चित्र अधूरा है: क्या सुमित अपने सपने साकार कर पाया

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Winter Special: गाजर से बनाएं ये हैल्दी रेसिपीज

सुर्ख लाल और ऑरेंज रंग की गाजर जिसे अंग्रेजी में कैरेट कहा जाता है यूं तो आजकल वर्ष भर ही मिलती रहती है परन्तु सर्दियों के मौसम में मिलनी वाली गाजर बेहद मीठी और स्वादिष्ट होती है. गाजर में विटामिन ए, सी, मिनरल्स, फायबर और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो हमारे पाचन तंत्र, आंखों और त्वचा के लिए बहुत लाभकारी होता है.  गाजर से हल्वा, कांजी और अचार जैसे अनेकों व्यंजन बनाये जाते हैं परन्तु आज हम आपको गाजर से दो स्वीट डिशेज बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप आसानी से बनाकर घर के सदस्यों को खिला सकतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-गाजर डोरा केक 

कितने लोगों के लिए                    8
बनने में लगने वाला समय              30 मिनट
मील टाइप                                  वेज
सामग्री
किसी गाजर                       1/2 कप
मैदा                                  1 कप
पिसी शकर                        3/4 कप
कन्डेन्स्ड मिल्क                  3 टेबलस्पून
बेकिंग पाउडर                   1/2 टीस्पून
शहद                               1 टीस्पून
वनीला एसेंस                     1 टीस्पून
दूध                                   1/2 कप
मक्खन                              1 टेबलस्पून
सामग्री(फिलिंग के लिए)
बटर                                  1 टीस्पून
किसी गाजर                        1 कप
किसा नारियल                     1टीस्पून
बारीक कटी मेवा                 1 टेबलस्पून

विधि
एक बाउल में मैदा, बेकिंग पाउडर और शकर को अच्छी तरह मिक्स करके छान लें. अब इसमें आधा कप किसी गाजर, वनीला एसेंस, शहद, मक्खन  को अच्छी तरह मिलाकर बेटर तैयार कर लें. तैयार मिश्रण से एक बड़ा चम्मच बेटर नॉनस्टिक तवे पर बिना चमचा लगाए फैला दें. ढककर धीमी आंच पर 4 से 5 मिनट तक पकाएं. पलटकर दूसरी तरफ से भी सुनहरा होने तक पका लें इसी प्रकार सारे केक तैयार कर लें.
एक पैन में बटर डालकर किसी गाजर डाल कर अच्छी तरह चलाएं. लगातार चलाते हुए 5-7 मिनट चलाएं ताकि गाजर गल जाए. गैस बंद कर दें और मेवा व नारियल मिक्स कर लें. दो पैनकेक के बीच में 1 टेबलस्पून फिलिंग फैलाकर दूसरा पैनकेक रख दें. इसी प्रकार सारे केक्स तैयार कर लें. बीच से काटकर सर्व करें.

-गाजर बाइट्स

कितने लोगों के लिए              8
बनने में लगने वाला समय         30 मिनट
मील टाइप                            वेज
सामग्री
फुल क्रीम दूध                      1/2 लीटर
किसी गाजर                         1 कप
मिल्क पाउडर                        2 टेबलस्पून
घी                                     1 टीस्पून
शकर                                1 टेबलस्पून
इलायची पाउडर                   1/2 टीस्पून
नीबू का रस                       1 टीस्पून

विधि
दूध को गैस पर उबलने रख दें. जब उबाल आ जाये तो गाजर और शकर डालकर अच्छी तरह चलाएं. आधा टीस्पून नीबू का रस डालें और लगातार चलाते हुए मिल्क पाउडर डालकर तेज आंच पर मिश्रण के गाढ़ा होने तक पकाएं. जब मिश्रण पैन में चिपकना छोड़ दे तो इलायची पाउडर और घी डालकर 5 मिनट तक भूनें. तैयार मिश्रण को चिकनाई लगी ट्रे में जमाकर ठंडा होने पर चौकोर बाइट्स में काटें और सर्व करें.

Wedding Special: वेडिंग सीजन में ट्राय करें आलिया भट्ट के ये खूबसूरत लहंगे

बौलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट (Alia Bhatt) का इंडियन हो या वेस्टर्न, हर फैशन सुर्खियों में रहता है. हालांकि कई बार वह अपने फैशन के चलते ट्रोलिंग का शिकार हो जाती हैं. बीते दिनों एक्ट्रेस अपने लहंगे के कारण ट्रोलिंग का शिकार भी हो चुकी हैं. हालांकि फैंस को आलिया के लहंगे का कलेक्शन बेहद पसंद हैं, जिसके चलते आज हम आपके लिए लेकर आए हैं आलिया भट्ट के लहंगे कलेक्शन की झलक. इन लहंगों को आप दोस्त की शादी हो या फैमिली में रिसेप्शन, किसी भी पार्टी ओकेशन पर ट्राय कर सकती हैं.

फैमिली गैदरिंग के लिए रौयल लहंगा

 

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शादी में लहंगों के कई कलर औप्शन मौजूद हैं. लेकिन आलिया भट्ट का रौयल ब्लू लहंगा आज भी फैंस को बेहद पसंद आता है. बीते दिनों एक्टर रणबीर कपूर के साथ फोटोज शेयर करते हुए आलिया ने रौयल ब्लू कलर का लहंगा पहने नजर आईं थीं. वहीं इस लुक के साथ गोल्डन ज्वैलरी पहने वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं. आलिया भट्ट का ये लुक आज भी फैंस को काफी पसंद आता है, जिसके चलते वह इस लुक को कौपी करते हुए नजर आते हैं.

