Cooking Tips : घर पर खाने में लगाएं 9 तरह के तड़के

Cooking Tips : छौंक यानी तड़के का प्रयोग दाल, दही, कढ़ी, सूखी सब्जी, पुलाव, खिचड़ी व कुछ नाश्तों के लिए भी किया जाता है. छौंक खाने को स्वादिष्ठ तो बनाता ही है, साथ ही स्वास्थ्यवर्द्धक भी होता है.

तड़का मुख्यतया 2 तरीकों से लगाया जाता है. पहला तैयार खाद्यपदार्थ पर मसलन दाल, कढ़ी, छाछ, सूखी सब्जी, ढोकला, खांडवी आदि बन जाने के बाद और दूसरा सब्जियों, पुलाव, खिचड़ी आदि में डाल कर पकाने से पहले.

दोनों ही तरीकों के छौंक से खुशबू, स्वाद तो बढ़ ही जाता है, साथ ही सेहत के लिए भी यह फायदेमंद होता है.

आइए, जानें अलगअलग तड़कों के बारे में:

तड़के और सेहत

तड़का लगाने अथवा बघार के लिए हम जिनजिन चीजों का इस्तेमाल करते हैं, वे हमारी सेहत के लिए भी फायदेमंद होती हैं. तड़के में टमाटर की बात करें तो वह रक्त संबंधी रोग जैसे दांतों से खून बहना, त्वचा पर लाल चकत्ते बनना, मसूड़ों में सूजन आदि से मुक्ति दिलाता है.

हींग कब्ज को दूर कर खाने को पचाने में सहायक है. अजवाइन गैस बनाने वाली चीजों से रोकथाम करती है.

लालमिर्च कोलैस्ट्रौल से बचाव करती है. कलौंजी, मेथीदाना जोड़ों के दर्द के लिए बहुत ही उपयुक्त हैं.

मेथीदाना पाचनशक्ति को बढ़ाने के साथसाथ इन्फैक्शन से भी बचाता है. आयुर्वेद के अंदर डायबिटीज में भी इस का प्रयोग बताया गया है.

सौंफ सांस की बदबू से राहत दिलाती है. साथ ही हाजमे के लिए भी उपयुक्त है. लहसुन में ऐंटीऔक्सीडैंट, ऐंटीबैक्टीरियल एवं ऐंटीसैप्टिक गुण पाए जाते हैं. यह ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल को कम करने व हार्ट के लिए काफी लाभदायक होता है.

  1. कढ़ी का स्पैशल तड़का

तड़के से कढ़ी का स्वाद अलग ही हो जाता है. 4 लोगों के लिए कढ़ी बनी है, तो उस में 1 बड़े चम्मच तेल में 1 छोटा चम्मच जीरा चटकाएं. फिर 1/2 छोटा चम्मच मेथीदाना और 1 छोटा चम्मच राई डालें. उस के बाद 1/2 छोटा चम्मच कुटी लालमिर्च व 3 साबूत लालमिर्चें भूनें. फिर चुटकी भर हींग पाउडर व 10-12 करीपत्ते भून कर कढ़ी में बघार लगा दें. खाना खाते समय उंगलियां चाटते रह जाएंगे.

2. टोमैटो प्यूरी, हींग, मिर्च व जीरे का तड़का

इस तड़के का प्रयोग मुख्यतया अरहर, धुली मूंग, उरद धुली, पंचमेल दाल, साबूत दालों आदि में करें. बस देशी घी या रिफाइंड औयल में हींग, जीरा, साबूत लालमिर्च व देगीमिर्च डाल कर 4 लोगों की दाल में 1/2 कप प्यूरी डाल कर भूनें और दाल में तड़का लगा दें. दाल का रंग तो अच्छा लगेगा ही साथ ही, टोमैटो प्यूरी से दाल और ज्यादा स्वादिष्ठ हो जाती है.

अगर अरहर की दाल में थोड़ा सा चाटमसाला मिला दें और थोड़ी सी धनियापत्ती बुरक दें, तो फिर स्वाद के क्या कहने.

धुली मूंग की दाल में इस तड़के के साथ 10-12 दाने कालीमिर्च के, 2 लौंग और दरदरी कुटी बड़ी इलायची तड़के में मिला दें, तो दाल बेहद स्वादिष्ठ लगेगी.

साबूत दालों में तड़के के अलावा 1/4 कप सुनहरा भुना प्याज भी मिला दें. दालों का स्वाद और बढ़ जाएगा.

3. अजवाइन, साबूत लालमिर्च का तड़का

इस तड़के का इस्तेमाल सूखी अरवी में छौंक लगाते समय करें और राजमा की सब्जी में ऊपर से अजवाइन और देगीमिर्च का तड़का लगाएं. अरवी व राजमा गरिष्ठ होते हैं. अत: इस तरह के तड़के से जल्दी हजम हो जाएंगे. इसी तड़के का इस्तेमाल टोमैटो सूप, कच्चे केले की सूखी सब्जी और मूली की भुजिया में भी करना अच्छा रहता है.

4. पंचफोड़न तड़का

इस तड़के का प्रयोग बंगाली व असमिया परिवारों में शाकाहारी सब्जियों को बनाते समय किया जाता है. सौंफ, राई, मेथीदाना, जीरा, कलौंजी सभी चीजों को बराबर मात्रा में ले कर तेल में डाल कर तड़का तैयार किया जाता है. इस तड़के का प्रयोग कच्चे कद्दू, लौकी, साबूत छोटे आलू बनाते समय करें. बड़े ही स्वाद बनेंगे.

5. राई, करीपत्ते का तड़का

इस तड़के में 1 चम्मच तेल में राई, करीपत्ता, साबूत लालमिर्च, कालीमिर्च व हींग पाउडर डाल कर भूनें और सांबर, अरहर दाल, मूंग दाल डालें. उपमा बनाते समय, सूजी पोगल बनाते समय भी इस तड़के के साथसाथ थोड़ी सी उरद व चना दाल डाल कर छौंकें. अलग स्वाद आएगा. राई, करीपत्ते का छौंक खांडवी, ढोकला आदि में भी किया जाता है.

6. साबूत खड़े मसालों का तड़का

साबूत खड़े मसाले जैसे जीरा, कालीमिर्च, साबूत बड़ी इलायची, छोटी इलायची, दालचीनी का टुकड़ा, लौंग और 4-5 तेजपतों को तेल में भून कर पुलाव वाले चावलों को तड़का लगा कर बनाएं अथवा वैजिटेबल बिरयानी, गोभी, तोरई आदि में खड़े मसाले अपनी खुशबू छोड़ देते हैं. खाना अधिक जायकेदार हो जाता है.

7. टमाटर, प्याज का स्पैशल तड़का

इस तड़के का प्रयोग प्राय: साबूत उरद, मूंग, मसूर, उरद व चने की दाल और चनेलौकी की सब्जी में विशेषरूप से किया जाता है. 200 ग्राम दाल पकने के बाद 1/4 कप बारीक कटे प्याज को घी या तेल में भूनें. फिर 1 छोटा चम्मच जीरा तड़कने के बाद डालें. 1 बड़ा चम्मच बारीक कतरा अदरक, हरीमिर्च डाल कर भूनें. इस के बाद 3 मीडियम आकार के टमाटर छील कर बीज हटा कर बारीक काट कर डालें व भूनें. फिर 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर डाल कर भूनें और तड़का लगा दें. जायकेदार दाल तैयार है.

8. कश्मीरी तड़का

मीठे चावल बनाने हों अथवा कोई अन्य मीठी चीज उस में लौंग, कुटी छोटी इलायची का तड़का लगा कर चावल, दलिया आदि भूनें. पकने के बाद अलग ही स्वाद आएगा.

9. हरा लहसुनिया तड़का

इस तड़के का प्रयोग दाल व सब्जी में करें.

1 कप कच्ची दाल को पकाने के बाद 2 बड़े चम्मच हरी डंडियों सहित लहसुन को काट कर भूनें. फिर घी में जीरे के तड़कने के बाद मिर्च डाल कर दाल में बघार लगा दें. दाल का स्वाद दोगुना हो जाता है. यह तड़का धुली उरद व अरहर की दाल के लिए बहुत ही उपयुक्त है. यदि हरा लहसुन न हो तो सामान्य लहसुन की कलियों को भी बारीक काट कर प्रयोग में लाया जा सकता है.

Abortion के बाद जल्दी रिकवरी के लिए अपनाएं ये टिप्स

Abortion : बहुत सारे लोग बच्चा 30 की उम्र के बाद सोचते हैं. एक विश्वव्यापी सर्वे के अनुसार हर 4 में से 1 महिला का गर्भपात 45 साल की उम्र से पहले हो जाता है. यदि आप का या आप के आसपास किसी महिला का गर्भपात हुआ है तो आप का यह जानकारी पढ़ना और भी जरूरी है. आइए, इस से पहले जानते है कि गर्भपात क्या होता है.

गर्भपात क्या होता है और इसे करनेकराने के क्या तरीके होते हैं?

गर्भपात यानी गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले या तो गर्भ का अपनेआप गर्भ से निकल जाना या उसे जबरदस्ती शल्य चिकित्सा या गोलियों के माध्यम से निकालना. इस का अंतिम परिणाम यह होता है कि गर्भावस्था खत्म हो जाती है, गर्भपात हो जाता है.

गर्भपात के कई अलगअलग प्रकार हैं. एक डाक्टर किसी भी महिला की आवश्यकताओं और गर्भावस्था के अनुसार उस के लिए उपयुक्त विधि का प्रयोग करेगा. गर्भपात के प्रकारों में शामिल हैं:

गर्भपात की गोली.

निर्वात आकांक्षा, अर्थार्थ वैक्यूम ऐस्पिरेशन फैलाव और निकासी या डी ऐंड ई गर्भपात के बाद इन प्रक्रियाओं के बाद एक महिला की सामान्य माहवारी अवधि 4-8 सप्ताह में वापस आ जानी चाहिए. हालांकि उसे शुरू में अनियमित स्पोटिंग या रक्तस्राव हो सकता है. कुछ महिलाओं में गर्भपात के बाद के दिनों और हफ्तों में मजबूत भावनाएं और मूड में बदलाव होता है. हारमोन में अचानक परिवर्तन इस का कारण बन सकता है. गर्भपात होना भावनात्मक और मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण अनुभव हो सकता है और प्रक्रिया के बाद के दिनों और हफ्तों में आप को दोस्तों और करीबी संबंधों का सहारा लेना चाहिए.

जैसे ही कोई महिला ओव्यूलेट करती है, गर्भवती होना संभव है. यह पहली माहवारी से पहले होता है और यह गर्भपात के तुरंत बाद हो सकता है. इसलिए यदि कोई महिला गर्भधारण से बचने की कोशिश कर रही है तो गर्भनिरोधक का उपयोग करना या सैक्स से परहेज करना जरूरी है.

गर्भपात के बाद के कुछ खास लक्षण क्या हैं?

गर्भपात के बाद आप को कई लक्षण अपनेआप में दिख सकते हैं. निर्भर करता है इस बात पर कि आप का गर्भपात किस तरह हुआ है. देखा यह भी गया है कि जिन का गर्भपात, गर्भावस्था के अंत के महीनों या दिनों में होता है, उन को ये लक्षण थोड़े गंभीर रूप में दिख सकते है.

गर्भपात के बाद दिखने वाले निम्नलिखित लक्षण हैं:

खून आना

कुछ महिलाओं को गर्भपात के बाद बिलकुल खून नहीं आता. बाकियों को अगले 2-6 हफ्तों तक योनि से खून आ सकता है. ऐसे में घबराएं नहीं. यह गर्भपात का एकदम सामान्य लक्षण है.

योनि से जो खून आ रहा है वह थोड़ा स्पौटी, भूरे रंग का हो सकता है. उस में यदि आप को क्लोट्स दिखें तो घबराएं न यह एकदम सामान्य है.

यदि ज्यादा खून आ रहा हो तो पैड्स का प्रयोग करें और उस के बाद गर्भाशय वाली जगह को 10-15 मिनट आराम से मलें, हीटिंग पैड का उपयोग करें और ज्यादा दर्द होने पर पेनकिलर लें.

बहाव

आप का बहाव कुछ इस प्रकार हो सकता है:

बिना खून का, भूरे या काले रंग का.

बलगम की शक्ल जैसा.

क्रांपिंग, गर्भपात के बाद होने वाली बहुत ही साधारण सी हरकत है. इस का मतलब यह होता है कि गर्भाशय वापस अपनी जगह पर आ रहा है.

गर्भपात के बाद अपना ध्यान कैसे रखें?

शारीरिक तौर पर

गर्भपात के बाद महिलाओं को किसी दोस्त या परिवार के सदस्य को अपने साथ रखना चाहिए. अगर हो सके तो अगले 2-3 दिन तक पूरी तरह आराम करना चाहिए, हो सके तो काम से छुट्टी ले लेनी चाहिए. खुद को शारीरिक या भावनात्मक रूप से मुश्किल काम करने से बचाने की कोशिश करनी चाहिए.

