Family Story in Hindi: सासूमां हैं बड़ी कमाल

Family Story in Hindi: अपने मोबाइल पर बात करना बंद कर के समीक्षा मंदमंद मुसकराने लगीं. ‘‘क्या हुआ?’’ उन के पति शिशिर ने पूछा जो काफी समय से उन के फोन बंद करने की प्रतीक्षा कर रहे थे. ‘‘उन लोगों ने अपनी रिया के लिए हां कह दी है.’’ ‘‘अरे वाह, बस यही तो हम सभी सुनना चाह रहे थे. फोन कर के रिया को भी यह खुशखबरी दे दो.’’ ‘‘नो मम्मा. आप ऐसा बिलकुल नहीं करेंगी,’’ उन की छोटी बेटी मिया बोली, ‘‘रिया के आने पर ही उसे बताएंगे. थोड़ा तंग भी करेंगे. प्लीज मम्मा, इतना बड़ा खुशी का मौका है, हमारे घर की पहली शादी है, थोड़ी छेड़छाड़ तो रिया के साथ बनती है.’’ ‘‘ओके, पर उसे ज्यादा परेशान मत करना,’’ घर में हंसीखुशी का वातावरण बन गया. शाम को रिया जब औफिस से घर लौटी तो मिया ने कहा, ‘‘रिया, आज तो बाहर डिनर करेंगे.’’ रिया बोली, ‘‘क्यों भई, आज तो मंडे नाइट है. आज क्यों बाहर जाना है?’’ ‘‘वह इसलिए क्योंकि अब तो तुम हमारे साथ ज्यादा आउटिंग्स नहीं कर पाओगी न.’’

‘‘क्यों भला?’’ रिया ने थोड़ा उलझ कर पूछा. ‘‘मेरा तो औफिस में भी लीन पीरियड शुरू हो गया है, तो इतना बिजी भी नहीं हूं आजकल,’’ वह बोली. ‘‘पर हम तुम्हें अब अपने साथ कहीं ले कर नहीं जा पाएंगे, सो सौरी,’’ मिया ने थोड़ा सा मुंह बनाया. ‘‘क्या बोलती रहती है तू. मम्मी क्या सच में बाहर जाना है?’’ रिया ने कन्फर्म करने के लिए पूछा. मम्मी बोलीं, ‘‘ट्रीट तेरी है, तू बता?’’ रिया और भी ज्यादा कन्फ्यूज हो गई. इतने में शिशिर बोले, ‘‘तू ट्रीट जहां भी देगी, घर या बाहर, हमें मंजूर है.’’ ‘‘अरे पर किस बात की ट्रीट? कोई खुल कर तो बताओ कि क्या ओकेजन है?’’ रिया अब सचमुच कुछ नहीं समझ पा रही थी. बाकी तीनों बड़े लाड़ से उस की ओर देखते हुए मजा ले रहे थे. ‘‘भई घर में नया फैमिली मैंबर एड हुआ है तो ट्रीट तो मस्ट है,’’ मिया बोल उठी. ‘‘न्यू मेंबर? किसी के बेबी हुआ है क्या? और एक मिनट, मैं ट्रीट क्यों दूं इस बात की?’’

इतना सुनते ही बाकी तीनों जनों की हंसी छूट गई. समीक्षा बोलीं, ‘‘नहीं बेटा, वरदान को तुम पसंद आ गई हो. उस के पिता अजय ने हां कर दी है.’’ सब एकसाथ बोलने लगे, कौंग्रैचुलेशंस. रिया के चेहरे पर भी यह सुनते ही मुसकराहट आ गई. वह थैंक्स बोल कर अपना बैग रखने के बहाने अपने रूम में चली गई. रिया और वरदान 1 हफ्ता पहले ही फैमिलीज के साथ मिले थे. 5 फुट 9 इंच लंबा गेहुंए रंग का, सधे नैननक्श वाला 27 वर्षीय सुदर्शन युवक था. वह सौफ्टवेयर इंजीनियर था. रिया 5 फुट 4 इंच की दुबलीपतली, गोरी, थोड़े पतले नैननक्श की 25 वर्षीय लड़की थी. वह भी सौफ्टवेयर इंजीनियर रही थी. अजय फैमिली को खासतौर पर वरदान की मां मालिनी को, उन के समाज में बड़ी इज्जत के साथ देखा जाता था.

वरदान के पिता अजय रिटायर्ड सीएफओ थे और अब सभी मुंबई में रहते थे. वे लोग मुंबई से दिल्ली मालिनी के बिजनैस के सिलसिले में आए थे, पर मकसद वरदान के लिए लड़की देखना भी था. दोनों परिवारों के बीच बात पहले से चल रही थी. दिल्ली में दोनों परिवारों का मिलना हुआ और आननफानन में सब मिल कर वापस मुंबई भी चले गए थे. अब दिल्ली में शिशिर और समीक्षा को उन के फोन का ही इंतजार था. आज मालिनीजी ने फोन कर के हां कह दी तो पूरे परिवार में खुशियां ही खुशियां छा गईं. एक तो यह कि रिया का सही समय रहते रिश्ता पक्ता हो गया था और दूसरे अजय परिवार का समाज में काफी रुतबा था. यह रुतबा इसलिए था क्योंकि मालिनीजी ने अपनी पैतृक कंपनी मेफेयर फार्मास्यूटिकल्स बखूबी संभाली हुई ही नहीं थी बल्कि सिर्फ 55 वर्ष की आयु में ही उन्होने अपनेआप को ऐस्टेब्लिश कर खूब शोहरत भी कमा ली थी.

मेफेयर फार्मास्यूटिकल्स का पूरे देश में नाम था और मालिनीजी अपने मातापिता की इकलौती संतान होने के नाते शुरू से उस के साथ जुड़ी हुई थीं. अब काफी सालों से अकेले ही सबकुछ संभाल रही थीं. वरदान के नानाजी यानी मालिनी के पिताजी ने काफी सालों पहले अपनेआप को बिजनैस से दूर कर लिया था और मालिनी को ही सबकुछ सौंप दिया था. अब उन की बेटी ही उन की कंपनी की सर्वेसर्वा थी. वे मुंबई में मालिनी के घर के पास ही रहते थे. वरदान के पिता अजय ने अपने परिवार के बिजनैस की परंपरा को छोड़ कर कई साल पहले एक अंतर्राष्ट्रीय बैंक जौइन किया था और अब वे सीएफओ रिटायर हो चुके थे. उम्र उन की कोई खास नहीं थी, सिर्फ 60 साल पर वे अब सुकून की जिंदगी जीना चाहते थे. वे मुंबई में रह कर कई समाजसेवी संस्थाओं के साथ जुड़े हुए थे, साथ ही अपने सासससुर की देखरेख भी करते थे.

वरदान भी अपने मातापिता का इकलौता बेटा था तो सभी को उस के विवाह का बहुत चाव था. मुंबई और दिल्ली दोनों जगह धूमधाम से शादी की तैयारी शुरू हो गई. 6 महीने बाद रिया और वरदान विवाह बंधन में बंध गए और रिया विदा हो कर मुंबई आ गई. वैसे तो रिया दिल्ली जैसे आधुनिक शहर में पलीबढ़ी थी, परंतु मुंबई आ कर उसे बहुत ही अच्छा लगा. एक तो अजयजी का बंगला मरीनड्राइव पर सी फेसिंग था. यहां से वह दिनभर समुद्र को न सिर्फ देख बल्कि सुन भी सकती थी. उस ने दिल्ली की जौब से रिजाइन कर दिया था क्योंकि वह थोड़े दिन अपने परिवार को जाननेसमझने के लिए देना चाहती थी. क्योंकि मेफेयर काफी अच्छी चल रही थी तो घर में भी किसी चीज की कमी नहीं थी. अजय की फैमिली बैकग्राउंड भी पैसे वाली थी. घर में आजकल की सारी भौतिक सुखसुविधाएं तो थीं ही, साथ ही ड्राइवर, मेड, माली, कुक, 24 घंटे, बंगले से अटैच्ड आउटहाउस में रहते थे.घर में सब के लिए एक अलगअलग कारें थीं.

मालिनीजी को दफ्तर सुचारु रूप से चलाने के लिए घर में कुछ भरोसेमंद लोग चाहिए थे. इसलिए उन्होंने जो लोग रखे थे, वे काफी सालों से उन के घर में काम कर रहे थे. वे घर की साफसफाई, देखरेख और खानापीना सब संभाल रहे थे. हालांकि रिया के आने से पहले सिर्फ 3 लोग ही घर में रहते थे, फिर भी बंगले में 4 बैडरूम, एक डाइनिंगरूम, एक ड्राइंगरूम, एक गैस्टरूम, मौड्यूलर ओपन किचन, एक मिनी जिम और एक होमथिएटर था. सब कमरों के साथ अटैच्ड बाथरूम थे. बंगले के आगे एक खूबसूरत लौन भी था.

अब तक रिया ने सब को समझना शुरू कर दिया था. जहां एक ओर उस के मन में सब के लिए प्यार एवं इज्जत थी, वहीं मालिनीजी के लिए एक श्रद्धाभाव भी था. इस का कारण स्वयं मालिनी थीं. वह अपनेआप को इतना बिजी रखती थीं कि अन्य पारंपरिक सासों की तरह बुराइयां करने से कोसों दूर थीं और बिजनैस में होने से उन का जनरल नौलेज भी काफी अच्छा था. हर विषय पर किसी के भी साथ बात कर सकती थीं. शादी के 1 हफ्ते बाद जब डिनर पर सब साथ बैठे थे तो मालिनी ने कहा, ‘‘वरदान और रिया के लिए मैं ने और अजय ने हौलिडे बुक किया है. तुम लोग हौलिडे के लिए स्विट्जरलैंड और फ्रांस जा रहे हो. टिक्ट्स और होटल बुक हो गए हैं. वरदान, कल मेरे औफिस फोन कर के मेरी सैक्रेटरी माया से सब डिटेल्स ले लेना.’’ वरदान उठ कर मालिनीजी के गले लग गया, ‘‘थैंक्स सो मच मौम. ‘‘माय प्लैजर ऐंटायरली बेटा.’’

मालिनी ने प्यार से उस का हाथ पकड़ कर कहा. रिया ने भी शरमाते हुए सभी को थैंक्स बोला. हौलिडे से आने के बाद रिया ने भी जौब जौइन कर ली. वह सुबह 8 बजे जाती थी और शाम पांच बजे तक घर आ जाती थी. वरदान भी 6 बजे तक आ जाता था तो दोनों साथ में बैठकर चाय पीते थे. मालिनीजी अपने औफिस में ही चाय पी लेती थीं. अजय ज्यादातर 7 बजे तक लौट आते थे. सब से आखिर में मालिनी ही 8 बजे तक घर में घुसती थीं. फिर सब खाने पर 9 बजे इकट्ठा होते थे. पहलेपहल तो रिया को बड़ा अजीब लगा क्योंकि उस ने सोचा था कि वह घर पर अपनी सास के साथ बातें किया करेगी पर मालिनी का तो पूरा दिन अपने औफिस में निकल जाता था.

वे सिर्फ लंच के लिए घर आती थीं और वह भी 1-2 घंटों के लिए. इस समय भी उन की काल्स चलती रहती थी. लंच करने के बाद थोड़ी देर अपने रूम में आराम करती थीं और फिर औफिस चली जातीं. रिया ने भी इसे अब ऐक्सैप्ट कर लिया था. एक दिन वरदान बोला, ‘‘मौम, मेरे फ्रैंड्स रिया और मुझे कहीं बाहर बुला रहे हैं तो शायद सैटरडे या संडे का प्रोग्रैम बनेगा.’’ मालिनी ने रिया से पूछा, ‘‘रिया बेटा क्या तुम वरदान के सभी फ्रैंड्स को पहचानती हो?’’ रिया बोली, ‘‘मौम, शादी में ही उन से मुलाकात हुई थी. अभी तो सिर्फ नाम से जानती हूं.’’ ‘‘यह बढि़या मौका है,’’ मालिनी ने कहा तो दोनों जने उन का मुंह देखने लगे.’’ अरे भई ऐसे क्या देख रहे हो? व्हाइ डौंट यू काल देम टु नौट जस्ट जैज बाय द बे? बहुत अच्छा रैस्टोरैंट है और व्यू भी बढि़या है. यंगस्टर्स वाली वाइब्स भी हैं. तुम लोगों को अच्छा लगेगा.’’ रिया मुंबई के बारे में कुछ खास तो नहीं जानती थी, इसलिए कुछ नहीं बोली. मगर वरदान काफी खुश हो गया, ‘‘यू आर ए जीनियस मौम. मैं आज ही चला जाता हूं वहां और देखता हूं. अगर कोई प्राइवेट एरिया है तो उसे बुक कर लूंगा.’’ ‘‘अरे माया को पता है न, अभी लास्ट वीक ही हमारे औफिस के यंगस्टर्स की पार्टी वहां हुई थी. लास्ट टाइम तो मैं भी गई थी थोड़ी देर के लिए तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगा था. माया सारे अरेंजमैंट्स कर देगी. तुम स्ट्रैस मत लो.

रिया को ले जा कर एक बार फूड आइटम्स टैस्ट कर लेना.’’ ‘‘ग्रेट मौम, कल शाम को ही हम लोग चले जाएंगे. आप और डैड भी आओगे न इस गैटटुगैदर में?’’ ‘‘नहीं बेटा, मेरी तुम्हारे डैडी के साथ सूप और सलाद है, सो यू गाइज ऐंजौय.’’ वीकैंड की पार्टी में वरदान के सारे फ्रैंड्स अपनी फैमिली के साथ आए थे. रिया को सब के साथ मिल कर बहुत मजा आ रहा था. इतने में अंश जो वरदान का स्कूल फ्रैंड था, बोला, ‘‘यार वरदान, यह तेरा आइडिया तो नहीं हो सकता.

आंटी ने ही सजैस्ट किया होगा यह वैन्यू, आई एम प्रैटी श्योर.’’ वरदान भी हंस कर बोला, ‘‘ऐब्सोल्यूट्ली राइट ब्रो. शी है? ए नैक फार सच थिंग्स.’’ वीर और यश भी जो वरदान के साथ स्कूल में थे, मालिनी को ही क्रैडिट देने लगे. ‘‘वाह, आंटी का टेस्ट लाजवाब है. लुक एट द प्लेस एंड द मेन्यू.’’ रिया सभी कुछ सुन रही थी. इतने में इन तीनों की वाइफ्स भी बोलीं, ‘‘सुपर्ब अरेंजमैंट किया है आंटी ने. एक्चुअली वी आर मिसिंग हर. हम लोग इतनी बढि़या पार्टी एंजौय कर रहे हैं, आल थैंक्स टु हर. वरदान शी शुड हैव कम.’’ वरदान ने कहा, ‘‘अरे नहीं, वीकैंड पर तो मौम और डैड के अलग ही प्रोग्राम्स रहते हैं, बट आई विल कन्वे कि आप लोग उन्हें कितना मिस कर रहे हैं.’’ रिया को अब समझ में आ रहा था कि उस की सास सभी के बीच कितनी पौपुलर हैं. कुछ दिन बाद रिया के मम्मीडैडी को शिरडी जाना था तो उन्होंने सोचा कि मुंबई रिया के पास थोड़े दिन रुकते हुए फिर वहां चले जाएंगे. समीक्षा ने जब रिया को यह बताने के लिए काल की तो वह तो खुशी से उछल पड़ी, ‘‘अरे वाह मम्मी, क्या प्लान बनाया है आप ने.

आप को यहां आ कर बहुत अच्छा लगेगा और आप को मेरे पास काम से कम 10 दिन तो रहना होगा.’’ शिशिर ने फोन पर रिया से कहा, ‘‘नहीं बेटा इतने दिन हम लोग क्या करेंगे?’’ रिया बोली, ‘‘मैं आप लोगों की एक नहीं सुनूंगी, शादी के बाद यह पहली बार है कि आप मुंबई आ रहे हैं तो बस यहीं आ कर बाकी के प्लान बनाइएगा.’’ रिया के कालेज की भी छुट्टियां चल रही थीं तो वह भी आने वाली थी. रिया ने डाइनिंगटेबल पर रात को सब को यह न्यूज दी. सभी लोग सुन कर बड़े खुश हुए. अजय ने कहा, ‘‘मैं वरदान के नानानानी को भी उन दिनों यहीं बुला लूंगा. वे भी रिया के पेरैंट्स के साथ रहेंगे तो उन को भी अच्छा लगेगा.’’ मालिनी ने पूछा, ‘‘रिया बेटा, वे लोग कहीं और भी घूमना प्लान कर रहे हैं?’’ ‘‘जी मौम, मैं ने उन से कहा है कि जो भी प्लान बनाएं, यहां आ कर बनाएं. वैसे तो उन्हें सिर्फ शिरडी ही जाना है.’’ ‘‘ओके तो उन्हें आने दो, फिर बात करते हैं.’’ जल्द ही समीक्षा, शिशिर और मिया मुंबई रिया के पास आ गए.

उन सभी को मुंबई में रिया का घर बहुत पसंद आया. वीडियो काल पर पूरे घर का आइडिया नहीं हो पाया था. अभी तक तो वे लोगों से यही सुन रहे थे कि मुंबई में छोटेछोटे अपार्टमैंट होते हैं, मगर अजयजी का घर मालिनी की चौइस का था तो थोड़ा उनके रुतबे के हिसाब से था. सजावट ऐसी कि देखने वालों का मन लुभा ले. उन के आने पर मालिनी औफिस से जल्दी आने लगीं. रिया ने कुछ दिन की लीव के लिए अप्लाई किया था तो वह घर पर ही थी नहीं तो सभी लोग घर पर बोर हो जाते. वरदान के नानानानी के आने से भी खूब रौनक हो गई थी. मिया ने तो रिया के कान में कहा, ‘‘आई विश कि मेरी शादी भी मुंबई की ऐसी ही शानशौकत वाली फैमिली में हो.’’ रिया ने प्यार से उस का गाल थपथपा दिया. अजय भी जब से रिया के पेरैंट्स आए थे, अपना ज्यादातर समय घर पर बिताने लगे थे. उन्होंने कुछ एक प्रोजैक्ट्स पर जाना भी पोस्टपौन कर दिया था. 2 दिन बाद सभी शाम को चाय पी रहे थे तो मालिनी ने कहा, ‘‘रिया कह रही थी कि आप लोग शिरडी जाना चाहते हैं, वहां से आने के बाद आप को महाराष्ट्र की कुछ और जगहें भी देखनी चाहिए जो आसपास ही हैं.

माथेरान यहां का एक बहुत खूबसूरत हिल स्टेशन है, महाबलेश्वर भी छोटा सा हिल स्टेशन है और अलीबाग एक बीच है, क्या आप इंटरैस्टेड हैं?’’ समीक्षा बोलीं, ‘‘हमें तो उन के बारे में कुछ आइडिया नहीं है.’’ पर शिशिर बोले’’, अरे नहीं है तो क्या हुआ? हम लोग घूम तो सकते हैं, क्यों वरदान बेटा?’’ वरदान ने भी हामी भर दी. मालिनी बोलीं, ‘‘अगर आप इन में से कहीं जाना चाहें तो मैं आप के जाने का सारा इंतजाम कर दूंगी. आप मुझे बस अपनी डेट्स दे दीजिए.’’ शिशिर ने कहा, ‘‘हम माथेरान देख सकते हैं, अगर वीकैंड पर निकलेंगे तो बच्चों के साथ जा सकते हैं और 2 दिन बाद वापस आ जाएंगे.

