Sanchi Bhoyar: ‘बिंदी’ सीरियल का किरदार मेरी मां को समर्पित है

Sanchi Bhoyar: कलर्स चैनल पर प्रसारित इमोशनल शो ‘बिंदी’ एक ऐसी छोटी लड़की की कहानी है, जिस ने अपनी मां काजल के साथ जेल के अंदर ही बचपन बिताया. उस को जेल कभी डरावनी नहीं लगी, क्योंकि जेल में उस की मां उस के साथ ही थी. उस की मां का प्यार उसे घर जैसा एहसास देता था. लेकिन एक दिन काजल (मैया), जो कानून का पालन करती है, मजबूर हो कर बिंदी को खुद से दूर भेज देती है. तब बिंदी को एक बड़ा सच पता चलता है. दरअसल, उस के अपने पिता ने ही उस की मां के साथ धोखा किया और माफिया डौन दयानंद का साथ दिया.

अब बिंदी का सपना है पढ़ाई कर के खुद को मजबूत बनाना और अपनी मां को आजाद कराना. लेकिन उस के पिता और दयानंद हर कदम पर उसे रोकने की कोशिश करते हैं. यह बिंदी की लड़ाई है अपनी मां को बचाने की और यह साबित करने की कि एक छोटी लड़की भी बेहद साहसी हो सकती है.

बिंदी का किरदार निभाने वाली सांची भोयर अपने किरदार को ले कर बेहद उत्साहित हैं. छोटी सी सांची जो ‘बिंदी’ शो में बिंदी का किरदार निभा रही हैं, वे अपने इस शो में किरदार के बारे में बताते हुए कहती हैं कि मेरा किरदार जिस का नाम बिंदी है, वह जेल के सब से अंधेरे कोनों में चमकती धूप जैसी है, जो अपनी मैया की पूरी दुनिया बन गई है. वह होशियार है, दयालु है, थोड़ी भोली भी है, लेकिन उसे एहसास नहीं है कि जेल की दीवारों से बाहर की जिंदगी और भी कठिन हो सकती है. उस के सपने बहुत साधारण हैं.

एक सामान्य परिवार पाना, अपनी मां के साथ वक्त बिताना, अपनी मां को जेल से बाहर देखना और पढ़ाई का मौका पाना. जब अचानक वह अपनी मां से जुदा हो जाती है, तो टूट जाती है, लेकिन हार मानने के बजाय हिम्मत और दयालुता से लड़ने का फैसला करती है. बिंदी का साहस, दया और हार न मानने की जिद ही मुझ से सब से ज्यादा जुड़ी और इस किरदार को निभाना मेरे लिए बेहद खास है.

यह आप का पहला हिंदी टीवी रोल है. इतने मजबूत किरदार का भावनात्मक बोझ उठाना आप के कैरियर के इस पड़ाव पर कैसा लग रहा है?

यह बहुत रोमांचक है. हिंदी टैलीविजन में नए चेहरे के तौर पर कलर्स पर लीड रोल मिलना मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. इस का मतलब है कि टीम ने मुझ पर भरोसा किया कि मैं बिंदी को निभा सकती हूं. मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक कहानी ही नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी उठा रही हूं, उन दर्शकों की, जो खुद को बिंदी में देख सकते हैं.

वे कहती हैं कि एक अभिनेत्री के तौर पर मैं बहुत कुछ सीख रही हूं. निजी तौर पर यह रोल मेरी मां को समर्पित है, जो बिलकुल काजल जैसी हैं.

आप मराठी टीवी सीरियल ‘इंद्रायणी’ करने के बाद और मराठी दर्शकों का दिल जीतने के बाद अब ‘बिंदी’ के साथ हिंदी टीवी में आ रही हैं. आप के लिए यह अनुभव कितना अलग है?

मराठी टीवी से मुझे ‘इंद्रायणी’ के जरीए पहचान और प्यार मिला. हिंदी में सबकुछ नया और रोमांचक लग रहा है. शूटिंग की प्रक्रिया तो वही है, लेकिन कहानी बिलकुल अलग और ताजा है. सब से बड़ा फर्क यह है कि अब और भी ज़्यादा लोग मुझे देख पाएंगे. मुझे उम्मीद है कि दर्शक बिंदी को भी ‘इंद्रायणी’ की तरह प्यार देंगे.

‘बिंदी’ दयालुता के साथ लड़ाई लड़ती है. आप को क्या लगता है की आज की युवा पीढ़ी इस गुण से कैसे जुड़ पाएगी?

बिंदी यह दिखाती है कि दयालु होना बिलकुल मुफ्त है और जिंदगी की मुश्किलों से भी दयालुता के जरीए निबटा जा सकता है. आज की युवा पीढ़ी ज्यादा संवेदनशील और सामाजिक रूप से जागरूक है, इसलिए मुझे लगता है कि वे इस भावना से जुड़ेंगे और दयालुता को कमजोरी नहीं मानेंगे.

उस बेटी का किरदार निभाना, जिस की दुनिया मां से बिछड़ने पर बिखर जाती है, आप के लिए सब से कठिन चुनौती क्या रही?

जुदाई के सीन सब से कठिन रहे. मैं खुद अपनी मां से बहुत करीब हूं, इसलिए एक बच्चे को मां से दूर होते हुए सोचना भी मेरे लिए बेहद दर्दनाक था. इसलिए इस ने मुझे उन बच्चों के बारे में सोचने पर मजबूर किया, जो टूटे हुए परिवारों या अनाथालयों में बड़े होते हैं और जिन का दर्द दुनिया नहीं देख पाती.

आप एक ऐसी बेटी का किरदार निभा रही हैं, जो जेल में पैदा हुई. इस किरदार को समझने का सब से कठिन हिस्सा क्या रहा?

सब से मुश्किल हिस्सा उस बचपन की कल्पना करना था, जो मेरी जिंदगी से बिलकुल अलग है. बिंदी के लिए जेल की दीवारें सामान्य हैं और आजादी ही उस के लिए अजनबी है. मुझे बारबार खुद को यह याद दिलाना पड़ता था कि जिन चीजों को हम सामान्य मानते हैं, जैसे खेल का मैदान, दोस्त बनाना या बाहर घूमना वगैरह, उस के लिए विलासिता जैसी हैं, जो उस ने कभी देखी ही नहीं. उस की मां और मौसी ने जेल की दीवारों के बीच उस के लिए एक खुशनुमा माहौल बनाने की कोशिश की.

बिंदी शिक्षा के जरीए अन्याय से लड़ती है. आप के हिसाब से यह संदेश युवाओं के लिए कितना प्रासंगिक है?

बहुत ही प्रासंगिक है. हमारे देश में बहुत से युवा गरीबी, असमानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ रहे हैं और उन के पास एकमात्र हथियार शिक्षा है. ‘बिंदी’ इस सचाई को परदे पर उतारती है. वह हर बच्चे को यह संदेश देती है कि तुम्हारा पेन, तुम्हारी किताबें और तुम्हारा ज्ञान तुम्हारी दुनिया बदल सकती हैं. यह बहुत सशक्त संदेश है.

दर्शकों के लिए आप का क्या संदेश है?

मैं चाहती हूं कि हर कोई ‘बिंदी’ की यात्रा का हिस्सा बनें. यह एक कहानी है जो मां के प्यार और बेटी के साहस का जश्न मनाती है. यह भावनात्मक है, प्रेरणादायक है और आप को परिवार के रिश्तों के प्रति और गहरी इज्जत के साथ छोड़ेगी.  हर रोज रात 8:30 बजे सिर्फ कलर्स और जियो हौट स्टार पर इसे जरूर देखिए.

Sanchi Bhoyar

टीचर्स के यौन शोषण की शिकार लड़कियां, आखिर कब रुकेगा यह सिलसिला

Sexual Exploitation: पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के हाथरस में शर्मसार करने वाले एक मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.हाथरस के पीसी बागला डिगरी कालेज के प्रोफेसर रजनीश कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

प्रोफेसर रजनीश की 50 से भी अधिक वीडियो सामने आई है, जिस में वह डिगरी कालेज में पढ़ने वाली छात्राओं के साथअश्लील हरकतें करता नजर आ रहा है. इस डिगरी कालेज में पढ़ने वाली छात्राओं को आरोपी प्रोफेसर परीक्षा में अच्छे नंबर और सरकारी नौकरी दिलाने का झांसा दे कर उन के साथ रेप की घटनाओं को अंजाम देता था और उन का अश्लील वीडियो व फोटो निकाल कर उन्हें बदनाम करने की धमकी देता था. जब इस का वीडियोज सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर वायरल होने लगे तो शहर में चर्चा शुरू हो गई. पुलिस ने आरोपी प्रोफेसर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. प्रोफेसर पर आरोप है कि वह 20 साल से छात्राओं का शोषण कर रहा है.

यह कैसी सोच

बहुत पहले से चली आ रही एक पौराणिक सोच है कि लड़कियां तो चूल्हेचौके के लिए ही बनी हैं. अगर वे पढ़लिख गईं, अपने पैरों पर खड़ी हो गईं तो इस पुरुष प्रधान समाज का क्या होगा? ये औरतों को अपनी दासी बना कर कैसे रखेंगे?

दरअसल, यह सब लड़कियों के खिलाफ एक साजिश है कि वे अच्छी शिक्षा न लें ताकि उन का कैरियर ही न बन पाएं, क्योंकि अगर कैरियर में आगे बढ़ कर वे पुरुषों के साथ बराबर का कमाने लगीं तो वे घर की जिम्मेदारी अकेले नहीं निभाना चाहेंगी, उन्हें इस में पुरुषों का बराबर का सहयोग चाहिए होगा, जो वे नहीं होने देना चाहते.

लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो पुरुषों का अन्याय नहीं सहेंगी

आज हर जगह अतुल सुभाष और मेरठ कांड, जिस में पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर पति की हत्या कर दी और उसे नीले ड्रम में बंद कर दिया चर्चा का विषय है. हमेशा से पुरुष महिलाओं की बलि देता आया है, कभी समाज के नाम पर और कभी परिवार के नाम पर. दहेज के लिए भी लड़कियां शुरू से ससुरालों में जलाई जाती रही हैं. जब लड़किओं पर सदियों से अत्याचार हो रहे थे तब यह समाज कहां था? महिलाओं के द्वारा किए गए इन अपराधों को सही नहीं माना जा सकता लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी होंगी तो अत्याचार के खिलाफ आवाज तो वे उठाएंगी ही और शायद यही बात अब रास नहीं आ रही.

यही वजह है कि कुछ लोगों का कहना है कि लड़कियों को ज्यादा नहीं पढ़ाना चाहिए, क्योंकि अगर वे ज्यादा पढ़ लेंगी तो फिर ससुराल में काम नहीं करेंगी. उन का संसार बस नहीं पाएगा. तलाक के केस बढ़ेंगे, क्योंकि अब वे पुरुषों की दासी बनने से इनकार जो करने लगी हैं.

ऐसे बहुत कारणों से लोग आज भी लड़कियों को पढ़ाना नहीं चाहते हैं. बस, उतना ही पढ़ाते हैं जितने में शादी हो जाए.

लड़कियां पढ़ाई छोड़ने को मजबूर क्यों

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के मुताबिक लगभग 5 में से 1 लड़की अभी भी निम्न माध्यमिक की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रही हैं. लगभग 10 में से 4 लड़कियां आज भी उच्च माध्यमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रही हैं. कुछ क्षेत्रों में तो यह संख्या और भी निराशाजनक है. भारत में प्राइमरी स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद लगभग 65% लड़कियों ने स्कूल छोड़ दिया. ये आंकड़े शिक्षा मंत्रालय ने अपनी पहली ‘ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति’ रिपोर्ट में बताए हैं. हालांकि इस पढ़ाई छोड़ने के पीछे यौन हिंसा के अलावा और भी कई बड़े कारण हैं लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन बच्चियों के मातापिता के मन का सब से बड़ा डर जरूर है.

टीचर्स के द्वारा यौन शोषण पर शिकायतें कम क्यों दर्ज कराई जाती हैं

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लड़कियों को डर होता है कि यह पता चलने पर कहीं उन की पढ़ाई ही न छुङवा दें. कई बार उन की आवाज इज्जत के नाम पर भी दबा दी जाती है. अगर समाज में पता चल गया कि बेटी के साथ गलत हुआ है तो उस से शादी कौन करेगा. जैसेकि 2023 में उत्तर प्रदेश का उन्नाव, एक सरकारी स्कूल को लेकर सुर्खियों में आया. यहां स्कूल के हेडमास्टर पर कम से कम 18 नाबालिग छात्राओं ने कथित तौर पर यौन शोषण के आरोप लगाए.

इस से पहले हरियाणा के जींद से भी कुछ ऐसी ही खबर सामने आई थी, जहां 60 स्कूली छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया था.

लेकिन जींद के मामले में भी यह आरोप लगा कि पुलिस ने मामले में देरी की और 1 महीने बाद जा कर प्रिंसिपल के खिलाफ मामला दर्ज किया गया.

उन्नाव मामले में भी यही सुनने को मिला कि लड़कियां लंबे समय से परेशान थीं और वे अभी भी काफी तनाव में हैं. यह सब उन के लिए इतना आसान नहीं है क्योंकि यहां बात सिर्फ आगे बढ़ कर शिकायत करने की नहीं है, उन के सामने सब से बड़ा डर उन की पढ़ाई छूटने की भी है.

सरकारी या गैर सरकारी सभी बालिका छात्रावासों और बालगृहों की बदहाल स्थिति किसी से छिपी नहीं है. यहां कई बार अलगअलग तरह के मुजफ्फरपुर, देवरिया, कानपुर और आगरा समेत कई बालिका गृहकांड देश के सामने आ चुके हैं. कई बार आरोपी गिरफ्तार भी हुए, एकाध मामलों में सजा भी मिली, लेकिन इन सब में जो मुख्य मुद्दा सुरक्षा का है उस में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है क्योंकि इस ओर सरकार और महिला आयोग का ध्यान बिलकुल ही नहीं जाता, जब तक कुछ बड़ी घटना घटित नहीं हो जाती.

मातापिता के लिए लड़कियों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल

आज भी दूरदराज के गांवों में कई किलोमीटर पैदल चल कर पढ़ने जाना पड़ता है. वहां अकेले उन्हें अपनी बेटियों को भेजने से डर भी लगता है. कभी कहीं किसी लड़की के साथ हुई शोषण व उत्पीड़न की घटनाएं बाकी लड़कियों को भी घर में कैद होने को मजबूर कर देती हैं. कोलकाता में मैडिकल की छात्र के साथ हुआ रेप केस भी इस का अपवाद नहीं है.

इस तरह की घटनाएं होती हैं तो पढ़ेलिखे शहरों में रहने वाले मातापिता भी अपनी बेटियों की सुरक्षा को ले कर चिंता में आ जाते हैं और उन्हें लगता है कि इतना पढ़ालिखा कर क्या करना है, शादी समय से कर दो बस, जिम्मेदारी खत्म.

लड़कियों की शादी कर घर बसाना पढ़ाई करने से ज्यादा जरूरी क्यों

वाकई आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लड़के और लड़कियों में फर्क किया जाता है. यहां लड़का जितना चाहे, जो चाहे पढ़ सकता है लेकिन लड़की नहीं. यहां लड़की अपनी मरजी से कुछ नहीं कर सकती है. यहां तक कि पढ़ाई भी नहीं. उन को क्या पढ़ना है और कितना पढ़ना है, यह मांबाप और रिश्तेदार तय करते हैं. लड़की को पढ़ाया तब तक जाता है जब तक कोई अच्छा लड़का न मिल जाए.

तलाक शिक्षा के कारण नहीं हो रहे

समय आगे बढ़ गया पर लोग उसी पिछड़ी हुई सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं. यह तो वही बात हुई कि अगर सहूंगी तो कमजोर और बोला तो बदतमीज. शहरों में लड़की सब को कामकाजी ही चाहिए लेकिन गिलासभर पानी खुद उठा कर नहीं पीएंगे जनाब, यह सोच ही तलाक की जड़ है.

पतिपत्नी दोनों कमा रहे हैं लेकिन पति चाहता है कि पत्नी घरबाहर दोनों संभाले. आधे से ज्यादा घरों में यही फसाद की जड़ है पर आज की महिला पढ़ीलिखी है, अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है या खड़े होने की कोशिश कर रही है पर इलजाम यही लगता है कि ज्यादा पढ़लिख गई इसलिए दिमाग खराब है इस का. सामने से कितना भी दिखा ले पुरुष कि वह मौर्डन है पर कहीं न कहीं यही सोच, यही धारणा आज भी पनप रही है. आज हर किसी को अपने बराबर पढ़ीलिखी लड़की चाहिए शादी के लिए, क्योंकि सोशल मीडिया पर ढिंढोरा जो पीटना है पर वाइफ की सोच का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में भी चाहिए .

लड़कियों के पिछड़ने का कारण लोगों की संक्रीण मानसिकता है

आज के वक्त में लड़िकयों के पिछड़ने का सब से बड़ा कारण है लोगों की मानसिकता है. दिनप्रतिदिन लड़कियों के साथ बढ़ते अपराध (बलात्कार), लड़के और लड़कियों के प्रति सामाजिक भेदभाव के कारण अपने सपनों से मुंह मोड़ना पड़ रहा है.

पंडेपुजारी भी नहीं चाहते लड़कियां पढ़ें

पंडेपुजारियों का हमारे घरों में बहुत बड़ा रोल है. वे चाहते हैं कि महिलाएं बस किचन में घुसी रहें और अपने बाकी के बचे हुए दिन में हमारे प्रवचन सुनने आएं और हमारी दुकाने चलवाएं. लेकिन अगर वे पढ़लिख कर नौकरीपेशा बन गईं तो उन के पास हमें देने के लिए समय ही नहीं होगा. अगर ऐसा हुआ तो पंडितों का महिलाओं को मुर्ख बना कर पैसे ऐंठने का धंधा तो चौपट हो ही जाएगा.

इसलिए लड़कियों के ड्रौपआउट को कम करने के लिए सब से पहले सुरक्षा के पुख्ते इंतजाम के साथ ही अपराधियों पर सख्त काररवाई की भी जरूरत है, जिस से लड़कियों के हौसले बुलंद हो सकें. मांबाप भी निश्चिंत हो सकें और लड़कियां अपनी पढ़ाई पूरी कर आजादी से जीवन जी सकें.