गर्भपात होने के बाद खुद का खयाल रखना भी जरूरी है. हालांकि यह प्रक्रिया छोटी सी होती है लेकिन शारीरिक रूप से ठीक होने में कई दिन या सप्ताह लग सकते हैं. एक महिला यह कोशिश कर सकती है:

हीटिंग पैक का उपयोग करना.

पेनकिलर को प्रयोग में लाना.

पेट और पीठ के निचले हिस्से की मालिश करना.

‘किताबें पढ़ना मैंटल हैल्थ के लिए जरूरी है’ : डाक्टर बबीता सिंह चौहान अध्यक्ष, महिला आयोग

Dr. Babita Singh : उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डाक्टर बबीता सिंह चौहान उत्तर प्रदेश के आगरा की रहने वाली हैं. इन का जन्म बुलदंशहर के शिकारपुर गांव में हुआ था. बबीता की शादी एटा जिले के सोंहार गांव के रहने वाले जितेंद्र चौहान के साथ हुई. वे समाजसेवी हैं. बबीता सिंह चौहान की बेटी शगुन सिंह आयरलैंड के डबलिन शहर में माइक्रोसौफ्ट कंपनी में बडी अधिकारी है. बेटा प्रद्मुन सिंह अभी अपनी शिक्षा पूरी कर रहा है.

बबीता सिंह ने अपनी राजनीति 2013 में भारतीय जनता पार्टी से शुरू की. 2014 में प्रदेश कार्यसमिति की सदस्य बनीं. 3 साल बृज प्रांत महिला मोरचा की अध्यक्षा रहीं. इस के बाद महिला मोरचा उत्तर प्रदेश की उपाध्यक्ष बनाई गईं. विधानसभा, लोकसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में कई क्षेत्रों की प्रभारी रहीं. 2024 में उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्षा बनाई गईं.

पेश हैं, डाक्टर बबीता सिंह चौहान के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश:

अध्यक्ष के रूप में आप का पहला ही फैसला महिला टेलरों को ले कर काफी विवादों में रहा. कैसे देखती हैं अपने इस फैसले को?

आज के समय में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. तमाम महिलाएं ऐसी हैं, जिन के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं. कमजोर वर्ग की महिलाएं भी हैं जो हुनरमंद हैं. मैं चाहती हूं कि इन के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध हों. इसलिए मैं ने सरकार से कहा कि यह नियम बनाए जाए जिस से टेलर की शौप पर कपड़ों की नाप लेने का काम महिलाएं भी करें.

अगर कोई महिला किसी पुरुष से अपने कपड़ों की नाप कराने में सहज महसूस नहीं कर रही तो उस के पास यह अवसर होना चाहिए कि वह दुकान पर काम करने वाली महिला को अपने कपड़ों की नाप दे सकें. मैं ने यह नहीं कहा कि वहां केवल महिला ही नाप लेने के लिए हो. महिला भी नाप लेने के लिए होनी चाहिए.

इसी तरह से जिम, स्कूल बस और भी जगहों पर महिलाओं को होना चाहिए. इस से जो भी महिला के साथ सहज हो वह उस से संपर्क कर सकती है. दूसरे इस बहाने महिलाओं के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे. आज जहां भी सिक्युरिटी चैकिंग होती है वहां महिलाएं पहले से हैं. कोई विवाद नहीं है. महिला आयोग ने जब एक आदेश दिया कि टेलर शौप, जिम, पार्लर और स्कूल की बसों में महिलाएं नियुक्त की जाएं तो विवाद हो गया. मेरी बात को गलत तरह से पेश किया गया. मेरा उद्देश्य महिलाओं के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर प्रदान करने का था.

बहुत सारी लड़कियां पढ़लिख कर लड़कों से आगे निकल रही हैं. इस के बाद भी टौप पोजीशन पर उन की भागीदारी उतनी नहीं दिखती है?

देखिए, 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई तो लड़कियों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर मिलने लगे. किसी भी परीक्षा परिणाम को देखेंगे तो यह साफ दिखेगा. हाई स्कूल, इंटर में लड़कियां आगे आ रही हैं तो आईएएस, पीसीएस में भी वे आगे आ रही हैं. उत्तर प्रदेश में 2017 के पहले लड़कियों के लिए माहौल सुरक्षित नहीं था. कानून व्यवस्था खराब थी.

बड़ी उम्र की लड़कियों को स्कूलकालेज भेजने से परिवार के लोग डरते थे. आज आप किसी स्कूलकालेज, यूनिवसिर्टी के बाहर खड़े हो जाएं आप को लड़कियों की बढ़ी हुई संख्या दिखेगी. सरकार ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का जो नारा दिया उस का असर जमीन पर दिख रहा है.

आज किस तरह की परेशानियां महिलाओं के सामने आ रही हैं?

महिलाएं बाहर निकल रही हैं तो घरेलू से अधिक बाहर की परेशानियां हैं. कार्यस्थल की परेशानियां हैं. नौकरी में वेतन, प्रमोशन की परेशानी है. महिलाओं को लालच दे कर उन के शोषण की परेशानियां हैं. पहले केवल घरेलू परेशानियां ही होती थीं. सोशल मीडिया के आने से निजी जीवन प्रभावित हुआ है. पहले हमारी मां हमें सरिता, चंपक, गृहशोभा जैसी तमाम पत्रिकाएं पढ़ने को देती थीं. वे खुद भी पढ़ती थीं. हमें भी इन्हें पढ़ने की आदत पड़ गईं. अखबार पढ़ने की आदत थी.

अब यह दौर बदल गया है. सोशल मीडिया के जमाने में सुबह से ले कर रात सोते समय तक ब्लू स्क्रीन ही आंखों के सामने रहती है. इस से हमारी मैंटल हैल्थ बिगड़ रही है.

17 एक्टरों के साथ बनाई गई Housefull 5, जिसे दर्शकों ने कहा ‘वाहियात फिल्म’

Housefull 5 : हाल ही में लंबी चौड़ी स्टार कास्ट के साथ प्रस्तुत हुई फिल्म हाउसफुल 5 को लेकर इतनी ज्यादा पब्लिसिटी और चर्चा थी कि सिनेमाघरों के मालिकों को लगा कि पहले ही शो में दर्शक फिल्म देखने के लिए टूट पड़ेंगे. जिसके चलते सिनेमाघर मालिकों ने इस फिल्म का सुबह में शो रख दिया, लेकिन सुबह के शो में पूरा थिएटर खाली था क्योंकि अक्षय कुमार, अभिषेक बच्चन, फरदीन खान, रितेश देशमुख जैसे प्रसिद्ध कलाकारों से सजी फिल्म में घटिया और वाहियाद चीप कौमेडी , बेतुके सीन , अश्लील प्रेम प्रसंगों से भरी फिल्म परिवार के साथ तो क्या दोस्तों के शायद साथ भी देखने लायक नहीं थी.

ऐसे में अपनी फिल्म की सफलता को लेकर कॉन्फिडेंट अक्षय कुमार खुद मास्क पहन के रिव्यू लेने पहुंच गए, जहां पर दर्शकों ने उनसे ठीक ढंग से बात तक नहीं की, क्योंकि थिएटर से दर्शक पूरी तरह नाराज होकर निकल रहे थे.

हाउसफुल 5 को हाउसफुल करवाने में मार्केटिंग टीम और पी आर टीम जुड़ी हुई थी, अभी फिल्म अपनी लागत भी नहीं वसूल कर पाई थी की फिल्म को हिट सुपरहिट कहना शुरू कर दिया गया, इस फिल्म की हीरोइनों को देखकर आंखें बंद करने का दिल किया, अक्षय की कौमेडी टाइमिंग के चलते सभी दर्शकों को उम्मीद थी कि हाउसफुल 5 एक अच्छी कौमेडी फिल्म होगी. लेकिन अक्षय की एक्टिंग को देखकर ऐसा लगा कि वह भांग खा के एक्टिंग कर रहे हैं, ऐसे में कहना गलत ना होगा 17 सुपरस्टारों वाली बिग बजट फिल्म का पूरी तरह बंटाधार है. बशर्ते मेकर्स सलमान खान की सिकंदर की तरह ईमानदारी से कबूल करें की फिल्म सुपर फ्लॉप है .

Makeup Tips : चेहरे के रंग को गोरा करने के लिए क्या प्रौमिनैंट मेकअप सही है?

 Makeup Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल-

मैंने प्रौमिनैंट मेकअप के बारे में काफी सुना है. अपने चेहरे के रंग को गोरा करने के लिए क्या प्रौमिनैंट फाउंडेशन लगाया जा सकता है?

जवाब-

वैसे तो आईब्रोज, आईलाइनर, काजल, लिपस्टिक, लिप लाइनर परमानैंट मेकअप में लगाया जाता है, पर आजकल परमानैंट फाउंडेशन भी लगाया जा रहा है. यह 20 दिन से 1 महीने तक टिकता है.

इस में डर्मा रोलर की सहायता से फाउंडेशन को स्क्रीन के ऊपर लगा कर थोड़ा डीप पहुंचाया जाता है और वह फाउंडेशन या ब्लशर स्किन के अंदर जा कर रंग में फर्क डालता है और स्किन को ग्लो भी देता है. आमतौर पर प्रौमिनैंट मेकअप 2 से 15 साल तक टिकता है, पर फाउंडेशन ऐंड ब्लशर 20 दिन से 1 महीने तक ही टिकता है.

ये भी पढ़ें-

चेहरा हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है और इस आईने को बेदाग व खूबसूरत बनाने के लिए फेस मेकअप की सही जानकारी जरूरी है. किसी भी मेकअप की शुरुआत बेस से होती है. इसीलिए उसे स्किन का बैकड्रौप माना जाता है, जो मेकअप के लिए परफैक्ट स्किन देता है. आमतौर पर हम सभी अपने चेहरे के लिए बेस का चयन अपनी स्किनटोन के मुताबिक करते हैं. लेकिन परफैक्ट स्किन के लिए यह जरूरी है कि आप का बेस आप की स्किन के भी अनुसार हो.

आइए, जानें कि बेस का चयन कैसे करें:

बेस फौर ड्राई स्किन

यदि आप की स्किन ड्राई है तो आप टिंटिड मौइश्चराइजर, क्रीम बेस्ड फाउंडेशन या सूफले का इस्तेमाल कर सकती हैं.

टिंटिड मौइश्चराइजर

यदि आप की त्वचा साफ, बेदाग व निखरी हुई है, तो आप बेस बनाने के लिए केवल टिंटिड मौइश्चराइजर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे लगाना बेहद आसान है. अपने हाथ में मौइश्चराइजर की कुछ बूंदें लें और अपनी उंगली से चेहरे पर जगहजगह डौट्स लगा कर एकसार फैला लें. यह एसपीएफ यानी सनप्रोटैक्शन फैक्टर के साथ भी आता है, जिस के कारण यह हमारी त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है. इस के अलावा यह हमारी स्किन को तेज हवाओं व अन्य वजह से होने वाली ड्राईनैस से बचा कर मौइश्चराइज भी करता है.

क्रीम बेस्ड फाउंडेशन

यह स्किन के रूखेपन को कम कर के उसे मौइश्चराइज करता है, इसलिए यह ड्राई स्किन वालों के लिए काफी अच्छा होता है. इसे लगाने से स्किन को प्रौपर मौइश्चर मिलता है. इसे यूज करना भी आसान है. स्पैचुला से थोड़ा सा बेस हथेली पर लें और स्पंज या ब्रश की मदद से एकसार पूरे फेस पर लगा लें. इसे सैट करने के लिए पाउडर की एक परत लगाना जरूरी है. इस से बेस ज्यादा देर तक टिका रहता है.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें :

गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055 कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

Relationship Tips : घुटनों के बल बैठ कर लड़कियां भी कर सकती हैं इजहार-ए-इश्क

Relationship Tips : निधी दिखने में जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस का सपना डाक्टर बनने का था. कुछ महीनों पहले ही मैडिकल कालेज में उस ने ऐडमिशन लिया था. कालेज में उस के कई लड़के दोस्त बने. उन लड़कों में रोहन निधी से कम बात करता था, निधी भी उसे नजरअंदाज ही करती थी.

एक दिन ब्लैक जिंस और व्हाइट टीशर्ट में रोहन बहुत ही हैंडसम दिखाई दे रहा था। पहली बार निधी का दिल रोहन को देख कर जोर से धड़का. उसे समझ नहीं आ रहा था कि रोहन को देख कर उसे क्या हो रहा है. फिर उस ने खुद को संभाला और अपनी नजरें हटा लीं. रातभर निधी के सामने बारबार रोहन का चेहरा सामने आ रहा था.