मगर हमें आप सभी के साथ जाने में ज्यादा मजा आएगा. नानानानी भी साथ चलें तो बढि़या रहेगा. वापस आने के बाद भी हम शिरडी जा सकते हैं.’’ किसी को इस में भला क्या ऐतराज हो सकता था. वरदान बोला, ‘‘रिया तो लीव पर ही है. फ्राइडे को मैं फ्री हूं तो हम सुबह ही निकल सकते हैं और मंडे मौर्निंग वापस आ सकते हैं. उस दिन मेरा वर्क फ्रौम होम है. माथेरान में अच्छा वीकैंड स्पैंड हो जाएगा.’’ मालिनी फौरन अपनी मैपबुक ले आईं और इंटरनैट पर माथेरान, महाबलेश्वर, अलीबाग आदि के रिजोर्ट्स, साइटसीइंग स्पौट्स वगैरह सभी को दिखाने लगीं. सब ने फाइनली माथेरान जाना ही डिसाइड किया. मालिनी ने उसी समय एक अच्छे रिजोर्ट को काल किया. टैरिफ वगैरह पता करने के बाद उन्होंने उसी समय माया को भी काल की व माथेरान ट्रिप और्गेनाइज करने के लिए बोल दिया. रिजोर्ट की डिटेल्स भी उसे मेल पर भेज दीं.

रिया तो खुशी से उछलने लगी, ‘‘अरे वाह, द ग्रेट इंडियन फैमिली आउटिंग, बहुत मजा आएगा.’’ मालिनीजी ने एक मर्सिडीज बैंज की बस रास्ते के लिए बुक करवा दी थी. उन्हें बस ने नेरल में छोड़ दिया जहां से माथेरान के लिए शटल ट्रेन थी और ज्यादा एडवैंचर्स लोगों के लिए खच्चर भी थे. सभी को माथेरान में बहुत मजा आया. इंतजाम इतना बढि़या था कि सब ने बहुत ऐंजौय किया. मुंबई लौट कर एक दिन शिशिर ने अचानक कुछ पौलिटिक्स की बात छेड़ दी. मालिनी का पौलिटिक्स में बहुत इंटरैस्ट था तो वे दोनों अपनी आइडियोलौजी, फैवरिट पौलिटिकल पार्टी, फैवरिट पौलिटिकल लीडर आदि बड़े जोरोंशोरों से डिस्कस करने लगे.

रिया, मिया और समीक्षा भी बातों में हिस्सा ले रहे थे. मगर उन्हें इन दोनों की बातों में ज्यादा मजा आ रहा था. तभी मालिनी के पास एक फोन आया. मालिनी ने कहा,‘‘ओके मैं अभी पावर पौइंट बना कर भेज देती हूं. तुम कल की मीटिंग में उन पौइंट्स को रैफर कर लेना. पावर पौइंट 15 मिनट में रैडी हो जाएगा क्योंकि हम लोग आलरैडी एक प्रेजैंटेशन तो कर ही चुके हैं. यह हमारी पौलिसीज के बारे में एक इंट्रोडक्श नहीं है. मैं अभी भेजती हूं. डौंट वरी.’’ फिर उन्होंने काल खत्म कर के सब से कहा, ‘‘ऐक्सक्यूजमी, मुझे थोड़ा सा काम आ गया है. मैं अभी थोड़ी देर में आती हूं.’’

लगभग 20 मिनट बाद मालिनी ने उन सभी को फिर से जौइन कर लिया. शिशिर और समीक्षा उन की चुस्तीफुरती और नौलेज देख कर बहुत ज्यादा इंप्रैस्ड थे. उन्होंने मालिनी का टेक सेवी रूप भी देख लिया था. वे बहुत खुश थे कि रिया को अपनी सास से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. कुछ दिन बाद रिया के मम्मीपापा और मिया शिरडी चले गए और वहीं से वापस दिल्ली. उन्हें रिया की वैभवशाली ससुराल देख कर तो बहुत सुख मिला ही, परंतु समीक्षा और शिशिर ने मालिनी की बहुत ज्यादा तारीफ की. शिशिरजी तो खासतौर से बोले, ‘‘तुझ से ज्यादा स्मार्ट तो तेरी सास हैं.

सबकुछ कितना फटाफट अरेंज कर दिया. कितनी अच्छी प्लानिंग करती हैं,सबका कितना ध्यान रखती हैं. ‘‘यू आर वैरी लकी बेटा. तू भी सब का खूब अच्छे से ध्यान रखना.’’ यह सब सुन कर रिया को अच्छा तो लगा, मगर उस के मन में एक कांटा भी चुभ गया. वह चाहती थी कि जब मम्मीपापा यहां से जाएं तो उस की भी खूब तारीफ करें, मगर मम्मीपापा ने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया उलटे मालिनीजी और अजयजी को बारबार धन्यवाद दे कर गए. रिया ने मम्मी से फोन पर बात की तो शिकायत भी की, ‘‘क्या मम्मी, आप ने तो मेरी एक बार भी तारीफ नहीं की कि मैं घर कितना अच्छे से चलाती हूं और सबकुछ कैसे हैंडल करती हूं.’’ समीक्षाजी हंस कर बोलीं, ‘‘अरे जब तू इतनी अच्छी सास की ट्रेनिंग में काम करेगी तो सब बढि़या ही करेगी.’’ ‘‘हां मम्मी, पर आप ने मुझे क्रैडिट तो दिया ही नहीं.’’ समीक्षाजी थोड़ा गंभीर हो कर बोलीं, ‘‘बेटा, घर का काम करने में कभी क्रैडिट नहीं दिया जाता.

घर में काम अपनों के लिए किया जाता है तो बिना किसी ऐक्सपैक्टेशन के. तुम तो मेरी समझदार बिटिया हो. तुम्हें क्या समझऊं,’’ और फिर थोड़ी सी और इधरउधर की बातें कर के उन्होंने फोन रख दिया. माथेरान के ट्रिप के बाद से रिया मालिनीजी से अपनी तुलना करने लगी. उसे अब लगने लगा कि मालिनी का व्यक्तित्व सब पर हावी हो जाने वाला था. मगर फिर कुछ न कुछ ऐसा होता कि वह अपनी सास की दाद दिए बिना न रह पाती. थोड़े दिनों से अब रिया अपनी सास को अपना कंपीटीटर समझने लगी थी. इस बीच एक घटना और हुई. कुछ ही दिनों में शादी के बाद वरदान का पहला जन्मदिन आ रहा था तो रिया उस के लिए कुछ सरप्राइज प्लान करना चाहती थी. उसने सोचा कि इस बार वह सारी तैयारी कर के घर में बाकी सब को बता देगी. उस ने अपने स्तर पर भागदौड़ भी शुरू कर दी. कुछ रैस्टोरैंट्स के पैकेज पता किए. खानेपीने के आइटम्स भी चैक कर लीं और 2-3 जगहों को शौर्टलिस्ट भी कर लिया. वह सोच रही थी कि रात को खाने के बाद मालिनी और अजय से बात करेगी. खाना खाने के बाद वरदान तो अपने रूम में चला गया. यह उस का रोज का रूटीन था. थोड़ी देर अपने कमरे में बैठ कर वह टीवी देखता था.

रिया को यही मौका उपयुक्त लगा. रिया ने मालिनी से कहा, ‘‘मौम, मैं वरदान की सरप्राइज बर्थडे पार्टी प्लान करना सोच रही हूं.’’ मालिनी बोलीं, ‘‘अरे हां, मुझे भी तुम से इस बारे में बात करनी थी. मैं ने भी बिलकुल ऐसा ही सोचा है. इन फैक्ट, मैं ने नैट पर कुछ इनफौरमेशन भी सर्च की है और 3-4 प्रीमियम रैस्टोरैंट्स से बात भी की है. उन में से द ब्लूस्टार का मेन्यू और इंटीरियर मुझे काफी पसंद आया है. तुम मुझे गैस्ट लिस्ट दे दो तो उन लोगों से प्राइसेज वगैरह की बात भी फिक्स कर लेते हैं. रिया कुछ मायूस हो कर बोली, ‘‘मगर मौम, मैं ने भी कुछ रैस्टोरैंट शौर्टलिस्ट किए हैं.’’ मालिनी ने कहा, ‘‘कौन से बेटा?’’ रिया ने जब नाम बताए तो मालिनी बोलीं, ‘‘यह सब रैग्युलर रैस्टोरैंट्स हैं.

इन के बैंक्वेट हाल काफी छोटे होते हैं और फैसिलिटीज भी कुछ खास नहीं हैं. ब्लूस्टार कौरपोरेट इवेंट्स को भी कैटर करता है और उन के बैंक्वेट हाल बहुत ही बढि़या हैं. उन का मेन्यू भी फाइवस्टार है, सो लैट्स फाइनालाइज्ड. तुम कल औफिस आ जाना और माया से मिल कर सब कन्फर्म कर देना. मैं क्लाइंट से मिलने बांद्रा जाऊंगी तो तुम्हारे साथ नहीं आ पाऊंगी. तुम ने मेरी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ली है बेटा. थैंक्स सो मच.’’ अजय ने भी कहा, ‘‘तुम दोनों सासबहू बिलकुल एक सा सोचते हो,’’ यह कह कर वे दोनों तो न्यूज देखने लगे और रिया थोड़े सोबर मूड में अपने रूम में चली गई. अगले हफ्ते वरदान की पार्टी खूब धूमधाम से हुई और नैचुरली क्रैडिट एक बार फिर मालिनी को दिया. रिया ऊपर से तो खुश दिखने की कोशिश कर रही थी पर उसे काफी बुरा लगा था.

इस बात का कि उस के एक भी डिसीजन को मालिनी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी. उसे लगा कि मालिनी उसे जानबूझ कर नीचा दिखाने में लगी हुई थीं. धीरेधीरे रिया मालिनी के हर डिसीजन का विरोध करने लगी. उसे लगता कि मालिनी खुद क्रैडिट लेने के लिए उस के हर डिसीजन को नकार देती हैं, जबकि असलियत में मालिनी अपने कौंटैक्ट्स और दूरदर्शिता की वजह से सभी काम चुटकियों में कर दिया करती थीं. एक तो वे सालों से ये सब करती आ रही थीं और दूसरे सब को उन के लिए निर्णयों पर कोई एतराज भी नहीं था. ऐसे में वे यह सोच भी नहीं सकती थीं कि रिया को उन्हें ले कर कुछ गलतफहमी हो सकती है.

उधर रिया को लगने लगा था कि उस की सास जबरदस्ती अपने व्यूज सब पर थोपती हैं. उस ने ये सब बातें अपने अहं पर ले ली थीं. रिया को मालिनी के इतने ऐक्टिव स्वरूप को देख कर प्रौब्लम होने लगी. अब वह पहले की तरह उन की तारीफ नहीं करती थी व अपने डिसीजंस में उन्हें शामिल नहीं करती थी. उस ने अपनी बातें भी उन से शेयर करना बंद कर दी थीं. एक बार रिया को उस के कजिंस मिलने आने वाले थे, तो उस ने उन सभी को डिनर के लिए उस क्लब में बुला लिया जहां के वह और वरदान मैंबर थे.

मालिनी ने कहा भी कि उन्हें घर पर भी बुलाएं, मगर रिया ने कहा कि वे सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे तो डिनर पर ही सब का मिलना ठीक रहता. वह चाहती ही नहीं थी कि उस के रिश्तेदार मालिनी से मिलें. अब वह घर में भी ज़्यादा टाइम मालिनी से बात नहीं करती थी, सिर्फ मतलब की बात कर के और थोड़ा सा हंसबोल कर अपना काम करने लगती थी. वरदान कुछ समय से रिया में मालिनी के प्रति बदलाव देख तो रहा था मगर चुप था, यह सोच कर कि शायद मौम की किसी बात से उसे बुरा लगा है. पर जब उस ने देखा कि रिया हर बात अपने ढंग से करना चाहती तो उसे असल मुद्दा समझ आया. एक दिन वरदान रिया से बोला, ‘‘रिया, तुम्हें मौम से कोई शिकायत है क्या?’’ रिया बोली, ‘‘तुम ऐसा क्यों पूछ रहे हो?’’ ‘‘बहुत दिनों से तुम्हें खफाखफा सा देख रहा हूं.

बस इसलिए. पहले तो तुम अपनी सास की फैन हुआ करती थीं लेकिन अब उन से थोड़ा सा कटने लगी हो. मौम तो बिजी रहती हैं, इसलिए शायद नोटिस नहीं करतीं, मगर मैं ने कर लिया है. अगर कुछ प्रौब्लम है तो तुम मुझे बता सकती हो.’’ रिया बोली, ‘‘वरदान, मैं भी इस घर की मैंबर हूं तो मैं भी कुछ डिसीजंस लेना चाहती हूं. लेकिन मौम तो…’’ इतना कह कर वह रुक गई, ‘‘छोड़ो तुम नहीं समझगे,’’ कह कर रिया चली गई. वरदान मन में मुसकराने लगा कि तो यह प्रौब्लम है मैडम. कोई बात नहीं, मैं तुम्हारी गलतफहमी दूर कर के ही रहूंगा. अगले दिन डिनरटेबल पर वरदान ने मौमडैड व रिया से कहा, ‘‘मैं आप सभी से कुछ बात करना चाहता हूं. मुझे औफिस की तरफ से प्रमोशन मिल रहा है.’’ सभी लोग यह सुन कर बड़े खुश हुए. फिर वरदान आगे बोला,’’ मेरा औफिस भी बदल गया है तो मुझे पवई जाना पड़ेगा, जोकि यहां से काफी दूर है. ट्रैवल टाइम कम करने के लिए मैं सोच रहा हूं कि पवई में ही रिया के साथ शिफ्ट हो जाऊं.

औफिस की तरफ से घर भी मिल रहा है.’’ रिया उस की बात सुन कर चौंक गई क्योंकि वरदान ने इस चीज का जिक्र आज पहली बार किया था. मालिनी और अजय यह बात सुन कर खुश हो गए. अजय बोले, ‘‘बेटा मैं तो यही सोच रहा था कि तू रोज इतना ट्रैवल कैसे करेगा. वैरी नाइस डिसीजन. हम आते रहेंगे और तुम दोनों भी यहां आते रहना.’’ अगले महीने ही वरदान और रिया पवई के एक अपार्टमैंट में शिफ्ट हो गए. यह अपार्टमैंट एक 30 मंजिल की बिल्डिंग में था और इस में सभी मौडर्न ऐमैनिटीज थीं. रिया बहुत खुश थी कि अब वह इंडिपैंडैंटली सारा काम करेगी. पर वह कहते हैं न जा के पैर न फटी बिवाई.

वह क्या जाने पीर पराई. रिया और वरदान वीकैंड पर शिफ्ट हुए तो वरदान बोला, ‘‘रिया चलो अपने घर के लिए थोड़ी बहुत शौपिंग कर लेते हैं. फर्नीचर शौप्स पर जा कर जो चाहिए वह फाइनल कर लेना और किचन वगैरह भी सैट कर लो.’’ रिया खुशीखुशी उस के साथ जा कर दोनों की पसंद का सामान बुक कर आई और कुछ ले भी आई. अपना फ्लैट बहुत सुंदर तरीके से सजा लिया. मंडे को दोनों को औफिस जाना था तो रिया जल्दी उठी और उस ने दोनों के लिए ब्रेकफास्ट और लंच बनाया और पैक किया. फिर दोनों अपनीअपनी जौब पर निकल गए. रोज की तरह वे लोग लगभग एक समय पर ही वापस आए.

रिया को अब बिलकुल फुरसत नहीं थी. उस ने फटाफट चाय खत्म कर के रात का खाना बना दिया. लगभग 1 महीने तक यही क्रम चलता रहा.वह महीना तो घर सैट करते ही निकल गया. दोनों अपने इंडिपैंडैंस से बहुत खुश थे. अजय और मालिनी भी वीकैंड पर उन के पास आ जाते थे. फ्लैट 2 बैडरूम का था इसलिए किसी को प्रौब्लम भी नहीं होती थी. दूसरे महीने भी रूटीन वाली जिंदगी चल रही थी, पर अब रिया को समझ में आ रहा था कि अकेले रह कर डिसीजन लेना और पूरा घर संभालना कितना मुश्किल होता है. उन के पास पार्टटाइम हाउस हैल्प थी क्योंकि दोनों ही शाम तक घर पर नहीं होते थे. हाउस हैल्प आ कर घर की साफसफाई सुबह और शाम कर दिया करती थी.

बरतन और कपड़े धोना भी उसी के जिम्मे था. हां खाना जरूर रिया बनाती थी. पर यहां न कोई उस को कुछ बताने वाला था, न टोकने वाला और न ही लाड़ से हाथ में चाय पकड़ाने वाला. जब मेड छुट्टी ले लेती थी तो घर का काम बढ़ जाता था, पर उस समय वरदान सारा काम बांट लेता था. फिर भी रिया को अपनी यह इंडिपैंडैंस चुभने लगी थी. यहां उसे सजैशन देने वाला, काम कराने वाला या नियमित रूप से समझने वाला कोई न था. वरदान ने उसे पूरी तरह से स्वतंत्रता दी हुई थी, वह रिया के हर फैसले को मान लेता था, फिर वह बाहर कहीं जाने का हो, घर का सामान खरीदने का या घर में पैसे खर्च करने का. वैसे भी वरदान सीधासादा लड़का था तो उस की फालतू की बहस में कोई रुचि नहीं थी. वह साल तो ऐसे ही बीत गया.

रिया को मरीन ड्राइव का अपना घर याद आने लगा था, जहां पर अजय और मालिनी उस की हर छोटी बात पर भी काफी सलाह और सुझव दे दिया करते थे और मदद कर दिया करते थे. साथ ही घर में काम करने वाले इतने लोग थे कि रिया के ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं आई थी. वह सिर्फ औफिस आतीजाती थी. बाकी के पचड़ों से काफी दूर थी. एक बार वरदान को 1 हफ्ते के लिए बैंगलुरु जाना था. वह रिया से बोला, ‘‘रिया, तुम अकेले नहीं रहना चाहती हो तो मौमडैड के पास चली जाना.’’ रिया बोली, ‘‘देखूंगी.’’ रिया को मरीन ड्राइव नहीं जाना था तो वह नहीं गई. हां यह बात अलग है कि 3 दिन अकेले रह कर, अपने लिए लंच और डिनर बना कर वह काफी उकता गई. मालिनी और अजय से रोज उस की बात हो रही थी. उन्होंने 1-2 बार उसे घर आने के लिए भी कहा पर उस ने काम का बहाना बना कर मना कर दिया. वरदान को गए हुए 3 दिन ही हुए थे और रिया को अपनी यह इंडिपैंडैंट लाइफ बिलकुल नहीं सुहा रही थी.

उस के पास चौइस थी कि या तो मैगी बना कर खा ले या फिर अपने सासससुर के घर जा कर उन के साथ बैठ कर प्रेमपूर्ण वातावरण में घर का बना गरम खाना खाए. उस ने मालिनी को फोन किया और कहा, ‘‘मौम, मैं बाकी के 2 दिन घर से ही औफिस जाऊंगी. मैं अभी निकल रही हूं.’’ मालिनी ने कहा, ‘‘मैं इसी साइड हूं बेटा. मीटिंग के लिए आई थी, तुम्हारे घर आने वाली थी. तुम अपना बैग रैडी कर लो, मैं तुम्हें ले कर घर चली जाऊंगी.’’ रिया यह बात सुन कर बहुत खुश हो गई. इस तरह से उस का ड्राइव कर के जाना भी बच गया. जब वरदान मंडे को बैंगलुरु से वापस आया, तो सीधा मरीन ड्राइव ही आया और शाम को रिया को ले कर पवई वापस जाने की बात करने लगा. रिया शाम को जब औफिस से आई तो वरदान को मिल कर खुश हो गई. डिनर के बाद वरदान बोला, ‘‘चलो रिया घर चलें.’’

