महुए की खुशबू – भाग 1

पोस्टमैन ने हाथ में पकड़ा दिया एक भूरा लिफ़ाफ़ा. तीसचालीस साल पहले इसे सरकारी डाक माना जाता था. लिफ़ाफ़ा किस दफ़्तर से आया? कोने में एक शब्द ‘प्रेषक’ लिखा दिखाई दे रहा था. आगे कुछ लिखा तो है पर अस्पष्ट है.

सरकारी मोहर ऐसी ही होती थी. उस के मजमून से ही भेजने वाले दफ्तर का पता चलता. उत्सुकता से लिफ़ाफ़ा खोला औऱ खुशी से उछल पड़ा.

सुदूर गांव की प्राइमरी पाठशाला में मुझे शिक्षक की नियुक्ति और तैनाती देने की बाबत आदेश था और अब भूरा सरकारी लिफ़ाफ़ा मुझे रंगीन नज़र आने लगा.

‘गांव की पाठशाला…’ एक पाठ था बचपन में. साथ में अनेक चित्र दिए थे उस पाठशाला के ताकि  शहर के बच्चों को पाठ की वस्तुस्थिति सचित्र दिखाई जा सके. वे सभी चित्र अब मेरी आंखों के सामने आ गए…

साफसुथरा स्कूल.  छोटा सा मैदान. उस में खेलतेदौड़ते बच्चे. 2 झूले भी, जिन पर बालकबालिकाएं झूलती दिख रही होतीं. वहीं सामने लाइन से बने खपरैल वाले क्लास के 4 कमरे, अंदर जूट की लंबीलंबी रंगीन टाटपट्टियां. ऊपर घनी छांव डालते नीम और आम के पेड़. ध्यान से देखने पर एकदो चिड़िया भी बैठी दिख गईं डाल पर. एक क्लास तो पेड़ के नीचे ही लगी थी.

तिपाये पर ब्लैकबोर्ड था. मोटे चश्मे में सदरी डाले माटसाब पढ़ा रहे थे.स्कूल का घंटा पेड़ की एक डाल से ही लटका था जिसे एक सफेद टोपी लगाए चपरासी बजा रहा होता. ईंटों पर रखा मटका और पानी पीती एक बच्ची.

कक्षा के दरवाज़े से अंदर दिखतेपढ़ाते गुरुजी और ध्यान लगा कर पढ़ते बच्चे. कमीजनिक्कर में लड़के और लाल रिबन लगाए बच्चियां, सब गुलगोथने और लाललाल गाल वाले प्यारेप्यारे.

दूर पीछे  गांव के खेत, तालाब और झोपड़ियां दिख रही थीं, जिनके आगे भैंसगाय हरा चारा खा रही होतीं. गांव की तरफ़ एक सड़क मोड़ ले कर आती दिख रही थी. आकाश में सफ़ेद कपास के जैसे उड़ते बादल और साथ में एक पक्षियों की टोली.

शायद हवा पुरवाई चल रही होगी, पर तसवीरों में पता नहीं चलता हवा के रुख का. सरकारी किताब थी, इसलिए सबकुछ ठीकठाक ही नहीं, अत्यंत मनमोहक दिखाना मजबूरी थी चित्रकार की शायद. असलियत दिखा कर भूखे थोड़े ही मरना था.

गांव के स्कूल की वही पुरानी किताबी तसवीरें मन में उतारे मैं बस में बैठ गया. गांव में रहनेखाने का क्या होगा, अख़बार मिलेगा या नहीं, कितने बच्चे होंगे, सहशिक्षक, प्रिंसिपल, क्लर्क,  चपरासी  आदि सोचते हुए मेरा सिर सीट पर टिक गया था.

‘ए बाबू साहब, मटकापुर आय गवा, उतरो,’  कंडक्टर ने कंधा पकड़ कर उठाया. मेरे एक बक्सा, झोला और होल्डाल ले कर सड़क पर टिकते  ही बस धुआंधूल उड़ाती आगे निकल गई.मेरे साथ ही एक सवारी और उतरी थी, एक महिला, उस के साथ 2 बच्चे. उन्हें लेने 2 मर्द साइकिलों से आए थे. एक साइकिल पर बच्चे और दूसरी पर पीछे वह महिला बैठ गई.

मुझे ऐसा आभास हुआ कि महिला साथ आए पुरुष को मेरी तरफ़ इशारा कर के कुछ बता रही थी. पुरुष ने एक उचटती सी नज़र मुझ पर मारी, सिर हिलाया और साइकिल पर बैठ कर पैडल मारता चल दिया.

‘होगा कुछ,’ मैं ने मन ही मन सोचा और रूमाल से चेहरा पोंछ कर चारों तरफ नज़र दौड़ाई. दूरदूर तक गांव का कोई निशान नहीं था. इकलौती  पगडंडी सड़क से उतर कर खेतों की तरफ जाती सी लगी. मैं उसी पर बढ़ लिया और मुझे चित्र की ग्रामीण सड़क याद आ गई. पता नहीं वह कौन सा गांव था, यह वाला तो पक्का नहीं था.

कभी इतना बोझा मैं ने उठाया नहीं था. ऊपर से मंज़िल और रास्ते की लंबाई भी अज्ञात थी व दिशा अनिश्चित. तभी सामने से गमछा डाले एक आदमी साइकिल पर आता दिखाई दिया. मैं कुछ कहता, इस के पहले ही वह खुद पास आ गया, साइकिल से उतरा और सवाल दाग दिया, ‘कौन हो, कौन गांव जाए का है?’ गांव में आप को परिचय देना नहीं पड़ता, आप से लिया जाता है.

रास्तेभर में मेरा पूरा नाम, जाति, जिला, पिताजी, बच्चे, परिवार आदि की पूरी जानकारी साइकिल वाले को ट्रांसफर हो चुकी थी. बीसपचीस कच्चे और दोतीन मकान पक्के यानी छत पक्की वाले दिखने लगे. मेरी पोस्टिंग वाला गांव आ चुका था- मटकापुर.

यह वह तसवीर वाला गांव नहीं ही था.  समझ आने लगा कि चित्रकार के रंगों का गांव हक़ीक़त से कितना अलग होता है. वह कभी मटकापुर आया नहीं होगा. कूची भी झूठ बोलती है. गांव के स्कूल का नया ‘मास्टर’ आया है, यह ख़बर जंगल की आग बन गांव में फ़ैलने लगी. बड़ेबूढ़े जुटने लगे. कौन हैं, कौन गांव, जिला, पूरा नाम, जाति सब बारबार पूछा और बताया जा रहा था.

मेरे नाम का महत्त्व नाम के साथ दी गई अनावश्यक  जानकारी के आधार पर ही लगाया जाने लगा. किसी को समझ आया, कुछ सिर हिला रहे थे, ‘पता नहीं को है, किते से आए.’ ख़ैर, मैं जो भी था, प्रारंभिक आवभगत में कमी नहीं हुई. गांव में जो व्यक्ति मेरी बिरादरी के सब से क़रीब साबित हुए, उन का ही धर्म बन गया मुझे आश्रय देने का. खाना हुआ और सोने के लिए खटिया डाल दी गई.

मैं अनजाने में और घोर अनिच्छा से पहले ही दिन गांव के लोगों के एक धड़े में जा बैठा था. गांव मे न्यूट्रल कुछ नहीं होता. हर आदमी होता है इस तरफ का या दूसरी तरफ  या ऊंचा या नीचा. चुनो या न चुनो. एक पाले की मोहर तो लग ही जाएगी, मतलब  लगा दी जाएगी आप की शख्सियत के लिफ़ाफ़े पर.

यह मोहर सरकारी वाली नहीं, सामाजिक होती है जो दूर से ही दिख जाती है. इस का छापा जन्मभर का होता है.

बिग बॉस 16 में आया नया ट्विस्ट, टीना दत्ता और निमृत कौर के बीच छिड़ी जंग

सलमान खान शो बिग बॉस16 हर साल की तरह ही मीडिया की सुर्खियो में बना हुआ है शो टीआरपी की रेस में भी आगे चल रहा है. शो में हो रही लडाईया और दोस्ती फैंस का खूब दिल जीत रही है. नए-नए कैप्टन सी टास्क फैंस को काफी पसंद आ रहे है वही नए पुराने रिश्तो और दोस्ती बदलती नज़र आ रही है.

आपको बता दे, कि कभी निमृत कौर और टीना दत्ता अच्छे दोस्त हुआ करते थे, लेकिन अब दोनो एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हो गए है. दोनो के बीच दरार आ चुकी है हाल में बिग बॉस के घर में एक टास्क हुआ था. टास्ट में निमृत को घरवालों को उनके योगदान पर रैकिंग देनी थी.इस टास्क के दौरान शो  खूब बवाल हुआ. जिसमें टीना दत्ता और निमृत कौर आमने-सामने आ गए.

 

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इसी बीच बिग बॉस 16 का एक प्रोमो वीडियो सामने आया है जो कि सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हओ रहा है. ये प्रोमो वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर किया गया है, जिसमें टीना और निमृत एक दूसरे से लड़ते हुए नज़र आ रहे है. अपकमिंग एपिसोड़ में बिग बॉस के घर में जमकर हंगामा होगा. इसी दौरान शिव ठाकरे सभी घरवालों की क्लास लगाते हुए दिखाई देंगे. दरअसल, शो में इस बार बर्तन धोने को लेकर घमासान होगा.

वाइल्ड कार्ड एंट्री किसी

बता दें, कि हाल ही में बिग बॉस16 के घर में वाइल्ड कार्ड एंट्री हुई है. गोल्डन ब्यॉज ने इस शो में धमाकेदाकर एंटी की है बताया जा रहा कि अगले हफ्ते कई और सेलेब्स बिग बॉस के घर में एंट्री करते नज़र आएंगे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घर में कार्तिक आर्यन और अलाया फर्नीचरवाला, सलमान खान के साथ खूब मस्ती करने वाले है. हालांकि अभी इस बात कि पुष्टि नहीं हुई है कि ये वाइल्ड कार्ड एंट्री है, क्योकि ये दोनों अपनी फिल्म फ्रेडी को प्रमोट करने आएंगे.

