मांजी सोच रही थीं कि डाक्टर सच ही कह रहे हैं. अनुज्ञा, जिसे पुत्र न दे पाने के लिए वे सदा कोसती रहीं आज उसी ने बेटा बन कर उन की सेवा की तथा जिस रामू को सदा हिकारत की नजर से देखती रहीं, उसी के खून से उन की जान बच पाई.
दूसरे दिन वे अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर घर आ गईं.
रामू अपने नियत समय पर काम करने आया, उसे देख कर पलंग पर लेटी
मांजी ने कहा, ‘आ बेटा, इधर आ, मेरे पास आ.’
‘नहीं मांजी, कहां आप कहां हम, अपने पास बुला कर हमें और शर्मिंदा न कीजिए. वह तो मेमसाहब अकेली परेशान हो रही थीं, इसलिए हमें आप को छूना पड़ा वरना…’ कह कर वह चला गया.
आशा के विपरीत मां का रामू के प्रति सद्व्यवहार देख कर सभी हतप्रभ रह गए किंतु रामू की प्रतिक्रिया सुन कर मेरे मन में मंथन चलने लगा, सदियों से चले आ रहे इस भेदभाव को मिटाने में अभी बहुत वक्त लगेगा. जब तक अशिक्षा रहेगी तब तक जातिपांति की इस खाई को पाट पाना मुश्किल ही नहीं असंभव सा है.
रामू जैसे लोग सदा हीनभावना से ग्रस्त रहेंगे तथा जब तक हीनभावना रहेगी उन का उत्थान नहीं हो पाएगा. उन की इस हीनता को आरक्षण द्वारा नहीं बल्कि शिक्षा द्वारा ही समाज में जागृति पैदा कर दूर किया जा सकता है.
आश्चर्य तो इस बात का है कि आरक्षण के बल पर इन का उत्थान चाहने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि आरक्षण के द्वारा इन दबेकुचले लोगों का नहीं बल्कि इन के उन भाइयों का ही फायदा हो रहा है जो पहले से ही इस का लाभ प्राप्त कर अच्छी स्थिति में आ गए हैं. इन में से कुछ लोगों को तो यह भी नहीं पता होगा कि सरकार के द्वारा इन के लिए क्याक्या सुविधाएं दी जा रही हैं.
दूसरे दिन से मांजी के व्यवहार में गुणात्मक परिवर्तन आ गया था. कमली उन के कमरे में सफाई के लिए गई तो उस से उन्होंने कहा, ‘कमली, मेरे लिए एक गिलास पानी ले आ.’
कमली को अपनी ओर आश्चर्य से देखते देख बोलीं, ‘अरे, ऐसे क्या देख रही है, मैं ने कहा, एक गिलास पानी ले आ.’
‘अभी लाई, मांजी.’
‘तेरी बेटी काजल क्या कर रही है,’ पानी पी कर गिलास पकड़ाते हुए पूछा.
‘क्या करेगी मांजी. पढ़ना चाहती है पर हम गरीबों के पास पैसा कहां? लड़के को तो उस के बापू ने स्कूल में डाल दिया पर इस को स्कूल में डालने के लिए कहा, तो कहता है, लड़की है इस पर पैसा खर्च करने से क्या फायदा.’
‘लड़की है तो क्या हुआ, अगर यह पढ़ना चाहेगी तो इस की पढ़ाई का खर्चा मैं दूंगी.’
‘सच, मांजी?’
‘हां कमली, एक लड़की का शिक्षित होना बहुत आवश्यक है क्योंकि वह अपने बच्चे की पहली शिक्षक होती है, अगर वह पढ़ीलिखी होगी तभी वह अपने बच्चे को उचित संस्कार दे पाएगी.’
हम सभी मांजी में आते परिवर्तन को देख कर अतिप्रसन्न थे. उन की टोकाटाकी कम होने से शीतल और शैलजा भी काफी प्रसन्न थीं. स्कूल से आने के बाद वे अपना काफी समय दादी के साथ बिताने लगी थीं. यहां तक कि एक दिन उन्होंने अनुज्ञा से भी कहा, ‘अनुज्ञा, अगर तू कोई काम करना चाहती है तो कर ले, घर मैं देख लूंगी, कमली तो है ही.’
‘ठीक है मांजी, प्रयत्न करती हूं.’
रामू से भी अब वे सहजता से बातें करने लगी थीं. एक दिन रामू खुशीखुशी घर आया, बोला, ‘मेमसाहब, आज मैं काम नहीं करूंगा. बहू को अस्पताल ले जाना है. वह पेट से है. दर्द उठ रहे हैं.’
शाम को उस ने पुत्र होने की सूचना दी तो मांजी ने उस के हाथ में 100 रुपए का नोट पकड़ाते हुए कहा, ‘जा, महल्ले में मिठाई बंटवा देना.’
उस के जाने के पश्चात अनुज्ञा को 500 रुपए देते हुए सासूमां ने कहा,
‘बहू, इन रुपयों से बच्चे के लिए कपड़े ले आना.’
एक दिन उन्होंने अमित से कहा, ‘बेटा, रामू के लिए तो मैं कुछ कर नहीं पाई पर सोचती हूं, उस के पोते के लिए ही कुछ करूं.’
