऊंगा?’’ नीरा से रहा नहीं गया, उस की आंखों में आंसू आ गए और भरे गले से ही उस ने समीर को सारी बातें बता दीं.

समीर ने सारी बातें सुनने के बाद एक ठंडी सांस ली और नीरा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘कल छुट्टी है. इस पर कल सोचते हैं कि किशोर को कैसे सही रास्ते पर लाया जाए. अभी किशोर गुस्से में होगा, अभी बात करने पर बात बिगड़ भी सकती है.’’ सुबह दिनचर्या से निवृत्त हो कर समीर ने किशोर और साक्षी दोनों को अपने पास बुलाया और बोले, ‘‘आज मेरी छुट्टी है, कहीं घूमने चलना है क्या?’’

‘‘हां, पापा, कब चलना है?’’ दोनों खुशी से उछल कर बोले.

‘‘बस, जितनी जल्दी तुम लोग तैयार हो जाओ,’’ समीर ने जवाब दिया.

‘‘या, याहू,’’ कह कर दोनों तैयार होने चले गए. थोड़ी ही देर में दोनों तैयार थे. तब तक नीरा ने नाश्ता लगा दिया. सभी ने साथ में नाश्ता किया. समीर ने गाड़ी निकाली और सभी गाड़ी में बैठ कर निकल पड़े. अभी गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी ही थी कि रैडलाइट हो गई और गाड़ी रोकनी पड़ी. गाड़ी रुकते ही 2-3 भिखमंगे आ कर भीख मांगने के लिए हाथ जोड़जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे. समीर ने सब को डांट कर भगा दिया. इस पर किशोर बोला, ‘‘दे दो न, 2 रुपए, पापा. क्या जाता है.’’ ‘‘मैं किसी को भीख नहीं देता और जो लोग मेहनत नहीं करते उन्हें तो भीख भी नहीं दी जाती. मैं अपनी मेहनत की कमाई भिखमंगों में नहीं बांट सकता.’’ किशोर उन भिखमंगों को देखता रहा. वे जिस गाड़ी के पास जाते, सभी उन्हें भगा देते. यहां तक कि पैसे देना तो दूर, लोग गाड़ी छूने पर ही उन्हें डांट देते. किशोर ने कड़ी धूप में कई और लोगों को वहां कुछ सामान भी बेचते देखा पर कोई भी उन से कुछ खरीद नहीं रहा था. सब हरी बत्ती होने का इंतजार कर रहे थे. थोड़ी देर में बत्ती हरी हो गई और समीर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

समीर ने थोड़ी ही देर बाद सड़क के किनारे गाड़ी रोकी और एक जूता पौलिश करने वाले को अपना जूता पौलिश करने को कहा. जूता पौलिश होने के बाद उन्होंने मोची को 2 रुपए का सिक्का पकड़ाया और चल दिए. किशोर ने पूछा, ‘‘इतनी मेहनत के बस 2 रुपए?’’

‘‘हां बेटा, जो लोग बचपन में पढ़नेलिखने में मेहनत नहीं करते, बाद में उन्हें मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ती है और पैसे भी कम मिलते हैं.’’ किशोर सोच रहा था कि एक ओर हम लोग एसी कार में चल रहे हैं, दूसरी ओर इन्हें कड़ी धूप में 1-2 रुपए के लिए कितनी मेहनत एवं संघर्ष करना पड़ रहा है. अब वे लोग शहर में लगे एक मेले में पहुंचे. मेले में वे सभी खूब घूमेफिरे, खायापीया, मस्ती की. इस तरह से शाम हो गई और वे गाड़ी में बैठ कर वापस चल दिए. वापस लौटते हुए समीर ने अपनी गाड़ी एक बड़े से गेट पर रोक दी. गेट पर लिखा था, ‘मोहित कुमार’, आईएएस जिलाधिकारी. गेट पर 4 पुलिस वाले खड़े थे. पापा ने उन्हें अपना कार्ड दिखाया और बोले, ‘‘डीएम साहब ने बुलाया है.’’ उन की गाड़ी की अच्छी तरह से तलाशी ले कर पुलिस ने गाड़ी को अंदर जाने की इजाजत दी. बंगले में प्रवेश करते ही किशोर ने देखा कि कितना बड़ा और सुंदर बंगला था. चारों ओर बड़ेबड़े परदे लगे थे, झूलने के लिए झूला और खेलने के लिए गार्डन और न जाने क्याक्या. इस बंगले के सामने उस का फ्लैट बिलकुल छोटा लगने लगा था.

गाड़ी पार्क कर डीएम साहब के बंगले के अंदर जाने से पहले समीर ने दरबान से अपना कार्ड अंदर भिजवाया तो तुरंत उसे बैठक में ले जाया गया. किशोर ने देखा कि वह घर बाहर से जितना बड़ा था, अंदर से उतना ही शानदार एवं खूबसूरत था. घर में कालीन बिछा था और बड़ेबड़े एवं खूबसूरत सोफे लगे थे. पूरा कमरा तरीके से सजा था. तभी एक नौजवान युवक ने कमरे में प्रवेश किया और सब का अभिवादन किया. उस ने टेबल पर घंटी बजाई तो तुरंत भागता हुआ एक दफ्तरी अंदर आया और सामने सिर झुका कर खड़ा हो गया. उस युवक ने कहा, ‘‘जल्दी से चायनाश्ता ले कर आओ.’’ समीर ने उस युवक का परिचय सब से कराते हुए कहा, ‘‘इन का नाम मोहित है और ये हमारे पुराने मित्र के बेटे हैं और हाल ही में ये इस शहर के नए डीएम बन कर आए हैं. रात को मैं हमेशा देर से घर लौटता हूं. आज छुट्टी थी और इन्होंने बुलाया तो सोचा कि आज ही हम इन से भी मिल लेते हैं.’’

