शादी के बाद घर बना जेल खाना

शादी के बाद अगर पत्नी को घर में घुटन होने लगे और पति को एहसास न हो या कुछ न करे तो पत्नी के पास सिवाए बिमार पडऩे के कोई छुटकारा का उपाय नहीं रहता. जिन घरों में पतिपत्नी के प्रति बेहद बेरुखी अपनाता है वहां औरतें तनाव में रहती हैं, उन्हें बारबार डाक्टरों के पास जाना पड़ता है, पतिपत्नी में लड़ाई होती है, और अन्य कोई विकल्प न होने की वजह से पत्नी का घर जेल लगने लगता है.

यह स्थिति खतरनाक होती है. कम संख्या में औरतें इस तरह के घुटन के लक्षण दिखाती है पर कितनों के होते होंगे इस का कुछ कहना आसान नहीं है.

इस का एक  बड़ा कारण है कि जब से परिवार छोटे हुए हैं, चाचा, ताऊ, मौसा, मामा नहीं रहने लगे हैं विवाहित औरतों को अनजानी लगती किट्टी फ्रैंड्स के अलावा किसी से संपर्क नहीं रहता. व्हाट्सएप और फेसबुक हैं पर उस पर अपना दर्द नहीं जाहिर कर सकते. किसी भी समस्या को हल करने का उपाय क्याक्या हो सकता है, यह ज्यादातर को मालूम ही नहीं होता.

अब बौडी शेङ्क्षपग के लिए जिम हैं. चेहरे की चमक के लिए पालर हैं, ढलते बदन को दोबारा जबान करने के कोसमेटिक डाक्टर हैं पर मानसिक धावों को ठीक करने के जो थोड़ेबहुत विशेषज्ञ हैं, वे अधकचरे हैं. वैसे भी वे केवल आप की बात सुन सकते हैं. कोई सलाह दे पाएं, कोई बना बनाया फार्मूला पकड़ा दें, यह संभव नहीं है.

जीवन जीने का पाठ असल में बचपन से सीखना होता है पर आज के कंपीटीशन वल्र्ड में दूसरे से बेहतर बनने के चक्कर में दूसरे से सीखने का रिवाज खत्म हो गया है. मातापिता बस घर और पैसा देने वाले एटीएम बन कर रह गए हैं. दोस्त लायक नहीं. वैसे भी वे खुद नहीं जानने कि क्या करना चाहिए क्योंकि पिछले 60-70 सालों से जीवन शिक्षा के नाम पर सिर्फ पूजापाठ करना सिखाया जा रहा है. लोग तो पर्यटन पर कम तीथ पर ज्यादा जाते हैं.

जीवन ली….. सैट की तरह होता है जिस में हजारों टुकड़े लगे होते हैं. उस की स्टेबिलिटी कहीं भी कोई खराब पति बिगाड़ सकता है. उस की जानकारी पहले से होनी जरूरी है पर उस की शिक्षा न किताबों से मिल रही है, न फिल्मों से, न पड़ोसियों से, न रिश्तेदारों से. दोस्त भी ईष्र्यालु हैं. तो कहां जाए. घुटें और सहें. इस का जो परिणाम हो रहा है वह अब दिख रहा है.

देश की उत्पादकता घट रही है. हम विभाजित हुए जा रहे हैं. अदालतों में मामले भर रहे हैं. पुलिस को बेबात के मामलों में पूनावाला और श्रद्धा जैसे मामलों में उलझाना पड़ रहा है. जो श्रद्धा के साथ हुआ किसी भी पत्नी के साथ हो सकता है हो रहा है, यह भी सब को मालूम है, पर ज्यादातर घावों को छिपाते घूमते है क्योंकि लोग, समाज, सरकार घाव पर मजाक उड़ाते है. मरहम नहीं लगाते, घाव न हो उस का पाठ नहीं पढ़ाते.

यादों के साए : क्या थी मां-बाप की ज़रुरत?

डोरबैल बजी. थके कदमों से नलिनी ने उठ कर देखा, रोज की तरह दूध वाला आया था. आज देखा तो उस का 15 साल का लड़का दूध देने आया था. एक चिंता की लकीर उस मासूम चेहरे पर झलक रही थी.

नलिनी आखिर पूछ ही बैठी, “क्या बात है, आज तुम्हारे पिताजी नही आए?”

“वो…वो…मैडम, कल रात अचानक पाप की तबीयत खराब हो गई, वे अस्पताल में भरती हैं. अब जब तक पापा ठीक नहीं हो जाते, रोज मैं ही दूध देने आऊंगा,” कह कर वह दूध देने लगा.

नलिनी के शरीर में अजीब सी उदासी की लहर दौड़ गई. वह गहरी सांस भर कर अंदर आ गई. अकेलेपन का नाग रहरह कर उसे डस रहा था. वह अपने पुराने दिनों को याद कर अकसर उदास रहती. वह चाय प्याले में ले कर और दूध गैस पर रख खिड़की के पास आ खड़ी हो गई. खिड़की से आते ठंडे झरोखों को अंतर्मन में महसूस करती नलिनी अतीत के साए में खो सी गई. उसे वो दिन याद आने लगे जब अस्पताल के चक्कर लगा कर नरेंद्र कभी थकते नहीं थे.

नलिनी की हंसी से घर हमेशा खिलखिलाहट से भरा रहता. जैसे कल ही कि बात हो नरेंद्र जैसे ही अस्पताल से घर आए, तो उन का उतरा चेहरा देख कर नलिनी घबरा गई. रिपोर्ट हाथ में पकड़े नरेंद्र ख़ामोशी से सोफे पर बैठ गए. उन की सांसों का वेग इतना तेज था, मानो वे अभीअभी मीलों दौड़ कर आ रहे हों.

नलिनी ने पानी का गिलास देते हुए पूछा, ‘क्या बात है, क्या लिखा है रिपोर्ट में, सब नौर्मल ही होगा, तुम भी न…?’

‘नहीं नलिनी, कुछ भी नौर्मल नहीं है.’

‘क्या कहा डाक्टर ने, रिपोर्ट क्या कहती हैं? बताओ न प्लीज़?’

‘थोड़ा दम तो लेने दो, कहां भागा जा रहा हूं,’ निस्तेज सी सांस छोड़ते हुए नरेंद्र ने कहा, ‘नलिनी, क्या तुम्हारा दर्द बढ़ता जा रहा है?’

नलिनी चहकती हुई बोली, ‘नहीं तो, आप यों क्यों पूछ रहे हैं?’

लिफाफे से रिपोर्ट निकाल कर टेबल पर पड़े चश्मे की धूल पोंछते हुए नरेंद्र रिपोर्ट को ध्यान से नजर डाल कर उदास आंखों से नलिनी को देखते हुए कहते हैं, ‘नलिनी, तुम्हें ब्रेस्ट कैंसर है. और जल्दी ही इसे रिमूव करवाना होगा, वरना पूरे शरीर में इस के बैक्टीरिया फैलने के चांस हैं.’

‘क्या..??’

नलिनी के चेहरे पर आई चिंता की लकीरें साफ बयां कर रही थीं कि वह अपने लिए चिंतित नहीं है. उम्र का पड़ाव उस की परीक्षा ले रहा था. नरेंद्र को हार्ट प्रौब्लम थी. पिछले साल ही औपरेशन करवाया था. उन को पेसमेकर लगवाया था. डाक्टर ने आराम करने की सलाह दी थी. ऊपर से खानपान का परहेज भी चल रहा था. बड़ी मुश्किलों से तो वह अपनेआप को योगा वौक के जरिए स्वस्थ रखना चाहती थी ताकि नरेंद्र की देखभाल अच्छे से हो सके.

विनय तो आज से 7 साल पहले ही लंदन में सैट हो गया था. व्हाट्सऐप और वीडियोकौल के जरिए क्या यहां की समस्याएं हल हो सकती हैं, उम्र के ढलते दोनों के शरीर बीमार हो गए. यह सोच कर नलिनी वहीं कुरसी पर जड़ हो गई. दोनों एकदूसरे को देख रहे थे. कुछ देर के लिए यों ही मौन ने अपना आतंक जमा लिया था.

कुछ देर में नरेंद्र ने मौन तोड़ा, ‘इस तरह घबरा कर काम नहीं चलेगा, नलिनी. हमें अपने बचे हुए लमहों को खुद ही संभालना होगा. मैं कल ही तुम्हारे औपरेशन करने की बात कर आया हूं. आज ही सारे काम निबटा लो. मैं ने ग्रेच्युटी में से पैसे भी निकाल लिए हैं. खर्चे का कुछ कहा नहीं जा सकता,’ हांफतेहांफते एक ही सांस में नरेंद्र और न जाने क्याक्या कह गए.