सभी ने नोटिस किया कि वरदान के इतना बोलते ही रिया का मुंह इतना सा हो गया. वरदान देख रहा था कि यहां पर रिया कितनी खिलीखिली है और मालिनी से बिलकुल भी नाराज नहीं थी बल्कि शाम का खाना तो उस ने मौम के साथ में लगवाया था. यह देख कर वह मन ही मन मुसकरा उठा था. रिया बोली, ‘‘वरदान, आज यहीं रुक जाओ. मैं ने अपनी पैकिंग भी नहीं की है. कल सुबह हम लोग औफिस के लिए निकलेंगे और वहां से घर चले जाएंगे.’’ वरदान बोला, ‘‘जैसे तुम्हारी मरजी.’’ डिनर के बाद वरदान ने सब को गिफ्ट्स दिए और उस के बाद सब अपनेअपने रूम में चले गए. रूम में आते ही रिया बोली, ‘‘वरदान, मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’ ‘‘क्या हुआ रिया? क्या मौम ने तुम से कुछ कहा? नहींनहीं तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो?’’ वह बोला, ‘‘अरे बाबा.

मैं तुम्हारी टांग खींच रहा था, बताओ क्या बात है?’’ रिया बोली, ‘‘वरदान, मैं सोचती थी कि इंडिपैंडैंट रह कर मैं अपने डिसीजंस लूंगी और अपनी मरजी से घर चलाऊंगी, मगर तुम्हारे साथ उस फ्लैट में रह कर मुझे समझ आया कि मैं तो वहां एकदम अकेली हो गई हूं. मौमडैड की सलाह तो हमारे साथ है, मगर हर समय तो वे लोग वहां नहीं होते हैं.’’ वरदान बोला, ‘‘क्या बात कर रही हो रिया? घर पर भी वे लोग हमेशा कहां होते हैं? तुम ने तो देखा है, दोनों अपनी लाइफ में बिजी हैं.’’ रिया ने कहा, ‘‘मेरा वह मतलब नहीं था.

उन के साथ रहते हुए प्रौब्लम्स भी प्रौब्लम्स नहीं लगती हैं. वहां मैं इंडिपैंडैंट जरूर हूं मगर मुझे हमेशा ऐसा लगता है कि मैं अकेली हूं, जबकि मौमडैड तो रोज ही मुझ से बात करते हैं. पर यहां रह कर ऐसा लगता है कि मैं उन की छत्रछाया में हूं. तुम्हारे जाने के 3 दिन बाद तक मैं ने बहुत सोचा कि मैं किस तरह की लाइफ चाहूंगी. एक वह जिस में कि मौम और डैड हक से इंटरफेयर कर के हमारे लिए निर्णय लें या दूसरी वह जिस में कि सारा भार हम पर हो. मुझे लगा कि यह मौम और डैड की इंटरफेरैंस नहीं बल्कि उन का प्यार है और वे ज्यादातर सही होते हैं. वरदान, क्या हम यहां रह कर अपना काम नहीं कर सकते? क्या हमारा पवई वापस जाना जरूरी है?’’ वरदान बोला, ‘‘मेरा औफिस का कंयूट टाइम बहुत ज्यादा हो जाएगा और तुम यह सब इसलिए कह रही हो क्योंकि यहां पर सुखसुविधाएं ज्यादा हैं. वहां सिर्फ एक मेड है, है न यही बात? पर हम अभी और सर्वैंट अफोर्ड नहीं कर सकते.

मैं चाहता हूं कि हम दोनों मौम और डैड पर डिपैंडैंट न हों बल्कि उन की तरह अपनी अलग आईडैंटिटी बनाएं. इस के लिए हमें अपनी सेविंग्स करनी होगी. मैं मौम से फाइनैंशियल हैल्प ले कर अपना घर नहीं चलाना चाहता.’’ रिया बोली, ‘‘वरदान, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. ये सिर्फ लग्जरीज होती हैं पर जो मैं मिस कर रही थी वह मौम और डैड का प्यार था. वहां शाम को और रात को मेरे साथ गप्पें मारने के लिए कोई भी नहीं होता था.’’ ‘‘तो रिया, यह भी तो तुम्हारा स्वार्थ ही है. बात करने के लिए कोई नहीं है तो तुम्हें वापस आना है,’’ वरदान ने कहा. रिया कहने लगी, ‘‘नहीं वरदान, मैं सचमुच में समझ गई हूं कि इस परिवार में रह कर ही मैं पनप सकती हूं और आगे बढ़ सकती हूं.

अकेले तुम्हारे साथ रह कर नहीं.’’ वरदान फिर बोला, ‘‘रिया, तुम सिर्फ भौतिक सुखसुविधाओं को ही देख रही हो, अगर मौम ने अपनी मरजी से कुछ भी किया तो तुम्हें फिर वह चुभेगा. हो सकता है कि तुम दोनों के अहं में भी टकराव हो. मौम तो शुरू से ही सबकुछ खुद करती आई हैं और अब भी उन्हें दूसरों को हैल्प करना अच्छा लगता है. तुम इसे अपने ईगो पर ले लेती हो. मौम तुम से प्रतियोगिता नहीं करती हैं. ‘‘मगर तुम्हें उन का कुछ भी करना नागवार गुजरता है. तुम अपना घर संभालो वही बेहतर होगा.’’ रिया रोंआसी हो कर बोली, ‘‘तुम क्या मुझे इतना खराब समझते हो वरदान? मेरी समझ में आ गया है कि मैं मौम के साथ रह कर, उन के साथ मिल कर ही सही निर्णय लेना सीख सकती हूं.

वे हमेशा मुझे प्रोत्साहित ही करती हैं. अब तुम मुझे गलत समझ रहे हो.’’ वरदान ने आखिरी चौका मारा, ‘‘सोच लो रिया, मुझे अभी तो औफिस की तरफ से घर मिला है, अगर मैं ने यह छोड़ दिया तो यह घर किसी और को दे दिया जाएगा, फिर मुझे दूसरा किराए का घर पवई में लेना पड़ेगा.’’ रिया मुसकराते हुए बोली, ‘‘नहीं बाबा, उस की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’ वरदान यह सुन कर मुसकरा उठा. यही तो वह कब से सुनना चाह रहा था. वरदान को पता था कि रिया दिल की बहुत साफ है, बस थोड़ा सा हर्टफील कर रही थी. बात आगे न बढ़े, इसलिए उस ने अलग रहने की सोची थी. उस की प्रमोशन ने बात आसान कर दी थी. औफिस की तरफ से जब घर का औफर आया तो उस ने अलग रहने का निर्णय ले लिया.

उस की सूझबूझ ने बात बिगड़ने से पहले ही संभाल ली. रिया को आखिरकार समझ आ ही गया कि मालिनी एक आत्मनिर्भर महिला हैं, मगर उस के कंपीटिशन में नहीं. अगले दिन सुबह मालिनी और अजय को वरदान और रिया ने यह खुशखबरी दी कि वे अब साथ में ही रहेंगे, हमेशाहमेशा के लिए. मालिनी ने उठ कर अपने दोनों बच्चों का माथा चूम लिया. अजयजी भी खुश हो कर जोरजोर से हंसने लगे. आखिरकार वे दोनों भी अपने बच्चों को मिस तो करते ही थे. वरदान रिया को देख कर मुसकरा रहा था. भोली सी उस की रिया थोड़ी देर को रास्ता तो जरूर भटक गई थी, मगर वरदान अपनी समझदारी से उसे वापस अपने लोगों के बीच, कभी न जाने के लिए ले आया. उलझन मालिनी, अजय या फिर और किसी की निगाह में आने से पहले ही सुलझ गई.

लेखक- निधि माथुर

Family Story in Hindi

Minimalist Jewellery: स्टाइल से पहनें मिनिमलिस्ट ज्वैलरी

Minimalist Jewellery:  रोजमर्रा की दौड़भाग अब पहले से कहीं अधिक है और इस में अच्छे दिखते रहना एक मुश्किल टास्क बन गया है. मगर स्टाइलिश दिखना तो हर कोई चाहता है खासकर के महिलाएं और इन्हीं महिलाएं के लिए मिनिमलिस्ट ज्वैलरी उन के स्टाइल का एक हिस्सा है.

मिनिमलिस्ट ज्वैलरी अपनेआप में एक स्टैटमैंट ज्वैलरी देखी, समझी जाती है. यह साइज में भले छोटी होती है लेकिन लुक हमेशा बोल्ड दिखता है. वर्किंग वूमन हो, कालेज की युवा लड़कियां हों या फिर हाउसवाइफ यह ज्वैलरी हर उम्र, हर वर्ग की महिला की खास पसंद बनती जा रही है. इस की मनमोहक डिजाइनें आंखों में बस जाती हैं. यह दिखने में जितनी सादी, सिंपल है इस का लुक उतनी ही आकर्षित. इस का यही आकर्षण इस की लोकप्रियता बढ़ाता जा रहा है.

अपनी किन खासीयतों से यह महिलाएं की पसंद बनती जा रही है, आइए जानते हैं:

फैशनेबल ऐंड ट्रेंडिंग: फैशन और ट्रेंड्स जितनी तेजी से बदल रहे हैं उतनी तेजी से तो मौसम भी नहीं बदलते. इसी फैशनेबल लाइफस्टाइल से ताल से ताल मिलाने में मिनिमलिस्ट ज्वैलरी एक साथी का काम करती है. इस का सिंपल रिच लुक हर ट्रेंड के साथ मैच कर जाता है और महिलाओं के स्टाइल को आउटडेटेड नहीं होने देता.

लाइट वैट: जब भी ज्वैलरी की बात करें तो दिमाग में भारीभरकम सैट ही ध्यान आते हैं. लेकिन मिनी ज्वैलरी ने इस भारीपन को हमारे दिमाग और बौडी से कम कर दिया है. यह ज्वैलरी कम धातु (सोना) में बनी होती है, जिस से इस का वेट बहुत हलका होता है. यह वेट में भले लाइट हो लेकिन इस का मशीन वर्क इसे ठोस बनाए रखता है.

पौकेट फ्रैंडली: सोनेचांदी के भाव जिस तरह आसमान छू रहे हैं, उसे देख तो ज्वैलरी लेना एक चुनौती ही बनती जा रही है. पहले बीते वर्षों में सोने की कोई भी ज्वैलरी जेब पर बहुत भारी पड़ती थी क्योंकि पहले हलके वेट वाली ज्वैलरी का मिलना बहुत मुश्किल होता था. लेकिन जब से मिनिमलिस्ट ज्वैलरी का चलन शुरू हुआ है यह समस्या काफी कम हो गई है. अब हर वर्ग की महिला अपनी जेब के अनुसार ज्वैलरी खरीद पाती है. कई बार तो युवा लड़कियां भी अपनी पौकेट मनी से कुछ पैसे बचाबचा कर इस ज्वैलरी को खरीदती देखी गई हैं, जोकि उन की आत्मनिर्भरता और बचत करने की समझ का अच्छा प्रतीक है.

क्वालिटी: इस ज्वैलरी को बनाने में भले ही धातु और कैरट कम हो लेकिन क्वालिटी अच्छी रहती है. समय के साथ इस का मोल सोने के और आभूषणों की तरह बढ़ता है.

गिफ्ट का बैस्ट औप्शन: मिमी ज्वैलरी गिफ्ट का एक बहुत अच्छा औप्शन बनती जा रही है. शादी, सगाई, जन्मदिन या अन्य मांगलिक कार्य हो भारत में तोहफे और आशीर्वाद के तौर पर ज्वैलरी देने का चलन पुराने समय से चलता आ रहा है. लेकिन यह चलन हर किसी की जेब में फिट हो जाए ऐसा जरूरी नहीं. तब इसी चलन को पूरा करने के लिए मिनिमलिस्ट ज्वैलरी एक बहुत अच्छा औप्शन है.

ईजी टू कैरी: यह ज्वैलरी जितनी पहनने में इजी है उतनी ही कैरी करने में भी. पहले किसी फंक्शन में दूर गांव जाना होता था तो ज्वैलरी को साथ ले जाना, रास्ते भर उसे संभालना बहुत आफत जान पड़ती थी लेकिन अब यह मिनी ज्वैलरी के साथ आसान है. इस के लिए कोई बड़ा बौक्स या पैकिंग की जरूरत नहीं पड़ती. छोटे से पाउच या पौकेट में फिट हो जाती है.

वर्किंग वूमन की पहली पसंद: पहले औफिस जाने वाली महिलाओं के लिए ज्वैलरी पहनना बहुत मुश्किल भरा था खासकर उन महिलाओं के लिए जो शादीशुदा होती थीं क्योंकि उस वक्त लाइट ज्वैलरी मिलती नहीं थी और औफिस में बड़े एवं चमकीले आभूषण पहन कर जाना फौर्मल नहीं दिखता था. इसी परेशानी का हल मिनिमलिस्ट ज्वैलरी ले आई है. इस का सिंपल ऐंड ऐलिगैंट लुक फौर्मल वियर के साथ बैस्ट फिट होता है और इसी वजह से वर्किंग वूमन की पहली पसंद बनती जा रही है.

न पहनने वालों के लिए भी: बहुत सी महिलाओं को ज्वैलरी पहनना भाता ही नहीं. फिर भी घर वालों के कहने पर या किसी इंपौर्टैंट फंक्शन पर उन्हें पहननी ही पड़ती है. उन महिलाओं के लिए यह बहुत ही अच्छा औप्शन है. इसे पहनना और कैरी करना उन के लिए बहुत आसान है.

मैच विद ऐव्री आउटफिट: मिनिमलिस्ट ज्वैलरी की डिजाइनें इतनी क्लीन और सुंदर होती हैं कि आप ने चाहे ऐथनिक पहना हो या कैजुअल अथवा पार्टी ड्रैस, यह ज्वैलरी हर आउटफिट के साथ मैच कर जाती है और आप की सुंदरता में चारचांद लगाती है. आप पार्टी अथवा फंक्शन या औफिस के किसी भी कोने में क्यों न खड़े हों इस की अनूठी डिजाइनें लोगों का ध्यान आप की ओर खींच ही लेती हैं.

Minimalist Jewellery

Social Media: जिंदगी जीएं या फौलो करें

Social Media: जिंदगी माने सबकुछ. माने इंसान और हर जानदार चीज के पैदा होने से ले कर इस दुनिया में उस की आखिरी सांस तक का सफर.

जिंदगी मतलब घर, फैमिली, जौब, दुखसुख, दिनरात और जो कुछ भी हम इंसान कुदरत के बनाए गए इस 24 घंटे के टाइम फ्रेम में करते हैं.

आज की इस डिजिटल दुनिया की जिंदगी अब महज 24 घंटों में सिमट कर नहीं रही. घंटे जहां मिनटों में बदल गए और मिनट से ले कर हर लाइफ का हर एक सैकंड काउंटेबल और नोटिस किया जा रहा है डिजिटल लाइफ में.

जी हां अब लाइफ जो आज हम जी रहे हैं वह फिजिकल और सोशल सर्कल से निकल कर एक कौंपलैक्स डिजिटल लाइफ बन चुकी है.

सोशल मीडिया और लोगों की औनलाइन ऐक्टिविटी अब उन की फिजिकल यानी औफलाइन ऐक्टिविटीज को डौमिनेट कर रही है.

हम क्या करते हैं, कहां जाते हैं, क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं, क्या पीते हैं, कौन सी गाड़ी यूज करते हैं, किस हौस्पिटल में जाते हैं सबकुछ हमारी लाइफ में बीते 24 घंटों में चलता आ रहा वह सबकुछ अब औनस्क्रीन दिखाया जाने लगा है. उसे देखा जाने लगा है. उसे लाइक किया जा रहा है और अब तो वह सब फौलो भी किया जा रहा है जो किसी और की पर्सनल लाइफ में हो रहा है.

विजिबली जो हमारी आंखें देख रही हैं, वह सबकुछ हमारे माइंड में स्टोर हो रहा है और फिर वही अगले दिन हमारी लाइफ के रूटीन का हिस्सा बन गया है.

इन्फ्लुएंसर्स ऐंड फौलोअर्स

हिंदुस्तान यानी हमारा देश युवाओं का देश कहलाता है. 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में अब आधे यह ज्यादा लोग 25-40 की एज कैटेगरी में आते हैं और यही वह आबादी है जो इस डिजिटल इंडिया का फ्लैग ले कर बड़े शान से आगे बढ़ रही है.

सोशल मीडिया का सब से ज्यादा इस्तेमाल इसी एज ग्रुप में हो रहा है. यही वे लोग हैं जो डिजिटल आंधी में बहते चले जा रहे हैं और इसी डिजिटल आंधी में एक नया और काफी डौमिनेटिंग ट्रैंड उभर कर आ रहा है, जिसे आज की डेट में 2 नामों से जाना जाता है और वे हैं सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स और उन के फौलोअर्स.

यानी इस आबादी का एक छोटा सा हिस्सा अपनी पूरी लाइफ को डिजिटल प्लेटफौर्म पर ले कर चला आता है. वे अपनी दिनभर की सारी औफलाइन ऐक्टिविटीज को औनलाइन कर के सारी दुनिया के सामने सर्व कर रहा है.

वह कब क्या करता है, कहां जाता है, क्या काम करता है, किस जगह घूमने जाता है, कौन सी ब्रौड की क्लोदिंग यूज करता है, उस के घर उस की फैमिली और उस की प्रोफैशलन लाइफ में क्या चल रहा है, वह यह सबकुछ पब्लिक कर देता है जो हर किसी की प्राइवेट लाइफ का पार्ट होता है. वह अपनी पूरी जिंदगी एक कटैंट की शक्ल में डिजिटल वर्ल्ड के सामने रख देता है और इसी आबादी का दूसरा हिस्सा जो इन सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की लाइफ को इन 10-15 मिनटों के टाइमफ्रेम में देख रहा होता है, उन के लिए उस खास शख्स की लाइफ में चल रहा हर एक इवेंट एक कटैंट होता है जो वे कंज्यूम कर रहे होते हैं और वह सबकुछ उन्हें अट्रैक्टिव और इंप्रैसिव लगता है.

वर्चुअल रिलेशनशिप

वे इस इन्फ्लुएंसर की जिंदगी से जुड़ने लगते हैं. उन्हें ऐसा फील होता है कि वे उस इन्फ्लुएंसर से कनैक्ट हो रहे हैं. उस की पूरी जिंदगी उन की आंखों के सामने एक खूबसूरत और इंटरैस्टिंग फिल्म की तरह दिखती है, जिस से वे ऐंटरटेन भी होते हैं. वह सब उन्हें अच्छा भी लगता है और धीरेधीरे वह सब अपनी लाइफ में अडौप्ट भी करने लगते हैं जो कुछ उस कटैंट में से वे अपने लिए इंप्लिमैंट कर पाते हैं और इस तरह वे एक खास इंसान उन के लिए और उन जैसे कई लोगों के लिए इन्फ्लुएंसर बन जाता है और वे लोग जो उस की डिजिटल लाइफ को वाच करते हैं वे बन जाते हैं उस के फौलोअर.

मगर वे सिर्फ उस की लाइफ के उसी हिस्से से जुड़ पाते हैं जिसे वह सब के सामने रखता है और इस के इतर भी उस इंसान की अपनी एक प्राइवेट लाइफ होती है जिसे वह कभी सामने लाता ही नहीं.

देखा जाए तो अब लोग एक डिजिटल लाइफ के साथ 2 या कभीकभी उस से ज्यादा प्राइवेट लाइफ अपने लिविंग सिस्टम में जोड़ चुके होते हैं और उन की अपनी पर्सनल लाइफ तो वही होती है जिस के अंदर ?ांकने की उन फौलोअर्स को फ्रीडम होती नहीं मगर वे तो उस अधूरे सच को पूरा मान कर बस उसे ब्लाइंडली फौलो करने लगते हैं. एक वर्चुअल रिलेशनशिप बन जाती है उस पूरे नेटवर्क में.

डिजिटल ट्रैप

आज सोशल मीडिया के इस बढ़ते शिकंजे में तेजी से सबकुछ बदलता जा रहा है और इंसानी जिंदगियां अब पूरी तरह से इस की गिरफ्त में आ चुकी हैं. ज्यादातर लोग जो देखते हैं, उसे औबजर्व करते हैं और फिर उसे ही फौलो करने लगते हैं. अब लाइफ फिजिकल से कहीं ज्यादा डिजिटली मैटर करने लगी हैं और देखतेदेखते ही सोसाइटी में इन इन्फ्लुएंसर्स की पूरी आर्मी खड़ी हो गई है.