सरकारों को चाहिए कि वे लोगों को जागरूक करने के साथसाथ अपराध पर लगाम लगाएं ताकि लड़कियां बिना डरेसहमे अकेली चल सकें. घर वाले न भी ज्यादा पढ़ाना चाहें तो भी वे खुद अकेली जा कर, पैसे कमा कर पढ़ सकें. सरकार ने हर जगह कालेज तो दिए हैं मगर कालेज जाने वाले माहौल नहीं दिए.

एक शिक्षित लड़की की अगर कम उम्र में शादी नहीं की जाए तो वह भारत में शिक्षा क्षेत्र में लेखक, शिक्षक, वकील, डाक्टर और वैज्ञानिक के रूप में देश की सेवा कर सकती है. वह बिना किसी संदेह के अपने परिवार को एक पुरुष की तुलना में अधिक कुशलता से संभाल सकती है. एक आदमी को शिक्षित कर के हम केवल राष्ट्र का कुछ हिस्सा शिक्षित कर सकते हैं जबकि एक महिला को शिक्षित कर के पूरे देश को शिक्षित किया जा सकता है. इसलिए भारत में शिक्षा का अधिकार न केवल पुरुष को बल्कि महिलाओं को भी होना चाहिए.

वैदिक काल के बाद से लड़कियों की शिक्षा गैर जरूरी क्यों समझी जाने लगी

वैदिक काल के बाद से धीरेधीरे लड़कियों की शिक्षा गैर जरूरी समझी जाने लगी और मुगलकाल तक आतेआते वे घर की चारदीवारी में ही कैद हो कर रह गईं. इस के पीछे सोच यह थी कि जब विवाह कर के घर ही संभालना है तो पढ़ाई किसलिए? और फिर दहेज के लिए धन भी जुटाना है. इसलिए उन की शिक्षा पर समय और धन क्यों नष्ट किया जाए?

कुछ उदार पिता इतनी स्वीकृति अवश्य दे देते कि चिट्ठीपत्री लिख सके या रामायण बांच ले. खैर, मुगलकाल तक आतेआते तो वैसे भी लड़कियों को घर की चारदीवारी में बंद रखना मजबूरी हो गया. यह स्थिति अंगरेजों के राज में यथावत रही.

गांधीजी ने लड़कियों की शिक्षा पर जोर दिया

महात्मा गांधी ने लड़कियों की शिक्षा को बेहद महत्त्वपूर्ण माना और कहा कि अगर आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं, लेकिन अगर आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो आप पूरे परिवार को शिक्षित करते हैं…

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधीजी ने स्त्रियों का आव्हान किया कि वे घरों से निकल कर देश की आजादी के लिए पुरुषों को योगदान दें और तभी उन की शिक्षा पर भी गौर किया गया. गांधीजी ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चरखा चलाना सिखाया और उन्हें शिक्षा हासिल करने और नौकरी करने के लिए प्रोत्साहित किया. गांधीजी महिलाओं की शिक्षा के पक्षधर थे. उन्होंने लड़कियों व लड़कों के लिए निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान किया.

Sexual Exploitation

Sarcastic Story in Hindi: अब विदाई नहीं जुदाई में है असली ग्लैमर

Sarcastic Story in Hindi: टीवी हो या अखबार अथवा सोशल मीडिया, शादियों से ज्यादा सुर्खियां तलाक बटोर रहे हैं. पहले पंडितजी की आवाज गूंजती थी-

‘‘7 फेरे ले कर अब तुम जीवनसाथी बने,’’ और अब वकील साहब की आवाज आती है,

‘‘7 सुनवाइयों के बाद अब तुम आजाद पंछी बने,’’ या पंडितजी कहते थे 7 फेरों के बाद अब आप दोनों की नई जिंदगी शुरू हो रही है तो वकील साहब कहते हैं 7 सुनवाइयों के बाद

अब आप दोनों की नई जिंदगी शुरू हो रही है. समाज का एक नया फैशन शादी को शोपीस की तरह बना दो ताकि बाद में टूटे तो इंस्टाग्राम पर डाला जा सके, ‘‘2 साल हम साथ जीए,

अब हम अपनेअपने रास्ते,’’ जैसे मोबाइल का ट्रायल पीरियड खत्म हुआ और सब्सक्रिप्शन रद्द कर दी.

अब तो हालात ऐसे हैं कि शादी को रिश्तेदारों से छिपाया जाता है और तलाक को मीडिया से बताया जाता है. पहले ‘गृहलक्ष्मी’ कहलाना स्टेटस सिंबल था, अब ‘सिंगल मदर’ कहलाना. टीवी इंटरव्यूज में लोग गर्व से कहते हैं, ‘‘हां, मैं अकेले अपने बच्चे को पाल रही हूं,’’ जैसे कोई ओलिंपिक मैडल जीत लिया हो और वह बच्चा भी यदि आसपास हो तो न चाहते हुए भी गर्व महसूस करने लगता है. सिंगल मदर का तमगा स्टेटस सिंबल बना दिया गया है. अब सिंगल फादर वाले भी उतराने लगे हैं मीडिया में.

कभी शादी के कार्ड पर लिखा जाता था ‘दो दिलों का मिलन’ अब लिखना चाहिए ‘दो दिलों का प्रयोग, रिजल्ट न्यूनतम 3 माह व अधिकतम 5 साल में घोषित होगा.’ और ट्रेंड यह है कि शादी की तसवीरें अलबम में बंद रहती हैं, तलाक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर पिन की जाती हैं.

बड़े शहरों में तो हालात ये हो गए हैं कि शादी एक लौंच इवेंट है और तलाक उस का ग्रैंड फिनाले. पहले हनीमून मनाया जाता था, अब ‘अनमैरिड मून.’ और हैरानी तो तब होती है जब लोग अपने बच्चों के सामने ही यह संवाद कर लेते हैं, ‘‘तुम्हारे डैडी और मैं अब अलगअलग घर में खुश हैं.’’ बच्चा सोचता है कि मम्मीपापा नहीं, नैटफ्लिक्स, पिज्जा व ऐप ही उस के असली गार्जियन हैं. मम्मीपापा बच्चे के स्कूल फंक्शन में अलगअलग गर्व से पंहुचते हैं व बच्चे को भी बड़ा सम?ादार दिखाया जाता है कि वह दोनों से गर्मजोशी से मिला. वे दोनों भी गर्मजोशी से मिले. जब इतनी गर्मजोशी थी तो अलगअलग हो कर रिश्ते को सर्दजोशी क्यों कर दिया?

अब यह सवाल भी उठता है कि लोग शादी क्यों करते हैं? जवाब आता है, ‘‘फोटोग्राफर के लिए. इंस्टा रील्स के लिए. शादी एक ब्रैंडिंग ऐक्टिविटी है, तलाक उस का पब्लिसिटी स्टंट.’’

तलाक का ग्लैमर इतना बढ़ गया है कि कभीकभी लगता है कि अगली पीढ़ी में ‘शादी’ शब्द डिक्शनरी से गायब हो जाएगा और ‘डाइवोर्स पार्टी.’ नए वैडिंग हाल में बुक होगी.

अब पंडितजी नहीं, वकील साहब ही सब से भरोसेमंद विवाह संचालक हैं. अब पंडित यदि वकील भी बन जाएं तो एक ही जोडे़ से दोहरी कमाई कर सकते हैं. बात करो जब अरबपति के तलाक की तो सैटलमैंट से एक और अरबपति पैदा हो जाता है. डिवोर्स अब एक गर्व महसूस करने का सोर्स हो गया है.

शादी अब फिक्स्ड डिपौजिट नहीं, इंस्टालमैंट वाला मोबाइल कनैक्शन है. 2 साल बाद पोर्ट आउट कर लो. शादी में केवल डीजे गूंजता है, जबकि तलाक में पूरा मीडिया गूंजता है. ‘सात जन्मों का वादा’ अब ‘7 मिनट का इंस्टास्टोरी’ बन गया है. पहले सिंदूर शान था, अब दूर होना ब्रैंड है. शादी के जोड़े से ज्यादा महंगे अब तलाक के गाउन हो गए हैं. शादी का फोटो अलबम दब जाता है, तलाक की सैल्फी वायरल होती है.

‘हम दो हमारे दो’ अब बदल कर ‘हम दो हमारे दो वकील.’ हो गया है. पहले तलाक छिपा कर रखा जाता था, अब शादी छिपा कर रखी जाती है. पहले रिश्तेदार पूछते थे ‘‘शादी कब करोगे?’’ अब पूछते हैं ‘‘कब छोड़ोगे?’’ पहले मंगलसूत्र जोड़ता था, अब सिग्नेचर तोड़ता है.

तलाक अब विफलता नहीं, नई उपलब्धि कहलाता है. वह दिन दूर नहीं है जब वैडिंग स्पैशल की तरह डिवोर्स स्पैशल शोरूम आ जाएगा. विवाह जर्नी तो तलाक डैस्टिनेशन हो गया है. अब तलाक का नोटिस शादी के कार्ड से ज्यादा सुंदर छपता है. पहले घर वाले कहते थे ‘दहेज कितना दोगे?’ अब पूछते हैं ‘मैंटेनैंस कितनी मिलेगी?’ शादी अगर ससुराल का दरवाजा है, तो तलाक अब कैरियर का नया दरवाजा बन गया है. पहले गाना बजता था ‘मेरे हाथों में नौनौ चूडि़यां हैं…’ अब बजता है ‘मेरे हाथों में कोर्ट की तारीखें हैं.’

अंत में कह सकते हैं कि द होल थिंग इज दैट कि भैया तलाक विवाह से ज्यादा हैड लाइन बनाता है. तलाक अब अंतिम अध्याय नहीं, नए सीजन का ट्रेलर है. पहले की चट मंगनी पट ब्याह की कहावत अब चट विवाह पट तलाक में बदल गई है.

Sarcastic Story in Hindi

Revlon ED: मेघना मोदी- मेरी सफलता का सीक्रेट डीप नौलेज में है

Revlon ED: मोदी मुंडीफार्मा प्राइवेट लिमिटेड ने 1995 में भारत में रेवलौन की शुरुआत की थी जो देश में लौंच होने वाला पहला अंतर्राष्ट्रीय कौस्मैटिक ब्रैंड था. इस ब्रैंड ने ब्यूटी के क्षेत्र में एक ट्रेंडसैटर के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है. अपनी अच्छी क्वालिटी वाले प्रोडक्ट्स और नए एक्सपेरिमैंट्स के लिए प्रसिद्ध यह ब्रैंड अब मेघना मोदी के नेतृत्व में एक नए अध्याय की शुरुआत कर रहा है, जिस का लक्ष्य भारत के बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत करना है. नवंबर, 2023 में ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर और भारत की प्रमुख के रूप में नियुक्त हुईं मेघना मोदी के नेतृत्व में कंपनी नई ऊंचाइयों को छूने की तैयारी में है.

उमेश मोदी गु्रप के अध्यक्ष उमेश कुमार मोदी की सब से बड़ी बेटी मेघना ने ‘लंदन बिजनैस स्कूल’ और ‘हार्वर्ड स्कूल औफ बिजनैस’ से शिक्षा प्राप्त की है और वहां के अनुभव ले कर आई हैं. हार्वर्ड से एमबीए करने के बाद उन्होंने बोस्टन में एक बैन कंसल्टिंग में 4 साल तक एडवाइजर के रूप में काम किया. मेघना 4 भाईबहन हैं. मेघना, हिमानी, अभिषेक और जय. वे सब से बड़ी हैं. मेघना मोदी बताती हैं कि वे मोदीनगर में पैदा हुई. उन के ग्रैंडफादर गुजरमल मोदी साहब ने 1933 में मोदीनगर शहर बसाया था. यह शहर अमेजिंग था. गुजरमल मोदी के 11 बच्चे थे. वे उन के 10वें बेटे उमेश मोदी की सब से बड़ी बेटी हैं. वे 1997 में रेवलौन में ट्रेनी यानी एज अ इंटर्न आई थीं और पापा के औफिस में जौइन किया. तब उन्हें ब्यूटी एडवाइजर की नौकरी मिली. उन्होंने शौपर्स स्टौप अंसल प्लाजा में 1 साल ब्यूटी एडवाइजर की नौकरी की थी ताकि मार्केट और कस्टमर को समझ सकें. फिर वे रेवलौन में बोर्ड की ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर बनीं.

करीब 4 साल यहां काम करने के बाद वे ‘हार्वर्ड स्कूल औफ बिजनैस’ में पढ़ने चली गईं. 2003 में बोस्टन में कंसल्टिंग का काम शुरू किया और 4 साल तक इस का अनुभव लिया. उन्होंने गो मोबाइल कंपनी की शुरुआत भी की. इस के लिए फंडिंग बाहर से ले कर आई. आज भी गो मोबाइल अच्छे से चल रही है. यह दिल्ली में एक फोन रिटेल है जोकि मल्टीब्रैंड है. इस कंपनी से उन्होंने दुकानदारी सीखी. दुकानदारी सीखनी बहुत जरूरी थी. ब्रैंड प्रोडक्ट बनाते हैं जबकि दुकानदार प्रोडक्ट बेचते हैं. आज 15-16 साल हो गए गो मोबाइल को. गो मोबाइल से उन्होंने अपने रिटेल की जर्नी शुरू की थी. फिर 2024 में उन्होंने रेवलोन को जौइन किया. रेवलान थोड़ी दिक्कतों में चल रहा था. रेवलौन जौइन किए 1 साल से ज्यादा हो चुका है. मेघना बताती हैं कि यहां लड़कियां बहुत हैं. हर स्टोर में एक ब्यूटी एडवाइजर लड़की है.

meghna modi

वे लड़कियों को आगे बढ़ाना चाहती हैं और ऐंपौवर करना चाहती हैं ताकि लड़कियां ब्यूटी एडवाइजर से ब्रैंड ऐंबेसेडर बन सकें. उन के पास करीब एक हजार ब्यूटी एडवाइजर गर्ल्स हैं. रेवलौन के प्रोडक्ट्स अब स्टोर के साथसाथ ई कौमर्स में भी बिकते हैं. भले ही वह अमेजन हो या फ्लिपकार्ट, मिंत्रा या ब्लिंकिट अथवा औफलाइन रिटेलर, सब को एकजैसा ट्रीट किया जाता है और एकजैसा डिस्काउंट दिया जाता है. उन को गो मोबाइल के लिए 2017 में ऐप्पल का आल इंडिया अवार्ड मिला. जयपुर में उन्होंने अपनी जरमन फ्रैंड के साथ जो लायर हैं, आशिता नाम से एक अनाथ लड़कियों के लिए एनजीओ खोला है.

इस एनजीओ में उन लड़कियों को आश्रय दिया जाता है, जिन की मदर प्रौस्ट्रेट हैं, जेल में हैं या मांबाप ने छोड़ दिया. विदेशी कंपनियों से कंपीटिशन? मेघना मोदी बताती हैं, ‘‘1932 में शुरू हुए 90 साल पुराने हमारे ब्रैंड का काफी नाम है. एक बार प्रोडक्ट ले कर कस्टमर रिपीट करते हैं. रेवलौन एक इंटरनैशनल ब्रैंड है. मगर फिर भी इंडियन हो या इंटरनैशनल, कौस्मैटिक कंपनियां बहुत सी हैं. उन से कंपीट करने के लिए हम कई चीजों का खयाल रखते हैं. सब से पहले प्रोडक्ट की क्वालिटी सब से महत्त्वपूर्ण होती है. मसलन, फाउंडेशन की बात करें तो हमारा प्रोडक्ट ऐसा होना चाहिए जिसे लगाने पर स्किन ड्राई न हो, ब्लैक पैचेज न पड़ें, कहीं चैप न हो यानी क्वालिटी ऐसी हो कि कस्टमर रिपीट करना चाहे.

इस के अलावा प्राइसिंग भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. हम कस्टमर के बजट की रिस्पैक्ट करते हैं. हमारी लिपस्टिक 400-500 रुपए से ले कर 5,000 रुपए तक की है. हम कोई कैमिकल यूज नहीं करते. सब नैचुरल तत्त्वों से बने प्रोडक्ट्स हैं. हम नए प्रोडक्ट लौंच को अहमियत देते हैं. लगातार प्रोडक्ट्स के नए कलर, नए स्किन शेड्स, नई रेंज लाते रहते हैं. हमारी कंपनी का सब से लोकप्रिय प्रोडक्ट लिपस्टिक है. इस की 5 रेंज हैं. हाल ही में हम ने पुरुषों के लिए भी एक नई रेंज लौंच की है. पुरुषों के ग्रूमिंग के लिए रेवलोन एकदम नई रेंज ले कर आया है. हेयर कलर बहुत अहम हैं.’’

 

इस फील्ड में आना तय था या कुछ और करना था?

मेघना कहती हैं, ‘‘मैं बहुत पढ़ाकू थी और हमेशा सब से आगे रहने की सोची. टौप पर रही हूं. मेरे पेरैंट्स भी पढ़ाई पर बहुत जोर देते थे. हमें नंबर अच्छे लाने पड़ते थे क्योंकि पेरैंट्स पढ़ाई को अहमियत देते थे. जब रेवलौन आया तो यह कौस्मैटिक ब्रैंड था इसलिए मुझे औपर्च्यूनिटी मिली और मैं इस से जुड़ी. फिर मैं ने इसे आगे बढ़ाने की कोशिश की. 1995 में उमेश मोदी यानी मेरे पिताजी रेवलान को इंडिया में ले कर आए. उन्हें इस के लिए लाइफटाइम लाइसैंस मिला था. 1997 में मैं ने ट्रेनी के रूप में रेवलौन को जौइन किया था. यहां 4 साल काम किया फिर हार्वर्ड स्कूल चली गई. फिर वहां से मैं ने बहुत से ऐक्सपीरिएंस लिए. अपने बिजनैस खोले. कैटालौगिंग का काम भी किया. गो मोबाइल शुरू किया. अब मैं ने फिर से रेवलौन की कमान संभाली है और इसे नई ऊंचाइयों तक ले जाना है.’’