नलिनी को कुछ सुनाई ही नहीं दिया. वह रात होने का इंतजार करने लगी. उसे विनय से बात करनी थी.

नलिनी को उदास देख कर नरेंद्र ने वहां पड़ी एक कैसेट लगा दी. गीत बज रहा था, ‘कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन…’ अचानक उन्हें लगा कि इस गीत को सुन कर नलिनी और परेशान हो जाएगी, तभी वहां पड़ी एक नई फिल्म की कैसेट उस में डाली तो गाना बज उठा- ‘ओ मेरी छम्मक छल्लो…’ यह गाना सुनते ही नलिनी के चहरे पर स्मित मुसकान उभर आई.

विनय को जब पता चला, उस ने कहा, ‘पापा के इलाज के लिए अभी पिछले साल ही तो 20 लाख रुपए के आसपास खर्चा हो चुका है.’ और अब मां की बीमारी सुन कर वह कुछ ज्यादा न बोल सका, ‘मां, आप खर्चा बता दो, मैं भेज दूंगा.’

नरेंद्र पास बैठे उस की बातें सुन रहे थे. रिश्तों से बढ़ कर तो पैसा है. यदि पैसा नहीं होता, तो शायद आज मैं जीवित ही न होता. कुछ देर बात कर नलिनी ने राहत की सांस ली.

नलिनी का औपरेशन सक्सैस हुआ. लेकिन नरेंद्र की इस उम्र में अकेले ही भागदौड़ ज्यादा हो चुकी थी. जब रूम में शिफ्ट किया तो नलिनी से ज्यादा नरेंद्र ही थके लग रहे थे. नर्स ने आ कर कहा कि बाबूजी अब घबराने की कोई बात नहीं, आप के साथ कोई है क्या? कुछ दवाएं मंगवानी हैं, ये दवाएं इमरजैंसी हैं, प्लीज जल्दी ले आइए.

नरेंद्र की शारीरिक क्षमता भी अब दम तोड़ चुकी थी. गहरी सांस ले कर वे खांसने लगे. तभी वहां का वार्ड बौय आया. उसे नरेंद्र की हालत पर तरस आया, बोला, ‘बाबूजी, आप माताजी के पास बैठिए, मैं आप को दवाई ला कर देता हूं. मगर यहां किसी से कहिएगा मत, हमें ड्यूटी पर दूसरे काम करने की अनुमति नहीं है.’

नरेंद्र संतोष की सांस ले कर नलिनी के पास बैठे रहे.

नलिनी ठीक हो चुकी थी. उसे हर 15 दिन में कीमो के लिए जाना पड़ता था. उस के बाद उसे दोचार दिनों की कमजोरी का सामना करना पड़ता था. नरेंद्र ने उस की देखभाल में कोई कमी नहीं छोड़ी थी.

कुछ दिनों बाद रात को नरेंद्र की तबीयत अचानक बिगड़ गई. वे नलिनी का साथ छोड़ गए. नलिनी इस सदमे को सहन नहीं कर पा रही थी. धीरेधीरे अकेलेपन से उस की हालत गिर रही थी. विनय ने आ कर अपना पुत्रधर्म निभा दिया था. कुछ महीनों के लिए मां को साथ ले गया था. लेकिन नलिनी को वहां का हवापानी रास नहीं आ रहा था. एक कैदी की भ्रांति जीवन व्यतीत हो रहा था.

नलिनी वापस अपने घर आ गई. उस छोटे से घर में नरेंद्र के साथ बीते दिनों की यादें उसे बहुत सुकून दे रही थीं. उसे प्रतीत हो रहा था जैसे वह अपनी पुरानी दुनिया में वापस आ गई हो, अकेलेपन ने नलिनी को जीना सिखा दिया था. बेटा परिदों की तरह परदेश उड़ चुका था. उस के वापस आने की उम्मीद के दीये का तेल अब धीरेधीरे कम होता जा रहा था. उस ने कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी कभी इस मोड़ पर ला कर अकेला छोड़ देगी.

आज वह दूध वाले के बेटे को देख मन में उपजे विचारों के नन्हे कपोलो को खिलते देख सोच रही थी, काश, हम ने भी अपने बच्चों को बड़े सपने न दिखाए होते. लेकिन यह भी सच था कि बच्चे जब बड़े हो कर स्वनिर्णय लेने लगते हैं तो मांबाप उस घर के किसी स्टोररूम के दरवाजे की तरह हो जाते हैं जो सारा समय बंद रहते हैं, जरूरत पड़ने पर ही खुलते हैं.

चाय का कप ले कर नलिनी चाय पीने लगी. उसे याद ही नहीं रहा, गैस पर रखा दूध उफन चुका था. उस ने जल्दी से गैस बंद की. अब उस के विचारों का सैलाब भी थम चुका था. कैसेट लगाई तो वही आखरी गीत बज उठा- ‘ओ मेरी छम्मक छल्लो…’ यह गीत सुन वह मुसकराती हुई बालकनी से आती सुबह की हवा का आनंद लेने लगी. आखिर, उसे अब जीना आ गया था.

विचित्र मांग- संजीव ने अमिता के सामने क्या शर्त रखी थी

“अमिता, एक बात मेरे मन में है, कहूं?” संजीव ने अमिता के होठों पर चुंबन अंकित करते हुए कहा.

“तुम तो मना करते हो इन क्षणों में कुछ बात करने को. इन क्षणों में सिर्फ और सिर्फ ऐसी ही बातें करने के लिए कहते हो,” अमिता ने शोखी से संजीव के पीठ पर अपनी पकड़ मजबूत करते हुए कहा.

“इन क्षणों में जो बातें करने के लिए कहता हूं वही बात है,” संजीव ने कहा.

“कहो,” अमिता ने संजीव को चूमते हुए कहा.

“हम दो के अलावा कोई तीसरा हो तो कैसा रहे…? काफी मजा आएगा. मेरी दिली ख्वाइश है इस की.”

“छीः, कैसी बातें कर रहे हो? मुझे तो शादी के पहले यह सब करना ही उचित नहीं लगता. सिर्फ तुम्हारे कहने से मैं तैयार हो जाती हूं,” अमिता ने कहा.

“तीसरे के जगह पर कोई तीसरी भी हो तो चलेगा. तुम्हारी कोई फ्रेंड हो तो उस से बातें कर सकती हो,” संजीव ने कहा.

अमिता संजीव की बातों से विस्मित हो गई. उसे इस तरह की बात की जरा भी आशा नहीं थी.

वह संजीव के साथ लगभग दो वर्षों से रिलेशनशिप में रह रही थी. वह संजीव से प्यार करती थी और संजीव भी उस से बेइंतिहा प्यार करता था. दोनों शादी करने का विचार रखते थे. शादी के बारे में उन दोनों ने प्लानिंग भी कर रखी थी.
शायद अति उत्साह में आ कर संजीव ने ऐसी बात कह दी थी. यह सोच कर अमिता ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था.

पर, दूसरे दिन उस ने फिर उस से पूछा, “अमिता वो तीन वाली बात पर तुम ने कुछ विचार किया? कहो तो मैं अपने मित्र जीवन से बात करूं.”

“नहीं संजीव. मुझे यह बिलकुल भी पसंद नहीं है. यह मेरे मूल्यों के खिलाफ है,” अमिता ने कहा.

“कम औन अमिता. क्या तुम भी दकियानूसी बातें कर रही हो…? हम आधुनिक समाज में रह रहे हैं. सैक्स भी एक मनोरंजन है. इस का आनंद उठाने में क्या हर्ज है. तुम चाहो तो सपना से बात कर लो. वह तुम्हारे साथ काफी घुलीमिली भी है. मुझे थ्रीसम का कांसेप्ट बहुत भाता है. यह मेरे वर्षों की तमन्ना है. प्लीज अमिता,”
संजीव ने अमिता को समझाने की कोशिश की.

“बिलकुल नहीं,” अमिता ने कहा.