वह सोच रही थी कि वह रोहन को कैसे प्रपोज कर सकती है, उस ने तो सुना था कि सिर्फ लड़के ही लड़कियों को प्रपोज करते हैं. निधी अपनी रूममेट सुमन से अपने दिल की बातें शेयर की. सुमन ने उसे समझाया कि अगर रोहन को पसंद करती हो, तो तुम उसे प्रपोज कर सकती हो, लड़कियां भी लड़कों को प्रपोज करती हैं, अब वह जमाना गया जिस में सिर्फ लड़के ही अपने रिश्ते की बात करते थे.

प्यार का एहसास

निधी ने ठान लिया कि वह खुद अपने दिल की बात रोहन से कहेगी. निधी जैसी न जाने कितनी लड़कियां होंगी जो लड़कों को प्रपोज करने से कतराती होंगी.

यह कहना गलत होगा कि पहले लड़के ही लड़कियों को प्रपोज करें. लड़कियां भी लड़कों को प्रपोज कर सकती हैं.

लड़कों को प्रपोज करते समय

इस बात का जरूर ध्यान रखें कि जब भी आप किसी लड़के को प्रपोज करने जाएं, तो उसे यह न लगे कि आप उस लड़के को पटा रही हैं या केवल अपना काम निकलवाने के लिए उस के साथ फ्लर्ट कर रही हैं. जब आप किसी लड़के से अपने प्यार का इजहार करें, तो बिना किसी बनावट के सच्चे दिल से अपनी बातों को कहें.

प्रपोज करने के लिए सही जगह का चुनाव

सब से पहले आप सही जगह का चुनाव करें, जहां आप और वह लड़का दोनों सहज महसूस कर सकें. कई बार लोग पब्लिक प्लेस में ही अपने प्यार का इजहार कर देते हैं, ये गलतियां करने से बचें.

अपने दिल की बात कहने के लिए सही लोकेशन का चुनाव जरूरी है. प्रपोज करने के लिए आप उस लड़के के साथ लौंग ड्राइव का प्लान कर सकती हैं या इस के अलावा कैंडिल लाइट डिनर भी बैस्ट औप्शन है.

इजहार करने से पहले स्पैशल मोमेंट का इंतजार करें

किसी लड़के को प्रपोज करने से पहले अच्छी तरह प्लान कर लें, ताकि हड़बड़ाहट में आप कुछ उलटा न बोल दें, जिस से बात बनने से पहले ही बिगड़ जाए. कुल मिला कर आप को उस मोमेंट के लिए खुद को रेडी करना होगा. हां, सब से जरूरी बात यह कि कभी भी यह न सोचें कि आप के प्रपोजल को स्वीकारा ही जाएगा। यह जरूरी नहीं है कि अगर आप किसी से प्यार करती हैं, तो वह भी आप से उतना ही प्यार करेगा.

रिजैक्शन के लिए भी रहें तैयार

आप जिसे पसंद करती हैं, उसे प्रपोज करें. लेकिन रिजैक्शन के लिए भी तैयार रहें. जी हां, प्रपोज करने के दौरान सामने से आप को रिजैक्शन ‍भी मिल सकता है. इसलिए पहले से खुद को तैयार रखें. आप उस से जबरदस्ती कभी न करें. उस के फैसले का सम्मान करें.

किसी भी लड़के को प्रपोज करने से पहले उस का बैकग्राउंड जरूर चैक करें. उस की पसंद या नैचर के बारे में भी जानने की कोशिश करें.

Kahani In Hindi : करणकुंती – कैसी थी रंजीत की असली मां

Kahani In Hindi : ‘‘रंजीतचल यार, कुछ खा कर आते हैं. आज मैरीडियन में सिजलर्स स्पैशल डे है.’’

समीर के उत्साह पर रंजीत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. जैसे कुछ सुना ही नहीं. पत्थर की तरह बैठा रहा.

‘‘मैं भी देख रहा हूं, जब से तू अपने गांव से आया है, बहुत डल फील कर रहा है. आखिर बात क्या है यार?’’

रंजीत से अब रहा न गया. बोला, ‘‘मम्मीपापा ने ऐसा सच बताया, जिसे मैं अभी तक बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं, समीर,’’ उस का गला भर आया. आगे कुछ न बोल सका.

‘‘रोता क्यों है, हर समस्या का कोई न कोई हल होता है. तेरी प्रौब्लमक्या है?’’ समीर को बड़ा अजीब लग रहा था.

रंजीत ने एक लंबी सांस ली, ‘‘मैं मम्मीपापा का बेटा नहीं हूं. उन्होंने बताया कि मैं उन्हें ट्रेन

में मिला था. कोई मुझे ट्रेन के डब्बे में छोड़ गया था. मैं तब 6 महीने का था. मम्मीपापा ने पुलिस में शिकायत दी और उस की इजाजत से मुझे घर ले गए. जब 1 साल के बाद भी मुझे लेने कोई नहीं आया तो उन्होंने मुझे कानूनी तौर पर गोद

ले लिया.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है…अब तू मायूस

क्यों है?’’

‘‘मुझे इतना बड़ा सच मालूम हो और

मुझ पर कोई असर न पड़े, यह कैसे हो सकता

है यार?’’

‘‘कम औन रंजीत, तुझे तो कुदरत का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिस ने तुझे इतने अच्छे मांबाप दिए. तुम्हारे मांबाप ने तुझे इतना प्यार दिया, पढ़ायालिखाया. तुझे इस लायक बनाया कि तू दुनिया के आगे सिर उठा कर जी सके… तुझे तो उन का शुक्रगुजार होना चाहिए.’’

‘‘वह तो है. अब उन के प्रति मेरा प्रेम, अभिमान और भी ज्यादा हो गया है.’’

‘‘तो यह उदासी क्यों?’’

‘‘मेरी सगी मां, मुझ से मुंह फिरा कर क्यों चली गई? कहते हैं, बुरा बेटा हो सकता है, मगर मां बुरी नहीं. एक 6 महीने के बच्चे में क्या बुराई हो सकती है, जो वे मुझे छोड़ गईं या फिर वे मजबूर थीं. किसी ने उन के साथ बलात्कार कर के उन्हें समाज के सामने मुंह दिखाने लायक न रखा हो और वे मुझे छोड़ने पर मजबूर हो गईं.’’

‘‘अरे छोड़ न तू… अपने गुजरे कल पर रो क्यों रहा है? अच्छा हुआ जो तू किसी अनाथालय नहीं पहुंचा और न ही बुरे लोगों के चंगुल में… तेरे साथ सब अच्छा ही हुआ है… रोता क्यों है?’’

‘‘हां, तू बिलकुल ठीक कहता है मैं अपने मम्मीपापा का शुक्रगुजार हूं. फिर भी मैं अपनी असली मां को ढूंढ़ कर ही रहूंगा. यह मेरा

जनून है.’’

समीर ने उस की पीठ थपथपा कर कहा, ‘‘मैं तेरे साथ हूं.’’

अगले 2-3 दिनों तक रंजीत अपने औफिस में व्यस्त था. वह एक नामी कंपनी

में सौफ्टवेयर टैक्निशियन था. उस ने एमसीए किया था. प्रोग्रामिंग में कुछ नएनए कंप्यूटर कोर्स भी किए थे. 25वें साल में ही अपनी उम्र से दोगुनी से भी अधिक तनख्वाह पाता था. मांबाप का एकलौता बेटा था. पिताजी स्कूल मास्टर थे. अपने कम वेतन में भी उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी. मां तो आज भी उसे बच्चा

ही समझतीं.

एक दिन अचानक मां का बीपी डाउन होने की वजह से उन्हें अस्पताल में भरती किया गया. वह सारे काम छोड़ कर मां के पास बैठ गया. मां की तबीयत बिगड़ती गई. रंजीत ने पानी की तरह पैसा बहाया. उन्हें दिल्ली ले जा कर बड़े अस्पताल में भरती करवा कर इलाज करवाया. मां तो बच गईं. मगर उन्होंने अपनी बीमारी के दिनों में वह सच जाहिर कर दिया जिसे सुन रंजीत पूरी तरह हिल गया था.

उसे अपने बचपन के दिनों की याद आई. पड़ोस की आंटी उसे काला कौआ कह कर चिढ़ाया करती थीं.

‘‘तेरी मम्मी तो दूध जैसी गोरी है रे. पापा भी इतने काले नहीं, तो तू क्यों ऐसा है?’’

आंटी के सवाल पर रोतेरोते मम्मी के पास जा कर उस ने वही सवाल दोहराया था.

मम्मी ने प्यार से उस का माथा चूम कर कहा था, ‘‘बेटा, मैया यशोदा भी गोरी थीं, मगर कृष्ण काले थे…कोई नियम नहीं है बच्चे बिलकुल अपने मांबाप पर जाएं. तुम अपने दादादादी, नानानानी या परदादा, परदादी पर भी जा सकते हो. ऐसी बातों से मन खराब मत करो. जाओ अपने दोस्तों के साथ खेलो.’’

फिर मां ने उस पड़ोसिन को बच्चों के मन को दुखाने वाली ऐसी बातें करने के लिए काफी कटु वचन सुनाए थे.

रंजीत को एक और किस्सा याद आया. पापा का तबादला होने पर वे एक नए जिले में गए थे. मांबेटे का प्यार देख कर, घर की कामवाली को आश्चर्य हुआ था.

‘‘आप का बहुत बड़ा दिल है मालकिन. सौतन के बच्चे से कोई इतना प्यार

नहीं करता.’’

‘‘तुम्हें किस ने कहा कि यह मेरी सौतन का बच्चा है?’’

‘‘रंजीत बाबा की शक्ल आप दोनों से नहीं मिलती तो मैं ने सोचा, यह बच्चा साहब की पहली बीवी का तो नहीं.’’

मम्मी ने गुस्से में आ कर उसे काम से निकाल दिया.

रंजीत सोच रहा था बचपन से ही मांबाप से मेरी शक्लसूरत से भिन्नता को कई लोगों ने पहचाना. मगर मम्मीपापा के प्यार में डूबे मेरे मन में कभी इस बारे में कोई हैरानी पैदा नहीं हुई.

औफिस के काम निबटा कर उस ने सोचना शुरू किया कि अब अपनी मां को ढूंढ़े कैसे? पहले उस ने पुलिस की मदद लेने की कोशिश की. समीर के साथ कई बार पुलिस स्टेशन के चक्कर भी काट आया. मगर उन की प्रतिक्रिया निराशाजनक थी.

‘‘रंजीत हम आप की भावनाओं को समझ सकते हैं. मगर जो फाइल 25 साल पहले सी रिपोर्ट के दौरान बंद हुई हो, उस का पता हम कैसे लगा सकते हैं? 25 साल पहले भी इस बारे में तहकीकात हुई थी. मगर बच्चे को छोड़ कर जाने वाले के बारे में कुछ भी पता न लगने के कारण ही सी रिपोर्ट डाली गई थी और वह फाइल बंद भी हुई थी. सौरी, अब हम इस मामले में कोई मदद नहीं कर सकते.’’

समीर उसे बाहर ले आया था. होटल में चाय पीते वक्त बोला, ‘‘सुन हम खुद ढूंढ़ते हैं. मैं रेलवे की इनफौर्मेशन निकालता हूं और 25 साल पहले के उस ट्रेन के डब्बे की रिजर्वेशन लिस्ट निकालता हूं. शुक्र है, तुझे छोड़ कर जाने वाले कम से कम रिजर्वेशन के डब्बे में तो आए. अगर जनरल में आते तो कोई तुझे ढूंढ़ नहीं पाता.’’

‘‘काम तो मुश्किल है समीर. उस के साथसाथ हम क्यों न दूसरा रास्ता भी अपनाएं?’’

‘‘क्या?’’

‘‘बचपन से लोग मेरी और मम्मीपापा की शक्लसूरत की भिन्नता को पहचान रहे हैं. मतलब मैं अपनी असली मां या पिता के रूप से मिलताजुलता हूं. क्यों न मैं अपनी तसवीर फेसबुक पर डालूं और अपनी कहानी सुना कर लोगों से अपने मांबाप को ढूंढ़ने में मदद मांगू?’’

‘‘आइडिया तो अच्छा है. कोशिश करते हैं.’’

फेसबुक पर उस के पोस्ट पर उम्मीद से ज्यादा प्रतिक्रियाएं आईं. वृद्धाश्रम, अनाथालय में रही कुछ बूढि़यों की तसवीरें भी आईं, जिन्हें अपने किए पर पछतावा था. वे दोनों जा कर उन से मिल कर भी आए. वे उसी इलाके की रहने वाली थीं. जवानी में भूल के कारण बच्चे को जन्म दे कर उसे त्यागना पड़ा था. मगर किसी ने भी ट्रेन में नहीं छोड़ा था. 1-2 ने कहा था, उन्होंने बच्चा तो दूसरों के हाथ में दिया था. फिर पता नहीं आगे क्याक्या हुआ होगा… उन लोगों ने बच्चे के जन्म की जो तारीख बताई, उन में से कोई भी

रंजीत की जन्मतिथि की आसपास वाली नहीं थी.