‘आप क्या करना चाहती हैं?’
‘मैं चाहती हूं कि इस की पढ़ाई का खर्चा भी मैं उठाऊं. इस का दाखिला भी किसी ऐसेवैसे स्कूल में नहीं बल्कि अच्छे स्कूल में हो तथा तुम स्वयं समयसमय पर ध्यान दो.’
‘ठीक है मां, जैसा आप चाहती हैं वैसा ही होगा. पर…’
‘पर क्या, बेटा, तू सोच रहा होगा कि मेरे अंदर इतना परिवर्तन कैसे आया. बेटा, मानव मन जितना चंचल है उतना ही परिवर्तनशील. उस दिन की घटना के बाद से मेरे मन में हर दिन उथलपुथल होने लगी है. जितना सोचती हूं उतने ही मुझे अपने कर्म धिक्कारते प्रतीत होते हैं. जिस बहू को सदा नकारती रही, उस ने मेरी बेटी की तरह सेवा की. रामू, जिसे सदा तिरस्कृत करती रही, उस ने मेरी जान बचाने के लिए अपना खून तक दिया और जिन नातिनों को लड़की होने के कारण कभी प्यार के लायक नहीं समझा, उन्होंने मेरा प्यार पाने के लिए क्याकुछ नहीं किया पर अपनी मानसिकता के कारण उन के निस्वार्थ प्यार को नकारती रही. मैं प्रायश्चित्त करना चाहती हूं, बेटा.
‘तुम ने ठीक कहा था बेटा, सभी इंसान एक जैसे ही होते हैं. हम स्वयं ही अपनी सोच के अनुसार उन्हें अच्छा या बुरा, उच्च या नीच मान बैठते हैं. मेरे मन में आजकल कबीरदासजी की वाणी रहरह कर गूंजने लगी है : पोथी पढ़पढ़ जग मुआ, भया न पंडित कोय. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय,’ वास्तव में जीव मात्र से प्रेम करना तथा अपने सांसारिक कर्तव्यों को निभाना ही इंसानियत है.
‘जब से मुझे सहज मानव धर्म समझ आया तब से मैं ने मन ही मन निश्चय किया कि मैं स्वयं में बदलाव लाने का प्रयत्न करूंगी. व्यर्थ के रीतिरिवाज या ढकोसलों को, जिन की वजह से दूसरों को दुख पहुंचता है, अपने मन से निकालने का प्रयत्न करूंगी. मैं प्रायश्चित्त करना चाहती हूं. काजल की पढ़ाई का खर्चा देने की बात तो तुम से पूछे बिना ही मैं ने कर दी. एक नेक काम और. अगर तुम ठीक समझो तो, क्योंकि मेरे बाद तुम्हें ही मेरी यह जिम्मेदारी पूरी करनी होगी.’
‘मां, प्लीज, ऐसा मत कहिए. हमें आप के साथ और आशीर्वाद की सदा आवश्यकता रहेगी पर इतना अवश्य विश्वास दिलाते हैं कि जैसा आप चाहेंगी वैसा ही होगा,’ अमित ने कहा था.
चाय के उबलते पानी की आवाज ने अनुज्ञा के विचारों के भंवर में विघ्न डाल कर उसे अतीत से वर्तमान में ला दिया. विचारों को झटक कर शीघ्रता से नाश्ता निकाला, चाय बना कर कप में डाली तथा कमरे की ओर चल दी.
मांजी को चंदू को अपने हाथों से मिठाई खिलाते देख कर वह सोच रही थी, रिश्ते खून के नहीं, दिल के भी होते हैं. अगर ऐसा न होता तो इतने वर्षों बाद हम सब एकदूसरे से जुड़े नहीं होते. कासिमपुर में तो हम सिर्फ 5 वर्ष ही रहे. पहले पत्रों के जरिए तथा बाद में मोबाइल के जरिए आपस में जुड़े रहे. पिछले महीने ही काजल का विवाह हुआ. हम सभी गए थे. हमें देख कर कमली की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा. काजल और उस का पति विक्रम एक ही स्कूल में अध्यापक हैं.
रामू तो नहीं रहा पर चंदू के जरिए उस परिवार से भी हम सब जुड़े रहे. पिछले वर्ष जब शीतल का विवाह हुआ तो कमली और काजल के साथ चंदू के मातापिता ने विवाह की तैयारियों में काफी मदद की थी. शीतल जहां सौफ्टवेयर इंजीनियर है वहीं शैलजा मैडिकल के अंतिम वर्ष में. आज मांजी दोनों की प्रशंसा करते हुए अघाती नहीं हैं. दोनों ही उन को बेहद प्रिय हैं.
मांजी ने जो निश्चय किया उसे क्रियान्वित भी किया. लोग कहते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ इंसान अडि़यल या जिद्दी होता जाता है पर मांजी ने यह सिद्ध कर दिया अगर इंसान चाहे तो हर उम्र में स्वयं को बदल सकता है पर इस के लिए उसे अपने झूठे अहंकार को त्याग कर प्यार के मीठे बोलों को अपनाना पड़ेगा.