अमिता काफी उलझन में पड़ गई. संजीव से वह प्यार करती थी. उस से शादी करना चाहती थी. उस के कहने पर वह कभीकभार उस के साथ शारीरिक संबंध भी बना लिया करती थी. पर उस की नई मांग अजब थी. यह अमिता के नैतिक मूल्यों के खिलाफ था. उस के नैतिक मूल्यों के खिलाफ तो शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाना भी था. पर सुरक्षात्मक उपाय अपना कर ऐसा वह सिर्फ अपने प्रेमी संजीव के साथ कर सकती थी. और संजीव अब किसी और को भी इस में शामिल करना चाहता था. यहां तक कि कोई लड़की भी हो तो उसे स्वीकार्य था. पहले उसे लगा कि उत्तेजना में उस ने ऐसा कह दिया है. परंतु पिछले कई महीनों से वह इस बात पर जोर दे रहा था. खासकर अंतरंग क्षणों में वह जरूर इस मुद्दे को उठा देता था.

क्या करे उस की समझ में नहीं आ रहा था. वैसे, हर बार उस की इस मांग पर उस ने अपनी असहमति जताई थी. कई बार वह उस के स्थान पर खुद को रख कर उस की मांग के औचित्य को समझने की कोशिश करती थी. उसे यह आइडिया बिलकुल भी पसंद नहीं था. फिर यदि ऐसा करने के लिए वह राजी हो जाती है तो जो तीसरा या तीसरी होगा या होगी, उस के साथ कैसा रिश्ता बनेगा. संजीव हमेशा उसे ओपेन माइंडेड होने की सलाह देता था. पर ओपेन माइंडेड होने का यह मतलब तो नहीं कि नैतिक मूल्यों को ताक पर रख दिया जाए. जो लोग ऐसे कृत्य में खुद को सहज पाते हैं, वे भले ही ऐसा करें. पर वह इस के लिए सहज नहीं हो पा रही थी.

एक दिन वह बैठी अखबार के पन्ने पलट रही थी कि एक स्तंभ पर उस की निगाह गई. इस में पाठक अपनी प्रेम से संबंधित समस्याओं की सलाह विशेषज्ञ से लेते थे. एक बड़ी ही विचित्र समस्या इस में उस ने पढ़ी. इस में एक लड़की ने अपने प्रेमी की कम आय होने के कारण आत्महीनता की भावना से ग्रसित होने के कारण सलाह मांगी थी. विशेषज्ञ ने बड़ा ही व्यावहारिक सुझाव दिया था. उसे उस का सुझाव बहुत ही अच्छा लगा था. उस ने देखा, स्तंभ के नीचे एक ईमेल पता दिया हुआ था और स्पष्ट आमंत्रण था पाठकों से शारीरिक और प्रेम से संबंधित समस्या का हल पाने के लिए.

उस ने ईमेल पता नोट किया और अपनी समस्या को विस्तार से लिख कर ईमेल कर दिया. अखबार औनलाइन उपलब्ध था. दूसरे दिन से ही प्रतिदिन वह अखबार को औनलाइन खोलती और उस कौलम को पढ़ने लगी. इस क्रम में अन्य कई लोगों की समस्याओं से वह रूबरू हुई. उसे आश्चर्य हुआ कि लोगों के पास अलगअलग तरह की समस्याएं हैं, कुछ तो बिलकुल ही विचित्र.

एक सप्ताह के बाद उस ने अपनी समस्या का समाधान अखबार में छपा पाया. समाधान कुछ इस प्रकार था-
“आप का बौयफ्रेंड आप से बहुतकुछ चाह सकता है. लेकिन आप को देखना है कि आप किस बात में सहज हैं. सही रिलेशनशिप वही है, जिस में दोनों पक्ष एकदूसरे का सम्मान करें. आप के बौयफ्रेंड को उस सीमा को मानना चाहिए, जो आप ने अपने लिए और उस के साथ अपने भविष्य के लिए तय कर रखा है. आप स्पष्ट रूप से उस से बात करें. उसे स्पष्ट रूप से बताएं कि आप उस की बात को क्यों नहीं मान सकतीं. ओपेन माइंडेड होने का मतलब यही है कि किसी भी मुद्दे के पक्ष और विपक्ष को समझा जाए और फिर उस पर सोचविचार कर सही निर्णय लिया जाए.”

अमिता को यह सुझाव पसंद आया. पहले उस ने विचार किया कि क्यों उसे उस का तिकड़ी वाला प्रस्ताव स्वीकार नहीं है. सब से पहले तो उस के मन में खयाल आया कि सैक्स सिर्फ दो पार्टनर के बीच होना चाहिए. तीसरा कोई भी बीच में नहीं आना चाहिए. यही कारण है कि सैक्स बिलकुल एकांत में किया जाता है. फिर यदि तीसरा या तीसरी को शामिल किया जाए तो आपसी संबंधों में दरार आ सकती है. हो सकता है कि उस के और संजीव में से कोई तीसरे की ओर आकर्षित हो जाए और फिर पूरा समीकरण बिगड़ जाए. पर ज्यादा महत्वपूर्ण उसे नैतिक आधार ही लगा.

अगली बार जब संजीव ने इस बारे में चर्चा की, तो उस ने स्पष्ट रूप से उसे अपना विचार बता दिया. साथ ही, यह भी बता दिया कि यदि उसे यह आइडिया आजमाना है, तो वह उस का साथ नहीं दे सकती. उसे डर था कि शायद संजीव नाराज हो कर उस का साथ छोड़ देगा. परंतु संजीव समझदार निकला. उस ने उस के तर्क को सुना और बात उस की समझ में आई. उस ने अपनी विचित्र मांग को तज कर अपनी प्रेमिका के साथ जीवन बिताने का निर्णय लिया.

बीच राह में : क्या डॉक्टर की हो पाई अनिता?

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आशा का दीप- भाग 2 : किस उलझन में थी वैभवी

‘‘हैलो विनोद, हाऊ आर यू?’’ प्रत्युत्तर में वैभवी का औपचारिकताभरा संबोधन सुन कर विनोद चौंका. उस ने गौर से सैलफोन की स्क्रीन पर नजर डाली, कहीं गलती से किसी और का नंबर तो प्रैस नहीं कर दिया था. प्यार से विक्की कह कर बुलाने वाली वैभवी उसे अपरिचित या गैर के समान संबोधन कर रही थी.

‘‘विनोद, परसों संडे है, आप पार्क व्यू होटल के ओपन रैस्टोरैंट में आ जाना,’’ कहते हुए वैभवी ने फोन काट दिया.

असमंजस में पड़ा विनोद हाथ में पकड़े सैलफोन को देख रहा था.

पार्क व्यू होटल के रैस्टौंरैंट को एक बड़े तालाब को सुधार कर पिकनिक स्पौट का रूप दिया गया था. कई बार दोनों वहां जा चुके थे.

आमनेसामने बैठ कर चप्पू चलाते किश्ती  झील के बीचोंबीच ला कर किश्ती रोक कर विनोद ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है? इतनी सीरियस क्यों हो? तुम्हारा लहजा भी एकदम एब्नौर्मल है?’’

वैभवी ने अपने छोटे वैनिटी पर्स से एक लिफाफा निकाल कर बढ़ाया. एक बड़े अस्पताल का लिफाफा देख कर विनोद चौंका.

उस ने लिफाफा निकाला और उस में रखे कागजों को निकाल कर एक नजर डाली और प्रश्नवाचक नजरों से वैभवी की तरफ देखा.

‘‘विनोद, मु झे कैंसर है. मेरे वक्षस्थल में ट्यूमर है. मैं ब्रेस्ट कैंसर ग्रस्त हूं. आई एम सौरी,’’ कहते हुए वैभवी ने अपना चेहरा  झुका लिया. विनोद को ऐसा लगा जैसे किसी ने उस को ऊंची पहाड़ी के शिखर से नीचे की ओर की धक्का दे दिया हो.

वह भौचक्का सा कभी हाथ में पकड़े मैडिकल रिपोर्ट के कागजों को, कभी सामने बैठी अपनी मंगेतर, अपनी भावी पत्नी को देख रहा था. उस ने एक बार फिर सरसरी नजर मैडिकल रिपोर्ट पर डाली और कागज लिफाफे में डाल कर लिफाफा वैभवी की तरफ बढ़ा दिया. दोनों खामोश थे.

दोनों जानते थे कि ऐसे हालात में खामोशी ही ठीक है. थोड़ी देर बाद वैभवी ने चप्पू थामे और नाव को किनारे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया.

किनारे पर किश्ती लगी. वैभवी उतरी. उस ने एक नजर अपने मंगेतर की तरफ डाली और फिर मुड़ कर स्थिर कदमों से बाहर चली गई.

विनोद उस को जाता देखता रहा. वह थोड़ा हकबकाया सा, थोड़ा लुटालुटा सा था. इस बदले हालात की वह क्या समीक्षा करे, क्या बोले.