 

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पिंक कलर करें ट्राय

 

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लड़कियों को ज्यादात्तर पिंक कलर के लहंगे काफी अच्छे लगते हैं, जिसके लिए वह नए-नए औप्शन तलाश करती हुई नजर आती हैं. वहीं आलिया भट्ट का बेबी पिंक कलर का फ्लोरल लहंगा आपके लिए अच्छा औप्शन साबित हो सकता है. लाइट वर्क के इस लहंगे के साथ आप औक्साइड ज्वैलरी कैरी कर सकती हैं. इसके अलावा आप आलिया का हैवी वर्क वाला पिंक लहंगा भी औप्शन देख सकती हैं, जिसके साथ हैवी ज्वैलरी पहनने की बजाय केवल आप एक हैवी मांगटीका पहनकर अपने लुक पर चार चांद लगा सकती हैं.

 

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ब्लू लहंगा करें ट्राय

 

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इन दिनों पिंक रेड या ग्रीन की जगह रौयल ब्लू लहंगा काफी ट्रैंड में है. आलिया भट्ट का ये रौयल ब्लू लहंगा आप अपनी दोस्त की वेडिंग में ट्राय कर सकती हैं. इसके अलावा आप हैवी वर्क में आलिया के पैरट, पिंक और ग्रे कलर के लहंगे का चुनाव कर सकती हैं.

 

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कारा: रमन के लिए किस हद तक गई आभा- भाग 2

यों रमन के साथ उस का रिश्ता निभ ही रहा था लेकिन जिंदगी कोई सीधी सड़क तो है नहीं कि बस मीलोंमील एक ही दिशा में चलते रहो. मोड़ आना तो लाजिम है. रमन हर रोज उसे फोन करता है. उस से ढेर सारी बातें भी करता है. बीमार या अपसेट हो तो उस के हालचाल भी लेता है और अपनी समझ के अनुसार सलाह भी देता है लेकिन क्या इतना सब करने भर से किसी रिश्ते को मुकम्मल माना जा सकता है? शायद नहीं. देखा है उस ने.

2 दिन पौधे को प्यार से न सहलाओ तो उस की भी पत्तियां अपनी सहज चमक खो देती हैं. पालतू जानवर भी लाड़ करवाने के लिए अपने मालिक के पांवों में लोटने लगते हैं. खुद उस की अपनी बिल्ली भी तो अपनी पूंछ को झंडे की तरह ऊपर उठा कर उस की टांगों से रगड़ने लगती है. और तब वह प्यार से उस की पीठ सहला देती है. इस पूरी प्रक्रिया में मात्र कुछ ही मिनट लगते हैं लेकिन बिल्ली के चेहरे पर आए संतुष्टि के भाव छिपे नहीं रह पाते. लेकिन प्यार यदि कह कर करवाया जाए तो फिर प्यार कैसा? यह तो जबरदस्ती हुई न? वह अपने प्रेम में किसी तरह का कोई दबाव नहीं चाहती थी.

लेकिन फिर भी लगभग हरेक धर्म की थ्योरी के अनुसार जीने के लिए प्रेम को अनिवार्य माना जाता है. जब जीने के लिए प्रेम इतना ही जरूरी है तब फिर उसे हर रिश्ते में समभाव से क्यों नहीं देखा जाता? फिर से अनेक अनुत्तरित प्रश्न दिमाग की गहरी खोह में तर्कों की दीवारें टटोलते हुए भटकने लगते. यह दिमाग का भी अलग ही फंडा है, जब शरीर अस्वस्थ होता है तब इस के बेकाबू घोड़े उन अनजानी दिशाओं में बेलगाम दौड़ने लगते हैं जो स्वस्थता के समय आसपास भी नहीं होती. पिछले दिनों से आभा भी तो उन्हीं स्याह कंदराओं में भटक रही है.

पिछले सप्ताह आभा बहुत बीमार रही. मन रमन का स्नेहिल स्पर्श चाहता था. 1-2 बार उसे मैसेज भी भेजा लेकिन ‘गेट वेल सून’ के अतिरिक्त कोई जवाब उसे नहीं मिला. रमन के इसी पलायन ने उसे तोड़ कर रख दिया. हालांकि यह मन भी बहुत स्वार्थी होता है, हमेशा अपने ही पक्ष में तर्क गढ़ता है. लेकिन फिर भी आभा रमन को कटघरे में नहीं खड़ा कर पाई.

आभा ने स्वयं को समझाया कि शायद वह केवल अपना ही दर्द देख रही है. शायद वह तसवीर का दूसरा रुख नहीं देख पा रही लेकिन उस की तसवीर में 2 नहीं बल्कि 4 रुख हैं. स्वयं उस के और रमन के अतिरिक्त दोनों के जीवनसाथी भी तो हैं. उन का पक्ष कौन देखेगा?

आभा ने अपनी हकीकत को कल्पना से जोड़ दिया. अब जो स्थिति उस की स्वयं की है वहां रमन खड़ा है और खुद उस ने रमन की जगह ले ली.

“यदि रमन ऐसी आपातस्थिति में उस का साथ चाहता तो क्या वह उस के पास मौजूद होती? क्या पति उसे किसी गैरमर्द की तीमारदारी करने की इजाजत देते? क्या रमन की पत्नी उसे सहज भाव से स्वीकार कर पाती?”

सामाजिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इन सब सवालों का जवाब न ही होता लेकिन मन कब किसी सामाजिक बंधन में बंध पाया है? वैसे भी उस ने रमन से सिवाय प्रेम के कभी कुछ चाहा भी कहां था. न कोई रुपयापैसा चाहा और न ही कभी उस की पत्नी का अधिकार लेने की चेष्टा की. फिर किसी को किस बात का डर? क्या प्रेम इतना असुरक्षित होता है? क्या उस का माथा सहला भर देने से प्रेम अपवित्र हो जाएगा या कि उस की देह नापाक हो जाएगी? प्रश्न ही प्रश्न… जवाब कोई नहीं…

“हां, वह हरेक न के बावजूद रमन के पास होती. उस का माथा सहला रही होती. पति के विरोध के बावजूद वह वहां अवश्य होती,” आभा ने दूसरा पक्ष देखा तो अपनेआप को और भी अधिक मजबूत पाया.

