Rushad-Ketaki के रिसेप्शन में अनुपमा की टीम का जलवा, देखें फोटोज

अनुपमा और अधिक टीवी शो के क्रिएटिव डायरेक्टर केतकी वालावलकर और अभिनेता रुशद राणा ने आज एक प्राइवेट फंगक्शन में शादी कर ली. पिछले दो दिनों में दोनों ने मेहंदी और हल्दी के फंक्शन किए और कल ग्रैंड वेडिंग थी जो करीबी दोस्तों और परिवार के सदस्यों की मौजूदगी में हुई. अनुपमा के कई कलाकार और अन्य सेलेब्स न्यूली वेड कपल रुशद राणा और केतकी वालावलकर को बधाई देने के लिए शामिल हुए थे.

 

 

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दोनों के लुक्स

यहां न्यूली वेड कपल रुशद राणा और केतकी वालावलकर आती हैं. रुशाद और केतकी हरे और लाल रंग में एक-दूसरे की तारीफ करते नजर आए. रुशाद हरे रंग के वेलवेट ब्लेजर में दिखे जबकि केतकी लाल गाउन में नजर आईं.

 

अनुपमा उर्फ ​​रूपाली गांगुली शामिल हुईं

अगर आपको लगता है कि रूपाली गांगुली शूटिंग में व्यस्त होंगी और अपने प्रियजन की शादी के रिसेप्शन में शामिल नहीं होंगी, तो आप गलत हैं. रूपाली सफेद रंग के आउटफिट में थोड़ी देर से स्टनिंग लग रही थीं.

 

नुज और उनकी वाइफ

गौरव खन्ना और पत्नी आकांक्षा चमोला को सफेद रंग में ट्विनिंग करते देखा गया. गौरव को एक पीले रंग की टी में देखा गया था जिसे उन्होंने एक सफेद ब्लेज़र के साथ पेयर किया था. उन्होंने पीले रंग के जूते भी पहने थे. वहीं, आकांक्षा ने ग्लिटर वाला वाइट गाउन पहना था.

 

अनेरी वजानी और हर्ष राजपूत शामिल हुए

मालविका उर्फ ​​मुक्कू की भूमिका निभाने वाली अनेरी वजानी पिसाचिनी अभिनेता हर्ष राजपूत के साथ रुशद राणा और केतकी वालावलकर के शादी के रिसेप्शन में पहुंचीं.

 

 

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अश्लेषा सावंत भी हुई शामिल

लोकप्रिय टीवी शो अनुपमा में बरखा का किरदार निभाने वाली अश्लेषा सावंत भी रिसेप्शन पार्टी में नजर आईं. वह व्हाइट लहंगा चोली में काफी खूबसूरत नजर आ रही थीं.

तसनीम नेरुरकर

तस्नीम नेरुरकर उर्फ ​​​​राखी दवे भी एक शानदार चमकदार साड़ी में नजर आईं. ग्लैम लुक में तस्नीम बेहद खूबसूरत लग रही हैं. शो में राखी दवे को मिस किया जा रहा है.

सुधांशु पांडे पार्टी में आए

शो में अनुपमा में वनराज शाह की भूमिका निभाने वाले सुधांशु पांडे हमेशा की तरह स्टड लुक में नजर आए. वह ब्लैक जैकेट और डेनिम में नजर आए.

 

आशीष मेहरोत्रा ​​कूल लग रहे हैं

आशीष मेहरोत्रा ​​ने लेदर जैकेट पहनी थी और ऑल-ब्लैक लुक में नजर आए. उन्होंने काला चश्मा भी लगा रखा था. आशीष ने गले में सोने की चेन पहन रखी थी. उन्होंने काफी रेट्रो लुक दिया.

मदालसा और महाक्षय पार्टी में आते हैं

अनुपमा की मदालसा शर्मा उर्फ ​​काव्या हमेशा की तरह स्टनिंग लग रही थीं. वह सी-थ्रू आउटफिट में नजर आ रही थीं. वह अपने पति अभिनेता महाअक्षय चक्रवर्ती के साथ आई थीं. उन्होंने एक ब्लेज़र पहना था जिसे उन्होंने डेनिम के साथ पेयर किया था.

निधि शाह काफी खूबसूरत लग रही हैं

निधि शाह भी शो में किंजल की तरह ही खूबसूरत लग रही थीं. निधि ने एक सुंदर सफेद साड़ी पहनी थी और अपने बालों को अपने कंधों पर ढीला कर लिया था.

BB 16: प्रियंका से लड़ाई के बाद शालीन ने गुस्से में की तोड़फोड़, क्या बिग बॉस देंगे सजा!

टीवी का कॉन्ट्रोवर्शियल रियलिटी शो बिग बॉस (Bigg Boss) का 16वां सीजन अपने लड़ाई-झगड़ों की वजह से खूब लाइमलाइट में बना हुआ है. शो में रोज किसी न किसी कंटेस्टेंट की लड़ाई होती है और इस सीजन में कई बार कंटेस्टेंट अपने आपा खोते हुए भी नजर आए हैं, जिस वजह से उन्हें फटकार भी लगी है. बीते एपिसोड में देखने को मिला कि राशन टास्क के बाद प्रियंका चाहर चौधरी (Priyanka Chahar Choudhary) और शालीन भनोट (Shalin Bhanot) के बीच बहस हो जाती है, जिस वजह से शालीन प्रियंका को कहते हैं कि वह उनसे फुटेज लेने की कोशिश कर रही हैं. वहीं, दोनों की लड़ाई आगे भी काफी होने वाली है, जिसमें शालीन अपना आपा खो देते हैं और तोड़फोड़ करते हैं.

 

 

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प्रियंका से लड़ाई में सामान उठाकर फेकेंगे शालीन

दरअसल, बिग बॉस 16 के मेकर्स ने सोशल मीडिया पर अपकमिंग एपिसोड का नया प्रोमो शेयर किया है, जिसमें शालीन भयंकर गुस्से में नजर आ रहे हैं. दोनों की लड़ाई राशन को फिर से पाने के टास्क के बाद होती है, जिसमें शालीन, टीना और अर्चना की वजह से घरवालों से उनका पूरा राशन छिन लिया जाता है. इस टास्क के बाद शालीन पूरी बात प्रियंका को समझाते हैं और बताते हैं कि उसे और टीना दोनों को नॉमिनेशन से डर लगता है. इसी बात पर प्रियंका चिल्लाते हुए कहती हैं कि ये इंसान बहुत कंफ्यूज है और लोगों को भी रखता है, इस बात पर शालीन भनोट का गुस्सा भी फट पड़ता है और वह प्रियंका के सामने रखी चीजें उठा कर फेंक देते हैं.

 

 

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शालीन भनोट को सुनाएंगी प्रियंका चाहर चौधरी

हालांकि, इस लड़ाई में प्रियंका भी शांत नहीं रहती हैं. शालीन का गुस्सा देखकर वह भी फट पड़ती हैं और चिल्लाकर बोलती हैं कि मेरे सामने ये गुस्सा और सामान तोड़ना दिखाना मत शालीन भनोट. ये हरकतें टीना दत्ता को दिखाना। वहीं, झेलेंगी तुम्हें. प्रियंका की इस बात का जवाब शालीन ‘चल चल’ में देते हैं. इस लड़ाई से साफ है कि अब शालीन का रिश्ता प्रियंका से भी बिगड़ गया है. शो में बहुत कम कंटेस्टेंट्स हैं, जिनके साथ शालीन की दोस्ती हुई है. वह एमसी स्टेन, अर्चना गौतम, टीना दत्ता और सुंबुल तौकीर खान से भी इसी तरह लड़ चुके हैं और कई बार शालीन को इसके लिए सजा भी मिली है.

समस्याओं को हल करने से मिलती है खुशी

अनीता एक 32 साल की महिला है जो एक प्राइवेट कंपनी में काम करती है. वह और उस के पति रोज सुबह ही काम पर निकल जाते थे. पति दिन भर ऑफिस में अपनाटारगेट पूरा करने की डेडलाइन से जूझता था. कंपनी में सब ठीक नहीं चल रहाथा इसलिए उसे अक्सर बॉस और कुलीग्स की तीखी आलोचनाएं भी सुनने को मिलजाती. इस वजह से शाम को वह बहुत थकाहारा और परेशान सा लौटता. अनीता भीअपने ऑफिस में दिन भर काम करती थी. शाम को थकी हुई घर लौटती तो किसी नकिसी बात पर बच्चों पर बरस पड़ती. फिर खाना बनाने में जुट जाती. पति कामूड भी खराब रहता. छोटी छोटी सी बात पर दोनों के बीच झगड़े भी हो जाते.पति और बच्चों की अलग अलग फरमाइशें पूरी करते करते वह चिड़चिड़ी हो गईथी. घर में पैसों की कमी नहीं थी मगर रातदिन की कलह ने घर का माहौल बिगाड़ रखा था. पति का व्यवहार रुखा रहने की वजह से बच्चे भी विद्रोही हो चले थे. अनीता अपने जीवन से निराश रहने लगी थी. उसे लगता जैसे उस के जीवन कीसमस्याएं कभी ख़त्म ही नहीं हो सकतीं और जिंदगी ने उसे बहुत दुःख दिए हैं.एक दिन अनीता ने एक कामवाली रखी जो सुबहसुबह आ जाती और उस के घरेलू कामोंमें मदद कर देती थी. कामवाली यानी अंजू के दो छोटे बच्चे थे. पति पेंटरथा जिसे कभी कभी ही काम मिलता था. अंजू खुद 3 घरों में काम करने जाती थी.वह पूरे दिन काम करती और शाम में घर पहुँचती. उस के पास एक कमरे का छोटासा घर था और कोई बैंक बैलेंस भी नहीं था. फिर भी वह बहुत खुश रहती. किसीदिन थोड़ी परेशान दिखती भी तो अगले दिन मुस्कुराती हुई नजर आती. अनीता जब भी उसे गौर से देखती तो उस के चेहरे की संतुष्टि और ख़ुशी सेचकित रह जाती. वह उस से अपनी तुलना करती तो लगता जैसे इतनी गरीबी में भ वह उस से बहुत ज्यादा खुश है. एक दिन अंजू बारिश में भीगती काम करने आ तो उसे सर्दी लग गई. तब अनीता ने उसे अपना पुराना छाता दे दिया और चाय