समीर बड़े प्रयत्न के बाद रेलवे से रिजर्वेशन लिस्ट भी ले आया. पहले तो उन लोगों ने उन पतों को इंटरनैट में रही वोटर्स लिस्ट के साथ मैच किया. कुछ नाम और पते तो आज भी वही थे, पर कुछ में वे नाम नहीं थे. रंजीत की मां ने बताया था कि जब वह बच्चा उन्हें मिला था तो वह आराम से सो रहा था और उस डब्बे में कोई नहीं था.

‘‘पूरे डब्बे के लोग एकसाथ कैसे खाली हो सकते हैं?’’

समीर के सवाल पर मां ने समाधान दिया था, ‘‘उस समय वहां मेला लगा था बेटा. दूरदूर के लोग मेले में आते थे बेटा.’’

‘‘छोटे बच्चे को सोते छोड़ जाना मतलब उस की मां भी साथ में आई होगी. उसे दूध पिला कर, उसे चैन से सुला कर छोड़ गई होगी ताकि उसे छोड़ते वक्त किसी की नजर न पड़े. अगर वह रोने लगता तो सब की नजरें उस पर पड़ जातीं. जिस बर्थ पर तुम्हें छोड़ा गया था यदि उस के आजूबाजू वालों को ढूंढ़ कर उन से पूछें तो शायद कुछ पता चले.’’

‘‘यू आर सर्चिंग ए नीडल इन ए हेस्टैक,’’ रंजीत खुद निराश था.

‘‘ऐटलिस्ट देयर इज हेस्टैक,’’ समीर मुसकराया.

‘‘शुक्रिया. जो मेरे लिए इतना कष्ट उठा रहे हो,’’ रंजीत ने दोस्त को गले से लगाया.

दोनों औफिस से छुट्टी ले कर रिजर्वेशन लिस्ट में दर्ज नामों की तलाश में जुट गए. कुछ ने मकान बदल दिए थे तो कुछ लोगों के पतेठिकाने मिल गए. दोनों घरघर जाने लगे. बहुत से घरों में कोई सहयोग नहीं मिला.

उन्होंने कहा, ‘‘25 साल पुरानी रेल यात्रा के हमसफरों की याद भला किसे रह सकती है?’’

एक वृद्धा की याददाश्त तेज थी. बोली, ‘‘हां बेटा उस कोने की सीट पर एक लड़की अपने नवजात शिशु के साथ बैठी थी, साथ में उस की मां भी थी. उन लोगों के कपड़ों व बातचीत से लगता था वे लोग ब्राह्मण हैं और किसी मंदिरवंदिर के पुजारियों के परिवार वाले हैं. वे दोनों किसी के साथ भी बातचीत नहीं कर रहे थे. मुझे नहीं पता कि वे कौन थे.’’

‘‘दादीजी, क्या यह याद है कि वे लोग कहां से उस ट्रेन में चढ़े थे?’’

‘‘हां बेटा, दोनों भारतीपुर से चढ़े थे.’’

‘‘शुक्रिया दादीजी,’’ उस वृद्धा के चरण छू कर दोनों वहां से चल दिए.

रंजीत ने कंप्यूटर में अपने फोटो को मौर्फ कर के एक औरत की तसवीर में बदल दिया. करीब 45 साल की औरत की उस तसवीर को भारतीपुर की वोटर लिस्ट में रही सभी औरतों की तसवीरों के साथ तुलना करने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ.

‘‘भारतीपुर

के मंदिरों और पुजारियों का अतापता लगाते हैं.’’

वहां के कई मंदिरों और पुजारियों के दर्शन के बाद शिव मंदिर के पुजारी 80 साल के शंकर शास्त्रीजी ने कहा, ‘‘बेटा, तुम अपनी मां को ढूंढ़ने के लिए इतना प्रयत्न कर रहे हो…अगर तुम ने अपनी मां का पता लगा भी लिया और मिलने गए तो जानते हो उस औरत के जीवन में कितना बड़ा तूफान उठ सकता है… उस की बसीबसाई जिंदगी बिगड़ जाएगी बेटा.’’

‘‘बाबाजी, मैं वादा करता हूं, मैं किसी की भी जिंदगी बरबाद नहीं करूंगा. मैं तो बस अपनी मां को देखना चाहता हूं. अगर मेरे जन्म के कारण से वह इस समाज में बाधित हुई हो तो मैं उसे अपने साथ ले जाने के लिए भी तैयार हूं. मगर यदि मेरे प्रवेश से उस की जिंदगी में तूफान उठ सकता है, तो मैं दूर से ही उसे एक बार देख लूंगा. प्लीज बताइए पंडितजी आप मेरी मां के बारे में कुछ जानते हैं?’’

‘‘मैं ज्यादा कुछ नहीं जानता बेटा, मैं पूछताछ कर के बताऊंगा. तुम अपना नंबर मुझे दे दो बेटा.’’

दोनों को यकीन हो गया कि वे रंजीत की मां के बारे में जानते हैं. शायद उस की इजाजत लेने के बाद, रंजीत को इस बारे में बताएंगे. अब इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नहीं था.

2 हफ्तों के बाद शास्त्रीजी के बेटे ने कौल की, ‘‘पिताजी आप से मिलना चाहते हैं. क्या इस इतवार को फुरसत निकाल कर आ सकते हैं आप?’’

दोनों बड़ी बेसब्री से इतवार की प्रतीक्षा करने लगे. वह दिन आ भी गया. दोनों भारतीपुर पहुंचे. शास्त्रीजी ने उन के खाने का इंतजाम किया था. खाने के बाद घर के बरामदे में ही बातचीत शुरू हुई. घर वाले अंदर थे.

शास्त्रीजी ने गला ठीक किया और बड़ी मुश्किल से बात शुरू की, ‘‘देखो बेटा, तुम ने उस दिन अपने बारे में बताया और अपनी मां को देखने की इच्छा व्यक्त की. मैं ने उस औरत से बात भी की. उसे भी इस बात पर बड़ा दुख है. आखिर वह भी एक मां है बेटा. मंगर उस की जिंदगी में कुछ और लोग भी हैं और उसे स्वयं अपने जीवन का भी तो खयाल करना है, इसलिए वह दुनिया के सामने तुम्हें अपना नहीं सकती.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं पंडितजी, मगर वह कौन है? क्या मैं उसे देख सकता हूं?’’

‘‘वह मेरी भानजी है बेटा. 16वें साल में उस से हुई एक नादानी का

फल तुम हो… जब उसे अपनी भूल का एहसास हुआ था, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डाक्टर ने कहा बच्चे को जन्म देने के अलावा और कोई चारा नहीं है. इसलिए वह अपने शहर से दूर मेरे घर आई थी तुम्हें जन्म देने.

‘‘तुम यहीं पर पैदा हुए थे बेटा. तुम्हारी शक्लसूरत बिलकुल तुम्हारी मां से मिलतीजुलती है बेटा. उस का नाम राजेश्वरी है बेटा. उस जमाने में एक कुंआरी मां का इस समाज में जीना असंभव था बेटा. इसलिए उसे मजबूरन तुम्हें त्यागना ही पड़ा. वह इस घर में जैसे अज्ञातवास में थी. हमेशा घर के अंदर छिपी रहती थी दुनिया की नजरों से दूर.

‘‘तुम्हारे जन्म के 15वें दिन तुम्हें त्यागना पड़ा. रातभर रो रही थी वह. फिर 4 साल बाद उस की शादी हो गई. 2 बेटे भी हुए. अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गई. जब मैं ने तुम्हारे बारे में बताया तो उस से रहा न गया. फौरन चली आई. अपनी मां से मिलोगे बेटा. मैं अभी उसे भेजता हूं,’’ और वे अंदर चले गए.

अंदर से हूबहू उसी की शक्त से मिलतीजुलती एक औरत आई. भले ही 40 साल की थी, मगर उम्र का एहसास नहीं हो रहा था. उस ने अपनी सुंदरता को बरकरार रखा था. कमरे में आ कर बस रंजीत को एक टक देखती रही. कुछ बोली नहीं. फिल्मों की तरह दौड़ कर आ कर लिपटी नहीं और न ही आंसू बहाने लगी.

रंजीत मां कहते हुए उस के चरण छूने चला तो राजेश्वरी ने बीच ही में उसे रोक दिया. बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटा. मैं मजबूर थी.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं मां. कम से कम आज तो मुझ से मिलने आई. इतना ही काफी है,’’ और फिर रंजीत ने अपने बारे में बताया. अपने मम्मीपापा, पढ़ाईलिखाई, नौकरी, समीर अन्य दोस्त वगैरह सभी के बारे में.

उस की परवरिश की कथा सुन कर राजेश्वरी की आंखें भर आईं, ‘‘भले ही मैं ने तुम्हारा साथ छोड़ दिया हो, मगर कुदरत तुम्हारे साथ है बेटा. मुझे खुशी है कि तुम्हें इतनी अच्छी जिंदगी मिली.’’

3 घंटों के मांबेटे के मिलाप के बाद उसे वहां से निकलना ही पड़ा. उस ने मां को अपना नंबर दिया और जब भी फुरसत मिले कौल करने को कहा. मां अपना नंबर देने के लिए झिझक रही थी. उसे डर था कि अपने पति और बच्चों के सामने यदि इस बेटे की कौल आई तो क्या करेगी? तब रंजीत ने समझाया. फिर उस ने न

ही मां के नंबर के लिए जिद की और न ही

ऐड्रैस पूछा.

3 महीने बीत गए. न मां का फोन आया और न कोई खबर मिली. रंजीत निराश था. दोस्त के सामने अपनी निराशा व्यक्त भी की, ‘‘मैं तो सोचता था मेरी मां भी मेरी ही तरह बेटे को देखने के लिए तरस रही होगी. अगर वह मेरे जन्म के कारण इस दुनिया की कू्ररता का शिकार हुई होगी तो मैं उसे अपने साथ रखने के लिए भी तैयार था. अगर उस के अपने परिवार में किसी चीज की जरूरत हो तो मैं उसे पूरा करने के लिए भी तैयार था, मगर वह तो अपनेआप में ही मगन है. मेरे बारे में सोचने के लिए भी तैयार नहीं है.’’

‘‘तुझे बुरा न लगे तो इस का जवाब दूं?’’

‘‘यही न कि मैं पागल हूं?’’

‘‘अगर वह तुम से प्यार करती या तुम्हारे लिए तरसती तो तुम्हें छोड़ती क्यों? वह दुनिया की क्रूरता का शिकार तब होती, जब वह तुम्हें साथ रखती. इस से बचने के लिए ही तो उस ने तुम्हें छोड़ा. इस का मतलब तो यही हुआ न कि उसे अपनी जिंदगी के सुकून से प्यार था. आज भी वह सिक्योर्ड है अपने परिवार में. उन के कानों में तुम्हारे बारे में भनक भी नहीं पड़ने देगी. अच्छा हुआ जो रास्ते में छोड़े जाने पर भी तू भिखारी नहीं बना.’’

‘‘हां, मम्मीपापा ही मेरे लिए सबकुछ हैं. मगर मां मुझ से मिली क्यों? आखिर यह राज उस ने जाहिर क्यों किया?’’

‘‘डर कर.’’

‘‘सच…?’’

‘‘और नहीं तो क्या? जो लड़का 25 साल बाद भी न जाने कहांकहां से पता

लगा कर अपने जन्मस्थान तक पहुंच गया,

क्या जाने वह कल को उस के घर तक पहुंच

गया तो? उस की तो बसीबसाई गृहस्थी बिखर जाएगी यार.’’

रंजीत मायूस हो गया. समीर ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘जाने दे छोड़… पूरी दुनिया ही मतलबी है.’’

और 3 महीने बीत गए. रंजीत मां को धीरेधीरे भूलने लगा. उस रात उस के मोबाइल पर अनजान नंबर से कौल आई. रंजीत ने तीसरी बार रिंग होने पर उठाया.

‘‘मैं राजेश्वरी बोल रही हूं. कैसे हो बेटा?’’

‘‘मां, बड़े दिनों बाद इस गरीब की याद कैसे आई?’’ वह खुशी से उछल रहा था.

‘‘सौरी बेटा, घरगृहस्थी के झंझट तो तुम जानते ही हो. तुम ठीक तो हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं मां. आप कैसी हैं?’’

‘‘हमारा क्या है बेटा, बस जैसेतैसे जिंदगी काट रहे हैं. तुम जरा मेहरबानी दिखा दो तो हम भी जरा चैन की सांस लेंगे.’’

‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘मेरा बेटा राजीव पिछले हफ्ते तुम्हारी ही कंपनी में इंटरव्यू देने आया था. उस इंटरव्यू कमेटी में तुम भी थे. मेरे बेटे ने तुम्हारा नाम बताया. तुम जरा बड़ा दिल दिखा कर अपने भाई को चुन लोगे तो तुम्हारी मां जिंदगीभर इस एहसान को नहीं भूलेगी बेटा.’’

‘‘मैं कुछ नहीं कह सकता मां. यह मुझ अकेले के फैसले पर निर्भर नहीं है. वैसे मेरे भाई को मेरे बारे में बताया है आप ने?’’