जहां छोटे से ले कर बड़े तक, बड़े से ले कर बहुत ज्यादा बड़े तक ये इन्फ्लुएंसर्र्स जिन्हें उन के फौलोअर्स की काउंटिंग के बेस पर कई कैटेगरीज में रखा जाने लगा हैं. जहां उन के फौलोअर्स की गिनती सैकड़ोंहजारों से ले कर कई लाखों तक में होती है और कुछ गिनेचुने इन्फ्लुएंसर्स के तो फौलोअर्स की गिनती अब करोड़ों में टच कर रही है.

हर दिन यू ट्यूब पर सैकड़ों की तादाद में वीडियोज अपलोड हो रहे हैं और उस से कहीं ज्यादा की तादाद में देखे जा रहे हैं, फौलो किए जा रहे हैं.

जिसे देखो वही कुछ न कुछ किसी न किसी तरीके से अपना एक फैनबेस बनाने की कोशिश कर रहा है. अपनी लाइफ, अपना काम. अपनी हौबीज या फिर अपने किसी खास एक्ट से लोगों को अपनी तरफ अट्रैक्ट करने की कोशिश में लगा हुआ है.

ऐसा नहीं कि इन इन्फ्लुएंसर्स की इस दिनबदिन बढ़ती फौज में कुछ अच्छे या काम के नहीं. इन में से बहुत ऐसे हैं जो लोगों को मोटिवेट कर रहे हैं अपनी लाइफ जर्नी से कि वे भी कुछ अच्छा करें. तो वहीं कुछ अपनी शायरी, अपने कौमिक एक्ट तो कुछ अपनी कुकिंग स्किल्स, तो कोई ट्रैवलिंग, ऐक्सरसाइज, हैल्थ और इन जैसे कई अहम मुद्दों के साथ अपनी कुछ स्पैश्यलिटी दिखा रहे हैं, कुछ यूनीक कर रहे हैं जो लोगों को पसंद आ रहा है. मगर अल्टीमेटली कहीं न कहीं ये सब एक कंटैंट फौरवर्ड कर रहे हैं. खासतौर पर वे लोग जो सीधेसीधे कुछ टैकनीक्स या कोई ज्ञान नहीं दे रहे, बस सुबह हुई या शाम अपनी लाइफ के, अपने डेली रूटीन के चंद मिनट लोगों के सामने रख रहे हैं.

उन में वह सबकुछ वही होता है जो एक कौमन कंटैंट में होता है और सुबह होते ही सब से पहले उन के फौलोअर्स के फोन पर उन की नए अपलोड वीडियो का नोटिफिकेशन आ जाता है.

जानेअनजाने एक ट्रैप बन जाता है

फिर सिलसिला शुरू हो जाता है. एक बार फिर अपने इन्फ्लुएंसर से इमोशनली कनैक्ट होने का. और एक बार जब आप किसी से इमोशनली कनैक्ट हो जाते हैं तो फिर वह सब अच्छा भी लगता है और कहीं न कहीं अपनी लाइफ में अडौप्ट करने का मन भी करता है. इस तरह जानेअनजाने यह एक ट्रैप बन जाता है.

पर क्या सचुमच जो हमारी आंखों के सामने दिखाया जा रहा है वह इतना अहम है कि उसे देखा जाए. फिर बेरोजगारी और खाली टाइम काटने वाली इस पौपुलेशन के पास वाकई में इतना टाइम है और वह अपने इसी टाइम के लिए टाइम पास करने का महज एक औपशन भर समझ कर इसे यूज कर रहे हैं? क्योंकि जो लोग यह देख रहे हैं वे कहीं न कहीं यह फील भी कर रहे हैं कि यह बस एक ऐंटरटेनमैंट या टाइम पास ही है उन की लाइफ में. बस मानने से इनकार है उन्हें. तो फिर महज चंद मिनटों के इन वीडियोज के लिए इतनी मैडनैस, यह दीवानगी क्यों आखिर? क्या होगा जो वे किसी खास इन्फ्लुएंसर को फौलो नहीं करेंगे?

वह कोई देशदुनिया की खबरें तो ला नहीं रहा इन तक या फिर वह सोसाइटी का कोई बर्निंग इशू भी नहीं डिसकस कर रहा उन से. वह यह जानता है कि वह आज कब उठा. उस के काम पर, उस के घर पर क्या हुआ, उस की पसर्नल लाइफ में क्या प्रौब्लम आई वह खुद सामने से जा कर पूरी दुनिया को यह बता रहा है.

अगर वह सच में किसी मुश्किल में होगा तो वह यह सोकाल्ड डिजिटल फैमिली जिसे कह रहा है, मान रहा है वे अपने फोन से निकल कर नहीं आएंगे उस की किसी हैल्प के लिए. या फिर वे हजारोंकरोड़ों लोग जो किसी न किसी इन्फ्लुएंसर या कई सारे इन्फ्लुएंसर से जुड़े होते हैं डिजिटली. जब उन की लाइफ में कुछ रियल प्रौब्लम होगी तो ये उन के सोकाल्ड मेनटार उन के पास नहीं आ सकते.

यही सच है और यही हकीकत

यही रिएलिटी चैक है कि जो आप देख रहे हो वह रियल होते हुए भी पूरी तरह रियल नहीं है.

फिर भी हर दिन आप किसी न किसी इन्फ्लुएंसर के वीडियोज और उन की रील्स देखते ही रहते हो क्योंकि धीरेधीरे पहले लाइक करतेकरते अब यह एक कंप्लीट हैबिट बन चुकी है. एक ऐसी हैबिट जिस में किसी की वर्चुअल प्रेजैंस अच्छी लगती है अपनी लाइफ में.

बहरहाल यह एक नया ट्रैंड जो शुरू तो हुआ था कुछ साल पहले जब सोशल मीडिया उभर रहा था. मगर आज की डेट में यह एक ऐस्टैबलिस्ट ट्रैंड है जो हर गुजरते दिन के साथ अब और ज्यादा पावरफुल हो रहा है.

ऐसा लग रहा है जैसे लोगों की नब्ज अब इस डिजिटल ट्रैप की चपेट में है. बेशक इसे रीचैक और रिव्यू करने की जरूरत है अब और शायद फिल्टर करने की भी ताकि यह समझ आए कि आंखों से गुजरने वाली हर चीज फौलो करने के लिए नहीं होती. आप इंसान हैं इंसान बन कर रहें वरना आप में और जानवरों में क्या फर्क रह जाएगा जो बस एकदूसरे के पीछेपीछे चल कर एक झुंड बना लेते हैं. उस से ज्यादा कुछ कर नहीं पाते.

जिंदगी आप की है और यह तय आप को करना है कि जिंदगी जीनी है या फौलो करनी है.

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Weight Loss Tips: बढ़ता वजन ऐसे करें कम

Weight Loss Tips: अकसर हम कुछ लोगों से सुनते रहते है कि क्या करूं कि वजन कम ही नहीं हो रहा जबकि सबकुछ जैसे ऐक्सरसाइज, कम खाना, डाइटिंग आदि तो कर रहा/रही हूं. मगर वे इस बात पर ध्यान नहीं देते कि वे क्या, कितना, कैसे और कब खा रहे हैं क्योंकि उन के वजन पर इन सब का असर पड़ता है.

उदाहरण के लिए जैसे आप ने एक ही रोटी खाई लेकिन आप ने यह एक रोटी कैसे खाई बटर या बिना बटर के यह माने रखता है. दूसरी ओर एक बड़ा प्लेन परांठा जो 30 ग्राम आटे से बना होता है उस में 121 कैलोरी मौजूद होती है और भरे हुए आलू के परांठे में 210 कैलोरी होती है. यदि आप डाइटिंग पर हैं तब इस बात पर गौर करना और जरूरी हो जाता है कि आप ने रोटी या परांठा कैसे खाया यानी साथ में और क्या था जैसे क्या उबली सब्जी खाई या तरी वाली मसालेदार अथवा पनीर क्योंकि इन सभी में कैलोरी की मात्रा अलगअलग होती है. तब फिर बढ़ते वजन पर यह कैलोरी कहीं न कहीं असर या प्रभाव डालती ही है.

इस स्थिति में इस बात से अवेयर या जागरूक रहना जरूरी हो जाता है कि आप अपना भोजन या डाइट प्लान किस तरह करें ताकि कैलोरी का इनटेक कम से कम रहे साथ ही जितनी कैलोरी आप ली उतनी बर्न भी करें.

साथ ही कई बार ऐसा भी होता है कि हम डाइटिंग पर होते हैं इस के लिए प्लान करते हैं कि घर का बना सादा खाना ही खाएंगे, मीठा और जंकफूड नहीं लेंगे लेकिन जैसे ही मौका मिलता है या अच्छा खाना सामने आता है हमारा डाइटिंग का प्लान एक तरफ रह जाता है और हम ढेर सारा कैलोरी से भरपूर खाना यह सोचते हुए खा लेते हैं कि आज ही तो खाना है. एक दिन खाने से क्या होगा कल नहीं खाएंगे और फिर यह कहते हैं कि इतना सब करने के बाद भी मेरा वजन कम नहीं हो रहा और फिर बढ़ते वजन को ले कर परेशान बने रहते हैं.

ऐसे में हम चाहें तो अपनी खानेपीने की आदतों में बदलाव से बढ़ते वजन को कम कर सकते हैं, जिस के लिए आप ये तरीके अपना सकते हैं:

अपनी डाइटिंग प्लान पर रहें अडिग

यदि आप ने अपने बढ़ते वजन को कम करने के लिए कुछ डाइट प्लान किया है तो उस पर अडिग रहें. अच्छा खाना देख कर मन को विचलित न होने दें क्योंकि प्रकृति ने हमें यह क्षमता दी है कि हम बिना कुछ खाए भी 6-7 दिनों तक स्वस्थ बने रह सकते हैं. इस के लिए हमारा शरीर, शरीर में स्टोर फैट या वसा का उपयोग करता है, जिस के कारण तेजी से वजन कम होता है. मगर वजन कम करने के लिए जरूरी नहीं कि आप भूखे रहें बल्कि कम कैलोरी वाला खाना अपनी डाइट में शामिल करें. शक्कर और जंकफूड से दूरी तथा नियमित ऐक्सरसाइज की मदद से आप अपने बढ़ते वजन को कंट्रोल कर सकते हैं और अपनी फिटनैस को बनाए रख सकते हैं.

कितनी कैलोरी जरूरी

आप को कितनी कैलोरी की आवश्यकता है यह इस बात पर निर्भर है कि आप की दिनचर्या, फिजिकल ऐक्टिविटी कैसी है और उम्र क्या है? आप पुरुष हैं या महिला क्योंकि पुरुषों को महिलाओं के मुकाबले ज्यादा कैलोरी की आवश्यकता होती है. यदि आप की फिजिकल ऐक्टिविटी कम है तो कम कैलोरी युक्त खाना खाएं. यदि हमें शरीर के वजन को बढ़ने से रोकना है तो याद रहे कि हम जितनी कैलोरी लें उतनी बर्न भी करें. आप के बढ़ते वजन को कंट्रोल करने के लिए यह जरूरी कदम है.

आदत 1: बहुत जल्दीजल्दी खाना 

आप की बहुत जल्दीजल्दी खानाखाने की आदत आप के बढ़ते वजन के लिए जिम्मेदार हो सकती है क्योंकि आप के पेट को आप के मस्तिष्क को यह संकेत देने में लगभग 20 मिनट लगते हैं कि आप का पेट भर गया है, इसलिए इस से पहले कि आप को पता चले कि आप का पेट भर गया है आप बहुत अधिक कैलोरी या खाना खा लेंगे. इस के लिए खाना आराम से और चबाचबा कर खाएं और बीच में थोड़ा ब्रेक ले लें ताकि आप के पेट को मस्तिष्क यह संकेत दे सके कि पेट भर गया है अब आप खाना बंद कर दें.

आदत 2: पर्याप्त पानी न पीना

वजन कम करने के लिए पानी का ज्यादा से ज्यादा सेवन करना होता है क्योंकि पानी शरीर से विषौले पदार्थों को शरीर से बाहर करने में मदद करता है और मैटाबोलिज्म को बढ़ाता है. फैट बर्न करने के लिए पानी पीना जरूरी होता है क्योंकि पानी के बिना शरीर स्टोर्ड या जमा फैट या फिर कार्बोहाइड्रेट को ठीक से चयापचय नहीं कर सकता है, साथ ही पानी पीने से शरीर हाइड्रेटेड रहता है. इस से वेट लौस होने में मदद मिलती है और कैलोरी भी तेजी से बर्न होती है.

वजन कम करने के लिए हमेशा खाना खाने से आधा घंटा पहले 1 या 2 गिलास पानी पीएं ताकि आप को खाने से पहले पेट भरे होने का एहसास होगा तभी आप खाना कम खाएंगे और ओवर ईटिंग करने से भी बच जाएंगे.

डिटौक्स वाटर भी वजन कम करने में अहम भूमिका निभा सकता है. डिटौक्स वाटर के लिए आप फलों या सब्जियों का उपयोग कर सकते हैं. इस पानी को आप सुबहसुबह खाली पेट पीएं. इस से शरीर को पोषक तत्त्व भी मिलेंगे और शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थ भी बाहर निकल जाएंगे. यही नहीं, डिटौक्स वाटर पीने से शरीर में कैलोरी इनटेक कम हो जाता है, जिस से वजन को संतुलित रखने में मदद मिलती है.

इस के लिए भरपूर पानी पीएं और पैक बंद जूस की जगह नारियल पानी, नीबू पानी आदि का सेवन करें.

आदत 3: हाई ऐनर्जी/कैलोरी वाले ड्रिंक्स और प्रोटीन से रहें दूर

अधिकतर लोग ऐक्सरसाइज करने के बाद ऐनर्जी ड्रिंक और प्रौटीन का सेवन करते हैं जबकि कुछ प्रोटीन शेक में शक्कर की भरपूर मात्रा होती है जोकि आप के वजन को बढ़ा सकती हैं. ध्यान रहे ये आप को ऐनर्जी तो देते हैं लेकिन इन में कैलोरी की मात्रा कई गुना ज्यादा होती है जो आप के मोटापे को कम करने के बजाय और बढ़ा सकती है.

इस के लिए हाई कैलोरी वाले ड्रिंक्स को सीमित करें क्योंकि इन में अकसर छिपी हुई शुगर होती है जोकि वजन बढ़ाने का काम करती है. अत: इन्हें लेने के बजाय पानी, ताजे फलों और सब्जियों का जूस, ग्रीन टी और घर पर बनी ग्रीन स्मूदी का विकल्प चुनें.

आदत 4: शादी समारोह या पार्टियों में ज्यादा खाने की आदत

पार्टियों या शादी समारोहों के दौरान जब भोजन या नाश्ते की प्लेट सामने होती है तो हम अपने दोस्तों के बीच बातोंबातों में बिना सोचेसमझे ज्यादा खाना खा लेते हैं या फिर अधिक कैलोरी खा सकते हैं. ज्यादा खाने से बचने के लिए सोचसमझ कर खाएं और अपनी भूख के संकेतों पर ध्यान दें. अपने लिए प्लेट लगाते समय उस में अधिक कैलोरी का खाना न लें.

आदत 5: टीवी देखते और मोबाइल चलाते हुए खाना खाना

जब आप टीवी देख रहे हों, अपने फोन पर स्क्रौल कर रहे हों या भोजन के दौरान काम कर रहे हों तब ऐसा हो सकता है कि तो आप का

इस बात पर ध्यान ही न जाए कि आप का पेट भरा गया है क्योंकि इस दौरान आप ने कितना खा लिया ध्यान ही नहीं देते और ज्यादा खाना खा लेते हैं.

इस के लिए आप क्या और कितना खा रहे हैं केवल उस पर ध्यान देना आप के वजन में एक बड़ा बदलाव ला सकता है. इस के लिए भोजन करते समय स्क्रीन से दूरी बनाएं, अपना ध्यान भटकाने से बचें ताकि भोजन के दौरान आप का ध्यान केवल क्या और कितना खा रहे हैं इस पर  रहे यानी माइंडफुल ईटिंग करें.

आदत 6: नियमित शारीरिक व्यायाम न करना

नियमित व्यायाम हमारे बढ़ते वजन को कम करने का एक कारगर तरीका है. बढ़ते वजन को नियंत्रण में रखने के लिए हमें प्रतिदिन सुबह आधा या 1 घंटा शारीरिक व्यायाम/ऐक्सरसाइज की आवश्यकता होती है. इस के लिए आप अपने लिए वह ऐक्सरसाइज या व्यायाम चुनें जिसे करने में आप को मजा आए. आप अपने नियमित व्यायाम में जैसे तेज चलना, दौड़ लगाना, साइक्लिंग करना आदि कर सकते हैं. अगर यदि आप को यह करना बोरिंग लगता है तो आप जुंबा या ऐरोबिक्स अथवा डांस को भी शामिल कर सकते हैं.

यदि व्यायाम करना घर पर संभव नहीं हो पा रहा है तो आप जिम या फिर योग क्लास अथवा किसी अन्य फिटनैस क्लास का हिस्सा भी बन सकते हैं. नियमित रूप से व्यायाम करने से मैटाबोलिज्म बढ़ता है एवं हमारी कैलोरी तेजी से बर्न होती है, जिस से वजन नियंत्रण में रहता है.

आदत 7: पर्याप्त प्रोटीन या फाइबर नहीं खाना

फाइबर और प्रोटीन जैसे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स लंबे समय तक आप के पेट को भरा हुआ रखते हैं या इस का एहसास कराते हैं. इसलिए यदि आप इन्हें पर्याप्त मात्रा में नहीं खाते हैं तो आप को अधिक और बारबार भूख लग सकती है क्योंकि प्रोटीन और फाइबर दोनों को पचने में अधिक समय लगता है. इन में मौजूद ऊर्जा धीरेधीरे अवशोषित होती है, जिस का अर्थ है कि खाने के बाद आप लंबे समय तक ऊर्जावान बने रहेंगे और भूख भी नहीं लगेगी. अत: अपने भोजन में फाइबर और प्रोटीन की मात्रा का सेवन बढ़ाएं जैसे बींस, फलियां, दाल, ब्रोकली, सेब, साबूत अनाज और हर भोजन के साथ प्रोटीन का एक हिस्सा खाने की कोशिश करें, जिस में अंडे, नट्स, दूध और दही शामिल करें.

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Online Shopping: कैसे आसान बनाएं इस फेस्टिव सीजन औनलाइन शौपिंग

Online Shopping: त्योहारों के सीजन में हर घर में शौपिंग का सिलसिला शुरू हो जाता है. दशहरा, दीवाली, क्रिसमस, न्यूईयर जैसे त्योहारों की झड़ी लग जाती है. ऐसे में परिवार और रिश्तेदारों के लिए गिफ्ट लेना हो, घर में कोई नया सामान लेना हो, नए कपड़े खरीदने हों, ज्वैलरी खरीदनी हो आदि चीजों के लिए हम शौपिंग में जुट जाते हैं. वैसे तो सब को यही लगता है कि शौपिंग के लिए बाहर जाने की जरूरत ही क्या है औनलाइन मंगा लेते हैं.

लेकिन इस बार क्यों न शौपिंग के लिए बाजार घूम आएं जैसे बचपन में सब साथ मिल कर शौपिंग करते थे और साथ ही चाटपकोड़ी का मजा लेते थे. सहेली, मौसी या बूआ की पसंद से खरीदारी कर के इठलाते थे. वह सब इस बार हम फिर से जीएं. ऐसे शौपिंग करना सस्ता भी पड़ता है. कई बार कुछ चीजें थोक में सस्ती ही मिलती हैं, फिर घर जा कर उन्हें बांट लेने में जो आनंद है वह अलग ही है.