नॉमिनेट सदस्य

 

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बता दें, कि इस हफ्ते के लिए शालीन भनोट,टीना दत्ता, साजिद खान, सुंबुल तौकीर खान, एमसी स्टेन, शिव ठाकरे और प्रिंयका चौधरी नॉमिनेट है.

आशा का दीप- भाग 1: किस उलझन में थी वैभवी

आप हैं मिस वैभवी, सीनियर मार्केटिंग मैनेजर,’’ शाखा प्रबंधक ने वैभवी का परिचय नए नियुक्त हुए सेल्स एवं डिस्ट्रिब्यूशन औफिसर विनोद से कराते हुए कहा.

वैभवी ने तपाक से उठ कर हाथ मिलाया. विनोद ने वैभवी के हाथ के स्पर्श में गर्मजोशी को स्पष्ट महसूस किया. उस ने वैभवी की तरफ गौर से देखा. वह उस के चुस्त शरीर, संतुलित पोशाक और दमकते चेहरे पर बिखरी मधुर मुसकान से प्रभावित हुआ.

वैभवी ने भी विनोद का अवलोकन किया. सूट के साथ मैच करती शर्ट और नेक टाई, अच्छी तरह सैट किए बाल, क्लीनशेव्ड, दमकता चेहरा पहली नजर में प्रभावित करने वाला व्यक्तित्व.

‘‘आप हैं मिस्टर विनोद, आवर न्यू सेल्य एंड डिस्ट्रिब्यूशन मैनेजर.’’

वैभवी से परिचय के बाद शाखा प्रबंधक महोदय विनोद को सिलसिलेवार सभी केबिनों में ले गए. विनोद ने केबिन में अपनी सीट पर बैठ कर मेज के एक तरफ रखा लैपटौप औन किया.

थोड़े समय में ही सेल्स, डिस्ट्रिब्यूशन और मार्केटिंग इंटररिलेटिड वैभवी और विनोद की नियमित बैठकें होने लगीं. फिर धीरेधीरे अंतरंगता बढ़ती गई.

दोनों ही अविवाहित थे. दोनों अपने लिए उपयुक्त जीवनसाथी की तलाश में भी थे. बढ़ती अंतरंगता की परिणति उन की मंगनी में बदली और विवाह की तिथि तय की गई.

दोनों के परिवार जोशोखरोश से विवाह की तैयारियां कर रहे थे. एक रोज बड़े डिपार्टमैंटल स्टोर से शौपिंग कर वैभवी बाहर आ रही थी, सामने से आती एक प्रौढ़ा स्त्री उस से टकराई. उस के हाथों का पैकेट वैभवी के वक्षस्थल से टकराया.

दर्द की तीव्र लहर वैभवी के वक्ष स्थल पर फैल गई. बड़ी मुश्किल से चीखने से रोक पाई वैभवी अपनेआप  को. पर लौट कर कपड़े बदलते हुए उस ने वक्षस्थल पर हाथ फिराया तो एक हलकी सी गांठ उस को दाएं वक्षस्थल पर महसूस हुई. गांठ दबाने पर हलकाहलका दर्द उठा.

औफिस से थोड़ी देर की छुट्टी ले कर वह अपने परिचित डाक्टर के पास गई. जांच करने के बाद डाक्टर गंभीर हो गए.

‘‘आप को कुछ टैस्ट करवाने होंगे,’’ डाक्टर साहब ने गंभीरता से कहा.

‘‘क्या कुछ सीरियस है?’’ आशंकित स्वर में वैभवी ने पूछा.

‘‘टैस्ट रिपोर्ट आने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है. वैसे क्या आप के परिवार में किसी, मेरा मतलब आप की माताजी या पिताजी या दादीनानी को ऐसी तकलीफ हुई थी,’’ डाक्टर साहब ने धीरेधीरे बोलते हुए गंभीर स्वर में पूछा.

इस सवाल पर वैभवी गंभीर हो गई. उस की मम्मी को कई साल पहले, जब वह किशोरावस्था में थीं, ब्रेस्ट कैंसर हुआ था. लंबे समय तक तरहतरह के इलाज के बाद और वक्षस्थल से एक वक्ष काटने के बाद इस समस्या से छुटकारा मिला था. क्या उसे भी वक्षस्थल यानी ब्रेस्ट कैंसर है?

‘‘क्या टैस्ट आप के यहां होंगे?’’

‘‘जी नहीं, ये सब बड़े अस्पताल में होते हैं. एक टैस्ट से स्थिति स्पष्ट न होने पर दूसरे कई टैस्ट करवाने पड़ सकते हैं.’’

‘‘बाई द वे, आप का अंदाजा क्या है?’’ वैभवी के इस सवाल पर डाक्टर गंभीर हो गए, ‘‘मिस वैभवी, अंदाजे के आधार पर चिकित्सा नहीं हो सकती. प्रौपर डायग्नोसिस किए बिना बीमारी का इलाज नहीं हो सकता.’’

‘‘आप ने फैमिली बैकग्राउंड पर सवाल किया था. मेरी मम्मी को कई साल पहले ब्रेस्ट कैंसर हुआ था. सर्जरी द्वारा उन के वक्ष को काटना पड़ा था. कहीं मु झे भी…’’

‘‘मिस वैभवी, हैव फेथ औन योरसैल्फ. कभीकभी सारा अंदाजाअनुमान गलत साबित होता है,’’ यह कहते डाक्टर साहब ने अपने लैटर पर एक बड़े अस्पताल का नाम लिखते उस पर परामर्श लिखा और कागज वैभवी की तरफ बढ़ा दिया.

औफिस में अपनी सीट पर बैठी वैभवी गंभीर सोच में थी. हर रोज वह अपने सहयोगियों के साथ कंपनी के किसी नए उत्पादन और उस की मार्केटिंग पर डिस्कशन करती थी, मगर आज वह खामोश थी.

विनोद भी अपनी मंगेतर को गंभीर देख कर उल झन में था.

‘‘हैलो वैभवी, हाऊ आर यू?’’ साइलैंट मोड पर रखे सैलफोन की स्क्रीन पर एसएमएस चमका.

‘‘फाइन,’’ संक्षिप्त सा जवाब दे वैभवी ने फोन बंद कर दिया और उठ कर शाखा प्रबंधक के कमरे में चली गई.

‘‘सर, मु झे कुछ पर्सनल काम है, आज छुट्टी चाहिए.’’

बेटी को आज इतनी जल्दी आया देख कर मम्मी चौंक गईं. ‘‘वैभवी, कोई प्रौब्लम है?’’ पानी का गिलास थमाते मम्मी ने पूछा.

वैभवी खामोश थी. क्या बताए? कैंसर एक दाग सम झा जाता था. एक स्टिगमा. कैंसरग्रस्त व्यक्ति को अछूत के समान सम झ कर हर कोई उस से दूरी बनाए रखना चाहता है.

उस की मम्मी को भी कैंसर हुआ था 20 साल पहले. सर्जरी द्वारा उन का एक वक्ष काट दिया गया था. कैंसर जेनेटिक स्टेज की प्रथम स्टेज पर था. उस का फैलना थम गया था. 20 साल बाद उस की मम्मी नौर्मल लाइफ जी रही थीं. मगर सब जानकार, सभी संबंधी उन से एक दूरी बना कर रखते थे.

‘‘वैभवी, क्या बात है, कोई औफिस प्रौब्लम है?’’ सोफे पर बैठ कर वैभवी का चेहरा अपने हाथों में थामते मम्मी ने प्यार से पूछा.

वैभवी की आंखें भर आईं. वह हौलेहौले सुबकने लगी. इस पर मम्मी घबरा गईं. उन्होंने उस को अपनी बांहों में भर लिया. पानी का गिलास उस के होंठों से लगाया. चंद घूंट पीने के बाद वैभवी संयत हुई. उस ने स्थिर हो मम्मी को सब बताया.

वैभवी की मां गंभीर हो गईं. क्या कैंसर पुश्तैनी था? उन को कैंसर था. उन से पहले शायद उन की मां को भी. मगर दोनों अच्छी उम्र तक जीवित रही थीं.

अजीब पसोपेशभरी और दुखभरी स्थिति बन गई थी. वैभवी के विवाह होने को मात्र 15 दिन बाकी थे. अब यह दुखद स्थिति बताने पर रिश्ता टूटना तो था ही, साथ ही कैंसरग्रस्त परिवार है, यह दाग स्थायीतौर पर उन पर लग जाना था.

‘‘डाक्टर ने अभी अपना अंदाजा बताया है, साथ ही यह भी कहा है कि कई बार अंदाजा गलत भी साबित होता है,’’ मम्मी ने हौसला बंधाने के लिए आश्वासनभरे स्वर में कहा.

‘‘मगर हम विनोद और उस के परिवार को क्या बताएं?’’

वैभवी के इस सवाल पर मम्मी खामोश हो गईं. मां के बाद अब बेटी को कैंसर जैसे रोग की त्रासदी का सामना करना पड़ रहा था. मां को कैंसर विवाह के बाद 2 बच्चों को जन्म देने के बाद जाहिर हुआ था. परिणाम में वक्ष स्थल और बाद में गर्भाशय को निकालना पड़ा था.

मगर बेटी की त्रासदी मां से बड़ी थी. वह कुंआरी थी. विवाह दहलीज पर था. वरवधू दोनों पक्षों की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं.

विवाह की तारीख से पहले रिश्ता टूट जाना आजकल के जमाने में इतना असामान्य नहीं सम झा जाता. मगर कोई उचित कारण होना चाहिए.

मगर वैभवी की स्थिति एकदम असामान्य थी. कुदरत की मार कि इतनी त्रासदीभरे ढंग से उस पर पड़ी थी. ‘‘मैं अगर यह बात विनोद से छिपाती हूं तो विवाह के बाद इस बात के उजागर होने पर, कि मु झे डाक्टर द्वारा आगाह कर दिया गया था, मैं सारी उम्र उन से आंख नहीं मिला सकूंगी,’’ वैभवी ने सारी स्थिति की समीक्षा करते कहा.