पीने को दी. अंजू काफी खुश हो गई. तब अनीता ने उस से मन की बात करते हुए पूछा, ” अंजू तेरे पास कोई सुविधा नहीं. तेरी जिंदगी में इतनी समस्याएं हैं. फिर भी तू इतनी खुश कैसे रह लेती है? अंजू मुस्कुराती हुई बोली, ” दीदी समस्याएं आती हैं तभी तो उन्हें सुलझाने का मजा है. मैं अपनी तरफ से इन समस्याओं से लड़ने की पूरी कोशिश करती हूँ. समस्याएं सुलझ जाती हैं तो मैं खुश हो जाती हूँ. अब यदि परेशानियां ही न हों तो उन्हें हराने का आनंद कैसे मिलेगा? देखो दीदीमुझे यह पता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं. हमारी समस्याएं भी हमेशा नहीं रहने वाली. फिर ऐसी समस्याओं का बोझ हम दिमाग पर क्यों रखें. एक समय था जब मेरे कोई औलाद नहीं थी. हम ने दवाई करवाई और हमारे बच्चे हुए. अब बच्चों को देख खुश हो लेते हैं. वे भूखे न सोयें इसलिए दिनरात काम करती हूँ. वे खा पी कर हँसते खेलते हैं तो बहुत ख़ुशी मिलती है. पति को भले ही ज्यादा काम नहीं मिलता मगर जब कमा कर लाते हैं तो हम खुश हो जाते हैं. येछोटी छोटी खुशियां ही बहुत हैं जीने के लिए. ” अंजू की बातें सुन कर अनीता को अहसास हुआ कि वह आज तक कितनी गलत थी.खुशियां समेटने की जगह समस्याओं पर ही ध्यान देती रही. वह समझ ही नहींसकी कि समस्याएं ही तो खुशियों का दरवाजा खोलती हैं. अक्सर हम सोचते हैं कि समस्याएं हमें खुश रहने से रोकती हैं. लेकिन क्याआप ने सोचा है कि वे खुशी के लिए कितनी जरूरी हैं? हमें अपने जीवन में खुशियां कहाँ से मिलती हैं? आनंद कब महसूस होता है ? दरअसल आनंद का स्रोसमस्याएँ हैं. अमेरिकन बेस्टसेलिंग ऑथर और ब्लॉगर मार्क मैनसन का कहना है कि समस्याओं को सुलझाने से खुशी मिलती है. अब जरा इस तथ्य को गहराई से समझते हैं. जब हम किसी समस्या का समाधान करते हैं तो हमें खुशी होती है. माना आप को भूख लगी थी. आप ने खाना खा लिया तो आप को अच्छा लगा. अगर आप के पास पैसा नहीं तो आप ने इसे कमाया. इसी तरह अगर आप बीमार हो जाते हैं तो आप डॉक्टर के पास जाते हैं. दवा खा कर आप अच्छा फील करते हैं. इस के विपरीत जब आप को थोड़ी थोड़ी देर में खिलाया जाता है, आप के पास भरपूर पैसे होते हैं या आप बिलकुल स्वस्थ होते हैं तो आप आनन्दित नहीं होते. आप बोर होने लगते हैं. जीवन में कुछ भी एक्साइटमेंट नहीं रह जाता. न कुछ पाने की इच्छा रहती है और न कुछ पा कर ख़ुशी होती है क्योंकि आप के पास ऑलरेडी सब कुछ है. एक पल के लिए रुकें और अपनी सब से सुखद यादों के खजाने में से एक याद केबारे में सोचें. आप पाएंगे कि वह ख़ुशी देने वाली याद किसी बड़ी चुनौती कोपार कर के पाई गई थी. दरअसल समस्याओं के समाधान से ही हमें खुशी मिलतीहै. किसी मुसीबत में सफलता पाने या किसी को हरा कर जीतने में ही ख़ुशी है.आनंद मन की स्थिति है. खोतेखोते कुछ पा लेने की ख़ुशी, मेहनत कर के कुछकमाने का आनंद या फिर तेज भूख लगी हो तब कुछ मनपसंद खा लेने की तृप्तिबहुत अलग होतीहै. आनंद समस्याओं को हल करने में है. अपने जीवन की कोई भीसमस्या ले लीजिए. जब आप इसे हल करने का प्रयास करते हैं तो आप आनंद काअनुभव करेंगे. अधिक वजन होना एक बड़ी समस्या है और इस से छुटकारा पाने काआनंद भी उतना ही बड़ा होगा. समस्याएं आप को मजबूत बनाती हैं आप के जीवन में जितनी ज्यादा समस्याएं होंगी आप के लिए उतना ही ज्यादा आगे बढ़ने की संभावनाएं होंगी. चुनौतियों की आग में तप कर आप कुंदन की तरह निखरेंगे. इस का मतलब यह है कि जीवन में समस्याएं कम नहीं होनी चाहिए बल्कि ज्यादा से ज्यादा समाधान होना चाहिए. यही नहीं आप को अपने तनाव के स्तर को सही तरीके से मैनेज करने की आवश्यकता भी है. याद रखें तनाव हमेशा बुरा नहीं होता. सकारात्मक तनाव आप को खुद को बेहतर बनाने के लिए या जरूरत पड़ने पर मदद पाने के लिए प्रेरित कर सकता है. यह आप को अपनी परिस्थितियों को बदलने के लिए प्रेरित करता है. तनाव आप को प्रॉब्लम सॉल्वर में बदल देता है ताकि आप मुश्किल के समय बिना विचलित हुए समाधान निकाल सकें. संकट का समय आप को बेहतर बनाता है. अच्छा प्रदर्शन कर अपनी समस्या को सुलझाने का मौका देता है. समस्याओं का समाधान इन के साथ ही आता है. कुछ लोग यह मानते हैं कि वे अपनी समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं. वे अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को या बाहरी परिस्थितियों को दोष देना चाहते हैं. यह सोच उन्हें क्रोध, लाचारी और निराशा के जीवन की ओर ले जाता है. ज्यादातर लोग अपनी समस्याओं के लिए दूसरों को नकारते हैं और दोष देते हैं. क्योंकि यह करना आसान है और दूसरों को आरोपी बनाना अच्छा लगता है. जबकि हमें समस्याओं को हल करना कठिन लगता है. मगर ऐसा करने से हमें ख़ुशी नहीं मिलती. हमारे अंदर नकारात्मक भावनाएँ आती हैं मगर उल्लास नहीं. इस के विपरीत सच्ची खुशी तभी मिलती है जब हम उन समस्याओं को खोज लेते हैं जिन का हल करने से हमें आनंद मिलता है.

समस्याएं कभी नहीं रुकतीं

जीवन में समस्याएं हमेशा ही आती रहती हैं. मान लीजिए आप ने कोई जिम ज्वाइन किया है ताकि आप अपनी सेहत से जुड़ी समस्याओं का समाधान कर सकें. मगर क्या आप ने ध्यान दिया है कि इस तरह आप ने अपने लिए नई समस्याएं खड़ी की हैं. जैसे समय पर जिम जाने के लिए जल्दी उठना, जिम में पसीना बहाना और फिर नहाना और कपड़े बदलना. इन सब कामों में आप का काफी समय भी जाता है. इसी तरह अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड के साथ समय न बिता पाने की समस्या के समाधान के लिए जब आप संडे का दिन फिक्स करते हैं तो आप के जीवन में नई समस्याएं आती हैं कि कैसे उस दिन फ्री रहा जाए, फिर अच्छे रेस्टुरेंट जा कर और रूपए खर्च कर लजीज चीज़ें मंगाई जाएं. पार्टनर के साथ अच्छा समय बिताने की कोशिश में आप उस के तंज भरे शब्दों को सहते हैं और माहौल खुशनुमा बनाए रखने की कोशिश करते हैं. कभी कभी ये समस्याएं सरल होती हैं जैसे अच्छा खाना खाना, किसी नई जगह की यात्रा करना, आप के द्वारा अभी अभी खरीदे गए नए वीडियो गेम में जीतना. दूसरी तरफ कुछ समस्याएं अमूर्त और जटिल होती हैं जैसे अपनों के साथ रिश्ते को ठीक करना, एक ऐसा करियर खोजना जिस के बारे में आप अच्छा महसूस कर सकें, बेहतर दोस्ती विकसित करना. जाहिर है समस्याएं कभी नहीं रुकतीं. वे केवल अपग्रेड हो जाती हैं. समस्याओं के समाधान से खुशी मिलती है. यदि आप अपनी समस्याओं से बच रहे हैं या ऐसा महसूस करते हैं कि आप को कोई समस्या नहीं है तो आप स्वयं को दुखी और बोर करते हो. अगर आप को लगता है कि आप के पास ऐसी समस्याएं हैं जिन का आप समाधान नहीं कर सकते हैं तो आप खुद को और भी दुखी और निराश कर लेंगे. ख़ुशी जीवन की समस्याएं सुलझाने में मिलती हैं