लोकल मार्केट माहौल

लोकल मार्केट में शौपिंग करने का अनुभव ही अलग है. यहां ब्रैंड का सामान तो कम ही मिलता है पर जो मिलता है वह वैराइटी और रेट कहीं नहीं मिलेंगे. यहां से आप एक चीज लेने जाएंगे तो उतने पैसों में 4 चीज लें आएंगे. इसलिए बड़ीबड़ी ब्रैंडेड दुकानों के बजाय स्थानीय बाजारों में जाएं. वहां आप को न केवल सस्ते दामों पर सामान मिलेगा बल्कि मोलभाव ही कर सकते हैं जब भी संभव हो. विशेष रूप से हैंडमेड और पारंपरिक सामान खरीदने के लिए लोकल मार्केट सब से अच्छी होती है.

बार्गेनिंग का मजा

जब तक दुकानों में जा कर एक सामान के लिए दुकानदार से ?ाक मार कर पैसे कम न करवाएं तो क्या शौपिंग की. ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि फिर अपनी सहेलियों के बीच शान भी तो दिखानी है कि देखो मैं यह चीज कितने कम पैसों में ले आई. जब अपने तय किए हुए दाम में दुकानदार से वह चीज मिल जाए तो इस की खुशी ही अलग होती है. अगर आप ने औनलाइन के चक्कर में इस स्वाद का मजा नहीं चखा है तो एक बार चख कर देखिए आप औनलाइन भूल जाएंगे.

क्लियरैंस सेल का ध्यान रखें

त्योहारों के समय कई दुकानों में क्लियरैंस सेल का आयोजन होता है. इन अवसरों का लाभ उठा कर आप अच्छे सामान को कम कीमत में खरीद सकते हैं. इस से आप की शौपिंग में काफी बचत हो सकती है. इस समय दुकानदार अपना पुराना माल निकल रहे होते हैं इसलिए काफी कम कीमत में आप को सामान मिल जाता है और वैसे भी पुराना क्या जो आप ने नहीं पहना वो आप के लिए नया ही है.

फ्रैंड्स के साथ आउटिंग का बहाना

शौपिंग सिर्फ खरीदारी करना नहीं है बल्कि सहेलियों के साथ टाइम पास करना और आउटिंग पर जाने का अच्छा बहाना भी है. इस के जरीए आप अपनी सहेलियों से मिल कर खरीदारी के साथ ट्रीट का मजा भी ले सकती हैं, मौल घूमनेफिरने का आनंद ले सकती हैं.

मिल कर जाएं थोक रेट पाएं

अगर आप चांदनी चौक, सदर बाजार समेत अन्य बाजारों में से थोक के भाव में सामान खरीद रहे हैं तो ध्यान रखें यहां पूरापूरा बंडल मिलता है और बहुत कम रेट पर मिल जाता है. इसलिए कई लोग मिल कर एक सामान ले सकते हैं और औफर का मजा ले सकते हैं. घर जा कर सामान आधाआधा कर लें. लेकिन एक बात का ध्यान भी रखें जब आप ज्यादा सामान लें तो अपनी आंखों के सामने पैकिंग करवाएं और किसी पर भी भरोसा न करें.

औफलाइन में भी बड़ी छूट

त्योहारों के समय दुकानदार आमतौर पर विशेष छूट और औफर्स देते हैं. इस से पहले कि आप खरीदारी करें, यह सुनिश्चित करें कि आप सभी संभावित छूटों का लाभ उठा रहे हैं. अकसर एक ही सामान पर विभिन्न दुकानों में अलगअलग औफर होते हैं, इसलिए इन चीज को जरूर देख लें.

क्वालिटी चैक कर लें

कई बार दुकानदार किसी सामान का सैंपल दिखा देता है और उस प्रोडक्ट को खोल कर देखने से मना कर देता है. वहीं जब आप सामान को घर ले कर आते हैं और पैकिंग खोलते हैं तो पाएंगे कि सामान खराब है. बाद में दुकानदार रिफंड देने के लिए भी मना कर देते हैं. बता दें, दुकानदार भीड़ का फायदा उठाते हुए ऐसा करते हैं. ऐसे में कितनी भी भीड़ क्यों न हो, सामान खरीदते समय सावधानी बरतें.

रेट क्रौस चैक कर लें

दीवाली, दशहरे की शौपिंग के दौरान मार्केट में हर सामान का रेट 7वें आसमान पर होता है. इसलिए दुकानदार कई कस्टमर को बेवकूफ बना देते हैं और कम रेट की चीजें डबल रेट पर बेच देते हैं. ऐसे में आप को काफी नुकसान हो सकता है. अगर आप कोई भी सामान इन दिनों खरीद रहे हैं तो पहले अन्य दुकानों से रेट को क्रौस चैक कर लें ताकि फालतू के पैसे खर्च होने से बच सकें.

शौपिंग लिस्ट है जरूरी

कई बार जरूरत न होने पर भी हम बहुत सा सामान ऐक्स्ट्रा खरीद लाते हैं और घर ला कर पता चलता है यह तो पहले से ही था. इसलिए इन सब बातों से बचने के लिए जरूरत है कि जो भी चाहिए उस की लिस्ट पहले से ही बना कर रखें और जब औफर आए या सेल लगे तो तुरंत अपनी पसंद की चीज ले आएं. इस से आप फोकस्ड हो कर शौपिंग कर पाएंगे और समय भी कम लगेगा.

आसपास के औफर्स पर भी नजर रखें

कई बार आप को लोकल दुकानों पर औनलाइन सेल की तुलना में कहीं अच्छे औफर मिल जाते हैं और ऐसा खासकर घर की जरूरतों के सामान पर होता है जैसेकि बरतन, रसोई के डब्बों, सजावटी सामान आदि पर लोकल दुकानों पर अच्छा सामान मिल जाता है और वह भी किफायती दामों पर.

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Gold Facial: पुराना भी नया भी पर हमेशा सोने सा दमकता

Gold Facial: ब्यूटी की दुनिया में ट्रीटमैंट्स रोज नए आते हैं. कोई फ्रूट वाला, कोई डायमंड फेशियल तो कोई औक्सीजन थ्योरी लेकिन कुछ ऐसे ट्रीटमैंट्स होते हैं जो समय बीतने के बाद भी एवरग्रीन बने रहते हैं. गोल्ड फेशियल उन्हीं में से एक है. 90 के दशक में जब पहली बार गोल्ड फेशियल सामने आया तो लोगों को यह सिर्फ एक लग्जरी नहीं बल्कि एक नया अनुभव लगा. उस समय उस की चमक इतनी ज्यादा थी कि हर महिला की ख्वाहिश बन गया. समय के साथ और भी कई फेशियल्स आए लेकिन गोल्ड फेशियल का चार्म कभी कम नहीं हुआ.

गोल्ड को हमेशा से ही रिचनैस, ग्लो और शान का प्रतीक माना गया है. पहले गोल्ड फेशियल का मतलब था गोल्ड बेस्ड क्रीम और पैक लगाना. चेहरे पर हलकीहलकी मसाज होती और तुरंत एक निखार आ जाता. लेकिन आज का गोल्ड फेशियल पहले से कहीं ज्यादा एडवांस्ड हो चुका है. अब इस में 24 कैरेट गोल्ड की नाजुक सी लीफ सीधे चेहरे पर रखी जाती है और अल्ट्रासाउंड मशीन की मदद से इसे स्किन की गहराई तक पहुंचाया जाता है.

यह प्रोसैस न सिर्फ चेहरे की झुर्रियों की विजिबिलिटी कम करता है बल्कि डलनैस और थकान को भी मिटा देता है. गोल्ड पार्टिकल्स जब अंदर तक औब्जर्ब होते हैं तो ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है जिस से नैचुरल ग्लो लंबे समय तक टिका रहता है और त्वचा टाइट और फर्म दिखने लगती है. यही वजह है कि आज भी खास मौकों पर महिलाएं गोल्ड फेशियल को ही चुनती हैं.

बड़ी खासीयत

इस फेशियल की सब से बड़ी खासीयत यह है कि यह हर उम्र की स्किन पर समान रूप से असर करता है. युवा लड़कियों को यह इंस्टैंट ग्लो देता है और जिन की स्किन पर उम्र के निशान दिखने लगते हैं उन के लिए यह रिंकल्स और सैगिंग को कम करने का बेहतरीन तरीका है. यही कारण है कि शादीब्याह की तैयारियों में, त्योहारों के समय और किसी बड़े सैलिब्रेशन से पहले गोल्ड फेशियल हमेशा सब से आगे रहता है.

मगर सिर्फ फेशियल कराना ही काफी नहीं होता. यह ग्लो और फ्रैशनैस लंबे समय तक बनी रहे, इस के लिए घर पर भी केयर जरूरी है. इसी सोच के साथ मैं ने स्पैशली गोल्ड लीफ स्पैशल औयल तैयार किया है. इस में भी 24 कैरेट गोल्ड की डस्ट और लीफ का इस्तेमाल किया गया है. जब आप इस से रोजाना हलके हाथों से चेहरे पर मसाज करती हैं तो गोल्ड पार्टिकल्स धीरेधीरे स्किन में औब्जर्ब हो कर उसे कंटिन्यूसली नरिश करते हैं. सैलून में जब गोल्ड लीफ को स्किन में डालते हैं तो मशीन की मदद से डीप पेनेट्रेशन मिलता है लेकिन घर पर रैग्युलर केयर के लिए यह औयल सब से परफैक्ट है. यह रोज आप की स्किन को रिचार्ज करता है और फेशियल का असर कई गुना बढ़ा देता है.

लग्जरी ट्रीटमैंट

गोल्ड फेशियल की पौपुलैरिटी का एक और कारण है इस का होलिस्टिक इफैक्ट. यह ट्रीटमैंट सिर्फ चेहरे को सुंदर नहीं बनाता बल्कि स्ट्रैस और थकान भी कम करता है. जब चेहरे पर गोल्ड लीफ रखी जाती है और हलकीहलकी मशीन वेव्स स्किन को सोथी करती हैं तो माइंड भी रिलैक्स होता है. कह सकते हैं कि यह थेरैपी स्किन और सोल दोनों को ग्लो देती है.

सच तो यही है कि आज का गोल्ड फेशियल सिर्फ एक लग्जरी ट्रीटमैंट नहीं बल्कि स्किन की जरूरत है. पौल्यूशन, स्ट्रैस और बढ़ती उम्र जहां चेहरे की रौनक छीन लेती है वहीं गोल्ड फेशियल उसे वापस लौटा देता है और जब घर पर रोज गोल्ड लीफ स्पेशल औयल लगाया जाए तो यह असर और भी गहरा और लंबा हो जाता है.

ब्यूटी का असली चार्म मेकअप से नहीं बल्कि हैल्दी, ग्लोइंग और नैचुरल स्किन से झलकता है और जब स्किन की वह चमक प्योर गोल्ड जैसी हो तो उस का आकर्षण हमेशा सब से अलग और सब से खास रहता है. यही वजह है कि ट्रेंड्स चाहे जैसे बदलें पर गोल्ड का ग्लो कभी पुराना नहीं होता.

-ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर

डाइरैक्टर डा.भारती तनेजा

Gold Facial

Romantic Story: प्यार की खातिर- क्या हुआ समुद्र किनारे बैठी रश्मि के साथ?

Romantic Story: हमेशा की तरह इस बार भी जब रोहिणी और कार्तिक के बीच जम कर बहस हुई, तो कार्तिक झगड़ा समाप्त करने की गरज से अपने कमरे में जा कर लैपटौप में व्यस्त हो गया.

रोहिणी उत्तेजित सी कुछ देर कमरे में टहलती रही. फिर एकाएक बाहर चल दी.

गेट से निकल ही रही थी कि वाचमैन दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘कहीं जाना है मेमसाब? टैक्सी बुला दूं?’’

‘‘नहीं, मैं पास ही जा रही हूं. 10 मिनट में लौट आऊंगी.’’

रात के 10 बज रहे थे, पर कोलाबा की सड़कों पर अभी भी काफी गहमागहमी थी. दुकानें अभी भी खुली हुई थीं और लोग खरीदारी कर रहे थे. रेस्तरां और हलवाईर् की दुकानों के आसपास भी भीड़ थी.

रोहिणी के मन में खलबली मची हुई थी. आजकल जब भी उस की पति के साथ बहस होती, तो बात कार्तिक के परिवार पर ही आ कर थमती. कार्तिक अपने मातापिता का एकलौता बेटा था. अपनी मां की आंखों का तारा, उन का बेहद दुलारा. उस की 3 बड़ी बहनें थीं, जो उसे बेहद प्यार करती थीं और उसे हाथोंहाथ लेती थीं.

रोहिणी को इस बात से कोई परेशानी नहीं थी, पर कभीकभी उसे लगता था कि उस का पति अभी भी बच्चा बना हुआ है. वह एक कदम भी अपनी मरजी से नहीं उठा सकता है. रोज जब तक दिन में एकाध बार वह अपनी मां व बहनों से बात नहीं कर लेता उसे चैन नहीं पड़ता था.

जब भी इस बात को ले कर रोहिणी भुनभुनाती तो कार्तिक कहता, ‘‘पिताजी के देहांत के बाद उन की खोजखबर लेने वाला मैं अकेला ही तो हूं. मेरे पैदा होने के बाद से मां बीमार रहतीं… मेरी तीनों बहनों ने ही मेरी परवरिश की है. मेरे पिता के देहांत के बाद मेरी मां ने मुझे बड़ी मुश्किल से पाला है. मैं उन का ऋण कभी नहीं चुका सकता.’’

ऐसी दलीलों से रोहिणी चुप हो जाती थी. पर उसे यह बात समझ में न आती थी कि बच्चों को पालपोस कर बड़ा करना हर मातापिता का फर्ज होता है, तो इस में एहसान की बात कहां से आ गई? पर वह जानती थी कि कार्तिक से बहस करना बेकार था. वैसे उसे अपने पति से और कोई शिकायत नहीं थी. वह उस से बेहद प्यार करता था. वह एक भला इनसान था और उस के प्रति संवेदशील था. उसे कोफ्त केवल इस बात से होती कि उसे अपने पति का प्यार उस के घर वालों से साझा करना पड़ता है.

जब उस की शादी हुई तो कार्तिक ने उस से कहा था, ‘‘जानेमन, तुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना घर जैसे चाहे सजाओ, जिस तरह चाहे चलाओ. मैं ने अपने को भी तुम्हारे हवाले किया. मेरी तुम से केवल एक ही गुजारिश है कि चूंकि मैं अपने परिवार से बेहद जुड़ा हुआ हूं इसलिए चाहता हूं तुम भी उन से मेलजोल रखो, उन का आदरसम्मान करो. मैं अपनी मां की आंखों में आंसू नहीं देख सकता और अपनी बहनों को भी किसी भी कीमत पर दुख नहीं पहुंचाना चाहता.’’

उसे याद आया कि अपने हनीमून पर जब वे सिंगापुर गए थे, तो उन्होंने खूब मौजमस्ती की थी.

एक दिन जब वे बाजार से हो कर गुजर रहे थे, तो कार्तिक एक जौहरी की दुकान के सामने ठिठक गया. बोला, ‘‘चलो जरा इस दुकान में चलते हैं.’’

वह मन ही मन पुलकित हुई कि क्या कार्तिक उसे कोई गहना खरीद कर देने वाला है.

उन्होंने दुकान में रखे काफी गहने देख डाले. फिर कार्तिक ने एक हार उठा कर कहा, ‘‘यह हार तुम्हें कैसा लगता है?’’

‘‘अरे, यह तो बहुत ही खूबसूरत है,’’ खुशी से बोली.

‘‘तुम्हें पसंद है तो ले लो. हमारे हनीमून की एक यादगार भेंट’’

‘‘ओह कार्तिक, तुम कितने अच्छे हो. लेकिन इतनी महंगी…?’’

‘‘कीमत की तुम फिक्र न करो और हां सुनो 1-1 गहना अपनी तीनों बहनों के लिए भी ले लेते हैं. यहां से लौटेंगे तो वे सब मुझ से किसी भेंट की अपेक्षा करेंगी.’’

सुन कर रोहिणी मन ही मन कुढ़ गई पर कुछ बोली नहीं.

‘‘और मांजी के लिए?’’ उस ने पूछा.

‘‘उन के लिए एक शाल ले लेते हैं.’’

वे घर सामान से लदेफदे लौटे. उस के बाद भी हर तीजत्योहार पर अपने परिवार के लिए तोहफे भेजता. जब भी विदेश जाता, तो उस के पास भानजेभानजियों की मनचाही वस्तुओं की लिस्ट पहले पहुंच जाती. अपने परिवार वालों के लिए उन के कहने की देर होती कि वह उन की फरमाइश तुरंत पूरी कर देता.

रोहिणी को इस पर कोई आपत्ति न थी. कार्तिक एक आईटी कंपनी में कार्यरत था और अच्छा कमा रहा था. उसे पूरा हक था कि वह अपनी कमाई जैसे चाहे, जिस पर चाहे, खर्च करे. पर उसे यह बात बुरी तरह अखरती थी कि कार्तिक के जिस कीमती समय को वह अपने लिए सुरक्षित रखना चाहती उसे भी वह बिना हिचक अपने परिवार को समर्पित कर देता. रोहिणी को अपने पति का प्यार उस के घर वालों के साथ बांटना बहुत नागवार गुजरता.

अब आज ही की बात ले लो. उन की शादी की सालगिरह थी. वह कब से सोच रही थी कि इस बार एक शानदार जगह जा कर ठाट से छुट्टियां मनाएंगे पर सब गुड़ गोबर हो गया. जब से उस की 2-4 किट्टी पार्टी वाली सहेलियां इटली हो कर आई थीं वे लगातार उस जगह की तारीफ के पुल बांध रही थीं कि उन्होंने वहां कितना लुत्फ उठाया. सुनसुन कर उस के कान पक गए थे. उस की 1-2 सहेलियों के पति जो अरबपति थे, वे उन की दौलत दोनों हाथों से लुटातीं थीं और नित नईर् साडि़यों और गहनों की नुमाइश करती थीं. इस से रोहिणी जलभुन जाती थी.

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने पति को राजी कर लिया था कि इस बार वे भी विदेश जा कर दिल खोल कर पैसा खर्च करेंगे, खूब मौजमस्ती करेंगे.

उस ने मन ही मन कल्पना की थी कि जब वह फ्रैंच शिफौन की साड़ी में लिपटी, महंगे फौरेन सैंट की खुशबू बिखेरती, हाथ में चौकलेट का डब्बा लिए किट्टी पार्टी में पहुंचेगी तो सब उसे देख कर ईर्ष्या से जल मरेंगी पर ऊपरी मन से उस की खूब तारीफ करेंगी.

मगर आज रात खाने के बाद जब उस ने यह बात उठाई तो कार्तिक बोला, ‘‘इस बार तो विदेश जाना जरा मुश्किल होगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि बड़ी दीदी शकुंतला की बेटी रीना की शादी पक्की हो गई है. मैं ने तुम्हें बताया तो था… आज ही सुबह उन का फोन आया कि इसी महीने सगाई की रस्म है और हमारा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है. आखिर मैं एकलौता मामा हूं न… भानजी की शादी में मेरी प्रमुख भूमिका रहेगी.’’

‘‘आप के घर में तो हमेशा कुछ न कुछ लगा रहता है,’’ वह मुंह बना कर बोली, ‘‘कभी किसी का जन्मदिन है, तो कभी किसी का मुंडन तो कभी कुछ और.’’

‘‘अरे जन्मदिन तो हर साल आता है. उस की इतनी अहमियत नहीं… पर शादीब्याह तो रोजरोज नहीं होते न? दीदी ने बहुत आग्रह किया है कि हम जरूर आएं. वे कोई भी बहाना सुनने को तैयार नहीं हैं.’’

‘‘मैं पूछती हूं कि क्या हम कभी अपनी मरजी से नहीं जी सकते?’’