यदि वैभवी ने कोई अन्य कारण बता कर शादी से मना कर दिया होता, रिश्ता तोड़ने की बात कही होती तब वह इस आघात को सहजता से  झेल लेता, मगर ऐसी स्थिति.

मात्र 10 दिन विवाह को बचे थे. भावी दुलहन में जानलेवा कैंसर की बीमारी के लक्षण उभर आए थे.

धीमे कदमों से चलता विनोद अपनी कार में बैठा. घर चला आया. अपने मम्मीपापा को क्या बताए? बताए या न बताए?

‘‘विनोद, ज्वैलर का फोन आया था. सारे जेवरात तैयार हैं. थोड़ी देर में उन का आदमी ले कर आने वाला है,’’ सोफे पर चुपचाप बैठे विनोद से उस की मम्मी ने कहा.

ऐसे हालात में विनोद क्या कहे? कैसे कहे? वैभवी उस को अपनी असाध्य सम झी जाने वाली अकस्मात उभरी बीमारी का कारण बता रिश्ता तोड़ने का इशारा कर चुकी है.

खुशी के मौके को सैलिब्रेट करने के लिए दोनों पक्षों से जुड़ी सभी सैरेमनी समयसमय पर की जा रही थीं. पहले रोका सैरेमनी, फिर रिंग सैरेमनी. अब समय था बधाई सैरेमनी और साथ ही लेडीज संगीत सैरेमनी का जो कि विवाह से मात्र 2 दिन पहले तय थी और संयुक्त समारोह था.

ऐसे आघात, जो कि कुदरती था, का आभास न वैभवी को था न विनोद को. वैभवी के परिवार वाले तो आ पड़ी इस आसन्न विपत्ति से आगाह थे मगर विनोद के परिवार वाले अनजान थे.

विनोद का परिवार पूरे उत्साह से शादी की तैयारियों में मग्न था. मगर वैभवी का परिवार असमजंस  में था. क्या करें? क्या न करें?

‘‘विनोद को बताया?’’ मम्मी ने वैभवी से पूछा.

‘‘हां, मैडिकल रिपोर्ट उस को दिखा कर सब बता दिया,’’ ठंडे, स्थिर स्वर में वैभवी ने कहा.

‘‘उस ने क्या कहा?’’

‘‘फिलहाल कुछ नहीं. मामला ही ऐसा है, कोई भी एकदम क्या जवाब दे सकता है.’’

अगले दिन औफिस में सब व्यवस्थित था, सुचारु था. कंपनी के मामलों में मार्केटिंग मैनेजर और सेल्समेन में सामान्य तौर पर डिस्कशन हुआ. भविष्य की योजनाएं बनाई गईं.

शाम को विनोद घर लौटा. उस की मम्मी ने उस को पानी का गिलास थमाते कहा, ‘‘आज हमारी सोसाइटी में रहने वाले 2 परिवारों के सदस्यों के  साथ दुर्घटनाएं हुई हैं.’’

‘‘किस के साथ?’’

‘‘साथ वाले अपार्टमैंट में रहने वाले अमन सीढि़यों से फिसल कर गिरने पर रीढ़ की हड्डी तुड़वा बैठे हैं. जबकि सामने वाले बैरागीजी की पत्नी बस की चपेट में आ कर कुचल गई हैं. दोनों सीरियस हैं.’’

विनोद सोच में पड़ गया. क्या कभी उस ने इस बात पर गौर किया था. उस का अड़ोसीपड़ोसी कौन था?

महानगरीय सभ्यता का अनुकरण करते अब बड़े शहर या मध्यम श्रेणी के महानगर भी अपरिचय की सभ्यता या संस्कृति का अनुकरण कर रहे थे. क्या उस ने कभी अपने साथ वाले फ्लोर में रहने वाले अड़ोसीपड़ोसी से परिचय किया? हालचाल पूछा? क्या उन्होंने भी ऐसा किया?

अगले 2 दिनों में दोनों दुर्घटनाग्रस्त पड़ोसी चल बसे. उन की अंतिम विदाई में विनोद भी शामिल हुआ.

जिस से जानपहचान थी उन से विनोद को पता चला कि हाउसिंग सोसाइटी में रहने वाले कई पड़ोसी तरहतरह की बीमारियों से ग्रस्त थे. मगर अपनी असाध्य बीमारियों को सहजता से अपनी नियति सम झ वे अपना जीवन जी रहे थे.

रिटायर्ड प्रिंसिपल मिस्टर अस्थाना 80 वर्ष के थे. पिछले 50 साल से, कैंसरग्रस्त थे. मगर परहेजभरा जीवन अपना कर सहजता से जी रहे थे.

उन की रिटायर्ड पत्नी भी असाध्य बीमारी से ग्रस्त थी, मगर बीमारी को अपने जीवन का अंग मान कर 70 बरस पार कर अपना जीवन सहजता से जी रही थी.

एक परिवार का बच्चा 5 बरस का था. एक टांग पोलियोग्रस्त थी, मगर वह कृत्रिम टांग से खेलताकूदता था. मग्न रहता था.

एक 12 साल का बच्चा खुद ही मधुमेह के इंजैक्शन लगाता था.

मनुष्य का दिमाग सुख की अवस्था में इतना चैतन्य नहीं होता जितना दुखपरेशानी या विपत्ति पड़ने पर.

अपनी भावी पत्नी पर आ पड़ी आसन्न विपत्ति ने विनोद का मस्तिष्क चैतन्य कर दिया. आसपड़ोस, अनेक मित्रों, संबंधियों पर गौर फरमाने से उस को आभास हुआ, संसार में पूर्ण सुखी कोई नहीं था.

‘‘वैभ,’’ आईपौड की नईर् शैली के सैलफोन पर विनोद का फोन नंबर उभरा.

‘‘कहिए?’’

‘‘शाम को ओपन रैस्टौरैंट में आना है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हारी मैडिकल रिपोर्ट का जवाब देना है.’’

‘‘ओके, विनोद, शाम 7 बजे.’’

‘‘विनोद नहीं, विक्की. जरा नई शैली की कोई अट्रैक्टिव ड्रैस डालना,’’ और खट से फोन कट गया.

अनबू झी पहेली के समान हाथ में पकड़े सैलफोन को देखती वैभवी कुछ न सम झ सकी.

‘‘दीदी, जीजाजी से मिलने जा रही हो?’’ बड़ी बहन को ड्रैसिंग टेबल के सामने बैठा देख छोटी बहन अनुष्का ने पूछा.

वैभवी खामोश रही. असाध्य बीमारी का छोटी बहन को पता नहीं था. मम्मी खामोश थीं. वरपक्ष क्या पता कब रिश्ता तोड़ने के लिए फोन कर दे या पर्सनल मैसेज भेज दे.

हाथ और बाजू की टैनिंग से बचने के लिए क्या करें?

सवाल

मेरी उम्र 37 साल है. मेरे हाथ और बाजू टैनिंग से ग्रस्त हैं. सबकुछ कर देख लिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा. स्किन स्पैशलिस्ट से भी मिल चुकी हूं. उन से भी निराशा ही हाथ लगी. हाथ देखने में बहुत बुरे लगते हैं. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब

आप किसी कौस्मैटिक क्लीनिक से ऐंटीटैन या फिर स्किन पौलिशिंग ट्रीटमैंट ले सकती हैं. यह टैनिंग को रिमूव कर के स्किन पर पौलिश यानी चमक लाता है. इस के अलावा आप जब भी धूप में निकलें अपने बौडी के खुले भागों पर 35 एसपीएफ और पीए +++ युक्त सनस्क्रीन लगाएं. घरेलू उपाय के तौर पर संतरे के सूखे छिलकेगुलाब व नीम की सूखी पत्तियां सभी समान मात्रा में लें और दरदरा पीस लें. अब इस 1 चम्मच पाउडर में 1 चम्मच कैलेमाइन पाउडर1/2 चम्मच चंदन पाउडर और खीरे का रस मिला कर पेस्ट बना लें और रोजाना अपनी बांहों पर इस से स्क्रब करें. इस स्क्रब को करने से त्वचा साफचिकनी और निखरी रहती है.

कैसी हो सर्दियों की सनस्क्रीन

विंटर में धूप में बैठना सभी को अच्छा लगता है, लेकिन इस मीठीमीठी धूप के लालच में हम अपनी स्किन के साथ खिलवाड़ कर बैठते हैं, जिस की वजह से स्किन को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट रेज का सामना करना पड़ता है और वह बेजान और रफ लगने लगती है. इसलिए जरूरत है विंटर में भी स्किन को यूवी किरणों से बचाने की. तो आइए जानते हैं कि इस दौरान कौनकौन से प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करें ताकि स्किन विंटर के मौसम का भी मजा ले सके और उसे कोई नुकसान भी न पहुंचे.