कैसे बसा था मोदीनगर?

मेघना बताती हैं, ‘‘हम लोग पटियाला से थे. हमारे दादाजी यानी गुजरमल मोदी ने 1932 में मोदीनगर की स्थापना की. यह अमेजिंग नगर था. यह शुगर प्लांट से शुरू हुआ. तब हमारे पास कुछ नहीं था. लेकिन दादाजी हमेशा कम्युनिटी को साथ ले कर चले. एक बिजनैस के बाद दूसरा बिजनैस बढ़ाया और जो भी प्रौफिट होता वे उसे उसी शहर में इन्वैस्ट करते जाते थे. तब मैं बहुत छोटी थी. उन की डैथ के समय 3 दिन तक कोई चूल्हा नहीं जला क्योंकि उन्होंने कम्युनिटी फीलिंग बहुत बना कर रखी थी. उन में सिर्फ देने की भावना थी. उन के पास कोई बैंक अकाउंट नहीं था.

अगर आप बड़े घर में पैदा हुए हों तो काम करने के साथ काम देना बहुत बढि़या है. यह मुझे बहुत अच्छा लगता है. गो मोबाइल में 700 से ज्यादा लोग काम करते हैं. रेवलौन में 5000 से ज्यादा लड़कियां हैं. रेवलौन में कुल 10000 कर्मचारी हैं. मुझे खुशी होती है कि हम ने भी इतने लोगों को रोजगार दिया है.’’ कंपनी को आगे बढ़ाने का फ्यूचर प्लान क्या है? ‘‘मेरी नजर में मार्केटिंग महत्त्वपूर्ण है. आजकल डिजिटल पर सबकुछ है. इंस्टाग्राम, इन्फ्लुएंसर का जमाना है. इस पर मेरा फोकस है. मार्केट को देखते हुए हम प्रोडक्ट लौचिंग कर रहे हैं. जैसे हम ने अभी लिपस्टिक की नई रेंज लौंच की है.

पुरुषों के लिए भी नया ग्रूमिंग रेंज लौंच की है. कंपीटिशन बहुत है, सुपर मार्केट्स के साथ टाईअप करना है. ‘‘दूसरी चीज है स्टोरी टैलिंग. आप बता सकें कि इस प्रोडक्ट में क्या खासीयत है. दुकान पर खड़ी हमारी लड़कियों को कौन्फिडैंस होना चाहिए कि वे अपने प्रोडक्ट्स के बारे में सारी डिटेल अच्छे से समझएं. कस्टमर को यह बताना जरूरी है कि उन का फायदा किस में है. सस्ता सामान बारबार लेना पड़ता है, मगर महंगा सामान एक बार ही लेने से लंबे समय तक चलता है. इस तरह की बातें बारबार ऐक्सप्रैस करना जरूरी हैं. ‘‘तीसरा ट्रेनिंग इंपौर्टैंट है. जो लड़कियां दुकानों में खड़ी हैं उन्हें कैसे ट्रेंड करें ताकि वे परफैक्टली बताएं कि कस्टमर के लिए कौन सा राइट प्रोडक्ट है और कस्टमर को पहचान सकें. ‘‘चौथा हमें डिस्ट्रीब्यूशन बढ़ाना है. प्रोडक्ट हर जगह दिखना चाहिए. अभी रेवलौन मार्केट में वाइडली डिस्ट्रीब्यूटेड नहीं है. उसे बढ़ना होगा.

इस सब के अलावा ऐक्टिव मैनेजमैंट जरूरी है. हमारे सभी पार्टनर जैसे रिटेलर, डिस्ट्रीब्यूटर, मार्केटर, कंपनी के बाकी लोग सब ऐक्टिव होने चाहिए. तभी कंपनी जंप करेगी. ब्रैंड का नाम बहुत है. अब हमारा फोकस होना चाहिए कि इस नाम को आगे कैसे बढ़ाएं. हर दिन जो काम करना है वह करना ही है. काम कल के लिए टालना नहीं है. मैं इन सब बातों पर ध्यान दे रही हूं.’’

चैलेंजेज क्या थे?

‘‘हम काफी स्लो थे, जबकि स्पीड जरूरी है. मार्केट में आगे बढ़ने के लिए फास्ट होना जरूरी है. इस के लिए हमारे पास सही प्लान होना चाहिए. भागनादौड़ना और सब काम समय से करना होगा. आप को खुद में पहले जोश लाना होगा तब आप अपने नीचे के लोगों को समय पर काम करने को कह सकते हैं. आप को हमेशा इस बात का खयाल रखना होगा कि कस्टमर वेट कर रहा है. ‘‘एक सही टीम बनानी भी एक बड़ी चुनौती है. माहौल के हिसाब से हमें इंपू्रवमैंट करना है. जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है. जैसे चैट जीपीटी पहले नहीं था. मोबाइल से सबकुछ होने लगा. डिजिटल मार्केटिंग काफी तेजी से आगे बढ़ी है.

आज 15-16 साल की लड़कियां, उन का फैशन, उन का सोचने का तरीका, उन के खरीदने का स्टाइल काफी अलग है. हम उन के हिसाब से खुद को चेंज नहीं करेंगे तो पीछे रह जाएंगे. मार्केट के हिसाब से चलना जरूरी है. ‘‘हमारे लिए एंबिशस बने रहना भी एक चुनौती है. कोई काम करना है तो करना है. कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी. रेवलौन 1997 में लौंच हुआ था बट हम ने मार्केट शेयर लूज कर दिया था. हम औनलाइन उपलब्ध नहीं थे. मार्केटिंग सही नहीं थी. अब हमें रेवलौन को फिर से ऊपर पहुंचाना है. ‘‘एक चुनौती ट्रांसपेरैंसी बना कर रखनी भी है. ओपनली व्हाट्सऐप ग्रुप में बात करना जरूरी है. किसी से छिप कर बात नहीं करना. हर बात सब को मालूम होना चाहिए. तभी टीम फीलिंग आती है.’’

जीवन के स्ट्रगल?

मेघना बताती हैं, ‘‘हमारे परिवार में लेडीज काम नहीं करती हैं. मेरे लिए भी पढ़ाई इंपौर्टैंट थी, मगर काम करना इंपौर्टैंट नहीं था क्योंकि घर में पैसे की कमी नहीं थी. हमारे घर के लोग पुरातनपंथी थे तो ऐसे में मेरा आगे बढ़ना और फुलटाइम जौब करना काफी स्ट्रगल भरा फैसला था. हमारे घर का एन्वायरन्मैंट ऐंड कल्चर भी काफी ट्रैडिशनल थे. मैं पहली लड़की थी जो यूएस और लंदन गई. मैं घर की पहली लड़की थी जो कोएड स्कूल में पढ़ने गई. मेरी सारी कजिन गर्ल्स कालेज में जाते थे. मैं ने एक तरह से घर वालों की ट्रैडिशनल सोच से हट कर काम किया जो काफी चैलेंजिंग था. मुझे मेरे पेरैंट्स ने बचपन से हार्ड वर्किंग, बीइंग औनैस्ट, स्ट्रेट फौरवर्ड और टफनैस सिखाई है. हजारों लोग हम से जुड़े हैं तो उन का कैरियर अब हमारे हाथ में है. जिम्मेदारी लेना सिखाया गया है. इन्हीं सीखों की वजह से आज मैं इस मुकाम पर हूं.’’

विदेशी और भारतीय सोच में बेसिक अंतर?

‘‘विदेशों में लड़केलड़की में अंतर नहीं पाया जाता है लेकिन हमारे यहां यह बहुत बड़ा अंतर है. भारत में लड़की की शादी के बाद लाइफ बहुत टफ हो जाती है. रोकटोक बहुत हो जाती है. यह करो, यह मत करो जैसी बातें समझई जाती हैं. लड़का जिम जाता है और फिर औफिस आ जाता है जबकि लड़कियां घर का खाना बनाती हैं और सब को खिलातीपिलाती हैं, घर के बाकी काम निबटाती हैं फिर औफिस आती हैं. तो डिफरैंस बहुत है. शादी के बाद सब टफ हो जाता है. वहां ऐन्वायरन्मैंटल चैलेंजेज इतने नहीं हैं. लड़की घर में भी इंडिपैंडैंट नहीं ससुराल में भी नहीं, जबकि विदेशों में लड़के हों या लड़कियां सब 18 साल के बाद इंडिपैंडैंट हो जाते हैं. विदेशों में औपर्च्युनिटी बहुत है. वहां इंसान छोटा काम कर के भी बहुत जल्दी रिच बन जाता है. मगर भारत में सबकुछ इतना आसान नहीं है. यहां पौपुलेशन ज्यादा है और इस वजह से कंपीटिशन भी ज्यादा है.’’

इंस्पिरेशन किस से मिलती है?

‘‘मेरे इंस्पिरेशन मेरे दादाजी हैं और इस के अलावा कोई भी शख्स जो नीचे से ऊपर आया, अपनी जिंदगी को उस ने खुद संवारा, जिस ने अपने हाथों से कुछ बनाया. वे प्रैसिडैंट रूजवेल्ट हों या प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी हों या फिर किसी कंपनी का छोटामोटा कर्मचारी हो. अगर कोई डिलिवरी बौय है जिस की बैकग्राउंड अच्छी नहीं है पर उस ने हिम्मत नहीं हारी और स्टोर मैनेजर बन गया और अपने बल पर लाइफ में आगे बढ़ा तो मेरे लिए वह इंस्पिरेशन है.’’

बिजनैस की सफलता के मंत्र?

‘‘किसी भी बिजनैस की सफलता के लिए सही इंडस्ट्री सिलैक्शन इंपौर्टैंट है. हम कहां हैं और किस दिशा में मेहनत करें यह बहुत माने रखता है, साथ ही यह देखना भी जरूरी है कि उस इंडस्ट्री को कैप्चर करने के लिए क्या आप के पास कोई खासीयत है? मसलन, हमारी इंडस्ट्री में सब के पास लिपस्टिक है या बिजनैस का आइडिया है तो आप के पास क्या अलग है जो दूसरा कौपी नहीं कर सकता है? यह समझना जरूरी है क्योंकि मार्केट में कंपीटिशन बहुत है. ‘‘साथ ही इंडस्ट्री में बने रहने के लिए प्रौफिट जरूरी है. बिजनैस बिना प्रौफिट कुछ नहीं है. आप को देखना होगा कि आप को प्रौफिट हो रहा है या नहीं. घर से रुपए लगाने की जरूरत नहीं है बल्कि अपना प्रौफिट देखें. शुरू में आप पैसा लगाते हैं लेकिन बाद में आप को देखना होगा कि कितना प्रौफिट होगा. प्रौफिट से ही आप का बिजनैस ऐक्सपैंशन होना चाहिए. आज रेवलौन के प्रोडक्ट्स नेपाल, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका और यूएस जैसे देशों में भी अवेलेबल है.’’

सफलता का सीक्रेट?

‘‘मेरी सफलता का सीक्रेट डीप नौलेज में है. हर चीज को ऐग्जाम समझना और उस में पास होना जरूरी समझती हूं. मैं किसी भी चीज के अंदर तक घुसती हूं. हर चीज को गंभीरता से समझती हूं. अपने बिजनैस से जुड़ी हर छोटीबड़ी बात मालूम रखती हूं. नौलेज पाने के लिए मैं डिलिवरी बौय और सेल्स गर्ल्स से ले कर बड़े ओहदे वालों तक सब से जानकारी लेने की कोशिश करती हूं.’’

लड़कियां ब्यूटी प्रोडक्ट्स लेते समय किस तरह की गलतियां करती हैं?

मेघना मोदी कहती हैं, ‘‘लड़कियां अकसर गोरा दिखने के लिए हलके शेड्स वाले या व्हाइट फाउंडेशन ले लेती हैं. यह नहीं करना चाहिए. फाउंडेशन को स्किन टोन से मैच न किया तो वह गलती होती है. इसलिए ऐन्वायरन्मैंट और अपनी स्किन कलर को समझते हुए फंक्शन के हिसाब से प्रोडक्ट लें. शादी के फंक्शन में ब्राइट कलर अच्छे लगते हैं, जबकि किसी गैटटुगैदर में जाना हो तो लाइट कलर ही शूट करते हैं. दरअसल, किसी भी प्रोडक्ट का कब ब्राइट कलर लेना है, कब मैट या न्यूड कलर लेना है इस के बारे में कई तरह से सोचना चाहिए. मौका, समय और अपनी स्किन के हिसाब से ही शेड्स चूज करें.’’

Revlon ED

Organza Outfit Ideas: इस फैस्टिव सीजन औरगेंजा फैब्रिक

Organza Outfit Ideas: अवसर कोई भी हो सभी भीड़ से अलग दिखना चाहते हैं. हमारी पर्सनैलिटी को अलग बनाने में सब से अहम रोल होता है हमारे आउटफिट का. आजकल औरगेंजा फैब्रिक से बने आउटफिट बौलीवुड से ले कर सामान्य जगत तक में छाए हुए हैं. वजन में हलका, दिखने में झाना और पारदर्शी टैक्स्चर वाला यह फैब्रिक दिखने में तो बहुत सुंदर और क्लासी सा लगता है.

पहले इसे केवल रेशम के धागे से ही बनाया जाता था परंतु आजकल इसे पौलिस्टर और नायलोन से भी बनाया जाने लगा है. रेशम से बने औरगेंजा की अपेक्षा पौलिस्टर और नायलोन से बना औरगेंजा अधिक मजबूत होता है. इस से बने हुए आउटफिट फ्लोई और घेरदार बनते हैं जो आप के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देते हैं.

तो आइए जानते हैं कि इस फैस्टिव सीजन में आप किस तरह से औरगेंजा फैब्रिक को अपने वार्डरोब में शामिल कर सकती हैं:

क्लासी कुरती

औरगेंजा फैब्रिक से बनी कुरती से आप खुद को इंडोवैस्टर्न लुक दे सकती हैं, साथ ही कुरती को आप प्लाजो और पैंट के साथ भी पेयर कर सकती हैं. हैवी ऐंब्रौयडरी वाली कुरती को आप जींस के साथ पहन कर खुद को बेहद स्टाइलिश लुक दे सकती हैं. किसी भी खास फंक्शन या फैस्टिवल पर आप औरगेंजा फैब्रिक से बनी कुरती के साथ घेर वाली स्कर्ट पहन कर भीड़ में भी खुद को अलग दिखा सकती हैं. किसी भी जींस टौप पर औरगेंजा फैब्रिक का श्रग डाल कर आप खुद को बेहद स्टाइलिश लुक दे सकती हैं.

मैक्सी और गाउन ड्रैस

प्रिंटेड औरगेंजा फैब्रिक से बनी मैक्सी ड्रैस आजकल खूब फैशन में है. इसे पहन कर आप ट्रेंडी, क्लासी और स्टाइलिश दिखेंगी. आप इस से प्लीट्स वाली, अनारकली, ऐंकल लैंथ वाली मैक्सी ड्रैस बनवा सकती हैं. आप अच्छे फौल के लिए अपनी ड्रैस में चौड़ी फ्रिल भी लगवा सकती हैं. ट्रैवलिंग से ले कर औफिस या फैस्टिवल किसी भी अवसर पर आप इसे कैरी कर सकती हैं. किसी भी प्रिंटेड या कढ़ाई वाले फैब्रिक से फ्लोर लैंथ गाउन बनवा कर आप फंक्शन या फैस्टिवल पर पहन सकती हैं.

टी लैंथ ड्रैस

वैकेशन या डेनाइट के लिए अथवा फ्रैंड्स के साथ पार्टी में आप स्टाइलिश दिखना चाहतीं हैं तो औरगेंजा फैब्रिक से बनी टी लैंथ ड्रैस को ट्राई करें. हलकी और कंफर्टेबल होने के साथसाथ यह आप को भरपूर स्टाइल भी देगी. इस के साथ आप जींस, पैंट या फिर कार्गो पैंट पेयर कर सकती हैं.

ट्रांसपेरैंट शर्ट्स

आजकल महिलाओं में शर्ट्स काफी पौपुलर हैं आप प्रिंटेड औरगेंजा फैब्रिक से बनी शर्ट्स ट्राई करें यह आप को बहुत पसंद आएगी. इस के साथ हाई वेस्ट चौड़ी पैंट पेयर कर सकती हैं. इन्हें आप औफिस, पार्टी और ट्रेवलिंग में भी बड़े आराम से पहन सकती हैं. अपनी पसंद के अनुसार आप कोट या सिंपल कौलर वाली शर्ट बनवा सकती हैं.

ट्रैडिशनल सूट्स

आजकल औरगेंजा फैब्रिक पर हैवी और लाइट ऐंब्रौयडरी वाले सूट्स बहुत फैशन में हैं. आप अपनी पसंद के अनुसार इन्हें ट्राई कर के खुद को ट्रैडिशनल लुक दे सकती हैं. सेम कलर का दुपट्टा ले कर आप अपनी ड्रैस को और भी अधिक आकर्षक बना सकती हैं.

औरगेंजा साड़ी

पेस्टल शेड्स वाली प्लेन साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज आजकल बहुत फैशन में है. आप अपनी पसंद और बजट के अनुसार मनपसंद साड़ी का चुनाव कर सकती हैं. किसी भी स्पैशल इवेंट, फंक्शन या त्योहार पर आप औरगेंजा साड़ी पहन सकती हैं. प्लेन साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज और हैवी साड़ी के साथ प्लेन ब्लाउज पेयर करें.

औरगेंजा लहंगा

चूंकि औरगेंजा फ्रैब्रिक बहुत हलका होता है इसलिए आप इस से बने लहंगे को प्री वैडिंग पार्टी या फिर दीवाली जैसे फैस्टिवल पर औरगेंजा फैब्रिक का लहंगा स्टाइल कर सकती हैं. हलका होने के कारण आप इसे काफी लंबे समय तक कैरी कर सकती हैं.

रखें इन बातों का ध्यान

औरगेंजा फैब्रिक काफी हलका और पारदर्शी होता है इसलिए इसे हमेशा इनर के साथ पहनें. फैब्रिक से ड्रैस बनवाते समय भी साटिन या कौटन के मोटे फैब्रिक का अस्तर लगवाएं. यह काफी नाजुक फैब्रिक होता है इसलिए प्रयोग करने के बाद ड्राईक्लीन करा कर ही रखें.