‘‘जो बातें मुंह से नहीं कह सकते, मन

ही उन्हें बता देता है बेटा… तुम उस कंपनी में इतने बड़े ओहदे पर हो… तुम्हारे लिए मुश्किल क्या है बेटा?’’

रंजीत ने फोन काट दिया.

‘‘क्या बात है?’’ समीर ने पूछा.

टीवी पर महाभारत आ रहा था, जिस में कुंती करण से युद्ध में पाडवों को खासकर

अर्जुन को कोई हानि न पहुंचाने का वचन मांग रही थी,’’ रंजीत उसी दृश्य की ओर इशारा कर बोला, ‘‘यही.’’

Family Story : यही दस्तूर है

Family Story : कालिज से लौट कर गरिमा ने जैसे ही अपने फ्लैट का दरवाजा खोला सामने के फ्लैट से रोहित निकल कर आ गए.

‘‘आप का पत्र कोरियर से आया है,’’ एक लिफाफा उस की तरफ बढ़ाते हुए रोहित ने कहा.

‘‘ओह…आइए न,’’ पत्र थाम कर गरिमा अंदर आ गई. रोहित भी अंदर आ गए.

‘‘पत्र विदेशी है. बेटे का ही होगा?’’ रोहित की बात पर गरिमा ने पलट कर उन्हें देखा. मानो कोई चुभती हुई बात उन के मुंह से निकल गई हो.

फिर वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘आप बैठिए, मैं कौफी बनाती हूं.’’

‘‘पर खत तो पढ़ लीजिए.’’

‘‘कोई जल्दी नहीं है, पहले कौफी बना लूं.’’

रोहित को आश्चर्य नहीं हुआ यह देख कर कि बेटे का पत्र पढ़ने की उसे कोई जल्दी नहीं है. इतने दिन से गरिमा को देख रहे हैं. इतना तो जानते हैं कि यह विदेशी पत्र उसे विचलित कर गया है. कुछ तो है मांबेटे के बीच पर वह कभी पूछने का साहस नहीं कर पाए हैं.

गरिमा के बारे में सिर्र्फ इतना जानते हैं कि 30 वर्ष पूर्व गरिमा के पति नहीं रहे थे. तब वह मात्र 20 वर्ष की थी. समीर गोद में आ गया था. अपना पूरा यौवन उस ने बेटे को बड़ा करने में लगा दिया था. मांबाप ने एकाध जगह बात पक्की की पर बेटे के साथ उसे अपनाने वाला कोई उचित वर न मिला. भैयाभाभी उस से विशेष मतलब नहीं रखते. मां को अस्थमा का अकसर दौरा पड़ता था, इस के बावजूद वह समीर को अपने पास रखने को तैयार थीं. पर गरिमा ने खुद को बच्चे से अलग नहीं किया. मांपिताजी के पास रह कर उस ने बी.एड. किया और एक स्कूल में पढ़ाने लगी. 5 वर्ष पूर्व इस फ्लैट में आई है. बेटे को कभी आते नहीं देखा. बस, इतना पता है कि वह विदेश में है.

‘‘कौफी…’’ गरिमा की आवाज पर रोहित की तंद्रा टूटी. प्याला हाथ में ले कर गरिमा भी वहीं बैठ गई.

‘‘गरिमा, मैं ने आप से एक प्रश्न किया था, आप ने जवाब नहीं दिया?’’

अचानक पूछे गए इस प्रश्न पर गरिमा चौंक पड़ी. हां, रोहित ने 2 दिन पूर्व उन के सामने एक बात रखी थी. अपनी बोझिल पलकों को उठा कर उस ने रोहित की तरफ देखा. यह आदमी उन्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता है.

बचे हुए जीवन के दिनों को हंसीखुशी से जी लेने का उस का भी दिल करता है. बेटे के कृत्य के लिए वह खुद को दोषी क्यों ठहराए. मगर इन 5-6 वर्षों में वह समीर के कुसूर को भूल नहीं पाई  है, उसे माफ नहीं कर पाई है.

रोहित के जाने के बाद उस ने समीर का पत्र खोला, लिखा था, ‘‘जानता हूं अभी तक नाराज हो. कुछ तो है जो अभिशाप बन कर हमारे बीच पसर गया है. शिखा 2 बार मां बनतेबनते रह गई. मां, जानता हूं तुम्हारा दिल दुखाया है, उसी की सजा मिल रही है. क्या मुझे क्षमा नहीं करोगी?’’

समीर के पत्र ने उस के जख्मों को फिर हरा कर दिया. शैल्फ पर रखी तसवीर पर उस की नजर अटक गई. लाख चाह कर भी वह इस तसवीर को हटा नहीं पाई है. आखिर है तो मां ही. तसवीर में समीर मां की गरदन में बांहें डाले था. उसे देखते हुए वह अतीत में खो गई.पति के समय का ही एक माली था नंदू. माली कम सेवक ज्यादा. पति की बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई  थी. नंदू ने काम छोड़ने से मना कर दिया था, ‘बचपन से खिलाया है रवि भैया को, उन के न रहने पर तो मेरी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. मैं यहीं रहूंगा.’

रवि की मृत्यु के बाद आफिस का फ्लैट भी चला गया था. वह मां के पास रह कर बी.एड. करने लगी तो नंदू ने ही समीर को संभाला. फिर नौकरी लगने पर वह नंदू और समीर को ले कर दूसरे शहर आ गई.

समीर बड़ा हो गया और नंदू बूढ़ा. एक दिन वह गांव गया तो कई दिनों तक नहीं लौटा. उस की पत्नी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी. गांव से लौटा तो 17-18 वर्ष की एक सांवलीसलोनी सी पोती भी उस के साथ थी, ‘बहूजी, इस के 4 भाईबहन हैं. गांव में कुछ सीख नहीं पाती. पढ़ना चाहती है, सो अपने साथ ले आया हूं. आप की छत्रछाया में कुछ गुण ढंग सीख लेगी.’

ज्योति नाम था उस का. 8वीं तक पढ़ी थी. 9वीं में एक स्कूल में नाम लिखवा दिया उस का. फिर तो हिरनी सी कुलांचें भरती कटोरी जैसी आंखों वाली वह छरहरी काया पूरे घर पर शासन कर बैठी. घर का सारा काम उस ने अपने ऊपर ले लिया. समीर इंजीनियरिंग कर रहा था. उस के पास जाने में वह थोड़ी झेंपती थी. लेकिन यह संकोच भी टूट गया जब उसे पढ़ाई में विज्ञान एवं गणित कठिन लगने लगे तब गरिमा ने ही समीर से कहा कि वह ज्योति की मदद कर दिया करे.

समीर की महत्त्वाकांक्षा काफी ऊंची थी. उस की इच्छा विदेश जा कर पढ़ने की थी. जहां भी कुछ अवसर मिलता वह फौरन आवेदन कर देता. पासपोर्र्ट उस ने बनवा रखा था. मां अकेली कैसे रहेगी, पूछने पर कहता, ‘मैं तुम्हें भी जल्दी ही बुला लूंगा. यहां इंडिया में अपना है ही कौन.’

पर गरिमा ने निश्चय कर लिया था कि वह अपना देश नहीं छोड़ेगी. उसे लगता कि ऐसी पढ़ाई से क्या फायदा जब बच्चे पढ़ते इंडिया में हैं और बसने विदेश चले जाते हैं. पर बेटे की महत्त्वाकांक्षा के सामने वह मौन हो जाती.

ज्योति ने समीर से पढ़ना शुरू किया तो दोनों एकदूसरे से काफी खुल गए. गरिमा इसे दोनों की नोकझोंक समझती रही. समीर ज्योति की बड़ीबड़ी आंखों में खो गया. प्रेम की यह पींग काफी ऊंची उड़ान ले बैठी. इतनी ऊंची कि झूला टूट कर गिर गया.

उस दिन वाशिंगटन से समीर के नाम एक पत्र आया था कि वह फैलोशिप के लिए चुन लिया गया है. इधर घर में एक जबरदस्त विस्फोट हुआ जब नंदू उस के सामने बिलख उठा, ‘बहूजी, मैं तो बरबाद हो गया. ज्योति ने तो मुझे मुंह दिखाने लायक नहीं रखा. मैं क्या करूं. कहां ले कर जाऊं इस कलंक को.’

ज्योति के मुंह से समीर का नाम सुनते ही वह सुलग उठी. उसे यह बात सच लगी कि हर व्यक्ति के अंदर एक जानवर होता है जो मौका पड़ते ही जाग जाता है. समीर के अंदर का जानवर भी जाग उठा था. समीर ने मां के विश्वास के सीने में छुरा घोंपा था.

दोषी तो ज्योति भी थी. उस ने समीर को इतने पास आने ही क्यों दिया कि अपनी अस्मत ही गंवा बैठी. गरिमा का जी चाहा कि वह जोरजोर से चीखे, रोए. पर कैसी लाचार हो गई थी वह. कहीं कोई सुन न ले, इस डर से मुंह से सिसकी भी न निकाली.

2 दिन तक गरिमा घर में पड़ी रही. क्या करे, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. उधर समीर जो घर से गया तो 2 दिन तक लौटा ही नहीं. तीसरे दिन जरा सी आंख लगी ही थी कि आहट पर खुल गई. दरवाजा खुला छोड़ कर कोई बाहर गया था. ‘कौन है…’ वह बड़बड़ाते हुए उठी. देखा तो कमरे से समीर के कपड़े, अटैची सब गायब थे. एक पत्र जरूर मिला. लिखा था, ‘टिकट के पैसे नहीं हैं. कुछ रुपए और आप का हार लिए जा रहा हूं. हो सके तो क्षमा कर दीजिएगा.’

अरे, बेशर्म, क्षमा हार की मांग रहा है, पर जो कुकर्म किया है उस की क्षमा उसे कैसे मिलेगी. ज्योति की तरफ देख कर वह बिलख उठी थी. चाह कर भी वह उस के साथ न्याय नहीं कर पा रही थी. कौन अपनाएगा इसे. सबकुछ तितरबितर हो गया. क्या सोचा था, क्या हो गया. आंखों से आंसुओं की झड़ी भी सूख चली. बुद्घि, विवेक सबकुछ मानो किसी ने छीन लिया हो.

और एक दिन नंदू भी लड़की को ले कर कहीं चला गया. तब से अकेली है. पुराना मकान छोड़ कर नई कालोनी में यह फ्लैट ले लिया था, ताकि समीर को उस का पता न लग सके. पर जाने कहां से उस ने पता कर ही लिया है. पत्र भेजता है. पत्रों में उसे बुलाने का ही आग्रह होता है. शादी कर ली है….पर वह तो उसे आज तक क्षमा नहीं कर पाई है.

डोर बेल बजने पर वह अतीत से बाहर आई. बाई थी. उसे तो समय का ध्यान ही नहीं रहा कि रात के 8 बज चुके हैं. बाई ने उसे अंधेरे में बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, बहूजी. तबीयत तो ठीक है न. यह अंधेरा क्यों?’’

‘‘यों ही आंख लग गई थी.’’

‘‘खाना क्या बनाऊं, बहूजी.’’

‘‘मेरे लिए कुछ नहीं बनाना. तेरा जो खाने का दिल करे बना ले.’’

‘‘पर आप….’’

‘‘मैं कुछ नहीं लूंगी.’’

‘‘तो फिर कौफी, दूध…कुछ तो ले लीजिए.’’

‘‘ठीक है दूध दे जाना कमरे में,’’ कहती हुई गरिमा अपने कमरे में चली गई.

समीर का पत्र एक बार फिर पढ़ा उस ने. बहू की फोटो भेजी थी समीर ने. एक बार देख कर उस ने तसवीर को अलमारी में रख दिया. सोचती रही, क्या करे. रोहित भी जवाब मांग रहे हैं. मां- पिताजी अब रहे नहीं. अपना कहने वाला कोई नहीं है. मां की अस्थमा की बीमारी उसे भी हो गई है. ऐसे में रोहित ही उस की देखभाल करते हैं. जब वह यहां आई थी तब रोहित से कटती रहती थी पर आमने- सामने रहने से कभीकभार की मुलाकात से परिचय गहरा हो गया. यही परिचय अब अच्छी मित्रता में बदल चुका है.

रोहित का व्यक्तित्व बहुत मोहक है. कम बोलना, पर जो बोलना सोचसमझ कर. 2 बच्चे हैं, बेटा पत्नी के साथ बंगलौर में है. बेटी कनाडा में है. 2 साल पहले पति के साथ आई थी. उसे बहुत पसंद करती है. जाने से पहले उस का हाथ अपने हाथ में ले कर अपने पिता से बोली थी, ‘‘जाने के बाद अब यह सोच कर तसल्ली होगी कि अब आप अकेले नहीं हैं.’’