ग्रीनबेरी और्गैनिक्स सनस्क्रीन स्प्रे लोशन

इस लोशन में एसपीएफ होने के कारण यह स्किन को विंटर्स की सूर्य की तेज किरणों से बचाने का काम करता है. इसे नैचुरल ऐंटीऔक्सीडैंट्स व कीवी ऐक्सट्रैक्ट से बनाया  जाता है, जो फ्रीरैडिकल्स से स्किन को प्रोटैक्ट करने के साथसाथ स्किन सैल्स को नैचुरली हाइड्रेट करने का काम भी करते हैं. यह पैराबेन व सल्फेट फ्री भी है. यह लोशन खासतौर से ड्राई स्किन को ध्यान में रख कर बनाया जाता है.

न्यूट्रोजेना हाइड्रो बूस्ट सनस्क्रीन

यह सनस्क्रीन हाइड्रो बूस्ट फौर्मूला से लैस है, जिस में ह्यालूरोनिक ऐसिड और ग्लिसरीन जैसे पावरफुल इन्ग्रीडिएंट्स होते हैं. यह एक विंटर की शुष्क हवा से स्किन को प्रोटैक्ट करने का काम करता है. इस में हाइड्रो बूस्ट एसपीएफ फौर्मूला स्किन को यूवी प्रोटैक्शन देने का भी काम करता है. स्किन को विंटर्स में ऐक्स्ट्रा प्रोटैक्शन देने के लिए अगर आप हुमेक्टैंट्स युक्त सीरम के बाद इस सनस्क्रीन को अप्लाई करती हैं, तो यह आप की स्किन को प्रोटैक्ट करने के साथसाथ हैल्दी, सौफ्ट व स्मूद भी बनाने का काम करता है. इस सनस्क्रीन की खास बात यह है कि यह सभी स्किन टाइप पर सूट करेगा.

द बौडी शौप विटामिन ई

मौइस्चराइजिंग क्रीम: विंटर्स में यह विटामिन ई युक्त क्रीम स्किन को हाइड्रेट रखने का काम तो करती ही है, साथ ही यह स्किन को फुल प्रोटैक्शन भी देती है. असल में इस का ह्यालूरोनिक ऐसिड युक्त फौर्मूला स्किन को ऐक्स्ट्रा हाइड्रेशन देने के साथसाथ इस में ऐंटीऔक्सीडैंट रिच रैस्पबेरी ऐक्सट्रैक्ट स्किन को ऐक्सफौलिएट करने के साथसाथ सुपर स्मूद बनाने में भी मदद करता है. इस में विटामिन ई की खूबियां स्किन को यूवी प्रोटैक्शन से बचाने के साथ स्किन टैन, डार्क पैचैज और रिंकल्स से बचाने में मदद भी करती हैं.

बोटनिका विटामिन सी सनस्क्रीन

इस में विटामिन सी और एसपीएफ दोनों होने के कारण यह स्किन के लिए काफी मैजिक का काम करता है. इस का क्विक स्किन अब्सौर्बिंग फौर्मूला स्किन की लेयर्स में डीपली जा कर उसे स्मूद बनाने के साथसाथ उसे पूरे दिन सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाने का भी काम करता है. इस में जिंक और टाइटेनियम औक्साइड होने के साथ यह स्किन के पीएच लैवल को बैलेंस में बनाने का काम करता है. चाहे आप को पूरा दिन बीच पर बैठ कर ऐंजौय करना हो या फिर विंटर्स में धूप का मजा लेना हो, यह परफैक्ट सनस्क्रीन है.

अल्ट्रा रिपेयर प्योर मिनरल

सनस्क्रीन मौइस्चराइजर: जहां विंटर का मौसम दिल को छू जाता है, वहीं अगर इस मौसम में स्किन की प्रौपर केयर नहीं की जाती है तो स्किन रैड, ड्राई, फ्लैकी होने के साथसाथ कई बार स्किन टैन की भी समस्या हो जाती है. ऐसे में इस सनस्क्रीन युक्त मौइस्चराइजर में ओटमील की खूबियां होने के कारण यह स्किन पर इचिंग व जलन से तो बचाने का काम करता ही है, साथ ही स्किन पर डैड स्किन सैल्स, औयल को भी रिमूव करने का काम करता है. इस का यूवी ब्लौकर फौर्मूला सन प्रोटैक्शन दे कर स्किन को मौइस्चराइज करने के साथसाथ ग्लोइंग बनाने का भी काम करता है.

केटाफिल 30 एसपीएफ मौइस्चराइजर

यह 30 एसपीएफ वाला फेशियल मौइस्चराइजर स्किन पर ग्लो देने के साथसाथ स्किन की हर लेयर को प्रोटैक्शन देने का भी काम करता है. इस की खास बात यह है कि इस में ओलियोसम टैक्नोलौजी का इस्तेमाल किया गया है, जिस में सनस्क्रीन फिल्टर्स का कम इस्तेमाल होने के कारण यह स्किन को बिना इरिटेट करे सुपर हाइड्रेट करने का काम करता है. यह सैंसिटिव स्किन के लिए एकदम परफैक्ट है.

बड़े काम के ये खिलौने

खिलौने बच्चों के विकास में अहम भूमिका अदा करते हैं. बस जरूरत होती है कि सही उम्र में बच्चों को सही खिलौने दिए जाएं. खिलौने ऐसे हो जिन के साथ खेलते समय बच्चे खेल में पूरी तरह लिप्त हो सकें और खेलखेल में अपने व्यक्तित्व विकास के बारे में सीख सकें.

रिमोट और बैट्री वाले खिलौनों की जगह वे खिलौने सीखने में मदद करते है जिन से बच्चे खुद खेलते हैं. बहुत सारे ऐसे खिलौने भी होते हैं जो सस्ते होने के बावजूद बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होते हैं. पेरैंट्स को चाहिए कि खिलौनों की कीमत को ले कर स्टेटस सिंबल न बनाएं. केवल यह देखें कि वे बच्चों के लिए कितने उपयोगी हैं और बच्चे उन्हें कितना पसंद करते हैं.

हम जब भी बच्चों को सम?ाने का प्रयास करते हैं तो कोशिश यही रहती है कि हम उन के अनकहे शब्दों को भी समझ जाएं. हमारा प्रयास यही रहता है कि किसी तरह उन की दुनिया में पहुच जाएं. वह दुनिया जहां एक माचिस का डब्बा उड़ता हुआ जहाज लगे, जहां छोटेछोटे खिलौनों से कई बड़े सपने सजे हों और घंटों खुद से ही बात करते रहना. कभी गाडि़यों के पहियों से तो कभी जोड़जोड़ के माचिस से महल खड़ा करना. किसी खिलौने के टूटने से घंटों आंसू बहाना या नए खिलौने मिलने पर जैसे कोई खजाना मिल जाना जैसी खुशी का इजहार करना.

भविष्य के विकास की नींव

वह बचपन ही क्या जिस में खिलौनों की यादें न हों. मगर क्या आप यह जानते हैं कि खिलौनों से खेलना सिर्फ एक क्रिया ही नहीं बल्कि इस से एक सुनहरे भविष्य के विकास की नींव भी तैयार होती हैं. खेलखिलौनों से आत्म जागरूकता, स्वयं के संबंध दूसरों से, आत्मविकास और आत्म अभिव्यक्ति जैसी बहुत सी बातें सीखते हैं जो सही व्यक्तित्व विकास के लिए बेहद जरूरी है.

चाइल्ड, अडोलसैंट ऐंड पेरैंटल हैंडलिंग ऐक्सपर्ट साइकोलौजिस्ट डाक्टर सोनल गुप्ता कहती हैं कि कई बार जो बातें बच्चे अपने अभिभावकों से नहीं कह पाते उन्हें वे खिलौनों के जरीए कह पाते हैं. अत: पेरेंट्स के लिए यह जरूरी है कि वह कुछ समय बच्चों के साथ खेल में बिताएं और उन की दुनिया का हिस्सा बनें. मनोवैज्ञानिक इसी प्रक्रिया से ‘प्ले थेरैपी’ के जरीए बच्चों की दुनिया में प्रवेश करते हैं और उन की कई उलझनों को सुलझने का प्रयास करते हैं.