औरगेंजा फैब्रिक की साड़ी पहनते समय मैचिंग का ही पेटीकोट या डीकाट पहनें अन्यथा दूसरे रंग का पेटीकोट आप की साड़ी की खूबसूरती को ही कम कर देगा.

इस फैब्रिक से बने आउटफिट को कभी भी वाशिंग मशीन में न धोएं वरना इस के धागे निकलने लगेंगे.

Organza Outfit Ideas

Vegetable Treat: सब्जियों का सीजन आ चुका है तो, बनाएं ये स्वादिष्ठ रैसिपीज

Vegetable Treat

शलगम का भरता

सामग्री

– 500 ग्राम शलगम

– 1/2 कप टमाटर बीजरहित व छोटे टुकड़ों में कटा

– 1/4 कप प्याज लंबाई में कटी

– 1 छोटा चम्मच अदरक व हरीमिर्च कटी

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/2 छोटा चम्मच कलौंजी

– 1/2 कप हरे मटर के दाने

– 1 बड़ा चम्मच सरसों का तेल

– थोड़ी सी धनियापत्ती

– नमक स्वादानुसार.

विधि

शलगमों को छील कर कददूकस कर लें. एक भारी तले की कड़ाही में तेल गरम कर उस में कलौंजी डालें. फिर प्याज, अदरक व हरीमिर्च डाल कर पारदर्शी होने तक भूनें. कद्दूकस किया शलगम व नमक डाल दें. धीमी आंच पर ढक कर गलने तक पकाएं. शलगम 5 मिनट में गल जाए तब टमाटर के टुकड़े व मिर्च पाउडर डालें. सब्जी को अच्छी तरह सुखाएं. सर्विंग प्लेट में पलटें और धनियापत्ती बुरक कर सर्व करें.

‘कैबेज और कैरेट की यह जुगलबंदी सभी को पसंद आएगी.’

ड्राई वैजी

सामग्री

– 500 ग्राम बंदगोभी कटी – 3/4 कप गाजर छिली व 1/2 इंच लंबे टुकड़ों में कटी

– 1/4 कप हरे मटर के दाने – 1/2 छोटा चम्मच चीनी – 10 कालीमिर्च – 2 लालमिर्च साबूत

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच मेथीदाना – 1/4 कप प्याज कटा

– 2 बड़े चम्मच धनियापत्ती कटी – 2 छोटे चम्मच अदरक व हरीमिर्च कटी

– 2 बड़े चम्मच राइस ब्रान औयल – नमक स्वादानुसार.

विधि

कालीमिर्च को दरदरा कूट लें. एक कड़ाही में तेल गरम कर के मेथीदाना, अदरक व हरीमिर्च और साबूत लालमिर्च का तड़का लगाएं. प्याज को पारदर्शी भून कर सारी सब्जियां, नमक और चीनी डाल दें. फिर ढक कर गलने तक पकाएं. पानी सुखाएं. सर्विंग डिश में पलटे. धनियापत्ती डाल कर सर्व करें.

  ‘कबाब के शौकीन लोगों को गोभी के ये कबाब परफैक्ट डिश हैं.’

  गोभी मटर कबाब

सामग्री कोफ्तों की

– 3 कप फूलगोभी कद्दूकस की – 3/4 कप हरे मटर के दान – 2 छोटे चम्मच अदरक व हरीमिर्च कटी – 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर  – 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला

– 1 छोटा चम्मच धनिया व जीरा पाउडर – 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

– 3/4 कप भुना बेसन – कोफ्ते तलने के लिए सरसों का तेल – नमक स्वादानुसार.

सामग्री मसाले के लिए

– 1/2 कप प्याज कद्दूकस किया – 1/4 कप प्याज लंबाई में कटा – 1 बड़ा चम्मच अदरक व लहसुन का पेस्ट – 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर – 1/2 छोटा चम्मच गरममसाला – 2 बड़े चम्मच सरसों का तेल – 2 बड़े चम्मच धनियापत्ती कटी सजाने के लिए – नमक स्वादानुसार.

विधि

एक नौनस्टिक कड़ाही में 1 चम्मच तेल गरम कर के अदरक व हरीमिर्च डालें. फिर हलदी पाउडर और कद्दूकस की गोभी व मटर डाल दें. नमक डालें और 5 मिनट मीडियम आंच पर ढक कर पकाएं. पानी सुखाएं व सब्जी के ठंडा होने तक उस में कोफ्ते के सारे मसाले व भुना बेसन डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. छोटेछोटे कोफ्ते बना कर गरम तेल में तल लें. अब

2 बड़े चम्मच तेल गरम कर प्याज पारदर्शी होने तक भूनें फिर कद्दूकस किया प्याज व अदरकलहसुन का पेस्ट डालें. साथ ही सूखे मसाले और नमक डाल कर तेल छूटने तक धीमी आंच पर पकाएं. कोफ्ते मसाले में डाल दें, साथ ही 2 बड़े चम्मच पानी भी. उलटपलट कर ढक कर 5 मिनट पकाएं. सर्विंग डिश में पलट कर ऊपर धानियापत्ती बुरकें और सर्व करें.

Vegetable Treat

Hindi Drama Story: ओस और सुर्खी

Hindi Drama Story: ओस ने दुपट्टा अपने कंधे पर डाला और पैरों में हवाईचप्पल पहन कर अम्मी से कहा, ‘‘हम जा रहे हैं.’’ ओस के कदमों की रफ्तार तेज हो चली थी. पैदल ही कालेज का सफर जो तय करना था. चंपई रंग, उम्र की लुनाई ही उस की शख्सियत का सब से अहम हिस्सा था. अनचाही, नापसंद नजरों का खौफ खा कर वह बारबार दुपट्टा सीधे किए जा रही थी.

जैसे ही ओस कालेज पहुंची सुर्र्खी ने उसे चौंका दिया, ‘‘अरे गुलफाम आज इतनी देर कैसे हो गई?’’ ‘‘बस सुर्र्खी तुम हमें और तंग न करो. बड़ी मुश्किल से तो अम्मी के सवालों से पीछा छूटा और तुम भी…’’ ‘‘ओए मेरे मिट्टी के माधो. अब इन बड़ीबड़ी कश्तियों को आंखों को समंदर में न उतारना.’’ सुर्र्खी कहां आजाद परिदों की मानिंद हवा से बातें करती हुई, बेपरवाह, पुरजोर कहकहा लगाने की उस की आदत. तितलियों सी पल में यहां तो पल में वहां. जब वह तितलियों को हथेलियों में बंद कर वापस खोलती तो तितलियों के पंखों के सारे रंगों उस की हथेलियों में छपे मिलते. अब वह इन रंगों से भरी हथेलियों को हौलेहौले ‘ओस’ के रुखसार पर छाप कर खिलखिला पड़ती. ओस व सुर्र्खी हमउम्र तो थीं पर हमखयाल बिलकुल नहीं.

पर कहते हैं न अलगअलग तासीर के लोगों के बीच दोस्ती ज्यादा पुखता होती है… यह दोस्ती भी कितनी अजीब चीज होती है. इस की राहों में जुदा खयालों के पत्थर तो होते हैं पर उन में से जो जैसा है उसे उसी तर्ज पर कबूल करने वाले कुछ चमकीले जुगनू भी होते हैं. साथ चल कर खुशी, गम बांटने वाली नन्ही कलियां राह में बिखरी होती हैं. इस से ही बावस्ता दोस्ती की पगडंडी पर चला जा सकता है. इन में रूठनेमनाने वाले बागड़ भी बेशाख्ता उगे होते हैं पर एकसाथ खिलखिलाने की सोंधी सी खुशबू से सराबोर हो कर यह रास्ता तय हो ही जाता है. दिन बीत रहे थे. कालेज से लौटते वक्त सुर्र्खी का पानीपूरी खाने के लिए मचल उठा. बोली, ‘‘भाई हमारे गुपचुप, पानीपूरी में प्याज नहीं पड़ेगा.’’

ओस की सारी गांठें, जिरह सुर्र्खी के सामने ही खुलती थी. ‘‘प्याज खाना चाहिए सेहत अच्छी रहती है.’’ बस इस के बाद तो भूचाल ही आ गया. जिरह चालू हो गई, ‘‘देखिए मुहतरमा.’’ सुर्र्खी दहाड़ने वाले अंदाज में बोली, ‘‘लंबा कौन?’’ मिमियाते हुए ओस बोली, ‘‘तुम.’’ ‘‘गोरा कौन?’’ ‘‘तुम.’’ ‘‘सुंदर कौन?’’ ‘‘तुम.’’ ‘‘नाटा कौन?’’ ‘‘मैं.’’ ‘‘डरपोक कौन?’’ ‘‘मैं.’’ ‘‘मोटा कौन?’’ ‘‘मैं.’’ ‘‘तो बताइए मुहतरमा प्याज खाने वाला अच्छा कि न खाने वाला?’’ ओस चुप हो गई. उस के बाद प्याज वाला गुपचुप ओस के मुंह में डाल कर सुर्र्खी बोली, ‘‘अरे मेरे मिट्टी के माधो. आज नीर न बहइयौ.’’ काव्य, ओस और सुर्र्खी की तिकड़ी के बीच जब कैरम की बिसात जमती तो ओस का होना न होना कोई माने ही नहीं रखता था.

सारी शर्तें, ऊपर से पेनल्टी का बंदोबस्त भी सुर्र्खी के हुक्म पर हुआ करती थी. सुर्र्खी और काव्य के हमजात होने के कारण उन के आपस में मिलने पर रिश्तेदारों को कोई एतराज नहीं था. सुर्र्खी तो थी ही सुर्ख, अपनेपन से लबरेज. ओस ने अपने खयालों को हकीकत में सिर्फ और सिर्फ सुर्र्खी की मारफत ही देखा था. स्कूटर पर बैठा कर जब सुर्र्खी कहती, ‘‘चल मेरी बसंती कहां चलना है?’’ ओस मुसकरा देती. स्कूटर चलाने की इजाजत तो दूर बेबाक, लापरवाह कदमों से चलने की भी इजाजत ओस को नहीं थी. एक दिन तो हद ही हो गई. कैरम की बाजी के बीच काव्य और सुर्र्खी की बहस शुरू हो गई. ओस खामोशी से सुन रही थी. बहस बढ़ती गई. काव्य ने शर्त रखी, ‘‘तुम सिगरेट तो पी ही नहीं सकतीं.

बड़ी आई मर्दों के बराबर रुतबा चाहने वाली.’’ इतना सुनना था कि सुर्र्खी का दनदनाता कबूलनामा, ‘‘किस ने कहा?’’ इस के बाद एक के बाद एक 3 सिगरेट कश दर कश सुर्र्खी ने बिना खांसे पी लीं. सिगरेट सुर्र्खी पी रही थी और खांस ओस रही थी. ओस का दम निकला जा रहा था. आंखें उबल रही थीं. उफ… जलजला तो आ ही जाएगा. जब अम्मी को पता चलेगा कि सिगरेटनोश सुर्र्खी के सामने ओस भी मौजूद थी. उस की तो खाल ही उधेड़ दी जाएगी. सुर्र्खी ने काव्य की शर्त से 50 रुपए जो जीते थे. उन रुपयों को काव्य से झपट लिया. इस छीनाझपटी में ओस और काव्य उलझ गए. उलझना उन को कहां था? वहां तो नजरों की उलझन थी. गहरी सांसो का पायदान और गुस्ताख कदमों को पोंछ कर इस रिश्ते की ओर बढ़ते कदम… उफ… यह कशिश भी कितनी अजीब थी.

कहां सुर्र्खी और काव्य का रिश्ता तय होने जा रहा था और ओस की ओर काव्य के बढ़ते कदम. जहां हर एक सांस के बाद दूसरी सांस लेने की इजाजत लेनी पड़ती हो. वहां सुर्र्खी पर काव्य का जबरिया हक. ‘‘नहींनहीं,’’ ओस ने खुद को झंझड डाला. ओस की डरीसहमी हरकतें, बेवजह तमाशा न करना जैसी वजहों के कारण काव्य का हौसला बढ़ता ही गया. ओस अब सुर्र्खी के सामने आने से कतराने लगी थी. सुर्र्खी उन की सब से प्यारी सहेली थी. उस का क्या, वह तो साफ, दिलदार कलेजे वाली लड़की थी, जिस ने ओस को हमेशा सिरआंखों पर रखा. ओस का दब्बूपन ही उस का दुश्मन बन बैठा था. काव्य की हरकतें अब गैरसलीकेदार होने लगीं. कैरम की मेज के नीचे, पैरों से पैर टटोलना.

बेवजह कैरम की गोटियां जमाते वक्त ओस की हथेलियों पर हथेलियां रखना. बेहद अनमने ढंग से काव्य और सुर्र्खी की सगाई की शौपिंग पर साथ चलने के लिए ओस गई हुई थी. पूरे रास्ते खामोश, बंदजबान. आखिर सुर्र्खी से नहीं रहा गया, ‘‘अरे मेरे मिट्टी के माधो. मुंह में दही जम गया है क्या? आप कुछ बोलेंगी? यह रंग कैसा है?’’ ओस की आंखें डबडबा गईं. उसे हताशा ने घेर लिया. कपडे़ के रैपर के नीचे काव्य ने ओस की हथेलियों को जकड़ जो रखा था. जैसे ही सुर्र्खी ने दूसरे काउंटर पर कुछ देखने का मन बनाया, उसी दौरान काव्य के दोस्त भी उसे मिल गए. ओस ने यह मौका नही गंवाया, हाथ छुड़ाया और दूसरी ओर जा खड़ी हुई. यह क्या. आने वाली आवाजों ने उस के होश फाख्ता कर दिए. ‘‘अरे यार तुम्हारे तो मजे ही मजे हैं.’’ ‘‘हां यार.’’ ‘‘आदमी तो कुत्ता होता है जहां गोश्त लगी हड्डी दिखेगी वह तो पीछे दौड़ेगा ही… मर्द होते ही ऐसे हैं.’’ ‘‘पर एकसाथ दोनों?’’ ‘‘अरे वह डरपोक ओस शादी तो अपनी जात वाली से ही करूंगा.

वह तो सिर्फ टाइम पास है. सगाई से पहले वह निबट ही जाएगी…’’ ओस की आंखें लाल होने लगीं. पूरी जबान भोथरी हो गई आवाज घिघियाने लगी. उफ… मेरी साफ दिल, फक्क, सुर्ख ‘सुर्र्खी’ की सगाई इस से होगी? पर जलजला तो अब आया. सुर्र्खी का फरमान जारी हो चला था, ‘‘तुम काव्य के साथ लिफ्ट से नीचे पहुंचो, मैं आ रही हूं.’’ लिफ्ट में मन मार कर जाना फिर वही नापसंदगी का माहौल. छोटी सी लिफ्ट में काव्य की सांसों से सांसें टकरा रही थीं. दबोचे जाने से पहले ही लिफ्ट का दरवाजा खुला उफ… कल सुर्र्खी की सगाई काव्य से होने जा रही थी और ओस की आंखों में नींद नहीं. भारी उथलपुथल जेहन पर छाई हुई थी. आज होटल में भारी गहमागहमी थी.

सारे लोग आ चुके थे. सगाई की रस्म होने के पहले अचानक यह कैसा जलजला आया… दब्बू ओस का हाथ पकड़े सगाई की अंगूठी पहनाने से पहले करारा थप्पड़ सुर्र्खी काव्य के मुंह पर जड़ चुकी थी… ओस तो पिछले कई दिनों से जीतेजी मुरदा हो चली थी पर आज पचमुरदा (बुझा हुआ) तो काव्य था. खौफजदा ओस ने बेखौफ हो कर कैसे अपने साथ हुए काव्य की नापाक हरकतों का जिक्र सुर्र्खी के सामने कर दिया था. उस दौरान वह कितनी बार मुरदा हुई होगी. अपने जिस्म से ज्यादा अपनी रुह के तारतार होने का वाकेआ उस ने सुर्र्खी को सुनाया. सुर्र्खी तो सुर्र्खी थी. उस की ओस को जीते जी मुरदा कर के उस के साथ सगाई करने वाले शख्स को थप्पड़ रसीद कर काव्य को उस ने पचमुरदा कर दिया.

हां, अब कोई शख्स ओस की लुनाई नर्मी को नहीं चुरा सकता. सुर्र्खी के तेवर ने पचमुरदा काव्य के गालों का रंग बदल दिया… पचमुरदा काव्य हुआ बेजान और ओस फक्क, साफ, पाक बेदाग. सुर्र्खी बाहर से बेहद लापरवाह थी पर भीतर से आज उस की तकलीफें रीस रही थीं. काव्य को ले कर बुने ख्वाब की तामील होने से पहले ही ये बेरंग, तारतार हो चुके थे. सुर्खी का दमकता वजूद भी पलभर के लिए तारतार हो गया था पर अब पूरे चेहरे पर, पूरे वजूद पर छा गई थी एक चंपई आभा. काव्य को छोड़ सुर्खी ओस के साथ आगे बढ़ गई. ‘‘ओए मेरे मिट्टी के माधो. अब पीछे मत पलटियो…’’

लेखक- रजनी शर्मा बस्तरिया

Hindi Drama Story

Satire: रील्स बनाना कोई मजाक नहीं

Satire: क्या आप को लगता है महिलाओं के लिए रील्स बनाना आसान है? भाईसाहब, आप बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं. अगर आप समझ रहे हैं औरतों का दिमाग खराब हो गया है, इन्हें कोई काम नहीं, रील्स बनाने से अच्छा तो ये कुछ और कर लें तो आप बहुत गलत सोच रहे हैं. जो सुख एक औरत को रील बना कर मिल रहा है, उस सुख को आप जानते नहीं. और यह आप कैसे सोच सकते हैं कि रील्स बनाना आसान है.

