महुए की खुशबू

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देश तो आज़ाद हो गया, अब महिलाओं की बारी है

गुजरात में बाबरा पुलिस ने पति की मृत्यु के बाद दोबारा शादी करने की इच्छा रखने वाली महिला पर हमला करने और उसका सिर मुंडवाने के आरोप में मंगलवार को दो महिलाओं और एक पुरुष को गिरफ्तार किया. पुलिस के एक बयान के अनुसार, महिला आरोपी 35 वर्षीय पुधाबेन और 25 वर्षीय सोनालबेन पीड़िता की रिश्तेदार थीं. इनमें से एक पीड़िता की भाभी थी.

पीड़िता का पति नहीं रहा और अपनी इच्छा अनुसार उसने कोर्ट में दूसरी शादी कर ली. यह विकास उसकी पूर्व भाभी को अच्छा नहीं लगा और भाभी ने पीड़िता से उसकी दूसरी शादी को लेकर सवाल किया तो बात तेजी से आगे बढ़ गई. जल्द ही, ननद ने अपने पति और एक अन्य महिला के साथ मिलकर पीड़िता को बेरहमी से डंडों से पीटा और उसका सिर भी मुंडवा दिया.

सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने पीड़िता को अस्पताल पहुंचाया, जहां उसका इलाज चल रहा है. मारपीट में शामिल तीन लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर मामला दर्ज कर लिया है.

भारत में विधवाओं को हमेशा अस्वीकृति और उत्पीड़न के अधीन किया गया है. सती प्रथा शायद सबसे पुराना और सबसे स्पष्ट उदाहरण है. सती एक अप्रचलित भारतीय अंतिम संस्कार प्रथा है जहां एक विधवा से अपेक्षा की जाती थी कि वह अपने पति की चिता पर आत्मदाह कर लेगी.

इसलिए, ईश्वर चंद्र विद्यासागर (एक समाज सुधारक), ने विधवा पुनर्विवाह की वकालत की और प्रस्तावित किया- विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856. गवर्नर-जनरल लॉर्ड कैनिंग ने विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित किया, जो सामाजिक रूप से उपेक्षित महिलाओं के जीवन में एक प्रकाशस्तंभ था. अधिनियम का उद्देश्य विधवा पुनर्विवाह को न्यायोचित ठहराना और हिंदू समाज में व्याप्त अंधविश्वास और असमानता को खत्म करना था. लेकिन अधिनियम के लागू होने के सालों बाद लोगों की सोच में आज भी महिलाओं को लेकर कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है.

आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही. उन्हें कभी भी पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं हुए. इसके अतिरिक्त भारतीय संस्कृति में बाल विवाह और जौहर जैसी अन्य सामाजिक कुरीतियाँ भी प्रचलित थीं.

अपने पूरे जीवन में महिलाएं पुरुषों के नियंत्रण में ही रही हैं. बचपन पर पिता का साया रहा और शादी के बाद पति ने जिम्मेदारी संभाली. पति की मृत्यु के बाद भी वह उसके प्रभुत्व से मुक्त नहीं हुई. पुनर्विवाह करना और एक नया जीवन शुरू करना तो सवाल से बाहर है.

दुःख की बात तो यह है कि आखिर मेडिकल साइंस और इंजीनियरिंग में तेज़ी से तरक्की करने वाले इस देश में महिलाओं को आज भी इतना निम्न समझा जाता है. अधिकार होने के बावजूद भी उनको ये सब सहना पड़ता है. आखिर वह समय कब आएगा जब औरतों के साथ अत्याचार बंद होंगे? क्योंकि तभी हमारा देश पूर्ण रूप से विकसित कहलाएगा. आज भी अपने समुदायों द्वारा अस्वीकृत और अपने प्रियजनों द्वारा परित्यक्त, हजारों हिंदू महिलाएं वृंदावन के लिए अपना रास्ता बनाती हैं, एक तीर्थ शहर जो बीस हज़ार से अधिक विधवाओं का अब घर है. क्या उन्हें पुनर्विवाह करने का हक समाज ने अभी तक नहीं दिया है?

Winter Special: फैमिली डाक्टर का साथ यानी बेहतर इलाज

आज की व्यस्त जिंदगी में हर व्यक्ति चाहता है कि वह और उस का परिवार हमेशा सुखी और स्वस्थ रहे. लेकिन आजकल गलत खानपान व अनियमित दिनचर्या के कारण लोगों में बहुत सी बीमारियां जन्म ले रही हैं और ये बीमारियां कभी भी किसी को भी हो सकती हैं. फैमिली डाक्टर क्यों जरूरी: इंडिया हैबिटैट सैंटर के कंसल्टैंट फिजिशियन डाक्टर अशोक रामपाल का कहना है कि कोई भी बीमारी दरवाजा खटखटा कर नहीं आती. इसलिए खुद को और अपने परिवार को बीमारियों से दूर रखने व स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए एक फैमिली डाक्टर का होना बहुत जरूरी होता है, जो समय पर सही इलाज कर सके या अच्छे डाक्टर के पास आप को रैफर कर सके. आप का फैमिली डाक्टर आप की और आप की फैमिली के लोगों की उम्र, समस्याएं वगैरह धीरेधीरे जान जाता है, इसलिए वह सभी का सही इलाज तो करता ही है, कोई गंभीर समस्या जैसे हार्ट की, लंग्स की या हड्डी की होने पर वह हार्ट सर्जन, कार्डियोलौजिस्ट या और्थोपैडिक सर्जन के पास रैफर कर देता है.