‘‘मेरे बाद तुम्हारे कैंसरग्रस्त होने से तुम्हारी छोटी बहन अनुष्का के भविष्य पर भी प्रभाव पड़ेगा. उस का रिश्ता करना मुश्किल हो जाएगा,’’ मम्मी के स्वर में परेशानी  झलक रही थी.

वैभवी भी सोच में थी कि वह विनोद को कैसे बताए.

‘‘वैभ,’’ विनोद का फोन था. हर शाम विदा लेने के बाद दोनों एक या अनेक बार अपनेअपने सैलफोन से हलकीफुलकी चैट करते थे.

त्रिकोण- भाग 1 : शातिर नितिन के जाल से क्या बच पाई नर्स?

आज सोनल को दूसरे दिन भी बुखार था. नितिन अनमना सा रसोई में खाना बनाने का असफल प्रयास कर रहा था. सोनल मास्क लगा कर हिम्मत कर के उठी और नितिन को दूर से ही हटाते हुए बोली,”तुम जाओ, मैं करती हूं.”

नितिन सपाट स्वर में बोला,”तुम्हारा बुखार तो 99 पर ही अटका हुआ है और तुम आराम ऐसे कर रही हो,
जैसे 104 है.”

फीकी हंसी हंसते हुए सोनल बोली,”नितिन, शरीर में बहुत कमजोरी लग रही है, मैं झूठ नहीं बोल रही हूं.”

तभी 15 वर्षीय बेटी श्रेया रसोई में आई और सोनल के हाथों से बेलनचकला लेते हुए बोली,”आप जाइए, मैं बना लूंगी.”

तभी 13 वर्षीय बेटा आर्यन भी रसोई में आ गया और बोला,”मम्मी, आप लेटो, मैं आप को नारियल पानी देता हूं और टैंपरेचर चेक करता हूं.”

सोनल बोली,”बेटा, तुम सब लोग मास्क लगा लो, मैं अपना टैंपरेचर खुद चैक कर लेती हूं.”

नितिन चिढ़ते हुए बोला,”सुबह से जब मैं काम कर रहा था तो तुम दोनों का दिल नहीं पसीजा?”

श्रेया थके हुए स्वर में चकले पर किसी देश का नक्शा बेलते हुए बोली,”पापा, हमारी औनलाइन क्लास थी, 1
बजे तक.”

आर्यन मास्क को ठीक करते हुए बोला,”पापा, एक काम कर लो, कहीं से औक्सिमीटर का इंतजाम कर लीजिए, मम्मी का औक्सीजन लैवल चैक करना जरूरी है.”

नितिन बोला,”अरे सोनल को कोई कोरोना थोड़े ही हैं, पैरासिटामोल से बुखार उतर तो जाता है, यह वायरल
फीवर है और फिर कोरोना के टैस्ट कराए बगैर तुम क्यों यह सोच रहे हो?”

श्रेया खाना परोसते हुए बोली,”पापा, तो करवाएं? नितिन को लग रहा था कि क्यों कोरोना के टैस्ट पर ₹4,000 खर्च किया जाए. अगर होगा भी तो अपनेआप ठीक हो जाएगा. भला वायरस का कभी कुछ इलाज मिला है जो अब मिलेगा?”

जब श्रेया खाना ले कर सोनल के कमरे में गई तो सोनल दूर से बोली,”बेटा, यहीं रख दो, करीब मत आओ, मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण यह बुखार तुम्हे भी हो.”

नितिन बाहर से चिल्लाते हुए बोला,”तुम तो खुद को कोरोना कर के ही मानोगी.”

सोनल बोली,”नितिन, चारों तरफ कोरोना ही फैला हुआ है और फिर मुझे बुखार के साथसाथ गले में दर्द भी हो रहा है.”

श्रेया और आर्यन बाहर खड़े अपनी मम्मी को बेबसी से देख रहे थे. क्या करें, कैसे मम्मी का दर्द कम करें
दोनों बच्चों को समझ नहीं आ रहा था. सोनल को नितिन की लापरवाही का भलीभांति ज्ञान था. उसे यह भी पता था कि महीने के आखिर में पैसे ना के बराबर होंगे इसलिए नितिन टैस्ट नहीं करवा रहा है. सरकारी फ्री टैस्ट की स्कीम ना जाने किन लोगों के
लिए हैं, उसे समझ नहीं आ रहा था.
सोनल ने व्हाट्सऐप से नितिन को दवाओं की परची भेज दिया. नितिन मैडिकल स्टोर से दवाएं ले आया,
हालांकि मैडिकल स्टोर वाले ने बहुत आनाकानी की थी क्योंकि परची पर सोनल का नाम नहीं था.

दवाओं का थैला सोनल के कमरे की दहलीज पर रख कर नितिन चला गया. सोनल ने पैरासिटामोल खा ली
और आंखे बंद कर के लेट गई. पर उस का मन इसी बात में उलझा हुआ था कि वह कल औफिस जा पाएगी
या नहीं. आजकल तो हर जगह बुरा हाल है. एक दिन भी ना जाने पर वेतन कट जाता है. कैसे खर्च चलेगा
अगर उसे कोरोना हो गया तो? नितिन के पास तो बस बड़ीबड़ी बातें होती हैं, यही सोचतेसोचते उस के कानों
में अपने पापा की बात गूंजने लगी,”सोनल, यह तुझे नहीं तेरी नौकरी को प्यार करता है. तुझे क्या लगता है यह तेरे रूपरंग पर रिझा है?
तुझे दिखाई नहीं देता कि तुम दोनों में कहीं से भी किसी भी रूप में कोई समानता नहीं है…”

आज 16 वर्ष बाद भी रहरह कर सोनल को अपने पापा की बात याद आती है. सोनल के घर वालों ने उसे नितिन से शादी के लिए आजतक माफ नहीं किया था और नितिन के घर में रिश्तों का कभी कोई महत्त्व था ही नहीं. शुरूशुरू में तो नितिन ने उसे प्यार में भिगो दिया था, सोनल को लगता था जैसे वह दुनिया की सब से खुशनसीब औरत है पर यह मोहभंग जल्द ही हो गया था, जब 2 माह के भीतर ही नितिन ने बिना सोनल से पूछे उस की सारी सैविंग किसी प्रोजैक्ट में लगा दी थी.

जब सोनल ने नितिन से पूछा तो नितिन बोला,”अरे देखना मेरा प्रोजैक्ट अगर चल निकला तो तुम यह नौकरी
छोड़ कर बस मेरे बच्चे पालना.”

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ और तब तक श्रेया के आने की दस्तक सोनल को मिल गई थी. फिर धीरेधीरे नितिन
का असली रंग सोनल को समझ आ चुका था. जब तक सोनल का डैबिट कार्ड नितिन के पास होता तो सोनल पर प्यार की बारिश होती रहती थी. जैसे ही सोनल नितिन को पैसों के लिए टोकती तो नितिन सोनल से बोलना छोड़ देता था. धीरेधीरे सोनल ने स्वीकार कर लिया था कि नितिन ऐसा ही है. उसे मेहनत करने की आदत नही है. सोनल के परिवार का उस के साथ खड़े ना होने के कारण नितिन और ज्यादा शेर हो गया था. घरबाहर की जिम्मेदारियां, रातदिन की मेहनत और पैसों की तंगी के कारण सोनल बेहद रूखी हो गई थी.
सुंदर तो सोनल पहले भी नहीं थी पर अब वह एकदम ही रूखी लगती थी. सोनल मन ही मन घुलती रहती
थी. नितिन का इधरउधर घूमना सोनल से छिपा नहीं रहा था और ऊपर से यह बेशर्मी कि नितिन सोनल के पैसों से ही अपनी गर्लफ्रैंड के शौक पूरे करता था.

बड़बोला: भाग-4

हम विपुल के घर गए तो वहां घर के साथ वाला प्लाट खाली था, जहां खाने का प्रबंध था. शहरी वातावरण से बिलकुल उलट दरियों पर बैठ कर खाने का प्रबंध था. शादी का माहौल देख कर पूरा स्टाफ दंग रह गया. तभी बरात आ गई. आतिशबाजी के नाम पर बंदूक के दोचार फायर देखने को मिले.

भूख से बुरा हाल हुआ जा रहा था, इसलिए चुपचाप दरियोें पर बैठ गए, लेकिन सुषमा ने तो जैसे प्रण कर लिया था. वह अपने इरादे से नहीं पलटी. उस ने खाना तो दूर, पानी की एक बूंद भी नहीं ली. विपुल ने काफी आग्रह किया, लेकिन सब बेकार.

महेश का मन खाने से अधिक वापस जाने की जुगाड़ में लगा था. अत: गुस्से में भुनभुनाता बोला, ‘‘कसम लंगोट वाले की, ऐसी बेइज्जती कभी नहीं हुई. विपुल से ऐसी उम्मीद नहीं थी. सर, मुझे चिंता वापस जाने की है. यहां रहने का कोई इंतजाम नहीं है, रात को कोई बस भी नहीं जाती है. सुबह आफिस कैसे पहुंचेंगे. स्टाफ की लड़कियां परेशान हैं, उन के घर कैसे सूचना दें कि हम यहां फंस गए हैं.’’

हमारी बातें सुन कर साथ में बैठे वरपक्ष के एक सज्जन बोेले, ‘‘आप कितने व्यक्ति हैं, हमारी एक बस खाना खत्म होने के बाद वापस मेरठ जाएगी. हम आप को नवयुग सिटी के बाईपास पर छोड़ देंगे. शहर के अंदर बस नहीं जाएगी, क्योंकि वहां जाने से हमें देर हो जाएगी.’’

यह बात सुन कर पूरा स्टाफ खुशी से झूम उठा. जहां दो पल पहले खाने का एक निवाला गले के नीचे जाने में अटक रहा था, अब भूख से ज्यादा खाने लगे. ऐसा केवल खुशी में ही हो सकता है. वरपक्ष के उस सज्जन को धन्यवाद देते हुए हम सब बस में जा बैठे. यह उन का बड़प्पन ही था कि बस में जगह न होते हुए भी हम 8 लोगों को बस में जगह दी, स्टाफ की लड़कियों को सीट दी और खुद ड्राइवर के केबिन में बोनट पर बैठ गए.