“रमन की पत्नी शायद डरती है कि उस का पति कोई छीन न ले लेकिन उसे आभा को कहां पति चाहिए उस का. पति तो खुद उस के पास है ही. उस के शरीर का मालिक. उस के बच्चों का पिता. दूसरी तरफ पति को भी शायद सामाजिक प्रतिष्ठा का डर भयभीत करता. पत्नी का किसी और से प्रेम उस के पौरुष को भी तो चुनौती देता ही होगा,” आभा का मन फिर से उलझनेभटकने लगा. प्रेम की परिभाषा फिर से अपने माने तलाशने लगी.

“उफ्फ… प्रेम इतना जटिल क्यों है? क्या इस का पलड़ा कभी प्रतिष्ठा से ऊपर नहीं उठ पाएगा?” आभा ने अपना सिर पकड़ लिया. उसे 4 दिन पहले का रमन से हुई बातचीत याद आ गई.

“कल अपने दोस्त की बेटी की शादी में जाना है,” कहा था रमन ने. सुनते ही आभा का चौंकना स्वाभाविक था लेकिन वह प्रत्यक्ष कुछ नहीं बोली बल्कि रमन के लिए उस के मन में एक कड़वाहट भर गई. रमन के लिए नहीं, शायद यह कड़वाहट प्रेम के लिए थी.

बच्चों को खूब भाया यूपी-112 का सेंटा

लखनऊ । कथीड्रल चर्च में यूपी-112 की पहल से सेंटा ने नागरिकों को पुलिस की सेवाओं के प्रति जागरुक किया. पुलिस रिस्पांस वीहिकल (पीआरवी) के साथ नागरिकों ने सेल्फ़ी ली. सेंटा ने बच्चों को उपहार बाँटा. क्रिसमस के मौक़े पर लखनऊ के हज़रतगंज स्थित कथीड्रल चर्च में नागरिकों के लिए 24 दिसम्बर की देर शाम यूपी-112 द्वारा जागरूकता कार्यक्रम किया गया। इस मौक़े पर सेंटा क्लॉस द्वारा यूपी-112 की योजनाओं और सेवाओं को कार्टून के माध्यम से बताया गया।

बच्चों को कॉमिक बुक के माध्यम से पुलिस विभाग की सेवाओं के बारे में जागरुक किया गया। इस मौक़े पर अपर पुलिस अधीक्षक यूपी-112  द्वारा लोगों को बताया गया कि सिर्फ़ पुलिस सम्बन्धी सहायता के लिए ही नहीं बल्कि आग लगने पर, मेडिकल सम्बन्धी सहायता के लिए और किसी आपदा के समय भी यूपी-112 से सहायता ली जा सकती है।

हाईवे या ट्रेन में सफ़र के दौरान भी नागरिकों को 112 द्वारा सहायता प्रदान की जाती है .कार्यक्रम में और बच्चों को सेंटा द्वारा उपहार भी प्रदान किया गया।

ज्यादा प्यार न बन जाएं सिरदर्द

पति पत्नी का रिश्ता प्यार, विश्वास और समर्पण से जुड़ा होता है. जैसेजैसे समय बीतता जाता है यह रिश्ता और भी अधिक मजबूत होता जाता है. इस रिश्ते में किसी कारणवश आई खटास जहां रिश्ते में जहर घोल देती है, वहीं हद से ज्यादा प्यार भी दोनों के लिए नुकसानदाई साबित हो सकता है.

दरअसल, जब पार्टनर आप से ज्यादा प्यार करता है, तो वह भी आप से बेइंतहा प्यार की उम्मीद करता है. लेकिन समस्या उस वक्त आती है जब आप की बातों को आप का पार्टनर समझ नहीं पाता. ऐसे में आप का रिश्ता मुश्किल में पड़ जाता है.

ऐसी स्थिति में दोनों ही एकदूसरे के लिए गलत सोच रखने लगते हैं. एक को लगता है कि उस के प्यार की कोई अहमियत नहीं, तो दूसरा सोचता है कि उस का पार्टनर उस की पूरी आजादी छीन रहा है. ऐसे में दोनों के बीच दूरी आने लगती है. नौबत यहां तक आ जाती है कि एकदूसरे से अलग होना पड़ जाता है.

यह नौबत आप के सामने न आए, इस के लिए इन सुझावों पर गौर फरमाएं:

  1.  हमेशा नजर न रखें:

अकसर देखने में आता है कि जब हम किसी से प्यार करते हैं, तो हम सोचते हैं कि उस का हर तरह से ध्यान रखें. लेकिन हद तब होती है जब आप हद से ज्यादा अपने पार्टनर पर नजर रखने लगते हैं. बहुत ज्यादा प्यार की वजह से पार्टनर में खीज पैदा होती है, क्योंकि आप हर समय उस के खानेपीने, सोने, उठने, आनेजाने पर ध्यान रखने लगते हैं. ऐसे में उसे अपनी आजादी छिनती नजर आने लगती है. वह खुद को एक बंधन में बंधा सा महसूस करने लगता है.

2. स्पेस दें:

रिश्ता चाहे कोई भी हो, उस में स्पेस बेहद जरूरी है वरना उस रिश्ते का ज्यादा दिन टिक पाना मुश्किल है. स्पेस न देने से प्यार कम हो जाता है और लड़ाईझगड़े बढ़ते जाते हैं, जिस से नजदीकियों के बजाय रिश्ते में दूरियां पैदा होती जाती हैं.