‘‘डार्लिंग, इतना क्यों बिगड़ती हो… हम शादी की सालगिरह मनाने अगले साल भी तो जा सकते हैं… अभी से तय कर लो कि कहां जाना है और कितने दिनों के लिए जाना है… मैं सारी प्लानिंग तुम्हीं पर छोड़ता हूं.’’

‘‘जी हां, बड़ी मेहरबानी आप की… हम सारा प्लान बना लेंगे और फिर आप के घर वालों का एक फोन आएगा और सब कुछ कैंसल.’’

‘‘यह हमेशा थोड़े न होता है?’’

‘‘यह हमेशा होता है… हर बार होता है. हमारी अपनी कोई जिंदगी ही नहीं है.’’

‘‘तुम बेकार में नाराज हो रही हो… क्या मैं ने कभी तुम्हें किसी चीज से वंचित रखा है? हमेशा तुम्हारी इच्छा पूरी की है. तुम्हारे सारे नाजनखरे सहर्ष उठाता हूं.’’

‘‘इस में कौन सी बड़ी बात है…. यह तो हर पति करता है, बशर्ते वह अपनी पत्नी से प्यार करता हो.’’

‘‘तो तुम्हारा खयाल है कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता?’’ कार्तिक रोहिणी की आंखों में झांक कर मुसकराया.

‘‘लगता तो ऐसा ही है.’’

‘‘रोहिणी, यह तुम ज्यादती कर रही हो. जानती हो मेरा तुम्हारे प्रति प्रेम देख कर मेरे यारदोस्त मुझे बीवी का गुलाम कह कर चिढ़ाते हैं.’’

‘‘अच्छा? वे ऐसा क्यों कहते हैं भला, जब मेरी हर बात काटी जाती है… मेरा हर प्रस्ताव ठुकराया जाता है. हां, अगर कोई तुम्हें मां के पल्लू से बंधा लल्लू या बहनों का पिछलग्गू कहे तो मैं मान सकती हूं.’’

कार्तिक खिलखिला कर हंस पड़ा, ‘‘तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’

कार्तिक ने टीवी औन कर लिया. रोहिणी थोड़ी देर बड़बड़ाती रही. वह इस मसले को कल पर नहीं छोड़ना चाहती थी. अभी कोई फैसला कर लेना चाहती थी. अत: बोली, ‘‘तो क्या तय किया तुम ने?’’

‘‘किस बारे में?’’

‘‘यह लो घंटे भर से मैं क्या बकबक किए जा रही हूं… हम इस टूअर पर जा रहे हैं या नहीं?’’

‘‘कह तो दिया भई कि इस बार जरा मुश्किल हैं. तुम तो जानती हो कि मुझे साल में सिर्फ 2 हफ्ते की छुट्टी मिलती है. शादी में जाना जरूरी है… पर अगले साल इटली अवश्य…’’

‘‘जी नहीं, मुझे तुम इन खोखले वादों से नहीं टाल सकते.’’

‘‘पर अगले साल भी इटली उसी जगह बना रहेगा और हम दोनों भी.’’

‘‘और तुम्हारा परिवार भी तो वैसे ही सहीसलामत ही रहेगा.’’

‘‘तुम कभीकभी बड़ी बचकानी बातें करती हो.’’

‘‘हां, मैं तो हूं ही बेवकूफ, सिरफिरी, अदूरदर्शी…  सारी बुराइयां मुझ में कूटकूट कर भरी हैं.’’

‘‘तुम से इस विषय में बात करना बेकार है… अभी तुम्हारा दिमाग जरा गरम है. कल

सुबह ठंडे दिमाग से इस बारे में बात करेंगे.

मैं जरा दफ्तर का जरूरी काम निबटा कर आता हूं,’’ कह कार्तिक अपने औफिसरूम में चला गया.

रोहिणी अपनी बात न मनवा पाई तो गुस्से से बिफर गई. कुछ देर वह क्रोध में भरी बैठी रही. फिर सहसा उठ कर बाहर की ओर चल दी.

कोलाबा के बाजार में अभी भी काफी चहलपहल थी. रीगल सिनेमा के पास पहुंची तो देखा कि वहां भी भीड़ है. उस ने सोचा कि टिकट खरीद कर रात का शो देख ले. 2 घंटे आराम से बीत जाएंगे. पर फिर यह सोच कर कि इस बीच अगर कार्तिक ने उसे घर में न पाया तो वह परेशान हो जाएगा. उसे पागलों की तरह ढूंढ़ेगा. इधरउधर फोन घुमाएगा, अपना इरादा बदल दिया. फिर वह गेट वे औफ इंडिया की तरफ मुड़ गई.

यहां लोग समुद्र के किनारे बैठे ठंडी हवा का लुत्फ उठा रहे थे. रोहिणी भी वहां मुंडेर पर बैठ गईर् और अपनी नजरें समुद्र के पार क्षितिज पर गड़ा दीं.

समुद्र के बीच 2-3 समुद्री जहाज लंगर डाले थे. उन की बत्तियां पानी में झिलमिला रही थीं. रोहिणी ने हसरत भरी नजरों से समुद्र की गहराइयों में झांका. बस इस अथाह जल में समाने की देर है, उस ने सोचा. एक ही पल में उस के प्राणों का अंत हो जाएगा.

उस ने मन की आंखों से देखा कार्तिक उस के निष्प्राण शरीर से लिपट कर बिलख रहा है कि हाय प्रिये, मैं ने क्यों तुम्हारी बात न मानी. मैं जानता न था कि तुम इतनी सी बात पर मुझ से रूठ जाओगी और मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाओगी.

पर नहीं, वह क्यों अपनी जान दे. उस ने अभी दुनिया में देखा ही क्या है और उस के ऊपर कौन सा गमों का पहाड़ टूट पड़ा है, जो वह अपनी जान देने की सोचे. ठीक है पति से थोड़ी खटपट हुई है. यह तो हर शादीशुदा स्त्री के जीवन का हिस्सा है. कभी खुशी तो कभी गम. और सच पूछा जाए तो उस के जीवन में खुशियां ज्यादा हैं गम न के बराबर.

वह आज जरा उत्तेजित है, विचलित है, क्योंकि उस की मनमानी नहीं हुई है. कभीकभी उस का पति किसी बात पर अड़ जाता है तो टस से मस नहीं होता और उसे मजबूरन उस के आगे हार माननी पड़ती है. उस की शादी को 4 साल हो गए और अभी तक वह समझ न पाई कि वह अपने पति से कैसे पेश आए.

खयालों में डूबी रोहिणी को समय का भान ही न हुआ. अचानक उस ने चौंक कर देखा कि उस के आसपास की भीड़ अब छंट चुकी थी. खोमचे वाले, आइसक्रीम वाले अपना सामान समेट कर चल दिए थे. हां, ताज होटल के सामने अभी भी काफी रौनक थी. लोग आ जा रहे थे. मुख्यद्वार पर संतरी मुस्तैद था.

एक और बात रोहिणी ने नोट की. समुद्र के किनारे की सड़क पर अब कुछ स्त्रियां भड़कीले व तंग कपड़े पहने चहलकदमी कर रही हैं. उन्हें देख कर साफ लगता है कि वे स्ट्रीट वाकर्स हैं यानी रात की रानियां.

हर थोड़ी देर में लोग गाडि़यों में आते. किसी एक स्त्री के पास गाड़ी रोकते, मोलतोल करते और वह स्त्री गाड़ी में बैठ कर फुर्र हो जाती. यह सब देख कर रोहिणी को बड़ी हंसी आई.

सहसा एक गाड़ी उस के पास आ कर रुकी. उस में 3-4 युवक सवार थे, जो कालेज के छात्र लग रहे थे.

‘‘हाय ब्यूटीफुल,’’ एक युवक ने कार की खिड़की में से सिर निकाल कर उसे आवाज दी, ‘‘अकेली बैठी क्या कर रही हो? हमारे साथ आओ… कुछ मौजमस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे.’’

रोहिणी दंग रह गई कि क्या ये पाजी लड़के उसे एक वेश्या समझ बैठे हैं? हद हो गई. क्या इन्हें एक भले घर की स्त्री और एक वेश्या में फर्क नहीं दिखाई देता? अब यहां इतनी रात गए यों अकेले बैठे रहना ठीक नहीं. उसे अब घर चल देना चाहिए.

रोहिणी तेजी से घर का रूख किया. कार उस के पास से सर्र से निकल गई. पर कुछ ही देर बाद वही कार लौट कर फिर उस के पास आ कर रुकी.

‘‘आओ न डियर. होटल में बियर पीएंगे. तुम्हें चाइनीज खाना पसंद है? हम तुम्हें नौनकिंग रेस्तरां में खाना खिलाएंगे. उस के बाद डांस करेंगे. हम तुम्हारा भरपूर मनोरंजन करेंगे,’’ एक लड़के ने खिड़की से सिर निकाल कर कहा.

‘‘आप को गलतफहमी हुई है,’’ वह संयत स्वर में बोली, ‘‘मैं एक हाउसवाइफ हूं. अपने घर जा रही हूं.’’

‘‘तो चलो न हम आप को आप के घर छोड़ देते हैं. कहां रहती हैं आप?’’ वे लड़के कार धीरेधीरे चलाते हुए उस का पीछा करते रहे और लगातार उस से बातें करते रहे. जाहिर था कि वे कंगाल थे. वे बिना पैसा खर्च किए उस की सोहबत का आनंद उठाना चाहते थे.

रोहिणी अपनी राह चलती रही. सहसा गाड़ी उस के पास आ कर झटके से रुकी. एक लड़का गाड़ी से उतरा और उस के पास आ कर बोला, ‘‘आखिर इतनी जिद क्यों कर रही हो स्वीटी?’’ हम तुम्हें सुपर टाइम देंगे… आई प्रौमिस. चलो गाड़ी में बैठो और वह रोहिणी से हाथापाई करने लगा.

‘‘मुझे हाथ मत लगाना नहीं तो मैं शोर मचा पुलिस बुला लूंगी,’’ उस ने कड़क आवाज में कहा.

अचानक एक और कार उस के पास आ कर रुकी. उस का हौर्न जोर से बज उठा. रोहिणी ने चौंक कर देखा तो कार्तिक अपनी कार में बैठा उसे आवाजें लगा रहा था, ‘‘रोहिणी जल्दी आओ गाड़ी में बैठो.’’

रोहिणी अपना हाथ छुड़ा दौड़ कर गाड़ी में बैठ गई.

‘‘इतनी रात को यह तुम्हें क्या सूझी?’’ कार्तिक ने उसे लताड़ा, ‘‘यह क्या घर से अकेले बाहर निकलने का समय है?’’ रोहिणी तुम्हें कब अक्ल आएगी? देखा नहीं कैसेकैसे गुंडेमवाली रात को सड़कों पर घूमते शिकार की ताक में रहते हैं… मेरी नजर तुम पर पड़ गई वरना जानती हो क्या हो जाता?’’

‘‘क्या हो जाता?’’

‘‘अरे वे लोफर तुम्हें गाड़ी में बैठा कर अगवा कर ले जाते.’’

‘‘अगवा करना क्या इतना आसान है?’’ हर समय पुलिस की गाड़ी गश्त लगाती रहती है.

‘‘हां, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही अगर वे गुंडे तुम्हें ले उड़ते तो तुम समझ सकती हो फिर वे तुम्हारा क्या हश्र करते? तुम्हें रेप कर के अधमरी हालत में कहीं झाडि़यों में फेंक कर चलते बनते. रोहिणी तुम रोज अखबार में इस तरह की घटनाओं के बारे में पढ़ती हो, टीवी पर देखती हो. फिर भी तुम ने ऐसा खतरा मोल लिया. तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने चली गई?’’

‘‘ये सब वे कैसे कर पाते?’’ रोहिणी ने प्रतिवाद किया, ‘‘मैं जोर से चिल्लाती तो भीड़ इकट्ठी हो जाती, पुलिस पहुंच जाती.’’

‘‘ये सब कहने की बातें हैं. इस सुनसान सड़क पर तुम्हारे शोर मचाने से पहले ही बहुत कुछ घट जाता. वे तुम्हें मिनटों में गायब कर देते और फिर तुम्हारा अतापता भी न मिलता. मत भूलो कि वे 4 थे तुम अकेली. तुम उन से मुकाबला कैसे कर पातीं. इस तरह की हठधर्मिता की वजह से ही आए दिन औरतों के साथ हादसे होते रहते हैं. इतनी रात को अकेले घर से निकलना, अनजान लोगों से लिफ्ट लेना, गैरों के साथ टैक्सी शेयर करना ये सब सरासर नादानी है.’’

रोहिणी ने चुप्पी साध ली. घर पहुंच कर कार्तिक ने उसे अपनी बांहों में समेट लिया, ‘‘डार्लिंग एक वादा करो कि अब से जब भी तुम मुझ से खफा होगी तो बेशक मुझे जो चाह कर लेना पर इस तरह का पागलपन नहीं करोगी,’’ कह उस ने इटली जाने के लिए होटल की बुकिंग और प्लेन के टिकट रोहिणी को थमा दिए.

‘‘यह क्या? तुम तो कह रहे थे कि इस साल जाना नहीं हो सकता.’’

‘‘हां, कहा तो था, पर मैं अपनी प्रिये का कहना कैसे टाल सकता हूं?’’

‘‘प्रोग्राम कैंसल कर दो.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘अरे भाई, शकुंतला दीदी की बेटी की शादी जो हो रही है… हमें वहां जाना पड़ेगा न.’’

‘‘दीदी से शादी में न आने का कोई बहाना बना दूंगा.’’

‘‘जी हां, और फिर सब से डांट सुनोगे. तुम तो आसानी से छूट जाओगे पर सब मुझे ही परेशान करेंगे कि रोहिणी अपने ससुराल वालों से अलगथलग रहती है और अपने पति को भी अपने चंगुल में कर रखा है. उसे अपने परिवार से दूर कर देना चाहती है.’’

‘‘हद हो गई रोहिणी. चित भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी. तुम से मैं कभी पार नहीं पा सकता.’’

‘‘सो तो है,’’ रोहिणी ने विजयी भाव से कहा.

Romantic Story

Love Story in Hindi: बदला- मनीष के प्यार को क्या समझ पाई अंजलि

Love Story in Hindi: मनीष सुबह टहलने के लिए निकला था. उस के गांव के पिछवाड़े से रास्ता दूसरे गांव की ओर जाता था. उस रास्ते से अगले गांव की काफी दूरी थी. वह रास्ता गांव के विपरीत दिशा में था, इसलिए उधर सुनसान रहता था. मनीष को भीड़भाड़ से दूर वहां टहलना अच्छा लगता था. वह इस रास्ते पर दौड़ लगाता और कसरत करता था.

मनीष जैसे ही अपने घर से निकल कर गांव के आखिरी मोड़ पर पहुंचा, तो उस ने देखा कि सामने एक लड़की एक लड़के से गले लगी हुई. मनीष रुक गया था. दोनों को देख कर उस के जिस्म में सनसनाहट पैदा होने लगी थी. वह जैसे ही नजदीक पहुंचने वाला था, वह लड़की जल्दी से निकल कर पीछे की गली में गुम हो गई.

‘‘अरे, यह तो अंजलि थी,’’ वह मन ही मन बुदबुदाया. वही अंजलि, जिसे देख कर उस के मन में कभी तमन्ना मचलने लगती थी. उस के उभारों को देख कर मनीष का मन मचलने लगता था. आज उसे इस तरह देख कर वह अपनेआप को ठगा सा महसूस करने लगा था.

आज मनीष पूरे रास्ते इसी घटना के बारे में सोचता रहा. आज उस का टहलने में मन नहीं लग रहा था. वह कुछ दूर चल कर लौटने लगा था. वह जैसे ही घर पहुंचा कि गांव में शोर हुआ कि किसी की हत्या हुई है. लोग उधर ही जा रहे थे.

मनीष भी उसी रास्ते चल दिया था. वह हैरान हुआ, क्योंकि भीड़ तो वहीं जमा थी, जहां से अंजलि निकल कर भागी थी. एक पल को तो उसे लगा कि भीड़ को सब बता दे, पर वह चुप रहा.

सामने अंजलि अपने दरवाजे पर खड़ी मिल गई. शायद वह भी बाहर हो रही घटनाओं के संबंध में नजरें जमाई थी.

मनीष ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘मैं ने सबकुछ देख लिया है. मैं चाहूं तो तुम सलाखों के पीछे चली जाओगी.’’

अंजलि ने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘अपना मुंह बंद रखना. मैं तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

‘‘ठीक है. आज शाम 7 बजे झाड़ी के पीछे वाली जगह पर मिलना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

‘‘अच्छा, लेकिन अभी जाओ और घटना पर नजर रखना.’’

मनीष वहां से चल दिया. घटनास्थल पर भीड़ इकट्ठा हो गई थी. कुछ देर बाद पुलिस भी आ गई थी. पुलिस ने हत्या के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था. मनीष अपने घर लौट आया था.

मनीष अंदर से बहुत खुश था कि आज उस की मनोकामना पूरी होगी. फिर हत्या कैसे और क्यों की गई है,  इस का राज भी वह जान पाएगा. उस के मन में बेचैनी बढ़ती जा रही थी. आज काम में बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था, इसलिए समय बिताने के लिए वह अपने कमरे में चला गया था.

मनीष तय समय पर घर से निकल गया था. जाड़े का मौसम होने के चलते अंधेरा पहले ही हो गया था.

मनीष तय जगह पर पहुंच चुका था, तभी उस की ओर एक परछाईं आती हुई नजर आई. मनीष थोड़ा सा डर गया था. परछाईं जैसेजैसे उस की ओर बढ़ रही थी, उस के मन से डर भी खत्म हो रहा था, क्योंकि वह कोई और नहीं बल्कि अंजलि थी.

अंजलि के आते ही मनीष ने उस के दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम लिया था. कुछ पल के बाद उसे अपने आगोश में भरते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंजलि, तुम ने जितेंद्र की हत्या क्यों की?’’

‘‘उस की हत्या मैं ने नहीं की है, उस ने मेरे साथ सिर्फ शारीरिक संबंध बनाए थे, जो तुम देख चुके हो.’’

‘‘हां, लेकिन हत्या किस ने की?’’

‘‘शायद मेरे जाने के बाद किसी ने हत्या कर दी हो. यही तो मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है… और इसीलिए मैं डर रही थी और तुम्हारी बात मानने के लिए राजी हो गई,’’ अंजलि अपनी सफाई देते हुए बोली थी.

‘‘क्या उस की किसी से दुश्मनी रही होगी?’’ मनीष ने सवाल किया.

‘‘मुझे नहीं पता… अब तुम पता करो.’’

‘‘ठीक है, मैं पता करता हूं.’’

‘‘मुझे तो डर लग रहा है, कहीं मैं इस हत्या में फंस न जाऊं.’’

‘‘मेरी रानी, डरने की कोई बात नहीं है, मैं तुम्हारे साथ हूं. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. बस, तुम मेरी जरूरतें पूरी करती रहो,’’ मनीष के हाथ उस की पीठ से फिसल कर उस के कोमल अंगों को छूने लगे थे.

थोड़ी सी नानुकुर के बाद जब मनीष का जोश ठंडा हुआ, तो उस ने अंजलि को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया.

मनीष अगले सप्ताह रविवार को मिलने के लिए अंजलि से वादा किया था. अंजलि राजी हो गई थी. इधर अंजलि के मन का बोझ थोड़ा शांत हुआ कि वह मनीष को समझाने में कामयाब रही. मनीष को मुझ पर शक नहीं हुआ है. वह हत्यारे के बारे में पता करने में मदद करेगा.

अब अंजलि और मनीष के मिलने का सिलसिला जारी हो चुका था. मनीष एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता था. अभी उस की शादी नहीं हुई थी. अंजलि महसूस कर रही थी कि मनीष दिल का बुरा नहीं है. उस की सिर्फ एक ही कमजोरी है. वह हुस्न का दीवाना है. कई बार अंजलि महसूस कर चुकी है कि आतेजाते मनीष उसे देखने की कोशिश करता था, लेकिन वह जानबूझकर शरीफ होने का नाटक करता था. इसीलिए औरों की तरह वह मेरा पीछा नहीं कर पाया था.