रात के 1 बजे नवयुग सिटी के बाईपास पर बस ने हमें उतारा. चारों तरफ सन्नाटा, सब से बड़ी समस्या बस अड्डे जाने की थी, जहां हमारे स्कूटर खड़े थे. मन ही मन सब विपुल को कोस रहे थे कि कहां फंसा दिया, कोई आटो- रिकशा भी नहीं मिला. आधे घंटे इंतजार के बाद एक रोडवेज की बस रुकी, तब जान में जान आई. हालांकि बस ने पीछे से किराया वसूल किया. उस समय हम कोई भी किराया देने को तैयार थे, हमारा लक्ष्य केवल अपने घरों को पहुंचने का था.

अगले दिन गिरतापड़ता आफिस पहुंचा. पूरे आफिस में सन्नाटा. सिर्फ कंप्यूटर आपरेटर श्वेता ही आफिस में थी. मैं कुरसी पर बैठेबैठे कब सो गया, पता ही नहीं चला. दोपहर के 2 बजे महेश ने आ कर मुझे जगाया. बाकी समय हम दोनों सिर्फ शादी की बातें करते रहे. श्वेता के कान हमारी तरफ थे. हम ने तो अपनी भड़ास कह कर निकाल दी, लेकिन वज्रपात श्वेता पर हुआ, बेचारी के सारे सपने टूट गए. कहां तो उस ने एक राजकुमार से शादी का सपना संजोया था और वह राजकुमार फक्कड़ निकला.

बात को बढ़ाचढ़ा कर कहने की आदत तो बहुतों की होती है, लेकिन 1 का 500 विपुल बना गया. श्वेता इस आडंबरपूर्ण झूठ को सह नहीं सकी और उस ने 3-4 दिन बाद त्यागपत्र दे दिया. आफिस में सब विपुल के व्यवहार

से नाराज थे, लेकिन हम कर भी कुछ नहीं सकते थे. जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा वाली कहावत आखिर चरितार्थ हो गई.

एक दिन शाम को जब विपुल आफिस से निकला तो श्वेता के भाई ने अपने 3 दोस्तों के साथ उसे घेर लिया और हाकी से उस की जम कर पिटाई करने लगे. विपुल अपने बचाव में जोरजोर से चिल्लाने लगा, लेकिन ऐसे मौके पर लोग केवल तमाशबीन बन कर रह जाते हैं, कोई बचाने नहीं आता. तभी हम और महेश वहां से गुजरे तो भीड़ देख कर महेश रुक गया. विपुल की आवाज सुन कर महेश मुझ से बोला, ‘‘सर, यह तो अपना विपुल है.’’

विपुल को पिटता देख कर हम दोनों उसे बचाने की कोशिश करने लगे. उस के बचाव के चक्कर में हम भी पिट गए. हमारे कपड़े भी फट गए. हमें देख कर भीड़ में से कुछ लोग बचाव को आगे बढ़े तो हमलावर भाग गए. विपुल की बहुत पिटाई हुई थी. आंखें सूज गईं, शरीर पर जगहजगह नीले निशान पड़ गए थे. उसे पास के नर्सिंगहोम में इलाज के लिए ले गए, जहां उसे 2 दिन रहना पड़ा.

‘‘देख लिया अपने बड़बोलेपन का नतीजा, इतनी सुंदर सुशील कन्या का दिल तोड़ दिया. क्याक्या सपने संजो कर रखे थे उस ने, सब बरबाद कर दिया. शुक्र कर हम वहां पहुंच गए वरना तेरा तो क्रियाकर्म आज हो जाता. मैं तो कहता हूं कि अब भी समय है, संभल जा और आज की पिटाई से सबक ले.’’

विपुल चुपचाप सुनता रहा. महेश का भाषण जले पर नमक का काम कर रहा था, लेकिन कड़वी दवा तो पीनी ही पड़ती है. ऐसा आदमी अपनी आदत से मजबूर होता है, फिर उसी रास्ते पर चल पड़ता है. कुछ दिन खामोश रहने के बाद विपुल की बोलने की आदत फिर शुरू हो गई, लेकिन अब स्टाफ के लोग उस की बातों को गंभीरता से नहीं लेते थे.

एक दिन विपुल मेरे केबिन में आया और बोला, ‘‘सर, आप की हेल्प की जरूरत है.’’

‘‘बोलो, विपुल, अगर मेरे बस में होगा तो जरूर करूंगा.’’

यहां नवयुग सिटी में सरकार ने प्लाट काटे हैं. डैडी ने नवगांव का मकान बेच कर यहां एक प्लाट खरीदा है और कोठी बनवानी है. आप को मालूम है कि ठेकेदार, मजदूरों के सिर पर बैठना पड़ता है, नहीं तो वे काम नहीं करते. सुबह कुछ देर से आने की इजाजत मांगनी है, शाम को देर तक बैठ कर आफिस का काम पूरा कर लूंगा, कोई काम पेंडिंग नहीं होगा. हम ने यहां किराए पर मकान ले लिया है, शाम को डैडी कोठी के कंस्ट्रेक्शन का काम देख लेंगे. बस, 1 महीने की बात है, सर.’’

मैं ने उस को इजाजत दे दी और सोचने लगा कि 1 महीने में कौन सी कोठी बन कर तैयार होती है, तभी महेश केबिन में आया.

‘‘विपुल अंगरेजों के जमाने का बड़बोला है, जिंदगी में कभी नहीं सुधरेगा.’’

‘‘अब क्या हो गया?’’

‘‘सर, सेक्टर 20 में तो 25 और 50 गज के प्लाट प्राधिकरण काट रहा है, वहां कौन सी कोठी बनवाएगा. मकान कहते शर्म आती है, इसलिए कोठी कह रहा है. यदि उस की 50 गज में कोठी है, तो सर, मेरा 100 गज का मकान तो महल की श्रेणी में आएगा.’’

मैं महेश की बातें सुन कर हंस दिया और जलभुन कर महेश विपुल को जलीकटी सुनाने लगा. खैर, विपुल ने 1 महीना कहा था, लेकिन लगभग 4 महीने बाद मकान बन कर तैयार हो गया. मकान के गृहप्रवेश पर विपुल ने पूरे स्टाफ को आमंत्रित किया, लेकिन स्टाफ ने कोई रुचि नहीं दिखाई. सब बड़े आराम से आफिस के काम में जुट गए. मेरे कहने पर सब ने एकजुट हो कर विपुल के यहां जाने से मना कर दिया.

‘‘महेश, बड़े प्रेम से विपुल ने गृहप्रवेश पर बुलाया है, हमें वहां जाना चाहिए.’’

‘‘सर, मुझे चलने को मत कहिए, उस की कोठी मैं बरदाश्त नहीं कर सकूंगा. मैं अपने झोंपड़े में खुश हूं.’’

‘‘महेश, आफिस से 2 घंटे जल्दी चल कर बधाई दे देंगे, उस की कोठी हो या झोंपड़ा, हमें इस से कुछ मतलब नहीं. वह अपनी कोठी में खुश और हम अपने झोंपड़े में खुश.’’

यह बात सुन कर महेश खुशी से उछल पड़ा और बोला, ‘‘कसम लंगोट वाले की, आप की इस बात ने दिल बागबाग कर दिया. अब आप का साथ खुशीखुशी.’’

शाम को 4 बजे हम आफिस से चल कर विपुल की कोठी पहुंचे. 50 गज के प्लाट पर दोमंजिला मकान था विपुल का. महेश ने चुटकी ली, ‘‘यार, कोठी के दर्शन करवा, बड़ी तमन्ना है, दीदार क रने की.’’

‘‘हांहां, देखो, यह ड्राइंगरूम, रसोई, बैडरूम…’’ अपनी आदत से मजबूर साधारण काम को भी बढ़ाचढ़ा कर बताने लगा कि कोठी के निर्माण में 50 लाख रुपए लग गए.

‘‘सुधर जा, विपुल, 5 के 50 मत कर.’’

‘‘नहींनहीं, आप को पता नहीं है कि हर चीज बहुत महंगी है. जिस चीज को हाथ लगाओ, लाखों से कम आती नहीं है,’’ विपुल आदत से मजबूर सफाई देने लगा.

‘‘विपुल, समय बड़ा बलवान है, इतना झूठ बोलना छोड़ दे, एक

दिन तेरा सच भी हम झूठ मानेंगे. सुधर जा.’’

‘‘बाई गौड, झूठ की बात नहीं है, बिलकुल सच है,’’ विपुल सफाई पर सफाई दे रहा था.

हम ने वहां से खिसकने में ही अपनी बेहतरी समझी. विपुल से बहस करना बेकार था. हम ने उसे शगुन का लिफाफा पकड़ाया और विदा ली.

मकान से बाहर आ कर हम दोनों के मुख से एकसाथ बात निकली :

‘‘विपुल कभी नहीं सुधरेगा. बड़बोला था, बड़बोला है और बड़बोला रहेगा.’

जब बुजुर्गों की सेवा में बाधक बन जाए कैरियर

‘पीकू’ फिल्म में पीकू का किरदार देख कर दर्शकों के मुंह से यही निकला कि घरघर पीकू बसती है यानी पीकू जैसी लड़कियां हमारे समाज में पाई जाती हैं, जो आप को मांबाप की सेवा करती उन्हीं के घर पर मिलेंगी. हम यह नहीं कह रहे कि पीकू जैसी सेवा अपने बुजुर्ग मांबाप के लिए करना गलत है. पर यह भी जरूरी है कि पीकू बन कर अपनी जिंदगी को खराब न करें क्योंकि उस चक्कर में मांबाप भी परेशान होंगे.

कई साल पहले आई इस फिल्म की बात करें तो इस के 2 किरदार हमारे मन में कई सवाल छोड़ जाते हैं. कई बार हमें पीकू सही लगती है, तो कई बार भास्कर बनर्जी. चूंकि फिल्म को कौमेडी टच दिया गया है, इसलिए यह अंत में उन जरूरी सवालों से बच जाती है, जिन का हमें असल जिंदगी में सामना करना पड़ता है.