वह चौंकी थी कि रोहित पर उस का क्या अधिकार है. कहीं रोहित ने ही तो बेटी से कुछ नहीं कहा. उन के बेटे से भी वह मिल चुकी है. जब भी आता है, उस के पैर छूता है. रोहित के प्रस्ताव में, लगता है दोनों बच्चों की सहमति भी छिपी है. रोहित के शब्द उस के कानों में गूंजने लगे, ‘गरिमाजी, मेरा और आप का रास्ता एक ही है तो क्यों न मंजिल तक साथ ही चलें. मुझ से शादी करेंगी?’

वह कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी. आज समीर के पत्र ने उसे झकझोर दिया था. उस ने कभी भी बेटे को कोसा नहीं है. आखिर क्यों कोसे? अब वह किसी का पति है. आखिर उस की पत्नी का क्या दोष? वह मां बनना चाहती है तो इस में वह क्या सहयोग कर सकती है सिवा इस के कि उसे अपनी शुभकामना दे. आखिर उस ने बहू शिखा को पत्र लिखने का निश्चय कर लिया.

दूसरे दिन उस ने शिखा को पत्र लिखा, ‘‘बेटी, हम दोनों एकदूसरे से अब तक नहीं मिले हैं, पर हमारे बीच आत्मीय दूरी नहीं है. तुम मेरी बहू हो और मैं तुम्हारी सास. तुम मां बनो और मैं दादी यह हृदय से कामना करती हूं. तुम्हारी मां.’’

पत्र मोड़ कर लिफाफे में रखते हुए गरिमा सोच रही थी कि उसे रोहित का प्रस्ताव अब मान लेना चाहिए. जीवन के बाकी दिन खुद के लिए भी तो जी लें.

Hindi Story : रोटी – क्या था अम्मा के संदूक में छिपा रहस्य

 Hindi Story : ढाई बजे तक की अफरातफरी ने पंडितजी का दिमाग खराब कर के रख दिया था. ये लाओ, वो लाओ, ये दिखाइए, वो दिखाइए, ऐसा क्यों है, कहां है, किस तरह है? इस का सुबूत…उस का साक्ष्य?

पारिवारिक सूची क्या बनी, पूरे खानदान की ही फेहरिस्त तैयार हो गई. पूरे 150 नाम दर्ज हो गए, सभी के पते, फोन नंबर, मोबाइल नंबर, उन का व्यवसाय और उन सब के व्यवसायों से जुड़े दूसरेदूसरे लोग.

पंडित खेलावन ने बेटी की सगाई पिछले माह ही की थी. उन्हें डर था कि कहीं ऐसा कुछ न हो कि उन के संबंधों पर आंच आए, सो कह उठे, ‘‘देखिए शर्मा साहब, आप को मेरे परिवार और मेरे धंधे के बाबत जो कुछ पूछना और जानना है, पूछिए किंतु मेरे समधी को इस में न घसीटिए, प्लीज. बेटी के विवाह का मामला है. कहीं ऐसा न हो कि…’’

पंडित खेलावन को बीच में टोकते हुए शर्माजी बोले, ‘‘देखिए पंडितजी, जिस तरह से आप को अपने संबंधों की परवा है उसी तरह मुझे भी अपनी नौकरी की चिंता है. यह सब तो आप को बताना ही होगा. आखिर आप का, आप के व्यापार का किसकिस से और कैसाकैसा संबंध है, यह मुझे देखना है और यही मेरे काम का पार्र्ट है.’’

तमाम जानकारियां दर्ज कर शर्माजी लंच के लिए बाहर निकल गए थे किंतु पीछे अपनी पूरी फौज छोड़ गए थे. घर के हर सदस्य पर पैनी नजर रखने के लिए आयकर विभाग का एकएक कर्मचारी मुस्तैद था.

पलंग पर निढाल हो पंडित खेलावन ने सारी स्थितियों पर गौर करना शुरू किया. आयकर वालों की ऐसी रेड पड़ी थी कि छिपनेछिपाने की तनिक भी मोहलत नहीं मिली. यह शनि की महादशा ही थी कि सुबहसुबह हुई दस्तक ने उन्हें जैसे सड़क पर नंगा ला कर खड़ा कर दिया हो.

पंडित खेलावन का दिमाग हर समय हर बात को धंधे की तराजू पर तोलता रहता था. पलड़ा अपनी तरफ झुके तभी फायदा है, इसी सिद्धांत को उन्होंने अपनाना सीखा था. और पलड़ा अपनी ओर झुकाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद की नीति ही कारगर सिद्ध  होती थी, होती आई है. इसीलिए पूरे जीवन को उन्होंने धंधे की तराजू पर तोला था.

‘‘मुझे, नहीं खाना कुछ भी,’’ कह कर पंडित खेलावन ने थाली परे सरका दी.

‘‘हमारी तो तकदीर ही फूटी थी जो यह दिन देखना पड़ रहा है,’’ पत्नी ने पीड़ा पर मरहम लगाते हुए कहा, ‘‘मैं कहती थी न कि अपने दुश्मनों से होशियार रहो. कहने को भाई हैं तुम्हारे मांजाए. पर हैं नासपीटे…यह सबकुछ उन्हीं का कियाधरा है, नहीं तो…’’ कहतेकहते पंडिताइन सिसकसिसक कर रोने लगीं.

‘‘देख लूंगा…एकएक को देख लूंगा…किसी को नहीं छोड़ं ूगा. मुझे बरबाद करने पर तुले हैं…उन को भी आबाद नहीं रहने दूंगा. क्या मैं उन की रगरग को नहीं जानता हूं कि उन की औलादें क्याक्या गुल खिलाती फिरती हैं? मेरे मुंह खोलने की देर भर है, सब लपेटे में आ जाएंगे.’’

पंडितजी जोरजोर से चिल्ला रहे थे. वह जानते थे कि दीवार के उस पार जरूर भाइयों के कान लगे होंगे, भाभियों को चटखारे लेने का आज अच्छा मौका जो मिला था.

आयकर जांच अधिकारी ने लंच से लौटते ही एकएक चीज का मूल्यांकन करना शुरू किया. पत्नी के काननाक को भी उन्होंने नहीं छोड़ा.

‘‘हर चीज सामने होनी चाहिए…सोना, चांदी, हीरा, मोती, नकदी, बैंकबैलेंस, जमीनजायदाद, फैक्टरी, दुकान, घर, मकान, कोठी, बंगला, खेत खलिहान… सबकुछ नामे या बेनामे.’’

ज्योंज्यों लिस्ट बढ़ती जा रही थी त्योंत्यों पंडित खेलावन का दिल बैठता जा रहा था.

कोई जगह, कोई  कोना, कोई तहखाना नहीं छोड़ा था रेड पार्टी ने. हर कमरे की तलाशी, गद्दोंतकियों को छू- दबा कर देखा तो देखा, दीवारों के प्लास्टर को भी ठोकबजा कर देखने से नहीं चूके.

पंडितजी कुछ कहने को होते तो शर्मा साहब उन्हें बीच में ही रोक देते, ‘‘हम, अच्छी तरह जानते हैं, कहां क्या हो सकता है. टैक्स बचाने के चक्कर में आप लोगों का बस चले तो क्या कुछ नहीं कर सकते?’’

आखिरी कमरा बचा था अम्मां वाला. शर्माजी ने कहा, ‘‘इसे भी देखना होगा.’’

‘‘इस में क्या रखा है…बूढ़ी मां का कमरा है. जाओजाओ, अब उसे भी देख लो…कोई कसर बाकी नहीं रहनी चाहिए पंडितजी की इज्जत का फलूदा बनाने में…’’ झल्लाहट में पंडित खेलावन बड़बड़ा रहे थे.

समाज में इज्जत बनाने के लिए और बाजार में अपनी साख कायम रखने के लिए पंडित खेलावन ने क्याक्या नहीं किया था. थोड़ीबहुत राजनीति में भी दखल रखने का इरादा था. इसीलिए उन्होंने हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए अपने एक चित्र को परचे पर छपवाया और इस खूबसूरत परचे को शहर के कोनेकोने में चस्पां करवा डाला था. गली, महल्ला, टैक्सी, जीप, बस और रेल के डब्बों में भी उन की पहचान कायम थी.

सबकुछ धो डाला है आज के मनहूस दिन ने. हो न हो, कहीं यह सामने वाली पार्टी की करतूत तो नहीं? हो भी सकता है क्योंकि अभी वह पार्टी पावर में है. उन का मानना था कि अगले चुनाव में केंद्र वाली पार्टी ही राज्य में भी आएगी, इसलिए उस से ही जुड़ना ठीक होगा. पर इस बार के अनुमान में वह गच्चा खा गए.

अम्मां 80 को पार कर रही थीं. इस आयु में तो हर कोई सठिया जाता है. बातबात पर बच्चों जैसी जिद…अब वह क्या जानें कि ये आयकर क्या होता है वह तो जिद पर अड़ी हैं कि अपने कमरे में किसी को नहीं आने देंगी.

आंख से भले ही पूरा दिखाई न देता हो पर किसी बच्चे के पैरों की आहट भी सुनाई दे जाती है तो कोहराम मचा देती हैं…रोने लगती हैं. उन्हें अकेले पड़े रहना ही सुहाता है. अब अम्मां को कौन समझाए कि ये रेड पार्टी वाले जो ठान लेते हैं कर के ही दम लेते हैं, उन्हें तो यह कमरा भी चेक कराना ही होगा.

शर्माजी समय की नजाकत को जानते थे और जांचपड़ताल के दौरान किस के साथ कैसा व्यवहार कर के जड़ तक पहुंचना है, खूब जानते थे. उन्होंने सभी को रोक कर अकेले अम्मां के कमरे में प्रवेश किया.

‘‘अम्मां, पांव लागूं. कैसी हो अम्मां जी. बहुत दिनों से सुनता था कि बड़ेबूढ़ों का आशीर्वाद जीवन में पगपग पर कामयाबी देता है, क्या ऐसा वरदान आप मुझे नहीं देंगी?’’

‘‘बेटा, सब करनी का फल है… आशीषों से क्या होता है? पर तुम हो कौन? सुबह से इस घर में कोहराम मचा हुआ है. क्यों परेशान कर रखा है मेरे बच्चों को?’’ अम्मां के शब्दों में तल्खी भी थी और आर्तनाद भी, जैसे वह सबकुछ जानतीसमझती हों.

शर्माजी ने अम्मां को जैसे समझाने का प्रयास किया, ‘‘हम लोग सरकारी आदमी हैं, अम्मां. हमारा काम है गलत तरीकों से कमाए गए रुपएपैसों की पड़ताल करना…खरी कमाई पर खरा टैक्स लेना सरकार का कायदा है. अब देखिए न अम्मांजी, मैं ठहरा सरकारी मुलाजिम. मुझे आदेश मिला है कि पंडित खेलावन पर टैक्स चोरी का मुआमला है, उस की छानबीन करो…सो आदेश तो बजाना ही होगा न…अब बताइए अम्मां, इस में मेरा क्या दोष है? जो खरा है तो खरा ही रहेगा…पंडितजी ने कोई गुनाह किया नहीं है तो उन्हें सजा कैसे मिल सकती है पर खानापूर्ति तो करनी ही होगी न…’’

‘‘सो तो है, बेटा…तुम आदमी भले लगते हो. मुझ से क्या चाहते हो? सारे घर का हिसाब तो तुम ले ही चुके हो…लो, मेरा कमरा भी देख लो. यही चाहते हो न…पूरी कर लो अपनी ड्यूटी,’’ शर्माजी की बातों से अम्मां प्रभावित हुई थीं.

पुराने कमरे में क्या लुकाधरा है लेकिन शर्माजी की पैनी नजर ने संदेह तो खड़ा कर ही दिया था.

‘‘इस संदूक में क्या है? अम्मां, जरा खोल कर दिखाओ तो,’’ शर्माजी ने कहा तो अम्मां जैसे फिर बिफर पड़ीं, ‘‘नहीं… नहीं, इसे नहीं खोलने दूंगी. तुम इसे नहीं देख सकते…’’

‘‘लेकिन ऐसा भी क्या है, अम्मां, संदूक को जरा देख तो लेने दो,’’ शर्माजी बोले, ‘‘आप ने ही तो कहा है कि मुझे मेरी ड्यूटी पूरी करने देंगी. सो समझिए कि मेरी ड्यूटी में हर बंद चीज को खोल कर देखना शामिल है.’’

अम्मां ने अब और जिद नहीं की. खटिया से उठीं, दरवाजा भीतर से बंद किया.

संदूक का नाम सुनते ही पंडिताइन के मन में खटका हुआ था कि हो न हो, बुढि़या ने सब से छिपा कर जरूर कुछ बचा रखा है. इसीलिए वह अपने संदूक के पास किसी को फटकने तक नहीं देती थीं. जरूर कुछ ऐसा है जिसे शर्माजी ताड़ गए हैं, नहीं तो…

इधर पंडितजी भी शंकालु हो उठे तो पंडिताइन से कहने लगे, ‘‘अम्मां रहती हैं मेरे यहां और मन लगा रखा है दूसरे बेटों के साथ. भले ही वे उन्हें न पूछते हों. कहीं ऐसा तो नहीं है कि बड़के भैया के लिए कुछ रख छोड़ा हो. चलो, जो भी होगा, आज सामने आ ही जाएगा.’’