मेरी सहेलियों की रातदिन की मेहनत मैं जानती हूं, मैं ने देखा है, कैसे वे सब एक रील बनाने के लिए तैयारी करती हैं. नहीं समझे? मैं समझती हूं. अभी कुछ ही दिन पहले मैं सीढि़यों से नीचे उतर कर जा रही थी. मेरे नीचे के फ्लोर पर रहने वाली मेघा टीशर्ट शौर्ट्स पहने अपने दरवाजे के बाहर स्टूल पर चढ़ कर दरवाजे पर लैवेंडर कलर के फूलपत्ती टांग रही थी. मैं ने पूछ लिया, ‘‘कोई त्योहार आ रहा है?’’ वह बोली, ‘‘नहीं, कल मेरे घर किट्टी है.’’ मैं ने पूछ लिया, ‘‘उस के लिए इतनी सजावट?’’ वह बोली, ‘‘अरे, फिर इंस्टा के लिए रील भी बनाएंगे न?’’ ‘‘अच्छा… अच्छा,’’ कहते हुए मैं आगे बढ़ने लगी वह और भी कुछ शेयर करना चाहती थी.

बोली, ‘‘कल थीम ही लैवेंडर रखा है, पूरा घर ही लैवेंडर कलर में होगा तो रील बढि़या बनेगी.’’ ‘‘वाह, बढि़या सोचा,’’ कहते हुए मैं नीचे उतर ही गई. फिर आवाज आई, ‘‘अरे, तुम कल इंस्टा जरूर देख लेना और अच्छा सा कमैंट, लाइक कर देना.’’ बेचारी भरी दोपहर में स्टूल पर चढ़ी थी. वह भी औरों की तरह दोपहर में आराम कर सकती थी पर नहीं न. किसलिए इतनी मेहनत कर रही थी, रील अच्छी बन जाए, इसीलिए न? भाई साहब, एक रील यों ही नहीं बन जाती, घंटों की मेहनत लगती है. अगले दिन जब मैं ने इंस्टा पर मेघा की रील देखी, मुंह से वाहवाह ही निकलता गया.

उस की 7 और सहेलियां रील में थीं, दरवाजे की ऐंट्री से ले कर अंदर जाने तक लैवेंडर कपड़े पहने सब सहेलियों ने जो भयंकर डांस किया, भोजपुरी गाने पर क्या ठुमके लगाए. सब के ब्लाउज एक से एक स्टाइलिश. इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि घर का इंटीरियर और सब के कपड़े साफसाफ दिखें. 1-1 कर के फोन सावधानी से एक हाथ से दूसरे हाथ तक जा रहा था, कोई छूट न जाए, सब को बराबर की फुटेज मिली. यह सब आप को आसान लगता है? कितने दिन से डांस स्टैप की प्रैक्टिस हो रही थी? पता भी है? मेघा से बाद में पूछा था. पूरे 15 दिन रोज दोपहर में 1 घंटे डांस किया गया था.

गाना ढूंढ़ने में सब ने रातदिन एक कर दिया था. मेघा तो कह रही थी कितनी भी तबीयत खराब हो, दोपहर में अगली रील के बारे में सोचना ही होता है. अब तक वह 100 रील बना चुकी है. यह उस की लाइफ का एक बड़ा अचीवमैंट है. और हमारी सोसाइटी की फिटनैस क्लास में आ कर कभी देखिए. सारी फिटनैस एक तरफ, वर्कआउट करते हुए रील बनाने की मेहनत एक तरफ. सुनीता सब लेडीज की हैड है. अब इंस्ट्रक्टर नहीं बताता कि क्या करना है, अब सुनीता उसे बताती है कि फोन कैसे पकड़ कर सब की रील बनानी है. 2 दिन पहले ही वह सुनीता से डांट खा गया था, उस ने पता नहीं कैमरा किस ऐंगल से पकड़ लिया था कि सुनीता मोटी लग रही थी. कई रिटेक के बाद रील फाइनल हुई.

जिन की रील बनाने में रुचि नहीं है, वे मूर्ख चुपचाप ऐक्सरसाइज कर के अपने घर जल्दी चले गए. पता नहीं जल्दी घर जा कर ऐसा कौन सा महान काम कर लेते हैं और मेरी दोस्त नीता जो जबतब अपनी बालकनी में रखे पौधों की रील बनाती है, उसे बालकनी की पहले कितनी सफाई करनी पड़ती है, पता भी है? नहीं तो वह तो वहां की सफाई करने की जरूरत भी नहीं समझती. पौधों में पानी बाई डाल ही देती है. अब सोचिए, मेड के साथ मिल कर बालकनी की सफाई करने में मेहनत लगती है या नहीं? भले ही रील बनाने के लिए ही सही और सब को रील में डालने के लिए गाना ढूंढ़ने में कितनी मेहनत लगती है सारा दिन आंखें थक जाती हैं सर्च करतेकरते. इतनी मेहनत तो उन्होंने अपने बच्चों का खोया सामान ढूंढ़ने में कभी न की. और हम औरतों की बात ही क्यों कर रहे हैं, भई, पुरुषों का भी तो इस में दखल कम नहीं.

सारा दिन काम के बीचबीच में रील ही तो देख रहे हैं. अंजू बता रही थी कि जैसे वह अपने डांस की रील बनाती है, उस के पति भी संडे को जोक सुनाते हुए रील बनाने लगे हैं, बच्चे कैमरा संभालते हैं. आप क्या जानें, एक रील बनाने में पूरे परिवार की मेहनत होती है और मीतू की मेहनत सुन कर तो आप के होश उड़ जाएंगे. वह कुकिंग करते हुए किसी गाने के बोल पर होंठ हिलाते हुए रील बनाती है. सच कहती हूं, मैं ने ऐसी मेहनती महिला कभी नहीं देखी. रोज फुल मेकअप कर के, नएनए हेयरस्टाइल के साथ रील बनाना आसान है क्या? इस के लिए किचन भी चमकतीदमकती चाहिए. बता रही थी कि इस में उसे रोज कम से कम 3 घंटे तो लग ही जाते हैं. आजकल बच्चे भी कितने अच्छे हैं, बच्चे भी पेरैंट्स का पूरा साथ दे रहे हैं.

कहीं भी रहें, अपनी फीलिंग्स को दिखाने के लिए मां और बच्चे की बौंडिंग वाली रील भेजना याद रखते हैं. आप का कहा चाहे न मानें, आप को रील तो भेजते हैं न. जिस का जैसा रिश्ता हो, वैसी रील मिल ही जाती है, बस फारवर्ड कर दो, काम खत्म. रील्स से रिश्ते कितने मजबूत हो रहे हैं, पता भी है कुछ? मां ऐनिमल लवर है, बच्चों ने मां को कुत्तों की रील्स भेज दी, मां उन्हें देख कर खुश हो गई, बच्चों पर टूट कर प्यार आया, मेरे बच्चे मेरी पसंद की रील्स भेजते हैं. पति रील भेज रहा है, पत्नी रील भेज रही है, दोनों मुसकरा रहे हैं, भले ही साथ बैठने पर एकदूसरे को कुत्ते की तरह काटने को दौड़ें. रील्स का हमारे जीवन में कितना महत्त्वपूर्ण स्थान है, इस से आप मुकर नहीं सकते. हां तो हम बात कर रहे थे रील्स बनाने की मेहनत की.

अब मैं बताती हूं अपनी सैर का किस्सा, भाई साहब. रोज की तरह शाम को सैर पर गई तो देखा मेघा, नीता, मीतू और इन की 4 और सहेलियां एक पेड़ के नीचे एक कौमेडी गाने पर रील बना रही थीं, आसपास के फ्लैट्स की खिड़कियों से लोग झंक रहे थे पर इन मेहनती औरतों ने किसी की तरफ नहीं देखा, खूब ठुमके लगाए, माली देख रहा था, सिक्युरिटी गार्ड मुसकरा रहा था, इन्होंने जरा चिंता नहीं की. बाकी सैर करने वाले पुरुष अपनी हंसी रोकने की कोशिश में इन के पास से निकलते हुए दाएंबाएं देखने लगे पर मेरी मेहनती सहेलियों ने बस अपने ठुमकों पर फोकस रखा.

सोचिए जब सब शाम को चुपचाप सैर कर रहे हों, पूरी तरह बनसंवर कर गार्डन में यह मेहनती ग्रुप अपने काम में लगा है, आसान है क्या? इन का मन नहीं करता होगा कि हम भी कुछ सैर कर लें, थोड़ा आराम से जी लें, छोड़ दें सबकुछ, पर नहीं, इन्होंने सब काम, ओह सौरी, आराम छोड़ दिया है और आप सोचते हैं रील्स बनाना आसान है, हुंह.

Satire

Suspense Story: सुनामी

Suspense Story: राशि और भुवन पतिपत्नी हैं. आज से 4 साल पहले दोनों ने प्रेम विवाह किया था. राशि उस समय एक नईनवेली ड्राइंग टीचर थी. वह कक्षा 3 से 5 तक के छात्रों को चित्र बनाना, स्कैचिंग करना सिखाती थी. राशि ने कला विषय में एमए किया था. उस के बाद बीएड कर के उसे एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी मिल गई थी. राशि का पसंदीदा विषय कला था. इसीलिए उसे इस नौकरी में बहुत आनंद आता था. कुछ महीने बाद उस के शहर में आर्ट पर एक कार्यशाला हुई थी. वहां राशि भी गई थी.

आधुनिक कला के आयाम विषय पर, जिस में एक युवा कलाकार भुवन की मुख्य पेटिंग्स भी प्रदर्शनी में लगाई गई थीं. भुवन नामक कलाकार तब एकदम नयानया था मगर राशि भी तो कला की समझ रखती थी. भुवन की उन मनमोहक तथा एकदम अनोखी पेंटिंग्स ने राशि का दिल ही जीत लिया. उस कार्यशाला में भुवन का संवाद भी आयोजित किया था. उस के सवालजवाब भी रखे गए थे.

न जाने भुवन ने क्या जादू किया था या फिर राशि ने ही मन ही मन तय कर लिया था कि भुवन को खास दोस्त बना कर ही दम लेगी.कहते भी हैं कि जिस चीज को शिद्दत से चाहो पूरी कायनात उसे मिलाने की कोशिश में जुट जाती है. फिर क्या था. भुवन ने भी राशि की आंखों में प्यार का लहराता सागर देख लिया था. उस कार्यशाला के बाद फोन नंबर का आदानप्रदान तथा मेलमुलाकात का कुछ ही वक्त गुजरा था कि उन दोनों प्रेमपंछियों के पुलकित मन एकदूजे में रमने लगे. दोनों एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम गुजारने लगे. जल्द ही दोनों विवाह के बंधन में बंध गए. विवाह के बाद भी अपनी नौकरी करती रही राशि.

भुवन भी अपनी पेंटिंग्स के साथ शहरशहर इधरउधर, आताजाता रहा. कभी कलादीर्घा में पेंटिंग्स की प्रदर्शनी तो कभी लैक्चर, कभी स्कूलों में विशेष कक्षा रखी जाती तो कभी विविध रेडियो चैनल भुवन को आमंत्रित करते. भुवन अभी केवल 30 साल का था. मगर उस की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. राशि कभी भी हद से अधिक खर्च नहीं करती थी इसलिए घर चलाना इतना मुश्किल नहीं था. दिन आराम से गुजर रहे थे.

आज भुवन काफी दिनों बाद घर वापस आया. आते ही राशि ने उसे मीठी सी झिड़की दी, ‘‘ओ, कलाकार भुवन आजकल तो तुम पर कला रसिक और कला प्रेमी जान लुटा रहे हैं. बोलो है कि नहीं?’’ राशि ने तंज कसा. ‘‘तो इस में गलत क्या है? लोगों का अटैंशन मिलने पर मैं कंफर्टेबल ही महसूस करता हूं. अगर वे मुझे जानतेपहचानते हैं और प्यार भी करते हैं तो इस के लिए मैं उन का शुक्रगुजार हूं,’’ भुवन ने खुशी से कहा. ‘‘ओहो तो आगे जा कर मौडर्न कला का आइकोन बनना अच्छा लगेगा आप को मेरे पतिदेव?’’ राशि ने उसे फिर से छेड़ा. ‘‘हां, हां, क्यों नहीं? एक कलाकार को प्यार किया जाना ही तो उस के सब से बड़ा कौंलिमैंट हैं. उसे न दौलत चाहिए न पैसों का ढेर. सराहना ही उस के लिए खादपानी है,’’ भुवन ने दिल की बात जस की तस कह दी. ‘‘अहंकार सा नहीं आ गया तुम्हें भुवन?’’ कहते हुए मैं ने कौफी बना दी थी. 1 कप भुवन को थमाते हुए वह भी दिल की बात कहने से खुद को रोक न सकी. ‘‘यार राशि जानेमन, कमाल की बात करती हो. आजकल तुम भी न, बाकी रूढि़वादी और लकीर के फकीर टाइप लोगों की तरह जजमैंटल सी बन गई हो. है कि नहीं. देखो, तुम ने मेरी हर चीज और मेरे हर काम पर चाहे वह पुल और शराबखाने को एकसाथ जोड़ कर दिखाने वाली पेटिंग हो या फिर मेरे जटिल आर्ट वर्क की बात हो या फिर मेरी कला के खुले मन से कद्रदानों पर, सब एक तरह का लेबल लगाना शुरू कर दिया है तुम ने.

राशि मुझे इस तरह की टैगबाजी से एतराज है मेरी जान. मेरे खयाल से यह कोई जरूरी नहीं है कि मेरा कोई आर्ट वर्क दूसरे से हमेशा बेहतरीन ही होगा या वह हर बार मेरे ही किसी दर्शन को अभिव्यक्त करेगा.’’ अब यह तर्क सुन कर राशि चुप हो गई. भुवन ने उसे लाजवाब कर दिया था. सचमुच मार्के की बात कही थी भुवन ने. राशि को अपने बचपने पर खूब हंसी आने लगी और इसीलिए उस ने भुवन को बांहों में भर कर चूम लिया. अब जितने दिन भुवन घर पर रहा हर पल जैसे रोमांटिक ही था. राशि ने स्कूल से एक दिन का अवकाश भी ले लिया था. पूरा दिन दोनों घूमतेफिरते रहे.

शाम को घर लौट कर भुवन ने बताया कि उसे सुबह 6 बजे मुंबई के लिए निकलना होगा. ‘‘ओह, नो भुवन, इतने दिन बाद घर आए हो और जाने की बात करते हो. रहने दो न. मत जाओ. मना कर दो,’’ राशि उस से लिपट कर बच्चों की तरह मचलने लगी. ‘‘राशि सोच लो एक नया और शानदार ड्रीम लुक रिलोर्ट बन रहा है. उसी के मालिक ने देशभर से 20-21 कलाकार बुलाए हैं. वह हमारी पेंटिंग्स को वहां लाइव बनता हुआ दिखाना चाहता है और पूरी हो जाने के बाद वहीं पर उन की अच्छी से अच्छी कीमत देगा.

इसलिए 7 दिनों तक वहां रहना भी होगा. इतना समय तो लगेगा एक बेहतरीन पेंटिंग तैयार करने में. और हां हमारी बाकी पेंटिंग्स की भी प्रदर्शनी लगेगी. करोड़पतियों से कम लोग नहीं आते उस के रिजोर्ट में. सब खुल कर खर्च करते हैं. वहां लाखों मिलेंगे. तुम्हारा कार खरीदने का मन है न. अब अगर मना करती हो तो रहने देता हूं. मगर ऐसा सुनहरा मौका बारबार नहीं आता. सोच लो,’’ भुवन ने साफसाफ कहा. ‘‘ओह, भुवन तुम ने भी 2 तरह की बात कह दी. अब मैं कुछ नहीं कहती,’’ कह कर राशि ने एक बार फिर उस का आलिंगन किया और कुछ देर ऐसे ही रही. फिर भुवन इसी खामोशी को उस की मौन सहमति मान कर फटाफट से मुंबई की तैयारी में जुट गया. वह कलाकार था. जानता था कि चित्र बेचना चित्र की मार्केटिंग करना कितना जरूरी है. भुवन रात को समय पर सोया और सुबहसुबह चला भी गया.

उस के 1 घंटे के बाद 7 बजे राशि भी स्कूल चली गई. इस तरह दिन फिर से गुजरते रहे. मुंबई से भुवन काफी रुपए कमा कर लाया. राशि ने अभी कार खरीदने से मना कर दिया. राशि ने कहा कि अभी ये रुपए जमा कर दो. कुछ महीने बाद सोचेंगे. भुवन ने उस की राय मान ली. 2 दिन रुक कर भुवन कोलकाता चला गया. वहां पर उसे एक महाविद्यालय में 3 दिवसीय कला उत्सव में सहभागिता करनी थी. इधर राशि भुवन की नित नई उपलब्धियों से खुश थी. उधर एक दिन स्कूल में समय पा कर रैना ने राशि को कुछ बताया.

वह भुवन की चुगली कर रही थी. उस ने राशि से कहा, ‘‘राशि अगर कोई खूबसूरत मर्द और औरत किसी काम के लिए मतलब खास तरह के काम के लिए महीनाभर लगातार एकसाथ रहें, ऊपर से मौसम और माहौल भी दोनों ही खुशगवार हों और जोश भर देने वाले तो क्या होगा? रत्तीभर को भी कोई रोकनेटोकने वाला न हो, आजादी हो, मन के भाव उमड़ रहे हों तो जरा सा सोच कर देखो न राशि.’’ ‘‘जाहिर है, दोनों का साथ में खूब मन लगेगा. दोनों एकदूजे के करीब और करीब आते जाएंगे. है न?’’ राशि ने चट जवाब दिया. ‘‘सच राशि,सोचो भुवन और उस की बिंदास सी प्रेमिका…’’ रैना ने खुलासा किया. ‘‘ओह, नहीं, कभी नहीं,’’ राशि ने कानों को हथेली से ढंक लिया. दरअसल, यह सुन कर राशि भीतर तक कांप गई. फिर राशि खुद को संभालती और संतुलित करती हुई बोली, ‘‘रैना, आप को शायद गलतफहमी हुई है.

