कच्चा रिश्ता है लिव इन

टीवी स्टार प्रत्यूषा बनर्जी अपने घर में फांसी के फंदे पर लटकी पाई गई, जो मूलतया जमशेदपुर की थी. प्रत्यूषा अपने बौयफ्रैंड राहुल राज के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी. वह राहुल से शादी करना चाहती थी. पुलिस तफ्तीश में यह बात भी सामने आई कि वह प्रैगनैंट थी.

जाहिर है प्रत्यूषा लिव इन के अपने कमजोर रिश्ते को विवाह के मजबूत बंधन में तबदील करना चाहती होगी, मगर उस का बौयफ्रैंड शायद इस के लिए तैयार नहीं था. नतीजा सब के सामने है. इस मानसिक पीड़ा ने अंतत: उस के जीवन को लील लिया.

लिव इन आज की बदलती जीवनशैली के अनुरूप युवाओं द्वारा ईजाद किया गया थोड़ा कम आजमाया कौंसैप्ट है. पहले लड़के बाइयों के यहां पड़े रहते थे या फिर उन के भाभियों, कजिनों के साथ संबंध तो होते थे पर वे एक घर में नहीं रहते थे. घर नहीं चलाते थे.

लड़केलड़की की कपल्स की तरह साथ रहने की व्यवस्था यानी लिव इन में वैवाहिक जिंदगी की हसरतें तो पूरी होती हैं, एकदूसरे का साथ भी मिलता है पर लंबी जिम्मेदारियां निभाने का कोई वादा नहीं होता. कभी भी अलग हो जाने की आजादी रहती है. यह कौंसैप्ट शादी के लिए तैयार नहीं लोगों को लुभावना नजर आता है, पर अंदर से उतना ही खोखला और अस्थाई तो है ही, पर उस में भी बहुत जिम्मेदारियां भरी पड़ी हैं. शायद यही वजह है कि ज्यादातर लोग खासकर लड़कियां आज भी इसे स्वीकार नहीं कर पातीं.

अधूरेपन की कसक

एक तरह से यह रिश्ता धार्मिक मान्यताओं की जकड़न, सामाजिक रीतिरिवाजों और शोशेबाजी के रंग से दूर है और कानून ने भी इसे कुछ हद तक मान्यता दे दी है. मगर फिर भी इस रिश्ते के अधूरेपन को अनदेखा नहीं किया जा सकता खासकर लड़कियां इस तरह के रिश्ते में कई बार गहरी मानसिक पीड़ा से गुजरती हैं.

दरअसल, लिव इन में रिश्ता जब गहरा होता है और दोनों एकदूसरे के करीब आते हैं, शारीरिक संबंध बनते हैं, तो वह जज्बा लड़की के मन में हमेशा साथ रहने की चाहत को जन्म देता है.

50 मिनट की नजदीकी 50 सालों के साथ की इच्छा में बदलने लगती है. मगर जरूरी नहीं कि लड़का भी इसी रूप में सोचे और जिम्मेदारियां निभाने को तैयार हो जाए.

ज्यादातर मामलों में इस बात पर रिश्ता टूट जाता है और अंतत: शारीरिक प्रेम की बुनियाद पर बना यह रिश्ता उम्र भर की कसक बन कर रह जाता है. कई दफा इस टूटन से उत्पन्न पीड़ा इतनी गहरी होती है कि लड़की स्वयं को खत्म कर लेने जैसा बेवकूफी भरा कदम उठाने को भी तैयार हो जाती है जैसाकि प्रत्यूषा ने किया.

ऐसे रिश्तों में प्यार कम विवाद ज्यादा

इस रिश्ते में लड़केलड़कियों का एकदूसरे पर पूरा हक नहीं होता. वे जौइंट डिसीजन भी नहीं ले सकते. जैसाकि विवाहित दंपती लेते हैं. उदाहरण के लिए संपत्ति या तो लड़के की होती है या फिर लड़की की. दोनों का हक नहीं होता. दूसरे का यह पूछने का हक नहीं कि रुपए किस प्रकार खर्च हो रहे हैं. दोनों अपने रुपए अपने हिसाब से खर्च करते हैं.

इसी वजह से अकसर इन के बीच हक और अधिकार की लड़ाई होती रहती है. इन विवादों का निबटारा सहज नहीं होता. वे प्रयास करते हैं कि प्यार जता कर या आपस में बात कर मसला सुलझाया जाए, मगर अकसर ऐसा हो नहीं पाता, क्योंकि किसी भी रिश्ते को बनाए रखने और 2 लोगों को करीब रखने के लिए जो गुण सब से ज्यादा जरूरी हैं वे हैं, विश्वास, ईमानदारी, पारदर्शिता और आत्मिक निकटता.

इन्हें विकसित करने के लिए समय चाहिए होता है. महज भौतिक या शारीरिक निकटता मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव भी दे, यह जरूरी नहीं. ऐसे खोखले रिश्ते में कड़वाहट का दौर आसानी से खत्म नहीं होता.

जिम्मेदारियों से भागना सिखाता है लिव इन

लिव इन रिलेशनशिप वास्तव में भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत और आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता, न ही पूरे समाजकानून के आगे इस तरह का कोई अनुबंध ही किया जाता है. इस वजह से पार्टनर्स एकदूसरे पर (लिखित/मौखिक) किसी तरह का कोई दबाव नहीं बना सकते. ऐसा रिश्ता एक तरह से रैंटल ऐग्रीमैंट के समान होता है. यह बड़ी सहजता से बनाया जाता है और जब तक दोनों पक्ष सही व्यवहार करते हैं, एकदूसरे को खुश रखते हैं तभी तक वे साथ होते हैं. इस के विपरीत शादी इस पार्टनरशिप से बहुत ज्यादा गहरी है. यह एक सार्वभौमिक तौर पर किया गया अनुबंध है, जिस के साथ कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारियां जुड़ी होती हैं. वस्तुत: शादी न सिर्फ 2 लोगों वरन 2 परिवारों व समुदायों के बीच बनाया गया रिश्ता है, जो उम्र भर के लिए स्वीकार्य है. जीवन में कितने भी दुख, परेशानियां आएं, आपसी बंधन कायम रखने का वादा किया जाता है.

कहा जा सकता है कि जब दिल मिल रहे हों तो रस्मोरिवाज की क्या जरूरत? मगर यहां बात सिर्फ रस्मों की नहीं वरन सामाजिक तौर पर की गई कमिटमैंट की है, सदैव जिम्मेदारियां उठाने की कमिटमैंट, हमेशा साथ निभाने की कमिटमैंट, विवाह में एक डिफरैंट लैवल की कमिटमैंट होती है, इसलिए एक डिफरैंट लैवल की सुरक्षा, आजादी और परिणामस्वरूप डिफरैंट लैवल की खुशी भी प्राप्त होती है. यह उस से बिलकुल अलग है, जो रिश्ता महज तब तक निभाया जाता है जब तक कि परस्पर प्यार और आकर्षण कायम है. बेहतर विकल्प मिलते ही अलग होने का रास्ता खुला होता है. हमेशा इस बात के लिए तैयार रहना पड़ता है कि कभी भी रिश्ता खत्म हो सकता है.

वफा चाहिए तो लिव इन नहीं

जब बात वफा की आती है, तो शादीशुदा पार्टनर इस दृष्टि से काफी लौयल पाए जाते  हैं. 5 सालों के एक अध्ययन के मुताबिक 90% विवाहित महिलाएं पतिव्रता पाई गईं, जबकि लिव इन में रह रहीं सिर्फ 60% महिलाएं ही लौयल निकलीं.

पुरुषों के मामले में स्थिति और भी ज्यादा आश्चर्यजनक रही. 90% विवाहित पुरुष अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहे, जबकि लिव इन के मामले में केवल 43% पुरुष.

यही नहीं, लिव इन का प्रकोप यानी प्रीमैरिटल सैक्सुअल ऐटीट्यूड और बिहेवियर शादी के बाद भी नहीं बदलता. यदि एक महिला शादी से पहले किसी पुरुष के साथ रहती है, तो यह काफी हद तक संभव है कि वह शादी के बाद भी अपने पति को धोखा देगी.

अध्ययनों व अनुसंधानों के मुताबिक यदि कोई शख्स शादी से पहले सैक्स का अनुभव करता है, तो इस की संभावना काफी ज्यादा रहती है कि शादी के बाद भी उस के ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स रहेंगे. यह खासतौर पर महिलाओं के लिए ज्यादा सच है.

पेरैंट्स से दूरी

लिव इन में रह रहे लड़केलड़कियों की जिंदगी में सामान्यतया मांबाप का दखल नाममात्र का होता है, क्योंकि इस बाबत उन की सहमति नहीं होती और वे अपने बच्चों से दूरी बना लेते हैं.

यदि वे घर वालों को इस बात की जानकारी नहीं देते, तो ऐसे में इस राज को छिपा कर रखना भी आसान हीं होता. कई तरह के मसले जैसे मांबाप से पैसों की मदद लेना, पार्टनर और उस के सामान को छिपाना जब अभिभावक अचानक मिलने आ रहे हों, लगातार उन की इच्छा के विरुद्ध जाने का अपराधबोध और झूठ बोलना जैसी बहुत सी बातें हैं, जो लिव इन में रहने वालों को बेचैन करती हैं.

विश्वास की कमी

जो शादी से पहले साथ रहते हैं, उन में अकसर अविश्वास का भाव विकसित होता है. परिपक्व प्रेम में गहरा विश्वास होता है कि आप का प्यार सिर्फ आप का है और कोई बीच में नहीं. मगर शादी से पहले ही नजदीकी बना लेने पर व्यक्ति के मन में कई तरह के शक पैदा होने लगते हैं कि कहीं इस की जिंदगी में मुझ से पहले भी तो कोई नहीं रहा या मेरे अलावा भविष्य में किसी और के साथ भी इस के संबंध तो नहीं बन जाएंगे.

इस तरह के अविश्वास और संदेह के भाव गहराने से व्यक्ति धीरेधीरे अपने पार्टनर के प्रति प्यार व सम्मान खोने लगता है जबकि शादीशुदा जिंदगी में विश्वास एक अहम फैक्टर होता है.

– 68% युवाओं का कहना था कि लिव इन प्यार (लव) नहीं वासना (लस्ट) है.

– 72% ने माना कि लिव इन का अंत ब्रेकअप में होता है.

– 36% महिलाओं ने ही इसे अच्छा माना.

– 52% युवा लड़कों ने लिव इन की जिंदगी जीने में रुचि दिखाई.

– 89% अभिभावकों ने कहा कि विवाह से पूर्व सैक्स स्वीकार्य नहीं.

– 51% युवाओं ने ही इसे गलत माना.

यशराज प्रोडक्शंस व औरमैक्स मीडिया द्वारा किए गए ‘शुद्ध देशी इंडिया की रोमांटिक सोच’ सर्वे से प्राप्त आंकड़े.

 

लिव इन रिलेशनशिप

भावनात्मक बंधन के आधार पर साथ रहने का एक व्यक्तिगत व आर्थिक प्रबंध मात्र है. इस में हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ देने का कोई वादा नहीं होता…

पहले मजा बाद में सजा

‘‘देश की अदालतों में लिव इन में रहने वाले जोड़ों के मुकदमे दिनबदिन बढ़ रहे हैं. शारीरिक व भौतिक जरूरत के लिए लिव इन में रहना बाद में मुश्किल भी खड़ी कर सकता है. इन मामलों में आमतौर पर शादी का वादा कर के मुकरना, घरेलू हिंसा और यहां तक कि बलात्कार करने तक का संगीन आरोप लगता है. आपसी झगड़े का रूप कईकई बार बेहद आपराधिक हो जाता है. लड़कियां आत्महत्या कर लेती हैं, तो कई मामलों में लड़कियों की हत्या भी कर दी जाती है. हालिया हुई कई वारदातें इस बात का सुबूत हैं.’’

– अवधेश कुमार दुबे, ऐडवोकेट, दिल्ली हाई कोर्ट

आसान नहीं रहती जिंदगी

‘‘भारत में शहरी जनसंख्या खुले विचारों की है. उस पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी है. आज शिक्षा और नौकरी के कारण युवा बड़ी संख्या में अपने घरों से दूर रह रहे हैं, इसलिए लिव इन रिलेशनशिप का चलन लगातार बढ़ रहा है. आज की पीढ़ी के लिए यह एक अच्छा चलन है, क्योंकि इस में विवाह जितनी जटिलताएं नहीं हैं. इस में मूव इन और मूव आउट काफी आसान है. लेकिन यही इस रिश्ते की सब से बड़ी कमी भी है, क्योंकि इसी के कारण इस रिश्ते में असुरक्षा और अनिश्चित भविष्य की चिंताएं घर करने लगती हैं. अकसर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोग असुरक्षा, गुस्सा, दुख, भ्रम, अवसाद और भावनात्मक उथलपुथल के शिकार हो जाते हैं.

‘‘भारतीय समाज का तानाबाना ऐसा है कि यहां आज भी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों पर परिवार और समाज का बहुत अधिक दबाव होता है. थोड़ी उम्र बीतने के बाद हर इनसान अपने जीवन में स्टैबिलिटी चाहता है, अपना परिवार बढ़ाना चाहता है. लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों में बच्चों को जन्म देने, उन्हें समाज, परिवार की मान्यता मिलने और उन के भविष्य को ले कर कई प्रकार की आशंकाएं होती हैं. वे हमेशा इस द्वंद्व में रहते हैं कि परिवार बढ़ाएं या न बढ़ाएं? इन पर हमेशा एक मानसिक दबाव रहता है. इस सब का मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मानसिक दबाव के कारण

इन लोगों का इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है, जो इन्हें बीमारियों का आसान शिकार बनाता है.’’

– डा. गौरव गुप्ता, मनोचिकित्सक, तुलसी है

किसी भी तरह की क्रीम लगाने से मेरे व्हाइट हैड्स हो जाते हैं, क्या करूं?

सवाल-

 मैं 25 साल की हूं. मैं जब भी अपने चेहरे पर किसी भी प्रकार की क्रीम लगाती हूं तो मेरे चेहरे पर व्हाइट हैड्स हो जाते हैं. क्या आप इसे दूर करने का उपाय बताएंगी?

जवाब-

व्हाइट हैड्स ऐक्ने का एक प्रकार है जो स्किन की पोरों, तेल के रिसाव के साथ गंदगी के जम जाने की वजह से उत्पन्न होते हैं. व्हाइट हैड्स स्किन की भीतरी परत में बनते हैं जिसे प्रकाश आदि नहीं मिल पाता और इस का रंग सफेद रहता है. हमारी स्किन में प्राकृतिक रूप से तेल मौजूद होता है, जो हमारी स्किन में नमी और मौइश्चर बनाए रखता है. अगर हमारी स्किन पर अधिक तेल मौजूद रहेगा तो उस से हमारी स्किन को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. कुछ क्रीम ऐसी होती हैं, जो हमारी स्किन को और अधिक चिपचिपा बना देती हैं, जिस के कारण हमारी स्किन पर मुंहासे आने लगते हैं. अगर आप की स्किन औयली है तो आप औयल फ्री क्रीम ही लगाएं. व्हाइट हैड्स दूर करने के लिए मेथी के पत्तों में पानी मिला कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को चेहरे पर घिसें, खासतौर पर वहां जहां पर व्हाइट हैड्स हों. इस प्रक्रिया से व्हाइट हैड्स हट जाते हैं. पेस्ट सूखने के बाद अपना चेहरा कुनकुने पानी से धो लें.

5 उपाय रूखी त्वचा से बचाएं

सर्दियों में ठंडी व बर्फीली हवाओं के साथ तापमान में कमी आना, हवा में नमी के स्तर में तेजी से गिरावट आने की वजह से स्किन को प्रौपर हाइड्रेशन नहीं मिल पाता है या यों कहें कि स्किन प्रौपर हाइड्रेशन मैंटेन नहीं कर पाती है, जिस की वजह से न सिर्फ चेहरे की स्किन पर असर पड़ता है, बल्कि हाथपैरों की स्किन का फटना, त्वचा में खुजली, त्वचा का फटना और पपड़ीदार होना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो स्किन की हालत को बहुत खराब कर देती हैं, इन समस्याओं से स्किन की प्रौपर केयर करने से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है. आइए, जानते हैं इस संबंध में ‘एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज’ के डर्मैटोलौजिस्ट डा. अमित बांगया से:

से नो टू वैरी वार्म वाटर

सर्दियों में गरम पानी से नहाने का अपना ही मजा होता है, लेकिन यह पानी जहां आप के शरीर को थोड़ी देर तक राहत पहुंचाने का काम करता है, वहीं इस की वजह से आप के शरीर का नैचुरल औयल भी खत्म होने लगता है, जिसे ठीक करने के लिए हम विंटर मौइस्चराइजर का सहारा लेते हैं. लेकिन जान लें कि अगर आप ने अपने नहाने के रूटीन से बहुत ज्यादा गरम पानी को आउट नहीं किया तो आप चाहे कोई भी क्रीम या मौइस्चराइजर अप्लाई कर लें, यह प्रौब्लम ठीक नहीं होने वाली. इसलिए जरूरी है बहुत लंबे बाथ के साथ हौट वाटर की जगह सिर्फ वार्म वाटर से नहाएं और आप का सर्दियों में बाथिंग टाइम 10 मिनट से ज्यादा न हो. अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगी तो आप विंटर्स में स्किन ड्राईनैस की समस्या से काफी हद तक दूर रहेंगी:

हौट हैंड ड्रायर से दूरी बनाएं: अकसर सर्दियों में हमें अपने हैंड्स को ठंडे पानी से धोने का बिलकुल भी मन नहीं करता है. ऐसे में हम अपने हाथों को धोने के तुरंत बाद उन्हें सुखाने के लिए हौट ड्रायर का इस्तेमाल कर लेते हैं, जो भले ही थोड़ी देर के लिए आप को गरमी देने का काम करे, लेकिन क्या आप जानती हैं कि इस की वजह से आप के हाथ और भी ज्यादा ड्राई हो जाते हैं क्योंकि इस की गरम हवा हाथों के नैचुरल मौइस्चर को खत्म कर के उन्हें रूखा बना देती है और कई बार तो इस के ज्यादा इस्तेमाल करने की वजह से स्किन ड्राई हो कर निकलने भी लगती है. ऐसे में जरूरत है हौट हैंड ड्रायर की जगह सर्दियों में गीले हाथों को पेपर टौवेल से सुखाएं. इस से हाथ भी सूख जाएंगे और उन में नमी भी बरकरार रहेगी.

हैंड्स को मौइस्चराइज करना जरूरी: विंटर्स में सिर्फ दिन में एक बार स्किन पर मौइस्चराइज करने से काम नहीं चलता, बल्कि जरूरत होती है कि जब भी आप को अपनी स्किन ड्राई लगे तब या फिर हाथ धोने के बाद आप अपनी स्किन व हाथों को मौइस्चराइज जरूर करें. आप को मार्केट में ढेरों स्किन व हाथपैरों को हाइड्रेट करने वाले मौइस्चराइजर मिल जाएंगे. लेकिन आप को उन का चयन करते वक्त इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है कि उस में हीलिंग इनग्रीडिऐंट्स जैसे यूरिया, केरामाइड्स, फैटी ऐसिड्स, ग्लिसरीन, शिया बटर व कोको बटर जैसे इनग्रीडिऐंट्स हों क्योंकि ये स्किन को हील, नरिश करने के साथसाथ स्किन की रफनैस, ड्राईनैस और डैड स्किन को रिमूव करने के साथ ही उस के टैक्सचर को भी इंप्रूव करने में मदद करते हैं.

सन प्रोटैक्शन है जरूरी: जब हम जरूरत से ज्यादा धूप में बैठने लगते हैं तो इस से ढेरों स्किन प्रौब्लम्स भी हो जाती हैं खासकर ड्राई स्किन वालों को क्योंकि उन की स्किन ज्यादा सैंसिटिव होती है. जिस कारण उस के टैन, जल्दी बर्न होने के साथ ही स्किन ड्राईनैस की समस्या और बढ़ सकती है. इसलिए विंटर्स में धूप जरूर लें, लेकिन अच्छी क्वालिटी का सनस्क्रीन अप्लाई कर के. कोशिश करें कि उस में कम से कम एसपीएफ होने के साथसाथ उस में क्रीमी इफैक्ट भी हो, जो एकसाथ 2 काम कर सके. इस से आप की स्किन ज्यादा सन ऐक्सपोजर से भी बची रहेगी, साथ ही उसे नरिश्मैंट भी मिल जाएगा. अगर उस में थोड़ा ह्यालूरोनिक ऐसिड और ऐलोवेरा हो, तो यह बैस्ट है. इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि धूप में अपने हाथपैरों व कमर को ऐक्सपोज जरूर करें, लेकिन फेस को कवर कर के ही बैठें वरना स्किन धीरेधीरे टैन होने के कारण आप को गंभीर स्किन प्रौब्लम्स का भी सामना करना पड़ सकता है. ऐलोवेरा है बड़े काम का: अगर बात करें स्किन केयर प्रोडक्ट्स की तो उन में अकसर ऐलोवेरा का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इस में ऐंटीबायोटिक और ऐंटीइनफ्लैमेटरी प्रौपर्टीज होती हैं, जो स्किन पर बिना किसी साइड इफैक्ट के स्किन को मौइस्चराइज रखने का काम करती हैं. तो अगर आप भी स्किन ड्राइनैस की समस्या से जू?ा रही हैं तो जरूर ट्राई करें ऐलोवेरा. ओवरनाइट ट्रीटमैंट से मिलेगा अच्छा रिजल्ट: अगर आप विंटर में स्किन ड्राइनैस की समस्या से परेशान हो गई हैं, तो आप को जरूरत है डे ट्रीटमैंट के साथसाथ ओवरनाइट ट्रीटमैंट की भी ताकि मौइस्चराइजर व क्रीम को स्किन में बेटर ऐब्जौर्बेशन का समय मिल सके. इस के लिए आप रात को अपने हाथपैरों व चेहरे पर अच्छी क्वालिटी का लोशन या फिर मौइस्चराइजर अप्लाई कर के उसे ग्लव्स, सौक्स से अच्छे से कवर करें. कुछ ही दिनों में लगातार ऐसा करने पर आप की स्किन के साथसाथ हाथपैर भी काफी सौफ्ट हो जाएंगे. आप को खुद उन्हें छूने पर इतना अच्छा फील होगा कि आप विंटर्स में खुद इस ओवरनाइट ट्रीटमैंट को कभी इग्नोर नहीं करेंगी.

Wedding Special: शादी का लहंगा कहीं पड़ ना जाए महंगा

एक दुल्हन के लिए शादी की तैयारियों में सबसे अहम और खास होता है शादी के दिन पहने जाने वाला जोड़ा. एक जमाना था जब शादी का जोड़ा साड़ी हुआ करता था. लेकिन आज प्रायः लंहगा ही जोड़ा होता है. अगर आप भी आने वाले कुछ दिनों में दुल्‍हन बनने वाली हैं और अपनी वेडिंग ड्रेस को लेकर कंफ्यूज हैं तो यहां बताए जा रहे टिप्‍स की मदद से चुनें परफेक्ट लहंगा.

1. अगर आपकी हाइट अच्‍छी है लेकिन आपका वेट ज्‍यादा नहीं हैं तो आपको घेरदार लहंगा पहनना चाहिए. इससे आपकी हाइट ज्‍यादा नहीं लगेगी.

2. अपनी हाइट, वेट और कलर को सूट करने वाला डिजाइन चूज करें. क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि जो लहंगा आपको खूबसूरत लग रहा हो वह पहनने पर भी आप पर उतना ही जंचे.

3. अगर आपकी हाइट छोटी है और हेल्‍थ ज्‍यादा है तो घेरदार लहंगा पहनने की बात भूलकर भी न सोचें. आपके ऊपर बारीक डिजाइन वाला लहंगा अच्‍छा लगेगा.

4. अगर आप हेल्दी हैं लेकिन आपकी हाइट अच्‍छी है तो फि‍टिंग वाला लहंगा आप पर खूब फबेगा. इससे आपका मोटापा दब जाएगा और आप थोड़ी पतली लगेंगी.

5. अगर आपका रंग गेहुंआ है तो आप इन रंगों का चुनाव कर सकती हैं जैसे, रूबी रेड, नेवी ब्लू, ऑरेंज रस्ट, गोल्डन, रॉयल ब्लू आदि. वहीं पेस्टल कलर को चुनने से बचें.

6. अगर आपका रंग गोरा है तो आप किसी भी रंग का लहंगा चुन सकती हैं. सॉफ्ट पेस्टल, पिंक, पीच या लाइट सॉफ्ट ग्रीन जैसे रंग आप पर बहुत अच्‍छे लगेंगे.

7. डस्की ब्‍यूटी पर ब्राइट कलर जैसे, मजेंटा, लाल, नारंगी आदि कलर बहुत अच्‍छे लगते हैं और अगर आप बांग्ला, साउथ इंडियन या फिर गुजराती हैं तो सफेद रंग चुनने में आपको परेशानी नहीं होगी.

8. ध्यान रखें कि अगर लहंगा बहुत भारी वर्क वाला हो तो दुपट्टा हल्का लें. अगर दोनों भारी वर्क वाले होंगे तो आपकी ज्‍वैलरी का लुक अच्‍छा नहीं आएगा और आपका लुक बहुत भारी लगेगा. हालांकि लहंगा इतना भी भारी न खरीद लें कि आप उसे संभाल ही न पाएं.

मां के बिना नहीं पलते बच्चें

विवाह की इंस्टीट्यूशन की जरूरत समाज की थी क्योंकि इस के बिना मर्द औरतों को बेसहारा छोड़ देते थे और बच्चे केवल मां के सहारे ही पल पाते थे. विवाह ने छत दी और एक साथ काम करने की पार्टनरशिप दी. लेकिन धर्मों ने इस में टाग अड़ा कर इसे भगवान की देना बना दी और आज अगर शादी में सब से बड़ी रूकावट कहीं से आती हैं तो वह धर्म से है. भारत में यूनिफौर्म सिविल कोर्ट की जो बात हो रही है उस में न औरत के सुख की सोची जा रही है न मर्द के कहों की, उस में केवल यह सोचा जा रहा है कि कैसे एक धर्म वाले अपनी घौंस दूसरे धर्म वालों पर जमा सकते हैं. उस के दूसरी ओर अमेरिका ने एक नया कानून बनाया है, रिस्पैक्ट औफ मैरिज

एक्ट जिस में समलैङ्क्षगक जोड़े भी वही सामाजिक कानूनी अधिकार एकदूसरे के प्रति जता सकते हैं जो धर्मों या कानूनों ने दिए थे. 1870 में अमेरिका के राज्य मिनेसोटा में, जैक बेकर व माईकेल मैक्कोनल, ने 2 पुरुषों ने शादी के लिए अनुमति मांगी थी. जो नहीं दी गई क्योंकि बाइबल तो केवल मर्द और औरत की शादी को औरत मानती है. अब समलैंगिक या तो मैरिज सुप्रीम कोर्ट कीअदलतीबदलती मर्जी पर नहीं निर्भर रहेगी. अब अमेरिका में एक कानून चलेगा शादियों के बारे में. गे मैरिज का सवाल यूनिफौर्म सिविल कोर्ट में भी आना चाहिए पर जैसा अंदेशा है कि यह कानून अगर बना तो सिर्फ मुसलमानों के 4 तक शादियों करने के हक के लिए बनेगा जबकि आंकड़े कहते हैं कि कुल मिला कर ज्यादा ङ्क्षहदू एक से ज्यादा औरतों की पत्नी रखते हैं या कहते हैं कि फलां मेरी पत्नी है बजाए

मुसलमानों के. यूनिफौर्म सिविल कोर्ट तभी यूनिफौर्म होगा जब शादी से ङ्क्षहदू पंडित, मुसलिम मुल्लाबाजी, सिख से ग्रंथी. ईसाई से पादरी निकल जाए और सारी शादियां केवल और केवल अदालतों या अदालतों के जजों की तरह के नियुक्तमैरिज औफिसरों के द्वारा दी जिन में हर धर्म के लोग किसी भी दूसरे धर्म, जाति संप्रदाय के जने से शादी कर सकें. शादियों पर होने वाले खर्च को बचाने और शादी के नाम पर मची पंडों, पादरियों और मुल्लाओं की लूट से मुक्ति दिलाती है तो यूनिफौर्म सिविल कोर्ट होगा वरना यह धाॢमक घोंसबाजी होगी, लौलीपोप होगा. असली क्रांति तो यूनिफौर्म सिविल कोर्ट की तक होगी जब वह गे मैरिज को भी मान्यता दे. स्त्रीपुरुष की शादी को तो केवल भगवान के नाम पर माना गया है वरना गे संबंध तो सदियों से बन रहे हैं.

बिना शादी किए भी संबंध हमेशा बनते रहे हैं और 7 फेरों, भक्ति व दूसरे भगवानों के सामने बने वैवाहिक संबंधों के बावजूद पत्नी को बेसहारा छोडऩे वाले आज मौजूद हैं और धर्म का ङ्क्षढढोरा पीटते रहते हैं. यूनिफौर्म सिविल कोर्ट में हक कौंट्रेक्ट की तरह हो, अपराधों की तरह नहीं. मुकदमे सिविल अदालतों में चलें, क्रिमिनल अदालती में नहीं. पर यह होगा नहीं. आज एडल्ट्री कानून, वीमन है रेसमैंट कानून अपराधिक कानून बन गए हैं. क्या यूनिफोर्म सिविल कोर्ट विवाह संबंधों में से पुलिस, जेलों को निकाल सकेगा. नहीं तो यह सिविल नहीं होगा. यह कोर्ट अगर जनता के भले के लिए है तो कोर्ट है, वरना धौंस पट्टी होगा, इसे कोर्ट कहना ही गलत होगा. जो यूनिफौर्म सिविल कोर्ट बनेगा उस में दूसरे धर्म की ङ्क्षचता ज्यादा होगी. अपने धर्म की बुराइयों की बिलकुल नहीं यह पक्का है.

Top 10 Wedding Tips In Hindi: टॉप 10 वेडिंग टिप्स हिंदी में

Top 10 Wedding Tips In Hindi: इन दिनों शादियों का सीजन चल रहा है. सेलेब्स की वेडिंग फोटोज फैंस का दिल जीत रहे हैं. हाल ही में कई सेलिब्रिटी की भी शादियां हुई है जिनकी फोटो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुई है. हालांकि, आम जिदंगी में भी शादियों का सीजन चल रहा है. इसीलिए आज हम आपको वेडिंग से जुड़े फैशन, ब्यूटी और मेकअप की तैयारियां कैसे करें, इसके लिए Top 10 Wedding Tips In Hindi के बारे में बताएंगे, जिन्हें आप ट्राय करके फैमिली और फ्रेंड्स का दिल जीत लेंगी.

1.  5 फेवोरिट सेलेब्स लुक्स 

साड़ी और लहंगा चोली भारतीय संस्कृति से जुड़ा एक बेहद खास परिधान है. इन वस्त्रों को ख़ास अवसर पर पहनने से आप एक ही समय में सेंसेशनल और पारंपरिक दोनों लग सकती हैं. किसी भी लड़की के खास दिन के लिए साड़ी पहली पसंद साड़ी होती है.शादी के इस सीजन में अगर आप नई-नवेली दुल्हन बनने जा रही हैं, तो घबराने की जरूरत नहीं है. इन 5 सेलेब्स लुक्स से आपको पूरी आइडिया मिल सकता है.आइये जानते है वे कौन से है.

खूबसूरत दुल्हन आलिया भट्ट और रणवीर कपूर को देखा जाए, तो आलिया ने शादी के लिए बेहद हल्का रंग चुना था. जबकि अधिकतर यहाँ दुल्हनें लाल, मरून जैसे रंग पसंद करती हैं, लेकिन आलिया ऑफ-वाइट साड़ी में भी बेहद खूबसूरत दुल्हन लग रही थीं. असल में शादी की थीम व्हाइट और गोल्ड थी. यही वजह थी कि दूल्हा-दुल्हन इन्हीं दो कलर के सब्यसाची आउटफिट्स में नज़र आए.

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2.  4 फेवरेट लुक्स बाय मेकअप आर्टिस्ट

शायद ही कोई महिला ऐसी हो , जिसे मेकअप करना पसंद न हो. खासकर के जब बात हो वेडिंग
सीजन की. ऐसे में हमेशा एक जैसा मेकअप या फिर एक जैसा लुक जहां उबाऊ लगने लगता है, वहीं
इससे हमारे डिज़ाइनर आउटफिट्स की भी गेटअप नहीं बढ़ पाती है. ऐसे में जरूरी है हर ओकेजन
पर आउटफिट्स के साथसाथ खुद को मेकअप से अपटूडेट रखने की, ताकि देखने वाले बस आपको ही
देखते रह जाएं. तो आइए जानते हैं इस संबंध में  मेकअप आर्टिस्ट एंड एंटरप्रेन्योर वीनी धमिजा से.
जो मेकअप में एक्सपर्ट होने के साथसाथ वे अब तक कई सेलेब्रिट्रीज़ का मेकअप कर चुकी हैं. साथ ही
कई मूवीज व नेटफ्लिक्स सीरीज में मेकअप आर्टिस्ट की भूमिका भी निभा चुकी हैं. यही नहीं बल्कि
कई लोकल फैशन शोज में सेलिब्रिटी जज भी बन चुकी हैं. ऐसे में खास दिन के लिए मेकअप आर्टिस्ट
के टिप्स से आप भी खास दिख सकते हैं.

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3. वेडिंग सीजन में परफेक्ट हैं ये पौपुलर सिल्क साडियां

दक्षिण भारत का नाम आए और कोई कांजीवरम साड़ी की बात ना करें ऐसा कैसे हो सकता है दक्षिण भारत की कांजीवरम की खूबसूरत तथा भारी-भरकम साड़ियां महिलाओं की खास पसंद है. शायद इतना पढ़कर आपको बौलीवुड ऐक्ट्रेस रेखा, जयप्रदा, वैजयंती माला की याद आ जाए.

ट्रेडिशनल रिच कलर्स और इंडिया की सबसे ज्यादा मशहूर और महंगी साड़ियों में से हैं. कांजीवरम सिल्क ,तमिलनाडु के एक गांव के नाम पर है . जहां इस सिल्क को बनाया जाता है. बाकी सिल्क साड़ियों के मुकाबले ये साड़ियां काफी भारी होती हैं, क्योंकि इनमें इस्तेमाल होने वाले सिल्वर धागे गोल्ड में डिप होते हैं, वहीं मोटिफ्स मोर और तोते से इंसपायर्ड होते हैं. इस साड़ी का सबसे बेस्ट पार्ट होता है इसका पल्लू, जो अलग से बनाकर बाद में साड़ी से जोड़ा जाता है.

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4.दुलहन को संवारे ब्राइडल पैकेज

हर लड़की चाहती है कि शादी पर दुलहन के रूप में उस का शृंगार पिया के मन में इस कदर बस जाए कि दूल्हे को दुलहन के रूप के आगे चांद भी फीका नजर आए. दुलहन की इसी चाहत को पूरा करने में सहायक होते हैं-ब्राइडल पैकेज. तो आइए जानते हैं इन्हीं पैकेज के बारे में.

हर छोटेबड़े पार्लर और सैलून में नौर्मल ब्राइडल पैकेज उपलब्ध होता है जोकि इस महंगाई के जमाने में आप की जेब पर भारी भी नहीं पड़ता है. इस पैकेज में आमतौर पर 2 तरह के फेशियल (गोल्ड/डायमंड/पर्ल), फेस और नेक ब्लीच, मैनीक्योर, पैडीक्योर, फुल बौडी वैक्सिंग, हौट औयल मसाज, हेयरडू, आईब्रो, अपरलिप्स, फोरहैड और वाटरप्रूफ मेकअप शामिल होता है. इसलिए अगर आप को लगता है कि आप की त्वचा को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं है और आप का बजट भी कम है तो नौर्मल ब्राइडल पैकेज आप के लिए उपयुक्त है, इस पैकेज की कीमत क्व8 हजार से क्व10 हजार तक है.

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5.मेकअप का सामान खरीदने से पहले जरूर जानें ये बातें

अगर आप चाहती हैं कि आप को सौंदर्य प्रसाधनों का फायदा मिले न कि बीमारियां तो जब आप मेकअप के सामान खरीदने जाएं, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान जरूर रखें,आप को सुंदर बनाने वाला कौस्मैटिक आप को सिर दर्द भी दे सकता है ऐसा आप ने कभी सोचा न होगा. कुछ रसायन जैसे कि डाइजौलिडिनाइल और डीएमडीएम हाइडे्रशन का सौंदर्य प्रसाधनों में काफी इस्तेमाल होता है. ये सिरदर्द और आंखों में जलन का कारण बन सकते हैं. यदि मेकअप उत्पाद इस्तेमाल करने से ऐसे लक्षण दिखें, तो कुछ दिन मेकअप से दूर रहें.

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6.ताकि दमकती रहे दुल्हन की स्किन

किसी भी लड़की के जीवन में शादी एक महत्त्वपूर्ण अवसर होता है. हर लड़की इस दिन सब से खूबसूरत और आकर्षक दिखना चाहती है. शादी से पहले कई तरह की चीजें होती हैं जैसे शादी की शौपिंग करना, तरहतरह की रस्में निभाना व अन्य तैयारी करना. इस वजह से कई बार दुल्हन को थकान, बेचैनी और तनाव से गुजरना पड़ता है, जिस की वजह से वह अपनी त्वचा का सही तरीके से खयाल नहीं रख पाती. ऐसे में उसे यह चिंता सताती है कि वह चमकतीदमकती त्वचा पाने के लिए क्या करे.

कई ऐसे टिप्स हैं, जिन्हें आजमा कर भावी दुल्हन मनचाही त्वचा पा सकती है. वेदिक लाइन के इन टिप्स पर अमल करना आसान है और आप रोज इन्हें अमल में ला सकती हैं ताकि उस दिन के लिए अपनी खूबसूरत त्वचा को और निखार सकें.

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7.साड़ी सदाबहार पहनावे के आधुनिक अंदाज

साड़ी भारतीय मूल का एक ऐसा परिधान है जो सब की पहली पसंद है. उत्तर में बनारसी साड़ी का वर्चस्व है, तो दक्षिण में कांजीवरम का. फिल्मी समारोहों में फिल्म अदाकारा रेखा की भारीभरकम पल्लू वाली गोल्डन कांजीवरम सिल्क की साडि़यां हमेशा ही आकर्षण का केंद्र रही हैं. इन के अलावा पूर्व में टंगाइल की बंगाली साड़ी, कांथा वर्क और गुजरात की घरचोला या पाटन की पटोला का बोलबाला है. इन सभी की अपनीअपनी विशेषता है. मां से बेटी को विरासत में मिलने वाली पटोला को बनने में कई महीने तो कभीकभी कई बरस भी लग जाते हैं. साड़ी एक है लेकिन इस के रूप अनेक हैं. इस को विशेष बनाती है इसे पहननेओढ़ने की कला.

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8.संवरने के ये भी हैं फायदे

माना कि घर रिलैक्स करने, कंफर्टेबल होने की जगह है, लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि रिलैक्स होने के चक्कर में आप घर में झल्ली सी बनी रहती हैं, प्रैजैंटेबल नहीं रहतीं? हैरानी की बात है कि पत्नी जिस शख्स से सब से ज्यादा प्यार करती है, जिस के इर्दगिर्द ही उस की दुनिया बसती है यानी पति उसी के सामने वह सजीसंवरी नहीं रहती. हम यह नहीं कहते कि पत्नी घर में हाईहील पहन कर घूमे. हम एक मां, पत्नी की जिम्मेदारियों को समझते हैं, जिन के बीच उसे सांस लेने की भी फुरसत नहीं होती है. लेकिन जब आप ग्रौसरी शौप तक भी तैयार हो कर व बाल बना कर जाती हैं यानी भले ही कैजुअली तैयार होती हैं, लेकिन होती हैं न? प्रैजैंटेबल दिखती हैं न? आप ऐसा इसलिए करती हैं ताकि अगर रास्ते में कोई पासपड़ोस का मिल जाए तो आप को मुंह न छिपाना पड़े, शर्मिंदगी न महसूस हो, तो फिर पति के सामने बनसंवर कर क्योंनहीं रहती हैं? आप की जिंदगी में तो उन की सब से ज्यादा अहमियत है.

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9.ग्लोइंग स्किन के लिए अपनाएं ये टिप्स

शादी का दिन हर लड़की के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण और खास होता है और वह इस दिन सबसे सुंदर व अपनी त्वचा को सबसे चमकती हुई पाना चाहती है. लेकिन शादी की थकाऊ  कई रस्में भी कतार में होती हैं. इसलिए  अपनी शादी से पहले होने वाली रस्मों व शादी वाले दिन सुंदर दिखने के लिए आप को पहले ही कुछ तैयारियां करनी होंगी. हालांकि यह सुंदर बनने की प्रक्रिया महीने पहले ही शुरू हो जानी चाहिए, यदि आप की भी शादी होने जा रही है तो निम्न दी गई गाइडलाइन्स का जरूर पालन करें.

आज के जमाने में जहां शादी से महीनों पहले डर्मेटोलॉजिस्ट के पास जाना व प्री ब्राइडल पैकेज के लिए ब्यूटी सैलून में जाना अनिवार्य होता है. तो आप को सदियों से चले आ रहे घरेलू उपायों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए. कुछ लोग सोचते हैं कि आज की सदी में यह सब काम नहीं करते. परंतु यह उपाय आज के समय भी बहुत असरदार माने जाते हैं. पुराने समय में जब मॉडर्न स्किन केयर रूटीन व स्किन के विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं होते थे तो उस समय दुल्हनों को अपनी शादी में सुंदर दिखने के लिए प्राकृतिक तरीकों का ही सहारा लेना पड़ता था.

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10. शादी से पहले कुछ इस तरह निखारें अपनी सुंदरता

अपनी शादी का दिन हर किसी के लिए खास होता है और इस मौके पर हर दुलहन सुंदर दिखना चाहती है. लेकिन हमारे देश में शादी के दौरान होने वाली पारंपरिक रस्मों को व्यवस्थित ढंग से निभाना टेढ़ी खीर है, इसलिए इस दौरान दुलहन और सही ढंग से अपना खयाल नहीं रख पाती. हालांकि शादी तो 1 दिन की होती है परंतु उस की यादें हमेशा के लिए होती हैं, इसलिए कपड़े और स्थल वगैरह पहले ही तय कर लिए जाते हैं. लेकिन इन सब के बीच दुलहन अपनी त्वचा और स्वास्थ्य का खयाल आमतौर पर नहीं रख पाती.

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BB 16: सलमान खान ने साजिद खान पर निकाली अपनी भड़ास, अब्दु को लेकर कही ये बात

कलर्स विवादित शो biggboss 16 इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है शो में नई दोस्ती और पुरानी दोस्ती बनते बिगड़ते दि रही है. शो में दो वाइल्ड कार्ड एंट्री भी हुई है. जिससे के बाद शो में चार-चांद लग गए है. आपको बता दें,कि इस बार वीकेंड का वार काफी धमाकेदार होने वाला है.

जी हां, शो में आने वाले वीकेंड के वार में सुपरस्टार सलमान खान सबकी क्लास लगाने वाले है. हफ्ते भर कंटेस्टेंट्स की गलतियों पर सलमान खान हर वीकेंड का वार पर जमकर क्लास लेते हैं. इस बार सलमान खान का गुस्सा साजिद खान पर फटने वाला है. सुपरस्टार सलमान खान साजिद खान के भद्दे मजाक पर उनकी क्लास लेगेंगी. इसकी जानकारी मेकर्स शो के दो प्रोमो वीडियो के जरिए दे चुके हैं.

जी हां, आने वाले वीकेंड का वार स्पेशल एपिसोड में सुपरस्टार सलमान खान का गुस्सा साजिद खान पर फटने वाला है. सलमान खान अब्दु रोजिक के साथ किए गए भद्दे मजाक पर साजिद खान की क्लास लेंगे. सलमान खान उन्हें बोलेंगे कि निम्मी को अलग अंदाज में बर्थडे के दिन विश करने का आइडिया अब्दु का नहीं खुद साजिद खान का था. बाद में फिर वही, उसे निमृत कौर से दूर होने के लिए कहते हैं. ऐसे में ये बात उन्हें समझ नहीं आती कि वो खुद ही चिंगारी दे रहे हैं और फिर खुद ही बुझा रहे हैं. इतना ही नहीं, सलमान खान ये भी पूछेंगे कि उन्होंने जो अब्दु की पीठ पर लिखा था वो क्या था. सलमान खान साजिद खान से कहेंगे कि उन्होंने अब्दु संग भद्दा मजाक किया था. वो बेहद खराब था और ऐसे मजाक से दूर रहें. सलमान खान साजिद खान से कहेंगे कि किसी और की कीमत पर किया गया मजाक बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है.

वीकेंड वार में नज़र आएंगे,रणवीर सिंह

आपको बता दें, कि इस बार का वीकेंड का वार दमदार होने वाला है इस वीकेंड मे अपनी प्रफोमेंस देने रणवीर सिंह पहुंचेंगे साथ ही रोहित शेट्टी भी शो के स्टेज पर नजर आएंगे.

दरअसल, दोनों अपनी फिल्म सर्कस का प्रमोशन करने यहां पहुंचेंगे. इतना ही नहीं आने वाले शो के वीकेंड का वार स्पेशल एपिसोड में इस बार विक्की कौशल और कियारा आडवाणी भी नजर आएंगे.

GHKKPM: मगरमछ के हादसे का शिकार होगी पत्रलेखा, क्या सई बचाएगी जान?

टीवी का पॉपुलर शो “गुम है किसी के प्यार में” मे इन दिनों हिट चल रहा है शो की पॉपुलरेटी दिन पर दिन बढ़ती जा रही है, शो में आने वाले नए मोड़ को और बेहतर बना रहे है. नील भट्ट (Neil bhatt) और आयशा सिंह (Ayesha Singh) स्टारर ‘गुम है किसी प्यार में’ (Gum Hai Kisi Ke Pyar Mein) में की कहानी अब नया मोड ल चुकी है.

आपको बता दें, कि इन दिनों कहानी विराट, पाखी और सई की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूम रही है . बीते दिन भी ‘गुम है किसी के प्यार में’ में दिखाया गया कि विराट गेम जीतने के बाद पाखी को मनाने की कोशिश करता है और उसे भरोसा दिलाता है कि उसकी जिंदगी में पत्रलेखा का काफी महत्व है. लेकिन इसी बीच टायर फट जाता है और बस खाई के किनारे अटक जाती है. विराट एक-एक कर सबको निकाल लेता है, लेकिन पत्रलेखा बस में बेहोश हो जाती है, जिससे विराट उसे भूल जता है. लेकिन ‘गुम है किसी के प्यार में’ में आने वाले मोड़ यहीं खत्म नहीं होते.


कहानी में दिखाया जाएगा कि पत्रलेखा को होश आता है और उसे पता चलता है कि वह बस में फंसी गई है. वह विराट को बुलाती है, लेकिन देखती है कि विराट सई को बचाने में लगा होता है. वह सई को सीपीआर भी देता है और उसके होश में आने के बाद उसे गले भी लगा लेता है. इतना कुछ देखने के बाद पत्रलेखा का दिल टूट जाता है.

कहानी में आगे दिखाया जाता है कि थोड़ी देर बाद विराट और सई पत्रलेखा को आसपास देखते है लेकिन उन्हे पत्रलेखा कहीं भी नजर नहीं आती. तभी सबको एहसास होता है कि पत्रलेखा बस में फंसी हुई है.लेकिन इसी बीच बस से बंधी रस्सी टूटने लगती है. विराट अपनी बीवी को बचाने की कोशिश भी करता है, लेकिन बस खाई में गिर जाती है और पत्रलेखा भी बस के साथ चली जाती है. दूसरी तरफ विराट हादसे के लिए खुद को दोषी मानता है और खुद भी उसे खाई में ढूंढने चला जाता है.

पत्रलेखा को जंगल में ढूंढने पहुंची सई

कहानी में आगे दिखाया जाएगा कि बस हादसे की खबर सुनते ही पूरा परिवार हादसे के जगह  पर पहुंच जाता है.सई विनायक और सवि को संभालने की कोशिश करती है. लेकिन बाद में वह खुद पत्रलेखा को बचाने के लिए जंगलों में जाती है. उसे तालाब के किनारे पत्रलेखा मिल भी जाती है.लेकिन, तभी उसकी नजर तालाब में मौजूद मगरमच्छ पर पड़ती है, जो धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ता हैआगे ये दिखाया जायेगा कि सई उसका ऑपरेशन करेगी और उसकी जान बचाएगी.

स्टे ऑर्डर : सभी लोग वकील के पास क्यों पहुंचे

नगर निगम के अतिक्रमण हटाओ दस्ते का सहायक अभियंता और अन्य कर्मचारी आखिरकार इस ब्लाक में भी आ गए. पिछले 3-4 दशकों से ब्लाक के फ्लैटों में रहने वाले निवासियों ने थोड़ाथोड़ा कर के अवैध निर्माणों का एक सिलसिला बना दिया था. ऊपरी आदेशों से इन की पहचान कर सब को गिराना था.

ज्यादातर अतिक्रमण भूतल पर था. एक फ्लैट के मकान मालिक ने अतिक्रमण किया तो देखादेखी दूसरों ने भी कर डाला. सरकारी प्रौपर्टी थी, कौन पूछता. मगर कभीकभी नगर निगम नींद से जाग जाता था. संबंधित अधिकारियों को अपनी और दूसरे कर्मचारियों की जेब गरम करने की जरूरत पड़ जाती तब दोचार दिन तक अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया जाता. जब भेंटपूजा हो जाती तब अभियान ठंडा पड़ जाता था.

इसी घटनाक्रम में कई ब्लाकों के नवयुवा वकील बड़े वकीलों की मातहती में वकालत करने लगे. तब उन्होंने कभीकभी आ पड़ने वाली ऐसी आपदा का प्रबंध करने का एक तरीका सुझाया. सारे ब्लाक वाले मिल कर संयुक्त आवेदन करें और मजिस्ट्रेट के पास दलील दें कि ऐसा कब्जा काफी समय से चला आ रहा था. पूरी सुनवाई किए बिना नगर निगम को किसी निर्माण कार्य को इस तरह गिराने का अधिकार नहीं है. तब यथास्थिति यानी अदालत से ‘स्टे’ का आदेश मिल गया था. सभी ब्लाक वालों के जिम्मे मात्र 75 रुपए का खर्च आया था.

तब यह 75 रुपए वाला ‘स्टे आर्डर’ का फार्मूला यानी युक्ति अन्य चालू और भ्रष्ट वकीलों ने भी पकड़ ली थी. तब एक मिलीभगत के अंतर्गत थोड़ेथोड़े समय के अंतर पर नगर निगम कभी किसी ब्लाक में, कभी किसी कालोनी में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाता. निवासी इकट्ठे हो, 75 रुपए वाला ‘स्टे आर्डर’ ले लेते थे. वकीलों को एकमुश्त भारी फीस मिल जाती. ‘स्टे आर्डर’ बरकरार रखने के साथ लंबी तारीख पड़ फाइल मुकदमों में लग जाती.

मजिस्ट्रेट भी एक रूटीन के तौर पर ऐसे मुकदमे निबटाता था. सरकारी पक्ष की ओर से कोई दबाव नहीं पड़ा था, इसलिए लंबे अरसे तक पैंडिंग लिस्ट में रह कर ऐसे मुकदमे या तो खारिज हो जाते या फिर कोई नया जोशीला विधायक या नगर पार्षद चुनावी वादों में ये मुकदमे खत्म करवा देता था.

इस बार का अतिक्रमण हटाओ अभियान जरा जोशीले उच्चाधिकारी द्वारा चलाया गया था. रिश्वत या सिफारिश की गुंजाइश नहीं थी. अतिक्रमण हटाना निश्चित था.

दीनदयालजी सूर्य परायणी ब्राह्मण थे. उन का भूतल पर 2 कमरों का एक प्लाट था. पूजापाठ करते थे. दूसरों की देखादेखी उन्होंने सरकारी जमीन पर अच्छाखासा कब्जा कर मंदिर बना डाला था और मंदिर में सर्वमंगलकारी हनुमान सहित दूसरे देवीदेवताओं की मूर्तियां स्थापित कर दीं थीं. पौ फटते ही श्रद्धालु भक्तों का जो तांता लगता उस से मंदिर में चढ़ावे के रूप में अच्छी आमदनी हो जाती थी.

मगर अब अतिक्रमण अभियान में यह मंदिर भी आ गया था. 75 रुपए वाला ‘स्टे आर्डर’ अब नहीं मिल सकता था. वैसे तो मंदिर का चढ़ावा हर रोज सैकड़ों में  था पर पर्वों में यह चढ़ावा हजारों में हो जाता था. मंदिर ढह जाता तो चढ़ावे की कमाई भी जाती रहती. मंदिर में आने वालों में नगर निगम के कर्मचारी भी थे. मगर सरकारी आदेश तो आखिर सरकारी आदेश ही था.

सरकारी दस्ता पहले ही आ कर पैमाइश कर गया था और लोगों को नोटिस थमा गया था. 7 दिन में अतिक्रमण हटा दें वरना बुलडोजर या जे.सी.बी. मशीन द्वारा नाजायज कब्जा ढहा दिया जाएगा.

दूसरे ब्लाक के लोगों के पास भी ऐसे नोटिस आए थे. 75 रुपए वाला जमाना अब नहीं था. तब जमीनजायदाद चंद सौ रुपए गज की थी, अब गज में नहीं प्रति वर्गफुट में कई हजार रुपए की कीमत थी.

फिर सरकारी जमीन या प्रौपर्टी सरकारी ही थी. कोई न कोई पंगा खड़ा हो सकता था. क्या करें? पंडितजी अकेले क्या कर लेते? अन्य किसी के पास अपने अवैध कब्जे को जायज ठहराने का कोई तर्क नहीं था.

लेदे कर उन्हीं के पास तर्क था कि इस मंदिर को सभी कालोनीवासियों ने अपने भगवान की पूजापाठ के लिए बनाया था, उसे न ढहाया जाए.

ब्लाक के सभी निवासी एकसाथ जमा हो पंडितजी के साथ एक नामी वकील के पास पहुंचे. ‘‘यों किसी निर्माण को नहीं हटाया जा सकता. सारी कार्यवाही पूरी करनी पड़ती है. सैकड़ों लोगों के आज और कल का सवाल है,’’ अधेड़ वकील ने रौब भरे स्वर में दलील दी.

‘‘मगर कल सुबह नगर निगम अपना बुलडोजर ले कर आ रहा है,’’ एक साहब ने कहा. ‘‘मजाल नहीं हो सकती किसी की. मेरे होते हुए आप को छूने की भी,’’ वकील ने तैश से कहा. ‘‘अब हम क्या करें?’’ सभी ने समवेत स्वर में कहा.

‘‘सब को ‘स्टे आर्डर’ लेना होगा.’’ ‘‘क्या खर्च पड़ेगा?’’ ‘‘हर एक के लिए 5 हजार रुपए, जमा खर्च अलग.’’ ‘‘मगर अब तक तो 75 रुपए था. एक  ‘स्टे आर्डर’ का.’’ ‘‘जनाब, वह 10-20 साल पहले का रेट है. तब जमीन 100 रुपए गज थी. अब प्रति वर्गगज नहीं प्रति वर्गफुट के हिसाब से भी जगह नहीं मिलती,’’ वकील साहब की दलील में दम था.

‘‘हमारे इन निर्माण कार्यों को कोई छुएगा तो नहीं?’’ एक साहब ने शंका भरे स्वर में पूछा. ‘‘आप तसल्ली रखें. मैं जिम्मेदारी लेता हूं,’’ वकील ने दृढ़ स्वर में कहा. थोड़ी देर में 5 हजार रुपए जमा व 1 हजार रुपए खर्च प्रति नाजायज कब्जे के हिसाब से 60 हजार रुपए वकील साहब को 10 वकालतनामों के साथ मिल गए थे. उस में से नगर निगम के कर्मचारियों को उन का तय हिस्सा पहुंच गया. 5 हजार रुपए वाला आम ‘स्टे आर्डर’ अब 50 हजारी हो गया था.

पंडितजी के मंदिर में आज ज्यादा भक्त आए थे. नगर निगम का कोई कर्मचारी अतिक्रमण हटाने जो नहीं आया था. ब्लाक के सभी लोग और मंदिर के पुजारी निश्चिंत थे. कभी 75 रुपए वाला ‘स्टे आर्डर’ अब 5 हजारी होने पर भी उन्हें अखर नहीं रहा था.

इस घटना के अगले दिन 10 बजतेबजते एक जे.सी.बी. मशीन और कुदाली, फावड़े लिए अनेक मजदूर और नगर निगम के कर्मचारी आ पहुंचे. कालोनी में जो लोग वकील के पास गए थे वे सभी उन को देख कर सकपका गए.

‘‘हम ने वकील से बात की थी. उन्होंने कहा था कि हम को ‘स्टे आर्डर’ मिल चुका है,’’ मंदिर और अन्य अवैध निर्माण को गिराने आए नगर निगम के कर्मचारियों से पंडितजी ने कहा.

‘‘दिखाइए, कहां है आप का ‘स्टे आर्डर’?’’ सहायक अभियंता ने स्थिर स्वर में कहा. ‘‘हमारे वकील साहब के पास है.’’ ‘‘ले कर आइए.’’‘‘थोड़ा समय लग सकता है.’’ ‘‘कोई बात नहीं, हम इंतजार कर सकते हैं. अभी 10 बजे हैं. आप दोपहर 3-4 बजे तक हमें ‘स्टे आर्डर’ दिखा दें,’’ सहायक अभियंता ने गंभीरता से कहा.

सभी ब्लाक निवासी समेत पंडितजी वकील साहब की कोठी में स्थित दफ्तर में पहुंचे. ‘‘आप कहते हैं कि ‘स्टे आर्डर’ मिल चुका है जबकि नगर निगम का अतिक्रमण दस्ता हमारे सिर पर आ चुका है,’’ पंडितजी ने तनिक गुस्से में कहा. ‘‘आप धैर्य रखें. मैं अपने मुंशी और सहायक वकील से पूछता हूं,’’ पुराने घाघ वकील ने कुटिलता से मुसकराते हुए कहा.

थोड़ी देर तक वकील साहब फोन पर अपने मुंशी और सहायक वकील से बात करते रहे. फिर उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ऐसा है, कोर्ट में कल काम थोड़ा ज्यादा था. जज साहब सुनवाई नहीं कर पाए. अब कल सुनवाई होगी और कल शाम को ‘स्टे आर्डर’ मिल जाएगा.’’

इस पर सब के चेहरे लटक गए. फिर शर्माजी बोले, ‘‘नगर निगम के कर्मचारी सिर पर खड़े हैं.’’ ‘‘उन से कह दो, कल शाम तक मोहलत दे दें.’’3 बजे सहायक अभियंता और दलबल फिर आ पहुंचा. ‘‘हमारे वकील साहब ने कहा है कि ‘स्टे आर्डर’ की कापी कल मिलेगी,’’ शर्माजी के स्वर में घबराहट थी.

सहायक अभियंता मुसकराया और बोला, ‘‘कल किस समय तक मिल जाएगा?’’ ‘‘शाम तक मिल जाएगा.’’ ‘‘ठीक है हम परसों सुबह आएंगे,’’ दलबल वापस चला गया. सभी ब्लाक निवासी सहायक अभियंता के व्यवहार से हैरान थे. यों कोई सरकारी काम में मोहलत नहीं देता था.

अगले दिन सुबह पंडितजी और ब्लाक के दूसरे निवासी कोर्ट परिसर में जा पहुंचे. उन में से कई पहली बार अदालत आए थे. अब तक 75 रुपए वाला ‘स्टे आर्डर’ बिन अदालत आए मिल जाता था. मगर अब 5 हजारी भी नहीं मिला था.

अदालत परिसर में वकील साहब अपने बैठने के स्थान पर पसरे थे. न्यायालय भी कई दर्जन थे. इमारत भी कई मंजिला थी. दोपहर बाद पेशी थी. सभी को उम्मीद थी कि आज पहली पेशी पर ‘स्टे आर्डर’ हो जाएगा. बाद की बाद में देखी जाएगी.

न्यायाधीश अंदर चैंबर में आराम फरमा रही थीं. रीडर फाइलें अंदर ले जाता था और संक्षिप्त आदेश ले आता. तारीख दे आसामी से 100-150 पाने का इशारा करता. अब 10-20 रुपए में कुछ नहीं होता था.

शर्माजी और ब्लाक निवासियों के मुकदमों की सुनवाई आरंभ हुई. मैडम कुरसी पर आ विराजीं. ‘‘आप का सरकारी जमीन पर कब्जा करने का आधार क्या है?’’ ‘‘जी, उस पर एक मंदिर बना हुआ है. पूजापाठ तो सब का मौलिक अधिकार है. उस को गिराना नाजायज है.’’

‘‘यह तो कोई कारण नहीं है. पूजापाठ निजी मामला है. घर में भी हो सकता है. अन्य सभी के पास क्या कारण हैं?’’ ‘‘जी, खुली जगह से अवांछित तत्त्व प्रवेश कर जाते हैं,’’ दूसरे ने कहा, ‘‘इसलिए, सुरक्षा के लिए किसी ने दरवाजा, बाड़ या जंगला लगा रखा है.’’

‘‘यह कोई कारण नहीं है. अपने घर या संपत्ति पर कोई बाड़, दरवाजा या जंगला लगाओ, सरकारी संपत्ति पर कब्जा किस बात का है,’’ मैडम के इस सवाल पर पुराना घाघ वकील भी सकपका गया. उस को कोई जवाब न सूझा. मुकदमा खारिज हो गया. 75 रुपए वाले ‘स्टे आर्डर’ के समान 5 हजारी ‘स्टे आर्डर’ नहीं मिल पाया. पहली ही पेशी में मुकदमा खारिज होने से सब हैरान थे.

नियत समय पर अतिक्रमण हटाओ दस्ता आ पहुंचा. ‘‘यह हनुमान मंदिर है,’’ पंडितजी की आमदनी का साधन जा रहा था. उन का बौखलाना स्वाभाविक था.‘‘कोई बात नहीं है,’’ सहायक अभियंता ने कहा, ‘‘हम भुगत लेंगे, आप मूर्तियां और अन्य सामान हटा लें.’’

चंद मिनटों में जे.सी.बी. मशीन ने अपना काम कर दिया. सारा ब्लाक फिर से साफसुथरा और खुला हो गया. ब्लाक के रहने वालों को यह समझ में नहीं आया था कि रिश्वत और पहुंच का सिलसिला कैसे असफल हो गया और महाबली हनुमान भी उन की रक्षा को आगे क्यों नहीं आए? अब उस जगह पर नगर निगम वालों की सुंदर पार्क और सामुदायिक केंद्र बनाने की योजना है.

काला साया : कब तक हिन्दू-मुसलमान के नाम पर लड़ते रहेंगे

मेरा बचपन और युवावस्था का आरंभ लखनऊ में बीता, नवाबों के शहर की गंगाजमुनी तहजीब में. स्कूलकालेज में बिताए चुलबुले दिन, प्यारी सहेलियां अलका, मुकुल, लता, यास्मीन और तबस्सुम. हम सब मिल कर खूब मस्ती करते. साथसाथ हंसना, खेलना, खानापीना. कोई भेदभाव नहीं, हिंदूमुसलिम का भेदभाव कभी जाना ही नहीं.

18 वर्ष की होते ही मेरी शादी हो गई. मेरे पति टाटा नगर में इंजीनियर थे. सो, उन के साथ जमशेदपुर आ गई. जमशेदपुर साफसुथरा, हराभरा, चमकती सड़कों, कारखानों, मजदूरों, हर धर्म हर भाषा के लोगों और कालोनियों का शहर है. 24 घंटे बिजली, साफ पानी और यहां का साफ वातावरण मुझे भा गया. यहां का रहनसहन लखनऊ से भिन्न था. लोगों में फैशन की चमक नहीं थी, सादगी थी. कुछकुछ बंगाली संस्कृति की झलक थी.

एक बात बड़ी अजीब लगी यहां, मुसलिम और हिंदू बस्तियां अलगअलग थीं. इस का कारण था 1964 का दंगा, जिस के बाद डर के कारण मुसलमानों ने अपनी बस्तियां बनाईं. आजाद नगर एक बड़ी मुसलिम बस्ती है. हिंदू बस्तियां बनीं. शहर टाटा कंपनी के लिए बसाया गया. यहां काम करने वालों के लिए कालोनियां बनाई गई हैं. परंतु मुसलिम दंगों के डर से कालोनियों में कम रहते हैं.

सिनियोरिटी पौइंट्स पर मकान मिलता है. मुसलिम, कुछ इलाके हैं जहां रहना चाहते हैं. सो, वहां मकान के पौइंट्स बहुत हाई हो जाते हैं. अधिकतर लोगों को बस्तियों में ही रहना पड़ता है. आजाद बस्ती मुझे पसंद नहीं आई, पतली गलियां, खुली नालियां, कूड़े के ढेर, मच्छर, कुछ गांव का सा माहौल, कुछ खपरैल के और कुछ पक्की छत वाले घर. हम लोगों ने शहर के साक्ची इलाके में किराए का घर ले लिया. यह अच्छी कालोनी थी. अड़ोसपड़ोस अच्छा था. दाएं दक्षिण भारतीय, बांए पंजाबी, सामने बंगाली यानी पूरा भारत था.

सभी से दोस्ती हो गई. पंजाबी परिवार से कुछ ज्यादा. उन के घर में चाचाचाची और उन के बेटीबेटे रहते थे. शाम को हम लोग लौन में उन के लड़केलड़की और महल्ले के लोगों के साथ बैडमिंटन खेलते. मेरे पति के औफिस के दोस्तों के घर मेरा जानाआना रहता. होलीदीवाली और ईद साथ ही मानते. बहुत अच्छा समय बीतता.

डिलीवरी के समय मैं लखनऊ गई. मेरे यहां जुड़वां बेटियां हुईं. लखनऊ में सब ने कहा कि एक बच्ची यहीं रहने दो. 2 बच्चे कैसे पालोगी? सब जानते थे कि मैं घरगृहस्थी के मामले में कमजोर हूं. पर मैं दोनों को ले कर जमशेदपुर आ गई. यहां एक 70 साल की बूढ़ी आया मिल गईं जिन्हें हम बूआ कहते थे. वे और मैं बच्चे संभालते और काम वाली घर का काम कर देती.

बच्चियां अब बैठने लगी थीं. यह बात 1979 की है. अचानक शहर का माहौल बिगड़ने लगा. रामनवमी आने वाली थी. कट्टरपंथियों ने सभा की, भड़काऊ भाषण दिए. उसी के बाद से शहर में अनकही सी घुटन शुरू हो गई. हर वर्ष जिस रास्ते से रामनवमी का जुलूस निकलता था उस से न निकल कर एक मसजिद के सामने से जुलूस निकालने की मांग की गई. प्रशासन राजी नहीं था. सद्भावना कमेटियां बनीं. कई मुसलिम आगे आए कि जिस रास्ते से चाहें, ले जाएं ताकि शांति बनी रहे. एक थे प्रोफैसर जकी अनवर. वे धरने पर बैठ गए कि जुलूस मसजिद के सामने से ले जाएं, हम साथ हैं. प्रशासन और हिंदुओं के बीच खींचातानी चलती रही. उस में दोनों ओर से भड़काने वाले प्रचार शुरू हो गए और दंगा होने की आशंका बढ़ गई.

हमारी पड़ोस वाली चाचीजी ने हम लोगों को समझाया, समय बड़ा खराब चल रहा है, जाने क्या हो? तुम लोग बच्चों के साथ आजाद नगर चले जाओ.

उन की बात सुन कर लगा, सच में कुछ गड़बड़ है. वे अनुभवी थीं, 1964 का दंगा देखे हुए थीं. अकसर दंगे के किस्से सुनाती थीं. हर नुक्कड़ पर रामनवमी के जुलूस को ले कर चर्चा होने लगी. शहर में तनाव बहुत बढ़ गया. दोनों ओर के दागी व संदिग्ध लोग पकड़े जाने लगे. सुबह होतेहोते कालोनी में जो 2-4 मुसलिम थे, सब अपने मित्रोंरिश्तेदारों के घर सुरक्षित जगह जा चुके थे. हम कहां जाएं? हमारा तो कोई रिश्तेदार नहीं, न किसी बस्ती में कोई दोस्त.

लखनऊ के एक फर्नीचर वाले हमारे परिचित थे. एक बार उन के घर भी गए थे हम लोग. उन्हीं के घर चले गए. वहां हमारे जैसे कई परिवार थे. मुझे अब तक डर नहीं लगा था क्योंकि मैं ने कभी दंगा देखा नहीं था. सो, कल्पना भी नहीं कर पाई. यहां आ कर डर लगने लगा. सहमेसहमे चेहरे, रोते बच्चे. औरतेंबच्चे अंदर, मर्द बाहर.

बड़े आंगन वाला मकान, कई कमरे जिन में सब भाई रहते थे. उन सब भाइयों के रिश्तेदार और दोस्त यहां शरणार्थी थे. केवल इसी घर में नहीं, हर घर में यही हाल था. हम लोग जल्दी में कोई सामान नहीं लाए. बस, बच्चों के नैपी, कपड़े, टौवेल आदि एक झबिया में रख लिए थे. बच्चों के दूध बनाने का सामान रख लिया था. पर दूध का पाउडर खत्म हो गया था, यह ध्यान नहीं दिया. सोचा था, रामनवमी का झंडा निकल जाएगा तो शाम तक घर आ ही जाएंगे.

जिस मसजिद से जुलूस निकलना था, वह पास ही थी. सड़क के दूसरी ओर झुंड के झुंड सड़क तक जाते, हालात का जायजा लेने. बस्ती के अंदर आने वाले सभी रास्तों पर लोगों की भीड़. सड़क पर पुलिस का पहरा था.

झोपड़ा मसजिद के सामने से जुलूस निकल गया, यह खबर आई तो जान में जान आई. तभी खबर आई कि जुलूस मेन रोड पर मसजिद के सामने रुक गया है और पकड़े गए लोगों को छोड़ने की मांग की जा रही है. तभी हल्ला हुआ कि जुलूस पर किसी ने पत्थर फेंका है और दोनों ओर से मारपीट, पत्थर, गोली चल पड़ीं, पुलिस ने गोली चलाई.

लोग घायल हो कर आने लगे. डाक्टर के यहां जगह भर गई तो लोगों के बरामदों में मरहमपट्टी होने लगी.

हरहर महादेव और अल्लाहो अकबर के नारे गूंजने लगे. डर के मारे मेरे पैर कांपने लगे. मैं दोनों बच्चियों को अपने सीने से चिपकाए रोने लगी. लगता था भीड़ घर में घुस आएगी, बच्चे छीन लेगी, मेरे साथ क्या करेगी? मेरे पति को मार डालेगी, जाने क्याक्या बुरेबुरे खयाल आने लगे.

पुलिस फायरिंग और धरपकड़ पर जुलूस वापस हुआ. पूरे शहर में दंगे भड़क गए. जो लोग छिटपुट थे, वे मारे गए. घर लूटे और जलाए गए. लोगों को कैंपों में ले जाया गया. करीब के सिटी कालेज में कैंप लगा. जिन को निकाला जा सका, निकाल लिया गया, वरना मारे गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 108 लोग मारे गए. शायद इस से अधिक मरे हों. दुकाने लूटी गईं.

जकी अनवर, जो धरने पर बैठे थे कि जुलूस जिस रास्ते से चाहे जाए, हम साथ हैं, वे भी मारे गए. उन के घर में उन्हें काट कर उन के घर के कुएं में डाल दिया गया. एक एंबुलैंस में औरतोंबच्चों को भर कर कैंप ले जाया जा रहा था, रास्ते में हिंदू बस्ती में रोक कर जला दिया गया, कोई नहीं बचा. भारी त्रासदी. घरों में घुस कर मारा गया. धर्म के नाम पर लोगों को धर्म के रखवाले ऐसा भड़काते हैं कि अल्लाहभगवान का नाम ले कर एकदूसरे को मार देते हैं. इंसानियत कहां चली जाती है? जिसे देखा नहीं, उस के नाम पर जीतेजागते लोगों को मारा जाने लगता है.

जिन बच्चों ने वह दंगा देखा, उन के विकास में एक काला साया सदा उन के साथ रहेगा. कैसे किसी पर भरोसा करेंगे? जिन्होंने भुगता, वे कैसे भुलाएंगे? फिर और अलगअलग बस्तियां बनेंगी, खाई और गहरी होगी.

कर्फ्यू लग गया, घरघर तलाशी ली जाने लगी और जवान लड़के पकड़े जाने लगे. घरों में यदि कोयला तोड़ने का चापड़ भी मिला तो वह हथियार समझा गया.

दूसरे दिन यह हुआ कि यह घर, जिस में हम लोग थे, बहुत आगे था. अगर भीड़ आएगी तो पहले यहीं हमला हो सकता है. इसलिए औरतों और बच्चों को बस्ती में अंदर के घरों में भेज दिया जाए. हम लोग भी उस घरवालों के साथ उन के मिलने वालों के घर शरण लेने चल पड़े. वहां काफी लोग पहले से ही थे. बड़ा सा आंगन था. गाय, बकरी, मुरगी कुआं पूरा गांव का माहौल था. कमरे तो पहले ही भर गए थे, हम लोग बरामदे में चटाई डाल कर बैठ गए. पति हमें छोड़ कर जाने लगे तो मैं रो पड़ी. वे समझाने लगे, बस रात की बात है, कल तक सब ठीक हो जाएगा, फिर चलेंगे.

उस जमाने में मोबाइल तो था नहीं. उस घर में फोन भी नहीं था. अब हम दोनों अलग थे. रातभर हरहर महादेव और अल्लाहो अकबर के नारे लगते रहे. मैं डर के मारे कांपती रही. बच्चों का दूध समाप्त हो गया था. घर वालों ने एकएक रोटी सब को दी. बच्चों को पानी में डुबो कर रोटी खिलाई. इतने लोग कई दिनों से थे, सो राशन भी समाप्त हो रहा था. दंगे में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है, जिसे देखो नमाज पढ़ रहा या तस्बीह पढ़ रहा. मैं डर के मारे सब भूल गई, क्या पढ़ूं? अपने को इतना असहाय कभी नहीं पाया था. मन करता कैसे इस शहर से भाग कर लखनऊ चली जाऊं.

सुबह हुई, सारा दिन बीत गया, मेरे पति नहीं आए. मेरा रोरो कर बुरा हाल था. शहर से लुटेपिटे लोग आजाद नगर आने लगे और जो आता, दुखभरी कहानी सुनाता.

खाना बनना बंद हो गया. राशन खत्म हो गया. शहर से लाने का सवाल नहीं था. बस्ती में डिमांड इतनी थी कि राशन खत्म हो गया. कर्फ्यू लगा रहा, नारे लगते रहे. फिर दिन का कर्फ्यू कुछ देर के लिए खुलने लगा.

2 दिन हो गए, मेरे पति का कोई पता नहीं था. मैं ने रोरो कर अपना बुरा हाल कर लिया था. अस्पताल और थाने में कोई खबर नहीं थी. औरतें मुझे तसल्ली देने लगीं, जाने दो, अगर नहीं आए तो शहीद हुए, जन्नत में जाएंगे. यहां कितनों के शौहरबेटे मारे गए हैं, सब को देखो. मेरे आंसू सूख गए थे, निढाल हो गई थी.

क्या होगा मेरा? मेरे बच्चों का? कैसे लखनऊ जाऊंगी? लखनऊ से संपर्क नहीं हो पा रहा था. आज कर्फ्यू में 2 घंटे की ढील दी गई. मेरे पति आ गए. उन को देख कर इतनी खुशी, इतना हौसला आ गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं. ये हमारे घर गए थे कुछ सामान लाने, स्थिति देखने, पर कर्फ्यू में फंस गए. चाची ने छिपा कर रखा था. फिर मौका देख कर जब कर्फ्यू हटा तब आ पाए.

एक लड़का 15 साल का होगा, कर्फ्यू खुलने पर अपनी मां से जिद कर के अपना घर देखने, नहाने चला गया, फिर नहीं आया. जिन पड़ोसियों को वह चाचा, अंकल कहता था, उन्होंने दौड़ादौड़ा कर मार डाला. लाश भी नहीं मिली. धर्म ने इतना अंधा बना दिया?

एक थे अहमद साहब. हमारे पीछे वाली लाइन में रहते थे. उन के बीवीबच्चे सुरक्षित बस्ती में चले गए. वे जिद कर के रह गए कि हमारे पड़ोसी बहुत अच्छे हैं, कुछ नहीं होगा. भीड़ ने मार दिया. पड़ोसी चाह कर भी कुछ न कर सके. हर दिन ऐसे ही समाचार आते. कुछ अफवाहें भी माहौल गरम रखतीं.

भारी जानमाल के नुकसान के बाद रैपिड ऐक्शन फोर्स आई और फ्लैगमार्च किया. लोगों में आत्मविश्वास आने लगा. कैंपों में सुविधाएं पहुंचाई गईं. पर हर जगह हाल बहुत बुरा था. टौयलेट एक, और लोग सौ. उलटी आ जाती थी. खाने की कमी. बच्चों को पानी में बिसकुट डुबो कर खिलाती. अगर किसी के पास कुछ खाने को आ जाता तो वे आसपास बैठी महिलाओं को देतीं. सब एकदूसरे के दुख में साझी थे. न कोई छोटा न बड़ा. कैंपों से लोग अपने गांवशहर जाने लगे. ट्रेनों में भीड़ बहुत हो गई. माहौल धीरेधीरे शांत होने लगा.

पता चला, साक्ची में, जिस घर में हम लोग रहते थे, वह भी जला दिया गया. मेरे पति देख कर आ गए. हम लोग बच गए. अगर चाची न होतीं तो हम लोग भी न बचते. आग शांत होने लगी, कब्रें सूखने लगीं. घर जल गए, लोग मर गए. किसी ने बेटा खोया, किसी ने बाप, कोई परिवार समाप्त हो गया.

जिन की दुकानें जलीं, रोजीरोटी गई. नौकरी वाले डर के मारे ड्यूटी नहीं जाते. रात की ड्यूटी वाले तो महीनों नहीं गए. उन का वेतन कटता. आर्थिक तंगी. बच्चों की किताबें जल गईं. बिना किताबों के बोर्ड परीक्षा दी. पढ़ाई का नुकसान. रोज कमानेखाने वालों की दिहाड़ी का नुकसान. सब से बड़ा नुकसान इंसानियत का हुआ. हिंदूमुसलिम दोनों का एकदूसरे से भरोसा उठ गया. आजाद नगर जैसी बस्तियां और बन गईं.

मेरी सुखद यादों पर एक काला साया पड़ गया. हम लोग किसी तरह लखनऊ आ गए. मगर कब तक लखनऊ में रहते, रोजीरोटी के कारण फिर वापस जमशेदपुर जाना पड़ा. इस बार शहर में नहीं, आजाद नगर बस्ती में किराए पर रहने लगे. गंदगी, मच्छर, लाइट का जाना, पानी का न आना, कुएं से पानी खींचना, सब के साथ ऐडजस्ट करना पड़ा. काश, यह धर्म न होता, सब इंसान होते, न हिंदू न मुसलमान.

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