बंद कमरे में पसरे अंधकार में पिछली खिड़की से जो थोड़ी रोशनी की लकीर  आ रही थी उसी रोशनी में संदूक रखा था. ताला खोल कर ज्यों अम्मां ने संदूक का ढक्कन उठाया तो शर्माजी अवाक् रह गए.

‘‘रोटियां, ये क्या अम्मां… रोटियां और संदूक में?’’

‘‘हां, बेटे, यही जीवन का सत्य है… रोटियां. इन्हीं के लिए इनसान दुनिया में जीता है, जीवन भर भागता फिरता है, रातदिन एक करता है, बुरे से बुरा काम करता है. किस के लिए ? रोटी के लिए ही तो. खानी उसे सिर्फ दो रोटी ही हैं. फिर भी न जाने क्यों…’’ कहतेकहते अम्मां का गला भर उठा था.

‘‘लेकिन मांजी, ये तो सूखी रोटियां हैं. आप ने इन्हें संदूक में सहेज कर क्यों रख छोड़ा है?’’ शर्माजी इस गुत्थी को सुलझा नहीं पा रहे थे, भले ही उन्होंने बड़ी से बड़ी गुत्थियों को सुलझा दिया हो.

‘‘सप्ताह में एक दिन ऐसा भी आता है बेटे, जब कोई भी घर में नहीं रहता. इतवार को सभी बाहर खाना खाते हैं. उस दिन घर में रोटी नहीं बनती. उसी दिन के लिए मैं इन्हें बचाए रखती हूं. दो रोटियों को पानी में भिगो देती हूं और फिर किसी न किसी तरह से उन्हें चबा कर पेट भर ही लेती हूं…लो बेटे, तुम ने तो देख ही लिया है… अब इस कटुसत्य को पूरे घर के सामने भी जाहिर हो जाने दो…न जाने मेरे बच्चे क्या सोचेंगे.’’ आंसू पोंछते हुए अम्मां ने बंद दरवाजा खोल दिया.

Moral Story : केले का छिलका

Moral Story :  ‘‘देहरादून के सिर पर ताज की तरह विराजमान मसूरी की अपनी निराली छटा है. सागर तल से लगभग 2,005 मीटर की ऊंचाई पर 65 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली मसूरी से एक ओर घाटी का मनोरम दृश्य दिखाई देता है तो दूसरी ओर बर्फीले हिमालय की ऊंचीऊंची चोटियां. मसूरी को ‘पहाड़ों की रानी’ यों ही नहीं कहा जाता.

‘‘यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में गनहिल, कैमल्सबैक रोड, नगरनिगम उद्यान, चाइल्ड्स लौज, झड़ीपानी निर्झर, कैंप्टी फौल, धनोल्टी प्रमुख हैं.’’

गाइड अपनी लच्छेदार भाषा में रटारटाया भाषण दिए जा रहा था. अधिकतर यात्री एकाग्रचित्त हो कर सुन रहे थे, लेकिन कुछ लोग खिड़की से बाहर मनोहर और लुभावने दृश्य देख रहे थे.

अचानक ईशान ने महसूस किया कि कुछ गड़बड़ है. उस के पास बैठी लड़की की आंखों से आंसू टपक रहे थे. वह अपनी सिसकियों को दबाने का असफल प्रयास कर रही थी और इसी ने ईशान का ध्यान आकर्षित किया था. जब पास में बैठी कोई लड़की, जो खूबसूरत भी हो, अगर इतने सुहावने वातावरण के बावजूद रो रही हो तो एक सुसंस्कृत युवक का क्या कर्तव्य बनता है?

ईशान एक अमेरिकन बैंक में योजना अधिकारी था. वेतन इतना मिलता था कि भारत सरकार के उच्च अधिकारियों को भी एक बार ईर्ष्या हो जाती. वर्ष में एक बार 15 दिन की अनिवार्य छुट्टी पूरे वेतन के साथ मिलती थी. स्थान के लिहाज से सब से अच्छे होटल में रहना और सुबह का नाश्ता मुफ्त. घूमनेफिरने और हर दिन के कड़े काम की उकताहट से उबरने के लिए इस से बड़ा प्रोत्साहन और क्या हो सकता है.

ईशान का विवाह पिछले वर्ष बड़े धूमधाम से हुआ था. पत्नी गर्भवती थी और प्रसूति के लिए मायके गई हुई थी. कुछ सहयोगी, जो कुछ समय पहले मसूरी हो कर आए थे, इतनी प्रशंसा कर रहे थे कि उस ने भी मसूरी घूमने का निश्चय किया. वैसे तो घूमनेफिरने का आनंद पत्नी के साथ ही आता है, बिलकुल दूसरे हनीमून जैसा. परंतु इस समय ईशान की पत्नी पहाड़ों पर जाने की स्थिति में नहीं थी इसलिए वह अकेला ही निकल पड़ा था.

मसूरी के एक वातानुकूलित होटल में कमरा पहले से आरक्षित किया जा चुका था. कुछ समय तक कमरे में बैठेबैठे ही खिड़की खोल कर ईशान दूरदूर तक फैली हरियाली और कीड़ेमकोड़ों की तरह दिखते मकानों को निहारता रहा. कभीकभी आवारा बादल कमरे में ही घुस आते थे और तब वह सिहर कर अपनी पत्नी गौरी की कमी महसूस करता.

होटल की स्वागतिका से कह कर ईशान ने आसपास घूमने के लिए बस में सीट आरक्षित करवा ली थी. उस समय वह बस में बैठा हुआ था जब पास बैठी लड़की की सिसकियों ने उस का ध्यान अपनी ओर खींचा.

जब नहीं रहा गया तो उस ने शालीनता से पूछा, ‘‘क्षमा कीजिए, आप को कुछ कष्ट है क्या? क्या मैं आप की कुछ मदद कर सकता हूं?’’

लड़की ने कोई उत्तर नहीं दिया, केवल सिसकती रही. ईशान की समझ में नहीं आ रहा था कि अपने काम से काम रखे या अंगरेजी फिल्मों के नायक की तरह अपना रूमाल उसे पेश करे.

आखिर एक लंबी सांस छोड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘देखिए, मैं आप के मामले में कोई दखल नहीं देना चाहता. हां, अगर आप समझती हैं कि एक अजनबी से कुछ मदद ले सकती हैं तो मैं हाजिर हूं.’’

सिसकियां दबाते हुए लड़की ने कहा, ‘‘मेरा सिर चकरा रहा है. मैं कहीं खुली जगह में बैठना चाहती हूं.’’

‘‘ओह, तबीयत खराब है?’’

‘‘नहीं,’’ लड़की ने कराहते हुए कहा.

‘‘तो फिर…’’ ईशान झिझका, ‘‘खैर, मैं अभी बस रुकवाता हूं,’’ सोचा, लड़की की तबीयत खराब होना भी एक नाजुक मामला है.

जब उस ने थोड़ी चहलपहल वाली जगह पर बस रुकवाई तो सारे पर्यटक आश्चर्य से उसे देखने लगे.

लड़की के हाथ में केवल एक पर्स था, वह झट से उतर गई. ईशान अपनी सीट पर बैठने ही वाला था कि उसे कुछ बुरा लगा. सोचने लगा कि अकेली मुसीबत में पड़ी लड़की को यों ही छोड़ देना ठीक नहीं. शायद उसे मदद की आवश्यकता हो?

इस से पहले कि चालक बे्रक पर से पैर हटाता, वह अपना बैग उठा कर लड़की के पीछेपीछे उतर गया. बस उन्हें छोड़ कर आगे बढ़ गई.

सड़क के किनारे एक खाली बेंच थी. लड़की जा कर उस पर बैठ गई. फिर उस ने आंखें बंद कर लीं और सिर पीछे टिका लिया. ईशान भी पास ही बैठ गया. पर अब महसूस कर रहा था कि वह किस चक्कर में पड़ गया.

लगभग 2 मिनट की चुप्पी के बाद लड़की ने क्षीण स्वर में कहा, ‘‘मुझे अफसोस है. आप बेकार में ही मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हैं.’’

पहली बार ईशान का ध्यान लड़की की टांगों पर गया. वह स्कर्टब्लाउज पहने थी. गोरीगोरी टांगें रेशम की तरह मुलायम लग रही थीं. घुटने से ऊपर तक के मोजे पहने थे, देखने में वे पारदर्शी और टांगों के रंग से मिलतेजुलते थे.

ईशान ने सिर झटका, ‘मूर्ख कहीं का, इस तरह मत भटक.’

‘‘परेशानी तो कुछ नहीं,’’ ईशान ने जल्दी से कहा, ‘‘हां, अगर आप के कुछ काम आया तो खुशी होगी.’’

अचानक लड़की की आंखों से फिर से ढेर सारे आंसू निकल पड़े तो ईशान भौचक्का रह गया.

‘‘मैं अपने मातापिता के साथ कुछ रोज पहले यहां आई थी,’’ लड़की ने सिसकते हुए कहा.

‘‘ओह, ये बात है,’’ ईशान कुछ न समझते हुए बोला.

‘‘मुझे क्या मालूम था…’’ लड़की फिर रो पड़ी.

‘‘धीरज से काम लीजिए,’’ ईशान ने सहानुभूति से कहा. सोचा, ‘शायद कुछ हादसा हो गया है.’

लड़की अब आंसू पोंछने लगी, फिर बोली, ‘‘क्षमा कीजिए. मेरा नाम वैरोनिका है. वैसे सब मुझे ‘रौनी’ कहते हैं.’’

ईशान मुसकराया. औपचारिकता के लिए बोला, ‘‘बड़ा अच्छा नाम है. आप बैठिए, मैं आप के लिए कुछ लाता हूं. कौफी या शीतल पेय?’’

रौनी ने झिझकते हुए कहा, ‘‘बड़ी मेहरबानी होगी, अगर आप मेरे लिए इतना कष्ट न उठाएं.’’

‘‘नहींनहीं, कष्ट किस बात का…आप ने अपनी पसंद नहीं बताई?’’ ईशान ने जोर दिया.

‘‘गरम कौफी ले आइए,’’ रौनी ने अनिच्छा से कहा.

सामने ही ‘कौफी कौर्नर’ था. ईशान

2 कप कौफी ले आया. वह कौफी पीने लगा. पर लग रहा था कि रौनी केवल होंठ गीले कर रही है.

‘‘क्या हुआ आप के मांबाप को?’’ थोड़ी देर बाद ईशान ने पूछा.

‘‘उन की हाल ही में मौत हो गई,’’ रौनी फिर रो पड़ी.

ईशान ने उस के हाथ से कप ले लिया, क्योंकि कौफी उस के अस्थिर हाथों से छलकने ही वाली थी.

‘‘माफ कीजिएगा, आप का दिल दुखाने का मेरा कतई इरादा नहीं था,’’ ईशान ने शीघ्रता से कहा.

‘‘कोई बात नहीं,’’ आंसुओं पर काबू पाते हुए रौनी ने कहा, ‘‘कोई सुनने वाला भी नहीं. मेरा दिल भरा हुआ है. आप से कहूंगी तो दुख कम ही होगा.’’

‘‘ठीक है. पहले कौफी पी लीजिए,’’ कप आगे करते हुए उस ने कहा.

जब रौनी स्थिर हुई तो बोली, ‘‘मेरी मां को कैंसर था. बहुत इलाज के बाद भी हालत बिगड़ती जा रही थी. एक दिन हम सब टीवी देख रहे थे. पर्यटकों के लिए अच्छेअच्छे स्थानों को दिखाया जा रहा था. बस, मां ने यों ही कह दिया कि काश, वे भी किसी पहाड़ की सैर कर रही होतीं तो कितना मजा आता.’’

रौनी ने कौफी खत्म कर के कप पीछे फेंक दिया. ईशान उत्सुकता से उस की कहानी सुन रहा था.

‘‘पिताजी के मन में आया कि मां की अंतिम इच्छा पूरी करना उन का कर्तव्य है. हम लोग मध्यवर्ग के हैं. फिर मां की बीमारी पर भी काफी खर्च हो रहा था. काफी रुपया उधार ले चुके थे,’’ रौनी ने गहरी सांस छोड़ी.

‘‘आप की तबीयत ठीक नहीं है,’’ ईशान ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा आराम कर लीजिए.’’

‘‘नहीं, मैं ठीक हूं. कहने से मन हलका ही होगा,’’ रौनी ने अपने ऊपर नियंत्रण करते हुए कहा, ‘‘किसी तरह से पिताजी ने उधार ले कर और कुछ जेवर बेच कर मसूरी आने का कार्यक्रम बनाया. यहां आ कर हम तीनों एक सस्ते होटल में ठहरे.