जितेंद्र की हत्या की जांच कई बार की गई, लेकिन यह पता नहीं चल पाया कि उस की हत्या किस ने की. पुलिस द्वारा जहरीली शराब पीने से मौत की पुष्टि कर तकरीबन उस की फाइल बंद कर दी गई थी. अब अंजलि भी समझ चुकी थी कि पुलिस की ओर से कोई डर नहीं है.

जितेंद्र की हत्या के बारे में गांव के लोगों की ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. इस के पीछे वजह यह थी कि वह लोगों की नजरों में अच्छा इनसान नहीं था. वह शराब तो पीता ही था, औरतों व लड़कियों को भी छेड़ता रहता था. बहुत से लोग उस के मरने पर खुश भी थे.

अंजलि तकरीबन एक साल से मनीष से मिल रही थी. कई बार मनीष उसे उपहार भी देता था. अब तो अंजलि का भी मनीष के बगैर मन नहीं लगता था.

एक दिन मनीष अंजलि को अपने गोद में ले कर उस के बालों से खेल रहा था. उस ने अपनी इच्छा जाहिर की, ‘‘क्यों न हम दोनों शादी कर लें? कब तक यों ही हम छिपछिप कर मिलते रहेंगे?’’

इस पर अंजलि बोली, ‘‘मुझे कोई एतराज नहीं है, पर मुझे अपनी मां से पूछना होगा.’’

‘‘तुम अपनी मां को जल्दी से राजी करो.’’

‘‘मां तो राजी हो जाएंगी, लेकिन यह बात मैं राज नहीं रखना चाहती हूं.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘यही कि जितेंद्र की हत्या किस ने की थी.’’

‘‘किस ने की थी?’’

‘‘मैं ने…’’

‘‘कैसे और क्यों?’’

‘‘3 साल पहले की बात है. मेरी एक बहन रिया भी थी. घर में मां और मेरी बहन समेत हम सभी काफी खुश थे. पिताजी के नहीं होने के चलते मेरी छोटी बहन रिया मौल में काम कर के अच्छा पैसा कमा लेती थी. उसी के पैसों से हमारा घर चल रहा था.

‘‘जब भी मेरी बहन घर से निकलती थी, जितेंद्र अपनी मोटरसाइकिल से उस का पीछा करता था. मना करने के बाद भी वह नहीं मानता था.

‘‘मेरी बहन रिया उस से प्यार करने लगी थी. जितेंद्र ने मेरी बहन से कई बार शारीरिक संबंध बनाए. बहन को विश्वास था कि जितेंद्र उस से शादी जरूर करेगा.

‘‘लेकिन, जितेंद्र धोखेबाज निकला. मेरी बहन रिया को जितेंद्र के बारे में पता चला कि वह कई लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुका है. मेरी बहन पेट से हो गई थी. 5 महीने तक मेरी बहन शादी के लिए इंतजार करती रही. जितेंद्र केवल झांसा देता रहा.

‘‘आखिरकार जितेंद्र ने शादी करने से इनकार कर दिया था. उस का मेरी बहन से झगड़ा भी हुआ था.

‘‘मेरी बहन परेशान रहने लगी थी. उस ने मुझे सबकुछ बता दिया था. मैं बहन को ले कर अस्पताल गई थी. वहां मैं ने उस का बच्चा गिरवाया, पर वह कोमा में चली गई थी. उस का बच्चा तो मरा ही, मेरी बहन भी दुनिया छोड़ कर चली गई. उसी दिन मैं ने कसम खाई थी कि जितेंद्र का अंत मैं ही करूंगी.

‘‘इस बार मैं ने गोरा को फंसाया था. मैं भी उस से प्यार का खेल खेलती रही. उस ने कई बार मुझे हवस का शिकार बनाना चाहा, लेकिन मैं उस से अपनेआप को बचाती रही.

‘‘उस दिन जितेंद्र ने मुझे अपने गुसलखाने में बुलाया था. मैं सोच कर गई थी कि आज रात काम तमाम कर के आना है. मैं ने उस की शराब में जहर मिला दिया.

‘‘मैं उस की मौत को नजदीक से महसूस करना चाहती थी, इसलिए उस की हत्या करने के बाद मैं भी उस के साथ रातभर रही. वह तड़पतड़प कर मेरे सामने ही मरा था.

‘‘सुबह मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. जानबूझ कर उस के शरीर से मैं लिपटी हुई थी, ताकि कोई देखे तो गोरा को जिंदा समझे. पकड़े जाने पर पुलिस को गुमराह किया जा सके. हत्या के बारे में शक किसी और पर हो. यही हुआ भी. तुम ने मुझे बेकुसूर समझा.

‘‘मैं शादी करने से पहले सबकुछ तुम्हें बता देना चाहती हूं, ताकि भविष्य में पता चलने पर तुम मुझे गलत न समझ सको. मैं ने अपनी बहन रिया की मौत का बदला ले लिया, इसलिए मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है.’’

मनीष यह सुन कर हक्काबक्का था. उस के मन में थोड़ा डर भी हुआ, लेकिन जल्द ही अपनेआप को संभालते हुए बोला, ‘‘तुम ने ठीक ही किया. तुम ने उस को उचित सजा दी है. तुम्हारे ऊपर किसी तरह का इलजाम लगता भी तो मैं अपने ऊपर ले लेता, क्योंकि मैं अब तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

अंजलि ने मनीष को अपनी बांहों में ले कर चूम लिया था. वह अपनेआप पर गर्व कर रही थी कि उस ने गलत इनसान को नहीं चुना है. फिर वह सुखद भविष्य के सपने देखने लगी थी. उन दोनों ने जल्दी ही शादी कर ली. अंजलि अब मनीष को अपना राजदार समझती थी.

Love Story in Hindi

Family Story: जिम्मेदारी बनती है कि नहीं- क्यों प्यार की कद्र ना कर पाई बुआ

Family Story: पापा और बूआ की बातें मैं सुन रहा था. अकसर ऐसा होता है न कभीकभी जब आप बिना कुछ पूछे ही अपने सवालों के जवाब पा जाते हैं. कहीं का सवाल कहीं का जवाब बन कर सामने चला आता है. नातेरिश्तेदारी की कटुता दोस्ती की कटुता से कहीं ज्यादा दुखदायी होती है क्योंकि रिश्तेदार को हम बदल नहीं सकते जबकि दोस्ती में ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती. न पसंद आए तो दोस्त को बदल दो, छोड़ दो उसे, ऐसी क्या मजबूरी कि निभाना ही पड़े?

‘‘मनुष्य हैं हम और समाज में हर तरह के प्राणी से हमारा वास्ता पड़ता है,’’ पापा बूआ को समझाते हुए बोले, ‘‘जहां रिश्ता बन जाए वहां अगर कटुता आ जाए तो वास्तव में बहुत तकलीफ होती है. न तो छोड़ा जाता है और न ही निभाया जाता है. बस, एक बीच का रास्ता बच जाता है. फीकी बेजान मुसकान लिए स्वागत करो और दिल का दरवाजा सदा के लिए बंद. अरे भई, हमारा दिल तो प्यार के लिए है न, जहां नफरत नहीं रह सकती क्योंकि हमें भी तो जीना है न. नफरत पाल कर हम कैसे जिएं. किसी इनसान का स्वभाव यदि सामने वाले को नंगा करना ही है तो हम कब तक नंगा होना सह पाएंगे?’’

बूआ के घर कोई उत्सव है और उन का देवर जबतब उन के हर काम में बाधा डाल रहा है. बचपन से बूआ उस के साथ थीं, मां बन कर बूआ ने अपने देवर को पाला है. जब बूआ की शादी हुई तब उन का देवर मात्र 5 साल का था.

मांबाप नहीं थे, इसलिए जब भी बूआ मायके आती थीं तो वह भी उंगली पकड़े साथ होता था. हम अकसर सोचते थे कि बूआ तो नई ब्याही लगती ही नहीं. शादी होते ही वह एकदम से सयानी सी लगने लगी हैं. मैं तब 7-8 साल का था जब बूआ की शादी हुई थी. अकसर मां का बूआ से वार्तालाप कानों में पड़ जाता था :

‘सजासंवरा तो कर गायत्री. तू तो नई ब्याही लगती ही नहीं.’

‘इतना बड़ा बच्चा साथ चले तो क्या नई ब्याही बन कर चलना अच्छा लगता है, भाभी. सभी राजू को मेरा बच्चा समझते हैं. क्या 5 साल के बच्चे की मां दुलहन की तरह सजती है?’

मात्र 20 साल की मेरी बूआ मंडप से उठते ही 5 साल के जिस बच्चे की मां बन चुकी थीं वही बच्चा आज बातबेबात बूआ का मन दुखा रहा है…जिस पर वह परेशान हैं. बूआ के बेटे की शादी थी. बूआ न्योता देने गई थीं जिस पर उस ने रुला दिया था.

‘‘आज याद आई मेरी.’’

‘‘कल ही तो कार्ड छप कर आए हैं. आज मैं आ भी गई.’’

‘‘कुछ सलाहमशविरा तक नहीं, मुझ से रिश्ता करने से पहले…कार्ड तक छप गए और मुझे पता तक नहीं कि बरात का इंतजाम कहां है और लड़की काम क्या करती है.’’

स्तब्ध बूआ हैरानपरेशान रह गई थीं. इस तरह के व्यवहार की नहीं न सोची थी. बूआ कुछ कार्ड साथ भी ले गई थीं देवर के मित्रों और रिश्तेदारों के लिए.

‘‘रहने दो, रहने दो, भाभी, बेइज्जती करती हो और न्योता भी देने चली आईं, न मैं आऊंगा और न ही मेरे ससुराल वाले. कोई नहीं आएगा तुम्हारे घर पर…तुम ने हमारे रिश्तेदारों की बेइज्जती की है… पहले जा कर उन से माफी मांगो.’’

‘‘बेइज्जती की है मैं ने? लेकिन कब, किस की बेइज्जती की है मैं ने?’’

‘‘भाभी, तुम ने अपने बेटे का रिश्ता करने से पहले हम से नहीं पूछा, मेरे ससुराल वालों से नहीं पूछा.’’

‘‘मेरे घर में क्या होगा उस का फैसला क्या तुम्हारे ससुराल वाले करेंगे या तुम करोगे? हम लड़की देखने गए, पसंद आई…हम ने उस के हाथ पर शगुन रख दिया. 15 दिन में ही शादी हो रही है. तुम्हारे भैया और मैं अकेले किसी तरह पूरा इंतजाम कर रहे हैं…राहुल को छुट्टी नहीं मिली. वह सिर्फ 2 दिन पहले आएगा, अब हम तुम्हारे ससुराल वालों से माफी मांगने कब जाएं? और क्यों जाएं?’’

‘‘भाभी, तुम लोग जरा भी दुनियादारी नहीं समझते. तुम ने अपने घर का मुहर्त किया, वहां भी मेरे ससुराल वालों को नहीं बुलाया.’’

‘‘वहां तो किसी को भी नहीं बुलाया था. तुम भी तो वहीं थे. सिर्फ घर के लोग थे और हम ने पूजा कर ली थी, फिर उस बात को तो आज 2 साल हो गए हैं. आज याद आया तुम्हें गिलाशिकवा करना जब मैं तुम्हें शादी का न्योता देने आई हूं.’’

पुत्र समान देवर का कूदकूद कर लड़ना बूआ समझ नहीं पा रही थीं. न जाने कबकब की नाराजगी और नाराजगी भी वह अपने ससुराल वालों को ले कर जता रहा था जिन से बूआ का कोई वास्ता न था.

समधियाना तो फूलों की खुशबू की तरह होता है जहां हमें सिर्फ इज्जत देनी है और लेनी है. फूल की सुंदरता को दूर से महसूस करना चाहिए तभी उस की सुंदरता है, हाथ लगा कर पकड़ोगे तो उस का मुरझा जाना निश्चित है और हाथ भी कुछ नहीं आता.

कुछ रिश्ते सिर्फ फूलों की खुशबू की तरह होते हैं जिन के ज्यादा पास जाना उचित नहीं होता. पुत्र या पुत्री के ससुराल वाले, जिन से हमारा मात्र तीजत्योहार या किसी कार्यविशेष में मिलना ही शोभा देता है. ज्यादा आनाजाना या दखल देना अकसर किसी न किसी समस्या या मनमुटाव को जन्म देता है क्योंकि यह रिश्ता फूल की तरह नाजुक है जिसे बस दूर से ही नमस्कार किया जाए तो बेहतर है.

देवर बातबेबात अपने ससुराल वालों को घर पर बुलाना चाहता था जिस पर अकसर बूआ चिढ़ जाया करती थीं. हर पल उन का बूआ के घर पर पसरे रहना फूफाजी को अखरता था. हर घर की एक मर्यादा होती है जिस में बाहर वाले का हर पल का दखल सहन नहीं किया जा सकता. अति हो जाने पर फूफाजी ने भाई को अलग हो जाने का संदेशा दे दिया था जिस पर काफी बावेला मचा था. जिसे पुत्र बना कर पाला था वही देवर बराबर की हिस्सेदारी मांग रहा था.

‘‘कौन सा हिस्सा? हमारे मांबाप जब मरे तब हम किराए के घर में रहते थे और तुम 2 साल तक ननिहाल में पलते रहे. अपनी शादी के बाद मैं तुम्हें अपने घर लाया और पालपोस कर बड़ा किया. अपने बेटे के मुंह का निवाला छीन कर अकसर तुम्हारे मुंह में डाला…कौन सा हिस्सा दूं मैं तुम्हें? हमारे मातापिता कौन सी दौलत छोड़ कर मरे थे जिसे तुम्हारे साथ बांटूं. मैं ने यह सबकुछ अपने हाथ से कमाया है. तुम भी कमाओ. मेरी तुम्हारे लिए अब कोई जिम्मेदारी नहीं बनती.’’

‘‘आप ने कोई एहसान नहीं किया जो पालपोस कर बड़ा कर दिया.’’

‘‘मैं ने जो किया वह एहसान नहीं था और अब जो तुम करने को कह रहे हो उस की मैं जरूरत नहीं समझता. हमें माफ करो और जाओ यहां से…हमें चैन से जीने दो.’’

फूफाजी ने जो उस दिन हाथ जोड़े, उन्हीं पर अड़े रहे. मन ही मर गया उन का. क्या करते वह अपने भाई का?

‘‘यह कल का बच्चा ऐसी बकवास कर गया. आखिर क्या कमी रखी मैं ने? न लाता ननिहाल से तो कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता, पलता वहीं मामा के परिवार का नौकर बन कर. आज इज्जत से जीने लायक बन गया तो मेरे ही सिर पर सवार…हद होती है बेशर्मी की.’’

वह अलग घर में चला गया था लेकिन मौकेबेमौके उस ने जहर उगलना नहीं छोड़ा था. बूआ के बेटे की शादी का नेग उस ने उठा कर घर से बाहर फेंक दिया था. बीमार हो गई थीं बूआ.

‘‘क्या हो गया है इस लड़के की बुद्धि को. हमारा ही दुश्मन बना बैठा है. हम ने क्या नुकसान कर दिया है इस का. इज्जत के सिवा और क्या चाहते हैं इस से,’’ बूआ का स्वर पुन: कानों में पड़ा.

‘‘भूल जाओ न उसे,’’ पापा बोले थे, ‘‘समझ लो उस का कोई भी अस्तित्व कहीं है ही नहीं. शरीर का जो हिस्सा सड़गल जाए उसे काट कर अलग करना ही पड़ता है वरना तो सारा शरीर गलने लगता है… तुम्हारा अपना बेटा शादी कर के अपने घर में खुश है न, तुम पतिपत्नी चैन से जीते क्यों नहीं? क्यों उठतेबैठते उसी का रोना ले कर बैठे रहते हो?’’

‘‘अपना बेटा खुश है और यह कौन सा पराया था. भैया, हम ने कभी इस की खुशी पर कोई रोक नहीं लगाई. अपने बेटे पर उतना खर्च नहीं किया जितना इस पर करते रहे. इस की पढ़ाई का कर्ज हम आज तक उतार रहे हैं. अपना बेटा तो वजीफे से ही पढ़ गया. जहां इस ने कहा, वहीं इस की शादी की. अब और क्या करते. कम से कम अपने घर में चैन से जीने तो देता हमें…हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ना उस ने अपना अधिकार बना लिया है. हम खुश हुए नहीं कि जहर उगलना शुरू. चार लोगों में तमाशा बनाना जैसे शगल है उस का…अभी राहुल के घर बच्चा होगा…’’

‘‘तब मत बुलाना न उसे. जब तुम जानती हो कि वह तुम्हारा तमाशा बनाता है तब काट कर फेंक क्यों नहीं देतीं उसे.’’

‘‘भैया, वह अपना है.’’

‘‘अपना समझ कर सब सहन करती हो उसी का तो वह फायदा उठाता है. शायद वह तुम पर वही अधिकार चाहता है, जो तब था जब तुम ब्याह कर उस घर में गई थीं. तुम ने अपनी संतान तब पैदा की थी जब तुम्हारा देवर 10 साल का था. इतने साल का उस का एकाधिकार छिन जाना उस से सहा नहीं गया. अपनी सीमा रेखा भूल गया.

‘‘ऐसी मानसिकता धीरेधीरे प्रबल होती गई. उस का अपमानित करना बढ़ता गया और तुम्हारी सहनशक्ति बढ़ती गई. मोहममता की मारी तुम उसे बालहठ समझती रहीं. दबी आवाज में मैं ने तुम से पहले भी कहा था, ‘अपने बेटे और देवर में उचित तालमेल रखो. जिस का जितना हक बनता है उसे न उस से ज्यादा दो और न ही कम.’ अब त्याग दो उसे. अपने जीवन से निकाल दो अभी.’’

स्तब्ध रह गया हूं मैं आज. मेरे पिता जो सदा निभाना सिखाते रहे, आज काट कर फेंक देना सिखाने लगे.

‘‘वो जमाना नहीं रहा अब जब हम आग का दरिया पचा जाया करते थे और समुंदर के समुंदर पी कर भी जाहिर नहीं होने देते थे. आज का इनसान इतना सहनशील नहीं रहा कि बुराई पर बुराई सहता रहे और खून के घूंट पी कर भी मुसकराता रहे.

‘‘आज हर तीसरा इनसान अवसाद में जी रहा है. आखिर क्यों? पढ़ाईलिखाई ने तहजीब में रहना सिखाया है न इसीलिए तहजीब ही निभातेनिभाते हम अवसाद का शिकार हो जाते हैं. जो लोग कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ा करते हैं वे तो अपनी भड़ास निकाल चुकते हैं न, भला वे क्यों जाएंगे अवसाद में.

‘‘संस्कारी और तहजीब वाला इनसान खुद पर ही जुल्म करे, क्या इस से यह अच्छा नहीं कि वह उस इनसान से ही किनारा कर ले. भूल जाओ उस 5 साल के बच्चे को जो कभी तुम्हारा हर पल का साथी था. अब बहुत बदल चुका है वह. समझ लो वह इस शहर में ही नहीं रहता. सोच लो अमेरिका चला गया है…दिल को खुश रखने को यह खयाल क्या बुरा है गायत्री?’’

कुछ कचोटने लगा है मुझे. मेरे आफिस में मेरा एक घनिष्ठ मित्र है जो आजकल बदलाबदला सा लगने लगा है. पिछले 10 साल से हम साथसाथ हैं. अच्छी दोस्ती थी हम में. जब से मेरा प्रोमोशन हुआ है, वह नाखुश सा है. जलन वाली तो कोई बात ही नहीं है क्योंकि उस का क्षेत्र मेरे क्षेत्र से सर्वदा अलग है. ऐसा तो है ही नहीं कि उस की कोई शह मेरी गोद में चली आई हो. कटाकटा सा भी रहता है और मौका मिलते ही चार लोगों के बीच अपमानित भी करता है. पिछले 6 महीने से मैं उस का यह व्यवहार देख रहा हूं, कोशिश भी की है कि बैठ कर पूछूं मगर पता नहीं क्यों वह अवसर भी नहीं देता. कभीकभी लगता है वह मुझ से दुश्मनी भी निकाल रहा है. अपना व्यवहार भी मैं पलपल परख रहा हूं कि कहीं मैं ही कोई भूल तो नहीं कर रहा.

हैरान हूं मैं. मैं तो आज भी वहीं खड़ा हूं जहां कल खड़ा था, ऐसा लगता है वही दूर जा कर खड़ा हो गया है और बातबेबात मेरा उपहास उड़ा रहा है. धीरेधीरे दुखी रहने लगा हूं मैं. आखिर मैं कहां भूल कर रहा हूं. काम में जी नहीं लगता. ऐसा लगता है कोई प्यारी चीज हाथ से निकली जा रही है. शायद मेरे स्नेह का निरादर कर उसे अच्छा लगता है.

‘‘अपनेआप के लिए भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी बनती है न गायत्री. अपने पति के प्रति, अपनी सेहत के प्रति… अपने लिए जीना सीखो, बच्ची.’’

पापा अकसर प्यार से बूआ को बच्ची कहते हैं. बूआ की अपने देवर के प्रति ममता तो मैं बचपन से देखता आ रहा हूं आज ऐसी नौबत चली आई कि उसी से बूआ को हाथ खींचना पड़ेगा… क्योंकि बूआ अवसाद में जा चुकी है. डिप्रेशन का मरीज जब तक डिप्रेशन की वजह से दूर न होगा, जिएगा कैसे.

‘‘कोई भी रिश्ता तभी तक निभ सकता है जब तक दोनों ही निभाने के इच्छुक हों. अमृत का भरा कलश केवल एक बूंद जहर से विषाक्त हो जाता है. हमारा मन तो मानवीय मन है जिस पर इन बूंदों का निरंतर गिरना हमें मार न दे तो क्या करे.

‘‘अपना निरादर कराना भी तो प्रकृति का अपमान है न. सहना भी तभी तक उचित है जब तक आप सह पाएं. सहने की अति यदि आप को या हमें मारने लग जाए तो क्यों न हाथ खींच लिया जाए, क्योंकि रिश्तों के साथसाथ अपने प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी है न. क्यों कोई आप के प्यार और अपनत्व का तिरस्कार करता रहे, क्यों आप के वात्सल्य और स्नेह को कोई अपनी जागीर ही समझ कर जब चाहे पैर के नीचे रौंद दे और जब चाहे जरा सा पुचकार दे.

‘‘अब छोटा बच्चा नहीं है वह कि तुम हाथ खींच लोगी तो मर जाएगा. 2 बच्चों का बाप है. अपने आलीशान घर में रहता है. तुम्हारे घर से कहीं बड़ा घर है उस का. क्या कभी बुलाता है वह तुम्हें? क्या तुम से कभी पूछता है वह कि तुम जिंदा हो या मर गईं?

‘‘उसे उतना ही महत्त्व दो जिस के वह लायक है. संकरे बर्तन में ज्यादा वस्तु डाली जाए तो वह छलक कर बाहर निकलती है. यह इनसानी फितरत है बच्ची, पास पड़ी शह की मनुष्य कद्र नहीं करता. जो मिल जाए वह मिट्टी और जो खो जाए वह सोना, तो सोना बनो न पगली…मिट्टी क्यों बनती हो?’’

चुप हो गए पापा. शायद बूआ पर नींद की गोली का असर हो चुका है. गहरी पीड़ा में हैं बूआ. क्षमता से ज्यादा जो सह चुकी हैं.

फूफाजी और पापा बाहर चले आए. हमारा पूरा परिवार बूआ की वजह से दुखी है. निर्णय हुआ कि कुछ दिन दोनों राहुल के पास बंगलौर चले जाएंगे इस माहौल से दूर. शायद जगह बदल कर बूआ को अच्छा लगे.

हफ्ता भर बीत चुका है. अब मैं अपने नाराज चल रहे मित्र की तरफ देखता ही नहीं हूं. जरूरी बात भी नहीं करता. पास से निकल जाता हूं जैसे उसे देखा ही नहीं. पहले उस के लिए रोज जूस मंगवाता था, अब सिर्फ अपने ही लिए मंगवाता हूं. नतीजा क्या होगा मैं नहीं जानता मगर मैं चैन से हूं. कुंठा तंग नहीं करती, ऐसा लगता है अपनेआप पर दया कर रहा हूं. क्या करूं मेरे लिए भी तो मेरी कोई जिम्मेदारी बनती है न. पापा सच ही तो कह रहे थे, किसी के लिए मिट्टी भी क्यों बना जाए. सहज उपलब्ध हो कर क्यों अपना मान घटाया जाए. आखिर हमारे आत्मसम्मान के प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी बनती है कि नहीं.

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Hindi Social Story: प्रायश्चित्त- कौनसी गलती कर बैठा था वह

Hindi Social Story: ‘‘रोहिणी नामक कोई महिला आप से मिलने का समय तय करना चाहती हैं,’’ निजी सहायक ने इंटरकौम पर बताया.

‘‘मेरा कार्यक्रम देख कर जो भी समय तुम्हें उपयुक्त लगता हो, उन्हें दे दो,’’ सौरभ ने कागजों पर नजर गड़ाए हुए कहा.

‘‘जी, वे कहती हैं कि उन्हें कोई व्यक्तिगत काम है और वे ऐसा समय चाहती हैं जब आप औफिस की चिंताओं से मुक्त हो कर ध्यान से उन की बात सुन सकें.’’ सौरभ को लगा जैसे फोन के दूसरे छोर पर उस का निजी सहायक व्यंग्य से मुसकरा रहा हो.

‘‘ठीक है, मुझ से बात कराओ.’’

लाइन मिलते ही सौरभ ने बात शुरू की, ‘‘हैलो, रोहिणीजी, मैं सौरभ बोल रहा हूं. कहिए, आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

‘‘नमस्कार, सौरभजी. क्या आज शाम या कल किसी समय आप समय निकाल सकते हैं 1-2 घंटे का?’’ दूसरी ओर से एक संयत और सौम्य स्वर आया.

‘‘लेकिन आप मुझ से किस सिलसिले में मिलना चाहती हैं?’’

‘‘कुछ निहायत व्यक्तिगत काम है, जो फोन पर बताया नहीं जा सकता. कहिए, कब और कहां मिलेंगे?’’

‘‘आज शाम को 6 बजे के बाद आप मेरे घर पर आ जाइए. पता तो…’’

‘‘जी नहीं, आप के घर पर ठीक नहीं रहेगा,’’ रोहिणी ने उस की बात काटी, ‘‘जो बात मैं करना चाह रही हूं, वह शायद आप अपने परिवार को न बताना चाहें और अपनी पुरानी जिंदगी के बारे में बीवीबच्चों को बताना ठीक नहीं.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप? मैं ने अपनी जिंदगी में आज तक ऐसा कोई काम नहीं किया जिस के लिए मुझे पछतावा हो या जिसे किसी से छिपाना पड़े,’’ सौरभ ने बड़े गर्व से उस की बात काटी.

‘‘सिवा एक हरकत के. डरिए नहीं, मैं आप को ब्लैकमेल नहीं कर रही, न पैसा हथियाने के चक्कर में हूं. सिर्फ एक सवाल आप के सामने रख कर उसे ठंडे दिमाग से हल करने को कहूंगी. हां तो कहिए, कहां मिलेंगे? आप के दफ्तर में आ जाऊं?’’

‘‘इस समय तो मुझे फुरसत नहीं है और दफ्तर के समय के बाद तो ठीक नहीं लगेगा,’’ वह कुछ हिचकिचाया.

‘‘तो ठीक है, मेरे दफ्तर में आ जाइए. हमारा दफ्तर तो अकसर सारी रात ही चलता रहता है. आप को फेमस पब्लिसिटी का दफ्तर तो मालूम ही होगा. मैं यहां पर कला निर्देशिका हूं और पहली मंजिल पर पहला कमरा मेरा ही है. तो फिर आ रहे हैं न आप?’’

‘‘जी हां,’’ सौरभ के स्वर में अब औपचारिकता से ज्यादा उत्सुकता थी, ‘‘आप कब तक वहां होंगी? मेरा मतलब है शाम को आप की छुट्टी कब होती है?’’

‘‘दफ्तर का समय तो 10 से 5 ही है, लेकिन हमारे यहां काम इतना ज्यादा है कि 9 बजे से पहले तो शायद ही कोई अपनी कुरसी छोड़ता हो. आप को जब भी सुविधा हो, आ जाइए.’’ फिर दूसरी ओर से लाइन कट गई.

सौरभ साढ़े 5 बजे ही रोहिणी के दफ्तर में पहुंच गया. रोहिणी की उम्र 50-55 वर्ष के बीच की थी. आधुनिक ढंग से सजी उस सौम्य महिला ने बड़ी नम्रता से सौरभ का स्वागत किया.

‘‘माफ कीजिए, मैं समय से कुछ पहले ही आ गया हूं. आप ने कुछ ऐसा रहस्य का जाल बुन दिया कि काम में दिल ही नहीं लगा. आधा दिन खराब कर दिया आप ने मेरा,’’ सौरभ कह कर मुसकराया.

‘‘और आप ने जो मेरी आधी जिंदगी खराब कर दी, उस की शिकायत मैं किस से करूं?’’ रोहिणी ने एक दर्दभरी मुसकान के साथ कहा.

‘‘क्या कह रही हैं आप? जहां तक मेरा खयाल है इस से पहले हम कभी मिले भी नहीं,’’ सौरभ अप्रतिम हो कर बोला.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, लेकिन कई बार अनजाने में ही इंसान अपनी जिंदगी संवारने के चक्कर में दूसरों की जिंदगी उजाड़ देता है,’’ रोहिणी के स्वर में कसक थी.

‘‘माफ करिएगा, आप को कुछ गलतफहमी हो रही है. मैं ने आज तक किसी का कुछ नुकसान नहीं किया है. मैं जो आज इस ओहदे पर हूं…’’

‘‘ओह, मैं आप के व्यक्तिगत जीवन की बात कर रही हूं, औफिस की नहीं.’’

‘‘उस में भी मैं दावे से कह सकता हूं कि मैं ने कभी किसी लड़की को बुरी नजर से नहीं देखा. न किसी को सब्जबाग दिखाए और न ही मेरी शक्लसूरत ऐसी है कि जिसे देख कर किसी की नींद उड़े.’’ सौरभ के कहने के ढंग पर रोहिणी खिलखिला कर हंस पड़ी.

सौरभ ने आगे कहा, ‘‘हां, तो बताइए न, किस तरह मैं ने आप की जिंदगी खराब की?’’ सौरभ के स्वर में चुनौती थी.

‘‘आप पूनम को तो नहीं भूले होंगे?’’

‘‘जी नहीं. मानता हूं कि मेरी और पूनम की शादी होने वाली थी, लेकिन पूनम का ही इरादा शादी करने का नहीं था. मेरी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं हुई, जिस से पूनम की जिंदगी खराब होती.’’

‘‘जानती हूं. आप ने अपनी और पूनम की जिंदगी अपने मनमुताबिक चलाने के लिए मेरी गाड़ी पटरी पर से उतार दी.’’ रोहिणी के स्वर में पीड़ा थी.

‘‘मैं आप की बात बिलकुल नहीं समझ पा रहा, रोहिणीजी. समझाने की कोशिश करेंगी?’’

‘‘जी हां, वही तो बता रही हूं. पूनम पति नहीं, बल्कि एक ऐसा साथी चाहती थी जो उस के जीवन में एक पुरुष की कमी को तो पूरा कर सके, पर उसे किसी बंधन में न बांधे.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. उसे पति नहीं, मात्र एक ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी जो उस की शारीरिक भूख को मिटा सके. यह मुझे कतई मंजूर नहीं था.’’

‘‘इसलिए आप ने उस की मुलाकात सुमित से करवा दी, जिस से आप के भागने का रास्ता आसान हो गया.’’

‘‘उस की सुमित से मुलाकात मैं ने जरूर करवाई थी, लेकिन बगैर किसी मतलब के. सुमित और मैं बचपन के दोस्त थे, पर पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में अलग हो गए थे. एक बार वर्षों बाद मिलने पर बातचीत के दौरान उस ने पूछा कि मेरी शादी हो गई क्या, मैं ने उसे पूनम की शादी के बारे में जो हिचकिचाहट थी वह बता दी. वह मानने को तैयार ही नहीं हुआ कि अपने देश में भी ऐसे विचारों की लड़कियां हो सकती हैं.

सुमित ने एक बार पूनम से मिलने की इच्छा जाहिर की और मैं ने एक रोज दोनों की मुलाकात करा दी. उस के बाद तो उन दोनों की घनिष्ठता इतनी तेजी से बढ़ी कि उन की दोस्ती करवाने वाला मैं बहुत पीछे छूट गया. खैर, इस सब से आप को क्या फर्क पड़ा?’’

‘‘सिर्फ मुझे ही तो फर्क पड़ा क्योंकि मैं सुमित की बीवी हूं,’’ रोहिणी ने एक सफल खिलाड़ी की तरह अपना तुरुप का इक्का चल दिया.

सौरभ हक्काबक्का रह गया और बोला, ‘‘मैं वाकई बहुत शर्मिंदा हूं कि मैं ने इस तरह आप की जिंदगी बरबाद की, लेकिन सच कहता हूं कि उस समय मुझे यह मालूम नहीं था कि सुमित शादीशुदा है.’’

‘‘और जब मालूम भी हुआ तो क्या उस समय आप को सुमित की पत्नी से कुछ हमदर्दी हुई थी?’’ रोहिणी ने सीधे उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

सौरभ उस नजर का सामना न कर सका, ‘‘मेरा खयाल था कि शायद सुमित की पत्नी उस के उपयुक्त न हो, मगर आप को देख कर तो ऐसा नहीं लगता. क्या आप का दांपत्य जीवन सुखी नहीं था?’’

‘‘बहुत ज्यादा, लेकिन उस मनहूस शाम से पहले तक जब सुमित और पूनम मिले थे. वैसे, अब भी अपनी तरफ से तो सुमित मुझे खुश ही रखने की कोशिश करता है.’’

‘‘लेकिन इस सब के बावजूद सुमित पूनम के चक्कर में पड़ा कैसे?’’

‘‘ये काजू देख रहे हैं न आप. इन्हें खाने की इच्छा न आप को थी न मुझे, लेकिन प्लेट सामने रखी है तो मैं भी बराबर खा रही हूं और आप भी. मेरा मतलब है कि अगर एक आधुनिक पढ़ीलिखी स्त्री का सहवास सहज ही मिल जाए तो किसे आपत्ति होगी? और फिर मेरी ओर से भी कोई विरोध नहीं हुआ,’’ रोहिणी चाय का एक घूंट भर कर बोली, ‘‘अब आप पूछेंगे कि मैं ने एतराज क्यों नहीं किया?

मैं कमा कर खुद अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी. मैं ने सुमित को छोड़ा क्यों नहीं? महज अपनी बेटी के लिए. मैं नहीं चाहती थी कि मेरी बेटी तलाकशुदा मांबाप की औलाद कहलाए और समाज में तिरस्कृत हो.

सुमित ने भी उसे भरपूर प्यार दिया और चाहे हम शारीरिक व मानसिक रूप से वर्षों से अलग हो चुके हों, पर अभी भी अपनी बेटी के लिए, दुनिया के सामने हम एक सफल पतिपत्नी का नाटक करते हैं.’’

‘‘काफी मुश्किल काम है यह,’’ सौरभ सहानुभूति से बोला.

‘‘बेहद. पर अब तो खैर आदत पड़ गई है, लेकिन यह जान कर कि इतने दिनों का यह नाटक और मेहनत बेकार गई, मेरी हिम्मत ही टूट गई थी. तभी मुझे आप के बारे में पता चला और मेरी हिम्मत कुछ बढ़ी,’’ रोहिणी कहतेकहते रुक गई.

‘‘हां, कहिए मैं आप की क्या मदद कर सकता हूं?’’ सौरभ की आंखें चमकीं.

‘‘कुछ रोज पहले आप को एक नंबर से गुमनाम एसएमएस मिला था कि आप के बेटे सुनील की दोस्ती एक आवारा खानदान की लड़की के साथ है और आप ने उसे उस बेबुनियाद एसएमएस से डर उस लड़की से संबंध तोड़ लेने को कहा है.’’

‘‘तो क्या रश्मि आप की बेटी है? मुझे मालूम नहीं था,’’ सौरभ खिसिया कर बोला, ‘‘मैं ने रश्मि को देखा है, बड़ी प्यारी लड़की है. देखिए, मुझे इस बारे में ज्यादा तो कुछ पता ही नहीं था. ऐसा एसएमएस देख कर घबराना तो लाजिमी ही था, पर अब खैर बात ही दूसरी है. आप बेफिक्र रहें. मैं बच्चों की खुशी के बीच में नहीं आऊंगा. वैसे, इस एसएमएस के विषय में आप को किस ने बताया?’’

‘‘सुनील ने, रश्मि को अभी कुछ मालूम नहीं है.’’

‘‘तो उसे कुछ भी मालूम न होने दीजिए. आप जब भी कहें, मैं और मेरी पत्नी बाकायदा शादी का प्रस्ताव ले कर आप के यहां आ जाएंगे.’’

‘‘वह तो सुनील और रश्मि की मरजी पर है कि वे कब शादी करना चाहते हैं, फिर मैं और सुमित स्वयं ही आप के यहां आएंगे,’’ रोहिणी ने घड़ी देखी, ‘‘अब चलें, काफी समय हो गया है.’’

‘‘हां, चलिए. अब तो खैर मुलाकात होगी ही.’’

‘‘लेकिन आज की मुलाकात को भूल कर.’’

‘‘आप मुझ पर विश्वास कर सकती हैं,’’ सौरभ विनम्रता से बोला.

सुनील अपने कमरे की छत पर नजर गड़ाए अनमना सा लेटा था.

‘‘सुनील, तुम जब चाहो रश्मि से शादी कर सकते हो, लेकिन एक शर्त है, तुम्हें रश्मि की मां की बहुत इज्जत करनी होगी और उन्हें बहुत प्यार देना होगा.’’

‘‘यह कोई मुश्किल बात नहीं है, पापा. वे बहुत ही अच्छी महिला हैं. उन्हें प्यार करना या इज्जत देना मेरे लिए स्वाभाविक ही होगा.’’

‘‘बुढ़ापे में कई बार इंसान का स्वभाव बदल जाता है. बेटे, वादा करो चाहे वे कैसी भी हों, तुम उन का निरादर या तिरस्कार तो नहीं करोगे. एक बार चाहे मुझे और अपनी मां को मत पूछना, लेकिन अपनी सास का खयाल हमेशा रखना. वादा करते हो.’’

‘‘वादा रहा, पापा. लेकिन आप उन के बारे में इतने फिक्रमंद क्यों हैं? कल तक तो आप उस खानदान से कोई ताल्लुक नहीं रखने को कह रहे थे और आज उन के लिए इतनी हमदर्दी हो रही है,’’ सुनील हंसा.

‘‘एक लंबी कहानी है, बेटे,’’ सौरभ ने सुनील को पूरा किस्सा सुनाया और

बोला, ‘‘रोहिणीजी के प्रति जो गलती  मुझ से अनजाने में हो गई, बेटे, उस का प्रायश्चित्त अब तुम्हें करना है, रश्मि और रोहिणीजी को सदा खुश रख कर.’’

‘‘वादा करता हूं,’’ सुनील के चेहरे का विश्वास साफ झलक रहा था.

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