महंगे खिलौने जरूरी नहीं

आमतौर पर पेरैंट्स यह सोचते हैं कि महंगे खिलौने बच्चों को अधिक पसंद आएंगे. यह पूरा सच नहीं है. कई बार देखा जाता है कि बच्चे सस्ते किस्म के खिलौने देख कर ज्यादा आकर्षित होते हैं. उन के खिलौने खरीदते समय उन की पसंद पर ध्यान दें. उम्र के हिसाब से बच्चों को क्या सिखाना चाहिए इस बात को ध्यान में रखते हुए खिलौने खरीदें.

खिलौने बच्चों के जीवन से जुड़े सब से मीठे अनुभव होते हैं पर यह जरूरी नहीं कि वह खिलौना महंगा ही हो. ध्यान दें कि कहीं खिलौने से विकास की जगह बच्चे की जिद्द और अहम का द्वार न खुल जाए. खिलौने तो बच्चे की कल्पना का प्रतीक हैं, फिर भले ही वह एक कागज की नाव हो या सूखी लकडि़यों से बना आधुनिक विज्ञान से परिपक्व एक आसमान में उड़ता जहाज. आवश्यकता यह है कि क्या इस कल्पनाओं के शहर में आप की जगह है?

खिलौने बताते हैं बच्चों की रुचि

साइकोथेरैपिस्ट डाक्टर नेहा आनंद कहती हैं कि खिलौनों के साथ जब बच्चा खेलता है तो उस के स्वभाव के विषय में पता चलता है. कई बार इस समय ही यह पता चलता है कि बच्चे का कस दिशा में रु?ान है. एक क्रिकेट खेलने का शौक रखने वाला बच्चा किस तरह से क्रिकेटर बन जाता है देखने वाली बात है. खिलौने खेलने के तरीके से बच्चे के व्यवहारका पता चलता है. कई बच्चे खेलने के समय ही ऐसे गुस्से वाले काम करते हैं जिन से उन के गुस्से वाले स्वभाव को सम?ा कर उस का निदान किया जा सकता है.

बच्चे जब बौल को कैच करने वाला खेल खेलते हैं तो वह खेल सीधा सरल दिखता है. असल में बौल को कैच करने वाले इस खेल में शारीरिक ऐक्सरसाइज के साथ ही साथ मैंटल ऐक्सरसाइज भी होती है. बच्चों में एकाग्रता बढ़ती है. इस के साथ ही साथ उन्हें बौल की स्पीड का अंदाजा लगाना आ जाता है. पेपर को फाड़ना, दीवार पर बच्चे का पैंसिंल से लिखना कई बार पेरैंट्स को बच्चों का खराब व्यवहार लगता है. असल में यह भी बच्चों के लिए एक खेल है जिस के माध्यम से वे तमाम चीजें सीखते हैं.

छोटे बच्चों के साथ खेलने में अगर पेरैंट्स भी अपना समय दें तो यह उन के विकास में बहुत उपयोगी होगा.

खिलौने बच्चों को बहकाने का जरीया नहीं

ज्यादातर पेरैंट्स यह सोचते हैं कि खिलौने बच्चों को बहकाने का जरीया हैं. ऐसे में वे बच्चे को महंगे से महंगे और अच्छे से अच्छे खिलौने खरीद कर देते हैं पर वे उस के विकास में सहायक नहीं होते. पेरैंट्स के इस व्यवहार से बच्चे में जिद करने की आदत पड़ जाती है. वह जिद कर के अपने लिए खिलौने खरीदवाने लगता है.

अगर कोई बच्चा रिमोट से उड़ने वाले हैलीकौप्टर से खेल रहा है तो उसे केवल रिमोट का बटन दबाना ही आएगा. उसे यह लगेगा कि बटन दबाने से प्लेन उड़ता है. अगर कोई साधारण प्लेन उड़ाता है तो उसे उस के पहिए, पंख सब की जरूरतों की जानकारी होगी. उसे पता होगा कि प्लेन को उड़ाने के लिए समतल सड़क भी चाहिए. यही वजह है कि रिमोट वाले खिलौनों के बजाय नौर्मल खिलौनों से बच्चों को ज्यादा सिखाया जा सकता है.

आज के समय में जब भी बच्चा रोता है मां उस को अपना मोबाइल या घर में रखा कोई मोबाइल पकड़ा देती है. बच्चा उस से खेलने लगता है. धीरेधीरे यह उस की आदत बन जाती है. साइकोथेरैपिस्ट डाक्टर नेहा आनंद कहती हैं कि ब्लू स्क्रीन का नशा बच्चों के मन पर बुरी तरह प्रभाव डालता है. यह उन की लत में बदल जाता है. पेरैंट्स दिखावे के लिए महंगे फोन बच्चों को दे देते हैं. जैसेजैसे स्क्रीन बड़ी होती जाती है उस का प्रभाव बढ़ता जाता है. पेरैंट्स को चाहिए कि खिलौनों की जगह मोबाइल बच्चों को न दें. इस का प्रभाव बहुत आगे तक बच्चों के मन पर रहता है

लग्जरी बाथरूम का शाही अंदाज

पुराने समय में शौचालय और स्नानघर घर से बाहर आंगन के एक कोने में बने होते थे, जिस के सामने सुबहसुबह सब अपनीअपनी बारी का इंतजार करते थे. कोई इस के इंतजार में आंगन की सीढि़यों पर बैठा होता तो कोई शौचालय के बाहर खड़ा होता.

घर की महिलाएं तो सुबह बहुत जल्दी उठ कर नित्यक्रिया से मुक्त हो लेती थीं ताकि 8 और 9 बजे का वक्त जब घर के पुरुष दफ्तर आदि जाने के लिए तैयार हों तो उन को शौचालय और स्नानागार खाली मिले.

इन शौचालयों में उकड़ूं बैठने की व्यवस्था होती थी, हालांकि आज भी अधिकांश लोग इसी को बेहतर मानते हैं क्योंकि इस से पैरों और घुटनों का व्यायाम भी अच्छा होता है और पेट भी ठीक से साफ होता है. तब के शौचालयों में बस एक नल और एक छोटा डब्बा रहता था. नित्यक्रिया से फारिग हो कर हाथ धोने के लिए बाहर लगे वाशबेसिन का ही इस्तेमाल किया जाता था. इसी तरह स्नानागार में 1 या 2 नल, एकाध बालटी एक मग और कोने में बनी छोटी सी ताक पर साबुन वगैरह रखने का इंतजाम होता था. पीछे की दीवार पर एक खूंटी होती थी, जिस पर तौलिया, कपड़े लटकाते थे. बुजुर्गों के नहाने के लिए एक छोटा स्टूल रख दिया जाता था.

जब घर में आंगन खत्म होने शुरू हुए और घरों के साइज भी छोटे और दोमंजिला होने लगे तो शौचालयस्नानागार घर की सीढि़यों के नीचे बनने लगे. तब इन की ऊंचाई व साइज और भी छोटे हो गए. हाथमुंह धोने के लिए वाश बेसिन बाथरूम से बाहर ही रहा.

नए जमाने के बाथरूम

मगर अब महानगरों में ही नहीं, बल्कि छोटे शहरों में भी फ्लैट सिस्टम बढ़ रहा है, जहां शौचालय और स्नानागार मुख्य कमरे के बाहर नहीं, बल्कि उसी के साथ अटैच्ड हो गए हैं. यही नहीं, घर के हर बैडरूम के साथ अटैच लैट्रिनबाथरूम बनने लगे हैं, जिस से नित्यक्रिया के लिए अब लाइन लगाने की जरूरत नहीं रह गई है. सुबह बैड से उठो और बाथरूम में आंख खोलो, बस इतनी ही दूरी है.

पहले जहां बाथरूम से जल्दी निकलने की मजबूरी थी, वहीं अब जब सब के कमरे से जुड़ा बाथरूम है तो जल्दीबाजी भी खत्म हो गई है. जितनी देर चाहो उतनी देर पौट पर बैठे रहो और अच्छी तरह हलके हो. अब हाथमुंह धोने के लिए वाशबेसिन भी अंदर ही है और स्नान के लिए बाथ टब भी पूरी सज्जा के साथ आमंत्रण देता नजर आता है.

अब तो बहुतेरे लोग सुबह का अखबार भी बाथरूम में पढ़ते हैं तो मोबाइल फोन पर गूगल सर्च और व्हाट्सऐप चैट सब पौट पर बैठेबैठे हो रहा है. एकाध घंटा बाथरूम में कब गुजर जाए पता ही नहीं चलता.

इंटीरियर हो खास

पुराने जमाने के घरों में जहां फीकी रोशनी देने वाला बल्ब बाथरूम में लगा दिया जाता था, वहीं नए जमाने के बाथरूम एलईडी लाइट से चमचमाते हैं. हम भले अपने बाथरूम में सुबह का थोड़ा समय व्यतीत करते हैं, लेकिन वहां काम अनेक होते हैं. हाथमुंह धोना, शौच, स्नान, शेविंग, मेकअप, हेयर कलर, हेयर ड्रैसिंग सबकुछ अब बाथरूम में ही होता है.

तो ऐसी जगह जहां नित्यक्रिया के बाद आप हलकाफुलका महसूस करते हैं, बाथटब का खुशबूदार स्नान आप को तरोताजगी से भर देता है, गरम और ठंडे पानी की व्यवस्था के साथ शावर का सुख आप ले सकती हैं, दीवार पर लगा आईना आप के सौंदर्य में वृद्धि करता है, उस जगह को क्यों न थोड़ा लग्जरी लुक दिया जाए?

घर के कुल बजट का कुछ हिस्सा अगर बाथरूम पर खर्च कर के उसे और आरामदायक और सुख प्रदान करने वाला बनाया जाए, तो क्या बुरा है? जब आप अपना पूरा घर अपनी सुरुचि के अनुरूप सजासंवार कर रखती हैं तो बहुत जरूरी है कि आप के घर का यह हिस्सा भी शानदार तरीके से चमके. इस के लिए सब से पहले बाथरूम के इंटीरियर पर ध्यान दें. बाथरूम के इंटीरियर में लाइट, कलर, फ्लोरिंग आदि महत्त्वपूर्ण हैं.

आजकल बाजार में बाथरूम को सजानेसंवारने के लिए ऐसी अनेक चीजें उपलब्ध हैं जो कम पैसे में आप के बाथरूम को लग्जरी लुक दे सकती हैं.

लाइट्स

बाथरूम की रौनक तो लाइट से ही है. उपयुक्त तरीके से लगी लाइटें जगह को जगमगा देती हैं, इसलिए सब से पहले बाथरूम की लाइटिंग पर ध्यान दें. अपने बाथरूम में एक मेन एलईडी लगवाएं. व्हाइट लाइट से बाथरूम चमकदार दिखेगा. आईने में आप का चेहरा भी साफ दिखेगा और इस रोशनी में हर कोने की सफाई भी अच्छी तरह से हो सकेगी. इस के अलावा दीवार पर कलात्मक लैंप लगाए जा सकते हैं जो बेहद सुंदर और रिच लुक देते हैं. बाथरूम मिरर के ऊपर अगर मिरर को फोकस करने वाली लाइट लगी हो तो इस से ओवरऔल लुक आकर्षक लगता है.

अगर आप के बाथरूम में बाथ टब है और आप उस में बैठ कर रिलैक्स करती हैं तो बाथ टब के ऊपर यलो लाइट वाला लैंप शेड लगवाएं ताकि पानी में रिलैक्स करते वक्त सिर्फ इसी को जला कर डिम रोशनी में सुकून पाया जा सके.

फ्लोरिंग

बाथरूम की फ्लोरिंग में आप चाहे टाइल्स लगवाएं या पत्थर, वह चमकने वाला होना चाहिए. वाशबेसिन वाले एरिया के काउंटर में भी आप चमकता हुआ पत्थर लगवा सकती हैं. आजकल ब्लैक कलर या ब्लैक डिजाइन की फ्लोरिंग चलन में है जो बाथरूम को स्टाइलिश बना देती है. अगर आप के बाथरूम का साइज छोटा है तो इसे बड़ा लुक देने के लिए आप लाइट कलर से फ्लोरिंग करवाएं. बाथरूम को रिच लुक देने के लिए वुडन डैकोर का चलन भी तेजी से बढ़ रहा है. इस थीम के अंतर्गत, वुडन शेल्व, रिलैक्सिंग स्टूल, चेयर आदि का इस्तेमाल भी हो रहा है.

आईना

शीशा बाथरूम की रौनक में चार चांद लगा देता है. यह बाथरूम की जरूरत भी है. वाशबेसिन के ऊपर सिल्वर या गोल्डन लाइनिंग वाला स्टाइलिश आईना और उस पर ?ाका हुआ सिल्वर या गोल्डन लैंप आप के बाथरूम को बहुत रिच लुक देगा. बाजार में मिरर में बहुत सारी वैरायटीज मौजूद हैं. अपने बाथरूम के फर्श और दीवारों से मैच कर के आप आईने का चुनाव कर सकती हैं. कलात्मक सज्जा वाले आईने, फूलों और बेलबूटों से सजे आईने जब आप के सामने होंगे तो उन में आप का चेहरा दमक उठेगा.

बाथ टब

यदि आप का बाथरूम स्पेशियस है तो उस में लगा बाथ टब बाथरूम को पूरी तरह लग्जरी लुक देता है. एक बड़ा टब जो आप के कंफर्ट लैवल के मुताबिक हो, आप अपने बाथरूम में लगवाएं. जिस में ठंडे और गरम पानी की व्यवस्था हो, साथ ही हैंड शावर भी हो. बाजार में ब्लैक, व्हाइट, मैरून, ब्लू अनेक रंगों में बाथ टब मौजूद हैं जो बाथरूम को लग्जरी लुक देते हैं.

क्लासी टच देने के लिए आप वुडन फिनिश का बाथटब भी लगवा सकती हैं. चाहें तो ग्लास से बना बाथ क्यूबिकल लगवाएं जिस का सब से बड़ा लाभ यह है कि नहाते समय पानी पूरे बाथरूम में नहीं फैलता और बाथरूम की साफसफाई में अतिरिक्त समय खर्च नहीं होता.

वुडन लुक

आप अपने बाथरूम को वुडन लुक भी दे सकती हैं. उस में ऐसी अलमारियां बनाएं जिन में आप सामान भी रख सकें. साथ ही वे देखने में भी स्टाइलिश नजर आएं. इस के लिए आप एक कोना तय करें जो पानी से दूर रहे व दीमक लगने का डर न हो. वहां आप सनमाइका लगा कर एक अलमारी बनवाएं, जिस में जरूरत का सामान रखा जा सके.

बाथरूम की सफाई में इस्तेमाल होने वाला वाइपर, फ्लोर ब्रश, पोंछा, क्लीनर, हार्पिक, सोप आदि के लिए एक कैबिन अलग से होना चाहिए ताकि यह सामान बाथरूम के किसी कोने में सामने पड़ा दिखाई न दे. सबकुछ व्यवस्थित रखने के लिए कोने में अलमारियां लगवाएं. ये आप के फेस वाश, टायलैटरीज और टूथब्रश को पूरे सिंक में बिखरने से बचाती हैं.

ग्लास बनाए खास

बाथरूम को लग्जरी अंदाज देने के लिए पत्थर की दीवार की जगह ग्लास यानी शीशे का इस्तेमाल बेहतरीन विकल्प है. इस से विजन तो क्लीयर रहता ही है, साथ ही साफसफाई के लिहाज से भी इसे अच्छा माना जाता है. यही नहीं अगर आप के घर का आकार ज्यादा बड़ा नहीं है तो जाहिर है कि बाथरूम भी छोटा ही होगा, ऐसे में ग्लास की मदद से आप बाथरूम को स्पेशियस बना सकते हैं.

ग्लास से बने वाशबेसिन, शावर स्टाल या पार्टीशिन को बाथरूम में जगह दे सकती हैं. खिड़ेकियों और काउंटरटौप्स के लिए आप के पास फ्रास्टेड ग्लास के विकल्प हैं. ग्लास थीम हो तो आप टिंटेड ग्लास का भी बखूबी इस्तेमाल कर सकती हैं. इस में ज्यादा से ज्यादा एक से दो रंगों का इस्तेमाल एक समय पर किया जा सकता है. ग्लास थीम का इस्तेमाल करते हुए यदि क्रोम फिनिश के नल और फिक्सचर्स का इस्तेमाल किया जाए तो बाथरूम और भी खूबसूरत दिखता है. पौधों से करें सजावट लोगों को अकसर लगता है कि बाथरूमका माहौल ऐसा नहीं होता है कि वहां पौधे रखे जाएं, जबकि सच तो यह है कि बाथरूम की सब से अच्छी सजावट पौधों से ही होती है. बाथरूम में ह्यूमिडिटी ज्यादा रहती है तोऐसे में कोई ऐसा प्लांट चुनें जो इस तरह के माहौल में एडजस्ट कर पाए. आर्किड्सऔर लिली इस तरह के माहौल के लिएपरफैक्ट हैं. लेकिन अगर ज्यादा पत्तेदार प्लांट चाहिए

तो फर्न या पोथोस प्लांट भी अच्छे हैं. पौधे बाथरूम के इंटीरियर डिजाइन को एक नया और आकर्षक लुक देते हैं. बर्ड्स नेस्ट फर्न, पोथो, टिलैंडसिया/एयर प्लांट, ऐलोवेरा, स्टैग हार्न फर्न जैसे पौधे प्रकृति का एक स्पर्श जोड़ते हैं. पौधों के कारण आप खुद को प्रकृति के नजदीक महसूस करेंगी और तरोताजा रहेंगी. पौधों को छोटे सुंदर कलात्मक पौट में रखें.