3. हक न जताएं:

जब प्यार में स्पेस खत्म होती जाती है तो पार्टनर अपने व्यक्तित्व को खो देता है, साथ ही उस का मानसिक संतुलन भी बिगड़ता दिखता है. उसे बातबात पर गुस्सा आने लगता है, जिस की वजह से स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है. छोटीछोटी बात पर बहस आम बात बन जाती है. साथी पर हर वक्त हक जताना उसे गुस्सैल बना देता है.

4. हमेशा पार्टनर के साथ रहना:

ज्यादा प्यार करने वालों की यही कोशिश रहती है कि उन का पार्टनर हर जगह उन के साथ रहे, लेकिन यह भी हो सकता है कि पार्टनर का कभी दोस्तों या रिश्तेदारों के साथ जाने का मन हो. ऐसे में आप का प्यार उस के लिए सजा भी बन सकता है.

5. उम्मीद की हो सीमा:

कई बार हम अपने पार्टनर से हद से ज्यादा उम्मीद करने लगते हैं कि वह यदि मुझ से प्यार करता है तो मेरी हर उम्मीद पर खरा उतरेगा. जितना आप उस से प्यार करते हैं उतना ही वह भी आप से प्यार करे, यह आप के पार्टनर को बंधन में होने जैसा लगने लगता है. वह खुद को इस से निकालने की कोशिश में लग जाता है.

6. शक न करें:

जरूरी नहीं कि आप का पार्टनर हर छोटी से छोटी बात भी आप से पूछ कर करे. लेकिन आप उस से उम्मीद करने लगते हैं कि वह कोई भी कार्य आप से पूछ कर ही करे. आप के द्वारा हर समय फोन करते रहना कि आप का पार्टनर क्या कर रहा है, उस पर शक करते रहना, उस की हर छोटीबड़ी बात की खबर रखना आप के पार्टनर को चिड़चिड़ा बना देता है.

7. नजदीकियां हों सीमित:

हद से ज्यादा नजदीकी होने पर एकदूसरे के साथ तकरार होने की संभावना भी काफी बढ़ जाती है, क्योंकि हक जताना कभीकभी आदेश देने में बदल जाता है. इसलिए अपने पार्टनर को प्यार दें न कि अधिक प्यार. उसे खुद समझने दें कि आप की और आप के रिश्ते की क्या अहमियत है.

यदि आप चाहते हैं कि आप का प्यार कहीं आप दोनों के लिए सिरदर्द न बन जाए, तो रखें इन बातों का खयाल:

– यदि आप अपने पार्टनर से हद से ज्यादा प्यार करते हैं, तो आप अपना प्यार उस पर थोपें नहीं न ही जबरदस्ती करने का प्रयास करें.

– आप को लगता है कि जितना प्यार और ध्यान आप अपने पार्टनर का रखते हैं उतना ही वह आप का रखे, तो हमेशा किसी से प्यार या उस का ध्यान हम इस उम्मीद से नहीं रखते कि वह भी वैसा ही करे.

– हमेशा अपने पार्टनर के साथ चिपके न रहें. अपने प्यार को हद तक सीमित रखें.

– जब आप को लगने लगता है कि आप का पार्टनर आप पर ज्यादा दबाव बना रहा है, तो उस से अलग होना ही इस का हल न निकालें. उसे थोड़ा समय दें. किसी दबाव तले दोनों का रिश्ता ज्यादा दिन नहीं ठहर सकता.

– अगर आप अपने पार्टनर से जितना प्यार करते हैं उतना प्यार वह नहीं कर पा रहा है या आप के मनमुताबिक प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा है, तो धैर्य रखें और पार्टनर से बात करें.

– रिश्ते में दिनप्रतिदिन बदलाव आते रहते हैं. वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है. लेकिन प्यार के लिए उम्मीदें पहले की तरह जिंदा रहती हैं. ऐसे में जरूरी है कि आप रिश्ते में आ रहे बदलावों पर बात करते रहें.

– हमेशा रोकटोक और नोकझोंक से रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चलता. पार्टनर पर हमेशा नजर रखने में आप का प्यार नहीं है वरन अपने पार्टनर के प्रति अविश्वास नजर आता है.

Winter Special: आधुनिक इलाज से दांत होगें और भी मजबूत

चिकित्सा जगत में अब दांतों के आधुनिक उपचार में क्रांति आई है. दांतों के आधुनिक उपचार की मांग तो बढ़ी है, लेकिन जानकारी न होने के कारण कई मरीजों को इस का खमियाजा भुगतना पड़ता है. एक ही सेशन के दौरान होने वाली कई प्रक्रियाओं जैसे दांतों को सफेद करना, ब्लीचिंग, लैमिनेट, वेनीर, मसूढ़ों की सर्जरी इनेमेलोप्लास्टी आदि से लोगों को न सिर्फ संतुष्टि मिलती है, बल्कि बिना कारण के भी औसतन से अधिक हंसने लगते हैं. लेकिन इन प्रक्रियाओं के दुष्प्रभावों को जानने के बाद आप के लिए यह निर्णय करना आसान हो जाएगा कि आप बिना कारण कुछ दिन तक हंसना चाहते हैं या फिर हमेशा के लिए अपनी हंसी को अपने पास संजो कर रखना चाहते हैं.दांतों को सफेद कराना या ब्लीचिंग कराने की प्रक्रिया को एक सेशन मेें ही किया जा सकता है. लेकिन क्या आप इस के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं?

सब के लिए यह जानना आवश्यक है कि दांतों पर ब्लीचिंग का असर सिर्फ कुछ हफ्तों तक ही रहता है इसलिए इसे बारबार और जल्दीजल्दी कराना पड़ता है. फिर हर बार उतनी चमक नहीं आती जितनी कि शुरुआत में आती है. इस का सब से बड़ा दुष्प्रभाव तो यह होता है कि बारबार ब्लीचिंग कराने से दांत कमजोर हो जाते हैं और आगे चल कर इन के जल्दी ही गिरने की आशंका रहती है. दांत जल्दी सड़ जाते हैं, खुरदुरे हो जाते हैं और दांतों के बीच फ्रेक्चर लाइन बन जाती है. तो क्या ये सब जानने के बाद आप मुसकराना चाहेंगे

अब कई आधुनिक तकनीकों केक आने से ब्लीचिंग के लिए सही सदस्यों का चयन कर पाना आसान हो गया है. एडवांस्ड पावर जूम भी एक ऐसी ही तकनीक है. इस के

दौरान प्रोफेशनल तरीके से दांतों को चमकाया जाता है. इस के शतप्रतिशत परिणामस्वरूप जादू जैसा असर देखने को मिलता है. शेड गाइड पर तुलना करने से पता चलता है कि यह दांतों को 6-8 शेड अधिक चमकदार बनाता है. इस का असर कम से कम दो सालों तक रहता है अन्यथा ब्लीचिंग या अन्य उत्पादों का इस्तेमाल करने से केवल एक या दो शेड ही चमक मिलती है व इस का प्रभाव केवल कुछ समय तक ही रहता है

  1.  लैमिनेट

लैमिनेट धातु से बने पतले कवर की तरह होते हैं जिन्हें पीले, भूरे दांतों की गंदगी, फ्लोराइड दाग आदि को छिपाने के लिए लगाया जाता है. यह पुरानी मगर विशष्ट प्रक्रिया है. लेकिन यहां भी वही सवाल उठता है कि क्या आप इस के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं?

लैमिनेट कैप या क्राउन का बेहतर विकल्प माना जाता है. कैप के मुकाबले इस में दांतों को 75 % काटना पड़ता है. तकनीकी तौर पर इस प्रक्रिया के दौरान सामने से दांतों के आकार को केवल 0.5 मि.मी. से अधिक  हीं काटना पड़ता है. जबकि कैप लगाने के लिए दांतों के चारों तरफ से उसे 1.5 मि.मी. काटना पड़ता है. इस के अलावा कैप लगवाने वाले दांतों में पहले रूट कैनाल ट्रीटमेंट आरसीटी कराना पड़ता है. इस से दांत निष्क्रिय हो जाते हैं, उन तक कोई पौष्टिक आहार आदि नहीं पहुंचता और दांत जल्द ही कमजोर हो जाते हैं.

हालांकि कैप और लैमिनेट दोनों का खर्चा लगभग बराबर ही होता है लेकिन कैप के साथ आरसीटी कराने का खर्चा अलग से करना पड़ता है यानी कैप अधिक महंगा पड़ता है.

2. मसूढ़ों की सर्जरी या एनेमेलोप्लास्टी

हर कोई इन प्रक्रियाओं के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता. इस से दांतों को नुकसान हो सकता है.

3. दांतों पर लगने वाले ब्रेसिस

चलिए किसी अवस्था के बारे में सोचते हैं. कोई लड़की जिस के दांत टेढ़ेमेढ़े हैं और 2-3 महीने में उस की शादी होने वाली है. वह अपने दांतों के लिए कोई उपचार ढूंढ़ रही है. लेकिन उसे लगभग हर दंत रोग विशेषज्ञ यही कहेगा कि ब्रेसिस लगाने की उस की उम्र समाप्त हो चुकी है. और अगर ब्रेसिस लगाए भी गए तो उन्हेें अपना परिणाम देने में लगभग 1 वर्ष का समय लगेगा. लेकिन यह एक मिथ्य है कि किशोर ब्रेसिस नहीं लगवा सकते या फिर हर केस में परिणाम आने में 1 वर्ष का समय लगेगा. यह उपचार किसी भी उम्र में किया जा सकता है. इस का परिणाम भी 3-4 महीनों में आ जाता है. लेकिन यह मरीज के ऊपर निर्भर करता है कि वह उम्र भर के लिए आरसीटी करा के नकली कैप लगा कर हरना है कि फिर उम्र भर के लिए प्राकृतिक मुसकराहट चाहिए. इस का निर्णय मरीज को सोचसम?ा कर करना चाहिए. अगर हम खर्चे की बात करें तो किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्रेसिस का खर्चा लैमिनेट की तुलना में 50 से 70 % तक कम होता है.

4. मुसकराहट की बनावट

किसी भी दंत उपचार के लिए विज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका होती है. लैमिनेट का आकार हर व्यक्ति व हर दांत के लिए अलग होता है. यह आप के चेहरे के आकार पर भी निर्भर करता है. अगर आप का चेहरा गोल, अंडाकार, लंबा, छोटा है और आप के दांत छोटेबड़े, चौड़े, पतले, टेढ़े या ?ाके हुए हैं या फिर ऊपरनीचे के दांत कम दिखते हैं या कई केसों में आगे के नीचे वाले दांत ऊपरी दांतों को बारबार रगड़ देते हैं जिस से ऊपरी दांत घिसने लगते हैं तो ऐसे में आसानी से ब्रेसिस लगाए जा रहे हैं.

दांतों की सुरक्षा या खूबसूरती की एक दंत रोग विशेषज्ञ जिसे स्माइल आर्किटेक्ट भी कहा जाता है, आज के लिए बहुत जरूरी है और कोई भी सौंदर्य उपचार इस के बिना पूरा नहीं है. दांतों के उपचार में अवेजेनेटिक का भी रोल रहेगा. आप के शरीर के जीन के कोड के अनुसार टूटे या सड़े दांतों को ठीक करना सर्जनों के लिए आम हो जाएगा. डा. थिमि और मितसैदीस, जो यूनीवर्सिटी औफ ज्यूरिक में हैं. अब दांतों के एनेमल और आप के शरीर के जीन पर काम कर रहे हैं.

– डा. राकेश वर्मा निदेशक, ब्रेसिस मल्टीस्पेश्यलिटी डेंटल क्लीनिक, गृहशोभा, नई दिल्ली

रक्षक-भक्षक : वंदना चाहकर भी लड़कियों की मदद क्यों नहीं कर पाई

जीबी रोड दिल्ली की बदनाम जगहों में से एक है. रेड लाइट एरिया. तमाम कोठे, कोठा मालकिनें और देहव्यापार में लगी सैक ड़ों युवतियां यहां इस एरिया में रहती हैं. मैं सेन्ट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) में सब इंस्पेक्टर के तौर पर तैनात थी. ट्रेनिंग पूरी हुए अभी छह महीना ही हुआ था. नई ज्वाइनिंग थी. एक रोज दिल्ली मेट्रो में सफर के दौरान एक लड़की लेडीज कोच में बेहोश हो गई थी. रात नौ बजे का वक्त था. उस लड़की को संभालने के लिए जो दो लोग आगे बढ़े उनमें एक मैं थी और दूसरी वंदना. तब मैं वंदना को जानती नहीं थी. वह तो उस रोज उस मेट्रो मे मेरी सहयात्रि भर थी. उस बेहोश लड़की को लेकर हम कोच से बाहर आए. तब तक मेट्रो कर्मचारी भी पहुंच गए थे.

काफी देर बाद उस लड़की को होश आया. मैं और वंदना तब तक उसके साथ ही रहे. उसका पता पूछ कर हम रात के ग्यारह बजे ऑटो से उसके घर तक छोड़ने गए. वापसी में मैंने पहली बार वंदना से उसका नाम पूछा था और उसने मेरा. फिर पता चला कि वह एक पत्रकार है, आगरा से दिल्ली आयी है, किसी पत्रिका में काम करती है. वंदना मुझे बहुत कुछ अपनी तरह ही लगी. मेरी ही उम्र की थी. हिम्मती, बेखौफ, तेज, मददगार और मिलनसार. हमारी दोस्ती हो गई. फोन पर लम्बी-लम्बी बातें होतीं. छुट्टी मिलती तो दोनों साथ ही शॉपिंग भी करते और फिल्में भी देखते थे.

उस रोज हम रेस्त्रां में बैठे इडली-सांभर खा रहे थे कि अचानक वंदना ने मुझे जीबी रोड चलने का न्योता दे दिया. पुलिस में होते हुए भी मुझे एकबारगी झिझक लगी, मगर फिर मैंने हामी भर दी. पूछा, ‘किस लिए जाना है? क्या स्टोरी करनी है?’

उसने कहा, ‘वहां मेरा एक जासूस है, जब भी वहां कोई नई लड़की या लड़कियों का झुंड आता है, वह मुझे खबर दे देता है. पता चला है कल रात नेपाल से काफी लड़कियां आई हैं, जिनमें से बहुत सी नाबालिग हैं.’
‘अच्छा…’ मुझे आश्चर्य हुआ, ‘लोकल पुलिस को पता है?’ मैंने पूछा.

‘पता तो होगा, सब उनकी नाक के नीचे ही होता है.’ वंदना ने जवाब दिया. मुझे उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ, उससे कोफ्त भी हुई कि क्या समझती है ये पुलिस को? मैंने गुस्से में कहा, ‘अगर वहां ऐसा कुछ हुआ है तो पुलिस अब तक कार्रवाई कर चुकी होगी.’

वंदना ने इडली खाते हुए इत्मिनान से जवाब दिया, ‘पुलिस कुछ नहीं करती है, कल चल कर देख लेना. मुझे भी बस स्टोरी करनी है, बौस ने कहा है इसलिए… मैं भी उन पर लिख कर क्या उखाड़ लूंगी, जब सिस्टम ही काम नहीं करता.’

वंदना की बातों ने मुझे खीज से भर दिया था. ये तो सरासर आरोप लग रहा है वर्दी पर. कैसे सहन होता. ट्रेनिंग के दौरान सत्य, न्याय, देशभक्ति, कानून, साहस, वीरता के ढेरों पाठ पढ़े थे, ये लड़की तो उनके पन्ने फाड़ने पर तुली है. बड़ी पत्रकार बनी फिर रही है, कल तो इसके साथ जाना ही होगा.

हम दूसरे दिन दोपहर में वहां पहुंच गए. वंदना के कहने पर मैंने सलवार-सूट और दुपट्टा ओढ़ा हुआ था, जबकि आमतौर पर मैं जींस टीशर्ट ही पहनती हूं, या वर्दी में रहती हूं. वंदना ने एक कोठे के नीचे पहुंच कर किसी को फोन किया. थोड़ी देर में एक दुबला-पतला आदमी आया और वंदना से बोला, ‘मुंह ढंक लीजिए, यहां आप मेरी रिश्तेदार हैं.’

वंदना ने तुरंत अपने दुपट्टे को मुंह पर लपेट लिया, बस आंखें खुली रखीं. मुझे इशारा किया तो मैंने भी वैसा ही किया. वह आदमी हमें लेकर ऊपर कोठे पर चढ़ गया. हम वहां काफी देर एक कमरे में जमीन पर बिछी दरी पर बैठे रहे. वहां तमाम लड़कियां थीं. हर तरफ पर्दे जैसे पड़े थे. ग्राहक आते और लड़कियां उनके साथ पर्दे के पीछे चली जातीं. काफी देर हो गई. मैं बैठे-बैठे उक्ता रही थी. शाम हो चुकी थी. वंदना धीरे-धीरे उस आदमी से बातें कर रही थी. वह इसी कोठे में रहता था. नाम था इदरीस. तभी मैंने छह लड़कियों को अंदर आते देखा. लड़कियां छोटी थीं. यही कोई बारह से पंद्रह वर्ष के बीच की. उनके साथ चार आदमी भी थे. वे सभी अंदर आते ही एक-एक लड़की के साथ पर्दे के पीछे लोप हो गए. दो लड़कियां बच गईं, जो मेरे सामने ही आकर बैठ गईं. मैं हैरानी से देख रही थी.

वंदना की बात बिल्कुल सच थी. लड़कियां वाकई नाबालिग थीं. नेपाली थीं. यहां इस कोठे के नीचे ही सटी हुई पुलिस चौकी है, क्या उन्हें अपने एरिया में आने वालों के बारे में पता नहीं लगा होगा? आखिर कैसे ये नाजायज काम यहां आराम से चल रहा है? यह सवाल मेरे मन में उथल-पुथल मचा ही रहा था कि दरवाजे से दो वर्दीधारी भीतर घुसे. कंधे पर चमचमाते बैच बता रहे थे कि दोनों सब इंस्पेक्टर रैंक के थे. मेरे शरीर में अचानक करेंट दौड़ गया. विजयी मुस्कान चेहरे पर आ गई. लो आ गए कानून के रखवाले छापा मारने…
वंदना ने मेरे हाथ पर हाथ रख कर दबाया. खामोश रहने का इशारा दिया. मेरे अंदर जैसे कुछ टूट गया. तड़ाक… तड़ाक… धम्म…. चेहरा निस्तेज हो गया… सामने बैठी दोनों नाबालिग बच्चियां उन दोनों वर्दी वालों के साथ पर्दे के पीछे लोप हो गईं.

चांद के पार : जया के जीवन में अकेलापन ही क्योंं बना रहा

Story in hindi

सर्कस फिल्म रिव्यू: रणवीर सिंह की फिल्म नही कर पाई फैंस को खुश

  • सर्कस: बहुत ही ज्यादा बुरी फिल्म
  • रेटिंग: एक स्टार
  • निर्माताः टीसीरीज और रोहित षेट्टी
  • निर्देषकः रोहित षेट्टी
  • कलाकारः रणवीर सिंह, वरूण षर्मा, संजय मिश्रा,जैकलीनफर्नाडिष,पूजा हेगड़े,मुरली शर्मा, अश्विनी कालसेकरऔर मुकेश तिवारी,जौनी लीवर, सिद्धार्थ जाधव,राधिकाबांगिया,वृजेष हीरजी, टीकू टलसानिया,विजय पाटकर, उदयटिकेकर,सुलभा आर्या,ब्रजेंद्र काला व अन्य.
  • अवधिः दो घंटा 22 मिनट

मषहूर लेखक,कवि व निर्देषक गुलजार 1982 में षेक्सपिअर के नाटक ‘‘द कॉमेडी आफ एरर्स’’ पर आधारित फिल्म ‘‘अंगूर’’ लेकर आए थे.जिसमें संजीव कुमार व देवेन वर्मा की मुख्य भूमिका थी.इस फिल्म में दो जुड़वाओं की जोड़ी बचपन में बिछुड़ जाती है.युवावस्था में पहुचने पर यह जोड़ी मिलती है,तो कई तरह की उलझनें पैदा होती हैं.अब 40 साल बाद उसी अंगूर’ फिल्म के अधिकार लेकर ‘गोलमाल’ सीरीज फेम निर्देषक रोहित षेट्टी टैजिक कौमेडी फिल्म ‘‘सर्कस’’ लेकर आए हैं और उन्होने एक क्लासिक फिल्म का बंटाधार करने में कोई कसर नही छोड़ी है.

यूं तो फिल्म के ट्रेलर से ही आभास हो गया था कि फिल्म कैसी होगी? इसके अलावा जब कुछ दिन पहले हमने फिल्म के पीआरओ से पूछा था कि फिल्म के कलाकारों के इंटरव्यू कब होगे,तो उसने जवाब दिया था-‘‘अब कलाकारों का इंटरव्यू से विष्वास उठ गया है.इसलिए कोई इंटरव्यू नहीं होगे.’’ फिल्म देखकर समझ में आया कि जब निर्देषक व कलाकारों को पता था कि उन्होने बहुत घटिया फिल्म बनायी है,तो इंटरव्यू क्या देते. पर ‘सर्कस’ सफल नही होगी,इसका अहसास निर्देषक रोहित षेट्टी को था,इसीलिए कुछ दिन पहले उन्होने कहा था कि हर वर्ष सिर्फ चार फिल्में ही सफल होती हैं.’

कहानीः

फिल्म की षुरूआत में कुछ डाॅक्टरों को संबोधित करते हुए डाक्टर राय बच्चों के ख्ूान की बजाय परवरिष की बात करते हुए एक नए प्रयोग की बात करते हैं.जिससे अन्य डाक्टर सहमत नही होते.पर वह अपना प्रयोग जारी रखने की बात करते हैं.पता चलता है कि डाक्टर राॅय अपने मित्र जाॅय के साथ मिलकर ‘जमनादास अनाथालय’’ चला रहे हैं.इसी अनाथालय में चार जुड़वा बच्चे हैं,इनमें से दो एक घर से और दो दूसरे घर से हैं.जब उन्हें गोद लेने के लिए एक परिवार उटी से आता है जो कि बहुत बड़े सर्कस के मालिक हैं और दूसरा परिवार बंगलोर का उद्योगपति है.तब डॉक्टर रौय (मुरली शर्मा) अपने प्रयोग को सही  साबित करने के लिए दोनों जुड़वा बच्चों की अदला बदली कर देते हैं.वह दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि एक बच्चे के लिए उसका वंश नहीं, बल्कि उसकी परवरिश जरूरी होती है.

दोनों परिवार अपने बच्चों का नाम रौय (रणवीर सिंह) और जौय (वरुण शर्मा) रखते हैं.चारों सुकुन से अपनी जिंदगी गुजार रहे होते हैं.इस बीच सर्कस के मालिक की मौत के बाद रौय व जौय अपने पिता केव्यवसाय को आगे बढ़ाते हैं.और माला (पूजा हेगड़े ) से रौय की षादी को पांच साल हो जाते हैं.उधर बंगलोर में राय बहादुर (संजय मिश्रा ) की बेटी बिंदू (जैकलीन फर्नाडिष ) से रौय प्यार कर रहे हैं और षादी करना चाहते हैं.राय बहादुर को लगता है कि उनकी बेटी बिंदू गलत युवक से षादी करना चाहती है.एक दिन उटी में एक चाय बागान को खरीदने के लिए बैंगलौर वाले रौय और जौय लाखों रूपए लेकर ऊटी आते हैं.उन्हे लूटने के लिए पाल्सन (जौनी लीवर ) के गंुडे उनके पीछे लग जाते हैं.ऊटी शहर पहुॅचते ही कन्फ्यूजन षुरू होता है. अब उटी षहर में दो रौय और दो जौय. हैं. कभी लोग एक से टकराते हैं तो कभी दूसरे से.परिणामतः उलझनें बढ़ती हैं और यह भी फंसते जाते हैं.वहीं अब डाॅक्टर रौय भी छिप्कर सारामाजरा देख रहे हैं.जब यह चारो सामने आएंगे,तब क्या होगा?

लेखन व निर्देषनः

किसी क्लासिक कृति को कैसे तहस नहस किया जाए,यह कला रोहित षेट्टी व रणवीर सिंह से बेहतर कोई नहीं बता सकता.फिल्म में कहानी का कोई अता पता नहीं,उपर से संवाद भी अति बोझिल.बतौर निर्देषक जमीन’,‘गोलमाल’,‘सूर्यवंषी’ के बाद रोहित षेट्टी की यह 15 वीं फिल्म हैं,जहां वह बुरी तरह से चूक गए हैं.इस फिल्म से साफ झलकता है कि उनका जादू खत्म हो गया.रोहित षेट्टी के कैरियर की यह सबसे ज्यादा कमजोर फिल्म है. फिल्म का नाम सर्कस है,मगर फिल्म में सर्कस ही नही है.युनूस सजावल लिखित पटकथा बेदम है.

फिल्म षुरू होने पर लगता है कि कुछ मजेदार फिल्म होगी,लेकिन पंाच मिनट बाद ही फिल्म दम तोड़ देती है.इंटरवल के बाद संजय मिश्रा,जौनी लीवर, सिद्धार्थ जाधव अपनी कौमेडी से फिल्म को संभालने का असलप्रयास करते नजर आते हैं,मगर अफसोस इन्हें पटकथा व संवादों का सहयोग नही मिलता. यह पहली बार है,जब रोहित शेट्टी फिल्म के किसी भी किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाए.सभी किरदार काफी अधपके से लगते हैं.मुरली षर्मा का किरदार उटी में आकर क्या करता है और फिर अचानक कहंा गायब हो जाता है,किसी की समझ में नही आता.फिल्म का क्लायमेक्स तो सबसे घटिया है.रोहित षेट्टी जैसा समझदार फिल्मकार इतनी घटिया फिल्म बना सकता है,इसकी तो कल्पना भी नही की जा सकती. कहानी तीस साल आगे बढ़ जाती है,मगर डाॅक्टर रौय यानी कि मुरली षर्मा की उम्र पर असर नजर नही आता.अमूमन देख गया है कि जुड़वा बच्चों में से एक को दर्द होता है, तो दूसरे को भी होता है.पर यहां उसका उल्टा दिखाया गयाहै.

रोहित षेट्टी ने कुछ क्लासिकल गीतों के अधिकार खरीदकर फिल्म में पिरोए हैं,मगर कहानी का काल गानों से मेल ही नही खाता.यहां तक कि दीपिका पादुकोण का गाना ‘करंट लगा..’भी फिल्म को नही बचा पाता. बंटी नागी की एडीटिंग और जोमोन टी जॉन की सिनेमैटोग्राफी प्रभावित नहीं करती है.

अभिनयः

दोहरी भूमिका में रणवीर सिंह और वरूण षर्मा हैं.फिल्म देखकर लगता है कि दोनो अभिनय की एबीसीडी भूल चुके हैं.जैकलीन ने यह फिल्म क्यों की,यह बात समझ ेसे परे हैं.पूजा हेगड़े के अभिनय मंे ंभी दम नजर नहीं आता.मुरली षर्मा को मैने छोटे किरदारों से लेकर बड़े किरदारों तक में देखा है और हर बार उनका अभिनय निखरता रहा है.मगर इस फिल्म में वह भी मात खा गए.राय बहादुर के किरदार में संजय मिश्रा कुछ हद तक फिल्म को संभालते हैं.मगर उनके अभिनय में भी दोहराव ही नजर आता है.इसफिल्म में संजय मिश्रा जिस अंदाज में अंग्रेजी बोलते नजर आते हैं,उस तरह से वह कई फिल्मों में कर चुके हैं.उनके अभिनय नयापन नही है.पर यह कहना गलत नही होगा कि संजय मिश्रा,रणवीर सिंह पर भारी पड़ गए हैं.मुकेष तिवारी को इस तरह की फिल्म व इस तरह के फालतू किरदारों को निभाने से बचना चाहिए.सुलभा आर्या,अष्विनी कलसेकर,टीकू तलसानिया,ब्रजेष हीरजी,ब्रजेंद्र काला तो महज षोपीस’ ही हैं.सिद्धार्थ जाधव ओवरएक्टिंग ही करते है.

षान्तिस्वरुप त्रिपाठी

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