 

समस्या है तो समाधान भी है

जीवन में संघर्ष से ऊबे नहीं. दुख हमें जगाए रहता है. विपत्ति या प्रतिकूलताएं हमें जागृत रखती हैं. जैसे गुलाब के साथ कांटे प्रकृति द्वारा गुलाब के लिए की गई सुरक्षा व्यवस्था है वैसे ही जीवन में आने वाली प्रतिकूलताएं विपत्ति, दुख, वास्तव में हमारे खुद की सुरक्षा के लिए प्रकृति द्वारा की गई व्यवस्थाएं हैं. हम परिस्थितियों को बदल तो नहीं सकते परन्तु अपनी व्यवस्था तो कर ही सकते हैं. गर्मी को आने से रोक नहीं सकते परन्तु पंखे तो लगा ही सकते हैं. समस्याएं हैं तो उनके समाधान भी हैं. भूख बाद में लगती है अन्न पहले से तैयार है. प्रत्येक समस्या अपने गर्भ में समाधान को लिए रहती है. हमें बस थोड़ा धैर्य रखने की जरूरत है. थोड़े से समर्पण, थोड़ा सा त्याग करने के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है. जिन लोगों ने ऊंचाइयां छुई हैं उस के पीछे उन की मेहनत और पुरुषार्थ है. आप भी पूरी लगन और मेहनत से समस्याओं का सामना करें. रॉबर्ट कॉलियर कहते हैं कि हमारे काम में देरसवेर संकट आते ही हैं. जीवन का कोई भी क्षेत्र संकट से अछूता नहीं है. इसका सामना किए बगैर और इस से निजात पाए बिना आप कुछ हासिल नहीं कर सकते. इसलिए समस्याओं को देखने का अपना नजरिया बदलें. इन से डरें नहीं. जो समस्याओं से डर कर भागने लगते हैं समस्याएं दोगुनी तेजी से उन का पीछा करने लगती हैं. समस्याओं से भागना वह दौड़ है जो व्यक्ति कभी नहीं जीत सकता क्योंकि समस्याएं हमेशा आएंगी ही. हमेशा यही देखें कि कांटों के बीच गुलाब कैसे मुस्कुरा रहा है. जीवन है तो समस्याएं हैं और समस्याएं हैं तो जीवन है. जीवन और समस्याएं एकदूसरे से गुंथे हुए हैं और इन के साथ गुंथे रह कर चलने से ही जीवन का आनंद आता है.

 

समस्याओं को सुलझाने के लिए;

– सब से पहले किसी एक समस्या पर फ़ोकस करें. किसी एक समस्या का हल आप को टेंशन से या फिर दूसरी समस्याओं पर होने वाले स्ट्रेस से बचा सकता है. अतः पहले एक को हल करें फ़िर दूसरे के बारे में सोचें.

– प्राथमिकताएं तय करें. यदि आप के पास सुलझाने के लायक बहुत सारी समस्याएं हैं तो आप को पहले यह तय करना है कि कौन सी समस्या को पहले सुलझाया जाए. एक बार निर्णय ले लेने के बाद शक न करें.

– हमें परिस्थिति नहीं बदलनी है बल्कि मन:स्थिति बदलनी है. जिस दिन आप मन बदल लेंगे उसी दिन सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी . समाधान इसलिए नहीं निकल पाता क्योंकि हम सही समस्या की ओर ध्यान नहीं देते. जरूरी है कि हम समस्या की सही पहचान करें .

– जीवन है तो समस्याएं रहेंगी ही लेकिन समस्याओं को ले कर दिन भर चिंतामग्न रहने से कुछ हासिल नहीं होगा. समस्याओं के खत्म होने का इन्तजार करना समझदारी नहीं. हमें समस्याओं का समाधान ढूंढना होगा.

कशमकश : सीमा भाभी के चेहरे से मुस्कान क्यों गायब हो गई थी

‘‘वाहभई, मजा आ गया… भाभी के हाथों में तो जैसे जादू की छड़ी है… बस खाने पर घुमा देती हैं और खाने वाला समझ ही नहीं पाता कि खाना खाए या अपनी उंगलियां चाटे,’’ मयंक ने 2-4 कौर खाते ही हमेशा की तरह खाने की तारीफ शुरू कर दी तो रसोई में फुलके सेंकती सीमा भाभी के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई.

पास ही खड़ी महिमा के भीतर कुछ दरक सा गया, मगर उस ने हमेशा की तरह दर्द की उन किरचों को आंखों का रास्ता नहीं दिखाया, दिल में उतार लिया.

‘‘अरे भाभी, महिमा को भी कुछ बनाना सिखा दो न… रोजरोज की सादी रोटीसब्जी से हम ऊब गए… बच्चे तो हर तीसरे दिन होटल की तरफ भागते हैं,’’ मयंक ने अपनी बात आगे बढ़ाई तो लाख रोकने की कोशिशों के बावजूद महिमा की पलकें नम हो आईं.

इस के पास कहां इतना टाइम होता है जो रसोई में खपे… एक ही काम होगा… या तो कलम पकड़ लो या फिर चकलाबेलन… सीमा की चहक में छिपे व्यंग्यबाण महिमा को बेंध गए, मगर बात तो सच ही थी, भले कड़वी सही.

महिमा एक कामकाजी महिला है. सरकारी स्कूल में अध्यापिका महिमा को मलाल रहता है कि वह आम गृहिणियों की तरह अपने घर को वक्त नहीं दे पाती. ऐसा नहीं है कि उसे अच्छा खाना बनाना नहीं आता, मगर सुबह उस के पास टाइम नहीं होता और शाम को वह थक कर इतनी चूर हो चुकी होती है कि कुछ ऐक्स्ट्रा बनाने की सोच भी नहीं पाती.

महिमा सुबह 5 बजे उठती है. सब का नाश्ता, खाना बना कर 8 बजे तक स्कूल पहुंचती है. दोपहर 3 बजे तक स्कूल में व्यस्त रहती है. उस के बाद घर आतेआते इतनी थक जाती है कि यदि घंटाभर आराम न करे तो रात तक चिड़चिड़ाहट बनी रहती है. रात को रसोई समेटतेसमटते 11 बज जाते हैं. अगले दिन फिर वही दिनचर्या.

इतनी व्यस्तता के बाद महिमा चाह कर भी सप्ताह के 6 दिन पति या बच्चों की खाने, नाश्ते की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाती. एक रविवार का दिन उसे छुट्टी के रूप में मिलता है, मगर यह एक दिन बाकी 6 दिनों पर भारी पड़ता है. सब से पहले तो वह खुद ही इस दिन थोड़ा देर से उठती. फिर सप्ताह भर के कल पर टलने वालेकाम भी इसी दिन निबटाने होते हैं. मिलनेजुलने वाले दोस्तरिश्तेदार भी इसी रविवार की बाट जोहते हैं. इस तरह रविवार का दिन मुट्ठी में से पानी की तरह फिसल जाता है.

क्या करे महिमा… अपनी ग्लानि मिटाने के लिए वह बच्चों को हर रविवार होटल में खाने की छूट दे देती है. धीरेधीरे बच्चों को भी इस आजादी और रूटीन की आदत सी हो गई है.

महिमा महसूस करती है कि उस का घर सीमा भाभी के घर की तरह हर वक्त सजासंवरा नहीं दिखता. घर के सामान पर धूलमिट्टी की परत भी दिख जाती है. कई बार छोटेछोटे मकड़ी के जाले भी नजर आ जाते हैं. इधरउधर बिखरे कपड़े और जूते तो रोज की बात है. लौबी में रखी डाइनिंगटेबल भी खाने के कम, बच्चों की किताबों, स्कूल बैग, हैलमेट आदि रखने के ज्यादा काम आती है.

कई बार जब महिमा झुंझला कर साफसफाई में जुट जाती है, तो बच्चे पूछ बैठते हैं, ‘‘आज अचानक यह सफाई का बुखार कैसे चढ़ गया? कोई आने वाला है क्या?’’ तब वह और भी खिसिया जाती.

हालांकि महिमा ने अपनी मदद के लिए कमला को रखा हुआ है, मगर वह उस के स्कूल जाने के बाद आती है, इसलिए जो जैसा कर जाती है उसी में संतुष्ट होना पड़ता है.

स्कूल में आत्मविश्वास से भरी दिखने वाली महिमा भीतर ही भीतर अपना आत्मविश्वास खोती जा रही थी. यदाकदा अपनी तुलना सीमा भाभी से करने लगती कि कितने आराम से रहती हैं सीमा भाभी. घर भी एकदम करीने से सजा हुआ… अच्छे खाने से पतिबच्चे भी खुश.