त्रिकोण- भाग 2 : शातिर नितिन के जाल से क्या बच पाई नर्स?

दोनों बच्चों को पता था कि मम्मीपापा के बीच सब कुछ नौर्मल नहीं था.
पर जिंदगी फिर भी कट ही रही थी.
यह सब सोचतेसोचते सोनल की आंख ना जाने किस पहर में लग गई थी. उसे एक बेहद अजीब सपना आया जिस में नितिन के हाथ खून से रंगे हुए थे. अचकचा कर सोनल उठ बैठी, उस का शरीर भट्टी की तरह तप रहा था. बुखार चैक किया 102 था. चाह कर भी वह उठ ना पाई और ऐसे ही गफलियत में लेटी रही.

सुबह किसी तरह से औक्सिमीटर का इंतजाम हो गया था. सोनल ने जैसे ही नापा तो उस का औक्सीजन लैवल
85 था. उस ने फोन कर के नितिन को बोला तो नितिन भी थोड़ा परेशान हो गया और बोला,”सोनल, प्रोन
पोजीशन में लेटी रहो.”

इधरउधर नितिन ने हाथपैर मारने शुरू किए. सब जगह पैसों के साथसाथ सिफारिश चाहिए थी. नितिन
के हाथ खाली थे. किसी तरह श्रेया की फ्रैंड की मदद से सोनल को अस्पताल तो मिल गया था पर दवाओं और टैस्ट के पैसे कौन देगा?
तभी कौरिडोर में एक सांवली मगर गठीली शरीर की नर्स आई और नितिन से मुखातिब होते हुए बोली,”सर, दवाएं यहां फ्री नहीं हैं.”

नितिन मायूसी से बोला,”जानता हूं पर घर में सब लोगों को कोविड है और मांपापा को कैसे ऐसे छोड़ देता, उसी चक्कर में सबकुछ लग गया. 2 बच्चे भी हैं, आप ही बताओ क्या करूं? बिजनैस में अलग से घाटा चल रहा है.”

नर्स का नाम ललिता था. वह 32 वर्ष की थी. उसे नितिन से थोड़ी सहानुभूति सी हो गई. उस ने कहा,”अच्छा सर, मैं कोशिश करती हूं.”

नितिन ने अचानक से ललिता का हाथ अपने हाथों में ले कर हलके से थपथपा दिया. ललित हक्कीबक्की रह गई थी. नितिन धीरे से बोला,”आई एम सौरी ललिता, पर तुम्हें पता है ना इंसान ऐसे पलों में कितना कमजोर पड़ जाता है.”

ललिता को लगा कि नितिन कितना केयरिंग है. अपने घरपरिवार को ले कर और एक उस का पहला पति था
एकदम निक्कमा. काश, मेरा पति भी इतना केयरिंग होता तो मुझे अपनी जान हथेली पर रख कर यह नौकरी नहीं करनी पड़ती.

नितिन विजयी भाव के साथ घर आया. उसे लग रहा था कि उस ने दवाओं का इंतजाम फ्री में ही कर दिया है. थोड़े से घड़ियाली आंसू बहा कर वह ललिता को पूरी तरह अपने शीशे में उतार लेगा.

नितिन के पास यही हुनर था, औरतों की भावनाओं को हवा दे कर उन को उल्लू बनाना. औरतों की झूठी
तारीफें करना और खुद अपना उल्लू सीधा करना.

ललिता ने सोनल की दवाओं का इंतजाम कर दिया था. नितिन ने नहा कर ब्लू कलर की शर्ट और जींस
पहनी. उसे पता था वह इस में कातिल लगता है. दोनों बच्चों को बुलाकर दूर से ही बोला,”बेटा, मैं मम्मी के पास जा रहा हूं, तुम लोग रह लोगे क्या अकेले?”

श्रेया डबडबाई आवाज में बोली,”पापा, मम्मी ठीक हो जाएंगी ना?”

नितिन इतना स्वार्थी था कि उसे अभी भी ललिता दिख रही थी. झुंझलाता हुआ बोला,”अरे भई, इसलिए तो वहां
जा रहा हूं, तुम क्यों रोधो रही हो?”

आर्यन श्रेया को चुप कराते हुए बोला,”दीदी, हम लोग हिम्मत नहीं हारेंगे, पापा आप जाओ.”

नितिन हौस्पिटल तो गया पर सोनल के पास जाने के बजाए घाघ लोमड़ी की तरह ललिता के बारे में
इधरउधर से पता लगाता रहा था. यह पता लगते ही कि ललिता का अपने पति से तलाक हो गया है नितिन
की बांछें खिल गई थीं. उधर सोनल का औक्सीजन लैवल डीप कर रहा था. हौस्पिटल में इतनी मारामारी थी
कि अगर मरीज का तीमारदार ध्यान ना दे तो मरीज की कोई सुधबुध नहीं लेता था.

नितिन बाहर से ही सोनल को देख रहा था. उस का बिलकुल भी मन नहीं था अंदर जाने का. तभी नितिन ने दूर से ललिता को आते हुए देखा, नितिन भाग कर अंदर सोनल के पास गया. नितिन ने देखा कि सोनल का
औक्सीजन लेवल 70 पहुंच चुका था. वह भाग कर ललिता के पास गया और घड़ियाली आंसू बहाते हुए
बोला,”ललिता, मेरी सोनल को बचा लो. घर पर बच्चों के लिए खाने का इंतजाम करने गया था.”

ललिता भागते हुए सोनल के पास पहुंची तो देखा औक्सीजन मास्क ठीक से लगा हुआ नहीं था. उस ने ठीक किया तो सोनल का औक्सिजन लैवल बढ़ने लगा. नितिन ललिता के करीब जाते हुए बोला,”ललिता, तुम मेरे लिए फरिश्ता बन कर आई हो.”

ललिता को नितिन से सहानुभूति सी हो गई थी. नरम स्वर में बोली,”आप चिंता मत करें, यह मेरा पर्सनल नंबर है. अगर जरूरत पड़े तो कौल कर लीजिएगा.”

नितिन को ललिता से और बात करनी थी, इसलिए बोला,”यहां कोई कैंटीन है, सुबह से कुछ नहीं खाया है. तुम्हें अजीब लग रहा होगा पर पापी पेट तो नहीं मानता ना.”

ललिता बोली,”आप मेरे साथ चलो…”

कैंटीन में बैठेबैठे 1 घंटा हो गया था. नितिन जितना झूठ बोल सकता था, उस ने बोल दिया था. ललिता जब
कैंटीन से बाहर निकली तो उसे लगा कि वह नितिन के बेहद करीब आ गई है. ललिता ने नितिन की मदद करने के उद्देश्य से अपनी ड्यूटी भी उस वार्ड में लगवा ली जिस में सोनल ऐडमिट थी. वह आतेजाते आंखों ही आंखों में नितिन को साहस देती रहती थी. नितिन को ललिता में अपना अगला शिकार मिल गया था. वह बेहया इंसान यहां तक सोच बैठा था कि अगर सोनल को कुछ हो गया तो वह ललिता को अपनी जिंदगी में शामिल कर लेगा. ललिता अकेली रहती है और अच्छाखासा कमाती है. दिखने में भी आकर्षक है और सब से बड़ी बात ललिता उसे पसंद भी करने लगी है.

अब नितिन का रोज का यह काम हो गया था, ललिता के साथ कैंटीन में खाना खाना और अपनी दुख की
कहानी कहना. ललिता को नितिन का आकर्षक रूपरंग और उस का अपने परिवार के लिए समर्पण आकर्षित
कर रहा था. उसे सपने में भी भान नहीं था कि नितिन इंसान के रूप में एक भेड़िया है.

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