1.एक फिटनैस फ्रैंड: फैमिली डाक्टर को अगर फिटनैस फ्रैंड का नाम दें तो गलत नहीं होगा क्योंकि उसे आप के स्वास्थ्य के और बीमारी के बारे में पूरी जानकारी होती है. उस आप की पर्सनल हिस्ट्री पता होती है, इसलिए कौन सी दवा आप को सूट करेगी और किस से आप को साइडइफैक्ट होगा उसे शुरू से पता होता है. आप की समस्या के अनुसार ही वह आप का और आप के पूरे परिवार का इलाज करता है. इलाज बिना समय गंवाए: आप अपने फैमिली डाक्टर से कभी भी किसी समय अपना इलाज करा सकते हैं और बिना समय गंवाए आप नी पेन से ले कर हार्ट सर्जरी तक इलाज करवा कर स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं. किसी गंभीर बीमारी के होने पर यह डाक्टर तुरंत प्राथमिक उपचार कर आप को दूसरे डाक्टर के पास रैफर कर सकता है. इस से आप का इलाज समय रहते हो जाता है.

2.स्वास्थ्य भी और सलाह भी: एक फैमिली डाक्टर ही आप को सही सलाह दे सकता है कि किस तरह से इलाज कराएं क्योंकि कभीकभी एक छोटी सी बीमारी भी आप के अनदेखा करने पर बड़ी बीमारी बन जाती है इसलिए अपने फैमिली डाक्टर से बिना कुछ छिपाए उन्हें सही जानकारी दे कर खुद को स्वस्थ रखें. संपर्क कभी भी कहीं भी मुमकिन: आप अपने फैमिली डाक्टर से इतने फ्रैंडली होते हैं कि आप बिना झिझक उन से किसी भी समय फोन कर के या मिल कर अपनी समस्या बता सकते हैं. अगर आप कहीं बाहर हैं तो फोन द्वारा भी वे आप की बीमारी का इलाज बेहतर तरीके से कर सकते हैं. न पैसे की बरबादी न सेहत का नुकसान: फैमिली डाक्टर को आप के स्वास्थ्य के अलावा आप की फैमिली की आर्थिक स्थिति के बारे में भी पूरी जानकारी होती है, इसलिए वह इलाज उसी के अनुसार करता है. अगर किसी बड़ी बीमारी के लिए उसे कहीं रैफर भी करना पड़े, तो वह आप की आर्थिक स्थिति को देख कर ही यह करता है. इस से आप के पैसे की बरबादी नहीं होती और इलाज भी बेहतर हो जाता है.

3.फैमिली डाक्टर एक काउंसलर भी: आप का फैमिली डाक्टर एक काउंसलर के रूप में भी कार्य करता है, क्योंकि उसे आप की हिस्ट्री के बारे में पूरी जानकारी होती है. इसीलिए वह आप को कौन सी बीमारी है और उस की सही पहचान व सही इलाज के लिए जिस विशेषज्ञ की आप को जरूरत है, उसी के पास रैफर करता है. अगर आप को इस की जानकारी न हो तो आप को विशेषज्ञ मिलना मुश्किल हो सकता है. एक फैमिली डाक्टर आप को उचित सलाह दे कर आप को तनावमुक्त भी रखता है.

Winter Special: स्वाद लाजवाब, कौर्न व दाल के डंपलिंग

वेज डंपलिंग तो आपने बहुत खाया होगा. अब एक बार कौर्न व दाल के डंपलिंग जरूर ट्राई करें. ये है बनाने का तरीका.

सामग्री भरावन की

1/4 कप धुली मूंग 2 घंटे पानी में भिगोई

2 बड़े चम्मच कौर्न उबले

1 छोटा चम्मच अदरक व हरीमिर्च बारीक कटी

1 छोटा चम्मच राई

चुटकी भर हींग

10-12 करीपत्ते

2 बड़े चम्मच ताजा नारियल कद्दूकस किया

1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

1/2 छोटा चम्मच चाटमसाला

1 बड़ा चम्मच रिफाइंड औयल

नमक स्वादानुसार

सामग्री कवरिंग के लिए

1/2 कप ताजा पिसे चावलों का आटा

3/4 कप पानी

2 छोटे चम्मच औयल

नमक स्वादानुसार

विधि

-मूंग की दाल को पानी से निथार कर कौर्न के साथ हैंडब्लैंडर के चौपर में 1 मिनट चलाएं. ताकि दाल व कौर्न थोड़ा सा क्रश हो जाएं.

-एक नौनस्टिक कड़ाही में तेल गरम कर के राई, करीपत्ते व हींग का तड़का लगा कर दाल व कौर्न वाला मिश्रण डालें. इस में अदरक, हरीमिर्च और नमक डाल कर धीमी आंच पर 5 मिनट पकाएं. अब नारियल, चाटमसाला और धनियापत्ती डालें. फिर 1 मिनट भूनें. मिश्रण को ठंडा कर लें.

-चावलों के आटे में पानी और नमक मिलाएं. नौनस्टिक कड़ाही में धीमी आंच पर मिश्रण तब तक पकाएं जब तक आटे की लोई सी न बने.

-इस में तेल डाल कर हाथ से चिकना करें. लगभग 7 लोइयां तोड़ें. हाथ से फैलाएं. बीच में मिश्रण भर कर बंद करें. जब सब डंपलिंग तैयार हो जाएं तो उन्हें भाप में लगभग 5 मिनट पकाएं. चटनी के साथ टिफिन में पैक करें.

सिंगल मदर: क्या वाकई आसान हुई राह

जब मां की बात चलती है तो फिल्म ‘दीवार’ का डायलौग ‘मेरे पास मां है…’ कानों में गूंजने लगता है. मगर यह मात्र डायलौग ही है. असल जिंदगी में इस की कोई अहमियत नहीं, क्योकि हमारे देश में ज्यादातर पितृसत्ता वाले समाज का ही बोलबाला है. आज भले ही हमारा समाज कितनी तरक्की क्यों न कर गया हो, सिंगल पेरैंट होना आसान नहीं है. यों तो भारत में ज्यादातर जगहों पर पितृसत्ता ही वजूद में है, पर उत्तरपूर्व, हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों और केरल में मातृसत्ता प्रभुत्व में रही है. अब सुप्रीम कोर्ट ने सिंगल मदर्स के हक में एक अहम फैसला दिया है.