दिन में 2-3 घंटे एसी की ठंडी हवा में आराम… और एक मैं हूं…. चाहे हजारों रुपए महीना कमाती हूं… कभी अपने पैसे का रोब नहीं झाड़ती… जेठानी के सामने हमेशा देवरानी ही बनी रहती हूं… कभी भी रानी बनने का गरूर नहीं दिखाती… फिर भी मयंक ने कभी मेरी काबिलियत पर गर्व नहीं किया. बच्चे भी अपनी ताई के ही गुण गाते रहते हैं.

वैसे देखा जाए तो वे सब भी कहां गलत हैं. कहते हैं कि दिल तक पहुंचने का रास्ता पेट से हो कर गुजरता है. मगर मैं कहां इन दूरियों को तय कर पाई हूं… जल्दीजल्दी जो कुछ बना पाती हूं बस बना देती हूं. एक सा नाश्ता और खाना खाखा कर बेचारे ऊब जाते होंगे… कैसी मां और पत्नी हूं… अपने परिवार तक को खुश नहीं रख पाती… महिमा खुद को कोसने लगती और फिर अवसाद के दलदल में थोड़ा और गहरे धंस जाती.

क्या करूं? क्या इतनी मेहनत से लगी नौकरी छोड़ दूं? मगर अब यह सिर्फ नौकरी कहां रही… यह तो मेरी पहचान बन चुकी है. स्कूल के बच्चे जब मुझे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. उन के अभिभावक बच्चों के सामने मेरा उदाहरण देते हैं तो वे कितने गर्व के पल होते हैं… वह अनमोल खुशी को क्या सिर्फ इतनी सी बात के लिए गंवा दूं कि पति और बच्चों को उन का मनपसंद खाना खिला सकूं. महिमा अकसर खुद से ही सवालजवाब करने लगती, मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाती.

इसी बीच महिमा की स्कूल में गरमी की छुट्टियां हो गईं. उस ने तय कर लिया कि इन पूरी छुट्टियों में वह सब की शिकायतें दूर करने की कोशिश करेगी. सब का मनपसंद खाना बनाएगी. नईनई डिशेज बनाना सीखेगी… घर को एकदम साफसुथरा और सजा कर रखेगी…

छुट्टी का पहला दिन. नाश्ते में गरमगरम आलू के परांठे देखते ही सब के चेहरे खिल उठे. भूख से अधिक ही खा लिए सब ने. उन्हें संतुष्ट देख कर महिमा का दिल भी खुश हो गया. मयंक टिफिन ले कर औफिस निकल गया और बच्चे कोचिंग क्लास. महिमा घर को समेटने में जुट गई.

दोपहर ढलतेढलते पूरा घर चमक उठा. लगा मानो दीवाली आने वाली है. मयंक और बच्चे घर लौट आए. आते ही बच्चों ने अपनी किताबें और बैग व मयंक ने अपनी फाइलें और हैलमेट लापरवाही से डाइनिंगटेबल पर पटक दिया. महिमा का मूड उखड़ गया, मगर उस ने एक लंबी सास ली और सारा सामान यथास्थान पर रख कर डाइनिंगटेबल फिर से सैट कर दी.

महिमा ने रात के खाने में भी 2 मसालेदार सब्जियों के अलावा रायता और सूजी का हलवा भी बनाया. सजी डाइनिंगटेबल देख कर मयंक और बच्चे खुश हो गए. उन्हें खुश देख कर महिमा भी खुश हो उठी.

अब रोज यही होने लगा. नाश्ते में अकसर मैदा, बेसन, आलू और अधिक तेलमिर्च मसाले का इस्तेमाल होता था. रात में भी महिमा कई तरह के व्यंजन बनाती थी. अधिक वैरायटी बनाने के चक्कर में अकसर रात का खाना लेट हो जाता था और गरिष्ठ होने के कारण ठीक से हजम भी नहीं हो पाता था.

अभी 15 दिन भी नहीं बीते थे कि मयंक ने ऐसिडिटी की शिकायत की. रातभर खट्टी डकारों और सीने में जलन से परेशान रहा. सुबह डाक्टर को दिखाया तो उस ने सादे खाने और कई तरह के दूसरे परहेज बताने के साथसाथ क्व2 हजार का दवाओं का बिल थमा दिया.

दूसरी तरफ घर को साफसुथरा और व्यवस्थित रखने के प्रयास में बच्चों की आजादी छिनती जा रही थी. महिमा उन्हें हर वक्त टोकती रहती कि इस्तेमाल करने के बाद अपना सामान प्रौपर जगह पर रखें. मगर बरसों की आदत भला एक दिन में छूटती है और फिर वैसे भी अपना घर इसीलिए तो बनाया जाता है ताकि वहां अपनी मनमरजी से अपने तरीके से रहा जाए. मां की टोकाटाकी से बच्चे घर वाली फीलिंग के लिए तरसने लगे, क्योंकि घर अब होटल की तरह लगने लगा था.

घर को संवारने और सब को मनपसंद खाना खिलाने की कवायद में महिमा पूरा दिन उलझी रहने लगी. हर वक्त कोई न कोई नई डिश या नया आइडिया उस के दिमाग में पकता रहता. साफसफाई के लिए भी दिन भर परेशान होती, कभी कमला पर झल्लाती तो कभी बच्चों को टोकती. नतीजन, एक दिन रसोई में खड़ीखड़ी महिमा गश खा कर गिर पड़ी. मयंक ने उसे उठा कर बिस्तर में लिटाया. बेटे ने तुरंत डाक्टर को फोन किया.

चैकअप करने के बाद पता चला कि महिमा का बीपी बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. डाक्टर ने आराम करने की सलाह के साथसाथ मसालेदार, ज्यादा घी व तेल वाले खाने से परहेज करने की सलाह दी. साथ ही लंबाचौड़ा बिल थमाया वह अलग.

‘‘सौरी मयंक मैं एक अच्छी पत्नी और मां की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी,’’ महिमा ने मायूसी से कहा.

‘‘पगली यह तुम से किस ने कहा? तुम ने तो हमेशा अपनी जिम्मेदारियां पूरी शिद्दत के साथ निभाई है. मुझे गर्व है तुम पर,’’ मयंक ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘तो फिर वे हमेशा सीमा भाभी की तारीफें… वह सब क्या है?’’ महिमा ने संशय से पूछा.

‘‘अरे बावली, तुम भी गजब करती हो… पता नहीं किस आसमान तक अपनी सोच के घोड़े दौड़ा लेती हो,’’ मयंक ने ठहाका लगाते हुए कहा. महिमा अचरज के भाव लिए मुंह खोले उसे देख रही थी.

जब हमारी सगाई हुई थी उस के बाद से ही सीमा भाभी के व्यवहार में परिवर्तन नजर आने लगा था. उन्हें लगने लगा था कि नौकरीपेशा बहू आने के बाद घर में उन की अहमियत कम हो जाएगी. यह भी हो सकता है कि तुम उन पर अपने पैसे का रोब दिखाओ.

बातबात में उन की तारीफ करते हैं ताकि वे किसी हीनभावना से ग्रस्त न हो जाएं. मगर इस सारे गणित में अनजाने में ही सही, हम से तुम्हारा पक्ष नजरअंदाज होता रहा. हम सब तुम्हारे गुनाहगार हैं,’’ मयंक ने शर्मिंदा होते हुए अपने कान पकड़ लिए.

यह देख महिमा खिलखिला पड़ी, ‘‘तो अब सजा तो आप को मिलेगी ही… आप सब को अगले 20 दिन और इसी तरह का चटपटा और मसालेदार खाना खाना पड़ेगा.’’

‘‘न बाबा न… इतनी बड़ी सजा नहीं… हमें तो वही सादी रोटीसब्जी चाहिए ताकि हमारा पेट भी हैप्पी रहे और जेब भी. क्यों बच्चो?’’ मयंक ने नाटकीयता से कहा. अब तक बच्चे भी वहां आ चुके थे.

‘‘ठीक है, मगर सप्ताह में एक दिन तो होटल जाने दोगे और हमें अपनी मनपसंद डिशेज खाने दोगे न?’’ दोनों बच्चे एकसाथ चिल्लाए तो महिमा के होंठों पर भी मुसकराहट तैर गई.

मेरी बेटी को अंगूठा चूसने की आदत है,ऊपर के दांत ऊंचे हैं व इतने बाहर हैं कि होंठ भी ठीक से मिला नहीं पाती. कृपया उपाय बताएं?

सवाल

मेरी बेटी 14 साल की है. उसे बचपन में अंगूठा चूसने की आदत थी. उस के ऊपर के दांत ऊंचे हैं व इतने बाहर हैं कि होंठ भी ठीक से मिला नहीं पाती. मुंह से सांस लेने के कारण मुंह भी सूखा रहता है. कृपया उपाय बताएं?

जवाब 

अंगूठा चूसने वाले बच्चों के मुंह में अंगूठे के दबाव से दांत गलत दिशा में मुड़ जाते हैं और टेढ़ेमेढ़े हो जाते हैंजिस कारण होंठ ठीक से बंद नहीं होते और बच्चे मुंह से सांस लेते हैं. माउथ ब्रीदिंग की वजह से दांत और ऊंचे हो जाते हैं. यह चेहरे के विकास और दांतों के मेहराब को भी संकुचित कर देता है. मुंह सूखा रहता है. आप डेंटिस्ट से कंसल्ट कर बच्चे के दांतों पर तार लगवाएं.

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सवाल

मेरे दांतों पर बचपन से ही पीले दाग हैं जिस कारण मैं खुल कर हंस नहीं पाती. क्या इस का इलाज संभव है और यदि हां तो क्या यह स्थाई इलाज होगा?

जवाब 

आजकल दांतों को सुंदर बनाने के लिए विनियर और मैटल फ्री कैप आती हैं जोकि बिलकुल नैचुरल लगती हैं. ये दांतों के रंग और आकार को बदल कर सुंदर बना देती हैं और दांत देखने में अच्छे लगते हैं. विनियर कई प्रकार के होते हैं:

द्य सिरामिक विनियर

द्य ईमैक्स विनियर

द्य कंपोजिट विनियर आदि.

दांतों की जरूरत के अनुसार ही विनियर का चयन होता है. कैप के मुकाबले विनियर में दांतों को कम घिसना पड़ता है. मैटल फ्री कैप जरूरत के अनुसार लगाई जाती हैं. ये स्माइल करैक्शन में मदद करती हैं.

-डा. शीतल गुप्ता

बीडीएसएमआईडीएएफएजीई,

डा. गुप्ता डैंटल क्लीनिककमला नगर. 

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अभी तो आप जवान हैं

48 साल की नेहा अक्सर ही जींस या शॉर्ट्स के साथ टी शर्ट पहन कर पार्कमें टहलने निकल जाती. कभी स्टाइलिश वनपीस पहन कर हमउम्र पुरुषों के दिलोंपर छुरियां चलाती. कभी अपने बच्चों की उम्र के लड़केलड़कियों के साथठहाके लगाती और गप्पें मारती. वह अपने से आधी उम्र की लड़कियों के साथ कईबार साइकिल या बाइक पर रेस भी लगाती. एक दिन तो वह अपनी बाहों में टैटूबनवा कर आई. उस की उम्र की महिलाएं उसे अजीब नजरों से देखतीं क्योंकिमोहल्ले की बाकी महिलाएं यह सब करने की सोच भी नहीं सकती थीं.नेहा अपने पति के साथ रहती थी और दोनों बेटे बेंगलुरु में जॉब कर रहे थे.

पति के जाने के बाद घर में ज्यादा काम नहीं रहता था सो वह अपनी जिंदगीअपनी मरजी से जी रही थी. वह योग और फिटनेस क्लासेस भी जाती थी. इस उम्रमें भी उस ने खुद को बहुत फिट और एक्टिव बना कर रखा हुआ था. उस की उम्रकी महिलाएं जहाँ उस से जलती और चिढ़ती थीं वहीँ पुरुष उसे तारीफ की नजरोंसे देखते. नेहा अपनी जिंदगी पूरे जोश और उत्साह के साथ जी रही थी. इस वजहसे उस के चेहरे पर भी उम्र की छाप नजर नहीं आती थी. उस के चेहरे कीग्लोइंग स्किन और स्वीट स्माइल से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाताथा.

अक्सर ऐसा माना जाता है कि अधेड़ उम्र में लोगों का व्यवहार रूखा औरचिड़चिड़ा हो जाता है. जीवन के प्रति उत्साह कम हो जाता है और नकारात्मकसोच हावी होने लगती है. लेकिन सच तो यह है कि अधेड़ उम्र के लोग असल मेंअन्य उम्र के लोगों की तुलना में ज्यादा सकारात्मक होते हैं. एक हालियाशोध के अनुसार 40 से 60 साल की उम्र के लोग युवाओं और बुजुर्गों की तुलनामें कहीं ज्यादा सकारात्मक होते हैं.अमेरिका और नीदरलैंड में 30,000 लोगों पर किए गए शोध के मुताबिक़ अधेड़उम्र के लोग जीवन में अच्छी चीजें होने को ले कर ज्यादा सकारात्मक होतेहैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि अधेड़ लोग जो अपने जीवन में मूल्यों औरसंतुष्टि को ज्यादा कीमती समझते हैं वे अच्छी बातों पर ज्यादा ध्यानकेंद्रित करते हैं. जैसेजैसे लोग परिपक्व होते हैं वे अपने काम में अधिकसक्षम हो जाते हैं. सफलता उन के लिए थोड़ी आसान हो जाती है क्योंकि वेअपने जीवन के विभिन्न कार्यों में महारत हासिल कर लेते हैं. इसलिए वेअधेड़ उम्र तक पहुंचते ही अधिक आशावादी बनने लगते हैं. अधेड़ उम्र के लोगजीवन में आगे बढ़ने पर कम ध्यान केंद्रित करते हैं और जो वर्तमान मेंमौजूद है उसे खुशी से जीने को कोशिश करते हैं.

दरअसल उम्र कितनी भी हो मगर आप की जिंदगी खूबसूरत है यदि दिल में किसी केलिए प्यार और आँखों में सपने हों. कुछ करने का जज्बा और समय के साथ चलनेका हौसला हो. उम्र महज एक संख्या है और जिंदगी उन के लिए हर पल उत्सव हैजो खुद को जवान मानते हैं. आप का दिल जवान होना चाहिए सब कुछ दिलकश नजर आएगा. अगर आप ने अब तक जिंदगी को नहीं जिया बल्कि केवल घर और बच्चों कीसाजसंभाल में जिंदगी बिताती आई हैं तो अब भी समय है.

अपने अंदर कुछ नयापन और कुछ युवापन लाएं. अक्सर हम दूसरों से कहते फिरते हैं कि अब हड्डियों में दम नहीं या इस उम्र में फैशन कौन करे. बस अब तो समय बिताना है. कुछ करने की उम्र कहाँ रही. यह सोच ही बेमानी है. कुछ करने की उम्र तो अंतिम समय तक बाकी रहती है बस दूसरों से और खुद से यह कहना बंद करें कि अब उम्र ढल चुकी है. खुद को हमेशा जवान मानें तो हड्डियों में दम खुद आ जाएगा. नए फैशन के साथ चलें. कलरफुल और स्टाइलिश कपड़े पहनें. आकर्षक हेयर कट कराएं और वह सब करें जो आज का युवा कर रहा है या जो करना आप को पसंद है. आप को अपने अंदर बहुत एनर्जी और हैप्पीनेस महसूस होगी. जिंदगी की बोरियत और अकेलापन कहींदूर भाग जाएगा.

40 की उम्र के बाद महिलाएंअगर बात करें महिलाओं की तो अध्ययनों के मुताबिक़ 40 या 50 की उम्र के बादकी महिलाएं अपने लुक को ले कर सब से ज्यादा नाखुश रहती हैं. दरअसल इसउम्र के आसपास कई महिलाओं का वजन बढ़ना शुरू हो जाता है और वे यह माननेलगती हैं कि मैं अच्छी नहीं दिखती. यह नकारात्मक विश्वास उन के लिए खुशरहने और अपने बारे में अच्छा महसूस करने में एक बड़ी बाधा है. आज रंगरूपपर जोर देने के साथ अच्छा दिखने का दबाव ज्यादा है. जबकि भारतीय महिला कीदुनिया अपने परिवार के इर्द गिर्द केंद्रित रहती है.इस उम्र तक महिलाओं के बच्चे बड़े हो जाते हैं और कॉलेज या अपने करियरमें इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन के पास मां के लिए बहुत कम समय है. पतिअपने करियर के लिए पूरी तरह समर्पित रहते हैं. किसी के पास महिला के लिएसमय नहीं होता. जिस महिला ने अपने परिजनों के लिए अपना करियर, खुशियां औरसेहत कुर्बान कर दी वही अकेलापन महसूस करने लगती है. इसलिए उस के जीवनमें एक खालीपन घर करने लगता है.

वैसे भी एक महिला का शरीर इस उम्र के दौरान भारी बदलाव से गुजरता है. वरजोनिवृत्ति की ओर बढ़ रही होती है. शरीर में काफी कुछ हार्मोनल परिवर्तनहोते हैं. सावधानी नहीं बरती गई तो महिलाएं भावनात्मक रूप से परेशान रहनेलगती हैं. वे चिंता और अवसाद से गुजर सकती हैं. कई बार जब पति पहले कीतरह प्यार का प्रदर्शन नहीं करते तो कई महिलाएं सोचती हैं कि उन के बढ़तेवजन और घटते आकर्षण के कारण ऐसा हो रहा है. इसी वजह से उन का पति अबउन्हें प्यार नहीं करता. इस आयु वर्ग की महिलाओं को अचानक लगने लगता हैकि उन के सपने और आकांक्षाएं अधूरी रह गई है.

इतना समय और ऊर्जा बच्चोंको पालने और अपने परिवारों की देखभाल में लगा कर उन्होंने जीवन में बहुतकुछ खो दिया है.अधिकांश भारतीय महिलाएं शादी करने के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों के काबोझ उठाने में पूरी तरह फंसी रहती हैं. फिर जब 40 साल में पहुंचती है तोउन के बच्चे घोसला छोड़ने लगते हैं जिस से उसे खुद और अपने जीवन को करीबसे देखने का समय मिलता है. वह सोचती है कि उस ने क्या हासिल किया. उस नेअपने ऊपर अपने परिवार को प्राथमिकता दी थी और वजन बढ़ा लिया. अपने रंगरूप को नजरअंदाज कर दिया.मगर याद रखें रास्ते हमेशा खुले होते हैं. आप कैसी दिखती हैं, क्या करतीहैं, क्या हासिल कर सकती हैं, आप का अपने प्रति नजरिया कैसा है यह सब कुछआप के हाथ में है. आप को जीवन को नए ढंग से जीना चाहिए. नए नए प्रयोगकरने चाहिए.

आगे बढ़ना चाहिए. अपने आप को और अपनी प्रतिभा को निखारनाचाहिए. पहले खुद में बदलाव लाएं और फिर देखिए कि आप के साथ दुनिया कैसीबदली हुई नजर आती है. खुशी की तलाश दुख से निपटने का सब से अच्छा तरीकाहै. आप जैसी भी दिखती हैं उसे स्वीकार करें और अपने शरीर से प्यार करनासीखें. जो है उसे खूबसूरत बनाएं मगर उस का गम न करें. खुशी मन की अवस्थाहै. जिस तरह से हम दुनिया को देखते हैं वैसे ही दुनिया हमें देखती है. लोगों की परवाह न करेंकई बार लोगों की असंवेदनशील टिप्पणी आप को परेशान कर सकती है. कोई आप केऊपर कमेंट कर सकता है. पर इन सब से विचलित न हो. खुशी आप के अंदर ही है.आप को तय करना है कि आप इस ख़ुशी को अपने जीवन में कैसे उतारते हैं. एक नईशुरुआत करें. खुद में नयापन लाएं. कोई भी शारीरिक रूप से संपूर्ण नहीं.अपने आप से प्यार करें और खुद की सराहना करें.

इस उम्र में व्यायाम औरयोग अनिवार्य है. शरीर हार्मोनल परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है और उन परिवर्तनों को संतुलित करने के लिए अधिक प्रयास की जरूरत है. जब आप वर्कआउट करती हैं, डांस करती हैं , ठहाके लगाती हैं तो फील गुड हार्मोन सेरोटोनिन रिलीज होता है. स्वस्थ आहार लें. कभी कभी जो मन करे वह खाएं और जिंदगी का मजा लें. अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं. दूसरों से बात करें. ऐसा देखा गया दबी हुई भावनाएं कई तरह की बीमारियां उत्पन्न कर सकती. अधिक सामाजिक बने. बाहर जाएं. सकारात्मक और खुश लोगों के साथ रहे.

कभी भी अपने जीवन की तुलना अपने परिवार और दोस्तों से न करें. क्षमा करना सीखें. अच्छी बातों को याद रखें और अपमान भूल जाएं. आप को अपनी खुशी के लिए काम करना होगा. जब आप अपनी मदद करने के लिए निकलेंगे तो ऐसे लोगों का हुजूम दिखेगा जो आप पर व्यंग्य कसेगा या रोकना चाहेगा. उ पर ध्यान न दें. बुढ़ापे में भी फैशन के साथ चलें फैशनेबल बनें. जो दिल करे और खुद पर सूट करे वह पहनें. जींस, ट्रॉउज़र ,पटियाला ,पेंट्स ,वनपीस ,स्लीवलेस ,अनारकली ,टॉप, कुर्ते ,साड़ी यानी जो दिल करे वह पहनें. फैशन ट्रेंड अपनाएं. ब्राइट कलर्स भी ट्राई करें. गॉगल्स ,वाच, कैप या इयररिंग्स जो दिल को भाये उसे पहनें. यह न सोचें कि इस उम्र में क्या पहनना सही रहेगा या लोग क्या कहेंगे. जो आप के लुक को सूट करे और जो चीज़ें फैशन में हों उन्हें ट्राई करने से हिचकें नहीं.

अपने बचपन में लौटें

बचपन में क्या खूबसूरत दिन होते थे. स्कूल से आते ही बगीचे में तितली पकड़ने भाग गए . जब तक तितली हाथों में न आ जाए घर वापस नहीं लौटते थे चाहे जिस हाल में हो. जबकि आज हम किसी काम को शुरू करने से पहले ही हिम्मत हार देते हैं और सोचते हैं कि यह काम मुझ से नहीं होगा. बचपन के साथ दिल का वह विश्वास कहीं गायब हो जाता है. ऐसे लगता है जैसे उम्र बढ़ने के साथ जीवन से वह सारा उत्साह भी गायब हो गया. याद कीजिए बचपन में जहां लेट जाते थे वही नींद आ जाती थी. चिंता, तनाव और शक का कोई सवाल न था. दोस्तों के साथ खेलना, बातें शेयर करना. बड़ा से बड़ा दुख या समस्या दोस्तों से शेयर करना दिल को कितना सुकून देता था. आज अपने घर में अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ भी समस्या शेयर नहीं कर सकते. दोस्त के आगे कहीं नीचे न देखना पड़े इसलिए कोई भी समस्या उन्हें भी नहीं बताते.

आज उम्र के इस दौर में फिर से बचपन की तरफ लौटना जरूरी है. तभी जीवन में नयापन और सम्पूर्णता का अहसास होगा. बचपन में जिस प्रकार हम कभी हार नहीं मानते थे उसी प्रकार जीवन भर हार न मानने का प्रण करें. बचपन में हम किसी से भी कुछ मांग लेते थे. हमें शर्म बिल्कुल नहीं आती थी कि लोग क्या सोचेंगे. आज फिर से लोगों के बारे में सोचना छोड़ें और खुले दिल से दोस्तों के गले लगें. अपने मन की बातें शेयर करें. यह बिल्कुल न सोचें क वे क्या सोचेंगे. याद करें आप पिछली बार कब जोर से हंसे थे. ठहाका लगा कर हंसे आप को महीनों हो गए होंगे. जबकि बचपन में आप दिन में कई बार जोरजोर से हंसते थे. आज फिर छोटीछोटी बातों पर ठहाका लगाकर हंसें. उम्र पचपन का हो लेकिन दिल बचपन का होना जरूरी है. बचपन को साथ रखियेगा जिंदगी की शाम में, उम्र महसूस न होगी सफ़र के मुकाम में.

एक्टिव रहें

कानों में यदि बुढ़ापा या अधेड़ शब्द पहुंचे तो ज्यादातर लोगों के मन में खुद की एक तस्वीर उभरती है. झुर्रियों या झाइयों वाली सूरत , उदास नजर और थके से कदम. इस सोच से परे खुद को नया सा महसूस करें. उत्साह और फुर्ती से भरपूर. उम्र के साथ अपने शरीर की गतिविधियां घटाएं नहीं बल्कि एक्टिव रहे. अक्सर एक उम्र के बाद इंसान शरीर से ज्यादा काम लेना बंद कर देता है और उतनी शारीरिक गतिविधियां भी नहीं करता जितना उन्हें फिट रहने के लिए करना जरूरी है. यह उचित नहीं. जब तक डॉक्टर सलाह न दें बढ़ती उम्र में भी खूब चलें, पौधों को पानी डालें और वो सारी हल्कीफुल्की कसरतें करें जो आप के लिए संभव हों. इस से आप का वजन भी कंट्रोल में रहेगा और आप हेल्दी भी बनेंगे. आप का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा. जब आप घूमना शुरू करते हैं तो कई ऐसी चीजें देखते हैं जो आपने पहले नहीं देखी होती है.

यों रखें खाने को फ्रैश

चाहे बात हो बच्चों के स्कूल या कालेज का लंच पैक करने की या फिर हस्बैंड का टिफिन तैयार करने की अथवा पिकनिक या ट्रैवलिंग पर खाना पैक कर ले जाने की, हमेशा हमारे दिमाग में सबसे पहला नाम ऐल्यूमिनियम फौइल का ही आता है क्योंकि यह खाने को लंबे समय तक गरम रखने के साथसाथ उसे फ्रैश बनाए रखने का भी काम करता है. तभी तो टिफिन में खाने को पैक करने के लिए यह हर मां व हर घर की पसंद बन गया है. आपको फौइल हर घर की किचन में देखने को मिल ही जाएगा.

आइए, जानते हैं ऐल्यूमिनियम फौइल में खाना पैक करते समय हमें किन बातों का ध्यान रखें:

कैसे वर्क करता है

जैसाकि नाम से ही प्रतीत होता है कि ऐल्यूमिनियम फौइल ऐल्यूमिनियम से बना होता है, जिसमें परावर्तक गुण होने के कारण इसके अंदर औक्सीजन, मौइस्चर और बैक्टीरिया पहुंच नहीं पाते हैं, जिसके कारण खाने को लंबे समय तक गरम, फ्रैश व उसकी अरोमा को बनाए रखने में मदद मिलती है. ऐल्यूमिनियम फौइल में एक तरफ मैट फिनिश वाली साइड होती है और दूसरी तरफ शाइन वाली, जिसे देखते ही हम समझ जाते हैं कि मैट फिनिश वाली साइड को अंदर की तरफ रखना है और शाइन वाली को बाहर की तरफ ताकि खाने की हीट रिफ्लेट हो कर लौक हो जाए और अगर लाइट इस पर पड़े भी, तो भी वह रिफ्लेट हो कर बाहर ही रहे और खाने को अंदर से किसी भी तरह का कोई नुकसान न पहुंचाए. तभी तो इस में खाना लंबे समय तक फ्रैश व गरम बना रहता है.

क्या हैं इसके फायदे

लौंगलास्टिंग: इस की लौंगलास्टिंग प्रौपर्टी इसे खास बनाती है क्योंकि इस में बैक्टीरिया व मौइस्चर ऐंटर नहीं कर पाते, जिससे खाना सुरक्षित व लंबे समय तक फूड की क्वालिटी व फ्रैशनैस एकजैसी बनी रहती है. तभी तो टिफिन पैक करने में ऐल्यूमिनियम फौइल हर घर की पसंद बन गया है.

सौफ्ट: इस की खाने को सौफ्ट रखने वाली प्रौपर्टी लंबे समय तक खाने को सौफ्ट बनाने में मदद करती है. तभी तो अधिकांश घरों में ऐल्यूमिनियम फौइल के बिना खाने को पैक करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.

पौकेट फ्रैंडली: यह अन्य तरह की पैकेजिंग के तरीके से सस्ता है, साथ ही इसे कैरी करना भी काफी आसान होता है. बस इसमें खाना पैक किया और आप बड़ी आसानी से इसे कैरी कर के कहीं भी ले जा सकते हैं.

जब करें फौइल का इस्तेमाल

अगर आप खाने को पैक करने के लिए ऐल्यूमिनियम फौइल का सही से इस्तेमाल नहीं करते हैं, तो यह न तो आपके खाने को गरम व फ्रैश रखेगा और साथ ही इसके कारण आपको कई दिक्कतों का भी सामना करना पड़ सकता है. इसलिए इसके इस्तेमाल से पहले इन बातों का जानना बहुत जरूरी है:

द्य आज हर किसी का लाइफस्टाइल बहुत बिजी हो गया है. ऐसे में हम हमेशा भागदौड़ व हमेशा जल्दबाजी में ही रहते हैं, जिसके कारण कई बार हम टिफिन पैक करते वक्त फौइल में गरमगरम खाना ही पैक कर देते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि फौइल पेपर में कभी भी बहुत गरम खाने को पैक नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके कारण ऐल्यूमिनियम फौइल मैल्ट हो कर आपके खाने में मिल जाता है, जो आपके स्वास्थ्य के लिए बिलकुल भी सही नहीं है. इसलिए थोड़ा रुक कर ही इसमें खाना स्टोर करना ठीक रहता है.

द्य मार्केट में आप को ढेरों ऐल्यूमिनियम फौइल पेपर मिल जाएंगे, लेकिन हमेशा फूड स्टोरेज के लिए अच्छी क्वालिटी का ही फौइल पेपर इस्तेमाल करना चाहिए.

द्य ऐल्यूमिनियम फौइल में विटामिन सी से भरपूर ऐसिडिक चीजें रखने से बचें क्योंकि ये ऐल्यूमिनियम के साथ रिएक्ट कर के औक्सीडाइज्ड हो जाते हैं. इससे चीजें जल्दी खराब होने के साथसाथ ये हैल्थ के लिए भी बिलकुल सही नहीं होता है, इसलिए इन चीजों को फौइल में रखने से बचें और सही तरीके से ऐल्यूमिनियम फौइल का इस्तेमाल कर के खाने को रखें फ्रैश व गरम.

नए साल में अभिनेत्री हरलीन सेठी कैसे जीना चाहती है, आइये जाने

हरलीन सेठी का जन्म 23 जून को मुंबई, महाराष्ट्र, भारत में पंजाबी माता-पिता के घर हुआ था. परिवार में उनके मम्मी पापा के अलावा एक भाई भी है, जिनका नाम करण सेठी है. उन्हें बचपन में अभिनय और नृत्य में गहरी रुचि थी. अपने सपने को पूरा करने के लिए, उन्होंने छोटी उम्र में अभिनय और नृत्य करना शुरू कर दिया.ग्लैमर की दुनिया उन्हें हमेशा से ही आकर्षित  करती थी, लेकिन इसके लिए अभिनय को जरुरी नहीं समझती थी. कला के क्षेत्र में कुछ करना चाहती थी. मुंबई की हरलीन ने समय के साथ-साथ  डायरेक्शन और प्रोड्यूसर बन अभिनय में आई और खुद को भाग्यशाली मानती है, क्योंकि उनकी इस यात्रा में उन्होंने हमेशा अपने परिवार को पाया है. गृहशोभा के लिए उन्होंने खास बातचीत की और अपनी जर्नी के बारें में बताई, जो बहुत रोचक थी, आइये जानते है, उनकी कहानी, उनकी जुबानी.

दिया अलग रूप

सोनी लाइव  पर उनकी वेब सीरीज काठमांडू कनेक्शन 2 रिलीज हो चुकी है, जिसमे हरलीन ने एक रॉ एजेंट की भूमिका निभाई है.  दूसरी सीजन में काम करने के  लिए हरलीन ने बहुत मेहनत किया है, क्योंकि पहले सीजन में उन्होंने अभिनय नहीं किया था. वह कहती है कि मैंने पहली वेब सीरीज देखी और अमित सियाल की भूमिका और संगीत बहुत पसंद आई थी, परिवार ने भी देखा था, आसपास के सभी ने इस शो की तारीफ़ की है. इसके अलाव इसमे काम करने वाले कलाकार भी बहुत अच्छे है,ऐसे में जब इसके अगले सीजन का ऑफर मिला तो मैंने ऑडिशन दिया और निर्देशक के साथ बैठकर थोड़ी चर्चा की, क्योंकि रॉ एजेंट्स बहुत सारे होते है, पर मुझे एक अलग और रियल रूप देना था. निर्देशक के साथ जो बातचीत हुई है, उसे ही साकार करना था, क्योंकि ये उनका विजन था. अलग-अलग लुक्स पर काम हुआ , क्योंकि रॉ एजेंट्स छुपकर रहते है. उन्हें पहचान पाना मुश्किल होता है. पहले की बॉलीवुड की इमेज मेरे दिमाग में थी, कई फिल्मे और कहानिया पढ़ी है, बस उसे देखते हुए मैंने एक अलग रूप दिया है.

ओरिजिनल चरित्र से थोड़ी मेल खाती

रॉ की भूमिका का केवल मेरे काम के साथ मेल खाता है, क्योंकि काम में मैं हमेशा प्रैक्टिकल एप्रोच रखती हूँ. इमोशन को सामने न लाकर काम पर फोकस्ड रहना, सबसे एक कदम आगे चलने की इच्छा दिमाग में रहती है और ये रॉ एजेंट भी करते है, उनकी आँखों से कोई छिप न पाए, इसकी कोशिश वे करते रहते है. देश को किसी प्रकार का खतरा न हो इस बारें में वे सतर्क रहते है.

मिली प्रेरणा और सहयोग

हरलीन कहती है कि एक्टिंग नहीं करनी है, ये  मैंने सोचा नहीं  था, क्योंकि मैने पर्दे के पीछे अस्सिस्टेंट डायरेक्टर और असिस्टेंट प्रोड्यूसर रह चुकी हूँ. एक्टिंग के बारें में न सोचने की खास वजह ये थी कि मैं टॉमबॉय टाइप की लड़की हूँ. बचपन में खेल-कूद में अधिक ध्यान था. अपना ख्याल कभी नहीं रखती थी. किसी प्रकार की चोट लगने से मैं घबराती नहीं थी. मस्ती खूब करती थी. एक्टिंग के लिए सुंदर कैसे दिखना है, पता नहीं था. परिवार का सहयोग रहा है, कभी एक्टर मुझे बनना नहीं था, क्योंकि उन्हें भी मेरे एक्टिंग को लेकर किसी प्रकार की उलझन नहीं थी. पहले फिल्मों में काम करने वालों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था. मेरे पेरेंट्स की सोच भी वैसी थी, क्योंकि परिवार का कोई भी इस फील्ड से नहीं था. उनकी हिचकिचाहट थी और मैंने भी उनको जानते हुए कोई बड़ा स्टेप नहीं लिया , पहले विज्ञापनों और छोटे-छोटे काम किये, ताकि वे सहज होकर मेरे साथ चल सकें. यहाँ तक पहुँचने में मैं पेरेंट्स का हाथ मानती हूँ, क्योंकि मैं उनके हाथ पकड़कर यहाँ तक पहुंची हूँ, ऐसा नहीं था कि मैं घर से भागकर अभिनय में गई और उन्हें मुझे लेकर किसी प्रकार की समस्या हो. मैं मुंबई की हूँ और मुझे पता नहीं था कि एक्टिंग में काम करना है या नहीं, ये तो धीरे-धीरे होते-होते यहाँ तक पहुंची है.

संघर्ष नहीं कह सकती

संघर्ष मैं नहीं कह सकती, क्योंकि मुझे शुरू से ही अभिनेत्री नहीं बनना था और मुझे खाने-पीने की समस्या नहीं हुई. जो भी काम मिला मैं करती गई, इससे मुझे आगे बढ़ने में आसानी हुई. काठमांडू कनेक्शन 2 में मेरे साथ को-स्टार लीजेंड थे, इससे काम करने से पहले थोडा सोचना पड़ा था. बड़े एक्ट्रेस के साथ काम करने पर खुद को भी उस लेवल तक लाना पड़ता है, उसमे कमी न हो इस बारें में हल्का डर रहा . इसके अलावा इसमें अलग लुक्स में एक्टिंग करना था, जो मेरे लिए आसान नहीं था. हर विग और लुक में मैं सुंदर नहीं लग रही थी, कई बार तो मुझे फैंसी ड्रेस की याद आ रही थी. मेरे निर्देशक मुझे बार-बार समझाते थे कि मैं एक छुपी हुई रॉ एजेंट हूँ जिसे सुंदर लगना जरुरी नहीं.

 

 

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मिला ब्रेक

मुझे एड एजेंसी में अभिनय करने के बाद से ब्रेक मिली है. मैंने ढाई साल तक बहुत सारें विज्ञापनों में काम किये है. इसके बाद एंकरिंग और छोटे -छोटे काम  भी किया है. विज्ञापन के जरिये मैं अभिनय में आई हूँ. इसलिए समय लगा,लेकिन अच्छा काम कर पायी. इंडस्ट्री में आज बहुत काम है, लड़कियों के लिए कहानियां लिखी जा रही है, लुक से अधिक टैलेंट पर ध्यान दिया जा रहा है. इसमें ये भी देखा जा रहा  है कि एक्टर्स कितना आसपास के बेहतरीन कलाकारों के साथ, जिन्होंने एक लम्बा समय अभिनय को दिया है, वहां पर खुद को फिट कर सकते  है और इसके लिए किसी भी अवसर को मेहनत के साथ पर्दे पर लाना मेरा मकसद होता है. मैंने पूरी कोशिश की है और अगले साल भी मैं लगन के साथ अच्छा काम करने के बारें में सोच रही हूँ, जिससे मेरे अलावा दर्शकों को भी एक मेसेज मेरी फिल्मों के ज़रिये मिले. जब मैंने शो ‘ब्रोकन बट ब्यूटीफुल’ की थी, तब मेरे चरित्र के द्वारा दर्शकों के मन बदले, उनके दिल को मेरी अभिनय ने छुआ, वही मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी.

 

 

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संकल्प नए साल का

गृहशोभा के लिए मेरा कहना है कि नए साल में वे अपने अंदर की खुशियों को ढूंढे, जो किसी काम या पैसे में नहीं मिलती. खुद को हमेशा स्पेशल समझे. खुद से हमेशा प्यार करें और दूसरों से भी प्यार करना सीखें. स्वास्थ्य का ध्यान महिला हो या पुरुष सभी रखें, ताकि आप जिंदगी में खुश रह सकें.

Anupama: बापूजी के फैसले से टूट जाएगा सारा परिवार, अलग हो जाएंगे अनुज-अनुपमा!

टीवी के टॉप सीरियल अनुपमा में रोजाना कुछ न कुछ ऐसा देखने को मिलता है, जिसे दर्शक शो से जुड़े रहते हैं और लगातार प्यार बरसाते रहते हैं. बीते एपिसोड में आपने देखा कि अनुज फट पड़ता है और कहता है कि जिस परिवार को मेरी कद्र नहीं, मुझे उसकी फिक्र नहीं. वो कहता है कि इस परिवार की परेशानियों में हमेशा में खड़ा रहा लेकिन तुम लोगों ने सिर्फ गलतियां ढूंढी, लेकिन मैं अनुपमा का पति हूं, अनुपमा नहीं. आज के एपिसोड में बापूजी वापस घर आ जाएंगे.

बा पर भड़केगी काव्या

आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज कहता है कि बीते कुछ दिनों से घर आने का मन ही नहीं कर रहा था क्योंकि यहां परिवार तो है लेकिन खुश शांति नहीं. आज हर घर में नए साल का स्वागत हो रहा है लेकिन यहां हम लड़ रहे हैं. मैंने हमेशा शाह हाउस की परेशानियों को अपना माना लेकिन इन लोगों ने मुझपर ही इल्जाम लगा दिया. काव्या भी अनुज की बात का समर्थन करती है और कहती है कि इस परिवार ने आज तक मुझे नहीं अपनाया. बा को फिर अपने खून से मतलब है. मैंने इस घर के लिए क्या कुछ नहीं किया लेकिन बदले में सिर्फ मैदे की कटोरी ही सुनने को मिला. वनराज काव्या को चुप कराने की कोशिश करता है लेकिन काव्या आज चुप होने के मुड में नहीं है. वो शाह परिवार के हर शख्स को सुनाती है और उसका साथ किंजल भी देती हैं.

 

 

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बापूजी सुनाएंगे बड़ा फैसला

तभी बाबूजी जी वापस आते है और बताते हैं कि वो रास्ता भटक गए थे. बाबूजी कहते है कि जितना अनुज ने मेरे लिए किया, उतना वनराज ने भी नहीं किया लेकिन तुम लोगों ने उसपर झूठे इल्जाम लगाए. इससे अच्छा मैं घर वापस ही नहीं आता. बाबूजी बा को चुप रहने के लिए कहते हैं और वनराज से कहते हैं कि तेरी बा की कही हर बात झूठी है.

टूटेगा काव्या के सब्र का बांध

‘अनुपमा’ में आगे दिखाया जाएगा कि अनुज शाह परिवार को अपने एहसान गिनाता है. इसी बीच काव्या भी शुरू हो जाती है और कहती है कि जब मैं आज तक इनकी अपनी नहीं हो पाई तो तुम क्या होगे. बा के लिए अपना खून अपना, बाकी सब पराए. काव्या बा के साथ-साथ पाखी और तोषू को भी ताना मारती है. वनराज उसे कई बार चुप कराने की कोशिश करता है, लेकिन वह उसे भी झाड़ देती है.

 

 

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अपने ससुराल की जमकर धज्जियां उड़ाएंगी काव्या और किंजल

रुपाली गांगुली स्टारर ‘अनुपमा’ में दिखाया जाएगा कि काव्या वनराज और बा को ताना मारती है कि इस घर में चार लोगों का ग्रुप बना हुआ है, जिसमें बहुएं कभी शामिल हो ही नहीं सकतीं और उसमें बहुओं को दबाया जाता है. काव्या कहती है कि मुझे बताने की जरूरत नहीं है कि वो लोग कौन हैं। किंजल भी उसका साथ देती है और अपने ससुराल को ‘टॉक्सिक’ बताती है. पारितोष उसे चुप कराने की कोशिश करता है, लेकिन वह उसका मुंह बंद कर देती है.

अर्चना को मारने के लिए दौड़े एमसी स्टेन, यह देखकर फूटेगा बिग बॉस का गुस्सा

बिग बॉस 16′ में वैसे तो आए दिन कोई न कोई बड़ा झगड़ा या हंगामा देखने को मिला है, लेकिन 3 जनवरी के एपिसोड में हंगामा हो गया. अर्चना गौतम और एमसी स्टेन के बीच गंदी लड़ाई छिड़ गई. मामला इस हद तक बढ़ गया कि दोनों ने एक-दूसरे के माता-पिता को लड़ाई में खींच लिया. घर में झाड़ू न लगाने को लेकर अर्चना और एमसी स्टेन का झगड़ा हुआ था, जो कैप्टेंसी टास्क के दौरान बढ़ गया. बात यहां तक ​​पहुंच गई कि एमसी स्टेन ने न सिर्फ खुद को बाथरूम में बंद कर लिया बल्कि अर्चना गौतम को थप्पड़ मारने को भी सोच लिया.

 

 

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अर्चना को थप्पड़ मारने जाएंगे स्टेन

दरअसल, बिग बॉस 16 का नया प्रोमो सामने आया है, जिसमें एमसी स्टेन खूब तोड़फोड़ मचाते नजर आ रहे हैं. बीते एपिसोड में देखा गया था कि अर्चना से लड़ाई के बाद एमसी स्टेन अपनी मंडली के पास बैठ जाते हैं. इस दौरान साजिद खान उन्हें समझाते हैं लेकिन स्टेन साफ बोलते हैं कि गलती उसकी भी है. वहीं, अब नए प्रोमो में देखने को मिल रहा है कि एमसी स्टेन अचानक उठ जाते हैं और बोलते हैं कि वह घर से वालंटियर एग्जिट लेंगे. यह बात सुनकर सब हैरान रह जाते हैं. इस दौरान वह घर में तोड़फोड़ करते हैं. तब अचानक ही साजिद बीच में बोल पड़ते हैं कि अगर बाहर ही जाना है तो अर्चना को एक थप्पड़ मार और बाहर हो जा. स्टेन भी इस बात को सुनकर आगे बढ़ जाते हैं और अर्चना के रूम में जाते हैं. तब शिव उन्हें रोकते हैं.

 

 

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बिग बॉस का फूटेगा गुस्सा

इस पूरे बवाल के बाद बिग बॉस 16 में एमसी स्टेन सारा सामान तोड़ते हुए नजर आएंगे, जिसके बाद बिग बॉस को बीच में आना होगा. बिग बॉस घर के सभी सदस्यों को गार्डन एरिया में लाइन से खड़ा करेंगे और सबसे पहले अर्चना-एमसी स्टेन को फटकार लगाएंगे. इसी बीच, बिग बॉस द्वारा घरवालों पर एक सख्त एक्शन भी लिया जाएगा, जिसके बाद घरवाले बिग बॉस को सॉरी बोलते हुए नजर आएंगे.

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