भुवन एक समर्पित कलाकार हैं. आज तो उन का काम बोलता है और यह बात तभी से लोग कहते आ रहे हैं, जब उन की बतौर आधुनिक कलाकार पहली पेटिंग ‘मौसम की अंगड़ाई.’ आई और उसे लगभग हर चित्र प्रदर्शनी में शामिल किया गया था. जिस ने देखी उस ने ही सराही. भुवन हर कला रसिक का दिल छूने में कामयाब रहा है. इसलिए कुछ लोग बेकार ही जलन भी करते हैं,’’ राशि एक ही सांस में बोल गई. ‘‘राशि भला मुझे किस बात की जलन. मैं न तो चित्र बनाती हूं न मैं कोई नवयुवती हूं. मैं तुम से 10 साल सीनियर हूं. मुझे तो जीवन का कुछ न कुछ अनुभव होगा. तभी तुम्हें आगाह कर रही हूं.’’ सचमुच, रैना की बात में दम था. राशि ने उस से कहा कि स्कूल की छुट्टी के बाद मेरे घर चल कर सब विस्तार से बताना. मैं चाहती हूं कि अब आप सबकुछ बता कर अपनी तसल्ली कर लो. रैना ने हामी भर दी. दोपहर के बाद राशि और रैना साथसाथ चली गईं. राशि ने पूरे रास्ते कोई बात नहीं की. खामोश रही.

राशि के घर आ कर रैना आराम से बैठी. राशि को बैठाया. फिर अपने मोबाइल में एक वीडियो दिखाया. भुवन और एक उसी की हमउम्र दोनों सोफे पर बैठ कर गपशप कर रहे थे. भुवन बातबात पर उस के गाल सहला रहा था. राशि से पूरा वीडियो नहीं देखा गया. उस की मानसिक दशा को भांप कर रैना ने वह वीडियो उसी समय बंद कर दिया. अब रैना ने राशि के कंधे पर हाथ रखा. उस की पीठ सहलाई. फिर रैना ने सब बताया, ‘‘राशि यह युवती लतिका है. यह उस ड्रीम लुक रिजोर्ट मालिक की भतीजी है. यह भुवन को पिछले 3-4 महीने से जानती है. मेरी बहन की बेटी इना ने भी वहां पर अपनी कुछ पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगाई थी. वह भुवन को भी जानती है. मगर उसे भुवन की इस हरकत का पता न था. इसलिए उस ने बदनाम करने के लिए नहीं, आगाह करने के लिए यह वीडियो चुपचाप बना लिया था.

पता है राशि यह लतिका शादीशुदा भी है. इस का पति कारोबारी है. वह दिनरात रुपए कमाने की जुगत में रहता है और यह लतिका बस इधरउधर ही डोलती रहती है. इना ने यह भी बताया कि हर जगह लतिका खुद को अविवाहित कहती है. ‘‘मगर राशि तुम घबराना मत. किसी अजीब सी पत्नी की तरह रोनापीटना मत करना. मैं एक उपाय बताती हूं,’’ कह कर रैना ने एक तरकीब बताई. सुन कर राशि का मन हलका हुआ. उस ने रैना को गले से लगा लिया. सचमुच रैना तो उस का भला ही चाहती है. प्लान के मुताबिक राशि ने सपन को सोशल मीडिया पर मित्र बनाया. सपन ने भी राशि की मित्रता स्वीकार कर ली.

अब राशि को जानना था कि सपन आभासी जीवन के अलावा सचमुच में कैसा है. इस के लिए राशि ने दिनरात मेहनत की. उस ने सपन का सारा कारोबार खोजबीन कर जाना और समझ. दरअसल, सपन खुद भी अपनी कंपनी का एक अवार्ड समारोह आयोजित करता था. अब राशि और रैना ने उस के अवार्ड समारोह की सारी डिटेल निकाली. यह अवार्ड सामाजिक कार्य, सांस्कृतिक कार्य, खेलकूद, आभासी जगत, पर्यावरण आदि के लिए अलगअलग कैटेगरी बना कर दिए जाते थे. उस में कुछ जूरी सदस्य भी होते थे, जिन्हें अलगअलग क्षेत्रों से चुना जाता था.वही सदस्य अवार्ड पाने वालों की सूची जारी करते थे. रैना और राशि ने भुवन का परिचय भी खूब बढ़ाचढ़ा कर अवार्ड का जूरी सदस्य बनने के लिए भेज दिया.

अब तक पूरे 2 महीने निकल गए थे. इस बीच 3 बार भुवन घर आया. मगर राशि ने उसे तनिक भी आभास नहीं होने दिया कि वह उस की बेवफाई के किस्से सुन चुकी है. राशि को भोली समझ कर भुवन भी लतिका के नशे में चूर रहा. एकाध बार राशि को रोना आया पर उस ने खुद को संभाल लिया. 6 साल पहले कोविड की पहली लहर में अपने मातापिता को खो दिया था राशि ने वरना उन के पास चली जाती. अब तो उसे मजबूत बन कर ही रहना था. और कोई विकल्प था ही नहीं. एक अच्छी बात यह हुई थी कि इना से पता लगा लतिका 2 सप्ताह से इटली घूमने गई थी. यह खबर राशि को सुकून देने वाली थी. ‘वहीं इटली में अटक जाना चुड़ैल,’ राशि ने मन ही मन कहा. इसी बीच उधर से भुवन के पास जूरी सदस्य बनने का प्रस्ताव भी आ गया. उसे 1 लाख रुपए तथा रहने की सुविधा दी जा रही थी. भुवन ने भी चट से हामी भर दी.

मगर उस ने एक बार भी सोच कर इतना दिमाग नहीं लगाया कि आखिर उस का नाम यहां तक आया कैसे और उसे अभी तक लतिका के शादीशुदा होने का भी अंदाजा नहीं था. न जाने क्यों भुवन ने लतिका को भी इस अवार्ड समारोह के बारे में नहीं बताया वरना तभी खुलासा हो जाता. ठीक समय पर समारोह आयोजित हुआ. इना भी वहां गई हुई थी. उन का पूरा संस्थान वहां आमंत्रित था. रैना और राशि को वीडियोकौल कर के वह सबकुछ दिखा रही थी. भुवन अकेला बैठा था. उस के पास कुछ देर बाद 2 युवक आ कर बैठ गए. इना ने बताया कि ये भी जूरी सदस्य थे. अब अचानक लतिका और सपन के नाम की घोषणा हुई. दोनों मंच पर आए. भुवन के चेहरे पर हवाइयां उड़ती साफ नजर आ रही थीं. इला सब दिखा रही थी. मंच पर जूरी सदस्य बुलाए गए. पतिपत्नी सपन और लतिका ने अनजान बन कर भुवन का मानसम्मान किया लतिका का अभिनय देखने लायक था. भुवन का चेहरा भी पलपल रंग बदल रहा था.

भुवन अपना जूरी सदस्य का सम्मान ले कर नीचे उतर सीधे बाहर आ गया. अगली सुबह भुवन अचानक घर पर पहुंच चुका था. राशि मन ही मन सब समझ गई थी. उस ने आलिंगन भर कर भुवन का स्वागत किया. दोनों एकदूसरे में खो गए. 1 सप्ताह तक भुवन घर पर रहा. वह जब तक घर पर रहा राशि के लिए खाना बनाता घर की साफसफाई करता. 1 सप्ताह बाद भुवन ने खुल कर कहा, ‘‘राशि, अब अपने शहर में ही नौकरी करना चाहता हूं. काफी रुपए कमा लिए हैं. अब साथसाथ रहने का मन है. तुम से दूर नहीं रहना चाहता अब,’’ कह कर उस ने राशि को चूम लिया.

राशि को उस की आवाज में ईमानदारी साफ दिखाई दे रही थी. वह कलाकार था. वह राशि को ही प्यार करता था. यह सब सुन कर राशि का मन फूल सा खिल उठा. अगर रैना न होती तो शायद भुवन का यह रूप वापस न लौट पाता. रैना ने उस की समय पर मदद कर दी थी. रैना को उस ने यह खुशखबर सुनाई तो रैना ने भी संतोष से भर कर राशि को गले लगा लिया. राशि की गृहस्थी में भयंकर सुनामी आतेआते रह गई. अब सब ठीकठीक था.

Suspense Story

Family Story in Hindi: सासूमां हैं बड़ी कमाल

Family Story in Hindi: अपने मोबाइल पर बात करना बंद कर के समीक्षा मंदमंद मुसकराने लगीं. ‘‘क्या हुआ?’’ उन के पति शिशिर ने पूछा जो काफी समय से उन के फोन बंद करने की प्रतीक्षा कर रहे थे. ‘‘उन लोगों ने अपनी रिया के लिए हां कह दी है.’’ ‘‘अरे वाह, बस यही तो हम सभी सुनना चाह रहे थे. फोन कर के रिया को भी यह खुशखबरी दे दो.’’ ‘‘नो मम्मा. आप ऐसा बिलकुल नहीं करेंगी,’’ उन की छोटी बेटी मिया बोली, ‘‘रिया के आने पर ही उसे बताएंगे. थोड़ा तंग भी करेंगे. प्लीज मम्मा, इतना बड़ा खुशी का मौका है, हमारे घर की पहली शादी है, थोड़ी छेड़छाड़ तो रिया के साथ बनती है.’’ ‘‘ओके, पर उसे ज्यादा परेशान मत करना,’’ घर में हंसीखुशी का वातावरण बन गया. शाम को रिया जब औफिस से घर लौटी तो मिया ने कहा, ‘‘रिया, आज तो बाहर डिनर करेंगे.’’ रिया बोली, ‘‘क्यों भई, आज तो मंडे नाइट है. आज क्यों बाहर जाना है?’’ ‘‘वह इसलिए क्योंकि अब तो तुम हमारे साथ ज्यादा आउटिंग्स नहीं कर पाओगी न.’’

‘‘क्यों भला?’’ रिया ने थोड़ा उलझ कर पूछा. ‘‘मेरा तो औफिस में भी लीन पीरियड शुरू हो गया है, तो इतना बिजी भी नहीं हूं आजकल,’’ वह बोली. ‘‘पर हम तुम्हें अब अपने साथ कहीं ले कर नहीं जा पाएंगे, सो सौरी,’’ मिया ने थोड़ा सा मुंह बनाया. ‘‘क्या बोलती रहती है तू. मम्मी क्या सच में बाहर जाना है?’’ रिया ने कन्फर्म करने के लिए पूछा. मम्मी बोलीं, ‘‘ट्रीट तेरी है, तू बता?’’ रिया और भी ज्यादा कन्फ्यूज हो गई. इतने में शिशिर बोले, ‘‘तू ट्रीट जहां भी देगी, घर या बाहर, हमें मंजूर है.’’ ‘‘अरे पर किस बात की ट्रीट? कोई खुल कर तो बताओ कि क्या ओकेजन है?’’ रिया अब सचमुच कुछ नहीं समझ पा रही थी. बाकी तीनों बड़े लाड़ से उस की ओर देखते हुए मजा ले रहे थे. ‘‘भई घर में नया फैमिली मैंबर एड हुआ है तो ट्रीट तो मस्ट है,’’ मिया बोल उठी. ‘‘न्यू मेंबर? किसी के बेबी हुआ है क्या? और एक मिनट, मैं ट्रीट क्यों दूं इस बात की?’’

इतना सुनते ही बाकी तीनों जनों की हंसी छूट गई. समीक्षा बोलीं, ‘‘नहीं बेटा, वरदान को तुम पसंद आ गई हो. उस के पिता अजय ने हां कर दी है.’’ सब एकसाथ बोलने लगे, कौंग्रैचुलेशंस. रिया के चेहरे पर भी यह सुनते ही मुसकराहट आ गई. वह थैंक्स बोल कर अपना बैग रखने के बहाने अपने रूम में चली गई. रिया और वरदान 1 हफ्ता पहले ही फैमिलीज के साथ मिले थे. 5 फुट 9 इंच लंबा गेहुंए रंग का, सधे नैननक्श वाला 27 वर्षीय सुदर्शन युवक था. वह सौफ्टवेयर इंजीनियर था. रिया 5 फुट 4 इंच की दुबलीपतली, गोरी, थोड़े पतले नैननक्श की 25 वर्षीय लड़की थी. वह भी सौफ्टवेयर इंजीनियर रही थी. अजय फैमिली को खासतौर पर वरदान की मां मालिनी को, उन के समाज में बड़ी इज्जत के साथ देखा जाता था.

वरदान के पिता अजय रिटायर्ड सीएफओ थे और अब सभी मुंबई में रहते थे. वे लोग मुंबई से दिल्ली मालिनी के बिजनैस के सिलसिले में आए थे, पर मकसद वरदान के लिए लड़की देखना भी था. दोनों परिवारों के बीच बात पहले से चल रही थी. दिल्ली में दोनों परिवारों का मिलना हुआ और आननफानन में सब मिल कर वापस मुंबई भी चले गए थे. अब दिल्ली में शिशिर और समीक्षा को उन के फोन का ही इंतजार था. आज मालिनीजी ने फोन कर के हां कह दी तो पूरे परिवार में खुशियां ही खुशियां छा गईं. एक तो यह कि रिया का सही समय रहते रिश्ता पक्ता हो गया था और दूसरे अजय परिवार का समाज में काफी रुतबा था. यह रुतबा इसलिए था क्योंकि मालिनीजी ने अपनी पैतृक कंपनी मेफेयर फार्मास्यूटिकल्स बखूबी संभाली हुई ही नहीं थी बल्कि सिर्फ 55 वर्ष की आयु में ही उन्होने अपनेआप को ऐस्टेब्लिश कर खूब शोहरत भी कमा ली थी.

मेफेयर फार्मास्यूटिकल्स का पूरे देश में नाम था और मालिनीजी अपने मातापिता की इकलौती संतान होने के नाते शुरू से उस के साथ जुड़ी हुई थीं. अब काफी सालों से अकेले ही सबकुछ संभाल रही थीं. वरदान के नानाजी यानी मालिनी के पिताजी ने काफी सालों पहले अपनेआप को बिजनैस से दूर कर लिया था और मालिनी को ही सबकुछ सौंप दिया था. अब उन की बेटी ही उन की कंपनी की सर्वेसर्वा थी. वे मुंबई में मालिनी के घर के पास ही रहते थे. वरदान के पिता अजय ने अपने परिवार के बिजनैस की परंपरा को छोड़ कर कई साल पहले एक अंतर्राष्ट्रीय बैंक जौइन किया था और अब वे सीएफओ रिटायर हो चुके थे. उम्र उन की कोई खास नहीं थी, सिर्फ 60 साल पर वे अब सुकून की जिंदगी जीना चाहते थे. वे मुंबई में रह कर कई समाजसेवी संस्थाओं के साथ जुड़े हुए थे, साथ ही अपने सासससुर की देखरेख भी करते थे.

वरदान भी अपने मातापिता का इकलौता बेटा था तो सभी को उस के विवाह का बहुत चाव था. मुंबई और दिल्ली दोनों जगह धूमधाम से शादी की तैयारी शुरू हो गई. 6 महीने बाद रिया और वरदान विवाह बंधन में बंध गए और रिया विदा हो कर मुंबई आ गई. वैसे तो रिया दिल्ली जैसे आधुनिक शहर में पलीबढ़ी थी, परंतु मुंबई आ कर उसे बहुत ही अच्छा लगा. एक तो अजयजी का बंगला मरीनड्राइव पर सी फेसिंग था. यहां से वह दिनभर समुद्र को न सिर्फ देख बल्कि सुन भी सकती थी. उस ने दिल्ली की जौब से रिजाइन कर दिया था क्योंकि वह थोड़े दिन अपने परिवार को जाननेसमझने के लिए देना चाहती थी. क्योंकि मेफेयर काफी अच्छी चल रही थी तो घर में भी किसी चीज की कमी नहीं थी. अजय की फैमिली बैकग्राउंड भी पैसे वाली थी. घर में आजकल की सारी भौतिक सुखसुविधाएं तो थीं ही, साथ ही ड्राइवर, मेड, माली, कुक, 24 घंटे, बंगले से अटैच्ड आउटहाउस में रहते थे.घर में सब के लिए एक अलगअलग कारें थीं.

मालिनीजी को दफ्तर सुचारु रूप से चलाने के लिए घर में कुछ भरोसेमंद लोग चाहिए थे. इसलिए उन्होंने जो लोग रखे थे, वे काफी सालों से उन के घर में काम कर रहे थे. वे घर की साफसफाई, देखरेख और खानापीना सब संभाल रहे थे. हालांकि रिया के आने से पहले सिर्फ 3 लोग ही घर में रहते थे, फिर भी बंगले में 4 बैडरूम, एक डाइनिंगरूम, एक ड्राइंगरूम, एक गैस्टरूम, मौड्यूलर ओपन किचन, एक मिनी जिम और एक होमथिएटर था. सब कमरों के साथ अटैच्ड बाथरूम थे. बंगले के आगे एक खूबसूरत लौन भी था.

अब तक रिया ने सब को समझना शुरू कर दिया था. जहां एक ओर उस के मन में सब के लिए प्यार एवं इज्जत थी, वहीं मालिनीजी के लिए एक श्रद्धाभाव भी था. इस का कारण स्वयं मालिनी थीं. वह अपनेआप को इतना बिजी रखती थीं कि अन्य पारंपरिक सासों की तरह बुराइयां करने से कोसों दूर थीं और बिजनैस में होने से उन का जनरल नौलेज भी काफी अच्छा था. हर विषय पर किसी के भी साथ बात कर सकती थीं. शादी के 1 हफ्ते बाद जब डिनर पर सब साथ बैठे थे तो मालिनी ने कहा, ‘‘वरदान और रिया के लिए मैं ने और अजय ने हौलिडे बुक किया है. तुम लोग हौलिडे के लिए स्विट्जरलैंड और फ्रांस जा रहे हो. टिक्ट्स और होटल बुक हो गए हैं. वरदान, कल मेरे औफिस फोन कर के मेरी सैक्रेटरी माया से सब डिटेल्स ले लेना.’’ वरदान उठ कर मालिनीजी के गले लग गया, ‘‘थैंक्स सो मच मौम. ‘‘माय प्लैजर ऐंटायरली बेटा.’’

