वही ओपन रैस्टोरैंट, मध्यम रोशनी से आभासित गोल मेज व कुरसियां.
‘‘क्या पियोगी?’’ वैभवी की आंखों में प्यार से झांकते विनोद ने पूछा.
‘‘प्लीज कम टू द पौइंट,’’ वैभवी ने गंभीर स्वर में कहा.
‘‘अरे भई, ठंडागरम तो पी लो. जब कोई समस्या होती है तब समाधान भी होता है.’’
‘‘मेरी बीमारी लाइलाज है. साधारण समस्या नहीं है.’’
‘‘ठीक है, फर्ज करो, यही ट्रबल मु झे हो जाता तो?’’
‘‘वह सब बाद की बात है. आप क्या कहना चाहते हैं?’’
‘‘कैंसर आजकल के जमाने में लाइलाज नहीं है. धैर्य रख कर इलाज करवाने से कैंसर ठीक हो जाता है,’’ विनोद ने गंभीर स्वर में कहा.
‘‘विनोद, बी प्रैक्टिकल. आप सर्वगुण संपन्न हैं. आप को अनेक रिश्ते मिल जाएंगे.’’
‘‘कल का क्या भरोसा है? किसी और लड़की से शादी करने पर भविष्य में वह भी किसी गंभीर बीमारी की शिकार हो सकती है.’’
‘‘वह सब बाद की बात है.’’
‘‘कैंसर के लक्षण अभी न उभर कर शादी के बाद उभरते तो?’’
इस सवाल पर वैभवी खामोश रही. विनोद उठ कर उस के समीप आया, ‘‘वैभ, प्लीज मेरे पास आओ,’’ उस के कंधों पर हाथ रखते उस ने कहा. स्नेहस्निग्ध, प्रेमभरे स्पर्श से वैभवी की आंखें भर आईं. वह उठ कर अपने मंगेतर के सीने से लग गई. धीमेधीमे सुबकने लगी.
विनोद ने वैभवी को बाहुपाश में भर लिया. वैभवी की आंखों से गिरते आसुंओं से उस की शर्ट भीग गई. भावनाओं का ज्वार मंद पड़ा.
वैभवी ने अपनी पसंद के डिनर का और्डर दिया. एक ही प्लेट में दोनों ने एकदूसरे को खिलाया. वैभवी के साथ विनोद को आया देख वैभवी की मां चौंकी. दोनों के चेहरे से वे सम झ गईं कि रिश्ता टूटने के बजाय और ज्यादा पक्का हो गया लगता है.
अगले दिन विनोद और वैभवी ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली. विनोद वैभवी को नगर के बड़े मल्टीस्पैशलिटी अस्पताल में ले गया.
बहुत बड़ा अस्पताल था. सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त था. पूरे देश में इस की कई शाखाएं थीं. इस का संचालन एक बड़ा व्यापारी घराना करता था. चिकित्सा व्यवस्था भी अब बड़े कौर्पाेरेट घराने अपना चुके थे.
एक अस्पताल में मैडिक्लेम के आधार पर भी चिकित्सा प्रदान की जाती थी.
फीस और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद चिकित्सा दल ने सिलसिलेवार वैभवी के कई टैस्ट किए.
‘‘देखिए सर, कैंसर की कई किस्में होती हैं. पहले जमाने में अधिकांश कैंसर लाइलाज थे, मगर मैडिकल सांइस में तरक्की होने से अब अधिकांश कैंसर का इलाज संभव है,’’ वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ डा अभिनव बनर्जी ने स्थिर स्वर में कहा.
वैभवी और विनोद को आशा का संचार महसूस हुआ.
‘‘बाई द वे, ये आप की क्या हैं?’’ डा. साहब ने पूछा.
‘‘जी, मेरी मंगेतर हैं. हमारी अगले सप्ताह शादी है. बाईचांस वक्षस्थल में तीव्र दर्द उठने से यह स्थिति सामने आ गई,’’ विनोद ने डा. साहब का आशय सम झते कहा.
‘‘मंगेतर…और अगले सप्ताह शादी,’’ डा. साहब ने गौर से सामने बैठे जोड़े की तरफ देखा. दोनों पतिपत्नी होते तो स्थिति सहज थी. मगर मंगेतर…
विनोद और वैभवी डाक्टर साहब के चेहरे के भाव सम झ कर हलके से मुसकराए. डा. साहब के चेहरे पर भी मृदु मुसकान उभर आई. उन्होंने प्रशनात्मक नजरों से विनोद बतरा की तरफ देखा.
विनोद सुंदर, सजीला नौजवान था. सर्वगुण संपन्न था. आम युवक भावी पत्नी के कैंसरयुक्त होने का पता चलने पर तत्काल रिश्ता तोड़ देता.
‘‘मिस्टर, आई विश यू औल द बैस्ट.’’
‘‘आप की भावी पत्नी का इलाज हो जाएगा. थोड़ा धैर्य और हौसला रखना पडे़गा,’’ डा. साहब ने तसल्लीभरे स्वर में कहा.
‘‘कितना खर्चा पड़ सकता है?’’ वैभवी ने पूछा.
‘‘खर्च तो काफी होगा मगर आप पूर्णतया रोगमुक्त हो जाएंगी.’’
‘‘अंदाजन?’’
‘‘देखिए, नई तकनीक की लेजर एवं बर्न सर्जरी द्वारा पहले कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करना पड़ेगा. फिर दोबारा कैंसर की कोशिकाएं न पनपें, इस के लिए रेडिएशन तकनीक द्वारा तमाम वक्षस्थल की विशेष सर्जरी करनी पड़गी. फिर आप का एक वक्ष निकालना पड़ेगा.’’
‘‘एक वक्ष?’’
‘‘जी हां, कैंसर आप के बाएं वक्ष में है. दूसरा वक्ष निरापद है. निकाले गए वक्ष के स्थान पर स्पैशल पौलिमर और प्लास्टिक सर्जरी द्वारा कृत्रिम वक्ष का निर्माण कर स्थायी तौर पर लगा दिया जाएगा. कृत्रिम वक्ष बिलकुल कुदरती महसूस होगा. बस, आप स्तनपान नहीं करवा सकेंगी. आप का दायां वक्ष पूरी तरह सक्षम है. उस से आप भावी संतान को सहजता से स्तनपान करवा सकेंगी.’’
‘‘अस्पताल में कितना समय लग सकता है?’’
‘‘औपरेशन में 4 से 6 घंटे और रिकवर होने में लगभग 3-4 सप्ताह. रेडिएशन थेरैपी से आप के शरीर के बाल अस्थायी तौर पर झड़ सकते हैं. दोबारा उगने में कोई दिक्कत नहीं होगी.’’
‘‘और सारा खर्च?’’
‘‘लगभग 20 लाख रुपए.’’
‘‘जी,’’ वैभवी का चेहरा बु झ गया.
‘‘डियर, हैव पेशेंस,’’ विनोद ने आश्वासन देते वैभवी के कंधे पर हाथ रखा.
‘‘डा. साहब, मैडिक्लेम इंश्योरैंस पौलिसी के आधार पर भी इस इलाज का खर्चा क्लेम हो सकता है?’’ विनोद ने पूछा.
‘‘जी हां, हमारे यहां यह सुविधा भी है. क्या आप के पास मैडिक्लेम बीमा पौलिसी है?’’
‘‘आजकल मल्टीपरपज बीमा पौलिसी का जमाना है. मेरे पास और इन के पास मल्टीपरपज बीमा पौलिसी है. हम दोनों का 30 साल का 50-50 लाख रुपए का बीमा है.’’
‘‘फिर कोई दिक्कत नहीं है,’’ डा. साहब ने हर्षभरे स्वर में कहा. तभी कमरे का दरवाजा खोल कर एक लेडी डाक्टर दाखिल हुईं. उन के गौरवर्ण चेहरे और ललाट पर गहन बुद्धिमता की छाप थी. उन्होंने हलके नीले रंग की साड़ी और मैच करता ब्लाउज पहन रखा था. उन के ऊपर डाक्टरों वाला लंबा सफेद कोट था और दोनों कंधों पर झूलता स्टैथस्कोप.
‘‘मीट माई वाइफ डा. आभा बनर्जी,’’ लेडी डाक्टर के समीप आ कर साथ रखी खाली कुरसी पर बैठने के बाद डा. साहब ने परिचय कराते कहा, ‘‘ ये हैं मिस्टर विनोद ऐंड मिस वैभवी.’’ और आभा ने बारीबारी से हाथ मिलाया.
‘‘शी इज औल्सो मेलाइन सारकोमा ट्रीटमैंट सर्जरी स्पैशलिस्ट ऐंड मिडीलिशन थेरैपी विशेषज्ञ,’’ डा. साहब ने कहा, फिर अपनी पत्नी से बंगाली भाषा में कुछ कहा.
डा. आभा के चेहरे पर मृदु मुसकान उभरी. उन्होंने विनोद की तरफ प्रशंसात्मक नजरों से देखते कहा, ‘‘विनोद, आई ऐप्रिशिएट यौर जनरस ऐंड काइंड स्पिरिट. नेचर विल शौवर औल ब्लैसिंग्स औन बोथ औफ यू.’’
विनोद बतरा ने मूक अभिवादन की मुद्रा में सिर हिलाया.
डा. साहब ने अपने लैटरहैड पर कुछ दवाएं लिखीं और बताया, ‘‘हर मरीज को औपरेशन से पहले शरीर को औपरेशन के लिए तैयार करने की बाबत कुछ दिन जरूरी दवाएं लेनी पड़ती हैं.’’
डा. दंपती ने स्नेह से भावी कपल की तरफ देखा और गर्मजोशी से हाथ मिलाया.
विवाह पूरे धूमधाम से हुआ. दोनों हनीमून के लिए चले गए.
दोनों ने एक महीने की छुट्टी ले ली. डाक्टर ने वैभवी का औपरेशन दूसरी शाखा के अस्पताल में किया.
औपरेशन सफल रहा. काटे गए वक्ष की जगह नया कृत्रिम वक्ष भी लग गया. बीमा कंपनी ने सहृदयता दिखाते सारे खर्च का भुगतान किया.
विनोद के मातापिता अपने सुपुत्रकी विशाल सहृदता पर अभिभूत थे. वहीं, वैभवी के मातापिता भी ऐसा दामाद पा कर हर्षमग्न थे.
सालभर बाद वैभवी ने चांद सी सुंदर बच्ची को जन्म दिया, जो अपनी माता के समान सुंदर थी और स्वस्थ भी.