डीएम साहब का परिचय पा कर किशोर और साक्षी भैयाभैया कह कर उन के पास जा कर बैठ गए और उन से बातें करने लगे. किशोर ने उन से कहा, ‘‘भैया, आप के तो बड़े ठाट हैं. आप तो इस शहर के सब से बड़े अधिकारी हो. कैसे बने इतने बड़े अधिकारी, मुझे भी बताओ न भैया. मैं भी आप की तरह बनना चाहता हूं. क्या मैं आप की तरह बड़ा आदमी बन सकता हूं?’’ ‘‘क्यों नहीं, बस, अभी से मन लगा कर पढ़ोगे और अपना लक्ष्य बना कर आगे बढ़ोगे तो निश्चित तौर पर तुम भी मेरी तरह किसी शहर के डीएम बन कर या उस से भी बड़े आदमी बन कर आराम की जिंदगी जी सकते हो,’’ मोहित बोले. थोड़ी देर में मोहित भैया ने सब को खाने की टेबल पर आमंत्रित किया जहां अनेक प्रकार के व्यंजन लगे थे और उन्हें सलीके से सजाया गया था. स्वादिष्ठ खाना देख कर उन के मुंह में पानी आ गया और सब को भूख भी लग गई थी. सब ने खूब खाना खाया. खाना खाने के बाद मोहित भैया सब को गाड़ी तक छोड़ने आए. गाड़ी में बैठने के बाद सब ने मोहित भैया को बाय किया और वापस अपने घर की ओर चल दिए. लौटते समय सब आपस में बातचीत कर रहे थे पर किशोर चुपचाप अपनी सीट पर बैठा कुछ सोचने में मग्न था. लौटतेलौटते काफी रात हो गई थी. घर पहुंचने के बाद सब काफी थक गए थे, इसलिए सोने चले गए. थोड़ी देर बाद ही समीर ने नीरा से कहा कि जा कर देखो, दोनों बच्चे अच्छी तरह से सो गए हैं न. नीरा ने जा कर देखा तो साक्षी अपने कमरे में सो गई थी परंतु किशोर के कमरे की लाइट जल रही थी. कमरे से तेज गाने की आवाज आने के बजाय आज उस का कमरा बिलकुल शांत था परंतु कमरे की लाइट जल रही थी. नीरा ने सोचा कि आज वह थक कर सो गया होगा, कमरे की लाइट बुझा देती हूं. भावुकतावश उस ने दरवाजा खोला तो देखा कि किशोर अपनी स्टडी टेबल पर बैठा पढ़ रहा था. नीरा को आश्चर्य हुआ और वह बोली, ‘‘बहुत रात हो चुकी है, सो जाओ, बेटा. कल पढ़ाई कर लेना.’’

‘‘नहीं मां, मैं पहले ही बहुत समय खो चुका हूं, अब मैं तो बस मोहित भैया की तरह बड़ा आदमी बनना चाहता हूं. आप जाओ, सो जाओ, मुझे अभी बहुत पढ़ना है.’’ किशोर की बातें सुन कर नीरा की आंखों में आंसू आ गए पर आज उस की आंखों में आंसू खुशी के थे. वह तेज कदमों से अपने कमरे में आ गई जहां समीर उस का इंतजार कर रहे थे. वह समीर के कंधे पर अपना सिर रख कर बोली, ‘‘जो बात मैं ने किशोर को महीनों में नहीं समझा पाई, आप ने सिर्फ एक ही दिन में उसे समझा दी.’’ समीर ने नीरा से कुछ न कहा, बस नीरा की पीठ सहलाने लगे और आज न जाने नीरा को समीर का ऐसा सहलाना कुछ अजीब सा सुकून दे रहा था. एक ऐसा सुकून जो उसे थोड़ी ही देर में एक संतोषभरी नींद के आगोश में ले गया.

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Social Story: आदमी औरत का फर्क- क्या हुआ था मधु के साथ

Social Story: नियत समय पर घड़ी का अलार्म बज उठा. आवाज सुन कर मधु चौंक पड़ी. देर रात तक घर का सब काम निबटा कर वह सोने के लिए गई थी लेकिन अलार्म बजा है तो अब उसे उठना ही होगा क्योंकि थोड़ा भी आलस किया तो बच्चों की स्कूल बस मिस हो जाएगी.

मधु अनमनी सी बिस्तर से बाहर निकली और मशीनी ढंग से रोजमर्रा के कामों में जुट गई. तब तक उस की काम वाली बाई भी आ पहुंची थी. उस ने रसोई का काम संभाल लिया और मधु 9 साल के रोहन और 11 साल की स्वाति को बिस्तर से उठा कर स्कूल भेजने की तैयारी में जुट गई.

उसी समय बच्चों के पापा का फोन आ गया. बच्चों ने मां की हबड़दबड़ की शिकायत की और मधु को सुनील का उलाहना सुनना पड़ा कि वह थोड़ा जल्दी क्यों नहीं उठ जाती ताकि बच्चों को प्यार से उठा कर आराम से तैयार कर सके.

मधु हैरान थी कि कुछ न करते हुए भी सुनील बच्चों के अच्छे पापा बने हुए हैं और वह सबकुछ करते हुए भी बच्चों की गंदी मम्मी बन गई है. कभीकभी तो मधु को अपने पति सुनील से बेहद ईर्ष्या होती.

सुनील सेना में कार्यरत था. वह अपने परिवार का बड़ा बेटा था. पिता की मौत के बाद मां और 4 छोटे भाईबहनों की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. चूंकि सुनील का सारा परिवार दूसरे शहर में रहता था अत: छुट्टी मिलने पर उस का ज्यादातर समय और पैसा उन की जरूरतें पूरी करने में ही जाता था, ऐसे में मधु अपनी नौकरी छोड़ने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

सुबह से रात तक की भागदौड़ के बीच पिसती मधु अपने इस जीवन से कभीकभी बुरी तरह खीज उठती पर बच्चों की जिद और उन की अनंत मांगें उस के धैर्य की परीक्षा लेती रहतीं. दिन भर आफिस में कड़ी मेहनत के बाद शाम को बच्चों को स्कूल  से लेना, फिर बाजार के तमाम जरूरी काम निबटाते हुए घर लौटना और शाम का नाश्ता, रात का खाना बनातेबनाते बच्चों को होमवर्क कराना, इस के बाद भी अगर कहीं किसी बच्चे के नंबर कम आए तो सुनील उसे दुनिया भर की जलीकटी सुनाता.

सुनील के कहे शब्द मधु के कानों में लावा बन कर दहकते रहते. मधु को लगता कि वह एक ऐसी असहाय मकड़ी है जो स्वयं अपने ही बुने तानेबाने में बुरी तरह उलझ कर रह गई है. ऐसे में वह खुद को बहुत ही असहाय पाती. उसे लगता, जैसे उस के हाथपांव शिथिल होते जा रहे हैं और सांस लेने में भी उसे कठिनाई हो रही है पर अपने बच्चों की पुकार पर वह जैसेतैसे स्वयं को समेट फिर से उठ खड़ी होती.

बच्चों को तैयार कर मधु जब तक उन्हें ले कर बस स्टाप पर पहुंची, स्कूल बस जाने को तैयार खड़ी थी. बच्चों को बस में बिठा कर उस ने राहत की सांस ली और तेज कदम बढ़ाती वापस घर आ पहुंची.

घर आ कर मधु खुद दफ्तर जाने के लिए तैयार हुई. नाश्ता व लंच दोनों पैक कर के रख लिए कि समय से आफिस  पहुंच कर वहीं नाश्ता  कर लेगी. बैग उठा कर वह चलने को हुई कि फोन की घंटी बज उठी.

फोन पर सुनील की मां थीं जो आज के दिन को खास बताती हुई उसे याद से गाय के लिए आटे का पेड़ा ले जाने का निर्देश दे रही थीं. उन का कहना था कि आज के दिन गाय को आटे का पेड़ा खिलाना पति के लिए शुभ होता है. तुम दफ्तर जाते समय रास्ते में किसी गाय को आटे का बना पेड़ा खिला देना.

फोन रख कर मधु ने फ्रिज खोला. डोंगे में से आटा निकाला और उस का पेड़ा बना कर कागज में लपेट कर साथ ले लिया. उसे पता था कि अगर सुनील को एक छींक भी आ गई तो सास उस का जीना दूभर कर देंगी.

घर को ताला लगा मधु गाड़ी स्टार्ट कर दफ्तर के लिए चल दी. घर से दफ्तर की दूरी कुल 7 किलोमीटर थी पर सड़क पर भीड़ के चलते आफिस पहुंचने में 1 घंटा लगता था. रास्ते में गाय मिलने की संभावना भी थी, इसलिए उस ने आटे का पेड़ा अपने पास ही रख लिया था.

गाड़ी चलाते समय मधु की नजरें सड़क  पर टिकी थीं पर उस का दिमाग आफिस के बारे में सोच रहा था. आफिस में अकसर बौस को उस से शिकायत रहती कि चाहे कितना भी जरूरी काम क्यों न हो, न तो वह कभी शाम को देर तक रुक पाती है और न ही कभी छुट्टी के दिन आ पाती है. इसलिए वह कभी भी अपने बौस की गुड लिस्ट में नहीं रही. तारीफ के हकदार हमेशा उस के सहयोगी ही रहते हैं, फिर भले ही वह आफिस टाइम में कितनी ही मेहनत क्यों न कर ले.

मधु पूरी रफ्तार से गाड़ी दौड़ा रही थी कि अचानक उस के आगे वाली 3-4 गाडि़यां जोर से ब्रेक लगने की आवाज के साथ एकदूसरे में भिड़ती हुई रुक गईं. उस ने भी अपनी गाड़ी को झटके से ब्रेक लगाए तो अगली गाड़ी से टक्कर होतेहोते बची. उस का दिल जोर से धड़क उठा.

मधु ने गाड़ी से बाहर नजर दौड़ाई तो आगे 3-4 गाडि़यां एकदूसरे से भिड़ी पड़ी थीं. वहीं गाडि़यों के एक तरफ  एक मोटरसाइकिल उलट गई थी और उस का चालक एक तरफ खड़ा  बड़ी मुश्किल से अपना हैलमेट उतार रहा था.

हैलमेट उतारने के बाद मधु ने जब उस का चेहरा देखा तो दहशत से पीली पड़ गई. सारा चेहरा खून से लथपथ था.

सड़क के बीचोंबीच 2 गायें इस हादसे से बेखबर खड़ी सड़क पर बिखरा सामान खाने में जुटी थीं. जैसे ही गाडि़यों के चालकों ने मोटरसाइकिल चालक की ऐसी दुर्दशा देखी, उन्होंने अपनी गाडि़यों के नुकसान की परवा न करते हुए ऐसे रफ्तार पकड़ी कि जैसे उन के पीछे पुलिस लगी हो.

मधु की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आज एक बेहद जरूरी मीटिंग थी और बौस ने खासतौर से उसे लेट न होने की हिदायत दी थी लेकिन अब जो स्थिति उस के सामने थी उस में उस का दिल एक युवक को यों छोड़ कर  आगे बढ़ जाने को तैयार नहीं था.

मधु ने अपनी गाड़ी सड़क  के किनारे लगाई और उस घायल व्यक्ति के पास जा पहुंची. वह युवक अब भी अपने खून से भीगे चेहरे को रूमाल से साफ कर रहा था. मगर  बालों से रिसरिस कर खून चेहरे को भिगो रहा था.

मधु ने पास जा कर उस युवक से घबराए स्वर में पूछा, ‘‘क्या मैं आप की कोई मदद कर सकती हूं?’’

युवक ने दर्द से कराहते हुए बड़ी मुश्किल से आंखें खोलीं तो उस की आंखों में जो भाव मधु ने देखे उसे देख कर वह डर गई.  उस ने भर्राए स्वर में मधु से कहा, ‘‘ओह, तो अब तुम मेरी मदद करना चाहती हो ? तुम्हीं  ने वह खाने के सामान से भरा लिफाफा  चलती गाड़ी से उन गायों की तरफ फेंका था न?’’

मधु चौंक उठी, ‘‘कौन सा खाने का लिफाफा?’’

युवक भर्राए स्वर में बोला, ‘‘वही खाने का लिफाफा जिसे देख कर सड़क के किनारे  खड़ी गायें एकाएक सड़क के बीच दौड़ पड़ीं और यह हादसा हो गया.’’

अब मधु की समझ में सारा किस्सा आ गया. तेज गति से सड़क पर जाते वाहनों के आगे एकाएक गायोें का भाग कर आना, वाहनों का अपनी रफ्तार पर काबू पाने के असफल प्रयास में एकदूसरे से भिड़ना और किन्हीं 2 कारों के बीच फंस कर उलट गई मोटरसाइकिल के इस सवार का इस कदर घायल होना.

यह सब समझ में आने के साथ ही मधु को यह भी एहसास हुआ कि वह युवक उसे ही इस हादसे का जिम्मेदार समझ रहा है. वह इस बात से अनजान है कि मधु की गाड़ी तो सब से पीछे थी.

मधु का सर्वांग भय से कांप उठा. फिर भी अपने भय पर काबू पाते हुए वह उस युवक से बोली, ‘‘देखिए, आप गलत समझ रहे हैं. मैं तो अपनी…’’

वह युवक दर्द से कराहते हुए जोर से चिल्लाया, ‘‘गलत मैं नहीं, तुम हो, तुम…यह कोई तरीका है गाय को खिलाने का…’’ इतना कह युवक ने अपनी खून से भीगी कमीज की जेब से अपना सैलफोन निकाला. मधु को लगा कि वह शायद पुलिस को बुलाने की फिराक में है. उस की आंखों के आगे अपने बौस का चेहरा घूम गया, जिस से उसे किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद नहीं थी. उस की आंखों के आगे अपने नन्हे  बच्चों के चेहरे घूम गए, जो उस के थोड़ी भी देर करने पर डरेडरे एकदूसरे का हाथ थामे सड़क पर नजर गड़ाए स्कूल के गेट के पास उस के इंतजार में खडे़ रहते थे.

मधु ने हथियार डाल दिए. उस घायल युवक की नजरों से बचती वह भारी कदमों से अपनी गाड़ी तक पहुंची… कांपते हाथों से गाड़ी स्टार्ट की और अपने रास्ते पर चल दी. लेकिन जातेजाते भी वह यही सोच रही थी कि कोई भला इनसान उस व्यक्ति की मदद के लिए रुक जाए.

आफिस पहुंचते ही बौस ने उसे जलती आंखों से देख कर व्यंग्य बाण छोड़ा, ‘‘आ गईं हर हाइनेस, बड़ी मेहरबानी की आज आप ने हम पर, इतनी जल्दी पहुंच कर. अब जरा पानी पी कर मेरे डाक्यूमेंट्स तैयार कर दें, हमें मीटिंग में पहुंचने के लिए तुरंत निकलना है.’’

मधु अपनी अस्तव्यस्त सांसों के बीच अपने मन के भाव दबाए मीटिंग की तैयारी में जुट गई. सारा दिन दफ्तर के कामों की भागदौड़ में कैसे और कब बीत गया, पता ही नहीं चला. शाम को वक्त पर काम निबटा कर वह बच्चों के स्कूल पहुंची. उस का मन कर रहा था कि आज वह कहीं और न जा कर सीधी घर पहुंच जाए. पर दोनों बच्चों ने बाजार से अपनीअपनी खरीदारी की लिस्ट पहले से ही बना रखी थी.

हार कर मधु ने गाड़ी बाजार की तरफ मोड़ दी. तभी रोहन ने कागज में लिपटे आटे के पेड़े को हाथ में ले कर पूछा, ‘‘ममा, यह क्या है?’’

मधु चौंक कर बोली, ‘‘ओह, यह यहीं रह गया…यह आटे का पेड़ा है बेटा, तुम्हारी दादी ने कहा था कि सुबह इसे गाय को खिला देना.’’

‘‘तो फिर आप ने अभी तक इसे गाय को खिलाया क्यों नहीं?’’ स्वाति ने पूछा.

‘‘वह, बस ऐसे ही, कोई गाय दिखी ही नहीं…’’ मधु ने बात को टालते हुए कहा.

तभी गाड़ी एक स्पीड बे्रकर से टकरा कर जोर से उछल गई तो रोहन चिल्लाया, ‘‘ममा, क्या कर रही हैं आप?’’

‘‘ममा, गाड़ी ध्यान से चलाइए,’’ स्वाति बोली.

‘‘सौरी बेटा,’’ मधु के स्वर में बेबसी थी. वह चौकन्नी हो कर गाड़ी चलाने लगी. बाजार का सारा काम निबटाने के बाद उस ने बच्चों के लिए बर्गर पैक करवा लिए. घर जा कर खाना बनाने की हिम्मत उस में नहीं बची थी. घर पहुंच कर उस ने बच्चों को नहाने के लिए भेजा और खुद सुबह की तैयारी में जुट गई.

बच्चों को खिलापिला कर मधु ने उन का होमवर्क जैसेतैसे पूरा कराया और फिर खुद दर्द की एक गोली और एक कप गरम दूध ले कर बिस्तर पर निढाल हो गिर पड़ी तो उस का सारा बदन दर्द से टूट रहा था और आंखें आंसुओं से तरबतर थीं.

रोहन और स्वाति अपनी मां का यह हाल देख कर दंग रह गए. ऐसे तो उन्होंने पहले कभी अपनी मां को नहीं देखा था. दोनों बच्चे मां के पास सिमट आए.

‘‘ममा, क्या हुआ? आप रो क्यों रही हैं?’’ रोहन बोला.

‘‘ममा, क्या बात हुई है? क्या आप मुझे नहीं बताओगे?’’ स्वाति ने पूछा.

मधु को लगा कि कोई तो उस का अपना है, जिस से वह अपने मन की बात कह सकती है. अपनी सिसकियों पर जैसेतैसे नियंत्रण कर उस ने रुंधे कंठ से बच्चों को सुबह की दुर्घटना के बारे मेें संक्षेप में बता दिया.

‘‘कितनी बेवकूफ औरत थी वह, उसे गाय को ऐसे खिलाना चाहिए था क्या?’’ रोहन बोला.

‘‘हो सकता है बेटा, उसे भी उस की सास ने ऐसा करने को कहा हो जैसे तुम्हारी दादी ने मुझ से कहा था,’’ मधु ने फीकी हंसी के साथ कहा. वह बच्चों का मन उस घटना की गंभीरता से हटाना चाहती थी ताकि जिस डर और दहशत से वह स्वयं अभी तक कांप रही है, उस का असर बच्चों के मासूम मन पर न पडे़.

‘‘ममा, आप उस आदमी को ऐसी हालत में छोड़ कर चली कैसे गईं? आप कम से कम उसे अस्पताल तो पहुंचा देतीं और फिर आफिस चली जातीं,’’ रोहन के स्वर में हैरानी थी.

‘‘बेटा, मैं अकेली औरत भला क्या करती? दूसरा कोई तो रुक तक नहीं रहा था,’’ मधु ने अपनी सफाई देनी चाही.

‘‘क्या ममा, वैसे तो आप मुझे आदमीऔरत की बराबरी की बातें समझाते नहीं थकतीं लेकिन जब कुछ करने की बात आई तो आप अपने को औरत होने की दुहाई देने लगीं? आप की इस लापरवाही से क्या पता अब तक वह युवक मर भी गया हो,’’ स्वाति ने कहा.

अब मधु को एहसास हो चला था कि उस की बेटी बड़ी हो गई है.

‘‘ममा, आज की इस घटना को भूल कर प्लीज, आप अब लाइट बंद कीजिए और सो जाइए. सुबह जल्दी उठना है,’’ स्वाति ने कहा तो मधु हड़बड़ा कर उठ बैठी और कमरे की बत्ती बंद कर खुद बाथरूम में मुंह धोने चली गई.

दोनों बच्चे अपनेअपने बेड पर सो गए. मधु ने बाथरूम का दरवाजा बंद कर अपना चेहरा जब आईने में देखा तो उस पर सवालिया निशान पड़ रहे थे. उसे लगा, उस का ही नहीं यहां हर औरत का चेहरा एक सवालिया निशान है. औरत चाहे खुद को कितनी भी सबल समझे, पढ़लिख जाए, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाए पर रहती है वह औरत ही. दोहरीतिहरी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी, बेसहारा…औरत कुछ भी कर ले, कहीं भी पहुंच जाए, रहेगी तो औरत ही न. फिर पुरुषों से मुकाबले और समानता का दंभ और पाखंड क्यों?

मधु को लगा कि स्त्री, पुरुष की हथेली पर रखा वह कोमल फूल है जिसे पुरुष जब चाहे सहलाए और जब चाहे मसल दे. स्त्री के जन्मजात गुणों में उस की कोमलता, संवेदनशीलता, शारीरिक दुर्बलता ही तो उस के सब से बडे़ शत्रु हैं. इन से निजात पाने के लिए तो उसे अपने स्त्रीत्व का ही त्याग करना होगा.

मधु अब तक शरीर और मन दोनों से बुरी तरह थक चुकी थी. उसे लगा, आज तक वह अपने बच्चों को जो स्त्रीपुरुष की समानता के सिद्धांत समझाती आई है वह वास्तव में नितांत खोखले और बेबुनियाद हैं. उसे अपनी बेटी को इन गलतफहमियों से दूर ही रखना होगा और स्त्री हो कर अपनी सारी कमियों और कमजोरियों को स्वीकार करते हुए समाज में अपनी जगह बनाने के लिए सक्षम बनाना होगा. यह काम मुश्किल जरूर है, पर नामुमकिन नहीं.

रात बहुत हो चुकी थी. दोनों बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. मधु ने एकएक कर दोनों बच्चों का माथा सहलाया. स्वाति को प्यार करते हुए न जाने क्यों मधु की आंखों में पहली बार गर्व का स्थान नमी ने ले लिया. उस ने एक बार फिर झुक कर अपनी मासूम बेटी का माथा चूमा और फिर औरत की रचना कर उसे सृष्टि की जननी का महान दर्जा देने वाले को धन्यवाद देते हुए व्यंग्य से मुसकरा दी.

अब उस की पलकें नींद से भारी हो रही थीं और उस के अवचेतन मन में एक नई सुबह का खौफ था, जब उसे उठ कर नए सिरे से संघर्ष करना था और नई तरह की स्थितियों से जूझते हुए स्वयं को हर पग पर चुनौतियों का सामना करना था.

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Hindi Drama Story: साग और मेथी वाला टोडा- कैसा अपनापन था

Hindi Drama Story: ‘‘ले भोलू, साग खा ले मेथी वाले टोडे (मक्की की रोटी) के साथ, अपने हाथ से बना कर लाई हूं,’’  मुड़ेतुड़े पुराने अखबार के कागज में मक्की से बनी रोटियां और स्टील के डब्बे में सरसों का साग टेबल पर रखते हुए बीबी बोली. उस की c. चेहरे से वह कुछ परेशान और थकीथकी सी दिख रही थी.

‘‘पैरी पैणा,’’ बीबी के अचानक सामने आते ही वह कुरसी से आदर सहित खड़ा हो गया.

‘‘पैरी पैणा बीबीजी,’’ उस के पास बैठे उस के मित्र ने बीबी को न जानते हुए भी बड़े सत्कार से कहा.

‘‘जीते रहो मेरे बच्चो,’’ बीबी ने भोलू के सिर पर हाथ फेरा, फिर मातृत्व वाले अंदाज में उस का माथा चूम लिया और प्यार से उसे अपने सीने से लगा लिया. फिर उस के समीप बैठे उस के मित्र के सिर पर हाथ फेरा. इतने में औफिस का चपरासी बीबी के लिए कुरसी ले आया. बीबी कुरसी के उग्र भाग पर ऐसे बैठी जैसे अभी उठने वाली हो.

‘‘बीबी, आराम से बैठ जाओ,’’ भोलू ने आग्रहपूर्वक कहा. औफिस का वातावरण एकदम ममताभरी आभा से सराबोर हो उठा. हर चीज जैसे आशीर्वाद के आभामंडल से जगमगा उठी.

‘‘बीबी, और सुनाओ, क्या हालचाल है आप का?’’

‘‘बस, ठीक है पुत्र, तुम सुनाओ अपना, मेरी बहूरानी और बच्चों का क्या हाल है?’’

‘‘बीबी, सब ठीक हैं, बच्चे और तुम्हारी बहूरानी भी.’’

‘‘बड़ा काका अब क्या करता है, बेटा?’’

‘‘बीबी, इंजीनियरिंग कर रहा है.’’

‘‘अच्छा है, और छोटा?’’ बीबी ने बड़ी आत्मीयता से पूछा.

‘‘बीबी, वह अभी 12वीं कर रहा है.’’

‘‘भोलू, तुम्हें मां की तो बहुत याद आती होगी?’’ बीबी ने चेहरे पर संवेदना लाते हुए पूछा.

‘‘हां, बीबी, बहुत याद आती है मां की, मेरी मां बहुत अच्छी थी. उस के जैसा कोई नहीं है, बीबी. मेरा छोटा बेटा भी मां को बहुत याद करता है. बहुत स्नेह था उस का दादी से. अब भी वह अकसर दादी को याद कर के आंख भर लेता है,’’ भोलू ने भावुकता से कहा.

‘‘बहुत अच्छी थी तुम्हारी मां, भोलू. बहुत प्यारसत्कार था उस के पास. बंदे को पहचानने वाली औरत थी. बहुत दूर की नजर रखती थी,’’ बीबी ने अंतहीन दृष्टि से औफिस की दीवार पर लगी घड़ी को ताकते हुए कहा.

‘‘हां बीबी, यह तो आप ने ठीक कहा. जो उस से एक बार मिलता, वह उसे कभी भी न भूल पाता,’’ भोलू लगातार बीबी से बतियाता रहा. पास बैठा उस का मित्र मुंह से कुछ भी ना बोला. बस, उन की बातें सुनता रहा. उसे ऐसी बातों में बहुत आनंद आ रहा था. उस ने ऐसी बातें पहले कभी नहीं सुनी थीं. औफिस का वातावरण कमाल का था. किसी का मन भी वहां से जाने को न था.

‘‘बीबी और सुनाओ, मेहर कैसा है?’’

‘‘ठीक है, पुत्र काम पर जाता है अब.’’

‘‘कहां जाता है काम पर, बीबी?’’

‘‘एक धार्मिक स्थल पर सेवादार का काम करता है. सुबह 8 बजे जाता है और शाम को 6 बजे घर लौटता है.’’

‘‘बीबी, अब तो शराब नहीं पीता होगा, मेहर?’’

‘‘नहीं पुत्र, अब नहीं पीता.’’

‘‘चलो, अच्छा है, अपना घर संभालता है.’’

‘‘हां पुत्र’’ बीबी कुछ देर खामोश रही. फिर थोड़ी देर बाद बोली,‘‘बहुत दुख देखे थे तुम्हारी मां ने बेटा. तुम ने भी बहुत मेहनत की थी अपनी मां के साथ. बच्चे अच्छे हों तो मांबाप का जीवन सफल हो जाता है, बेटा. जीवन ही नहीं, बल्कि उन का मरना भी सार्थक हो जाता है,’’ बीबी भावनाओं के समंदर में डूबती जा रही थी.

‘‘हां बीबी, यह बात तो ठीक है.’’

‘‘चलो, तेरी मां इस बात से तो सुख की सांस ले कर गई है इस दुनिया से, अशके पुत्र अशके तेरे,’’ बीबी ने गर्व से गरदन उठा कर कहा.

‘‘बीबी, बहुत मुश्किल से छुड़वाई थी तुम ने मेहर की शराब, कितना इलाज करवाया था तुम ने उस का.’’

‘‘हां पुत्र, बहुत बुरे दिन देखे हैं. लेकिन हालातों के आगे तो किसी की भी नहीं चलती है न. बेटा, बिना मर्द के इस दुनिया में जीना बहुत कठिन है. उस पर यदि औलाद अच्छी न निकले, तो फिर पूछो मत कि क्या गुजरती है. मैं बता नहीं सकती. मु झे मालूम है कि मैं ने कैसे समय बिताया है. अनपढ़ औरत थी मैं. भरी जवानी में विधवा हो गई. मत पूछो, पुत्र.’’

‘‘हां, यह तो ठीक है, बीबी.’’

‘‘हां पुत्र, लेकिन सफेद लिबासों में भेडि़ए ही फिरते हैं. मैं ने देखा है उन दरिंदों को. ये वो लोग हैं जो इंसानियत के दुश्मन हैं और समाज को खोखला कर रहे हैं. ये वो लोग हैं जो अपने थोड़े से फायदे के लिए लोगों को मौत के मुंह में  झोंक देते हैं.’’

‘‘हां बीबी, यह तो तुम ने ठीक कहा.’’

‘‘यही वे लोग हैं जिन्होंने मेहर को नशे की आदत लगा दी थी. मैंबर तो थे ये धार्मिक स्थल के और मेहर से काम करवाते थे घर का और थोड़ी पिला कर देररात तक काम करवाते रहते. बस वहां लग गई उस को नशे की लत,’’ बीबी व्यथित हृदय से सारी बातें बताती रही और अपना मन हलका करती रही. बीबी की बातों से ऐसा लग रहा था जैसे आज तक किसी ने भी उस का दुख सुना न हो. बातें करतेकरते बीबी की आंखें भर आईं. वह ऐसे बातें कर रही थी जैसे किसी अपने हमदर्द से बातें कर रही हो. भोलू उस की बातें बड़ी आत्मीयता से सुन रहा था.

भोलू को याद है जब वह छोटा सा था तो बीबी उस के घर दूध ले कर आया करती थी क्योंकि मेहर का बाप कुछ वर्ष पहले मर चुका था. मेहर के अलावा उस की 2 लड़कियां भी थीं. एक मेहर से बड़ी और एक छोटी. थोड़ा बड़ा होने पर मेहर दूध ले कर आने लगा था.