1.कोर्ट का फैसला कितना सही

जुलाई, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में बिन ब्याही मां के अपने बच्चे के स्वाभाविक अभिभावक होने पर मुहर लगाई. कोर्ट ने कहा कि कोई भी सिंगल पेरैंट या अनब्याही मां बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करे तो उसे वह जारी किया जाए. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन अविवाहित मांओं के लिए एक बेहतर फैसला साबित हुआ है, जो विवाह से पहले गर्भवती हो गई थीं, क्योंकि ऐसी युवतियों को अपनी संतान के पिता का नाम बताना अब जरूरी नहीं होगा. फैसले में कोई भी महिला बिना शादी के भी अपने बच्चे का पालन कर कानूनन अभिभावक बन सकती है, जिस के लिए उसे पुरुष के नाम व साथ की जरूरत नहीं होगी. अब किसी भी महिला को अपने बच्चे या समाज को उस के पिता के नाम को बताना जरूरी नहीं होगा. कोर्ट ने कहा है कि यदि महिला अपनी कोख से पैदा हुए बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए अर्जी देती है तो संबंधित अधिकारी हलफनामा ले कर प्रमाणपत्र जारी कर दें.

कोर्ट का यह फैसला भले ही अनब्याही मांओं के लिए खुशियां ले कर आया हो पर क्या समाज उसे नाजायज कहना बंद कर देगा? क्या अविवाहित मां होने पर उसे समाज के तानों से मुक्ति मिल जाएगी? क्या इस फैसले से उस के अंदर आत्मविश्वास की भावना जाग्रत होगी? अगर यह सब मुमकिन होगा, तो कोर्ट का फैसला सचमुच कुंआरी मांओं के हित में है.

2जानता है मेरा बाप कौन है…

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भले ही महिलाओं के हक में देखा जा रहा हो, पर समाज की तसवीर इस से अलग है. समाज में पिता का क्या स्थान है, यह बचपन से ही देखने को मिल जाता है. बच्चों को पहचानने के लिए लोग उन के पिता का ही नाम पूछते हैं, बेटे तुम्हारे पापा का क्या नाम है, वे क्या करते हैं आदि. इस में मां का जिक्र नहीं के बराबर ही होता है. बच्चे भी एकदूसरे पर रोब झाड़ने के लिए अकसर कहते सुने जा सकते हैं कि जानता है, मेरा बाप कौन है? भले ही उस की मां भी कामकाजी महिला हो, लेकिन वह अपनी पहचान अपने पिता से ही बताना चाहता है. ऐसे में साफ है कि हमारे समाज को अभी मां को उस की सही जगह देने की जरूरत है. सिर्फ नियमकानून से सिंगल मदर को उस का हक नहीं दिलाया जा सकता है.

स्टार प्लस पर प्राइम टाइम में ‘दीया और बाती हम’ धारावाहिक में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला. इस में सूरज और संध्या का बेटा अपने दोस्तों में रोब झाड़ता है. जब उस के दोस्त उस से पूछते हैं कि तुम्हारे पिता क्या काम करते हैं, तो वह बताता है कि उस के पिता का होटल है, जबकि असल में उस के पिता यानी सूरज हलवाई हैं. संध्या भले ही आईपीएस औफिसर हो पर उस के बेटे को पिता का नाम ही आगे करना था और सवाल भी आखिर यही था कि तुम्हारे पिता क्या करते हैं? यह मात्र एक धारावाहिक में ही नहीं, बल्कि असल जिंदगी में भी पिता का नाम ही पहले लिया जाता है.

3.दामादजी आए हैं

परिवार में ‘हैड औफ द फैमिली’ हमेशा पिता ही होता है. पिता की पसंदनापसंद का खयाल हर जगह सब से पहले रखा जाता है. लड़की के घर में भी शादी के बाद उस की पूछ कम हो जाती है. उस के परिवार वालों को भी बस दामादजी की पसंद की ही चिंता रहती है. खाने, फिल्म देखने, घूमने जाना आदि सब दामाद की पसंद से ही तय होता है. महिलाओं की जगह जब परिवार में ही कमतर होती जाएगी तो समाज और कानून में भी उन्हें उसी हिसाब से जगह मिलेगी. इसलिए इन चीजों में बदलाव की जरूरत घर के अंदर से होनी चाहिए.

4.इनसान हो या जानवर मां ही अहम

इनसानों और जानवरों के बीच सामाजिक परिवेश का फर्क होता है. इनसान जहां अपनी आने वाली पीढ़ी को परिवार और समाज में रहने के लिए तैयार करता है, वहीं जानवर उसे खुद के पैरों पर खड़ा होना सिखा कर उसे उस के हाल पर छोड़ देता है. कई बार जानवरों की तरह इनसानों में भी उदाहरण देखने को मिलते हैं, जब समाज में कोई पुरुष अपने बच्चे को अपना नाम या पहचान देने को तैयार नहीं होता है. ऐसे में अगर उस की मां उसे अपनाने की स्थिति में न हो तो वह असमय मौत का शिकार बनता है या अनाथालयों में पलता है. हालांकि ऐसे मामलों में जानवरों और इनसानों में यह समानता देखने को मिलती है कि दोनों जगहों पर मां ही अपने बच्चे को उस की आगे की जिंदगी के लिए तैयार करती है. जानवरों में भी खाने का जिम्मा मादा को ही उठाना पड़ता है. शिकार करना या अपना खाना ढूंढ़ना भी मां ही बच्चे को सिखाती है.

5.शादी के बिना मां बाप रे बाप

भारत की सामाजिक स्थिति ऐसी है कि यहां किसी लड़की का बिना शादी के मां बनना अपराध माना जाता है जबकि विदेशों में ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं. हमारे समाज में शादी में परिवार की मरजी सब से अहम होती है, इसलिए कई मामलों में प्रेमियों के बच्चे हो जाने पर भी वे शादी की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं. ऐसे में शादी से पहले मां बन कर रहना बड़ी चुनौती है. इसीलिए आए दिन भ्रूण के कूड़े के ढेर में पाए जाने के मामले सामने आते रहते हैं. समाज की सोच बदलने पर ही सिंगल मदर का कौन्सैप्ट सही मानों में कारगर होगा.

6.बच्चा तो अपना ही अच्छा

भारत में परित्यक्त, बेसहारा और अनाथ बच्चों की बड़ी संख्या होने के बावजूद उन्हें गोद लेने के लिए काफी कम संख्या में लोग आगे आते हैं. भारत में रजवाड़ों को खत्म हुए भले ही कई दशक बीत गए हों, पर आज भी वंश चलाने के नाम पर अपने ही खून को प्राथमिकता दी जाती है. कई परिवारों में बच्चे न होने के बावजूद अनाथ बच्चों को गोद नहीं लिया जाता. परिवार के बुजुर्गों को बेटेबहुओं से जल्दी औलाद पैदा करने की अपेक्षा रहती है. कई परिवारों में बेटे की चाहत में कई बेटियां पैदा हो जाती हैं, पर कोई लड़का गोद नहीं लिया जाता है. इस के अलावा संस्थाएं भी किसी कुंआरे लड़के या लड़की को बच्चा गोद देने में हिचकिचाती हैं.

7.तलाक के बाद की राह मुश्किल

दुनिया भर के मुकाबले हमारे देश में आज भी तलाक लेने का चलन काफी कम है. इस की वजह समाज में तलाकशुदा महिलाओं की स्थिति है. उन्हें आज भी हेय दृष्टि से देखा जाता है और विधवा पुनर्विवाह का चलन तो अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है. दूल्हा विधुर हो तो उसे एक बार नई दुलहन मिल जाएगी, पर विधवाओं की शादी का चलन अब भी देखने को नहीं मिलता है. विदेशों के मुकाबले तलाक की दर कम होने और पति के घर सिर्फ अर्थी ही निकलने की परंपरा के चलते हमारे देश में सिंगल मदर की मजबूत बनाने की योजनाएं भी धरी की धरी रह जाती हैं. इसी वजह से भारतीय महिलाएं ससुराल में उत्पीडन के बावजूद अपने बच्चे को अकेले पालने की हिम्मत नहीं दिखा पाती हैं.

8.लोगों के पास हैं चुभते सवाल

भारत में सिंगल मदर होना इतना आसान नहीं है. पूरी हिम्मत दिखा कर सिंगल मदर बनने पर भी महिलाओं को अकसर चुभते सवालों का सामना करना पड़ता है. मसलन, बच्चे के पापा अब कहां हैं, आप लोग साथ क्यों नहीं हैं? या फिर हतोत्साहित करने वाली प्रतिक्रियाएं जैसे अकेले बच्चा पालना बहुत मुश्किल है, सिर पर बाप का साया होना जरूरी है आदि. इस के अलावा स्कूल में बच्चे के दाखिले के समय या कोई सरकारीगैरसरकारी फौर्म भरते समय भी अभिभावक के बजाय पिता का नाम पूछा जाता है.

9.कुछ फैक्ट्स ऐंड फिगर्स

जनवरी से मार्च, 2015 के बीच भारत में गोद लिए जाने वाले बच्चों की संख्या में पिछले 3 सालों में पहली बार बढ़ोतरी दर्ज की गई. 2006 के आंकड़ों के अनुसार 82 फीसदी से ज्यादा भारतीय बच्चे अपने मातापिता के साथ रहते हैं. जो किसी एक पेरैंट के साथ रहते हैं, उन का आंकड़ा 8.5 फीसदी है. यहां एक पेरैंट का मतलब सिंगल मदर है.सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का महिला अधिकार समर्थकों ने स्वागत किया. वकील करुणा नंदी ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘संरक्षता कानूनों में समानता लाए जाने की शुरुआत करने की जरूरत थी.’’

दिल्ली सरकार के महिला और बाल विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2007 से 2011 तक में लड़कों के मुकाबले लड़कियों को ज्यादा गोद लिया गया. 2011 में सरकार द्वारा पंजीकृत गैरसरकारी संस्थाओं से जहां 98 लड़के गोद लिए गए वहीं लड़कियों की संख्या 150 थी. द्य अब तक ‘द गार्जियन ऐंड वर्ड्स ऐक्ट’ और ‘हिंदू माइनौरिटी ऐंड गार्जियनशिप ऐक्ट’ के तहत बच्चे के लीगल गार्जियन का फैसला उस के पिता की सहमति के बगैर नहीं हो पाता था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि इस के लिए पिता की इजाजत की कोई जरूरत नहीं है.

Bigg Boss 16: में घर से बाहर होंगे अब्दु रोजिक, फैंस का फूटा गुस्सा

बिग बॉस 16 अपने टास्क और घर में होने वाली लड़ाईयों को लेकर काफी चर्चा में रहा है, हर दिन शो में होने वाले टास्क शो को बेहतर बना रहे है जिस कारण शो मीडिया की लाइमलाइट में बना हुआ है और टीआरपी की रेस में चल रहा है. ऐसे में शो में नया मोड़ आय़ा है जो कि फैंस बेहद ही नराज कर रहा है.

जी हां, इस वीकेंड के वार में अब्दु रोजिक घर से बाहर होने वाले है जो कि फैंस को बिलकुल पंसद नही आ रहा है बता दें,कि एक प्रोमो वीडियो जारी हुआ जिसमें फैंस जमकर कमेंट और ट्विट करते दिख रहे है और अब्दु को घर में वापिस लाने की मांग कर रहे है.

आपको बता दे, कि कई फैंस ऐसे हैं जो अब्दु रोजिक के घर से निकलने पर खफा हैं और इसके लिए साजिद खान पर निशाना साध रहे हैं. एक इंटरनेट यूजर ने कमेंट कर लिखा है, ‘जिस तरह से बीते कुछ हफ्तों से अब्दु रौजिक को बुली किया जा रहा था वो टूट चुका था. अब कम से कम कुछ दिन वो आराम की सांस ले सकेगा और दोबारा घर में दमदार वापसी करेगा।’ जबकि एक इंटरनेट यूजर ने कमेंट कर लिखा कि अब्दु रोजिक के जाने के बाद अब वो इस गेम शो को नहीं देखेंगे.वो चाहते हैं कि अब्दु रोजिक घर में दोबारा वापस आए.

घर से अब्दु रोजिक की विदाई फैंस का दिल तोड़ गई है. कई लोग परेशान हैं कि आखिर अब्दु रोजिक को घर से बाहर क्यों निकाला गया है.सामने आई एक जानकारी के मुताबिक दरअसल, अब्दु रोजिक को मेडिकल वजहों से घर से बाहर किया गया है. जल्दी ही अब्दु रोजिक फिर से बिग बॉस के घर में एंट्री करने वाले हैं. बीते दिनों साजिद खान ने अब्दु रोजिक के साथ एक भद्दा मजाक किया था.जिसके बाद से ही अब्दु रोजिक के फैंस बिग बॉस के मेकर्स से नाराज चल रहे थे. साथ ही अब्दु रोजिक की एजेंसी ने भी बिग बॉस के मेकर्स पर साजिद खान की ओर से किए गए भद्दे मजाक पर गुस्सा निकाला था.

रुपाली गागुंली ने मैनेजर की शादी में किया जमकर डांस, हिना खान ने भी जमाया रंग

इन दिनों शादियों का सीज चल रहा है ऐसे में सब शादी में शिरकत करने पहुंच रहे है और शादी की पार्टी का लुत्फ उठा रहे है ऐसे टीवी स्टार्स भी पिछे नहीं है वो भी शादियो में जमकर डांस कर पार्टी को एन्जॉय कर रही है, जी हां, Anupama स्टारर रुपाली गांगुली अपने मैनेजर की शादी में बराती बनकर पंहुची है. जहां उन्होंने जमकर डांस भी किया.

आपको बता दें, कि रुपाली गागुंली के मैनेजर की शादी में कई टीवी स्टार्स पहुंचे थे, ऐसे में, ये रिश्ता क्या कहलाता है की अक्षरा उर्फ हिना खान ने भी इस शादी में हिस्सा लिया.अदाकारा यहां बाराती बनकर पहुंची थीं. इस शादी में हिना खान पीले रंग की साड़ी पहने स्पॉट हुईं. जिसमें वो बेहद ही खूबसूरत नजर आईं.

 

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कौन-कौन से सितारें पहुंचे बरात में

टीवी सीरियल स्टार अली गोनी अपने दोस्त की शादी में बाराती बनकर पहुंचे और इस शादी में जबरदस्त डांस कर रंग जमा दिया था.

शादी में अदाकारा मोनालिसा ने भी हिस्सा लिया था. वो पर्पल कलर के लहंगे में जबरदस्त पोज करती दिखीं.

 

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इस शादी में टीवी सीरियल अनुपमा में रुपाली गांगुली की ननद का किरदार निभाने वाली अदाकारा अनेरी विजान ने भी हिस्सा लिया था.

 

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अदाकारा जैस्मिन भसीन भी इस शादी में मेहमान थी. अदाकारा जैस्मिन भसीन के साथ अली गोनी ने भी जमकर पोज मारे थे. वही गुन में जैस्मिन भसीन बेहद ही खूबसूरत नज़र आ रही थी.

 

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दुविधा: किस कशमकश में थी वह?

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Winter Special: जाने मेनोपॉज के दौरान कैसे अपनी त्वचा का बचाव कर सकते हैं आप?

मेनोपॉज बढ़ती उम्र में जीवन का एक हिस्सा है. यह महिलाओं के शारीरिक, जातीय और सामाजिक पहलुओं को जोड़ता है. दुनिया में हर जगह जब महिलाओं की उम्र आधी हो जाती है तो वे अनियमित पीरियड्स या मेनोपॉज का अनुभव करती हैं. इन सब चीजों में डॉक्टरी मदद से कुछ राहत मिल जाती है. ईस बारे में बता रहे हैं-एलाइव वेलनेस क्लीनिक के मुख्य त्वचा रोग विशेषज्ञ और डायरेक्टर डॉ चिरंजीव छाबरा.

मेनोपॉज प्राकृतिक रूप से होने वाली एक ‘बायोलॉजिकल’ प्रक्रिया है. मेनोपॉज तब होता है जब ओवरीज (अंडाशय) हार्मोन का उत्पादन ज्यादा मात्रा में करना बंद कर देती हैं. ओवरीज टेस्टोस्टेरोन के अलावा वे फीमेल हार्मोन एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का उत्पादन करते हैं. जब पीरियड्स आते हैं तो एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन उसमे मुख्य भूमिका निभाते हैं. जिस तरह से आपका शरीर कैल्शियम का इस्तेमाल करता है या ब्लड कोलेस्ट्राल लेवल को संतुलित करता है उसी के हिसाब से एस्ट्रोजन का उत्पादन भी प्रभावित होता है.

जब मेनोपॉज होता है तो ओवरी से फेलोपियन ट्यूब में अंडे रिलीज होना बंद हो जाते हैं और महिला तब अपने आखिरी मासिक चक्र में होती है.

मेनोपॉज के दौरान महिलाओं को होने वाली समस्याएं

मेनोपॉज के दौरान अनियमित रूप से पीरियड्स आते हैं, उम्र से सम्बंधित त्वचा पर लक्षण दिखते हैं, धूप से त्वचा के डैमेज हो जाती है, स्किन ड्राई हो जाती है, चेहरे के बाल नज़र आते हैं, बालों का झड़ना, झुर्रियाँ, फुंसियाँ, हार्ट तेज होना, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, और दर्द, सेक्स न करने की भावना होना, एकाग्रता में और याददाश्त सम्बन्धी परेशानी, वजन बढ़ना और कई तरह के मुँहासे होते हैं.

समस्याएं–

– गर्माहट का झोंका लगना (गर्मी का अचानक अहसास जो पूरे शरीर में हो).

– रात में पसीना आना और/या ठंड लगना.

– सर्विक्स में सूखापन; सेक्स के दौरान बेचैनी होना

– पेशाब करने की बार-बार जरूरत महसूस होना

– नींद न आने की समस्या (अनिद्रा).

– भावनात्मक बदलाव (चिड़चिड़ापन, मिजाज, हल्का डिप्रेशन).

– मुंह, आँख और स्किन का ड्राई होना

मेनोपॉज आने पर स्किन से सम्बंधित सावधानी–

विटामिन  D और कैल्शियम से भरपूर चीजें खाएं

मेनोपॉज संबंधी हार्मोनल बदलाव हड्डियों को कमजोर बना देते हैं. जिससे ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ सकता है क्योंकि कैल्शियम और विटामिन D की कमी हो जाती है. इसलिए अपनी डाइट में उन चीजों को शामिल करें जिसमे कैल्शियम और विटामिन डी प्रचुर मात्रा में हो.

 

ट्रिगर खाद्य पदार्थ खाने से बचें–

कुछ खाद्य पदार्थों से गर्म झोंके आने, रात को पसीना आने और मूड स्विंग से जोड़ कर देखा जाता है. जब रात में इसका सेवन किया जाता है, तो उनके ट्रिगर होने की संभावना और भी ज्यादा हो सकती है. कैफीन, शराब और मसालेदार भोजन से बचें.

 

हयालूरोनिक एसिड–

जब उम्र बढ़ती है तो शरीर में हयालूरोनिक एसिड कम हो जाता है, जिस वजह यह एसिड त्वचा और ऊतकों की सुरक्षा नहीं कर पाता है. इसलिए हयालूरोनिक जैल और सीरम लगाने की जरूरत होती है. प्रोफिलो  भी ऐसा ही एक इंजेक्टेबल स्किन रीमॉडेलिंग ट्रीटमेंट है. इस इलाज को तब अमल में लाया जाता है जब त्वचा को हाइड्रेटेड, जवान और स्वस्थ रखने के लिए हयालूरोनिक एसिड को सीधे त्वचा की परतों में इंजेक्ट किया जाता है. यह थेरेपी कई रूपों में आती है. इन थेरेपी में बायो रीमॉडेलर, स्किन बूस्टर, फ्रैक्शनल मेसोथेरेपी और लिप फिलर्स शामिल हैं.

 

फल और सब्जियों का भरपूर सेवन करें–

फलों और सब्जियों से भरपूर डाइट का सेवन  करने से मेनोपॉज के कई लक्षणों को रोकने में मदद मिल सकती है.  फल और सब्जियों में कम कैलोरी होती हैं. इनसे आप अपने वजन को भी संतुलित रख सकते हैं.

 

रिफाइन शुगर और प्रोसेस्स्ड फ़ूड का सेवन कम करें–

रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और शुगर से ब्लड शुगर के स्पाइक्स और ड्रॉप्स बन सकते हैं. इससे व्यक्ति थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकता है. यह मेनोपॉज के शारीरिक और मानसिक लक्षणों को बढ़ा सकता है. हाई-रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट डाइट पोस्टमेनोपॉज़ल महिलाओं में डिप्रेशन के ख़तरे को बढ़ा सकते हैं.

अन्य तरीके–

महिलाएं इलाज के रूप में प्रोफिलो के माध्यम से हाइलूरोनिक एसिड का भी उपयोग कर सकती हैं. प्रोफिलो एक ऐसा तरीका है जिससे उम्र बढ़ने से सम्बंधित संकेतो और लक्षणों को मिटाया जा सकता है. कई महिलाएं जीवन के इस फेज में काफी खुश होती है क्योंकि उन्हें बच्चे पैदा होने की चिंता नहीं रह जाती है. इससे वे नई चीजें अपनाने में लग जाती हैं.

कच्चा रिश्ता है लिव इन

टीवी स्टार प्रत्यूषा बनर्जी अपने घर में फांसी के फंदे पर लटकी पाई गई, जो मूलतया जमशेदपुर की थी. प्रत्यूषा अपने बौयफ्रैंड राहुल राज के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी. वह राहुल से शादी करना चाहती थी. पुलिस तफ्तीश में यह बात भी सामने आई कि वह प्रैगनैंट थी.

जाहिर है प्रत्यूषा लिव इन के अपने कमजोर रिश्ते को विवाह के मजबूत बंधन में तबदील करना चाहती होगी, मगर उस का बौयफ्रैंड शायद इस के लिए तैयार नहीं था. नतीजा सब के सामने है. इस मानसिक पीड़ा ने अंतत: उस के जीवन को लील लिया.

लिव इन आज की बदलती जीवनशैली के अनुरूप युवाओं द्वारा ईजाद किया गया थोड़ा कम आजमाया कौंसैप्ट है. पहले लड़के बाइयों के यहां पड़े रहते थे या फिर उन के भाभियों, कजिनों के साथ संबंध तो होते थे पर वे एक घर में नहीं रहते थे. घर नहीं चलाते थे.

लड़केलड़की की कपल्स की तरह साथ रहने की व्यवस्था यानी लिव इन में वैवाहिक जिंदगी की हसरतें तो पूरी होती हैं, एकदूसरे का साथ भी मिलता है पर लंबी जिम्मेदारियां निभाने का कोई वादा नहीं होता. कभी भी अलग हो जाने की आजादी रहती है. यह कौंसैप्ट शादी के लिए तैयार नहीं लोगों को लुभावना नजर आता है, पर अंदर से उतना ही खोखला और अस्थाई तो है ही, पर उस में भी बहुत जिम्मेदारियां भरी पड़ी हैं. शायद यही वजह है कि ज्यादातर लोग खासकर लड़कियां आज भी इसे स्वीकार नहीं कर पातीं.

अधूरेपन की कसक

एक तरह से यह रिश्ता धार्मिक मान्यताओं की जकड़न, सामाजिक रीतिरिवाजों और शोशेबाजी के रंग से दूर है और कानून ने भी इसे कुछ हद तक मान्यता दे दी है. मगर फिर भी इस रिश्ते के अधूरेपन को अनदेखा नहीं किया जा सकता खासकर लड़कियां इस तरह के रिश्ते में कई बार गहरी मानसिक पीड़ा से गुजरती हैं.

दरअसल, लिव इन में रिश्ता जब गहरा होता है और दोनों एकदूसरे के करीब आते हैं, शारीरिक संबंध बनते हैं, तो वह जज्बा लड़की के मन में हमेशा साथ रहने की चाहत को जन्म देता है.

50 मिनट की नजदीकी 50 सालों के साथ की इच्छा में बदलने लगती है. मगर जरूरी नहीं कि लड़का भी इसी रूप में सोचे और जिम्मेदारियां निभाने को तैयार हो जाए.

ज्यादातर मामलों में इस बात पर रिश्ता टूट जाता है और अंतत: शारीरिक प्रेम की बुनियाद पर बना यह रिश्ता उम्र भर की कसक बन कर रह जाता है. कई दफा इस टूटन से उत्पन्न पीड़ा इतनी गहरी होती है कि लड़की स्वयं को खत्म कर लेने जैसा बेवकूफी भरा कदम उठाने को भी तैयार हो जाती है जैसाकि प्रत्यूषा ने किया.

ऐसे रिश्तों में प्यार कम विवाद ज्यादा

इस रिश्ते में लड़केलड़कियों का एकदूसरे पर पूरा हक नहीं होता. वे जौइंट डिसीजन भी नहीं ले सकते. जैसाकि विवाहित दंपती लेते हैं. उदाहरण के लिए संपत्ति या तो लड़के की होती है या फिर लड़की की. दोनों का हक नहीं होता. दूसरे का यह पूछने का हक नहीं कि रुपए किस प्रकार खर्च हो रहे हैं. दोनों अपने रुपए अपने हिसाब से खर्च करते हैं.

इसी वजह से अकसर इन के बीच हक और अधिकार की लड़ाई होती रहती है. इन विवादों का निबटारा सहज नहीं होता. वे प्रयास करते हैं कि प्यार जता कर या आपस में बात कर मसला सुलझाया जाए, मगर अकसर ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने और 2 लोगों को करीब रखने के लिए जो गुण सब से ज्यादा जरूरी हैं वे हैं, विश्वास, ईमानदारी, पारदर्शिता और आत्मिक निकटता.

इन्हें विकसित करने के लिए समय चाहिए होता है. महज भौतिक या शारीरिक निकटता मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव भी दे, यह जरूरी नहीं. ऐसे खोखले रिश्ते में कड़वाहट का दौर आसानी से खत्म नहीं होता.

जिम्मेदारियों से भागना सिखाता है लिव इन

लिव इन रिलेशनशिप वास्तव में भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत और आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता, न ही पूरे समाजकानून के आगे इस तरह का कोई अनुबंध ही किया जाता है. इस वजह से पार्टनर्स एकदूसरे पर (लिखित/मौखिक) किसी तरह का कोई दबाव नहीं बना सकते. ऐसा रिश्ता एक तरह से रैंटल ऐग्रीमैंट के समान होता है. यह बड़ी सहजता से बनाया जाता है और जब तक दोनों पक्ष सही व्यवहार करते हैं, एकदूसरे को खुश रखते हैं तभी तक वे साथ होते हैं. इस के विपरीत शादी इस पार्टनरशिप से बहुत ज्यादा गहरी है. यह एक सार्वभौमिक तौर पर किया गया अनुबंध है, जिस के साथ कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारियां जुड़ी होती हैं. वस्तुत: शादी न सिर्फ 2 लोगों वरन 2 परिवारों व समुदायों के बीच बनाया गया रिश्ता है, जो उम्र भर के लिए स्वीकार्य है. जीवन में कितने भी दुख, परेशानियां आएं, आपसी बंधन कायम रखने का वादा किया जाता है.

कहा जा सकता है कि जब दिल मिल रहे हों तो रस्मोरिवाज की क्या जरूरत? मगर यहां बात सिर्फ रस्मों की नहीं वरन सामाजिक तौर पर की गई कमिटमैंट की है, सदैव जिम्मेदारियां उठाने की कमिटमैंट, हमेशा साथ निभाने की कमिटमैंट, विवाह में एक डिफरैंट लैवल की कमिटमैंट होती है, इसलिए एक डिफरैंट लैवल की सुरक्षा, आजादी और परिणामस्वरूप डिफरैंट लैवल की खुशी भी प्राप्त होती है. यह उस से बिलकुल अलग है, जो रिश्ता महज तब तक निभाया जाता है जब तक कि परस्पर प्यार और आकर्षण कायम है. बेहतर विकल्प मिलते ही अलग होने का रास्ता खुला होता है. हमेशा इस बात के लिए तैयार रहना पड़ता है कि कभी भी रिश्ता खत्म हो सकता है.

वफा चाहिए तो लिव इन नहीं

जब बात वफा की आती है, तो शादीशुदा पार्टनर इस दृष्टि से काफी लौयल पाए जाते  हैं. 5 सालों के एक अध्ययन के मुताबिक 90% विवाहित महिलाएं पतिव्रता पाई गईं, जबकि लिव इन में रह रहीं सिर्फ 60% महिलाएं ही लौयल निकलीं.

पुरुषों के मामले में स्थिति और भी ज्यादा आश्चर्यजनक रही. 90% विवाहित पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहे, जबकि लिव इन के मामले में केवल 43% पुरुष.

यही नहीं, लिव इन का प्रकोप यानी प्रीमैरिटल सैक्सुअल ऐटीट्यूड और बिहेवियर शादी के बाद भी नहीं बदलता. यदि एक महिला शादी से पहले किसी पुरुष के साथ रहती है, तो यह काफी हद तक संभव है कि वह शादी के बाद भी अपने पति को धोखा देगी.

अध्ययनों व अनुसंधानों के मुताबिक यदि कोई शख्स शादी से पहले सैक्स का अनुभव करता है, तो इस की संभावना काफी ज्यादा रहती है कि शादी के बाद भी उस के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स रहेंगे. यह खासतौर पर महिलाओं के लिए ज्यादा सच है.

पेरैंट्स से दूरी

लिव इन में रह रहे लड़केलड़कियों की जिंदगी में सामान्यतया मांबाप का दखल नाममात्र का होता है, क्योंकि इस बाबत उन की सहमति नहीं होती और वे अपने बच्चों से दूरी बना लेते हैं.

यदि वे घर वालों को इस बात की जानकारी नहीं देते, तो ऐसे में इस राज को छिपा कर रखना भी आसान हीं होता. कई तरह के मसले जैसे मांबाप से पैसों की मदद लेना, पार्टनर और उस के सामान को छिपाना जब अभिभावक अचानक मिलने आ रहे हों, लगातार उन की इच्छा के विरुद्ध जाने का अपराधबोध और झूठ बोलना जैसी बहुत सी बातें हैं, जो लिव इन में रहने वालों को बेचैन करती हैं.

विश्वास की कमी

जो शादी से पहले साथ रहते हैं, उन में अकसर अविश्वास का भाव विकसित होता है. परिपक्व प्रेम में गहरा विश्वास होता है कि आप का प्यार सिर्फ आप का है और कोई बीच में नहीं. मगर शादी से पहले ही नजदीकी बना लेने पर व्यक्ति के मन में कई तरह के शक पैदा होने लगते हैं कि कहीं इस की जिंदगी में मुझ से पहले भी तो कोई नहीं रहा या मेरे अलावा भविष्य में किसी और के साथ भी इस के संबंध तो नहीं बन जाएंगे.

इस तरह के अविश्वास और संदेह के भाव गहराने से व्यक्ति धीरेधीरे अपने पार्टनर के प्रति प्यार व सम्मान खोने लगता है जबकि शादीशुदा जिंदगी में विश्वास एक अहम फैक्टर होता है.

– 68% युवाओं का कहना था कि लिव इन प्यार (लव) नहीं वासना (लस्ट) है.

– 72% ने माना कि लिव इन का अंत ब्रेकअप में होता है.

– 36% महिलाओं ने ही इसे अच्छा माना.

– 52% युवा लड़कों ने लिव इन की जिंदगी जीने में रुचि दिखाई.

– 89% अभिभावकों ने कहा कि विवाह से पूर्व सैक्स स्वीकार्य नहीं.

– 51% युवाओं ने ही इसे गलत माना.

यशराज प्रोडक्शंस व औरमैक्स मीडिया द्वारा किए गए ‘शुद्ध देशी इंडिया की रोमांटिक सोच’ सर्वे से प्राप्त आंकड़े.

 

लिव इन रिलेशनशिप

भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत व आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता…

पहले मजा बाद में सजा

‘‘देश की अदालतों में लिव इन में रहने वाले जोड़ों के मुकदमे दिनबदिन बढ़ रहे हैं. शारीरिक व भौतिक जरूरत के लिए लिव इन में रहना बाद में मुश्किल भी खड़ी कर सकता है. इन मामलों में आमतौर पर शादी का वादा कर के मुकरना, घरेलू हिंसा और यहां तक कि बलात्कार करने तक का संगीन आरोप लगता है. आपसी झगड़े का रूप कईकई बार बेहद आपराधिक हो जाता है. लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं, तो कई मामलों में लड़कियों की हत्या भी कर दी जाती है. हालिया हुई कई वारदातें इस बात का सुबूत हैं.’’

– अवधेश कुमार दुबे, ऐडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट

आसान नहीं रहती जिंदगी

‘‘भारत में शहरी जनसंख्या खुले विचारों की है. उस पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी है. आज शिक्षा और नौकरी के कारण युवा बड़ी संख्या में अपने घरों से दूर रह रहे हैं, इसलिए लिव इन रिलेशनशिप का चलन लगातार बढ़ रहा है. आज की पीढ़ी के लिए यह एक अच्छा चलन है, क्योंकि इस में विवाह जितनी जटिलताएं नहीं हैं. इस में मूव इन और मूव आउट काफी आसान है. लेकिन यही इस रिश्ते की सब से बड़ी कमी भी है, क्योंकि इसी के कारण इस रिश्ते में असुरक्षा और अनिश्चित भविष्य की चिंताएं घर करने लगती हैं. अकसर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग असुरक्षा, गुस्सा, दुख, भ्रम, अवसाद और भावनात्मक उथलपुथल के शिकार हो जाते हैं.

‘‘भारतीय समाज का तानाबाना ऐसा है कि यहां आज भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों पर परिवार और समाज का बहुत अधिक दबाव होता है. थोड़ी उम्र बीतने के बाद हर इनसान अपने जीवन में स्टैबिलिटी चाहता है, अपना परिवार बढ़ाना चाहता है. लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों में बच्चों को जन्म देने, उन्हें समाज, परिवार की मान्यता मिलने और उन के भविष्य को ले कर कई प्रकार की आशंकाएं होती हैं. वे हमेशा इस द्वंद्व में रहते हैं कि परिवार बढ़ाएं या न बढ़ाएं? इन पर हमेशा एक मानसिक दबाव रहता है. इस सब का मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मानसिक दबाव के कारण

इन लोगों का इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है, जो इन्हें बीमारियों का आसान शिकार बनाता है.’’

– डा. गौरव गुप्ता, मनोचिकित्सक, तुलसी है

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