मालिनी ने प्यार से उस का हाथ पकड़ कर कहा. रिया ने भी शरमाते हुए सभी को थैंक्स बोला. हौलिडे से आने के बाद रिया ने भी जौब जौइन कर ली. वह सुबह 8 बजे जाती थी और शाम पांच बजे तक घर आ जाती थी. वरदान भी 6 बजे तक आ जाता था तो दोनों साथ में बैठकर चाय पीते थे. मालिनीजी अपने औफिस में ही चाय पी लेती थीं. अजय ज्यादातर 7 बजे तक लौट आते थे. सब से आखिर में मालिनी ही 8 बजे तक घर में घुसती थीं. फिर सब खाने पर 9 बजे इकट्ठा होते थे. पहलेपहल तो रिया को बड़ा अजीब लगा क्योंकि उस ने सोचा था कि वह घर पर अपनी सास के साथ बातें किया करेगी पर मालिनी का तो पूरा दिन अपने औफिस में निकल जाता था.

वे सिर्फ लंच के लिए घर आती थीं और वह भी 1-2 घंटों के लिए. इस समय भी उन की काल्स चलती रहती थी. लंच करने के बाद थोड़ी देर अपने रूम में आराम करती थीं और फिर औफिस चली जातीं. रिया ने भी इसे अब ऐक्सैप्ट कर लिया था. एक दिन वरदान बोला, ‘‘मौम, मेरे फ्रैंड्स रिया और मुझे कहीं बाहर बुला रहे हैं तो शायद सैटरडे या संडे का प्रोग्रैम बनेगा.’’ मालिनी ने रिया से पूछा, ‘‘रिया बेटा क्या तुम वरदान के सभी फ्रैंड्स को पहचानती हो?’’ रिया बोली, ‘‘मौम, शादी में ही उन से मुलाकात हुई थी. अभी तो सिर्फ नाम से जानती हूं.’’ ‘‘यह बढि़या मौका है,’’ मालिनी ने कहा तो दोनों जने उन का मुंह देखने लगे.’’ अरे भई ऐसे क्या देख रहे हो? व्हाइ डौंट यू काल देम टु नौट जस्ट जैज बाय द बे? बहुत अच्छा रैस्टोरैंट है और व्यू भी बढि़या है. यंगस्टर्स वाली वाइब्स भी हैं. तुम लोगों को अच्छा लगेगा.’’ रिया मुंबई के बारे में कुछ खास तो नहीं जानती थी, इसलिए कुछ नहीं बोली. मगर वरदान काफी खुश हो गया, ‘‘यू आर ए जीनियस मौम. मैं आज ही चला जाता हूं वहां और देखता हूं. अगर कोई प्राइवेट एरिया है तो उसे बुक कर लूंगा.’’ ‘‘अरे माया को पता है न, अभी लास्ट वीक ही हमारे औफिस के यंगस्टर्स की पार्टी वहां हुई थी. लास्ट टाइम तो मैं भी गई थी थोड़ी देर के लिए तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगा था. माया सारे अरेंजमैंट्स कर देगी. तुम स्ट्रैस मत लो.

रिया को ले जा कर एक बार फूड आइटम्स टैस्ट कर लेना.’’ ‘‘ग्रेट मौम, कल शाम को ही हम लोग चले जाएंगे. आप और डैड भी आओगे न इस गैटटुगैदर में?’’ ‘‘नहीं बेटा, मेरी तुम्हारे डैडी के साथ सूप और सलाद है, सो यू गाइज ऐंजौय.’’ वीकैंड की पार्टी में वरदान के सारे फ्रैंड्स अपनी फैमिली के साथ आए थे. रिया को सब के साथ मिल कर बहुत मजा आ रहा था. इतने में अंश जो वरदान का स्कूल फ्रैंड था, बोला, ‘‘यार वरदान, यह तेरा आइडिया तो नहीं हो सकता.

आंटी ने ही सजैस्ट किया होगा यह वैन्यू, आई एम प्रैटी श्योर.’’ वरदान भी हंस कर बोला, ‘‘ऐब्सोल्यूट्ली राइट ब्रो. शी है? ए नैक फार सच थिंग्स.’’ वीर और यश भी जो वरदान के साथ स्कूल में थे, मालिनी को ही क्रैडिट देने लगे. ‘‘वाह, आंटी का टेस्ट लाजवाब है. लुक एट द प्लेस एंड द मेन्यू.’’ रिया सभी कुछ सुन रही थी. इतने में इन तीनों की वाइफ्स भी बोलीं, ‘‘सुपर्ब अरेंजमैंट किया है आंटी ने. एक्चुअली वी आर मिसिंग हर. हम लोग इतनी बढि़या पार्टी एंजौय कर रहे हैं, आल थैंक्स टु हर. वरदान शी शुड हैव कम.’’ वरदान ने कहा, ‘‘अरे नहीं, वीकैंड पर तो मौम और डैड के अलग ही प्रोग्राम्स रहते हैं, बट आई विल कन्वे कि आप लोग उन्हें कितना मिस कर रहे हैं.’’ रिया को अब समझ में आ रहा था कि उस की सास सभी के बीच कितनी पौपुलर हैं. कुछ दिन बाद रिया के मम्मीडैडी को शिरडी जाना था तो उन्होंने सोचा कि मुंबई रिया के पास थोड़े दिन रुकते हुए फिर वहां चले जाएंगे. समीक्षा ने जब रिया को यह बताने के लिए काल की तो वह तो खुशी से उछल पड़ी, ‘‘अरे वाह मम्मी, क्या प्लान बनाया है आप ने.

आप को यहां आ कर बहुत अच्छा लगेगा और आप को मेरे पास काम से कम 10 दिन तो रहना होगा.’’ शिशिर ने फोन पर रिया से कहा, ‘‘नहीं बेटा इतने दिन हम लोग क्या करेंगे?’’ रिया बोली, ‘‘मैं आप लोगों की एक नहीं सुनूंगी, शादी के बाद यह पहली बार है कि आप मुंबई आ रहे हैं तो बस यहीं आ कर बाकी के प्लान बनाइएगा.’’ रिया के कालेज की भी छुट्टियां चल रही थीं तो वह भी आने वाली थी. रिया ने डाइनिंगटेबल पर रात को सब को यह न्यूज दी. सभी लोग सुन कर बड़े खुश हुए. अजय ने कहा, ‘‘मैं वरदान के नानानानी को भी उन दिनों यहीं बुला लूंगा. वे भी रिया के पेरैंट्स के साथ रहेंगे तो उन को भी अच्छा लगेगा.’’ मालिनी ने पूछा, ‘‘रिया बेटा, वे लोग कहीं और भी घूमना प्लान कर रहे हैं?’’ ‘‘जी मौम, मैं ने उन से कहा है कि जो भी प्लान बनाएं, यहां आ कर बनाएं. वैसे तो उन्हें सिर्फ शिरडी ही जाना है.’’ ‘‘ओके तो उन्हें आने दो, फिर बात करते हैं.’’ जल्द ही समीक्षा, शिशिर और मिया मुंबई रिया के पास आ गए.

उन सभी को मुंबई में रिया का घर बहुत पसंद आया. वीडियो काल पर पूरे घर का आइडिया नहीं हो पाया था. अभी तक तो वे लोगों से यही सुन रहे थे कि मुंबई में छोटेछोटे अपार्टमैंट होते हैं, मगर अजयजी का घर मालिनी की चौइस का था तो थोड़ा उनके रुतबे के हिसाब से था. सजावट ऐसी कि देखने वालों का मन लुभा ले. उन के आने पर मालिनी औफिस से जल्दी आने लगीं. रिया ने कुछ दिन की लीव के लिए अप्लाई किया था तो वह घर पर ही थी नहीं तो सभी लोग घर पर बोर हो जाते. वरदान के नानानानी के आने से भी खूब रौनक हो गई थी. मिया ने तो रिया के कान में कहा, ‘‘आई विश कि मेरी शादी भी मुंबई की ऐसी ही शानशौकत वाली फैमिली में हो.’’ रिया ने प्यार से उस का गाल थपथपा दिया. अजय भी जब से रिया के पेरैंट्स आए थे, अपना ज्यादातर समय घर पर बिताने लगे थे. उन्होंने कुछ एक प्रोजैक्ट्स पर जाना भी पोस्टपौन कर दिया था. 2 दिन बाद सभी शाम को चाय पी रहे थे तो मालिनी ने कहा, ‘‘रिया कह रही थी कि आप लोग शिरडी जाना चाहते हैं, वहां से आने के बाद आप को महाराष्ट्र की कुछ और जगहें भी देखनी चाहिए जो आसपास ही हैं.

माथेरान यहां का एक बहुत खूबसूरत हिल स्टेशन है, महाबलेश्वर भी छोटा सा हिल स्टेशन है और अलीबाग एक बीच है, क्या आप इंटरैस्टेड हैं?’’ समीक्षा बोलीं, ‘‘हमें तो उन के बारे में कुछ आइडिया नहीं है.’’ पर शिशिर बोले’’, अरे नहीं है तो क्या हुआ? हम लोग घूम तो सकते हैं, क्यों वरदान बेटा?’’ वरदान ने भी हामी भर दी. मालिनी बोलीं, ‘‘अगर आप इन में से कहीं जाना चाहें तो मैं आप के जाने का सारा इंतजाम कर दूंगी. आप मुझे बस अपनी डेट्स दे दीजिए.’’ शिशिर ने कहा, ‘‘हम माथेरान देख सकते हैं, अगर वीकैंड पर निकलेंगे तो बच्चों के साथ जा सकते हैं और 2 दिन बाद वापस आ जाएंगे.

मगर हमें आप सभी के साथ जाने में ज्यादा मजा आएगा. नानानानी भी साथ चलें तो बढि़या रहेगा. वापस आने के बाद भी हम शिरडी जा सकते हैं.’’ किसी को इस में भला क्या ऐतराज हो सकता था. वरदान बोला, ‘‘रिया तो लीव पर ही है. फ्राइडे को मैं फ्री हूं तो हम सुबह ही निकल सकते हैं और मंडे मौर्निंग वापस आ सकते हैं. उस दिन मेरा वर्क फ्रौम होम है. माथेरान में अच्छा वीकैंड स्पैंड हो जाएगा.’’ मालिनी फौरन अपनी मैपबुक ले आईं और इंटरनैट पर माथेरान, महाबलेश्वर, अलीबाग आदि के रिजोर्ट्स, साइटसीइंग स्पौट्स वगैरह सभी को दिखाने लगीं. सब ने फाइनली माथेरान जाना ही डिसाइड किया. मालिनी ने उसी समय एक अच्छे रिजोर्ट को काल किया. टैरिफ वगैरह पता करने के बाद उन्होंने उसी समय माया को भी काल की व माथेरान ट्रिप और्गेनाइज करने के लिए बोल दिया. रिजोर्ट की डिटेल्स भी उसे मेल पर भेज दीं.

रिया तो खुशी से उछलने लगी, ‘‘अरे वाह, द ग्रेट इंडियन फैमिली आउटिंग, बहुत मजा आएगा.’’ मालिनीजी ने एक मर्सिडीज बैंज की बस रास्ते के लिए बुक करवा दी थी. उन्हें बस ने नेरल में छोड़ दिया जहां से माथेरान के लिए शटल ट्रेन थी और ज्यादा एडवैंचर्स लोगों के लिए खच्चर भी थे. सभी को माथेरान में बहुत मजा आया. इंतजाम इतना बढि़या था कि सब ने बहुत ऐंजौय किया. मुंबई लौट कर एक दिन शिशिर ने अचानक कुछ पौलिटिक्स की बात छेड़ दी. मालिनी का पौलिटिक्स में बहुत इंटरैस्ट था तो वे दोनों अपनी आइडियोलौजी, फैवरिट पौलिटिकल पार्टी, फैवरिट पौलिटिकल लीडर आदि बड़े जोरोंशोरों से डिस्कस करने लगे.

रिया, मिया और समीक्षा भी बातों में हिस्सा ले रहे थे. मगर उन्हें इन दोनों की बातों में ज्यादा मजा आ रहा था. तभी मालिनी के पास एक फोन आया. मालिनी ने कहा,‘‘ओके मैं अभी पावर पौइंट बना कर भेज देती हूं. तुम कल की मीटिंग में उन पौइंट्स को रैफर कर लेना. पावर पौइंट 15 मिनट में रैडी हो जाएगा क्योंकि हम लोग आलरैडी एक प्रेजैंटेशन तो कर ही चुके हैं. यह हमारी पौलिसीज के बारे में एक इंट्रोडक्श नहीं है. मैं अभी भेजती हूं. डौंट वरी.’’ फिर उन्होंने काल खत्म कर के सब से कहा, ‘‘ऐक्सक्यूजमी, मुझे थोड़ा सा काम आ गया है. मैं अभी थोड़ी देर में आती हूं.’’

लगभग 20 मिनट बाद मालिनी ने उन सभी को फिर से जौइन कर लिया. शिशिर और समीक्षा उन की चुस्तीफुरती और नौलेज देख कर बहुत ज्यादा इंप्रैस्ड थे. उन्होंने मालिनी का टेक सेवी रूप भी देख लिया था. वे बहुत खुश थे कि रिया को अपनी सास से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. कुछ दिन बाद रिया के मम्मीपापा और मिया शिरडी चले गए और वहीं से वापस दिल्ली. उन्हें रिया की वैभवशाली ससुराल देख कर तो बहुत सुख मिला ही, परंतु समीक्षा और शिशिर ने मालिनी की बहुत ज्यादा तारीफ की. शिशिरजी तो खासतौर से बोले, ‘‘तुझ से ज्यादा स्मार्ट तो तेरी सास हैं.

सबकुछ कितना फटाफट अरेंज कर दिया. कितनी अच्छी प्लानिंग करती हैं,सबका कितना ध्यान रखती हैं. ‘‘यू आर वैरी लकी बेटा. तू भी सब का खूब अच्छे से ध्यान रखना.’’ यह सब सुन कर रिया को अच्छा तो लगा, मगर उस के मन में एक कांटा भी चुभ गया. वह चाहती थी कि जब मम्मीपापा यहां से जाएं तो उस की भी खूब तारीफ करें, मगर मम्मीपापा ने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया उलटे मालिनीजी और अजयजी को बारबार धन्यवाद दे कर गए. रिया ने मम्मी से फोन पर बात की तो शिकायत भी की, ‘‘क्या मम्मी, आप ने तो मेरी एक बार भी तारीफ नहीं की कि मैं घर कितना अच्छे से चलाती हूं और सबकुछ कैसे हैंडल करती हूं.’’ समीक्षाजी हंस कर बोलीं, ‘‘अरे जब तू इतनी अच्छी सास की ट्रेनिंग में काम करेगी तो सब बढि़या ही करेगी.’’ ‘‘हां मम्मी, पर आप ने मुझे क्रैडिट तो दिया ही नहीं.’’ समीक्षाजी थोड़ा गंभीर हो कर बोलीं, ‘‘बेटा, घर का काम करने में कभी क्रैडिट नहीं दिया जाता.

घर में काम अपनों के लिए किया जाता है तो बिना किसी ऐक्सपैक्टेशन के. तुम तो मेरी समझदार बिटिया हो. तुम्हें क्या समझऊं,’’ और फिर थोड़ी सी और इधरउधर की बातें कर के उन्होंने फोन रख दिया. माथेरान के ट्रिप के बाद से रिया मालिनीजी से अपनी तुलना करने लगी. उसे अब लगने लगा कि मालिनी का व्यक्तित्व सब पर हावी हो जाने वाला था. मगर फिर कुछ न कुछ ऐसा होता कि वह अपनी सास की दाद दिए बिना न रह पाती. थोड़े दिनों से अब रिया अपनी सास को अपना कंपीटीटर समझने लगी थी. इस बीच एक घटना और हुई. कुछ ही दिनों में शादी के बाद वरदान का पहला जन्मदिन आ रहा था तो रिया उस के लिए कुछ सरप्राइज प्लान करना चाहती थी. उसने सोचा कि इस बार वह सारी तैयारी कर के घर में बाकी सब को बता देगी. उस ने अपने स्तर पर भागदौड़ भी शुरू कर दी. कुछ रैस्टोरैंट्स के पैकेज पता किए. खानेपीने के आइटम्स भी चैक कर लीं और 2-3 जगहों को शौर्टलिस्ट भी कर लिया. वह सोच रही थी कि रात को खाने के बाद मालिनी और अजय से बात करेगी. खाना खाने के बाद वरदान तो अपने रूम में चला गया. यह उस का रोज का रूटीन था. थोड़ी देर अपने कमरे में बैठ कर वह टीवी देखता था.

रिया को यही मौका उपयुक्त लगा. रिया ने मालिनी से कहा, ‘‘मौम, मैं वरदान की सरप्राइज बर्थडे पार्टी प्लान करना सोच रही हूं.’’ मालिनी बोलीं, ‘‘अरे हां, मुझे भी तुम से इस बारे में बात करनी थी. मैं ने भी बिलकुल ऐसा ही सोचा है. इन फैक्ट, मैं ने नैट पर कुछ इनफौरमेशन भी सर्च की है और 3-4 प्रीमियम रैस्टोरैंट्स से बात भी की है. उन में से द ब्लूस्टार का मेन्यू और इंटीरियर मुझे काफी पसंद आया है. तुम मुझे गैस्ट लिस्ट दे दो तो उन लोगों से प्राइसेज वगैरह की बात भी फिक्स कर लेते हैं. रिया कुछ मायूस हो कर बोली, ‘‘मगर मौम, मैं ने भी कुछ रैस्टोरैंट शौर्टलिस्ट किए हैं.’’ मालिनी ने कहा, ‘‘कौन से बेटा?’’ रिया ने जब नाम बताए तो मालिनी बोलीं, ‘‘यह सब रैग्युलर रैस्टोरैंट्स हैं.

इन के बैंक्वेट हाल काफी छोटे होते हैं और फैसिलिटीज भी कुछ खास नहीं हैं. ब्लूस्टार कौरपोरेट इवेंट्स को भी कैटर करता है और उन के बैंक्वेट हाल बहुत ही बढि़या हैं. उन का मेन्यू भी फाइवस्टार है, सो लैट्स फाइनालाइज्ड. तुम कल औफिस आ जाना और माया से मिल कर सब कन्फर्म कर देना. मैं क्लाइंट से मिलने बांद्रा जाऊंगी तो तुम्हारे साथ नहीं आ पाऊंगी. तुम ने मेरी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ली है बेटा. थैंक्स सो मच.’’ अजय ने भी कहा, ‘‘तुम दोनों सासबहू बिलकुल एक सा सोचते हो,’’ यह कह कर वे दोनों तो न्यूज देखने लगे और रिया थोड़े सोबर मूड में अपने रूम में चली गई. अगले हफ्ते वरदान की पार्टी खूब धूमधाम से हुई और नैचुरली क्रैडिट एक बार फिर मालिनी को दिया. रिया ऊपर से तो खुश दिखने की कोशिश कर रही थी पर उसे काफी बुरा लगा था.