‘‘एक दिन कैमल्सबैक गए. इतनी ऊंचाई पर जब वह पहाड़ी दिखाई दी, जो ऊंट की पीठ के आकार की थी, मां के आनंद का ठिकाना न रहा. वे बच्चों की तरह प्रसन्न हो कर किलकारियां मारने लगीं. अचानक वे अपना नियंत्रण खो बैठीं और नीचे को गिरने लगीं. पिताजी ने जैसे ही देखा, उन्हें पकड़ने की कोशिश की. पर वे स्वयं भी अपने पर नियंत्रण न रख सके. दोनों एकसाथ गिर पड़े. नीचे इतनी गहराई थी कि लाशें भी नहीं मिलीं.’’

रौनी फिर से सिसकने लगी.

ईशान ने हिम्मत कर के रौनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और कहा, ‘‘मुझे आप के साथ पूरी सहानुभूति है. आप का दुख समझ सकता हूं. अब क्या इरादा है?’’

‘‘कुछ नहीं. कुछ दिन और रुकूंगी. शायद कुछ पता लगे. फिर तो वापस जाना ही है,’’ रौनी ने उदास हो कर कहा, ‘‘पता नहीं क्या करूंगी?’’

‘‘घबराइए मत. कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा,’’ ईशान ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भूख लग रही है. चलिए, कुछ खाते हैं.’’

‘‘मेरी तो भूखप्यास ही खत्म हो गई है. आप मेरी वजह से परेशान न हों.’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? मैं खाऊं और आप भूखी रहें?’’ ईशान ने दिलेरी से कहा, ‘‘वैसे मुझे अकेले खाने की आदत भी नहीं है.’’

‘‘देखिए. मैं आप के ऊपर कोई बोझ नहीं बनना चाहती,’’ रौनी ने दयनीय भाव से कहा, ‘‘आप की सहानुभूति मिली, इसी से मुझे बड़ा सहारा मिला.’’

‘‘रौनी,’’ इस बार ईशान ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर तुम मेरे साथ खाना खाओगी तो यह मेरे ऊपर तुम्हारी मेहरबानी होगी.’’

‘‘ओह, आप तो बस…’’ रौनी की आंखों में पहली बार मुसकान की झलक दिखाई दी.

‘‘बस, अब उठ कर चलो मेरे साथ,’’ ईशान ने उठ कर उस की ओर हाथ बढ़ाया.

वह रौनी को एक अच्छे होटल में ले गया. दोनों ने बहुत महंगा भोजन किया. रौनी अब पिछले हादसों से उबर रही थी.

‘‘अब क्या करोगी? घूमने चलोगी या आराम करोगी?’’ ईशान ने बाहर आ कर पूछा.

‘‘आराम कहां है मेरी जिंदगी में,’’ रौनी ने आह भर कर कहा.

‘‘देखो, अब ऐसी बातें मत करो. सामान्य होने की कोशिश करो,’’ ईशान ने अब अधिकार से उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘मैं सोचता हूं, तुम्हें कुछ देर अब आराम करना चाहिए. चलो, तुम्हारे होटल छोड़ आता हूं. शाम को फिर मिलेंगे.’’

‘‘होटल,’’ रौनी से उदासी से कहा, ‘‘होटल तो मैं ने बहुत पहले छोड़ दिया था. रहने के लिए रुपया चाहिए और सारा रुपया पिताजी की जेब में था. वह तो होटल का मालिक इतना सज्जन था कि उस ने मुझ से कोई हिसाब नहीं मांगा.’’

‘‘तो फिर कहां रहती हो?’’ ईशान ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘कालीबाड़ी में. इतने सारे लोग रोज आतेजाते हैं, मुझे कोई परेशानी नहीं होती,’’ रौनी ने लापरवाही से कहा.

ईशान ने कुछ क्षणों तक सोचा और फिर कहा, ‘‘तुम्हें कालीबाड़ी में रहने की कोई जरूरत नहीं है. चलो, अपना सामान उठाओ और मेरे होटल में आ जाओ. मैं तुम्हारे लिए कमरा आरक्षित करवा दूंगा.’’

रौनी ने आशंका और अविश्वास से ईशान को देखा और कहा, ‘‘आप मेरे लिए इतना सब क्यों करेंगे? मैं नादान और कमसिन जरूर हूं पर भोली भी नहीं हूं.’’

ईशान के ऊपर बिजली सी गिर पड़ी. शीघ्रता से बोला, ‘‘विश्वास करो रौनी, मेरा कोई बुरा आशय नहीं है. मैं कोई नाजायज फायदा भी नहीं उठाना चाहता. हां, एक दोस्त की हैसियत से तुम्हें कुछ लमहे खुशी के दे सकता हूं तो इनकार कर के मेरा दिल तो न तोड़ो.’’

रौनी ने शरारतभरी मुसकराहट से कहा, ‘‘बुरा मान गए? दरअसल, हम लड़कियों को हर पल चौकन्ना और होशियार रहना पड़ता है. अच्छे और बुरे की पहचान करना कोई आसान काम है क्या?’’

ईशान ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम ने तो मुझे डरा ही दिया था. अपने ही आईने में भेडि़या नजर आने लगा.’’

‘‘अब छोडि़ए भी. हां, इतना फिर कहूंगी कि मैं जहां हूं, ठीक हूं. आप मेरी चिंता मत कीजिए,’’ उस ने जोर दिया.

‘‘रौनी, कृपा कर के अब यह संवाद अधिक मत दोहराओ. तुम मेरी खातिर चलो. मुझे अच्छा लगेगा,’’ रौनी का हाथ ईशान ने मजबूती से पकड़ लिया.

रौनी के साथ ईशान कालीबाड़ी गया और उस का सामान उठवाया. केवल एक सूटकेस और स्लीपिंग बैग देख कर उसे आश्चर्य तो हुआ, पर कुछ बोला नहीं.

रौनी ने अपनेआप ही सफाई दी, ‘‘रुपए की जरूरत पड़ी तो बाकी सामान बेच दिया.’’

ईशान ने कोई उत्तर नहीं दिया. होटल पहुंच कर रौनी के लिए कमरा लिया. शाम की कौफी, नाश्ता भी वहीं किया और फिर रात को मसूरी का आनंद लेने के लिए निकल पड़े. रौनी से धीरेधीरे ईशान की घनिष्ठता बढ़ गई. शर्म व झिझक भी कम होती जा रही थी.

जिस किसी दुकान पर वह कोई पोशाक या आभूषण ठिठक कर देखने लगती, ईशान तुरंत खरीद कर भेंट कर देता. धीरेधीरे ईशान का एहसान अधिकार में बदलने लगा. रौनी अब खुल कर फरमाइश भी कर देती थी. अच्छा खातीपीती थी और खूब खरीदती थी.

ईशान जितने रुपए साथ लाया था, सब कभी के खत्म हो चुके थे. अब वह अपने बैंक का ‘क्रैडिट कार्ड’ इस्तेमाल कर रहा था. सोच कर आया था कि अपनी पत्नी गौरी के लिए ढेर सारी चीजें खरीदेगा और अपने होने वाले बच्चे के लिए ढेर सारे खिलौने व कपड़े, पर रौनी के चक्कर में फुरसत ही न मिली. साथ ही अब तो इफरात से खर्च करने के कारण आर्थिक स्थिति भी डांवांडोल हो रही थी. ठीक पता नहीं था कि क्रैडिट कार्ड कब तक साथ देगा.

15 दिन कैसे निकल गए, पता नहीं लगा. ईशान को रौनी अच्छी लगने लगी थी. कभीकभी तो लगता कि वह उसे प्यार करने लगा है. काश, कहीं रौनी की ओर से कोई संकेत मिल जाता.

परंतु रौनी ने ऐसा कुछ नहीं किया. मौजमस्ती ने उस का दुख मिटा दिया था, उस की खिलखिलाहट में एक खिलाड़ी का स्वर गूंजता था. इसी से ईशान बड़ा सुकून महसूस करता था.

‘‘कल सुबह तो मैं चला जाऊंगा,’’ ईशान ने डूबी हुई आवाज में कहा, ‘‘अब तुम क्या करोगी?’’

‘‘अब तुम ही चले परदेस…’’ रौनी ने शरारत से ठुमका लगा कर कहा, ‘‘लगा के ठेस तो अब हम क्या करेगा?’’

ईशान ने हंस कर कहा, ‘‘शैतानी से बाज नहीं आओगी. सुनो, मेरे साथ चलोगी?’’

‘‘न बाबा,’’ रौनी ने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी गौरी से जूते खाने हैं क्या?’’

‘‘तो तुम से कब और कैसे भेंट होगी?’’ ईशान ने पूछा.

‘‘यह मुझ पर छोड़ दो. पहले अपना ठिकाना ढूंढ़ लूं. फिर तो तुम्हें कहीं से भी पकड़ लाऊंगी,’’ रौनी ने हंसते हुए कहा.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है और मेरी जान पर बनी है,’’ ईशान ने नाराजगी का फिल्मी इजहार किया.

रौनी ने केवल जीभ दिखा दी. फिर उस की प्रार्थना पर ईशान ने होटल का 2 दिन का किराया और दे दिया. साथ ही कुछ रुपए खानेपीने के लिए दिए.

ईशान जब घर पहुंचा तो एकदम कड़का था. बैंक से भी पता लगा कि उस ने बचत से कहीं अधिक खर्च कर डाला है, इसलिए अब उधार पर अधिक सूद देना पड़ेगा. लेकिन रौनी की मधुरस्मृति ने दुखी नहीं होने दिया. सोचने लगा, कब याद करेगी अब?

कुछ समय बाद ईशान की पत्नी गौरी गोलमटोल बबलू को ले कर घर आ गई. उस ने पति के बरताव में कुछ बदलाव सा महसूस किया. लेकिन उस ने खामोश रहना ही बेहतर समझा.

ईशान ने एकाध बार सोचा कि क्यों न गौरी को बता दे कि कैसे उस ने एक मुसीबत में फंसी लड़की को सहारा दिया. तब गौरी अवश्य ही उस की प्रशंसा करेगी. फिर यह सोच कर रह जाता था कि बहादुरी दिखाने के बजाय विवेक से काम लेना अधिक अच्छा होता है. हो सकता है, गौरी इस का गलत अर्थ लगाए.

वर्ष बीत रहा था और रौनी के संपर्क न करने से ईशान को बेचैनी सी होने लगी थी. कभी यह भी सोचता था कि चलो, अच्छा हुआ, पीछा छूटा. कहीं उस का संबंध गहरा हो जाता तो अपना पारिवारिक जीवन ही डांवांडोल हो जाता. उन क्षणों में वह गौरी से आवश्यकता से अधिक ही प्रेम जताने लगता.

जब छुट्टी लेने का समय आया तो उस ने फिर से मसूरी ही जाने का निश्चय किया.

‘‘पिछले साल ही तो मसूरी गए थे?’’ गौरी ने पूछा, ‘‘क्या हमारे महान देश में पर्यटक स्थलों की कमी पड़ गई है?’’

‘‘गौरी, एक बार मसूरी चलो तो सही. तुम देखते ही उस से प्यार करने लगोगी,’’ ईशान ने हंस कर कहा, ‘‘मेरा तो मन करता है, वहां ही कोई घर ले लूं.’’

गौरी को दार्जिलिंग अधिक अच्छा लगता था. इस बात पर अकसर दोनों में गरम बहस भी होती थी.

वे मसूरी पहुंचे तो ठहरे उसी पुराने होटल में.

दोपहर का सुहावना मौसम था. वे घूमने निकल पड़े. बादल छाए हुए थे और ठंडी हवा के झोंके बदन में सिहरन भर रहे थे. गौरी ने बबलू को कंबल में लपेट कर गोद में लिटा रखा था. ईशान पास ही बैठा उस से अपने अनुभवों का वर्णन कर रहा था.

अचानक एक परिचित स्वर कानों में पड़ा. ईशान चौंक गया. मुड़ कर देखा, वही थी. साथ में एक मोटा आदमी था. पीछे वाली बैंच पर दोनों बैठे थे. ईशान की तरफ उन की पीठ थी.

‘‘मैं अपने मांबाप के साथ कुछ रोज पहले यहां आई थी,’’ रौनी सिसकते हुए कह रही थी, ‘‘मुझे क्या मालूम था… क्षमा कीजिए, मेरा नाम वैरोनिका है, वैसे सब मुझे ‘रौनी’ कहते हैं…मेरी मां को कैंसर था…’’

ईशान का दिल डूबने लगा. वह गौरी से आंखें न मिला सका. ऐसा लगा, जैसे उस ने उस की चोरी पकड़ ली हो.

2 आदमी हाथों में मूंगफली की पुडि़या लिए सामने से निकले. दोनों वार्त्तालाप में मस्त थे.

‘‘किसी शायर ने क्या खूब कहा है,’’ एक आदमी कह रहा था, ‘‘औरत केले के छिलके की तरह होती है, पैर पड़ा नहीं कि फिसल गए.’’

दोनों ठहाका मार कर हंस रहे थे. क्या खूब कहा था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें