तूफान की वह रात- भाग 3

वह तो अपने वेतन के 20,000 रुपयों को एकसाथ घर भेजने पर उतारू था. उन्होंने उसे समझाया कि अब तो उसे यहीं रहना है. इसलिए जरूरी सामान और कपड़े खरीद लो. और इस प्रकार उसे जूतेकपड़े आदि के साथ ब्रशमंजन से ले कर शेविंगकिट्स तक की खरीदारी कराई, जिस में उस के 8,000 रुपए निकल गए थे.

वह उस से हंस कर बोले, “यह मुंबई पैसों की नगरी है. यहां सारा खेल पैसों का ही है. अभी अपने पास 2,000 रुपए रखो और बाकी 10,000 रुपए घर भेज दो.”

शर्माजी के एकाउंट की मारफत वह मां के पास 10,000 रुपए भिजवा कर निश्चिंत हो पाया था. लगे हाथ उन्होंने उस का वहीं उसी बैंक में एकाउंट भी खुलवा दिया था.

नवंबर में वह यहां मुंबई आया था. जहाज का यह समुद्री जीवन अजीब था. चारो तरफ समुद्र की ठाठें मारती खारे पानी की लहरें और बजरे का बंद जीवन. दिनभर किसी जहाज में काम करो और फिर शाम को बजरे में बंद हो जाओ. हजारोंलाखों लोगों का जीवन इसी समुद्र के भरोसे चलता है. विशालकाय व्यापारिक जहाजों से ले कर सैकड़ों छोटीबड़ी नौकाएं अपने मछुआरों के संग जाल या महाजाल बिछाए मछली पकड़ती व्यस्त रहती हैं. ऐसे में वह कोई अनोखा तो नहीं, जो यहां रह नहीं पाए. उसे अभी मौजमस्ती की क्या जरूरत. उसे तो अभी अपने परिवार के अभावों के जाल काटना है. यहां खानेपीने की समस्या नहीं. ठेकेदार की तरफ से सभी के लिए यहां निःशुल्क भोजन की भी व्यवस्था है. पंकज शर्मा ने उसे अपना छोटा मोबाइल दे दिया था, जिस से वक्तजरूरत मां या भाईबहन से बात कर लिया करता था.

जिस जहाज पर पंकज शर्मा तैनात थे, उसी पर उस का काम चल रहा था. उस जहाज पर उसे ले कर कुल 24 लोग थे. शाम को वह वापस बजरे पर आ जाते, जहां उन की रिहाइश थी.

बजरा एक सपाट डेक वाली नौका को कहते  हैं, जो सिर्फ पानी की सतह पर तैरती रहती है.  कुछ बजरों में उसे चलाने के लिए इंजन भी लगा रहता है. लेकिन आमतौर पर बिना इंजन वाले इन बजरों को जहाजों द्वारा खींच कर ही इधरउधर लाया या ले जाया जाता है. इस समय ओएनजीसी के औयल रिंग प्लेटफार्म पर कुछ काम चल रहा था. शाम में सभी ‘राजहंस’ नामक इस बजरे पर चले जाते और वहां के लगभग ढाई सौ छोटेबड़े दड़बेनुमा केबिनों में समा जाते. वहीं खानापीना, नहानाधोना वगैरह होता और अगले दिन के लिए सो जाना होता था. यहां से बहुत जरूरी होने पर ही लोग मुंबई समुद्र तट  का रुख करते थे. क्योंकि आनेजाने में ही दिनभर लग जाता था. आमतौर पर महीनेपखवाड़े ही कोई उधर जाता था.

विगत दिनों का वह मनहूस दिन उस के सामने दृश्यमान सा खड़ा था, जब वह पंकज शर्मा के साथ बजरे पर शाम को वापस लौटा था. समुद्र किसी कुपित बाघ की भांति दहाड़ रहा था. पंकज शर्मा पिछले 18 साल से यहां इसी समुद्री तल पर काम करते आए थे. उन्होंने समुद्र के विविध रंग बदलते तेवरों को देखा ही नहीं, झेला भी था. “अरे, कुछ नहीं,” वह बेफिक्री से बोले थे, “तूफान आतेजाते रहते हैं. मनुष्य को अपना काम करते रहना चाहिए.”

“फिर भी सर, इस बार खतरा कुछ ज्यादा ही दिख रहा है,” उन का सहायक मनीश पाटिल सशंकित शब्दों में बोला, “चारों तरफ से वार्निंग की खबरें आ रही हैं. सभी छोटेबड़े जहाज किनारों की ओर चले गए हैं. हमें रिस्क नहीं लेना चाहिए.”

“अब जो होगा, कल ही होगा न,” वह निश्चिंत भाव से बोले, “अब आराम से खाना खाओ और सो जाओ. कल सुबह देखा जाएगा.”

“एक कोरोना से कम तबाह थे क्या, जो ये तूफान आया है,” शिवजी वानखेड़े बोला, “पूरे मुंबई में लौकडाउन लगा है. और यहां ये हाल है कि क्या होगा, क्या पता…”

“इसलिए तो मैं कहता हूं कि हम सुरक्षित जगह में आइसोलेटेड हैं, क्वारंटीन हैं.”

“आप भी सर, गंभीर बातों को हंसी में उड़ा देते हैं,” मनीश पाटिल के यह बोलने पर वह हंसते हुए बोले, “सोच लो, आज से हजार साल पहले जब वास्को-डि-गामा समुद्री मार्ग से आया होगा तो क्या हाल होगा… अभी तो ढेर सारी सुविधाएं हैं, सुरक्षा के इंतजाम भी हैं. अरे, हम जहाजियों का जीवन ही खतरों से खेलने के लिए बना है.”

खैर, रात 9 बजे तक सभी खापी कर अपनेअपने केबिनों में सोने चले गए. वह यों ही डेक पर टहलने जाने का विचार कर ही रहा था, मगर हवा काफी तेज थी. समुद्री लहरें जैसे हर किसी को लपकने के लिए आसमान चूमना चाह रही थीं. वह अपने केबिन में जा कर लेटा रहा. बजरा और दिनों की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही हिचकोले खा रहा था. चूंकि समुद्री जीवन जीने के अभ्यस्त लोग इसे देखने के आदी हैं, उन्हें बजरे के हिलनेडुलने से विशेष फर्क नहीं पड़ना था.

अचानक तीखी आवाज से बजते सायरन को सुन कर वह चौंक पड़ा. सभी को लाइफ जैकेट पहनने और तैयार रहने को कहा जा रहा था. फोन, पर्स आदि जरूरी सामान के साथ वह लाइफ जैकेट पहने औफिस की ओर आया. वहां वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पंकज शर्मा भी गंभीर मुद्रा में लाइफ जैकेट पहने खड़े थे. वे बोले, “सचमुच हम ने तूफान की गंभीरता समझने में भूल की. मगर अब तो बचाव का रास्ता ढूंढ़ना ही एकमात्र उपाय है. बजरे के लंगर टूटते जा रहे हैं. 8 में से 3 टूट चुके हैं और अन्य भी कमजोर पड़ रहे हैं. हमें डर है कि लंगर से मुक्त होते ही यह अनियंत्रित बजरा हिलतेडुलते, तूफान की लहरों के साथ बहते औयल रिंग के प्लेटफार्म से न जा टकराए. प्लेटफार्म पर तेल और गैस की पाइपलाइनें हैं, जो टकराने पर फट कर विस्फोट कर सकती हैं. ऐसे में बचने की सारी संभावना खत्म हो जाएगी.

वे सभी लोग नौसेना अधिकारियों, तटरक्षकों, अपनेअपने मुख्यालयों में हाहाकार भरा त्राहिमाम संदेश फोन से, रेडियो द्वारा और व्हाट्सएप से भी भेज रहे थे. उधर तूफान क्षणप्रतिक्षण विकराल हुआ जाता था. कमजोर पड़ते लंगरों के टूटने के साथ बजरे का हिलनाडुलना बेतरह बढ़ता जाता था. और अंततः वही हुआ, जिस की आशंका थी.  लंगरविहीन बजरा अनियंत्रित हो औयल रिंग के प्लेटफार्म की तरफ बढ़ने लगा, जिसे देख सभी का कलेजा मुंह को आने लगा था.

औयल रिंग प्लेटफार्म के पास क्रूर लहरों ने बजरे को पटक सा दिया था. उस से बजरा जोर से टकराया जरूर, मगर कोई विस्फोट नहीं हुआ. लेकिन इस टक्कर से बजरे की पेंदी में एक छेद हो गया था, जिस से उस में पानी भरना आरंभ हो गया था. मतलब, एक मुसीबत से बचे, तो दूसरी मुसीबत में घिर गए थे. रबर के राफ्ट निकाले जाने लगे. उन्हें तैयार कर नीचे समुद्र में डाल दिया गया. मगर थोड़ी ही देर बाद देखा कि राफ्ट किसी नुकीली चीज से पंक्चर हो गया था और उस में बैठे लोग समुद्री लहरों के बीच लापता हो चुके हैं.

“घबराना नहीं राजन, हिम्मत रखना,” पंकज शर्मा जैसे उस के बहाने खुद को दिलासा दे रहे थे, हौसला बढ़ा रहे थे. कह रहे थे, “नौसेना का जहाज अब पहुंचने ही वाला है. अब हम सभी बच जाएंगे.”

सचमुच नौसेना का जहाज ज्यादा दूर नहीं, दोचार मील के अंदर ही रहा होगा. मगर भयंकर तूफान और गहन अंधकार के बीच कम विजिबिलिटी की वजह से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. वहां से लगातार संदेश आ रहे थे, ‘थोड़ा इंतजार करो, क्योंकि खराब विजिबिलिटी की वजह से नजदीक आने पर नेवी शिप की बजरे से टक्कर हो सकती है.’

और इसी इंतजार के बीच बजरा पानी में तेजी से धंसता चला जा रहा था. लगभग आधे से अधिक बजरे के पानी में समाने पर ही सभी एकएक कर कूदने लगे. जो तैरना नहीं जानते थे, वे कूदने में ज्यादा  झिझक रहे थे. हालांकि उन्हें यहां आने पर लाइफ जैकेट पहन कर तैरने का प्रशिक्षण दिया गया था. कुछ कूदे भी. मगर जो भयवश नहीं कूद पाए, उन्होंने बजरे के साथ ही जल समाधि ले ली.

तैराकी में उस की सदैव रुचि रही थी. गांव के समीप बहने वाली बूढ़ी गंडक हो अथवा मामा के गांव के किनारे बहने वाली बागमती, वह नहाने के बहाने काफी देर तक तैराकी करता, करतब दिखाता रहता था. यहां तक कि बाढ़ के दिनों में भी उसे कभी डर नहीं लगा. मगर नदी में तैरना एक बात है और अनंत समुद्र में तूफान का मुकाबला करना बिलकुल दूसरी बात है. वह भी आधी रात के इस गहन अंधेरे में, जब एक हाथ को दूसरा हाथ नहीं सूझ रहा हो, तैरना असंभव को संभव बनाने जैसा है. समुद्र के  नमकीन, खारे पानी से आंखों में जलन हो रही थी. तूफानी लहरें शरीर को कभी हवा में उछालती, तो कभी गहरे पानी में खींच ले जाती थी.

मगर मनुष्य की जिजीविषा भी तो बड़ी है. वह इसी की बदौलत प्रकृति से, समय और समाज से संघर्ष करता है. हार होती है. मगर कभीकभी वह जीत भी जाता है. और जो जीतता है, वो इतिहास रचता है. यथार्थ तो यही है कि वह इतिहास रचने के लिए संघर्ष नहीं करता, बल्कि खुद को बचाने के लिए संघर्ष करता है. आने वाला समय उसे विजेता घोषित कर देता है.

यह सब तो बाद की बात है, अभी तो वह खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है, ताकि वह भविष्य में अपनी मां को, अपने छोटे भाईबहन को पालपोस सके, उन्हें सही शिक्षा दिलवा सके. यही तो उस के जीवन का मकसद है. उसे और क्या चाहिए?

उस के इर्दगिर्द अनेक लोग तैर रहे हैं, डूब या उतरा रहे  हैं. लाइफ जैकेट उन्हें डूबने नहीं दे रहा. उन के लाइफ जैकेट में लगी बत्ती जल रही है, जिस से उन के अस्तित्व का पता चल रहा है. जो तैरना नहीं जानते, वे जोरजोर से हाथपैर चलाते हुए खुद को थकाए दे रहे हैं. उन के भय और लाचारगी की कोई सीमा नहीं थी. और तो और यहां सभी को अपनी जान के लाले पड़े थे. इस अथाह समुद्र में मौत से लड़ते लोगों को कोई पहचान कर भी क्या कर पाता.

इसी तरह तैरते चारेक घंटे के बाद नौसेना का जहाज दिखा तो जैसे आशा की किरण फूटी. पूर्व दिशा में भी लालिमा दिखने लगी थी. सूर्योदय होने को था. सभी उस जहाज की दिशा की ओर तैरने लगे.

मगर, यह क्या…? देखते ही देखते आसमान कालेकाले बादलों से भर गया था और उसी के साथ पुनः अंधकार छा गया था. मूसलाधार वर्षा होने लगी थी. आशा की जो एक धूमिल किरण थी, वह भी धुंधली पड़ने लगी थी. समुद्री लहरें पुनः काल के समान अट्टहास करते सभी को कभी आकाश की ओर उछालती, तो कभी गरदन दबा खारे पानी के भीतर खींच ले जाती थी.

प्रकृति के इस रौद्र खेल को खेलने को वे अभिशप्त से थे. समय का ध्यान कहां था? कौन समय का ध्यान रख पाया है?

अचानक आकाश में बादल छंटे, ऊपर सूर्य मुसकराया तो सब ने देखा कि ठीक बगल में नौसेना का जहाज खड़ा है. जहाज में बैठे नौसैनिक चिल्लाते हुए निर्देश दे रहे थे. वे हर संभावित व्यक्ति की तरफ रोप लैडर (रस्सी की सीढ़ियां) फेंक उसे पकड़ने के लिए इशारे कर रहे थे. कोई जैसे ही उसे पकड़ता, वह उसे खींच जहाज के अंदर कर लेते. न जाने कहां से अचानक उस में इतनी ताकत आ गई थी कि अंततः उस ने एक रोप लैडर को पकड़ लिया था.

अब वह नौसेना के जहाज में था. उस का रोआंरोआं  अभी तक कांप रहा था. भय और आशंकाएं जैसे पीछा नहीं छोड़ रही थीं.  नौसैनिक वहीं डेक पर उसे लिटा उस का प्राथमिक उपचार कर रहे थे. लेकिन उस की चेतना उसी तरह ऊपरनीचे हो रही थी, जैसे कि वह लहरों के द्वारा ऊपरनीचे उछाला जा रहा हो. डेक पर सैकड़ों लोग पड़े थे. उन में कौन जिंदा है और कौन मर गया, कहना मुश्किल था. फिर भी नौसैनिक भागदौड़ करते मेडिकल ट्रीटमेंट दे रहे थे. उन का एक दूसरा दल अभी भी समुद्र में निगाहें टिकाए देख रहा था कि  शायद कहीं कोई भूलाभटका दिख जाए. इसलिए नेवी शिप से बंधे रोप लैडर अभी तक पानी में तैर रहे थे.

अगले दिन वह चैतन्य हुआ, तो खुद को आर्मी अस्पताल में पाया. बजरे में फंसे अनेक लोग उस वार्ड में भरती थे.

“यह सौभाग्य की बात है कि आप ठीक हैं,” एक डाक्टर कह रहा था, “आप मेरे सामने थोड़ा चलनेफिरने का प्रयास करें.”

वह उठा और कुछ कदम चल कर वापस अपने बेड पर आ गया.

दोपहर को उसे भोजन कराने के बाद एक नौसैनिक अधिकारी उस के पास आया और बोला, “मुझे आप का सहयोग चाहिए. आशा है, आप ‘ना’ नहीं करेंगे.”

जिन लोगों की वजह से वह जिंदा है, उन का सहयोग कर खुशी ही मिलेगी. मगर अभी तो वह खुद अशक्त है. वह किसी की क्या मदद कर सकता है.

“बस कुछ नहीं. कुछ लोगों की शिनाख्त करनी है,” नौसैनिक अधिकारी कह रहा था, “डेड बौडी विकृत सी हो गई हैं. आप उन्हें पहचान सकें तो बेहतर है, ताकि उन के घर खबर भिजवाई जा सके.”

“ओह, तो यह काम है,” उस ने विचार किया “अब जब वह बच गया है, तो बचाने वाले का सहयोग करना उस का फर्ज बनता है.”

आर्मी अस्पताल के बाहर खुले में अनेक शव सफेद चादरों में लिपटे पड़े थे. उन्हें देखना यंत्रणादायक था. मगर एक शव के पास आते ही वह चित्कार भर कर रो पड़ा. वह पंकज शर्मा का शव था. वह वहां से दौड़ कर भागा और खुले में लोट गया. उस के पीछे जब वह सैन्य अधिकारी आया, तो उस ने उस से फोन मांग कर पहले शिपिंग कंपनी में फोन कर उन्हें इस की जानकारी दी. फिर गांव में आलोक को फोन कर जानकारी देने लगा था.

और इस के बाद तो जैसे गांव से फोन पर फोन आने लगे थे. पंकज शर्मा के भैया नारायण चाह रहे थे कि पंकज का शव गांव आए और वहीं उस की अंत्येष्टि हो. शीघ्र ही शिपिंग कंपनी का मैनेजर भी आ गया और उस से जानकारी लेने लगा था. अब वह उन के शव को उन के गांव भिजवाने की तैयारी में लग गया था.

“उन के शव के साथ तुम जाओगे,” मैनेजर उस से कह रहा था, “अभी तुम्हें भी आराम की जरूरत है. और यह तुम्हें अपने घर पर ही मिल सकता  है. एकाध माह वहीं घर पर अपने लोगों के बीच रहोगे तो इस त्रासदी को भूलने में तुम को सुविधा रहेगी. इस के बाद तुम सुविधानुसार आ जाना.”

अचानक उसे लगा कि पंकज शर्मा उस के पास खड़े कह रहे हैं, “देखा, मैं ने कहा था ना कि हम बच जाएंगे. देखो, हम बच कर वापस गांव आ गए हैं.”

अचानक फिर उस के सामने एक और दृश्य उभरा. सफेद चादरों में लिपटे कुछ शव उस की ओर देख रहे थे. उन्हीं के बीच जा कर पंकज शर्मा पुनः लेट गए थे. वह चीख मार कर उठा. बगल में लेटा हुआ उस का भाई सकते में था और पूछ रहा था, “क्या हुआ भैया, कोई खराब सपना देखा क्या?”

“हां रे, बहुत खराब सपना था.”

सुदूर पूर्व में सूर्योदय हो रहा था. अंदर से मां आ रही थी. वह मां से लिपट कर

बच्चों के लिए बनाएं ग्लूटन फ्री चोको चिप कस्टर्ड कुकीज और जैली मूज, सलाद

हम कुछ टेस्टी और अलग ट्राय करें तो ऐसे में रेडी है चोको चिप कस्टर्ड कुकीज जिसे हम घर पर असान तरीकों से बना सकते है. तो रेडी है कुछ ग्लूटन फ्री चोको चिप कस्टर्ड कुकीज और जैली मूज, सलाद के साथ बनाएं और खाएं भी. 

सामग्री

3 बड़े चम्मच वेकफील्ड वनीला या बटरस्कौच कस्टर्ड पाउडर

1/2 कप ज्वार का आटा

1 बड़ा चम्मच वेकफील्ड कोको पाउडर

–  1/4 छोटा चम्मच वेकफील्ड बेकिंग पाउडर

3 बड़े चम्मच सौफ्ट बटर

2 बड़े चम्मच ब्राउन शुगर

1/2 बड़ा चम्मच शुगर

– कुछ बूंदें वेनिला एसेंस

2-3 बड़े चम्मच चोको चिप्स

– नमक चुटकीभर.

विधि

दोनों शक्कर और बटर मिला कर अच्छे से फेंट लें. उसके बाद मिश्रण में कस्टर्ड पाउडरज्वार का आटानमकबेकिंग पाउडर और कोको पाउडर अच्छे से मिक्स करके उसे हलका गूंथ लें. जब मिश्रण डो के रूप में तैयार हो तो उसमें चोको चिप्स भी मिला लें. मनपसंद कुकीज का आकार दें और पहले से गर्म ओवन में 150 डिग्री सेल्सियस पर 15-20 मिनट के लिए बेक करें. ठंडा करके एयर टाइट कंटेनर में स्टोर करें.

2- जैली मूज

सामग्री

1 पैकेट वेकफील्ड रास्पबेरी जैली मिक्स

2 बड़े चम्मच क्रीम

– पुदीने की पत्तियां सजाने के लिए

– फ्रैश रास्पबेरी सजाने के लिए.

विधि

पैक की सामग्री और प्रीमिक्स सैशे की सामग्री को 1 बाउल में निकाल लें. अब 500 मिलीलिटर पानी को उबाल कर इस मिश्रण में मिलाएं और अच्छी तरह मिक्स करके कुछ देर ठंडा होने दें. अब मिश्रण को मोल्ड या जैली कप में डाल कर सेट होने दें. जैली रूम टैंपरेचर पर लगभग 45 मिनट में सेट हो जाएगी. फ्रैश रास्पबेरी और पुदीने की पत्तियों से सजा कर सर्व करें.

3- जैली सलाद

सामग्री

1 वेकफील्ड मैंगो जैली पैक

1 बड़ा चम्मच नीबू का रस

1/2 कप खीरा बारीक कटा

1/2 कप गाजर कद्दूकस की हुई

1/2 बड़े चम्मच शिमला-मिर्च बारीक कटी

1 कप बारीक कटा

1 बड़ा चम्मच आम के टुकड़े

– कुछ सलाद के पत्ते परोसने के लिए

– नमक और कालीमिर्च चुटकी भर.

विधि

एक बाउल में खीरागाजरसेबआम और शिमला-मिर्च को एक साथ मिला लें. नमककालीमिर्च और नींबू का रस डाल कर एक तरफ रख दें. पैक पर दिए निर्देशों के अनुसार 1.5 कप पानी के साथ जैली तैयार करेंजिससे थिक जैली बन कर तैयार हो. जैली को थोड़ा ठंडा कर लें और उसे सलाद के बाउल में डाल कर मिक्स करें. उसके बाद सिलिकौन मौल्ड में डाल कर मिश्रण को सेट होने दें. आपका जैली सलाद तैयार है इसे अनमौल्ड कर सलाद के पत्तों के साथ सर्व करें.

मैंने सुना है कि पेन किलर्स किडनियों को नुकसान पहुंचाती है, क्या यह सही है?

सवाल

मैं सेल्स गर्ल हूं. ड्यूटी के कारण मुझे रोजाना कई घंटों तक खड़े रहना होता है. पैरों में दर्द के कारण अकसर मैं पेन किलर्स ले लेती हूं. मैं ने सुना है कि पेन किलर्स किडनियों को नुकसान पहुंचाती है. क्या यह सही है?

जवाब 

यह सही है कि बिना सोचे समझे पेन किलर्स का इस्तेमाल किडनियों से संबंधित समस्याओं का कारण बन सकता है. अमेरिका के नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इनफौर्मेशन के अनुसार लगातार पेन किलर्स की हाई डोज लेना पूरे विश्व में एक्यूट किडनी फेल्योर की सब से प्रमुख कारण है. ब्रूफेन नामक पेन किलर को 10-15 दिन भी ले लें तो किडनी खराब हो सकती है. इसलिए दर्द के उपचार के लिए इस्तेमाल होने वाले ऐनालजेसिक्सो (पेनकिलर) का सेवन बिना डाक्टर की सलाह के न करें. पैरों का दर्द दूर करने के लिए पेन किलर्स के बजाय दूसरे नुसखे आजमाएं.

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मेरी माताजी की उम्र 62 वर्ष है. उन की किडनियां फेल हो गई हैं. हम डायलिसिस से परेशान आ चुके हैं. क्या इस उम्र में उन का किडनी ट्रांसप्लांट संभव है?

अधिकतर लोग किडनी ट्रांसप्लांट करा सकते हैं. इस से कोई अंतर नहीं पड़ता कि मरीज की उम्र क्या है. यह प्रक्रिया उन सब के लिए उपयुक्त है जिन्हें ऐनेस्थीसिया दिया जा सकता है और कोई ऐसी बीमारी नहीं हो जो औपरेशन के पश्चात बढ़ जाए जैसे कैंसर आदि. हर वह व्यक्ति किडनी ट्रांसप्लांट करा सकता है जिस के शरीर में सर्जरी के प्रभावों को सहने की क्षमता हो. किडनी ट्रांसप्लांट की सफलता की दर दूसरे ट्रांसप्लांट से तुलनात्मक रूप से अच्छी होती है. जिन्हें गंभीर हृदयरोगकैंसर या एड्स है उन के लिए प्रत्यारोपण सुरक्षित और प्रभावकारी नहीं है.

क्यों जरूरी है मैडिक्लेम पौलिसी

आजकल विभिन्न बीमारियों के मामले बढ़ते जा रहे हैं. ऐसीऐसी बीमारियां जिन का पहले नाम भी नहीं सुना था हो रही हैं. कोरोना महामारी ने लोगों के शरीर में कई दूसरी व्याधियों को बढ़ा दिया है. ब्लैक फंगस, व्हाइट फंगस, ब्लड क्लौटिंग जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं जिन के इलाज में लाखों रुपयों का खर्च है. बढ़ती महंगाई के कारण आम आदमी के लिए अस्पताल का खर्च उठाना लगभग नामुमकिन सा हो गया है.

जैसेजैसे हैल्थ सैक्टर में टैक्नोलौजी बढ़ रही है वैसेवैसे बीमारियों पर होने वाले खर्चे भी बढ़ रहे हैं. पहले डाक्टर चैक कर के, नाड़ी देख कर या छोटामोटा टैस्ट करवा कर रोगी का इलाज कर देते थे, मगर अब बुखार भी आ जाए तो तमाम तरह के ब्लडयूरिन टैस्ट लिख देते हैं. गंभीर बीमारियों में तो टैस्ट, ऐक्सरे, एमआरआई, थेरैपी जैसी महंगी चीजों से बीमार और तीमारदार को जू?ाना पड़ता है.

बड़ी बीमारी इंसान की सारी जमापूंजी चट कर जाती है. ऐसे में परिवार का मैडिक्लेम होना बहुत जरूरी है. मैडिक्लेम पौलिसी मुश्किल समय में तनावमुक्त और आर्थिक रूप से सुरक्षित रहने में मदद करती है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में बीमाधारक का इलाज उन अस्पतालों में किया जाता है जो बीमा कंपनी के नैटवर्क के अंतर्गत आते हैं. इस के तहत, बीमा कंपनी क्लेम का एक हिस्सा या पूरी राशि ही अस्पताल को दे देती है और मरीज व उस के परिवार पर अचानक कोई आर्थिक बो?ा नहीं पड़ता है.

सुरक्षित विकल्प

अप्रत्याशित चिकित्सा की जरूरत सामने खड़ी हो जाए तो उस पर होने वाले खर्चों की बड़ी रकम का मुकाबला करने के लिए मैडिक्लेम आज सब से सुरक्षित विकल्प है. जिस व्यक्ति ने अपना मैडिक्लेम करवा रखा है उसे किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण अस्पताल में भरती होने पर अपनी जेब से पैसा देने की आवश्यकता नहीं रह जाती है. वह सारा खर्च मैडिक्लेम देने वाली कंपनी उठाती है.

आप की मैडिक्लेम पौलिसी दुर्घटना, गंभीर बीमारी या सर्जरी आदि की स्थिति में हौस्पिटल का खर्च तो उठाती ही है बल्कि हौस्पिटल से डिस्चार्ज के बाद चलने वाली दवाओं और समयसमय पर होने वाले टैस्ट का खर्चा भी उठती हैं. मैडिक्लेम पौलिसी में सभी स्थितियों को कवर किया जाता है. आज मैडिकल इमरजैंसी के मामले में मैडिक्लेम सर्विस एक वरदान है.

मैडिक्लेम के फायदे

मैडिक्लेम पौलिसी एक स्वास्थ्य बीमा योजना है जिस के अनेक फायदे हैं:

– यह स्मूद कैशलैस हौस्पिटलाइजेशन प्रदान करता है.

– यह आप की चिकित्सा आपात स्थिति के दौरान बड़ी वित्तीय सहायता है.

– यह आप को वित्तीय बो?ा में डूबने से बचाता है.

– विभिन्न कंपनियों के पास मस्डिक्लेम पौलिसी औनलाइन खरीदने की सुविधा है जिस से समय और ऊर्जा की बचत होती है.

– यह आयकर अधिनियम 1961 के तहत टैक्स में छूट भी प्रदान करता है.

– सीनियर सिटीजन मैडिक्लेम पौलिसी के तहत सीनियर सिटीजन को अतिरिक्त लाभ दिया जाता है. अस्पताल में भरती होने से पहले और बाद के मैडिकल खर्चों को कुछ शर्तों के साथ मैडिक्लेम पौलिसियों द्वारा कवर किया जाता है.

– नियमित वार्ड या इंटैंसिव केयर यूनिट आईसीयू का लाभ उठाने के लिए जो भी खर्च होता है, मैडिक्लेम पौलिसियों द्वारा कवर किया जाता है.

विभिन्न मैडिक्लेम पौलिसी चिकित्सा खर्चों की स्थिति में भारत में विभिन्न हैल्थ इंश्योरैंस कंपनियां अनेक प्रकार की पौलिसियां देती हैं. इस में इंडिविजुअल मैडिक्लेम पौलिसी, फैमिली फ्लोटर मैडिक्लेम पौलिसी, सीनियर सिटीजन मैडिक्लेम पौलिसी, क्रिटिकल इलनैस मैडिक्लेम पौलिसी, ओवरसीज मैडिक्लेम पौलिसी, लो कास्ट मैडिक्लेम पौलिसी और गु्रप मैडिक्लेम पौलिसी बड़ी तादात में लोग लेते हैं.

फैमिली हैल्थ प्लान

सब से अच्छा है फैमिली हैल्थ प्लान लेना. उदाहरण के लिए अगर एक परिवार में 5 सदस्य हैं और हर व्यक्ति के लिए अलगअलग 1 लाख रुपए का बीमा है तो ऐसे में परिवार का कोई भी एक सदस्य बीमा कंपनी से अपने लिए 1 लाख रुपए से ज्यादा की मदद प्राप्त नहीं कर सकता. पांचों व्यक्तियों के लिए यह अलगअलग पौलिसी की तरह काम करेगी. लेकिन अगर यही 5 लाख का प्लान फैमिली हैल्थ प्लान के रूप में लिया जाए तो फिर कोई भी सदस्य 5 लाख रुपए तक की मदद पा सकता है.

इसी तरह गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, किडनी फेल्योर, हार्ट अटैक, सर्जरी, लकवा, स्ट्रोक, और्गन ट्रांसप्लांट, बाईपास सर्जरी या इस तरह की अन्य बीमारियों के लिए क्रिटिकल इलनैस मैडिक्लेम पौलिसी बहुत अच्छा कवर देती है.

सीनियर सिटीजन मैडिक्लेम पौलिसी

सीनियर सिटीजन मैडिक्लेम पौलिसी 60 साल की उम्र पार कर चुके बुजुर्ग लोगों के अस्पताल में भरती होने के खर्चों को कवर करने के लिए डिजाइन की गई है. सीनियर सिटीजन हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी सीनियर सिटीजन की हैल्थ जरूरतों को कवर करते हुए कई बातों का खयाल रखती है.

वहीं ग्रुप मैडिक्लेम भारत के अधिकांश उद्योगों के कर्मचारियों को दी जाती है. बड़े क्लब या संघों के सदस्यों का भी ग्रुप मैडिक्लेम किया जाता है. यह कौरपोरेट जगत में ली जाने वाली पौलिसी है. इस में कर्मचारियों के वेतन से प्रीमियम भुगतान के रूप में एक छोटा सा प्रतिशत काटा जाता है.

मैडिक्लेम जरूर करवाएं

मैडिक्लेम आप को मुश्किल समय में तनावमुक्त और आर्थिक रूप से सुरक्षित रहने में मदद करता है. अब मामूली बीमारियों के इलाज में भी लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं. हैल्थ इंश्योरैंस आप की जेब पर पढ़ने वाले भार को कम करने में मदद करता है. लगातार बढ़ते मैडिकल खर्च के इस दौर में मैडिक्लेम पौलिसी जल्द से जल्द ले लेने में ही सम?ादारी है.

केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि मैडिकल इमरजैंसी के मामले में 80 फीसदी केस पैसे की दिक्कत की वजह से बिगड़ जाते हैं. किसी दुर्घटना की स्थिति में न सिर्फ इलाज पर आप को पैसे खर्च करने पड़ते हैं, बल्कि आप की कमाने की क्षमता भी घट जाती है. इस हिसाब से दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति पर दोहरी मार पड़ती है.

यदि आप के पास मैडिक्लेम पौलिसी है तो ऐसे समय में आप की हिम्मत नहीं टूटेगी और आप का इलाज भी बेहतर तरीके से होगा. हैल्थ इंश्योरैंस के लिए नियमित अंतराल पर आप थोड़ाथोड़ा प्रीमियम चुका कर खुद के लिए मैडिकल खर्च की व्यवस्था कर सकते हैं. यह आज के दौर में बहुत जरूरी है.

 

स्तन कैंसर: निदान संभव है

भारत में 40 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे अधिक प्रचलित कैंसर है. ऐसे मामले विश्व स्तर पर हर साल लगभग 2% की दर से बढ़ रहे हैं. यह महिलाओं में कैंसर संबंधित मौतों का सबसे आम कारण भी है.

आज हमारे पास स्तन कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने का मौका है. स्तन कैंसर को जल्दी पकड़ा जा सकता है ओर हारमोन थेरेपी, इम्यूनो थेरेपी और टारगेटेड थेरेपी जैसी नई विकसित के जरीए पहले की तुलना में अधिक विश्वास के साथ इसका इलाज किया जा सकता है.

सेल्फ एग्जामिनेशन

यदि प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लग जाता है तो उपचार अधिक प्रभावी ढंग से हो सकता है. इस अवस्था में कैंसर छोटा और स्तन तक सीमित होता है.

शुरुआत में एक छोटी गांठ की उपस्थिति या स्तन के आकार में बदलाव के अलावा कोई कथित लक्षण नहीं होता है, जिसे रोगियों द्वारा आसानी से अनदेखा किया जा सकता है. यही वह समय है जब स्क्रीनिंग जरूरी है. स्क्रीनिंग टेस्ट से स्तन कैंसर के बारे में जल्दी पता लगाने में मदद मिलती है. ऐसे में जब कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते तब भी स्क्रीनिंग के द्वारा हमें इस बीमारी का पता चल सकता है. स्क्रीनिंग के लिए नियमित रूप से डाक्टर के पास जाना चाहिए ताकि रोगी महिला के स्तन की पूरी तरह से जांच कर सकें. डाक्टर अकसर इस के जरीए ब्रेस्ट में छोटीछोटी गांठ या बदलाव का पता लगा लेते हैं. वे महिलाओं को सेल्फ एग्जामिनेशन करना भी सिखा सकते हैं ताकि महिलाएं खुद भी इन परिवर्तनों को पकड़ सकें.

हालांकि मैमोग्राफी स्तन कैंसर की जांच का मुख्य आधार है. यह एक एक्स-रे एग्जामिनेशन है और गांठ दिखने से पहले ही स्तनों में संदिग्ध कैंसर से जुड़े परिवर्तनों का पता लगाने में मदद करता है.

पहला मैमोग्राम कराने और इसके बाद भी कितनी बार मैमोग्राम कराना है. यह इस पर निर्भर करता है कि उस महिला को ब्रेस्ट कैंसर होने का रिसक कितना है. जिन महिलाओं के रक्त संबंधी स्तन कैंसर या ओवेरियन कैंसर से पीडि़त हैं और जिनको पहले भी स्तनों से जुड़ी कुछ असामान्यताओं जैसे स्तनों में गांठ, दर्द या डिस्चार्ज आदि का सामना करना पड़ा है उन्हें जोखिम ज्यादा रहता है. ऐसी महिलाओं को 30 साल की उम्र के बाद हर साल मैमोग्राफ कराना चाहिए. दूसरों को 40 साल की उम्र के बाद हर साल या हर 2 साल में जांच करवानी चाहिए.

टेस्टिंग

अगर मैमोग्राम में कैंसर का कोई संदिग लक्षण दिखता है तो पक्के तौर पर कैंसर है या नहीं इसका पता लगाने के लिए बायोप्सी की जाती है. इस प्रक्रिया में संदिग्ध क्षेत्र से स्तन ऊतक के छोटे हिस्से को निकाल लिया जाता है और कैंसर सेल्स का पता लगाने के लिए प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाता है.

उच्च जोखिम वाल महिलाओं के लिए, बीआरसीए म्युटेशन जैसी जेनेटिक असामान्यताओं का पता लगाने के लिए जेनेटिक टेस्टिंग की भी सिफारिश की जाती है. ‘बीआरसीए’ दरअसल ब्रेस्ट कैंसर जीन का संक्षिप्त नाम है. क्चक्त्रष्ट्न१ और क्चक्त्रष्ट्न२ दो अलगअलग जीन हैं तो किसी व्यक्ति के स्तन कैंसर के विकास की संभावनाओं को प्रभावित करते हैं. जिन महिलाओं में ये असामान्यताएं होती हैं उन सभी को स्तन कैंसर हो ऐसा जरूरी नहीं, मगर उनमें से 50% को यह जिंदगी में कभी न कभी जरूर होता है.

वीआरसीए जीन असामान्यता वाली महिलाओं को अतिरिक्त सतर्क रहना चाहिए और नियमित रूप से वार्षिक मैमोग्राम कराने से चूकता नहीं चाहिए. जो महिलाएं नियमित रूप से जांच नहीं कराती हैं उनके लिए यह संभावना बढ़ जाती है कि उनके स्तन कैंसर का पता लेटर स्टेज या एडवांस स्टेज पर लगेगा. इस स्तर पर कैंसर संभावित रूप से स्तन या शरीर के कुछ दूसरे हिस्सों में फैल सकता है. ऐसे में इलाज एक चुनौती बन जाती है, लेकिन जब डाइग्रोसिस शुरुआती स्टेज में हो जाती है तब इलाज के कई तरह के विकल्प मौजूद होते हैं जो कैंसर का सफलतापूर्वक कर पाते हैं और इसके फिर से होने की संभावना पर भी रोक लगाते हैं.

आपके लिए कौन सा इलाज अच्छा

होगा यह प्रत्येक कैंसर की प्रोटीन असामान्यताओं पर निर्भर करता है, जिसका पता कुछ खास जांच द्वारा लगाया जाता है. एडवांस्ड थैरेपीज जिसे इम्मुनोथेरेपी, टार्गेटेड थेरेपी और हारमोनल थेरेपी इन विशेष अब्नोर्मिलिटीज पर काम करती है और बेहतर परिणाम देती हैं.

कुछ रोगियों के लिए ये उपचार पारंपरिक कीमोथेरेपी की जगह भी ले सकते हैं. कुछ उपचार जो कैंसर दोबारा होने से रोकते हैं उन्हें गोलियों के रूप में मौखिक रूप से भी लिया जा सकता है. यह अर्ली स्टेज के स्तन कैंसर की मरीज को भी एक अच्छी जिंदगी जीने को संभव बनाते हैं.

प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर डायग्नोज होने वाली महिलाओं में से 90% से अधिक इलाज के बाद लंबे समय तक रोग मुक्त जिंदगी जी सकती हैं. लेकिन भारत में स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं की 5 साल तक जीवित रहने की दर महज 42-60% है. ऐसा इसलिए है क्योंकि लगभग आधे रोगियों का पता केवल अंतिम चरण में चलता है.

हम इसे बदल सकते हैं. यदि महिलाएं अपने थर्टीज में स्तन कैंसर की जांच की योजना बनाती हैं और लक्षणों के प्रकट होने की प्रतीक्षा नहीं करती हैं.

स्तन कैंसर का डायग्नोज होना अब मौत की सजा की तरह नहीं होना चहिए क्योंकि हम कैंसर का जल्द पता लगा सकते हैं और हमारे पास इसके सफल उपचार के लिए इफेक्टिव थेरेपीज हैं.

-डा. सुरेश एच. आडवाणी द्वारा एमडी, (एफआईसीपी, एफएनएएमएस, कंसल्टेंट आन्कोलौजिस्ट)

 

सोच पर असर डालता है आपका पहनावा

मानसी क्राइम रिपोर्टर थी. वह संवेदनशील और जु?ारू रिपोर्टर थी. कानपुर में ज्यादातर सलवारकुरते में ही रिपोर्टिंग करती थी. उसे इस परिधान में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि इन कपड़ों में उस की परफौरमैंस पर कोई असर पड़ा. इस पहनावे में उसे अपनी ऊर्जा में कोई कमी महसूस नहीं हुई बल्कि इस में वह खुद को बहुत कंफर्टेबल महसूस करती थी. शहर के लोग उस की काबिलियत से वाकिफ थे. किसी भी पुलिस अधिकारी ने उसे इंटरव्यू देने में कभी आनाकानी नहीं की. वह भीतर की बातें भी बड़ी आसानी से निकाल लाती थी.

मगर मानसी जब 2008 में उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से ट्रांसफर हो कर दिल्ली आई तो उन दिनों दिल्ली में कई आतंकी घटनाएं और बम धमाके हुए थे. मानसी ने अपनी पत्रिका के लिए इन घटनाओं को पूरी संवेदनशीलता के साथ कवर किया. पीडि़तों का अस्पताल जाजा कर हाल पूछा और लिखा मगर संबंधित क्षेत्र के डीसीपी और क्राइम सैल के हैड की बाइट लेने के लिए कई चक्कर लगाने पर भी उसे सफलता नहीं मिली. उस ने कमिश्नर औफ पुलिस का इंटरव्यू लेने के लिए भी कोशिश की मगर 3 दिन तक वह उन के कार्यालय के बाहर बैठ कर वापस आ गई. मुलाकात नहीं हो सकी.

ऐसे खोलें तरक्की के रास्ते

दरअसल, इन अधिकारियों के औफिस में हर वक्त मीडिया कर्मियों का जमावड़ा लगा रहता था. जींसटौप में टिपटौप दिखती, बौयकट बालों को ?ाटकती, फुल मेकअप में रिपोर्टर कम और मौडल या ऐंकर ज्यादा लगने वाली रिपोर्टर्स को ही हर जगह अहमियत मिल रही थी.

अधिकारी का चपरासी ऐसी बालाओं को फटाफट साहब से मिलवा रहा था जबकि मानसी द्वारा विजिटिंग कार्ड भिजवाए जाने के बाद भी उसे अधिकारी से मिलने में सफलता नहीं मिली.

मानसी ?ां?ाला कर अपने औफिस लौट आई मगर अधिकारी की बाइट या इंटरव्यू के बिना उस की रिपोर्ट को अधूरा कह कर एडिटर ने उसे उस की टेबल पर वापस पटक दिया. मानसी रोंआसी हो गई. तव साथी रिपोर्टर निखिल ने उसे सम?ाया और बोला कि दिल्ली में रिपोर्टिंग करनी है तो पहले अपना हुलिया बदलो.

3 दिन में अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर लगालगा कर मानसी को भी सम?ा में आ गया था कि भले आप अच्छे रिपोर्टर न हों, भले आप में खबरों को लिखने की सम?ा न हो और भले आप में संवेदनशीलता की कमी हो पर यदि आप जींसटौप या पश्चिमी परिधान में रहते हैं, बातबात में स्टाइल मरते हैं और इंग्लिश में थोड़ी गिटपिट कर लेते हैं तो आप को हर जगह अहमियत मिलने लगती है. अधिकारी खड़े हो कर आप से हाथ मिलाते हैं. आप को पूरा वक्त देते हैं. आप के सामने चायबिस्कुट पेश करते हैं और आप के बेवकूफी भरे सवालों के जवाब भी गंभीरता से देते हैं. पर यदि आप ओल्ड फैशन के परिधान में हैं, सिंपल दिखते हैं तो आप के गंभीर सवालों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया जाता है.

सहकर्मी की सलाह पर मानसी ने अपना परिधान बदला तो उस के तरक्की के रास्ते भी ऐसे खुले कि आज वह एक बड़े न्यूज चैनल में बड़ी रिपोर्टर बन चुकी है.

आश्चर्यजनक प्रभाव

किसी की वेशभूषा का उस के व्यक्तित्व पर बड़ा प्रभाव पड़ता है. समीर एक इंटरनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. वे बताते हैं कि एक बार एक शादी में बिना तैयारी के जबरन जाना पड़ गया. मैं ने रिश्तेदारों को बहुत सम?ाया मगर उन्होंने घर भी नहीं जाने दिया. साधारण वेशभूषा में बरात में शामिल होना पड़ा. बरात आगरा से मेरठ जानी थी. मेरठ में मेरे एक दोस्त का घर था. रास्ते भर बरात में ऐसा लग रहा था जैसे हर व्यक्ति मु?ो ही देख रहा था.

मेरी वेशभूषा पर दूसरे से खुसुरफुसुर कर रहा था. मेरे अंदर इतनी हीनभावना घर कर गई कि मेरठ पहुंचते ही मैं बरात छोड़ अपने दोस्त के घर चला गया. हीन भावना इतनी कि बारबार मन उसे भी अपने इस हाल की सफाई देने की कोशिश करता रहा, मगर मौका नहीं लगा. सुबह जल्दी उठ कर बात में भी नहीं गया और ट्रेन पकड़ कर वापस आगरा आ गया. हीनभावना ने जब तक पीछा नहीं छोड़ा जब तक मैं घर नहीं पहुंच गया. उस दिन मैं ने जाना कि वेशभूषा सामने वाले से अधिक अपनेआप में नकारात्मकता या सकारात्मकता पैदा करती है और सहज रहने न रहने में परेशानी होती है.

समीर कहते हैं कि बहुत कुछ सामने वाले की सोच पर निर्भर होता है कि वह क्या अनुभव करता है. वह यदि आप को जानता है तो आप की वेशभूषा से पहले आप के व्यक्तित्व पर ध्यान देगा और नहीं जानता तो पहले आप की वेशभूषा से आप का मूल्यांकन करेगा बाद में आप के विचारों से.

इंसानी सोच और पहनावा

चेहरे के बाद इंसान का ध्यान पहनावे पर ही जाता है. पहनावा इंसानी सोच पर बहुत प्रभाव डालता है. व्यक्ति अपना परिचय अपने कार्य व्यवहार से तो बाद में दे पाता है, लेकिन लोग उस के परिधान के आधार पर ही बहुत से पूर्वाग्रह निर्मित कर लेते हैं. हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां व्यक्ति की हैसियत और इंटैलिजैंस उस के परिधान से आंकी जाती है.

बुरके में सिर से पैर तक ढकी महिला को देख कर उस के रूढि़वादी, अशिक्षित और पिछड़े होने का ही अनुमान लगता है. भले वह कोई उच्चशिक्षित डाक्टर या वकील हो. इसी तरह धोती कुरता पहने व्यक्ति को देख कर कोई यह नहीं कहेगा कि वह हाई सोसाइटी का पढ़ालिखा अमीर आदमी होगा. भले ही वह हो.

बढ़ता है आत्मविश्वास

परिधान देखने वाले और पहनने वाले दोनों के व्यवहार और सोच को बदलने की क्षमता रखता है. मैट्रो में टाइट जींसटौप पहने लड़कियां सब के आकर्षण का केंद्र होती हैं. इन कपड़ों में वे स्मार्ट और ऊर्जावान दिखती हैं. यह सच भी है कि जींसटौप के साथ चाल में स्मार्टनैस और तेजी खुदबखुद आ जाती है. कौन्फिडैंस लैवल बढ़ जाता है.

इंसान खुद को आजाद महसूस करता है खासतौर पर लड़कियां. वहीं सलवारकुरता या साड़ी पहनी लड़कियां दबीसकुचाई सी नजर आती हैं. उन की तरफ किसी का ध्यान नहीं होता. महानगरों में मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत 45 से 50 साल की महिला जींस पहन कर जिस ऊर्जा से काम करती दिखती है, उस के मुकाबले घर में रहने वाली इसी उम्र की महिला खुद को बूढ़ा मान कर धर्मकर्म के कार्यों में लग जाती है.

लक्ष्य बनाएं आसान

भारतीय परिवार में आमतौर पर सासससुर के साथ रहने वाली बहुएं साड़ी या दुपट्टे के साथ सलवारकमीज ही पहनती हैं. वे ज्यादातर शांत, शालीन और नाजुक सी दिखती हैं. लेकिन जो युगल अपने परिवार से अलग दूसरे शहर में रहते हैं वहां बहू यदि जींस, स्कर्ट जैसे पाश्चात्य कपड़े पहनती है तो पति को अपनी पत्नी में प्रेमिका की छवि दिखती है.

उन के बीच लंबे समय तक आकर्षण, शारीरिक संबंध और प्यार बना रहता है. वे ऊर्जावान रहते हैं और साथ घूमनेफिरने के लिए लालायित रहते हैं. उस के विपरीत साड़ी पहनने वाली औरतों की अकसर यह शिकायत होती है कि उन के पति उन पर ध्यान नहीं देते और न कहीं घुमाने ले जाते हैं. दरअसल, उन का परिधान पति के लिए उबाऊ हो जाता है.

सभ्य और कंफर्टेबल वेशभूषा पहनने से हमारा आत्मविश्वास ही बढ़ता है क्योंकि इस से हमारे काम व सोच पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. अच्छी सोच और आत्मविश्वास के कारण ही हम जिंदगी के हर लक्ष्य को प्राप्त करते हैं

इन 6 दवाईयों से बनाएं फेस पैक और पाएं बेदाग स्किन

हमारे सारे प्रयास बेदाग त्वचा पाने की दिशा में होते हैं. एक ऐसी त्वचा जिस पर कोई दाग, धब्बा, झुर्रियां, झाइयां व मुंहासे ना हों. ऐसी त्वचा पाना आसान नहीं है लेकिन कुछ विटामिन फेस मास्क यह करिश्मा दिखा सकते हैं.

एक साफ और निखरी त्वचा पाने के लिए आपको विटामिन व मिनरल की सबसे अधिक जरूरत होती है. विटामिन ई आपको दागों से छुटकारा दिलाता है जबकि विटामिन सी आपकी त्वचा को जवां बनाए रखता है.

इन फेस मास्क को बनाने के लिए आप किसी भी कैप्सूल का इस्तेमाल नहीं कर सकती. इसके लिए आपको आपकी त्वचा व त्वचा से जुड़ी समस्याओं की समझ होनी चाहिए.

जैसे एस्पिरिन की गोलियों में मौजूद सलिसीक्लिक एसिड मुंहासों से छुटकारा दिलाता है जबकि विटामिन ई के कैप्सूल में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट आपकी त्वचा को साफ व कोमल बनाते हैं.

लेकिन इन सब से भी अधिक जरूरी बात है कैप्सूल को इस्तेमाल करने की मात्रा. कौन सा कैप्सूल कितनी मात्रा में इस्तेमाल करना है या बनाए गए लेप को हफ्ते में कितनी बार लगाना चाहिए जैसे सवालों के जवाब भी पता होने चाहिए.

हमने नीचे कुछ फेस पैक को तैयार करने की विधि दी है. साइड-इफैक्ट्स से बचने के लिए पैक को बनाकर एक पैच टेस्क लें. इन पैकों को आजमाने पर परिणाम 15 से 30 दिनों के भीतर नजर आएंगे.

1. एस्पिरिन की गोलियां:

एस्पिरिन में मौजूद सलिसीक्लिक एसिड त्वचा से डेड स्किन को हटाता है तथा चेहरे को दागदार करने वाले धब्बों व मुंहासों से छुटकारा पाने में मदद करता है.

सामग्री: 3 एस्पिरिन की गोलियां, 1 कप पानी, 1 चम्मच जैविक शहद

विधि: एक चम्मच पानी में एस्पिरिन की गोलियां को घोलें. इसे एक लेप के रूप में तैयार करने के लिए आवश्यकता अनुसार पानी डालें. अब इसमें शहद डालकर घोलें. इस तैयार हुए लेप को अपने चेहरे व गर्दन पर फैलाएं. इस लेप को 20 मिनट तक रहने दें, बाद में अपने चेहरे को पानी से धो लें. इस पैक को हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाएं.

ध्यान रहे: कभी भी 8 से ज्यादा गोलियां का इस्तेमाल ना करें.

2. विटामिन ई:

विटामिन ई के कैप्सूल एंटीऑक्सीडेंट से युक्त होते हैं तथा इनसे बनाया गया पैक त्वचा के भीतर जल्द समाता है. यह पैक आपकी त्वचा को नर्म, मुलायम व जवा बनाएगा.

सामग्री: 3 विटामिन ई के कैप्सूल, 5 बूंदें बादाम के तेल की

विधि: विटामिन ई के कैप्सूल को तोड़कर उसके अंदर मौजूद जेल को एक कटोरी में निकालें. अब इसमें बादाम का तेल मिलाएं. रात में सोने से पहले इस पैक से अपनी त्वचा की मालिश करें. सुबह अपने चेहरे को ठंडे पानी से धोएं.

3. विटामिन सी की गोली:

विटामिन सी में मौजूद एल-एस्कॉर्बिक एसिड त्वचा में कोलेजन स्तर को बढ़ाता है, जिससे आपकी त्वचा जवा व टाइट बनी रही है.

सामग्री: 1 विटामिन सी का कैप्सूल या गोली, 1 चम्मच गुलाब जल,  ½ बड़ा चम्मच ग्लिसरीन,  5 बूँदें रोजहिप तेल की

विधि: ऊपर दी गई सारी सामग्री को मिलाकर एक लेप तैयार करें. इस लेप को रात में सोने से पहले अपनी त्वचा पर एक मोइस्चराइज़र के रूप में लगाएं. विटामिन सी से बना यह पैक केवल मुंहासों से ही छुटकाना नहीं दिलाएगा बल्कि चेहरे पर नजर आने वाली झुर्रियों व फाइनल लाइन से भी आपका पीछा छुड़ा देगा.

4. प्रोबायोटिक कैप्सूल:

इन कैप्सूल में मौजूद गुड बैक्टीरिया, फ्री रैडिकल से आपकी त्वचा की रक्षा करता है, तथा चेहरे पर नजर आने वाले काले धब्बों को घटाकर त्वचा को कोमल बनाता है.

सामग्री 2 या 3 प्रोबायोटिक के कैप्सूल, 5 बूंदें लैवेंडर के तेल की, 5 बूँदें बादाम के तेल की

विधि: पहले दोनों तेलों को मिलालें फिर इसमें कैप्सूल को तोड़ कर डालें. सारी सामग्री को अच्छे से मिलालें. इस मिश्रण को अपने चेहरे व गर्दन पर लगाएं. जब मास्क आपके चेहरे पर सूख जाएं तब चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. बेदाग चेहरा पाने के लिए इस उपाय को हफ्ते में दो बार आजमाएं.

5. सीवीड कैप्सूल:

सीवीड कैप्सूल में भरपूर मात्रा में विटामिन व मिनरल होते हैं. ये त्वचा से मृत कोशिकाओं को हटाते हैं तथा त्वचा को स्वस्थ बनाकर झुर्रियों से छुटकारा दिलाते हैं.

सामग्री: 3 सीवीड कैप्सूल, खूबानी के तेल की 10 बूंदें, 1 चम्मच जैविक शहद

विधि: कैप्सूल को तोड कर उसमें शहद व खूबानी के तेल को मिलाएं. इस विटामिन से युक्त पैक को अपने चेहरे व गर्दन पर लगाएं. इस पैक को अपने चेहरे पर 30 मिनट के लिए रहने दें और बाद में अपने चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. इस घरेलू नुस्खे को सप्ताह में दो बार आजमाएं.

6. गाजर के तेल के कैप्सूल

हम सब जानते हैं कि गाजर में बीटा-कैरोटीन होता है, जो क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को ठीक करता है व रक्त परिसंचरण को बढ़ाता है. इससे आपका चेहरा चमक उठता है.

सामग्री: 2 गाजर के तेल के कैप्सूल, 2 बूंदें गुलमेहंदी का तेल 2 बूंदें बादाम का तेल

विधि: पहले अपने चेहरे को धोलें. फिर इन सारी चीजों को मिलाकर इनसे अपनी चेहरे की मालिश करना आरंभ करें. इसे रात भर रहने दें सुबह अपने चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. यदि चिपचिपाहट महसूस हो तो मिश्रण को थोड़ा कम लगाएं.

मोल सच्चे रिश्तों का: क्या रिया से दूर हुआ परिवार

ट्रिंग ट्रिंग..

‘सुबह सुबह फ़ोन..ओह..जरूर रिया होगी’

आरव ने कहा.

‘हा..रिया..यार टैक्सी बुक कर के आ जाओ ना, मैं रीति को छोड़ कर एयरपोर्ट नही आ सकता’

‘हेलो..सर, मैं इंस्पेक्टर राठौड़ बोल रहा हूं, आपकी वाइफ मिसेज रिया को एयरपोर्ट मेडिकल ऑथिरिटी ने क्वारंटाइन के लिए स्टैम्प किया है इन्हें हम शहर से थोड़ी दूर बनाये गए वार्ड में पंद्रह दिन रखेंगे, पंद्रह दिन के बाद टेस्ट किया जाएगा..सब ठीक रहा तो घर जाएंगी नही तो आइसुलेशन में रखा जाएगा’

इंस्पेक्टर एक साँस में बोल गया.

ये सुन कर मेरे होश उड़ गए, हाथ से मोबाइल गिरते गिरते बचा.

‘सर..क्या मैं एक मिनट अपनी पत्नी से बात कर सकता हूं’

‘यस..श्योर’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘हेलो..रिया..डोंट वरी, सब ठीक हो जाएगा..मैं रीति को तुम्हारी माँ के पास छोड़ कर आता हूं’

‘नो..आरव, तुम्हें अभी मुझसे मिलने की परमिशन नही मिलेगी, तुम रीति के पास रहो, मैं वार्ड पहुंच कर तुमसे बात करती हूं, अभी मुझे कुछ समझ नही आ रहा’ रिया ने रोते हुए कहा.

ये क्या हो गया?

मैं कैसे संभालूंगा इधर पांच साल की छोटी बेटी उधर पत्नी जो इस समय जिस अवस्था में है उसकी कल्पना भी करना आत्मा झिंझोड़ कर रखने वाली है.

मेरी पत्नी रिया जो एक मल्टीनेशनल कंपनी की मार्केटिंग हेड है, अक़्सर अपने कंपनी के काम से विदेश यात्रा करती है,आज करीब बीस दिनों के बाद लंदन से वापस घर आ रही थी.

‘क्या करू..मुझे वहाँ जाना तो होगा ही, रिया को मैं ऐसे अकेले नही छोड़ सकता’ खुद से बात करते हुए मैंने रिया की माँ को फ़ोन किया, पता चला वो ख़ुद कुछ दिनों से बीमार है ऐसे में रीति को संभालना उनके लिए मुश्किल है, उसके भाई,भाभी से कभी आत्मीयता थी ही नही तो उनसे कोई उम्मीद नही है.

सिर पकड़ कर वही बैठ गया, मेरी रीति..वो मेरे साथ रहने की इतनी आदी है और किसी के पास रहना उसके लिए वैसे भी मुश्किल है, ऐसे में किसी अपने के पास ही रीति को छोड़ सकता हूं…

‘माँ या भाभी को फ़ोन करू’

किस मुँह से उनसे सहयोग के लिए कहूँ जब ख़ुद मैंने और रिया ने उन लोगो से सारे रिश्ते तोड़ दिए थे, रीति पांच साल की हो गयी उसने शायद एक बार अपनी दादी की शक़्ल देखी होगी और आज मैं मुसीबत में हुं तो दादी को उनका फ़र्ज़ याद दिलाऊँ?

मानव कि प्रवृति है….अपने द्वारा बनाये गए झूठ, स्वार्थ,अभिमान के खूबसूरत जाल में ऐश करता है, जब परेशानी उसके दरवाज़े पर आती है तो वो अतीत में झाँकता है..’आख़िर उससे ऐसा क्या गुनाह हुआ था जो इस मुसीबत में पड़ा’ आज मैं भी इसी परिस्थिति में हूं, कोरोना बीमारी अभी तक मेरे लिए महज़ एक खबर थी, और आज मेरे साथ है.

रीति सो रही थी, मैं भी उसके पास जा कर लेट गया.

अतीत के पन्ने आंखों के सामने एक एक कर के खुल रहे थे, उच्चवर्गीय आधुनिक विचार की लड़की रिया से मैंने प्रेमविवाह किया था, मेरे मध्यमवर्गीय परिवार में उसकी तालमेल कभी नही बनी,भाभी और माँ को हेय दृष्टि से देखती थी और ठीक उसके विपरीत वो दोनो रिया को पलकों पर बिठा कर रखे थे, रिया की माँ चाहती थी हम दोनो परिवार से अलग हो जाये, उन्होंने ने द्वारिका में 3बीएचके का एक बड़ा फ़्लैट रिया के नाम से ले लिया.

पिता जी के गुज़रने के बाद भैया ने मुझे पढ़ाया लिखाया, एम टेक करने के लिए मुझे बाहर जाने का मौका मिला लेकिन पैसे की कमी के कारण मैंने घर में बताया नही, ना जाने भैया को कैसे पता चल गया, उन्होंने भाभी के सारे ज़ेवर गिरवी रख कर मुझे विदेश भेज दिया,वही पहली बार रिया से मिला था.

भाभी भी बहुत अमीर घराने की उच्चशिक्षित बेटी है,पर उनका रहन सहन सादा था अमीरी के चोंचले से दूर रहती थी, पैसे रुपये से ज़्यादा उनके लिए रिश्तों की अहमियत थी, उनके दिल में सब के लिए प्रेम है..इस कारण वो सबकी चहेती है, रिश्तेदार, पास पड़ोस, सभी भाभी की तारीफ़ करते ना थकते, ये सब देख रिया ईर्ष्या से भर जाती … उस दिन भी भाभी ने बड़प्पन दिखाया… घर छोड़ते समय रिया ने उनका कितना अपमान किया था उनको भला बुरा कहा लेकिन वो चुप थी आंखों से गंगा जमुना की धार बह रही थी, तटस्थ खड़ी रिया की बक़वास सुन रही थी.

शायद रिया से ज़्यादा उन्हें मुझसे तकलीफ़ हुई थी, वो पराई थी मैं तो उनके लिए उनके अपने बच्चों से बढ़ कर था उस समय मेरी चुप्पी सिर्फ़ भाभी को नही पूरे घर को खली थी, मेरी चुप्पी रिया के ग़लत व्यवहार को सही ठहरा गए थे, मेरा मुँह रिया के प्यार और हाईक्लास लाइफस्टाइल ने बंद कर रखा था.

उस दिन के बाद रीति के जन्म के समय माँ हमसे मिलने आयी थी उस दिन भी उनके प्रति हमारा ठंडा रैवया उन्हें समझ आ गया था इसलिये जल्दी ही बिना किसी को अपना परिचय दिए निकल गयी थी.

उनके दर्द को उनके आंखों में मैं साफ़ देख रहा था पर सो कॉल्ड हाई स्टेटस फ्रेंड सामने बैठे थे तो माँ के प्यार को अनदेखा कर दिया.

आज पापा की बहुत याद आ रही थी उनके दिए संस्कारो की तिलांजलि देकर मैंने सच्चे रिश्ते खो दिया, आज जब मुसीबत पड़ी तो अपने याद आ रहे है..कितना स्वार्थी हो गया हूं मैं जिनके त्याग और प्यार को ठुकरा कर आगे बढ़ गया था, मुश्किल वक्त आया तो मुझे उनकी जरूरत महसूस हो रही है…अतीत के पन्नों को बंद करना ही बेहतर होगा.

रीति भी उठ गयी थी, सोचा..उसको प्ले स्कूल में डाल कर रिया से मिलने की कोशिश करता हूं.

‘साहब, रीति बेबी का स्कूल तो बंद हो गया है’ सुनीता ने कहा

‘ओह..हा, मैं भूल गया था’

‘क्या हुआ साहब, आप की तबियत तो ठीक है’

‘हा हा..मैं बिल्कुल ठीक हूं, ऐसा करो..रीति के लिए कुछ खाने को बना दो, मुझे भूख नही है’

‘साहब, और मैडम के लिए..वो भी तो आज आएंगी’

मैं चुप..क्या जवाब दूं?

‘नही, आज नही आएगी..तबियत ख़राब है इसलिए डॉक्टर के यहाँ है’

‘साहब..टीवी देखो..क्या क्या दिखा रहा है, कोई बीमारी उन चीनियों ने भेजी है, सब मर रहे है..मेरा आदमी भी बोला..अब मैं काम पर ना जाऊ’ सुनीता ने कहा.

‘कोई नही मर रहा..सब ठीक हो जाएगा, तुम अपना काम ख़त्म करो’मैंने खींझ कर कहा.

अकबक सी खड़ी थोड़ी देर देखती रही फ़िर काम में लग गयी.

सुनीता की बातों ने मुझे और व्यथित कर दिया था, मैं कमरे में चला आया ‘रिया को कुछ नही होना चाहिए..हे प्रभु..हमारी गलतियों की सज़ा मेरी बेटी को ना देना’ अब तक काबू रखा दिल अकेले में चीख पड़ा.

‘डैडी..डैडी’ रीति की आवाज़ सुन खुद को सयंत किया.

सभी करीबी दोस्तो को फ़ोन किया, हर किसी ने अलग अलग मज़बूरियां बताई..किसी को रीति की जिम्मेदारी नही लेनी थी इसके लिए रीति नही भय था कोरोना बीमारी.

सभी संक्रमित हुए किसी भी परिवार से दूरी बनाये रखना चाहेंगे…इसके लिए मैं उनको ग़लत भी नही कह सकता.

‘साहब, मैं घर जा रही..सब ठीक रहा तो शाम में आऊंगी नही तो आज से मेरी भी छुट्टी समझो’ सुनीता ने जाते हुए कहा.

रिया को फ़िर फ़ोन किया..

‘ रिया..कैसी हो, मैं कुछ करता हूं..थोड़ा इंतजार कर लो’

‘आरव..प्लीज़ डोंट वरी..आई एम फाइन, मैं अभी इंफेक्शन के फर्स्ट स्टेज़ पर हूं, डॉक्टर ने कहा है कुछ दिन मैं यहाँ रहूं तो मैं पूरी तरह ठीक जाऊंगी’ रिया की आवाज़ से लग रहा था वो संतुष्ट है.

‘मैं तुम्हें इस हालात में ऐसे कैसे अकेले छोड़ सकता हूं’ मैं बेसब्र था

‘आरव..प्लीज़ अंडरस्टैंड, यहाँ किसी से मिलने की परमिशन नही है, मेरे पास फ़ोन, लैपटॉप, इंटरनेट सब है मैं अपना काम करती रहूंगी और तुम दोनो से वीडियो चैट भी’ रिया ने हँसते हुए कहा.

मैं जानता था उसकी हँसी सिर्फ़ मुझे

तसल्ली देने के लिए है.

दिन बहुत भारी था, किसी तरह बीता..रात तो वक़्त की पाबंद होती है अगले दिन सूरज की रौशनी के साथ नया दिन..परेशानी वही की वही

सुबह सुबह रिया ने वीडियो कॉल किया..रीति बहुत ख़ुश थी, रिया देखने में स्वास्थ्य लग रही थी, बीमारी के ज़्यादा कुछ लक्षण नही थे, हल्की खांसी थी, बुख़ार अब नही था.

‘आरव..क्या मुझे मम्मी जी का नंबर दोगे?’ रिया ने कहा.

‘मम्मी..मेरी मम्मी का नंबर ?’ मैंने चौंक कर कहा.

रिया के आंखों में आंसू थे, मेरी तरह शायद वो भी अतीत में कि गयी अपनी ग़लतियो के पश्चताप से जूझ रही थी.

‘रिया, नंबर तो है..हिम्मत नही है’ मैंने कहा.

शाम के चार बज़ रहे थे, रीति खेलने में व्यस्त थी, लैपटॉप लेकर मैं भी वही बैठ गया..

डोरबेल बज़ी

माँ, भाई और भाभी सामने खड़े थे.

मैं अवाक खड़ा था.

‘आरव..रिया कैसी है ? बेटा, कुछ ख़बर मिली, आज टीवी पर देखा उसे, तो पता चला’ माँ ने कहा.

‘हा माँ..वो ठीक है, आप लोग बाहर क्यों खड़े है, अंदर आइए’ मैं सामने से हटते हुए कहा.

‘भैया, इतनी परेशानी अकेले सह रहे हो, एक बार फ़ोन तो कर दिया होता,क्या इतने पराए हो गए हम’? भाभी ने रीति को गोद में उठाते हुए उलाहना दिया.

‘नही भाभी..ऐसी बात नही’ मैं ख़ुद की नज़रों में  बहुत छोटा महसूस कर रहा था.

भाभी ने आते ही, घर की सफ़ाई के साथ साथ बढ़िया खाना भी तैयार कर दिया.

रिया का वीडियो कॉल आया.

भाभी की गोद में रीति को देख रिया फुट फुट कर रोने लगी.

‘माँ, भाभी, भैया प्लीज़ मुझे माफ़ कर दे..दो दिनों की अकेलेपन की सज़ा ने मुझे मेरी गुनाहों का अहसास करा दिया है.

‘अब ज़्यादा कुछ सोचो नही, हम सब उस दिन से तुम्हारे है जिस दिन तुमने आरव का हाथ थामा था, गलतियां सभी करते है, अपनी ग़लती से सबक ले कर आगे बढ़ना ही ज़िन्दगी है’ भाभी ने कहा ‘बेटी रोना नही, रीति और आरव की फ़िक्र मत करो, ख़ुश रहो..मुश्किल वक़्त है निकल जाएगा, शीघ्र स्वस्थ्य हो कर घर आओ,तब तक मैं यहीं रहूंगी’? माँ ने बड़ी ही आत्मीयता से कहा.

‘मम्मी जी, भाभी, भैया.. मेरी एक विश है’ रिया ने कहा.

‘हा, बोलो..बताओ हमें..क्या चाहिए’?  भैया ने कहा.

‘भैया..जब मैं घर आऊं तो क्या आप मुझे मेरा परिवार वापस देंगे’ रिया ने हाथ जोड़ कर कहा .

‘रिया..बेटा,तुम्हारा परिवार तुमसे कभी दूर नही गया था, जो हुआ उसे भूल जाओ और आगे बढ़ो, स्वास्थ्य पर ध्यान दो, घर आओ..हम सब बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रहे है ‘ भैया ने कहा.

कभी कभी बुरा वक़्त भी अपने पीछे तमाम खुशियां ले कर आती है..मैं ख़ुश था..हम सब ख़ुश थे.

भारतीय प्रधानमंत्री का विदेशी दौरा

भारतीय मूल के और भारतीय ससुर के दामाम होने के बावजूद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रिषी सुनक भी भारतीयों के इंग्लैंड में प्रवेश पर पाबंदियां लगाने लगे हैं. इंग्लैंड के कट्टरपंथी अब रेस रिलिज्य व कलर को लेकर उसी तरह बेचैन होने लगे हैं जैसे भारतीय प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से ले कर आप की गली के नुक्कड़ के मंदिर के पुरोहित हैं. उन्हें लगता है कि ग्रेट ब्रिटेन में जल्दी ही गोरे मूल निवासी बन रह जाएंगे. उन्हें भी गोरों की कम जन्मदर और भूरों, कालों की जन्मदर के बारे में व्हाट्सएप ज्ञान उसी तरह बांटा जा रहा है जैसा भारत में बांटा जा रहा है.

भारतीय प्रधानमंत्री इस बार में बात करने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकते. अमेरिका की भारतीय रक्त वाली कमला हैरिस और गृह ब्रिटेन के पूरे भारतीय रक्त वाले रिषी सुनक को ले कर भारतीय जनता पार्टी ने न तो देश भर में घी के दिए जला कर न देश में ढोल में पीटे कि यह कारनामा पार्टी की उपलब्धि है क्योंकि इन दोनों विश्व नेताओं ने भारत के प्रधानमंत्री से कोई ज्यादा लाड नहीं जताया.

भारतीयों का वीसा ले कर ग्रेट ब्रिटेन में प्रवेश करने के लिए कतारों में खड़ा रहना तो चालू है ही, हजारों जोखिम भरी इंग्लिश चैनल छोटीछोटी बातों में यूरोपीय मेनलैंड से चल कर प्यार पा रहे हैं ताकि वहां जा कर कह सकें कि उन्हें अपने देश की सरकार से खतरा है. दुनिया भर में जो भारतीय गैरकानूनी ढंग से फैले हुए हैं उन में से बहुतों ने यही कहा है कि वे अपने मूल देश में भेदभाव, जुल्मों सरकारी तानाशाही के शिकार हैं और उन्हें राजनीतिक शरणार्थी के तौर पर शरण दी जाए. इस तरह वे कानून बहुत से यूरोपीय देश में हैं कि वे किसी भी शरण मांगने वाले को बिना सुनवाई के भगाएंगे नहीं. इस सुनवाई के दौरान भारतीय शरण मांगने वाले अपने घर हो रहे जुल्मों की झूठी अच्छी कहानियां अदालत को सुनाते हैं.

यह अफसोस है कि ङ्क्षहदू होते हुए भी रिषी सुनक ने अपने धर्म भाईयों की नहीं सुनी. उन्हें धर्म भाईयों और रक्त भाइयों की नहीं, अपने नए देश के नागरिकों की वोटों की ङ्क्षचता है. रिषी सुनक जैसे भारतीय मूल के लोग ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका में ही नहीं और बहुत से देशों में हैं जो अपने देश को एक बुरा सपना मान कर त्याग चुके हैं. वे भारतीय मूल के हो कर भी भारत सरकार की हां में हां नहीं मिलाते.

उस से अच्छे थे तो पिछले एक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनेल्ड ट्रंप थे जो दिल्ली, मुंबई में टं्रप टौवर बनवाने के लिए अमेरिका के हाउसटन में नरेंद्र मोदी की भारतीय मूल के लोगों की सभा में खड़े हुए थे और फिर भारत भी ऐन कोविड से पहले आए थे जब अहमदाबाद में वे नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में ‘एक बार फिर ट्रंप सरकार’ के नारे से गदगद हुए थे. रिषी सुनक और कमला हैरिस जो यहाकदा पूजापाठ करने भारत आते हैं को धर्म विद्रोही क्यों नहीं घोषित किया जाए.

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