इस बात का कि उस के एक भी डिसीजन को मालिनी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी. उसे लगा कि मालिनी उसे जानबूझ कर नीचा दिखाने में लगी हुई थीं. धीरेधीरे रिया मालिनी के हर डिसीजन का विरोध करने लगी. उसे लगता कि मालिनी खुद क्रैडिट लेने के लिए उस के हर डिसीजन को नकार देती हैं, जबकि असलियत में मालिनी अपने कौंटैक्ट्स और दूरदर्शिता की वजह से सभी काम चुटकियों में कर दिया करती थीं. एक तो वे सालों से ये सब करती आ रही थीं और दूसरे सब को उन के लिए निर्णयों पर कोई एतराज भी नहीं था. ऐसे में वे यह सोच भी नहीं सकती थीं कि रिया को उन्हें ले कर कुछ गलतफहमी हो सकती है.

उधर रिया को लगने लगा था कि उस की सास जबरदस्ती अपने व्यूज सब पर थोपती हैं. उस ने ये सब बातें अपने अहं पर ले ली थीं. रिया को मालिनी के इतने ऐक्टिव स्वरूप को देख कर प्रौब्लम होने लगी. अब वह पहले की तरह उन की तारीफ नहीं करती थी व अपने डिसीजंस में उन्हें शामिल नहीं करती थी. उस ने अपनी बातें भी उन से शेयर करना बंद कर दी थीं. एक बार रिया को उस के कजिंस मिलने आने वाले थे, तो उस ने उन सभी को डिनर के लिए उस क्लब में बुला लिया जहां के वह और वरदान मैंबर थे.

मालिनी ने कहा भी कि उन्हें घर पर भी बुलाएं, मगर रिया ने कहा कि वे सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे तो डिनर पर ही सब का मिलना ठीक रहता. वह चाहती ही नहीं थी कि उस के रिश्तेदार मालिनी से मिलें. अब वह घर में भी ज़्यादा टाइम मालिनी से बात नहीं करती थी, सिर्फ मतलब की बात कर के और थोड़ा सा हंसबोल कर अपना काम करने लगती थी. वरदान कुछ समय से रिया में मालिनी के प्रति बदलाव देख तो रहा था मगर चुप था, यह सोच कर कि शायद मौम की किसी बात से उसे बुरा लगा है. पर जब उस ने देखा कि रिया हर बात अपने ढंग से करना चाहती तो उसे असल मुद्दा समझ आया. एक दिन वरदान रिया से बोला, ‘‘रिया, तुम्हें मौम से कोई शिकायत है क्या?’’ रिया बोली, ‘‘तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’’ ‘‘बहुत दिनों से तुम्हें खफाखफा सा देख रहा हूं.

बस इसलिए. पहले तो तुम अपनी सास की फैन हुआ करती थीं लेकिन अब उन से थोड़ा सा कटने लगी हो. मौम तो बिजी रहती हैं, इसलिए शायद नोटिस नहीं करतीं, मगर मैं ने कर लिया है. अगर कुछ प्रौब्लम है तो तुम मुझे बता सकती हो.’’ रिया बोली, ‘‘वरदान, मैं भी इस घर की मैंबर हूं तो मैं भी कुछ डिसीजंस लेना चाहती हूं. लेकिन मौम तो…’’ इतना कह कर वह रुक गई, ‘‘छोड़ो तुम नहीं समझगे,’’ कह कर रिया चली गई. वरदान मन में मुसकराने लगा कि तो यह प्रौब्लम है मैडम. कोई बात नहीं, मैं तुम्हारी गलतफहमी दूर कर के ही रहूंगा. अगले दिन डिनरटेबल पर वरदान ने मौमडैड व रिया से कहा, ‘‘मैं आप सभी से कुछ बात करना चाहता हूं. मुझे औफिस की तरफ से प्रमोशन मिल रहा है.’’ सभी लोग यह सुन कर बड़े खुश हुए. फिर वरदान आगे बोला,’’ मेरा औफिस भी बदल गया है तो मुझे पवई जाना पड़ेगा, जोकि यहां से काफी दूर है. ट्रैवल टाइम कम करने के लिए मैं सोच रहा हूं कि पवई में ही रिया के साथ शिफ्ट हो जाऊं.

औफिस की तरफ से घर भी मिल रहा है.’’ रिया उस की बात सुन कर चौंक गई क्योंकि वरदान ने इस चीज का जिक्र आज पहली बार किया था. मालिनी और अजय यह बात सुन कर खुश हो गए. अजय बोले, ‘‘बेटा मैं तो यही सोच रहा था कि तू रोज इतना ट्रैवल कैसे करेगा. वैरी नाइस डिसीजन. हम आते रहेंगे और तुम दोनों भी यहां आते रहना.’’ अगले महीने ही वरदान और रिया पवई के एक अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गए. यह अपार्टमैंट एक 30 मंजिल की बिल्डिंग में था और इस में सभी मौडर्न ऐमैनिटीज थीं. रिया बहुत खुश थी कि अब वह इंडिपैंडैंटली सारा काम करेगी. पर वह कहते हैं न जा के पैर न फटी बिवाई.

वह क्या जाने पीर पराई. रिया और वरदान वीकैंड पर शिफ्ट हुए तो वरदान बोला, ‘‘रिया चलो अपने घर के लिए थोड़ी बहुत शौपिंग कर लेते हैं. फर्नीचर शौप्स पर जा कर जो चाहिए वह फाइनल कर लेना और किचन वगैरह भी सैट कर लो.’’ रिया खुशीखुशी उस के साथ जा कर दोनों की पसंद का सामान बुक कर आई और कुछ ले भी आई. अपना फ्लैट बहुत सुंदर तरीके से सजा लिया. मंडे को दोनों को औफिस जाना था तो रिया जल्दी उठी और उस ने दोनों के लिए ब्रेकफास्ट और लंच बनाया और पैक किया. फिर दोनों अपनीअपनी जौब पर निकल गए. रोज की तरह वे लोग लगभग एक समय पर ही वापस आए.

रिया को अब बिलकुल फुरसत नहीं थी. उस ने फटाफट चाय खत्म कर के रात का खाना बना दिया. लगभग 1 महीने तक यही क्रम चलता रहा.वह महीना तो घर सैट करते ही निकल गया. दोनों अपने इंडिपैंडैंस से बहुत खुश थे. अजय और मालिनी भी वीकैंड पर उन के पास आ जाते थे. फ्लैट 2 बैडरूम का था इसलिए किसी को प्रौब्लम भी नहीं होती थी. दूसरे महीने भी रूटीन वाली जिंदगी चल रही थी, पर अब रिया को समझ में आ रहा था कि अकेले रह कर डिसीजन लेना और पूरा घर संभालना कितना मुश्किल होता है. उन के पास पार्टटाइम हाउस हैल्प थी क्योंकि दोनों ही शाम तक घर पर नहीं होते थे. हाउस हैल्प आ कर घर की साफसफाई सुबह और शाम कर दिया करती थी.

बरतन और कपड़े धोना भी उसी के जिम्मे था. हां खाना जरूर रिया बनाती थी. पर यहां न कोई उस को कुछ बताने वाला था, न टोकने वाला और न ही लाड़ से हाथ में चाय पकड़ाने वाला. जब मेड छुट्टी ले लेती थी तो घर का काम बढ़ जाता था, पर उस समय वरदान सारा काम बांट लेता था. फिर भी रिया को अपनी यह इंडिपैंडैंस चुभने लगी थी. यहां उसे सजैशन देने वाला, काम कराने वाला या नियमित रूप से समझने वाला कोई न था. वरदान ने उसे पूरी तरह से स्वतंत्रता दी हुई थी, वह रिया के हर फैसले को मान लेता था, फिर वह बाहर कहीं जाने का हो, घर का सामान खरीदने का या घर में पैसे खर्च करने का. वैसे भी वरदान सीधासादा लड़का था तो उस की फालतू की बहस में कोई रुचि नहीं थी. वह साल तो ऐसे ही बीत गया.

रिया को मरीन ड्राइव का अपना घर याद आने लगा था, जहां पर अजय और मालिनी उस की हर छोटी बात पर भी काफी सलाह और सुझव दे दिया करते थे और मदद कर दिया करते थे. साथ ही घर में काम करने वाले इतने लोग थे कि रिया के ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं आई थी. वह सिर्फ औफिस आतीजाती थी. बाकी के पचड़ों से काफी दूर थी. एक बार वरदान को 1 हफ्ते के लिए बैंगलुरु जाना था. वह रिया से बोला, ‘‘रिया, तुम अकेले नहीं रहना चाहती हो तो मौमडैड के पास चली जाना.’’ रिया बोली, ‘‘देखूंगी.’’ रिया को मरीन ड्राइव नहीं जाना था तो वह नहीं गई. हां यह बात अलग है कि 3 दिन अकेले रह कर, अपने लिए लंच और डिनर बना कर वह काफी उकता गई. मालिनी और अजय से रोज उस की बात हो रही थी. उन्होंने 1-2 बार उसे घर आने के लिए भी कहा पर उस ने काम का बहाना बना कर मना कर दिया. वरदान को गए हुए 3 दिन ही हुए थे और रिया को अपनी यह इंडिपैंडैंट लाइफ बिलकुल नहीं सुहा रही थी.

उस के पास चौइस थी कि या तो मैगी बना कर खा ले या फिर अपने सासससुर के घर जा कर उन के साथ बैठ कर प्रेमपूर्ण वातावरण में घर का बना गरम खाना खाए. उस ने मालिनी को फोन किया और कहा, ‘‘मौम, मैं बाकी के 2 दिन घर से ही औफिस जाऊंगी. मैं अभी निकल रही हूं.’’ मालिनी ने कहा, ‘‘मैं इसी साइड हूं बेटा. मीटिंग के लिए आई थी, तुम्हारे घर आने वाली थी. तुम अपना बैग रैडी कर लो, मैं तुम्हें ले कर घर चली जाऊंगी.’’ रिया यह बात सुन कर बहुत खुश हो गई. इस तरह से उस का ड्राइव कर के जाना भी बच गया. जब वरदान मंडे को बैंगलुरु से वापस आया, तो सीधा मरीन ड्राइव ही आया और शाम को रिया को ले कर पवई वापस जाने की बात करने लगा. रिया शाम को जब औफिस से आई तो वरदान को मिल कर खुश हो गई. डिनर के बाद वरदान बोला, ‘‘चलो रिया घर चलें.’’

सभी ने नोटिस किया कि वरदान के इतना बोलते ही रिया का मुंह इतना सा हो गया. वरदान देख रहा था कि यहां पर रिया कितनी खिलीखिली है और मालिनी से बिलकुल भी नाराज नहीं थी बल्कि शाम का खाना तो उस ने मौम के साथ में लगवाया था. यह देख कर वह मन ही मन मुसकरा उठा था. रिया बोली, ‘‘वरदान, आज यहीं रुक जाओ. मैं ने अपनी पैकिंग भी नहीं की है. कल सुबह हम लोग औफिस के लिए निकलेंगे और वहां से घर चले जाएंगे.’’ वरदान बोला, ‘‘जैसे तुम्हारी मरजी.’’ डिनर के बाद वरदान ने सब को गिफ्ट्स दिए और उस के बाद सब अपनेअपने रूम में चले गए. रूम में आते ही रिया बोली, ‘‘वरदान, मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’ ‘‘क्या हुआ रिया? क्या मौम ने तुम से कुछ कहा? नहींनहीं तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो?’’ वह बोला, ‘‘अरे बाबा.

मैं तुम्हारी टांग खींच रहा था, बताओ क्या बात है?’’ रिया बोली, ‘‘वरदान, मैं सोचती थी कि इंडिपैंडैंट रह कर मैं अपने डिसीजंस लूंगी और अपनी मरजी से घर चलाऊंगी, मगर तुम्हारे साथ उस फ्लैट में रह कर मुझे समझ आया कि मैं तो वहां एकदम अकेली हो गई हूं. मौमडैड की सलाह तो हमारे साथ है, मगर हर समय तो वे लोग वहां नहीं होते हैं.’’ वरदान बोला, ‘‘क्या बात कर रही हो रिया? घर पर भी वे लोग हमेशा कहां होते हैं? तुम ने तो देखा है, दोनों अपनी लाइफ में बिजी हैं.’’ रिया ने कहा, ‘‘मेरा वह मतलब नहीं था.

उन के साथ रहते हुए प्रौब्लम्स भी प्रौब्लम्स नहीं लगती हैं. वहां मैं इंडिपैंडैंट जरूर हूं मगर मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि मैं अकेली हूं, जबकि मौमडैड तो रोज ही मुझ से बात करते हैं. पर यहां रह कर ऐसा लगता है कि मैं उन की छत्रछाया में हूं. तुम्हारे जाने के 3 दिन बाद तक मैं ने बहुत सोचा कि मैं किस तरह की लाइफ चाहूंगी. एक वह जिस में कि मौम और डैड हक से इंटरफेयर कर के हमारे लिए निर्णय लें या दूसरी वह जिस में कि सारा भार हम पर हो. मुझे लगा कि यह मौम और डैड की इंटरफेरैंस नहीं बल्कि उन का प्यार है और वे ज्यादातर सही होते हैं. वरदान, क्या हम यहां रह कर अपना काम नहीं कर सकते? क्या हमारा पवई वापस जाना जरूरी है?’’ वरदान बोला, ‘‘मेरा औफिस का कंयूट टाइम बहुत ज्यादा हो जाएगा और तुम यह सब इसलिए कह रही हो क्योंकि यहां पर सुखसुविधाएं ज्यादा हैं. वहां सिर्फ एक मेड है, है न यही बात? पर हम अभी और सर्वैंट अफोर्ड नहीं कर सकते.

मैं चाहता हूं कि हम दोनों मौम और डैड पर डिपैंडैंट न हों बल्कि उन की तरह अपनी अलग आईडैंटिटी बनाएं. इस के लिए हमें अपनी सेविंग्स करनी होगी. मैं मौम से फाइनैंशियल हैल्प ले कर अपना घर नहीं चलाना चाहता.’’ रिया बोली, ‘‘वरदान, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. ये सिर्फ लग्जरीज होती हैं पर जो मैं मिस कर रही थी वह मौम और डैड का प्यार था. वहां शाम को और रात को मेरे साथ गप्पें मारने के लिए कोई भी नहीं होता था.’’ ‘‘तो रिया, यह भी तो तुम्हारा स्वार्थ ही है. बात करने के लिए कोई नहीं है तो तुम्हें वापस आना है,’’ वरदान ने कहा. रिया कहने लगी, ‘‘नहीं वरदान, मैं सचमुच में समझ गई हूं कि इस परिवार में रह कर ही मैं पनप सकती हूं और आगे बढ़ सकती हूं.

अकेले तुम्हारे साथ रह कर नहीं.’’ वरदान फिर बोला, ‘‘रिया, तुम सिर्फ भौतिक सुखसुविधाओं को ही देख रही हो, अगर मौम ने अपनी मरजी से कुछ भी किया तो तुम्हें फिर वह चुभेगा. हो सकता है कि तुम दोनों के अहं में भी टकराव हो. मौम तो शुरू से ही सबकुछ खुद करती आई हैं और अब भी उन्हें दूसरों को हैल्प करना अच्छा लगता है. तुम इसे अपने ईगो पर ले लेती हो. मौम तुम से प्रतियोगिता नहीं करती हैं. ‘‘मगर तुम्हें उन का कुछ भी करना नागवार गुजरता है. तुम अपना घर संभालो वही बेहतर होगा.’’ रिया रोंआसी हो कर बोली, ‘‘तुम क्या मुझे इतना खराब समझते हो वरदान? मेरी समझ में आ गया है कि मैं मौम के साथ रह कर, उन के साथ मिल कर ही सही निर्णय लेना सीख सकती हूं.

वे हमेशा मुझे प्रोत्साहित ही करती हैं. अब तुम मुझे गलत समझ रहे हो.’’ वरदान ने आखिरी चौका मारा, ‘‘सोच लो रिया, मुझे अभी तो औफिस की तरफ से घर मिला है, अगर मैं ने यह छोड़ दिया तो यह घर किसी और को दे दिया जाएगा, फिर मुझे दूसरा किराए का घर पवई में लेना पड़ेगा.’’ रिया मुसकराते हुए बोली, ‘‘नहीं बाबा, उस की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’ वरदान यह सुन कर मुसकरा उठा. यही तो वह कब से सुनना चाह रहा था. वरदान को पता था कि रिया दिल की बहुत साफ है, बस थोड़ा सा हर्टफील कर रही थी. बात आगे न बढ़े, इसलिए उस ने अलग रहने की सोची थी. उस की प्रमोशन ने बात आसान कर दी थी. औफिस की तरफ से जब घर का औफर आया तो उस ने अलग रहने का निर्णय ले लिया.

उस की सूझबूझ ने बात बिगड़ने से पहले ही संभाल ली. रिया को आखिरकार समझ आ ही गया कि मालिनी एक आत्मनिर्भर महिला हैं, मगर उस के कंपीटिशन में नहीं. अगले दिन सुबह मालिनी और अजय को वरदान और रिया ने यह खुशखबरी दी कि वे अब साथ में ही रहेंगे, हमेशाहमेशा के लिए. मालिनी ने उठ कर अपने दोनों बच्चों का माथा चूम लिया. अजयजी भी खुश हो कर जोरजोर से हंसने लगे. आखिरकार वे दोनों भी अपने बच्चों को मिस तो करते ही थे. वरदान रिया को देख कर मुसकरा रहा था. भोली सी उस की रिया थोड़ी देर को रास्ता तो जरूर भटक गई थी, मगर वरदान अपनी समझदारी से उसे वापस अपने लोगों के बीच, कभी न जाने के लिए ले आया. उलझन मालिनी, अजय या फिर और किसी की निगाह में आने से पहले ही सुलझ गई.

लेखक- निधि माथुर

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