क्या सेवा करने के कारण अपना कैरियर, अपनी मरजी से कुछ करने की आजादी और शादी न करने का फैसला लेना सही है? क्या गैरतमंद लड़की पूरी जिंदगी अपने भैयाभाभी, बहन के तानों को सहते हुए काटना पसंद करेगी? मान लीजिए कि आप का भाई, भाभी, बहन या अन्य परिवार के सगेसंबंधी आप के बूढ़े या लाचार मां या बाप को नहीं देख सकते, तो क्या आप अपनी पूरी लाइफ उन की देखभाल में गुजार देंगी? क्या पूरी जिंदगी उन्हीं की अजीब इच्छाओं या दवादारू के पीछे ही उल?ा रहे?

बड़ा सवाल है कि उन के चले जाने के बाद आप की स्थिति क्या होगी? क्या आप को भी उन की तरह एक पीकू चाहिए होगी या फिर आप के पास इतना पैसा है कि आप बिना किसी के सहारे अपनी पूरी जिंदगी गुजार देंगी? क्या सभी पीकुओं के पास पैसा या अन्य सुखसुविधाएं होंगी? ये सवाल पीकू कई लोगों के मन में छोड़ गई थी पर समाज ने कुछ सीखा है लगता नहीं.

सेवा जरूरी या कैरियर

एक बेटी के ऐसे मातापिता की सेवा करने के पीछे अपना कैरियर और सुख गंवाया जो हर समय चूंचूं करते फिरते रहे गलत है और यह अनावश्यक भी. कई मांबाप ऐसे होते हैं कि अपने सिवा उन्हें कोई नहीं दिखता. दूसरी ओर बुजुर्ग मातापिता की आदतों से खिन्न बेटी का व्यवहार समाज में अभद्र होता जाता है. वह अपने कुलीग्स, दोस्तों, नौकरों या अजनबी लोगों से भी अशिष्ट व्यवहार करने लगती है.

35 वर्षीय शेखर ने अपना पूरा जीवन मां की सेवा करने के लिए समर्पित कर दिया, वह मां जिस ने शेखर के और 2 बड़े भाइयों को भी जन्म दिया था, लेकिन बड़े भाइयों और उन की पत्नियों ने मां का वह हाल किया कि वह अब बिस्तर पर है. घर के सारे कामकाज से ले कर बाहर का राशन व सब्जी लाने का सारा काम, कामवाली की तरह लगे रहने वाली शेखर की मां ही किया करती थी.

शेखर को यह नागवार गुजरा और उस ने अपनी कंपनी से रिजाइन दे कर फ्रीलांसिंग पर घर बैठे काम करना शुरू कर दिया और मां की सेवा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया.

शादी न करने का फैसला

शेखर ने अपना कैरियर तो चौपट किया ही साथ ही नौजवान होने के बावजूद उस ने शादी न करने का बड़ा फैसला भी लिया. अब अगर उस से कोई पूछ बैठता कि शादी की या नहीं तो इस पर शेखर की प्रतिक्रिया होती कि फिर मां की सेवा कौन करेगा? उम्र ज्यादा होने पर अब वह चाहे भी तो उस की शादी नहीं हो पाएगी और अगर हो भी गई तो क्या उस की पत्नी भी भाभियों की तरह ही मां के साथ दुर्व्यवहार करने लगेगी?

क्या शेखर की यह सोच जायज है? क्या शेखर ने सोचा है कि मां के जाने के बाद जब वह खुद बिस्तर पर पड़ जाएगा, तो उस की सेवा कौन करेगा या फिर उस ने जीवन में इतना कमा लिया है कि नौकर रख कर भी वह आजीवन अपनी सेवा कराएगा?

क्या शेखर को शादी कर अपनी हमसफर को पहले ही स्थिति साफ कर देनी नहीं चाहिए थी? शादी कर अपनी पत्नी को बताना चाहिए था कि मां की सेवा भी करनी पड़ेगी. क्या दुनिया की सारी लड़कियां शेखर की भाभियों की तरह ही होती हैं?

शेखर की तरह ही ऐसे कई घरों में पीकू भी हैं, जो अपना पूरा जीवन अपने बुजुर्ग मातापिता की सेवा में लगा देती हैं. क्या ऐसा करना सही है? कुछ मांएं तो बिलकुल स्वार्थी हो जाती हैं कि बेटी की शादी न करतीं और फिर उन की देखभाल न करें. वे हर लड़के को भगा देती हैं. कुछ शादी के बाद तलाक तक दिला देती हैं.

नर्क से बदतर जिंदगी

जून, 2012 में 2 सगी बहनों को 8 साल खुद की कैद से बाहर निकाला गया. पासपड़ोस के लोग उस समय हक्केबक्के रह गए, जब उन दोनों को हंसतेखेलते 8 सालों से नहीं देखा था. इन दोनों बहनों के पास से बदबू आ रही थी और दोनों ही चलने में असमर्थ हो गई थीं. दोनों इतनी कमजोर थीं क्योंकि कई महीनों से उन्होंने खाने का स्वाद चखना तो दूर बल्कि देखा व सूंघा तक नहीं था. मानसिक हालत तो ऐसे में खराब होनी ही थी.

अब इस कहानी को 8 साल पहले रिवर्स करें तो पाएंगे कि ममता की शादी हो जाने के बाद उस के कुछ सालों बाद पिता भी चले गए. थोड़े दिनों बाद ही गृहक्लेशों के कारण ममता की जिंदगी नर्क से भी बदतर हो गई और बेटे के जन्म के बाद पतिपत्नी का तलाक हो गया. ममता अपने मायके बूढ़ी मां के पास आ गई साथ में छोटी बहन का भी उसे सहारा मिल गया.

बिखर जाती है जिंदगी

अब कहानी यहां से नया टर्न लेती है. धीरेधीरे मानसिक तनाव झेलते इस पूरे परिवार के बुरे दिन शुरू हो गए थे. ममता की हालत व बिखरी लाइफ को देख कर नीरजा भी अवसादग्रस्त हो गई. यहां अब तक कमाने का कोई जरीया नहीं बचा था. हां, सालों में कोई रिश्तेदार मेहरबान होता तो कुछ मदद कर जाता पर कब तक.

बूढ़ी मां का सहारा बनती दोनों बेटियां खुद ही बिस्तर पर पड़ गईं. बेटे के भविष्य की भी चिंता को ममता ने घर कर लिया था पर दूसरी बहन मानसिक रूप से विक्षिप्त होने के चलते उस ने कोई कदम नहीं उठाया और न ही अपनी बहन को उबारा. ममता ने खुद बरबाद होना ज्यादा सही सम?ा. अगर वह थोड़ी हिम्मत दिखाती तो शायद हंसतेखेलते परिवार की ऐसी दुर्दशा नहीं होती.

आज अगर देखें तो 10 परिवारों में करीब

2 परिवार आप को ऐसे मिल जाएंगे जहां बेटा या बेटी की उम्र 35 से 40 वर्ष होगी और उस ने अपना सारा जीवन मां या बाप की देखरेख में समर्पित कर दिया है. ये उम्र ज्यादा हो जाने पर खुद से शादी न करने का फैसला कर लेते हैं या इन्हें शादी के औफर आने बंद हो जाते हैं. अगर औफर आए भी तो बेमेल लोगों के आते हैं, जो लोगों को नागवार गुजरते हैं.

अगर ममता ने ठोस कदम उठाया होता तो वह अपनी मां, बेटे और बहन सभी के लिए मिसाल कायम कर सकती थी. क्या ममता का यह फैसला सही साबित हुआ, अंत तो आप सब के सामने ही है. दोनों बहनों ने कैसे हार कर अपनेआप को कैद कर लिया था.

ब्लैकमेलिंग से नहीं चलते रिश्ते

अकसर वृद्ध होते मांबाप इकलौती बेटी को सैलफिश कह कर अपनी नाजायज मांगें मनवा लेते हैं. इंसानी रिश्तों में ब्लैकमेलिंग अपनाना उचित नहीं है.

अपनी बात मनवाने के लिए जिद्द इख्तियार करना भी ठीक नहीं कहा जा सकता है. किसी बात पर एकराय होने के लिए उस पर स्वस्थ बहस होनी चाहिए. साथ में यह भी देखा जाना चाहिए कि उस से किसी पक्ष का नुकसान न हो.

जहां मां या बाप में से एक की मृत्यु हो चुकी हो कई बार बड़ों के मन में यह बात बैठा दी जाती है कि उन की देखभाल के लिए उन के मातापिता ने दूसरी शादी नहीं की. वे बच्चों को ऐसे तर्क दे कर चुप करा देते हैं और अपनी बात मनवाते हैं. यह ब्लैकमेलिंग बेटियों को मानसिक शिकार बना देती है. वे अपना खुद का रखरखाव करना छोड़ देती हैं.

मेरे बाद क्या, गलत सोच

कई युवा यह सोचते हैं कि उन के अलावा परिजनों की देखभाल कोई और नहीं कर सकता या वे शादी कर लेंगे तो अकेले मां या बाप का क्या होगा. जरूरी नहीं कि आप के पार्टनर को आप के परिजनों की चिंता न हो. आप अपने पेरैंट्स को शादी के बाद भी अपने साथ रख सकते हैं.

इस के लिए आप को अपने पार्टनर को कनविंस करना होगा. ‘गोलमाल 3’ फिल्म एक बढि़या उदाहरण है, जिस में 2 अकेले बुजुर्ग अपने परिवारों को एकसाथ लाने का फैसला करते हैं, इस फैसले से परिवार में कुछ समय के लिए मतभेद हो सकते हैं लेकिन यह भविष्य को ले कर रास्ता दिखाता है.

थोड़ा एडजस्ट करें, प्लीज

जब बेटी अकेली हो तो बात दूसरी, पर कई बार बहन या भाई, मांबाप की जिम्मेदारी अविवाहित बेटी पर डाल कर कन्नी काट लेते हैं. उन की अनचाही बातें पूरी करते फिरते. खैर, यह फिल्म थी. अगर युवतियां अपना कैरियर, लाइफस्टाइल, शादी जैसे अहम फैसले अपने बुजुर्गों के लिए बदल रही हैं, तो थोड़ा ऐडजस्ट उन्हें भी करना पड़ेगा.