भोलू की मां और बीबी के बीच बहुत अच्छा रिश्ता बन गया था. दोनों विधवा थीं. दोनों का दुख एकजैसा ही था. दोनों का परिवार जीवन के बड़े संघर्षों से गुजर रहा था. आहिस्ताआहिस्ता भोलू ने अपने पिता के कारोबार को संभाल लिया और मेहर किसी धार्मिकस्थल में सेवादार के काम पर लग गया. औफिस का वातावरण अभी भी मोहममता की सुगंध से महक रहा था.

‘‘बीबी, बहूरानी के बारे में सुनाओ, ठीक है, सेवा करती है आप की?’’

‘‘बहूरानी तो ठीक है, घर अच्छे से संभालती है, मेरी सेवा भी बहुत करती है पर…?’’

‘‘पर क्या?’’ भोलू ने बीबी के कंठ में रुकी आधीअधूरी बात को निकालने का प्रयत्न करना चाहा.

‘‘क्या बताऊं, बेटा…’’ वह कुछ रुकी, फिर बोली, ‘‘क्या बताऊं, मेरी लड़कियों से नहीं बनती उस की,’’ बीबी यह बोलतेबोलते एकदम दुखी सी हो गई.

‘‘बीबी, फिर क्या हुआ, दुखी मत हो, अपना घर तो संभालती है न, तेरे पोतेपोतियों को तो संभालती है न, तेरे बेटे से तो ठीक है न,’’ भोलू ने बीबी को सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘पुत्र, अपने जायो से तो प्यार जानवर भी करते हैं, मजा तो तब है जब दूसरों के लिए कुछ किया जाए,’’ बीबी कर्कश स्वर में बोली.

‘‘चलो बीबी, फिक्र न किया करो.’’

‘‘नहीं पुत्र, उस की मेरी बेटियों से नहीं बनती, यह सोच कर मेरा मन बहुत दुखी होता है, वे कौन सा इस से कुछ मांग रही हैं, कुदरत का दिया सबकुछ तो है उन के पास. दो बोल ही तो बोलने होते हैं मीठे. और क्या चाहिए उन को. सारी जमीनजायदाद तो दे दी उन्होंने लिख कर इन को, फिर भी ऐसा हो तो किसे बुरा न लगेगा, भला?’’ बीबी प्रश्नचिह्न चेहरे पर लाते हुए बोली. उस की आंखों से जैसे नाराजगी के दो मोती छलकने को ही थे.

‘‘बीबी, तू चिंता मत किया कर, तेरी बेटियां अपने घर में सुखी हैं न, और तुम्हें क्या चाहिए?’’

‘‘हां बेटा, छोटा जमाई थोड़ा गुस्से वाला है पर फिर भी ठीक है, रोटी तो कमा कर खिला रहा है न.’’

‘‘चलो बीबी, आहिस्ताआहिस्ता सब ठीक हो जाएगा, चिंता मत किया करो.’’

‘‘पुत्र, घर से बेटियां अगर नाराज हो कर जाएं तो तुम्हें क्या पता कि मां के दिल पर क्या बीतती है,’’ बीबी की आंखों में अटके आंसू आखिर छलक ही पड़े.

‘‘बीबी, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा,’’ भोलू ने बीबी को सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘माताजी, चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा, अच्छा बीबी, पैरी पैणा,’’ भोलू के पास बैठे उस के दोस्त से भी जैसे रहा न गया. इतना कह वह वहां से चला गया. उस के बोलने से माहौल में कुछ बदलाव आया.

‘‘भोलू, चल साग और मेथीवाला टोडा (मक्की की रोटी) खा ले अब, मैं खुद अपने हाथों से बना कर लाई हूं. बहूरानी तो काम कर रही थी, मैं ही जल्दीजल्दी बना लाई. सोचा, आज भोलू से मिल कर आती हूं. बहुत मन कर रहा था तुम से मिलने का,’’ बीबी अपनी सारी परेशानियों से बाहर आ कर बोली, ‘‘अच्छा पुत्र, चलती हूं, बहुत देर हो गई, बहूरानी इंतजार करती होगी,’’ बीबी दुपट्टे से अपनी आंखें पोंछती हुई बोली.

‘‘साग टोडा मु झे बहुत स्वादिष्ठ लगता है,’’ भोलू ने टोडे वाले मुड़ेतुड़े अखबार वाले पैकेट और साग वाले डब्बे की सुगंध लेते हुए कहा.

‘‘बेटा, मां के हाथ का है, स्वाद क्यों नहीं होगा?’’

‘‘बीबी, सच बता, मेहर अब कोई नशा तो नहीं करता न?’’

‘‘रहने दे, परदा ही रहने दे, बेटा. क्या बताऊं, अब तुम से क्या छिपाना, पता नहीं कहां से गोलियां ले कर खाता है नशे की. अब मैं क्या करूं?’’ बाहर खड़े मेहर के स्कूटर पर बैठने से पहले बीबी ने भोलू के कान मे पास आ कर कहा. भोलू दूर तक बीबी को स्कूटर पर जाते हुए देखता रहा. भोलू के मस्तिष्क की दूरी में कुछ चलता रहा जिसे भोलू हल करने का प्रयास करता है. पर नशे पर किसी का बस काबू है? जो एक बार फंस गया, निकल ही नहीं पाता.

Hindi Drama Story

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