जीवन 2 तरीके से जीया जा सकता है. सूखी लकड़ी की तरह कठोर हो कर या हरी लकड़ी की तरह लचीला हो कर. पहले तरीके से दूसरों और खुद को तकलीफ और तनाव ही मिलेगा पर दूसरे तरीके से बेहतर परिणाम निकलने की गुजाइंस बढ़ जाती है. कई मांबाप अपने कमाए पैसे की धौंस पर बेटियों को सही निर्णय नहीं लेने देते. हर बेटी को अपने पूरे जीवन को देख कर फैसले लेने चाहिए.

बोझ न बनें

बारबार दिखाई जाने वाली अभिताभ बच्चन व हेमामालिनी की फिल्म ‘बागबान’ में 4 बच्चों के बावजूद भी उन के मांबाप को अलगथलग रहना पड़ता है. उन 2 बुजुर्गों की जिम्मेदारी इकट्ठे कोई नहीं उठाना चाहता तो वहीं तब वह बुजुर्ग रिटायर होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारता और अपनी लिखी खुद की कहानी पर ही किताब लिखने का फैसला करता है.

यानी हम यहां सम?ा सकते हैं कि वह किसी पर भी बो?ा नहीं बनता. इस फिल्म से भी कई निराश लोगों को हिम्मत मिल सकती है क्योंकि एक उम्र के बाद खुद बुजुर्गों को लग सकता है कि वे परिवार पर बो?ा बन गए हैं. यह सोच युवा पीढ़ी के मन में भी आ सकती है. उस से बचने के लिए बुजुर्ग परिवार की मदद कर सकते हैं.

जीवन में अकेले होने पर कई बार तनाव भी घर कर जाता है. ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए बुजुर्ग अपना मन अपने नातीपोते के कामों व उन में लगा सकते हैं. इस से परिवार को भी मदद मिलेगी. अपनी समस्याओं को खुद निबटाएं न कि सब को अपनी समस्या के चलते फांस कर रखें. किसी पर कभी बो?ा न बनें.

बुढ़ापे में कोई क्लब जौइन करना, सोशल होना, दोस्त बनाना, सुबहशाम टहलने जाना बुजुर्गों का मन बहलाने के काम आ सकता है. हमारा शरीर एक मशीन की तरह है, इस का चलना बंद हो गया तो कई पार्ट्स में परेशानी हो सकती है. इन तरीकों से बुजुर्ग परिवार का छोटामोटा काम करने के साथ ही अपना मन भी लगा सकेंगे.

युवाओं को समझना जिम्मेदारी

इस से एक कदम आगे बढ़ कर बुजुर्ग युवतियों को जीवन का मूल्य सम?ाएं. बुजुर्ग पीढ़ी अपने जीवन का बड़ा हिस्सा जी चुकी होती है, इसलिए उन्हें युवाओं को अपने हिसाब से जीने की सलाह देनी चाहिए. बेटियां मांबाप के जोश में कई बार शादी न करते, कैरियर को सैक्रीफाइज करने जैसे कई बड़े फैसले ले लेती हैं, लेकिन बुजुर्गों को अपने अनुभव का हवाला देते हुए उन्हें सम?ाना चाहिए कि ऐसे फैसले बाद में पछतावे की वजह बनते हैं.

सरकार भी दे ध्यान

बुजुर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा बढ़ाए जाने की जरूरत है. उन के लिए बेहतर पैंशन, वृद्धाश्रम, सस्ता अनाज जैसी सुविधाएं बढ़ानी चाहिए. यूरोप के कई देशों में सरकारें सामाजिक सुरक्षा के नाम पर बड़ी रकम खर्च करती हैं. भारत में परिवारों के टूटने का दौर तेजी से बढ़ा है. इस से भी बुजुर्ग अलगथलग पड़ जाते हैं, इसलिए भी सरकार को बुजुर्गों के लिए सुविधाएं बढ़ानी चाहिए ताकि किसी बेटी को अपनी जवानी न खोनी पड़े.

धर्म उठाता है फायदा

भारत में अकसर बच्चों को श्रवण कुमार, राम आदि की कहानियां सुना कर आज्ञाकारी और भक्त बनने को प्रेरित किया जाता है. यह विचार धर्र्म से प्रेरित है. धर्म ने ही सिखाया है कि मातापिता की सेवा श्रवण कुमार की तरह करनी चाहिए. कई बार तो मातापिता तीर्थ यात्राओं जैसे चारधाम आदि की भी मांग करते हैं.

तीर्थयात्रा के अलावा मातापिता के मरने पर उन का श्राद्ध, बरसी, पिंडदान करना जैसे धर्म संस्कार बेटियों से करवा कर उन्हें नकली बनावटी सम्मान दे दिया जाता है. आत्मा की शांति, अगले जन्म के नफेनुकसान दिखा कर अनेक कर्मकांड बेटियों से करवाए जाते हैं और यह दोहरा बोझ बन जाता है.

इन सब चक्करों में न पड़ कर और

किसी दबाव में न आ कर समझदारी से कदम उठाना चाहिए.

मंदिर नहीं अस्पताल जरूरी

अपना कोई अजीज बीमार हो और सरकारी औल इंडिया इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल’ जैसे सरकारी अस्पताल में जा पहुंचा हो और न डाक्टर बात करने को तैयार होन लैब असिस्टैंट तो कितनी घुटन और परेशानी होती है यह भुक्तभोगी ही जानते हैं. देशभर में सरकारी अस्पतालों का जाल बिछा है पर जहां मंदिर में जाने पर तुरंत प्रवेश मिल जाता है (या कुछ घंटों में सही) अस्पताल अभी भी इतने कम हैं कि उन में बैड मिलना और इलाज का समय निकालना ऐवरेस्ट पर चढ़ने के समान होता है.

दिल्ली एम्स ने सर्कुलर जारी किया है कि वहां कौरीडोरों में मरीजोंउन के रिश्तेदारों के अलावा जो भी हो उसे यूनिफौर्म और आईडी का डिस्पले करते रहना होगा क्योंकि कौरीडोर प्राइवेट लैबोंक्लीनिकों के एजेंटों से भरे हैं. ये लोग पहले मरीज की मदद करते हैं और फिर झांसा देते हैं कि सरकारी लैब में रिजल्ट सप्ताहों में आएगासर्जरी महीनों में होगीडाक्टर के लिए नंबर कई दिनों में आएगा तो क्यों न प्राइवेट जगह चला जाए.

यह देश की बहुत बड़ी दुर्गति है कि हर नागरिक को समय पर इलाज न मिल पाए. गरीब को अनाज मिलेसही इलाज मिले और जेब में पैसे हों या न होंइलाज हो हीयह तय करना सरकार का पहला काम है न कि फलां जगह मंदिर के लिए कौरीडोर बनाना और फलां जगह दूसरे धर्मस्थल को ले कर डिस्प्यूट खड़ा करना. सरकार को 4 लेन6 लेन सड़कें बनाने से ज्यादा अस्पतालों को ठीक करना होगा.

आज जो भी मैडिकल इलाज वैज्ञानिकों की शोध से मिल रहा हैवह कुछ को फाइवस्टार के पैसे देने पर ही मिलेदेश के लिए सब से ज्यादा दर्दनाक स्थिति है.

केंद्र सरकार अपनी नाक के नीचे एम्स को दलालों से मुक्त नहीं करा सकती तो ईडी (एनफोर्समैंट डाइरैक्टोरेट) सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) एनआईए (नैशनल इंवैस्टिगेशन ऐजेंसी) जैसी संस्थाएं जनता के लिए बेकार हैं. जब अपना कोई मर रहा होकराह रहा होसिर पर पैसे बनाने वाले दलाल चढ़े हों क्योंकि सरकारी इलाज न जाने कब मिलेगासरकार को ईडीफीडी पर गर्व नहीं करना चाहिएसरकारी अस्पतालों में घूम रहे दलालों पर शर्म से गड़ जाना चाहिए.  

एक्सपर्ट से जाने मेल फर्टिलिटी 101 और पुरुषों के बांझपन से जुड़ी समस्याएं

बांझपन प्रजनन तंत्र की एक समस्या है जो आपको महिला को गर्भवती करने से रोकती है। आज 7 में से एक कपल को बांझपन की समस्या है, इसका अर्थ है कि पिछले 6 महीने या सालभर में गर्भधारण करने के प्रयास में वे सफल नहीं रहे। इनमें आधे से भी ज्यादा मामलों में पुरुष बांझपन की एक अहम भूमिका होती है. डॉ रत्‍ना सक्‍सेना, फर्टिलिटी एक्‍सपर्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फर्टिलिटी, बिजवासन की बता रही हैं इसके लक्षण और उपाय.

पुरुष बांझपन के क्या लक्षण होते हैं?

बांझपन अपने आपमें ही लक्षण है। हालांकि, गर्भधारण का प्रयास कर रहे दंपति के मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक नकारात्मक प्रभावों के बारे में बता पाना काफी मुश्किल है। कई बार, बच्चा पैदा करना उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है। बच्चे की चाहत रखने वाले पुरुषों और महिलाओं दोनों में ही अवसाद, क्षति, दुख, अक्षमता और असफलता की भावना आम होती है।

दोनों में से कोई एक या दंपति, जो ऐसी किसी भी भावना से गुजर रहे हैं उन्हें चिकित्सकों जैसे थैरेपिस्ट या साइकेट्रिस्ट से प्रोफेशनल मदद लेनी चाहिए, ताकि वे जीवन के इस मुश्किल दौर से उबर पाएं।

हालांकि, कुछ मामलों में, पहले से मौजूद समस्या, जैसे कोई आनुवंशिक डिस्‍ऑर्डर, हॉर्मोनल अंसतुलन, अंडकोष के आस-पास की फैली हुई नसें या शुक्राणु की गति को रोकने वाली कोई समस्या हो तो उसके संकेत तथा लक्षण इस प्रकार हो सकते हैं:

1.यौन इच्छा का कम हो जाना या इरेक्शन बनाए रखने में समस्या होना (इरेक्टाइल डिसफंक्शन)
2.अंडकोष में दर्द, सूजन या गांठ होना
3. लगातार श्वसन संक्रमण होना
4.खुशबू ना आना
5.शरीर के बालों या चेहरे के बालों का कम हो जाना, साथ ही क्रोमोसोमल या हॉर्मोनल असामान्यताएं
6.स्पर्म काउंट का सामान्य से कम होना

पुरुष बांझपन के क्या कारण हैं
कई सारे शारीरिक और पर्यावरण से जुड़े कारक हैं जोकि आपके प्रजनन पर प्रभाव डाल सकते हैं। उन कारकों में शामिल हो सकते हैं:

एजुस्पर्मिया: शुक्राणु कोशिकाओं का उत्पादन करने में असमर्थता के कारण बांझपन।
ओलिगोस्पर्मिया: कम गुणवत्ता वाले शुक्राणु का उत्पादन।
आनुवंशिक रोग: क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम, मायोटोनिक डिस्ट्रोफी, माइक्रोडिलीशन, हेमोक्रोमैटोसिस।
विकृत शुक्राणु: ऐसे शुक्राणु जो अंडे को निषेचित करने के लिये पर्याप्त समय तक जीवित नहीं रह सकते।
बीमारियां: डायबिटीज, ऑटोइम्यून रोग और सिस्टिक फाइब्रोसिस
वैरिकोसेले: एक ऐसी समस्या हैं, जहां आपके अंडकोष की नसें सामान्य से बड़ी होती हैं। इसकी वजह से उसकी गर्मी बढ़ जाती है, जो आपके द्वारा उत्पादित शुक्राणुओं के प्रकार या मात्रा को बदल सकता है।
कैंसर का इलाज: कीमोथैरेपी, रेडिएशन
लाइफस्टाइल से जुड़े विकल्प: शराब, धूम्रपान और नशीली दवाओं के उपयोग सहित मादक द्रव्यों का सेवन।
हॉर्मोनल परेशानियां: हाइपोथैलेमस या पिट्यूटरी ग्रंथियों को प्रभावित करने वाली समस्याएं
प्रोस्टेटेक्टोमी – प्रोस्टेट ग्रंथि को सर्जिकल रूप से हटाना, जो बांझपन, नपुंसकता और असंयम का कारण बनता है।
एंटीबॉडीज – एंटीबॉडीज जो शुक्राणु की गतिविधि को रोकते हैं, उससे अपने साथी के अंडे को निषेचित करने की शुक्राणु की क्षमता कम हो जाती है।

उपलब्ध परीक्षण
आपके चिकित्सक, आपकी मेडिकल हिस्ट्री का मूल्यांकन करते हैं और एक जांच करते हैं। पुरुष बांझपन से जुड़ी अन्य जांचों में शामिल हो सकता है:
सीमन का विश्लेषण- दो अलग-अलग दिनों में स्पर्म के दो नमूने लिए जाते हैं। चिकित्सक, किसी प्रकार की असामान्यता की जांच करने के लिये उस सीमन और स्पर्म तथा एंटीबॉडीज की उपस्थिति की जांच करेंगे। आपके स्पर्म की मात्रा, उसकी गतिशीलता और आकार की भी इस आधार पर जांच होगी।
ब्लड टेस्ट: हॉर्मोन के स्तर को जांचने और अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिये ब्लड टेस्ट किए जाते हैं।
टेस्टीक्युलर बायोप्सी: अंडकोष (टेस्टिकल्‍स) के भीतर नलियों के नेटवर्क की जांच करने के लिये एक महीन सुई और एक माइक्रोस्कोप का उपयोग किया जाता है ताकि यह देखा जा सके कि उनमें कोई शुक्राणु है या नहीं।
अल्ट्रासाउंड स्कैन- प्रजनन अंगों की इमेजिंग देखने के लिये अल्ट्रासाउंड स्कैन किए जाते हैं, जैसे कि प्रोस्टेट ग्रंथि, रक्त वाहिकाएं और स्‍क्रॉटम के अंदर की संरचनाएं।

कौन-कौन से उपचार होते हैं
वेसेक्टॉमी रिवर्सल: इस प्रक्रिया में, सर्जन आपके वास डिफरेंस को फिर से जोड़ देता है, जो स्‍क्रोटल ट्यूब होती है जिसके माध्यम से आपका शुक्राणु आगे बढ़ता है. उच्च क्षमता वाले सर्जिकल माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखते हुए, सर्जन सावधानी से वास डिफरेंस के सिरों को वापस एक साथ सिल देता है।

वासोपिडीडिमोस्टोमी: ब्लॉकेज को हटाने की इस प्रक्रिया के लिये, आपके वास डिफरेंस को सर्जरी की मदद से दो हिस्सों में कर दिया जाता है और ट्यूब के आखिरी हिस्से को एक बार फिर जोड़ दिया जाता है. काफी सालों पहले जब सामान्य पुरुष नसबंदी की जाती थी तो इंफेक्शन या इंजुरी की वजह से एपिडीडिमिस या उपकोष में एक अतिरिक्त ब्लॉकेज हो जाता था। उसकी वजह चाहे कोई भी हो, आपके सर्जन एपिडीडिमिस ब्लॉकेज की बायपासिंग करके इस समस्या को सुलझा देंगे.

इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई): कृत्रिम प्रजनन तकनीकें उस बिंदु तक आगे बढ़ गई हैं जहां एक एकल शुक्राणु को एक अंडे में शारीरिक रूप से इंजेक्ट किया जा सकता है। इंट्रासाइटोप्लाज्मिक शुक्राणु इंजेक्शन (आईसीएसआई) में, शुक्राणु को एक विशेष कल्चर माध्यम में एक अंडे में इंजेक्ट किया जाता है। पुरुष के शुक्राणु को गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से उसके साथी के गर्भाशय में डालने से पहले एकत्रित किया जाता है, धोया और केंद्रित किया जाता है। इस प्रक्रिया ने पुरुष बांझपन के गंभीर कारकों के उपचार के विकल्पों को भी बदल दिया है। इस तकनीक की वजह से 90% बांझ पुरुषों के पास अब अपनी आनुवंशिक औलाद पाने का मौका है।

इन-विट्रो-फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) – पुरुष बांझपन से जूझ रहे कुछ दंपतियों के लिये इन-विट्रो-फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) एक पसंदीदा उपचार है। आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान, गर्भाशय को इंजेक्शन योग्य प्रजनन दवाओं से स्टिम्युलेट किया जाता है, जिसकी वजह से कई सारे अंडे परिपक्‍व होते हैं। जब एग्स पर्याप्त रूप से परिपक्‍व हो जाते हैं तो फिर उन्हें एक सरल प्रक्रिया के द्वारा निकाल लिया जाता है। एक कल्चर डिश में या फिर सीधे हर परिपक्‍व एग में एक सिंगल स्पर्म को इंजेक्ट करके फर्टिलाइजेशन को अंजाम दिया जाता है। इस प्रक्रिया को इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ऊपर देखें) के नाम से जाना जाता है। फर्टिलाइजेशन के बाद, गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से डाले गए एक छोटे कैथेटर के माध्यम से दो से तीन भ्रूणों को गर्भाशय में रखने से पहले तीन से पांच दिनों तक भ्रूण के विकास की निगरानी की जाती है।

पीईएसए: यदि आपकी सर्जरी असफल हो जाती है तो एक और सर्जिकल प्रक्रिया, पर्क्यूटेनियस एपिडीडिमल स्पर्म एस्पिरेशन (पीईएसए) की जाती है। इसमें लोकल एनेस्थेसिया देकर एक पतली सुई को एपिडीडिमिस में डाला जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान, स्पर्म को निकाला जाता है और तुरंत ही आईसीएसआई के लिये इस्तेमाल किया जाता है या आगे इस्तेमाल के लिये फ्रीज कर दिया जाता है।

हॉर्मोनल दवाएं- मस्तिष्क में पिट्यूटरी ग्रंथि गोनैडोट्रोपिन हॉर्मोन स्रावित करती है, जो अंडकोष को शुक्राणु पैदा करने के लिए उत्तेजित करती है। कुछ मामलों में इन गोनैडोट्रोपिन के अपर्याप्त स्तर के कारण पुरुष बांझपन होता है। इन हॉर्मोन्स को दवा के रूप में लेने से शुक्राणु उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

Winter special: सर्दियों के जायके

जायके सर्दियों के तिल हौट पौट सामग्री

-2 आलू उबले

-50 ग्राम नूडल्स उबले 

-50 ग्राम पत्तागोभी कद्दूकस

-4 बड़े चम्मच प्याज कटा

-हरी व लाल मिर्च स्वादानुसार

1/2 छोटा चम्मच अमचूर

-11/2 छोटे चम्मच कौर्नफ्लोर

-1/4 कटोरी मैदे का घोल

-3 कलियां लहसुन

-थोड़ा सा लाल, औरेंज कलर

-थोड़ा सा तेल तलने के लिए

-नमक स्वादानुसार.

विधि

आलुओं को कद्दूकस कर के उन में नमक, कौर्नफ्लोर, मिर्च व अमचूर डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. मैदे के घोल में कलर मिक्स कर लें. नूडल्स में प्याजलहसुन व पत्तागोभी मिला लें. हलका सा नमक व मिर्च मिला लें. 2 बड़े चम्मच पीठी हाथ पर फैला कर उस में नूडल्स मिक्सचर भर के चारों तरफ से बंद कर दें. फिर मैदे के घोल में डुबो कर पेड़े को तिल में लपेट गरम तेल में सुनहरा होने तक तल लें. इसी तरह सारे तैयार कर चटनी के साथ गरमगरम सर्व करें. कौर्न कौस्तिनी सामग्री द्य 2 ब्रैड द्य 2 चम्मच मक्खन द्य 1 टमाटर द्य 1 खीरा द्य 1 कप पत्तागोभी द्य 1-1 लाल, हरी व पीली शिमलामिर्च द्य चाटमसाला स्वादानुसार द्य 1/2 कप कौर्न उबले द्य कालीमिर्च पाउडर स्वादानुसार. विधि धीमी आंच पर तवा गरम कर ब्रैड को सुखा लें. इस से वह कुरकुरी हो जाएगी. टमाटर के बीज निकाल कर 2 टुकड़े कर लें. पत्तागोभी और तीनों शिमलामिर्च को भी बीज निकाल कर काट लें. फ्राइंगपैन में 1/2 चम्मच मक्खन डाल कर हलका सा सौफ्ट होने पर शैलो फ्राई कर लें. ब्रैड के छोटेछोटे टुकड़े करें. इस में सारी सामग्री मिला लें. ऊपर से चाटमसाला व कालीमिर्च पाउडर बुरक तुरंत सर्व करें. क्रीमी ट्रूफल पुडिंग सामग्री द्य थोड़ा सा स्पंज केक द्य व्हिपिंग क्रीम द्य 1 कप मिक्स फू्रट केला, अनार, बब्बूगोसा, सेब, अंगूर द्य थोड़ा सा वैनिला कस्टर्ड पाउडर द्य थोड़ा सा पीला, लाल फूड कलर द्य 1 गिलास दूध द्य चीनी या शहद स्वादानुसार. विधि दूध में से 3-4 छोटे चम्मच दूध एक कटोरी में निकाल कर बाकी दूध एक फ्राइंगपैन में डाल कर उबलने रखें. जब दूध उबलने लगे तो आंच धीमी कर दें. कस्टर्ड पाउडर को निकाले दूध में घोल कर दूध को चलाते हुए उस में मिला दें. 5 मिनट पका कर आंच से उतार कर ठंडा होने दें. व्हिपिंग क्रीम बीट में क्रीम भर लें. अलगअलग कलर की तैयार कर लें. एक सर्विंग बाउल में स्पंज केक के टुकड़े कर के लगा लें. ऊपर से फू्रट्स सजा कस्टर्ड फैला दें. फिर अलगअलग कलर की क्रीम से सजा कर फ्रिज में चिल्ड कर सर्व करें. ड्राईफ्रूट डिलाइट सामग्री द्य 15 मखाने शैलो फ्राई किए द्य गोंद फ्राई किया द्य 2 बड़े चम्मच मगज भुनी द्य 50 ग्राम काजूबादाम भुने द्य 1/4 छोटा चम्मच सोंठ द्य गुड़ स्वादानुसार द्य 2 बड़े चम्मच घी द्य 1 गिलास पानी विधि मखाने, गोंद, मगज व काजूबादाम को दरदरा पीस या कूट लें. पैन में घी गरम करें. 1 गिलास पानी में गुड़ डाल कर घुलने तक पकाएं. अब इस में सारी सामग्री डाल कर 20 मिनट धीमी आंच पर पकाएं और फिर गरमगरम सर्व करें.

जंजाल – भाग 4 : नैना मानव को झूठे केस में क्यों फंसाना चाहती थी?

‘‘बहुत जल्दी भूल गए सपना को,’’ नैनाने कहा तो मानव को याद आया. सपना केसाथ उस के रिश्ते की बात चल रही थी. बात लगभग तय ही थी, लेकिन सगाई होने से 3 दिन पहले ही उस की प्रतियोगी परीक्षा का परिणाम आया और उस का चयन लेखाधिकारी के पदपर हो गया.

उस की नौकरी की खबर सुनते ही उस के पिता सपना के साथ रिश्ते को ले कर आनाकानी करने लगे और अंतत: वह रिश्ताटूट गया.‘‘तुम से रिश्ता टूटने के बाद सपना की सगाई कहीं नहीं हो रही थी. ऐसे में वह गहरे अवसाद में चली गई. उस ने कभी शादी न करने का फैसला तक ले लिया. उसे सामान्य करने में हमें क्या कुछ नहीं करना पड़ा. तभी मैं ने निश्चय किया था कि जिस सरकारी नौकरी का तुम दंभ पाले बैठे हो, उस से तो मैं एक दिन तुम्हें निकलवा कर रहूंगी,

नैना ने कहा तो मानव वर्तमान में आया.मगर अब तक सुहानी उस बातचीत को अपने मोबाइल में रिकौर्ड कर चुकी थी. हालांकि वह जानती थी कि यह कोई ठोस सुबूत नहीं है, लेकिन ‘न मामा से तो काना मामा ही भला’  क्या पता यही रिकौर्डिंग मानव के पक्ष को मजबूत बना दे. सुहानी ने मानव की तरफ से सचिव के नाम एक अपील लिखी.‘‘नैना ने जो आरोप मु झ पर लगाए हैं उन्हें साबित करने के लिए इन्होंने कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया. नैना यह साबित नहीं कर पाई कि मेरा कोई भी कृत्य आईपीसी की किसी भी धारा के अंतर्गत आपराधिक श्रेणी में आता है.

पूरे प्रकरण में चश्मदीद गवाह कोई भी नहीं है.‘‘केवल संदेह के आधार पर मु झे दोषी करार दिया जाना कौन से कानून में लिखा है?बंद कमरे में 2 वयस्कों के बीच जो कुछ भीहोता है वह सहमति से हुआ है या जबरदस्ती से, इसे साबित करने के लिए किसी के पास कोई सुबूत नहीं होता. ऐसे मामलों में कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं होता तो फिर आप मु झे किस आधार पर दोषी मान सकते हैं, माना कि मैंअपने पक्ष में सुबूत नहीं जुटा पाया तो क्या नैना ने मेरे गुनाह का कोई सुबूत पेश किया? नहीं न. सिर्फ अजय सर की गवाही को आधार बना कर मु झे दोषी साबित नहीं किया जा सकता.

वैसे भी अजय तो कमरे के बाहर ही थे न. भीतर क्या हो रहा है और किन परिस्थितियों में हो रहा है इस बात का उन्होंने केवल अंदाजा ही लगाया है, देखा तो कुछ भी नहीं. मु झे यह कहते हुए बहुत अफसोस होता है कि बहुत सी पढ़ीलिखी और जागरूक महिलाएं कानून द्वारा दिए गए अधिकारों का गलत इस्तेमाल करती हैं. नैना भी उन्हीं में से एक है.

‘‘मेरे पास इस बात के पुख्ता सुबूत हैं कि नैना ने मु झ से पुरानी खुंदस निकालने के लिए मेरे प्रति दुर्भावना रखते हुए एक सोचीसम झी चाल के तहत मु झे फंसाया है. न केवल मु झे बल्कि उस ने अजय का भी जो उस से सहानुभूति रखते थे गलत इस्तेमाल किया है.

अपनी दलील के पक्ष में मेरे पास एक औडियो रिकौर्डिंग है जिस में नैना खुद अपनी साजिश को स्वीकार रही है.’’ सुहानी ने अपनी अपील के अंत में समस्त बचाव पक्ष के साक्ष्यों को संलग्न कर के मानव को बरी करने का निवेदन सचिव महोदय से किया और मानव तथा नैना की बातचीत की रिकौर्डिंग को एक पैन ड्राइव में डाल कर मानव के साथ सचिवालय पहुंच गई.रिकौर्डिंग सुनने के बाद सचिव महोदय के सामने सारी तसवीर साफ हो गई. उन्होंने 4 दिन बाद नैना को अपने कार्यालय में उपस्थित होनेके लिए तलब किया. मानव को भी बुलाया गया था.

नैना अपना दांव उलटा पड़ते देख पहले ही घबरा गई थी. जैसे ही सचिव महोदय ने सख्त शब्दों में बात करनी शुरू की, नैना फूटफूट कर रोने लगी और उस ने अपनी गलती स्वीकारकर के उन से और मानव से लिखित में माफी मांग ली. सचिव महोदय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि मानव के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं है. उन्होंने परिवीक्षा अधिनियम के तहत संदेह का लाभ देते मानव का निलंबन आदेश निरस्त कर दिया तथा निलंबन काल में रोके हुए उस के वेतन एवं अन्य भत्ते भी बहाल करने का आदेश जारी कर दिया.

नैना को भविष्य में अपने आचरण में सुधार करने की चेतावनी देते हुए उस का ट्रांसफर जिला मुख्यालय से पास के कसबे में कर दिया गया. आदेश मिलते ही मानव ने सब से पहले सुहानी को फोन कर के यह खुशखबरी दी.‘‘थैंक्यू सुहानीजी. मेरी मदद करने के लिए,’’ मानव ने कृतार्थ होते हुए कहा.‘‘बधाई हो आप को. आप ने मु झे अपना वकील चुना इस नाते मैं ने जो कुछ किया वह मेरा पेशा था. लेकिन फिर भी मु झे अफसोस है मानव कि हम महिलाएं अपने उपयोग के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग करने से नहीं हिचकतींऔर अपने स्वार्थ की पूर्ति करने के लिए पुरुषों को  झूठे केस में फंस देती हैं. मैं पूरी महिलाजाति की तरफ से आप से माफी मांगती हूं,’’

सुहानी ने कहा.एक बार फिर से सुहानी को धन्यवाद देता हुआ मानव वापसी के लिए बस स्टैंड की तरफ चल दिया.‘वैसे नैना की प्रतिक्रिया भी जायज ही थी. गलती मेरी भी कम नहीं थी. मैं भी अपने पिता की बातों में आ कर सरकारी नौकरी पर दंभ कर बैठा था. हम ने भी तो सपना के साथ अन्याय किया ही था. सजा तो मु झे भी मिलनी चाहिए,’ मानव के मन में 1-1 कर विचारों की तरंगें उठगिर रही थीं. उस ने फैसला कर लिया कि वह नैना और सपना से माफी मांगेगा. यदि नैना राजी हुई तो उसे अपना कर अपनी भूल को सुधारने का प्रयास भी करेगा.विशाखा कमेटी, वकील, जिरहबहस और जांचपड़ताल के इस जंजाल से बाहर निकल कर अब उसे अपने पांव बहुत हलके, बेहद शांत और सफर आसान लग रहा था.

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